भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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'विदेह' ५९ म अंक ०१ जून २०१० (वर्ष ३ मास ३० अंक ५९)-PART V
प्रेमशंकर सिंह: ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा।मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिलीनाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचाप्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिलीअकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशनभागलपुर२००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओनाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८। २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगायात्री-चेतना पुरस्कार।
हरिमोहनझाकरचनाक परवर्त्ती रचनाकर्मीपर प्रभाव
विगतशताब्दीनिश्चये मैथिली साहित्यक हेतु स्वर्ण कालक रूपमे प्रवेश पौलक जकर फलस्वरूपसामाजिकवातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे साहित्यिक वातावरणमे नव स्पन्दनक संचार भेलैकजेमातृभाषानुरागी रचनाकार एकर चहुमुखी विकास-यात्रामेमनसा वाचा कर्मणा आ कर्त्तव्य बुद्धया अजस्र साहित्य सरिता प्रवाहित करबप्रारंभकयलनि जे पत्रिकादिक प्रकाशनक फलस्वरूप जनमानसमे मातृभाषाक प्रति अनुरागभावनाउत्पन्न करबाक निमित्त जनजागरणक अभियान चलौलनि जे वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमेऐतिहासिक महत्वक विषय भ’गेल अछि। मातृभाषानुरागी साहित्य सृजक नव-नवप्रवृत्तिक रचनाक माध्यमे जनमानसक ध्यानाकर्षित करबाक निमित्त नव भाव-धाराकसाहित्य-सृजनकरब प्रारम्भ कयलनि तकरा अस्वीकार करब रचनाकारक प्रति अज्ञानता प्रदर्शितकरब हैत।पत्रिकादिक प्रकाशनोपरांत मैथिली गद्य गंगा सहस्रमुखी साहित्यिक धाराउन्मुक्त भ’कए प्रवाहित होमय लागल जकर फलस्वरूप एकांकी, उपन्यास, कथा, निबन्ध, नाटक, प्रहसन, संस्मरण एवं यात्रा वृतांतादिक सर्वतोमुखी विकास-यात्राकशुभारम्भ भेल।
वस्तुतःउन्नैसमशताब्दीक उत्तरार्द्धमे नवीनताक सूत्रपात भेल जकर फलस्वरूप आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, एवं सांस्कृतिक जीवनमे नव-नवपरिवर्त्तन दृष्टिगत होमय लागल। सम्पूर्ण राष्ट्र यथार्थोन्मुख प्रवृत्तिसँप्रेरितभ’महात्मा गाँधीक स्वतंत्रता आन्दोलनक प्रश्रय देमय लागल। सामाजिक वातावरणकविशिष्टसन्दर्भमे ओकर प्रतिनिधित्व पाश्चात्य शिक्षित वर्गक हाथमे छल। ओ लोकनि एकभाग अपनसांस्कृतिक विरासतक सुरक्षार्थ उत्सुकता देखौलनि तँ दोसर भाग नव आलोककस्वागतकयलनि। एही सांस्कृतिक अनुष्ठानक पृष्ठभूमिमे अत्याधुनिक भारतीय भाषादिकविकास-यात्राकशुभारम्भ भेल जकर नेतृत्व बुद्धिजीवी लोकनि कयलनि। एही संक्रांति कालमेसाहित्यमेआधुनिकता प्रारम्भ भेल आ रचनाकार साहित्यक नवीनतम प्रवृत्ति दिस उन्मुखभेलाह जेहास्य-व्यंग्यकसजीव चित्र अपन साहित्यमे प्रस्तुत कयलनि।
