भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
आई सँ आठ सओ वर्ष पूर्वक कुनौली बजारक एकटा चौबटिया । घनगर गाछक तरमे माटि आईंटसँबनल चबुतरा ।
(पुरुष–१ अशोथकित मुद्रामे चबुतरालग अबैत अछि । चारुकात नजरि खिरबैत अछि ।कान्हपरअंगपोछा हाथमे लऽ मुहँपर चुहचुहाइत घामकेँ पोछैत चबुतरापर बैसि रहैत अछि ।)
(पुरुष–२ कान्हपर हर, हातमे हरक पैनासँ दू गोट बयलकेँ रोमैत चबुतरालग अबैतअछि ।पुरुष–१ केँ थकित देखि कनेक बिलमि जाइत अछि ।) पुरुष–२ ः भाई रविया ! अपन केहन हालत बना लेने छह । पुरुष–१ ः (दीर्घ निसास छोड़ि) से की ई आइए केँ हालति है । भाइ आब तऽ जीअबमुश्किलभऽ गेल । बेगारक एकटा हद होइ छै । पुरुष–२ ः माने तोरो....। पुरुष–१ ः साफे की । भोरेसँ बखारीमहक धान निकालि एसगरे तौलैत–तौलैत जानपरआफत आबिगेल । एक मुठ्ठी जलखईयो नै । चण्डलबा ! पुरुष–२ ः (बयलकेँ ठाड़ करैत) हौ रे हौ ! भाई, हमरो हालत कोनो नीक नहि ।भोरेसँपँचबीघबामे हर जोतैत–जोतैत जखन पार नै लागल तऽ बयल खोलि देलियै । तैयोबारहसँ उपरकेँअमल भऽ गेलै भाई, कैला चण्डलबा सरबा एक टुकड़ि रोटियो पठाएत । पुरुष–१ ः ई हमरे तोहर दुःख नै हौ, सौसे गामकेँ पेरने है ई राक्षस ।हमरासभकेँ अपनाचास–बासमे बैसौलक इहे बेगारी खटबऽलए ने । आब तऽ हमरासभकेँ अपन कहलए रहिए कीगेल है। पुरुष–२ ः (कनेक लग जा) भाइ, ठीके कहै छह । मंगलबा अपन बेटाकेँ गौना करा कऽपाँच–सातेदिन भेलै लैलकैए । सुनै छी काल्हि राति अपन पठ्ठा सँ उठबा लेल कै । भरिराति हबेलीमेरखलकै । पुरुष–१ ः परसूकेँ कथा नै बुझल हौ । सुनरपुरकेँ अजोधी घरबालीकेँ बिदागरीकरा कऽ लऽजाइत रहै, एहि बाटे । सरदारकेँ लठैतसभ पालकीए घेर लेलकै आ हबेली ढुका लेलकै। कतबोबेचारा चिचिआइत रहि गेलै, घरबालीकेँ नहि छोड़लकै । पुरुष–२ ः भाइ, ई चण्डलबा कतेक दिनधरि एना सतौतै, बेगारी खटेतै, लोककेँबेटी, पुतहुकेँ इज्जति लुटतै । अन्हेर भऽ गेलै भाइ, अन्हेर ! पाश्र्वसँ गीतक सामूहिक स्वर सुनि पड़ैछ– सभ दिन आई खढ़ कटाबै छै सात सओ मुसहरबा से सभ दिन आई खढ़ कटाबै छै सात सओ मुसहरबा से न हय...। आ गे बड़ तऽ बेइज्जति आई करै छलै कुनौली बजरियामे आ बड़ तऽ बेइज्जति करै छलै कुनौली बजरियामे ने हौऽऽऽ । पुरुष–१ ः देखहक, सुनहक गामक हाहाकार । ई सामन्त, राजासभक अत्याचार आब बेसीदिन नैचलतै भाइ । हमरा–तोरा कान्हपर