भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, August 30, 2010

'विदेह' ६४ म अंक १५ अगस्त २०१० (वर्ष ३ मास ३२ अंक ६४)-PART IV


१.शि‍व कुमार झा टि‍ल्‍लू, जमशेदपुर
समीक्षा- मैथि‍ली चि‍त्रकथा २.जितेन्द्र झा- नेपालक राजनीतिक अबस्थासँ उपजल ग्लानि
३.शि‍व कुमार झा टि‍ल्‍लूसमीक्षा- मि‍थि‍लाक बेटी (नाटक)

शि‍व कुमार झा टि‍ल्‍लू, जमशेदपुर
समीक्षा
मैथि‍ली चि‍त्रकथा

आठ वर्ख पहि‍ने मैथि‍ली भारतीय संवि‍धानक अष्‍टम अनुसूचीमे शामि‍ल कएल गेल। कति‍पय हर्षित भेलहुँ जे हमरो भाखाकेँ वैधानि‍क अस्‍ति‍त्‍व देल गेल। मोने-मोन ओहि‍ सभ गोटेक प्रति‍ कृतज्ञता आ मंगल कामना करैत छलहुँ जनि‍क प्रयाससँ ई काज भेल। मुदा! एकटा कचोट अर्न्‍तमनकेँ हि‍लकोरि‍ रहल छल जे आगॉं की हएत? अपन भाखाक भवि‍ष्‍य नीक नहि‍ देखि‍ रहल छलहुँ।
     एहि‍ व्‍यथाक सभसँ पैघ कारण छल हमरा सबहक भाषा साहि‍त्‍यकमे कोनो क्रांति‍क आश नहि‍ नजरि‍ आवि‍ रहल छल। वर्तमान पीढ़ी मातृभाषासँ दूर भऽ रहल छलाह। अगि‍ला पीढ़ीक गप्‍प की कहू? कतेक नेनाकेँ ओलती, चि‍नुआर, थान, छान-पग्‍घाक अर्थ बूझल अछि‍? जौं कोनो अभि‍भावकसँ पूछैत छी जे नेनासँ अपन वयनामे गप्‍प कि‍ए नै करैत छी तँ जवाब भेटैत अछि‍ जे स्‍कूल जाएत तँ हि‍न्‍दी आ अंग्रेजी नहि‍ बूझत तेँ अखनेसँ सि‍खा रहल छी। नेनोमे चेतना नहि‍ कि‍एक तँ वाल-साहि‍त्‍य मैथि‍लीमे लि‍खले नहि‍ गेल। जौं कि‍छु अछि‍ तँ ओकर अर्थ कतेक नेना बूझैत छथि‍। महान लेखक वा कवि‍क श्रेष्‍ठ भाषामे लि‍खल रचना हम नहि‍ बूझैत छी तँ हमर धीया-पूता कोना बूझतथि‍? एहि‍ मध्‍य मैथि‍लीमे वि‍देह-सदेहक पदार्पण भेल। नव रूप, नवल सोच आ सकारात्‍मक दृष्‍टि‍कोणक संग। मौलि‍क वि‍न्‍दुपर रचना होअए लागल। उपेक्षि‍तकेँ नव आश भेटल। साहि‍त्‍य आन्‍दोलनक एकटा परि‍णामक चर्च हम पाठकसँ कऽ रहल छी- मैथि‍ली चि‍त्रकथा- श्रुति‍ प्रकाशन दि‍ल्‍ली द्वारा वि‍देहक सौजन्‍यसँ ई पोथी सन् २००८मे बहराएल। एहि‍ पोथीक लेखि‍का छथि‍ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर। हि‍नक ई दोसर रचना थि‍क। वि‍षय पूर्णत: नव, बाल साहि‍त्‍यक चि‍त्रकथा। हम एहि‍सँ पूर्व एहि‍ वि‍षयक पोथी मैथि‍लीमे नहि‍ देखने छलहुँ। एकरा रचना नहि‍ कहल जा सकैछ, कि‍एक तँ एहि‍मे कोनो साहि‍त्‍यक सृजन नहि‍, लोक कथा आ जन-श्रुति‍ जे मि‍थि‍लामे पहि‍नेसँ सुनल जा रहल छल ओकरा चि‍त्रक संग चर्च कएल गेल अछि‍। एहि‍ प्रकारक जन श्रुति‍ गाम-गाममे बूढ़-पुरानक मुँहसँ बाजल जाइत छल मुदा आव वि‍लीन भऽ रहल अछि‍। ओहि‍ वि‍लुप्‍त वि‍षयपर चि‍त्रकथा लि‍खि‍ प्रीति जी‍ बड्ड नीक काज कएलनि‍। एहि‍ पोथीमे जे वि‍शेष आ नव सकारात्‍मक पक्ष देखलहुँ ओ अछि‍- वि‍षयक आ कथाक चयन। सम्‍पूर्ण मि‍थि‍ला एहि‍मे समाएल छथि‍। सभ जाति‍ समाजक लोक-कथाक चि‍त्रण कएल गेल अछि‍। मोती दाइ कथामे रजक जाति‍क नि‍ष्‍ठाक चि‍त्रण तँ राजा सलहेसमे दूधवंशीक भावनाक व्‍याख्‍या। मि‍थि‍ला दरवारक वोधि‍-कायस्‍थक गंगा लाभ मनोरम लागल। बहुरा गोधि‍‍न आ नटुआ दलाल बेगूसरायक लोक कथा थि‍क। पहि‍ने लोकक मानसि‍कता छल जे बेगूसरायक लोक मैथि‍ली भाषी नहि‍ छथि‍। हमरो मर्म होइत छल कि‍एक तँ हमर मातृक बेगूसरैए जि‍लामे अछि‍। एहि‍ कथाकेँ पढ़ि‍ ति‍रहुति‍या आ दछि‍नाहाक भेद हि‍यासँ मेटा गेल।
     हमरा सबहक समाजक एकटा उपेक्षि‍त जाति‍ छथि‍- मुसहर। मुसहरोमे दूटा आदर्श पुरूष भेल छलाह दीना आ भद्री। ओहि‍ दीना भद्रीक कथा बड्ड नीक लागल। पहि‍ने बूझैत छलहुँ जे तपस्‍वी वनवाक लेल वौद्धि‍कता आ भौति‍कता पैघ मापदंड थि‍क, मुदा आव ई भ्रम दूर भऽ गेल। एहि‍ प्रकारे बहुत रास कथाक चि‍त्रण कएल गेल अछि‍।
     एकबेरि‍ आदरणीय जगदीश प्रसाद मंडल आ बेचन ठाकुर जीक रचना पढ़ि‍ हम लि‍खने छलहुँ जे वि‍देह मैि‍थली साहि‍त्‍य आन्‍दोलन मैथि‍ली पर लागल जाति‍वादी कलंककेँ धो देलक। जौं ई गप्‍प सत्‍य अछि‍ तँ ओहि‍मे एहि‍ पोथीक भूमि‍काकेँ नहि‍ नजरि‍ अंदाज कऽ सकैत छी। वर्तमान पीढ़ीक लेल प्रेरणादायी आ अगि‍ला पीढ़ीकेँ मैथि‍लीक प्रति‍ सि‍नेह जगावए लेल ई पोथी प्रासंगि‍क अछि‍। भाषा संपादन नीक लागल। ि‍चत्रक स्‍तर बड़ सुन्‍नर आ व्‍यापक अछि‍। श्रुि‍त प्रकाशन सेहो धन्‍यवादक पात्र छथि‍। नीक कागतक प्रयोग कएलन्‍हि‍ आ चि‍त्रक रंग संयोजन सेहो सेहंति‍त लागल।
     अंतमे हम प्रीति‍ जीकेँ धन्‍यवाद दैत छि‍अनि‍ जे हमरा सबहक बीच एकटा झॉंपल वि‍षएपर लेखनीक प्रयोग कएलनि‍। आगाँ सेहो हम आशा करैत धन्‍यवाद ज्ञापन करैत छी।

     पोथि‍क नाम- मैथि‍ली चि‍त्रकथा
       प्रकाशन वर्ष- २००९
       लेखि‍का- प्रीति‍ ठाकुर
       प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन, राजेन्‍द्र नगर- दि‍ल्‍ली।
       दाम- १००टाका मात्र
       पोथी प्राप्‍ति‍ स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स वार्ड न. ६ नि‍र्मली, सुपौल, मोवाइल न. ०९५७२४५०४०५
जितेन्द्र झा- नेपालक राजनीतिक अबस्थासँ उपजल ग्लानि
 
नेपालक राजनीतिक अबस्थासँ उपजल ग्लानि-
मैथिली भाषामे उपन्यास विधामे न्युन रचना भऽ रहल कहैत साहित्यकारसभ चिन्ता व्यक्त कएलनि अछि । नेपालसँ मैथिलीमे एखन धरि मात्र चारिटा उपन्यास प्रकाशित भेल कहैत साहित्यकारलोकनि औपन्यासिक कृति लेखन आ प्रकाशन नइँ हएब दुखद रहल मन्तव्य व्यक्त कएलनि अछि ।
राजेश्वर ठाकुर रचित ग्लानि मैथिली राजनीतिक लघु उपन्यासके साओन २७ गते राजधानीक भृकुटीमण्डपमे आयोजित कार्यक्रममे विमोचन कएल गेल । प्राज्ञ रामभरोस कापडि भ्रमरठाकुरक प्रथम कृति ग्लानिके विमोचन कएलनि । भ्रमर नेपालीय मैथिली साहित्यकार उपन्यास रचना करबादिस रुचि नइँ देखौने छथि कहलनि । नेपालमेँ कुल १ सय पचासटा मैथिली पुस्तक प्रकाशित अछि जाहिमे उपन्यासक संख्या मात्र चारि रहल हुनक कहब छलनि । उपलब्ध चारिटा उपन्याससेहो आह्लादकारी नइँ रहल टिप्पणी भ्रमरके छलनि ।
राजेश्वर ठाकुर ग्लानिक सम्बन्धमे कहलनि जे उपन्यासक प्रमुख पात्र रमेश अछि जे मधेश आ मधेशीके हक अधिकारके लेल लडऽ चाहैत अछि । गजेन्द्र बाबुके मधेश आन्दोलनमे रमेश नौकरी छोडिकऽ कुदि जाइत अछि मुक्ति कामनाक सँग । पहाडिया शासन प्रवृतिक विरोधीक रुपमे आगु बढैत रहैत अछि रमेश । मुदा सत्ता लिप्सामे डुबि जाइत अछि राजनीतिक व्यक्तित्वसभ । एहन अबस्थामे रमेशके ग्लानि उत्पन्न होइत छैक आ लघु उपन्यासक जन्म होइत अछि ।
ओही अवसरमे मन्तव्य दैत डा रामदयाल राकेश राजेश्वर ठाकुरक ग्लानि कृतिसँ मैथिलीक उपन्यास साहित्यमे एकटा नव अध्याय जुडल कहलनि । कार्यक्रममे सहभागीसभ नेपालीय मैथिलीमे उपन्यास विधामे कलम चलएबादिस साहित्यकारसभके लगबाक आग्रह कएने रहथि । कार्यक्रममे डा गंगा प्रसाद अकेला गोपाल अश्क संचारकर्मी चन्द्रकिशोर झा सहितके व्यक्ति सहभागी रहथि ।
३.  
शि‍व कुमार झा टि‍ल्‍लू
जमशेदपुर
समीक्षा-

