ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ७४ म अंक १५ जनवरी २०११ (वर्ष ४ मास ३७ अंक ७४)
एहि अंकमे अछि:-
२.४.१.योगानन्द झा - आस्था, जिजीविषा ओ संघर्षक प्रवाह-“गामक जिनगी”, आदर्शक उपस्थापन : मौलाइल गाछक फूल २.आशीष अनचिन्हार-गजलक साक्ष्य ३.प्रो. वीणा ठाकुर- जिनगीक जीत उपन्यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर ४.शिव कुमार झा ‘टिल्लू’- समीक्षा- हम पुछैत छी- कविता संग्रह (विनित उत्पल), मैथिलीक विकासमे बाल कविताक योगदान, मैथिली उपन्यास साहित्यमे दलित पात्रक चित्रण, भावांजलि, भफाइत चाहक जिनगी, भफाइत चाहक जिनगी, रमाजीक काव्य यात्रा ५. धीरेन्द्र कुमार- श्रीमती प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि ६.जगदीश प्रसाद मंडल- कथा- कतौ नै ७.रमाकान्त राय “रमा”, गामक जिनगी- कथा संग्रह- जगदीश प्रसाद मंडल, आरसी बाबूक व्यक्तित्व एवं कृतित्वपर द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार- दू दर्जन विद्वानक सहभागिता : आचार्य दिव्यचक्षु ८.रामकृष्ण मंडल 'छोटू'- कथा- बाप ९.शैल झा’ सागर"- किस्त-किस्त जीवन
३.६. राम विलास साहु- कविता- महगाइ
३.७.१.किशन कारीग़र- दौगल चलि जाएब गाम
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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१. संपादकीय
गजेन्द्र ठाकुर
मैथिली लेल समीक्षाशास्त्रक सिद्धांत
कला- एहि लेल कोनो सैद्धांतिक प्रयोजन होएबाक चाही ?
साहित्यक विभिन्न विधा जेना पद्य, प्रबन्ध, निबन्ध, समालोचना, कथा-गल्प, उपन्यास, पत्रात्मक साहित्य, यात्रा-संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक आ एकांकी मनोरंजनक लेल सुनल-सुनाओल-पढ़ल जाइत अछि वा मंचित कएल जाइत अछि। ई उद्देश्यपूर्ण भऽ सकैत अछि वा एहिमे निरुद्देश्यता-एबसडिटी सेहो रहि सकै छै- कारण जिनगीक उत्थल-धक्कामे निरुद्देश्यपूर्ण साहित्य सेहो मनोरंजन प्रदान करैत अछि।
प्राचीन कालमे कला, साहित्य आ संगीत एक खाढ़ीसँ दोसर खाढ़ी मध्य हस्तांतरित होइत छल। पदपाठ, क्रमपाठ, जटा पाठ, शिखापाठ, घनपाठ आदि स्मृतिक वैज्ञानिक पद्धति छल। घर, वेदी आ आन कलाकृतिक बनेबाक विधिक यजुर्वेदमे वर्णन छल जे भाष्य सभमे आर विस्तृत भेल आ पुरातत्वक प्राचीनतम आधार सिद्ध भेल। संगीतक पद्धति सामवेदकेँ विशिष्ट बनेलक। ऐ तरहेँ साहित्य, कला आ संगीतकेँ बान्हबाक प्रयत्न भेल, जइसँ ई विधा दोसरो गोटे द्वारा ओही तरहेँ अनुकृत भऽ सकए। आ ऐ क्रममे कला, साहित्य आ संगीतक समीक्षा वा ओकर गुणक विश्लेषण प्रारम्भ भेल। कला, साहित्य आ संगीतक समाज लेल कोन प्रयोजन, एकर नैतिक मानदण्ड की हुअए, ऐ दिस सेहो प्राच्य आ पाश्चात्य विचारक अपन विचार राखलन्हि। प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि।
मुदा कला, संगीत आ साहित्य कखनो काल स्वान्तः सुखाय सेहो होइत अछि, एकरा पढ़ला, सुनला, देखला आ अनुभव केलासँ प्रसन्नता होइत छै, मानसिक शान्ति भेटै छै तँ कखनो काल ई उद्वेलित सेहो करैत छै। एरिस्टोटल मुदा कहै छथि जे कलाकार ज्ञानसँ युक्त होइ छथि आ विश्वकेँ बुझबामे सहयोग करै छथि।
ऋक १,११५,२ मे उषाकालक सूर्योदयक बिम्ब सुन्दरीक पाछाँ जाइत युवकसँ भेल अछि। ऋक १,१२४,११ मे अरुणोदयमे लाल आभा आ बिलाइत अन्हारक संग, चूल्हिमे आगि वर्णन अछि आ बिम्ब अछि- गामक तरुणी रक्त वर्णक गाएकेँ चरबाक लेल छोड़ैत छथि। अथर्ववेद ४,१५,६ मे सामूहिक नाराक वर्णन अछि। यजुर्वेद ४०,१६ मे वर्णन अछि- सूर्यमण्डल सुवर्णपात्र अछि जे सूर्यकेँ आवृत्त कएने अछि। यजुर्वेद १७,३८-४१ मे संग्राम लेल बाजा संग जाइत देवसेना आ यजुर्वेद १७,४९ मे कवचक मर्मर ध्वनि वर्णित अछि। ऋगवेद १,१६४,२ आ यास्क ४,२७ मे संवत्सर, चक्रक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,२,३ मे सोमरसक उत्सक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,२,४ ओकर तटपरसात ऋषि आँखि, कान आदि अछि। अथर्ववेद १०,२,३१ मे शरीरकेँ अयोध्या कहल गेल अछि, गीता ५,१३ मे शरीरकेँ पुर कहल गेल अछि।
शब्दोचारण आ कला निर्माणक बाद बोध्य बौस्तुक उत्पत्ति होइ छै। शब्द आ ध्वनि, रूप, रस, राग, छन्द, आ अलंकारसँ ओकर औचित्य सिद्ध होइत छै।
जगतक सौन्दर्यीकृत प्रस्तुति अछि कला। सौंदर्यक कला उपयोगिताक संग। कलापूर्णताक कलाक जीवन दर्शन- संप्रदाय संग। भावनात्मक वातावरण- सत्यक आ कलाक कार्यक सौंदर्यीकृत अवलोकन, सुन्दर-मूर्त, अमूर्त।
मानसिक क्रिया- मनुष्य़ सोचैबला प्राणी, मानसिक आ भौतिक दुनूक अनुभूति करएबला प्राणी। विरोधाभास वा छद्म आभास- अस्पष्टता। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि।
फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि।
नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि।
उत्तर आधुनिक, अस्तित्ववादी, मानवतावादी, ई सभ विचारधारा दर्शनशास्त्रक विचारधारा थिक। पहिने दर्शनमे विज्ञान, इतिहास, समाज-राजनीति, अर्थशास्त्र, कला-विज्ञान आ भाषा सम्मिलित रहैत छल। मुदा जेना-जेना विज्ञान आ कलाक शाखा सभ विशिष्टता प्राप्त करैत गेल, विशेष कए विज्ञान, तँ दर्शनमे गणित आ विज्ञान मैथेमेटिकल लॉजिक धरि सीमित रहि गेल। दार्शनिक आगमन आ निगमनक अध्ययन प्रणाली, विश्लेषणात्मक प्रणाली दिस बढ़ल।
मार्क्स जे दुनिया भरिक गरीबक लेल एकटा दैवीय हस्तक्षेपक समान छलाह, द्वन्दात्मक प्रणालीकेँ अपन व्याख्याक आधार बनओलन्हि। आइ-काल्हिक “डिसकसन” वा द्वन्द जाहिमे पक्ष-विपक्ष, दुनू सम्मिलित अछि, दर्शनक (विशेष कए षडदर्शनक- माधवाचार्यक सर्वदर्शन संग्रह-द्रष्टव्य) खण्डन-मण्डन प्रणालीमे पहिनहिसँ विद्यमान छल।
से इतिहासक अन्तक घोषणा कएनिहार फ्रांसिस फुकियामा -जे कम्युनिस्ट शासनक समाप्तिपर ई घोषणा कएने छलाह- किछु दिन पहिने एहिसँ पलटि गेलाह। उत्तर-आधुनिकतावाद सेहो अपन प्रारम्भिक उत्साहक बाद ठमकि गेल अछि।
अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद, रोमेन्टिसिज्म, समाजशास्त्रीय विश्लेषण ई सभ संश्लेषणात्मक समीक्षा प्रणालीमे सम्मिलित भए अपन अस्तित्व बचेने अछि।
साइको-एनेलिसिस वैज्ञानिकतापर आधारित रहबाक कारण द्वन्दात्मक प्रणाली जेकाँ अपन अस्तित्व बचेने रहत।
कोनो कथाक आधार मनोविज्ञान सेहो होइत अछि। कथाक उद्देश्य समाजक आवश्यकताक अनुसार आ कथा यात्रामे परिवर्तन समाजमे भेल आ होइत परिवर्तनक अनुरूपे होएबाक चाही। मुदा संगमे ओहि समाजक संस्कृतिसँ ई कथा स्वयमेव नियन्त्रित होइत अछि। आ एहिमे ओहि समाजक ऐतिहासिक अस्तित्व सोझाँ अबैत अछि। जे हम वैदिक आख्यानक गप करी तँ ओ राष्ट्रक संग प्रेमकेँ सोझाँ अनैत अछि। आ समाजक संग मिलि कए रहनाइ सिखबैत अछि। जातक कथा लोक-भाषाक प्रसारक संग बौद्ध-धर्म प्रसारक इच्छा सेहो रखैत अछि। मुस्लिम जगतक कथा जेना रूमीक “मसनवी” फारसी साहित्यक विशिष्ट ग्रन्थ अछि जे ज्ञानक महत्व आ राज्यक उन्नतिक शिक्षा दैत अछि। आजुक कथा एहि सभ वस्तुकेँ समेटैत अछि आ एकटा प्रबुद्ध आ मानवीय समाजक निर्माणक दिस आगाँ बढ़ैत अछि।
कम्यूनिज्मक समाप्तिक बाद लागल जे इतिहास, जे दूटा विचारधाराक संघर्ष अछि, एकटा विचारधाराक खतम भेलाक बाद समाप्त भ’ गेल। फ्रांसिस फुकियामा घोषित कएलन्हि जे विचारधाराक आपसी झगड़ासँ सृजित इतिहासक ई समाप्ति अछि आ आब मानवक हितक विचारधारा मात्र आगाँ बढ़त। मुदा किछु दिन पहिनहि ओ कहलन्हि जे समाजक भीतर आ राष्ट्रीयताक मध्य एखनो बहुत रास भिन्न विचारधारा बाँचल अछि।
उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टिकोण-विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका , सत्य-असत्य, सभक अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन , आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आ नीक-खराबक भावनाक रहि-रहि खतम होएब, सत्य कखन असत्य भए जएत तकर कोनो ठेकान नहि, सतही चिन्तन, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि , जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण , कारण, नियन्त्रण आ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास, गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास, भूमंडलीकरणक कारणसँ मुख्यधारसँ अलग भेल कतेक समुदायक आ नारीक प्रश्नकेँ उत्तर आधुनिकता सोझाँ अनलक। विचारधारा आ सार्वभौमिक लक्ष्यक विरोध कएलक मुदा कोनो उत्तर नै दऽ सकल।
तहिना उत्तर आधुनिकतावादी विचारक जैक्स देरीदा भाषाकेँ विखण्डित कए ई सिद्ध कएलन्हि जे विखण्डित भाग ढेर रास विभिन्न आधारपर आश्रित अछि आ बिना ओकरा बुझने भाषाक अर्थ हम नहि लगा सकैत छी।
आ संवादक पुनर्स्थापना लेल कथाकारमे विश्वास होएबाक चाही- तर्क-परक विश्वास आ अनुभवपरक विश्वास ।
प्रत्यक्षवादक विश्लेषणात्मक दर्शन वस्तुक नहि, भाषिक कथन आ अवधारणाक विश्लेषण करैत अछि ।
विश्लेषणात्मक अथवा तार्किक प्रत्यक्षवाद आ अस्तित्ववादक जन्म विज्ञानक प्रति प्रतिक्रियाक रूपमे भेल। एहिसँ विज्ञानक द्विअर्थी विचारकेँ स्पष्ट कएल गेल।
प्रघटनाशास्त्रमे चेतनाक प्रदत्तक प्रदत्त रूपमे अध्ययन होइत अछि। अनुभूति विशिष्ट मानसिक क्रियाक तथ्यक निरीक्षण अछि। वस्तुकेँ निरपेक्ष आ विशुद्ध रूपमे देखबाक ई माध्यम अछि।
अस्तित्ववादमे मनुष्य-अहि मात्र मनुष्य अछि। ओ जे किछु निर्माण करैत अछि ओहिसँ पृथक ओ किछु नहि अछि, स्वतंत्र होएबा लेल अभिशप्त अछि (सार्त्र)।
हेगेलक डायलेक्टिक्स द्वारा विश्लेषण आ संश्लेषणक अंतहीन अंतस्संबंध द्वारा प्रक्रियाक गुण निर्णय आ अस्तित्व निर्णय करबापर जोर देलन्हि। मूलतत्व जतेक गहींर होएत ओतेक स्वरूपसँ दूर रहत आ वास्तविकतासँ लग।
क्वान्टम सिद्धान्त आ अनसरटेन्टी प्रिन्सिपल सेहो आधुनिक चिन्तनकेँ प्रभावित कएने अछि। देखाइ पड़एबला वास्तविकता सँ दूर भीतरक आ बाहरक प्रक्रिया सभ शक्ति-ऊर्जाक छोट तत्वक आदान-प्रदानसँ सम्भव होइत अछि। अनिश्चितताक सिद्धान्त द्वारा स्थिति आ स्वरूप, अन्दाजसँ निश्चित करए पड़ैत अछि।
तीनसँ बेशी डाइमेन्सनक विश्वक परिकल्पना आ स्टीफन हॉकिन्सक “अ ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” सोझे-सोझी भगवानक अस्तित्वकेँ खतम कए रहल अछि कारण एहिसँ भगवानक मृत्युक अवधारणा सेहो सोझाँ आएल अछि, जे शुरू भेल अछि से खतम होएत भलहि ओकर आयु बेशी हो।
जेना वर्चुअल रिअलिटी वास्तविकता केँ कृत्रिम रूपेँ सोझाँ आनि चेतनाकेँ ओकरा संग एकाकार करैत अछि तहिना बिना तीनसँ बेशी बीमक परिकल्पनाक हम प्रकाशक गतिसँ जे सिन्धुघाटी सभ्यतासँ चली तँ तइयो ब्रह्माण्डक पार आइ धरि नहि पहुँचि सकब।
साहित्यक समक्ष ई सभ वैज्ञानिक आ दार्शनिक तथ्य चुनौतीक रूपमे आएल अछि। होलिस्टिक आकि सम्पूर्णताक समन्वय करए पड़त ! ई दर्शन दार्शनिक सँ वास्तविक तखने बनत।
पोस्टस्ट्रक्चरल मेथोडोलोजी भाषाक अर्थ, शब्द, तकर अर्थ, व्याकरणक निअम सँ नहि वरन् अर्थ निर्माण प्रक्रियासँ लगबैत अछि। सभ तरहक व्यक्ति, समूह लेल ई विभिन्न अर्थ धारण करैत अछि। भाषा आ विश्वमे कोनो अन्तिम सम्बन्ध नहि होइत अछि। शब्द आ ओकर पाठ केर अन्तिम अर्थ वा अपन विशिष्ट अर्थ नहि होइत अछि। आधुनिक आ उत्तर आधुनिक तर्क, वास्तविकता, सम्वाद आ विचारक आदान-प्रदानसँ आधुनिकताक जन्म भेल ।
मुदा फेर नव-वामपंथी आन्दोलन फ्रांसमे आएल आ सर्वनाशवाद आ अराजकतावाद आन्दोलन सन विचारधारा सेहो आएल। ई सभ आधुनिक विचार-प्रक्रिया प्रणाली ओकर आस्था-अवधारणासँ बहार भेल अविश्वासपर आधारित छल। पाठमे नुकाएल अर्थक स्थान-काल संदर्भक परिप्रेक्ष्यमे व्याख्या शुरू भेल आ भाषाकेँ खेलक माध्यम बनाओल गेल- लंगुएज गेम। आ एहि सभ सत्ताक आ वैधता आ ओकर स्तरीकरणक आलोचनाक रूपमे आएल पोस्टमॉडर्निज्म।
कंप्युटर आ सूचना क्रान्ति जाहिमे कोनो तंत्रांशक निर्माता ओकर निर्माण कए ओकरा विश्वव्यापी अन्तर्जालपर राखि दैत छथि आ ओ तंत्रांश अपन निर्मातासँ स्वतंत्र अपन काज करैत रहैत अछि, किछु ओहनो कार्य जे एकर निर्माता ओकरा लेल निर्मित नहि कएने छथि। आ किछु हस्तक्षेप-तंत्रांश जेना वायरस, एकरा मार्गसँ हटाबैत अछि, विध्वंसक बनबैत अछि तँ एहि वायरसक एंटी वायरस सेहो एकटा तंत्रांश अछि, जे ओकरा ठीक करैत अछि आ जे ओकरो सँ ठीक नहि होइत अछि तखन कम्प्युटरक बैकप लए ओकरा फॉर्मेट कए देल जाइत अछि- क्लीन स्लेट !
