भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, July 04, 2010

'विदेह' ६० म अंक १५ जून २०१० (वर्ष ३ मास ३० अंक ६०)-PART VI

१. -बीरेन्द्रो कुमार यादव-महावि‍ष्णुक यज्ञ-मेलाक दृश्य २. कथा- एकटा अधिकार-सुजीत कुमार झा


बीरेन्द्र कुमार यादव
ग्राम- घोघड़रि‍या, पोस्टह- मनोहपट्टी, भाया- नि‍र्मली, जि‍ला सुपौल

महावि‍ष्णुघ यज्ञ-मेलाक दृश्य्-


२८अप्रैलसँ १६मइ धरि‍ भक्तिह‍मय वातावरणसँ अाच्छाकदि‍त इटहरी, नि‍रमली। जहि‍मे मुख्य७ वि‍चारणीय वि‍न्दुव- करीब दस दर्जन माटि‍क मुरूत, जे ऐति‍हासि‍क संगहि‍ हि‍न्दूव धर्म ग्रंथमे लि‍खल गेल धार्मिक घटना चि‍त्रक साक्षात् परि‍दृश्यी छल।
ई महायज्ञ मेलाक आयोजन कि‍छु साधुजन एवम् समाजक सहयोगसँ भेल।
सभसँ पहि‍ने एगो खढ़ आ माि‍टक रंगल-टीपल सतयुगक कामधेनु गाए छल, जे गाए नि‍रंतर अठारह दि‍न धरि‍‍ दूध दैइते रहि‍ गेल आ श्रद्धालुजन ओहि‍ अमृतकेँ चाटि‍-चाटि‍ अपन जेबी ढील कएलक। एहि‍ कामधेनु गायक देहमे सेकड़ो देवताक छोट-छोट मुरूत छल।
दोसर एकटा भगवान शंकरक पुत्र गणेशजी महाराजक मुरूत छल जे श्रद्धालुजनसँ ि‍बना दूगो टाका नेने लड्डू नहि‍ दैत छल। जे भक्त्गण दूटा रूपैआ गणेश जीकेँ चढबति‍ तकरा गणेशजी अपन सूढ़सँ एकटा लड्डू दैत छल। आसे श्रद्धालुजन पूर्ण श्रद्धाक संग लड्डू लेबा ले तैनात छल। ओना भीड़मे हम पहि‍ने तँ हम पहि‍नेक चक्करमे कएक गोटे धाइलो भेलाह से अलग बात। दृश्यप अद्भुत लागल। अद्भुत लगबाक कारण छल जे आइयो एहि‍ तरहक बहुतयात लोकसँ हमर समाज भरल अछि‍। एतने नहि‍ ई स्प ष्ट बुझना जाइत छल जे वि‍कास माने मेडि‍कले आ इंजि‍नि‍यरि‍ंगटा क्षेत्रमे जे भेल से भेल आ फेरि‍ जे कि‍छु सड़क बान्ह बनबामे भेल मुदा गामक लोकक दशा दि‍शा ओहि‍नाक ओहि‍ना अछि‍।
एहि‍ तरहेँ मुरूत बनबोनि‍हार आ बनेनि‍हार दुनू गोटेक दि‍माग श्रद्धालुजनसँ पाइ ऐंठबामे पुरा कामयाबी हॉंसि‍ल कएलक।
यज्ञ स्थ‍लपर समुद्र-मंथन, सीता-हरण, हरि‍श्चदन्र् ऐक श्म शान घाटक भव्य। दृश्ये जहि‍ठाम रानी शेव्याुसँ पुत्र रोहि‍तक दाह-संस्का्र करबामे कर -चुंगी- लैत छथि‍न, सेतु बॉंध रामेश्वुरम्, वि‍श्वरमोहि‍नी, वीर हनुमान आदि‍-आदि‍ दृश्यश छल।
दोसर दृश्यं यज्ञशालामे छ: सात सैकड़ माटि‍क बर्तन नारि‍केल फल एकरंगासँ लपेटल कलशाक रूपमे सजाओल गेल छल, आगि‍ लागल अगरबत्तीक मुट्ठा, जअ-तील आ घीक जराइन गंधसँ परोपट्टा मह्-मह् करैत रहए। ओहि‍ बीच पंडि‍त लोकनि‍ “ओम भू र्भूव: स्वल: तत्स- वि‍तुरवरेण्यंन भर्गो देवस्यर धीमहि‍ धि‍यो यो न: प्रोच्यो दयात्”क उच्चाणरण करैत हवनमे स्वा हा करैत छलाह।
एवम् प्रकारे करीब दर्जनभरि‍ एहन दृश्यी बनाओल गेल छल जाहि‍ठाम पाइक वर्षा होइत छल। सभठाम श्रद्धालु-भक्त: जनक माध्येमसँ वरसाओल गेल पाइ समेटबाक लेल नि‍युक्ती लोकनि‍ अभावमे कतेको चतुर भलमानुष अपनहुँ गमछामे पाइ हसोथि‍ घर दि‍स वि‍दा होइत छलाह।
यज्ञ स्थछलपर एतेक लोकक भीड़ एहि‍ले भेल जे रेडि‍यो स्टेवश्नच भुरूकवा सँ करीब दर्जन भरि‍ मैथि‍ली भाषी कलाकार आबि‍ करीब तीनि‍ घंटा स्टेलज प्रोग्राम केलनि‍।
एहि‍ यज्ञमे भारी मेला लागल, सर्कस, झूला, मौतक कुइयॉं, रामलीला, थि‍येटर आदि लोक लुभावन कार्यक्रम होइत रहल। रंग-बि‍रंगक मनि‍हारा आ मि‍ठायक दोकान छल। बनि‍यॉं सभ नेहाल तँ भइये गेल मुदा परेसानि‍यो कम नहि‍ भेलनि‍।
मि‍थि‍लांचलक ई इलाका कोसी आ बलानक मारल अछि‍। जतेक‍ गहुँम, तोरी, मसुरि‍, रैइची आ धनि‍यॉं खेतमे उपजल छल, सभ बनि‍यॉंक घर चलि‍ गेल। गाम-गामसँ हि‍तबोन, कर-कुटुम आसपासक लोकक घरमे चाउर लगि‍चा देलक। मुदा कोना परवाह नहि‍, आखि‍र धर्मक काज भऽ रहल अछि‍ कि‍ ने।
कहबाक तात्प र्य अछि‍ जे आजुक आधुनि‍क आ वैज्ञानि‍क युगमे धोर धर्माधता आओर अशि‍क्षा हमरा सबहक पि‍छड़ापनक मुख्या कारण छी। धर्मक प्रति‍ एतेक आन्हरर भेनाइ जे खढ़ आ माटि‍क कामधेनु अमृत चुबाबए, गणेशजी लड्डू दि‍अए आओर हमर समाजक सोझ लोक सभ अपन मेहनतक कमाएल पाइ दऽ दऽ अमृत चाटए, लड्डू खाए एकरा धर्मान्धिता नहि‍ कहल जाय तखन की कही‍?
ई हमरा अहॉंक लेल लाजक बात छी। धारतये इति‍ धर्म:। धारण करबाक जोग बढ़ि‍यॉं बात आ कर्म होइछ। सुन्दसर कर्म धीया-पुताकेँ पढ़ाउ-लि‍खाउ, शि‍क्षि‍त बनाउ, जहि‍सँ अपन परि‍वारक संग समाजक लाेकक जीवन-स्तहर बढ़ि‍यॉं होएत। परि‍वार, समाज आ देश समृद्ध होएत।
श्री मद् भागवत गीतामे योगीराज श्रीकृष्णि कहैत छथि‍- “कर्म ही यज्ञ है और कर्म का स्रोत सवयं ब्रह्म है।”
हम अध्यात्मिव‍क वा पूजा-पाठक वि‍रोधी आकि‍ नास्ति्‍क नहि‍ छी मुदा, धर्मक मौजुदा कर्मकाण्डीम स्वहरूप, आडंम्बरर आदि‍मे वि‍श्वासस नहि‍ करैत छी। हमर-अहॉंक जवावदेही बनैए जे समएकेँ अनुकूल समाजकेँ सही दि‍शा देवाक लेल प्रयास करी, जाहि‍सँ हमहुँ आ हमर देश रूस, अमेरि‍का, चीन, जापान जेकॉं वि‍कसि‍त देशक श्रेणीमे आबए।


