भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Friday, December 31, 2010

'विदेह' ७२ म अंक १५ दिसम्बर २०१० (वर्ष ३ मास ३६ अंक ७२) Part II


धीरेन्‍द्र कुमार- एकांकी- जरैत मोमबत्ती  डॉ. शेफालिका वर्मा- एकांकी-     एकटा आर महाभिनिष्क्रमण


धीरेन्‍द्र कुमार

एकांकी
जरैत मोमबत्ती

            (मंचपर बादक नाटकक शुरू होएबाक पूर्वक वाद्य-यंत्र बजा रहल अछि‍। बंठा दर्शक दि‍सि‍ पीठि‍ केने गुड्डी उड़ा रहल अछि‍। वादक दीर्घा दि‍सि‍ हल्‍ला होइत छैक।)

गांधी :       हे यौ नाटक कि‍एक नहि‍ शुरू होइत छै।

बटेसर :      यौ नटकि‍या सभ गांजा पीबैत हेतै।

रंजि‍त :      सि‍नेमा देखऽ चलि‍ गेल हेतै।

बटेसर :      अच्‍छा, ओ सभ नहि‍ छै तँ कि‍ भेलै, कि‍यो तँ शुरू करू।

गांधी :       पि‍आरे गणमान्‍य लोकनि‍। अहाँ सभ ध्‍यान लगा कऽ बैसल छी नाटक देखैले। मुदा नाटक ओहि‍ना थोड़े भऽ जाइत छैक। पहि‍नेसँ मोन बनाउ, योजना बनाऊ षडयंत्र करू तखने नाटक होइत अछि‍। अहाँ सभ तँ नाटक हरेक समए देखतै रहैत छी। हालेमे बि‍हार वि‍धान सभमे नाटक भेलै अभूतपूर्ण नाटक- जूता टूटलै, चप्‍पल टूटलै गमला टूटलै आ टूटलै ओ प्रति‍ज्ञा जे वि‍हार वि‍धान सभाक सदस्‍यता ग्रहण करए लेल लेने रहथि‍। आइ-काल्हि‍ सपत्तक कोनो महत्‍व थोड़े रहि‍ गेल अछि‍। लि‍अऽ आब हमहीं नाटक शुरू करैत छी आ हम बनि‍ जाइत छी गांधीजी।

            (मंचेपर गांधी आँखि‍पर चश्‍मा रखैत अछि‍। पहि‍नेसँ पहि‍रने घोतीकेँ गांधी स्‍टाइलमे राखि‍ हाथमे लाठी लऽ मूर्तिवत ठाढ़ भऽ जाइत अछि‍। गुड्डी उड़बैत-उड़बैत बंठा पाछू मुहेँ भगैत अछि‍ आ गांधीसँ टकरा कऽ खसैत अछि‍, डराइत अछि‍ आ मूर्तिवत गांधी जीक स्‍पर्श करैत अछि‍)

बंठा :        अहाँकेँ थि‍कहुँ?

गांधी :       बच्‍चा हम गांधी जी छी। महात्‍मा गांधी। मोहनदास करमचंद गांधी।

बंठा :        के महात्‍मा गांधी। अहाँ सनक लोक तँ भीख मंगैत अछि‍। मुदा हमरा लग। पाइ नै अछि‍।

गांधी :       हम भीख नै मंगैत छी। आइ तों जाहि‍ देशमे जीबि‍ रहल छह ओकरा आजादी देनि‍हार हम छी।

बंठा :        आजादी की होइत छै। कोन दोकानमे भेटैत छै। हमरा तँ नै भेटल आजादी?

गांधी :       बच्‍चा आजादी कोनो बस्‍तु नै छै। भारत अंग्रेजक गुलाम छल ओकर अपन नि‍यम, कानून रहए जाहि‍सँ हम सभ बान्‍हल रही। हम अपन इच्‍छासँ कि‍छु नै कऽ सकैत रही। हमर सभ अधि‍कार अंग्रेज छीनि‍ लेने रहए। ओ हमरापर अत्‍याचार करैत रहए हमर शोषण करैत रहए।

बंठा :        नि‍यम, कानून, अत्याचार तँ आइओ भऽ रहल अछि‍। इंदि‍रा आवासमे पाँच हजार टाका, वृद्धा पेंशनमे दू सए टाका, कागजपर सड़क बनैत अछि‍। मकान पुल तैयार होमएसँ पहि‍ने खसि‍ पड़ैत अछि‍। ई सभ तँ अखवार पढ़एबला लोक बुझैत अछि‍।

गांधी :       यएह काज अंग्रेज करैत छल। अपन मोन नि‍यमसँ हमर शोषण करैत छल। अंग्रेजक अनुज छथि‍ ई सभ। जनताकेँ जागरूक होमए पड़तै, गलतकेँ वि‍रोध करए पड़तै। सभकेँ शि‍क्षि‍त होमए पड़तै, सत्‍य बाजए पड़तै, चाेरि‍ नै करए पड़तै। दया-भाव-करूणाकेँ अपनाबए पड़तै तखने हम कृत्रि‍म गुलामीसँ बॉचि‍ सकैत छी।

            (दू पात्र, सि‍द्धांत, अधि‍कारी आ नि‍यमनक प्रवेश)

            हम अंग्रेजक खि‍लाफत केलहुँ, अहि‍ंसात्‍मक आंदोलन चलेलहुँ। समस्‍त भारत वर्षमे स्‍वराज अलख जगेलहुँ, सुभाष चंद्र बोस, खुदीराम, भगत सि‍ंह, चंद्रशेखर आजाद सन सैकड़ो लोक अंग्रेजसँ लड़ाइ लड़लाह, तखन बड़ मोसकि‍लसँ हमरा आजादी भेटल। हम अपन देशसँ खुश नै छी। स्‍वर्ग-नरक दुनूमे स्‍वतंत्रता दि‍वसपर ई खबरि‍ धौलाइए ने भारतक पतन भऽ रहल अछि‍। तँए एक घंटाक छुट्टी लऽ आएल छी। आऊ हम अपने संदेश एहि‍ गीतक माध्‍यमसँ सुना दैत छी- बच्‍चा सभ अहूँ सभ हमरा संगे गाऊ
      ‍हम लाऍ हैं तूफान से कि‍श्‍ती नि‍काल के
      इस देश को रखना मेरे बचचे संभाल के
      तुम ही भवि‍ष्‍य हो भारत वि‍शाल के
      इस देश को रखना मेरे बच्‍चो संभाल के
      देखो कही बर्वाद न हो वाग बगीचा
      उसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
      जलाए हैं चि‍राग शहीदो ने बार के
      इस देश को रखना मेरे बच्‍चो संभाल के।
गांधी :       बच्‍चा तोहर की नाम छह।

सि‍द्धंत :      सि‍द्धांत।

गांधी :       तों की करैत छह।

सि‍द्धांत :      (बीड़ी बहार करैत) हम चोरी करैत छी।

गांधी :       आ तों (नि‍यमनसँ)

नि‍यमन :      जतेक अपहरण होइत छै ओकर जासूस छी। टेलीफोनसँ खबरि‍ करैत छि‍ऐक, के कतऽसँ कतेक पाइ लऽ कऽ जा रहल अछि‍। के कतऽ अछि‍। आ ऑफि‍सर सभकेँ दारू पहुँचबैत छी। मुि‍खया सरपंचकेँ जी-हजूरी करैत छी।

गांधी :       हे राम। एतेक छोट बच्‍चा सभ एहन काज करैए, पता नै समर्थ लोक सभ की करैत हेताह।

नि‍यमन :      बाबा, अहाँ सनक लोककेँ पुलि‍स आतंकवादी, चार, उचक्कामे पकड़ि‍ लैत छैक। अहूँकेँ पकड़ि‍ लेत। पड़ा जाऊ एतऽसँ।

गांधी :       बच्‍चा आब बूझि‍ पड़ैए हमरासँ ई हि‍न्‍दुस्‍तान नै सुनत। अंग्रेजी भगा देलहुँ आब अपने बेटा सभ ई काज करैए। आब हमरो आरामे करऽ दएह।

सि‍द्धांत :      बाबा, अहाँ बजैत छी जे अहाँक नाम गांधी अछि‍। गांधी शब्‍दक प्रयोग गाड़ि‍ रूपमे प्रयोग होइत अछि‍। जेना बाप बजैत छैक बेटा-बड़का गांधी भऽ गेलहेँ। जाऊ बाबा, पड़ा जाऊ।

            (गांधी नमहर डेग उठबैत अछि‍। तीनू पात्र हॅसैत अछि‍-)
गेल, भागल बतहा।

नि‍यमन :      रौ बाप हमर दि‍माग गरम भऽ गेलो हि‍नकर गप्‍प सुनैत-सुनैत।

सि‍द्धांत :      हमर माथ टनटनाए  लगलौ। ला एकटा ि‍सगरेट ला।

बंठा :        ले गांजा भर। चऽल एकटा गाना गबैत छि‍ओ सभ डान्‍स कऽर।
      मुन्नी बदनाम हुयी
      डार्लिग तेरे लि‍ए....।
(नाच समाप्‍त होइत अछि‍। सभ हपसैत अछि‍। अधि‍कारीक प्रवेश)

अधि‍कारी :    की रौ नाचि‍ लेलेँ ने। कहू तँ ई देश कोना सुधरत। मंदि‍रमे टि‍कट कटाऊ तँ भगवानक दर्शन होएत। अहाँकेँ पाइ नै अछि‍- लाइनमे लागल रहू। अहाँकेँ उचि‍त काज अछि‍ दक्षि‍णा दि‍ओ। मृत्‍यु प्रमाण चाही तँ टाका ि‍दओ। अहाँ जीवि‍ते छी सरकारी रेकर्डमे मरल छी। भोंट मागए औत तँ हम सभ टाका लेबइ। ठीकेदार सड़क बनाओत तँ हम ओकरासँ रंगदारी मंगबै। सड़कक ईंटासँ अपन घर जोड़ब, सड़क नहि‍ राखब। सरकारी मकानक गि‍ट्टीसँ नादि‍ बनाएब। सामुदायि‍क भवनकेँ मुखि‍याजी दलान बनौताह। बेटीकेँ वि‍आह करब तँ बेटाबलाकेँ पाइ दि‍औ। गरीब छी, दुख अछि‍, जहर कीनब, खएब सुतब भाेरे जीवि‍ते रहब। डॉक्‍टर बेहोशीक सुइया देत, पेट चीरए लागत तँ बाप-बाप करब। सभ ि‍कछु नकली। कतए जएब की करब? राष्‍ट्रीय त्‍योहार दि‍न झंडा फहराएब, राष्‍ट्रीय गीत गाएब। लालकि‍लासँ भाषण सुनब। हमर उत्तरदायि‍त्‍व समाप्‍ति‍ भऽ जाइ जाएत। दरी-जाजि‍म झाड़ब आ वि‍दा भऽ जएब। अपन गाम आ लागि‍ जएब सड़ककेँ भाेकसैमे, अलकतरा पीबैमे। स्‍पैक्‍ट्रमकेँ पेटमे रखैमे। ठीके छै, हम सभ कोनो देशक ठीकेदारी नै नेने छी।

नि‍यमन :      रौ सारा तों नेता भऽ गेलेँ।

सि‍द्धांत :      एकरो रोग लागि‍ गेल छै, मलेरि‍या, लबेरि‍या, नेतगेरि‍या।

नि‍यमन :      पागलखाना जाएत।

सि‍द्धांत :      पागलक कोनो छै, ओतहु नो एंट्रीक बोर्ड टांगल छैक।

बंठा :        पकड़ सारकेँ आ लऽ चल।

नि‍यमन :      पकड़ पकड़ नै तँ पुलि‍स गि‍रफ्तार लऽ लेतौ।

            (सभ कि‍यो पकड़ि‍ कऽ मंचसँ बाहर लऽ जाइत अछि‍। भारत माताक प्रवेश। हाथमे ति‍रंगा। अस्‍त-व्‍यस्‍त हालत। हँसैत पालग सदृश।

            हम जर्जर भऽ चूकल छी। एक समए रहए जखन सैकड़ो सपूत अपन कुर्वानी दए हमरा आजाद करौलक। आजुक तों सभ कपूत छँह। हमरे आंचरकेँ तों सभ कलंकि‍त कए रहल छँह। हमर जग हँसाइ भऽ रहल अछि‍। की तोहर सभकेँ यएह कर्तव्‍य छौह। तों सभ ज्ञानक लेल नै पढ़ै लि‍खै छँह तोरा धन चाही। रूपैये तोहर माए-बाप भऽ गेल अछि‍।
           
            (बजैत-बजैत हि‍चुकि‍-हि‍चुकि‍ कनैत बजैत अछि‍।)

            की भऽ गेलह तोरा सभकेँ। आब माइयक अभि‍मानकेँ नष्‍ट नै करऽ, नै करऽ।

                       

                ((हि‍ंदीक गीत हमर मूल रचना नै छी। कथ्‍यक संप्रेषणमे एकर आवश्‍यकता छल। आजुक पीढ़ीक स्‍वभाव यएह अछि‍, तँए गीतक रचयि‍तासँ आभार प्रकट करैत छी।))
 डॉ. शेफालिका वर्मा