पूँजीवादक जनम भेल औद्योगिक क्रान्तिसँ आ आब पोस्ट इन्डस्ट्रियल समाजमे उत्पादनक बदला सूचना आ संचारक महत्व बढ़ि गेल अछि, संगणकक भूमिका समाजमे बढ़ि गेल अछि। मोबाइल, क्रेडिट-कार्ड आ सभ एहन वस्तु चिप्स आधारित अछि। डी कन्सट्रक्शन आ री कन्सट्रक्शन विचार रचना प्रक्रियाक पुनर्गठन केँ देखबैत अछि जे उत्तर औद्योगिक कालमे चेतनाक निर्माण नव रूपमे भऽ रहल अछि। इतिहास तँ नहि मुदा परम्परागत इतिहासक अन्त भऽ गेल अछि। राज्य, वर्ग, राष्ट्र, दल, समाज, परिवार, नैतिकता, विवाह सभ फेरसँ परिभाषित कएल जा रहल अछि। मारते रास परिवर्तनक परिणामसँ, विखंडित भए सन्दर्भहीन भऽ गेल अछि कतेक संस्था।
इन्फॉरमेशन सोसाइटी किंवा सूचना-आधारित-समाज एकटा ओहेन समाज अछि जाहिमे सूचनाक निर्माण, वितरण, प्रसार, उपयोग, एकीकरण आ संशोधन, एकटा महत्त्वपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक आ सांस्कृतिक क्रिया होइत अछि। आ एहि समाजक भाग होएबामे समर्थ लोक अंकीय वा डिजिटल नागरिक कहल जाइत छथि। एहि उत्तर औद्योगिक समाजमे सूचना-प्रौद्योगिकी उत्पादन, अर्थव्यवस्था आ समाजकेँ निर्धारित करैत अछि। उत्तर-आधुनिक समाज, उत्तर औद्योगिक समाज आदि संकल्पना सँ ई निकट अछि। अर्थशास्त्री फ्रिट्ज मैचलप एकर संकल्पना देने छलाह। हुनकर ज्ञान-उद्योगक धारणा शिक्षा, शोध आ विकास, मीडिआ, सूचना प्रौद्योगिकी आ सूचना सेवाक पाँचटा अंगपर आधारित छल। प्रौद्योगिकी आ सूचनाक समाजपर भेल प्रभाव एतए दर्शित होइत अछि। अंकीय वा डिजिटल विभाजन एकटा ज्ञानक विभाजन, सामाजिक विभाजन आ आर्थिक विभाजन देखबैत अछि आ बिना भेदभावक एकटा सूचना समाजक निर्माण आवश्यकता देखाबैत अछि जाहिसँ सूचना प्रौद्योगिकीपर विकासशील देशमे सार्वभौम अधिकार रहए। मानवाधिकार आ सूचना प्रौद्योगिकीक मध्य व्यक्तिक एकान्तक अधिकार सेहो साम्मिलित अछि। विद्वान, मानवाधिकार कार्यकर्ता आ आन सभ व्यक्तिक अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता, सूचनाक अधिकार, एकान्त, भेदभाव, स्त्री-समानता, प्रज्ञात्मक संपत्ति, राजनीतिक भागीदारी आ संगठनक मेलक संदर्भमे सूचना आ जनसंचार प्रौद्योगिकीक सन्दर्भमे एहि गपपर चरचा शुरू भेल अछि जे सूचना समाज मानवाधिकारकेँ बल देत आकि ओकरा हानि पहुँचाओत। ऑनलाइन पत्राचारक गोपनीयताक अधिकार, अन्तर्जालक सामग्रीक सांस्कृतिक आ भाषायी विविधता आ मीडिया शिक्षा। सूचना समाजक तकनीकी अओजार ओकर अधिकार आ स्वतंत्रतासँ लाभान्वित होइत अछि आ समाजक समग्र विकास, अधिकार आ स्वतंत्रताक सार्वभौमता, अधिकारक आपसी मतभिन्नता, स्वतंत्रता आ मूल्य निरूपणमे सहभागी होइत अछि। एहिसँ सूचना, ज्ञान आ संस्कृतिमे सरल पइठक वातावरण बनैत अछि आ ई उपयोगकर्ताकेँ वैश्विक सूचना समाजक अभिनेताक रूपमे परिणत करैत अछि। कारण ई उपयोगकर्ताकेँ पहिनेसँ बेशी अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता आ नव सामग्री आ नव सामाजिक न्तर्जाल-तंत्र निर्माण करबाक सामर्थ्य दैत अछि। एहिसँ एकटा नव विधि, आर्थिक आ सामाजिक मॉडेलक आवश्यकता सेहो अनूभूत कएल जा रहल अछि जाहि मे साझी कर्तव्य, ज्ञान आ समझ आधार बनत। बच्चाक हित एकटा आर चिन्ता अछि जे पैघक हितसँ सर्वदा ऊपर रखबाक चाही। आधुनिक समाजक आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक धनक एकत्र करबाक प्रवृत्ति सूचना समाजमे बढ़ल अछि आ प्रौद्योगिकी एकटा आधारभूत बेरोजगारी अनलक अछि। गरीबी, मजदूरक अधिकार आ कल्याणकारी राज्यक संकल्पना लाभ-हानिक आगाँ कतहु पाछाँ छूटल जा रहल अछि। आब मात्र किछुए अभिनेता चाही, प्रकाशक लोकनि सेहो मात्र किछु बेशी बिकएबला पोथीक लेखकक प्रचार करैत छथि। यैह स्थिति रंगमंच, पेंटिंग , सिनेमा आ आन-आन क्षेत्रमे सेहो दृष्टिगोचर भऽ रहल अछि। मुदा सूचना सर्वदा लाभकारी नहि होइत अछि। ई मात्र कला, ग्रंथ धरि सीमित नहि अछि वरन सट्टा बाजार आ प्रायोजित सर्वेक्षण रपट सेहो एहिमे सम्मिलित अछि। समय आ स्थानक बीचक दूरीकेँ ई कम करैत अछि आ दुनूक बीचमे एकटा सन्तुलन बनबैत अछि। मानवक गरिमा मानवक जन्म आधारित सामाजिक स्थानसँ हटि कऽ मानवक गरिमाक अधिकारपर बल दैत अछि। मुक्ति आ स्त्री-मुक्ति आन्दोलन एहि दिशाक प्रयास अछि। दुनू विश्वयुद्ध आ फासिज्मक चुनौतीक बाद १० दिसम्बर १९४८ केँ संयुक्त राष्ट्रसंघक महासभा द्वारा मानवाधिकारक सार्वभौम घोषणाक उद्घोषणा कएल गेल आ एकरा अंगीकार कएल गेल। ई घोषणा राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आ धार्मिक भेदभावरहित एकटा सामान्य मानदण्ड प्रस्तुत करैत अछि जे सभ जन-समाज आ सभ राष्ट्र लेल अछि। सूचनाक स्वतंत्र उपयोग सीमित अछि, लोकक एकान्त खतम भऽ रहल अछि। बिल गेट्ससँ जखन हुनकर भारत यात्राक क्रममे पूछल गेल छलन्हि जे माइक्रोसॉफ्टक एक्स-बॉक्स भारतमे पाइरेसीक डरसँ देरीसँ उतारल गेल तँ ओ कहने रहथि जे माइक्रोसॉफ्ट कहियो कोनो उत्पाद पाइरेसीक डरसँ देरीसँ नहि आनलक। स्पैम आ पाइरेसीक डर खतम होएबाक चाही। सूचना समाज वैह समाज छी जकर बीचमे हम सभ रहि रहल छी। लोकतंत्र आ मानवाधिकारक सम्मान सूचना-समाज आ उत्तर सूचना-समाजमे होइत रहत। अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता, एकान्तक अधिकार, सूचना साझी करबाक अधिकार आ सूचना धरि पहुँचक अधिकार जे सूचनाक संचारसँ सम्बन्धित अछि, ई सभ राज्य द्वारा आ सूचना-समाजक बाजारवादी झुकावक कारण खतराक अनुभूतिसँ त्रस्त अछि।
अन्तर्जाल लोकक मीडिआ अछि आ एकटा एहन प्रणाली अछि जे लोकक बीच सम्वाद स्थापित करैत अछि। एहिसँ संचार-माध्यमक मठाधीश लोकनिक गढ़ टुटैत अछि। अन्तर्जालमे कोनो सम्पादक सामान्य रूपसँ नहि होइत छथि। एतए लोक विषयक आ सामग्रीक निर्माण कए स्वयं ओकर संचार करैत छथि। एहिसँ कतेक रास सामाजिक सम्वादक प्रारम्भ होइत अछि। मुदा कतेक रास समाज-विरोधी सामग्री सेहो अबैत अछि। तँ की ओहिपर प्रतिबन्ध होएबाक चाही। मुदा जे सॉफ्टवेयरक माध्यमसँ मशीनकेँ सामग्रीपर प्रतिबन्ध लगेबाक अधिकार देब तखन ई अभिव्यक्तिक स्वतंत्रतापर पैघ आघात होएत। बौद्धिक सम्पदाक अधिकार लेखककेँ मृत्युक ६० बरख बादो प्रकाशन आ वितरणक अधिकार दैत अछि। अन्तर्जालमे सेहो पाइरेसीकेँ प्रतिबन्धित करए पड़त आ कमसँ कम लेखकक मृत्युक २० बरख बाद धरि लेखकक अधिकार ओकर सामग्रीपर रहए, से व्यवस्था करए पड़त। मुदा पेटेन्टक बेशी प्रयोग विकाशसील देशक सूचना अभिगमनमे बाधक होएत आ प्रौद्योगिकीक विकासमे सेहो बाधा पहुँचाओत। कॉपीराइटसँ सांस्कृतिक विकास मुदा होएत, जेना संगीत, फिल्म, आ चित्र-शृंखला(कॉमिक्स)क विकास। डिजिटल वातावरणमे प्रतिकृतिक बिना अहाँ अन्तर्जालपर सेहो सामग्री नहि देखि सकब, से ऑफ-लाइन कॉपीराइट आ ऑनलाइन कॉपीराइट दुनू मे थोड़बेक अन्तर अछि। ऑनलाइन कॉपीराइट प्रतिकृतिकेँ सेहो प्रतिबन्धित करैत अछि। आ प्रतिकृति कएल सामग्रीकेँ दोसर वस्तुमे जोड़ब वा संशोधित करब सेहो बड्ड सरल अछि। से नाम आ चित्र बिना ओकर निर्माताक अनुमतिक नहि प्रयोग होअए, दोसराक व्यक्तिगत वार्तालाप-चैटिंग-मे हस्तक्षेप नहि होअए आ दोसराक विरुद्ध कोनो एहन बयानबाजी नहि होअए जाहिसँ कोनो व्यक्तिक विरुद्ध गलत धारणा बनए।तहिना नौकरी-प्रदाता द्वारा कोनो प्रकारक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपन कर्मचारीक नियन्त्रण लेल लगबैत अछि तँ से अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघक दिशा-निर्देशक अनुरूप होएबाक चाही। ई-पत्रमे अनपेक्षित सन्देश आ चिकित्सकीय रिपोर्टक अनपेक्षित संग्रह आ उपयोग सेहो मानवाधिकारक हनन अछि। अन्तर्जालक उपयोग मुदा सीमित अछि कारण बहुत रास सामग्री आ तंत्रांश मंगनीमे उपलब्ध नहि अछि आ महग अछि, डिजिटल विभाजन शिक्षाक स्तरकेँ आर बेशी देखार करैत अछि। शारीरिक श्रमक बदलामे मानसिक श्रमक एतए बेशी उपयोग होइत अछि, से ई आशा रहए जे स्त्री-असमानता सूचना-समाजमे घटत मुदा सर्वेक्षण देखबैत अछि जे महिलाक पइठ सूचना प्रौद्योगिकीमे कम छन्हि। इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी आ ब्रेल-इनेबल कएल/ ध्वनि-इनेबल कएल कम्प्यूटर स्क्रीन/ इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी विकलांग आ अन्ध विकलांग लेल घर पर रहि ई-वाणिज्य करबामे सहायता दैत। मुदा एहि क्षेत्रमे कएल शोध आ ओकर परिणाम महग रहबाक कारणसँ ओतेक लाभ नहि दऽ सकल अछि। बाल, वृद्ध, विकलांग, स्त्री, कामगार, प्रवासी-कामगार आ दोसर सामाजिक रूपसँ अब्बल वर्ग सूचना समाजमे सेहो अपनाकेँ अब्बल अनुभव करैत छथि।
नीक साहित्य/कला त्वरित उपस्थापनक आधारपर नै वरन ओहिमे तीक्ष्णतासँ उपस्थापित मानव-मूल्य, सामाजिक समरसताक तत्व आ समानता-न्याय आधारित सामाजिक मान्यताक सिद्धान्त आधार बनत। समाज ओहि आधारपर कोना आगू बढ़ए से संदेश तीक्ष्णतासँ आबैए वा नै से देखए पड़त। पाठकक मनसि बन्धनसँ मुक्त होइत अछि वा नै, ओहिमे दोसराक नेतृत्व करबाक क्षमता आ आत्मबल अबै छै वा नै, ओकर चारित्रिक निर्माणक आ श्रमक प्रति सम्मानक प्रति सन्देह दूर होइ छै वा नै- ई सभटा तथ्य लघुकथाक मानदंड बनत। कात-करोटमे रहनिहार तेहन काज कऽ जाथि जे सुविधासम्पन्न बुते नै सम्भव अछि, आ से कात-करोटमे रहनिहारक आत्मबल बढ़लेसँ होएत।
हीन भावनासँ ग्रस्त साहित्य कल्याणकारी कोना भऽ सकत? बदलैत सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक समीकरणक परिप्रेक्ष्यमे एकभग्गू प्रस्तुतिक रेखांकन, कथाकार-कविक व्यक्तिगत जिनगीक अदृढ़ता, चाहे ओ वादक प्रति होअए वा जाति-धर्मक प्रति, साहित्यमे देखार भइए जाइत छैक, शोषक द्वारा शोषितपर कएल उपकार वा अपराधबोधक अन्तर्गत लिखल जाएबला कथामे जे पैघत्वक (जे हीन भावनाक एकटा रूप अछि) भावना होइ छै, तकरा चिन्हित कएल जाए।
मेडियोक्रिटी चिन्हित करू- तकिया कलाम आ चालू ब्रेकिंग न्यूज- आधुनिकताक नामपर। युगक प्रमेयकेँ माटि देबाक विचार एहिमे नहि भेटत, आधुनिकीकरण, लोकतंत्रीकरण, राष्ट्र-राज्य संकल्पक कार्यान्वयन, प्रशासनिक-वैधानिक विकास, जन सहभागितामे वृद्धि, स्थायित्व आ क्रमबद्ध परिवर्तनक क्षमता, सत्ताक गतिशीलता, उद्योगीकरण, स्वतंत्रता प्राप्तिक बाद नवीन राज्य राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्या-परिवर्तन आ एकीकरणक प्रक्रिया, कखनो काल परस्पर विरोधी। सामुदायिकताक विकास, मनोवैज्ञानिक आ शैक्षिक प्रक्रिया।
आदिवासी- सतार, गिदरमारा आदि विविधता आ विकासक स्तरकेँ प्रतिबिम्बित करैत अछि। प्रकृतिसँ लग, प्रकृति-पूजा, सरलता, निश्छलता, कृतज्ञता। व्यक्तिक प्रतिष्ठा स्थान-जाति आधारित। किछु प्रतिष्ठा आ विशेषाधिकार प्राप्त जाति। किछुकेँ तिरस्कार आ हुनकर जीवन कठिन।
महिला आ बाल-विकास- महिलाकेँ अधिकार, शिक्षा-प्रणालीकेँ सक्रिय करब, पाठ्यक्रममे महिला अध्ययन, महिलाक व्यावसायिक आ तकनीकी शिक्षामे प्रतिशत बढ़ाओल जाए।स्त्री-स्वातंत्र्यवाद, महिला आन्दोलन।धर्मनिरपेक्ष- राजनैतिक संस्था संपूर्ण समुदायक आर्थिक आ सामाजिक हितपर आधारित- धर्म-नस्ल-पंथ भेद रहित। विकास आर्थिकसँ पहिने जे शैक्षिक हुअए तँ जनसामान्य ओहि विकासमे साझी भऽ सकैए। एहिसँ सर्जन क्षमता बढ़ैत अछि आ लोकमे उत्तरदायित्वक बोध होइत अछि।
विज्ञान आ प्रौद्योगिकी विकसित आ अविकसित राष्ट्रक बीचक अंतरक कारण मानवीय समस्या, बीमारी, अज्ञानता, असुरक्षाक समाधान- आकांक्षा, आशा सुविधाक असीमित विस्तार आ आधार। विधि-व्यवस्थाक निर्धन आ पिछड़ल वर्गकेँ न्याय दिअएबामे प्रयोग होएबाक चाही। नागरिक स्वतंत्रता- मानवक लोकतांत्रिक अधिकार, मानवक स्वतंत्र चिन्तन क्षमतापूर्ण समाजक सृष्टि, प्रतिबन्ध आ दबाबसँ मुक्ति। प्रेस- शासक आ शासितक ई कड़ी- सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक जीवनमे भूमिका, मुदा आब प्रभावशाली विज्ञापन एजेंसी जनमतकेँ प्रभावित कएनिहार। नव संस्थाक निर्माण वा वर्तमानमे सुधार, सामन्तवादी, जनजातीय, जातीय आ पंथगत निष्ठाक विरुद्ध, लोकतंत्र, उदारवाद, गणतंत्रवाद, संविधानवाद, समाजवाद, समतावाद, सांवैधानिक अधिकारक अस्तित्व, समएबद्ध जनप्रिय चुनाव, जन-संप्रभुता, संघीय शक्ति विभाजन, जनमतक महत्व, लोक-प्रशासनिक प्रक्रिया-अभिक्रम, दलीय हित-समूहीकरण, सर्वोच्च व्यवस्थापिका, उत्तरदायी कार्यपालिका आ स्वतंत्र न्यायपालिका। जल थल वायु आ आकाश- भौतिक रासायनिक जैविक गुणमे हानिकारक परिवर्तन कए प्रदूषण, प्रकृति असंतुलन। कला- एहि लेल कोनो सैद्धांतिक प्रयोजन होएबाक चाही ?
