भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, July 04, 2010

'विदेह' ६० म अंक १५ जून २०१० (वर्ष ३ मास ३० अंक ६०)-PART V


जीवन संघर्ष- ५


भरि राति‍ जहि‍ना गामक लोक जगले रहि‍ गेल तहि‍ना मेलो देखि‍नि‍हार आ दोकानो-दौरी केनि‍हार। मुदा अपनापर सभकेँ अचरज लगै जे जाति‍ सुतैबला छी ओइमे कन्ना दि‍नोसँ बेसी काज केलहुँ। अन्‍हार गुप-गुप राति‍ ने इजोत ने चान, अमावसि‍यो ओहन जहि‍मे धनधाेर करि‍या बादल आि‍ब आरो अन्‍हार कऽ देने रहए। आध पहर राति‍येसँ दोकानोदार आ नाचो-तमाशाबला भगए लगल। ओना गाड़ी-सवारीक अभाव गाममे मुदा, मोबाइल जे ने करए। राति‍-राती कतएसँ ओते गाड़ी आबि‍ भोर होइत-होइत कदबा कएल खेत जेकॉं बना देलक। सभ -गौओं-अनगौओं- अपन-अपन जान बँचल देखि‍ खुशी रहए। अपन-अपन समांगक गि‍नती करैकाल कि‍यो-कि‍यो खुशि‍यो रहै आ कि‍यो-कि‍यो, समांगसँ आनो-आनचीज नोकसान देि‍ख, कनि‍येसँ बेसी धरि‍ दुखि‍यो रहए। मुदा दैवक डांगक देवाक शक्‍ति‍ नहि‍ बुझि‍ अपन-अपन भाग्‍यकेँ कोसि‍ कने-मने व्‍यथि‍तो रहए। चारू पार्टी -वृन्‍दावनक रास, मुजफ्फरपुरक नाट्क, मेल-फीमेल कौव्‍वाली आ महि‍सोथाक मलि‍नि‍या नाच- अधा-अधा रूपैया पहि‍ने सट्टे करबैकाल लऽ लेने रहए, तेँ कमि‍टि‍क भेंटि‍ करब जरूरी नहि‍ बुझि‍ अनरोखे डेरा तोड़ी लेलक। तेकर कारणो रहै, कारण रहै जे स्‍टेजबला घटना सभ देखनहि‍ रहै, जहि‍सँ सभकेँ थर-थरी पैसल। जखने घटना भेल तखने थाना-बाहानक‍ दौड़ शुरू हएत। जखने दौड़ शुरू हएत तखने जे फॉंटि‍पर पड़त, जहलक हवा खाएत। तइसँ नीक जे कने थाले-खि‍चार ने छै मुदा, जान बँचत तँ देहेक सावुनसँ कपड़ो खीचि‍ लेब। मुदा ऐठामसँ पड़ाएवे नीक हएत। तहि‍ना बनि‍यो-बेकाल सेचै जे एक तँ पूँजी गेल तइपर सँ अनेरे कोट-कचहरीमे जे बरदाएव तइसँ नीक जे बँचल रहब तँ कमा लेब।
    अनगौवॉंक तँ अनगौवॉं बुझए मुदा, गामक गि‍नतीमे देवनाथ आ जोगि‍नदर कमेत रहए। राति‍ये दुनू मरि‍ गेल आकि‍ पड़ा गेल, ई बात मंगलक मनकेँ झकझोड़ैत रहए। गाममे जते पाहुन-परक आएल रहथि‍ सबहक मनमे यएह होइत रहनि‍ जे कतए एलहुँ तँ कतहुँ नहि‍। तइपर सँ जहि‍ना झॉंट-पानि‍मे गाछपर रहैबला चि‍ड़ै-चुनमुनीक होइत तहि‍ना पहुनाइ करैबला पाहुन सबहक होइत रहनि‍। मुदा-कहथि‍न ककरा। लोक अंगना-घरक टाट-फड़क सोझराओत कि‍......।
ओना जेठक रौदमे तपल धरतीपर बि‍हड़ि‍या हाल भेने जेहन सुगंध माटि‍सँ नकलैत तेहन नहि‍। कोन दोग देने जाड़ो चलि‍ आएल सेहो ने कि‍यो देखलक।
  जहि‍ना जवानीक आगमनसँ शरीर सभ अंगक सौन्‍दर्य दि‍टका अपना दि‍स आकर्षित करैत तहि‍ना धरतीयोक पि‍याससँ जरल मन छॉंक भरि‍ पानि‍ पीवि‍तहि‍ शक्‍ति‍ पावि‍ आलि‍ंगनक लेल दुनू बॉंहि‍ पसारि‍ अपन प्रि‍यतम -कि‍सान- केँ बारहमासा सुनए लगल। पि‍याससँ सुखाइत कि‍सानोक कंठ पानि‍ पीबि‍तहि‍ तृप्‍त भऽ प्रि‍यतम दि‍स ऑंखि उठा-उठा देखए लगल। देखए लगल जे अखन धरि‍ पि‍याससँ मरनासन्न भऽ गेल छलीह एकाएक कते शक्‍ति‍बान भऽ गेलीह। नव सृजनक शक्‍ति‍सँ लऽ कऽ सुखाएल-जरल जजात तकमे जान फूकि‍ देलनि‍।
    अखन धरि‍ गामक कि‍सान धानक खेतीमे बँटाएल छथि‍। बटेवाक अनेको कारणमे दू कारण प्रमुख अछि‍। पहि‍ल, खेतक बनावटि‍ आ मनक सोच। साबि‍कसँ अबैत खेती -उपजवैक ढंग- आ आधुनि‍क बैज्ञानि‍क ढंग।
    जहि‍ठाम अदौसँ अबैत खेती रासायनि‍क खाद, समुचि‍त पानि‍ -सि‍ंचाई-, उन्नत बीआक संग नव तकनीकक -लूरि‍क- अभावमे पाछुए मुँहे लुढ़कैत गेल अछि‍ ओकरा आगू मुँहे कोना बढ़ौल जाए, मूल प्रश्‍न सबहक सोझमे ठाढ़ अछि‍। देशक बढ़ैत जनसंख्‍या की खाएत? ई वि‍चार तँ खेतक मालि‍क कि‍सानेकेँ करए पड़तनि‍। मुदा कि‍सानो तँ खेतकेँ मात्र खति‍आने, दस्‍तावेज धरि‍ बुझैत छथि‍। ऐहना परि‍स्‍थि‍ति‍मे हमरा की ‍करए पड़त, ई ने बुझए पड़तनि‍। नहि‍ बुझैक अनेको कारणमे एकटा इहो कारण अछि‍ जे चाहे जे कोनो प्रचार माध्‍यम् हुअए वा प्रवचन देनि‍हार होथि‍, ओ अखन धरि‍ कि‍सानक स्‍वरूपकेँ झॉंपि‍ कऽ रखने छथि‍। जेकरा इमानदारीसँ कि‍सानक बीच रखए पड़त। जँ से नहि‍ तँ छह सए बर्ख पूर्व -जे लगभग पच्‍चीसो पीढ़ी होएत- तुलसीदास वि‍नय पत्रि‍का मे समाजक दशा देखलनि‍- खेती न कि‍सान को। जँ कि‍सानक खेती भरि‍ जाए, व्‍यापारीक व्‍यापर तँ भि‍खमंगोकेँ के भीख दऽ सकत। जँ भि‍खारीकेँ भीख नहि‍ भेटनि‍ तँ पार्वती महादेव सन भि‍खमंगाक संग काए दि‍न रहती।
    प्रश्‍न मात्र खेतीएक नहि‍ जीवनक छी। आजुक जेहन समए भऽ गेल अछि‍ ओहि‍ अनुकूल जाधरि‍ अपनाकेँ नहि‍ बना समएक संग नहि‍ चलि‍ सकब ताधरि‍ बच्‍चा जेकॉं लुढ़कि‍-लुढ़कि‍ खसि‍ते रहब। मुदा समएक संगो होएव धीया-पूताक खेल नहि‍। धरतीपर सभसँ श्रेष्‍ठ जीव मनुष्‍य होइतहुँ एक-दोसरसँ करोड़ो कोस हटल अछि‍। जहि‍ना वि‍शाल बनमे लाखो-करोड़ो प्रकारक गाछ-वि‍रीछसँ लऽ कऽ झाड़-झूड़ होइत माटि‍मे सटल घास धरि‍ रहैत अछि‍ तहि‍ना मनुक्‍खोक बोनमे अछि‍। एक दि‍स अज्ञानक अंति‍म छोड़पर रहनि‍हार तँ दोसर दि‍स चानपर वास करैबला। मुदा जहि‍ना बनमे छोटसँ छोट जन्‍तुसँ लऽ कऽ बाघ, सि‍ंह, हाथी धरि‍क भोजनो आ रहैओक व्‍यवस्‍था अछि‍ तहि‍ना ने मनुक्‍खोक बनमे अछि‍। अनेको तरहक बाट आ वि‍चार अदौसॅ अबैत रहल अछि‍। एक पुरूष-नारीक संबंधकेँ धरमक श्रेणीमे रखनि‍हार अपनहि‍ नि‍यम तोड़ि‍ नि‍यामक छथि‍। जि‍नकर देखा-देखी बढ़ि‍ते गेल अछि‍। जहि‍सँ सदति‍काल नव-नव वि‍चारक संग नव-नव बाट बनि‍ रहल अछि‍। मुदा जहि‍ना समुद्रमे अमूल्‍य रत्‍नसँ लऽ कऽ घोंघा-सि‍तुआ-धरि‍ आनन्‍दसँ रहैत अछि‍ तहि‍ना ने समाजोमे अछि‍। मुदा तेँ सघन खरहोि‍रमे चलनि‍हार नहि‍ छथि‍, जरूर छथि‍। भले जहि‍ खरहोरि‍मे एक इंच खाली जगह नहि‍ रहनहुँ खढ़क गाछकेँ दुनू हाथे बि‍हि‍या-बि‍हि‍या एक भागसँ दोसर भाग पाड़ करि‍तहि‍ छथि‍। आजुक सघन जि‍नगी ऐहने भऽ गेल अछि‍। मुदा प्रश्‍न उठैत जे सीना तानि‍ आगू मुँहे बढ़ल जाय वा पीठ देखा पाछु मँुहे ससरल जाय?
