१.शिव कुमार झा‘‘टिल्लू”- हास्य-कथा- कब्जियत दूर भगाउ २. गजेन्द्र ठाकुरक दूटा कथा- १. शब्दशास्त्रम् आ २. सिद्ध महावीर
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शिव कुमार झा‘‘टिल्लू‘‘, नाम : शिव कुमार झा, पिताक नाम: स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नाम: स्व. चन्द्रकला देवी, जन्म तिथि : 11-12-1973, शिक्षा : स्नातक (प्रतिष्ठा), जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम + पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101, संप्रति : प्रबंधक, संग्रहण, जे. एम. ए. स्टोर्स लि., मेन रोड, बिस्टुपुर, जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि : वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार- प्रसार हेतु डा. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न।
कब्जियत दूर भगाउ
(शीर्षक श्री उमेश मंडलजीक सौजन्यसँ)
बड़की भौजी भोरेसँ आनंदक क्षीर-सागरमे गोता लगा रहल छलीह किएक नहि, हुनक बावा जे आबि रहल छथन्हि। दुरागमनक वाद पहिल बेर बावाक अवाहनक आशमे रंग-विरंगक पकमानक संग स्वागत करवाक लेल ओ आतुर....। हमरा समस्तीपुर जएवाक छल, मुदा बावूजी रोकि लेलाह। “परम प्रिय समधि आवि रहल छथि, चौरासी बर्खक भऽ गेलाह, नहि जानि फेरि आवि सकताह वा......। अहाँ काल्हि भरि रूकि जाऊ।” पितृ आदेश सिरोधार्य, आर्द्रा नक्षत्रक बरखासँ दलानक परिसर बज-बज कऽ रहल छल तेँ पुनीतकेँ सुरखी छिटवाक लेल कहल गेल। हम कोदारिसँ चिक्कन कऽ रहल छलहुँ। एतवामे गुंजन विहारि जकाँ दोड़ल आबि कऽ कहलक- “सरपंच सहाएब आवि गेलाह, निसहर भुइयाँ थान लग हम देखलहुँ।”
“हम पहिने कहने छलहुँ समधि भोरूक बससँ औताह मुदा, हमर के सुनए, भोज कालमे कुम्हर रोपू आव बाट साफ करवाक कोनो प्रयोजन नहि, दौड़ कऽ जाउ आ हुनका लए अवियौ।” गुंजन खिसिआइत बाजल- “हुनका के आनत, बाए.... बाबा तँ आवि गेलाह।”
समधि मिलान भेल, तत्पश्चात बावूजी हुनक चरण स्पर्श कएलनि। बावा अशोकर्ज देखएवाक प्रयास करए लगलाह मुदा, व्यर्थ। अपने हमर समधिक पिता छी तेँ हमरो लेल पितृतुल्य। बावू जीक तर्कक आगाँ सरपंच सहाएव मूक....। झट-झट सभ गोटे चरण स्पर्श करए लगलहुँ। असलानी चौकी, खराम, जल..... पूर्ण मिथिलाक संस्कृतिसँ अभिनंदन। बावा गदगद होइत बजलाह- “कादम्बिनीक एहि घर वियाह करबाक निर्णए हमर जीवनक सभसँ सोझ निर्णए प्रमाणित भेल अछि। मनुक्खकेँ अपन संस्कार नहि छोड़वाक चाही।”
कुड़ा-अछमनिक पछाति जलपान, चाह.....ओकरा वाद प्रसिद्ध पतैलीक प्रसिद्ध पान चिबवैत गुंजनकेँ बजौलनि- “बौआ, कोन किलासमे पढ़ैत छी?”
गुंजन बाजल- “छठामे.....।” गुंजनक जबाव पूर्ण भेल नहि की बिचहिमे हमरा मुँहसँ निकलल- “मुदा, विद्यासँ हिनक कोनो संबंध नहि, एखन धरि विचाराधीन होइत कक्षा पार कऽ रहल छथि।” ई बात सुनिते बावू जी हमरा दिशि आँखि गुरडि़ कऽ विद-विदेलाह- “देखि लेब चारू भाँइमे छोटका सभसँ आगाँ जएत।”
सरपंच बावूक मूक समर्थन। हँसी-ठ्ठाकक बाद बावाक आंगन प्रवेश भाव आ मर्मक अनुभूतिक साक्षात दर्शन। भौजी बावाकेँ गोर लागि अश्रुधारसँ नहा गेली। हमरा मुँहपर मंद मुस्की मुदा गुंजन दहोवहो। भौजी अपन भावनापर अंकुश लगा कऽ गुंजनकेँ पुचकारए लगलीह। सभ व्यक्ति बूझि रहल छल, मुदा सबहक ठोर जग्रनाथकक फाटक जकाँ बंद......। मातृ सुखसँ वंचित नेेना ककरो आँखिपर नोर नहि देखि सकैछ। सरपंच सहाएव बजलाह- “नहि हहरू, भौजीकेँ माएक रूपमे देखू।”
हम मोने-मन बजलहुँ- “कहव अासान मुदा, एना भऽ सकैत अछि। केओ कतवो मानए परंच मातृ प्रेमक आगाँ सभ अोछ।”
भौजीक सिनेहमे कोनो कमी नहि, ई गप्प हम बूझव गुंजन अवोध, माएक संग पिठिया जकाँ लड़ैत छल ओहि क्षणकेँ विसरव असंभव तँ नहि, क्लिष्ट अवश्य अछि। मझिनीक पश्चात बावा दलानपर आबि दिवस विश्राम करए लगलाह। बावूजी शनि पेठिया माँछ किनवाक लेल िवदा भऽ गेलनि।
एक मनुक्खक कतेक रूप भऽ सकैत अछि। अपने शाकाहारी परंच पाहुनक लेल मॉछ अपने आनव। पाहुन की? हमरो सबहक लेल ओ अपने मॉछ अनैत छथि। अपन संतति लेल लोक की की नहि करैत अछि, माटिक ढेपकेँ कुम्हार बनि कऽ घैलक रूप दैत अछि। सुधा कोष बनाएवाक लेल अपन सकल मनोरथकेँ झाँपि लैत अछि। सुधाकोष आगाँ कोन रूपक हएत ककरो वशमे नहि। ऑगन आबि हम भौजीसँ चाह बनएबाक आग्रह कएलहुँ- “आइ भरि हमरा छोड़ दिअ अपने स्टोप जड़ा कऽ बना लिअ।”
हमरो खराव नहि लागल, अपन पितृक प्रति सिनेह स्वाभाविक अछि, मॉछ तड़ैत छलीह। मात्र बब्बेटा नहि खएताह, हमहुँ खाएव। ‘गह-गट्ट रौ, गहगट्ट रौ......सुनिते भागल दलान दिशि अएलहुँ। दलानपर दसौत गामक भाट क्यो टाटक कए रहल छलाह। भाटक नाओ मोन नहि मुदा सभ कियो हुनका मुकेश कहैत छथि। ओ नकिया कऽ गीत सुनावए लगलाह- “सिनेहिया विसरि बैसल अछि गाम....”
बावूजी भाटक संग समधिक साक्षात्कार करौलनि। हमर बड़का बालकक अजिया ससुर छथि, अपन गामक निर्विरोध सरपंच छलाह। सरपंच सहाएवक विशुद्ध मैथिली सुनि भाट महाशय गावए लगलनि-
“रैनी-भैनी ओ रौतिनिया
दीप गोधनपुर कैथिनिया
पाँच गाम पचही परगन्ना
उत्तम गाम ननौर
तेली-सूड़ी बसए मधेपुर
लंठक ठट्ठ लखनौर”
“सरपंच सहाएव, हम दस-दुआरि छी तेँ नीक अधलाह बूझैत छी। अपने अपन पोतीक वियाह करियन कएलहुँ.... इहो नीक गाम मुदा अछि तँ दक्खिन। लेकिन अपनेक समधि मूल रूपसँ कैथिनिया गामक वासी छथि.... झंझारपुर टीशनक सटल गाम- ‘कैथिनिया’। हिनका दछिनाहा नहि कहल जा सकैत अछि ई सुनिते सरपंच सहाएवकेँ जेना विरनी काटि लेलक....। क्षमा करू मुदा हम तँ शुद्ध दछिनाहा छी। हसनपुर चीनी मिलक पॉजरि लागल गाम शासन हमर जन्म आ कर्मभूमि।”
दू क्षणक लेल मुकेश जी मूक भऽ गेलाह। मुदा छथि तँ सिद्धहस्त मैथिल, क्षणहिमे भरवा बदलि गेल। अहोभाग्य अपने सन महान व्यक्तिक दर्शन भेल। शासन गाम मिथिलाक चर्चित गाम अछि। ओहि ठॉक सती माताक महिमा के नहि जनैत अछि? बिड़ला परिवारक द्वारा अपने गाममे सती माताक समृति स्वरूप तोड़ण द्वारक निर्माण कएल गेल अछि। एकटा बात पूछवाक दु:साहस कऽ रहल छी दक्खिन भरक रहितहुँ अपने परिमार्जित मैथिली बजैत छी..... से कोना? अवश्य अपनेक मातृक पंचगामक परिधिमे हएत।
“नहि मातृक दक्षिणे अछि आर सासुर तँ विशुद्ध दक्षिण मंझौल गाम, बेगूसरायमे अवस्थित अछि।”
बाबाक व्यथा सुिन बावूजी अकचका गेलथि, मुकेश बावू दीर्धसूत्री जकाँ किएक धमगिज्जरि केने छी। जौं औतुका मैथिली सुनवै तँ बहुत भलमानुषकेँ विसरि जाएव। एहि सबहक लेल अहॉंक कोनो दोष नहि किछु लोक एहि प्रकारक भेद पैदा कऽ मातृभाषाकेँ हथियावए चाहैत छथि ई नहि चलऽ देव। यात्रीक गामसँ उतरो कोनो गाम अछि तँ हुनको दछिनाहा मानल जाए। प्रो. सुमन जी, प्रवासी जी, आरसी बावू, बुद्धिनाथ मिश्र, लाभ जी, हरिमोहन झा, हासमी जी, शेफालिका वर्मा इहो सभ दछिनाहा छथि तेँ हिनका सभकेँ बारि दियौ। जाहि महाकवि विद्यापतिक नाओपर कूदैत छी ओ अपन महापरि निर्माण दक्खिनेमे कएलनि। पाप करैत छी तिरहुतमे आ पतिया कटएवाक लेल गंगाकात सिमरिया दक्षिणे अबैत छी। जा.... मुकेश जी क्षमा करू, अपनेकेँ हम ई सभ किएक कहि रहल छी, अहूँ तँ दछिनाहे छी..... समस्तीपुर जिलाक दसौत ग्राम वासी।”
सरपंच सहाएवकेँ संतोखक अनुभूति भेलनि, मुदा हम हुनक छोभक स्पष्ट दर्शन कऽ रहल छलहुँ। बावूजी सँ मुकेश जी क्षमा याचना करैत बजलाह- “हमर दोख नहि एहेन मानसिकताक मध्य पैघ भेलहुँ।”
सरपंच सहाएव दीर्घ श्वास लैत बजलाह- “मैथिलीक मध्य एकटा विडंबना अछि अपनाकेँ श्रेष्ठ प्रमाणित करवाक लेल दोसरकेँ मरोड़ि देवाक। हमरा सबहक ब्रह्मण समाजमे पहिने बेसी छल, आव सुधरि रहल अछि। सुरगणेकेँ सुगरगणे कहल गेल अड़रियेक मॉथपर तँ पैघ कलंक-हुनका अनेड़िये कहल जाइत अछि। आन जाइतक कोन कथा हुनका सभकेँ मैथिल बुझले नहि गेल।”
एहि दशापर कानी वा हँसी निर्णए नहि कऽ सकलहुँ। ऑगनसँ भोजनक निमंत्रण आएल। मुकेश जी भात नहि खएवाक इच्छा प्रकट कएलनि किएक तँ कब्जियतक शिकार छथि। बावू जी अपन कविता पॉती जकाँ चिकित्सा आयाम देखौलनि- “दस्त-दस्तावरं खातिर भक्क्षेत अमृतं फलं। (पेट साफ करबाक लेल लताम खाक)।”
सरपंच सहाएव तत्क्षण बजलाह- “यदि अहूसँ नहि ठीक हो तँ ताहूसँ दस्त नहि होतं तँ कूथि-कूथि मरीयते।”
दोसर दिन बाबा चलि गेलाह मुदा हुनक “दछिनाहा व्यथा” हमर मोनमे जीवित छल। आव ओ संसारमे नहि छथि परंच दिशा मोन पड़िते हुनक मर्मक अनुभूति प्रासंगिक अछि।
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गजेन्द्र ठाकुरक दूटा कथा- १. शब्दशास्त्रम् आ २. सिद्ध महावीर
गजेन्द्र ठाकुर गजेन्द्र ठाकुर, पिता-स्वर्गीय कृपानन्द ठाकुर, माता-श्रीमती लक्ष्मी ठाकुर, जन्म-स्थान-भागलपुर ३० मार्च १९७१ ई., मूल-गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी।
लेखन: कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्ड- खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना, खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि), खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर), खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ), खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण), खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन ), खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नामसँ।
मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोशक ऑन लाइन आ प्रिंट संस्करणक सम्मिलित रूपेँ निर्माण। पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यंतरण "जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.)-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध" नामसँ।
मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएक टा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएक टा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद।
उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद १.अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ), २.कोंकणी, ३.कन्नड़ आ ४.संस्कृतमे कएल गेल अछि; आ एहि उपन्यासक अनुवाद ५.मराठी आ ६.तुलुमे कएल जा रहल अछि, संगहि एहि उपन्यास सहस्रबाढ़निक मूल मैथिलीक ब्रेल संस्करण (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक) सेहो उपलब्ध अछि।
कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे।
अंतर्जाल लेल तिरहुता आ कैथी यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।
शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२ खण्ड-८ (प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग, २.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास स॒हस्र॑ शीर्षा॒ , ३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह स॑हस्रजित् ,४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह शब्दशास्त्रम् ,५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक उल्कामुख ,६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध नाराशं॒सी , ७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक- जलोदीप, ८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह- बाङक बङौरा , ९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह- अक्षरमुष्टिका ।
सम्पादन: अन्तर्जालपर विदेह ई-पत्रिका “विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ क सम्पादक जे आब प्रिंटमे (देवनागरी आ तिरहुतामे) सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि- विदेह: सदेह:१:२:३:४ (देवनागरी आ तिरहुता)।
२.१
शब्दशास्त्रम्
सिंह राशिमे सूर्य, मोटा-मोटी सोलह अगस्त सँ सोलह सितम्बर धरि। किछु सुखेबाक होअए तँ सभसँ कड़ा रौद। सिंह राशिमे मिलूक पिताक तालपत्र सभ पसरल रहैत छल, वार्षिक परिरक्षण योजना, जे एहि तालपत्र सभमे जान फुकैत छल। आनन्दा मिलूक पिताजीक एहि तालपत्र सभक परिरक्षण मनोयोगसँ करैत रहथि। कड़गर रौदमे तालपत्र पसारैत आनन्दा, मिलूकेँ ओहिना मोन छन्हि। मिलू संग जिनगी बीति गेलन्हि आनन्दाक। मुदा एहि बरखक सिंहराशि अएलासँ पूर्वहि आनन्दा चलि गेलीह... आ आब जखन ओ नहि छथि तखन जीवनक परिरक्षण कोना होएत। मिलूक आ ओहि तालपत्र सभक जीवनक..