मि‍थि‍लाक बेटी (नाटक)

इसा संवत् सन २००८सँ लऽ कऽ वर्तमान कालकेँ अद्यतन मैथि‍ली साहि‍त्‍यि‍क आन्‍दोलनक क्रांति‍-काल कहल जा सकैत अछि‍। एहि‍ अवधि‍मे रंग-वि‍रंगक साहि‍त्‍य सरि‍तासँ सजल पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशन प्रारंभ भेल अछि‍। जाहि‍मे प्रमुख अछि‍- वि‍देह ई पत्रि‍का, वि‍देह-सदेह, मि‍थि‍ला दर्शन (पुनर्प्रकाशन), पुर्वोत्तर मैथि‍ल, झारखंडक सनेस, नवारम्‍भ, मि‍थि‍ला सृजन आदि‍-आदि‍। एहि‍ पत्र-पत्रि‍काक प्रयाससँ नव-नव साहि‍त्‍यकारक प्रवेश मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे भेल। जाहि‍मेसँ कि‍छु साहि‍त्‍यकार तँ अपन रचनासँ मि‍थि‍लाक मानस पटलपर एहेन स्‍थान बना लेलनि‍ जाहि‍सँ हुनका जौं काल पुरूष माने मेन ऑफ टाइम कहल जाए तँ कोनो अति‍शयोक्‍ति‍ नहि‍ हएत। एहि‍ रचनाकारक भीड़मे एकटा साम्‍यवादी आ बहि‍र्मुखी प्रति‍भासँ सम्‍पन्न रचनाकार छथि‍- श्री जगदीश प्रसाद मंडल। हि‍नक व्‍यक्‍ति‍गत जीवन कोनो रूपक हो मुदा साहि‍त्‍यि‍क सृजनशीलतासँ हि‍नका बहि‍र्मुखी व्‍यक्‍ति‍त्‍वक व्‍यक्‍ति‍ कहल जा सकैत अछि‍।
      हि‍नक पहि‍ल रचना ि‍वसॉंढ़भैँटक लावा घर-बाहरमे आ दोसर रचना चुनवाली मि‍थि‍ला दर्शनमे प्रकाशि‍त होइते मैथि‍ली पत्रि‍काक संपादक मंडलक संग-संग प्रबुद्ध पाठकक मध्‍य हड़होरि‍ मचि‍ गेल। पहि‍ने आउ आ पहि‍ने पाउक आधारपर वि‍देहक संपादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुर हि‍नक रचना सभकेँ अपन पत्रि‍कामे छपाबए लेल हथि‍या लेलन्‍हि‍। एहि‍ प्रकारक शब्‍दक प्रयोग करवाक हमर तात्‍पर्य अछि‍ जे जगदीश जी कोनो नव रचनाकार नहि‍ छथि‍, ति‍रसठि‍ बर्खक माजल साहि‍त्‍यकार छथि‍, मुदा हि‍नक रचनाक प्रदर्शन नहि‍ भेल छल। समग्र रचनासंसार हि‍नक पुत्र उमेश मंडल जीक कम्‍प्‍यूटरमे ओझराएल छल कि‍एक तँ छपयवाक लेल कैंचा कतएसँ अएत?
      आदरणीय संपादक गजेन्‍द्र ठाकुरक वि‍शेष अनुग्रह आ श्रुति‍ प्रकाशनक अधि‍ष्‍ठाता श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ श्रीमती नीतू कुमारी जीक कृपासँ हि‍नक एकसँ वढ़ि‍ कऽ एक रचना हथि‍या नक्षत्रक गनगुआरि‍ जकॉं पाठकक आगॉं आवि‍ रहल अछि‍। एहि‍ पुष्‍पांजलि‍ महक एकटा फूल लऽ हम पाठकक सोझा राखि‍ रहल छी- मि‍थि‍लाक बेटी। मि‍थि‍लाक बेटी एकटा नाटकक नाम अछि‍। शीर्षकसँ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍ जे हमरा सभक समाजक वनि‍ताक आस्‍ति‍त्‍व आ अस्‍मि‍तासँ एहि‍ रचनाक संबंध अछि‍। मुदा....... पोथीक गर्भावलोकनक वाद हमर मोनसँ ई भ्रम भागि‍ गेल। एहि‍मे समाजक वि‍षमताक स्‍पष्‍ट दर्शनक अनुभूति‍ भेल। जगदीश जी साम्‍यवादी वि‍चार धाराक सम्‍पोषक छथि‍, तेँ समाजमे पसरल व्‍याधि‍पर श्रमक वि‍जय, श्रमजीवीक वि‍जय, दृष्‍टि‍कोणक वि‍जय, इमानक वि‍जय, सम्‍यक भौति‍कताक वि‍जय, वौद्धि‍क आ चेतनाक वि‍जय देखयवाक प्रयास कएलनि‍।
      पॉंच अंकक एहि‍ नाट्कमे नौ गोट पुरूष पात्र आ पॉंचटा नारी पात्र छथि‍। रचनाक केन्‍द्र वि‍न्‍दु छथि‍ पैंतालीस वर्खक वि‍कट पुरूष पात्र- बावू कर्मनाथ- एकटा प्रशासनि‍क अधि‍कारी। वि‍कट एहि‍ दुआरे कि‍एक तँ भ्रष्‍ट समाजक मध्‍य कर्तव्‍यपरायण इमानदार व्‍यक्‍ति‍ आ बावू एहि‍ दुअारे कि‍एक तँ अधि‍कारी छथि‍। स्‍नातक उर्तीर्ण कएलाक वाद हि‍नक पि‍ता सोमनाथ हि‍नक वि‍वाह एकटा भौति‍कवादी परि‍वारमे पक्का कए लेलनि‍। द्रव्‍य, धन धान्‍य आ बीस वि‍घा जमीनक जुआरि‍मे। मुदा ओ कर्मनाथ जीक मौन समर्थनक आशमे बैसल छलाह। एहि‍ मध्‍य जेठ मासक गरमीमे एकटा कायाहीन आ नि‍र्धन व्‍यक्‍ति‍ हि‍नक दलानपर अएलनि‍। व्‍यथि‍त आ थाकल अपन कन्‍याक हेतु वर तकवाक क्रममे सोमनाथक दलानपर अचेत भऽ गेलाह। सोमनाथसँ हुनक व्‍यथा नहि‍ देखल गेल। ओहि‍ गरीबक कन्‍यासँ वि‍याह करवाक लेल आतुर भऽ गेलाह। कालान्‍तरमे ई वि‍याह सम्‍पन्न तँ भऽ गेल मुदा, परि‍वारमे सामंजस्‍य नहि‍ रहि‍ सकल। पि‍ता सोमनाथ आ दू भाँइ क्रमश: नूनू आ लालबावू हि‍नक नि‍र्णएसँ दुखी भऽ गेलनि‍, कि‍एक तँ कुवेरक भंडारक आशपर कर्मनाथ जी नोन छीटि‍ देलनि‍। प्रति‍भाशाली छात्र कर्मनाथ प्रशासनि‍क अधि‍कारी बनि‍ गेलाह परंच हि‍नक इमान भौति‍कतापर भारी पड़ि‍ गेल जाहि‍सँ नव-नव समस्‍या उत्‍पन्न भऽ गेल। पत्‍नी चमेली, पुत्र फुलेसर आ पुत्री द्वय चम्‍पा आ जूही- ई अछि‍ हि‍नक परि‍वार। भावक सर आ वि‍श्‍वासक शतदलक संग जीवन क्रम चलैत रहल। िपता सोमनाथ अदूर्दर्शी व्‍यक्‍ति‍ छलाह, जाहि‍सँ अन्‍य दुनू पुत्र अवण्‍ड भऽ गेलनि‍। कर्महीन नूनू आ लालबावू जथा बेचि‍-बेचि‍ कए कर्मनाथक बरावरि‍ करवाक प्रयास कऽ रहल छलथि‍। पि‍तासँ महि‍मा मंडि‍त होएवाक कारणें दुनूक जीवन नारकीय भऽ गेल। परि‍वारक दशा ओ दि‍शाकेँ देखि‍ कऽ कर्मनाथक माए आशाक आश टूटि‍ रहल छल। कर्मनाथ जीक पि‍तृ परि‍वारमे मात्र हि‍नक माएक व्‍यक्‍ति‍त्‍व सोझराएल छल। कि‍एक नहि‍ रहत, सभ माएक इच्‍छा होइत अछि‍ हुनक पुत्रक नाओसँ समाज गौरवान्‍वि‍त होअए।
      जगदीश जी एहि‍ नाट्य कथाक नायकक स्‍पष्‍ट उद्घोषण नहि‍ कएलनि‍ मुदा, हमर मतसँ एहि‍ नाटकक नायक छथि‍ वि‍कास, एकटा सेवा नि‍वृत्त शि‍क्षक। आदर्श आ सहज वि‍चार धाराक व्‍यक्‍ति‍ श्री वि‍कास अपन समाजक चि‍तंक छथि‍। मि‍थि‍लाक गाम एखनो वि‍कासक धारामे पाछॉं पड़ल अछि‍। शि‍क्षाक अभाव, सामाजि‍क समरसताक अभाव आ साधनक अभावक कारण वि‍कास सन प्रबुद्ध व्‍यक्‍ति‍क ग्राम्‍य समाजमे आवश्‍यकता अछि‍। गामक प्राय: नव आ अधवयस पीढ़ी हुनक छात्र रहलनि‍ अत: हुनक सलाहकेँ मानैत छथि‍। श्रीचन कि‍सान हाटपर प्रचार करवाक लेल आएल शंकर बीज कंपनीक प्रलोभनमे आवि‍ टमाटरक वि‍देशी बीआ खरीद लैत छथि‍। टमाटर उपजाक कोन कथा जे लत्ति‍ओ गलि‍ गेल। श्रीचन संताप आ क्रोधक मारे आकुल छलाह। वि‍कास जी हुनका सान्‍त्‍वना दैत कहलनि‍ जे प्रचारक चकाचौंधमे नहि‍ अएवाक चाही अपन स्‍वदेशी वस्‍तु ओहि‍ वि‍देशी समानसँ सोहनगर अछि‍। वि‍कास जीक प्रयासँ कर्मनाथक पुत्री चम्‍पाक वि‍याह रामवि‍लास मि‍स्‍त्रीक पुत्र मदनसँ तँए कएल गेल। एहि‍ वि‍याहकेँ केन्‍द्र वि‍न्‍दु मानि‍ एहि‍ पोथीक रचना कएल गेल अछि‍।
      आव प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे एहि‍ पोथीमे नव की भेटल? मि‍थि‍लाक बेटी नाट्क कर्म प्रधान वि‍श्‍व करि‍ राखा सि‍द्धान्‍तक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍। एकटा कर्मठ आ इमानदार व्‍यक्‍ति‍केँ समाजमे की-की सहय पड़ैत अछि‍, ओहि‍ परि‍पेक्ष्‍यक मार्मि‍क चि‍त्रण कएल गेल अछि‍। कथाक मूलमे कर्मनाथक वि‍याह क्रममे आएल एकटा गरीब (चमेलीक पि‍ता) व्‍यक्‍ति‍क मनोदशाक प्रस्‍तुति‍ नीक अछि‍। ओ व्‍यक्‍ति‍ गरीब छथि‍ मुदा चार्वाक दर्शनक पालक। पेटमे खढ़ नहि‍ सि‍ंहमे तेल जेवीमे कैंचा नहि‍ मुदा नौ हन्नाक बटुआ जाहि‍मे भोगक वस्‍तु छलि‍या सुपारी पान आ तमाकू। हमरा सबहक गाममे एहि‍ना होइत अछि‍, भोजन नहि‍ मुदा, पान अवश्‍य। पग-पग पोखरि‍ माछ मखान... मधुर बोल मुस्‍की मुख पान... नेना पढ़लक, नहि‍ पता, कनि‍याकेँ पथ्‍य भेटल नहि‍ जनै छी, बेटीक लेल दूध अछि‍... नहि‍। मुदा! पान अति‍आवश्‍यक, हाथी मरि‍ गेल, छान आ पग्‍घा लऽ कऽ बौआ रहल छी। कर्मनाथक अपन पत्‍नी चमेलीक संग वार्तालापमे खट्टर ककाक तरंगक दर्शन होइत अछि‍। गाममे प्रचलि‍त लोकोक्‍ति‍क हास्‍य मुदा, सत्‍य प्रस्‍तुति‍।
कर्मनाथ जीक पुत्रक नाम फुलेसर प्रशासनि‍क अधि‍कारी भऽ कऽ एहेन नाम.....। एहि‍सँ हुनक गामक प्रति‍ सि‍नेहक झॉंकी भेटैत अछि‍। गाममे एहने नाम सभ होइत अछि‍। अपन दुनू पुत्री आ पुत्रकेँ छायावादी रूपमे जीवनक शि‍क्षा दैत छथि‍..... कर्मनाथ। एना करव आवश्‍यक कि‍ए तँ एहि‍सँ जि‍ज्ञासा बढ़ैत अछि‍। राम वि‍लास सेवा नि‍वृत मि‍स्‍त्री छथि‍। वाल्‍यकाल साधनक अभावमे, युवावस्‍था संघर्षमे वि‍ता कऽ भौति‍क साधन प्राप्‍त कएलनि‍। जीवनक अंति‍म पड़ावमे माधुरीसँ माने अपन पत्‍नीसँ अपन जीवन-यात्राक व्‍याख्‍यान करैत छथि‍, आश्‍चर्यमे पड़ि गेलहुँ। जि‍नका संग चालीस बर्खक यात्रा कएलनि‍ ओ हि‍नक जीवन दर्शन नहि‍ जनैत छलीह। हमरा सबहक समाजमे एहि‍ प्रकारक घटना होइते अछि‍। गरीव नेनपनक वाद सोझे प्रोढ़ भऽ जाइत छथि‍। जे कर्मवादी छथि‍ हुनक अंति‍म अवस्‍था सुखमय नहि‍ तँ......। अपन कर्मक नावकेँ कलकत्तामे मजवुत कऽ सोझे गाम आवि‍ जाइत छथि‍। मातृभूमि‍क प्रति‍ सि‍नेह, गामेमे गैरेज खोलवाक योजना अछि‍। चौघारा घर बनाएव, दलान अवश्‍य रहत, कि‍एक तँ दलान समाजक मर्यादा थि‍क गामक जीवन शहरसँ सुखमयी अछि‍। एहि‍ पोथीमे पलायनवादक वि‍रोध कएल गेल अछि‍।
      कर्मनाथक चरि‍त्र पंडि‍त गोवि‍न्‍द झा लि‍खि‍त वसात नाटकक नायक कृष्‍णकान्‍तसँ मि‍लैत अछि‍। राम वि‍लास जीवन संघर्षमे वि‍जयी भेलाह तेँ पुत्रक वि‍याह आदर्श करताह। वि‍कास जीक चरि‍त्र नाटकक लेखक जगदीश बावूसँ मि‍लैत अछि‍। साम्‍यवादी, ग्रामीण सभ्‍यताक दि‍ग्‍दर्शक। एहि‍ पोथी‍मे जाति‍वादी व्‍यवस्‍थाक वि‍रोध कएल गेल अछि‍। आन गामक स्‍वजातीयकेँ भोजमे नि‍मंत्रण देवासँ अनि‍वार्य अछि‍ अपन गामक सभ जाति‍केँ आमंत्रि‍त करब। ि‍कएक तँ वेर-कुवेरमे पॉजरि‍ लागल लोक काज दैत छथि‍, चाहे ओ कोनो जाति‍क हो।
      एहि‍ पोथीमे जीवनक सभ रूपक व्‍यापक दर्शन कएल गेल अछि‍। कुलीन व्‍यक्‍ति‍ जनि‍क परि‍वार नीचॉं मुँहे जा रहल अछि‍ ओहि‍ परि‍वारक कन्‍याक वि‍याह उर्ध्‍वमुखी साधारण परि‍वारक पुत्र (जे आव सम्‍पन्न छथि‍) हुनकासँ भऽ सकैत अछि‍। एहि‍ पोथीमे अन्‍हारपर इजोतक वि‍जय देखाओल गेल अछि‍। भौति‍कतापर बौद्धि‍कता आ सम्‍यक जीवनक जीत एहि‍ पोथीक केन्‍द्र वि‍न्‍दुमे समेटल अछि‍ पुत्रक वि‍याहमे ति‍लक लेवासँ वेसी अछि‍ कुलीन कन्‍याक चयन। सम्‍पूर्ण पोथीमे देशज शब्‍दक प्रयोग कएल गेल अछि‍। पोथीक अंति‍म पृष्‍ठपर श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक कथन मैथि‍ली साहि‍त्‍यक इति‍हास (जगदीश प्रसाद मंडलसँ पूर्व आ जगदीश प्रसाद मंडलसँ) पढ़लहुँ पहि‍ने तँ अनसोहॉंत लागल मुदा पोथीक अध्‍ययन कएलाक पश्‍चात् हमरा सहज लागल। भाषा अत्‍यन्‍त सामान्‍य मुदा रस, अलंकार आ छंदसँ परि‍पूर्ण अछि‍। कलात्‍मक शैलीमे जगदीश जी अंक-अंकमे अपन दर्शनकेँ सहेजि‍ लेने छथि‍। हि‍नक ई रचना कोनो वि‍शेष कथाकार वा नाटक कारसँ‍ प्रभावि‍त नहि‍। हि‍नक रचनामे राजकमल जी, पंडि‍त गोवि‍न्‍द झा, हरि‍मोहन बावू, धूमकेतु, गुलेरी जी, लक्ष्‍मीनारायण मि‍श्र, ललन ठाकुर सन रचनाकारक शैलीक मि‍श्रि‍त दर्शन होइत अछि‍। मि‍थि‍लाक बेटी अर्थनीति‍सँ प्रभावि‍त अछि‍ मुदा, सम्‍यक अर्थनीति‍सँ। अर्थपर मानवताक वि‍जय, जगदीश जीक वि‍श्‍वास नीक लागल।
      जेना कोनो व्‍यक्‍ति‍ पूर्ण नहि‍ भऽ सकैत अछि‍ तहि‍ना कोनो रचनाक संग होइत अछि‍। मि‍थि‍लाक बेटीपोथीमे कि‍छु त्रुटि‍क दर्शन सेहो भेल। प्रथमत: एहि‍ पोथीक शीर्षक अप्रासंगि‍क लागल। बेटी तँ एहि‍ दर्शनक माध्‍यम मात्र अछि‍, स्‍त्रोत नहि‍। एहि‍मे मानवीयताक जीत देखाओल गेल अछि‍ बेटीक जीवन तँ घटना मात्र थि‍क।
      एहि‍ नाटकक भाषा सरल मुदा, शनै: शनै: गमनीय अछि‍ तेँ मंचन करवाक योग्‍य नहि‍, मुदा एकर कलात्‍मक मंचन कएल जा कएल जा सकैत अछि‍।
      नि‍ष्‍कर्षत: जगदीश प्रसाद मंडल जी हमरा सबहक बीच एकटा नव जीवनक आयाम लऽ कए आएल छथि‍। बहुरंगी जीवनक आयाम आ सकारात्‍मक सोचक आयाम। मानवीय मूल्‍य एखनो धरि‍ जीवि‍त अछि‍। एहि‍ तरहक घटना कठि‍न अछि‍ मुदा असंभव नहि‍। वि‍श्‍वास आ कर्मक संग जीवन जीवाक प्रयत्‍न करवाक चाही। एहि‍ पोथीक शब्‍द-शब्‍दमे झंकार अछि‍। भाषा प्रवाहमयी लागल। प्रकाशन दलक प्रयास नीक, शब्‍द संयोजन आ संपादन अति‍ उत्तम। धन्‍यवाद।