एकांकी 
      एकटा आर महाभिनिष्क्रमण
(सान्झुक बेर.मंद समीरण वातावरण के उन्मादित क रहल छल . पलंग पर बैसल प्रकृति चुप  चाप कोनो विस्मृति में डूबल छलीह .ओकर चेहरा पर अतीत आबी बैसी गेल छल. किम्हर दन स वोकर वाल्य- सखी राखी आबि प्रकृतिक सोच के तार तार क देलक )
राखी --अहाँ की सोचैत रहैत छी ,सखी ?जाहि दिन स अहाँ दार्जीलिंग स घुरल छी ,लगैत अछ अहाँ एखनो ओहि घाटी सब में भटकि रहल छी 
प्रकृति एकटा उसांस भरि  निमिष मात्र ले राखी  दिसि तकैत अछ फेर बजैत अछ 
प्रकृति--सांचे बजैत छी राखी ,हम एखनहु ओहि घाटी सब में भोतिया रहल छी . कत्तो कत्तो बाट क दुनू दिस कमल -कुसुम  के देखि रबीन्द्रनाथ टैगोर क पाती मोन पड़ी जायत छल
'एय शरद आलोर कमल बने ,वाहिर होय विहार करे 
जे छिले मोर  मोने मोने .  ..'  अकास में जल भरल मेघ खंड देखि बुझा पडैत छल जेना  सागरक लहरि होय ,राखी  एहि मोहक सुषमा क संसार में हम हेरा गेल छलों
( प्रकृतिक आंखि डबडबा जैत छैक. मुड़ी नुघरा लैत अछ  .राखी बड सिनेह स ओकर चेहरा उठ्वैत अछ )
राखी--प्रकृति , अहाँ बड कोमल छी , बड निश्छल .....
बीचे में बात कटैत प्रकृति बजैत अछ --हँ हँ उहो इयैह कहैत छल राखी ' निश्छल, कोमल '.....ओ जखन हँसैत छल त शत जलतरंग जकां हमर मोन मानस कांपि जायत छल ...
( बजैत बजैत प्रकृतिक डबडबायल नोर धार बनि जायत अछ. अधीर भ राखी बजैत अछ )
---प्रकृति, हम अहांक वाल्य संगिनी छी. तैयो अहाँ हमरा से कतेक बात नुका लैत छी . अहांक ह्रदय पर जे असह्य बोझ अछ ओकरा हमर सामने फेक दिय . अहांक दारुण व्यथाक राज हम जाने चाहैत छी प्रकृति  ( राखी आवेग आ आवेश स भरि जायत अछ )
--बाजु प्रकृति बाजु
( तावत किम्हर दन स एकटा छोट नेना दौडल अबैत अछ आ धप्प दे प्रकृतिक कोर में बैसी जायत अछ . प्रकृति ओकरा अपन करेज स सटाई लैत छैक . )
माँ माँ ,अहाँ कत छलों ?कतेक काल स अहाँ के खोजी रहल छलों
की बात छैक प्रसून ,बाजु बेटा ----नेना के दुलरावैत प्रकृति बजैत अछ.
माँ, केओ संगी नै आयल आय. अहीं कोनो खिस्सा सुना दिय
राखी उत्साहित भ बजैत अछ ..हँ हँ प्रसून, हमहूँ त अहाँक माँ के इयैह कहैत छलों
आब प्रसून क ध्यान राखी दिसि जायत अछ ,ओ चोंकि जायत अछ --अरे मौसी ! अहाँ एहिठाम छी. , अहं खिस्सा सुनब ने मौसी..   थपडी पडैत प्रसून बजैत अछ --माँ ,  आब ते अहांके खिस्सा सुनाबे पडत ..आब अहांक खिस्सा सुनब ,माँ मुदा परि वाला खिस्सा , राक्षस से हमरा भय होयत अछ. 
प्रसुनक माथ पर हाथ फेरैत प्रकृति बजैत अछ ---बेटा, राक्षस स भय होयत ते अहाँ मर्द कोना कहायब ?
मायक बात सुनि प्रसून बजैत अछ..--ठीक छै, तखन एहेन खिस्सा कहू जाहि में परी होई, देवता होय ,राक्षसों होय , कोनो बात नै...
प्रसून क गप सुनि प्रकृति आ राखी दुनू हँसैत अछ. 
राखी जिद्द पकड़ी लैत अछ --आब ते अहाँ के अपन कथा कहये पडत सखी 
प्रकृतिक आंखि सुदूर अतीत में भटकि  जायत अछ , आँखिक कोर में ओ दिन सब मखमली सपना जका छलक लगैत अछ   
हँ , एकटा परी छल ,बड सुन्नरी, सुन्नर ? नै नै ओकर अंतर बड निश्छल छल , एतेक सरल छलीह जे संसारक छल कपट आदिक नमो नै जनैत छलीह. परी के हरदम लागेक जे ओ कोनो आन लोकक प्राणी छी जे भूलल भटकल कोनो श्राप वश एहि धरती पर आबि गेल हो ....प्रसून एकटक माय के तकैत रहैत अछ .....ओ परी एकटा राजकुमार के देखलक आ देखिते रही गेल..निश्छल शिशु सन रजत हास  ओकर चेहरा पर पसरल छल .परीक अंतर  से अवाज आयल ' एकरे लेल कतेक युग स ,कतेको कल्प स हमर आत्मा भटकि रहल छल '  राजकुमारों क ह्रदय कांच जकां निरभ्र छल .ओकर ह्रदय में विश्व प्रेम क अपूर्व रागिनी बजैत छल. ओ कोनो दिव्य आत्मा छल , महान चरित्र छल जे भोतिआइत एहि ठाम आबि गेल छल
माँ माँ , ओ राजकुमार बड सुन्दर होयत ने --प्रसून मुग्ध  सुनि रहल छल - प्रकृतिक तन्द्रा भंग भ जायत अछ-हँ बेटा, सुन्दर त अपूर्व छल,मुदा अद्भुद व्यक्तित्व सेहो , ओहि परीक आंखि ओकर सुन्दरता पर नै ओकर निर्मल अंतर पर गेल छल  आ प्रकृति पुनः भावाविष्ट भ जायत अछ --बेटा , ओ परी ओहि राजकुमार स बड प्यार कर लगलीह , राज्कुमार क सिनेह देखि परी के मोन में होम लागल .इयाह राजकुमार एहि मर्त्य भुवन स हमर उद्धहार करत ...दुनू सदिखन कल्पना डूबी    अकासक गप करैत छल . एक दिन ओहि परी के किछ चोट लगलैक ,ओ पूछी बैसल ओहि राजकुमार स .' हम अहांक आंखि में उपेक्षाक छाहरी देख्लों , किएक ,  आखिर किएक ?
राजकुमार बाजल - अहाँ कतेक सरल छी , कतेक अबोध ,अहाँ हमर आंखि में अपन छाहरी नै देखि उपेक्षाक छाहरी देख्लों . आंखि में त सबहक परछाहीं रहैत छैक ,मुदा, अनमोल निधि धरती में गाडी के राखल जायत छैक. अहं के हम अपन हृदयक अतलता में नुका के रखने छी.
आ परी ओकर मोहक गपक स्वप्निल सागर में हेलैत रहल ..--अहाँ हमरा सबदिन एहिना मानब ने ?
बताही छी अहाँ, स्वयं पर अविश्वास करू ते करू मुदा, हमरा पर अविश्वास क नरक केर भागी नै बनू. ....आ परी जेना सब किछ पाबि लेलक 
ओ राजकुमार ओस-तीतल गुलाब सन कमनीय , सुकुमार शब्द  चितेरा बनि कविता करैत रहल, परीक मोन भिजैत रहल ' ओह अपन राजकुमार क प्रेरणा छी हम 'एहि भाव में डूबैत रहलीह ओकर निश्छल अंतर अकास में खिलल  सिंगराहारी तारा जका प्रमुदित होइत रहल.....
खिस्सा कहैत कहैत प्रक्रितिकं  आंखि स दुई बुन्न आहत  पियासल कपोल पर खसि पडैत अछ . राखि एतेक देर स मूक श्रोता बनि चुपचाप ओकर कथा के आत्मसात क रहल छलीह.  (प्रसून ओकर करेज स लागल नै जनि कखन सुति गेल छल ओहि नेनाक अबोध अंतर में परी आ राजकुमार गंभीर गाथा कोना समायत ? )अरे ई त सुतिगेल. (चोंकि बजैत अछ प्रकृति , आस्ते स ओकरा बिछोन पर सुता दैत अछ.)
आगू की भेलैक प्रकृति राखि क प्रश्न पर प्रकृति चौंकी जायत अछ ...छोड़ू...  बाहीं पकड़ी लैत अछ राखी..बाजु सखी, आय सब किछ बजे पडत ...(कतेक देर धरि प्रकृति चुप रहैत अछ जेना वेदना अपन संगीत ओकर अधर पर राखि देने हो ..
राखी कतेक काल धरि ओकर ई स्थिति देखैत रहल फेर) बजैत अछ  -चुप किएक भ गेलों प्रकृति बाजु ...आगू बढ़ू
ओह हँ ...हँ  हँ ते ...जेना शब्द गर में छटपटा रहल होय ---एक दिन ओकरा ज्ञात मुदा चहला स की भेलैक जे ओहि ओस तीतल गुलाब क खेतीक आत्मा ओ नै केओ आर अछ --केओ आन अछ.  परीक आत्मा कुहरय लागल  , रोम रोम सिसकी भर लागल ....मुदा, ओ राजकुमार निर्विकार रहल. ओ पहिनुके जका रोज एकटा ओअस तीतल गुलाब ओकरा सुन्वैत छल आ परीक अंतर सिसकी उठैत छल काश, एहि गुलाबक खेतीक कारन हम बनि सकतों !मुदा मात्र चाहला स की .? एकदिन ओ बाजल..हम चाहैत छलों ओकरा क्षितिज क क़ात में ठाढ़ क दी आ बाजि 'जखन अन्हार सघन भ जाय त अहाँ आकाशदीप   ल हमर    पथ प्रदर्शन करब. ' मुदा ओ की जनैत छल जे हम पहिनही किनार में ठाढ़ भ गेल छलों ,आकाशदीप सेहो बारि नेने छलों मुदा ओ राजकुमार ओहि बाटे एवे नहि केलक. ओ गुलाब क खेती सँ भोर क पहिल किरण तोड़ी ओकरा चिर प्रदीप्त करवा लेल चाहैत छल ,  परी सोचैत छल भोर क नै ,कम से कम सान्झुक प्रहरक कोनो भटकैत रश्मि रेख ओकर जीवनक सौभाग्य बनि जाय.किन्तु, ओ परीक लेल नोरक खेती कर लागल . परी ओहि नोर के पिवैत जिवैत जायत छलीह .ओ रोज ओहि राजकुमार क नाम एकटा चिठ्ठी लिखैत छल आ फेर स्वयं पढैत छल.ओकर आंगुर राजकुमार के आखर,शब्द आ पंक्ति  में बान्हि दैत छल आ फेर निर्निमेष ओहि में राजकुमार क रूप के खोजैत छलीह उषा क आँचर स अनुरागिमा झडवाक संगे  ओ ओहि पत्र के दुई खंड क दैत छलीह , ओ परी स्वयं अपना के दुई खंड क देने छलीह , एकटा खंड ओ स्वयं छलीह जे पत्र लिखैत छलीह ,दोसर खंड ओ स्वयं राजकुमार बनि  ओकरा पढैत छलीह .
( एकटा नमहर साँस लैत प्रकृति कनि काल मौन
भ जायत अछ. राखी एकटक ओकरा देखैत अछ उत्सुक आ करुण नयन सँ  , )..कतेक भाग्यवान हेतीह ओ जे अहांक प्रेरणा छथि ...
ओ की भाग्यवान हेती भाग्यवान ते अहाँ छी --ओ हमर लिखित काव्यक प्रेरणा थिकीह ,अहाँ हमर अलिखित काव्यक प्रेरणा छी, बाजु ते अहाँ कतेक महान छी.....ओ परी चुप रहैत छली .शब्दक एहि अभिधा व्यंजनाक झाडी में ओझरा स्वयं के नितांत असहाय बूझैत छलीह., हम किछ नै जनैत छी ,किछ नै,,अहीं ते कहने छलों अहाँ के हम ह्रदय क अटल गहीर में नुका के रखने छी ...
हँ, सांचे बजने छलों . हमरा मानव-जाति स प्रेम अछ ,अहाँ एहि पर अपन सर्वाधिकार सुरक्षित बुझि लेलों ई ते अक्षय कोष थीक  जतेक बांटू ओतेक बढत 
( प्रकृति क आंखि  स नोरक टघार निकल लागल..)
राखी--फेर की भेल. ओही परिक ?? ओ राजकुमार एतेक कठोर ,एतेक निर्दय कोना छल ? 
प्रकृति- नै सखी , ओकरा निर्दय नै कहू. मुदा, छोडू, खिस्सा पिहानी जखन जीवनक संग घटित होम लागैत अछ त बड वेदनामय भ जायत अछ,
राखी--नै सखी आय हम कहनी अनकहनी सब टा सुनब ओ राजकुमार एतेक निर्मम किएक छल ?
नै सखी, राजकुमार परीक आत्म्घुटन, एकान्तिक प्रेम क विषय में कल्पनो नै क सकैत छल. 
प्रकृति--ओकरा बेर बेर निर्मम नै बाजु. हमहू एक बेर ओकरा निर्मम कहलों ते जनैत छी ओ हमरा की कहलक 
राखीक  आंखि में हजारो प्रश्न हेल लागैत अछ 
आ प्रकृति अपन तरंग में ..ओ बाजल नारियर ऊपर स कतेक कठोर  होयत छैक, भीतर स कतेक कोमल, कतेक सरस...
हूँ हूँ बुझि गेलों किन्तु, कहियो कहियो ओकर गप नेना जका होयत छल. अहाँ एक बेर उन्मुक्त हंसी हंसी दिय जाही स हजारो सिंगरहार झहरी जाय, या नै ते एक बेर कानि दिय ,अहाँक रुदन के हम आत्मसात क लेब. ओ परी ओकर बात के ओकर गप के सुनैत रहैत छलीह, गुनैत रहैत छलीह . ओ अपन वाक्य स, अपन शब्द स ओही परी के एतेक दुलरावैत रहैत छल जे परी निहाल भ जायत छलीह.एक बेर ओ बड निश्छल भाव स पुछलक -अहाँ हमरा स एतेक सिनेह किएक करैत छी   ? उत्तर में परीक नयन अश्रुप्लावित भ उठल ओकर वाणी अवरुध्ह भ गेल ,ओ मूक, निष्पंद ,निर्वाक बैसल रहलीह 
राजकुमार बाजल छल -हमरो ह्रदय अहीं जका निश्छल रहितैक , हमरो आंखि में अहीं जकां नोर आबि जेतियैक 
जखन ओहि परी स एतेक प्रेम करत छल तं ओ परी किएक बुझलक जे ओ परी स प्रेम नै करैत छैक -बीचे में राखी बजैत अछ ,,नै राखी, ओ परी स प्रेम करैत छल ह्रदय क सम्पूर्ण गहिरता क संग, भावना क सम्पूर्ण सत्यता क संग.मुदा, ओ बेर बेर ओकरा आहत सेहो करैत छल , बेर बेर क्षत करैत छल ..एक दिन ओ परी आकुल व्याकुल सन ओहि  राजकुमार लग गेल छलीह त गपे गप में एकटा एहेन बात कहि गेलजे अग्निशलाका जकां ओहि परीक आत्मा के विद्ध क गेल.'अहाँ के हम ओहि रूप में कहियो नै देखलों.परी वेदना स विकल भ उठलीह मुदा, राजकुमार अपना में मस्त रहल. एक दृष्टि इ देखवाक प्रयासों नै केलक जे ओकर एहि एकटा बात से परी के कतेक मर्मान्तक पीड़ा भेटलैक
जलकण स भरल आंखि  आ कंपित पैर स घुरी आयल.समस्त संसार स ओकर आस्था टूटी गेलैक. ओकरा भगवन क अस्तित्व फुसि लग लगलैक समस्त भावना पर अन्हार क साम्राज्य खसि पडल . केकरो भावना के स्वीकार करब अपनेनाय त नै थीक. ओ कतेक डरी गेल छल .आ परीक मोने एकटा ज्वार उठल आ ओ राजकुमार के एकटा अभिधा द देलक, एकटा संबोधन 
राखी ( एकटा निसांस भरैत )- मुदा एहि से की फरक पडल ? 
( निसांस क  दर्द के भोगैत) प्रकृति--ई अहाँ नै बुझि सकब , राखी जखन हम ओकरा ओहि संबोधन स अभिहित केलों त ओ एकटा स्वतन्त्रता क सांस लेलक जेना कोनो मृगछौना के बंधन-मुक्त क देलों ..ओ परी ओकर ख़ुशी देखि खुश भ गेल ..अहाँ खुश राज, हमहूँ खुश..
एतवे नै बाद में ओ बज लागल 'हम ते अहाँ के बंधवा लेल नै कहने छलों अहाँ स्वयं बान्हि देलों ..आ सखी, ओहि परीक अंतर घाह घाह भ गेल.कतेक पैघ प्रवंचना ओकरा छली गेल ...ओ त 'अषाढ़क एक दिन' 'मल्लिका' बनि जीवन क सभ सुख आत्मसात क लेतियैक मुदा राजकुमार सब टा ऋतू के उनटा पुन्टा देलक कहियो घाह बेसी दुखित छल ते कहियो दवाय.किन्तु, ओ अपन भाव सुमन स परी के एतेक दुलार करैत छल जे ओकर दर्द रहि रहि कुहर लागेक ....
बहिन ! -( राखी क  खोजपूर्ण दृष्टि  प्रकृतिक चेहरा पर पडल छल )- की संबोधन देने मात्र से अहांक प्रेम बदली गेल..
प्रकृति--इयाह  ते ट्रेजेडी छैक ,यदि शब्द मात्र स भाव  बदलि जेतियैकप्रेम अपन रूप स्वरुप पाबि लेतियैक त संसार क सब स सुखि प्राणी ओ परी रहितैक
. मुदा, ओ भीतर भीतर तीतल जारनि सन पजरैत रहल  ,घुटैत रहल. मुदा एतवे नै , जखन कोनो शारीरिक व्याधि हमरा घेरि लैत छल ते बेर बेर आब कोना छी, केहेन छी  आ हम सोच लगैत छलों देह क कनिक कष्ट लेल एतेक चिंता, एतेक आकुलता मुदा, एकर भीतर जे एकटा कामना घुटन एवं कुंठा स मुक्त हेवा लेल छटपट  करैत छल ,व्यथा विगलित छल, एकर चिंता ओकरा नै छल , नै नै हेबो किएक करतियैक.ओकर अपन मोन छल,अपन ह्रदय छल ,अपन भावना..मनुख अपन मोन के ते बूझिये नहि सकैत अछ, आन क कोन कथा..( (प्रकृतिक आंखि स्वप्न बनि जायत अछ , अधर ओकर भाषा)
प्रकृति--ओहि कोठरी के देखैत छी राखी, ओहि में आबि ओ बैसैत छल, अपन प्यारक भाषा स कतेक हमरा दुलरावैत छल , ओ चलि जायत छल ते ओकर नाम के परी निह्स्वन बज्वैत छल . मोन नै भरैत छल ते जोर स स्वरित बज्वैत छल    ओ नाम सखी, ओहि कोठरी में टांगल नै वरन कोन कोन में प्रसृत भ गेल ,ओ विलय नै भेल मुदा, ओकर अनुगूँज घुरि घुरि ओहि परी के दुलरा जायत छल  ...ओकर नाम क ध्वनि एतेक मीठ लागैक्जे बेर बेर अपन अधर पर ओकर नाम आनि एकटा स्पर्शजन्य सूखक अनुभूति ओकरा होयत छल जहिना अगरबत्ती स समस्त घर सुरभित भ जायत अछ ओहिना ओकर नाम स ओ  कोठरी सुरभिमय भ गेल. ओहि नामक सहारे ओकर अशरीरी उपस्थितिक आह्वान क अपन घर के मंदिर बना लेलों 
( राखी बेचैन भ जायत अछ )-की राजकुमार किछ नै बूझैत छल ओहि परीक एकान्तिक प्रेमक विषय में ?
प्रकृति--नै बहिन नै, ओ ते परीक एहि एकान्तिक प्रेम क कल्पनो नै क सकैत छल.ओ ते संबोधन के सम्बन्ध बुझि नेने छल. 
राखी--एकटा बात पूछी सखी ? आत्मा स आत्मा के प्रकाश भेटैत छैक, फेर ओहि परीक निश्छल प्रेम ओकर ह्रदय के नै छुवलक?इ कोन विडम्बना थीक ?
प्रकृति- हँ, विडंबने त थीक जे ओकरा स्पर्श तक नै केलक .राजकुमार क कोठरी में जखन ओ गेल छल ते अपन किछ छाप छोड़ी गेल  की नै ई ते परी नै बुझलक,मुदा ,ओकर कोठरी क छाप परीक अंतर पर छपि गेल छल., अस्तु, अपन ' निज' के ओहिठाम छोड़ी नै वरन ,कतेक कुछ ल क ओहिठाम स चलि आयल छल. सखी, अपन सबहक 'चाहना' कागजक नाह थीक,जे यात्री लक नै , इच्छा ,कामना स लदल ,आन आन लोक क कल्पना के स्पर्शानुभुती देवा लेल पहुंची जायत अछ.भनहि, ओकर प्रतिदान ओकरा भेटय या नहि . ओ प्रेम की जे प्रतिदन माँगे ?ओकर ख़ुशी लेल जीवन भरि कालिदास क मल्लिका बनल,व्यथा वेदना भोगैत रही गेलीह.( राखी  अस्फुट स्वरे बाजि उठैत अछ  -सांचे ओ बड निर्मम छल)
 बेर बेर ओकरा निर्मम कहि ओकर अपमान नै करू सखी,ओ बड महान अछ ओकर भावना बड उदात्त अछ ओ महान विभूति क महाप्राण स अभिसिंचित छैथ,ओ एक दिन विश्व क सर्वश्रेष्ठ प्राण ,जन जन के हृदय गगन क प्रदीप्त आलोक राशि  बनताह
( राखी दुखी स्वरे बजैत  अछ ) -छोड़ू,जखन ओ अहांक प्रेम भरल हृदय के आलोकित नै क सकलाह तखन जन जन क , हुनक प्रेम में एतेक सामर्थ्य नै छल....हम इ सब बड़का बात नै बूझैत छी,हमर बुध्ही क्षुद्र अछ,मुदा एतवा अवस्य कहब  ...
( बीचे में बात कटैत प्रकृति बजैत अछ )-चुप चुप बहिन, ओ हमरा स अगिला जनम लेल वचन देने छैथ,अगिला जनम में हम हुनक,प्रेरणा,सहचरी,प्रेमिका सब किछ बनब..(प्रकृतिक आंखि में कतेको स्वप्न सम्मोहन नर्तित भ उठैत अछ.).
( हा हा हा..राखी सखिक निश्छलता पर जोर से हँसैत बजैत अछ )..बड दीब,बड बेस,एहि जनम में हुनक प्रेमक माला जपु ,ओकर नामक संग मरू,जिबू आ अगिला जनम अहांक प्रेम के स्वीकार करत ,,,ओह प्रकृति, जे अदृश्य अछ अस्पर्श्य अछ ओहि पर एतेक भरोस ,सौंसे जिनगी अहांक आगू पडल अछ..
प्रकृति भावाविष्ट भ --अहाँ नै बुझब सखी, सिंगरहारक झहरैत सुन्नर मुकुल क कल्पना करू,  आस्ते आस्ते लयात्मक गति स झरनाय,शाख  स विलग हेवाक कल्पने ओकरा में वेदनाक गान भरि दैत छैक..अपन विनष्टियो में समष्टि सुख क अनुभूति ,इ समर्पण कतेक दुर्भेद्य अछ,कतेक अगम ,अथाह . बस ओकरा निहारैत रही ,एहि स हमरा मुक्ति भेट जायत .....
अहाँ बताही भ गेल छी,--बीचे में बात कटैत राखी बजैत अछ --भरि जिनगी की एहि वेदना में जीवन बिता देब अहाँ --
मुदा, प्रकृति अपन सोह में बजैत रहैत अछ--जनैत छी,काल्हि हम एकटा सपना देखलों..लाल लाल नुआ में हम अपना आप के दर्पण में देखैत छी हमर ठोर स रितेश निकली गेल ,ओहि ध्वनी स हमर सर्वांग रितेशमय भ उठल ,हम विक्षिप्त जका सिहरि उठलों ,धीर गंभीर पैर स चलि गेलों रितेश क घर ...रितेश हमरा अपन बाँहि में भरि पाँज पकड़ी प्रेमक अनमोल वरदान द दैत अछ..हम कतेक काल धरि बेसुध रहलों ..आह ..सखी ओ क्षण सपने रही गेल.  हम आय धरि रितेश के चीन्ही नै सक्लों ,,हम अपन हृदय पुस्तक  जका खोली ओकर समक्ष राखी दैत छी. मुदा, ओकर ह्रदय में कतेक तह भरल अछ,तह पर तह..हमर सपना सुनि ओ बजल छल......इ नादानी नीक नै..सरिपो, हम त नादाने रहलों ,एहि नादानिये में त अपन मोन के गवांय बैसलों ..हूँ,कहियो काल ई इच्छा जरुर करोट लैत अछ..काश ! एक बेर..हमर प्रेमक किछ ते निशानी हमरा भेटि जेतियैक.
प्रकृति अनवरत बजैत जायत अछ -----हमर जीवन पथ क परम पाथेय भेट गेल ..हमर प्रसून ,हमर बेटा..रितेश विवाह केलक रैना स . ,अतीव सुन्नरी ,नंदनवन क कलिका ,जेकर रूपराशि पर कतेको रति लजा जायत छल. ओकर सलज्ज मुस्की पर पजेब्क ध्वनी गूंज लगैत छल कनक सन देह पर पूनम नहवैत छल,अलस अंगेठी स ऋतू बदली जायत छल ...साँच बजैत छी सखी,रितेश्क एहि पसिन्न पर हमरा कनिको इर्षिया नहि भेल ओकर खुशिक संसार देखि हम दुरही स  खुश रह लगलों,इ साँच अछ जे हम रितेश के आय धरी बुझि नै स्कलों , केकरो जानवा लेल बुद्धि ,ज्ञान सभक सहारे जनि सकैत छी. ,मुदा,कोनो चीज के बुझ्व्लेल,चिनवा लेल एकर सभक आवश्यकता नहि,,हम अहियो ठाम धोखा खा ग्र्लों ,जकरा चिन्ह्वाक दावा केलों ओ मात्र एकदिन पहिचानल मात्र रही गेल, मुठी स रेत जकां ससरी गेल , साँच कहि राखी,रितेश्क संग बिताओल समय लगैत अछ जेना कोनो ;मोर्निंग वाक़; में बितोल एकटा पल छल ,किछ स्थूल,किछ सूक्ष्म,किछ भाव किछ अनुभाव क आदानप्रदान भेल  आ फेर ओ अपन बाट हम अपन बाट ......समय क  अदृश्य पक्षी उडैत गेल.....,ओना त प्रत्येक ह्रदय में एकटा ' बुद्ध' रहैत अछ मुदा, दिशा नै भेटैत छैक तैं सब क्यों 'बुद्ध' नै भ सकैत अछ,
( चूँकि प्रकृति आब  राजकुमार स अपना आ रितेश्क नाम परआबि  गेल छलीह, तै राखी एको बेर बीच में नै टोकैत छलीह ,ओकरा होयत छल आय प्रकृति सब किछ निकाली दैक )......
जनैत छी सखी एक दिन रैना कोर में प्रसून के नेने,हकास्ल पिआसल भीत हिरनी जका भयभीत हमरा लग एलीह--दीदी दीदी,--हम चोंकि उठल छलों रैना..अहांक इ हाल..? रितेश ?रैना भरल बसंत में पतझार बनल छलीह--दीदी, हम एकटा सपना देखने छलों ,हमर मोन कांपी गेल ,रितेश के सुनाय देलों आ ओ घटित क देलक.ओ सपनाक स्यात एयाह महत्व छल, किछ घटित हेवाक असंभावित संभावना , जन जन क करुण स्वर ओकर कर्ण कुहर में गूंजी रहल छल.समस्त मानवताक व्यथा -कथा क उपकृति ओ बनि गेल..पैर पर खसि पडलों -हमर की होयत , बजलाह,यशोधरा कहियो बाधा नै बनली ,हूँ, एतवा अवस्य बजलाह --ओ जे सामने कुटिया देखैत छी हमर जीवन तटी ओ थीक.कहियो हम लहरि जका ओकरा लग जायत छलों,कहियो ओ अंतरीप जकां हमरा लग आबि जायत छलीह .जीवन भरि ओ सभक दुःख ओढने रहलीह ,ओकर दुःख केओ नै ओढ़ी सकल प्रेमक ओहि अखंड साधिका लग जाऊ .......
राखी, हमर समस्त साधना के जेना फल भेटि गेल. मुदा,तुरते मानसिक मूर्छा स आत्मविस्मृत हम सजग भ गेलों ---रैना क  चिर कोमल निःशक्त काया ,आँखिक विह्वलता ,निस्तब्ध,निर्वाक आंखि में कतेको प्रश्नचिन्ह,,कोनो प्रताड़ित नेना जका चुप चुप ..करेजा  में एकटा हुक उठल.आखिर रैना के कोना दुखक उपनगर में धकेली गेल ओ निर्मम 
हम दुनू हाथ पसारि देलों.. ओहि मास भरिक राहुल के हमर हाथ में द अचेत खसि पडली रैना .ओकर जीवन प्रदीप ओहि दुर्ग-दीप सन  अचक्के मिझाय गेल जे  युग युग स स्वत आलोक पसारि रहल हो.... जैत जैत ओ एहि एकाकी शून्य जीवन के सुस्मित स्वप्नक उत्तरदायित्व सौंपी गेल ..आय धरि    ओहि 'बुद्ध 'के अयवाक बाट  जोहि रहल छी ,ओकर सम्पति के करेज  स लगोने....
 (प्रकृतिक नेत्र स झर झर अश्रु कण झहरी रहल छल , राखी क आंखि सावन भादो बनल छल , कोना समय अन्हार इजोत बनैत रहल . केओ नै बुझि सकल  )
. ज्योति सुनीत चौधरी एकांकी- केसर २. मैथिली कवियित्री श्रीमति ज्योति सुनीत चौधरीसँ मुन्नाजीक गप्प-सप्प

