२
आशीष अनचिन्हार समालोचना
गजलक साक्ष्य
हमरा आगूमे पसरल अछि “अपन युद्धक साक्ष्य” तारानंद िवयोगीक गजल संग्रह। चालीस गोट गजलकेँ समेटने। लोककेँ छगुन्ता लागि सकैत छैक जे मैथिलीमे गजलक आलोचना कहिआसँ शुरू भए गेलैक। ऐ छगुन्ताक कारण मुख्यत: हम दू रूपेँ देखैत छी पहिल तँ ई जे गजल कहिओ मैथिली साहित्यक मुख्यधारामे नै आएल दोसर-मैथिल-जन एखनो गजलक समान्य निअम आ ओकर बनोत्तरीसँ परिचित नै छथि। समान्ये किएक अपने-आपकेँ गजल बुझनिहारक सेहो हाल एहने छन्हि। बेसी दूर नै जाए पड़त। “घर-बाहर” जुलाइ-सितम्बर 2008ई.मे प्रकाशित अजित आजादक लेल “कलानंद भट्टक बहन्ने मैथिली गजलपर चर्च” पढ़ि लिअ मामिला बुझबामे आबि जाएत।
जँ विष्यान्तर नै बुझाए तँ थोड़ेक देरले तारानंद वियोगीक पोथीसँ हटि अजाद जीक लेखक चर्च करी। ऐ लेखक पहिले पाँति थिक- मैथिलीमे गजल लिखबाक सुदीर्ध परम्परा रहल अछि.....। मुदा कतेक सुर्ढीध तकर कोनो ठेकाना अजादजी नै देने छथिन्ह। फेर एही लेखक दोसर पैरामे अजित जी दूमरजामे फँसल छथि। ओ मैथिल द्वारा समान्य गप-सप्पमे गजलक पाँति नै जोड़बाक प्रथम कारण मानैत छथि। जे मैथिलीमे शेर एकदम्मे नै लिखल गेल। आब पाठकगण कने घियान देल जाए। लेखक पहिल पाँति तँ अपनेकेँ धियान हेबोटा करत जे मैथिलीमे गजलक सुर्दीध....।” सभसँ पहिल गप्प जे गजल किछु शेरक संग्रह होइत छैक आ दोसर गप्प ई जे जँ अजाद जीक मोताबिक शेर लिखले नै गेलैक तँ फेर कोन प्रकारक सुर्दीध परंपराकेँ मोन पाड़ि रहल छथि अजादजी। एेठाम गलती अजाद जीक नै मैथिलीक ओहि गजलकार सभक छन्हि जे गजल तँ लिखैत छथि मुदा पाठककेँ ओकर परिचए, गठन, निअम आदि देबासँ परहेज करैत छथि। ओना प्रसंगवश ई कहबामे कोनो संकोच नै जे गजल कखनो लिखल नै जाइत छैक। मुदा मैथिलीक धुरंधर सभ गजल लिखैत छथि। मूल रूपसँ अरबी-फारसी-उर्दूमे गजल कहल जाइत छैक लिखल नै। पाठकगण गजलक ई निअम भेल। आब फेरो अजित जीक लेखकेँ आगू पठू आ अपन कपार पीट अपनाकेँ खुने-खूनामे कए लिअ। अजित जी अपन संपूर्ण लेखमे जै शेर सभ मक्ता कहलखिन्ह अछि वस्तुत: ओ मक्ता छैके नै। पाठकगण मोन राखू, मक्ता गजलक ओहि अंतिम शेरकेँ कहल जाइत छैक जैमे गजलकार (एकरा बाद हम शाइर शब्द प्रयुक्त करब, अहूठाम मोन राखू शायर गलत उच्चारण थिक।) अपन नाम वा उपनामक प्रयोग करैत छथि। (अहूठाम मोन राखू हरेक गजलमे नाम वा उपनामक समान प्रयोग होएबाक चाही ई नै जे एकरा गजलक मक्ता तारानंदसँ होअए आ दोसर गजलक मक्ता वियोगीक नामसँ नामसँ।) मुदा आश्चर्य रूपेण अजादजी जै शेर सभकेँ मक्ता कहलखिन्ह अछि ओइमे कोनो शाइरक नाम- उपनाम नै भेटत। ओना अजितजी हिन्दीक सुप्रसिद्ध शाइर छथि तकर प्रमाण ओ लेखक प्रारंभेमे दए देने छथि।
हँ तँ ऐ लेखक संक्षिप्त अवलोकनक पछाति फेरसँ वियोगी जीक गजल संग्रहपर चली। तँ शुरूआत करी स्पष्टीकरणसँ, हमर नै वियोगी जीक। सभसँ पहिने ई जे अन्य मैथिली शाइर जकाँ वियोगीओ जी मानैत छथि जे गजल लिखल जाइत छैक। देासर गप्प जे वियोगीजी द्वारा देल अपन भाषा संबंधी विचारसँ लगैत अछि जे भनहिं िवयोगी जी उर्दु सीख उर्दूक पोथी पढ़ैत हेताह मुदा गजल तँ किन्नहुँ नै लिखैत हेताह, कारण, पाठकगण धियान देल जाए। अरबी-फारसी-उर्दू तीनू भाषाक छंद शास्त्र एकमतसँ कहैए जे दोसर भाषाकेँ तँ छोड़ू अपनो भाषाक कठिन शब्दक प्रयोग गजलमे नै हेबाक चाही। ठीक उपरोक्त भाषाक निअम जकाँ मैथिलीओ मे निअम छैक। तँए महाकवि विद्यापति अपन कोनहुँ गीतमे कृष्ण, विष्णु आदिक प्रयोग नै केने छथि। मुदा वियोगी जी अपन पोथीक नाम रखने छथि “अपन युद्धक साक्ष्य”। जनसमान्य युद्ध तँ कहुना बुझि जेतैक मुदा साक्ष्य....। ऐठाम प्रसंगवश ई कहब बेजाए नै जे वियोगीजी अपनाकेँ अभिजात शब्दक प्रयोग मानैत छथि।
आब हमरा लोकनि ऐ पाेथीमे प्रस्तुत चालीसो गजलक चर्च करी। पहिले भाषाकेँ देखी। ओना वियोगीजी भाषा संबंधी गलती जानि बूझि कए लौल-वश ततेक ने कएल गेल छैक जकरा अनठा कए आँगा बढ़ब संभब नै। एकर किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि- दोसर गजलक मतलाक दोसर पाँतिमे दुखक बदला यातना। अही गजलक दोसर शेरक पहिल पाँतिमे नाराक बदला जुमला। तेसर गजलक दोसर गजलक दोसर शेरक दोसर पाँति धधराक बदला ज्वलन। अही गजलक अंतिम शेरमे प्रयुक्त तन्वंग, आब एकर अर्थ जनताकेँ बुझबिऔ। फेर आगू गजलक दोसर शेरमे नजरि केर बदला दृष्टि, दसम गजलक दोसर शेरमे उन्यक जगह विपरीत। एगारहम गजलक मतलामे दुबिधाक जगह द्धैध। तेरहम गजलक तेसर शेरमे नेकदिली आ बदीक प्रयोग। तइसम गजलक अंतिम शेरमे भटरंगक बदला बदरंग। पचीसम गजलक तेसर शेरमे इजोरिआक बदला ज्योतसना। चौतीसम गजलक मतलामे दुख केर बदलामे पीड़-इत्यादि। ओना ऐ उदाहरणक अतिरिक्त हरेक गजलमे हिन्दी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाक तत्सम बहुल शब्दक ततेक ने प्रयोग भेल छैक जे गजलक मूल स्वर, भाव-भंगिमा, रसकेँ भरिगर बना देने छैक। तैपर वियोगीजी गर्व पूर्वक घोषण केने छथि जे ओ ओइ परिवारक नै छथि जिनका संस्कारमे अभिजात शब्द भेटल हो। बिडंबना छोड़ि एकरा किछु नै कहल जा सकैए। जँए चालीसो गजलक भाषाकेँ धियानसँ देखल जाए तँ हमरा हिसाबें वियोगीजी ऐ गजल सबहक मैथिली अनुवाद कए देथिन्ह तँ वेसी नीक हेतैक।
भाषासँ उतरि आब गजलक विचारपर आएल जाए। बेसी दूर नै जाए पड़त-तेसर गजलक अंतिम शेरसँ मामिला बुझबामे आबि जाएत। सोझे-सोझ ई शेर कहैए जे- लोककेँ अपन जयघोष करबामे देरी नै करबाक चाही आ काज केहनो करी चान-सुरूजक पाँतिमे अएबाक जोगाड़ बैसाबी। ओना हम एतए अवश्य कहब जे ई कोनो राजनीतिक विचार नै छैक जकर स्पष्टीकरण दए-वियोगीजी अपन पतिआ छोड़ा लेताह। ई विशुद्ध रूपे समाजिक विचार छैक आ ऐ विचारसँ समाजपर की नकारात्मक प्रभाव पड़लैक वा पड़तैक तकर अध्ययन अवश्य कएल जेबाक चाही। मुदा एहन नकारत्मक विचार ऐ संग्रहमे कम्मे अछि। संग्रहक किछु सकारात्मक िवचार प्रस्तुत अछि। दसम गजल केर अवलोकन कएल जाउ। निश्चित रूपसँ वियाेगीजी एकरा परिर्वतनीय विचार रखलाह अछि ई कहि जे-
देस हमर जागत अच्रक एना चलि ने सकत
हारि लिखब झण्डा के आदमीक जीत लिखब।
पाठकगण आजुक समएमे झण्डाक विपरीत गेनाइ सहज गप्प नै। तहिना चारिम गजलक तेसर शेरक पहिल पाँति- राम राज्यक स्थापना लेल भरत-लक्ष्मण झगड़ि रहला। कतेक सटीक व्यंग अछि से सभ गोटे बुझैत हेबैक। ओतै आजुक भ्रमोत्पादक सरकारपर तै दिनमे लिखल अड़तीसम गजलक मतलाक पहिल पाँति देखू-
राजनीति भटकल तँ डूबल मझधार जकाँ।
विचार संबंधी प्रस्तुत उदाहरणसँ स्पष्ट अछि जे सकारात्मक विचार बेसी अछि। मुदा कहबी तँ सुननहि हेबैक अपने जे एकैटा सड़ल माछ.....।
अस्तु आब ऐ गजल संग्रहक व्याकरण पक्षकेँ देखल जाए। ऐठाम ई स्पष्ट करब आवश्यक जे मैथिली गजल अखनो फरिच्छ भए कए नै आएल अछि जैसँ हम बहर (छंद) आदिपर विचार करब। तँए ऐठाम हम मात्र रदीफ आ काफियाक प्रयोगपर विचार करब। पाठकगण गजलमे रदीफ ओइ शब्द अथवा शब्द समूहकेँ कहल जाइ छैक जे गजलक मतलाक (गजलक पहिल शेरकेँ मतला कहल जाइत छैक।) दुनू पाँतिमे समान रूपसँ आबए आ तकरा बाद हरेक शेरक अंतिम पाँतिमे सेहो समान यपे रहए। तहिना काफिया ओइ वर्ण अथवा मात्राकेँ कहल जाइत जे रदीफसँ तुरंत पहिने आबैत हो जेना एकटा उदाहरण देखू- दूटा शब्द लिअ, पहिल भेल अनचिन्हार ओ दोसरमे अन्हार। आब मानि लिअ जे ई दुनू शब्द कोनो गजलक मतलामे रदीफक तुरंत बादमे अछि। आब जँ गौरसँ देखबै तँ भेटत जे दुनू शब्दक तुकान्त “र” छैक। तँ एकर मतलब जे “र” भेल काफिया (काफिया मतलब तुकान्त बूझू) तेनाहिते मात्राक काफिया सेहो होइतैक जेनाकि- राधा आ बाधा दुनू शब्द आ'क मात्रासँ खत्म होइत अछि तँए ऐमे आ'क मात्रा काफिया अछि। “एहि” आ “रहि” दुनूमे इ'क मात्राक काफिया अछि। अन्य मात्राक हाल एहने सन बूझू। तँ फेर चली ऐ संग्रहक व्याकरण पक्षपर- एे संग्रहक किछु गजलमे काफियाक गलत प्रयोग भेल छैक- उदाहरण लेल सातम गजलकेँ देखू। मतलाक शेरमे काफिया अछि “न” (भगवान आ सन्तान)। मुदा वियोगीजी आगू देासर शेरमे काफिया “म” (गुमनाम) केँ लेलखिन्ह अछि जे सर्वथा अनुचित। तेनाहिते सताइसम गजलक उपरोक्त “म” काफिया बदलामे “न” काफियाक प्रयोग।
कुल मिला कए ई गजल संग्रह ओतेक प्रभावी नै अछि जतेक की शाइर कहैत छथि। हँ एतेक स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नै जे ई गजल संग्रह ओइ समएमे आएल जै समएमे गजलक मात्रा कम्मे छल। आ शाइर आ गजल संग्रह सेहो कम्मे जकाँ छल।
३.
