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शिवकुमार झा टिल्लू
रमाजीक काव्य यात्रा
मैथिली साहित्यक काव्य धरातलपर किछु एहेन कविक पदार्पण भेल अछि जनिक समर्पण आगाँ साक्षा्त सरस्वती मूक भेल छथि ओइ साहित्यिकारक समूहमे श्री रमाकान्त राय रमा'क नाओं सम्मानसँ लेल जाइत छन्हि। 5 जनवरी 1947 ई.केँ समस्तीपुर जिलाक विभूतिपुर प्रखण्डक मानाराय टोलमे रमाजीक जन्म भेलन्हि। म.वि. दलसिंहसरायमे शिक्षकक रूपेँ प्रथमत: योगदान देलन्हि आ अवकासग्रहण उ.वि. शिरोपट्टी खतुआहाक शिक्षकक रूपमे कएलनि। संस्कृत साहित्यमे आचार्य आ विशारद्सँ विभूषित रमाजी मैथिली आ हिन्दीमे कविता अपन छात्र कालहिंसँ लिख रहल छथि। कविताक संग-संग गद्य साहित्यमे सेहो हिनक किछु योगदान छन्हि। एकटा कथा संग्रह कटैत पाॅखि : हँसैत आॅखि तीनिटा बबाजी (अनुदित कथा)क संग संग विविध पत्र-पत्रिकामे हिनक कथा, निवंध आदिक प्रकाशन भेल। एकटा निवंध संकलन कूटल-छॉटल आ एकटा नाटक घर-छोड़ू िहनक अप्रकाशित कृति छन्हि।
रमा जीक पहिल कविता 1964ई.मे मिथिला भूमिक प्रति समर्पण भावसँ मिथिला महान शीर्षक रूपेँ इलाहावादसँ प्रकाशित बटुक पत्रिकामे प्रकाशित भेल छल। लगभग एक सयसँ ऊपर कविता लिख रमाजी एखन धरि साहित्य धारामे गोंता लगा रहल छथि। ऐ यात्राक क्रममे मैथिलीक कोपभाजन सेहो भेलाह। सन् 2007ई.मे साहित्य अकादमी आ मैथिली साहित्य संस्कृति विकास परिषद् समस्तीपरुक संयुक्त तत्वावधानमे रमाजी अपन जन्मभूमि मानाराय टज्ञेलमे काव्य संध्या आयोजित करवाक रूोजना बना रहल छलाह। ऐ क्रममे मैथिली साहित्यक वयोवृद्ध साहित्यकार श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमर जीसँ भेँट करबाक लेल दरिभंगा जा रहल छलाह। यात्राक क्रममे अपन गृह स्टेशन नरहनमे रेलगाड़ीसँ पिछड़ि गलथि आ हिनक दहिना पाएर नीचासँ कटि गेलनि। एहेन समर्पणसँ ककर हृदए नै पिघलि जाएत.....।
अमरजी अपन आत्मकथा अतीत मंथन'मे ऐ घटनाक उल्लेख कएने छथि। अस्पतालसँ छुट्टी भेटलापर रमाबाबू चुप नै बैसलनि आ हिनक इच्छा पूर्ण भेल। 8 जून 2008केँ मनारय टोलमे काव्य संध्या'क आयोजन कएल गेल। श्री चन्द्रभानु सिंह कवि सम्मेलनक अध्यक्षता कएलनि। उद्घाटनकर्ताक रूपमे अमरजी आ साहित्य अकादमीक प्रतिनिधिक रूपमे मैथिली परामर्शदातृ समितिक अध्यक्ष श्री विद्यानाथ झा विदित जी उपस्थित भेल छलाह।
मात्र एतबे नै विकलांग भऽ गेलाक पश्चात् रमा जीक इच्छा शक्ति आ समर्पणमे कोनो कमी नै आएल, एखनहुँ अपन अर्द्धांगिनीक संग सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्रक काव्य गोष्ठी आ कथा गोष्ठीमे उपस्थित होइत छथि। एखन धरि हिनक दू गोट काव्य संकलन प्रकाशित भेल अछि- फूल पात आ भांगक गोला।
फूलपात- 1978मे पल्लव प्रकाशन, मानारय टोलसँ प्रकाशित फूलपात'मे 15 गोट कविता संकलित अछि।
यस्याप्रभावमतुलं भगवानन्तो'क नीतिक आधारपर पहिल कविता वंदना मातृभक्तिसँ ओतप्रोत अछि। देशज छेहा मैथिलीमे आवश्य तत्सम मिश्रित संस्कृतसँ बनाओल गेल। स्वाभाविक अछि साहित्यक ज्ञाताक शब्द तत्समसँ दूर कोना भऽ सकैछ?
अथिर थिर नर-नारि उर जे
प्रणय लय सिरजन
मिथ्ज्ञिला वंदना मातृभक्तिक पश्चात् जन्मभूमिक प्रति निष्ठाकेँ देखबैत अछि।
स्वागत सहर्ष हे जनक देश
गौलनि गुण जकर रमा निवेश
शंकर विमुग्ध सुनि शुकक गान
हे धन्य-धन्य मिथिला महान....।
'जमकल रस सिंधु' कवितामे रीतिक दर्शन तँ भेल मुदा छन्द आ लयक प्रवाहमे कवि ई विसरि गेलनि जे कवितामे मैथिलीमे लिखने छथि आकि हिन्दीमे-
मगन चलय मन्द मन्द
मादक मधुमय मिलिन्द
मंजु मुकुल मृदु मरन्द
वासन्ती मलयानिल.....
स्वाभाविके अछि जे मैथिली साहित्यकमे ई धारणा भऽ गेल अछि जे जै पद्यक अर्थ सामान्य पाठक नै लगा सकैत छथि ओ उत्तम पद्य मानल जाइत अछि, तँए संभवत: कवि ऐ कविताक रचना मात्र प्रबूद्ध रचनाकारकेँ अपन लेखनीक धारासँ मुग्ध करबाक लेल लिखलनि, सामान्य पाठक लेल ऐ रचनाकेँ कोनो रूपेँ उपयुक्त नै मानल जाए।
बाजल प्रणय वेणु कविताकेँ सरस श्रंृगार पद्य मानल जा सकैछ। बसन्त गीत कविताकेँ आरसी प्रसाद सिंह जकाँ प्रकृतिक मनोरम चित्रण करबाक प्रयास तँ कएल गेल मुदा विश्लेषण औसत मात्र भेटल-
मलयानिल नित भोरे सँ बहि
भेल िवकल जगत भरि की कहि?
सुनि-सुनि ऑचर ससरय
कुसुमित कानन कण-कण विहुंसय।।
हम अजेय सरल क्रांति गीत बुझना जाइत अछि। डूबैत तरेगन'मे पाक आ बांगला देशक प्रसंगक उल्लेख कएल गेल अछि। जौं ऐ बिम्वकेँ कविताक स्थानपर कथा रूपमे प्रदर्शित कएल गेल रहिताए तँ अवश्य नीक भऽ सकैत छल।
शरद निशा' कविताक बिम्व आ विश्लेषण दुनू प्रासंगिक अछि। मुदा एकटा बात खटकि रहल अछि जे जखन ऐ कविताक प्रकाशन फूूलपातमे 1978ई.मे रमा जी कएलन्हि तँ पुन: कर्णामृत त्रैमासिक पत्रिकाक नयना जोगिनी अंक अक्टूबर-दिसंबर 2009मे िकए प्रकाशन हेतु पठा देलन्हि। ऐ सँ कविक अपन रचनाक प्रचार-प्रसारक प्रति अविश्वसनीयता झलकैत अछि। जौं एना कएलन्हि तँ संग्रहक प्रति साभार लिखि देबाक चाही।
ओनी-मानी' कविता बालमनोविज्ञानकेँ नीक जकाँ देखबैत अछि-
अएथुन तोहर बाबू बौआ
कौआ बाजय कॉव-कॉव
रूसि रहव जँ अखनहिसँ तऽ
के देतन पीढ़ी खरॉव....।
पीढ़ीक स्थानपर पिरही लिखवाक चाही छल।
'नहि आयल चिर चोर' कविता विद्यापतिक श्रृंगार रससँ ओत-प्रोत रचना जकाँ लिखवाक प्रयास कएल गेल मुदा रमाजी होथु वा केेओ आन महाकवि विद्यावतिक नकल करवाक प्रयास नहि करबाक चाही।
ग्रीष्म ऋृतु आ पावस गीत सेहो सामान्य मानल जा सकैत अछि।
भांगक गोला- भांगक गोला रमाजी हिन्दी साहित्यक महाकवि हरिवंश राय वच्चन जीक मधुशालासँ प्रेरित भऽ कऽ लिखने छथि। ऐ रचनाक प्रकाशन नवंवर 2004ई.मे भेल। चारि खण्डक ऐ रूबाई संग्रहमे पहिल खण्ड ओरिआओन, दोसर भांगक गोला तेसर धोनइ धांइन आ चारिम परिशिष्ट अछि।
एे प्रकारक नूतन प्रयोगकेँ कोन रूपेँ देखल जाए एकर िनर्णए पाठकपर छन्हि मुदा अन्तर्मनसँ कएल गेल कविक प्रयासक हम सराहना करैत छी। ऐ संग्रहमे सभसँ नीक लागल अपन देसिल वयनामे कविक मनोवृत्तिक सहज प्रदर्शन-
स्वीकार करू हम चढ़ा रहल छी
अपन पहिल भांगक गोला।
रमा जीक दुनू काव्य संकलनक दृष्टिकोण आ विश्लेषणसँ पाठककेँ की भेटल ऐसँ बेसी महत्वपूर्ण अछि हिनक साहित्य समर्पण।
अपन रचनासँ पाठकक हृदएकेँ स्पर्श करथु वा नै मुदा साहित्यक दधीचि बनि रमाजी मैथिली आ मिथिलाक आत्मामे अवश्य प्रवेश कऽ गेल छथि।
५
धीरेन्द्र कुमार श्रीमती प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि-
मैथिली साहित्यमे पहिल बेर श्रुति प्रकाशन, नई दिल्लीसँ प्रकाशित िचत्रकथा उमेश जीक माध्यमसँ भेटल। साहित्य पूर्ण तखने होइत अछि जखन साहित्य सभ विधामे लिखल जाए आ रचना प्रौढ़ होइ। हमर दृष्टिमे चित्रकथामे प्रीति ठाकुरक रचना मैथिली लोक-कथा आ गोनु झा आन मैथिली िचत्रकथा, सफल रचना थीक।
लेखिका धन्यवादक पात्र छथि, एहि कारणे जे मैथिली दिसि हुनक दृष्टि गेलनि। दोसर कारण ई जे मैथिलीक विरासतमे जे कथा लोकमुखमे सुरक्षित अछि तकरा ओ लेखनिक रूप प्रदान कऽ मैथिलीक चित्रकथा विधा जे नगण्य सन अिछ- ताहिकेँ समृद्ध करक प्रयास केलनि अछि।
मैथिली चित्रकथामे ‘मोती दाइ, राजा सजहेस, बोधि-कायस्थ, बहुरा गोढ़िन नटुआ दयाल, अमता घरेन, दीना भदरी, जालिम सिंह, नैका बनिजारा, रघुनी मरड़, विद्यापतिक आयु अवसान आ गोनु झा आ आन मैथिली चित्रकथामे प्रकाशित अछि ‘गोनु झा आ माँ दुर्गा, गोनु आ स्वर्ग, गोनु आ स्वर्ण चोर, गोनु झा आ विलाड़ि, गोनु झाक दूटा बरद, गोनु झाक महीस, गोनु झाक अशर्फी, गोनु झा आ कर अधिकारीक दाढ़ी, गोनु झाक माए, रेशमा चूहड़मल, नैका बनिजारा, भगता ज्योति पजियार, महुआ घटबारिन, राजा सलहेस, छेछन महराज, राजा सलहेस आ कालिदास।
सभटा कथा मिथिलाक धरतीसँ सम्बद्ध अछि आ एखन धरि लोक मुखमे सुरक्षित अछि। समैएक परिवर्तन संगे लोक रूचि आ लोक संस्कारमे परिवर्त्तन सेहो होइत अछि। अपन देशक गप्प लिअऽ। आइ पोथीमे सुरक्षित अछि आयुर्वेद विद्या, यूनानी विद्या, होमयोपैथी आ कतेक रास ज्ञानसँ समर्पित विद्या। जँ पोथीमे सुरक्षित नहि रहत तखन अगिला पीढ़ी एहि विद्यासँ अनभिज्ञ रहि जाएत। तेँ हमर मिथिलामे जे कथा पसरल अछि ओकरा पोथी स्वरूपमे प्रदान कऽ प्रीति ठाकुर जी प्रशंसनीय काज केलनि अछि। वीरवलक कथा भऽ सकै छल जे लोक विसरि जाइत मुदा पोथी स्वरूपमे रहलासँ आइ धरि ओ लोक-मानसक रंजनक माध्यम बनल अछि।
