भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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३. - जगदीश प्रसाद मंडल- कथाक शेष- अर्द्धागिनी ४. - जगदीश प्रसाद मंडल- कथा- अतहतह
१
—डा. राजेन्द्र विमल
साहित्य–सङ्गम गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक सुर–ताल
गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि नेपालीय मैथिली गीत–संसारक प्रायः सभसँ मूल्यवान उपलब्धिथिकाह— विविधतामय विषयक दृष्टिएँ, संख्यात्मकताक दृष्टिएँ, उच्च काव्यमूल्यकदृष्टिएँ, विविध शिल्प–प्रयोगक दृष्टिएँ, विविध अलङ्कार, गुण, रस, भाषिक प्रयोगकदृष्टिएँ, शैलीगत विविधताक दृष्टिएँ, सामाजिक सचेतताक दृष्टिएँ आ सभसँ बढ़िकऽमस्तिष्क आ हृदयक सुन्दर सहयात्राक दृष्टिएँ । हिनक गीतसङ्ग्रह ‘कोन सुर सजाबी ?’ कगीतसभमे प्रेमतत्व, व्यङ्ग्यतत्व, वेदनातत्व, नवरसतत्व, उद्बोधनतत्व, आख्यायिका–तत्व, सामाजिक–तत्व, धार्मिक–तत्व, राजनीतिक–तत्व, सांस्कृतिक–तत्व आदि विविध तत्व मिलाकऽजे कलात्मक रूपाकृति गढ़ल गेल अछि से विलक्षण थिक । हमरा आन गीतकारक किछु गीतक किछुपंक्ति भीतरधरि छूबैत अछि, मुदा धीरेन्द्रक बहुतो गीतक प्रायः सभ पंक्ति मर्मकेँबेधि जाइत अछि । जीवन–जगतक यथार्थ शक्ति आ सम्भावनाक प्रति अदम्य निष्ठा एवं सजगतासँपोनगल आन्तरिक आ वाह्य सौन्दर्य जखन सुरमे सजैत अछि तँ जेना चेतनाक लहरिकेँ लयबद्धकऽ लैत अछि । जीवनक कियारीमे फुलाइछ सत्य आ सौन्दर्यक फूल जे प्रत्येक रूप–रङ्गमेमङ्गलकारी थिक । परिवेशक यथार्थबोध हेतु आवश्यक वैज्ञानिक दृष्टिक विरोधमे ठाढ़ भेलकुण्ठित सौन्दर्यबोधसँ बेसी तकर साहचर्यमे परिमार्जित आ विकसित सौन्दर्य–चेतनाककारणेँ गीतकारक सहज प्रेमोच्छ्वासो कोनो अदृश्य चन्द्रलोकसँ आएल नहि, हृदय किंवाधरतीसँ उपजल लगैछ । कविमे सौन्दर्य–चेतनाक इन्द्रधनुषी रङ्ग यत्र–तत्र–सर्वत्र छलकि उठल अछि से सत्य, मुदा सौन्दर्यक रसग्राह्यता मिथिलाक धरती आ संस्कृतिक प्रति सहज संस्कारक रूपमेविकसित मधुर अनुरागसँ अभिप्रेरित अछि । बहुजन–रञ्जनक सङ्ग बहुजन–मङ्गलक भाव हिनकअनेक गीतक संवेदनाकेँ समसामयिक आ सतत गतिशील सत्यक संवाहक बना देने अछि, मुदा तौँ ओदेश–कालक अन्तर्सत्यसँ आबद्ध अछि । स्पष्ट कही तँ हिनक समकालीनता परिवेशजन्यअन्तरङ्ग क्षणक अभिव्यक्ति थिक । हिनक भाषा, भङ्गिमा, भावबोध, छन्द, लयमे एतेकनवीनता आ ताजापन एहि दोआरे बूझि पड़ैछ जे ओ सद्यःजात कमलक फूलसन टटका अछि, जकर जड़िभने परम्परामे होइक, मुदा प्रस्फुटन नितान्त मौलिक छैक । धीरेन्द्र प्रेमर्षिक गीतसभकेँ निम्नलिखित