प्रो. वीणा ठाकुर
अध्यक्ष, मैथिली विभाग
ल.ना.मि.िवश्व विद्यालय दरभंगा।
जिनगीक जीत उपन्यासक समीक्षा- प्रो. वीणा ठाकुर
श्री जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास ‘जिनगीक जीत’ पढ़वाक अवसर भेटल। उपन्यास पढ़ि बुझाएल जे ई उपन्यास तँ वास्तवमे मिथिलाक संस्कृतिक जीत थिक, जीवनक जीत थिक, संस्कारक जीत थिक। जौं एक शब्दमे कहल जाए तँ यएह कहल जा सकैत अछि जे ई ‘लोक’क जीत थिक। जखनहि लोकक जीत थिक तँ स्वभाविक अछि जे एहि उपन्यासक मध्य लोक साहित्यक सुगन्ध चतुर्दिक पसरल हएत।
उपन्यासक कथा मिथिलाक एकटा गाम कल्याणपुरक थिक, जतए जीविकाक मुख्य साधन थिक कृषि, जतए आधुनिक वैज्ञानिक युगक प्रकाश नहि पहुँचल अछि। जतए उच्चतम शिक्षाक लक्ष्य थिक बी.ए. पास करब आओर जतए एकैसम शताब्दी एखन धरि नहि आएल अछि आओर नहि आएल अछि शाइनिंग इंडियाक प्रकाश। उपन्यासकार प्रमुख पात्र छथि नायक बचेलाल, नायिका रूमा, मुख्य पात्र छथि बचेलालक माए सुमित्रा, अछेलाल, अछेलालक पत्नी मखनी इत्यादि। कथा अछि बचेलालक द्वन्द्व एवं द्वन्द्वसँ उपजल अवसादक एवं जीवन संघर्षक, सुमित्राक मिथिलाक नारीक गरिमाक अछेलालक कर्त्तव्य निष्ठताक, संगहि मानवीय संघर्षक, द्वन्द्वक आओर भविष्यक आशा-आकांक्षाक। नायकक मानसिक द्वन्द्व जौं जीवनक सार्थकता लेल अछि तँ नायकक माए सुमिताक दृष्टि स्पष्ट मानवीय गरिमासँ युक्त अछि। नायकसँ एक डेग आगाँ बढ़ि द्वन्द्वसँ मुक्तिक वाद देखबैत प्रकाश पुंज मध्य अछि। नायकक पत्नी रूमाक चरित्रपर प्रकाश नहि देल गेल अछि, ताहि कारणे रूमा उपन्यास मध्य गौण पात्र भऽ गेल छथि।
कोनहुँ समाजक जातीय मनीषा, सामुदायिक चेतना, जातीय बोध मानवीय मूल्य आओर जीवन दर्शनक विविध पक्षमे अवगत होएवा लेल ओकर लोककेँ बुझब आवश्यक। उपन्यासकार एहि उपन्यास मध्य अत्यन्त इमानदारी पूर्वक अपन समाज, मिथिलाक समाज, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा एवं समयक सत्य लिखने छथि। समाजक निम्न वगर्क, कृषक वर्गक जीवनक चित्रण अत्यन्त इमानदारी पूर्वक कएने छथि। उपन्यासकार मिथिलाक वास्तविक चित्रण करवामे सफल भेल छथि, मिथिलाक तात्कालीन दशाक चित्रण कएने छथि तँ मात्र और मात्र अपन भाषा, देश एवं सामािजक दायित्व समाजक प्रति प्रेम एवं प्रतिबद्धताक कारणे हिनकासँ ई उपन्यास लिखवा लेने अछि। यद्यपि कथाक प्रवाह अवरूद्ध अछि तथापि कथा अपन अंकमे देश-समाज, मानव, प्रकृति, संस्कृति, विकृति आदिकेँ समेटि अपन लक्ष्यपर पहुँचवामे सफल भऽ गेल छथि। हिनक उपन्यासमे हिनक व्यक्तित्व पाठकक समक्ष स्पष्ट प्रतीत भेल अछि।
जीवन दर्शन आओर आध्यात्मसँ लऽ कऽ मनुष्यक समस्त राग-विराग ‘लोक’मे विद्यमान अछि। मिथिलाक लोक संस्कृति संवाहक उपन्यास ‘जिनगीक जीत’मे उपन्यासकार जीवनक ओहि सत्यकेँ आत्मसात् करबाक प्रयास कएने छथि जाहिमे जीवनक समस्त ‘सार’ नुकाएल अछि। उपन्यासक मध्यमे उपन्यासकार मनुष्य जीवनक समस्त राग-विराग, आशा-आकांक्षा, दीनता-हीनता, उत्कर्ष-अपकर्षक चित्रित करैत वस्तुत: जीवनक शाश्वत तथ्य- जीवाक इच्छाकेँ उजागर करवामे सफल भेल छथि। वस्तुत: ई उपन्यास ई उपन्यास भाषा अथवा वोलीमे जातीय स्मृतिक आ साहित्यिक रूप थिक जे हमर जातीय चेतना अथवा जातीय वोधकेँ सुरक्षित राखने अछि। मिथिलाक सूच्चा चित्र अंकित करैत उपन्यासकार अपन जीवनानुभवसँ संचित कएल ‘सार’ आओर ‘सत्य’केँ अभिव्यक्त कएने छथि। वस्तुत: ई उपन्यास मिथिलाक संस्कृतिक प्रतीक थिक आओर एकर सार थिक शाश्वत। उपन्यास मध्य प्रकृति, परिवेश, आध्यात्म, समरसता आओर समन्वयक छवि आओर छटा सर्वत्र दृष्टिगोचर होइत अछि।
वर्तमान साहित्यमे ई प्रवृति प्रमुख अछि- एक समाजोन्मुख दोसर व्यक्ति निष्ठा तथा आत्म केन्द्रित। उपन्यासकारक प्रवृति समाजोन्मुख अछि। सम्पूर्ण उपन्यास मध्य मिथिलाक गामक लोकक रहन-सहन, अचार-विचारक चित्रण एतेक सजीव अछि जे पाठककेँ ओहि लोकमे लऽ जाइत अछि, जिनका गाम छुटि गेल छन्हि। उपन्यास मध्य मिथिलाक समाजक चित्र एतेक वास्तविक रूपमे चित्रित्र भेल अछि जे मिथिलाक मािट-पानिक सुगन्धसँ पाठकक हृदय सहजहि आहलादित भऽ जाइत अछि। वर्तमान समएमे गामक लोकक पलायन शहर दिशि भऽ गेल अछि, गाम पाछाँ छूटल जा रहल अछि। मुदा पाठक उपन्यास पढ़ि पुन: गाम घुिर जाइत अछि, गामक स्मृतिसँ पाठक बान्हल रहि जाइत अछि।
सामाजिक प्रश्नक प्रती सजग उपन्यासकार अपन एहि रचनामे सामाजिक जीवनक अर्न्तविरोध, विसंगति एवं परिवेशक चित्रण करैत, सामाजिक प्रश्नक निदान मूलत: व्यक्तिमे ताकवामे सफल भऽ गेल छथि। मिथिलाक ग्रामीण समाजक, निम्न वर्गक एवं कृषक समुदायक मान्यता एवं परम्पराकेँ प्रस्तुत करैत उपन्यासकार उपन्यासकेँ अत्यन्त संवेदय बना देने छथि संगहि एकटा नव संदेश- आशाक संदेश, भविष्य निर्माणक संदेश देवाक सेहो प्रयास कएने छथि। एहि संदेशकेँ उपन्यासकार लोकक भाषामे व्यक्त करैत संकीर्ण एवं अव्यवहारिक पक्षकेँ मानवीय सरोकारसँ जोड़ैत कल्पनाशीलता एवं संवेदन शीलताकेँ केन्द्रमे राखि अपन उदेश्यकेँ चित्रित करवामे सफल भऽ गेल छथि। ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’क ध्वनि बुलंद करैत उपन्यासकार दया, ममता, आस्था, त्याग, परोपकार सदृश मानवीय गुणक पक्षधर प्रतीत होइत छथि। दोसर दिशि एहि गुणकेँ प्राप्तिक दिश निर्देश सेहो कएने छथि। आधुनिक बुद्धिजीवी मानवक कार्य, ज्ञान आओर इच्छाक बीच तालमेलक अभाव आधुनिक जीवनक विडम्बना थिक। मुदा उपन्यासकार मिथिलाक सरल, निश्छल एवं सहज लोकक चित्रण करैत वस्तुत: मिथिला शुद्ध, पवित्र एवं सत्यस्वायनक चित्रण कएने छथि।
उपन्यासक सभसँ पैघ विशेषता थिक समाजक निम्नवर्गक बोलचालक भाषा, लोक संवाद एवं लोकोक्तिक प्रयोगक संग समाजक विषमता एवं विसंगतिपर प्रहार करव। अपन जीवनानुभवकेँ अलग शैली एवं शिल्पक माध्यमसँ निरूपित करवामे उपन्यासकार सफल भऽ गेल छथि। संगहि इहो सत्य जे उपन्यासकारक अर्न्तमन अत्यन्त कोमन तन्तुसँ निर्मित छन्हि तेँ हिनक उपन्यास मध्य ‘रिसेप्टीविटीक’ स्तर बहुत गाढ़ भऽ गेल छन्हि। उपन्यासकार प्रमाणित कऽ देने छथि जे सहज लोक भाषाक माध्यमसँ नहि मात्र अपन अन्तर्परिष्करण सम्भव अछि अपितु प्रकारान्तरसँ मानवीय दायित्वक निर्वहन सेहो।
संवंधक अभावमे मनुष्य सुखा जाइत अछि। मनुष्य अपनामे वंद होएवा लेल नहि बनल अछि। मनुष्यमे जतेक जे अछि, सभ ओकरा अन्यसँ माने दोसरसँ जोड़ैत अछि आ प्रसन्नताकेँ बाँटैत अछि। सम्भत: यएह उपन्यासकारक इष्ट छन्हि। हम हिनक मंगलमय भविष्यक कामना करैत अंतमे मैथिली साहित्यक भंडारकेँ समृद्ध करवा हेतु साधुवाद दैत छियन्हि।
पोथीक नाम- जिनगीक जीत (उपन्यास)
उपन्यासकार- जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन, राजेन्द्र नगर दिल्ली।
मूल्य- २५० टाका मात्र।
प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
पोथी पाप्तिक स्थान- पल्लवी डिस्ट्रीब्यूटर्स,
वार्ड न.६, निर्मली, सुपौल, मोवाइल न. ९५७२४५०४०५
४
शिव कुमार झा ‘टिल्लू’ समीक्षा-
१
हम पुछैत छी
कविता संग्रह (विनित उत्पल)
एक्ैसम शताब्दीक दशांशक परिसमाप्तिक अवलोकन कएलापर परिणाम भेटल जे ऐ अवधिमे किछु एहेन तरूण रचनाकारक पदार्पण मैथिली साहित्यमे भेल जनिक रचना सभसँ हमर साहित्य पुलकित भऽ रहल अछि। श्री गजेन्द्र ठाकुर ऐ अत्याधुनिक पिरहीक लेल पथ प्रदर्शक छथि, जनिक कुशल नेतृत्वमे श्री विनीत उत्पल, श्री उमेश मंडल, श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरी, श्रीमती प्रीति झा ठाकुर सन रचनाकारक मंडली मैथिलीकेँ नवल ज्योति प्रदान कऽ रहल।
