शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
मैथिली उपन्यास साहित्यमे दलित पात्रक चित्रण
उपन्यास कोनो गद्य साहित्य रूपी व्यष्टिक आत्मा मानल जाइत अछि। मैथिली साहित्यमे लगभग सए वर्ख पूर्व धरि उपन्यास विधाक रचना लगभग शून्य छल। एहि कारण ओहि अवधि धरि मैथिलीकेँ पूर्ण साहित्यिक भाषा नहि मानल जाइत छल। जनसीदन जी एहि भाषा साहित्यक पहिल मान्य उपन्यासकार छथि। हिनक पाँच गोट उपन्यासक पश्चात् एखन धरि देसिल वयनामे साहित्यक समग्र विधाक चित्रण करैत बहुत रास उपन्यास पाठक धरि पहुँचल अछि। परंच एहि साहित्यक संग सभसँ पैघ बिडम्वना रहल जे पछातिक समाज जकरा सामाजिक शब्दमे दलित कहल जाइत अछि, ओकर महिमामंडनक गप्प तँ दूर प्राय: एहि साहित्यमे अकस्मात् अवांछित अभ्यागत्तक रूपमे क्षणप्रभा जकाँ कतहु-कतहु चर्चित अछि। दलित वर्ग तँ सामाजिक, सांस्कृतिक आ शैक्षणिक रूपेँ सम्पूर्ण आर्यावर्त्तमे पिछड़ल छथि, मुदा मिथिला-मैथिलीमे हिनक स्थानक विवेचन हिनका सबहक जाति जकाँ अछोप अछि। एकर प्रमुख कारण मिथिलामे धर्मसुधार आन्दोलन, विधवा विवाहक सकारात्मक दृष्टकोण प्राय: मृतप्राय रहि गेल। दार्शनिक उदयानाचार्य, भारती-मंडन, आयाचीक एहि भूमिपर सनातन संस्कृतिक पुनरूद्वार तँ भेल, मुदा एहि पुनरूद्वारपर आडंवर धर्मी व्यवस्थाक अमरतत्ती मूल संस्कृतिक विम्वकेँ सुखा देलक। समाजक साम्यवादी सोच भगजोगिनी बनि सवर्ण-दलितक मध्य भिन्न सामाजिक दशाक मध्य मात्र टिमटिमाइत रहल। एहि कारण सम्यक दृष्टिकोण रहितहुँ मैथिली भाषाक स्थापित रचनाकारक लेखनी व्यथित आ शोषित दलितक मर्मस्पर्शी जीवन गाथाकेँ प्रकाशित नहि कऽ सकल। कथा-कविता आ गल्पमे तँ दलितक चित्रण भेटैत अिछ, मुदा उपन्यासमे अत्यल्प। अपन व्यथाक विवेचन दलित वर्गक साहित्यकार सेहो नहि कऽ सकलाह, किएक तँ हिनक संख्या एखन धरि नगन्य अछि। संभवत: दलित रचनाकारक उपन्यास अपन वयनामे मैथिलीकेँ एखन धरि नहि भेटलनि।
सभसँ जनप्रिय उपन्यासकार हरिमोहन झाक साहित्यमे दलित वर्ग अनुपस्थित जकाँ छथि। यात्रीक बलचनमा ओना एहि वर्ग दिस संकेत करैत अछि ओहिना जेना ललितक पृथ्वीपूत्र, धूमकेतुक मोड़ पर आ रमानंद रेणुक दूध-फूल। यात्रीक पारो आ नवतुरिया विषयक चयनक कारण दलित वर्ग दिस ध्यान नहि दऽ सकल। धीरेश्वर झा ‘धीरेन्द्र’क ‘कादो ओ कोयला’ छोट लोकक विरनीक कथा कहैत अछि तँ हुनकर ‘ठुमकि बहू कमला’मे दलित वर्गक संघर्षक कथा ठीठर आ रामकिसुनक माध्यमसँ कहल गेल अछि। मणिपद्ममक उपन्यासक राजा सहलेस दलित दुसाधक नायक सहलेसक कथा कहैत अछि तँ ‘लोरिक विजय’ उपन्यासक नायक तँ यादव छथि मुदा हुनका मित्र वर्गमे बंठा चमार, वारू पासवान, राजल धोबी, ई सभ दलित वर्गक छथि- लोरिकक किछु विरोधी सेहो दलित वर्गक शासक छथि- मोचलि- गजभीमलि, हरवा आदि बंठाक संहार परिस्थितिवश करैत छथि आ ताहिसँ लोरिक विजयमे दलित कथाक ढेर रास प्रसंग आएल अछि। नैका बनिजारामे सेहो नैकाक पत्नी फुलेश्वरीकेँ किनवाक वर्णन अछि। हुनकर फुटपाथ भिखमंगा सबहक कथा कहैत अछि तँ लिलीरेक पटाक्षेप भूमिहीनक नक्सलवाड़ी आन्दोलनक कथा कहैत अछि।
आधुनिक कालक प्रसिद्ध उपन्यासकार विद्यानाथ झा ‘विदित’जी एहि विषयपर अपन लेखनीकेँ कोशीक भदैया धार जकाँ झमाड़ि कऽ प्रयोग कएलनि। ओना तँ विदित जी एखन धरि आठ-नौ गोट उपन्यासक रचना कएलनि अछि, परंच हिनक तीन गोट उपन्यासमे दलितक दशाक चित्रण मैथिली साहित्यक लेल अपूर्व निधि मानल जा सकैछ। हिनक विप्लवी बेसराक कथामे आदिवासीक कथा धौना, टेकू सुफल, बांसुरी, मोहरीलाल, गौरी, मारसक संग सफलता पूर्वक कहल गेल अछि। ‘कौसिलिया’ उपन्यासमे तँ फुलिया चमैनक पात्रताक चित्रण अनुपमेय अछि। विदित जीक तेसर उपन्यास ‘मानव कल्प’मे मिथिला, अंग आ झारखंडक ऑचरमे बसल लगभग सम्पूर्ण दलित समाजक विवेचन कएल गेल।
ओना तँ श्रीमती शेफालिका वर्मा जी मानव धर्मी रचनाकार छथि। हिनक समग्र साहित्यिक कृतिमे ‘जाति’ शब्द भूमंडलीकृत अछि। ‘नाग फांस’ उपन्यासमे जातिवादी व्यवस्थासँ शेफालिका जी बचबाक प्रयास कएलनि, परंच एहि उपन्यासक एकटा पात्र आकाशक पत्नी तरंगक प्रकृतिसँ बुझना जाइत अछि, जे ओ दलित छथि।
कहबाक लेल तँ सभ साहित्यकार अपनाकेँ साम्यवादी कहैत छथि मुदा साम्यवादी जीवन शैलीक जौं चर्च कएल जाए तँ संभवत: मैथिलीक सर्वकालीन साहित्यमे ध्रुवताराक स्थान श्री जगदीश प्रसाद मंडल जीकेँ भेटबाक चाही। हिनक सभ उपन्यास (मौलाइल गाछक फूल, जिनगीक जीत, जीवन-मरण, जीवन-संघर्ष, उत्थान-पतन)मे दलितक चित्रण अनायास भेटि जाइत अछि। लिखवाक शैली ओ विम्वक चयन ततेक पारदर्शी जे सवर्ण- दलितक मध्य कोनो खाधि नहि। सम्पूर्ण समाजमे सकारात्मक तारतम्य स्थापित करवाक जगदीश जीक स्वप्न मात्र उपन्यासमे नहि रहत, एहिसँ मिथिलाक समाजिक परिस्थितिमे भविष्यमे ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:....। सिद्धान्तक स्थापना अवश्य हएत। हिनक अविरल मर्मस्पर्शी आ प्रयोगधर्मी कृति ‘मौलाइल गाछक फूल’मे दलित समाजक महादलित मुसहर जातिक रोगही, बेंगवा, कबुतरीक मनोदशा आ नित्यकर्मसँ समाजमे शांतिक ज्योति जगएबाक कल्पना अनमोल अछि। दड़िभंगाक प्लेटफार्मपर सँ भंगी डोमक मानवीय भावनाक मारीचिका एकठॉ भक्क दऽ उगि जाइत अछि। भजुआ, झोलिया आ कुसेसरी सभ सेहो डोम जातिक छथि जिनकर सहायता सम्यक सोचबला ब्राह्मण रमाकान्त जी करैत छथि। एहि कृतिक सभसँ अजगुत पात्र छथि रमाकान्त जी। हिनक छोट पुत्र कालक डाँगसँ अधमरू वनिता सुजाता जे धोविन छथि तिनकासँ विवाह कऽ लैत छथि। विवाहे टा नहि विवाहसँ शिक्षा ग्रहन करवाक लेल प्रेरणा आ अर्थ सेहो सुजाताकेँ भेटलनि जाहिसँ ओ डाॅ. सुजाता बनि गेली। गाममे रहनिहार आ अपन मातृभूमिक प्रति असीम श्रद्धा रखनिहार रमाकान्त बाबूकेँ अपन पुत्र महेन्द्रक एहि निर्णएसँ कोनो पीड़ा नहि भेलनि। हिनक सम्पूर्ण परिवार एहि निर्णएकेँ सहृदय स्वीकार कऽ लेलकनि।