कोटिमे वर्गीकृत कएल जा सकैछ— १) श्रम, सङ्घर्ष, आस्थाक गीत २) मानवीय सम्बन्ध आ संवेदनाक गीत ३) सौन्दर्य–चेतना आ प्रीतिकगीत ४) चिन्तनपरक दार्शनिक गीत ५) माटिपानि आ सामाजिक राजनीतिक सचेतताक गीत । १. श्रम, सङ्घर्ष, आ आस्थाक गीत ः जीवनक अरण्यमे काँट छैक तँ फूलो छैक, पतझड़ छैक तँबसन्तो छैक, ग्रीष्म–प्रदाह छैक तँ छाहरिक शीतलतो छैक । जीवनकेँ स्वीकार करबाक लेलओकर सम्पूर्ण यथार्थकेँ स्वीकार कऽ उत्साहक सङ्ग जीबऽ पड़तैक । विडम्बनापूर्ण जीवनकई स्वीकृति आ जिजीविषा गीतकारकेँ काँटक बीच फूल खोजबाक प्रेरणा आ उत्साह दैत छन्हि— चारि दिनक ई जीवन–धाम हरखक पल ताहूमे बाम कलिका खोँटिकऽ फेकैत हम ताकि रहल छी फूलक गाम ई धरती, एकर उत्सव आ शोक, स्मिति–अश्रु, जय–पराजय प्राणवन्तताक प्रमाण थिकै, तेँकोनो कल्पना–कुहरमे भटकैत सत्य–सूर्यक खोज करब बतहपनी छैक । सृष्टिक गर्भसँ जनमलसत्य मात्र गीतकारकेँ स्वीकार छन्हि— सत्यक जननी सृष्टि तमाम कर्मक सिञ्चन हम्मर काम..... प्रेमर्षि श्रमहीन जीवनकेँ जिनगीक भ्रम मानैत छथि आ शोषणपर आधारित जीवन–व्यवस्थाकविरुद्ध छाती तानि ठाढ़ भऽ जाइत छथि । शोषणक विरुद्ध केहन घृणा छन्हि प्रेमर्षिकमोनमे— गामक गाम उजाड़ि बनाओल महल–अटारी नइ चाही देशक खून आ गरीबक आहसँ भरल बखाड़ी नइ चाही लाखोक धूर निलामीक जनमल एक जिमदारी नइ चाही.....” एहन अवस्थामे ओ कहैत छथि— हमरा अपन गरीबियो बरदान लगैए..... गरीबक जिनगीक केहन मार्मिक शब्दचित्र प्रस्तुत कएने छथि प्रेमर्षि— पीठकेँ झँपैत छी तँ माथा उघार माथकेँ झँपैत छी तँ पीठहि उघार चूनि–चूनि खढ़पात खोँता बनाबी चुबिते रहि जाए तैयो जिनगीक चार...... २. मानवीय सम्बन्ध आ संवेदनाक गीत ः मनुक्ख अनेक स्तरपर एक–दोसराक रागतन्तुसँबन्हाएल अछि । नितान्त वैयक्तिक स्तरपर, पारिवारिक स्तरपर, सामाजिक स्तरपर, राष्ट्रिय स्तरपर, अन्तर्राष्ट्रिय स्तरपर, ब्रह्माण्डीय स्तरपर । राग–विरागक ई खेलचिरन्तन थिक, सार्वभौम थिक । जाधरि मनुक्ख जीवित अछि, नेह–छोहक एहि रेशमी बन्धनकेँतोड़ि फेकब ओकरा हेतु दुःसाध्य थिकै । एहि रागात्मकताकेँ प्रेमर्षि जीवनक स्पन्दन, प्राणज्योति, अपरिहार्य अङ्ग–रङ्ग मानैत छथि— बीस बरखा टेरलिङिया कुरता तैपर साटल चेफरी छै शीतलहरीमे ओक्कर ओढ़ना पोतीक फेकल केथरी छै सोना गढ़िकऽ इएह फल पौलक अपने बनि गेल ताम–सन वाह बुढ़बा तैयो बाजैए हम्मर बेटा राम–सन.... अद्वितीय !! ई सम्बन्ध–बन्ध अपराजेय आ अमर रहए, भगवान !! ३. सौन्दर्य–चेतना आ प्रीतिक गीत ः कोनो राजनीतिक वादक झण्डातर बैसि गीतकेँविज्ञापन वा प्रचारक माध्यम