सन 2009ई.मे विनीत उत्पल जीक पहिल कविता संग्रह “हम पुछैत छी” श्रुति प्रकाशनक सौजन्यसँ प्रकाशित भेल। विनीत जीक जन्म मधेपुरा जिलाक आनंदपुरा गाममे भेल। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा मुंगेर आ स्नातक भागलपुरमे। व्यावसायिक पाठ्यक्रम नई लिल्लीसँ प्राप्त कऽ सम्प्रति राष्ट्रीय सहारा नोएठामे वरिष्ठ उपसंपादक छथि। मैथिली-मिथिलाक सांस्कृतिक गति विधि आ अभिव्यक्तिक समायोजनक आधारपर दरभंगा आ सहरसाकेँ मुख्य केन्द्र भमि मानल जाइत अछि। दरभंगा जिलासँ विभक्त भेलापर उपेक्षाक जे दंश समस्तीपुर जिला वासीकेँ भेटलनि, वएह दंश मधेपुराक लोक सेहो अनुभव कऽ रहल छथि। कविक जन्म मधेपुरामे आ प्रारंभिक शिक्षा अंग प्रदेशमे, परंच कविता सभ खॉटी मैथिलीमे, अजगुत तँ अवश्य लागल मुदा विनीत जीक मातृभाषानुरागसँ तीत-भीज गेलहुँ।
ऐ कविता संग्रहक भूमिका सिद्धहस्त साहित्यकार श्री गंजेश गुंजनजी “कविक आत्मोक्ति : कविताक अएना” शीर्षक दऽ लिखने छथि। गुंजन जीक व्यक्तित्व आ कृतित्व मैथिली साहित्यक लेल कालजयी मुदा कविक आत्मोक्तिक विवेचनमे श्री गुंजनक लेखनी कनेक्शन कंजूस बनि कऽ रहि गेल। हमरा मतेँ कोनो नवतुिरया रचनाकारकेँ हृदएसँ प्रोत्साहित करबाक चाही। ओहूमे जै भाषामे पाठकक संख्या लगातार घटि रहल हुअए।
पचास कविताक संग्रहमे पहिल कविता “ककर गलती” विधवाक अवस्थापर व्यथित कविक लेखनी मैथिली वर्गक कथाकथित आगाँक जातिक मध्य प्रश्न ठाढ़ करैत अछि। ठोप, चानन आ पाग मैथिलक सवर्ण समाजमे पुरूष कतेको बेर धारण कऽ सकैत छथि मुदा स्त्री तँ अवला....। विवाहक क्षणहिंमे जौं पतिक मृत्यु भऽ जाए तँ जीवन भरि सतीत्वक दंश झेलए पड़तनि। लार्ड विलियम बटिक केर सुधारवादी आन्दोलनमे बंगालक प्रह्मण सुधरि गेलाह मुदा मैथिल ब्राह्मण अपन सनातन संस्कृतिक रक्षक छथि, अवलाकेँ सबला बनेबामे धर्म नष्ट भऽ जेतनि। नाओं गौरी दाइ मुदा समाजक लेल डाकिनी भऽ गेली-
की करती गौरी दाइ
किओ हुनका देवी कहतन्हि
तँ डाइन जोगिन कहवासँ
लोक वेद पाछुओ नहि रहतन्हि।
कहबाक लेल तँ हमरा सबहक संस्कृतिमे शक्तिक उपासना प्रासंगिक अछि मुदा हम सभ अपने घरक शक्तिकेँ अपमानित आ मर्दित कऽ रहल छी। “मनुक्खो नहि भेल” शीर्षक कवितामे भौतिकता आ बौद्धिकताक आड़िमे जीवन अवस्थाक अव्यवस्थित रूपक प्रदर्शन नीक लागल-
राति मे घर मे नहि रहैत छी
जखन कि चिड़ै चुनमुनी सेहो
साँझ पड़ैत घर घुरैत अछि
“की फर्क पड़ैत अछि” शीर्षक कविता बौद्ध संस्कृतिक केन्द्र वैशालीसँ तथागतक संदर्भमे लिखल गेल। विम्ब तँ नीक मुदा विश्लेषण स्पष्ट नहि भऽ सकल। सभ पाठक तँ इतिहास विद् आ दार्शनिक नहि छथि तँए कविताकेँ उपयुक्त आ पूर्ण नहि मानल जा सकैछ। िवनीत जीकेँ कनेक फरिछा कऽ लिखबाक चाही छल। पहिने समाज दाणवीर कर्णकेँ सुतपुत्र मानैत छल जखन महाबली भऽ गेलाह तँ सूर्यपुत्र मानल गेलाह। वास्तविकता जे हुअए मुदा अंग प्रदेशकेँ कर्णक कर्मभूमि मानल जाइत अछि। कविक प्रारंभिक शिक्षा मुंगेरमे भेलनि तँ अपन कर्मभूमिक वर्तमान अवस्तासँ मर्मािहत छथि-
दल मलित होइ अछि
अंग प्रदेशक आत्मा
आ बजबैत अछि
तारणहार केँ...।
अपन संस्कृतिक रक्षाक तादात्म्यमे हम सभ अनसोहांत काज सेहो करैत छी। धार्मिक आडंम्बर एकटा प्रमाण अछि- मधुश्रावणी। कहबाक लेल तँ ऐ पर्वकेँ मिथिलाक संस्कार पर्व मानल जाइत अछि मुदा वास्तवमे मैथिल ब्राह्मण आ मैथिल कर्ण कायस्थक मध्य मधुश्रावणी पर्व मनाओल जाइत अछि। “परीक्षा” शीर्षक कविताक माध्यमसँ कवि ऐ पावनिमे पतिब्रताक प्रमाणपत्र- टेमी प्रथापर प्रहार केलनि। पुरूष भेलक पश्चात् सेहो कवि परीक्षासँ डेराइत छथि तखन नारीकेँ अहिल्या जकाँ बेर-बेर परीक्षा किए लेल जाइत अछि।
“गाम डूबि गेल” शीर्षक कविता बाढ़िक विनाश लीलाक औसत प्रदर्शन मात्र मानल जा सकैछ।
संग्रहक सभसँ कलात्मक आ प्रासंगिक कविता- हम पुछैत छीकेँ मानल जाए। वास्तविक सेहो जे जै कविताक शीर्षककेँ कविता संग्रहक शीर्षक दऽ देल गेल ओइ कवितामे कविक आंतरिक जुआरि अवश्य हेतनि। ऐ कविताक माध्यमसँ कवि समाजक समीक्षाक लेल दद्यत छथि। समाजक सभटा व्याधिपर कविक लेखनी स्वच्छन्द भऽ विचरण केलक।
सरिपहुँ विनीत जी पत्रकार छथि देशकालक दशाक विवेचन नित्य करैत छथि तखन रचना झाँपल कोना रहत। “मनुख आ माल” एवं “समाजक ई रूप” वर्तमान मनुक्खक ओझराएल मानसिकताकेँ देखबैत अछि। अर्थनीति विलोकित भऽ गेल, भौतिकता समाजकेँ बॉटि रहल अछि, अधिक प्राप्तिक आशमे ककर्म बढ़ि रहल अछि। एवं प्रकारे ऐ दुनू कविताक दृष्टिकोण नीक लागल। “मारलाक बाद” शीर्षक कविता दर्शनशास्त्रक अनुभूित केलक। पुष्कर कवितामे भारतीय इतिहास आ अपन संस्कृति शीतल वातसँ गौरवान्वित भेलहुँ।
ऐ कविता संग्रहक सबल पक्ष अछि विम्बक चयन आ िवश्लेषण। भाषा सेहो सरल आ मैथिलीक खाॅटी शब्दसँ ओत प्रोत अछि। मुदा दुर्बल पक्ष्ज्ञ भेटल प्रवाहक कमीक रूपमे। कविता आशु कविता हुअए वा अतुकांत- छंदक लेपन आवश्यक होइत छैक। ऐ कविता संग्रहमे छंदक समायोजन समुचित रूपेँ नै कएल गेल कोनो-कोनो कविता तँ गद्य जकाँ बुझना गेल। कविकेँ आगाँ एे विन्दुपर ध्याान राखए पड़तनि। निष्कर्षत: तरूण कविक प्रांजल प्रस्तुति, विनीत जीकेँ कोटि-कोटि साधुवाद.....।
पोथीक नाओं- हम पुछैत छी
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन
मूल्य- 160 टाका मात्र
वर्ष- 2009
२
मैथिलीक विकासमे बाल कविताक योगदान
वाल्यावस्था जीवन रूपी नाटकक प्रथमांक होइत अछि। जौं कोनो नाटकक प्रथम अंक व्यवस्थित आ सरल हुअए तँ स्वत: आकर्षणक केन्द्र बनि जाइछ। कहलो गेल अछि “Morning shows the day” प्रभातसँ दिवसक पूर्व आभास स्वभाविक होइत छैक। हमरा सबहक लेल सौभाग्यक कथा जे मैथिली सत्व, तम आ रजो गुणसँ आेत प्रोत सरस भाषा मानल जाइत छथि। जीवनक प्रथम पाठशालाक छात्रमे एहि गुणक समावेश आवश्यक अछि। तँए एहेन पद्यक रचना अनिवार्य जे शैशवसँ नेनपनमे प्रवेश करएबला नेना-भुटकाकेँ मातृ सिनेहसँ तृप्ति कऽ दिए। नेना भुटकाक जीवनमे महाकाव्य, प्रवंधकाव्य वा उपन्यासक कोन प्रयोजन? ओ सभ तँ विनु अन्तर्मस्तिष्कपर दाब देने अपन संसारकेँ जीवन्त राखए चाहैत छथि।
वर्त्तमान समएमे सभ्यता आ संस्कृतिक भूमंडलीकरणसँ आर्य परिवारक किछु भाषाक अस्तित्व संकटमे पड़ि गेल अछि। संभवत: एहि प्रभावसँ सभसँ वेसी मैथिली प्रभावित छथि। हमरा सबहक समाजक रूप ततेक इन्द्रजासँ आबद्घ भऽ गेल अछि जे दू गोट भाषाक प्रासंगिकतामे ओझरा रहल छी। गैर हिन्दी भाषा क्षेत्रक लोक तँ अपन मातृभाषाक संग-संग अंग्रेजीकेँ आत्मसात् कऽ रहल छथि। हमरा लोकनि किंकर्त्तव्यविमूढ़ छी जे अंग्रेजी तँ स्वीकार करैए पड़त मुदा हिन्दीकेँ छोड़ि मैथिली कोना पढ़ी? वर्तमान पीढ़ी तँ किछु-किछु मैथिलीक लाज रखने छथि मुदा एहि पिरहीक प्रांजल साहित्यकारक लोकनि अपन करेजपर हाथ राखि कऽ कहथु जे अपन-परिवारक नेना-भुटकामे देसिल वयनाक प्रति निष्ठासँ ज्योति प्रज्जवित करैत छथि? जखन साहित्यकारक परिवारक ई स्थिति तँ आम मैथिलीक स्थिति कोना कहव? दशा ततेक मर्मस्पर्शी भऽ गेल जे किछु पिरहीक बाद नेना-भुटका पूछत मैथिलीकेँ छलि?
हमरा हिन्दीसँ कोनो पीड़ा नहि। बेर-बेर प्रश्न उठैत अछि आ उत्तर सेहो स्वत:स्फूर्त जे हिन्दी राजभाषा छथि मुदा मातृभाषा नहि। तखन मातृभाषक रूपमे एकर प्रयोग किए कएल जा रहल अछि।
एहि दशाक लेल जौं अभिभावक सभ दोषी छथि तँ साहित्यकार सेहो कोनो कम नहि। मैथिली साहित्यमे बाल मनोविज्ञानकेँ स्पर्श करएबला रचना अत्यन्त न्यून। जौं नेना भुटका लेल साहित्य नहि तँ ओ साहित्यक मर्मकेँ कोना बूझथि?
