भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Monday, August 30, 2010

'विदेह' ६४ म अंक १५ अगस्त २०१० (वर्ष ३ मास ३२ अंक ६४)-PART II



धीरेन्द्र प्रेमर्षि
मधुश्रावणी : मिथिलाक पारम्परिक हनिमून

भूगोलसँ विलुप्त भऽ चुकल मिथिला जँ एखनोधरि अस्तित्वमे अछि तँ एकरा पाछाँ एक्कहिटा कारण छैकएहिठामक लोकवेदमे रहल बौद्धिक ऊर्जा आ मैथिल संस्कृतिमे रहल विलक्षणता एवं वैज्ञानिकता। मिथिलामे जीवनक विविध रोमाञ्चक घड़ि एवं महत्त्वपूर्ण क्रियाकलापकेँ सांस्कृतिक आवरण ओढ़ाकऽ धार्मिकता एवं सामाजिकतासँ आवद्ध कएल गेल छैक। लोकव्यवहारमे प्रचलित क्रियाकलापसभसँ मात्र सेहो ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे एकर गर्भमे एखनो बहुतो बहुमूल्य रत्न नुकाएल छैक। एहीसभ कारणे एखनोधरि मैथिल संस्कृति जीवन्त अछि आ मिथिला अस्तित्वमे अछि। आजुक सन्दर्भमे तँ इहो कहब अतिशयोक्ति नहि बुझाइत अछि जे नेपालमे मिथिले एकटा एहन सांस्कृतिक सम्पदा अछि, जकर आङुर धऽकऽ मधेश नामक राजनीतिक क्षेत्र डेगाडेगी दऽ रहल अछि। भारतदिस सेहो कमसँ कम बिहारक जँ बात कएल जाए तँ ओहि७म मिथिला छोडि आन कोनो उल्लेख्य सांस्कृतिक सम्पदाक सर्वथा अभावे देखल जाइत अछि।
आइकाल्हि मात्र धार्मिकता आ परम्परागत संस्कारक रूपमे अधिकांश पावनितिहार वा सांस्कृतिक कर्म सीमित होइत गेल पाओल जाइत अछि। मुदा मिथिलाक पावनितिहारसभकेँ जँ सूक्ष्मतापूर्वक देखल जाए तँ एहिसभक पाछाँ कोनो ने कोनो उद्देश्य निहित रहल स्पष्ट देखबामे आबि जाइत छैक। एकरासभकेँ आओर बेकछाकऽ देखलापर आजुक समयमे सेहो ई पावनितिहार ओतबए सान्दर्भिक आ उपयोगी बुझाइत छैक। साओन मासमे मिथिलाक किछु जातिमे नवविवाहित दम्पतिसभक लेल आयोजन होबऽ वला मधुश्रावणी पावनिकेँ सेहो एही रूपमे लेल जा सकैत अछि। मधुश्रावणी विशेषतः नवविवाहिता स्त्रीसभक लेल आयोजित भेनिहार एकटा एहन धार्मिक अनुष्ठान छियैक, जाहिमे ओसभ धार्मिक रूपेँ तँ विषहरा आ महादेवपार्वतीक पूजा करैत छथि, मुदा एकर गहिराइमे जा देखलापर स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे मधुश्रावणी मिथिलामे मनाओल जाएवला एकटा परम्परागत प्रकृतिक मधुचन्द्रिकाअर्थात हनिमूनछियैक। मधुश्रावणी मिथिलाक ब्राह्मण, कायस्थ, देव, स्वर्णकार आदि जातिमे विशेष रूपसँ मनाओल जाइत अछि।
आधुनिक यौनशास्त्रीलोकनि हनिमूनकेँ वैवाहिक सम्बन्ध सुदृढीकरणक प्रमुख आधार मानैत छथि। तत्कालीन मैथिल विद्वानसभक सेहो एहि पावनिक परम्परा आरम्भ करैत काल इएह मानसिकता रहल होएतनि। प्रायः इएह कारण भऽ सकैत अछि जे मिथिला क्षेत्रमे परम्परागत रूपेँ मधुश्रावणी मनाओल जाएवला ब्राह्मण, कायस्थ, देव आदि जातिमे वैवाहिक सम्बन्धविच्छेदक घटना अपेक्षाकृत कम देखबामे अबैत अछि। जाहिरसन बात अछिजेँ विवाहक बन्धन सक्कत रहैत छैक, तेँ एहिमे आगाँ चलिकऽ दुर्घटना कम होइत छैक। लोकलाजक भय वा स्त्री जातिक लेल डेगडेगपर लगाओल जाएवला वर्जना मात्र जँ जबर्दस्ती दाम्पत्यक गाड़ीघिचबाक कारण रहितैक तँ मिथिलाक आनो जातिमे वैवाहिक सम्बन्ध ओतबए सुदृढ रहितैक, जतेक मधुश्रावणी मनौनिहार जातिमे।
तहिया एखनजकाँ हनिमूनक लेल बाहर जएबाक अवस्था नहि छलैक। भऽ सकैत छैक जे यातायातक असुविधा एकर प्रमुख कारण रहल हो। मुदा नवविवाहित दम्पतिकेँ किछु उत्फुल्लता, किछु उन्मुक्तता भेटबाक चाहीएहि बातक निष्कर्ष तत्कालीन विद्वानलोकनि निकालने होएताह। एकरा लेल ओलोकनि कामोद्दीपनक दृष्टिएँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानल जाएवला बरसाती महिना साओनक चयन कएने होएताह। धार्मिकताक सङ्ग आबद्ध कऽ एकरा व्यापकता देल गेल होएतैक। साओनक मधुरताक आभास करएबाक सन्दर्भमे तथा यौनसम्बन्ध सुदृढीकरणक दृष्टिएँ आवश्यक तत्त्वसभ समाहित कऽ एकरा एकटा परम्परा बना देल गेल होएतैक। एहि नान्हिटा लेखमे वैज्ञानिक दृष्टिएँ मैथिल संस्कृतिमे पाओल जाएवला सम्पूर्ण सार्थक पक्षसभक विस्तृत चर्चा करब सम्भव नहि अछि। मुदा एतबा अवश्य कहल जा सकैत अछि जे मैथिलीक अधिकांश संस्कार, आचारविचार एवं व्यवहारमे डेगडेगपर वैज्ञानिक आधारसभक प्रचुरता पाओल जाइत अछि।
यौनविज्ञानक दृष्टिएँ जँ देखल जाए तँ मधुश्रावणी पावनिक अत्यन्त विशिष्ट महत्त्व अछि। सामान्यतया ई पावनि मनाओल जाएवला जातिसभमे विवाहक बाद लड़का सासुरमे रहैत अछि। परम्पराक जँ बात करी तँ चारि दिनक बाद ओकरासभक चतुर्थीअर्थात प्रथम मिलन होइत छैक। एहि चारि दिनधरि वरकनियाँ दुनूकेँ नोन नहि खाए देल जाइत छैक। चारिम दिन भोजनमे माछमासुसन सुरुचिकर एवं तामसी खाद्यवस्तु समाविष्ट रहैत छैक, जे कामोद्दीपनक दृष्टिएँ सेहो विशेष महत्त्व रखैत अछि। एहिठाम संस्कृतिक अन्तर्वस्तुक रूपमे नुकाएल मनोविज्ञान दऽ विचार कएल जा सकैत अछि। वस्तुतः ई चारि दिन वरकनियाँक रूपमे दू अपरिचित प्राणीकेँ भावनात्मक रूपेँ लग अएबाक लेल देल गेल विशेष अवसर छियैक। कारण, यौनशास्त्रीलोकनिक कहब छनि जे जाधरि स्त्रीपुरुष दुनू भावनात्मक रूपेँ निकट नहि होएत, ताधरि सफल यौनसम्बन्धक स्थापना नहि भऽ सकैत छैक। समाजमे जहिया प्रेमविवाहक सम्भावना नहिजकाँ छलैक, तहिया एही भावनात्मक निकटताक लेल ई चारि दिन देल जाइत छलैक। जँ एना नहि रहितैक तँ सामान्यतया आन जातिमे विवाहक प्रातेभने मनाओल जाएवला सुहागरातिक लेल ब्राह्मणकायस्थदेव आदि जाति किएक चारि दिनधरि उपास रखितथि! शिक्षादीक्षाक मामलामे तत्कालीन समयक सर्वाधिक अग्रणी मानल जाएवला एहि जातिसभमे कोनो रूढ़िक कारणे तँ एहन बात नहिएँटा भऽ सकैत छलैक! अस्तु।
विवाहसँ चतुर्थीधरि भावनात्मक रूपेँ लग अएबाक लेल चारि दिनक समय तँ देल जाइत छैक। मुदा अवस्थाजन्य कारणकेँ देखैत एकटा खतरा बनले रहैत छैक। खतरा ई जे आगि आ खढ़क बीच निकटता भेलापर धधरा ने पजरि जाए वा कही युवा मोन बहकि ने जाए! तकरे सावधानीस्वरूप ओकरासभकेँ नोन नहि खाए देल जाइत छैक। नोन नहि खाएल अवस्थामे ओहुना लोक शारीरिक आ मानसिक रूपेँ शिथिल भऽ जाइत अछि। निश्चित रूपेँ अनोनाक अभीष्ट इएहटा भऽ सकैत छैक जे नवविवाहित वरकनियाँमे आवश्यक तैयारीसँ पूर्वहिँ कामभावना नहि भड़कि जाइक। चारिम दिनक मधुरमिलनक लेल फेर नोनक सङ्गसङ्ग भोजनमे सेहो विशेष रूपसँ नीकनिकुतक ओरिआओन कएल जाइत छैक। ई भोजन सामग्री शारीरिक रूपसँ वरकनियाँकेँ तैयार करैत छैक। जखन कि मानसिक रूपेँ उद्वेलित करबाक काज करैत रहैत छैकसाँझकोवर आदि गीतमे व्यक्त भेनिहार प्रेमप्रसङ्ग। समग्र रूपमे बढ़ैत मानसिकशारीरिक उद्वेलनक भावमे चुहलवाजीक छौँक लगएबाक काज करैत छैकडहकनक झँसगर पाँतिसभ।
एहि तरहेँ चतुर्थीमे भावनात्मक रूपेँ शारीरिक सम्बन्धकेँ सुदृढ बनएबाक प्रयत्न कएल जाइत छैक। एहिठाम फेर जँ परम्पराक गप्प करी तँ ई देखल जाइत अछि जे पहिने एहि जातिसभमे विवाहक बाद सासुरसँ विदाह भऽकऽ अएलाक बाद वर एक्कहिबेर मधुश्रावणीएमे पुनः सासुर जाइत छल। तेँ विश्वास कएल जा सकैत अछि जे कनियाँवरक एहि दोसर मिलनकेँ पुनः शारीरिक सम्बन्धक प्रगाढ़तासँ भावनात्मक सम्बन्ध सुदृढ करबाक सांस्कारिक संयन्त्रक रूपमे विकसित कएल गेल हो।
एहि पावनिमे नवविवाहिता तेरहसँ लऽ पन्द्रह दिनधरि विषहरा आ गौरीक पूजा करैत छथि। एहि पूजाक लेल फूल लोढ़ऽ ओ स्वयं गेल करैत छथि आ सङ्गमे रहैत छनि हुनक सखीबहिनपासभ। फूल लोढ़ब मूलतः बहाना होइत अछि। असली काज रहैत छैक घुमफिर आ गप्पसप्प। जखन कोनो नवविवाहिता अपन सखीबहिनपासभक सङ्ग घुमफिर करऽ कतहु जाएत तँ ओकरासभक बीच गप्पक विषय की भऽ सकैत अछि, से सहजहिँ अनुमान लगाओल जा सकैत अछि। निश्चित रूपेँ गप्पक विषय ओकर पति, ओकरासमभक अनुभव आदिइत्यादि रहैत होएतैक। ई बातचीत यौनभावनाकेँ तीव्र करबामे आ यौनसम्बन्धी विविध जिज्ञासासभक समाधानमे सेहो सहायक होइत छैक। बादमे पूजाकालमे वरकनियाँ दुनूकेँ संगहि राखिकऽ शिवपार्वतीक विभिन्न प्रसङ्गक बखान करैत यौनसम्बन्धी खिस्सासभ प्रतीकात्मक रूपेँ सुनाओल जाइत छैक। दुनू युवामनकेँ प्रेम आ कामभावना बढ़एबामे ई खिस्सासभ उपयोगी भेल करैत छैक। एकरा बाद फेर विवाहकालमे बनल कोहबर तँ वरकनियाँ लेल अजबारले रहैत छैक। आ, ई क्रम निरन्तर तेरहसँ लऽ पन्द्रह दिनधरि चलैत रहैत छैक। निश्चित छैक जे एतबा अवधिमे वरकनियाँ एकदोसराक सङ्ग शारीरिक आ मानसिक दुनू दृष्टिएँ बेस लग आबि जाइत छैक, जे कि आजुक आधुनिक वैज्ञानिक समाजक हनिमून आ तत्कालीन परम्परागत मैथिल समाजक मधुश्रावणीक अभीष्ट सेहो छियैक।