बनबैत अथवा अनुभवशून्य विषयपर शब्दक कलाबाजी देखबैतजीवानुभव वा जीवनसत्यक दिससँ शुतुरमुर्गी शैलीमे आँखि मुननिहार गीतकार नहि थिकाहप्रेमर्षि । तेँ ओजस्वी भावनाक हथौड़ासँ शब्दकेँ लोहारजकाँ पीटि–पीटि सङ्घर्षक हेतुफरसा आ गड़ाँस बनबैत प्रेमर्षि जखन छेनीसँ पदावलीकेँ तरासैत सोनारजकाँ रचि–रचिकऽपे्रयसीक हेतु कोमल कण्ठहार बनबैत छथि तँ हमरा कृष्णक कुरुक्षेत्रक योद्धारूप आवृन्दावनक रासलीला रचबैत प्रेमीरूप एक्कहिबेर मोन पड़ि जाइत अछि । श्रृङ्गारक दुनू भेद— संयोग आ विप्रलम्भक मोहक चित्रण हिनक गीतमे भेटैत अछि— प्रेमक घटसँ जते निकाली जलक हुअए ने अन्त हमर अहाँकेर प्रेमक चिड़िया भऽ गेल बेस उड़न्त....... ४. चिन्तनपरक किंवा दार्शनिक मुद्राक गीत ः चिन्तन जखन भावनाक तलपर आबि गाबऽ लगैछतँ उच्च कोटिक गीतक जन्म होइत छैक । प्रेमर्षिक किछु गीतमे चिन्तनक जे चिनगी दहकैतअछि से जिनगीक चरम सत्यधरि लऽ जाइत अछि— जीवन थिक मेला दू दिनमा ई ईष्र्या–द्वेष किए प्राणी आखिरमे देह गलिए जएतह बस रहि जएतह अमृत वाणी..... वन–वन बौआइत अछि कस्तूरीक टोहमे मृग जहिना सदिखन औनाइत अछि माया आ मोहमे मन तहिना..... ५. माटि–पानि आ सामाजिक–राजनीतिक सचेतताक गीत ः धीरेन्द्र प्रेमर्षिक गीतमे जयदेवककृत्रिम कलात्मकता नहि, विद्यापति गीतक सहज कलामय तन्मयता अछि । तेँ ई गीतसभमिथिलाक सुगन्धसँ महमह करैत अछि । मिथिलाकेर व्यथा दहेज, नवका साल पुरने हाल, जनतन्त्रक बहाली, जय हो पेट धरमवीर, हे देखियौ हमर समाजमे, ओ बमभोला, सत्ताक माछ, देशी मुर्गा बिलाइती बोली, जागरण गीत एहि कोटिक गीत थिक । एहि गीतसभमे अत्यन्ततीक्ष्ण व्यङ्ग्य अछि— बम भोला छोडूÞभङगोला जँ पियब अछि अति आवश्यक पीबू कोकाकोला..... मुर्गा देलक बाङ दुलरिया दारू ला...... पहिने डबरा–खत्ता घुमी भेटए बस गरचुन्नी बाँटैत–चुटैत पबैत छलियै एक्कहि–दूटा कुन्नी एहिबेर पोखरिक जीरा भेटल सटि गेल ठोरमे आब तँ मोन परकि गेल हम्मर माछक झोरमे........... दूर्गापूजा डी.पी. बनि गेल भरदुतिया राखीतर दबि गेल जुड़शीतल शीतलहरीक मारल हैप्पी न्यू इयर बस फबि गेल बम फटाक फुलझड़ीक बीचमे डूबि गेल हुक्का लोली देशी मुर्गा बिलायती बोली..... एहि सभ गीतक उचित मूल्याङ्कन मैथिल संस्कृतिक गवाक्षसँ निरखिकऽ करब बेसी उचित होएत। कारण हुनक गीत–संसार सोरसँ पोरधरि मैथिल संस्कृतिक रङ्गमे सराबोर अछि । एत्तऽ धरिजे उपमोसभ खाँटी मैथिल भूमि, जीवन, समाज वा संस्कृतिसँ लेल गेल अछि— भेल प्रेमक रौदी एहि जगमे तेँ धधकए सभतरि दावानल जुड़शीतलक जल–थपकीसन बरिसाउ प्रिये कने प्रेमक जल....... सुच्चा