चित्रकथाक अपन महत्व होइत अछि। वाह्य-सँप्रेषणसँ जे प्रभाव वंचित रहि जाइत अछि ओ सँप्रेषित होइत अछि चित्रसँ। नाटकमे अभिनयसँ जे सँप्रेषित नहि होइत अछि ओ सँप्रेषित अछि रंग, ध्वनि आ प्रकाशसँ तहिना चित्रकथामे सेहो होइत अछि। प्रसुत आलोच्य पोथीक चित्र सशकृ अछि।
वाल साहित्य लेल ई काज प्रति जीक सराहनीय छन्हि। चारि वर्खक नेना जेकरा अक्षर बोध नहियो छै सेहो कथाकेँ परेख सकैए। चित्रक माध्यमसँ। वाल साहित्यक जे अभाव अपना मैथिलीमे अछि ताहिपर बड़का-बड़का विद्वानक अछैत थोड़ेकवो ध्यान नहि देल गेल छल आ खास कऽ एहि तरहक।
पोथी आकर्षक, रूचिकर आ बालमनकेँ प्रभावित करैत अछि। एहि लेल हम फेर एक वेर श्रीमती प्रीति ठाकुरकेँ धन्यवाद दैत छिएनि। संगे आशा करब जे आगाँ सेहो एहि तरहक काज करथि।
६
जगदीश प्रसाद मंडल कथा
कतौ नै
चारि-पाँच बर्खसँ जनकपुरक विवाह पंचमी देखैक विचार मनमे उठैत रहल मुदा माए कहैत- “अखन बाल-बोध छह कतौ हरा-तरा जेबह।”
माइयक बात नीक नै लगाए। हुअए जे जहिना गाम घरमे लोक नै हराइए तहिना ओतौ किअए हराएत? ई नै बुझिये जे ओइठीन दूर-दूरक लोक देखए अबैए। जैसँ भीड़-भाड़ बढ़ि जाइ छै। भीड़े-भाड़मे बालो-बोध आ चेतनो हराइत अछि। चौदहम बर्ख टपिते पनरहम शुरूहेँमे अगहन इजोरियाक पंचमी आएल। गामक लोकमे मेला देखैक सुन-गुनी शुरू भेल एक्के-दुइये सौंसे गाम पसरि गेल। एक गामक कोन बात सगतरि भेल। हमहूँ सुनलौं। माइयक बात मन पड़ल। भलहिं भोट खसबै जोकर नै भेलौं मुदा बालो मजदूर जोकर तँ नै रहलौं। हराइयो जाएब तँ की हेतै? अपन खेवा-खरचा ने तीनिये दिनमे सधि जाएत मुदा तैयो तँ कमाइत-खटाइत, खाइत पीऐत दस दिन पछातियो तँ आबिये जाएब। आशा जगल। विसवास बढ़ल। माएकेँ कहलिएनि- “गामक लोक उनटि कऽ जा रहल छथि, हुनके सभ सेने हमहूँ जाएब।”
माए किछु बजली नै। एतबे बजली- “नुआ-बस्तर खीच लिहह।”
माएक बात सुनि विसवास भऽ गेल। मनमे उठल टिकुला बीआ जकाँ थोड़े खिच्चा छी, भलहिं पाकल जकाँ सक्कत आँठी जकाँ नै भेलौं मुदा कोशाएल जकाँ तँ जरूर सकता गेल छी।
अगुआएल-पछुआएल दुआरे गामक बीच यात्रीक गिनती नै भेल। ओना गिनतीक महत्व बुझबो ने करिऐ। गामक सीमानपर पहुँचते अगिला यात्री रूकि कऽ पछिला सभकेँ हाथक इशारासँ शोरो पाड़थिन आ आँखि उठा-उठा देखबो करथि। हमहूँ पहुँचलौं। पतराइत रस्ता देखि गिनती हुअए लगल। मर्द-औरत मिला सत्ताइस गोरे भेलौं। गिनतीमे सभसँ उमेरगर सुचिता दादी रहथि। बजलीह- “सभ कियो सुनि कऽ कान धड़ब। तीर्थ-वर्त करए जाइ छी तँए रस्ता-पेरामे ककरो कोनो चीज बौस नै छूबै, झूठ-फुस बाजि ककरो ठकबै नै। भाए-बहीन जकाँ सभकेँ बुझबै आ कियो अगुआ-पछुआ जाएब तँ ठाढ़ भऽ कऽ संग करैत चलब।”
दादी गप्पक असरि भेल। सभसँ कम उमेरक रही। बिना कहने-सुनने कफलाक टहलू बनि गेलौ। दादी सुचिताकेँ कहलिएनि- “दादी, अपना कम्मे समान एक अढ़ैया चूड़ा आ कपड़ा झोरामे अछि, अहाँकेँ भारी लगैत हएत लाउ नेने चलै छी।”
बात सुनि दादी छिट्टा भरि असीरवाद दैत अपन मोटरी देलनि। मोटरीक संग दादी अपन पुरना खेरहा सभ कहैत चलए लगलीह- “बौआ, अहिना कुशेसर जाइत रही। नियारैत तीन बर्खसँ घरमे गाइयक घी पड़ल रहै। कन्ना चौदह कोस डेरहे दिनमे चलि गेलौं से बुझबे ने केलिऐ। तै दिनमे समरथाइयो रहए।”
“कतऽ-कतऽ गेल छिऐ दादी?”
कनी काल गुम रहि मन पाड़ि बाजए लगली- “अपन गाम तीनू स्थान- दछिनमे कुशेसर पूवमे सिंहेसर आ उत्तर-पछिम जनकपुरक बीचमे पड़ैए। कनिये रास्ताक तड़पट हेतै। हँ, तँ कहए लगलियह, एहिना आठ-नअ गोटेक कफलामे सिंहेसर स्थान विदा भेलौं। अखैन तँ चढ़न्त जाड़ अछि मुदा शिवरातिक समए जाड़ फटऽ लगैत अछि। सबहक विचार भेल जे घोघरडिहा तक टेनसँ जाएब, फेर सुपौल तक पाएरे जाएब आ सुपौलसँ बस पकड़ि जाएब।”
बिचहिमे पुछलिएनि- “कोसी धार सेहो टपए पड़ल हएत किने?”
“हँ, हँ। पहिने टेनक बात सुिन लाए। जखन गाड़ीमे चढ़लौं तँ खाली सीट सभ देखलिऐ। दुनू कातक सीट मिला कऽ तीन-चारि गोरे बैसल रहै। हमरो सभकेँ जगह भऽ जाएत। मुदा तेहन ऐंठल सभ रहै जे नहिये बैसए देलक। पुरूख सभसँ मुँह कन्ना लगैबतौं। सभ स्त्रीगणे रही।”
“किअए ने बैसए देलक?”
“तेहन-तेहन छुद्दर पुरूख सभ भऽ गेल अछि जे ककरोमे पुरूखपाना छइहे नै। अपना अइठीनक पुरूख अनको माए-बहीनकेँ अपन बुझैत अछि ओइ इलाकाक थोड़ै बुझै छै। ठाढ़े भेल घोघडिहा तक गेलौं। निच्चामे बैसबो करितौं से तते सिकरेट-बीड़ीक अधजरूआ टुकड़ी आ चीनिया बदामक खोंइचा रहै जे बैसैक परपन नै भेल।”
“मोटरी की केलिऐ?”
“मथेपर रखने गेलौं। उपरका सीटपर गेंड़ा जकाँ दूटा मुनसा सुतल रहै किन्नो नै मोटरी रखए देलक। जखन कोसी धारमे नओपर चढ़लौं तखन फेर घटवारक संगे कहा-कही हुअए लगल। मुदा बाबापर सुरैत लगा कहुना पहुँच गेलौं।”
स्टेशन पहुँचते गप-सप्प बन्न भेल। गाड़ी आएल सभ कियो चढ़ि गिनती कऽ जयनगर पहुँचलौं। जयनगर प्लेटफार्म यात्रीसँ भरल। तिल रखैक जगह नै। मुदा एते विसवास भऽ गेल जे एते दूर देखलो भइये गेल। आब तँ बालो-बोध नहिये छी जे बिसरि जाएब। जँ कहीं छुटियो जाएब आकि हराइयो जाएब तैयो घुरि कऽ गाम चलिये जाएब।
नेपालक गड़ियो छोट आ इंजिनो कमजोर मुदा तैयो निच्चा-ऊपर लादि यात्रीकेँ पहुँचाइये दैत अछि। गाड़ीमे चढ़ै-दुआरे कते यात्री एक स्टेशन पाएरे चलि उनटामे चढ़ि पहुँचैत छथि। मुदा सीमा कखन टपलौं से बुझबे ने केलौं। लोको एक्के रंग आ बोलियो तहिना। जनकपुर पहुँच गेलौं।
यात्री देख मन उधिया गेल। मन मानि गेल जे ऐ भीड़मे कतौ जरूर हराइये जाएब। मुदा लोकक भीड़मे लोक अपनाकेँ हराएल कोना बुझत। सभ तँ लोके छी सबहक मुँहमे बोलो अछिये। सभ तीर्थे करए आएल छथि तखन हराइक प्रश्न कत? मुदा तैयो मन थरथराइते रहए। फेर भेल जे हराएब तखन ने, आ जे नै हराइ। तैले अनेरे चिन्ता किअए करै छी। खाइत-पिबैत एक फेरा लगबैत तीन बजि गेल। विवाहक प्रकरण तँ रातिमे हएत मुदा विवाह होइक कारण तँ धनुष टूटब अछि। तँए पहिने धनुखा जाएब उचित हएत। धुमैत-फिड़ैत एक ठाम बैस सभ विचारए लगलौं। विवाह प्रकरण देखए एलौं अखन धरि बरिआतियो पछुआएले अछि। पछुलके धरमशल्लामे अॅटकल अछि। ऐठाम अबैमे चारि-पाँच घंटा लागत। से नै तँ अपनो सभ ताबे धनुखासँ भऽ आबी। एक स्वरमे विचार भेल। बसक भाँजमे विदा भेलौं। सभ आगू-आगू हम आ दादी पाछू-पाछू। यात्रीकेँ देखबैत दादी बजलीह- “बौआ, तँू ने अखैन तक दोसर कोनो स्थान (तीर्थ) नै गेल छह। मुदा हम तँ बहुत ने देखने छिऐ।”
एते बात सुनिते मनमे भेल जे दादी कोनो ठेकनगर बात कहए चाहैत छथि। हूँहकारी दैत कहलिएनि- “हँ से तँ ठीके। अखैन हमरा भेबे की कएलहेँ, जनमि कऽ ठाढ़ भेलौंहेँ।”
आगू दादी बजलीह- “देखहक ई स्थान भगवान राम आ सीताक छिअनि। अयोध्यावासी राम आ मिथिलाक जनकक कन्या सीता। दुनूक मिलन स्थल छी। तँए देखै छहक जे सभ रंग यात्रियो अछि आ स्त्रीगण-पुरूखमे बेराओल हेतह जे पुरूख बेसी अछि आकि स्त्रीगण। तहिना देखै छहक जे सभ रंगक मुँह-कानबला यात्री अछि। ककरो मान-अपमानक बात अछि। मुदा आन-आन स्थानमे से कहाँ देखवहक। जहिना एक चलिया लोक तहिना एक चलिया चालि।”
मैक्सीपर बैस सभ धनुखा विदा भेलौं। घंटा भरि लगैत-लगैत धनुखा पहुँच गेलौं। गाड़ीक ड्राइवर आ खलासी उतड़ि देखबए विदा भेल। मंदिरक हाताक भीतर पहुँचते ड्राइवर बाजल- “भगवान राम जे धनुष तोड़लनि ओ तीन टुकड़ी भऽ गेल। एक टुकड़ी एतै खसल। सएह स्थान छी। देखै छिऐ धनुषेक टुकड़ी छिऐ किने?”
दर्शन केलहुँ। सबहक विचार भेल जे बिना किछु खेने-पीने आ सनेस नेने कोनो जाएब। हमहूँ चाह पीब पान खेलौं आ हनुमानी बद्धी कीन कऽ गरदनिमे पहिर लेलौं। किरिन डुबि गेल। मुदा ककरो धड़फड़ी नै। किएक तँ घंटा भरि जाइमे लागत आ आठ बजेमे बरिआती दुआर लागत।
गाड़ी चलल। करीब चािर माइल आगू बढ़ल आकि अपने ठाढ़ भऽ गेल। पंचमीक चान, ओसेसँ घेराएल। झल-अन्हार। गाम-घर कतौ ने देखिऐ। बीच पाँतरमे गाड़ी रूकल। ड्राइवरो आ खलासियो रिन्च-हथोरी निकालि ठोक-ठाक शुरू केलक। हमहूँ सभ गाड़ीसँ उतड़ि देखए लगलिऐ। ठोकि-ठाकि ड्राइवर गाड़ीमे बैस चलबऽ चाहे तँ चलबे ने करै। फेर उतड़ि कऽ ठोकै मुदा फेर ओहिना होय। समए बीतल जाए। मोवाइल देख ड्राइवर बाजल- “आठ बजल।”
दुआर लागबक समए बुझि सुचिता दादी बजली- “कतऽ एलौं, ते कतौ ने?”