जगदीश बाबूक दोसर उपन्यास ‘जीवन-मरण’मे हेलन-गुदरी डोम दम्पतिक चर्च कएल गेल अछि। जीबछ, छीतन, रंगलाल चमार जातिसँ सम्बन्ध रखैत छथि। जिनगीक जीत उपन्यासमे पलहनिक नेपथ्यक पात्रता दर्शित अछि।
गजेन्द्र ठाकुरक ‘सहस्त्रबाढ़नि’मे दम्माक जड़ी एकटा आदिवासी द्वारा आनव आ िकछु वर्ख वाद ओ जड़ी जंगलमे नै भेटब वोन कम होएवा दिस संकेत करैत अछि तँ हुनकर ‘सहस्त्रशीर्षा’ मिथिलाक लगभग सभ दलित जातिक विष्तृत विवेचना करैत अछि। तीनटा घरक रहलोपर धोविया टोली एकटा टोल बनि गेल अछि। झंझारपुर धरि मारवाड़ीक कपड़ा एतए साफ कएल जाइत अछि। महिसवार ब्रह्मण सभ जे बरियातीमे बेलवटम झाड़ि कऽ सीटि-सीटि कऽ निकलैत छथि से कोनो अपन कपड़ा पहिरि कऽ। बैह मंगनिया कपड़ा, महगौआ मारवाड़ी सभक। मारवाड़ी सभक ई कपड़ा रजक भाय दू दिन लेल भाड़ापर हिनका सभकेँ दैत छथिन्ह। कोरैल बुधन आ डोमी साफी, धोवि। डोमी साफी आब डोमी दास छथि, कारण कबीरपंथी जोतै छथि। फेर एकटा आर टोल, चमरटोली अछि। चमार- मुखदेब राम आ कपिलदेव राम। पहिने गामसँ बाहर रहए, बसबिट्टीक बाद। मुदा आब तँ सभ बाॅस काटि कऽ उपटाए देने अछि आ लोकक वसोबास बढ़ैत-बढ़ैत एहि चमरटोली धरि आबि गेल अछि। घरहट आ ईंटा-पजेबा सभ अगल-बगलमे खसिते रहैत अछि। ढोलहो देबासँ लऽ कऽ सिंगा बजेबा धरिमे हिनकर सबहक सहयोग अपेक्षित। गाए-माल मरलाक बाद जा धरि ई सभ उठा कऽ नहि लऽ जाइत छथि लोकक घरमे छुतका लागले रहैत अछि। भोला पासवान आ मुकेश पासवान, दुसाध। गेना हजारीक निचुलका खाड़ीक संबंधी। वएह गेना हजारी जे कुशेश्वर स्थानमे एकटा कुशपर गाए द्वरा आबि कऽ दूध दैत देखने रहथि तँ ओहि स्थानकेँ कोड़ए लगलाह, महादेव नीचाँ होइत गेलाह, सीतापुत्र कुश द्वारा स्थापित ई महादेव गेना हजारीक ताकल।
मुकेश पासवानक बेटी मालती बैंक अधिकारी छथिन्ह आ जमाए मथुरानंद डी.पी.एस. स्कूलक प्रचार्य छथि, वसंत-कुंज लग फार्म हाउसमे रहै जाइ छथि। भोला पासवान आ मुकेश पासवान गामेमे रहै जाइ छथि।
1967ई.क अकालमे जखन सभटा पोखरि, गड़खै सुखा गेल मुदा डकही पोखरि नहि सुखाएल प्रधानमंत्री आएल रहथि तँ हुनका देखेने रहन्हि सभ जे कोना एतए सँ बिसॉढ़ कोड़ि कऽ मुसहर सभ खाइत छथि। चर्मकार मुखदेव रामक बेटा उमेश सेहो ओहि मुक्ताकाश सैलूनक बगलमे अपन असला-खसला खसा लेने अछि, रहैए मुदा किशनगढ़मे। चप्पल, जुताक मरो-म्मतिक अलावे तालाक डुप्लीकेट चाभी बनेबाक हुनर सेहो सीखि लेने अछि। कुंजी अछि तँ ओकर डुप्लीकेट पंद्रह टाकामे। कुंजी हेरा गेल अछि तँ तकर डुप्लीकेट सए टाकामे। आ जे घर लऽ जएवन्हि तँ तकर फीस दू सए टाका अतिरिक्त। मुसहर बिचकुन सदायक बेटा रघुवीर ड्राइवरी सीखि लेने अछि। वसंत कुंजक एकटा व्यवसायीक ओहिठाम ड्राइवरी करैए आ रहैत अछि किसनगढ़मे। डोमटोलीक बौधा मल्लिक बेटा श्रीमंत सेक्टरक मेन्टेन्सक ठेका लेने छथि। हुनका लग दू सए गोटे छन्हि जे सभ क्वार्टरक कूड़ा सभ दिन भोरमे उठेवाक संग रोड आ पार्किगक भोरे-भोर सफाइ करै छथि। एहिमे सँ किछु गोटे विशेष कऽ नेपालक भोरे-भोर लोकक शीसा महिनवारी दू सए टाकामे पोछै छथि आ अखबारक हॉकर बनल छथि। रहै छथि किशनगढ़मे मुदा अपन मकानमे- मुसहर बिचकुन सदाय।
दलित संस्कृतिक प्रति उदासीनताक मुख्य कारण अछि समाजमे पसरल छूति व्यवस्था। ओना तँ एहि प्रकारक अवस्था प्राय: सम्पूर्ण आर्यावर्त्तमे रहल अछि, परंच आन ठामक जनभाषासँ दोसर धर्मक लोकक हृदयगत स्पर्शक कारण दलित संस्कारक चित्रण आन भाषामे मैथिलीसँ वेसी भेटैत अछि। मिथिलामे तँ इस्लाम धर्मी छथि, परंच मातृभाषा मैथिली रहलाक वादो हुनका सबहक मध्य साहित्यक सृजनशीलता उदासीन रहल। एकरा मैथिलीक दुर्भाग्य मानल जा सकैत अछि जे एखन धरि एहि भाषामे दलित वर्गसँ उपजल साहित्यकार उपन्यास नहि लिखि सकलनि। प्राय: यएह स्थिति इस्लाम धर्मी साहित्यकारक संग सेहो अछि। फजलुर रहमान हासमी, मंजर सुलेमान सन साहित्यकार तँ मैथिलीकेँ आत्मसात कएलनि परंच उपन्यासकार नहि बनि सकलाहेँ। ई लिखबाक तात्पर्य जे इस्लाममे जातिवादी व्यवस्था सनातन सांस्कृतिक अपेक्षाकृत न्यून अछि।
दलित वर्गक संख्या मिथिलामे लगभग आठ आना अछि, संपूर्ण समाजक मातृभाषा मैथिली, मुदा शिक्षा-चेतनाक अभावक कारण एहि वर्गमे मैथिली साहित्यक प्रति सृजनात्मक दृष्टिकोण नहि पनपि सकल। आगॉक जातिमे सम्यक् िवचारक अभाव रहल अछि, किछु साहित्यकार एहि परिधिसँ तँ बाहर छथि परंच वर्गक बीचक खाधि लक्ष्मण रेखा बनि हुनको सभमे जनभाषा वाचकक प्रति सिनेह नहि आबए देलक। संभवत: मैथिली आर्यभाषा समूहक पहिल जनभाषा थिक जकरापर जातिवादी कलंक लागल अछि। संस्कृतक संग यएह विडंवना रहल परंच ओ कहिओ जनभाषा नहि रहल। जखन कि मैथिली वर्तमान कालमे सवर्णसँ बेसी दलित-पछातिक मातृभाषा अछि। पलायन तँ सभ जाति समूहमे भऽ रहल अछि परंच मजदूरी केनिहार दलित प्रवासमे सेहो मैथिलीकेँ आत्मसात कएने छथि। एकर विपरीत मिथिलामे रहनिहार सवर्ण परिवारक आधुनिक पिरहीक नेना वर्गमे मातृभाषाक स्थान हिन्दी लऽ रहल अछि। ‘ज्योतिक-कोखि अन्हार’ जकाँ मातृभाषाक वास्तविक संरक्षकक विवेचन एहि साहित्यक उन्नयनक नहि कऽ रहल छथि। उतर विहारक बेस रास स्थानमे पसरल मैथिली तँ कखनो-कखनो मात्र मधुबनी दड़िभंगाक मातृभाषा प्रमाणित कएल जाइत अछि।
रचनाकारक दृष्टिकोण रचनामे किछु आर आ वास्तविक जीवनमे किछु आर रहल। साम्यवादी व्यवस्थापर सियाहीक प्रयोग केनिहार उपन्यासकारमे वास्तविकता जौं रूढ़िवादी रहत तँ सम्यक समाजक कल्पनो करब असंभव। व्यथा वएह बूझि सकैत अछि जकरामे जीवन्त अविरल हृदय हो वा स्वयं व्यथित हुअए।