मिकेल फोकौल्ट- ज्ञान आ सत्य बनाओल जाइत अछि।
डेलीयूज आ गुटारी कहै छथि जे हम सभ इच्छा ऐ द्वारे करै छी कारण हम सभ इच्छा मशीन छी।
मिकाहिल बखतिन भाषाकेँ सामाजिक क्रियाक रूपमे लै छथि आ हुनकर कार्य उपन्यासपर अछि।
रूसक रूपवादी साहित्यकेँ मात्र भाषाक विशिष्ट प्रयोग मानै छथि।
जीन फ्रान्कोइस लियोटार्ड-सत्यक आ इतिहासक सत्यता मात्र आभासी अछि। बौड्रीलार्ड- विज्ञापन आ दूरदर्शन सत्य आ आभासीक बीच भेद मेटा देने अछि। दुनू उत्तर आधुनिकताक मुख्य विचारक छथि।
लाकानक विशेषता छन्हि जे ओ फ्रायडक पद्धतिक भाषिकी अनुप्रयोग केलन्हि अछि। ओ कहै छथि जे अचेतनताक संरचना भाषा सन छै। जखन बच्चा भाषा सीखैए तखन ओकरा एकटा चेन्ह लेल एकटा शब्द सिखाओल जाइत छै। इच्छा, त्रुटि आ आन ई तीनटा तथ्य लाकान नीक जकाँ राखै छथि। इच्छा आवश्यकता आ माँगनाइ दुनू अछि मुदा एकरा ऐ दू रूपमे विखंडित नै कएल जा सकैत अछि। आनक वर्णनमे त्रुटि आ रिक्तता अबैत अछि। विषय अर्थक क्षणिक प्रभाव अछि आ ई आन सन होएत जखन ई आभासी होएत आ त्रुटिक कारण बनत, जइसँ इच्छाक उदय होएत।
उत्तर उपनिवेशवादक तीन विचारक छथि- होमी भाभा(फोकौल्ट आ लाकानसँ लग), गायत्री स्पीवाक (फोकौल्ट आ डेरीडासँ लग) आ एडवर्ड सईद(फोकौल्टसँ लग) जे उपनिवेशवादीक पूर्वक धूर्तताक, शिथिलता आदिक धारणाक लेल कएल गेल कार्य आ सिद्धांतीकरणक व्याख्या करै छथि।
रेमण्ड विलियम्सक संस्कृतिक अध्ययन साहित्यक आर्थिक स्थितिसँ सम्बन्ध देखबैत अछि। नव इतिहासवाद इतिहासक शब्दशास्त्र आ शब्दशास्त्रक ऐतिहासिकताक तुलना करैत अछि।
इलाइन शोआल्टर महिला लेखनक मानसिक, जैविक आ भाषायी विशेषताकेँ चिन्हित करै छथि। सिमोन डी. बेवोइर नारीक नारीक प्रति प्रतिबद्धतामे वर्ग आ जातिकेँ (जकर बादक नारीवादी सिद्धांत विरोध केलक) बाधक मानै छथि। वर्जीनिया वुल्फ नारी लेखक लेल आर्थिक स्वतंत्रता आ निजताकेँ आवश्यक मानै छथि। हिनकर विचारकेँ क्रान्तिकारी नै मानल गेल। मेरी वोल्स्टोनक्राफ्ट नारी शिक्षामे क्रान्ति आ औचित्यक शिक्षाकेँ सम्मिलित करबापर जोर देलनि।
नव समीक्षा- इलिएट कवितामे भावनाक प्रधानताक विरोध कएल आ एकरा गएर वैयक्तिक बनेबाक आग्रह केलनि। समीक्षकक काज लोकक रुचिमे सुधार करब सेहो अछि। विमसैट आ वर्डस्ले कहलनि जे कविक उद्देश्य वा ऐतिहासिक अध्ययनपर समीक्षा आधारित नै रहत। ई पाठकपर पड़ल भावनात्मक प्रभावपर सेहो आधारित नै रहत कारण से सापेक्ष अछि। ओ आधारित रहत वास्तविक शब्दशास्त्रपर।
फिलिप सिडनीसँ अंग्रेजी समीक्षाक प्रारम्भ देखि सकै छी- ओ कविताकेँ सौन्दर्य, अर्थ आ मानवीय हितमे देखलन्हि।
जॉन ड्राइडन- प्राचीन साहित्यमे नैतिक प्रवचनपर आ एकर लाभहानिपर विचार केलनि।
सैमुअल जॉनसन सेक्सपिअरक नाटकमे हास्य आ दुखद तत्वपर लिखलन्हि।
रूसोक रोमांशवाद मनुक्खक नीक होएबापर शंका नै करैए (क्लासिकल समीक्षक शंका करै छथि मुदा नव-क्लैसिकल कहै छथि जे मानव स्वभावसँ दूषित अछि मुदा संस्था ओकरा नीक बना सकैए) मुदा संगे ई कहैए जे संस्था सभ दूषित अछि आ मात्र दूषित लोकक मदति करैए। रोमांशवाद कविताक व्यक्तिगत अनुभव होएबाक कहैए।
आधुनिक स्थितिवाद (साहित्यक अवस्थितिपर कोनो प्रश्न चिन्ह नै) पर संरचनावाद प्रहार केलक आ तकराबाद लेखक स्वयं लिखल टेकस्टक विश्लेषण करबाक अधिकार गमेलक।
उत्तर संरचनावाद कहलक जे साहित्य ओइसँ आगाँक वस्तु अछि जे संरचनावाद बुझै अछि। उत्तर-संरचनावादक एकटा प्रकार अछि उत्तर आधुनिकता। उत्तर संरचनावाद कहलक जे साहित्यमे संरचना संस्कृति आ सिद्धान्त मध्य कार्य करैत अछि जत्तऽ किछु भाव आ सोच वंचित अछि जे निरन्तरताक विरोध करैए। विखण्डनवाद आ उत्तर आधुनिकता उत्तर संरचनावादक बाद आएल। उत्तर उपनिवेशवाद उपनिवेशक नव रूपकेँ नै मानैए आ अव्यवस्थाक सिद्धांत जेना असफल उद्देश्यकेँ उचित परिणाम नै भेटबाक कारण मानैए।
संरचनावाद दमित करैबला पाश्चात्य व्यवस्था आ समाजपर चोट करैए आ ऐ सँ मार्क्सवादकेँ बल भेटलै (अलथूजर)।
आधुनिकतावादी-स्थिवादी, नव समीक्षा, संरचनावाद आ उत्तर संरचनावादक बाद विखण्डनवाद आ उत्तर आधुनिकतावाद आएल जकरा विलम्बित पूँजीवाद कहल गेल (फ्रेडरिक जेनसन)।
अठारहम शताब्दीमे आधुनिक माने छल जड़विहीन मुदा बीसम शताब्दीक प्रारम्भमे एकर अर्थ प्रगतिवादी भऽ गेल। १९७० ई.क बाद आधुनिक शब्द एकटा सिद्धांतक रूप लऽ लेलक से उत्तर-आधुनिक शब्द पारिभाषिक भेल जकर नजरिमे लौकिक महत्वपूर्ण नै रहल। आधुनिक काल धरिक सभ जीवन आ इतिहास अमहत्वपूर्ण भेल आ खतम भेल। ई सिद्धांत भेल इतिहासोत्तर, विकासोत्तर आ कारणोत्तर। सत्य आ आपसी जुड़ावक महत्व खतम भऽ गेल।
जादुइ वास्तविकतावाद जइमे वास्तविक स्थितिमे जादुइ वस्तुजात घोसिआओल जाइत अछि। स्पेनिश उपन्यासकार गैब्रिअल गार्सिया मार्क्विसक “वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सोलीट्यूड” आ सलमान रुस्डीक “मिडनाइट्स चिल्ड्रेन” ऐ तरहक उपन्यास अछि। रचनाकार ऐ तरहक प्रयोग क’ वास्तविकताकेँ नीक जकाँ बुझबाक प्रयास करै छथि।
जोसेफ कोनरेड उपन्यासकेँ इतिहास कहै छथि। जोसेफ कोनरेड पोलिश भाषी रहथि मुदा अंग्रेजीक प्रसिद्ध उपन्यासकार छथि जे धाराप्रवाह अंग्रेजी नै बजैत रहथि। रोलेंड बार्थेज कहै छथि जे उपन्यास इतिहास सेहो छी आ उपन्यास इतिहासक विरोध सेहो करैए। रोलेंड बार्थेज फ्रांसक साहित्यिक सिद्धांकार रहथि आ हिनकर लेखनीक प्रभाव संरचनावाद, मार्क्सवादी आ उत्तर संरचनावादी साहित्यिक सिद्धांतपर पड़ल।
उत्तर आधुनिक पाश्चात्य बुर्जुआ दृश्य-श्रव्य मीडियाक प्रयोक कऽ असमता, अन्याय आ वंचितक अवधारणाकेँ मात्र शब्द कहै छथि जे समता, प्राप्ति आ न्यायक लगक शब्द अछि। गरीबी जे पाश्चात्यमे समस्या नै अछि से आइ भारतमे पैघ समस्या अछि। उत्तर आधुनिकता नारीवादक आ मार्क्सवादक विरोधमे अछि आ एकर नारीवाद आ मार्क्सवाद विरोध केलक अछि। जेना ऐतिहासिक विश्लेषणक पक्षमे मार्क्सवाद अछि आ ओइसँ ओ अपन सिद्धांत फेरसँ सशक्त केलक अछि, संरचनावाद-उत्तर-संरचनावा आ उत्तर आधुनिकतावादक परिप्रेक्ष्यमे। मार्क्सवाद लौकिक पक्षपर जोर दैत अछि मुदा तेँ ई उपयोगितावाद आ चार्वक दर्शनक लग नै अछि, कारण उपयोगितावाद आ चार्वकवाद मात्र शारीरिक आवश्यकताकेँ ध्यानमे रखैत अछि। नारीवादी दृष्टिकोण सेहो उत्तर आधुनिकतावादक यथास्थिवादक विरोध केलक अछि कारण यावत से खतम नै होएत ताधरि नारीक स्थितिमे सुधार नै आओत।
मोहनजोदड़ो सभ्यतासँ प्राप्त कांस्य प्रतिमा नृत्यक मुद्राक संकेत दैत अछि, वर्तमान कथक नृत्यक ठाठ मुद्रा सदृश। दहिन हाथ ४५ डिग्रीक कोण बनेने आ वाम हाथ वाम छाबापर। संगहि वाम पएर किछु मोरने। ऋगवेदक शांखायन ब्राह्मणक अनुसार गीत, वाद्य आ नृत्य तीनूक संगे-संग प्रयोगक वर्णन अछि, ऐतरेय ब्राह्मणमे ऐ तीनूक गणना दैवी शिल्पमे अछि। ऋगवेद १०.७६.६ मे उषाक स्वर्णिम आभा कविकेँ सुसज्जित ऋषिक स्मरण करबैत छन्हि। ऋगवेदमे लोक नृत्यक (प्रान्चो अगाम नृतये) सेहो उल्लेख अछि। महाव्रत नाम्ना सोमयागमे दासी सभक (३-६ दासीक) सामूहिक नृत्यक वर्णन अछि। शांखायन १.११.५ मे वर्णन अछि जे विवाहमे ४-८ सुहागिनकेँ सुरा पियाओल जाइत छ्ल आ चतुर्वार नृत्य लेल प्रेरित कएल जाइत छल। वैदिक साहित्यमे विवाह विधिमे पत्नीक गायनक उल्लेख अछि। सीमन्तोन्नयन विधिमे पति वीणावादकसँ सोमदेवक वादयुक्त गान करबाक अनुरोध करैत छथि। अथर्ववेदमे वसा नाम्ना देवताक नृत्य ऋक्, साम आ गाथासँ सम्बन्धित होएबाक गप आएल अछि, सोमपानयुक्त ऐ नृत्यमे गन्धर्व सेहो होइत छलाह, से वर्णित अछि। अथर्ववेद १२.१.४१ मे गीत, वादन आ नृत्यक सामूहिक ध्वनिक वर्णन अछि। वैदिक कालमे साम संगीतक अलाबे गाथा आ नाराशंसी नाम्ना लौकिक संगीतक सेहो प्रचलन छल।
महिला- ऋगवेदमे अपाला,घोषा, श्रद्धा, शची, सार्पराज्ञी, यमी, वैवस्वती, देव जामय, इन्द्राणी, शश्वती, रोमशा, गोधा, उर्वशी, सूर्या, अदिति, नदी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, वाक् जुहू, सरमा आ यमी ऐ २१ टा ऋषिकाक वर्णन अछि। देवता माने प्रतिपाद्य विषय नै कि गॉड (जेना ग्रिफिथ केने छथि।) मन्त्रार्थमे महर्षि पतञ्जलिक वैज्ञानिक मन्तव्य “यच्छब्द आह तदस्माकं प्रमाणम्” माने जे शब्द आकि मंत्रक पद कहैत अछि सएह हमरा लेल प्रमाण अछि- एकर अर्थ बादमे वेदे प्रमाण अछि- गलत रूपेँ भेल।
प्लेटो- प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि। प्लेटोक ई विचार स्पार्टासँ एथेंसक सैन्य संगठनक न्यूनताकेँ देखैत देल विचारक रूपमे सेहो देखल जएबाक चाही। काव्य/ नाटकक ऐ रूपेँ विरोध केलन्हि जे सम्वादकेँ रटि कऽ बाजैसँ लोक एकटा कृत्रिम जीवन दिस आकर्षित होएत।
अरिस्टोटल कविताकेँ मात्र अनुकृति नै मानै छथि, ओ ऐ मे दर्शन आ सार्वभौम सत्य सेहो देखै छथि। ओ नाटकक दुखान्तकेँ आ अनुकृतिकेँ निसास छोड़ैबला कहै छथि जे आनन्द, दया आ भयक बाद अबैत अछि।
सम्वाद दू तरेहेँ भऽ सकैए- अभिभाषण वा गप द्वारा। गपमे दार्शनिक तत्व कम रहत। प्राचीन गीसमे कविता भगवानक सनेस बूझल जाइत छल। एरिस्टोफिनीस नीक आ अधला ऐ दू तरहक कविता देखै छथि तँ थियोफ्रेस्टस कठोर, उत्कृष्ट आ भव्य ऐ तीन तरहेँ कविताकेँ देखै छथि। कविता आ संगीत अभिन्न अछि। मुदा यूरोपक सिम्फोनी जइमे ढेर रास वादन एके संगे विभिन्न लयमे होइत अछि, सिद्धांतमे अन्तर अनलक। यएह सभ किछु नाटकक स्टेज लेल सेहो लागू भेल।
डेरीडाक विखण्डन पद्धति ऊँच स्थान प्राप्त रचना/ लेखक केँ नीचाँ लऽ अनैत अछि आ निचुलकाकेँ ऊपर। रोलेण्ड बार्थेस लिखै छथि जे जखन कृति रचनाकारसँ पृथक भऽ जाइए आ ओकर विश्लेषण स्वतंत्र रूपेँ होमए लगै छै तखन कृति महत्वपूर्ण भऽ जाइए जकरा ओ रचनाकारक मृत होएब कहै छथि।
उत्तर-संरचनावाद संरचनावादक सम्पूर्ण आ सुगठित हेबाक अवधारणाकेँ माटि देलक। सौसरक भाषा सिद्धान्त- बाजब/ लिखब, वास्तविक समएक साहित्य वा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यक शब्दशास्त्र, महत्वपूर्ण कोनो कृति वा मनुक्ख अछि/ महत्ता एकटा भाव अछि, वास्तविक समएमे भाषा वा एकर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य; मुदा एकरा सेहो डेरीडाक विखण्डन सिद्धान्त उल्टा-पल्टा करए लागल।
लिंग एकटा जैव वैज्ञानिक तथ्य अछि मुदा महिला/ पुरुषक सिद्धान्त सामाजिकताक प्रतिफल अछि। महिला सापेक्ष साहित्य कला पुरुष द्वारा निर्मित अछि आ पुरुखक नजरिसँ महिलाकेँ देखैत अछि। साहित्यक नारीवादी सिद्धान्त ऐ समस्याक तहमे जाइए। मिथिलाक सन्दर्भमे महिलाक स्थिति ओतेक खराप नै छै मुदा मैथिली साहित्यक एकभगाह प्रवृत्तिक कारण उच्च वर्गक नारीक खराप स्थिति साहित्यमे आएल। आधुनिकीकरण तथाकथित सामाजिक रूपसँ निचुलका जाति सभमे सेहो नारीक स्थितिमे अवनति अनलक अछि। दोसर एकटा आर गप अछि जे जाति आ धर्म नारीक अधिकारकेँ कैक हीसमे बाँटि देने अछि।
नारीवादी दृष्टिकोण सेहो कहैए जे सभटा सिद्धांत पुरुष द्वारा बनाओल गेल से ओ पूर्ण व्याख्या नै कऽ सकैए। सरल मानवतावाद सिद्धांतक विरुद्ध आएल मुदा ई सेहो एकटा सिद्धांत बनि गेल। सार्थक साहित्यक निर्माण एकर अन्तर्गत भेल।
पोथी समीक्षामे अत्यधिक आलोचनासँ बचबाक चाही। समीक्षककेँ अपन विद्वत्ता प्रदर्शनसँ बचबाक चाही। अत्यधिक आलोचनाक क्रममे लोक अपन विद्वता देखबऽ लगै छथि। आलोचनाक क्रममे संयम रखबाक चाही, खराप शब्दावलीक प्रयोग समीक्षकक खराप लालन-पालन देखबैत अछि। पोथीक बिना पढ़ने समीक्षा अनैतिक अछि। उदाहरणस्वरूप कर्मधारयमे धूमकेतुक विषयमे तारानन्द वियोगी लिखै छथि- मिथिलाक संस्कृतिमे युग-युगसँ प्रतिष्ठापित साम्प्रदायिक सौहार्दकेँ रेखांकित करैत हिनक कथा “नमाजे शुकराना” बहुत महत्वपूर्ण थिक। (कर्मधारय, पृ. १२७) (!) कथाक शीर्ष देखि कऽ ऐ तरहक समीक्षा भेल अछि कारण ऐ कथामे हाजी सैहेबक नमाजक समएमे पिंजराक सुग्गा “सीता...राम...।” बजैए आ सुग्गाक पिंजराकेँ हाजी सैहेब ताधरि महजिदक देबालपर पटकै छथि जाधरि सूगा मरि नै जाइए। सईदा कानऽ लगैए आ कथा खतम भऽ जाइए। आ ई कथा समीक्षकक मतमे साम्प्रदायिक सौहार्दकेँ रेखांकित करैए!
समीक्षककेँ अति प्रशंसासँ सेहो बचबाक चाही। पोथीक समीक्षामे ई देखाओल जएबाक चाही जे ऐ विषयपर लिखल आन पोथीसँ ई पोथी कोन रूपेँ भिन्न अछि, कोना ई पोथी रिक्त स्थलक पूर्ति करैए, पोथीमे की-की छै आ ओइ विषयपर लिखल आन पोथीसँ एकर तुलना हेबाक चाही। पोथीक विस्तारकेँ ध्यानमे राखि समीक्षा हजारसँ दू हजार शब्दमे हेबाक चाही। समीक्षा सम्बन्धित पोथीक हेबाक चाही लेखकक नै। लेखकक दोसर रचनाक विश्लेषणसँ समीक्षाकेँ भरब नीक समीक्षा नै, जे ऐ सभ पोथीसँ समीक्षित पोथीक कोनो सोझ सम्बन्ध हो तखने ओकर प्रयोग करू। मिथिलाक विविध संस्कृति आ इतिहासकेँ देखैत –मैथिली साहित्यक एकभगाह स्थिति विशेष रूपमे- व्यक्तिगत आक्षेपक आ जिला-जबारकेँ ध्यानमे रखबाक सेहो परम्परा रहल अछि। जाति-धर्म आ क्षेत्रीय मैथिली भाषा समीक्षामे कम्मे अबैए मुदा जिला-जवारक/ दोस-महीमक-पड़ोसक आधारपर नीक वा अधलाह समीक्षाक प्रवृत्ति वा आग्रहक भयंकर प्रभाव समीक्षकक मध्य छन्हि।
कोनो खास समीक्षासँ ओइ पोथीपर प्रकाश पड़ैए वा नै से देखू। ई तँ नै अछि जे ओ समीक्षा लेखकपर टिप्पणी कऽ रहल अछि वा लेखकक आन रचनापर- गहींरमे जाएब तँ बूझि जाएब जे समीक्षा पोथी पढ़ि लिखल गेल छै आकि नै। आलंकारिक भाषाक दिल गेल, शब्दक सटीक प्रयोग करू, अनावश्यक शब्द आ पाँतीकेँ निकालू। आत्मकथात्मक पोथीक समीक्षा लेल लेखकक जिनगीपर प्रकाश दऽ सकै छी। पोथीक रूप, रंग आ आवरणक फोटोक समीक्षासँ आगाँ बढ़ू आ पोथीक समीक्षा करू। पोथीमे महिला विरोधी वा जाति-क्षेत्रक बन्हनसँ बान्हल मानसिकताकेँ दूर राखू। पोथी लेखकक नामक वा आवरणक चित्रक अनावश्यक न्यून विश्लेषणसँ अपनाकेँ दूर राखू।
उपन्यासक अंग अछि वातावरणक निर्माण जइमे लेखक कथा कहैत अछि, ओकर पात्र सभक विवरण, कथाक प्रारूप आ तकरा लेल लोकक आ परिस्थितिक वर्णन। ऐ मेसँ कोनो एक टा पक्ष लऽ कऽ अहाँ कथा लिख सकै छी। नाटकमे भावनापूर्ण सम्वाद आ क्रियाकलापक योग रहत। पद्यमे शब्दक प्रयोगसँ चित्रक निर्माण करए पड़त आ लोकक भावनाकेँ उद्वेलित करबा योग्य बनबए पड़त, ऐ लेल कविक वातावरणमे हस्तक्षेपयुक्त सलाहक औचित्य आ ध्वनि-विज्ञानक योग सेहो चाही।
कोनो कृति कोना उत्कृष्ट अछि आ ओइमे की छुटि गेल अछि से समीक्षककेँ देखबाक चाही। ओकर मूल्यांकन एकभगाह नै हेबाक चाही, ओइ रचनामे की संदेश नुकाएल छै, लेखक कोन दिस निर्देशित कऽ रहल अछि से समीक्षककेँ बुझबाक आ लिखबाक चाही। आब प्रश्न उठैए जे समीक्षाक पोथीक समीक्षा कोन हुअए। ऐ मे समीक्षककेँ ओइ पोथीक मुख्य धाराकेँ चिन्हित करबाक चाही।
जे समीक्षा/ निबन्धक पोथीमे कएक तरहक निबन्ध/ समीक्षा अछि आ मारते रास लेखकक रचना संकलित अछि तँ से सोद्देश्य अछि वा निरुद्देश्य से समीक्षककेँ देखबाक चाही।
समीक्षित पोथीक अतिरिक्त ओइ विषयपर आन पोथीक सेहो जत्तऽ धरि सम्भव हो चर्चा होएबाक चाही। अपन विचारधाराकेँ समीक्षित पोथीपर आरोपण नै होएबाक चाही। ओइ पोथीक आजुक समयक सन्दर्भमे की आवश्यकता अछि से देखाऊ। ओइ पोथीक महत्ता कोन रोपमे अछि से देखाऊ, ओकर मुख्य तत्व चिन्हित करू। लेखकक जीवन दर्शन, वास्तविक, काल्पनिक आ आदर्शक सम्बन्धमे ओकर दृष्टि, संदेहकेँ चिन्हित करू। लेखकक लेखनशैलीक कलात्मक पक्ष, ओकर गप कहबाक क्षमता, रचनाक ढाँचा आ ओकर विभिन्न भागकेँ जोड़बाक कलाक चर्चा करू, जेना नीक कमार ठोस आ कलात्मक पलंग बनबैत अछि, तँ दोसर कमारक जोर मात्र ठोस हेबापर होइ छै आ तेसरक कलात्मकतापर, तहिना।
सिद्धान्तक आवश्यकता की छै? सरल मानवतावाद कहैए जे साहित्यक सिद्धान्तक बदलामे रचनाक की मानवीय दृष्टिकोण छै, ओइमे सार्थकता छै आकि नै से सामान्य बुद्धिसँ कएल जा सकैए। अपन बुद्धिक प्रयोग कऽ रचनाक गुणवत्ता अहाँ देखि सकै छी, कोनो साहित्यिक सिद्धान्तक आवश्यकता समीक्षा लेल नै छै। मुदा सरल मानवतावाद स्वयं एकटा सिद्धांत बनि गेल।