उपर्युक्तपरिप्रेक्ष्यक स्वर्णिम बेलामे विगत शताब्दीक प्रथम दशकमे एक एहन अद्वितीयप्रतिभासम्पन्न साहित्य-सृजकप्रादुर्भूत भेलाह जे अपन विविध रूपा अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न रचनावली ल’कए पाठकक सम्मुख प्रस्तुत भेलाह जनिक साहित्यमे प्रचुर परिमाणमे हास्यतीक्ष्ण एवंप्रखर व्यंग्यक कारणेँ ओ जे लोकप्रियता अर्जित क’कए प्रमाणित कयलनि जे मिथिलाक पावन भूमि अद्यापि विश्वकवि महाकवि विद्यापतिसदृशसुसम्पन्न प्रतिभाशाली रचनाकार उत्पन्न क’सकैछ ओ रहथि हरिमोहन झा (1908-1984)।ओ प्रचुर परिमाणमे उपन्यास, एकांकी, कथा, कविता, निबन्ध, प्रहसन, एवंजीवनयात्राकरचना क’कए गद्य एवं पद्य धाराक अवरूद्ध मार्गकेँ नव प्रवृत्तिक रचनादि द्वाराप्रशस्तकयलनि। साहित्यक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थिक जे रचनाकार अपनअनुभूतिकेँसत्यताक संग उद्घाटित करब साहित्यकारक दायित्व होइछ। रचनाकारक व्यक्तित्वकनिर्माणमे अनेक प्रकारक भूमिका कार्य करैछ आ ओहि सभक सम्मिलित संयोजनसँ अपनरचनाकस्वरूप सुनिश्चित करैछ। मातृभाषानुरागसँ उत्प्रेरित आ अब्याहत मोह हिनकाअपन कौलिकविरासतक रूपमे प्राप्त भेलनि जकरा ओ जीवन आ जगतक गम्भीर अनुभवकेँ व्यक्तकरबाकतीव्र लालसा हिनका साहित्य-सृजनदिस प्रेरित कयलक। साहित्यिक क्षेत्रमे ई अपन अद्भूत समंवयात्मक दृष्टिकोणकपरिचयदेलनि। ओ युगक निष्प्राण धमनीमे अपन साहित्यक माध्यमे नव जीवनक रक्तसंचारित करबाकप्रयास कयलनि। ओ गद्य आ पद्य दुनू विधामे समान रूपेण लेखन कयलनि, किंतुपद्यकअपेक्षा गद्य-विधाकेँ, जकर अभाव मैथिलीमे छल तकरा पूर्त्ति करबाक संकल्प कयलनि।
ई श्रेय आप्रेयहुनके छनि जे ओ सर्वप्रथम मिथिलाञ्चलक संगहि संग राष्ट्रीय आ अंतराष्ट्रीयजनमानसकनव्यतम प्रवृत्ति हास्य-व्यंग्यकेँचिन्हलनि तथा ओकरा अवलम्बन क’कए कन्यादान (1933), द्विरागमन (1943), प्रणम्य देवता (1945), रंगशाला (1948), खट्टर ककाक तरंगक प्रथम भाग (1948), द्वितीय भाषा (1955), चर्चरी (1960), एकादशी (1964), जीवन यात्रा (1982), आ काव्य संग्रह (2005) आदि पुस्तक रूपमेप्रकाशित अछि।