जगदीश प्रसाद मण्डल- चारिटा लघुकथा, ज्योति सुनीत चौधरी- नबका पीढ़ी, दुर्गानन्द मंडल- किसना मुट्ठी, कपिलेश्वर राउत- कलियुगक निर्णए, धीरेन्द्र कुमार- राम-कथाक समापन, राजदेव मंडल- दूटा लघुकथा, बेचन ठाकुर- दूटा लघुकथा, राम प्रवेश मंडल- बुरबक, भारत भुषण झा- प्रेम, मानेश्वर मनुज- पाँचटा लघुकथा, उमेश मंडलक दूटा लघुकथा, गंगेश गुंजन- लाट साहेबक किरानी, डॉ. शेफालिका वर्मा- आनक बड़ाइ, प्रेमचन्द्र पंकज- क्रमश:.,कुमार मनोज कश्यप- पाँचटा लघुकथा, विनीत उत्पल श्री गुरूवै नम:, डॉ . धनाकर ठाकुर-हमरा एकर एक बायोडाटा चाही, आशीष अनचिन्हारक दूटा लघुकथा, सतीश चन्द्र झा-नोकरी, किशन कारीग़र- मूरही-कचरी, गजेन्द्र ठाकुरक चारिटा लघुकथा
जगदीश प्रसाद मण्डल चारिटा लघुकथा
१) थल-कमल
जहिना अगुरबार दरमाहा उठा परदेशी घरक काज सम्हारैक लेल पत्नीकेँ पठबैत आ ओहि रूपैयासँ, टावरक किरदानीसँ अकछि तेसर मोबाइल कीनए जाइत तहिना झंझारपुरक हाटक चाउर-दालिक बजारमे ठकाइ देहरादून चाउरक दोकानक आगूमे ठाढ़ भऽ आँखि गरौने। थालमे जनमल कमलक भौंरा सदृश्य ठकाइक मनमे उठलै- ऽसात दिनसँ दुनू संझी नवका गहूमक रोटी खाइत एलौं, भूसीपर पाइ उठा चाउर कीनए एलौं, जे सस्त हएत सहए ने कीनब।ऽ
मुदा लगले थल-कमलक बिढ़नी जकाँ मन घुनघुनाएल- ऽचाउर तँ चाउरे छी, तहन नीक किअए ने कीनब।ऽ
ओझराएल मने ठकाइ सइओ रूपैआमे किलो भरि चाउर कीनि, गमछाक खूँटमे बान्हि, तमाकू चुनबैत घरमुँहा भेल।
बीघा भरि बटाइ खेतक उपजासँ छह मासक बुतात निकलि जाएत। बैशाखक पूर्णिमाक दिन। गहूमक लरती-तरती आबि गेल आ धान-चाउरक चलि गेलै। बाड़ीक तरकारी निङहटि गेल छलैक, लऽ दऽ कऽ पटुआक साग टा छलैक। सेहो रोटी दुआरे छोड़िये देने। पटुआ सागसँ नीक नोन-मेरिचाइ।
हाट जाइये काल परसुका ढोलहो ठकाइकेँ मन पड़ल। मन पड़िते मुँहसँ हँसी निकलल। मुदा हँसी रूकल नहि मोकरक पानि जकाँ बहिते रहि गेल। बाटो चलै आ असकरे हँसबो करै। तहि बीच एकटा अधवयसू स्त्रीगण माथपर छाउरक पथिया नेने देखलनि तँ मने-मन घुनघुनेलीह- “पुरूख छी की पुरूखक नांगड़ि। केदैन हँसला कीदैन देखि।” मुदा किछु बजलीह नहि।
ठकाइक खुशीक कारण छलैक जे ढोलहो दऽ सोरहा केलक जे ईंटा-सिमटीक घर, पानि पीबैले कल, खाइक उपाए एक सए पच्चीस रूपैयाक प्रतिदिन काज, रोग-व्याधिक लेल खरतुआ दवाइ सभकेँ भेटत। जखन सब चीजक उपाए भइये गेल तखन किअए लोक अनेरे मनकेँ भरयौने रहत। तेँ मन खुशी। दरदे ने ककरो माथ टनकै छै जौं दर्द रहबे ने करतै तँ माथ किअए टनकतै।
गामक सीमान टपिते ठकाइक मनमे उठल। देवियो-देवता हारि मानतीह। बड़ दइ छेलखिन ते एक दिआरी साँझमे समांग, विद्या, धन दइ छेलखिन। ईंटा-सिमटीक घर, पानि पीबैक कल आकि सवा सौक बोइन तँ नहि दइ छेलखिन।
किलो भरि चाउरक मोटरी देखि आंगन बाहरैत बिलटी बाढ़ब छोड़ि, हाथमे बाढ़नि नेनहि तरंगि कऽ पतिकेँ पुछल- “हाटमे चाउर नइ छलै जे छुछे हाथे घुमि गेलहुँ?”
मुस्की दैत ठकाइ बाजल- “आँखिमे रतौनी भेलि अछि जे चाउरक माटरी नइ देखै छीऐ।”
आँत मसोसि बिलटी मने-मन सोचए लागलि जे जेहने पटुआ साग गलनमा होइए तेहने अरबा चाउर। तहूमे मोटका चाउर पाँच दिन चलबो करैत, ई तँ एक्को दिन नइ चलत।
२) घरडीह
आध पहर रातियेसँ, जहिना हथिया आ आन नक्षत्रक सतैहिया लधल रहैत तहिना मास दिनसँ सासु-पुतोहूक बीच झगड़ा लधल आबि रहल अछि। ने बाप उधो किछु बजैत आ ने बेटा फोकचा। फाँक चगह पाबि दुनू -सासु आ पुतोहू- भरि मन उखला-उखली करैत। डेढ़ियापर बैसल उधो सोचैत जे जहिना पत्नी तहिना पुतोहू। धधकल आगिमे आड़ि कना देव तेँ चुप। तहिना फोकचोक मनमे उठैत तेँ ओहो चुपचाप ओसारपर बैसल तमाकु चुना मुँहमे देने रहए।
दस सालसँ दुनूक -सासु-पुतोहूक- मधुर संबंध रहने कहियो हर-हर-खटखट परिवारमे नहि भेल। अनायास हवा बदलि गेल। पाँच गोटेक परिवारमे- बाप-माए, बेटा-पुतोहू आ एकटा पोता। संबंध िबगड़ैक कारण भेलैक इन्दिरा आवास।
जेहने टाँस बोली नवानीवाली सासुक तेहने रहुआवाली पुतोहूक। सौंसे गामक लोक सुनैत।
अपना घरक मुँहथरिपर ठाढ़ भेल मेहथवाली कबिलपुरवालीकेँ कहलकनि- “पेट बोनिया लोककेँ सदिकाल किछु ने किछु खगले रहै छै। तेँ....।”
मुँह बिजकबैत कबीलपुरवाली बजलीह- “गामक लेखे ओझा बताह आ ओझा लेखे गाम।”
कलपर नवानीवाली रहुआवालीकेँ देखि चिकारी देलखिन- “भगवान पुतोहूओ देलखिन ते दीदीकेँ।”
आँखि उनटबैत रहुआवाली- “अहिना निमूधनकेँ लोक दुसै छै क्यो अपन घेघ देखाए तब ने।”
डेढ़ियापर बैसल उधोक हृदय कुही होइत। कखनो मुँहसँ हँसी निकलैत तँ लगलै बिधुआ जाइत। मनमे उठलै- घरारीक कागज-पत्तर तँ अछिये नहि आ ईंटा-सिमटीक घरले झगड़ा।
३) खाता-खेसरा
ओना इन्दिरा आवासक अंतर्गत दू-चारि घर कतेक सालसँ बनैत अबै छै। मुदा एहिसाल हवा उड़िआएल जे सभकेँ बनतै। चरि-चरि रूपैये फार्मक बक्री ततै भेल जे प्रेसबला सभ तेहरा-तेहरा छपलक। गामसेवककेँ सभ फार्म भरा-भरा ब्लौक पहुँच गेल। हाथमे अपन-अपन फार्म नेने अगनैत परतीमे पतिआनी लगा ठाढ़ भऽ गेल। नम्बर अबिते घुसका फार्म बढ़ौलक। फार्म देखि बीडीयो बाजल- “खाता-खेसरा?”
चुपचाप घुसका आगूमे ठाढ़। बगलमे फार्म रखि बीडीयो फेर बाजल- “पतिआनीसँ कात जाउ?”
घुसका- “सबहक फारमपर लिखि देलिऐ आ हमर रखि देलिऐ?”
बीडीओ- “बिना खेसरा नम्बर चढ़ौने पास नहि हएत।”
घुसका- “पहिने खेसरेक ओरियान किएक ने केलिऐ?”
४) सबूत
तीन दिनसँ गामक रोहनिये बदलि गेल। जहिना रोहनिमे आमक चिष्टा-चार, रंग-रूप, बसंत पाबि मनुष्यक तहिना दस पहिया ट्रकपर तीनि-तीनि आदमीक बोझ, ट्रेक्टरपर झुलैत कुर्सीक बावू कैल, चरक, सिलेव, गोल, गहुमन, चितकाबरसँ भरि गेल। गौआँ चौक छोड़ि गाम पकड़ि लेलक आ आनगौआँ आबि चौक पकड़ि लेलक। मुदा जे हउ, चाहक दोकानक ब्रेंच कखनो खाली नहि रहल।
साढ़े छह बजैत-बजैत सभ हाटक दोकान जकाँ ठौर पकड़ि लेलक। कियो नव परिधानमे सजि तँ कियो सर्फमे साफ कएल वस्त्रसँ सजि भोंटक बुथपर नम्बरमे ठाढ़ भऽ गेल। भुटकुमरा सेहो पतिआनीमे ठाढ़ भेल। जेना-जेना आगूक इंजिन खिचै तेना-तेना अपन अधिकार देखि भुटकुमराक पेटमे गुदगुदी लगैत। जहिसँ मन तर-ऊपर करैत। ससरैत-ससरैत अगिला मुहरापर पहुँच पुरजी बढ़ौलक। पुरजी लैत प्रजाइडिंग अफसर बाजल- “फोटो पहचान पत्र?”
किछु नहि बाजि भुटकुमरा खुशीसँ मुँह नहि खोलि वेबसीक दाँत िचआरि देलक। जेना फोटो खिचबै लए सावधान भऽ गेल हुअए।
दोहरबैत प्रजाइडिंग अफसर बाजल- “ड्राइभरी लाइसैंस?”