उषाकिरण खानकेँ मैथिली लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार 2010 भामती उपन्यास लेल देल जाएत।
उषाकिरण खान 1945- जन्म:२४ अक्टूबर १९४५,कथा एवं उपन्यास लेखनमे प्रख्यात । मैथिली तथा हिन्दी दूनू भाषाक चर्चित लेखिका । प्रकाशित कृति:अनुंत्तरित प्रश्न, दूर्वाक्षत, हसीना मंज़िल, भामती (उपन्यास) ।
साहित्य अकादेमी फेलो- भारत देशक सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार (मैथिली)
१९९४-नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी आ मैथिली कवि।
२०१०- चन्द्रनाथ मिश्र अमर (१९२५- )- मैथिली साहित्य लेल।
साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल)
२००७- पं. डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
पं. श्री उमारमण मिश्र
साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली
१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
२०१०-श्रीमति उषाकिरण खान (भामती, उपन्यास)
साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
२००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
२०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल" लेल
प्रबोध सम्मान
प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
प्रबोध सम्मान 2011- श्री सोमदेव (1934- )
यात्री-चेतना पुरस्कार
२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
२०१० ई.- डॉ. तारानन्द वियोगी, महिषी, सहरसा
कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान
२००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झा (कविता संग्रह “एना त नहि जे”)
२००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता” (नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश)
२०१० ई.- श्री महाप्रकाश (कविता संग्रह “संग समय के”)
सूचना: विदेहक ०१ मार्च २०११ अंक महिला अंक आ १५ मार्च २०११ अंक होली विशेषांक रहत। ०१ मार्च २०११ अंक लेल महिला लेखक लोकनिसँ गद्य-पद्य रचना २६ फरबरी २०११ धरि आमंत्रित अछि, रचनाक ने विषयक सीमा छै आ नै शब्दक। आनो लेखक महिला केन्द्रित गद्य-पद्य २६ फरबरी २०११ धरि पठा सकै छथि। होली विशेषांक लेल हास्य विधाक गद्य-पद्य रचना अहाँ १३ मार्च २०११ धरि पठा सकै छी। रचना मेल अटैचमेण्टक रूपमे .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठाओल जाए। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहए जे ई रचना मौलिक अछि आ पहिल प्रकाशनक लेल विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १,६५९ ठामसँ ५४, ६२५ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,८४,८२२ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
२.४.१.योगानन्द झा - आस्था, जिजीविषा ओ संघर्षक प्रवाह-“गामक जिनगी”, आदर्शक उपस्थापन : मौलाइल गाछक फूल २.आशीष अनचिन्हार-गजलक साक्ष्य ३.प्रो. वीणा ठाकुर- जिनगीक जीत उपन्यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर ४.शिव कुमार झा ‘टिल्लू’- समीक्षा- हम पुछैत छी- कविता संग्रह (विनित उत्पल), मैथिलीक विकासमे बाल कविताक योगदान, मैथिली उपन्यास साहित्यमे दलित पात्रक चित्रण, भावांजलि, भफाइत चाहक जिनगी, भफाइत चाहक जिनगी, रमाजीक काव्य यात्रा ५. धीरेन्द्र कुमार- श्रीमती प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि ६.जगदीश प्रसाद मंडल- कथा- कतौ नै ७.रमाकान्त राय “रमा”, गामक जिनगी- कथा संग्रह- जगदीश प्रसाद मंडल, आरसी बाबूक व्यक्तित्व एवं कृतित्वपर द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार- दू दर्जन विद्वानक सहभागिता : आचार्य दिव्यचक्षु ८.रामकृष्ण मंडल 'छोटू'- कथा- बाप ९.शैल झा’ सागर"- किस्त-किस्त जीवन
.शिव कुमार झा ‘टिल्लू’ समीक्षा- मैथिली कविता संचयन- (संपादक- गंगेश गुंजन), कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक, गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा, बिन वाती दीप जरय, तरेगन, अरिपन (कविता संकलन) २.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र- पोथी समीक्षा-जीवन संघर्ष
१
शिव कुमार झा ‘टिल्लू’ १
मैथिली कविता संचयन-
(संपादक- गंगेश गुंजन)
स्वतंत्रतासँ पूर्व जन्म नेनिहार साहित्यकारक समूहमे एकटा नाओ अद्भुत मानल जा सकैत अछि, जनिक लेखनी सरस्वतीक वरद् पुत्र जकाँ एखनो मैथिली साहित्यकेँ अपन अर्चिससँ प्रकाशित कऽ रहल अछि। ओ छथि साहित्यक सभ विधाक पारखी रचनाकार- श्री गंगेश गुंजन। अरसैठम बरखमे अपन कोसक पाथर सदृश कृर्ति ‘राधा’सँ विदेहक संग-संग मिथिला-मैथिलीक ध्वजकेँ आरोहित करवाक हिनक प्रयाससँ एकैसम शताब्दीक प्रथम दशांश गमकैत विदा लऽ रहल छथि।
समग्र साहित्यिक क्षेत्रकेँ ज्योर्तिमय बनएवाक संग-संग गुंजन जी संपादकक काज सेहो कएलनि। हिनक संपादकत्वमे नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडियाक सौजन्यसँ एकटा पोथी 2005ई.मे बहार भेल- ‘मैथिली कविता संचयन’।
महाकवि विद्यापतिसँ लऽ कऽ तारानंद वियोगी धरिक सर्वकालीन कवि-कवयित्रीक रचनाकेँ एहि पोथीमे संकलित कएल गेल अछि। भूमिकामे गुंजन जी कवीश्वर चंदा झासँ लऽ कऽ संजय कुंदन धरिक चर्च कएने छथि, मुदा संजय कुंदन जीक रचना एहि पोथीमे प्रयागराजक सरस्वती नदी जकाँ विलोकित अछि, प्रत्यक्ष दर्शनीय नहि।
जहिना आदि पुरूषक मात्र चरण स्पर्श कएल जा सकैछ, माॅथपर पाग नहि देल जा सकैत अछि, ठीक ओहिना महाकवि विद्यापतिक रचनापर कोनो प्रकारक प्रश्न चिन्ह ठाढ़ करव उचित नहि।
हुनक फुलवारीमे सभटा फूल सुन्नर आ सुगंधित अछि। कोनो रचना एक-दोसरसँ कमजोर नहि। गुंजन जी जाहि रचना पुष्प सभकेँ चुनलनि ओ बड़ नीक लागल। एक दिश प्रथम रचनामे भावक संगम तँ दोसर ‘वसंत चुमाओन’मे प्रकृति वर्णनक बिम्बक मध्य राजधर्म आ देवक तुलना अनमोल लागल। ‘रूपक वर्णन’मे श्रैंगारिक धवल चित्रण कएल गेल अछि। अभिसारमे विरह समागमक झलकि मनोहारी तँ शांति पदमे विचार मूलक स्पष्ट परिदृश्य वातावरणकेँ भक्तिमयी बना दैत अछि।
महाकविक पश्चात् गोविन्ददासक स्थान जेना मैथिली साहित्यमे विलक्षण अछि, ओहिना एहि पोथीमे हुनक छ: गोट कविताक चयन संपादक जीक प्रतिभाक संग-संग चयनक अद्वैत दृष्टिकेँ पारदर्शी बना देलक। मनबोधक एकमात्र कविता ‘शिशु’ मैथिली साहित्यमे बाल साहित्यक न्यूनताकेँ किछु दूर तक भरवाक प्रयास कऽ रहल अछि।
कवीश्वर चंदा झाक तीनपद भक्तिसँ संबंधित मानल जा सकैत अछि। आशु कवित्वमे चंदा झाक स्थान मैथिली साहित्यमे सूर-तुलसी जकाँ प्रांजल, तँए तीनू पद गेय। शिव राग आ महेशवाणीमे भक्तिक आवाहन कएल गेल। ‘राधा िवरह’ भक्तिक आड़िमे वेदनाक भाव सरितासँ नयनकेँ सरावोरि करवाक लेल पर्याप्त बुझना जाइत अछि।
कविवर सीताराम झाक पद्य सभमे झंकार अनायास भेट जाइत अछि। कवि चूड़ामणि काशीकांत मिश्र ‘मधुप’केँ जौं मैथिली साहित्यक आदि लोकगीतकार कहल जाए तँ कोनो अतिशयोक्ति नहि। विद्यापति जीक पश्चात् पद्य विधामे मधुप जी सभसँ जनप्रिय कवि मानल जाइत छथि। हुनक ‘पतित पीक’ आ ‘छुतहर’ कविताक संकलन एहि पोथीमे कएल गेल अछि। दुनू पद्यमे बिम्बक चयन आ विश्लेषण सरल मुदा अर्थपूर्ण लागल। कांचीनाथ झा ‘किरण’ जीक ‘मिथिलाक वसंत’ अपन माटि-पानिक तात्विक विवेचन करैत अिछ। साहित्य सरोज बाबू भुवनेश्वर सिंह भुवन, सरस कवि ईशनाथ झा, सुमन जी सबहक कविता सभक चयनमे संपादक जीक दीर्घ इच्छा शक्तिक संग-संग अध्ययनशीलताक दृष्टिकोण नीक मानल जा सकैछ।
यात्री जी सर्वकालीन मैथिली कविमे अपन अलग स्थान रखैत छथि। हुनक लिखल पद्य सभ चित्रामे हुअए वा पत्रहीन नग्न गाछमे- सभटा एकपर एक अछि। संभवत: हुनक श्रेष्ठ छ: गोट कविताक चयनमे गुंजन जी किंकर्तव्यविमूढ़ भऽ गेल हेताह। मुदा जे पद्य सभ चुनल गेल सभ प्रासंगिक लागल। कनेक कमी यएह जे ‘मैथिले’ शीर्षक कविताक मात्र छ: पॉति देल गेल जखन की अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद् प्रयाससँ वहराएल ‘चित्रा’ पोथीक आधारपर ‘मिथिले’ शीर्षक कविता वियालिस पॉतिक अछि। हमरा मतेँ कोनो रचनाकारक अपूर्ण रचना संकलित करब उचित नहि।
आरसी बावूक दुनू कविताक चयन शांतिभावसँ कएल गेल। आरसी बावू स्वयं अपन रचना ‘शेफालिका’केँ अपन सर्वश्रेष्ठ कविता मानैत छलाह। तेँ एहि कविताकेँ संकलित करबाक लेल गुंजन जी धन्यवादक पात्र छथि।
साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ‘समकालीन मैथिली कविता’मे संपादक द्वय डॉ. ब्रज किशोर वर्मा मणिपद्मकेँ बिसरि गेल छलाह, मुदा एहि पोथीमे हुनका ‘मृग मयूर आ कोकिल मन हे’ रूपमे स्मरण कएल गेल अछि। वास्तवमे मणिपद्म जी आधुनिक मैथिल साहित्यक पद्मनाभ छथि। गोविन्द झा, रामकृष्ण झा किसुन आ अमर जीक पद्यक चयन एहि पोथीकेँ नूतनता प्रदान कएलक। राजकमल चौधरी मूलत: कथाकार छथि। पद्यविधामे सेहो हिनक रचना नीक होइत अछि, तँए सर्वकालीन कविगणमे हिनक स्थानपर कोनो संदेह नहि। संगहि एकटा गप्प खटकि गेल जे राजकमल जीक आठ गोट कविताकेँ एहि पोथीमे समाबिष्ट एकल गेल आ समकालीन कवि गोपाल जी झा गोपेशक कतहु चर्च नहि। राजकमल जीक कविताक गणना कम कऽ गोपेश जीकेँ एहि पोथीमे जौं स्थान देल गेल रहितए तँ आर विलक्षण भऽ सकैत छल। मायाबाबू, सोमदेव, धीरेन्द्र हंसराज, रामदेव झा, गुंजन जी, धूमकेतु, कीर्ति नारायण मिश्र, जीवकान्त, रेणु जी, प्रवासी जी, मंत्रेश्वर झा, कुलानंद जी, विनोद जी, उपेन्द्र दोषी, रामलोचन ठाकुर, भीमनाथ झा, नचिकेता, महाप्रकाश, ललितेश मित्र, विभूति आनंद, केदार कानन, ज्योत्सना चंद्रम, देवशंकर नवीन, सुस्मिता पाठक जीक प्रतिभापर कनेको संदेह नहि।
रामानुग्रह झा, सुकान्त सोम, पूर्णेन्दु चौधरी, महेन्द्र, रमेश, अग्निपुष्प, हरेकृष्ण झा आ नारायण जी सन रचनाकारक रचना जखन एहिमे देल गेल तँ तंत्रनाथ झा, उपेन्द्र ठाकुर मोहन, उपेन्द्र नाथ झा व्यास, राधवाचार्य, अणुजी, रमाकरजी, श्रीमतिश्यामा देवी, इन्द्रकान्त झा, हासमीजी, डॉ. शेफालिका वर्मा, रवीन्द्र नाथ ठाकुर, सियाराम झा ‘सरस’, इलारानी सिंह, डॉ. लाभ, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, नवल जी सन रचनाकारकेँ गुंजन जी कोना विसरि गेलनि। भऽ सकैत अछि जे हुनक तर्क हुअए जे स्थापित रचनाकारक संग-संग किछु विस्मृत आ नवतुरिया रचनाकारकेँ सेहो स्थान देल जाए।
जौं एहेन गप्प तैयो स्तरीय संपादन नहि मानल जा सकैत अछि। विस्मृत आ नवतुरियो रचनाकार वर्गक किछु रचनाकार एहि पोथीमे छूटल छथि जनिक रचना एहिमे संकलित किछु रचनासँ वेशी महत्व रखैत अछि। श्री चन्द्रभानु सिंह जीक कविताक किछु पॉति एकर प्रमाण स्वरूप देखल जा सकैत अछि-
तोरे स्वरक टघार सहारे रटय पपिहरा पी-पी
ककरा ने ई छैक सेहन्ता तोहर बाजव टी-पी
बेसुराह मनुखक समाजसँ तोहर फराके टोल छौ
की कहियौ गे करिकी तोहर बाजव बड़ अनमोल छौ।
(कोइली शीर्षक कवितासँ)
एहि कविताक उत्तर देनिहार कवि प्रो. नरेश कुमार विकल जीक रचना सेहो एहि पोथीमे नहि देल गेल अछि-
युग-गुग सँ चलि आवि रहल छौ
वाजव मिसरीक घोल सन
हमरा आव लगैए कोइली
बाजव तोहर ओल सन.....।
ई कविता ‘कोइली’ शीर्षक नाअोसँ विकल जीक कविता संग्रह ‘अरिपन’मे सन 1995ई.मे प्रकाशित भेल अछि। विलट पासवान विहंगम, रमाकांत राय ‘रमा’ कवि चंद्रेश जियाउर रहमान जाफरी सन आधुनिक कविक रचना एहि पोथीमे समाविष्ट कएल नहि गेल।
आशु गीतमे काली कान्त झा ‘बूच’क रचनाकेँ समीक्षक वा संपादक विसरि सकैत छथि, मुदा जे पाठक पढ़लनि ओ कहियो नहि विसरताह। हुनक जागरण गान, माला, एक्केगीत, तोहर ठोर, उदासी, परिचय पात सन सभ विधासँ युक्त कविता मिथिला मिहिरमे प्रकाशित भेल छल।
भूमिकामे गुंजन जी स्पष्ट कएने छथि जे एहिमे संकलित 51 गोट कविक संग-संग आर कवि छथि। हुनक रचना नहि देवाक पक्षमे पोथीक सीमित आकार आ कविपय रचनाकारक सहयोगक प्रति उदासीनताक तर्क देल गेल अछि। हमरा मतेँ एहि तर्कमे वास्तविकताक कमी बुझना गेल। पहिने मिथिला-मैथिलीक साहित्यकारक रचनाक प्रकाशन स्त्रोत मात्र किछु पत्र पत्रिका छल। गुंजन जीक रचना सभ सेहो निश्चित एहिमे छपैत छलनि, तखन असहयोगक गप्प कतऽ सँ आएल? विकल जी, बूच जी, शेफालिका जी, हासमी जी, चन्द्रभानु सिंह, चन्द्रेश सन कवि सत्तरिसँ अस्सी दशकमे मिथिला मिहिरक बहुत रास अंकमे कविक रूपेँ उपस्थित छलाह। हमर कहव ई नहि जे रमेश जी आ नारायण जी सन रचनाकारक रचना एहि पोथीमे किएक देल गेल?
कहवाक तात्पर्य जे जनिक कविता वेसी देल गेल अछि हुनक कविताक गणना किछु कम कऽ छूटल कविकेँ सम्मलित कएल जा सकैत छल। महाकवि विद्यापति, गोविन्द दास, यात्री, राजकमल, कीर्ति नारायण मिश्र कोनो परिचयक मोहताज नहि छथि हुनक कविता जौं एक-एक टा कम्मे रहितए तँ कोनो हुनका लोकनिक प्रतिष्ठा कम नहि भऽ जेतनि छल? मुदा कोनो विषय वस्तुक मात्र नकारात्मक स्वर नहि देखवाक चाही। मैथिली साहित्यमे सर्वकालीन कविता सभक संकलन अत्यल्प अिछ, तेँ गुंजन जीक प्रयास सराहनीय लागल। पूर्णता कतहु नहि भऽ सकैत अछि। प्राचीन कविक रचना सभक चयनमे कोनो पूर्वाग्रह वा पक्षपात नहि देखएमे आएल। मात्र आधुनिक कालक किछु रचनाकारक महत्वपूर्ण रचना एहि पोथीमे नहि देल गेल। गुंजन जी धन्यवादक पात्र छथि जे असगरे अंशत: कुशल संपादन कएलनि। एहि तरहक अर्न्तद्वन्द्वसँ बचवाक लेल कोनो पोथीक संपादन एक व्यक्तिसँ नहि करवा कऽ तीन-चारि व्यक्तिक संपादक मंडल द्वारा करएवाक चाही। जौं एहि तरहक प्रयास कएल जाए तँ त्रुटिक संभावना क्षीण भऽ सकैत अछि। अंतमे स्वर्गीय रचनाकार सभकेँ पुष्पांजलि जीवित रचनाकार सभकेँ नमन संग-संग नेशनल वुक ट्रस्ट आ गंगेश गंुजन जीककेँ साधुवाद।
पोथीक नाओ- मैथिली कविता संचयन
संपादक- गंगेश गंुजन
प्रकाशक- नेशनल वुक ट्रस्ट इंडिया
प्रकाशन वर्ष- 2005
मूल्य- एक सय टका मात्र
२
कुरूक्षेत्रम् अर्न्तमनक-
(समीक्षा)
किछु लोकक ई प्रवृति होइत अछि जे सदिखन अपन चल जीवनमे नव-नव प्रकारक प्रयोग करैत रहैत अछि। एहि नव प्रयोगक कारण जहानमे अपवर्गक विहान देखएमे अबैत अछि। प्रयोग धर्मिता व्यक्तिक इच्छासँ नहि जन्म लऽ सकैछ, ई तँ नैसर्गिक प्रतिभाक परिणाम थिक। मैथिली साहित्यमे प्रयोग धर्मी सरस्वती पुत्रक अभाव नहि परंच वर्तमान कालमे एकटा एहेन प्रयोगधर्मी मिथिला पुत्रकेँ मॉ मिथिले अपन ऑचरमे सक्रिय कएलनि, जे तत्कालिक मैथिलीक दशा वदलवाक प्रयास कऽ रहल छथि। क्रांतिवादी आ सम्यक विचार धाराक सम्पोषक ओ व्यक्ति केओ अनचिन्हार नहि- मैथिली साहित्यक प्रथम अंतर्जाल पाक्षिक पत्रिका विदेहक सम्पादक- श्री गजेन्द्र ठाकुर छथि। भऽ सकैत अछि जे किछु लोक मैथिली साहित्यकेँ अन्तर्जालसँ जोड़वाक प्रयास कए रहल हएताह परंच एकटा मूर्त्त रूप दऽ ६४ अंक धरि पहुँचेवाक कार्य गजेन्द्रे जी कएलन्हि। साहित्यक नव-नव विधा आ समाजक वेमात्र वर्गकेँ मैथिलीक आलिंगनमे आवद्ध कऽ साम्यवाद आ समाजवादकेँ वैदेहीक माटिपर आनि हमरा सबहक माथपर लागल अनसोहांत कलंककेँ धो देलनि। मात्र ६४ अंकमे जे कार्य भेल अछि ओ कतऽ-कतऽ पहिने भेल छल, आत्म अवलोकन करवाक पश्चात् जानल जा सकैत अछि। समाजक फूजल, बेछप्प आ उदासीन वर्गकेँ अपन वयनाक मानस पटलपर आच्छादित करवाक लेल साहस सभ केओ नहि जुटा सकैत अछि। मात्र भॉज पुरयवाक लेल मानस पुत्र एहेन कार्य नहि कएलनि, ओहि उपेक्षित वर्गक रचना कारक रचनामे विषए-वस्तुक गतिशीलता आ तादात्म्य वोध ककरोसँ कम नहि अछि। प्रयोगधर्मी गजेन्द्र जीक कर्मक दोसर आमुख थिक हिनक लेखनीक धारसँ निकलल इन्द्रधनुषक सतरंगी गुलालसँ भरल भावक आत्मउदवोधन- “कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक”
एहि पोथीकेँ की कहल जाए उपन्यास, गल्प, बाल साहित्य, समालोचना, प्रवंध वा काव्य? साहित्यक सभ विधाक अमिर रसकेँ घोरि वंगोपखाड़ी वना देलनि जतए ई कहव असंभव अछि जे गंगा, कोशी, यमुना वा हुगली ककर नीर कतए अछि?