कथा- एकटा अधिकार
सुजीत कुमार झा

बहुत भयंकर हृदय छल्ली करयबला हवाई दुर्घटना छल । विराटनगर सँ काठमाण्डू आवयवला हवाइ जहाजमे लैंड करय काल अचानक आगि लागि गेल आ जहाज रनवे शुरु होवय सँ पूर्व एकटा आगिक गोला बनि जमिन पर छिटा गेल छल ।
बारुण यन्त्रकेँ पहुँचय तक भीमकाय विमान जारि कऽ छाउर भऽ गेल छल । समाचार मिलिते बारुण यन्त्रक अतिरिक्त पुलिस, एयरलाइन्स आ एयरपोर्टक अधिकारीक सँग सँग अपन प्रियजनकेँ लेबय एयरपोर्ट आएल लोक सेहो दुर्घटनास्थल पहुँच गेल छल ।
जतय हवाइजहाज खसल छल ओतयके दृश्य तऽ बहुत बीभत्स छल । चारु दिस जरल जहाजक टुक्रा , मानवशरीरक अधजरु अंग, बैग लगायत ओहिना पडल छल । माउस आ रबरकेँ जरयके मिलल जुलल गँध सँ वातावरण पुरा भरल छल । नाक पर रुमाल बधने रेस्कयू टीमक लोक गरम ढेरमे तत्परता सँ लाश खोजि रहल छल ।
अहुसँ वेसी कठिन आ संवेशनशील काम ओ अधिकारीके छल जे यात्रीकेँ परिवारके पूछताछ जवाव दऽ रहल छल । नम्रता आ शालीनता वनावय राखयकेँ अथक प्रयासक बावजूद हुनक सभक व्यवहारमे खिसियाब झलकि रहल छल ।
विक्षिप्त सन लागि रहल एक युवककेँ लागातार हिचिकय सँ ओतयकेँ वातावरण आओर विह्वल भऽ रहल छल ।
आखिर युवककेँ पालो आएल तऽ कहलक हमरा जकर खोजी अछि ओ हरियर रङ्गक सारी पहिरने छल ।
एखनधरि जतेक शव भेटल अछि सभ क्षतविक्षत अछि । हरियर साडीवाला कोनो व्यक्ति नहि मिलल अछि ।
मृतक सभक गहना, पेन, मोबाइल, घडी लगायतके समान अलग कऽ कऽ राखल जा रहल छल । यात्रीकेँ निकाललाक बाद जे समान मिलत ओ यात्रीकेँ करकुटुम्बकँे देखायल जाएत ।
मुदा हम हुनकर सम्बन्धि नहि छी । युवक सिसकल, ‘ हम ओ साडीके माध्यम सँ मात्र हुनकर अन्तिम झलक देखय चाहैत छी । शायद ओहो हमर हिस्सामे नहि अछि .........’
‘धैर्य राखु’ अधिकारी कोमल स्वरमे कहलक ‘जे शव निकलैत अछि ओकरा कीयो देख सकत । अपने जतय शव उठा कऽ राखल जाति अछि ओतय जाऽ कऽ आओर शव आवयकेँ प्रतिक्षा करु ।’
युवक थाकल जकाँ चलैत लाइन सँ बाहर निकलि गेल । दोसर युवक सेहो यात्री सूची देखलाक बाद आँखि पोछैत लाइन सँ बाहर आएल । पहिल युवकके असमंजसक स्थितिमे एक दिस ठाढ़ देख ओ हुनका लग गेल । हुनका नहि जानि किए ओ नितांत अपरिचित व्यक्ति सँ सहानुभूति भऽ रहल छल ।
‘ एतय कखन धरि ठाड़ रहब ? ओम्हर चलु चबुतरा पर बैसि लाश आवयकेँ प्रतिक्षा करी ।’
‘ककरो अपनकँ लाश कहव केहन लगैत अछि’ पहिल दोसरकेँ संग चलैत पुछलक ।
‘प्राण लेवयवला, मुदा अओर की कहुँ ? हवाई जहाजके हालत देखैत ककरो बचयके उम्मीद नहि अछि । ओना हमर कनियाँ सुरक्षा जाँचमे जाय सँ पूर्व हमरा फोन कएने छल मुदा हम तइयो ई निर्मृूल आस सँ की भऽ सकैत अछि , अन्तिम समयमे ओ अपन निर्णय वदलि लेने हो, यात्री सूची देखय गेल छलौ । लिस्टमे दोसर नाम हुनके छल । आब त बस, हुनकर शवके प्रतिक्षा, अन्तिम संस्कार आ फेर जीवनभरि हुनका स्मरण करयकेँ अतिरिक्त किछु नहि बँचल हमर जीवनमे ।’
तइयो अन्तिम संस्कार त कऽ सकब । हम त शायद अन्तिम दर्शन सेहो नहि कऽ सकी ? ककरो अओरकँे देखय सँ पहिनहि हुनकर घरवला गिद्ध जकाँ लपकि कऽ शव लऽ जेता ।
‘ ओ एतय आएल छथि ?’
‘जे लोक सभ सँ आगु ठाढ़ छथि, अवश्य ओइमे सँ एक हेता ।’
हुनका चिन्हैत नहि छियै ?
‘ नहि ओना हुनकर पर्समे हरेक समय तस्वीर रहैत छल, मुदा हमरा देखयके कहियो इच्छा नहि भेल । ’
‘किया ?’
‘ हुनका सँ लगातार ई सुनि कऽ हुनको की पसिन छनि ओ आइ भोरमे की कहने छलाह कोन चुटकुल्ला सुनौलथि । वोर भऽ जाइत छलौ । तस्वीर देख लइतौ तऽ शायद ओ एलबमे लायब शुरु कऽ दैतैथ देखाबयकेँ लेल ।’
‘जखन हुनकर घरवालासँ एतेक लगाव छलनि तऽ ओ अपने सँग केना अटकि गेली एकतरफा प्रेम छल अपने के ?’
‘ सायद हम हुनका सँ एतेक नहि कऽ पबितौ छलौ जतेक प्रेम ओ हमरा सँ करैत छलि, बहुत वेसी ।’
‘ आ अपन घरवला सँ ? ’
‘पागलपनक हद तक । तखनने हमरासँ एतेक लगाब भेलाक वादो ओ हुनका छोडयकेँ लेल तयार नहि छली ।’
‘ बच्चाक इच्छा छलैन हैत । ’
‘बच्चा तऽ छलै नहि । हुनकर घरवला हुनका किनको सँग वाँटयकँे लेल तैयार नहि छल । ही वाज भेरी पजोसिव, टू द’ लिमिट अफ सफोकेशन पर हैप्स ।’
तखन ने शायद ओ अपने सँ प्रेम करय लागल छली ।
‘ यदि वशमे होइत तऽ कहियोने कैरती । हुनका घरवलाके पोजेसिव होवयकेँ कोनो शिकायत नहि छल । मुदा प्रेम ओ चिज अछि विना इच्छोके भऽ जाइत अछि आ बहुत इच्छा भेलाक बादो नहि होइत अछि ।’
‘ मुदा प्रेम भेल केना ? हमर मतलब अछि, भेटघाट वा प्रारम्भ केना भेल ? ’
‘ हवाइ जहाजमे । वडा संयोग अछि ने जे प्रेम कहानी हवाई यात्रामे शुरु भेल छल आ हवाइ यात्रामे समाप्त भऽ गेल । जे हुए हम दूनु टुर पर पोखरा जा रहल छलौ । बराबरक सीट पर बैसल छलौ । अहि दुआरे बातचितक शुरुवात भऽ गेल । संयोग सँ हमरा दूनुके बराही होटलमे रुकयकेँ छल । अही दुआरे एके टैक्सीमे होटल गेलौ आ फेर साँझखन होटलक लौवीमे दोबारा भेट भऽ गेल । हम हुनका होटल मे डिनरक निमन्त्रण देलौ, ओ मानि गेली । खाना खाति पत्ता चलि गेल काल्हि भेने ओ रारा ताल देखय जेती फेर हमहु ओतय जायके कार्यक्रम बनेलौ । ओ तऽ प्रात भिने काठमाण्डू फिर्ता चलि एली मुदा हमरा काम छल ते एक दू दिन रुकय परल । नहि ओ अपन फोन नम्बर देली आ ने हमर लेली । मात्र एतेक वुझल छल काम कतय करैत छथि ।’
‘ एतय फिर्ता भेलाक बाद एक दिन हुनक अफिस गेलौ । ओ बहुत खुशी भेलथि, लागल जेना हुनको हमर प्रतिक्षा छल । बस अही प्रकारे भेटक क्रम बढैत गेल आ सम्बन्ध सेहो ।’