कहबाक लेल तँ एहि बिम्वपर बहुत रास कवि कविताक रचना कएने छथि मुदा प्रथमत: तत्सम् शब्दक रूपेँ बिम्व विश्लेषण। सभ नेना-भुटका तँ अयाची मिश्रक पुत्र शंकर नहि भऽ सकैत छथि जे बालोहं जगदानंद......क अर्थ बूझि जएताह। जौं तत्सम् नहिओ तँ एहेन रचना जे कवि स्वयं बुझताह, समीक्षक दिग्भ्रमित भऽ जाइत छथि तँ नेना ओहि रस सरितामे विचरण करथि प्रश्नवाचक अछि। मैथिलीमे बाल साहित्यक रचनाक न्यूनताकेँ भरवाक लेल समीक्षक वा साहित्यक अधिष्ठाता लोकनि नीति सम्वन्धी पद्य आ वंदना सभकेँ बाल साहित्यसँ जोड़ि दैत छथि। हम एहि दृष्टिकोणकेँ उचित नहि मानैत छी। बाल कविता तँ एहेन होएवाक चाही जाहिमे मिथिला-मैथिलीक खॉटी शब्दकेँ बिम्वित कएल गेल हुअए। कोनो आवश्यक नहि जे बिम्व साहित्य रसकेँ छूबैत तात्विक हो, जखन बाल मन चंचल तँ नीति आ वैराग्यक समावेश अनिवार्य नहि। एहि तरहक रचनामे बाल श्रंृगार अवश्यांभावी छैक। जेना कोनो कविक कविताक किछु पॉति- “आम छू अमरौरा छू/ बाबा गाछीक औड़ा छू/ नेनपन बीति गेलै/ ककरा कानमे कहबै कू/” वा “सूति रहेँ नूनू बिलैया एलौ/ रहू माछ लऽ तोहर भैया एलौ/”
हमरा बुझने ई थिक बाल कविताक वास्तविक रूप मुदा एखन धरि कतए-कतए की-की लिखल गेल अोकर चर्च सेहो आवश्यक अछि। हमर अध्ययनशीलता व्यापक नहि, एखन धरि मैथिली कवि वा कवयित्री लोकनिक रचना सभ बहुत रास नहि पढ़ने छी तँए हमर विवेचनकेँ अन्यथा नहि लेल जाए। हम वएह कवि वा कवयित्री सबहक चर्च करब जनिक रचनासँ अवगत भेल छी।
नीति संवंधी बाल साहित्यक अन्तर्गत कविवर सीता रामझाक शिक्षासुधा, जनसीदनजीक नीति पदावली, पंडित वेदानंद झाक रत्नवटुआ अछि प्रमुख अछि। शिक्षा प्रधान बाल साहित्यमे श्री गोविन्दक पाकल आम आ श्री कांचीनाथ झा किरण जीक “प्रभात” कविता महत्वपूर्ण अछि। ओना तँ सुमन जी बाल साहित्यमे किछु छिटफुट तत्सम मिश्रित कविताक रचना कएलनि मुदा शिशु मासिक पत्रिकाक प्रकाशनमे हुनक उल्लेखनीय योगदान अछि जाहिमे तन्त्रनाथ झाक वानर आ ईशनाथ झाक “वन्दना” कविता छपल छल। ओना तँ तन्त्रनाथ झा रचित “मुसरी झा” कविता तरूण पाठकक लेल लिखल गेल मुदा एहिसँ शिक्षाक मध्य पएर पसारैत नेना सेहो प्रभावित भेल छथि। कवि चूड़ामणि मधुप तँ श्रंृगार आ विचारमूलक भावनासँ भरल गीतक रचनाकार छथि मुदा हिनक किछु गीत बाल बिम्वसँ ओत-प्रोत नहि रहितहुँ ततेक लोकप्रिय भेल अछि जे मिथिलाक नेना-भुटका चाहे ओ शिक्षित परिवारसँ संबंध राखथु वा नहि स्वत: गबैत अपन कर्मपथपर मिथिलाक गाम-गाममे गतिमान एखनो रहैत छथि। “बटुक आ धीयापूता” सन पत्र-पत्रिका बाल साहित्यकेँ प्रोत्साहित अवश्य कएलक अछि जाहिमे सरस कवि ईशनाथ झा, सुमन, किरण, मणिपद्म, यात्री बुद्धिधारी सिंह रमाकर, चन्द्रनाथ मिश्र अमर, श्री धीरेन्द्र सन कविक कविता छपैत छल। मिथिला मिहिर निश्चित रूपेँ मैथिलीमे बाल साहित्यक धाराकेँ नवल गति देलक। एहि पत्रिकाक पैघ विशेषता छल जे नवतुरिया कवि वा कवयित्री सभकेँ सेहो एहि पत्रिकामे स्थान देल गेल। मिथिलाक गाम-गाममे एहि पत्रिकाक वितरण व्यवस्था छल जाहिसँ एहिमे छपल रचनाक व्यापक प्रचार-प्रसार भेल। राज दरभंगा द्वारा स्थापित एवं संरक्षित रहवाक कारणेँ रचनाकारकेँ उपहार वा पारिश्रमिक रूपेँ किछु कैंचा सेहो भेट जाइत छल जाहिसँ बाल साहित्यक कोन कथा मैथिली साहित्यक सभ विधाक विकासमे मिथिला-मिहिरक योगदान अविस्मरणीय अछि। बाल स्तंभमे अनेकानेक वालोपयोगी कविता संग्रहक दृष्टिऍ डॉ. श्रीकृष्ण मिश्रित अग्रदूत उल्लेखनीय अछि। मैथिली साहित्य मंजरी, मैथिली साहित्य बोध आदि साहित्यक पाठ्यपुस्तकमे सुमनजी, तंत्रनाथ झा, ईशनाथ झा, हरिमोहन झा, आरसी बाबू आ गोविन्द झा सन कविक बालोपयोगी रचना देल गेल अछि।
बाल साहित्यमे व्यापक कवित्वक प्रदर्शन आधुनिक कालक कवि आ कवयित्री पूर्वकालक रचनाकारसँ वेसी कएलनि अछि। एहिमे जीवकान्तजी प्रमुख छथि। जीवकान्त जीक तीन गोट वाल कविता संग्रह छपल अछि जाहिमे गाछ झूल-झूल आ छॉव सोहावनि प्रमुख अछि। हिनक पश्चात् जे कवि एहि दिशामे क्रियाशील भेल छथि- ओहिमे श्रीचन्द्रभानु सिंह, मार्कण्डेय प्रवासी, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, सियाराम झा सरस, मंत्रेश्वर झा, हंसराज, मायानंद िमश्र, रामलोचन ठाकुर, भीमनाथ झा, कालीकान्त झा बूच, गोपालजी झा गोपेश, डॉ. नरेश कुमार विकल, डॉ. केदारनाथ लाभ, डॉ. इन्द्रकांत झा, रमाकान्त राय रमा, उपेन्द्र ठाकुर मोहन सन स्थापित कविक नाओ प्रमुख अछि।
दुर्भाग्य अछि जे एहि कवि लोकनिक बाल साहित्यपर कोनो संकलित कविता संग्रह नहि भऽ कऽ मात्र किछु छिट-फुट कविता वा गीत नेना भुटका लग परसल गेल अछि। कवयित्रीमे “शिशुकलकत्ता” शीर्षक कविताक रचनाकार इलारानी सिंह, डॉ. शेफालिका वर्मा, वाणी मिश्र, रोटी शीर्षक कविताक कवयित्री कामिनी, विभारानी, एकटा भीजल बगरा शीर्षकक कवयित्री ज्योति सुनीत चौधरी आदिक नाओ प्रमुख अछि मुदा हिनको लोकनिक वएह हाल कोनो संकलित कविता संग्रह नहि मात्र छिट-फुट कविता।
सन् 2008ई.मे विदेह पत्रिकाक आगमनक संग-संग बाल साहित्यमे क्रांति आबि गेल। एहि पत्रिकाक संपादक श्री गजेन्द्र ठाकुर बाल साहित्यक उत्प्रेरणक लेल उद्यत छथि। हुनक सप्त विधामे लिखल रचना संग्रह कुरूक्षेत्रम अन्तर्मनक सातम खण्ड “बाल मंडली आ किशोर जगत” नेना भुटकाक लेल समर्पित अछि। एहि खण्डमे एक सयसँ ऊपर कविता देल गेल अछि। कविता सभ पढ़लाक बाद बाल साहित्यक तादात्मयकेँ निश्चित रूपेँ बूझल जा सकैत अछि। एहि संकलनमे वातानुकूलित महलमे रहनिहार नेना भुटकासँ लऽ कऽ गामक सोती-नदीक कातमे घोंघा बिछनिहार बाल-वालिकाक मनोदशाक विवेचन कएल गेल अछि। मैथिलीक संग ई विडम्बना रहल जे एहिमे अर्थनीति आ सामाजिक समरसताकेँ व्यापक रूपेँ बिम्वत नहि कएल गेल। सामंतवादी प्रवृतिक लोकसभ चाहे ओ कोनो जातिक होथु हुनके मानसिकताकेँ समाजक मानसिकता मानि लेल गेल। जगतजननी सीताक लेाकगााथापर तँ केओ बॉचि सकैत छथि मुदा सलहेस, बहुरा गोढ़िन आ नटुआ दलालक संग-संग मोती दाइक व्यथा ककरा मुखसँ सुनैत छी? यएह दशा बाल साहित्यमे सेहो भेल। हिन्दी भाषा साहित्यमे राष्ट्र कवि दिनकर “बच्चो का दूध” शीर्षक कवितामे समाजक अंतिम पॉतिक नेनाक भूखसँ कल्हाइत मर्मस्पर्शी दशाक चित्रण कएलनि मुदा मैथिलीमे एहि प्रकारक रचनाक अभाव खटकि रहल छल, किछु लिखलो गेल तँ ओकरा साहित्यिक मान्यता नहि भेटल। गजेन्द्र जी एहि भ्रमकेँ तोड़वाक प्रयास कएलनि अछि, जाहि लेल धन्यवादक पात्र छथि।
गजेन्द्र जीक संग-संग बहुत रास तरूण कवि कवयित्री सबहक बाल रचना विदेहमे छपल अछि। वर्तमानकालक बाल रचनाकार कवि, कवयित्रीमे चन्द्रशेखर कामति, अनमोल झा, श्रीमति मृदुला प्रधान, डॉ. जया वर्मा, राजदेव मंडल, कुमार मनोज कश्यप, डॉ. शंभू कुमार सिंग, कामिनी कामयिनी, उपेन्द्र भगत नागवंशी, मनोज कुमार कर्ण उर्फ मुन्नाजी, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, रूपा धीरू, हिमांशु चौधरी, रूपेश कुमार झा त्योंथ, विनीत उत्पल, श्रीमती कुसुम ठाकुर, अशोक दत्त, राजेश मोहन झा गुंजन, किशन कारीगर आ उमेश मंडल सन नव साहित्यकार प्रमुख छथि। ओना वर्तमान कालक परिधिमे किछु स्थापित रचनाकार जेना गंगेश गुंजन, विभूति आनंद, ज्योत्सना चंद्रम, जयप्रकाश जनक, रामसेवक ठाकुर, कमलाकान्त, अरविन्द अक्कू, परमानंद प्रभाकर, रामपुनीत ठाकुर तरूण, प्रो. रवीन्द्र कुमार चौधरी सन रचनाकारक लेखनी ऊपर वर्णित सभ रचनाकारक संग-संग एहि विधामे क्रियाशील अछि। सभसँ आश्चर्यक गप्प जे मात्र नौ गोट वसंत देखलि बालिका सुश्री संस्कृति वर्माक लेखनी प्रथमत: बाल साहित्येकेँ स्पर्श कएलक अछि।