ज्योति सुनीत चौधरी
एकांकी
केसर
पात्र
सूत्रधार वा पार्श्वध्वनि- (ई महिला वा पुरुख कोनो स्वर भऽ सकैए, महिला स्वर रहए तँ बेशी नीक)
पुरुष पात्र:
पिता
महिला पात्र :
कैश (माने केसर)
वृद्धा
विदेशी मूलक सैम्युएला माने सैम
नवयुवती ग्राहक


(घरक दृश्य, दूटा कुर्सी लगेलासँ सेहो काज चलि जाएत। पार्श्वसँ रेडियो वा टी.वी.क अबाज सन अबाज कऽ दियौ वा दू चारिटा बासन ढनमना दियौ तँ सेहो ठीक रहत।)
   
पार्श्वध्वनि::  केसर एक मध्यम वर्गीय परिवारक उच्च महत्वाकांक्षी। ओहि हजारक हजार प्रवासी भारतीय किशोरीमे सँ एक छथि जे बड्ड अभिलाषासँ सीमा टपै छथि। खाली देशक नहि वरन भारतीय हिन्दू वैवाहिक संस्थाक नामपर जे हुनका सभकेँ सामाजिक बन्धन रूपी पिछड़ापन लागै छनि, ताहि मानसिकताक सेहो। बहुत प्रतीक्षाक बाद स्टुडेण्ट वीसा आ स्कॉलरशिप भेटलनि। माता-पिता जखन अपन चिन्ता व्यक्त करै छलखिन, जखन ओ सभ अपन परामर्श दैत रहै छलखिन तखन केसर अपन स्वप्नक उड़ान भरैत रहै छली।
पिता: भारतमे एकसँ बढ़िकऽ एक संस्थान छै, तखन विदेश लेल अतेक किएक मोन लागल अछि? भारतक पढ़ल लोक सभकेँ विदेशी कम्पनी सभ प्राथमिकतासँ बहाली करैत छै, सेहो चिक्कन वेतन संगे। तखन अहॉंकेँ विदेशमे पढ़ै लेल एतेक किएक मोन लागल अछि ?
कैश:  हम जाहि विषयमे शोध करब तकर बढ़िया संस्थान विदेशेमे छै आ जखन हमरा खर्चा भेटि रहल अछि तखन अहॉं सभकेँ कोन परेशानी अछि?
माँ: मात्र खर्चे महत्वपूर्ण नहि छै।अतेक दूर आन देशमे असगर कोना रहबें?
कैश:   अरे मॉं, सभ साल कतेको विद्यार्थी बाहर जाइ छै। बहुत भागसँ एहेन अवसर भेटैत छै। हम एहि अवसरकेँ बेकार नहि होमए देब।
माँ:  तोहर तुरिया सभक बियाहो भऽ गेलै। कतेकोकेँ बच्चो भऽ गेलै।
कैश:  अरे मॉं, यएह तँ अहॉं सभ नहि बूझि रहल छिऐ। हम अपन जिन्दगी खेनाइ पकेनाइ, पति, सासु, ससुरक सेवा, बच्चा पोसनाइ एहि सभमे नहि व्यर्थ करए चाहैत छी। हमरा आर्थिक रूपसँ स्वाबलम्बन चाही। हम अपन अस्तित्व बनाबए चाहैत छी।
(पुनश्च पार्श्वध्वनि: शुरू होएत। एकर उपयोग माँ आ पिताजीक प्रस्थानसँ कऽ सकैत छी। माँ-पिताजीक पार्ट खेलिनिहार कुर्सी सहित प्रस्थान करथु।)
पार्श्वध्वनि: बेटीक एहि महत्वाकांक्षाक सोझाँ माता पिता नतमस्तक भऽ गेला। अन्ततः विदेशक एक महाविद्यालयमे  शोधकार्य लेल नामांकन भऽ गेलनि। एकटा सम्बन्धी सेहो रहनि ओहि ठाम जे आग्रह केने रहनि पेइंग गेस्ट बनि कऽ रहै लेल। मुदा हिनका अपन स्वाधीनता बेसी प्रिय छलनि जे ओहि सम्बन्धियोकेँ बेसी सुविधाजनक लगलै शाइत। केसरसँ कैश तँ ओ भारतेमे भऽ गेल छलथि, एतौ मानसिक रूपसँ पूर्णतः पढ़ाइपर ध्यान दै लेल एक डिपार्टमेण्टल स्टोरक काउण्टरपर पार्ट टाइम कैशियरक काज पकड़ने छलथि। विद्यालयसँ भागैत-भागैत काज लेल पहुँचैत छलीह। रस्तामे सभ दिन एकटा वृद्धा भेटैत छलखिन। कनी वार्तालाप सेहो भऽ जाइन।
कैश:  नमस्कार, केहेन छी?
वृद्धा:बढ़िया। धन्यवाद अहॉं अपन कहू।
कैश: हमहुँ ठीक छी। धन्यवाद। अहॉंकेँ बहुत दिनसँ देखैत छी। अहॉं असगर घुमैत रहैत छी। परिवार कतए अछि?
वृद्धा:पतिक देहान्त भऽ गेल अछि आ बॉंकी परिवारमे बेटा, पुतहु, बेटी, जमाय, नाती, पोता सभ अछि। सभ अपन-अपन घरमे रहैत अछि।
कैश: कतेक दुःखक बात छै जे अहॉंकेँ असगर रहए पड़ैत अछि।
वृद्धा:  नै, ई हमर अपन निर्णय अछि। जहिना हुनका सभकेँ अपन निजी जिन्दगीक गोपनीयता पसन्द छनि तहिना हमरा अपन स्वाधीनता पसन्द अछि। फेर जरूरत पड़लापर सभ एक दोसरकेँ देखिते छिऐ।
(केसर अपनेसँ आब बजतीह, ताहि बीच बूढ़ीक प्रस्थान होएत।एकटा दोकानक दृश्य आओत, मॉल सन चहल-पहल। नै हुअए तँ पर्दापर एहन चित्र बना कऽ वा प्रोजेक्टर द्वारा ई प्रभाव उत्पन्न कऽ सकै छी। पाश्वध्वनिसँ दोकानक दृश्य सेहो उत्पन्न भऽ सकैत अछि, दोकानक काउन्टर एकटा टेबुल राखि भऽ सकैए जे विदेशी मूलक सैम्युएला वा सैम लऽ आबि सकै छथि, संगमे दूटा बार-कोड स्कैनर/ रीडर सेहो चाही। नै हुअए तँ दूटा कारी लोहाक छोट रौडसँ काज चलाऊ। स्कैन करबाक स्वांग करू आ पार्श्वसँ  क्लिक-क्लिकक ध्वनि करू।)
केसर (स्वगत): हमर नानी-दादी सभ तँ अपन समस्त जिनगी परिवारक नामे कऽ देने छली। परिवारक पसिन्नक खेनाइ पकौनाइ, परिवार लेल पूजापाठ, बच्चा सभक ध्यान राखनाइ, आजीवन परिवार लेल खटैत रहनाइ यएह सभ हुनकर जिनगी छलनि। हुनका सभकेँ तँ अपन स्वतंत्रता एतेक प्रिय नहि छलनि। मुदा हुनकर सबहक एहि गुण लेल सभ हुनकासँ एतेक स्नेह करैत छलनि।
(दोकानक काउण्टर पर पहुँचैत देरी केसर अपन काज पूरा तत्परतासँ करए लगली आ संगमे अपन सहकर्मी विदेशी मूलक सैम्युएलासँ बात सेहो करैत छली।)
कैश:  नमस्कार सैम, केहेन छी ?
(कैश ई पूछि बार-कोड रीडरसँ समान स्कैन करए लगली।)
सैम: बहुत नीक कैश, हमर बच्चाकेँ नर्सरीमे मंगनीमे जगह भेट गेल।
कैश: वाह, एतेक दिन बड्ड तकलीफ छल अहॉंकेँ। बच्चाकेँ संगी सभ लग निहौरा कऽ राखए पड़ै छल।
सैम: ओतबे नहि, संगियोकेँ बच्चा सभकेँ कखनो कऽ देखए पड़ै छल हमरा। सप्ताहान्तमे सेहो बुझु तँ हम काज करैत छलहुँ।
कैश: चलु से नीक भेल, आब आगॉं की?
सैम:   हम अपन पुरूष मित्रसँ रिश्ता तोड़ि रहल छी।
कैश:  ओह, तँ बच्चा ककरा लग रहत?
सैम:  हमरा लग।
कैश: अहॉं तँ पढ़ाइक खर्चेसँ परेशान छलहुँ आब बच्चाक पालन पोषण केना करब?
सैम: ओहो कोन कमाइ छल, ओ तँ संगे पढ़ने छलहुँ तैं दोस्ती छल। बच्चाक नामपर सरकारी सहायता भेटत, फेर एकटा कुक्कुर सेहो पोसने छी तकरो लेल सरकारसँ मदति भेटत।
(कैश कनी काल चुप्प भऽ गेली फेर कनिये देर बाद बजली।)
कैश: कहिया धरि अहॉंक पढ़ाइ पूरा भऽ जाएत?
सैम: अगिला छह मासमे, तकर बाद ट्रेनीक कार्य भेटत जाहिमे दरमाहा सेहो भेटत। 
कैश: चलू तखन ई सभ तँ सम्हरि गेल। बस अहॉंक निजी जिनगी कनी गड़बड़ा गेल।
सैम: नहि-नहि, हम एक जगह बात कऽ रहल छी। अगिला सप्ताह तक ओकर नोकरी पक्का भऽ जेतै, तकर बाद डेटपर जाइक इरादा अछि।
(कैश दोसर बेर कने काल लेल चुप भेलथि।)
कैश:  ओह, बढ़िया, शुभकामना।
सैम:   धन्यवाद।
(तखने एकटा नवयुवती ग्राहक अबै छथि। कैशक ध्यान अपन नवयुवती ग्राहक पर गेलनि जे हुनकर सबहक बात सुनैत छलनि। ओ भारतीय मूलक छल से रूप रंगसँ बुझाइत छल मुदा जनमल आ पढ़ल लीखल विदेशक छल से बोलीसँ बुझाइत छल। ओकर समानमे वाइनक बोतल छल।
कैश: (नवयुवती ग्राहककेँ ऑंखि माड़ैत) मजा करू।
नवयुवती ग्राहक: ई हमर बॉस लेल अछि।
सैम: किए अहॉं नहि लै छी की ?
नवयुवती ग्राहक: नहि, हमर माता-पिता एकर अनुमति नहि देने छथि।
कैश: तँ अहॉं नौकरी करै छी? जँ खराब नहि मानी तँ हम बूझए चाहब जे अहॉंक पुरूष मित्र अछि आकि अहाँ व्याहता छी?
नवयुवती ग्राहक: पुरूष मित्र अछि, व्याहता नहि छी।
कैश:   (मुस्कुराइत). ओहो।
नवयुवती ग्राहक: एहिमे आश्चर्य की? मित्रता तँ भारतीय संस्कृतिक सुन्दरता अछि। कियो मित्र जे पुरूष अछि से पुरूष मित्र भेल ने।
कैश: नहि हमर इशारा एतुक्का चलन दऽ छल।
नवयुवती ग्राहक: भारत कोनो आब एहि चलनसँ दूर अछि की ? लागैए एतुक्का चलन तँ अहॉंकेँ एकदम नहि बूझल अछि। एतए हम सभ दू पीढ़ी पहिनेसँ बसल छी मुदा कोनो पाबनि नहि बिसरै छी। यथासम्भव अपन पारम्परिक परिधान सेहो पहिरै छी। अपन मातृभाषा सेहो नहि बिसरल छी। विवाह सेहो माता-पिताक इच्छासँ करबाक इच्छा राखै छी। एतुक्का भारतीय समाज तँ अपन संस्कृतिकेँ जीवन्त राखैले पूरा प्रयास करैत अछि मुदा जे नवतुरिया सभ भारतसँ आबैत छथि सएह कलंकित करै छथि।
कैश: अहॉं एतुक्का बसल सम्पन्न परिवारसँ छी तैं विदेशोमे रहि कऽ अपन रीति रेवाज मानैकऽ साहस अछि आ स्वयंकेँ सभ्य बनाकऽ रखने छी। बेसी सुविधा ककरा ने आकर्षित करैत छै। जे नवतुरिया आबै छथि से जौं एतुक्का सुविधामे रहऽ चाहती तँ हुनका किछु समझौता तँ करए पड़तनि। जे एतुक्का निवासीसँ बियाह करती, एतए अपन बच्चाकेँ जन्म देती तँ हुनका सरकारसँ सभ सुविधा भेटतनि आ कहियो हुनका आ हुनकर बच्चाकेँ अशिक्षा, अकुशलता आ बेरोजगारीक दुःख नहि बर्दाश्त करए पड़तनि।
नवयुवती ग्राहक: सरकारी निअम तँऽ अहॉं अपन देशमे सेहो परिष्कृत कऽ सकैत छी, आखिर प्रजातन्त्र छै ओतए। हमरा सभकेँ अपन देशक उन्नति लेल योगदान देबाक चाही, ओहिसँ पड़ेबाक नहि चाही। हम प्रशिक्षण विभागमे कार्य करैत छी आ यदा कदा समए निकालि भारतीय संस्था लेल सेहो अवैतनिक काज करैत छी। आवश्यकताक अन्त नै छै। तखन तँ निर्णय अहॉंकेँ लेबाक अछि जे अहॉं कैश बनए चाहैत छी आकि केसर।
मिथिलासँ दूर आ अंग्रेजी माध्यमे शिक्षित मैथिली अनुरागी आ जगजियार होइत मैथिली कवियित्री श्रीमति ज्योति सुनीत चौधरीसँ मुन्नाजी द्वारा भेल अंतरंग गप्प-सप्पक बानगी अहाँ सभक सोझाँ राखल जा रहल अछि।


