१.अनमोल झा-कथा- अबकी बेर फतंग २.नन्द विलास राय-कथा- बाबाधाम
अनमोल झा 1970- गाम नरुआर, जिला मधुबनी। एक दर्जनसँ बेशी कथा, लगभग सए लघुकथा, तीन दर्जनसँ बेशी कविता, किछु गीत, बाल गीत आ रिपोर्ताज आदि विभिन्न पत्रिका, स्मारिका आ विभिन्न संग्रह यथा- “कथा-दिशा”-महाविशेषांक, “श्वेतपत्र”, आ “एक्कैसम शताब्दीक घोषणापत्र” (दुनू संग्रह कथागोष्ठीमे पठित कथाक संग्रह), “प्रभात”-अंक २ (विराटनगरसँ प्रकाशित कथा विशेषांक) आदिमे संग्रहित।
अबकी बेर फतंग
बात से नञि छलइ, बात छलइ जे कहियो गाम-घर छोड़ि बाहर नञि रहलइ, दू मास आ दस पाँच दिन। सभ दिन तँ सभहक बीचेमे रहिक पढ़ाइयो-लिखाइ गामेपर केलक, हाइ स्कूलमे गेल तँ झंझारपुर सेहो कतेक दूर साइकिल उठाउ तँ पन्द्रह मिनट आ पायरे जाऊँ बीच धके तँ पाउन घंटा नञि ओ छहरपर सँ नीचा खसि जाऊँ तँ ओहि बाधे-बाधे आधा घंटा आ राखू ओहूसँ कम समयमे चलि जाऊँ स्कूल आ कालेज आ चली आबू फेर गामपर।
ओना अनिल सभ दिन गामेपर रहि पढ़लक से बात नञि छलै, ओकरा ओहिना मोन छलै जखन ओ आइ कॉम फस्ट इयरमे ललित नारायण जनता कॉलेज झंझारपुरमे रहए तँ पढ़ुआ कक्काक संगे कक्के टी.सी. लऽ कए गेल रहए आर.के.कॉलेज मधुबनीमे नाम लिखाबय आ नाम लिखा दुनू बेटा आ पिति घूमल रहए मधुबनीक लॉज सभमे एकटा डेरा लेल, डेरा ओहि दिन तँ झट दऽ नञि भेट गेल रहै, तथापि गामेपर आबी जोगार पाती बैसि गेल रहए, एकर गामक छोटका बौआसँ गामपर गप्प-सप्प भेलै आ ओ कहने रहै जे हमरा डेरामे एकटा सीट खाली छैक बिचार हो तँ रही सकैत छी, सत्तरि रूपया भाड़ा छैक महिना, सेफरेट रूम कए पैइतीस कके लागत, हँ एकटा चौकी लेमए पड़त, भानस-भात कए जेना जे बिचार हो अलग-अलग भानस करब तँ सभ बर्त्तन बासन सभ लेमए पड़त नै एके ठाम करी तँ मोटा-मोटी सभ समान अछिये, आ जे नै अछि से लऽ लेब तइयो चलत आ नै लेब तइयो चलत। अनिलकेँ लगलै जे कियो एकरा लेल पहिलेसँ व्यवस्था केने हो तहिना सन बुझेलै ओकरा। ओ झट दऽ कहलकै हँ हमरा विचार अछि, चलू मधुबनी आ एके ठाम रहब आ एके ठाम भानसो-भात करब, जे जेना खर्चा वर्चा होएत आधा-आधा सएह ने? आ गेल अनिल मधुबनी ओहि लाजमे जाके पहिले अपन पोथी-पतरा सथलक छोटका बौआ, अपने आ लहटन तिनु गोटा जा चौकी कीन आनल, ताही दिनमे बीरासी आ तिरासी टाकामे चौकी देने छलै, चौकी कोनो साउख, सीसमके जै छलै, आमेक पाइस पउआ आ आमेक तखता, उलूके-फलूक एकजनिये टाइप। आ रहए लागल मोन लगाक ओतए।
मोन लगाक तँ रहए लागल अनिल मुदा मोन लागब एकरा कहबै की? जहियासँ मधुबनीमे रहनाइ शुरू केलक तहियासँ तीला सक्रांतिक सात दिन छलै, माने एक हप्ताह, मोनमे बिचारने रहए, गाम नै जाएत लोके की कहतै देखलक हौ पढ़ूआकेँ दस दिन नै भेलै आ हाजिर जबाब? आ अपनो नीक नै बुझेलै। ओना काल्हि हेतै तिलासंक्राति तँ संगी जे छोटका बौआ आ लहटन छलै पावनि करए गाम चल गेलै । एक दिन पहिने सेहो भोरे भोर, साँझ तक अनिलोक मोन कछमछा सन गेलै, मोन केनादनि रीब-रीब करए लागल रहै, असगर मे खुब कानय कऽ मोन होबए लगलै आ उठेलक एक आध टा पोथी आ एकटा झोड़ा आ साँझुका बसाँ गाम आबी गेल रहए पाबनि करए। माएक मोन जुड़ा गेल छै माए कहलकै-नीक केलै बौआ, चल एले, तोरा बिना हमारा सब कोना पाबनि करीतउ? अनिल किछु बाजल जै रहए कारण जखन मधुबनी जाए लागल रहए तऽ माए पाबनिमे आबए कहने रहै, मुदा अनिल कहने रहै माएक-माए मे एहनो एनाइ होइछै, मुदा आइ अपने अनिल आबी गेलासँ माएक छाती सूप सन भऽ गेलै। फेर पाबनि कऽ प्राते फेर मधुबनी आएल। पढ़ाइ लिखाइ कऽ क्रममे मधुबनी आ गाम अनिलक पायरे तरमे रहै। दुरे कतेक पच्चीस आ तीस किलोमीटर छलै गामसँ मधुबनी आ मधुबनीसँ गाम।
अनिलक बाबूक तीन भाइक भैयारी छलाह सब सँ पैघ पिति पढ़ूआ कक्का गामेक स्कूलमे मास्टर साहेब छलाह, दोसर भाइ बिचला अनिलक बाबूजी छलखिन्ह जे गामेपर रही खेती बारी करैत छलाह आ सबसँ छोटका पिति कलकत्तामे कोनो पारभीट फार्ममे कोनो नौकरी करैत छलाह। गामपर तीनू भाइक साँझी आश्रम खुब हेम-छेमसँ चलैत छलाह। सभ भैयारीमे आ सभ दियादनी सभमे सेहो ककरो कतउ दियाद बादमे झगड़ा होइ तँ अनिलक बाप पितिक उपमा देल जाइ छलै गामपर लोककेँ, भाबे तेहन नीक जकाँ सभकेँ थथमारिक घर आश्रम चलै छलैसे।
ओना पारिवारिक आर्थिक स्थिति नीक नै छलै, तथापि ओतेक खरापो नै कहक चाही, “लुटी आनए आ कुटी खाए वला बात छलै, तथापि ओहिमे बड़ दीब जकाँ दिन कटल जा रह;ल छलै। एखन तँ भगवानक दयासँ दू कर भोजन आ दू हाथ वस्त्र तँ भेटीते आ आ जखन अनिलक बाप-पिति बच्चा रहए तँ हुनका सभकेँ ओहुपर आफद भऽ जाइत छलनि। गप्पे-गप्पमे माए एक दिन कहने रहए अनिलकेँ बुझले बौआ की जखन तोहर बाप स्कूलसँ पढ़िकेँ आबथुन तँ तोहर भैया हमरा कहैथ बौआक खेनाइ दऽ अबियौ आ हमारा लाजे नै जाइये खेनाइ दबए, कारण खेसारीक रोटी आ मसुरीक उसना कतउ खेनाइ देल जाइ, हमरा लाज हुआ खेनाइ दैत तँ सैह परिस्थिति छलउ तोरा बाप-पितिक घरक। रातिक मसुरीक उसना खाके सभ सूति रहै छलउ, आइ भगवतीक दयासँ से बात तँ नै छउ। उसना आ फूटहा बाला बात।
ई सभ सूनि अनिलक माथा सुनाओ जकाँ लागए लगैक, मुदा से केने कोनो लाभ छलै की, चिंता केने मोन आर खराप सन लागए लगै आ अपने मोने-मोन मोन कऽ सांतत्वना दैह-जे बीत गेल से बात गेल”
खैर...................।
अनिल मैट्रीक, आइ. कॉम आ बी. कॉम. कऽ परीक्षा जाहा की समाप्त होइ, टिकट कटा फटाकसँ कलकत्ता पहुँच जाए छल छोटका पिति लग, कलकत्ता घुमए। कलकत्ता ओकरा बड नीक लगलै आ कलकत्ताक लोक सभ आ ताहीमे मौगी आ छौड़ी सभकेँ देखिक ओकर आँखि फाटए लगलै, एहन उदण्ड आ एहन उघार आ निघार, ओ मोने-मोन सोचए लागल एकरा सभकेँ जतेक उघार ततेक फैसन लगै छैक की? अनिल जता बेर आबए परीक्षा दके गामसँ कलकत्तामे सभ ठाम जाए छल जतए गेलो छल ततयो-माने चिड़ियाखाना, विक्टोरिया मेमोरीयल, तारामण्डल, जादुघर, बिड़ला मन्दिर, बिड़ला म्यूज्यम, नेहरू चिल्ड्रेन म्यूज्यम कालीघाट, दक्षिणेश्वर काली, बेलूड़ मठ आ आर कतए कतए नै घुमए जाइत छल अनिल। आ लेख गार्डन आ एम्हर ओम्हरका पार्क आ मैदान सभ तँ धागल छलै ओकरा जाही बेर आबए खुब घूमए आ भरि दिन डेरापर असगर पड़ल राजा बनल रहै छल। पिति आफिस चल जाइत छलै आ डेराक आर लोक सभक ड्यूटी। एतुका लोककेँ एतेक ड्यूटीक प्रति सतर्कता देखि अनिल के आश्चर्य लगैत छलै, चारी बजे भोरे पिति उठी, शोचादिसँ निवृत भऽ नहा सोना भानस भात कके। छः बजे फीट, आठ बजैत-बजैत बासन खाली, माजल-धोल आ चकमक करैत रहैत छलै आ सभ लक लके पड़ाइत छलै ड्यूटी आ फेर मुन्हारी साँझमे अबैत छलै सभ फेर खेनाइ-पिनाइ बना सुति रहै छलै आ प्रातः भेने फेर ओहा रामा ओहा खटोलबा वाला बात होइत छलै। से एकरा आश्चर्य लगैत छलै बुढ़ पितिक ई फूर्त्ती देखि। अनिल के मोने-मोन होइ काश एहिना आ एतहे जकाँ फूर्त्ति आ काजक प्रति एतेक सजगता गाममे लोककेँ रहितै तँ निश्चय कोनो गाम गाम नै रहिते, सभ गाम अपन नाम शहरमे गनब लगिता। जे-से..............।
अनिल तँ कोनो खुट्टा गाड़ी कऽ रहै लेल कलकत्ता नै जाइ छल, ओ तँ परीक्षा-तरीक्षा कोनो भऽ जाइ मधुबनीमे तँ दस दिन मास दिन घुमी आबए छल पिति लगसँ से बेचाराक मोनो खुब लगैत छलै कलकत्तामे। मुदा जखन गाम आबए कालमे पिति गाड़ीपर चढ़बए हावड़ा अबै छलखिन्ह तखन अनिलक बरदास्त सँ फाजिल भऽ जाइत छलै आ हिचकी-हिचकी कानए लगैत छल, धीया-पूता जकाँ। पिति बुझैत छलखिन्ह ई आए गाम जाइत अछि, एतए एकटा नीक लगैत छलै ताए कनैत अछि। मुदा पितिये की करितथिन्ह, छोट-छीन नोकरी, कलकत्ता देखू आ गामपर घर- आश्रम सेहो देखए पड़ैत छलैन आ नयहे देखए पड़ितैन तँ की सभ दिन अनिल अपन पढ़ाइये लिखाइ छोड़ीक एतए पड़ल रहितै सैह की नीक बात छीयै? आ बोल भरोस दके भातिजकेँ गाम बिदा करथि। ओना बेटा आ भातिजमे कोनो अंतर छैक? बेटे जकाँ मानितो छलैहे पिति आ देख-भाल सेहो करैत छलैन हे अनिलकेँ।
एम्हर गाम आ मधुबनी एलापर एक राति मोन नै लगैत छलैन हे बाउ केँ। होइन जे किछु हरा गेल हो कलकत्तामे, आ हरेतैन की लगैन अपने या मोने हरा गेल हो। एक मोन इहो होइ नाम-ताम कटा ओतहे चलि जाइ पढ़ाइ-लिखाइ करए, से फेर मोन अछताए-पछताए सेहो लगैत छलै, मधुबनीक पढ़ाइ आ कलकत्ताक पढ़ाइ, आ मधुबनीक खर्चा-बर्चा आ कलकत्ताक खर्चा-बर्चामे आकाश पातालक अंतर छलै। सेहो दम सकरब बाला बात छलैनहे, आ अपन बाप किछु छलै तँ गामपर गृहस्थे छलै ने, पितियेपर कते कुदता, पितिक फेर अपनो बाल बच्चा छैक ने, कोनो इयाहटा नै छथिन जे चल बाबा या कोनो बड़का हाकिम मुखतारो नै छनि पिति, फेर तँ छोटे छीन कम्पनीमे काज करैत छैक ने। जे से बात धीरे-धीरे सरा जाइत छलैहे आ फेर अपने आप मोन लागए लगैत छलै मधुबनी आ गाममे।
समय कऽ बितैत देरी होइ छै, ओ तँ हबाइ जहाजोसँ तेज गतिसँ चलैत छैक आ देखिते-देखिते कतएसँ कतए भागि जाइत छैक ई समय। मधुबनी कऽ पढ़ाइ समाप्त भेलै आ नौकरी-चाकरी लेल खूब प्रयास आ दौड़ बड़हा केलक अनिल, गाम घर, पटना, दरभंगा-मधुबनी आदि-आदि ठाम। एखुनका युगमे भगवानक भेटब आ नोकरी भेटब एके दर्जाक बात भेलै। औनाकऽ रहि गेला अनिल, कतौ गोटी नै बैसलनि। मोने-मोन अपने-आपपर खुँझाइत रहथि, एहि पढ़ाइक कोन काज? एहि मधुबनीक ओगरनाइक कोन काज? एहि पढ़ाइक पाछाँ पाइ बहाबैक कोन काज? जखन ईएह बेरोजगारीक जिनगी तखन एतेक तपस्ये कथीक? होइ अपन मूड़ी अपने पानिमे गोइत ली। आब आर किछु नै नीक लगैत छैक अनिलकेँ। मोन अनोन-बिसनोन सन लगैत छैक ओकरा, अपरतीब सन सेहो।
पित्ती छोटका कोनो काज उद्यममे गाम आएल छलखिन्ह, अनिल कोनो काज ताजक बारेमे गप्प केलक पित्तीसँ। पित्ती आबै काल कलकत्ता लेने एलखिन्ह। अपना सेठकेँ कहलखिन्ह- हमर भातिज छी आ भातिज की हमर बेटे बुझि कोनो काज एकरा दहक। पित्तीक पैरबी काज केलकै आ भऽ गेलै कोनो क्लर्केक पोस्टपर अनिलकेँ पित्तिये ऑफिसमे काज।
ट्रेनिंग भेलै आ तकरा बाद अप्वाइन्टमेन्ट आ कन्फरमेशन सेहो। आब लगभग चारि-पाँच बरखसँ काज करैत अछि कलकत्तामे अनिल। पित्ती भातिज एके नगरी आ एके डेरामे सेहो रहैत छथि। मोन नै लगबाक कोनो बाते नै। मुदा अनिलकेँ मोन नै लगैत छैक आब कलकत्तामे। बात कने भटमेराह सन सभकेँ जरूर लगैत छैक जे जाहि अनिलकेँ कलकत्ताक प्रति एतेक स्नेह आ उद्गार छलै जे हावड़ामे ट्रेन पकड़ै काल आ गाम जाइत काल कानय लगैत छल, छ मसिया चिल्का जकाँ तकरा आइ एतए नीक किएक नै लगैत छैक? ओकरा नोकरी छोड़ि देबाक इच्छा होइत छैक। मुदा पित्तीक मुँह आ गामक ओ नौकरी लेल बौऐनी आ छिछिऐनी मोन पड़ि जाइत छैक। पितीक मुँह एहि लऽ कऽ मोन पड़ैत छैक जे अनिलक सामनेमे दुनू हाथ जोड़ि थड़थर कपैत सेठसँ अनिलक लेल नोकरीक भीख मँगने छलै, से जँ आइ नोकरी छोड़ि देतै तँ पित्तीक कतेक मान रहतै। ओना आइ कतौ सरकारी काज आकि नीक पोस्टबला काज कतौ होइतै आ तखन जे छोड़िये देतै तँ पित्तीक अपमान नै छाती सूप सन होइतै आ कहैयो लेल होइतै ने सरकारी काम आकि उच्च पोस्टबला काम हुआ इसलिए छोड़ दिया, मुदा सेहो बात नै छलैहेँ।
अनिल करत की तँए काज करैत छल, मुदा ओकर मोन मिसिया भरि नै लगैत छलै। ओकरा गामक लोकसभ गामक चौक-चौराहा, कोठीयर कलम, पुबारी बाड़ी, बढ़मोतर आ खोइटक खेत, कुमरी पोखरो, उसराहा आ बौअन झा पोखरि सभ मोन पड़ि जाइत छलै। ओकरा गाम, झंझारपुर आ मधुबनी सभ सभटा आँखिक समक्ष नाचए लगैत छलै। ओकरा ई बान्हल जिनगी एकदम नै नीक लगैत छलै। ई आठ-दस घण्टा ड्यूटी आ एतेक व्यस्तता सोफाइत नै छलै। ओकरा मोन होइत छलै गाम-घरमे रहबाक, कत्ता गोटा कहै, अहाँकेँ नोस्टालजिया भऽ गेलहेँ, बिछुड़ल लोक, बिछुड़ल समए आ बितल बात सभ जे एतेक मोन पड़ैत अछि से किछु नै नोस्टेलजियाक बात छी।
ओकरा मोन पड़ैत छलैक गामक नांङट-उघार बच्चा सभ, गामक जुगेश्वर, बालेश्वर, फतुरिया, उत्तमा जे तीन सेर बोइन लेल सारा दिन ओही रौद आ पानिमे तितैत लोकक ओतए काज करैत छलै। ओकरा मोन पड़ैत छलैक गामक सभ वस्तुक दिक्कत, सड़लाहा राजनीति, लोकक कुचिष्टामे लोक लीन रहैत छैक। भरि पेट लोक भोजनो करतै तैयो हँसतै आ जँ भुखले रहतै तैयो हँसतै। मुदा एतेक बात बुझितो आ सुझितो आ गमितो अनिल अऑफिसमे रिजाइन दऽ दैत छैक आ चल अबैत अछि गाम। आ गाममे रहए लगैत छैक।
पित्तीक सभ प्रतिष्ठा आ बातकेँ अनिल पएरक ठोकरसँ घैला जकाँ गुड़का देलकै। घैला गुड़कि कऽ फूटि गेल छलै आ पानि सौँसे बहि गेल छलै। अनिलक पित्ती मोने मोन सोचैत छैक, कलकत्ताक ओही डेरामे आखिर एना किएक भेलै, जकरा कलकत्तामे एतेक नीक लगैत छलै तकरा एक बैगएना किएक मोन भऽ गेलै। आ अनायास मोनमे आ आँखिक सोझाँ अनिलक पित्तीकेँ अपन भैयारीक ओ बच्चाबला समए मोन पड़ैत छैक आ देखाइत छैक खेसारीक रोटी, मसुरीक सन्ना आ पेटकटारी लागल पेट आ अभावे अभाव सगरे...!