शीर्षक देखि अकचका गेल छलहुँ, ई महाभारत मचौता की! मुदा अपन हृदएसँ सोचल जाए प्रत्येक मानवक हृदएक दूटा रूप होइत अछि, मुदा अन्तर्मन सदिखन सत्य बजैत अछि ओहिठॉ मिथ्याक स्थान नहि।
कुरूक्षेत्र रणभूमि अवश्य छल परंच ओहिठॉ सत्यक विजयक लेल युद्ध भेल। ओहिठॉ धर्मसंस्थापनार्थ विनाश लीला मचल छल। हमरा सभकेँ अपन अन्तर्आत्मामे कुरूक्षेत्रक दर्शन करएवाक लेल दिशा निर्देशन कऽ रहल छथि गजेन्द्र जी।
मैथिली साहित्यक कोन असत्यकेँ त्याग करवाक चाही? किअए सुमधुर वयनाक एहेन दशा भेल? नव पथक निर्माण नवल दृष्टिकोणसँ हएत। हमरा बुझने एहि पोथीमे साहित्य समागमक लेल दृष्टिकोणकेँ प्राथमिकता देल गेल अछि। एहेन विलक्षण साहित्यपर आलेख लिखव हमरा लेल आसान नहि अछि- मुदा दु:साहस कऽ रहल छी-
भऽ रहल वर्ण-वर्ण नि:शेष
शब्दसँ प्रकटल नहि उधेश्य
मोनमे रहल मनक सभ वात
अछिंजलसँ सध: स्नात
सात खण्डमे विभक्त एहि पोथीकेँ सम्पूर्ण परिवारक लेल सनेश कहि सकैत छी।
प्रवंध-निवंध-समालोचना:- एहि खण्डक आदि लोकगाथापर आधारित कथा सीत-वसंतसँ कएल गेल अछि। उत्तर मध्यकालीन इतिहासमे अल्हा-ऊदल, शीत वसंत सन कतेक कथा प्रचलित छल, जकर मंचन पद्यक रूपमे वर्तमानकालमे विहारक गाम-गाममे भऽ रहल अछि। एक राज परिवारक विषय-वस्तुक चित्रण करैत लेखक सतमाएक िसनेहपर प्रश्न चिन्ह लगैवाक प्रयास कएलनि अछि? कथाक आरंभसँ इति धरि मर्मस्पर्शक अनुभव होइत अछि। कथाक अंतमे विमाताकेँ ओहि पुत्रक छाया भेटलनि जकर पराभव ओ कऽ देने छलीह।
श्री मायानन्द मिश्र मैथिली साहित्यक सभ विधाक मांजल साहित्य कार मानल जाइत छथि। हुनक इतिहास वोधक चारू प्रमुख स्तंभ प्रथमं शैलपुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहित आ स्त्रीधनपर सम्यक आलेख प्रस्तुत कऽ गजेन्द्र जी पूर्वमे लिखल गेल प्रबंधक दृष्टकोणकेँ चुनौती दऽ रहल छथि। ऋृग्वैदिक कालीन इतिहासपर आधारित मंत्रपुत्र मायानन्द जीक प्रमुख कृति मानल जाइत अछि। एहि पोथीक लेल माया जीकेँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटल अछि। मंत्रपुत्र पाश्चात्य इतिहाससँ प्रभावित अछि। मंत्रपुत्रक संग-संग पुरोहितमे सेहो पाश्चात्य संस्कृितक झलकि देखए अबैत अछि। अपन समालोचनाकेँ गजेन्द्र जी अक्षरश: प्रमाणित कऽ देने छथि, मुदा मायाबावूक रचना संसारपर कोनो तरह प्रश्न चिन्ह नहि ठाढ़ कएलनि। समीक्षाक रूप एहने होएवाक चाही। समीक्षककेँ प्ूर्वाग्रह रहित रहलासँ साहित्यिक कृतिक मर्यादा भंग नहि होइत अछि।
केदारनाथ चौधरी जीक दू गोट उपन्यास ‘चमेली रानी’ आ ‘माहुर’पर गजेन्द्र जीक समीक्षा पूर्णत: सत्य मानल जा सकैत अछि। मैथिली साहित्यमे बहुत रास रचनाक विक्री सम्पूर्ण मैथिल समाजमे जतेक नहि भऽ सकल, ‘चमेली रानी’क ओतेक विक्री मात्र जनकपुरमे भेल। एहिसँ एहि साहित्यक प्रति पाठकक श्रद्धाकेँ देखल जा सकैत अछि। ‘माहुर’ मैथिली साहित्यक लेल क्रांतिकारी उपन्यास थिक। अरविन्द अडिगक कृतिक चरित्रसँ एहि उपन्यासक एक पात्रक तुलना लेखकक भाषायी समृद्धताकेँ प्रदर्शित करैत अिछ।
विदेह-सदेहक सौजन्यसँ श्रुति प्रकाशन द्वारा नचिकेता जीक एकटा नाटक ‘नो एण्ट्री मा प्रविश’ प्रकाशित भेल अछि। एहि नाटकक लेखनपर नचिकेता जीकेँ कीर्ति नारायण मिश्र सम्मान देल गेल अछि। नाटकक चारू कल्लोलक तर्क पूर्ण विश्लेषण कऽ गजेन्द्र जी समीक्षाक रूप बदलवाक प्रयास कएलनि अछि। एहि नाटकमे तार्किकता आ आधुनिकताक विषय वस्तु निष्ठताकेँ ठाम-ठाम नकारल गेल अछि।
रचना लिखवासँ पहिने अध्यायमे गजेन्द्र जी मैथिली साहित्यमे भाषा सम्पादनपर विशेष ध्यान देवाक प्रयास कएलनि। अपन साहित्यमे भाषायी त्रुटिपर पूर्णरूपसँ ध्यान नहि देल जा रहल अछि।
कविशेखर ज्योतिरीश्वर, विद्यापति शब्दावली, रसमय कवि चर्तुभूज शब्दावली आ बद्रीनाथ शब्दावली द्वारा मिथिला-मैथिलीक सर्वकालीन शब्द विन्यासक आ शब्द भंडारक विस्तृत वर्णन कएल गेल अछि। एहिसँ निश्चय भाषा सम्पादनमे सहायता भेटल। कतेक रास एहेन शब्द अछि जकर विषयमे हम की साहित्यक पैघ-पैघ वेत्ता पहिने नहि जनैत होएताह। निश्चित रूपसँ ई अध्याय पाठकक संग-संग साहित्यकार आ असैनिक सेवाक ओहि प्रतियोगीक लेल उपयोगी हएत जे मैथिलीकेँ मुख्य विषयक रूपे प्रतियोगितामे सम्मिलित होएवाक लेल प्रयत्नशील छथि। समीक्षक हमरा सबहक मध्य एकटा नव पद्य विधाक चर्च कऽ रहल छथि- हाइकू। एहि विधापर मैथिलीमे पहिनहुँ रचना होइत छल जेना- “ई अरदराक मेघ नहि मानता रहत बरसिकेँ। मुदा एहि विधाकेँ क्षणिका नाअोसँ जानल जाइत छल। जापानी साहित्यक द्वारा सृजित एहि पद्य रूपक वास्तविक चित्रण मैथिली साहित्यमे गजेन्द्र जी आ ज्योति झा चौधरी कएलनि अछि।
मिथिलाक लेल प्रलय कहल जाए वा विभीषिका- ‘बाढ़ि’ ई शब्द सुनितहि कोशी, कमला, बलान, गंडकी, बागमती आ करेहक आंतसँ ओझराएल लोक सभ कॉपि जाइत छथि। एहि समस्याक स्थिति, सरकारी प्रयासक गति आ दिशाक संग-संग बचवाक उपाएपर लेखकक दृष्टिकोण नीक बुझना जाइत अछि।
कोनो ठाम आ कोनो आन धाममे जौं हमरा लोकनिक विषयमे पता चलए-की मैथिल छथि, लोकक दृष्टकोण स्पष्ट भऽ जाइत अछि- हम सभ मछगिद्धा छी। एकर कारण जे धारक कातमे रहनिहार जीवक जीवन जलचरे जकाँ होइत अछि।
जलीय जीवक भक्षण अधिकांश व्यक्ति करैत छथि। तेँ ने हमरा सभकेँ मॉछ आ मखानक प्रेमी बुझल जाइत अछि, आ वास्तवमे हम सभ मॉछक प्रेमी छी। अधिकांश मैथिल ब्राह्मण परिवारमे सोइरीसँ श्राद्ध धरि माॅछक भक्षण अनिवार्य अछि। अान जातिमे अनिवार्य तँ नहि अछि, मुदा ओहु वर्गक अधिकांश लोक मॉछक प्रेमी छथि। लेखक एहि लोकक भक्षण धारकेँ ध्यान धरैत कृषि मत्स्य शब्दावली लिखलन्हि अछि।
एहिमे सभ प्रकार मॉछक आकार, रंग, रूपक विश्लेषण कएल गेल अछि। कृषिकार्यक लेल जोड़ा वरदक संग हर पालो इत्यादिक ज्वलन्त व्यवस्थापर लेखकक विचार नीक मानल जा सकैत अछि। करैल, तारवूज आ खीराक विविध प्रकारक नाओ सुनि गामक जिनगी स्मरण आवि जाइत अछि।
एहि खण्डक सभसँ नीक विषय जे हमरा अन्तर्मनकेँ हिलकोरि देलक ओ अिछ विस्मृति कवि- पंडित राम जी चौधरीक रचना संसारपर प्रवाहमय आ विस्तृत प्रस्तुति।
हमरा सबहक भाखाक संग िकछु विषमता रहल जे एहिमे कतेक रास एहेन रचनाकार भेल छथि जे अपने संग अपन रचनाकेँ गेंठ बन्हने विदा भऽ गेलाह। एकर कारण एहिमे सँ किछु रचनाकारक रचनाक संकलन नहि भऽ सकल वा भेवो कएल तँ पाठक धरि नहि पहुँचल। एहि लेल ककरा दोष देल जाए रचनाकारकेँ आ हमरा सबहक भाषाक तत्कालीन रक्षक लोकनिकेँ? एहि भीड़मे राम जी चौधरीक नाओ सेहो अछि। मैथिली साहित्यमे रागपर लिखल रचनामे राम जी बावूक रचना सेहो अछि। भक्तिमय राग विनय विहाग, महेशवाणी, ठुमरी तिरहुता, ध्रुपद, चैती आ समदाओनक रूपमे हुनक लेखनीसँ निकलैत गीत सभ अलम्य अछि। शास्त्रीय शैलीक मैथिली गायनमे वर्तमान पिरहीक लेल अत्यन्त उपयोगी रचना सभकेँ प्रकाशमे आनि गजेन्द्र जी मिथिला, मैथिली आ मैथिलपर पैघ उपकार कएलनि अछि। सत्यकेँ स्वीकार करवाक सामर्थ्य मात्र किछुए लोकमे होइत अछि। गजेन्द्र जी ओहि लोकक पातरिमे ठाढ़ एक व्यक्ति छथि परिणामत: मैथिली साहित्य भोजपुरीसँ आगाँ मानल जाइत अछि मुदा गुणवताक दृष्टिए भोजपुरी रास परिमार्जित अछि। भोजपुरी साहित्यक काल पुरूष भिखारी ठाकुरक मर्म स्पर्शी विदेशिया एहि भाषाक अलग पहिचान भेटल। मैथिली भाषामे विदेशियाक कमीक मुख्य कारण रहल-प्रवासक प्रति उदासीनता। जौं लिखलो गेल तँ महाकाव्यक रूप दऽ देल गेल। विदेशिया पद्य आ विधापतिक लिखल? हमरो विश्वास नहि भेल छल। विद्यापतिकेँ मुख्यत: श्रैंगारिक कवि मानल जाइत अछि। ओना हुनक रचनाकेँ भक्ति रससँ सेहो जोड़ल जाइत अछि। कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक पोथी पढ़लासँ नव सोच मोनमे आवि गेल। जकरा भोजपुरी साहित्यमे विदेशिया कहल गेल वास्तवमे मैथिलीमे ओ अछि- पिया देशान्तर।
विद्यापतिक नेपाल पदावलीमे एहि प्रकार रचना सभ संकलित अछि, मुदा कहियो एहि रूपे महिमा मंडित नहि कएल गेल। कारण स्पष्ट अछि पिया देशान्तरक नाटय रूप मिथिलाक पिछड़ल जातिक मध्य प्रदर्शित कएल जाइत अछि। तेँ अग्रसोची लोकनि एकरासँ दूरे रहव उचित बुझैत छथि। एहिसँ मैथिलीक दशा-दिशाकेँ नव गति कोना भेटि सकैत अछि। मैथिली लोकभाषा अछि, लोक संस्कृतिकेँ बढ़यवाक प्रयास करवाक चाही। गजेन्द्र जीक सोझ दृष्टिकोणकेँ विम्वित करवाक चाही।
“एतहि जानिअ सखि प्रियतम व्यथा” –श्रैंगारिक-विरह व्यथाक वर्णन मुदा अछि तँ पिया देशान्तर।
श्री सुभाष चन्द्र यादव जीक कथा संग्रह ‘बनैत-विगड़ैत’पर गजेन्द्र जीक समीक्षा अपूर्व अछि। प्रवेशिकामे हुनक कथा ‘काठक बनल लोक’ पढ़ने छलहुँ। काठक बनल लोकक नायक वदरियाक मर्म देखि पाथरो पिघलि जा सकैत अछि। वास्तवमे सुभाष जी मैथिली साहित्यक फनीश्वर नाथ रेणु छथि। महिमा मंडनक कालमे मात्र भाँज पुरएवाक लेल हिनक कथा पाठ्यक्रममे दऽ देल जाइत अछि। आंचलिक रचनाकेँ कहिया धरि उपहासक पथियामे झाॅपि कऽ राखल जाएत? एक नहि एक दिन छीप उधिया जएत आ सत्यक सामना करए पड़त। लोक धर्मी साहित्यकार चाहे ओ धूमकेतु, कुमार पवन कमला चौधरी, सुभाष चन्द्र यादव, जगदीश प्रसाद मंडल वा कोनो आन होथु- हुनका सबहक रचनाक उपेक्षा नहि होएवाक चाही। सुभाष जीक कथा कनिया-पुतरा, बनैत-विगड़ैत आ दृष्टिक समीक्षा देखि समए-कालक दशाक अविरल द्वन्द्व उपस्थित भऽ जाइत अछि। ऋृणी छी जे गजेन्द्र बावू एहि पोथीपर समीक्षा लिखलन्हि। इंटरनेटक लेल अन्तर्जाल प्रयोग, नीक लागल। वेवसाइट बनएवाक तकनीकसँ गजेन्द्र जीक उद्वोधन आ नियमन नहि बुझि सकलहुँ। तीन वेरि पढ़लहुँ मुदा जेठक तेज विहारि जकाँ मॉथपरसँ उड़ि गेल। नव-नव नेना भुटका बुझि जएताह। तकनीकी युगक नेनाक स्मरण शक्तिक आॅगन पैघ होइत छथि तेँ हुनके सबहक लेल एहि अध्यायकेँ छोड़ि देलहुँ।
लोरिक गाथा समाजक उपेक्षित वर्गक संस्कृतिपर आधारित अछि। सहरसा-सुपौलक वीर आदि पुरूष लोकिकक परिचए-पातमे पौराणिक मैथिल संस्कृतिक दर्शन होइत अछि।
मिथिलाक खोजमे जनकपुर, सुग्गा धनुषा सन नेपालक स्थलसँ लऽ कऽ मधुबनी जिलाक कतेको उत्तर मैथिल गामसँ दक्षिणमे जयमंगलागढ़ (वेगूसराय)क चर्च कएल गेल अछि। पूवमे पूर्णिया किशन गंजक कतेक स्थलसँ लऽ पश्चिममे चामुण्डा (मुजफ्फरपुर)क मॉ दुर्गाक मंदिरक चर्च कएल गेल अछि।
मिथिलाक िकछु स्थानक वर्णन एहि सुचीमे नहि भेटल जेना- सती स्थान (गाम-शासन प्रखंड-हसनपुर जिला- समस्तीपुर) आ उदयनाचार्यक जन्म स्थली (गाम-करियन जिला- समस्तीपुर)। एहि लेल लेखककेँ दोष नहि देल जा सकैत अछि, किएक तँ मिथिलाक खोज विदेहसँ लेल गेल अछि, जाहिमे गजेन्द्र जी अवाहन कएने छथि, जे जिनका लग कोनो प्रसिद्ध स्थलक विषएमे जानकारी हुअए जे एहिमे सम्मिलित नहि अछि तँ ओकर छाया चित्रक संग सूचना पठाओल जाए। किछु स्थल आर छूटल भऽ सकैत अछि, प्रवुद्ध पाठक एहि विषएपर कार्य कऽ सकैत छी।
सहस्त्रवाढ़नि उपन्यास :- सहस्त्रवाढ़नि एकटा आकाशीय पिण्ड होइत अछि, जकर दर्शन आर्यक धार्मिक दृष्टिकोणमे अछोप बुझना जाइत अछि, मुदा उपन्यासकार एक अछोप पिण्डकेँ आत्मसात् करैत एकरा सावित्री बना देलनि। सावित्री अपन पातिब्रत्य आ दृढ़ निश्चयसँ सत्यवानक प्राण यमराजसँ छीनि लेने छलीह। एहि उपन्यासक दृष्टिकोण तँ एहन नहि अछि परंच उपन्यासक नायक आरूणिक मृत्युपर विजयमे सहस्त्रवाढ़निक उत्प्रेरणक उद्वोधन कएल गेल अिछ। कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक मूल पृष्ठपर सहस्त्रवाढ़निक चित्र देल गेल अछि। एहिसँ प्रमाणित होइत अछि रचनाकारक दृष्टिमे सम्पूर्ण पोथीक सातो खण्डमे एहि उपन्यासक विशेष महत्व अछि। सहस्त्रवाढ़निक अध्ययन कएलापर उन्नैसम शताब्दीक उतरांशसँ वर्तमानकाल धरिक वर्णन कएल गेल अछि।
एक परिवारक एक सए पंद्रह बरखक कथाक वर्णनकेँ कल्प कथा मानव निश्चित रूपसँ रचनाकारक भावनापर कुठाराघात मानल जाएत। सध: ई कथा रचनाकारक पॉजड़िक कथा अछि। जौं एकरा गेजेन्द्र बावूक आत्मकथा मानल जाए तँ संभवत: अति शयोक्ति नहि हएत।
उपन्यासक आदि पुरूष झिंगुर बावू एकटा किसान छथि। जनिक घरमे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसक स्थापना बर्ख सन् १८८५ई.मे एकटा बालक जन्म लेलन्हि- कलित। कलितक नेनपनसँ एहि उपन्यासक श्री गणेश कएल गेल। कलितकेँ ओहि कालमे वंगाली शिक्षकसँ अंग्रेजीक शिक्षण व्यवस्था दरिभंगामे कएल गेल। एहिसँ दू प्रकारक भावक वोध होइत अछि। पहिल जे झिंगुर बावू समृद्ध लोक छलाह। ओहि कालमे अवहट्ठक शिक्षा सेहो गनल गुथल परिवारमे देल जाइत छल, अंग्रेजीक कथा तँ अति विरल छल। देासर जे वंगाली लोक हमरा सभसँ शिक्षाक दृष्टिमे आगाँ छलाह। वंगाली जातिक अंग्रेजी शिक्षक, हम सभ कतेक पाछाँ छलहुँ जे हमरा सबहक संस्कृतिक राजधानी दरिभंगामे कोनो मैथिल अंग्रेजी शिक्षक झिंगुर बावूकेँ नहि भेटलन्हि।