  जाधरि‍ सीना तानि‍ आगू मुँहे नहि‍ बढ़ब ताधरि‍ असीम शान्‍तक गाछ लग कोना पहुँचब? जँ से नहि‍ पहुँचब तँ अनेरे कि‍अए अन्न-पानि‍केँ दुि‍र करै छि‍यै। जि‍नगीक सफलताक सर्टिफि‍केट सि‍र्फ कठि‍न साधनासँ भेटैत छैक नहि‍ कि‍ कट-पीस रास्‍तासँ। जाधरि‍ असीम शान्‍ति‍ नहि‍ पएब ताधरि‍ जि‍नगीक सफलताक सर्टि‍फि‍केट कोना पाबि‍ सकब।
    मेघौन मेघ रहने सूर्य अबेर कऽ ओछानि‍ छोड़लनि‍। मुदा तेँ कि‍ अकासमे उड़ब चि‍ड़ै बि‍सरि‍ गेल। गोसाँइकेँ जगवैत ढोलि‍या गोवरधन पूजा करबए गाम दि‍स बि‍दा भेल। मनमे खुशी। कि‍ऐक नहि‍ खुशी रहतै खेतजोति‍नि‍हार कि‍सानसँ लऽ कऽ गाए पोसि‍नि‍हार कि‍सान धरि‍ एहि‍ठाम जेबाक छैक। आमदनि‍यो नमहर तँ मेहनतो कम नहि‍। गोवरधन पूजाक लेले कि‍यो करमी लत्ति‍क भॉंजमे तँ कि‍यो ठेका-गरदामीक ओरि‍यानमे जुटल। कि‍यो दोकानसँ रंग आनि‍ गरदामी रंगैत तँ कि‍यो रंग-ि‍वरंगक गाछ-पात-बुट्टीक ओि‍रयान सोनहाउनले करैत। स्‍त्रीगण सभ भि‍ने बताहि‍ भऽ गोधन महराजक संग-संग धान-मड़ूआक बखारी बनवैत। मुदा मनमे एकटा शंका रहवे करनि‍ जे ढोलि‍या ने पहि‍ने आबि‍ जाय। बेचाराकेँ सौँसे गाम घूमए पड़तै कि‍ कोनो हमरे ऐठाम भरि‍ दि‍न रहने पेट भरतै। कि‍यो खरि‍हान बनबै पाछु बेहाल तँ कि‍यो जन-बोनि‍हार मि‍लि‍ चाह-पान करैत।
    ओना समएक फेरि‍मे पड़ि‍ कि‍यो भोरमे सुप नहि‍ बजौलनि‍। हो न हो दरि‍दरा कहीं नि‍र्विरोध सालो भरि‍क लेल फेरि‍ ने रहि‍ जाय। मुदा साले साल भगौनौ -सुप बजा- तँ रहि‍ये जाइत अछि‍ तखन भगै कि‍ अछि‍। जहि‍ना परशुराम क्षत्रि‍यकेँ मेटबैक लेल दर्जनो बेरि‍ सामुहि‍क हत्‍या केलनि‍ मुदा, तइओ क्षत्रि‍य रहि‍ये गेलाह। हो न हो कहीं ऐहने जि‍वठगर दरि‍दरो ने तँ अछि‍।
    झॉंट-पानि‍क चलैत काली-पूजाक जे दशा भेल ओ तँ भेवे कएल जे, कतेको समस्‍या समाजक बीच आनि‍ कऽ रखि‍ देलक। जहि‍ना घर बन्‍हैकाल एक-एक वस्‍तुक ओि‍रयान करए पड़ैत अछि‍ तहि‍ना खसलो करै पड़ैत अछि‍।
  साइकि‍ल उठा मंगल काली-पूजा समि‍ति‍ बैसार करैले समि‍ति‍क सदस्‍य ऐठाम वि‍दा भेल। सभसँ पहि‍ने देवनाथ ऐठाम पहुँचल। देवनाथकेँ दरवज्‍जापर नहि‍ देखि‍ जोरसँ बाजल- देवनाथ जी, यौ देवनाथ जी......।
  मुदा कार-कौआ धरि‍क कुचरब नहि‍ सुनि‍ पुन: दोहरौलक- देवनाथ जी, यौ देवनाथ जी.....।
  देवनाथक नाओ सुनि‍ पत्‍नी आंगनसँ नि‍कलि‍, बजलीह- काल्‍हि‍ बेरू पहर जे घरपर सँ नि‍कललाह ओ अखन धरि‍ कहॉं एेलाहेँ। कालि‍ये स्‍थानमे छथि‍।
    काली स्‍थानक नाओ सुि‍न मंगल चौंकि‍ गेल। बाजल- कालि‍ये स्‍थानमे वैसार छी, यएह कहैले आएल छलौं। जँ ओतै हेता तँ भेंटे भऽ जेता नइ जँ घरपर आि‍ब जाथि‍ तँ कहि‍ देवनि‍।
  कहि‍ जोगि‍नदर ऐठाम वि‍दा भेल। ओकरो पता नहि‍ बीसो सदस्‍य ऐठाम पहुँच मंगल घरपर आबि‍ साइकि‍ल रखि‍ काली स्‍थान वि‍दा भेल।
    एका-एकी एगारह गोटे -सदस्‍य- काली स्‍थान पहुँचल। गप-सप्‍प शुरू भेल। जीबछ मंगलकेँ पुछलक- सि‍ंहेसर भाय कि‍अए ने आएल?”
  जीवछक बात सुि‍न मंगल बाजल- ओ तँ घरोपर नै रहए। घुरऽ लगलौं तँ माए भेटली। पुछलि‍एनि‍ तँ वएह कहलनि‍ जे आध पहर राति‍ये खाटपर टॉंगि‍ दुखाकेँ डाकडर अइठीन लऽ गेलै।
  की भेलै दुखा कक्काकेँ?”
  वएह कहलनि‍ जे ओहो मेले देखए गेल रहए। जखैन पानि‍-वि‍हाड़ि‍ आएल तँ घरपर पड़ाएल। रास्‍तामे एकटा घुच्‍चीमे पएर पड़ि‍ गेलै कि‍ खसि‍ पड़ल। ठेहुने टुटि‍ गेलै।
  ठेहुन टूटब सुि‍न अपसोच करैत जीबछ बाजल- बाप रे जुलुम भऽ गेलै। वेचाराकेँ ने अपना बेटा छै, बेटि‍ओ सासुरेमे रहै छै। घरोवाली हफ्सीएक रोगी छनि‍। हे भगवान तोहूँ बड़ अन्‍यायी छह। जेकरा दुख दइ छहक ओकरा मुरदा जेकॉं एक-एकटा चेरा चढ़वि‍ते रहै छह। हम तँ बुझवे ने केलि‍यै नइ तँ इलाजक खर्च इलाजक खर्च मदैत कऽ दैति‍यै। नीक केलक सि‍ंहेसर। ऐहन-ऐहन बेरि‍पर जे बेटा समाजमे ठाढ़ हएत वएह ने भारत माताक सपूतक प्रथम श्रेणीमे आओत।
  मंगल- जीवछ भाय, हमहूँ तँ बहुत नहि‍ये पढ़ने छी, कि‍ऐक तँ स्‍कूल-कओलेजमे लोक परीक्षा पास करैले पढ़ैए। ज्ञानक पाठ तँ जि‍नगीमे उतड़ला बाद पढ़ैए। जे काज सि‍ंहेश्‍वर भाय करए गेल ओ आइक समाजक मांग छी। मुदा ऐहन-ऐहन काज करैबला बेटा अदौसँ जन्‍म लइत आएल अछि‍। समाजक मुख्‍य सेवा -समाज सेवाक मुख्‍य कर्तव्‍यमे- ऐहन-ऐहन काजकेँ राखल गेल अछि‍। जे सेवा अदौसँ चन्‍दनक गाछ जेकॉं जन्‍म लऽ बढ़ैत-बढ़ैत फुलाइत-फड़ैत रहल ओ ठमकि‍ कऽ सुखि‍ रहल अछि‍। सुखि‍ये नहि‍ रहल अछि‍ एहि‍ गति‍ए सुखि‍ रहल अछि‍ जे कि‍छु दि‍नक उत्तर कोकणि‍ कऽ उकैन जाएत।
  मंगलक बात जीबछ दुनू कान ठाढ़ कऽ, ऑंखि‍ बि‍दारि‍, मुँह बावि‍ सुनैत। जहि‍ना मुँहसँ नीक वस्‍तु खेलापर मन खुशी होइत, कानसँ सुनलापर मुँहकेँ हँसेबो करैत आ हृदयकेँ गुदगुदेवो करैत तहि‍ना ऑंखि‍ वि‍वेकक ऑंखि‍केँ सेवा करए पहुँच जाइत। तहि‍ना जीबछोकेँ मंगल बातसँ भेल। बाजल- भाँइमे कि‍यो दादा हुअए। बच्‍चा भलेहीं उमेरमे वेसी छि‍अह, मुदा भऽ गेलि‍यह बगुरक गाछ जेकॉं जे जहि‍येसँ जनमि‍लि‍यह तहि‍येसँ कॉंटो-कुशमे गना गेलि‍यह। गि‍नति‍येक हि‍सावसँ काजो भेल। मुदा आब समाजक एक खूँटाक रूपमे जि‍नगी ि‍बताएव। जइ स्‍थानकेँ भगवान -झॉंट-पानि‍- मारि‍ देलखि‍न ओइ स्‍थानपर बैसल छी। -श्‍मशान महादेवक साधना स्‍थल- अपना सबहक पुरना -पौराणि‍क राजा जनक- राजा केहेन छेलखि‍न।
  मंगल बाजल- ओ ओहन राजा छेलखि‍न जे एक-एक आदमीक जि‍नगीमे पेसल छेलखि‍न। एते सि‍पाही रखने छलाह जे समएक हि‍सावसँ कि‍यो आगू-पाछू नइ हुअए तइपर सदति‍काल ऑंखि‍ गड़ौने रहैत छलाह।
  हुनकर फुलवारी केहेन छलनि‍?”
