नवेन्दु कुमार झा
मतदाता सभक उत्साह मध्य सम्पन्न भेल तीन चरणक मतदान- राजनीतिक दलक बेचैनी बढ़ौने अछि मतदाताक चुप्पी
बिहार विधान सभाक छह चरणमे होमएबला मतदानक लेल तीन चरण मतदानक काज समाप्त भऽ गेल। तीन चरणमे भेल मतदानमे१३० विधान सभा क्षेत्रमे २०३९ उम्मीदवारक भविष्य मतदाता इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) मे बन्द कऽ देलनि अछि। कड़गर सुरक्षा व्यवस्थाक मध्य किछु छिटपुट घटनाकेँ छोड़ि मतदान शान्तिपूर्वक सम्पन्न भेल। एहि बेरक चुनावमे मतदाता सभमे सेहो उत्साह देखल गेल। पाबनि-तिहारक मध्य सम्पन्न भेल मतदानमे पहिल चरणमे ५४.३१ प्रतिशत, दोसर चरणमे ५२.५५ प्रतिशत आ तेसर चरणमे ५३.६६ प्रतिशत मतदाता अपन मताधिकारक प्रयोग केलनि। एहि मध्य चारि चरणक लेल १ नवम्बरकेँ होमएबला मतदानक लेल चुनाव प्रचारक काज सम्पन्न भऽ गेल अछि तँ पाँचम चरणमे ९ नवम्बरकेँ होमएबला मतदानक लेल सभ दल आ उम्मेदवार प्रचारमे अपन पूरा ताकत लगौने छथि तँ छठम आ अन्तिम चरणक मतदानक लेल नामांकन लेल नामांकन पत्र भरबाक काज चलि रहल अछि। अंतिम चरणमे २० नवम्बरकेँ मतदान भेलाक बाद २४ नवम्बरकेँ मतगणनाक संगहि बिहारमे नव सरकारक स्थिति स्पष्ट होएत। एहि बेरक चुनावमे मुख्य मोकाबला सत्तारूढ़ जद-यू भाजपाक राष्ट्रीय गठबंधन आ राजद-लोजपा गठबंधनक मध्य अछि आ गोटेक दू दशकक बाद असगर सभ २४३ सीटपर चुनाव लड़ि रहल कांग्रेस एकरा त्रिकोणीय बनेबाक लेल प्रयास कऽ रहल अछि। तीनू चरणक मतदानमे मतदाता जाहि तरहेँ मौन राखि मतदान कएलनि अछि ओहिसँ सभ राजनीतिक दल आ उम्मीदवारक होश उड़ल अछि।
पहिल चरणमे आठ जिलाक ४७ विधानसभा क्षेत्रमे, दोसर चरणमे छह जिलाक ४५ विधानसभा क्षेत्र आ तेसर चरणमे छह जिलाक ४८ विधानसभा क्षेत्रमे मतदान कराओल गेल अछि तँ चारिम चरणमे आठ जिलाक ४२ विधानसभा क्षेत्रमे १ नवम्बर, पाँचम चरणमे आठ जिलाक ३५ विधानसभा क्षेत्रमे ९ नवम्बर आ छठम चरणमे पाँच जिलाक २६ विधानसभा क्षेत्रमे २० नवम्बरकेँ मतदान काअओल जाएत।
तीन चरणक मतदान- एक नजरिमे
| पहिल चरण | दोसर चरण | तेसर चरण |
कुल जिला | ८ | ६ | ६ |
विधानसभा क्षेत्र | ४७(८ सुरक्षित) | ४५(६ सुरक्षित) | ४८(७ सुरक्षित) |
कुल मतदाता | १०७००७९७ | ९८४४९८१ | १०३७६०२२ |
मतदानक प्रतिशत | ५४.३१ | ५२.५५ | ५३.६६ |
उम्मीदवारक संख्या | ६३१ (५२ महिला) | ६२३ (४६ महिला) | ७८५ (६५ महिला) |
कुल मतदान बूथ | १०८६८ (४१४ अतिरिक्त) | १०३१५ | ८४२६ |
कुल मतदान केन्द्र | ८८६८ | ९९५२ | १०८१४ |
कुल बैलेट यूनिट | १३७६० | १३६७४ | १६६७१ |
तीन चरणमे दलीय उम्मीदवारक संख्या
| पहिल चरण | दोसर चरण | तेसर चरण |
भारतीय जनता पार्टी | २१ | १७ | २४ |
जनता दल यूनाइटेड | २६ | २८ | २४ |
राष्ट्रीय जनता दल | ३१ | ३४ | ३५ |
लोक जनशक्ति पार्टी | १६ | ११ | १३ |
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी | ३३ | ३१ | ३८ |
बहुजन समाज पार्टी | ४५ | ४५ | ४८ |
भाकपा | ११ | ०८ | १० |
माकपा | ०७ | ०८ | ०५ |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | ४७ | ४५ | ४८ |
निर्दलीय | २३८ | २२८ | ३५४ |
आन दल | १५६ | १६८ | १८६ |
बिहारमे मतदानक प्रतिशत (विधानसभा)
१९५२-४२.०५
१९५७-४१.७२
१९६२-४६.९७
१९६७-५१.४९
१९६९-६२.७८
१९७२-५२.७९
१९७७-४९.७२
१९८०-५७.३३
१९८५-५४.३९
१९९०-६२.०४
१९९५-६१.७९
२०००-६७.५७
२००५ फरवरी- ४६.२५
२००५ नवम्बर- ४७.०३
२०१० (पहिल तीन चरणमे)-५३.३६
४.
सुमित आनन्द आचार्य सुरेन्द्र झा “सुमन” जयन्ती-२०१०
आचार्य सुरेन्द्र झा “सुमन” जयन्ती १२ अक्टूबर २०१० केँ सुमन स्मृति समिति, दरभंगा द्वारा स्थानीय एम.एल.एस.एम. कॉलेज दरभंगामे अपराह्ण ३ बजे आयोजित भेल। एहि कार्यक्रमक उद्घाटनकर्ता साहित्यकार प्रो. शिवकान्त पाठक कहलनि जे आचार्य सुमन परिवर्तनकारी छलाह आ परम्पराक संगहि संग आधुनिकताकेँ स्वीकार करबामे हुनका कोनो झिझक नहि होइत छलनि। एम.आर.एम. कॉलेजक प्रधानाचार्य डॉ. कामेश्वर झाक अध्यक्षतामे आयोजित एहि कार्यक्रममे विशिष्ट अतिथिक रूपमे एम.एल.एस.एम. कॉलेजक प्रधानाचार्य डॉ. विद्यानाथ झा कहलनि जे आचार्य सुमनक दृष्टि व्यापक छलनि आ हुनक साहित्यमे सभटा पक्षकेँ स्थान छैक। समितिक अध्यक्ष सह मैथिली अकादमीक अध्यक्ष श्री कमलाकांत झा मंच संचालनक क्रम मे कहलनि जे आचार्य सुमनक समग्र व्यक्तित्वे अनुकरणीय अछि। श्री फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’क द्वारा आचार्य ‘सुमन’ रचित शिवपंक्षारक गायन सँ प्रारंभ भेल कार्यक्रममे स्वागत गीत शिखा कुमारी द्वारा गओल गेल। आगत अतिथि गणक स्वागत समितिक उपाध्यक्ष विनोद कुमार द्वारा कयल गेल। एहि अवसर पर संस्कृत साहित्य मे अवदानक हेतु डॉ. शशिनाथ झा केँ, हिन्दी हेतु, डॉ. अजीत कुमार वर्मा केँ तथा मैथिली हेतु डॉ. श्री शंकर झा केँ ‘सुमन’ स्मृति सम्मान सँ सम्मानित कयल गेलैन। समारोह मे आयोजित कवि सम्मेलन मे डॉ. विद्याधर मिश्र, हरिश्चन्द्र ‘हरित’ एवं अशोक कुमार मेहता द्वारा काव्य पाठ कयल गेल। एहि अवसर पर विधायक संजय सरावगी, डॉ. भीमनाथ झा, डॉ. गणपति मिश्र, डॉ. रमण झा, डॉ. उपेन्द्र झा, श्री मुनीन्द्र झा, श्री महानंद ठाकुर, श्री जगदीश साह, श्री भोला चौधरी, श्री गणेशकांत झा सहित दर्जनों साहित्यकार उपस्थित छलाह। धन्यवाद ज्ञापन समितिक सचिव श्री चन्द्रशेखर झा ‘बूढ़ा भाइ’ कयलनि।
५
सुजीत कुमार झा
जनकपुरमे कोजागरा महोत्सव
महोत्सव केँ आइ काल्हि फैशन चलि आएल अछि । लोककेँ आकर्षित करवाक लेल
महोत्सव शब्द बेर–बेर प्रयोग होइत आएल अछि । जनकपुरमे मात्र वर्षमे मिथिला
महोत्सव, होली महोत्सव, जुड़शीतल महोत्सव, झुलन महोत्सव, विवाह पञ्चमी
महोत्सव, कोजागरा महोत्सव, कि कि महोत्सव होइत अछि । दर्शक तनवाक लेल
किया नहि होउ महोत्सव नाम जोड़ला सँ एकटा आकर्षण अवश्य बढल अछि
इलेक्ट्रोनिक मिडिया सँ आबद्ध पत्रकार रामअशिष यादव कहैत छथि ।
कोजागरा महोत्सव
कोजागरा समान्यतया नव विवाहितकेँ घरमे होइत अछि । जाहि साल विवाह भेल
ओहि साल मात्र बरक घरमे कोजागरा होइत अछि । मुदा अहिठाम तऽ बरक घरमे जे
होइत अछि से हेबे करेत अछि मुदा प्रसिद्ध धार्मिक स्थल जानकी मन्दिरमे जे
होइत अछि से देखय लाइक रहैत अछि । कोजागराक अवसरपर जानकी मन्दिरमे मखान,
खाजा, लड्डुक भार अबैत अछि आ फेर भगवानकेँ चुमाओन होइत अछि ।
चुमाओन देखवाक लेल मन्दिर प्राङ्गणमे हजारो केँ भीड़ रहैत अछि । जानकी
मन्दिरक महन्थ रामतपेश्वर दास वैष्णवक अनुसार चुमाओनक दृश्य देखवाक लेल
