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समीक्षा-
अरिपन (कविता संकलन)
मैथिली भाषा साहित्यमे किछु एहेन रचनाकारक पदार्पण भेल अछि जनिक रचना सभमे बिम्बक धरातल तँ हरियरीसँ पाटल अछि मुदा हुनक नाओ मिथिलाक साहित्यिक पृष्ठभूमिसँ कात लागल रहल। एहेन रचनाकारक समूहमे सँ एकटा नाअो डॉ. नरेश कुमार ‘विकल’ केर सेहो लेल जा सकैछ।
विकल जीक शिक्षाक क्षेत्र मैथिली आ राष्ट्रभाषा हिन्दी, रहल मैथिलीक प्राध्यापक छथि, तँए रज-कणमे मातृभाषाक प्रति सिनेह स्वाभाविक। सन पचासमे जन्म नेनिहार विकल जी अपन गामसँ लऽ कऽ सम्पूर्ण समस्तीपुर जिलामे मिथिला मैथिलीक लेल संघर्षरत छथि। मंच उद्धोषक आ गायक रहबाक संग-संग आशु गीतकार बनि छात्र जीवनसँ लगातार लिख रहल छथि। सन् सत्तर-अस्सीक मध्य मिथिला मिहिरमे हिनक कतेक रास कविता प्रकाशित भेल अछि। हिनक लिखबाक कलाक सभसँ पैघ विशेषता रहल जे मिथिलाक माटि-पानिसँ संबंधित रचनाक संग-संग बाल साहित्यपर अपन लेखनीक खुलि कऽ प्रयोग कएलनि। ओना तँ मैथिलीक संग हिन्दीमे हिनक बहुत रास पोथीक प्रकाशन भेल अछि, मुदा 'अरिपन' हिनक प्रथम चर्चित काव्य संकलन थिक जाहिमे 1983ई.सँ पूर्व धरिक लिखल हिनक 45गोट पद्य संकलित अछि।
एहि पोथीक प्रथम पद्य 'अर्चना'मे एकटा बालकक अपन मातृक प्रति सिनेहकेँ बिम्ब बनाओल गेल अछि। 'निष्ठुर करेज तोहर हमहुँ जनै छी'मे अवोधकेँ अपन माएसँ आक्रोश अछि। बिम्बक विश्लेषण सामान्य जनभाषामे कएल गेल। 'अपन पान आ मखान' कवितामे पाश्चात्य संस्कृतिसँ अपन गामक तुलना नीक बुझना जाइत अछि। 'वसल मिथिला छै सीताक परानमे' काव्यक विनोदी प्रवृति की अपन वास्तविक अवस्थाकेँ झॉपि सकत? एक दिश एहि कवितामे मातृभूमिकेँ सभसँ ऊँच देखएबाक प्रयास तँ दोसर दिश 'वसन्त उपहार कतऽ अछि'मे हृदयमे पछबाक तप्त वायुक समावेशमे बसन्तक प्रयोजनमे मर्मक दर्शन भेल। एक्के व्यक्तिमे क्षणहिंमे सिनेह आ क्षणहिंमे छोह? वास्तविक जीवनमे हुअए वा नहि परंच कविक चंचल मनमे एना सभ भऽ सकैत अछि। 'नहलापर अछि दहला' शीर्षक कविता बाल साहित्य आ बाल मनोविज्ञानक मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करैत अछि। एहि कविताक आखर-आखरमे झाॅपल बिम्बकेँ नेना-भुटका बूझि सकैत छथि, किएक तँ भाषा अत्यन्त सरल। मुदा एहि कवितामे आशुत्वक प्रवेशक प्रयास आ स्वर सरगमकेँ साक्ष्य बनएबाक लेल बिम्बकेँ विस्मित कएल गेल अछि। जाहिसँ कविताक स्तर कमजोर भऽ गेल। संकलनमे एकटा देल गेल 'गजल' बड़ नीक लागल। गजलकेँ शीर्षकसँ नहि बान्हल जा सकैत। मुदा एहि गजलक विशेष मनोरम बिन्दु अछि जे कवि एकरा एक्के बिम्बमे बन्हबाक सफल प्रयास कएलनि।
'संग रहि कऽ ने अहाँ बजै छी किऐ
प्राण वीणाकेँ तारे तोड़ै छी किऐ?
मैथिलीमे ओहि काल धरि एहि प्रकारक गजलक अभाव जकाँ छल। देशज भाषामे लिखल गेल गजल खूब नीक लागल।
'तोरा लेल' शीर्षक गीतकेँ बाल साहित्यपर सामान्य प्रस्तुति मानल जा सकैत अछि किएक तँ स्वर आबद्घ करबाक क्रममे कवि बिम्बसँ भटकि गेल छथि। 'भागि गेल मिथिलासँ....' शीर्षक कवितामे अपन संस्कृतिपर पाश्चात्य सभ्यताक प्रभावक वर्णन कएल गेल अछि ओ नीक मानल जा सकैछ। ' चिहँुकल मन' सपनामे विरह वेदनाकेँ दर्शाबैत अछि।
एहि संकलनमे देल गेल कवितामे सभसँ नीक कविता 'कोइली' शीर्षक कविताकेँ मानल जा सकैछ। ओना तँ 'कोइली'क मधुर स्वर कविकेँ कटाह लगैत छन्हि, मुदा वास्तवमे कोइलीक स्वर मिथिला-मैथिलीक दयनीय दशाक विवेचन मात्र थिक।
सभ दिन सुखमे संग दैत छेँ
दु:खमे खाली डोल सन
हमरा आब लगैए कोइली
बाजव तोहर ओल सन।
'बाजि उठल कंगना'मे श्रंृगारक सेज सुक्खल जकाँ बुझना गेल। 'धरतीपर उतरल चान'मे कवि चूड़ामणि मधुपक शब्दक झंकार स्पष्ट देखऽ मे अाएल।
'मलार' शीर्षक गीत मूलत: लोकगीक रूपक बुझना गेल। अभिसार पथपर कुपित वालाक पीड़ा हृदयकेँ झकझोरि दैत अछि-
रूसलहुँ मलान मुँह भऽ गेलै चानकेँ
पाथरसँ फोड़ू नहि फोंका मखानकेँ
कोहबरक दृश्य प्रणय लीलाक द्योतक होइत अछि मुदा एहि संकलनमे समाहित कोवरक बिम्बपर लिखल दुनू कविता मर्मस्पर्शी अछि। ककरोसँ भेटल पीड़ामे कवि तपल छथि वा आनक व्यथाक उद्बोधन करैत छथि, ई स्पष्ट नहि भऽ सकैछ।
एवं प्रकारे विकल जी एहि पोथीमे गीत गगनक सभ उल्का, सहस्त्रबाढ़नि आ तरेगनकेँ स्पर्श करवाक प्रयास कएलनि। जीवनक विविध विधामे पद्य लिखि कऽ गीतक रूप देबाक हिनक प्रयास बहुत हद धरि सफल मानल जा सकैत अछि। मैथिली साहित्यमे सभसँ बेसी दरिद्र विषय थिक बाल साहित्यक सृजनशीलता। ओना तँ बहुत रास कवि एहि विषयपर कविता लिखलनि, मुदा भाषा क्लिष्ट तॅँए बाल पद्य रहितहुँ नेना भुटकासँ दूर रहल। एहि पोथीमे जे बाल रचना देल गेल ओ सभ सरल आ सुगम्य अछि। तँए हिनक प्रयासकेँ सार्थक बुझबाक चाही। अपन संस्कृति, श्रंृगार आ किछु भक्ति पद्य सेहो नीक लागल। ओना तँ एहि संकलनकेँ विकल जी 'काव्य संकलन' घोषित कएने छथि, मुदा कविता कम आ गीत बेशी तँए 'गीत संग्रह' मानव प्रासंगिक हएत। राग आ लयमे आबद्घ करवाक प्रयासमे कतहु-कतहु बिम्बक समुचित विश्लेषण नहि भऽ सकल। गीतमे एना होइते अछि, ओना ई सभ गीत एक-कालक नहि भऽ कऽ विविध कालमे लिखल कविक रचनाक संकलन मात्र थिक तँए एकर महत्वकेँ कम नहि बूझवाक चाही।
हिनक रचनाक वैशिष्ठ्यता अछि भाषा सम्पादनक आड़िमे देशज शब्दकेँ अवरोहित नहि कएल गेल।
अधिकांश कवितामे मातृभाषाक लहरि जगमगाइत भेटल, जेना-
पियास मिझा ने सकै छी ककरो
सुखल सोतीक धारा छी
नजरि उठा केओ देखि सकय नहि
सांझक एकसर तारा छी'
एहि प्रकारक रचनासँ साहित्यक सम्यक समृद्धि हुअए वा नहि मुदा भाषाक विकासमे एहि प्रकारक पोथीक महत्व अवश्य अछि। एहेन रचनासँ पाठक आ श्रोता नव रूपमे भेटत तँए एकरा प्रासंगिक मानल जा सकैछ।
पोथीक नाओ- अरिपन
रचनाकार- डॉ. नरेश कुमार विकल
प्रकाशक- मिथिला भारती
भगवानपुर देसुआ
समस्तीपुर
प्रकाशन वर्ष- 1994
दाम- 16 टका मात्र
२
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
पोथी समीक्षा-
जीवन संघर्ष
श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक उपन्यास जीवन संघर्ष एक नीक रचना थीक। एहेन रचना अगर मैथिली साहित्यमे लगातार हो आ अहि तरहक रचनाक प्रचार-प्रसार नीकसँ कुनो जाति-पाति, वर्ग, सम्प्रदाय, स्थानीयता आदिक दुर्भावनासँ दूर भऽ कएल जाए तँ मैथिली साहित्य महिमा-मण्डित भऽ एक गौरवशाली परम्पराकेँ प्रारम्भ कऽ सकैत अछि।
हम शिक्षा, व्यवसाय आ स्वभावसँ मंथरगतिक पाठक छी। नीकसँ नीक पोथी चाहे ओ कोनो विषएसँ सम्बन्धित कियाएक नहि हो, हम एक बैसारमे पच्चीस पन्नासँ अधिक नहि पढ़ि सकैत छी। एक दिन अनायास कमप्युटरपर बैसबासँ पूर्व इच्छा भेल जे जगदीश प्रसाद मण्डल जीक अहि रचनाकेँ ऊपर-झापर देखि ली। यएह सोचि पढ़ए लगलहुँ। आ जखन पढ़ए लगलहुँ तँ अतेक मग्न भऽ गेलहुँ जे एकहि बैसारमे १०९ पन्नाक एहि पोथीकेँ आदिसँ अन्त तक पढ़ि गेलहुँ। बुझना गेल जेना कुनो समाजशास्त्र किंवा मानवशास्त्रक घोर अवलोकनार्थी अपन विधाक ट्रेनिंग लए एक समाजमे रहि सघन सहभागी अवलोकन करैत ओहि समाजक एथनोग्रॉफी लिख रहल होथि। अतवे नहि ओ स्वयं समाजक सदस्य होमाक मादे अगर कुनो समस्याकेँ उजागर करैत छथि तँ ओकर समाधानक हेतु इन्टरवेन्सन सेहो करैमे नहि सकुचाइत छथि।
आब जखन कि जीवन संघर्ष पोथीकेँ अद्योपान्त पढ़ि चूकल छी तँ अनेक तरहक विचार मोनमे हिलोड़ लऽ रहल अछि। होइत अछि अगर कुनो कुशार्ग-बुद्धिबला शोध विद्याथी भेटत तँ ओकरा उत्साहित करबैक जे जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ रचनाशैली, जीवन-क्रम आ व्यक्तिगत इतिहास तीनूकेँ समेटैत मैथिली समाजक सन्दर्भमे एक समाजशास्त्रीय अध्ययन करए। हम अहि बातकेँ नीक जकाँ बुझैत छी जे हमर एहि तरहक टिप्पणीसँ किछु आलोचक आ मैथिली साहित्य केर सुयोग्य विद्वान लोकनि विफरि जेताह आ हम्मरा इम्मेचीओर आ किछु आनो तरहक उपमासँ बजेताह। मुदा हम ई बात बिना कारणे नहि कहि रहल छी। मण्डलजी अहि उपन्यासक प्रारंभ बँसपुरा गामक परिप्रेक्ष्यसँ करैत छथि। बॅसपुरा गामक एक नव विआहल अट्ठारह-बीस बर्खक लड़की जे मात्र तीनिये मास सासुरसँ बसल छलि गामसँ एक कोस दूर बसल सिसौनीमे दुर्गापूजाक मेला देखए गेल छलि। ओतए ओहि लड़कीकेँ पूजा कमिटीक तीन गोटे फुसला कऽ भंडार घर लऽ गेल। मेला- गनगनाइत। नाच-तमाशाक लाउड-स्पीकर चरि कोसीक नीन उड़ौने। तीनू गोटे ओहि लड़कीक संग दुरबेवहार केलक। बेवस भऽ ओ लड़की सभ किछु बरदास केलक। चारि बजे भोर ओकरा सभ छोड़ि देलक। मेला भरि ओ किछु नहि बाजलि। मुँह-कान झाँपि मेलासँ निकलि सोझे गामक रस्ता धेलक। गामक सीमापर पहुँचतहि छाती चहकि गेलइ। छाती चहकितहि हबो-ढकार भऽ कानए लागलि। भिनसुरका कानब सुनि एक्के-दुइये गामक लोक घर-आंगनसँ निकलि रास्तापर आबि-आबि देखए लगल। टोल प्रवेश करितहि एका-एकी लोक पूछए लगलै। कानि-कानि अपन बीतल घटना सुनबए लागलि। बिना किछु पुछनहि माए, बेटीकेँ कनैत देखि, छाती पीटि-पीटि कनवो करए आ दुनू हाथे पँजिया कऽ पुछलक- “की भेलौ, हम माए छियौ, हमरा ने कहमे ते केकरा कहवीही।”
