भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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एहि पोथीमे जीवनक सभ रूपक व्यापक दर्शन कएल गेल अछि। कुलीन व्यक्ति जनिक परिवार नीचॉं मुँहे जा रहल अछि ओहि परिवारक कन्याक वियाह उर्ध्वमुखी साधारण परिवारक पुत्र (जे आव सम्पन्न छथि) हुनकासँ भऽ सकैत अछि। एहि पोथीमे अन्हारपर इजोतक विजय देखाओल गेल अछि। भौतिकतापर बौद्धिकता आ सम्यक जीवनक जीत एहि पोथीक केन्द्र विन्दुमे समेटल अछि पुत्रक वियाहमे तिलक लेवासँ वेसी अछि कुलीन कन्याक चयन। सम्पूर्ण पोथीमे देशज शब्दक प्रयोग कएल गेल अछि। पोथीक अंतिम पृष्ठपर श्री गजेन्द्र ठाकुरक कथन मैथिली साहित्यक इतिहास (जगदीश प्रसाद मंडलसँ पूर्व आ जगदीश प्रसाद मंडलसँ) पढ़लहुँ पहिने तँ अनसोहॉंत लागल मुदा पोथीक अध्ययन कएलाक पश्चात् हमरा सहज लागल। भाषा अत्यन्त सामान्य मुदा रस, अलंकार आ छंदसँ परिपूर्ण अछि। कलात्मक शैलीमे जगदीश जी अंक-अंकमे अपन दर्शनकेँ सहेजि लेने छथि। हिनक ई रचना कोनो विशेष कथाकार वा नाटक कारसँ प्रभावित नहि। हिनक रचनामे राजकमल जी, पंडित गोविन्द झा, हरिमोहन बावू, धूमकेतु, गुलेरी जी, लक्ष्मीनारायण मिश्र, ललन ठाकुर सन रचनाकारक शैलीक मिश्रित दर्शन होइत अछि। मिथिलाक बेटी अर्थनीतिसँ प्रभावित अछि मुदा, सम्यक अर्थनीतिसँ। अर्थपर मानवताक विजय, जगदीश जीक विश्वास नीक लागल।
जेना कोनो व्यक्ति पूर्ण नहि भऽ सकैत अछि तहिना कोनो रचनाक संग होइत अछि। ‘मिथिलाक बेटी’पोथीमे किछु त्रुटिक दर्शन सेहो भेल। प्रथमत: एहि पोथीक शीर्षक अप्रासंगिक लागल। बेटी तँ एहि दर्शनक माध्यम मात्र अछि, स्त्रोत नहि। एहिमे मानवीयताक जीत देखाओल गेल अछि बेटीक जीवन तँ घटना मात्र थिक।
एहि नाटकक भाषा सरल मुदा, शनै: शनै: गमनीय अछि तेँ मंचन करवाक योग्य नहि, मुदा एकर कलात्मक मंचन कएल जा कएल जा सकैत अछि।
निष्कर्षत: जगदीश प्रसाद मंडल जी हमरा सबहक बीच एकटा नव जीवनक आयाम लऽ कए आएल छथि। बहुरंगी जीवनक आयाम आ सकारात्मक सोचक आयाम। मानवीय मूल्य एखनो धरि जीवित अछि। एहि तरहक घटना कठिन अछि मुदा असंभव नहि। विश्वास आ कर्मक संग जीवन जीवाक प्रयत्न करवाक चाही। एहि पोथीक शब्द-शब्दमे झंकार अछि। भाषा प्रवाहमयी लागल। प्रकाशन दलक प्रयास नीक, शब्द संयोजन आ संपादन अति उत्तम। धन्यवाद।
१.मनोज झा मुक्ति -महोत्तरीक यूवाके देशव्यापी अभियान २.-
सुशान्तझा-मैथिली, मैथिल संस्कृति आ मिथिला राज्य