आगामे बैसवाक लेल लोक दिनमे मन्दिरमे पहुँच जाइत अछि ।
ओहि ठाम महिलासभ घण्टो गीत गबैत छथि फेर हास परिहासक कार्यक्रम सेहो
होइत अछि । जानकी मन्दिरक महन्थ दास कहैत छथि – लोकक घरमे कहाँ एतेक हास
परिहास होइत अछि । विधक बाद तऽ हमरा स्नानो करय परैत अछि । ततेक लोक
दही लगा दैत अछि । कोजागरा दिन मखान चढावयबलाकेँ सेहो अबेर रातिधरि
मन्दिरमे भीड़ लागल रहैत अछि ।
भारक परम्परा सय वर्ष सँ बेसी पुरान
जानकी मन्दिरमे भारक परम्परा एक सय सात वर्ष सँ निरन्तर चलैत आवि रहल अछि ।
महोत्तरीक रतौली गामक ब्रह्मदेव ठाकुरक घर सँ १ सय १ टा भार प्रत्येक वर्ष
अबैत अछि । ओ सभ दशमी शुरु होइते कोजागराक भार साठयकेँ लेल तैयारी शुरु
कऽ दैत छथि । ठाकुुर कहैत छथि– भार संगे छोट सँ लऽ कऽ बड़काधरि घरक सभ
सदस्य पहुँचैत छी । घरक कोनो सदस्य बाहरो कमाई छथि ओहोसभ कोजागरा
महोत्सवमे सहभागि होवयकेँ लेल चलि अबैत छथि ।
फेर भार पुरे परम्परागत शैलीमे मन्दिरमे पठाओल जाइत अछि । भरियाक परम्परा
क्रमशः मिथिलामे हटय लागल समयमे सेहो दर्जनो भरियाकेँ कोजागरामे जानकी
मन्दिरमे लऽ जायत देखल जा सकैत अछि । ब्रह्मदेव ठाकुर कहैत छथि–अन्य काल
एकोटा भरिया तैयारी नहि होएत मुदा जानकी मन्दिरमे जायकेँ लेल तऽ मारि
करय लैत अछि ।
घरोकेँ कोजागरामे कम आकर्षण नहि
मन्दिरमे कोजागरा महोत्सव होइत अछि तऽ घरमे होवयबला कोजागराक आकर्षण
समाप्त भऽजाइत हैत से नहि घरोसभमे सेहो ओतवे उत्साह संग कोजागरा होइत
अछि । जनकपुरक पण्डित विद्यानन्द झा कहैत छथि–जाहिना मन्दिरक कोजागरामे
भव्यता आएल अछि तहिना घरक कोजागरामे । लोक मखान बटैत अछि, भोज करैत
अछि कि कि होइत अछि कि कि नहि ।
आब तऽ गाम–गाममे अहि अवसरपर नाटक सभ सेहो होवय लागल अछि ।
१.ज्योति सुनीत चौधरी- विहनि कथा (लघुकथा)- पानिमे खेती २. कुमार मनोज कश्यप-विहनि कथा (लघुकथा)-उजड़ल खोंता ३. नबोनारायण मिश्र- विहनि कथा (लघुकथा)-
घमंडक फल ४.राम विलास साहु
विहनि कथा (लघुकथा)-परिश्रमक भीख
१
ज्योति सुनीत चौधरी जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
विहनि कथा (लघुकथा)- पानिमे खेती
पानिमे खेती ः
विवेक बाबू एक ग्रामीण कृषक परिवार सऽ छथि।बच्चे सऽ राेपण़ि पटाइऱ् कटनी़ दाउन यैह सब देखि कऽ पैघ भेलैथ।बहुत तरहक विवाद के ओ बड्ड नजदीक सऽ सामना केने छथि।दमकल लगेलक कियाे आ कियाे आर बिना पुछने आढ़ि काटि कऽ अपन खेत मे पानि भरिलेलकऌ पाेखरिमे जीरा पड़ल की नहिं बच्चा सबहक बंसी खेलेनाई शुरू आढ़ि ़ बान्ह बनाबै काल ककराे दिसका जमीन बेसी नहिं चलि जाया ताहि लेल कलहऌ ई सब छाेटमाेट हलचल तऽ ओतक दिनचर्यामे सामिल छल।
अहि सबसऽ हाेयत विवेक काॅलेज पहुॅच गेला।जखन गामक लाेकके ज्ञात भेलैनजे ओ कृषिविज्ञानके अध्ययन कऽ रहल छथि तऽ आश्चर्य भेलैन।सबके भेलैन जे अहि विषयमे हमरालाेकनिके पढ़ाइर्क कियैक आवश्यकता।फेर सबके भेलैन जे विवेक बाबू नर्बनब प्रजाति के बीया़ नर्बनब तरहक खाद़ काेन माटिमे काेन तरहक उपजा बारी नीक आदि के विषयमे खूब बतियाैता।सबबेर जखन छुट्टीमे विवेक बाबू गाम आबैत छलैथ लाेकक कानमे बात जाय ताहिसऽ पहिने घूरि जाई छलैथ।अन्ततः अहिबेर ओ सबके भेटेलैथ।संगी़ कक्का़ बाबा सब कियाे घेर लेलखिन हुनका।
अपन विषयमे बाजैमे विवेकबाबूके सेहाे काेनाे असमंजस नहिं छलैन।मुदा हुन्का लग जे ज्ञान रहैन से लाेक सबहक आशा सऽ काेसाे हटिकऽ छलैन।असलमे विवेक बाबू हाइड्राेपाेनिक कल्टीवेसन ह्यपानिमे खेतीहृ के पढ़ाई पढ़ि रहल छलैथ।
विवेक बजलाह़ “आब एहेन तकनीकक विकास भऽ गेल अछि जे मात्र पानिमे खेती भऽ सकैत अछि।”
सब पुछलखिऩ “मात्र पानिमे । माटिक काेनाे आवश्यकता नहिं ।”
“नहिं माटिक काेनाे आवश्यकता नहिं।”
“तऽ गाछ ठाढ़ काेना रहैत छहि ।”
“पाइप मे भूर कऽ गाछके ठाढ़ कैल जायत छहि।पाइप मे बहैत पानिमे सब आवश्यक तत्व मिला देल जाइत छहि जाहि लेल गाछ पहिने माटि आ खाद पर आश्रित छल।जड़ि पाइप के अन्दर बहैत पानि सऽ सब पाैष्टिक तत्व ग्रहण कऽ लैत छहि।गाछक शेष भाग पाइपके भूर बाटे बाहर रहैत छहि।काेनाे काेनाे गाछके ओकर आकारक अनुसार बाउल आ छाेटकी पाथर के सहारे सेहाे राखल जाइत छहि।”
“आमक कलम लागि सकैत छहि कि एनामे ।”
“अखन तक तऽ नहिं छहि मुदा जॅं विशेष संकर आ अल्पाकार प्रजाति विकसित हाेय तऽ सेहाे भऽ सकैत छहि”।
कनिक कालक चुप्पीक बाद कृषिविज्ञानक ई संगाेष्ठी समाप्त भेल। लाैटैत काल सब के ज्ञात रहैन जे अहि व्यवस्थाक खर्चा पुछनाई बिसरि गेला मुदा अफसाेस नहिं रहैन। कारण जतय सब किछु प्रकृति पर आश्रित अछ़ि जे सुविधा उपलब्ध अछि तकराे प्राप्ति नहिं अछ़ि ओतय एहेन चमत्कारक संकल्पना एक असंभव स्वप्न सन छल।बेर्रबेर सरकार के दाेस ताकि र् ताकि सब थाकि गेल रहैथ।अहि ज्ञान पर तऽ विवेक बाबूके बाहरेे राेजगार लगतैन।गामक एकटा आर प्रतिभा अनका अर्पित भेल।
२
कुमार मनोज कश्यप जन्म मधुबनी जिलांतर्गत सलेमपुर गाम मे। बाल्य काले सँ लेखन मे आभरुचि। कैक गोट रचना आकाशवानी सँ प्रसारित आ विभिन्न पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित। सम्प्रति केंद्रीय सचिवालय मे अनुभाग आधकारी पद पर पदस्थापित।
विहनि कथा (लघुकथा)-उज़डल खोंता
गोनमा कोना विसरत ओ दिऩ़ कोना विसरत असक्क, अवाह बापक बेवस , मौलायल चेहरा ; मायक भरि दिनक कुटाऊन-पिसाऊन कऽ कऽ आनल किछु मुट्ठी चाऊर किवा आटा जाहि सँ पूरा परिवारक पेट भरवाक असफल प्रयास ; छोट गदेल भाय-बहीनक भूखल, कृशकाय, अर्धनग्न शरीऱ़। कोना विसरत ओ दिल्ली एबा काल मायक कनैत-कनैत क़ंडजोनी सन भेल आँखि सँ बहैत नोर के नुआँक खूंट सँ बेर-बेर पोछब, बापक बेचारगी भरल सुन्न चेहरा, भाय-बहिनक वुᆬतूहल़़।
ओकरा सभ पर विपत्तीक पहाड़ तऽ ओहि दिन टुटि पड़लै जहिया नवका जोड़ल देवाल लऽ दऽ कऽ ओकर बापक देह पर खसि पड़लै । जान तऽ कहुना बाँचि गेलैक ; मुदा दुनू पैर बेकाम भऽ गेलैक । आब ओ भरि दिन ओसारा पर पड़ल टुकुर-टुकुर तकैत रहैत छै़क़ कैयो कि सकैत छै । माईयो कि करतै ? भरि दिन लोकक अंगने-अंगने कुटाऊन- पिसाऊन करैत छै ; तखन जा कऽ केयो आध सेर - एक सेर अनाज दैत छैक । ओकरे कुड़ी जकाँ बाँटि दैत छैक सभ प्राणीक बीच मे़क़ंहुना प्राण रक्षा तऽ करहि पड़तै ।
कहल जाईत छैक जेठ संतान समय आ परिस्थिति के कारण समय सँ पहिनहि वयस्कं भऽ जायल करैत छैक । से गोनमो पर चरितार्थ भेलै । एक दिन ओ माय लग सहटि कऽ बैसि कऽ डराईत-डराईत कहलकै - ' माय गे, एगो बात कहियौ?'