     
      पोथीक नाम- मि‍थि‍लाक बेटी
      रचनाकार- जगदीश प्रसाद मंडल
      प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन राजेन्‍द्र नगर दि‍ल्‍ली।
      मूल्‍य- १६० टाका मात्र।
      प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
      पोथी पाप्‍ति‍क स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स, वार्ड न.६, नि‍र्मली, सुपौल, मोवाइल  
      न. ९५७२४५०४०५
१.मनोज झा मुक्ति -महोत्तरीक यूवाके देशव्यापी अभियान २.-
सुशान्त झा- मैथिली, मैथिल संस्कृति आ मिथिला राज्य
मनोज झा मुक्ति -महोत्तरीक यूवाके देशव्यापी अभियान
   अपना गामठामक विकास करबाकलेल सरकारी पाई एन.जि.ओ. या आ.एन.जि.ओ.क आवश्यकता नहिं अछि आवश्यकता अछि त सकारात्मक दृष्टिकोणकेँ आ अपना माटिप्रतिक आस्था एवं आत्मबलकेँयैह नारा लऽ कऽ महोत्तरी जिलाक यूवा शंखनाद कएने अछिदेशके सुन्दर बनएवाक अभियानकेँ ।
    जौँ पाइयक बलपर विकास भऽ सकैत त नेपालक सभ गाम स्वर्ग भऽ गेल रहैत । नेपालक कोनहुँ स्थान विकाससँ बञ्चित  नईं रहैत । सरकार नेपालक प्रत्येक गामें प्रतिवर्ष २० सँ ३० लाख अनुदान दैत अछि जिला विकास समितिक मादे अरबोक बजेट रहैत अछि विकासकलेल से अलग सँ । एकरा अतिरिक्त सभासद सबके क्षेत्र विकासलेल बजेट भेटैत अछि तकर बाते छोडु । तहिना समाज आ देशक विकास हेतु एन.जि.ओ. आ आ.एन.जि.ओ. मार्फत नेपालमे प्रति वर्ष खरबो रुपैया अवैत अछि ताइसँ कतऽके विकास होइत अछि भगवाने जानथु ।
    चाहे गामक कोनो पार्टीक नेता हुए जे गामक विकासकलेल गा.वि.स.के प्रतिनिधि बनल करैत छथि या जिला विकास समितिमे पार्टीक प्रतिनिधि बनैत छथि जँ ओसब अपना कर्तव्यप्रति कनिक्को सचेत रहितथि त नेपालक गामसब पूर्ण नहि त बहुत विकसीत भऽगेल रहैत । अपना गामकलेल या जिलाक लेल आएल बजेटमेंसँ कमीशन खाकऽ कागजपर विकासक काज गा.वि.स. सचिव आ जि.वि.स.क एल.डि.यो.सँ करौनिहार नेतेसबके एहि तरहक रवैया अछि तहन कोना भऽ सकत नेपालक विकास ? आश्चर्य त तखन लगैत अछि जखन देश विकासक लेल आएल बजेटके खएनिहार नेतासब अपनाके देश आ जनताक हितैषी आ अगुवा कहैत नईं थकैत अछि । ईमान्दारी आ सत्यपर सँ आम जनताके विश्वास उठाबऽमे नायकक भूमिकामे रहल अधिकांश कमिशनखोर नेताक कारण किछु ईमान्दार एवं नैतिकवान राजनीतिकर्मीसब अनेरे बदनाम भेल करैत अछि । ताँए जरुरी अछि आम जनतामे आत्म विश्वास जगएवाक आ सत्यपर भरोषा बढएवाक । आ एकर शुरुवात कऽ रहल अछि महोत्तरी जिलाक किछु यूवासब ।
महोत्तरीमें अभियानमे लागल यूवाक कहब छन्हि– ‘अपना गामठामक विकास करबाकलेल सरकारी पाई एन.जि.ओ. या आ.एन.जि.ओ.क आवश्यकता नहिं अछि आवश्यकता अछि त सकारात्मक दृष्टिकोणकेँ आ अपना माटिप्रतिक आस्था एवं आत्मबलकेँ। ओसब अभियानक शुरुवात कऽ रहल छथिवृक्षारोपणक काजसँ । जखन हुनकासबसँ जिज्ञासा राखल गेल कि वृक्षेरोपण किया ? त हुनक कहब छन्हि–‘ गामघर या जिलामे जत्रतत्र व्याप्त भ्रष्टाचारके एक्कहिवेर कम नहि कएल जा सकैय । कोनो गाममे जौँ कोनो विकास निर्माणक काज होइत अछि त स्थानिय नेता कार्यकर्ता या यूवा ओहि काजमे निक जकाँ अभिरुचि लैत अछि । मुदा दुर्भाग्यक बात हूनका सबमेंसँ ९८ प्रतिशत लोकक अभिरुचिक अभिप्राय रहैत छन्हिकमिशन लेवाक काज चाहे कागजेपर किए नई भऽ जाय । ताँए पहिने काज कएल जाए तकरा बाद कर्मचारी जनता आ नेताके सचेत करबाक काज शुरु हुए ।
अपना अभियानक शुरुवात ओसब नेपालक गामठाममें वृक्षारोपण क कऽ करऽ चाहैत छथि । हुनकसबहक कहब छन्हि–‘काज ककरो देखयवाकलेल नहिं होएवाक चाही अपना आपसँ इमान्दारिता करैत काज करैत जाउ लोक चाहे जे कहय । जँ नीक काज करबई त दुश्मनो के ई कहैएटा पडतैक जे–‘....ओना त छौंडा बदमाश अछि मुदा काज नीक कऽ रहल अछि ।एहि उद्देश्य ल कऽ हमसब जतबे सकब सबहक सहयोगसँ नेपालक कोनाकोनामें वृक्षारोपण करब आ कराएब । ओसब अपना वृक्षारोपणक अभियानमें आम देशवासी सँ एहि तरहक अनुरोध कएल करैत छथि–‘ हमरा सबहक वृक्षारोपणक अभियानमें  जँ आँहाँ सहयोग करऽ चाहैत छी त एकटा बाँस दऽ दिय नहिं त एकटा कोनो फूलक या फलक गाछ दऽ दिय । जँ से नहि त एकदिन आबिकए पानि पटा दिय नहिं त सप्ताहमे आधा घण्टा आबिकऽ वृक्षारोपण स्थलमें बैसि जाऊ । जँ आँहाँलग समयक आभाव अछि आँहाँ कर्मचारी छी त अपना गाम गेल वेरमे अपना खेतमे या दरबज्जापर एहि अभियानक नामपर एकटा अपना नीक लागऽबला वृक्ष लगालिय आ नहिं त जँ आहाँके ई अभियान नीक लगैय त कम स कम हमरा अभियानी मीत्रके हौसला बढादिय । हमर स्वार्थ याह अछि जे केओ कतौ गाछवृक्ष लगाओत या लगौने हायत त ओकर आक्सिजन हमहुँ लेब आ सबकियो लेत बटोहीके रौदमे छाहरि भेटतैक एवं बहुतो गरीबकेँ घरक आँचकलेल ओकर पात काज औतैक । ताएँ सब गामशहरकेँ फूल आ वृक्षसँ सजाबी जतऽ किछुदेर कियो वैसिकऽ स्वच्छ हावा लऽ सकय ।
तहिना ओ सब कहैत छथि जे जतेक नेताके देखू सब देशे विकासके बात करत । आर्मी पुलिस कर्मचारी देशक या कहु माटिक सपथ खाइत रहत । पत्रकार या बुद्धिजीवि दिनराति देशक उन्नतिक गप्प करैत नईं थाकत । जे अपनाके जनता कहैत छथि ओ सब दिनराति नेतासबके गारि पढैत नहिं थकैत छथि जे नेतासब देशके बेच देलक । एकर मतलब जे गारि पढनिहारक भीतर सेहो देश या कहु माटिप्रतिक सिनेह छन्हि ताईमें दू मत नहि । एहि बातक विश्लेषण करैत अभियानी यूवा सब  सम्पूर्ण नेपाली सँ एहि तरहें अभियानमे जुटवाक आग्रह करवाक सोंच बनैने छथि–‘सबकियो अपन काज करैत अपना माटिकलेल किछु कऽ सकैत छी । जौँ आहाँ किसान छी सबदिन अपना खेतमे काज करु आ ४÷५ दिनमें एक घण्टाकलेल कोनो दोसर चौरी÷बाधमे टहलि जाऊ आ ककरो खेतक लगाओल बालीमे कोनो प्रकारक रोग या गड़बड़ी देखाइत अछि त सम्बन्धित किसानकेँ सलाह दऽ दियौक । जौँ आँहाँ शिक्षित छी आ अपना कोनो काजमे लागल छी या कर्मचारी छी त अपना ड्यूटीक अतिरिक्त प्रतिदिन÷दूदिनक एक घण्टा नियमित रुपसँ ओतुक्का बच्चाके पढ़ा देल करियौ । एहिं तरहें अपन काजके हर्जा नहिं करैत अपन नियमित जेब खर्चमे कटौति ककऽ अपना धर्तीकलेल बहुत किछु कऽ सकैत छी । जँ हमसब एहि तरहक काज करबैक त विकासक नामपर पाइ हजम करऽबला सबके आँखिमे अवश्य लाज लगतैक आ एकदिन हमरो धर्ती हँसबेटा करतैक ।
 महोत्तरीक यूवाक अभियानक आहाँके नीक लगैय जौं अहुँ एहि अभियानक सहयात्री बनऽ चाहैतछी त जुटि जाऊ आइए सँ आ अहुँ शंकनाद कऽ दिय अपना गाममे वृक्षारोपणक अभियानक संग।
२.सुशान्त झा
मैथिली, मैथिल संस्कृति आ मिथिला राज्य