मुन्नाजी: ज्योतिजी, अहाँक शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी माध्यमे भेल। संस्कारगत सम्भ्रान्त वा आधुनिकतामे पलि-बढ़ि कऽ अहाँकेँ मैथिली भाषाक प्रति एतेक अनुराग कोना जनमल?
ज्योति सुनीत चौधरी: सभसँ पहिने नमस्कार मुन्नाजी। असलमे मैथिलसँ दूर हम कखनो नहि रहलहुँ।जमशेदपुरमे मैथिल सबहक अपन बड़का टोली छनि आ बड्ड शानसँ ओ सभ विद्यापति समारोह मनाबैत छथि। हमर परिवारमे जे कियो बेसी नजदीकी छलथि सभ मैथिल छलथि। फेर सालमे एकबेर गाम अवश्य जाइत छलहुँ। ओतए पितियौत-पिसियौत भाइ-बहिन सबहक पुस्तक पढ़ै छलहुँ। से मैथिली भाषासँ अनुराग बच्चेसँ अछि। भाग्यसँ सासुरो खॉंटी मैथिल भेटल अछि। हँ, मैथिलक विकासक विचार हमरामे हमर स्वर्गीय बाबासँ आएल अछि। हमर पितामह जखन मरणासन्न रहथि तखन करीब एक मास हम हुनका लग अस्पतालमे दिनमे अटेण्डरक रूपमे रहेैत रही। हम अपन कॉस्टिंगक तेसर स्टेज ओहि अस्पतालमे पढ़ि कऽ पास केने छी। ओहि बीच हुनकासँ बहुत बात भेल आ मिथिलाक विकासक बात सभ मस्तिष्कमे आएल।
मुन्नाजी: मैथिलीमे लेखन प्रारम्भक प्रेरणा कतऽसँ वा कोना भेटल। पहिलुक बेर अहाँ की लिखलहुँ आ की/ कतऽ छपल।
ज्योति सुनीत चौधरी:  यद्यपि हम पहिल मैथिली कविता विद्यालयकालमे भारतवर्ष पर लिखने रही जे बड़हाराबला मामाजी (चाचीजीक भाय) केँ देने रहियनि आ किछु कारणवश ओ प्रकाशित नहि भेल। परन्तु मूल रूपसँ मैथिलीमे लेखनक प्रेरणा सम्पादक महोदय गजेन्द्रजी सँ भेटल। बादमे ज्ञात भेलजे गजेन्द्रजी बहुतो लेखकक खोज केलन्हि आ बहुतोसँ मैथिलीमे लिखबा लेलन्हि। हमहुँ ओहिमे सँ एक छी। हमर पहिल कविता हिमपातअछि जे विदेह डॉट कॉम क पॉंचम अंकमे १ मार्च २००८ केँ प्रकाशित भेल।
मुन्नाजी: कविता तँ लोकक स्वाभाविक जीवनधारासँ प्रस्फुटित होइत रहैत छैक आ चिन्तनशील लोक ओकरा लयवद्ध वा अक्षरवद्ध कऽ लैए। अहाँक पद्य-संग्रह अर्चिस् मे कविताक संग अहाँक हाइकू देखि आह्लादित भेलहुँ। हाइकू लिखबाक सोच कोना/ कतऽसँ बहराएल।
ज्योति सुनीत चौधरी:  बहुत-बहुत धन्यवाद जे अहॉंकेँ हमर हाइकु नीक लागल। पहिने पोइट्री डॉट कॉम मे सभ दिन एकटा प्रााकृतिक दृश्यक फोटो देल जाइत छलै आ ओहि फोटोसँ प्रेरित भऽ हाइकू लिखक प्रतियोगिता होइत छल। अहुना हमरा प्राकृतिक सुन्दरतापर लिखनाइ पसिन छल से भोरे अपन घरक काज समाप्त कऽ जखन हम कॉफी लेल बैसै छलहुँ तँ मेल चेक करैकाल हम ओहि साइटपर जाइ छलहुँ आ सभ दिन एकटा हाइकू लिखैत छलहुँ। ओहि क्रममे चारि मासमे सएटा हाइकू जमा भऽ गेल जे विदेहक बारहम अंक (१५ जून २००८), जे हाइकू विशेषांक छल, मे छपल।
मुन्नाजी: मिथिले नै भारतसँ दूर लंदनमे मैथिली पढ़बा-लिखबाक जिज्ञासा कोना बनल रहैए। अहाँ गृहणी रहैत- घर द्वार सम्हारैत कोना रचनाशील रहैत छी?
ज्योति सुनीत चौधरी:  एक गृहिणी लेल स्वतंत्र लेखिकासँ बढ़िया आर कोन काज भऽ सकैत छै आर विदेहमे कखनो हमरापर कोनो विषय विशेषपर लिखए लेल वा समयक बन्धनक दवाब नहि छल। फेर ई तँ सौभाग्य अछि जे अन्तर्जालपर मैथिलीक प्रवेशसँ आब विदेशोमे रहिकऽ अपन भाषा साहित्यसँ नजदीकी बनल रहैत अछि। ईश्वरक आशीर्वादसँ बच्चा आब पैघ भऽ गेल अछि आ विद्यालय जाइत अछि। सासुर दिससँ कोनो जिम्मेदारी नहि अछि। पतिदेव सेहो घरक कार्यमे सहयोग दैत छथि तैं गृहिणी भेनाइ लेखन कार्यमे अवरोधक नहि बनैत अछि।
मुन्नाजी: मैथिल संस्कृतिक तुलनामे अंग्रेजक संस्कृतिक बीच अपनाकेँ कतऽ पबै छी। दुनूक संस्कृतिक की समानता वा विभिन्नता अनुभव करैत छी?
ज्योति सुनीत चौधरी:  दुनूमे किछु नीक आ किछु खराबी अछि। विदेशमे व्यवहारमे बेसी खुलापन छै मुदा हम अकरा विकसित रूप नहि मानैत छी। हम बच्चामे महात्मा गॉंधीजी द्वारा रचित एकटा हिन्दी-कथा पढ़ने रही जब मैं पढ़ता था, गान्धीजी इन लण्डन सँ प्रेरित; बहुत सत्य लागल ओ कथा जखन हम विदेशी सभ्यताकेँ बुझैक प्रयास केलहुँ। अपन संस्कृति बहुत धनी, तर्कसंगत आ मौलिक -original- अछि। बस हम सभ आर्थिक रूपेँ पिछड़ल छी, जकर नैतिक समाधान शिक्षाक विकास अछि। हमर इच्छा अछि जे भने मिथिलाक विकासमे कनी समय लागए मुदा अपन कला, संस्कृति, पाबनि, गीतनाद आदि सभ मलिन नहि होअए। हँ कतहु-कतहु सामाजिक कुरीति जेना दहेज, विधवाक जीवनशैली, स्त्री-शिक्षा आदिमे बदलाव चाही। अहि सभ समस्यामे दहेज समस्या बड्ड बड़का कैंसर अछि जे शिक्षित वर्गकेँ सेहो धेने अछि अन्यथा बॉंकि समस्या शिक्षाक विकासक संगे विलीन भऽ रहल अछि।
मुन्नाजी: मैथिलीसँ इतर अहाँकेँ अंग्रेजीमे पोएट्री डॉट कॉम सँ एडीटर्स चॉएस अवार्ड (अंग्रेजी पद्य लेल) भेटल अछि। की अंग्रेजीमे पोएट्री लेखनक निरन्तरता बनौने छी।
ज्योति सुनीत चौधरी:  नहि। हम जहियासँ विदेहमे लिखए लगलहुँ तहियासँ अंग्रेजीमे लिखबाक समय नहि निकलि रहल अछि। इहो कहल जा सकैत छै जे हमरा मैथिलीमे बेसी रूचि अछि अन्यथा where there is will there is a way” अर्थात् जतए चाह ततए राह।
मुन्नाजी: अहाँक नजरिमे मैथिली पद्य विधा आ अंग्रेजी पद्य विधामे की फराक तत्व अछि। दुनू एक दोसरासँ कोन बिन्दुपर ठाढ़ अछि?
ज्योति सुनीत चौधरी:  अंग्रेजी पद्य विधा बहुत समृद्ध अछि कारण ओ विश्वव्यापी भाषा अछि। मैथिली पद्य विधा विशेषतः गीतक सेहो अपन अद्भुत आ अनेक रूप अछि जेना कि खिलौना, नचारी, सोहर, गोसाउनि, भगवति, ब्राह्मण, समदाओन, होरी, चुमाउन, छठि आदिक लेल विशेष पद्धति छै। मुदा एहि सभकेँ ढ़ंगसँ परिभाषित कऽ व्यवस्थित रूपे संग्रहित राखैक अभाव अछि।
मुन्नाजी: ज्योतिजी, अहाँक माध्यमे मैथिली रचनाकारक किछु रचना सभक अंग्रेजी अनुवाद आ प्रकाशन भेल अछि। किए नै व्यापक स्तरपर मैथिलीकेँ अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाक माध्यमसँ वैश्विक पटलपर अनबाक प्रयास करै छी?
ज्योति सुनीत चौधरी:   हमरो ई इच्छा अछि। हम लन्दनक एक अंग्रेजी कवि समुदायसँ जुड़ल छलहुँ जे बाङ्ग्लादेशी आ डच समुदायक छथि मुदा हुनकर सबहक अत्याधुनिक  रहन-सहन (पबमे मीटिंग़-ड्रिंक्स) हमरा ओतेक नीक नहि लागल। तैयो हम एक व्यक्तिसँ मेल आ फेसबुकक माध्यमसँ सम्पर्कमे छी। जौं कुनो सुझाव अछि तँ दिअ हम यथासम्भव अपन योगदान देब। ओना इंगलैण्डमे बहुत मैथिल डाक्टर आ आई.टी. क लोक छथि, ओ सभ जरूर पुस्तक किनता। आ बॉलीवुडमे प्रकाश झा जी तँ छथिये। कहियौन हुनका किछु चलचित्र बनाबए मिथिला संस्कृति पर, मिथिला कलाकृतिपर। गामक हाल चाल तँ बहुत देखाओल गेल अछि। कनी बाहरक मैथिलपर सेहो काज करथि जाहिसँ जे धनी मैथिल सभ बाहर बैसल छथि से अपन संस्कृति दिस आकर्षित हेता। कहियौन जे अपन फिल्ममे मिथिला पेण्टिंग प्रदर्शित करथि।
मुन्नाजी: अहाँ साहित्यक संग मिथिला चित्रकला आ ललितकलामे निष्णात छी। अहाँ साहित्य आ कला दुनूक बीच की फाँट देखैत छी। दुनूमे केहेन ककर अस्तित्व देखा पड़ैछ?
ज्योति सुनीत चौधरी:   धन्यवाद। हम मास्टर तँ नहि छी, हँ हम अभिलाषी छी एकर उन्नतिक। साहित्यकेँ बहुत नीक मंच भेट गेल अछि मुदा कला लेल अखनो संकलित आ विश्व स्तरीय ठोस भूमिक आवश्यकता अछि। हम एक बिजनेस प्लैन बनेने छी मुदा ओहि लेल बढ़िया निवेशक आ विपणन कर्ताक आवश्यकता अछि। हम अहॉंके अटैचमेण्ट पठा रहल छी ओहि बिजनेस प्लैनक। कतहु गुंजाइश होअए तँ कृपा कऽ उपयोग करू।(नीचाँमे देल अछि)
मुन्नाजी: अहाँ आइ.सी.डब्लू.ए.आइ.डिग्रीधारी छी, अहाँक नजरिमे राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय फलकपर मिथिलाक वित्तीय स्थिति की अछि? एकर दशा कोना सुधारल जा सकैछ, एहि हेतु कोनो दिशा निर्देश?
ज्योति सुनीत चौधरी:   अकर जवाब हम बहुत विस्तृत रूपमे देब। अहॉंकेँ धैर्यसँ सुनए पड़त। भारतमे  विकासशीलताक दोसर स्थानपर अछि बिहार राज्य। आइसँ १०-१५ साल पहिने बाहर रहैवला बिहारीकेँ लाज होइत छलै। एक अशिक्षित आ बेरोजगारीक बहुलतावला राज्यकेँ विकासक लेल एक शिक्षित आ उन्नत सोचबला मुख्यमंत्री चाही। चलू बिहार तँ रस्ता पकड़लक मुदा मिथिलाञ्चलक विकास ओहि रूपे नहि देखाइत अछि। विश्वबैंकसँ जे कोसी लेल कर्ज भेटल छै तकर जौं सदुपयोग भऽ जाए तँ मिथिलाक पचास प्रतिशत प्रााकृतिक समस्याक समाधान भऽ जेतै। बिहारमे नितिश जी एक निअम बना रहल छथि जाहि अन्तर्गत सरकारी कर्मचारी जौं निश्चित समयमे कार्य नहि करता तँ जनता हुनकर शिकाइत दर्ज कऽ सकैत छथि। अहि तरहक रूपान्तरण किछु आशाक किरण जरूर दऽ रहल अछि।
   मिथिलाक औद्योगिक विकासक लेल सरकारी सहयोगक आवश्यकता अछि। किछु बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चरक विकास जेना सड़क निर्माण, बॉंध निर्माण, पुल निर्माण आदि चाही जे सरकारकेँ करए पड़तनि, तकर बादे बाहरी लाभिच्छुक निवेशक सभ अपन पाइ लगेता। भारी उद्योगक सम्भावना कम अछि। अहिठाम सर्विस सेक्टर, कृषि उद्योग़, वस्त्र उद्योग, फैब्रीक इण्डस्ट्री, खाद्य सामग्री, प्रोसेस्ड फुड आदिक बड्ड सम्भावना अछि। अड़िकोंचक मिठ रूप मराठी स्टायलक़ समोसा, कचोरी, खीर, फिरनी आदि विदेशक बजारमे भड़ल अछि, तखन मिथिलाक व्यञ्जन किऐक नहि। किऐक नहि हम सभ मिथिलाक अड़िकोंचक तरकारी, मखानक खीर, अपन दिसका माछक मसाला सभकेँ विकसित कऽ एक्सपोर्ट करैत छी। गुजरातक मोदक विश्वप्रसिद्ध अछि, अपन सबहक बगिया किऐक नहि। तकर बाद आम, लीची, केरा, तारकून, कुसियार, खजूर आदिक विभिन्न ड्रिंक बना कऽ बेचल जा सकैत अछि।
      मधुबनी पेण्टिंगक व्यवसायिक उपयोग करू। अहि पैटर्नकेँ आधुनिक आ पारम्परिक दुनु तरहक परिधानमे बना कऽ फैशन शो करू। घरक क्रॉकरी, फर्नीचरसँ लऽ कऽ कम्प्यूटरक वालपेपर  आ लैपटॉपक कवरपर मिथिला पेण्टिंग छापू। घरक वाल पेपर, मोजाइक, मार्बल सभपर मिथिला पेण्टिंगक समावेश करू। पेंटिंगक किट बनाऊ जेना सैण्ड पेंटिंग, इम्बॉस पेण्टिङ्ग आदिक किट बजारमे उपलब्ध अछि। अनन्त सम्भावना छै।
      मिथिलांचलक उन्नतिक पथपर एकटा बाधा छै जकरा फानै लेल सरकारी कोष आ सरकारक ईमानदारीक आवश्यकता छै। एकबेर ई बाधा फना जाइ तँ मिथिलांचलकेँ स्वर्णिम रूप पाबैसँ कियो नहि रोकि सकैत अछि।
मुन्नाजी: अहाँ लंदनमे रहि अपन नवका पीढ़ी (विशेष कऽ अपन पुत्रकेँ) मिथिला-मैथिलीसँ जोड़ि कऽ रखनाइ पसिन्न करब आकि एकरा अछूत सन बुझबाक शिक्षा देबै?
ज्योति सुनीत चौधरी:    हम अपन नबका पीढ़ीकेँ अपन संस्कृतिसँ जोड़ि कऽ राखऽ चाहब। लन्दनमे विद्यार्थी ताकि रहल छी, मधुबनी पेटिंग सिखाबै लेल। हम अपन पुत्रकेँ मैथिलक सभ विशेषतासँ ज्ञात राखए चाहैत छी, संगमे ईहो चाहैत छी जे ओ अहि सभ्यताकेँ स्वेच्छासँ स्वीकार करथि। अछूत व्यवहारक तँ प्रश्ने नहि छै। भने ओ अहि संस्कृतिकेँ अंगीकृत करथि वा नहि मुदा सम्मान तँ देबहे पड़तनि।
मुन्नाजी: मिथिला-मैथिलीक प्रति अनुरागकेँ अहाँक पति सुनीत चौधरीजी कोन रूपेँ देखै छथि, अहाँकेँ एहि कार्यकलापक प्रति प्रेरित कऽ वा बाधित कऽ?
ज्योति सुनीत चौधरी:    हमर पति हमर काजमे दखल नहि दैत छथि आ कुनो तरहक दवाब नहि रहैत अछि जे हम की लीखू आ की नहि। घरक काजमे बहुत योगदान दैत छथि आ बाधित कखनो नहि करैत छथि ओना हमहुँ हुनकर इच्छाकेँ प्रााथमिकता दैत छियनि। प्रेरणा हम अपन मॉं, बहिन आ भौजीसँ लैत छी। हम हुनका सभसँ अपन सभ बात करैत छी।
मुन्नाजी: ज्योतिजी अहाँ अपन नजरिये अंग्रेजी साहित्यक मध्य मैथिली साहित्यकेँ कतऽ पबै छी आ किएक?
ज्योति सुनीत चौधरी:    हम अंग्रेजी साहित्यकेँ सागर मानैत छी आ मैथिली साहित्यकेँ मानसरोवर। अंग्रेजी साहित्यकेँ विश्वभरिमे काफी पहिने मान्यता भेटल छै तैं ओ बहुत समृद्ध अछि। सागर रूपी अंग्रेजी साहित्य अपन परिपूर्णतापर अछि मुदा मैथिली साहित्य प्रााचीन रहितो अखन उत्पत्तिक परमशुद्धि बिन्दुपर अछि आ ओकर सिंचन आ संरक्षणक भार सम्प्रति आ भावी लेखकगणपर छनि।
मुन्नाजी: अहाँ अपन समक्ष समकालीन नवतुरिया रचनाकारकेँ कोनो संदेश देनाइ पसिन्न करब?
ज्योति सुनीत चौधरी:  हम हुनका सभसँ कहए चाहबनि जे कृप्या सामने आऊ आ लेखकक रूपमे समाजक प्रति अपन जिम्मेदारीकेँ निमाहैत मैथिली साहित्यकेँ सुकृतिसँ सम्पन्न करू।
मुन्नाजी: बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योतिजी।
ज्योति सुनीत चौधरी:  बहुत-बहुत धन्यवाद हमरा अहि योग्य बुझए लेल।


हम एक बिजनेस प्लैन बनेने छी मुदा ओहिलेल बढ़िया निवेशक आ विपणन कर्ताक आवश्यकता अछि। हम अहॉंके अटैचमेण्ट पठा रहल छी ओहि बिजनेस प्लैनक। कतहु गुंजाइश होअए तँ कृपा कऽ उपयोग करू।- ज्योति सुनीत चौधरी
Mithila Painting
Nature of Business
Selling printout and original MadhubaniPaintings on paper, fabric,
tiles, ceramic and other media.
Purpose:
Expanding scope of MadhubaniPaintings without losing its originality.
Sources (Purchases):
Original artworks on paper and other media and digital copies
Supplier:
Artists and media resources for tiles, wallpapers etc.
Sales:
Online sales.
Customers:
Art lovers, Restaurants, Saloons, Interior desighners, fabric
Designers, book printers for cover page design, card printers,
Stationary printers etc.
Cost required:
Web designing cost
Site subscription cost
Collborationwith banks and other payment modes
Purchasing art works from the artists
Preparing good digital copies
Postage (post sales cost)For web designingMain category MadhubaniPaintings
Mythological
Scenes of Ramayana
Scenes of Mahabharata
Stories of Puran
Gods and Goddesses
Festivals and Sanskara:
Kohbar
Vivah
Chhathihar
Muran
Upanayan
Kojagara
Barsait
Madhushravani
Diwali
Holi
Bhagwaanpuja
AkharhiPuja
Village Life : scencesof day to day works, cattle etc.
Wild Life: Different birds and animals, scenes of forest, desert
Story based: Based on popular stories
Flora and Fauna : Different flowers portrayed in madhubanipainting style
Contemporary : Based on city life, new experiments.
Natural scenes
१.सुजीत कुमार झा- बिहारोमे मैथिलीमैथिली मिथिलाक विधायक सभ मैथिलीमे सपथ लेलन्हि . रमेश- बहस- पंकज पराशरक साहित्यिक चोरि मैथिली साहित्यक कारी अध्याय थिक . उमेश मंडल सुपौलक कथा गोष्‍ठी : ४ दि‍सम्‍बर २०१०

