३.६.गजेन्द्र ठाकुर- घृणाक तरहरिमे बुढ़िया डाही संग अछि
३.७.१.इन्द्र भूषण-हम की करू? २.राजेश मोहन झा-“साओन कुमार”
श्री कालीकान्त झा "बूच"
कालीकांत झा "बूच" 1934-2009 हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 ई. मे भेलनि। पिता स्व. पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह।माता स्व. कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल। मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि-पानि,भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय-समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि। साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डा. बासुकीनाथ झा) मे हास्य कथाकारक सूचीमे डा. विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि। मैथिली अकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल। श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि। डा. दुर्गानाथ झा "श्रीश" संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |
1) “आउ हमर हे राम प्रवासी”
आउ हमर हे राम प्रवासी
व्याकुल जनक, विह्वला जननी,
पड़ल अवधपर अधिक उदासी
आउ हमर हे राम प्रवासी? ।।1।।
धिक् धिक् जीवन दीन, अहाँ बिनु
बीतल बर्ख मुदा जीवै छी
जीर्ण-शीर्ण मोनक गुदड़ीकेँ
स्वार्थक सूइ भोँकि सीबै छी
निष्ठुर पिता पड़ल छथि घरमे
कोमल पुत्र विकल वनवासी
आउ, हमर हे राम, प्रवासी।।2।।
दुर्दिन कैकेयी बनि कऽ
हे तात, अहाँकेँ विपिन पठौलनि
जाहि चार तर ठार छलहुँ
तकरापर दुर्वह भार खसौलनि
गृह विहीन बनलहुँ अनाथ हा,
हमर अभाग, मंथरा-दासी?
आउ, आउ हे राम, प्रवासी? ।।3।।
सोनक लंकापर विजयी भऽ
सीता संग कखन घर अाएब?
बीतल विपिनक अवधि, अपन
अधिकार कहू कहिया धरि पएब?
परिजन सकल भोग भोगथि आ-
अहाँ बनल तपसी-सन्यासी।।
आउ, आउ, हे राम, प्रवासी? ।।4।।
भरत अहाँ विनु पर्णकुटीमे
कुश आसनपर कानि रहल छथि
अहँक पादुकाकेँ अवधक-
ऐश्वर्योसँ अधि मानि रहल छथि
थाकल चरण चापि रगड़ब-
पदतल, बैसब पौथानक पासी।।
आउ, आउ हे राम, प्रवासी?।।5।।
2) “गौरी रहथु कुमारी”
हएत नहि ई वियाह हे,
गौरी रहथु कुमारी?
बर बूड़ल बौराह हे,
धिया शुचि सुकुमारी।।१।।
चामक सेज, कुगामक बासी
खन कैलाश, खनेखन काशी
लागथि बुत्त भुताह हे,
गौरी रहथु कुमारी।।२।।
मुण्डक माल, ब्याल तन मंडित
हस्त कपाल, मसानक पंडित
अनुखन बिक्खक चाह हे,
गौरी रहथु कुमारी।।३।।
यध्यपि भाल सुधाकर, सुरसरि-
बहथि बेहाल चरण धरि झरि-झरि
तध्यपि धहधह धाह हे,
गौरी रहथु कुमारी।।४।।
कोठी कोठी भाङ भकोसथि
कामरि-कामरि पानि घटोसथि
आनक की निरबाह हे,
गौरी रहथु कुमारी।।५।।
भागलि, सखिगण सुनू कामेश्वर,
गिरिजा छथि रूसलि कोबर घर
जुनि बनु एहेन बताह हे,
गौरी रहथु कुमारी।।६।।
सासुर धरि शिव भाभट समटू