बेगारीकेँ गुलामीकेँ बोझ हटतै बुझाइए । जनताजागरुकभऽ रहल है । कुछ होतै हौ भाई ! पुरुष–२ ः (हरकेँ कान्ह पर धऽ चलबाक उपक्रम करैत) बयल कतहु भागि जएतै तऽजुते–लातेएक कऽ देत । चल, आइ दिनकेँ आसमे किछु दिन और सहि ली । पुरुष–१ ः भाइ कोनो वीर पैदा नै भेलैए जे एहि चण्डाल सामन्त जोराबर सिंहकेँमारतै । पुरुष–२ ः (चलैत–चलैत रुकैत) एकटा पताकेँ बात । सुनै छिऐ जे जोगियानगरमेकालूसरदारकेँ बेटा छै दीनाराम, भद्रीराम । आ ओ हमरेसभकेँ जाति छै कहाँदन । खुबचलतीकेँवीर है । पुरुष–१ ः (उठैत) एह, बात तऽ बड़का बजला । एहि चण्डालकेँ मारि दितै तऽ पोसलेखसी चढ़ादितिऐ दीना–भद्रीकेँ । घर–घर एक–एकटा खसी पोसि देबै सभ सहाय भाई । लगैएहुनकेगोहराबऽ पड़तै आब... । पुनः पाश्र्वसँ सस्वर गीतक बोल सुनि पड़ैछ– ताहि दिन ओकरा नाम से आई खसी चढ़ा देबै कुनौली बजरियामे करै छै अराधना सहोदरा अपना तऽ जतिया से करै छै अराधना भैया अपना तऽ जतिया से ने हेय । मञ्चसँ दुनू प्रस्थान । अन्हार ।
........... मञ्चपर प्रकाश । पूर्ववत चौबटिया । गाछक चबुतरापर बैसल अछि पुरुष–१ ।अंगपोछासँमुहँपर हवा झोंकैत । पुरुष–२ क धरफराइत प्रवेश । ससरि कऽ पुरुष–१ क लगमेजाइत अछि । पुरुष–२ ः (चारुकात अकानैत । ककरो आगमन नहि बुझि ) भाइ, हमरासभकेँ पुकारसुनि लेलकोदीनाभद्री महाराज । पुरुष–१ ः (प्रसन्नता सँ ) ठीके भाइ ! पुरुष–२ ः हँ, हौ ! बजै छलखिन्ह जे अपन जाति–भाइ पर अत्याचार आब नै होबदेबै । मारबैजोराबरकेँ जेना हेतै तेना । लगैअ दिन घुरतो अपनोसभकेँ । पुरुष–१ ः लेकिन, जोराबर तऽ बड्ड भारी पहलमान है हौ । सात सओ पठ्ठा सँगेअसगरे सरखेलै है फलकापर । सोलह गजकेँ फरुआ लंगोटा पहिरै है । सओ हाथीकेँ बल है हौ । पुरुष–२ ः हमरोसभकेँ दीनाभद्री महाराज कम नै हौ । जखन रूपमे अबै है तऽ केहनकेहनकँेचित्त कऽ दै है । जोगियानगरमे कनक सिंह धामी रहै । नाम सुनने छलहो ? पुरुष–१ ः हँ, हौ ! ओइ राक्षसकेँ के नै नाम सुनने होतै । पुरुष–२ ः के मारलकै ओकरा, बुझने छहो ? पुरुष–१ ः कहँंदन दूटा शिकारी छलै । पुरुष–२ ः हौ ! ओहे दीनाभद्री महाराज रहै । बेगारी खटाबला हुनका दरबज्जापरजा कऽमाता निरसो भीलिनियाकेँ मारिपीट देलकै । की छलै–दीनाभद्री एतेक ने मारलकैजे ओ अपनघरबाली बुधनी बतरनी सँगे जंगलमे सोन्हि कोरि कऽ नुका कऽ रह लागल । पुरुष १ ः तब ? पुरुष २ ः तब की ? भद्री महाराज बीलाड़िकेँ रूपमे पत्ता लगा लेलकै आ कनकधामीकेँ मारिकऽ गामकेँ उद्धार कैलकै । पुरुष १ ः लगै है बड्ड भारी लड़ाकू है । पुरुष २ ः हँ, हौ ! वीर योद्धा है ! देखिह जरूर जोराबर मारल जाएत ।