२.
नन्द विलास राय- नन्द विलास राय-कथा
बाबाधाम
बोल-बम बोल-बम। बोलबम-बोलबम ई आवाज कमलीक कानमे पड़ल तँ ओ घास काटव छोड़ि सड़क दिसि तकलक। एकटा बसमे पीयर-लाल कपड़ा पहिरिने लोक सभकेँ देखलक। बसक भीतर आ छतपर लोक सभ बैस कऽ बोलबम-बोलबमक नारा लगवैत छल। बस तेजीसँ सड़क पर दौड़ रहल छल।
कमलीक खेत सड़कक कातेमे छल। ओ खेतक आरिपर घास काटि रहल छलि। कमली सोचए लगली- कतेक लोक बाबा धाम जाइत अछि मुदा हमर तँ भागे खराप अछि। कतेक दिनसँ विकलाक बापकेँ कहैत छी मुदा ओ अछि जे धियाने ने दैत अछि।
कमली आ लखन दू परानी। एकटा बेटा िवकला। विकला सातमे पढ़ैत। लखनक माए-बापक सत्तर अस्सी बर्खक बूढ़। लखनकेँ पाँच बिघा खेत। एक जोड़ा बड़द आ एकटा महीसो। लखनकेँ कतौ जइक लेल सोचए पड़ए। किएक तँ सत्तर बर्खक बूढ़ माए आ अस्सी बर्खक अथवल बापकेँ छोड़ि कतए जाएत। तइ परसँ एक जोड़ा बरद आ महीसोकेँ देख-रेख। पाँच बिघा खेतमे लागल फसलक ओगरवाही। असगरे कमलीसँ कोना पार लागत। तैं कमलीक बाबाधामबला बातपर लखन धियान नै दइत छल। लखन सोचए कमलीकेँ गामक लाेक संगे बाबा धाम भेज देव तँ भानस के करत? धास के आनत। असगरे हम की सभ करब। बेटा विकला पढ़ते अछि। ओकरा स्कूलसँ छुट्टी होइत अछि तँ ओ टीशन पढ़ै लए चलि जाइत अछि। बिना टीशन पढ़ने कोना परीक्षा पास करत। सरकारी स्कूलमे की आव पढ़ाइ होइत अछि। मास्टर सभ बैसि कऽ गप लड़बैत रहैत अछि। चटिया सभ कोठरीमे बैसि कऽ गप करैए अथवा लड़ाइ-झगड़ा। मास्टर सभक लेल धनि सन। लखन अपन खेती गृहस्थीक संगे माए-बापकेँ सेवा नीकसँ करैत अछि। माए तँ थोड़े थेहगरो छथिन मुदा बापकेँ उठवो-बैसवोमे दिक्कते छनि। हुनका पैखाना-पैशाव लखनेकेँ कराबए पड़ैत अछि। पौरकाँसाल फगुनमे लखनक पिताजीकेँ लकबा मारि देलकनि। मश्रा पॉली क्लिनीक दरभंगामे इलाज करेलासँ जान तँ बचि गेलनि मुदा अथवल भऽ गेलाह। भगवान लखन जकाॅँ बेटा सभकेँ देथुन। ओ तन मन आ धनसँ माए-बापकेँ सेवा करैत अछि।
लखनक एकटा संगी अछि। नाम छी सुकन। सुकन लखनसँ वसी धनीक अछि। दूटा बेटा अछि सुकनकेँ। दुनू बेटा सातवाँ तक पढ़ि दिल्लीमे नौकरी करैत अछि। मासे-मासे बेटा सबहक भेजलाहा ढौआ सुकनकेँ भेट जाइत अछि। सुकनोक माए-बाबू जीवते छथिन। सुकनक माए कम देखैत छथिन। हुनका रातिकेँ सुझवे नै करैत छनि। एक दिन सुकनक माए रातिकेँ ओसारपर सँ गिर गेलखिन हुनका पएरमे मोच पड़ि गेलन्हि। लखनकेँ पता चलल ते ओ सुकनक माएक जिज्ञासा करै लए गेल। सुकनक माए लखनकेँ अपने बेटा जाहित मानैत छेलखिन।
लखन सुकनक माएसँ पुछलक- “माए कोना कऽ ओसारपर सँ गिर गेले।”
सुकनक माए बाजलि- “बौआ, आव हमरा सुझै नइ अछि। रातिकेँ तँ साफे नहि देखैत छी। बेचू बाबूक छोटका कनटीरबा दरभंगामे डाकडरी पढ़ैत अछि ओ फगुआमे गाम आएल छल हुनाक कहलिऐ तँ ओ हमर दुनू आँखि देखलक आ कहलक जे दुनू आँखिमे मोतियाविन भऽ गेलौहेँ। कहलक जे ऑपरेशन करेलासँ ठीक भऽ जाएत आ नीक जहाति सुझए लगत।”
क्रमश:
१. श्रीमती शेफालिका वर्मा- आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा) २.नाटक- बेटीक अपमान-बेचन ठाकुर १. श्रीमती शेफालिका वर्मा- आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा) जन्म:९ अगस्त, १९४३, जन्म स्थान : बंगाली टोला, भागलपुर । शिक्षा: एम., पी-एच.डी. (पटना विश्वविद्यालय),ए. एन. कालेज, पटनामे हिन्दीक प्राध्यापिका, अवकाशप्राप्त। नारी मनक ग्रन्थिकेँ खोलि करुण रससँ भरल अधिकतर रचना। प्रकाशित रचना: झहरैत नोर, बिजुकैत ठोर, विप्रलब्धा कविता संग्रह, स्मृति रेखा संस्मरण संग्रह, एकटा आकाश कथा संग्रह, यायावरी यात्रावृत्तान्त, भावाञ्जलि काव्यप्रगीत, किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा)। ठहरे हुए पल हिन्दीसंग्रह। २००४ई. मे यात्री-चेतना पुरस्कार।
शेफालिकाजी पत्राचारकेँ संजोगि कऽ "आखर-आखर प्रीत" बनेने छथि। विदेह गौरवान्वित अछि हुनकर एहि संकलनकेँ धारावाहिक रूपेँ प्रकाशित कऽ। - सम्पादक
आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा)
तेसर खेप
शेफालिका जी
आपकी आत्मकथा मैंने पढ़ी। जिंदगी बीत गई-जीने की तैयारी में। आँचल मे> दूध आँखों मे पानी और जिह्वा पर बतरस का शहद लिए मिथिलांचल की यह स्त्री किश्तों मे जीवन जीती है और जो कथा कहते चलती है, जीवन की- वह भी किश्तों में ही पूरी होती है।भूमण्डलीकरण कहिए भू$मण्डी$करण के बाद के इन धड़फड़िया दिनों का बीज-शब्द
है- किश्त! ऋणं कृत्वा धृतं पीवेत- चार्वाक का यह दर्शन घर घर मे चरितार्थ है। प्रेमचंद और यशपाल के समय की किश्तें शखमन्दगी और त्रासदी का उत्स थी। अब किश्तें फक्र का विषय है! लोग फक्र से कहते हैं-इतनी किश्तें गईं! .. किश्तों और पालियों में जिया जाने वाला मध्यवर्गीय स्त्री-जीवन इतना आसान नहीं होता! हँसी नए जमाने का घूँघट है- हर मुस्कान के पीछे लजाई बैठी इतनी ढेर-सी छोटी-बड़ी तकलीफ होती हैं कि उनका व्योरा लिखने मे धरती सब कागद कारौं/लेखनी सब बनराई की स्थिति घिर आती है! पूरी धरती को कागज बना लें समस्त वनों की लकड़ी से कलम गढ़ें तो भी हरि-गुन की तरह अगाध और अनंत स्त्राी जीवन अपनी पूरी माखमकता मे लिखा नहीं जा सकता।
शेफालिकाजी को अपने कर्मठ प्रज्ञावान सहयोगी और हिन्दू कॉलेज के दिनों के अपने प्रिय साथी राजीव की मिष्टी मुखी माँ के रूप मे तो वर्षों से पहचानती थी किन्तु एक लेखिका के रूप मे उनकी भास्वर पहचान कराई मशहूर अमरीकी भाषाविद् और अनुवादक आर्लीन ज़ाइद ने। पेंग्विन सीरीज ऑपफ इंडियन विमेन्स पोएट्री के दूसरे खण्ड के अनुवाद के सिलसिले मे वे भारत आई थीं। मेरे घर अचानक ही आईं उस समय मेरे भण्डार मे उन्हें खिलाने-लायक कुछ और था नहीं मध्यवर्गीय गृहस्थी मे सहज संकोच से मैंने उनके लिए ताल-मखाना भूना जो पिछले हफ्ते ही माँ ने मुजफ्फरपुर से भेजे थे। मखाने देखते ही उनके मन मे शेफालिकाजी की याद ताजा हो गई। उन्होंने कहा- दिस इज़ वॉट फिगर्स इन शेफालिकाज़ पोएम। फिर उन्होंने उस कविता का अंग्रेज़ी
अनुवाद सुनाया जो उन्हांने किया था और मेरे मन मे लड्डू और मखाने एक साथ ही लगे फूटने लगे कि इतनी बढ़िया कविता की इस रचयिता का नैतिक भूगोल मेरा अपना नैतिक भूगोल है मेरी प्रतिवेशिनी होगी यह मेरे घर मे पास ही कहीं इसका घर होगा!
वर्षों बाद जब बम्बई ने स्पैरो के तत्वावधान मे विभिन भाषाओं के स्त्राी-लेखकों को
बुम्बई बुलाया और काशिद के रिसोर्ट मे हम साथ ठहरे तब जाकर पता चला कि यह शेफालिकाजी तो और कोई नहीं अपने राजीव की माँ है। चकित रह गई!
और अभी जब किस्त-किस्त जीवन पढ़कर ख़त्म किया-तब से यही सोचती बैठी हूँ कि
यदि राजीव के पिता की तरह निश्छल धीरोदात्तता सब पुरुषों मे होती सब पुरुष इसी तरह के प्रेमी होते तब तो स्त्राीवाद का भट्ठा ही बैठ जाता! स्त्राी आंदोलन की ज़रूरत ही कहाँ होती। सबसे दुर्भाग्य का विषय है कि हमारे ज्यादातर पुरुष अतिवादी अधिनायक प्रजातांत्रिक सम्यक् दृष्टि का उनमे विकास ही नहीं हो पाया। छोटी-छोटी मार्मिक घटनाओं और चुटीले संवादों से स्मृतियों का जो प्रतिसंसार शेफालिकाजी ने इस सहज-सरस आत्मकथा मे गढ़ा है- उससे गाँवों-कस्बों की नई औरत का तादात्म्य गहरा बना
है। इसी तदात्म्य की ज़रूरत हमे है- बहनापे के विकास का सूत्रा यही है। रूसी क्रांति ने बराबरी स्वतंत्राता और भाईचारे की बात की थी। स्त्राी आंदोलन भाईचारे का विकास बहनापे में देखता है। स्त्राी- दृष्टि मोनालिसा नहीं। वर्ग-वर्ण-नस्ल-सम्प्रदाय-सापेक्ष कई समस्याएँ विशिष्ट है लेकिन कुछ समस्याएँ तो साझा हैं जिसके आधार पर विश्वभर की स्त्रियाँ बहने हैं और उनकी भाषा का छन्द ही अलग है। विषम परिस्थितियों मे भी अपनी राह बढ़े जाने की जो मलंग विनय स्त्राी-भाषा के साक्षी है उसका अद्भुत उदाहरण है-किस्त-किस्त जीवन!