परिछए िदयऽ सुनू हे बङटू
बनलहुँ वर उमताह हे,
गौरी रहथु कुमारी ।।७।।
१.राजदेव मंडलक ४टा कविता
राजदेव मंडलक चारिटा कविता-
1) मिलन-बिछुड़न
अहाँसँ होइत अछि जखन मिलन
बहए लगैत अछि मलय पवन- सन-सन
झड़ए लगैत अछि मेघसँ छोट-छोट बून
फुला जाइत अछि मनक प्रसून
गाबए लगैत अछि भ्रमर- गुन-गुन
चिड़ैक चहक मादक-महक
प्रसन्नताक- दमक
मिलैत अछि पूर्ण शांति आर सुख
पड़ा जाइत अछि दुख
किन्तु होइत अछि जखन बिछुड़न
दुखसँ भरि जाइत अछि तन-मन
सूखि जाइत अछि मनक फूल
जेना रहि रहि गड़ैत अछि शूल
मनमे भरए लगैत रोष
बेचैनी आओर असंतोष
हे सखी- करू कोनो उपाय
जे दुनूसँ ऊपर उठि जाय
मिल जाए त्राण
दुनू भऽ जाए समान।
2) परिवारक गाछ
रौद रहै तीखर
गाछ लने कपारपर
घामसँ नहाएल स्त्री
जा रहल छलीह सड़पपर
कथीक गाछ छी ई केहेन फड़त
एतेक रौदमे ई नइ मरत
हम गाछक नाम पुछलौं बारम्बार
ओ कहलक एकर नाम अछि परिवार
एहिमे शिक्षाक फल फड़त
खाएत बाल-बच्चा तँ
ज्ञानक इजोत करत
हमरे परिश्रमसँ ई हेतै विशाल
एकरा नहि खा सकत कोनो काल
पालि-पोसि कऽ बनाएब बलवान
बढ़तै सबहक मान-सम्मान
जेना कऽ पटेबै तेहने फड़त
जँ कष्टमे रहबै तँ गिर पड़त
हम मुँह दिश अकबका कऽ तकलहुँ
पूछलिऐ-अहाँक बात नहि बुझि सकलहुँ
सुनि हमर वाणी
ओ बुझलक हमरा अज्ञानी।
3) त्रिशंकु
आँखिपर लगल अछि निन्नक झँपना
देखि रहल छी डेराओन सपना
घुरि कऽ आबि गेल छी गाम
लादने समान पत्नी अछि वाम
सपनोमे यादे अछि ओ दिन
एतेक दुख कोना कटलो गिन-गिन
दस मास पूर्व भागल रहि प्रेमिकाक संग
सामाजिक नियमकेँ कऽ देलिऐक भंग
शहरमे मित्र करैत छल काम
दुनू गोटे पहुँचलहुँ ओहिठाम
एकान्तमे मित्र बैठौलक साथ
समझाबए लागल सभ बात-
“उपरसँ जातिक टंटा
आर लगतह पुलिसक डंटा
अनकर बेटी रखने सँग
पकड़ि कऽ तोड़ि देतह अंग-अंग
गाबले गीतकेँ आब नहि गाबह
कोर्ट जा जल्दी वियाह कऽ आबह
कएलहुँ अन्तर्जातीय वियाह
किछु लोक कहलक वाह-वाह
किछु कहलक बड्ड अधलाह
छोटकामे कएलक वियाह
खादिमे धसि गेलाह
काटि दस मासक प्रवास
पहुँचल छी घरक पास
पत्नी संगे ठाढ़ छी गोसॉंइ दुआरिक आगा
पछुआरक गाछपर काँए-काँए करैत अछि कागा
हमरा बापक मुइला भऽ गेल साल दु साल
फेर ई कतएसँ पहुँचि गेला तोड़ैत ताल
देखैत छी गोसाउनिक अगाड़ीमे
नीर भरल अछि थारीमे
जाहिमे धड़ विहीन बाबूक सिर नाचि रहल अछि
क्रोधमे गलगला कऽ बाँचि रहल अछि-
“ओहिठाम ठाढ़ रहू एमहर आबि नहि सकैत छी
कुलदेवतासँ असीरवाद पाबि नहि सकैत छी
जखन क्रोधसँ देवता जेतह जागि
धन-जन आ घरमे लगतह आगि
मुँह लटकौने केकर तकैत छहक राह
उनटे पाएर घुिर जाह
गोहराबह देवता-पित्तरकेँ
मांगह सभसँ माफी
एतबेक नहि छह काफी
जा करऽ सात बेर गंगा स्नान
बचाबह कुलक मान
एहि कुलच्छनीक छोड़ि आपस आउ
यौ बउआ अपन प्राण बचाउ”
एकटा पाएर बाहर एकटा अछि घर
अस्सी मन भारसँ दवा रहल छी तरेतर