निष्कर्षत: आशक संग-संग विश्वास अछि जे वर्तमान युगक साहित्यकार समाजक कात लागल वर्गक प्रति सिनेही बनि मैथिली साहित्यकेँ गरिमामयी बनाबथु। पूर्वाग्रहकेँ अनुगृहीत करबाक पश्चात एहेन कल्पना-वास्तविक भऽ सकैत अछि। जौं अपमानित अछोपकेँ सम्मानित कएल जाए तँ मिथिला पुनि ओहि मिथिलामे परिणत भऽ सकैत अछि जतए राजा जनक परिवार, समाज आ राज्यहितमे धर्मक पालनक हेतु राजासँ हरबाह बनि गेलनि।
गाम,पोस्ट- करियन
भाया- इलमासपुर
जिला- समस्तीपुर
रमाकान्त राय ‘रमा’ नव गीतक पुरोधा : महाकवि प्रवासी
महाकवि मार्कण्डेय प्रवासी (01-07-1942—13-06-2010)
पछिला शताब्दीक सातम दशकक प्राय: दोसर-तेसर वर्षसँ साहित्य जगतमे प्रवेश कएलनि। पहिने ओ राष्ट्रभाषा हिन्दीमे लिखैत छलाह। वादमे मातृभाषा मैथिली दिस उन्मुख भेलाह। हुनक प्रकाशित पहिल काव्य ग्रंथ ‘शंखध्वनि’ हिन्दीए कविताक संकलन अछि।
जखन ओ आजीविका हेतु पटनासँ प्रकाशित सुप्रतिष्ठित दैनिक पत्र ‘आर्यावर्त’मे उपसंपादकक रूपमे सुव्यवस्थित भऽ गेलाह, तखन हुनक लेखनमे गत्वरता आ प्रौढ़ता आएल। स्फुट रचनाक अतिरिक्त ओ मैथिली अकादेमी, द्वारा देल गेल अनुबंधक अनुरूप अत्यल्प अवधिमे ‘अगस्त्यायनी’ महाकाव्य लिखि अपन अप्रतिम-प्रतिभाक प्रदर्शन कएने छलाह। महाकाव्यक लेखन लेल प्रौढ़ावस्था आ अधिक समएक अपेक्षा होइत छैक, जखन लोक जीवन उतार-चढ़ाव, हानि-लाभ, अिहत-हित, शभु-मित्र इत्यादिक संग-संग दुनियादारीक सभटा अनुभव प्राप्त कऽ चुकल रहैत अछि। मुदा प्रवासी जी मात्र 36-37क अल्प वएसमे ‘अगस्त्यायनी’ लिखि कऽ एकटा नव मान दण्ड स्थापित कएलनि जे एखन धरि विरले कोनो भाषामे भेल होएत! कालान्तरमे ई महाकाव्य भारतक राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था साहित्य अकादेमी, नई दिल्लीसँ 1981ई.मे पुरस्कृत भेल।
एहूठाम हिनक संग एकटा अजगूत भेल। साहित्य अकादेमी द्वारा बाइसटा भारतीय भाषाक सर्वश्रेष्ठ रचनाकेँ पुरस्कृत कएल जाइत अछि। सन् 1981ई.धरि अकादेमीक इतिहासमे प्रवासीजी पहिल पुरस्कृत साहित्यकार छलाह जे मात्र 39वर्षक अवस्थामे ई सम्मान प्राप्त कएने छलाह।
प्रवासी जीमे अप्रतिम प्रतिभा छलनि। ओ गद्य, पद्य, कथा एवं निबंध सभ विधापर अपन लेखनीक तीर चलौलनि आ लक्ष्य बेधि कऽ लोककेँ चमत्कृत करैत रहलाह।
ओ अभियान शीर्षक उपन्यास लिखलनि जे धारावाहिक रूपेँ साप्ताहिक ‘मिथिला मिहिर’मे छपलनि। एहि उपन्यासमे वर्तमान कालक देश आ राज्यक ज्वलंच समस्या भ्रष्टाचारकेँ जाहि कुशलताक संग उठा कऽ ओकर सर्वमान्य समाधान कएलनि अछि ओ उल्लेखनीय तँ अछिए, क्षण-प्रतिक्षण बदलैत परिवेशमे एहि प्रकारक रचनाक महत्व सेहो असंदिग्ध रूपेँ सिद्ध कएलनि।
‘हम कालिदास’ हुनक उत्तम पुरूषमे लिखल एकटा महत्वपूर्ण उपन्यास अछि इहो उपन्यास धारावाहिक रूपेँ ‘मिथिला मिहिर’मे छपल छलनि। एकटा महाकवि अपन अतिवृद्ध अग्रजक मन: स्थितिक नीक जकाँ अङेजि कऽ ओकर शब्दमे बान्हि जे मूर्तरूप देने छथि से तँ अछिए, मुदा एहि मध्यक समए-साल, स्थिति-परिस्थिति, शासन-प्रशासन, प्रकृति-पुरूष, रीति-रेवाज आदिक जे एकटा पैघ अंतराल प्रवासीजी आ कालिदासक मध्य रहल अछि, एकरा ओ जाहि मनोयोगसँ सूक्ष्मसँ अतिसूक्ष्म अनुभूतिक माध्यमे अभिव्यक्त कएने छथि जे लोककेँ दुनू महाकविक मध्य एहन कोनो अंतराल दृष्ट्रिगोचर नहि भऽ पबैछ।
ओ दैनिक ‘आर्यावर्त’मे बहुत दिन धरि ‘चुटकुलानन्दजी की चिट्ठी’ आलेखमाला लिखलनि जे अत्यन्त लोक प्रिय होइत छल। हास्य-व्यंग्य प्रधान एहि आलेखक मध्यसँ ओ देश-विदेशक विभिन्न समस्यापर जे प्रहार करैत छलाह से पाठकक मोन-प्राणकेँ आह्लादित कऽ दैत छल।
महाकवि मार्कण्डेय प्रवासीक अन्तिम प्रकाशित पुस्तक थिक- ‘हम भेँटब’ एकर प्रकाशन आइसँ 5-6वर्ष पूर्व 2004ई.मे भेल छल ‘अगस्त्यायनी’ आ एहि काव्य पोथीक प्रकाशन मध्य प्राय: 20-22वर्षक अवधिमे प्रवासीजी प्रणीत प्रमुख गीतमे ‘अगस्त्यायनी’ जकाँ जीवन अनुभूव सत्यक नीक जकाँ आरेखन भेल अछि। आ किएेक ने होऊक? प्रवासीजीक सन्यासी मन अपन रचना सभकेँ एकठाम लिपिबद्ध करब तथा उतारि कऽ सुरक्षित रखब सेहो छोड़ि देलक आ एकटा कठिन प्रयोग करैत रहल जे हमर कृति अपन सामर्थ्यक बलपर जीबैछ की अकाल मृत्युक शिकार भऽ जाइछ। (हम भेटब : भूमिका पृ.7)
कोनो नव कवि, कलाकार जड़ि पकड़बा, स्थापित होएबासँ किछु पूर्व इतस्तत: करैत छथि। प्रवासीजी सेहो एकर अपवाद नहि छलाह। ओ किछु दिन धरि ‘तदर्थवाद’क कविक रूपमे अपनाक स्थापित करबाक प्रयत्न अवश्य कएने छलाह, मुदा अंतत: ओ अपनाकेँ गीतकार, नव गीतकारक रूपमे सुस्थापित कएलनि- ‘मिथिलामे आइयो कविक अर्थे होइछ गीतकार।’ (तभैव) एतबे नहि, ओ तँ कहैत छथि- ‘गीतेटा भारतीय काव्यक मूल प्रवृत्ति अछि। गीतक साफ अर्थ होइछ गेय कविता। अर्थात् श्रुित स्मृति योग्य कविता किंवा ऋचा। (तभैव)
महाकवि प्रवासी जीक अपन एकटा आर नव आ मौलिक मान्यता छलनि। जे अरबी-फारसी उर्दूक गजलपर विद्यापतिक गीतक स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होइत अछि। हुनक दृढ़ विश्वास छलनि जे ‘ओ दिन शीघ्रे अयबाक चाही जहि या कोनो विश्वविद्यालयक मैथिली विभाव अरबी-फारसी-उर्दूक गजल छन्दपर विद्यापतिक गीतक प्रभाव विषयपर शोधकार्य पी.एच.डी. अथवा डी.लिट् केर उपाधिहेतु कराओत। (तभैव)
प्रवासीजी सतत गीत काव्यक उन्नयन-संवर्द्धन हेतु तत्पर रहलाह अछि। ओ अपन महाकाव्य ‘अगस्त्यायनी’मे सेहो गीतकाव्यक मर्यादा सतत रक्षा कएलनि अछि।
प्रवासी जीक गीत सभमे जीवनक विभिन्न आयामक एकटा नव रूप, नव छवि-छटा भेटैत अछि। जतऽ फूलक रूप-लावण्य सम्पूर्ण दुनियाँकेँ मोहित -आकर्षित- एवं मदमत्त करैत अछि ओतहिं ओ काँटोक चुभनमे पुष्प सुरभिक अनुभव करैत छथि-
‘सभठाँ छै कांट, खजूरबन्ना छै सभठाँ।
तैयो हो चान, कतहु बिलम आ बैसऽ। (तभैव)
नामपर अहाँक, बसातो किछु ठमकै छल।
फूल तँ, काॅटो किछु गमकै छल।। (तभैव)