मन हुअए जे कहिऐ- पाइ घुमा दाय। दोसर गाड़ीसँ चलि जाएब। इजोरियो डूबि गेल। दिसम्बरक अंतिम समए तँए जाड़ो बढ़ैत जाए। मुदा सभकेँ ओढ़ना रहबे करै, ओढ़ि लेलौं। होइत-हबाइत भोरमे गाड़ी ठीक भेल। घुमि कऽ जनकपुर एलौं। ताबे विवाहक सभ प्रक्रिया समाप्त भऽ गेल छल। रौतुका जगरनासँ यात्रियो सभ ओंघाएल। हमहूँ सभ तहिना रही।
यात्री सभ ट्रेन पकड़ि घुमए लगलाह। हमहूँ सभ नहा कऽ एक बेर सौंसे मेला घुमि, डोरि-सिन्नुर आ सनेस कीन आबि खेलौं आ गाड़ी पकड़ैले विदा भेलौं। भरि बाट दादी रटैत रहली- “कत्तऽ एलौं, ते कत्तौ नै। कत्तऽ एलौं, ते कत्तौ नै। कत्तऽ एलौं, ते कत्तौ नै।”
७
गामक जिनगी
कथा संग्रह
(जगदीश प्रसाद मंडल)
समीक्षा-
रमाकान्त राय “रमा”
भारतीय भाषा साहित्यमे ग्राम्यांचलक उर्व्वर भूमिमे सभ किछु उपजैत अछि- अन-धन- लक्ष्मी। जँ आम सन अमृत फल होइत अछि तँ करैला सन तीत सोहो। जँ सभ रूपमे औषधि सन धातृफल तँ सभ तरहेँ अनिष्टकारक बरहर सेहो। कनकजीर आ तुलसी फूल स्वादिष्ट चाउर हम सभ उपजाबैत छी, कऽन-साग-मरूआ आ अकटा-मिसिया सन कुअन्न सेहो समए-कुसमए लोकक क्षुधा शांति कऽ गरिमा मण्डित होइत अछि।
दोसर दिस भादो मासमे झहरैत वर्षामे भीज कऽ थाल-कादोमे खिल्ली छाबा डुबा कऽ जँ धान रोपैत अछि तँ चैत-बैसाखक बरकैत रौदमे गहुंम काटैत अछि, दाउन करैत अछि तथा माध मासक हारमे धुसिआइबला जाड़ आ जान मारूख शीतलहरीमे राति-राति भरि जागि कऽ लोक रवि-राइक पटौनी करैत अछि। अइठाम काजमे जँ कनिको उफाँटि भेल आिक पलमे प्रलए भऽ जाइत छै। लोकक जीवन अपटी खेतमे चलि जाइत छै मुदा जँ जीवित रहि लोक काज सम्पन्न कऽ लैत अछथ् तँ की की ने देखैत अछि- ताड़क गाछ तरेगन आ दिनोमे तरेगन।
गाम उर्व्वर भूमि एकसँ एक विद्वान, वैज्ञानिक, राजनेता आदिकेँ अपना अंकमे पोषैत आबि रहल अछि तँ एकसँ एक कवि-कलाकार-साहित्यकारकेँ सेहो। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह “दिनकर” आ अमर कथाकार मुंशी प्रेमचंद गामेक उर्व्वर भूमिक पुत्र छलाह जे अपन-अपन क्षेत्रक शिखर पुरूष भेलाह।
मिथिला मूलत: मैथिली भाषा भाषी ग्रामीण क्षेत्रक विशाल भूभागमे पसरल अछि। तँए अइठाम सेहो अधिकांश लेखक, कवि, कलाकार-साहित्यकार प्राय: गामेक मूल निवासी छथि। मुदा एकटा बात आन भाषासँ मैथिलीमे भिन्न ई अछि जे जतऽ आन भाषाक रचनाकार-कलाकार अपन कृतिमे गामकेँ विशेष जगजिआर करबाक चेष्टा केलनि अछि तेना मैथिलीमे नै। ओना राजकमल, यात्री, मायानन्द, ललित, धीरेन्द्र, धूमकेतू आदिक रचनामे गाम आएल अछि अवश्य मुदा ओकर मात्रा वर थोड़ अछि। जेना राजकमलक “ललका पाग” सन कथामे गामक नारीक निश्छल प्रेमक प्रवाह अछि तँ ललितक “रमजानी” पछड़ल अल्पसंख्यकक कथा नीक जकाँ बिकछा कऽ कहल गेल अछि। जहिना मायानन्द मिश्रक “खौंता आ चिड़ै” मे उच्च वर्ग आ पछड़लक वर्ग संघर्षक कथा नीक जकाँ स्थान पओलक अछि तहिना यात्रीक “बलचनमा” मे सेहो ऐ माैलिकताक स्पष्ट रेखांकन भेल अछि।
आनो-आन नव-पुरान कथाकार मिथिलाक गामक कथा लिखलनि अछि मुदा खेतिहर-मजदूर, निम्नवर्गक बोनिहार, एक सांझ खा कऽ दोसर सांझक जोगारमे बेकल लोकक कथाक अभावे रहल अछि। श्री जगदीश प्रसाद मंडलक कथा संग्रह “गामक जिनगी” एहि प्रकार अभावक पूर्ति करैत अिछ। ऐमे ने केवल निम्न-मघ्यवित्त आ पछड़ल निम्नवर्गक कथा अछि प्रत्युत गामसँ बाहर रहि अयोध धामन-गहुमन साँप सन विषधरक कथा सेहो अछि जे अपन जीवनक सांन्ध्य बेलामे प्रदूषण मुक्त गामोकेँ अपन विषक धधकैत ज्वालमे भस्मसात करए चाहैत छथि।
“गामक जिनगी” कथा संग्रहमे कुल उन्नैसटा कथा अछि जे समग्रतामे मूल रूपसँ गामक कथा अछि। ऐ सभ कथाक कोनो ने कोनो पात्र गामक अछि- व्याधि रोग-शोक, इर्ष्या-द्वेष, धृणा-सिनेहक शिकार कतहुँ ने कतहुँ अवश्य होइत अिछ। किछु कथामे तँ एना लगैत अछि जे कथा नायक वा उपनायाक जीवनसँ पूर्णत: निराश भऽ अनिश्चयक भ्रमरजालमे ओझरा जाइत मुदा तखनहिं आशाक सूर्यक किरिण हुनका जीवनमे एकटा नव उत्साह, उमंग भरि दैत छन्हि आ ओ पुन: विश्वाससँ भरि नव-जीवनक शुभारम्भ करबामे जुटि जाइत छथि।
किछु कथामे एक क्षेत्रक लोककेँ दोसर क्षेत्रक भौगोलिक परिवर्तनजन्य किछु अनेरूआ फसलक विषएमे व्यवहारिक ज्ञानक अभाव रहैत अछि जैसँ दैवी प्रकोपक समए नीक जकाँ जीवन-यापन कएल जा सकैत अछि।
कथाकार जगदीश प्रसाद मंडल जीवनक उतरार्द्धमे लिखब प्रारम्भ कएलनि अछि। ओना किछु पहिनहुँसँ लिखबाक अभ्यास छल होएतनि मुदा देखार रूपमे मात्र दू-अढ़ाइ वर्षक अवधिमे दर्जन भरिसँ अधिक पोथीक सृजन कऽ ई एकटा नव कीर्तिमान स्थापित कएलनि अछि। जैमे आधा दर्जनसँ अधिक पोथी प्रकाशित भऽ चूकल छन्हि।
मनुष्यक जीवनमे नित्य अनेक घटना-दुर्घटना-संघर्षक संग हर्ष-विषादक अवसर अबैत अछि। ओइ महँक किछु सार्थक क्षणकेँ समेटि कऽ मानवोचित मर्यादा, दायित्वबोध, सुरक्षा, संरक्षा, सुविवेचन-रचनादि द्वारा मनुष्यमे जिजिवीषा उत्पन्न कऽ पुनस्थापित करब कथाकारक दायित्व अछि। जगदीश बाबू ऐमे पूर्ण सिद्धस्त छथि। जँए कि ई ग्रामीण अंचलमे एकटा राजनैतिक कार्यकर्ताक रूपमे समाजकेँ खूब नीक जकाँ चिन्हने छथि, जन-जनक, गरीब-अमीरक सुख-दु:खमे सहभागी रहल छथि तँए ओकर नोन-तेल-हरदिसँ लऽ कऽ जन्म-मरण धरिक साक्षी रहलाह अछि। ऐ अनुभव सभकेँ ओ नीक-जकाँ बिकछा-बिकछा कऽ अपन कथा सबहक तानी-भरनी बनौलनि अछि। तँए हुनक रचना मैथिली साहित्यकेँ एकदम बेछप बुझि पड़ैत अछि।
डॉ. मेघन प्रसाद अपन पुस्तक “मैथिली कथा कोश” मे कथाक प्रसंग अपन विचार ऐ प्रकार व्यक्त कएलनि अछि- “कथा, जीवनक एकटा खण्ड चित्र अछि जे सम्पूर्ण जीवनक व्याख्या नै कऽ ओकर मात्र एकटा घनीभूत क्षणक उद्घाटन करैत अछि।” वस्तुत: कथा अपन आकारगत सीमाक कारणेँ एक्केटा घटनाक प्रभाशाली चित्रण कऽ सकैत अछि। ओइमे प्रासंगिक कथा अथवा विवरणक बेशी स्थान नै होइत अछि। दोसर शब्दमे कथा गद्यक एकटा छोट अत्यन्त सुघटित आओर अपनामे पूर्ण साहित्य रूप अछि। (भूमिका पूष्ठ-२)
जगदीश प्रसाद मंडलक कथा ऐ दृष्टिसँ कनिको पथ-च्युत नै भेल अछि। हँ, हिनक कथा सभमे किछु विस्तार अवश्य अधिक अछि मुदा ओतेक विस्तार नै जे मात्र कथाक एक्केटा रूप, लघुकथा रहि जैताए जखन कि ओइमे घनीभूत क्षणक उद्घाटन करबाले किछु विस्तार प्रयोजन बांछनीय होइछ। एकटा बात आर, हिनक कोनो कथामे प्रासंगिक विवरण सेहो लघुरूप धारण कऽ घुसिआएल अवश्य भेटत। मुदा ओइसँ ने तँ कथाक मौलिकता प्रभावित बुझि पड़त आ ने ओकर औपन्यासिक विस्तार बुझाएत। भने कोनो-कोनो कथाकेँ लघुक स्थानपर दीर्घकथा कथा कहबे श्रेयस्कर होएत।
सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ. सुभाषचन्द्र यादव हिनक कथाक विशिष्टता मादे कहैत छथि जे हिनक कथामे औपन्यािसक विस्तार अछि। वर्तमान समएमे प्रचलित आ मान्य कथासँ हुनक कथा भिन्न अछि। हुनक कथा घटना बहुल आ ऋृजुसँ युक्त अछि।
डॉ. मेघन प्रसादक विचार जतऽ आम कथाक विषएमे कहल गेल अछि ओतहि डॉ. यादवक विचार मात्र श्री जगदीश प्रसाद मंडलपर केन्द्रित अछि। मुदा शब्दक कनेक हेर-फेरसँ दुनू व्यक्तिक विचार जै विन्दुपर मिलैत अछि से अछि डा. यादव द्वारा प्रत्युत शब्द- “ऋृजु” अछि। ओ हिनका जीवन संघर्षक कथाकारक रूपमे स्थापित करैत जिजीविषा, मानवीयता आ आदर्शकेँ सुदृढ़ आ पुनप्रतिष्ठित करबाक उद्देश्यसँ अनुप्रमाणित मानैत छथि। एक्के संग अनेक नीक भावक संयोजनकेँ ऋृचा जकाँ बहुभावाभिव्यक्तिक संभावनाकेँ ऋृजु संज्ञा रूपमे डॉ. यादवक सोचक व्याख्या कएल जा सकैत अछि।
जेना कि संग्रहक नाओंसँ स्पष्ट अछि- ऐ पुस्तकमे गामक जिनगीक कथा कहल गेल अिछ। मुदा आइ-काल्हि केहनो ठेठ गामक जीवनमे कतहुँ ने कतहुँ शहर आबिए जाइत अछि। तखन कथाकार ऐ हेतु सभठाम पूर्ण सचेष्ट छथि जे गाम आ शहरक ऐ दुरभिसंधिमे गामक मौलिकता भुतिआ नै जाए, हेरा नै जाए। हिनक कथा सभमे जँ कतहुँ गाम आ शहर मिझराएलो अछि तँ ओ ऐ दुनूक सूच्चा स्वरूपकेँ स्पष्ट रूपेँ रेखांकित कएलनि अछि आ शहरक नगर जिनगीपर गामक जिनगी सभठाम प्रभावी देखाओलनि अछि।
“भैंटक लाबा, बिसाँढ़ आ पिरारक फड़” ई तीनू कथा एक्के भूमिपर प्रतिष्ठित अछि भैंट, बिसाँढ़ आ पिरारक उपयोगक विषएमे जइठामक लोक नै जनैत छथि हुनक पति (जँ ओइठाम ओ वस्तु प्रयुक्त होइत हो) किंवा पत्नीसँ ऐ विषएमे जानि-बुझि कऽ बाढ़ि, सुखारक समएमे ओकर सदुपयोग कऽ ओइसँ त्राण पएबाक ई एकटा सशक्त साधन होइत अछि। मुदा समाने भाव-भूमिक होइतो तीनू कथाक ई विशेषता अछि जे बिसाँढ़ जतऽ रौदीमे, सुखारमे गरीबक जीवन रक्षक होइत अछि, होतहिं भैंटक लाबा बाढ़िसँ बिलटल परिवारक रक्षक होइत अछि। मुदा पिरारक फड़ सामान्य समएहुँमे लोकक व्यंजनक बेगरता मेटबैत अछि। ऐ तीनू कथा गढ़बा काल लेखक ऐ हेतु पुर्ण साकांक्ष छथि ऐ स्थिति-परिस्थितमे गामक गिरहस्तकेँ लेल कोन-कोनटा उपकरणक उपयोग अपेक्षित अछि। ऐसँ ओहि अव्यपहृत वा कम व्यवहृत सरंजाम-उपकरणक ध्यान एकबेर ओहि सभ लोककेँ आबि जाइत छन्हि जे ग्राम्य संस्कृतिसँ बहुत दिनसँ सुदूर रहि रहल छथि।