सौराठ आ ससौलाक सभा गाछीक चर्च तँ बेरि-बेरि कएल जाइत अछि, मुदा एहि पोथीमे विलुप्त सभा बलान कातक गाम परतापुरक सभा गाछीसँ कथाकेँ जोड़वाक दृष्टिकोण अलग मुदा नीक बुझना जाइत अछि। कलितक विवाहमे वर महफामे, बूढ़ वरियाती कटही गाड़ीमे आ जवान लोकक पैदल जाएव वर्तमान पीढ़ीक लेल अजगुत लागत मुदा अपन पुरातन संस्कृतिसँ नेना-भुटकाकेँ आत्मसात कराएव आवश्यक अछि। कलितक मृत्युक पश्चातक कथा हुनक छोट पुत्र- नंद-क परिधिमे धूमए लागल। नंदक पारदर्शी सोच, अपन कनियासँ प्रत्यक्षत: गप्प करव, तृतीय पुरूषक रूपे संवोधन नहि। मिथिलामे वर-कनिया, सासु-पुतोहु, साहु जमाएक गप्पमे तृतीय पुरूषक संवोधन अनिवार्य होइत अछि। एहि प्रकारक व्यवस्थाक विरूद्ध नंदजी अपन नवल सोचकेँ केन्द्रित कएलन्हि। वर-कनियाँक संवंध स्वाभाविक रूपेँ तँ समझौता मात्र होइत अछि परंच संसारक व्यवस्थामे सभसँ पवित्र आ अपूर्व संबंध यएह होइत अछि। जीवन भरि निर्वहन कोनो एक जनक संग छूटलापर दोसरमे व्यथा..... अकथ्य व्यथा। तेँ एहि संबंधमे प्रत्यक्ष संवोधन होएवाक चाही। हमर दृष्टिकोण ई नहि जे अपन संस्कृति पराभव कऽ देवाक चाही, मुदा संस्कृति आ व्यवस्थाकेँ सेहो कालक गतिमे परिवर्तनक अनिवार्यता प्रतीत होइत अछि।
आर्यावर्त्त न्याय, कर्म, मीमांसा सन प्रांजल दर्शनक अार्विभाव भूमि मानल जाइत अछि। एहि खण्डमे एकटा नव दर्शनसँ मिथिलाक भूमिकेँ वैशिष्ट्ता प्रदान कएल गेल ओ अछि- इमान आ मर्मक विम्बमे संबंधक मर्यादा। नंद बावू इंजीनियर छलाह। जौं अपन धर्मकेँ किछु ढील कऽ दैतथि तँ भौतिकताक बाढ़िसँ परिवार ओत-प्रोत भऽ सकैत छल। मुदा एना नहि कऽ सतत अपन कर्मकेँ साकार सत्यसँ बान्हि लेलन्हि। स्वाभाविक अछि अर्थयुगमे इमानक प्रासंगिकता बड़ ओछ भऽ जाइत अछि। असमए मृत्युक पश्चात् परिवारक दशाक विवेचन मर्मस्पर्शी लागल। हुनक सत् कर्मक प्रभाव यएह भेल जे संतान सभ विशेषत: आरूणि भौतिक रूपसँ रास संपन्न तँ नहि भऽ सकलाह मुदा पिताक छत्र-छायाक आंगनमे मनुक्ख भऽ गेलाह। कर्मक गतिसँ लोक राज भोगकेँ प्राप्त तँ कए सकैत अछि, मुदा मनुक्ख बनवाक लेल नैसर्गिक संस्कार वेशी महत्वपूर्ण होइत अछि। तेँ कहलो गेल अछि- “बढ़ए पूत पिताक धर्मे।” कतहु-कतहु नीच विचारक मानवक संतान मनुसंतान भऽ जाइत अछि, एहिमे दैहिक संस्कार आ प्रकृतिक लीला होइत अछि। आरूणिक दृढ़ विश्वासपर केन्द्रित एहि उपन्यासक कथामे सतत प्रवाहक गंगधारा खहखह आ शीतल बुझना गेल। जँ कथाकेँ आत्मसात् कएल जाए तँ कोनो अर्थमे एकरा काल्पनिक नहि मानल जा सकैछ। आत्मकथा स्पष्टत: नहि मानि सकैत छी, किएक तँ उपन्यासकार कोनो रूपेँ एकर उद्वबोधन नहि कएलनि अछि। भऽ सकैत अछि समाजक अगल-बगलक रेखाचित्र हो, मुदा हमरा मतेँ ई कल्पना नहि, सत्य घटनापर आधारित अछि।
उपन्यासमे एकटा कमी सेहो देखलहुँ। अंग्रेजी आखरक ठाम-ठाम प्रयोग कएल गेल जेना- एनेश्थेशिया, ओपिनियन, इम्प्रेशन आदि। एहि सभ शब्दक स्थानपर अपन शब्दक प्रयोग कएल जा सकैत छल, मुदा नहि कएल गेल। हमरा बुझने हम दोसर भाखाक ओहि शब्द सभकेँ मात्र आत्मसात करी जकर स्थानपर हमर अपन भाखामे शब्दक अभाव अछि।
सहस्त्राब्दीक चौपड़पर :- कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनकक तेसर खण्ड कविता संग्रहक रूपमे अछि, जकर शीर्षक ‘सहस्त्राब्दीक चौपड़पर’ देल गेल। मात्र तैंतालीस गोट कविताक सम्मिलनमे श्रंृगार, विरह हैकू, विचार मूलक कविताक संग-संग एकटा ध्वज गीत सेहो अछि। इन्द्रधनुषक आसमानी रंग जकाँ प्रथम कविता ‘शामिल वाजाक दुन्दभी वादक’मे क्षणिक प्रकृतिक आवरणमे स्वर-सरगमक भान होइत अछि, मुदा अन्तरक अवलोकनक पश्चात् दशा पूर्णत: विलग। राजस्थानक वाद्य संस्कृतिमे एकटा दर्शक वाद्य यंत्रक प्रासंगिकताक केन्द्रनमे कविक भाव अस्पष्ट लागल। सहज अछि ‘जतऽ‘ नहि पहुँचथि, अेातऽ गएलनि कवि’। कवि स्वयं दुन्दभी वादक छथि तेँ स्पष्ट दर्शन कोना हएत। हिन्दी साहित्यमे एकटा कविता पढ़ने छलहुँ ‘गोरैयो की मजलिसमे कोयल है मुजरिम’। संभवत: समाजक पथ प्रदर्शकक मूक दृष्टकोणकेँ कविताक केन्द्र विन्दु बनाओल गेल अछि। बहुआयामी व्यक्तित्वक धनी व्यक्ति सेहो जीवनक गतिमे दबावक अनुभव करैत कतहु-कतहु अपन संवेदनाकेँ दवा कऽ दुन्दभी बनवाक नाटक करैत छथि। केओ-केओ दोसरकेँ संतुष्ट करबाक लेल अपन विचारधारा वाह्य मनसँ बदैल दैत छथि। संतुष्टीकरण प्रवृति वा कोनो प्रकारक मजवूरी हो हमरा सभकेँ परिस्थितिसँ सामंजस करबाक बहाने अपन सम्यक विचारकेँ माटिक तरमे नहि झॅपवाक चाही। समाज जौं एकरा पूर्वाग्रह मानए तँ अपन पक्षक विवेचन कएल जाए, मुदा अनर्गल प्रलापकेँ मूक समर्थक नहि देवाक चाही।
मोनक रंगक अदृश्य देवालमे परिस्थितिजन्य विषमताक विषय वस्तुक दर्शन आशातीत अछि। मन्दाकिनी.... आ पक्का जाठि शीर्षक कवितामे प्रकृति आ समाजक स्थितिक मध्य विगलित मानवतापर मूक प्रहारमे कविक नैसर्गिक मुदा अदृश्य सोच हमरा सन साधारण समीक्षक लेल अनुबूझ पहेली जकाँ अछि। अपन पुरातन इतिहासक ओहि दिवसकेँ लोक स्मरण नहि करए चाहैत छथि, जाहिसँ अतुल पीड़ाक अनुभव होइत अछि। त्रेता युगक घटना, कलियुग धरि पाछाँ धेने अछि। सीता जीक वियाह अगहन शुक्ल पक्ष पंचमीकेँ भेलनि, परिणाम सोझा अिछ। तखन शतानंद पुरोहित जी खरड़ख वाली काकीक विआह ओहि तिथिमे किएक करौलन्हि? भऽ सकैत अछि हुनक भाग्यमे सीताजी जकाँ गृहस्थ सुख नहि लिखल दुख मुदा कलंक तँ ‘वियाह पंचमी’ तिथिकेँ देल गेल। एहि कवितामे कविक दृष्टकोण तँ विधवा विआहक समर्थन करवाक अछि, मुदा सवर्ण मैथिल नहि स्वीकार कऽ रहल छथि। अपन पुरान सॉगह लऽ कऽ हम सभ हवड़ाक पुल बनाएवक कल्पनामे कहिया धरि ओझराएल रहव?
एहि कविता संग्रहमे जे नव विषय बुझना गेल ओ अछि ‘बारह टा हैकू’। गिदरक निरैठ, राकश थान, शाहीक मौस आ बिधक लेल शब्द-शब्द बजैत अछि।
हैकूक सार्थक अर्थ लगाएव अत्यन्त कठिन होइत अछि, मुदा हमरा बुझने जौं एहेन हैकू लिखल जाए तँ नेनो सभ जे मैथिलीमे माए परिवार कुटुम्वक संग बजैत छथि अवश्य बूझि जएताह।
मिथिलाक ध्वज गीतमे मातृभूमिसँ कर्मक सार्थक गति मांगल गेल अछि। जेना गायत्री परिवारक प्रार्थना वह शक्ति हमे दो दयानिधि मे गाओत जाइत अछि। मातृ वंदनाकेँ कविता संग्रहमे देवाक हिनक दृष्टिकोण रचनाक्रममे उपयुक्त हो मुदा हमरा मते एकरा कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक प्रथम पृष्ठपर वंदनाक रूपमे देल गेल रहिते तँ बेसी सुन्नर होइतए।
‘बड़का सड़क छह लेन बला’मे मिथिलाक विकासक क्रमित स्थितिक वर्णन कएल गेल अछि।
सम्पूर्ण कविता संग्रहक अवलोकनक वाद कोनो पद्य अकच्छ करैबला नहि लागल। ‘पुत्र प्राप्ति’ शीर्षक कवितामे लुधियानामे हमरा सबहक समूहक एकटा पंडितक ठकपचीसीक चर्च कएल गेल अछि। एहने ठकक कारण ‘विहारी’ व्यक्तिकेँ आठ ठाम लोक शंकाक दृष्टिसँ देखैत छथि। मुदा गजेन्द्रजी सँ हमर आग्रह जे एहि कविताक पंजावी भाषामे अनुवादक अनुमति नहि देल जाए नहि तँ कतेको भलमानुष बनल मैथिल घुरि कऽ गाम आवि जएताह आ हमरा सबहक समाजमे कुचक्र आरो बढ़ि जाएत।
गल्प गुच्छ :: २३ गोट कथा-लघुकथाक सम्मिलन कऽ गल्प गुच्छक नाओ देल गेल। चौंसठि पृष्ठक एहि खण्डमे समए-सालक सभ रूपकेँ बिम्वित करैत कथाकार सािहत्यक समग्र विधापर लेखनक प्रयास कएलनि अछि। सर समाज कथामे अर्थनीतिक मौन प्रस्तुति नीक लागल मुदा कलात्मक शैलीक अभाव बुझना गेल। घरक मरम्मतिक बिम्वित खिस्सामे कनेक रस-प्रवाह रहितए तँ कथा आर नीक भऽ सकैत छल। हम नहि जाएव विदेशमे पलायनवादक विरोध कएल गेल अछि बिम्व तँ नीक अछि मुदा विश्लेषणमे अलंकारक तादात्म्य नहि भेटल। एहेन मार्मिक विषय-वस्तुक कथा तँ ओहि प्रकारक होएवाक चाही जाहिसँ हियमे हिलकोरि उत्पन्न भऽ जाए। राग भैरवी छोट मुदा संस्कृतिकेँ छूबैत अछि। काल स्थान विस्थापन आ वैशाखीपर जिनगीकेँ औसत मानल जा सकैत छैक।
कोनो साहित्यकेँ ता धरि पूर्ण नहि मानल जा सकैछ जा धरि समाजक अंतिम व्यक्तिसँ संबंधत भाषा साहित्यकेँ जोड़ल नहि गेल हुअए। “सर्व शिक्षा अभियान” कथाकेँ पढ़़लाक वाद मैथिली साहित्यमे दलित, पिछड़ा आदि वर्गक प्रति सरकारी योजनाक िनष्फल होएबाक कारण केर स्पष्टीकरण वास्तविक लगैत अछि। पेटमे अन्नक फक्का नहि हो आ पोथी मुफ्तमे भेटए, एहेन शिक्षाक स्थितिपर प्रश्न चिन्ह ठाढ़ करव स्वाभाविक अछि। साम्यवादी सोच राखएबला कथाकार कथाक बहाने स्पष्ट करए चाहैत छथि जे गरीबक मध्य जातिक आधारपर विभाजन हमरा सबहक समाजक कलुष रूप थिक। छोट उद्येश्यपूर्ण कविताकेँ क्षणिका वा हाइकूक नाओ देल गेल मुदा लघुकथाकेँ की कहल जाए? लघुकथामे बिम्वक विश्लेषण अति क्लिष्ट होइत अछि मुदा “जातिवादी मराठी”मे मैथिली भाषाक अस्तित्वपर लागल जातिक कलंकक प्रस्तुति सराहनीय अछि। थेथर मनुक्ख, बहुपत्नी विवाह आ िहजड़ा, स्त्री-बेटी विआह आ गोरलगाइ, प्रतिभा, अनुकम्पाक नौकरीक सभक विषय-वस्तु छोट-छीन परंच सारगर्भित लागल। जेना हिन्दी साहित्यक पत्र-पत्रिकामे चर्चित लेखक खुशबन्त सिंह मात्र दू पॉतिमे बहुत-रास गप्प लिखि जाइत छथि ठीक ओहिना एहि सभ लघुकथाकेँ पढ़ि बुझना गेल।
जाति-पाति लघुकथा तँ पूर्णत: बेच्छप लागल। एकटा डोम जातिक आइ.पी.एस. परिवीक्षाधीन अधिकारीमे जातिक गरानि कोनो आत्मीय मनुक्खकेँ मर्माहित कऽ सकैत अछि। मृत्युदंड आ वाणवीरक सामाजिक बिम्वक संग-संग सामन्तवादी, मीडियासँ संबंधित कथा सभकेँ वेजोड़ तँ नहि मुदा मैिथली साहित्यक लेल नूतन-धाराकेँ स्पर्श करैबला कथा जौं मानल जाए तँ कोनो दोख नहि।
आव प्रश्न उठैत अछि जे गल्प-गुच्छकेँ कोन रूपक मानल जाए। हमरा सबहक भाषाक संग दुर्भाग्य रहल जे कथाक विषय वस्तुसँ वेशी भाषा विज्ञान, बिम्वक विश्लेसन आ शब्द विन्यासक कलाकारीपर विशेष ध्यान देल जाइत अछि। साहित्यक अधिकांश अधिष्ठाता एकटा गप्पपर नहि ध्यान देबए चाहैत छथि जे रचनासँ समाजक परिदृश्यमे सम्यक जीवनक सनेश जाएत वा नहि। जातिक संग-संग संतुष्टीकरण केर छद्मसँ ऊपर उठव अनिवार्य अछि नहि तँ मैथिलीक अस्तित्वपर प्रश्न चिन्ह ठाढ़ भऽ जएत। भौगोलिकीकरणक परिधिमे मैथिली सभसँ बेसी प्रभावित भेल छथि। सौतिन भाषाक संग-संग पाश्चात्य संस्कृतिक प्रभावसँ वैदेही टिम टिमा गेली। एहि भाषामे नवल अर्चिस जड़एबाक लेल वर्ग संघर्षक स्थितिसँ ऊपर उठि कऽ कार्य करवाक चाही। पागक अभिप्राय जौं मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक संग-संग बहुल झॉपल मुदा जनभाषाक संरक्षक वर्ग धरि पहुँचवाक प्रयास कएल जाए तँ मैथिलीक दशामे फेरि चारि नहि आठ गोट चान लागि जाएत।
एहि कथा सबहक कथाकार कथाक शैली ओ विवेचन जे हुअए एकर निर्णए पाठकपर छोड़ि देवाक चाही मुदा रचनाक उद्येश्य स्पष्ट अछि। गजेन्द्र जी निश्चित रूपेँ एहि कथा संग्रहक माध्यमसँ समाजमे अपन संस्कृतिक रक्षा करैत नूतन सम्यक ज्येाति जड़ाबए चाहैत छथि, जतऽ डोम, चमार, ब्राह्मण, राजपूत, मुसलमान ओ कायस्थ नहि मात्र “मैथिल” शब्दक व्योमक परिधिमे मिथिलाक चर्च कएल जाए।
दुर्भाग्य अछि जे मैथिली पोथीक समीक्षा करवामे आलोचना-प्रत्यालोचनाकेँ मूल बिम्व मानल जाइत छैक जखन की आन भाषामे रचनाकारक मनोवृति आ दृष्टिकोणपर ध्यान देल जाइत अछि।
नाटक- संकर्षण
मात्र १६ पृष्ठक नाटक, सुनबामे कनेक अनसोहाँत जकाँ लगैत अछि मुदा जौं तन्मय भऽ कऽ पढ़ल जाए तँ स्पष्ट भऽ जाइत जे हिन्दी साहित्यमे मात्र किछु कथाक कथाकार श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जीकेँ कोना आ किए आत्मसात् कऽ लेल गेल?
संकर्षण सन अभिनेता जाहि नाटकमे हुअए ओहिमे िवशेष भावक उपस्थिति स्वाभाविक अछि। अभिनेताक कोनो गुण नहि मुदा गजेन्द्र जी एकरा प्रधान नायक बना देलनि। समाजक कुहरैत अवस्थाक यएह सत्य रूप थिक एक िदश महीसक चरवाह आ दोसर दिशि कलक्टरक चाटुकार। मिथिलाक समाजिक बिम्वकेँ स्पर्श करैत छोट नाटक संकर्षणमे नुक्कड़ नाटकक रूप अछि। “हौ गोनर! पानि कोना लागए देबैक एकरा। पएरक चमड़ा सड़त तँ फेर नवका आबि जाएत। मुदा ई सड़ि जाएत तखन कतएसँ अएत।” कहवाक तात्पर्य जे जाहि व्यक्तिकेँ शरीरसँ बेसी किछु कैंचाक जुत्ता विशेष महत्वपूर्ण लगैत हुअए ओहि व्यक्तिमे जीवनक तादात्म्यक कोन प्रयोजन?