“सरकार हम हरबाह छी।” बकझक करैत देखि गेटक चितकबरा सिपाही आबि भुटकुमराक गट्टा पकड़ि घीचने-घीचने सीमासँ बाहर कऽ देलक।
भुटकुमरा बुदबुदाएल- “कोन लपौरीमे पड़ि गेलौं।”
ज्योति सुनीत चौधरी नबका पीढ़ी
फेर पहिने जकां लीफ्टक केबाड़ खुजल की नहि दफ्तर आ विद्यालय जाय बला लोक सबहक भीड़ नीचा जाय लेल लीफ्ट दिस लुधैक गेल ।बच्चा तँ बच्चा़ वयस्कोमे सँ ककरो लग समय नहि रहै। ई दुनु वृद्ध पति-पत्नी सँ नमस्कार पाती करय लेल ।रहै तँ ई रोजक बात मुदा आइ बुढ़ी कनी बेसिये खिसियैल रहथि “ई अछि आजुक पीढ़ी़ कोनो संस्कार नहि ।”
भोरे भोर भ्रमण पर निकलनाइ हिनकर सबहक बिगड़ल स्वास्थ्यक प्रति सचेत रहक प्रयास छलनि जे क़ि डॉक्टर बेटाक परामर्श छलनि। बड प्रयत्नसँ बेटाकेँ पढा़ लिखा चिकित्सक बनेलनि। भेलनि बेटा कोनो बड़का कम्पनीमे सिफ्ट ड्यूटी करत आ खूब कमाओत । मुदा बेटाकेँ आर पढ़ाइक भूत कहिया लगलै से बुझबे नहि केलखिन । विवाह भेलै़ बच्चो भेलै़ मुदा ओ हमेशा व्यस्ते रहल। पिछला तीन सालसँ माय बापक इच्छा रहनि जे ओ दुर्गा पूजामे किछु दिन अवकास लऽ कऽ हिनका सब संगे रहै किन्त़ु संयोग नहि मिलै छल। सभ बेर अन्तमे आबि कऽ कोनो जरूरी काजक बहन्नासँ कार्यक्रम रद्द भऽ जाइत छल। अहि बातपर ओ दुनु बुढ़ा-बुढ़ी वाद विवाद करैत छलथि जे ओ अहि बेर आएत की नहि ।
घूरिकऽ घर एलापर बुढ़ीक सीनामे दर्द उठलनि। प्रेसरक मरीज छली, तैं पतिदेव तुरन्त डॉक्टरकेँ फोन केलखिन। डॉक्टर सब जाँच केलकनि आ कहलकनि जे चिन्तासँ दूर रहू आ सब दवाइ समयपर खाऊ। हुनका सबकेँ तँ बहन्ना चाही छल बहस करै लेल। फेर दुनु गोटे एक दोसरपर आरोप-प्रत्यारोप करए लगलथि। विराम तखने लागल जखन फोनक घंटी बाजल। बेटाक फोन छलनि। मायक स्वास्थ्य बिगड़ल सुनि बेसी बात करए लागल। नहि तँ आन दिन कहाँ अतेक समए रहैत छल। प्रश्न ततेक जे बुझनाइ मुश्किल जे बेटाक फोन छल आ कि चिकित्सकक। बाप सभटा कहलखिन तँ इहो शुद्ध चिकित्सकक भाषामे समएपर दवाइ खाए कऽ उपदेश पियौलकनि। बुढ़ाकेँ एहि बातचीतमे ज्ञात भेलनि जे बेटा कोनो तेहेन शोध कार्यमे लागल अछि जे आब पूरा होइपर अछि आ अकर सफलतासँ सम्पूर्ण मानव समुदायकेँ बड़का कल्याण हेतैक। ओना अतेक डर तँ बुढ़ाकेँ जॉबक पहिल इंटरव्यूमे सेहो नहि भेल रहनि, जतेक पत्नीक तबियत गड़बड़ेलापर बेटासँ बात करैमे होइत छनि।
खएर समय बीतल आ बुढ़ी फेर पहिने जकाँ बाजऽ लगली। घुमनाइक दिनचर्या फेर प्रारम्भ भेल। फेर बीस मिनट सड़कक काते-कात पार्क तक आ पार्कसँ फेर घर वापिस। बुढ़ी जखन बेमार होइत छली तँ बेटाक भावनात्मक सत्कार बड नीक लागैत छलनि। तखने तँ लागैत छलनि, बेटा अखनो हुनका सभकेँ नहि बिसरने छनि। तकर बाद जैने ई सभ ठीक की ओ फेर बिगड़ल। यैह सब सोचि दुनु खुश छलथि। लीफ्टमे चढ़लथि घर पहुँचय लेल। लीफ्ट रूकल की दुनु कात भऽ गेलैथ। मुदा ई की - ओ सब पुछैत छलनि जे अतेक दिन कतय छलथि- घूमए किए ने गेलथि आदि आदि। ओकर सबहक भागैत स्थितिक अनुसारे दुनु शीघ्रतासँ संक्षिप्त जवाब देलखिन। आइ बुझेलनि दुनुकेँ जे नवपीढ़ीकेँ प्रतिस्पर्द्धासँ भरल युगमे जीबै लेल अतेक भागादौड़ी करए पड़ि रहल छै जाहि कारणे औपचारिकताक समय नहि छै मुदा सभमे भावुकता अखनो जीवित छै।
घूमिकऽ लौटलाक बाद बुढ़ी दुनु गोटे लेल कॉफी बनाबैत छली आकि फोन बाजल। बुढ़ा फोन उठेला आ कनिये देरक बाद फोन राखि देलथि। हुनकर मुँहक उदासी कनियो नाटकीय नहि बुझाइत छल। कप पकराबैत बुढ़ी बजली़ “की फेर कुनो काज लागि गेलै।” बुढ़ा हॅंसैत बजला़ “ओ तँ नहि आबि रहल अछि मुदा हमरा सभ लेल टिकट पठा रहल अछि । अहिबेर हम सभ पूजामे संगे रहब ।हम सभ बेटाक घर जाएब आ बेटा पुतहु सहित पोती संगे पाबनि मनाएब।” फेर की छल आब कॉफीक एक एक चुस्की आगाँक कार्यक्रम बनाबैमे बीतल।
दुर्गानन्द मंडल लघुकथा-
किसना मुट्ठी
मरनी भिनसुरके पहर बेलाराही चौरीसँ एक गैलन काकोड़ बीछि अनने रहए। मेला-ठेलाक समए रहै तैं, काेठीसँ दू मुजेला काटू निकालि अंगनामे सुखैले देलकै। ओकर वाद नहा-सोनाह आ खाए कऽ सुतैले खेन्हरा लऽ डेढ़ियापर चल गेल। पुरबा हलफी दैत छले, निन्न टुटलै। आँखि मिड़ते उठल आ हाँइ-हाँइ कऽ काँटू डेंगाबऽ लागल। डेंगा-ठठा लेलाक बाद सुपसँ फटकि माएक तहवनमे बान्हि माएसँ नुका कऽ धऽ अाएल कोठिक दोगमे। झल अन्हार भेलै तँ भगबत्ता दोकानसँ बेच अनलक। तीन सेर भेलै। आठ अने दरसँ डेढ़ गो टाका भेलै। ओ भगवतेसँ कहि सुनि कऽ चारि गो चौवन्नी आ दू गो अठन्नी भजोखा लऽ चुपे-चाप आंगन चल गेली।
विहान भेने मेला छलै ‘किसना मुट्ठी’। मरनी तरे-तर हिसाव लगोने जे चारि-चारि आना पाइ दुनू छोटकी बहीन अभेलिया आ सुगियाकेँ देवे। चारि आनामे बौआले एकटा कठपुतरी किन लेब आ एकटा फूका। चारि आनाक कचौरी आ चप कीनि लेब। ओकर तँ मने छलै चप-चप।
आठ आनामे एकटा अलता आ फीता लऽ लेब। घुरती काल आठ आनाक जिलेवी कीनि लेब।
भोरे विहान फेर ओ अपन गैलेन लऽ चलि गेल चौरि आ विछि लेलक एक गैलेन काँकोड़। आंगन आबि बकरी घरमे गैलेन राखि ओ नहाइ-सोनाइले चलि गेल आ नाहा-सोना, खा-पी कऽ सुति रहल।
एम्हर नेहेवा काल ओकरा माएकेँ तहबन नहि भेटलै तँ औना कऽ एम्हर-ओम्हर तकलक तँ देखलक, ओ तँ कोठी दोगमे फेकल अछि- आ मड़ुआक किछु दाना लागल छलै। कोठी मुन्ना से फूटल। से देखि ओकरा आगि लेस देलकै। ओकरा हरलै ने फुरलै सुतलैमे मरनीकेँ गट्टा पकड़ि लात्ते-मुक्के धुनि देलकै। गाड़ि पढ़ि-पढ़ि पूछए लगलै- “बाज सौतीन बाज की केलही पाइ मरूआ बेच कऽ?”
अबोध बच्चा कनैत बाजल- “माए गै माए मेला देखैले जेबै बलवा परतीपर मेला।”
माए तामसे अघोड़ रहबे करै फेर बाजलि- “बाज सौतीन बाज कथीक मेला।”
माए, गै माए, मेला देखैले जेबइ मेला- किसना मुट्ठीक मेला।
कपिलेश्वर राउत
लघुकथा-
कलियुगक निर्णए
सतयुग-त्रेता बीत गेल छल। द्वापरक समए पुरा भऽ गेल छलैक। कयुगक प्रवेश हुअए बला छलैक। कलियुग अपन राज-पाट चलैबा लेल सोचि रहल छल। बिचेमे तीनू युगक देवता सभ कलयुग लग आबि हाथ जोड़ि ठाढ़ भऽ गेला आ कलियुगो हाथ जोड़ि ठाढ़ भेल। जखन विचार-विमर्श शुरू भेलै तँ तीनु युगक देवता सभ कहलखिन- “हम सभ तँ कहुना तीन युगक राज-पाट चलेलौं आब अहाँक पारी अछि तेँ चिन्तामे छी जे अहाँ कोना कऽ राज-पाट चलाएव। किएक तँ हमसभ देवासुर संग्राम, वृतासुर संग्राम कोन-कोन ने केलौं। स्वर्ग-नरकक फेरा सभ केलौं। मुदा लोक सभ आर उडण्ड होइते गेल। अहि लेल अहाँ लग एलौं। अपने कोना चलाएव।”
कलियुग बजलाह- “हे देवगण, हम अहाँ सभ जकाँ फाइल नहि राखब मुन्सी पेसकार नहि राखब हम फैसला तुरंते हेतै। जे जेहन काज करता तकर भोग हुनका तुरंते भेटतै। अगुआएल-पछुअाएल जनमक फेरा नहि राखब। स्वर्ग-नरकक फेरा नहि रहए देबै।”
तीनू युगक देवता कलियुगक विचार सुनि गुम्म भऽ गेला। फेर कलियुग बजलाह- “हम कृष्णक किछु अंश लए कऽ चलब आ लोक सभकेँ कहबै जे ‘कर्म किए का फल की इच्छा मत करना इंसान, जेसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।”
ई सुनि तीनू युगक देवता अपन-अपन लोक विदा भऽ गेलाह।
धीरेन्द्र कुमार
लघुकथा-
राम-कथाक समापन
पूर्णिया जिलाक एकटा गाम-कन्हरिया। गाममे वकील, शिक्षकप्रोजेक्ट प्रोफेसर आ प्रबुद्ध किसान। गामक पूवारि दिस बान्ह आ बान्हक किनछरिमे महानंदा नदी। कोठा-सोफा नीक-निकुत घर। बड़का-बड़का बखारी आ दुआरिपर गाए-माल-जाल। गाममे मोटर-साइकिल, ट्रेकटर। जिलाक प्रसिद्ध गाम।
गाममे आयोजन भेल- राम-कथाक। भखरी, कन्हरिया अबथि आ कथासँ लाभ उठा विदा होएत। औरतक संख्या बेसी। गामक कटुम-पाहुनक पदार्पणसँ गाममे उत्सवी माहौल भऽ गेल। हमरो नौत छल। हमहुँ कथासँ लाभ उठा रहल छी। प्रवचन कर्त्ता गेरूआ वस्त्र धारण केने, कन्हापर गेरूआ गमछा, वसणीमे मधुरता आ राम-कथाक वाचन। हमरो नीक लागए। नीक-निकुत दुनू साँझ भोजन आ कथाक लाभ। सात दिनक आयोजन समिति। सभ दिन गुलाब बागसँ फल-फलहरी आवए प्रवचन कर्त्ता महाराज सदासुख रामलाल जीकेँ भोजन होइक। भोरखन युवकमे होर आबि गेल- अाइ महाराजकेँ सेवाकेँ करत। धूमनक आहूतिसँ गाम मह-मह करए। वूझि पड़ए जे इलाकामे रामराज स्थापित भऽ गेल। गाम बाजए- “सतयुग आबि गेल।”
हमर मोन साँझक पहरि अकछा गेल। चोरा कऽ गामक दोकानपर एकटा सिगरेट-सलाइ लेलहुँ आ बाध दिस विदा भेलहुँ। खेतक बीचसँ बैलगाड़ीक लीक। चारूकात धान आ ऊँचगर खेतमे भाटा। समए अन्हरा रहल अछि। सूर्य अस्ताचल िदस नुका गेल छथि। चिड़ै-चुनमुन्नी अपन-अपन खोंता दिस विदा भऽ गेल अछि। काल्हि सातम दिन अछि- अहिना शांति पसरि जाएत अौर लाैस्पीकर अवाज सेहो बन्न भऽ जाएत। जेवीसँ सिगरेट-सलाइ बहार कऽ सिगरेट सुनगबैत नदी दिस विदा होइत छी। कने-कालक पछाति सुनै छी-
‘हक्का-बक्का, हक्का बक्का
बगिया खा हौ कक्का
आउरो खेतोमे आऊर-बाऊर, आऊर-बाऊर
हमरा खेतमे छुछै चाउर-छुछै चाउर
हक्का-बक्का, हक्का-बक्का
बगिया खा हौ कक्का’
खेत दिस देखैत छी- थारीमे बगिया आ अगरवत्ती नेने क्यो कक्काकेँ पूजि रहल अछि। हमर सिगरेट समाप्त भऽ रहल अछि आ हमरा बुझना जाइत अछि जे राम-कथाक समापन भऽ गेल अछि।
राजदेव मंडल दूटा लघुकथा-
1) बढ़िया गप्प
गोपी मड़र सभ बापूत दुआिरपर बैसल अछि। दिन ठेका गेल छै। चारि दिनक बाद बेटाक बियाह हेतै। नवका समधी दहेजक टका देवाक लेल आएल छै। गोपी मड़रक लबरा-भाए फोंकी लाल बाजल- “समधी जी, लेन-देनक गप्प पहिले फरिछाएल रहै छै से नीक। बियाहक कालमे जे दहेजक गप्प उखड़ै छै, से तँ बुझू जे थुकम फझैति। एहिठाम सभ समांग अपने छी। निकालल जाए टाका।”
“हँ, हँ ओहिक सम्बन्धमे तँ कहबाक लेल आएल छी। कोनो तरहेँ कुहरैत।”
फोकीलाल बाजल- “कतेक तँ बेटी बियाहमे मरि जाइत अछि। अहाँ तँ कुहरैत छी। बढ़िया गप्प। निकालल जाए।”
समधी कहल- “बढ़िया गप्प ई जे काल्हि हमरा बेटीकेँ नौकरीक लेटर भेटि गेल।”
“अहाँक बेटीकेँ नहि, हमरा पुतौहकेँ। हमरासँ सम्बन्ध भेलापर देखियो फैदा। बढ़िया गप्प।”
“बढ़िया गप्प ई जे आब अहाँसँ बेसी सम्पतिबला आ नीक वर बिनु दहेजक बियाह करबाक लेल तैयार अछि।”
“आ पहिले कियो नहि पुछैत छल।”
“अहुँ ते नहिए पुछै छलहुँ। दहेजक लोभमे तैयार भेलहुँ। आब तँ हमरा बेटीक कमाइपर अहाँक बेटा पलत।”
“अपन-अपन भाग्य। बढ़िया गप्प।”
समधी बाजल- “आब जँ ई सम्बन्ध करबाक अछि तँ जतेक हमरा कहने रही ओतेक दहेज अहाँकेँ लगत काल्हि टका लऽ कऽ हमरा दुआरिपर आऊ।”
“ई कोन गप्प।”
विदा होइत समधी बाजल- “टका लऽ कऽ आबि तँ बढ़िया गप्प। नहि लऽ कऽ आबि तइयो बढ़िया गप्प।”
2) ठोकर
चमकैत शहरकेँ भीड़ भरल सड़क। सहरैत गाड़ी-घोड़ा, लोक-बेद। आठ बजि गेल छलै। घर पहुँचबामे राति बेसी ने भऽ जाए तहि दुआरे सायकिलकेँ उड़ौने जा रहल अछि- घोरनमाँ। आकि एकटा मोटर सायकिल धड़ाक दऽ ठोकर मारलक। थकुचाएल सायकिल तँ सड़केपर रहि गेल किन्तु घोरनमाँ उछलि कऽ फुटपाथपर धड़ाम दऽ गिरल। बाप-माए करैत कुहरि रहल अछि। कलेजाक चोट प्राण घिचने जा रहल छै। परन्तु ओहिठाम के केकरा देखनिहार।
ओहि बाटे जाइत एकटा पॉकिटमारकेँ दया लागि गेलै। ओ लग जा कऽ कुहरैत घोरनमॉंकेँ लहु पोछए लगल। फेर अपन काजक मोन पड़ल तँ घोरनमॉंक सभ जेबीक तलाशी लेलक। किन्तु किछु नहि भेटलै। फनकैत पॉकिटमार उठल आ बाजल- “रे बेकुफ, मारितोकाल दस टका जेबीमे रखितेँ से नहि। भिखमंगा कहीं के सगुण खराब कऽ देलक।”
कुहरैत घोरनमॉं बाजल- “रे मुरख दस टका जँ जेबीमे रहितै तँ हमहुँ ने दोसराकेँ ठोकर मारितौं।”
“इह, भेष देखहक आ उपदेश सुनहक।”- घुनघुनाइत पॉकिटमार बिदा भऽ गेल।
बेचन ठाकुर दूटा लघुकथा
आत्महत्या
एहि संसारमे इर्ष्या-द्वेषक भावना अति व्याप्त। सद्भावनाक डिवियामे तेल सधल जकाँ अछि। लोक अपन दुखसँ ओतेक दुखी नहि अछि जतेक अनकर सुखसँ। कर्तव्य अपन गाम छोड़ि आनठाम बौआए रहल अछि। बेचाराकेँ कतौ जगह नै भेटै छै।
बारह बर्खक बेटी पूनम आर नअ बर्खक बेटा सुमन बड्ड नीक ढंगसँ भाए-बहिनक भूमिका अदाए कए रहल अछि। पूनमक बाप मंगल अपन ताड़ीक धंधामे व्यस्त अछि। भिनसरसँ साँझ धरि तार वा खजूरसँ ताड़ी उतारैमे लागल रहैत अछि। कहियो-कहियो खैनाइयो पर आफत। विसराम तँ दिन भरि दिल्ली दूर। मुदा पूनमक माए हीरा ताड़ी बेचि फुटानीमे ओतैक मस्त अछि जे सामाजमे केकरो सोहाए नहि रहलि अछि। कारण ओ अपन पति आ संतानक पियारकेँ बिसरि अपन पसीनक सुखक लेल टिंकुक संग रहि रहलि अछि। मुदा पापक घैला एक ने एक दिन अवश्य फुटै छै। एक दिन दिनहिमे मंगल हीराकेँ टिंकुक संग रंगल हाथ पकड़ि लेलनि। बेचारे सोचलनि- “हम एहि दुनियामे बेकार लए छी। जखन हमरा कोनो मोजरे ने दैए।”
क्रोधित भऽ ओ बाजि उठला- “सभसे बड़ो समाज। समाज हमरा जे जेना फैसला देथि।”
साँझहि पंचैती भेल। पंचक फैसला भेल- “टिंकुकेँ एक हजार एक टाका जुर्माना लगतै आ आइदा ओ एहेन गलती नइ करतै, जँ केलकै तँ भरल सभामे ओकरा दू खण्ड काटि, गाड़ि देल जेतै।”
फेर पंच हीराकेँ बजा सेहो पुछलनि- “अहाँ हीरा, एना किएक केलिऐ, इज्जत प्रतिष्ठा कोठिक कन्हापर राखि देलिऐ कि?”