सुजीत कुमार झा
बिहारोमे मैथिलीमैथिली
मिथिलाक विधायक सभ मैथिलीमे सपथ लेलन्हि

१५अम बिहार विधान सभाक पहिल दिन मिथिलाक विधायकसभ मैथिली भाषामे सपथ लेलन्हि अछि । बिहार विधान सभामे अहि सँ पहिनहुँ विधायक सभ सपथ लेने छलथि मुदा एतेक संंख्यामे पहिल बेर विधायक सभ सपथ लेलन्हि अछि ।
ग्रामीण विकास मन्त्री नितिश मिश्र
, विनोद नारायण झा, अरुणशंकर प्रसाद , रामदेव महतो, रामलखन राम रमण सहित मधुवनी आ दरभंगाक अधिकांश विधायक मैथिलीमे सपथ लेलन्हि ।

अहिबेर विहार विधान सभामे मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दी
, उर्दु आ अंग्रेजीमे सपथ लेबाक व्यवस्था सेहो कएल गेल छल ।
ग्रामीण विकास मन्त्री नितिश मिश्र बातचित करैत कहलन्हि
— ‘हम सभ मैथिल छी एकर बात विधानसभामे सेहो गुंजों अहि दुआरे मैथिलीमे सपथ लेलौं ।मैथिली भाषामे अहि सँ बहुत विकास हेतैक से नहि मुदा मिथिलाक सभ विधायक सपथकेँ माध्यम सँ मिथिला आ मैथिलीकेँ विकास करब से बचन सेहो अहिमे छिपल अछि, हुनक कथन छल ।
मधुवनी सँ विधायक बनल भाजपा नेता रामदेव महतो मैथिलीकेँ विकासमे भारतीय जनता पार्टी सभ दिन लागल अछि आ रहत कहलन्हि । मैथिलीमे सपथ लेलाक बाद बातचित करैत इहो स्मरण कराबय नहि बिसरलथि जे भारतक अष्टम अनुसूचिमे मैथिलीकेँ स्थान अटल विहारी वाजपेयी नेतृत्वक सरकार दियौने छल ।
अहि बेर विधायक गोपाल जी ठाकुर मैथिलीमे मात्र सपथ नहि लेलन्हि कुर्ता
, धोती, गमछा, पाग पहिर विधानसभामे पहुँचल रहथि ।
हुनक पोशाक देख कऽ पत्रकार सभ घण्टो हुनक फोटो सेशन कएने छल । मैथिली आन्दोलन सँ लम्बा समय सँ जुड़ल एवं विद्यापति सेवा समिति दरभंगाक महासचिव बैद्यनाथ चौधरी बैजु कहैत छथि
– ‘मैथिली भाषमे एतेक संख्यामे एतेक विधायक सभ सपथ लेब प्रसन्नताक बात अछि मुदा एतबे सँ काज नहि चलत ।
ओ कनी फरिछा कऽ कहैत छथि
— ‘मैथिली भाषाक विकासक लेल विहार सरकारकेँ एकटा बृहत्त योजना आनय परत ओहिमे भाषा, कला, साहित्य, संस्कृतिक विकास कएल जाए । अहिकेँ लेल शुरुए सँ दबाव देवाक लेल विद्यायक सभ सँ बैजु आग्रह कएलन्हि ।
किछ वर्ष पूर्व भारतक संसदमे दरभंगा सँ संसद रहल कृति अजाद धोती
, कुर्ता, पाग, दोपट्टा पहिर कऽ पहिल दिन पहुँचल रहथि तऽ मैथिली भाषामे सपथ सेहो लेलन्हि ।
भारतक संसदमे भाकपा नेता चतुरानन्द मिश्र सेहो मैथिलीमे सपथ लेने रहथि ।



नेपालोमे सपथ
नेपालमे मैथिली दोसर सभ सँ बेशी बाजय बला भाषा रहल अछि । कहियो काठमाण्डू उपत्यकाक राज्य भाषा मैथिली छल । ओतयकेँ राजासभ मैथिलीमे साहित्य लेखन सेहो करैत छलथि । मल्ल कालमे कएटा राजा एहन भेलथि । जिनकर एकटा साहित्यकारक रुपमे एखनो आदरकेँ साथ नाम लेल जाइत अछि ।
मुदा सपथकेँ इतिहास बहुत लम्बा नहि अछि ।
नेपालक संसदक तथ्याङ्क अनुसार डा. बंशीधर मिश्र नेपालक संसदमे पहिल बेर मैथिली भाषामे सपथ लेलन्हि । नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (एकीकृत माक्र्सवादी लेलिनवादी)क नेता रहल डा. मिश्र २०५१ सालमे सपथ लेने रहथि । जहिया ओ मैथिली भाषामे सपथ लेलथि तहिया मैथिलीकेँ बात करब अपराध मानल जाइत छल
, एहन स्थितिमे सपथ लेने रहथि । आब तऽ मिथिलाञ्चलक अधिकाँश नेता मैथिलीमे सपथ लैत छथि ।

हिन्दी भाषाकेँ गुणगान करयबला मधेशी जनअधिकार फोरमक सह अध्यक्ष जय प्रकाश प्रसाद गुप्ता सनक व्यक्ति सेहो मैथिलीमे सपथ लेने छलथि ।
अहि बेरक संविधान सभाक चुनावमे एकीकृत नेकपा माओवादी तऽ अपन सभासदसभ केँ अपन अपन मातृ भाषामे सपथ लेबाक लेल ह्विप जारी कएने छल । मैथिलीक चर्चित युवा साहित्यकार धीरेन्द्र प्रेमर्षिक शब्दमे मैथिली आन्दोलन सही दिसामे जा रहल अछि ।
तकर संकेत अहि बेरक संविधानसभाक सपथ देखलाक बाद लगैत छल ।
मन्त्रीक रुपमे पहिल बेर एकीकृत नेकपा माओवादीक तत्कालिन नेता मात्रिका प्रसाद यादव सपथ लेने रहथि । उपराष्ट्रपति परमानन्द झा सेहो मैथिली भाषामे सपथ लेलन्हि । शुरुमे ओ हिन्दी भाषामे सपथ लेलन्हि मुदा बहुत विवाद भेलाक बाद मैथिली भाषामे सपथ लेने रहथि ।
रमेश
बहस-

पंकज पराशरक साहित्यिक चोरि मैथिली साहित्यक कारी अध्याय थिक

विदेह-सदेह २ (२००९-१०) सँ पंकज पराशरक साहित्यिक चोरि आ साइबर अपराधक पापक घैलक महा-विस्फोट भेल अछि। ई पैघ श्रेय पत्रिकाक सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरकेँ जाइत छनि। हुनकर अपराध पकड़बाक चेतना केर जतेक प्रशंसा कयल जाय, कम होयत। “विदेह”क मैथिली प्रबन्ध-समालोचना- अंक, अइ पोल-खोल लेल कएक युग धरि विलम्बित भऽ कऽ निबद्ध रहत, से “समय केँ अकानैत” कहब कठिन अछि।
साहित्योमे चौर्यकलाक उदाहरण पहिनहुँ अबैत रहल अछि गोटपगरा। मुदा एक बेरक चोरि पकड़ा गेलाक बाद प्रायः चोरिक आरोपी साहित्यकार मौन-व्रत धारण करैत रहलाह अछि आ मामिला ठंढ़ाइत रहल अछि।
मुदा ताहि परम्पराक विपरीत अइ बेरक चोर सिन्हा चोरनिकलल अछि आ विगत एक दशकसँ निरन्तर चोरि करैत जा रहल अछि- सेन्ह काटिकऽ। आ तेहेन महाचोरकेँ मैथिलीक साहित्यकार आ संस्था सभ तरहत्थीपर उठा-उठा कऽ पुरस्कृत केलक अछि आ समीक्षाक चासनीमे चोरायल कविता सबकेँ बोरि देल गेल अछि।
विदेह-सदेह-२ प्रमाण-पुरस्सर अभियोगे टा नहि लगौलक, अपितु एहेन महत्वाकांक्षी असामाजिक तत्वक विरुद्ध साहित्यिक दण्ड आरोपित कऽ अपन “बोल्डनेस” सेहो प्रदर्शित केलक अछि। एक दशकमे तीन बेर पकड़ायल चोर प्रायः “डेयर डेभिल” होइत अछि आ अपन अनुचित। सीमाहीन महत्वाकांक्षाक पूर्ति लेल अपन वरीय संवर्गीय व्यक्तिकेँ सीढ़ीक रूपमे उपयोग करैत अछि आ स्वार्थ-सिद्धिक उपरान्त अपन पयर सँ ओही सीढ़ीकेँ निचाँ खसा दैत अछि। फेर ओकरा अपन ट्विटर-फेसबुक-नेट वा पत्रिकामे गारिक निकृष्टतम स्तरपर उतरऽ मे कनियों देरी नहि होइत छै। ओ नाम बदलि-बदलि कऽ गारि पढ़ैत अछि आ अपन प्रशंसामे जे.एन.यू.क छात्र-छात्राक पोस्टकार्ड लिखेबामे अपस्याँत भऽ जाइत अछि। ओ हिन्दीक कोनो बड़का साहित्यकारक बेटीक संग अपन नाम जोड़ि विवाहक वा प्रेम-प्रसंगक खिस्सा रस लऽ लऽ कऽ प्रचारित करैत अछि। एहेन प्रवृत्ति कएटा आओर तिकड़मबाजमे देखल गेल अछि जे हिन्दीक  पैघ-पैघ नामक माला जपि कऽ मठोमाठ होअय चाहैत अछि। वस्तुतः ई चिन्ताजनक तथ्य थिक जे मैथिलीक नव-तूरकेँ हिन्दीक पैघ-पैघ नामक वैशाखीक एतेक जरुरति किऐक होइत छनि?
“विदेहक” “इनक्वायरीक विवरण” पढ़ि कऽ रोइयाँ ठाढ़ भऽ जाइत अछि। पहल-८६ आ आरम्भ-२३ मे जे पोल खूजल छल, अइ तथाकथित साहित्यकारक, तकरा बादे मैथिली साहित्यसँ बारि देल जेवाक चाहैत छल। मुदा विडम्बना देखू जे चेतना समिति सम्मानित कऽ देलक। “मैथिल ब्राह्मण समाज”, रहिका (मधुबनी) सन अँखिगर संस्थाकेँ चकचोन्ही लागि गेल, जखनकि संस्थामे विख्यात साहित्यकार उदयचन्द्र झा “विनोद” आ पढ़ाकू प्रोफेसरगण छथि। ई संशयविहीन अछि जे पुरस्कृत करेबामे विनोदजीक महत्वपूर्ण भूमिका रहल हैत। “विदेह” द्वारा रहस्योद्घाटन केलाक बावजूद एखन धरि चेतना समिति अथवा मैथिल ब्राह्मण समाज, रहिकाकेँ अपन पुरस्कार आपस करेवाक वा आने कोनोटा कार्रवाई करवाक बेगरता नहि बुझा रहल छै आ सर्द गुम्मी लधने अछि। एहेन “जड़-संस्था” सभ मैथिली साहित्यक उपकार करैत अछि वा अपकार? ई केना मानल जाय जे पहल-८६ वा आरम्भ-२३ अइ दुनू संस्थाक कोनो अधिकारी वा साहित्यकारकेँ पढ़ल नहि छलनि?
ई आश्चर्यजनक सत्य थिक जे मैथिलीक कएटा पैघ साहित्यकार पंकज पराशरक कृत्रिम काव्य आ आयातित शब्दावलीमे फँसि गेलाह अछि। “विलम्बित कएक युग मे निबद्ध” क भूमिकामे अनेरो विदेशी साहित्यकारगणक तीस-चालिस टा नाम ओहिना नहि गनाओल गेल अछि, अपन कविता केँ विश्वस्तरीय प्रमाणित करबाक लेल अँखिगर चोरे एना कऽ सकैत अछि। सम्भावना बनैत अछि जे डगलस केलनर जकाँ ओहू सभ कविक रचनाक भावभूमिक वा शब्दावलीक चोरिक प्रमाण एही काव्य-पोथीमे भेटि जाय। अंततः मि. हाइडक कोन ठेकान? मैथिलीमे तँ लोक विश्व-साहित्य कम पढ़ैत अछि। तकर नाजायज फायदा कोनो ब्लैकमेलर किऐक नहि उठाओत? आखिर टेक्नो-पोलिटिक्स की थिक- टेकनिकल पोलिटिक्स थिक, सैह किने? एकरा बदौलत झाँसा दऽ कऽ पाकिस्तानोक यात्रा कयल जा सकैत अछि। “टेक्नो-पोलिटिक्सक” बदौलत किरण-यात्री पुरस्कार, वैदेही-माहेश्वरी सिंह “महेश” पुरस्कार, एतेक धरि जे विदितजीक अकादमीयोक पुरस्कार लेल जा सकैत अछि। प्रदीप बिहारीक सुपुत्रक भातिज-कका सम्बन्धक मर्यादाक अतिक्रमण कयल जा सकैत अछि। प्रो. अरुण कमलक “नये इलाके में” सेंधमारी कऽ कऽ “समय केँ अकानल” जा सकैत अछि। आर तँ आर, अइ टेकनिकल पॉलिटिक्सक बदौलत जीवकान्तजी सन महारथी साहित्यकारसँ “विलम्बित कएक युग...” पोथीक समीक्षा लिखबा कऽ “मिथिला दर्शन” (५) सन पत्रिकामे छपवा कऽ स्थापित आ अमर भेल जा सकैत चछि। मैथिली साहित्यक सभसँ पैघ सफल औजार थिक “टेक्नो पोलिटिक्स”!
ई मानल जा सकैत अछि जे मिथिला दर्शनक सम्पादककेँ आरम्भ-२३ आ पहल-८६ कोलकातामे नहि भेटल होइन्हि। मुदा जीवकान्तजी नहि पढ़ने हेताह से मानबामे असौकर्य भऽ रहल अछि। जीवकान्त जी तँ प्रयाग शुक्लक “चन्द्रभागा में सूर्योदय” आ एही शीर्षकक नारायणजीक कविता (चन्द्रभागामे सूर्योदय) सेहो पढ़ने हेताह जे छपल अछि मैथिलीमे। तखन पंकज पराशरक समुद्रसँ असंख्य प्रश्न पूछऽवला कविताक भावार्थ किऐक नहि लगलनि जे समीक्षामे कलम तोड़ि प्रशंसा करऽ पड़लनि वा करा गेलनि? एकरा “प्रायोजित समीक्षा” किऐक नहि मानल जाय? की प्रयाग शुक्ल वा नारायणजीक समुद्र विषयक कवितासँ वेशी मौलिकता पंकज पराशरक कवितामे भेटलनि जीवकान्तजीकेँ? ओइ सभ कविताक कनियोँ “छाया”क शंको नहि भेलनि समीक्षककेँ? “सभ्यताक सभटा मर्मान्तक पुकार”क नोटिस लेबऽवला समीक्षककेँ साहित्यिक चोरि असभ्य आ मर्मान्तक पीड़ादायक नहि लगलनि? आब जीवकान्तजी सन समीक्षकक “पोजीशन फॉल्स” भऽ जेतनि से अन्दाज तँ मिथिला दर्शनक सम्पादककेँ नहियें रहनि, उदय चन्द्र झा “विनोद” केँ सेहो नहि रहनि। ई अभिज्ञान तँ पंकजे पराशर टाकेँ रहल हेतनि? बेचारे “पराशर” मुनिक आत्मा स्वर्गमे कनैत हेतनि आ पंकसँ जनमल जतेक कमल अछि सब अविश्वसनीय यथार्थक सामना करैत हेताह। पराशर गोत्री भऽ कऽ तीन बेर चोरि केनाइ “पराशर” महाकाव्यक रचयिता स्व. किरणजीकेँ सेहो कनबैत हेतनि। आखिर जीवकान्तजी साहित्यिक चोरिक नोटिस किए ने लेलनि, जखनकि हुनका विचारेँ “मैथिलीक समीक्षक प्रायः मूर्खता पीबिकऽ विषवमन करैत अछि”(विदेह-सदेह-२-२००९-१०)/ विनीत उत्पल-साक्षात्कार आ जीवकान्तजी स्वयं पंकज पराशरक चोरिवला कविता-पोथीक समीक्षक छथि, अपितु चौर्यकला प्रवीण कविक घोर प्रशंसक छथि। तखन अइ समीक्षा-आलेखमे अन्तर्निहित असीम-प्रशंसा साकांक्ष-पाठककेँ “विष-वमन” कोना ने लगौक? हुनका सन “पढ़ाकू” समीक्षक-पाठककेँ “फॉल्स पोजीशन”मे अननिहार “एक्सपर्ट आ हैबिचुएटेड” साहित्य-चोरसँ प्रशंसा आ पुरस्कार दुनू पाबि जाय तँ मैथिली-काव्यक ई उत्कर्ष थिक वा दुर्भाग्य? अंततः विदेह-सदेह टा किऐक निन्दा केलक एहि घटनाक? आन कोनो पत्रिका किऐक नहि केलक? डॉ. रमानन्द झा “रमण” इन्टरनेटपर निन्दा करैत छथि तँ घर-बाहर पत्रिकामे किऐक नहि जकर ओ सम्पादक छथि? चेतना समिति, पटना सम्मानित करैत अछि एहने-एहने साहित्यकारकेँ तखन अपने पत्रिकामे कोना निन्दा करत, जखनकि पुरस्कार आपसो नहि लैत अछि, जानकारी भेलाक वा साकांक्ष साहित्यकारक अनुरोध प्राप्त भेलाक बादो? नचिकेताजी नेटपर निन्दा करताह आ “विदेह”मे छपत तँ “मिथिला दर्शन”मे किऐक नहि निन्दा वा सूचना छपल? कारण स्पष्ट अछि- जीवकान्तक समीक्षा पंकज पराशरक काव्य-पोथीपर छपत, तखन ओही पोथीक चोरि कयल कविताक निन्दा कोना छपत? चारु भाग साहित्यिक आदर्श, मर्यादा आ नैतिकताक धज्जी उड़ि रहल अछि- पितामह आ आचार्यगणक समक्ष आ (अनजाने मे सही) हुनको लोकनिक द्वारा। मैथिल ब्राह्मण समाज, रहिका; चेतना समिति, पटना आ साहित्य अकादेमी, नई दिल्लीमे अन्ततः कोन अन्तर अछि वा रहल? एहेन नामी पुरस्कारक संचालन आ चयनकर्ता महारथी सभकेँ नव लोककेँ पढ़बाक बेगरता किऐक नहि बुझाइत छनि? बिना पढ़ने पुरस्कारक निर्णय वा समीक्षाक निर्णय कतेक उचित, जखन कि ई चोरि तेसर बेरक चोरि थिक आ से छपि-कऽ भण्डाफोड़ भेल अछि। एकरा वरेण्य आ वरीय साहित्यकारगण द्वारा काव्य-चोरि, आलेख-चोरिकेँ प्रश्रय देल जायब किऐक नहि मानल जाय, जखनकि आरम्भ, मैथिल-जन, पहल आ विदेह-सदेह पहिनहि छापि चुकल छल? की साहित्यिक चोरिकेँ प्रश्रय देब, दलाल वर्गकेँ प्रश्रय देब नहि थिक? एहेन सम्भावनायुक्त नव कविकेँ प्रश्रय देब मैथिली साहित्य लेल घातक अछि वा कल्याणकारी, जकरा मौलिकतापर तीन बेर प्रश्न चेन्ह लागल होइक? की पोथीक आकर्षक गत्ता देखि वा विदेशी कविगणक नामावली (भूमिकामे) पढ़ि कऽ समीक्षा लिखल जाइत अछि वा पुरस्कारक निर्णय लेल जाइत अछि? जँ से भेल हो तँ सब किछु “ठिक्के छै भाइ”?
अइ सबसँ तँ जीवकान्तजीक बात सत्य बुझाइत अछि जे समीक्षकगण दारू पीबि कऽ वा पैसा पीबि कऽ वा मूर्खता पीबि कऽ समीक्षा लिखैत छथि। डगलस केलनरक “टेक्नोपोलिटिक्स” तँ छपि गेल “पहल”मे चोरा कऽ। आब जीवकान्तजी, ज्ञान रंजनजी अथवा हिन्दी जगतक आन साहित्यकार-सम्पादकसँ पूछथु जे नोम चोम्स्कीवला रचना कतय गेल, की भेल, कोन नामें छपल? पंकज पराशरक नामें कि पदीप बिहारीजीक सुपुत्रक नामेँ (अनुवाद रूपमे)। ई रिसर्च एखन नहि भेल तँ भविष्यमे पुनः एकटा साहित्यिक चोरिक पोल खूजत? अंततः एकटा माँछकेँ कएटा पोखरिकेँ प्रदूषित करए देल जाय आ से कए बेर? उदय-कान्त बनि कऽ गारि पढ़वाक आदति तँ पुरान छनि डॉ. महाचोर केँ। ककरो “सरीसृप” कहि सकैत छथि (मैथिल-जन) आ कोनो परिवारमे घोंसिया कऽ विष वमन कऽ सकैत छथि। ऑक्टोपसक सभ गुणसँ परिपूर्ण डॉ. पॉल बाबाकेँ चोरिक भविष्यवाणी करवाक बड़का गुण छनि तेँ हिनका नामी फुटबॉल टीम द्वारा पोसल जाइत अछि, जाहिसँ “विश्व-कप”केँ दौरान अइ “अमोघ अस्त्रक” उपयोग अपना हिसाबेँ कयल जा सकय।
सहरसा-कथागोष्ठीमे पठित हिनकर पहिल कथाक शीर्षक छल- हम पागल नहि छी। ई उद्घोषणा करवाक की बेगरता रहैक- से आइ लोककेँ बुझा रहल छैक। अविनाश आ पंकज पराशरक मामाजी तहिया हिनकर कथाकेँ “टिप्पणीक”क्रममे मैथिली-कथाक “टर्निंग प्वाइन्ट” मानने छलाह। आइ ओ “टर्निंग प्वाइन्ट” ठीके एक हिसाबेँ “टर्निंग प्वाइन्ट” प्रमाणित भेल, कारण कथाक ओहि शीर्षकमे सँ “नहि” हटि गेल अछि, हिनकर तेबारा चोरिसँ। हिनकर पहिल चोरि (अरुण कमलक कविता- नए इलाके में) क निन्दा प्रस्तावमे “मामाजी” आ डॉ. महेन्द्रकेँ छोड़ि, सहरसाक शेष सभ साहित्यकार हस्ताक्षर कऽ “आरम्भ”केँ पठौने छलाह। आइ ओ हस्ताक्षर नहि केनिहार सभ कन्छी काटि कऽ वाम-दहिन ताक-झाँक करवाक लेल बाध्य छथि। द्वैध-चरित्र आ दोहरा मानदण्डक परिणाम सैह होइत अछि। अविनाश तखन तँ देखार भऽ जाइत छथि जखन ओ विदेह-सदेह-२ मे लिखैत छथि जे “एकरा सार्वजनिक नहि करबै”। नुका कऽ सूचना देवाक कोन बेगरता? पंकज पराशरसँ सम्बन्ध खराब हेवाक डर वा कोनो “टेक्नोपोलिटिक्स”(?) केर चिन्ता?
विदेह-सदेह-२ क पाठकक संदेश तँ कएटा साहित्यकारकेँ देखार कऽ दैत अछि। जतय राजीव कुमार वर्मा, श्रीधरम, सुनील मल्लिक, श्यामानन्द चौधरी, गंगेश गुंजन, पी.के.चौधरी, सुभाष चन्द्र यादव, शम्भु कुमार सिंह, विजयदेव झा, भालचन्द झा, अजित मिश्र, के.एन.झा, प्रो.नचिकेता, बुद्धिनाथ मिश्र, शिव कुमार झा, प्रकाश चन्द्र झा, कामिनी, मनोज पाठक आदि अपन मुखर भाषामे प्रखरतापूर्वक निन्दनीय घटनाक निन्दा केलनि अछि, ततहि अविनाश, डॉ. रमानन्द झा “रमण”, विभारानीक झाँपल-तोपल शब्द आश्चर्य-भावक उद्रेक करैत अछि। मुदा संतोषक बात ई अछि जे पाठकक “प्रबल भाव-भंगिमा” साहित्यकारोक “मेंहायल आवाज”क कोनो चिन्ता नहि करैत अछि। विभारानी तँ कमाले कऽ देलनि। एहि ठाम मैथिली भाषा-साहित्यक एक सय समस्या गनेवाक उचित स्थान नहि छल। ई ओनाठ काल खोनाठ आ महादेवक विवाह कालक लगनी भऽ गेल। कोनो चोर बेर-बेर अपन कु-कृत्यक परिचय दऽ रहल अछि आ हुनका समय नष्ट करब बुझा रहल छनि आ चोरकेँ देखार केलासँ दुःख भऽ रहल छनि? ओ अपन प्रतिक्रियामे कतेक आत्म श्लाघा आ हीन-भावना व्यक्त केलनि अछि से अपने पत्र अपने ठंढ़ा भऽ कऽ पढ़ि कऽ बूझि सकैत छथि। हिन्दीयोमे एहिना भऽ रहल अछि, तेँ मैथिलीमे माफ कऽ देल जाय? आब हिन्दीसँ पूछि-पूछि कऽ मैथिलीमे कोनो काज होयत? विभारानी ज्योत्सना चन्द्रमकेँ ज्योत्सना मिलन केना कहैत छथि? हुनकर उपेक्षा कोना मानल जाय? ओ सभ साहित्यिक कार्यक्रममे नोतल जाइत छथि, सम्मान आ पुरस्कार पबैत छथि, पाठक द्वारा पठित आ चर्चित होइत छथि। समीक्षाक शिकाइत की उच्चवर्णीय (?) साहित्यकारकेँ मैथिलीमे नहि छनि? समीक्षाक दुःस्थिति सभ जातिक मैथिली साहित्यकार लेल एके रंग विषम अछि। ओइ मे जातिगत विभेद एना भेलए जे ब्राह्मण-समीक्षक, आरक्षणक दृष्टिकोणेँ निम्न जाति (?)क साहित्यकारक किछु बेशीए समीक्षा (सेहो सकारात्मक रूपेँ) केलनि अछि। समीक्षा आ आलोचनाक विषम स्थितिक कारणें जँ नैराश्यक शिकार भऽ जाय लेखक, तँ लेखकीय प्रतिबद्धताक की अर्थ रहि जायत? विभाजीकेँ बुझले नहि छनि जे हुनका लोकनिक बाद मैथिली महिला लेखनमे कामिनी, नूतन चन्द्र झा, वन्दना झा, माला झा आदि अपन तेवरक संग पदार्पण कऽ चुकल छथि। हुनका ने कामिनीक कविता संग्रह पढ़ल छनि आ ने “इजोड़ियाक अङैठी मोड़”। हुनका अपन गुरुदेवक बात मानि हिन्दीमे जाइसँ के कहिया रोकलकनि? ओ गेलो छथि हिन्दीमे। मातृभाषाक प्रेरणा अद्वितीय होइत छै। मैथिलीक जड़ संस्था अथवा समीक्षक सभपर प्रहार करबामे हमरा कोनो आपत्ति नहि, मुदा अर्थालाभ तँ एतय नगण्य अछिए। सामाजिक सम्मान विभाजीकेँ अवश्य भेटलनि अछि। समाजमे “जड़”लोक छै तँ “चेतन” लोक सेहो छैक। हुनकासँ मैथिली भाषा-साहित्य आ मिथिला-समाजकेँ पैघ आशा छै, हीनभाव वा आत्मश्लाघासँ ऊपर उठि काज करवाक बेगरता छैक। सक्षम छथि ओ। हुनका श्रेय लेवाक होड़सँ बँचवाक चाही। अन्यथा साहित्य अकादेमी प्रतिनिधि, दिवालियापन केर शिकार जूरीगण आ मैथिलीक सक्षम साहित्यकारमे की की अन्तर रहि जायत? विभारानीक विचलनक दिशा हमरा चिन्तित आ व्यथित करैत अछि। ओ दमगर लेखिका छथि, सशक्त रचना केलनि अछि, आइ ने काल्हि समीक्षकगण कलम उठेबापर बाध्य हेबे करताह। समीक्षकक कर्तव्यहीनतासँ कतौ लेखक निराश हो?
पंकज पराशरक श्रृंखलाबद्ध साहित्यिक चोरिपर सार्थक प्रतिक्रिया देब कोनो साहित्यकार लेल अनुचित नहि अछि कतहुसँ। साहित्यकार लेल साहित्यिक मूल्यक प्रति ओकर प्रतिबद्धता मुख्य कारक होइत अछि आ हेवाको चाही आ तकरा देखार करवाक “बोल्डनेसो” हेवाक चाही। “चाही”वला पक्ष साहित्यमे बेशीए होइत अछि। एहेन-एहेन गम्भीर विषयपर साहित्य आ समाजक “चुप्पी” एहेन घटनाकेँ प्रोत्साहित करैत अछि आ जबदाह जड़ताकेँ बढ़बैत अछि, भाषा-साहित्यकेँ बदनाम तँ करिते अछि। जाधरि पंकज पराशरक चोरि-काव्यक समीक्षा लिखल जाइत रहत, विभारानीक मूल-रचनाक समीक्षा के लिखत? ककरा जरूरी बुझेतैक? विभारानी अपने तँ समीक्षा प्रायोजित नहि करओती? सक्षम लेखकक व्यवहारोक अपन स्तर होइत छै। तेँ संगठित भऽ चोरिक भर्त्सना हेवाक चाही।