'की ?' माय हाथ पर मड़ुआक रोटी ठोकैत पुछलकै ।
' अपना गामक भोलवा, बदरिया, विलसा सभ दिल्ली जाई हई़क़ंमाई लै । हमरो मोन होईहै हमहुँ जयतौं । ओ सभ कहलक जे काज तुरते भेट जेतै। दू पाई कमईतौं तऽ घरक हालतो सुधरितै ।' - कहि कऽ गोनमा उत्तरक प्रतिक्षा मे मायक मुँह निहारऽ लगलै। मायक हाथक रोटी हाथे मे रहि गेलै । अकचकाईत ओ कहलकै -'तों एखन कोन जोकरक भेलैं जे कमाई लेल जेबैं ? तोरा के नोकरी रखतौ एखन ?'
'हम ओकरा सभ सँ पहिने पुछि लेलियै । सभ कहलक जे नोकरी भेटई मे कोनो भाँगठ नहि छै । शुरू मे काज सिखबाक समय मे कम पाई दैत छैक । बाद मे काज सिख जाऊ तऽ मोट दरमाहा भेटैत छैक । तों बस कतहु सँ हमरा किराया लेल चारि सय रूपैया जोगाड़ कऽ दे।'
कोन माय चाहतै जे ओकर संतान ओकरा सँ दूर जाय ; ताहु मे खेलै-खाई के उम्र मे। मुदा परिस्थितिक आगु मे गोनमा माय के झुकहि पड़लै। मलिकानि कतेक दँत-खिष्ठी केलाक बाद आना-दर सूदि पर साढ़े चारि सय रूपैया देने छलखिन ओकरा । चारि सय रूपैया तऽ किराये के भेलै । परदेश जाई छै; तऽ किछु रूपैया तऽ संगो मे रहक चाही बेर-मोसीबत लेल ।
दिल्ली मे गोनमा के एकटा ज़डी-युनिट मे काज भेटलै। पहिने तऽ ओकरा ज़डीक काज सीखऽ पड़तै । खेनाई-पीनाई आ उपर सँ डेढ़ सय रूपैया सप्ताह मे भेटतै । डेढ़ो सय सप्ताहिक कि कम छैक !छः सय रुपैया महिना के भेलै । आँगुर पर हिसाब लगेलक गोनमा । एके महिना मे मलिकानि के सूदि सहित पाई आपस कऽ देतै । तकरा बाद माय के अँगने-अँगने काज केनाई ओ छोड़ा देत । जखन महिने -महिने माय के मनिआर्डर भेटतै ; तऽ कतेक खुश हेतै माय-बाबू ! जखन काज सीख जेतै आ बेसी पाई भेटऽ लगतै तऽ ओ अपना लेल एकटा जिंस-पैंट आ जूता कीनत । बड़ सौख छई एकर । माय के लेल साड़ी-साया-ब्लाउज, बाबू लेल धोआ धोती आ वुᆬर्ता आओर सभ भाय-बहिन के लेल रंग-विरंगक कपड़ा़। भाय-बहिन सभ के ओ स्वूᆬल मे नाम लिखबा देत । अपने नहि पढ़लक ताहि सँ कीभाय-बहिन पढ़ि-लिखि कऽ बड़का बनै से सपना छै ओकर ।
भविष्यक रंगीन सपना बुनैत गोनमा खूब मोन सँ काज सिखऽ लागल । ओस्ताद सेहो बड़ मानैत छै छौंड़ा वे ᆬ। की चिक्कंन कसीदा काढ़ैत छै़ज़ेना पहिनहि सँ सिखने हो । ओहि दिन ओस्ताद खुश भऽ कऽ चाय मँगेलाक बाद बँाचल खुदरा पाई ओकरे लग छोड़ि देने छलै। पेᆬर ओकर माथ हँसोथि कऽ कहने छलई ओ- 'ई एक दिन हमरो ओस्ताद निकलत । ' मालिको बड़ मनैत छई छौंड़ा के ।
ओहि दिन गोनमा किछु बुझि पबितै ओहि सँ पहिनहि ओकर खोंता उजड़ि गेलै। अवाक भऽ ओ देखैत रहि गेल छल ओकर देवता समान मालिक के पुलिस हथक़ंडी लगौने नेने जा रहल छलै। पेᆬर गोनमा सहित सभ काज सिखनाहर सभ बच्चा के दोसर जीप मे बैसा देल गेलै। लोकक गप्प सँ गोनमा के बुझना गेलै जे बाल-मजदूरी करेबा के जुर्म मे मालिक के पुलिस पकड़ि लेलकै । आब गोनमा सहित सभ बच्चा के आपस अपन-अपन गाम पठा देल जेतै जतऽ ओकरा सभ के स्कूल मे नाम लिखा कऽ पढ़ाई के व्यवस्था कैल जेतै ।
बदहवाश भऽ गेल छल गोनमा । ओकर सपनाक शिशा चूर-चूर भऽ कऽ ओकरा आगू मे पसरि गेल छलै। ओहि फुटल शिशा मे ओकरा नजरि आबि रहल छलै़मायक चिप्पी लागल धिंगी-धिंगी भेल नुआँ सँ लाज झँपबाक असफल कोशिश बाबूक निरीह, बेवस, मौलायल चेहरा़भूख सँ बिलबिलाईत छोट भाई-बहिऩ़सुदि पर उठाओल रूपैया़।
कोन मुक्ति भेटलै ओकरा से नहि बुझि पौलक गोनमा ।
३
नबोनारायण मिश्र- विहनि कथा (लघुकथा)-
घमंडक फल
बद्रीबाबूकेँ काबिलक बड़ दाबा छलन्हि। चारि भैयारी मूर्खक बीच एकमात्र पढ़ल लिखल रहबाक कारणे परिवारमे वर्चस्व भेनाइ स्वाभाविके आ एहि वर्चस्वक प्रतिफल जे आश्रम साझी नञि रहि सकल। पैतृक सम्पत्तिक अतिरिक्तो किछु जमीन अर्जित केने छलाह। सरकारी नौकरीमे रहबाक कारणे आमदनीक स्रोत बढ़ियाँ छलन्हि तैं शानसँ कहथिन्ह जे गाममे हमरासँ पैघ के अछि?
खर्चोक नामपर एकमात्र कन्यादान छलन्हि जे सस्तेमे सुतरि गेलन्हि। तीनटा बालकमे दूटा छोट-छीन, एकमात्र ज्येष्ठ बालक कौलेजमे पढ़ैत छलन्हि। समाजमे बदी बाबूक घमंडक चर्चा जोर पकरने छल कारण जे साधारणो बातमे लोककेँ कहि दैत छलखिन्ह जे तोरा हम गामसँ उजाड़ि देबह। गामक लोक अवसरक प्रतीक्षामे छल। आमक गाछ लेल झगड़ा बढ़लैक अपना पटीदारीमे आ लोक दुनूकेँ पीठ ठोकि कऽ केस मोकदमामे फँसौलक। बद्रीबाबूसँ लोककेँ बदला लेबाक एहिसँ नीक आर कोन अवसर भेटितैक? गाममे बद्रीबाबूकेँ एकहुटा गवाही नञि भेटलन्हि तैं सिविल कोर्टसँ हाइकोर्ट धरि केस हारिते गेलाह। केस मोकदमामे फँसि गेलाक कारणे आर्थिक स्थिति जर्जर भऽ गेलन्हि। अनका गामसँ उजारैत-उजारैत अपनहि उजरबाक बाट धऽ लेलन्हि आ मुँहमे स्वतः लगाम लागि गेलन्हि।
४.
