भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, August 30, 2010

'विदेह' ६४ म अंक १५ अगस्त २०१० (वर्ष ३ मास ३२ अंक ६४)-PART III


२.
बिपिन झा
चहकैत चौक आ कनैत दलान


संक्रमण काल सँ गुजरैत अपन मिथिलांचल आइ अपन क्षीण होइत मर्यादा, सभ्यता एवं संस्कृति कऽ कारण चिन्ताग्रस्त अछि। समस्त विवेकशील बुद्धिजीवी स्तब्ध छथि। मैथिल संस्कार अन्दरे अन्दर विलाप कय रहल अछि! एकर पैघ उदाहरण थीक चहकैत चौक, हँसैत मधुशाला आ कनैत दलान।
कहियो मिथिला कऽ गामक दलान प्रवुद्ध व अनुभवी बुजुर्ग, उद्यमशील आ विवेकी युवा, संस्कारी किशोर आ बच्चा सभ सँ शोभायमान रहैत छल। आँगन मँ गोसाउनिक घर एकटा तीर्थवत् होइत छल। चौक चौराहा सक्रियता एवं मेलमिलापक अड्डा होइत छलै मुदा आई ? नगर पलायन के कारण दलान सुन्न भय गेल। जे व्यक्ति वचलो छथि से दलान क वजाय अन्तःपुर में व्यस्त रहैत छथि। प्रवुद्ध व्यक्ति गाम में अल्पसंख्यक मय गेलाह। प्रत्येक चाँक पर एकटा विदेशी मधुशाला खूजि गेल जतय पैघघरक बच्चा व्यक्ति सम वच्चन साहेबक ग्रन्थक अनुकरण कय रहल छथि। संगहि इशारा में किछु पड़िया वला चीज संहो सूंघि रहल छथि।
इ सर्वत्र व्याप्त वौद्धिक आचार संबंधी प्रदूषण ग्राम समाज के कलुषित करैत-करैत मिथिलाचलक आत्मा नष्ट करवाक उद्यत अछि। आई सबटा बौद्धिक व आचारवान व्यक्ति ग्राम समाज में घुटन महसूस कय रहल छथि एकर जिम्मेदार के छथि ? शायद समस्त समाज।
एहि महामारी कऽ उन्मूलनार्थ समस्त मैथिल समाज के आगा आबय पड़त स्थिति अखनो नियंत्रण में अछि। यदि प्रयास कयल जाय तखनि सब किछु संभव अछि अन्यथा सब सत्यानाशक इंतजार में तैयार रही इ भविष्यक चेतावनी अछि।
आशा अछि से समस्त बौद्धिक समाज एहि समस्या पर चिन्तन करताह आ किछु सामूहिक प्रयासो अवश्य होयत।
 १.डा. राजेन्द्र विमल- साहित्यसङ्गम
गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक सुरताल २.प्रो. वीणा ठाकुर- जि‍नगीक जीत उपन्‍यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर

३. - जगदीश प्रसाद मंडल- कथाक शेष- अर्द्धागि‍नी ४. - जगदीश प्रसाद मंडल- कथा- अतहतह
डा. राजेन्द्र विमल
साहित्यसङ्गम
गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक सुरताल
 

गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि नेपालीय मैथिली गीतसंसारक प्रायः सभसँ मूल्यवान उपलब्धि थिकाहविविधतामय विषयक दृष्टिएँ, संख्यात्मकताक दृष्टिएँ, उच्च काव्यमूल्यक दृष्टिएँ, विविध शिल्पप्रयोगक दृष्टिएँ, विविध अलङ्कार, गुण, रस, भाषिक प्रयोगक दृष्टिएँ, शैलीगत विविधताक दृष्टिएँ, सामाजिक सचेतताक दृष्टिएँ आ सभसँ बढ़िकऽ मस्तिष्क आ हृदयक सुन्दर सहयात्राक दृष्टिएँ । हिनक गीतसङ्ग्रह कोन सुर सजाबी ?’ गीतसभमे प्रेमतत्व, व्यङ्ग्यतत्व, वेदनातत्व, नवरसतत्व, उद्बोधनतत्व, आख्यायिकातत्व, सामाजिकतत्व, धार्मिकतत्व, राजनीतिकतत्व, सांस्कृतिकतत्व आदि विविध तत्व मिलाकऽ जे कलात्मक रूपाकृति गढ़ल गेल अछि से विलक्षण थिक । हमरा आन गीतकारक किछु गीतक किछु पंक्ति भीतरधरि छूबैत अछि, मुदा धीरेन्द्रक बहुतो गीतक प्रायः सभ पंक्ति मर्मकेँ बेधि जाइत अछि । जीवनजगतक यथार्थ शक्ति आ सम्भावनाक प्रति अदम्य निष्ठा एवं सजगतासँ पोनगल आन्तरिक आ वाह्य सौन्दर्य जखन सुरमे सजैत अछि तँ जेना चेतनाक लहरिकेँ लयबद्ध कऽ लैत अछि । जीवनक कियारीमे फुलाइछ सत्य आ सौन्दर्यक फूल जे प्रत्येक रूपरङ्गमे मङ्गलकारी थिक । परिवेशक यथार्थबोध हेतु आवश्यक वैज्ञानिक दृष्टिक विरोधमे ठाढ़ भेल कुण्ठित सौन्दर्यबोधसँ बेसी तकर साहचर्यमे परिमार्जित आ विकसित सौन्दर्यचेतनाक कारणेँ गीतकारक सहज प्रेमोच्छ्वासो कोनो अदृश्य चन्द्रलोकसँ आएल नहि, हृदय किंवा धरतीसँ उपजल लगैछ ।
कविमे सौन्दर्यचेतनाक इन्द्रधनुषी रङ्ग यत्रतत्रसर्वत्र छलकि उठल अछि से सत्य, मुदा सौन्दर्यक रसग्राह्यता मिथिलाक धरती आ संस्कृतिक प्रति सहज संस्कारक रूपमे विकसित मधुर अनुरागसँ अभिप्रेरित अछि । बहुजनरञ्जनक सङ्ग बहुजनमङ्गलक भाव हिनक अनेक गीतक संवेदनाकेँ समसामयिक आ सतत गतिशील सत्यक संवाहक बना देने अछि, मुदा तौँ ओ देशकालक अन्तर्सत्यसँ आबद्ध अछि । स्पष्ट कही तँ हिनक समकालीनता परिवेशजन्य अन्तरङ्ग क्षणक अभिव्यक्ति थिक । हिनक भाषा, भङ्गिमा, भावबोध, छन्द, लयमे एतेक नवीनता आ ताजापन एहि दोआरे बूझि पड़ैछ जे ओ सद्यःजात कमलक फूलसन टटका अछि, जकर जड़ि भने परम्परामे होइक, मुदा प्रस्फुटन नितान्त मौलिक छैक ।
धीरेन्द्र प्रेमर्षिक गीतसभकेँ निम्नलिखित कोटिमे वर्गीकृत कएल जा सकैछ१) श्रम, सङ्घर्ष, आस्थाक गीत २) मानवीय सम्बन्ध आ संवेदनाक गीत ३) सौन्दर्यचेतना आ प्रीतिक गीत ४) चिन्तनपरक दार्शनिक गीत ५) माटिपानि आ सामाजिक राजनीतिक सचेतताक गीत ।
१. श्रम, सङ्घर्ष, आ आस्थाक गीत ः जीवनक अरण्यमे काँट छैक तँ फूलो छैक, पतझड़ छैक तँ बसन्तो छैक, ग्रीष्मप्रदाह छैक तँ छाहरिक शीतलतो छैक । जीवनकेँ स्वीकार करबाक लेल ओकर सम्पूर्ण यथार्थकेँ स्वीकार कऽ उत्साहक सङ्ग जीबऽ पड़तैक । विडम्बनापूर्ण जीवनक ई स्वीकृति आ जिजीविषा गीतकारकेँ काँटक बीच फूल खोजबाक प्रेरणा आ उत्साह दैत छन्हि
चारि दिनक ई जीवनधाम
हरखक पल ताहूमे बाम
कलिका खोँटिकऽ फेकैत हम
ताकि रहल छी फूलक गाम
ई धरती, एकर उत्सव आ शोक, स्मितिअश्रु, जयपराजय प्राणवन्तताक प्रमाण थिकै, तेँ कोनो कल्पनाकुहरमे भटकैत सत्यसूर्यक खोज करब बतहपनी छैक । सृष्टिक गर्भसँ जनमल सत्य मात्र गीतकारकेँ स्वीकार छन्हि
सत्यक जननी सृष्टि तमाम
कर्मक सिञ्चन हम्मर काम.....
प्रेमर्षि श्रमहीन जीवनकेँ जिनगीक भ्रम मानैत छथि आ शोषणपर आधारित जीवनव्यवस्थाक विरुद्ध छाती तानि ठाढ़ भऽ जाइत छथि । शोषणक विरुद्ध केहन घृणा छन्हि प्रेमर्षिक मोनमे
गामक गाम उजाड़ि बनाओल
महलअटारी नइ चाही
देशक खून आ गरीबक आहसँ
भरल बखाड़ी नइ चाही
लाखोक धूर निलामीक जनमल
एक जिमदारी नइ चाही.....
एहन अवस्थामे ओ कहैत छथिहमरा अपन गरीबियो बरदान लगैए.....
गरीबक जिनगीक केहन मार्मिक शब्दचित्र प्रस्तुत कएने छथि प्रेमर्षि
पीठकेँ झँपैत छी तँ माथा उघार
माथकेँ झँपैत छी तँ पीठहि उघार
चूनिचूनि खढ़पात खोँता बनाबी
चुबिते रहि जाए तैयो जिनगीक चार......
२. मानवीय सम्बन्ध आ संवेदनाक गीत ः मनुक्ख अनेक स्तरपर एकदोसराक रागतन्तुसँ बन्हाएल अछि । नितान्त वैयक्तिक स्तरपर, पारिवारिक स्तरपर, सामाजिक स्तरपर, राष्ट्रिय स्तरपर, अन्तर्राष्ट्रिय स्तरपर, ब्रह्माण्डीय स्तरपर । रागविरागक ई खेल चिरन्तन थिक, सार्वभौम थिक । जाधरि मनुक्ख जीवित अछि, नेहछोहक एहि रेशमी बन्धनकेँ तोड़ि फेकब ओकरा हेतु दुःसाध्य थिकै । एहि रागात्मकताकेँ प्रेमर्षि जीवनक स्पन्दन, प्राणज्योति, अपरिहार्य अङ्गरङ्ग मानैत छथि
बीस बरखा टेरलिङिया कुरता
तैपर साटल चेफरी छै
शीतलहरीमे ओक्कर ओढ़ना
पोतीक फेकल केथरी छै
सोना गढ़िकऽ इएह फल पौलक
अपने बनि गेल तामसन
वाह बुढ़बा तैयो बाजैए
हम्मर बेटा रामसन....
अद्वितीय !! ई सम्बन्धबन्ध अपराजेय आ अमर रहए, भगवान !!
३. सौन्दर्यचेतना आ प्रीतिक गीत ः कोनो राजनीतिक वादक झण्डातर बैसि गीतकेँ विज्ञापन वा प्रचारक माध्यम बनबैत अथवा अनुभवशून्य विषयपर शब्दक कलाबाजी देखबैत जीवानुभव वा जीवनसत्यक दिससँ शुतुरमुर्गी शैलीमे आँखि मुननिहार गीतकार नहि थिकाह प्रेमर्षि । तेँ ओजस्वी भावनाक हथौड़ासँ शब्दकेँ लोहारजकाँ पीटिपीटि सङ्घर्षक हेतु फरसा आ गड़ाँस बनबैत प्रेमर्षि जखन छेनीसँ पदावलीकेँ तरासैत सोनारजकाँ रचिरचिकऽ पे्रयसीक हेतु कोमल कण्ठहार बनबैत छथि तँ हमरा कृष्णक कुरुक्षेत्रक योद्धारूप आ वृन्दावनक रासलीला रचबैत प्रेमीरूप एक्कहिबेर मोन पड़ि जाइत अछि ।
श्रृङ्गारक दुनू भेदसंयोग आ विप्रलम्भक मोहक चित्रण हिनक गीतमे भेटैत अछि
प्रेमक घटसँ जते निकाली
जलक हुअए ने अन्त
हमर अहाँकेर प्रेमक चिड़िया
भऽ गेल बेस उड़न्त.......
४. चिन्तनपरक किंवा दार्शनिक मुद्राक गीत ः चिन्तन जखन भावनाक तलपर आबि गाबऽ लगैछ तँ उच्च कोटिक गीतक जन्म होइत छैक । प्रेमर्षिक किछु गीतमे चिन्तनक जे चिनगी दहकैत अछि से जिनगीक चरम सत्यधरि लऽ जाइत अछि
जीवन थिक मेला दू दिनमा
ई ईष्र्याद्वेष किए प्राणी
आखिरमे देह गलिए जएतह
बस रहि जएतह अमृत वाणी.....
वनवन बौआइत अछि
कस्तूरीक टोहमे मृग जहिना
सदिखन औनाइत अछि
माया आ मोहमे मन तहिना.....
५. माटिपानि आ सामाजिकराजनीतिक सचेतताक गीत ः धीरेन्द्र प्रेमर्षिक गीतमे जयदेवक कृत्रिम कलात्मकता नहि, विद्यापति गीतक सहज कलामय तन्मयता अछि । तेँ ई गीतसभ मिथिलाक सुगन्धसँ महमह करैत अछि । मिथिलाकेर व्यथा दहेज, नवका साल पुरने हाल, जनतन्त्रक बहाली, जय हो पेट धरमवीर, हे देखियौ हमर समाजमे, ओ बमभोला, सत्ताक माछ, देशी मुर्गा बिलाइती बोली, जागरण गीत एहि कोटिक गीत थिक । एहि गीतसभमे अत्यन्त तीक्ष्ण व्यङ्ग्य अछि
बम भोला
छोडूÞ भङगोला
जँ पियब अछि अति आवश्यक
पीबू कोकाकोला.....
मुर्गा देलक बाङ
दुलरिया दारू ला......
पहिने डबराखत्ता घुमी
भेटए बस गरचुन्नी
बाँटैतचुटैत पबैत छलियै
एक्कहिदूटा कुन्नी
एहिबेर पोखरिक जीरा भेटल
सटि गेल ठोरमे
आब तँ मोन परकि गेल हम्मर
माछक झोरमे...........
दूर्गापूजा डी.पी. बनि गेल
भरदुतिया राखीतर दबि गेल
जुड़शीतल शीतलहरीक मारल
हैप्पी न्यू इयर बस फबि गेल
बम फटाक फुलझड़ीक बीचमे
डूबि गेल हुक्का लोली
देशी मुर्गा बिलायती बोली.....
एहि सभ गीतक उचित मूल्याङ्कन मैथिल संस्कृतिक गवाक्षसँ निरखिकऽ करब बेसी उचित होएत । कारण हुनक गीतसंसार सोरसँ पोरधरि मैथिल संस्कृतिक रङ्गमे सराबोर अछि । एत्तऽ धरि जे उपमोसभ खाँटी मैथिल भूमि, जीवन, समाज वा संस्कृतिसँ लेल गेल अछि
भेल प्रेमक रौदी एहि जगमे
तेँ धधकए सभतरि दावानल
जुड़शीतलक जलथपकीसन
बरिसाउ प्रिये कने प्रेमक जल.......
सुच्चा मैथिल गीत थिकअछिञ्जलसन पवित्र ! एकटा पाँती देखल जाए
भौजीकेँ बस कोबरे भाबनि
मुदा दियरसभ आबि सताबनि
भैया बहाने काल भगाबथि
बारहमासा गाबि सुनाबथि.........
गीतकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मादे टिप्पणी दैत नेपाल राजकीय प्रज्ञाप्रतिष्ठानक उपकुलपति, नेपाली समीक्षाशास्त्रक युगपुरुष, प्रकाण्ड विद्वान प्रा.डा. वासुदेव त्रिपाठी उचिते लिखलैन्हि अछि— “करीब सैँतीसे वर्ष (तत्कालीन) क लहलहाइत उमेरमे अनेक विधा आ क्षेत्रमे रहल हुनक साधना आ तकर विस्तृत आयामक अवलोकन कएलापर हमरालोकनिक मोनमे सहजहिँ महान नेपाली साहित्यस्रष्टा मोतीराम भट्टक स्मरण भऽ अबैछ मैथिलीक एहि मोतीरामपर मिथिलामैथिलीक इतिहास सर्वदा गर्व करत से हमर अटल धारणा थिक ।
२.
प्रो. वीणा ठाकुर
अध्‍यक्ष, मैथि‍ली वि‍भाग
ल.ना.मि‍.ि‍वश्‍व वि‍द्यालय दरभंगा।
जि‍नगीक जीत उपन्‍यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर


     श्री जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्‍यास जि‍नगीक जीत पढ़वाक अवसर भेटल। उपन्‍यास पढ़ि‍ बुझाएल जे ई उपन्‍यास तँ वास्‍तवमे मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍क जीत थि‍क, जीवनक जीत थि‍क, संस्‍कारक जीत थि‍क। जौं एक शब्‍दमे कहल जाए तँ यएह कहल जा सकैत अछि‍ जे ई लोकक जीत थि‍क। जखनहि‍ लोकक जीत थि‍क तँ स्‍वभावि‍क अछि‍ जे एहि‍ उपन्‍यासक मध्‍य लोक साहि‍त्‍यक सुगन्‍ध चतुर्दिक पसरल हएत।
     उपन्‍यासक कथा मि‍थि‍लाक एकटा गाम कल्‍याणपुरक थि‍क, जतए जीवि‍काक मुख्‍य साधन थि‍क कृषि‍, जतए आधुनि‍क वैज्ञानि‍क युगक प्रकाश नहि‍ पहुँचल अछि‍। जतए उच्‍चतम शि‍क्षाक लक्ष्‍य थि‍क बी.ए. पास करब आओर जतए एकैसम शताब्‍दी एखन धरि‍ नहि‍ आएल अछि‍ आओर नहि‍ आएल अछि‍ शाइनि‍ंग इंडि‍याक प्रकाश। उपन्‍यासकार प्रमुख पात्र छथि‍ नायक बचेलाल, नायि‍का रूमा, मुख्‍य पात्र छथि‍ बचेलालक माए सुमि‍त्रा, अछेलाल, अछेलालक पत्‍नी मखनी इत्‍यादि‍। कथा अछि‍ बचेलालक द्वन्‍द्व एवं द्वन्‍द्वसँ उपजल अवसादक एवं जीवन संघर्षक, सुमि‍त्राक मि‍थि‍लाक नारीक गरि‍माक अछेलालक कर्त्तव्‍य नि‍ष्‍ठताक, संगहि‍ मानवीय संघर्षक, द्वन्‍द्वक आओर भवि‍ष्‍यक आशा-आकांक्षाक। नायकक मानसि‍क द्वन्‍द्व जौं जीवनक सार्थकता लेल अछि‍ तँ नायकक माए सुमि‍ताक दृष्‍टि‍ स्‍पष्‍ट मानवीय गरि‍मासँ युक्‍त अछि‍। नायकसँ एक डेग आगाँ बढ़ि‍ द्वन्‍द्वसँ मुक्‍ति‍क वाद देखबैत प्रकाश पुंज मध्‍य अछि‍। नायकक पत्‍नी रूमाक चरि‍त्रपर प्रकाश नहि‍ देल गेल अछि‍, ताहि‍ कारणे रूमा उपन्‍यास मध्‍य गौण पात्र भऽ गेल छथि‍।
     कोनहुँ समाजक जातीय मनीषा, सामुदायि‍क चेतना, जातीय बोध मानवीय मूल्‍य आओर जीवन दर्शनक वि‍वि‍ध पक्षमे अवगत होएवा लेल ओकर लोककेँ बुझब आवश्‍यक। उपन्‍यासकार एहि‍ उपन्‍यास मध्‍य अत्‍यन्‍त इमानदारी पूर्वक अपन समाज, मि‍थि‍लाक समाज, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा एवं समयक सत्‍य लि‍खने छथि‍। समाजक नि‍म्‍न वगर्क, कृषक वर्गक जीवनक चि‍त्रण अत्‍यन्‍त इमानदारी पूर्वक कएने छथि‍। उपन्‍यासकार मि‍थि‍लाक वास्‍तवि‍क चि‍त्रण करवामे सफल भेल छथि‍, मि‍थि‍लाक तात्‍कालीन दशाक चि‍त्रण कएने छथि‍ तँ मात्र और मात्र अपन भाषा, देश एवं सामाि‍जक दायि‍त्‍व समाजक प्रति‍ प्रेम एवं प्रति‍बद्धताक कारणे हि‍नकासँ ई उपन्‍यास लि‍खवा लेने अछि‍। यद्यपि‍ कथाक प्रवाह अवरूद्ध अछि‍ तथापि‍ कथा अपन अंकमे देश-समाज, मानव, प्रकृति‍, संस्‍कृति‍, वि‍कृति‍ आदि‍केँ समेटि‍ अपन लक्ष्‍यपर पहुँचवामे सफल भऽ गेल छथि‍। हि‍नक उपन्‍यासमे हि‍नक व्‍यक्‍ति‍त्‍व पाठकक समक्ष स्‍पष्‍ट प्रतीत भेल अछि‍।
     जीवन दर्शन आओर आध्‍यात्‍मसँ लऽ कऽ मनुष्‍यक समस्‍त राग-वि‍राग लोकमे वि‍द्यमान अछि‍। मि‍थि‍लाक लोक संस्‍कृति‍ संवाहक उपन्‍यास जि‍नगीक जीतमे उपन्‍यासकार जीवनक ओहि‍ सत्‍यकेँ आत्‍मसात् करबाक प्रयास कएने छथि‍ जाहि‍मे जीवनक समस्‍त सार नुकाएल अछि‍। उपन्‍यासक मध्‍यमे उपन्‍यासकार मनुष्‍य जीवनक समस्‍त राग-वि‍राग, आशा-आकांक्षा, दीनता-हीनता, उत्‍कर्ष-अपकर्षक चि‍त्रि‍त करैत वस्‍तुत: जीवनक शाश्‍वत तथ्‍य- जीवाक इच्‍छाकेँ उजागर करवामे सफल भेल छथि‍। वस्‍तुत: ई उपन्‍यास ई उपन्‍यास भाषा अथवा वोलीमे जातीय स्‍मृति‍क आ साहि‍त्‍यि‍क रूप थि‍क जे हमर जातीय चेतना अथवा जातीय वोधकेँ सुरक्षि‍त राखने अछि‍। मि‍थि‍लाक सूच्‍चा चि‍त्र अंकि‍त करैत उपन्‍यासकार अपन जीवनानुभवसँ संचि‍त कएल सार आओर सत्‍यकेँ अभि‍व्‍यक्‍त कएने छथि‍। वस्‍तुत: ई उपन्‍यास मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍क प्रतीक थि‍क आओर एकर सार थि‍क शाश्‍वत। उपन्‍यास मध्‍य प्रकृति‍, परि‍वेश, आध्‍यात्‍म, समरसता आओर समन्‍वयक छवि‍ आओर छटा सर्वत्र दृष्‍टि‍गोचर होइत अछि‍।
     वर्तमान साहि‍त्‍यमे ई प्रवृति‍ प्रमुख अछि‍- एक समाजोन्‍मुख दोसर व्‍यक्‍ति‍ नि‍ष्‍ठा तथा आत्‍म केन्‍द्रि‍त। उपन्‍यासकारक प्रवृति‍ समाजोन्‍मुख अछि‍। सम्‍पूर्ण उपन्‍यास मध्‍य मि‍थि‍लाक गामक लोकक रहन-सहन, अचार-वि‍चारक चि‍त्रण एतेक सजीव अछि‍ जे पाठककेँ ओहि‍ लोकमे लऽ जाइत अछि‍, जि‍नका गाम छुटि‍ गेल छन्‍हि‍। उपन्‍यास मध्‍य मि‍थि‍लाक समाजक चि‍त्र एतेक वास्‍तवि‍क रूपमे चि‍त्रि‍त्र भेल अछि‍ जे मि‍थि‍लाक माि‍ट-पानि‍क सुगन्‍धसँ पाठकक हृदय सहजहि‍ आहलादि‍त भऽ जाइत अछि‍। वर्तमान समएमे गामक लोकक पलायन शहर दि‍शि‍ भऽ गेल अछि‍, गाम पाछाँ छूटल जा रहल अछि‍। मुदा पाठक उपन्‍यास पढ़ि‍ पुन: गाम घुि‍र जाइत अछि‍, गामक स्‍मृति‍सँ पाठक बान्‍हल रहि‍ जाइत अछि‍।
     सामाजि‍क प्रश्‍नक प्रती सजग उपन्‍यासकार अपन एहि‍ रचनामे सामाजि‍क जीवनक अर्न्‍तवि‍रोध, वि‍संगति‍ एवं परि‍वेशक चि‍त्रण करैत, सामाजि‍क प्रश्‍नक नि‍दान मूलत: व्‍यक्‍ति‍मे ताकवामे सफल भऽ गेल छथि‍। मि‍थि‍लाक ग्रामीण समाजक, नि‍म्‍न वर्गक एवं कृषक समुदायक मान्‍यता एवं परम्‍पराकेँ प्रस्‍तुत करैत उपन्‍यासकार उपन्‍यासकेँ अत्‍यन्‍त संवेदय बना देने छथि‍ संगहि‍ एकटा नव संदेश- आशाक संदेश, भवि‍ष्‍य नि‍र्माणक संदेश देवाक सेहो प्रयास कएने छथि‍। एहि‍ संदेशकेँ उपन्‍यासकार लोकक भाषामे व्‍यक्‍त करैत संकीर्ण एवं अव्‍यवहारि‍क पक्षकेँ मानवीय सरोकारसँ जोड़ैत कल्‍पनाशीलता एवं संवेदन शीलताकेँ केन्‍द्रमे राखि‍ अपन उदेश्‍यकेँ चि‍त्रि‍त करवामे सफल भऽ गेल छथि‍। बहुजन हि‍ताय बहुजन सुखायक ध्‍वनि‍ बुलंद करैत उपन्‍यासकार दया, ममता, आस्‍था, त्‍याग, परोपकार सदृश मानवीय गुणक पक्षधर प्रतीत होइत छथि‍। दोसर दि‍शि‍ एहि‍ गुणकेँ प्राप्‍ति‍क दि‍श नि‍र्देश सेहो कएने छथि‍। आधुनि‍क बुद्धि‍जीवी मानवक कार्य, ज्ञान आओर इच्‍छाक बीच तालमेलक अभाव आधुनि‍क जीवनक वि‍डम्‍बना थि‍क। मुदा उपन्‍यासकार मि‍थि‍लाक सरल, नि‍श्‍छल एवं सहज लोकक चि‍त्रण करैत वस्‍तुत: मि‍थि‍ला शुद्ध, पवि‍त्र एवं सत्‍यस्‍वायनक चि‍त्रण कएने छथि‍।
     उपन्‍यासक सभसँ पैघ वि‍शेषता थि‍क समाजक नि‍म्‍नवर्गक बोलचालक भाषा, लोक संवाद एवं लोकोक्‍ति‍क प्रयोगक संग समाजक वि‍षमता एवं वि‍संगति‍पर प्रहार करव। अपन जीवनानुभवकेँ अलग शैली एवं शि‍ल्‍पक माध्‍यमसँ नि‍रूपि‍त करवामे उपन्‍यासकार सफल भऽ गेल छथि‍। संगहि‍ इहो सत्‍य जे उपन्‍यासकारक अर्न्‍तमन अत्‍यन्‍त कोमन तन्‍तुसँ नि‍र्मित छन्‍हि‍ तेँ हि‍नक उपन्‍यास मध्‍य रि‍सेप्‍टीवि‍टीक स्‍तर बहुत गाढ़ भऽ गेल छन्‍हि‍। उपन्‍यासकार प्रमाणि‍त कऽ देने छथि‍ जे सहज लोक भाषाक माध्‍यमसँ नहि‍ मात्र अपन अन्‍तर्परि‍ष्‍करण सम्‍भव अछि‍ अपि‍तु प्रकारान्‍तरसँ मानवीय दायि‍त्‍वक नि‍र्वहन सेहो।
     संवंधक अभावमे मनुष्‍य सुखा जाइत अछि‍। मनुष्‍य अपनामे वंद होएवा लेल नहि‍ बनल अछि‍। मनुष्‍यमे जतेक जे अछि‍, सभ ओकरा अन्‍यसँ माने दोसरसँ जोड़ैत अछि‍ आ प्रसन्‍नताकेँ बाँटैत अछि‍। सम्‍भत: यएह उपन्‍यासकारक इष्‍ट छन्‍हि‍। हम हि‍नक मंगलमय भवि‍ष्‍यक कामना करैत अंतमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक भंडारकेँ समृद्ध करवा हेतु साधुवाद दैत छि‍यन्‍हि‍।