उमेश मंडल

 सुपौलक कथा गोष्‍ठी : ४ दि‍सम्‍बर २०१०


व्‍यापार संघ भवन सुपौलमे दि‍नांक ४.१२.२०१०केँ सगर राति‍ दीप जरय'क ७२म कथा गोष्‍ठी श्री अरवि‍न्‍द कुमार ठाकुरक संयोजकत्‍वमे बि‍पल्‍व फाउण्‍डेसन आ प्रगति‍शील लेखक संघ द्वारा आयोजि‍त कएल गेल। सांझ ६ बजे प्रो. सचि‍न्‍द्र महतोजी दीप प्रज्‍वलन सह उद्घाटन केलनि‍। मंच संचालन श्री अजीत झा आजादजी केलनि‍ आ गोष्‍ठीक अध्‍यक्षता श्री रमानन्‍द झा रमणजी केलनि‍। एहि‍ अवसरपर जीवकान्‍त जीक पोथी 'एकहि‍ पच्‍छ इजोर'क लोकार्पण अजीत आजादक माध्‍यमसँ अरवि‍न्‍द ठाकुर जीक द्वारा भेल।
      कुल २१गोट नव-पुरान कथाकार अपन-अपन नूतन कथा वा लघुकथाक पाठ केलनि‍। जे एहि‍ तरहेँ अछि‍- रंजीत कुमार खाँ राही- (फाेंक), रजनीश कुमार ति‍वारी- (गप्‍पी), अरवि‍न्‍द कुमार ठाकुर- (युटोपि‍या), अजीत आजाद- (रोग), पंकज सत्‍यम्- (तर्दनकृवा घुमैत पि‍बैत), महाकान्‍त ठाकुर- (शि‍क्षाक प्रयोजन), चौधरी जयंत तुलसी- (धीपल फाढ़), आशीष चमन- (नि‍ष्‍कर्ष), राजाराम सि‍ंह राठौर- (राखीक रंग फीका), वि‍जय महापात्रा- (मोन कि‍एक पाड़लेँ), जगदीश प्रसाद मंडल- (दोहरी मारि‍), दुर्गानन्‍द मंडल- (लबकी कनि‍याँ), कपि‍लेश्वर राउत- (कि‍सानक पुजी), मनोज कुमार मंडल- (बेमेल वि‍‍आह), रामबि‍लास साहु- (गामक गाछी), बेचन ठाकुर- (अनैति‍क वि‍आह), संजय कुमार मंडल- (सि‍नेह), अकलेश मंडल- (टि‍टनेस), मुकेश मंडल- (लोभक फल), लक्ष्‍मी दास- (बुड़ि‍बकक बुड़ि‍बक) आ उमेश मंडल- (युगक खेल आ आधा भगवान)क पाठ केलनि‍।
      प्रो. सचि‍न्‍द्र महतो, शैलेन्‍द्र शैली, महेन्‍द्र, कि‍शलय कृष्‍ण, अरवि‍न्‍द्र ठाकुर पठि‍त कथापर समीक्षा केलनि‍। ओना तुलसी जयंत चौधरी, राजाराम सि‍ंह राठौर, जगदीश प्रसाद मंडल, महाकान्‍त ठाकुर, दुर्गानन्‍द मंडल, आशीष चमन, वि‍जय महापात्रा इत्‍यादि सेहो‍ कि‍छु कथापर अपन टि‍प्‍पणी केलनि‍।
      श्री अजीत कुमार झा आजाद मंच संचालनक संग-संग पठि‍त कथा सभपर आ कएल समीक्षापर अपन कि‍छु वि‍चार माने टि‍प्‍पणी करैत रहला, तहि‍ना संयोजक श्री अरवि‍न्‍द ठाकुरजी सेहो वि‍शेष बात रखलनि‍ जेकर कछु वि‍चारणीय अंश नि‍म्‍नांकि‍त अछि‍-
      भोजनक वादक समए छल। उमेश मंडल, कपि‍लेश्वर राउत, अकलेश मंडल, दुर्गानन्द मंडल, लक्ष्‍मी दास, रामवि‍लास साहु, मनोज कुमार मंडल, बेचन ठाकुरक कथा पाठ भऽ गेल छल। प्राय: एकसँ दू पालीमे। समीक्षक लोकनि‍ हि‍नकर सबहक कथापर बाजि‍ चूकल छलाह। जाहि‍मे उमेश मंडलक अाधा भगवान कथापर श्री शैलेन्‍द्र शैल, अरवि‍न्‍द ठाकुर राजाराम सि‍ंह राठौर आ तुलसी जयंत चौधरी, कर्मवादी कथाक रूपमे समीक्षा केलनि‍। जेकर पुन: एकबेर दोहरबैत संचालक श्री अजीत आजाद जी बजै छथि‍- उमेश मंडलक कथा आधा भगवान भाग्‍यवादीसँ कर्मवादी दि‍शि‍ लऽ जाइत अछि‍। वास्‍तवमे ई कथा कि‍सानी जि‍नगीक लेल नीक प्रयास मानल।
अकलेश मंडलक कथा टि‍टनेस आ दुर्गानन्‍द मंडलक कथा लबकी कनि‍याँ'पर श्री अरवि‍न्‍द ठाकुर बजै छथि‍- लबकी कनि‍याँ कथा मंडलजी बला सुनलहुँ ठीके शैलेन्‍द्र शैलजी कहलथि‍हेँ जे ई कथा वि‍षए-वस्‍तु‍क खि‍यालसँ ओहि‍ना लगैत अछि‍ जेना राजश्री प्रोजेक्‍टक सि‍नेमा चलि‍ रहल हुअए। अकलेश मंडलक कथा टि‍टनेसपर हम एतबए कहब जे ई कोनाे हेल्थ मेग्‍जि‍नमे छपैत तँ उत्तम। हमरा लगैए जे आइ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक चौराहापर कि‍छु ओहन आदमीक उपस्‍थि‍ति‍ भऽ रहल अछि‍ जे देखबा, सुनबा आ वि‍चार करबा योग्य अछि‍। आइ बेरमा कथा गोष्‍ठीकेँ लेल जाए। जेकर संयोजक जगदीश प्रसाद मंडल, मंच संचालक अशोक कुमार मेहता आ अध्‍यक्ष तारानन्‍द वि‍योगी रहथि‍। तँ हम कहलौं जे ई जे पौतीमे बन्‍द मैथि‍लीक दुर्दशा छल ओ आब फूटि‍ बहराएलहेँ। एकरा अहाँ कि‍ कहि‍ सकै छि‍ऐ? आइ साहि‍त्‍यि‍क मंचपर टाल ठाेकि‍ कऽ ओ सभ चुनौती बुझू दऽ रहला छथि‍ जे कहि‍यो खबास होइत छलाह। एकरा अन्‍यथा नहि‍ लेल जाए। जे सत्‍य छै ओ सोझाँ राखलौं अछि‍। जगदीश प्रसाद मंडल जीक कथा-उपन्‍यास जखन हमरा सभ पढ़ै छी तँ जेना लगैए जे एकटा नव दुनि‍याँमे प्रवेश पौलहुँ अछि‍। एकदमसँ ओहेन दुनि‍याँ जै दुनि‍याँक कल्‍पनो ने बुझू भेल छल। जहि‍ना वि‍षए-वस्‍तु तहि‍ना शब्‍द-संयोजन तहि‍ना दृष्‍टि‍कोण....। तँ आब अहाँ सभ ई बुझि‍यौ जे जगदीश मंडलजी एकटा एहेन रेखा खि‍ंचि‍ देलनि‍। जेकरा धि‍यानमे राखि‍ कऽ अहाँ कथा लि‍खी तँ उत्तम। आइ जै वर्गसँ अहाँ सभ आबि‍ रहल छी ओइ वर्गमे माने कि‍सानी जि‍नगीक अनेकानेक वि‍षए-वस्‍तुक चर्च मंडलजी केलनि‍ अछि‍। ओकरा धि‍यानमे राखि‍ अहाँ सभ आगाँ लि‍खी।
अरवि‍न्‍द ठाकुरजीक वक्तव्यक बाद माइक लैत अजीत आजादजी बजै छथि‍- अरवि‍न्‍द‍ बाबू ठि‍के कहै छथि‍। हि‍नका बातकेँ हम समर्थन करैत छि‍अनि‍। अहुँ सभ कथा गोष्‍ठीमे अबै छी पहि‍ने तँ जगदीश मंडल एलथि‍ बादमे अहाँ सभकेँ सेहो अनलाह आ अबै छी। जगदीश मंडल आ उमेश मंडलजीकेँ आब हम सभ दूरेसँ चि‍न्‍है छि‍अनि‍। लेकि‍न अहाँ सभ ऐ बातकेँ बुझि‍यौ जे कथा कोना लि‍खा रहलैहेँ। अबै छी, कथा पढ़ै छी, जाइ छी। बड़ नीक मुदा ई बुझि‍यौ जे जै वर्गक अहाँ सभ लोक छी मतलब कि‍सान वर्ग जे आधार भेलै। कृषि‍ आधार छि‍ऐ कि‍ नहि‍ छि‍ऐ? तँ ओइमे जे बात सभ छै, जटीलता सभ छै ओकरा अहाँ सभ नै लि‍खबै तँ के लि‍खताह...? तँ ई कहलौं जे एम्‍हर-ओम्‍हर नै लि‍खि‍ ओ सभ लि‍खल जाए। जैमे एकटा बड़का रेखा, कहबे केलथि‍हेँ अरवि‍न्‍द बाबू जे जगदीश मंडल द्वारा खिचि‍ देल गेलहेँ। जँ एकरा नै धि‍यान राखब तँ गोष्‍ठि‍मे एनाइ-गेनाइ बुझू नीक नहि‍। ओना ऐ गोष्‍ठि‍सँ बाहरो नि‍कालल जाइ छै। ई गप्‍प अध्‍यक्ष महोदय दि‍शि‍ तकैत आ मुड़ी डोलबैत अजीत जी अगाँ बजै छथि‍- आब एकटा खि‍स्‍सा सुनबै छी- यंत्रनाथ मि‍श्रकेँ गोष्‍ठीसँ नि‍कालल गेलन्‍हि‍, की यौ.....? आश्‍चर्य लागत जे गेट आउट कहि‍ देल गेलन्‍हि‍ माने गेटसँ बाहर कऽ देल गेलन्‍हि‍।‍
वातावरणमे खटमिट्ठी बुझू पसरि‍ गेल। एत्ते बात बजबाक प्रयोजनपर सभकेँ सब तरहक चि‍न्‍तन-मनन हुअए लागल। दू-चारि‍ मि‍नटक लेल शान्‍त...। एकदम्‍म शान्‍ति‍, सन्नाटा। कि‍छु लोक एक-दोसराक मुँह दि‍शि‍ तकैत। आ कि‍छु लोक गोष्‍ठि‍क गार्जियन श्री रमानन्‍द झा रमणजी दि‍शि‍ गोरसपट टकधि‍यान लगेने। मुदा जे कि‍छु....।
आगाँ उमेश मंडल (माने हम) हमर नामक चर्च संचालक महोदय पहि‍नहि‍ उद्वोधि‍त कऽ चूकल छलाह जे एहि‍ पालीक पठि‍त कथापर हमहुँ कि‍छु टि‍प्‍पणी करबै। हम प्राय: छुब्‍ध रही जे ई कोन समीक्षा भेल। एहि‍ तरहक समीक्षासँ नवाङकुरपर आखिर की‍ प्रभाव पड़तनि‍। खएर जे से हम आगू जा माइक हाथमे लैत बजलहुँ- जहि‍ना पठित पालीपर समीक्षाक ‍बहाने अन्‍यान्न वि‍षए-वस्तुपर गप-सप्‍प राखल तहि‍ना हमहुँ कि‍छु बात राखि‍ रहल छी। सभसँ पहि‍ने हम ओइ कथाकार सभकेँ कहि‍ देबऽ चाहैत छि‍यनि‍ जे पहि‍ल या दोसर कथा लऽ कऽ उपस्‍थि‍त भेलहुँ आ कथा पाठ केलौं। सबहक कथामे यथार्थ अछि, सुन्नर अछि‍, कथ्‍य, शि‍ल्‍प, भाषा, शैली सभ कि‍छु उत्तम। एक्को पैसा उदास हेबाक प्रयोजन नहि‍। दोसर गप्‍प जे अपने सभ एहि‍ बातकेँ बुझल जाए जे जहि‍ना भोजक पाँति‍मे बैसल पंचक आगाँ पहि‍ल खेपमे परसल व्‍यंजनपर कोनो तरहक टि‍का-ति‍रस्‍कारक व्‍यवहार नहि‍ कएल जाइत हँ, दोसर-तेसर बेर माने परसन लेबाकाल ई जरूर धि‍यान राखल जाइत जे की नीक आ की बेजाए....। तेसर बात अपने सभक द्वारा नव लोककेँ कहल गेलन्‍हि‍हेँ जे एना नै ओना आकि‍ ओना नै एना लि‍खू। कृषि‍ वि‍कासक बात लि‍खू आ से ई के लि‍खता अहीं सभ ने लि‍खबै। ठीक बात मुदा इंजि‍नि‍यर डाॅक्‍टरक पढ़ाइ करैबलाक भरमार लागल अछि‍ आनो-आन क्षेत्रमे जि‍नका पढ़ाइ-लि‍खाइक सुवि‍धा पर्याप्‍त छन्‍हि‍ नम्‍बर लगौने छथि‍। लेकि‍न कृषि-‍कार्यक पढ़ाइ हेतू कि‍एक ओ सभ विमुख भेल छथि‍। ई गप्‍प आ समस्‍याकेँ के लि‍खताह? ऐ पर कथा कि‍एक नै लि‍खल जाइत अछि‍। ऐ पर अहुँ सभ वि‍चार करू। अपन बातपर वि‍राम लगा हम माइक संचालक महोदयकेँ हाथमे दैत यथास्‍थान जा बैस रहलहुँ। गोष्‍ठि‍मे बैसल सभ कथाकार आ समीक्षकक मनमे जेना समीक्षाक नव-नव बि‍म्‍व नॉचए लगलनि‍। अध्‍यक्ष महोदय सेहो उठि कऽ बैस रहला।