राम विलास साहु
विहनि कथा (लघुकथा)-
परिश्रमक भीख
सोमना बोनिहार अपन परिश्रमसँ परिवारक भरण-पोषण करैत छल। सभ दिन अपन मजदूरिक बोनिसँ खाइत-पीबैत जिनगी बितबैत छल। सोमना जेतबे परिश्रमी ओतबे इमानदार सेहो छल। सोमनाकेँ जइ दिन काज नहि भेटैत छल माने बैसारी रहि जाइत छल ओहि दिन बीना भोजने पत्नी आ बाल-बच्चा पानि पीबि अपन टुटली मरैयामे सुति रहै छल। एक दिन एहिना भेल रातिमे सभ परानी पािन पीबि सुित रहल। भोर भेलापर काज खोजलक मुदा कोनो काज नहि भेटल। सेामना भुखक मारल थािक कऽ दलानपर बैसि छल। पत्नी आ बच्चाकेँ भूखसँ पेट-पीठ एक भऽ गेल। सोमना सभ परानी आँखिसँ नोर बहबैत भगवानसँ याचना करैत कहलक- “हम एत्ते गरीब छी मुदा काजो नहि भेटैत अछि जे परानो बचत। आब हम सभ भूखे परान तियागि देब।”
सोमना माथपर हाथ रखने बैसल छल। तखने एकटा हट्ठा-कट्ठा भिखारी आबि कऽ भीख मँगलक। सोमनाकेँ भीख देबाले किछु बँचल नहि छल। सोमना कहलक- “भीख तँ हम नहि दऽ सकै छी, हम दऽ सकै छी परिश्रम।”
भिखारी मने-मन सोचमे डुबि गेल ओ सोचलक जे हम शरीरसँ ठीक छी तँ किएक ने हमहुँ परिश्रम करब तँ भीखारीक जीबनसँ छुटकारा पाबि जाएब। भीखारी खुश भऽ बाजल- “आब हमहुँ, भीख नहि मॉंगव अहाँक बचन सुनि हमरो लागल जे आखिर परिश्रमसँ तँ धन भऽ सकैत अछि। बेकार हम भीखक फेरिमे परल छी। आब हम परिश्रमेसँ अपन पेट भरब।”
घर- लक्ष्मिनियाँ
पोस्ट- छजना
भाया- नरहिया
जिला- मधुबनी
१.जगदीश प्रसाद मंडल- कथा- मइटूगर (गतांस सँ आगाँ) २. राजदेव मंडल- कथा-एलेक्सनक भूत ३.प्रो. वीणा ठाकुर- - कथा- परिणीता (आगाँ) ४. बेचन ठाकुर बेटीक अपमान
१
जगदीश प्रसाद मंडल कथा- मइटूगर
(गतांस सँ आगाँ)
अशौच दुआरे दुनू जोँआ भाए-बहीनिक -धीरज आ घुरनीक- छठियार नहि भेल। ने कियो सोइरी सठनिहारि आ ने ककरो मन कखनो थीर होइत जे नीक-अधलाक विचार करैत। ओना तीनूक- पलहनि, सुनयनया आ तपसीक- मन सदतिकाल बच्चेपर रहैत छलनि मुदा कखनो काल नेकरमसँ अकछि मने-मन सोचैत जे दुनूकेँ ऋृण असुलए भगवान पठौलनि। जते ओकर ऋृण बाकी छै ओते तँ असुले कऽ जान छोड़त। मुदा लगले मन घुरि जाइत जे ब्रह्मो भाग-तकदीरकेँ नहि बदलि सकैत छथि। जँ दुनू बच्चा एहि धरतीक सुख भोगऽ आएल हएत तँ नहियो सेवा-बरदासि करबै तइयो पानिक पाथर जकाँ जीवे करत। मुदा बच्चाक छोड़ि तीनूक -पलहनि, सुनयना आ तपसीक- अपन-अपन जिनगी आ दुनियाँ सेहो छलनि। पलहनिये बेचारी कि करितथि? एक तँ दस-दुआरी दोसर अपनो बाल-बच्चेदार परिवार तइपर सँ तड़िपीवा घरबला। धन्यवाद बूढ़ी सासुकेँ दिआनि जे सुखाएलो-टटाएल हड्डीपर ने कखनो हाथ-पाएर कामै होइत आ ने मुँह सापुट लैत। अखनो वएह रूआव जे कते दिन जीवि तेकर कोन ठेकान। हजार कि लाख आ कि नहिये मरब तेकर कोन ठीक। मुदा साँपक मंत्र जकाँ भरि दिन सुगिया (पलहनि) सासुक नीक-अधला बात सुनैत रहैत मुदा कोनो बातक उतारा नहि दैत। अपन सभ किछु बुझि सासु -झिंगुरी- मालिक जकाँ काजक समीक्षा सदतिकाल करैत रहैत जे कोन-काज केहन उताहुल अछि। जेहन जे काज उताहुल तइ काजकेँ दोसर काज छोड़ि करए लगैत तँए सुगिया सासुक बातो कथा सुनि चुप्पे रहैत। तँए कि झिंगुरी सदतिकाल पुतोहूपर गरमाइले रहैत छलीह। कोना नइ रहितथि, जखन सुिगया कोनो अंगनाक पवनौट, काेनो तीमन-तरकारी वा सिदहा आनि आगूमे दथि वा बैसलोमे टाँग पसारि जँतऽ लगैत तखन वएह सासु ने असिरवाद दै छलखिन जे हमरो औरूदा भगवान तोरे देथुन। यएह ने परिवार छी जे सदतिकाल सुख-दुख, नीक-अधला, हँसैत-कनैत मस्तीमे चैनसँ चलैत रहए। झिंगुरियोक जिनगीमे तहिना भेल। एक्के सन्तानक -बेटा- पछाति विधवा भऽ गेलीह। अपना खेत-पथार तँ नहि मुदा अधा गाम (भैयारीक हिस्सा) तँ खानदानी सम्पति छलैक। जाहिसँ खाइ-पीवैक कोन बात जे दू पाइ बेटोकेँ खाइ-पीबैले दैत रहलीह। भलेहीं बेटा ताड़ी पीआक किअए ने भऽ गेलनि। कि अखनो धरि बेटाकेँ कहियो एकटा खढ़ उसकबै नहि कहलनि। जँ माए-बाप अछैत बेटा केलक तँ माए-बापक मोले की? एहि बातकेँ गीरह बान्हि झिंगुरी कहियो बेटाकेँ कोनो भार अखन धरि नहि देने। भलेहीं बेटा सहलोले किअए ने भऽ जाए मुदा सिद्धान्तो तँ सिद्धान्त छी। ओकरो अपन महत्व छैक। भलेहीं करी वा नहि करी। जँ से महत्व नहि छैक तँ काबिल लोकक बेटा बूड़िबक कोना भऽ जाइत छैक।
दसदुआरी रहने सुगियाकेँ घरसँ बाहरे एते काज करै पड़ैत जे दिन-राति रेजानिस-रेजानिस रहैत छलीह। साँझ-भोर, राति-दिन काज। किम्हरो जँत्ते-पीचैक समए तँ किम्हरो बिआउ करैक ताक। धन्यवाद सुगियेकेँ दी जे घिरनी जकाँ सदतिकाल नाचि काज सम्हारैत। तहूमे मइटूगर धीरज आ घुरनीक तँ सहजहि माइये छी। दूध पिऔनाइसँ लऽ कऽ जाँति-पीचि देह-हाथ सोझ करऽ पड़ैत। दसदुआरी रहने दस दिस सेहो आँखि-कान ठाढ़ रखै पड़ैत। जिनगीक काज सुगियाकेँ एहि रूपे पकड़ि नेने जे दोसर दिस तकै नहि दैत। मन कहैत जेकरा अपन माए जीवैत छैक ओरत होइक नाते अपन चिलकाकेँ अपनो सम्हारि सकैए मुदा अइ दुनू -धीरज आ घुरनी- केँ दुनियाँमे के देखिनिहार छैक? हमरा हाथे जन्म भेल छै, जँ पैतपाल नै करवै ते एकर प्रतिवाए ककरा हेतइ। भगवानक घरमे दोखी के हेतइ। वेचारी दादी सुनयना छथिन मुदा अहि उमेरमे दूध तँ नहि छन्हि। सोलाहो आना बकरिये दूधपर तँ दूधकट्टू भइये जाएत। जे बच्चा दूधकट्टू भऽ जाएत ओकर छाती कहियो सक्कत होतइ। खेने-बिनु खेने सुगिया भरि दिन ओहि जंगली जानवर जकाँ नचैत जे बच्चाकेँ दूध पीया, गर लगा सुता चरौर करए जाइत, तहिना।