     
     पोथीक नाम- जि‍नगीक जीत (उपन्‍यास)
     उपन्‍यासकार- जगदीश प्रसाद मंडल
     प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन, राजेन्‍द्र नगर दि‍ल्‍ली।
     मूल्‍य- २५० टाका मात्र।
     प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
     पोथी पाप्‍ति‍क स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स,
     वार्ड न.६, नि‍र्मली, सुपौल, मोवाइल न. ९५७२४५०४०५

जगदीश प्रसाद मंडल
कथाक शेष-


अर्द्धागि‍नी

वि‍द्यालय भवनक सीढ़ी, जहि‍ठाम ओसारपर चपरासी बैसैत। सीढ़ीसँ एक लग्‍गी पाछुए पढ़ुआकाका रहथि‍ कि‍ चपरासी उठि‍ कऽ आॅफि‍स दि‍स वि‍दा भेल। जे कक्को देखथि‍। सीढ़ी लग पहुँच आगू तकलनि‍ जे चपरासी घुरि‍ कऽ अबैए आकि‍ नहि‍। मुदा नहि‍ देखि‍ काकामे पौरूष जगलनि‍। मनमे उठलनि‍ अखन तँ सेवा नि‍वृत्तो नहि‍ये भेलौंहेँ, तहन कि‍अए अनकर सेवा लेवा लेल मुँह ताकब। सीढ़ीसँ उपर तँ चढ़ि‍ गेलाह मुदा सीढ़ीक ओ प्रश्‍न जे पछुएने अबै दलनि आगूसँ घेरि‍ लेलकनि‍। जे (चपरासी) बाबा कहैए, आॅफि‍सोक सभ भैये, काका कहै छथि‍ मुदा कि‍ से कहने शरीरक शक्‍ति‍यो घटि‍-बढ़ि‍ सकैए। जँ से नहि‍ तँ परि‍वारमे कि‍अए कहल जाइए। नजरि‍ ठनकलनि‍, अगर बीस बर्खक आधार बना देखै छी तँ उम्र दोबराइत जाइए। उमरे तँ शरीरक शक्‍ति‍केँ घटबै-बढ़बैए। मन हल्‍लुक भेलनि‍। मुदा चपरासीक बेवहारसँ मन खटाएले रहलनि‍। हवा उठि‍ चुकल छल जे आइ चारि‍ बजे पढ़आ काकाकेँ सेवा-नि‍वृत्ति‍क चि‍ट्ठी भेटतनि‍। वि‍द्यालयक वातावरणमे सोग पसरि‍ चुकल छल।
     स्‍टाफ रूम पहुँचते एक नहि‍ अनेक तरहक खटका खटकए लगलनि‍। आन दि‍नसँ बेवहारो बदलल। मुदा चपरासीबला बेवहार बेसी मनकेँ हौंड़ैत रहनि‍। कुरसीपर बैसतहि‍ मनमे उठलनि‍। मुदा तह दैत मनसँ हटौलनि‍। शि‍क्षक सबहक बीच गप-सप्‍पक क्रम सेहो बदलल-बदलल बुझि‍ पड़नि‍। कि‍छु व्‍यंग्‍यबातसँ क्रमकेँ बदलौ चाहथि‍ तँ ओहन बेवहारे नहि‍ छलनि‍। चालि‍सँ थाकल रहबे करथि‍ आँखि‍ झल-फलाए लगलनि‍। गमे-गम नीनो आबि‍ गेलनि‍। अलि‍सा कऽ आँखि‍ मूनि‍ लेलनि‍। आँखि‍ मूनल देखि‍ इशारामे उतरीक चर्चा हुअए लगल। मुदा पढ़ुआ काकाक आँखि‍ बन्न तेँ कि‍छु बुझवे ने करथि‍।
     दू बजि‍ गेल। अढ़ाइ बजे ट्रेन, तेँ स्‍टाफ सबहक बीच चि‍ल-मि‍लक कुचकुची जकाँ, देह-हाथ चुल-चुलाए लगलनि‍। कुरसीक पौआ सबहक अवाजसँ पढ़ुआ काकाक भक्क खुजलनि‍। बैग लऽ संगी सभ नि‍कलैक उपक्रम करए लगलाह कि‍ आॅफि‍सक बाड़ाबावू आवि‍ कऽ काकाकेँ कहलकनि‍- अपनेक पत्र अछि‍ जे चारि‍ बजेमे देल जाएत, तेँ अपने चि‍ट्ठी लेलाक बादे ‍प्रस्‍थान करबै?” कहि‍ आॅफि‍स दि‍स बढ़ि‍ गेलाह। ठाढ़े प्रणाम कऽ कए संगि‍यो सभ नि‍कलि‍ गेलनि‍। पि‍जरामे बन्न सुुग्‍गा जकाँ पढ़ुआ काका असकरे कोठरीमे बैसल। बड़ाबावूक भाषापर नजरि‍ गेलनि‍। आन दि‍नक जे बोली रहैत छलनि‍ ओहि‍मे कि‍छु कड़ुआहट बुझि‍ पड़ि‍ रहल अछि‍। भषे नहि‍ अखने कि‍ देखलौं काल्‍हि‍ धरि‍ सहयोगी सभ अरि‍आति‍ कऽ पहि‍ने वि‍दा कऽ दैत छलाह तेकर वादे ि‍कयो जाइत छलाह। नौकरीक एससाह भेलनि‍। जहि‍या वि‍द्यालयमे सेवा करए एलौं तहि‍या बच्‍चा (वि‍द्यार्थी) सभसँ कि‍ संबंध छल। एकठाम खेनाइ, एकठाम रहनाइ आ एकठाम बैसि‍ पढ़ौनाइ। पानि‍ पीवाक इच्‍छा होइत छलए आ बजै छलौं तँ पानि‍ अननि‍हारक होड़ लगि‍ जाइत छलए। जे पहि‍ने लोटा पकड़ि‍ पानि‍ अनै छलै ओ अपनाकेँ कुशाग्र बुझैत छलै। मुदा आइ कि‍ देखै छी शि‍क्षकक आगूमे छात्र सि‍गरेटक धुँआ उड़बैत अछि‍। कोना एहेन रोगक प्रवेश शि‍क्षण-संस्‍थानमे भेल? जहि‍येसँ वि‍द्यालय सरकारीकरण भेल तहि‍येसँ विद्यार्थी पतराए लगल। ओना गाम-गाममे स्‍कूलो खुजल आ पढ़बैक रूप सेहो बदलल। होइत-हबाइत छात्र-वि‍हीन वि‍द्यालय भऽ गेल। ओना महीनवारी बेतनो नीक बनि‍ गेल। मुदा ओहूमे कमी रहल। महीने-महीना नहि‍ भेट सालक चुकती सालमे हुअए लगल। अखन धरि‍ नोकरीकेँ नोकरी नहि‍ अपन काज बुझै छलौं मुदा आइ बुझि‍ पड़ि‍ रहल अछि‍ जे कतौ बंधनमे जरूर फँसल छी।
     चारि‍ बजि‍ते आॅफि‍सक बाड़ा बावू, आॅफि‍सक स्‍टाफक संग, पढ़ुआ काका लग आबि‍ हाथमे चि‍ट्ठी दैत हस्‍ताक्षर करैले बही आगू बढ़ा देलखि‍न। जहि‍ना रजि‍ष्‍ट्री आॅफि‍समे हस्‍ताक्षर केने परि‍वारक सम्‍पत्ति‍ टुटैत तहि‍ना पढ़ुआ काकाकेँ नौकरी टुटि‍ रहलनि‍हेँ। हस्‍ताक्षर करि‍ते‍ पढ़आ काका हतास भऽ गेलाह। मनमे उठलनि‍ सब कि‍छु हड़ा गेल। जत्ते पढ़ने छलौं ओहि‍मे सँ पहि‍ने ओते हड़ाएल जेकर उपयोग नहि‍ भेल। जेहो कि‍छु बँचल ओ वि‍द्यार्थी हरेलासँ हरा गेल। जे कि‍छु जीवैक आशा बँचल छल ओहो हड़ा गेल। कि‍ हम एहि‍ठामसँ उठि‍ सोझे असमसाने जाएव आकि‍......। मन पड़लनि‍ अपना संग कि‍नको हाथो पकड़ने छि‍अनि‍ कि‍ ने? दू प्राणीक जि‍नगी कोना चलत? कहैले पेंशन भेटत मुदा पेंशन पेबामे जे लेन-देन छै ओ हमरा बुते कएल हएत। अखन धरि‍, जहि‍यासँ सरकारी दरमाहा भेटए लगल तहि‍यासँ आॅफि‍सक बाड़ा बावू आनि‍ कऽ हाथमे जे दइ छलाह ओ चुपचाप जेबीमे रखि‍ पत्‍नीक हाथमे दऽ दइ छलि‍एनि‍। मुदा जेना सुनै छी तेना हमरा बुते कएल हएत। जि‍नगीक एक्कोटा ब्रत नि‍माहै जोकर नइ छी। द्वनद्वमे छाती दलकए लगलनि‍। तहि‍ बीच चपरासी आबि‍ कहलकनि‍- कोठरी बन्न करब, अपने प्रस्‍थान करि‍यौक।‍ अर्द्धचेत अवस्‍थामे पढ़ुआ काका कोठरीसँ नि‍कलि‍ पताइत-पताइत ओसारपर एलाह। डेगे ने उठनि‍। कहुना-कहुना सीढ़ी लग आबि‍ ओङठि‍ कऽ बैसि‍ गेलाह। अर्द्धचेत मनमे वि‍द्यालयक चि‍ट्ठी एलनि‍। जेबीसँ नि‍कलि‍ पढ़ए लगलथि‍। सूचना देल जाइत अछि‍ तेसर मासक अंति‍म ति‍थि‍सँ सेबा-मुक्‍त होएब। नि‍चला पाँति‍ पढ़ौ नहि‍ लगलथि‍, मचोड़ि‍-सचोड़ि‍ चि‍ट्ठीकेँ सीढ़ीक आगूमे फेकि‍ लहरैत मने उठि‍ कऽ वि‍दा भेलाह। मुदा जहि‍ना नदीक कि‍नछड़ि‍क पानि‍मे पैसैसँ बड़द पाछु पाएर करैत तहि‍ना पढ़ुओ काकाक पाएर आगू-पाछु हुअए लगलनि‍। मनक लहरि‍सँ पाएर तनेलनि‍। आगू बढ़ए लगलाह। वि‍द्यालयक फाटक (गेट) लग पहुँच पाछु धुरि‍ तकलनि‍ तँ बुझि‍ पड़लनि‍ जे जना खंडहर ठाढ़ अछि‍। मात्र ईंटा-सि‍मटीक जोड़ल घर। मुदा क्रोध चढ़ले रहनि‍। फुरेलनि‍, जहन जीवैक सभ रास्‍ता बन्न भए रहल अछि‍ तहन मरैयोक तँ ढेरी उपाए अछि‍, मुदा ओ तँ अपराधक श्रेणीमे औत। जीवैले अपराध कऽ कए कि‍यो मृत्‍यु प्राप्‍त करैत अछि‍ मुदा मृत्‍युले अपराध.....।
     बीच रस्‍तापर आबि‍ क्रोधक लहरि‍मे आरो ओझरा गेलाह। मुदा मनमे हुबा जगलनि‍। फुरेलनि‍, जहन वि‍द्यालय अकाजक श्रेणीक सर्टिफि‍केट दइये देलक तहन एक्केटा उपाए अछि‍ जे ि‍जनकर हाथ पकड़ि‍ भार नेने छि‍अनि‍ हुनक लग पहुँच कहि‍एनि‍ जे अखने दुनू प्राणी हरि‍द्वारक रास्‍ता धड़ू। छोड़ू अइ घर-दुआरकेँ। ओतै कोनो मंदि‍रक पुजेगरी बनि‍ जाएव आ शि‍वजीक शरणमे रहि‍ हुनको महेशवाणी सुनब आ अपनो नचारी कहबनि‍। डमड़ूओ बजाएब आ हुनके जकाँ नचवो करब। तखने एकटा छुछुनरि‍ दहि‍ना भागसँ बामा भाग छुछुआति‍ टपैत रहै कि‍ भक्क खुजलनि‍। ताबे छुछुनरि‍ ससरि‍ कऽ बामा भाग पहुँच गेल। मनमे शंका भेलनि‍ जे छुछुनरि‍ पाएरमे काटि‍ लेलक। झुकि‍ कऽ तर्जनीक नहसँ टोबए लगलथि‍। छोटकी चुट्टीक बीख जकाँ बि‍स-बि‍सेलनि‍। मन मानि‍ गेलनि‍ जे छुछुनरि‍ काटि‍ लेलक। सोझ भऽ चारू भाग हि‍यौलनि‍। काजक बेरि‍ रहने सभ छि‍ड़ि‍आएल रहए। रास्‍ता खाली। वि‍द्यालय दि‍शि‍ तकलनि‍। सभ चलि‍ गेल छलाह। मनमे एलनि‍ छुछुनरि‍क बीख तँ अपनो झाड़ए अबैए। मनमे खुशी एलनि‍। मुदा लगले मन बदलि‍ गेलनि‍। अपन बीख अपना बुते कहाँ झरैत अछि‍। तँ कि‍ एेठाम पाएर पटकि‍ कऽ मरि‍ जाएव जतऽ मनतरि‍या भेटत ओतऽ जाँच करा लेब। ताधरि‍ अपने मंत्रसँ काज चलाएब। मंत्र पढ़ैत... सैयाँ-नि‍नावे....दू एक।
  मंत्रकेँ चारि‍ चरणमे वाँटि‍, एक चरण पढ़ि‍ मुँहसँ फुकि‍ दथि‍। अबैत-अबैत गामक सीमापर पहुँच गेलाह।
     परि‍वारक पहि‍ल पीढ़ीक वि‍शारद पढ़ुआ काका। कि‍सान परि‍वार। दस बीघा खेती। लाल काकी सेहो कि‍साने परि‍वारक। खेतीक सभ लूरि‍ माए-बाप सि‍खा देने रहनि‍। कि‍साने परि‍वार देखि‍ लाल काकीक पि‍ता कुटुमैती केलनि‍। ओना पढ़ल बर पाबि‍ दुनू प्राणीक हृदए जुरा गेल रहनि‍ जे लछमीक संग सरस्‍वतीयो छथि‍।