  हुनकर फुलवारीक जोड़ा दुनि‍यॉंक कोनो राजा नै लगा सकलाह। कि‍छु राजा जरूर अपन धन, बल, जन लगौने छथि‍।
  फुलवारीक गाछ सभ केहेन छै?”
  फुलवारीक बीचमे वि‍वेकक गाछ छै। वि‍वेकक बगलेमे मन, बुद्धि‍क गाछ छै। तेकर काते-कात सेवाक गाछ छै जे सदति‍ काल हरीक हरि‍यरीपर नजरि‍ रखैत अछि‍।
    मंगलक बात सुि‍न भुवन बाजल- मंगल, काल्‍हि‍ धरि‍ समाजक जइ काजमे लागल छेलौं, नीक कि‍ बेजाए, सम्‍पन्न भऽ गेल। अखन जे गाम तहस-नहस भऽ गेल अछि‍, पहि‍ने ओकरा देखैक अछि‍। जखने झॉंट आएल तखने कि‍छु नहि‍ कि‍छु सभकेँ झटनै हएत। सतनाकेँ सेहो नहि‍ये देखै छि‍यै?”
    रस्‍ते कातमे ओकर जामुनक गाछ छलै सएह रस्‍तेपर खसि‍ पड़लै। रस्‍ते बन्न भऽ गेल छै, तेकरे काटै-खोंटैले गेल।
  नि‍रधन कि‍अए ने आएल?”
  ओकरा तँ आरो बड़का फेरा लागि‍ गेलै। चारि‍ये कट्ठा अपना खेत छै। जइमे कति‍का धान केने अदि‍। गहींरगर खेत छै धान सुतैर गेलै। कालि‍ये पूजा दुआरे पाकल धान खेति‍मे लगौने रहल। एक तँ बौना धान दोसर उपरका खेत सबहक पानि‍ ओलरि‍ कऽ चलि‍ गेल। नि‍पुआंग धान डूबि‍ गेलै। पानि‍यो बहैबला नहि‍ये छै। तहूमे अगहनी धान तँ कनी डँटगरो होइ छै गरमा तँ गरमे छी।
  झोलि‍या ि‍कअए ने आएल?”
  एक्केटा घर छै सेहो खसि‍ पड़लै। घरक सभ कि‍छु भीज गेल छै। ओकरे सम्‍हारैमे लागल अछि‍।
  एक्के बेरि‍ सभ बाजल- जतवे गोरे आएल ओतवे गोरे वि‍चारि‍ लि‍अ। जे सभ नहि‍ आएल छथि‍ हुनका सभकेँ कहि‍ वि‍चार बुझि‍ लेब।
  साठि‍क दशक। कि‍सानक बीच भारी भूमकम भेल। जहि‍ना अनुकूल वातावरण बनने भारी बर्खा, भूमकम आ अन्‍हर-तुफान अबैत तहि‍ना खेतपर ठाढ़ रहैबलाक बीच भेल। एक दि‍स आजादीक दि‍वाना गाम-गाम जन्‍म लऽ अंगेज भगौलक तँ दाेसर दि‍स समाज सेवा करए आगू सेहो आएल। देश भक्‍त सि‍पाही पर्याप्‍त देशक भीतर तैनात भऽ गेलाह। अंग्रेज भगौलहा फलक गाछ सोझमे छलनि‍। कोना नहि‍ दोसरो-तेसरो गाछ रोपैले तैयार होइतथि‍? दुनि‍यॉंक जते जीब-जन्‍तु अछि‍ सभ सुखसँ जि‍नगी ि‍वतबए चाहैत अछि‍। मनुष्‍य तँ सहजहि‍ मनुष्‍य छथि‍, सभ जीवसँ उपर। ओ ि‍क नहि‍ बुझैत छथि‍ जे प्रशान्‍त सुख पावि‍ लोक आध्‍यात्‍मि‍क पुरूष बनि‍ सकै छथि‍। के नहि‍ चाहताह जे मातृभूमि‍ स्‍वर्गोसँ सुन्‍दर बनै।
    एक दि‍स जमीन प्रति‍ष्‍ठाक मूल आधार बनि‍ चुकल अछि‍ तँ दोसर दि‍स राजा-रजबाड़क अंत भेने मालगुजारीक शासन समाप्‍त होइति‍क फल सोझमे आबि‍ गेल। राजशाही अन्‍त भेने रसीदक माध्‍यमसँ औना-पौना दाममे जमीन वि‍काए लगल। बकास्‍त जमीनक लड़ाइ गाम-गाम शुरू भेल। एक जवर्दस्‍त भूखण्‍डमे बटाइदारी आन्‍दोलन- जे जमीनकेँ जोते-कोड़े, ओ जमीनक मालि‍क छीक नारा आकाशमे उठल। धरती अपन जीवनक लेल बलि‍ मंगैत छथि‍, से भेल। सि‍कमी बटाइक कानून बनि‍ लागू भेल। जतऽ बटेदार तैयार भेल ओतऽ बटाइदारी हक भेटल। जतऽ तैयार नहि‍ भेल ओतऽ अखनो लटकले अछि‍। आम जमीन सभपर दसनामा संस्‍था सभ ठाढ़ हुअए लगल। स्‍कूल, अस्‍पताल बनए लगल। मनुष्‍यक मूल समस्‍या दि‍स जनमानसक नजरि‍ दौड़ल। जहि‍सँ ति‍याग भावनाक जन्‍म भेल। लोअर प्राइमरी स्‍कूलसँ लऽ कऽ मि‍ड्ल, हाइ स्‍कूल धरि‍ बनए लगल। गोटि‍ पङरा कओलेजो बनल। सरकारोक धि‍यान शि‍क्षा दि‍स बढ़ल जहि‍सँ पढ़ै-ि‍लखैक बातावरण बनए लगल। तहि‍ बीच भूदान आन्‍दोलन सेहो शुरू भेल। दानकेँ धर्म बुझि‍ जमीन दान हुअए लगल। गाम-गाम भूदान कमि‍टीक गठन भेल। जहि‍ गाममे कमि‍टी सक्रि‍य भऽ काज केलक ओहि‍ गामक जमीन भूमि‍हीनक बीच आएल मुदा, जहि‍ गाममे सक्रि‍य रूपमे काज नहि‍ भेल ओहि‍ठाम लड़ाइक अखड़ाहा बनल अछि‍। जहि‍ भूदान आन्‍दोलक उद्देश्‍य देशक छठम हि‍स्‍सा जमीन भूमि‍हीनक बीच आबए ओखनो सरकार चारि‍ डि‍समि‍ल वासभूमि‍ दैक शक्‍ति‍ नहि‍ रखने अछि‍।
    गामक लोक -कि‍सान वर्ग- केँ पलाएन भेने गाममे रहि‍ खेती केनि‍हारकेँ स्‍वर्ण-अवसर भेटल। जमीनोक रूप बदलल। प्रति‍ष्‍ठाक बस्‍तु बुझल जाइबला जमीन रूपैयामे बदलि‍ गेल। बैंकक सूदि‍क हि‍सावसँ जमीनक उपजा बुझल जाए लगल। उपजाक आधा बटाइदारी प्रथा ढील भेल। मनखप, पट्टा, मनहुन्‍डा इत्‍यादि‍क जन्‍म भेल। पनरह कि‍लो कट्ठा धानक उपजा आ दससँ पनरह कि‍लो कट्ठा गहूमक उपजा बटाए लगल।
    कोसी नहरि‍ आ नव-नव सड़क बनने चौक-चौराहाक संग-संग बोनि‍हारकेँ काजो बढ़ल। मुआवजाक रूपैया सेहो सहायक भेल। शि‍क्षा मि‍त्रक बहाली संग एन.एच.डब्‍लू. सेहो कि‍छु मदति‍ केलक। सड़क बनने गाड़ी-सवारीक धंधा सेहो जन्‍म लेलक अछि‍।
    मि‍थि‍लांचलमे एक नव वर्गक जन्‍म भेल कि‍सान वर्ग। मुदा एहि‍ वर्गक क्षेत्र छि‍ड़ि‍आइल अछि‍। हरि‍त क्रान्‍ति‍ ऐने जमीनक माने खेतक भाग्‍य चमकल। मुदा जहि‍ रूपमे चमकवा चाहि‍यै तहि‍ रूपमे नहि‍। जँ एक रूपमे चमकैत तँ जहि‍ना कहि‍यो मि‍थि‍ला दुनि‍यॉंक गुरू मानल जाइत छल तहि‍ना पुन: प्रति‍ष्‍ठि‍त भऽ जाइत। तहि‍मे कमी अछि‍।
    देशमे अखनहुँ कम क्षेत्र अछि‍ जहि‍मे मि‍थि‍लांचल एते इंजीनि‍यर, डॉक्‍टर, वैज्ञानि‍क, साहि‍त्‍यकार इत्‍यादि‍ अछि‍। दुर्भाग्‍य ई जे ओ लोकनि‍ मि‍थि‍ला छोड़ि‍ दुि‍नयॉं भरि‍मे छि‍ड़ि‍अाइल छथि‍। वाध्‍यतो छन्‍हि‍, ने कल-कारखाना अछि‍ जे इंजीनि‍यर ओहि‍मे काज करताह, ने स्‍वास्‍थ लेल समुचि‍त जगह अछि‍ जमि‍मे डॉक्‍टर अपन अँटावेश करताह। ने वि‍ज्ञानक शोध संस्‍था अछि‍ जहि‍मे वैज्ञानि‍क अपन चमत्‍कार देखौताह आ ने पढ़ै-लि‍खैक समुचि‍त व्‍यवस्‍था अछि‍ जहि‍मे साहि‍त्‍यकार अपन प्रति‍भाकेँ नि‍खारताह।
    गंगा ब्रह्मपुत्र मैदानी इलाका रहैत मि‍थि‍लांचल अनेको नदीसँ सकबेधल अछि‍। नदि‍यो ओहन-ओहन उपद्रवी अछि‍ जे इलाकाक इलाकाकेँ सदति‍काल रूप बि‍गाड़ि‍तहि‍ रहैत अछि‍। लोकक जि‍नगी ऐहन दुभर बनि‍ गेल अछि‍ जे जएह लोकनि‍ मि‍थि‍लांचलमे ठाढ़ छथि‍ ओ धन्‍यवादक पात्र छथि‍।