धर्मनीतिसँ अर्थनीति वेसी महत्वपूर्ण अछि। कालक बदलैत स्वरूपक िचन्तन करवाक योग्य- संभवत: एहि नाटकक यएह उद्येश्य थिक। मंचन करवाक लेल एकरा कोनो अर्थमे उपयुक्त नहि मानल जा सकैछ। किएक तँ पर्दा उठत आ आधा धंटामे नाटक समाप्त। मुदा जीवनक नाटकमंडलीकेँ केन्द्रित करए बला संकर्षण चिन्तन करवाक योग्य अवश्य लागल। सभटा नाटकमे कोनो ने कोनो रूपेँ हास्य आ श्रंृगारक सम्मिलन होइत अछि मुदा एहि ठॉ अभाव किएक तँ समाजक मनोवृत्तिकेँ छुबैत एिह नाटककेँ पढ़ि कोनो कविक एकटा कविताक एक पाॅति मोन पड़ि गेल-
“ठोप-ठोप चारक चुआठकेँ आॅगुरसँ उपछैत रहल छी”
गजेन्द्र जीक प्रयास छोट परंच अनुकरणीय लागल।
त्वन्चाहन्च आ असंजाति मन- जेना की नाअोसँ स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे दुनू काव्य ऐतिहासिक धटनाकेँ बिम्वित कऽ लिखल गेल। धर्म आ कर्मक्षेत्रक परिधिमे आर्य संस्कृतिक विवेचन नीक लागल। एहि महाकाव्यक विषयमे मात्र यएह कहल जा सकैत अछि जे सुरेन्द्र झा सुमन, वैधनाथ मल्लिक विधु आ मार्कण्डेय प्रवासी जीक काव्य लेखन परम्पराकेँ जीवंत रखवाक प्रयास कएल गेल।
बालमंडली आ किशोर जगत- हम सभ गौरवान्वित छी जे मैथिली भाषा समग्र आर्य परिवारक भाषा समूहमे सभसँ सरस भाषा मानल जाइत अछि। साहित्य चिन्तन सेहो पाठकक गणनाकेँ देखैत ककरोसँ कम नहि। मुदा एकटा पक्ष जे सभसँ कमजोर रहल ओ िथक मैथिली भाषा साहित्यमे “बाल साहित्यक दरिद्रता।” कहबाक लेल तँ बहुत रास लेखक वा कवि अपनाकेँ बाल साहित्यसँ जोड़वाक सतत् वाक् पटुता देखबैत छथि मुदा जौं पूर्ण रूपसँ बाल साहित्यक रचनाक गणना कएल जाए तँ जीवकांत जी सन मात्र किछु साहित्यकार छथि जिनक लेखनी एहि दिशामे क्रियाशील रहल। जखन की बाल साहित्य जौं परिमार्जित नहि हएत तँ िनकट भविष्यमे मातृभाषाक स्वरूप विगलित भऽ सकैत अछि।
एहि दिशामे गजेन्द्र जीक प्रयाससँ कृतज्ञ होएबाक चाही जे कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक सातो खण्डमे सभसँ नीक खण्ड बाल मंडली। किशोर जगतपर अपन लेखनीकेँ हाथसँ नहि हृदयसँ लिखलन्हि।
एहि खण्डमे दू गोट बाल नाटक तैइस गोट बाल कथा, वर्णमाला शिक्षा आ एक सएसँ ऊपर बाल कविता देल गेल अछि। सभ बिम्वकेँ केन्द्रित करैत लिखल गेल रचना सभक भाषा अत्यन्त सरल अछि। नेना-भुटकाकेँ एहने रचना चाही। जौं तत्सम मे बाल साहित्य लिखल जाए तँ ओकर कोन प्रयोजन? कविता सभ तँ खूब नीक मानल जा सकैत अछि-
आइ छुट्टी
काल्हि छुट्टी
घूमब फिरब जाएब गाम......।
बाल बोधक लेल अलंकारसँ बेसी मनक चंचलता उपयोगी होइत छैक तँए एहि खण्डकेँ आलोचनात्मक स्वरूपसँ देखब उचित नहि।
निष्कर्ष- सात खण्डमे विभक्त एहि पोथीमे साहित्यक समग्र रसक स्वादन करएबाक प्रयास कएल गेल। मुदा एकर सभसँ पैघ नकारात्मक स्वरूप जे एकरा की मानल जाए? भऽ सकैत अछि सभ धाराकेँ छूबि गजेन्द्र जी मैथिली साहित्यमे एकटा नव रूपक धारा केन्द्रित करए चाहैत होथि।
एकटा पोथीमे प्रबन्ध, समालोचना, उपन्यास, गल्प, कविता संग्रह, महाकाव्यक संग-संग बाल साहित्य पोथीकेँ विशाल बना देलक। भऽ सकैत अछि समीक्षक लोकनिक संग-संग िकछु पाठककेँ नीक नहि लागनि मुदा हम एहि प्रकारक प्रयोगक स्वागत करब उचित बूझैत छी। ओना पाठकक सुविधाक लेल अलग-अलग सेहो प्रकाशित कएल गेल अछि।
सभसँ बेसी प्रकाशक धन्यवादक पात्र छथि जे एतेक विशाल पोथीक नीक रूपेँ आ सम्यक् मूल्यमे प्रकाशन कएलन्हि। भाषा सम्पादन सेहो नीक लागल, शाब्दिक आ व्याकरणीय अशुद्धता अत्यन्त न्यून अछि।
पाेथीक नाओ- कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक
लेखक- गजेन्द्र ठाकुर
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समीक्षा
गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा
किछु अर्थमे सन् 2008-2009केँ मैथिली साहित्यक विकासक लेल क्रांतिकाल मानल जा सकैत अछि। सन् 2008ई.मे मैथिली साहित्यमे एक गोट बाल साहित्यक रचना मैथिलीक प्रवीण समीक्षक श्री तारानंद वियोगी जी कएलनि पोथिक नाओ- ई भेटल तँ की भेटल। साहित्य अकादमी द्वारा नव सृजित बाल साहित्य पुरस्कारसँ एहि पोथीकेँ पुरस्कृत कएल गेल अछि। जौं किछु बर्ख पूर्वमे साहित्य अकादमी एहि पुरस्कारकेँ स्थापित करितए तँ भऽ सकैत छल जे मैथिलीक स्थान रिक्त रहिताए किएक तँ कोनो-कोनो वर्षमे मैथिली साहित्यमे बाल साहित्यक रचना भेले नहि छल। सन 2009ई.मे मैथिलीमे कोनो महिला रचनाकार द्वारा पहिल नाटक लिखल गेल। रचनाकार छथि मैथिलीक प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती विभा रानी आ नाटकक नाओ- भाग रौ आ बलचन्दा। हर्खक गप्प जे एहि नाटकमे बाल आ नारी मनोविज्ञानकेँ बिम्वित कएल गेल अछि। ओना तँ श्रीमती इलारानी सिंह सेहो नाटक लिखने छथि मुदा ओ सृजनात्मक नहि भऽ कऽ अनुदित अछि। तँए श्रीमती विभारानीकेँ मैथिली साहित्यक पहिल महिला नाटककार मानल जा सकैत अछि। ओना श्रीमती उषा किरण खान लिखित भुसकौल वाला पहिने छपल। क्रांतिक दीप कोनो योजना बना कऽ नहि जाराओल सकैत अछि। एकर प्रत्यक्ष प्रमाण मैथिलीमे पहिल चित्रकथा- गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा प्रस्तुत करैत अछि। एहि चित्रकथाक सृजन श्रीमती प्रीति ठाकुर कएलनि। प्रीति जीक नाओ एहि चित्रकथाक लेखनसँ पूर्व कोनो साहित्य वा चित्रांकनमे झॉपल जकाँ छल। पहिलुक रचना आ ओहो मैथिली साहित्यक लेल आदि विषय मूलक। भारतीय संविधानक आठम अनुसूचीमे रहितहुँ हम सभ कतहु-कतहु गुम्म छलहुँ। प्रवर भाषा समूहक भाषा मैथिलीमे किछु रचनाक वर्ग अछूत छल। आश्चर्य लागल संगे विस्मित भेलहुँ जे हमरा समाजक एकटा महिला एहि नवल विषयपर कोना केन्द्रित भऽ गेली?
एहि चित्रकथामे सम्पूर्ण मिथिलाक संस्कृतिकेँ बिम्वित करैत जनश्रुित आ ऐतिहासिक कथाक 16गोट खंडपर चित्रकथा प्रस्तुत कएल गेल। पहिल नौ गोट कथा गोनू झाक करनीपर लिखल गेल अछि। गोनू झा कोनो अनचिनहार नाअेा नहि। मुगल दरवारमे जे स्थान वीरबलकेँ भेटल अछि मिथिलाक बाक्-पटुमे ओ स्थान गोनू झाकेँ देल गेल। गोनू विदूषक छलाह मुदा ककरो महिमामंडित मात्र करए बला विदूषक नहि। अपन बुद्धि आ चातुर्यसँ ककरो िवस्मित करबाक कारणेँ हिनक कोनो जोड़ नहि। दुर्भाग्य जे गोनू मैथिल छलाह जौं अंग्रेज वा कोनो आन पाश्चात्य देशक रहितथि तँ वीरबलसँ हिनक तुलना नहि भऽ कऽ बीरवलक तुलना हिनकासँ कएल जाइत। हिनक ई दुर्भाग्य हमरा सबहक लेल सौभाग्य भेल जे एहि मिथिलाक भूमिपर महाकवि विद्यापति, गोनू आ राजा सलहेस सन महामानवसँ हमरा सभकेँ आन लोक जनैत अछि।
एहि पोथीमे संकलित पहिल चित्रकथा गोनूझा आ मॉ दुर्गाजीसँ गोनू झाक बौद्धिक साक्षात्कारक चर्च कएल गेल अिछ। एहि कथाकेँ तँ ऐतिहासिक मान्यता नहि देल जा सकैत अछि किएक तँ इतिहास आ विज्ञानमे भगवान मात्र प्रकृतिस्थ होइत छथि, कोनो वैधानिक नहि। मुदा जौं भावक शतदलक संग देखल जाए तँ नेना-भुटका लेल ई प्रश्नसँ भरल कथा जिज्ञासा अवश्य उत्पन्न कराएत जाहिसँ अंतत: मैथिली साहित्य आ भाखाक लेल लाभ स्वाभाविक मानल जा सकैछ। चित्रक स्तर तँ नीक, रंग-नीक प्रदर्शन नीक मुदा सिंहक चित्र विलाड़ि जकाँ लागल। कोनो राजदरबार हुअए वा कोनो पितृ आ देव कर्मक स्थल, ब्राह्मणक संग-संग ठाकुर अर्थात हजामक भूमिका आन लोकसँ बेसी मानल जाइत अिछ। “गोनू झा आ स्वर्गकथा”मे एकटा ठाकुर गोनूकेँ पछाड़ए चाहैत छथि मुदा स्वयं चित्त। छोट चित्रकथामे नीक चुटुक्का जकाँ प्रस्तुति।
गोनू झासँ संबंधित आन सात गोट कथा सेहो चोहटगर देल गेल अछि। जनश्रुतिक आधारपर लिखल गेल कथा सभ मात्र बालमनोविज्ञानक सेहंतित छायाचित्र प्रस्तुत करैत अछि किएक तँ लिखलो मात्र नेना भुटकाक लेल गेल अिछ।
रेशमा चूहड़मल कथा ऐतिहासिक कथा थिक। भऽ सकैत अछि आर्यावर्त्तक इतिहासकार एकरा मान्यता नहि देथु मुदा मिथिलाक गाम-गाममे चर्चित अछि।
दूधवंशी जातिसँ यदुवंशक तादात्म्य होइत छैक मुदा एहि साहित्यक चूहड़मल दुग्धवंशी दुसाध छथि आ नायिका रेशमा भूमिहार ब्राह्मण। नीक लागल जे मोकामाघाटक कथाक सृजन करवामे पूर्णियाक वणिता आ मधुबनीक पुत्रवधूकेँ कोनो संकोच नहि भेलनि। सिनेहकेँ समाजक जातीय व्यवस्थामे पददलित करवाक दृष्टिकोणकेँ एहि चित्रकथामे तोड़ल गेल अिछ।
नैका बनिजारा कथापर डॉ. मणिपद्म जीक लेखनी मैथिलीमे सन 1973ई.मे फुजि गेल अछि तँए एहि कथासँ लोकजन सभ निश्चित परिचित छथि। प्रवेशिका स्तरपर मणिपद्म जीक ई कथा मैथिलीमे देल गेल छल। एहि पोथीमे सरल भाषा आ बालोनुरागी चित्रांकन नीक लगैत अछि। भगता जोगिन पॅजियारक चित्रांकन सेहो नीक रूपेँ बिम्वित कएल गेल अछि। प्राचीन जनश्रुतिक लुप्त कथा महुआ घटवारिन आ छेछन महाराज पढ़ि आ एकर चित्रांकन देखि नवका पिरहीक नेना भुटका सभ निश्चित रूपसँ मिथिलाक संस्कृतिक कोखिमे प्रवेश करवाक प्रयास करतथि।
राजा सलहेस सन चराचर चर्चित विषय वस्तुक छायांकन आ कालिदासकेँ मिथिलाक संस्कारसँ संबंधक प्रदर्शन मनोवांक्षित लागल।
निष्कर्षत: प्रीति जीक नव प्रयास नवल सोच आ बहुआयामी विषय वस्तुक प्रस्तुति सराहनीय अछि। मैैथिली साहित्यमे नव प्रकारक रचना थिक गोनू आ आन चित्रकथा तँए सम्यक समीक्षा करब हम उचित बुझैत छी।
श्रुति प्रकाशनक समग्र दल धन्यवादक पात्र छथि जे मैिथलीमे जौं पहिल चित्रकथाक नाअो- गोनू आ आन मैथिली चित्रकथा अछि तँ प्रकाशक श्रुति प्रकाशन।
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समीक्षा
बिन वाती दीप जरय
साहित्यक विकास तँ काव्यक विविध श्रेणीक संग-संग गद्यक कांतिसँ होइत अछि मुदा भाषाक विकास तखने संभव भऽ सकैछ जखन ओहिमे रसक सेहंतित सुगंध हुअए। रसास्वादनक लेल वैरागी साहित्यकार सेहो कखनो-कखनो गीत लिखए लगैत छथि किएक तँ गीत मानवकेँ पारिवारिक जीवनमे समाहित विविध समस्यासँ क्षणिक मुक्तिक लेल तिलकोर नहि तँ चटनीक काज अवश्य करैत अछि। मैथिली साहित्यमे किछु गीतकार एहेन भेल छथि जनिक लेखन कलाक समुचित विवेचन नहि भऽ सकल, किएक तँ ओ सभ गीतकार संग-संग गायक वा मंच उद्धोषक सेहो रहलाह तँए समीक्षक लोकनिक दृष्टिमे हुनक प्रतिभा मात्र गबैया जकाँ रहि गेल। जखन की जे श्रोता वा पाठक हुनका सबहक गीतक आनंद उठौने छथि, वएह व्याख्या कऽ सकैत छथि जे हिनका लोकनिक गीतसँ मिथिला-मैथिलीकेँ की-की भेटल? एहि गीत गगनक चन्द्र-तरेगनक समूहमे रवीन्द्र नाथ ठाकुर, नवलजी, सियाराम झा सरस, चन्द्रभानु सिंह, कमलाकांत, कालीकान्त झा बूच'क संग-संग डॉ. नरेश कुमार विकल जीक नाओ देल जा सकैत अछि। आन ऊपर लिखित गीतकार जकाँ विकल जीक गीतमे कतहु फूहड़ वा अभद्र भाषाक प्रयोग नहि। श्रंृगार, विरह, हास्य, अर्थनीति, बाल साहित्य आ गजल सन बहुआयामी गीतक विधामे विकल जी सिद्धस्त छथि। शुद्ध देशज वा देसिल वयनामे लोकधुनकेँ स्पर्श करैत हिनक गीत संग्रह- बिन वाती दीप जरय- सन् 2001ई.मे प्रकाशन संस्थान नई दिल्लीसँ प्रकाशित भेल।
ओना तँ एहि पोथीक आमुखमे डॉ. हरिवंश तरूण जी एकरा काव्य कृति लिखने छथि मुदा वास्तवमे ई गीत संग्रह थिक। सभ प्रकारक सुवासित गंधक संग-संग करूणा, वेदना, समाजक विषय दशाकेँ गीतक बिम्वमे सरिया कऽ विकल जी 51गोट गीतकेँ पोथीक रूप देने छथि। प्रथमं ग्रासे मक्षिका पात्रम' सभसँ पहिलुक गीत वेदनासँ ओत-प्रोत नीक लागल। पहिल पद्य 'चुमलहुँ सभ दिनकाँट'क बिम्व विचार मूलक अछि, छंद आरोही आ धुन लोक धुन संग-संग गेय। संग्रहक अंतिम पद्य वसंंत मुदा पहिल वेदना। भऽ सकैत अछि अपन व्यथित रूपकेँ प्रथमत: ज्वलित कऽ शनै-शनै: रसक क्षीर सागरमे पाठककेँ सरोबरि करवाक हिनक योजना हुअए मुदा हमरा मतेँ एहि गीत संग्रहक पहिल गीत आनंदित करैबला होएवाक चाही। दोसर गीत- सूखल स्नेहक स्त्रोत' सेहो करूण रससँ भल अछि।
अन्तर्मन अतृप्त ज्वार सभ
सरित स्त्रोत केर बात कहाँ
श्याम सघन घन घुमड़ि रहल थिक,
होइछ मुदा बरसात कहाँ!
गीतकार कोन पीड़ासँ उद्वेलित मुदा गुम्म छथि? पद्यसँ स्पष्ट होइत अछि जे ओ अत्यन्त भावुक छथि। कहलो गेल अछि गद्यकार अपन जीवनक रूपकेँ झॉिप सकैत छथि मुदा कवि नहि। कविक कविता हुअए वा गीत प्रबुद्ध पाठक कविक मन उद्वेग आ हृदय जुआरिकेँ हुनक पद्यमे स्पष्ट ध्वनित सुनि सकैत छथि। झरकि रहल मन' आ उसठल फागमे सेहो वेदनाक ध्वनि मार्मिक अछि मुदा कलुषित नहि। दोहा गीत'मे गीतकारक वेदना स्वयंसँ उपटिकऽ समाजक आ देशक कालगतिक आड़िमे परिवर्तित मानसिकताकेँ स्पष्ट करैत अछि-
उड़न खटोला खाट बनि, रहल भूमिपर सूति।
सत्ते कहय जे कालपर, चलयने ककरो जूति।
'उनटा वसात' शीर्षक पद्यमे बिम्व विश्लेषण तँ नीक बुझना जाइछ मुदा शीर्षक कनेक अनसोहांत लागल। बसात कखनहुँ उनटा नहि बहैत अछि, मनुक्खक व्यक्तिगत जीवनमे सुख: दुखक उद्भव आ इतिश्री इहलौकिक होइछ मुदा बसात तँ शास्वत छथि तँए अपन व्यैक्तिक दु:खक दोष प्रकृतिपर नहि देवाक चाही मुदा कविक मन मार्मिक आ चंचल होइछ आ संग-संग विकल जी आशु कवि छथि तँए हिनक दोषारोपणक भाव क्षम्य। एहि पद्यक पाॅति-पॉतिमे स्वातीक बूनक आशमे िसतुआक टकटकी तृप्तिक ज्वार बड़ नीक लागल-
पुरैनक पातपर छी ओंघराएल
ने तन सुगबुगायल ने मन उजबुजाएल।
'अगिआयल सख सेहन्ता, मोनक पीर नीर बनि आएल, नोर सनल जिनगी सबहक बिम्व सामान्य लागल। अोना तँ गीत-गजलमे बिम्वक प्रधानता नहि होइत अछि किएक तँ ध्वनि, राग आ छन्दक समंजनमे रचनाकार बान्हल रहैत छथि तँए सुधि प्रभंजित होएबाक संभावना अधिक।
एहि संग्रहमे दूटा बसंत गीत देल गेल मुदा दुनू नीक मानल जा सकैत अछि। पहिल बसंत गीतमे व्यथाक पराभवसँ सिनेह निकसैत अछि तँ दोसरमे सुखक दुग्धमे अमृतक बून्न स्वत: टपकि रहल। वास्तवमे पद्यक रूप एहि प्रकारक होएबाक चाही।
एहि संग्रहमे जे सभसँ नीक गीत देल गेल अछि ओ थिक- प्रोषित पतिका'। दू तीन बेरि समस्तीपुरमे विविध काव्य संध्यामे विकलजीक मुखसँ एहि गीतक गायन सुनने छलहुँ। सन 2001ई.मे समस्तीपुरमे साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित- काव्यसंध्या'मे ई गीत बड़ लोकप्रिय भेल छल-
पहुना कहुना कऽ चलि आउ अपन गाम।
आव ने रहि गेलै तेहन आसाम।
एहि गीतक माध्यमसँ गीतकार पलायनवादक प्रबल विरोध करैत छथि। अप्पन घरक नोन-रोटी आन ठामक मलपूआसँ बेसी नीक किएक तँ आन लोक हमरा सबहक व्यथाकेँ नहि बूझैत छथि। जाहि कालमे विकल जी एहि गीतक रचना कएने छलाह ओहि काल आसाममे बिहारी लोक सभकेँ बहुत पीड़ित कएल जाइत छल। ओना तँ एखनो स्थिति वएह आब तँ महाराष्ट्रमे सहो स्थिति भयावह भऽ गेल अछि। तँए एहि प्रसंगमे 'प्रोषित पतिका' गीतक महत्वकेँ नजरअंदाज नहि कएल जा सकैत अछि।
समाजमे पसरल व्यभिचार, भ्रष्टाचारपर आशुगीतकारक लेखनी अनायास नहि टपकल, सहैत-सहैत देशकालक दशापर अंतत: 'छद्मबेशी' शीर्षक कविता लिखि अपन गीतकेँ नवल सोचसँ पुलकित कऽ देलनि-
असल रूप परदा केर भीतर
सभ परदा रंगीन छै
देखबामे अछि चिक्कन चुनमुन
करनी नम्वर तीन छै।
देशकालक घोघटकेँ उघारैत समाजक कलुषित रूपपर किछु पद्य जेना अपन गणतंत्र, लतरि रहल विद्रोहक लत्ती, नव प्रभात, राखूबचा हिमालय, दिल्ली कने सुनू आ न्यूनतम मजदुरी पद्यक बिम्व आ विवेचन दुनू नीक मानल जा सकैछ। समाजक दशापर कविता लिखल जा सकैत अछि गीतक बिम्व दुष्कर तँए एहि सभ पद्यकेँ पूर्णत: गीत नहि मानल जाए। मुदा छंदक मात्रा संतुलित तँए गेय भऽ सकैछ।
एहि पोथीमे चारि गोट गजल सेहो देल गेल अछि। मैथिली पद्य विधामे हैकू आ गजल लेखनक अभाव जकाँ अछि। तँए एहि सभ गजल केर महत्वकेँ नकारि नहि सकैत छी-
पसारल छैक परतीमे हमर पथार सन जिनगी,
कहू हम लऽ कऽ की करवै एहन उधार सन जिनगी...