     जहि‍ना एकटा सीमा टपने एसि‍या-रूरोपक दू तरहक सब कुछ भेटैत, तहि‍ना पढ़ुआ काकाकेँ सीमा पर अवि‍ते बुझि‍ पड़लनि‍। साओनक मेघ जकाँ मनमे टोपर बान्‍हि‍ देलकनि‍। पानि‍ जकाँ बुद्धि‍ पसरि‍ गेलनि‍। जीवि‍त छी कि‍ मुइल से होशे ने रहलनि‍। थुस दऽ बैसि‍ रहलाह। मन पड़लनि‍ अकाजक हएव। दुनि‍या तँ काज करैबलाक छी। कि‍ मृत्‍यु सय्यापर सजि‍ जाइ? जेहो कनी-मनी आशा पेंशनक होइत सेहो नहि‍ये हएत। जि‍नगीमे कहि‍यो जइ हाथसँ घुस नै देलौं ओतनो नै नि‍माहल हएत। मुदा ब्रत तँ जि‍नगीक पाशापर बैसल अछि‍। मन राँइ-बाँइ भऽ फाटि‍ गेलनि‍। पहाड़क झरनासँ झहरैत पानि‍ जकाँ नोर हृदए दि‍शि‍ बहि‍ गेलनि‍। हृदए पसीज गेलनि‍। मन पड़लनि‍ अर्द्धागि‍नी। पेइतालीस बर्खसँ संग रहनि‍हारि‍, जे बृत्ति‍ अछि‍, ओहि‍सँ हटल राखैमे ककर दोख भेल? कि‍ हम हुनका साँझो-भोर पढ़ा नहि‍ सकै छलि‍एनि‍। जँ से केने रहि‍तौं तँ जि‍नगी वेलाइग कि‍अए होइत जि‍नगीक सुख-दुख संगे भोगि‍तहुँ। दू मि‍लि‍ करी काज हारने-जीतने कोनो ने लाज। माटि‍क मुरूत बना घरमे छोड़ि‍ देलि‍एनि‍। अपनो एते होश नै केलौं जे सए बर्खक जि‍नगीमे अधडरेड़ेपर कानून अकाजक घोषि‍त कऽ देत। शेष जि‍नगी कोना चलत? अपनो नै छोटोटा स्‍कूल बनेलौं जइमे जि‍नगी भरि‍ सेवारत रहि‍तौं। नि‍राश मनमे सासुर मन पड़लनि‍। वि‍याहमे जे जमाए रूसैए से कोन दादाक कमेलहाले रूसैए। मुदा सासु मन पड़ि‍तहि‍ मन मधुआ गेलनि‍। जँ लोक सासु लग नहि‍ रूसि‍ अपन मनोकामना पूरा करत तँ कतऽ करत? आरो मन पघि‍ल गेलनि‍। हुनके देल ने कामधेनु पत्‍नी छथि‍। मुदा फेरि‍ मनमे उठलनि‍ जे रूसवो तँ कते रंगक होइए। बचकानी आ सि‍यानी रूसव एक्के रंग कोना हएत। तत्-मत् करैत वि‍चारलनि‍ जे सि‍यानी रूसवसँ शुरू करब आ जते नि‍च्‍चाँ धरि‍ सुतरि‍ जाएत तते नि‍च्‍चाँ धरि‍ आबि‍ अटकि‍ जाएव। फुड़फुड़ा कऽ उठि‍ घर दि‍स वि‍दा भेलाह। चारू भर चकोना होइत जे कि‍यो देखे नहि‍। मुदा से सुतरलनि‍। घरपर आबि‍ हाँइ-हाँइ कऽ चौकीपर पड़ि‍ गुम्‍हड़ि‍ कऽ बजलाह- ई घर मनुक्‍खक रहैबला छी, एम्‍हर मकड़ाक झोल लटकल अछि‍ ते ओम्‍हर ि‍वढ़नी छत्ता लगौने अछि‍।‍ कहि‍ रूसि‍ कऽ सि‍रहौनीपर मूड़ी रखि‍ आँखि‍ तकि‍ते सुति‍ रहलाह। बाड़ीमे काज करैत पत्‍नी अबैत देखि‍ नेने रहनि‍। हँसुआ-खुरपी बाड़ि‍येमे छोड़ि‍ आङन ि‍दस बढ़लीह तँ कि‍छु अवाज बुझि‍ पड़लनि‍ मुदा नीक नहाँति‍ नहि‍ बुझि‍ सकलीह। ओना पढ़ुओ काका मुँह दाबि‍ये कऽ, लोकक दुआरे बजैत रहथि‍। दोहरा कऽ फेड़ि‍ तरसँ गुम्‍हरैत बजलाह- एहेन-एहेन घरमे मरि‍तो रहब तँ कि‍यो खोजो-पुछाड़ि‍ करैबला अछि‍।‍
  पढ़ुआ काकाक बात लाल काकी बुझि‍ गेलखि‍न जे कतौ कि‍छु भेलनि‍हेँ। दू बीघा हटल अबाजमे लालकाकी बजलीह- एलौं।‍
  एलौं सुि‍न पढ़ुआ काकाकेँ सबुर भेलनि‍। लाल काकी मने-मन सोचैत जे पुरूखक लटारम्‍भ कि‍ धमना लटारम्‍भ कम होइए जे लगले सोझराएत। अच्‍छा कनी बौस कऽ शान्‍त कऽ देवनि‍। माल-जाल अबैक बेरि‍ अछि‍ करजानमे उपद्रव करत। सएह केलनि‍।
     पत्‍नीक अबाज सुि‍न पढ़ुआ काकाकेँ छाती दहलि‍ गेलनि‍। नाङड़ि‍ सुरैर कऽ वि‍द्यालय घर धड़ौलक। कतौ के ने रहलौं। मन गरमेलनि‍ बमकि‍ कऽ बजलाह- काल्‍हि‍ये वि‍द्यालय जा कऽ लि‍खि‍ कऽ दऽ देबै जे आइयेसँ छुट्टीमे जा रहल छी। मन हुअए तँ मनि‍आर्डर कऽ रूपैआ पठा दि‍अए नइ होइ तँ नहि‍ पठबए।‍ मुदा लगले मन थलथला गेलनि‍। जना माटि‍ पानि‍मे मि‍लि‍ भऽ जाइत। एना पाइयक खेल कि‍अए भऽ रहल अछि‍। वि‍द्यालयक शि‍क्षक होइक नाते एहि‍ खेलकेँ कि‍अए ने बुझि‍ रहलौंहेँ। कि‍ अर्थशास्‍त्र पढ़बक अभाव रहल?
     लग अवि‍ते लाल काकी बजलीह- चूड़ा भूजि‍, नोन-तेल-मरीच मि‍ला कऽ रखने छी नेने आएव?
  लाल काकीक बात सुि‍न पढ़ुआ काकाक मन मचकी जकाँ झुलए लगलनि‍। मुदा आससँ दोसर दि‍स भऽ गेलनि‍। खि‍सि‍या कऽ बजलाह- हूँ। चूड़ा-तूड़ा नै खाएब। रक्‍खू अपन चूड़ा-तूड़ा।‍
मुस्‍की दैत लाल काकी उत्तर देलखि‍न- हमरे छी अहाँक नै छी?
  पत्‍नीक बात सुि‍न मन सि‍हरि‍ गेलनि‍। बेरूका सूर्जक रौद जकाँ पढ़ुआ काकाक गरमी कमलनि‍। बजलाह- एकटा गप कहए चाहै छी?
  ‍भरि‍-भरि‍ राति‍ तँ गप्‍पे सुनलौं। अखन हाथ धुराएल अछि‍। हाथ-पाएर धोने अबै छी तखन अंडी तेलसँ घुट्ठि‍यो ससारि‍ देब आ गि‍रहो फोड़ि‍ देब। मन हल्‍लुक भऽ जाएत। सदति‍ काल कहैत रहै छी जे मोटर गाड़ी लऽ लि‍अ। अरामसँ जाएब-आएब। से हम्‍मर गप थोड़े सुनब। तइकालमे कहब जे मौगी-मेहरीक गप छी।
  लाल काकीक गप सुनि‍ पढ़ुआ काकाक मन आगि‍मे पकैत भट्टा जकाँ असुआ गेलनि‍। लजबीजी जकाँ दुनू पीपनी सटि‍ गेलनि‍। कल पड़ल रोगी जकाँ लाल काकी बुझि‍ सहटि‍ कऽ नि‍कलि‍ ठोकनो बाड़ी पहुँच गेलीह।
     अखन धरि‍ पढ़ुआ काकाक जि‍नगीक देल दस बीघा जमीन अन्‍हि‍। अपने जमीनकेँ सोलहन्नी बि‍सरि‍ गेलाह। खाली गाछी-बँसवारि‍टा धि‍यानमे रहलनि‍। कि‍सानक बेटी लाल काकीकेँ खेतीक सोलहो आना लूड़ि‍। अन्नक खेती बटाइ लगा लेने छथि‍, पाँच कट्ठा चौमास आ गाछीक सेवा टहल अपने करै छथि‍। दूटा गाइयो पोसि‍ये लगौने छि‍थि‍। जहि‍सँ सुभ्‍यस्‍त भोजन भेटैत। पक्का घर बना सब बेवसथो केनहि‍ छथि‍।
     हँसुआ, खुरपी, कोदारि‍ आङनमे रखि‍ लाल काकी झाड़ू लऽ कऽ आङन बहारि‍, कलपर पाएर-हाथ धोइ‍ पानि‍ पीवि‍तहि‍ रहथि‍ कि‍ मन पड़लनि‍ पति‍क रूसव। मन पड़लनि‍ अपन जि‍नगी। जाधरि‍ माए-बाप लग रहलौं बच्‍चा रहलौं, तेँ दुनू गोटेक इच्‍छा सदति‍ काल यएह रहनि‍ जे धि‍या-पूता कखनो कानए नहि‍। तहि‍ना तँ सासुर एलाक बादो भेल। बूढ़ी (सासु) सदति‍ काल कहैत रहै छलीह जे कनि‍याँ आङनाक मालि‍क स्‍त्रीगणे होइत छथि‍। तेँ आङनकेँ वि‍वाहक मड़वा जकाँ सतरंगा फुल लटकौने रही। यएह मि‍थि‍लाक धरोहर छी। एहेन कनि‍याँक कमी नहि‍ जे बेटा-बेटीसँ लऽ कऽ सासु-ससुर होइत पति‍ धरि‍क दुखकेँ अपन दुख बुझि‍ सती धर्मक पालन करैत एलीह-  सावि‍त्री, दमयन्‍ती। कड़ुआ कऽ कि‍छु कहब उचि‍त नहि‍। तहि‍ बीच दरबज्‍जा परक अवाज सुनलनि‍। हे भगवान, जानह तू।‍
  मने-मन पढ़ुआ काका संबंधमे सोचैत रहति‍। आमोक गाछी तेहन अछि‍ जे एक तँ दू मासक भोजन, तहूमे सभ साल नहि‍ये। गोटे साल मोजरबे ने करैत, तँ गोटे साल ि‍बजलोकेमे मोजर जरि‍ जाइत। गोटे साल बि‍हाड़ि‍येमे आमक कोन बात जे गाछो खसि‍ पड़ैए। गोटे साल तेहन दबाइ रहैए जे मोजरेकेँ जरा दैत अछि‍। मोटा-मोटी पाँच बर्खपर दू मास आम खा कऽ जीबि‍‍ सकै छी, वाकी.....?
     दरबज्‍जापर लाल काकीकेँ अवि‍तहि‍ पढ़ुआ काकाक टूटल मन कलपि‍ उठलनि‍। गोरथारीमे बैसि‍ लाल काकी बजलीह- पाएर सोझ करू।‍
  लाल काकीक बात सुि‍न, जहि‍ना तारक कम्‍पन्नसँ वीणाक स्‍वर बनैत तहि‍ना पढ़ुआ काकाक बोल नि‍कललनि‍- ‍पाएर नै टटाइए, हृदयक व्‍यथा छी।
  पति‍क बात सुि‍न फड़कि‍ कऽ चौकीपर सँ उठि‍ लाल काकी मधुआएल स्‍वरमे बजलीह- साँचे स्‍त्रीगणसँ सुनै छी जे पुरूख नङर-कट होइ छथि‍। कुत्ता जकाँ सदति‍ काल नाङरि‍ टेढ़े रहै छन्‍हि‍।‍
  जे बुझी।‍
  तेँ कि‍ स्‍त्रीगण अपन पति‍केँ मुइल कुकुड़ जकाँ कि‍ टाँगमे डोरी बान्‍हि‍ घि‍सि‍या कऽ बँसबीट्टीमे फेकि‍ आओत।‍
  चौकीपर सँ उठलौं कि‍अए? डाँड़ सोझे बैसू। बामा हाथ तँ दुनू गोटेक एक्के वृत्त करैत तेँ बामा हाथपर हाथ रखि‍ दहि‍ना हाथसँ छाती सहला दि‍अ।‍
  पढ़ुआ काकाक व्‍यथा सुि‍न लाल काकीक मन कानि‍ उठलनि‍। जाधरि‍ ओछाइनोपर पड़ल रहताह ताधरि‍..... सत्ती साध्‍वी तँ.....।
  चौकीपर बैसि‍तहि‍ पढ़ुआ काका आँखि‍मे आँखि‍ मि‍ला कहलखि‍न- सब अंगक दूरी समान अछि‍। वि‍धाताक बनाओल जि‍नगीक आधा भाग अहाँ छी।‍
  अहाँ छी।‍
  पढ़ुआ काकाकेँ मन पड़लनि‍ छठि‍यारीक भार। आनन्‍द-मग्‍न होइत पत्‍नीकेँ कहलखि‍न- भारी भूल भेल जे आहाँसँ भरि‍ मन कहि‍यो जि‍नगीक गप नहि‍ केलौं। जेकर प्राश्‍चि‍त अहाँ मुँहे सुनव।‍
  अवसर पावि‍ लाल काकी पुछि‍ देलखि‍न- अहीं कहू जे आइ धरि‍ कहि‍यो ई बात वुझा देलौं जे दुनू परानी कते दि‍न जीबि‍। जते दि‍न जीबि‍ ओते दि‍न कहेन जि‍नगी जीबि‍। राजा-दैवि‍क कोनो ठेकान छै जे अहीं कहि‍या मरब आकि‍ हमहीं कहि‍या मरब? अखन दुनू परानी जीवै छी मुदा इहो तँ भऽ सकै-ए जे एक गोरे जीबी आ एक गोरे मरि‍ जाइ।‍‍
  पत्‍नीक बात सुि‍न उछलि‍ कऽ चौकीपर सँ ठढ़ होइत बजलाह- नोकरी छीनि‍ नि‍हत्‍था केलक मुदा तेँ कि‍ मरि‍ जाएव। जँ अन्‍हरा-नेंगरा सौंसे जि‍नगी बना गामक आगि‍सँ अपन रक्षा कऽ सकैए तहन......।‍
जगदीश प्रसाद मंडल
कथा
अतहतह

