रामाकान्त राय ‘रमा’- पोथी समीक्षा- प्रगतिशील एवं सनातन विचारधाराक समन्वयात्मक उपन्यास- ‘मौलाइल गाछक फूल , डॉ. योगानन्द झा- आदर्शक उपस्थापन : मौलाइल गाछक फूल, शिव कुमार झा- समीक्षा-कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक/ मौलाइल गाछक फूल/ भफाइत चाहक जिनगी
रामाकान्त राय ‘रमा’ सम्पर्क- श्री रामा निवास, मानाराय टाल
पोस्ट- नरहन जिला-समस्तीपुर ८४८२११
पोथी समीक्षा
प्रगतिशील एवं सनातन विचारधाराक समन्वयात्मक उपन्यास
‘मौलाइल गाछक फूल’ श्री जगदीश प्रसाद मंडलक सघ: प्रकाशित उपन्यास थिकनि जकर विमोचन ०३ अप्रैल २०१०केँ जनकपुरधाम (नेपाल)मे आयोजित ‘सगर राति दीप जरय’ कथा गोष्ठीक अवसरपर भेल छल। एहिमे प्रगतिशील जनवादी आ पौराणिक सनातनी विचारधाराक समन्वयक परिपाक नीक जकाँ वर्णन भेल अछि।
जगदीश प्रसाद मंडलजी मैथिली साहित्यक लेल नव नहि रहलाह १.७.८ वर्षक रचना धर्मिता आ मात्र दू-तीन बर्षक प्रकाशन प्रसारसँ ई मैथिली जगतमे अपन एकटा नीक स्थान बना लेलनि। आे अस्थान सेहो आन-आन लेखकसँ फराक आ बेछप अछि। ओना साहित्यमे हिनक प्रवेश राजनीति पटलसँ भेल अछि। “पैंतीस साल समाज सेवा कऽ हहरैत शरीर देखि किछु लिखै-पढैक विचार भेल।” (भूमिका।)
ओ अपन पहिल कथा ‘सगर राति दीप जरय’ कथा गोष्ठीमे पढ़ि प्रशंसा प्राप्त कएलनि। लिखवाक लति बढ़लनि आ ओ अनवरत लिखय लगलाह- कथा, उपन्यास, नाटक। जे लिखवाक रूचि भेलनि-दिल खोलि कऽ लिखलाह। प्रकाशनक कोनो चिंता नहि। ओ मैथिली साहित्यक प्रकाशनक रूढ़ प्रक्रिया दिस कहियो नहि सोचलनि आ रचना धर्मितासँ विमुख नहि भेलाह हुनका अपन रचनापर पूर्ण आस्था आ विश्वास छलनि।
मधुबनी कथा गोष्ठीमे पठित हिनक कथा ‘बिसांढ़’ घर बाहरमे आ दोसर कथा ‘चूनवाली’ सन् २००९ उतरार्द्धमे ‘मिथिला दर्शन’मे छपल। एहि दुनू रचनाक कथानक, लिखबाक शैली ओहिमे व्यक्त विचारधारासँ लोक वेश प्रभावित भेल। लेखनमे नव रहितहुँ अनुभूतिक अभिव्यक्ति कौशलसँ लबालब भरल हिनक रचना सभ मिथिलांचलक आम जीवनकेँ नीक जकाँ प्रतिविम्बित करैत अछि जे पाठककेँ चुम्बक जकाँ अपना दिस आकृष्ट कऽ लैत अछि।
मैिथलीक युवा लेखक एवं विदेह पत्रिकाक संपादक श्री गजेन्द्र ठाकुर मानैत छथि जे ‘जगदीश प्रसाद मंडल शिल्पी छथि, कथ्यकेँ तेना समेट लैत छथि जे पाठक विस्मित रहि जाइत अछि। समाजक सभ वर्ग हिनक कथ्यमे भेटैत अछि आ से आ से आलकारिक रूपमे नहि वरण् अनायास, जे मैथिली साहित्य लेल एकटा हिलकोर अएवाक समान अछि।’ यएह कारण अछि जे हिनक सात-आठटा पुस्तकक प्रकाशन दुइये कथा प्रकाशनक वाद दिल्लीक प्रतिष्ठत प्रकाशक ‘श्रुति प्रकाशन द्वारा वर्षाभ्यन्तरे भेल अछि। एहन मैथिली लेखक विरले छथि जे मात्र अपन लेखन क्षमताक बलपर कोनो प्रकाशककेँ एतेक अत्यल्प अवधिमे आकृष्ट कऽ अपन प्रारम्भिक रचनोक प्रकाशनक मार्ग प्रशस्त कएने होथि!
‘मौलाइल गाछक फूल’क कथानक तँ सोझ अछि। रमाकान्त गामक एकटा पैघ भूस्वामी प्राय: दू सए बीघाक भूमिक मािलक छथि। ओ कम पढ़ल-लिखल रहलाक वादो परोपकारक भावना, गाम-समाजक हितक चिंतासँ सदति चिंतित रहैत छलाह। घोर अकालमे अन्न बिन हकन्न कनैत लोक लेल ने केबल स्वयं अपन पोखरि उराहबाक काजसँ जन-गणक मन मोहि लैत छथि प्रत्युत, अड़ोसियो-पड़ोसियो गाममे श्री सम्पन सभकेँ एहन-काज करवा लेल उत्प्रेरितो करैत छथि।
अपन विद्वान पिता द्वारा सम्पति आ हुनकेसँ प्राप्त ज्ञानक कारणे कालान्तरमे ओ अपन सभटा भूमि समाजक सभ वर्गक दीन-हीन लोकमे बॉटि कऽ स्वयं चैनक वंशी बजबैत छथि।
हुनका अपन भरण पोषणक कनियो चिंता नहि छनि। किएक तँ हुनक दू-दूटा पुत्र मद्रासमे डाक्टरी पढ़ि ओहिठाम सरकारी सेवामे छनि। ओ दुनू अपन मनोनकूल मेहनतिसँ अर्जित कऽ नीक घर-द्वारि बना ओतहि रहैत छथि। ओ सभ यदा-कदा गाम आबि माता-पिता आ गामक लोकसँ भेँट-घाँट कऽ जाइत अछि।
गाममे दूटा बस्तुक अभाव छैक- पहिल उच्च शिक्षा लेल विद्यालय आ दाेसर दुखित-पीड़ितक लेल चिकित्सालय। रमाकान्त सहयोगे पहिने एकटा पुरूष आ एकटा महिला प्राथमिक चिकित्साक ट्रेनिंग मद्राससँ कऽ अबैत छथि। पछाति जमीन्दारक डाक्टर पुत्र आ पुत्रवधू जखन गाम अबैत छथि तँ पिता आ समाजक समझौता बुझौला तथा परोपकार एवं जनसेवाक भावनासँ प्रेरित भऽ चारिम डाक्टरमे सँ एक एकटाकेँ क्रमश: गाममे रहि लोकक सेवा करबा लेल तैयार भऽ जाइत छथि आ गाममे चिकित्सा आरम्भ कऽ दैत छथि।
एहिसँ मात्र ओहि गामक लोककेँ नहि प्रत्युत लग-पासक आनो-आन गामक मौलाइल गाछ, रोग व्याधि ग्रस्त लोक सभमे चिकित्सा सुविधा रूपी नव जीवनक फूल बिहँसि उठैत अछि।
उपन्यास आ लघुकथाक कथानकमे अन्तर होइछ। कथा जीवनक कछु दिन, किछु क्षणक उतार-चढ़ाव, स्थिति-परिस्थितिक वर्णन होइत अछि, मुदा उपन्यासमे जीवनक प्राय: सम्पूर्ण नहि तँ अधिकसँ अधिक घटना, दुर्धटनाक आरोह-अवरोहक महत्वपूर्ण रोडपर रोकैत, विश्राम करैत, थाकैत, खसैत, पड़ैत, उठैत स्थिति निरपेक्ष लेखन अछि। कथाकेँ जलखैक भूजा किवां सातु मानल जाए तँ उपन्यासक विन्यास पूर्णत: भोजन अछि।
ई उपन्यास आदर्श जनवादी धरातलपर ठाढ़ अछि। एहिठाम जनवादमे जे अादर्शक समन्वय भेल अछि, से प्रशस्त सनातन परम्परामे सेहो विधमान अछि। जेना एहि उपन्यासमे कएल गेल एकटा महत्वपूर्ण कार्य अछि परोपकार। महर्षि व्यास परोपकारकेँ पुण्यक एकमात्र कार्य मानैत छथि-
“अष्ट्ादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।’
परोपकार: पुण्याय पापाय पर पीड़नम्।।”
दोसर शब्दमे हम कहि सकैत छी जे उपन्यासकार मार्क्सवादसँ नीक जकाँ प्रभावित छथि मुदा अपन सनातन परम्परा, धर्म-कर्म आ आचार-विचारक प्रति सेहो विशेष सहानुभूति रखैत छथि। एकरा देश-काल आ परिवेश प्रभाव सेहो कहल जा सकैछ।
उपन्यासक भाषा ठेठ ग्रामीण भाषा अछि जे मधुबनी जिलाक पूर्वाचलमे बाजल जाइत अछि। हमरा उपन्यासक ई आंचलिक भाषा प्रभावित अवश्य करैत अछि मुदा कतहु-कतहु आंचलिकता आकि बोल-चालक भाषा मानक मैथिली भाषाकेँ काटैत जकाँ लगैत अछि किएक तँ एहिमे हमरा क्रिया पदक आपूर्ण प्रयोग जकाँ बुझाइत अछि। जेना- किछु फुरबे ने करैत।(पृ.५), बखारिक धान आ मड़ुआक हिसाब मिलबैत।, मुसनाक बोली साफ-साफ निकलबे ने करैत। एहिठाम एहि तीनू वाक्यक क्रिया पद अपूर्ण लगैत अछि। हमरा जनैत मानक मैथिलीमे क्रमश: किछु फुरबे करैक/करैत छलैक।, हिसाब मिलबैत छलाह आ निलकबे ने करैक/करैत छलैक एहि प्रकारे होएत।
एहन क्रियापदक प्रयोग प्राय: सभ पृष्टपर अछि जाहिसँ हमरा बुझि पड़ैछ जे ई ओहि ग्राम्यांचलक विशेष प्रयोग होइक जकरा अंगीकार करब, लेखककेँ समुिचत बुझयलनि। कारण कोसे-कोसे पानी आ पॉच कोसपर वाणी तँ सुप्रसिद्धे अछि।
मूल कथामे अनेक छोट-छोट उपकथा, सह कथा कथानककेँ अत्यधिक रोचक बनबैत अछि। तहिना कतेको ठाम लेखक अपन विचारक वीथी विभिन्न पात्रक मुखसँ कहबौने छथि जे नीक सूक्ति की सदुक्ति बनि कऽ पुस्तकसँ फराको रहि लोककेँ प्रेरणा दैत रहत। जेना- (क) जनकक राज मिथिला थिकैक तेँ मिथिलावासीकेँ जनकक कएल रस्ता पकड़ि कऽ चलक चाही। (ख) मनुखमे जन्म लेलापर क्यो माए-बापक सेवा नहि करै तँ ओ मनुखे की? (ग) मनुखकेँ कखनो निरास नहि हेबाक चािहएेक, जखने मनुखमे निराशा अबैत छैक तखने मृत्यु लग चल अबै छैक। तेँ सदिखन आशावान भऽ जिनगी वितेबाक चाहिएेक। कठिनसँ कठिन समए किएक ने आबए मुदा विवेकक सहारा लऽ आगु डेग बढ़ेबाक चाहिऐक।
समग्रत: मौलाइल गाछक फूल ‘मार्क्सवादी विचारधारा आ भारतीय सनातन विचारधाराक समन्वयवादी एकटा एहन मौलिक कृति अछि जकरा मैथिली भाषाक पाठक पढ़वाक लेल सदति उत्सुक रहताह- ई हमर दृढ़ विश्वास अछि।
चर्चित पोथी- मौलाइल गाछक फूल (उपन्यास)
लेखक- श्री जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन, न्यू राजेन्द्र नगर दिल्ली-११००८
दाम- २५० टाका मात्र
पृष्ठ संख्या- १२८
पोथी प्राप्तिक स्थान- पल्ल्वी डिस्ट्रीब्यूटर्स वार्ड नं.६, निर्मली (सुपौल)
मोवाइल नं. ०९५७२४५०४०५
डॉ. योगानन्द झा
आदर्शक उपस्थापन : मौलाइल गाछक फूल
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श्री जगदीश प्रसाद मण्डल बहुआयामी रचनाकार छथि। कथा, उपन्यास, नाटक आदि विभिन्न विधामे प्रभूत रचना द्वारा ई आधुनिक मैथिली साहित्यमे बेछप स्थान बना चुकल छथि। ‘मौलाइल गाछक फूल’ हिनक औपन्यासिक कृति थिकनि। आदर्शवादी विचारधारासँ ओतप्रोत हिनक एहि उपन्यासमे मण्डलजीक उदात्त सामाजिक चिन्तनक प्रक्षेपण भेल अछि।
एहि उपन्यासक अधिकांश चरित्र उदार ओ सज्जन प्रकृतिक छथि। हुनका लोकनिक हृदय पवित्र छनि आ स्वार्थ ओ वासनासँ फराक रहि समाज उत्थानक हेतु चिन्तन करैत देखि पड़ैत छथि। स्वभावत: एहन चरित्र सबहक अनुगुम्फनसँ ई उपन्यास एक गोट पिरष्कृत सामाजिक चिन्तनक मार्ग प्रशस्त करैत देखि पड़ैत अछि।
एहि उपन्यासक केन्द्रीय पात्र छथि रमाकान्त। उपन्यासक अधिकांश घटना हिनके परित: आघूर्णित होइत अछि। ई जमीन्दार छथि आ सुभ्यस्त सेहो। उदार विचार, इमानमे गंभीरता, मनुक्खक प्रति सिनेह हिनक चारित्रिक विशिष्टता छनि। हिनकामे ने सूदिखोर महाजनक चालि छनि ने धन जमा कएनिहार लोकक अमानवीय व्यवहारे छनि। नीक समाजमे जेना धनकेँ जिनगी नहि अपितु जिनगीक साधन बुझल जाइत अछि, सएह रमाकान्तोक परिवारमे छनि। उपन्यासक आरम्भहिमे हिनक उदात्त चरित्रक परिचए भेटि जाइत अछि। गाममे अकाल पड़ि जाइत छैक। आ लोक सभ अन्न बेत्रेक मरब शुरू कऽ दैत अछि। मुदा रमाकान्त लग बखारीक बखारी अन्न पड़ल छनि। लोकक प्रति सहानुभूतिसँ द्रवित भऽ रमाकान्त अपन बखार फोलि दैत छथि आ काजक बदला अनाज कार्यक्रम शुरू कऽ अपन पोखड़िकेँ उरहबा लैत छथि। एहिसँ एक दिस जँ लोककेँ अकर्मण्यतापूर्वक खराती अन्न लेबासँ परहेज करबैत छथि तँ दोसर दिस अन्नाभावमे लोककेँ मरबासँ बचबैत छथि।
रमाकान्तक ई अवधारणा छनि जे संसारक यावन्तो मनुक्ख अछि सभकेँ जीबाक अधिकार छैक। सभकेँ सभसँ सिनेह होएवाक चाहिऐक। मुदा जाहि परिवेशमे हमरालोकनि जीवि रहल छी, जाहिठाम व्यक्तिगत सम्पत्ति आ जबाबदेहीक बीच मनुक्ख चलि रहल अछि, ओहिठाम सिनेह खंडित होएबे करतैक आ सिनेह खंडित भेने पारस्परिक द्वेष ओ लड़ाइ-दंगाकेँ कोनो शक्ति रोकि नहि सकैत छैक। तेँ नूतन समाजक निर्माणक हेतु, सामाजिक समरसता हेतु त्याग भावनाक आवश्यकता छैक आ छैक पारस्परिक सहयोग भावनाक विस्तारक आवश्यकता। तेँ ओ अपन दू सए बीघा जमीन गामक भूमिहीन परिवार सबहक बीच वितरणक निर्णए लैत छथि जाहिसँ गामक सभ व्यक्ति सुखी आ सम्पन्न भऽ सकथि। यद्यपि रमाकान्तक एहि प्रकारक अतिशय उदारता जमीन्दारक प्रवृत्ति ओ समसामयिक यथार्थक दृष्टिये सर्वथा अविश्वसनीय प्रतीत होइत अछि, तथापि ई उदात्त लेखकिय कल्पना उपन्यासकारक एहि उद्देश्यकेँ प्रतिपादित करैत अछि जे यावत् समाजमे एक दिस अति विपन्न आ दोसर दिस अति सम्पन्न लोकक वास रहत, ताधरि सामाजिक समरसताक बात स्वप्ने बनल रहत।
रमाकान्त उदारताक अतिरंजित वर्णन उपन्यासमे अनेक स्थलमे देखि पड़ैत अछि यथा ओ शशिशेखर नामक युवकक उच्च शिक्षाक हेतु सहायता प्रदान करैत छथि, गाममे स्कूल स्थापित होएबा काल शिक्षकक भोजनादिक व्यवस्थाक भार अपना ऊपर लऽ लैत छथि, टमटमबलाक दु:खिताहि घरवालीक ईलाजक हेतु ओकरा पर्याप्त टाका दऽ सहायता करैत छथि, आदि।
एहि उपन्यासमे मण्डलजी मिथिलाक ग्राम्य जीवनमे पसरल धर्मभीरूताक समस्याक यथार्थवादी चित्रण कएलनि अछि। एहि समस्याक चित्रण हेतु ओ सोनेलाल नामक पात्रक अवतारणा करैत छथि। सोनेलालक पत्नी दु:खित पड़ि जाइत छथिन। ओ ओकरा अस्पतालमे देखएबाक हेतु अपन जमीन भरनापर दऽ दैत छथि। उपचार भेलापर हुनक पत्नी स्वस्थ भऽ जाइत छथिन। मुदा ताही क्रममे ओ साधु भण्डाराक कबुला कऽ लैत छथि। एहि कबुलाकेँ पूर करबाक हेतु साधुक दूटा दल निमंत्रित कएल जाइत छथि। हिनकालोकनिक हेतु सोनेलाल पर्याप्त भोज्य पदार्थ जुटबैत छथि। मुदा साधुक दुनू दलमे एकटा वैष्णव सम्प्रदायक तथा दोसर कबीरपन्थी सम्प्रदायक रहैत अछि आ दुनू दल अपन-अपन साम्प्रदायिक अभिवमानसँ ग्रस्त रहैत अछि जकर कारणे भण्डारामे अनेक विसंगति उत्पन्न होइ छैक। मुदा सर्वाधिक कष्टकर स्थिति तखन बनैत छैक जखन वैष्णव सम्प्रदायक महन्थ भण्डाराक बाद स्थानक हेतु एक सए एक, अपना हेतु एक सए एक, भजनिया सभक हेतु एकावन-एकावन आ भनसीयाक हेतु एकासी-एकासी टाका दक्षिणाक मांग कऽ बैसैत छथि। मराभवमे पड़ितहुँ धर्मभीरू सोनेलालकेँ ओ रकम चुकता कऽ देबऽ पड़ैत छनि। तत:पर दोसर दल सेहो हुनका ओतबे दक्षिणा देबाक हेतु दबाब दैत छनि आ सेहो हुनका चुकता करऽ पड़ैत छनि। एहि तरहेँ धर्मभीरू लोक पाखंडी साधु समाज द्वारा कोना लूटल जाइत छथि, तकर वर्णन कए उपन्यासकार एहि समस्याक प्रति लोकदृष्टिकेँ सचेत करबाक उपदेश दैत छथि। अवश्ये दोसर मंडली द्वारा दक्षिणाक रकम घुरा देलासँ सोनेलालकेँ थोड़ैक राहत भेटैत छनि आ ओहि मंडलीक प्रति लोक जगतमे सहानुभूति जगैत छैक।
मिथिलाक अनेक लोकव्यवहार सेहो लोकजीवनक अभ्युन्नतिमे बाधक रहल अछि, ताहू दिस मण्डलजी संकेत कएलनि अछि। एहि हेतु ई शशिशेखर नामक पात्रक अवतारणा कएलनि अछि। शशिशेखर कृषि कओलेजमे प्रवेश पाबि जाइत अछि। ओ एहि प्रवेशसँ अपन भावी सुखी जीवनक परिकल्पना कऽ अत्यन्त आनन्दित होइत अछि। ओकर पिता सेहो खेत बेचियो कऽ ओकर पढ़ाइ पूरा करएबाक संकल्प लैत छथि। मुदा किछु दिनक बाद पिता बीमार पड़ि जाइत छथिन। शशिशेखर खेत बेचियो कऽ हुनक इलाज करबैत छनि मुदा ओ कालकवलित भऽ जाइत छथिन। तत:पर अपन बूढ़ि माताक सेवा करैत शशिशेखर अपन आगूक पढ़ाइ कोना जारी राखि सकत ताहिपर बिन्दु विचार कएने खेते बेिच कऽ पिताक श्राद्धो कऽ लैत अछि। परिणामत: ओकरा कओलेज छोड़बाक बाध्यता होइत छैक। एहि तरहेँ मण्डलजी लोकजगतमे व्याप्त अन्धविश्वास ओ लोकव्यवहारसँ बचले उत्तर समाजक कल्याणक दिशानिर्देश करबैत देखि पड़ैत छथि। अन्तत: रमाकान्तक सहायतासँ शशिशेखरकेँ अपन पढ़ाइ पूर करबाक संबल भेटि जाइत छैक मुदा श्राद्धादित लोकव्यवहारक समस्याक प्रति जुगुप्साक भाव अवश्य उत्पन्न भऽ जाइत छैक।
अशिक्षा ग्राम्यजीवनक दैन्यक अन्यतम कारण अछि एखनो मिथिलाक निम्नवर्गीय समाजमे शिक्षाक सर्वथा अभाव छैक जकर कारणे सामाजिक अन्नति बाधिक छैक। मुदा अहू समस्याक समाधान सामाजिक लोकनिक जागरूकतासँ संभव छैक। मसोमातक दान कएल जमीनपर विद्यालयक स्थापना, हीरानन्द द्वारा बौएलाल ओ बौएलाल द्वारा सुमित्राकेँ शिक्षित कऽ ओकरा सबहक स्तरीय जीवनक चित्रण ‘मौलाइल गाछक फूल’ उपन्यासक एही उद्धेश्यपरक दृष्टिकोणक परिचायक थिक।
आजुक ग्राम्य समाजक ई विडम्बना छैक जे पढ़ल-लिखल धियापुता पाइ कमएबाक अन्ध दौड़मे शामिल भऽ गेल छैक। तेँ ओ सभ अपन गाम-समाजकेँ छोड़ि हजारो मीलक दूरीपर नोकरी करऽ चलि जाइत छैक। परिणामत: बूढ़ माता-पिताक परिचर्या कएनिहार केओ रहि नहि पबैत छैक। पारिवारिक विघटनक फलस्वरूप सामाजिक जगतमे पसरल एहि विसंगतिक कथा रमाकान्त ओ हुनक डाक्टर पुत्र सबहक कथामे भेटैत अछि। मण्डलजी एहू विडम्बनासँ समाजकेँ बचबाक संकेत एहि उपन्यासक माध्यमे कएलनि अछि। हुनक भावना सुबुधक एहि उक्तिमे साकार भेल अछि- ‘आइक जे एकांगी परिवार अछि ओ कुम्हारक घराड़ी जकाँ बनि गेल अछि। बाप-माए कत्तौ, बेटा-पुतोहु कत्तौ आ धिया-पुता कत्तौ रहऽ लागल अछि। मानवीय सिनेह नष्ट भऽ रहल अछि।’ यद्यपि ई भावना कृषक युगीन होएबाक कारणे साम्प्रतिक यथार्थक दृष्टि जे पुरातन पद्धतिक अछि तथापि एकटा वैचारिक द्वन्द्वकेँ ठाढ़ करैत अछि।
मण्डलजी रमाकान्तक दुनू डाक्टर पुत्रक मद्रासमे नोकरी करबाक लाथे किछु ग्रामेतर समस्या सबहक चित्रण सेहो कएलनि अछि। एहिमे सर्वाधिक प्रमुख अछि धनलिप्सामे व्यस्त समाजक बेचैनी। महेन्द्रक एहि कथनसँ ई प्रतिभासित होइत अछि जे ग्रामेतर समाजमे अत्यधिक सुविधा सम्पन्न लोकोक जीवन असामान्य भऽ गेल छैक- ‘अपनो सोचै छी जे एते कमाइ छी, मुदा िदन राति खटैत-खटैत चैन नहि भऽ पबैत अछि। कोन सुखक पाछू बेहाल छी से बुझिये ने रहल छी। टी.भी. घरमे अछि, मुदा देखैक समये ने भेटैत अछि। खाइले बैसै छी तँ चिड़ै जकाँ दू-चारि कौर खाइत-खाइत मन उड़ि जाइत अछि जे फल्लांकेँ समए देने छिऐक, नहि जाएब तँ आमदनी कमि जाएत। तहिना सुतइयोमे होइत अछि। मुदा एते फ्रीसानीक लाभ की भेटैत अछि? सिर्फ पाइ। की पाइये जिनगी छिऐक?’