जेना-जेना माए बेटीक मुँहक बात सुनैत तेना-तेना देहमे आगि सुनगए लगलै। सुनैत-सुनैत बमकि कऽ पतिकेँ कहलक - “जहिना हमर बेटीक इज्जत सिसौनीबला लुटलक तहिना सिसौनीक दुर्गास्थानमे मनुक्खक बलि पड़त।”
फेर की छल! समस्त बॅसपुराक लोकमे प्रतिशोधक ज्वाला धधकए लागल। सिसौनी गाममे आक्रमण कए कचरमवद्ध करबाक प्लान बनए लागल। मुदा उपन्यासकारक सोझरल मोन देखू। जखन समस्त गामक लोक कचरमबध करबाक योजनाकेँ लगभग ध्वनिमतसँ स्वीकृति दऽ देने छल ताहि काल गाममे एक-आध एहेन व्यक्तिक प्रवेश होइत अछि जे दुनू गामक बीच सामंजस्य स्थापित करैत छथि। गामक सभसँ बुजुर्ग- मनधन बाबाक प्रवेश लोकक भीड़केँ एक दोसर दिशामे लऽ जाइत छैक। परम्परागत मिथिला समाजमे आइयोक समएमे बुढ़-पुरान आ अनुभवी लोकक बड्ड सम्मान छैक। एकर प्रमाण अहि सन्दर्भसँ भेटैत अछि जे जखन मनधन बाबा लोककेँ दुनू गाममे झगड़ा नहि करबाक अपन विचार दैत छथिन्ह ताहिखन बेटीक इज्जतक बदला लेबाक लेल बदलाक आगिमे जड़ैत ओहि लड़कीक माए पवित्री सेहो मानि जाइत अछि। पवित्री बोम फाड़ि कानैत कहैत छैक- “बाबा, ई तँ गामक मेह छथिन तँए हिनकर बात मानि लेलिएनि। नै तँ आइ सिसौनीमे आगि लगौने बिना छोड़ितिऐ। जखैनसँ बेटी आइलि तखैनसँ एक्को बेरि मुँह उठा नइ तकैए। कनैत-कनैत दुनू आँखि डोका जकाँ भऽ गेलै। सदिखन एक्केटा रट लगौने अछि जे जीविये कऽ की हएत? जखन इज्जत चलिये गेल तखैन कोन मुँह समाजकेँ देखाएब।”
कल्पना करू एक माए केर आवेश आ वेदनाकेँ ! आ ओहि समाज आ गामकेँ जकर ब्याहल जवान लड़कीक इज्जतक संग कुनो पड़ोसी गामक लफन्दर सभ मिलि खेलबार केने होइक!! सभ लड़-मरऽक लेल अमादा!! मुदा एक अनुभवी बुजुर्गक प्रति गामक लोकक आश्चर्यजनक सम्मान। जकरा कारण अपन खूनक घूँघट पीबि सभ शान्त भऽ जाइत अछि। एक नव वातावरणक संचार होमए लगैत अछि। लेखक अहि कार्यकेँ एक मांजल साहित्यकार जकाँ उत्तम ढंगसँ करैत छथि।
उपन्यासक समस्त क्रिया-कलाप बॅसपुरा गामक इर्द-गीर्द घुमैत समस्त मिथिला समाजक समस्याक चित्रण करए लगैत अछि- लोकक पलायण केर समस्या, सरकारी मदति आ कार्यक्रमकेँ ठीकसँ नहि पहुँचबाक समस्या, मल्लाह-पोखरि (जलकर) आ सोसाइटीक समस्या, किसान बोनिहारक समस्या, कोशीक कहरक समस्या, एक विधवा जकर पति कमे वएसमे मरि जाइत छैक, बेटी ब्याहलि छैक आ बेटा नौकरी करए लेल जे प्रदेश गेलै से तीन बरख धरि गाम नहि अएलैक, तकर समस्या, मिथिलाक विधवा सबहिक समस्या आ विधवा सबहिक सामाजिक वैज्ञानिक जकाँ विभिन्न श्रेणीमे विभक्त कए ओहि श्रेणी सबहक समस्या, कोशी नदीकेँ कटाब कोना बॅसपुरा गामक लोककेँ मातृभूमि केर परिभाषासँ दूर करैत अछि तकर समस्या, एक कुमहार आ ओकर सपनाकेँ सही अर्थमे साकार करबाक समस्या, दू-गामक लोकक बीच उपद्रवी तत्व द्वारा समस्या उत्पन्न करब आ गामक समझदार लेल अथक प्रयास करबाक समस्या, आदि-आदि। एना बुझाएत जे बॅसपुरा गाम उपन्यासकार, जगदीश प्रसाद मण्डल जीक प्रयास द्वारा एकटा मिनिएचर मिथिला बनि गेल अछि।
पोथीक एक-एक पांति-पोथिक नामकरण – जीबन संघर्ष – केँ सटीक प्रमाणित करैत आगाँ बढ़ैत अछि। पाठक उपन्यासक संग जीवनसँ संघर्ष करए लागैत अछि : हँसैत, बाजैत, जुझैत, कानैत आ फेर उपन्यासकारक प्रयाससँ नव उत्साह आ नव चेतना पाबि जीवनकेँ पुन: सार्थक सिद्ध करबाक योजनामे संलग्न होमऽ लगैत अछि। मण्डलजी भेरचाल चलऽ बला उपन्यासकार आ साहित्यकारसँ हटि अपन स्वतन्त्र अस्तित्व बनबैत एक दिस तँ समस्याक वर्णन करैत छथि आ दोसर दिस समस्यासँ घबराइत नहि छथि। कुनो वैमनस्यता किंवा बदलाक भावनासँ ग्रसित नहि छथि। समस्याक निदान जे कि यथार्थवादी निदान सेहो प्रस्तुत करैत छथि। आ उपन्यास बिना कुनो अवरोधकेँ आगाँ बढ़ल जाइत अछि।
रमेसरा दिल्लीसँ वापस आबि आब गामेमे अनेक तरहक समानक दोकान खोलने अछि। समानमे लोहा आ लकड़ी दुनू वस्तु छैक : “हँसुआ, खुरपी, टेंगारी, पगहरिया, कुड़हड़ि, खनती, चक्कू, सरौत, छोलनीक संग चकला, बेलना, कत्ता, रेही, दाइब, खराम.......।”
दिल्लीमे जे लोक जत्थाक जत्थामे मजदूरी करए अबैत अछि तकरा बारेमे ओकर विचार बड़ा सटीक छैक : “िदल्ली सेट सभकेँ फुलपेंट, चकचकौआ शर्ट, घड़ी, रेडियो, उनटा बावरी देखि हमरो मन खुरछाही कटए लगल। गामपर ककरो कहवो ने केलिऐ आ पड़ा कऽ चलि गेलौं। अपने जातिक-बरही ऐठाम नौकरी भऽ गेल। तीन हजार रूपया महिना दरमाहा आ खाइले दिअए। मुदा तते खटबे जे ओते जँ अपने गाममे खटी तँ कतेक बेसी होइए। घुरि कऽ चलि एलौं। जहिया सुनलिऐ जे अपनो गाममे काली-पूजाक मेला हएत तहियासँ एते समान बनौने छी। कहुना-कहुना तँ चारि-पाँच हजारक समान अछि। कोनो की सड़ै-पचैबला छी जे सड़ि जाएत। तोरा सभकेँ ने बुझि पड़ै छौ जे दिल्लीमे हुन्डी गारल अछि। हम एक्के मासमे बुझि गेलिऐ। जखन अपना चीज-बौस बनबैक लूरि अछि तखन अनकर तबेदारी किअए करब। अपन मेहनतसँ मालिक बनि कऽ किअए ने रहब। तू सभ ने अनेक कोठा आ सम्पत्तिकेँ अपन बुझै छीही। मुदा ई बुझै छीही जे धनिकहा सभ तोरे मेहनत लुटि कऽ मौज करैए। अखैन जो, कनी दोकान लगबै छी।”
माटिसँ जुड़ल उपन्यासकार मण्डलजी रमेसराक माध्यमसँ मिथिलासँ पलायन करैत लोककेँ मिथिलेमे रहि अल्टरनेटिव धन्धाक उक्ति बता रहल छथि।
उपन्यास आगाँ बढ़ैत अछि। डोमक धंधा आ ओकर क्रिया-कलापक सजीव वर्णन एहेन जे सोझे गाम चलि जएब। बिना कोनो नोन-मिरचाइ लगौने, सहज आ स्वभाविक। मण्डलजी जनसामान्यक बात आ परिस्थितिक वर्णन जनवाणीमे करैत छथि। समस्त उपन्यासमे कुनो एहेन शब्द नहि भेटत जकर अर्थ एक साक्षर मात्रोकेँ बुझएमे दिक्कत हो। एक दिस यात्रीजी मिथिलाक परिस्थितिसँ परेशान होइत जतऽ दिल्ली अथवा आनठाम पलायन करबाक विचार दैत स्वयं दिल्ली चलि जाइत छथि : “आब जँ तू अतए रहवैं/ कहतौ लोक बताह/ तँए हम्मर बात मान आ सोझे दिल्ली जाह/” कहै छथि ठीक एकर विपरीत मण्डलजी परिस्थितिसँ सामना करबाक लेल अपन पात्रककेँ ब्यौंत बुझबै छथि। चाहे ओ मिठाइ बनाबैबला हो, लोहार हो, कुम्हार हो, अथवा कियो आर हो। मण्डलजी कथनी आ करनीमे सामंजस्य रखै छथि आ स्वयं गामेपर रहै छथि। कहियो चाकरीक खोजमे मिथिलासँ बाहर नहि गेलाह।
उपन्यास आगाँ बढ़ैत अछि। भगता जहल किएक गेल रहै तकर वर्णन शायद समाजक अन्ध व्यवस्थापर प्रहार थीक। केना ओ एकटा कलकतामे नोकरी करनिहारक घरबालीक संग मध्यरात्रिमे गलत कार्य करबाक कोशिश केलक आ भण्डा-फोरी भऽ गेलै, तकर नीक वर्णन पोथीमे भेटैत अछि।
पोथीमे जखन जोगिनदर अपन ग्रह ठीक करबाक लेल विविध रूपेँ दान पूण्य करबाक विचार करैत अछि तँ मंगलसँ बात करैत मसोमात सभकेँ मदति करबाक हेतु तैयार भऽ जाइत अछि। अतय सेहो मण्डलजी सरकारी सुविधा आ मसोमातपर मंगलक मुँहसँ समाजिक परिस्थितिपर प्रहार करैत लिखैत छथि- “अपना ऐठाम दू तरहक मसोमात अछि, एक तरहक सरकारी अछि आ दोसर तरहक समाजक अछि। सरकारी मसोमात ओ छी जे सरकारक देल सभ सुविधा पबैत अछि। आ समाजिक विधवा ओ छी जेकरा ने सरकार जनै छै आ ने ओ सरकारकेँ जनैत अछि। किछु गनल सरकारी मसोमात अछि जे ओकर पोसुआ छी। जे कोनो सरकारी सुविधा मसोमात सबहक लेल औत ओ ओकरे भेटतैक। अजीब खेल सरकारो आ मसोमातोक अछि। ओहि पोसुआ मसोमातकेँ इन्दिरो आवासक घरो छै आ बाढ़ि-बरखामे घरखस्सीक रूपैआ सेहो भेटतै आ बाढ़िसँ क्षति फसलक क्षतिपूर्तिक रूपैआ सेहो ओकरे भेटतै। ततबे नहि, वृद्धावस्था पेंशन सेहो ओकरे भेटतै आ रोजगार चलबैक नामपर सबसीडी सेहो भेटतै। तेँ सरकारी मसोमात छोड़ि जे निरीह समाजक मसोमात अछि, जँ ओकरा जीबैक उपाए भऽ जाए तँ उपाय केनिहारकेँ अइसँ बेसी दान-पुनक फल कतऽ भेटतै। धन्यवाद ओहि माए-दादीकेँ दी जे सत्तर-अस्सी बर्खक बितौलाक बादो जेठक दुपहरिया, भादवक झाँट आ माघक शीतलहरीमे, जी-जानसँ मेहनत करैत अछि। धन्यवाद ओहि अस्सी बर्खक मैयाकें दी जे माथपर धान, गहूम, मकैक बोझ लऽ कऽ दुलकी चालिमे गीत गुनगुनाइत खेतसँ खरिहान अबैत छथि।..... तँए पहिने जा कऽ ओहि मैया सभकेँ गोड़ लागि कहिहक बाबी, समाजरूपी परिवारक अहूँ छी आ हमहूँ छी, तँए कमाइबलाक ई दायित्व बनि जाइत अछि जे परिवारमे बृद्ध आ बच्चाक सेवा इमानदारीसँ होय। हम अहाँकेँ मदति सेवाक रूपमे दऽ रहल छी। तखन ओ वेचारी हँसि कऽ असिरवाद देथुन।”
साहित्यकेँ समाजक दर्पण कहल जाइत अछि। दर्पण तखन जखन साहित्यकार पारखी होथि। समाजक संग चलथि। सामाजिक व्यवस्थाकेँ समएक संग विवेचना करैथ। साहित्य सृजनक धर्मकेँ बुझथि। मण्डलजी एहि कार्यकेँ इमानदारीपूर्वक केलन्हि अछि। एहि उपन्यासकेँ हिन्दी, अंग्रेजी इत्यादि भाषामे अनुवादित कए प्रचार-प्रसार होमाक चाही। ई रचना समाजक दर्पण अछि। एक निश्चल आ आशावान विचारधाराकेँ प्रतिपादित करैत अछि। जगदीश प्रसाद मण्डल अपन कृतिमे Native intelligence केर अभूतपूर्व प्रमाण दैत छथि। पुस्तक केर साज सज्जा, आवरण इत्यादि नीक अछि। प्रकाशक सेहो धन्यवादक पात्र छथि।
१.रमेश- प्रो. मायानन्द मिश्रक रमनगर कथामे लागल “मुदा”...२.मंत्रेश्वर झा- चरित्र चित्रणक वाजीगर- जगदीश प्रसाद मंडल ३.विनीत उत्पल- दीर्घकथा- घोड़ीपर चढ़ि लेब हम डिग्री – आगाँ
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रमेश
प्रो. मायानन्द मिश्रक रमनगर कथामे लागल “मुदा”...