मनोज झा मुक्ति -महोत्तरीक यूवाके देशव्यापी अभियान ‘अपना गामठामक विकास करबाकलेल सरकारी पाई एन.जि.ओ. या आ.एन.जि.ओ.क आवश्यकता नहिं अछि आवश्यकता अछि त सकारात्मक दृष्टिकोणकेँ आ अपना माटिप्रतिक आस्था एवं आत्मबलकेँ’ यैह नारा लऽ कऽ महोत्तरी जिलाक यूवा शंखनाद कएने अछि– देशके सुन्दर बनएवाक अभियानकेँ । जौँ पाइयक बलपर विकास भऽ सकैत त नेपालक सभ गाम स्वर्ग भऽ गेल रहैत । नेपालक कोनहुँ स्थान विकाससँ बञ्चितनईं रहैत । सरकार नेपालक प्रत्येक गामें प्रतिवर्ष २० सँ ३० लाख अनुदान दैत अछि जिला विकास समितिक मादे अरबोक बजेट रहैत अछि विकासकलेल से अलग सँ । एकरा अतिरिक्त सभासद सबके क्षेत्र विकासलेल बजेट भेटैत अछि तकर बाते छोडु । तहिना समाज आ देशक विकास हेतु एन.जि.ओ. आ आ.एन.जि.ओ. मार्फत नेपालमे प्रति वर्ष खरबो रुपैया अवैत अछि ताइसँ कतऽके विकास होइत अछि भगवाने जानथु । चाहे गामक कोनो पार्टीक नेता हुए जे गामक विकासकलेल गा.वि.स.के प्रतिनिधि बनल करैत छथि या जिला विकास समितिमे पार्टीक प्रतिनिधि बनैत छथि जँ ओसब अपना कर्तव्यप्रति कनिक्को सचेत रहितथि त नेपालक गामसब पूर्ण नहि त बहुत विकसीत भऽगेल रहैत । अपना गामकलेल या जिलाक लेल आएल बजेटमेंसँ कमीशन खाकऽ कागजपर विकासक काज गा.वि.स. सचिव आ जि.वि.स.क एल.डि.यो.सँ करौनिहार नेतेसबके एहि तरहक रवैया अछि तहन कोना भऽ सकत नेपालक विकास ? आश्चर्य त तखन लगैत अछि जखन देश विकासक लेल आएल बजेटके खएनिहार नेतासब अपनाके देश आ जनताक हितैषी आ अगुवा कहैत नईं थकैत अछि । ईमान्दारी आ सत्यपर सँ आम जनताके विश्वास उठाबऽमे नायकक भूमिकामे रहल अधिकांश कमिशनखोर नेताक कारण किछु ईमान्दार एवं नैतिकवान राजनीतिकर्मीसब अनेरे बदनाम भेल करैत अछि । ताँए जरुरी अछि आम जनतामे आत्म विश्वास जगएवाक आ सत्यपर भरोषा बढएवाक । आ एकर शुरुवात कऽ रहल अछि महोत्तरी जिलाक किछु यूवासब । महोत्तरीमें अभियानमे लागल यूवाक कहब छन्हि– ‘अपना गामठामक विकास करबाकलेल सरकारी पाई एन.जि.ओ. या आ.एन.जि.ओ.क आवश्यकता नहिं अछि आवश्यकता अछि त सकारात्मक दृष्टिकोणकेँ आ अपना माटिप्रतिक आस्था एवं आत्मबलकेँ’ । ओसब अभियानक शुरुवात कऽ रहल छथि–वृक्षारोपणक काजसँ । जखन हुनकासबसँ जिज्ञासा राखल गेल कि वृक्षेरोपण किया ? त हुनक कहब छन्हि–‘ गामघर या जिलामे जत्र–तत्र व्याप्त भ्रष्टाचारके एक्कहिवेर कम नहि कएल जा सकैय । कोनो गाममे जौँ कोनो विकास निर्माणक काज होइत अछि त स्थानिय नेता कार्यकर्ता या यूवा ओहि काजमे निक जकाँ अभिरुचि लैत अछि । मुदा दुर्भाग्यक बात हूनका सबमेंसँ ९८ प्रतिशत लोकक अभिरुचिक अभिप्राय रहैत छन्हि–कमिशन लेवाक काज चाहे कागजेपर किए नई भऽ जाय । ताँए पहिने काज कएल जाए तकरा बाद कर्मचारी जनता आ नेताके सचेत करबाक काज शुरु हुए ।’ अपना अभियानक शुरुवात ओसब नेपालक गाम–ठाममें वृक्षारोपण क कऽ करऽ चाहैत छथि । हुनकसबहक कहब छन्हि–‘काज ककरो देखयवाकलेल नहिं होएवाक चाही अपना आपसँ इमान्दारिता करैत काज करैत जाउ लोक चाहे जे कहय । जँ नीक काज करबई त दुश्मनो के ई कहैएटा पडतैक जे–‘....ओना त छौंडा बदमाश अछि मुदा काज नीक कऽ रहल अछि ।’ एहि उद्देश्य ल कऽ हमसब जतबे सकब सबहक सहयोगसँ नेपालक कोना–कोनामें वृक्षारोपण करब आ कराएब । ओसब अपना वृक्षारोपणक अभियानमें आम देशवासी सँ एहि तरहक अनुरोध कएल करैत छथि–‘ हमरा सबहक वृक्षारोपणक अभियानमेंजँ आँहाँ सहयोग करऽ चाहैत छी त एकटा बाँस दऽ दिय नहिं त एकटा कोनो फूलक या फलक गाछ दऽ दिय । जँ से नहि त एकदिन आबिकए पानि पटा दिय नहिं त सप्ताहमे आधा घण्टा आबिकऽ वृक्षारोपण स्थलमें बैसि जाऊ । जँ आँहाँलग समयक आभाव अछि आँहाँ कर्मचारी छी त अपना गाम गेल वेरमे अपना खेतमे या दरबज्जापर एहि अभियानक नामपर एकटा अपना नीक लागऽबला वृक्ष लगालिय आ नहिं त जँ आहाँके ई अभियान नीक लगैय त कम स कम हमरा अभियानी मीत्रके हौसला बढादिय । हमर स्वार्थ याह अछि जे केओ कतौ गाछ–वृक्ष लगाओत या लगौने हायत त ओकर आक्सिजन हमहुँ लेब आ सबकियो लेत बटोहीके रौदमे छाहरि भेटतैक एवं बहुतो गरीबकेँ घरक आँचकलेल ओकर पात काज औतैक । ताएँ सब गाम–शहरकेँ फूल आ वृक्षसँ सजाबी जतऽ किछुदेर कियो वैसिकऽ स्वच्छ हावा लऽ सकय ।’ तहिना ओ सब कहैत छथि जे जतेक नेताके देखू सब देशे विकासके बात करत । आर्मी पुलिस कर्मचारी देशक या कहु माटिक सपथ खाइत रहत । पत्रकार या बुद्धिजीवि दिन–राति देशक उन्नतिक गप्प करैत नईं थाकत । जे अपनाके जनता कहैत छथि ओ सब दिन–राति नेतासबके गारि पढैत नहिं थकैत छथि जे नेतासब देशके बेच देलक । एकर मतलब जे गारि पढनिहारक भीतर सेहो देश या कहु माटिप्रतिक सिनेह छन्हि ताईमें दू मत नहि । एहि बातक विश्लेषण करैत अभियानी यूवा सबसम्पूर्ण नेपाली सँ एहि तरहें अभियानमे जुटवाक आग्रह करवाक सोंच बनैने छथि–‘सबकियो अपन काज करैत अपना माटिकलेल किछु कऽ सकैत छी । जौँ आहाँ किसान छी सबदिन अपना खेतमे काज करु आ ४÷५ दिनमें एक घण्टाकलेल कोनो दोसर चौरी÷बाधमे टहलि जाऊ आ ककरो खेतक लगाओल बालीमे कोनो प्रकारक रोग या गड़बड़ी देखाइत अछि त सम्बन्धित किसानकेँ सलाह दऽ दियौक । जौँ आँहाँ शिक्षित छी आ अपना कोनो काजमे लागल छी या कर्मचारी छी त अपना ड्यूटीक अतिरिक्त प्रतिदिन÷दूदिनक एक घण्टा नियमित रुपसँ ओतुक्का बच्चाके पढ़ा देल करियौ । एहिं तरहें अपन काजके हर्जा नहिं करैत अपन नियमित जेब खर्चमे कटौति ककऽ अपना धर्तीकलेल बहुत किछु कऽ सकैत छी । जँ हमसब एहि तरहक काज करबैक त विकासक नामपर पाइ हजम करऽबला सबके आँखिमे अवश्य लाज लगतैक आ एकदिन हमरो धर्ती हँसबेटा करतैक ।’ महोत्तरीक यूवाक अभियानक आहाँके नीक लगैय जौं अहुँ एहि अभियानक सहयात्री बनऽ चाहैतछी त जुटि जाऊ आइए सँ आ अहुँ शंकनाद कऽ दिय अपना गाममे वृक्षारोपणक अभियानक संग।
२.सुशान्तझा
मैथिली, मैथिल संस्कृति आ मिथिला राज्य