एहिसँ अतिरिक्त निबन्धादि यथा स्त्री-शिक्षाकवर्त्तमान दशा (मिथिला वर्ष-1 अंक-1 सन् 1336 वैशाख), स्वराज केँ लेत (मिथिला वर्ष-1 अंक-8 सन् 1337 अगहन) एवं देशाचार (डॉ. प्रेमशंकर सिंहक शोध प्रबन्ध)मे समसामयिकसामाजिककुरीतिक प्रति ओ साकांक्षकयलनि। हिनक निम्नस्थ कथादि यथा निरसन मामाक सिनेमा (1961), प्रगतिक पथपर (1961), शास्त्रार्थक जोश (1962), सहस्त्रर्थाचिभ्यो नमः (1962), सहयात्रिणी (1963), आबमोक्षे चाही (1970), भोला बाबाक गप्प (1974), कालाजारक उपचार (1977) एवंमहाभारतकक्षेपक (1979), मिथिला मिहिरमे धूल-धूसरितभ’रहल अछि। हिनक प्रहसन यथा बौआक दाम (1946), महाराज विजय (1948), ठोपसँ टोप (1935), आदर्श मैथिल रेलवे एवं रेलक झगड़ा (1960) आदि कोनो संग्रहमे नहि आबि सकल अछिजेचिंतनीय विषय थिक।
उपर्युक्तरचनादिमेओ सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे सामकालीन मैथिल समाजक कुरुचिपूर्ण सामाजिक विकृति एवं विसंगतिपर कुण्ठाराघात कयलनि। सादा जीवन आ उच्चविचारक ओप्रतिमूर्ति रहथि। ओ सत्य ज्ञानक भण्डार रहथि। ओ सशक्त व्यंग्यकार रहथि।हुनकचिंतन, पाण्डित्य, नीर-क्षीरविवेचनक शक्ति, व्यक्ति-व्यक्तित्वकखरेपन, सोझ, सपाट कथनक निखरल स्वरूप जनमानस समक्ष प्रस्तुत भेल जेउपन्यासकार, एकांकीकार, कथाकार, कविताकार, निबन्धकार, प्रहसनकार, एवं जीवन-यात्राकारकरूपमे हिनक साहित्यिक अवदान निश्चित रूपें प्रेरणादायक प्रमाणित भेलराष्ट्रीय एवंअंतराष्ट्रीय स्तरपर। हिनक चिंतन आ साहित्य-साधनासागर सदृश विशाल अछि जे परवर्त्ती साहित्यसाधक लोकनिक प्रेरणाक अविरल स्रोतबनल। ओअपन साहित्यिक प्रतिभा प्रसादात सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे अन्ध-विश्वास, रूढ़िग्रस्त परम्परा, धार्मिक वितण्डावाद, जीवनमे अंतर्विरोध, असंगति, ढ़ोंग, दम्म, पाखण्ड, बाबा वाक्यं प्रमाणम् क’हठधर्मियता, मिथ्या बड़प्पन, मूर्खतापूर्ण संघर्ष, जीर्ण-शीर्णविचार धारापर कशाघात क’कए आचार-विचारएवं वाह्याडम्बरक तीव्र आलोचना आ भर्त्सना कयलनि। आनक उपलब्धिकेँ सहज भावसँस्वीकारैत ओ सत्य गुणग्राहकक भूमिकाक निर्वाह कयलनि। हिनक कृतित्वकवैशिष्ट्य थिकहास्यमे सन्निहित व्यंग्य द्वारा ओ सामाजिक दोष दिस जनमानसक ध्यान आकर्षितकयलनि।प्राचीन एवं अर्वाचीन परम्परा एवं परिपाटीक दोष सम्प्रति वर्त्तमान अछि ओहिसभकेँलक्ष्य क’कए ओ अपन व्यंग्यवाण सँ बेधबाक प्रयास कयलनि। हिनक साहित्यमे ने तँ प्राचीनअन्धविश्वासक प्रति निष्ठा अछि आ ने तँ नवीनताक आन्धानुकरणक प्रति आशक्ति।
हरिमोहनझाकसम्पूर्ण साहित्य मात्र मिथिलाञ्चलक परिसर धरि सीमित नहि रहल, प्रत्युतराष्ट्रीयएवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर उज्ज्वल भविष्यक सूचक सिद्ध भेल। हिनका द्वारास्थापितपरम्पराक प्रभाव परवर्त्ती युवा पीढ़ीक साहित्यपर तीन रूपें पड़लैक। प्रथम तँईमैथिलीमे पाठक वर्गक निर्माण कयलनि। द्वितीय मिथिलाञ्चलक कन्या लोकनिकव्यक्तिगतजीवन प्रभावित भेल जे हजारक हजार शिक्षित भ’कए एक नव ज्योति जगौलनि। तृतीय प्रभाव पड़ल परवर्त्ती साहित्यकार लोकनिपर जेहुनकाद्वारा प्रवाहित हास्य-व्यंग्यअविरल धाराक अनुकरण क’कए साहित्यक विभिन्न विधामे साहित्य सृजनक परम्पराक शुभारम्भ कयलनि।