मिथिलाक संस्कृतिमे यौनकेँ बड़ बेसी महत्त्व देल गेल छैक। मुदा कतेको लोक एकरा धर्मक ससरफानीमे तेना ने गछाड़िकऽ राखि देने छथिन जे आमलोक आगाँपाछाँ किछु सोचिए नहि सकैत अछि। तेँ जखन ई कहल जाइत अछि जे मधुश्रावणी यौनविज्ञानक अभिमञ्चनसम्बन्धी पावनि अछि तँ कतेको मैथिल महामनासभ बमकि उठैत छथि। किएक तँ ओ एहिमे महादेवपार्वतीसँ बेसी किछु देखिए नहि सकैत छथि। मधुश्रावणीमे पूजित विषहरा (नाग) दू रूपेँ महत्त्व रखैत छथि। साहित्य वा ललितकलामे जे प्रतीकसभ प्रयोग कएल जाइत अछि, ताहिमे माछकेँ स्त्री जननेन्द्रिय, साँपकेँ पुरुष जननेन्द्रिय, काछुकेँ सम्भोग, बाँसकेँ वंश आदि मानल जाइत अछि। नवविवाहिता प्रतीकात्मक रूपेँ विषहराक पूजा करैत पुरुष जननेन्द्रियक महत्त्व बूझैत छथि। दोसरदिस प्रकृति संरक्षणक लेल सेहो साँप महत्त्वपूर्ण अछि। तेँ भलहि ओ विषधर अछि, मुदा ओकर संरक्षण होएबाक चाही, से सन्देश एहिसँ जाइत अछि।
मधुश्रावणीक खिस्सामे सेहो तेहने बातसभ बेसी अबैत छैक। जेना विषहराक जन्मेक सम्बन्धमे उल्लेख अछि— ‘एकबेर महादेव आ पार्वती जलक्रिडा करैत सम्भोग कऽ रहल छलाह। तेहनेमे महादेवक वीर्य स्खलन भऽ गेलनि। ओहिसँ विषहराक जन्म भेल।तहिना गौरीकेँ छिनारि बनएबाक प्रसङ्ग सेहो मधुश्रावणीक खिस्सामे आएल अछि। किछु फकड़ामे सेहो एहि तरहक बातसभ आएल अछि। जेना बैरसी आ युवतीबीचक संवादमे कहल गेल अछि— ‘ऊँचे आरि ऊँचे धूर ऊँचे त खरिहान रे, ताहूसँ जे ऊँच देखल गौरीके भथियान रे।एही तरहेँ गौरीक आङ’, गौरीक स्तन आदिक वर्णन सेहो बड़ रसगर अन्दाजमे कएल गेल अछि। मैथिल संस्कृतिमे यौनकेँ कतेक महत्त्व देल गेल छैक, तकर अनुमान अहिबक फड़ नामक पकवानक रूपरंग आ नामसँ सेहो स्पष्ट भऽ जाइत अछि। तेँ निःशङ्क भऽकऽ कहि सकैत छी जे मधुश्रावणी यौनभावना आ यौनशिक्षाक महापर्व छियैक। साओन मासमे पड़लासँ ई अपन सार्थकताकेँ आओर बेसी पुष्टि करैत अछि। कारण हम एकटा एहन जोड़ीकेँ जनैत छी जे विवाहक डेढ़ दशक गुजरि गेलाक बादो जखन वर्षा होबऽ लगैत छैक तँ कलेजमे पढौनाइ छोड़िकऽ दौड़लदौड़ल डेरा पहुँचि जाइत छथि। एहिमे ओहि मित्र दम्पतिसँ बेसी कारगर साओनक मादकता करैत छैक। आखिर एकरे ने मैथिल संस्कृति सहेजने अछि।
आइकाल्हि मात्र सतही दृष्टिएँ देखनिहार किछु तथाकथित महिला अधिकारवादीसभ मधुश्रावणीक क्रममे कनियाँकेँ टेमीदेल जाएवला रीतिकेँ महिलाहिंसाक एकटा रूप मानैत एकर विरोधो करैत देखल जाइत छथि। एहि विरोधक पाछाँ हमरा एक्कहिटा कारण नजरि अबैत अछिहुनकासभमे मैथिल संस्कृतिक विशिष्टताक सन्दर्भमे रहल अज्ञानता। टेमी देबाक विधिमे कनियाँक ठेहुनमे पानक पात राखि उपरसँ जरैत टेमीसँ छुआओल जाइत छैक। निश्चित रूपेँ ई सामान्य पीड़ादायक सेहो होइते होएतैक। मुदा की स्त्री जातिकेँ प्रथम संसर्गमे ओ सामान्य पीड़ा नहि होइत छैक? वस्तुतः ई ओकरे एकटा कड़ी छैक, जाहिमे ई सङ्केत देल जाइत छैक जे यौनसम्बन्ध जँ बड़ आनन्ददायक होइत छैक तँ ओहिमे स्त्रीकेँ पीड़ासँ सेहो साक्षात्कार करऽ पड़ैत छैक। एकर पृष्ठभूमिमे एकटा एहू पक्षकेँ लेल जा सकैत छैक जे भऽ सकैछ, पहिनेपहिने मधुश्रावणीएक समयमे वरकनियाँबीच प्रथम शारीरिक मिलन होइत रहल होइक आ तकरे आभास करएबाक लेल ई प्रथा चलाओल गेल हो।
एकटा दोसर कारण इहो मानल जाइत अछि जे मिथिलामे यवनसभक आक्रमण भेलाक बाद ओकरासभक कुदृष्टि नवकनियाँसभपर बेसी पड़ैत रहैक। ओकरासभसँ बचएबाक लेल कनियाँकेँ कनेक आगिसँ जरा देल जाइक, जाहिसँ ओसभ ओकरादिस ध्यान नहि दिअए। कारण मुसलमानसभ जरनाइकेँ बहुत खराब मानैत अछि। पं. सूर्यकान्त झा ई तर्क आगाँ बढ़बैत कहैत छथि— ‘एही कारणे मुइलाक बादो ओकरासभकेँ जराओल नहि जाइत छैक, गाड़ल जाइत छैक।संस्कृतिविद स्व. प्रो. नमोनारायण झाक एहि विषयमे तर्क छनि जे ठेहनपर कोनो नस एहन रहैत होएतैक, जकरा प्रभावित कएलापर यौनसम्बन्धी ग्रन्थीसभमे सकारात्मक असर पड़ैत होइक आ ताहीक अन्तर्गत ई प्रक्रिया शुरू कएल गेल हो। स्वास्थ्योपचारक चीनी पद्धति अक्यूपङ्चर, अक्यूप्रेसर आदिपर ध्यान देलापर एहू बातमे विश्वास करबाक यथेष्ट आधारसभ बनैत छैक।
टेमीक एकटा बातकेँ लऽकऽ नेपालक मिडिया आ मिथिलाक यथार्थसँ दूरदूरधरिक कोनो सम्बन्ध नहि रखनिहारि किछु महिलावादीसभ किछु सालपूर्व एक्के टाङपर खूब नाचल रहथि। एहि नामपर ओसभ मधुश्रावणीकेँ मात्र नहि, सम्पूर्ण मैथिल विवाह पद्धतिकेँ बदनाम करबापर लागल छथि। एना देखलापर ओ व्यक्तिसभ हमरा ओहने कोनो अज्ञान नेनाजकाँ लगैत अछि, जे दूटा साँपकेँ आपसमे जोड़ लगैत देखलापर बापबाप चिचिया उठैत अछि जे साँपक झगड़ा भऽ रहल छैक। पीड़ा टेमीएटामे नहि होइत छैक। रोग निवारणक लेल लगबाओल जाएवला सुइयामे सेहो पीड़ा होइत छैक। मूहकानक सिंगार लेल नाककान छेदएबामे सेहो पीड़ा होइत छैक। सुन्दर आ हाथ लागल चूड़ी पहिरबामे पर्यन्त पीड़ा होइत छैक। तखन बुझबाक जरूरति ई रहैत छैक जे पीडाक प्रयोजन की? नाककानमे भूर कऽकऽ शरीरकेँ खण्डित कएनाइ आ कि नाककानमे लटकऽ वला गरगहनाक सौन्दर्यसँ आनन्दित भेनाइ? टेमीक सन्दर्भमे सेहो इएह बात लागू होइत छैक।
ओहुना टेमी यौनशिक्षाक पावनि मधुश्रावणीक एकटा अङ्ग छियैक। यौनक्रियाक आरम्भ तँ पीड़ासँ होइतहिँ छैक, वात्सायनक कामसूत्रकेँ जँ आधार मानल जाए तँ नखक्षत, दन्तक्षत आदि विधिक चर्चा सेहो अबैत छैक जे नारीक उद्दीपनमे सहयोगी मानल जाइत अछि। एतबए नहि, नारीकेँ जीवनक सर्वाधिक सुखकारी प्रक्रिया सन्तानोत्पादनमे सेहो असह्य पीड़ासँ गुजरऽ पड़ैत छैक। यावत पक्षसभपर विचार करैत गेलापर मधुश्रावणीमे देल जाएवला टेमी पीड़ा पहुँचएबाक उद्देश्यसँ नहि, अपितु स्वस्थकर यौनजीवनक लेल आरम्भहिमे लगाओल गेल टीकाकरणक एकटा प्रक्रिया छियैक। एकरा एहू लेल हिंसा वा प्रताड़नाक रूपमे नहि देखल जा सकैत अछि, किएक तँ ई प्रक्रिया प्रायः नवकनियाँक नैहरमे भेल करैत छैक। नैहरमे कनियाँक काकी, दिदी आदिसँ ओकरा पीडा पहुँचएबाक हिसाबेँ कोनो काज निश्चिते नहि भऽ सकैत छैक।
हँ, टेमीक सङ्ग जोड़िकऽ किछु अनर्गल बातसभक प्रचार अवश्य भऽ रहल छैक। जेना टेमी देल जगहपर जँ फोका भेल तँ पति बेसी मानत। वा ई सतीत्वक अग्निपरीक्षा छियैक। जकरा फोका नहि भेलैक से दुश्चरित्र अछि, आदिआदि। मुदा ईसभ समयक्रममे जुटैत गेल बकबाससभ छियैक। भऽ सकैछ जे कहियो ककरो टेमी दैत काल बेसी पाकि गेल हेतैक आ फोँका भऽ गेल हेतैक तँ टेमी देबऽ वाली ओकरा भरोस देबऽ दुआरे कहि देने हेतैक जे जकरा जतेक पैघ फोका होइत छैक, तकरा घरवला ततेक बेसी मानैत छैक।
टेमी तहियाक प्रचलन छैक, जहिया मिथिलामे आधुनिक शिक्षाक प्रसार नहि भेल छलैक। ओहि समयमे वरवधुकेँ यौनशिक्षा देबाक कोनो भरोसगर माध्यम सेहो उपलब्ध नहि छलैक। मुदा आइ युवायुवतीसभ अपन पाठ्यपुस्तकसँ लऽकऽ अन्य अनेको माध्यमसँ सेहो ई शिक्षा आसानीसँ प्राप्त कऽ सकैत छथि। तेँ उपयोगिताक दृष्टिएँ मधुश्रावणी आ मधुश्रावणीक टेमी किछु आवश्यक नहि रहि गेलैक अछि। मुदा हमरासभक संस्कृति लोककल्याणक पक्षकेँ एतेक गहियाकऽ धएने अछि, से बात विश्व समुदायकेँ कहबाक लेल मात्र सेहो एहि तरहक संस्कृतिक संरक्षण आवश्यक छैक। हँ, एहिमे जतऽ कतहु विकृति नजरि आबए, ओहिमे सुधार वा परिमार्जन आवश्यक भऽ जाइत छैक। जेना कि राजविराजमे मैथिल महिला परिषदक अगुआइमे टेमी बन्द करएबाक अभियान चलाओल गेल अछि। ई सर्वथा उचित बात अछि। किएक तँ मिथिलामे कोन चीज कतबाधरि पाच्य अछि आ कतबा अपाच्य अछि, तकर निर्णय करबाक अधिकारी मिथिलेवासीसभ भऽ सकैत छथि। मैथिल नारीकेँ जँ कतहु प्रताडित भेलसन बुझाइत छनि तँ एकरो आवाज मैथिले नारीकेँ उठएबाक चाहियनि। आनकेँ तँ की छै, कोनो मैथिल महिलाक सीँथमे लागल सिन्दुर देखिकऽ कहि सकैत ि, ‘बाफ रे बाफ, मिथिलाक नारीपर बड़ अत्याचार होइत छैक। ओकरा पुरुषसभ एतेक प्रताड़ित करैत छैक जे सभ दिन ओकर माथ फुटले रहैत छैक।