बाप दिश तकबाक नहि अछि साहस
पत्नीक आँखिमे झाँकि रहल छी
डरे थर-थर काँपि रहल छी
हेऔ एहिसँ नीक छूटि जाइत प्राण
तर धरती नहि उपर आसमान
मध्य भागमे अटकि गेल छी
नहि कऽ सकैत छी प्रेम
त्रिशंकु जकाँ लटकि गेल छी
किछु नहि फुराइत अछि की करबै आब
पत्नीकेँ की देबै जवाब
नहि एहिपार नहि ओहिपार
धऽ लेने अछि जड़ैया बोखार
एखनहुँ नहि सपना छोड़ि रहल अछि
कंठ पकड़ि कऽ तोड़ि रहल अछि।
4) अनमोल जीनगी
“हारल जीनगी जीएब ताहिसँ नीक
रणक्षेत्रमे मरि जाएब से अिछ ठीक”
यौ मित्त अहाँक ई गप्प हमरा नहि लगल नीक
जीनगीक संगे रहतैक हारि आर जीत
कखनहुँ कानैत अछि लोग कखनहुँ गाबैत अछि गीत
किछुकाल करैत अछि झगड़ा किछुकाल करैत अछि प्रीत
जँ भऽ जाए जीनगीक युद्धमे हारि
फेरसँ लिअ अपनाकेँ सम्हारि
छोड़ि शोक मनकेँ राखि नीरोग
मृत्युसँ नीक जीवनक सदुपयोग
करबाक चाही समाज आ राष्ट्रक हित
यएह तँ अछि जीवनक मूल्य यौ मित्त
पकड़ि लिअ कोनो सुन्नर राह
सभ कहत वाह-वाह
बाजू हरपल मधुर बोल
जीनगी अछि अनमोल
बढ़ाउ संसारसँ मेलजोल
बढ़ि जाएत जीवन मोल!
..
ज्योति सुनीत चौधरी जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
विचित्र श्रद्धा
एक दिस देश डूबल पानिमे
बाढ़ि सऽ दहाइत घरद्वार
दोसर ठाम लाखक लाख लागल
मूर्तीपूजन आ पाबैन त्योहार
केहेन विचित्र श्रद्धा अछि ई
किएक बिसरि रहल छी परोपकार
ईश्वर अहाँ जौँ भेटितौँ तँ पुछितहुँ
नीक लागैत अछि की एहेन सत्कार
पाइक जोर अहूँकेँ बदलने अछि
कि अखनो सुनैत छी पावन पुकार
एक सिद्धान्तवादी लेल धनार्जन
कतेक दुर्लभ भेल से अछि देखार
भ्रष्टाचारक लूटल पाइ सऽ
भऽ रहल अछि अहाँक सिंगार
दिनोदिन संघर्ष कऽ रहल अछि
मात्र जीबै लेल कर्म करनिहार
जौँ अहाँ सच्चे मोन मे बसै छी
तऽ मोन नहि करैत अछि स्वीकार
धूप जरा कऽ आडम्बर किएक
कर्त्तव्य पूर्तिमे अहाँक जय जयकार
सभमे सत्कर्मक शक्ति भरितहुँ
तऽ होइतै वास्तविक चमत्कार ।
१.जगदीश प्रसाद मंडलक दूटा कविता २.चन्द्र शेखर कामति, भात छै नाम-नाम १
जगदीश प्रसाद मंडलक दूटा कविता-
1) गंग स्नान
उठि भोरे छोड़ि घर, चललौं नहाए गंग
घर-परिवार समेटि, देह धरौल अंग
अन्हरोखक राह हराएल, झल-फल करै आँखि
दुनू डेन पसारि, लगौल माछक पाँखि
दिन जगल रश्मि छिड़िआएल, देखल तक्खन गाम
लटुआइल फुलवारी सुखैत, पहुँचल एक सुरधाम
सभ पापक जननी अहाँ मैया
जुनि बिलहू अपन सनेस
दूध बुझि भक्तजन पीबै
सनकि पड़ाए दूरदेश।
2) सरस्वती बंदना
साले-साल किअए अबै छी
झणे-झण अबैत रहू
हर क्षण हर मनकेँ
अमृतसँ भरैत रहू।- क्षणे-क्षण...
नव शक्तिक नव उत्साह दऽ
सृजन शक्ति भरैत रहू
कर्म-ज्ञानकेँ घोड़ि-घोड़ि
सिनेहसँ सिनेह सटैत रहू।- क्षणे-क्षन...
जे हूसल से हम्मर हूसल
तइले किअए छी कलहन्त
सभ जागैए सभ सुतैए
एक दिन हेतै सबहक अंत
नजरि-उठा देखैत रहू।- क्षणे-क्षण...
