साहित्यके ँदेशक आधर पर विभाजित कए विश्लेषित करबाक अनेक कारण अछि। पहिल अछि राजनीतिक -सामाजिक-सांस्कृतिक पार्थक्य। ई पार्थक्य लोकक विचारधरा एवं जीवन-मूल्यके ँप्रभावित करैत अछि। देशक राजनीतिक स्थितिसँ निवासीक रहन-सहन एवं विचारधरा प्रभावित होइत अछि। लेखन-प्रकाशन प्रभावित होइत अछि। एहि लेल राजनीतिक शासन-व्यवस्थाक आधर पर भाषा विशेषक साहित्यिक प्रवृत्तिक विवेचनक प्रयोजन होइत छैक। दोसर कारण अछि राजनीतिक स्वायत्तताक प्रदर्शनक हेतु क्षेत्राीय आधार पर साहित्यक विकास आ’ ओहिमे अभिव्यत्तफ प्रवृत्तिक अनुसन्धन लेल उपयोगी होएब।
मैथिली भाषा, मैथिल संस्कृति आ’ मैथिलीक साहित्यकार दू स्वतन्त्रा सार्वभौम राष्ट्रक भौगोलिक सीमामे निवास करितहु भावात्मक रूपसँ ततेक सन्निकट छथि जे राजनीतिक पाया आत्मीय तरलताक प्रवाहके ँ छेकि रखबामे सर्वथा अससर्थ होइत रहल अछि। तथापि, जेना बिना आरि ध्ूरक प्रवाहित जल राशिके ँ चिन्हेबा लेल देश अथवा भू-खण्डक नाम जोड़ि देल जाइत अछि, ओहिना दू देशक भौगालिक सीमामे रचल जाइत साहित्यक भौगोलिक नामकरण स्वीकार कएल जाएब अप्रीतिकर नहि कहल जाएत। प्रायः एहनहि मानसिकताक कारणेे ँ ‘नेपालीय मैथिली साहित्य’ नामकरण भेल होएत। ई ओहिना स्वीकार कएल जाए सकैत अछि जेना अमेरिकरन अघरेेजी, भारतीय अघरेेजी आदि। पंरच, ई ध्रि निर्विवाद जे एहि नामकरणमे साहित्यिकसँ बेसी पृथक व्यत्तिफत्व-स्थापनाक मानसिकता प्रतिध्वनि अछि।
‘नेपालीय मैथिली’ एक नवजात नामकरण थिक। पहिने नेपालमे रचित मैथिली नाटक, मैथिली कथा आदि लिखाइत छल। आब किछु गोटे ‘नेपालीय मैथिली नाटक, नेपालीय मैथिली कविता, नेपालीय मैथिली कथा आदि लिखैत छथि। ध्ूमकेतु1 सांस्कृतिक शु(ता, अशु(ताक आधर पर मैथिली भाषी क्षेत्रा तथा भाषा-साहित्यके ँ दू खण्डमे बांटल अछि ;नेपालक मैथिली स्वतन्त्रा रूपसँ विकसित भए रहल अछिµभेटकर्ता डा. रेवती रमण लाल।द्ध ओ थिक मोगलानक मिथिला ;भारतीय क्षेत्राद्ध आ’ शु( मिथिला ;नेपालक क्षेत्राद्ध। ‘मोगलानक’ शब्द सांस्कृतिक-धर्मिक अशु(ताक बोध् करबैत अछि। ई ऐतिहासिक घटनाक ओहि अवस्थाके ँ स्पष्ट करैत अछि जखन विजातीय र्ध्मक प्रति अस्पृश्यताक भाव घनीभूत रहैत छल। एहि हेतु ध्ूमकेतुक ई विभाजन सांस्कृतिक, धर्मिक आधर पर सत्य होइतहु, अतीत गानक द्वारा उद्बोध्ति करबाक अभिप्रायसँ विशेष प्रयोजन-सि( नहि करैत अछि। इतिहासक जाहि कालखण्डमे मोगलान मिथिला सन विभाजन भेल होएत, तकर आब आधार नेपालहुमे नहि रहलैक। तथापि एहन विभाजन वा नामकरण मात्रा धर्मिक मान्यताक आधर पर श्रेष्ठता स्थापन कए अपन परिचित लेल भए सकैत अछि। प्रायः एही परिचय स्थापना लेल रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’ प्रश्न ठाढ़ कएलनि2 ‘की नेपालक मैथिली साहित्यमे पायापारक कथा लिखाइत अछि?’ ओ एहन बात ओहि प्रकारक व्यक्ति द्वारा बाजल जाएब मानल अछि जकरा नेपालक मैथिली साहित्यक सम्बन्ध्मे किछुओ ज्ञान नहि छैक एवं एखनो ध्रि ओहन लोक परान्मुखी चरित्राक अछि। ओ ने किछु पढ़ने अछि आ’ ने किछु ने देखने अछि।
‘पायापार’ शब्दक प्रयोग अनचोखमे नहि भेल अछि। आ’ ने संकेतक प्रति कोनो भ्रम उत्पन्न करैत अछि। एहि सम्बन्ध्मे अत्यल्पहु शंकाक समाधान गामघर3 मे प्रकाशित निम्न समाचारसँ निर्मूल भए जाइत अछि। समाचार अछि -‘बैसारमे एक दू प्राध्यापक लोकनि नेपालीय मैथिली साहित्यक अपन मूल ज्ञानक परिचय दैत भारतीयक तीन-चारि दशक पूर्वक लेखक सभक पुरने रचना सभके ँ पेफर-पेफर पाठ्यक्रममे रखबाक षड्यन्त्रामे संलग्न रहलाह अछि। मानसिक स्तरसँ सेहो सीमापारक लेखकवृन्दसँ अपन स्वार्थवश लगाबक काज कए रहल छैक।’
एहिना प्रो. राजेन्द्र विमल4 अपन लेख ‘नेपालक आध्ुनिक मैथिली कथा साहित्य’ मे ‘गुरांस’ आ’ क्रोटनक चर्चा कएने छथि। ओ मानैन छथि जे जावत ध्रि क्रोटनक डारि तोड़ि के ँ मैथिली साहित्य आनठामसँ आनि एहि माटिमे रोपल रहत ता’ ध्रि नेपालमे मैथिलीक पूर्ण विकास असम्भव। मैथिलीक विकास लेल मैथिलीके ँ गुराँसक गाछ जकाँ एहिठाम माटि-पानिमे जनमि, बढ़ि, खाँटी नेपालीय सौरभक प्रसार करए पड़तैक।
एहिसँ पूर्व प्रकाशित अपन एक लेख ;नेपालमे मैथिलीद्ध- प्रो. विमल5 ई स्थापित कएने छथि जे 2007 सालक बाद नेपालमे दू टा ‘स्कूल’ द्वारा मैथिली साहित्यक विकास भेल। पहिल थिक शिल्प एवं भावबोध्क दृष्टिसँ ‘आध्ुनिक स्कूल’, जकरा ‘डा. ध्ीरेन्द्रक स्कूल’ कहल जाइत अछि। एहि दूनू ‘स्कूलक’ प्रधनक कार्य-क्षेत्रा, भाव-क्षेत्रा, अनुराग-क्षेत्रा आ’ जँ एक शब्दमे कही, सक्रियताक समस्त क्षेत्रा नेपालहि रहल अछि। साहित्यिक गुराँसक अंकुरण हेतु अनुकूल भावभूमिक सृजनकर्ता तथा हुनक कृतिके ँ क्रोटनक संज्ञासँ अभिहित करब, हमरा जनैत नेपालक राजतन्त्राीय युगक मानसिकता थिक।
‘पाया पारक कथा’ अथवा ‘गुराँस’क आशय नेपालमे लिखल जाइत मैथिली कथा पर विदेशी साहित्य ;भारतीयद्धक प्रभावसँ अछि। अथवा ओहि ढंगक कथासँ अछि, जाहिमे नेपाली जन-जीवनक अनुगंज नहि अछि। एकरहु सम्भावना अछि जे नेपालमे मैथिली साहित्यक द्रुत गतिसँ भए रहल विकाससँ आतंकित किछु लोकक ई चक्रचालि रहल हेा।