डॉ अनामिका
अंग्रेज़ी विभाग
सत्यवती महा. (सांध्य)
दिल्ली विश्वविद्यालय
बहन के नाम भाई का स्नेह-पत्र-
बहन की एक प्रतीक्षा देख कादम्बिनी मे भाई का मन उल्लसित सा हुआ मन के कोने से एक गूंज सी उठी कोलाहल और कुछ शोर सा हुआ ।
व्ययित हृदय भोली सी बहन बनाने का
भाई का मन आकुल और तरस सा हुआ
इस अभाग्य का जीवन हो सफल तुझ जैसी बहन को पाकर मुझे सौभाग्य कहाँ हमजोली बहन का जो कुछ भी है बाँट लेंगे एक दूजे का प्यार सुख-दुःख तुझ जैसी बहन का पा
मोती तो खूब चुनते हैं खरे वही पाते जो पारखी हैं। शोकाकुल तो मूक दीन ही होते बुद्धिजीवि तो शोकाकुल होने का समय ही कहाँ पाते उच्छवासी क्यों कोई हो
गीत और कविता की ..।इस भाई का नाम तापस कुमार दास है जो बंगला भाषी है। हिन्दी साहित्य की एक झलक तक ही पहुँचा एक भाई तुल्य अजनबी बहन के
जवाब की अपेक्षा मे
There is a silver ship, there is a golden ship, there is no ship like Friend ship.
I am Tapas Kumar Das of 20th student of B.Sc. (joining year) My hobbies are great
hobbies in my own sens. These are as following :- Photography, Social reforming Reading
Hindi, English and Bengali literature, Driving Car Motor cycle) fast, I am a Hindi departmental
member of Radio Japan. So many programme has been broadcast through radio Japan.
It's my best and with best compliments to you my sister.
Cordial brother
Tapas Kumar Das
Das Estate
Lakanpur, Bhagalpur.
पूज्या दीदी
इतने दिनों बाद जब थक गया प्रतीक्षा मे कि अब आयेगा पत्र आपका कि अब आयेगा तब लिखने लगा हूँ आपको तंग करने के बहाने वैसे एक छोटा भाई तंग क्या कर सकता है- हाँ अबोध स्नेह का स्पर्श ही दे सकता है। क्या कर रही हैं- क्या लिख रही हैं क्या सोच रही हैं- इन सब स्थितियों को जन्म दीजिये कम से कम हमारे बगल मे बैठे रविकांत नीरज को बताइये न! तभी न आपकी प्रेरणाओं पर चल सकूँगा अविराम लेखनीय दायित्व को लिए साहिय-भू पर। मुझे विश्वास है कि आप पत्र अवश्य देंगी।
शुभकामनाओं के साथ-
प्रसूनलतांत
भागलपुर
स्नेहमयी दीदी!
सादर चरण-स्पर्श। अहाँक भगलपुर प्रवास जेना हमर सभक हृदय कें एकात्म कर लेल भेल छल। कतेक दिन धरि हम सभ विश्वविद्यालय परिसर मे मिलैत रहलौं- कतेक गोष्ठी मे एक दोसरा के बुझैत रहलौं। किन्तु दीदी हम नहि देखि सकैत छी अहाँक उदास चेहरा। अपन हँसीक पाछा नुका लैत छलौं अपन उदासी दीदी किन्तु हमर दृष्टि सँ नहि नुका पबैत छलौं। अहाँक अस्वस्थता सेहो नहि सहन क पबैत छी। दूनू चीज हमरा मोन पड़ैत अछि तँ हम व्याकुल भ जाइत छी कोना हमर दीदी फूल जकाँ सदिखन विहुँसैत रहतीह। कोनो बीमारी हमर दीदी के स्पर्श नहि करैक। सभ सँ पहिने दीदी अहाँ अपन स्वास्थ्यक ख्याल राखु। मैथिली साहित्य अहाँ दिसि टकटकी लगौने अछि
अहींक भाई
रविकान्त नीरज
भागलपुर
भागलपुर सँ एम ए क परीक्षा देवाक कारण हम रविकांत प्रसून ध्रुव नारायण इतिहासकार राधाकृष्ण चौधरी सभक हृदय मे निवास कर लागल छलौं। प्रसून लतांत आ रविकांत नीरजक कतेको पत्र हमरा भेटैत रहैत छल-
आदरणीया मामी जी
प्रणाम।पत्र और रचना मिली सम्पर्कांे को आपने बड़ी तेजी से रिश्ते का रूप दे दिया। साहित्यिकबंध्ुत्व के अलावा मामी का यह स्नेह मिल गया जो अबतक मुझे मामियों से मिलता रहा है।आपकी दोनों रचनायें स्तर की है प्रीति की कामायिनी और चश्मे के पानी पर उतर आयी बीमार ध्ूप का प्रयोग बड़ा अच्छा लगा। अच्छी रचनाओं के लिये पत्रिका के सम्पादक के हैसियत से धन्यवाद दे रहा हँू। हम रचनाओं के संकलन मे व्यस्त हैं तीन माह की सामग्री होते ही प्रकाशन प्रारंभ कर देंगे जैसे कि आपके पैड से मालूम हुआ इतना व्यस्त जीवन जीतें हुए भी आपने हमारे लिये समय निकाला इसके लिए हमारा विभव परिवार आभारी है। छपरे की एक और संस्था नवयुवक परिषद है जो अपने मे युवा शक्तियों को समाहित किये हुए समाजिक चेतना को जागरूक करने मे सक्रिय है। उसी के तत्वावधन मे हम एक विशाल आयोजन करने जा रहे है उसमंे एक कार्यक्रम कवि सम्मेलन का भी है यह संभवतः अक्टूबर मे आयोजित होगा। इसे आप पूर्व निमंत्रण समझे समय पर हम आपको सादर निमंत्रित करेंगे आशा है आप अवश्य आयेगी।
आपका
ओम प्रकाश, भगवान बाज़ार, छपरा
जूड़ शीतल
शेफालिका जी
मिथिला नववर्षक शुभकामना
मिथिला जन विकास परिषद
नवेन्दु कु . झा
पटना
प्रशस्ति प्रमोद
मैथिली महाकवयित्राी काव्य विनोदिनी डॉक्टर शेफालिका वर्मा जीक कोमल कर कमल मे सादर-कलित काव्य विनोदिनी डाक्टर सुदृढ़ शेपफालिके/ मैथिली सर महादेवी सुभद्रा सुमरालिके/मनोरम मुदमूखत मानसरोवरक मृदुभाषिके/करूण रस सँ सिक्त शीतल भावनाक प्रवाहिके/कवित कानन कोकिले ¯ककर कविक कलकण्ठिके/मधुरहास्य विलासिनी हृतहारिणी मनमोदिके।
बलदेवलाल कुलकिंकर
झझिहट जनकपुर रोड 22.1.79
हमर छोट भाई शरदक दोस्त छथि प्रदीप सिन्हा जे एखन आइपीएस आफीसर छथि। शरदक कारण ओ हमरा अपन सहोदर बहीन सँ बढ़ि कें मानैत छल। ओकर समस्त परिवार हमरा लेल बेहाल रहैत छल- प्रदीप अरुण नीलम आ हुनक माँ जिनका हम चाची कहैत छलौं- हृदयक अटूट रिस्ता बन्हि गेल छल ओहि परिवार सँ- तँ हुनकर सभक सिनेह-सिक्त पाती
मेरी प्यारी रजनी
तुम्हें असंख्य आशीर्वाद तथा मध्ुर स्नेह !
तुम्हारी कितनी ही चिटिृयाँ मिलती रही परन्तु मैं तुम्हें उत्तर नहीं दे सकी इसका मतलब तुम्हें भूल जाना कदापि नहीं हुआ। अपनी परिशानी भी मैं तुम्हें लिखकर बोर करना नहीं चाहती। फोन पर भी तुम से दो बातें नहीं कर पायी कि राजन ने झट फोन ले लिया। तुम्हारी तबीयत बहुत खराब हो गई थी यह जानकर हृदय कितना दुःखी और चिन्तित हो गया मैं तुम्हें शब्दों मे लिख कभी समझा नहीं सकती। अपना ख्याल करो रजनी अभी भी समय है वक्त है समय खो जाने पर तुम स्वयं को भी खो बैठोगी। तुम्हारी याद मुझे बहुत आती है। नारी जीवन की गाथा कथा मैं तुमसे अध्कि जान सकँूगी नारी तेरी यही कहानी अंचल मे है दूध् आँखों मे पानी किसकी लिखी कविता है याद
है न राजू शरत से मिलने गया था। उसने आकर बताया कि शरत की तबीयत बहुत खराब थी अब ठीक है। मैं भी उसे देखने जाऊँगी। राजू ने यह भी बताया कि रजनी दीदी 12 को आ रही है यह जानकर मुझे भी बड़ी खुशी हुई परन्तु फिर फोन पर बात करने के बाद पता चला कि तुम नहीं आ रही हो। रजनी मेरी अच्छी रजनी मेरी चिट्ठी तुम्हें कभी समय से शायद नही मिल सकेगी। तुम्हारी चाची बहुत पापी हैं बदकिस्मत है कभी उन्हें चैन की रोटी नहीं मिली पता नही कितनों का कर्ज मैंने ही उठाना पड़ा है। गर्मी सीमा पर है प्राण तो नहीं निकलता परन्तु सुबह से बारह बजे रात्रि इस घर मे रहना पड़ता है। मैं तुम्हें भूल न सकी रजनी तुम्हारा प्यार भरा हृदय मुझे बहुत भा गया न जाने क्यों जिसके हृदय मे प्यार नहीं है वह मनुष्य मनुष्य कहलाने योग्य नहीं-
तुम्हारी
चाची
सिन्हा भवन
एक्जीबीशन रोड पटना
चाचीक मृत्यु असमय भ गेल मुदा हुनक पत्र सभ समय असमय हमरा झकझोरि जाइत
अछि-
पूज्यनीया दीदी
प्रणाम।
आपके जाने के दूसरे दिन सुबह मैं आपको ये पत्र भेज रहा हूँ। दीदी आपके जाने के बाद
मेरी आँखों से भी दो बूंद आँसू निकल पड़े। मुझे बड़ा दुःख हुआ। मिथलेश को भी बड़ा दुःख हुआ।अपना एक फोटो भेज दिजीयेगा। भूलियेगा मत दीदी। आप अपनी तबीयत का ख्याल रखीयेगा। फोटो जल्द भेज दिजीयेगा। नीलम ठीक है। उसे भी आपके जाने का बड़ा दुख पहुँचा। बच्चे को प्यार तथा जीजा जी को मेरा प्रणाम कह दिजीएगा। पत्रोतर शीघ्र देंगी।
आपका
अरूण
पटना 16 8 74
प्रिय दीदी
प्रणाम
आप उधर जा रही थी इधर हम ठगे से खड़े रह गए वह लौह उपकरण हमारी दीदी
को हमसे दूर कर विजेता दैत्य की भाँति लेकर भाग रहा था और हम विवश आँखों मे आँसू लिए खड़े देखते रह गए दीदी क्या रक्त का संबंध ही सब कुछ होता है हमने तो अपनी दीदी को भगवान के वरदान की तरह अपनाया है
आपका ही भाई
प्रदीप
17 08 74
आदरणीया दीदी
सादर चरण - स्पर्श।
आपको तो न जाने सहरसा मे जाते ही क्या हो जाता है कि नीलम सिन्हा दिमाग से निकल जाती है। चिट्ठी लिखना और पफोटो भेजने की बात ही दूर है। जीजा जी कैसे हैं मैं समझती हूँ वो पहले से अच्छे ही होंगे। आप कैसी हैे आप अपने दिये गये वचन को निभाना सीखिए देवी जी हाँ! भेज देंगे - जरूर। सहरसा पहुँचते ही सारे वचन हवा हो गया है ना माँ को आपसे शिकायत है कि आप ना वहाँ हाल देती है और न यहाँ का लेती हैं। अतः आपसे निवेदन है महारानी जी कि अब चार लाइन भी खत लिखकर डाल दिया करें ले लिया करें। समझी फुर्सत यदि न हो तो फुर्सत निकाल कर आइयें।
आपकी बहन
नीलम
एहिना बीरपुर डारमेट्री सँ हमरा बड़ प्रेम छल। जखन वर्माजी लोक अभियोजक सहरसा
सुपौल मधेपुरा जिला छलैथ। तँ कोर्ट मे बराबर बीरपुर जाइत छलाह। ललित बाबूक बनाओल ओ डारमेट्री बड़ कलात्मक छल- हमरा ओहि डारमेट्री सँ प्यार भ गेल छल। ओकर आकर्षण मे हम हिनक संग लागि जाइत छलौं-तँ डारमेट्री ल क सभ हमरा किचारइत छल। तखनुक डिस्ट्रिक्ट जज- शरण साहबक बेटा अपन पत्रों मे एहि बातक चर्च करैत छल ।
हाँ तो चाची आपकी तबीयत कैसी है एक बार मन कर रहा है कि आपसे कहूँ कि बीरपुर बहुत ही थर्ड क्लास जगह है आपको चिढ़ाने मे भी परमानन्द की अनुभूति महसूस करती थी। क्यों चाची मेरे पत्र से आप बोर हो रही हैं क्या ठीक है मैं बन्द कर रहा हूँ।
आपका
अखिलेश शरण
मुंगेर
सुश्री वर्मा जी
चमचे की स्टेनलैस स्टील भरा प्रणाम ।आशा है सपरिवार सानन्द सकुशल लडडू सी लुढ़क रहीं होगी ।आपकी एक रचना माह मई 78 कादम्बिनी के अंक मे प्रकाशित हुई । पढ़ने का अवसर मिला हार्दिक प्रसन्नता हुई । आपने जिस परिप्रेक्ष्य मे रचना लिखी है वास्तव मे ही सराहनीय है।भविष्य मे कोई अन्य रचनायें प्रकाशित हों तो अवश्य सूचित करें ।
लोकतंत्रा मे मँहगाई के कदम सदा आगे चलते।भ्रष्ट उल्लुओं के पट्ठे ही फूल रहे फलते-फूलते।।मरने को भी मिट्टी का अब तेल नहीं जिस शासन मे।
तन के दीप जलाते लेकिन मन के दीप नहीं जलते।।
वैसे मुझे नहीं लिखना चाहिये परन्तु मैं भी अवगत करा दूँ कि मैं भी अखिल भारतीय स्तर के हास्य-व्यंग कवि सम्मेलनों का मंचीय कवि हँू । दिल्ली बम्बई उ॰प्र॰ म॰प्र॰ राजस्थान बिहार पंजाब प्रान्तों के क्षेत्रों मे काव्य पाठ करके अबतक लोगों की चमचागीरी कर चुका हँू । आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से भी रचनायें प्रसारित होती रहती है। पत्र-पत्रिकाओं मे भी रचनायें प्रकाशित होती रहती है। शेष शुभ सदैव कृपा पत्र द्वारा सद्भाव बनाय रहें। आशा है आप भी लोकतंत्रा का बोझा ढो रहे होंगे। हमारी आत्मा को शान्ति प्रदान करने के लिए अपने हृदयोद्गार भरा एटमबम पत्र द्वारा हमारे पास तक अवश्य धमकायेंगे।