समाद पर मिथिला आ बिहार सं संबंधित लेख पढि कय ओतय चलै बला विकासपरक गतिविधि के अंदाज लागि पाबैये। इम्हर हमर एहेन मैथिल मित्र के संख्या मे बड तेजी सं बृद्धि भेलय जे बिहार या मिथिला के विकास के बारे मे जानय त चाहैत छथि लेकिन जखन समाद पर मैथिली मे लेख पढ़य कहबनि त दिक्कत भय जाय छन्हि। हुनका मैथिली बाजय त अबै छन्हि लेकिन पढ़य नहि आबै छन्हि। ओ हिंदी बड आराम सं पढ़ लैत छथि लेकिन मैथिली पढ़य मे दिक्कत के वजह सं ओ मैथिली साईट पढ़िते नहि छथि। ई बड्ड पैघ समस्या अछि।
देखल जाय त अमूमन जे कोनो भाषा के अपन लिपि जीवित छैक ओकरा पढ़ैबला के कोनो दिक्कत नहि होईत छैक-कारण जे ओ बच्चे सं ओहि भाषा के ओहि लिपि मे पढ़ै के अभ्यस्त होईत अछि। जेना तमिल, तमिल मे लिखल जाईत अछि, त एकटा औसत अंग्रेजीदां तमिलभाषीयो के ओकरा पढ़ै मे कोनो दिक्कत नहि होईत छैक। लेकिन कल्पना करु कि अगर तमिल के देवनागरी मे लिखल जाई त की होयत ?ओ आदमी तमिल त बाजि लेत-चूंकि ओ ओकरा अपन माय या परिवार के अन्य सदस्य के मुंह सं सूनि क सिखलक अछि-लेकिनि ओकरा पढ़ै मे बड्ड दिक्कत हेतैक। ओकरा देवनागरी लिपि सेहो सिखय पड़तै। हमर भाषा संगे येह दिक्कत अछि। मैथिली के अपन लिपि त छैक, लेकिन ओ देवनागरी मे लिखल जा रहल अछि-जाहि लिपि मे हम सब सिर्फ हिंदी पढ़ै के आदी छी। अधिकांश मैथिली बजै बला के मैथिली त आबै छन्हि-कियेक त ओ सुनि कय सिखने छथि लेकिन ओ पढ़ि नै सकै छथि, कियेक त पढ़ैके आदत हुनका हिंदी के छन्हि।
ई बात स्वीकार करय मे हमरा कोनो संकोच नहि जे हमर भाषा हिंदी के भाषाई साम्राज्यवाद के शिकार भेल अछि। ई संकट मैथिलिये टा संग नहि, बल्कि हिंदी क्षेत्र के तमाम भाषा जेना अवधी, भोजपुरी, ब्रज, राजस्थानी सबके संगे छै। देखल जाय त भोजपुरी कनी नीक अवस्था मे अछि कारण जे एकरा बाजार सेहो सहयता कय रहल छैक। लेकिन जेना-जेना शहरीकरण बढ़ि रहल अछि देश मे छोट-छोट भाषा आ बोली के स्पेश खत्म भय रहल अछि। देश के एकात्मक स्वरुप के विकास के लेल हिंदी आ अंग्रेजी अनिवार्य बनल जा रहल अछि। हलांकि दक्षिण के प्रांत आ उत्तर मे बंगाल या उड़ीसा अहि स बहुत हद तक मुक्त अछि-ओना संकट ओतहु कम नहि। हमर भाषा मैथिली जनसंख्या के आकार, भौगोलिक स्थिति, प्राचीनता आ व्याकरण के दृष्टिकोण सं कोनो भाषा सं कम नहि लेकिन तैयो हम सब असहाय किये छी-ई एकटा विचारणीय प्रश्न अछि।
हमर दोस्त सब जिनकर जन्म पटना या दिल्ली मे भेलन्हि ओ हिंदी मे बात करैत छथि। हलांकि ओ अपन मां-बाबूजी सं मैथिली बाजि लैत छथि लेकिन अन्य मैथिल भाषी सं ओ हिंदीये मे संवाद करैत छथि। एकर पाछू कोन मानसिकता अछि, कोन कारक एकरा प्रभावित कय रहल अछि, ताहि पर विवेचना आवश्यक।