आइकाल्हि आधुनिक विचारधाराक लोकसभ परम्परागत अधिकांश पक्षकेँ अन्धविश्वास वा कुरीतिक रूपमे व्याख्या करैत छथि। मुदा मैथिल संस्कृतिमे बेसी एहने पक्षसभ अछि, जे निरर्थक नहि अछि, पूर्णतः सार्थक अछि। आजुक आधुनिक समाजपर्यन्त एहि संस्कृतिसँ बहुतो कल्याणकारी तत्त्वसभ ग्रहण कऽ सकैत अछि। एहन स्थितिमे संस्कृतिकेँ एक्कहि झटकामे तोड़ि फेकबाक धारणा रखनिहार लोकसभकेँ चाहियनि जे ओ एकबेर अपन ज्ञानचक्षु उघारिकऽ अपन संस्कृतिक सिंहावलोकन करथि, तकरा बादहि एकरा विषयमे कोनो मत बनाबथि। आ, हम तँ ई कहऽ चाहब जे वर्तमान समयमे भयानक आर्थिक तङ्गीसँ गुजरि रहल सम्पूर्ण मिथिलावासीकेँ चाही जे ओ मधुश्रावणीसन जीवन्त पावनिकेँ अङ्गीकार कऽ घरहि बैसल अपन बेटापुतहुकेँ, बेटीजमाएकेँ हनिमूनक मौका उपलब्ध कराबथि, मिथिलाक सांस्कृतिक विशिष्टताक संरक्षणसम्बर्द्धन करथि।  
१. श्रीमती शेफालिका वर्मा- आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा) (क्रमसँ पहिल खेप) २.बिपिन झा-चहकैत चौक आ कनैत दलान
१. श्रीमती शेफालिका वर्मा- आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा)(क्रमसँ पहिल खेप)
जन्म:९ अगस्त, १९४३, जन्म स्थान : बंगाली टोला, भागलपुर । शिक्षा: एम., पी-एच.डी. (पटना विश्वविद्यालय),ए. एन. कालेज, पटनामे हिन्दीक प्राध्यापिका, अवकाशप्राप्त। नारी मनक ग्रन्थिकेँ खोलि करुण रससँ भरल अधिकतर रचना। प्रकाशित रचना: झहरैत नोर, बिजुकैत ठोर, विप्रलब्धा कविता संग्रह, स्मृति रेखा संस्मरण संग्रह, एकटा आकाश कथा संग्रह, यायावरी यात्रावृत्तान्त, भावाञ्जलि काव्यप्रगीत, किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा)। ठहरे हुए पल हिन्दीसंग्रह। २००४ई. मे यात्री-चेतना पुरस्कार।
शेफालिकाजी पत्राचारकेँ संजोगि कऽ "आखर-आखर प्रीत" बनेने छथि। विदेह गौरवान्वित अछि हुनकर एहि संकलनकेँ धारावाहिक रूपेँ प्रकाशित कऽ। प्रस्तुत अछि पहिल खेप।- सम्पादक
आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा)
(क्रमसँ पहिल खेप)
दुई शब्द
आखर प्रीति केर किछ नहीं बस  अहाँक सिनेह थीक जे अहाँ सव अपन पत्रक माध्यम सँ हमरा कोनो रूपे मोन पाड़लौं। एकरा हम कंगालिनक धन जकां नुका के रखने छलौं। जखन मोन उदास  हतास उपेक्षित बुझा पड़ैत छल तखन पत्रक ई पेटी निकालि चुपचाप पढैत छलौं आँखि सँ हृदय सँ एहि मे छिरियाल सिनेह के हंसोथि एकटा अविकल आत्मतुष्टि  एकटा परमानंदक अनुभूति से मोन प्राण भरैत छलौं। एहि पत्र सवक सोझा हमरा विश्वक सम्पदा सारहीन लागैत  अछि। हमर जिनगी मे रक्त संबंध से कम महत्व प्यारक संबंधक नहि रहल। हम जकरा मानलौं सम्पूर्ण प्यार ममता  वात्सल्य से ¯सचलौं चाहे ओ देखल होथि वा कि अनदेखाल  जानल पहिचानल होथि कि अनचिन्हार   मुदा जे समयक एकाई से  संशय-असंशय से  तर्क वितर्क से एहि सिनेहके जोखलैथ ओ स्वयं अपने आप पाछु हँटि गेलैथ। आय जीवनक एहि संध्या बेला मे एहि पत्र सब के उजागर नै करब ते स्वयं अपनों संग न्याय नै क सकब। किन्तु दुःख एतवे  अछि जे हज़ारो हज़ार पत्रक सम्मुख हमर किताबक पÂा बड कम  अछि। हम चाहियोके सभ पत्र के यथावत नै छापि सकैत छी। प्रयास केने छी जे प्रायः सभ पत्रक किछ ने किछ पाती के उजागर कै सकी। हम ओही नाम सभ के कृतज्ञता  आभार दय सकी। बहुतो से संपर्क टूटी गेल  बहुतो के जवाब नहीं दय सकलौं। बेसी लोग के हम देखनो नै छी। ¯कतु पत्रक
माध्यम से हम हुनक छवि अपन मोन मे बसेने छी। आ हरदम प्रेरणा ग्रहण करैत छी। ¯हदी  मैथिलीक आ अंग्रेज़ीक सब पाठक लोकनिक पत्र आगू देने छी। बहुतो मे वर्ष  ताारीख धूमिल भय गेल छैक  कतेको मे तो सेहो नै  अछि। पत्र लेखन सुदूर अतीत से आबी रहल छैक। तैंते आदि कवि विद्यापति के कविता   के पतिया ले जाइत रे मोरा प्रियतम पास फेर पियतम को पतिया लिखूं जो कोई होई विदेश तन मे मन मे नयन मे  ताको कहाँ सन्देश मैथिली मे शीलादाई के चिठी मे एतवे लिखल छैं  कहू यो
प्राणनाथ कोना के रहै छी  से लिखलनि  अछि श्री सोनदाई एहि हरिहर हरिहर कागद पर  जन जन के ठोर पर छल। एतवे नहि  गीतों मे चंदारे मोरा पतिया लेई जारे  प्रियतम को     सरिपों पत्र लेखन आत्मविव्यक्तिक सशक्त साधन थीक  स्वयं के चिन्हवा लेल  अपना के जानवा लेल। यदि केकरो पर तामस उठे ते तत्क्षण ओकर नाम से पत्र लिखी मोनक सब तामस निकालि दी आ कनि काल बाद यदि फेर ओही पत्र के पढ़ी ते लागत कतेक बेदरमत वाला चिठी लिखने छलौं  स्वयं पर तामसो उठैत छैक  आ हंसियो लागैत छैक। पत्र इएह थीक जाकर अस्तित्व रहि जाइत छैक। सब किछ  अतीत भय जाइत छैक मुदा पत्र मे छिरियायल प्रेम कहियो अतीत नहि होयत छै। अपराजित
कुसुम सदृश्य चिर काल धरि मोहित-सम्मोहित करैत रहैत  अछि   हँ  उदास भेला पर  की तनाव मे रहला पर जखन मानव लिखैत  अछि तै अपन आत्मा के अनावृत कै दैत एैछ। आ ई क्षण सब से साँच क्षण होयत  अछि। कोनो कोनो पत्रते राष्ट्रीय निधि बनि जाइत  अछि। पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिखल पत्र पिताक पत्र पुत्राीक नाम देशक गौरव बनि गेल। महात्मा गाँधीक पत्र सब विदेश मे 2 करोड़ों मे नीलाम भेल। हाले मे ओबामाक पत्र पुत्राीक नाम सार्वजनिक भ गेल। ई एकटा इतिहास  अछि।   हमर प्रयोजन मात्रा एतवे जे पत्रक कतेक महत्व  अछि। अंग्रेज़ीक एकटा बड पैघ विद्वान लिखने  अछि जे most difficult in life is to know yourself.  प्रत्येक मानव जीवन अपना आप मे एकटा उपन्यास  कथा  संस्मरण  यात्रा नाटक आलोचना-प्रत्यालोचना  विश्लेषण  समीक्षा आदि के समेटने रहैत छैक   अपन जीवन मे मानव कतेको कथा के जन्म दैत  अछि। संस्मरण मे जीवैत  अछि  यात्रा मे चलैत  अछि  जिनगी भरि नाटके ते करैत  अछि विद्वान लोकनि जीवनक एहि खंड के साहित्यिक अभिधा बनाय साहित्यक सृजन करै लागलनि
भनहि ओ कोनो भाषा होय! अभिव्यक्ति के सामर्थ्य हेवाक चाही तैं ओ साहित्यकार बनी जाइत छथि। सौंसे जीवन आंखि मे नाचि जाइत  अछि     भगलपुर मे जनम  साहेबगंज  हजारीबागक जंगल मे बाल्यकाल   पुनः पापाक बदली सहरसा आ पटना धरिक अश्रांत यात्रा    पंद्रह बरिसक आयु मे वालिका वधु डुमरा  सहरसाक चालीस गोटेक सामंती संयुक्त परिवार मे सभ से पैघ पुतहु   फेर सहरसाक जीवन  पतिक वकालत  अपन नौकरी  राजनीति  बालबच्चाक स्कूली पढ़ाई  सहरसा जिलाक इमानदार पी पी बनवाक सनेस पतिक हार्ट एटैक  इंग्लैंड मे बायपास सर्जरी आ तीन बरिस बाद सब किछुक अंत हम लहास बनि गेल छलौं। रजनी से शेफालिका बनि गेनाय हमर जीवनक अद्भुत प्रक्रिया रहल रजनी एकटा विशाल परिवारक केंद्र बिन्दु स्नेह सिन्धु मे उधियाइत शेफालिका  साहित्यक विस्तृत उदधि मे लहरिक छोट सन ज्वार जकां उमड़ैत इतरैत।
एहि दुनू नामक संग चिठी पत्रीक भण्डार हमर मोनक कोन कोन के स्पर्श करैत छल    हम एकरा जोगा के राखैत छलौं  उजाले अपनी यादों के हमारे संग रहने दो  न जाने ¯जदगी की किस गली मे शाम हो जाये    हमर अन्हार जिनगी मे इजोत भरयवाला ई पत्र सभ  सहरसा एहेन जगह मे एतेक पत्र हमरा नाम से एला पर डाकिया सभ गोटेक ठोर पर एके बात रहैत छल वकील साहेबक कनियाक नाम से कतेक चिठी अबैत छैक   एकटा पत्र आयल शेफालिका पुखणयाक पता से। डाकिया हमरा पत्र दै देलक  ओकरा हम कहलौं हमर पत्र नै थिक    मुदा नहीं मनलक। चिठी खोल लौं ते बंगला मे लिखल छल। ओ हमर जिनगीक संघर्ष काल छल  हमर साहित्यिक जिनगीक स्वर्ण काल।