चमचा हाथरसी
विनोद सिपर्फ अपका ही
हाथरस उ प्र 26 5 78
शेफालिका जी
नमस्कार ।
आपका पत्र मिला कल ही । ध्न्यवाद मिथिल मिहिर मे प्रकाशित आपकी सभी कहानियाँ पढ़ चुका हँू । उपन्यास भी पढ़ चुका हँू । सोना माटि वैदेही आखर मिथिला दूत अग्नि पत्र एवं चांगुर मुझे कहीं नहीं उपलब्ध् हो रहा है।एक बात । मैं आपके पास कुछ प्रश्न भेज रहा हँू जो अलग कागज पर संलग्न है। कृप्या इसका उत्तर भेज दें । इसे एक भेट वार्त्ता ही समझ सकती हैं। इसका उल्लेख मुझे शोध् मे कहानी का परिचय के समय देना पड़ेंगा । हाँ! मैं भागलपुर जा रहा हँू .. पी॰एच॰डी॰ हेतु मैं भागलपुर वि॰वि॰ मे पंजीकृत हँू । गाईड भी वहीं रहते है और मेरे अग्रज भी अतः अग्रज के पास जा रहा
हँू तो देरी तो लौटने मे होगी ही । अतः कृप्या मेरे प्रश्नों का उत्तर भागलपुर ही भेजें ।
शेखर प्रसाद
डॉ सी एस लाल
फोरेनसिक मेडीकल कॉलेज
भागलपुर
20 9 74
ई पत्र हमरा एकटा मानसिक उलझन मे द देने छल। एहि पत्रक संग संलग्न प्रश्नपत्र मे
एकटा प्रश्न छल- आपकी तुलना लोग महादेवी वर्मा से करते हैं। महादेवी वर्मा के जीवन से हम सभी परिचित हैं! पिफर आप क्या कहती हैं कहियो काल हम अपन बाल बच्चा परिवारक संग संगत नहि वैसा पाबैत छी। कहबा लेल चाहैत छी किछ कहि दैत छी किछ-हमर कथनक शल्य क्रिया होभ लगैत अछि। आ ई तँ कोनो अनचीन्हार शेखर प्रसाद छलाह। हमर आँखि नोरा गेल छल उत्तर सोचैत खोजैत। हमरा असहज देखि
वर्मा जी सहज क देलनि- एकर उत्तर तँ स्पष्ट छैक- अहाँ लिखि दिऔक जे हम बुझैत छी लोग हमर रचनाक तुलना महादेवी सँ करैत छथि नहि कि हमर जीवनक सहरसा जिला मे जे पी आंदोलन मे हम बड़ सक्रिय छलौं। घर मे घुसल पर्दाशीन स्त्रिायों
के हम बाहर जुलूस मे अनने रहीं-
आदरणीया शेफालिका वर्मा जी
सादर प्रणाम मैं सहरसा आया था । आप नहीं थी । दि॰ 05 नवम्बर की अ॰ भा॰ महिला
संगठन की प्रांतीय संयोजक मंदाकिनी दानी सहरसा आ रही है। तीन तरह के कार्यक्रम अपेक्षित है। 1 महिला कार्यक्रम 2 कार्यकर्त्ता कार्यकर्ती बैठक 3 सार्वजनिक कार्यक्रम! इसी संबंध् मे विशेष विचार विमर्श के लिय प्रांतीय संयोजिका दि. 25 अक्टूबर रविवार प्रातः जानकी एक्सप्रेस से सहरसा आ रही है। उसी दिन रात को लौटेगी - कार्यकर्त्ता की बैठक हो । दिनांक 3 8 नवम्बर के बेगुसराय को कार्यकर्त्ता सम्मेलन मे आपकी प्रतीक्षा करूँगा।
इस बीच नागपुर मे आयोजित एक बैठक को लेकर कुछ गलतफहमी सी हो गई ऐसा कुछ भी सुब्रह्मण्य भारती से और कार्यालय मंत्राी श्री पंचनदीकर से बातों से और कुछ आपके पत्र को पढ़ने से अनुभव हुआ। क्योंकि अभी किसी भी प्रदेश मे विधिवत महिला विभाग का स्वतंत्रा कार्य नहीं हुआ हुआ था केंद्र से महिलाओं के संबंध के पत्रक जो मंदाकिनीदाणी महिला कार्य की प्रमुख ने भेजा प्रदेश संगठन मंत्राी के नाम भेजा जो 1999 का लिखा था। क्योंकि उन्होंने कथा था कि कोई 5 महिलाएँ नागपूर पहुँच कर कार्य समझ लें हमने अपने विभाग संगठन मंत्रियों को 912 नाम पूछ कर उन्हें भेजने की दृष्टि से बातें करने को कहा था। श्री सुब्रह्मण्यम भारती जी ने हमे यह स्पष्ट बताया था कि सहरसा जिला का महिला संगठन का कार्य आप करेंगी और सहरसा नगर का कार्य श्रीमती निर्मला वर्मा करेंगी। क्योंंिक एक महिला से दो जाना वहाँ से ठीक रहेगा ऐसा भारती जी ने सोचा होगा और आप दोनों को जाने का आग्रह किया होगा। पत्र देकर उधर के क्षेत्रा की कार्य प्रगति का विवरण देती रहेंगी। मैथिली महासम्मेलन के महिला विभाग की अध्यक्षता आप सफलतापूर्वक कर लौटेंगी। आपके मैथिली लेखिका मे सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने की बात तो हमे पत्र पढ़कर ही ज्ञात हुई। किस भाई को अपनी बहन के इस प्रकार के गौरव से अभिमान न होगा हम प्रदेश समिति की ओर से भी आपको इस उपलक्ष्य मे बधाई देते हैं। दिन पर दिन मेरी यह प्रतिभासम्पÂा बहन ऐसी ही प्रगति पथ पर अग्रसर हों यही भगवती से प्रार्थना है।
नाना भागवत
विश्व हिन्दु परिषद
नाला रोड पटना
(अगिला अंकमे....
विश्व हिन्दू परिषदक एहि लेटरपैड मे अध्यक्षक जगह पर पं जयकांत मिश्र पटना छल कोन जयकांत मिश्र छलथि कहियो जिज्ञासा नहि रहल-.....)
२
नाटक- बेटीक अपमान
नाटककार- बेचन ठाकुरजी चनौरागंज (मधुबनी)
क्रमश:
बेटीक अपमान-
बेचन ठाकुर
दृश्य पाँचिम-
(स्थान बलवीर चौधरीक आवास। बियाहक तैयारी पूर्ण भए गेल अछि। जयमालाक मंच तैयार आ सजल अछि। मचक आगू बाल्टीनमे लोटा आ पानि अछि। कुर्सीपर गंगा राम चौधरी बैसि कऽ आेङहा रहल छथि।)
गंगाराम- (नीनमे) हमहुँ बेटाक वियाह करब। दहेजमे एगो उजरा आ एगो करिया बत्तु लेब। ठाँठ बकरी लेब सेहो जरसी। कनिया लेल कानमे बुलकी लेब। अपना लेल एगो फाटलो-चिटलो कनिया लेब। बाआ लेले एगो गदहा लेब। अपना कनिया लेल ठोररंगा लेब। एगो मोचना लेब। ओहिसँ अपन कनियाकेँ सौंसे देहक केश उखारि देबैन। आओर नगद एगारह लाख एगारह सए टाका, डालीमे एक लाख मच्छर आ समधी मिलानमे एक हजार एक उड़ीश लेब। आओर पुतौह लेल.....।
(चन्देश्वर चौधरीक प्रवेश)
चन्देश्वर- गंगा राम, गंगा राम, रओ गंगा राम।
(गंगाराम फुरफुरा कऽ उठि खसैत-पड़ैत)
गंगाराम- जी भैया, जी भैया, केम्हर गेलीह भौजी?
चन्देश्वर- सपनाइत छेँ की?
गंगाराम- नहि भैया, अपन बेटाक छेकामे गेल रही।
चन्देश्वर- नीन तोड़ू मुँह-हाथ धोउ।
(अन्दरसँ दुइ-चारिटा बमक आवाज होइत अछि।)
गंगाराम लगैत अछथ् बरयाती आबि रहल अछि।
गंगाराम- आबए दियौन। कटहर-चूड़ा खेताह। एतेक अबेर आएल बरयातीकेँ की स्वागत होएत? अपन ठरल-ठरल खाएत आ सिरसिराइत भागत।
(बरयातीक प्रवेश। दीपक चौधरी, मोहन चौधरी, सोहन चौधरी, गोपाल चौधरी, प्रदीप कुमार ठाकुरक आ चारि-पाँच हुनक समाजक लोक बरायातीमे आएल छथि। सभ कियो मंचपर विराजमान छथि। पाछू काल सुरेश कामत पहुँचलाह।)
दीपक- गोर लगैत छी मामीश्री।
सुरेश- नीके रहू भागिन।
दीपक- बरयाती अएवाक मोन पड़ि गेल?
सुरेश- की करबैक भागिन, असगरूआ छी। छेका दिन समएपर महीसकेँ नहि दुहलहुँ। तेकर फल यएह भेल, महीस निछए गेल।
(सरयातीक प्रवेश। हरे राम सिंह, बरवीर चौधरी, गंगाराम चौधरी, चन्देश्वर चौधरी आ हिनक अपन समाजक लोक छथि)
हरेराम- (बरयातीसँ) सरकार सब, चरण पखारल जाउ। बड राति भए गेल। हमर समाजक कतेको लोक चलि गेलाह। नश्तो पानि हरेएतैक। जल्दी चरण पखारल जाउ, सरकार सभ।
(सभ कियो चरण पखारि कऽ बैसैत छथि।
अन्दरसँ गंगाराम शरबत, नश्ता, चाह, पान, बीड़ी सुपारी इत्यादि आनैत छथि। नश्ता-पानि आरामसँ भए रहल अछि। चाय-पानक बाद सरयाती सभ अंदर जाइत छथि। तहन जनानी सभ जयमाला करेवाक लेल अएलीह। ओ सभ पहिने परिछनिक गीत गाबि परिछन कए रहलीह फेर लड़िकाक परिक्रमा करए जयमाला कराबैत छथि। तहन लड़िकी लड़िकाक आरती उतारि आ प्रणाम कऽ आशीर्वाद लय सभ जनानीक संग अंदर जाइत छथि। प्रदीप कुमार ठाकुरक प्रवेश)
प्रदीप- (बरयातीसँ) सरकार सभ भोजनमे चलै चलू।
हरेराम- चलै चलू,( बरयाती सभ। भोर होमए जा रहल अछि। चलू, चलै चलू।
(सबहक प्रस्थान)
पटाक्षैप
१.शिव कुमार झा‘‘टिल्लू‘‘- १.१.कुरूक्षेत्रम् अर्न्तमनक-(समीक्षा)१.२.
समीक्षा (अर्चिस) २. डॉ. शेफालिका वर्मा - प्रीति ठाकुर क मैथिली चित्रकथा ३.राजदेव मंडल, कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक लेल पत्र-शेष अंश ४.धीरेन्द्र कुमार- प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि
१.
शिव कुमार झा‘‘टिल्लू‘‘, नाम : शिव कुमार झा, पिताक नाम: स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नाम: स्व. चन्द्रकला देवी, जन्म तिथि : 11-12-1973, शिक्षा : स्नातक (प्रतिष्ठा), जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम + पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101, संप्रति : प्रबंधक, संग्रहण, जे. एम. ए. स्टोर्स लि., मेन रोड, बिस्टुपुर, जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि : वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार- प्रसार हेतु डा. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न।
१.१.कुरूक्षेत्रम् अर्न्तमनक-
(समीक्षा)
किछु लोकक ई प्रवृति होइत अछि जे सदिखन अपन चल जीवनमे नव-नव प्रकारक प्रयोग करैत रहैत अछि। एहि नव प्रयोगक कारण जहानमे अपवर्गक विहान देखएमे अबैत अछि। प्रयोग धर्मिता व्यक्तिक इच्छासँ नहि जन्म लऽ सकैछ, ई तँ नैसर्गिक प्रतिभाक परिणाम थिक। मैथिली साहित्यमे प्रयोग धर्मी सरस्वती पुत्रक अभाव नहि परंच वर्तमान कालमे एकटा एहेन प्रयोगधर्मी मिथिला पुत्रकेँ मॉ मिथिले अपन ऑचरमे सक्रिय कएलनि, जे तत्कालिक मैथिलीक दशा वदलवाक प्रयास कऽ रहल छथि। क्रांतिवादी आ सम्यक विचार धाराक सम्पोषक ओ व्यक्ति केओ अनचिन्हार नहि- मैथिली साहित्यक प्रथम अंतर्जाल पाक्षिक पत्रिका विदेहक सम्पादक- श्री गजेन्द्र ठाकुर छथि। भऽ सकैत अछि जे किछु लोक मैथिली साहित्यकेँ अन्तर्जालसँ जोड़वाक प्रयास कए रहल हएताह परंच एकटा मूर्त्त रूप दऽ 64 अंक धरि पहुँचेवाक कार्य गजेन्द्रे जी कएलन्हि। साहित्यक नव-नव विधा आ समाजक वेमात्र वर्गकेँ मैथिलीक आलिंगनमे आवद्ध कऽ साम्यवाद आ समाजवादकेँ वैदेहीक माटिपर आनि हमरा सबहक माथपर लागल अनसोहांत कलंककेँ धो देलनि। मात्र 64 अंकमे जे कार्य भेल अछि ओ कतऽ-कतऽ पहिने भेल छल, आत्म अवलोकन करवाक पश्चात् जानल जा सकैत अछि। समाजक फूजल, बेछप्प आ उदासीन वर्गकेँ अपन वयनाक मानस पटलपर आच्छादित करवाक लेल साहस सभ केओ नहि जुटा सकैत अछि। मात्र भॉज पुरयवाक लेल मानस पुत्र एहेन कार्य नहि कएलनि, ओहि उपेक्षित वर्गक रचना कारक रचनामे विषए-वस्तुक गतिशीलता आ तादात्म्य वोध ककरोसँ कम नहि अछि। प्रयोगधर्मी गजेन्द्र जीक कर्मक दोसर आमुख थिक हिनक लेखनीक धारसँ निकलल इन्द्रधनुषक सतरंगी गुलालसँ भरल भावक आत्मउदवोधन- “कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक”
एहि पोथीकेँ की कहल जाए उपन्यास, गल्प, बाल साहित्य, समालोचना, प्रवंध वा काव्य? साहित्यक सभ विधाक अमिर रसकेँ घोरि वंगोपखाड़ी वना देलनि जतए ई कहव असंभव अछि जे गंगा, कोशी, यमुना वा हुगली ककर नीर कतए अछि?