मार्कण्डेय प्रवासी माने एहन गीतकार जे आपाद मस्तकेँ नहि, आधरती-आकाश गीतकार छलाह। गीते हुनक चास-बास, घर-दुआरि दशा-दिशा, स्थिति-परिस्थिति सभ किछु छलनि। तेँ निर्धोख भऽ घोषणा कएने छथि-
‘गीते अछि बासभूमि, चास भूमि हमर।
शेष किछु अछिए नहि, लाथ की करब।। (तभैव)
एम्हर आबि कऽ हुनका सम्पूर्ण संसारसँ वितृष्णा भऽ गेल छलनि। पग-पगपर अविश्वास, स्वार्थलिप्सा, मिथ्या भाषण इत्यादिसँ ओ त्रस्त छलाह। हुनका बुझाइत छलनि जेना कूपेमे भांग घोरा गेल होइक, दुनियाँक सम्पूर्ण वातावरण प्रदूषित भऽ गेल होइक। एहने कुसमयकेँ अकानि ओ अपनाकेँ अपने धरि सीमित राखऽ चाहैत छथि। मुदा जे सभ दिन दीन-दुनियाँकेँ अपन गीत लहरीसँ आप्लावित करैत रहलाह ओ चुप कोना रहि सकैत छथि। तेँ कुंठित भऽ कहैत छथि-‘की बाजू।’
‘सौंसे गाम बताह लगैए की बाजू।
ओझा-बैद कटाह लगैए की बाजू।।
भऽ रहलैए अछि कदाचार सगरो बिजयी-
हरल सन उत्साह लगैए की बाजू।। (तभैव)
मुदा हुनकामे अदम्य जिजीविषा छलनि। हुनका अपन आत्मबल आ पौरूषपर दृढ़ विश्वास छलनि। हुनका दृढ़ आस्था छलनि अपन कर्मपर आ तेँ आत्म घट लबालब अमृतसँ भरल बुझाइत छलनि। आ तेँ ओ मृत्युओकेँ टिटकारी दैत खहेरि दैत छथि-
‘प्राण घटमे अछि अमृत रस शेष-
मृत्यु। दूर-सुदूर रहिहेँ रे।। (तभैव)
मुदा हा, हन्त! हन्त।। क्रुर काल हुनका आत्मविश्वासकेँ धोखा देलकनि। हुनक नियारल कर्म-धर्मक चास पूर्ण नहि होमऽ देलकनि।। 13मई 2010केँ ओ अकालहिंमे कालकवलित भऽ गेलाह।।
मुदा नहि, नहि! ओ तँ स्वयं कहि गेल छथि- हम भेटब! मुदा ओ कतऽ भेटताह से के कहत? जे आजीवन प्रवासी रहलाह, हुनक पता ठेकान कोना ज्ञात होएत? आन के कहि सकैत अछि हुनका भेटबाक स्थान? तेँ ने ईसा मसीह जकाँ ओ पहिनहि टीपि गेल छथि- ‘हम भेटब तिलकोर जकाँ चतरल साहित्यक टाटपर!
जे जिनगी भरि साहित्यक चास-बासकेँ तामैत-कोरैत रहलाह, अपन शोनितसँ गीतक फसिलकेँ पटबैत रहलाह, ओ आन ठाम कतऽ भेटताह।। ओ वर थोड़ शब्दमे अंतहीन व्यथाक अभिव्यक्ति दैत कहैत छथि-
‘जहिया-जहिया हृदयहीनता।
खटकत मोलक बातपर।।
हम भेटब इतिहास नदी केर-
चिक्कन चुनमुन घाटपर।।’
महाकवि मार्कण्डेय प्रवासी आइ ‘इतिहास’ भऽ गेल छथि। तेँ ओ आब ओ नदी केर चिक्कन-चुनमुन घाटपर’क वासी छथि।। सादर श्रद्धाँजलि!!
श्री रमा निवास, मानाराय टोल,
पो. नरहन
जिला- समस्तीपुर-848211
शिवकुमार झा ‘टिल्लू’
‘समकालीन मैथिली कविता’क
समीक्षा
सािहत्य अकादमी द्वारा सन् 1961सँ लऽ कऽ 1980 धरि प्रकाशित मैथिली कविताक बीछल संकलनक प्रकाशन सन् 1988ई.मे भेल अछि, एकर शीर्षक देल गेल ‘समकालीन मैथिली कविता’। सन् 1909मे मिथिलाक मािटपर जन्म लेल साहित्यकार स्व. तंत्रनाथ झासँ लऽ कऽ आधुनिक पिरहीक कवि श्री सुकान्त सोम सहित 21 गोट कविक 68 गोट कविताक संग्रहक संपादक द्व छथि- श्री भीमनाथ झा आ श्री मोहन भारद्वाज। ‘त्रिधारा’ आ ‘वीणा’ सन चर्चित कविता संग्रहक रचयिता भीमनाथ जी मूलत: कवि छथि आ श्री मोहन जी मैिथलीक चर्चित समीक्षक मानल जाइत छथि।
संग, विचार मूलक, श्रैंगारिक विरह, वाल साहित्य आ देशकालक दशापर आधारित रचनाकेँ प्राथमिकता देल गेल। प्रस्तावनामे उल्लेख कएल गेल जे पहिने मात्र पंद्रह गोट कविक रचना संकलन करवाक छल, मुदा विछवामे कठिनता कारणेँ एकरा 21 धरि कऽ देल गेल। आव प्रश्न उठैत अछि जे कविक संख्या 21 आ कविताक गणना 68। वीस खर्खक जे परिधि बनाओल गेल ओहिमे बहुत रास एहेन रचनाकार छूटल छथि जनिक रचना सभ एहि पोथीमे छपल किछु रचनासँ वेसी विम्वित मानल जा सकैछ। जौं ‘समकालीन मैथिली कवि’ शीर्षक रहितए तँ प्रासंगिक मानल जा सकैत छल, परंच कविता-समकालीन लिखल गेल आ किछु चर्चित कविताकेँ कात कऽ देल गेल ई सर्वथा भ्रामक। संपादक मंडल कविताक गणना बढ़ा सकैत छलाह, किएक तँ किछु कविक चारि-चारि रचना छपल अछि मायाबावूक तँ पाँच गोट कविता देल गेल। मायाबावूक रचनासँ कोनो गतिरोध नहि मुदा जौं किछु चर्चित कविता छुटि गेल छल तँ मायाबावूक संग-संग अन्य रचनाकारक छपल कविताक गणना कम कएल जा सकैत छल। मैथिली भाषाक दुर्भाग्य मानल जाए कि एहि संग्रहमे समाजक मुख्य धारसँ कात लागल रचनाकारक संग-संग कवयित्री सबहक एकोटा रचना नहि देल गेल। मैथिलीक चर्चित कवयित्री डाॅ शेफालिका वर्मा जीक कविता संग्रह विप्रलब्धा 1974ई.मे प्रकाशीत भेल। हुनक पहिल कविता ‘पावस प्रतीक्षा’ 1965ई.मे मिथिला मििहरमे छपल छल। श्रीमती सुभद्रा सिंह ‘पाध्या’ 1970 दशकमे मैिथलीक चर्चित कवयित्री छलीह। श्रमती श्यामा देवी, श्रीमती इलारानी सिंह सन् मॉजल कवयित्रीकेँ विसरब आश्चर्य जनक अछि। ‘समय रूपी दर्पणमे’ कविताक कवि गोपेशजी, हे भाई’ कविताक कवि फजलुर रहमान हाशमी जी, ‘कोइली’ शीर्षक कविताक कवि श्री चन्द्रभानु सिंह जी, बालुक करेजपर गीतक रचनाकार श्री विलट पासवान विहंगम, जागरण गान, माला कवि स्व. काली कान्त झा बूच सन रचनाकारक कविता सबहक प्रासंगिकतापर प्रश्नचिन्ह लगाएव उचित नहि। श्री भीमनाथ बावू आ भारद्वाज जी सन पारखी लोक एहि रचनाकेँ कोना विसरि गेलनि! भऽ सकैत अछि कोनो अपरिहार्य परिस्थिति भेल होनि।
एहि लेल संपादक मंडलक पूर्वाग्रह नहि मानल जा सकैत अछि, किएक तँ भीमनाथ बाबू प्रायश्चित स्वरूप अपन लिखल कविता सेहो एहि संकलनमे नहि देलनि, जखन कि ओ मैथिलीक प्रांजल कवि छथि।
कविताक श्री गणेश तंत्रनाथ जी लिखित कविता ‘प्रायणालाप’ शीर्षक कवितासँ कएल गेल अछि। स्मृति रेखांकनक विषय वस्तुमे एकातक वेदना हृदय स्पर्शी अछि। जीवन संग्रामक रणभूमिमे कवि एकसरि ठाढ़ छथि, सभ किछु अछि, मुदा आत्माक सगरो स्थान रिक्त, ककरो स्मृतिक शेष-अशेष व्यथामे तीजि-भिजि गेल छनि। श्रैंगारिक वेलाक अवसान भेलापर विरह मर्मस्पर्शी होइत अछि, मुदा ई तँ जीवनक गति थिक। निष्कर्षत: ई कविता तृण-तृणकेँ छुबैत अछि।