भ्रम। शब्दक भ्रम। शब्दक अर्थ हम सभ गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।
लुकेसरी अँगना चानन घन गछिया
तहि तर कोइली घऽमचान हे
कटबै चनन गाछ, बेढ़बै अँगनमा
छुटि जेतऽ कोइली घऽमचान हे
कानऽ लगली खीजऽ लागल, बोन के कोइलिया
टूटि गेलऽ कोइली घऽमचान हे
जानू कानू जानू की, जोबोन के कोइलिया
अहि जेतऽ कोइली घऽमचान हे
जहि बोन जेबऽ कोइली
रहि जेत तऽ निशनमा
जनू झरू नयना से लोर हे
सोने से मेढ़ायेब कोइली तोरो दुनू पँखिया
रूपे से मेरायेब दुनू ठोर हे
जाहे बोन जेबऽ कोइली रुनझुनु बालम
रहि जेतऽ रकतमाला के निशान हे
कोनो युवतीक अबाज चर्मकार टोलसँ अबैत बुझना गेल..आनन्दाक अबाज।
मुदा आनन्दा तँ चलि गेली, कनिये काल पहिने ओकर लहाश देखि आएल छथि बचलू। मिलूकेँ समाचार कहि डोमासी घुरि गेल छथि। आ आनन्दा, ओ तँ बूढ़ भऽ मरलीहेँ। तखन ई अबाज, युवती आनन्दाक। भ्रम। शब्दक भ्रम। कहैत रहथि मिलूक पिता श्रीधर मीमांसक मारते रास गप शब्दशास्त्रम् पर। शब्दक अर्थ हम सभ गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।
I
शब्दशास्त्रम्
गर्दम गोल भेल छल।
अनघोल मचि गेल छलै। बलान धारमे कोनो लहाश बहल चलि जा रहल छल। धोबियाघाट लग कात लागल छल।
कतेक दूरसँ आएल छल से नहि जानि। कोनो बएसगर महिलाक लहाश छल। धोबिन लहाशकेँ चीन्हि गेल रहथि। गौआँकेँ कहि दै छथि ओकर नाम आ पता। गौआँ के, वैह गामक डोमासीक बचलूकेँ। मृतकक घरमे खबरि भऽ गेल छलै। एसकरे एकटा बुढ़ा रहैए ओहि घरमे...मिलू।
मिलूक टोलबैया गौँआ सभ लहाशकेँ डीहपर आनि लेने छल आ फेर मिलू ओकर दाह-संस्कार कऽ देने रहथि।
गाममे अही गपक चर्चा रहै। बचलू बुढ़ाकेँ बुझल छन्हि किछु आर गप। चिन्है छथि ओ ओहि लहाशक मनुक्खकेँ। नवका लोककेँ बहुत रास गप नै बुझल छै।
आनन्दाक लहाश..
-आनन्दा बड्ड नीक रहै। बुझनुक। ओकर बचिया सभ सभटा सुखितगर घरमे छै..बेटा सेहो विद्वान। मिलू, आनन्दाक वर सेहो उद्भट..श्रीकर मीमांसकक पुत्र..। मुदा कहियो मिलू आकि आनन्दा कोनो खगतामे ककरो आगाँ हाथ नहि पसारने छथि।
बचलू सेहो आब बूढ़ भऽ गेल छथि, झुनकुट बूढ़। हिनकासँ पैघ मात्र मिलू छथिन्ह। लोक सभ दुनू गोटेकेँ बुढ़ा कहि बजबै छन्हि।
आ एहि बचलू बुढ़ाकेँ बुझल छन्हि ढेर रास गप।
.....
मिलू आ श्रीधरक वार्तालाप। किछु बुझिऐ आ किछु नहि।
-मिलू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे अविद्या जीवपर आश्रित अछि आ विषय बनि गेल अछि। आत्मसाक्षात्कार लेल कोन विधि स्वीकार करब? असत्य कथूक कारण कोना भऽ सकत? कोनो बौस्तुक सत्ता ओकरा सत्य कोना बना देत, त्रिकालमे ओकर उपस्थिति कोना सिद्ध कऽ सकत? जे बौस्तु नहि तँ सत्य अछि आ नहिये असत्य आ नहि अछि एहि दुनूक युग्मरूप; सैह अछि अनिर्वाच्य। बिना कोनो वस्तु आ ओकर ज्ञान रखनिहारक शून्यक अवधारणा कोना बूझऽमे आओत?
-मिलू। कुमारिल कहै छथि आत्मा चैतन्य जड़ अछि, जागलमे बोध आ सूतलमे बोधरहित।
-मिलू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे आत्मसाक्षात्कारसँ रहित शास्त्रमे कुशल व्यक्ति सर-समाजसँ पशुवत व्यवहार करैत छथि, लाठी लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि भागि जाइ छथि, घास लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि लग जाइत छथि। माने डरसँ घबड़ाइ छथि।
“आत्मसाक्षात्कारसँ रहित शास्त्रमे कुशल व्यक्ति सर-समाजसँ पशुवत व्यवहार करैत छथि, लाठी लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि भागि जाइ छथि, घास लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि लग जाइत छथि। माने डरसँ घबड़ाइ छथि।” ई गप मुदा सरिया कऽ बूझबामे आएल रहए हमरा।
....
आमक मास रहै।
बानर आ बनगदहा खेत सभकेँ धांगने अछि आ पारा बारीकेँ।
“सभटा नाश कऽ देलकै बचलू। रातिमे तँ नञि सुझै छै। भोरे-भोर कलम जा कऽ देखै छी। बनगदहा सभटा फसिल खा लेलक आब ई बानर आमक पाछाँ लागल अछि।”
हमरा बुझल अछि जे आमक मासमे बानर आ बनगदहा ओहि बरख एक्के संग आएल छलै।
आमेक मास रहै। से मिलू ओगरबाहीमे लागत आब। आमक टिकुला पैघ भऽ रहल छै। मचान बान्हबाक रहै मिलूकेँ। हमहूँ संगमे रहियै। बाँस काटि कऽ अबैत रही।
डबरा कात दऽ कऽ अबि रहल छलहुँ। भोरहरबा छल। अकास मध्य लाल रेख कनेक पिरौँछ भेल बुझना गेल छल।
-लीख दऽ कऽ चलू बचलू।
खेतक बीचमे लीख देने आगाँ बढ़ऽ लागलहुँ।
तखने हम शोणित देखलहुँ। हमर देह शोनित देखि सर्द भऽ गेल।
मुदा निशाँस छोड़लहुँ। बाँसक तीक्ष्ण पात एकटा बालिकाक हाथ आ मुँहकेँ नोछड़ैत गेल रहै। मिलूक बाँसक नोछाड़ ओकरा लागल रहै।
मिलू हाथसँ बाँस फेकि कऽ ओहि बालिका लग चलि गेल छल।
नोराएल आँखिक ओहि बालिकाक शोणित पोछि मिलू ओकर नोछारपर माटि रगड़ि देने रहै।
-की कऽ रहल छी।
-शोनित बन्न भऽ जाएत।
बालिका लीखपर आगाँ दौगि गेल छलीह।
-की नाम छी अहाँक।
-आनन्दा।
-कोन गामक छी।
-अही गामक।
-अही गामक?
हम दुनू गोटे संगे बाजल रही।
हँ, आनन्दा नाम रहै ओकर। आ मिलूक पहिल भेँट वैह रहै।
...
मचानो बन्हा गेल रहए। मुदा आनन्दा फेर नहि भेटल रहए।
मिलू पुछैत रहए।
-कोन टोलक छी ओ। नहिये मिसरटोलीक अछि, नहिये पछिमाटोलीक आ नहिये ठकुरटोलीक।
-डोमासीक रहितए तँ हम चिन्हिते रहितिऐ।
-तखन कोना अछि ओ अपन गामक। आ अपन गामक अछि तँ आइ धरि भेँट किए नहि भेल रहए ओकरासँ।
मुदा बिच्चेमे संयोग भेल छल। मिलूक टोलमे फुदे भाइक बेटाक उपनयन रहै। बँसकट्टी दिन पिपहीबलाकेँ बजबैले हम गामक बाहर चर्मकार टोल गेल रही।
-हिरू भाइ, हिरुआ भाइ।
-आबै छथि।
कोनो बालिकाक अबाज आएल रहए। अबाज चिन्हल सन।
-अहाँ के छी।
-हम हिरूक बेटी। की काज अछि?
-पिपही लऽ कऽ एखन धरि अहाँक बाबू नहि पहुँचल छथि। बजबैले आएल छियन्हि।
-तही ओरियानमे लागल छथि।
-अहाँक नाम की छी?
तखने टाट परक लत्तीकेँ हँटबैत वैह बालिका सोझाँ आबि गेलि।
-हम आनन्दा। हम अहाँकेँ चीन्हि गेल रही। अहाँक की नाम छी?
हम तँ सर्द भेल जाइत रही। मुदा उत्तर देबाके छल।
-बचलू।
-आ अहाँक संगीक।
-मिलू, पंडित श्रीधरक बेटा।
मिलूक पिताक नाम सेहो हम आनन्दाकेँ बता देलिऐ। पुछने तँ नहि छलि ओ, मुदा नहि जानि किएक..कहि देलिऐ।
तखने हिरुआ पिपही लेने आबि गेल रहथि। हुनका संगे हम अपन टोल आबि गेलहुँ।
रस्तामे हिरुआकेँ पुछलियन्हि- आनन्दा अहाँक बेटी छथि। मुदा कहियो देखलियन्हि नहि।
-मामागाममे बेशी दिन रहै छलै। मुदा आब चेतनगर भऽ गेल छै। से गाम लऽ अनने छिऐ।
-फेर मामागाम कहिया जएतीह।
-नञि, आब ओ चेतनगर भऽ गेल अछि। आब संगे रहत।
पंडितजीक बेटा मिलू, हमर संगी मिलू, ई गप सुनि की होएतैक ओकरा मोनपर। कैक दिनसँ ओकर पुछारी कऽ रहल छल। हम सोचने रही जे भने मामागाम चलि जाए आनन्दा आ कनेक दिनमे मिलूक पुछारीसँ हम बाँचि जाएब।
मुदा आब तँ आनन्दा गामेमे रहत आ पंडित श्रीधरक बेटा मिलू..
धुर..हमहीं उनटा-पुनटा सोचि लेने छी। ओहिना दू-चारि बेर मिलू आनन्दाक विषयमे पुछारी केने अछि। तकर माने ई थोड़बेक भेलै जे..
मुदा जे सैह भेलै तखन ?..
पंडितक बेटा आ चर्मकारक बेटी..
पंडित श्रीधर मानताह?..गौआँ घरुआ मानत?
धुर। फेर हम उनटा-पुनटा सोचि रहल छी। पिपही बाजए लागल रहए आ लीखपर देने हम आ मिलू, भरि टोलक स्त्रीगण-पुरुषक संगे बँसबिट्टी पहुँचि गेल रही। रस्तामे ओहि स्थलकेँ अकानने रही। मिलू आ आनन्दाक पहिल मिलनक स्थलकेँ- कोनो अबाज लागल अबैत..मात्र संगीत..स्वर नहि।
बरुआ बाँस सभपर थप्पा दऽ देने रहै आ सभ बाँस कटनाइ शुरू कऽ देने रहथि। मड़बठट्ठी आइये छै। घामे-पसीने भेने कनेक मोन तोषित भेल। कन्हापर बाँस लेने हम आ मिलू ओही रस्ते बिदा भेल रही..ओही लीख देने।
…
मुदा मिलू हमरा सदिखन टोकारा देमए लागल। कारण कोनो काज हम एतेक देरीसँ नञि केने रहिऐ। ओ हमर राम रहए आ हम ओकर हनुमान।
मचानपर एहिना एक दिन हम मिलूकेँ कहि देलिऐ-
-मिलू, बिसरि जो ओकरा। कथी लेल बदनामी करबिहीं ओकर। हिरुआक बेटी छिऐ आनन्दा। ओना तोहर नाम हमरासँ ओ पुछलक तँ हम तोहर नाम आ तोहर पिताजीक नाम सेहो कहि देलिऐ।
-हमर पिताजीक नाम ओ पुछने रहौ?
-नहि पुछने रहए। मुदा..
-तखन किए कहलहीं?
-आइ ने काल्हि तँ पता लागबे करतै..
-जहिया लगितै तहिया लगितै..आब ओ हमरासँ कटत..हमर मेहनति तूँ बढ़ा देलेँ..