‘ हुनक विवाह भ’ गेल छल ई कहिया पता चलल ?’
‘पहिले भेटमे, अपन परिचय सँगहि ओ अपन घरबालाक जन्मपत्री सुना देली । हुनक चर्चा कएने विना तऽ कोनो गप्पे पुरा नहि होइत छल । ’
‘आ फेर अहाँ हुनका सँ प्रेम करय लगलौं ?’
‘कहलौं ने प्रेम कएल नहि जाइत अछि, भऽ जाइत अछि ।’
‘मुदा रोकल तऽ जा सकैया ।’
‘ रोकयके बहुत प्रयास कएलौ मित्र, ओ सेहो आ हम सेहो । अनेक वेर नहि भेटयकेँ प्रण कएलौ मुदा तइयो हम जेना कोनो बशीकरणमे बन्हल जकाँ स्थान पर चलि जाइत छलौ आ ओ सेहो प्रतिक्षा करैत रहैत भेट जाइत छलि । हारि कऽ हम नहि भेटयके व्यर्थ कोशिस करब छोडि देलौ । ’
‘हुनक घरवलाके पता नहि चलैत छल कि अपने सँ भेटय अवैत छथि ?’ ओना तऽ ओ हुनका आवय सँ पहिने घर पहँुच जाइत छलि , कहियो अवेर भेला पर अफिसक पार्टी, बहुत कामक बहाना बना दैत छली ।’
‘मुदा तइयो मुहक हाव भाव, उद्विग्नता सँ पत्ता चलिए जाति अछि । हमर कहयकेँ अर्थ प्रेम छिपाएब आसान नहि होइत अछि ।’
‘ हँ मुदा ओ हुनकर प्रेममे अहि प्रकारे डुवल छलाह जे हुनक चिन्ता, हुनक अकुलाहट सभ अपने लेल सम्झैत छलाह ।’
‘जखन हुनक घरबला हुनका सँ एतेक प्रेम करैत छल तखन कोनो अन्य सँ प्रेम करयकेँ की आवश्यकता छल ? ’
‘ कोशिस कऽ कऽ या सोचि समझि कऽ प्रेम विवाहक वाद कएल जाइत अछि । सहीमे प्रेम तऽ वैह होइत अछि, जे अनजानमे नहि चाहैत भऽ जाइत अछि । लगैत अछि अपने कहियो किन्कोसँ प्रेम नहि केलौं अछि ?’
‘केलौ तऽ अछि मुदा मात्र अपन कनिया सँ , विवाहक बाद, मुदा सोचिसमझि वा नापितौल कऽ नहि । विवाह सँ पहिने पढाइ आ फेर काममे एतेक व्यस्त छलौ कि केकरो देखयके फुरसत नहि छल आ, विवाहक बाद तऽ हुनक अतिरिक्त केकरो दिस ताकयके अवसरे नहि भेटल वा कही मने नहि भेल । पूर्ण सन्तुष्ट छलौं हुनक प्रेममे । भऽ सकैत अछि अपनेक प्रेमिका अपन घरवलाक प्रेमसँ सन्तुष्ट नहि हुए ।’
‘एहन बात नहि छल । ओ हुनका सँ सर्वथा सन्तुष्ट छलथि । बहुत पसिन करैत छली ओ हुनका ।’
‘ फेर एतेक प्रेम करयबला घरवलाकेँ एतेक धोका केना दैत छली ?’
ओ एकरा धोका नहि मानैत छली, किए कि जखन ओ हुनका सँग होइत छली तऽ पूर्णतया हुनका प्रति समर्पित होइत छली आ हुनका घर फिर्ता होवय सँ पूर्व घर पहुँच जाति छली । यानी हुनक समय ओ कहियो हमरा लेल नहि दैत छली । हुनक कहब छलनि कि अइसँ हमरा घरवलाक कोनो नोक्शान नहि होइत अछि । हँ, हमरा सँग न्याय नहि कऽ पवैत छली, अहिके लेल हरेक समय गलानि आ, पश्चातापक आगिमे सुलगैत रहैत छली वेचारी ।’
‘ अपने के तरस नहि अवैत छल हुनका पर ?’
‘ बहुत अबैत छल, मुदा की करितौ, दिलक हाथ मजबुर छलौ । छोडि नहि सकैत छलौ हुनका ।’
‘अपनेके स्वयं पर यानी अपन पुरुषत्व पर तामस नहि अबैत छल । बहुत स्मार्ट छी, जिवनमे सेहो लगैत अछि, सुव्यवस्थित हैब, लडकीसभ सेहो अपने पर आवश्य मरैत हैत । फेर अपने किए एकटा विवाहित महिलाक सँग अटकल छलौ, जिनका सँग अपने इच्छा अनुसार समय सेहो नहि बिता सकैत छी ? ’
कनी काल इम्हर उम्हर तकैत ओ कहला प्रेम एकरे नाम छैक, मुदा.....’
‘ हम तऽ कहब छुटि गेल दू नाव पर एकसँग सवार होवयकेँ यंत्रणा सँ ।’
मुदा ओ एकरा यन्त्रणा नहि, गुलावक सँग उगल काँट कहैत छली । गुलावक रङ्ग आ अकर्षण दूर सँ देखल जा’ सकैत छल मुदा गमक सुंघयके लेल तऽ ओकरा छुवहे परतै आ काँटक चुभन सेहो झेलहे परतै ।
‘ यानी हुनका चुभन पसिन छल ? ’
‘हुनका प्रेम पसिन छल आ ओइसँ जुड़ल हरेक चिज सेहो ।’
‘ यानी ओ हालत सँ प्रसन्न छली ?’
‘हमरा लग सँ जाय काल ओ दुखित भऽ जाइत छली मुदा हरेक समय प्रसन्न रहैत छली । हंसैत छली, गुनगुनगुनाइत छली ? ’
ताकि ओ हुनकर गममे वताह भऽ जाए ? नहि हुनक विना जी सकैत छली आ ने हमरा । हमर समस्या एहन छल, मित्र, जेकर कोनो समाधान नहि छल । हमरा हुनका सँग जीवयके छल आ जिवियो रहल छलौ । आव हुनका गेलासँ हमरा जिवनमे जे अभाव भऽ गेल अछि ओ कहियो नहि मरत । नहि जनैत छी , जीवियो सकैत छी वा नहि हुनका विना ?’
‘आ हुनक घरवला ?’
‘ हुनको लेल तऽ आसान नहिए हैत.... उम्हर देखु, ओइ गाडी सँ किछु अओर शव निकालल जा रहल छैक ।’
‘चलु देखैत छी ।’
आ दूनु जतय शव आनि राखल जाइत छलैक ओतय चलि गेला । अहिवेर निकालल जायबला लाश शायद ओ व्यक्तिकँे छल जे ढेरमे दवि कऽ मरि गेल छल आ पुरे जकाँ जरय सँ बचल यानी पहचानल जा सकैत छल । एक स्ट्रेचर सँ राखल हरियर साडीकँे किछु भाग देहपर रहल व्यक्ति सेहो छल । ओना पुरे शरीर पुरे झुलसि गेल छल मुदा झुलसल मुहके पहचानल जा सकैत छल । पहिल युवक लाशकँे देख कऽ खसि पडल । दोसर हुनका उठेलैन । ओ तोक भरोष देलनि ।
‘ अपने हुनकर अन्तिम संस्कार करय चाहैत छी ने, अपनेक घरक लोक करय देत ।’
‘ घरक लोक एतय नहि अछि । हम असगरे रहैत छी, मुदा अइ सँ की फर्क पडतै ? हम कोन अधिकार सँ हुनकर बाँडी क्लेम कऽ सकैत छी । ’
प्रेमक अधिकार सँ । हुनका घर लऽ जा सकैत छी, हुनका मनभरि कऽ छू सकैत छी, हुनका जतेक चाही पकडि कऽ कानि सकैत छी ......’
‘ एना हमरा के करय देत ? ’
‘ हम करय देव.............’
‘ अपने कोन अधिकार सँ ?’
‘ हुनकर घरबला होवयकेँ अधिकार सँ ’
‘ अए..........जेना कोनो करेन्ट लागि गेल हो । फेर अपनाकेँ संयमित करैत हुनकादिस तकलैथि आ फेर ओ तकैत रहि गेलथि ओ महापुरुषकेँ ।
Ú
१.मनोज मुक्ति १.अमर शहिद दुर्गानन्द जिनक सपना छल गणतन्त्र २.
मैथिली दिवसमे विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न २. दुर्गानन्दक मंडल ३.कथा- -नन्द वि‍लाश राय