सम्पूर्ण श्रमिकवर्गकेँ देवता रूपी है दुनू भाई । शोषण आ अत्याचारसँ उएह मुक्त कराओत । पुरुष १ ः सातो सओ मुसहरकेँ घरमे छागरे पोसल छै । हुनकँे नामपर । चौबटिया बाटे ताबत किछु व्यक्ति हतासल झटकारैत गामदिस भागल जाइत । दूनूकेँदेखिओहिमहक एकगोट स्थिर होइत कहैत छैक–भागऽ मरदे । जोराबरकेँ लठैत लाठी भँजैतआबि रहलछै । बजै है–सरदारकेँ विरोधमे के लागल है, आई ओकर खैर नै होतै । दुनू साकांक्ष भऽ जाइछ । एक दोसरक मुह देखैत अछि । चेहरापर भयक छाप स्पष्टदेखिपड़ैछ । ओहो दुनू पएर झटकारैत गामदिस बढ़ि जाइत अछि । अन्हार ।
......... मञ्चपर प्रकाश । दृश्य पूर्ववत् । दू गोट लठैत लाठी भजैत प्रवेश करैछ ।मञ्चपरकनेककाल लाठीक करतब देखबैत अछि । फेर शान्त भऽ चबुतरापर बैसि जाइछ । लठैत १ ः आई तऽ मौजे–मौज है गोधिया । लठैत २ ः कथिक मौज रै । लठैत १ ः रे सरदार की कहलकैअ । गाममे घरे–घरे पैस । ई मुसहरबासभ हमरेजमीनपर बैसैअ। हमरे विरुद्धमे गुमीन्टि करैअ । सारसभकेँ पीठी दागि कऽ आ । लठैत २ ः हँ, से तऽ कहलकैअ । तऽ पीठी दागऽ कथिक मौज । ई तऽ रोजकेँ काम भऽगेल है । लठैत १ ः रे सार । सब दिन तोँ चोन्हबे रहि गेले । घर– घरमे ढुकबैत घरकेँमालो समानदेखबे नै रै । लठैत २ ः तऽ । लठैत १ ः तऽ की । नया–नवेलीकेँ संँग मौजमस्ती नै करबे । लठैत २ ः अच्छा, तऽ तोँ से बात कहै छले । हम तऽ दोसर बात बुझै छलियौ । लठैत १ ः आई तऽ मौजेमौज है । लठैत २ ः कुछो करबही आ सरदारकेँ पता लगतै तऽ ? लठैत १ ः कतेको घरकेँ बेटी पुतहु सरदारकेँ हबेलीमे हमसभ नै पहुँचबै छिऐ ? लठैत २ ः से कतेको ! लठैत १ ः एतेक पहुँचबिते छिऐ तऽ आई दू–चारि हमहुँसभ हाथ लगा देबै तऽ कोनपहाड़ खसिपड़तै ? लठैत २ ः से तऽ है । एह, ठीके कहले । चल सार सदायसभकेँ मजा चखा दै छियै । दुनू उठैत अछि आ चलबाक हेतु उद्दत होइत अछि । फेर की फुराइ छै लठैत १ घुरिकऽचबुतराकेँ देखैत अछि । किछु सोचैत अछि । लठैत १ ः (लठैत २ सँ) हे, गोधिया । हमसभ एहि चबुतराकेँ तोड़ि दी तऽ नीक । लठैत २ ः कैला ? लठैत १ ः सार मुसहरबासभ एहिपर बैसि कऽ बात लगबैअ । घरमे बैसऽकेँ जगहो नैहै, सुगरकेँखोर है । एतै बैसि कऽ सरदारकेँ खिलाफ साजिश रचैए । तहिसँ...। लठैत २ ः धूत मरदे ! हौ, एहि गाछ आ चबुतराकेँ की दोष । थाकल ठेहिआएलहमहुँसभ अबै छीतऽ एहिपर सुस्ताइ छी । एना नै सोच...। लठैत १ ः लगैए, तोँ ठीक कहै छह । चलऽ । दुनूक प्रस्थान । अन्हार ।