हीरा बाजलि- “इज्जत-प्रतिष्ठा हम की कोठी कन्हापर राखब, हमर बापे राखि देलनि। हम मुरूख आ कुरूप छी तेँ कि हमरा तँ स्मार्ट घरबला चाही ने।”
पंचक मुड़ी निच्चॉं खसि पड़ल। फेर सामाजिक बंधनक खियालसँ ओ सभ चुप नहि रहि सकल- “अहाँक बाप गलती केलनि तेकर फल मांगलाकेँ हेते, हमर समाज िधनाए, अहाँ आइसँ चेत जाउ। नहि तँ समाजसँ पैध क्यो नहि अछि।”
कहबी छै- “चालि, प्रकृति, बेमाए तीनू मुइनेहि जाए।”
हीरा पिंकु अपन कुकर्म नहि छोड़लक। अपितु सहचेती बर्तलक मुदा छुपल कहाँ रहल। दुनू बेटा-बेटी पकड़िये लेलक। हल्ला केलक तँ दुनू दुनूसँ मारिओ खेलक। मुदा समाज एहिबेर मामलाकेँ गमभिर्ता पूर्वक लेबाक निर्णए केलक। टिंकु कहुनाकेँ गाम छोड़ि पड़ा गेल। पंच सोचलनि- “सजाएक भागी दुनू अछि। मुदा टिंकु पराएल अछि। तेँ अइ जनानीकेँ तारन देल जाए।”
बिचार कल्हि साँझक भेलै तै बीच दिनेमे ओ फसरी लगा आत्महत्या कऽ लेलक। पुलिश खबड़ि पाबि घटना स्थलपर पहुँचल। बेचारीकेँ पोस्टमार्टम भऽ धौजन-धौजन भए गेल मामला भरिआ गेलै। निर्दोष परोसी विजय ओहि समए बाबा धाममे रहितहुँ केसमे चिक्कनसँ लटपटा गेल और पति मंगलकेँ तीस सालक जहलक सजाए भेटल। दुनू भाए-बहिन टौआ-बौआ रहल अछि। आगू नाथ ने पाछु पगहा छै ओकरा सभकेँ।
2) फुसिक फल
संत कविर दासक पाँति आछि- “साँच बरावर तप नही, झुट बरावर पाप जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।”
तातपर्य अछि- “सत्यमेव जयते।”
एक गोट फुसिकेँ बचाबए हेतू सहस्त्र फुसि बाजए पड़ैत अछि। मुदा ओ स्थायी रूपसँ नहि पचि सकैत अछि कने देरे सही, फुसि फुसिए प्रमाणित होइत अछि। गीतामे कृष्ण कहने छथिन- “जेसा कर्म करैगा वैसा फल देगा भगवान।”
मोहनक छोट भाए सोहन मैट्रीकक बोड परीक्षा दऽ कऽ मधुबनीसँ घर आबि रहल छलै। दुनू भाँइ संगे छल। रस्तामे बिना टिकट रेलगाड़ीसँ किछु दूरी तँइ केलक मुदा किछु दूरी तँइ करए हेतु ट्रेकर-मैक्सी पकड़वाक खगता भेलै आ दुनू भाँइ मैक्सीपर चढ़ि गेलै। सोहनक अभिभावक मोहन लग भाड़ाक पाइ नै छलै। ओ सोचलक- “जँ हम साँच बाजि दै छी तँ कन्टेक्टर मैक्सीसँ उताड़ि देत। हम घर कोना जा सकव। जँ झुट जोरसँ बाजि दैत छी तँ ओकरा हमरा लऽ जेनाइ मजबुरी भऽ जेतै।”
कन्डक्टर भाड़ा ओसलैत-ओसलैत मोहन लग आबि कहलनि- “श्री मान् कतऽ जाएव।”
मोहन जबाव देलक- “झंझारपुर।”
कन्डक्टर- “भाड़ा दिऔ।”
झट मोहन बाजि उठल- “भाड़ा देलौं से?”
कन्डक्टर- “अहाँ भाड़ा नै देलिऐ, मन पारू।”
मोहन- “मने-मन अछि। मन िक पारू। भाड़ा हम अहाँकेँ दऽ देलौं।”
कन्डक्टर सोचलनि भऽ सकै छै, एकरा लग पाइयक मजबुरी होय। मुदा एकरा फुसि नै बजबाक चाही। बजलाह- “जौ अहाँ लग भाड़ा नै अछि तँ बाजू हम ओहिना लऽ जाएव। मुदा बेकूफ नै बनाऊ।”
मोहन- “एहिमे बेकूफक कोन गप्प? हम अहाँकेँ भाड़ा देलौं, अहाँ मन पारू।”
कन्डक्टर खिसिआ कऽ पुछि बैठलाह- “बाजू बेटा मरि जाए, हम भाड़ा दऽ देलौं।”
मोहन- “बेटा मरि जाए, हम भाड़ा दऽ देलौं।”
कन्डक्टर कहलनि- “बेस चलु, आब भाड़ा नहि मांगब।”
सोहन अपन भैयाक फुसि गप्पपर बड्ड आश्चर्यमे पड़ल छल। मुदा बाजत तँ बाजत कि।
गाम आबि मोहन किछुए दिनक बाद बोकारो गेलाह। कनियाक बड्ड जिद्द केलाक वाद हुनको संग लए गेलाह। संगमे दुगो बेटो छलनि। परिवारक संग पहिले खेपि बाहर गेल छलाह। ओना ओ बोकारो पॉंच साल पूर्वहिसँ रहैत छलाह। तीन महिनाक अंदर मोहनक छोटका बेटा रमन बेमार पड़ल। बोकारोमे बड्ड इलाज भेल मुदा ओ चंगा नहि भेल। फेर ओ सपरिवार गाम आबि गेलाह। गामोमे बड्ड इलाज भेल मुदा ओ बचि नहि सकल, मृत्युक प्राप्त भेल। परिस्थिति वस सोहनकेँ ओकरा आगि दिअए पड़लै। आओर मोहनकेँ ओकर उचित कर्मो करए पड़लैक।
एगो कहबी छै- “गज भरि नै हारी, थान भरि फारी।”
राम प्रवेश मंडल
लघुकथा
बुरबक
रेलगाड़ीसँ दिल्लीक यात्रा करैत रही। संध्याक सात बजैत छल। स्टेशनपर गाड़ी ठाढ़ भेल। एकटा युवक आबि हमरा सबहक बीच बैठला। हमरा हुनका देखतहि शंका भऽ गेल। ओ अपन झोरासँ विभिन्न प्रकारक पोथी निकालि सबहक दिस बढ़ौबैत बाजल- “पढ़े जाउ नीक पोथी अछि।”
किछु खानक बाद झोरासँ देवी मैयाक प्रसाद निकालैत बाजल- “चारि चकाक ड्राइवरी लाइसेंस निकलल। मनोकामना पूर्ण भेल। ओहि लेल प्रसाद चढ़ेलहुँ। अहुँ सभ लिअ।”
सभ केओ प्रसाद लेलक मुदा हम नहि लेलहुँ। तखन सबहक सोझामे नीकसँ बुरबक बनलहुँ। गाड़ी चलैत रहल। राति होएवाक कारणें बुरबक बनलहुँ। गाड़ी चलैत रहल। राति होएवाक निंदियादेवी अपन मायाकेँ पसारलक। सभ केयो सुति रहला।
किछु लोककेँ नीन खुजलाक वाद हल्ला भेलैक- हमर समान नहि अछि। हमरो समान नहि अछि। प्रसाद वॉटैबला युवक बीचसँ पहिले निकलि गेल रहए। प्रसादमे नशा देल रहैक। सभ कियो उदास भऽ गेल। हम पुछलहुँ- “आव कहु हम बुरवक कि अहाँ सभ बुरबक?”
भारत भुषण झा
लघुकथा-
प्रेम
कदम गाछक छाहैरमे हम, ललन जी नरेन्द्र आ एक दू गोटे आओर वैसल गर्मीसँ परेशान भऽ आरामक अनुभूति करैत एक दोसरापर गप्पक नहलापर दहला मारैत आनन्दक अनुभव करैत रही तखने ओतए एकटा कुकुर आएल। ओकरा देखि हमर मन चिन्तित होमए लगल कारन जे ओतए वैसल बकरी आ ओकर बच्चाकेँ कहीं ओ काटि ने लै। कुकुर धीरे-धीरे बकरी बच्चाक लग जा ओकरा संग खेलऽ लागल जेना एक दोसराक जिगरी हुअए। एतवीमे ललन जी हमरा मुँह दिस देखि बजला- “औ जी अहाँ कोन दुनियाँमे छी हमरा सभ तखैनसँ अहाँपर कते गप्प कऽ रहल छी आ अहाँकेँ ते कोनो ध्याने नहि।”
हुनक गप्प सुनि कहलिएनि- “यौ जी अपन सबहक गप्प तँ होइते रहत एतय देखियो कुकुर आ बकरीक प्रेम। हमरा अहाँ सँ तँ निक यएह सभ, जकरामे कोनो भेद-भाव नहि छैक। दुनू दू जातिक आ प्रेम अपनोसँ वेसी।” वास्तवमे जिनगी तँ एहने हेबक चाही जहिमे कोनो भेद-भाव नहि रहए।
मानेश्वर मनुज
पाँचटा लघुकथा
ई
रक्षा-बन्धन पर्वकेँ बितला तीन मास भऽ गेल छलैक। देवानजी एखनो राखीकेँ तावीज जकाँ बन्हले रखने छलथि।
हम पुछलियन्हि, “देवानजी, एतेक दिनक बादो ई हाथमे रखने छी। किएक?”