“अनेरूआ बेटा” केँ नि:संतान दम्पति अपन बना कऽ पोसैत अछि। पहिने चाहक दोकान कऽ कए ओ क्रमश: पढ़ब-लिखब सिखैत अछि। ओकर जिज्ञासु मन स्वाध्यायक बलपर साहित्य सृजन दिस उन्मुख होइत अछि आ क्रमश: ओहूमे सम्मान जनक स्थान प्राप्त करैत अछि। गामक वातावरणसँ सर्वथा असंपपृक्त, शहरी जीवनक अभ्यासी एकटा वकील साहेबक नवयुवती पुत्रीकेँ ओकर साहित्य अपना दिस आकृष्ट करैत अछि। ओ ओकरासँ भेँट कऽ ओकरे संग अपन जीवन व्यतीत करबाक स्वपन्न देखैत अछि। छह निश्चयी अपन स्वभाव-प्रभावसँ माए-बापकेँ मना कऽ ने केवल ओकरासँ विवाह करबामे सफल होइत अछि प्रत्युत, गृहस्थ जीवनक हेतु आवश्यक सभटा सरंजामो पितोसँ करवा लैत अछि।
ठेला-वाला अा िरक्साबला दुनू करेज तोड़ मेहनतिबला लोक मुदा पहिल जँ अपन कमाइसँ अपन दुनू बेटाकेँ नीक जकाँ मैट्रीक पास करबा कऽ “शिक्षा-भिन्न” बना कऽ उपराग जिनगी जीवैत अछि तँ “रिक्साबला” जतऽ बैसारीमे रिक्शा चलबैत अछि तँ शेष समए एकटा चिमनीक मालिक संग पुरैत अछि। एकदिन मालिकक कनियाँक दिनचार्य ओकरे मुँहसँ सुनि कऽ ओकर भौतिक जीवनक लाचारीक लाचारी आ आखि महँक भूख देख कऽ अनठा कऽ अपन घर पराइत अछि।
“डाॅ. हेमंत”केँ बढ़िग्रहस्त क्षेत्रक डयूटीपर जयबाक जे जेतेक संशय ग्रामीण वातावरण, सामन्यजस्यक समस्या आ ग्रामक अशिक्षित लोकक संग रहबाक हीन ग्रन्थि छलनि सभटा ग्रामीणक सद्व्यवहार, सहयोग आ निश्च्छल कार्यव्यापारसँ दूर भऽ जाइत छन्हि आ गाममे बिताओल क्षण हुनका जीवनक एकटा अनमोल स्मारक जकाँ मानस पटलपर अंकित भऽ जाइत छन्हि।
बाहर रहि जीवन भरि भ्रष्ट्राचारमे आकंठ डूबल रहि दूटा पितिऔतक जीवनमे ऐ भौतिकवादी युगक उपादानो सभसँ जखन स्वाभिमानपर चोट पहुँचैत छन्हि तखन गामक जिनगीक मोह गछारैत छन्हि। मुदा गाममे पास करबासँ पहिनहि घरारीक बटबाराक क्रममे गामक शांत जिनगीमे ओ दुनू भाँइ उच्कोच आ छल-छद्वाक बलेँ जखन किछु अनुचित नै करा पबैत छथि तखन प्रेम चन्द्रक “पंचपरमेश्वर” सँ कोनो कम महत्पूर्ण अछि निश्च्छल ग्रामीण मिथिलाक ई कथा भैयारी।
बोनिहार-मरनीक बातपर जँ ओकरासँ काम करौनिहार मदमस्त ठीकेदारक आँखि नोरा जाइत अछि तँ आनक कथे की? ऐ वैज्ञानिक युगमे श्रमक जतेक अबमूल्यन भेल अछि, भऽ रहल अछि ओतेक कोनो आन वस्तुक नै। ऐमे ग्लालाइजेशनक वर पैघ हाथ छैक। नै तँ एकटा कुम्हार जँ एकबेर कोशीक कटावसँ गाम छोड़ि परा कऽ दोसर गाममे बसैत अछि तँ दोसर बेर अपन वस्तु जातक, श्रमसँ उत्पादित वस्तुक ग्राहक अभावसँ गाम छोड़बाक निश्चय करैत अछि। मुदा संयोगसँ तै समए ओकर भुतिआएल बेटा प्रचुर टाका-पैस्यक संग आपस आबि जाइत छैक जे आब कुम्हारक नै, मूर्तिकार आ चित्रकारक रूपमे अपनाकेँ स्थापित कऽ लेने छल। तँए ओइ कुम्हारक हारि जीतिमे बदलि जाइत छैक।
पुस्तकक भाषा ठेठ ग्रामीण अछि जैमे स्थानीय लोकोक्ति, मुहावरा आ सभसँ वेशी अप्रचलित ठेठ ग्रामीण शब्दक बाहुल्य पुस्तककेँ अत्यधिक महत्वर्ण तत्व कहल जा सकैत अछि। बहुत कथामे तँ जातिगत पेशामे उपयोगमे आबैबला सभटा सामग्रीक नाओं एवं उपयोगक उल्लेख अछि जे ओइ शब्दकेँ विस्मृतिक खाधिमे जएबासँ बचयबाक प्रयास कहल जा सकैछ।
“डीहक बँटवारा” शीर्षक कथामे गुरूकाका गामक प्रसंग जे विचार रखलनि अछि से द्रष्टव्य अछि- “गाम तँ गामे छी। शुद्ध मिथिला। भारत। जे स्वर्गीसँ नीक अछि। मुदा सभ गामक अपन-अपन चरित्र आ प्रतिष्ठा छैक। जे चरित्र आ प्रतिष्ठा गामक कर्मठ, तियागी लोकनि बनौने छथि। अपन कठिन मेहनति आ कर्तव्यसँ सजौने छथि। ओकरा जीवित राखब तँ अखुनके लोकक कान्हपर भार अछि की ने?..... ई तँ निह जे गदहा गेल स्वर्ग तँ छान-पगहा लगले गेलै।”
निट्ठठ गाममे इर्ष्या-द्वेष कम सिनेह भैयारी-यारी अधिक रहैत अछि। जतऽ अपन जन्मलि बेटी अपने धिया-पुतामे व्यस्त रहि माएक मृत्यु शय्यापर सुनि कऽ देखबाले सेवा करबाले नै आबि पाबैत अछि ओतहि विजातीय-नैहरक दूरक आन आन धर्मक “बहीन” ने केवल देखबा लेल आबैत अछि प्रत्युत बहीनकेँ जीवित रहबा धरि सेवाक करबाक उद्दात भावनसँ अभिभूत “हिन्दु-मुस्लिम एकटा” क बीहनि गाममे कतेक अधिक गहीर अछि- ई सिद्ध करबा लेल पर्याप्त अछि। आ यएह थिके गामक जिनगीक कथाक मूल तत्व।
कथाकार लेखक संपादक श्री गजेन्द्रठाकुरक अनुसार जगदीश प्रसाद मंडलक कथा मैथिली साहित्यक पुनर्जागरणक प्रमाण उपलब्ध करबैत अछि तथा हिनक कथा मैथिली कथा धराकेँ एक भगाह होएबासँ बचा लैत अछि। उदाहरणमे ओ मात्र हिनक एक कथा बिसाँढ़केँ उपस्थापित करैत कहैत छथि जे १९६७ईं.क अकालमे देखाओल गेल छल जे मुसहर लोक बिसाँढ़ खा कऽ अकालसँ लड़ि रहल छथि मुदा ऐपर कथा लिखल गेल २००९ई.मे जगदीश प्रसाद मंडलजी द्वारा।
हम “गामक जिनगी” कथा संग्रहक आधारपर ई कहए चाहब जे जहिना हिन्दीमे गाम्यांचलक कथाकारमे प्रेमचन्द असगरे छलाह, तहिना मैथिली कथाक ऐ पुनर्जागरण कालमे, मैथिली साहित्यमे जगदीश प्रसाद मंडल जीक कथा असगरे अछि- तोहर सरिस एक तोहे माधव!
चर्चित पाेथी- गामक जिनगी
प्रकाशन वर्ष- २००९
लेखक- श्री जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन
पृष्ठ- १७६
मूल्य- २०० टाका मात्र
२
आरसी बाबूक व्यक्तित्व एवं कृतित्वपर द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार
दू दर्जन विद्वानक सहभागिता : आचार्य दिव्यचक्षु
मुजफ्फरपुर। साहित्य अकादेमी नई दिल्लीसँ स्नातकोत्तर मैथिली विभाग, बाबा साहब भीमराव अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुरक संयुक्त तत्वधानमे महाकवि आरसी प्रसाद सिंहक जन्म शतवार्षिकीक अवसर एकटा द्विदिवसीय सेमिनारक आयोजन गत 16-17 दिसम्बर 2010केँ विश्वविद्यालयी पुस्तकालयक सभागारमे कएल गेल जैमे दू दिन धरि दू दर्जनसँ अधिक विद्वान अपन-अपन आलेखक पाठ केलनि। जैमे आरसीबाबूक महनीय सारस्वत व्यक्तत्वक विभिन्न पक्षपर विशद विवेचन कएल गेल।
15 दिसम्बरकेँ ओयोजिका सह मैथिली विभागाध्यक्ष डाॅ. कमला चौधरीक अध्यक्षतामे उद्घाटन सत्र 10 बजे प्रारम्भ भेल। कार्यक्रमक आरम्भमे स्नातकोत्तर मैथिली विभागक छात्रागण गोसाओनिक गीत प्रस्तुत केलनि। विश्वविद्यालयक कुलपति डॉ. राजदेव सिंह आरसीबाबूक चित्रपर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कऽ कार्यक्रमक उद्घाटन केलनि। स्वागत गीतक बाद साहित्य अकादेमीमे उपसंपादक श्री देवेन्द्र कुमार देवेश, सभागत अतिथि, प्रतिभागी साहित्यकार एवं समुपस्थित श्रोतागणकेँ स्वागत केलनि। अकादेमीमे मैथिली भाषाक प्रतिनिधि डाॅ. विद्यानाथ झा विदित, आरसी प्रसाद सिंहक विराट व्यक्तित्व, हुनक साहित्य साधनाक विस्तृत फलकपर विद्वत्वर्ग द्वारा गहन विचार-विमर्श करबाक आह्वान केलनि।
डॉ. नरेश कुमार विकल, अपन बीज भाषणमे हुनक साहित्य साधनाक विस्तृत चर्च करैत हुनक राष्ट्रवादी, उदात एवं स्वाभिमानी चरित्रक विस्तृत चर्च करैत मैथिली साहित्यमे हुनक अवदानक सेहो चर्च केलनि। ऐ अवसरपर साहित्य अकादेमी द्वारा डाॅ. विव्येन्द्र पालिक प्रकाशित एवं डॉ. देवेन्द्र झा द्वारा अनुदित बंगला उपन्यासक लोकार्पण डाॅ. विद्यानाथ झा विदित द्वारा सम्पन्न भेल। डॉ. मदन मिश्र धन्यवाद ज्ञानक केलनि।
मध्याह्न 12 बजे डॉ. देवेन्द्र झाक अध्यक्षतामे दोसर सत्र आरम्भ भेल जैमे डॉ. नरेन्द्र नारायण झा िनराला, आरसी बाबूक रचना ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यपर एवं डॉ. लावण्य कीर्ति सिंह काव्या आरसीक रचनामे संगीत तत्वपर अपन-अपन आलेख पाठ केलनि। श्रोताक विशेष आग्रहपर डॉ. नरेश कुमार विकल अपन बहुप्रशंसित कविता कहुना कऽ चलि आउ अपन गाम'क सस्वर पाठ केलनि। भोजनोपरान्त अपराह्न 3 बजे डॉ. पद्मनारायण झा विरंचि'क अध्यक्षतामे श्री राजन सिंह, डॉ. रामनरेश सिंह एवं श्री श्रीमन्त पाठक आरसी बाबूक काव्यक विभिन्न आयामपर विस्तृत प्रकाश देलनि। विदित जीक आग्रहपर श्रीमन्त पाठक अपन एकटा गीत सेहो प्रस्तुत केलनि। पहिल एवं तेसर सत्रक संचालन डॉ. अमरनाथ झा एवं दोसर सत्रक डॉ. सुलेमान केलनि।