....... मञ्चपर प्रकाश । स्थान पूर्ववत । दू गोट योगीक प्रवेश । कान्हसँ सारंगी टंगने । राजा भरथरीक गीत गबैत । गीतगबैत एकचक्कर लगेलाक बाद चबुतरापर बैसि रहैछ । योगी १ ः भैया दीना ! के चिन्हत गऽ हमरासभकेँ एहि ठाम । योगी २ ः हँ भाई ! हमसभ गुरु गोरखनाथक शिष्य लगैत छी । एहि भेषमे जोराबरसिंहकेँखोजबामे सहुलियत हएत । ताबत ओहि बाटे एकटा बुढ़िया आंगनदिस जाइत देखि पड़ैछ । चबुतरापर गुदरियाबाबासभकेँबैसल देखि पुछि दैत अछि । बुढ़िया ः गोर लगै छी बाबा ! दुनू योगी ः (एक्केसँग) कल्याण होऔं । बुढिया ः कत्तसँ आसन एलैए बाबा ? योगी १ ः हमसभ गुरु गोरखनाथकेँ शिष्य छियै । एकर नाम वृजमोहन छियै आ हमरनाम बैताली। बुढिया ः की सेवा करियै बाबाकेँ ? योगी २ ः हमसभ तीन दिनसँ भुखल छी । किछु खाएला भेटि जेतै तऽ भगवान गोरखनाथतोराकल्याण करितऽथुन । बुढ़िया गुनधुनमे पड़ि जाइत अछि । पृष्ठभूमिमे गीतक स्वर अभरैछ – से कथि लऽ कऽ आव महात्मा अहाँकेँ करबै कथि लऽ कऽ आव महात्मा अहाँकेँ करबै ने हय हौ बाबा ओहो जेहो छलै मरद आइ हमरा जोगिया तऽ नगरियामे चलै छै जोगिया जोगिया नगरियामे । योगी १ ः कथि लेल बुढ़ी सोचमे पड़ि गेल छी ? बुढिया ः की कहू योगी महाराज ! एहि गामक सामन्त जोराबर सिंह सौंसे गौैंआकेबेगारेमेखटबैत छैक । एक्को सेर बोइन नै दै छै । घरमे किछु नै रहै छै खाएला । से हमतऽमुश्किलमे पड़ि गेल छी...। दुनू योगी गम्भीर भऽ एक दोसराकेँ देखैत अछि । किछ सोचि माथ डोलबैत अछि । योगी १ ः बुढ़ी, अहाँक घरमे जतबे चाउर अछि से खाजू । तकरे चूल्हीपर अदहन चढ़ाकऽ ओहिमेराखिदिऔ । हमरासभकेँ ताहीसँ पेट भरि जाएत । बुढ़िया आश्चर्यसँ योगीदिस देखैत अछि । योगी २ ः ठीके कहै छथि बैतालीनाथ । अहाँ जाऊ, चाउर लगाऊ गऽ । बुढ़िआ अछताइत–पछताइत आंगनदिस जाइत अछि । योगी १ ः हे बघेसरी माता ! बुढ़ियाकेँ सहायता करिह । सभ दिन हम तोरा पूजादेलियह, आईतोँ सहाय हौइह ! कनेक कालमे बुढ़िया दू गोट छीपामे भात, दालि आ आलूक चोखा लऽ कऽ चबुतरापरअबैत अछि ।