-कोन मेहनति। तूँ पंडित श्रीधरक बेटा आ ओ हिरुआ चर्मकारक बेटी। कथीले बदनामी करबिहीं ओकर।
-बियाह करबै रौ। बदनामी किए करबै।
-ककरा ठकै छिहीं ?
-ककरो नै रौ।
एहिना अनचोक्केमे निर्णय लैत छल मिलू। श्रीधर मीमांसकक बेटा मिलू नैय्यायिक। ओकरा घरमे तालपत्र सभ पसरल रहैत देखने छलिऐ। से भरोस नै भऽ रहल छल।
-गाममे कहियो देखलिऐ नै ओकरा।
-तूँ गाममे रहलेँ कहिया। गुरुजीक पाठशालासँ पौरुकेँ तँ आएल छेँ।
-मुदा तूँहीं कोन देखने रहीं।
-मामा गाम रहै छल ओ।
-फेर मामा गाम घुरि कऽ तँ नहि चलि जाएत।
-नै, से पुछि लेलिऐ। आब गामेमे रहत।
पौरुकाँ गामेमे मिलूक माएक देहान्त भऽ गेल छलन्हि।
श्रीधर मीमांसक सेहो खटबताह सन भऽ गेल छथि- ई गप हुनकर टोलबैय्या सभ करैत छल। तालपत्र सभक परिरक्षण कोना हएत एहि सिंह राशिमे? यैह चिन्ता रहन्हि श्रीधरक, आ तेँ ओ खटबताह सन करए लागल रहथि.. ईहो गप हुनकर टोलबैय्या सभ करैत छल।
...
हिर्र..हिर्र…हिर्र....
डोमासीसँ सूगरक पाछू हम आ मिलू हिर्र-हिर्र करैत चर्मकार टोल पहुँचि जाइ छी। आनन्दा मुदा सोझाँमे भेटि गेलीह। सुग्गर संगे हम आगाँ बढ़ि जाइ छी। घुमै छी तँ आनन्दा आ मिलूक गप सुनैले कान पाथै छी।
हिर्र..हिर्र
एहि बेर आनन्दा हिर्र कहैत अछि आ हम मुस्की दैत सूगरक आगाँ बढ़ि जाइ छी।
ई घटना कैक बेर भेल आ ई गप सगरे पसरि गेल। हिरू कताक बेर हमरा लग आएल रहथि।
हीरू उद्वेलित रहए लागल रहथि। हीरूक पत्नी बेटीक भाग्यक लेल गोहारि करए लगलीह।
कए कोस माँ मन्दिलबा
कए कोस लुकेसरी मन्दिलबा
कए कोस पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
कए कोस पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
दुइ कोस मन्दिलबा
चारि कोस लुकेसरी मन्दिलबा
पाँचे कोस पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
पाँचे कोस पड़ल दोहाइ
कोन फूल माँ मन्दिलबा
कोन फूल बन्दी मन्दिलबा
कोन फूल पर पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
कोन फूल पर पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
ऐली फूल माँ मन्दिलबा
बेली फूल लुकेसरी मन्दिलबा
गेन्दे फूल पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
गेन्दे फूल पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
.........
हिरू डोमासी आबए लागल रहथि।
-की हेतै, कोना हेतै।
-झुट्ठे..
हम गछलियन्हि जे हम हिरु संगे श्रीधर पंडित लग जाएब।
आ हम हिरूकेँ श्रीधर मीमांसक लग लऽ गेल रहियन्हि। श्रीधरक पत्नीक मृत्यु गत बरखक सिंह राशिक बाद भऽ गेल छलन्हि। आ तकर बाद हिरू मीमांसक खटबताह भऽ गेल छथि- लोक कहैत छलन्हि। लोक के? वैह टोलबैय्या सभ। गामक लोक, परोपट्टाक विद्वान लोक सभ तँ बड्ड इज्जत दै छलन्हि हुनका। आँखिक देखल गप कहै छी..
“आउ बचलू। हिरू, आउ बैसू..। ”- गुम्म भऽ जाइत छथि श्रीधर। पत्नीक मृत्युक बाद एहिना, रहैत रहथि, रहैत रहथि आकि गुम्म भऽ जाइत रहथि।
“कक्का, आँगन सुन्न रहैत अछि। कतेक दिन एना रहत। मिलूक बियाह किए नै करा दै छियन्हि”?
“मिलू तँ बियाह ठीक कऽ लेने छथि”।
“कत्तऽ?” -हम घबड़ाइत पुछै छियन्हि। हिरू हमरा दिस निश्चिन्त भावसँ देखै छथि।
“आनन्दासँ, समधि हीरू तँ अहाँक संग आएल छथिये।”
हाय रे श्रीधर पंडित।
आ बाह रे मिलू। पहिनहिये बापकेँ पटिया लेने छल। मुदा बान्हपर जाइत कोनो टोलबैय्याक कान एहि गपकेँ अकानि लेने छल।
हम सभ बैसले रही आकि ओ किछु आर गोटेकेँ लऽ कऽ दलानपर जुमि गेल छल। श्रीधर मीमांसकसँ हुनकर सभक शास्त्रार्थ शुरू भेल। शब्दक काट शब्दसँ।
“श्रीधर, अहाँ कोन कोटिक अधम काज कऽ रहल छी”।
“कोन अधम काज”।
“छोट-पैघक कोनो विचार नहि रहल अहाँकेँ मीमांसक?”
“विद्वान् जन। ई छोट-पैघ की छिऐ? मात्र शब्द। एहि शब्दकेँ सुनलाक पश्चात् ओकर शब्दार्थ अहाँक माथमे एक वा दोसर तरहेँ ढुकि गेल अछि। पद बना कऽ ओहिमे अपन स्वार्थ मिज्झर कऽ...”।
“माने छोट-पैघ अछि शब्दार्थ मात्र। आ तकर विश्लेषण जे पद बना कऽ केलहुँ से भऽ गेल स्वार्थपरक”।
“विश्वास नहि होए तँ ओहि पदमे सँ स्वार्थक समर्पण कऽ कए देखू। सभ भ्रम भागि जाएत”।
“माने अहाँ मिलू आ आनन्दाक बियाह करेबाले अडिग छी”।
“विद्वान् जन। रस्सीकेँ साँप हम अही द्वारे बुझै छी जे दुनूक पृथक अस्तित्व छै। आँखि घोकचा कऽ दूटा चन्द्रमा देखै छी तँ तखनो अकाशक दूटा वास्तविक भागमे चन्द्रमाकेँ प्रत्यारोपित करै छी। भ्रमक कारण विषय नहि संसर्ग छै, ओना उद्देश्य आ विधेय दुनू सत्य छै। आ एतए सभ विषयक ज्ञान सेहो आत्माक ज्ञान नहि दऽ सकैए। आत्माक विचारसँ अहंवृत्ति- अपन एहि तथ्यक बोध होइत अछि। आत्मा ज्ञानक कर्ता आ कर्म दुनू अछि। पदार्थक अर्थ संसर्गसँ भेटैत अछि। शब्द सुनलाक बाद ओकर अर्थ अनुमानसँ लग होइत अछि”।
“अहाँ शब्दक भ्रम उत्पन्न कऽ रहल छी। हम सभ एहिमे मिलू आ आनन्दाक बियाहक अहाँक इच्छा देखै छी”।
“संकल्प भेल इच्छा आ तकर पूर्ति नहि हो से भेल द्वेष”।
“तँ ई हम सभ द्वेषवश कहि रहल छी। अहाँक नजरिमे जातिक कोनो महत्व नहि?”
“देखू, आनन्दा सर्वगुणसम्पन्न छथि आ हुनकर आ हमर एक जाति अछि आ से अछि अनुवृत्त आ सर्वलोक प्रत्यक्ष। ओ हमर धरोहरक रक्षण कऽ सकतीह, से हमर विश्वास अछि। आ ई हमर निर्णय अछि”।
“आ ई हमर निर्णय अछि।”- ई शब्द हमर आ हिरूक कानमे एक्के बेर नै पैसल रहए। हम तँ हिरु आ मिलूकेँ चिन्हैत रहियन्हि, एहिना अनचोक्के निर्णय सुनबाक अभ्यासी भऽ गेल रही। मुदा हिरु कनेक कालक बाद एहि शब्द सभक प्रतिध्वनि सुनलन्हि जेना। हुनकर अचम्भित नजरि हमरा दिस घुमि गेल छलन्हि।
फेर श्रीधर मीमांसक ओहि शास्त्रार्थी सभमेसँ एक ज्योतिषी दिस आंगुर देखबै छथि-
“ज्योतिषीजी, अहाँ एकटा नीक दिन ताकू। अही शुद्धमे ई पावन विवाह सम्पन्न भऽ जाए। सिंह राशि आबैबला छै, ओहिसँ पूर्व। किनको कोनो आपत्ति?”
सभ माथ झुका ठाढ़ भऽ जाइ छथि। श्रीधर मीमांसकक विरोधमे के ठाढ़ होएत?
“हम सभ तँ अहाँकेँ बुझबए लेल आएल छलहुँ। मुदा जखन अहाँ निर्णय लैये लेने छी तखन...।”
मीमांसकजीक हाथ उठै छन्हि आ सभ फेर शान्त भऽ जाइ छथि।
हम आ हीरू सेहो ओतएसँ बिदा भऽ जाइ छी।
हीरू निसाँस लेने रहथि, से हम अनुभव केने रही।
...
ई नहि जे कोनो आर बाधा नहि आएल।
मुदा ओ खटबताह विद्वान तँ छले। से आनन्दा हुनकर पुतोहु बनि गेलीह। आ हुनक छुअल पानि हमर टोल की परोपट्टाक विद्वान् क बीचमे चलए लागल।
.....
आनन्दाक नैहरमे विवाह सम्पन्न भेल छल। ओतुक्का गीतनाद हम सुनने रही, उल्लासपूर्ण, एखनो मोन अछि-
पर्वत ऊपर भमरा जे सूतल,
मालिन बेटी सूतल फुलवारि हे
उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे
पर्वत ऊपर भमरा जे सूतल,
मालिन बेटी सूतल फुलवारि हे
उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे
कोन फूल ओढ़ब लुकेसरि के
कोन फूल पहिरन
कोन फूल बान्धिके सिंगार हे
उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे
बेली फूल ओढ़ब बन्दी
चमेली फूल पहिरन
अरहुल फूल लुकेसरि के सिंगार हे
उठू मालिन गाँथू गिरिमल हार हे
उठू मालिन गाँथू गिरिमल हार हे
....
श्रीधर मीमांसक आनन्दाकेँ तालपत्र सभक परिरक्षणक भार दऽ निश्चिन्त भऽ गेल रहथि। पत्नीक मृत्युक बाद बेचारे आशंकित रहथि।
दैवीय हस्तक्षेप, आनन्दा जेना ओहि तालपत्र सभक परिरक्षण लेल आएल रहथि हुनकर घर। अनचोक्के..
मिलू कहि देलक हमरा जे कोना ओ श्रीधर पंडितकेँ पटिया लेने रहए। ब्राह्मणक बेटी सराइ कटोरा आ माटिक महादेव बनबैत रहत आ तालपत्र सभमे घून लागि जाएत..
नै घून लागए देथिन तालपत्र सभमे, आनन्दा आएत एहि घर। श्रीधर मीमांसक निर्णय कऽ लेने रहथि।
मिलू तँ जेना जीवन भरि अपन लेल एहि निर्णयक प्रति कृतज्ञ छलाह।
श्रीधरक आयु जेन बढ़ि गेल छलन्हि। श्रीधर आ आनन्दाक मध्य गप होइते रहै छल ओहि घरमे।
आनन्दा बजिते रहै छलीह आ गबिते रहै छलीह।
बारहे बरिस जब बीतल तेरहम चढ़ि गेल हे
बारहे बरिस जब बीतल तेरह चहरि गेल हे
ललना सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ
बघिनियाँ घरसे निकालब हे
ललना सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ
बघिनियाँ घरसे निकालब हे
अंगना जे बाहर तोहि छलखिन रिनियाँ गे
ललना गे आनि दियौ आक धथूर फर पीसि हम पीयब रे
ललना रे आनी दियौ आक धथूर फर पीसि हम पीयब रे
बहर से आओल बालुम पलंग चढ़ि बैसल रे
बहर से आओल बालुम पलंग चढ़ि बैसल रे
ललना रे कहि दियौ दिल केर बात की तब माहुर पीयब रे
ललना रे कहि दियौ दिल केर बात की तब माहुर पीयब रे
बारह हे बरिस जब बीतल तेरह चहरि गेल रे
ललना रे सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ
बघिनिया घरसे निकालब रे
सासु मोरा मारथिन अनूप धय ननदो ठुनुक धय रे
सासु मोरा मारथि अनूप धय ननदो ठुनुक धय रे
ललना रे गोटनो खुशी घर जाओल सभ धन हमरे हेतै हे
ललना रे गोटनऽ खुशी घर जाओल सभ धन हमरे हेतै हे
चुप रहू, चुप रहू धनी की तोहीँ महधनी छिअ हे
चुप रहू, चुप रहू धनी की तोहीँ महधनी छिअ हे
धनी हे करबै हे तुलसी के जाग, की धन सभ लुटा देबऽ हे
ललना हे करबै मे पोखरि के जाग, की सभ धन लुटाएब हे
श्रीधर मीमांसक हँसी करथिन- आनन्दा, अहाँकेँ तँ सासु अछि नहि, तखन ओ बेचारी अहाँकेँ बघिनियाँ कोना कहतीह?
-तेँ ने गबै छी, सभ चीज तँ भरल-पूरल मुदा..।
आँखि नोरा गेल छलन्हि आनन्दाक। हमरा अखनो मोन अछि।
-हम अहाँकेँ दुःख देलहुँ ई गप कहि कऽ।
-कोन दुःख? सासु नै छथि तँ ससुर तँ छथि।
श्रीधरकेँ प्रसन्न देखि मिलूकेँ आत्मतोष होइन्ह।
.......