    कि‍सानवर्ग बनने जाति‍-वादक बंधन ढील भेल। कतेक ऐहन धंधा -खेतीसँ लऽ कऽ लघु उद्योग धरि‍- अछि‍ जे खास जाि‍तक सीमामे बान्‍हल छल ओ टूटि‍ कोनो धंधा -पेशा- कोनो जाइति‍ऐक बीच नहि‍ रहल। मुदा जहि‍ना कोसीमे डूबल इलाका पुन: कहि‍यो जागि‍ चहटी रूपमे जन्‍म लैत आ पुन: ओहि‍पर बसि‍ मनुष्‍य पुन: पूर्वत गाम बना लैत, तहि‍ना करैक जरूरत अछि‍। जाति‍ पेशा बदलि‍ जाति‍-वयवस्‍थाकेँ ढील जरूर केलक मुदा, राजनीति‍क कुचक्र समाजमे नव समस्‍याक रूपमे ठाढ़ भऽ वि‍कासकेँ बाधि‍त कऽ रहल अछि‍। अनेको तरहक नव-नव बाधा उपस्‍थि‍त भऽ रहल अछि‍। मुदा तेँ कि‍ मि‍थि‍ला मरूभूमि‍ भऽ गेल जे कर्मयोगी पैदा करब छोड़ि‍ देलक। कथमपि‍ नहि‍।
    सम्‍मि‍लि‍त रूपमे तँ नहि‍ मुदा, छि‍टफुट रूपमे ऐहनो-ऐहनो कि‍सान छथि‍ जे लाख आफत-आसमानीसँ मुकाबला करैत सोनाक स्‍तम्‍भ बनि‍ चमकि‍ रहला अछि‍। नि‍श्‍चि‍त क्षेत्र तँ नि‍र्धारि‍त नहि‍ कएल जा सकैत अछि‍, कि‍ऐक तँ सीमा-वीहीन अछि‍ मुदा, एहि‍ बातसँ नकारलो नहि‍ जा सकैत अछि‍ जे खेतमे ओते धान उपजा रहला अछि‍ जे जापानसँ मुकाबला करैक लेल ठाढ़ छथि‍। तहि‍ना गहूमो, दालि‍योक अछि‍। अखनो हजारो ट्रक आम बाहर जाइत अछि‍। एक इलाकाक तरकारी दोसर इलाका जाइत अछि‍। हजारो ट्रक मसाला आन-आन राज्‍य जाइत अछि‍। एक इलाकाक दूध दोसर-तेसर इलाका धरि‍ वि‍काइत अछि‍।
    अखन धरि‍क अनौपचारि‍क वैसक जे समाजमे होइत रहल अछि‍ ओ प्रो. दयाबावू आ पूर्व प्रो. कमल बावूकेँ एेलासँ औपचारि‍क रूपमे बदलए लगल। काली स्‍थान पहुँचते कमलबावू बजलाह- अखन धरि‍क समाजक-गाम-गामक- इति‍हास हराएल अछि‍ ओकरा पहि‍ने पकड़ू। तेँ जरूरी अछि‍ जे एकटा रजि‍ष्‍टर कीनि‍ लि‍खि‍त रूपमे काज करू।
    कमलबावू बात सुि‍न मंगल सोचलक जे लगले रजि‍ष्‍टर कतएसँ आनव तँ आजुक बैठक कागजक पन्नेपर कऽ नि‍चेनसँ रजि‍ष्‍टर आनि‍ ओहि‍पर लि‍खि‍ देवइ। तेकर कारण मनमे नचैत रहै जे दुनू गोटे -दयोबावू आ कमलोबावू- बेसीखान अँटकताह नहि‍, जोरो कोना करबनि‍। जँ जोरो करबनि‍ तँ पटदे कहि‍ देताह जे गाम-समाज अहॉंक छी अपना ढंगसँ चलाउ। मुदा गामक लोक तेहन गड़ि‍मुराह अछि‍ जे धरमेक काज स्‍कूलो आ माइयो-बापक सेेवाकेँ कहताह आ अपने भरि‍ दि‍न बैसि‍ झूठ-फूसमे समए वर्वाद कऽ समाजकेँ तनो-भगन करैत रहताह। अन्‍यायक अखाड़ा समाज बनि‍ गेल अछि‍। ऐहन परि‍स्‍थि‍तमे खाली सामाजि‍क न्‍यायि‍क नारा देलासँ समाज सुधरि‍ जाएत। मुस्‍की दैत मंगल प्रो. दयाबावूकेँ कहलकनि‍- श्री मान्, अपने तँ चारि‍ साल पढ़ौने छी तेँ अपनेपर अधि‍कार अछि‍ जे जे नहि‍ बुझै छी ओ अखनो पुछि‍ सकै छी। मुदा बाबा -प्रो. कमलनाथ- केँ कि‍छु पुछैक अधि‍कार तँ नहि‍ अछि‍। भलेहीं ओ अपने हमरा मनक सभ सवालक जबाव दऽ दथि‍। मंगलक पेटक बात जना कमलबावू बुझि‍ते रहथि‍ तहि‍ना बड़बड़ाए लगलाह- रौतुका घटना सुि‍न हृदय पाथरपर खसल ऐना जेकॉं चूर-चूर भऽ गेल अछि‍....।
  ऑंखि‍क नोर पोछैत पुन: बड़बड़ाए लगलाह- मुदा दोख ककर लगौल जाएत। कि‍छु दोखी अहूँ सभ छी जे वादमे कहव। अखन ऐतबे कहव जे काल चक्रकेँ रोकब असान नहि‍। ई काल चक्र छल। तेँ प्राश्‍चि‍त कऽ लेब जरूरी अछि‍। दू मि‍नट सभ उठि‍ हुनका लोकनि‍क क्षति‍क स्‍मरण कऽ लि‍अ। रजि‍ष्‍टर पहि‍ल पॉंतीमे शोक प्रस्‍ताव लि‍खि‍ काजकेँ आगू बढ़ाउ।
    शोक व्‍यक्‍त कऽ बैसि‍तहि‍ कमलबावू पुछलखि‍न- समि‍ति‍ कते गोटेक बनौने छलहुँ?”
  एक्कैस गोटेक?”
  एक तरहक अछि‍। अखन कते गोटे छी?”
  एगारह गोटे।
  आरो गोटे?”
  दू गोटे हराइले छथि‍, एगारह गोटे हाजि‍रे छी, आठ गोटे दोसर-दोसर जरूरी काजमे लागल छथि‍।
  हूँ, रौतुका झॉंट तँ सभकेँ झँटनहि‍ हेतनि‍। कहि‍ एकाएक कि‍छु सोचैत पुन: बजलाह- बाउ मंगल आ अनुज दयाबावू जहि‍ना हम खुशीसँ जीवन-यापन कऽ रहल छी तहि‍ना चाहब जे अहँू सभ जीवि‍ ओहूसँ नीक जि‍नगीक बाट बना आगूक पीढ़ि‍क लेल दि‍यै।
  कमल बावू बजि‍तहि‍ रहति‍ कि‍ नेंगरा आ बौनो एक्के बेर बाजल- जहि‍ना दया कक्का पढ़ल छथि‍ तहि‍ना मंगलो कओलेजक सीढ़ि‍ होइत कोठरी तक पहुँचल छथि‍ मुदा, हम सभ तँ जि‍नगी भरि‍ कोदारि‍ये कि‍लासमे पढ़ैत रहलौं तेँ.....।
  ठहाका मारि‍ उठि‍ कऽ ठाढ़ होइत प्रोफेसर कमलनाथ समि‍ति‍केँ संवोधि‍त करैत बजलाह- नेंगरा आ बौकूकेँ हमर बधाइ जे अपन सीमा देखलक। बाउ नेंगर आ बौकू, बधाइ एहि‍ दुअारे दुनू गोरेकेँ देलौं जे समाजक जवर्दस्‍त समस्‍याक जड़ि‍ पकलौं। अपना समाजमे ई भारी समस्‍या अछि‍ जे कि‍यो अपने सीमा-सरहद नहि‍ बुझए चाहैत छथि‍, ओ धारक रेत जेकॉं चलैत समएसँ कोना जुटि‍ सकताह। जहि‍ना पानि‍क रेतमे ठाढ़ भेने अपनो जान अवग्रहमे रहै छै जे रेतमे खसि‍, भसि‍या कऽ मरि‍ ने जाइ। तहि‍ठाम जँ कि‍यो दस-बीस सेरक मोटरी माथपर रखने हुए ओकर गति‍ कि‍ ओहि‍ रेतपर हेतै। तेँ जहि‍ना अट्टालि‍का बनवै काल सभसँ पहि‍ने ईंटाकेँ देख लेल जाइ छै, जँ से नहि‍ देखल जाएत तँ नकटेरहीपर जहि‍ना सभ लट्टू होइत तहि‍ना ने हएत। कमल बावू बजि‍तहि‍ रहति‍ ि‍क दुनू गोटे नेंगरा आ बौका ऑंखि‍मे ऑंखि‍ मि‍ला हँसए लगल। ऑंखि‍ उठा सभापर नजरि‍ दौड़ौलनि‍। कि‍यो गंभीर तँ कि‍यो मुँह बॉंबि‍ बुझैक प्रयास करैत मुदा, दुनूक हँसी हँसा देलकनि‍। मन पड़लनि‍ हुगली नदी‍। अपना इलाकाक जते धार अछि‍ ओ उत्तरसँ दछि‍न मुँहे बहैत अछि‍ भलेहीं गंगाक ओइ कातक दछि‍नेसँ उत्तर मुँहे बहैत हुअए। मुदा हुगली, जे समुद्रसँ जुड़ल अछि‍, सोलह घंटा एक दि‍शासँ दोसर दिशामे बहैत अछि‍ आ आठ घंटा वि‍परीत दिशामे। तहि‍ना बावाक आत्‍मा आ कोदारि‍ कि‍लासमे पढ़नि‍हारक आत्‍मा मि‍लि‍ नव परमात्‍माक मंदि‍र बना रहला अछि‍। शि‍वलि‍ंग सदृश्‍य।
    नेंगरा आ बौकू मुस्‍कि‍आइत मूड़ी नि‍च्‍चाँ कऽ लेलक।दयाबावू आ मंगलोकेँ गंभीर देखि‍ प्रो. कमलनाथ कहए लगलखि‍न- रौतुका घटना दुखद भेल। मुदा ओ तँ काल्‍हुक भेल। कालक तीनि‍ गति‍ छै, बीतल -भूत- चलैत -वर्तमान- अवैबला -भवि‍ष्‍य- जे समए बीति‍ गेल वएह समए वर्तमान आ भवि‍ष्‍यक रास्‍ता देखवैत अछि‍। एक हि‍सावे रौतुका घटना अहॉं सभकेँ एक सीमापर आनि‍ कऽ छोड़ि‍ देलक। ढंगसँ एकरा बुझैक जरूरत अछि‍।
    ऑंखि‍ उठा मंगल पुछलखि‍न- कने सोझरा कऽ कहि‍यौक?”