दुनूकेँ श्रद्धा भावसँ देखैत आँगामे थारी राखि दैछ । बुढ़िया ः (हाथ जोड़ि) हे योगीसभ ! हमरा नै लगैया अहाँसभ साधारण लोक छी । एकपाव चाउरफटकि कऽ भेल छल, अदहनमे धरिते भरि तौला भात भऽ गेलै । ई चमत्कार मामूली नैछै ।जरुर अपने पहुँचल लोक छियै । योगी १ ः बुढ़ी माता ! अहाँकँे अन्न हमरासभकेँ खाएकेँ छलै, से भेटल । आऊभाई, भुखलागल है । जल्दी खाउ ! बुढ़िया अपन प्रश्नक उत्तर नहि पाबि आर आश्चर्यमे पड़ि गेल अछि । हाथ जोड़नेसोँंझामेठाढ़ छैक । दुनू भाइ खाना खा कऽ प्रसन्न मुद्रामे आबि जाइछ । योगी २ ः बुढ़ी माता अपने धन्य छी । हमरासभकेँ जुड़ेलहुँ । आब कहू हमसभ की कऽसकै छी ? बुढ़िया ः (भावविह्वल भऽ) हमरा लगैए हमरासभपर होइत अत्याचार आब अपनेसभकेँकृपासँ खतमहेतै । योगी १ ः के करैछै अत्याचार ? बुढ़िया ः उएह, जोराबर सिंह । घर–दुआर, खेत, खरिहान, बहु–बेटी ककरो इज्जतिनै रहेदेलकै महाराज ! योगी २ ः कोइ नै किछु कहै छै ? बुढ़िया ः ककर मजाल छै, ओई सैतनमाकेँ देहोमे केओ भीर लेत । सात सओ पठ्ठाकेँरोज खेलबैछै । कहाँदन जोगिया गाममे हमरेसभकेँ जाति दीनाभद्री है । ओकरे गोहरबै हैभरि गामकेँसदायसभ । घर–घर छागर पोसने है ओकरालेल । ऊ एतै कि नै पता नै, अपने योगीबाबाआएल छियै, किछु करियौ । योगी १ आ योगी २ चबुतरापरसँ उठि जाइत अछि । भावुक भऽ बुढ़ियाकेँ दुनू कातसँपकड़ि भावविह्वल मुद्रामे मञ्चक आगा भागदिस आबि जाइत अछि । प्रकाशक घेरा तीनूकअनुहारहोइतपुरे शरीर पर पड़ैत अछि । योगी १ ः अहाँ चिन्ता नै करू मांँ । अहाँक बेटासभ अत्याचारी जोराबरकेँनिघटाबऽ लेलआबि गेल अछि । आब जोराबर मरतै मांँ, अहाँ निश्चित भऽ जाऊ । देखल जेतैउलङ्गी पहाड़कअखराहापर । बुढ़िआ अश्रुपुरित आँखिए दुनूक अनुहारपर देखैत अछि । आँखिमे आबिगेल चमकसँलगै छैयोगीक बातपर ओकरा पूर्ण विश्वास भऽ गेल छै ।
....... प्रकाश । दृश्य पूर्ववत । चबुतरापर एकटा नवकनियाँ बूढ़ीया साउसकेँ केसमहकढील तकैतदेखि पड़ैछ । सरदार जोराबर सिंह की जय । ई स्वर सामूहिकरूपेँ पाश्र्वसँ अबैत छैक । स्वरसूनिसाउस–पुतहु चौंँकि उठैछ । पुतहु हात बारि साउसकेँ अपनासँगे चबुतरासँ उठादैत छैक । पुतहु ः माए, चलथु ! चण्डलबा एम्हरे आबि रहल छै । साउस ः हँ, एक्को रत्ति चैनसँ रहऽ नै दै है बइमनमा । चल बहुरिया, एकरछाँंहो नेपड़ऽके चाही । दुनू साउस पुतहु झटकारि कऽ गामदिस बढ़ि जाइछ । जय–जयकार जारी अछि । मञ्चपर एकटा लठैत आगाँ–आगाँ, तकराबाद चारिगोट मुस्तण्डपालकीसनसिंहासनकेँ कान्हपर लदने आ तकरा पाछा दू गोट लठैतक प्रवेश । पालकीपर खुबमोटसोट, चौड़गर छाती, पैघ–पैघ माँेंछ, ललाटपर टीका, धोती आ पएरमे पनही जुत्ता । रूपरंग आमान–सम्मान स्पष्ट लगैछ ई जोराबर सिंह अछि । मञ्चपर अबिते चबुतराकेँ देखैत अछि । कहारकेँ रुकबाक ईशारा करैछ । जोराबर ः शमशेर सिंह ? अगिलका लठैत ः जी सरदार ! जोराबर ः कनिक रोक, चबुतरापर सुस्ताले सभ गोटे । अगिलका लठैत ः हेतै सरकार ! कहार पालकी धरतीपर रखैत अछि । जोराबर उतरैत अछि ओहिपरसँ । मोछपर ताव दैतचारुकातदेखैत अछि । जोराबर ः रौ, केसर सिंह ! पूरा रस्ता सुन्न लगै छौ । गाममे लोक नै छौ की ? पछिलका लठैत ः सरकार, अपनेकेँ आगामे ठाढ़ रहे से ककर मजाल है हजूर । जोराबर चबुतरापर बैसऽ चाहैत अछि । शमशेर ः सरदार, ई चबुतरा तऽ अपन राजकेँ लेल खतरा भऽ गेल है । जोराबर ः (ठमकि) से केना रौ ? शमशेर ः अइ गामकेँ मुसहरबासभ अहिठाम गोलिया कऽ सह–मातुकेँ खेल खेलैत रहैअ, हजूर । जोराबर ः फरिछा कनि । शमशेर ः बजैत रहैअ जे आब बेगार नै करबै । हमरोसभकेँ मेहनतकेँ मोल छै किने । जोराबर ः अच्छा तऽ आब अपन मोल खोजैअ । केसर ः (लगमे जा) सरकार, कहाँदन जोगियाकेँ कोनो दीनाभद्री है । तकरा अपनगोलैसीमेसामिल करऽकेँ चक्रचालि चलारहल है भीलसभ । जोराबर ः हूँऽऽऽ । शमशेर ः गुप्तचर कहलक अछि जे काल्हि राति एतऽ दूटा योगी गुदरिया गोसाईं आसनदेने रहै। ओकरा जीवछी भिलनी बड्ड आगत–स्वागत कऽ पाठ पढ़बैत रहै । जोराबर ः (तनि कऽ) अएँ, एतेक बात भऽ गेलौ आ हमरा खबरि नै । कत्त छौ भिलनी ? ला पकड़िकऽ । एहि गाछपर लटका बुढ़ियाकेँ । लठैतसभ आदेश पालन करबाक लेल उद्यत होइत गामदिस जाए चाहैत अछि । ठहर ! अखनु तऽ अखाड़ापर जाएकेँ बेर है । पठ्ठासभ बाट तकैत होतै । घुमब तऽदेखबै ओईबुढ़ियाकेँ आ आरो मुसहरबासभकेँ । पाँखि जे निकललैअ । हम कतरि देबै आइए । पालकीदिस बढ़ैत–बढ़ैत रुकि जाइत अछि । रौ शमशेर ! शमशेर ः जी सरकार ! जोराबर ः रौ सब फसादकेँ जड़ि ईहे गाछ आ ई चबुतरा लगै हौ । एक बीत्ता जमिन नैहै सारमुसहरबासभकेँ । अहिठाम जम्मा भऽ कऽ हमरे विरोधमे बतकटौअलि करैआ । हे, सभसँपहिनेएकरे उखाड़ । सभ लठैत तमतम करऽ लगैछ । इहो काज घुरलापर करिहे । देह कस–कस करैअ । लगै