दोसर बात हीन मानसिकता के सेहो। हम सब अपन संस्कृति के जेना बिसरि गेलहुं अछि। हमरा सब ज्ञान के मतलब अंग्रेजी के जानकारी मानि लेने छी, आ संस्कारित होई के मतलब हिंदी के नीक ज्ञान यानी खड़ी हिंदी के दिल्ली या टीवी के टोन मे बाजै के ज्ञान मानि लेने छी। हमरा अपन प्राचीन परंपरा के ज्ञान सं या त वंचित कयल जा रहल अछि या हम सब खुद अनभिज्ञ भेल जा रहल छी या केयक टा आर्थिक वजह हमरा सबसं अमूल्य समय छीन रहल अछि जे हम सब अपन भाषा या संस्कृति के बारे मे सोची। हमर कैयकटा मैथिल मित्र के ई ज्ञान नहि छन्हि जे सर गंगानाथ झा या अमर नाथ झा के छलाह। हुनका उमेश मिश्र के बारे मे नहि बूझल छन्हि। हुनका सरिसव पाही या बनगाम महिसी के भौगोलिक जानकारी तक नहि छन्हि। हुनका मंडन मिश्र या जनक या मिथिला के प्राचीन विद्रोही विद्रोही परंपरा के बारे मे बिल्कुले पता नहि छन्हि। लोरिक या सलहेस एखन तक यादवे या दुसाध के देवता कियेक छथि ? आ मैथिल के मतलब मैथिल ब्राह्मणे कियेक होईत छैक ? की हम एकात्म मैथिल के रुप मे कोनो प्रश्न के सोचैत छी?अहू सवाल सं टकरेनाई आवश्यक।
इंटरनेट अहि दिसा मे नीक काज कय रहल अछि। एम्हर कयकटा वेबसाईट पर मैथिली या मिथिला के बारे मे नीक जानकारी आबि रहल अछि। लेकिन की एतब काफी अछि ?
एकटा प्रश्न मिथिला राज्य के निर्माण सं सेहो जुड़ल अछि। मिथिला के इलाका अप्पन दरिद्रता, विशालता, भाषाई विशिष्टता के वजह सं राज्य के दर्जा पाबै के पूरा हकदार अछि, लेकिन की सिर्फ मिथिला राज्य बनि गेला सं हमर भाषा के पूरा विकास भय पाओत? हम एतय राज्य बनि गेला के बाद आर्थिक विकास के उम्मीद त कय सकै छी लेकिन की भाषाई आ सांस्कृतिक विकास भय पाओत ? उत्तराखंड या छत्तीसगढ़ बनि गेला के बादो ओतय के स्थानीय भाषा के की हाल अछि, ई एकटा शोध के विषय भय सकैत अछि। दोसक गप्प, मैथिली के एकरुपता सं जुड़ल अछि। एतय मैथिल भाषी आ ओकर साहित्यकार खुद एकर जिम्मेवार छथि। दरभंगा-मधुबनी के मैथिली के मानक बना कय हम केना पूरा मिथिला के ठीका उठबै के दावा कय सकैत छी ?एखनो दरभंगा-मधुबनी के भाषाई अहं, सहरसा-पूर्णिया आ मधेपुरा बला के अहि आन्दोलन के शंका के दृष्टि सं देखै पर मजबूर कय रहल अछि। हमर ई माननाई अछि जे मैथिली कतौ के हुए, ओकर मूल रुप मे जाबे तक ओकरा स्वीकार नहि कयल जाओत, मिथिला आ मैथिली आन्दोलन के बहुत फायदा नहि हुअ बला।
दोसर बात फेर लिपि के अछि। की हम मिथिला राज्य बनि गेला के बादो मैथिली के मिथिलाक्षर मे लिखि सकब ? की हम देवनागरी सं मुक्त भय सकब ? की हम राष्ट्र के मुख्यधारा सं टकराई के साहस कय सकब...आ दरभंगा-सहरसा के शहरी वर्ग के मैथिली बाजै आ लिखै के लेल मना या प्रेरित कय सकब-ई लाख टका के प्रश्न। देखल जाए त सांस्कृतिक रुप सं हमर मिथिला, बंगाल के बेसी नजदीक अछि, लेकिन हमर राजनीतीक जुड़ाव हिंदी पट्टी सं स्थापित कय देल गेल अछि। इतिहास के अहि आघात सं मुक्ति कोना भेटत, राज्य निर्माण एकटा कदम त भय सकैत अछि, लेकिन हिंदी के इन्फ्रास्ट्रक्चर हमर जनता के मजबूर कय देने अछि जे हम अपन लेखन या पाठन हिंदी मे करी। हमरा ओकर लत लागि गेल अछि आ हमर भाषा सिर्फ बाजै के भाषा बनि कय रहि गेल अछि। तखन उपाय की अछि ?