जावाब देवक बदला ओ हमरे पूछि देलन्हि, “ई की छैक।”
हम कहलियन्हि, “राखी।”
ओ कहलन्हि- “जखन एकर नामे छैक राखी तखन फेकी किएक। राखी मर्यादाक बन्धन अछि, तैँ राखी।”
स्त्री-लिंग
“हिन्दीक पचास प्रतिशत शब्द स्त्रीलिंग आ पचास प्रतिशत शब्द पुलिंग अछि।”
“नहि, पचास प्रतिशतसँ किछु बेसी पुलिंग होइत अछि।”
“नहि, उल्टे अहाँ बाजि गेलहुँ। पचाससँ किछु बेसी प्रतिशत शब्द स्त्रीलिंग होइत अछि।”
“जाइ शब्दक बारेमे नहि बुझल रहैत छैक से पिलिंग भऽ जाइत व्छैक, फेर पुलिंगक प्रतिशत बेसी किएक ने हेतैक।”
“आ जाहिमे सन्देह होबय ओकरा स्त्रीलिंग कहि दी, तँ स्त्रीलिंगक प्रतिशत बेसी किएक ने हेतैक।”
“स्त्रीलिंगपर लोक बेसी साकांक्ष रहैत अछि तैँ स्त्रीलिंगक प्रतिशत बेसी छैक आ होबहोक चाही।”
आप
रत्नेश्वर स्कूल जाइत छल कि चूड़ीबला रोकि पुछलकैक, “कैसे हो रत्नेश्वर “तुम”?
रत्नेश्वर ओकरा सम्बोधनपर खिसिया कऽ कहलकैक, “आप कहो”।
चूड़ीबला सवाल जानि उत्तर देलकैक- “मैं तो ठीक हूँ, तुम कहो”।
फेर रत्नेश्वर खिसियाइत बाजल, “तुम नहीं आप कहो, मैंने कहा न, तुमसे”।
“तो ठीक है”।
आ गुनधुन करैत ओ आगाँ बढ़ि गेल। ओकरा किछु समझि नहि अएलैक।
लोरी
रेल्वे-स्टेशनक बगलमे रेलक टुटल-फाटल क्वार्टर, झोपड़पट्टी सन रेल कॉलोनी।
खाटघरसँ आएल श्यामानन्द कहलन्हि, “झाजी, खाटघर बड़ सुन्दर जगह अछि। साँझ खन कऽ ओतऽ एहन लगैत छैक जेना स्वर्ग पृथ्वीपर उतरि गेल होइक।”
हम कहलियन्हि, “मुदा जाए आ आबक कतेक भारी समस्या छैक। एक तँ हार्वर लाइनक नहू चलऽवाली गाड़ी आ ताहिपर सँ दादरमे चेन्ज कऽ चर्चगेट जाएब।”
“दादरसँ चेन्ज किएक। नरीमन प्वाइन्ट जेबाक लेल सोझे छत्रपति शिवाजी चलि जाइत छी।” ओ कहलन्हि।
हम कहलियन्हि, “हमरा लेल तँ दहिसरक रेल क्वार्टरे सभसँ उत्तम।”
“मुदा रेलक पटरीसँ सटल रेलक क्वार्टर। आवाज कतेक अबैत छैक। सदिखन निन्द हराम रहैत छैक।”
हम कहलियन्हि, “नहि एहन बात नहि छैक। हमरा तँ रेलक आवाज संगीत लगैत अछि। जावत तक गाड़ी सभ चलैत रहैत अछि चैनक निन्द अबैत अछि। मुदा जखन कखनो गाड़ी रुकि जाइत अछि फटसँ निन्न टूटि जाइत अछि, जेना माँक लोरी बिच्चेमे बन्द भऽ गेल होए।”
ओ कहलन्हि, “अहाँ रेल-कर्मचारी तऽ ने छी? ”
भूख-भूख भाकुर
मड़ुआक महीना छलैक मुदा खेतमे मड़ुआ नहि। धानक महीना एलैक मुदा खेतमे धान नहि। आँसुक महीना गेलैक मुदा खेतमे आँसु नहि। न्योतक महीना छलैक मुदा कतौसँ न्योँत नहि। खएबाक समए छलैक मुदा घरमे अन्न नहि। खेलबाक महीना छलैक मुदा घरमे उमंग नहि।
ओ चितंग सुतल छल कि धरनिपर कतौ पाँच लिखल लगलैक। पाँच यानी पाँच फूल। पाँच यानी पाँच लोटा जल। पाँच यानी पाँच आँगुर।
मुदा ओकर भूख खीचि कऽ ओकरा पाँच राखीपर लऽ गेलैक।
ब्राह्मणक बेटा यानी पवित्र लोक। भोजनक समस्या मुदा स्वभाव सुन्दर। पढ़ाइमे कनियो आसकैत नहि। ब्रह्मचर्यक सभ गुणसँ परिपूर्ण मुदा पेटमे ज्वाला।
तुर नहि, ताग नहि। कतऽसँ आनत राखी। लड्डू बाबाक फाटल सीरकमे सँ कनेक तुर आ थोड़ ताग घिचलक आ बना लेलक राखी। राखी सन नहि लगैक मुदा राखिये छलैक। रंग नहि छलैक घरमे तँ फूल तोड़ि फूलक रंग ओहि तुर आ तागपर लगौलक। मुदा राखी बनलै सर्फ चारि। पाँच नहि पुरलैक।
राखी पुरान सन लगैक। भेलैक राखी लेबऽ सँ केयो मना ने कऽ दिए। एहन कतौ राखी भेलैक अछि। एक राखी वैद्यजी केँ पहिराबऽ लागल तँ वैद्यजी कहलथिन्ह, “ पहिने श्रीकृष्णजीक मूर्तिमे बान्हि आऊ।”
श्रीकृष्णजीक लग जा थोड़ेक काल ठाढ़ भऽ वापस आबि गेल कारण राखी तँ छलैक सिर्फ चारि। श्रीकृष्णजी तीन दिनक भूखल पेटमे की अन्न देथिन।
वापस आबि रक्षाबन्धन रक्षाक हेतु एकटा राखी सुमनजीकेँ, एकटा मदनजी केँ, एकटा रमणकेँ आ एकटा बैद्यजी कँ बन्हलक। बदलामे किछु अनाज भेट गेलैक।
मोन उत्साहसँ भरि गेलैक। निराहारकेँ लगलैक जेना भूखक टाइपमे भाकुर आबि गेलैक। खेतमे फसिल नहि, घरमे अन्न नहि मुदा मोन उमंगसँ भरि गेलैक।
उमेश मंडलक दूटा लघुकथा- 1) आधा भगवान
परोपट्टामे श्रमपुराकेँ छोड़ि एक्कोटा गाम एहेन नहि अछि जै गाममे अइबेर धानक खेती भऽ सकल। एकर कारण भेल रौदी। कतेक गाममे तँ धानक बीआ बिरारेमे पानि दुआरे जरि गेल।
श्रमपुरामे धानक खेतीक सुतरैक कारण अछि जे एहि गामक किसान मेहनती छथि, आशावान छथि। एहि गामक किसान आपसमे तालमेल कऽ कऽ लगभग चारि बीघापर एकटा बोड़िंग गरौने छथि। तइपर सँ जोताॅसक जमीन थोड़े निचरस सेहो छै। श्रमपुराक लोक साहसी आ मेहनती होइ छथि से परोपट्टाक लोककेँ बुझल छन्हि।
विशेसर श्रमपुरेक एकटा किसान जे आइ अपन सासुर भिठपुर विदा भेल। भिठपुरक सीमानेपर एकटा बाबन बीघाक पोखरि। पोखरि महारेपर स्कूल सेहो अछि। ओहिठाम नवाह होइत देखि विशेसर सोचलक जे दर्शन करैत जाएब। जौं कहीं सार भेट जेताह तँ संगे निकलि जाएब। सएह केलक।
मंडपक आगूमे विशेसर ठाढ़ भेल। तखने कीर्तन मंडलीसँ निकलि जीयालाल विशेसरकेँ पुछल- “पाहुन की हाल-चाल...। घरपर सँ एलिऐ आकि गामसँ आबिये रहल छीऐ?”
अपन सार जीयालालकेँ चिन्हैत विशेसर बाजल- “गामेसँ अबै छी, अहीं ओहिठाम जाएव।”
“अच्छा-अच्छा चलू।” कहैत जीयालाल परसाद बलाकेँ शोर पाड़ैत कहलक- “हे यौ, श्रीमोहन बाबू, कने परसाद देल जाउ पाहुन छथि।”
परसाद बला चङेरा नेने श्रीमोहन आबि विशेसरक हाथमे दैत जीयालाल दिशि देखैत पुछलकनि- “कोन गाँ पाहुन रहै छथि?” जीयालालक बाजवसँ पहिनहि विशेसर कहि देलकनि- “श्रमपुरा रहै छी।”
“अच्छा..ऽ, आब चिन्हि गेलौं, ऐ बेर अहुँ सभकेँ तँ रौदिये भऽ गेल किने। धान तँ नहिऐ भेल हएत?”
श्रीमोहनक मुँह दिस देखैत विशेसर कहलकनि- “धान किएक ने हएत। हम सभ अपनो अदहा भगवान छी से नहि बुझल अछि।”
विशेसरक जबाव सुनि श्रीमोहन किछु बजला नहि। बगलमे ठाढ़ पान-सात आदमीकेँ देख टहैल परसाद बाटए लगलाह।
जीयालाल आ विशेसर दुनू सारे-बहनोइ घरपर विदा भेला। रास्तामे जखन लाउडस्पीकरक अाबाज कमलै तखन असथिरसँ जीयालाल विशेसरकेँ पुछल- “पाहुन, अहाँ जे कहलिऐ हम सभ अदहा भगवान अपने छी से कोना?”
विशेसर- “बरनी, पहिने अहाँ ई कहू जे नवाह अहाँसभ किअए ठनने छिऐ।”
जीयालाल जबाव सुनैक पतिक्षामे तुरत जबाव देलक- “देखै नै छिऐ पानिक चलैत एक्को अना धानक खेती नहि भेलैहेँ।”
विशेसर मुस्कुराइत बाजल- “हमरा सबहक आठ अनासँ दस-बारह अना तक धानक खेती भेल अछि। अहीं कहू जे हम सभ अदहा भगवान भेलौं की नहि?।”
2) रूपैआक ढेरी
फुदकैत फुलिया किताब-काँपीक बस्ता माटिक रैकपर राखि माएकेँ ताकए लगलीह। माए आंगनमे नहि छलीह। पछुआरमे गोरहा पाथैत छलीह। ओना गोरहा पाथैक समए नहि छल तेँ फुलियाक मनमे गोरहा पाथैक बात ऐबे नहि कएल छल। मुदा तकबो करैत आ शोरो पाड़ैत। आंगनसँ निकलि जखने फुलिया डेढ़िया लग आयलि की गोरहा मचान लगसँ माएक बाजब सुनलक। गोरहा मचान लग पहुँचते फुलिया देखलनि जे माए गोरहा पाथि रहलीहेँ। मनमे तामस उठए लगलनि जे एक तँ कातिक मास तहूमे सूर्यास्तक समए, ई कोन समए भेल। अनेरे ठंढ़ लगतनि। मन खराब हेतनि। मुदा किछु बाजलि नहि। अप्पन बात बाजलि- “माए, परसू मधुबनी जाएब। लड़की सबहक बीच ऽमहिला सशक्तीकरणऽ विषयक प्रतियोगिता अछि। सौंसे जिलाक छात्रा सभ रहतीह। हमहूँ जाएब। तहिले कमसँ कम पच्चीस टा रूपैआक ओरियान कए दे।”
मधुबनीक नाओ सुनि अपन सभ सुधि-बुद्धि बिसरि गेलीह। हाथ गोबरपर रहनि, आँखि बेटीक आँखिपर अा मन अकासमे कटल धागाक गुड्डी जकाँ उड़ए लगलनि। पँजरामे बैसि फुलिया कहए लगलनि- “माए, हमरा जरूर इनाम भेटत।”
अकाससँ माएक मन धरतीपर खसि पड़ल, मने-मन सोचए लगलीह जे पच्चीस रूपैआ कतऽ सँ आनब? कहलखिन- “बुच्ची, ताबे ककरोसँ पैइच लऽ लेह किए तँ जुग-जमाना बदलि रहल अछि, बिनु पढ़ल-लिखल लोककेँ कोनो मोजर रहतै। तेँ कोनो धरानी रूपैआक ओरियान कऽ लेह। गाए बिआएत तँ दूध बेचि कऽ दऽ देबै।”
माएक बात सुिन फुलिया मुस्कुराइत कहलकनि- “धुर बुढ़िया नहितन, तीनि रूपैये गोरहा बिकाइ छै, दसेटा बेचि लेब तहीमे तँ तीस रूपैआ भऽ जाएत। तइले ककरोसँ मुँह छोहनि किऐ करब। ई तँ रूपैआक ढेरी छिअौ। जखैन जत्ते रूपैआक काज हेतौ, तखैन तत्ते बेचि लिहेँ। तोरा कि कोनो हेलीकेप्टर कीनैक छओ?”