अधवयसू सुनयना अपन राजा बेटा तपसीक दुखक बोझ देखि दिन-राति ओहि बेझकेँ हल्लुक बनवैक लेल एकबट्ट करैत रहैछ। जहिना युद्धभूमिमे अपन राजापर दुश्मनक अबैत तीर देखि सेनापति उपयुक्त तीर तरकससँ निकालि दुश्मनक तीरकेँ रोकैक प्रयास अंतिम साँस धरि करैत तहिना सुनयना तपसीपर अबैत तीर- ‘भगवान केहन डाँग मारलखिन जे जे जाहि काजक लूरि पुरूषक हिस्सामे देबे ने केलखिन ओहि फाँकमे फँसा देलखिन। कोशिकन्हाक खेत जकाँ आिड़-धूर मेटा बालुसँ भरि देलखिन। स्त्रीगण होइत हमहूँ तँ स्त्रीगणक सभ काज (बच्चाकेँ दूध पियाएब) नहिये सम्हारि सकब। जँ एहेन फाँसे लगवैक छलनि तँ आरो नमहर लगा दुनू बच्चोकेँ माइये संगे नेने जइतथि। पुरूखक (बेटा) देह तँ खाली रहितै। मन होइतै चिड़ैक खोंता जकाँ परिवार बना रहैत नै मन होइतै लौका-तम्मा लऽ दुनियाँमे घूमि-फीड़ि जीबैत। जाधरि हम जीबै छी ताधरि माएक ममता पकड़ि रखितै। मुदा तहू बीच जँ पत्नीक सिनेह बेटा-बेटीक सोह जगितै तखनो तँ मन बौरेबे करितै! अनायास सुनायनाक मनमे उठलनि माया-मोहक लत्ती जते दूर धरि चतरै-ए ओते दूर धरि मनुख तँ नहि चतरत। मनुखक तँ बाढ़ि छैक। तहि बीच हम तपसियाक माए भेलिऐ, जते धरि कएल हएत ततबे ने करबै। आकि ओकरा दुखसँ दुखी भऽ अथबल बनि बैसि कऽ कानब। माएक काज जते दूर धरि छै ओइमे कलछप्पन नै करबै। परिवारे ककर छी ककरो नै छी? तखन तँ मनुख रहत घरेमे। खाएत अन्ने, पीति पानिये। जाबे जीबै छी ताबे बुझै छी जे सभ किछु छी आँखि मूनि देबइ अन्हारमे हरा जाएब। फेरि मन घुरलनि हमरा अछैत बेटाक आँखिक नोर देखब हाड़-चामक मनुखकेँ सहल जाएत? ओ तँ पाथरक नहि छी जे कतौ पड़ल रहत। मनुखकेँ तँ चलै-फिरै, सोचै-विचारै, बुझै-सुझैक बखारी छै ओ तँ देखिये-सुनि कऽ चलत। दुनियाँ बेइमान भऽ जाएत भऽ जाए मुदा जहिना तपसीक माए छिऐ तहिना तपसी देखत। ओकरा मनमे कहियो ई नै उपकए देवइ जे दुनियाँक संग माइयो पएर पाछू केलक। ताधरि तपसीक परिवारकेँ पकड़ि सम्हारने रहबै जाधरि बेकावू नइ भऽ जाएत। भगवान केलखिन आ दुनू पिलुआ उठि कऽ ठाढ़ भेल तँ जरूर परिवार फड़त-फुलाएत। अखन बेकावू कहाँ भेलहेँ? अखन तँ सम्हारैबला अछि। माटिक तरमे सजमनि झिंगुनीक बीआ गारि दै छिऐ, समए पावि जहिना ओ जनमि कऽ ऊपर आबि धरतीसँ आसमान धरि लतरि जाइत अछि, मुदा ई तँ (दुनू बच्चा) माटिक ऊपर अछि। जँ समुचित सेवा भऽ जाए तँ जरूर कलैश कऽ गाछ बनत। आशा-निराशाक बीच सुनयनाक मन वृन्दावनक कदमक गाछपर झुलैत राधा-कृष्ण जकाँ झुलए लगलनि। ने अक चलनि ने बक। आँखि निहारि दुनियाँ दिशि देखए लगलीह। दू-पत्ती, चारि-पत्ती सजमनि-झिंगुनीक गाछक, जे लत्तीक आशा अपनाकेँ ठाढ़ रखैत, चारू भाग जहिना छोट-छोट कड़चीक टुकड़ी गारि ओकर रक्षा लगौनिहार करैत तहिना सुनयना फुड़फुड़ा कऽ उठि बड़बड़ेलीह- “अनेर गाएक धरम रखबार।” मुँहसँ अनायास हँसी निकललनि।
पितृ प्रमुख परिवारमे पिताक परोछ भेलापर ताधरि मातृ प्रधान परिवार बनल रहैत जाधरि पुत्र पितातुल्य नहि बनि जाइत। ओहुना किछु काजमे मातृत्वे प्रमुख परिवार रहैछ। एक तँ ओहिना बच्चाक पालन मातृ पक्षक काज वुझल जाइत तहिपर सँ अखन धरि तपसी माइयेक आदेशक पालन करैत अबैत, तँए धैन-सन। मुदा तइओ टूटैत परिवार आ नव उलझन देखि मन ओझराए लगलनि। एते दिन खेती-पथारी करै छलौं, दिन-राति ओहिमे लागल रहै छलौं। आब तँ से नहि हएत। एक तँ दिनोदिन माएक हूबा सेहो घटत दोसर बच्चा सभले बकरीसँ गाए धरि पोसए पड़त। ओहिना थोड़े हएत। कहुना करबै तँ खुएनाइ-पीएनाइ, दुहनाइ-गारनाइसँ लऽ कऽ अोगरवाहि धरि करए पड़त। खूँटापर छोड़ि कऽ कतौ जाएबो मसकिल हएत। कुत्ता-बिलाइसँ लऽ कऽ साँढ़ बत्तू धरि उपद्रव करत। ओह से नइ तँ खेत बटाइ लगा देब। जँ से नइ करब तँ नइ सम्हरत।
क्रमश: ....
२
राजदेव मंडल कथा-
एलेक्सनक भूत
निन्नक निशामे मातल सुतल छी आ सपना देखि रहल छी। जुलूस जा रहल अछि। इनक्लाब जिन्दाबाद.....।
राजनीतिक पार्टी आ पाटीक तरफसँ ठाढ़ नेताक लेल वोट माँगएबला जुलूस। आगूमे नेताक बदला प्लाईवुडक आदमकद फोटो। दुनू जाँघक बीच मोटका लाठी धोंसिया कऽ फोटोकेँ ऊपर उठौने। गर्दमिसान करैत भीड़ निकट आबि रहल अछि। “जीतबे करता-जीतबे करता हमर नेता जीतबे करता। नेताजीक मारि कऽ गोली, बन्न नइ कऽ सकत हमर बोली।”
भीड़मे एक दोसरासँ पूछैत अछि- “नेता जीकेँ गोली लगि गेलै की?”
“हँ भाय, साँझमे। गोली तँ अजमा कऽ छातीमे मारलकै। लेकिन हुसि गेलै। टाँगमे गोली लगलैक। होसपिटलमे पड़ल छथि। इलाज चलि रहल छै। तहि दुआरे नेता जीक फोटो लऽ कऽ प्रचार कऽ रहल छिऐक।”
“सबटा एण्टी पाटीक किरदानी हेतै।”
हमर धियान आदमकद फोटोपर अछि। आरे तोरीकेँ, ई फोटो तँ हमरे छी। हू बहू। लगल जेना हम उछलि कऽ फोटोमे ढुकि गेलहुँ। फोटोक बदलामे हमहीं ठाढ़ छी। आ ऊ अगत्ती छौड़ा लाठीपर टँगने हमरा ऊपर नीचा कऽ रहल अछि। दरदक अनुभव होइत अछि। बेसुमार दरद। हम िचचिया रहल छी- “हे रौ, हमरा नीचा राख। एना किएक नाहकमे जान लैत छँ।”
भीड़केँ कोनो आँखि-कान होइत छै। के सुनत हमर कानब?
मूड़ी उठेलहुँ। आगूमे देखै छी जे एण्टी पाटीक किछु लफंगा सभ घुरिया रहल अछि। किछु लोकक हाथमे झण्डा आ डण्टा अछि। आ रे तोरीकेँ ई सभ तँ डाँड़सँ पेस्तौल निकालि रहल अछि। केयो बम पटकि पड़ाएल।
“धुम... धुम... धड़ाम।”
सभ भागल जहिंपटार। हमरा लाठी सहित गन्हकैत नालीमे फेंकि देलक। ओहि भभकैत नालीमे हम लसकल छी, नाक मूनने। हल्ला कऽ कहि रहल छिऐ- “हओ, ठाढ़ हुअ। हमरो संग नेने चलह।” किन्तु के सुनत?
संकटकालमे तँ लोक केहनो प्रिय बेकतीकेँ संग छोड़ि दैत छैक। आ हम तँ नेता छी....। तेँ हम तँ सबहक प्रिय। किन्तु कियो नहि अबैत अछि। महकैत नालीमे धँसल जा रहल छी।
‘हे देव, डूबै छी। तँ हाथ पाएर मारह।’ नालीसँ निकलबाक लेल हाथ-पाएर जोर-जोर चलेलहुँ।
स्त्रीकेँ झकझोरबसँ निन्न टूटि गेल। तामससँ थरथराइत पत्नी बाजि रहल अछि- “दिन कऽ गारि आ रातिमे मारि। हमरा ई जिअ नहि दैत। हम आब रहि नहि सकैत छी।”
“देखू एना नहि बाजू। पड़ोसिया सुनत तँ की कहत। हमरा तँ मोने नहि रहल जे घरमे अहाँ लग सुतल छी। हम तँ सपनामे कतऽ सँ कतऽ बौआ रहल छलहुँ। आब अहाँ जे कही।”
“अच्छा, अच्छा बुझलहुँ। भोर भऽ गेल छै। दुआरपर सँ कियो सोर पाड़ि रहल अछि। उठू, देखियौक।”
“की देखबैक। वएह सभ हेताह।”
“के सभ?”