हम छपैत रही आ खूब छपैत रही  मैथिलीक कोनो पत्रिका नहीं छल जाहि मे हम नै छलौं। फेर ¯हदी  अंग्रेज़ी सब मे हम बराबर छपैत रही   जे हमर जीवनक संघर्ष मे एकटा स्पूफखत भरि दैत छल  नव उजास  नवल विहान   कोनो रचनाकार अपन युगक स्थिति परिस्थिति से प्राप्त अनुभव के अपन सृजन मे अभिव्यक्त करैत  अछि। जहिना चारुकात घटैत घटना सब जीवन मे नव बाट खेलैत  अछि ओहिना बदलैत जीवनमूल्य सँ निःसृत मानवीय संवेदना  मानव स्वभाव  मानसिक स्थिति आ अवस्थाक विश्लेषण भ जैत छैक। एहि चिठी पत्री सब से। सुगंध फूल मे ते होइतहि  अछि  स्वप्न मे  साँस मे  आंखि मे सेहो बसैत  अछि। मुदा  हम ओकरा स्पर्श नै क सकैत छी। मात्रा अंतर मे अनुभूत करैत छी   ओहिना एहि पत्र सबहक स्नेहिल संस्पर्शक सुगंध के हम साँस साँस मे अनुभूत करैत छी    
3
जमाना बड तीव्र गति सँ भगैत गेल। वैज्ञानिक क्रांति  वैचारिक क्रांति सँ देशे नहि समस्त
संसार मे हिलकोर मचि गेल। इंटरनेट  मोबाइल  एसेमेस आदि समस्त विश्व के एकटा गाम मे बदलि देलक आजुक बच्चा तार  लैटि¯नग पफोन काल आदि के नाम नहि जनैत  अछि  कोना बेर कुबेर राति-बिराति तारक नाम से  खराब बातक आशंका से जी थर थर कपैंत रहैत छल ककरा की भ गेलैक आब ते पोस्टोपिफस  डाकिया खाली सरकारी काज लेल रहि गेल  वैश्वीकरणक एहि युग मे गाम से शहर  शहर से देश  देश से विदेश सब ठामक संस्कृतिक झलक पत्र मे भेट लागल। कम्युनिकेशनक साधन हमर सबहक आवश्यकता बनि गेल अछि। सड़क पर चलैत आम आदमीक हाथ मे मोबाइल रहैत छैक चाहे ओ कोनो वर्गक होइ या कोनो आयु केर। युवक युवती  सड़क पर रेल मे  बस मे घंटो घंटा मोबाइल से गप करैत  अछि। ¯कतु दिमागक गप दिमाग से कपूर जकां उड़ि
जाइत  अछि। ईमेल से पल मे समाचार संसारक एक कोन से दोसर कोन मे पहुंचि जाइत  अछि। मुदा पत्र मे जे हृदयक मौलिक अभिव्यक्ति होइत  अछि ओ एसेमेस मे नहि भेटैत छैक किन्तु पत्र निजताक सुगंधी से ओत प्रोत रहैत छैक। हुँ अपवाद सभठाम रहैत  अछि। हमहू ईमेल सँ पत्र आयल किछ एहि मे द  रहल छी जाहि मे जीवन छैक  सिनेह छैक। आजुक पीढ़ी कल्पनो नहि क सकैत अछि जे पहिने लोक के कतेक धैर्य छल पत्र लिखवा लेल। खासक पति पत्नीक के। समय तखनो नहि छल  अपन अपन परिस्थितिक बेगरता छल। तैं हम पति पत्नीक पत्रक किछ अंश सेहो द रहल छी एहि संग्रह मे। हमर पापा स्व  ब्रजेश्वर मल्लिक एकटा ऑफिसर क संगे भावुक  संवेदनशील साहित्यकार सेहो छलैथ। अपन ब्याहक बाद पापा हमर माँ स्व  Âपूर्णा मल्लिक के जे पत्र लिखलनि ओ अपना आप मे एकटा साहित्य छल। हम देखने छलों जे एकटा लाल रंगक भेलवेट से मढ़हल कॉपी मे माँ अपना हाथ से पापाक पत्र सब उतारने छलीह जे एकरा पुस्तकाकार मे छपायब ¯कतु  पारिस्थितिक एहेन झंझा जीवन मे आयल जे पापा माक सपना पूर्ण नहि भेल    ओ कोपी कत गुम भ गेल   हम सब भाई बहिनी नुका नुका के कौपी पढ़ैत छलौं लजाइत छलौं  सिखैत छलौं  साहित्य संवखधत होइत छल। पापाक लिखल 8-10 चिट्ठी क एकटा पफाटल चीटल खंड हमर पत्रक खजाना मे बदरंग पड़ल छल   
मेरी अ      तुम मुझ से दूर हो  पर मैं देख रहा हूँ तुम मुझ से दूर कहाँ हो    तुम तो मेरी अंतरात्मा मे बसी हो और मैं कल्पनाओं की दुनिया मे तुम्हें खोजता हूँ    मेरी अÂी एक मासूम बाला की तरह पलंग पर लेटी है  और मैं उसे हौले हौले थपकियाँ देकर सुला रहा हूँ   गुनगुना रहा हूँ    सो जा राजकुमारी सो जा    कभी लगता है मैं बांसुरी बजा रहा हूँ और तू पनघट से बावरी की तरह भागी भागी आ रही हो  
तुम्हारा ब्रज
1940
4
सब भाई बहन खूब हँसैत छल पापा आ गीत किन्तु हम बुझि गेलों जे पापाक इयैह
भावना हमर अंतरात्मा मे बसल छल वाल्याकाले से। स्यात पापाक एयाह कल्पनाशक्ति  इएह स्वप्निल संसार हमर जिनगी बिन गेल छल। हमर अंतर मे एकटा विरहिणी नायिका तुलसी तर दीप नेसैत सतत प्रतीक्षा मे रहैत  अछि। एहि मे हम पत्र सबहक दुई खंड केने छी। पहिलुक साहित्यिक पत्र सब  जिनका कारण हम आय एहि देहरि पर पहुंचल छी दोसर खंड पारिवारिक थीक जिनका सिनेहक कारण रजनी शेफालिका बनि गेलीह   कोन पत्र आगु  अछि  कोन पाछु ई हमरा स्वयं नहि मोन  अछि   हमर अस्तव्यस्त जिनगी जकां हमर सभ चीज अस्तव्यस्त रहल। साँच तँ ई अछि जे अखर प्रीत केर किस्त किस्त जीवनक एकटा किस्ते थीक- एहि पत्र मे आयल अपन समस्त हृदय के हम असंख्य धन्यवाद द रहल छी जिनका कारन हमर जीवन ज्योतित रहल। दृष्टि क आपफताब आलम जीके हार्दिक धन्यवाद जे एहि अस्तव्यस्त कागद सभ के जोड़ि आकार देलनि    संगही गजेन्द्र ठाकुर जी के दिल्ली एहेन महानगर मे हमरा सहयोग द एही पुस्तक का ई-प्रकाशन केलन्हि     हुनक एहि महानता मात्रा धन्यवाद कहि हम स्वयं तुच्छ भ  जायब। नागार्जुनक एकटा पांति हमर मोन मानस मे सतत उथल पुथल
मचौने रहैत  अछि     कौन चाहेगा उसका शून्य मे टकराए यह उच्छवास हो  गयी हूँ मैं नहि पाषाण/जिसको डाल दे कोई कहीं भी/करेगा वह कुछ नहि विरोध/ करेगा वह कुछ नहि अनुरोध/ वेदना ही नही जिसके पास/ पिफर उठेगा कहाँ से निःश्वास        
शेफाली
परमादरणीया शेफालिका जी
सादर प्रणाम।
किस्त-किस्त जीवन अहाँ तँ सागरजी कें पठेलियनि मुदा घरौआ नारी होयबाक कारणें ई
लाभ हम उठेलौं। हुनकासँ पहिने हमहीं पढ़ि गेलौं 6-7 किस्त मे। हमरा बुझबा मे नहि आबि रहल अछि जे कतय सँ शुरु करी की लिखी की कही हँ  एतेक जरूर लिखब जे एहि किताब कें हाथ मे लैत वा किताब दिस तकैत अनेरो आँखि से दहो-बहो नोर झरय लगैए। किए तकर कारण हम अपनो नहि जानि पबैत छी। एहि बेर महाकुंभ मेला लागल अछि। हमरो बहुत परिचित लोकनि सभ महाकुंभ स्नान करैक लेल जाइ गेलीह अछि। हमरो चलै ले कहलनि। हम हिनका सँ पुछल मुदा हिनकर नहिंये सन जबाब पाबी हम चुप भ गेलौं किएक तँ हिनका एहि सभ मे विश्वास किछु कम्मे जकाँ छनि। लेकिन किस्त-किस्त जीवन  जकरा हम अहाँक डाइरी कहैत छी  पढ़ि गेला सँ मोन मे एकटा एहन सन हिलकोर उठल जे कोनो टा कुंभ स्नान सँ बेसी सुखमय लागल। एकटा बात आर
जे मोनक कोनो दोग मे अहाँक दर्शन करबाक प्रबल इच्छा जागि गेल अछि। ठीके शेफालिका जी जखन हम अहाँके देखब तँ हाथ सँ छुबिें देखक  आंगुर से दाबि कें देखब  तरहत्थी सँ हँसोथिकें देखब   भरि पाँज मे पकड़ि कें देखब    चरण मे झुकि कें देखब   की सरिपों अहाँ वैह शेफालिका छी जे हमरा माथ पर एखन हाथ रोपने    छी
सत्ते  विधाताक बड़ पैघ डाड  अहाँक रंगीन जीवन पर पड़ल। अहाँ लोकनिक अंतरंगता
हुनको अखरि गेलनि। अहाँ एकटा सफल बेटी  निश्छल प्रेयसी  सर्वस्व समखपता पत्नी  कुशल गृहिणी  ममतामयी माय  निष्णात लेखिका   समाज-सेविका  राजनयिक आ डल कमंत बाँधवी   आ और की-की ने छी    से नहि जनितहुँ जँ ई पोथी नहि पढ़ितहुँ। अहाँ अतुलनीय छी    तोहर सरिस एक तोहें माधब मन होइछ अनुमाने  ई बात हम एहि लेल लिखलहुँ जे सागरजी अहाँक तुलना महादेवी वर्मा  महाश्वेता देवी वगैरह सभ सँ करैत रहैत छथि  जे-हो  मुदा मैथिली साहित्य कें एकटा अनमोल वस्तु भेटलैक अहाँक ई पोथी। हमरा बुझने एहि पोथीक उचित मूल्यांकन नहि भेलैक अछि। हमरा सन घरेलू महिला लोकनि कै तँ ई पोथी अरवैध कें पढ़वाक चाहियनि। पोथीक भाषा आ शैली
मे गति छैक। एक-दू पेज पढ़लाक बाद हैत नहि जे पढ़ब छोड़ि आर कोनो काज करी। येह एहि कृतिक सफलता भेलैक। 1962 मे जखन वियाह भेल छल तखने सँ मैथिलीक पोथी-पत्रिका पढ़ैत आबि रहल छी। तहिया मिथिला मिहिर मे अहाँक दू जुट्टिðया गुहल केशवला पफोटोक संग अहाँक कविता-कथा संग पढ़ैत रही। बड़ बढ़ियाँ   बड़ बेश!