शीर्षक देखि अकचका गेल छलहुँ, ई महाभारत मचौता की! मुदा अपन हृदएसँ सोचल जाए प्रत्येक मानवक हृदएक दूटा रूप होइत अछि, मुदा अन्तर्मन सदिखन सत्य बजैत अछि ओहिठॉ मिथ्याक स्थान नहि।
कुरूक्षेत्र रणभूमि अवश्य छल परंच ओहिठॉ सत्यक विजयक लेल युद्ध भेल। ओहिठॉ धर्मसंस्थापनार्थ विनाश लीला मचल छल। हमरा सभकेँ अपन अन्तर्आत्मामे कुरूक्षेत्रक दर्शन करएवाक लेल दिशा निर्देशन कऽ रहल छथि गजेन्द्र जी।
मैथिली साहित्यक कोन असत्यकेँ त्याग करवाक चाही? किअए सुमधुर वयनाक एहेन दशा भेल? नव पथक निर्माण नवल दृष्टिकोणसँ हएत। हमरा बुझने एहि पोथीमे साहित्य समागमक लेल दृष्टिकोणकेँ प्राथमिकता देल गेल अछि। एहेन विलक्षण साहित्यपर आलेख लिखव हमरा लेल आसान नहि अछि- मुदा दु:साहस कऽ रहल छी-
भऽ रहल वर्ण-वर्ण नि:शेष
शब्दसँ प्रकटल नहि उधेश्य
मोनमे रहल मनक सभ वात
अछिंजलसँ सध: स्नात
सात खण्डमे विभक्त एहि पोथीकेँ सम्पूर्ण परिवारक लेल सनेश कहि सकैत छी।
प्रवंध-निवंध-समालोचना:- एहि खण्डक आदि लोकगाथापर आधारित कथा सीत-वसंतसँ कएल गेल अछि। उत्तर मध्यकालीन इतिहासमे अल्हा-ऊदल, शीत वसंत सन कतेक कथा प्रचलित छल, जकर मंचन पद्यक रूपमे वर्तमानकालमे विहारक गाम-गाममे भऽ रहल अछि। एक राज परिवारक विषय-वस्तुक चित्रण करैत लेखक सतमाएक िसनेहपर प्रश्न चिन्ह लगैवाक प्रयास कएलनि अछि? कथाक आरंभसँ इति धरि मर्मस्पर्शक अनुभव होइत अछि। कथाक अंतमे विमाताकेँ ओहि पुत्रक छाया भेटलनि जकर पराभव ओ कऽ देने छलीह।
श्री मायानन्द मिश्र मैथिली साहित्यक सभ विधाक मांजल साहित्य कार मानल जाइत छथि। हुनक इतिहास वोधक चारू प्रमुख स्तंभ प्रथमं शैलपुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहित आ स्त्रीधनपर सम्यक आलेख प्रस्तुत कऽ गजेन्द्र जी पूर्वमे लिखल गेल प्रबंधक दृष्टकोणकेँ चुनौती दऽ रहल छथि। ऋृग्वैदिक कालीन इतिहासपर आधारित मंत्रपुत्र मायानन्द जीक प्रमुख कृति मानल जाइत अछि। एहि पोथीक लेल माया जीकेँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटल अछि। मंत्रपुत्र पाश्चात्य इतिहाससँ प्रभावित अछि। मंत्रपुत्रक संग-संग पुरोहितमे सेहो पाश्चात्य संस्कृितक झलकि देखए अबैत अछि। अपन समालोचनाकेँ गजेन्द्र जी अक्षरश: प्रमाणित कऽ देने छथि, मुदा मायाबावूक रचना संसारपर कोनो तरह प्रश्न चिन्ह नहि ठाढ़ कएलनि। समीक्षाक रूप एहने होएवाक चाही। समीक्षककेँ प्ूर्वाग्रह रहित रहलासँ साहित्यिक कृतिक मर्यादा भंग नहि होइत अछि।
केदारनाथ चौधरी जीक दू गोट उपन्यास ‘चमेली रानी’ आ ‘माहुर’पर गजेन्द्र जीक समीक्षा पूर्णत: सत्य मानल जा सकैत अछि। मैथिली साहित्यमे बहुत रास रचनाक विक्री सम्पूर्ण मैथिल समाजमे जतेक नहि भऽ सकल, ‘चमेली रानी’क ओतेक विक्री मात्र जनकपुरमे भेल। एहिसँ एहि साहित्यक प्रति पाठकक श्रद्धाकेँ देखल जा सकैत अछि। ‘माहुर’ मैथिली साहित्यक लेल क्रांतिकारी उपन्यास थिक। अरविन्द अडिगक कृतिक चरित्रसँ एहि उपन्यासक एक पात्रक तुलना लेखकक भाषायी समृद्धताकेँ प्रदर्शित करैत अिछ।
विदेह-सदेहक सौजन्यसँ श्रुति प्रकाशन द्वारा नचिकेता जीक एकटा नाटक ‘नो एण्ट्री मा प्रविश’ प्रकाशित भेल अछि। एहि नाटकक लेखनपर नचिकेता जीकेँ कीर्ति नारायण मिश्र सम्मान देल गेल अछि। नाटकक चारू कल्लोलक तर्क पूर्ण विश्लेषण कऽ गजेन्द्र जी समीक्षाक रूप बदलवाक प्रयास कएलनि अछि। एहि नाटकमे तार्किकता आ आधुनिकताक विषय वस्तु निष्ठताकेँ ठाम-ठाम नकारल गेल अछि।
रचना लिखवासँ पहिने अध्यायमे गजेन्द्र जी मैथिली साहित्यमे भाषा सम्पादनपर विशेष ध्यान देवाक प्रयास कएलनि। अपन साहित्यमे भाषायी त्रुटिपर पूर्णरूपसँ ध्यान नहि देल जा रहल अछि।
कविशेखर ज्योतिरीश्वर, विद्यापति शब्दावली, रसमय कवि चर्तुभूज शब्दावली आ बद्रीनाथ शब्दावली द्वारा मिथिला-मैथिलीक सर्वकालीन शब्द विन्यासक आ शब्द भंडारक विस्तृत वर्णन कएल गेल अछि। एहिसँ निश्चय भाषा सम्पादनमे सहायता भेटल। कतेक रास एहेन शब्द अछि जकर विषयमे हम की साहित्यक पैघ-पैघ वेत्ता पहिने नहि जनैत होएताह। निश्चित रूपसँ ई अध्याय पाठकक संग-संग साहित्यकार आ असैनिक सेवाक ओहि प्रतियोगीक लेल उपयोगी हएत जे मैथिलीकेँ मुख्य विषयक रूपे प्रतियोगितामे सम्मिलित होएवाक लेल प्रयत्नशील छथि। समीक्षक हमरा सबहक मध्य एकटा नव पद्य विधाक चर्च कऽ रहल छथि- हाइकू। एहि विधापर मैथिलीमे पहिनहुँ रचना होइत छल जेना- “ई अरदराक मेघ नहि मानता रहत बरसिकेँ। मुदा एहि विधाकेँ क्षणिका नाअोसँ जानल जाइत छल। जापानी साहित्यक द्वारा सृजित एहि पद्य रूपक वास्तविक चित्रण मैथिली साहित्यमे गजेन्द्र जी आ ज्योति झा चौधरी कएलनि अछि।
मिथिलाक लेल प्रलय कहल जाए वा विभीषिका- ‘बाढ़ि’ ई शब्द सुनितहि कोशी, कमला, बलान, गंडकी, बागमती आ करेहक आंतसँ ओझराएल लोक सभ कॉपि जाइत छथि। एहि समस्याक स्थिति, सरकारी प्रयासक गति आ दिशाक संग-संग बचवाक उपाएपर लेखकक दृष्टिकोण नीक बुझना जाइत अछि।
कोनो ठाम आ कोनो आन धाममे जौं हमरा लोकनिक विषयमे पता चलए-की मैथिल छथि, लोकक दृष्टकोण स्पष्ट भऽ जाइत अछि- हम सभ मछगिद्धा छी। एकर कारण जे धारक कातमे रहनिहार जीवक जीवन जलचरे जकाँ होइत अछि।
जलीय जीवक भक्षण अधिकांश व्यक्ति करैत छथि। तेँ ने हमरा सभकेँ मॉछ आ मखानक प्रेमी बुझल जाइत अछि, आ वास्तवमे हम सभ मॉछक प्रेमी छी। अधिकांश मैथिल ब्राह्मण परिवारमे सोइरीसँ श्राद्ध धरि माॅछक भक्षण अनिवार्य अछि। अान जातिमे अनिवार्य तँ नहि अछि, मुदा ओहु वर्गक अधिकांश लोक मॉछक प्रेमी छथि। लेखक एहि लोकक भक्षण धारकेँ ध्यान धरैत कृषि मत्स्य शब्दावली लिखलन्हि अछि।
एहिमे सभ प्रकार मॉछक आकार, रंग, रूपक विश्लेषण कएल गेल अछि। कृषिकार्यक लेल जोड़ा वरदक संग हर पालो इत्यादिक ज्वलन्त व्यवस्थापर लेखकक विचार नीक मानल जा सकैत अछि। करैल, तारवूज आ खीराक विविध प्रकारक नाओ सुनि गामक जिनगी स्मरण आवि जाइत अछि।
एहि खण्डक सभसँ नीक विषय जे हमरा अन्तर्मनकेँ हिलकोरि देलक ओ अिछ विस्मृति कवि- पंडित राम जी चौधरीक रचना संसारपर प्रवाहमय आ विस्तृत प्रस्तुति।
हमरा सबहक भाखाक संग िकछु विषमता रहल जे एहिमे कतेक रास एहेन रचनाकार भेल छथि जे अपने संग अपन रचनाकेँ गेंठ बन्हने विदा भऽ गेलाह। एकर कारण एहिमे सँ किछु रचनाकारक रचनाक संकलन नहि भऽ सकल वा भेवो कएल तँ पाठक धरि नहि पहुँचल। एहि लेल ककरा दोष देल जाए रचनाकारकेँ आ हमरा सबहक भाषाक तत्कालीन रक्षक लोकनिकेँ? एहि भीड़मे राम जी चौधरीक नाओ सेहो अछि। मैथिली साहित्यमे रागपर लिखल रचनामे राम जी बावूक रचना सेहो अछि। भक्तिमय राग विनय विहाग, महेशवाणी, ठुमरी तिरहुता, ध्रुपद, चैती आ समदाओनक रूपमे हुनक लेखनीसँ निकलैत गीत सभ अलम्य अछि। शास्त्रीय शैलीक मैथिली गायनमे वर्तमान पिरहीक लेल अत्यन्त उपयोगी रचना सभकेँ प्रकाशमे आनि गजेन्द्र जी मिथिला, मैथिली आ मैथिलपर पैघ उपकार कएलनि अछि। सत्यकेँ स्वीकार करवाक सामर्थ्य मात्र किछुए लोकमे होइत अछि। गजेन्द्र जी ओहि लोकक पातरिमे ठाढ़ एक व्यक्ति छथि परिणामत: मैथिली साहित्य भोजपुरीसँ आगाँ मानल जाइत अछि मुदा गुणवताक दृष्टिए भोजपुरी रास परिमार्जित अछि। भोजपुरी साहित्यक काल पुरूष भिखारी ठाकुरक मर्म स्पर्शी विदेशिया एहि भाषाक अलग पहिचान भेटल। मैथिली भाषामे विदेशियाक कमीक मुख्य कारण रहल-प्रवासक प्रति उदासीनता। जौं लिखलो गेल तँ महाकाव्यक रूप दऽ देल गेल। विदेशिया पद्य आ विधापतिक लिखल? हमरो विश्वास नहि भेल छल। विद्यापतिकेँ मुख्यत: श्रैंगारिक कवि मानल जाइत अछि। ओना हुनक रचनाकेँ भक्ति रससँ सेहो जोड़ल जाइत अछि। कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक पोथी पढ़लासँ नव सोच मोनमे आवि गेल। जकरा भोजपुरी साहित्यमे विदेशिया कहल गेल वास्तवमे मैथिलीमे ओ अछि- पिया देशान्तर।
विद्यापतिक नेपाल पदावलीमे एहि प्रकार रचना सभ संकलित अछि, मुदा कहियो एहि रूपे महिमा मंडित नहि कएल गेल। कारण स्पष्ट अछि पिया देशान्तरक नाटय रूप मिथिलाक पिछड़ल जातिक मध्य प्रदर्शित कएल जाइत अछि। तेँ अग्रसोची लोकनि एकरासँ दूरे रहव उचित बुझैत छथि। एहिसँ मैथिलीक दशा-दिशाकेँ नव गति कोना भेटि सकैत अछि। मैथिली लोकभाषा अछि, लोक संस्कृतिकेँ बढ़यवाक प्रयास करवाक चाही। गजेन्द्र जीक सोझ दृष्टिकोणकेँ विम्वित करवाक चाही।
“एतहि जानिअ सखि प्रियतम व्यथा” –श्रैंगारिक-विरह व्यथाक वर्णन मुदा अछि तँ पिया देशान्तर।
श्री सुभाष चन्द्र यादव जीक कथा संग्रह ‘बनैत-विगड़ैत’पर गजेन्द्र जीक समीक्षा अपूर्व अछि। प्रवेशिकामे हुनक कथा ‘काठक बनल लोक’ पढ़ने छलहुँ। काठक बनल लोकक नायक वदरियाक मर्म देखि पाथरो पिघलि जा सकैत अछि। वास्तवमे सुभाष जी मैथिली साहित्यक फनीश्वर नाथ रेणु छथि। महिमा मंडनक कालमे मात्र भाँज पुरएवाक लेल हिनक कथा पाठ्यक्रममे दऽ देल जाइत अछि। आंचलिक रचनाकेँ कहिया धरि उपहासक पथियामे झाॅपि कऽ राखल जाएत? एक नहि एक दिन छीप उधिया जएत आ सत्यक सामना करए पड़त। लोक धर्मी साहित्यकार चाहे ओ धूमकेतु, कुमार पवन कमला चौधरी, सुभाष चन्द्र यादव, जगदीश प्रसाद मंडल वा कोनो आन होथु- हुनका सबहक रचनाक उपेक्षा नहि होएवाक चाही। सुभाष जीक कथा कनिया-पुतरा, बनैत-विगड़ैत आ दृष्टिक समीक्षा देखि समए-कालक दशाक अविरल द्वन्द्व उपस्थित भऽ जाइत अछि। ऋृणी छी जे गजेन्द्र बावू एहि पोथीपर समीक्षा लिखलन्हि। इंटरनेटक लेल अन्तर्जाल प्रयोग, नीक लागल। वेवसाइट बनएवाक तकनीकसँ गजेन्द्र जीक उद्वोधन आ नियमन नहि बुझि सकलहुँ। तीन वेरि पढ़लहुँ मुदा जेठक तेज विहारि जकाँ मॉथपरसँ उड़ि गेल। नव-नव नेना भुटका बुझि जएताह। तकनीकी युगक नेनाक स्मरण शक्तिक आॅगन पैघ होइत छथि तेँ हुनके सबहक लेल एहि अध्यायकेँ छोड़ि देलहुँ।
लोरिक गाथा समाजक उपेक्षित वर्गक संस्कृतिपर आधारित अछि। सहरसा-सुपौलक वीर आदि पुरूष लोकिकक परिचए-पातमे पौराणिक मैथिल संस्कृतिक दर्शन होइत अछि।
मिथिलाक खोजमे जनकपुर, सुग्गा धनुषा सन नेपालक स्थलसँ लऽ कऽ मधुबनी जिलाक कतेको उत्तर मैथिल गामसँ दक्षिणमे जयमंगलागढ़ (वेगूसराय)क चर्च कएल गेल अछि। पूवमे पूर्णिया किशन गंजक कतेक स्थलसँ लऽ पश्चिममे चामुण्डा (मुजफ्फरपुर)क मॉ दुर्गाक मंदिरक चर्च कएल गेल अछि।
मिथिलाक िकछु स्थानक वर्णन एहि सुचीमे नहि भेटल जेना- सती स्थान (गाम-शासन प्रखंड-हसनपुर जिला- समस्तीपुर) आ उदयनाचार्यक जन्म स्थली (गाम-करियन जिला- समस्तीपुर)। एहि लेल लेखककेँ दोष नहि देल जा सकैत अछि, किएक तँ मिथिलाक खोज- विदेहसँ लेल गेल अछि, जाहिमे गजेन्द्र जी अवाहन कएने छथि, जे जिनका लग कोनो प्रसिद्ध स्थलक विषएमे जानकारी हुअए जे एहिमे सम्मिलित नहि अछि तँ ओकर सूचना देल जाए जाहिसँ ओतए जा कऽ छाया चित्रक संग सूचना सम्मिलित कएल जा सकए। किछु स्थल आर छूटल भऽ सकैत अछि, प्रवुद्ध पाठक एहि विषएपर कार्य कऽ सकैत छी।
क्रमश:
१.२.