सुमन जी मैथिलीक तत्सम् मिश्रित काव्यधाराक उन्नयक कवि छथि। प्रकृति पूजनक विषय वस्तुक परिपेक्ष्यमे वसुन्धराक महिमाक गुणगान ‘पूजन-उपादान’ शीर्षक कवितामे कएल गेल अछि। संसारक अस्तित्व धरतीक विनु अकल्पनीय अछि। अपन हृदयकेँ रवि तापसँ जाड़ि भाफ उत्पन्न कऽ मॉ धरित्री संसारकेँ जल बून प्रदान करैत छथि।
’परमारथकेँ कारणे साधुन बना शरीर’ जकाँ पृथ्वी मात्र दोसरक लेल अपन अस्तित्वकेँ जीवन्त कएने छथि। ‘भीक्षा-पात्र शीर्षक कवितामे सुमन जी नीति मूलक विचारसँ समाजकेँ डबडब करवाक प्रयास कऽ रहल छथि। व्यष्टिसँ समष्टिक निर्माण होइत अछि, व्यक्तिसँ समाजक निर्माण होइत अछि। समाजक विना व्यक्तिक अस्तित्व क्षीण ठीक ओहिना व्यक्तिक बिनु समाजक कल्पनो टा नहि कएल जा सकैत अछि। दिवस-रात्रि, नव-पुरातन, सनातन-नूतनता, सुख-दुख ई सभटा जीवन मूलक अवस्था थिक, एक बिनु दोसर अस्तित्व विहीन। हिन्दी साहित्यमे अविस्मरणीय कविता स्व. आरसी बावूक लिखल ‘जीवन का झरना’ शीर्षक कवितासँ एहि भिक्षा-पात्रक विषय वस्तु मिलैत-जुलैत अछि, परंच विश्लेषण विलग अछि।
‘जा रहल छी’ कविता सुमन जीक कविताक पुष्पवाटिकामे खिलोओल एकटा महत्वपूर्ण कविता अछि। अपन प्राचीन सभ्यता ओ संस्कृतिक महत्वपूर्ण अध्यायसँ वर्त्तमान अवस्थाक तुलना नीक वुझना जाइत अछि। हमर इतिहास विलक्षण अछि। श्री कृष्ण सत्यक रक्षाक लेल पार्थक सारथी बनि गीताक उपदेश देलनि। व्यक्तित्व मान नहि बचि सकैत अछि जा धरि राष्ट्रमानक भावना जन-जनमे जागृत नहि हएत। वर्तमान समाजमे महाराणा प्रताप सन समर्पित व्यक्तिक अभाव अछि तेँ मानसिंह सन मानव अपन कुकर्मक शंखनाद कऽ रहल अछि। बुद्धि कौशलसँ परिपूर्ण हमर भूमि बुद्धिहीन भऽ गेल। समाजमे चाेरि बजार व्याप्त अछि। कवि एहिसँ हतोत्साहित नहि छथि। समाजमे क्रांतिक शंखनाद कऽ अधर्मी तत्व सभकेँ चेता रहल छथि। एहि कविताकेँ ‘योग धर्मक क्रांति गीत’ मानल जा सकैत अछि।
मैथिली साहित्यक काव्य रूपी नौकाक पतवारि जौं ‘यात्री’क हाथमे मानल जाए तँ कोनो अतिशयोक्ति नहि हएत। कवि चूड़ामणि मधुपक पश्चात् मैथिली साहित्यमे यात्री सभसँ वेसी जनप्रिय कवि मानल जाइत अछि। एकर सभसँ महत्वपूर्ण कारण अछि हुनक ‘विषय वस्तुक चयन’। 1968ई.मे हुनक कविता संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछक’ लेल हुनक साहित्य अकादमी पुरस्कार देल गेल। ओना ‘चित्रा हुनक सभसँ प्रसिद्ध कविता संग्रह मानल जा सकैछ जकर प्रकाशन बहुत पहिने भेल छल। प्रस्तुत संकलनमे यात्री जीक पाँच गोट कविता देल गेल अछि। ‘पिता-पुत्र संवाद’ कविता पत्रहीन नग्न गाछसँ लेल गेल अछि। कविताक भूमिका गणपति आ श्री शिवक संवादक रूपेँ लेल गेल मुदा परिपेक्ष्य अति गूढ़ संगहि प्रासंगिक। शंकर गजाननसँ कुण्ठा, त्रास आ मृत्युवोधक लीलाक विषयमे पूछैत छथि तँ लम्बोदरक उत्तर छन्हि जे स्वयं एहि परिधिसँ दूर रमणीय स्थानपर बैसल हो ओ कोना बूझि सकैत अछि? व्यथा वएह बूझत जे स्वयं व्यथित भेल हुए वा वर्त्तमानमे अिछ। माए चुप करएवाक प्रयास करैत छथि। यात्री जी साम्यवादी विचारधाराकेँ आत्मामे समाहित कएने छथि। तेँ अधमक व्यथाकेँ कतहु ने कतहुँ नीतिसँ जोड़ि दैत छथि। मैथिली भाषाक संग ई विडंबना रहल अछि जे शब्द विन्यास महिमा मंडित होइत अछि विषय-वस्तु दिश पाठक वा समीक्षक विशेष ध्यान नहि दैत छथि।
यात्री जी कविता सबहक शब्द-शब्दमे संत्रास अनायास भेट जाइत अछि। ‘भोरे-भोर’ कवितामे प्रकृतिक मनोरम रूपक बहाने यात्रीजी शस्य-श्यामला भूमिक महिमाक गुणगान करैत छथि। ‘भोरे भोर आएल छी धाङि पथारक मोती’क तात्पर्य अछि जे हमर भूमि हरियर अन्नसँ भरल अछि। माघ मास घास, पात, अन्न, साग, तरकारीसँ खेत पथार सजल रहैत अछि।
कविक दृष्टि आदित्यक रश्मिसँ तीक्ष्ण होइत अछि। एकर प्रमाण यात्री जीकेँ ‘कंकाले-कंकाल’ शीर्षक कवितामे भेटैत अछि।
कंकालक आरिमे कवि की कहऽ चाहैत छथि एकर विश्लेषण करव साधारण नहि। विषय वस्तुसँ यएह बुझना जाइत अछि जे समाजमे लोक अपन स्वार्थकेँ विद्ध करवाक लेल दोसरक नाश तक कऽ दैत छथि। बाल, वृद्ध, रोगी, निरोग ककरोसँ कोनो श्रद्धा वा दया नहि। अपन देश कृषि प्रधान अछि तेँ पावस-प्रतीक्षा सभकेँ रहैत अछि। ‘साओन’ शीर्षक कवितामे कवि पावस ऋृतुक आगमन मास साओनक वरखाक संग-संग सहलेस पूजा आ नागपंचमीक वर्णन करैत छथि। ई मास प्रणयक विहंगम मास सेहो मानल जाइत अछि। यात्री जी सन वैरागी सेहो एहि मासक माधुर्यसँ नहि बचि सकलाह। राधाक उतापक वहाने स्वयं नन्द किशोर बनि गेलनि। ‘सरिता-सर निर्मल जल सोहा’ – वरखाक पश्चात् शरदक अवाहन कवि यात्री ‘ह’ आब भेल वर्षा शिर्षक कविताक माध्यमसँ करैत छथि। विषय वस्तु सामान्य मुदा विश्लेषण अंशत: नीक बुझना जाइत अछि। माटिक दीप, पूजाक फूल, सूर्यमुखी सभटा पोथीमे जीवनक गति वा नियतिक प्रासंगिकता प्रवाहमयी अछि। एहि संकलनमे ‘जीवन’ कविताक विम्व हुनक हिन्दी साहित्यमे लिखल कविता ‘जीवन का झरना’ सँ मिलैत अछि। जन्म-मृत्यु जीबनक सरिताक ई किनार थिक, मुदा एकर शक्ति अपराजेय मानल जा सकैछ। फूलमे काॅट, अन्नमे भुस्सी जीवन सुखक मध्य अवांछित तत्वक वोध करावैत अछि। दूधकेँ महि कऽ घृत बनाओल जाइछ, ठीक ओहिना जीवनमे समग्र तत्वकेँ महि लेवाक चाही। एहिसँ जन्म-मृत्युक मध्य वेदनाक अनुभव नहि भऽ सकत।
ओ मानव, मानव नहि जकरा मातृभूमिक प्रति श्रद्धा नहि हो। राष्ट्रभक्ति शीर्षक विम्वमे मैथिली साहित्यमे बहुत गीत लिखल गेल अछि, मुदा आरसी बाबू रचित ‘राष्ट्रगीत’मे मातृभूमिक प्रति श्रद्धाक संग-संग वर्तमान परिस्थितिक अधम दशापर सेहो प्रहार कएल गेल अछि। जखन कंठसँ ध्वनि नहि फूटि सकैत अछि तखन शंखक कोन प्रयोजन? पुरानक लेल भ्रमर अनजान वनि गेल, मनमे संताप आ वाहर गीतक गान भऽ रहल अछि ई व्याथाक उद्वोधन कऽ रहल अछि। समाजक विलगति मानसिकतासँ कवि क्षुब्ध छथि।