  देखू अपन समाजमे कतेको पावनि‍-ति‍हार अछि‍। नीको आ अधलो अछि‍। नीककेँ पकड़ि‍ चलैक अछि‍। कोनो राति‍येटा धर्मक काजमे समए बाधा उपस्‍थि‍त केलक। ऐहन बात नहि‍ अछि‍। परि‍वारो सभमे देखैत छी जे पावनि‍क सब ओरि‍यान भेलाक उत्तर कोनो अप्रि‍य घटना घटलासँ पूजो-पाठ आ खाइयो-पीवैमे वाधा उपस्‍थि‍त भऽ जाइत अछि‍। मुदा की देखै छि‍यै? यएह ने देखै छि‍यै जे पावनि‍क काजकेँ उसारि‍ आगूमे उपस्‍थि‍ति‍ घटनामे लोक लगि‍ जाइए। तहि‍ना पारि‍वारि‍क पावनि‍ नहि‍ बुझि‍ सामाजि‍क बुझि‍ सोग कम करू। ऐहन-ऐहन सामाजि‍क काज -कालीपूजा, दुर्गापूजा इत्‍यादि‍- सब गाममे होइते अछि‍ सेहो बात नहि‍ अछि‍। कोनो-कोनो गाममे होइतो अछि‍ कोनो-कोनोमे नहि‍यो होइत अछि‍। समाजक -गामक- लेल अनि‍वार्य नहि‍ अछि‍। मनक शान्‍ति‍क लेल होइत अछि‍। अखन अहॉं सभ ओहि‍ सीमापर ठाढ़ छी जहि‍ठामसँ दूटा रास्‍ता फुटैत अछि‍। पहि‍ल, अगि‍लो साल करब कि‍ नहि‍? समाजक वि‍चार देखए पड़त। एहि‍ प्रश्‍नपर समाज बँटा गेल छथि‍। अधि‍कांश लोकक मनमे ई हेतनि‍ जे गाममे पूजा नहि‍ धारलक। तेँ आगूओ नहि‍ हेवाक चाही। कि‍छु गोटे ऐहनो हेताह जे चाहि‍तो हेताह। प्रश्‍न उठैत अछि‍, जँ एहि‍ना अगि‍लो साल हुअए, तहन? फेरि‍ प्रश्‍न उठैत अछि‍ पूजा ओरि‍याने भरि‍ रहल संकल्‍पि‍त नहि‍ भेल। ओना एहि‍ठाम दूटा वि‍चार अवैत अछि‍, पहि‍ल समाजक संकल्‍प आ दोसर पूजा प्रक्रि‍या शुरू होइत समएक संकल्‍प। जे नहि‍ भेल। तेँ आगूक लेल वि‍चारक मुद्दा बनि‍ गेल अछि‍। फेरि‍ प्रश्‍न उठैत जे व्‍यक्‍ति‍गत रूपमे सभ घरे-घर वा मने-मन करि‍तहि‍ छथि‍ मुदा, सामाजि‍को स्‍तरपर हएव जरूरी अछि‍। मुदा कोन रूपे हुअए ई वि‍चारणीय प्रश्‍न अछि‍। अखन धरि‍ जहि‍ तरहक सार्वजनि‍क मेलाक रूप रहल ओ आजुक माने वर्तमानक लेल कते नीक अछि‍, एहि‍पर वि‍चार करए पड़त। पहि‍ने कहि‍ देलौं जे गामक इति‍हास लि‍खल जाएत। जे अखन धरि‍ रजे-रजवारक सुरा-सुन्‍दरीसँ लऽ कऽ कहि‍यो कहि‍यो खेत-पथारले तँ कहि‍यो मनोरंजनक लेल होइत रहल। एक राजा-रानी राजगद्दीक सुख भोगथि‍ आ वाकी सभ सब सीढ़ीपर ठाढ़ भऽ-भऽ एक-दोसरकेँ रोकवो करैत आ पाछु मुँहे धकेलवो करैत। यएह इति‍हास अपना सबहक रहल अछि‍। तेँ अपन समाजकेँ जते नीक रास्‍तासँ आगू लऽ जाय चाहब ओ अहॉं सबहक काज छी। मुदा समाज जकरा बुझै छि‍यै ओ मनुष्‍यक समाज नहि‍ साबेक बोझ सदृश्‍य अछि‍। जहि‍ना सावेक जौरसँ घर तँ बान्‍हल जाइत मुदा, अपन नमहर बोझ बन्‍हैमे कते बदमासी करैत ओ तँ बन्‍हनि‍हारे सभ बुझैत हेताह। तहि‍ना लोकोक अछि‍। एक दि‍स समटब दोसर दि‍स छि‍ड़ि‍आएत आ दोसर दि‍स समटव तेसर दि‍स छि‍ड़ि‍आएत। अइमे ओहू बेचाराक दोख नहि‍ छै? कि‍यो पेटक पाछु बौआ रहल अछि‍ तँ कि‍यो मलि‍काना पाछू। मलि‍काना केहन तँ हम वि‍धाता बनि‍ बजै छी। अहॉंकेँ आदेश मानै पड़त? वाह-वाह भाय, वि‍धाता बनैसँ पहि‍ने अपन रजि‍ष्‍टर सार्वजनि‍क करू जे हमहूँ अपना समाजक इति‍हास रजि‍ष्‍टरमे लि‍खि‍ देखब जे कते गोटेक सवारी हवाइ जहाज छी, कते गोटेक ए.सी.कार आ कते गोटेकेँ चरण बावूक टेक्‍सी। तेँ जहि‍ना अदौमे कोनो गाम जे बसल ओहि‍मे पहि‍ले पहि‍ल-एक-दू-तीन चारि‍ परि‍वार आएल। जे अखन देखते छी केहन झमटगर भऽ गेल अछि‍ तहि‍ना असकरोक चि‍न्‍ता नहि‍ कऽ आगूक....। वि‍चहि‍मे बौकू बाजल- बाबा, छौँड़ा सभ भोरे माछ पकड़ैले बाध दि‍स गेल से कनी ओकरा सभकेँ देखैक अछि‍ जे माछे पाछु अपनो डूबल आकि‍ बँचल आएल?”
  बौकाक बात सुि‍न ठहाका मारि‍ बाबा बजए लगलाह- बौकू, जि‍नगीमे सभसँ पैघ, सुख प्राप्‍त करब होइत अछि‍। जेकरा सुख भेटि‍ गेलइ ओकरा भगवान भेटि‍ गेलखि‍न। मुदा सुख ककरा कहबै से अखैन नै कहवह। तोहूँ अगुताइल छह। ऐहन समएमे तोरा रोकब उचि‍त नइ बुझै छी। मुदा एतवे बुझि‍ लाए जे दुख भागब सुखक आएव वुझक।
  ऑंखि‍ उठा मुस्‍की दैत दयानन्‍द पुछलखि‍न- भाय सहाएव, इति‍हास लि‍खैक वि‍चार तँ देलखि‍न मुदा, पैछला इति‍हास वुझल छन्‍हि‍ कि‍ नहि‍, से कहॉं कहलि‍एनि‍?”
  दयाबावू, हरि‍ अनंत हरि‍ कथा अनंता। अखन जहि‍ समएमे सभ बैसल छी ओ बैसैक नहि‍ करैक समए छी। कते लोकक घर खसल हेतइ, कतेकक माल-जाल नष्‍ट भेलि‍ हेतै, कतेकेँ हाथ-पएर टूटल हेतइ, ऐहन समएमे हाथपर हाथ दऽ वि‍चार करैक नहि‍ अछि‍। जतए जे नीक गर लगे ओतए ओहि‍ गरे दलमलि‍त भेल गामकेँ असथि‍र करू। सभ पड़ोसि‍ये छी समयो बदलत। समुद्रसँ उठल केहनो बादल रहैत अछि‍ मुदा, ओहो रसे-रसे बदलि‍ये जाइत अछि‍। तेँ अंति‍म बात यएह कहब जे आशाक संग जि‍नगीकेँ आगू मुँहे ठेलैत पहाड़पर चढ़ा अकासमे फेकि‍ दि‍औ।

ऽङ?“”    
१.नाटक-एकांकी भैया, अएलै अपन सोराज
रामभरोस कापड़िभ्रमर२.कुमार मनोज कश्यप-कथा-
माता कुमाता भवति

नाटक-एकांकी भैया, अएलै अपन सोराज
रामभरोस कापड़ि भ्रमर

आई सँ आठ सओ वर्ष पूर्वक कुनौली बजारक एकटा चौबटिया । घनगर गाछक तरमे माटि आ ईंटसँ बनल चबुतरा ।
(
पुरुष१ अशोथकित मुद्रामे चबुतरालग अबैत अछि । चारुकात नजरि खिरबैत अछि । कान्हपर अंगपोछा हाथमे लऽ मुहँपर चुहचुहाइत घामकेँ पोछैत चबुतरापर बैसि रहैत अछि ।)
(
पुरुष२ कान्हपर हर, हातमे हरक पैनासँ दू गोट बयलकेँ रोमैत चबुतरालग अबैत अछि । पुरुष१ केँ थकित देखि कनेक बिलमि जाइत अछि ।)
पुरुष२ ः भाई रविया ! अपन केहन हालत बना लेने छह ।
पुरुष१ ः (दीर्घ निसास छोड़ि) से की ई आइए केँ हालति है । भाइ आब तऽ जीअब मुश्किल भऽ गेल । बेगारक एकटा हद होइ छै ।
पुरुष२ ः माने तोरो....।
पुरुष१ ः साफे की । भोरेसँ बखारीमहक धान निकालि एसगरे तौलैततौलैत जानपर आफत आबि गेल । एक मुठ्ठी जलखईयो नै । चण्डलबा !