देवी अहाँ, मैया अहाँ
भेदि कतौ अछि कहाँ
जोड़ल आँखि उठा-उठा
पले-पल देखैत रहू
क्षणे-क्षण अबैत रहू।
२.
चन्द्र शेखर कामति, शिक्षा- एम.ए. (राजनीतिशास्त्र), पिता- स्व. योगेन्द्र कामति, गाम-पोस्ट- करियन, भाया- इलमास नगर, थाना- रोसड़ा, जिला- समस्तीपुर, बिहार। समप्रति- प्रखण्ड सहकारिता प्रसार पदाधिकारी (बेनीपट्टी)
भात छै नाम-नाम
(बाल साहित्य)
भात छै नाम-नाम, दालि छै गोल
तेहिपर चड़हल आलुक झोड़
कने दही दीयऽ कने बड़ी दीयऽ-2
छोटकी कनियाँ आबै छथि,
ओ भानस खूब बनावै छथि,
हुनका हाथक बनल तरूआ,
तरकारी सभकेँ भावै छै,
छैक नोन-तेल सभ ठीक-ठीक,
लागै छन्हि सभकेँ बड़ नीक,
कने दही दयऽ, कने बड़ी दीयऽ-2
भात छै नाम-नाम दालि......
छोटकी केर छोटका कनटिरबा
सभ काँय-काँय किकियाबय छै
तइयो बेचारी मोन मारि-मारि
अप्पन संसार चलावय छै,
केतवो केओ लाख सताबै छै
दुब्बर दुलहा, दुलहिन मोट
तै पर सँ दे लाठिक चोट-
कने दही दीयऽ कने बड़ी दीयऽ-2
भात छै नाम-नाम, दालि छै गोल
तेहि पर चड़हल आलुक झोड़
कने दही दीयऽ, कने बड़ी दीयऽ-2
१.मृदुला प्रधान- कतय गेल गणतंत्र -दिवस २.अरविन्द ठाकुर- चारिटा गजल
१
मृदुला प्रधान कतय गेल गणतंत्र -दिवस
कतय गेल गणतंत्र -दिवस ,
झंडा क गीत
कतय सकुचायल ,
दृश्य सोहनगर ,देखवैया
छथि, कतय नुकायल .
लालकिला आर क़ुतुब मिनारक
के नापो ऊंचाई ,
चिड़िया-घर जंतर -मंतर क
छूटल आवा-जाही .
पिकनिक क पूरी -भुजिया ,
निमकी ,दालमोट ,अचार,
कलाकंद ,लडूक डिब्बा लय,
मित्र ,सकल परिवार ,
कागज़ के छिपी-गिलास
थर्मस मे
भरि-भरि चाय,
दुई-चारि ता शतरंजी
वा चादर लिय,
बिछाय.
इ सबहक दिन
बीति गेल,
आब 'मॉल' आर 'मल्टीप्लेक्स',
दही -चुड़ा छथि
मुंह बिधुऔने,
घर -घर बैसल
'कॉर्न-फ्लेक्स'.
कम्प्यूटर पीठी पर
लदने,
मुठ्ठी मे मोबाइल,
अपने मे छथि
सब क्यो बाझल,
यैह
नवका 'स्टाइल'.
२
अरविन्द ठाकुर गजल-१
छिछिआइछ उत्कंठा हमर खन आर लग, खन पार लग
हमर लिखल उजास सभक मोल की संसार लग
जाल मुँहमे बोल नञि, छपय बहेलिया के बयान
चिड़ैक बोली बुझत से नञि लूरि छै अखबार लग
रंगबिरही जिनीससँ ठाँसल रहै सभटा दोकान
किन्तु जन-बेचैनी के औषधि नञि रहै बजार लग
एक समझौता सँ शासन वामनक सरकस बनल
नञि छलै पट्ठा कोनो दमगर बचल दरबार लग
बुन्न मे सागर भरल, अणु मे भरल ऊर्जा अपार
बिन्दु सरिपहुँ लम्बवत भए ठाढ़ होइछ आधार लग
लोक-लादल नाह बाढ़िक पानि मे अब-तब मे छै
ओ घिंचाबय छथि फोटो बान्ह पर पतवार लग
नफा के वनतंत्र मे पग-पग बिचौलिया रक्तबीज
अकिल गुम्म अछि, केकर मारफत अर्जी दी सरकार लग
उपरचन्ती माल के चस्का चढ़ल “अरबिन” एतेक
बनल छी लगुआ कि भिरुआ, जायब नञि अधिकार लग
गजल-२
जनहित के एहि बजट मे एखन वित्तीय-क्षति अनुमाने पर अछि
हमरा एना किऐ लगैछ जे संकट हमर प्राणे पर अछि
अयोध्या मे रामलला लेल किऐ पड़ल बूइयाँ के संकट
भू-अर्जन के अखिल भारतीय भार जखन हनुमाने पर अछि
सगर देश के सभ इनार मे बैमानी के भांग घोरायल
बनखांट मे बैमानी के जांच-भार बैमाने पर अछि
लूटि-कूटिकए, भीख मांगिकए पेट भरैए लोक, तखन
संविधान केँ आत्मघात सँ तोड़ैक दोष किसाने पर अछि
मार्क्स आर एंजेल्स केँ पीयल, घंटल लाल-किताब मुदा
मोनक कोनो अन्तर्तम मे बस भरोस भगवाने पर अछि
गजल कहैत “अरबिन” जेना हम परकाया-प्रवेश केलहुँ
ने निज के अछि बोध, ने अपन चित आ अकिल ठेकाने पर अछि
गजल-३
तुरछल हमर सौभाग्य, हमर छाहरिक छाहरि सँ भागय
जेना जड़काला मे सेरायल लोक पर सँ रौद भागय