एतावता मौलाइल गाछक फूलमे लोकजीवनक विविध समस्या ओ तकर समाधानक मार्ग तकबाक प्रयत्न भेल अछि। ‘अपन जिनगीकेँ जिनगी देखैत परिवार, समाजक जिनगी देखब जिनगी थिक।’ मण्डल जीक आदर्शवादी चिन्तनक रूपमे प्रतिफलित भेल अछि। प्राय: एही तथ्यकेँ ध्यानमे रखैत महेन्द्र द्वारा गामहिमे स्वास्थ्य केन्द्र स्थापना कऽ विचार अभिव्यक्त कराओल गेल अछि जतऽ ओकर परिवारक एकटा डाक्टर नित्य मरीजक सेवा, ग्रामवासीक सेवाक हेतु उपलब्ध रहितैक।
सामाजिक समन्वयक प्रति पक्षधरता एहि उपन्यासमे भजुआक कथामे भेटैत अछि। जाति-पातिमे बँटल ग्राम्य समाजमे छूताछूत, ऊँच नीचक विचार अदौसँ रहलैक अछि। गाँधीजीक स्वतंत्रता आन्दोलनक समए अछूतोद्धारक प्रति हुनक चेष्टा ओ स्वातंत्र्योत्तर कालमे समाजक बदलैत रीति-नीतिक कारणे यद्यपि ग्रामो समाजमे अस्पृश्यताक प्रति भाव बदललैक अछि तथापि सहभोजनक दृष्टिये अखनो जाति-पातिक बीच दूरी बनले छैक। रमाकान्त द्वारा डोम भजुआक ओहिठाम जाए भोजन करबाक कथाक माध्यमे मण्डलजी समाजक एहि समस्याक आदर्शपूर्ण समाधान देखौलनि अछि। अवश्ये एहिमे इहो संकेत देल गेल अछि जे समरसताक बाधक तथाकथित अस्पृश्य लोकनिक शुचिताक प्रति प्रतबद्धताक अभाव रहलनि अछि। जे अशिक्षाजन्य अछि तथा शिक्षा द्वारा ओकरो बदलल जा सकैत छैक।
मण्डलजीक एहि उपन्यासमे नारी विषयक चिन्तनमे प्राचीन भारतीय नारीलोकनिक आदर्शेक उपस्थापन भेल अछि। हिनक अधिकांश नारी पात्र यथा रधिया, श्यामा, सुगिया, सोनेलालक बहिन आदिमे पतिपरायणा भारतीय नारीक चित्रांकन भेल अछि। नारी-शिक्षाक प्रतिबद्धता सेहो मण्डलजीक एहि उपन्यासमे सुमित्राक माध्यमे अभिव्यक्र भेल अछि जे पढ़ि-लिखि कऽ नीक परिचारिकाक रूपमे गामक हेतु एकटा सम्पत्ति बनि जाइत अछि। सुजाता सेहो एहने नारी पात्र छथि जे श्रमिक परिवारमे जन्म लेलाक बादो महेन्द्रक सहायता पाबि डाक्टरनी बनि जाइत छथि आ महेन्द्रक भावहु सेहो भऽ जाइत छथि। मुदा शिक्षिताक संगहि मंडलजी जाहि नारीस्वरूपक परिकल्पना एहि उपन्यासमे रूपायित कएलनि अछि, से थिक नारीक सबला रूप। नारीक एहि स्वरूपक चित्रांकन सितियाक चरित्रमे भेल अछि। ओ नहि केवल अपन इज्जतिपर हाथ उठौनिहार ललबाकेँ थूरि कऽ राखि दैत अछि अपितु जखन ललबाक गामक लोक ओकरा गामपर आक्रमण कऽ दैत छैक, तँ नारीलोकनिक सेनानायिका बनि ओकरो सभकेँ परास्त कऽ दैत अछि।
स्वातंत्र्योत्तर भारतमे भ्रष्टाचार एक गोट कोढ़क रूपमे देखि पड़ैत अछि जे राष्ट्रीय जीवनकेँ कुण्ठित जीवन जीबाक बाध्यता होइत छैक। मास्टरक बहालीमे हीरानन्दक आक्रोशक माध्यमे मण्डलजी सरकारी स्तरपर होइत भ्रष्टाचारक यथार्थकेँ अभिव्यक्ति प्रदान कएलनि अछि।
मिथिलाक आर्थिक समृद्धिक हेतु एहिठाम जलकरक सदुपयोग करबाक चिन्तन सेहो एहि उपन्यासमे अभिव्यक्त भेल अछि।
मौलाइल गाछक फूक’क भाषा अत्यन्त सरल, सहज ओ गमैया मैथिली थिक। मण्डलजी अपन कल्पित संसारकेँ मूर्त्त, विश्वसनीय ओ सजीव रूपमे प्रस्तुत करबाक हेतु लेखनक अनेक प्रविधिकेँ एहि उपन्यासमे समाहित कएने देखि पड़ैत छथि। अनेक ठाम हिनक नाटकीय भाषा प्रयोग अत्यन्त तीब्रता ओ सहजताक संग भेल अछि, यथा-
‘की कहैले ऐहल?’
‘नत दैले एलौं।’
‘कोन काज छिअह?’
‘काज-ताज नै कोनो छी। ओहिना अहाँ चारू गोरेकेँ खुअबैक विचार भेल’ इत्यादि।
अनेकठाम ई संस्मरणात्मक भाषाक सुष्ठु प्रयोग कएने छथि यथा- ‘एहि गाममे पहिने हम्मर जाति नै रहए। मुदा डोमक काज तँ सभ गामेमे जनमसँ मरन धरि रहै छै। हमरा पुरखाक घर गोनबा रहै। पूभरसँ कोशी अबैत-अबैत हमरो गाम लग चलि आएल। अखार चढ़िते कोसी फुलेलै। पहिलुके उझूममे तेहेन बाढ़ि चलि आएल जे बाधक कोन गप्प जे घरो सभमे पानि ढूकि गेल। तीन-दिन तक ने मालजाल घरसँ बहराएल आ ने लोके। पीह-पाह करैत सभ समए बितौलक। मगर पहिलुका बाढ़ि रहै, तेसरे दिन सटकि गेल।’ इत्यादि।
परिवेश ओ वातावरणक निर्माणक हेतु मण्डलजी अभिधा शक्तिसँ संपुष्ट भाषाक प्रयोग द्वारा सटीक ओ विश्वसनीय बिम्ब ठाढ़ करबामे समर्थ देखि पड़ैत छथि यथा- ‘दू साल रौदीक उपरान्त अखाढ़। गारमीसँ जेहने दिन ओहने राति। भरि-भरि राति बीअनि हौँकि-हौँकि लोक सभ बितबैत। सुतली रातिमे उठि-उठि पानि पीबए पड़ैत। भोर होइते घाम उग्र रूप पकड़ि लैत। जहिना कियो ककरो मारैले लग पहुँचि जाइत, तहिना सुरूजो लग आबि गेलाह। रस्ता-पेराक माटि सिमेंट जकाँ सक्कत भऽ गेल अछि।’ इत्यादि।
पात्रक परिचय दैत काल मण्डलजी ओकर रूपरेखा, वेश भूषा, आयु आदिक वर्णन अनेक ठाम ओहि पात्रक ठोस व्यक्तित्वकेँ अभिव्यक्त करबाक हेतु कएलनि अछि। मुदा एहि प्रकारक वर्णनक प्रति हुनका प्रतिबद्धता नहि देखि पड़ैछ। तथापि जतऽ कतहु ओ पात्रक मनोभावक वर्णन कएने छथि ओहिठाम हुनक भाषा विश्लेषणात्मक प्रकृतिक देखि पड़ैत अछि जाहिसँ पात्रक हृदयगत भावक प्रति पाठककेँ सुनिश्चित आकलनक अवसर भेटि जाइत छनि, यथा- ‘ब्रह्मचारी जीक बात सुनि रमाकान्तकेँ धनक प्रति मोहभंग हुअए लगलनि। सोचए लगलाह जे हमरो दू सए बीघा जमीन अछि, ओते जमीनक कोन प्रयोजन अछि। जँ ओहि जमीनकेँ निर्भूमिक बीच बाँटि दिऐक तँ कते परिवार आ कत्ते लोक सुख-चैनसँ जिनगी जीबै लागत। जकरा लेल जमीन रखने छी ओ तँ अपने तते कमाइ छथि जे ढेरिऔने छथि। अदौसँ मिथिलाक तियागी महापुरूषक राज रहल, किएक ने हमहूँ ओहि परम्पराकेँ अपना, परम्पराकेँ पुन:र्जीवित कऽ दिऐक।’
एहि तरहेँ ‘मौलाइल गाछक फूल’मे भाषाक कुशल ओ रचनात्मक प्रयोग भेल अछि जाहिसँ वर्णनमे सटीकता, सहजता, बिम्बधर्मिता, स्पष्टता ओ मनोवैज्ञानिक विश्लेषणक क्षमता प्रदर्शित होइत अछि। अपन गुणक कारणेँ मण्डलजीक कथासंसारमे विश्वसनीयता देखि पड़ैत अछि आ ओ अपन प्रौढ़ विचार ओ अनुभूतिकेँ पाठकीय मानसमे स्थानान्तरित करबामे सफल भेल छथि।
अन्तत: महेन्द्रक उक्ति- ‘समाज रूपी गाछ मौला गेल अछि, ओहिमे तामि, कोड़ि, पटा नव जिनगी देबाक अछि जाहिसँ ओहिमे फूल लागत आ अनवरत फुलाइत रहत’मे उपन्यासक उद्धेश्य स्फुट भेल अछि। स्वभावत: मण्डलजी एहि कृतिक माध्यमे ग्राम ओ ग्रामेतर जीवनक संगहि व्यक्ति, परिवार, समाज ओ राष्ट्रक अभ्युन्नतिक हेतु एकर प्रत्येक इकाइकेँ त्याग ओ त्याग ओ समर्पणक भावनासँ ओत प्रोत रहबाक आदर्श जीवन पद्धति अपनयबाक संदेश देलनि अछि। हिनक ई संदेश ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्’क भावनाक पुन: उपस्थापन थिक।
शिव कुमार झा समीक्षा-
कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक
गतांकसँ आगाँ
सहस्त्रवाढ़नि उपन्यास :- सहस्त्रवाढ़नि एकटा आकाशीय पिण्ड होइत अछि, जकर दर्शन आर्यक धार्मिक दृष्टिकोणमे अछोप बुझना जाइत अछि, मुदा उपन्यासकार एक अछोप पिण्डकेँ आत्मसात् करैत एकरा सावित्री बना देलनि। सावित्री अपन पातिब्रत्य आ दृढ़ निश्चयसँ सत्यवानक प्राण यमराजसँ छीनि लेने छलीह। एहि उपन्यासक दृष्टिकोण तँ एहन नहि अछि परंच उपन्यासक नायक आरूणिक मृत्युपर विजयमे सहस्त्रवाढ़निक उत्प्रेरणक उद्वोधन कएल गेल अिछ। कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक मूल पृष्ठपर सहस्त्रवाढ़निक चित्र देल गेल अछि। एहिसँ प्रमाणित होइत अछि रचनाकारक दृष्टिमे सम्पूर्ण पोथीक सातो खण्डमे एहि उपन्यासक विशेष महत्व अछि। सहस्त्रवाढ़निक अध्ययन कएलापर उन्नैसम शताब्दीक उतरांशसँ वर्तमानकाल धरिक वर्णन कएल गेल अछि।
एक परिवारक एक सए पंद्रह बरखक कथाक वर्णनकेँ कल्प कथा मानव निश्चित रूपसँ रचनाकारक भावनापर कुठाराघात मानल जाएत। सध: ई कथा रचनाकारक पॉजड़िक कथा अछि। जौं एकरा गेजेन्द्र बावूक आत्मकथा मानल जाए तँ संभवत: अति शयोक्ति नहि हएत।
उपन्यासक आदि पुरूष झिंगुर बावू एकटा किसान छथि। जनिक घरमे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसक स्थापना बर्ख सन् 1885 ईमे एकटा बालक जन्म लेलन्हि- कलित। कलितक नेनपनसँ एहि उपन्यासक श्री गणेश कएल गेल। कलितकेँ ओहि कालमे वंगाली शिक्षकसँ अंग्रेजीक शिक्षण व्यवस्था दरिभंगामे कएल गेल। एहिसँ दू प्रकारक भावक वोध होइत अछि। पहिल जे झिंगुर बावू समृद्ध लोक छलाह। ओहि कालमे अवहट्ठक शिक्षा सेहो गनल गुथल परिवारमे देल जाइत छल, अंग्रेजीक कथा तँ अति विरल छल। देासर जे वंगाली लोक हमरा सभसँ शिक्षाक दृष्टिमे आगाँ छलाह। वंगाली जातिक अंग्रेजी शिक्षक, हम सभ कतेक पाछाँ छलहुँ जे हमरा सबहक संस्कृतिक राजधानी दरिभंगामे कोनो मैथिल अंग्रेजी शिक्षक झिंगुर बावूकेँ नहि भेटलन्हि।
सौराठ आ ससौलाक सभा गाछीक चर्च तँ बेरि-बेरि कएल जाइत अछि, मुदा एहि पोथीमे विलुप्त सभा बलान कातक गाम परतापुरक सभा गाछीसँ कथाकेँ जोड़वाक दृष्टिकोण अलग मुदा नीक बुझना जाइत अछि। कलितक विवाहमे वर महफामे, बूढ़ वरियाती कटही गाड़ीमे आ जवान लोकक पैदल जाएव वर्तमान पीढ़ीक लेल अजगुत लागत मुदा अपन पुरातन संस्कृतिसँ नेना-भुटकाकेँ आत्मसात कराएव आवश्यक अछि। कलितक मृत्युक पश्चातक कथा हुनक छोट पुत्र- नंद-क परिधिमे धूमए लागल। नंदक पारदर्शी सोच, अपन कनियासँ प्रत्यक्षत: गप्प करव, तृतीय पुरूषक रूपे संवोधन नहि। मिथिलामे वर-कनिया, सासु-पुतोहु, साहु जमाएक गप्पमे तृतीय पुरूषक संवोधन अनिवार्य होइत अछि। एहि प्रकारक व्यवस्थाक विरूद्ध नंदजी अपन नवल सोचकेँ केन्द्रित कएलन्हि। वर-कनियाँक संवंध स्वाभाविक रूपेँ तँ समझौता मात्र होइत अछि परंच संसारक व्यवस्थामे सभसँ पवित्र आ अपूर्व संबंध यएह होइत अछि। जीवन भरि निर्वहन कोनो एक जनक संग छूटलापर दोसरमे व्यथा..... अकथ्य व्यथा। तेँ एहि संबंधमे प्रत्यक्ष संवोधन होएवाक चाही। हमर दृष्टिकोण ई नहि जे अपन संस्कृति पराभव कऽ देवाक चाही, मुदा संस्कृति आ व्यवस्थाकेँ सेहो कालक गतिमे परिवर्तनक अनिवार्यता प्रतीत होइत अछि।
आर्यावर्त्त न्याय, कर्म, मीमांसा सन प्रांजल दर्शनक अार्विभाव भूमि मानल जाइत अछि। एहि खण्डमे एकटा नव दर्शनसँ मिथिलाक भूमिकेँ वैशिष्ट्ता प्रदान कएल गेल ओ अछि- इमान आ मर्मक विम्बमे संबंधक मर्यादा। नंद बावू इंजीनियर छलाह। जौं अपन धर्मकेँ किछु ढील कऽ दैतथि तँ भौतिकताक बाढ़िसँ परिवार ओत-प्रोत भऽ सकैत छल। मुदा एना नहि कऽ सतत अपन कर्मकेँ साकार सत्यसँ बान्हि लेलन्हि। स्वाभाविक अछि अर्थयुगमे इमानक प्रासंगिकता बड़ ओछ भऽ जाइत अछि। असमए मृत्युक पश्चात् परिवारक दशाक विवेचन मर्मस्पर्शी लागल। हुनक सत् कर्मक प्रभाव यएह भेल जे संतान सभ विशेषत: आरूणि भौतिक रूपसँ रास संपन्न तँ नहि भऽ सकलाह मुदा पिताक छत्र-छायाक आंगनमे मनुक्ख भऽ गेलाह। कर्मक गतिसँ लोक राज भोगकेँ प्राप्त तँ कए सकैत अछि, मुदा मनुक्ख बनवाक लेल नैसर्गिक संस्कार वेशी महत्वपूर्ण होइत अछि। तेँ कहलो गेल अछि- “बढ़ए पूत पिताक धर्मे।” कतहु-कतहु नीच विचारक मानवक संतान मनुसंतान भऽ जाइत अछि, एहिमे दैहिक संस्कार आ प्रकृतिक लीला होइत अछि। आरूणिक दृढ़ विश्वासपर केन्द्रित एहि उपन्यासक कथामे सतत प्रवाहक गंगधारा खहखह आ शीतल बुझना गेल। जँ कथाकेँ आत्मसात् कएल जाए तँ कोनो अर्थमे एकरा काल्पनिक नहि मानल जा सकैछ। आत्मकथा स्पष्टत: नहि मानि सकैत छी, किएक तँ उपन्यासकार कोनो रूपेँ एकर उद्वबोधन नहि कएलनि अछि। भऽ सकैत अछि समाजक अगल-बगलक रेखाचित्र हो, मुदा हमरा मतेँ ई कल्पना नहि, सत्य घटनापर आधारित अछि।
उपन्यासमे एकटा कमी सेहो देखलहुँ। अंग्रेजी आखरक ठाम-ठाम प्रयोग कएल गेल जेना- एनेश्थेशिया, ओपिनियन, इम्प्रेशन आदि। एहि सभ शब्दक स्थानपर अपन शब्दक प्रयोग कएल जा सकैत छल, मुदा नहि कएल गेल। हमरा बुझने हम दोसर भाखाक ओहि शब्द सभकेँ मात्र आत्मसात करी जकर स्थानपर हमर अपन भाखामे शब्दक अभाव अछि।
सहस्त्राब्दीक चौपड़पर :- कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनकक तेसर खण्ड कविता संग्रहक रूपमे अछि, जकर शीर्षक ‘सहस्त्राब्दीक चौपड़पर’ देल गेल। मात्र तैंतालीस गोट कविताक सम्मिलनमे श्रंृगार, विरह हैकू, विचार मूलक कविताक संग-संग एकटा ध्वज गीत सेहो अछि। इन्द्रधनुषक आसमानी रंग जकाँ प्रथम कविता ‘शामिल वाजाक दुन्दभी वादक’मे क्षणिक प्रकृतिक आवरणमे स्वर-सरगमक भान होइत अछि, मुदा अन्तरक अवलोकनक पश्चात् दशा पूर्णत: विलग। राजस्थानक वाद्य संस्कृतिमे एकटा दर्शक वाद्य यंत्रक प्रासंगिकताक केन्द्रनमे कविक भाव अस्पष्ट लागल। सहज अछि ‘जतऽ‘ नहि पहुँचथि, अेातऽ गएलनि कवि’। कवि स्वयं दुन्दभी वादक छथि तेँ स्पष्ट दर्शन कोना हएत। हिन्दी साहित्यमे एकटा कविता पढ़ने छलहुँ ‘गोरैयो की मजलिसमे कोयल है मुजरिम’। संभवत: समाजक पथ प्रदर्शकक मूक दृष्टकोणकेँ कविताक केन्द्र विन्दु बनाओल गेल अछि। बहुआयामी व्यक्तित्वक धनी व्यक्ति सेहो जीवनक गतिमे दबावक अनुभव करैत कतहु-कतहु अपन संवेदनाकेँ दवा कऽ दुन्दभी बनवाक नाटक करैत छथि। केओ-केओ दोसरकेँ संतुष्ट करबाक लेल अपन विचारधारा वाह्य मनसँ बदैल दैत छथि। संतुष्टीकरण प्रवृति वा कोनो प्रकारक मजवूरी हो हमरा सभकेँ परिस्थितिसँ सामंजस करबाक बहाने अपन सम्यक विचारकेँ माटिक तरमे नहि झॅपवाक चाही। समाज जौं एकरा पूर्वाग्रह मानए तँ अपन पक्षक विवेचन कएल जाए, मुदा अनर्गल प्रलापकेँ मूक समर्थक नहि देवाक चाही।
मोनक रंगक अदृश्य देवालमे परिस्थितिजन्य विषमताक विषय वस्तुक दर्शन आशातीत अछि। मन्दाकिनी.... आ पक्का जाठि शीर्षक कवितामे प्रकृति आ समाजक स्थितिक मध्य विगलित मानवतापर मूक प्रहारमे कविक नैसर्गिक मुदा अदृश्य सोच हमरा सन साधारण समीक्षक लेल अनुबूझ पहेली जकाँ अछि। अपन पुरातन इतिहासक ओहि दिवसकेँ लोक स्मरण नहि करए चाहैत छथि, जाहिसँ अतुल पीड़ाक अनुभव होइत अछि। त्रेता युगक घटना, कलियुग धरि पाछाँ धेने अछि। सीता जीक वियाह अगहन शुक्ल पक्ष पंचमीकेँ भेलनि, परिणाम सोझा अिछ। तखन शतानंद पुरोहित जी खरड़ख वाली काकीक विआह ओहि तिथिमे किएक करौलन्हि? भऽ सकैत अछि हुनक भाग्यमे सीताजी जकाँ गृहस्थ सुख नहि लिखल दुख मुदा कलंक तँ ‘वियाह पंचमी’ तिथिकेँ देल गेल। एहि कवितामे कविक दृष्टकोण तँ विधवा विआहक समर्थन करवाक अछि, मुदा सवर्ण मैथिल नहि स्वीकार कऽ रहल छथि। अपन पुरान सॉगह लऽ कऽ हम सभ हवड़ाक पुल बनाएवक कल्पनामे कहिया धरि ओझराएल रहव?