व्यास जीक कविता स्तरीय होइत अछि, मुदा एहि संकलनमे देल गेल कविताक ‘मेहक बड़द जेकाँ’क विम्वमे वैराग्य भावक बोध होइत अछि। वास्तमे मेहक बड़द अपन कर्मगतिसँ मानव जीवनकेँ तृष्णासँ मुक्ति दैत अछि, परंच अपन कविताक माध्यमसँ व्यासजी कर्मक परिणाम व्याथित रूपेँ प्रकट कएलनि। भऽ सकैछ जीवनक कोनो क्लेशक विवेचन होथि, मुदा एहि प्रकारक कवितासँ समाजकेँ की भेटत, ई अवलोकन करवाक योग्य अछि। व्यासजीक दोसर कविता ‘मृदु मयंक हंस शिशु’मे छायावादक प्रयोग नीक रूपेँ कएल गेल अछि। किसुन जीक दुनू कविता ‘पत्रोतर’ आ वश्लेषण मिथिला मिहिरसँ लेल गेल अछि। पत्रोत्तर कवितामे पीड़ा भरल मोनमे पत्र प्राप्तिक पश्चात पसरल उद्धीपनक विवेचन नीक लगैत अछि। रेलक काट माल डिब्बासँ लऽ कऽ अभिमन्युक बलिदान धरिक तुलनामे छोहक अद्भुत स्पर्शण झकझोरि दैत अछि। अमर जी मैथिली साहित्यक क्रांतिवादी कवि छथि। हास्य हो वा विचारमूलक कविता, सभठॉ हुनक क्रांतिवादी स्वरसँ कविताक विषय वस्तु ओत प्रोत रहैत अछि। ‘युद्ध-एक समाधान’ शीर्षक कवितामे कवि दिनकर जीक ‘शक्ति और क्षमा’ कविता स्वरूप झलकैत अछि। ‘अभियान’ कवितामे हिमालयक गुणगानसँ लऽ कऽ योगक बलवंत स्वरूपक विश्लेषणमे कविक विशाल अध्ययनशीलताक झॉकी देखऽमे अबैछ। राजकमल जी मैथिलीक चर्चित रचनाकार छथि। मैथिली हुअए वा हिन्दी राजकमल जी कथाकारक रूपेँ वेसी चर्चित भेल छथि। मैथिलीमे ‘स्वरगंधा’ कविता संग्रहक संग-संग विविध पत्र पत्रिकामे 57गोट कविता सेहो प्रकाशीत भेल अछि। प्रयोगकेँ वादक धरातलपर प्रतिष्ठित करबाक श्रेय मैथिली साहित्यमे हुनके देल जाइत अछि। प्रस्तुत संग्रहमे हुनक चारि गोट कविता देल गेल अछि। ‘अथतंत्रक चक्रव्यूह’मे कवि की कहए चाहैत छथि ई बूझव क्लिष्ट अछि। कोनो रचनाकारकेँ अनुत्तरित प्रश्न छोड़ि कऽ नहि जएबाक चाही। एहिसँ पाठकक मध्य भ्रमक स्थिति उत्पन्न भऽ जाइत अछि। ‘वासन्ती परकिया विलास’ सर्वथा समीचीन कविता मानल जा सकैत अछि। समकालीन मैथिली कवितामे एहि कविताक स्थान निश्चित रूपेँ स्वर्णिम अछि। प्रकृतिक संग-संग जीवनक दर्शन आ श्रंृगारपर आधारित कवितामे भावक उद्वोधन नीक जकाँ कएल गेल अछि। ‘मेहावन’ कविता सेहो नीक लगैत अछि। सत्य आ नैतिकताक विम्बक मध्य हेराएल स्वपनपर आधारित कवितामे हृदयगत जुआरि प्रदर्षित कएल गेल।
’पत्नी पत्नी कथा’ शीर्षक कविताकेँ सर्वकालीन कविताक श्रेणीमे राखब उचित नहि। एकटा महान कविक साधारण रचना एहि कविताकेँ मानल जा सकैत अछि।
सोमदेव जी मूल रूपेँ उपन्यासकार छथि, मुदा एकटा कविता संग्रह ‘कालध्वनि’ सेहो प्रकाशीत भेल अछि। प्रस्तुत संग्रहमे हुनक लिखल चारू कविता खाली आकाश, स्थायी प्रभातक उद्येश्येँ, एकटा अदना सिपाही आ मोह शीर्षक कवितासँ प्रमाणित होइत अछि जे ओ युगान्तरकारी कवि छथि। धीरेन्द्र जी उपन्यासकार छथि, मुदा किछु स्फुट कविता आ गीतक रचना सेहो कएलनि अछि। ‘हैंगरमे टॉगल कोट’ हुनक स्फुट कविता अछि जकर प्रथम प्रकाशन मिथिला मिहिरमे भेल। एहि कवितामे चेतनाक दर्शन स्वरूप नीक मानल जा सकैछ। मुदा अन्य तीनू कविता बुल बुल गीत, लक्ष्य हम्मर दूर आ भोरक आशापर कोनो अर्थे सकमालीन श्रेष्ठ कविताक श्रेणीमे नहि मानल जा सकैत अछि। विम्वक रूपकेँ जौं सम्यक मानल जाए तैयो विवेचन सामान्य लगैत अछि।
मैथिली कवितामे नव कवितावादक प्रणेता मायानंद मिश्र जीकेँ मानल जाइत अछि। हुनक कविता संग्रह ‘दिशांतर’ 1965ई.मे प्रकाशीत भेल अछि। एकर अतिरिक्त विविध पत्र पत्रिकामे ओ कविता आ गीतक सेहो प्रकाशीत होइत रहल अछि। प्रस्तुत संग्रहमे हुनक लिखल चारि गोट कविता देल गेल अछि। एकटा नखशिख: एकटा दृश्य, साम्राज्यवाद, मानवता आ लालटेन ई सभ लघुकविता थिक। विषय वस्तुक संयोजन नीक मुदा विवेचन अस्पष्ट अछि। बिरड़ो छोट मुदा प्रासंगिक कविता लागल।
जीवकांत जीक कविता संसार बड़ विस्तृत अछि मुदा सभटा अतुकांत। हिनका आशुकवि नहि मानल जा सकैछ। ओना तँ एहि संकलनमे िहनक चारि गोट कविता देल गेल अछि, मुदा मात्र ‘पापक भाेग’ कविताकेँ प्रासंगिक आ समकालीन मैथिली कविताक श्रेणीमे मानल जा सकैछ। ई कविता हुनक कविता संग्रह ‘नाचू हे पृथ्वी’सँ लेल गेल अछि। ‘आकाश पपियाह नहि अछि’ सँ शून्यवादमे आत्मीयताक दर्शन होइत अछि।
चिन्तनशील कविताक रचनामे कीर्ति नारायण मिश्र जीक नाओ सादर लेल जा सकैछ। ‘सीमान्त’ कविता संग्रहक द्वारा कीर्ति जी प्रयोग वादकेँ राजकमल जीक पश्चात नव रूप देलनि।
एिह संकलनमे प्रकाशीत हिनक चारू कविताक विषय वस्तु नीक, विवेचन उपयुक्त आ भाषा सरल अछि। हिनक जन्म शोकहारा बरौनीमे भेलनि। वर्तमान विहारमे औधोगिकीकरणक सभसँ बेसी प्रभाव एहि ठाम भेल। अपन प्राचीन रूपक गामक िस्थतिक तुलना वर्तमान विकाशील गामसँ करैत ‘कतेक वर्षक वाद’ कविताक रचना कएलनि। हंसराज जीक चारि गोट कविता एहि संकलनमे देल गेल अछि। पहिल कविता ‘गंध’ हुनक कालजयी कविता िथक, प्रवेशिका स्तरक पूर्व पाठ्यक्रममे ई सेहो छल। प्रस्तावनामे एहि कविताकेँ श्रमशील लोकक चामक गंधकेँ ममतासँ जोड़ल गेल, मुदा ई प्रश्न उठैत अछि जे श्रमशील लोकक मध्य ‘गंध’ कतऽ सँ अाएत ओ तँ कर्मसँ वातावरण आ समाजमे सुगंध पसारैत छथि। जौं चर्म उद्योगक श्रमजीवीकेँ चामक गंध लागल तँ ओहि चामकेँ मूर्त्त रूप नहि देल जा सकैछ, जौं कृषककेँ घामक गंध लागल तँ वसुन्धराक कोखि शस्य श्यामला नहि भऽ सकत। ‘कलंक लिप्सा’ कविता सुमधुर आ प्रवाहमयी लागल। चानकेँ साक्षी मानि कऽ लिखल गेल कविता नारीक मान आ पुरूषक स्वाभिमानक विवेचन तथ्यपरक बुझना गेल। ‘नारी’ शीर्षक कवितामे नारी जीवनक व्यथाक मार्मिक चित्रण असहज अछि। साधन विहीन नारीक जीवन चूल्हिक संग प्रारंभ आ इति भऽ जाइत अछि। ‘हम तँ’ नोरेसँ चिक्कस सनैत छी’मे दीनहीन नारीक मनोदशा विवेचन हृदयकेँ झकझोरि दैत अछि। कुलानंद मिश्र जीक कविता ‘स्पष्टीकरण’मे अपन मनोदशाकेँ कवि नुका लेलनि। ‘जड़कालाक साँझ’ कवितामे विम्बक मूल्यन आ निष्कर्ष प्रासंगिक अछि। मिला-जुला कऽ हुनक तीनू कविताकेँ नीक मानल जा सकैत अछि।