मैथिल गीत थिक— अछिञ्जल–सन पवित्र ! एकटा पाँती देखल जाए— भौजीकेँ बस कोबरे भाबनि मुदा दियरसभ आबि सताबनि भैया बहाने काल भगाबथि बारहमासा गाबि सुनाबथि......... गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मादे टिप्पणी दैत नेपाल राजकीय प्रज्ञा–प्रतिष्ठानकउपकुलपति, नेपाली समीक्षाशास्त्रक युगपुरुष, प्रकाण्ड विद्वान प्रा.डा. वासुदेवत्रिपाठी उचिते लिखलैन्हि अछि— “करीब सैँतीसे वर्ष (तत्कालीन) क लहलहाइत उमेरमेअनेक विधा आ क्षेत्रमे रहल हुनक साधना आ तकर विस्तृत आयामक अवलोकन कएलापरहमरालोकनिक मोनमे सहजहिँ महान नेपाली साहित्य–स्रष्टा मोतीराम भट्टक स्मरण भऽ अबैछ।” मैथिलीक एहि मोतीरामपर मिथिला–मैथिलीक इतिहास सर्वदा गर्व करत से हमर अटल धारणाथिक ।
२.
प्रो. वीणा ठाकुर
अध्यक्ष, मैथिली विभाग
ल.ना.मि.िवश्व विद्यालय दरभंगा।
जिनगीक जीत उपन्यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर
श्री जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास ‘जिनगीक जीत’ पढ़वाक अवसर भेटल। उपन्यास पढ़ि बुझाएल जे ई उपन्यास तँ वास्तवमे मिथिलाक संस्कृतिक जीत थिक, जीवनक जीत थिक, संस्कारक जीत थिक। जौं एक शब्दमे कहल जाए तँ यएह कहल जा सकैत अछि जे ई ‘लोक’क जीत थिक। जखनहि लोकक जीत थिक तँ स्वभाविक अछि जे एहि उपन्यासक मध्य लोक साहित्यक सुगन्ध चतुर्दिक पसरल हएत।
उपन्यासक कथा मिथिलाक एकटा गाम कल्याणपुरक थिक, जतए जीविकाक मुख्य साधन थिक कृषि, जतए आधुनिक वैज्ञानिक युगक प्रकाश नहि पहुँचल अछि। जतए उच्चतम शिक्षाक लक्ष्य थिक बी.ए. पास करब आओर जतए एकैसम शताब्दी एखन धरि नहि आएल अछि आओर नहि आएल अछि शाइनिंग इंडियाक प्रकाश। उपन्यासकार प्रमुख पात्र छथि नायक बचेलाल, नायिका रूमा, मुख्य पात्र छथि बचेलालक माए सुमित्रा, अछेलाल, अछेलालक पत्नी मखनी इत्यादि। कथा अछि बचेलालक द्वन्द्व एवं द्वन्द्वसँ उपजल अवसादक एवं जीवन संघर्षक, सुमित्राक मिथिलाक नारीक गरिमाक अछेलालक कर्त्तव्य निष्ठताक, संगहि मानवीय संघर्षक, द्वन्द्वक आओर भविष्यक आशा-आकांक्षाक। नायकक मानसिक द्वन्द्व जौं जीवनक सार्थकता लेल अछि तँ नायकक माए सुमिताक दृष्टि स्पष्ट मानवीय गरिमासँ युक्त अछि। नायकसँ एक डेग आगाँ बढ़ि द्वन्द्वसँ मुक्तिक वाद देखबैत प्रकाश पुंज मध्य अछि। नायकक पत्नी रूमाक चरित्रपर प्रकाश नहि देल गेल अछि, ताहि कारणे रूमा उपन्यास मध्य गौण पात्र भऽ गेल छथि।