किस्त-किस्त जीवन तँ एकटा विरल रचना अछि। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क वर्षगांठ
पर हम आग्रह करबनि मैथिलीक भाग्य विधाता लोकनि सँ जे एहन उपाय करथि जे एहि पोथीक अंतर्राष्ट्रीय भाषा मे अनुवाद होइक   । आब हम अपन लेखनी कें विराम देबय चाहैत छी एकटा छोट छीन पांतीक संग-
पढ़ि गेलौं ई आत्मकथा
मोन मे भेल उसास   
कतेक व्यथित ई बारह मास!
कतेक व्यथित ई बारह मास!!
स्नेहाकांक्षिणी
शैल
संतोषपुर  कोलकाता
पत्र पहुँचनामाक सूचना अवश्य दी  से आग्रह।
ई पत्र वरीय लेखक लक्ष्मण झा सागर क पत्नी शैल झााक लिखल अछि जे एकटा
गृहिणीक संगे बहुत तरह स मैथिलीक सेवा करैत छथि।  इ हमरा बाद मे ज्ञात भेल  हुनक हृदयक निश्छल उदगार एहि मे सÂिहित अछि। किस्त-किस्त कोनो घरेलू महिलाक अन्तस्तल के स्पर्श कँ सकैत छैक ई हमर प्रथम अनुभूति  ई विश्वक सभ सँ पैघ पुरस्कार हमरा लेल अछि आ किस्त किस्त लेखनक उद्देश्य केर संपूर्णता। हम तँ किछ नहि छी-किन्तु  शैल जी स्वयं महान छथि ओहि आवरण सँ हमरा आच्छादित क  देलनि-
साहित्य समाजक दर्पण होइत अछि आ साहित्यकार ओहि दर्पणक शिल्पी। शिल्पी जतेक
विलक्षण हएत छाया ततेक सापफ। कोनो साहित्यिक अध्ययनसँ रचनाकारक मनोवृत्ति स्पष्ट होइत अछि। मैथिली साहित्यिक संग ई विडंबना रहल जे एहिमे वाल साहित्य  अर्थनीति आ आत्मकथाक विरल लेखन भेल। मात्रा किछु साहित्यकार एहि विधामे अपन लेखनीक प्रयोग कएलनि। ओहि विरल साहित्कारक मुच्छमे एकटा नाम अछि- डॉ  शेफालिका वर्मा। शेफालिका जीक रचना सभमे पारदखशता रहल ओ जे हृदएसँ सोचैत छथि ओकरा अपन कृति उतार िछैत छथि। हुनक रचनामे अंर्तमनक ध्वनि स्पष्ट सुनल आ सकैत अछि। कतहु अन्तर्द्वन्द्व नहि कतहु पूर्वाग्रह नहि। हुनक किछु कृति- विप्रलब्ध  अर्थयुग  स्मृति रेखा  यायावरी आ भावांजलि पढ़लाक बाद हुनक जीवनक वास्तविक रूपक दर्शन कएल जा सकैत अछि। अपन रचना सभकें एकसूत्रामे सहेजि क  अपन आत्मकथाक लिखलन्हि किस्त-किस्त जीवन अप्रत्याशित मुदा प्रासंगिक नाम। जीवनक कतेक रूप होइत अछि। बाल  वयस्क  प्रौढ़    सुख-दुख काम निष्काम यएह थिक एहि रचनाक सार। अपन करूणामयी जीवनक बून-बूनकें आंजुरमे एकत्रित क  आत्मकथा लिखलन्हि।
आमुखसँ स्पष्ट होइत अछि जे ओ नित डायरी लिखैत छथि तें अपन किस्त-किस्त
अनुभवके वटोरि लेलनि। वाल-कालक गणित विषयक समस्या हो वा संगीत शिक्षक पंडित वाजपेयी जीक व्यवहारक मूल विश्लेषण सभ विन्दुपर पोथिक पुफजल पÂा जकाँ स्पष्ट प्रस्तुति। युवती वएसमे प्रवेश करैत काल कोनो अनचिनहार युवकक नजरि देखि क  अपन ब्रह्यास्त्राक  थूक फेकवाक प्रयोग करैत छलीह। ओना एहि अस्त्राक शिकार विवाहसँ पूर्व ललन बावू सेहो भेल छलाह  जिनका संग ओ दाम्पत्य सूत्रामे बान्हल गेलीह। नव प्रकारक रक्षा सूत्राक विषय मे पढ़ि अकचका गेलहुँ  नीक नहि लागल मुदा  एहिसँ रचनाक प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह नहि लगाओल जा सकैत अछि।
शिव कुमार झा
टिल्लू- किस्त किस्त जीवन-शेफालिका वर्मा  समीक्षा
विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका
7
शेफालिका जी
अहाँक कथा सभ मे तनाव ग्रस्त समााजक मूलभूत समस्याक रोचक वर्णन होइत अछि। युवा पीढ़ी कोना पथभ्रष्ट भ  गलत बाट ध लैत अछि  नारीक शोषण कोन प्रकारे होइत अछि सभ। लिपिब( केने छी अहाँ। अहाँक कथा सभकें बेर-बेर पढ़बाक मोन होइत अछि  
गौरीशंकर राजहंस
भूतपूर्व संसद सदस्य
लोकसभा
आशीर्वाद
अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलन मे कवयित्राी शेफालिका की प्रतिभा से परिचय पाकर मैं जितना प्रसन्न हूँ  उतना ही चकित भी हूँ। इतनी छोटी अवस्था मे उन्होंने जो साहित्य मे अन्तर्दृष्टि प्राप्त की है  वह उनके स्वखणम भविष्य की अग्रसूचिका है। उनके काव्यसंग्रह विप्रलब्धा का भावोत्कर्ष आज के नवयुग के कवियों के लिए अनुकरणीय है। सम्मेलन के अधिवेशन मे उन्होंने एक सर्वोत्कृष्ट सम्मान भी अखजत किया। उन्हें डा  उमेश मिश्र स्मृति स्वर्णपदक से आभूषित किया गया। उनकी काव्य-प्रतिभा भविष्य मे और भी अधिक सम्मान की अधिकारिणी होगी  इसमे कोई सन्देह नहीं। मेरा उन्हें हाखदक आशीर्वाद है कि वे भारतीय साहित्य और संस्कृति मे योग देकर और भी बड़े सम्मान और अलंकरण प्राप्त करें और हमारे देश और साहित्य को उन पर अभिमान हो!
डॉ  राम कुमार वर्मा
साकेत
इलाहाबाद-2
24 12 78
सौ  शेफालिका वर्मा के ँ हम तहिए सँ जनैत छिऐन्ह जहिया ओ दस-गयारह बर्षक बालिका छलीह। हुनक पिता  बंधुवर श्री ब्रजेश्वर मल्लिक  यदा कदा अपन रानीघाट निवास मे निमंत्रण दैत रहैत छलाह  जाहि मे षट्रस ओ नवरस दूहूक समावेश रहैत छलैक। साहित्यगोष्ठीक परिसमाप्ति मधुरेण होईत छलैक। ओहि माधुर्यमय वातावरण मे मेधाविनी कन्याक प्रतिभा-संस्कार विकसित होइत गेलैन्ह। आइ ओ एक सुकुमार शब्द - शिल्पिनी कवयित्राी लेखिकाक रुप मे विख्यात छथि। हम हुनक स्मृति रेखा मे मर्म स्पखशनी भावुकता देखि शुभकामना प्रकट केने रहिऐन्ह जे ओ एक दिन मैथिलीक महादेवी रुप मे प्रसि  हेतीह। आय हुनक विप्रलब्धा मे भावनाक कोमलता और करुण रसक परिपाक देखि ओ आशा पल्लवित भ  गेल अछि। शेफालिका अपन नाम सार्थक करैत निरंतर शृंगरहारक माला गाँथि वाणी देवीक मुकुट पर अखपत करैत रहथु  यैह आशीर्वाद दैत छियैन्ह।
हरि मोहन झा
टिकिया टोली  पटना
मिति 17 12 77
श्रीमती शेफालिका वर्माक हस्ताक्षर मे मैथिलीक एकटा एहन कवयित्राीक उदय भेल अछि
जे थोड़बे काल मे साहित्य-जगत पर अपना प्रभाव जमा लेने अछि। हुनक कविता-संग्रह विप्रलब्धता कें देखबाक अवसर हमरा हस्तलेखे रूप मे भेटल छल  जखन हम कोनो कवि-गोष्ठी मे सम्मिलित होयबा लेल सहरसा गेल छलहुँ। मंच परक भीड़-भाड़ एवं अस्तव्यस्तता रहितहुँ जे किछु उनटा-पुनटा क  देखल आ पुनः कवयित्राीक मुँह सँ सुनल से मोन मुग्ध क  लेलक। शेफालिका जीक कविता मे नीवनताक संग-संग मौलिकता अछि। समाजक बदलल परिवेश मे वर्तमान व्यक्ति केर मनोदशा भावना एवं अनुभूति जाहि प्रकारें प्रभावित भेल अछि  से विप्रलब्धा क कवयित्राीक द्वारा एकदम आधुानिक संदर्भ मे वाणी पाओल अछि। से ग्रन्थक नाम विप्रलब्धा कोनो रीतिकालीन अतीतक
खाहे जेतेक विज्ञापन करओ  मुदा ओर प्रत्येक रचना अपन एक-एक पांती मे युग-बोधक अदम्य स्वर झंकृत क  रहल अछि। की भाषा  की भाव दुहू मे शेफालिका जीक परतरि नहि! प्रेम-प्रसंग पर हुनक चुटकी  व्यंग      दाम्पत्य जीवन सँ प्रेरणा ग्रहण करितहुँ कतेक असंपृक्त भ  जाइत अछि-से केओ मर्मी व्यक्ति सहजें बूझि सकैत अछि। काव्यक सरसता रखैत किछु एहेन बात कहि देब जे अजगुत लागय-एकाएक चौंका दिए से शेफालिका वर्मा सँ भ  सकै। भरल पूरल परिवार  छह सन्तान कें जन्म देनिहारि  आ तें स्वास्थ्य सँ दुर्बल  पेशा सँ वकील पति केँ सब तरहें सुखी करइत नगर आयुक्त क पद-भार ग्रहण करइत      ओ कोना काव्य रचना क  लैति छथि कोन तरहे गुनगुनयबाक लेल समय निकालि लैति छथि गृहस्थीक जाहि मरूभूमि मे कतेक कवि-कवयित्राीक रस श्रोत सूखी गेल ताही प्रपंच मे हुनक कवि हृदय कोना मात्रा जीविते नहि-सरसता एवं वचन-विदग्धता क प्रचार-प्रसार क  रहल अछि से वास्तव मे अभिनन्दनीय  बारम्बार वन्दनीय अछि। हुनक नाम शेफालिका क उत्प्रेरक सन्दर्भ। तखन हमर एकटा रचना शेफालिका शीर्षक प्रकाशित भेल छलैक। आ लागले कवयित्राीक जन्म होइत छनि। पिता साहित्य-प्रेमी। तें स्वाभाविके  जे अपना नवजात कन्या केर नाम हमर ओहि कविता पर शेफालिका राखि देलनि। एके संग ओ कविताओं ई कन्या-दूनू सार्थक भ  गेली। ता देखू-सरस्वतीक कृपा। बालिका भ  गेली
कवयित्राी भावुकता सँ भरल ममता सँ ओत-प्रोतऋ आ हमर ओ कविता एक जीवंत काव्य प्रतिमा मे रूपांतरित भ  गेल अछि। ई केकर सौभाग्य
आरसी प्रसाद सिंह
एरौत
 समस्तीपुर
9 7 75