प्रवासी जीकेँ मैथिली साहित्यक निराला मानल जाए तँ कोनो अतिशयोक्ति नहि। ‘सम्हरि कऽ चलिहेँ’ शीर्षक कवितामे जीबनक गतिकेँ नव आयामसँ कवि निर्दोशित कऽ रहल छथि। परिवर्तन, वसन्त, अनभुआर तीनू कविता लघुकविताक रूपमे लिखल गेल अछि, परंच विम्बक परिधिक रूप व्यापक अछि। गंगेश गुंजन, विनोद जी, मंत्रेश्वर झा आ नचिकेता जीक कविता सभमे दृष्टकोणक व्यापक उद्वोधन स्वत: भऽ जाइछ तेँ एहि कवि सबहक कवितापर प्रश्नचिन्ह ठाढ़ करब प्रासंगिक नहि।
सुकान्त सेाम जीक तीनू कविता स्वत: स्फूर्त नहि मानल जा सकैत अछि, कतहु-कतहु लागल जे गद्य रूपमे लिखि कऽ पद्यक रूपेँ परिवर्तित कएल गेल।
निष्कर्षत: ‘समकालीन मैथिली कविता’ नीक कविताक संकलन थिक, मुदा समए कालक जाहि परिधिक िनर्धारण कएल गेल अछि ओहिमे किछु चर्चित कविता सबहक तिरस्कार कएल गेल। परिस्थिति की छल? ई तँ नहि कहल जा सकैत अछि, मुदा मैथिली कविता समूहक संग पूर्ण न्याय नहि कएल गेल जकरा कोनो अर्थे उचित नहि मानल जाएत।
श्रीमती शेफालिका वर्मा- आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा) जन्म:९ अगस्त, १९४३, जन्म स्थान : बंगाली टोला, भागलपुर । शिक्षा: एम., पी-एच.डी. (पटना विश्वविद्यालय),ए. एन. कालेज, पटनामे हिन्दीक प्राध्यापिका, अवकाशप्राप्त। नारी मनक ग्रन्थिकेँ खोलि करुण रससँ भरल अधिकतर रचना। प्रकाशित रचना: झहरैत नोर, बिजुकैत ठोर, विप्रलब्धा कविता संग्रह, स्मृति रेखा संस्मरण संग्रह, एकटा आकाश कथा संग्रह, यायावरी यात्रावृत्तान्त, भावाञ्जलि काव्यप्रगीत, किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा)। ठहरे हुए पल हिन्दीसंग्रह। २००४ई. मे यात्री-चेतना पुरस्कार।
शेफालिकाजी पत्राचारकेँ संजोगि कऽ "आखर-आखर प्रीत" बनेने छथि। विदेह गौरवान्वित अछि हुनकर एहि संकलनकेँ धारावाहिक रूपेँ प्रकाशित कऽ। - सम्पादक
आखर-आखर प्रीत (पत्रात्मक आत्मकथा)
डॉ केदारनाथ लाभक एकटा टिप्पणी अपन कविताक विषय मे कोनो पत्रिका मे पढ़ने
छलौं-हमरा बड़ नीक लागल। फलतः अपन प्रथम कविता संग्रह विप्रलब्धाक पांडुलिपि भूमिका लिखवा लेल हुनका पठा देलौं-आ हृदयक एकटा संबंध हुनका सँ भ गेल आ हमर ज्येष्ठ भाईक रूप मे हमर जीवन मे अपन स्थान ल लेलथि-
प्रिय रजनी
मेरे स्नेह तुम्हे
अर्पित सौरभ के मेह तुम्हें / सचमुच कितने दिन बीत गये/ क्षण के कितने घट रीत गये
।/ पर तुम्हें पत्र लिख पा न सका/ जब-तब ऐसा हो जाता है/ मन का ध्न ही खो जाता है।/ जो लिखना चाहो लिखना सको/ ज्यों दिखना चाहो दिख न सको।/ उन्मन-उन्मन-उन्मन जीवन/ अम्बर मे केवल ध्न ही ध्न।/ बिजलियाँ कौंध् कर सो जाती/ केवल वि“वलता बो जाती।/ आकाश देखता रह जाता/ चुपके-चुपके सब सह जाता।/ कहने की कोई बात नहीं/ इस मरु मे है बरसात नहीं।/ चंदन-वन का मध्ुबात नहीं/ तट पर तरंग का घात नहीं।/ केसर वन सा मध्ु प्रात नहीं/ कस्तुरी वाली रात नहीं/ कोयल की प्रीति पुकार नहीं।/ कोई नर्तन झंकार नहीं।/ मध्ुगंध्ी मृदु वातास नहीं।/ बादल
बिजली आकाश नहीं।/ मंजरी न कोई न पानी/ झुक लता न कोई छू पानी।/ प्यासा पंछी अकुलाता है/ उड़ने को पर पफैलाता है।/ लेकिन मिलती रसधर नहीं/ शीतल सावनी पफुहार नहीं।/ ऐसे मे चुप हो जाता हँू।/ बाहर से मूँदे हुए नयन/ पढ़ने लगता हँू अपना मन।/ एकान्त सहेली बन जाता/ जोड़ता मौन से मध्ु नाता।/ कोई वीणा बजने लगती/ कोई पायल सजने लगती।/ संगीत गँूजने लगता है/ मन
स्वयं झूमने लगता है।/ चेतना तरंगित हो जाती है/ अन्तर की कलिका मुस्काती।/ नव सूर्योदय हो जाता
है/ आलोक नया अँगड़ाता है।/ कोई सुगंध् भर जाती है। शेफाली-सी झर जाती है।/ मन स्वयं मुग्ध्
हो जाता है/ शिशु सा सहसा सो जाता है।/ लेकिन पिफर कोई एक शाम/ ले-लेकर मेरा सरल नाम।/
सोये से मुझे जगा जाती/ पिफर गीत वही दुहरा जाती।/ पिफर स्वयं कहीं छिप जाती है/ मुझको उदास
कर जाती है।/ जुड़-जुड़ कर ऐसा टूट गया/ ज्यों फल डाली से छूट गया। अपना कोई आधर नहीं/
खिलता खुलता संसार नहीं।/ लगता है यही नियति मेरी/ टेढ़ी-मेढ़ी संसृति मेरी।/ इसलिए मौन हो
जाता हँू/ अपने मे यूँ खो जाता हँू।/ लेकिन इन बातों को छोड़ो/ खुद को जीवन-जग से जोड़ो/ तुम
ग्राम्य-प्रकृति मे नहा गयी/ शोभा मे सुस्मिति बहा गयी।/ भर गयी तुषार - तरंगों से/ रंग गयी उषा
के रंगों से।/ अनुपम उमंग से झूम उठी/ उल्लसित ध्रा को चूम उठी।/ सचमुच नैसर्गिक सम्मोहन/
भर देता है रस से जीवन।/ अपनी ही सुध् िखो जाती है/ कल्पना पंख पफैलाती है।/ नूतन सपने जग
जाते हैं/ कितने लालस अँगड़ाते हैं।/ दुनिया ही नयी-नयी लगती/ आध्ी सोती आधी जगती।/ कुछ
ऐसा ही हो जाता है/ अहरह अन्तर अकुलाता है।/ ऐसा ही जीवन हास भरा/ वासंती बिभा हुलास
भरा।/ रजनी ! यदि सबका हो जाये/ जग कितना सुन्दर हो जाये।/ तुम बनी रहो चिर हासमयी/
मधुमासमयी उल्लासमयी / अपने जीवन मे राग भरो/ रस गंध् भरो अनुराग करो।/ जीवन को जीवन रहने दो/ इसमे मध्ु धरा बहने दो।/ पिफर देखोगी क्या है जीवन/ सुख का पुलकित नूतन उपवन।/ जीवन विराट का दर्पण है/ शोभा सुषमा का मध्ुवन है।/ आनन्द भरा कैलास-लोक/ है जहाँ न कोई रोग-सोक।/ केवल शिव-गौरी का नर्तन/ ऐसा-ऐसा ही है जीवन।/ लो कितना तुमको बोर किया।/ बिन बरसे गर्जन घोर किया।/ कहते-कहते कह गया बहुत/ भावों मे ही बह गया बहुत।/ अब और न मुझको बकना है/ यह व्यर्थ थकाना-थकना है।/ यह पत्र न है बकवास मात्रा/ भाई का है यह हास मात्रा। / अन्तर तरंग - उल्लास मात्रा/ समझो है शब्द-विलास मात्रा।/ देखो अब दुखने लगा हाथ/
सस्नेह-
लाभ केदार नाथ
राजेन्द्र कॉलेज
छपरा।
आगाँ अगिला अंकमे....