माया बाबूक कथा-संसारक फलक व्यापक अछि।
ओ कथाक “प्लॉट” क चयनमे माहिर आ आधुनिक छथि। ओ पैघ आ छोट सभ आकारक कथा लिखलनि अछि। कथा लेखनक क्रममे ओ पैघ कालखण्ड देखलनि आ भोगलनि अछि। ओ कएटा प्रसिद्ध कथाक यशभागी बनलाह अछि। ओ कए पीढ़ीक जीवनकेँ देखलनि आ लिखलनि अछि। हुनकर लेखनमे लक्षित वर्ग थिक मध्य वर्ग आ निम्न-मध्य वर्ग आ कौखन कऽ राजनीतिक आ पूँजीपति-वर्ग सेहो।
ओ नव पीढ़ीक “अंडा प्रेम”, आधुनिकताक प्रति अति-उत्साह आ पुरान पीढ़ी (पिता)क पुरातनपंथी-नक-घोंकची, दुनूपर व्यंग्य केलनि अछि आ अपना हिसाबे देखार करबाक कोशिश केलनि अछि। दुनू पीढ़ीक सोचमे विकृतिकेँ बीछि-बीछि कऽ देखार करितो, प्राचीन शिक्षक पिताक प्रति सहानुभूति रखितो, नव पीढ़ीक दिक्कत बुझितो, आधुनिक आ प्रगतिशील सोचकेँ आत्मसात नै कऽ सकलाह अछि। बेटाक नोकरीक लिलसामे मंत्रीक “अभिनन्दन” लिखएबला प्रोफेसरक दुर्दशाक खिस्सा मायानन्द मिश्रेटा लिखि सकैत छलाह। लक्ष्मीक आगू सरस्वतीक नतमस्तक हैब आ राजनीतिक समक्ष योग्यता, कला-संस्कृतिक पराजयक बोध माया बाबू करौलनि। मुदा प्रोफेसरक विवशताक आगूक च्रण छल- प्रोफेसरक विद्रोह- भाव आ संघर्षशीलता जे गुरु भइयो कऽ शिष्यक समक्ष प्रदर्शित नै कऽ पबैत छथि। पाठककेँ ई कथाकारोक वैचारिक सीमा बुझा सकैत अछि।
अपन “भैरव” कथामे एकटा युवा कविकेँ एकटा एम.एल.ए.क “उप-ग्रह” (ओकर नारा सर्जकक रूपमे) चित्रित केलनि अछि माया बाबू आ ओकरा विकृत यथार्थक स्थितिमे, ओही रूपमे छोड़ि, दुनूकेँ देखार करितो, यथास्थितिवाद लग ठमकि जाइत छथि। यएह “भैरव” “माध्यम” नामक कथामे “बीडिओक भैरव” (महादेवक भैरव) बनि कऽ अबैत अछि।
“भैरव”मे युवा-कवि “माध्यम” बनि कऽ अबैत अछि आ “माध्यम”मे बीडिओ सैहेबक चम्मच (भैरव) बनि कऽ अबैत अछि। दुनू कथा, खलनायकगण (मुख्य, गौण आ बिचौलिया)केँ देखार करितो “जनहितमे उपयोगी नै भऽ कऽ मात्र “साहित्य-हित”मे उपयोगी भऽ पबैत अछि, जे कला, मात्र कलाक लेल भऽ कऽ रहि जाइत अछि।
कथाक उद्देश्य मात्र विकृतिक वा संस्कृतिक चित्रण टा नै होइत अछि। चित्रणकेँ समाधान-संकेतक चासनीसँ बोरबाक कला चाही। जै कथाकेँ कथाकार जनमानसक संग जोड़ि पबैत अछि, से कथा चिरायु भऽ पबैत अछि।
“नमकहराम” (जे कि “निमकहराम” हेबाक चाहैत छल)मे चौठियाकेँ “अगुरवान” बना कऽ सफलतापूर्वक परसल गेल अछि। माया बाबूक शिल्प-शैली तँ कमाले अछि। ओ व्यंग्यात्मक शीर्षक चुनैत छथि आ ताही भाषा-शैलीक उपयोग करैत छथि। व्यापारी वर्ग द्वारा आम जनताक प्रति कएल गेल निमकहरामीक चित्रण नीक जकाँ करैत सभ प्रकारक दुरभिसन्धिकेँ देखार करैत छथि। ई व्यापार तकनीक, व्यापार-समझौता, कालाबजारीक बीजमंत्र पाठक “भये प्रकट कृपाला”मे खूबे पढ़ैत अछि। बोगलाजीक मृत्यु-महत्ताक सजीव वर्णन करितो कथाकार बोगलाजीक शार्टकट रस्तासँ महा-उत्थानक जे अन्तर्कथा कहैत छथि- सएह कथाक प्राण थिक। व्यंग्यात्मक टोन पाठककेँ “बोर” हेबासँ बचबैत अछि।
तहिना “दीन दयाला” राजनैतिक कुचक्र, मंत्री-मुख्यमंत्री, एम.एल.ए.-हाकिमक दुरभि संधि, भ्रष्टाचार-आवरण, योजना, ड्राइंग रूम मैनेजमेंट, पी.ए. टाइप लोकक पी.ए. गीरी आदि नव मुदा घृणित दुनियाँसँ मैथिली साहित्यकेँ परिचित करबितो, ओइ दुनियाँक प्रखर विरोध कथाकारसँ नै भऽ पबैत अछि। फेर “कौशल्या हितकारी” बनितो स्वास्थ्य-मंत्रीक “इस्तीफा” मात्र मूक-विरोध संकेतित कऽ पबैत अछि आ एकटा पलायन-भावक प्रदर्शन कथान्तमे होइत अछि। कौशल्याक शील-हरण स्थायी-विद्रोहक सृष्टि नै कऽ पबैत अछि आ कएटा गर्भपाती क्रान्ति जकाँ शिथिल इतिहास दोहरा जाइत अछि।
उपर्युक्त कथा सबहक प्रकाशन-कालो आ आइयो, संक्रान्तियेकाल थिक। भारतीय सामाजिक आ राजनैतिक-व्यवस्था विकृतिक पराकाष्ठापर अछि आ समाज लहालोट भऽ रहल अछि। मुदा संगहि-संग विकृत-चेतना, सु-संस्कृत चेतना, विकृतिक प्रति जनमानसमे घृणा-भाव आ चेतन-लोकमे विद्रोह-भाव, सभ किछु एकहि संग अस्तित्वमे अछि आ विचारधाराक संघर्षक श्रृंखला सु-स्पष्ट अछि। एहना स्थितिमे कला-चातुर्यसँ परिपूर्ण सक्षम कथाकारक दायित्व थिक जे यथास्थितिपर आनि कऽ कथा, पात्र वा पाठककेँ नै छोड़थि। हुनका नकारात्मक विकृतिक चित्रणमे अपन ऊर्जा नै खपा कऽ सकारात्मक बाट, नकारात्मक विकृतिक लहासक बीचसँ निकालबाक इमानदार आ श्रमपूर्ण प्रयास करबाक छलनि। सकारात्मक चेतनाकेँ ऑक्सीजन देबाक काज साहित्यकारे टा करैत छथि। शेष संवर्गकेँ विधात्मक सीमा होइत छनि।
माया बाबूकेँ समस्त सामाजिक आ राजनैतिक विकृति बूझल छनि। हुनका पैघ दुनियासँ परिचय छनि। ओ अपना-आपकेँ मैथिली कथा-साहित्यक “त्रिपुण्डक” एकटा “पुण्ड” मानलनि अछि। मुदा ललित-राजकमलक विद्रोह-चेतना वा समकालीन सोचक टन-टन आवाज हिनका कथा साहित्यसँ लुप्तप्राय अछि। से आश्चर्यजनक आ सत्य सेहो अछि। अपन कथा सभमे प्लॉटक स्तरपर नव आ आधुनिक लगितो, कथ्य (थीम)क स्तरपर माया बाबू कोनो तेहेन सन आगू नै जा पबैत छथि। मनोरम शिल्प, सुन्दर “ट्रीटमेन्ट” आ भाषाधिकार, कथा-कलाक मेंही-मेंही तत्वसँ सराबोर माया बाबूक आकर्षक कथा-संसार, मिथिलाक नव पीढ़ीकेँ मात्र सुधारवादी-संशोधनवादी संदेश दऽ पबैत अछि आ कोनो नव रस्ता नै देखा पबैत अछि, जखनकि समकालीन वैचारिक मुख्यधारा मायाबाबूक पाठक आ नव-पीढ़ीकेँ पहिनहिसँ बूझल छैक।
माया बाबूक कथामे तथाकथित “हरिजन नेता” वा एमेले, बड़जन-मुख्यमंत्रीक नाङरि बनि कऽ पाछू-पाछू चलैत अछि- “हा हुसैनक” मुद्रामे। ई बिहारक कांग्रेसी मंत्रीमण्डलमे होइते छल। डॉ. जगन्नाथ मिश्र अपना मंत्रीमण्डलमे कोनो-ने-कोनो बिलट पासवानकेँ रखिते छलाह।माया बाबूक कथा-संसारमे नारी आ दलित-वर्गक मात्र दुर्दशेटा आएल अछि, से ओइ दिनक समय आ मायाबाबू दुनूक सीमा थिक। सेहो दुर्दशा-वर्णन गरिमायुक्त भऽ कऽ नै आएल अछि।
माया बाबूक कथा-कला प्रभासेजी जकाँ “धनीक” अछि। सेहो राजमोहन झाक “नागर-भाषा”मे नै, अपितु खाँटी “भाखा”मे। हिनकर कथा-लोक रमणीक आ रसगर चित्रणसँ भरल-पुरल अछि। वर्णन कखनो उस्सठ नै होइत अछि हिनकर। मिथिलाक पारिवारिक आ सामाजिक सम्बन्धक हिनका गहींर अवधारणा छनि- से कएटा कथा साबित करैत अछि। उपन्यासोमे से आएल अछि।
हिनकर बहुआयामी व्यक्तित्व मिथिला-मैथिलीकेँ अत्यंत समृद्ध केलक अछि आ मैथिली-कथामे हिनकर अवदानकेँ कमजोर केलक अछि। हिनकर मंचीय व्यक्तित्व, गरिमाक प्रति तृष्णा, भोगक प्रति लालसा- हिनक कथाक प्रति परिश्रम, समर्पण आ अन्ततः कथाक धारकेँ भोथ केलक अछि। मैथिली आन्दोलनमे हिनकर संघर्षशीलता जेहेन रहल तेहेन संघर्षशीलता कथा लेखनमे द्रष्टव्य नै अछि, यद्यपि जै कालखण्डमे ई कथा सभ लिखल गेल छल, “नवीन” मानल गेल छल। मुदा आइ नवीन तत्व सभक परीक्षण केलापर कथा सभ “रमणीक” बुझाइतो ततेक नव आ धरगर नै बुझाइत अछि। तहिना अभिव्यंजनाक काव्य-श्रृंखलाक कविता सभ खूबे “नवीन” मानल गेल छल। मुदा आधुनिकताक टन-टनाटन ध्वनि जे यात्री-राजकमलक काव्यमे आएल- से हिनक काव्यमे विलुप्तप्राये रहल। कथे जकाँ हिनकर उपन्यासोमे आधुनिकता आ पात्रक संघर्षशीलता कोनो तेहन जगजियार नै भऽ सकल। फेर हिनकर गीत, गीतल आ मंच-संचालनमे खूबे रस आ नवीनता अछि, मुदा सेहो मात्र शिल्प आ प्रयोगेक स्तरपर। वस्तुतः संघर्षशीलता आ जिजीविषा प्रायः सभ विधामे विलुप्तप्राय अछि।
मायाबाबू अपना जीवनमे खूब सार्थक काज सभ केलनि अछि। हिनकर जीवनक उपलब्धिक प्रशंसनीय पथार लागल अछि। मुदा अपना समयक सीमाकेँ उपन्यास-कथा अथवा कवितोमे नै तोड़ि सकल छथि। ऐतिहासिक उपन्यासकेँ प्राचीने राष्ट्रवादी-गौरववादी दृष्टिकोणसँ लिखलनि अछि। कोनो आधुनिक संदर्भमे वैज्ञानिक मार्क्सवादी दृष्टिकोणसँ नहिए लिखि सकल छथि। मंत्रपुत्र, स्त्रीधन वा पुरोहितमे प्राचीन इतिहासक पुराने व्याख्या प्रस्तुत केलनिहेँ। प्राचीन भारत, प्राचीन समाज, पुरातन आ सनातन-व्यवस्थाक प्रति हिनकर “नजरिया” पारम्परिक राष्ट्रवादी-गौरववादी-स्कूल जकाँ अछि, जै स्कूलक यू.एन. घोषाल, के.पी.जायसवाल, आर.सी. मजूमदार, हेमचन्द्र रायचौधुरी, के.के.दत्त, राधाकृष्ण चौधरी, बाल गंगाधर तिलक आदि छलाह। ई लोकनि प्राचीन भारतक गौरव-बोधसँ ब्रिटिश साम्राज्यवादकेँ चकचोन्ही लगा कऽ निचैनसँ सूति रहैत छलाह आ इतिहासकेँ वैज्ञानिक पद्धतिसँ दूर कऽ मात्र “ब्रिटिश विरोधक औजार” मानैत छलाह। तकर बाद ऐतिहासिक यथार्थ सभ उपेक्षित भऽ जाइत छल। राजसत्ता आ प्राचीन-व्यवस्थाक यशोगानक अलावे प्रजाक दुःख-दर्द इतिहास-लेखनक ऐ तंत्रमे नै छल। एहने पुनरुत्थानवादी जीर्ण-शीर्ण अवधारणा, जकरा रामचैतन्य धीरज “वैज्ञानिक ब्राह्मणवाद कहैत छथि, जकाँ, जँ उपन्यास-कथा लेखन हो तँ प्राचीन समाजकेँ नव सन्दर्भमे देखब असम्भव जकाँ भऽ जाइत अछि। इतिहासक घटना सबहक अध्ययन वा पात्र आ परिवेशक मनोरम चित्रण एक बात थिक आ वैज्ञानिक इतिहास दृष्टिसँ निष्कर्ष बहार कऽ समाजकेँ चेतना-सम्पृक्त करब दोसर बात थिक। इतिहास दृष्टिक विकास पाछू मुँहे नै होइत अछि आ ने हेबाक चाही। आगू मुँहे विकास ओ थिक जे रोमिला थापर, राम शरण शर्मा, डी.डी. कोशाम्बी, इरफान हबीब, डी.एन.झा, सतीश चन्द्रा, आदि इतिहासकारगण अपन-अपन कृति सभमे केलनि अछि। ओ लोकनि राजसत्ताक गौरव गाथाक उपेक्षा कऽ तत्कालीन समाजक अभगदशाकेँ देखार कऽ नव, जनवादी दृष्टिसँ ऐतिहासिक तथ्य सबहक परीक्षण आ तर्कसंगत व्याख्या केलनि आ प्राचीन इतिहासकेँ निस्सन वैज्ञानिकताक आधार देलनि। हिन्दी साहित्यमे इतिहास दृष्टि आधारित उपन्यास सभ बहुत प्रासंगिक बनल मुदा मैथिलीक ऐतिहासिक चेतना-सम्पृक्त उपन्यास पछुआएल विचारधारा आधारित भऽ गेल। ऐतिहासिक घटना सबहक नीक संयोजन, तथ्य, पात्र, संस्कृति-तत्व सभसँ परिपूर्ण रहितो, उपन्यास-तत्व आ कला-चातुर्यसँ धनीक रहितो, वैचारिक स्तरपर प्रगतिशील नै हेबाक कारणेँ “मंत्रपुत्र” अपन महत्वकेँ घटा लैत अछि, जखनकि एस.ए. डांगे “साधु समाजवाद”केँ तत्कालीन समाजक एक “यथार्थ” मानने छथि। ओना ई तथ्य माया बाबूक पक्षमे जाइत अछि जे ऐतिहासिक उपन्यासक मामिलामे दरिद्र मैथिलीक भण्डारक श्रीवृद्धि ई उपन्यास करैत अछि। आब आगरिमो हमरा कोनो आशा नै अछि जे प्राचीन इतिहास आधारित अपन अन्य उपन्यासमे माया बाबूक पात्र सभ प्राचीन व्यवस्था विद्रोह धर्मक निर्वाह करत। आ ऐ बातक ग्लानि तँ अछिए जे “पुरोहित” आ “स्त्रीधन” मैथिलीक भण्डारसँ बाहरे रहल। वैदिक कालीन दासत्वपर मणिपद्मजी “आदिम गुलाम” ले लेखकीय नजरिया आ माटिक प्रति प्रतिबद्धता प्रस्तुत केलक, से मंत्रपुत्रक “शास्त्रीय-एप्रोच” प्रस्तुत नै कऽ सकल।
माया बाबूक अपन कथा सभमे ऊपरी स्तरमे जे आधुनिक बुझाइत छथि, तेहेन वैचारिकताक स्तरपर प्रगतिकामी नै बुझाइत छथि। हुनकर वैचारिकता जहिना उपन्यासमे रहल तहिना कथोमे रहल, से स्वाभाविके छल। कोनो रचनाकार दू विधामे अलग-अलग विचारक हो, से ने तँ संभव अछि आ ने उचिते। व्यक्ति अपन जीवन, साहित्य आ सभ क्षेत्रमे प्रायः एकहि विचारधाराक रहए, सएह नीक आ सएह रहितो अछि। आ से नै रहलापर पकड़ाइयो जाइत अछि। मायाबाबू जे छथि से सभठाँ छथि- एक्के रंग। जीवनोमे रसगर, मंचोपर रसगर, उपन्यास-कथा-गीत-काव्य, सभठाँ “रसगर”। सभठाँ रमनगर वर्णन, सभ विधामे शिल्प-शैलीमे महारत प्राप्त। कला-चातुरी-युक्त सक्षम खेलाड़ी। सफलता प्राप्त करबाक बीज मंत्रक विशेषज्ञ। मुदा जीवनदर्शन आ वैचारिकतामे मयूरक पएर जकाँ सुखाएल। पुरान वैचारिकता, नृत्य-कौशल-प्रेमी दर्शककेँ, मयूरक पैर देखिते झूड़-झमान बना दैत अछि।