“आइ तँ नमनेशन देबाक लेल जाइक छै ने। सँगे-सँग जइबला संगी-साथी सभ।”
“ठीके तँ अछि। अहूँ नहा-सोना कऽ तैयार भऽ जाउ। चलि जाउ सवेरे।”
“धुर, हमरा राजनेति करनाय ठीक नहि लगैत अछि। ई कोनो नीक करम नहि अछि।”
“हेओ, अहाँ सपनामे धसना खसैत तँ नहि देखलिऐक। आकि एलेक्सनक भूत चॉंपि देलक। काल्हि तक जाहि राजनेतिक गुण-गान करैत छलिऐक। आइ ओकरा अधलाह कहैत छिऐ।” स्वरकेँ अकानैत फेर बजली- “अच्छा जाइयौ, दुआरिपर सँ सोर पाड़ैत अछि।”
हाथ-मुँह धो कऽ हम दुआरिपर पहुँचलहुँ। देखैत छी- गौआँ-धरूआ, सँगी-साथी किछु नव सिखुआ नेता सभ एका-एकी दुआरिपर जमा भऽ रहल अछि। एकटा छोटका भीड़ सन। भीड़सँ स्वर निकलि रहल अछि- “अँए यौ, अखनी तक अहाँ तैयार नहि भेलहुँ। कागज-पत्तर लिअ। आ जल्दी चलू। सभसँ पहिले।”
“हॉं-हाँ सभसँ पहिलुक नमनेशन अपने सभकेँ दाखिल हेबाक चाही।”
क्रमश:
३
प्रो. वीणा ठाकुर
कथा
परिणीता (आगाँ)
आइ डोमेस्टिक एयर पोर्ट दिल्लीमे श्यामाक भेँट नीलसँ भेल छलन्हि। श्यामा थोड़ेक काल धरि हतप्रभ रहि गेल छलीह। नील-नील कहि मोनक कोनो कोनमे हहाकारक लहरि उठि गेल छल। एतेक वर्ष बीत गेल। नील एखनहुँ ओहने छथि, कोनो परिवर्त्तन नहि भेल छन्हि। आकर्षक नील, हँसमुख नील, पुर्ण पुरूष नील, उच्च पदस्थ नील, नील-नील। श्यामा कहियो नीलकेँ बिसरि नहि सकल छलीह। सभटा प्रयासश्यामाक विफल भऽ गेल छल। नील सदिखन छाया सदृश्य श्यामाक संग लागले रहलथि। नील कतेक दूर भऽ गेल छथि, श्यामा आब चाहियो कऽ नीलकेँ स्पर्श नहि कऽ सकैत छथि, ओहिना जेना छाया संग रहितहुँ स्पर्श नहि कएल जा सकैत अछि, मनुष्यक संग छायाक अस्तित्व तँ सदिखन रहैत छैक, मुदा ओकर आकार तँ सदिखन नहि रहैत छैक। श्यामाक जिनगी नील, श्यामाक सोच नील, श्यामाक सभ िकछु नील। श्यामाक तन्द्रा भंग भऽ गेल छल, नीलक चिर परिचित हँसि सुनि, नील आश्चर्यचकित होइत प्रसन्न भऽ कहने छलाह- “श्यामा, माइ डियर फ्रेंड हमरा विश्वास होइत अछि, अहाँ फेर भेँट हएत। श्यामा अहाँ एखनहुँ ओहिना सुन्दर छी, यु आर टु मच ब्युटिफुल यार, आइ कैन नॉट विलिभ।”
और पुन: ठहाका मारि हँसने छलाह। नील संगक युवतीसँ श्यामाक परिचए करबैत कहने छलाह- “श्यामा, मीट माइ वाइफ नीलिमा, ओना हमर नीलू- नीलू माइ वेस्ट फ्रेंड श्यामा।”
नीलू बहुत शालीनतासँ श्यामाक अभिवादन करैत कहने छलीह- “गुड मॉनिंग मैम।” और नील हँसेत बाजि गेल छलाह- “देखू हम आइयो अहाँक पसन्दक ब्लू पैंट शर्ट पहिरने छी।” किछु आॅपचारिक गप्प भेल छल। एयरपोर्टपर एनाउन्समेंट भऽ रहल छल, संभवत: नीलक फ्लाइटक समए भऽ गेल छल। श्यामा पाछासँ नील और श्यामाक जोड़ी निहारैत रहि गेल छलीह। कतेक सुन्दर जोड़ी अछि- राधा-कृष्ण सदृश्य। नीलिमा कतेक सुन्दर छथि, एकदमसँ नील जोगड़क। लगैत अछि जेना ब्रह्मा फुर्सतमे नीलिमाकेँ गढ़ने होएथिन्ह। सुन्दर, सुडॉल शरीर, श्वेत वर्ण, सुन्दर लम्बाइ, उमंग और उत्साहसँ पूर्ण नीलिमा। नीलिमाक प्रत्येक हाव-भाव सुसंस्कृत होएवाक परिचायक अछि। श्यामा अपलक देखैत रहि गेल छलीह। तावत धरि जावत दुनू श्यामाक आँखिसँ ओझल नहि भऽ गेल छलथि।
घर अएलाक पश्चात् बिनु किछु सोचने आएना लग आबि अपनाकेँ देखय लागल छलीह। केशक एकटा लटमे किछु श्वेत केश देखि श्यामाकेँ आश्चर्य भेल छलन्हि जे एखन धरि हुनक नजरि एहिपर नहि पड़ल छल। फेर जेना श्यामाकेँ संकोच भेल छलन्हि जे अबैत देरी आखिर अएनामे की देख रहल छथि। भरिसक नीलक प्रशंसा एखनहुँ श्यामाकेँ ओहिना आह्लादित कऽ गेल छल। ई तँ किछु वर्ष पहिने होइत छल। आब तँ प्राय: श्यामा नीलकेँ, नीलक संग बितायल क्षणकेँ बिसरवाक प्रयास कऽ रहल छथि। आखिर नील एखन धरि श्यामाक मस्तिष्कपर ओहिना आच्छादित छथि। समएक अन्तराल किछु मिटा नहि सकल। मिटा देलक तँ श्यामाक जिनगी, श्यामाक खुशी। श्यामाक जिनगी भग्न खण्डहर बनि कऽ रहि गेल, जाहिमे नील आइ हुलकी दऽ गेल छलाह। की नील एखन धरि श्यामाकेँ बिसरने नहि छथि? श्यामाक पसन्द एखनहुँ मोन छन्हि? श्यामाक महत्व एखनहुँ बॉंचल अछि? नहि तँ नील एना नहि बजितथि।
चारू-कात देखलनि, ओछाओनसँ लऽ कऽ टेबुल धरि किताब छिड़ियाएल छल। मोन थोड़ेक खौंझा गेल छलन्हि, एहन अस्त-व्यस्त घरक हालत देखि। तथापि किताब एक कात कऽ श्यामा अशोथकित भऽ ओछाओनपर पड़ि रहल छलीह। मोन एकदम थाकि गेल छल, मुदा दिमाग सोचनाइ नहि छोड़ि रहल छल। श्यामा अपन आदत अनुसार डायरी लिखैले बैसि गेल छलीह।
आजुक पन्ना-नीलक नाम-
नील, आजुक पन्ना अहाँक नाम अछि। हमरा बुझल अछि, आब नहि तँ हमर डायरी कहियो जबरदस्ती पढ़ब, नहि हमरा पढ़ब। नील पाँच वर्ष अहाँक संग बिताएल अवधि हमर जीवनक संचित पूँजी थिक, एहि पूँजीकेँ बड़ नुका कऽ मोनक कोनमे राखने छलहुँ। कतहु एहि अमूल्य निधिकेँ बॉटवाक इच्छा नहि छल, कागजक पन्नोपर नहि। मुदा आइ एतेक पैघ अन्तरालक पश्चात, अहाँकेँ देखि मोन अपना वशमे नहि रहल। मोन की हमरा वशमे अछि। अहाँक संग रहि हम तँ दिन-दुनियाँ बिसरि गेल छलहुँ, कहियो किछु कहबाक इच्छा होएबो कएल तँ अहाँ सुनए लेल तैयार नहि भेलहुँ। अहाँ सतत् कहैत रहलहुँ- “हमरा अहाँक मध्य नहि कहियो तेसर मनुष आएत और नहि कोनो व्यर्थक गप्प, बस मात्र हम और अहाँ, और किछु नहि।” हम मन्त्र मुग्ध भऽ अहाँक गप्प सुनैत सभ किछु बिसरि गेल छलहुँ। मुदा आइ सभ किछु बदलि गेल। आइ जँ सभ किछु लिख अहाँकेँ समर्पित नहि कऽ देब तँ मोन और बेचैन भऽ जाएत। अहाँ हमरासँ दूर भऽ गेल छी, तथापि आइ सभ किछु, जे नहि कहि सकल छलहुँ, हम डायरीमे लिख रहल छी। जखन हम अपनाकेँ अहाँकेँ समर्पित कऽ देलहुँ, तखन किछु बचा कऽ राखब उचित नहि।
हमर पिता उच्च विद्यालयमे शिक्षक छलाह, नाम छलन्हि पं. दिवाकर झा। हम दु बहिन एक भाए छी, हम सभसँ पैघ, बहिन श्वेता और भाए विकास। हमर वर्ण किछु कम छल, ताहि कारणे बाबूजी आवेशमे हमर नाम रखलन्हि श्यामा। बाबूजी हरदम कहैत छलाह- “ई हमर बेटी नहि बेटा छथि, हमर जीवनक गौरव छथि श्यामा।” छोट बहिनक नाम श्वेता अछि, श्वेता गौर वर्णक छथि, तेँ माए श्वेता नाम राखने छलथिन्ह। मैट्रिकमे हमरा फर्स्ट डिविजन भेल तँ बाबूजी कतेक प्रसन्न भेल छलाह। महावीर जीकेँ लड्डु चढ़ौने छलाह। सौंसे महल्ला अपनहिसँ प्रसादक लड्डु बॉंटने छलाह। हमरा जिद्दसँ कॉलेजमे हमर नाम लिखओल गेल छल। माए तँ विरोध कएने छलीह। जखन हम बी.ए. पास कऽ गेलहुँ, तँ हमर वियाहक चिन्ता बाबू जीकेँ होमए लागल छलन्हि। एकठाम वियाह ठीक भेल तँ बड़क माए-बहिन हमरा देखय लेल आएल छलथि, मुदा श्वेताकेँ पसिन्न करैत अपन निर्णए सुना देने छलथिन्ह जे अपन बेटाक विआह श्वेतासँ करब। बाबूजी कतेक दुविधामे पड़ि गेल छलाह। पैघ बहिनसँ पहिने छोटक विआह कोना संभव अछि। मुदा माए बाबूजीकेँ बुझाबैत कहने छलथिन्ह-“जे काज भऽ जाइत छैक से भऽ जाइत छैक। विआह तँ लिखलाहा होइत छैक।” नील शास्त्रक कथन अछि-माए बापक असिरवाद फलित होइत छैक। जँ असिरवाद फलित होइत छैक तँ माए बापक निर्णए सन्तानक भाग्यक निर्धारण सेहो करैत हेतैक। भरिसक माएक निर्णए हमर भविष्य भऽ गेल। श्वेताक विआह ओहि वरसँ भऽ गेलनि।