ऐना


मनोज मुक्ति
१.अमर शहिद दुर्गानन्द जिनक सपना छल गणतन्त्र २.
मैथिली दिवसमे विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न
अमर शहिद दुर्गानन्द जिनक सपना छल गणतन्त्र

आई देश दोसर गणतन्त्र दिवस मनावि रहल अछि । गणतन्त्रक परिभाषाधरि नीक जका नई बुझने सरकारमे रहल एवं विपक्षीक भूमिका निर्वाह करैत आएल पार्टीसबक रवैया दुर्गानन्द झा सनक शहादतपर पानि फेरैत बुझारहल अछि । गणतन्त्रक मतलव मात्र मनमौजी बुझने नेतासब एहू गणतन्त्रक दिवसपर सुधरत कि ? दुर्गानन्द झा सबहक आत्मा सबहक हिसाब राखि रहल अछि । कि दुर्गानन्दक शहादत एहिलेल छल ?
गणतन्त्र स्थापनाक धुनमे बीसोवर्ष पूरा नहि कएने दुर्गानन्द झा, राजा महेन्द्रके उपर २०१८ माघ ९ गते जनकपुरधामक जानकी चौकपर बम प्रहार कएने रहथि । हँसैत–हँसैत, बिनुकोनो लोभ लालचमे फँसने २०२० माघ १५ गते शहादत प्राप्त कएने दुर्गानन्द झाक बलिदान आई देशमे गणतन्त्र एलाकबादो गणतन्त्रके ताकि रहल अछि, जकरालेल ओ बलिदान देने रहथि ।
विद्यालयमे अध्ययन करितेकाल २०१५ सालक प्रथम आम निर्वाचनमे प्रजातन्त्रक पक्षमे अपनाके होमिदेने दुर्गानन्द, राजा महेन्द्रद्वारा २०१७ पुस १ गते संसद आ संसदीय सरकार विघटन कऽ प्रजातन्त्रवादी नेतासबके जेलमे राखिदेवाक सामाचार सुनिते मर्माहत आ क्षुब्ध भऽगेलथि । भारतीय स्वतन्त्रता संग्रामक वीर सेनानी भगतसिंह आ चन्द्रशेखर आजादक जीवनीसँ प्रभावित दुर्गानन्द, प्रजातन्त्रक हत्याराके नहि छोडवाक विचार कएलथि । आपन मायबाबुक एक मात्र सन्तान आ नवविवाहिता युवक भेलाकवादो दुर्गानन्द अपन लक्ष्यमे अडिग रहथि ।
२०१८ माघ ८ गते बम लऽ कऽ रातारात जनकपुरधाम पहुँचल दुर्गानन्द झा प्रातभिने अर्थात माघ ९ गते जानकी चौकपर साँझ पाँच बिजे दिस तानाशाह राजा महेन्द्रक गाडी रोकिते आपन प्रतिज्ञा पूरा कएलथि । राजा चढल लैण्डरोभर गाडीउपर फेकल बम भूर करैत नीचा जानकी मन्दिरक पूर्र्वी द्वारक दक्षिणवारी देवालपर पर्खालमा फुटेल छल । बम प्रहार कएलाकवादो क्रान्तिकारी दुर्गानन्दके पुलिस नहि पकड़ऽ सकल । हजारो सुरक्षाकर्मी तैनाथ रहलाक बावजुदो नईं पकराएल क्रान्तिकारी युवक ओहि राति जनकपुरधामक एकटा कुटी मे रहिरहल अपनलोक हेमचन्द्र चौधरी आ भोगेन्द्र चौधरी लग रहलथि एवं प्रातभिने उमगाव पहुँचि गेलथि । एम्हर, नेपालमे बम काण्डक अनुसन्धानक नाममे ५६ गोटेके पकरिड़कऽ नीतदिन मारिपिट कऽ बम प्रहार कएने कहिकऽ सकारबाक दुष्प्रयास भऽरहल छल । निर्र्दाषसबके यातना देल जाऽरहल सुनिकऽ एक दिन अनायास जयनगरसँ जनकपुर रेल्वेद्वारा नेपाल आविकऽ ओ अपन गिरफ्तारी देने रहथि ।

सरकारद्वारा ताहि बीचमे एकटा विशेष अदालत गठन भेल छल जे दुर्गानन्द झाके बिनु सफाइक मौका देनहिं २०१९ साल भादो १९ गते मृत्युदण्डक निर्णय सुनादेलक । ताहि समय नेपालमे ब्राहृमणके मृत्यु दण्ड नई देल जाइत छल, ताहीलेल मुलुकी ऐन २०२० भादो १ गतेके संशोधन काएलगेल । विशेष अदालतक फैसला सर्वोच्च अदालतसँ अनुमोदन करओलाकबाद २०२० माघ १५ गते महानक्रान्तिकारी दुर्गानन्दझाके सुन्धारा जेलमे मध्यरातिमे मृत्युदण्ड देवाक वास्ते जहन दरबज्जा खोललगेल त, मृत्युक लेल तैयार भऽ वैसल क्रान्तिकारीके देखिकऽ हत्यारासब चकित भऽगेल छल ।

प्राणदण्डक लेल लऽजाइत समयमे अपन अन्तिम इच्छा महान क्रान्तिकारीले एहि तरहें व्यक्त कएने रहथि –‘हमरा दीर्घ यात्रामे गेलाकबादो लोकतन्त्रके केओ नई रोकऽ सकत ।’
१९९७ साल माघ १० सँ १५ धरि शुक्रराज, धर्मभक्त, गङ्गालाल आ दशरथ चन्दके फाँसी (मृत्युदण्ड) देलगेल सवाएक वर्षकवाद १९९९ साल वैशाख १४ गते (वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि)में अमर सहिद दुर्गानन्द झाक जन्म धनुषाक जटही गाममे देवनारायण झा आ सुकुमारीदेवी झाक एक मात्र सन्तानक रूपमे भेल छल । पं. भोलानाथ झाक तीन भाइमें एक मात्र उत्तराधिकारी दुर्गानन्द झाक पीताक मृत्यु दुर्गानन्दक बाल्यकालमे भऽगेल छल । माइयक देखभालमे गामसँ ५ किलोमिटर दूर रहल क्षेत्रक उमगावस्थित दिनदयाल हाई स्कुलमे झाक शिक्षादीक्षा भेल छल । घरक एसगर सन्तान होएवाक कारणे मेट्रिकमे पढैतकाल २०१७ साल विवाह पञ्चमीक दिन काशीदेवीक सँग हूनक विवाह भेल छल । २०६० साल भादोमे वृद्ध मायक निधनकेबाद आब एसगर हूनक अर्घाड्ढनी काशीदेवी झा बाँचल छथि आ संविधानसभामा तमलोपापार्टीक सभासद् छथि ।
देशमे गणतन्त्र अएला दू साल भेलाकवादो, गणतान्त्रिक कहावऽबला सरकार आ देश दुर्गानन्द झाके लेल किछु नहि कऽसकल अछि । जाहि गणतन्त्रकलेल ओ हँसैत–हँसैत अपन जान दऽदेलथि ओ गणतन्त्रात्मक सरकार अखनधरि हूनका राष्ट्रीय शहिदधरि घोषणा नई करऽ सकल अछि ।
देशमे गणतन्त्र अएलाक दू वर्ष बितिगेलाकवादो दूर्गानन्द झा सन–सन जे देशक बेटा अपन जानके कनिको पर्वाह नई कएलथि, हूनका सभक शहादतपर सरकार आ पार्टीक नेतासब गणतन्त्रक गुलछर्रा उडावि रहल अछि । कि दुर्गानन्द झाक आत्माके दुःखीत कऽ हमसब शान्तिसँ जीवि सकव ?

मैथिली दिवसमे विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न

जानकी नवमी अर्थात मैथिली दिवसक अवसरमे उपत्यकामे विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न भेल अछि । १९९६ सालसँ सांगठनिकरुपसँ काठमाण्डूक गुह्येश्वरीमे मैथिल ब्राह्मण समाजद्वारा आयोजना होइत आएल जानकी नवमी एहुवेर धुमधामसँ सम्पन्न भेल अछि । काठमाण्डू उपत्यकामे ३÷४ सय वर्ष पहिनेसँ रहनिहार मैथिल ब्राह्मण सबद्वारा होइत आएल जानकी नवमीमे एहिवेर उपराष्ट्रपति परमानन्द झा आ नेपाल पत्रकार महासँघक अध्यक्ष धर्मेन्दं्र झाके सम्मान कएलगेल छल ।




तहिना अपना स्थापनाकालसँ मैथिली दिवस मनवैत आएल ‘मैथिल यूवा क्लव’ शान्तिनगर एहिवेर मैथिली साहित्यिक गोष्ठीके आयोजना कऽ कऽ मनौलक अछि । मैथिली दिवसक अवसरमें क्लवद्वारा जगत जननी माता सीताक आदर्शपर नेपाली भाषामे ‘सीतायन’ ग्रन्थ लिखिरहल डा. रमेशचन्द्र अधिकारीके सम्मान काएल गेल छल । क्लवक अध्यक्ष विजयकुमार झाक अध्यक्षतामे सम्पन्न साहित्यिक गोष्ठीमे सचिन्द्र यादव, गोविन्द साह, मनोज क्रान्तिकारी, धनेश्वर राउत, श्याम कामत, महिनारायण झा आजुक परिप्रेक्ष्यमे मैथिली दिवसक अपरिहार्यताक विषयमे अपन विचार रखने रहथि । आदर्श झाक उदघोषणमे शान्तिनगर स्थित ग्लोसियर एकेडमीमे सम्पन्न गोष्ठीमे लालबावु कर्ण आ मनोज झा मुक्ति अपन रचना पाठ कएने रहथि ।