मुदा, एकटा महत्त्वपूर्ण प्रश्न ई अछि, की कोनो भाषा-साहित्यक विकासके ँ ‘पाया’ मे बान्हि राखल जा सकैत अछि? की कालिदास, विद्यापति, शेक्सपीयर, गोर्की, चेखब, भानुभक्तक साहित्यके ँ हुनक देशक शासक अपन सीमासँ बाहर जएबासँ रोकि सकलाह अछि? जाहि जमानामे आवागमनक पूर्ण असुविधा छलैक, मार्ग दुर्गम छलैक, ओ महान साहित्य सभ लोक ध्रि पहुँचि गेलैक। आब तँ सहजहिं उन्मुक्त आकाशक नीचा सभ केओ आबि गेल अछि। वास्तविकता तँ ई अछि जे एक देशक राजनीतिक सीमामे जनमल दार्शनिक, समाजशास्त्राी आ’ मानवशास्त्राी द्वारा कएल गेल सत्यक प्रत्यक्षीकरण विश्वचेतनाके ँ प्रभावित करैत आएल अछि। एक कृत्रिम उपग्रहक क्षमताक समक्ष जेना देश-देशक भौगोलिक सीमा पोता जाइत अछि, ओहिना विश्वक एक कोणक मानवतावादी दृष्टि, मानव स्वान्तत्रय आ’ मानवाध्किारक चेतनाके ँ सहस्रो चीनक देबाल छेकि रखबामे असमर्थ भए जाइत अछि।
आजुक लोकक पहिल चिन्ता उपभोक्ता आ’ उपयोगिता पर रहैत छैक। एहि संस्कृतिक विशेषता थिक प्रदर्शन-प्रभाव ;क्मउवदेजतंजपवद मििमबजद्ध। विकास आ’ विस्तारक सम्प्रति ई प्रमुख घटक थिक। ई प्रदर्शन प्रभाव लोकक जीवन प्रणालीके ँ प्रभावित करैत देशक अर्थतन्त्राके ँ प्रभावित कए दैत अछि। ई तँ एक स्थूल उदाहरण भेल। साहित्यकारक चेतनाक एंटीना उत्यन्त संवेदनशील आ’ वधर््िष्णु होइत अछि। सुदूर प्रान्तहुक पीड़ित मानवक आर्तनाद अकानि उद्वेलित भए उठैत अछि। रंग-भेद नीतिक आधर पर अंटकल शासकक बज्र कपाटमे छटपटाइत लोकके ँ ओ देखि लैत अछि। ओहि व्यक्तिक मुक्तिक आकांक्षा आ’ संघर्षक गतिके ँ तीव्रता प्रदान करबाक हेतु शब्द-सन्धन करैत अछि। अर्थात् ज्ञानक क्षेत्रा, संवेदनाक क्षेत्रा, सहानुभूतिक क्षेत्रा, वैचारिक मंथनक क्षेत्रा, कोनो सीमा नहि मानैत अछि। क्षेत्रा-विशेषक लोकक सुखमय जीवनक कामना, शोषण आ’ अत्याचारसँ मुक्तिक उत्कण्ठा, वर्णभेद जातिभेद आदिक आधर पर विभाजन ओ अत्याचारक विरोध, अभिव्यतिक स्वतन्त्राता पर प्रतिबन्ध्, प्रजातन्त्राीय मूल्यक गला टीपबाक प्रशासनिक षड्यन्त्रा आदिक विरोध्मे उठैत धहके ँ कोनो ‘पाया’ आजुक युगमे बेसी कालध्रि अवरु( कए नहि राखि सकैत अछि। मानवता पर होइत अत्याचारक घटनाक प्रभावके ँ यदि एक देशक शासक तहिआ सकैत छल तँ दक्षिण अप्रिफकाक रंगभेदी गोरा सरकारक विरु( विश्व जनमत एकमत नहि होइत। एहि हेतु अभिव्यक्तिक माध्यम भलहि भिÂ-भिÂ रहौक, साहित्यक अभिप्रेतके ँ देशक पायाक भीतर पकड़ि राखब साहित्यके ँ मानव-मुक्तिक सक्षम माध्यम बनबासँ रोकब होएत। एकर तात्पर्य इहो नहि जे भाषा-भाषाक साहित्यमे कोनो अन्तर नहि रहैक। एकार्णव भए जाइक। देश, काल आ’ पात्राक महत्त्व समाप्त भए जाइक। एहि सभक महत्त्व स्थानीय अथवा क्षेत्राीय विशेषताके ँ बूझबा लेल सभ दिन महत्त्वपूर्ण रहत। क्षेत्रा विशेषक लोकक जीवन-दृष्टि ओ हृदयक ध्ुकध्ुकीके ँ अकानवा लेल आवश्यके नहि, अनिवार्य सेहो अछि।
रचनाकार अपन व्यक्तित्व तथा रचनागत वैशिष्ठ्यक आधर पर विभिÂ भाषा साहित्यक बीच अपन परिचय स्थापित करैत अछि। रचनाकारक संवदेनशील व्यक्तित्व पर सबसँ बेसी प्रभाव पड़ैत छैक, ओकर परिवेशक। परिवेशक घटक थिक देशक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि स्थिति। ओहिसँ लोकके ँ भेटैत सुविध-असुविधा एवं जनताक आशा-आकांक्षाक प्रति प्रशासकीय दृष्टि। प्रशासन अपन मनमोहिनी आँखि आ’ हाथमे दानवीय दण्डक आधर पर चाहैत अछि रचनाकारके ँ अपन अनुकूल बनाके ँ राखब। से एहि हेतु जे प्रशासनके ँ सबसँ बेसी खतरा संवेदनशील आ’ निर्भीक रचनाकारे सँ रहैत छैक। एहनहि प्रतिकूल स्थितिमे रचनाकारक रचनात्मक दायित्वक वास्तविक परिचय तत्काल वा कालान्तरमे होइत अछि। की ओ व्यवस्थाक मोहिनी मन्त्रा आ’ दानवीय दण्डसँ भयांकित भए सुरमे सुर मिलबैत प्रशासनक जनसम्पर्क विभागक प्रवक्ता बनि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सुविधा भोगैत अछि अथवा दीन-दुखी, अभावग्रसत, पीड़ित आ’ स्वाधीनताकामी जनताक हृदयक धुकधकीके ँ अकानैत एक जाग्रत प्रतिपक्षीक रूपमे अपनाके ँ ठाढ़ करैत अछि।
नेपालमे लिखाइत मैथिली कथाक शिल्प-विधनक प्रसंग रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’6 लिखल अछि जे नेपालक मैथिली कथाके ँ आन कोनो ठामक कथाकारक मध्य बेछप रूपे ँ चिन्हल जा सकैछ, बूझल जा सकैछ, एकर स्थानीय बिम्ब प्रयोग, दृश्य-योजना आ’ भाषाक प्रयोगक कारणे ँ। अनेको कथामे नेपाली शब्दक सुन्दर प्रयोग नेपालीय मैथिली रचनाक महत्त्वपूर्ण विशेषता कहल जा सकैछ। परिवेशजन्य चित्राण नेपालीयताक स्पष्ट छाप छोड़ैत बूझि पड़त।’ एहि कथनक अनुसार, जेना नेपाली टोपीसँ नेपाली संस्कृतिक बोध् होइछ, ओहिना कथामे नेपाली शब्द आ’ नेपालक स्थल सभक नामसँ नेपालमे लिखाएल मैथिली कथाक परिचय भए जाएत। परंच, एकटा प्रश्न उठैत अछि। नेपालीपनाक वास्तविक परिचय बाह्य आवरण थिक आ कि ओहि भू-भागक निवासीक आभ्यान्तरिक गुणर्ध्म। जनकपुर अंचल, विराटनगर अंचल अथवा काठमाण्डूक मध्यम प्रकाशमे धन-कुबेरक रंगरभस ओ जीवन दृष्टिमे नेपालीपना ताकल जाए कि जनपद विशेषक आशा-निराशा, हर्ष-विषाद, भूख-पियास, शोषण-प्रताड़न, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, सांस्कृतिक अवमूल्यन तथा राजनीतिक दाव-पेंचके ँ चुपचाप सहि लेब नेपालीपना थिक। आ कि ओकर बीचसँ जन्म लैत संघर्षमयी चेतना, ध्ैर्य, साहस आ’ जीवनक विकृत्ति एवं विडम्बनाके ँ सहैत मानवक अभ्युत्थानक प्रति अपन आस्थाके ँ अक्षुण्ण रखबाक चिन्ता नेपालीपना थिक। निश्चित रूपे विवेचनीय विषय थिक।