आ श्रीधर मीमांसकक मृत्युक बादो आनन्दा तालपत्र सभमे जान फुकैत रहैत छलीह।
फेर मिलूकेँ दूटा बेटी भेलन्हि वल्लभा आ मेधा।
आनन्दाक खुशी हम देखने छी। नैहर गेल रहथि ओ। ओतहि दुनू जौँआ बेटी भेल छलन्हि-
लाल परी हे गुलाब परी
लाल परी हे गुलाब परी
हे गगनपर नाचत इन्द्र परी
हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी
आ फेर भेलन्हि बेटा। पैघ भेलापर बेटा मेघकेँ पढ़बा लेल बनारस पठेने रहथि मिलू।
आ दिन बितैत गेल, बेटी सभ पैघ भेलन्हि आ दुनू बेटी, मेधा आ वल्लभाक बियाह दान कऽ निश्चिन्त भऽ गेल छलाह मिलू।
बेटाक परवरिश आ बियाह दान सेहो केलन्हि। मेघ बनारसमे पाठन करए लगलाह। मेघ, मेधा आ वल्लभा तीनू गोटे सालमे एक मास आबथि धरि अवश्य।
लोक बिसरि गेल मारते रास गप सभ।
II
भामती प्रस्थानम्
आनन्दा मिलूक पिताजीक एहि तालपत्र सभक परिरक्षण मनोयोगसँ कऽ रहल छथि। कड़गर रौद, मिलूकेँ ओहिना मोन छन्हि।
मिलू संग जिनगी बीति गेलन्हि आनन्दाक। आ आब जखन ओ नहि छथि तखन मिलूक जीवनक परिरक्षण कोना होएत।.. मिलू प्रवचनक बीचमे कतहु भँसिया जाइ छथि।
प्रवचन चलि रहल अछि। मिलू गरुड़ पुराण नहि सुनताह। मिलू मंडनक ब्रह्मसिद्धि सुनताह, वाचस्पतिक भामती सुनताह, जे सुनबो करताह तँ। जँ बेटी सभक जिद्द छन्हिये तँ आत्मा विषयपर कुमारिलक दर्शन सुनताह। आ सैह प्रवचन चलि रहल अछि।
भ्रम। शब्दक भ्रम। कहैत रहथि श्रीधर मारते रास गप शब्दशास्त्रम् पर। भामती प्रस्थानम् पर। शब्दक अर्थ हम गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।
-गुरुजी। हम पत्नीक मृत्युक बाद घोर निराशामे छी। की छिऐ ई जीवन। कतए होएत आनन्दा।
- मिलू। धीरज राखू। ब्रह्मसिद्धिक हमर ई पाठ अहाँक सभ भ्रमक निवारण करत। ब्रह्मसिद्धिमे चारि काण्ड छै। ब्रह्म, तर्क, नियोग आ सिद्धि काण्ड। ब्रह्मकाण्डमे ब्रह्मक रूपपर, तर्ककाण्डमे प्रमाणपर, नियोगकाण्डमे जीवक मुक्तिपर आ सिद्धिकाण्डमे उपनिषदक वाक्यक प्रमाणपर विवेचन अछि।
- मिलू। मुक्ति ज्ञानसँ पृथक् कोनो बौस्तु नहि अछि। मुक्ति स्वयं ज्ञान भेल। मानवक क्षुद्र बुद्धिक कतहु उपेक्षा मंडन नहि केने छथि। कर्मक महत्व ओ बुझैत छथि। मुदा ताहिटा सँ मुक्ति नहि भेटत। स्फोटकेँ ध्वनि-शब्दक रूपमे अर्थ दैत मंडन देखलन्हि। से शंकरसँ ओ एहि अर्थेँ भिन्न छथि जे एहि स्फोटक तादात्म्य ओ बनबैत छथि मुदा शंकर ब्रह्मसँ कम कोनो तादात्म्य नहि मानै छथि। से मंडन शंकरसँ बेशी शुद्ध अद्वैतवादी भेलाह।
-मिलू। मंडन क्षमता आ अक्षमताक एक संग भेनाइकेँ विरोधी तत्व नहि मानैत छथि। ई कखनो अर्थक्रियाकृत भेद होइत अछि, मुदा ओ भेद मूल तत्व कोना भऽ गेल। से ई ब्रह्म सभ भेदमे रहलोपर सभ काज कऽ सकैए।
-देखू। वाचस्पतिक भामती प्रस्थानक विचार मंडन मिश्रक विचारसँ मेल खाइत अछि। मंडन मिश्रक ब्रह्मसिद्धिपर वाचस्पति तत्वसमीक्षा लिखने छथि। ओना तत्वसमीक्षा आब उपलब्ध नै छै।
-तखन तत्व समीक्षाक चर्चा कोना आएल।
-वाचस्पतिक भामतीमे एकर चर्चा छै।
-मुदा मंडनक विचार जानबासँ पूर्व हमरा मोनमे आबि रहल अछि जे जखन ओ शंकराचार्यसँ हारि गेलाह तखन हुनकर हारल सिद्धान्तक पारायणसँ हमरा मोनकेँ कोना शान्ति भेटत।
-देखियौ, मंडन हारि गेल छलाह तकर प्रमाण मंडनक लेखनीमे नहि अछि। मंडन स्फोटवादक समर्थक रहथि, मुदा शंकराचार्य स्फोटवादक खण्डन करैत छथि। मंडन कुमारिल भट्टक विपरीत ख्यातिक समर्थक रहथि, मुदा शंकराचार्यक जाहि शिष्य सुरेश्वराचार्यकेँ लोक मंडन मिश्र बुझै छथि ओ एकर खण्डन करै छथि।
-से तँ ठीके। मंडन हारि गेल रहितथि तँ हुनकर दर्शन शंकराचार्यक अनुकरण करितन्हि।
-आब कहू जे जाहि सुरेश्वराचार्यकेँ शंकराचार्य श्रृंगेरी मठक मठाधीश बनेलन्हि से अविद्याक दू तरहक हेबाक विरोधी छथि मुदा मंडन अपन ग्रन्थ ब्रह्मसिद्धिमे अग्रहण आ अन्यथाग्रहण नामसँ अविद्याक दूटा रूप कहने छथि। मंडन जीवकेँ अविद्याक आश्रय आ ब्रह्मकेँ अविद्याक विषय कहै छथि मुदा सुरेश्वराचार्य से नै मानै छथि। शंकराचार्यक विचारक मंडन विरोधी छथि मुदा सुरेश्वराचार्य हुनकर मतक समर्थनमे छथि।
.......
बानर आ बनगदहा खेत सभकेँ धांगने अछि आ पारा बारीकेँ। आब हमरा दुआरे गामक लोक महीस पोसनाइ तँ नहि छोड़ि देत। बानर आ बनगदहा बड्ड नोकसान कऽ रहल अछि।
“चारिटा बानर कलममे अछि। धऽ कऽ आम सभकेँ दकड़ि देलक। हम गेल रही। साँझ भऽ गेलै तँ आब सभटा बानर गाछक छिप्पी धऽ लेने अछि। साँझ धरि दुनू बापुत कलम ओगरने रही, झठहा मारि भगेलहुँ, मुदा तखन अहाँक कलम दिस चलि गेल”।–- हम मिलूकेँ हम कहै छियन्हि।
“सभटा नाश कऽ देलकै बचलू। रातिमे तँ नञि सुझै छै। भोरे-भोर कलम जा कऽ देखै छी। बनगदहा सभटा फसिल खा लेलक आब ई बानर आमक पाछाँ लागल अछि। करऽ दियौ जखन...”।
“बनगदहा सभ तँ साफ कऽ उपटि गेल छलै। नहि जानि फेर कत्तऽ सँ आबि गेल छै। गजपटहा गाममे जाग भेल छलै, ओम्हरेसँ राता-राती धार टपा दै गेल छै”।
“से नै छै। ई बनगदहा सभ धारमे भसिया कऽ नेपाल दिसनसँ आएल छै। आबऽ दियौ जखन...”।
“हम बानर सभ दिया कहने रही”।
“से हेतै”।
“हेतै भाइज, तखन जाइ छी”। हमरा बुझल अछि जे आमक मासमे बानर आ बनगदहा ओहि बरख एक्के संग निपत्ता भऽ गेल रहै जाहि बरख आनन्दा आ मिलूक भेँट भेल रहै। आ आनन्दाक गेलाक बाद बानर आ बनगदहा नहि जानि कत्तऽ सँ फेर आबि गेल छै, आनन्दाक मृत्युक पन्द्रहो दिन नै बीतल छै...
.......
बचलू गेलाह आ मिलूक कपारपर चिन्ताक मोट कएकटा रेख ऊपर नीचाँ होमए लगलन्हि, हिलकोरक तरंग सन, एक दोसरापर आच्छादित होइत, पुरान तरंग नव बनैत आ बढ़ैत जाइत। अंगनामे सोर करै छथि। “बुच्ची, बुचिया। जयकर आ विश्वनाथ आइ गाछी गेल रहए। आबि गेल अछि ने दुनू गोड़े। सुनलिऐ नै जे बानर सभक उपद्रव भऽ गेल छै। काल्हिसँ नै जाइ जाएत गाछी, से कहि दियौ। आइ बानर सभ कलम आएल छल, से कहबो नै केलहुँ। कहिये कऽ की होएत जखन...”।
“कहि तँ रहल छलहुँ बाबूजी मुदा अहाँ तँ अपने धुनमे रहै छी, बाजैत मुँह दुखा गेल तँ चुप रहि गेलहुँ”।
हँ, धुनिमे तँ छथिये मिलू। ई आम सेहो आनन्दाक मृत्युक बाद पकनाइ शुरू भऽ गेल अछि। आ एतेक दिनुका बाद फेर ई बानर आ बनगदहा कोन गप मोन पारबा लेल फेरसँ जुमि आएल अछि।
...
जयकरक माए वल्लभा आ विश्वनाथक माए मेधा। दुनू बहीन कतेक दिनपर आएल छथि नैहर। कतेक दिनपर भेँट भेल छन्हि एक दोसरासँ। आनन्दाक दुनू बेटी आ दुनू जमाए आएल छथि। वल्लभाक पति विशो आ मेधाक पति कान्ह। मेघ अपन पत्नी आ बच्चा सभक संगे आएल छथि।
मिलू पत्नीकेँ आनन्दा कहि बजा रहल छथि। फेर मोन पड़ै छन्हि जे ओ आब कत्तऽ भेटतीह। फेर कत्तऽ छी वल्लभा, कत्तऽ छी मेधा, जयकर आ विश्वनाथ कतए छथि..सोर करए लागै छथि।
वल्लभा आ मेधा अबै छथि आ मिलू गीत गबए लगै छथि। आनन्दाक गीत। आनन्दा जे गबै छलीह वल्लभा आ मेधा लेल-
लाल परी हे गुलाब परी
लाल परी हे गुलाब परी
हे गगनपर नाचत इन्द्र परी
हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी
रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी
हे रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी
माँ हे निरधनकेँ धन यै देने परी
माँ हे निरधनकेँ धन जे देने परी
लाल परी हे गुलाब परी
माँ हे रकतमाला दुआरपर अन्धरा खड़ी
माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी
माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी
बाप आ दुनू बेटी भोकार पाड़ए लगै छथि।
...
-मिलू। आनन्दाक मृत्यु अहाँ लेल विपदा बनि आएल अछि। अहाँ ब्राह्मण जातिक आ आनन्दा चर्मकारिणी। मुदा दुनू गोटेक प्रेम अतुलनीय। हुनकर मृत्यु लेल दुःखी नहि होउ। ब्रह्म बिना दुखक छथि। ब्रह्मक भावरूप आनन्द छियन्हि। से आनन्दा लेल अहाँक दुःखी होएब अनुचित। ब्रह्म द्रष्टा छथि। दृश्य तँ परिवर्तित होइत रहैए, ओहिसँ द्रष्टाकेँ कोन सरोकार। ई जगत-प्रपंच मात्र भ्रम नहि अछि, एकर व्यावहारिक सत्ता तँ छै। मुदा ई व्यावहारिक सत्ता सत्य नहि अछि।
-मिलू। चेतन आ अचेतनक बीच अन्तर छै मुदा से सत्य नै छै। जीवक कएकटा प्रकार छै, आ अविद्याक सेहो कएकटा प्रकार छै। अविद्या एकटा दोष भेल मुदा तकर आश्रय ब्रह्म कोना होएत, पूर्ण जीव कोना होएत। ओकर आश्रय होएत एकटा अपूर्ण जीव। अविद्या तखन सत्य नहि अछि मुदा खूब असत्य सेहो नहि अछि।
-मिलू। एहि अविद्याकेँ दूर करू आ तकरे मोक्ष कहल जाइत अछि। वैह मोक्ष जे आनन्दा प्राप्त केने छथि।
आ मिलूक मुखपर जेना शान्ति पसरि जाइ छन्हि।
........
मिलू जेना भेँट करबा लेल जा रहल छथि।
मोन पड़ि जाइ छन्हि आनन्दा संग प्रेमालाप।
-आनन्दा। अहाँसँ गप करैत-करैत हमरा कनीटा डर मोनमे आबि गेल अछि। पिताक सभसँ प्रधान कमजोरी छन्हि हुनकर तालपत्र सभक परिरक्षण। से ई सभ मोन राखू। पिता जे पुछताह जे ताल पत्रक परिरक्षण कोना होएत तँ कहबन्हि- पुस्तककेँ जलसँ तेलसँ आ स्थूल बन्धनसँ बचा कऽ। छाहरिमे सुखा कऽ। ५००-६०० पातक पोथी सभ। हम कोनो दिन देखा देब। एक पात एक हाथ नाम आ चारि आंगुर चाकर होइ छै। ऊपर आ नीचाँ काठक गत्ता लागल रहै छै। वाम भागमे छिद्र कऽ सुतरीसँ बान्हल रहै छै।
-पिता मानताह।
-नै मानताह किएक। ब्राह्मणक बेटीसँ बियाह कराबैक औकाति छन्हि? हम एक गोटेकेँ दू टाका बएना देने रहियै खेतिहर जमीन किनबा लेल। मुदा पिता जा कऽ बएना घुरा आनलन्हि। एक-एक दू-दू टाका जमा कऽ रहल छथि। ७०० टाका लड़कीबलाकेँ देताह तखन बेटाक विवाह हेतन्हि आ पाँजि बनतन्हि। आ से ब्राह्मणी अओतन्हि तँ तालपत्रक रक्षा करतन्हि?