शिव कुमार झा ‘टिल्लू’, जमशेदपुर।
समीक्षा (अर्चिस)
वर्तमान मैथिलीक कविताकेँ तरूण कवि आ कवयित्रीक पदार्पणसँ नव गति भेटि रहल अछि। एहि नवतुरिया मुदा विषए-वस्तुक दृष्टिकोणसँ सजल रचना सबहक रचनाकारक वर्गमे एकटा प्रवासी मैथिलीक कवयित्री छथि- श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरी।
“अर्चिस” ज्योति जीक प्रथम संकलित कविता संग्रह थिक। एहि पोथीमे ३७ गोट कविता संग्रहित अछि। ज्योति जी कतेक दिनसँ रचना करैत छथि, ई तँ नहि बुझल अछि मुदा विदेहक पदार्पणक किछुए अंकसँ हिनक रचना प्रकाशित हुअए लगल।
अर्चिसक अर्थ तत्सममे अग्नि आ तद्भवमे आग, अनल आदि मानल जाइत अछि मुदा मैथिलीमे आगि, अंगोर आ लुत्ती सेहो कहल जा सकैछ। एहि पोथीक शीर्षक मात्र कवयित्रीक भावनापर आधारित अछि, कविताक भावसँ एहि शीर्षकक कोनो संबंध नहि। पहिल कविता “हाइकू” प्रकृति वर्णन, श्रृंगार, विचार मूल आ विरहक मिश्रित चित्रांकन करैछ। हाइकू पहिने मैथिलीमे क्षणिका नाओसँ लिखल जाइत छल, मुदा ज्योति जी एकर वास्तविक रूपक चित्रण कएलनि अछि। सम्पूर्ण कवितामे अर्न्तद्वन्द्व आ प्रसन्नताक भीड़क मध्य व्यथा-टीशक अंतरंग हृदयक प्रवाहमयी प्रस्तुति..... मनोरम लागल।
एकटा हेराएल सखीमे कवयित्री कविताक नायिकाकेँ अपन सखी मािन ओकरा सिनेहीसँ भेटल पीड़ाक उद्वोधन कऽ रहल छथि। नारी मोनमे अश्रुउच्छवासक संग-संग समर्पण सेहो रहैत अछि। ओना तँ आर्य ग्रन्थमे “त्रिया चरित्र: पुरूषस्य भाग्यम् देवो न जानाति कुतो मनुष्य:” लिखल गेल अछि, मुदा एकरा हम उचित नहि मानैत छी। आर्यावर्तक नारीक मोन विह्वलआ भावुक होइत अछि तेँ भावनात्मक छलक शिकार शीघ्र भऽ जएवाक संभावना देखल जा सकैछ। पुरूष प्रधान समाजमे दोस नारीपर देल जाइत अछि मुदा पुरूषक चरित्रहीनताक नाओ की देल जाए? जीवन भरि एक पुरूषक प्रति समर्पणकेँ केन्द्र विन्दु बना कऽ कवयित्री दुखित छथि अपन सखीक निश्छल समर्पणसँ। ई कविता सदेह ३ मे कल्पना शरणक रचनाक रूपमे प्रकाशित भेल अछि। नहि जानि बेरि-बेिर नाओ बदलि कऽ लिखवाक परम्परा कहिया धरि चलत। छद्म नाअोक निर्णक एकवेरिमे कऽ लेवाक चाही, नहि तँ रचनाकारक विलगित मानसिकताक बोध होइत अछि।
वर्तमान महिला वर्गमे नौकरी करवाक इच्छा शक्ति प्रवल भऽ रहल अछि। स्वभाविके अछि जीवनक दोसर पहिया तँ नारी छथि। सृजन आ सृष्टिक रूपमे पहिल पहिया सेहो कहि सकैत छी। परंच युवा महिला वर्गक प्रवृति चंचल होइत अछि। एहि अल्हड़पनमे अपन कर्मगतिकेँ सेहो चंचल बनएवाक प्रयास कऽ रहल छथि कवयित्री अपन कविता “एकरा नौकरी चाही”मे। कार्यालयक सभटा काज हिनके मोनक होएवाक चाही। काज कम मुदा कैंचा वेसी चाहैत छथि। बॉसकेँ आन्हर आ वहिर होएवाक कामनामे हास्यक दर्शन होइत अछि। भऽ सकैत अछि हिनक एहेन दृष्टिकोण मात्र कवितेटा मे हुअए।
“पनिभरनी” कविता पढ़ि हमर मॉथ सुन्न भऽ गेल, अकचका गेलहुँ। जाहि नारीक बाल काल जमशेदपुरमे बीतल हुअए, आब लंदनमे रहैत छथि हुनकासँ एहेन शब्दक आश कोना कएल जा सकैत अछि? गामोमे आब घैल आ इनारक रूप मृतपाय भऽ गेल अिछ। एकटा गरीव अवला पनिभरनीक प्रति आसक्तिसँ कविता ओत प्रोत अछि। विषय वस्तु आ दृष्टिकोण समंजन खूब नीक लागल। अपन जातिक प्रति सिनेहक मर्मस्पर्शी चित्रण भऽ सकैत अिछ जे एहि प्रकारक व्यस्थाक वर्णन अपन परिवारक बूढ़-पुरानसँ ज्योति जी सुनने हेती।
दीपमे ज्योति पसरवाक शक्ति होइत अछि मुदा तरमे तँ अन्हार रहैछ। स्वाभाविक अछि जे जहानमे आनंद देवामे सक्षम होइछ ओकर अपन जीवन व्यथित भऽ जाइत अछि। एहि प्रकारक दर्शन भेल “शीतल बसात” कवितामे। वृक्ष दोसरकेँ शीतलता दैत अछि परंच ओकर पात भूखण्डपर खसिते अस्तित्व विहीन भऽ जाइत अछि। पतझड़िक बाद वसन्त, फेरि पतझड़ संगहि रौद क्षणहिमे छॉह ई तँ प्रकृतिक लीला अछि। मिथिलाक भूखण्डमे आमक गाछी बूढ़ पुरानक संग-संग बाल बोधक लेल गरमीक पिकनिक केन्द्र होइत अछि। भोज कोनो छप्पन प्रकारक भोज्य पदार्थक नहि, टिकुला आ झक्काक भोज। गरमी छुट्टीमे गामक प्रवासक ज्योति जीक अनुभव नीक बुझना जाइत अछि।
“एकटा भीजल बगरा” कविता पढ़ि हिन्दी साहित्यक महान लेखिका महादेवी वर्मा जीक लिखल “गिल्लू” कथा मोन पड़ि गेल। ओहि कथामे वर्माजी एकटा लुक्खीक पीड़ाक वर्णन करैत ओकरा आत्मसात कऽ लैत छथि, तहिना ज्योति जी एकटा चिड़ैक प्रति सिनेहक जे भाव देखा रहल छथि ओ “सर्वे भवन्तु सुखित:” सिद्धान्तक द्योतक बुझना गेल। “हम एकटा मध्य वर्गक वालक” वाल साहित्यपर आधारित कविता अछि। वाल मनोविज्ञानक संग एकरा वाल गृहविज्ञान सेहो मानल जा सकैत अछि, मुदा एहि कवितामे प्रवाहक अभाव देखए मे आएल। शब्दकेँ तुकांत वनएवाक क्रममे मूल भावक प्रति अनाकर्षक देखए मे आबि रहल अछि। “टाइम मशीन” कवितामे आर्य भूमिक दृष्टिकोण आ पाश्चात्य देशक व्यवस्थासँ तुलना नीक लागल। विलासिताक प्रति हमरा सबहक समर्पण परतंत्रताक रूपमे परिणति भेल आ हम सभ सगरो क्षेत्रमे पंगु भऽ गेलहुँ। मिठगर रौद, पहिल फुहार आ वरसातक दृश्य कवितामे प्रकृति वर्णन सामान्य रूपसँ कएल गेल अछि। एहि प्रकारक कवितासँ हमर साहित्य ओत-प्रोत अछि। एहि प्रसंगमे किछु नव नहि देखए मे अाएल। जीवन सोपानमे जीवनक क्रमिक गतिक छंदसँ भरल प्रस्तुति सेहंतित अछि। “प्रतीक्षासँ परिणाम धरि” जीवन-दर्शनपर आधारित ज्योति जीक सोहनगरक कविता अछि। हमरा बुझने ई कविता एहि पोथीक सभसँ विलक्षण अध्याय थिक। श्रीमद्भगवतगीता आ शेष महाभारतक आधारपर कृष्ण चरितक वर्णनसँ कवयित्रीकेँ सिद्धहस्त मानल जा सकैछ। द्वापरसँ कलिमे प्रवेश निश्चित रूपेँ कवयित्रीक विस्तृत अध्ययन आ अनुशीलनक छाया देखा रहल अछि।
“इन्टर नेट स्वयंवर” वियाहक नव रूपक चित्रण कऽ रहल अछि। वैदिक कालमे आठ प्रकारक पाणिग्रहण व्यवस्था छल। वर्तमान समएमे इंटरनेट चैटिंगसँ वियाह करवाक प्रणालीमे ठक व्यवस्था अछि तेँ कवयित्री जकरा विनु देखने प्रेम करवाक नाटक कएलनि ओ पुरूष नहि स्त्री अछि। क्षितिजक साक्षात दर्शनमे प्रवाहक पयोधि गतिशील अछि मुदा रचनामे तारतम्यक अभाव देखि रहल छी। हिम आवरित आ मेघाच्छादित सन शब्द तँ नियोजित अछि मुदा जखन हमरा सबहक भाषामे शब्द विन्यासक अभाव नहि तखन एहेन तद्भवक चयन करव नीक नहि लागि रहल अछि। जौं एहि कवितामे देसिल वयनाक मूल शब्दक प्रयोग करितथि तँ कविताक रूप वेसी नीक जएवाक भऽ संभावना छल।
महावतक हाथी, विद्या धन, वर्फ ओढ़ने वातावरण आ गामक सूर्यास्त कविता तँ नीक अछि मुदा एकर विम्व कोनो नव नहि सभटा वएह पुरना कविक रचना सबहक रूप देखए मे आएल मुदा दृष्टिकोण हिनक अपन अछि, ककरो रचनाक नकल नहि कएने छथि। विशाल समुद्रमे जलोधिक छोट मुदा प्रासंगिक प्रस्तुित नीक लागल। आधुनिक जीवन दर्शन कविताक विम्व तँ नीक लागल मुदा विवेचन पक्ष दुर्वल भुझना गेल। मनुष्य आ ओकर भावनामे जीवनक वर्तमान रूपक अन्वेषण उद्धेश्यपूर्ण अछि। हम्मर गाम कवितामे गामक जिनगीक जीत दर्शनीय अछि। विकासमे मूल प्रकृतिक रूपकेँ वैज्ञानिक दृष्टिसँ परिवर्तनक प्रयाससँ निकलैत परिणामक वर्णन कएल गेल अछि। वालश्रम वर्तमान समाजमे कुष्टक रूप लऽ लेने अछि। साधनक अभावमे हम सभ नेनाक शैशव कालकेँ विसरि अवोधपर मानसिक आ शारीरिक अत्याचार करैत छी। मिथिलामे बाढ़िक परिणाम आ प्रलयक रूप मेघक उत्पात आ वरखा तूँ कहिया जेवैं कवितामे देखि रहल छी। “ईशक अराधना” शीर्षक कवितामे कर्म शक्तिक अवाहन कएल गेल अछि। एहि कविताक विम्व नीक, प्रवाह कलकल आ भाषा सरल अछि। एहि प्रकारक शब्द विन्यासक मैथिलीमे आवश्यकता अछि। “खरहाक भोज” शीर्षक कवितामे आन जीवसँ मनुष्यक तुलना नीक लागल। वौद्धिक रूपसँ विकसित मानवकेँ कर्म आ धैर्यपर विश्वास रखवाक चाही, आन जीवक जीवन-उद्धेश्य भोजन मात्र होइत अछि। कल्पना तखने साकार भऽ सकैत अछि जखन शिक्षाक विकास हएत, एहि प्रकार दृष्टिकोण कल्पना लोककेँ समृद्धि दऽ सकैत अछि। कोशीक प्रकोप कविताक विम्व वर्तमान कालक एकटा पैघ समस्याकेँ उद्घृत कऽ रहल अछि। “असल राज आ पतझड़क आगमन” कविताक विषय वस्तु सामान्य मुदा नीक लागल। वृद्धक अभिलाषामे प्राकृतिक संतुलनकेँ ध्यानमे राखि नव पिरहीक लेल सृजनशीलताक क्रममे वृक्षारोपनपर वल देल गेल अछि।
“टेम्स धारमे नौका विहार” कवयित्रीक वास्तविक जीवन रेखाक विन्दु लंदनसँ अपन ठामक तुलनापर आधारित अछि। टेम्सक धारमे नौका विहार करऽ वालीकेँ अपन चनहा कोना मोन पड़ि गेलनि, निश्चय आन ठामक नीक व्यवस्था देखि हमरा सभकेँ अपन पिछड़ल दशापर मर्म होइत अछि। कतहु-कतहु किछु दुर्वल विन्दु रहलाक वादो एहि संग्रहकेँ खूब नीक मानल जा सकैत अछि। कवयित्री कखनो द्वापर युगमे चलि जाइत छथि तँ कखनो चैटिंग वियाहक अनुसंधानक आधुनिक युगमे। समग्र कविता संग्रहमे किछु स्थानकेँ छोड़ि विषय वस्तु चयन नीक लागल। वर्तमान युगक नवतुरिया पिरहीसँ एतेक आश नहि छल। निश्चय ज्योति जी धन्यवादक पात्र छथि।
शेष...अशेष
पोथीक नाम- अर्चिस
रचयिता- श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरी
दाम- १५० टका
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- २००९
२.
डॉ. शेफालिका वर्मा - प्रीति ठाकुर क मैथिली चित्रकथा
प्रत्येक भाषा में किछ एहेन रचनाकार होयत छथि, महिला वाकि पुरुष-वर्ग, अपन विलक्षण प्रतिभा के कारन सब से फराक बुझा पडैत छैथ . ई दोसर बात थीक की आलोचक वर्ग महिला लेखन के इतिहासक पन्ना के एकटा कोन द दैत छैथ . किछ भाग्यशाली लेखिका के किछ स्थानों भेटि जायत छैक ,मुदा ,समग्रता में नै. लेखन में महिला पुरुष नै होयत छैक, जे विषय पर लेखक लिखैत छैथ , ओहि पर लेखिका सेहो लिखैत छैथ, कखनो बेसी नीक,.बस, आब एकेटा प्रतीक्षा ऐछ जे कोनो सशक्त महिला आलोचक के देखी, जे महिला नै भै मात्र आलोचक रहैथ,पूर्वाग्रह से रहित नीक आलोचना के जन्म दैत. मैथिली साहित्यक इतिहास में चारि चान लगावैथ, हम जनैत छी एहेन विद्वान लेखिकाक कमी नै ऐछ......
आय प्रीति ठाकुर क मैथिली चित्रकथा, गोनुझा पर पोथी देखी चमत्कृत भ गेलों . पहिने ते हम मैथिलीक नेना भुटका लेल कोमिक्स बुझ्लों, मुदा पढे लगलों ते एकरा में डूबी गेलों. गागर में सागर===अद्भुद ..मैथिली लोकगाथा क विपुल संसार के शिव क जटाजूट जकां कोना समेटी लेने छैथ,ई पढला उप्रानते बुझा पडत. कतेक कथा क खाली नाम सुनने छलों , ओ सब एहि पोथी में साकार छल. जहिना आजुक समाज अकबर बीरबल के बिसरि रहल अछ ,ओहिना गोनू झा के.