गंगेश गुंजन लाट साहेबक किरानी
एकटा राजधानी रहय। राजधनीक राजमार्ग एकटा विशाल पुलसँ बाँटल छलैक दू दिश। वेश उफंच, भव्य। साधरणतः पुल पर प्रजा केँ सेहो चलवाक अनुमति रहैक। खालीश जखन राजधानी वा बड़का राजधनीसँ सम्राट अबथिन आ हुनक गाड़ी राज्यक सुख समृद्धि देख, टहलऽ बूलऽ अबैत तँ ओहि बड़का पुलकेँ मरम्मति कएल जाइक, बाढ़निसँ बहारल जाइक आ मुरैठा बंदूकवला सिपाही सब लोक केँ बैला दैक। सौंसे पुल खाली करवा देल जाइक।
पुल पर काते-काते भीख मांगनिहार सब बैसेत रहय। एकटा टंगटुट्टी बुढ़िया आगांमे कारी खोइंझा चैथड़ा पसारने, एकटा कोढ़ि फूटल गत्र-गत्रसँ पीज बहैत वर्ष पैंतीसक पुरुष, एकटा अन्हरी मौगी बामा हाथमे अलमुनियांक पिचकल छिपली लेने दहिना हाथे ढील कुरियबैत आ कएटा आओर भिखारि। क्यौ गलल आंगुर सबपर मैल कुचैल चेथड़ा बन्हने माछी भिनकैत तँ क्यो ठुठ्ठ पएर पसारने।
एकटा नक्कट्टा बुढ़वा जे कए वर्षसँ पुलपर भीख मांगऽ बैसैत छल आ जकर मुंह-नाक मिलि कऽ बरौबरि छलैक वीभत्स खाधिजकां, से भरिसक मरि गेल। औरे जगह पर दू टा आन्हर भाय-बहीन हाथ पसारि कऽ भीख मांगऽ बैसऽ लागल रहय। मेही सुरमे राम नाम जपैत दाता धर्मी लोकनिक गुन गबैत।
परोपट्टाक लोक सब बड़ दानी रहय। ऋण-पैंच लऽ कऽ दान देनिहार। रोज दिन घामे पसिने अपसियांत, दरबार पहुंचवाक लेल एक दोसराकेँ धकियबैत। हकमैत। तइयो मुदा, बगलीसँ कैंचा निकालि टुन टुन भीख दैत। मनहि मन खौंझाइतो मुदा यथा साध्य देनहुं जाइत।
एकटा राजाक किरानी सब दिन अपन डिपटी बजय, ओही बाटे लाट साहेबक कार्यालय जाय। बड़का पुल चढ़ैत काल भिखमंगा सब पर पहिने दयार्द्र, फेर तमसाइत ककरो एकटा पाइ खसबैत चलि जाय।
एक दिन ओ लाटक किरानी दुनू नेन्ना अन्हरा भय बहीन केँ देखि कऽ बड़ क्लेशित भेल। ओ सोचलक, सएह देखू सृष्टि। एहि दुनू नेनाकेँ रौद-बसात, जाड़-गरम सबमे दूटा पाइ लेल एहिना बैसऽ पड़तैक भरि जनम।
ओहि दिन ओकरा पुल पर चढ़ले ने पार लगैक।
दोसर दिन फेर ओ किरानी जाइत रहय। ऽमालिक दू गो पइसा...।ऽ
ओ ठमकि गेल। ओहि कोढ़ि फूटल लोककेँ देखलक। पहिने तँ खूब घृणा भेलैक, ओकरासँ भिखारि फेर याचना कयलकैक। माथ पर प्रचण्ड रौद। कतहु सीकी ने डोलैत। अयनिहार गेनहार सब घामे नहायल आ भिखमंगा सब तँ आओर। पजरैत रौदमे बैसि कऽ भीख मंगैत देखि, लाटक किरानीकेँ बड़ क्रोध उठलैक।
ऽतोरा एहि रौदमे भीख मांगऽ के कहैत छौ बैसि कऽ...?ऽ
ऽकी करबै? ई पेट...? ओ पेट दिस देखबैत दांत बावि देलकै। किरानीकेँ आर तामस उठि गेलैक। ऽतखन मर...।ऽ
ओ ओकरा पाइ नै देलकैक। आगां बढ़ि गेल।
भिखारि दोसर दिन फेर टोकलकैक ऽमालिक आइ एक्को गो पाइ नै देलक कोनो दाता धर्मी ने...ऽ किरानी ओकरा गुम्हरि कऽ देखलकैक।
तँ मारलैं किएक ने पकड़ि कऽ, दाता धर्मी सब केँ जे ऐ लूह रौदमे दांत बाबि कऽ किकियाइत बैसल छें?ऽ ओ क्रोधे माहुर होइत कहलकैक।
हम कोढ़ियो लोक... बाबू भैयाकेँ मारबै... कोना कऽ मालिक?ऽ ओ दया ........ दांत चियाड़ि देलकैक। तखन लाटक किरानी गुन-धुनमे पड़ि गेल।
ऽएकटा कर। मारि नहि सकैत छहक तँ बाबू भैय सबकेँ एहि पीजुआह हाथे छू तऽ सकैत छऽ? हाथ धऽ कऽ कहि तँ सकैत छहक?ऽ ओ किछु सोचैत कहलकैक आ चलि गेल।
दोसरा दिन ओहि भिखारिकेँ फेर बैसल देखि लाटक किरानी केँ तामसे देह जरि गेलैक।
मरियो ने जा होइत छऽ जे उसनाइत, कुकुर जकाँ दुर दुरायब सुनैत तरहत्थी औरेत रहैत छऽ?ऽ
ओ ग्लानिसँ मूड़ी गोंति लेलक।
तेसर दिन ओ फेर पुछलकैक भिखारि के ऽकी सोचलऽ?ऽ आ चलि गेल।
चारिम दिन ओहि पुल पर वातावरणें दोसर रहैक। बहुत रास उजरा धेती कुरता वला लोक सब पएर झटकारि कऽ पड़ायल जा रहल छल आ कोढ़िया भिखारि सब हुनका सभक पाछां-पाछां खेहाड़ि रहल छलैन। जे गोटय घेरा गेल रहथि से सब जेबी सँ पाइ निकालि रहल छलाह। पड़ाहि जकां लागल छल। कोढ़िया, आन्हर, नांगर, सब भिखमंगा लोककेँ घेरि कऽ ठाढ़ भऽ जाय। लोककेँ पुल पर दऽ कऽ गेने बिना उपाय नहि छलैक। ओतऽ छोट छिन हड़-बिरड़ो मचल छलैक। राजधनीक ओहि बड़का विशाल पुल पर एकटा भयसँ आतंकित वातावरण चतरल जा रहल छलैक।
ओ लाटक किरानी, किछु फराकेसँ डरायल-डरायल पुछलकैक ऽकी हौ?ऽ कोढ़ि लोक सोझ भऽ कऽ ठाढ़ रहैक। ओकर हकमैतहुं मुखाकृति पर खुशी पसरल छलैक। आ ओहि किरानीक प्रतियें कृतज्ञताक पवित्र आभास।
ऽकम सँ कम एतवा तँ हमरा सब कइये सकै छी। अपना सड़लाह गन्हाइत हाथे बाबू बबुआन सबकेँ दौड़ि-दौड़ि कऽ छुबियो तँ सकै छी...।ऽ
आ ओ किरानी, ओही दिन ओहि राजधनीसँ विदा भऽ गेल।
डॉ. शेफालिका वर्मा
आनक बड़ाइ
भटकैत भूट्कैत एकटा बड पुरान शिष्य अपन गुरु लग पहुँचल . गुरु अपन शिष्य के देखि आह्लादित भ उठलाह ... की हाल छैक शिष्य सुन्दरम , जीवन कोना बीती रहल अछि अहांके ?
हम ते बड अभागल छी महाराज... कलपैत शिष्य बाजल ..
की भेल.. अहाँ ते ज्ञान क पोटरी ल क एहि ठाम से गेल छी..
हम जाहि वस्तु कामना करैत छी वैय्ह हमरा से दूर भ जायत ऐछ.नै ते हम अर्थोपार्जन केलों आ नै ते जीवन क कोनो सुख भोग्लों .....
स्नेह भरल स्वरे गुरु बजलाह ..अहाँ पहिने देवा लेल सिखु ,तखन लेवा क लेल सोचब..
हम की देब भगवन ! हमरा अछिए की ? नै ते धन दौलत , नै ते घर -गाड़ी , नहि कपडा लत्ता देब तं की देब ==निराश स्वर छल
अहाँ लग बहुत किछ ऐछ . अहाँ चाही त लोग के बहुत किछ द सकैत छी
चौंकी उठहल शिष्य --की ऐछ जे द सकैत छी हम ?
अहांके भगवन सुन्दर बोली देने छैथ , अहाँ चाही तो ओकर उपयोग स लोग क तारीफ़ क सकैत छी . दोसर केर बड़ाई क ओकर ह्रदय मे ख़ुशी भरि सकैत छी, मुदा अहाँ ते एतेक दरिद्र छी जे जाहि मे एको पाई नै खर्च होयत अछि , उहो नै क सकैत छी. आदमी के कंजूस नै हेवाक चाही, भगवन जे देने छैथ ओकरा जतेक बंटब ओतेक बडत.. ककरो बड़ाई करब ते अहांक अपने सम्पन्नता क
भान होयत , मोने उदारता क भाव रहत अहाँ लग वाणी क धन ऐछ, ह्रदय के विशाल बनाऊ एक बात जानि लिय ककरो बड़ाई केने से ओ पैघ नै होयत छैक वरन बड़ाई करय वाला लोग क दृष्टि मे पैघ भ जायत अछ . अहाँ खाली पयबा लेल जनैत छी तैं दुखी रहैत छी . जे दैत छैथ ओ देवता छैथ आ देवता कहियो अभावग्रस्त नै रहैत छैथ ...............
शिष्य गुरु क पैर पर खसि पडल .............
प्रेमचन्द्र पंकज
क्रमश:....
आइ दरमाहा बढ़ल रहनि।
दरमाहा की बढ़तनि कप्पार। एक पाइ बढ़लनि दरमाहा, तीन पाइ बढ़लैक महगी। सब चीजक दाम अकास छूने छैक। तखन ?
गुनधुन करैत ऑफिससँ डेरा अएलाह। कपड़ा फेरलनि। सोफापर धम्मसँ बैसि गेलाह। माथ भारी बुझेलनि। पंखा चला देलथिन। चाह पीबाक इच्छा भेलनि। चाह बनाबऽ कहलथिन। आँखि मूनि लेलनि। माथपर पंखा नाचि रहल छलनि।
बेटी चाह लऽ कऽ पहुँचलनि। आँखि खुजलनि। बेटीकेँ देखलनि। बेटी बीस वर्षक भऽ गेलनि। अएँ, बीस वर्षक ! आँखि उनटि गेलनि। सोफापर ओंघरा गेलाह।
पंखा नचिते छैक। नचिते रहतैक ?