मिलूक माएक मृत्युक बाद श्रीधर खटबताह भऽ गेल छलाह। टोलबैय्या सभ कहै छथि।
आ फेर बेमारी अएलै, प्लेग। गामक दूटा टोल उपटिये गेल, मिसरटोली आ पछिमाटोली। परोपट्टाक बहुत रास गाममे कतेक लोक मुइल से नै जानि।
मिलू पिताकेँ आनन्दासँ भेँट करा देलखिन्ह। श्रीधर तालपत्र परिरक्षणक ज्ञानसँ परिपूर्ण आनन्दामे नै जानि की देखि लेलन्हि।
मिलू जीति गेल। नैय्यायिक मिलू मीमांसक श्रीधरसँ जीति गेल आ मीमांसक श्रीधर अपन टोलबैय्या सभकेँ पराजित कऽ देलन्हि।
आ आनन्दा आ मिलूक विवाह सम्पन्न भेल।
मोन पड़ि जाइ छन्हि आनन्दा संग प्रेमालाप। मिलू जेना भेँट करबा लेल जा रहल छथि। आनन्दाक मृत्यु भऽ गेल अछि। बलानमे पएर पिछड़ि गेलन्हि आनन्दाक। ओहिना पिछड़ैक चिन्हासी देखबामे आबि रहल अछि।
मिलू ओहि चिन्हासीकेँ देखै छथि आ हुनकर मोन हुलसि जाइ छन्हि, पिछड़ि जाइ छथि भावनाक हिलकोरमे..
आनन्दा आ मिलूक एक दोसरासँ भेँट-घाँट बढ़ए लागल छल, खेत, कल्लम-गाछी, चौरी आ धारक कातक एहि एथलपर। आ दुनू गोटे पिछड़ैत छलाह, खेतमे, कल्लम-गाछीमे, चौरीमे आ धारक कातमे सेहो।
धारमे फाँगैत नै छलाह मिलू। यएह ढलुआ पिच्छड़ स्थल जे आइ-काल्हिक छौड़ा सभ बनेने अछि, से मिलूक बनाओल अछि। एहिपर पोन रोपैत छलाह आ सुर्रसँ मिलू धारमे पानि कटैत आगाँ बढ़ि जाइत छलाह।
“हे, कने नै पिछड़ि कऽ तँ देखा।”
“से कोन बड़का गप भेलै।”
“देखा तखन ने बुझबै।”
आनन्दा अस्थिरसँ आगाँ बढ़बाक प्रयास करथि मुदा..हे.हे..हे..
नै रोकि सकलथि ओ अपनाकेँ, नहिये केतमे, नहिये कल्लम-गाछीमे, नहिये चौरीमे आ नहिये एहि धारक कातमे..
आ की करए आएल होएतीह आनन्दा एतए..जे पिछड़ि गेलीह आ डूमि गेलीह..
कोनो स्मृतिकेँ मोन पड़बा लेल आएल होएतीह..
-
हँ आनन्दा आएल अछि बचलू। देखियौ ई गीत सुनू-
घर पछुवरबामे अरहुल फूल गछिया हे
फरे-फूले लुबुधल गाछ हे
उतरे राजसए सुगा एक आओल
बैसल सूगा अरहुल फूल गाछ हे
फरबो ने खाइ छऽ सुगबा, फुलहो ने खाइ छऽ हे
डाढ़ि-पाति केलक कचून हे
फुलबो ने खाइ छऽ सुगबा, फरहु ने खाइ छऽ हे
डाढ़ि-पाति केलक कचून हे
घर पछुवरबामे बसै सर नढ़िआ हे
बैसल सूगा दिअ ने बझाइ हे
एकसर जोड़ल सोनरिया
दुइसर जोड़ल हे
तेसर सर सूगा उड़ि जाइ हे
सुगबो ने छिऐ भगतिया
तितिरो ने छिऐ
येहो छिऐ गोरैय्या के बाहान हे
-भाइ अहाँ ई गीत नहि सुनि पाबि रहल छी की?
-भाइ सुनि रहल छी। देखियो रहल छी। आनन्दा भौजी छथि।
जहिया ओ मुइल छलीह तहियो सुनने रही- वएह रहथि- गाबै रहथि-
लुकेसरी अँगना चानन घन गछिया
तहि तर कोइली घऽमचान हे
-शब्द भ्रम नहि छल ओ।
माँछ-मौस आ सत्यनारायण पूजाक बाद अगिले दिनक गप अछि। ने चानन गाछ कटेने रहथि आ ने अँगना बेढ़ने रहथि आनन्दा।
दोसर दिन ओहि चानन गाछक नीचाँ चर्मकारटोलमे गौआँ सभ दुनू गोटेक लहाश देखलन्हि। आ ईहो शब्द गगनमे पसरि गेल, सौँसे गौँआ सुनलक- आनन्दाक अबाजमे-
जाहे बोन जेबऽ कोइली रुनझुनु बालम
रहि जेतऽ रकतमाला के निशान हे
शब्द भ्रम नहि छल ओ।
(ई कथा “शब्दशास्त्रम्” श्री उमेश मंडल गाम-बेरमा लेल।)
२.२.
सिद्ध महावीर
१.
बान्हक कातमे अनमना दीदीक घर।
घर नहि झोपड़ी कहू। गामक मोटामोटी सभ अँगनामे एकटा विधवाक घर रहैत छै। मुदा जखने परिवार पैघ होइत अछि तँ क्यो अपन घरक मुँह घुमा लैत अछि तँ क्यो बेढ़ बना दैत अछि। आ कखनो काल ओहि राँड़-मसोमातक घरक स्थान परिवर्तन भऽ जाइत अछि, आ से तेहने सन स्थिति छल अनमना दीदीक घरक।
मुदा अनमना दीदीक घर बान्हक कातमे छन्हि। सोझाँक मजकोठिया टोलक छथि मुदा घुसकि कऽ हमर घर लग आबि गेल छथि।समङगर लोक सभ। आस-पड़ोसक धी-बेटी दिनमे, दुपहरियामे जाइत छथि। ढील-लीख बिछबाक लेल। ककर ओ लगक छथि, से मरलाक बाद पता चलत। श्राद्धक समए जे लगक अछि से आगि देत आ तकरा घरारी भेटतैक। मुदा सेहो सम्भावना आब नहि। झंझारपुरमे सासुर छलन्हि अनमना दीदीक। ओतए अपन बहिनिक बेटाकेँ अपन बेटा बना राखि लेने छथि। मुदा नैहरक मोह नहि छूटल छन्हि।
खोपड़ीमे अबैत छथि। मासमे एक बेर तँ अवश्ये। अपनेसँ खेनाइ-पिनाइ, भानस-भात। मुदा झंझारपुरमे बेस पैघ घर, आँगन। बेटा-पुतोहुकेँ कहियो मुदा एतए नहि आनलन्हि।
सौँसे गाम विधवाकेँ दीदी कहैत अछि जे ओ नैहरमे रहैत छथि। आ फलना गाम बाली काकी जे ओ सासुरमे रहैत छथि।
से सौँसे गाम हुनका अनमना दीदी कहैत छलन्हि।
खोपड़ीक कातमे एकटा भगवानक मन्दिर बनेने छथि। महावीर बजरंगबलीक। शुरुहेसँ ई कोठाक रहै से नहि, मुदा बना देलन्हि ओकरा कोठाक। अन्न-पानि बेचि कऽ। पहिने तँ खोपड़िये रहै। जहिया अनमना दीदी झंझारपुर जाइत रहथि, अपन खोपड़ीक फड़की भिरका कऽ जाइत रहथि। बादमे ताला आ सिक्कड़िसँ बन्न सेहो करए लागल रहथि। मुदा बजरंगबलीक मन्दिर ओहिना खुजल रहैत छल। लोक सभक लेल..चौपहर। धी-बेटी गामक, साफ-सफाई, झाड़ू-बहारू करैत रहथि। पक्काक मुदा बादमे भेल, छात ढलाइ आर बादमे। पिटुआ रहए पहिने। जमीनक प्लास्टर करबए चाहैत रहथि, मुदा एस्टीमेट बेशी भऽ गेलन्हि। भगवानक घर चुबैत रहत? मुदा ढलाई आ प्लास्टर लेल पाइ कतएसँ आओत?
आइ हमरा लगैए जे हम सभ खूब मेहनति करैत छी। ककरोसँ सरोकार नहि अछि। ओह, समैए नहि भेटैत अछि। मुदा अनमाना दीदीक दिनचर्या, भोरसँ साँझ भगवान लेल समर्पित। मुदा पोसपुत्र लेल सेहो समए निकालैत छथि। बीच-बीचमे झंझारपुर बजार लग स्थित अपन गाम जाइत छथि। ओतुक्को ब्योँत लगबैत छथि। फेर गाम अबैत छथि..नैहर। देखू..गीता पढ़ि स्थितप्रज्ञ बनबाक अहाँक प्रयास। मुदा अनमना दीदी। गोर लगै छी दीदी। निकेना रहू। नहिये खुशी, नहिये कोनो दुखे। ने कोनो आवभगतक लालसा आ ने कोनो तरहक सहयोग प्राप्तिक आकांक्षा।
जोन ताकै लेल जाइत छथि धनुकटोली, दुसधटोली। ओतुक्का लोक इज्जतियो दै छन्हि, कोन हुनकर घरारी लेबाक छन्हि हिनका सभकेँ। ओतए हँसितो देखै छियन्हि। अपन टोलक लोकसँ हट्ठे कोनो काज लेल कहितो नहि छथि। एकटा काज करत आ कनियाँकेँ जा कऽ कहत। आ फेर दस साल धरि ओकर कनियाँ सुनबैत रहत।
-दीदी, हनुमान जीक काज छै, सड़कक कातमे छथि। हमहूँ सभ तँ जाइत-अबैत माथ झुका कऽ पुजबे करबन्हि। से बिनु बोनि लेने हम ई काज करब।
- नै यौ तीर्थ-बर्त आ भगवानक काज मँगनीमे नहि करबाक-करेबाक चाही। हम कोनो रानी-महरानी छी जे बेगारी खटा कऽ मन्दिर बनबाएब आ पोखरि खुनाएब।
मुदा ढलैय्या आ प्लास्टर!