‘नेपालीय मैथिली’ नामकरण हो, नेपालीपना हो, अथवा गुराँसक चर्चा µ ई सभ थिक स्वतन्त्रा अस्तित्वक स्थापनाक प्रयास। देशक साहित्यकार आ’ जनताक मनमे बढ़ैत आत्म-विश्वासके ँ ई नामकरण प्रकाशित करैत अछि। आत्मविश्वाससँ आत्मनिर्भरता दिस नेपाली जन-जीवनक बढ़ि रहल डेगक प्रतिध्वनि एहिमे गुंजित अछि। परंच, एहो ध्यान रखबाक थिक जे राजनीतिक दाव-पेंच तात्कालिक लाभक सदिखन अपेक्षा रखैत अछि। दू देशक बीच चल अबैत सांस्कृतिक समन्वय एवं भावात्मक एकताक लुहलुहान गाछके ँ छकरबा दैत अछि। एहि हेतु एक भाषाक दू देशक सीमामे रहैत साहित्यकारक दायित्व कतेको गुणा बढ़ि जाइत अछि। ठीके आब डा. विमल मिथिलाक संस्कृतिमे सह-अस्तित्वक चेतनाक महत्त्व प्रतिपादन कएल अछि।7
ई ऐतिहासिक सत्य थिक जे नेपाल सन् 1950 ई. ;2007 सालद्ध मे अपन निकटतम दक्षिणी पड़ोसी देशक सहयोगे राणाशाहीक क्रूरपाशासँ मुक्ति पओलक तथा राजतन्त्राीय व्यवस्थाक अन्तर्गतहि प्रजातन्त्राीय मूल्य आ’ सि(ान्तक अनुसार शासन-व्यवस्था स्थापित भेलैक। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि क्षेत्रामे नव विहानक सूर्य करिआ मेघके ँ पफाड़ि आबए लागल। विश्व संस्थामे नेपाल एक स्वतन्त्रा राष्ट्रक रूपमे मान्यता पओलक। कतेको देशक संगे दौत्य सम्बन्ध् स्थापित भेलैक। राष्ट्र समूहक बीच प्रतिष्ठा बढ़लैक। दूनू देशक बीच भेल ‘2007 सालक मैत्राी संध्’ि क अनुसार नेपालक प्रजाके ँ भारतमे भारतहिक नागरिक जकाँ जीविका प्राप्त करबाक सुविधा भेटलैक। किन्तु प्रजातन्त्राीय मूल्य आ’ परम्पराक जड़ि ध्रतीमे नीक जकाँ जमबासँ पूर्वहि 2017 सालमे एक शाहीघोषणा द्वारा जड़ि पकड़ैत लोकतन्त्राक गाछके ँ एकहि छटकामे उखाड़ि देल गेलैक। पंचायत भंग भेल। प्रधनमन्त्राी बन्दी भेलाह। नेपाली प्रजा अभिव्यक्तिक स्वतन्त्राता आ’ अध्किारक मुहध्रि पहुँचैत-पहुँचैत, ओहिसँ वंचित भए गेल। थोपल गेल दलविहीन पंचायती व्यवस्था जाहिमे प्रजाक अध्किार अत्यन्त सीमित भए गेलैक। सामान्य लोकक स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होइत रहल। निश्चित प्रकारक लोकोपकारी शासन-व्यवस्था लेल सिहाइत नेपाली प्रजाक बीच संघर्षक चिनगी कहिओ-कहिओ ध्ध्कैत रहल। एहिसँ संविधनमे संशोध्नक प्रयोजन होइत रहलैक। एहि क्रममे 2038 सालमे बालिग मताध्किारक आधर पर दलविहीन पंचायत लेल पहिल आमनिर्वाचन भेल। नेपालक प्रजाके ँ प्रजातन्त्राीय मूल्य एवं मताधिकारक लाभक अत्यल्प रसानुभूतिक अवसर भेटलैक। एहि सँ नेपालक नव युवक वर्ग शासन-व्यवस्थामे व्यापक स्तर पर अध्किारक प्राप्तिक प्रति मानसिक रूपे ँ उद्वेलित भए उठल। व्यापक संघर्षक लेल मोन बनबैत गेल जकर कतेको वर्षक संघर्षक बाद परिणाम हालहिमे समक्ष आएल अछि।
राणाशाहीक समाप्ति पर आध्ुनिक शिक्षा प्रचार-प्रसार दिस ध्यान देल गेल छैक। स्कूल-कालेज खूजल। त्रिभुवन विश्वविद्यालयक स्थापना भेल। ‘कोलम्बो योजना’, ‘इंण्डिया एड मीशन, आ ‘इण्डिया को आपरेशन मीशन’क अन्तर्गत भारतसँ विभिÂ विषयक विशेषज्ञ, अभियन्ता एवं प्राध्यापक शिक्षाके ँ आध्ुनिक स्तर ध्रि अनबाक हेतु नेपाल पठाओल गेलाह। एहिसँ कतेको विषयक उच्च शिक्षा लेल भारत पर निर्भरता क्रमशः कमय लागल। शिक्षाक विकासक संग शिक्षित नवयुवकक संख्या सेहो बढ़ैत गेल। जीविकार्थीक संख्या बढ़ल। श्रमक पलायन शुरू भेल। ई पलायन एक दिशाह नहि छल।
नेपालमे राजमार्गक निर्माण भेला पर पर्यटकक संख्या बढ़ल। विश्वक कतेको देशक संग दौत्य सम्बन्ध् भेला पर विभिÂ सभ्यता आ’ संस्कृतिक बहरिया लोकक अबर-जात क्रमशः बढ़ैत गेल। पर्यटन एक लाभकारी उद्योगक रूपमे विकसित भए गेलैक। संगहिं पाश्चात्य जगतक रहन-सहन आहार-विहारक अन्धनुकरण सेहो होअए लागल। औद्योगिक रूपे ँ समृ( देश तथा केन्द्रक प्रति नेपालक आकर्षण बढ़ल। एहि आकर्षणक कारणे ँ सामाजिक जीवनमे युग-युगसँ व्याप्त अपनत्व आ’ निश्छलताक स्थान पर असामाजिकता बढ़य लागल। लोकमे अर्थाकांक्षा बढ़ल। आनक नजरिमे अपन ओहदाके ँ उफपर उठल देखेबाक आकांक्षासँ सामाजिकता कमैत गेल। सत्ताक केन्द्रीकरण छले, ओहि केन्द्रक प्रभामंडलक हाथमे सम्पत्ति आ’ सुख-सुविधक सभ साध्न सम्पुटित होइत रहल।
नेपालमे विभिन्न प्रजातिक लोक निवास करैत अछि तथा सम्पूर्ण देश दू प्रकारक भौगोलिक क्षेत्रामे विभाजित अछि। विभिÂतामे एकता स्थापित करबाक प्रयासक बदलामे एहि प्रजातीय आ’ भौगोलिक विविध्ताके ँ विभेदक प्रचारित कए, पारस्परिक विद्वेषक स्थितिके ँ बना के ँ राखब प्रशासन-तन्त्रा अपना लेल लाभप्रद बूझलक। एहि सभसँ सामाजिकताक गति अधेमुख भए गेल। सामाजिक मूल्यक विघटनक प्रक्रिया तीव्र भए गेल। प्रजातन्त्राीय शासन-व्यवस्थाक लाभसँ परिचित नेपालक जनता अपन देशक शासन-व्यवस्थामे अपना के ँ सहभागी अनुभव नहि कएलक। अपनहि घरमे अपनाके ँ असहाय पओलक। अपन अध्किारके ँ अत्यन्त सीमित भेल देखलक। ओहि पर अभिव्यक्तिक स्वतन्त्राता पर प्रतिबन्ध, लेखन-भाषण पर प्रतिबन्ध्, उठब-बैसब पर प्रतिबन्ध्, अर्थात् सभ प्रकारक प्रतिबन्ध्ति क्षेत्रामे राखल पीजरामे बन्द नेपालक जनमानस भोर-साँझ ‘राम नाम’ रटैत रहल। तिलकोराक लाल-लाल पफड़ देखि कौखन-कौखन पाँखि पफड़पफड़बैत रहल।