एहि प्रसंगमे किछु एहेन रचनाक उल्लेख करब आवश्यक बूझैत छी जे छेहा मैथिलीमे मात्र नेना-भुटका लेल लिखल गेल हुअए-
(क) “खेत टी खरिहान टी/ आंगन टी दलान टी/ बाबा आब अहींक कानमे/ टिटही टहकय टी-टी-टी../”
(ख) “बापे तोहर बनलौ परदेशी/ चिट्ठी ने एलौ भेलौ दिनवेसी/ मॉक निनायल व्यथा जगबै छौ/ सुनही रौ तोरे कुचरि सुनबै छौ/” (काली कांत झा बूच रचित- पोताक अट्ठास आ दिनक नेना कवितासँ)
(क) “साले-साल किअए अबै छी/ झणे-झण अबैत रहू/ हर क्षण हर मनकेँ/ अमृतसँ भरैत रहू/ क्षणे-क्षण.../ नव शक्तिक नव उत्साह दऽ/ सृजन शक्ति भरैत रहू/ कर्म-ज्ञानकेँ घोड़ि-घोड़ि/ सिनेहसँ सिनेह सटैत रहू/ क्षणे-क्षन.../ जे हूसल से हम्मर हूसल/ तइले किअए छी कलहन्त/ सभ जागैए सभ सुतैए/ एक दिन हेतै सबहक अंत/ नजरि-उठा देखैत रहू/ क्षणे-क्षण.../ देवी अहाँ, मैया अहाँ/ भेदि कतौ अछि कहाँ/ जोड़ल आँखि उठा-उठा/ पले-पल देखैत रहू/ क्षणे-क्षण अबैत रहू।”
(ख) “आँखि पुछलक/ दीदी, सभ किछु देखितो/ किछु ने देखै छी/ कलपैत मन देखि/ भरि-भरि दिन कनै छी/ नजरिक उत्तर/ सगतरि तँ फूल छिटाएल-ए/ गुणसँ भरल-पुरल/ रस चुसैक ज्योति बनाउ/ भेटत तखने मीठका फल।/ (जगदीश प्रसाद मंडल, “सरस्वती बंदना” आ “नजरि” कवितासँ)
“बड़ जे जतनसँ हम पोसली पुताकेँ/ भुखे सुतली अपन घर मर ओकरा सुतौली खुआकेँ/ अपने हम मुरूख मुदा बौआकेँ पढ़ौली/ काटि कष्ट पोथी लेल ढौआ जुटौली/” (रूपेश कुमार झा त्योंथ)
(क) “चारिटा छाैंड़ा छल गाछ तर फनैत/ जिद लगौने डरिकेँ गनैत/ पहुँचल पाँचम- हे रौ की गनै छेँ/ ई कथीक गाछ िछएे से जनै छेँ?। सभ भेल अवाक/ अपन जमौलक धाक। सुनने रहि ई गाछ िछऐ। अनचिन्हार......।/
(ख) “बच्चा जनमि गेल/ बेटा भेल/ सुनतहि घर खुशीसँ भरि गेल/ सौंसे टोल खबरि पसरि गेल। बढ़ए लगल उछाह। कहलक लोग-वाह-वाह। मुनियाँ अछि लछमिनियाँ/ तब ने एकरापर सँ जनमल छौंड़ा....। (राजदेव मंडल, कथीक गाछ अा मुनियाँक चिन्ता शीर्षक कवितासँ)
“छुनछुन-छुनछुन बौवा हम्मर/ फुदकैत फुदही जकाँ रहैए/ कखनो मुस्की कखनो मटकी/ कखनो दिदीकेँ चुप्पी कहैए/” (अशोक दत्त)
टुन्ना गेंग पसारै यै/ मुन्ना दॉत चियाड़ै यै/ गुड्डू-टिंकू-बबलू-सबलू/ मुइयो मोंछ उखारै यै/ आब की कहू भाय/ हुरपेट्टे लगै यै/ बाजै छी कोना....।/ (चन्द्रशेखर कामति)
“एक दू तीन/ बौआ गेल सुनि/ चारि पॉच छह/ सुनि भेल भयावह..../” (गजेन्द्र ठाकुर)
“नहला पर अछि दहला/ बौआ बाबू हमरा कहला/ पढ़ू जोरसँ..../” (डॉ. नरेश कुमार विकल)
“कोन दिशासँ उतरि पपिहरा/ घैल पदक ढरकाबै छेँ/ बिजुवन केर पंछी तों हमरे/ जरल जिआ तरसावै छेँ..../” (चन्द्रभानु सिंह)
“पोथी पढ़ि किछु हैत नहि/ तोड़ऽ चाही रोट/ जोड़ू नोट बकोिट कऽ/ भोट बटोरू मोट...../”
(आरसी प्रसाद सिंह)
“एकर चोरौलक ओकर हेरौलक/ बापो माइक नाम बुड़ौलक/ पोथी फाड़य थोथी झाड़य/ एकरा ओकरा झगड़ा लाड़य.../” (उदयनाथ झा अशोक)
“चलू तिरंगा कने उड़ा ली हर्जे की/ आजादी केर रश्म पुरा ली हर्जे की..../” (रामलोचन ठाकुर)
“देव पितर पातरि-खरना कहिया धरि?/ बैसल खैबें रे रमचरना कहिया धरि?/ पोथी पतरा गामक गाम उपासल अछि/ प्रवल धारमे बड़का-बड़का भासल अछि/” (डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र)
“मातृभूमि केर करी बंदना/ ऋतुरानी गुनगान करी/ जननी जन्मभूमि केर खातिर/ अर्पण अप्पन प्राण करी.../” (अर्जुन लाल कर्ण)
“तू लोरी गा हम सूति जाएव/ माए लोरी गा हम सूति जाएव..../” (डॉ. शंभू कुमार सिंह)
“नेहरू चाचा, अहाँ कतऽ चलि गेलौं/ देख लिअ अहाॅ नेना सभकेँ की कऽ गेलौं/ हमर पीठ पर भारी बस्ता/ ओहि मे किताब कॉपीक ठेलमठेल देखू..../” (सुश्री संस्कृति वर्मा, वएस नौ बरख)
“एक टोलमे बबलू अकलू/ दू नेना छल/ समतुरिया छल/ बबलूकेँ छल बन्तिक खुट्टी/ आमक तख्ता केर पिटना छल..../” (जीवकान्त)
“नन्हें भाय खेलए चललनि/ हाथ नेने बंदूक/ लगलनि दनदन फायर करए/ ओ पक्षी देखि उलूक.../” (रमाकान्त राय रमा)
“जाड़क रौदी सन वेटी/ गरमीक छाहरि सन वेटी/ जीवनक गीत-संगीत बसैत अछि/ ओहिमे/ नहि तँ रसहीन अछि जिनगी/” (डाॅ. जया वर्मा)
“राम छू रहमान छू/ गीता आर कुरान छू/ मोल विकयबेँ नहि बजारमे/ पहिने बौआ कान छू..../” (डॉ. ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म)
“हे भाय हमरा जुनि मारह/ हम छी तोरे भ्राता/ अग्रज वा अवरज..../” (फजलुर रहमान हरसमी)
“बालुक करेजपर बसा लेलहुँ गाम/ बेरि-बेरि ऑगुरसँ लिखलहुँ जे नाम..../” (विलट पासवान विहंगम)
“कोंचा लेटाइत छनि केश फहराइत छनि/ मोछो हुनक कलकत्ते/ ईहो पुरूष अलबत्ते.../” (रवीन्द्र नाथ ठाकुर)
“खेल खेल खेल/ खेल बौउआ खेल/ चोरा-नुकी खेल/ अज्ञानक अन्हारमे/ नुकाएल चोरबा/ ज्ञानक किरनसँ/ पकड़ल गेल/ खेल खेल खेल/ खेल दाय खेल/ कनियाँ-पुतरा खेल/ बेइमानक नगरीसँ/ नकलल बहुरिया/ शैतानक माफापर/ बैठा देल गेल/ इमानक चौबटियापर.../” (मनोज कुमार मंडल)
“जगदंब अहीं अवलम्व हमर/ हे माय अहाँ बिनु आश ककर..../” (प्रदीप मैथिली पुत्र)
“पढ़ि-लिख बनिहेँ एहन सिपाही/ सभ तरि लोक करौ वाहवाही/ एहन संतानक अलगे धाही/ खगता छै भगत सिंह चाही...../” (महाकांत ठाकुर)
“माँ गै माँ/ घरक ऊपर/ चारक तर/ बगरा बनेलकऊ/ एकटा घर/ माँ गै माँ/ घरक पाछू/ बारीक बिच/ सुगा अनलकऊ/ एकटा फर/ माँ गै माँ/ गामक भीतर/ टोलाक बिच/ नटुआ नचलऊ/ एकटा नाच/ माँ गै माँ/ गामक बाहर/ पोखरिक बिच/ पुरैनिक पातपर/ झिलमिल जल/ माँ गै माँ/ आँगन कात/ ढेकी लग/ बिहरिमे छौ/ गहुमन साँप/ माँ गै माँ/ बस्तुनिया लय/ हम कहलियौ/ सब हाल-चाल/ जल्दीसँ दऽ दहीं/ बस्तुनिया हमर/ हम चललियऊ/ खेलय लेल.../ (पंकज कुमार झा)
“दाइ गे दाइ तोँ बड़ हरजाइ/ भागेँ ओहि दिस देखए जत्तहि/ ढेपा गुड़क गुड़कल जाए...../” (राजेश मोहन झा गुंजन)
ई लिखबाक हमर उद्देश्य अछि बाल कविताक किछु रूपक दर्शन मात्र। एहिसँ इतर सेहो अनेकानेक बालगीत आ कविता मिथिला गाम-गाममे लोरी आ रीति गीतक रूपमे चर्चित अछि। मैथिली साहित्यमे तँ साहित्यक कृतिक विविध विधाक संपादन वा चित्रण पहिनेसँ वेसी भऽ अछि मुदा मर्मस्पर्शी कथा जे पाठकक गणनामे लगातार कमी आबि रहल अछि। गोलमेज सम्मेलन कऽ कऽ तँ हम मैथिल अपन पाठक लोकनिक गणना चारि करोड़ धरि पहुँचा दैत छी मुदा सभ गोट मैथिल जौं मात्र अपन परिवारेक अवलोकन करथु तँ सत्यतासँ अवगत भऽ सकैत छथि मात्र माता-िपतासँ वैदेहीक अस्तित्व नहि बॉचत तँ....। जौं बाल भावनाकेँ देसिल वयनामे प्रचार-प्रसार नहि हएत तँ भऽ सकैत अछि जे कवि कालीकान्त झा बूच जीक कविता देसिल वयनाक अस्तित्वक बिम्व सत्य प्रमाणित भऽ जाए। एकर किछु पॉति-
“चन्दा-सुमन-यात्री-मधुपक/ जुनि करू भावना पर आधात/ दिवस निकट ओ आवि रहल अछि/ हेती मैथिली सभसँ कात..../”
नेना-भुटकामे देसिल वयनाक प्रति सिनेह जगाएव आवश्यक अछि। एहि लेल वाल साहित्यकेँ प्राथमिकता देब अति आवश्यक अछि। विशेष कऽ कऽ वर्त्तमान पिरहीक साहित्यकारकेँ एहि दिशामे सजग रहए पड़त।
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मैथिली उपन्यास साहित्यमे दलित पात्रक चित्रण