मैथिलीसाहित्यमेहिनका द्वारा हास्य-व्यंग्यकजे धारा प्रवाहित कयल गेल ओ एक नव-युगकअवतारणा क’कए नव ज्योति जगौलक। हिनक प्रतिभाक छाहरिमे न्यू फोर्सक आविर्भाव भेलैक।हुनक कथा-साहित्यकपरिवेशमे न्यू फोर्सक औनाहटिकेँ नहि थाहल जा सकैछ। न्यू फोर्सक अवतारणा एहनधरातलपरभेल आ एकर औनाहटि सर्वथा मौलिक छैक। हिनक साहित्यमे एकहि अकुलाहटि थिकसमाजक नवजीवन शक्ति (भाइटल फोर्स)क प्राचीनताक सड़ल छोलकोइया फोड़ि क’जनकल्याणक किरणसँ बाहर हैबाक अकुलाहटि। हुनक साहित्यमे रूढ़िवादक अन्धकारपूर्णरात्रिक अंतिम अंशमे विहग कुलक रागिणी जे अयनिहार नवयुगक आन्दोलनक स्वागतमेगूंजिरहल अछि। ओ नारी जागरण शंखनाद कयलनि जकरा माध्यमे पर्दा प्रथा, तिलक-दहेज, बाबा वाक्यं प्रमाणम् पर गम्भीर चोट कयलनि।
हिनकसाहित्य समाजकबीच प्रखर वेगसँ प्रवाहित होइत विभिन्न सामाजिक शक्ति सोसल फोर्सक घातप्रतिघातअछि। हुनक पात्र सभ परिस्थितिक प्रवाहमे बहैत अछि। आधुनिकताक बसातमे हिलैतअछि।
मैथिलीउपन्यासकक्षेत्रमे ई हास्य-व्यंग्यकजे अजस्र धारा बहौलनि जे परवर्त्ती उपन्यासकार लोकनिक पाथेय बनल। जतय ओशिक्षा-दीक्षाकारणेँ अनमेल विवाहक बलिदानक वेदी कन्या लोकनिक कुर्वान होइत देखलनि तकरापरवर्त्तीउपन्यासकार लोकनि व्यापक परिधिमे आनि यथा अवस्थाक कारणेँ अनमेल विवाह, रूप-गुणककारणेँ अनमेल विवाह, शिक्षा दीक्षाक कारणेँ अनमेल, विधवा-विवाहआदि विविध सामाजिक वातावरण विशिष्ट सन्दर्भमे समसामयिक समाजमे व्याप्तविविधसमस्यादिपर व्यंग्य कयलनि। वस्तुतः हिनक उपन्यासक प्रभाव मैथिली साहित्यपरतीनरूपें पड़लैक-समाजकमनोवृत्तिपर, कन्या लोकनिक व्यक्तिगत जीवनपर तथा परवर्त्ती लेखक समुदायपर।
हिनकउपन्यास नवयुगक चौराहापर सामाजिक वातावरणक विशिष्टसन्दर्भमे परम्परावादक गुदरीपहिरने, कट्टरता मारल, ढ़ोंगक झमारल, रूढ़िवादी जजर्रित समाजपर तीक्ष्ण व्यंग्य क’कए हास्य उत्पन्न कयलनि। हिनक हास्य-व्यंग्यसँसंयुक्त उपन्यास माइल स्टोन प्रभावित भेल जे हिनका द्वारा स्थापित मापदण्डकटक्करक्यो नहि क’सकला। हिनका द्वारा स्थापित एहि प्रवृत्तिक व्यापक प्रभाव परवर्त्तीअत्याधुनिकउपन्यासकार लोकनिपर पड़लनि जे वस्तुतः एहि प्रवृत्तिक वास्तविक विकासदृष्टिगत होइतअछि। हिनकासँ प्रभावित भ’योगानन्द झा (1922-1986) मिथिलाञ्चलमे प्रचलित कुलीन प्रथाक निस्सारतापर भलमानुस (1944) मेअन्धविश्वासकवेदीपर सुकुमारी निर्मलाक निर्मम हत्या आ पवित्रा (1966)मे बाल-विवाहककारणेँ वैधव्यक समस्या उपस्थित क’कए व्यंग्य कयलनि।