भाव के लतनर्दन करय, सटका बजारय बेर-बेर
हीत-मीतक चोट सहितहुँ मोन सँ नञि मोह भागय
निन्न के कोरा मे रहितहुँ किछु सजग भए कए रही
चोर-दरब् आजा बहुत, देखब, कोनो सपना ने भागय
रूप-रस लोभी भ्रमर सन छै पुरुष के जाति ई
सम्बन्ध के सिक्कड़िसँ बान्हू, ऊबिकए छलिया ने भागय
एना भागैछ कुकुर-मोन, कुतिया-विमुख, भोगक पछाति
मारि डर सँ भूत आ कंगाल-घर सँ चोर भागय
इजोतसँ सकपंज छथि काजर के घर मे रहनिहार
शायर सदति चैतन्य “अरबिन”, कोन विधि अन्हार भागय
गजल-४
मदन हमर आँखि पर रंगीन सन जाली लगाबय
पात हुनकर देह आ टुस्सी हुनक कनफूल लागय
नीलहा परिधान सँ छिटकैत हुनक देहक प्रभा
शरद मासक व्योम मे ज्योँ पूर्णचन्द्र आभा जगाबय
हुनक प्रतिमा हृदय मे बद्धमूल भेलछि एहन सन
जेँकि अलगाबय छी बल सँ, हृदय के सभ तन्तु फाटय
ई हँसी, ई अंगभंगी, ई कटाक्षक तनल वाण
मन्मथ के कारावास मे बान्हल कोनो कैदी की भागय
यक्ष छी “अरबिन”, धरा पर आयल छी हम शापवश
मोन के परिताप सँ अंतःकरण झरकैत बुझाबय
गजेन्द्र ठाकुर गजेन्द्र ठाकुर, पिता-स्वर्गीय कृपानन्द ठाकुर, माता-श्रीमती लक्ष्मी ठाकुर, जन्म-स्थान-भागलपुर ३० मार्च १९७१ ई., मूल-गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी।
लेखन: कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्ड- खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना, खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि), खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर), खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ), खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण), खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन ), खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नामसँ।
मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोशक ऑन लाइन आ प्रिंट संस्करणक सम्मिलित रूपेँ निर्माण। पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यंतरण "जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.)-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध" नामसँ।
मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएक टा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएक टा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद।
उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद १.अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ), २.कोंकणी, ३.कन्नड़ आ ४.संस्कृतमे कएल गेल अछि; आ एहि उपन्यासक अनुवाद ५.मराठी आ ६.तुलुमे कएल जा रहल अछि, संगहि एहि उपन्यास सहस्रबाढ़निक मूल मैथिलीक ब्रेल संस्करण (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक) सेहो उपलब्ध अछि।
कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे।
अंतर्जाल लेल तिरहुता आ कैथी यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।
शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२ खण्ड-८ (प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग, २.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास स॒हस्र॑ शीर्षा॒ , ३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह स॑हस्रजित् ,४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह शब्दशास्त्रम् ,५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक उल्कामुख ,६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध नाराशं॒सी , ७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक- जलोदीप, ८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह- बाङक बङौरा , ९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह- अक्षरमुष्टिका ।