            श्रीमती शेफालिका वर्मा स्वयं साकार विप्रलब्धा छथि। भावनाक एकटा सहज सिहकी मे हिनक अश्रु विन्दु जे झहरि जाईत छनि तही मुक्ता सँ  सज्जित आखर मे ई कविताक फूल अंकित करैत छथि। एकटा कलामयी मैथलानी  एकटा सिसकैत कवयित्राी आ एकटा भावभिजल व्यक्तित्व  हमरा बंगलाक सुप्रसि( कवयित्राी अरुदत्त आ तरुदत्तक झांकी भेटय लागैत अछि हिनक पांती सभ मे।      
मणिपद्म
बहेड़ा
सतुआनि  14 4 78
श्रीमती शेफालिका वर्मा आधुिनक मैथिली कविताक पारिजात-पत्र पर अंकित एकटा सिन्दूरी हस्ताक्षर छथि। श्रीमती शेफालिका वर्माक परिगणना ओहि स्कूलक कलाकार मे हेतनि जकर विचार-धारा श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर प्रतिपादित करैत छथि। ई कविता सभ शेफालिका क व्यक्तित्वक निरभ्र-पारदर्शी रूप वेफँ हमरा सभक समक्ष सम्पूर्ण चारुता आ मनोज्ञताक संगे प्रस्तुत करवा मे सफल-समर्थ सि  भेल अछि।
मुक्त छंद मे रचित अपन कविता मे जेना शेफालिका नव-अभिनव उपमान आ चित्रा-धर्मी
शब्द-वितान सँ अपना भावक रूप-विन्यास करवा से सफल सि( भेलीह अछि तहिना अपन गीत सभ मे सेहो ओ एक विलक्षण मार्दव आ सौकुमार्य प्रस्तुत कयलनि अछि। हुनक गीत मे नारी सुलभ भावनाक स्वच्छ-स्पफटिक अभिव्यक्ति भेल अछि। हिनक प्राणक अतलता मे सुकुमार भावक जे मधुरिमा आ कमनीयता अपन प्रकाश विकीर्ण करैत अछि तकरा तद्रूपे रमणीय शब्दावली मे प्रस्तुत करवा मे ई सहज समर्थ छथि।
ई कहब आवश्यक नइ जे मैथिली काव्यक विशाल व्यापक संसार मे अनेक कवयित्राी
उत्पन्न भेलीह जिनक काव्य-सुमन सँ ई संसार सुरभित अछि मुदा श्रीमती शेफालिका वर्मा आन कवयित्राी सभ सँ अपन सर्वथा एकटा पृथक् पफराक विलक्षण आ अनुपम स्थान बनौलनि अछि।
डॉ  केदारनाथ लाभ
राजेन्द्र कॉलेज  छपरा
10
            अन्तिम साँस सँ पहिने आस रहैत छैक  जे कोनो आसरा भेटय ओ साँस जे जा रहल हो  तँ रुकि जाय। तहिना मैथिलीक महादेवी  प्रो  हरिमोहन बाबूक शब्द मे  एहि सँग्रह सँ मैथिलीक डुबैत आस के ँ निश्चय बचा लेलन्हि। चि  शेफाली मैथिली लेल आब केवल हस्ताक्षरे नहि महत्वपूर्ण दस्तावेज छथि। हुनक कविता पढ़ी प्रत्येक पाठक-पाठिकाक आँखि नोरा जेतन्हि। शब्द के ँ पीड़ा के ँ माध्यम उद्घोष करब ओ पीड़ा के ँ पुनः शब्द से आनब सोझ अग्निपरीक्षा नहि। हमरा हर्ष अछि जे शेफालिका एहि परीक्षा मे सवा सोलह आना खरा भेल छथि।      
डॉ  सुधाकान्त मिश्र
मंत्राी
मैथिली एकेडमी - इलाहाबाद
मिति 13 7 77
            अहाँक कविता सभ खास कय भावा×जलि भाव जगत् केर यात्रा  आत्माक लहरि भत्तिक आलोड़न  ओहि अदृश्यक दृश्य सृजन     की की कहू तत्काल आओर पुनः चिरकाल अवगाहनक वस्तु थीक। हम बूझैत छी ई वास्तविक कविता थीक ,हम ओकर रस मे लुब्ध भ  जाइत छी  ओकर रसास्वादन करय लगैत छी। तैं जेना प्रथमहि
हमरा आकृष्ट केलक तहिना निरन्तर ई आकृष्ट करत - सेहो पीरीत अनुराग बखानिय तिल तिल नूतन होय। क्षणे क्षणे यन्नवत्यमुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः। एके साँस मे पढ़बा योग्य आ साँस साँस मे अनुभव करबा योग्य जाहि सँ पाठक मीरा बनि जाय- मैं तो गोविन्द के गुराा गाऊँ। एकेक पाँति एकर भाव गुम्पफन  भाव लहरिक  ओहि अरूपक जे शब्दगत अहाँ आरती सजाओल रचाओल अछि तकर आरती उतारल जायतः हम केवल अपन भावावेग किछु व्यक्त कैल अछि जे शब्दगत रोकने नहि रुकि सकैत अछि। अहाँ अपन डुमरा गामक  माटिक  नहि भू माताक ओहिना भत्तिफ पूर्राा पूजन कैल अछि जेना अयोध्या के सीमा पार करैत काल स्वयं श्री राम मातृ भूमिक माटि अपना रथ मे राखि पुनः अयोध्याक भूमि वेफँ प्रणाम क तखन आगू दोसर राज्य वा प्रदेश
मे प्रवेश कैलन्हि       
जगदीश प्र  कर्ण
लहेरियासराय
22 1097

अनेक शुभकामनाओं सहित। शेफालिका जी  आप साहित्य की दुनिया मे अपना अलग
अस्तित्व बनाएँ।              राजेन्द्र अवस्थी 1/6/83
 आयु.  शेफालिका जी
   अभिमत मैथिली मे किछु दिनसँ कविता के अर्थ भए गेल अछि अव्यस्था-दुरवस्था सत्र
प्रपीड़ित-पराजित आत्माक नपुंसक चीत्कार  जेना विपक्ष नेताक भाषण होवा वा अखबारक
अभाव-अभियोग स्तम्भ हो। एहना मे ई मधुगंधी बसात एक टा नबे स्वाद देलक आ एकटा भिन्न वायुमंडल मे लए गेल। एहि मे स्वर तँ ओएह अछि जे कालिदास-विद्यापति-महादेवी वर्मा सँ लए आइ धरि गुंजित होइत आएल अछिऋ किन्तु नव अछि एकर अभिव्यक्ति जे युग-युग मे बदलैत रहल अछि। एके मूल अनुभूतिकेँ अहाँ जे नाना नव-नव रूप देल अछि ताहिसँ भवभूति मन पड़ैत छथि आ हुनके नकल करैत कहि सकैत छी - एका त्रा नामरहिता गहना  नुभूतिर्भिन्ना पृथक्-पृथगिवाश्रयते विवर्तान्। मैथिली कविता मे आधुनिक युगक अवतरण विलम्बसँ भेलऋ ता हिन्दी तथा अन्य भाषा
सभ मे कविताक अनेक युग बीति चुकल छल। परिणाम ई भेल जे मैथिली मे रहस्यवादी  छायावादी आ रूमानी कविता नाम मात्रो लिखाएल आ चलि पड़ल प्रगतिवाद  यथार्थवाद  प्रयोगवाद  अस्तित्ववाद। एहिसँ मैथिलीक कविताक क्षेत्रा मे जे एकटा खाधि रहि गेल छल तकरा भरबा मे शेफालिका अहाँक ई संग्रह बहुत दूर धरि सफल भेल अछि।
गोविन्द झा
साहित्यकार: अनुवादक: भाषाशास्त्री
हम 1961 क अगस्तक आरम्भ मे एम ए  क परीक्षा द गाम चल अयलहुँ। परन्तु ओही
मासक अन्तिम सप्ताह मे मिथिला मिहिर मे शेफालिका मल्लिक  वर्मा  क नाम सँ पावस-प्रतीक्षा शीर्षक कविता प्रकाशित भेला। ई देखि मोन मे अत्यन्त प्रसन्नता भेल। पुनः अक्टूबर मे शेफालिका मल्लिक  वर्मा  क दोसर कविता विस्मृत पुफलडाली सेहो प्रकाशित भेलनि। तकर बाद तँ शेफालिकाजी अव्याहत रूप मे मैथिली मे अपन सर्जनात्मक क्षमताक प्रयोग कर  लगलीह। हमर मित्रा ललन कुमार वर्मा शेफालिका केँ हमर आग्रहेँ मैथिली मे साहित्य-सर्जनक आग्रह कयलथिन। शेफालिका मैथिली मे रचना कर  लगलीह आ आइ  ओ मैथिली साहित्य-जगत मे शीर्ष पंक्ति मे आसीन छथि। ई हमरा लेल अवश्ये अविस्मरणीय बात अछि।
श्री रामदेव झा
   शेफालिका क पदार्पण मैथिली साहित्यमे ओहि समयमे भेल अछि  जखन मैथिली
साहित्यमे महिला-लेखक नाम पर सप्पतो खएबाक स्थिति नइ छल। अहू दृष्टिएं हिनकर सृजनक संज्ञान लेल जएबाक चाही। एहि मे संकलित कविताक विषय मुख्यतः स्त्राी-जीवनक नानाविध अनुभव  आ थोड़ेक समाजपरक परिस्थितिसं संब( अछि। पितृसत्तात्मक समाजमे स्त्राीक उपेक्षा  नारी जातिकें निम्नतर बुझबाक प्रवृत्ति पर हिनकर कविता हंसैत अछि  दहेज प्रथाकें धिक्कारैत अछि  भारतक न्यायिक व्यवस्थाक विडम्बनाकें दुत्कारैत अछि। मुदा  अपेक्षाकृत अपन प्रेम-कवितामे कवयित्री अइ सभ प्रसंगसं बेसी सफल आ स्पष्ट छथि। कहबाक चाही कि प्रेम-कविता मे हिनकर संवेदना बेसी घनीभूत देखाइत अछि।
देवशंकर नवीन
नेशनल बुक ट्रस्ट  ए-5  ग्रीन पार्क
नई दिल्ली-110016
मधुगंधी बसात सँ कथा शिल्पक दृष्टि सँ श्रीमती शेफालिका वर्माक कथा पूर्णतः भावपूर्ण होइत अछि। हिनक पचीसो कथा मिथिला मिहिर अग्निपंग तथा आखर आदि प्रत्रिकाक माध्यम मे पाठकक समक्ष उपस्थित भय चुकल अछि।
हिनक कथा मे नारी हृदयक कोमलता औचत्यक दिगदर्शन सभ्यक रूप मे होइत छैक जाहि मे रहैत अछि गतिशील साँसक लय तथा जीवनक आकर्षण बिन्दु के प्रति हृदयक अस्पष्ट मधुर आ गुंजायमान ध्वनि। इ युग युग सें आति रहल नारी सौंदर्यक ओहि रूप कें नहि स्वीकार करैत छथि जकर लक्ष्य विलासिता के प्रदर्शन मात्रा होय छैक। एकरा संगहि ई स्त्राी पुरुषक पारस्परिक आकर्षण केँ सेहो अस्वीकारैत नहि छथि वरण् ओहि आकर्षण केँ मर्यादाक सीमा रेखा मे आब( रहब स्वास्थप्रद मनैत छथि। स्त्राीक रूप मे आकखषत भ  पुरुष किछ क  देखेवाक    अपूर्त सुन्दरताक शृंगार करैत अछि- हिनक एकटा कथाक ई पंक्ति उच्छृंखल प्रणयक प्रति विरोध प्रकट करैत अछि। एहि भौतिकवादी युगक जिनगी आ नारीक कोमल  भावुक हृदयक बीच होइत संघर्ष मे इ अनेक कथाक माध्यम से जेना नोरक साँस  मिथिला दूत कथा  हरियर कागजक एकटा मनःस्थिति  सोनामाटी  आदि कथाक माध्यम मे बड़ रोचक आ माखमक ढंग से अभिव्यक्त केने छथि। हिनक कथा मे निर्वैयक्तिकता  सेल्पफ डिटेचमेट  अंग्रेजीक लेखिका जेन ऑस्टेन जकाँ रहैत अछि।हिनक इएह प्रतिभा हिनका मैथिली एकेडमी द्वारा म म  उमेश मिश्र स्मृति स्वर्ण पदक देआय 1974 क सर्वश्रेष्ठ गद्य लेखिका कयैलक। हिनक एकटा कथा संग्रह शीघ्रे पाठकक समक्ष उपस्थित होयत। मैथिलीक पाठक बून्ह हिनका सँ बहुत किछ आना रखेत अछि। मैथिलीक आधुनिक लेखिका लोकनि जे काष्यक प्रत्येक विधाक माध्यम सँ अपन अपन प्रतिभाक परिचय देलनि एहि श्रेणी मे श्रीमती शेफालिका वर्मा  श्रीमती गौरी मिश्र  डॉ  श्रीमती इलरानी।