तीन बजे भोरे झामलाल बैग नेने गरजैत चौकपर पहुँचल। ओना एकादशीक चान डुबि‍ गेल रहए मुदा सुरूजक लालीसँ दि‍शा फरि‍च्‍छ हुअए लगल। झामलालकेँ चौकपर अबैसँ पहि‍ने भुटुकि‍लाल ि‍डबि‍या बारि‍ चाहक चुल्‍हि‍ पजारि‍ नेने रहए। पाँच बजे चुल्‍हि‍मे आगि‍ पजारैबला अढ़ाइये बजे पजारैक सुरसार करए लगल रहए। तेकर कारण भेल रहए जे पनरह दि‍नसँ राहड़ि‍क दालि‍मे रोटी गुड़ि‍ कऽ नहि‍ खेने रहए। तै खाति‍र खाइये काल दुनू परानीक बीच झगड़ा भऽ गेल रहए। नहि‍ खेने माटि‍येसँ चारि‍ घुस्‍सा दाँतमे लगा, कुड़ुड़ कऽ झामलाल दोकानपर पहुँच बाजल- भुटुकि‍ भाय, रौतुका सोठि‍याएल छि‍अ। खेवाक ि‍कछु नहि‍ रखने छह?
  ‍अच्‍छा पहि‍ने अधा-अधा कप चाह पीवि‍ लि‍अ। जहि‍ना अहाँ सोठि‍याएल छी तहि‍ना हमहूँ छी। आन चीज कि‍ भेटत। बि‍स्‍कुट सबमे कोनो लज्‍जैत रहै छै। मुदा छालही अछि‍।
  चलह हुन्‍डे दाम कहि‍ दहक?
  सबटा अहीं लऽ लेबै आ अपने?
  पाइ हम्‍मर आ खाइमे दुनू गोटे अधा-अधी।‍ अधा-अधी सुनि‍ भुटुकि‍लाल उछलि‍ कऽ बाजल- अधा कि‍लोसँ बेसि‍ये हएत, मुदा अहाँ एक्के पौआक पाइ दि‍अ।‍
  एहनो बुड़ि‍बक जकाँ कि‍यो बजैए। बैग खोलि‍ कऽ देखि‍ लहक। एक कि‍लोक पाइ आ सवा सौ रूपैया उपरसँ देवह। खाली भरि‍ दि‍न संग पुरह।‍
  ‍हम तँ पेट-बोनि‍या आदमी छी भाय। जतऽ पेट भरत ततऽ रहब।
  चौकक खर्च हम देलि‍यह आ मालि‍क तू भेलह। मुदा पहि‍ने खा लाए कि‍एक तँ भरि‍ दि‍न बहऽ पड़तह।‍
     अधा-अधा छालहीमे सँ उठा-उठा मुँहोमे दैत आ गप्‍पो करैत टटके छालही बुझि‍ पड़ै छह।‍
  कौल्‍हुके छी।‍
  छालहीक रस तँ तेसर दि‍नसँ बनव शुरू होइ छै। मुदा टटकोक अपन रस छै। आइ गामक झंडा गारि‍ देलि‍यह।‍
  से की, से की? बगुला जकाँ मुँह उठा-उठा भुटुकि‍लाल झामलालसँ पुछलक। पानि‍ पीवि‍ झामलाल बाजल- हमरा तँ बुझि‍ते छह जे बैग आ मोटरे साइकिलमे कारोबार अछि‍। मुदा कहुना-कहुना पाँच लाख पीटि‍ये दैत हेबइ। बान्‍हल तँ अछि‍ नहि‍। दसटा कम्‍पनीक एजेंसी रखने छी जेकर जाल सगरे देशमे छै। एते पहुँच रखने छी। जहि‍ना आइ खच्‍चरपुर बलाक खच्‍चरपनी झाँड़ि‍ मुता-मुता भरेलौं तहि‍ना ओकर आगि‍-पानि‍ कथा-कुटुमैति‍यो ढाठि‍ देबइ। तइले नअ पड़े कि‍ छह।‍
  ठीके कहै छी भाय, एहेन-एहेन अगि‍लह सभकेँ एहि‍ना हुअए।‍
     चाह पीवि‍ झामलाल बाजल- भाय, अइपर सँ जे पान सए नम्‍बर पत्ती देल पान खइतौं तँ आरो बुलन्‍दी आबि‍ जइतै‍।
  भाय, पान तँ तेहन खुआ दैतौं  जे जेहेन बुलन्‍दी चाही तहूसँ सातबर बेसी आबि‍ जाइत। मुदा पानबला छौड़बा अछि‍ मौगि‍याह। बसन्‍ती नीन छोड़ी औत। सात बजेसँ पहि‍ने थोड़े औत। ताबे सुपारी आ तमाकुलक पत्ती दऽ काज चला लि‍अ।‍
  तोहूँ भारी इसकी छह। आइ तोरे दरबारमे आसन जमेहब। जना-जना तू कहबह तेना-तेना करब। मुदा एकटा बात अखने अइ दुआरे कहि‍ दइ छि‍यह जे बि‍रड़ोमे झंडा उड़ि‍या देलि‍यै मुदा ओकरा तँ बाँसमे लगा जमीनमे गाड़ए पड़त की ने?
अहाँ खाली बैगक ताला खोलि‍ कऽ रखने रहू एक्के घंटामे चौकक चकचकी देखा दइ छी।‍
  उतसाहि‍त भऽ झामलाल- भाय, तोरे सबहक असि‍रवादसँ दूपाइयो देखै छी आ दूटा लोको लगमे रहै छी। मुदा कमेनाइये-खेनाइटा तँ जि‍नगी नइ ने छि‍ऐ। फेरि‍ दोहरा कऽ सुन्‍दरपुरमे जन्‍म लेब। तेँ जहि‍ना गामक झंडा अकासमे उड़ि‍आएल तहि‍ना बचबैले जे करए पड़त, से करब।‍
  अच्‍छा छोड़ू अगि‍ला बात, अखैन की करब से वि‍चारू।‍
  तोहीं बाजह?
  दूटा चाहबला छी। दूटा पानबला अछि‍। तीनटा मजरूटी अछि‍। भरि‍ दि‍नक खर्च उठा लि‍अ।‍
  मजरूटी की कहलहक?
  मैजरि‍टी‍, एक मजरूटी गाँजा पीआकक अछि‍। दोसर ताड़ी-पोलि‍थीनबला अछि‍ आ तेसर इंग्‍लीस पीआकक अछि‍।
  तीनूमे कते खर्च हेतह?
  अहाँ खाली बैगक मुँहमे हाथ देने ने रहि‍औ। सब गप ने कऽ लेब।‍
  सब तँ फुट-फुट बैसत तखन रौतुका बात कहबै कना?
  मामूली लोक सबहक मजरूटी छी। सब कलाकार सबहक छी। जखने चाहक दोकानपर औत आ भरि‍ दि‍नक मौज-मस्‍ती गछि‍ लेबइ तखने चौकक ताल देखि‍ लेबइ।‍
  कि‍छु कहबहक नइ?
  कहबै कि‍ मंत्र देबइ। दुइयेटा मंत्र दैक काज छै। अकासमे झंडा उड़ि‍ गेल आ खच्‍चरपुरबलाकेँ‍ सभ खचड़पनी घोंसारि‍ देलि‍ऐ। माटि‍ दइ छि‍ऐ जे जतऽ फड़ि‍अबैक मन होय फड़ि‍या लि‍अ हमरा समाजसँ।
     घंटे भरि‍क पछाति‍ चौकक जुआनी आबि‍ गेल।
क्रमश:
 १.दुर्गा नन्‍द मंडल- बुढ़ि‍या फूसि‍ .जितेन्द्र झा- नव विवाहिताक लेल नव उमंग लाबए एहन मधुश्रावणि
३. बेचन ठाकुरक नाटक- बेटीक अपमान आगॉं- . नन्‍द वि‍लास राय- कथा- चौठचन्‍द्रक दही ५.दुर्गानन्‍द मंडल- शि‍व कुमार झा टि‍ल्‍लू जीक लि‍खल खोंइछक लेल साड़ी- कथापर दू शब्‍द