पुरुष२ ः (बयलकेँ ठाड़ करैत) हौ रे हौ ! भाई, हमरो हालत कोनो नीक नहि । भोरेसँ पँचबीघबामे हर जोतैतजोतैत जखन पार नै लागल तऽ बयल खोलि देलियै । तैयो बारहसँ उपरकेँ अमल भऽ गेलै भाई, कैला चण्डलबा सरबा एक टुकड़ि रोटियो पठाएत ।
पुरुष१ ः ई हमरे तोहर दुःख नै हौ, सौसे गामकेँ पेरने है ई राक्षस । हमरासभकेँ अपना चासबासमे बैसौलक इहे बेगारी खटबऽलए ने । आब तऽ हमरासभकेँ अपन कहलए रहिए की गेल है
पुरुष२ ः (कनेक लग जा) भाइ, ठीके कहै छह । मंगलबा अपन बेटाकेँ गौना करा कऽ पाँचसाते दिन भेलै लैलकैए । सुनै छी काल्हि राति अपन पठ्ठा सँ उठबा लेल कै । भरि राति हबेलीमे रखलकै ।
पुरुष१ ः परसूकेँ कथा नै बुझल हौ । सुनरपुरकेँ अजोधी घरबालीकेँ बिदागरी करा कऽ लऽ जाइत रहै, एहि बाटे । सरदारकेँ लठैतसभ पालकीए घेर लेलकै आ हबेली ढुका लेलकै । कतबो बेचारा चिचिआइत रहि गेलै, घरबालीकेँ नहि छोड़लकै ।
पुरुष२ ः भाइ, ई चण्डलबा कतेक दिनधरि एना सतौतै, बेगारी खटेतै, लोककेँ बेटी, पुतहुकेँ इज्जति लुटतै । अन्हेर भऽ गेलै भाइ, अन्हेर !
पाश्र्वसँ गीतक सामूहिक स्वर सुनि पड़ैछ
सभ दिन आई खढ़ कटाबै छै
सात सओ मुसहरबा से
सभ दिन आई खढ़ कटाबै छै
सात सओ मुसहरबा से न हय...।
आ गे बड़ तऽ बेइज्जति आई करै छलै
कुनौली बजरियामे
आ बड़ तऽ बेइज्जति करै छलै
कुनौली बजरियामे ने हौऽऽऽ ।
पुरुष१ ः देखहक, सुनहक गामक हाहाकार । ई सामन्त, राजासभक अत्याचार आब बेसी दिन नै चलतै भाइ । हमरातोरा कान्हपर बेगारीकेँ गुलामीकेँ बोझ हटतै बुझाइए । जनता जागरुक भऽ रहल है । कुछ होतै हौ भाई !
पुरुष२ ः (हरकेँ कान्ह पर धऽ चलबाक उपक्रम करैत) बयल कतहु भागि जएतै तऽ जुतेलाते एक कऽ देत । चल, आइ दिनकेँ आसमे किछु दिन और सहि ली ।
पुरुष१ ः भाइ कोनो वीर पैदा नै भेलैए जे एहि चण्डाल सामन्त जोराबर सिंहकेँ मारतै ।
पुरुष२ ः (चलैतचलैत रुकैत) एकटा पताकेँ बात । सुनै छिऐ जे जोगियानगरमे कालू सरदारकेँ बेटा छै दीनाराम, भद्रीराम । आ ओ हमरेसभकेँ जाति छै कहाँदन । खुब चलतीकेँ वीर है ।
पुरुष१ ः (उठैत) एह, बात तऽ बड़का बजला । एहि चण्डालकेँ मारि दितै तऽ पोसले खसी चढ़ा दितिऐ दीनाभद्रीकेँ । घरघर एकएकटा खसी पोसि देबै सभ सहाय भाई । लगैए हुनके गोहराबऽ पड़तै आब... ।
पुनः पाश्र्वसँ सस्वर गीतक बोल सुनि पड़ैछ
ताहि दिन ओकरा नाम से आई
खसी चढ़ा देबै कुनौली बजरियामे
करै छै अराधना सहोदरा
अपना तऽ जतिया से
करै छै अराधना भैया
अपना तऽ जतिया से ने हेय ।
मञ्चसँ दुनू प्रस्थान । अन्हार ।
...........
मञ्चपर प्रकाश । पूर्ववत चौबटिया । गाछक चबुतरापर बैसल अछि पुरुष१ । अंगपोछासँ मुहँपर हवा झोंकैत । पुरुष२ क धरफराइत प्रवेश । ससरि कऽ पुरुष१ क लगमे जाइत अछि ।
पुरुष२ ः (चारुकात अकानैत । ककरो आगमन नहि बुझि ) भाइ, हमरासभकेँ पुकार सुनि लेलको दीनाभद्री महाराज ।
पुरुष१ ः (प्रसन्नता सँ ) ठीके भाइ !
पुरुष२ ः हँ, हौ ! बजै छलखिन्ह जे अपन जातिभाइ पर अत्याचार आब नै होब देबै । मारबै जोराबरकेँ जेना हेतै तेना । लगैअ दिन घुरतो अपनोसभकेँ ।
पुरुष१ ः लेकिन, जोराबर तऽ बड्ड भारी पहलमान है हौ । सात सओ पठ्ठा सँगे असगरे सर खेलै है फलकापर । सोलह गजकेँ फरुआ लंगोटा पहिरै है । सओ हाथीकेँ बल है हौ ।
पुरुष२ ः हमरोसभकेँ दीनाभद्री महाराज कम नै हौ । जखन रूपमे अबै है तऽ केहन केहनकँे चित्त कऽ दै है । जोगियानगरमे कनक सिंह धामी रहै । नाम सुनने छलहो ?
पुरुष१ ः हँ, हौ ! ओइ राक्षसकेँ के नै नाम सुनने होतै ।
पुरुष२ ः के मारलकै ओकरा, बुझने छहो ?
पुरुष१ ः कहँंदन दूटा शिकारी छलै ।
पुरुष२ ः हौ ! ओहे दीनाभद्री महाराज रहै । बेगारी खटाबला हुनका दरबज्जापर जा कऽ माता निरसो भीलिनियाकेँ मारिपीट देलकै । की छलैदीनाभद्री एतेक ने मारलकै जे ओ अपन घरबाली बुधनी बतरनी सँगे जंगलमे सोन्हि कोरि कऽ नुका कऽ रह लागल ।
पुरुष १ ः तब ?
पुरुष २ ः तब की ? भद्री महाराज बीलाड़िकेँ रूपमे पत्ता लगा लेलकै आ कनक धामीकेँ मारि कऽ गामकेँ उद्धार कैलकै ।
पुरुष १ ः लगै है बड्ड भारी लड़ाकू है ।
पुरुष २ ः हँ, हौ ! वीर योद्धा है ! देखिह जरूर जोराबर मारल जाएत । सम्पूर्ण श्रमिक वर्गकेँ देवता रूपी है दुनू भाई । शोषण आ अत्याचारसँ उएह मुक्त कराओत ।
पुरुष १ ः सातो सओ मुसहरकेँ घरमे छागरे पोसल छै । हुनकँे नामपर ।
चौबटिया बाटे ताबत किछु व्यक्ति हतासल झटकारैत गामदिस भागल जाइत । दूनूकेँ देखि ओहिमहक एकगोट स्थिर होइत कहैत छैकभागऽ मरदे । जोराबरकेँ लठैत लाठी भँजैत आबि रहल छै । बजै हैसरदारकेँ विरोधमे के लागल है, आई ओकर खैर नै होतै ।
दुनू साकांक्ष भऽ जाइछ । एक दोसरक मुह देखैत अछि । चेहरापर भयक छाप स्पष्ट देखि पड़ैछ । ओहो दुनू पएर झटकारैत गामदिस बढ़ि जाइत अछि ।
अन्हार ।
.........
मञ्चपर प्रकाश । दृश्य पूर्ववत् । दू गोट लठैत लाठी भजैत प्रवेश करैछ । मञ्चपर कनेककाल लाठीक करतब देखबैत अछि । फेर शान्त भऽ चबुतरापर बैसि जाइछ ।
लठैत १ ः आई तऽ मौजेमौज है गोधिया ।
लठैत २ ः कथिक मौज रै ।
लठैत १ ः रे सरदार की कहलकैअ । गाममे घरेघरे पैस । ई मुसहरबासभ हमरे जमीनपर बैसैअ । हमरे विरुद्धमे गुमीन्टि करैअ । सारसभकेँ पीठी दागि कऽ आ ।
लठैत २ ः हँ, से तऽ कहलकैअ । तऽ पीठी दागऽ कथिक मौज । ई तऽ रोजकेँ काम भऽ गेल है ।
लठैत १ ः रे सार । सब दिन तोँ चोन्हबे रहि गेले । घरघरमे ढुकबैत घरकेँ मालो समान देखबे नै रै ।
लठैत २ ः तऽ ।
लठैत १ ः तऽ की । नयानवेलीकेँ संँग मौजमस्ती नै करबे ।
लठैत २ ः अच्छा, तऽ तोँ से बात कहै छले । हम तऽ दोसर बात बुझै छलियौ ।
लठैत १ ः आई तऽ मौजेमौज है ।
लठैत २ ः कुछो करबही आ सरदारकेँ पता लगतै तऽ ?
लठैत १ ः कतेको घरकेँ बेटी पुतहु सरदारकेँ हबेलीमे हमसभ नै पहुँचबै छिऐ ?
लठैत २ ः से कतेको !
लठैत १ ः एतेक पहुँचबिते छिऐ तऽ आई दूचारि हमहुँसभ हाथ लगा देबै तऽ कोन पहाड़ खसि पड़तै ?