माया बाबू यात्री-राजकमल-ललित-किसुनजीकेँ देखने-पढ़ने छलाह। किरणजीक परम्परा हुनका बूझल छलनि। तेँ किछु बेशी अहू बिनू पर छल। हिनका “सोनाक नैया” रचए अबैत छलनि। “माटिक लोक”क सेहो हिनका परिचय छलनि। तेँ माटिपर ठाढ़ लोकक जनवादी आ प्रगतिशील आँखिकेँ चीन्हि कऽ पात्र आ परिवेशक रचना करब अपेक्षित छल। कोनो साहित्यकारसँ आजुक लोक, समाज आ समय- ई आशा रखैत अछि। मुदा सर्वतोभावेन साहित्यिक सक्षमताक बावजूद “दरभंगिया इसकूलक” तेजगर छात्र बनबाक “दुर्घटना” हिनको संग भइये टा गेल। से मात्र वैचारिकताक कारणेँ। अन्यथा, “दड़िभंगा”क कएटा “गुरु-घंटाल”सँ कतओक आगू जएबाक प्रतिभा हिनकामे छल। मात्र अहीटा बातकेँ छोड़ि कऽ माया बाबू अपना कालखण्डक एकटा अत्यंत सक्षम बहुआयामी साहित्यकार छथि आ अपन समयक मिथिला-मैथिल-मैथिलीकेँ अपन असंख्य योगदानसँ परिपूरित केलनि अछि आ कऽ रहल छथि। हुनकर ऊर्जा स्तुत्य अछि। मुदा ऊर्जाक “आउटपुट” कलाक चरमोत्कर्षपर होइतो, वैचारिक रूपेँ आलोच्य अछि।
२
मंत्रेश्वर झा चरित्र चित्रणक वाजीगर
जगदीश प्रसाद मंडल
पछिला किछु वर्षमे मैथिली साहित्यक इतिहासमे जगदीश प्रसाद मंडल धूमकेतु जकाँ उगल आ चमकल छथि। संप्रति हुनकर दू उपन्यास जिनगीक जीत आ मौलाइल गाछक फूल हमरा समक्ष अछि। दुनू उपन्यासकेँ मनोयोगसँ पढ़ि चुकल छी। रोचक भाषा आ शैलीमे लिखल हिनकर दुनू उपन्यास ग्रामीण जीवनक चिन्तन आ ऊहापोहकेँ सजीव चित्रण करैत अछि। जै गाम घरक कथा सभ मंडलजी उठाए ओकरा परिणति तक पहुँचओने छथि तै गाम घरक एतेक सूक्ष्म आ विस्तृत विवरण मैथिली साहित्यमे ऐसँ पूर्व कमे भेल अछि।
जिनगीक जीत उपन्यासमे कतेको एहन चरित्र उभरल अछि जे कोनो पाठककेँ प्रभावित केने बिना नै रहत। उदाहरण स्वरूप बचेलाल आ सुमित्राक चरित्र देखल जाए, “शिवकुमारकेँ नोकरी होइते बचेलाल इस्कूलमे त्याग-पत्र दऽ देलक। बचेलालक त्यागपत्रसँ सौंसे गाम टिका-टिप्पणी चलए लागल। किछु गोटेकेँ दुख एहि दुआरे होइत जे बेर-बेगरतामे पाइसँ मदति भऽ जाइत। किछु गोटेकेँ खुशियो होइत किएक तँ भने आमदनी बन्न भऽ गेलनि। मुदा सुमित्राकेँ ने हरख आ ने विस्मय। किएक तँ ओ नीक नहाँति बुझैत जे जत्ते मनुक्खक भीतर कमाइक शक्ति होइत छै, ओते तँ नोकरीमे नहिये होइत छैक।”
एे उपन्यासमे महन्थी कोनो चलैत अछि, महन्थ कोन-कोन कारनामा करैत अछि तकरो अद्भुत चित्रण भेल अछि। “ऊपरका हन्नामे आठ गो कोठली छै। आठो कोठली असगरे रखने अछि।... पूताक बाद सभ अपन-अपन ठरपर चल जाइए। तकर बाद लीला शुरू होइ छै। मुदा बेसी नइ कहबह।” ऐ प्रकारे बेसी नै कहबह कहि कऽ महन्थक चरित्रक पूरा वर्णन स्पष्ट भऽ जाइत अछि। दू-तीन दशक पूर्व उच्चतम न्यायालय पटना उच्च न्यायालयक कोनो भ्रष्ट आदेशकेँ निरस्त करैत बारंबार यएह टिप्पणी केने छल, “We say no more”।
मौलाइल गाछक फूल उपन्यास सेहो ओहिना उद्देश्यपूर्ण अछि जेना जिनगीक जीत। मुदा ऐ उपन्यासमे आदर्शवाद कने बेसी प्रकट भेल अछि। रमाकान्तक जे चरित्र प्रस्तुत भेल अछि तकर उदाहरण भेटब ओतेक सुलभ नै। चाह पीब रमाकान्त कहलखिन, “दूखू हम अप्पन सभ खेत समाजकेँ दऽ देलिऐक। आब हमरा कोनो मतलब ओहि खेतसँ नहि अछि।” दोसर दिस सुबुधक चरित्र अछि जे नोकरी छोड़ि गामक छोट-पैघ सबहक धीयापूताकेँ पढ़ेबा लेल त्यागक आदर्श प्रस्तुत करैत अछि। एहेन चरित्र सभ निस्संदेह गामकेँ पुनर्जीवित आ पुनर्गठित करबामे प्रेरणाक काज करत।
दुनू उपन्यास सभ दृष्टियें उत्कृष्ठ अछि आ मैथिली उपन्यास लेखनमे नव आयाम गढ़ैत अछि। मंडल जीक कथा संग्रह गामक जिनगी आओरो बेसी श्रेष्ठ रचना अछि। ऐ संग्रहमे कुल उनैस कथा संकलित अछि। ऐ संग्रहक लगभग सभ कथा प्रकाशनसँ पूर्व मंडलजी हमरा पठौने रहथि। तहिया हम िदल्लीमे रही। हुनकर आग्रह रहनि जे हम कथाक पांडुलिपिकेँ शुद्ध कऽ के हुनका पठा दिअनि। हमरा आश्चर्य भेल छल जे हमरा कोना ओ ऐ लेल उपयुक्त बुझलनि। मंडल जीक कथा सभ पढ़ि हम ततेक प्रभावित भेल रही जे हमरा पांड़लिपिमे कतहुँ कोनो चेन्ह लगाएब उपयुक्त नै लागल। हम दूरभाषपर जगदीश मंडलजी आ हुनक सुपुत्र उमेश मंडलकेँ कहलिएनि जे जखन हम पटना आपस आएब तखन स्वयं हुनकासँ भेँट कए अपन सुक्षाव देबनि। कोनो रचनात्मक लेखनकेँ आलोचना तँ भऽ सकैत अछि, ओकर गुण-दोषकेँ विवेचन तँ भऽ सकैत अछि, ओकर हठात् काटल-छाँटल नै जा सकैत अछि। से कएलो नै जेबाक चाही। संयोगसँ ऐ बीच गजेन्द्र ठाकुर जीकेँ मंडल जीक पांड़लिपि प्राप्त भेलनि आ ओ सफल जौहरी जकाँ मंडल जीक कथा, उपन्यास, नाटक आदि कतोक विधाक रचनाकेँ विविध रूपमे प्रकाशमे अनलखिन। ऐ लेल ओ अशेष धन्यवादक पात्र छथि।
गामक जिनगीक सभ कथा ग्राम्य जीवनकेँ किछु अनटुअल प्रसंगकेँ मार्मिक चित्रण करैत अछि। भैंटक लावा, बिसाँढ़, अनेरूआ बेटा, डीहक बटबारा, घरदेखिया, बाबी, ठेलाबला, बोनिहारिन मरनी, इत्यादि ऐ संग्रहक उत्कृष्ठ कथा सभ छन्हि। अपन उपन्यासे जकाँ मंडल जीक कथा सभ जिजीविषा आ व्यावहारिक आदर्शक उत्कंठासँ भरल अछि।
मंडलजी जै तरहे निरंतरतामे विविध विधाक रचना कऽ रहल छथि से भविष्यमे हुनकर विशेष अवदान लेल विश्वास जगबैत अछि।
३
विनीत उत्पल दीर्घकथा- घोड़ीपर चढ़ि लेब हम डिग्री – आगाँ
भारतीय भवन मे एडमिशन भेलाह के बाद आलोक मे आत्मविश्वास बढ़ि गेल। अहि बीच हुनकर एडमिशन जामिया मिल्लिया इस्लामिया मे सेहो भऽ गेल। जतय हमरा से भेंट भेल। हम माने गोविंद। माने आलोक बाबू के सबसे निकट रहै बला। आई धरि आलोक बाबू से सभटा काज करने छल आैर कऽ रहै छल, सभक गवाह हम छी। ई गप भऽ सकैत अछि जे किछु उन्नीस या बीस बाजै मे भऽ सकैत अछि, मुदा, डडीर से एक्को बीत आगू-पाछू नहि होयत। हम फूसक घर मे बैसल छी आओर हमर हाथ मे कलम यै। ब्राह्म बबाक ठामक कसम खाइत छी जे कहब सत कहबू फूइस नहि।
पहिलुक दिन आलोक बाबू से भेंट हमरा 507 नंबर बला बस मे भेल छल। ओ एडमिशन लऽ कऽ घुरैत छल। हमहूं घुरैत रहि संगे। देखहि मे ते टटैल छल मुदा दिमाग तऽ हुनका गोसार्इंयै देने छल। बाजै-भूकै मे होहन लोक सं हमरा आय धरि नहि भेंट छल। आओर दक्षिणी दिल्लीक बेरसराय मे रहैत छल आओर हर खानपुर मे। हम ते दू दोस्त साथ मे रहैत रहि मुदा आलोक असगरे। बेरसराय पुरान जेएनयू कैंपस के आगू अछि आओर ओकर पांछा आईआईटी के कैंपस अछि। ओतय मंदिर वाली गलि मे दिलपत पवारक मकान मे आलोक बाबू रहैत छल। कमरा नंबर-28, जकरा लेल कहैत जाइत रहै जे ओहि कमरा मे पत्रकारक आत्मा वास करैत अछि। कारण जे पिछला पांच साल से ओहि कमरा मे कोनो-नै-कोनो पत्रकार रहैत छलाह। ठामे आईआईएमसी अछि जे एशिया के बड़का संस्थान अछि आओर ओतय बड़का-बड़का पत्रकार निकलि के सभटा टीवी आओर अखबार मे भड़ल अछि।
दिल्ली मे अइलहि के बाद आलोक बाबूक व्यस्तता बढ़ि गेल। ओ केवल सुतहि लेल कमरा पर आबैत छल। दिन-राति भटकैत रहैत छल। लोक हुनकर नाम राखि देने छल 'भटकैत आत्मा"। कियैकि हुनकर एक काल एकटा पाइर एक ठाम रहैत छल दोसर काल हुनकर दोसर पाइर दोसर ठाम। दूपहरिया मे दो बजे से लऽ कऽ पांच बजे तक ओ जामिया आओर एक घंटा मे मंडी हाउस आबि के पैदल भारतीय भवन पहुंचैत छल। ओतय सांझ छह बजे से आठ बजै धरि क्लास कऽ ओ राति नौ बजे धरि डेरा आबैत छलाह। फेर ग्यारह-बारह बजे धरि पढैत छल। खाइ के कोनो चिंता नहि छल, कियैकि रातिक खाना लेल ओ टिफिन मंगाबैत छल। भोरि भेलाह पर शर्माजीक चाहक दुकान पर जाइत छल जतय ओ ब्रोड-पकौड़ा खाइत छल। ओ शर्माजीक दुकान कऽ लऽ कऽ एकटा लेख 'शर्माजी टी स्टाल, ब्रोड पकौडे नान स्टाप" सेहो लिखने छल। ओ भूख मिटाहि लेल आ समय के बचत करहि लेल एतय ब्रोड पकौड़ा खाइत छल जे हुनकर मिता सब हुनकर नाम 'ब्रोड पकौड़ा" राखि देने छल।
लेख एतबेक नीक छल जे मन हैयै जे अहोंक सुनाबी। ई एकटा पत्रिका मे छपल छल। आलोक बाबूक भाषा मे सुनबै तखन अहां के लागत जे हुनकर कलम मे सरस्वती बास करैत अछि। ते सुनू, 'दक्खिण दिल्लीक पौश इलाका। एक दिस जेएनयू के ओल्ड कैम्पस ते दोसर कात आईआईटी कैम्पस। अहि बीच अछि बेर सराय, जतय इंजीनियरिंग से लऽ कऽ सिविल सर्विसक तैयारी करहि बला गाम-घर से दूर रहिके खून-पसीना एक करैत अछि। नहि हुनका खाइके फिक्र होइत अछि आओर नहि सुतहि के। पढ़ै के आओर तैयारक टेंशन एहन होइत अछि जे ओ चाह बनाबै सं लऽ कऽ खाना बनाबहि मे ओ परहेज करैत अछि। बस एकहि टा धुन रहैत अछि हुनका मेहनत आओर सफलता।
जखन धुन होयत जे किछु करबाक अछि तखन जानले गप अचि जे कोनो काज मे मन ते नहि लागत। मुदा राति बीतले आओर भिनसर भेला पर चाह आओर नास्ताक तलब अहि इलाका मे रहै बला छात्र के शर्माजी के टी-स्टॉल पर जाहि लेल मजबूर कऽ दैत अछि। करीब 15 साल से एतय के छोट गली में ओ दुकान लगाबैत अछि आओर ओ फुर्सत संगे पेटक बीच तारतम्य बनाबैत अछि। भिनसरे पांच बजे खुलहि बला ई चाहक स्टाल देर रात एक बजे तक खुलल रहैत अछि। अप्पन चटनीक लेल नामी शर्माजीक दुकानक चटनी ब्रोड-पकौड़ाक संग खाहि बला कतेक लोग आईएएस बनि गेल तऽ कतेक आईआईटी मे एडमिशन लऽ कऽ देश मे नहि विदेशो मे बसि गेल अछि। मुदा, शर्माजीक दुकानक समोसा, ब्रोड पकौड़ा आओर कचौड़ीक स्वाद नहि बिसुरने अछि। सेल्फ सर्विस आओर अपने से वाजिब पाय दैक एतय आबै बला लोकक फितरत अछि।
आलोक बाबू आगू लिखने अछि जे दुकानक मालिक अप्पन पुरैनका गप मन मे आनहि के कहैत अछि जे जम्मू के सरकारी नौकरी करैत रहि मुदा ओतय से गुवाहाटी ट्रांसफर भऽ गेल। हमर बेटा के पाइर खराब छल आओर एकर इलाज कराबैक छल। हम गुवाहाटी नहि जाइके इलाजक लेल दिल्ली आबि गेलहुं। अप्पन बेटाक आओर परिवारक लेल सरकारी नौकरी के छोड़ि देलहुं। हमरा पूंजीक अभाव छल। घर जम्मू-कश्मीरक उधमपुर जिलाक एकटा छोटा गाम मे छल, जतय आतंकवाद के कारणे हम घुरि नहि सकैत रहि। बस मजबूरी छल ताहि सं हम अप्पन दुकान खोलहि देलहुं।
शर्माजी खुश भऽ कऽ कहैत अछि जे हरका चटनी बनाबै लेल हम नेने से जानैत रहि आओ किछु नव काज ओकरा मे करैत रहैत छी। ताहि सं हम जखन दुकान खोलहुं तऽ लोक सभ के हमर चटनी बड़ नीक लागहि लागल। हमरो नीक लागल आओर एकरा से उत्साह बढ़ल। किछु काल बीतल तऽ जकरा भूख लागैत छल ओ हमरा मन पाड़हि लागल। शर्माजी कहैत अछि जे ओ जखन दुकान खोनने छल तखन एतय एकको टा जलखहि करैक दुकान नहि छल, मुदा आब तऽ देखियौ कतेक दुकान खुजल अछि। एतौय सं रहि के कंपीटिशन मे पास करहि बला कतेक लोक कहैत अछि, जे बेरसराय मे एक बेर रहि गेल ओ कोना शर्माजीक चाह आ ब्रोड-पकौड़ा के बिसुरि सकैत अछि।"
ई लेख लिखी के आलोक बाबू बेरसराय मे नाम कमाय लेलक। जे कियो लोक दुकान पर जाइत छल, शर्माजी हुनका लेख देखाबैक छल मुदा पढ़ैक लेल कहैत छल। जखन आलोक बाबू आबैत छलाह तखन ओ पांचक बदला मे दूए टा पाय लैत छल।
एक ठाम जतय भारतीय भवन मे अंग्रेजी मे पत्रकारिताक पढ़ाई करैत छलाह ओहि ठाम जामिया मेे हिन्दी मे पढ़ैत रहैत। बेरसराय मे रहैत काल आलोक बाबूक जानपहचान आईआईएमसी मे पढैक बला छात्र आओर पढाबैक बला प्रोफेसर से सेहो भऽ गेल। आईआईएमसी के प्रोफेसर राजेंद्र जोशी से हुनका खूब पटैत छल आओर जखन हुनका नहि मन लागैत छल तखन हुनके संग बैसैत छल। जोशी के कारणे आलोक बाबू आईआईएमसीक लाइब्रोरी भेटहि गेल जतय कतेक किताब छल आओर आलोक बाबू खूब पढैत छल। अहि बीच एकटा एहन गप भेल जे आलोक बाबूक जिनगीक सीख दऽ देलक।
जारी..........
१.हम पुछैत छी- मुन्नाजीक शब्दक जादूगर मैथिली समीक्षाक प्रखर दृष्टिदर्शी एवं फरिछाएल कथाकार श्री दुर्गानन्द मंडलजी सँ भेँटवार्ता २.वीणा ठाकुर- गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा
१
हम पुछैत छी- मुन्नाजी शब्दक जादूगर मैथिली समीक्षाक प्रखर
दृष्टिदर्शी एवं फरिछाएल कथाकार श्री दुर्गानन्द मंडलजी सँ युवा लघुकथाकार
मुन्नाजीसँ भेँटवर्ताक सारांश अहाँ सबहक
आगाँ राखल जा रहल अछि-
मुन्ना जी- अहाँ मैथिलीक रचना कोना आ कहिया प्रारंम्भ केलौं, एतेक दिन धरि हेराएल वा नुकाएल किए रहलौं?