एहि कविता संग्रहमे जे नव विषय बुझना गेल ओ अछि ‘बारह टा हैकू’। गिदरक निरैठ, राकश थान, शाहीक मौस आ बिधक लेल शब्द-शब्द बजैत अछि।
हैकूक सार्थक अर्थ लगाएव अत्यन्त कठिन होइत अछि, मुदा हमरा बुझने जौं एहेन हैकू लिखल जाए तँ नेनो सभ जे मैथिलीमे माए परिवार कुटुम्वक संग बजैत छथि अवश्य बूझि जएताह।
मिथिलाक ध्वज गीतमे मातृभूमिसँ कर्मक सार्थक गति मांगल गेल अछि। जेना गायत्री परिवारक प्रार्थना वह शक्ति हमे दो दयानिधि मे गाओत जाइत अछि। मातृ वंदनाकेँ कविता संग्रहमे देवाक हिनक दृष्टिकोण रचनाक्रममे उपयुक्त हो मुदा हमरा मते एकरा कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक प्रथम पृष्ठपर वंदनाक रूपमे देल गेल रहिते तँ बेसी सुन्नर होइतए।
‘बड़का सड़क छह लेन बला’मे मिथिलाक विकासक क्रमित स्थितिक वर्णन कएल गेल अछि।
सम्पूर्ण कविता संग्रहक अवलोकनक वाद कोनो पद्य अकच्छ करैबला नहि लागल। ‘पुत्र प्राप्ति’ शीर्षक कवितामे लुधियानामे हमरा सबहक समूहक एकटा पंडितक ठकपचीसीक चर्च कएल गेल अछि। एहने ठकक कारण ‘विहारी’ व्यक्तिकेँ आठ ठाम लोक शंकाक दृष्टिसँ देखैत छथि। मुदा गजेन्द्रजी सँ हमर आग्रह जे एहि कविताक पंजावी भाषामे अनुवादक अनुमति नहि देल जाए नहि तँ कतेको भलमानुष बनल मैथिल घुरि कऽ गाम आवि जएताह आ हमरा सबहक समाजमे कुचक्र आरो बढ़ि जाएत।
क्रमश:
शिव कुमार झा मौलाइल गाछक फूल
(समीक्षा)
कोनो भाषा साहित्यक विकासमे उपन्यासक एकटा अलग महत्व होइत अछि। औपन्यासिक कृतिकेँ जौं साहित्यक चक्षु द्वय कहल जाए तँ कोनो अतिशयोक्ति नहि होएत। मैथिली साहित्यमे उपन्यास सभक भंडार बड़ विस्तृत अछि। एहि प्रांजल साहित्यिक कृतिमे किछु कोसक पाथर सन रचना भेल जे आर्यावर्त्तक भाषाक गुच्छमे मैथिलीक स्थानकेँ सुवासित कऽ रहल अछि। सर्वकालीन मैथिली साहित्यक इतिहासमे सम्मिलित ओ सभ उपन्यास अछि- पंडित जन सीदन कृत शशिकला, प्रो. हरिमोहन झा रचित कन्यादान ओ द्विरागमन, योगानन्द झा रचित भलमानुष, श्री यात्री कृत पारो, डॉ. मणिपद्म कृति नैका वनिजारा, श्री सोमदेव कृत चानोदाइ, श्री सुधांशु शेखर चौधरी कृत दरिद्र छिम्मड़ि, श्रीमती लीलीरे कृत पटाक्षेप, श्री रमानंद रेणु कृत दूध-फूल, डाॅ. शेफालिका वर्मा कृत नागफांस, श्री साकेतानंद कृत सर्वस्वांत, श्री ललित कृत पृथ्वीपुत्र, श्रीमती गौरी मिश्र कृत चिनगी, श्री केदारनाथ चौधरी कृत माहूर आ श्री गजेन्द्र ठाकुर कृत सहस्त्रवाढ़नि।
निश्चित रूपें एहि सभ उपन्याससँ मैथिली साहित्यकेँ नव दशा ओ दिशा भेटल, परंच एकर अतिरिक्त सेहो किछु कृति अछि जकर चर्च करव विना मैथिली उपन्यास विधाकेँ अपूर्ण मानल जाएत। ओहि कृतिमे सँ एक अछि श्री जगदीश प्रसाद मंडल द्वारा लिखित उपन्यास- ‘मौलाइल गाछक फूल’
शीर्षकसँ बुझना गेल जे प्रकृति वर्णनपर आधारित उपन्यास अछि, मुदा अध्ययनक पश्चात् समाजक मौलाइल स्वरूपक वर्णन आ पुनरूत्थानक सकारात्मक स्वरूपक आधारपर एहि उपन्यासक रचना भेल अछि। जौं मालीमे चेतना ओ अनुशीलन हो तँ मौलाइल गाछमे सेहो पुष्प खिलाओल जा सकैत अछि, ठीक ओहिना समाजमे एकरूपता, सामंजस्य ओ अनुग्रह हो तँ विगलित मिथिलाक स्वरूपमे हरियरी आबि सकैत अछि।
मैथिल समाजक पहिल लोकसँ लऽ कऽ अंतिम लोकक व्यथा वा सुखद अनुभूतिकेँ रेखांकित कऽ रहल अछि- “मौलाइल गाछक फूल” एहि उपन्यासकेँ सम्पूर्ण उपन्यास एहि दुआरे मानल जा सकैत अछि जे एहिमे समाजक नकारात्मक स्वरूपपर सकारात्मक सिद्धान्तक विजय देखाओल गेल अछि।
सत्यक विजय तँ वेस ठॉ होइत अछि, मुदा एहिमे असत्यक हृदय परिवर्त्तनक भऽ कऽ सत्यक जन्म होइत अछि। समाजक सभसँ अंतिम व्यक्तिक दशा ओकरे शब्दमे लिखल गेल, भाषा सम्पादन आ परिमार्जनक आड़िमे कोनो परिवर्तन नहि। सम्पूर्ण जीवन दर्शनमे नायकत्व, किओ खलनायक नहि। वास्तविक रूपे की एना संभव अछि? अवश्य भऽ सकैछ, जौं हम सभ स्वयंमे सम्यक सोच आ दृष्टिकोणकेँ स्थापित करी।
कथाक विषय वस्तु कोनो एकटा कथापर केन्द्रित नहि भऽ कऽ बहुत रास उपकथाकेँ सहेजि कऽ बनाओल गेल अछि। कथाक प्रारंभ अकालक परिणामसँ होइत अछि। गरीव मजूर अनुपक पुत्र बौएलाल भुक्खक कारण मृत्युक अवाहन कऽ रहल अछि। माए रधिया अपन लोटा बेचि कऽ ओकर तृप्ति लेल चिक्कस कीनि कऽ अनैत अछि। तीनटा रोटी बनल, मुदा बौएलालक भाग्यमे मात्र एकटा रोटी आ दू लोटा पानि। श्रमजीवीक मार्मिक दशापर लिखल पहिल भागमे संवभत: रधिया अर्न्तमनसँ अनूपसँ कहैत छथि-
की बुझवें ककरा कहै छै गरीवी,
सपनहुँमे सुख नहि जतऽ श्रमजीवी,
सूर्यास्तक पश्चात दू क्षणक लेल कुहेस अबैत अछि, फेर उषाक दर्शन अवश्यंभावी, यएह तँ प्रकृतिक लीला अछि। नथुआ अनूपक अन्हार कूपमे इजोतक सूक्ष्म बाती लऽ कऽ अबैत अछि। रमाकान्त बाबू पोखरि खुनौता तेँ मजूरक आवश्यकता अिछ। अनूपकेँ सपरिवार काज भेट गेलनि। मेट मूसनाक वरदहस्त जे छल। मालिकक मुंशीकेँ मेट कहल जाइत अछि। मूल रूपसँ दलालक प्रवृतिबला मूसन अनुपक लेल प्राणदायक अछि। किएक तँ दुनू परानीक संग-संग बारह बर्खक बौएलालकेँ सेहो काज दऽ देलक। बौएलाल सेहो पूर्ण तन्मय भऽ कऽ कएलक, तकर परिणाम भेल जे रमाकान्त बाबू आन जोनसँ बेसी मजदूरी बौएलालकेँ देलनि। कर्मक गति विचित्र होइत अछि। उपन्यासकार बाल श्रमिककेँ महिमा मंडित कऽ रहल छथि। हमरा सबहक संविधानमे 14 वर्खसँ कम उमेरक व्यक्तिकेँ ‘वाल’ कहल जाइत अछि- मजदूरी प्रतिवंधित। मुदा ओ भुक्खे मरि जाए एकर कोनो परिवाहि नहि। टेलिभीजनमे नाच पाँच बर्खक बच्चा कऽ सकैत छथि, एकरा प्रतिभाक प्रदर्शन मानल जाइत अछि मुदा 12 वर्खक बौएलाल मात्र मौलाइल गाछक मजदूर थिक, वास्तविक जीवनमे पकड़ल जाएत तँ दीन हीन पिताकेँ जेहल भेटल। ‘समरथकेँ नहि दोष गोसाईं। रमाकान्त बाबूक प्रतापसँ अपन कर्मक प्रकृतिसँ अनूपक गरीवी समाप्त भऽ गेल। बौएलाल काजक संग-संग शिक्षा सेहो ग्रहण करए लागल। बौएलालक जीवनमे विहान जे आएल ओ उपन्यासक अंत धरि जगमगाइते रहल। अंतमे रमाकान्त बाबूक जेठ वालक डॉ. महेन्द्रक सहकर्मी भऽ गेला बौएलाल। बौएलालसँ डॉ. बौएलाल- सभटा कर्मक प्रभाव। हिन्दी साहित्यक एकटा कविक उक्ति पूर्णत: सत्य प्रतीत होइत अछि-
प्राणों की वर्तिका बनाकर,
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो जग का तिमिर मिटा पाता है रोने वाला ही गाता है।
कथाक दोसर मोड़पर शशिशेखरक जीवन विहानसँ तिमिरमे प्रवेश करैत अछि। कृषि वैज्ञानिक बनावाक बाटेपर सभटा समाप्त भऽ गेल। माता-पिताक बिमारीमे सभटा चौपट्ट भऽ गेलनि। अधखरू शिक्षा बड़ कष्टदायी होइत अछि। आत्मगलानिक शिकार शशिशेखरक भाग्य सेहो फूजल। एकटा विधवा अपन जमीनसँ विद्यालय खोलवाक योजना बनायलि। गामक संभ्रान्तसँ लऽ कऽ गरीव गुरबाक समर्थन। शशिशेखर शिक्षक भऽ गेलाह।
उपन्यासक तेसर खण्डमे सुगियाक शारीरिक व्यथाक आरंम्भक संग-संग पति सोने लालक समर्थन हृदयकेँ झकझोरि दैत अछि। येन-केन प्रकारेण सोनेलाल सुगियाक इलाज करा कऽ गाम घुरलाह। सुगिया स्वस्थ भेली, चिकित्साक प्रभावसँ मुदा कबुलाक प्रभाव मानि सोनेलाल कीर्त्तनक संग-संग भंडारक आयोजन कएलनि। हमरा सबहक समाजमे अंध विश्वासक चमौकनि अपन जालसँ सोचकेँ घेर नेने अछि। कीर्त्तनक दू दल आगाँक जातिक रमापतिक दल आ वेस पछाथिक संग-संग किछु सवर्ण साधुक मिश्रित दल- गंगादासक दल। उधेश्य एक, मुदा दृष्टिकोण अलग-अलग। रमापतिक दल गरीब सोनेलालसँ दक्षिणा लेलनि, दयाक कोनो संभावना नहि। गंगादासक दल दक्षिणा तँ लेलनि मुदा मात्र सिद्धान्तक रूपमे। वास्तवमे लऽ कऽ घुरा देलनि। आत्म सम्मानक भावक संग-संग गंगादासमे दया-भाव सेहो अछि। आब स्वत: बूझल जा सकैत अछि जे सवर्ण ककरा कही?
चारिम खण्डक प्रारंभ रमाकान्त बावूक अपन पत्नी श्यामा आ नोकर जुगेसरक संग मद्रास प्रवाससँ होइत अछि। कतऽ गाम आ कतऽ मद्रासक जिनगी। एक दिस जगमगाइत रोशनी, साफ सड़क आ गगनचुम्बी महल तँ दोसर दिस दू कुहेसक वाट। मुदा वास्तविकता किछु आओर छल। पुतोहू-पुत्र डॉ मुदा भविष्यमे किछु नहि भेटबाक संभावना देखि रमाकान्तक हिया सुखा रहल छलनि। बेटा-पुतोहूसँ तँ खूब सम्मान आ सत्कार भेटलनि मुदा पाँचटा पोता-पोतीमे सँ केओ चिन्हवो नहि कएलनि। जे जीवितमे नहि जनैत अछि ओकरासँ जीवनक अंतिम अवस्थामे की आश करी? पलायनवादक पराकाष्ठा धरि लऽ जाएव उपन्यासकारक सोचसँ निश्चित रूपे अजगुत लगैत अछि। मिथिलाक भविष्य कतऽ धरि जाएत जगदीश बावूक संजय सन दृष्टि आश्चर्यजनक मुदा प्रासंगिक अछि। छोटकी पुतोहू सुजाताक जीवनक गाथा सुनि रमाकान्त बाबू पसिझ गेलाह। एकटा धोविनक तनयासँ छोटका बेटाक विवाह भेल दूटा संतान सेहो भऽ गेल, मुदा रमाकान्त बावू अपन पुतोहूक इतिहास नहि जनैत छलाह। साम्यवादी सोचक उन्नायक रमाकान्त बावूसँ एना संभव तँ मानल जा सकैत अछि, मुदा ओ अपन बेटाक विवाहमे शामिल किएक नहि भेलाह। पलायनक एहन फल मैथिलक समृद्ध वर्गकेँ कोना भेट सकैत अछि? गाममे दू सए बीघा जमीनक मालिक रमाकान्त बावूक दुनू लाल किएक नहि गामेमे अस्पताल खोललनि। जखन मद्रासक संभ्रान्त मिथिलामे नहि अबैत छथि तँ हम सभ िकए पलायन करैत छी? विपन्नक पलायन तँ बूझएमे अबैत अछि परंच सम्पन्नक पलायन.....?
एहि उपन्यासक सभसँ पैघ विशेषता जे उपन्यासकार कोनो प्रकारक प्रश्नकेँ छोड़ि रचनाक इतिश्री नहि कएलनि। प्रश्नक संग-संग विश्लेषण आ समाधान पोथीमे अनायास भेट जाएत। कथाक अंतमे पलायनवादक इतिश्री कहल गेल। डॉ. महेन्द्र आ डॉ. सुजाता गामक गरीव गुरबाक इलाजक लेल तत्पर भेलीह। कोनो व्यक्तिकेँ असाध्य रोग यथा कैंसर, एड्स नहि। एहिसँ प्रमाणित होइत अछि जे गाममे रहनिहारक जीवन संतुलित अछि। वीमार छथि तकर कारण पोषण संतुलित नहि। श्रमजीवी आ श्रमपोषीक मध्यक खाधिक कारण ई दशा अछि। रमाकान्त बावू एहि दशासँ तीजि-भीजि गेलाह। क्षणहिमे अपन सभटा जमीन जाल गरीवक मध्य वॉटि देलनि। गरीबो आत्म सम्मानी आ वफादार। खेतसँ उपजल अन्न, तीमन तरकारी प्रथमत: रमाकान्त बावूकेँ दैत छथि। सम्यक समाजक रचना, केओ सवर्ण नहि केओ क्षुद्र नहि। सबल मिथिला, संवल मैथिलाक कल्याणकारी सोच मनोरम अछि।
हीरानन्द सन सम्यक सोचबला सवर्ण जौं समाजमे आगाँ बढ़ति तँ मिथिलाक रूप रेखा बदलि जाएत। हीरानंदक जातिक उल्लेख तँ नहि कएल गेल अछि मुदा लिखवाक कलासँ स्पष्ट होइत अछि ओ निश्चित रूपेँ आगाँक जातिक छथि। अनुपक घरमे भोजन ग्रहन काल सबरी-रामक सिनेहक स्पष्ट दर्शन। जीवन दर्शनपर आधारित एहि उपन्यासमे कतहु जातिक उल्लेख नहि मुदा लक्षणसँ स्पष्टीकरण होइत अछि। सुबुधिक विवेकशीलतामे रचनाकारक दृष्टिकोण पारदर्शी लागल। बुझना जाइत अछि जे जगदीश बावू सुबुधक रूपेँ उपन्यासमे पैसल छथि। उपन्यासमे एकठॉ वर्ग संधर्षक स्थिति देखऽ मे आएल मुदा एकटा अवला अपन चरित्रक रक्षाक लेल पियक्करपर प्रहार कएलनि। ई सभ वास्तविकता अछि एकरा अनसोहाॅत नहि मानल जा सकैत अछि।
विषय-वस्तुक मध्य झाॅपल दशापर वेवाक प्रस्तुति। ओना तँ सभटा रचनाकार अपनाकेँ साम्यवादी आ समाजवादी मानैत छथि। मुदा रचनाक संग-संग सबहक जीवनक दर्शन कएलापर स्थिति विपरीत भऽ सकैत छथि। मैथिली साहित्यक सम्यक चरित्र, सम्यक दृष्टि आ सम्यक जीवन शैलीमे जीबऽ बला किछुए मात्र साहित्यकारक समूहमे जगदीश बावूकेँ सेहो राखल जा सकैत अछि। अपन व्यक्तित्वसँ जीवनक नूतन आयामकेँ समाजमे ज्योतिक रूपमे पसारब मात्र रचनामे नहि, व्यक्तिगत जीवनोमे अवश्ये हएत। भऽ सकैत अछि वर्तमान पिरही एहि ग्रन्थक तादात्मयकेँ पूर्णत: स्वीकार नहि करए, परंच हमरा बुझने ई सम्पूर्ण पाठकक उपन्यास थिक। एहिमे ककरोसँ कोनो पूर्वाग्रह नहि। सम्भ्रान्त समाजकेँ विगलित आ ओछ समाजसँ जोड़ि सम्यक समाजक निर्माण करवाक उद्येश्यमे ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्’क दृष्टि परिलक्षित होइत अछि। कतहु-कतहु शब्द आ वाक्य सामंजस्यमे किछु त्रुटि सेहो देखऽ मे आएल मुदा भाव पवित्र, उद्येश्य पवित्र तेँ एकरा नजरअंदाज करव प्रासंगिक लागल। निश्चित रूपेँ सर्वश्रेष्ठ मैथिली उपन्यासक सूचीमे एहि उपन्यासक नाओ देल सकैत अछि।
पोथीक नाम- मौलाइल गाछक फूल
विधा- उपन्यास
रचनाकार- जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन राजेन्द्र नगर दिल्ली
मूल्य- २५० टाका मात्र
प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
पोथी पाप्तिक स्थान- पल्लवी डिस्ट्रीब्यूटर्स, वार्ड न.६, निर्मली, सुपौल, मोवाइल
न. ९५७२४५०४०५
शिव कुमार झा भफाइत चाहक जिनगी
समीक्षा
शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
पूर्ण मैथिली भाषामे नाटक विधाक प्रारंभ पंडित जीवन झा कृत नाटक ‘सुन्दर संयोग’सँ सन् १९०४ई मे भेल। एहिसँ पूर्व मैथिलीमे उमापति, रामदास नन्दीपति आदि सेहो नाटकक रचना कएलन्हि, मुदा ओ सभ पूर्ण मैथिलीमे नहि लिखल गेल।
सुन्दर संयोग’सँ लऽ कऽ श्री नचिकेता रचित ‘नो एन्ट्री मा प्रविश’, श्रीमती विभारानी कृत ‘भाग रौ आ बलचंदा’ आओर श्री जगदीश प्रसाद मंडल कृत ‘मिथिलाक बेटी’ धरि मैथिली साहित्यमे विविध विधाक नाटकक रास संग्रह उपलब्ध अछि। ओहि समग्र नाटकक मध्य किछु नाटक बड़ लाेकप्रिय भेल अछि ओहिमे- श्री ईशनाथ झा रचित ‘चीनीक लड्डू’ पंडित गोविन्द झा लिखित ‘बसात’ श्री मणिपद्म रचित झुमकी श्री ललन ठाकुर लिखित ‘लौंगिया मिरचाई’ प्रो. राधा कृष्ण चौधरी लिखित ‘राज्याभिषेक’ श्री सुरेन्द्र प्र. सिन्हा रचित ‘वीरचक्र’ श्री महेन्द्र मलंगिया रचित ‘एक कमल नोरमे’ श्री विन्देश्वरी मंडल रचित ‘क्षमादान’ श्री उत्तम लाल मंडल रचित ‘इजोत’ आ श्री गौरीकान्त चौधरी ‘कांत’ (मुखिया जी) रचित ‘वरदान’क संग-संग मैथिलीक मूर्द्धन्य साहित्यकार पंडित सुधांशु शेखर चौधरी रचित ‘भफाइत चाहक जिनगी’ प्रमुख अछि।
स्व सुधांशु जी मूलत: मैथिली साहित्यक उपन्यासकारक रूपमे प्रसिद्ध छथि। अर्थनीतिकेँ आधार बना कऽ लिखबाक शैलीक कारण मैथिलीमे हिनक एकटा अलग स्थान अछि, एकटा कलाकार जौं अपन कलाक प्रदर्शन नाट्य रूपमे करए तँ कोनो अजगुत नहि। हिन्दीमे हिनक लिखल नाटक सभ लोकप्रिय भेल, तेँ अपन मातृभाषामे सेहो नाटक लिखए लगलाह।
भफाइत चाहक जिनगी’मे समाजक सामान्य बिम्बकेँ विलक्षण रूपसँ विम्बित कऽ हास्य आ मर्मक सम्यक् तारतम्य स्थापित कएलन्हि। चाहक जिनगी कतेक क्षणक होइत अछि, भाफ उपटलासँ एकर अस्तित्व लुप्त भऽ जाइछ, मुदा जौं भनसियामे आत्म विश्वास हो तँ ओहि अस्तित्वविहीन चाहमे नीर-क्षीर मिश्रित कऽ ओकर फेरसँ सुस्वादु बनाओल जा सकैत अछि। नाटकक नायक महेशक जिनगी भफाइत चाहक जिनगी जकाँ अछि। एकटा सुशिक्षित व्यक्ति कर्मक प्रतिस्पर्धाक गतिमे सफल नहि भेलापर समाजक अधलाह मानल गेल कर्मकेँ अपन जीवनक डोरि बना कऽ ततेक आत्मबलसँ जीवैत अछि जे दीर्घसूत्री दृष्टिकोणक लोक सेहो एकरा लग नतमस्तक भऽ गेल।
नाटकक कथा चेतना समिति पटनाक कार्यक्रमक मध्य धुरैत अछि। महेश चाहक स्थायी विक्रेता छथि, मुदा अधिक विक्रीक आशक संग मिथिला-मैथिलीसँ सिनेहक दुआरे त्रिदिवसीय कार्यक्रममे अपन दोकान लगौलनि। हुनक दोकानक पांजड़िमे गेना जीक पानक दोकान, मात्र मैथिलीक पावनि धरिक लेल। सम्पूर्ण नाटक एहि दू दोकानक दृश्यमे विम्वित अिछ। चेतना समितिक कार्यक्रमक प्रदर्शन मात्र नेपथ्यसँ कएल गेल।
महेश-गेनाक शीत वसंतक वसातक संयोग जकाँ वार्तालापक क्रममे कार्यक्रमक कार्यकर्त्ता गोपालक प्रवेश। हिनक उद्येश्य चाह पीबाक संग कार्यक्रममे चाह पहुँचएवाक सेहो अछि। पान मंचपर अवश्य चाही, किएक तँ ई मैथिल संस्कृतिक प्रतीक अछि। गोपालक संग दिगम्वरक गप्प-सप्पमे अनसोहॉत कटाक्ष शैलीक विवेचन नीक वुझना जाइत अछि। अध्ययन सम्पन्न कऽ लेलाक पश्चात् दिगम्बर बावूकेँ नौकरी नहि भेटलन्हि। पटनामे दस दुआरि बनि पेट पोसि रहल छथि परंच महेशक चाह बेचवासँ ओ संतुष्ट नहि, हुनका गामक महेश चाहक दोकान खोलि गामक नाक कटा रहल अछि। वाह-रे मैथिल! भीख मांगि कऽ खाएव नीक, ठकि कऽ जीएव नीक मुदा छोट कर्म नहि करव। महेश तँ चाह बेिच कऽ अपन परिवारक प्रतिपाल करैत छथि, दू गोट बारह बरखक नेनाकेँ रोजगार देने छथि, मुदा दिगम्वर बावूकेँ अपन यायावरी जीवन नीक लगैत छन्हि। मुँहगर जे स्वयं अकर्मण्य हो ओ गोंग कर्मक पुरूषकेँ दूसय तँ की कहल जाए? महेश चुप्प नहि रहलाह, अपन कर्मक गतिक आड़िमे दिगमबरकेँ सत्यसँ परिचए करा देलनि। ओना ई दोसर गप्प जे महेशो अपन पितासँ असत्य बजने छथि। हुनक पिताकेँ ई वूझल छन्हि जे महेश पटनामे नौकरी करैत अछि।