समाद पर मिथिला आ बिहार सं संबंधित लेख पढि कय ओतय चलै बला विकासपरक गतिविधि के अंदाज लागि पाबैये। इम्हर हमर एहेन मैथिल मित्र के संख्या मे बड तेजी सं बृद्धि भेलय जे बिहार या मिथिला के विकास के बारे मे जानय त चाहैत छथि लेकिन जखन समाद पर मैथिली मे लेख पढ़य कहबनि त दिक्कत भय जाय छन्हि। हुनका मैथिली बाजय त अबै छन्हि लेकिन पढ़य नहि आबै छन्हि। ओ हिंदी बड आराम सं पढ़ लैत छथि लेकिन मैथिली पढ़य मे दिक्कत के वजह सं ओ मैथिली साईट पढ़िते नहि छथि। ई बड्ड पैघ समस्या अछि।

देखल जाय त अमूमन जे कोनो भाषा के अपन लिपि जीवित छैक ओकरा पढ़ैबला के कोनो दिक्कत नहि होईत छैक-कारण जे ओ बच्चे सं ओहि भाषा के ओहि लिपि मे पढ़ै के अभ्यस्त होईत अछि। जेना तमिल, तमिल मे लिखल जाईत अछि, त एकटा औसत अंग्रेजीदां तमिलभाषीयो के ओकरा पढ़ै मे कोनो दिक्कत नहि होईत छैक। लेकिन कल्पना करु कि अगर तमिल के देवनागरी मे लिखल जाई त की होयत ?  ओ आदमी तमिल त बाजि लेत-चूंकि ओ ओकरा अपन माय या परिवार के अन्य सदस्य के मुंह सं सूनि क सिखलक अछि-लेकिनि ओकरा पढ़ै मे बड्ड दिक्कत हेतैक। ओकरा देवनागरी लिपि सेहो सिखय पड़तै। हमर भाषा संगे येह दिक्कत अछि। मैथिली के अपन लिपि त छैक, लेकिन ओ देवनागरी मे लिखल जा रहल अछि-जाहि लिपि मे हम सब सिर्फ हिंदी पढ़ै के आदी छी। अधिकांश मैथिली बजै बला के मैथिली त आबै छन्हि-कियेक त ओ सुनि कय सिखने छथि लेकिन ओ पढ़ि नै सकै छथि, कियेक त पढ़ैके आदत हुनका हिंदी के छन्हि।