अर्थशास्त्रक एम.ए. कएलाक पश्चात विश्वविद्यालयक पी.जी. डिपार्टमेन्टमे हमरा लेक्चररक नौकरी भऽ गेल। ताहि दिन हमरा बुझाएल छल, जेना जीवनक सभटा उद्देश्य पूरा भऽ गेल अछि। बुझबे नहि कएलहुँ, जे एकरा आगाँ सेहो जिनगी छैक। जावत बुझलहुँ तावत सभ समाप्त भऽ गेल छल। जखन पढ़ैत छलहुँ, महिला शिक्षिकाक पहिरब ओढ़ब, वेश-भूषा हमरा वड़ आकषिर्त करैत छल। हमरा आदर्शमे इहो समाहित भऽ गेल छल। हल्लुक रंग साड़ी पहिरब हमर शौख भऽ गेल छल, भरिसक तेँ हमर जिनगी रंग विहिन भऽ गेल। खैर, बाबुजीक प्रसन्नताक कोनो सीमा नहि छलैन्हि। किछु मासक बाद बाबुजी रिटायर भऽ गेल छलाह। स्कूलक शिक्षकक दरमाहा कम छल, बाबूजीक पेंशनसँ घरक खर्च, विकासक इन्जिनियरिंगक पढ़ाइ संभव नहि छल। हमरा पहिल बेर जहिना दरमाहा भेटल, माएक हाथमे राखि देने छलहुँ, तकरा बाद ई एकटा नियम बनि गेल छल। मुदा बाबुजीक मोनमे सतत् एकटा अपराध बोध होइत छलैन्ह। बाबुजी मुँहसँ तँ किदु नहि बजैत छलाह, मुदा हुनक आँखि सभ किछु कहि दैत छल। किछु दिनक बाद बाबुजी एकदमसँ चुप रहए लागल छलाह। माएक व्यवहारमे सेहो परिवर्त्तन भऽ गेल छलैन्ह। हमरा प्रति बाबुजी माएक सिनेह क्रमश: आदरमे परिवर्तित होअए लागल छल। शुरू-शुरूमे एहि आदरसँ हम कतेक असहज भऽ जाइत छलहुँ, पहिने छोट-छोट चीज लेल जिद्दक अधिकार छल, मुदा ई आदर तँ हमरा बहुत रास अधिकारसँ वंचित कऽ देलक। हमरा सतत् लगैत छल जे आहिस्ता-आहिस्ता कर्त्तव्य मजबूत पाशमे हम बान्हल जा रहल छी। हमर स्वतन्त्रता छोट होइत गेल और हम असमए पैघ होइत गेलहुँ। तावत धरि हम बुझवे नहि कएलहुँ जे प्रत्येक मनुष्यक व्यक्तिगत जिनगी होइत अछि, भविष्यक कल्पना होइत अछि और होइत अछि उमंग, उत्साह।
बाबुजीक मृत्यु हार्ट अटैक सँ भऽ गेलनि। मृत्युकाल बाबुजीक मुँहपर आच्छादित निरीह भाव, आँखिमे पश्चाताप, ओहिना मोन अछि। बाबुजीक मुँहसँ किदु नहि कहलैथ, मुदा हुनका आँखिक कातरता सभ किदु कहि गेल। आब हम घरक मात्र बेटी नहि रहि गेल छलहुँ। हम घरक कमौआ बेटी, पालन केनिहारि गार्जियन भऽ गेल छलहुँ। विकास पढ़ैत छलाह, हुनक पढ़ाइ, विवाह सभटा हमर उत्तरदायित्व भऽ गेल। ई छोट-छीन गृहस्थी समएक अनुसार चलैत रहल। विकासक पढ़ाइ समाप्त भऽ गेल छलनि, विवाह लेल कन्यागत आवए लागल छलाह। विकाससँ हम विवाह लेल पुछलहुँ, पहिने तँ ओ तैयार नहि भेलाह, बेर-बेर कहैत रहलाह- “दीदी, जावत अहाँक विआह नहि अएत, हम विआह नहि करब।” कतेक बुझौने छलहुँ, अन्तमे हमरा कहए पड़ल जे अहाँक विआह, सेट्लमेन्ट, अहाँक घर बसाएब हमर दायित्व अछि, तखन विकास स्वीकृति देने छलाह। कतेक उत्साहसँ विकासक विवाह कएने छलहुँ। पी.एफ.सँ अधिकतम लोन लऽ कऽ सभटा खर्च कएलहुँ। एक-एक वस्तु कपड़ा, गहना माए अपना इच्छासँ कीनने छलीह। विकासक विवाह सम्भ्रान्त परिवारमे भेल, कनिया पढ़ल-लिखल सुन्दर सुशील छथि। मुदा एकटा बात अछि, सुशीलो व्यक्ति मुँहसँ कहियो एहन कटुसत्य बहरा जाइत अछि, जकर प्रहारसँ दोसरक आत्मा छिन्न-भिन्न भऽ जाइत छैक। एक बेरक घटना हमरा एखन धरि बिसरल नहि भेल अछि, होएबो नहि करत। विकासक बेटा मोनु स्कूल गेल छल, स्कूलसँ अएबामे थोड़ेक देरी भऽ रहल छलैक। विकासक कनियाँ पूजाक बेचैनी देखि हमरा रहल नहि गेल। हम पूजाकेँ भरोस दैत कहने छलहुँ- “परेशान नहि होउ, मोनु अबैत हएत, किछु कारण भऽ गेल हेतैक।”
पूजा निछोह भेल बाजि गेल छलीह- “अहाँ की बुझबैक सन्तानक दर्द। एतेक सुनैत।”
हम अवाक रहि गेल छलहुँ। पूजा कहलैथ तँ सत्य। मुदा ई सत्य एतेक कटु छल जे हमर आत्मा क्षत-विक्षत भऽ गेल। की हमरा मोनमे मोनु, पूजा आ विकास लेल सिनेह नहि छल। की मात्र कोखिसँ जन्म देलासँ मातृत्वक भाव अबैत छैक? की हम विकासक भविष्यक चिन्तामे अपन जीवन उत्सर्ग नहि कऽ देलहुँ? हमर एतवे महत्व। खएर पूजा नहि बुझैत छथि ताहिसँ की। विकास तँ हमरा बुझैत छथि। यएह सोचि मोनकेँ सांत्वना दैत रहलहु। मुदा मोन की सांत्वनाक भाषा बुझैत छैक। मुँहसँ तँ किछु नहि बाजि सकललहुँ। मुदा तकरा पश्चात् एकटा हीन-भाव क्रमश: हमरा मोनमे बढ़ैत गेल। आब बेधड़क मोनुकेँ दुलारो करवामे हमरा संकोच होअए लागल छल। पहिने हम जाहि अधिकारसँ पूजा मोनुक संग रहैत छलहुँ, आब संकोच होअए लागल छल। नहि जानि कोन बात पूजाकेँ अप्रिय लागि जएतनि, किछु कहैसँ पहिने अनायास सर्तक भऽ जाइत छलहुँ। किछु दिनक वाद विकासकेँ इग्लैण्डमे बढ़िया नौकरी भऽ गेल छलैन्ह। िवकास हमर सहमतिक बाद विदेशक नौकरी स्वीकार कएने छलाह। आइओ मोन अछि, जाहि दिन विकास सपरिवार विदेश गेल छलाह, ओहि राति हमरे बिछाैनपर सुतल छला। विकास कतेक कानल छलाह, हमहुँ अपनाकेँ रोकि नहि सकल छलहुँ। विकास जाइतो काल एकेटा बात कहने छलाह- “दीदी, बाब अहाँ कोना रहब, अपन ख्याल राखब।” ओना विकास छथि तँ हमरासँ छह वर्ष छोट, मुदा परिवारक परिस्थिति हुनकहुँ बुजुर्ग बना देने छल। विकास छोट छथि, ताहिसँ की। यएह उत्तरदायित्व बोध तँ पुरूषक पुरूषत्वक छिऐक, जाहिसँ ओ परिवारक गार्जियन भऽ जाइत अछि। बाबुजीक मृत्युक पश्चात विकास टुटलथि नहि, किएक तँ सहारा हम भऽ गेल छलहुँ। मुदा जावत विकास सभ तरहसँ व्यवस्थित भऽ गेलथि। हमरो उत्तरदायित्व लेवय चाहैत छलाह। खएर विकास विदेश चलि गेलथि। हमहुँ निश्चिन्त भऽ गेल छलहुँ। आव घरमे मात्र हम और माए बचि गेल छलहुँ। कोनो उत्साह नहि, समए अपनहि बितैत जाइत अछि, जिनगीओ बित रहल छल।
ओहि समएमे नील वसंतक झोंक बनि अहाँ हमर जिनगीमे आएल छलहुँ। हमरा एखनहुँ ओहिना मोन अछि, हम कॉलेज जएबा लेल तैयार भऽ कऽ घरसँ निकलल छलहुँ। रिक्शा थोड़ेक दूर चौराहापर भेटैत छल। अहाँ हमरा बगलमे गाड़ी रोकि कतेक विश्वाससँ बाजल छलहुँ- “हम नील, एयर इण्डियामे पाएलट छी, अहाँक पड़ोसी, अहाँ कतए जाएब, चलू छोड़ि दैत छी।” हम निर्विकार स्वरे अहाँक अस्वीकार कऽ देने छलहुँ। अहाँ फेर बाजल छलहुँ- “हम अपना परिचए तँ दऽ देलहुँ, अहुँ तँ किछु बाजु।”