नेपालमे मैथिली साहित्यक सर्जनाक सुदीर्घ परम्पराक अछैतो राणाशाहीक शासन-कालमे राजनीतिक उठा-पटक साहित्यिक सर्जनाक ड्डोतके ँ सोंखि लेने छल। लोकक ध्यान साहित्य आ’ कला पर कम रहलैक। मुदा, ओहि व्यवस्थाक समाप्ति पर साहित्य, संस्कृति आ’ कलाक विकासक दिस लोकक ध्यान गेल। जागरण आएल। जागरणक राजनीतिक कारण छल। राणाशाहीक समाप्ति पर, सम्भावित खतरासँ ‘हनुमानढ़ोका’क सुरक्षा लेल भारतीय सेनाके ँ रखबाक आनुबन्ध्कि व्यवस्था छलैक जे असुरक्षात्मक स्थितिक समाप्ति पर एक स्वतन्त्रा राष्ट्रक आत्मसम्मान लेल अखरए बाला छल। आर्थिक आ’ विकासात्मक योजनामे मदतिक लेल बनल ‘इण्डिया एड मिशन’क ‘इण्डिया को-आपरेशन मिशन’क रूपमे नामान्तर ओही पृष्टभूमिमे भेल छलैक।
क्रान्तिक समय नेपालमे भारतीय नेताक प्रभाव छल। एहि संग हिन्दीक प्रभाव सेहो बढ़ल। ई प्रभाव बादमे नेपाली भाषा आ’ साहित्यके ँ आच्छÂ कएने जाइत छल। स्थानीय भाषा आ’ साहित्यक विकास प्रभावित भेल।8 । ई सूलपफाक टीस जकाँ पीड़ादायक छल। एही अवध्मिे नेपालक राजनीति पर देशक उत्तरी पाया पारक ;चीनकद्ध प्रभाव सुआदल गेल। उत्तरी पाया पारक बढ़ल प्रभाव तथा दक्षिणी पाया पारक ;भारतकद्ध प्रभावके ँ कम करबा लेल निर्दलीय पंचायती व्यवस्थामे ‘एक राष्ट्र एक भाषा’क सि(ान्तक आधर पर नेपालीके ँ राष्ट्रभाषाक रूपमे विकास करबाक निर्णय लेल गेल। हिन्दीक प्रभाव ओ प्रचारके ँ कम करबाक लेल स्थानीय भाषाक विकास पर ध्यान देव नेपाली शासन-तन्त्राक राजीनतिक विवशता भए गेलैक। राष्ट्रीय जनगणनामे मैथिली भाषी दोसर स्थान पर छलाह, ते ँ मैथिलीक विकास आ’ पठन-पाठनक बाट अनायास खूजि गेल। राजकीय सुदृष्टिसँ मैथिली संस्थाक संघटन आ’ पत्रा-पत्रिकाक प्रकाशन लेल मैथिली-भाषी प्रेरित भेलाह। हमरा जनैत ‘नेपालीय मैथिली’क प्रयोग ओही जागरणक परिचायक थिक।
मैथिली पत्रा पत्रिकाक प्रकाशन भारतसँ हो अथवा नेपालसँ ग्रहण लगैत रहलैक अछि। तथापि जखन-जखन अपन भाषा-साहित्यक प्रति सचेत वर्ग आएल अछि, अपन जीवन्तताके ँ स्थापित करबा लेल पत्रा-पत्रिकाक प्रकाशन कएल अछि। एहि सक्रियताक पहिल उदाहरण थिक ‘नव-जागरण’ ;1957 ई.द्ध। ओकर बाद ‘पूफलपात’, ;1970द्ध ‘इजोत’ ;1972द्ध, ‘मैथिली’ ;1972द्ध, ‘अर्चना’ ;1974द्ध, ‘सनेस’ ;1984द्ध, ‘वाणी’ ;1984द्ध, ‘हिलकोर’ ;1986द्ध आदि प्रकाशित भेल। एहि पत्रिकाक माध्यमे नव-नव हस्ताक्षर समक्ष अबैत गेलाह।
एहि पत्रिका सभमे ‘अर्चना’क प्रवेशांकमे प्रकाशनक उद्देश्यके ँ स्पष्ट करैत लिखल अछि- ‘एकर ;अर्चनाकद्ध प्रमुख उद्देश्य स्वस्थ साहित्यके ँ जन-समक्ष पहुँचाएब रहतैक।’ जेना ‘मिथिला मिहिर’क माध्यमसँ मैथिली साहित्यकारक कतेको पीढ़ी समक्ष आएल तथा अपन उत्कृष्ट रचनासँ मैथिली साहित्यक श्रीवृ(ि कएल अछि, ओहिना नेपालमे मैथिली साहित्यक सर्जनात्मक सक्रियताके ँ ‘अर्चना’ पुष्ट कएलक अछि। किन्तु ‘गामघरक’ प्रकाशन ध्रि राजतन्त्राीय व्यवस्था नेपालक जन-जीवनके ँ संत्रास्त कए देलक। ‘अर्चना’क प्रकाशनक उद्देश्य जतय साहित्यिक छल, ‘गामघरक’ ध्रि अबैत-अबैत ओही सम्पादकक पत्रिका प्रकाशनक उद्देश्य साहित्यिक पायाके ँ पर कए राजनीतिक क्षेत्रामे प्रवेश कए जाइत अछि। ‘गामघर’क प्रकाशनक उद्देश्य भए जाइछµ‘राष्ट्र, राजमुकुट एवं व्यवस्थाक प्रति वपफादार रहब।’ राष्ट्र आ’ राजमुकुटक प्रति कोनो पत्रिकाक वपफादारी करब तँ बुझबामे आबि सकैत अछि, मुदा व्यवस्थाक प्रति वपफादारीक निर्वाहक शपथ लेब रचनाकारके ँ सुविधाभोगी वर्गक पक्षध्रक पाँतीमे ठाढ़ कए दैत अछि।
सन् 1947 ई. अथवा 2007 सालक किहु एम्हर-ओम्हर जनमल मैथिलीक कथाकार ने तँ परतन्त्राताक पीड़ा भोगने छथि आ ने स्वाध्ीनता लेल आत्मोसर्ग करैत राष्ट्रभक्तक विहुँसबे देखने छथि। ओ ने तँ राणाशाहीक क्रूर शासन-तन्त्रामे पीसाएल अछि आ’ ने प्रजातन्त्राीय अध्किारक प्राप्तिक लेल भेल उथल-पुथलक ध्ुक-ध्ुकी सुनने अछि। किन्तु, गत शताब्दीक आठम दशक ध्रि अबैत-अबैत देश-विदेशक स्थिति बुझबाक बोध् अवश्य भए गेल छलैक। अपन पूर्व पीढ़ीक संघर्ष-गाथा आ’ त्यागक अनुपातमे आशा-आकांक्षाक पूर्तिक समीक्षाक विवेक अवश्य अर्जित कए लेनें छल। राजनीतिक एवं प्रशासनिक भ्रष्टाचार तथा समाजक किछु व्यक्तिक हाथमे सत्ता आ’ सम्पत्तिक केन्द्रीकरणसँ बढ़ैत अभाव, भूख, रोग-शोक, आ’ महगीसँ त्रास्त जनसाधरणक स्थितिके ँ बूझय लागल। एहि प्रकारे ँ कोनो व्यवस्थाक विरोध्मे उध्वा उठेबा लेल जाहि-जाहि परिस्थितिक प्रयोजन होइत अछि, ओहिमे सँ अध्किांश नेपालक समाजमे विद्यमान छल। नवयुवक वर्गमे अपन अनुभूतिके ँ स्वर देबाक आतुरता सेहो छलैक। मुदा, अभिव्यक्तिक स्वतन्त्राता पर प्रतिबन्ध् एवं तदनुरूप राजनीतिक चेतनाक अभावसँ, राज्यादेश कतबो जनविरोध्ी हो, उल्लंघनक साहस कमले रहल। कहि सकैत दी, कोपभाजन बनि यातना पएबाक साहस नव युवक वर्ग नहि जुटा सकल छल । एहि प्रकारक प्रतिबन्ध्क स्थितिमे रचनात्मक अनुभूतिक अभिव्यक्ति दू टा बाट ध्ए लैत अछि - लोक विरोध्ी शासनादेशक विरोध्मे प्रतीकात्मक शैली अपनलाए लोकके ँ प्रेरित करब तथा अपन कारयित्राी प्रतिभाके ँ सर्वथा निरापद क्षेत्रा दिस मोड़ि देब।