अध्‍यक्ष महोदय दि‍शि‍ देखैत संचालक एक बेर पुन: अपन बात स्‍पष्‍ट करैत बजलाह- देखियौ हमर कहब छल जे अहाँ सभ एत्ते दूरसँ एलौं जेबा-एबामे बड़ कठि‍नाइ होइ छै। हमर कहबाक भाव रहए जे जहि‍ना जगदीश बाबू लि‍खै छथि‍ ओ जे रेखा खि‍चलन्‍हि‍हेँ ओकरा धि‍यानमे राखि‍.....। अहाँसँ साहि‍त्‍यमे कि‍ लाभ भेलै। मतलब कि‍ देलि‍ऐ। से जौं नइ तखन तँ.....।‍
ऐ बातपर हम पुन: बाजलहुँ- ‍अजीत बाबू अपने साहि‍त्‍यि‍क लाभक बात एहि‍ नव लोकमे तकै छी। मुदा एकबेर अपना दि‍शि‍ देखल जाए जे स्‍वयं थोड़ेखन पहि‍ने बजलाैंहेँ‍ जे सत्तरह सालसँ लगातार अहाँ सभ कथा गोष्‍ठि‍मे भाग लेलहुँ। आइसँ नै सत्तरह सालसँ। मुदा कएकटा कथा संग्रह देलि‍ऐहेँ?”
  अजीत आजाद- अहीं जकाँ हमरा प्रकाशन नै ने भेट गेल जे......।‍ अक्‍खैन कि‍यो भार लेथि‍ हम परसू तक तीनटा कथा संग्रह थम्‍हा दैत छि‍यनि‍। लेकि‍न ओहोसँ पैघ बात जे कै स्‍तरक कथा सभ हमर वि‍भि‍न्न पत्र-पत्रि‍कामे छपि‍ चूकल अछि‍ आ कहि‍यासँ तेकरो तँ देखबै।
अगल-बगलसँ पाँच-छह गोटा एक्केबेर- हँ, से तँ ठीके बात। हँ से तँ ठीके बात। बजैत अागाँ‍क कथा पाठ लेल अग्रसरक वि‍चार प्रकट केलाह। माहौलमे परि‍वर्त्तन भेल। लगभग चारि‍टा कथापाठ फेर भेल आ तेकर संक्षि‍प्‍त समीक्षा सेहो कएल गेल। तात् भि‍नसर ६बाजि‍ गेल। श्री रमानन्‍द झा रमण अपन अध्‍यक्षीय उद्वोधनमे उपरोक्‍त झजमझ (मतांतर)पर एक्को शब्‍द नै बजलाह।
अगि‍ला कथा गोष्‍ठि‍क आयोजन श्री वि‍जय महापात्रा जीक संयोजकत्‍वमे हुनके मातृभूमि‍ महिषी मे कएल जाएत ताहि‍ लेल सुपौलक संयोजक श्री अरवि‍न्‍द ठाकुरजीक द्वारा दीप आ उपस्‍थि‍ति‍ पुस्‍ति‍का भावी संयोजककेँ समर्पित करैत गोष्‍ठि‍क समापन कएल गेल।
१. विनीत उत्पल- दीर्घकथा- घोड़ीपर चढ़ि लेब हम डिग्री - दोसर भाग . अकलेश मंडल-  लघुकथा- टीटनेस ३. कपि‍लेश्वर राउत- कथा- कि‍सानक पूजी राम वि‍लास साहु- लघुकथा- परि‍श्रमक भीख ५.भारत भूषण झा- कथा-आत्‍मबल

विनीत उत्पल- दीर्घकथा- घोड़ीपर चढ़ि लेब हम डिग्री - दोसर भाग 

  
आलोक बाबू ओहि सांझ पूरे मूड में छल। मुदा राति बेसी भऽ गेल छल। सभक आंखि मे नीन आबैत छल। कियो देवार से सटि के उंघय लागल तऽ केकरो सुनैत-सुनैत झपकियो लियै लागल। भुजाक संग दालमोट आओर कतेक देर चलतियै। सभक पेट मे चूहा कूदै लागल। प्यासो लागल छल। जतेक पैन के बिसलरी के बोतल छल, सभ खत्म भऽ गेल छल। आबि एतेक राति भऽ गेल छल जे कोनो दोकानो नहि खुजैत रहल, जाहि सं किछु खाय-पीबै बला समान आबतियैथ। उमढ़, स्टेज पर आलोक बाबू छल, जिनका जिह्रा पर सरस्वती बैसल छल। हुनकर खिस्सा सुनाबै मे ब्रोक नहि लागल छल। हुनकी मीठ बोल आओर खिस्सा कहैक स्टाइल छोड़ि कऽ कियो जाइलै नहि चाहैत छल।
अपन श्रोताक भाव-मुद्रा जे कथाकार चिह्न लिये, ओ होशियार होयत अछि। आलोक बाबू तऽ होशियार छेबे करल। ओ लोकक मुद्रा के पढ़ि लेलैन आओर घोषणा करलैन जे आब बेसी राति भऽ गेल अछि, ताहि से आजुक कथा एतय बंद करैत छी। आब अगला बैठकी मे समूचे खिस्सा अहां सभकऽ सुनायब। ई सुनैत सभ सुनहि बला कऽ लागल जे पेटक भूख पेट में रहि गेल। कियैकि पेटक भूखक आगू मानसिक भूख भारि पडि़ जाइत अछि। एक हफ्ता लोक सभक कोना बीतल कियो नहि कहि सकैत अछि। मुदा, एक गप भेल जे आलोक बाबूक फिल्मक खिस्सा पूरे रायपुर मे कानाफूसी जना बाजल जायत छल। आय ओ सभागार मे शहर के आओर लोक आबि गेल छल, आलोक बाबूक सुनैक लेल। ठाढ़ रहैक जगह नहि छल। लोक कऽ जतय जगह भेटल ताहि ठां नीचे मे बैसि गेल।
जहिला रोट्रेक्ट क्लब के अध्यक्ष राजेश चौधरी बजलाह जे आब अहां सभ शांत भऽ कऽ बैसि जाऊ, आब आलोक बाबू अपन फिल्म देखहि के खिस्सा सुनायैत। पूरे हॉल मे 'पिन ड्राप साइलेंट" भऽ गेल। आलोक बाबू तऽ आलोक बाबू छलाह। आव नहि देखलक ताव, शुरू भऽ गेल खिस्सा सुनाबैय लेल। एकटा हाथ डांड़ पर धरि, दोसर हाथ से खिस्सा कऽ लऽ कऽ हवा मे लपटाबैत कहलाह, 'हमर सौभाग्य अछि जे हमरा रास्ता देखाबै बला हमर पापा अछि। कोनो पाय कऽ लऽ कऽ गप होयत या दुनिया जहानक। खेलक मैदान सं लऽ कऽ फिल्मी दुनियाक गप, राजनीतिक रपटीली डेगक गप सं लऽ कऽ कोनो बीमारी सं छुटकारा पाबैक नुक्सा, पापा अलराउंडर अछि। हमरा लागैत अछि जेना फिल्मोक गप हम पापा से जानल छी। एखन धरि जिनगीक बेसी काल मामा लग नहि रहि कऽ पापा संग रहल छी। नीक काज करैत रहि तऽ ओ खुश होयत छल नहि तऽ खूब मारि खाइत रहि। पापा के मुह से सुनल छलौंंह जे अमिताभ बच्चन हीरो अछि आओर हुनकर पिता हरिवंशराय बच्चन एकटा कविक संग प्रोफेसर सेहो छल।"
आलोक बाबू अपन पापा कऽ लऽ कऽ कहै लगलाह जे ओ कहैत अछि जे फिल्म देखहि मे पाय आैर टाइम बरबाद होयत अछि। तीन घंटा मे जे नेना कोर्सक पोथी पढ़ि लियै या कोनो खेल खेलय तऽ ओ क्लास में नीक करत या ओकर देह नीक भऽ जाइत। ओ पढ़ाई कऽ लऽ कऽ कोनो सामंजस्व बैसाबैक विरूद्ध खड़ा भऽ जाइत छल। मुदा हमरा बेर ओ आपन वसूल बदलि लेलखिन। हमहूं फिल्म देखहि लेल जाइत रहि मुदा की दैखैत रहि, बुझैत मे नहि आबैत छल। रविक सांझ मे दूरदर्शन मे फीचर फिल्म देखाओल जाइत छल, जकरा दैखैत लेल हम जाइ रहि दोसर के घर। मुदा एकरा लेल बड़का साध्य करै पड़ैत छल। भोरि भऽ कऽ सबसे पहिले जागैत रहि। तकर बाद दिन भरि खूब मन लगा कऽ पढ़ैत रहि। एतेक पढ़ैत रहि जे पापा सांझ तक खुश भऽ जाय। पापा खुश तऽ फिल्म देखि सकैत रहि मुदा हुनकर कोनो सवालक जवाब नहि दऽ सकलौंह तऽ सभटा प्लान धरि की धरि रहि के डर बनल रहैत छल।
पापा के सीधे कहबाक रहि जे क्लास मे नीक करैक संग टास्क पूरा होयत तखने अहांक गप मानल जाइत। नहि ते जे हम कहैत छी, ओ अहां मानू। नेने से मन मे एकटा विद्रोह स्वाभाव रहल अछि। जे हम जे कहि, से दुनिया मानै। हम किया केकरो गप मानब, हमर गप किया नहि कियो मानैत। नेने से अपन सपना के हकीकत मे बदलहि लेल एके टा रास्ता रहि जे खूब मन लगाकर पढ़ि। पापा आओर हमर बीच ई हरदमे चलैत छल जे के कखैन जीतत। कखनो पापा जीतैत छल तऽ कखनो हम। लागैत छल जे पापा अपने बेटा सं हारिक खुश भऽ जाइत छल। हेतै किया नहि, ई तऽ सभ बापक होबाक चाहि। बेटा आगू बढ़ै, एकरा सं नीक की होयत। हम जखैन जीतैत रहि तऽ पापा हंसि कऽ हमरा अपना तरहे जिनगी जियबाक लेल छूट दैत छल। हम जखन हारैत रहि तऽ कनिक काल तऽ झल्ला जाइत रहि। मुदा, सोचैत रहि जे आगू से जे भी हेता, हम नहि हारब। खूब मन लगाकऽ पढ़। अहिना तरहे हम अमर अकबर एंटोनी, नागिन, कालीचरण, शोले, रोटी कपड़ा आैर मकान, सीता आैर गीता, राम आैर श्याम, हाथी मेरा साथी, सत्यम शिवम सुंदरम, क्रांति एहन फिल्म देखलहुं। मुदा ई सभ फिल्म इंटरवल धरि।
आब बाजैत-बाजैत आलोक बाबूक कंठ सूखि गेल छल। ओ टेबल सं पैन के गिलास उठा कऽ दू घंूट पानि पीबि कऽ फेर सं बाजब शुरू करलखिन। तखन आठवां क्लास में पढ़ैत रहि जखन सिनेमा घर मे जाइकै फिल्म देखल रहि। घर मे दादाजीक बटुआ से साढ़े तीन टका चुराइल रहि। तीन टका मे दू टा टिकट आयल छल आओर एक अठन्नीक सिक्का मे झालमुढ़ी खायल रहि। फिल्म छल जंगबाज, जहि मे हीरो छल गोविंदा आओर राजकुमार। गेल तऽ रहि फिल्म देखहि लेल मुदा घरक लोकक डर सं हॉल मे फिल्म कम हॉलक सीन बेसी देखैत रहि। डर लागैत छल जे किसी चिन्है बला एतय देखि लेत तऽ घर मे खबर भऽ जाइत। फेर बिना पूछि के फिल्म देखहि कऽ सजा भेट जाइत। जकरा संगे फिल्म देखहि लेल आइल छलौंह हुनका पहिने कहि देने रहि जे ककरो सं ई गपक चर्चा करब तऽ हम टिकट के पाई अहां के नहि दे। हम अपन मिशन मे कामयाब रहल रहि। 
आलोक बाबू के मुख मुद्रा एहन रहि जे लोग हुनकर मुंह से निकलल एक-एकटा बोल कऽ गांठि बना कऽ सुनैत छलाह। ओ सत्तर आओर अस्सी के दशक मे अपना कऽ लऽ गेलखिन। कहै लगलाह। ओहि काल रायपुर बड़ छोट शहर रहैक। एतेक गली मे हमर नेना बीतल। एकेटा सिनेमा हॉल छल, कल्पना टॉकिज। आब तऽ ओ छेबो नहि करल। अहि टॉकिज में पंद्रह अगस्त आओर छब्बीस जनवरी के टिकट ब्लैक मे बिकायत छल। जखन अहां एक बेर कोनो काज कऽ लऽ सकैत छी तखन अहांक मन बढ़ि जाइत अछि। ये हमरा संग सेहो भेल। दोसर बेर हम 'एक फूल दो माली" देखहि लेल सिनेमा हॉल गेलहुं। फिल्म नीक लागल। मुदा एखन धरि रायपुर मे यै टा दू टा फिल्म देखने छी। अगां के खिस्सा तऽ अहां सभ जानैत छी।
ई कहि के मुंह पर आयल पसीना के आलोक बाबू जेबी से रूमाल निकालि के पोछलक आओर अपन ठाम पर बैस गेल। सभ लोग गदगद छल। आलोक बाबू कऽ सभ वाहवाही करै लागल। एहि दिन एतिहासिक छल रायपुरक इतिहास मे। जे सभ नहि जानैत छल आलोक बाबू के सेहो जानय लागल। शहर के लड़की सभक बीच आलोक बाबू खूब पोपुलर भऽ गेल। कॉलेज जाई बाली लड़की सोचैत छल जे कोना आलोक बाबू से गप करि। मुदा, आलोक बाबू कऽ अहां जानैत छी। नहि केकरो से बाजब, जे काज अछि, बस काजि कऽ घर आबि गेलहुं।
ओ जमाना मोबाइल के नहि छल। लैंडलाइन के छल। आलोक बाबूक घर मे सेहो लैंडलाइनलागल रहैक। मुदा, ओ केकरो अपन घरक नंबर नहि दैत छल। कियै कि केकरो फोन आयत आओर पापा उठा लेत, तऽ बिगैड़ लागत। आजुक दुनिया मे कोनो चीज कतेक दिन धरि अहां नुका सकैत छी। सेह आलोक बाबूक भेल। लोक-बेद के हुनकर घरक लैंडलाइन फोनक जानकारी भऽ गेल। जेकरा जरूरत होयत ओ आलोक बाबू कऽ कखनो फोन कऽ दैत छल। आहि काल लॉ कॉलेज मे पढ़ैत आलोक बाबू एतेक पोपुलर भऽ गेल छल जे लड़की सभ हुनकर कोनो-कोनो दोस्त कऽ अप्पन फोन नंबर दैत छल जे हुनका कहबै जे ओ फोन करताह। मुदा, आलोक बाबू कहियो कोनो लड़की के किया फोन करताह।
ओ दिन एक जनवरी छल। भोरि उठि के आलोक बाबू नहाय-नास्ता कऽ पढ़ैत छलाह। तखने फोनक घंटी बाजल। 
मां फोन उठैलखिन आओर बाजलखिन, 'हैलो"
'जी, आलोक बाबू अछि" दोसर दिस से कोनो लड़की के आवाज छल।
'हां, अछि, अहां के" मां कहलखिन।
'जी, हम आलोक बाबूक दोस्त।" एतबै कहैत आे लड़की के सांस फूलि गेल आओर ओ फोन राखि देलक। 
आब मां तऽ मां होयत अछि। आन मां जना आलोक बाबूक मां छल। ओ चिंतित भऽ गेलि जे कोन लड़कीक फोन आलोक बाबू लेल आयल। मुदा कोनो आईडी कॉलर ते लागल नहि छल जे कियो जानि सकैतियै जे कोन नंबर से फोन आयल। फेर दूपहरिया मे फोन आयल। तखन हुनकर बहिन फोन उठैलक। फेर ओहिने घटना भेल। आब घरक  सभक मन मे हुयए लागल जे की गप अछि, जे ओ फोन करहि बला लड़की गप नहि करैत अछि। फेर सांझ भेल पर सै गप भेल। अहि बेर आलोक बाबू अपने सं फोन उठैलखिन। मुदा सामने बला नहि तऽ हुनकर आवाज चिह्नलखिन आओर नहि ओ।