कुमार मनोज कश्यप पाँचटा लघुकथा
१. मरिचिका
'हे हर, हमरहु करहु प्रतिपाल ' - भवानीबाबूक मुँह सँ निकलल एहि गीतक भावार्थ मुहल्ला के अबाल-वृद्ध प्रायः सभ के बुझल छलैक । एते तक किं नेनो-भुटको सभ बुझि जाईत छल जे भवानीबाबू आब भोजनक प्रतिक्षा कय रहलाह आछ ।
भवानीबाबू -- जिला परिषदक सेवा-निवृत बड़ा बाबू । सस्ती जमाना मे भवानीबाबू एक-एक टा रुपैया जमा कऽ कऽ शहर मे जमीन खरीद लेलनि। मुदा घर टा बनि सकलनि सेवा-निवृति के बादे । सेवा-निवृति पर भेटल सभ पाई के लगा कऽ बनलनि चारि कोठली के पक्कंा-पुख्ता मकान । जहिया मकान बनि कऽ पूरा तैयार भऽ गेलनि तहिया भवानीबाबू बाहर ठाढ़ भऽ कऽ बड़ी काल तक जोहैत रहलाह ओहि मकान के । जतबा खुशी शाहजहाँ के ताजमहल बनबा कऽ नहि भेल हेतैक; ओहि सँ कैक गुण आत्मिक खुशी भवानीबाबू के भेट रहल छलनि 'अपन' मकान के देखि कऽ । हाथक सभ पाई खतम भऽ जेबाक सेहो आई कोनो दुख नहिं बुझा रहल छलनि हुनका । दुख भेलनि तऽ बस एतबे जे कनियाँ एहि मकान के देखबा लेल नहिं रहि सकलखिन ।
चारु कोठली दुनू बेटा मे आपस मे बँटा गेल - दू टा कोठली दुनू बेटा-पुतोहू के आ दू टा पोता-पोती के लेल । पूजा , स्टोर, पाहुन-परख एहि सभ लेल घरक कमी रहिये गेल । आब भवानीबाबू कतऽ जाथु ? अंत मे दुनू बेटा-पुतोहू सर्व-सम्मति सँ निर्णय कऽ कऽ हुनका आश्रय देलकनि बालकनीक एकटा कोन मे । कनियाँ तऽ पहिनहिं स्वर्गवासी भऽ चुकल रहथिन । भवानीबाबू अपने बनाओल घर मे आन बनि बालकनी के एक कोन मे टुटलहवा चौकी पर समय काटऽ लगलाह । हद तऽ तखन भऽ गेल जखन एक दिन भवानीबाबू के पेट सेहो बँटा गेलनि एक महिना जेठका बेटाक घर सँ तऽ दोसर महिना छोटका बेटा घर सँ ।
आई भवानीबाबू बड़ी काल धरि नहा-धो कऽ बैसल गीत गबैत रहि गेलाह ---बीच-बीच मे नजरि याचक-भाव सँ दुनू भाईक भनसा घर दिस सेहो बेरा-बारी सँ जाईत रहल । गीत अंतरा धरि पहुँचि गेल । स्वर मद्धिम पड़ऽ लागल----उदास----थाकल---हारल---हे हर, हमरहु करहु प्रतिपाल़़।
२ परजा
बड़का भैयाक दलान ; दलान नहिं गामक चौक बुझू़देश-दुनियाँ, खेत-पथार, नीति-राजनीति सभ पर गर्मागरम बहस एतऽ सुनबा लेल भेटत । चुनावक समय मे कोनो आन टॉपिक पर बहस हुअय ; से कने अनसोहाँत होयत । सभ जुटल लोक चुनावक एक-एक मुद्दा पर तेना बिक्षा-बिक्षा कऽ खोईंछा छोरा रहल छलाह जे कोनो सेफोलोजिस्ट टी०वी० पर की करताह । बौवूबाबूक कहब रहनि जे एहि बेर सत्ता परिवर्तन हेबे टा करत़़सभ सत्तारूढ सरकार सँ नाखुश आछ । तकर औल ओ सभ एहि बेर चुकेबे करतनि । एहि पर नन्हवू बमकैत बाजल -- 'कक्कंा आहाँ कतऽ छी !लोकक आँखि नहि बट्टम छियै जे चहुँकात होईत विकास के नहि देखतै ।अपने गाम मे देखियौ ने जे कतेक के सरकार पक्कंा मकान बना देलकै़क़ंतेक कऽल गड़ा गेलै़ग़ामक लेल रोडो तऽ सैंक्शन भईये गेल आछ । बौवूबाबू प्रतिवाद केलनि--'कोन घर आ कऽलक बात करैत छह? जा कऽ ओकरा सभ सँ पुछहक गऽ ने जे कतेक जोड़ी पनही खीया कऽ आ कतेक घूस दऽ कऽ घर आ कऽल भेलैयै ?' पेर बजलाह--' हौ ई सरकार पाँच साल तक जनता के मुर्ख बना कऽ अपन धोधि बढ़बैत रहल । भल होअय लोक तऽ ई चोरबा सभ के जमानत जब्त करा दिअय एहि बेर । ' ई वाद-प्रतिवाद चलिये रहल छल किं मखना बिचहिं मे बाजल --'यौ मालिक ! आहाँ आउर कथि लै बेकारे मे बतकटाझु करैत जाईत छी । हमर मुर्खाहा बुद्धि तऽ एतबे बुझैत आछ जे केयो जीतऽ; केयो हारऽहम सभ तऽ परजा छी, परजे रहब । ' दलान पर कनी काल लै चुप्पी पसरि गेल छलै।
३ बदलैत समय
आई सँ दस वर्ष पहिने जखन ऑफीस सँ घर घुमैत छलहुँ तऽ हमर नवका वुक्वुर भुकिं कऽ आ नवकी कनियाँ गऽर लागि कऽ हमर स्वागत करैत छलीह । आब काल करोट पेरि चुकल आछ हमर पोसुआ वुक्वुर आ कनियाँ दुनु अपन आदति अदला-बदली कऽ लेलनि । आब घर आबते हमर कनियाँ हमरा पर भुकिं कऽ आ हमर पोसुआ वुक्वुर हमर गऽर लागि कऽ हमर स्वागत करैत आछ । समय एहिना बदलैत छै ।
४ जरल पेट
जेठक प्रचंड दुपहरियाक मे जखन छाँहों छाँह तकैत छैक घाम सँ लथपथ चिप्पी लागल मैल पढ़िया नुआँ, जे ओकर लाज के झँपबा मे मुश्किंल सँ समर्थ भऽ रहल छलैक, पहिरने एकटा स्त्री कोर मे एकटा दू-तीन बरखक नेना के लऽ कऽ हमरा सोझाँ ठाढ़ भऽ जाईत आछ । किंताब पर सँ हमर नजरि ओकरा दिस जाईत आछ । ओ स्त्री हमरा सँ याचना करैत आछ किंछु खेबा लेल देबाक। कहैत आछ जे काल्हि रातिये सँ ओकरा दुनू माय-बेटा के मुँह मे अन्नक एकोटा दाना नहिं गेलैक आछ । हमरा दया आबि जाईत आछ ओकरा पर । आँगन जा कऽ माय के कहैत छियैक । माय भनसा घर मे जा कऽ देखैत आछ - 'पोछि-पाछि कऽ दू मुट्ठी भात भेलै कनेके दालि बाँचल छई तरकारी तऽ बचबे ने केलै । कतऽ छई ओ ? कही बारी सँ केराक दू टुक पात काटि अनतै । अपना बासन मे तऽ नहिं देबई खाय लेल । '
ओ स्त्री केराक पात लऽ कऽ दुरूक्खा मे छाँह मे बैस गेल । माय भात आ दालि ओकरा आगू मे परसि देलकै । हमर आग्रह पर कनेक आमक वुच्चो दऽ देने छलै । ओ स्त्री अपन नेना के अपना हाथ सँ खुआईये रहल छलै तैयो ओ अनभरोस नेना अपने दुनू हाथ लगा कऽ भकोसऽ लागल रहै । तखने ओ स्त्री अपन बामा हाथ सँ नेना के दुनू हाथ पकड़ि कऽ कात कऽ देलकै आ अपने पैघ-पैघ कौर गीड़य लगलै । नेना भुईंयाँ मे ओंघरिया मरैत रहलै ।
५ जीतक आगू
छहरि मे कनेक तऽ कटारि भेलै किं देखिते - देखिते सौंसे गाम दहा गेलै छती सँ उपर पानि ठेकिं गेलै आर बढ़िते जा रहल छलै। लोक वस्तु-जात जे समेटि सकल से समेटलक नहिं तऽ जान बचा कऽ पड़ायल । दस-पाँच टा लोक जकरा कोठा छलै से तऽ छत पर जा कऽ प्राण बचेलक । भुखना के पड़ेबाक कोनो रस्ता नहिं सुझलै तऽ अपन भीत घरक चार पर चढ़ि गेल । पानिक ओहि मारूक लहरि मे भीतक घर कतेक काल ठठितै अड़्ड़ा कऽ खसि पड़लै । चार पर बैसल भुखना आब पानिक हिलकोर मे ऊब-डुब करैत भसियायल जा रहल छल । हाकरोस कऽ कऽ लोक सभ सँ नेहोरा व्कंरैत रहलै बचेबा लेल । सब के तऽ अपन जान के पड़ल छलै़ ओकरा के बचाबओ ।
जीवन-मरन के बीच झुलैत भुखना चार के कसिया कऽ पक़ंडने भासल जा रहल छल । ओ जीवन हारिये देने छल किं चार एकटा पैघ नीमक गाछ सँ टकरा कऽ कनेक काल लेल विलमलै़ओ पूर्ति सँ भरि पाँज गाछ कसिया कऽ गाछ के पकड़ि लेलक । चार पेर सँ ओहिना भसियाईत चलि जाईत रहलई । ओ अपना शरीर मे बल अनलक आ पीछड़ैत-चढ़ैत गाछ पर चढ़िये गेल । गाछक एक पेड़ पर पैर राखि कऽ दोसर सँ अड़किं कऽ उसास छोड़लक लगलै जेना पुनर्जन्म भेल होई ओकर । गाछ पर ठाढ़ ओ बाढ़िक लीला देखैत रहल । ओहिना ठाढ़े-ठाढ़ कखन ओकर आँखि लागि गेलै से अपनो नहिं बुझलक ओ ।
भोर मे जखन सुरूजक लाली छीटकलै आ फरीछ भेलै तऽ ओकर आँखि खुजलै । चारू कात तकलक ओ सगरो पानिये-पानि़क़ंतहु-कतहु दूर -दूर मे कोनो टा गाछ किंवा कोनो कोठाक घरक आधा भाग टा मात्र देखवा मे एलै । अँगैठी-मोर करैत ओ अपन माथक उपर तकलक । तकिंते घिघियाय लागला साक्षात यमराज के अपना माथक उपर देखलक ओ एकटा कारी-भुजुंग सुच्चा गहुमन सँाप उपरका डारि मे लपटायल । एक बेर मृत्यु के मुँह मे जेबा सँ बाँचल तऽ दोसर मृत्यु लग मे ठाढ़ । गहुमन के डँसल तऽ पानियो नहिं मँगैत छै़ओकरा आँखिक आगू अन्हार होमय लगलै़आब ओकर प्राण जेबा मे कोनो टा भाँगठ नहिं । आँखि मुनि लेलक ओ आ आसन्न मृत्यु के प्रतिक्षा करय लागल ।
किं एक बेर पेर कतहु सँ हिम्मत जगलै ओकरा मे़ऩहुँये-नहुँये ओ दोसर डरि पर आबि गेल़़ गाछक एकटा डारि तोरलक आ समधानि कऽ गहुमन के माथ पर दऽ मारलक । निशान सटीक रहलै़सँाप अचेत भऽ कऽ पानि मे खसि पड़लै आ धारक सँग बहि गेलै । भुखना विजयी भाव से चारू कात तकलक । ओकर वीरता देखय वला ओतय के छलै ?
विनीत उत्पल श्री गुरूवै नम:
गुरूर्ब्रह्मा, गुरूर्विष्णु, गुरूर्देवो महेश्वर:।
गुरू साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरूवै नम:।
नेनासँ ई श्लोक मास्टरजी लेल सुनैत रही। हमरो एहने मास्टर साहब भेटल जे कहैत छलाह, खूब पढ़ू। पढ़हि के संग अपन जीवनमे सेहो ईमानदार रहू। ईमानदार रहबै तँ शुरूमे दिक्कत होएत, मुदा बादमे एक गर्व महसूस करब। समाजमे इज्जत भेटत। झूठ नहि बाजू। अपन बातपर रहू। जुबानक पक्का रहू...। संगे-संग भगवान रामक कथा सेहो बतौलथिन जे ऽरघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाय पर वचन न जाईऽ आआ॓र राजा हरिश्चंद्रक कथा सेहो क्लासक बाद सुनाबैत रहै।
एते साल से ई सभ गप सुनैत आआ॓र पिता केँ एहि मार्ग पर देखैत हमरोमे ई सभ गुण आबि गेल। ईमानदार रहलौं तऽ क्लास मे फर्स्ट करैत रही। नीक स्कूल-कॉलेज मे एडिमिशन सेहो भऽ गेल। पढ़ाई खत्म केलाक बाद नीक सन नौकरियो भेट गेल। गामसँ दिल्ली आबि गेलहुं। दिल्ली बला भऽ गेलहुं मुदा बेइमान नहि भऽ सकलहुं। जकरा लेल दिल्ली जानल जाइत अछि। ताहि सं दिल्ली लेल लोक कहैत अछि, ऽबिन दिल के अछि दिल्लीऽ।
संजोग सं मास्टर लड़कीसँ ब्याह भेल। गाममे रही। सोचहि लागलौं, की करी, कनिया केँ नौकरी कराबी कि नहि। एक दिन मचान पर गामक लोक लग बैसल रही। तखने इलाकामे प्रतििष्ठत 55 सालक मास्टरजी शंकरदेव एलाह। गप-ठहाक्काक बीच कनियाक नौकरीक गप आयल। आ॓ सलाह देलखिन, ऽअंयौ कनिया के किए नौकरी छोड़ाएब। देखैत नहि छिऐ मुखियाक पुतोहूकेँ। आ॓ कहां कहियो स्कूल जाइत छै। मुखिया अप्पन पुतोहूक बदलामे एकटा मौगी केँ राखि देने छै। आ॓ गरीब अछि। आ॓करा मुखिया दू हजार टका दैत अछि। अहि कलयुग मे कियो एकरा देखनियार अछि? ईमानदारीक जमाना नहि अछि आब। एकरा सं आ॓हि गरीबक कल्याण भऽ जाइत अछि आ काजो भऽ जाइत अछि। अहूँ किए नहि आ॓हिना कोनो गरीबक कल्याण कऽ दैत छी?ऽ
ई गप सुनि कऽ लागल जना हमरा सौंसे देह काठि मारि देलक। हमरा अपना मास्टरजीक कहल आआ॓र पिताक आचार-विचार आंखिक आगू घूरय लागल।
डॉ . धनाकर ठाकुर
हमरा एकर एक बायोडाटा चाही
यद्यपि बौआ झा व्यस्त छलथि ओ निर्णय लेने छलथि जे आई ओ प्रोफ़ेसर प्रसादक डेरा तकिये के रहताह। ओहुना सारि शारदा कहने छलथिन जे हुनक सखी उमा जे गोल्ड मेडलिस्ट छलखिन्ह पिताक विषय भौतिकीमे, से ने त नौकरी केल्खिंह ने बियाहे। बौआ झा हर साल रेडियो स्टेशन दिस हुनक पूर्ण डेरा ताकि आबथि आ हड़बड़ीमे वापस पटना चली जाइत छलाह।
एहू साल गेला मुदा कोनो थाह पता नहि। ओ एक उमेरगर लोक लग गेलाह जे सड़क कात ठाढ़ छलाह।
"यौ, अहाँ प्रोफ़ेसर प्रसादक डेरा बताएब?"
"कोन प्रसाद, एतऽ तँ तीन- तीन प्रसाद छथि- गणितबला, दबाइबला की किताबबला?"
"अहाँकेँ की कहू , ओ तँ पैघ विद्वान छ्लथि जिनक किताब हमर पिताजी छपैत छलखिन्ह।"
"तँ अहाँक पिताजी छापाखाना बला।"
"सैह बुझ।"
"देखू , एक भलमानुष किताबबला प्रसादक खोजमे कियो कियो प्रोफ़ेसर अबैत रहैत अछि -बड़का-बड़का प्रोफ़ेसर।"
"हाँ यौ वैह , हुनके तँ हम तकैत छी। "
" अहाँ चलि जाऊ ओही बड़का पोखरी कात जतऽ कोणपर एक मकान होएत।"
बौआ झा परेशान, पोखरिक हर कोन पर मकान।
मुदा आइ ओ ताकिये कऽ रहताह।
फेर एक आदमी-
मकान नहि फ्लैट कहने होयत-
चली जाऊ सीधा एक किलोमीटर ओतऽ सँ दहिनामे एक फ्लैटमे एक बूढ़ प्रोफ़ेसर जरुर अछि, जकर एक बिनबियाहल बेटी छैक, सेवा करैत छैक माय बापक, बेटा पुतोहु अमेरिकामे ।"
बौआ झा जा कऽ निचला फ्लैटक घंटी बजेलाह। एक महिला निकललीह जे हुनका सारि जेकाँ बुझेलीह।
"ककरासँ भेंट करक अछि?"
"तोहर पिताजीसँ।"
"अहाँक की नाम?"
"नहि बताएब- हुनके बताएब।"
"बताउ ने, हमहूँ पी एच डी छी। "
"से जरुर होएब, पैघ प्रोफ़ेसरक बेटी। "
"अहाँक की नाम?"