मिथिला मिहिर
ले  नीरजा रेणु
रविवार 7 दिसंबर  1965
13
मूलतः कवयित्राी साहित्यकार शेफालिका वर्मा मैथिली कथा साहित्य मे एकटा न¯
बिसरयवाली मजगुत स्तम्भ छथि। तेँ मैहिला कथाकारक रूप मे ओ अग्रणी लेखिका छथि हुनकर कथा पर कल्पना अरिपन रहैत छन्हि। छोट-छोट वाक्य सुन्दर भाव-बन्ध आ कोमल कोइलीक स्वर सन प्रवाह। शेफालिका वर्माक कथा मे प्रेम केन्द्रविन्दु मे रहत अछि। ओ तीस वर्ष सँ कथा लीखि रहल छथि। हुनकर कथा मे तीस वर्षक अवधि मे जीबैत  जन्मैत  युवा होइत  प्रौढ़ होइत प्रेमक बानगी छन्हि। सफल प्रेेमक उल्लास  असफल प्रेमक हाहाकार  हेतु हेतु मद्भूत प्रेमक भकजोगनी सँ चोन्हियाइत नीरस जिनगीक आस  सभटा छन्हि शेफालिका वर्माक कथा मे। पुफलपाँकी बला प्रदेशक
महीन रसगर माटि केँ जौं न¯ह बिसरबाक होअय तँ शेफालिका वर्माक कथा सदति सँग राखी। श्रीमती शेफालिका वर्मा प्रथम कथा झहरैत नोरः बिजुकैत डोर 1965 मे वैदेही मे
प्रकाशित भेल। हिनक प्रारंभिक कथा सभ जेना नोरक एकटा निसाँस  अछि। हिनक पँफसड़ीक दू छोड़ कथा मे स्त्राी जीवनक पराधीनता देखाओल गेल अछि। भारतीय समाज मे स्त्राीक स्थान सदैव नीचेँ रहल। अपन अस्तित्व रक्षाक लेल हुनका पति पति ओ पुत्राक अधीनस्थ रहय पड़ैत छन्हि।
पिताक इच्छाक विरोध नहि कय शैली सौम्य सँ संबंध विच्छेद क लैत छथि। माय बेटीक हृदय केँ जनितो पतिक भय सँ मौन भ जायइत छैक। नारीक सामाजिक स्थितिक आकलने एहि कथा मे भेल अछि। लेखिका अपन नायिकाक पक्ष लैत कहैत छथि  माय-बाप एक दिस तँ बेटी केँ संपूर्ण पति भक्तिक उपदेश दैत छथि आ दोसर दिस बेटीक प्रदर्शनी लगाए ओकर बर स्वयं तकैत छथि। फँसरीक दूनू छोर माय बापाक हाथ मे अछि आ गरदनि पँफसल अछि कुमारि कन्याक। आ फँसरीक वैह दूनू छोर पतिक हाथि आबि जाइछ। एकान्त सेवा  संपूर्ण समर्पणाक बादो पतिक घर मे ओ अन्नक बोर सन राखल रहैछ आ पति आन जान घर मे मुँह दैत अछि। श्रीमती वर्माक अन्य कथा अर्थयुग मे एकटा जूनियर इंजीनियर द्वारा अनैतिक ढंगे द्रव्योपार्जन कय सुख शांति केँ तिलांजलि देबाक कथा अछि। आलोक बाबूक पत्नी साड़ी  गहना आ  सुख सुविधाक सभ वस्तुक उभोग करैत छथि मुदा पति सुख सँ वंचित होइत छथि। मानवमूल्यक
उपहास करैत आलोक बाबू कहैत छथि- मानव मूल्य हा-हा-हा। हे उदय  मानव मूल्य मात्रा टाका रहि गेल अछि। टाका मे किछु शक्ति छैक तखन ने दोस्त  टाकाहि धर्मः टाकाहि धर्मः टाकाहि स्वर्ग क युग सरिपहु आबि गेल अछि।
उषा किरण खाँ
पटना
शेफालिका जी
निष्ठा को जीवन का धर्म रखें। सफल एवं सुखी जीवन की कामना के साथ।
शीला झुनझुनवाला  01 06 83              
समालोचनात्मक खुंडी
शेफालिका जी !
            अहाँक “उपेक्षित” कविता हमरा पर टोना कय देलक अछि। हम ौत बिसरिये गेल रही जे हमरो बेडिंग अछि। ई कविता पढ़ि काल्हिये सँ हम बेडिंग ताकि रहत छी आ भेटि नहि रहल अछि। भेटिते सूचना देब। अहींक शब्द-एहि समालोचनाक फ्खुंडीय् आदरणीय वकील साहबे कें देखेबन्हि जे कोना अपनेक निश्छल साहित्यिक हृदय-स्नेह स्निग्ध्-वेदना विह्नल-असीम सँ संबंध् जोड़ने कोमलतम भावना हमरा ऊपर निखिलेशो सँ बेशी हावी भै गेल - ईं बात अहाँ सँ बेसी वकील साहेब बुझथिन्ह कियेक त बार आ बेन्च भेने हमरा लोकनि समानर्ध्मी छी - दियाद-गोतिया छी। अनंत वर्ष धरि अपनेक लेखनी साहित्य-ध्रा पर शेफालिकाक वृष्टि करय एतबेक मात्रा हमर शुभकामना।
अस्तु
मर्यादा पुरुषोत्तम कें नाक मे बड़दवला
 स्व   रामनाथ झा
डी सी एल आर  सहरसा
शेफालिका वर्मा के काव्य का मूल स्वर यही वेदना है जो काव्य का मूल उत्स होता है।
वेदना कुंठा नहीं दृष्टि है। वेदना जब दृष्टि बन जाती है तभी ससीम से असीम की ओर
महाभिनिष्कमण होता और साहित्य मे शाश्वत सत्य उद्घाटित होता है। प्रेम की वेदना जब कृष्ण की बाँसुरी की रागिनी बन जाती है तभी राधा की मूर्च्छना मीरा का भजन बन पाती है और इस मूर्च्छना और रागिनी का संबंध सूत्रा है अटूट विश्वास। महादेवी जी अपने परिचय मे कहती हैं- मैं नीर भी दुख की बदली और शेफालिका जी अपना परिचय देती हैं- सांध्य गगन की मैं अकेली तारिका।  कवि भी सामाजिक प्राणी होता है-युग की चेतना के शीर्ष बिन्दु पर का जीव। अतः देश  काल  परिवेश और परिस्थति से आँखें मून्द लेना  उन्हें झुठला देना  सदा सम्भव नहीं होता। यदा-कदा ही सही  सामाजिक विसंगतियों  कुरूपताओं और बदलते जीवन-मूल्यों के प्रति दृष्टिक्षेप कवयित्राी की सामाजिक चेतना के प्रति जागरूकता का प्रमणा है। इस युग की सबसे बड़ी विडंबना है- विचारों की संकीर्णता और आचरण और अनैतिकता। कभी कवि बच्चन ने गाया था-
युग बदलेगा किन्तु न जीवन
किन्तु आज- आदमी।
अब आदमी नहीं रहा/उसमे सोचने-समझने की सारी शक्तियाँ/अन्तर्मुखी
हो गई हैं/उसकी सारी संवेदनाएँ/सिर्पफ अपने लिए रह गई हैं/ वह एक सुसंधहीन फूल की तरह है/जो
अपने ही खिलने मे मस्त है।
शेफालिका जी की उपर्युक्त पंक्तियाँ सोसलिज़्ाम और कॉमनिज़्ाम पर सेल्पिफज़्ाम की
करारी चोट है।
कवयित्राी डॉ  शेफालिका वर्मा की काव्यानुभूति का पफलक बड़ा ही विस्तृत है। वैयक्तिक
पीड़ा और सामाजिक उत्पीड़न के प्रति उनकी सजगता को देखते हुए हिन्दी-जगत उनसे बहुत-कुछ
अधिक की आशा करता है।
रामेन्द्र कुमार यादव रवि
सांसद  कुलपति
बी एन  मंडल  वि वि  मधेपुरा।
शेफालिका
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना जाग तुझको दूर जाना
महादेवी वर्मा  78
Presented with greatest of love to my dearest damsel darling photogenic wife
in the last days of 1983 this book Rajyog is addition to Raj
-Lalan Verma, 24 12 83
16
शेफालिका हमर दृष्टि मे
               नारीक रूप मे शेफालिका शक्ति स्वरूपा सेहो छथि जे महिषासुर रूपी दहेज
दानव  नारी शोषनक प्रतीक शुम्भ निशुम्भ आ स्त्राी समाज के गर्त मे राखवाक प्रयास करै वाला रक्तबीज के बध करवाक संकल्प नेने छथि आ निर्भीक भ एही लेल सतत प्रयन्तशील रहैत छथि। हुनक क्रांतिकारी हृदय स्यात हुनक जन्म दिन 9aug (quit india movement)भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरित छैक।
           एक दिसि प्रेम  करुणा आ दया से सहजे पसिजय वाली शेफालिका आ दोसर दिसि क्रांतिकारी शेफालिका   दुनू व्यक्तित्व क रस्साकसी मे बढ़ैत साहित्यधर्मी शेफालिका स्वतः एक अद्भुद व्यक्तित्व स्वामिनी बनि गेल छथि जे बुझवा मे कखनहु काल हम सेहो अपना के अक्षम पबैत छी ललन ठीके छैक हिनकर कहब    हमरा एकदम कर्मकांड मे विश्वास नै  अछि। मृत्यु उपरांत जखन हम बाबूजी  बड़का बाबूजी  काकाजी सबहक श्रा( कर्म देखलौं  पंडित सबहक   हाहारोह हुनका छाता देवैक तखन ने वर्षा  जेता  कतेक तरहक पलंग  सेज  मच्छरदानी आदि आदि जे देवैक से हुनका स्वर्ग मे भेटतैक! परुहार मे डोमि छल  पाइक अभाव मे इलाज माय के नहि करा सकल  मुदा जमीन बेचि हुनक श्रा( कइ भोज भात केलक    एहि सब से हमरा मोने बड वितृष्णा भ गेल हम हिनका कहियेंक      हमरा मरैक बाद अहाँ किछ नै करब बस भिखमंगा सब के खुआ देवैक