हरिसिंहदेवकवैवाहिक व्यवस्थाक पृष्ठभूमिमे कन्या-विक्रयआ वृद्ध-विवाहकपृष्ठभूमिमे वैद्यनाथ मिश्र यात्री (1911-1998), पारो (1353 साल) एवं नवतुरिया (1954)मे अवस्थाक कारणेँ अनमेल विवाहकसमस्यापरव्यंग्य कयलनि। उपन्यास सम्राट व्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म (1918-1986) अनलपथमे प्राचीन कुलीन प्रथाक नीचाँ दबायल चिनगोरा नव सामाजिक चेतनाकस्फुलिंग बनिक’भुवनेश्वर एवं सरिताक रूपमे खिलैत अछि। सामाजिक नैतिकताक भर्त्सनाक संगहि-संगएहिमे सामाजिक जीवनमे राजनीति एवं आर्थिक पक्षपर व्यंग्य कयल गेल अछि।शारदानन्दझाक जयवार एवं अवधनारायण झाक वनमानुषमे उपन्यासकार समाजांतर्गत कतिपय उदण्डव्यक्तिक दुष्कर्मसँ परिवार कलंकित भ’सम्पूर्ण समाज हास्यापद भ’जाइछ। राजकमल (1929-1967), पाथर फूल (1957) एवं आदि कथा (1958)मे व्यक्तिक व्यवहार एवं आंतरिक जगतकवीभत्सनग्नता एवं सामाजिक विरूपतापर व्यंग्य कयलनि। जतय विन्देश्वर मण्डल बाटकभेट जिनगीकगेंठ (1967)मे तिलक-दहेजपरततय रूपकांत ठाकुरक नहलापर दहला (1967)मे बीसम शदीक उत्तरार्द्धमे जीवनमेआयलविसंगतिपर हास्य-व्यंग्यशैलीमे समसामयिक समाजपर व्यंग्य कयलनि।
समाजकपरिवर्त्तितपरिवेशमे ओ कथा-साहित्यांतर्गतजाहि हास्य-व्यंग्यशैलीक अवतारणा कयलनि तकरा परवर्त्ती पीढ़ीक युवा कथाकार लोकनि अधिक प्रशस्तकयलनि।किछु कथाकार तँ हुनक विचारधाराक अनुगमन कयलनि आ किछु व्यंग्य-मिश्रितभाषा-शैलीकेँ।परवर्त्ती कथाकार कोन अनुपातमे हुनक अनुकरण ओ विचारणीय प्रश्न अछि। हिनककथाकलोकप्रियताक फलस्वरूप परवर्त्ती कथाकार हाँजक हाँज अग्रसर भेलाह जकरफलस्वरूप हास्य-व्यंग्यशैलीक निम्नस्थ कथा संग्रह प्रकाशमे आयल यथा नागेन्द्र कुमारक ससरफानी (1947), दृष्टिकोण (1954), शिकार (1954), एवं फलेना जामुन (1955), मायानन्द मिश्र (1934)कभाङक लोटा (1957) गोविन्द चौधरीक पाञ्चजन्य, रूपगर्विता एवं पाँच फूल, उदयभानुसिंहक जखन-तखन (1963), रूपकांत ठाकुरक धूकल केरा (1964) एवं मोमक नाक (1965), रमानाथमिश्र मिहिर (1939-1999)कस्मृति (1965) एवं एकयुगक बाद (1975), छत्रानन्दसिंह झा (1946)क डोकहरकआँखि (1971) एवं काँटकूस (1977), हंसराज (1938-2006) जे कीने से (1972) दमनकांत झा (1924-1994)कगपाष्टक (1974), अमरनाथ झाक क्षणिका (1975), एकटा चाही द्रोपदी (1976), कबकब (1977), जोंक (1978), मोम जकाँ वर्फ जकाँ (1980) एवं अधकट्टी (2007) तथामंत्रेश्वरझा (1944)क एक बटे दू (1977) आदि उल्लेखनीय अछि। परवर्त्ती किछु कथाकारएहन छथिजनिक कथा संग्रह तँ नहि प्रकाशमे आबि सकल अछि, किन्तु समकालीनपत्रिकादिमे हुनकासभक एहि प्रवृत्तिक कथादि प्रकाशित अछि जकर संख्या शताधिक अछि।