दुर्गा नन्‍द मंडल

बुढ़ि‍या फूसि‍


कि‍छु कहैत संकोच नहि‍, लाजो नहि‍ होइत अछि‍ जेना नि‍र्लज्‍ज भऽ गेल छी। आँखि‍क पानि‍ जेना सुखि‍ पड़ल हो। एहन बुझना जाइत अछि‍ जेना द्वापरेसँ अथार्थ ६३जन्‍म पहि‍नहि‍सँ फूसि‍क खेती करैत आि‍व रहल छी, नि‍श्‍तुकी बाप-पुरखा सेहो एहेने सि‍द्धस्‍त खेति‍हर हेताह। मुदा उपजा ताहि‍ समएमे कम होइत छल, आ आइ बुझू जे बोड़े कट्ठा फूसि‍ सभठाँ उपजि‍ रहल अछि‍। आ सभ सभ दि‍न सभठाम फूसि‍ये फूसि‍ बाजि‍ रहल हो। यर्थातोमे २६जनवरी हो या १५अगस्‍त, एहनो राष्‍ट्रीय पावनि‍क सुअवसरोपर बाजव हमरा लोकनि‍ अपन जन्‍म सि‍द्ध अधि‍कार बुझैत छी। सरकारी वा कोनो गैर सरकारी कार्यालय कि‍एक ने हो, राष्‍ट्रक सम्‍मानक अढ़मे अपमान करब हमरा लोकनि‍ नहि‍ वि‍सरि‍ पवैत छी। ि‍सया लैत छी बेस नम्‍हर-चारि‍ मीटर खादीक एकटा डलगर कुर्त्ता, एक गोट पैजामा आ एकटा गाँधी टोपी। आध सेर सुतरी दू जि‍स्‍ता सभ रंगक कागत आ कागतेक बनल प्‍लेट। उज्‍जर आ ईंटा रंगक बुकनी, पुरने झंडाकेँ साफ-सुथरा कऽ कि‍छु फूल लऽ सए-पचास झूठाक समक्ष झंडोतोलनक वाद छोड़ए लगैत छी, फूसि‍क गपौड़ी। अनेने व्‍यर्थ- कि‍एक तँ आत्‍मासँ एहेन कोनो गप्‍प नहि‍ जे स्‍वीकार करैत हो, मुदा अनेरे ठोर पटपटा-पटपटा अपनाकेँ सूच्‍चा देश भक्‍त, कर्मठ, सुयोग्‍य, इमानदार पदाधि‍कारी वा कर्मचारी सावि‍त करए लगैत छी- फूसि‍क बखारी खोलि‍ दैत छी। एकसँ बढ़ि‍ कऽ एक फूसि‍ बजैत छी झुट्ठा सभ थोपड़ी बजवैत अछि‍। उहो थपड़ी पारए लगैत अछि‍। फूसि‍ए चन्‍द्रशेखर आजाद, गाँधी, नेहरू, भगत सि‍ंह, उधम सि‍ंह, सुभाष आदि‍क नाम लऽ बच्‍चा सभकेँ फूसलाबए चाहैत छी। फूसि‍ये राष्‍ट्रक वि‍कासक लेल छि‍ट्टाक-छि‍ट्टा सप्‍पत कि‍रि‍या खाइत छी। कि‍रि‍या खाइत-खाइत ने तँ पेट भरैत अछि‍ आ ने मुँह दुखाइत अछि‍। एकरो एकटा कारण अछि‍ जे हमरा लोकनि‍ पुस्‍तैनी झुट्टा छी। सालमे तीन-चारि‍टा एहेन पावनि‍ तँ जरूर अबैत अछि‍ जे भरि‍ मन फूसि‍ बजैत छी से कोनो की चोरा कऽ नै यौ ि‍चकरि‍-ि‍चकरि‍ फूसि‍ बजैत छी। आ फूसि‍याही सभ सुनैत रहैत अछि‍।
     मुदा जखन सेबै-बुनि‍याँ रूपी प्रसादक तलक लगैत अछि‍ तखने फूसि‍क सप्‍पत खा वि‍राम लैत अछि‍। तत्पश्‍चात बुनि‍याँ-भुजि‍या खा तृप्‍ति‍क ढेकार लऽ उगरलाहा बुनि‍याँ-भुजि‍या रूमालमे बान्‍हि‍ अपन-अपन जन्‍म स्‍थानपर अबैत छी।
     कहूँ जे एहेन तरहक जे व्‍यर्थ बातक संभाषण करब कहाँ तक उचि‍त? राष्‍ट्रकेँ ठकब कि‍ अपने ठकाएव नहि‍ थि‍क। कि‍ फूसि‍ बाजि‍ अपने आपकेँ नहि‍ परतारि‍ रहल छी? राष्‍ट्र ध्‍वजक समक्ष लेल यएह सभटा सप्‍पत साँच अछि‍ आकि‍ बुढ़ि‍या फूसि‍? सत्ते- ई थि‍क बुढ़ि‍या फूसि‍।
जितेन्द्र झा
नव विवाहिताक लेल नव उमंग लाबए एहन मधुश्रावणि
 
बबिता ठाकुर दिल्लीसँ मधुश्रावणी पुजऽ अपन नैहर जनकपुर आएल छथि । भोरसँ साँझधरि पुजेमे अपस्याँत बबिता मिथिलाक सँस्कृति आ परम्परासँ निकजकाँ भिजबाक अवसर भेटल कहैत खुशी व्यक्त करैत छथि ।
तहिना रीमा झा सेहो काठमाण्डूसँ जनकपुरमेँ आविकऽ मधुश्रावणी पुजलनि । एक निजी च्यानलमे समाचारवाचिका रीमा एहि पावनिसँ आत्मीयता जुडल बतबैत छथि । हिनके सभजकाँ बहुतो मैथिल ललना अपन व्यस्त जीनगीक पन्द्रह दिनमे मधुश्रावणीक आनन्द उठौलनि । पढाइ लिखाइ आ पारिवारिक झन्भटिके कतियबैत नवविवाहितासभ गीत नाद  आ खिस्सा पिहानीक आनन्द उठौलनि मधुश्रावणी पावनिमे ।
साओन महिनाक रीमझिम वर्षा आ ताहिमे सखी बहिनपा सभक सँग फुल लोढबाक आनन्द शायदे कोनो आन संस्कृतिमेँ होइक ।
नवविवाहिता मैथिल महिलासभक जीवनमेँ नव रोमाञ्च लऽ कऽ आएल मधुश्रावणी । लोककथा आधारित ई मधुश्रावणी वैवाहिक जीवनके एकटा अदभुत आ हृदयस्पर्शी शुरुवात बनल अछि । नवविवाहिता जोडीके एक दोसराके बुझबाक परखबाक अवसर सेहो जुडा दैत अछि ई पाबनि ।

पावनि पूजू आज सोहागिन प्राण नाथके संग हे ।
कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथ हे ।
चानन घसू मेहदी पिसू लिखू मैना पात मे ।
पावनि साजी भरि भरि आनल जाही जुही पात मे ।
कतेक सुन्दर साज सजल अछि लिखल मैना पात मे । ’ (पावनिक गीत ) 


ओना नोकरिहारा वरसभक लेल मधुश्रावणी पावनि फिक्का रहल । कनिञाक संगहि कोहवर घरमेँ बैसकऽ काम दहन आ गौरी महादेवक विवाहक कथा सुनबाक अवसर अमेरिकामे रहल प्रमोद झाके नहि भेटलनि । जनकपुर पिरडियामाइस्थानक प्रमोद वितलाहा अषाढ महिनामे परिणय सुत्रमे बान्हल छलाह । गामसँ कोशो दूर रहल कनिञासभ भलेहि पुजा पुजऽलेल नैहर पँहुच गेलि होथि मुदा वरसभके त मन मसोसिएकऽ रहऽ पडलनि ।
मिथिलामे पण्डिताइयक प्रथाके विपरीत ई पाबनि महिलेद्वारा पुजाओल जाइत अछि । समाजक वा घर परिवारक प्रौढ महिला पवनैतिके ई पाबनि पुजबैत छथि ।
ई पाबनि नवकनिञा अपन नैहरमे पुजैत छथि तेँ विवाहक बाद सासुरक जिम्मेवारीवहनके दायित्वक बीच नैहरक मनोरन्जन सुखदायी भऽ जाइत अछि । पुजावास्ते प्रयोग होबऽबला सभ समानसभ कनिञाक सासुरेसँ अबैत छैक, पुजा नैहरमे मुदा पुजाक वस्तु सासुरक ।
मधुश्रावणी पुजा कोहवर घरमेँ करबाक प्रचलन अछि । वर कनिञाक नितान्त व्यक्तिगत घर कोहवरके मधुश्रावणीलेल निक जकाँ सजाओल जाइत अछि । विवाहक बाद मधुश्रावणीमे वर कनिञा कोहवरके श्रृंगार बनि जाइत अछि ।
कोवर कोवर सुनियै हे प्रभु कोवर कोना होइ हे ।
पिसु पिठार लिखू जल पुरहर कोबर एहन होइ हे ।
ताहि कोवर सासु पलंगा ओछाओल ओलरल धीया जमाय हे ।
घुरि सुतु फिरि सुतु ससुरक वेटिया अहाँ घामे गरमी बहुत हे ।
हम नहि घुरबै अहाँक बोलिया पर घर बाज कुवोल हे । ’ (कोबरक गीत )
साओन इजोरिया पक्षक तृतीया दिन सिन्दुरदान होइत अछि । ई सिन्दुरदान अहिवातक तेसर सिन्दुरदान होइत अछि । एहिसँ पहिने विवाहक राति आ चतुर्थीक भोरमेँे सिन्दुरदान भेल रहैत छै । मधुश्रावणी विवाहके पुर्णता देबऽबला पाबनि बनि गेल अछि ।   
मिथिलामेँ विवाहपुर्व वर कनिञा एक दोसरासँ विल्कुल अन्चिन्हार रहैत अछि एहन मे मधुश्रावणी पावनि आ साओनक महिना सामीप्यतालेल सहज अवसर जुटा दैत अछि । कतबो व्यस्त जीवन होइतो प्रायः नवदम्पत्ति एहिमेँ संगहि कथा सुनैत छथि एहिसँ सामाजिक आ पारिवारिक समरसता बढबामेँ मदति भेटैत अछि ।
मधुश्रावणीमेँ सासुरसँ पठाओल गेल दीपक टेमी दगबाक चलन अछि । एहि चलनके सभ गोट अपने तरहसँ देखैत अछि । टेमीक फोँका सौभाग्यक प्रतीक मानैत अछि मैथिल महिला ।
शीतल बहथु समीर, दही दिश शीतल लेथु उसासे ।
शीतल भानु लहुक लहु उगथु शीतल भरल अकासे ।
शीतल सजनि गीत पुनि शीतल शीतल विधि व्यवहारे ।
शीतल मधुश्रावणी विधि हो शीतल वसन श्रृंगारे ।
शीतल घृत शीतल वर वाती शीतल कामिनी आँगे ।
शीतल अगर सुशीतल चानन शीतल आबथु माँगे ।
शीतल कर लए नयन झपावह शीतल देलह पाने 
शीतल हो अहिवात कुमर संग शीतल जल अस्नाने । ’ (टेमी कालक गीत)

संस्कृतिविद्सभ मिथिलामेँ मुगल शासकके आक्रमणके बाद पतिव्रताक रक्षाके लेल एहन चलन शुरु भेल कहैत छथि ।
बदलैत समयक प्रभाव मधुश्रावणी पावनि पर सेहो देखा रहल अछि । फुल गुलसँ भरल गामघर आब सुनसान प्राय भऽ रहल अछि । एहनमेँ जाही जुही, अगर तगर, नीम दाडिम आ मेहदीक पातसभ सनके वस्तु भेटब कठिन भऽ जाइत अछि । शहर बजारमे रहनिहार पवनैतिन सभके एहन वस्तुक अभाव खटकल करैत छन्हि । फुल लोढीलेल सेहो आव फुलवारी सभ नहि रहि गेल अछि जे रंग विरंगक फुल तोरि सखी बहिनपा डाला सजेबाक प्रतिस्पर्धा कऽ सकथि ।
बेचन ठाकुरक नाटक-
बेटीक अपमान आगॉं-

अंक दोसर

दृश्‍य पहि‍ल-

(स्‍थान- महेन्‍द्र पंडि‍तक आवास। महेन्‍द्र पंडि‍त दीपक चौधरीक नङोटि‍या संगी। दीपक अपन संगी महेन्‍द्रक ओहि‍ठाम जा रहला अछि‍।)

दीपक-             महेन्‍द्र बावू, यौ महेन्‍द्र बाबू, महेन्‍द्र बाबू।
महेन्‍द्र-       हँ, हँ आबि‍ रहल छी। कने बरतन गढ़ैमे हाथ लागल अछि‍। बैसू, तुरत अएलहुँ।

            (दीपक बैस जाइत छथि‍। शीध्र महेन्‍द्रक प्रवेश होइत छन्‍हि‍।)
महेन्‍द्र-       जय रामजी की दोस।
दीपक-             जय रामजी की।
महेन्‍द्र-       कहु दोस, आइ केम्‍हर सूर्य उगलैए, कहु कनि‍या-बहुरि‍या ओ धि‍या-पुताक हाल                   चाल।
दीपक-             दोस, अहाँ एखन धरि‍ नहि‍ बुझलौहुँ। कनि‍या हमर पौरे साल स्‍वर्गवास भए गेली।          खूनी बेमारी भए गेल छलन्‍हि‍। मुदा धि‍या-पुताक कुशल बढ़ि‍या अछि‍।

महेन्‍द्र-       बेटा-बेटी कए गोट अछि‍ दोस?
दीपक-             कहॉं कोनो बेसी अछि‍। मात्र तीनि‍टा बेटे अछि‍ बेटी नहि‍।
महेन्‍द्र-       तहन तँ जीतल छी दोस। अगबे चानीए अछि‍।
दीपक-             दोस अहॉंकेँ?
महेन्‍द्र-       हमहुँ कोनो बेजाए नहि‍ छी। हमरो चारि‍टा बेटे अछि‍।
दीपक-             तहन तँ अहॉंकेँ सोने अछि‍।
महेन्‍द्र-       आब कहु दोस, केमहर-केमहर पधारलहुँ अछि‍।
दीपक-             यएह, बड़का बेटा मोहनक लड़ि‍कीक जोगारमे। अपने गाम-घरमे वा आस-पासमे                  कोनो नीक लड़कीक नहि‍ अछि‍?
महेन्‍द्र-       यौ लड़ि‍कीऽ......, लड़ि‍कीक बड़ अभाव देखि‍ रहल छि‍ऐक।हमरा गाममे बेसी               लड़ि‍के देखाइत अछि‍। चौधरी टोलमे एक दि‍न कि‍यो बजैत छलाह जे हमरा टोलमे         नामो लए बेटी नहि‍ अछि‍। कि‍नको एगो बेटा, कि‍नको दुगो, कि‍नको पाँच गोट।
दीपक-             ई तँ समस्‍या बुझाए रहल अछि‍ दोस। खाइर देखैत छी अपन मामा गाममे जा                  कऽ। बेस तहन, जय राम जी की।
महेन्‍द्र-       जय रामजी की।

      (दीपकक प्रस्‍थान)
      पटाक्षेप
दोसर दृश्‍य-

      (स्‍थान- सुरेश कामतक मकान। सुरेश कामत दीपक चौधरीक मामा छथि‍न्‍ह।        दीपक सुरेश ओहि‍ठाम पहुँच रहला अछि‍। दीपकक ममि‍औत भाए सोनू छथि।