  ई हँसैत बजैत छलाह    बाप रे भिखमंगा हम ते बिकैये जायब    हमरा तखन तामस उठे बाद मे बहुत सोची विचैर हिनका से सत लेलों      एक सत  दुई सत  तीन सत 1  आर्य समाज रीति से हमर संस्कार करब-तीन दिन मे खतम  2  केओ केश नहि कटाबे  3  बरखी नै होई सब काज 3 दिन मे पूरा भ जाय     तखन ओ जाहि दृष्टि से हमरा तकलैथ    जेना हमरा चीन्हि रहल होइथ    जेना अपना दे सोचैत हम रहब की नहि रहब   किन्तु हम आय धरि हुनक ओ दृष्टि आ तकर बाद मौन मूक हमरा चुपचाप अपन करेजा से सटौने रहलैथ कतेक काल धरि     आय जखन हम अगसर छी ते जेना ओ मौन मुखर भ सब किछ बाजि रहल  अछि 26 मई 2008 कें हमर आत्मकथा किस्त किस्त जीवनक विमोचन-पटनाक विद्यापति भवन मे मुख्य अतिथि जस्टिस मृदुला मिश्रा द्वारा भेल छल! अध्यक्षता जीवकान्त केने छलाह। विमोचन समारोह क समस्त आयोजन शरदिन्दु चौधरी मध्ुकांत झा एवं पंचानन मिश्रक सहयोग सं केने छलैथ। सोचैत नहि छलौं जे ई समारोह एतेक भव्य होयत। हाल मे लोग खचाखच भरल छल। मंच पर मृदुला जी  जीवकांत जीक संगे  विजय नारायण मिश्रा  राजमोहन झा  मधुकान्त जी  शरदिन्दु आदि सभ उपस्थित रहैथ। जस्टिस मृदुला मिश्रा जखन बजलीह-ई पुस्तक हम पढ़  लागलौं तँ हमरा लागल हम अपने जीवन पढ़ि रहल छी- सहरसा मे हमर स्कूली जीवन बीतल अछि- हम घरक सभ काज हाथ मे पोथी नेने करैत रहलौं- हमर अंगुर बुक मार्क बनि गेल- आँखि नहि हटैत छल पोथी पर सँ।
शेफालिका जी कें हम पहिने सँ जनैत छलहुँ किन्तु ई नहि जनैत छलौं जे ओ हमर श्वसुर स्व सतीश चन्द्र झा   चीफ जस्टिसक संगी ब्रजेश्वर मल्लिकक बेटी छथि। एतेक नीक आ माखमक ई पोथी छैक जकर बड़ाई लेल हमरा शब्द नहि भेटैत अछि- आ हुनक वक्तव्य क एक एक पाती आ हमरा स्नेह-स्नात करैत गेल  हमर पुस्तके नहि जेना हम स्वयं सार्थक भ  गेलहुँ- मुदा  हमर एहि सार्थकताक सुख भोग  लेल नहि तँ पापा छलाह नहिते वर्मा जी अपने-रामानंद रमण  बासुकी नाथ झा सभ एहि कृतित्वक परिचय देलनि  किन्तु पंचानन मिश्र जखन व्यक्तित्व आ कृतित्व पर बाज  लगलाह तँ सहरसा मे जखन हम नगर आयुक्त छलौं ओहि प्रसंगक किछ गप सुनाय हमरा चमत्कृत क  गेलाह। मोहन भारद्वाज कहलनि- आत्मकथाक अंत नहि- सरिपों हुनक एहि बात पर आत्मकथा किस्त-किस्तक दोसर खंड पत्र मे छिरिया रहल छी।
उषा किरण खाँ  शीला चौधरी  प्रेमलता प्रेम  सरिता झा आदि महिला सशक्तिकरणक बसात सेहो संगे छल- वास्तव मे आत्मकथा किस्त किस्त मात्रा आप बीती नहि  जीवनक महत्व पूर्ण घटना सभक उल्लेखे नहि अछि मुदा  कोनो घटना कें जीवन-क्रम मे कोन उन्माद मे  कोन आवेग मे जीवलहुँ एकर लेखा जोखा सेहो अछि। किस्त किस्त मे हम अपन मानस दृष्टि  अपन भाव बोध कें व्यक्त केने छी- लकीरक पफकीर जकाँ आत्मकथा कें रूप नहि देलौं  नहि तँ आत्मकथा कें पारम्परिक तटबंध मे बान्हने छी। भ  सकैत छैक केओ एकरा उपन्यास बुझैथ  केओ एकटा भावुक नारीक संवेदनशील हृदय नगरीक दर्शन ई तँ पाठक जनैथ आय काल्हि जमाना एतेक तीव्र गति सँ भागि रहल छैक जे ककरो लेल ककरो पुफरसत नहि छैक। रिस्ता नाताक संबंध टूटनाय-न्यूक्लियर परिवारक सर्जन-ताहु मे पटान नहि-हम देखलौं एकर एकटा बड़ पैघ कारण अछि सहिष्णुताक
अभाव। खास कय आजुक लड़की मे  स्त्राी मे सहवाक शक्ति नहि छैक। नीक बेजा किछ कहु तुरत जबाब द  देत। तखन हम चाहलौं अपन जीवन लिखवा लेल-यदि ओ पढ़ि सकैथ- बुझि सकैथ आत्मकथाक पांडुलिपि तैयार करैत काल कतेक तरहक मानसिक व्यवधान आयल आ तखन हम पंचानन जी कें मोन पाड़लौं। ओ सदिखन हमरा प्रेरित करैत रहलाह-इजोत बाँटैत रहलाह-
आदरणीया
अहाँ स्वस्थ-प्रसन्न होएब करब  ई अटूट विश्वास एहि ओजह सँ अछि जे मैथिली एखन
अपना आकांक्षा अहाँ लग अवशेष रखनहि अछि  मैथिली केँ कोनहुँ लेखिकाक आत्मकथा सँ श्रीसम्पन्न होएवाक पहिल अनुभूतिक प्रतीक्षा थिकैक आ मैथिल समाज केँ एहन नारी रत्नक मूल्यांकन करब बाँकी अछि जकर योगदान परिवार  समाज आ राष्ट्र लेल एकहि काल-खण्ड मे पारस्परिक महत्ता रखैत अछि। पछिला मास जमशेदपुरक सेमिनार मे बमुश्किल दस मिनटक गप भेल आ ताहिसँ पहिने 1993 मे राँचीक मैथिली सम्मेलन मे भेंट भेल छल आ एकबेर पटनाक मिथिला मिहिर कार्यालय मे कुशलक्षेम धरि। मुदा बौद्धिक स्तर पर  अहाँक कथा-कविताक पाठकीय स्तर पर  अहाँक समाज सेवाक प्रत्यक्षदर्शीक स्तर पर हम कम सँ कम साढ़े तीन दशक सँ अधिके अवधि जुड़ल रहलहुँ अछि आगहुँ जुड़ल रही से इच्छा ते अछिये। मिहिर अहाँकेँ कथा संसार मे प्रवेश करबाक
अवसर देने छल। पछाति एकटा आकास हमर पाठकीयता केँ संपुष्ट कयने रहय। ओना मिहिरक पाठीकीय मंच मे कैक हमर अभिमत अहाँक कथा प्रसंग छपल अछि से ने तँ क¯टग अछि आ ने स्मरण। मुदा मोन अछि अगवे कथाक पात्राक संवेदनाक देखार होइत स्पर्श  अपन संस्कृति-परिवेशक सम्मानित करैत कथाकारक दृष्टि आ पछिला शताब्दीक सातम दशक धरि अपन कुंठा  वेदना आ शोषण केँ खूँट मे बन्हैत मानसिकता।
मोन पड़ैत अछि 1976 । कथा लेखिका गौरी मिश्रक सम्पादकत्व मे साहित्य अकादेमी सँ
प्रकाशित कथा संग्रह पर उठल बबंडर आ मिहिरक विचार मंच छल अखाड़ा। अहाँक कथा चयन केँ हमहूँ ताखकक निर्णय मानने रही। हमरा 1965-70 ई क सहरसा मोन पड़ैत अछि। जिला मुख्यालय रहितो एकदम गमैया वातावरण आ ताहि झांपल परिवेशक बीच सहरसा नगरपालिका आयुक्तक अहाँक दस वर्षीय समाज सेवा। आ  समाजक प्रति दायित्व पालनक व्यस्तमतम अवधिमे तँ अहाँ मैथिलीक कथा ओ कविताक मूलाधार केँ लेखिकाक स्तर पर बलिष्ठ बनौलहुँ। स्वराज्यक दू अढ़ाय दशकक उपरान्त जँ निष्पक्ष अनुशीलन होअय तँ कथा ओ काव्य दुनू विधा मे अहाँ छोड़ि क्यो नजरि नहि अवैत अछि। गौरी मिश्र चित्रालेखा देवी  लीली रे आदि अगवे कथा लिखैत रहथि। जाहि नीरूजा रेणु केँ साहित्य अकादेमी पछाति पुरस्कृत कयलकन्हि तनिक तँ जन्मो नहि भेल छल। कखनहुँ शरदिन्दु चौधरी  सम्पादक समय-सालक कहब  26 03 07/दूरभाष  सटीक लगैछ जे अहाँक योगदानक तटस्थ मूल्यांकन लेल काव्य कृति विप्रलब्धा  भावांजलि  एकटा आकास  कथा संग्रह  नागफाँस  उपन्यास  यायावरी  यात्रा वृतांत  स्मृति रेखा  संस्मरण  क अतिरिक्त शीघ्र प्रकाश्य अर्थयुग  अनाम अनुभूति  रजनीगंधा  आ बान्ह टुटि गेलैक अतिरिक्त कैक संग्रह मे स्थान पओने रचना  पत्रिका मे छिड़िआइल कथा कविता केँ सेहो सोझा पथार लगबय पड़तैक। 1974 मे अहाँक स्मृति-रेखा  संस्मरण  पोथी बहराएल। हम मैथिलीक संस्मरण विधा मे ओहि काल खण्ड मे लेखिका लोकनिक पोथी तकैत छियन्हि  आर कोन-कोन कृति अछि जेना कि पछिला खेप अहाँ कहलहुँ किस्त-किस्त मे शीघ्र अहाँक आत्मकथा प्रकाशित होमय जा रहल अछि। एकर प्रकाशन मैथिली केँ नवीनतम उपलब्धि हैत। कोनहुँ लेखिकाक आत्मकथा पहिले-पहिले मैथिली देखि पाओत। अगिला खाढ़ी अहाँक संघर्ष  समर्पण आ दृष्टि सँ नव भूमिका स्थिर क  सकत। 1993 मे हमर प्रधान सम्पादकत्व मे हजारीबाग सँ पहिल टेवलायड मैथिली मासिक बागमती दोमोदर टाइम्स प्रकाशित होमय लगल। दोसरहि अंक मे मैथिलीक महदेवी: शेफालिका वर्मा अग्रलेख छपल। मौखिक आ लिखित विरोध भेल की गलत छपल छल हम मानैत छी महादेवी
कोटिक गीतमयता अहाँक काव्य मे नहि अछि  बिम्ब आ प्रतीकक विशाल परिधि अहाँ नहि अखजत क  सकलहुँ मुदा महादेवी तँ संवेदनात्मकता  हृद्यविह्वलता आ स्पर्शजन्यता लेल प्रसिद्धि पओलनि। अहाँक काव्य संसार तँ इएह अनुभूतिजन्यता केँ प्लावित कयने अछि।मैथिली काव्य मंचक कवयित्राीक रूप मे अहाँ छोड़ि पर्याय के बनल अपन प्रान्ते नहि अन्यत्राहुँ अहींने मैथिलीक प्रति आकर्षण जगौलहुँ जतय धरि हमरा बूझल अछि  काउबेल्ट क एहि पूर्वी भाग मे स्त्रिागणक सामान्य आयु 69
सँ 73 मानल गेल अछि। अपन जीवनक साढ़े छः दशक बीतैबतो मैथिली लेल अहाँक ऊर्जा  उत्साह आ निष्ठा देखि हमरा झुम्पा लाहिरी  नेमसेकक - लेखिका  मोन पड़ैत छथि।
बंगला लेखिका तसलीमा नसरीनक हेवनि मे एक साक्षात्कार पढ़लहुँ  यूरोपीयन देशक
नागरिकता एही कारणे नहि लेलीह जे अपन भाषा बजनिहार क्यों नहि भेटैत छलन्हि  आन भाषा मे लिखवाक अन्तरात्मा अनुमति नहि दैत छन्हि। अहूँ आइ सहरसा छोड़ि पटना-दिल्ली रहय लागल हुँ। भगवती अहाँ केँ हिन्दीयो मे यशस्वी बनवाक अर्हता प्रदान कयने थिकीक मुदा अहाँ आइयो तसलीमा बनल छी जकर प्रमाण अछि  शीघ्र प्रकाश्य किस्त-किस्त मे। मिथिला सभ दिन मीमांसक भूमि रहल अछि। एतुका साहित्येत्ता  बुद्धिजीवी आ पाठकक मनन-चिन्तन मध्य अहाँक चारि दशकक मैथिली सेवा स्थायी परिचित देतनि  साहित्यानुभूतिक नवीनता।
सादर।
पंचानन मिश्र

(क्रमसँ दोसर खेप अगिला अंकमे)

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।