हम अहाँकेँ टारवाक उद्देश्यसँ कहने छलहुँ- “हमर नाम श्यामा छी, और हम विश्वविद्यालयक पोस्ट ग्रेजुएट विभागमे अर्थशास्त्र पढ़बैत छी।”
अहाँ कनेक मुस्कुराइत, हमरा दिश तकैत गाड़ीमे बैसि गेल छलहुँ। नील अहाँक मुहँक स्मित भाव, आत्मविश्वाससँ भरल स्वर, हमरा मस्तिष्कमे एहन कऽ अंकित भऽ गेल जे एतेक वर्ष बितलाक पश्चातो ओहिना सभटा मोन अछि। लगैत अछि जेना ई आजुक घटना थिक। तकरा बाद आठ दिन धरि अहाँसँ भेँट नहि भेल छल। नहि जानि किएक कोनमे नुकाएल अहाँसँ भेँटक इच्छा बलवति होअए लागल छल। तकरा बाद एक दिन जखन हम िडर्पाटमेन्टमे बैसल छलहुँ, चपरासी समाद कहने छल जे विजिटिंग रूपमे एक गोटे भेँट करवा लेल बैसल छथि, और अहाँक कार्ड हमरा देने छल। नाम पढ़ि हम कतेक उद्विग्न भऽ गेल छलहुँ और अहाँ कतेक अह्लादित होइत, मुस्कुराइत हमर स्वागत कएने छलहुँ। हमरा लागल छल जेना एहि मुस्कुराहटसँ हम कतेक परिचित छी। बिना किछु पुछने अहाँ जल्दी-जल्दी बाजल छलहुँ जे फ्लाइट लऽ कऽ अहाँ अमेरिका गेल छलहुँ, ताहि कारणे एतेक देरी भऽ गेल। किंचित अहाँक हड़बड़ी बजवाक शैली सुनि हमरा हँसि लागि गेल छल। और अहाँ आर्श्चचकित होइत बाजल छलहुँ जे- भगवानक शुक्र अिछ, अहाँ हँसलहुँ तऽ।”
और कॉफि हाउसक अहाँक निमन्त्रण हम अस्वीकार नहि कऽ सकल छलहुँ। ओहि दिन अहाँसँ दाेसर बेर भेँट कॉफी आउसमे भेल छल। बिना किछु पुछने अहाँ अपन विषएमे कहने छलहुँ जे अहाँक माँ, बाबुजी दुनू डॉक्टर छथि, अहाँ बैचलर छी और माँ-बाबुजीक एक मात्र सन्तान छी, उम्र पचीस वर्ष अछि, एयर इण्डियामे पायलट छी। हम ताहिपर कहने छलहुँ जे हमर उम्र तीस वर्ष अछि। हमर बात सुनि अहाँ हँसैत कहने छलहुँ जे- “दोस्तीमे उम्र कतयसँ आबि गेल।” तकरा बाद अहाँ कहलहुँ जे पता लगा लेने छी जे आहाँ हॉस्टल सुपरिटेन्डेन्ट भऽ गेल छी और सुपरिटेन्डेन्ट क्वाटरमे शिफ्ट कऽ गेल छी। नील, हम कोना कऽ कहितहुँ जे हम अपन घर छोड़ि क्वाटरमे किएक शिफ्ट कऽ गेलहुँ। भला लाजक बात की बाजल जाइत छैक।
असलमे ई भेल छल जे श्वेता हमर छोट बहिनक पतिक ट्रान्स्फर अहि शहरमे भऽ गेल छल, माएक घरपर तँ श्वेताक अधिकार सेहो छल, श्वेता अपन पति और बच्चाक संग माएक घरमे रहय लेल आबि गेल छलीह। माएकेँ बड्ड प्रसन्नता भेल छलैन्ह और माएक प्रसन्नता देखि हम चुप रहि गेल छलहुँ। नहि जानि किएक हमरा नीक नहि लागल छल, यद्यपि घरक वातावरण बदलि गेल छल मुदा हमरा श्वेताक पतिक सभ किछुमे दखल अन्दाजी नीक नहि लगैत छल। हम बेचैन रहय लागल छलहुँ। माए सेहो हमर भावनासँ अनभिज्ञ छलीह। संयोगसँ हाेस्टल सुपरिटेन्डेन्ट बनवाक हमरा अवसर भेटल और हम एहि अवसरकेँ वरदान बुझि स्वीकार कऽ लेलहुँ। एहि पद लेल हमरासँ वेशी उपयुक्त और कोनहुँ महिला शिक्षिका नहि छलीह। किएक तँ सभ शादी-सुदा छथि, सभकेँ परिवार छन्हि, गृहस्थी छन्हि और हमरा तँ नहि आगु नाथ नहि पाछु पगहा। यद्यपि संजोगि कऽ बसाएल घरसँ हमर ई पलायन छल मुदा छल उपयुक्त अवसर, हम होस्टल शिफ्ट कऽ गेलहुँ।
क्रमश:
४
बेचन ठाकुर बेटीक अपमान
दृश्य छठम-
(स्थान-दीपक चौधरी आवास। दलानपर दीपक चिन्तित मुद्रामे बैसल छथि। ललका धोती ओ बदामी कुरता पहिरने छथि। तखनहि दीपकक एकटा पड़ोसीक प्रवेश जनिक नाम झामलाल महतो छन्हि।
झामलाल- (दीपकसँ) की यौ दीपक बाबू, बड़ मनहुस देखि रहल छी। की कारण थिकैक।
दीपक- नहि कोनो खास बात।
झामलाल- जखन कोनो खास बात नहि अछि तखन एना चिन्तित किएक छी? हमरा लागि रहल अछि जे समधीन अहाँकेँ अपन ओजारसँ घरमे बन्द कए थुरलन्हि।
दीपक- छोड़ू मजाक-तजाक। एखन हमरा अनसोहाँत नीक नहि लागैत अछि। गूड़क मारि धोकरे जानैत अछि। अपन हारल बौहक मारल छी
झामलाल- समधीन रातिमे गरम दूध नहि पीएलन्हि?
दीपक- किएक कप्पार खाइत छी? चुपचाप बैसू।
झामलाल- चुपचाप हम किएक बैसब? हम अहीं जेकाँ बौहक मारल छी क? दीपक बाबू, चिन्ता फीकीर छोड़ू। कहु की भए गेल? (हँसि कऽ)
दीपक- अहाँ नहिए मानब की?
झामलाल- कोना मानब? हम किनको उदास देखैले नहि चाहैत छी। ताहुमे अहाँ पड़ोसी िथकहुँ। हरदम प्रसन्न रहू, प्रसन्न।
दीपक- की प्रसन्न रहब झामलाल? मामापर पूर्ण विश्वास कए ई कुटमैटी कएलहुँ। मामा गरदनिमे फाँस लगा देलक।
झामलाल- से की?
दीपक- यएह जे सोन सनक बेटाकेँ टलहा सनक स्वागत नहि नगद, नहि बरतन, नहि बासन, नहि कपड़ा, नहि लत्ता, नहि लकड़ी, नहि बकरी, नहि डाली, नहि हारी, नहि बिदाइ, नहि गोर लगाइ। सभ किछुमे ठक-ठक सीताराम।
झामलाल- ई तँ साफे ठकि लेलनि कुटुम। अहाँ एहेन खतम छी, से नहि बुझल छल।
दीपक- देलनि कुटुम सभ किछु। मुदा जत्तऽ एक लाख होएबाक चाही ओत्तऽ सिरीफ एक सए। दूधक डारही।
झामलाल- बहुते भेटल दीपक बाबू बहुते। बेचारा नवका मास्टर छथि। जे हुनका संभव भेलनि, से सभ किछु देलनि आ अहींक बेटा कोनो हाकिम-हुकुम छथि की? छेाड़ू लेन-दन, दहेज-तहेज। कहु लड़िकी केहेन भेटल?
दीपक- हँ ई पुछलहुँ खल से। (प्रसन्न भए) लड़िकी तँ सौंसे गाममे एहेन सुन्नरि नहि हेतीह। हजारोमे नहि लाखमे एगो छथि। देखबनि तँ जीसँ पानि खसि पड़त।
झामलाल- तहन अहाँ हारल नहि छी, जीतल छी। बाजी मारि लेने छी एहि अल्ट्रसाउण्डक जुगमे। देखब, किछु दिनक बाद बेटी बिलुप्त भए जेतीह। सौं कतउ- कतउ भेटबो करतीह तँ ओकरा बाबा डिहबार जेकाँ पूजा करए पड़त। एहि देहेजक जुगमे ओ अल्ट्रासाउण्डक जुगमे बेटी बनि जाएत पीर मियां। अोहिमे अहाँ एखन धरि छक्का मारने छी।
दीपक- से तँ जे कही। मुदा दहेजक लोभमे करजा कऽ कए धुमधामसँ बेटा बियाहलहुँ। ओहिमे भेटल डपोरशंख। हम एहि चिन्तेँ मरि जाएब।
झामलाल- हम तँ अहाँकेँ कहब जे भगवतीपर भरोसा राखी आ हरदम प्रसन्न रही। मुदा अपनेक जे विचार? हम जए रहल छी दीपक बाबू। हमरा पोखरि दिशि लागि गेल अछि। हमरा गोटेक सप्ताहसँ सुलबाइ भए रहल अछि।
दीपक- तहन जल्दी जाउ पोखरि दिशि।
(झामलाल धोती पकड़ने भागलथि)
तेँ बड़ी कालसँ पहकैत छल। नाक नहि देल जाइत छल। (फेर चिन्तित मुद्रामे बैसैत छथि)
एहेन बुझितहुँ तँ बेटाक बियाह नहि करितहुँ। सोचने रही जे ओ जमीन कीनि कऽ मकान बनैबतहुँ ओ करजा-बरजा झारितहुँ। मुदा आब तँ करजो सधेनाइ मुश्किल। एक तँ हम बेमार रहैत छी आ दोसर माथपर करजाक बोझ आब हम एहि बेत्थेँ मरि जाएब, लागि रहल अछि।
*पटाक्षेप*
अंक तेसर
दृश्य पहिल-
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