भारतमे आपात कालक समय जखन अभिव्यक्तिक स्वतन्त्राताक अपहरण भए गेल छलैक, कतेको साहित्यकार प्रतीकात्मक शैलीमे व्यवस्थाक विरोध् करैत रहलाह। किछु पत्रा-पत्रिका सम्पादकीयक स्थानके ँ रिक्त छोड़ि दैत छल। दोसरो स्थितिक पर्याप्त उदाहरण मैथिली साहित्यमे अछि। भारतक स्वतन्त्राता संग्रामक समय जखन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीक आह्नानक अनुगुंज गाम-गाममे सुनाइत छल, विभिÂ भाषा साहित्यक गतिविध्सिँ नीक जकाँ परिचित मैथिलीक कतेको रचनाकार सासु-ननदि अथवा वैवाहिक समस्या दिस अपन लेखनीके ँ घूमा के ँ सर्वथा निरापद क्षेत्रामे रहैत छलाह। नेपालक मैथिली कथाकार अथवा हुनक रचना द्वितीय स्थितिमे अबैत अछि। एहि अवध्मिे एही तूरक भारतीय क्षेत्राक मैथिली कथाकारमे गड़ारके ँ ताकि-ताकि खण्डित करबाक प्रवृत्ति भेटैत अछि। मुदा राजनीति आ’ शासन-व्यवस्थाक भिÂ पृष्ठभूमिक कारणे ँ नेपाली क्षेत्राक एही तूरक मैथिली कथाकारमे ओहि प्रवृत्तिक अभाव अछि।
नेपालमे मैथिली कथा लेखनक प्रथम उदाहरण मानल जाइछ वासुदेव ठाकुरक ‘सप्तव्याध’। ओहो ‘पण्डित जीवनाथ झा स्कूलक’ रचनाकार छथि। एहि स्कूलक प्रवृत्ति शास्त्राीय विशेष छल, प्रगतिशील कम, ते ँ लसकि गेल। ‘डा. ध्ीरेन्द्रक स्कूल’ उर्जा सम्पन्न छल। अपन परिवेश आ’ युग-जीवनक प्रति संवेदनशील छल। अतः नव-नव रचनाकारक सक्रियता अभिव्यक्त होइत गेल। यद्यपि ध्ूमकेतुक अध्किांश कथा नेपालहिक प्रवासमे लिखाएल अछि। मुदा ओहिसँ नवयुवक वर्ग प्रभावित भए कथा लेखन दिस प्रवृत्त भेल तकर सम्भावना क्षीण अछि। डा. ध्ीरेन्द्रक कथा नेपालक जनजीवनके ँ समेटने अछि, ओतय ध्ूमकेतुक कथा मनुष्यक ओहि सत्यके ँ उद्घाटित कएल, जे एक क्षेत्रा आ’ भाषाक वस्तु नहि थिक। नेपालमे मैथिली कथाक विकासक क्रममे डा. ध्ीरेन्द्रक अवदानक प्रसंग रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’क विचार तथ्यपूर्ण अछि जे साठि इस्बीक बाद नेपालीय मैथिली साहित्यमे आएल जड़ता टूटल आ’ ओ ;डा. ध्ीरेन्द्रद्ध नव रचनाकारक एकटा पैघ जमाति ठाढ़ कएलनि, प्रेरणा-उद्बोध्नक संग। मानव जीवनक वृहत्तर पफलकके ँ अपन कथाक विषय-वस्तु बनाए पात्राक जीवनसँ सोझे-सोझ जोड़ि ओकर व्यथा-कथाक जीवन्त प्रस्तुति डा. ध्ीरेन्द्रक कथाक विशेषता रहलनि अछि। ई एकटा गाइड लाइन भेलैक एतुक्का ;नेपालकद्ध कथाकार लोकनिक हेतु, जे आगाँ बढ़ि अपन रचनामे, माटि-पानिक गन्ध्के ँ लएबाक प्रयास कएलनि’।9 एहि प्रकारे ँ गत शताब्दीक सातम दशकक प्रारम्भेमे नेपालक धरती पर मैथिली कथाक बनल किआरी आठम दशक अबैत-अबैत चतरि गेल। कथाकारक नवतूरक बाट प्रशस्त भए गेलैक तथा अध्किांश पत्रा-पत्रिकाक प्रकाशन एही तूरक प्रयासे भेल अछि।
नेपालमे लिखाएल मैथिली कथाक प्राप्तिक दू टा ड्डोत अछि। पहिल ड्डोत थिक भारत आ’ नेपालसँ प्रकाशित मैथिलीक पत्रा-पत्रिका। अध्किांश कथा, एही ड्डोतमे छिड़िआएल अछि। दोसर ड्डोत थिक संग्रह। दू टा संग्रहक प्रकाशन भेल अछि। ‘नेपालक प्रतिनिध् िगल्प-;सं-डा. ध्ीरेन्द्र,1981द्ध तथा ‘नेपालीय मैथिली गल्प’ ;स. सुरेन्द्र लाभ, 1989द्ध। पहिल संग्रह मे 17 टा तथा दोसर संग्रह मे 10 टा कथा संगृहीत अछि। एहि दूनू संग्रहमे डा. ध्ीरेन्द्रक अतिरिक्त राजेन्द्र किशोर, विजय, रामभद्र, रेवती रमण लाल, रामभरोस कापड़ि, ‘भ्रमर’, राजेन्द्र प्रसाद विमल, उपाध्याय भूषण, लोकेश्वर व्यथित, भुवनेश्वर पाथेय, महेनद्र मलंगिया, अयोध्यानाथ चौध्री, राम नारायण सुधकर, ब्रज किशोर ठाकुर, डा. अरुणा कुमार झा, जीतेन्द्र जीत, योगेन्द्र नेपाली, मीनाक्षी ठाकुर, कुबेर घिमिरे, आ’ सुरेन्द्र लाभक कथा संगृहीत अछि। एहि कथाकारमे सँ मात्रा रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’ ;तोरा संगे जयबौ रे कुजबा, मैथिली अकादमी, पटनाद्ध तथा रेवती रमण लाल ;माध्व नहि अएला मधुपुरसँद्धक व्यक्तिगत संग्रह प्रकाशित अछि। शेष कथाकारक कथा पत्रा-पत्रिकामे छिड़िआएल अछि। एहिमे सँ अध्किांश कथाकारक प्रकाशित कथाक संख्या दू दर्जनसँ वेशी होएबाक सम्भावना नहि अंिछ। ओना महत्त्व छैक गुणात्मकताक, परंच कथाक संख्या कथाकारक सर्जनात्मक सक्रियताक निरन्तरताके ँ अवश्य द्योतित करैत विविध्ताक बाट प्रशस्त करैत अछि। साहित्यमे व्यापकता अनैत अछि। भाषाके ँ समृ( करैत विकासक चेतनाके ँ प्रखर करैत अछि।
कथाक प्रवृत्ति:
नेपालमे लिखाएल मैथिली कथामे राजनीतिक चेतनाक अभाव अछि। राजनीतिक दाव-पेंच आ’ ओहिसँ प्रभावित लोकक दयनीय स्थितिक चित्राण, ओहि स्थितिसँ उवरबाक अकुलाहटि अथवा अन्याय, अत्याचार, शोषण, प्रताड़ण आ’ अध्किारक हननक विरोध्क मानसिकताक कथा अपवाद स्वरूपहि भेटत। ‘ध्ध्कैत भविष्य’ ;राजेन्द्र प्रसाद विमलद्ध कथामे चुनाव प्रचारक स्थिति, जाति, र्ध्म आदिक आधर पर लोकके ँ बांटब, युग-युगसँ पीड़ित, अभावग्रस्तक एक जुट भए प्रतिपक्षीक रूपमे ठाढ़ होएब, आदि वर्णित अछि। किन्तु निर्णयक स्थितिसँ पूर्वहि ओहि वर्गक उर्जासम्पÂ आ’ नेतृत्व प्रदान करबामे सक्षम नव युवकक हत्या कराए, ओकर पिताके ँ कीनि, सुविध सम्पÂ वर्गक चुनाव जुलूसक नेतृत्व कराए देल जाइछ। अभावग्रस्त, भूखल आ’ नाघटक लेल पाइक महत्त्व निर्विवाद अछि। परंच, जाहि प्रकारे ँ शोषित-प्रताड़ित वर्गक एक नव युवकक हत्याक बदलामे पिताके ँ पुत्रा मृत्युक हर्जाना लेल मनाओल जाइत अछि, दलित-शोषितके ँ अध्किार प्राप्तिक चेतनासँ वंचित कए, शोषक, प्रताड़क आ’ सुविध सम्पÂ वर्गक भीति-नीतिक परिचायक थिक। एकहि ठाम रहैत