प्रस्तुत पोथिक माध्यम स पाठक अपन समाज क सब वर्ग के आदर्श के चीन्ही सकैत छैथ
प्रीति जी के अशेष शुभकामना एतेक सुन्दर पोथी लेल , प्रीति जी आ गजेन्द्र जी से हम एकटा आग्रह करवैक जे कोसी नदी लेल बड खिस्सा कथा समाज में पसरल छैक, ओकरो चित्रकला में समेटी लैथ. कोसी नदीक रहस्यमय चरित्र, सिंघेश्वर बाबा से विवाह आदि, आदि खिस्सा सब.....जहिना समाज क प्रत्येक क्षेत्र में नारी आय निरंतर आगू बढ़ी रहल छथि , ओहिना मैथिली मिथिलाक विकास में आजुक नारी अपन अपन स्तर से अमूल्य योगदान द रहल छथि. अशेष साधुवाद, प्रीति जी ,असंख्य शुभाशंसा .........
३.राजदेव मंडल मुसहरनियाँ, मधुबनी।
कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक लेल पत्र-
शेष अंश
कथा गुच्छ- (कथा संग्रह) कथा सभकेँ पढ़लहुँ जे गल्प गुच्छमे संग्रहित अछि। पढ़ैत काल स्मरण भेल- एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका किछु शब्द- कथा स्वतंत्र विधा अछि। एहिमे संक्षिप्ताक संगहि अत्यधिक संगठित तथा पूर्ण कथा रूप हेबाक चाही।
ओना जिनगी कथा अछि आ कथा जीनगी अछि। आ जीनगी जे निरन्तर नवीनताकेँ प्राप्त कऽ रहल अछि।
गप्ल गुच्छ पढ़ैत काल जे कथा वा पाँति बेसी प्रभावित कएलक ओहि सबहक विषयमे कहब आवश्यक बुझाइत अछि। नीक-अधलाह कहबाक अधिकार तँ पाठककेँ होइते अछि।
नव सामन्त- आब सामन्तबादी युग नहि रहल। किन्तु सामन्ती प्रवृति एखनो जीअते अछि। हँ, ओकरा रूपमे परिर्वन भऽ गेल अछि। आ ओ भिन्न-भिन्न रूपे समाजमे आइयो दृष्टिगोचर भऽ गेल अछि। एहि कथामे एकटा नव सामन्तक नवीन रूप लक्षित भऽ रहल अछि।
सर्वशिक्षा अभियान- कथाक माध्यमसँ दलित आ गरीबक धीया-पुताकेँ पढ़ेबाक लेल उदासीनताक भावना व्यक्त भेल अछि। सरकार द्वारा मुफ्तमे देल गेल पोथी अदहरमे बेचि लैत अछि। कथाक पाँति- “आ दुसाधटोली, चमरटोली आ धोवियाटोलीसँ सभटा किताव सहटि कऽ निकलि गेल।”
थेथर मनुक्ख- एहि कथासँ स्पष्ट होइत अछि जे मनुक्खक पूर्ण अद्य:पतन भऽ गेल अछि। एतेक जे मनुक्ख चिड़ई-चुनमुनी, परबा पौरकी धरिसँ नीचा उतरि थेथर भऽ गेल अछि।
स्त्री-बेटा- एहिमे समाजमे स्त्रीगणक महत्वहीनता आ संगहि करवट लैत सामाजिक स्थिति-परिस्थिति चित्रण भेल अछि।
विआह आ गोरलागइ- झण-झणमे मनुक्खक बदलैत रँग गिरगिटा जकाँ...... आ दहेजक लोभी बेकती संतोषी सन बेवहार देखा कऽ स्वयं लज्जित होइत छथि। आइयो कोन कोन रूपेँ दहेज लोभी दबकल अछि समाजमे आ कोन-कोन प्रपंची चालि चलि रहल अछि। से एहि कथासँ बुझाइत अछि। नीक चित्रण भेल अछि।
प्रतिभा- चालाकी आ प्रतिभा दुनू अलग-अलग बात छैक। प्राप्तिक लेल दुनूमे सँ कोन महत्वपूर्ण सएह देखेबाक यत्न भेल अछि।
मिथिला उद्योग- किछु कथाक कोनो गप्प पाठककेँ दीर्घकाल तक झंकृत कएने रहैत अछि। एहि कथामे गदहापर लादल जे संदेश भेटि रहल अिछ से बहुत दिन धरि पाठककेँ स्मरणमे रहत।
रकटल छलहुँ कोहबर लय- स्त्री-पुरूषक बीच बनैत-बिगड़ैत सम्बन्ध आ छल-प्रपंच अपने-आपकेँ ठकइ आ ठकाइबला गप्पक मार्मिक विश्लेषण एहि कथा द्वारा भेल।
हम नहि जाएव विदेश- कोन बेकतीकेँ हृदयमे कतेक कष्ट-पीड़ा आ हँसी-खुशी भरल अछि। ओकरा पूर्णतया उत्खनन करनाइ सम्भवो नहि अछि तथापि कथाकार तँ प्रयास करबे करता। एहि कथामे द्विजेन्द्रक मोनक व्यथाकेँ कथा पूर्णरूपेण उजागर भेल अछि।
एकटा पाँति- “कोन सरोकार माएसँ पैघ छल यौ लाल। जे अहाँ कहैत छी जे हम ककरोसँ सरोकार नहि रखने छी।”
राग बैदेही भेरवी- एहि कथामे एकटा कलाकारक जीनगीपर रोशनी देल गेल अछि। कोना एकटा साधारण गामक गबैया सुख-दुख, सफलता आ विफलतासँ लड़ैत उच्चताकेँ प्राप्त कएलक तकर विशद वर्णन भेटैत अछि।
बाढ़ि भूख आ प्रवास- हास्य-व्यंग्यसँ पूर्ण कथा अछि। लघु आकारक रहितहुँ ई कथा बहुत रास गप्पकेँ समेटने अछि। भूख आ भूखक कारणे उठैत मनक तरंग आ ओहि कारणे बेकती कतऽ सँ कतए प्रवास करैले जाइत अछि। आ ओहो स्थानपर कोना आशापर तुषारपात होइत अछि। एहि पाँतिकेँ पढ़लासँ स्वत: हास्य उपस्थित भऽ जाइत अछि। “सरकार हम तँ ट्रेनसँ आएल छी मुदा अहाँ कोन सवारीसँ अएलहुँ जे हमरासँ पहिनहिसँ विराजमान छी।”- बैदिक जी अल्हुआसँ हाथ जोड़ि कहैत अछि।
नूतन मिडिया- आधुनिक मिडिया कोन तरहेँ चलि रहल अिछ। से उजागर भेल अछि।
जाति-पाति- एहि कथाकेँ पढ़लाक बाद पाँति याद अबैत अछि- “देखनमे छोटन लागै जाति पातिक दंश”
बहुपत्नी वियाह आ हिजड़ा- एहि कथामे एकसँ अधिक पत्नी कएलासँ जे समाजमे सड़ांध पैदा भऽ रहल अछि। कोन-कोन रूपेँ ओकर बिकार निकलैत अछि तकर वर्णन भेल अछि। किछु पाँति- “...भातिज सभकेँ नहि मानैत छिऐक तैं भगवान बच्चा नहि देलन्हि।”
बाणवीर- एहि कथामे बाणवीरक मनोिवश्लेषण नीक जकाँ भेल अछि। समूहसँ कटल बाणवीर कतेक अथाह पीड़ामे संघर्ष करैत जीनगीक एक-एक पल कटैत रहैत अछि से कथासँ स्पष्ट भऽ जाइत अछि। बाणवीरक एहि कथनमे कतेक मर्म छिपल अछि- “माए बाबू! हमरा बुझल अछि जे हमर बियाह दान नहि होएत। मुदा अपन पेट तँ कोहुना हम गाममे भरिए लैत छी। गुजर तँ कइए लैत छी। लोक सभ कहैत रहए जे तोहर माए-बाप तोरा बेचि देलकउ। से ठीके अछि की?”....कन्नारोहट उठि गेल।
अनुकप्पाक नोकरी- लोककेँ बाप मरलापर नोकरी भेटैत छैक। हुनका भाएक मरलापर भेटलन्हि। एहि कथाक सार अछि।
मृत्युदंड- कथाक द्वारा देखाओल गेल अछि जे कोना बालिका आर्याकेँ मृत्युदंड मिल जाइत अछि जेकर कोनो दोष नहि छल। बेगुनाहकेँ दण्ड। सेहो मृत्युदंड। एहेन अछि एहिठामक समाज। जेकरा सहजताक संग स्वीकारो कऽ लेल जाइत अछि। एखनुक समाजक दरपन जकाँ कथा लगैत अछि।
एहि तरहेँ गल्प गुच्छक कथा सभकेँ बाद बुझाइत अछि जे वर्तमान समस्याकेँ यर्थाथ रूप प्रगट भेल अछि। छोट-छोट दृश्य खंड काव्यात्मक रूपसँ सोझा आएल अछि। कथावस्तुमे मिथिलाक माट-पानिक गंध अछि। किछु कथा अत्यन्त लघु तथापि उदेश्य प्रकट भऽ गेल अछि जे सम्पूर्ण देशक यथार्थनाकेँ समेटने अछि।
सहस्त्रबाढ़नि (उपन्यास)- प्राचीनकालहिसँ सहस्त्रबाढ़निक विषयमे उत्सुकताक संगहि अनुमान कएल जाइत रहल अछि। अनुमानित व्याख्या आ समीक्षा होइत रहल अछि। विज्ञान द्वारा अलग ढंगसँ आ साहित्य तथा अध्यात्म द्वारा अलग-अलग ढंगसँ। अहाँक उपन्यासक पात्र एहि सम्बन्धमे कहैत अछि-
“खसैत लहास, कनैत हुनकर सबहक परिवार। सपनामे अबैत रहल ई सभ सहस्त्रबाढ़निक रूप बनि कए। हमरे सन कोनो शापित आत्मा अछि ओ सहस्त्रबाढ़नि जे अपन संघर्ष अधखिज्जू छोड़ि मरि गेल होएत आ आब ब्रहमाण्डमे घुरिया रहल अछि। आब देखू तीनू बच्चाक परीक्षा परिणाम सभदिन प्रथम करैत अबैत रहथि, आब की भऽ गेलन्हि। हम जे संघर्ष बीचमे छोड़लहुँ तकर छी ई परिणाम।” नन्द हबोढ़कार भऽ कानए लगलाह।
एहि पाँतिकेँ जँ गम्भीरतासँ आत्मसात करए लगलहुँ तँ मात्र नामेटा नहि संगहि उपन्यासक सारतत्व एवं उदेश्यो प्रगट भऽ गेल। नन्दक चरित्र आर हुनका द्वारा कएल गेल संघर्षक रूप तथा मनक मनोविज्ञान स्पष्ट भऽ जाइत अछि।
उपन्यासक भाषा शैली नवीन ढंगक अछि। वर्णात्मक शैलीमे आरम्भ भेल अछि। भाषामे चित्रात्मकताक एकटा उदाहरण- “एकदिन कलितकेँ देखलहुँ जे ठेहुनियाँ दैत आगू जा रहल छथि। आंगनसँ बाहर भेलापर जतए आँकर-पाथर देखलन्हि ततए ठेहुन उठा कऽ मात्र हाथ आ पाएरपर आगू बढ़ए लगलाह।”
किछु एहि तरहक शब्दक प्रयोगसँ भाषामे आकर्षण आबि गेल अछि। जेना थाम्ह-थोम्ह, कानब-खीजब, काज-उद्यम, जान-पहचान, बूढ़-पुरान, घुमब-फिरब, टोका-टोकी, संगी-साथी, झगड़ा-झाँटी, तंत्र-मंत्र, पढ़ाइ-लिखाइ इत्यादि। उपन्यासक भाषा मैथिली पाठककेँ अनुकूल अछि जहिना लोक बजैत छथि तहिना सहज ढंगसँ वर्णित अछि।
झिंगूर बाबू, नन्द आ नन्दक भैया, भातिज, बेटा, नवल जी झा, आरूणि आ हुनक माए-बाबू, बहिन, कलित आ हुनक पत्नी, शशांक, मणीन्द, भौजी, शौभा बाबू बुचिया इत्यादि पात्रक माध्यमसँ कथावस्तु संगहि चरित्रक विकास भेल अछि। जाहिमे मौलिकताक संगहि स्वाभाविकता अछि। नव दृष्टिकोणसँ सहजताक संग चरित्र सबहक विकास भेल अछि। जे उपन्यासक अनुकूल अछि।
मिथिलाक नदी-कमला, कोशी, बलान अादिक वर्णन भेल अछि। संगहि एहिठामक गाम घर- झंझारपुर, मेहथ, गढ़िया, कनकुआर, कछवी आदि वर्णनसँ सहजहि कथामे मिथिलाक माटि-पानिक गंध आबि गेल अछि।
कथोपकथनमे संक्षिप्ता आ सहजता अछि। उदाहरण स्वरूप किछु अंश देखल जा सकैत अछि।
आरूणि दू-तीन कौर खा कऽ उठि गेलहा। हुनकर संगी करण पुछलखिन्ह-
“पता नहि। घबराहटि भऽ रहल अछि।”
“काल्हि ट्रेनिंगपर जएबाक अछि ने। ताहि द्वारे।”
“पता नहि।”
ताबत भीतरसँ अबाज आएल। सभ क्यो दौगलाह।
कथोपकथन जीनगी आ पात्रानुकूल अछि।
“की बजलहुँ बेटा”- माए पुछलखिन्ह।
“नहि। ई कॉलोनी देखि कऽ किछु मोन पड़ि गेल।”
“नहि देखू ई पपियाह कॉलोनीकेँ।”
उपन्यास मनोविश्लेषणक संगहि दर्शनसँ सेहो पुष्ट अछि।
“पृथ्वी विशाल अछि आ काल निस्सीम, अनंत। एहि हेतु विश्वास अछि जे आइ नहि तँ काल्हि क्यो न क्यो हमर प्रयासकेँ सार्थक बनाएत।”
आशाक संचार करएबला ई वाक्य बारम्वार मनमे उठैत अछि। जीनगीक संचालित करबाक लेल तँ आवश्यक अछि जीनगीक रस। वएह रस थिक- आशा। जँ जीनगीमे आशा, अभीप्सा नहि होइ तँ जीवन निरर्थक।
“आरूणिकेँ लगलन्हि जे ओ झोंटाबला सहस्त्रबाढ़नि झमारि कए एहि विश्वमे फेक दैत छन्हि हुनक।”
कथीले किछु किएक से प्रश्न उठैत अछि मनमे। यएह प्रश्न पाठककेँ बेर-बेर सोचैले मजबूर करैत अछि- बहुत रास गप्प। आ एक प्रश्नसँ जन्मैत अछि बहुत प्रश्न जे पाठककेँ एकटा अलग संसारमे लऽ जाइत अछि।
मनुष्यक प्रवृतिकेँ सम्बन्धमे ई पाँति देखल जा सकैत अछि- “मनुष्यक प्रवृतिये होइछ, समानता आ तुलना करबाक साम्य आ वैषम्यक समालोचना आ विवेचनामे कतेक गोटे अपन जीनगी बिता दैत छथि। आरूणि आ नन्दक बीच सेहो अनायासहिं साम्य देखल जा सकैत अछि।”
उपरसँ मानव भिन्न-भिन्न प्रवृतिकेँ होइत अछि। किन्तु मूलमे गहराइसँ अन्वेषण कएल जाए तँ किछु तलप सभ मनुष्य लगभग साम्य होइत अछि। अन्त:मे वएह रस नि:सृत होइत रहैत अछि। किन्तु ओतेक शान्त भाव आ ओतेक गम्भीरतासँ स्वंयकेँ देखनाइ सहज गप्प तँ नहि थिक।
उपन्यासक आकार लघु रहितहुँ कथा वस्तुक पूर्ण विकास भेल अछि। कथाक अनुकूल अछि भाषाक संतुलित ढंगसँ प्रयोग भेल अछि। नव वस्तुक नवीन दृष्टिकोणसँ अभिव्यक्ति भेल अछि। मौलिकतासँ पूर्ण अछि।
वर्तमानमे मैथिली साहित्यक प्रगतिक लेल अहाँ सन बेकतीकेँ आवश्यकता अछि। जे एकभगाह होइत मैथिलीकेँ संंतुलित करता आ संगहि स्वयं तँ अग्रसर होएबे करताह दोसरोकेँ आगू बढ़बाक सुअवसर देताह। एहि दृष्टिकोणसँ अहाँक प्रयास अवर्ण्य अछि।
एकटा पाँति स्मरण भऽ गेल-
अहीं सन मैिथली सेवकपर
अछि हमरा सबहक आस
भरब भण्डार मैथिलीक
अछि पूर्ण विश्वास।
४.