मैथिली के बारे मे किछु विज्ञ लोक सं जखन चर्चा होईत अछि त कहैत छथि जे 50 या 60 के दशक मे जते मैथिली के आन्दोलन मजबूत छल ओते आब नहि। सर गंगानाथ झा, या अमरनाथ झा या उमेश मिश्र या हरिमोहन बाबू घनघोर मैथिलवादी छलाह। ओ या त अंग्रेजी मे संवाद करैत छलाह या फेर मैथिली मे। ओ हिंदी के भाषाई साम्राज्यवाद के चीन्ह गेल छलाह- ओ उर्जा एखन कहां देखि रहल छी ?
हमर बहिन कैलिफोर्निया मे रहैत अछि। ओकरा ओतय कयकटा मैथिल टकराईत छथिन्ह जे मैथिलीये मे गप्प करैत छथि। लेकिन ई चेतना भारत मे कहां अछि ? एतय ओ हिंदी कियेक बाजय लगैत छथि ? जे अपनापन ओ अमेरिका मे ताकय चाहैत छथि ओ भारत मे कियेक नहि करैत छथि-एकर कोनो जवाब हमरा नहि सुझाईत अछि।
एम्हर किछु लोग बहुत एलीट भेला के बाद फेर सं अपन रुट सं जुड़ै के कोशिश कय रहल छथि। शायद ओ हॉलीवुड स्टार सबसं प्रेरणा ल रहल होईथि। ओरकुट या फेसबुक पर मिथिला के गामक तस्वीर फेर सं जागि रहल अछि। एकटा महत्वपूर्ण भूमिका मिथिला पेंटिंग के सेहो अछि। लेकिन लेखन या पठन के स्तर पर एखनो लोग मैथिली सं कहां जुड़ि पेला अछि? जाहि भाषा-भाषी के जनसंख्या 2 करोड़ सं ऊपर हुए ओतय कोनो नीक अखबार या पत्रिका कहां देखि रहल छी। तखन त इंटरनेट के धन्यवाद देबाक चाही जे ओ एहि दिसा मे नीक काज कय रहल अछि-कारण जे अहि मे पूंजी कम लगैत छैक।
एकटा उम्मीद ऑडियो-विजुअल माध्म सं अछि लेकिन हमर भाषा ओहू मोर्चा पर भोजपुरी जकां प्रदर्शन नहि कय रहल अछि। हलांकि भोजपुरी के विशाल आबादी आ अंतराष्ट्रीय बाजार ओकरा सहयोग कय रहल छैक लेकिन ओहू सं बेसी महत्वपूर्ण हमरा जनैत ई जे हमर भाषा बेसी क्लासिकल होई के वजह सं अहि मोर्चा पर पिछड़ि रहल अछि। मैथिली भाषा लेखन के परंपरा सं विकसित भेल अछि आ बेसी मर्यादित अछि, जखन की भोजपुरी मे लेखन के परंपरा सं बेसी बाचन के परंपरा छैक। ई क्लासिकल भेनाई हमर भाषा के पोपुलर कल्चर सं काटि कय राखि देने अछि। मिथिला मे संभ्रान्त वर्ग के मैथिली अलग आ आम जन के मैथिली अलग भय गेल छैक। एकर अलावा लेखन के परंपरा होईके कारण एकर लोकगीत आ नाट्य मे एक प्रकारक अश्लीलता या बेवाकपन के बड्ड कमी छैक जे भोजपुरी मे प्रचुर रुप सं छै। ताहि कारणें हमर भाषा मे हाहाकारी रुप सं हिट लोकगीत के कैसेट या फिल्म नहि बनि पबैत अछि। परिणाम ई जे मैथिलियों के दर्शक भोजपुरिये गीत या फिल्म के आनंद बेसी लैत छथि-जे बाजार द्वारा हुनकर बेडरुम तक पहुंचा देल गेल अछि। लोक ‘महुआ’ चैनल त देखैत छथि लेकिन ‘सौभाग्य मिथिला’ के बारे मे कतेक लोक के पता छन्हि ? मैथिली के बाजार नहि बनि पायल अछि। इहो प्रश्न विचारणीय।
तखन हमर भाषा के उम्मीद कतय अछि ? की सिर्फ ‘विल पावर’ आ गार्जियन सबके अतिशय जागरुकताये हमर उम्मीद अछि जे ओ अप्पन बच्चा सबके कम सं मैथिली जरुर सिखाबथु या आओर किछु ?