उपन्यास कोनो गद्य साहित्य रूपी व्यष्टिक आत्मा मानल जाइत अछि। मैथिली साहित्यमे लगभग सए वर्ख पूर्व धरि उपन्यास विधाक रचना लगभग शून्य छल। एहि कारण ओहि अवधि धरि मैथिलीकेँ पूर्ण साहित्यिक भाषा नहि मानल जाइत छल। जनसीदन जी एहि भाषा साहित्यक पहिल मान्य उपन्यासकार छथि। हिनक पाँच गोट उपन्यासक पश्चात् एखन धरि देसिल वयनामे साहित्यक समग्र विधाक चित्रण करैत बहुत रास उपन्यास पाठक धरि पहुँचल अछि। परंच एहि साहित्यक संग सभसँ पैघ बिडम्वना रहल जे पछातिक समाज जकरा सामाजिक शब्दमे दलित कहल जाइत अछि, ओकर महिमामंडनक गप्प तँ दूर प्राय: एहि साहित्यमे अकस्मात् अवांछित अभ्यागत्तक रूपमे क्षणप्रभा जकाँ कतहु-कतहु चर्चित अछि। दलित वर्ग तँ सामाजिक, सांस्कृतिक आ शैक्षणिक रूपेँ सम्पूर्ण आर्यावर्त्तमे पिछड़ल छथि, मुदा मिथिला-मैथिलीमे हिनक स्थानक विवेचन हिनका सबहक जाति जकाँ अछोप अछि। एकर प्रमुख कारण मिथिलामे धर्मसुधार आन्दोलन, विधवा विवाहक सकारात्मक दृष्टकोण प्राय: मृतप्राय रहि गेल। दार्शनिक उदयानाचार्य, भारती-मंडन, आयाचीक एहि भूमिपर सनातन संस्कृतिक पुनरूद्वार तँ भेल, मुदा एहि पुनरूद्वारपर आडंवर धर्मी व्यवस्थाक अमरतत्ती मूल संस्कृतिक विम्वकेँ सुखा देलक। समाजक साम्यवादी सोच भगजोगिनी बनि सवर्ण-दलितक मध्य भिन्न सामाजिक दशाक मध्य मात्र टिमटिमाइत रहल। एहि कारण सम्यक दृष्टिकोण रहितहुँ मैथिली भाषाक स्थापित रचनाकारक लेखनी व्यथित आ शोषित दलितक मर्मस्पर्शी जीवन गाथाकेँ प्रकाशित नहि कऽ सकल। कथा-कविता आ गल्पमे तँ दलितक चित्रण भेटैत अिछ, मुदा उपन्यासमे अत्यल्प। अपन व्यथाक विवेचन दलित वर्गक साहित्यकार सेहो नहि कऽ सकलाह, किएक तँ हिनक संख्या एखन धरि नगन्य अछि। संभवत: दलित रचनाकारक उपन्यास अपन वयनामे मैथिलीकेँ एखन धरि नहि भेटलनि।
सभसँ जनप्रिय उपन्यासकार हरिमोहन झाक साहित्यमे दलित वर्ग अनुपस्थित जकाँ छथि। यात्रीक बलचनमा ओना एहि वर्ग दिस संकेत करैत अछि ओहिना जेना ललितक पृथ्वीपूत्र, धूमकेतुक मोड़ पर आ रमानंद रेणुक दूध-फूल। यात्रीक पारो आ नवतुरिया विषयक चयनक कारण दलित वर्ग दिस ध्यान नहि दऽ सकल। धीरेश्वर झा ‘धीरेन्द्र’क ‘कादो ओ कोयला’ छोट लोकक विरनीक कथा कहैत अछि तँ हुनकर ‘ठुमकि बहू कमला’मे दलित वर्गक संघर्षक कथा ठीठर आ रामकिसुनक माध्यमसँ कहल गेल अछि। मणिपद्ममक उपन्यासक राजा सहलेस दलित दुसाधक नायक सहलेसक कथा कहैत अछि तँ ‘लोरिक विजय’ उपन्यासक नायक तँ यादव छथि मुदा हुनका मित्र वर्गमे बंठा चमार, वारू पासवान, राजल धोबी, ई सभ दलित वर्गक छथि- लोरिकक किछु विरोधी सेहो दलित वर्गक शासक छथि- मोचलि- गजभीमलि, हरवा आदि बंठाक संहार परिस्थितिवश करैत छथि आ ताहिसँ लोरिक विजयमे दलित कथाक ढेर रास प्रसंग आएल अछि। नैका बनिजारामे सेहो नैकाक पत्नी फुलेश्वरीकेँ किनवाक वर्णन अछि। हुनकर फुटपाथ भिखमंगा सबहक कथा कहैत अछि तँ लिलीरेक पटाक्षेप भूमिहीनक नक्सलवाड़ी आन्दोलनक कथा कहैत अछि।
आधुनिक कालक प्रसिद्ध उपन्यासकार विद्यानाथ झा ‘विदित’जी एहि विषयपर अपन लेखनीकेँ कोशीक भदैया धार जकाँ झमाड़ि कऽ प्रयोग कएलनि। ओना तँ विदित जी एखन धरि आठ-नौ गोट उपन्यासक रचना कएलनि अछि, परंच हिनक तीन गोट उपन्यासमे दलितक दशाक चित्रण मैथिली साहित्यक लेल अपूर्व निधि मानल जा सकैछ। हिनक विप्लवी बेसराक कथामे आदिवासीक कथा धौना, टेकू सुफल, बांसुरी, मोहरीलाल, गौरी, मारसक संग सफलता पूर्वक कहल गेल अछि। ‘कौसिलिया’ उपन्यासमे तँ फुलिया चमैनक पात्रताक चित्रण अनुपमेय अछि। विदित जीक तेसर उपन्यास ‘मानव कल्प’मे मिथिला, अंग आ झारखंडक ऑचरमे बसल लगभग सम्पूर्ण दलित समाजक विवेचन कएल गेल।
ओना तँ श्रीमती शेफालिका वर्मा जी मानव धर्मी रचनाकार छथि। हिनक समग्र साहित्यिक कृतिमे ‘जाति’ शब्द भूमंडलीकृत अछि। ‘नाग फांस’ उपन्यासमे जातिवादी व्यवस्थासँ शेफालिका जी बचबाक प्रयास कएलनि, परंच एहि उपन्यासक एकटा पात्र आकाशक पत्नी तरंगक प्रकृतिसँ बुझना जाइत अछि, जे ओ दलित छथि।
कहबाक लेल तँ सभ साहित्यकार अपनाकेँ साम्यवादी कहैत छथि मुदा साम्यवादी जीवन शैलीक जौं चर्च कएल जाए तँ संभवत: मैथिलीक सर्वकालीन साहित्यमे ध्रुवताराक स्थान श्री जगदीश प्रसाद मंडल जीकेँ भेटबाक चाही। हिनक सभ उपन्यास (मौलाइल गाछक फूल, जिनगीक जीत, जीवन-मरण, जीवन-संघर्ष, उत्थान-पतन)मे दलितक चित्रण अनायास भेटि जाइत अछि। लिखवाक शैली ओ विम्वक चयन ततेक पारदर्शी जे सवर्ण- दलितक मध्य कोनो खाधि नहि। सम्पूर्ण समाजमे सकारात्मक तारतम्य स्थापित करवाक जगदीश जीक स्वप्न मात्र उपन्यासमे नहि रहत, एहिसँ मिथिलाक समाजिक परिस्थितिमे भविष्यमे ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:....। सिद्धान्तक स्थापना अवश्य हएत। हिनक अविरल मर्मस्पर्शी आ प्रयोगधर्मी कृति ‘मौलाइल गाछक फूल’मे दलित समाजक महादलित मुसहर जातिक रोगही, बेंगवा, कबुतरीक मनोदशा आ नित्यकर्मसँ समाजमे शांतिक ज्योति जगएबाक कल्पना अनमोल अछि। दड़िभंगाक प्लेटफार्मपर सँ भंगी डोमक मानवीय भावनाक मारीचिका एकठॉ भक्क दऽ उगि जाइत अछि। भजुआ, झोलिया आ कुसेसरी सभ सेहो डोम जातिक छथि जिनकर सहायता सम्यक सोचबला ब्राह्मण रमाकान्त जी करैत छथि। एहि कृतिक सभसँ अजगुत पात्र छथि रमाकान्त जी। हिनक छोट पुत्र कालक डाँगसँ अधमरू वनिता सुजाता जे धोविन छथि तिनकासँ विवाह कऽ लैत छथि। विवाहे टा नहि विवाहसँ शिक्षा ग्रहन करवाक लेल प्रेरणा आ अर्थ सेहो सुजाताकेँ भेटलनि जाहिसँ ओ डाॅ. सुजाता बनि गेली। गाममे रहनिहार आ अपन मातृभूमिक प्रति असीम श्रद्धा रखनिहार रमाकान्त बाबूकेँ अपन पुत्र महेन्द्रक एहि निर्णएसँ कोनो पीड़ा नहि भेलनि। हिनक सम्पूर्ण परिवार एहि निर्णएकेँ सहृदय स्वीकार कऽ लेलकनि।
जगदीश बाबूक दोसर उपन्यास ‘जीवन-मरण’मे हेलन-गुदरी डोम दम्पतिक चर्च कएल गेल अछि। जीबछ, छीतन, रंगलाल चमार जातिसँ सम्बन्ध रखैत छथि। जिनगीक जीत उपन्यासमे पलहनिक नेपथ्यक पात्रता दर्शित अछि।
गजेन्द्र ठाकुरक ‘सहस्त्रबाढ़नि’मे दम्माक जड़ी एकटा आदिवासी द्वारा आनव आ िकछु वर्ख वाद ओ जड़ी जंगलमे नै भेटब वोन कम होएवा दिस संकेत करैत अछि तँ हुनकर ‘सहस्त्रशीर्षा’ मिथिलाक लगभग सभ दलित जातिक विष्तृत विवेचना करैत अछि। तीनटा घरक रहलोपर धोविया टोली एकटा टोल बनि गेल अछि। झंझारपुर धरि मारवाड़ीक कपड़ा एतए साफ कएल जाइत अछि। महिसवार ब्रह्मण सभ जे बरियातीमे बेलवटम झाड़ि कऽ सीटि-सीटि कऽ निकलैत छथि से कोनो अपन कपड़ा पहिरि कऽ। बैह मंगनिया कपड़ा, महगौआ मारवाड़ी सभक। मारवाड़ी सभक ई कपड़ा रजक भाय दू दिन लेल भाड़ापर हिनका सभकेँ दैत छथिन्ह। कोरैल बुधन आ डोमी साफी, धोवि। डोमी साफी आब डोमी दास छथि, कारण कबीरपंथी जोतै छथि। फेर एकटा आर टोल, चमरटोली अछि। चमार- मुखदेब राम आ कपिलदेव राम। पहिने गामसँ बाहर रहए, बसबिट्टीक बाद। मुदा आब तँ सभ बाॅस काटि कऽ उपटाए देने अछि आ लोकक वसोबास बढ़ैत-बढ़ैत एहि चमरटोली धरि आबि गेल अछि। घरहट आ ईंटा-पजेबा सभ अगल-बगलमे खसिते रहैत अछि। ढोलहो देबासँ लऽ कऽ सिंगा बजेबा धरिमे हिनकर सबहक सहयोग अपेक्षित। गाए-माल मरलाक बाद जा धरि ई सभ उठा कऽ नहि लऽ जाइत छथि लोकक घरमे छुतका लागले रहैत अछि। भोला पासवान आ मुकेश पासवान, दुसाध। गेना हजारीक निचुलका खाड़ीक संबंधी। वएह गेना हजारी जे कुशेश्वर स्थानमे एकटा कुशपर गाए द्वरा आबि कऽ दूध दैत देखने रहथि तँ ओहि स्थानकेँ कोड़ए लगलाह, महादेव नीचाँ होइत गेलाह, सीतापुत्र कुश द्वारा स्थापित ई महादेव गेना हजारीक ताकल।
मुकेश पासवानक बेटी मालती बैंक अधिकारी छथिन्ह आ जमाए मथुरानंद डी.पी.एस. स्कूलक प्रचार्य छथि, वसंत-कुंज लग फार्म हाउसमे रहै जाइ छथि। भोला पासवान आ मुकेश पासवान गामेमे रहै जाइ छथि।