ई बात स्वीकार करय मे हमरा कोनो संकोच नहि जे हमर भाषा हिंदी के भाषाई साम्राज्यवाद के शिकार भेल अछि। ई संकट मैथिलिये टा संग नहि, बल्कि हिंदी क्षेत्र के तमाम भाषा जेना अवधी, भोजपुरी, ब्रज, राजस्थानी सबके संगे छै। देखल जाय त भोजपुरी कनी नीक अवस्था मे अछि कारण जे एकरा बाजार सेहो सहयता कय रहल छैक। लेकिन जेना-जेना शहरीकरण बढ़ि रहल अछि देश मे छोट-छोट भाषा आ बोली के स्पेश खत्म भय रहल अछि। देश के एकात्मक स्वरुप के विकास के लेल हिंदी आ अंग्रेजी अनिवार्य बनल जा रहल अछि। हलांकि दक्षिण के प्रांत आ उत्तर मे बंगाल या उड़ीसा अहि स बहुत हद तक मुक्त अछि-ओना संकट ओतहु कम नहि। हमर भाषा मैथिली जनसंख्या के आकार, भौगोलिक स्थिति, प्राचीनता आ व्याकरण के दृष्टिकोण सं कोनो भाषा सं कम नहि लेकिन तैयो हम सब असहाय किये छी-ई एकटा विचारणीय प्रश्न अछि।


हमर दोस्त सब जिनकर जन्म पटना या दिल्ली मे भेलन्हि ओ हिंदी मे बात करैत छथि। हलांकि ओ अपन मां-बाबूजी सं मैथिली बाजि लैत छथि लेकिन अन्य मैथिल भाषी सं ओ हिंदीये मे संवाद करैत छथि। एकर पाछू कोन मानसिकता अछि, कोन कारक एकरा प्रभावित कय रहल अछि, ताहि पर विवेचना आवश्यक।

दोसर बात हीन मानसिकता के सेहो। हम सब अपन संस्कृति के जेना बिसरि गेलहुं अछि। हमरा सब ज्ञान के मतलब अंग्रेजी के जानकारी मानि लेने छी, आ संस्कारित होई के मतलब हिंदी के नीक ज्ञान यानी खड़ी हिंदी के दिल्ली या टीवी के टोन मे बाजै के ज्ञान मानि लेने छी। हमरा अपन प्राचीन परंपरा के ज्ञान सं या त वंचित कयल जा रहल अछि या हम सब खुद अनभिज्ञ भेल जा रहल छी या केयक टा आर्थिक वजह हमरा सबसं अमूल्य समय छीन रहल अछि जे हम सब अपन भाषा या संस्कृति के बारे मे सोची। हमर कैयकटा मैथिल मित्र के ई ज्ञान नहि छन्हि जे सर गंगानाथ झा या अमर नाथ झा के छलाह। हुनका उमेश मिश्र के बारे मे नहि बूझल छन्हि। हुनका सरिसव पाही या बनगाम महिसी के भौगोलिक जानकारी तक नहि छन्हि। हुनका मंडन मिश्र या जनक या मिथिला के प्राचीन विद्रोही विद्रोही परंपरा के बारे मे बिल्कुले पता नहि छन्हि। लोरिक या सलहेस एखन तक यादवे या दुसाध के देवता कियेक छथि ? आ मैथिल के मतलब मैथिल ब्राह्मणे कियेक होईत छैक ? की हम एकात्म मैथिल के रुप मे कोनो प्रश्न के सोचैत छी?  अहू सवाल सं टकरेनाई आवश्यक।

इंटरनेट अहि दिसा मे नीक काज कय रहल अछि। एम्हर कयकटा वेबसाईट पर मैथिली या मिथिला के बारे मे नीक जानकारी आबि रहल अछि। लेकिन की एतब काफी अछि ?



एकटा प्रश्न मिथिला राज्य के निर्माण सं सेहो जुड़ल अछि। मिथिला के इलाका अप्पन दरिद्रता, विशालता, भाषाई विशिष्टता के वजह सं राज्य के दर्जा पाबै के पूरा हकदार अछि, लेकिन की सिर्फ मिथिला राज्य बनि गेला सं हमर भाषा के पूरा विकास भय पाओत? हम एतय राज्य बनि गेला के बाद आर्थिक विकास के उम्मीद त कय सकै छी लेकिन की भाषाई आ सांस्कृतिक विकास भय पाओत ? उत्तराखंड या छत्तीसगढ़ बनि गेला के बादो ओतय के स्थानीय भाषा के की हाल अछि, ई एकटा शोध के विषय भय सकैत अछि। दोसक गप्प, मैथिली के एकरुपता सं जुड़ल अछि। एतय मैथिल भाषी आ ओकर साहित्यकार खुद एकर जिम्मेवार छथि। दरभंगा-मधुबनी के मैथिली के मानक बना कय हम केना पूरा मिथिला के ठीका उठबै के दावा कय सकैत छी ?  एखनो दरभंगा-मधुबनी के भाषाई अहं, सहरसा-पूर्णिया आ मधेपुरा बला के अहि आन्दोलन के शंका के दृष्टि सं देखै पर मजबूर कय रहल अछि। हमर ई माननाई अछि जे मैथिली कतौ के हुए, ओकर मूल रुप मे जाबे तक ओकरा स्वीकार नहि कयल जाओत, मिथिला आ मैथिली आन्दोलन के बहुत फायदा नहि हुअ बला।

दोसर बात फेर लिपि के अछि। की हम मिथिला राज्य बनि गेला के बादो मैथिली के मिथिलाक्षर मे लिखि सकब ? की हम देवनागरी सं मुक्त भय सकब ? की हम राष्ट्र के मुख्यधारा सं टकराई के साहस कय सकब...आ दरभंगा-सहरसा के शहरी वर्ग के मैथिली बाजै आ लिखै के लेल मना या प्रेरित कय सकब-ई लाख टका के प्रश्न। देखल जाए त सांस्कृतिक रुप सं हमर मिथिला, बंगाल के बेसी नजदीक अछि, लेकिन हमर राजनीतीक जुड़ाव हिंदी पट्टी सं स्थापित कय देल गेल अछि। इतिहास के अहि आघात सं मुक्ति कोना भेटत, राज्य निर्माण एकटा कदम त भय सकैत अछि, लेकिन हिंदी के इन्फ्रास्ट्रक्चर हमर जनता के मजबूर कय देने अछि जे हम अपन लेखन या पाठन हिंदी मे करी। हमरा ओकर लत लागि गेल अछि आ हमर भाषा सिर्फ बाजै के भाषा बनि कय रहि गेल अछि। तखन उपाय की अछि ?

मैथिली के बारे मे किछु विज्ञ लोक सं जखन चर्चा होईत अछि त कहैत छथि जे 50 या 60 के दशक मे जते मैथिली के आन्दोलन मजबूत छल ओते आब नहि। सर गंगानाथ झा, या अमरनाथ झा या उमेश मिश्र या हरिमोहन बाबू घनघोर मैथिलवादी छलाह। ओ या त अंग्रेजी मे संवाद करैत छलाह या फेर मैथिली मे। ओ हिंदी के भाषाई साम्राज्यवाद के चीन्ह गेल छलाह- ओ उर्जा एखन कहां देखि रहल छी ?

हमर बहिन कैलिफोर्निया मे रहैत अछि। ओकरा ओतय कयकटा मैथिल टकराईत छथिन्ह जे मैथिलीये मे गप्प करैत छथि। लेकिन ई चेतना भारत मे कहां अछि ? एतय ओ हिंदी कियेक बाजय लगैत छथि ? जे अपनापन ओ अमेरिका मे ताकय चाहैत छथि ओ भारत मे कियेक नहि करैत छथि-एकर कोनो जवाब हमरा नहि सुझाईत अछि।

एम्हर किछु लोग बहुत एलीट भेला के बाद फेर सं अपन रुट सं जुड़ै के कोशिश कय रहल छथि। शायद ओ हॉलीवुड स्टार सबसं प्रेरणा ल रहल होईथि। ओरकुट या फेसबुक पर मिथिला के गामक तस्वीर फेर सं जागि रहल अछि। एकटा महत्वपूर्ण भूमिका मिथिला पेंटिंग के सेहो अछि। लेकिन लेखन या पठन के स्तर पर एखनो लोग मैथिली सं कहां जुड़ि पेला अछि? जाहि भाषा-भाषी के जनसंख्या 2 करोड़ सं ऊपर हुए ओतय कोनो नीक अखबार या पत्रिका कहां देखि रहल छी। तखन त इंटरनेट के धन्यवाद देबाक चाही जे ओ एहि दिसा मे नीक काज कय रहल अछि-कारण जे अहि मे पूंजी कम लगैत छैक।

एकटा उम्मीद ऑडियो-विजुअल माध्म सं अछि लेकिन हमर भाषा ओहू मोर्चा पर भोजपुरी जकां प्रदर्शन नहि कय रहल अछि। हलांकि भोजपुरी के विशाल आबादी आ अंतराष्ट्रीय बाजार ओकरा सहयोग कय रहल छैक लेकिन ओहू सं बेसी महत्वपूर्ण हमरा जनैत ई जे हमर भाषा बेसी क्लासिकल होई के वजह सं अहि मोर्चा पर पिछड़ि रहल अछि। मैथिली भाषा लेखन के परंपरा सं विकसित भेल अछि आ बेसी मर्यादित अछि, जखन की भोजपुरी मे लेखन के परंपरा सं बेसी बाचन के परंपरा छैक। ई क्लासिकल भेनाई हमर भाषा के पोपुलर कल्चर सं काटि कय राखि देने अछि। मिथिला मे संभ्रान्त वर्ग के मैथिली अलग आ आम जन के मैथिली अलग भय गेल छैक। एकर अलावा लेखन के परंपरा होईके कारण एकर लोकगीत आ नाट्य मे एक प्रकारक अश्लीलता या बेवाकपन के बड्ड कमी छैक जे भोजपुरी मे प्रचुर रुप सं छै। ताहि कारणें हमर भाषा मे हाहाकारी रुप सं हिट लोकगीत के कैसेट या फिल्म नहि बनि पबैत अछि। परिणाम ई जे मैथिलियों के दर्शक भोजपुरिये गीत या फिल्म के आनंद बेसी लैत छथि-जे बाजार द्वारा हुनकर बेडरुम तक पहुंचा देल गेल अछि। लोक महुआ चैनल त देखैत छथि लेकिन सौभाग्य मिथिला के बारे मे कतेक लोक के पता छन्हि ? मैथिली के बाजार नहि बनि पायल अछि। इहो प्रश्न विचारणीय।

तखन हमर भाषा के उम्मीद कतय अछि ? की सिर्फ विल पावर आ गार्जियन सबके अतिशय जागरुकताये हमर उम्मीद अछि जे ओ अप्पन बच्चा सबके कम सं मैथिली जरुर सिखाबथु या आओर किछु ?