है, आइ हमरा हाथे ककरो परानगेल है । जोराबर पालकीमे बैसैत अछि । कहार उठबैत छै । पाश्र्वमे गीतक स्वर अभरैत अछि। सात सय पठ्ठाकेँ खेलबऽ चललै जोराबर अखड़ियामे सात सय पठ्ठाकेँ खेलबऽ चललै जोराबर अखड़ियामे ने यौ ! उलङ्गी पहाड़पर भैया घनघोर मल्ल युद्ध होतै आई उलुङ्गी पहाड़पर भैया घनघोर मल्ल युद्ध होतै आई ने हौ । अन्हार ।
..... मञ्चपर प्रकाश । दृश्य पूर्ववत । पृष्ठभूमिमे उज्जरका पर्दापर ध्वनि आ प्रकाशक माध्यमसँ मल्ल युद्धक छायाचित्रदेखाओल जाइछ । मञ्चपर किछु महिला, पुरुष, बालक एम्हरसँ ओम्हर, ओम्हर सँएम्हर करैतभगैत । पृष्ठभूमिमे गीतक स्वर सुनि पड़ैछ । आ खैंचकेँ दण्ड जोराबर उलङ्गीमे खिचै छै आ खैंचकेँ दण्ड जोराबर उलङ्गीमे खिचै छै ने हौ । पर्दापर दण्ड बैसकी करैत छाया देखि पड़ैछ । पछिये भर जा कऽ दुलरुआ बैसि गेलै फलकापर आ पछिये भर जा कऽ दुलरुआ बैठिये गेलै फलका उपरबामे ने हय । मल्ल युद्धक तैयारी । भीड़न्त देखाओल जाइछ । आ मैया तऽ बधेसरी नाम से मिट्टी तऽ चढ़ा देलकै आ मैयाक नाम से दादा मिट्टि चढ़ा देलकै ने हेय । घनघोर युद्धक दृश्य । दू गोट भीमकाय योद्धाक मल्ल युद्धक प्रसङ्ग । पड़ि गेलै युद्ध हौ दादा उलङ्गी पहाड़ पर आ पड़ि गेलै युद्ध हो दादा उलङ्गी पहाड़ पर ने हय । प्रेमी हो प्रेमी ओकरा जे डरने से ओहो ने डेराइ छै ककरो ने डरने कोइ नै डेराइ छै हौ । एकटा चित्कारक सँग एकटा योद्धाक हाथमे कटल मुड़ी लटकल छै । अट्टाहासक स्वर । जा के मुड़ी आब खसै छै जोराबर सिंहकेँ अंगनबामे आजाकेँ आई मुड़ी गिरलै जोराबर सिंहकेँ अंगनबामे ने हय । पृष्ठभूमिमे जयजयकार सुनि पड़ैछ । दीना–भद्री महाराजकी जय । मञ्चपरक भगैत सभरुकिजाइछ आ जय जयकारमे साथ देबऽ लगैछ ।
.... मञ्चपर प्रकाश । दृश्य पूर्ववत । गामक किछु लोक अपन पारम्परिक भेषभुषामे मञ्चपर अबैत अछि । ककरो कान्हपर हर, कोदारिछै तऽ ककरो माथपर ढाकी । ककरो हातमे डोलमे पानि छैक तऽ ककरो हातमे जलखईकमोटरी ।मञ्चपर प्रसन्नतापूर्वक कृषक परिवारक चहलकदमी । पृष्ठभूमिमे गीतक बोल प्रसारित भऽ रहल अछि । अप्पन घर, अप्पन खेत, अप्पन भेलै समैया अप्पन हर, अप्पन पसार, अप्पन भेलै गोसैंया भैया हो ऽ ऽ ऽ ऽ अत्याचारी जोराबरसँ मुक्त भेलै समाज एलै जनताकेँ सोराज, एलै जनताकेँ सोराज ।। हो भैया एलै अपन राज....। क्रमशः अन्हार पटाक्षेप ।
२.