दीपक-             मामा, मामा, सोनू, सोनू, मामी, मामी।
      (दीपक सोर पाड़ैत-पाड़ैत अन्‍दर घुसैत छथि‍। फेरि‍ शीध्र मामाक संग प्रवेश। दुनू कुर्सीपर     बैस कऽ लड़ि‍का-लड़ि‍कीक संबंधमे गप-सप्‍प करैत छथि‍।)
सुरेश-        कहऽ भागि‍न, पहि‍ने घरक हालचाल।
दीपक-             मॉं सरस्‍वतीक कि‍रपासँ आ अपने सबहक चरणक दुआसँ सब ठीके अछि‍ मुदा                   एक गोट गड़बड़ अछि‍।
सुरेश-        से की भागि‍न?
दीपक-             से यएह जे कनि‍याक मूइलाक उपरान्‍त हमरा भनसा-भातमे, घर-गृहस्‍थीमे बड़                   कष्‍ट होइत अछि‍। कोनहुँ लड़ि‍कीक सुर-पता अछि‍ मामा श्री अपन बड़का बौआ                  लेल।
सुरेश-        हँ हँ, बलवीर चौधरी एक दि‍न बजैत छलाह जे हमरा एहि‍ बेर एक गोट                        कन्‍यादान केनाइ अछि‍।
दीपक-             तहन बुझि‍यौक ने मामीश्री। लड़ि‍कीकेँ भऽ गेलैक वा नहि‍। लड़ि‍की अहॉं देखने                   दि‍ऐक मामा?
सुरेश-        हँ, हँ, जरूर देखने छि‍ऐक। लड़ि‍की तँ सएमे एक अछि‍।
दीपक-             मामाश्री, कने हुनका एहि‍ठाम जा कऽ बुझि‍यौक।
सुरेश-        बेस भागि‍न, अहॉं घर जाउ। जदि‍ लड़ि‍कीकेँ नहि‍ भेल होएतन्‍हि‍, तहन ई कुटमैती          अवस्‍स कराए देब।
दीपक-             पार्टी केहेन अछि‍ मामा?
सुरेश-        पार्टी गरीबे जकाँ अछि‍। ओना पहि‍ने हमरा बलवीर चौधरी ओहि‍ठाम जाए दि‍अ                  तहन ने।
दीपक-             बेस, जाउ मामाश्री।


(सुरेशक प्रस्‍थान)
      पटाक्षेप-
क्रमश:
 
नन्‍द वि‍लास राय

कथा-

चौठचन्‍द्रक दही-


आइसँ चौठचन्‍द्र पावनि‍ चारि‍ दि‍न अछि‍। चारि‍म दि‍न तँ पावनि‍ हेबे करत। तेँ ओइ दि‍न दही नै पौरल जाएत। सोमनी जन्‍मअष्‍टमीसँ पहि‍नहि‍ गुरकी हटया बनगामासँ तीनटा छाँछी आ दूटा मटकुरी कि‍न कऽ अनने छलि‍। सोचलक जे पहि‍ने कीनलासँ बासन सस्‍ता हएत मुदा से नहि‍ भेल। पॉंचटा माटि‍क बासन पच्‍चीस टाकामे भेल। अपना ते नै महि‍से छल आने गाइये। सोमनी सोचलक अपना गाए-भैंस नहि‍ अछि‍ तँ की हेतै सौंसे गाममे तँ गाइये-भैंस अछि‍। की हमरा दस गीलास दूध नै हएत। जौं दूओ-दू गि‍लास कऽ कए पॉंच गोटे दूध दऽ देलक तैयो पॉंचटा बासनमे दही भऽ जाएत। मरर लेल खीर रान्‍हैले भजैत ओहि‍ठामसँ एक्‍को गि‍लास दूध लऽ आनव केनाहि‍ओ कऽ पावनि‍ कऽ लेब।
      सोमनी आ मंगल दू परानी। मंगल दि‍ल्‍लीमे दालि‍ मि‍लमे नौकरी करैत। सोमनी गाममे खेती-बाड़ीक काज करति‍। सेामनी-मंगलक परि‍वारमे पॉंच गोटे छल। सोमनी, मंगल, बेटा राधे आ बेटी फूलि‍या, गुलबि‍या। पॉंचो परानीक नाओपर सोमनी पॉंचटा बासनमे दही पौर चौठी चॉंद महराजकेँ हाथ उठबैत छलि‍। सोमनी एक बीघा खेत छल। एकटा बरद रखने छल। गामेमे बीतबासँ हरक भॉंज लगौने रहए। नूनू बावूक दस कट्ठा खेतो बटाइ करैत छलि‍। अपन खेतीक वाद हर बेचीयो लैत छलि‍। जहि‍सँ कि‍छु ढउआ सेहो भऽ जाइत छलै। मंगल तँ दि‍ल्‍लीएमे कमाइत छल तेँ बीतबा सोमनीओक खेतमे हर जोति‍ दैत छल। बीतबाकेँ अपन डेढ़ बीघा खेत छल आ एक बीघा बटाइ करैत छल। तँइ बीतबा सेामनीओक खेत जोति‍ दैत छल। बीतबाकेँ हर जोतैक बदलामे सोमनी बीतबाकेँ खेत रौपि‍ दैत छलि‍। दुनू गोटेमे मि‍लानी खुब रहए।
      काल्‍हि‍ चौठचन्‍द्र छी मुदा आइ सॉंझ धरि‍ सोमनीकेँ कि‍यो एक्‍को गि‍लास दूध नहि‍ देलक। जे ओ कोनो बासनमे दैत। ओकर मन घोर-घोर भऽ गेल। ओ बड्ड खौझा गेलि‍। अपना आंगनमे खौंझाइत बजलि‍- हमर बेगरता लोककेँ नै हेतै। जँ गाममे रहब तँ आइ ने काल्‍हि‍ हमरो बेगरता लोककेँ पड़बे करतै। तहि‍या मन पाड़ि‍ दैबनि‍।‍ माएकेँ खौंझाइत देखि‍ बेटा राधे बाजल- माए गै चून चून बाबा जे मरल रहथीन तँ हुनकर भोजमे देखलि‍ऐ पाउडरक दही पौरने। चौकोपर दैखै छीऐ जइ चाहबलाकेँ दूध सधि‍ जाइए तँ पाउडरेकेँ घोड़ि‍ कऽ चाह बनबैत अछि‍। कह ने तँ चौकपर सँ आधा कि‍लो पाउडर आनि‍ दै छि‍ओ। ओकरा खूब कऽ औंट लि‍हेँ आ बासन सभमे दही पौर लि‍हेँ।‍
  बेटाक बात सुनि‍ सोमनी बाजलि‍- पोडरबला दूधक दहीसँ पावनि‍ कोना हएत।‍
  राधे बाजल- जँ गाए, भैंसक दूध नै भेटलौ तँ की करबीही। पाउडर तँ गाइये महि‍सि‍क दूधकेँ बनैत अछि‍।‍
  सोमनी गुन-धुन करैत बजली- ठीक छै। जँ चौठी चॉंद महराज अपना गाए-भैंस नहि‍ देने छथीन तँ पोडरेक दूधसँ पावनि‍ करब। जो भुटकुनक दोकानसँ आसेर नीमनका पाेडर नेने आ।‍ आ हे दू टाकाक जोरनले दहीओ लए लिहेँ।
  राधे चौकपर वि‍दा भेल। ओतएसँ पाउडर बला दूध नेने आएल। ओइ दूधकेँ औट दही पोरलक।
      आइ चौठचन्‍द्र छी। भोरे सोमनी राधेकेँ लोटा दऽ कऽ बीतबा ओहि‍ठाम दूध आनेले पठौलक। बीतबा आइ बैसले अछि‍ कि‍एक तँ पावनि‍ छीऐ। राधेकेँ देखि‍ते बाजल- लोटा राखि‍ दही दूध खीर रन्‍हैले हम तोरा माएकेँ गछने छेलि‍ओ मुदा अखन नै हेतौ। सॉंझमे लऽ जहि‍हेँ।‍
  सॉंझखन जखन राधे दूध आनैले गेल। बीतबा चाहबला गि‍लाससँ एक गि‍लास दूध देलक। दूध देखि‍ सोमनी दुखी भऽ गेलि‍। सोचलक जे एतबे दूधसँ खीर कोना रान्‍हल जाएत। मुदा कोनो उपाए नहि‍। तेँ ओही दूधमे पानि‍ मि‍ला खीर रान्‍हलक।
      सोमनी चौठी चाँद महराजकेँ हाथ उठबैत कहलक- हे चौठी चॉंद महराज जँ हमरा दरवज्‍जापर एकटा नीक लगहैर गाए भऽ जाएत तँ अगि‍ला साल एक छॉंछी दही आओर देब।‍

क्रमश:
दुर्गानन्‍द मंडल, नि‍र्मली
शि‍व कुमार झा टि‍ल्‍लू जीक लि‍खल खोंइछक लेल साड़ी- कथापर दू शब्‍द-

कथा पढ़ल ि‍चन्‍तन कएल, बुझना गेल कथा यथार्त परख अछि‍ जेना कथाकार अपनहि‍ एहि‍ स्‍थि‍ति‍सँ गुजरल होनि‍। यदि‍ अनुभव हमर सत्‍य तँ सार्थकता शत्-प्रति‍शत।
     एक कात कथाकार वि‍द्यापति‍क भूमि‍कामे छथि‍ मनमे सि‍नेह छन्‍हि‍ जे माए कने ओ भूमि‍का देख लेती तँ हमरा नीक लागत। एम्‍हर माए ओलतीमे गुम-सुम बैसल छलीह कारण महाअष्‍टमीक राति‍ एक टूक अखड़ साड़ी नहि‍ रहलाक कारणे ओ भगवतीक खोंइछ काेना भरती? ई जाि‍न बालक मातृत्‍व प्रेमवश बावूजीक साखपर कपड़ाबला महाजनक दोकानसँ एकटूक साड़ीक पन्नी माएक हाथमे थमा दैत छथि‍न। माएक टूटैत वि‍श्‍वास मायक रूपमे नहि‍ अपि‍तु बेगुसरायक बेटी रूपमे स्‍पष्‍ट होइत अछि‍। हाथक चुड़ी टूटव, काँचक कि‍छु कण माएक हाथमे गड़ब आ टप-टप शोनि‍तक आपादान- कवि‍जीक साखपर दाग सदृश्‍य बुझना गेल। मुदा सत्‍य जानि‍ अपन अपराध बोधक अनुभव कऽ माए बैस बालककेँ कोरामे लऽ कऽ सि‍नेह सागर अवि‍रल धारा प्रवाहि‍त केलनि‍। सारत्‍व स्‍वरूप स्‍वामीक अर्थात कथाकारक बावूजीक आनल लाल रंगक सि‍फनक सोहनगर साड़ी नहि‍ पहि‍र बालकक आनल सुती साड़ीसँ भगवतीक ख्‍ाोंइछ भरब, प्रभु प्रेमक एकटा अलग पराकास्‍ठाक परि‍चएकेँ पाठक बन्‍धु नहि‍ बि‍सरि‍ सकताह। कथाक सार्थकतापर इजोत छोड़ैत अछि‍। जे नि‍श्‍तुकी एकटा माजल कथाकारक कथा बुझना जाइछ। मुदा जँ मॉं.... क जगह कोनो आन उपयुक्‍त, समुचि‍त शब्‍दसँ सजवि‍तथि‍ तँ कथामे मैथि‍ली समृद्धता आरो स्‍पष्‍ट होइत। शेष सभ चि‍कनहि‍ चि‍क्‍कन। धन्‍यवाद- ।


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