दुर्गानन्द मंडल- जी हम मैथिलीक रचना श्री जगदीश प्रसाद मंडल जीक स्नेहाशील अजस प्रेरणाक बले 2009मे शुरू कएलहुँ। जहाँतक नुकाएल वा हेराएलक भाव अछि तँ हम कहए चाहब जे हम नै तँ नुकाएल रही आ ने हेराएल रही, हँ तखन अल्हुआ जकाँ झपाएल जरूर रही।
मुन्ना जी- अहाँक कथाक गढ़नि बड्ड ठोस होइछ जेना सोनारक एक-एक गॉथल मोती जकाँ अहाँ एहेन शब्द प्रयोग कोना कऽ पबै छी, स्वभाविक रूपेँ वा शब्द संगोर मात्र कऽ रचना करै छी?
दुर्गानन्द मंडल- कथाक गढ़नि प्रयुक्त शब्द स्वभाविक रूपेँ रहैत अछि। संगोरसँ ततबेक दूर जते की गदहाक माथमे सींग।
मुन्ना जी- अहाँ कथा पाठ करबाकाल सेहो एक-एक शब्दकेँ फरिछा श्रोताक सेझाँ राखि ओकर अस्तित्वकेँ फरिछा दैत छी एकर की ध्येय?
दुर्गानन्द मंडल- कथा पाठ करबाकाल एक-एक शब्द श्रोता बन्धूक सोंझा राखब ओकरा अस्तित्केँ फरिछा देब, कथाकेँ सोझरा दैत अछि। कथा श्रवणीए भऽ जाइत अछि आ श्रोता बन्धू श्रवण करैमे सेहो आनन्दक अनूभव निश्चित रूपेँ होइत छन्हि। जे एकटा फरिछाएल कथाकारक कथाक सार्थकता थिक।
मुन्ना जी- गैर बाभन वर्गसँ कतिएल रचनाकारक कतियेवाक वा नुकएल रहवाक की कारण अपन रचनाक सामर्थ्यहीनता वा आर कोनो विशेष कारण?
दुर्गानन्द मंडल- गएर बाभन वर्गक कतिआएल रचनाकारक कतियेबाक वा नुकाएल रहबाक कोनो एक-आधटा कारण नै अछि। जँ विस्तृत रूपसँ चर्च कएल जाए तँ मैथिली साहित्यक क्षेत्र वा ओकर विस्तार मात्र एकटा जाति वा वर्ग विशेषसँ देखल जाइत रहल। जेकरा ओ लोकनि अपन पूर्वजक धरोहरिक रूपमे अमानति बुझैत रहलाह। मुदा आइ मैथिली साहित्यक विस्तार ओ अपन सभ परिसिमनसँ बहरेबाक लेल औना रहल छलीह। मुदा वर्ग विशेषक खिंचल एकटा सीमा-रेखा जेकरा लांघि कऽ बाहर भऽ जाएब बड्ड कठीन छल। ने िसर्फ छल आइयो अछि। जेना जँ कोनो गएर-ब्रह्मण-कर्ण-कायस्थ वर्गक लोककेँ साहित्यसँ अनुराग होइ तँ सभसँ पहिने अपन मातृभाषाक प्रति हेबाक चाही। मुदा जखन ओ मातृभाषा (मैथिली)मे लिखए लेल कलम उठबैत छथि तँ बैरिअर जकाँ ओहन-ओहन शब्द सभ आबि ठाढ़ भऽ जाइत अछि जे ओ अपना जीवनमे तँ अपने नहिये बाजल छलाह अपितु किनको मुँहेँ कखनो-कहियो सुननहुँ नै छलाह। तँ हमर कहबाक भाव मुन्नाजी अपने करीब-करीब बुझि गेल हएब। एतबे नै समए-कुसमए मैथिली साहित्य लेखनमे नीकसँ नीक कथाकारक पदार्पण भेल मुदा ओइ कथाकार लोकनिमे सँ अधिकांशकेँ वर्ग-विशेष पर्दाक पाछाँ रखलनि। मात्र किछु गिनल-चुनल कथाकार लोकनिकेँ पर्दापर आनल गेल। जे वर्ग-विशेषक कोनो ने कोनो रूपमे पछिलग्गु वा मुँहलग्गु बनि हुनकहि शब्द आ बोलीकेँ (जे मात्र लिखल जाइत, बाजल नै) प्रश्रय दैत रहला। ओना ई अलग बात जे आजुक परिस्थिति थोड़ैक बदलल सन बुझाइत अछि। तहु लेल हमर कहब हएत जे बदलैत परिस्थितिकेँ देख गएर ब्राह्मण वा जिनका दऽ अपने कहऽ चाहै छी ओ सभ आगाँ आबि रहला अछि। आ आरो एता से विश्वास अछि।
मुन्ना जी- अहाँ समीक्षा सेहो लिखै छी, समीक्षाक प्रमुख आधार की रखै छी, रचनाकारक व्यक्तित्व विश्लेषण वा कृतित्व विवेचन?
दुर्गानन्द मंडल- मुन्नाजी, ओना हम कोनो समीक्ष नै छी। आ ने समीक्षा करबाक हमरा सामर्थ्य अछि। समीक्षा जगतमे एकसँ एक, पैघ समीक्षक सभसँ अपनेक भेँट-घाँट भेल हएत। जे प्रखर समीक्षकक रूपमे जानल जाइत रहलाहेँ। तखन समए पाबि जे किछु एक-आधटा लिखलौं। तैसँ हमरा समीक्षक नै मानल जाए। तखन, अपनेक प्रश्न- समीक्षामे व्यक्तित्व विश्लेषण वा कृतित्व विवेचन- तँ विचारनीय अछि। समीक्षाक प्रमुख आधार कोनो एकटाकेँ नै मानि दुनूकेँ आधार बनाओल जाए। किएक तँ कथाकारक कोनो कथाक समीक्षाक आधार जतबए हुनकर व्यक्तित्व विश्लेशन रहै छन्हि ततबाए कृतित्व विवेचन सेहो। तखन खगता ऐ बातक अछि, जे किछु ओ कथाक मादे पाठककेँ देमए चाहै छथिन ओकरा ओ अपना जीवनमे कतेक अनुशरण करै छथि?
मुन्ना जी- अहाँक कथाक मुख्य विन्दु की होइछ, कोनो कथाक कथानक कतए केन्द्रित रहैछ?
दुर्गानन्द मंडल- कथाक मुख्य बिन्दु गाम-घर, सर-समाजसँ जुड़ल समस्या आ निदानक संग अपन सभ्यता-संस्कृतिकेँ यथावत रखनाइ। आ से सभ बिन्दुपर।
मुन्ना जी- गैरबाभन रचनाकारक उपस्थितिक भविष्य अहाँ केहेन देखै छी, बाभन वा जमल रचनाकारसँ उखरि हेरा जाएब वा अपन फरिछएल दृष्टिऍ ओइसँ आगु डेग बढ़ा स्थापित हएब सन?
दुर्गानन्द मंडल- हिनकर सबहक भविष्य एकदम सवर्णिम अछि। कारण अहाँ नीकसँ जनै छी जे अपन समाजमे अखनो वैदिक व्यवहार-चालि-चलन िवद्यमान अछि आ से हुनके सबहक बीच अहाँ देखब। निश्चित रूपेँ अपने ऐपर विश्वास करी जे जँ ओ इमानदारी पूर्वक रचना करता तँ सत्यक समीप रहैक कारणे ओ किनकोसँ फरिछाएल दूष्टिऍं सोझा औताह। तखन खगता ऐ बातक अछि जे ऐ कर्मकेँ अो अपन तपस्या बुझथि। पूर्ण निष्ठा आ लगनसँ लेखनीकेँ अनवरत रूपेँ साधथि।
मुन्ना जी- अहाँक कथेपर केन्द्रित रचनाक मूल उद्देश्य की अछि, एकर अतिरिक्त आर की सभ रचना करैत छी?
दुर्गानन्द मंडल- कथापर केन्द्रित रचनाक मूल उद्देश्य पाठक बन्धुकेँ पूर्ण मनोरंजनक संग समाज बीच व्याप्त आराजक्ता, अंधविश्वास, जाति-पाति आदिकेँ दूर करैत एकटा मानवीय मूल्यकेँ स्थापित करब। जहाँधरि आर-आर रचनाक प्रश्न अछि। मुन्ना बाबू तै सम्बन्धमे हम ई कहब जे शुरूहेँसँ अर्थात् जहियासँ पाटीपर लिखब छोड़लहुँ पोथीक अध्ययन करब शुरू केलहुॅँ तहियेसँ साहित्यक विधा- कथा, उपन्यास, कविता आदिसँ बड्ड सिनेह रहल। कहियो काल लघुकथा, कविता सेहो लिखैत रहलौं। विश्वास अछि जे आगाँ और लिखब। विदेह पत्रिकाक सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुर जीक सिनेहसँ हमरा अपनामे सृजनात्मक शक्तिक संचार भेल। बहुत रास एहेन शब्द सभ जे मैथिली साहित्यमे अप्रयुक्त छल। जेकरा ठेंठ कहल जाइ छलै ओ जखन ठाकुर जीक लिखल पोथी कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक पढ़ि देलखहुँ आ जनलहुँ तँ आरो विश्वास भऽ गेल।
मुन्ना जी- भविष्यमे अपन जाति-बिरादरी (पिछड़ल कोनो जातिक) लोकक उपस्थितिक निरन्तरता बनेने रहबाले अहाँ कोनो डेग उठाएब वा एकरा अनठिया देब उचित बुझब?
दुर्गानन्द मंडल- भविष्यमे अपन जाति-बिरादरी (पिछड़ल जातिक) उपस्थितिक निरन्तरता बनौने रहबा लेल एकरा अनठिया देब उचिन नै अपितु समए-समएपर नवसँ लऽ कऽ पुरान कथाकार लोकनिक बीच ठाम-ठाम चर्चा, परिचर्चा, पाँच-दस कथाकार मिल कथा गोष्ठिक आयोजन, कथा-पाठ आदिपर उचित समीक्षादि करब। जइठाम मैथिली पत्र-पत्रिकाक अनुपलब्धता अछि ओइठाम दस-बीस पाठक बना पत्र-पत्रिका वा पोथी आदि मंगाएब। ओकरा अपनहुँ पढ़ि दोसरोकेँ पढ़़बाक आग्रह करब। किछु लिखबा-पढ़बाक प्रेरणा देब हम उचित बूझब।
मुन्नाजी अपने हमरा...... बुझलहुँ। ऐ लेल धन्यवाद।
हम दुर्गानन्द मंडल।
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वीणा ठाकुर अध्यक्ष, मैथिली विभाग, ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा
गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा
प्रीति ठाकुर रचित “गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा” पढ़बाक आ देखबाक सुयोग भेल। देखबाक ऐ लेल जे ई पोथी चित्रकथा थिक अर्थात चित्रक माध्यमे संकलित सोलह कथाक चित्रण लेखिका कएने छथि। सोलह कथामे नौ कथाक नायक छथि गोनू झा आ शेषमे रेशमा चूहड़मल, नैका-बनिजारा, भगता ज्योति पँजियार, महुआ घटवारिन, राजा सलहेस, छेछन महराज आ कालिदास। सभ पात्र मिथिलाक संस्कृतिक प्रतिनिधित्व करैत।
वस्तुतः संस्कृति शब्द अत्यन्त व्यापक अछि, दोसर शब्दमे कहल जा सकैत अछि जे एहन व्यवहार जे परम्परासँ प्राप्त होइत अछि, संस्कृति कहबैत अछि। एकरा सामाजिक प्रथाक पर्याय सेहो कहल जा सकैत अछि। प्रेम, त्याग, दया, करुणा, सहानुभूति आदि समस्त गुण संस्कृतिक अन्तर्गत समाहित होइत अछि। संगहि कलाक उद्देश्य जौँ सौन्दर्यक अनुसंधान एवं रसानुभूति होइत अछि तँ कलाक संबंध लोक संस्कृतिसँ रहब आवश्यक भऽ जाइत अछि। गोनू झाक कथा मिथिलाक घर-घरमे जनकण्ठमे व्याप्त अछि प्रायः प्रत्येक मिथिला निवासी अपन बुजुर्गसँ गोनू झाक कथा सुनने होएत आ पश्चात अपन बाल-बच्चा संगी-साथीकेँ सुनौने होएत। तहिना नैका बनिजारा, सलहेस, छेछन महराज, भगता ज्योति पँजियार- अपन शर्य, वीरता, पराक्रम आ उदात्त व्यक्तित्वक कारणेँ कहियो जौँ लोकनायक छलाह तँ पाछाँ लोकदेवता रूपमे पूजित होमए लगलाह। तहिना कालिदास अपना विद्वता एवं पाण्डित्यसँ भारतीय संस्कृतिमे अपन महत्वपूर्ण स्थान निर्धारित कऽ लेने छथि। महुआ घटवारिनक आदर्श प्रेम कथाएहुठाँ आदर्श रूपमे चित्रित होइत अमर भऽ गेल अछि। पोथीमे संकलित प्रत्येक पात्र एवं कथा मिथिलाक संस्कृतिक प्रतिनिधित्व कऽ रहल अछि।
संस्कृति लोक जीवनसँ सम्बद्ध रहैत अछि। समाज आ संस्कृतिमे अभिन्न सम्बन्ध अछि किएक तँ संस्कृतिक निर्माण काल सापेक्ष होइत अछि, जेना समाजमे नीक कृत्यक अनुकरण होइत अछि। किछु अवधि पश्चात ओ समाजक प्रकृति भऽ जाइत अछि। कालान्तरमे ईएह प्रकृति संस्कृतिक रूप धारण कऽ लैत अछि। एवं प्रकारे कृति, प्रकृति आ संस्कृतिक क्रम चलैत रहैत अछि। ईएह कारण अछि जे संस्कृतिक निर्माण आ विनाशमे समय लगैत अछि जखनकि सभ्यतामे परिवर्तन क्रम समयमे होइत अछि। पोथीमे संकलित प्रत्येक पात्र अपन-अपन समयक प्रतिनिधित्व करैत मिथिलाक संस्कृतिक प्रतीक छथि। कलाकार, लेखिका प्रीति ठाकुरजी रेखा आ रंगक माध्यमसँ चित्रकथाक रचना कएने छथि। प्रत्येक चित्र किछु संकेतकेँ प्रकट कऽ रहल अछि। अकारण वा अनायास किछु नै बनाओल जा सकैत अछि। प्रत्येक चित्र तथ्यात्मक अछि, प्रत्येक रेखा एकटा कथाक निर्माण कऽ रहल अछि
। मिथिलाक जन-जीवनक अभिव्यक्ति ऐ चित्र कथाक माध्यमसँ भेल अछि। वस्तुतः लोक चित्र कला तत्कालीन लोक जीवनक चित्रण करैत अछि जेना लोकगीत, लोकनृत्य, लोकभाषा आदिमाध्यमसँ तत्कालीन समाजक स्वरूपक ज्ञान होइत अछि।
फूलक सुगंध सदृश संस्कृति अलक्ष्य होइत अछि मुदा वातावरणकेँ अपन सौरभसँ सतत सुवासित करैत रहैत अछि। ई आन्तरिक गुण थिक जकर मात्र अनुभव कएल जा सकैत अछि। एकर स्थान हृदयमे रहैत अछि, बाह्य आचरण ओकर मात्र प्रतिफल थिक। ऐ संस्कृतिक अभिव्यक्तिक माध्यम कला होइत अछि जेना नृत्य कला, संगीत कला, चित्र कला। चित्रकला मूक होइत अछि जकर भाषा रंग आ रेखा चित्र होइत अछि।कलाकार प्रीति ठाकुरजी मिथिलाक ऐ संस्कृतिकेँ नै मात्र रंग रेखाक माध्यमसँ चित्रित कएने छथि अपितु शब्दक माध्यमसँ चित्रित करैत अपन कलाकृतिक सौन्दर्य द्विगुणित कऽ लेने छथि। वस्तुतः हिनक ई प्रयास सर्वथा प्रशंसनीय छन्हि।