लठैत २ ः से तऽ है । एह, ठीके कहले । चल सार सदायसभकेँ मजा चखा दै छियै ।
दुनू उठैत अछि आ चलबाक हेतु उद्दत होइत अछि । फेर की फुराइ छै लठैत १ घुरि कऽ चबुतराकेँ देखैत अछि । किछु सोचैत अछि ।
लठैत १ ः (लठैत २ सँ) हे, गोधिया । हमसभ एहि चबुतराकेँ तोड़ि दी तऽ नीक ।
लठैत २ ः कैला ?
लठैत १ ः सार मुसहरबासभ एहिपर बैसि कऽ बात लगबैअ । घरमे बैसऽकेँ जगहो नै है, सुगरकेँ खोर है । एतै बैसि कऽ सरदारकेँ खिलाफ साजिश रचैए । तहिसँ...।
लठैत २ ः धूत मरदे ! हौ, एहि गाछ आ चबुतराकेँ की दोष । थाकल ठेहिआएल हमहुँसभ अबै छी तऽ एहिपर सुस्ताइ छी । एना नै सोच...।
लठैत १ ः लगैए, तोँ ठीक कहै छह । चलऽ ।
दुनूक प्रस्थान । अन्हार ।
.......
मञ्चपर प्रकाश । स्थान पूर्ववत ।
दू गोट योगीक प्रवेश । कान्हसँ सारंगी टंगने । राजा भरथरीक गीत गबैत । गीत गबैत एक चक्कर लगेलाक बाद चबुतरापर बैसि रहैछ ।
योगी १ ः भैया दीना ! के चिन्हत गऽ हमरासभकेँ एहि ठाम ।
योगी २ ः हँ भाई ! हमसभ गुरु गोरखनाथक शिष्य लगैत छी । एहि भेषमे जोराबर सिंहकेँ खोजबामे सहुलियत हएत ।
ताबत ओहि बाटे एकटा बुढ़िया आंगनदिस जाइत देखि पड़ैछ । चबुतरापर गुदरिया बाबासभकेँ बैसल देखि पुछि दैत अछि ।
बुढ़िया ः गोर लगै छी बाबा !
दुनू योगी ः (एक्केसँग) कल्याण होऔं ।
बुढिया ः कत्तसँ आसन एलैए बाबा ?
योगी १ ः हमसभ गुरु गोरखनाथकेँ शिष्य छियै । एकर नाम वृजमोहन छियै आ हमर नाम बैताली
बुढिया ः की सेवा करियै बाबाकेँ ?
योगी २ ः हमसभ तीन दिनसँ भुखल छी । किछु खाएला भेटि जेतै तऽ भगवान गोरखनाथ तोरा कल्याण करितऽथुन ।
बुढ़िया गुनधुनमे पड़ि जाइत अछि ।
पृष्ठभूमिमे गीतक स्वर अभरैछ
से कथि लऽ कऽ आव महात्मा
अहाँकेँ करबै
कथि लऽ कऽ आव महात्मा
अहाँकेँ करबै ने हय
हौ बाबा
ओहो जेहो छलै मरद आइ हमरा
जोगिया तऽ नगरियामे
चलै छै जोगिया
जोगिया नगरियामे ।
योगी १ ः कथि लेल बुढ़ी सोचमे पड़ि गेल छी ?
बुढिया ः की कहू योगी महाराज ! एहि गामक सामन्त जोराबर सिंह सौंसे गौैंआके बेगारेमे खटबैत छैक । एक्को सेर बोइन नै दै छै । घरमे किछु नै रहै छै खाएला । से हम तऽ मुश्किलमे पड़ि गेल छी...।
दुनू योगी गम्भीर भऽ एक दोसराकेँ देखैत अछि । किछ सोचि माथ डोलबैत अछि ।
योगी १ ः बुढ़ी, अहाँक घरमे जतबे चाउर अछि से खाजू । तकरे चूल्हीपर अदहन चढ़ा कऽ ओहिमे राखिदिऔ । हमरासभकेँ ताहीसँ पेट भरि जाएत ।
बुढ़िया आश्चर्यसँ योगीदिस देखैत अछि ।
योगी २ ः ठीके कहै छथि बैतालीनाथ । अहाँ जाऊ, चाउर लगाऊ गऽ ।
बुढ़िआ अछताइतपछताइत आंगनदिस जाइत अछि ।
योगी १ ः हे बघेसरी माता ! बुढ़ियाकेँ सहायता करिह । सभ दिन हम तोरा पूजा देलियह, आई तोँ सहाय हौइह !
कनेक कालमे बुढ़िया दू गोट छीपामे भात, दालि आ आलूक चोखा लऽ कऽ चबुतरापर अबैत अछि । दुनूकेँ श्रद्धा भावसँ देखैत आँगामे थारी राखि दैछ ।
बुढ़िया ः (हाथ जोड़ि) हे योगीसभ ! हमरा नै लगैया अहाँसभ साधारण लोक छी । एक पाव चाउर फटकि कऽ भेल छल, अदहनमे धरिते भरि तौला भात भऽ गेलै । ई चमत्कार मामूली नै छै । जरुर अपने पहुँचल लोक छियै ।
योगी १ ः बुढ़ी माता ! अहाँकँे अन्न हमरासभकेँ खाएकेँ छलै, से भेटल । आऊ भाई, भुख लागल है । जल्दी खाउ !
बुढ़िया अपन प्रश्नक उत्तर नहि पाबि आर आश्चर्यमे पड़ि गेल अछि । हाथ जोड़ने सोँंझामे ठाढ़ छैक ।
दुनू भाइ खाना खा कऽ प्रसन्न मुद्रामे आबि जाइछ ।
योगी २ ः बुढ़ी माता अपने धन्य छी । हमरासभकेँ जुड़ेलहुँ । आब कहू हमसभ की कऽ सकै छी ?
बुढ़िया ः (भावविह्वल भऽ) हमरा लगैए हमरासभपर होइत अत्याचार आब अपनेसभकेँ कृपासँ खतम हेतै ।
योगी १ ः के करैछै अत्याचार ?
बुढ़िया ः उएह, जोराबर सिंह । घरदुआर, खेत, खरिहान, बहुबेटी ककरो इज्जति नै रहे देलकै महाराज !
योगी २ ः कोइ नै किछु कहै छै ?
बुढ़िया ः ककर मजाल छै, ओई सैतनमाकेँ देहोमे केओ भीर लेत । सात सओ पठ्ठाकेँ रोज खेलबै छै । कहाँदन जोगिया गाममे हमरेसभकेँ जाति दीनाभद्री है । ओकरे गोहरबै है भरि गामकेँ सदायसभ । घरघर छागर पोसने है ओकरालेल । ऊ एतै कि नै पता नै, अपने योगीबाबा आएल छियै, किछु करियौ ।
योगी १ आ योगी २ चबुतरापरसँ उठि जाइत अछि । भावुक भऽ बुढ़ियाकेँ दुनू कातसँ पकड़ि भाव विह्वल मुद्रामे मञ्चक आगा भागदिस आबि जाइत अछि । प्रकाशक घेरा तीनूक अनुहार होइतपुरे शरीर पर पड़ैत अछि ।
योगी १ ः अहाँ चिन्ता नै करू मांँ । अहाँक बेटासभ अत्याचारी जोराबरकेँ निघटाबऽ लेल आबि गेल अछि । आब जोराबर मरतै मांँ, अहाँ निश्चित भऽ जाऊ । देखल जेतै उलङ्गी पहाड़क अखराहापर ।
बुढ़िआ अश्रुपुरित आँखिए दुनूक अनुहारपर देखैत अछि । आँखिमे आबिगेल चमकसँ लगै छै योगीक बातपर ओकरा पूर्ण विश्वास भऽ गेल छै ।
.......
प्रकाश । दृश्य पूर्ववत । चबुतरापर एकटा नवकनियाँ बूढ़ीया साउसकेँ केसमहक ढील तकैत देखि पड़ैछ ।
सरदार जोराबर सिंह की जय । ई स्वर सामूहिकरूपेँ पाश्र्वसँ अबैत छैक । स्वर सूनि साउसपुतहु चौंँकि उठैछ । पुतहु हात बारि साउसकेँ अपनासँगे चबुतरासँ उठा दैत छैक ।
पुतहु ः माए, चलथु ! चण्डलबा एम्हरे आबि रहल छै ।
साउस ः हँ, एक्को रत्ति चैनसँ रहऽ नै दै है बइमनमा । चल बहुरिया, एकर छाँंहो ने पड़ऽके चाही ।
दुनू साउस पुतहु झटकारि कऽ गामदिस बढ़ि जाइछ ।
जयजयकार जारी अछि । मञ्चपर एकटा लठैत आगाँआगाँ, तकराबाद चारिगोट मुस्तण्ड पालकीसन सिंहासनकेँ कान्हपर लदने आ तकरा पाछा दू गोट लठैतक प्रवेश । पालकीपर खुब मोटसोट, चौड़गर छाती, पैघपैघ माँेंछ, ललाटपर टीका, धोती आ पएरमे पनही जुत्ता । रूप रंग आ मानसम्मान स्पष्ट लगैछ ई जोराबर सिंह अछि ।
मञ्चपर अबिते चबुतराकेँ देखैत अछि । कहारकेँ रुकबाक ईशारा करैछ ।
जोराबर ः शमशेर सिंह ?
अगिलका लठैत ः जी सरदार !
जोराबर ः कनिक रोक, चबुतरापर सुस्ताले सभ गोटे ।
अगिलका लठैत ः हेतै सरकार !
कहार पालकी धरतीपर रखैत अछि । जोराबर उतरैत अछि ओहिपरसँ । मोछपर ताव दैत चारुकात देखैत अछि ।
जोराबर ः रौ, केसर सिंह ! पूरा रस्ता सुन्न लगै छौ । गाममे लोक नै छौ की ?
पछिलका लठैत ः सरकार, अपनेकेँ आगामे ठाढ़ रहे से ककर मजाल है हजूर ।
जोराबर चबुतरापर बैसऽ चाहैत अछि ।
शमशेर ः सरदार, ई चबुतरा तऽ अपन राजकेँ लेल खतरा भऽ गेल है ।
जोराबर ः (ठमकि) से केना रौ ?