जारी...
अकलेश मंडल-  लघुकथा-
टीटनेस

वर्ग- अन्‍तर स्‍नातक (प्रथम साल)
जनता महावि‍द्यालय, झंझारपुर।


टीटनेस

इजोरि‍या झलफलाइत रहए। कोइली कुचड़ए लगल कि‍ बुधनीक नीन टूटल। इजोरि‍या झलफलाइत देखि‍ बुधनीकेँ भेल जे आइ उठैमे अबेर भऽ गेल। मुदा तैयो धरफड़ाएल उठि‍ कऽ वि‍छान समेटि‍ अलगनीपर राखए लगलि‍ आकि‍ कपड़ा लागि‍ गेलि‍ चारमे खोंसल हॅसुआ बुधनीक माथेपर लटपटाइत गि‍रल हाँसू भोँका गेल। बुधनीक माथासँ फूच्चूका मारि‍ खून बहए लगल। बुधनी बुदबुदाएल- हे भगवान, कोन हमरासँ गलती भेल जे एतेक बरका दुख बुढ़ारीमे देलौं। मरब की जीयब आब घा जल्‍दी छूटत।‍
खूनसँ साड़ी भि‍जए लगल। मोनमे एले जे आब बि‍देशर (बेटा)केँ उठा दै छि‍ऐ। नै तँ कि‍नसाइत होतसँ होतांग भऽ जेत्ते। बुधनी बि‍देशरकेँ हाक दि‍अऽ लगलि‍- रौ बौआ, बि‍देशर उठ।‍
  दुनू परानी एक्के हाकमे अकचकाइत उठल। घरेसँ बाजलि‍- कि‍ भेलौ माए?
  ‍कनी एम्‍हर आ हॅसुआ भोका गेल। बुधनी कहलक।
  दुनू परानी करू तेल लैऐ कऽ आएल सोचलक जे चोट बेसी लागल हेतै तँ ससारि‍ देबे। मुदा बि‍देशर देखलक खूनसँ ओसरा पटल। माइयक साड़ी सेहो भीजल। मोनमे ऐलै जे माएकेँ बेसी हालत खराव अछि‍। से नै तँ डाक्‍टरकेँ बजौने अबै छी। बि‍देशर पत्नीकेँ कहलक- ताबे अहाँ माएकेँ देखभाल करू। हम डाक्‍डर बजौने अबै छी।‍ कहि‍ बि‍देशर डाक्‍टर लग वि‍दा भेल। डाक्‍टर बजौने आएल।
बुधनीक घाउ देख डाक्‍टर बजलाह- बुढ़ीक दि‍मागी जखन बेसी अछि‍। कोना भेल।‍
बि‍देशर तमसाइत बाजल- बुढ़ि‍याकेँ भोरे उठैक आदत अछि‍। बि‍छान समेटि‍ अलगनीपर राखए लगल आकि‍ हाँसू माथेपर खसल।‍
गमैया डाक्‍टर मलहम-पट्टी कऽ देलक टि‍टनेसक सूइयो नै देलक। मुदा ि‍बदेशरकेँ कहलक- घा छुटैमे बीस-पच्‍चीस दि‍न लागत। बॉतर-खोंतर कि‍छ नै देबनि‍ खाइले। नै तँ ऊनसँ दून भऽ जाएत।‍ बुधनी डॉक्‍टरक बात सुनि‍ पथ-परहेजक करए लागलि‍। बुधनीक घाउक जखम देखि‍ बि‍देशर कखनो काल तमशाइयो जाइ आ बजै- ‍कोन जरूरी रहै छलौ भोरे उठै कऽ। मुदा कखनो काल आँखि‍मे नोर चलि‍ अबै कहुना छी तँ माए छी। तहुमे बुधनीक घाउ कखनो ब्‍लड प्रेशर जकाँ ठीस मारे लगए। बि‍देशर माइयक तबाही देख भरि‍-भरि‍ राति‍ जगले रहै छलए। सात-आठ दि‍न भऽ गेल। बुधनीक घाउ दि‍नो-दि‍न बढ़ले चलि‍ गेल। दुखेनाइ नै कम भेल। जहि‍ना मनुक्‍खक संग मनुक्‍खक चालि‍ नै छोड़ैत तहि‍ना बुधनीक संग कखनो दुखैनाइ नै छोड़ैत। बुधनी दसम दि‍नक बाद खेनाइ-पि‍नाइ पुरा ति‍यागि‍ देलक।
बि‍देशर कलहन्‍त होइत पहुँचल डॉक्‍टर लग। कहलक डॉक्‍टरकेँ- ‍डाॅक्‍टर सहाएब माएक घाउ बढ़ले जा रहल अछि‍। दुखैनाइ कहि‍यो कमे नै होइत छै। आब खेनाइ-पि‍नाइ सभटा ति‍यागि‍ देलक।
डॉक्‍टर फेर पहुँचलथि‍ बुधनी लग। घाउकेँ बि‍स्‍तार भेल देख डॉक्‍टर बाजलाह- भोकेलहा हाँसू कनी देखाऊ।‍
बि‍देशर दौड़ल भनसा घरसँ हाँसू आनि‍ कऽ देलक। हाँसू देख डॉक्‍टर बजलाह- बुढ़ीकेँ टि‍टनेस भऽ गेलनि‍।‍
बि‍देशर बाजल- डॉक्‍टर सहाएब हँसूआ देख कऽ केना बुझि‍ गेलि‍ऐ। जे टि‍टनेस भऽ गेलै। हँसूआ कोनो मशीन छि‍ऐ।‍
नै बि‍देशर हँसूआ मशीन नै छि‍ऐ मुदा एहि‍मे बीझ लागल अछि‍ तँए टि‍टनेस पकड़ने अछि‍।‍

72म सगर राति‍ दीप जरय- सुपौल, कथा गोष्‍ठीमे पठि‍त।

कपि‍लेश्वर राउत
कथा
कि‍सानक पूजी

मंगल भोरे धान काटए गेल से दूपहरि‍यामे घरपर अएल। घरपर अवि‍ते रौदेलहा धानक दौनी लेल खोंह छि‍टि‍ तैयारीमे मोस्‍तैज भऽ गेल।
जहि‍ना सरकार लेल मार्च महि‍ना हि‍साव-कि‍ताव आ आमद-खर्चक होइत छै तहि‍ना वनि‍या लेल दि‍वाली, पंडि‍त-पुरोहि‍त लेल यज्ञ आ दूर्गापूजा तहि‍ना गृहस्‍तक लेल अगहन। खन धान काटू तँ खन धान तैयार करू, खन गहूमक खेत जोत-कोर करू तँ खन गाए-भैंस-बरदकेँ सानी-कुट्टी लगाऊ। चन तरहक काज रहने मंगल परेसान रहैत छला।
साझू पहर मंगल जोगि‍न्‍दरक ओहि‍ठाम अागि‍ तपैले गेल। गप-सप्‍प होमए लगलै। मंगल बाजल- हौ जोगि‍न्‍दर भाय गप-सप्‍प कि‍ करब, काजे ततेक ऐछ जे परेशान-परेशान रहैत छी। झरो फि‍रेक फुरसत नै रहैत अछि‍। ताहूमे अगहनमे।‍
जोगि‍न्‍दर बाजल- एतेक परेशान होइक कोन काज छै आब तँ धान खेतक जेाताइसँ लऽ कऽ दौनी तकक लेल थ्रेसर, ट्रेक्‍टर, गहूम बाउग करैले मशीन चन तरहक‍ मशीन सभ भऽ गेलैहेँ। तँए परेशान हेबाक कोनो जरूरत नै छै। एकटा कहबी छै जे पूत परदेश गेल देव पि‍तर सभसँ गेल। से नै ने करऽ दि‍मागसँ काज लएह। आ सभ दि‍स नजरि‍ राखह।
मंगल बाजल- से तँ ठीके कहै छहक। एकटा परेशानी रहए तब ने। लऽ दऽ कऽ एकटा बेटा ऐछ छोड़ा अवण्‍ड भऽ गेल ऐछ। केतनो कहै छि‍ऐ जे मन लगा कऽ पढ़-ि‍लख जे दू अक्षरक बोध हेतो तँ अपने काज देतो से करि‍ते ने ऐछ। एकटा मोवाइल कि‍न लेलकहेँ आ हरदम गीत-नादक पाछाँ अपसि‍यात रहैत अछि‍। कि‍ कहब गहूमक बि‍आ 80 कि‍लो एकटा कोठीमे रखने रही से की केलक तँ कखैन ने कखैन सभटा बीआ बेच लेलक आ एकटा मोवाइल कीन लेलक। तुहीं कहऽ आब खेती केना करब छौड़ा बदमास भऽ गेल।‍
जोगि‍न्‍दर बाजल- ई तँ बड़ खराब काज भेलै। जहन पूजि‍ये चोरा कऽ बेच लेत तँ कोनो परि‍वारकेँ गुजर-वसर आकि‍ उनैत केना हेतै। एक कोठी अनाज तँ पूजी नै ने होएत छै, पूजी तँ बीआक लेल जे राखल जाइत छै सएह ने होइत छै। जैसँ अधि‍क उपजा आकि‍ आमदनी होइ सएह ने पूजी भेल। जँ पूजीये कि‍यो खा गेल तँ सभटा बस्‍तु खा गेल।‍
मंगल खैनी झारैत आगू बाजल- एक तँ रौदीक मारल छी दू बीघामे धान छल, उपरका खेतक धान तँ मारल गेल, नि‍चला खेतक धान कि‍छु भेल। तैपरसँ छोड़ा बि‍ए बेच लेलक। आब बीआ खरि‍दू कि‍ खाध खरि‍दू कि‍ खेत जोताऊ। अही सबहक सोचमे परल छी।‍
जोगि‍न्‍दर बाजल- खएर परेशान हेबाक जरूरत नै छै। एकटा कहबी छै जे चि‍न्‍तासँ चतुराइ घटे शोकसँ घटे शरीर, पापसँ लक्ष्‍मी घटे कह गये दास कवीर। तँए हमरा लगमे गहूमक बीआ ऐछ परूकेँ साल उन्नत कि‍समक बीआसँ खेती केने छलौं। एक साल तकमे बीआ नै ने खराव होइत छै। तँए जे बीआक जरूरत हेतह से हम दऽ देबह। जँ अपना लग नै टाका हूअए तँ हम कहबऽ जे उन्नत कि‍समक बीआसँ खेती करह। खेतमे जँ हाल नै होइ तँ पटा कऽ खेती करि‍हह। नहि‍ तँ धानोक खेती मारल गेल आ गहूमोक चलि‍ जेतह। एकटा बात कहह जे तरकारी-फरकारीओ सबहक खेती केने छह कि‍ नै?
हँ, हौ भाय तरकारीमे आल्‍लू, मुरै आ फरकारीमे कोबी, भाटा, टमाटरो सबहक खेती केने छी।‍
जोगि‍न्‍दर- से तँ नीक बात छ, नै तँ एहि‍ बेरूका सन खराब समएमे लोक बौआइऐ कऽ ने मरैत। कि‍सानक तँ यएह सभ ने पूजी होइत छैक। समए-साल, आगाँ-पाछाँ देख कऽ खेती-बारी करक चाही। जाहि‍सँ कखनो मुँह मलीन नै हएत। तँए जे कहबि‍ओ छैक मन हरखि‍त तँ गाबी गीत।‍

 
राम वि‍लास साहु

लघुकथा
परि‍श्रमक भीख

सोमना बोनि‍हार अपन परि‍श्रमसँ परि‍वारक भरण-पोषण करैत छल। सभ दि‍न अपन मजदूरि‍क बोनि‍सँ खाइत-पीबैत जि‍नगी बि‍तबैत छल। सोमना जेतबे परि‍श्रमी ओतबे इमानदार सेहो छल। सोमनाकेँ जइ दि‍न काज नहि‍ भेटैत छल माने बैसारी रहि‍ जाइत छल ओहि‍ दि‍न बीना भोजने पत्‍नी आ बाल-बच्‍चा पानि‍ पीबि‍ अपन टुटली मरैयामे सुति‍ रहै छल। एक दि‍न एहि‍ना भेल राति‍मे सभ परानी पाि‍न पीबि‍ सुि‍त रहल। भोर भेलापर काज खोजलक मुदा कोनो काज नहि‍ भेटल। सेामना भुखक मारल थाि‍क कऽ दलानपर बैसि‍ छल। पत्‍नी आ बच्‍चाकेँ भूखसँ पेट-पीठ एक भऽ गेल। सोमना सभ परानी आँखि‍सँ नोर बहबैत भगवानसँ याचना करैत कहलक- हम एत्ते गरीब छी मुदा काजो नहि‍ भेटैत अछि‍ जे परानो बचत। आब हम सभ भूखे परान ति‍यागि‍ देब।‍
      सोमना माथपर हाथ रखने बैसल छल। तखने एकटा हट्ठा-कट्ठा भि‍खारी आबि कऽ भीख मँगलक। सोमनाकेँ भीख देबाले कि‍छु बँचल नहि‍ छल। सोमना कहलक- भीख तँ हम नहि‍ दऽ सकै छी, हम दऽ सकै छी परि‍श्रम।‍
  भि‍खारी मने-मन सोचमे डुबि‍ गेल ओ सोचलक जे हम शरीरसँ ठीक छी तँ कि‍एक ने हमहुँ परि‍श्रम करब तँ भीखारीक जीबनसँ छुटकारा पाबि‍ जाएब। भीखारी खुश भऽ बाजल- आब हमहुँ, भीख नहि‍ मॉंगव अहाँक बचन सुनि‍ हमरो लागल जे आखि‍र परि‍श्रमसँ तँ धन भऽ सकैत अछि‍। बेकार हम भीखक फेरि‍मे परल छी। आब हम परि‍श्रमेसँ अपन पेट भरब।‍
भारत भूषण झा
कथा-
आत्‍मबल

चुनावक सर्गर्मीक चुस्‍की लेलाक वाद ललि‍त चौकसँ घरपर एलाह। घरपर हुनक पत्नी रेणू तामसे आगि‍ भेल बजैत- ‍अहाँकेँ कि‍ होइए जि‍नगी तँ नरके बना देलौं आ वौआकेँ पढ़ाएब-लि‍खाएब। ओकर जि‍नगी अहाँ जकाँ नइ हुअए देबै। दोसराक कनि‍या जे पढ़ल-लि‍खल नहि‍ छै ओकर घरबला डि‍ग्री कि‍नि‍ कऽ नौकरी करबा देलकै आ एतए हम एम.ए. पास घरोमे कोनो मोजर नहि‍ एते करै छी ककराले। वौआकेँ फार्म भरबाएब से एकटा पाइयो नहि‍।
ललि‍त एक टकसँ रेणु दि‍स तकैत चुप भऽ ओकर बात सुनैत मने-मने सोचैत जे ई कोन पैघ बात छै बाबू जीसँ मांगि‍ एकर फार्म भरबा देवइ। अपने जन-मजदूर जकाँ खटै छी खेतसँ खरि‍हान धरि आ‍ पत्नी नौकरानी जकाँ अांगना-घरमे खटैत अछि‍। बाबूजी कि‍एक नहि‍ देथि‍न्‍ह। ललि‍त धुराएले पएरे बाबूजी लग पहुँच बाजल- बाबूजी हो दू साए टाका दहक तँ बौआकेँ काल्हि‍ फॉर्म भरतै।‍
बाबूजी केँ ब्‍लड प्रेशर हाइ। बजलथि‍- कतएसँ कमा कऽ मनि‍ऑडर एलहहेँ जे मंगै छह। हमरा बुत्ते एकोटा पाइ नहि‍ हेतइ।‍
सुनते ललि‍त सन्न भऽ गेल। आँखि‍क आगाँ अन्‍हार भऽ गेलै। ललि‍त मने-मन सोचैत- जतेक एतए खटै छी अगर दोसराक खेतमे खटि‍तौं तँ मजदूरियो भेटताए आ हाथमे कि‍छु पाइयो रहि‍ताए। यएह बात सभ सोचैत मुँह खसल अपन घरमे आबि‍ चुपचाप पलंगपर बैस गेल दोसर दि‍स रेणुकेँ तेवर चढ़ले बाजलि‍- कि‍ भेल कना पढ़त अहाँक बेटा?
ललि‍तकेँ चारू दि‍स अन्‍हारे-अन्‍हार लगै। रेणु फेर बाजलि‍- कि‍अए बौक भेल चुप छी, हमरा लग हौसली अए‍ लऽ जाउ सोनरा दोकानमे बेचि‍ कऽ बौआकेँ फाॅर्म भरा दि‍औ। लेकि‍न एक शर्त हम भुखले रहब मुदा आइ भि‍न होएव।‍
रेणुक बात सुि‍न ललि‍तक हालत और गंभीर भऽ गेलै। जे आइ हमरा लग एकटा पाइ नहि‍ अछि।‍

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।