कला मानव संस्कृतिक उपज थिक, कला आ मनुष्यक सम्बन्ध अविभाज्य अछि। मानव द्वारा कलाक प्रतिष्ठा भेल अछि आ कला द्वारा मानव आत्मगौरव आ आत्मचैतन्य प्राप्त कएने अछि। कलाक माध्यमे सँ मानव जीवनमे माधुर्य आ सौन्दर्यशीलताक जन्म भेल आ कर्म मधुर आ सुन्दर बनि गेल। वस्तुतः सौन्दर्यक मूलभूत प्रेरणा कलाक उद्घम स्थल थिक आ सौन्दर्याभिरुचिक प्रमाण। मनुष्यक अनुकरण प्रवृत्ति थिक। आदियेकालसँ प्राकृतिक दृश्य मानव मोनकेँ आनन्दित करैत रहल आ ऐ दृश्यक निर्माण करबाक इच्छा मोनमे जागृत भेल आ ईएह इच्छा जन्मक प्रेरक भेल। प्रीति ठाकुर जीक आत्मगौरव एवं आत्मचैतन्य ऐ चित्र कथाक रचना लेल प्रेरक भेलनि, आत्मगौरव मिथिलाक संस्कृतिक प्रति एवं आत्मचैतन्य सौन्दर्यशीलताक कारणेँ आ जकर प्रतिफल भेल विभिन्न कालक मिथिलाक लोकनायकक चित्रकथाक माध्यमसँ निरूपण करबाक।
प्रिन्ट मीडिया आ इलेक्ट्रानिक मीडियाक कारणेँ जखन सम्पूर्ण विश्वक ग्लोबलाइजेशन भऽ गेल अछि, मिथिलाक चित्रकलामे अन्य कलाक विधा सदृश सेहो पारम्परिक स्वरूपमे परिवर्तन भेल अछि। परिवर्तनेक दोसर नाम तँ विकास थिक। लेखिका मिथिला चित्रकलाक पारम्परिक स्वरूपमे परिवर्तन तँ कएने छथि मुदा लोक चित्रकथाक माध्यमसँ एकर सार्थकता आ प्रासंगिकतामे सफल भेल छथि। किएक तँ मिथिलाक चित्रकला मूल्यग्राही अथवा कोमल हृदय कलाकारक मात्र हॉबी थिक अपितु परम्परावद्ध समाजक एकटा अभिन्न जीवन-दर्शन थिक, संगहि मैथिल संस्कृतिक जीवनक एक अविच्छिन्न अंग सेहो।
समाजक परिवर्तनक प्रभाव कला आ साहित्यपर पड़ब स्वाभाविक अछि संगहि कला आ साहित्य समाजक प्रतिबिम्ब सेहो थिक। वस्तुतः साहित्य युगक प्रवृत्ति एवं प्रयोजनक उपेक्षा नै कऽ सकैत अछि। कला जीवनसँ निरपेक्ष नै रहि सकैत अछि कारण एकर आधार मानव जीवन थिक। एकर पोषण जीवनसँ होइत छैक, एकर प्रभाव मानव जीवनपर पड़ैत छैक, तेँ कलाकार जीवनक प्रति अपन उत्तरदायित्वक उपेक्षा नै कऽ सकैत अछि। आ ईएह कारण अछि जे कलाक स्वरूपमे परिवर्तन होइत रहैत अछि। ऐ वैश्विक प्रतियोगिताक युगमे मिथिलाक चित्रकला जइमे मात्र कोहबर, डाला, अष्टदल, अरिपन, मंडप, वेदी आदिक चित्र निर्माणक परिधिमे ओझरायल अछि, आवश्यक अछि जे मिथिला चित्रकलाक विषयवस्तुमे विस्तार कएल जाए। लेखिकाक ई सर्वथा नूतन प्रयास छन्हि। प्रीति ठाकुरजी परम्परागत विषय वस्तुसँ आगाँ बढ़ि मिथिलाक लोककथाकेँ चित्रकथाक माध्यमे चित्रित करैत मैथिली साहित्य मध्य सर्वथा नूतन शैलीक रचना कएलनि अछि। निश्चित रूपसँ मैथिली साहित्यक भंडारमे श्रीवृद्धि तँ भेल अछिये, ई नव शैली, नव विषय वस्तु एक शब्दमे नव स्टाइल सर्वथा प्रशंसनीय अछि।
समय परिवर्तनशील होइत अछि, ऐ बदलैत समयक संग जे अपनामे परिवर्तन नै आनैत अछि से विकासक धारासँ बाहर भऽ जाइत अछि। तेँ समयक यथार्थक चित्रण कलाक माध्यमसँ होएब आवश्यक अछि, तखने कला अपन प्रासंगिकता सिद्ध कऽ सकैत अछि। वर्तमान बदलैत आधुनिक समाजक आवश्यकताक अनुरूप लेखिका ऐ पोथीक रचना कएलनि, ई प्रासंगिक तँ अछिये संगहि लोकोपयोगी सेहो अछि।
संगहि एकटा तथ्य आर महत्वपूर्ण अछि। मैथिली लोक साहित्यक संरक्षिका मिथिलाक महिला लोकनि छथि, किएक तँ हिनकहि कण्ठमे लोकगीत आ लोकनृत्य आ हिनकहिं हाथे लोकचित्रकला जीवित अछि। त्याग आ तपस्यासँ युक्त हिनका लोकनिक सांस्कृतिक चेतनासँ लोककला जीवित अछि तथा हिनकहि लोकनिक कोमल तूलिकाक प्रसादात मिथिलाक चित्रकला जीवित, संरक्षित एवं विकसित भऽ रहल अछि।
आ ई पोथी “गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा”क रचयिता सेहो महिला छथि। ई सर्वथा स्तुत्य थिक।
१.योगानन्द झा - आस्था, जिजीविषा ओ संघर्षक प्रवाह-“गामक जिनगी”, आदर्शक उपस्थापन : मौलाइल गाछक फूल २.आशीष अनचिन्हार-गजलक साक्ष्य ३. ३. प्रो. वीणा ठाकुर- जिनगीक जीत उपन्यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर ४.शिव कुमार झा ‘टिल्लू’ समीक्षा- हम पुछैत छी- कविता संग्रह (विनित उत्पल), मैथिलीक विकासमे बाल कविताक योगदान, मैथिली उपन्यास साहित्यमे दलित पात्रक चित्रण, भावांजलि, भफाइत चाहक जिनगी, भफाइत चाहक जिनगी, रमाजीक काव्य यात्रा ५. धीरेन्द्र कुमार- श्रीमती प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि ६.जगदीश प्रसाद मंडल- कथा- कतौ नै ७. रमाकान्त राय “रमा”, गामक जिनगी- कथा संग्रह- जगदीश प्रसाद मंडल, आरसी बाबूक व्यक्तित्व एवं कृतित्वपर द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार- दू दर्जन विद्वानक सहभागिता : आचार्य दिव्यचक्षु ८.
रामकृष्ण मंडल 'छोटू'- कथा- बाप ९.शैल झा’ सागर"- किस्त-किस्त जीवन
१
योगानन्द झा १
आस्था, जिजीविषा ओ संघर्षक प्रवाह
श्री जगदीश प्रसाद मंडल कृत “गामक जिनगी” हिनक उन्नैस गोट कथाक संग्रह थिक। एहि कथा सभमे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक मौलिक ओ अकृत्रिम छवि अभिव्यक्त भेल अछि। आजुक संक्रमणशील युगमे मिथिलाक गाम कोन तरहेँ अपन परम्परित जीवन पद्यति, आस्था ओ विश्वासक संग प्रबल जिजीविषाक बलेँ निरन्तर संघर्ष पथपर आरूढ़ संग रूपायित कएल गेल अछि।
संग्रहक तीन गोट कथा क्रमश: ‘भैँटक लावा’, ‘बिसाँढ़’ ओ ‘पीराड़क फड़’ मिथिलामे उपलब्ध प्राकृतिक उपादानक उपयोगितापर विमर्श प्रस्तुत करैत अछि। बाढ़ि आ सुखारसँ पीड़ित मिथिलाक जनसमुदाय अपन जीवन रक्षाक हेतु कोन तरहेँ भैँट, विसाँढ़, पीरार आदिकेँ अपन मेहनतिक बलेँ साद्य पदार्थक रूपमे ग्रहन करैत रहल अछि तथा एहिठामक प्राकृतिक संसाधनक उपयोग द्वारा कोना मिथिलाक भूखमरी ओ बेरोजगारीकेँ दूर कएल जा सकैछ, एकर आर्थिक विकास कएल जा सकैछ तकर चित्र एहि तीनू कथामे भेटैत अछि। श्रमपर वश्वास, इमानदार प्रयास, कर्मण्यता ओ चातुर्यक संबलसँ विपन्नतापर विजयक ई गाथा सभ मिथिलाक लोकजीवनमे व्याप्त उत्साह ओ संघर्षक मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत करैत अछि।
संग्रहक अन्यान्य कथा सभमे विभिन्न प्रकारक समस्या सभपर विमर्श प्रस्तुत भेल अछि आ एक गोट आदर्श ग्राम्य समाजक परिकल्पना प्रस्तुत भेल अछि। दहेजक सामाजिक समस्याक उन्मूलनक दृष्टिए ‘घरदेखिया’ कथा अत्यन्त हृदयस्पर्शी अछि। मिथिलाक उच्चवर्गीय समाजमे धनलोलुपताक कारणे उत्पन्न एहि समस्याक कुफल नारी प्रताड़नाक अतिरेकक रूपमे अत्यन्त गर्हित स्थिति प्राप्त कएने अछि जकर कारणे कन्याक विवाह एकटा पैघ समस्या बनल रहल अछि आ एकर कोनो ठोस समाधान अद्यावधि समक्ष नहि आबि सकल अछि। मण्डलजी एहि समस्याक समाधान लोकजीवनक वैचारिक परिवर्त्तनकेँ मानैत छथि आ सर्वहारा वर्गक अतिशय दीन पात्र लुखियासँ कहबैत छथि- “नै। हम ककरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपना घर नै आनब।” लुखियाक एही वाक्यमे दहेज समस्याक प्रति समाधानक दिशा-बोध होइत अछि।
आजुक युग तकनीकक युग थिकैक। नित्य नूतन तकनीकक विकासक कारणेँ जे केओ अपन तकनीकी ज्ञानमे अद्यतन बनल नहि रहि सकत, ओ जीवन-सघर्षमे पाछाँ धकेलि देल जाएत। एहि तथ्यसँ अवगत करएबाक उद्देश्य मण्डलजीक दुनू गोट कथा- ‘दूटा पाइ’ आ ‘हारि-जीत’मे अभिव्यक्त भेल अछि। ‘दूटा पाइ’क फेकुआ नूतन फैशनक अनुरूप सिआइक काज सिखबामे असमर्थ रहैत अछि तेँ ओकरा शहरो छोड़ए पड़ैत छैक आ जीविकासँ हाथो धो लैत अछि जखन कि ‘हारि-जीत’ कथाक रामदत्त कुम्हारक व्यवसायमे होइत नित्य परिवर्त्तनक अनुरूप अपन व्यवसायोमे परिवर्त्तन कऽ मूत्तिकार बनि जीविकोपार्जनमे समर्थ बनल रहि पबैत अछि। ओकरा जीविकापर एहि परिवर्त्तनक कोनो असरि नहि पड़ि पबैत छैक जे घरैया बासनमे माटिक बदला धातुक प्रयोग होमए लगैत छैक आ खपराक घरक स्थान एस्बेस्ट्स शीटक मकान लऽ लैत छैक। एहि तरहेँ ई दुनू कथा युग-परिवर्त्तनक संग चलबाक शिक्षा प्रदान करैत अछि।
उपयोगितापर आधारित व्यवहारपरक एहि युगमे लोक स्वार्थ मात्र दिस ततेक झुकि गेल अछि जे वृद्ध माता-पिताक प्रति कुभेला एकटा सामान्य बात भऽ गेल अिछ। आइ ‘मातृ देवो भव’, पितृ देवो भव, लोक संस्कारसँ विलुप्त भेल जा रहल छैक। श्रवण कुमारक आदर्शसँ लोक बान्हल नहि रहि सकल अछि। जाहि भारतमे कृतज्ञता वशात् लोक गाछ पर्यन्तक पूजक अछि, ततहि पालि-पोसि, पढ़ा-लिखा कऽ समर्थ बनौरिहार माताे-पितोक प्रति कृतज्ञ रहबामे संकोच भऽ रहल छैक। समाजमे आएल एहि परिवर्त्तनकेँ रेखांकित कऽ मंडलजी दू गोट कथामे एहिपर विमर्श प्रस्तुत कएलनि अछि जकर नाम अछि क्रमश: ‘भैयारी’ आ ‘बहिन’। ‘भैयारी’क कुसुमलाल अपन जेठ भाय दीनानाथक परिश्रमक बलपर उपार्जित पाइसँ जखन पढ़ि-लिखि कऽ नोकरी करए लगैत अछि तँ गामक अपन हिस्साक सम्पत्ति बेचि शहरी जीवन व्यतीत करए लगैत अछि। ओकरा अपन लकवाग्रस्त पिता आ वृद्धा माताक कोनो ध्यान नहि रहैत छैक। तेँ जखन ओ दारूक सेवनक कारणेँ असमय कालकवलित होएबापर वृत्त भऽ जाइत अछि आ माएकेँ ई समाद भेटैत छनि जे ओ ओकर अन्तिम दर्शन कऽ लेथि तँ माएक एहि उक्तिमे वृद्धा माता-पिताक वैकल्य अभिशापक रूपमे प्रकट होइत अछि- “कुसुमा हमर बेटा थोड़े छी जे मुँह देखबै। उ तँ ओही दिन मरि गेल जइ दिन हमरा दुनू परानीकेँ छोड़ि चलि गेल। आइ बीस बर्खसँ अइ हाथ-पाएरक बलेँ बीमार पतिकेँ जीवित राखि अपन चूड़ी आ सिनूरक मान रखने छी।”
‘बहीन’ कथामे सरोजनी नामक वृद्धाक कथा अछि जनिक मृत्युक अवसरपर बजौलो उत्तर हुनक पुत्री रीता हुनक अन्तिम दर्शनक हेतु नहि अबैत छथि आ व्यस्त होएबाक लाथ लगा दैत छथि जखन कि परजातिक मुसलमानि बहिना शबाना हुनका देखबाक हेतु अबैत छथिन। राधेश्यामक एहि चिन्तनमे सम्बन्ध-बन्धक वास्तविकताकेँ उद्घाटित करैत कहल गेल अछि- “दुनियाँमे बहिनिक कमी नहि अछि। लोक अनेरे अप्पन आ वीरान बुझैत अछि। ई सभ मनक खेल थिक। हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैमे जे संग रहए वएह अप्पन।” माता-पिताक प्रति धियापुताक कुभेलाक संगहि एहि कथामे मानवतावादक प्रतिपादन मंडल जीक लक्ष्य बुझना जाइत अछि।
उच्च शिक्षा प्राप्त वर्गमे सम्प्रति विदेश गमनक लिलसा प्रबल देखल जाइत अछि। एहि प्रवृत्तिक कारणे ओ लोकनि स्वदेश सेवासँ तँ वंचित एहिये जाइत अछि, अपनो जीवनक परिवेश संकुचित बना लैत छथि। ‘पछतावा’ कथा शिक्षित वर्गक एही अध:पतनक कथा थिक। एकर प्रमुख पात्र रघुनाथक एहि पश्चात्तापपूर्ण उक्तिमे एहन लोकक मानसिकताक अभिव्यक्ति कएल गेल अछि- “हमरासँ सइओ गुना ओ नीक छथि जे अपना माथपर पानिक घैल उठा मातृभूमिक फुलवारीक फूलक गाछ सीचि रहल छथि। अपन माए-बाप, समाजक संग जिनगी बिता रहल छथि। जिनगीक अन्तिम पड़ावमे पहुँचि आइ बुझि रहल छी जे ने हमरा अपन परिवार चिन्हैक बुद्धि भेल आ ने गाम-समाजक।”