दोसर दिन 16 दिसम्बरकेँ डॉ. नागेश्वर सिंह शशीन्द्र'क अध्यक्षतामे श्री रमाकान्त राय रमा, श्री विवाकान्त पाठक, एवं श्रीमती सुशीला झा आरसी बाबूक रचनाशीलता जीवन दर्शन, व्यक्तत्व एवं आदर्शपर अपन-अपन सारगर्भित आलेखक वाचन केलनि। विदित जीक आग्रहपर श्री अमलेन्दु शेखर पाठक बेंगलोर'मे भेल सर्वभाषा लेखक संगोष्ठिक विषएपर अपन अनुभव सुनौलनि आ ओइ प्रस्तुत अपन रचनाक सेहो पाठ केलनि। अध्यक्ष डाॅ. शशीन्द्रजी आरसी प्रसाद सिंह जीवनक विभिन्न पक्षपर चर्च करैत जनौलनि जे हुनकामे अपन भावना व्यक्त करबाक एकटा अद्भूत कला छल। ओ मैथिलीए नै हिन्दी भाषामे सेहो अनेक आयामक विकसित केलनि। भोजनोपरान्त पुन: डॉ. कमला चौधरीक अध्यक्षतामे समापन सत्र आरम्भ भेल जैमे डॉ. प्रमोद कुमार सिंह डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन आ डॉ. श्रीमती नीता झा अपन-अपन प्रतिवर्दनक लऽ उपस्थित भेलाह। प्रमोद बाबू आरसीक विराट िहन्दी साधना आ मातृभाषा मैथिलीक अा साधनाक तुलनात्मक विश्लेषण करैत मैथिली सेवा लग हिन्दी सेवाक फूस जकाँ बतौलनि। हिन्दीक विद्वान प्रवक्ता एवं साहित्यकार होइतो ओ मैथिलीमे धराप्रवाह बाजैत हुनक बाल साहित्य, किशोर साहित्य एवं प्रौढ़ साहित्यक प्रसंग विस्तृत चर्च केलनि। डॉ. नीता झा सम्पूर्ण कार्यक्रमक पर्यवेक्षण प्रतिवेदन प्रस्तुत केलनि जैमे सभ-सबहक सभ वक्ताक सम्भाषण मूल तत्वक बीज विद्यमान छल।
डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन अपन समापन भाषणमे मैथिली साहित्यक वर्तमान दशा-दिशाक चर्च करैत ऐमे आरसी बाबूक महती योगदानक चर्च केलनि जे यद्यपि ओ हिन्दी आ मैथिली दुनूमे लिखिलनि मुदा हिन्दी हुनका ओ सम्मान नै देलकनि जकर ओ अधिकारी छलाह। मैथिली हुनक मातृभाषा छलनि जे अपन पुत्रक सम्मान दऽ मान बढ़ौलक।
डॉ. विद्यानाथ झा विदित मैथिली भाषाक लेल साहित्य अकादेमी, भारतीय भाषा संस्थान आ भारत सरकारक योजनाक प्रसंग विस्तृत जानकारी देलनि। आजुक तीनू सत्रक संचालन डॉ. अमरनाथ झा केलनि। श्री शैलेन्द्र चौधरी धन्यवाद ज्ञापन केलनि।
७
रामकृष्ण मंडल 'छोटू'
कथा-
बाप
हबलदार गोरचंदक ऐठाम आइ फेर गुमशुमक माहौल बनल छै। आइ हुनकर एकलौता बेटा बलदेवक इंटरक रिजल्ट निकलैबला अछि।
कनीदेरक बाद बलदेव मुँह लटकेने हाथमे रिजल्ट लऽ कऽ प्रवेश केलक। बलदेवकेँ एते हिम्मत नहि जे बाबू जीसँ आँखिमे आँखि मिलाबैत। एकठाम बलदेब मुँह लटकेने ठाढ़ अछि। जेना कोनो पत्थरक मुरूत। आ एनहर गोरचंदक आँखि लाल-लाल जेना बुझाइत दुगो आइगक गोला ओकरा चेहरापर अछि।
बलदेवक माए श्यामबती, स्थितिकेँ भािप पतिक गुस्सा याद करैत सिहरि उठै छथि। उ तुरन्ते बलदेव लग जा बलदेव हाथसँ रिजल्ट लऽ चहैक उठल, आैर पति दिशन ताकि बाजलि- “यौ-यौ देखिओ, अपन बलदेव सकेण्ड किलाससँ पास भेल।”
गोरचंद रिजल्ट छिन बाजल- “हम जानै छी, ई आवारा, बकलेल हम्मर नाक कटौत, हम्मर सभ अरमानपर पानि फेर देत। हम सोचने रहौं ई हम्मर नाम रौशन करत। तब हमहुँ गर्वसँ सीना फुलाए कहितिऐ कि हमरो बेटा दोसरक बेटा जना इंजिनियर, डॉक्टर, दरौगा अछि। मगर-मगर ई कहाँ.... नसीब हमरा।” कहैत-कहैत कानए लगल गोरचंद।
जेना-तेना बलदेवक एडमिशन शहरक एगो कॉलेजमे भेल। उ कॉलेजमे बी.ए. इतिहाससँ पढ़ाइ करए लगल। हँसैत, हँसैत साल बित गेलै। मगर बलदेवमे कोनो परिवर्त्तन नइ भेल। उ ओनाहिऐ रहल। मुदा पढ़ाइक समए बीत गेल। पार्ट-वनक परीक्षा भेल। ऐबेर जेना-तेना परिक्षामे देकसी मारैत पास तँ भऽ गेल। घरपर बापक डाॅट-फटकारसँ ओकरा कानपर तँ जूऔ ने टिकै। समए फेर बीतैत गेल। आब बलदेव पार्ट-टूक विद्याथी भेल। ऐबेर कॉलेजक कुछ विद्याथी आगरा ताज महल देखै वास्ते जाइके प्रोग्राम बनेलक। जैमे बलदेव अपनो नाम लिखौलक। सभ विद्याथीकेँ एक-एक हजार रूपैआ जमा करए पड़त।
बलदेव अपन बाबुजीकेँ कहलक मुदा उ साफे मना कैर देलखिन। माएकेँ बहुते कहि बलदेव अपन बाबूजीकेँ मनेलक।
उ दिन आबि गेल। आइ दुबजिया गड़िसँ यात्रा कएल जेतै। एमहर गोरचंद अपन बलदेवसँ कहलक कि उ बारह बजे ओकरा एक हजार रूपैआ कतौसँ, केनाहिओ व्यवस्था कैर कऽ दऽ देतै। पर ई कि बारह बजि गेलै, अखैन तक गोरचंद थानासँ आपस नइ आएल। घरपर बलदेव गुस्सासँ अपन बापक बहुत भला-बुरा कहए लगल। माए श्यामबती जवान बेटाक मुँहसँ, अपन भगवान जकाँ दुल्हाक बारेमे जली-कुट्टी सुनि आँखिसँ मोती जकाँ नोर गिरबए लगलि।
तखने बलदेवक जोरदार अवाज- “माए-माए, देखलिही बाबूक करतुत हम्मर बेइज्जत करा देलक, पुरे कॉलेजमे। आव... आव हम कोना कॉलेजमे..... ?”
गुस्सामे बलदेव अपन साइकिल निकाइल चलि पड़ल थाना तरफ। थाना पहुँचैत बलदेव देखै छै। ओकर बाबूजी एगो दरोगाक गोर दाबैत छै। तखनि बलदेवक बाबू कहलक- “हुजुर-हुजुर भऽ सकै तँ पानसौ रूपैआ पैंचा द िदअ। आ हुजुर आइ हमरा कनी जलदीए घर जेबाक अछि। हम्मर बेटा आइ दुबजिया गरिसँ आगरा जयछै।”
दरोगा गोरखनाथ अपन रौब झाड़ैत- “चुप सार, बढ़ियासँ जातैले आबै नै छौ आ बेटाकेँ आगरा घुमैले भेजै छेँ। आ ई की जखैन देखू तखैन बेटाले पैसा मांगे लगै छी। कहियो ओकर एडमिशनले तँ कहियो कपड़ाले कहियो साइकिलले ई- ई कि छिऔ। एत्त तोहर बापक खजाना नै छौ बड़ा मेहनतसँ और बड़ा रिक्सपर घूसक पैसा आबै छै, हराममे नाइ। चल सिकरेट जड़ा।”
गोरचंद फफैक-फफैक कानए लगल- “हुजुर एक्के घंटा बचल छै हम्मर बेटा....।”
“चुप चल सिकरेट जड़ा। भाड़मे जाउ तोहर बेटा। हूं, बड़ा भाएल आगरा घुमैबला। चल-चल जांत आ सुन, ई ले एकसौ रूपैआ। जौ बाजारसँ कुछेक सब्जी किन हम्मरा घर पहुँचा आ और कनि हम्मर बेटा गोलुआकेँ स्कूलसँ लाइब लिहैं।”
कनि देर रूकि कऽ फेर बाजल- “तब देखबै सांझमे कुछ पैसा बेबस्था करबौ। जो-जो भाग....।”
एते सुनि बलदेवक भोँह फरैक उठल ओकर सभ बाप परक गुस्सा, दरोगापर आबि गेल। मन मानि होइ ओकरा बगलक बंदूक उठाए धाँइ-धाँइ गोली दरोगाक भेजामे उतारि देत। पर बेचारा कि करि सकैत। चुपचाप घरक ओर विदा भेल आ कसम खा लेलक। आइसँ पढ़ब आ सिर्फ पढ़ब। अपन बापकेँ ई अपमानक बदला हम कलक्टर बनि कऽ लेब। आब ने जानि बलदेवमे कोन शक्ति आबि गेलै, सबकुछ छोड़ि सभसँ नाता तोड़ि सिर्फ किताबसँ नाता जोड़ि लेलक।
गाम- निर्मली
पोस्ट- निर्मली
वार्ड न. 12
जिला- सुपौल
मोवाइल- 7654389984
९
*एकटा पत्र एकटा समीक्षा
शैल झा “सागर
किस्त किस्त जीवन” अहाँ तँ सागर जी के पठोलिऐ मुदा घरुआरी नारी हेवाक कारणे
ई लाभ हम उठेलों हुनकासँ पहिने हमही पढ़ी गेलों ६-६ किस्त मे ! हमरा बुझवा मे
नहि आबि रहल अछि कतऽ सँ शुरू करी, की लिखी, की कही?
हँ एतेक जरुर कहब एहि किताब केँ हाथ मे लैत आ किताब दिसि तकैत अनेरो आंखि
सँ दहो बहो नोर झरय लागल, किये एकर कारण हम अपनों नहि जनैत छी.
एहि बेर महाकुम्भक मेला लागल अछि .हमरो बहुत परिचित लोकनि सब महाकुम्भ करय जाय गेलीह अछि .हमरो कहलनि हम हिनकासँ पूछल मुदा हिनकर नहिये सन जबाब पाबि हम चुप भऽ गेलों किएक तँ हिनका एहि सबमे विश्वास कनी कम्मे छनि.
लेकिन किस्त किस्त पढ़ी गेलासँ मोनमे हिलकोर उठल जे कोनो टा कुम्भ स्नानसँ
बेसी सुखमय लागल . एकटा बात आर जे मोनक कोनो दोगमे अहांक दर्शन करवाक प्रबल इच्छा जागि गेल अछि। ठीके जखन अहाँकेँ दर्शन करब तँ हाथसँ छुबि कऽ देखब, आंगुरसँ दाबि कऽ देखब, चरणमे झुकि कऽ देखब . की सरिपों अहाँ वैह शेफालिका छी
जे हमर माथ पर एखन हाथ रोपने छी.
सत्ते विधाता क पैघ डांग अहांक रंगीन जीवन पर पडल, अहाँ लोकनिक अंतरंगता हुनको
अखरि गेल्न्हि. अहाँ एकटा सफल बेटी, निश्छल प्रेयसी, सर्वस्व समर्पिता पत्नी
, कुशल गृहिणी, ममतामयी माय, निष्णात लेखिका –समाजसेविका, राजनयिक आ बांधवी आ आर की की नै छी ! से नहि जनितों जों ई पोथी नहि पढितों . अहाँ अतुलनीय छी तोहर सरिस एक तोंहे माधव मोन होयछ अनुमाने .( ई बात हम एहि लेल लिखलों जे सागर जी अहांक तुलना महादेवी वर्मा, महाश्वेता देवी वगैरह सँ करैत छथि, जे हो मुदा मैथिली साहित्य केँ एकटा अनमोल वस्तु भेटलैक अहांक ई पोथी. हमरा
बुझने एहि पोथिक उचित मूल्यांकन नहि भेलैक अछि . हमरा सन घरेलू महिला के अरवैध कऽ पढ़वाक चाहियनि पोथी. भाषा आ शैली मे गति छैक. एक दू पेज पढ्वाक बाद हैत नहि जे पढ़ब छोड़ी . कोनो काज करी . यैह एहि कृतिक सफलता भेलैक .
१९७२ मे जखन हमर ब्याह भेल छल तखन सँ मैथिली पोथी पत्रिका पढैत आबि रहल छी !
तहिया मिथिला मिहिर मे अहांक दू जुटिया गुहल केश वाला फोटो संग अहांक कविता
कथा सब पढैत रही , बड बढियां, बड्ड बेश ---
किस्त किस्त जीवन एकटा विरल रचना छैक आ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क वर्षगांठ
पर हम आग्रह करबनि मैथिलीक भाग्यविधाता लोकनि सँ जे एहेन उपाय करथि जे एहि पोथीक अंतर्राष्ट्रीय भाषा सब मे अनुवाद होइक .....................
आब हम अपन लेखनी के विराम देब चाहैत छी एहि एक पाती क संग----
पढ़ी गेलों ई आत्मकथा
मोन मे उठल उसांस एक ..
कतेक व्यथित ई बारहो मास ..
कतेक व्यथित ई बारहो मास .......................