सम्पादन: अन्तर्जालपर विदेह ई-पत्रिका “विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ क सम्पादक जे आब प्रिंटमे (देवनागरी आ तिरहुतामे) सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि- विदेह: सदेह:१:२:३:४ (देवनागरी आ तिरहुता)।
घृणाक तरहरिमे बुढ़िया डाही संग अछि
१
घृणाक तरहरिमे
प्रेम, मुस्कीसँ जीतब घृणा आ ईर्ष्याकेँ
घृणाक तरहरि खूनऽ दियौ
ओहि तरहरिमे घृणाकेँ गारि देबै
अपन प्रेमक शक्तिसँ
हँसैत- मुस्कियाइत करबै आग्रह
जे परिश्रम घृणाक तरहरि बनबऽमे लगौलक
कहबै प्रेमक पोखरि काटऽ
जाहिमे प्रेमक पानि बरखा मासमे भरि जाएत
आ भरले रहत ततेक गहींर कऽ काटल रहत माटि
ओहिमे हेलत प्रेम
हेलैत रहत
आ बहि जाएत, डूमि जाएत घृणा आ ईर्ष्या
डूमि जाएत आ बझा कऽ लऽ जएतै पनिडुब्बी ओकरा
जावत हम रहब
नै छूबि सकत क्यो प्रेमक सत्यक पुत्रकेँ
कारण शक्तिसँ, ऊर्जासँ भरल अछि सत्यक पुत्र
ओकर चारूकात स्थूल-प्रेमक गिलेबासँ ठाढ़ कएल घेराबा रहत
नै करू चिन्ता।
आ जहिया हम नै रहब
सीखि जाएब अहाँ सभ किछु
हमर वियोग बना देत सक्कत, तीव्र आ कठोर
सत्यक विरोधीक लेल
ओहि घेराबाकेँ तोड़बाक प्रयास
अहाँक स्थूल-प्रेमी मित्र सभ नै हेमऽ देथिन्ह सफल
से हम रही वा नै रही
प्रयाण थम्हत नै
बतहपना बढ़त नै
मारि देब तँ मारि दिअ
मुदा मोन राखू
हमरा संगे मरत आर बहुत रास वस्तु
मुदा रहबे करत स्थूल-प्रेमी साधक सभ
आ करत पहिल नृत्य हस्त संचालनसँ
चतुरहस्त
आनन्दसँ भरल मोन
सत्य, झूठ आ तकर निर्णयक लेल
सनगोहिक चामसँ छारल डफ-खजुरी लए
डोरीक कम्पनसँ ध्वनि निकालत
गुमकी, ओहि खजुरीक ध्वनि
आ गुमकी, गुम..गुम..गुमकी...
आ तखन दोसर नृत्य होएत प्रारम्भ
शिखरहस्त
पर्वतशिखरसन
युद्धक आवाहन-प्रदर्शनक लेल
घृणाक तरहरि खूनऽ दियौ
मारि देत तँ मारऽ दिऔ
मोन राखू मुदा
हमरा संगे मरत आर बहुत रास वस्तु
मुदा हमर वियोग बना देत सक्कत, तीव्र आ कठोर
रक्तबीजी सत्यपुत्र सभकेँ
२
बुढ़िया डाही संग अछि
कमलक मृणाल, पुरैनि, कमलगट्टा, बिसाँढ़सँ भरल खेत
ओ नहि छथि बुढ़िया डाही
खेत जे छलै सनगर यौ
से बनल प्रेमक कमलदह
घृणाक विरुद्ध अछि हमर ई बुढ़िया डाही
फेर वएह गप
आत्मरक्षार्थ
सत्यक विरोधमे
चोरबा बाजल फेर
सर्जनक सुख भेटत चोरिमे?
दोसराक कृति अपना नाम केलासँ
आकि दोसराक मेहनतिकेँ अपन नाम देलासँ
दोसराक प्रतिभाकेँ दबा कऽ
कुटीचालि कऽ आर
भाँग पीबि घूर तर कऽ गोलौसी
कोनाकेँ आँगुर काटब जे लिखब बन्न करत
तोड़ि दियौ डाँर, काटि दियौ पएर
आँखि निकालि लिअ धऽ दियौ रॉलरक नीचाँमे
पिसीमाल उठा दियौ
बड़का एलाहेँ सर्जनक सुख पएबाले
तँ की हारि जाइ
तँ की छोड़ि दिऐ
इच्छा जीतत आकि जीतत ईर्ष्या
संकल्प हमर जे एहि धारकेँ मोड़ि देब
मुदा किछु ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ईर्ष्या जे हम धारकेँ नहि मोड़ि पाबी
बहैत रहए ओ ओहिना
ओहिना किए ओहूसँ भयंकर बनि
संकल्प जे हम केने छी
इच्छा जे अछि हमर/ से हारि जाए
आ जीति जाए द्वेष/ जीति जाए ईर्ष्या
हा हारबो करी तेना भऽ कऽ जे लोक देखए!/ जमाना देखए!!