कोनहुँ समाजक जातीय मनीषा, सामुदायिक चेतना, जातीय बोध मानवीय मूल्य आओर जीवन दर्शनक विविध पक्षमे अवगत होएवा लेल ओकर लोककेँ बुझब आवश्यक। उपन्यासकार एहि उपन्यास मध्य अत्यन्त इमानदारी पूर्वक अपन समाज, मिथिलाक समाज, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा एवं समयक सत्य लिखने छथि। समाजक निम्न वगर्क, कृषक वर्गक जीवनक चित्रण अत्यन्त इमानदारी पूर्वक कएने छथि। उपन्यासकार मिथिलाक वास्तविक चित्रण करवामे सफल भेल छथि, मिथिलाक तात्कालीन दशाक चित्रण कएने छथि तँ मात्र और मात्र अपन भाषा, देश एवं सामािजक दायित्व समाजक प्रति प्रेम एवं प्रतिबद्धताक कारणे हिनकासँ ई उपन्यास लिखवा लेने अछि। यद्यपि कथाक प्रवाह अवरूद्ध अछि तथापि कथा अपन अंकमे देश-समाज, मानव, प्रकृति, संस्कृति, विकृति आदिकेँ समेटि अपन लक्ष्यपर पहुँचवामे सफल भऽ गेल छथि। हिनक उपन्यासमे हिनक व्यक्तित्व पाठकक समक्ष स्पष्ट प्रतीत भेल अछि।
जीवन दर्शन आओर आध्यात्मसँ लऽ कऽ मनुष्यक समस्त राग-विराग ‘लोक’मे विद्यमान अछि। मिथिलाक लोक संस्कृति संवाहक उपन्यास ‘जिनगीक जीत’मे उपन्यासकार जीवनक ओहि सत्यकेँ आत्मसात् करबाक प्रयास कएने छथि जाहिमे जीवनक समस्त ‘सार’ नुकाएल अछि। उपन्यासक मध्यमे उपन्यासकार मनुष्य जीवनक समस्त राग-विराग, आशा-आकांक्षा, दीनता-हीनता, उत्कर्ष-अपकर्षक चित्रित करैत वस्तुत: जीवनक शाश्वत तथ्य- जीवाक इच्छाकेँ उजागर करवामे सफल भेल छथि। वस्तुत: ई उपन्यास ई उपन्यास भाषा अथवा वोलीमे जातीय स्मृतिक आ साहित्यिक रूप थिक जे हमर जातीय चेतना अथवा जातीय वोधकेँ सुरक्षित राखने अछि। मिथिलाक सूच्चा चित्र अंकित करैत उपन्यासकार अपन जीवनानुभवसँ संचित कएल ‘सार’ आओर ‘सत्य’केँ अभिव्यक्त कएने छथि। वस्तुत: ई उपन्यास मिथिलाक संस्कृतिक प्रतीक थिक आओर एकर सार थिक शाश्वत। उपन्यास मध्य प्रकृति, परिवेश, आध्यात्म, समरसता आओर समन्वयक छवि आओर छटा सर्वत्र दृष्टिगोचर होइत अछि।
अखन धरि पढ़ुआ काकाक जिनगीक देल दस बीघा जमीन अन्हि। अपने जमीनकेँ सोलहन्नी बिसरि गेलाह। खाली गाछी-बँसवारिटा धियानमे रहलनि। किसानक बेटी लाल काकीकेँ खेतीक सोलहो आना लूड़ि। अन्नक खेती बटाइ लगा लेने छथि, पाँच कट्ठा चौमास आ गाछीक सेवा टहल अपने करै छथि। दूटा गाइयो पोसिये लगौने छिथि। जहिसँ सुभ्यस्त भोजन भेटैत। पक्का घर बना सब बेवसथो केनहि छथि।
मने-मन पढ़ुआ काका संबंधमे सोचैत रहति। आमोक गाछी तेहन अछि जे एक तँ दू मासक भोजन, तहूमे सभ साल नहिये। गोटे साल मोजरबे ने करैत, तँ गोटे साल िबजलोकेमे मोजर जरि जाइत। गोटे साल बिहाड़ियेमे आमक कोन बात जे गाछो खसि पड़ैए। गोटे साल तेहन दबाइ रहैए जे मोजरेकेँ जरा दैत अछि। मोटा-मोटी पाँच बर्खपर दू मास आम खा कऽ जीबि सकै छी, वाकी.....?