२
सड़कक कातक भगवानक एहि मन्दिरक सटल एक बीघा खेत, सभटा अनमना दीदीक। ढलैय्या भऽ गेलाक बाद भगवानक नामसँ लिखि देतीह। जे अन्न-पानि होएतैक ओहिसँ भगवानक घरक चून-पोचारा आ सफाई होइत रहत।
कतेक दिनसँ पड़ोसी पछोड़ धेने छन्हि।
“दीदी। तोहर सभसँ लगक भातिज हमहीं छियौ। ई जमीन हमर घरसँ सटल अछि। पहिलुका लोक बान्ह-सड़कक कातमे छोट जाति आ मसोमातकेँ घर बना दैत रहै। मुदा आब जमाना बदलि गेल छै।आब तँ सड़कक कातक घर आ जमीनक मोल बढ़ि गेल छै। तूँ आइ ने काल्हि मरि जएमे। तखन ई जमीन हमरा सभ पटीदार लेल झगड़ाक कारण बनत। ”
तूँ आइ ने काल्हि मरि जएमे- कहि कऽ देखियौक कोनो सधवाकेँ। मुदा मसोमातसँ कहि सकै छिऐ- भने ओकर पोसपुत्र- पुतोहु- नैत-नातिन होइ। ठीक छै बाबू।
“भगवानक लेल निहुछल अछि ई जमीन। अहीसँ तँ हमर गुजर चलैए। जे किछु पेट काटि कऽ बचबैत छी से कोशिल्या- भगवानक घरक ढलैया आ प्लास्टर लेल। झंझारपुरक जमीन-जालक पाइ सभ बेटा पुतोहुक छन्हि। से हम कोना.. ”
“फेर दीदी। तूँ गप बुझबे नहि कएलेँ। जा जिबै छेँ राख ने। कर ने गुजर। हम तँ कहै छियौ जे तोरा मरलाक बाद जे पटीदार सभ आपसमे लड़त से तोरा नीक लगतौ। आ हम तोहर सभसँ आप्त भातिज...।”
देखियौ, कहै छै जे। भातिज बाहरमे नोकरी करै छथि। जे गाममे रहैए से तँ भेँट करएमे संकोच करैए जे किछु देमए नहि पड़ए। ई मुदा जहिया गाममे अबैए आ हम गाममे रहै छी तँ भेँट करबाक लेल अबिते अछि। आ एहि बेर तँ हम झंझारपुरमे रही तँ ओतहु आएल रहए। सैह तँ कहलियै जे ई कोना कऽ फुरेलै। से आब बुझलिऐ। मुदा ई ढलैय्या कोना कऽ होएत। प्लास्टर तँ बादोमे करबा देबै। ततेक चुबैए, एहि साल तँ आरो बेशी चुबए लागल अछि। पिटुआ छत, दुइयो साल नहि चलल। ओकरा ओदारि कऽ ढ़लैय्या करत करीम मियाँ आ लछमी मिस्त्री, तखने ठीक होएत। देखै छी।
भातिजक आबाजाही बढ़ि गेल अछि आइ-काल्हि।
“ठीक छै दीदी, अदहे जमीन दऽ दिअ। दस कट्ठामे अहाँक भातिजक बसोबासक संग भगवानक लेल सेहो जमीन बचि जाएत।”
“मुदा बान्हपर अहाँक घरारीक लागि तँ नहिए होएत। तखन की फएदा होएत अहाँकेँ।”
“छोड़ू ने। एखनो तँ टोल दऽ कऽ अबिते ने छी। चौक-चौबटिया आ बान्हक कातमे घर बनेबाक तँ आब ने चलन भेल अछि। आ आब चौबटिया आ बान्हक कातमे तँ भगवानेक घर ने शोभतन्हि। दस कट्ठाक दस हजार जहिया कहब हम दऽ देब। रजिस्ट्री बादेमे बरु होएत।”
“ठीक छै। तखन हम सोचि कऽ कहब। एक बेर बेटा पुतोहुसँ पूछि लैत छी।”
कोन उपाए। भगवानक घरक देबाल सभमे कजरी लागि गेल अछि। देबाल छोड़ू, बजरंगबलीक मूर्तिमे सेहो कजरी लागि गेल अछि। अनमना दीदी सोचिते रहि गेलथि। आ सोचिते-सोचिते भोर भऽ गेलन्हि।
दऽ दै छिऐ जमीन। आर उपाय की। नञि।
बेटा-पुतोहु कहलखिन्ह जे माए। ओतुक्का जमीन तँ भगवानक छन्हि। आ हम सभ से शुरुहे सँ बुझै छी। मुदा देखब। ओ कोनो चालि तँ नहि चलि रहल अछि।
“कोन चालि। पाइ तँ किछु बेशीए दऽ रहल अछि।”
भगवानक मन्दिरक लेल, दस कट्ठा कम थोड़बेक होइ छै। पाइ जुटबैत-जुटबैत मरि गेलहुँ। ई अधखरु मन्दिर ओहिने रहि जाएत ? गप करै छी लछमी मिस्त्री आ करीम मिआँ सँ।
दस हजारमे ढलैय्या, प्लास्टरक संग चहरदिवारी सेहो बनि जाएत। एस्टीमेट बनि गेल। रजिस्ट्रीक अगिले दिनसँ काज आरम्भ। आ भादवक पहिने समापन।
३
चलू रजिस्ट्री भऽ गेल। दासजी कागज-पत्तरमे बड्ड माहिर लोक। पुछबाक काज छै! - धुर। पकिया कागज बनल हएत।
“भगवानक लेल कागज बनेबाक पहिल अवसर भेटल अछि दीदी”- दासजीक गपसँ अनमना दीदी दासोदास भऽ गेलीह।
लोक कहै छै झुट्ठे जे लोकक श्रद्धा भगवानपर सँ कम भेल जाइ छै। ई दासजी। कहियो ने भेँट आ ने जान पहिचान। दू टा रजिस्ट्रीक कागत- एकटा दसकठिया भातिजक नाम आ दोसर भगवानक नाम, मुदा एक्के फीसमे बना रहल छथि। साफे कहि देलखिन्ह- दीदी भगवानक जमीनक रजिस्ट्रीक पाइ हम एकदम्मे नहि लेब। जे बेर-बखतपर काज आबए सैह ने अप्पन लोक। ठीके बूढ़-पुरान कहि गेल छथि। यैह सभ देखि कऽ ने कहने छथि।
अनमना दीदी बाइमे छथि। पएरे गाम अएलीह।सोहमे किछु नहि फुराइत छन्हि। मन्दिरकेँ अजबारू, काल्हिसँ काजक आरम्भ अछि। लछमी मिस्त्री अपन तेगारी, डोरी, करणी सभ राखि गेल अछि। डब्बुक सभ पानि भरबाक लेल अनमना दीदी जोगा कऽ राखनहिये छथि। पोखरि बगलेमे अछि। लीढ़सँ भरल, मुदा कातमे महीस सभकेँ पानि पिएबाक लेल लोक सभ कनेक साफ कइए देने अछि।
मुदा भोरेमे घोल-फुचुक्का। करीम मिआँकेँ काज करबासँ रोकि देल गेल। के रोकलक? भातिजकेँ खबरि दियौक। मुदा ओ तँ काल्हि झंझारपुरसँ सोझे नोकरीपर चलि गेलाह। रजिस्ट्रीक कागत ओना तँ अनमाना दीदी लग सेहो छन्हि। भातिजक सार रोकने अछि काज। चहारदिबारी नहि बनबए देत। मुदा काल्हि रजिस्ट्री काल तँ रहए ईहो। तखन? कहैत अछि जे बान्हक कातबला जमीन मेहमानक छियन्हि, ऐँ यौ। तखन तँ ई मन्दिरो ओकरे हिस्सामे भऽ गेलै। कोनो बुझबामे गलती तँ नहि कऽ रहल अछि। भातिज मासक शुरुहेमे जा कऽ तँ अओताह, दरमाहा लैए कऽ ने। मास भरि अनमाना दीदी गाम आ झंझारपुर करैत रहलीह। बेटा पुतोहु कहन्हि जे ई भातिजेक चालि तँ नहि अछि। नञि, से नहि कहू। दासजी तँ नीक लोक रहए। देखू।
४
“दीदी। अहाँकेँ कोनो धोखा भऽ रहल अछि।”
“तखन तँ ई मन्दिरो अहींक भेल ने।”
“नञि दीदी। ई मन्दिर तँ भगवानक छियन्हि। हुनके रहतन्हि। आ पाछूक जमीनक मालिक सेहो भगवाने।”
“आ तखन तँ हमर ई खोपड़ी सेहो अहींक भेल ने।”
“नञि दीदी। अहाँ जहिया धरि जीब तहिया धरि रहू। के मना करत? ”
“बौआ बड्ड उपकार अहाँक। आ पाछू दिसका जमीनक लागि तँ नञि बान्ह दिससँ अछि आ नहिये टोल दिससँ।”
“दीदी। अहाँ हमरा जमीन बाटे जाऊ ने के मना करत? आ आरिपर बाटे खेतमे सभ जाइते अछि। जकर खेत बान्हक कातमे नहि छै से की अपन खेतपर नहि जा सकैए। अहाँ तँ नबका लोकक भिन्न-भिनाउज बला गप कऽ रहल छी।”
“मुदा ई सभ अहाँ पहिने कहाँ कहने रही।”
“दीदी, अहाँकेँ सभटा कहने रही। मुदा लगैत अछि जे अहाँकेँ धोखा भऽ रहल अछि। नहि विश्वास होइए तँ दासजीकेँ बजा दैत छी। ओ तँ तेहल्ला अछि।”
“अच्छा तँ ओहो मिलल अछि।”
“दू रजिस्ट्रीक कागत बना कऽ बेचारा एक रजिस्ट्रीक पाइ लेलक आ अहाँ कहि रहल छी जे मिलल अछि।”- भातिजक स्वर तीव्र भऽ गेलन्हि। हाँफए लगलाह आ जोर-जोरसँ बजैत बिदा भऽ गेलाह।
५
अनमाना दीदीक लेल नैहरक ई भोर सासुरक ओहि भोर जेकाँ रहन्हि जाहि दिन ओ विधवा भेल रहथि। आइ गामक धी-बेटी ढ़ील-लीख बिछबा लेल नहि अएलीह। अनमाना दीदीक राति भरिक वार्तालाप- बजरंग बलीक संग। एखने एहि भोरमे खतम भेल अछि। लोक सभ अँगनामे बच्चाकेँ ठोकि कऽ सुता रहल रहए। भोरमे किछु गोटे आबि पंचैती करेबाक सुझाव दए गेलन्हि। मुदा अनमाना दीदीक रोष तँ बजरंगबलीसँ छलन्हि।
“भगवानक जमीन अदहा बेचि कऽ भगवानक घर बनबितहुँ, मुदा मन्दिरक सटल जमीन रजिस्ट्री करा लेलक आ जे जमीन बचल ओहिसँ मन्दिरक लागिये नहि रहल। लागि तँ छोड़ू ओहि पर जएबाक रस्ते बन्न कऽ देलक। आ ई बजरंगबली। महावीर। कोन शक्ति छैक एकरामे ? चालीस साल पेट काटि कऽ हिनका खोपड़ीसँ पक्काक घरमे अनलहुँ। ढलैय्या भऽ जइतए, चहरदिवारी बनि जइतए सैह टा मनोरथ रहए, आ सेहो हिनके लेल। हा... ”
६
एहि भोरमे भातिजक द्वारिपर ठाढ़ अनमाना दीदी। लोक सभक मोने जे आब आर बाझत झगड़ा। मुदा ई की भऽ रहल अछि। लछमियाँक भाए रिक्शा अनलक अछि। अनमाना दीदी भातिजक संग झंझारपुर जा रहल छथि। के कहलक? हुनकासँ तँ ककरो गपो नहि भेल रहै। हम कहनहियो रहियन्हि पंचैती कराऊ, मुदा मना जेकाँ कऽ देने रहथि। अच्छा, लछमीक भाए कहलक। हँ, रिक्शा बजबै लेल जे गेल रहए, से कहने हएत जे झंझारपुर जेबाक अछि।
दासजीकेँ एकटा आर रजिस्ट्रीक कागत बनबए पड़लन्हि। अनमाना दीदीकेँ देखि ओ सर्द भऽ गेल रहथि जे जानि नहि बूढ़ी की सभ सुनओथिन्ह। मुदा अनमाना दीदी ततेक ने तामसमे छलीह जे किछु नहि बजलीह। तामस पीबि गेलीह। ओहो पाछू बला जमीन भातिजकेँ रजिस्ट्री कऽ देलन्हि। आ झंझारपुर-स्टेशनसँ घुरि कऽ झंझारपुर बजार दिस बेटा पुतोहु लग पएरे बिदा भेलीह।
लछमीक भाए घुरि आएल। दू सवारीकेँ लऽ गेल रहए मुदा मात्र एक सवारी लऽ कऽ घुरि आएल। संगमे संदेश लेने गेल। लछमी मिस्त्री आ करीम मिआँ लेल संदेश। काल्हि भोरेसँ काज आरम्भ। फेरसँ?
७
चहरदेबाली बनल। भगवानक मन्दिर आ अनमाना दीदीक घरकेँ बारि कऽ। कहि देने छियन्हि दीदी केँ। हुनका जिबैत क्यो छूतन्हि नहि हुनकर घर।
घर आकि खोपड़ी, एक साल कनेक टूटल। दोसर भदबरियामे खुट्टा सरि कऽ खसि पड़ल। मुदा अनमाना दीदी नहि अएलीह। समाद देने रहन्हि नैहरक एक गोटे। ढलैया नहिये भेलन्हि बजरंगबलीक। अनमना दीदी हरिद्वारसँ घुरि अएलीह। लोक पुछलकन्हि- की माँगलहुँ गंगा माएसँ।
“यएह जे अंधविश्वास हमरा मोनसँ हटा दिअ”।
“आ की देलियन्हि गंगा माएकेँ ?”
“अपन तामस दऽ देलियन्हि”।
अनमाना दीदी यएह कहथि- की करबन्हि। कोनो शक्तिये नहि छन्हि बजरंगबलीमे। खसए दियौक खोपड़ी। सोंगर लागल घर कतेक दिन काज देत।
८
कैक बरख बीतल। कैक बरख नहि पाँचमे साल तँ। भातिज गामपर आएल रहथि। दरमाहा उठा कऽ। पोखरि दिससँ चप्पाकलपर। लोटा लेने बैसलाह आकि छातीमे दर्द उठलन्हि। नहि बचि सकलाह। लोक सभ कहए, देखू अनमाना दीदीक श्राप, बड्ड कानल रहथि दीदी ओहि दिन। ओहिसँ पहिने बजरंगबलीक मूर्तिमे ठीके शक्ति नहि रहए। मुदा हृदयसँ देल श्राप लागै छै। ओही दिन जागृत भऽ गेल रहथि बजरंगबली। आ आइ शक्ति देखा देलखिन्ह।
मुदा समदियाकेँ अनमाना दीदी कहलखिन्ह जे पाथरोमे जान होइ छै। हर्ट अटैक भेल होएतैक। परसू एतहि एकटा मारवाड़ीकेँ अटैक भेल रहै। चिन्ता-फिकिरसँ होइत छैक एकर अटैक। एतए डाकडर सभ रहै, मारवाड़ी बाँचि गेल। गाममे देरी भेने जान नहि बचै छै। तेँ ने हमहूँ एहि बुढ़ारीमे बेटे पुतोहु लग झंझारपुरमे रहि रहल छी।
९
गाम अछि महिसबार ब्राह्मणक गाम। सुखरातिक दिन हूड़ा-हूड़ीक खेल जे एहि महिसबाड़ ब्राह्मण सभक देखलहुँ तँ पोलोक खेलमे कोनो रुचि नहि रहल। समियाक डोमसँ कीनल सुग्गरकेँ भाँग पिआए मातल महीस द्वारा हूड़ा लेब।
चरबाह जे महीसक पहुलाठ पकड़ि कलाकारीसँ बैसल छल सेहो अद्भुते। डोमक काज पाबनि-तिहारमे तँ होइते अछि। पेटार बनेबासँ सूप, बीअनि सभ किछु बनेबामे डोमक काज आ पाहुन परख लेल आ बरियाती लेल जे खस्सी काटल जाएत ताहि लेल मिआँटोलीक काज। खस्सीक मूड़ा दुर्गापूजाक बलिमे कमिटी लऽ लैत अछि।
धुर कतए भाँसि गेलहुँ।
से मिआँ जे खस्सी काटैत अछि से हलाल कऽ कऽ। गरदनि अदहा लटकले रहैत छै, मुदा माउस बना-सोना कऽ गरदनि लऽ जाइये आ खलरा सेहो। तखन महिसबार ब्राह्मणमे सँ जे हनुमानजी मन्दिरपर भजन आ अष्टजाम करैत छथि से ओही खलरासँ बनल ढोलक किनैत छथि। आ से कीर्तन भइयो रहल छल।
सिद्ध महावीरजीक मन्दिरक आगाँ। रामनवमी दिन गाड़ल बड़का धुजा। टनटनाइत घड़ीघण्ट आकि आर किछु। हनुमानजीक धूजा फहरा रहल अछि। साँझक काल। महिसबार सभक आगम भऽ गेल अछि। कोनो पाबनि हुअए, हूड़ाहूड़ी आकि रामनवमी सिद्ध हनुमानजीक आगाँ कीर्तन होइते अछि। से बाबू गौँआक श्रद्धाक गप छिऐ। से आइयो भऽ रहल अछि।
घूरक धुँआ माल बिठौरीकेँ मालक देहसँ अलग करबाक प्रयासमे अछि। एक गोटेक संग दोसर गोटे अएल छथि, सप्पत खएबाक लेल। हनुमानजीक मन्दिर गौँआ सभ प्लास्टर करबा देने छथि। ढलैय्या सेहो भऽ गेल अछि। मन्दिरक बरण्डा छूबि कऽ ऋण पचेनहारक संख्या नगण्य, तैयो एकटा अपवाद तँ अछिये- ओ कहै छथि- सप्पत तँ तोड़बा लेल खाएल जाइ छै। हँ भाइ, एक बेर सप्पत खेने जे ऋणसँ विमुक्ति भेटि जाए तँ हर्जे कोन। मुदा एकेटा अपवाद। अनमाना दीदीकेँ आब सभ अनमाना बाबा सेहो कहैत छन्हि। कएक बरख भेल मुइना हुनकर। घुरि कऽ नहिये अएलीह। भातिजक घरारीक दोष निवारणार्थ कोनो पंडितक कहलापर खुट्टापर एकटा गाए बान्हि देल गेल छै, जकरा एनहार-गेनहार सदिखन घास खाइत देखैत छथि, तहिसँ घरारीकेँ नजरि-गुजरि नहि लगतैक।
हनुमानजीक धुजा फहरा रहल अछि। साँझक काल। गोनर भाए कीर्तनमे ढोलकक थापपर थाप लगा रहल छथि।
अनमाना बाबाक गप आब किछु लोको सभ मानलक। ठीके। हनुमानजीक मूर्तिक आगाँ भक्त दूटा गोल बनि गेल अछि। एक गोलक विचार कनेक वैज्ञानिक छैक- अनमाना दीदी जे बाँचल दस कट्ठाक रजिस्ट्री कऽ देलखिन्ह सएह ने पैसा देलकै चिन्ता-फिकिर भातिजक छातीमे। नहि सम्हारि सकल अनमाना दीदीक ई आक्रमण ओ। ठीके पाथरमे कोनो शक्ति थोड़बेक होइ छै। मुदा दोसर गोल महावीर हनुमानजीक सिद्ध आ जागृत होएबामे विश्वास कऽ रहल अछि- यौ, चुट्टीकेँ माटि दऽ दियौ तँ ओहो मड़ि जाएत मुदा बिकुटि कऽ जे काटत से छोड़त नहि। आ ई माटि अनमना दीदी महावीरजी केँ देलखिन्ह तँ ओ कोना छोड़ि दितथिन्ह।
गोनर भाए कीर्तनमे ढोलकपर थापपर थाप लगा रहल छथि, बुझू सिद्ध महाबीरजीकेँ मनाइये कऽ छोड़ताह, भाँगक गोला असरि कऽ रहल छन्हि, आँखि तँ चढ़ले छन्हि, हाथ सेहो रुकै कऽ नाम नै लऽ रहल छन्हि, आ हुनकर नजरिसँ देखी तँ सिद्ध महावीरक पाथरक मुरुत जागृत भऽ गेल देखा पड़त, जेना ओहिमे जान आबि गेल हो!