१. रवि भूषण पाठक- विद्यापति २.डॉ0 मेघन प्रसाद- मैथिलीमे अनुवाद-कलाक शास्त्रीयकरणक इतिहास
१
रवि भूषण पाठक विद्यापति
विद्यापति आ मैथिली के ल‘ के हिन्दी मे आरम्भहि सँ एकटा अंतर्विरोध व्याप्त अछि ।एकर मूल विषय अछि मैथिली आ हिन्दी क सम्बन्ध क देशीभाषापरिवार मे निर्धारण ।मैथिली कंे हटेला सँ हुनकर समावेशी या सर्वलपेटू सिद्धांत प्रभावित होइत अछि ।मैथिली के राखला सँ मैथिली क प्राचीनता आ एकर गौरवशाली साहित्यिक परम्परा हुनकर चालू फार्मूला के अस्तव्यस्त करैत अछि । हिन्दी आलोचना एकर निदान तेहने चालू ढ़ंग सँ करैत अछि ।
ई निदान अछि -
1 मैथिली कें हिन्दी क बोली रूप मे परिकल्पना ।
2 विद्यापति कें आदि काल क कवि रूप मे स्वीकृति ।
पहिल निदान क चर्चा कहियो आराम सँ, आइ दोसर निदान क चर्चा कनिक विस्तार सँ करैत छी ।विद्यापति काव्य क प्रति हिन्दी आलोचना क दृष्टि पर एहि निबन्ध मे विचार करैत छी ।
सर्वप्रथम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास ’(संवत1986)पर चर्चा कएल जाए ।एहि पुस्तक क वीरगाथाकाल
अध्याय मे विद्यापति क चर्चा मुख्यतः दू ठाम अछि । ‘अपभ्रंश काव्य‘ मे अपभ्रंश साहित्य मे प्रयुक्त छंद आ उदीयमान भाषा क वैशिष्टय क जानकारी अछि ।
दोसर ठाम अछि ‘वीरगाथा काल‘ मे
‘फुटकल रचनाऐं‘ मे अंकित टिप्पणी ।एहि ठाम आलोचक क प्रथम उददेश्य अछि मैथिली भाषा के अधीनस्थता क घोषणा ।ताहि दुआरे सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य क विस्तार मे मैथिली आ विद्यापति क सम्मिलित क लेल जाइत अछि ।तत्पश्चात विद्यापति
काव्य क विषय मे लेखक तीन-चारि टा मोट बात कहैत छथिन्ह-
1 कवि क अधिकांश पद श्रृंगारिक अछि,जाहि मे नायक नायिका राधा-कृष्ण छथि ।
2 एहि पद क रचना संभवतः जयदेव क गीत काव्य क अनुकरण पर कएल गेल अछि ।
3 पदावली क मूल दृष्टि श्रृंगारिक अछि,एहि पर आध्यात्मिकता या भक्ति क आवरण देनए ठीक नहि ।
आचार्य शुक्ल क आलोचना क एहि एकांगिता क मुख्य कारण अछि,हुनकर प्रबन्ध क प्रति विशेष आग्रह । एहि आग्रह क निहितार्थ अछि तुलसी आ जायसी क बड़का कवि सिद्ध केनए ।संदर्भित कवि नमहर कवि छथि,मुदा आलोचक क
कमजोरी विद्यापति आ कबीर के जबर्दस्ती कमतर करए मे स्पष्ट अछि । अपभंश काव्य आ विद्यापति पदावली के सम्बन्ध मे हुनकर कम जानकारी सेहो आलोचना के प्रभावित करैत अछि ।अंतिम कारण अछि अवधी आ ब्रजभाषा क काव्य क प्रति आलोचक क अतिरिक्त स्नेह आ आग्रह ।
शुक्ल जी ’लोकमंगल‘ क एकटा खास काव्य दृष्टि के प्रति आग्रही छथि । अतः हुनकर समस्त लेखन क एकटा खास रंग अछि । एहि लेखन मे विद्यापति आ कबीर क एकटा सीमित स्थान अछि । एहि लेखन क कमजोरी पर सबसँ धारदार आक्रमण आचार्य हजारी प्रसाद द्वारा भेल ।
द्विवेदी जी क लेखन पर शांति निकेतन आ गुरूदेव क विचार क विशेष प्रभाव अछि ,ताहि दुआरे हिनकर प्रारंभिक लेखन मे विद्यापति काव्य के समझए -बूझए क दिशा मे गंभीर प्रयास क चिह्न भेटाइत अछि ।
’सूरसाहित्य‘ मे जयदेव, विद्यापति,चण्डीदास आ सूरदास क राधा क तुलना कएल गेल अछि । राधा क विलास-कलामयी,किशोरी,वयःसन्धिसुषमा,अर्द्धोद्भिन्न उरोज पर द्विवेदी जी मोहित होइत छथि ।मुदा ई लेखन विद्यापति पदावली क केन्द्रीय भाव क दिश कोनो संकेत नहि करैत छैक । लेखक क उद्देश्य अछि सूर साहित्य क महत्व क उद्घाटन ।प्रसंगवश लेखक किछु बांग्ला लेखक क चर्चा करैत छथि ।रवीन्द्र नाथ क एकटा महत्वपूर्ण उद्धरण अछि ”विद्यापति क राधा मे प्रेम क तुलना मे विलाश बेशी अछि,एहि मे गम्भीरता क अटल धैर्य नहि ।एहि मे मात्र नवानुराग क उद्भ्रान्त लीला आ चांचल्य अछि । विद्यापति क राधा नवीना छथि, नवक्स्फुटा छथि ।“ई राधा महिमा एकटा बांग्ला लेखक दीनेश बाबू सेहो गाबैत छथि ”विद्यापति वर्णित राधिका एकाधिक चित्रपट क समष्टि अछि । जयदेव क राधा सदृश एहि मे शरीर क भाग ज्यादा आ हृदय क भाग कम अछि ।---- विद्यापति क राधा अत्यन्त सरला अछि ,अत्यन्त अनभिज्ञा ।“
द्विवेदी जी क उपरोक्त लेखन शुक्ल जी क विद्यापति सम्बन्धी मान्यता मे कोनो परिवर्तन करबा क प्रयास नहि करैत अछि ।हिनकर परवर्ती लेखन शुक्लवादी मान्यता क पोषण करैत अछि ।कबीर आ इतिहास सम्बन्धी मान्यता क सम्बन्ध मे हिनकर जोश विद्यापति क सम्बन्ध मे अनुपस्थित अछि,यद्यपि ई विद्यापति क कविता आ व्यक्तित्व क बेहतर जानकार छथि ।इतिहास सम्बन्धी हिनकर पोथी ‘हिंदी साहित्य:उद्भव और विकास ‘ मे कीर्तिलता पर दू पृष्ठ अछि आ पदावली पर मात्र चारि पांति । ई स्पष्ट करैत अछि जे लेखक क मंतव्य की अछि ।सगुण भक्ति परंपरा क आख्यान क बीच मे विद्यापति क झूठफूसिया चर्चा सँ खानापूरी कएल गेल अछि ।लेखक विद्यापति कें सिद्धवाक् कवि कहैत छथिन्ह आ पदावली मे वर्णित अपूर्व कृष्णलीला क संकेत दैत छथिन्ह ।भाव क सांद्रता आ अभिव्यक्ति क प्रेषणीयता क स्वीकारैत लेखक ई टिप्पणी देनए आवश्यक बूझैत अछि कि एहि परंपरा क प्रभाव संभवतः ब्रजभाषा काव्य परंपरा पर किछु नहि पड़ल ।
एकटा बात विचारनीय अछि द्विवेदी जी सन कद्दावर आलोचक तक शुक्लवादी मान्यता क विरोध नहि क सकल । एकर की कारण ? द्विवेदी जी कतिपय प्रसंग मे शुक्ल जी सँ पंगा ल लेने छलाह,ताहि दुआरे ओ विद्यापति पदावली क सम्बन्ध मे यथेष्ठ ध्यान नहि देलाह ।अवधी आ ब्रजभाषा काव्य परम्परा क प्रति तुलनात्मक स्नेह सेहो हिनका एहि दायित्व सँ वंचित कएलक ।
एहि बीच मे अन्य रचनाकार क टिप्पणी सब आबैत रहल । राम कुमार वर्मा क एकाक्षी दृष्टि मे विद्यापति काव्य मे आंतरिक सौंदर्य क अपेक्षा बाह्य सौंदर्य क प्रधानता अछि ।
स्वातंत्रयोत्तर परिदृश्य मे विद्यापति क सम्बन्ध मे बेहतर समझ विकसित भेल । राम विलास शर्मा विद्यापति काव्य के सम्बन्ध मे कम जानकारी क बावजूद ई बात बूझि सकलाह कि ओ नवजागरण क अग्रदूत छलाह ।
तहिना राम स्वरूप चतुर्वेदी अपन ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास ’ मे शुक्ल जी द्वारा प्रतिपादित लौकिक आ आध्यात्मिक फांस के काटि पाबैत छथि ।
”आचार्य शुक्ल एहि ठाम ओहि अनुभव तक नहि पहुँचैत छथि कि पदावली अपन श्रृंगारिक भावना क साथ वास्तव मे ऐहिक अछि आ तन्मयता क गंभीर अनुभूति ओकरा आध्यात्मिक स्तर पर रूपांतरित करैत अछि .........काम भाव आ शरीर क सौंदर्य हुनका ओहि ठाम उत्सव रूप मे अछि। ताहि दुआरे ई चिर परिचित होइतहुॅ चिर नवीन अछि ।”
ई चतुर्वेदी जी क ईमानदारी छल कि हुनका पदावली मे सद्यःनवीनता क गंध मिल ।मुदा लेखक अवांछित संक्षिप्तता मे अपन काज चलाबैत अछि । ई पुस्तक त मानि के चलैत छैक जे रचना काशी आ आलोचना प्रयाग मे होइत छैक ।
शिव प्रसाद सिंह हिंदी आलोचना क एहि एकांगिता के नीक जँका चिन्हैत छथि ।अपन पुस्तक ’विद्यापति ‘ मे ओ विद्यापति आ पदावली क सौन्दर्य के काव्यशास्त्रीय दृष्टिकोण सँ देखैत छथि ।ओ विद्यापति के अपरूप क कवि मानैत छथि । “सौन्दर्य हुनकर दर्शन अछि आ सौन्दर्य हुनकर जीवन दृष्टि ।एहि सौन्दर्य के ओ नानाविधि देखलाह ,आ कुशल मणिकार क तरह चुनलाह ,सजा के,सँवारि के आलोकित कएलथि ”एहि सौन्दर्य क विश्वव्यापी रूप क ओ परख करैत छथि आ जायसी क ग्रंथ ’पद्मावत‘ सँ पदावली क सौन्दर्य क तुलना करैत अछि ।पद्मावती क दिव्य स्पर्श सँ सभ वस्तु अभिनव सौन्दर्य धारण करैत अछि ।लेखक मानैत अछि कि विद्यापति क राधा क अपरूप सेहो ई पारस अछि ।हुनकर अभिमत अछि“आश्चर्य होइत अछि जे जायसी सँ सौ वर्ष पूर्व विद्यापति जाहि पारस रूप क चित्रण कएल,ओहि पर ककरो ध्यान नहि गेल ,एकरा विद्यापति क अभाग्य कहल जाए ”
डॉ0 सिंह क अवलोकन विन्दु प्रशंसनीय अछि, मुदा ई अभाग्य त हिन्दी आलोचना क अछि ,विद्यापति क नहि ।
मैनेजर पांडेय अपन पोथी ’भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य ’ मे विद्यापति पर किछु चर्चा करैत छथि ।पुस्तक क शीर्षक सँ स्पष्ट अछि जे विद्यापति नाम क सीढ़ी क प्रयोग केवल सूरदास तक जएबा क लेल कएल गेल अछि ।तथापि एहि किताब मे गीतिकाव्य आ विद्यापति क सम्बन्ध मे किछु महत्वपूर्ण जानकारी अछि ।लेखक कहैत छथिन्ह “विद्यापति क पद मे सौंदर्य चेतना क आलोक भावानुभूति क तीव्रता घनत्व एवं व्यापकता आ लोकगीत तथा संगीत क आंतरिक सुसंगति अछि ” लेखक विद्यापति आ सूरदास दूनू के भक्ति कवि मानैत हुनका जन संस्कृति क रचनाकार मानैत छथि ।
विद्यापति आ हिन्दी आलोचना नामक ई निबन्ध एहि दृष्टि क मांग करैत अछि कि विद्यापति पर मौलिक दृष्टि सँ काज हो ।
ई प्रश्न हिन्दी आ मैथिली क नहि छैक,बल्कि समस्त भारतीय साहित्य क अछि ।विद्यापति सन मौलिक रचनाकार क जानबा-समझबा क लेल साधारण दृष्टि नहि आलोचना क तत्वान्वेषी दृष्टि चाही ।
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बड़का रचना क लेल बड़का रचनात्मक साहस आ बड़का ईमानदारी क आवश्यकता होइत छैक । विद्यापति पदावली क विषय मे इएह साहस स्पष्ट ढ़ंग सँं उजागर होइत अछि ।‘दुखहि जनम भेल,दुखहि गमाओल ,सुख सपनहुॅं नहि भेल ’ ई पंक्ति
विद्यापति पदावली मे निहित औदात्य क संकेत दैत अछि । संपूर्ण मध्यकालीन काव्य
मे दुख क अबाध स्वीकृति आ सुख के सपना मे अएबा क दारूण रूपक अनुपस्थित
अछि । हे आलोचकगण ! मध्यकालीन भारत क सामंती शासन आ समाज क वास्तविक
रूप देखबा क साहस हो त विद्यापति पदावली फेर सँ पढ़बा क प्रयास करू ।
ई सत्य अछि कि ओहि मे श्रृंगार रस क बेगवती धारा बहि रहल छैक । आ किछु आलोचक ओहि मे स्नानहि के जीवन बूझ‘ लागैत छथिन्ह ।हमरा श्रृंगार रस क तीव्रता ,गांभीर्य स्वीकार्य अछि ।श्रृंगार रस मे निहित एकाग्रता आ स्थायित्व अन्यत्र अनुपलब्ध अछि । हमरा कहबा क मतलब अछि कि विद्यापति अपन श्रृंगार रस क कविता कहबा क लेल मैथिली मे रचना नहि केलाह ।
तथापि विद्यापति पदावली क कोनो आलोचक श्रृंगार मे भसबा आ फसबा सँ नहि बचलाह ।वयःसन्धि क नायिका क ई लावण्य देखि की कविकुलगुरू रवीन्द्रनाथ आ की आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सभ गोटे मोहित छथि-