ताबत हुनक माय निकललीह-
":देखू माँ, ई अपन नामो नै बतबैत छथि आ तुम-ताम करैत छथि। "
" जरुर कियो लगके छथुन्ह। "
"बताऊ अपन परिचय?"
"प्रोफेसर अहिकेँ बतेबन्हि "
"की बात- की होइत अछि?" प्रोफ़ेसर निकललाह
"अहाँ के?"
"चिन्हू"
"नहि चिन्हलहुँ।"
"चिन्हू, हम वैह जे १० बरख पहिने तक हर साल रेडियो स्टेशनबला डेरा अबैत छलहुँ, सालमे एक बेर। "
"हम बूढ़ भेलहुँ, माफ़ करू नहि चिन्हलहुँ।"
"मुदा हम नहि बताएब, नहि चिन्हब तँ हम एहिना चलि जाएब।"
"बोली तँ सुनल लागैत अछि.. .. ओ अहाँ झाजीक बेटा।"
"हँ।"
उमाक माइ सेहो चिन्हलन्हि:
"झाजीक बेटा , तूँ, तोहर पिताक उपकार हम सभ नहि बिसरबौ, ...तोरा नहि चिन्हलियऊ।"
"कोन उपकार, ओ तँ कहियो किछु नहि कहलाह.. हुनक मरनो आब १२ साल भेल।"
प्रोफ़ेसर- ' ओ बाजएबला नहि छलाह किछु।"
उमाक माँ- "जखन प्रसादजी इंग्लैंड छलाह हमरा सभकेँ कियो देखनिहार नहि, चिट्ठी देलियन्हि तँ ओ झाजीकेँ लिखलन्हि आ झाजी आबि कऽ चालीस हजार रूपया दऽ गेलाह आ हमरा कहलाह जे हुनको नहि कहबन्हि, ई रूपया हुनक किताबक रोयाल्टीमे धीरे-धीरे चुकि जेतैक वा फेर ओ दोसरे किताब लिखि देताह।
प्रोफ़ेसर- " यदि ओहिमे हमरा आर देबाक हो तँ कहू हम अपन बता कऽ लिखबैक वा पेंसन सिक्स्थ पे रिविजन भेला पर पठवा देब।"
बौआ झा- " नहि यौ, हमरा तँ बाबूजी किछु नहि कहलाह कहियो। अहाँ तँ विद्वान छी, हमर पिता तँ अनेक समांगकेँ लेखक बनवा देलथि लिखबा लिखबाकऽ। हुनके नामपर तँ हमहूँ सभ जिबैत छी। हम तँ अहाँक दर्शन लेल आएल छलहुँ, ओना उमा जँ अहाँक पोथीकेँ रिवाइज कऽ देती तँ फेर हम छापि देब आ ओहो चलैत रहत।
आ एक कातमे जा कऽ उमाक माँकेँ कहलखिन्ह - "हमरा एकर एक बायोडाटा चाही"।
"किएक?
"नहि बताएब"
बुझि गेलहुँ।
उमा एहि बीच घसकि गेल, जल्दी दोसर कमरामे अपन कएल शीऊथिकेँ शीसामे देखैत आ सोचैत हमर वृद्ध माता-पिताकेँ के देखतन्हि, जाहि लेल हम लक्ष्मीक कहलो उत्तर लेक्चररशिप छोडि देलहुँ?
आशीष अनचिन्हारक दूटा लघुकथा लघुकथा
पत्नीभक्त
भोज खएबाक लेल बैसल छलहुँ। पात पर भात, दालि आ दू प्रकारक तीमन आबि गेल
छल। बारिक सभ मनोयोग सँ परसि रहल छलाह । एही क्रम मे एक गोट बारिक
बजलाह--
" एखन धरि फेकू बाबू नहि पहुँचलाह आछि"।
गप्प सुनतहि रमेश बाबू फरिझौलखिन्ह--
"औताह कोना पत्नी-भक्त छथि ने।घरवालीक पएर जतैत हेताह"।
सुधीर फेकू बाबूक समांग छलखिन्ह, तुरछि कए बजलाह---
पत्नी-भक्त भेनाइ खराप छैक की ?
जबाब दैत रमेश कहलखिन्ह तखन बैसल छी किएक जाउ अहूँ।
एहि बेर सुधीर गप्प के थोड़ेक मोड़ दैत बजलाह-
" त की अहाँक सिद्धान्तक मोताबिक पुरुष पत्नी-भक्त नहि भए वेश्या-भक्त बनि जाए"
आ हुनक वाक्य समाप्त होइतहि सपासपक ध्वनि शुरु भए गेल।
निशान
हाथ मे माइक, गरा मे फूलक माला, आँखि मे तेज, वाणी मे जोश। नेता जी मंच
पर ठाढ़ भए कए धूआँधार भाषण दए रहल छलाह----
खाली एक बेर हमरा जितएबाक कष्ट करु, हम समस्त जनताक कष्ट के अपन कष्ट
बूझब । भ्रष्टाचार के मेटा देबैक। गुंडा-लफंगाक नामो-निशान खत्म कए
देबैक-------
एहि अंतिम आश्वासन के खत्म होइतहिं श्रोता मे सँ केओ चिचिआ उठल-------
नेता जी जखन अहाँ गुंडा-लफंगाक नामो-निशान मेटा देबैक त अहाँक निशान कतए रहत।
आ नेता जी गप्प के जानि-बूझि अनठा कए ममच सँ उतरि विदा भए गेलाह।
सतीश चन्द्र झा नोकरी
पिताक आकस्मिक निधन रमेश कें मोन मे एकटा नव आशाक किरण जगा रहल छलैक। दुखी तऽ छल मुदा भविष्यक आशा मे एकटा पूर्णता के सेहो अनुभव भऽ रहल छलैक। एकटा बेरोजगार व्यक्ति थाकि हारि कऽबैसल पिताक नौकरी पर पूर्णतःआश्रित छल मुदा भगवानक इच्छा पिता सरकारी नोकरी मे रहिते प्रस्थान केलनि आ रमेश कें अनुकंपा पर नोकरी भेट गेलनि। हुनका बैसल मे सरकारी नोकरीक तगमा भेट गेलनि।दू बेकती अपने एकटा नेन्ना एकटा छोट भाय आ एकटा बहीन संगहि समय सँ पहिने बृद्ध होइत हुनक माता। मायक भीजल आँखि मे किछु संतोषक आभा प्रवेश कएलक। परिवार चलब आब फेर कठिन नहि रहत। पिताक बदला ज्येष्ठ पुत्र अपन कर्तव्यक परिवहन अवश्य करताह तकर पूर्ण विश्वास। मुदा आठ दश मास बितिते परिवारक संपूर्ण चित्र अस्पष्ट होमय लागल। जीवनक समटल गति मे व्यवधानक बसात प्रवेश करय लागल। घर खर्च, छोट बेटाक पढ़बाक खर्च, दोकान दौड़िक खगता सभटा अपूर्ण रहय लागल। क्षणिक आयल हर्ष मे एकटा फेर व्यवधान।
एकदिन मायक सहनशक्ति टूटि गेलनि तऽ रमेश के कहलथि बौआ एना किअए भऽ रहल अछि, बाबू जा धरि छलाह सबहक आवश्यकता पुरौलथि मुदा अहाँ नोकरी करितो सभटा पाइ कौड़ी की करै छी से किछु नहि बुझि पबै छी। माय! तू की बुझबिही! आब पहिलका समय नहि छै। पाइ कौड़ीक कोनो मोल नहि छैक। झण दऽ खर्च भऽ जाइत छैक। ओना तोरो लग तऽ बाबूक भविष्यनिधि आ एल आइ सी आदिक पाइ तऽ छौहे किए नै खर्च करै छैह। तू की करबै पाइ लऽ कऽ। वहीनक वियाह तऽ जेना जे हेतै से हेबे करतै।
माय तऽ सत्ते नहि बुझि सकलीह। साले भरि मे कोना एतेक परिवर्तन भऽ गेलैक। नहि जानि समय के दोष छैक अथवा संसारक देखा देखी बनि रहल नव परंपरा जाहि मे पुत्र अपन परिवार कें रूप मे मात्र अपन पत्नी आ बच्चा के बुझैत छथि।
नहि जानि लोक पुत्रक अभिलाषा मे अतेक कियै विचलित रहैत अछि। सोचैत सोचैत अपन पतिक फोटो के समक्ष ठाढ़ भऽ ओ अपन बीतल समय के ताकय लगली ।
किशन कारीग़र मूरही-कचरी
एकटा हास्य लघु कथा।
दिल्ली संॅ दरभंगा होयत अपन गाम मंगरौना जायत रही। रस्ते मे एकटा नियार केलहुँ जे एहि बेर महादेव मंठ जेबेटा करब। एतबाक सोचैते-सोचैते कखन गाम पहुॅंच गेलहुँ सेहो नहिं बूझना गेल। चारि बजे भोरे अंधराठाढ़ी यानी वाचसपतिनगर रेलवे स्टेशन उतरलहुँ रिक्शावला सभ के हाक देलियै। भोला छह हौ भोला। ताबैत दोसर रिक्शावला बाजल जे आई भोला नहि एलै कियो बाजल जे जोगींदर आयल हेतै तकियौ ओकरा। भोला आ जोगींदर दूनू गोटे गामक रिक्शावला रहैए कोनो बेर गाम जाइ तऽ ओकरे रिक्शा पर बैसि क स्टेशन सॅं गाम जाइत छलहुँ। एतबाक मे जोगींदर ओंघायत हरबराएल आएल अनहार सेहो रहै। वो बाजल कतए जेबै अहॉं। हम मंगरौना जाएब कक्का हमरा नहि चिन्हलहुँ की। हॅं यौ बच्चा आवाज़ सॅं आब चिन्हलहुँ आउ-आउ बैसू रिक्शा पर। दूनू गोटे गप सप करैत बिदा भेलहुँ ताबैत जोगींदर सॅं हम पूछलियै कक्का ई कहू जे एहि बेर बाबाक दर्शन केलहूॅ किनहि। हॅं यौ बच्चा एहि बेर सजमैन खूम फरल छलै से हमहुँ चारि बेर बाबा के जल चढ़ा एलहॅू आओर हुनका लेल सजमैन सेहो नेने गेल रहियैन। एतबाक मे भगवति स्थान आबि गेल हम रिक्शा पर सॅं उतरि के भगवति केॅं प्रणाम करैत तकरा बाद अपना आंगन गेलहूॅ।
हमरा गामक प्रारंभ मे भगवति स्थान अछि। गाम पर गेलहुँ सभ सॅं दिन भरि भेंट घांट होयत रहल। भिंसर भेलै संयोग सॅं ओहि दिन रवि दिन सेहो रहै। बाबा सॅं भेंट करबाक मोन आओर बेसी आतुर भऽ गेल नियार केलहुँ जे आई महादेव मंठ जाके बाबाक दर्शन कए आबि। हमरा गाम सॅ किछूएक दूर देवहार गाम मे मुक्तेश्वर नाथ महादेवक प्राचीन मंदिर अछि जकरा लोक बोलचाल मे महादेव मंठ कहैत छैक। ओना तऽ सभ दिन बाबाक पूजा होइत छलैक मूदा रवि दिन के भक्त लोकनीक बड् भीड़ होइत छलैक किएक तऽ ओहि दिन मेला सेहो लगैत छलै त दसो-दीस सॅ लोग अबैत छल।दरभंगा पढैत रही तऽ हमहुँ महिना मे एक आध बेर महादेव के जल चढा पूजा कए अबैत छलहॅू। गामे पर भिंसरे नहा के बिदा भेलहुँ माए हमर फूल बेल पात ओरियान कके देलिह। गाम पर सॅ मुक्तेश्वर स्थान बिदा भेलहॅू पैरे-पैरे जायत रही तऽ जहॉं गनौली गाछी टपलहॅू कि रस्ते मे एकटा पिपरक गाछ छलै। ओतए सॅं महादेव मंदिर लगे मे रहै। ओहि पिपर गाछ लक एकटा जटाधारी साधू भेटलाह हम कहलियैन बाबा यौ प्रणाम।
एतबाक मे बाबा बजलाह जे कहबाक छह से जल्दी कहअ हमरा आई बड् जार भऽ रहल अछि। बाबाक ई गप सूनी कें हमरा कनेक हॅंसी लागि गेल। हम बजलहॅू आईं यौ बाबा अपने सन औधरदानी के कहॅू जार भेलैए। अपने तऽ एनाहियों सौंसे देह भभूत लेप के मगन रहैत छी। बाबा बजलाह हौ बच्चा आब लोक सभ ततेक जल चढ़बैत अछि जे हमरा कॅपकॅपि धअ लैति अछि। तूहिं कहए तऽ एहि उचित जे भक्त सभ हमर देह भिजा के निछोहे परा जाइत अछि। आब तऽ लोक सभ पूजा करै लेल नहि ओ त मूरही-कचरी खाई लेल अबैत अछि। हम बजलहुँ बाबा अपने किएक खिसियाएल छी आई तऽ हम अहॅाक लेल दूध सेहो नेने आइल छी चलू-चलू मंदिर चलू भक्त लोकनि ओहि ठाम अहॉं के तकैत हेताह। बाबा खिसियाअत बजलाह कियो ने तकैत होयत हमरा तू देख लिहक सभ मूरही कचरी खाए मे मगन होयत। तूॅं दरभंगा पढ़ैत छलह तऽ दूध सजमैन लए के अबैत छेलह मुदा जहिया सॅं पत्रकार भए दिल्ली चलि गेलह हमर कोनो खोजो पूछारी नहि केलह।