महेश मिथ्या बजलनि मात्र अपन पिताक मानसिक संतुष्टिक लेल, किएक तँ पुरना सोचक लोक अपन ठोप-चाननेटा पर विश्वास करैत छथि, वरू भुक्खे मरि जाएव मुदा विजातीय ओछ कर्म नहि करव।
नाटकक देासर प्रमुख पात्र छथि उमानाथ आ चन्द्रमा, एकटा अकाश आ दोसर धरित्री। उमानाथ अभियंता छथि, नाओ टा लेल मैिथल, कार्यक्रम देखवाक लेल नहि अएलनि, मात्र अपन ंसगी सभसँ भेँट करवाक दुआरे चेतना समितिक दर्शक दीर्घा मे अशोकर्य लऽ कऽ पैसलनि। अपन कनियाँ चन्द्रमा टा सँ मैथिलीमे गप्प करैत छथि। की मजाल केओ देासर हुनका संग मैिथलीमे गप्प करवाक दु:साहस करए, ओकरा अपन सामर्थ्य देखा देताह। दुनू परानी चाह पीवाक क्रममे महेशक दोकानपर अबैत छथि, चाह बनल नहि की उमानाथ जीकेँ कोनो संगीपर नजरि पड़ि गेलनि। कनियाकेँ महेशक दोकानपर छोड़ि ठामे पड़ा गेलाह। यथाक्रममे मंचसँ महेश जीकेँ कविता पाठ करवाक आग्रह आएल। चन्द्रमा जीकेँ बिनु दामे दोकानक ओरवाही दऽ ओ मंचस्थ भऽ गेलाह। चन्द्रमा अजगुतमे पड़ि गेलीह, चाहक विक्रेता आ कवि? कालक लीला विचित्र लगलनि। दोकानपर गाहकि सभ आवए लागल, चन्द्रमा भावावेशमे पड़ि चाह बनावए लगलीह। गंगानाथ आ दयानंद सन गाहकिकेँ चाह विक्रेता कवि पचि नहि रहल छल। समितिक मंच हुनका लोकनिक मतेँ गनहा गेल। हरिकान्त बावूकेँ आधुनिक रूपक कार्यक्रम नीक नहि लागि रहल छनि, तँ शिवानंदकेँ पुरातन संस्कृतिसँ कोनो मोह वा छोह नहि। एहि मध्य उमानाथ बावू चन्द्रमाकेँ तकैत दोकानपर अएलाह। अपन कनियाकेँ चाह बनवैत देखिते माहुर भऽ गेलथि। छोड़बाक जिद्द कएलनि मुदा मैथिल नारी अपन उतरदायित्वसँ कोना भटकि सकैत अछि? एक खीरा तीन फॉक! बिगड़ि कऽ फेर पड़ा गेलाह। मोने-मोन महेशपर अगिनवान बरिसबैत छलथि। चन्द्रमा सेहो संकटक अवाहानमे सशंकित मुदा की करतीह? एक दिश भाव आ दोसर दिश कर्त्तव्य वोध, “आँखिक तीरक विख पानि नोर बनि झहड़ल हृदय झमान भेल।”
कथाक अंतिम वनिता सरिताक कंठ चाहक लेल सुखए लागल तेँ अपन नोकर आ छोट नेनाक संग महेशक दोकानपर अबैत छथि। कविकाठी महेश कविता पाठ कऽ फेर अपन जीवनकेँ गुनि रहल छथि। सरिताकेँ देखिते स्वयंमे नुकएवाक असहज प्रयास करए लगलनि। वएह सरिता जे कहियो महेशक सह पाठिनी छलीह, आव एकटा आइ.ए.एस. अधिकारीक अर्द्धांगिनी छथि। सरिता महेशसँ साक्षात्कार करबाक प्रयास कऽ रहलीहेँ। महेश अपन भूतकालकेँ झॉपए चाहैत छथि मुदा सरिता घोघट कालक वऽर जकाँ ओकरा उधारि रहल छलीह। हुनक उद्येश्य सिनेहिल अछि तेँ महेश टूटि गेलाह। सरिता अश्रुधारसँ सिचिंत, जकर नोट्स पढ़ि अध्ययन पथपर बढ़ैत रहलीह ओ एहेन दशामे पहुँच गेल। चन्द्रमा सरिताक मोहमे विचरण करए लगलीह। एहि मर्मस्पर्शी क्षणक अंत भेल नहि की उमानाथ आवि महेशक गट्टा पकड़ि वास्तविक जीवनकेँ दर्शन कराबए लगलाह। चन्द्रमा एहि क्षण महेशक संग दऽ रहल छलीह।
मैथिली साहित्यक लेल सभसँ विलग नूतन विषय वस्तुक मार्मिक विश्लेषणमे शेखर जीक अतुल्य प्रतिभाक झलक अनमोल अछि। पूर्ण रूपसँ एकरा नाटक नहि कहल जा सकैछ, किएक तँ दीर्ध एकांकीक रूपमे लिखल गेल अछि। कथाक चित्रण मात्र दू दोकानक परिधिमे भेल अछि तेँ दृश्य समायोजनमे कोनो प्रकारक विध्नक स्थिति नहि, सरिपहुँ एकरा शेखर जी नाटकक रूपमे प्रदर्शित कएलनि। महेश सन चरित्र हमरा सबहक समाजमे छथि, मुदा कर्त्तव्यबोधक एहेन पुरूष जौं मिथिलामे सभ ठाम होथि तँ हम सभ साधन वििहन रहितहुँ सम्यक जीवनक रचना कऽ सकैत छी। चन्द्रमा सन दीर्घसोची नारीक विवरणमे वास्तविकतासँ वेशी कल्पनाक आभास होइत अछि। नाटकक आत्मकथ्यमे शेखर जीक आत्मविश्वाससँ वेशी अहंकारक दर्शन भेल। ‘नाटकक क्षेत्रमे हमर किछु मोजर अछि’ सन उक्तिक संग बटुक भाय आ गजेन्द्र ना. चौधरीक प्रति कृतज्ञता ज्ञापनमे महिमा मंडनक भान श्ोशर जीक संस्कारपर बुझना जाइछ। केओ ककरो प्रेरणासँ रचनाकार नहि भऽ सकैत अछि, ई तँ नैसर्गिक प्रतिभाक परिणाम थिक। मुदा एहिसँ ‘भफाइत चाहक जिनगी’क मर्यादाकेँ क्षीण नहि बुझना जा सकैत अछि। मात्र छोट-छोट ३९ पृष्ठक नाटक (ओहुमे सँ आठ पृष्ठ विषय वस्तुसँ बाहरक) मैथिली साहित्यक लेल मरूभूमिमे नीरक सदृश बनल दृष्टिकोणकेँ परिलक्षित करैत अछि। एिह प्रकारक बिम्बक सृजन शेखर जी सन मांजल रचनाकारेसँ संभव भऽ सकैछ। निष्कर्षत: मिथिलाक संस्कृतिक मध्य कर्म प्रधान युगक आचमनिसँ नाटक ओत-प्रोत अछि। मात्र साहित्यक नहि, मंचनक लेल पूर्णत: उपयुक्त लागल।
नाटक- भफाइत चाहक िजनगी
रचनाकार- पं. सुधांशु शेखर चौधरी
प्रथम संस्करण- नवम्वर १९७५
१.मानेश्वर मनुज-मानसरोवरक भूमिकाक प्रासंगिकता, २.मुन्नाजी- सामाजिक सरोकारकेँ छुबैत मैथिली लघुकथा ३.गजेन्द्र ठाकुर-गद्य साहित्य मध्य लघुकथाक स्थान आ लघुकथाक समीक्षाशास्त्र १.
मानेश्वर मनुज मानसरोवरक भूमिकाक प्रासंगिकता
ओना तँ प्रेमचन्द सेहो अप्पन गुरु बंगलाक महान कथाकार शरतचन्द्रकेँ मानलन्हि, मुदा बंगलाक विभिन्न पत्र-पत्रिका कथा-चेतनाक हिसाबे प्रेमचन्दकेँ सर्वोपरि मानैत छथि। एहि बातमे कोनो संदेह नहि जे प्रेमचन्दक कथा साहित्य विश्वसाहित्यमे अप्पन समुचित स्थान रखैत अछि।
गाँधीजी रवीन्द्रनाथ टैगोरक समक्ष नतमस्तक भऽ जखन हुनका गुरु कहलकन्हि तखन रवीन्द्रनाथ टैगोर सेहो आह्लादपूर्वक हुनका बापू कहलकन्हि। प्रेमचन्द जे सम्मान बंगला साहित्यकेँ< देलन्हि ताहिसँ कनिको कम सम्मान बंगलाक साहित्यकार प्रेमचन्दकेँ नहि दऽ रहल छथि।
प्रेमचन्दक जे कथा सभ पाठ्यपुस्तकमे लागल अछि ताहिसँ हिन्दी आ मैथिली जगत पूर्णतः वाकिफ अछि, तकर अलावे समए-समएपर हिन्दीक पत्रिका सभ प्रेमचन्दक आनो कथा सभ प्रकाशित करैत रहैत अछि। एतेक सभ भेलाक बादो हिन्दी आ मैथिलीक आम पाठक की लेखको प्रेमचन्दसँ अनभिज्ञ भऽ रहल छथि, जाहि कारणेँ मैथिली की हिन्दियो साहित्य एको डेग आगाँ नहि बढ़ि रहल अछि।मानसरोवरक प्राकथनमे प्रेमचन्द भारतीय कथा साहित्यक गुढ़केँ कतेक गदिया कऽ पकड़ने छथि- देखल जा सकैत अछि आ हमरा लोकनि लीकसँ कतेक हटि गेल छी तकरो अनुमान कएल जा सकैत अछि। हिन्दीक कतेको पत्र अप्पन सम्पादकीयमे कहैत छल जे मैथिली पहिने अप्पन साहित्यकेँ मजगूत कऽ लिअए तखन सम्वैधानिक मान्यताक बात करए, मुदा मैथिलीक साहित्यकार लोकनि अपना हठपर अड़ल रहलथि।
रोजगारक नामपर दर-दर भटकैत मैथिलजन सभतरि अपमानित भऽ रहल छथि तकर किनको चिन्ता नहि मुदा अप्पन हठ कायम रखताह। साहित्य वा राजनीति एहन हल्लुक चीज नहि जे सत्यसँ अलग पैर राखि आडम्बरक बलपर सफलता प्राप्त कऽ लिअए। सौ चोर मसियौत अइ तँ सौ साधु सहोदर, ई परम सत्य अइ।
कथा साहित्य पाठकक सुन्दर भावनाक स्पर्श- मानसरोवरक प्राकक्थन-प्रेमचन्द- मैथिली रूपान्तर- मानेश्वर मनुज
एक आलोचक लिखलन्हि अछि जे इतिहासमे सभ किछु यथार्थ होइतो ओ असत्य अछि आ कथा साहित्यमे सभ किछु काल्पनिक होइतो ओ सत्य अछि। अइ कथनक आशय एकर सिवाय आओर की भऽ सकैत अछि जे इतिहास आदिसँ अन्त धरि हत्या, संग्राम आ धोखाक प्रदर्शन करैत अछि जे असुन्दर अछि तैँ असत्य अछि, लोभक क्रूरसँ क्रूर अहंकारक नीचसँ नीच, ईर्ष्याक अधमसँ अधम घटना सभ अहाँकेँ ओतऽ भेटत आ अहाँ सोचऽ लागब जे मनुष्य एतेक अमानुषिक अछि, थोड़ स्वार्थक लेल भाए-भाएक हत्या करऽ पर लागल अछि। बेटा बापक हत्या कऽ दैत अछि आ राजा असंख्य प्रजाक हत्या कऽ दैत अछि। एकरा पढ़ि कऽ मोनमे ग्लानि होइत अछि आनन्द नहि। आ जे आनन्द प्रदान नहि कऽ सकैत अछि ओ सुन्दर नहि भऽ सकैत अछि आ ओ सत्य सेहो नहि भऽ सकैत अछि।
जतऽ आनन्द अछि ओतै सत्य अछि। साहित्य काल्पनिक बस्तु अछि मुदा एकर प्रधान गुण अछि आनन्द प्रदान करब, आ एहि हेतु ओ सत्य अछि। मनुष्य जगतमे जे किछु सत्य आ सुन्दर पओलक अछि आ पाबि रहल अछि ओकरे साहित्य कहैत छैक आ गल्प सेहो साहित्यक एक भाग अछि।
मनुष्य जाति लेल मनुष्ये सभसँ विकट पहेली अछि। ओ स्वयं अपना समझमे नहि अबैत अछि। कोनो ने कोनो रूपमे ओ अपने आलोचना करैत रहैत अछि, अपने मनोरहस्य खोलल करैत अछि। मानव संस्कृतिक विकासे एहि लेल भेल अछि कि मनुष्य अपनाकेँ समझाबय आध्यात्म आ दर्शन जकाँ साहित्यो एहि खोजमे लागल अछि, अन्तर एतनी अछि कि ओ अइ उद्योगमे रसक मिश्रण कऽ ओकरा आनन्दप्रद बना दैत अछि, एहि लेल आध्यात्म आ दर्शन सिर्फ ज्ञानी लोकनिक लेल अछि, साहित्य मनुष्य मात्र लेल।
जेना हम ऊपर कहि गेल छी, गल्प आ आख्यायिका साहित्यक एक प्रधान अंग अछि। आइसँ नहि, आदिये कालसँ। हँ, आइ-काल्हुक आख्यायिका आ प्राचीनकालक आख्यायिकामे समयक गति आ रुचिक परिवर्तनसँ बहुत किछु अन्तर भेल अछि। प्राचीन आख्यायिका कुउतुहल प्रधान होइत छल आ आध्यात्म विषयक। उपनिषद आ महाभारतमे आध्यात्मिक रहस्यकेँ समझाबक लेल आख्यायिका सभक आश्रय लेल गेल अछि। “जातक”सेहो आख्यायिकाक सिवाय आओर की अछि? बाइबिलमे सेहो दृष्टान्त सभ आ आख्यायिका सभक द्वारे धर्म तत्व समझाएल गेल अछि। सत्य अइ रूपमे आबि कऽ साकार भऽ जाइत अछि आ तखने जनता ओकरा समझैत अछि आ ओकर व्यवहार करैत अछि। वर्तमान आख्यायिका मनोवैज्ञानिक-विश्लेषण आ जीवनक यथार्थ स्वभाविक चित्रणकेँ अप्पन ध्येय समझैत अछि। एहिमे कल्पनाक मात्रा कम, अनुभूतिक मात्रा अधिक होइत अछि, बल्कि अनुभूतिये रचनाशील भावनासँ अनुरंजित भऽ कऽ कथा बनि जाइत अछि, मगर ई समझब भूल होएत कि कथा जीवनक यथार्थ चित्र अछि। जीवनक चित्र तँ मनुष्य स्वयं भऽ सकैत अछि, मगर कथाक पात्र सभक सुख-दुःखसँ हम जतेक प्रभावित होइत छी ओतेक यथार्थ जीवनसँ नहि होइत छी, जावत तक ओ निजत्वक परिधिमे ने आबि जाए। कथा सभक पात्र सभमे हमरा एक्के-दू मिनटक परिचयमे निजत्व भऽ जाइत अछि आ हम ओकरा संग हँसऽ आ कानऽ लगैत छी, ओकर हर्ष आ विषाद हमर अप्पन हर्ष आ विषाद भऽ जाइत अछि, बल्कि कहानी पढ़ि कऽ ओ लोको कानैत आ हँसैत देखल जाइत अछि, जकरापर साधारणतः सुख-दुःखक कोनो असरि नहि पड़ैत अछि, जकर आँखि श्मशानमे या कब्रिस्तानमे सेहो सजग नहि होइत अछि, ओ लोक सेहो उपन्यासक मर्मस्पर्शी स्थल सभपर पहुँचि कऽ कानऽ लगैत अछि।
शाइत एकर ईहो कारण होइक कि स्थूल प्राणी सूक्ष्म मनक ओतेक लग नहि पहुँच सकैत अछि जतेक कि कथाक सूक्ष्म चरित्रक। कथाक चरित्र सभ आ मनक बीचमे जड़ताक ई पर्दा नहि होइत अछि, जे एक मनुष्यक हृदयकेँ दोसर मनुष्यक हृदयसँ दूर रखैत अछि। आ अगर हम यथार्थकेँ हूबहू खीच कऽ राखि दी तँ ओहिमे कला कहाँ अछि। कला केवल यथार्थक नकलक नाम नहि अछि। कला देखाइत तँ यथार्थ अछि मुदा यथार्थ होइत नहि अछि। ओकर खूबी ई अछि कि ओ यथार्थ नहि होइतो यथार्थ लगैत अछिउ। एकर मापदण्ड सेहो जीवनक मापदण्डसँ अलग अछि, जीवनमे बहुधा हमर अंत ओही समय भऽ जाइत अछि जखन ओ वांछनीय नहि होइत अछि। जीवन ककरो दायी नहि अछि। ओकर सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरणमे कोनो क्रम कोनो सम्बन्ध ज्ञात नहि होइत अछि।
कमसँ कम मनुष्यक लेल ई अज्ञेय अछि, लेकिन कला-साहित्य मनुष्यक रचल जगत अछि आ परिमिति हेबाक कारण सम्पूर्णतः हमरा सामने आबि जाइत अछि आ जहाँ ओ हमर मानवो-न्याय-बुद्धि आ अनुभूतिक अतिक्रमण करैत पाओल जाइत अछि, हम ओकरा दण्ड देबाक लेल तैयार भऽ जाइत छी। कथामे अगर ककरो सुख प्राप्त होइत छैक तँ एकर कारण बतवक हेतैक। दुःखो भेटैत छैक तँ ओकर कारण बतवक हेतैक। एतऽ कोनो चरित्र मरि नहि सकैत छैक जाबत तक मानव-न्याय-बुद्धि ओकर मौत ने मांगैक। सृष्टाकेँ जनताक अदालतमे अप्पन हर एक कृतिक लेल जवाब देबऽ पड़तैक। कलाक रहस्य भ्रान्ति अछि, मुदा ओ भ्रान्ति जाहिपर यथार्थक आवरण पड़ल हो।
हमरा सभकेँ ई स्वीकार कऽ लेबऽ मे संकोच नहि हेबाक चाही कि उपन्यासोक जकाँ आख्यायिकाक कलो हम पश्चिमसँ लेल अछि। कमसँ कम एकर आइ-काल्हुक विकसित रूप तँ पश्चिमेक अछि। अनेक कारण सभसँ जीवनक अन्य धारा सभक तरहे साहित्योमे हमर प्रगति रुकि गेल आ हम प्राचीनसँ एको-रत्ती एम्हर-ओम्हर हटबो निषिद्ध बुझि लेलहुँ। साहित्यक लेल प्राचीन लोक सभ जे मर्यादा बाँधि देने छलथि, ओकर उल्लंघन करब वर्जित छल। अतएव काव्य, नाटक, कथा कथूमे हम अप्पन कदम बढ़ा नहि सकलहुँ। कोनो बस्तु बहुत सुन्दर भेलोपर अरुचिकर भऽ जाइत अछि, जावत तक ओइमे किछु नवीनता ने आनल जाए। एक्के तरहक नाटक, एक्के तरहक काव्य पढ़ैत-पढ़ैत आदमी ऊबि जाइत अछि आ ओ किछु नव चीज चाहैत अछि, चाहे ओ ओतेक सुन्दर आ उत्कृष्ट नहि हो। हमरा ओतऽ तँ ई इच्छा उठबे ने कएल या हम सभ एतेक सकुचएलहुँ कि ओ जड़ीभूत भऽ गेल। पश्चिम प्रगति करैत रहल, ओकरा नवीनताक भूख छलैक मर्यादाक बेड़ी सभसँ चिढ़। जीवनक हर एक विभागमे ओकर एहि अस्थिरताक, असंतोषक बेड़ी सभसँ मुक्त भऽ जेबाक छाप लागल अछि। साहित्यमे सेहो ओ क्रान्ति मचा देलक।
शेक्सपियरक नाटक अनुपम अछि मुदा आइ ओइ नाटक सभक जनताक जीवनसँ कोनो सम्बन्ध नहि। आजुक नाटकक उद्देश्य किछु आओर अछि, आदर्श किछु आओर अछि, विषय किछु आओर अछि, शैली किछु आओर अछि। कथा-साहित्यमे सेहो विकास भेल आ ओकर विषयमे चाहे ओतेक पैघ परिवर्तन नहि भेलैक मुदा शैली तँ बिल्कुले बदलि गेलैक। अलिफलैला ओहि समयक आदर्श छलै, जाहिमे बहुरूपता छलै, वैचित्र्य छलै, कुतुहल छलै, रोमांस छलै, मुदा ओइमे जीवनक समस्या नहि छलै, मनोविज्ञानक रहस्य नहि छलै, अनुभूति सभक एतेक प्रचुरता नहि छलै, जीवन आ सत्य रूपमे ओतेक स्पष्टता नहि छलै। ओकर रूपान्तर भेलैक आ उपन्यासक उदय भेलैक जे कथा आ ड्रामाक बीचक बस्तु अछि। पुरान दृष्टान्त सभ रूपान्तरित भऽ गल्प बनि गेल।
मुदा सए वर्ष पहिले यूरोप सेहो एहि कलासँ अनभिज्ञ छल। पैघ-पैघ, उच्च कोटिक दार्शनिक तथा ऐतिहासिक आ सामाजिक उपन्यास लिखल जाइत छल, लेकिन छोट-छोट कथा सभक दिस ककरो ध्यान नहि जाइत छलैक। हँ परी सभक आ भूत सभक कथा लिखल जाइत छल, किन्तु एहि एक शताब्दीक अन्दर या ओहूसँ कम बुझी छोट-कथा साहित्यक आन सभ अंगपर विजय प्राप्त कऽ लेलक अछि, आ ई गलत नहि होएत कि जेना कोनो जमानामे कविते साहित्यिक अभिव्यक्तिक व्यापक रूप छल ओहिना आइ कथा अछि। आ ओकरा ई गौरव प्राप्त भेलैक अछि यूरोपक कतेको महान कलाकारक प्रतिभासँ, जाहिमे बालजाँक, मोपासाँ, चेखब, टॉलस्टाय, मैक्सिम गोर्की आदि मुख्य अछि। हिन्दीमे पचीस-तीस साल पूर्व तक गल्पक जन्म नहि भेल छल। आइ तँ कोनो एहन पत्रिका नहि जाहिमे दू-चारि “कथा” नहि होअए, एतऽ तक कि कतेको पत्रिकामे केवल “कथे”देल जाइत अछि।
कथाक एहि प्राबल्यक मुख्य कारण आजुक जीवन संग्राम आ समयाभाव अछि, आब ओ जमाना नहि रहल कि हम “बोस्ताने खयाल” लऽ कऽ बैस जाइ आ पूरा दिन ओकरे कुँजमे विचरैत रही। आब तँ हम संग्राममे एतेक तन्मय भऽ गेल छी कि हमरा मनोरंजनक लेल समय नहि भेटैत अछि, अगर किछु मनोरंजन स्वास्थ्यक लेल अनिवार्य नहि होइत आ हम विक्षिप्त भेले बिना अट्ठारह घंटा काज कऽ सकितहुँ तँ शाइत हम मनोरंजनक नाम तक नहि लितहुँ, मुदा प्रकृति हमरा विवश कऽ देलक अछि तैँ हम चाहैत छी कि थोड़सँ थोड़ समयमे अधिकसँ अधिक मनोरंजन भऽ जाए, तैँ सिनेमा घरक संख्या दिनो-दिन बढ़ैत जाइत अछि। जाहि उपन्यासकेँ पढ़ऽमे महीना लगैत ओकर आनन्द हम दू घंटामे उठा लैत छी। कथाक लेल पन्द्रह-बीसे मिनट काफी अछि। अतएब हम कथा एहन चाहैत छी कि ओ थोड़सँ थोड़ शब्दमे कहल जाए, ओहिमे एक वाक्य कि एक शब्दो अनावश्यक नहि आबि पाबए, ओकर पहिले वाक्य मनकेँ आकर्षित कऽ लिअए आ अन्त तक ओकरा मुग्ध कएने रहए, ओकरामे किछु छटपटाहट होइक, किछु ताजगी होइक, किछु विकास होइक आ ओकर संग किछु तत्वो होइक। तत्वहीन कथासँ चाहे मनोरंजन भऽ जाए मानसिक तृप्ति नहि होइत छैक। ई सत्य अछि जे हम कथामे उपदेश नहि चाहैत छी, मुदा विचारकेँ उत्तेजित करक लेल, मनक सुन्दर भावकेँ जागृत करक लेल किछु ने किछु अवश्य चाहैत छी। वैह कथा सफल होइत अछि जाहिमे अइ दुनूमे सँ मनोरंजन आ मानसिक तृप्तिमे सँ एक अवश्य उपलब्ध अछि।
सभसँ उत्तम कथा ओ होइत अछि जकर आधार कोनो मनोवैज्ञानिक सत्यपर होइक। साधु पिताक अप्पन कुव्यसनी पुत्रक दशासँ दुखी होएब मनोवैज्ञानिक सत्य अछि। एहि आवेगमे पिताक मनोवेगकेँ चित्रित करब आ तदनुकूल ओकर व्यवहारकेँ प्रदर्शित करब कथाकेँ आकर्षक बना सकैत अछि। अधलाह लोक सेहो बिल्कुल अधलाह नह होइत अछि, ओकरोमे कतौ ने कतौ देवता अवश्य छिपल होइत छैक, ई मनोवैज्ञानिक सत्य अछि। ओइ देवताकेँ खोलि कऽ देखाए देब सफल आख्यायिकाक काज अछि। विपत्तिपर विपत्ति पड़लासँ मनुष्य कतेक दिलेर भऽ जाइत अछि एते तक कि ओ पैघसँ पैघ संकटक सामना करक लेल टाल-ठोकि कऽ तैयार भऽ जाइत अछि। ओकर सभ दुर्वासना भागि जाइत छैक। ओकरा हृदयक कोनो गुप्त स्थानमे छिपल जौहर निकलि अबैत छैक आ हमरा चकित कऽ दैत अछि, मनोवैज्ञानिक सत्य अछि।