1967ई.क अकालमे जखन सभटा पोखरि, गड़खै सुखा गेल मुदा डकही पोखरि नहि सुखाएल प्रधानमंत्री आएल रहथि तँ हुनका देखेने रहन्हि सभ जे कोना एतए सँ बिसॉढ़ कोड़ि कऽ मुसहर सभ खाइत छथि। चर्मकार मुखदेव रामक बेटा उमेश सेहो ओहि मुक्ताकाश सैलूनक बगलमे अपन असला-खसला खसा लेने अछि, रहैए मुदा किशनगढ़मे। चप्पल, जुताक मरो-म्मतिक अलावे तालाक डुप्लीकेट चाभी बनेबाक हुनर सेहो सीखि लेने अछि। कुंजी अछि तँ ओकर डुप्लीकेट पंद्रह टाकामे। कुंजी हेरा गेल अछि तँ तकर डुप्लीकेट सए टाकामे। आ जे घर लऽ जएवन्हि तँ तकर फीस दू सए टाका अतिरिक्त। मुसहर बिचकुन सदायक बेटा रघुवीर ड्राइवरी सीखि लेने अछि। वसंत कुंजक एकटा व्यवसायीक ओहिठाम ड्राइवरी करैए आ रहैत अछि किसनगढ़मे। डोमटोलीक बौधा मल्लिक बेटा श्रीमंत सेक्टरक मेन्टेन्सक ठेका लेने छथि। हुनका लग दू सए गोटे छन्हि जे सभ क्वार्टरक कूड़ा सभ दिन भोरमे उठेवाक संग रोड आ पार्किगक भोरे-भोर सफाइ करै छथि। एहिमे सँ किछु गोटे विशेष कऽ नेपालक भोरे-भोर लोकक शीसा महिनवारी दू सए टाकामे पोछै छथि आ अखबारक हॉकर बनल छथि। रहै छथि किशनगढ़मे मुदा अपन मकानमे- मुसहर बिचकुन सदाय।
दलित संस्कृतिक प्रति उदासीनताक मुख्य कारण अछि समाजमे पसरल छूति व्यवस्था। ओना तँ एहि प्रकारक अवस्था प्राय: सम्पूर्ण आर्यावर्त्तमे रहल अछि, परंच आन ठामक जनभाषासँ दोसर धर्मक लोकक हृदयगत स्पर्शक कारण दलित संस्कारक चित्रण आन भाषामे मैथिलीसँ वेसी भेटैत अछि। मिथिलामे तँ इस्लाम धर्मी छथि, परंच मातृभाषा मैथिली रहलाक वादो हुनका सबहक मध्य साहित्यक सृजनशीलता उदासीन रहल। एकरा मैथिलीक दुर्भाग्य मानल जा सकैत अछि जे एखन धरि एहि भाषामे दलित वर्गसँ उपजल साहित्यकार उपन्यास नहि लिखि सकलनि। प्राय: यएह स्थिति इस्लाम धर्मी साहित्यकारक संग सेहो अछि। फजलुर रहमान हासमी, मंजर सुलेमान सन साहित्यकार तँ मैथिलीकेँ आत्मसात कएलनि परंच उपन्यासकार नहि बनि सकलाहेँ। ई लिखबाक तात्पर्य जे इस्लाममे जातिवादी व्यवस्था सनातन सांस्कृतिक अपेक्षाकृत न्यून अछि।
दलित वर्गक संख्या मिथिलामे लगभग आठ आना अछि, संपूर्ण समाजक मातृभाषा मैथिली, मुदा शिक्षा-चेतनाक अभावक कारण एहि वर्गमे मैथिली साहित्यक प्रति सृजनात्मक दृष्टिकोण नहि पनपि सकल। आगॉक जातिमे सम्यक् िवचारक अभाव रहल अछि, किछु साहित्यकार एहि परिधिसँ तँ बाहर छथि परंच वर्गक बीचक खाधि लक्ष्मण रेखा बनि हुनको सभमे जनभाषा वाचकक प्रति सिनेह नहि आबए देलक। संभवत: मैथिली आर्यभाषा समूहक पहिल जनभाषा थिक जकरापर जातिवादी कलंक लागल अछि। संस्कृतक संग यएह विडंवना रहल परंच ओ कहिओ जनभाषा नहि रहल। जखन कि मैथिली वर्तमान कालमे सवर्णसँ बेसी दलित-पछातिक मातृभाषा अछि। पलायन तँ सभ जाति समूहमे भऽ रहल अछि परंच मजदूरी केनिहार दलित प्रवासमे सेहो मैथिलीकेँ आत्मसात कएने छथि। एकर विपरीत मिथिलामे रहनिहार सवर्ण परिवारक आधुनिक पिरहीक नेना वर्गमे मातृभाषाक स्थान हिन्दी लऽ रहल अछि। ‘ज्योतिक-कोखि अन्हार’ जकाँ मातृभाषाक वास्तविक संरक्षकक विवेचन एहि साहित्यक उन्नयनक नहि कऽ रहल छथि। उतर विहारक बेस रास स्थानमे पसरल मैथिली तँ कखनो-कखनो मात्र मधुबनी दड़िभंगाक मातृभाषा प्रमाणित कएल जाइत अछि।
रचनाकारक दृष्टिकोण रचनामे किछु आर आ वास्तविक जीवनमे किछु आर रहल। साम्यवादी व्यवस्थापर सियाहीक प्रयोग केनिहार उपन्यासकारमे वास्तविकता जौं रूढ़िवादी रहत तँ सम्यक समाजक कल्पनो करब असंभव। व्यथा वएह बूझि सकैत अछि जकरामे जीवन्त अविरल हृदय हो वा स्वयं व्यथित हुअए।
निष्कर्षत: आशक संग-संग विश्वास अछि जे वर्तमान युगक साहित्यकार समाजक कात लागल वर्गक प्रति सिनेही बनि मैथिली साहित्यकेँ गरिमामयी बनाबथु। पूर्वाग्रहकेँ अनुगृहीत करबाक पश्चात एहेन कल्पना-वास्तविक भऽ सकैत अछि। जौं अपमानित अछोपकेँ सम्मानित कएल जाए तँ मिथिला पुनि ओहि मिथिलामे परिणत भऽ सकैत अछि जतए राजा जनक परिवार, समाज आ राज्यहितमे धर्मक पालनक हेतु राजासँ हरबाह बनि गेलनि।
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पोथी- समीक्षा
भावांजलि-
नैसर्गिक आ आत्मिक भावसँ निकसैत कविताकेँ आशु कविता कहल जाइत अछि। एहि भावक सृष्टि आशुकवि वा आशु कवयित्री मानल जाइत छथि। आशु कवितामे मैथिली साहित्यक स्थान एकात परंच विलक्षण। कवि कोकिल विद्यापति, कविशेखर बदरीनाथ झा, कविवर सीताराम झा, सरस कवि ईशनाथ झा, कवीश्वर चन्दा झा, कवि चूड़ामणि मधुप, कवि सरोज भुवन, यात्री, आरसी, अणु, गोपेश, श्रीमति श्यामा देवी, चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’, रवीन्द्र, सरस, नवल, श्रीमति इलारानी, सुरेश सिंह स्नेही, प्रवासी, विभूति आनंद, प्रदीप मैथिली पुत्र, मणिपद्म, नचिकेता, डाॅ. बुद्धिनाथ मिश्र, राजदेव मंडल, श्रीमति ज्योति सुनीत चौधरी, विलट पासवान विहंगम, हासमी जी, मंत्रेश्वर झा, राजकमल, अशोक दत्त, रूपेश कुमार त्योंथ, जगदीश प्रसाद मंडल, चन्द्रशेखर कामति, उमेश मंडल, कीर्ति नारायण मिश्र, मायानंद मिश्र, कुमार पवन, डाॅ. शंभु कुमार सिंह, श्रीमती मृदुला प्रधान, श्रीमती कुसुम ठाकुर, विवेकानंद ठाकुर, चन्द्रभानु सिंह, कालीकान्त झा ‘बूच’, रमाकान्त राय रमा, डॉ. केदारनाथ लाभ, जय प्रकाश जनक, डॉ. नरेश कुमार विकल, गजेन्द्र ठाकुर प्रभृत आशु कवि आ कवयित्री सभसँ जगमगाइत मैथिली साहित्य सरितामे एकटा चंचला मुदा अर्न्तमुखी नक्षत्रक उदय मैथिली साहित्यकेँ घृतगंधा बनौने अछि- ओ छथि डॉ. शेफालिका वर्मा।
हिनक तृण-तृणमे काव्य धारा अविरल गतिसँ गतिमान अछि। ओना तँ विप्रलब्धा आ मधुगंधी बसात सन कविता संग्रहक रचना कऽ अपन विशेष स्थान बनौने छथि शेफालिका जी। मुदा हिनका एकटा गद्य गीत संग्रह ‘भावंजलि’ मैथिली भाषा साहित्यमे कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोरक स्थान शून्यताकेँ भरबाक लेल पूर्णत: नहि तँ आंशिक रूपेँ अवश्य प्रतीत हएत।
जीवनक वास्तविक संरचना, एति, उदेश्य, दुख-दुख, आश-छोहसँ एहि रचनाक कोनो संबंध नहि। ककरा प्रतीक्षा अनचिन्ह सिनेह, अकथ्य मर्मक अकुलाएल अनुभूतिकेँ एहि गद्य-गीतमे प्रदर्शित कएल गेल अछि- ई संभवत: त्रिवेणीक वाक् धारा जकाँ मात्र अनुभूति एकल जा सकैछ, प्रत्यक्ष दर्शन नहि। स्वभाविक अछि पुष्प, नीर, क्षीर आ अमिय-गुग्गुलक अंजलि तँ देखबाक योग्य होइत अछि, ‘भावांजलि’केँ कोना देखल जाए? हिन्दी काव्य गगनक आत्मा- ‘एक भारतीय आत्मा’क प्रेमक विवेचन असंभव तँ नहि मुदा अति क्लिष्ट- है कौन सा वह तत्व जो सारे भुवनमे व्याप्त है, ब्रह्माण्ड पूरा भी नहीं जिसके लिए पर्याप्त है?
कवयित्रीक हंसिनी मोन विरहक शंकामे जरैत अछि तँ दोसर दिशि मिलनक उन्मादसँ दीिपत अछि। सिनेहिल स्पर्शक आश तँ करैत छथि, मुदा स्पर्शनक कल्पना मात्रसँ सिहरि जाइत छथि। समस्त तन सितारक तार जकाँ झंकृत भऽ जाइत छनि।
एहि सिनेहक विम्व तँ अनमोल मुदा ककरासँ सिनेह? कतहु नाथक रूपेँ भगवान बुझना जाइत छथि तँ कतहु कंतक भान। कतहु स्पर्शनसँ वैराग्य भावक प्रदर्शन तँ कतहु स्पर्शनक आशमे नैका वनिजाराक नायिका जकाँ- ‘उत्ताप प्रेम तिल सुनगि रहल नहि आब ई यौवन अछि वशमे’
मात्र एकावन पृष्ठक पोथीमे राजा भर्तृहरिक नीति, श्रंृगार आ वैराग्य तीनू गोट शतकक दर्शन एहि गद्य गीतकेँ विलक्षण बना देलक।
मृत्युसँ वएह प्रेम कऽ सकैत अछि जे जीवनसँ उवि गेल हो वा जीवनक पूर्णताकेँ देखि नेने हुअए। जाहि कालमे शेफालिका जी एहि पोथीक रचना कएलनि ओहि काल जीवनमे शून्यता तँ नहि छल। पूर्णता एहि दुआरे नहि कहि सकैत छी जे ओहि समएकेँ छोड़ल जाए हिनक लेखनी एखन धरि गतिशील अछि। आब प्रश्न उठैत अछि जे जीवनक गति आ नियतिमे जीवंत नारीक जीवनक कोन अकथ्य व्यथाक चित्रण एहि पोथीमे कएल गेल जे मृत्युक अवाहन कऽ लेली।
एहिठाम तीर्थस्थानक बिम्बक विश्लेषणमे गृहस्थ जीवनकेँ परम तीर्थ स्थल बना देल गेल। कवयित्रीक लघुआत्मामे सभ देव-देवी समाएल अछि।
अंितम पद्यमे संभवत: अपन पतिकेँ अपन इष्टदेवक संग-संग प्रेरणा स्त्रोत, रक्षक, पिता भाय सभ रूपमे मानने छथि। तखन अदृश्य मृगमारीचिका कतऽ सँ आएल?