धीरेन्द्र कुमार
प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि-
मैथिली साहित्यमे पहिल बेर श्रुति प्रकाशन, नई दिल्लीसँ प्रकाशित िचत्रकथा उमेश जीक माध्यमसँ भेटल। साहित्य पूर्ण तखने होइत अछि जखन साहित्य सभ विधामे लिखल जाए आ रचना प्रौढ़ होइ। हमर दृष्टिमे चित्रकथामे प्रीति ठाकुरक रचना मैथिली लोक-कथा आ गोनु झा आन मैथिली िचत्रकथा, सफल रचना थीक।
लेखिका धन्यवादक पात्र छथि, एहि कारणे जे मैथिली दिसि हुनक दृष्टि गेलनि। दोसर कारण ई जे मैथिलीक विरासतमे जे कथा लोकमुखमे सुरक्षित अछि तकरा ओ लेखनिक रूप प्रदान कऽ मैथिलीक चित्रकथा विधा जे नगण्य सन अिछ- ताहिकेँ समृद्ध करक प्रयास केलनि अछि।
मैथिली चित्रकथामे ‘मोती दाइ, राजा सजहेस, बोधि-कायस्थ, बहुरा गोढ़िन नटुआ दयाल, अमता घरेन, दीना भदरी, जालिम सिंह, नैका बनिजारा, रघुनी मरड़, विद्यापतिक आयु अवसान आ गोनु झा आ आन मैथिली चित्रकथामे प्रकाशित अछि ‘गोनु झा आ माँ दुर्गा, गोनु आ स्वर्ग, गोनु आ स्वर्ण चोर, गोनु झा आ विलाड़ि, गोनु झाक दूटा बरद, गोनु झाक महीस, गोनु झाक अशर्फी, गोनु झा आ कर अधिकारीक दाढ़ी, गोनु झाक माए, रेशमा चूहड़मल, नैका बनिजारा, भगता ज्योति पजियार, महुआ घटबारिन, राजा सलहेस, छेछन महराज, राजा सलहेस आ कालिदास।
सभटा कथा मिथिलाक धरतीसँ सम्बद्ध अछि आ एखन धरि लोक मुखमे सुरक्षित अछि। समैएक परिवर्तन संगे लोक रूचि आ लोक संस्कारमे परिवर्त्तन सेहो होइत अछि। अपन देशक गप्प लिअऽ। आइ पोथीमे सुरक्षित अछि आयुर्वेद विद्या, यूनानी विद्या, होमयोपैथी आ कतेक रास ज्ञानसँ समर्पित विद्या। जँ पोथीमे सुरक्षित नहि रहत तखन अगिला पीढ़ी एहि विद्यासँ अनभिज्ञ रहि जाएत। तेँ हमर मिथिलामे जे कथा पसरल अछि ओकरा पोथी स्वरूपमे प्रदान कऽ प्रीति ठाकुर जी प्रशंसनीय काज केलनि अछि। वीरवलक कथा भऽ सकै छल जे लोक विसरि जाइत मुदा पोथी स्वरूपमे रहलासँ आइ धरि ओ लोक-मानसक रंजनक माध्यम बनल अछि।
चित्रकथाक अपन महत्व होइत अछि। वाह्य-सँप्रेषणसँ जे प्रभाव वंचित रहि जाइत अछि ओ सँप्रेषित होइत अछि चित्रसँ। नाटकमे अभिनयसँ जे सँप्रेषित नहि होइत अछि ओ सँप्रेषित अछि रंग, ध्वनि आ प्रकाशसँ तहिना चित्रकथामे सेहो होइत अछि। प्रसुत आलोच्य पोथीक चित्र सशकृ अछि।
वाल साहित्य लेल ई काज प्रति जीक सराहनीय छन्हि। चारि वर्खक नेना जेकरा अक्षर बोध नहियो छै सेहो कथाकेँ परेख सकैए। चित्रक माध्यमसँ। वाल साहित्यक जे अभाव अपना मैथिलीमे अछि ताहिपर बड़का-बड़का विद्वानक अछैत थोड़ेकवो ध्यान नहि देल गेल छल आ खास कऽ एहि तरहक।
पोथी आकर्षक, रूचिकर आ बालमनकेँ प्रभावित करैत अछि। एहि लेल हम फेर एक वेर श्रीमती प्रीति ठाकुरकेँ धन्यवाद दैत छिएनि। संगे आशा करब जे आगाँ सेहो एहि तरहक काज करथि।
धीरेन्द्र कुमार
निर्मली, सुपौल, विहार।
नवेन्दु कुमार झा १. राहुलक मिशन बिहारसँ बढ़ल सत्ता आ विपक्षक परेशानी:मिथिलांचलक भूमिसँ कांग्रेसक युवराज कएलनि चुनावी शंखनाद २. दू वर्ष पूरा कएलक मैथिली दैनिक मिथिला समाद
१.
राहुलक मिशन बिहारसँ बढ़ल सत्ता आ विपक्षक परेशानी:मिथिलांचलक भूमिसँ कांग्रेसक युवराज कएलनि चुनावी शंखनाद
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटीक महासचिव राहुल गाँधी मिथिलांचलसँ कांग्रेसक चुनावी अभियान प्रारम्भ कऽ सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धनक घटक भाजपा आ जद यू तथा विपक्षी राजद-लोजपा गठबंधनक बेचैनीकेँ बढ़ा देलनि अछि। पछिला दू दशकसँ प्रदेशक राजनीतिमे कतिआएल कांग्रेसक युवराज श्री गाँधी मिशन बिहारक अन्तर्गत पार्टीक नेता सभकेँ सक्रिय कएने छथि। एहिसँ पहिनहु श्री गाँधी बिहारक दौरापर आएल छलाह तँ मिथिलांचलक हृदयस्थली दरभंगाक दौराक बिहार राजनीतिक हबा-बयार नेने छलाह। हुनक ओहि दौराक बाद प्रदेशमे कांग्रेसक प्रति आकर्षण बढ़ल अछि। संगहि युवा कांग्रेसक पदाधिकारीक मनोनयनक जे परम्परा छल ओकरा समाप्त कऽ सीधा चुनाव जे करौलनि एहिसँ प्रखण्ड स्तरसँ प्रदेश स्तर धरि युवा नेताक नव समूह ठाढ़ भेल अछि आ ई कांग्रेसक भविष्यक रूपमे अछि।
श्री गांधीक बिहार दौराक संगहि प्रदेशमे चुनाबी अभियान प्रारम्भ भऽ गेल। ओ अपन एक दिवसीय दौराक क्रममे कोसी क्षेत्रक सहरसा आ समस्तीपुरमे जनसभाकेँ संबोधित कएलनि। श्री गांधी एहि दरमियान पूरा तरहे युद्धक लेल तैयार बुझि पड़लाह। ओ एक दिस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आ हुनक सरकारपर हमला कएलनि तँ दोसर दिस एहि बेरक चुनावमे महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह करबाक लेल तैयार युवा पीढ़ीकेँ संग जोड़बाक प्रयास सेहो कएलनि। ओ स्वीकार कएलनि जे बिहारमे एखन कांग्रेस कमजोर अछि। मुदा एहि लेल बेसी चिन्ता नहि करबाक अछि। ओ कहलनि जे उत्तरप्रदेशमे सेहो हम जखन प्रयास प्रारम्भ कएने छलहुँ तँ लोक हँसी उड़ौने छल। ओ जनताकेँ विश्वास देऔलनि जे किछु समए तँ जरूर लागत मुदा जमीनी स्तरक समस्या आ गाम घरक बात पटना धरि जरूर पहुँचत। ओ युवा दिस संकेत करैत कहलनि जे बिहारमे जे पछिला बीस वर्षसँ परिस्थिति बनल अछि ओकरा बदलबाक लेल आगाँ आबथि आ एकटा युवा सरकार बनाबथि। एहि लेल युवाकेँ आगाँ आनल जाएत आ थकल लोककेँ कतियाकऽ एकटा विकसित बिहार बनाओल जाएत।
कांग्रेस महासचिव एहि दौराक बाद राजनीतिक बजार गर्म होएब स्वाभाविक अछि। दरअसल एहि बेर राजनीतिक गठजोड़ आर मजगूत भऽ रहल अछि। ओना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकासक मुद्दापर चुनाव लड़बाक बात कहि रहल छथि मुदा ओ भीतरे-भीतर महादलित आ अति पिछड़ाक रूपमे एकटा नव वोट बैंक तैयार कऽ राजद आ लोजपा गठबंधनकेँ चुनौती दऽ रहल छथि तँ दोसर दिस राजद आ लोजपाक पी एम आर वाइ समीकरणक माध्यमसँ जद यू आ भाजपाक मोकाबला करबाक स्थितिमे अछि। एहि राजनीतिक समीकरणक मध्य जे सभसँ महत्वपूर्ण भऽ गेल अछि ओ अछि सवर्ण मतदाता, जाहिपर भाजपा-जद यू आ राजद-लोजपा दुनूक अछि आ कांग्रेसक एहि वर्गमे भऽ रहल घुसपैठ दुनू गठबंधनक लेल खतराक घंटी बनि गेल अछि।
राहुल गाँधीक किछु मास पहिने भेल बिहार दौराक केन्द्रमे युवा शक्ति छल आ ओ सभ ठाम युवा सभसँ सीधा संवाद कएलनि। एकर परिणाम सेहो सोझाँ आएल अछि। बिहारमे पछिला बीस वर्षसँ घेराएल पंजा छापबला झण्डा एखन गामे-गाम देखल जा रहल अछि। एकर अर्थ ई नहि जे कांग्रेस सरकार बनेबाक स्थितिमे आबि गेल अछि। मुदा वर्तमान राजनीतिक हवा जे चलि रहल अछि आ ई चलैत रहल तँ अगिला विधान सभाक चुनावमे कांग्रेस सत्ता सन्तुलन करबाक स्थितिमे अवश्य रहत। पार्टीक सूत्रसँ जे जनतब भेटि रहल अछि ओ संकेत करैत अछि जे पार्टी आलाकमान एहि बेर गोटेक १३० सीटपर गम्भीर रूपसँ चुनाव लड़त आ बाकी बाँचल ११३ सीटपर ओ अपन शक्ति बढ़ेबाक लेल चुनाव लड़त। कांग्रेसक ई रणनीति राजग आ राजद-=लोजपाक लेल खतरा बनि सकैत अछि। ओना बेसी खतरा भाजपा आ जद यू गठबन्धनकेँ अछि। एकर परिणाम सेहो सोझाँ आबि गेल अछि। लोकसभा चुनावमे कांग्रेस कतिया गेल छल मुदा ओकर बाद भेल विधानसभाक उप चुनावमे अठारह सीटपर एसगर लड़ि दूटा सीटपर विजय प्राप्त कऽ भाजपा-जद यू केँ कतिया देलक जकर लाभ राजद आ लोजपाकेँ भेल।
बिहार प्रदेश कांग्रेसक राहुल गाँधीपर भरोसा अछि तँ राहुलक नजरि बिहारक युवापर अछि। जातिक मजगूत राजनीतिबला एहि प्रदेशमे कांग्रेसक रणनीतिक अनुरूप जातीय हवा चलल तँ एहि बेरक विधान सभा चुनावमे बिहारक युवा राहुलक लेल आगाँक रस्ता तैयार कऽ सकैत छथि।
२
दू वर्ष पूरा कएलक मैथिली दैनिक मिथिला समाद:
दू वर्ष पहिने कोसी क्षेत्रमे कुसहाक टूटल तटबन्धसँ भेल प्रलयक बाद एहि क्षेत्रक दशा-दिशा बदलि गेल छल तँ एहि दुर्दशाक अबाज बनि कऽ देशक पहिल मैथिली दैनिक “मिथिला समाद” सोझाँ आएल। ३१ अगस्त २००८ केँ प्रवासी मिथिला समाजक प्रयासक बाद एहि दैनिकक प्रकाशन मैथिली पत्रकारिताक एकटा नव अध्याय प्रारम्भ कएलक। एहि दैनिककेँ मैथिलीभाषीक भेटल स्नेहक बदौलति निर्बाध रूपेँ प्रकाशित होइत दू वर्ष पूरा करएमे सफलता भेटल। मैथिली पत्रकारिताक शून्यताकेँ तोड़ि मिथिलांचल आ प्रवासी मिथिला समाजक जन समस्याकेँ सोझाँ अनबाक लेल सतत प्रयत्नशील अछि। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मैथिलीकेँ संविधानक अष्टम सूचीमे सम्मिलित कऽ सम्मान देलनि तँ पत्रकारितासँ जुड़ल कोलकाताक राजेन्द्र नारायण वाजपेयी मैथिली भाषामे ताराकान्त झाक सम्पादकीय दायित्व मिथिला समादक प्रकाशन कऽ एहि भाषाक मान बढ़ौलनि अछि।
मैथिलीमे दैनिक समाचार पत्रक प्रकाशन हो एहि लेल बिहारक राजधानी पटना आ मिथिलांचलमे कतेको बेर मंथन भेल मुदा ओकर कोनो सार्थक परिणाम एखन धरि सोझाँ नहि आएल अछि। आखिरकार प्रवासी मिथिला समाजक प्रयास सफल भेल आ मिथिला समाद डेगा-डेगी दैत दू वर्षक भऽ गेल। ओना कोनो भाषामे दैनिक पत्रक प्रकाशन कठिन काज अछि ओहूमे मैथिली भाषामे पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन कल्पना मात्र कएल जा सकैत अछि तथापि प्रवासी मैथिल हिम्मत देखौलनि अछि। प्रवासी मैथिलक प्रयाससँ कोलकातासँ प्रकाशित दैनिक मिथिला समाद आ नव दिल्लीसँ गजेन्द्र ठाकुरक सम्पादनमे उपलब्ध ई-पत्रिका “विदेह” मैथिली पत्रकारिताकेँ आक्सीजन दऽ जीवित रखने अछि।
अल्प संसाधन आ सीमित पाठक वर्ग होएबाक बादो मैथिली भाषी प्रबुद्ध पाठकक बले ठाढ़ भेल अछि। मैथिल समाजक सुधि पाठकक स्नेहक परिणाम अछि जे एकटा गएर मैथिल एहि दैनिकक लेल संसाधन उपलब्ध करा मैथिली पत्रकारिताक भोथ भेल धारकेँ तेज कएलनि अछि आ ई मिथिलांचल आ प्रवासी मैथिल समाजक सशक्त अबाज बनबाक प्रयास कऽ रहल अछि। ज्योँ एहिना पाठकक स्नेह आ सहयोग भेटैत रहल तँ लोकतंत्रक चारिम खम्भा मजगूत होएत आ मिथिलांचलक चतुर्दिक विकासक रस्ता निकलत। संगहि मैथिली पत्रकारिताक क्षेत्रमे एकटा नव युग प्रारम्भ होएत।
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