रिपोर्ताज- १.ज्योति सुनीत चौधरी-इर्लिंग आर्ट ग्रुपक 95 वाॅ वार्षिक कला प्रदर्शनी २.उमेश मंडल- सगर राति श्रोता कथा-सागरमे डुबकी लगेलन्हि ३.नवेन्दु कुमार झा-मतदाता सभक उत्साह मध्य सम्पन्न भेल तीन चरणक मतदान- राजनीतिक दलक बेचैनी बढ़ौने अछि मतदाताक चुप्पी ४.सुमित आनन्द- आचार्य सुरेन्द्र झा “सुमन” जयन्ती-२०१० ५.सुजीत कुमार झा- जनकपुरमे कोजागरा महोत्सव
१
इर्लिंग आर्ट ग्रुपक 95 वाॅ वार्षिक कला प्रदर्शनी
इर्लिंग आर्ट ग्रुप के अन्तर्गत जे 95वाॅ वार्षिक कला प्रदर्शनी लागल छल ताहिमे हमर तीन टा मधुबनी पेण्टिग सेहाे प्रदर्शित छल। ई कला तऽ अहुना विश्व भरिमे अपन पहचान बना चुकल अछि। अहु प्रदर्शनीमे अहि कलाके उच्च स्थान भेटल छल।सब बेर बढ़िया कलाके द्वार पर जगह भेटैत छल से अहि बेर मधुबनी वा मिथिला चित्रकलाके प्रवेश द्वार लग जगह भेटल छल।प्रदर्शनी हाॅलमे प्रवेश करैत देरी बामा कात सबसऽ पहिने काेहवर आ अन्य दू टा चित्रकला नजरि आबैत छल।
कैटेलाॅगमे सेहाे हमर नाम दाेसर स्थान पर आ हमर पेण्टिग के नाम तेसर चारिम आ पाॅचम स्थान पर छल।जे कलाकार पहिल स्थान पर रहैथ तिनकर दू टा आॅयल पेण्टिग प्रवेश द्वारपर दहिना कात विराजमान छलैन।पहिल दिनक प्राइवेट व्यू वला दिन कम सऽ कम 100 लाेकक भीर लागल छल।अहि सफल प्रदर्शनी मे मिथिला चित्रकलाके जे सम्मानजनक स्थान भेटल छल से वास्तवमे प्राेत्साहक अछि।
२
उमेश मंडल सगर राति श्रोता कथा-सागरमे डुबकी लगेलन्हि-
मधुबनी जिलाक लखनौर प्रखण्डक बेरमा गामक मध्य विद्यालय परिसरमे २ अक्टूबर २०१०केँ मैथिली कथा आन्दोलनकेँ समर्पित ‘सगर राति दीप जरय’क ७१म आयोजन श्री जगदीश प्रसाद मंडलक संयोजकत्वमे कएल गेल। दीप प्रज्वलन सह उद्घाटन श्री उग्र नारायण मिश्र ‘कनक’ संध्या ६:३० बजे केलनि। तत्पश्चात डॉ. रमानन्द झा रमण, बेरमाक स्व. विजय नाथ ठाकुर (चेतना समितिसँ जुड़ल रहथि।) चर्चा करैत गामक (बेरमाक) साहित्यक इतिहासक चर्चा केलनि।
गोष्ठिक सुभारम्भ स्वागत गीतसँ, सपत्नी संजीव कुमार ‘समा’, अजय कुमार कर्ण, बेचन ठाकुर, आ जागेश्वर प्रसाद राउत जीक द्वारा भेल। तत्पश्चात ‘मंगला चरण’क उच्चारण शिवकुमार मिश्र जी केलनि।
गोष्ठिक अध्यक्षता डॉ. तारानन्द वियोगी आ संचालन श्री अशोक कुमार मेहता जी केलनि। कार्यक्रमकेँ आगाँ बढ़ाओल गेल पोथीक लोकार्पणसँ जेकर सूचि एहि तरहेँ अछि-
१ प्रलय रहस्य (कविता संग्रह) लेखक- तारानन्द वियोगी, लोकार्पणकर्ता- डॉ. रमानन्द झा रमण,
२ जीबन-मरण (उपन्यास) ले. जगदीश प्रसाद मंडल, लो.- श्री कुमार सहाएब आ श्री रमाकान्त राय ‘रमा’,
३ तरेगन (बाल प्रेरक कथा संग्रह) ले. जगदीश प्रसाद मंडल, लो.- डॉ. रमानन्द झा ‘रमण’ आ डॉ. फूलचन्द्र मिश्र ‘रमण’,
४ जीवन-संघर्ष (उपन्यास) ले. जगदीश प्रसाद मंडल, लो.- श्री अशोक (पटना) आ श्री उग्रनारायण मिश्र ‘कनक’,
५ सी.डी. तिरहुत्ता (विदेह ई पत्रिका, ६०म अंक धरि) संपादक गजेन्द्र ठाकुर, लो.- डॉ. योगानन्द झा, श्री उग्रनारायण मिश्र ‘कनक’ आ श्री नारायण जी,
६ सी.डी. देवनागरी (विदेह ई पत्रिका, ६०म अंक धरि) सं. गजेन्द्र ठाकुर, लो.- डॉ. तारानन्द वियोगी, डॉ. मंजर सुलेमान आ श्री अजीत आजाद,
७ निबंध-तरंग (निबंध-संग्रह) ले. श्रीपति सिंह, लो.- डॉ. रमानन्द झा ‘रमण’
८ अलका (कथा संग्रह) ले. कमलकान्त झा, लो.- डॉ. धनाकर ठाकुर आ डॉ. खुशीलाल झा।
छह गोट पोथी आ दू गोट सी.डी.क लोकार्पणक पश्चात कथा पाठ आ तेकर समीक्षा/समालोचना प्रारम्भ भेल। चारि-पाँच कथा/लघुकथाक पाठ आ तेकर समीक्षा चारि-पाँच समीक्षकक एक पालीमे होइत रहल। एहि तरहेँ भरि रातिमे सात पालीक सुन्दर प्रदर्शन भेल। नव पुरान कथाकारक अलावे बाल-कथाकार सेहो अपन नूतन कथाक पाठ केलनि। कथा आ कथाक समीक्षा संपूर्ण श्रोताकेँ आकर्षित कएलकनि। ताहिपर श्रोताक टिप्पणी सेहो आएल। नव-कथाकारकेँ श्री अशोक, डॉ. फूलचन्द्र मिश्र रमण आ डाँ रमानन्द झा रमणक संग-संग आरो समीक्षक आपन खुशी व्यक्त केलनि आ दिशा निर्देश सेहो देलनि। अध्यक्षीय भाषणमे डाँ तारानन्द वियोगी सेहो बेरमाक नव-कथाकारक संग-संग नव दृष्टिकोणक कथाकारक कथापर साकारात्मक विचार रखलनि।
श्रोताक मनोयोग श्रवणसँ प्रभावित भऽ कथाकार लोकनिक उत्साह भरि राति बनल रहल। उपरोक्त वर्णित कथाकार आ समीक्षकक अलावे कमलेश झा, उमेश नारायण कर्ण, शंकर झा, बुचरू पासवान, महेन्द्र नारायण राम, विनय विश्व वन्धु, रघुनाथ मुखिया, आशीष चमन, पंकज सत्यम्, ऋृषि बशिष्ठ, राजदेव मंडल, िवनय मोहन ‘जगदीश’ इत्यादिक गरिमाय उपस्थित छल रहए।
दर्जनोसँ ऊपर श्रोताक टिप्पणीमे- रमण किशोर झा, शशिकान्त झा, विरेन्द्र यादव, लाल कुमार राय, घुरन राम, मो. इब्राहिम, दीपक कुमार झा, राम विलास साहु आ राम प्रवेश मंडलक महत्वपूर्ण रहल। श्रोताक अनेको विषए-वस्तुपर टिप्पणीक संग-संग एकटा महत्वपूर्ण टिप्पणी कपिलेश्वर राउत जीक द्वारा- ‘दर्जनक-दर्जन कथा पाठ भेल नीक लागल मुदा हम सभ किसान छी किसानी जिनगीक (खेती-बाड़ी) बात-चीत/विषए-वस्तुक चर्च कथामे नहि भऽ पावि रहल अछि।’
एहि टिप्पणीपर श्री अशोक अपन विचार व्यक्त करैत कहलनि- ‘खेती-बाड़ी, किसानी जिनगी आ गाम-घरक चर्चा वास्तवमे कम कएल गेल अछि, ने सिर्फ मैथिली साहित्यमे वरण् हिन्दी साहित्यमे सेहो एकर अभाव माने जतेक अबैक चाही ओते नहि आएल अछि।
भिनसर छह बजे एहि ७१ गोष्ठीकेँ अन्त करैत श्री अरविन्द ठाकुर (सुपौल) अग्रिम कथा गोष्ठी ७२म आयोजन हेतु दीप आ उपस्थिति पुस्तिका लेलनि। स्पष्ट अछि जे अगिला कथा गोष्ठी दिसम्बर मासमे सुपौलमे आयोजित हएत।
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