तेना कऽ हारए संकल्प हमर/ इच्छा हमर
धारकेँ रोकि देबाक/ ठाढ़ भऽ जएबाक सोझाँ ओकर
आ मोड़ि देबाक संकल्प ओहि भयंकर उदण्ड धारकेँ
मुदा किछु आर ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ओ द्वेष चाहैए जे हमर प्रयास/ धारकेँ मोड़बाक प्रयास
मोड़लाक प्रयासक बाद भऽ जाए धार आर भयंकर
पुरान लीखपर चलैत रहए भऽ आर अत्याचारी
आ हम जाए हारि
आ हारी तेना भऽ कऽ जे लोक राखए मोन
मोन राखए जे कियो दुस्साहसी ठाढ़ भऽ गेल छल धारक सोझाँ
तकर भेल ई भयंकर परिणाम
जे लोक डरा कऽ नहि करए फेर दुस्साहस
दुस्साहस ठाढ़ हेबाक उदण्ड-अत्याचारी धारक सोझाँमे
लऽ ली हम पतनुकान/ आ से सुनि थरथरी पैसि जाए लोकक हृदयमे
मुदा हम हँसै छी
हारि तँ जाएब हम मुदा हमर साधनासँ जे रक्तबीज खसत
से एक-एकटा ठोपक बीआ बनि जाएत सहस्रबाढ़नि झोँटाबला
घृणाक विरुद्ध थाढ़ अछि हमर ई बुढ़िया डाही।
कमलक मृणाल, पुरैनि, कमलगट्टा, बिसाँढ़सँ भरल खेत बनत
खेत जे छलै सनगर यौ, जाहिमे घृणाक तरहरि खुनेलौं यौ
घृणाक तरहरि खूनल ओहि खेतमे
कमलक मृणाल, पुरैनि, कमलगट्टा, बिसाँढ़ अछि भरि गेल
प्रेमक कमल अछि फुला गेल।
सहस्रबाढ़नि झोँटाबला बुढ़िया डाही केलक ई।
आ तखन
फैसला हेतै आब
जखन
उनटि जाइए लोक
उनटि जाइ छै बोल
छने-छन बदलि जाइए
बिचकाबैए ठोर
बोलक मधुर वाणी
बोली-वाणी
बदलि जाइ छै
बनि जाइए बिखाह
गोबरझार दऽ चमकाबै छी स्मृतिकेँ
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ छलि तहियो हमर ई बुढ़िया डाही।
धारकेँ रोकबाक हिस्सक जकरा लागि गेल छै
आ ओ सभ तकर विरुद्ध ठोकि कऽ टाल
भऽ जाएत ठाढ़
आ डरा जाएत द्वेष स्मरण कऽ
जे फेर रक्तबीजसँ निकलल एहि सहस्रबाढ़नि सभक रक्तबीज
एकर सभक बीआक सन्तान फेर आर बढ़ि जाएत आक्रमणसँ
कारण संकल्प अछि, इच्छा अछि ई सभ
धारकेँ रोकबाक हिस्सक जकरा लागि गेल छै
घृणाक विरुद्ध अछि जे जकरा बुढ़िया डाही अहाँ कहै छिऐ।
१.इन्द्र भूषण-हम की करू? २.राजेश मोहन झा-“साओन कुमार” इन्द्र भूषण
हम की करू?
जँ गाबी सभ कहैए
कनै किएक छिऐ?
जँ कानी सभ कहैए
ई की गबै छिऐ?
जँ चुप रहू सभ कहैए
बाजै किएक नहि छिऐ?
जँ बाजी सभ कहैए
हल्ला किएक करै छिऐ?
आखिर बाजू वा चुप रहू?
हम की करू?
केओ कहैत अछि
अहाँ ई किएक नहि करै छिऐ
केओ कहैत अछि
अहाँ ओ किएक नहि करै छिऐ
ई करू तँ
ओ प्रसन्न होइत अछि
ओ करू तँ
ई रूसि जाइत अछि
सबकेँ मनाऊ कोना
हम की करू?