लगैये हम बेसी निराश भय रहल छी। शायद हमरा एतेक निराश नहि हुअक चाही। जे भाषा हजार साल सं लेखन आ वाचिक परंपरा सं जीवित अछि ओ आगूओ जीवैत रहत। एकर त्राता ओ किछु हजार या लाख लोग नहि छथि जे दरभंगा-पटना या दिल्ली मे आबि क कॉरपोरेट भय गेल छथि-बल्कि ई भाषा करोड़क करोड़ मैथिल भाषी के हृदय मे जीवित अछि जे एखनो कोसी के बाढ़ि आ जयनगर रेलवे लाईन के कात मे पसरल हजारो गाम मे रहैत छथि। हमर ई विवशता अछि जे हमर युवा आबादी, जवान होईते देरी दिल्ली-बंबै भागि जाईत अछि। अबै बला समय मे जखन आर्थिक गतिविधि हमरा इलाका मे पसरत त लोक के पलायन नहि हेतै, लोक अप्पन भाषा मे संवाद करैत रहत। अहि शुभेच्छा के जियबैक लेल हमरा आर्थिक लड़ाई लड़य पड़त। दिल्ली आ पटना के सरकार सं अप्पन हक मांगय पड़त, इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करय पड़त। शायद मिथिला राज्य ओहि दिसा मे एकटा पैघ कदम साबित हुए। कमसं कम मिथिला राज्य के निर्माण के अहि आधार पर जरुर समर्थन करक चाही। आ मैथिल बुद्धिजीवी सबके के अहि आन्दोलन मे अहम भूमिका के निर्वाह करैय पड़तन्हि।

३. पद्य





३.६.गजेन्द्र ठाकुर- चारिटा पद्य

३.७.राजेश मोहन झा  



श्री कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 . मे भेलनि  पिता स्व. पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह। माता स्व. कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज,  समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल  मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि,भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि।साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डा. बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे, डा. विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि  डा. दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |




!!
हे तात !!

ई कातर प्राण, चतुरथीचान -
धरक धरि ध्यान रहय अनुखन ।
ई बेलक गात सजय नवपात
पड़य हे तात, अहींक चरण ।। 1 ।।

मनक सभबात बनय जलजात
कि भऽ बरू जाउ एकातक आक
फड़य सभ मौन मनोरथ फूल
रहय अथबा बनिकऽ मरू खाक ।

करी सभदान, लियऽ भगवान
उपस्थित दीन धथूर क मन ।।
ई कातर प्राण, चतुरथीचान -
धरक धरि ध्यान रहय अनुखन ।। 2 ।।

हे त्रिपुरारि, अहॉक दुआरि,
सुनी दिन राति भिखारि भिखारि
सुनू अबधून ई दास अभूत
ने माड़त आब कही पर चारि ।

हरू सभ दोष, भरू संतोष
करू उद्घोष - ‘‘ई हम्मर जन’’ ।।
ई कातर प्राण, चतुरथीचान -
धरक धरि ध्यान रहय अनुखन ।। 3 ।।
स्वः काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘




!!
झूला !!

झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा ।।
डूबि डूबि श्यामल नीरद मे -
चान उगै छथि आधा ।।
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा ।।

कालिन्दी कूलक कदंब सॅ -
रेशम डोरी लाधा ।।
झूलि रहल मणि खचित मनोहर
झूला एक अबाधा ।।
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा ।।

कंकण ताल खनन खन बँसुरी -
बर कमाल, स्वर साधा
खसली श्याम क कोर उछलिकऽ
सम्हरथि सम्हरथि जा जा ।।
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा ।।

देखि देखि नाँचल ‘‘बुचबा’’
ताथैया - धिक् - धिक् - धा धा ।।
विरह विकल मन विहग लेल ई -
याद भेल अछि व्याधा ।।
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा ।।

१.राजदेव मंडलक ६टा कवि‍ता
राजदेव मंडलक 6टा कवि‍ता-

1  शि‍ष्‍ट-अशि‍ष्‍ट

भीड़ मध्‍य दसो अँगुरी जोड़ैत
टेढ़ भऽ गेल हमर हड्डी
कि‍यो दैत अछि‍- आर्शीवाद
कि‍यो नमस्‍कार
कि‍नको मुँहसँ नि‍कलैत अछि‍
  नहि‍ चीन्‍हलहुँ....‍
तब बि‍धुआ जाइत अछि‍
हमर मुँह
परन्‍तु गोटेक तँ
घुरि‍यो नहि‍ तकैत अछि‍
हमरा जुटल हाथ दि‍शि‍
मन अनोन भऽ जाइत अछि‍
लागैत अछि‍ जेना-
नङटे ठाढ़ छी
आ लोक सभ चला रहल अछि‍
आँखि‍क तीर
ताहि‍ कारणे छोड़ि‍ देलहुँ
हथजोरी करब आ सि‍र झुकाएब
अाब चलि‍ देने छी- सोझहि‍ं
गुम्‍मा बनि‍।

2  ढहैत महल

नहि‍ जोरगर बि‍हाड़ि‍
नहि‍ झि‍ति‍कम्‍प भेल
शायद आधार छल
कमजोर भेल
तेँ ई वि‍श्‍वासक महल
ढनमना कऽ गि‍र पड़ल
खण्‍ड-खण्‍ड भऽ गेल- रँगीन दि‍वार
जेकरा ठाढ़ करबामे
कतेक अमूल्‍य काल-छल नष्‍ट भेल
उतुंग गि‍रि‍ सन-जर्जर भवनकेँ
खसलाक भयंकर शब्‍दसँ
चि‍ड़इ-चुनमुनी उड़ि‍ गेल
बि‍हाड़ि‍ सन लगैछ
उड़ैत धूरा
मध्‍य बनि‍ रहल-नव आकृति‍
ओ सभटा वृति
जेकरा बरि‍सों पहि‍ले
छोड़ि‍-छोड़ि‍
मातल छलहुँ नि‍न्नमे।

3  अश्रुधार

हमरा प्रेयसीक नैनसँ
बहैत रहैत अछि‍
हरक्षण नोरक- नदी
आ ओहि‍ अश्रुजलमे
लोक करैत अछि‍- अवगाहन
केकरो ठण्‍ढ़ा आर केकरो होइत अछि‍
गर्मानुभूति‍
कि‍यो कहैत छथि‍- वाह-वाह
कि‍यो कहैत छथि‍- बड्ड अधलाह
कि‍न्‍तु आन्‍हर-बहीर हमरा संगि‍नीकेँ
नहि‍ छैन्‍हि‍ परवाह
हुनक नोर नि‍:सृत
होइते रहैत अछि‍
कि‍न्‍तु कि‍छु दि‍नसँ ई लादने अछि‍- चुप्‍पी
शाइत सधि‍ गेलन्‍हि‍-नोर
वा कऽ रहल अछि
अक्षय अश्रु संग्रह।

4  नाचैत भूत

कतेक दि‍नसँ ई भूत
नाचि‍ रहल अछि‍
हमरा माथपर
चूसि‍ रहल अछि‍
हमरा शोणि‍तकेँ
भऽ गेलहुँ भूतचट्टू
तइयो नहि‍ छोड़ैत अछि‍ ई नि‍खट्टू
बड़का-बड़का ओझा-गुणी
कएलक प्रयास
कि‍न्‍तु ई नहि‍ पड़ाइत अछि‍
केहेन बेसुरा अछि‍- एकर नाचब
राग-ताल वि‍हीन
लगैत अछि‍-जेना
पीट रहल अछि‍-कि‍यो
फूटल टीनकेँ
  झन-झनाक-झन‍
कुनमुना उठैत अछि‍ हमर मन
एहि‍ भंयकर शब्‍दसँ
करैत अछि‍ दरद
कएकबेर कएलहुँ यत्‍न
भूतकेँ खसेबाक
परन्‍तु खसि‍ पड़ैत छी- अपनहि‍
ई धऽ लेने अछि‍ गहि‍या कऽ
हमरा कपारक केशकेँ
कसने अछि‍ सवारी
तेँ आब हम कऽ रहल छी
शीर्षासन
जँ नहि‍ उतरता ई भूत
तँ कऽ देबैक थकचुन्ना
अपनहि‍ शरीरक भारसँ।

5    माय
5(क)
दोसरोक माय
अछि‍ हमरे माय
तँ कि‍ यौ भाय
अपना मायकेँ बि‍सरि‍ जाइ
जे करौलक अमृत-पान
भेलहुँ जवान देशक शान
ओहि‍ठामसँ ससरि‍ जाइ
मायक सि‍नेहकेँ बि‍सरि‍ जाइ
कि‍ यौ भाय।
(ख)

मैथि‍लीक अछि‍ असीम भंडार
एहि‍ बातकेँ हम सोचि‍ ली
घर भरल हो जखन
दोसरासँ कि‍एक पैंच ली
राखि‍ संतोष करी उपाय
कि‍ यौ भाय।
(ग)

नहि‍ होइ खि‍न्न
नहि‍ लि‍अ पड़ए ऋृण
करू कोनो उपाय
हे मैथि‍ली माय
भऽ जाए हमरो अभ्‍युदय
कि‍ यौ भाय।

6  यत्‍न

हरि‍यर पातक मध्‍य पीयर फल
देखतहिं‍ मन ललचागेल
ओकर सरस स्‍वादक अनुभव
जगा देलक- तृष्‍णाक आि‍ग
मारय लगलहुँ- छड़पनि‍यॉं
करए लगलहुँ- उछल-पूछल
तोड़बाक हेतु
कि‍न्‍तु डारि‍मे हाथ स्‍पर्श भेलासँ पूर्वे
खैंच लैत अछि‍-नीचॉं
टॉंग पकरि‍- धरती
ठाँहि‍ दऽ लगैत अछि‍- चोट
ऍंड़ीमे
यत्‍नपर यत्‍न कऽ रहल छी
परन्‍तु फल नहि‍ तोड़ि‍ पाबैत छी
लगैत अछि‍ जेना
भुकुर-भुकुर तकैत
हमरा वि‍फलतापर
चला रहल हो- व्‍यंग्‍य-बाण ई वृक्ष
लाज नहि‍ होइत छन्‍हि‍- हिनका
हमरे रोपल-पैघ भेलापर
देखा रहल अछि‍- हमरे ठेसी
कि‍न्‍तु बसात अछि‍ नि‍शब्‍द मारने
दऽ रहल अछि‍- पूर्वाभास
उठल जोरगर-आन्‍हड़-बि‍हाड़ि‍
नि‍श्‍चय टूटत-ई फल।