एक्के घटना वा दुर्घटना भिन्न-भिन्न प्रकृतक मनुष्यकेँ भिन्न-भिन्न रूपसँ प्रभावित करैत अछि। हम कथामे एकरा सफलताक संग देखा सकी तँ कथा अवश्य आकर्षक होएत। कोनो समस्याक समावेश कथाकेँ आकर्षक बनबाक सभसँ बड़का साधन अछि। जीवनमे एहन समस्या नित्ये उपस्थित होइत अछि आ ओहिमे पैदा होबऽबला द्वन्द्व आख्यायिकाकेँ चमका दैत अछि। सत्यवादी पिताकेँ पता चलैत छैक कि ओकर पुत्र हत्या केलक अछि ओ ओकरा न्यायक वेदीपर बलिदान कऽ दिअए वा अप्पन जीवन सिद्धान्तक हत्या कऽ दिअए? कतेक भीषण द्वन्द्व अछि! पश्चाताप एहन द्वन्द्वक अखण्ड श्रोत अछि। एक भाए दोसर भाएक सम्पत्ति छल-कपटसँ अपहरण कऽ लेलक अछि, ओकरा भिक्षा मांगैत देख कऽ की छली भाएकेँ कनिको पश्चाताप नहि हेतैक। अगर एना नहि होइक तँ ओ मनुष्य नहि अछि।
उपन्यासेक जकाँ कथा सेहो किछु घटना प्रधान होइत अछि, किछु चरित्र प्रधान। चरित्र प्रधान कथाक पद उच्च बुझल जाइत अछि, मुदा कथामे बहुत विस्तृत विश्लेषणक गुंजाइश नहि होइत अछि। एतऽ हमर उद्देश्य सम्पूर्ण मनुष्यकेँ चित्रित करब नहि, बल्कि ओकर चरित्रक एक अंग देखाएब अछि। ई परमावश्यक अछि कि हमरा कथासँ जे परिणाम वा तत्व निकलए ओ सर्वमान्य होबए आ ओइमे किछु बारीकी होबए। ई एक साधारण निअम अछि कि हमरा ओही बातेक आनन्द अबैत अछि जाहिसँ हमर किछु सम्बन्ध होबए। जुआ खेलऽबलाकेँ जे उन्माद आ उल्लास होइत छैक ओ दर्शककेँ कदापि नहि भऽ सकैत अछि। जखन हमर चरित्र एतेक सजीव आ आकर्षक अछि कि पाठक स्वयंकेँ ओकरा स्थानपर समझि लैत अछ तखने ओकरा कथाक आनन्द प्राप्त होइत छैक। अगर लेखक अपना पात्रक प्रति पाठकमे ई सहानुभूति नहि उत्पन्न कऽ देलक तँ ओ अपना उद्देश्यमे असफल अछि।
पाठकसँ ई कहक जरूरति नहि अछि कि अइ थोड़ दिनमे हिन्दी गल्पकला कतेक प्रौढ़ता प्राप्त कऽ लेलक अछि। पहिने हमरा सामने बंगला कथाक नमूना छल। आब हम संसारक सभ प्रमुख गल्प लेखकक रचना पढ़ैत छी, ओहिपर विचार अ बहस करैत छी, ओकर गुण-दोष निकालैत छी आ ओहिसँ प्रभावित भेने बिना नहि रहि सकैत छी। आब हिन्दीक गल्प लेखक सभमे विषय, दृष्टिकोण आ शैलीक अलग-अलग विकास होबऽ लागल अछि। कथा जीवनक बहुत निकट आबि गेल अछि। ओकर जमीन आब ओतेक लम्बा-चौड़ा नहि अछि। ओहिमे कतेक रस, कतेक चरित्र आ कतेक घटनाक लेल स्थान नहि रहल। आब ओ केवल एक प्रसंगक, आत्माक एक झलकक सजीव ह्रूदयस्पर्शी चित्रण अछि। ई एक तथ्यता, ओहिमे प्रभाव, आकस्मिकता आ तीव्रता भरि दी। आब ओहिमे व्याक्याक अंश कम संवेदनाक अंश बेसी रहैत अछि। एकर शैलियो आब प्रभावमय भऽ गेल अछि। लेखककेँ जे किछु कहक अछि ओ कमसँ कम शब्दमे कहि देबऽ चाहैत अछि। ओ अप्पन चरित्रक मनोभावनाक व्याख्या करैत नहि बैसैत अछि, केवल ओकरा दिस इशारा कऽ दैत अछि। कखनो-कखनो तँ संभाषणमे एक दू-शब्देसँ काज निकालि लैत अछि। एहन कतेको अवसर होइत अछि, जखन पात्रक मुँहसँ एक शब्द सुनि कऽ हम ओकर मनोभावक पूरा अनुमान कऽ लैत छी। पूरा वाक्यक जरूरतिये नहि रहैत अछि। आब हम कथाक मूल्य ओकर घटना विन्याससँ नहि लगबैत छी। हम चाहैत छी पात्रक मनोगति स्वयं घटनाक सृष्टि कराबए। घतनाक स्वतन्त्र कोनो महत्वे नहि रहल, ओकर महत्व कवल पात्रक मनोभावकेँ व्यक्त करबाक दृष्टिएसँ अछि- ओहिना जेना शालिग्राम स्वतन्त्र रूपस कवल पत्थरक एक गोल टुकड़ा छ्हथि, लेकिन उपासकक श्रद्धासँ प्रतिष्ठित भऽ कऽ देवता बनि जाइत छथि। खुलासा ई कि गल्पक आधार आब घटना नहि, मनोवैज्ञानिक अनुभूति अछि। आइ लेखक कोनो रोचक दृश्य देख कऽ कथा लिखऽ नहि बैस जाइत अछि। ओकर उद्देश्य स्थूल सौन्दर्य नहि। ओ तँ कोनो एहन प्रेरणा चाहैत अछि, जाहिमे सौन्दर्यक झलक होइक आ ओकरा द्वारा ओ पाठकक सुन्दर भावनाक स्पर्श कऽ सकए।
२.
मुन्नाजी मुन्नाजी (उपनाम, एहि नामे मैथिलीमे लेखन), मूलनाम मनोज कुमार कर्ण, जन्म–27 जनवरी 1971 (हटाढ़ रूपौली, मधुबनी), शिक्षा–स्नातक प्रतिष्ठा, मैथिली साहित्य। वृत–अभिकर्त्ता, भारतीय जीवन बीमा निगम। पहिल लघुकथा–‘काँट’ भारती मण्डनमे 1995 पकाशित। पहिल कथा–कुकुर आ हम, ‘भरि रात भोर’मे 1997मे प्रकाशित। एखन धरि दर्जनो लघुकथा, कथा, क्षणिका आ लघुकथा सम्बन्धी किछु आलेख प्रकाशित। विशेषः- मुख्यतः मैथिली लघुकथाकेँ स्वतंत्र विधा रूपेँ स्थापित करवाक दिशामे संघर्षरत।
सामाजिक सरोकारकेँ छुबैत मैथिली लघुकथा
जिनगीमे उठैत उकस-पाकसकेँ सम्वेदनापूर्ण मानवताक संग सरियबैत रचनाकार पत्र-पत्रिकासँ समाज आ पाठकक मोनमे बैसि गेलाग अछि। रेशम आ सूतीक बीच फाँक भेल जिनगीकेँ स्पष्ट करैत, आरामदायक आ सुखद अनुभवकेँ सोझाँ आनब आब रचनाकार अपन रचनाधर्म बुझि गेलाह अछि। तेँ आजुक समस्त रचनामे जिनगीक उतार-चढ़ाव, खसैत-उठैत सम्बन्ध सुखाइत सन सिनेह सभकेँ अपना हृदएमे बसा रचना रचैत छथि लेखक। एहि युगक रचनाकारकेँ आब गरीब भाभनबला किताबी खिस्सा आ राजा-रानीबला पिहानीसँ ऊपर उठि अपन सामाजिक समरसताक निस्सन निशानीक बोध भऽ गेल बुझाइत अछि। तेँ रचना सेहो लोकक जिनगीक गहींरता नपैत ओकर सुख-दुखक फाँटक बीचसँ निकलि ओहि फाँटकेँ भरैत ओकर एक-एक अंश धरि जुड़ि जिनगीक दर्शन करबैत सोझाँ आबि रहल अछि मैथिली लघुकथा सभ।
मोम आ पाथर पहिने एक दोसराक विपरीत जिनगीकेँ आरेखित करैत रहल। मुदा आब नै, आब तँ एक्कै हिदएमे क्षणक बदलैत गतिक संग मोम आ पाथर दुनूक समन्वयक बनि जिनगीक सभ अन्तरंगताकेँ छुबैत उद्वेलित कऽ बेरा-बेरी मुदा एक्कै ठाम केन्द्रित भऽ देखार भऽ उठैत अछि। आजुक मानवक संवेदना एतेक परिवर्तनीय भऽ गेल अछि जे एक्के संग अहाँक चरित्रमे मोम आ पाथर दुनूक रूप दृष्टिगोचर होइत, रचनाकार सोझाँ आनि ओकर सत्यकेँ साबित कऽ रहलाह अछि। सत्य! एकटा काल्पनिक विजय मात्र नै थिक, सत्य कतौसँ अनायास नै टपकि पड़ैए। सत्य पूर्णतः मानव जीवनक यथार्थ थिक। सत्य मानवकेँ अनुचित कार्यसँ रोकबाक वा विधर्मी हेबासँ बचेबाक श्रीयंत्र जकाँ अछि, जकरा आजुक रचनाकार अपना रचनाधर्मितासँ लोकक हृदए धरि छुआ ओकर यथार्थ बोध करौलनि अछि।
पहिनुक लघुकथा सभ दहेजक दानवकेँ उघार कऽ, दहेज पीड़िताक मर्मकेँ वा दहेजसँ भेल परिणामकेँ अपन केन्द्रमे आनि सम्वेदित करैत छल। ओहिसँ इतर चुटुक्का वा हास्य-कणिका लऽ तत्कालीन नेता सबहक विपटावादी चरित्रकेँ उजागर कऽ अपन रचनाक इतिश्री बुझैत छला। एहेन नै छलै जे तहियाक रचनाकारक सोच संकुचित छल। ओहो सभ दूर धरि सोचैत छला, गमै छला आ तखन ओकरा सोझाँ अनै छला। मुदा ई परिवेशक दोष सेहो कहल जा सकैए जे तहियाक रचनाकार सभ विषए-बैस्तुकेँ संकुचित कऽ मैथिली लघुकथाकेँ सेहो संकुचित कऽ देलनि। २०म सदीक छट्ठम-सातम दशकमे प्रायः ओहने परिवेश संरचित छल। जकर परिणामे लघुकथा मात्र नै वरन् आनो विधा यथा कथा/ नाटक/ उपन्यास आदिमे वएह दहेज आ खिस्सा आ नेताजीक करनीकेँ सोझाँ आनल जाइत रहल छल।
आब परिवेश बदललै, दृष्ज्टिगत फरिछता एलै, सामाजिक समरसता पसरलै। तहन समाजक छुआछूत मात्रक अवलोकन होइत छलै। मुदा आइ ओहि छुआछूतसँ भेल परिणाम, जाति-पातिमे बान्हल लोकक दृष्टि-परिवर्तन, आर्थिक सम्पन्नता, पैघक संग सभ बिन्दु। विषय वा स्थानपर ओहो अछोप सन, निंघेष बनल लोकक सहचर बनब, सभकेँ देखाओल जाए लागल आजुक लोककथामे। आब विषय विस्तार स्वतः सभ तरहक घटनाकेँ छुबैत कागचपर आबऽ लागल अछि। आबक परिवेशमे दहेजक पसार भऽ गेल अछि। एहेन पसार जकरा आब विशेष मुद्दा नै बना, बल्कि ओकरा जीवनक सामान्य क्रियाकलाप बुझि, परम्पराकेँ उघबाक प्रक्रियाकेँ दर्शाओल जाए लागल अछि। तहिया दहेज दानव जकाँ छलै। जे रचनाकारक लेल प्रमुख विषए छल। आइ दहेज दानव मात्र नै महादानव बनि ठाढ़ अछि मुदा परिवेश बदलल छै, माने कि आब तहियाक अपेक्षा आर्थिक सम्पन्नता बढ़ि गेलैए तेँ लोककेँ ई महादानव अपन जीवनक एकटा अंग बनि गेल अछि, कोनो बड्ड पैघ समस्या नै। आब तँ ओइसँ पैघ-पैघ समस्या रचनाकारकेँ उद्वेलित करैत अछि। यथा बिआहक खुजल रस्ता, कियो कोनो जाति-धर्मसँ बिआह कऽ सकैए आ ओकरा न्यायालय प्रमाणित तँ करिते अछि। सरकारी संरक्षण सेहो भेटै छै। ओहिसँ ऊपर दहेज उन्मूलनक दिशामे समलिंगी बिआह समाजकेँ जतऽ डेरा रहल अछि, ओतै रचनाकारकेँ एकटा नव दृश्यांकनक अवसर दऽ रहल अछि।एहि सन्दर्भमे दूटा अन्तर्राष्ट्रीय लेखकक तीनटा लघुकथा राखि रहल छी-
ग्रिगोरी गोरिन (रूसी नाटककार)
एकटा इमानदार आदमी
“हम टैक्सीबलाकेँ अबाज देलौं आ टैक्सी रुकि गेल।
“की हमरा अहाँ सोमोकन्या स्क्वेयर लऽ चलब? ओ जगह एतऽ सँ बड्ड दूर नै छै, मुदा हमरा जल्दी अछि।”
पाँच मिनट बाद हम ओकरा रोकलौं। मीटर उनचास कोपेक देखबैत छल। हम एक रूबल निकाललौं।
“हमरा लग छुट्टा पाइ नै अछि।” ड्राइवर कहलक। हम अपन जेबीमे तकलौं तँ पचास कोपेकक एकटा सिक्का भेटल।
“अफसोच अछि जे हमरा लग एको कोपेक नै अछि।”
“कोनो बात नै।”
“किएक नै! ” ड्राइवर विरोध प्रकट केलक, “हम एना नै कऽ सकैत छी। अहाँ जनैत छी जे सवारीसँ मीटरसँ बेसी पाइ नै लेल जा सकैत अछि। हम इनामो नै लैत छी।”
“बड्ड नीक, मुदा हम की करू? ”
“वामा कोनापर एकटा तमाकूबलाक दोकान अछि, ओ खुल्ला कऽ देत।”
पाँच मिनट पछाति हम ओइ दोकानपर पहुँचलौं, मुदा तावत धरि खेबाक छुट्टी भऽ गेल छल। मीटर आब सन्तानबे कोपेक बता रहल छल।
“कोनो बात नै”- ड्राइवर सहानुभूति जतौलक, “कीव टीशनलग एकटा बैंक अछि, ओइमे काज करऽवाली लड़कीकेँ हम जनैत छिऐक, ओ अहाँकेँ पाइ खुल्ला कऽ देत।”
हम कीव टीशन दिस गेलौं, मुदा बैंक बन्द छल। मीटर पूरे तीन रूबल देखा रहल छल।
हम ड्राइवरकेँ तीन रूबल देलौं, ओ पाइ जेबीमे राखिकऽ मीटर बन्न कऽ देलक।
“हमरा बड्ड दुख अछि”, ओ कहलक। हम सवारीसँ बेसी पाइ नै लैत छी।
“बहुत आभारी छी, मुदा हम सोमोकन्या स्क्वायर कोना पहुँचब? ”
“हम अहाँकेँ ओतऽ लऽ चलब।” ड्राइवर कहलक आ हमरा टैक्सीमे बैसते मीटर चालू कऽ देलक। पाँच मिनट बाद हम पहुँच गेलौं। मीटर फेरो उनचास कोपेक देखा रहल छल।
हम छोट छीन चक्कू निकालि कऽ ड्राइवरक गरदनि लग व्लगा देलौं आ ड्राइवरक हाथमे जबरदस्ती पचास कोपेकक सिक्का राखि टैक्सीसँ कूदि कऽ भागि गेलौं। बादमे बहुत बाद धरि, जे नैतिक भ्रष्टाचार हम ओइ इमानदार आदमीक संग केने छलौं, हमरा ग्लानिक अनुभव होइत रहल।
बर्तोल्ट ब्रेख्त (जर्मन नाटककार)
गपशप
“आब हम सभ आपसमे किन्नहुँ गप्प-सप्प नै कऽ सकैत छी”, महाशय “क” एकटा लोकसँ कहलनि।
“किएक”?, ओ चौकैत पुछलक।
“हम अपन तर्कपूर्ण गप्प आब अहाँक सोझाँ नै राखि सकैत छी। ”, महाशय “क” लचारीवश अपन विचार रखलनि।
“मुदा अइ बातसँ हमरापर कोनो फर्क नै पड़त। ”, दोसर अपन संतुष्टि देखौलक।
“हमरा बूझल अछि।”, महाशय “क” खौंझाइत कहलक, मुदा हमरापर एकर असरि अवश्य पड़त।
महाशय “क” जखन कोनो व्यक्तिसँ प्रेम करैत अछि
महाशय “क” सँ पूछल गेल, जखन अहाँ कोनो व्यक्तिसँ प्रेम करैत छी तखन की करैत छी? ”
महाशय “क” उतारा देलक, “हम ओहि व्यक्तिक एकटा खाका बनबैत छी आ फेर ऐ फिकिरमे रहैत छी जे ओ हुबहु ओकरे जकाँ बनए। ”
“के, ओ खाका? ”
“नै।”, महाशय “क” जवाब देलक, “ओ आदमी।”
पहिने लोकक विपन्नता सेहो दृष्टि संकुचनक पर्याय छल। ई स्वाभाविक छै जे पेट भरल रहतै तखने लोकक सोच ओइसँ दूर धरि जेतै। नै तँ सभटा सोच भूखसँ उत्पन्न भेल आकुलतामे समाहित भऽ रहि जाएत। आब स्थिति उनटल अछि। आर्थिक उदारीकरण आ वैश्वीकरणक आएल चलनसारिमे आब लोक आर्थिक रूपेँ सम्पन्न भेल अछि। आर्थिक सम्पन्नता आब पेटक भूखसँ इतर आन-आन भूख जगेलक अछि। जाहि कारणेँ चोरि, हत्या आ बलात्कारक सेहो बढ़ावा भेल अछि जे ओकरे रूप/ प्रतिरूप बदलि गेल अछि। तँ आजुक लेखककेँ कलम चलेबा लेल आ बदलल प्रतिरूप हथियारक रूपमे भेटि गेल आ रचनाकार सभ ऐ सभ अपराधक अपन कलमक माध्यमे नवीनीकरण कऽ सोझाँ आनि रहल छथि। सम्प्रति रचनाकार सभ पदयात्रासँ ऊपर उठि मंगलग्रह यात्रापर जा रचनारत छथि। पहिलका जमानामे लोक शुद्ध दूध ग्रहण करैत छल, आब दूध तँ दूर पानिक समस्या लोककेँ घेरने जा रहल छै। कतौ पानिक कमीसँ हाहाकार मचैए तँ कतौ लोक बाढ़िक कोप भाजन बनि भूखे बिलबिलाइत नाङट भेल छतविहीन लोकक असरा तकैए। आ लेखक ऐ सभपर अपन दृष्टिए नजरि गरा कागचपर अनै छथि।
भारतमे सम्विधान सम्मत पितृसत्तात्मक परिवारकेँ उघबाक निमित्ते पुत्रक पैदाइशकेँ बढ़ावा देल जाइत रहल अछि। ओना तँ आइयो लोक बेटाक लिलसामे बेटीक हत्या (भ्रूण हत्या) कऽ रहल अछि जे दुनू अवस्था मैथिली लघुकथा लेखकक कलमक धारकेँ पिजौलक अछि। मुदा ऐ सबहक बावजूद जे मुद्दा लेखककेँ मसाला देलक ओ अछि नारी सशक्तिकरण। पहिने मौगीक मूँह जाबि कऽ ओकर सुरैतकेँ घोघमे नुकाएल रखबाक परिपाटी छल। मुदा आइ पुरुष सभ अपन कमाइकेँ द्वितीयक आ मौगीक नोकरीकेँ प्राथमिकता दऽ रहल अछि। शहरक कोन जे गाम देहातक मौगी सभ आब सरकारी नोकरी राजनीतिमे आगाँ बढ़ि कऽ आबि रहल अछि आ घरबला सभ पिछलगुआ बनि जीवन बिता रहल छथि, जकरा मैथिली लघुकथाकार सभ अपन कलमक माध्यमे भजा रहल छथि। महिलाकेँ आरक्षण दऽ एक दिस सरकार अप्पन कुर्सी बचबैए तँ दोसर दिस पुरुष सभ अपन घर बचेबा लेल संघर्षरत देखाइत छथि। जाहि सभ क्रियाकलापपर कलमकारक वक्र दृष्टि अछि।
उपरोक्त बदलावक अतिरिक्त सभसँ पैघ परिवर्तन देखल जा रहल अछि तकनीकी चलनसारि। आइ मोबाइल इन्टरनेट डिश टी.वी./ एल.सी.डी. आ लेड टी.वी. लोकक जीवनकेँ एगदमसँ चलायमान बना देलक अछि। तेँ लोक धरतीक भीड़ आ भार कम करबाक लेल चान दिस नजरि दऽ रहल अछि। आजुक मैथिली लघुकथाकार सेहो उपरोक्त सभ बिन्दुकेँ छुबैत अपन रचनाक एक-एक सूक्ष्म गतिविधिक सुन्दर वर्णन करैत देखार भऽ रहलाह अछि। ऐ मे सभसँ ऊपर नाम अछि श्री अनमोल झा जीक जे अपना रचनामे अपन सर-समाज आ गामक जिनगीक दैनिक व्यवहारक प्रत्येक बिन्दुपर दृष्टिगत होइत कलम चला रहलाह अछि। लोकक एक-एक क्षणक बदलैत परिस्थितिक जमीनसँ ऊपर उठि हवामे उधियाइत मन मस्तिष्कक। समाजक लोकक प्रत्येक सरोकारक चित्रण अपन लघुकथामे केलनि अछि। तहिना मिथिलेश झा/ गजेन्द्र ठाकुरजी अपन सूक्ष्म दृष्टिएँ समाजमे होइत उत्थान-पतन/ नैतिक क्षीणता/ सामाजिक दायित्व, विछोह आदिकेँ जतऽ तक लोककेँ छूबि संशित वा क्षोभित करैए सभ मैथिली लघुकथाकार ओकरा कलमबद्न कऽ लोकक बन्न नजरिकेँ खोलबाक वा नवपथ दर्शन देबाक सुन्नर प्रयास कऽ रहल छथि। ऐ सभसँ ऊपर एक नाम अछि श्री सत्येन्द्र कुमार झा जीक जे अपन दृष्टिएँ भौतिकवादी मुदा मौलिक नैतिक क्षरणकेँ एकटा फराक दृष्टिएँ सबहक सोझाँ अनबाक प्रयास च्केलनि अछि। हिनको कलम विषय विविधतापर नजरि राखि सभ कोनमे दौगि रहल अछि। अए सभसँ फराक गामक वा गमैय्या जिनगी मात्रक अवलोकन ओकर परिस्थितिवश बदलैत जीवनक प्रत्येक अंशकेँ शुद्ध गमैये सोचे दृष्टिगत कऽ सोझाँ आनाऽबला तीन प्रमुख नाम अछि- जगदीश प्रसाद मंडल, उमेश मंडल आ रघुनाथ मुखिया जीक।
ऐ तरहेँ समाजक बदलैत घटनाक्रमक प्रत्येक बिन्दुपर चाहे ओ सामाजिक समरसता हो , परिस्थितिगत बदलैत परिवेश हो, तकनीकी चलनक प्रभाव हो, आर्थिक सम्पन्नता- वैश्वीकरण- वा कोनो अन्यान्य खाँहिसँ जनमल कोनो समस्या। आजुक मैथिली लघुकथाकार ओइ प्रत्येक बिन्दुकेँ अपन कलमसँ उठा कागचपर आनि सोझाँ अनैत छथि। जाहिसँ सामाजिक सरोकारसँ जुड़ल एक घटना मैथिली लघुकथाक विषत बनि लोकक सोझाँ आबि रहल अछि। ऐ सँ ई स्पष्ट होइछ जे पहिनुका मैथिली लघुकथा वा लघुकथाकारक एकटा सीमामे बान्हल सोचसँ आगू बढ़ि आजुक रचनाकार मैथिली लघुकथा भण्डारकेँ एना भरि रहलाह अछि जाहिसँ कोनो उमेरक कोनो लोकक कोनो सोचक खाहिसँ पूरा भऽ सकए। तेँ समाजक सभ प्रकारक गतिविधिकेँ समेटकऽ चलि रहल छथि मैथिली लघुकथाकार।
पहिल मैथिली लघुकथा गोष्ठीक आयोजन:- २० फरवरी १९९५ ई. केँ चित्रगुप्त प्राङ्गन हटाढ़ रुपौली (मधुबनी)मे भेल छल। संयोजकद्वय मुन्नाजी आ मलयनाथ मण्डन।
अध्यक्षता- श्री भवनाथ भवन
मंच संचालन- कुमार राहुल
उपस्थित- १९ गोट लघुकथाकारक २६ गोट लघुकथा पाठ भेल। उपस्थित जनमे- पं.मतिनाथ मिश्र, पं. यन्त्रनाथ मिश्र, श्री श्यामानन्द ठाकुर, उमाशंकर पाठक, ललन प्रसाद, सचिदानन्द सच्चू, मुन्नाजी, कुमार राहुल, अतुल ठाकुर, प्रेमचन्द्र पंकज, मलयनाथ मण्डन, मीरा भारती कर्ण एवं सुनील कर्ण अपन रचना पाठ केलनि।
३.