२.
कथा
पारस
दुर्गानन्दव मंडल


“शान्तिन‍ यै शान्तिन‍ कतए नुकाएल छी यै फूलकुम्म रि‍?”
शान्तिव- “एलौं याए एलौं।” आंगनसँ शान्तिफ‍ हाक दैत लग आि‍ब सोझामे ठाढ़ि‍ होइत पुन: बाजि‍ उठैत छथि- “कथीले एतै जोर-जोरसँ हाक दैत छलौं? कोनो खास बात छै की?‍”
हम- “ऐह, अहॉंकेँ तँ सदि‍खन मजाके सुझाइत अछि‍। खास बात की रहत। अहॉं छी तँ सब खासे बात बूझु। ओना आइ वि‍द्यालयक छुट्टी समाप्तो भऽ गेल तेँ झब दऽ खाइले कि‍छु बनाउ। जे हम समएसँ वि‍द्यालय चल जाएव।”
शान्तिह‍ बजलीह- “ओ..., आब ने बुझलहुँ। अहॉं तँ सब दि‍न गोलहे गीतकेँ गबै छी। ओना हे, आइ बड्ड सखसँ अपनहि‍ बाड़ीसँ सुआ आ लौफक साग काटि‍ अनलहुँहेँ। तेँ आइ साग-भात आ आल्लुझक सानाक संग भाटा-अदौरीक तीमन बनवि‍तहुँ से नि‍आरने रही। मुदा ताहि‍मे तँ देरी होएत। तावत अहॉं स्ना न-पूजा करू आ हम जलखैक ओरि‍ओन कऽ दैत छी।”
“बेस, बड्ड बढ़ि‍यॉं। कने अंग-पोछा आ धोती-कुरता बहार कऽ दि‍अ।” हम धोलूकेँ हाक दैत छी- “धोलू हौ धोलू। कतऽ छह हौ?”
“ऐलौं, याए ऐलौं बावू जी, कने नदी फीरि‍ रहल छी।”
“वेस, बड्ड बढ़ि‍यॉं। आ वौआ, है सुनै छह? आइ हमरा वि‍द्यालय जेवाक अछि‍। से जात हम स्ना“न करै छी। तात् तौं साइि‍कलकेँ बढ़ि‍यॉं जेकॉं झारि‍-पोछि‍ दाए।” ई कहैत हम स्नाौन करबाक लेल डोल-लोटा लऽ कलपर चलि‍ जाइत छी। स्नाानोपरान्तथ पूजा-पाठ कऽ धोती पहीि‍र तैयार होइते छी तात् शान्तिफ‍क आग्रह- “सुनै छी, अहॉंले जलखै नि‍कालि‍ देने छी, कऽ लि‍अ।” ई कहैत आगॉंमे सि‍कीक चंगेरी, जे रंग-वि‍रंगक रंगसँ रंगल मुजसँ बनौल गेल रहए, ताहि‍मे मुरही-चूड़ा, दूटा चूड़लाइ आ गोर पाँचेक तीलक लाइ संगमे कॉंच मेरचाइ आ नोन परसल छल, आगॉं बढ़ौलनि‍। एक क्षणक लेल हम मि‍थि‍ला, मैथि‍ल आ मैथि‍लक संस्काूर आ स्भ यतासँ बहुत बेसी आनन्दिं‍त भेलहुँ। मन गद्-गद् भऽ गेल। तात् शान्तिै‍क मधुर आवाज- “कतए हेरा गेलहुँ? एखन यएह खा, वि‍द्यालयसँ भऽ आउ, जखन आएव तँ गरमा-गरम साग, भात, अल्लुशक साना अा भाँटा-अदौरीक तीमन भरि‍ मन खाएव। ओना जाड़ मास छै यदि‍ कि‍छु आरो मनमे हुअए तँ कोनो हर्ज नहि‍।” कहैत, हँसैत सोझासँ अढ़ भऽ गेलीह। आ हम जलखै करैत एहि‍ मादक अदाक मादे सोचए लगलहुँ। हमरो मनमे गुदगुदी लागए लागल। जलखै करैत एक बेरि‍ पुन: हाक देलि‍ऐनि‍- “शान्तिम‍, यै शान्तिा‍....।” नहि‍ जानि‍ जे हुनको मनमे कोनो बात उमरि‍ रहल छलन्हिढ‍। ओ गुनगुनाइत ई गीत- “एगो चुम्माह दे दऽ राजा जी, बन जाइ जतरा....।”
आवि‍ वाणभटक नायि‍का जेकॉं लगमे सटि‍ कऽ ठाढ़ि‍ होइत प्रेमानुरूप एकटा चुम्माछ लऽ छथि‍ आ मुस्कीत दैत घरसँ बहार भऽ जाइत छथि‍। हम लजा जाइत छी।
करीब चालीस मि‍नटक उपरान्तग वि‍द्यालय पहुँचैत छी। हाथ-पएर धोलाक वाद हाजरी बनवैत छी। प्राथनाक घंटी बजैत अछि‍ आ धि‍या-पूताक संग हमहुँ एक पाति‍मे ठाढ़ भऽ जाइत छी। उपरान्तह ऐकर नवम्-बी मे हमर वर्ग रहैत अछि‍। हाजरी बही लऽ वर्गमे प्रवेश करैत छी। वर्ग नवम बी जे एकछाहा लड़कीएक वर्ग रहैत अछि‍, स्वाछगतार्थ सभ बच्चि ‍या उठि‍ कऽ ठाढ़ि‍ भऽ जाइत अछि‍। वैसबाक आदेश पावि‍ यथास्थाान सभ बैसि‍ जाइत अछि‍। सबहक हाजरी लेब सम्पचन्नच होइत अछि‍। तखन कि‍छु बच्चि ‍या सभ बाजि‍ उठैत अछि‍- “मा-साएब, आइ ललका पाग पढ़बि‍यौ, क्यो‍ कहति‍ अछि‍ जी नइ सर आइ ग्रेजुएत पुतोहू पढ़बि‍यौ। मुदा कि‍छु खास बच्चि‍‍या यथा- राखी, गीतांजली, खुसवू, बबि‍ता, रि‍ंकी आ पि‍ंकी कहि‍ उठैत अछि‍- “जी नै सर आइ अहॉं अपने ि‍लखल कोना कथा कहि‍यौ। आ हम ओहि‍ आग्रहकेँ नहि‍ टारि‍ पबैत छी। शुरू कऽ दैत छी अपन लि‍खल ई कथा- .....पारस।”
मॉं मि‍थि‍लाक गोद आ कमला महरानीक कछरि‍मे बसल एकटा गाम दीप-गोधनपुर। जाहि‍मे छल एकटा चाहबला ओकर नाम छल पारस पि‍ता श्री सत्यग नारायण जी नामक अनुरूप दुनू बापूत वि‍परीत छल। पि‍ता श्री सत्यप नारायण जरूर मुदा, सब चीजले खगले रहैत छलाह। एकटा प्राइवेट स्कूतलमे अध्या पण कार्य करथि‍ आ कोनो तरहेँ बाल-बच्चातकेँ पोसथि‍-पालथि‍। हुनकेर बालकक नाम पारस। नामक अनुरूप एकदम ि‍वपरीत, मझौले कदक जवान देहो-हाथ सुखले-टटाएल कारी-झामर हाथ-पाएर एकदम सुखल-साखल मुदा, पेट जरूर कदीमा सन अलगल। देहो-वगेह ओहने, सदि‍खन जेना मुँससँ लेर चुवि‍ते छलै। फाटले-चि‍टले कोनो जूता-चप्प ल पहि‍र ओही प्राइवेट स्कूोलमे पढ़ैत छल। मुदा अकि‍लगल कम नहि‍।
सत्यह नारायणजीक घर जरूर बान्हेँ कातक सौ फि‍ट्टा अर्थात् सरकारी जमीनमे छल, मुदा संस्कालर कोनो सुसभ्यक समाजक प्रति‍क छल। सत्य नारायण बावूकेँ हरलैन्हिू‍‍ ने फुरलैन्हिट‍‍ खेलवा देलखि‍न पारसकेँ एकटा एकचारी देल चाहक दोकान। अर्थाभावक कारणे पारस उधार-पैंच लऽ कीनि‍ अनलक चाहक दोकानक लेल बरतन-वासन यथा केटली, ससपेन, चाहछन्नी, स्टोटव, दूध राखक लेल दूटा टोकना आ दूआ माटि‍क मटकुरी छाल्हीक राखक लेल। चाहक दोकान जे नि‍त्य् समएसँ खुलैत आ बन्दच होइत छल। क्रमश: महि‍सि‍क अगब दूधक चाह, एक्कोे ठोप पानि‍क छुति‍ नहि‍, बरतन-वासन खुब पवि‍त्र आ संस्काररी होएवाक कारणे ग्राहककेँ सेहो उचि‍त सम्माटन भेटनि‍। चाहक दोकान खुब चलनि‍। क्रमश: पॉंच सेर दूधक बदला आध-आध दूध खपत होमए लागल। आमदनी नीक होमए लगलैक।
कि‍छु पुंजी जमा केलाक बाद ओ एकचारी छोड़ि‍ लऽ लेलक पक्कादबला एकटा घर दोकान खोलए लेल। बना लेलक एकटा काउन्टगर आ बढ़ा लेलक दोकानक मेल। साझु पहरकेँ बनाबए लागल सि‍ंहहारा आ गरमा-गरम जि‍लेबी बात एककानसँ दूकान होइत गेलै एकर दोकानक नाम भऽ गेलै दोकान खूब चलए लागल।
समए पाबि‍ 26 जनवरी आ 15 अगस्तहमे प्रसादक लेल वि‍शेष आदर पावि‍ बनाबए लागल मनक मन बुनि‍यॉं आ भुजि‍या। अगल-बगलमे प्राइवेट कोचि‍ंग चलौनि‍हार संचालक आ ि‍नदेशक महोदयक योगदान एहि‍ देाकनकेँ चलाबएमे अहम भूमि‍का रखलक। दि‍न दुना आ राति‍ चौगुना उन्निति‍ होमए लगलैक। मनक-मन दूध खपत होएवाक कारणे घी सेहो बनबाए आ नीक दाममे बेचाए। देखैत-देखैत चाहक देाकानक अामदनीसँ कीनि‍ लेलक ओ तीन‍ बीघा जमीन। मुदा एकर उपरान्तोो ओ चाहो बेचाए आ पढ़बो करए। समए पाबि‍ प्राइवेट स्कूीलसँ सातमा पास कऽ ओ एकटा संस्कृबत वि‍द्यालयमे नाओ लि‍खा लेलक, आ मध्यएमाक फारम भरि‍ फस्टज डि‍वि‍जनसँ पास केलक। आव तँ ओ कि‍छु बेसि‍ए खुश रहैत छल। मध्यंमा पास केलाक बाद ओ अपन नाओ जनता काओलेजमे झंझारपुरमे लि‍खा लेलक। तखनो ओ वेचारा चाहो बेचए आ पढ़बो करए। आइ.ए. पास केलाक बादो ओकरामे कोनो परि‍वर्तन नहि‍। काओलेजसँ ऐलाक वाद चाहक दोकानपर ओ जमि‍ जाए। यद्यपि‍ चाह बेचब एकटा तेहन काज मानल जएतैक ई वि‍वादक वि‍षए अछि‍। ओकरा एक्कोो पाइ लाज-संकोच नहि‍। कि‍एक तँ कर्म कोनो खराप नहि‍ होइत छैक। कमा कऽ खाइ एहि‍मे कोन लाज कोनो कि‍ ककरोसँ भि‍ख मंगबै जे लाज होएत। तेँ चाह बेचब अधलाह काज नहि‍ से मानि‍ ओ खुब जतनसँ अपन कतर्व्यिक नि‍र्वहन करए।
बुझि‍नि‍हार मैथि‍लमे एकर चर्च होमए लागल, जे देखू पारस चाहो बेचैए आ पढ़बो करैए। देखि‍ते-देखति‍ ओ मैथि‍ली औनर्ससँ बी.ए. पास केलक। परोपट्टामे नाम भऽ गेलैक जे एकटा चाहबला चाह बेचैत बी.ए. पास केलकहेँ। तखनो ओ चाह बेचब नहि‍ छोड़लक। बात पसरैत गेल।
एकबेरि‍ एकटा कथा गोष्ठी क मादे सुपौल जेबाक छल। चारि‍ गोट मात्र कथाकार वि‍दा भेलथि‍ दि‍न अछैते मुदा, कोशी महरानीक अभि‍शापे नावसँ यात्रा करए पड़ल आ घंटा भरि‍क बाट मात्र चारि‍ घंटामे तय भेल। सुपौलसँ पहि‍नहि‍ झल अन्हा‍र भऽ जरा सेहो गेल रही। तेँ चारू कथाकार चाह पि‍बाक लाथे बैसलौं एकटा चाहक दोकानपर। दोकानदारसँ- “हौ, चारि‍ कप चाह ि‍दहह।”
ओ बाजल- “जी, श्रीमान् दै छी।” कहैत ओ चाहक जोगार लगबए लगल।


क्रमश:

कथा

नन्द वि‍लाश राय

ऐना


हम अपन सारक बेटाक वि‍आहमे गेल छलौंहेँ। हमर सारक बेटा रेलवेमे इंजीनि‍यर अछि‍। ओ अलीगढ़ मुस्लिौ‍म वि‍श्वचवि‍द्यालसँ इंजीनि‍यरि‍ंगक डि‍ग्री लेने अछि‍। हमर सारक बेटाक नाम ललन थीक। ओ देखवा-सुनवामे वड्ड सुन्न र अछि‍। गोर वर्ण, पॉंच हाथक जवान। दोहरा कद-काठी। जेहने ओ सुन्नछर अछि‍ तेहने ओ पढ़ैओ-लि‍खैओमे तेज छल।
ललनक वि‍आह पॉंच लाख टाकामे बैरमा गामक वुच्चवन ठाकुरक बेटीसँ तँइ भेल छल। बुच्चीन ठाकुर मध्य वि‍द्यालकमे शि‍क्षक छथि‍न्हक। अपना बेटीकेँ इन्टमर पास करौएने छथि‍न्हर। हमर सार महेशकेँ लड़की पसन्दु भेल आ ओ ललनक वि‍आह बुच्च्न ठाकुरक बेटीसँ पक्कान कए लेलक। बुच्चेन ठाकुरक चारि‍ लाख टका तँ हमर सार महेशकेँ दए देलक मुदा एक लाख टका वॉंकी रहि‍ गेल। बुच्चकन ठाकुर कहलखि‍न- “जेतेक टाका वॉंकी अछि‍ वि‍आहक दू दि‍न पहि‍ने भेट जाएत” मुदा, वि‍आह दि‍न जखन टका नहि‍ पहुँचल तँ हमर सार हमरासँ कहलनि‍- “पाहुन टका तँ बुच्चकन बावू अखन तक नहि‍ भेजलक हेँ। कि‍ कएल जाए?”
हम कहलअनि‍- “आइ वि‍याह थीक। आव की कएल जाए सकैत अछि‍। वि‍आह तँ हेवे करत। भऽ सकैत अछि‍ जे बुच्च न बावूकेँ कोनो मजवूरी भऽ गेल होएतनि‍। चलू शुभ-शुभ कऽ वि‍आह करेवाक लेल।”
हमसब दुल्हान आ वरातीकेँ लऽ सात वजे सॉंझमे बैरमा गाम पहुँच गेलौं। वरातीकेँ सवेरे पहुँचलापर बैरमा गामक समाज आ बुच्चमन बावूक सर-कुटुम सभ बड्ड प्रसन्ा्ॉं भेलाह।
बुच्चवन बावू हमर सार महेशकेँ कातमे लऽ गेलाह संगमे हमहूँ छलहुँ। कहलखि‍न- “हम समएपर टका नहि‍ भेज सकलहुँ ताहि‍ लेल अपने सभ लग लज्जि‍‍त छी। मुदा वादा करैत छी, कनि‍यॉं वि‍दागरीसँ पहि‍ने अहॉंक टका दऽ देव।”
हमर सार कि‍छु नहि‍ बजलाह। हम कहलयनि‍- “ठीक छैक अहॉं अपना वादापर कायम रहव आ वि‍दागरीसँ पहि‍ने टका महेश बावूकेँ दए देवनि‍।”
बुच्चान बावू बजलाह- “अवश्य -अवश्यन।”
अवश्यु-अवश्यू बजैत ओ आंगन चलि‍ गेलाह आ हमसब वासा पर आवि‍ बैसलौं। जलखै-नाश्ता , चाह-पान आदि‍ सभ चलए लगल। संगहि‍ ति‍लकक ओरि‍ओन हुअए लगलैक।
बरातीक स्वानगत बड्ड नीक जकॉं भेल। खान-पानमे कोनो कमी नहि‍ भेल। शुभ-शुभ कऽ वि‍आहो सम्प न्नन भेल। मुदा बुच्चहन बावू अपन वादाक मुतावि‍क कनि‍यॉं वि‍दागरीसँ पहि‍ने वकि‍यौताबला एक लाख नहि‍ दऽ सकलाह। हमर सार महेशकेँ बड्ड दुख भऽ गेलैक। ओ बाजल तँ कि‍छु नहि‍ मुदा अवैतखान समधी मि‍लन नहि‍ केलक। हमरा ई गप्पु नहि‍ पसीन भेल। हम समझेवाक प्रयास केलौं मुदा, ओ हमरा गप्पी नहि‍ मानि‍ फटफटि‍यापर बैसि‍ कऽ चल गेलाह। हम कनि‍यॉंकेँ वि‍दागरी करा कऽ अपन सासुर मैलाम पहुँचलौं। हमरा अपना सारपर बड्ड तामस छल। हम हुनाका दरबज्जाखपर जाइते अपन संतुलन नहि‍ राखि‍ सकलौ आ महेशकेँ देखि‍ते कहलि‍यै- “......”
क्रमश:

३. पद्य


३.१. शिव कुमार झा- पद्य

३.२.. कामोद झा -केओ नई २.लालबाबु कर्ण-जन्मभूमि ३. मनोज झा मुक्ति-देखावटी छोडिदे


३.३.१. ज्योति सुनीत चौधरी -जीतक परिभाषा२. सुमन झा "सृजन"-कैक्टास जेकॉं दि‍ल

३.४.१.उमेश मंडल-- हँसैत लहास २. कृष्ण कुमार राय ‘किशन’-पियक्कर ३ विनीत ठाकुर-शान्ति दूत परवा


शिव कुमार झा-किछु पद्य ३..शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम : शिव कुमार झा,पिताक नाम: स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम: स्व. चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि : 11-12-1973,शिक्षा : स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम + पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति : प्रबंधक, संग्रहण,जे. एम. ए. स्टोर्स लि.,मेन रोड, बिस्टुपुर
जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि : वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डा. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्व मे संलग्न


!! आत्म उद्बोधन !!

अहॉ अपने पड़ल छी घोंटि धथुर कैलाश औ,
टूटल हम्मर आश औ ना ।।

धरा पर अयलहुॅ प्रदोषक दिन,
मातु - पितु अहॅक भक्ति मे लीन,
बूझल सभ जन वम वम लेलनि हमर घर वासऔ ।
टूटल ................................. ।।

नेन कालहिं सॅ छी हर भक्त,
सुखायल करम - धरम मे रक्त,
शारदालीन संग मे शंकर पर विश्वास औ ।
टूटल ................................. ।।

देखिते वितल सुधामयी वर्ख,
जीवन सॅ दूर भागि गेल हर्ख,
जननी उठलि भूमि सॅ छोड़ि मोहक पाश औ ।
टूटल ................................. ।।

चहुॅ दिशि कालक भेल प्रहार,
करम गति फॅसल वीचि मॅझधार,
उदधि मरूस्थलि भेली हिय मे पसरल त्रास औ ।
टूटल ................................. ।।

‘आशु’ अछि मात्र अहीं सॅ मोह,
होईछ अपन भाग पर छोह,
हरू दुःख वा करू हम्मर निरस जीवनक नाश औ ।
टूटल ................................. ।।
१. कामोद झा -केओ नई २.लालबाबु कर्ण-जन्मभूमि ३. मनोज झा मुक्ति-देखावटी छोडिदे

कामोद झा

केओ नई

केओ नई अछि
केओ नई अछि
बन्द आ हड़ताल समाप्त केनिहार
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि ।

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
भ्रष्टाक नीक पत्ता लगाकऽ कि करब ?
कारवाही करऽबला केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि ।

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
कर्णालीक कल्याण करऽबला केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
पैघ हाइड्रोपावर चलाबिकऽ लोडसेडिङ्ग
अन्त कएनिहार केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
मेलम्चीक पानीक सुविधा देनिहार
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
सभासद त ६०१ टा अछि, मुदा
संविधान बनावऽबला केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
देश भाँडमे जाए, सम्हारऽबला केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
नेता त हजारक हजार अछि, मुदा
देशक नेता केओ नहि अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि

केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि
सहमति आ सहकार्य करऽबला केओ नई अछि
केओ नई अछि भाई केओ नई अछि


लालबाबु कर्ण

जन्मभूमि

पावनमय ई जन्मभूमिके
सतसत कोटी प्रणाम करैत छी

माँकेर लाज राखऽलेल
हम बेरबेर कवूल करैत छी

जानकी हमर सुपुत्री मिथिलाकेर
त्राही–त्राही माम किया करैत छी ?