सैसव जोबन दुहु मिलि गेल । स्रवनक पथ दुहु लोचन भेल ।।
वचनक चातुरि लहु-लहु हास ।धरनिये चाँद कएल परगास ।।
मुकुर हाथ लए करए सिंगार । सखि पूछए कइसे सुरत-बिहार ।।
निरजन उरज हेरत कत बेरि। बिहुंसए अपन पयोधर हेरि ।।
ताहि दुआरे गुरूदेव के विद्यापति क राधिका परमनवीना बूझाइत छन्हि । हे गुरूदेव हमर एहि भ्रांति के दूर करू कि ई राधिका पदावली क विस्तृत आकाश मे प्रगल्भे किएक रहि जाइत छैक,ओकरा मे प्रौढ़ता किएक ने आबैत छैक । अहाँ कहब जे प्रौढ़ राधा क रचना केनए कवि क लक्ष्य नहि छल या राधा क प्रौढ़ता क एक दू टा कविता सुना देब । हे गुरूदेव हमरा बताबू कि ओहि समय मे मिथिला यौवनोन्मत्त
नारी सँ वंचित छल ?। विद्यापति त भरि जिनगी घूमिते रहलाह। कि नेपाल ,जौनपुर आ बंगाल तक मे हुनका प्रौढ़ दर्शन नहि भेल? ,ओ स्वयं भरपूर जिनगी आ भरि उमरि जीलाह । हुनका श्रृंगार क विविध रूप आ दशा के बतायत ?हमर एहि ठाम तुच्छ आग्रह अछि कि अपन तमाम योग्यता आ जीवनानुभव क बावजूद ओ श्रृंगार रस क
क्षयोन्मुख प्रभाव के बूझलाह । ताहि दुआरे एहि अंतरंग रस क आनन्द लइतहुॅ,एकरा चरम लक्ष्य नहि बनेलाह ।
विद्यापति चौदहम-पंदरहम शताब्दी मे छलाह ।संस्कृत काव्यशास्त्र क सब प्रमुख आचार्य एहि समय मे लिखि लेने छलाह आ मम्मटाचार्य
विभिन्न असहमति क बावजूद ‘साहित्यदर्पण’मे व्यापक सहमति बनएबा क प्रयास केलाह ।विद्यापति एहि प्रयास सँ अवगत छलाह । श्रृंगार रस क राजत्व के सम्बन्ध मे हुनका मन मे कोनो संशय नहि छल । मुदा तत्कालीन लेखन मे व्याप्त रीतिवाद आ कादो मे पड़नए ओ उचित नहि बूझलाह । हुनकर अवहट्ट आ मैथिली क दिश प्रयाण क सबसँ
महत्वपूर्ण कारण छल जनोन्मुख भाषा आ टटकापन के स्वीकार केनए ।अपन समय क बंजरपन के लक्ष्य करैत कवि कीर्तिलता मे कहैत छथि-
अक्खर रस बुज्झि निहार नहि कवि कुल भमि भिख्खरि भऊं ।
मतलब ई जे अक्षर रस क मर्मज्ञ केयो नहि बचल, कवि सब घूमि घूमि के भीखमंगा भए गेलाह ।
मिथिला अंचल मे नवविकसित भाषा क प्रति विद्यापति क उत्सुकता आह्लादित आ चकित करैत अछि ।कीर्तिलता मे एकटा आन स्थान पर ओ कहैत छथि-
सक्कअ वाणी बुहअण भावइ पाइअ रस को मम्म न पावइ ।
देसिल बयणा सब जन मिट्ठा,तें तैसन जंपउ अवहट्टा ।।
मतलब ई जे संस्कृत के पंडिते नीक जँका बूुझैत छथि,प्राकृत भाषा क रस केयो
नहि पाबैत अछि । देशी बोली सब के नीक लागैत अछि ,ताहि दुआरे हम अवहट्ट बाजि रहल छी ।
विद्यापति भाषा के संगहि समाज क नवीनता के सेहेा संकेत करैत छथिन्ह -
हिन्दू तुलुक मितल वास,
एकक धम्मे ओकाक हास ।
कतहु बाँग,कतहु वेद
कतहु विसमिल कतहु छेद
कतहु ओझा कतहु खोजा
कतहु नकत कतहु रोजा
कतहु तम्बारू कतहु कूजा
कतहु नीमाज कतहु पूजा
कतहु तुलुका बल कर
बाट जाएते बेगार धर ।।
कीर्तिलता मे अवहट्ट के संगे मैथिली क ई प्रयोग ओते आश्चर्य उत्पन्न नहि करैत अछि,जतेक आश्चर्य उत्पन्न करैत अछि विद्यापति क नवीन सामाजिक स्थिति क प्रति सजगता ।हिंदी विद्वान अंबा दत्त पंत आ मैथिली -हिंदी के शताधिक विद्वान विद्यापति काव्य मे श्रृंगार क विभिन्न दशा के खोजि-खोजि बूड़िया गेलाह ।विद्यापति काव्य क नायिका के वक्षाकार देखि देखि के आलोचक सभ मस्त छथि ।ओ बैर अर्थात वदरीफल सँ बेल क यात्रा मे निर्वाण क रहल छथि ।
पहिल बदरि कुच पुनरंग ।दिने दिने बाढय पिड़ए अनंग ।
से पुन भए गेल वीजक पीर ।अब कुच बाढ़ल सिरिफल जोर ।
माधव पेखल रमनि संधान ।घाटहि भेटल करत सिनान ।
सुखद अछि कि विद्यापतिकाव्य मे विद्वान लोकनि नारियल,टाभनेबो आ तरबूजा नहि खोजलाह,यदि ई सब फल हुनका मिलि जायत,तखन फेर आलोचक महोदय क आनन्द क कल्पना नहि कएल जा सकैत अछि ।मित्र गौरी शंकर चौधरी कहैत छथिन्ह
फल आ तरकारी मे संकर(हाईब्रिड) क कल्पना केनए विद्वान लोकनि बिसरि गेलाह,नहि त विद्यापति काव्य क असफलता पर दू-चारि टा पी0एच0डी0 आउर संभव छल ।
कहबा क तात्पर्य ई जे श्रृंगारिक वर्णन मे ई सब परंपरा रूप मे आबि गेल ।उरोज,नितंब,कटि,जांघ,त्रिबली क दर्शन कतहु कतहु परिस्थितिवश आ कतहु सायास भ गेल अछि;मुदा विद्यापति क कवित्व क ई केन्द्रीय स्थल नहि अछि ।विद्यापति पर तत्कालीन काव्य परंपरा क प्रभाव अछि ।ई समय अछि संस्कृत साहित्य मे अमरूक कृत‘अमरूक शतक’,भर्तृहरि कृत‘श्रृंगारशतक’जयदेव कृत‘रतिमंजरी’ गोवर्द्धनाचार्यकृत’आर्यासप्तशती’‘श्रृंगारतिलक’(कालिदास)क अनुकरण क ।कवि लोकनि जी जान सँ शतक(सेंचुरी) बनएबा मे व्यस्त भ गेलाह ।ई समय छल काव्यरूप,छंद,भाव,भाषा सब क्षेत्र मे अनुकरण क। संस्कृत साहित्य मे ई रचनात्मकता क
दृष्टि सँ उल्लेखनीय समय नहि छल ।विद्यापति क संस्कृत साहित्य पर सेहो ई प्रभाव
देखल जाइत छैक ।
कवि एहि सब प्रभाव क अतिक्रमण अपन अवहट्ट आ मैथिली रचना मे करैत अछि ।व्यक्ति के अपन नाम केहन नीक लागए छैक,मुदा कवि विद्यापति
अपन नाम सेहो लोकभाषा आ उच्चारण के तर्ज पर बदलि लैत छथि-
बालचंद विज्जावइ भासा दुहु नहिं लग्गइ दुज्जन हासा ।
सो परमेसर सेहर सोहइ,इणिच्चइ णाअर मन मोहइ ।।
उत्तर सामंतवादी भारत मे रहए वला विद्यापति अपन समय आ इतिहास क क्रूर गर्जन सँ व्यथित छलाह ।सामंती शासन के नजदीक सँ देखए वला विद्यापति तत्कालीन राजनीतिक नपुंसकता क बड्ड नीक जँका परखैत छथिन्ह ।राजदरबार मे रहए वला राजकवि राजा आ राजपरिवार क कमजोर नस पर कुशलतापूर्वक हाथ राखैत छथि ।हजारी प्रसाद द्विवेदी कीर्तिलता के विषय मे कहैत छथिन्ह “एहि मे इतिहास क कविदृष्ट जीवंत रूप अछि । एहि मे ने काव्य के प्रति पक्षपात अछि ने इतिहास क उपेक्षा । ”
जाहि विद्वान के तुलसीकृत रामचरितमानस क उत्तर काण्ड मे कलियुग क प्रताप देखाइत छैक,ओ कृपा क के कीर्तिलता क चित्रण देखि लेथु ।
बिकाए आए राज मानुसकरी पीसि वर आगे आंग डगर
आनक तिलक आनका लाग पात्रहूतह परóीक वलआ माँग।
ब्राहमणक यज्ञोपवीत चांडाल का आ गल।
वेश्याह्नि पयोधरे जतिहि क ह्रदय चूर ।
धन संचरे धोल हाथि हति बापर चूरि जाथि ।
आवर्त्त विवर्त्त रोलहो नगर नहि नर समुद्दओ ।।
यद्यपि ई जौनपुर नगर क वर्णन अछि, मुदा ऐतिहासिक प्रमाण अछि कि मिथिला क स्थिति सेहो एहने छल ।एक अन्य स्थान पर विद्यापति जाति व्यवस्था मे विघटन क चिह्न देखि रहल छथिन्ह
जति अजाति विवाह अधम उत्तम का पाँरक
परिवर्तन के एते नजदीक सँ देखए वला धर्म आ दर्शन क स्थायित्व मे कते विश्वास करत ! मुदा,विद्यापति क पदावली मे धर्म क उच्च कोटि क दर्शन होइत अछि ।किछु विद्वान विद्यापति रचनावली मे धर्म आ अध्यात्म खोजए वला क दिश लाठी ल के दौड़ए छथि ।आचार्य शुक्ल पदावली मे श्रृंगारिकता पर बल दैत,एकरा अनिवार्यतः ऐहिक घोषित करैत छथि ।ओ व्यंग्य करैत कहैत छथि “आइ-काल्हि आध्यात्मिकता क चश्मा सस्ता भ गेल छैक ।ओ पहिन के किछु लोग
’गीतगोविन्द‘ के साथहि पदावली मे आध्यात्मिक संकेत देखैत छथि ” शुक्ल जी पदावली के श्रृंगारिक साबित करए पर तूलि गेलाह । मुदा परवर्ती आलोचना मे ई कहल गेल कि श्रृंगार भावना मे तन्मयता क गंभीर अनुभूति आध्यात्मिकता मे रूपांतरित भ जाइत छैक । एहि सहमति क बावजूद किछु लोग शुक्लजी क निष्कर्ष के नहि मानबा मे पाप बूझैत छथि । एहने एकटा विद्वान छथि आदरनीय खगेन्द्र ठाकुर जी ।
एक टा आलेख मे ओ कहैत छथिन्ह जे भक्ति भावना होइतहु ओ भक्ति आंदोलन के अंग नहि छथि । हमरा ओहि तथाकथित आंदोलन सँ विद्यापति के जोड़बा मे कोनो रूचि नहि । मुदा एकटा बात स्पष्ट अछि पदावली मे भक्ति भाव क अद्वितीय स्थल अछि ।
विद्यापति क धार्मिकता एहि माने मे अद्भुत अछि कि ओ कोनो संस्थान क लेखक नहि छथि । एहि दृष्टि सँ हुनकर भक्ति भाव कोनो मठ क ध्वजा ल
के नहि चलैत अछि ।साम्प्रदायिकता क एहि अनुपस्थिति पर ध्यान नहि देल गेल । राधा-कृष्ण के साथहि भगवान शंकर,पार्वती,गंगा आ भैरवी क ओ स्तुति करैत छथि ।ई धार्मिकता सब के साथ ल के चलए वला धार्मिक भावना अछि ।ई धार्मिकता धन-संपत्ति आ यश क लेल नहि छैक । एकर मूल उद्देश्य अछि दुनिया सँ आसुरी वृत्ति क नाश-
जय -जय भैरवि असुर भयाओनि,पशुपति भामिनि माया ।
एहि कविता के आलोचक गण निराला क प्रसिद्ध कविता ’राम की शक्ति पूजा ‘ क ओहि अंश सँ तुलना करथि,जाहि मे भगवान राम क शक्ति पूजा सँ प्रसन्न भगवती क उदय होइत अछि ।
विद्यापति क कविता धर्म के खाल जँका नहि ओढ़ैत अछि,ई भारतीय धर्म भावना के उच्च आदर्श के अनुकूल अछि ।हिन्दी क रीतिकालीन कविता जँका एकरा मे कोनो द्वयर्थकता नहि अछि ।रीति कविता क धार्मिकता क मूल मे अछि कवि क विलास भावना मे छिपल अपराध भाव । एहि डर सँ ओ भगवान क नाम लैत छथि । एकटा कवि कहैत छथिन्ह यदि सूतरि जायत त कविता बूझब नहि त राधा कृष्ण क स्मरण एकटा बहाना अछि ।विद्यापति पदावली मे एहि द्वैधता क लेल कोनो स्थान नहि ।एहि मे भक्त क कातरता, ओकर दैन्य, आत्मसमर्पण आ अनन्य निष्ठा निहित अछि ।
विद्यापति भक्ति या श्रृंगार दूनू भावना के प्रकृति के मुक्ताकाश मे देखैत छथिन्ह ,ताहि दुआरे एहि मे मिथिला क प्राकृतिक सुषमा क
अद्भुत दर्शन होइत अछि ।एहि अन्हार पीबए वला सूर्य क तेज सँ अन्यत्र परिचय नहि भेटत- ए री मानिनि पलटि निहार ।अरून पिबए लागल अन्हार ।
प्रेम आ माधुर्य मे डूबल प्रकृति कतहु सादृश्यमूलक अलंकार के रूप मे प्रकट होइत अछि -पहिल बदरि सम पुन नवरंग । आ कतहु विम्ब क रूप मे
जइसे डगमग नलिनि क नीर ।
तइसे डगमग धनि क शरीर ।ं।
वसंत गीत क सौन्दर्य त कोनो भारतीय भाषा मे नहि मिलत । “नवल वसंत नवल मलयानिल
मातल नव अलि कूल ”
एहि कविता क तुलना निराला क सरस्वती वन्दना सँ करब तखन महाकवि विद्यापति क मौलिकता क पता चलत ।
पता नहि कोन आलोचक विद्यापति के अभिनव जयदेव कहने छल । एहि सँ अधलाह उपमा आ उपनाम साहित्य जगत मे दोसर कोनो नहि देल गेल ।गीतगोविन्द मे जयदेव कहैत छथिन्ह-
यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि विलासकलासु कुतूहलम् !