पानि पड़बाक गप्प कहबा लेल मालिकक आघन दौगि जाएब, मालिकक दरद थिक, माटिक दरद नहि ;‘माटिक दरद’-रामभरोस कापड़ि भ्रमर’द्ध अछि। ब्रज किशोर ठाकुरक कथा ‘घिना गेल लतामक गाछ’10 मे घराड़ी छल छप्र सँ हथिआ लेल जाइछ। मुदा, प्रतिकारक स्थान पर चारि गोट मनुष्यक एक गोट कापिफला गामसँ बाहर जा रहल छल। कोन ठेकान कतए, पाछाँ-पाछाँ चलैत एकटा छौंड़ा वेर-वेर उँचकि बाड़ीक लतामक गाछ दिस ताकए आ’ पफेर मुह घुमा लिअए। रतिचरक खाएल लतामके ँ दू टा नेना द्वारा उठा लेब, एहि पर रखबार द्वारा पीटल जाएब, प्रतिकारमे लतामक गाछ रोपब, पटाएब, लताम बाँटि आह्लादित होएब आदि स्थिति तथा मानसिकताक स्पष्ट चित्रा अछि। मुदा बच्चा बाबू द्वारा पफर्जी केवाला पर उपटि जाएब, बिना एको शब्द बजने गामसँ पलायन कए जाएब, संघर्षमयी चेतनाक अभावक परिचायक थिक।
नेपालक शासन व्यवस्थामे जेना-जेना परिवर्तन आएल, मैथिली कथाक धरमे सेहो परिवर्तन होइत रहल। पंचायतक समय अभिव्यक्तिक स्वतन्त्राताक अभाव छलैक। परंच, बहुदलीय शासन व्यवस्थामे पूर्व जकाँ प्रशासनक आतंक नहि रहल। एकर अनुगुंज राम भरोस कापड़ि ‘भ्रमर’क कथा, कामरेड11 मे अछि। सुखिया बजैत अछि-‘सेहे, राणा कालमे जिमदार सभ हुकुम चलवै। वेगारी खटबै। पंचायतमे गिरहत सभ मनमानी करैत छल। बड़का ध्निक सभक राज चलै छल। आब तँ हमरा सभक युग अएलै है। आब तँ हमरो सबके बात के ँ मोजर देतै सब। तब एना कए बिना देखने-सुनले पीट देनाइ नीक बात ने भेलै।’ रामचन्द्र झाक कथा ‘चिनगी सुनगि रहल छौ’12 मे कथा नायकक कहब जे आँखि उठा कए नइ तकइ छल से सब मुह लागल बजै है-देशक राजनीतिक परिवेशमे आएल परिवर्तनक द्योतक थिक।
नेपालक मैथिली कथामे समाज आ’ परिवारक विखण्डन प्रतिध्वनि अछि। शिक्षाक विकास, पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यताक व्यक्तिवादी प्रवृत्तिक प्रति आकर्षण, गिरिवन, प्रान्तरक लोकक कष्ट आ’ अभावमय जीवनके ँछोड़ि, नगर-उपनगरक सुविधपूर्ण जीवनाकांक्षा एवं चकमक इजोतक लोभ, नेपालीय समाजमे युग-युगसँ प्रवाहित आत्मीयताक रसके ँ सोंखने जा रहल अछि। माए बापक बीच सम्बन्ध्, भाए भाएक बीच सम्बन्ध्, व्यक्ति आ’ समाजक बीच स्नेहिल सम्बन्ध्, पुरान वस्त्रा जकाँ मसकि रहल अछि। बढ़ैत सम्बन्ध्हीनता एक ओहन समाजक छवि प्रस्तुत करैत अछि, जतय माए-बापक समस्त आशा-आकांक्षा पुत्राक लेल कोनो मूल्य नहि रखैत अछि। व्यक्गित लाभक चिन्ताक समक्ष सामाजिक दायित्व-पालन निरर्थक भए जाइत अछि। जाहि घरमे ओ जन्म लैत अछि, जे समाज ओकर विकास आ’ शिक्षाक व्यवस्था करैत छैक, ओकरहि ओ खोभाड़13 कहि घृणा करैत अछि। रक्तक सम्बन्ध् शिथिल भए जाइत अछि। अपनहि गामघरमे परिचय हेरा जाइत छैक ;‘हेराएल परिचय’-सुरेन्द्र लाभ-नेपालीय मैथिली गल्पद्ध। गाम उजड़ि रहल अछि। गामक आत्मीय वातावरणसँ लोक शहरक स्पन्दनहीन सम्बन्ध्क बन्हनमे बान्हल रहबाक चेष्टा करैत अछि ‘छुट्टीक दिन’ ;रा. ना. सुधकरद्ध। माए-बाप साध्नहीन पुत्राक कर्तव्यपरायणताके ँ बिसरि दुराचारी छोट पुत्राक सुख समृ(िक प्रकाशमे ओकरहि असली श्रवण कुमार मानि लेत अछि। ;‘रामे छापक श्रवण कुमार’-विमलद्ध। एहि प्रकारे ँ नेपालक मैथिली कथामे ग्राम विमुखता, नगर-महानगरक प्रति आकर्षण, अर्थाश्रित सम्बन्ध्, व्यक्तिगत सुख-सुविधाक प्रति व्यामोह तथा समूहो मे एकसरूआ भए जाएब ;उधरक कथा’-गंगा प्रसाद अकेलाद्ध आदि स्थितिक अभिव्यक्ति होअए लागल अछि।
नेपालक मैथिली कथामे मनुष्यक जैविक विवशताक अभिव्यक्ति भेटैत अछि। अन्य भाषा साहित्य जकाँ ओ र्ध्म-अर्ध्म, पाप-पुण्य, आचार-अनाचारक सीमाके ँ तोड़ि शु( जैविक विवशताक रूपमे अभिव्यक्त भेल अछि। अध्किांश कथामे अतृप्त पत्नी डेग उठबैत अछि। एहि दृष्टिसँ रा. ना. सुधकरक कथा ‘चान असोथकित अछि ;मिथिला सौरभद्ध, ‘नुकाचोरी’ ;मिथिला सौरभद्ध, ‘चिल्होरि उड़ि रहल अछि’14, ‘चोलियामे चोर बसै गोरी’15 ‘खुट्टी पर टाघल ब्रा’16 , रेवती रमण लालक कथा ‘कुहेसक बीच’ तथा ‘दरारि’, ‘भुवनेश्वर पाथेयक’ खाली क्षितिज’17, रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’क ‘मनः स्थितिक दंश’ आदि। ‘मनः स्थितिक दंश’ मे ससुर पुत्राक रातुक ओवरटाइमक अवध्मिे बहुरियाक पफटकी खोलि प्रवेश करैत अछि तँ ‘खुट्टी पर टाघल ब्रा’ मे जैविक विवशता लम्पटताक सीमाध्रि बढ़ि गेल अछि। वेशी कथामे पत्नी पतिसँ चोरा कए अपन जैविक विवशताक तृप्तिक बाट तकैत अछि। ओतय ‘चान असोथकित अछि’ मे पति सब किछु जनितहुँ प्रतिवादक स्थितिमे नहि अछि।
नेपालक मैथिली अध्किांश कथा स्त्राी-पुरुष सम्बन्ध्, विशेषतः दाम्पत्य जीवनक आधर पर अछि। ई दाम्पत्य जीवन शिक्षा, नागरिक जीवनक जटिलता आ’ नारी स्वावलम्बनसँ जीवनमे अबैत तनातनी आदि सँ अप्रभावित अछि। कहि सकैत छी एक पक्षीय अछि। पत्नी पतिसँ नाना प्रकारक यातना पबैत अछि, घरसँ निष्कासित भए अभाव आ’ अमर्यादक जीवन जीवा लेल वाध्य होइत अछि। नारी चरित्रामे प्रतिकारक हेतु आत्मबलक अभाव छैक। निराश आ’ असहाय भए आत्महत्या मात्रा उपाय बचैत छैक।