बाप–भाईके कर्तव्यपुरालेल
सबके हम आह्वान करैत छी ।

उठू यौ मैथिल मिथिलावासी
हाथ जाडि हम विनय करैत छी
यूवा शक्ति एकवद्ध भऽ
लाल खूनके लाज रखैत छी ।

मनोज झा मुक्ति

देखावटी छोडिदे

लगबे त लागिजो
भगबे त भागिजो

लगबे त सफल होएबे
या त मरि जएबे ।
मरलापर तोहर मायके गर्व होएतै
तोरा शहादतपर ओकर करेज जुरैतई ।

जौं शुरुएमे भगबे त भागि जो ।
जौं भगवे त,
तोहर माय ओते दुःखीत नई होएतौ,
तारा कमजोरीके सहर्ष स्विकार करतौ ।

जहन नामेकलेल लडैत छें
देखावटी ढोंग करैत छें
त, तों अपराधी छें
अपन, अपना मायके ।

जहन तोहर माय ई बात बुझतौ
त तोहरा वास्ते धारण कएने,
नौ महिनाधरि सहेजिकऽ रखने
अपना ‘गभर्’ प्रति ओ पछतेतौ ।

जे करबे से करैत जो,
द्वैध चरित्रके छोडैत जो,
सत्तसँ नाता जोडैत जो
माएके अपना हँसवैत जो
ताएँ, आब सांचहि पड़तौ,
एकटा निर्णय करहि पड़तौ ।

करबे की ?
लगबे त लागिजो
भगबे त भागिजो ।
१. ज्योति सुनीत चौधरी -जीतक परिभाषा२. सुमन झा "सृजन"- कैक्टरस जेकॉं दि‍ल


ज्योति सुनीत चौधरी
जीतक परिभाषा

जीतक परिभाषा ताकि रहल छी
स्पर्धा स भरल जुग मे
अर्थक संचयमे विजय अछि
भौतिकता के पगमे
आकि ज्ञानक प्राप्तिसँ जीतब
भावुकताके ठगने
बाहुबल सऽ बलवान घोषित हैब
हाथ रांगि रक्तक रंगमे
आध्यात्मक प्रपंच सीख धर्मगुरू बनब
ढों.गक ओढ़ना ओढ़ने
सत्ता पाबि कऽ देशके लूटब
भ्रष्ट नेताके रूपमे
सबहक महत्ता क्षणभंगुर अछि
बितैत समयक संगमे
सत्य आ विवेक सऽ जीवनयापन
शान्ति अन्तर्मनमे



सुमन झा "सृजन", कोसी कॉलनी, नि‍र्मली, सुपौल।

कैक्ट्स जेकॉं दि‍ल

अपन शहरक कात-करोटमे चलैत
अहॉं बुझए लगलहुँ
जि‍नगीक रस्ताो अछि‍ एतवे असान
झि‍स्सी -बुन्नीकेँ देखि‍
बि‍सरि‍ गेलहुँ अछारबला बरखाकेँ
मुस्कुुराइत लोककेँ देखि‍
ि‍बसरि‍ गेलहुँ
प्राकृति‍क क्रूर मजाककेँ
घरमे बसि‍ कवि‍ता लि‍खति‍
भेल अहॉंकेँ भ्रम
गरीबकेँ चि‍न्हैकक
मुदा,
नहि‍ चलि‍ सकलहुँ अहॉं कि‍छुओ डेग
जि‍नगीक वि‍रानक रौदमे
नहि‍ सुति‍ सकलौं अहॉं एक्कोे राति‍
गि‍रैत घरक डरसँ कोठरीमे
नहि‍ दऽ सकलौं अहॉं संग
भूखल आ सुखल मुँहक मुस्की केँ
आ,
छोड़ि‍ असकर चलि‍ गेलहुँ
अहॉं ओहि‍ दि‍लकेँ
जे अछि‍ कैक्ट्सॉ जेकॉं
जेकर कोमलता लऽ
उगि आएल अछि‍ कॉंट
जेकरा छूबए लेल
सभ हाथ भऽ जाइत लहूलुहान
आ हरेक बेरि‍ आनि‍ लैत अछि‍ दि‍ल

अपन जलैत चेहरापर
एकटा मुरझाएल मुस्काुन।
१.उमेश मंडल-- हँसैत लहास २. कृष्ण कुमार राय ‘किशन’-पियक्कर ३ विनीत ठाकुर-शान्ति दूत परवा


उमेश मंडल
कवि‍ता-

हँसैत लहास

लहास माने मुइल
मुइल माने लहास
ई के नहि‍ बुझत हठात्
गुम-सुम भेल छल जेँ ओ
बुझाइत छल लहास तेँ ओ
मुदा,
आब ओ बाजत
बजैत-बजैत हँसत
अहॉंक कृति‍पर
बनल संस्कृलति‍पर।




कृष्ण कुमार राय ‘किशन’

परिचय:- वर्तमानमे आकाशवाणी दिल्लीमे संवाददाता सह समाचार वाचक रूपमे कार्यरत छी। हिंदी आ मैथिलीमे लेखन। शिक्षा- एम. फिल पत्रकारिता व जनसंचार कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्रसॅं। जन्म:- कलकतामे । मूल निवासी:-ग्राम -मंगरौना, भाया -अंधराठाढ़ी जिला-मधुबनी बिहार। वर्तमान पता:- खेल अनुभाग, कमरा न0-608 , आकाशवाणी दिल्ली संसद मार्ग, नई दिल्ली-110001
पियक्कर

सॉझ पड़ैत देरी,पीब क ओंघरा जाइत छी

हम छी पीयक्कर।

पढ़लाहा लिखलाहा के मूर्ख बूझैत,

अपना के बुझैत छी लाल बुझक्कर।

धिया-पूता पढ़ैत अछि किनैंहि,तेकर नैंहि
करैत छी हम खोज
मुदा पिबैत छी हम रोज।

अपन काज छोड़ि कैं,व्यर्थ हम घूमैत रहैत छी
केहेन छी हम घूमक्कर, हम छी पीयक्कर।

पाई सधहेलौं दारू में ,भ गेलौंह हम फक्कर

महाजनक कर्ज देखि क अबैत अछि हमरा चक्कर।

लाधहल अछि हमरा माथ पर कर्जाक पहाड़

लगबैत छी कोर्ट कचहरीक चक्कर,क्याक त
हम छी पियक्कर।

सॉझ पड़ैत देरी,पीब क ओंघरा जाइत छी

हम छी पीयक्कर।

एखने हम शपत खाईत छी जे हम नैंहि आब पीयब

कियाक कहत आब कियो हमरा पियक्कर।

धिया पूता के निक स्कूल कॉलेज में पढ़ाएब

एहि लेल त ,लगबैत छी मधुबनी दरभंगाक चक्कर।


विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा

शान्ति दूत परवा

ए शान्ति दूत परवा उड़िकऽ आ अपन देशमे
फैलऽवै तोँ शान्ति हिमाल, पहाड़ आ मधेशमे
सभ दिनसँ एतकेँ नर–नारी शान्तिके पुजारी
सहत कोना हिंसा पसरल अछि समस्या भारी

हिमालक अमृत जलमे मिलगेल शोनित धारा
भेल अछि अखन शसंकीत जनता नेपाली सारा
परवा छे तोँ सहासी प्रिय सभक विश्वासी
बुझै तोँ शभक समस्या रहे नहि केव वनबासी

दू भाइ बीच अपन समस्या केँ जितत केँ हारत
मायक दुःखिया नयन नोर कतेक आब झारत
हटादे रे परवा भाइ–भाइ बीच मोनक दूरी
अनाहकमे नहि उजरै सधवाके माङ्ग सिन्दुरी
बालानां कृते
देवांशु वत्स




बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)
Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदानई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
नीचाँक सूचीमे देल विकल्पमेसँ लैंगुएज एडीटर द्वारा कोन रूप चुनल जएबाक चाही:
वर्ड फाइलमे बोल्ड कएल रूप:

1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ इआद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दालान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ/लए कए
47. ल’/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा’/करबाय/करबाए
60. त’/त ऽ तय/तए 61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द’/द ऽ/दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका’ कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे


71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करैऔ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा’
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो(willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा’/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि

181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ /करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा’
201. देखाय देखा’
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि/नहि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)-आ (conjunction-and)/आ
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/ओ
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए(अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह(बिकारी)क प्रयोग उचित

२६५.केर/-क/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझ छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि।वक्तव्य/ वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.बाली/ (बदलएबाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ , षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ ऐछ
छथि- छ इ थ – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए।
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) –रामक आ संगे राम के/ राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ रामकेँ- राम कऽ राम के

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)

३.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक
धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा,ठिना,ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

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