शमशेर ः अइ गामकेँ मुसहरबासभ अहिठाम गोलिया कऽ सहमातुकेँ खेल खेलैत रहैअ, हजूर ।
जोराबर ः फरिछा कनि ।
शमशेर ः बजैत रहैअ जे आब बेगार नै करबै । हमरोसभकेँ मेहनतकेँ मोल छै किने ।
जोराबर ः अच्छा तऽ आब अपन मोल खोजैअ ।
केसर ः (लगमे जा) सरकार, कहाँदन जोगियाकेँ कोनो दीनाभद्री है । तकरा अपन गोलैसीमे सामिल करऽकेँ चक्रचालि चलारहल है भीलसभ ।
जोराबर ः हूँऽऽऽ ।
शमशेर ः गुप्तचर कहलक अछि जे काल्हि राति एतऽ दूटा योगी गुदरिया गोसाईं आसन देने रहै । ओकरा जीवछी भिलनी बड्ड आगतस्वागत कऽ पाठ पढ़बैत रहै ।
जोराबर ः (तनि कऽ) अएँ, एतेक बात भऽ गेलौ आ हमरा खबरि नै । कत्त छौ भिलनी ? ला पकड़ि कऽ । एहि गाछपर लटका बुढ़ियाकेँ ।
लठैतसभ आदेश पालन करबाक लेल उद्यत होइत गामदिस जाए चाहैत अछि ।
ठहर ! अखनु तऽ अखाड़ापर जाएकेँ बेर है । पठ्ठासभ बाट तकैत होतै । घुमब तऽ देखबै ओई बुढ़ियाकेँ आ आरो मुसहरबासभकेँ । पाँखि जे निकललैअ । हम कतरि देबै आइए ।
पालकीदिस बढ़ैतबढ़ैत रुकि जाइत अछि ।
रौ शमशेर !
शमशेर ः जी सरकार !
जोराबर ः रौ सब फसादकेँ जड़ि ईहे गाछ आ ई चबुतरा लगै हौ । एक बीत्ता जमिन नै है सार मुसहरबासभकेँ । अहिठाम जम्मा भऽ कऽ हमरे विरोधमे बतकटौअलि करैआ । हे, सभसँ पहिने एकरे उखाड़ ।
सभ लठैत तमतम करऽ लगैछ ।
इहो काज घुरलापर करिहे । देह कसकस करैअ । लगै है, आइ हमरा हाथे ककरो परान गेल है ।
जोराबर पालकीमे बैसैत अछि । कहार उठबैत छै । पाश्र्वमे गीतक स्वर अभरैत अछि
सात सय पठ्ठाकेँ खेलबऽ
चललै जोराबर अखड़ियामे
सात सय पठ्ठाकेँ खेलबऽ
चललै जोराबर अखड़ियामे ने यौ !
उलङ्गी पहाड़पर भैया
घनघोर मल्ल युद्ध होतै आई
उलुङ्गी पहाड़पर भैया
घनघोर मल्ल युद्ध होतै आई ने हौ ।
अन्हार ।
.....
मञ्चपर प्रकाश । दृश्य पूर्ववत ।
पृष्ठभूमिमे उज्जरका पर्दापर ध्वनि आ प्रकाशक माध्यमसँ मल्ल युद्धक छाया चित्र देखाओल जाइछ । मञ्चपर किछु महिला, पुरुष, बालक एम्हरसँ ओम्हर, ओम्हर सँ एम्हर करैत भगैत । पृष्ठभूमिमे गीतक स्वर सुनि पड़ैछ ।
आ खैंचकेँ दण्ड जोराबर
उलङ्गीमे खिचै छै
आ खैंचकेँ दण्ड जोराबर
उलङ्गीमे खिचै छै ने हौ ।
पर्दापर दण्ड बैसकी करैत छाया देखि पड़ैछ ।
पछिये भर जा कऽ दुलरुआ
बैसि गेलै फलकापर
आ पछिये भर जा कऽ दुलरुआ
बैठिये गेलै फलका उपरबामे ने हय ।
मल्ल युद्धक तैयारी । भीड़न्त देखाओल जाइछ ।
आ मैया तऽ बधेसरी नाम से
मिट्टी तऽ चढ़ा देलकै
आ मैयाक नाम से दादा
मिट्टि चढ़ा देलकै ने हेय ।
घनघोर युद्धक दृश्य । दू गोट भीमकाय योद्धाक मल्ल युद्धक प्रसङ्ग ।
पड़ि गेलै युद्ध हौ दादा
उलङ्गी पहाड़ पर
आ पड़ि गेलै युद्ध हो दादा
उलङ्गी पहाड़ पर ने हय ।
प्रेमी हो प्रेमी
ओकरा जे डरने से ओहो ने डेराइ छै
ककरो ने डरने कोइ नै डेराइ छै हौ ।
एकटा चित्कारक सँग एकटा योद्धाक हाथमे कटल मुड़ी लटकल छै । अट्टाहासक स्वर ।
जा के मुड़ी आब खसै छै
जोराबर सिंहकेँ अंगनबामे
आजाकेँ आई मुड़ी गिरलै
जोराबर सिंहकेँ अंगनबामे ने हय ।
पृष्ठभूमिमे जयजयकार सुनि पड़ैछ । दीनाभद्री महाराजकी जय । मञ्चपरक भगैत सभ रुकि जाइछ आ जय जयकारमे साथ देबऽ लगैछ ।
....
मञ्चपर प्रकाश । दृश्य पूर्ववत ।
गामक किछु लोक अपन पारम्परिक भेषभुषामे मञ्चपर अबैत अछि । ककरो कान्हपर हर, कोदारि छै तऽ ककरो माथपर ढाकी । ककरो हातमे डोलमे पानि छैक तऽ ककरो हातमे जलखईक मोटरी । मञ्चपर प्रसन्नतापूर्वक कृषक परिवारक चहलकदमी ।
पृष्ठभूमिमे गीतक बोल प्रसारित भऽ रहल अछि ।
अप्पन घर, अप्पन खेत, अप्पन भेलै समैया
अप्पन हर, अप्पन पसार, अप्पन भेलै गोसैंया
भैया हो ऽ ऽ ऽ ऽ
अत्याचारी जोराबरसँ मुक्त भेलै समाज
एलै जनताकेँ सोराज, एलै जनताकेँ सोराज ।।
हो भैया एलै अपन राज....।
क्रमशः अन्हार
पटाक्षेप ।


२.
कुमार मनोज कश्यप- कथा

माता कुमाता भवति

कक्काक तऽ एको मिसिया मोन नहिं रहनि जे स्वयं पटना  जा कऽ बेटाक हाल-चाल पता करी । 'ई तऽ संताने के चाही जे वृद्ध माता-पिताक खोज-खबरि लेमय । जखन बेटा लेल हमरा सभक मरब-जियब धन्न सन तखन हमरे कोन पड़ल जे बउआई लै जाऊ ।' मुदा कक्काक एको टा तर्क काकीक जिद्द के नहिं झुका सकलनि। ओ काकी के कतबो बुझेबाक चेष्टा केलनि ; ओ घटनो मोन पाड़ि देलखिन जखन काकी बड़जोर दुखित रहथि आ बँचबाक उम्मीद कम्मे रहनि । तखन एके टा  हकबाहि लागल रहनि जे बेटा के मुँह देखा दिय । तखनो बेटा नहिं आयल रहनि, छुट्‌टी नहिं भेटबाक लाथ कऽ कऽ । केयो पुछलकै तऽ खौंझा कऽ कहने रहय - ' हम कोनो डॉक्टर तऽ छी नहि जे देखि कऽ ईलाज करबैक । रुपैया पठाईये देलियै ईलाजक हेतु। आब हम किं करियौक?' कक्का के तऽ लागल रहनि जे आर अपनो दिस सँ रुपैया मिला कऽ बेटा के पठा देथि । मुदा फेर काकीक आँखिक भरल नोर हुनका विवश कऽ देने रहनि माहुर पीबि कऽ रहि जेबाक लेल ।

काकीक नेहोरा -पर-नेहोरा आ फेर सँ वैह नोर  हुनका विवश  कऽ देलकनि बेटाक हाल-चाल जानऽ पटना जेबाक लेल । कक्का जखन बेटाक सरकारी कोठी पर पहुँचल छलाह ओहि क्षण बेटा शहर सँ बाहर रहथिऩ़कोनो सरकारी काज सँ । नहियो चाहैत कक्का कें रुकऽ पड़ि गेलनि ओतऽ बिना बेटा कें भेंट केने, हाल-चाल पुछने कोना फीरि आबतथि ? नोकर जलखई-खेनाई पहुँचा जाईन । आर ककरो कोनो मतलब नहि़ पुतोहू, पोता, पोतीक लेल जेना कोनो अनचिन्हार व्यत्ति होथि अवांछित़़। आर-त-आर छोटका पोता आबि कऽ जखन पुछलकनि, 'आप पापा से कभी मिले नहीं हैं क्या जो उनके लिये रुके हैं?' तऽ कक्का माहुर पीबि कऽ रहि गेल छलाह । जाबत किंछु कहितथिन ओकरा , ताबत छौंड़ा दौड़ैत-दौड़ैत पड़ा गेल छल।

जखन बेटा लौटलनि तखन कक्का बाहरे लॉन मे बैसल रहथि । कार सँ उतरिते लॉनक कोन मे कुर्सी पर बैसल कक्का पर नजरि पड़लै । अकचकायल ओ । पेर कक्का दिस डेग बढ़बैत पुछलकनि, 'कखन एलहुँ ?' सहसा किंछु सोचि कऽ थमकिं गेल । क्षण भरि ओहिना ठाढ़ रहल । पेर संगे आयल व्यत्ति दिस देखि कऽ बाजल, 'सरवेंट़़ फ्रॉम माई नेटिव प्लेस '। कक्काक मोनक  सुप्त ज्वालामुखी के जेना केयो उकाठी नेना आगि लेस देने होई तहिना एकाएक फाटि गेलनि । एक्के डेग मे फानि कऽ दुनू के बीच मे पहुँचि गेलाह आ ओहि व्यत्ति सँ मुखातिभ होईत बजलाह, ' मैं इसका नौकर तो नहीं, पर इसके माँ का नौकर जरूर हूं ? ' बमकल कक्का धपड़ैत घरक बाट धऽ लेने छलाह । आई ओ अंतिम फैसला कऽ लेलनि़ऩोर आ आत्म-सम्मान मे ओ ककरा चुनताह ।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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