हरिमोहनझा नेविश्रुत गद्यकार रहथि, प्रत्युत वाक् सिद्ध कविताकार सेहो रहथि। हुनकाविलक्षणप्रतित्वपन्नमतित्वक प्रतिभा सेहो छलनि। काव्यक क्षेत्रमे कुत्सितवैवाहिकपरम्परा, बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह, आधुनिक फैशन एवं सभ्यता, महगी, धार्मिकपाखण्ड, पर्दाप्रथा इत्यादि विषयकेन्द्रित क’कए गंभीर व्यंग्य कयलनि। परवर्त्ती युवा पीढ़ीक कवि लोकनि कतिपय कविताकरचनाकयलनि। ओ ढ़ाला झा (विक्रम संवत् 2003)मे एहन व्यंग्यात्मक चित्रप्रस्तुत कयलनिजे लुट्टी झाक प्रप्रौत्र, नरहा पाञ्जि, ककरौड़क निवासी तथा बेलौंचेक वंशज, जनिकस्वरूप देखितहि पाठकक हास्यक अन्त नहि होइछ। एकर प्रभाव परवर्त्ती बड़चर्चितकाव्यकार वैद्यनाथ मिश्र यात्रीपर पड़ल आ ओ बूढ़वरक रचना कयलनि जे मैथिलसमाजकयथार्थ व्यञ्जना उपस्थित करैत अछि। ई कविता भावनाक तीव्रताक कारणेँहृदयग्राही बनिगेल अछि। वृद्ध विवाहक शब्द-चित्र चन्द्रनाथ मिश्र अमर (1925) बुढ़बाकाका (1364 साल)मे अंकित कयलनि जे पुनर्विवाहक हेतु कतेक व्याकुल छथि। एहनवृद्ध-वरकेँ देखि क’केँ पाठक नहि हैत जकरा हृदयमे आक्रोशक भावनाक उदय नहि हैत। एहि परम्परासँप्रभावितसमाजक यथार्थ अभिव्यञ्जना वैद्यनाथ मिश्र यात्री बूढ़वरमे कयलनि :
·माथ छलनि औन्हल छाँछ जकाँ
·जीह गाँजक जोलही माछ जकाँ
·दाँत ने रहन्हि निदन्त रहथि
·बूड़ि रहथि घेंत्था वसन्त रहथि
मिथिलाकसमसामयिकसमाजमे वृद्ध-विवाहक प्रचलनक कारणेँ कन्या विक्रय प्रथाक प्रचलन भेल। एहिपरिप्रेक्ष्यमे हरिमोहन झा कन्याक निलामी डाक (1336 साल)मे पतित कुलीनप्रथापरकुण्ठराधात कयलनि जे कन्या एवं वर पक्षक घटक कोना मायाजालमे फँसा क’कोमल कलीकेँ वृद्धक संग विवाह स्थिर करैत छथि तकर मार्मिक चित्रणसँप्रभावित भ’वैद्यनाथ मिश्र यात्री जखन कहैत छथि :
·देख’ मे सुखैल पकटैल काठ रुपैया बान्हि बूढ़ ऐला सौराठ
बुद्धि तँ बढ़ि गेल मुदा अहॉंले जे साया, साड़ी, बेलोज आ सेंडिल आ एगो पर्श आनए छेलौं सेहो छिना गेल
मनोज कुमार मंडलक चारिटा कविता-
चाह- 1
बड़ सोचि पड़ल
नाम चाहक
चाह, चाह, चाह
अनघोल भऽ गेल
उठैत जाह, बैठैत चाह,
मन भकुआएल तखन चाह,
चाहक चाह
केओ आएल तँ चाहे चाह।
चूल्हिपर बनल
गिलासमे पड़ल,
फुकि-फुकि पीयक
भेल चाह।
बनल बाहर,
जाएत भीतर,
तखनो नै
मेटाएल चाह।
बाहर तँ छिरिआएल चाह
पानि, दूध, चीनी-पत्ती,
मिलत तखने चाह।
समटल रहैत चाह।
चाहेसँ सृष्टि बनल
जिनगीक पग-पगपर
चाह बनले रहल
बाहरि जग
चाहसँ बनल
मिटल नइ
अन्दरक चाह।