लगैये हम बेसी निराश भय रहल छी। शायद हमरा एतेक निराश नहि हुअक चाही। जे भाषा हजार साल सं लेखन आ वाचिक परंपरा सं जीवित अछि ओ आगूओ जीवैत रहत। एकर त्राता ओ किछु हजार या लाख लोग नहि छथि जे दरभंगा-पटना या दिल्ली मे आबि क कॉरपोरेट भय गेल छथि-बल्कि ई भाषा करोड़क करोड़ मैथिल भाषी के हृदय मे जीवित अछि जे एखनो कोसी के बाढ़ि आ जयनगर रेलवे लाईन के कात मे पसरल हजारो गाम मे रहैत छथि। हमर ई विवशता अछि जे हमर युवा आबादी, जवान होईते देरी दिल्ली-बंबै भागि जाईत अछि। अबै बला समय मे जखन आर्थिक गतिविधि हमरा इलाका मे पसरत त लोक के पलायन नहि हेतै, लोक अप्पन भाषा मे संवाद करैत रहत। अहि शुभेच्छा के जियबैक लेल हमरा आर्थिक लड़ाई लड़य पड़त। दिल्ली आ पटना के सरकार सं अप्पन हक मांगय पड़त, इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करय पड़त। शायद मिथिला राज्य ओहि दिसा मे एकटा पैघ कदम साबित हुए। कमसं कम मिथिला राज्य के निर्माण के अहि आधार पर जरुर समर्थन करक चाही। आ मैथिल बुद्धिजीवी सबके के अहि आन्दोलन मे अहम भूमिका के निर्वाह करैय पड़तन्हि।
जन्मतिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामीविवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पीएम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्टएकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँसंपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजीपद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि।ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाकप्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शितकएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता दिवस आयल छल
देशभक्तिक अभिव्यक्तिक दिन
देशक शहीदकेँ श्रद्धांजली देबक
जकर ऋणी हमसब प्रतिदिन
एक सदीक प्रयासक बाद सफल
साढ़े तीन सए साल रहल पराधीन
वीर वीरांगणा पुरूष स्त्रीक बलिदान
केलक फिरंगीकेँ शक्तिविहीन
एक स्वतंत्र प्रजातंत्रक निर्माण भेल
एक-एक तिनकासँ बिन-बिन
सब जनहितक कानून बनल मुदा
ज्ञाता वैह जे छथि उच्चपद पर आसीन
देशक आर्थिक सहायताकेँ भोगैत
उद्योगपति अपन तिजोरी भरैमे लीन
सत्ताक ताकत लेब’ लेल प्रयासरत
नेता केने श्वेत वर्दीकेँ मर्यादा हीन
स्वयंके शक्तिशाली बनेनाइ प्राथमिक
राष्ट्रविकासक स्थान जेना होय सबसँ अंतिम
प्रकाश प्रेमी, जनकपुर
गीत
सुनैत छी फुलबारीमे प्रेम रस बहैछै नित्यौह कली संग भमरा नचैछै । चुमि नचै छै भमरा कली के कोमलता मुस्कै छै कली आ निखरै छै सुन्दरता ।।
सिनेहियाकें बाट हम सैदखन तकै छी प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी
आउ सिनेहिया जुडा दिय मनकें परती अछि अंग भिजा दिय तनकें वसन्तक वहार हमर मन तरसाबे कोईलीकें कुहकी जिया ललचाबे मधुयायल मज्जर नै टिकुला बुमmु कोषा भेल आम हम डमरस लगै छी
प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी साउन सरधुवा अगन लगाबे रिमझिम बदरीया हमरा सताबे व्यसक उमंग आब रहलो नै जाइय प्रेमक अगन आब सहलो नै जाइय भमरा हमर अहाँ कत बैसल छी प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी
प्रेम राग रस सँ गगरी भरल अछि बांटलाए सैदखन जिया तरसल अछि आबि घनश्याम प्रित सँ नहा दिय तृप्त होइ से रस हमर पिया दिय ब्याकुलता सहेजने पिपहिया बनल छि
प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी
किशन कारीग़र
संवाददाता, आकाशवाणी दिल्ली
परिचय:- जन्म- 1983ई0 कलकता में ,मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। मूल निवासी-ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी बिहार। हिंदीमे किशन नादान आओर मैथिलीमे किशन कारीग़रक नामसॅं लेखन। हिंदी आ मैथिलीमे लिखल नाटक, आकाशवाणीसॅं प्रसारित एवं लघु कथा, कविता, राजनीतिक लेख प्रकाशित। वर्तमानमे आकशवाणी दिल्लीमे संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत।शिक्षाः-एम फिल पत्रकारिता एवं बी एड कुरूक्षे़त्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।
पिता-स्वर्गीय कृपानन्द ठाकुर, माता-श्रीमती लक्ष्मी ठाकुर, जन्म-स्थान-भागलपुर ३० मार्च १९७१ ई., मूल-गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी।
लेखन: कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्ड- खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना, खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि), खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर), खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ), खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण), खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन ), खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नामसँ।
मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोशक ऑन लाइन आ प्रिंट संस्करणक सम्मिलित रूपेँ निर्माण। पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यंतरण "जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.)-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध" नामसँ।
मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएक टा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएक टा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद।
उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद १.अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ), २.कोंकणी, ३.कन्नड़ आ ४.संस्कृतमे कएल गेल अछि; आ एहि उपन्यासक अनुवाद ५.मराठी आ ६.तुलुमे कएल जा रहल अछि, संगहि एहि उपन्यास सहस्रबाढ़निक मूल मैथिलीक ब्रेल संस्करण (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक) सेहो उपलब्ध अछि।
कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे।
अंतर्जाल लेल तिरहुता आ कैथी यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।
शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२ खण्ड-८ (प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग,२.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास स॒हस्र॑ शीर्षा॒ , ३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह स॑हस्रजित् ,४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह शब्दशास्त्रम् ,५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक उल्कामुख,६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध नाराशं॒सी ,७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक- जलोदीप,८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह- बाङक बङौरा ,९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह- अक्षरमुष्टिका ।
सम्पादन:अन्तर्जालपरविदेह ई-पत्रिका“विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ क सम्पादक जे आब प्रिंटमे (देवनागरी आ तिरहुतामे) सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि- विदेह: सदेह:१:२:३:४ (देवनागरी आ तिरहुता)।
ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com
१.नजरि लागि जाइ छै
माए कहै छथि
जे नजरि लागि जाइ छै
बेटाकेँ देखि जे लागैए ओ आइ सुन्दर
साँझमे छाह पड़ि जाइ छै ओकर मुँहपर
से तँ सत्ते! हमरा सन ककर बेटा
मुदा मोनमे ई अबिते नजरि लागि जाइ छै
कोनो काज शुरू करैए
मारिते रास काज एक्के बेर
खतम होएबा धरि सुधि नहि रहै छै
कियो कहैए जे कतेक नीक अछि अहाँक बेटा
तँ माएक करेज धकसँ रहि जाइत छै
करेज बैसऽ लगै छै
की करै छै?
कोन सुन्दर छै?
मुदा कहैत रहै छथि माए
जे नजरि लागि जाइ छै
बाते-बातपर हमर बेटाकेँ
कनिञा कहैत छथि सासुकेँ
माँ अहाँक बेटा घबराइ बला नहि अछि
दुष्टक नजरि नहि लगै छै अहाँक बेटाकेँ
माए मुदा शनि दिन, सरिसौ-तोरी आ मेरचाइ जड़बैत छथि
सुरसुरी लागि जेतै ओकरा तँ बुझब जे नजरि नञि लागल छै
आ सुरसुरी जे नञि लागतै तँ बुझब जे नजरि लागि जाइ छै
कनेक काल सुरसुरी नञि लगलापर माए होइत छथि चिन्तित
देखियौ ने हमरा बेटाकेँ नजरि लागि छै छोटो-छोट गपपर..
नजरि लागि जाइ छै...बाते-बातपर हमर बेटाकेँ...
मुदा तखने छिकैत छन्हि बेटा, ओकरा सुरसुरी लागि जाइ छै
माएक मुँहपर अबै छन्हि मुस्की
सरिसौ-तोरी आ मेरचाइ सरबामे कनेक आर दऽ दै छथि...
कहलियन्हि ने माँ दुष्टक नजरि नहि लगै छै अहाँक बेटाकेँ
नाम : शिव कुमार झा, पिताक नाम: स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नाम: स्व. चन्द्रकला देवी, जन्म तिथि : 11-12-1973, शिक्षा : स्नातक (प्रतिष्ठा), जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम + पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101, संप्रति : प्रबंधक, संग्रहण, जे. एम. ए. स्टोर्स लि., मेन रोड, बिस्टुपुर, जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि : वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार- प्रसार हेतु डा. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न।
क्षणहि मे जीवन अभिशापित वनल, सूखि गेल नेह पुष्प नोर सॅ भरल, आव कहि ने सकव हम सजना विपुल मृगी नयना .............................. ।।
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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