रचनाक सभटा पक्ष तँ बड़ नीक अछि मुदा दुर्बल पक्ष अछि अनुत्तरित प्रश्न पाठक धरि कोना परसल गेल? ई सत्य अछि जे आदित्यक अंशु सेहो कविताकेँ इजोरिया नहि दऽ सकैत अछि, मुदा एहेन कवित्वक प्रदर्शन समीचीन नहि लागल। भऽ सकैत अछि जे आशु कविताक नवल धारा कवयित्रीक गातसँ स्वत: स्फूर्त रूपेँ अंकुरित भेल हुअए।
भौतिकता आ बौद्धिकतापर सिनेह भारी बुझना गेल। सिनेहक प्रकार भिन्न-अकथ्य सिनेह। स्व. मनमोहन झा’क ‘यात्राक स्मृति’क नायकक दृष्टिसँ सुमित्राक प्रति उपटल सिनेहो एहि काव्य गीतक आगाँ ओछ पड़ि जाइत अछि। अपराध कएलापर अपराधबोध प्रासंगिक, मुदा बिनु अपराध कएने अपराधक लेल क्षमायाचना, ककरासँ क्षमायाचना इहो स्पष्ट नहि।
सम्पूर्ण रचनामे प्रश्न- नव-नव प्रश्न मुदा ककरो दोसर लेल प्रश्न नहि कवयित्री तँ अपन जीवनसँ प्रश्न पुछैत छथि।
हमरा मतेँ देसिल वयनामे ‘भावांजलि’ नव प्रकारक रचना थिक। अपन आत्मासँ साक्षात्कार, निर्विकार ब्रह्माण्डसँ साक्षात्कार......।
पोथीक नाओ- भावांजलि
कवयित्री- डॉ. शेफालिका वर्मा
प्रकाशन वर्ष- 1996
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भफाइत चाहक जिनगी
समीक्षा
संपूर्ण मैथिली भाषामे नाटक विधाक प्रारंभ पंडित जीवन झा कृत नाटक ‘सुन्दर संयोग’सँ सन् १९०४ई मे भेल। एहिसँ पूर्व मैथिलीमे उमापति, रामदास नन्दीपति आदि सेहो नाटकक रचना कएलन्हि, मुदा ओ सभ पूर्ण मैथिलीमे नहि लिखल गेल।
सुन्दर संयोग’सँ लऽ कऽ श्री नचिकेता रचित ‘नो एन्ट्री मा प्रविश’, श्रीमती विभारानी कृत ‘भार रौ आ बलचंदा’ आओर श्री जगदीश प्रसाद मंडल कृत ‘मिथिलाक बेटी’ धरि मैथिली साहित्यमे विविध विधाक नाटकक रास संग्रह उपलब्ध अछि। ओहि समग्र नाटकक मध्य किछु नाटक बड़ लाेकप्रिय भेल अछि ओहिमे- श्री ईशनाथ झा रचित ‘चीनीक लड्डू’ पंडित गोविन्द झा लिखित ‘बसात’ श्री मणिपद्म रचित झुमकी श्री ललन ठाकुर लिखित ‘लौंगिया मिरचाई’ प्रो. राधा कृष्ण चौधरी लिखित ‘राज्याभिषेक’ श्री सुरेन्द्र प्र. सिन्हा रचित ‘वीरचक्र’ श्री महेन्द्र मलंगिया रचित ‘एक कमल नोरमे’ श्री विन्देश्वरी मंडल रचित ‘क्षमादान’ श्री उत्तम लाल मंडल रचित ‘इजोत’ आ श्री गौरीकान्त चौधरी ‘कांत’ (मुखिया जी) रचित ‘वरदान’क संग-संग मैथिलीक मूर्द्धन्य साहित्यकार पंडित सुधांशु शेखर चौधरी रचित ‘भफाइत चाहक जिनगी’ प्रमुख अछि।
स्व सुधांशु जी मूलत: मैथिली साहित्यक उपन्यासकारक रूपमे प्रसिद्ध छथि। अर्थनीतिकेँ आधार बना कऽ लिखबाक शैलीक कारण मैथिलीमे हिनक एकटा अलग स्थान अछि, एकटा कलाकार जौं अपन कलाक प्रदर्शन नाट्य रूपमे करए तँ कोनो अजगुत नहि। हिन्दीमे हिनक लिखल नाटक सभ लोकप्रिय भेल, तेँ अपन मातृभाषामे सेहो नाटक लिखए लगलाह।
भफाइत चाहक जिनगी’मे समाजक सामान्य बिम्बकेँ विलक्षण रूपसँ विम्बित कऽ हास्य आ मर्मक सम्यक् तारतम्य स्थापित कएलन्हि। चाहक जिनगी कतेक क्षणक होइत अछि, भाफ उपटलासँ एकर अस्तित्व लुप्त भऽ जाइछ, मुदा जौं भनसियामे आत्म विश्वास हो तँ ओहि अस्तित्वविहीन चाहमे नीर-क्षीर मिश्रित कऽ ओकर फेरसँ सुस्वादु बनाओल जा सकैत अछि। नाटकक नायक महेशक जिनगी भफाइत चाहक जिनगी जकाँ अछि। एकटा सुशिक्षित व्यक्ति कर्मक प्रतिस्पर्धाक गतिमे सफल नहि भेलापर समाजक अधलाह मानल गेल कर्मकेँ अपन जीवनक डोरि बना कऽ ततेक आत्मबलसँ जीवैत अछि जे दीर्घसूत्री दृष्टिकोणक लोक सेहो एकरा लग नतमस्तक भऽ गेल।
नाटकक कथा चेतना समिति पटनाक कार्यक्रमक मध्य धुरैत अछि। महेश चाहक स्थायी विक्रेता छथि, मुदा अधिक विक्रीक आशक संग मिथिला-मैथिलीसँ सिनेहक दुआरे त्रिदिवसीय कार्यक्रममे अपन दोकान लगौलनि। हुनक दोकानक पांजड़िमे गेना जीक पानक दोकान, मात्र मैथिलीक पावनि धरिक लेल। सम्पूर्ण नाटक एहि दू दोकानक दृश्यमे विम्वित अिछ। चेतना समितिक कार्यक्रमक प्रदर्शन मात्र नेपथ्यसँ कएल गेल।
महेश-गेनाक शीत वसंतक वसातक संयोग जकाँ वार्तालापक क्रममे कार्यक्रमक कार्यकर्त्ता गोपालक प्रवेश। हिनक उद्येश्य चाह पीबाक संग कार्यक्रममे चाह पहुँचएवाक सेहो अछि। पान मंचपर अवश्य चाही, किएक तँ ई मैथिल संस्कृतिक प्रतीक अछि। गोपालक संग दिगम्वरक गप्प-सप्पमे अनसोहॉत कटाक्ष शैलीक विवेचन नीक वुझना जाइत अछि। अध्ययन सम्पन्न कऽ लेलाक पश्चात् दिगम्बर बावूकेँ नौकरी नहि भेटलन्हि। पटनामे दस दुआरि बनि पेट पोसि रहल छथि परंच महेशक चाह बेचवासँ ओ संतुष्ट नहि, हुनका गामक महेश चाहक दोकान खोलि गामक नाक कटा रहल अछि। वाह-रे मैथिल! भीख मांगि कऽ खाएव नीक, ठकि कऽ जीएव नीक मुदा छोट कर्म नहि करव। महेश तँ चाह बेिच कऽ अपन परिवारक प्रतिपाल करैत छथि, दू गोट बारह बरखक नेनाकेँ रोजगार देने छथि, मुदा दिगम्वर बावूकेँ अपन यायावरी जीवन नीक लगैत छन्हि। मुँहगर जे स्वयं अकर्मण्य हो ओ गोंग कर्मक पुरूषकेँ दूसय तँ की कहल जाए? महेश चुप्प नहि रहलाह, अपन कर्मक गतिक आड़िमे दिगमबरकेँ सत्यसँ परिचए करा देलनि। ओना ई दोसर गप्प जे महेशो अपन पितासँ असत्य बजने छथि। हुनक पिताकेँ ई वूझल छन्हि जे महेश पटनामे नौकरी करैत अछि।
महेश मिथ्या बजलनि मात्र अपन पिताक मानसिक संतुष्टिक लेल, किएक तँ पुरना सोचक लोक अपन ठोप-चाननेटा पर विश्वास करैत छथि, वरू भुक्खे मरि जाएव मुदा विजातीय ओछ कर्म नहि करव।
नाटकक देासर प्रमुख पात्र छथि उमानाथ आ चन्द्रमा, एकटा अकाश आ दोसर धरित्री। उमानाथ अभियंता छथि, नाओ टा लेल मैिथल, कार्यक्रम देखवाक लेल नहि अएलनि, मात्र अपन ंसगी सभसँ भेँट करवाक दुआरे चेतना समितिक दर्शक दीर्घा मे अशोकर्य लऽ कऽ पैसलनि। अपन कनियाँ चन्द्रमा टा सँ मैथिलीमे गप्प करैत छथि। की मजाल केओ देासर हुनका संग मैिथलीमे गप्प करवाक दु:साहस करए, ओकरा अपन सामर्थ्य देखा देताह। दुनू परानी चाह पीवाक क्रममे महेशक दोकानपर अबैत छथि, चाह बनल नहि की उमानाथ जीकेँ कोनो संगीपर नजरि पड़ि गेलनि। कनियाकेँ महेशक दोकानपर छोड़ि ठामे पड़ा गेलाह। यथाक्रममे मंचसँ महेश जीकेँ कविता पाठ करवाक आग्रह आएल। चन्द्रमा जीकेँ बिनु दामे दोकानक ओरवाही दऽ ओ मंचस्थ भऽ गेलाह। चन्द्रमा अजगुतमे पड़ि गेलीह, चाहक विक्रेता आ कवि? कालक लीला विचित्र लगलनि। दोकानपर गाहकि सभ आवए लागल, चन्द्रमा भावावेशमे पड़ि चाह बनावए लगलीह। गंगानाथ आ दयानंद सन गाहकिकेँ चाह विक्रेता कवि पचि नहि रहल छल। समितिक मंच हुनका लोकनिक मतेँ गनहा गेल। हरिकान्त बावूकेँ आधुनिक रूपक कार्यक्रम नीक नहि लागि रहल छनि, तँ शिवानंदकेँ पुरातन संस्कृतिसँ कोनो मोह वा छोह नहि। एहि मध्य उमानाथ बावू चन्द्रमाकेँ तकैत दोकानपर अएलाह। अपन कनियाकेँ चाह बनवैत देखिते माहुर भऽ गेलथि। छोड़बाक जिद्द कएलनि मुदा मैथिल नारी अपन उतरदायित्वसँ कोना भटकि सकैत अछि? एक खीरा तीन फॉक! बिगड़ि कऽ फेर पड़ा गेलाह। मोने-मोन महेशपर अगिनवान बरिसबैत छलथि। चन्द्रमा सेहो संकटक अवाहानमे सशंकित मुदा की करतीह? एक दिश भाव आ दोसर दिश कर्त्तव्य वोध, “आँखिक तीरक विख पानि नोर बनि झहड़ल हृदय झमान भेल।”
कथाक अंतिम वनिता सरिताक कंठ चाहक लेल सुखए लागल तेँ अपन नोकर आ छोट नेनाक संग महेशक दोकानपर अबैत छथि। कविकाठी महेश कविता पाठ कऽ फेर अपन जीवनकेँ गुनि रहल छथि। सरिताकेँ देखिते स्वयंमे नुकएवाक असहज प्रयास करए लगलनि। वएह सरिता जे कहियो महेशक सह पाठिनी छलीह, आव एकटा आइ.ए.एस. अधिकारीक अर्द्धांगिनी छथि। सरिता महेशसँ साक्षात्कार करबाक प्रयास कऽ रहलीहेँ। महेश अपन भूतकालकेँ झॉपए चाहैत छथि मुदा सरिता घोघट कालक वऽर जकाँ ओकरा उधारि रहल छलीह। हुनक उद्येश्य सिनेहिल अछि तेँ महेश टूटि गेलाह। सरिता अश्रुधारसँ सिचिंत, जकर नोट्स पढ़ि अध्ययन पथपर बढ़ैत रहलीह ओ एहेन दशामे पहुँच गेल। चन्द्रमा सरिताक मोहमे विचरण करए लगलीह। एहि मर्मस्पर्शी क्षणक अंत भेल नहि की उमानाथ आवि महेशक गट्टा पकड़ि वास्तविक जीवनकेँ दर्शन कराबए लगलाह। चन्द्रमा एहि क्षण महेशक संग दऽ रहल छलीह।
मैथिली साहित्यक लेल सभसँ विलग नूतन विषय वस्तुक मार्मिक विश्लेषणमे शेखर जीक अतुल्य प्रतिभाक झलक अनमोल अछि। पूर्ण रूपसँ एकरा नाटक नहि कहल जा सकैछ, किएक तँ दीर्ध एकांकीक रूपमे लिखल गेल अछि। कथाक चित्रण मात्र दू दोकानक परिधिमे भेल अछि तेँ दृश्य समायोजनमे कोनो प्रकारक विध्नक स्थिति नहि, सरिपहुँ एकरा शेखर जी नाटकक रूपमे प्रदर्शित कएलनि। महेश सन चरित्र हमरा सबहक समाजमे छथि, मुदा कर्त्तव्यबोधक एहेन पुरूष जौं मिथिलामे सभ ठाम होथि तँ हम सभ साधन वििहन रहितहुँ सम्यक जीवनक रचना कऽ सकैत छी। चन्द्रमा सन दीर्घसोची नारीक विवरणमे वास्तविकतासँ वेशी कल्पनाक आभास होइत अछि। नाटकक आत्मकथ्यमे शेखर जीक आत्मविश्वाससँ वेशी अहंकारक दर्शन भेल। ‘नाटकक क्षेत्रमे हमर किछु मोजर अछि’ सन उक्तिक संग बटुक भाय आ गजेन्द्र ना. चौधरीक प्रति कृतज्ञता ज्ञापनमे महिमा मंडनक भान श्ोशर जीक संस्कारपर बुझना जाइछ। केओ ककरो प्रेरणासँ रचनाकार नहि भऽ सकैत अछि, ई तँ नैसर्गिक प्रतिभाक परिणाम थिक। मुदा एहिसँ ‘भफाइत चाहक जिनगी’क मर्यादाकेँ क्षीण नहि बुझना जा सकैत अछि। मात्र छोट-छोट ३९ पृष्ठक नाटक (ओहुमे सँ आठ पृष्ठ विषय वस्तुसँ बाहरक) मैथिली साहित्यक लेल मरूभूमिमे नीरक सदृश बनल दृष्टिकोणकेँ परिलक्षित करैत अछि। एिह प्रकारक बिम्बक सृजन शेखर जी सन मांजल रचनाकारेसँ संभव भऽ सकैछ। निष्कर्षत: मिथिलाक संस्कृतिक मध्य कर्म प्रधान युगक आचमनिसँ नाटक ओत-प्रोत अछि। मात्र साहित्यक नहि, मंचनक लेल पूर्णत: उपयुक्त लागल।
नाटक- भफाइत चाहक िजनगी
रचनाकार- पं. सुधांशु शेखर चौधरी
प्रथम संस्करण- नवम्वर १९७५
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