गजेन्द्र ठाकुर गजेन्द्र ठाकुर, पिता-स्वर्गीय कृपानन्द ठाकुर, माता-श्रीमती लक्ष्मी ठाकुर, जन्म-स्थान-भागलपुर ३० मार्च १९७१ ई., मूल-गाम-मेंहथ, भाया-झंझारपुर,जिला-मधुबनी।
लेखन: कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्ड- खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना, खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि), खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर), खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ), खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण), खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन ), खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नामसँ।
मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोशक ऑन लाइन आ प्रिंट संस्करणक सम्मिलित रूपेँ निर्माण। पञ्जी-प्रबन्धक सम्मिलित रूपेँ लेखन-शोध-सम्पादन आ मिथिलाक्षरसँ देवनागरी लिप्यंतरण "जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी. सँ २००९ ए.डी.)-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध" नामसँ।
मैथिलीसँ अंग्रेजीमे कएक टा कथा-कविताक अनुवाद आ कन्नड़, तेलुगु, गुजराती आ ओड़ियासँ अंग्रेजीक माध्यमसँ कएक टा कथा-कविताक मैथिलीमे अनुवाद।
उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) क अनुवाद १.अंग्रेजी ( द कॉमेट नामसँ), २.कोंकणी, ३.कन्नड़ आ ४.संस्कृतमे कएल गेल अछि; आ एहि उपन्यासक अनुवाद ५.मराठी आ ६.तुलुमे कएल जा रहल अछि, संगहि एहि उपन्यास सहस्रबाढ़निक मूल मैथिलीक ब्रेल संस्करण (मैथिलीक पहिल ब्रेल पुस्तक) सेहो उपलब्ध अछि।
कथा-संग्रह(गल्प-गुच्छ) क अनुवाद संस्कृतमे।
अंतर्जाल लेल तिरहुता आ कैथी यूनीकोडक विकासमे योगदान आ मैथिलीभाषामे अंतर्जाल आ संगणकक शब्दावलीक विकास।
शीघ्र प्रकाश्य रचना सभ:-१.कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सात खण्डक बाद गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक-२ खण्ड-८ (प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना-२) क संग, २.सहस्रबाढ़नि क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर उपन्यास स॒हस्र॑ शीर्षा॒ , ३.सहस्राब्दीक चौपड़पर क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर पद्य-संग्रह स॑हस्रजित् ,४.गल्प गुच्छ क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर कथा-गल्प संग्रह शब्दशास्त्रम् ,५.संकर्षण क बाद गजेन्द्र ठाकुरक दोसर नाटक उल्कामुख ,६. त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन क बाद गजेन्द्र ठाकुरक तेसर गीत-प्रबन्ध नाराशं॒सी , ७. नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक तीनटा नाटक- जलोदीप, ८.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक पद्य संग्रह- बाङक बङौरा , ९.नेना-भुटका आ किशोरक लेल गजेन्द्र ठाकुरक खिस्सा-पिहानी संग्रह- अक्षरमुष्टिका ।
सम्पादन: अन्तर्जालपर विदेह ई-पत्रिका “विदेह” ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/ क सम्पादक जे आब प्रिंटमे (देवनागरी आ तिरहुतामे) सेहो मैथिली साहित्य आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि- विदेह: सदेह:१:२:३:४ (देवनागरी आ तिरहुता)।
गद्य साहित्य मध्य लघुकथाक स्थान आ लघुकथाक समीक्षाशास्त्र
गद्यक विभिन्न विधा जेना प्रबन्ध, निबन्ध, समालोचना, कथा-गल्प, उपन्यास, पत्रात्मक साहित्य, यात्रा-संस्मरण, रिपोर्ताज आदिक मध्य कथा-गल्प, आख्यान आ उपन्यास अनुभव मिश्रित कल्पनापर विशेष रूपसँ आधारित अछि। जकरा हम सभ खिस्सा-पिहानी कहै छिऐ ताहिसँ ई सभ लग अछि। मध्य कथा-गल्प, आख्यान आ उपन्यास आ किछु दूर धरि नाटक आ एकांकी मनोरंजनक लेल सुनल-सुनाओल-पढ़ल जाइत अछि वा मंचित कएल जाइत अछि। ई उद्देश्यपूर्ण भऽ सकैत अछि वा एहिमे निरुद्देश्यता-एबसडिटी सेहो रहि सकै छै- कारण जिनगीक भागदौड़मे निरुद्देश्यपूर्ण साहित्य सेहो मनोरंजन प्रदान करैत अछि।
लघुकथा कहने एकटा एहेन विधा बनि सोझाँ आएल अछि जे पहिने कथा थिक फेर लघुकथा। लघुकथा, कथा, दीर्घ कथा, उपन्यास, नाटक आ एकांकी एकटा अनुभव मिश्रित कल्पनापर आधारित अछि। अंग्रेजीमे सेहो लम्बाइक आधारपर शॉर्ट-स्टोरी/ नोवेलेट/ नोवेला/ नोवेल क विभाजन कएल जाइत अछि जे क्रमसँ लघुकथा, कथा, दीर्घ कथा आ उपन्यास लेल प्रयुक्त कएल जा सकैत अछि। मैथिलीमे सभ विधामे शब्द संख्याक घटोत्तरी-बढ़ोत्तरी अंग्रेजी वा दोसर यूरोपियन भाषासँ बेशी होइत अछि, ओना अंग्रेजी वा दोसर यूरोपियन भाषामे सेहो सभ विधामे लेखकक व्यक्तिगत रुचि आ कथ्यक आवश्यकताक अनुसार घटोत्तरी-बढ़ोत्तरी होइते अछि। तहिना वन-एक्ट प्ले भेल एकांकी आ प्ले भेल नाटक।
से लघुकथा कथा तँ छीहे।
अहाँक अनुभवमिश्रित कल्पना अहाँसँ किछु कहबा लेल कहैत अछि। आ ई कथ्य हास्य-कणिका वा अहास्य-कणिका बनि सकैत अछि। लोक अहाँकेँ कहि सकै छथि जे अहाँकेँ गप्प बड्ड फुराइए, अहाँ हाजिर जवाब छी। आ तकर बाद अहाँक हिम्मत बढ़ैत अछि आ अहाँ ओहि कथ्यकेँ शिल्पक साँचामे ढलैय्या कऽ लघुकथा बना दै छी।
हास्य-कणिकाक संग सभसँ मुख्य अवरोध छै जे अहाँक सुनाओल हास्य-कणिका घूमि-फिरि अहीं लग आबि जाएत, माने मौलिकता कतौ हेरा जाएत। हास्य-कणिका सेहो एक-दू पाँतीसँ आध-एक पृष्ठ धरिक होइत अछि। कथा-उपन्यासमे एकर समावेश कएल जा सकैत अछि मुदा लघुकथा एकर पलखति नै दैत अछि। मुदा कथा-उपन्यासमे जेना कएल जाइत अछि जे एकरा कोनो पात्रक मुँहसँ कहाबी वा कोनो आन प्रसंगसँ जोड़ि सार्थक बनाबी तँ से अहाँ लघुकथामे सेहो कऽ सकै छी। गल्प आख्यानसँ होइत अछि आ नैतिक शिक्षा, प्रेरक कथा आ मिस्टिक टेल्स सेहो लघुसँ दीर्घ रूप धरि होइत अछि। एकर लघु रूप लघुकथा नै भेल सेहो नै।
लघुकथामे जे त्वरित विचारक उपस्थापन देखल जाइत अछि से कथा-गल्प आ उपन्यासमे सेहो रहैत अछि। मुदा जे त्वरित विचारक उपस्थापन नै रहलासँ ओ लघुकथा नै रहत सेहो गप नै। उनटे जखन लघुकथाक समीक्षा करए लागब तखन समीक्षकक ध्यान स्थायी तत्व दिस होएबाक चाही नै कि त्वरित उपस्थापन दिस। त्वरित विचारक उपस्थापनक प्रति बेसी झुकाव ओकरा अहास्य-कणिका बना दैत अछि, ओ लघुकथा तँ रहत मुदा श्रेष्ठ लघुकथा नै रहत। लघुकथा झमारि देत तँ ओ लघुकथा वा श्रेष्ठ लघुकथा भेल आ जे ओ झमारि नै सकत तँ ओ लघुकथा भेबे नै कएल- ई गप नै छै। कोनो त्वरित विचार आएल, ओकरा कागचपर लिखि लेलहुँ, एहि डरसँ जे कतौ बिसरा ने जाए- एतऽ धरि तँ ठीक अछि। मुदा हरबड़ा कऽ एकरा लघुकथा बना देबासँ पहिने विचारकेँ सीझऽ दिऔ। ओहिमे की मिज्झर करब तँ ओहिमे स्थायी तत्व आबि सकत ताहिपर मनन करू। ओना बिना सिझने जे झमारैबला लघुकथा लिखि देलहुँ तँ ओ लघुकथा तँ भेल मुदा श्रेष्ठ लघुकथा ओ सेहो भऽ सकत तकर सम्भावना कम। ई ओहिना अछि जेना कोनो झमकौआ गीत अपन प्रभाव बेसी दिन रखबे करत से निश्चित नै अछि तहिना कथाक ई स्वरूप ट्वेंटी-ट्वेंटी सन नै भऽ जाए ताहिपर विचार करए पड़त।
उपन्यास तँ एक उखड़ाहामे नै पढ़ल जा सकैए मुदा कथा एक उखड़ाहामे पढ़ल जा सकैत अछि। एक उखड़ाहामे अहाँ कएकटा लघुकथा पढ़ि सकै छी। उपन्यासमे लेखक वातावरणक, प्लॉटक, व्यक्तिक जाहि विशदतासँ वर्णन कऽ सकैए से कथामे सम्भव नै। ओ एकटा पक्षपर/ जौँ कही तँ एकटा घटनापर केन्द्रित रहैए आ एहि क्रममे वातावरण आ व्यक्तिक जीवनक एकटा मोटामोटी विवरणात्मक स्केच मात्र खेंचि पबैए। लघुकथामे वातावरण आ व्यक्तिक जीवनक एकटा मोटामोटी विवरणात्मक स्केच सेहो नै खेंचि सकै छी, से पलखति लघुकथा अहाँकेँ नै देत, हँ तखन लघुकथा सेहो एकटा पक्षपर वा एकटा घटनापर केन्द्रित रहैए। आ ई पक्ष वा घटना तेहन रहत जे लेखककेँ ललचबइत रहत जे एकरा स्वतंत्र रूपसँ लिखू, एकरा कथा वा उपन्यासक भाग बना कऽ एकर स्वतंत्रता नष्ट नै करू।
तखन उपन्यासक प्लॉटसँ कथाक प्लॉट सरल होएत आ लघुकथाक लेल तँ एकर आवश्यकते नै अछि, पक्ष वा घटनाक वर्णन शिल्पक साँचामे ढलैय्या केलहुँ आ पूर्ण लघुकथा बनि कऽ तैयार।
लघुकथाक समीक्षाशास्त्र
लघुकथाक समीक्षा कोना करी? दू-पाँतीसँ डेढ़-दू पन्ना धरिक (पाँच पन्ना धरि सेहो) अनुभवमिश्रित काल्पनिक खिस्सा लघुकथा कहएबाक अधिकारी अछि। लघु आकारक कथामे कोनो कथा पूर्ण रूपसँ कहल गेल तँ फेर ओ लघुकथा नै कहाओत। हँ जे ओहिमे एकटा घटनाक शृंखलाक वर्णन एकटा कथ्य कहक लेल आवश्यक अछि तँ शृंखला पूर्ण होएबाक चाही। एहि शृंखलाक कड़ी कनेक नमगर भऽ सकैए। त्वरित उपस्थापनाक हरबड़ी एहि शृंखलाकेँ कमजोर कऽ सकैए। सदिखन उल्टा धार बहाबी आ त्वरित उपस्थापना आनी- ई पद्धति किछु गणमान्य लघुकथा लेखकक फार्मूला बनि गेल अछि। एकाध-दूटा लघुकथामे ई सिनेमाक “आइटम गीत” सन सोहनगर लगैत अछि मुदा फेर समीक्षकक दृष्टि एकरा पकड़ि लैत अछि, कारण ई प्रो-एक्टिव होएबाक साती रिएक्टिव बनि जाइत अछि। स्थायी प्रभाव एहिसँ नै आबि पबै छै, लघुकथा लेखकक प्रतिभाक कमी एहिमे प्रतीत होइ छै। लघुकथा वएह श्रेष्ठ होएत जे एकटा घटनाक शृंखलाक निर्माण करत आ अपन निर्णय सुनेबाक लेल पाठककेँ छोड़ि देत। फरिछेबाक पलखति लघुकथाकेँ नै छै, मुदा तकर माने ई नै जे दू-चारि पाँतीमे बात कएल जाए। मुदा लेखक जौँ दू-चारि पाँतीक गपकेँ लघुकथा कहै छथि तँ समीक्षक ओकरा लघुकथा मानबा लेल बाध्य छथि मुदा ओ श्रेष्ठ लघुकथा होएत तकर सम्भावना घटि जाइत अछि।
लघुकथाक वर्ण्य विषय मात्र चलैत-फिरैत घटना नै अछि। लघुकथा-लेखककेँ बच्चाक लेल, नैतिक शिक्षाक लेल आ धार्मिक विषयपर सेहो लघुकथा लिखबाक चाही। ट्रेनमे बसमे जाइ छी, घरमे दलानपर घूरतर गप करै छी आ तकर अनुभव मात्र लघुकथामे आबि रहल अछि। सामाजिक आ आर्थिक समस्या सेहो एकर स्थायी वर्ण्य विषय भऽ सकैत अछि। राजनैतिक प्रश्न आ प्राकृतिक आपदाकेँ वर्ण्य विषय बनाओल जा सकैत अछि। लघुकथा समीक्षक समीक्षा करबा काल पौराणिक रूपमे शिव पुराणमे सभसँ पैघ शिव आ गरुड़ पुराणमे सभसँ पैघ गरुड़ एहि तरहक समीक्षा नै करथि। माने ई नै होमए लागए जे, जे अछि से लघुकथा। जेना उपन्यासमे लेखककेँ अपन पूर्ण प्रतिभा देखेबाक लेल पलखतिक अभाव नै रहै छै से कथामे नै रहै छै आ लघुकथामे तँ से आरो कम रहै छै। मुदा विषयक विस्तार कऽ पाठकक माँगकेँ पूर्ण कएल जा सकैत अछि। कथोपकथनक गुंजाइश कम राखि वा कोनो उपस्थापनासँ पहिने राखि लघुकथा आ कथाकेँ सशक्त बनाओल जा सकैत अछि, अन्यथा ओ एकांकी वा नाटक बनि जाएत। लघुकथाक समावेश कथा-उपन्यासमे भऽ सकैए मुदा लघुकथामे हास्य-कणिकाक समावेश नै हुअए तखने ओ समीक्षाक दृष्टिसँ होएत, कारण एक तँ कम जगह, ताहिमे जे कथोपकथन आ हास्य कणिका घोसियेलहुँ तखन ओकर प्रभाव दीर्घजीवी नै होएत।
नीक लघुकथा त्वरित उपस्थापनक आधारपर नै वरन ओहिमे तीक्ष्णतासँ उपस्थापित मानव-मूल्य, सामाजिक समरसताक तत्व आ समानता-न्याय आधारित सामाजिक मान्यताक सिद्धान्त आधार बनत। समाज ओहि आधारपर कोना आगू बढ़ए से संदेश तीक्ष्णतासँ आबैए वा नै से देखए पड़त। पाठकक मनसि बन्धनसँ मुक्त होइत अछि वा नै, ओहिमे दोसराक नेतृत्व करबाक क्षमता आ आत्मबल अबै छै वा नै, ओकर चारित्रिक निर्माणक आ श्रमक प्रति सम्मानक प्रति सन्देह दूर होइ छै वा नै- ई सभटा तथ्य लघुकथाक मानदंड बनत। कात-करोटमे रहनिहार तेहन काज कऽ जाथि जे सुविधासम्पन्न बुते नै सम्भव अछि, आ से कात-करोटमे रहनिहारक आत्मबल बढ़लेसँ होएत। हीन भावनासँ ग्रस्त साहित्य कल्याणकारी कोना भऽ सकत? बदलैत सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक समीकरणक परिप्रेक्ष्यमे एकभग्गू प्रस्तुतिक रेखांकन, कथाकार-कविक व्यक्तिगत जिनगीक अदृढ़ता, चाहे ओ वादक प्रति होअए वा जाति-धर्मक प्रति, साहित्यमे देखार भइए जाइत छैक, शोषक द्वारा शोषितपर कएल उपकार वा अपराधबोधक अन्तर्गत लिखल जाएबला कथामे जे पैघत्वक (जे हीन भावनाक एकटा रूप अछि) भावना होइ छै, तकरा चिन्हित कएल जाए। मेडियोक्रिटी चिन्हित करू- तकिया कलाम आ चालू ब्रेकिंग न्यूज- आधुनिकताक नामपर। युगक प्रमेयकेँ माटि देबाक विचार एहिमे नहि भेटत, आधुनिकीकरण, लोकतंत्रीकरण, राष्ट्र-राज्य संकल्पक कार्यान्वयन, प्रशासनिक-वैधानिक विकास, जन सहभागितामे वृद्धि, स्थायित्व आ क्रमबद्ध परिवर्तनक क्षमता, सत्ताक गतिशीलता, उद्योगीकरण, स्वतंत्रता प्राप्तिक बाद नवीन राज्य राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्या-परिवर्तन आ एकीकरणक प्रक्रिया, कखनो काल परस्पर विरोधी। सामुदायिकताक विकास, मनोवैज्ञानिक आ शैक्षिक प्रक्रिया। आदिवासी- सतार, गिदरमारा आदि विविधता आ विकासक स्तरकेँ प्रतिबिम्बित करैत अछि। प्रकृतिसँ लग, प्रकृति-पूजा, सरलता, निश्छलता, कृतज्ञता। व्यक्तिक प्रतिष्ठा स्थान-जाति आधारित। किछु प्रतिष्ठा आ विशेषाधिकार प्राप्त जाति। किछुकेँ तिरस्कार आ हुनकर जीवन कठिन। महिला आ बाल-विकास- महिलाकेँ अधिकार, शिक्षा-प्रणालीकेँ सक्रिय करब, पाठ्यक्रममे महिला अध्ययन, महिलाक व्यावसायिक आ तकनीकी शिक्षामे प्रतिशत बढ़ाओल जाए।स्त्री-स्वातंत्र्यवाद, महिला आन्दोलन।धर्मनिरपेक्ष- राजनैतिक संस्था संपूर्ण समुदायक आर्थिक आ सामाजिक हितपर आधारित- धर्म-नस्ल-पंथ भेद रहित। विकास आर्थिकसँ पहिने जे शैक्षिक हुअए तँ जनसामान्य ओहि विकासमे साझी भऽ सकैए। एहिसँ सर्जन क्षमता बढ़ैत अछि आ लोकमे उत्तरदायित्वक बोध होइत अछि। विज्ञान आ प्रौद्योगिकी विकसित आ अविकसित राष्ट्रक बीचक अंतरक कारण मानवीय समस्या, बीमारी, अज्ञानता, असुरक्षाक समाधान- आकांक्षा, आशा सुविधाक असीमित विस्तार आ आधार। विधि-व्यवस्थाक निर्धन आ पिछड़ल वर्गकेँ न्याय दिअएबामे प्रयोग होएबाक चाही। नागरिक स्वतंत्रता- मानवक लोकतांत्रिक अधिकार, मानवक स्वतंत्र चिन्तन क्षमतापूर्ण समाजक सृष्टि, प्रतिबन्ध आ दबाबसँ मुक्ति। प्रेस- शासक आ शासितक ई कड़ी- सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक जीवनमे भूमिका, मुदा आब प्रभावशाली विज्ञापन एजेंसी जनमतकेँ प्रभावित कएनिहार। नव संस्थाक निर्माण वा वर्तमानमे सुधार, सामन्तवादी, जनजातीय, जातीय आ पंथगत निष्ठाक विरुद्ध, लोकतंत्र, उदारवाद, गणतंत्रवाद, संविधानवाद, समाजवाद, समतावाद, सांवैधानिक अधिकारक अस्तित्व, समएबद्ध जनप्रिय चुनाव, जन-संप्रभुता, संघीय शक्ति विभाजन, जनमतक महत्व, लोक-प्रशासनिक प्रक्रिया-अभिक्रम, दलीय हित-समूहीकरण, सर्वोच्च व्यवस्थापिका, उत्तरदायी कार्यपालिका आ स्वतंत्र न्यायपालिका। जल थल वायु आ आकाश- भौतिक रासायनिक जैविक गुणमे हानिकारक परिवर्तन कए प्रदूषण, प्रकृति असंतुलन। कला- एहि लेल कोनो सैद्धांतिक प्रयोजन होएबाक चाही ? जगतक सौन्दर्यीकृत प्रस्तुति अछि कला। सौंदर्यक कला उपयोगिताक संग। कलापूर्णताक कलाक जीवन दर्शन- संप्रदाय संग। भावनात्मक वातावरण- सत्यक आ कलाक कार्यक सौंदर्यीकृत अवलोकन, सुन्दर-मूर्त, अमूर्त। मानसिक क्रिया- मनुष्य़ सोचैबला प्राणी, मानसिक आ भौतिक दुनूक अनुभूति करएबला प्राणी। विरोधाभास वा छद्म आभास- अस्पष्टता। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि। फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि। नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि। उत्तर आधुनिक, अस्तित्ववादी, मानवतावादी, ई सभ विचारधारा दर्शनशास्त्रक विचारधारा थिक। पहिने दर्शनमे विज्ञान, इतिहास, समाज-राजनीति, अर्थशास्त्र, कला-विज्ञान आ भाषा सम्मिलित रहैत छल। मुदा जेना-जेना विज्ञान आ कलाक शाखा सभ विशिष्टता प्राप्त करैत गेल, विशेष कए विज्ञान, तँ दर्शनमे गणित आ विज्ञान मैथेमेटिकल लॉजिक धरि सीमित रहि गेल। दार्शनिक आगमन आ निगमनक अध्ययन प्रणाली, विश्लेषणात्मक प्रणाली दिस बढ़ल। मार्क्स जे दुनिया भरिक गरीबक लेल एकटा दैवीय हस्तक्षेपक समान छलाह, द्वन्दात्मक प्रणालीकेँ अपन व्याख्याक आधार बनओलन्हि। आइ-काल्हिक “डिसकसन” वा द्वन्द जाहिमे पक्ष-विपक्ष, दुनू सम्मिलित अछि, दर्शनक (विशेष कए षडदर्शनक- माधवाचार्यक सर्वदर्शन संग्रह-द्रष्टव्य) खण्डन-मण्डन प्रणालीमे पहिनहिसँ विद्यमान छल। से इतिहासक अन्तक घोषणा कएनिहार फ्रांसिस फुकियामा -जे कम्युनिस्ट शासनक समाप्तिपर ई घोषणा कएने छलाह- किछु दिन पहिने एहिसँ पलटि गेलाह। उत्तर-आधुनिकतावाद सेहो अपन प्रारम्भिक उत्साहक बाद ठमकि गेल अछि। अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद, रोमेन्टिसिज्म, समाजशास्त्रीय विश्लेषण ई सभ संश्लेषणात्मक समीक्षा प्रणालीमे सम्मिलित भए अपन अस्तित्व बचेने अछि। साइको-एनेलिसिस वैज्ञानिकतापर आधारित रहबाक कारण द्वन्दात्मक प्रणाली जेकाँ अपन अस्तित्व बचेने रहत। कोनो कथाक आधार मनोविज्ञान सेहो होइत अछि। कथाक उद्देश्य समाजक आवश्यकताक अनुसार आ कथा यात्रामे परिवर्तन समाजमे भेल आ होइत परिवर्तनक अनुरूपे होएबाक चाही। मुदा संगमे ओहि समाजक संस्कृतिसँ ई कथा स्वयमेव नियन्त्रित होइत अछि। आ एहिमे ओहि समाजक ऐतिहासिक अस्तित्व सोझाँ अबैत अछि। जे हम वैदिक आख्यानक गप करी तँ ओ राष्ट्रक संग प्रेमकेँ सोझाँ अनैत अछि। आ समाजक संग मिलि कए रहनाइ सिखबैत अछि। जातक कथा लोक-भाषाक प्रसारक संग बौद्ध-धर्म प्रसारक इच्छा सेहो रखैत अछि। मुस्लिम जगतक कथा जेना रूमीक “मसनवी” फारसी साहित्यक विशिष्ट ग्रन्थ अछि जे ज्ञानक महत्व आ राज्यक उन्नतिक शिक्षा दैत अछि। आजुक कथा एहि सभ वस्तुकेँ समेटैत अछि आ एकटा प्रबुद्ध आ मानवीय समाजक निर्माणक दिस आगाँ बढ़ैत अछि। फ्रांसिस फुकियामा घोषित कएलन्हि जे विचारधाराक आपसी झगड़ासँ सृजित इतिहासक ई समाप्ति अछि आ आब मानवक हितक विचारधारा मात्र आगाँ बढ़त। मुदा किछु दिन पहिनहि ओ कहलन्हि जे समाजक भीतर आ राष्ट्रीयताक मध्य एखनो बहुत रास भिन्न विचारधारा बाँचल अछि। उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टिकोण-विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका , सत्य-असत्य, सभक अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन , आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आ नीक-खराबक भावनाक रहि-रहि खतम होएब, सत्य कखन असत्य भए जएत तकर कोनो ठेकान नहि, सतही चिन्तन, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि , जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण , कारण, नियन्त्रण आ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास, गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास, भूमंडलीकरणक कारणसँ मुख्यधारसँ अलग भेल कतेक समुदायक आ नारीक प्रश्नकेँ उत्तर आधुनिकता सोझाँ अनलक। विचारधारा आ सार्वभौमिक लक्ष्यक विरोध कएलक मुदा कोनो उत्तर नै दऽ सकल। तहिना उत्तर आधुनिकतावादी विचारक जैक्स देरीदा भाषाकेँ विखण्डित कए ई सिद्ध कएलन्हि जे विखण्डित भाग ढेर रास विभिन्न आधारपर आश्रित अछि आ बिना ओकरा बुझने भाषाक अर्थ हम नहि लगा सकैत छी। आ संवादक पुनर्स्थापना लेल कथाकारमे विश्वास होएबाक चाही- तर्क-परक विश्वास आ अनुभवपरक विश्वास । प्रत्यक्षवादक विश्लेषणात्मक दर्शन वस्तुक नहि, भाषिक कथन आ अवधारणाक विश्लेषण करैत अछि । विश्लेषणात्मक अथवा तार्किक प्रत्यक्षवाद आ अस्तित्ववादक जन्म विज्ञानक प्रति प्रतिक्रियाक रूपमे भेल। एहिसँ विज्ञानक द्विअर्थी विचारकेँ स्पष्ट कएल गेल। प्रघटनाशास्त्रमे चेतनाक प्रदत्तक प्रदत्त रूपमे अध्ययन होइत अछि। अनुभूति विशिष्ट मानसिक क्रियाक तथ्यक निरीक्षण अछि। वस्तुकेँ निरपेक्ष आ विशुद्ध रूपमे देखबाक ई माध्यम अछि। अस्तित्ववादमे मनुष्य-अहि मात्र मनुष्य अछि। ओ जे किछु निर्माण करैत अछि ओहिसँ पृथक ओ किछु नहि अछि, स्वतंत्र होएबा लेल अभिशप्त अछि (सार्त्र)। हेगेलक डायलेक्टिक्स द्वारा विश्लेषण आ संश्लेषणक अंतहीन अंतस्संबंध द्वारा प्रक्रियाक गुण निर्णय आ अस्तित्व निर्णय करबापर जोर देलन्हि। मूलतत्व जतेक गहींर होएत ओतेक स्वरूपसँ दूर रहत आ वास्तविकतासँ लग। क्वान्टम सिद्धान्त आ अनसरटेन्टी प्रिन्सिपल सेहो आधुनिक चिन्तनकेँ प्रभावित कएने अछि। देखाइ पड़एबला वास्तविकता सँ दूर भीतरक आ बाहरक प्रक्रिया सभ शक्ति-ऊर्जाक छोट तत्वक आदान-प्रदानसँ सम्भव होइत अछि। अनिश्चितताक सिद्धान्त द्वारा स्थिति आ स्वरूप, अन्दाजसँ निश्चित करए पड़ैत अछि। तीनसँ बेशी डाइमेन्सनक विश्वक परिकल्पना आ स्टीफन हॉकिन्सक “अ ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” सोझे-सोझी भगवानक अस्तित्वकेँ खतम कए रहल अछि कारण एहिसँ भगवानक मृत्युक अवधारणा सेहो सोझाँ आएल अछि।जेना वर्चुअल रिअलिटी वास्तविकता केँ कृत्रिम रूपेँ सोझाँ आनि चेतनाकेँ ओकरा संग एकाकार करैत अछि तहिना बिना तीनसँ बेशी बीमक परिकल्पनाक हम प्रकाशक गतिसँ जे सिन्धुघाटी सभ्यतासँ चली तँ तइयो ब्रह्माण्डक पार आइ धरि नहि पहुँचि सकब। लघुकथाक समक्ष ई सभ वैज्ञानिक आ दार्शनिक तथ्य चुनौतीक रूपमे आएल अछि। होलिस्टिक आकि सम्पूर्णताक समन्वय करए पड़त ! ई दर्शन दार्शनिक सँ वास्तविक तखने बनत।पोस्टस्ट्रक्चरल मेथोडोलोजी भाषाक अर्थ, शब्द, तकर अर्थ, व्याकरणक निअम सँ नहि वरन् अर्थ निर्माण प्रक्रियासँ लगबैत अछि। सभ तरहक व्यक्ति, समूह लेल ई विभिन्न अर्थ धारण करैत अछि। भाषा आ विश्वमे कोनो अन्तिम सम्बन्ध नहि होइत अछि। शब्द आ ओकर पाठ केर अन्तिम अर्थ वा अपन विशिष्ट अर्थ नहि होइत अछि।आधुनिक आ उत्तर आधुनिक तर्क, वास्तविकता, सम्वाद आ विचारक आदान-प्रदानसँ आधुनिकताक जन्म भेल । मुदा फेर नव-वामपंथी आन्दोलन फ्रांसमे आएल आ सर्वनाशवाद आ अराजकतावाद आन्दोलन सन विचारधारा सेहो आएल। ई सभ आधुनिक विचार-प्रक्रिया प्रणाली ओकर आस्था-अवधारणासँ बहार भेल अविश्वासपर आधारित छल। पाठमे नुकाएल अर्थक स्थान-काल संदर्भक परिप्रेक्ष्यमे व्याख्या शुरू भेल आ भाषाकेँ खेलक माध्यम बनाओल गेल- लंगुएज गेम। आ एहि सभ सत्ताक आ वैधता आ ओकर स्तरीकरणक आलोचनाक रूपमे आएल पोस्टमॉडर्निज्म।कंप्युटर आ सूचना क्रान्ति जाहिमे कोनो तंत्रांशक निर्माता ओकर निर्माण कए ओकरा विश्वव्यापी अन्तर्जालपर राखि दैत छथि आ ओ तंत्रांश अपन निर्मातासँ स्वतंत्र अपन काज करैत रहैत अछि, किछु ओहनो कार्य जे एकर निर्माता ओकरा लेल निर्मित नहि कएने छथि। आ किछु हस्तक्षेप-तंत्रांश जेना वायरस, एकरा मार्गसँ हटाबैत अछि, विध्वंसक बनबैत अछि तँ एहि वायरसक एंटी वायरस सेहो एकटा तंत्रांश अछि, जे ओकरा ठीक करैत अछि आ जे ओकरो सँ ठीक नहि होइत अछि तखन कम्प्युटरक बैकप लए ओकरा फॉर्मेट कए देल जाइत अछि- क्लीन स्लेट !पूँजीवादक जनम भेल औद्योगिक क्रान्तिसँ आ आब पोस्ट इन्डस्ट्रियल समाजमे उत्पादनक बदला सूचना आ संचारक महत्व बढ़ि गेल अछि, संगणकक भूमिका समाजमे बढ़ि गेल अछि। मोबाइल, क्रेडिट-कार्ड आ सभ एहन वस्तु चिप्स आधारित अछि। डी कन्सट्रक्शन आ री कन्सट्रक्शन विचार रचना प्रक्रियाक पुनर्गठन केँ देखबैत अछि जे उत्तर औद्योगिक कालमे चेतनाक निर्माण नव रूपमे भऽ रहल अछि। इतिहास तँ नहि मुदा परम्परागत इतिहासक अन्त भऽ गेल अछि। राज्य, वर्ग, राष्ट्र, दल, समाज, परिवार, नैतिकता, विवाह सभ फेरसँ परिभाषित कएल जा रहल अछि। मारते रास परिवर्तनक परिणामसँ, विखंडित भए सन्दर्भहीन भऽ गेल अछि कतेक संस्था।
लघुकथा एक पक्ष वा घटनाक वर्णन अछि आ ई आवश्यक नै जे ओकरा एक्के पृष्ठमे लिखल जाए। अहाँ ओहि घटनाकेँ ३-४ पृष्ठमे सेहो लिखि सकै छी आ ओ लघुकथा रहबे करत। जेम्स जॉयसक “डब्लाइनर” लघु-कथा संग्रहक सभ कथा एकटा घटनासँ अनचोके कोनो वस्तुक त्वरित ज्ञान दर्शबैत अछि। १५ टा शॉर्ट-स्टोरीक संग्रह जेम्स जॉयसक “डब्लाइनर” २०० पृष्ठक अछि आ मैथिली लघुकथाक सभ विशेषतासँ युक्त अछि। तहिना खलील-जिब्रान आ एंटन चेखवक ढेर रास शॉर्ट-स्टोरी नमगर रहितो लघुकथा अछि। अंग्रेजीमे वा यूरोपियन साहित्यमे शॉर्ट-स्टोरी आ स्टोरीक प्रयोग कखनो पर्यायवाचीक रूपमे होइत अछि। नॉवेल जकरा बांग्ला आ मैथिलीमे उपन्यास आ मराठीमे कादम्बरी कहै छिऐ-क विस्तार बेशी होइ छै। मैथिलीमे ५०-६० पृष्ठसँ उपन्यास शुरू भऽ जाइत छै जे अंग्रेजीक शॉर्ट-स्टोरी / नोवेलेट/ नोवेला/ एहि सभक ऊपरी सीमाक्षेत्रमे अबैत अछि। मुदा मैथिलीक स्थिति अंग्रेजीसँ फराक छै। एहिमे बालकथा कैक राति धरि चलैत अछि तँ पैघ लोकक कथा मिनटमे सेहो खतम भऽ जाइत अछि। मैथिलीक सन्दर्भमे ई तथ्य आब सोझाँ आबि गेल अछि जे लघुकथाक सीमा एक पृष्ठ, कथाक तीन-चारि पृष्ठ, दीर्घकथाक १५-२० पृष्ठ आ उपन्यासक ६०-५०० पृष्ठ अछि। एहिमे लघुकथाक पृष्ठ सीमा १-४ पृष्ठ धरि करबाक बेगरता हम बुझै छी।
पंकज कुमार प्रियांशु- जीवनक अनमोल क्षण, जगदीश प्रसाद मंडल दीर्घ कथा ‘मइटूगर’क शेषांश
पंकज कुमार प्रियांशु (पंकजजी साहित्य अकादमी द्वारा कॉमनवेल्थ गेम्सक ऊपर कएल जा रहल सेमीनारमे प्रतिभागी छथि।)
पिता- श्री विद्याधर झा, जन्म ०३.०२.१९८५
जीवनक अनमोल क्षण
जखन प्लस टू सँ इण्टर कएलाक बाद महाविद्यालयमे प्रवेश कएलहुँ तँ बहुत प्रयास कएलाक बाद दू गोट संगी बनल, ओहो समाज सेवा कार्यसँ जुड़लाक बाद। सुनबामे अबैत छल जे कॉलेज स्टूडेन्टकेँ कए गोट मित्र रहैत अछि- पुरुष मित्र आ महिला मित्र दुनू। पुरुष मित्र तँबूझएमे आएल मुदा महिला मित्र एहिपर हमरा कनी आपत्ति छल, किएक तँ हमरा बुझने पुरुष ओ महिला मात्र मित्रेटा बनि नै रहि सकैत अछि। महिला मित्र नै बनए एकरा प्रति सचेष्ट रहैत छलहुँ। यदि कोनो लड़कीसँ आमने-सामने गप करबाक स्थिति उत्पन्न भऽ जाइत छल तँ परेशान भऽ जाइत छलहुँ। एहि बातपर हम सदिखन दृढ़ निश्चय रही जे यदि कहियो कोनो लड़कीसँ मित्रता भेल तँ ओकरा अपन जीवन-संगिनी बनबाक प्रस्ताव अवश्य देबै। मुदा तकरा लेल एकटा एहन कियो होएबाक चाही जकर कल्पना हम कएने छी। आ हमर कल्पनामे जकर प्रतिबिम्ब छल तकरामे एकमात्र विशेषताक आशा ई कएने रही जे ओ हमरा बूझि सकए। मुदा आजुक समए एहन साथी भेटनाइ, ओहूमे हमरा एहन सामान्य परिवारक लड़काकेँ असम्भव बुझना जाइत छल। तेँ एहि दिशामे हमर कोनो विशेष प्रयास कहियो नै रहल।
समए बितैत रहल आ महाविद्यालयमे नामांकन लेलहुँ। हमर मनकेँ जकर इन्तजार छल से शाइत ओतहि आसपास हमर प्रतीक्षामे छल, ई बात बड्ड बादमे बूझएमे आएल। एक दिन कोनो विशेष कार्यवश स्टेशन जएबाक मौका भेटल। किछु अतिथि लोकनि आएल रहथि, हुनका लोकनिकेँ ट्रेनपर बैसेबाक लेल। जाहि बॉगीमे हिनका लोकनिक आरक्षण छल ओहिमे नीचाँबला दूटा बर्थ खाली रहैक। ट्रेन खुजबामे एखन किछु समए छल। तेँ हम ओहि खाली बर्थपर बैसि रहलहुँ। किछु समएक बाद ओहि बॉगीमे दूटा लड़कीकेँ चढ़ैत देखलिऐक। ओहिमे एकटा लड़की चिन्हार सन लागल। भगवानसँ प्रार्थना कएलहुँ जे कमसँ कम किछु क्षणक लेल ओ हमरा लग आबि बैसए। हमर मन तत्क्षण पूरा भऽ गेल। जखन करीबसँ हमर नजरि ओकरासँ मिलल तँ इच्छा भेल जे सभ मर्यादा तोड़ि एकटक ओकरे देखैत रहियैक। मुदा से नै भऽ सकैत छल। हमरा लागल ई तँ ओएह छथि जिनका हमर आत्मा एकीकार करए लेल व्याकुल छल। किछु देर बाद ट्रेन खुजल आ एक खुबसूरत पल हमरासँ दूर होइत गेल।
ओ हमरासँ दूर तँ चलि गेली मुदा हमर मन हमरा संगे नै छल।किछु दिन बाद विश्वविद्यालयक कोनो कार्यक्रममे पुनः भेंट भेल। तखन बूझएमे आएल जे ओ हमर विभागक बगलबला विभागक छात्रा छलीह। आब सप्ताहमे एक-दू दिन हुनकासँ भेंट भऽ जाइत छल। कोनो बात करबाक साहस तँ नै होइत छल मुदा जाधरि ओ सोझाँमे रहैत छलीह दुनियाँ बिसरबाक मन होइत छल। एक साल बाद ओकर सत्र समाप्त भऽ गेलै आ ओ अनचोक्के एक दिन शहरसँ दूर चलि गेली। बहुत किछु कहबाक रहए मुदा आब सभ मनेमे रहि गेल। तखन मनकेँ सांत्वना देबाक लेल तरह-तरहक बात अपने-आपसँ करए लगलहुँ। सोचलहुँ एतेक पैघ परिवारक लड़की हमरासँ दोस्ती किएक करत? एतेक सुन्दर नयनाभिराम लड़कीक की पहिनेसँ कोनो दोस्त नै हेतैक जकरा ओ दोस्तसँ बेसी आर किछु मानैत होएत। एहने सभ विचारसँ मनकेँ बुझबाक प्रयास करैत छलहुँ मुदा आगू जा कए हमर ई सभ विचार असत्य भेल।
धीरे-धीरे हम अपन कार्यमे लागि गेलहुँ मुदा ओ मनमोहिनी चेहरा हमरा सामनेसँ कहियो नै हटल। तीन-चारि मासक बाद संयोगसँ ओहि विभागमे जेबाक मौका लागल। ओतए सामान्य प्रयासक बाद हमरा ओकर नम्बर सेहो भेट गेल मुदा बात करबाक हिम्मति नै जुटा सकलहुँ। संयोगसँ ओहि विभागमे कोनो विशेष कार्यक्रमक आयोजन छल। हम एहि कार्यक्रमक जानकारी देबएले हुनका फोन कएल। बहुत बेसी नै, दू-चारि मिनट गप भेल। जखन ओ दोबारा भागलपुर अएलीह तँ लगभग एक घंटा समए बितेबाक मौका भेटल। ओहि बीचमे एक-दू बेर हुनक मोबाइलपर फोनो आएल, जाहिमे आधा घंटा लगभग ओ व्यस्त रहलीह। हमरा ई पक्का बुझा गेल जे हुनक पहिनेसँ कोनो मित्र छल, कोन प्रकारक से नै बूझि सकलहुँ।