चाह रूकत
ठमकत सृष्टि।
िजनगीक नै
रहत ठेकान।
बाहरक चाहसँ तृप्ति नै होएत
अन्दरक चाहक
स्वाद भेटत अन्दर
तखन नै
रहि जाएत चाह।
खेल- 2
खेल खेल खेल
खेल बौउआ खेल
चोरा-नुकी खेल
अज्ञानक अन्हारमे
नुकाएल चोरबा
ज्ञानक किरनसँ
पकड़ल गेल
खेल खेल खेल
खेल दाय खेल
कनियॉं-पुतरा खेल
बेइमानक नगरीसँ
नकलल बहुरिया
शैतानक माफापर
बैठा देल गेल
इमानक चौबटियापर
पकड़ल गेल
खेल खेल खेल
बैआ-बुच्ची खेल
गुड्डा-गुडि़या खेल
स्वाभिमानक गुड्डाकेँ
विआह ठीक भेल
माया नगरीमे
सोर भऽ गेल
ज्ञानक बाट मादे
सायक रथ
तैयार भऽ गेल
तियागक पाग पहिर
बिआह करए गेल
खेल खेल खेल
सभ मिल खेल
जिनगीक खेल खेल
दयाक मूर्ति गुड़िया भेल
ममताक नगरी
सजा देल गेल
सदाचारी, इमानदारीक
जोर भऽ गेल
बइमानीक पर्दा फास भऽ गेल
अहिंसाक अंगनामे
ढोल बाजि गेल
कर्मठ मानवताक
उदए भऽ गेल
गुड्डा-गुड़ियाक
विआह भऽ गेल
खेल खेल खेल
खेल बच्चा खेल
मर्यादाक खेल।
मिथिला- 3
मिथिलाक मंगल आंगनमे
अन्नक लागल ढेर छल
कृषकक परिवार भरल आर
राजा जनक मिथिलोश छल।
सरस्वती छलीह बान्हल बेटी,
लक्ष्मी कतए बाहरैत घर-आंगन
केतौ दर्शनक प्यास छल
सदाचारी, इमानदारीक दिव्य ज्योतिसँ
सबहक विवेक जगल छल।
जनक मिथिलाक मनीष बनि,
जगमे अपन कृतक झंडा लहराबैत छल।
मैथिलीक ऑंचर तर भेटैत
सभकेँ शीतल छॉंह छल।
गाए-महीस घर-घर बान्हल,
हर, कोदाइरक पहचान बनल छल।
ज्ञान, मुक्ति, बैरागक विषएपर
हरदम करैत विचार छल।
िमथिलाक बेटी अवला नहि।
उठबैत शिव धनुष छलीह।
मनक सरलता एतबा लगैत,
जेना बागक कोमन फूल छल।
उच्च-नीचक विचार नै कोनो
समतामूलक समाज बनल छल।
जाति-धरमक बात नै पुछू
मरमे सबहक बाप छल।
लिखलाह तुलसी, वाल्मिकिजी
ओ सद् ग्रंथ रामाएन छल।
ई कथा फूसि नै कहैछ
अष्ठावक्र गवाह छल।
जिनगीक बाट- 4
मनुख, मनुखेटा सँ नै प्रेम करए
सबहक संग स्नेह रखै मनुख,
ताहि लेल मनुखक सृजन भेल
सभसँ बुद्धिगर जीव बनल
तेँ जग चीनहक अधिकार भेटल
नीक बाटे मनुख चलए
ओ मनुख नै देवता
अधलाह बाट धऽ चलत मनुख,
मनुख रहितो शैतान बनत
हम मनुस नै, मनुख हमर सृजन छी
हम सभ सभमे रहैत बाघ, बकरी, कुकुर छी।
हमरे रचल अछि सभ जीव,
हमरे बसाैल ई जग छी
हमरे गढ़ल सुन्दर काया,
तकरे हम राति-दिन हकै छी
माया नगरीमे दौड़बैत-दौड़बैत,
सॉंस रहए की बन्न भऽ जाए
हम कखनो नै थाके छी
श्रद्धा राखि आशा धरू,
आशेपर टिकल जीनगी अछि।
विसबासक डोर थामि अहॉं,
कर्मक बाट पकड़ि आगू बढ़ू
बाटपर ठाढ़ भऽ राह देखैत छी,
कखन मिलब हमरासँ अहॉं
कने चूक भेने राह हेराएत,
हम अहॉंक, अहॉं हमर,
तखनो नै हम भेटब अहॉंक।
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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