. ज्योति सुनीत चौधरी
जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह अर्चिस्प्रकाशित।
स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता दिवस आयल छल
देशभक्‍तिक अभिव्यक्‍तिक दिन
देशक शहीदकेँ श्रद्धांजली देबक
जकर ऋणी हमसब प्रतिदिन
एक सदीक प्रयासक बाद सफल
साढ़े तीन सए साल रहल पराधीन
वीर वीरांगणा पुरूष स्त्रीक बलिदान
केलक फिरंगीकेँ शक्‍तिविहीन
एक स्वतंत्र प्रजातंत्रक निर्माण भेल
एक-एक तिनकासँ बिन-बिन
सब जनहितक कानून बनल मुदा
ज्ञाता वैह जे छथि उच्चपद पर आसीन
देशक आर्थिक सहायताकेँ भोगैत
उद्योगपति अपन तिजोरी भरैमे लीन
सत्ताक ताकत लेबलेल प्रयासरत
नेता केने श्वेत वर्दीकेँ मर्यादा हीन
स्वयंके शक्‍तिशाली बनेनाइ प्राथमिक
राष्ट्रविकासक स्थान जेना होय सबसँ अंतिम
 प्रकाश प्रेमी, जनकपुर  
 गीत
 सुनैत छी फुलबारीमे प्रेम रस बहैछै
 नित्यौह कली संग भमरा नचैछै ।
    चुमि नचै छै भमरा कली के कोमलता  
मुस्कै छै कली आ निखरै छै सुन्दरता ।।

सिनेहियाकें बाट हम सैदखन तकै छी
प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी

    आउ सिनेहिया जुडा दिय मनकें
    परती अछि अंग भिजा दिय तनकें
    वसन्तक वहार हमर मन तरसाबे
    कोईलीकें कुहकी जिया ललचाबे
    मधुयायल मज्जर नै टिकुला बुमm
    कोषा भेल आम हम डमरस लगै छी

प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी
    साउन सरधुवा अगन लगाबे
                                     रिमझिम बदरीया हमरा सताबे
                                     व्यसक उमंग आब रहलो नै जाइय
                                     प्रेमक अगन आब सहलो नै जाइय
                                     भमरा हमर अहाँ कत बैसल छी
   
                                     प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी

    प्रेम राग रस सँ गगरी भरल अछि
    बांटलाए सैदखन जिया तरसल अछि
    आबि घनश्याम प्रित सँ नहा दिय
    तृप्त होइ से रस हमर पिया दिय
    ब्याकुलता सहेजने पिपहिया बनल छि

 प्रेम रस पिबएला कछमछ करै छी

किशन कारीग़र
 संवाददाता, आकाशवाणी दिल्ली

परिचय:- जन्म- 1983ई0 कलकता में
,मूल नाम-कृष्ण कुमार राय किशन। मूल निवासी-ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी बिहार। हिंदीमे किशन नादान आओर मैथिलीमे किशन कारीग़रक नामसॅं लेखन। हिंदी आ मैथिलीमे लिखल नाटक, आकाशवाणीसॅं प्रसारित एवं लघु कथा, कविता, राजनीतिक लेख प्रकाशित। वर्तमानमे आकशवाणी दिल्लीमे संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत।शिक्षाः-एम फिल पत्रकारिता एवं बी एड कुरूक्षे़त्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।
 

।स्वतंत्रता दिवस पर एकटा विशेष।


बीर जबान


मातृभूमीक रक्षा लेल
शहीद भऽ जाइत छथि बीर जबान
समहारने छथि ओ देशक सीमान
नमन करैत अछी
कशन ,अहॉ छी बीर जबान।

मरब की जीयब
तेकर नहि रहैत छनि हुनका धियान
मुदा
, देशक रक्षा लेल ओ सदखनि
न्योछाबर करैत छथि अपन जान।

सैनिक छथि ओ इन्सान
देशक दुशमन पर रखैत छथि धियान
आतंकवादीक छक्का छोड़ा दैत छैक
परमवीर छथि
, हिन्दुस्तानक बीर जबान।

महान छथि ओ बीर जबान
, देशक खातिर
जे हॅंसैत-हॅंसैत देलथिहिन अपन बलिदान
भारतवासी गर्व करैत अछि अहॉ पर
नहि बिसरत कहियो अहॉक त्याग आओर बलिदान।

सीमा पार सॅं
, केलक आतंकी हमला
कऽ देलियै आतंक के मटियामेट अहॉं
भऽ गेलहुॅं अपने लहु-लुहान मुदा
आतंक सॅं बचेलहुॅं सभहक जान

कारगील सॅ कूपवाड़ा तक
आतंकवादी सॅं लैत छी अहॉं टक्कर
अहॉंक बीरता देखी कऽ
अबैत छैक ओकरा चक्कर।

बीर जबान यौ बीर जबान
समहारने छी अहॉं देशक सीमान
कोना कऽ हेतै देशक रक्षा
सदखनि अहॉ रहैत छी हरान।
 

 गजेन्द्र ठाकुर
पिता-स्वर्गीय कृपानन्द ठाकुर, माता-श्रीमती लक्ष्मी ठाकुर, जन्म-स्थान-भागलपुर ३० मार्च १९७१ ई., मूल-गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी।

लेखन: कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्ड- खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना, खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि), खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर), खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ), खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण), खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन ), खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नामसँ।

मैथिली-अंग्रेजीअंग्रेजी-मैथिली शब्दकोशक ऑन लाइन आ प्रिंट संस्करणक सम्मिलित रूपेँ निर्माण। पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यंतरण "जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.)-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध" नामसँ।

मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएक टा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएक टा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद।

उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद १.अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ), २.कोंकणी, ३.कन्नड़ आ ४.संस्कृतमे कएल गेल अछि; आ एहि उपन्यासक अनुवाद ५.मराठी आ ६.तुलुमे कएल जा रहल अछि, संगहि एहि उपन्यास सहस्रबाढ़निक मूल मैथिलीक ब्रेल संस्करण (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक) सेहो उपलब्ध अछि।

कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे।

अंतर्जाल लेल तिरहुता आ कैथी यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।
शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२ खण्ड-८ (प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग, २.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास स॒हस्र॑ शीर्षा॒ , ३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह स॑हस्रजित् ,४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह शब्दशास्त्रम् ,५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक उल्कामुख ,६. त्वञ्चाहञ्च असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध नाराश‍ं॒सी , ७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक- जलोदीप, ८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह- बाङक बङौरा , ९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह- अक्षरमुष्टिका ।
सम्पादन: अन्तर्जालपर  विदेह ई-पत्रिका विदेहई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ क सम्पादक  जे आब प्रिंटमे (देवनागरी आ तिरहुतामे) सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि- विदेह: सदेह:१:२:३:४ (देवनागरी आ तिरहुता)
ई-पत्र संकेत- ggajendra@gmail.com

१.नजरि लागि जाइ छै
माए कहै छथि
जे नजरि लागि जाइ छै
बेटाकेँ देखि जे लागैए ओ आइ सुन्दर
साँझमे छाह पड़ि जाइ छै ओकर मुँहपर
से तँ सत्ते! हमरा सन ककर बेटा
मुदा मोनमे ई अबिते नजरि लागि जाइ छै

कोनो काज शुरू करैए
मारिते रास काज एक्के बेर
खतम होएबा धरि सुधि नहि रहै छै
कियो कहैए जे कतेक नीक अछि अहाँक बेटा
तँ माएक करेज धकसँ रहि जाइत छै
करेज बैसऽ लगै छै
की करै छै?
कोन सुन्दर छै?
मुदा कहैत रहै छथि माए
जे नजरि लागि जाइ छै
बाते-बातपर हमर बेटाकेँ

कनिञा कहैत छथि सासुकेँ
माँ अहाँक बेटा घबराइ बला नहि अछि
दुष्टक नजरि नहि लगै छै अहाँक बेटाकेँ

माए मुदा शनि दिन, सरिसौ-तोरी आ मेरचाइ जड़बैत छथि
सुरसुरी लागि जेतै ओकरा तँ बुझब जे नजरि नञि लागल छै
आ सुरसुरी जे नञि लागतै तँ बुझब जे नजरि लागि जाइ छै

कनेक काल सुरसुरी नञि लगलापर माए होइत छथि चिन्तित
देखियौ ने हमरा बेटाकेँ नजरि लागि छै छोटो-छोट गपपर..
नजरि लागि जाइ छै...बाते-बातपर हमर बेटाकेँ...
मुदा तखने छिकैत छन्हि बेटा, ओकरा सुरसुरी लागि जाइ छै
माएक मुँहपर अबै छन्हि मुस्की
सरिसौ-तोरी आ मेरचाइ सरबामे कनेक आर दऽ दै छथि...
कहलियन्हि ने माँ दुष्टक नजरि नहि लगै छै अहाँक बेटाकेँ

२.ठाढ़ लत्तीकेँ पढ़ैत छी

पानक जड़ि लग गारल खरही देखैत छी
आ ओहिपर ठाढ़ लत्तीकेँ पढ़ैत छी
राड़ी घासक टुकड़ी आ काइससँ बान्हल हमर उल्लास
सरपत घासक टुकड़ीपर चढ़ि गेल लत्ती जेकाँ
लत्ती जेकाँ हम अपनाकेँ पबैत छी

बन्हकासँ बान्हल पानक ढोल बनि गेल छी
मोड़ल पानकेँ सीकीसँ,
बाँसक पातर शलाकासँ गाँथल अछि
बेल निकलल शाखा कनार,
इकरीसँ गछउठौनी
पानक छर्रा लत्ती, गीरहसँ युक्त छर्रा बेल बनि गेल छी

लत्तीक छीपकेँ काटब, छपटा करब
जड़ि लगक चारि-पाँचटा पानक पात माने घासन जेकाँ
ऊपर चारि-पाँचटा पानक पात माने कूट-खूट कचलेवारि होइत
छीप परक पात मुड़वारि भऽ गेल छी

पात तोड़बाकाल कूटक एक-दूटा पात तज्जीबला कठोर पात
किछु काल लेल छोड़ि देल
जड़िसँ छीप धरि दुपन्ना आ लेवार सभ
झलमा बीमारी भेने पान कड़ू भेल
फुट्टा बीमारी भेने गलल पात सन हम असकरे घुमैत छी
तुबैत, तेलगगरा भेने आ झरकैत; बढ़ती भेने अग्रभाग झरैत
पातकेँ फेरफार कऽ मृत्युकेँ टारैत छी किछु काल धरि, बहुती!