ओ जखन वापस चलि गेली तँ हुनका लए परेशान रहए लगलहुँ। ओना आब फोनपर बातचीतक सिलसिला शुरू भऽ गेल छल। तैयो हमर मन हुनका प्रति एतेक आकृष्ट भऽ गेल छल जे एक दिन हुनका बिना बितेनाइ मोश्किल भऽ गेल छल। परोक्ष रूपसँ अपन मोनक दशा हुनकासँ गपशपक क्रममे बता दै छलियन्हि। हमरा आस्ते-आस्ते एहन लागए लागल जे शाइत ओहो हमरासँ प्रेम करैत छथि।शाइत ओ पहिने हमरा दिससँ पहलक आशा कएने छलीह। लगभग दू मासक बाद एहेन मौका लागल जे हम डराइत-डराइत अपन मनक बात कहि देलियनि। दू दिन बाद हमरा जवाब भेटल। जवाब अनुकूल छल। आब तँ हमरा लागए लागल जे हमर जिन्दगीक सभसँ बहुमूल्य वस्तु हमरा भेटि गेल।
विश्वास नै होइत अछि मुदा ई सत्य अछि जे आइ ओ हमर जीवन संगिनीक रूपमे संग दऽ रहल छथि। आ एक आदर्श गृहिणीक अपन जिम्मेदारी सम्हारि रहल छथि। ईश्वरकेँ धन्यवाद दैत छियनि जे हमरा एक एहेन जीवन साथी प्रदान कएलनि जे हमर जीवनक क्षण-क्षणकेँ अमृत समान पवित्र आ विशिष्ट बना देने छथि।
जगदीश प्रसाद मंडल दीर्घ कथा ‘मइटूगर’क शेषांश अवश्य पढ़ल जाए-
सुशीलाक बात सुिन पलहनि चमकि उठल। बारे रे, सभसँ बेसी भार अपने ऊपर आबि गेल। जन्मक पालनक भार....। अखन धरि जते ठीन काज केलौं, एहेन काजसँ भेँट कहाँ भेल! बुझल बात कम आ अनभुआर बेसी बजरत। जते अपना दिस तकैत जाथि तते चिन्ता बढ़ल जाइत। बच्चाकेँ दूध पिआएव जरूरी भऽ गेल। माइक तँ यएह गति छनि। हे भगवान कोनो उपाय धड़ावह। मन पड़लै अपन बच्चा। अपनो तँ दूध होइते अछि तखन एते घबड़ेवाक कि जरूरत अछि। मुदा अपन दूध तँ चारि मासक बकेन अछि। गजुरा तँ नहि। एत्ते विचार करब तँ बच्चे दम तोड़ि देत। हे भगवान जानिहह तूँ। मने मन कहि दुनू बच्चाकेँ दुनू छाती लगा दूध पिअबए लगली। बच्चाक चोभ देखि पलहनिक मन खुशीसँ बिखैर गेलनि। संकल्प लेलनि जे बच्चाकेँ मरऽ नहि देव। आइये बकरी दूधक ओरियान करैले सेहो कहि दैत छिअनि आ टेम-कुटेम अपनो चटा देवै। मुदा अपनो बच्चा तँ चारिये मासक अछि। छह माससँ पहिने कना दालिक पानि चटेबै। फेरि मातृत्व जगितहि बुदवुदेलीह- ‘अइसँ पैघ काज ऐ धरतीपर हमरा लिए की अछि? जँ दुनियाँ देखऽ पच्चा आएल हएत तँ जरूर देखत।
पुतोहूक बात सुिन सुनयना चेतनहीन हुअए लगलीह। कास-कुसक फूल जकाँ मन उड़ि-उड़ि बौराए लगलनि। बच्चाक मुँहपर नजरि पड़ितहि उपराग दैत भगवानकेँ मने-मन कहलनि- “कोन जनमक कनारि अइ बच्चासँ असुल रहल छह। अइ निमू-धनक कोन दोख भेलै। जँ तोरा नइ सोहेलह तँ पेटेमे किअए ने कनारि चुका लेलह। एहन बच्चाक एहन गंजन तोरे सन बुते हेतह।” चहकैत करेजसँ द्रवित भऽ कुहरि उठलीह। एक तँ वेचारीक (पुतोहूक) उपर केहन डाँग पड़ल जे अमूल्य कोखि उसरन भऽ गेलै, तइ संग बच्चा लटुआएल अछि। मुदा अपनो वंश तँ उसरने भऽ रहल अछि। थाकल-ठहिआएल छी छातीपर पथरो रखि आँखि तकब मुदा तपेसर तँ से नहि अछि। जुआन-जहान अछि, हो न हो बताह बनि कहीं बौर ने जाए। ककरा के देखत? जहिना धारक बहैत धारामे माथक मोटरी खुललासँ मोटरीक वस्तु छिड़िया पानिक संग भाँसऽ लगैत जहिसँ किछु बिछेबो करैत आ किछु भँसियो जाइत तहिना सुनयनाक विचार किछु उड़िआइत किछु ठमकल छाती दहलाइत।
ओसारक खूँटा लगा बैसल तपेसरक मन मानि गेल जे चूक हमरोसँ भेल। आइ धरि जे देखैत एलौं वएह मनमे बैस गेल। कि रेडियो-अखबारक समाचार झुठे रहैत अछि जे दू-तीन-चारि धरि बच्चा मनुष्यकेँ होइत छै। जहिना परम्परासँ अबैत व्यवहारकेँ बिनु सोच-विचार केनहुँ सभ लकीरक फकीर बनि लहास ढोइत अछि तहिना तँ केलहुँ। मुदा हाथक डोरा टुटने जहिना गुड्डी अकासमे उधिया जाइत तहिना ने तँ उधिया गेलहुँ। सोचैक, बुझैक बात छल जे एक बच्चाक लेल कते सेवाक जरूरत होएत, दू बच्चाक लेल कते....। से नहि बुझि सकलहुँ। आइ जँ वुझल रहैत तँ एहेन दिन देखैक अवसर नहि भेटैत। परिवार उजड़ि जाएत। वंश विलटि जाएत। मुदा जे चुकि गेलहुँ ओकर उपाइये कि? जहिना थाकल अड़िकंचनमे सुन्दर सुकोमल पेंपी निकलैत तहिना तपेसरक मनमे आशाक पेंपी उगल। धारक धाराक सिक्त मनमे उठलनि, जहिना एक दिस परिवार, वंशकेँ उजड़ैत-उपटैत देखै छी तहिना तँ भूत, वर्तमान आ भविष्य सेहो आँखिक सोझमे लहलहा रहल अछि। लहलहाइत परिवारकेँ देखि तपेसरक हृदय उफनि गेलनि। जहिना धारक धारा माने बेगमे टपै काल ओरिया कऽ पाएर रखितहुँ थरथराएल पाएर पिछड़ैत रहैत तहिना तपेसरक मन सेहो असथिर नहि भऽ पिछड़ए लगलनि। मुदा जी-जाँति कऽ माटिपर पाएर रोपितहि मनमे उठलनि, माइयो जीविते छथि, अपनो छी, तैपरसँ दूटा दूधमुहाँ बच्चा सेहो अछिये। तखन परिवार किअए उपटत? हँ, ई बात जरूर जे पुरूष-नारीक बीच बच्चाक लेल माए भोजनक पहिल बखारी होइ छथि। मुदा युग धर्मो तँ कहैत अछि जे आजुक बच्चाक नसीबसँ माइक्रोसॉफ्ट दूध कटि रहल अछि। तइयो तँ बच्चा जीविये जाइत अछि। तखन ई बच्चा किएक ने जीति?
सोगाइल तपेसरक मुँह देखि माए सुनायना बोल-भरोस देबा लए घरसँ निकलि आबि बजलीह- “बच्चा, गाड़ीये पहिया जहाँति जीते जिनगी सुख-दुख अबैत रहैए। तइले कननहि की हेतह? भगवानक लीले अगम छन्हि। अखनी हम जीविते छी। हमरा अछैत तोरा कथीक दुख होइ-छह।”
सिमसल आँखि उठा तपेसर मायक मुँहपर देलनि। हवामे थरथराइत दीपक बाती जकाँ सुनयनाक छाती डाेलैत। मुदा जहिना हवाक झोंककेँ सहन करैत दीप प्रज्वलित रहैत तहिना धैर्यक लौ सुनयनाक बोलसँ टपकल विचार सुनि तपेसरक मनक डोलैत जमीन थीर हुअए लगल। मनमे उठलनि, यएह माए पुरूख जानि अपन सहारा बुझैत छथि आ अखन सहारा बनि ठाढ़ छथि। कोढ़ीसँ फुलाइत फूल जकाँ तपेसरक मन फुलाए लगलनि। तहिकाल पलहनि मुँह उठा कऽ बाजलि- “काकी, एतै आबथु।”
पलहनिक बात सुिन सुनयना तपेसरपर नजरि दौड़ा सोइरीघर दिस बढ़लीह। मनमे एलनि, ओना अन्हारघर साँपे-साँप रहैत मुदा हथोरियो थाहि कऽ तँ लोक अन्हारोमे जीविते अछि। सभ मिलि जँ लगि जाएव तँ बच्चा जरूर उठि कऽ ठाढ़ हेबे करत।
तपेसरक मनमे उठल, ‘जाधरि साँस ता धरि आस।’ अपना सभ बुते काज नहि सम्हरत। डॉक्टरकेँ बजेबनि। मुदा लगमे तँ ओहो नहिये छथि। जँ रोगियेकेँ लऽ जाए चाहब सेहो भारिये अछि। एक तँ तेहेन सवारी सुबिधा नहि नहि दोसर तीिन-तीनि गोरेकेँ लए जाएव। ओतवे नहि, अपनो सभकेँ जाइये पड़त। एक दिस अब-तबक िस्थति दोसर दिस सवारीक ओरियान आ डाॅक्टर ऐठाम पहुँचैत पहुँचैत बँचती कि नहि। जहिना अमती काँट एक दिस छोड़बैत-छोड़बैत दोसर दिस पकड़ि लैत तहिना तपेसरक मन ओझरा गेल। कोनो सोझ बाट आँखिक सोझामे पड़बे नहि करैत। बेकल मने उठि कऽ सोइरी घर पहुँच तपेसरकेँ पुछलनि- “माए....।” माएक पछाति कोनो शब्द मुँहसँ नहि निकलल।
तपेसरक बेकल मन देखि पलहनि बाजलि- “बौआ, एना मन नइ छोट करू। जे करतूत अछि सएह ने अपना सभ करब। ककरो जान ते नइ दऽ देबै। जखैनसँ दुनू बच्चाकेँ छाती चटौलिऐ तखैन से कल परल अछि। सबसे पहिने दूधक ओरियान करू। अखन महीसि-गाइक दूध पचबैवला नइ अछि नइ अछि, कतौसँ बकरी कीनि आनू। एक तँ बकरियो सब तेहन अछि जे अपनो बच्चा पालैक दूध नइ होइ छै, मुदा जकरा एकटा बच्चा हेतइ ओहन कीनि लिअ।”
क्रमश:
रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- राजविराजमे मैथिली लोक संस्कृति संगोष्ठी सम्पन्न, सुजीत कुमार झा- संस्मरण मोबाइलक घण्टी जेना रुकिय नहि रहल छल
रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"
राजविराजमे मैथिली लोक संस्कृति संगोष्ठी सम्पन्न
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान आ मैथिली साहित्य परिषद्क संयुक्त तत्वावधानमे गत भाद्र २८ गते ‘मैथिली लोक संस्कृति संगोष्ठी’ सम्पन्न भेल अछि ।
उक्त गोष्ठीक प्रमुख अतिथिक आसनसं समुद्घाटन करैत नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक उपकुलपति गंगा प्रसाद उप्रेती नेपाल–भारत सांस्कृतिक सम्वन्ध मजवूत बनएबाक हेतु मैथिली भाषा महत्वपूर्ण कडी थिक–बजलाह ।
बदलैत परिस्थिति अनुसार प्रज्ञा पतिष्ठान सेहो संगठित भऽ रहल ह्यबाक जानकारी दैत उपकुलपति उप्रेती आगां बजालाह– मैथिली भाषाक उत्थान सेहो ताही अनुरुप ह्यत ।
गोष्ठीमे धन्यवाद ज्ञापन करैत नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक संस्कृति विभाग प्रमुख रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’ प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे बढ़ैत मैथिलीक गतिविधिक जानकारी करबैत आर ठोस काज भऽ सकए तकरा लेल मैथिली अनुरागी सभसं दबाबमूलक कार्यक्रम लएबाक आग्रह कएलनि । प्रज्ञा प्रतिष्ठानसं प्राप्त अवसरकें सदुपयोग करबाक हेतु सेहो ओ सभक ध्यानाकर्षण कएलनि ।
उद्घाटन समारोहमे भारतसं आयल मैथिलीक विद्वानलोकनि डा.प्रफुल्ल कुमार मौन, डा.रामानन्द झा ‘रमण’, चन्द्रेश अपन मन्तव्यमे नेपालक मैथिली साहित्यक बढ़ैत डेग प्रति आश्वस्त होइत संगोष्ठी सन कार्यक्रमक निरन्तरता पर जोड़ देलनि ।
समारोहकें पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालयक उपकुलपति डा.रामावतार यादव, त्रि.वि.वि.क पूर्व भाषा विज्ञान विभाग प्रमुख डा.योगेन्द्र प्र.यादव, त्रि.वि.वि.क मैथिली विभागाध्यक्ष डा.पशुपतिनाथ झा, मैथिलीक सह प्राध्यापक परमेश्वर कापड़ि, मैथिलीक उप–प्राध्यापक उमेश कुमार ललन, डा.सुनिल कु.झा, प्र.जि.अ.रामप्रसाद घिमिरे, जि.शि.अ.शत्रुघ्न प्रसाद यादव आदि व्यक्तित्वलोकनि सम्वोधन कएने रहथि ।
कार्यक्रम सत्रमे मैथिली लेखन पद्धतिपर डा.रामावतार यादव, लेखन सहजता पर डा.योगेन्द्र प्र.यादव, नेपालक आधुनिक मैथिली साहित्यक स्वरुपपर चन्द्रेश कार्यपत्र प्रस्तुत कएलनि जकर टिप्पणी क्रमशः डा.रामानन्द झा रमण, डा. सुनिल कुमार झा एवं डा.प्रफुल्ल कुमार मौन कएने रहथि । उपस्थित प्रबुद्ध श्रोता लोकनि दिल खोलि कऽ अपन–अपन प्रश्न पुछने रहथि । कार्यपत्र सत्रक अध्यक्षता प्राज्ञ रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’ कएने छलाह । कार्यक्रममे विभिन्न व्यक्तित्वकें मैथिली साहित्य परिषद् राजविराजद्वारा पाग, दोपुटा पहिरा सम्मानित कएल गेल । सम्मानित व्यक्तित्वमे प्रज्ञा प्रतिष्ठानक उपकुलपति गंगा प्र.उप्रेती, पूर्वाञ्चल विश्व विद्यालयक उपकुलपति डा.रामावतार यादव, प्राज्ञ डा.योगेन्द्र प्र.यादव, चन्द्रेश, रमण, मौन एवं प्राज्ञ रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’ आदि छलाह ।
तकराबाद एकटा वृहत् कवि गोष्ठी भेलैक जे चन्द्रेशक अध्यक्षतमे ५ वजेसं ८ वजेधरि चलल । पैंतीस गोट कवि लोकनिक कविता पाठ भेल, जाहिमे महिला सभक सहभागिता प्रशंसनीय छल ।
रातिमे मैथिली लोकगाथा दीनाभद्रीक चरित्रपर आधारित रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’क नाटक “भैया, अएलै अपन सुराज”क भव्य मंचन अरुणोदय नाट्य मंचक कलाकार सभद्वारा कएल गेल छल, जकर निर्देशन बद्रीनारायण झा ‘विप्र’ कएने छलाह ।
सुजीत कुमार झा संस्मरण
मोबाइलक घण्टी जेना रुकिय नहि रहल छल
नेपालक सभ सँ प्रतिष्ठित पुरस्कार जगदम्बाश्रीक लेल डा. राजेन्द्र विमलकेँ चयन कएल गेल ई समाचार जखन हमरा पता चलल शीघ्र हुनक मोवाइल पर बधाई देबाक लेल फोन लगेलौ, मुदा मोवाइल तऽ ईङ्गेज छल । आसिन ६ गते घण्टो प्रयास कएने रही । ई क्रम ७ गते सेहो रहल । कनिकालकेँ लेल मोनो तमसाएल जे एतेक कमाई छथि आ एकोटा टेलीफोन ठिक नहि रखैत छथि ।
खैर टेलीफोनमे बधाई वा बातचित नहि तऽ की ? घरे चली ।
जखन हुनक देवी चौक स्थित घर पर पहुँचलौं तऽ ओतयकेँ स्थितिए अलग छल । डा. विमलकेँ बधाई देबाक लेल लोकसभकेँ ओतबे भीड तऽ टेलीफोन आ मोबाइल कहैन हमहुँ आइए बाजब ।
डा. विमलक कनियाँ जिनका हमसभ विणा अन्टी कहैत छियन्हि ओ जे बधाई देबाक लेल हुनका घरमे पहुँचथि तिनका मिठाइ खुवबैत छली । हमरे संगे ओतय पहुँचल श्याम भाइजी (श्याम सुन्दर शशि) कहलथि ‘मिठाइ आइए चललैक अछि से नहि बुधदिन साँझे सँ चलि रहल अछि ।’ ओ बुधक साँझ सेहो ओहि ठाम पहुँचल छलथि आ मिठाई सेहो खएने रहथि । अस्तु
मैथिली, नेपाली, हिन्दी, भोजपुरी, नेवारीसभ भाषाक चोटीक साहित्यकारकेँ टेलीफोन मात्र नहि शुभेच्छुक सभकेँ बधाई पर बधाई आबि रहल छल ।
डा. विमल सर सँ १८–१९ वर्ष सँ परिचय अछि । एतेक खुशी हुनका कहियो नहि देखने छलौं । फेर लोकक रिसपौन्स नहि पुछु । अहि रुपमे भऽ सकैया व्यक्तिगत रुप सँ हम कल्पना तक नहि कऽ सकैत
छी ।
जगदम्बाश्रीक पुरस्कार राशी २ लाख टका अछि । डा. विमल सनक व्यक्तित्वक लेल नहि जगदम्बाश्री बडका अछि आ नहि दू लाख टका ।
हमरा स्मरण अबैत अछि । जहिया हम काठमाण्डू सँ प्रकाशन होबयबला ब्रोडसिड अखवार लोकपत्रमे काज करैत छलौं विमल सरकेँ ओहिमे लेख लिखबाक लेल आग्रह कएलियैन्हि आ ओ दू टा लेख लिखने रहथि ।
ओ दू टा लेख एतेक प्रशंसित भेल छलैक जे सरकेँ नियमित स्तम्भ लिखबाक लेल कम्पनी दिस सँ विशेष अफर आएल छल । ओ जाहि क्षेत्रमे कलम चलौलन्हि, हुनकर जोडा भेटव मुस्किल छल ।
१२ वर्षक उमेर जहिया लोक साहित्य कि छैक अहि दिस दिमाग नहि लगबैत अछि । हुनक साहित्यिक यात्रा शुरु भऽ गेल छल । हुनक पहिल रचना जहिया ओ १२ वर्षक उमेरक छलथि तहिया भारतक प्रतिष्ठित अखवार आर्यावर्तमे छपल छल, ओ बेर बेर कहैत छथि ।
हुनकर नेपाल आ भारतकेँ प्रतिष्ठित पत्रिकासभमे रचना छपयकेँ क्रम एखनो जारी अछि ।
ई सत्य अछि हुनकर अन्य साहित्यकार जकाँ पुस्तक प्रकाशन नहि भेल अछि मुदा इहो सत्य अछि मैथिली साहित्यक आकाशमे डा. विमलकेँ टक्कर देबयबला विरले अछि । जखन कम पुस्तक छपा कऽ ओ अहि स्तरक व्यक्ति भऽ सकैत छथि तऽ आइ हुनकर किछ पुस्तक प्रकाशन भऽ गेल रहैत तहन कि होइत ?
हमरा स्मरण अबैत अछि ओ दिन जहिया हुनका प्रज्ञाप्रतिष्ठानक सदस्यमे मनोनित कएने छल आ सपथ ग्रहण होबय सँ पूर्वे हुनकर पद फिर्ता लऽ लेल गेल छल । ओ बहुत निराश रहथि ।
त्रिभुवन विश्वविद्यालय हुनका प्राध्यापक तक नहि बना सकल एकर पीडा जखन ओ स्वयं मिथिला डटकममे लिखने रहथि तऽ सहियो बुझाएल । लोक जे कहौक ओ अपनाकेँ असफल बुझैत छथि । हुनक लेख पढलाक बाद बुझाएल छल मुुदा ओ हारल नहि छथि से हुनकालग गेलाक बाद बुझाएल । जगदम्बाश्री हुनका कतेक इनर्जी देलकन्हि अछि से एखन नहि कहल जा सकैत अछि ।
हमरा हुनका लग सँ छुटला चारि पाँच घण्टा भऽ गेल अछि । हम आदरणीय अपन विमल सरकेँ बारेमे सोंचि रहल छी तऽ लगैत अछि हुनका लेल आब एहने दिन सभ दिन होइतैक । ओ रचनापर रचना करतथि । हुनका सम्मान देबयमे लोक कन्जुसी नहि करितैक । फेर टेलिफोन अहिना इङ्गेज रहितैक आ हमसभ विणा अन्टीकेँ मिठाई खाए लेल पहुँचतहु ।
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