बिना पुछने करू तँ कहैए
पुछलौँ किएक नहि
जँ पुछिऐ तँऽ कहैए
अपने किएक नहि सोचै छिऐ
अपना समझसँ करू तँ कहैए
सदिखन एना मनमरजी किएक करै छिऐ
अपन पक्ष सभकेँ बुझाऊ कोना
हम की करू?
२.
राजेश मोहन झा 1981- उपनाम- गुंजन, जन्मस्थान- गाम+पत्रालय- करियन, जिला- समस्तीपुर, हास्य कविताक माध्यमसँ समाजक विगलित दशाक वर्णन। बाल साहित्यमे विशेष रुचि।
“साओन कुमार”
(वाल साहित्य)
उछलि-कूद करै छेँ वौआ
एहि ऋृतुक तोरा भान कोना छौ
टरटराइत छेँ कादो सानल जलमे
स्वर सरगमक ज्ञान कोना छौ
झर-झर झहरौ ऋृतु िनरझरनी
सभा बजौलें डोबहा कातमे
छोट-छोट जलकुमही पातक
टिकुली सटने छेँ मुॅंह आ गातमे
भेटथुन एहिठॉ प्रियतमा तोहर
एहि सबहक अनुमान कोना छौ...
आबेँ बैसेँ कनेक सुस्तावेँ...
हेतै जे से देखल जएत
मेघदूतक शान बढ़ल छै
नहि पोखरिक पानि सुखएत
औता भुजंग लप्प दऽ धरता
एहि सभसँ अनजान कोना छेँ
जनैत छी किछु जन तोरा
कूप मंडूक कहि उपहास करै छथि
नहि जनैत छथि तोहर महिमा
मुदा गलती अनायास करै छथि
चनहा सोती इनार वा सरिता
सभठॉ जीवन आसान कोना छी....
एकटा अपराध तुहू करै छेँ
जखन-तखन तों बाढ़ि अनै छेँ
जानै छी मानै छी मुदा की करू
नेना वियोगमे खूव कनै छेँ
दलवल आवे गीत सुनावे
मात्रा तालक वरदान कोना छौ....।
किशन कारीग़र
परिचय:- जन्म- 1983ई0 कलकता में ,मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ , माताक नाम- श्रीमती अनुपमा देबी। मूल निवासी-ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी बिहार। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक, आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं लघु कथा,कविता,राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी।शिक्षाः-एम फिल पत्रकारिता एवं बी एड कुरूक्षे़त्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।
नबकनियाँ
मोन रखियौ कनेक हमरो पिया
सोलहो सिंगार कए बैसल छी हम एसगर
भेंट होएब कहिया अहॉ मोन मे आस लगेने
अहॉक बाट तकैत छी हम एसगर।
कौआ कूचरल भोरे-भोर
चुपेचाप हमरा केलक सोर
कहलक जल्दीए औतहुन तोहर ओझा
लिपिस्टीक लगा हम रंगलहुॅ अपन ठोर।
परदेश जाइत-मातर यौ पिया
किएक बिसैर जाइत छी नबकनियॉ के
नहि बिसरब कहियो परदेश मे हमरा
सपत खाउ हमरा पैरक पैजनीयॉं के।
जूनि रूसू अहॉ सजनी नहि घबराउ यै
मोन पड़ैत छी अहॉ तऽ लगैत अछि बुकोर यै
मुदा कि करू नहि भेटल तनखा समय पर
नहि किनलहुॅ अहॉंक लेल लहंगा पटोर यै।
साड़ि पहिर हम गुजर कए लेब
नहि चाहि हमरा राजा लहंगा पटोर यौ
अहॉक सुख-दुख मे रहब सहभागी
देखितहुॅं अहॉ के ऑखि सॅ झहरैत अछि नोर यौ।
अहिंक बियोग मे दिन राति जरैत छी
इजोरिया मे टुकूर-टुकूर अहिं के देखैत छी
अहिंक संग एहि बेर घूमब चैतीक मेला
मोने मोन हम एतबाक नियार करैत छी।
बड्ड केलहुँ नियार अहॉ आबि कऽ देखू
मुस्की माइर रहल छी हम चौअनियॉं
जल्दी चलि आउ गाम यौ पिया
चिªट्ठी लिख रहल अछि एकटा नबकनियॉं।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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