उपर्युक्त गजलक संग-संग आन दूटा गजलकेँ नीक कहल जा सकैछ। गजलक पॉति-पॉतिमे अलग-अलग बिम्व होइत अछि तँए एकरा शीर्षकसँ आबद्ध करव असंभव आ अनुपयुक्त।
एकटा गजल मूलत: गीत मानल जा सकैत अछि किएक तँ एक्के पॉतिक बेर-बेरि प्रयोग कएल गेल। एकरा गजल नहि मानल जाए। िवकल जी गायक सेहो छथि, एहेन चूकि कोनो भऽ गेलनि।
तन भिजा कऽ मन जराबय,
आबि गेल साओन केर दिन
विरह वेदन तान गाबय,
आबि गेल साअोन केर दिन
खोलि कऽ बरसात अप्पन
वस्त्र फेंकल सूर्यपर
चानकेँ सेहो लजाबय,
आबि गेल साओन केर दिन....।।
उपर्युक गीतकेँ गजलक रूप देबाक प्रयास कएल गेल मुदा सीमाक उल्लंघन कएल गेल तँए ई गीत अछि गजल नहि।
'व्यथित हृदय' पद्य, पोथीक शीर्षककेँ स्पर्श करैत अछि-
बाती नेहक जरि ने पावय,
खाहे तिल-तिल देह जरय
व्यथा वेदना उर अंतरमे,
दय उपकार करय।
एहि प्रकारे सभटा पद्यक अपन-अपन महत्व अछि। कतहु-कतहु त्रुटि सेहो भेटल। गीतकेँ बिम्व आ स्वरसँ आबद्ध करवाक क्रममे एहेन त्रुटि स्वाभाविक होइत अछि।
अपन तरूण जीवनकालसँ विकल जी गीत, कविताक रचना करैत छथि। धन्यवादक पात्र छथि जे एखन धरि नीतिक संग-संग श्रंृगार आ छोहसँ भीजल रचना पाठक धरि पसारैत रहलाह। पूर्ण तँ केओ नहि भऽ सकैत अछि, जखन पूनमक चानमे सेहो दाग तँ त्रुटि ककरोमे भऽ सकैत अछि।
रचनाक बिम्वमे कतहु-कतहु कमी भेटल मुदा रचनाकार अपन भावकेँ मैथिलीक प्रति श्रद्धेय रखलनि तँए एहि त्रुटिक व्यापक विवेचन करब प्रासंगिक नहि। निश्चित रूपसँ एहि पद्य संग्रहमे मिथिला मैथिली संस्कृतिक ध्वनिक संग-संग लोकधुन दष्टव्य मानल जाए।
पद्य संग्रहक शीर्षक- विनु वाती दीप जरय'मे रीतिकालक पद्यक रूप झलकैत अछि। वास्तवमे जेना िनर्वातमे ध्वनिक गमन संभव नहि तहिना बिनु वातीक दीपकक कल्पनो अवांछित मुदा कविक दृष्टकोण रीतिक प्रयोगात्मक अवलम्वन तँए एना संभव भऽ सकल।
पोथीक नाओ- विनु वाती दीप जरय
रचनाकार- डॉ. नरेश कुमार विकल
प्रकाशक- प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली
मूल्य- 80टाका मात्र
प्रकाशन वर्ष-
५
समीक्षा
तरेगन
वर्त्तमान युगक मानव-जीवन “अर्थनीति”क उक्खड़िमे तेना कऽ पिसा रहल अछि जे गॉधी आ लेलिनक सिद्धान्त मटियामेट भऽ गेल। नीित आ धर्मक गप्प केनिहार लोक अतिवादी आ कर्महीन मानल जाइत छथि। एहि भागमभाग भरल जीवनमे “साहित्य” सन शब्द हास्यास्पद जकाँ बुझा रहल। स्वाभाविके छैक, बिनु दाम सभ सुन्न! एहि परिस्थितिमे साहित्यिक अवधारणा सेहो बदलि रहल अछि। आब महाकाव्य पढ़निहार लोक बड़ अल्प छथि किएक तँ सबहक जीवनमे समयाभाव छैक। हमहूँ एहि गप्पकेँ मध्यकालिक रातिमे लिख रहल छी, किएक तँ दिनमे लिखब तँ खाएव की?
एहि सभ कारणसँ लघुकथा आ लघुकविताक अनिवार्यता प्रतीत भऽ रहल। साहित्य समागममे लघुकथाक स्थान बड़ महत्वपूर्ण मानल जाइछ। मैथिलीमे एखन धरि परंपरा जकाँ रहल जे छोट कथा चाहे ओ विम्वित हुअए वा नहि “लघुकथा” थिक। किछु साहित्यकार मात्र एहि दिशामे संकलन कऽ सकलाह। जाहिमे मनमोहन झा अग्रगन्य छथि। तारानंद वियोगी जीक लघुकथा संग्रह “शिलालेख” आ अमरनाथ रचित “क्षणिका” उत्तम श्रेणीक मैथिली लघुकथा संग्रह अछि। मुदा जौं साहित्यक सकल अवधारणा वा विधाक विम्वित छायाक चर्च कएल जाए तँ श्री जगदीश प्रसाद मंडल लिखित लघुकथा संग्रह “तरेगन” मैथिली साहित्यक प्रथम सम्पूर्ण लघुकथा मानल जाएत। एहि पोथीमे एक सय दस लघुकथा देल अछि।
छोट-छोट ताराकेँ मैथिलीमे “तरेगन” कहल जाइत अछि। रातिमे चित भऽ कऽ वसुन्धरापर लेटि स्वतंत्र गगनकेँ दिव्यदर्शन कएलापर तरेगनक समूह सबहक मध्य स्थापित संबंधकेँ देखल जा सकैत छैक। लगैत अछि जे एक तरेगन दोसर तारासँ सटल छैक मुदा विज्ञानक अनुसंधानसँ ई स्पष्ट भऽ सकल जे अकाशक तरेगनक समूहक बीचक दूरी पृथ्वी आ अाकाशक बीचक दूरीसँ बेसी छै। ओहिना एहि कथा संग्रहमे लिखित सभटा कथा एक दोसरसँ सटल रहितहुँ एक-दोसरसँ बहुत दूर अछि। न्याय, कर्म, मीमांसा नीति आ वाल मनोविज्ञान सन बिम्वकेँ अनचोकेमे जगदीशजी एक संग बान्हि देलनि। मैथिलीमे नैतिक शिक्षाक अभावकेँ तरेगन बहुत हद धरि पूर्ण करवाक प्रयास कएलक।
मूल रूपसँ ई संग्रह नेना सबहक लेल लिखल गेल अछि मुदा बयसो जौं एहि सिद्धान्तक अनुपालन करथि तँ समाजक विगलित मनोवृत्तिक रूपमे परिवर्त्तन अवश्यांभावित अछि। कोनो पोथीक समीक्षात्मक विवरणमे सम्पूर्ण रचनाक चित्रण करव अनिवार्य नहि मुदा रचनाक समाजमे प्रभावक दर्शन कराएब वांछित होइत छैक।
सम्पूर्ण पोथीक अवलोकन कएलापर एकरा मात्र नेना-भुटकाक कथा संग्रह नहि मानल जा सकैछ। पहिल कथा -उत्थान पतन-मे नीति शिक्षा नेना भुटकाक संग-संग गृहस्थ धर्मी लोकक लेल प्रेरणादायी लागल। संयम जीवन जीबाक कलासँ धर्म, अर्थ, काम आ मोक्षक अवलंबन सहज होइत अछि। -प्रतिभा- लघुकथामे डॉ. राममनोहर लोहियाक माध्यमसँ जगदीश जी ज्ञान आ समयक मध्य तारतम्य स्थापित करवाक प्रयास कएलनि। एहि कथाकेँ मौलिक रचना (Creative writing) नहि मानल जा सकैत अछि, किएत तँ कोनो महापुरूषक जीवन शैलीक चर्च कोनो पोथी पढ़ि कऽ कएल गेल अछि। मुदा नीक लागल जे जगदीश बावू साम्यवादी प्रवृत्तिक मनुक्ख छथि आ लोहिया समाजवादी छलाह। ओना तँ समाजवादेसँ साम्यवादी धाराक परिकल्पना कएल जा सकैछ, परंच सैद्धान्तिक रूपसँ भारत वर्षमे दुहू राजनैतिक धारामे विलग नीति अछि। अपन अध्ययनशीलतासँ सम्पूर्ण मानव जातिकेँ एकसूत्रमे बँधवाक जगदीश जी प्रयास कऽ रहल छथि। मर्म कथाक बिम्व पढ़लासँ स्वामी विवेकानंदक सरल राजयोगक सिद्धान्तक दर्शन होइत अछि। हेलैक कलासँ सांसारिक जीवन जीवाक तुलना, वैभवक कुप्रावक छोट मुदा विशेषार्थ प्रस्तुति नीति अनुपालनमे सफल प्रयास कहल जाए। अज्ञ नीक नहि तँ खराब सेहो नहि, सर्वज्ञ किओ नहि भऽ सकैत अछि बहुज्ञ समाजक पथ प्रदर्शक परंच अल्पज्ञ जकरा देसिल वयनामे “अधखड़ुआ” कहल जाइत अछि ओ समाजक विकासमे वाधक होइत छथि।
अंग्रेजी साहित्यक प्रखर हास्य रचनाकार सर एलेक्जेंडर पोप सेहो कहने छथि- little knowledge is a dangerous thing. अर्थात अर्द्धज्ञान बड़ खतरनाक वस्तु होइत छैक। -पहिने तप तखन ढलिहेँ- शीर्षक लघुकथामे कुम्हारक आचार्य रूपक आ माटिकेँ शिष्य मानि नैतिक विश्लेषण नीक लागल। नीति-धर्म आ शैक्षणिक दर्शनसँ भरल दोहासँ एहि कथाक तुलना अपेक्षित भऽ सकैछ-
गुरूवार कुम्हार शिश कुम्ह है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट
अंतर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट।
एहि प्रसंगमे ज्ञानपीठ पुरस्कारसँ पुरस्कृत हिन्दी साहित्यक प्रांजल कवि श्री नरेश मेहताक कविता -मृत्तिका-क चर्च करव अनुकूल लागल। नरेश जीक रचनाक अनुसार माटि कहैत छथि- हम तँ मात्र माटि छी, जखन अहाँ अपन चरणसँ पददलित करैत छी आ हऽरक फाढ़सँ चीड़ दैत छी तखन हमरामे मातृत्वक वोध होइत अछि आ मातृत्वक प्रेरणा आ संसर्गसँ शस्य श्यामला धन धान्य अन्न हरियरीक रूपेँ संसारकेँ जीवन प्रदान करैत अछि।' कर्मपथपर क्रियाशील मनुक्खक लेल कालक आ प्रहरक कोनो बान्ह नहि होइत छैक। -जखने जागी तखने परात- शीर्षक लघुकथामे डॉ. क्रोनिनक जीवन दर्शनक माध्यमसँ रचनाकार नेना-भुटकामे काकचेष्टा आ श्वान निद्राक झॉपल दर्शन करएवाक लेल आतुर छथि। जे व्यक्ति सत्य कर्मी होइत छथि ओ सदिखन सत्यकेँ जितएबाक लेल प्रयास करैत छथि। महाभारतक कथाक गर्भसँ एहेन कालजयी बिम्वकेँ निकालि कऽ -उग्रधारा- कथाक रूप देवाक कलासँ जगदीश जीकेँ हंस मानल जा सकैत अछि। जेना हंस नीर दुग्ध मिश्रणमे सँ क्षीरकेँ सोंटि लैत अछि आ नीर पात्रेमे रहि जाइछ ठीक ओहिना महा भारतक सम्पूर्ण कथा बिम्वकेँ नीर, अमिय आ मधु मानल नहि जा सकैत अछि। अर्जुनकेँ विजयी बनएवाक लेल श्रीकृष्ण अपन पांजरपर हनुमानक अगम देह भारकेँ रोकि “भारत”केँ विजयी बनौलनि। ई कथा छात्रक संग-संग शिक्षकक लेल अनुकरणीय अछि। व्यवहारिक, समर्पण, देवता, पाप आ पुण्य शीर्षक कथामे उदयनाचार्यक न्याय कुसुमांजलिक क्षणिक स्पर्शक अनुभव बुझना गेल।
अढ़ाइ आखरक शब्द प्रेमक रूप वास्तविक जीवनमे अर्थनीतिक आहिमे अप्रासंगिक भऽ गेल हुअए मुदा रचनामे एखन धरि जीवित अछि। हिन्दी साहित्यमे प्रेमचन्द्र रचित कथा ईदगाह, नागार्जुन रचित कविता गुलाबी चूड़ियाँ आ माखनलाल चतुर्वेदी रचित कविता प्रेमकेँ पढ़ि कऽ तिरपित होइत तँ छलहुँ परंच हरिवंश राय बच्चन जीक 'आ रहि रवि की सवारी' अंतिम पद्य मोन पड़िते क्षणहिंमे अकुला जाइत छलहुँ जे हिन्दी विजयी भऽ रहल छथि सूर्यक समान मुदा मैथिली उषाकालक चन्द्रमा सन झॅपा रहलीह। जगदीश जीक 'प्रेम' पढ़ि गुमानक अनुभव भऽ रहल अछि जे हमरा सभक भाषामे एहि बिम्वपर जे कथा लिखल गेल अछि ओ कतऽ कतऽ आन भाषामे भेटत, हेरबाक चाही? ओना ई कथा मौलिक रचना नहि भऽ कऽ अंग्रजीक प्रख्यात लेखक ओ.हेनरीक एकटा कथापर आधारित अछि। श्रमक सम्मान तखन भऽ सकैत अछि जखन श्रमजीवी सम्मानित कएल जाइथ। वंश, तियाग, सद्विचार, साहस, वरदास्त, भूल, धैर्य, मनुष्यक मूल्य, मेहनतक दरद सन भाववाचक संज्ञाक दर्शन मात्र दार्शनिके कऽ सकैत छथि मुदा एहि पोथीमे पाठक सेहो देखि सकैत छथि।
एकाग्रता छात्र जीवनक धरोहरि होइत अछि। भाषण तँ सभ केओ दऽ सकैत छथि मुदा पाॅच पॉति लिखबाक कला कतेक लोकमे छनि। हमरा विश्वास अछि जे 'एकाग्रचित' बिम्वकेँ रचनाकार पढ़थु मतिभ्रम दूर भऽ जेतनि। अनुभव, सौन्दर्य, धर्म आत्मबल सन मौन विषयकेँ कथाक रूपमे बिम्वित करब असंभव तँ नहि मुदा अाश्चर्यजनक। समाजमे क्रांतिक दीप प्रज्वलित करवाक लेल नेना-भुटकामे क्रांतिदीप जराएब आवश्यक अछि। एहि लेल समाजक कुप्रथाक गर्भावलोकन करएवाक प्रयास प्रासंगिक मुदा कतेक रचनाकार मैथिली साहित्यमे ई काज कएलनि। विधवा विवाह, देश सेवाक ब्रत, नारीक सम्मान, सादा जीवन, पत्नीक अधिकार, जाति नहि पानि शीर्षक कथा सभकेँ वाल मनोविज्ञानक मौलिक कथा मानल जाए।
निष्कर्षत: जीवनकेँ जीवन्त बनएवाक लेल जतेक प्रकारक तारत्म्य होएबाक चाही जगदीश जी ओहि सभ बिम्वकेँ बिम्वित कएलनि। एहि पोथीमे दर्शनक सभ विधाक सरल भाषामे चित्रण केलनि। खटकल तँ मात्र एक अर्थमे जे वाल मनोविज्ञानक विकास करवाक लेल जे सरस विश्लेषण होएवाक चाही ओ एहि पोथीमे नहि देल गेल। गरीबक दीनतामे हास्यक समागम सेहो होइत अछि। वाल साहित्यमे दर्शनक विश्लेषणमे कतहु कतहु रीति आ प्रीतिकेँ हास्य रससँ बोरबाक चाही। पंडित हरिमोहन झा तँ लघुकथा नहि लिखलनि मुदा हुनक जे गद्य साहित्य उपलब्ध अछि ओहि सभमे दर्शनक बिम्वपर हास्य आ श्रंृगारक माखन चढ़ल भेटैत अछि जगदीश जीक रचना तँ अनुशासित होइत छन्हि मुदा 'तरेगन'मे वाल मनोविज्ञानक सरल प्रस्तुति करितहुँ कनेक चूकि गेल छथि। एक अर्थमे ई पोथी मैथिली साहित्यक लेल पथ प्रदर्शक पोथी अछि, तँए जगदीश बावू प्रशंसाक पात्र छथि। सम्पूर्ण पोथीक अर्न्तदर्शनक लेल योग्य आचार्यक जिनकामे अनुशासनक संग-संग संतुलित अनुशीलन हुअए अनिवार्यता प्रतीत होइत अछि। निष्कर्ष रूपेँ मैथिली भाषा-साहित्यमे 'तरेगन'केँ बेछप्प नैतिक शिक्षाप्रद रचना मानल जाए। वालकथाक वास्तविक रूप अछि जे रचनाकारकेँ प्रश्नसँ वेसी समाधानपर ध्यान देबाक चाही। एहि पोथीमे सभसँ नीक लागल जे रचनाकार प्रश्न ठाढ़े नहि कएलनि।
पोथीक नाओ- तरेगन
विधा- बाल प्रेरक कथा संग्रह
रचनाकार- जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन, दिल्ली
पाेथी प्रप्ति स्थान- पल्लवी डिस्ट्रीब्यूटर्स, िनर्मली (सुपौल)
प्रकाशन वर्ष- 2010
दाम- 100टाका मात्र
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