एही तरहेँ ‘बोनिहारिन मरनी’मे सर्वहाराक प्रति करूणा, ठेलाबलामे सर्वहाराक संघर्ष, ‘जीिवका’मे जनवितरण प्रणालीमे व्याप्त भ्रष्टाचार, ‘रिक्शाबला’मे सर्वहाराक उन्मुक्त जीबन आ सम्पत्तिशाली वर्गक नारीक कुंठा, ‘चूनवाली’मे सर्वहारावर्गक स्नेह-सम्बन्ध आदिकेँ आधार बना कऽ कथा गढ़ल गेल अछि जे अत्यन्त रोचक भेल अछि। ‘अनेरूआ बेटा’ लोकजगतमे शिक्षाक आवश्यकतापर बल दैत अछि तँ ‘डाक्टर हेमन्त’ सुदूर देहातमे स्वास्थ्य सुविधाक व्यवस्थाकेँ रेखांकित करैत अछि। ‘बाबी’ कथाक माध्यमे मंडलजी हिन्दू-मुस्लिम एकताकेँ छठि पाबनिक आधारपर दृढ़ता प्रदान करबाक राष्ट्रीय दायित्वक प्रतीक्षा सतर्कता दर्शौलनि अछि। ‘डीहक बॅटबारा’ भ्रष्टाचार पूर्वक धन अर्जन कएनिहार समाजक अधोगतिक चित्रांकन करैछ।
मंडलजीक अधिकांश कथा वर्णनात्मक शैलीमे लिखल गेल अछि। एहि शैलीक कारणें हिनक कथा सभमे उपन्यासिक आनन्द भेटैत अछि मुदा एके कथामे अनेक उपकथा सभक सम्मिश्रणक कारणें बहुधा लघुकथाक क्षिप्रता ओ सघनता बाधित देखि पड़ैत अछि। हिनक वर्णनमे अवश्ये चारूताक दर्शन होइत अछि आ पाठक समक्ष समग्र चित्र रूपायित भऽ जाइत अछि यथा- “पछिला चारि सालक रौदी भेने गामक सुरखिये बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरियर-हरियर गाछ-बिरीछ, अन्नसँ लहलहाइत खेत, पानिसँ भरल इनार-पोखरि, सैकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंगसँ लऽ कऽ गाए, महींस आ बकरीसँ भल रहैत छल ओ मरणासन्न भऽ गेल। सुन्न-मसान जेकाँ। वीरान। सबहक मनमे एक्केटा विचार अबैत जे आब ई गाम नै रहत। जँ रहबो करत तँ माटियेटा। किएक तँ जाहि गाममे खाइक लेल अन्न नहि उपजत, पीबैक लेल पानि नहि रहत, ताहि गामक लोक की हवा पीबि कऽ रहत।” इत्यादि।
मंडलजीक हृदयमे ग्राम्य जीवनक प्रति अगाध निष्ठा छनि आ मिथिला ओ भारतक आदर्श ग्रामक परिकल्पना छन्हि। तेँ ओ ओहि सभटा परिस्थिति दिस नजरि खिरबैत देखि पड़ैत छथि जे ग्राम्य जीवनक सौन्दर्यक हेतु बाधक बनल अछि। एकटा पात्रक माध्यमे ओ कहैत छथि- “गाममे ने पानि पीबैक ओरियान छै, ने खाइक लेल सभकेँ संतुलित भोजन भेटै छै, ने भरि देह कपड़ा भेटै छै, ने रहैक लेल घर छै, ओहि देशकेँ मरल नै कहबै तँ की कहबै। एखनो लोक सड़ल पानि पीबैत अछि, कहुना कऽ किछु खा दिन कटैत अछि, गाछक निच्चांमे आगि तापि समए बितबैत अछि, हजारो रंगक रोग-व्याधिसँ घेरल अछि, ओहि देशकेँ की कहबै? हजारो वर्षक मनुक्खक इतिहासमे एखनो धरि सरस्वतीक आगमन सभ मनुक्ख धरि नै भेल अछि, ओहि देशकेँ की कहबै? आदि। अवश्ये हुनक आदर्श गामक परिकल्पना सर्वथा सुविधासम्पन्न, आर्थिक रूपेँ सबल आ सुशिक्षित गामक छनि। जकर चर्चा बेर-बेर हुनक कथा सभमे अनायास आएल अछि।”
अपन कथा सभमे मंडलजी कतहु कृत्रिमताक प्रवेश नहि होमय देलनि अछि। स्वभावत: हिनक भाषा, संवाद, वर्णन, वस्तु, चरित्र आदि समरत्त उपादानमे सहजताक दर्शन होइत अछि। हिनक अधिकांश कथा ग्राम्य जीवनसँ सम्बद्ध अछि तेँ ई पात्रक नामावली सेहो ओही जीवनसँ लेने छथि यथा- फुलिया, दुखनी, बेचन, सुगिया, धनिया, पिचकुन, पिहुआ, भुलिया, फेकुआ, लुखिया, सोमन, मरनी, रघुनी, बुचाइ, बचनू आदि, मुदा जखन ई नागर पात्रकेँ अपन कथामे प्रवेश दैत छथि तँ वर्गीय नामोक प्रयोग करैत छथि यथा- मुकुन्द, शिवनाथ, रूक्मिणी, शोभाकान्त, रागिनी, सुनयना आदि। पात्रक रंखाचित्र पाठकक मानसमे उतारि देबाक हिनक झमता मरनीक एहि रूवरूप-वर्णनमे अत्यन्त उत्कृष्ट देखि पड़ैछ- “कारी झामर एकहड्डा देह, ताड़-खजूरपर बनाओल चिड़ैक खोंता जेकाँ केश, आंगुर भरि-भरिक पीअर दाँत, फुटल घैलिक कनखा जेकाँ नाक, गाइयक आँखि जेकाँ बड़का-बड़का आँखि, साइयो चेफड़ी लागल साड़ी, दुरगमनिया आँगि फटलाक बाद कहियो देहमे आंगीक नसीब नहि भेल, बिना साया-डेढ़ियाक साड़ी पहिरने। यएह छी मरनी।” मात्र ई वर्णन मरनीक प्रति करूणा उत्पन्न करबामे सक्षम सिद्ध अछि।
ग्राम्य जीवनक वर्णन करैत काल ओकर श्याम पक्षकेँ सेहो मंडलजी यथावत् राखि कथाक सहजताकेँ अक्षुण्ण रखलनि अछि। ग्राम्य जीवनमे ताड़ी-दारू, गाँजा-भांग, बीड़ी-सलाइ आदिक प्रयोगकेँ ई विभिन्न कथामे सहजताक सृजनक हेतु प्रयुक्त कएलनि अछि।
आस्था आ विश्वास ग्राम्य जीवनक अंग थिक। मंडल जीक कथा सभमे अनेक ठाम लोक जीवनक जीवन्त आस्थाक चित्रण भेल अछि यथा- “इन्द्र भगवानकेँ कोनो चीजक दुख भऽ गेल हेतनि। तेँ हुनका बौसब जरूरी अछि।” यएह सोचि कियो भूखल-दुखलकेँ अन्नदान तँ कियो कीर्तन-अष्टयाम-नवाह, तँ कियो यज्ञ-जप चंडी, विष्णु तँ कियो महादेव पूजा लिंग इत्यादि अनेको रंगक बौस’क ओरियान शुरू केलक। जनिजाति सभ कमला-कोशीकेँ छागर-पाठी कबुला सेहो करए लगलीह। इत्यादि। ग्राम्य जीवन लाख अभाव-अभियोगक अछैतो जािह उत्साह ओ उमंगकेँ अङेजने रहैत अछि, से एकर अपार जिजीविषाक प्रतीक थिक। मण्डल जीक कथा सभमे पात्रक चरित्रमे कुंठा ओ संत्रास पर जिजीविषाक विजय देखाओल गेल अछि जािहसँ हिनक कथा सभ नव आशाक संचार कय लोक जीवनक सोनहुल भविष्यक प्रति आश्वस्त करैत अछि। द्रष्टव्य अछि किछु पाँती-
- “अपन धन हएत, तइपर सँ मेहनत करब तँ कोन दरीदराहा दुख आबि कऽ हम्मर सुख छीनि लेत।”
- “एक्केटा बाढ़िमे एत्ते चिन्ता करै छथि काका, कनी नीक की कनी अधलाह, दिन तँ बितबे करतनि।”
- “जकरा खाइ-पीबैक ओिरयान बूझल छैक ओ कथीक चिन्ता करत। इत्यादि।”
एतवता मण्डल जीक ‘गामक जिनगी’ कथा संग्रहमे ग्राम्य शब्दावलीक माध्यमे ग्राम्य जीवनक सौन्दर्य ओ समस्या तथा तकरा सबहक विवेकपूर्ण निदान दिस इंगित करबाक प्रयास भेल अछि जे मैथिली कथा विधामे अन्यतम याेगदानक रूपमे चर्चित-अर्चित होएबाक सार्मथ्य रखैत अछि।
पोथीक नाम- गामक जीनगी
विधा- कथा संग्रह
रचनाकार- जगदीश प्रसाद मंडल
काँपी राइट- उमेश मंडल
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन राजेन्द्र नगर दिल्ली
मूल्य- २०० टाका मात्र
प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
पोथी पाप्तिक स्थान- पल्लवी डिस्ट्रीब्यूटर्स, वार्ड न.६, निर्मली, सुपौल, मोवाइल
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आदर्शक उपस्थापन : मौलाइल गाछक फूल
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल बहुआयामी रचनाकार छथि। कथा, उपन्यास, नाटक आदि विभिन्न विधामे प्रभूत रचना द्वारा ई आधुनिक मैथिली साहित्यमे बेछप स्थान बना चुकल छथि। ‘मौलाइल गाछक फूल’ हिनक औपन्यासिक कृति थिकनि। आदर्शवादी विचारधारासँ ओतप्रोत हिनक एहि उपन्यासमे मण्डलजीक उदात्त सामाजिक चिन्तनक प्रक्षेपण भेल अछि।
एहि उपन्यासक अधिकांश चरित्र उदार ओ सज्जन प्रकृतिक छथि। हुनका लोकनिक हृदय पवित्र छनि आ स्वार्थ ओ वासनासँ फराक रहि समाज उत्थानक हेतु चिन्तन करैत देखि पड़ैत छथि। स्वभावत: एहन चरित्र सबहक अनुगुम्फनसँ ई उपन्यास एक गोट पिरष्कृत सामाजिक चिन्तनक मार्ग प्रशस्त करैत देखि पड़ैत अछि।
एहि उपन्यासक केन्द्रीय पात्र छथि रमाकान्त। उपन्यासक अधिकांश घटना हिनके परित: आघूर्णित होइत अछि। ई जमीन्दार छथि आ सुभ्यस्त सेहो। उदार विचार, इमानमे गंभीरता, मनुक्खक प्रति सिनेह हिनक चारित्रिक विशिष्टता छनि। हिनकामे ने सूदिखोर महाजनक चालि छनि ने धन जमा कएनिहार लोकक अमानवीय व्यवहारे छनि। नीक समाजमे जेना धनकेँ जिनगी नहि अपितु जिनगीक साधन बुझल जाइत अछि, सएह रमाकान्तोक परिवारमे छनि। उपन्यासक आरम्भहिमे हिनक उदात्त चरित्रक परिचए भेटि जाइत अछि। गाममे अकाल पड़ि जाइत छैक। आ लोक सभ अन्न बेत्रेक मरब शुरू कऽ दैत अछि। मुदा रमाकान्त लग बखारीक बखारी अन्न पड़ल छनि। लोकक प्रति सहानुभूतिसँ द्रवित भऽ रमाकान्त अपन बखार फोलि दैत छथि आ काजक बदला अनाज कार्यक्रम शुरू कऽ अपन पोखड़िकेँ उरहबा लैत छथि। एहिसँ एक दिस जँ लोककेँ अकर्मण्यतापूर्वक खराती अन्न लेबासँ परहेज करबैत छथि तँ दोसर दिस अन्नाभावमे लोककेँ मरबासँ बचबैत छथि।
रमाकान्तक ई अवधारणा छनि जे संसारक यावन्तो मनुक्ख अछि सभकेँ जीबाक अधिकार छैक। सभकेँ सभसँ सिनेह होएवाक चाहिऐक। मुदा जाहि परिवेशमे हमरालोकनि जीवि रहल छी, जाहिठाम व्यक्तिगत सम्पत्ति आ जबाबदेहीक बीच मनुक्ख चलि रहल अछि, ओहिठाम सिनेह खंडित होएबे करतैक आ सिनेह खंडित भेने पारस्परिक द्वेष ओ लड़ाइ-दंगाकेँ कोनो शक्ति रोकि नहि सकैत छैक। तेँ नूतन समाजक निर्माणक हेतु, सामाजिक समरसता हेतु त्याग भावनाक आवश्यकता छैक आ छैक पारस्परिक सहयोग भावनाक विस्तारक आवश्यकता। तेँ ओ अपन दू सए बीघा जमीन गामक भूमिहीन परिवार सबहक बीच वितरणक निर्णए लैत छथि जाहिसँ गामक सभ व्यक्ति सुखी आ सम्पन्न भऽ सकथि। यद्यपि रमाकान्तक एहि प्रकारक अतिशय उदारता जमीन्दारक प्रवृत्ति ओ समसामयिक यथार्थक दृष्टिये सर्वथा अविश्वसनीय प्रतीत होइत अछि, तथापि ई उदात्त लेखकिय कल्पना उपन्यासकारक एहि उद्देश्यकेँ प्रतिपादित करैत अछि जे यावत् समाजमे एक दिस अति विपन्न आ दोसर दिस अति सम्पन्न लोकक वास रहत, ताधरि सामाजिक समरसताक बात स्वप्ने बनल रहत।
रमाकान्त उदारताक अतिरंजित वर्णन उपन्यासमे अनेक स्थलमे देखि पड़ैत अछि यथा ओ शशिशेखर नामक युवकक उच्च शिक्षाक हेतु सहायता प्रदान करैत छथि, गाममे स्कूल स्थापित होएबा काल शिक्षकक भोजनादिक व्यवस्थाक भार अपना ऊपर लऽ लैत छथि, टमटमबलाक दु:खिताहि घरवालीक ईलाजक हेतु ओकरा पर्याप्त टाका दऽ सहायता करैत छथि, आदि।
एहि उपन्यासमे मण्डलजी मिथिलाक ग्राम्य जीवनमे पसरल धर्मभीरूताक समस्याक यथार्थवादी चित्रण कएलनि अछि। एहि समस्याक चित्रण हेतु ओ सोनेलाल नामक पात्रक अवतारणा करैत छथि। सोनेलालक पत्नी दु:खित पड़ि जाइत छथिन। ओ ओकरा अस्पतालमे देखएबाक हेतु अपन जमीन भरनापर दऽ दैत छथि। उपचार भेलापर हुनक पत्नी स्वस्थ भऽ जाइत छथिन। मुदा ताही क्रममे ओ साधु भण्डाराक कबुला कऽ लैत छथि। एहि कबुलाकेँ पूर करबाक हेतु साधुक दूटा दल निमंत्रित कएल जाइत छथि। हिनकालोकनिक हेतु सोनेलाल पर्याप्त भोज्य पदार्थ जुटबैत छथि। मुदा साधुक दुनू दलमे एकटा वैष्णव सम्प्रदायक तथा दोसर कबीरपन्थी सम्प्रदायक रहैत अछि आ दुनू दल अपन-अपन साम्प्रदायिक अभिवमानसँ ग्रस्त रहैत अछि जकर कारणे भण्डारामे अनेक विसंगति उत्पन्न होइ छैक। मुदा सर्वाधिक कष्टकर स्थिति तखन बनैत छैक जखन वैष्णव सम्प्रदायक महन्थ भण्डाराक बाद स्थानक हेतु एक सए एक, अपना हेतु एक सए एक, भजनिया सभक हेतु एकावन-एकावन आ भनसीयाक हेतु एकासी-एकासी टाका दक्षिणाक मांग कऽ बैसैत छथि। मराभवमे पड़ितहुँ धर्मभीरू सोनेलालकेँ ओ रकम चुकता कऽ देबऽ पड़ैत छनि। तत:पर दोसर दल सेहो हुनका ओतबे दक्षिणा देबाक हेतु दबाब दैत छनि आ सेहो हुनका चुकता करऽ पड़ैत छनि। एहि तरहेँ धर्मभीरू लोक पाखंडी साधु समाज द्वारा कोना लूटल जाइत छथि, तकर वर्णन कए उपन्यासकार एहि समस्याक प्रति लोकदृष्टिकेँ सचेत करबाक उपदेश दैत छथि। अवश्ये दोसर मंडली द्वारा दक्षिणाक रकम घुरा देलासँ सोनेलालकेँ थोड़ैक राहत भेटैत छनि आ ओहि मंडलीक प्रति लोक जगतमे सहानुभूति जगैत छैक।