नारी पात्राक एक दोसर वर्ग अछि। ओ महत्त्वाकांक्षी अछि। पतिक सीमित आयक सीमामे असहज भए अपन आचरण आ’ शब्द-वाणसँ पतिके ँ आहत करैत रहब अपन स्वभाव बना लैत अछि। ‘चोर’, ;राजेन्द्र किशोरद्ध, ‘मनःस्थितिक दंश’ ;भ्रमरद्ध, ‘चिल्होरि उड़ि रहल अछि’ ;रा.ना.सुधकरद्ध आदि एही मूलगोत्राक कथा थिक। पुफलिया ;बिरड़ो-भ्रमरद्ध निर्दोष अछि। आत्मसम्मानक समस्त प्रयास बेकार भए जाइत छैक। जखन बोल-भरोस आ’ सहानुभूतिक आवश्यकता छलैक, अत्याचारक घटना सुनि, पति शहर घूमि जाइत छैक। नेपालक समाजने नारीक होइत अवहेलना दिस संकेत करैत अछि कुवेर घिमिरेक कथा ‘बिनु हाटक बिक्री’। पुत्राीके ँ बेचव आ’ प्रतिकूल लोकक संग पंचायतक अनुमति लए विवाह कराए विदा करा देब, नेपाली समाजक एहि विकृतिक उद्घाटन एहि कथामे भेल अछि। माल जालक हाट बाजार लगैत अछि, मुदा बिना हाटक बेटी बेचब निश्चित रूपे ँ सामाजिक मूल्यक अवमूल्यनक परिचायक थिक। नेपालक मैथिलीक बड़ कम कथामे पत्नीक व्यक्तित्व गढ़ल गेल अछि। ओ कनिको लोभ-लाभ पर वंचकता पर आतुर भए जाएत। एकर अपवाद अछि जीतेन्द्र जीतक कथा ‘प्रश्नचिर्’िं18। मित्राक पत्नीक प्रति लोभित शैलेन्द्रके ँ मित्राक शिक्षिता पत्नी आत्मबोध् कराए दैत छनि। पतिक शारीरिक यातनाक प्रतिकार दोसर पत्नी शारीरिक स्तर पर करैत अछि ;‘दरुपिबा’-रेवती रमण लालद्ध।
नेपालक मैथिली कथामे नारीक स्थान अत्यन्त गौण अछि। ओ अशिक्षिता अछि, श्रमक महत्त्वसँ अपरिचित अछि। यातना आ’ अत्याचार सहबा लेल वाध्य अछि। प्रेम नहि वंचलता छैक। तथापि एक आध् एहनो कथा अछि जाहिमे प्रेम-समर्पण परिवारक प्रति दायित्वबोध् आदि व्यक्त भेल अछि। एहि दृष्टिसँ रेवती रमण लालक ‘चतुर्थो’ ‘धेकराक मारि’, ‘माध्व नहि अएला मध्ुपुरसँ’, ‘भुवनेश्वर पाथेयक जीवन वृत्त’19 आ ‘पूफटल चूड़ी’ रा. ना. सुधकरक ‘सन्ध्’ि ;प्रभातद्ध, राजेश कुमार वर्माक ‘पागल माय’ ;प्रभात-2द्ध आदिक नामोल्लेख कएल जा सकैछ। नैहरसँ चीज-वस्तु नहि आएब, पर्याप्त विदाइ नहि भेटब आदिक कारणे ँ पुतहुक यातना तँ प्रायः समाजक सामान्य विषय भए गेल अछि। एकर आधर पर नारी उत्पीड़नक कतेको कथा लिखल गेल अछि। मुदा, सासुरमे जमायक उत्पीड़नक कथा अपवाद स्वरूपहि भेटत। एहि प्रकारक कथा थिक जीतेन्द्र जीतक ‘सासुर’20 विवाहमे कनियाँ लेल किछु नहि अनबाक कारण कन्या-पक्षक लोक द्वारा वरक उपेक्षा तथा व्यंग्यवाणसँ आहत भेला पर बनल मानसिकताक विलक्षण उपस्थापन ‘सासुर’ कथामे भेल अछि। कनियाँक माएक आक्रोशके ँ सहदैत दोसर स्त्राी बजैत अछिµ‘ठीके तँ कहै छथिन, हिनकर सब खर्च कएल व्यर्थे मे चल गेलनि। विवाहक दिनसँ ई वर एक्को टा विध्मिे किछुओ देलकै? ‘चतुर्थीक राति रूनियाक माए अपन नवविवाहिता बेटीके ँ पतिक निकट पठेबाक बदलामे अपन कोठलीमे बन्द कए लैछ तथा लांछित-अपमानित जमायक आँखिक नोरके ँ बिछोहक नोर मानि लेल जाइत अछि।
व्यवस्थाक असामाजिक नीतिक प्रत्यक्ष विरोध् अथवा एहन वातावरणक निर्माण करब जाहिसँ जनमानस प्रशासनक विरोध्मे मानसिकता बना लेबा लेल तत्पर भए जाए, नेपालक मैथिली कथामे साधरणतया नहि भेटैत अछि। पुफलिया ;बिरड़ो, भ्रमरद्ध शान्ति व्यवस्थाक रक्षक थानासँ अपन रक्षाक अनुरोध् करैत अछि। परंच, ओतय तँ ओ औरा अरक्षित भए जाइत अछि। एहिसँ शासन-व्यवस्थाक प्रति आक्रोशक सुगबुगी होइत अछि, जे गुणात्मक आ’ सार्वजनिक भेला पर प्रभावी भए सकैत छल, मुदा देशक राजनीतिक परिदृश्य जे छलैक, से नहि होअए देलकैक। बदरी नारायण वर्माक कथा ‘सुनगैत गाम’ ;प्रभात-2द्ध मे बहुदलीय शासन व्यवस्थाक बाद युग-युगसँ प्रताड़ित वर्गमे आएल चेतनाक स्वर अछि। एहि क्रममे रा. ना. सुधकरक कथा ‘थकुचल मांसुक बुट्टी’ ;आंजुरद्ध नेपालमे एखन धरि प्रकाशित समस्त मैथिली कथासँ भिÂ कथ्य वर्गक अछि। बहिनिक अपहरण आ’ हत्या तथा पिताक हत्या एक मेधवी आ’ निधर््न छात्राके ँ असहाय बना दैत अछि। ओ वर्तमान व्यवस्थामे अपना के ँ पूर्णतः अरक्षित आ’ आतंकित अनुभव करैत अछि। किन्तु, क्रमशः अपन असहायता पर विजय पाबि साहसक बटोर-सघोर करैत अछि। ओ एहि निर्णय पर पहुँचैत अछि जे वर्तमान अत्याचारी शासन-व्यवस्थाक अन्तक एकमात्रा उपाय थिक गुरिल्लावार। भ्रष्ट व्यवस्था, समाजक तथाकथित संभ्रान्त व्यक्तिक दुराचार, धन-सम्पत्तिक मदमे सभ किछु अपना अनुकूल बना लेबाक व्यूह-रचना आदि पर प्रायः प्रथमहि बेर अतेक मुक्तरूपे ँ प्रहार कएल गेल अछि।
कथाकार द्वारा कथा-चयन आ प्राप्त सामग्रीक उपयोग रचनात्मक दृष्टि पर निर्भर करैत अछि। जतए ध्रि नेपालक मैथिली कथाकार द्वारा कथा-चयनक प्रश्न अछि कथाक विषय-वस्तु समाजक निम्न आ’ मध्यम निम्नवर्गक अछि। ओकर निधर््ना भूख पियास अछि। प्रशासनक दुष्चक्रमे पीसाआइत जीवन-यापन अछि। श्रमक पलायनसँ टुटैत सामाजिक-पारिवारिक जीवन अछि। शिक्षित-अशिक्षित नवयुवकक बेकारी बैसारीजन्य मानसिकता अछि। कथाक ई विषय-वस्तु आ’ चित्रित परिवेश नेपालक सामाजिक जीवनक बिम्ब प्रस्तुत करबामे सपफल प्रतीत होइत अछि। परंच, त्रासद राजनीतिक आ’ सामाजिक जीवनक बीचसँ निःसृत होइत संघर्षक जे वेगवती धर स्वतः पुफटि जएबाक चाही, ओहन स्थिति अथवा पात्राक सर्जना नहि भेल भेटैत अछि। अत्याचारी शासन-व्यवस्था, डेेग-डेग पर व्याप्त भ्रष्टाचार आ’ कुटिलताक विरोध्मे ठाढ़ होएबाक लेल मानसिकरूपे ँ तैआर करैत हो, ओहन वैचारिक संघर्ष कथाक अभाव अछि।
नेपालक मैथिली कथाक एक सहज समानता अछि पात्राक कानब। जेना सभ समस्याक निदान नोरे हो। बात-बात पर कानब परिस्थितिक प्रति पात्राक भावुकता आ’ आत्मीयता अवश्य द्योतित करैत अछि। परंच, संघर्ष आ’ निर्भीकताक एहन भावुक स्थितिमे पिछड़ि जाइत अछि। सम्प्रति, समाज जाहि द्रुतगतिसँ बदलि रहल अछि, सामाजिक आ’ पारिवारिक मूल्यक अवमूल्यन जाहि गतिसँ भए रहल अछि, नोरके ँ पीबि संघर्ष लेल ठाढ़ होएब श्रेयस्कर अछि।