दरबज्जापर लाल काकीकेँ अवितहि पढ़ुआ काकाक टूटल मन कलपि उठलनि। गोरथारीमे बैसि लाल काकी बजलीह- “पाएर सोझ करू।”
लाल काकीक बात सुिन, जहिना तारक कम्पन्नसँ वीणाक स्वर बनैत तहिना पढ़ुआ काकाक बोल निकललनि- “पाएर नै टटाइए, हृदयक व्यथा छी।”
पतिक बात सुिन फड़कि कऽ चौकीपर सँ उठि लाल काकी मधुआएल स्वरमे बजलीह- “साँचे स्त्रीगणसँ सुनै छी जे पुरूख नङर-कट होइ छथि। कुत्ता जकाँ सदति काल नाङरि टेढ़े रहै छन्हि।”
कहूँ जे एहेन तरहक जे व्यर्थ बातक संभाषण करब कहाँ तक उचित? राष्ट्रकेँ ठकब कि अपने ठकाएव नहि थिक। कि फूसि बाजि अपने आपकेँ नहि परतारि रहल छी? राष्ट्र ध्वजक समक्ष लेल यएह सभटा सप्पत साँच अछि आकि बुढ़िया फूसि? सत्ते- ई थिक बुढ़िया फूसि।
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जितेन्द्र झा
नव विवाहिताक लेल नव उमंग लाबए एहन मधुश्रावणि बबिता ठाकुर दिल्लीसँ मधुश्रावणी पुजऽ अपन नैहर जनकपुर आएल छथि । भोरसँ साँझधरि पुजेमे अपस्याँत बबिता मिथिलाक सँस्कृति आ परम्परासँ निकजकाँ भिजबाक अवसर भेटल कहैत खुशी व्यक्त करैत छथि । तहिना रीमा झा सेहो काठमाण्डूसँ जनकपुरमेँ आविकऽ मधुश्रावणी पुजलनि । एक निजी च्यानलमे समाचारवाचिका रीमा एहि पावनिसँ आत्मीयता जुडल बतबैत छथि । हिनके सभजकाँ बहुतो मैथिल ललना अपन व्यस्त जीनगीक पन्द्रह दिनमे मधुश्रावणीक आनन्द उठौलनि । पढाइ लिखाइ आ पारिवारिक झन्भटिके कतियबैत नवविवाहितासभ गीत नादआ खिस्सा पिहानीक आनन्द उठौलनि मधुश्रावणी पावनिमे । साओन महिनाक रीमझिम वर्षा आ ताहिमे सखी बहिनपा सभक सँग फुल लोढबाक आनन्द शायदे कोनो आन संस्कृतिमेँ होइक । नवविवाहिता मैथिल महिलासभक जीवनमेँ नव रोमाञ्च लऽ कऽ आएल मधुश्रावणी । लोककथा आधारित ई मधुश्रावणी वैवाहिक जीवनके एकटा अदभुत आ हृदयस्पर्शी शुरुवात बनल अछि । नवविवाहिता जोडीके एक दोसराके बुझबाक परखबाक अवसर सेहो जुडा दैत अछि ई पाबनि ।
‘पावनि पूजू आज सोहागिन प्राण नाथके संग हे । कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथ हे । चानन घसू मेहदी पिसू लिखू मैना पात मे । पावनि साजी भरि भरि आनल जाही जुही पात मे । कतेक सुन्दर साज सजल अछि लिखल मैना पात मे । ’ (पावनिक गीत )
ओना नोकरिहारा वरसभक लेल मधुश्रावणी पावनि फिक्का रहल । कनिञाक संगहि कोहवर घरमेँ बैसकऽ काम दहन आ गौरी महादेवक विवाहक कथा सुनबाक अवसर अमेरिकामे रहल प्रमोद झाके नहि भेटलनि । जनकपुर पिरडियामाइस्थानक प्रमोद वितलाहा अषाढ महिनामे परिणय सुत्रमे बान्हल छलाह । गामसँ कोशो दूर रहल कनिञासभ भलेहि पुजा पुजऽलेल नैहर पँहुच गेलि होथि मुदा वरसभके त मन मसोसिएकऽ रहऽ पडलनि । मिथिलामे पण्डिताइयक प्रथाके विपरीत ई पाबनि महिलेद्वारा पुजाओल जाइत अछि । समाजक वा घर परिवारक प्रौढ महिला पवनैतिके ई पाबनि पुजबैत छथि । ई पाबनि नवकनिञा अपन नैहरमे पुजैत छथि तेँ विवाहक बाद सासुरक जिम्मेवारीवहनके दायित्वक बीच नैहरक मनोरन्जन सुखदायी भऽ जाइत अछि । पुजावास्ते प्रयोग होबऽबला सभ समानसभ कनिञाक सासुरेसँ अबैत छैक, पुजा नैहरमे मुदा पुजाक वस्तु सासुरक । मधुश्रावणी पुजा कोहवर घरमेँ करबाक प्रचलन अछि । वर कनिञाक नितान्त व्यक्तिगत घर कोहवरके मधुश्रावणीलेल निक जकाँ सजाओल जाइत अछि । विवाहक बाद मधुश्रावणीमे वर कनिञा कोहवरके श्रृंगार बनि जाइत अछि ।
‘कोवर कोवर सुनियै हे प्रभु कोवर कोना होइ हे । पिसु पिठार लिखू जल पुरहर कोबर एहन होइ हे । ताहि कोवर सासु पलंगा ओछाओल ओलरल धीया जमाय हे । घुरि सुतु फिरि सुतु ससुरक वेटिया अहाँ घामे गरमी बहुत हे । हम नहि घुरबै अहाँक बोलिया पर घर बाज कुवोल हे । ’ (कोबरक गीत )’ साओन इजोरिया पक्षक तृतीया दिन सिन्दुरदान होइत अछि । ई सिन्दुरदान अहिवातक तेसर सिन्दुरदान होइत अछि । एहिसँ पहिने विवाहक राति आ चतुर्थीक भोरमेँे सिन्दुरदान भेल रहैत छै । मधुश्रावणी विवाहके पुर्णता देबऽबला पाबनि बनि गेल अछि । मिथिलामेँ विवाहपुर्व वर कनिञा एक दोसरासँ विल्कुल अन्चिन्हार रहैत अछि एहन मे मधुश्रावणी पावनि आ साओनक महिना सामीप्यतालेल सहज अवसर जुटा दैत अछि । कतबो व्यस्त जीवन होइतो प्रायः नवदम्पत्ति एहिमेँ संगहि कथा सुनैत छथि एहिसँ सामाजिक आ पारिवारिक समरसता बढबामेँ मदति भेटैत अछि । मधुश्रावणीमेँ सासुरसँ पठाओल गेल दीपक टेमी दगबाक चलन अछि । एहि चलनके सभ गोट अपने तरहसँ देखैत अछि । टेमीक फोँका सौभाग्यक प्रतीक मानैत अछि मैथिल महिला । शीतल बहथु समीर, दही दिश शीतल लेथु उसासे । शीतल भानु लहुक लहु उगथु शीतल भरल अकासे । शीतल सजनि गीत पुनि शीतल शीतल विधि व्यवहारे । शीतल मधुश्रावणी विधि हो शीतल वसन श्रृंगारे । शीतल घृत शीतल वर वाती शीतल कामिनी आँगे । शीतल अगर सुशीतल चानन शीतल आबथु माँगे । शीतल कर लए नयन झपावह शीतल देलह पाने। शीतल हो अहिवात कुमर संग शीतल जल अस्नाने । ’ (टेमी कालक गीत)
संस्कृतिविद्सभ मिथिलामेँ मुगल शासकके आक्रमणके बाद पतिव्रताक रक्षाके लेल एहन चलन शुरु भेल कहैत छथि । बदलैत समयक प्रभाव मधुश्रावणी पावनि पर सेहो देखा रहल अछि । फुल गुलसँ भरल गामघर आब सुनसान प्राय भऽ रहल अछि । एहनमेँ जाही जुही, अगर तगर, नीम दाडिम आ मेहदीक पातसभ सनके वस्तु भेटब कठिन भऽ जाइत अछि । शहर बजारमे रहनिहार पवनैतिन सभके एहन वस्तुक अभाव खटकल करैत छन्हि । फुल लोढीलेल सेहो आव फुलवारी सभ नहि रहि गेल अछि जे रंग विरंगक फुल तोरि सखी बहिनपा डाला सजेबाक प्रतिस्पर्धा कऽ सकथि ।
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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