कुमारमनोज कश्यप- कथा
माताकुमातानभवति
कक्काक तऽ एको मिसिया मोन नहिं रहनि जे स्वयं पटनाजा कऽ बेटाक हाल-चाल पता करी । 'ई तऽ संताने के चाही जे वृद्ध माता-पिताक खोज-खबरि लेमय । जखन बेटा लेल हमरा सभक मरब-जियब धन्न सन तखन हमरे कोन पड़ल जे बउआई लै जाऊ ।' मुदा कक्काक एको टा तर्क काकीक जिद्द के नहिं झुका सकलनि। ओ काकी के कतबो बुझेबाक चेष्टा केलनि ; ओ घटनो मोन पाड़ि देलखिन जखन काकी बड़जोर दुखित रहथि आ बँचबाक उम्मीद कम्मे रहनि । तखन एके टाहकबाहि लागल रहनि जे बेटा के मुँह देखा दिय । तखनो बेटा नहिं आयल रहनि, छुट्टी नहिं भेटबाक लाथ कऽ कऽ । केयो पुछलकै तऽ खौंझा कऽ कहने रहय - ' हम कोनो डॉक्टर तऽ छी नहि जे देखि कऽ ईलाज करबैक । रुपैया पठाईये देलियै ईलाजक हेतु। आब हम किं करियौक?' कक्का के तऽ लागल रहनि जे आर अपनो दिस सँ रुपैया मिला कऽ बेटा के पठा देथि । मुदा फेर काकीक आँखिक भरल नोर हुनका विवश कऽ देने रहनि माहुर पीबि कऽ रहि जेबाक लेल ।
काकीक नेहोरा -पर-नेहोरा आ फेर सँ वैह नोरहुनका विवशकऽ देलकनि बेटाक हाल-चाल जानऽ पटना जेबाक लेल । कक्का जखन बेटाक सरकारी कोठी पर पहुँचल छलाह ओहि क्षण बेटा शहर सँ बाहर रहथिऩ़कोनो सरकारी काज सँ । नहियो चाहैत कक्का कें रुकऽ पड़ि गेलनि ओतऽ बिना बेटा कें भेंट केने, हाल-चाल पुछने कोना फीरि आबतथि ? नोकर जलखई-खेनाई पहुँचा जाईन । आर ककरो कोनो मतलब नहि़ पुतोहू, पोता, पोतीक लेल जेना कोनो अनचिन्हार व्यत्ति होथि अवांछित़़। आर-त-आर छोटका पोता आबि कऽ जखन पुछलकनि, 'आप पापा से कभी मिले नहीं हैं क्या जो उनके लिये रुके हैं?' तऽ कक्का माहुर पीबि कऽ रहि गेल छलाह । जाबत किंछु कहितथिन ओकरा , ताबत छौंड़ा दौड़ैत-दौड़ैत पड़ा गेल छल।
जखन बेटा लौटलनि तखन कक्का बाहरे लॉन मे बैसल रहथि । कार सँ उतरिते लॉनक कोन मे कुर्सी पर बैसल कक्का पर नजरि पड़लै । अकचकायल ओ । पेᆬर कक्का दिस डेग बढ़बैत पुछलकनि, 'कखन एलहुँ ?' सहसा किंछु सोचि कऽ थमकिं गेल । क्षण भरि ओहिना ठाढ़ रहल । पेᆬर संगे आयल व्यत्ति दिस देखि कऽ बाजल, 'सरवेंट़़ फ्रॉम माई नेटिव प्लेस '। कक्काक मोनकसुप्त ज्वालामुखी के जेना केयो उकाठी नेना आगि लेस देने होई तहिना एकाएक फाटि गेलनि । एक्के डेग मे फानि कऽ दुनू के बीच मे पहुँचि गेलाह आ ओहि व्यत्तिᆬसँ मुखातिभ होईत बजलाह, ' मैं इसका नौकर तो नहीं, पर इसके माँ का नौकर जरूर हूं ? ' बमकल कक्का धपड़ैत घरक बाट धऽ लेने छलाह । आई ओ अंतिम फैसला कऽ लेलनि़ऩोर आ आत्म-सम्मान मे ओ ककरा चुनताह ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।