नेपालसँ पत्रा-पत्रिकाक नियमित प्रकाशन आ’ बदलल राजनीतिक स्थितिक कारणे ँ नेपालक मैथिली कथाक प्रवृत्ति विभिÂ दिशामे अभिव्यक्त भए रहल अछि। एहिसँ विषय-वस्तुमे व्यापकता आएल अछि। परिवेश, स्थिति, सामयिक घटना कथाक विषय वस्तु बनबाक हेतु कथाकारके ँ प्रेरित करैत अछि। देशक राजनीतिक परिस्थितिसँ समाजक सांस्कृतिक मानसिकतामे आएल अन्तर कथामे अछि। एहि तथ्यके ँ भारत आ’ नेपालक बीच किछु वर्ष पूर्व नियति आयतक ट्रांजिट बिन्दुक कारणे ँ भेल मतान्तरसँ दूनू देशक जनताके ँ दैनिक जीवनमे जे अपार कष्ट भेलैक ओहि पृष्ठभूमिमे रा. ना. सुधकर कथा ‘सन्ध्’ि अछि। माए बापक तनातनीसँ ध्ीया पूता प्रभावित होइत अछि आ’ पति, पत्नीमे मिलान होइतहि पारिवारिक जीवनमे महमही आबि जाइत छैक। सएह स्थिति सन्ध्कि बाद दूनू कातक लोकक भेलैक। कहबाक तात्पर्य जे विषय वस्तुक व्यापकता आ’ राजनीतिक व्यवस्थामे आएल परिवर्तनसँ नेपालक मैथिली कथामे प्रगतिशील ओ युग-जीवनसँ परिपूर्ण कथा दृष्टिक परिचय होइत अछि। निश्चित रूप ई शुभ लक्षण थिक।
गगगग गगगग गगगग
एहि शुभ संकेतक आकलन हम आइसँ लगभग दू दशक पहिने ;1992 ई.द्ध कएने छलहुँ। एहि दू दशकमे नेपालक राजनीतिक परिदृश्य पूर्णतः बदलि गेल। जनताक सम्मिलित आकांक्षाक समक्ष राजतन्त्रा इतिहासक वस्तु बनल। असल राजा भेल जनता। ओकरहि हाथमे अपन नेताक निर्वाचनक चयनक शक्ति अएलैक। जनताक आशा-आकांक्षाक अनुरूप देशक संविधन निर्माणक प्रक्रिया निर्णायक स्वरूप ग्रहण करबा पर अछि। अपन भाषा-साहित्य एवं संस्कृतिक संग अपन क्षेत्राक विकासक प्रति सतर्कता कतेको गुणा बढ़ि गेल अछि। समाजो पहिने सँ बेसी टुटल अछि। व्यक्तिवदिता बढ़ल अछि। गाम उजड़ल अछि। शहरमे जाए बसबाक आकांक्षा द्विगुणित भ्ेालैक अछि। संगहि, अपन सांस्कृतिक अस्मिताक रक्षाक प्रति सामान्य लोकक चेतना बलवती भेल अछि। एहि बलवती चेतनाक अभिव्यक्ति एलेक्ट्रोनिक आ’ प्रिन्ट- दूनू प्रकारक प्रचार माध्यमसँ भए रहल अछि। जनकपुरधममे मिथिला महोत्सवक नियमित आयोजन वा आने प्रकारक साहित्यिक - सांस्कृतिक कार्यक्रमक नियमित आयोजन - एही चेतनाक रूपान्तरण थिक। ‘नैमिकानन’, ‘सयपत्राी’ एवं ‘आघन’ सहित ‘विद्यापति टाइम्स’, ‘मिथिला डाट कम’ आदि पत्रा-पत्रिका एहि चेतनाक सबलता आ’ निरन्तरतामे पर्याप्त सहायक भेल अछि। एहि बीच कतेको उल्लेखनीय व्यक्तिगत कथा संग्रह, जेना, ‘ई हमरे कथा थिक’;डा. राजेन्द्र विमलद्ध, ‘कथा-यात्रा’;डा. सुरेन्द्र लाभद्ध, ‘हुगली उपर बहैत गंगा’;रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’द्ध, ‘एकटा हेरायल सम्बोधन’;अयोध्यानाथ चौध्रीद्ध,;वृषेश चन्द्र लालद्ध आदि आएल अछि। ओहिना किछु संग्रह, जेना ‘कथायात्रा’ ;सम्पादक रमेश रंजन एवं अशोक दत्त - संकलित कथाकार- डा.राजेन्द्र विमल, डा.रेवती रमण लाल, अयोध्यानाथ चौध्री, डा.सुरेन्द्र लाभ, श्यामसुन्दर शशि, रमेश रंजन, ध्ीरेन्द्र प्रेमर्षि, जे. एन. जिज्ञासु, परमेश्वर कापड़ि, रामनारायण देव, रूपा ध्ीरू आ’ सुजीतकुमार झाद्ध तथा ‘नैमिकानन मैथिली कथा संग्रह’;सम्पादक डा.रेवती रमण लाल, संकलित कथाकार-सुन्दर झा शास्त्राी, डा.ध्ीरेन्द्र, राजेन्द्र किशोर, डा.राजेन्द्र विमल, डा.हरिश्चन्द्र झा, उपाध्याय भूषण, भुवनेश्वर पाथेय, बदरीनारायण वर्मा, अयोध्यानाथ चौध्री, रा.ना.सुधकर, जीतेन्द्र जीत, डा. सुरेन्द्र लाभ, जयनारायण झा ‘जिज्ञासु’, रमेश रंजन तथा ध्ीरेन्द्र प्रेमर्षिद्ध प्रकाशित भेल अछि। बहुतो कथाकारक रचना असंकलित अछि। नेपालमे राजतन्त्राक समयमे जे ‘मोगलान मिथिला’ कहाइत छल, से ‘दक्षिण मिथिला’ सम्बोध्ति होइत सुनलहुँ अछि।
सम्पर्क -
म् उंपस रू . तदरींतंउंद/ीवजउंपसण्बवउ
. तदरींतंउंद/हउंपसण्बवउ
सन्दर्भ: -
1. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’ ;सं.द्धआंजुर, वर्ष-1 अंक-3
2. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’;सं.द्ध, गामघर,जनकपुर 14 मार्च 1985 ई.
3. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’;सं.द्ध, गामघर, जनकपुर, 7 जून 1988
4. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’;सं.द्ध आंजुर, वर्ष-1 अंक-1,जनकपुर एवं भाखा, पटना
5. रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’;सं.द्ध अर्चना’, अंक-5, तथा गामघर-6.12.1984
6. वैदेही विशेषांक, दरभंगा, 1989
7. घर बाहर, पटना, जुलाइ सितम्बर, 2010
8. कुमार अभिनदन -मैथिली भाषा, साहित्य सांस्कृतिक पच्चीस वर्ष, गामघर, पूस 2043
9. कापड़ि-नेपालक मैथिली कथामे माटि पानिक गन्ध्’-वैदेही विशेषांक, 1989
10. जनक, वर्ष-8, अंक-1, वैशाख 2047
11. पूर्वा×चल, नई दिल्ली, अंक-2, दिसम्बर 1991
12. मिथिला वाणी, आसिन 2050
13. खोभाड़’-सुरेन्द्र लाभ, मिथिला मिहिर, 28.1.1976
14. मिथिला मिहिर. 11.12.1979
15. माटिपानि 1984
16. माटि पानि,1984
17. सोनामाटि, नवम्बर-दिसम्बर, 1970
18. आंजुर, 2047 साल
19. वैदेही, दिसम्बर 1989
20. प्रभात-1, विराटनगर सितम्बर,1990
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