१.जगदीश प्रसाद मंडलक एकटा दीर्ध कथा-मइटुग्गर २. बिपिन कुमार झा- विरासत केर संरक्षण केकर उत्तरदायित्व ? ३.बसंत झा-उगना
१
जगदीश प्रसाद मंडल
.जगदीश प्रसाद मंडलक एकटा दीर्ध कथा-
मइटुग्गर
जहिना सरयुग नदीमे नहा भक्त मंदिरमे प्रवेश करितहि भगवान रामक दर्शन करैत तहिना तपेसर काका अंगनाक मेहमे आेंगठि सामिल भोज समाजकेँ खुअबैक ओरियान देखि रहल छथि। पोखरिक पानि जकाँ शीतल, शान्त समतल मन अंगनाक सुगंधमे मस्त छनि। तहि बीच बेटी सुभद्रा चमकैत स्टीलक छिपलीमे पनरह-बीसटा सुखल बरी एकटा बर आ गिलासक पानि आगूमे रखि कहलकनि- “कनी चीख कऽ देखियौ जे नीक भेलि कि नहि?”
मुस्कुराइत बेटी आ छिपलीमे सजल बर-बरी देखि तपेसर काका हेरा गेलाह। मन पड़लनि मइटुग्गर। मुदा चुल्हिपर चढ़ल लोहिया छोड़ि अँटकब उचित नहि बुझि सुभद्रा चुल्हि लग पहुँच गेली। कमलक फड़ सन एकटा बरी मुँहमे लइते मन पड़लनि परिवारमे अपन कएल काज।
साओन मास। भोरहरबामे मेघ फटि बरखो भेल आ अधरतियेसँ जे पूर्वा उठल उठले रहि गेल। कखनो काल झकसियो अबिते रहल। जेना-जेना दिन उठैत गेल तेना-तेना पूरबाक लपेट सेहो बढ़िते गेल। प्रसवक दर्दक आगम सुशीलाकेँ कहलनि। पुतोहूक बात सुनि सुनयना बेटा तपेसरकेँ पलहनि बजबए कहलखिन।
ओसारक ओछाइनपर आेंघराएल सुशीलाक मनमे लड़ाइ पसरि गेलनि। एक दिस प्रसवक पीड़ा अपन दल-बलक संग अंगक पोर-पोरपर चढ़ाइ करैत तँ दोसर दिस जिनगीक कठिन दुर्गमे फॅॅसल मन खुशीक लहड़िमे झिलहोरि खेलाइत। नारी जिनगीक श्रेष्ठतम काजक भार। जेहने भरिगर काज तेहने मुँहमंगा मातृत्वक उपहार। पूर्वाक लपेट देखि सुनयनाकेँ ठकमूड़ी लगल रहनि। आइ धरि प्रसव गढूलामे होइत रहल अछि। जहि घरक टाटा हवाक वेगकेँ नहि रोकैत। आश्रमक घर जकाँ टाटमे लेब नहि पड़ैत। मुदा बोनक बच्चाकेँ कोन घर रक्छा करैत अछि! गठुला छोड़ि मालक घरमे ओछाइन ओछा देलखिन। ओछाइन ओछा हियासए लगलीह जे अगियासी भइये गेल, फाट-पुरान लइये अनलौं। मालक घरसँ हुलकी मारि पुतोहू दिस देखलनि तँ चैन बुझि पड़लनि। मन असथिर भेलनि।
पहलनि ऐठाम जाइत तपेसरक मनमे अपन काजक भार उठलनि। एहेन भारी काजमे पुरूखक काज की अछि? डेग भरि हटल पलहनिक घर अछि तेकर बाद? मचकीपर झुलैत झुलनिहार जकाँ तपेसर झुलैत पलहनि ऐठाम पहुँच जनतब देलखिन। अपन उगैत लछमीकेँ देखि मुस्की दैत पलहनि कहलकनि- “अहाँ आगू बढ़ू माइयक थैर खरड़ि पीठेपर दौड़ल अबै छी।”
पाँचो मिनट पलहनिकेँ पहुँचला नहि भेलि कि बेटाक जन्म भेल। धरतीपर बेटाकेँ पदार्पण करितहि बिजलोका जकाँ परिवारमे खुशी पसरि गेल। देह पोछैत पलहनिक मन चालीस तम्मा निछौर, तइपरसँ निपनौन, लाढ़ि-पुरनि कटाइक संग उपहार, पसारी छी तेँ मंगवोक अधिकार अछिये जाइकाल एकटा सजमनियो मांगि लेब। सिदहा तँ देबे करतीह। हिसाबमे मन बौआ गेलनि। समाजमे भगवान ककरो सनतान दइ छथिन तइमे सझिया कऽ दैत छथि ने। बच्चाक जिनगी हमरा हाथमे अछि, तहिना ने अपनो जिनगी दोसराक हाथमे अछि। तरे-तर मन खुशी भऽ गेलनि। मुस्की दैत सुनयनाकेँ टोनलनि- “काकी, पहिल पोता छिअनि, रेशमी पटोर पहीरिबनि?”
धारक बेगमे दहलाइत दादीक मन, मूड़ी डोलबैत बजलीह- “एकटाकेँ के कहै सातटा पहिरेबह।”
पलहनि- “बच्चा मुँह, एन-मेन तपेसरे बौआ जकाँ छै।”
पलहनिक बात सुनि ओछाइनपर पड़ल सुशीलाक दर्द भरल देहक मनमे अपन सतीत्वक आभास भेल। मुदा अवसरकेँ हाथसँ नहि जाए दिअए चाहि बुदबुदाएल- “केहेन सपरती जकाँ बजै-ए।” मुदा पलहनि सुनलक नहि। जहिसँ आगू किछु नहि बाजलि।
पोखरिक पानि जकाँ तपेसरक मन असथिर। सामान्य परिस्थिति तेँ सामान्य मनक विचार। जहिना कठिनसँ कठिन, उकड़ूसँ उकड़ू काजपर लूरि डटल रहैत तहिना जिनगी काजपर नजरि दौड़ैत मन डटल। मन कहैत बीस-एक्कैस बर्खक उम्रो छेबे करनि, रोगो व्याधिक छुति देहमे नहिये छन्हि। बेटापर नजरि पहुँचते पुत्र सन सम्पत्तिक आगमनसँ मन फुला गेलनि। जहिना लगौल गाछमे पहिल फूल वा फड़ लगलापर बेरि-बेरि देखैक इच्छा होइत तहिना तपेसरक मनमे उठैत। बर्जित जगह बुझि परहेज केने रहथि। मुदा तइयो जहिना डॉट टुटल कमल हवाक संग पोखरिमे दहलाइत तहिना खुशीक हिलकोरमे तपेसरक मन तड़-ऊपर करैत। मनमे उठलनि, पुरूष-नारी बीचक संबंधमे बच्चो पैघ शर्त्त छी। परिवारमे (संबंधमे) विखंडनक संभावना बनल रहैत अछि। लगले मन अपनासँ आगू उड़ि माए-बापपर गेलनि। हृदए विहुँसि गेलनि। जहिना मातृत्व प्राप्त केलापर नारीक सौन्दर्य बढ़ि जाइत तहिना ने पितृत्व प्राप्त केलापर पुरूषोकेँ होइत। लगले सिनेमा रील जकाँ बेटाक जन्मसँ अंतिम समए धरिक जिनगी नाचि उठलनि।
किछुए समए बाद सुशीलाकेँ पुन: दर्द शुरू भेलनि। समएक संग दर्दो बढ़ए लगलनि। दुखक संग छटपटाएव शुरू भेलनि। सुशीलाक छटपटाहटि देखि सुनयना पलनिकेँ कहलखिन- “कनियाँ, अहाँ देखिअनु ता बच्चा सम्हारि दइ छी।”
पेटपर हाथ दइते पलहनि बुझि गेली जे दोसर बच्चा हेतनि। बजलीह- “काकी, एकटा बच्चा आरो हेतनि?”
पलहनिक बात सुिन, जहिना मेघ तड़कैत तहिना सुनयनाकेँ भेलनि। जोरसँ तपेसरकेँ कहलखिन- “बौआ, बौआ।”
अकचका कऽ तपेसर बाजल- “हँ, माए।”
“हँ, अंगनेमे रहह।”
करीब बीस मिनट पछाति बेटीक जन्म भेलनि। अखन धरि जहिना खुशीक सुगंध अंगनामे पसरल छल एकाएक ठमकि गेल। बच्चाक जन्म होइतहि सुशीलाक देह लर-तांगर भऽ गेलनि। पलहनि सुनयनाकेँ कहलनि- “काकी, पुरबा लपटै छै। अगियासी नीक-नहाँति जगा देथुन ओना तँ सभ भगवानक हाथमे छनि मुदा जहाँ तलिक पार लागत से तँ करबे करबनि। जानिये कऽ तँ भगवान दुख बढ़ा देलखिनहेँ। अइ (पहिल) बच्चापर इ नजिर राखथु अइपर हम रखै छी।” कहि बच्चाक पोछ-पाछ करए लगली। साँस मन्द देखि मुँहमे मुँह सटा फूकि साँसक गति ठीक केलनि। बच्चाक लक्षण देखि पलहनिक मन बाजि उठल। जरूर दुनू बच्चा ठहबे करत। नजरि पैछला काजपर पड़ल। एहेन कि पहिल-पहिल बेरि भेलि। कतेकोकेँ भेलनि। किदु गोटेक दुनू बँचलनि, किछु गोटेक एकटा बँचलनि आ किछु गोटेक जच्चा-बच्चाक संग चलि गेलीह। ओना काज तँ अनिश्चित अछि मुदा अपना भरि तँ तिया-पछा करवे करबनि। सुशीलाकेँ सुनयना पुछलखिन- “कनियाँ मन केहन लगै-ए?”