मिथिलाक अनेक लोकव्यवहार सेहो लोकजीवनक अभ्युन्नतिमे बाधक रहल अछि, ताहू दिस मण्डलजी संकेत कएलनि अछि। एहि हेतु ई शशिशेखर नामक पात्रक अवतारणा कएलनि अछि। शशिशेखर कृषि कओलेजमे प्रवेश पाबि जाइत अछि। ओ एहि प्रवेशसँ अपन भावी सुखी जीवनक परिकल्पना कऽ अत्यन्त आनन्दित होइत अछि। ओकर पिता सेहो खेत बेचियो कऽ ओकर पढ़ाइ पूरा करएबाक संकल्प लैत छथि। मुदा किछु दिनक बाद पिता बीमार पड़ि जाइत छथिन। शशिशेखर खेत बेचियो कऽ हुनक इलाज करबैत छनि मुदा ओ कालकवलित भऽ जाइत छथिन। तत:पर अपन बूढ़ि माताक सेवा करैत शशिशेखर अपन आगूक पढ़ाइ कोना जारी राखि सकत ताहिपर बिन्दु विचार कएने खेते बेिच कऽ पिताक श्राद्धो कऽ लैत अछि। परिणामत: ओकरा कओलेज छोड़बाक बाध्यता होइत छैक। एहि तरहेँ मण्डलजी लोकजगतमे व्याप्त अन्धविश्वास ओ लोकव्यवहारसँ बचले उत्तर समाजक कल्याणक दिशानिर्देश करबैत देखि पड़ैत छथि। अन्तत: रमाकान्तक सहायतासँ शशिशेखरकेँ अपन पढ़ाइ पूर करबाक संबल भेटि जाइत छैक मुदा श्राद्धादित लोकव्यवहारक समस्याक प्रति जुगुप्साक भाव अवश्य उत्पन्न भऽ जाइत छैक।
अशिक्षा ग्राम्यजीवनक दैन्यक अन्यतम कारण अछि एखनो मिथिलाक निम्नवर्गीय समाजमे शिक्षाक सर्वथा अभाव छैक जकर कारणे सामाजिक अन्नति बाधिक छैक। मुदा अहू समस्याक समाधान सामाजिक लोकनिक जागरूकतासँ संभव छैक। मसोमातक दान कएल जमीनपर विद्यालयक स्थापना, हीरानन्द द्वारा बौएलाल ओ बौएलाल द्वारा सुमित्राकेँ शिक्षित कऽ ओकरा सबहक स्तरीय जीवनक चित्रण ‘मौलाइल गाछक फूल’ उपन्यासक एही उद्धेश्यपरक दृष्टिकोणक परिचायक थिक।
आजुक ग्राम्य समाजक ई विडम्बना छैक जे पढ़ल-लिखल धियापुता पाइ कमएबाक अन्ध दौड़मे शामिल भऽ गेल छैक। तेँ ओ सभ अपन गाम-समाजकेँ छोड़ि हजारो मीलक दूरीपर नोकरी करऽ चलि जाइत छैक। परिणामत: बूढ़ माता-पिताक परिचर्या कएनिहार केओ रहि नहि पबैत छैक। पारिवारिक विघटनक फलस्वरूप सामाजिक जगतमे पसरल एहि विसंगतिक कथा रमाकान्त ओ हुनक डाक्टर पुत्र सबहक कथामे भेटैत अछि। मण्डलजी एहू विडम्बनासँ समाजकेँ बचबाक संकेत एहि उपन्यासक माध्यमे कएलनि अछि। हुनक भावना सुबुधक एहि उक्तिमे साकार भेल अछि- ‘आइक जे एकांगी परिवार अछि ओ कुम्हारक घराड़ी जकाँ बनि गेल अछि। बाप-माए कत्तौ, बेटा-पुतोहु कत्तौ आ धिया-पुता कत्तौ रहऽ लागल अछि। मानवीय सिनेह नष्ट भऽ रहल अछि।’ यद्यपि ई भावना कृषक युगीन होएबाक कारणे साम्प्रतिक यथार्थक दृष्टि जे पुरातन पद्धतिक अछि तथापि एकटा वैचारिक द्वन्द्वकेँ ठाढ़ करैत अछि।
मण्डलजी रमाकान्तक दुनू डाक्टर पुत्रक मद्रासमे नोकरी करबाक लाथे किछु ग्रामेतर समस्या सबहक चित्रण सेहो कएलनि अछि। एहिमे सर्वाधिक प्रमुख अछि धनलिप्सामे व्यस्त समाजक बेचैनी। महेन्द्रक एहि कथनसँ ई प्रतिभासित होइत अछि जे ग्रामेतर समाजमे अत्यधिक सुविधा सम्पन्न लोकोक जीवन असामान्य भऽ गेल छैक- ‘अपनो सोचै छी जे एते कमाइ छी, मुदा िदन राति खटैत-खटैत चैन नहि भऽ पबैत अछि। कोन सुखक पाछू बेहाल छी से बुझिये ने रहल छी। टी.भी. घरमे अछि, मुदा देखैक समये ने भेटैत अछि। खाइले बैसै छी तँ चिड़ै जकाँ दू-चारि कौर खाइत-खाइत मन उड़ि जाइत अछि जे फल्लांकेँ समए देने छिऐक, नहि जाएब तँ आमदनी कमि जाएत। तहिना सुतइयोमे होइत अछि। मुदा एते फ्रीसानीक लाभ की भेटैत अछि? सिर्फ पाइ। की पाइये जिनगी छिऐक?’
एतावता मौलाइल गाछक फूलमे लोकजीवनक विविध समस्या ओ तकर समाधानक मार्ग तकबाक प्रयत्न भेल अछि। ‘अपन जिनगीकेँ जिनगी देखैत परिवार, समाजक जिनगी देखब जिनगी थिक।’ मण्डल जीक आदर्शवादी चिन्तनक रूपमे प्रतिफलित भेल अछि। प्राय: एही तथ्यकेँ ध्यानमे रखैत महेन्द्र द्वारा गामहिमे स्वास्थ्य केन्द्र स्थापना कऽ विचार अभिव्यक्त कराओल गेल अछि जतऽ ओकर परिवारक एकटा डाक्टर नित्य मरीजक सेवा, ग्रामवासीक सेवाक हेतु उपलब्ध रहितैक।
सामाजिक समन्वयक प्रति पक्षधरता एहि उपन्यासमे भजुआक कथामे भेटैत अछि। जाति-पातिमे बँटल ग्राम्य समाजमे छूताछूत, ऊँच नीचक विचार अदौसँ रहलैक अछि। गाँधीजीक स्वतंत्रता आन्दोलनक समए अछूतोद्धारक प्रति हुनक चेष्टा ओ स्वातंत्र्योत्तर कालमे समाजक बदलैत रीति-नीतिक कारणे यद्यपि ग्रामो समाजमे अस्पृश्यताक प्रति भाव बदललैक अछि तथापि सहभोजनक दृष्टिये अखनो जाति-पातिक बीच दूरी बनले छैक। रमाकान्त द्वारा डोम भजुआक ओहिठाम जाए भोजन करबाक कथाक माध्यमे मण्डलजी समाजक एहि समस्याक आदर्शपूर्ण समाधान देखौलनि अछि। अवश्ये एहिमे इहो संकेत देल गेल अछि जे समरसताक बाधक तथाकथित अस्पृश्य लोकनिक शुचिताक प्रति प्रतबद्धताक अभाव रहलनि अछि। जे अशिक्षाजन्य अछि तथा शिक्षा द्वारा ओकरो बदलल जा सकैत छैक।
मण्डलजीक एहि उपन्यासमे नारी विषयक चिन्तनमे प्राचीन भारतीय नारीलोकनिक आदर्शेक उपस्थापन भेल अछि। हिनक अधिकांश नारी पात्र यथा रधिया, श्यामा, सुगिया, सोनेलालक बहिन आदिमे पतिपरायणा भारतीय नारीक चित्रांकन भेल अछि। नारी-शिक्षाक प्रतिबद्धता सेहो मण्डलजीक एहि उपन्यासमे सुमित्राक माध्यमे अभिव्यक्र भेल अछि जे पढ़ि-लिखि कऽ नीक परिचारिकाक रूपमे गामक हेतु एकटा सम्पत्ति बनि जाइत अछि। सुजाता सेहो एहने नारी पात्र छथि जे श्रमिक परिवारमे जन्म लेलाक बादो महेन्द्रक सहायता पाबि डाक्टरनी बनि जाइत छथि आ महेन्द्रक भावहु सेहो भऽ जाइत छथि। मुदा शिक्षिताक संगहि मंडलजी जाहि नारीस्वरूपक परिकल्पना एहि उपन्यासमे रूपायित कएलनि अछि, से थिक नारीक सबला रूप। नारीक एहि स्वरूपक चित्रांकन सितियाक चरित्रमे भेल अछि। ओ नहि केवल अपन इज्जतिपर हाथ उठौनिहार ललबाकेँ थूरि कऽ राखि दैत अछि अपितु जखन ललबाक गामक लोक ओकरा गामपर आक्रमण कऽ दैत छैक, तँ नारीलोकनिक सेनानायिका बनि ओकरो सभकेँ परास्त कऽ दैत अछि।
स्वातंत्र्योत्तर भारतमे भ्रष्टाचार एक गोट कोढ़क रूपमे देखि पड़ैत अछि जे राष्ट्रीय जीवनकेँ कुण्ठित जीवन जीबाक बाध्यता होइत छैक। मास्टरक बहालीमे हीरानन्दक आक्रोशक माध्यमे मण्डलजी सरकारी स्तरपर होइत भ्रष्टाचारक यथार्थकेँ अभिव्यक्ति प्रदान कएलनि अछि।
मिथिलाक आर्थिक समृद्धिक हेतु एहिठाम जलकरक सदुपयोग करबाक चिन्तन सेहो एहि उपन्यासमे अभिव्यक्त भेल अछि।
मौलाइल गाछक फूक’क भाषा अत्यन्त सरल, सहज ओ गमैया मैथिली थिक। मण्डलजी अपन कल्पित संसारकेँ मूर्त्त, विश्वसनीय ओ सजीव रूपमे प्रस्तुत करबाक हेतु लेखनक अनेक प्रविधिकेँ एहि उपन्यासमे समाहित कएने देखि पड़ैत छथि। अनेक ठाम हिनक नाटकीय भाषा प्रयोग अत्यन्त तीब्रता ओ सहजताक संग भेल अछि, यथा-
‘की कहैले ऐहल?’
‘नत दैले एलौं।’
‘कोन काज छिअह?’
‘काज-ताज नै कोनो छी। ओहिना अहाँ चारू गोरेकेँ खुअबैक विचार भेल’ इत्यादि।
अनेकठाम ई संस्मरणात्मक भाषाक सुष्ठु प्रयोग कएने छथि यथा- ‘एहि गाममे पहिने हम्मर जाति नै रहए। मुदा डोमक काज तँ सभ गामेमे जनमसँ मरन धरि रहै छै। हमरा पुरखाक घर गोनबा रहै। पूभरसँ कोशी अबैत-अबैत हमरो गाम लग चलि आएल। अखार चढ़िते कोसी फुलेलै। पहिलुके उझूममे तेहेन बाढ़ि चलि आएल जे बाधक कोन गप्प जे घरो सभमे पानि ढूकि गेल। तीन-दिन तक ने मालजाल घरसँ बहराएल आ ने लोके। पीह-पाह करैत सभ समए बितौलक। मगर पहिलुका बाढ़ि रहै, तेसरे दिन सटकि गेल।’ इत्यादि।
परिवेश ओ वातावरणक निर्माणक हेतु मण्डलजी अभिधा शक्तिसँ संपुष्ट भाषाक प्रयोग द्वारा सटीक ओ विश्वसनीय बिम्ब ठाढ़ करबामे समर्थ देखि पड़ैत छथि यथा- ‘दू साल रौदीक उपरान्त अखाढ़। गारमीसँ जेहने दिन ओहने राति। भरि-भरि राति बीअनि हौँकि-हौँकि लोक सभ बितबैत। सुतली रातिमे उठि-उठि पानि पीबए पड़ैत। भोर होइते घाम उग्र रूप पकड़ि लैत। जहिना कियो ककरो मारैले लग पहुँचि जाइत, तहिना सुरूजो लग आबि गेलाह। रस्ता-पेराक माटि सिमेंट जकाँ सक्कत भऽ गेल अछि।’ इत्यादि।
पात्रक परिचय दैत काल मण्डलजी ओकर रूपरेखा, वेश भूषा, आयु आदिक वर्णन अनेक ठाम ओहि पात्रक ठोस व्यक्तित्वकेँ अभिव्यक्त करबाक हेतु कएलनि अछि। मुदा एहि प्रकारक वर्णनक प्रति हुनका प्रतिबद्धता नहि देखि पड़ैछ। तथापि जतऽ कतहु ओ पात्रक मनोभावक वर्णन कएने छथि ओहिठाम हुनक भाषा विश्लेषणात्मक प्रकृतिक देखि पड़ैत अछि जाहिसँ पात्रक हृदयगत भावक प्रति पाठककेँ सुनिश्चित आकलनक अवसर भेटि जाइत छनि, यथा- ‘ब्रह्मचारी जीक बात सुनि रमाकान्तकेँ धनक प्रति मोहभंग हुअए लगलनि। सोचए लगलाह जे हमरो दू सए बीघा जमीन अछि, ओते जमीनक कोन प्रयोजन अछि। जँ ओहि जमीनकेँ निर्भूमिक बीच बाँटि दिऐक तँ कते परिवार आ कत्ते लोक सुख-चैनसँ जिनगी जीबै लागत। जकरा लेल जमीन रखने छी ओ तँ अपने तते कमाइ छथि जे ढेरिऔने छथि। अदौसँ मिथिलाक तियागी महापुरूषक राज रहल, किएक ने हमहूँ ओहि परम्पराकेँ अपना, परम्पराकेँ पुन:र्जीवित कऽ दिऐक।’
एहि तरहेँ ‘मौलाइल गाछक फूल’मे भाषाक कुशल ओ रचनात्मक प्रयोग भेल अछि जाहिसँ वर्णनमे सटीकता, सहजता, बिम्बधर्मिता, स्पष्टता ओ मनोवैज्ञानिक विश्लेषणक क्षमता प्रदर्शित होइत अछि। अपन गुणक कारणेँ मण्डलजीक कथासंसारमे विश्वसनीयता देखि पड़ैत अछि आ ओ अपन प्रौढ़ विचार ओ अनुभूतिकेँ पाठकीय मानसमे स्थानान्तरित करबामे सफल भेल छथि।
अन्तत: महेन्द्रक उक्ति- ‘समाज रूपी गाछ मौला गेल अछि, ओहिमे तामि, कोड़ि, पटा नव जिनगी देबाक अछि जाहिसँ ओहिमे फूल लागत आ अनवरत फुलाइत रहत’मे उपन्यासक उद्धेश्य स्फुट भेल अछि। स्वभावत: मण्डलजी एहि कृतिक माध्यमे ग्राम ओ ग्रामेतर जीवनक संगहि व्यक्ति, परिवार, समाज ओ राष्ट्रक अभ्युन्नतिक हेतु एकर प्रत्येक इकाइकेँ त्याग ओ त्याग ओ समर्पणक भावनासँ ओत प्रोत रहबाक आदर्श जीवन पद्धति अपनयबाक संदेश देलनि अछि। हिनक ई संदेश ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्’क भावनाक पुन: उपस्थापन थिक।
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