चौठैय्या, ढोली, लेसो, भीड़ा बनि गेल छी
पातमे बान्हल भीड़ी, से पतौरा जेकाँ तैयार भेल कल्लामे जएबा लेल धड़फड़ाइत
डंटी लागल सौँस छुट्टा पान सन पूजा लेल निहुछल
तबक सन चमकैत पन्नीमे ठूसल बजारक समान बनि गेल छी
आ तखन
पानक जड़ि लग गारल खरही देखैत छी
आ ओहिपर ठाढ़ लत्तीकेँ पढ़ैत छी


३.हमर आकांक्षाक अग्नि

आँचब आ प्रज्वलित राखब, हम्हरब आगिकेँ
खोरनाठब मुदा, तखन आगि खसत पातक ढेरीपर
आ पसाही लागत
हमर आकांक्षाक अग्निकेँ

मखान उठबैत छलहुँ पेलनीसँ
गूड़ीसँ चोंइटा हटबैत छलहुँ
बाङक बङौरा, सुखाएल अछि केहन ई बङठी
औंटि कऽ निकाली बङोर,
तुमब आ फाहाक पृथक होएब, धुनकीसँ धूनैत छलहुँ
लारनिसँ ताँतिपर कऽ आघात, मखान उठबैत रही पेलनीसँ
गूड़ीसँ चोंइटा हटबैत रही, रही टकुरी कटैत, मड़िएबैत छिन्नाकेँ
पागैत सूत, छल ई हमर आकांक्षाक अग्नि

ननगिलाट पहिरने बूढ़ी, सोझाँ नन्हसुतमे मलकिनी
कलबत्तू पइसा कऽ गाँथैत आभूषण मोन अछि
किरमिची चानीक पानि चढ़ल, मुदा वैह ताम
आब हमर आकांक्षाक अग्नि माँगैत अछि
पाग नहि चाही हमरा मौड़
शंकुक आकारक पैघ,
कोढ़िलायुक्त पागक अग्रभागक पेंच नहि
आब हमर आकांक्षाक अग्नि माँगैत अछि
चिरतन, ठिकरी, लहेरिया आ जंगलाती छाप
आब हमर आकांक्षाक अग्नि माँगैत अछि
पटोर, गुलबदना, नीलाम्बरी, सोइरीक नूआ
कलफ लगा कए कड़गर कए, भेलासँ दऽ चेन्हासी
तूरक फाहा, पोखरिया, लहेरिया, बदामी, चानपंखा
बेराएब आ सुइया पैसाएब अहाँ
हमर आकांक्षाक अग्निकेँ
लखिया भेड़ जेकाँ आगाँ-आगाँ
बथनिञाक बथनाएब अबैत काल, आ खभाएब जाइत काल
बीसटा भेड़क लेहड़, एक सए भेड़क बाग
चारि-पाँच सए भेड़क गँहेड़,
भेड़केँ खउरब, गुलठिआइत तूर
सिऐन अधलाह, खुटिया मिरजइ ओछ
हमर आकांक्षाक अग्नि करत
ई पुरान लोहझाम, लोहङ्गरकेँ
भाथीमे पैसैत वायु जखन आएत तखन
भाथी सालब आ प्रज्वलित करब अग्नि
लऽ कलम छेनी, चकरसानपर पिजबैत सरौता
हमर आकांक्षाक अग्नि सुनैत अछि
कबिराहाक कनसीपर उठैत धुन
देखैत अछि, छिलुआ पहलदार बासन
आ तखन हम
आघातसँ मठारब पित्तरि, कलगैञा लोटा
निरंजनीक दीप, जलधरी
फेर दीयठिमे राखि दीप
पहिरि टुमटाम गहना, गोबरियाव सोन, जोकठी आ दसकलम
चाँपकली पहिरने ओ लेने छलि हलुमानी नातीक लेल
पथरौटी पहिरि हम, पवित्री जनउमे बान्हि
श्राद्धक काञ्चनपुरुष जेकाँ
आकांक्षाक अग्नि हृदयमे लऽ
कनसारीक भुज्जा जेकाँ
दाबापर उझकुन ओहिपर राखल बासनमे
चुल्हाक पौरी कूरामे धिपाओल बालु दऽ
भुजनाठीसँ लाड़ैत छी
अपन आकांक्षाक अग्नि
मकइक मखानी
सोन्हगर आ झूर नीक स्वाद
मुदा आब अतिखाइन होइत अछि
हमर आकांक्षाक अग्नि

अदहन देल पानि आँच दए तारब
उसीनब कूटि कऽ मुरहीक चाउर बनाएब
नोन-पानिसँ मोअब कोड़ाइ, दालिक खोंइचा

बिनु जमल गुड़ छाल्हीक पातर ममुरी
परतपरसँ काछि कऽ निकालब मलीदा
तेबासि नीक , मुदा बसियानि
मोटगर भैसाठ आ पातर तुर्री दही
आकांक्षाक अग्निकेँ जरैत रहए देब
ओहिना जेना कोइयासँ तेल निकालैत छी।
मोहब आ दऽ आएब तेलिहानी
तेलीकेँ दऽ बहतौनी, घानी लगाएब आ निकलब धेनुआर घानी
घानी निघरब, तेलहनक अवशेष खरी
उज्जर रंगक रेह
नोनथरा, कोठीसँ निकलल
पनारसँ चुबैत पानि, अवशिष्ट सिट्ठी ढेर नोनफर
काछल फेन खारीसँ खरिआ नोन
हमर आकांक्षाक अग्नि सुच्चा
फेर अवशिष्ट पछाड़ी, दोसर खेपमे काही शोरा
आ पकवा नोन, तेसर खेप तेलहा शोरा
आ नीमक अवशिष्ट जराठी
जराठी आ सिट्ठीक मिश्रण
बेचुआ, रौदमे सुखा कऽ जरुआ शोरा-आबी शोरा
कच्चा शोरा परिशुद्ध भऽ कलमी शोरा
नोन- रामरस, कम नोनगर- मधनोन
कटियामे मधु राखि
चिड़ै मारबा लेल नर-सर
नाल गुआमे पैसल, नरक उपरका सिर आ नीचाँ भारू
सरमे कमची सभ, पकड़बा लेल चिड़ै कम्पा
मन्तुर पढ़ि छत्ता लग जाएब,
तुनकारी दऽ बिज्जीक करैत अछि शिकार
ई हमर आकांक्षाक अग्नि
आँचब आ प्रज्वलित राखब
मुदा हम्हरब आगिकेँ
खोरनाठब मुदा
आगिक खसब पातक ढेरीपर
आ पसाही लागत
मुदा ई
हमर आकांक्षाक अग्निकेँ तँ जरैत रहए देत

४. उजाहिमे उपलाइत हम आ माँछ

ई नम्माधग्गी
बिड़इमे होइत मछहर
डकही पोखरिमे भऽ गेल बन्न,
डकही पोखरि मखानक पातसँ छाड़ल अछि आब
मुदा एतऽ बिड़इमे होइत अछि मछहर
कच्छाछोप, हेलैत कबइ
काही घुमैत
कौआठुट्ठी गाछक फड़ लग हम ठाढ़
कबइजल्ला लग
आ हम आबि जाइत छी
खींचि फिरचइ पकड़ि कऽ
छी जाल खिरबैत
आ फेर हम घुरमऽ लगै छी
फेर टापी छापि,
ठाढ़ भऽ जाइ छी
छै उजाहिमे उपलाइत माँछ
आ फेर हम जाल छोड़ि दैत छी
सहदसँ माछक करै छी शिकार
आ आब
अछि इछाइन चारू कात
जाल खिरबैत
घुरमा लागि जाइत अछि
सोचनी पैसि जाइत अछि
इछाइन गन्ध बनि जाइत अछि नियति
जीवनक प्रवृत्ति
माँछ संगे उपलाय लगैत छी
लगैए जाल खिरबैत हमरा बान्हि कियो रहल अछि
लगैए शहद लेने छातीमे कियो ढुकल जा रहल अछि।
सोचनी पैसि जाइत अछि
इछाइन गन्ध बनि जाएत की हमर नियति
हमर जीवनक प्रवृत्ति
ई नम्माधग्गी


राजेश मोहन झा

!! आजुक लोक !!

मानव छथि मानवता नहि छनि
,
कोना चलत जगतक दुहू चक्का
?

बूझि नहि पडैए कखनो - कखनो
,
घीचै छथि वा दै छथि धक्का ।।

झूठ प्रपंचक खेल सगरो दिन
,
अपराधक भाभट बढ़ा रहल छथि ।

अपने हाथे तन्मयता सॅ
,
प्रियंजनक चचरी सजा रहल छथि ।ं

चिड़ै चिन्त छथि चिलका उड़ि क
,
प्रकृति केॅ ललकारि रहल छथि ।

मुदा मनुक्ख निश्चेतन भ
,
विनाश लीला केॅ हकारि रहल छथि ।।

कनैत आत्मा कोने - कोने मे
,
अचला अवला वनि सिसकि रहल छथि ।

कहै छथि द्रुतगामी वनि गेलौं
,
जुनि पुछू सभ घुसकि रहल छथि ।।

आवहु जागू सचेतन वनि क
,
नहि भेल विलम्व एहि सत्य केॅ जानू ।

बढ़ू कने चमत्कार करू औ
,
वसुधैव कुटुम्ब छथि एकरा मानू ।।
शिव कुमार झा‘‘टिल्लू‘‘,
नाम : शिव कुमार झा, पिताक नाम: स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नाम: स्व. चन्द्रकला देवी, जन्म तिथि : 11-12-1973, शिक्षा : स्नातक (प्रतिष्ठा), जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम + पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101, संप्रति : प्रबंधक, संग्रहण, जे. एम. ए. स्टोर्स लि., मेन रोड, बिस्टुपुर, जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि : वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार- प्रसार हेतु डा. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न।

!!
गीत !!

पिया निर्मोही खनकि गेल कंगना,
विपुल मृगी नयना,
किएक अहॉ बनलौ औ -
प्रवासी सजना ।।

आगि भेल शीतल उधिया रहल पानि,
सुवासित जीवन मे उफनि गेल ग्लानि,
सुन्न प्रेयसीक सिनेह हृदय अंगना,
विपुल मृगी नयना ...................... ।।

उमड़ि रहल विरह प्रखर आतप समान,
मुरूझायल शुष्क अधर मरूघट मे प्राण,
धॅसल बान्ह मर्यादाक सजना,
विपुल मृगी नयना ............................ ।।

क्षणहि मे जीवन अभिशापित वनल,
सूखि गेल नेह पुष्प नोर सॅ भरल,
आव कहि ने सकव हम सजना
विपुल मृगी नयना .............................. ।।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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