अर्ध-चेत अवस्थामे सुशीला अपन टूटैत जिनगी हाथक इशारासँ कहलकनि। मुँहक सुरखी कहैत जे नइ बँचब। सुशीलाक इशारासँ सुनयना बुझलनि जे तपेसर भारी विपत्तिमे पड़ि गेल। भगवानपर खींझ उठलनि। बेचारा फट्टो-फनमे पड़ि जाएत। हम बूढ़े भेलौं, जएह कएल हएत ततवे ने सम्हारि देबइ। मुदा विपत्ति तँ ततबेटा नइ ने छै। खेती-पथारी, माल-जाल, दसटा कुटुम-परिवार छै तइपर सँ दू-दूटा चिल्का भेलइ। कना सम्हारि पाओत। ने स्त्री बँचतै आ ने एक्कोटा बच्चा। हमहूँ कते दिन जीिव। सभ िकछु बेचाराकेँ हरा जेतइ। हे भगवान, तोरा केहन दुरमतिया चढ़लह जे एहेन गनजन बेचाराकेँ केलहक।
आंगनमे बैसल तपेसरक मनमे उठैत जे जतेटा मोटरी माथपर उठत ततबे ने उठाएव। नमहर मोटरी कते काल क्यो माथपर सम्हारि कऽ रखि सकैए। मुदा तेँ कि? जीत्ता जिनगी हारियो मानि लेब उचित नहि। करैत-करैत-लड़ैत-लड़ैत जे हेतइ से देखल जेतइ।
जहिना रणभूमिमे दू दलक बीच लड़ाइ अंतिम दौड़मे अबितहि दुनू दलक मन मानि लैत जे के जीतत के हारत। मुदा हरलोहोक बीच रंग कते रंगक विचार उठैत। किछु गोटे रणभूमिसँ भागए चाहैत तँ किदु गोटे अढ़ भजिया नुकाए जाहैत। मुदा किछु एहनो होइत जे अपन बलि देखि स्वेच्छासँ अंतिम समए धरि हथियार उठौने रहैत अछि। कोना नहि उठाओत? अपन जिनगीक संगी, जे कौआ-कुकुड़क पेट भरि अपन मनोरथ पूरा करत, आ हम गुलाम बनि दुश्मनक जहलमे सड़ब।
अपन अंतिम बात सुशीला पलहनियो, सासुओ आ पतियोकेँ कहलक- “हम नइ बँचव। दुनियाँक सभसँ पैघ पापी छी जे अपनो रक्छा नै कऽ सकलौं। दुनू बच्चाकेँ अहाँ सभ देखबै।” कहितहि आँखि बन्न भऽ गेलनि। प्राण तँ बँचल रहनि मुदा चेतन-शुन्य भऽ गेलीह।
क्रमश:
२
बिपिन कुमार झा विरासत केर संरक्षण केकर उत्तरदायित्व?
अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्।
अपरे स्थातुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्॥
यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद मे कहल गेल अछि जे- प्रतिदिन जीव मृत्यु कॆं प्राप्त करैत अछि मुदा ओतहि अन्य लोक ई बुझितो एतहि रहबाक इच्छा करैत अछि। एहि सँऽ आश्चर्य की भय सकैत छैक?
एहि भौतिक जगत मे कोनो वस्तु संस्था अथवा कोनो समाज शाश्वत नहिं कहल जा सकैत अछि। ओ डायनासोर हो अथवा हडप्पा, मेसोपोटामिया अथवा कोनो लुप्तप्राय सम्प्रदाय सभ एक न एक दिन कालक गाल मे विलीन भय जायत ई ध्रुव सत्य अछि।
हमर संकेत मिथिलाक सिरमौर अपन श्रोत्रिय समाज दिस अछि। प्रश्न अछि श्रोत्रिय समाज के सदस्य होयवा मे गर्व कियाक अनुभूत होइत अछि? की ई समाज कोनो अन्य समाज सँ भिन्न नहिं? यदि भिन्न तऽ कोन आधार पर? रहन सहन-खानपान आकि बात व्यवहारक कारण एकरा पृथक देखल गेल अथवा कोनो अन्तर्निहित गुण अन्य समुदाय सँऽ एकरा पृथक कयल?
एहि ठाम पृथकतावादी नीतिक अनुसरण नहिं कयल जा रहल अछि अपितु अपन श्रोत्रिय समाज के अभ्युत्थान दिस एकटा सामान्य दृष्टिपात कयल जारहल अछि जे एकरा अभिलिखित करबा मे मदद करत अन्यथा ई समाज काल केर गाल मे समा गेलाक बाद इतिहासो सँ कोशो दूर भय जायत।
एहि समाजक आरम्भ के कयलथि? ई समाज कियाक अस्तित्व मे आयल? एकर संस्कृति की अछि? एकर विधि व्यवहार आदि शास्त्रसम्मत अछि अथवा मात्र परम्परा केर निर्वहण अभिप्राय रहि गेल? यदि शास्त्रसम्मत अछि तऽ कोन ग्रन्थ मे एकर चर्चा अछि? ओहि ग्रन्थ केर प्रामाणिकता निर्विवाद अछि अथवा नहिं? जाति, कुल, पाँजि, मूल, गोत्र की थीक? एकर की औचित्य छल? यदि औचित्य छल तऽ आब एकर अनौचित्य कोना निर्धारित भेल जा रहल अछि?
श्रोत्रिय समाज सँ सन्दर्भित उक्त चर्चित किछु एहेन मूलभूत प्रश्न अछि जे आवश्यक अछि एहि समाजक Documentation हेतु। ई कार्य एतेक सहज नहिं। हम किछु ग्रन्थ देखल मुदा ओ एहि मे स किछु प्रश्नक चर्चा तऽ अवश्य करैत छथि मुदा मूल सन्दर्भ देबा मे असमर्थ छथि।
’सारस्वत-निकेतनम्’ जे कि संस्कृत आ अपन संस्कृतिक अभ्युत्थान हेतु सतत् समर्पित अछि, अपन श्रोत्रिय समाज सन्दर्भित मूल स्रोतक आ एकर अक्षुण्ण संस्कृति केर विविध पक्षक Documentation करय जा रहल अछि। एहि कार्य मे अपनें सभ सँऽ विशेषकर एहि समाजक इतिहासक ज्ञाता बुजुर्ग आ सक्रिय युवा कें सहयोगक सर्वथा अपेक्षा अछि।
यदि उक्त सन्दर्भ मे कोनो जानकारी उपलब्ध करा (kumarvipin.jha@gmail.com) सकी तऽ एहि विशाल यज्ञ मे एकटा आहूति सदृश होयत। एहि सन्दर्भ मे सूचित करब उचित होयत जे एहि दिशा मे एकटा साइट बनि कें तैयार अछि जेकर URL केर औपचारिक घोषणा यथाशीघ्र कयल जायत।
शुभमस्तु
३.
बसंत झा उगना
इ कहानी १३४८-१४५२ के बिचक अछि जाही मे महा कवी विद्यापति के जन्म बिस्फी गाम मे भेलानी और ओ मैथिलीक बहुत पैघ कवी भेला जिनका कबी कोकिल के उपाधि देल गेलनी और ओ महादेव के बहुत पैघ भक्त सेहो छला
कवी विद्यापतिक रचना एतेक प्रभाबी होईत छलनी जे जखन ओ आपण रचना के गबैत छला त कैलाश पर बईसल भगबान महादेव प्रशन्न भ जाईत छला और हरदम हुनक रचना सुनबाक इच्छा राखैत छला, ई इच्छा एतेक बड़ी गेलनि जे ओ एक दिन माता पार्वती के कहलखिन " हे देवी सुनु, हम मृत्युलोक जा रहल छी कवी विद्यापतिक रचना हमरा बहुत नीक लागैत अछि और हमर मोन भ रहल अछि जे हम हुनका संगे रही क' हुनक रचना सुनी, त अहां अही ठाम कैलाश मे रहू और हम जा रहल छी मृत्युलो" और रचना सुनबाक लेल धरती पर आबी गेला, और विद्यापति के ओतै नौकर बनी क उगना के नाम स काज कर लागला ओ विद्यापतिक चाकरी मे लागी गेला ओ हुनकर सब काज करथिन हुनका पूजक लेल फूल और बेलपत्र तोरी क आनैथ बरद के चरबैथ सब चाकरी करैत और राइत मे सुत्बा काल मे हुनकर पैर सेहो दबबैथ (धन्य ओ विद्यापति जिनक पैर देवक देव महादेव दबबैथ) अहि प्रकारे जखन बहुत दीन बीत गेल, ओम्हर माता पार्बती बहुत चिंतित भ गेली हुनका लगलैन जे आब महादेब मृत्यु लोक स वापस नै एता, और ओ हुनका बापस अनबाक प्रयास मे लैग गेली, ओ क्रोध के आदेश देलखिन जे आहा जाऊ और विद्यापतिक पत्नी सुधीरा मे प्रवेश क जाऊ जाही स उगना द्वारा कोनो गलत काज भेला पर सुधीरा हुनका मारी क भगा देती, लेकिन माता पार्वती के इ प्रयाश सफल नै भेलैन तखन ओ दोसर प्रयाश केलि ओ प्याश के कबी विद्यापतिक ऊपर तखन सवार क देलखिन जखन ओ एकटा जंगल के रास्ता स उगना संगे राजा शिव शिंह के ओतै जारहल छला ओ घोर जंगल छलाई ओत दूर दूर तक ज'लक कोनो आस नै छलाई और ओही बिच मे कवी विद्यापति प्याश स तरपअ लागला "रे उगना जल्दी सँ पाइन ला रउ नै ता हम मइर जेबउ बर जोर स प्यास लागी गेलौ" कहैत जमीन पर ओन्घ्रे लगला, आब उगना की करता ओ परेशान भ गेला एम्हर उम्हर पाइन के तलाश मे भट्क' लगला हुनका पाइन नै भेटलैन, तखन ओ एकटा गाछक पाछू मे नुका गेला और अपण असली रूप धारण क' अपन जटा सँ गंगाजल निकालला' और फेर उगनाक रूप धारण क विद्यापति के ज'ल देलखिन, विद्यापति जल पिबैते देरी चौक गेला ओ उगना स पूछ' लागला " रे उगना इ त गंगाजल छऊ, बता एता गंगाजल कत स अन्लाए" आब उगना की करता ओ कतबो बहाना बनेला लेकिन हुनकर एको नै चलल, ओ कि करता हुनका विबश भ अपन रूप देखाब' परलानी और ओ अपन असली रूपक दर्शन कवी विद्यापति के देलखिन, विद्यापति महादेवक अशली रूपक दर्शन करिते देरी चकित रही गेला और हुनक चरण पर खसी क हुनका स छमाँ माँग' लागला "प्रभु हमरा छमाँ करू हम अहां के चिन्ह नै सकलौं हमरा स पहुत पैघ अपराध भ गेल" तखन हुनका उठाबैत महादेव कहलखिन "हम आहा संगे एखन और रहब, लेकिन हमर एकता शर्त अछि जे आहा इ बात केकरो स नै कहबनी और जखने आहा इ बात केकरो लंग बाजब ओही छन हम अहाँ लंग स चली जायब" विद्यापति शर्त के मंजूर करैत और दुनु गोटे राजदरबार के तरफ चली गेला, माता पार्बती के इहो प्रयाश सफल नै भेलैन. तखन एक दिन उगन के बेलपत्र लावय मे कनिक देरी भ गेलनि ताहि पर सुधीरा एतेक क्रोधित भ गेली कि ओ चुल्हा मे जरैत एकटा लकड़ी निकली क हुनका मारबाक लेल उठेल्खिन "सर'धुआ आय तोरा नै छोर्बाऊ तू बड शैतान भ गेला हन हमर बच्चा सब भूख स बिलाय्प रहल अछि और तू एतेक देर स बेलपत्र ल' क' एलै हन" कहैत हुनका दिश बढ़लखिन, तखन विद्यापति स देखल नै गेलन्हि और ओ बजला "हे हे इ की करैत छि इ त साक्छात महादेव छैथ" और एतबे कहिते महादेव गायब भ गेलखिन, फेर विद्यापति हुनका जंगले जंगले तक' लगला और "उगना रे मोर कतै गेला" गबैत रहला लेकिन उगना फेर हुनका नै भेटलखिन, और ओ अपन प्राण तियैग देलखिन I
ओ स्थान जाहि ठाम देवक देव महादेव कवी-कोकिल विद्यापति के अपन अशली रूपक दर्शन देने छलखिन ओही ठाम "बाबा उगना" के मंदिर छैन और ओहिमे शिवलिंग जे छाई से अंकुरित छाई, जेकर कहानी किछु एहन, छाई जे एक बेर गामक एक बुजुर्ग ब्यक्ति के महादेव सपना देलखिन की "हम एकता गाछक जैर मे छी" और ओतै बहुत पैघ जंगल छलई तखन गामक लोक सब तैयार भ क ओय ठाम गेला और पहुँच क जखन खुदाई केला त देखलखिन की एकटा बहुत सुन्दर शिवलिंग छाई, सब गेटे बहुत खुश भेला और विचार भेलय की हिनका बस्ती पर ल चलू ओय ठाम मंदिर बना क हिनक स्थापना करब और हुनका उठेबाक लेल जखने हाथ लगेलखिन की ओ फेर स जमीन के भीतर चली गेला, फेर स कोरल गेल और हुनका निकलवाक प्रयाश कैल गेलई, इ प्रयाश दू तीन बेर कैल गेल मुदा सब बेर ओ जमीन के भीतर चली जायत छला, तखन सब गोटे के बुझबा मे एलईन जे इ अहि ठाम रहता और अय ठाम स नै जेता, तखन ओही ठाम साफ सफाए कैल गेल और तत्काल मंडप बनैल गेल और बाद मे मंदिरक निर्माण सुरु भेल जे १९३२ मे जा क तैयार भेल और अहि मंदिरक परिसर मे ओ अस्थान सेहो अछि जाहि ठाम महादेव अपना जटा स गंगाजल निकलने छला और आय ओ इनारक रूप मे अछि जेकरा "च्न्द्रकुप" के नाम स जानल जैत छाई और एखनो ओकर जल शुद्ध गंगाजल छाई, जे लैब टेस्टेड छाई !
दरभंगा के एकटा बहुत प्रशिद्ध डॉक्टर अपना मेडिकल लैब मे एकर टेस्ट केने छलखिन और ओ अय बात के सुचना ग्रामीण सब के देलखिन जे अय मे पूरा गंगाजल के तत्व बिद्यमान अछि, और इ दोसर रुपे सेहो टेस्टेड छाई, अय जल के यदि अहां बोतल मे राखि देबय ता इ ख़राब नै होइत छाई
इ स्थान मधुबनी जिलाक भवानी पुर गाम मे स्थित अछि
एत' सब गेटे एकबेर जरुर आबी, एही स्थानक कुनु तरहक जानकारिक लेल अहां हमरा स संपर्क क सकैत छि
"जय बाबा उग्रनाथ"
हमर इ सोभाग्य अछि कि हमर जन्म एही गाम मे भेल अछि और हमर बचपन अय स्थान पर बीतल अछि,
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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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