देखैत छहक मंगरौना चैतीक मेला मे तोहर गामवला सभ लाखक लाख टका खर्च करैत अछि मूदा हमरा लेल भागेश्वर पंडा दिया छूछे विभूत टा पठा दैति अछि। मंगरौनाक चैती मेला बड्ड नामी छलैक ओतए कलकता सॅं मूर्ती बनौनिहार आबि के भगवतिक मूर्ती बनबैत छलैक एहि द्वारे दसो दिस सॅं लोक मेला देखबाक लेल अबैत छलाह। भागेश्वर झा महादेव मंदिरक पंडा रहैत हुनके दिया बाबाक पूजा लेल सभ किछू पठा देल जायत छलैक।बाबा फेर खिसियाअत बजलाह जे आइ हम मंदिर नहि जाएब। हम कहलियैन जे बाबा अपने चलू ने मंदिर अहॉ जे कहबै आई से हेतै आबौ अहॉंक कॅंपकॅंपि दूर भेल किनहि \ नहि हौ बच्चा आई त हमरा बूझना जाए रहल अछि जा धरि मूरही-कचरी नहि खाएब ताबैत हमर ई जार-बोखार नहि छूटत। कहू त बाबा अपने एतबाक गप जे पहिने कहने रहितहॅू त हम एतबाक देरी] बच्चा कतेक दिन मोन भेल जे तोरा कहिअ जे हमरो लेल किछू गरमा-गरम नेने अबिह मुदा नहि कहलियअ ।हम मंदिर सॅं बाहर निकैल देखैत छलहुँ जे लोग सभ हमरा जल ढ़ारी के निछोहे मूरही-कचरी वला लक परा जाइत छल एमहर हम एसगर थर-थर कॅपैत रहैत छलहुँ कियो पूछनिहार नहि। आब लोग हमर पूजा सॅं बेसी अपन पेट पूजा मे धियान लगबैत छथि। चलअ आब तहुँ देखे लिहक जे हम सत्ते कहैत छियअ कि झूठ।
ओही पिपर गाछ लक सॅं हम आओर बाबा बिदा भेलहुँ रस्ता मे बाबा बजलाह जे हम किछू काल मंदिर मे रहब पूजा केलाक बाद हमरा बजा लिहअ। हम कहलियैन हे ठिक छै बाबा हम अपनेक लेल मूरही-कचरी किन लेब तकरा बाद अहॉ के बजाएब त चलि आएब। ओही ठाम सॅं बाबाक संग हम मंदिर पहुॅंचलहुँ। ओतए देखलिए जे लोग सभ बाबा के जल चढ़ा निछोहे परा जाइत छल। ओना त मिथिलांचल मे मूरही-कचरीक सुंगध सॅं केकर मोन ने लुपलुपा जाएत अछि। हमहुँ बाबाक पूजा पाठ केलाक बाद मेला घूमए गेलहॅू तऽ सभ सॅं पहिने पस्टनवला लक कचरी किनबाक लेल गेलहुँ। ओकर कचरी एहि परोपट्ा मे नामी छल। हमरा देखैते मातर ओ अहलाद बस बाजल आउ-आउ किशनऽ जी कहू कुशल समाचार। हम कहलियै जे बड्ड निक अपन सुनाबहअ। कचरीवला बाजल जे हमहूॅ ठिके छी दोकान अपना खर्चा जोकर चलि जाएत अछि। अच्छा आब हमरा दस रूपयाक मूरही-कचरी झिल्ली अल्लू चप दए दिहक। ओ हरबराइत बाजल हयिए लिए अखने गरमा-गरम कचरी अल्लू चप सबटा निकालबे केलिए अहिमे सॅं दए दैत छी। हम कहलियै जे दए दहक गरमा गरम एहि मे सॅं।
ओकरा हम पाइ दैत मंदिर दिस बिदा भेलहॅू ओतए पहुॅचतैह हम बाबा के हाक देलियैन मुदा कोनो जवाब नहि भेटल। हम एक बेर फेर हाक लगेलहॅू जे बाबा छी यौ कतए छी \ जल्दी चलि आउ कचरी सेराए रहल अछि। मुदा बाबाक कोनो प्रत्युतर नहि भेटल। हमरा बुझना गेल जे बाबा फेर खिसियाकेॅे कतहूॅ अलोपित भए गेलाह। दुःखित मोन सॅं हम गाम पर बिदा भेलहुँ। पैरे-पैरे जाएत रही तऽ जहॉ पिपर गाछ लक एलहुँ कि ओ जटाधारी साधू फेर भेटलाह। हमरा देखैते ओ बजलाह आबह-आबह तोरे बाट तकैत छलहुँ जल्दी लाबअ मूरही-कचरी दूनू गोटे मिलि कए गरमा गरमा खाए लैत छी। तकरा बाद पोटरी खौलैत हम बजलहॅू हयिए लियअ बाबा खाएल जाउ। मुदा ई कि ओ फेर ऑखिक सोझहा सॅं कतहॅू अदृश्य भए गेलाह। बाबा सॅं भेंट तऽ भेल ओहि पिपर गाछ लक मुदा बाबाक लेल किनल मूरही-कचरी रखले रही गेल।
गजेन्द्र ठाकुरक चारिटा लघुकथा
१.बाल गुरु
ओम नाम रहै ओहि बच्चाक।
मंशा नाम रहै ओहि बुच्चीक।
दिल्लीक कोनो आवासीय परिसरमे दुनु गोटेक परिवार रहै छलै।
बच्चा रहए मिथिलाक आ बुच्ची रहए पंजाबक। बच्चाक माए गृहणी आ पिता नोकरिहारा। बुच्चीक माए आ पिता दुनू नोकरिहारा।
एह, ओकर पिताक मुरेठा देखैबला रहै छल। मंशाक माए अपन पतिकेँ सरदारजी कहै छलि। मंशाक घरमे ओड़ीसाक एकटा बचिया नोकरी करै छलि, महुआ। वैह मंशाक देख-रेख करै छलि। आवासीय परिसरक घासक पार्कमे मंशाकेँ महुआ आनै छलि।
ओम ओहि पार्कमे अपन माएक संग अबै छल। मंशा आ ओम ओही पार्कमे खेलाइ-धुपाइ छल।
ओमक जन्मदिनमे मंशा अबिते छली। माए ओकरा लेल उपहार कीनि कऽ राखि दैत छलीह। महुआ मंशाकेँ लऽ कऽ समएसँ ओमक जन्मदिनमे पहुँचि जाइ छलीह। ओम आ मंशा दुनूक चारिम बरख पूरल छलन्हि आ पाँचम चढ़ल छलन्हि।
मुदा ओहि आवासीय परिसरमे एकटा बदमाश बच्चा आबि गेल। ओ सभ बच्चाकेँ तंग करए लागल। ओकर नाम रहै सुसेन।
“गै मंशा, दुजुट्टी किए बन्हने छेँ?”
“तोरा की?”
“गै मंशा, मुँह किए फुलेने छेँ?”
“मुँह किए फुलेने रहब?”
“मंशा गै, तोहर दोस ओम किए एहन गन्दा छौ?”
आब तँ मंशाकेँ ततेक तामस भेलै जकर कहब नहि। ओ जोर-जोरसँ बजए लागलि-
“ओम हमर दोस छी। जे एकरा गन्दा कहैए से अपने गन्दा अछि।”
मंशा ओमक हाथ पकड़ने आगाँ बढ़ि गेलि आ सभ गप ओमक माएकेँ कहलकै।
“हम सुसेनपर तमसाइ छलहुँ आ ई चुपचाप ठाढ़ छल।” मंशा ओमक माएकेँ कहलक।
“किए ओम। अहाँकेँ सुसेन गन्दा कहलक आ अहाँ चुपचाप ठाढ़ रहि गेलहुँ।”- ओमसँ ओकर माए पुछलखिन्ह।
“माए, ओ हमरा नै चिन्हैए। नव आएल अछि। तेँ हमरा गन्दा कहलक। जखन ओ हमरा चीन्हि जाएत तँ थोड़बेक गन्दा कहत।”
माए आँखिमे नोर आबि गेलन्हि।
हुनको पहिने तामस आबि गेल छलन्हि जे हमर बेटा किए चुप रहि गेल। ओ सुसेनकेँ किछु कहलक किए नै। मुदा तखने हुनका मंशा देखाइ पड़लन्हि। देखियौ कतेक निश्छल अछि। आ दुनू बच्चाकेँ ओ चुम्मा लेमए लगलीह।
२.शारदानगर
दुर्गा पूजाक नाटकक दू दृश्यक बीच नर्तकीक नाच।
“शारदानगरक ढोढ़ाँइ दस टाका तहे-तहे दिलसँ दै छथि”- नर्तकी रुखसाना बजै छथि।
“बनारसक छै रौ।”
“धुर, मुजफ्फरपुरसँ लऽ अनै छै आ झुट्ठो बनारसक..”।
“हौ मुदा ई शारदानगर कोन गाम छै”।
“बुझलही नहि। पट्टी टोलक जे पाइबला सभ रहै, से सड़कक ओहिपार टोल बना लेलकै आ लक्ष्मीपुर नाम राखि लेलकै- जे पट्टी टोलक हम सभ नहि छी। लक्ष्मी आ सरस्वतीक झगड़ा बुझल नहि छौह। से भगवानक झगड़ाकेँ सोझाँ अनने अछि। पट्टी टोल गाम गरिबहा सभक अछि, सभटा अछि महिसबार सभ। मुदा भगवानक झगड़ामे गामक नाम सरस्वतीक नामपर शारदानगर राखि लै गेल अछि।”
“ चल नर्तकीकेँ तँ अही बहन्ने पाइ दै जाइ छै”।
३.एकटा पत्र
शुभाशीष।
हम एतय कुशल छी। अहाँ सबहक कुशलक हेतु सतत् भगवानसँ प्रार्थी रहैत छी।
आगाँ समाचार ई जे अहाँ सभ हमर खोज खबरि लेनाइ बिल्कुले बिसरि गेल छी। फोनो तँ छोड़ू, चिट्ठीयोसँ गप्प केना महिनो बीति जाइत अछि। कमसँ कम सप्ताहमे नहि तँ महिनोमे एको बेर तँ मायक लेल गप्प करबाक समय निकालू।
एतेक मोटका-मोटका किताब अहाँ लिखैत छी किन्तु मायसँ गप्प करबाक फुर्सति नहि अछि। अहाँक किताबक खिस्सा आ कविता सभ दीदी सुनेलक अछि। बहुत मार्मिक लगैत अछि। परन्तु अपन माँक प्रति कोनो जिज्ञासा नहि होइत अछि, जे कतय रहैत अछि आ कोना अछि।
भाएसँ अहाँ अपने समय-समयपर गप्प करू जे हम कतऽ कतेक दिन रहब। गाममे आब हमरा नहि रहल होएत कारण एतए कोनो व्यवस्था नहि अछि आ कियो पुरुख नहि रहैत छथिन्ह। अहाँ सभ भाए-बहिनमे छोट छी किन्तु घरमे अहींकेँ घरक व्यवस्था आ इन्तजामक भार शुरुहेसँ अछि। किन्तु एम्हर अहाँ ध्यान नहि दैत छिऐक। फोनपर अहाँसँ गप्प करबाक बड्ड मोन होइत रहैत अछि। बच्चा सभसँ सेहो गप करबाक मोन होइत रहैत अछि। बच्चा सभकेँ दू-तीन दिनपर बासँ गप करबा लेल कहबै।
जमाएकेँ देखैत रहै छियन्हि जे सभ दू-तीन दिनपर अपन माँसँ गप करैत रहैत छथिन्ह, से हमरो सौख लगैत रहैत अछि जे हमर बेटा सभ केहन अछि जे कहियो माँसँ गप्प करबाक मोन नहि होइत छैक।
सभ कहैत अछि जे अहाँकेँ कोन चीजक कमी अछि, से हमरो चीजक कमी तँ नहि अछि मुदा धिया- पुताक हम प्रेमक भूखल छी।
पुतोहु, अहाँकेँ एखन घरक सभटा काज करए पड़ैत होएत। बड्ड मेहनति होइय होएत, मुदा तैयो हमरोपर ध्यान राखब। हम बड्ड घबराएल रहै छी तेँ जे फुराएल से हम चिट्ठीमे लिखा देलहुँ।
अहाँ सभक प्रेमक भूखल-
अहींक माँ।
४. माए-बेटाक मनोविज्ञान
बेटा,
गाम आबैक मोन नै होइए। पुतोहुसँ आब झगड़ा नै होइए।
महीस दूध दऽ रहल अछि...
मुदा टोलबैय्या सभ एहि लेल जड़ि रहल अछि।
...
...
अहाँक माए।
“अएँ यै , अहाँक दूध होइये तँ टोलबैय्या सभ किएक जड़त? आ अहाँ से बुझै कोना छिऐक?” से बूढ़ीसँ पुछलकन्हि लिखिया।
तँ कहलन्हि बूढ़ी- “जे ओ सभ मोने-मोने जड़ैए, से हम सभटा बुझै छिऐ।”
चिट्ठी बेटा लग पहुँचि गेलन्हि।
मुदा बेटाकेँ देखू- “अएँ यौ- हमरा दूध होइये तँ लोक सभ किएक जड़ैए? माए लिखलक अछि।”
पढ़ुआ बजलाह- “टोलबैय्या सभ किएक जड़त? आ अहाँ से बुझै कोना छिऐक, माए ने लिखलन्हि अछि?”
तँ कहलन्हि बेटा- “जे मोने-मोने जड़ैए, से हम सभटा बुझै छिऐ।”
हजार कोस दूर रहि रहल निरक्षर दुनू माए-बेटाक बीचक विचार-तंतुक सादृश्यता!
माएपर कतेक विश्वास छै? माएकेँ बेटापर आ बेटाकेँ माएपर विश्वास छै, दोसरकेँ विश्वास नै हौ तकर कोनो चिन्ता नै।
माए-बेटाक मनोविज्ञान !
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