मधुरकोमलकान्तपदावलीं श्रृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् ।
अर्थात यदि हरि स्मरण मे मन सरस हो,यदि विलास-कला मे कुतूहल हो,तखन जयदेव क मधुर कोमल,कान्त पदावली के सुनु ।
विद्यापति त अपन पदावली के सम्बन्ध मे कोनो एकरस घोषणा नहि कएलथि, तैयो विद्यापति के केवल श्रृंगार सँ जोड़नए विद्यापति के कमतर करए के प्रयास अछि । विद्यापति के श्रृंगार आ भक्ति के कवि के रूप मे देखु, कोनो दिक्कत नहि,मुदा ओ साहित्य क वृहत्तर प्रयोजन के ल के चलैत छथिन्ह ।तखने विद्यापति क कविता मे छितराएल विशाल दर्द के अनुभव क सकब । राधा क प्रतीक्षा मिथिला के आम नारी वर्ग क प्रतीक्षा अछि । सामंतवाद पुरूष आ स्त्री के अलग -अलग संस्कार देलकए ।ओहि संस्कार मे नारी क लेल छलए अंतहीन प्रतीक्षा ।एहि प्रतीक्षारत नारी के कनैत-खीजैत आ स्वयं के मनाबए के कतेको चित्र सँ पदावली भरल अछि ।
कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ ! पद मे दुख क विशाल व्यंजना अछि ।जन्म सँ मृत्यु तक दुख क सागर मे रहबा क तर्क विद्यापति क नहि मिथिला के साधारण पुरूष क अछि । ’दुखहि जनम भेल,दुखहि गमाओल ‘क व्यंजना छह सौ साल बाद फेर एकटा कवि क सकल ,जकरा भारतीय साहित्य निराला नाम सँ जानैत अछि । ’दुख ही जीवन की कथा रही‘ पर लट्टू साहित्यिक वर्ग विद्यापति क अर्थगर्भित कविता के जेना सामान्य धार्मिक कोटि मे राखि बिसरि जाइत अछि ।ई एकटा सांस्कृतिक शर्म के विषय अछि ।
संस्कृत काव्यशास्त्र मानैत अछि जे महान रचना मे अर्थ क स्वाभाविक बहुस्तरीयता होइत छैक ।अतः रचना क शरीर सँ नहि ओकर आत्मा सँ केन्द्रीय संवेदना क पहचान होएबा क चाही । विद्यापति मे साहित्य आ शास्त्र क सब मान्यता एमहर ओमहर भ गेल अछि,एहि ठाम आलोचना क लोकतांत्रिकता देखाइत अछि ! जकरा जे मून हो लिख दे आ पी0एच0डी0 क डिग्री ल ले ! वाह रे विद्यापति !आ वाह रे विद्यापति क आलोचना ्!
२
डॉ0 मेघन प्रसाद
मैथिलीमे अनुवाद-कलाक शास्त्रीयकरणक इतिहास
हम पहिनहि कहि दी जे हम अनुवाद कलाक ने तँ मर्मज्ञ छी आ ने कहियो अनुवादक काज कयलहुँ अछि। तथापि राष्ट्रीय अनुवाद मिशन योजना क तहत केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान क अध्किारी लोकनि पूर्ण विश्वसनीयताक संग अनुवादक शास्त्रीय विषयपर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनारमे मंचसँ हमरा किछु कहबाक दायित्वपूर्णं ई भार देलनि तकरा लेल हम संस्थाक अध्किारी लोकनि खासक ऽ डॉ0 अजित मिश्रजीक प्रति कोटिशः आभार प्रकट करै छी।
अनुवादक काज करबाक उत्कट इच्छा तँ छल मुदा साहित्य अकादेमीक प्रतिनिध् ितथा सदस्य लोकनि तकरा आइ ध्रि पूर्ण नहि होमय देलनि। पता नहि हमरा प्रति कोन प्रकारक दुराग्रह पोसने छथि। एकाध् बेर साहित्य अकादेमीक प्रतिनिध्/िपदाध्किारीसँ पत्राचारो कयलहुँ मुदा सेहो निरर्थके गेल। ई जरुर कहि दी जे मैथिलीसँ जुरल रहबाक कारणेँ मैथिलीमे अनुदित रचना बेस संख्यामे पढ़बाक अवसर प्राप्त भेल अछि तेँ ओहि अनुभवक आधर पर मैथिलीमे अनुवाद-कलाक इतिहासपर किछु कहबाक हिम्मति जुटा सकलहुँ अछि।
अनुवाद-कलाक अर्थ - अनुवाद-कलाक मादेँ मैथिलीक अनुभवी आ सफल अनुवादक पण्डित श्री गोबिन्द झाजीक कहब बेसी उपयुक्त बूझि पडै¬़ अछि - एहेन कोनो रहस्य एहेन कोनो सूत्रा नहि वा एहेन कोनो मन्त्रा नहि छैक जे कानमे ढारि देने केओ सफल अनुवादक भ ऽ जाए। हमरा जनैत अनुवाद थिक कोदरबाहि जाहिमे शिक्षण-प्रशिक्षण नहि केवल अभ्यास अपेक्षित होइत छैक। 1
स्वतन्त्राताक सन्दर्भमे अनुवाद जे थिक से एक प्रकारक व्याख्या थिक। प्रायः 1915 ई0मे भाषा वैज्ञानिक Saussure छलाह जे कॉलेज नोट (College Note) लिखलनि तकरा बादमे अनुवाद कहि क ऽ प्रकाशित कराओल गेल। ओ अपन नोटक व्याख्या क ऽ क ऽ प्रकाशित करौलनि जे हुनक मृन्युपरान्त अनुवाद कहि क ऽ प्रकाशित भेलैक।
अनुदित रचना लोक सभ मनोरंजन लेल कम्मे ज्ञान लेल बेसी पढ़ैए। तेँ ओकर मूल बिन्दु आ तकनीकि अर्थ बला शब्दक उपयोग कर ऽकाल पूर्ण सावधनीक आवश्यकता अछि।
विषयवर्गानुसार अनुवाद तीन प्रकारक मानल गेल अछि - शास्त्रीय व्यावहारिक आ साहित्यिक। अनुवाद शास्त्रीय कम व्यावहारिक बेसी होयबाक चाही। शास्त्रीय आ व्याव- हारिक अनुवादमे मुख्यतः अर्थ अर्थात् Suface Meaning आ भाव अर्थात् Intended Meaning इएह दूनू पकड़बाक प्रयोजन होइत छैक। मुदा साहित्यिक अनुवादमे मूलक
अभिव्यजना सेहो सुरक्षित राखबाक अपरिहार्यता रहैत छैक। अभिव्यजनाकेँ पकड़ि पयबाक हेतु विद्वता नहि भावुकता चाही। एहि अभिव्यजनामूलक विशिष्टताकेँ देखैत विभिन्न विद्वान् साहित्यिक अनुवादकेँ अनुवाद नहि कहि Transereation, Recreation पुनःसर्जन प्रतिरूपण आदि नानाविध् नाम दैत छथि।
परोक्षानुवाद - भारतीय भाषा सभमे खास क ऽ मैथिलीमे अनुवादक एक विकृत अर्थात् अवाछनीय परम्परा चलि पड़ल अछि। ई थिक परोक्षानुवाद। अर्थात् अनुवादसँ अनुवाद। एहि प्रकारक परोक्षानुवादमे बहुत-रास विकृति आबि जाइत छैक। विकृति कोना आ कतेक अबैत छैक एक बेर तकर परीक्षण यूरोपक कोनो संस्था करौने छल। लेखक जेन आस्टिन केर प्रसि( उपन्यास प्राइड एण्ड प्रीजूडिस केर एक अध्यायक अनुवाद चीनक मण्डेरिन भाषामे भेल छलैक ताहिसँ अरबीमे आ ताहिसँ फेर अंग्रेजीमे कयल गेलैक। बादमे ज्ञात भेलैक जे एहि अनुवाद-श्रंृखलामे मूल पाठक अध्कितर भाग आमसँ कटहर भ ऽ गेलैक। एहि प्रकारक अनुवादक Channel Distortion निश्चय परोक्षानुवादक श्रेणीमे अबैत अछि। परोक्षानुवादक मादेँ एक बात आओर कहल जा सकैत अछि- जँ अनुवादक मूल भाषा चीनी वा अरबी सदृश विदेशी हुअए तखन तँ मैथिली अनुवादमे मूल भाषाक कोनो खास कुप्रभाव नहि पड़तैक किएक तँ दूनू मैथिलीसँ बहुत दूरक भाषा छैक। मुदा मूल भाषा हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद होयत तँ मूल भाषाक बेसी कुप्रभाव पड़तैक आ ओ मैथिलीक स्वरुपकेँ किछु-ने-किछु अवश्ये बिगाड़ि देतैक। हिन्दीक मूल ग्रन्थ वा अनुदित ग्रन्थसँ जतेक मैथिली अनुवाद हमरालोकनि देखि सकलहुँ अछि सभटा लगैत अछि जे मैथिलीक परिधनमे साक्षात् हिन्दीए ठाढ़ हुअय। संगोष्ठीमे विचारणीय अछि जे एहि प्रवृत्तिक विरोध् कोना आ कतेक दूर ध्रि हुअय।
सफल अनुवादकक प्रवीणता - सफल अनुवादककेँ तीन क्षेत्रामे प्रवीणता रहबाक चाहीऋ मूल भाषामे प्रवीणता लक्ष्य भाषामे प्रवीणता आ अनूद्य सामग्रीक विषयक्षेत्रामे प्रवीणता। जेना मूल सन्दर्भ गणितक हो तँ गणित-शाड्डमे प्रवीणता वा कमसँ कम प्रवेश तँ अवश्ये चाही। मैथिलीमे वास्तविक स्थिति तँ ई अछि जे जेना आजुक मन्त्राी सर्वज्ञ बूझल जाइत छथि तहिना आजुक मैथिली अनुवादक सेहो सौभाग्य वा दुर्भाग्यवश सर्वज्ञ मानि लेल जाइत छथि। आदर्श
अनुवाद तँ ओ होयबाक चाही जे विषय-विज्ञ मूलभाषा-विज्ञ आ लक्ष्यभाषा-विज्ञ लोकनिक सहयोगसँ प्रस्तुत होयत।
उपयुक्त पर्यायक चयन - अनुवादमे भनहि भावक उपदेश देल जाय उपयुक्त पर्यायकचयनकेँ सभसँ पहिने आ सभसँ उच्च स्थान दिअ ऽ पड़त। उपयुक्त पर्यायकेँ चुनबाक हेतु अनुवादकर्त्ता पहिने अपन हृदयकेँ नहि द्विभाषिक शब्द-कोशकेँ ढूँढ़ ऽ लगैत छथि। अनुवादकर्त्ता पहिने अपन हृदयमेसँ उपयुक्त पर्याय ताकथु आ अपन आत्मविश्वास बढ़ाबथु आ तकरा बाद द्विभाषिक वा बहुभाषिक शब्द-कोशमे ढूँढ़थु तँ नीक अनुवाद प्रस्तुत भ ऽ सकैछ।
मैथिलीमे नीक अनुवादक लेल बहुभाषिक व्याकरण रहब आवश्यक अछि जकर अभाव मैथिलीमे सभसँ बेसी अखरैत अछि। एखन एहि दिशामे डॉ0 राम नारायण सिंहजी एकटा नीक काज क ऽ रहल छथि। डॉ0 राम नारायण सिंहजी व्यावसायसँ संस्कृतक शिक्षक छथि मुदा मैथिलीसँ नीक जकाँ जुड़ल छथि। मैथिली-मलयालम-संस्कृत- अंग्रेजी क्रिया-कोश (Multi Langual Verbal Dictionary)क निर्माणमे लागल छथि। प्रायः पूर्ण भ ऽ गेल छनि। आब छपबाक स्थितिमे अछि। ज्ञातव्य जे साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कृत मलयालम भाषाक लेखक श्री तकष़ी शिवशंकर पिळैक एकटा उपन्यास चेम्मीन् साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कृत आ विश्वक अनेक भाषामे अनूदित उपन्यासक मैथिली अनुवाद मलाहिन साहित्य अकादेमीसँ शीघ्र प्रकाश्य छनि। हिन्दीक लेखिका डॉ0 मिथिलेश कुमारी मिश्रक छटता कोहरा लघुकथा-संग्रहक मलयालममे जाग्रता शीर्षकसँ अनुवाद प्रकाशित भ ऽ चुकल छनि। मलयालम भाषाक प्रसि( लेखक श्री जी0 शंकर पिळैक तीनटा मलयालम नाटक पूजा मुरि करुत्त दैवत्ते तेडि स्नेहदूतन् केर हिन्दी अनुवाद पूजा घर काले देव की खोज स्नेहदूत शीर्षकसँ नेशनल बुक ट्र्रस्ट ऑफ इन्डियासँ शीघ्र प्रकाश्य छनि।
मैथिली भाषामे शब्दकोषक परम्परा:- अनुवादक लेल आवश्यक सामग्री यथा शब्दकोषक परम्परा मैथिलामे आरम्भ भेल बहुत बादमे जा ऽ क ऽ 1951 ई0मे। एहिसँ पहिने बहुतो मैथिली शब्दक प्रयोग/समावेश आन-आन भाषाक कोश तथा शब्दावली सभमे कयल गेल छल। मैथिलीमे एखन ध्रि प्रकाशित 11 गोट कोश उपलब्ध् अछि- 1 मिथिला शब्द प्रकाश 3 2 मिथिलाभाषाकोष 4 3 धतुपाठ 5 4 बृहद् मैथिली शब्दकोश 6 5 पर्यायवाची शब्दकोश 7 6 मैथिली शब्दकोश 8 7 मैथिली शब्दकल्पद्रुम 9 8 अंगिका हिन्दी शब्दकोश 10 9 कल्याणी-कोश: मैथिली अंग्रेजी शब्दकोश 11 10 चातुर्भाषिक शब्दकोश 12 एवं 11 मैथिली अंग्रेजी शब्दकोश 13। मैथिली मे प्रकाशित उपर्युक्त शब्दकोश सभक तुलना जँ आन भारतीय भाषा सभसँ करी तँ निश्चये मन खिन्न भ ऽ जायत। मैथिलीक नवीनतम कोश थिक श्री गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली-अंग्रेजी-शब्दकोश जे प्रायः प्रकाशनक क्रममे अछि। एकर अतिरिक्त न्यू हिन्दुस्तानी इंग्लिश डिक्शनरी ऐन इन्ट्रोडक्शन टु द मैथिली लैंगुएज ऑफ बिहार भाग-2 क्रैस्टोमैथी एण्ड भोकेब्युलरी ट्रान्सलेशन ऑफ मनबोध् स हरिवंश एण्ड इन्डेक्स टु मनबोध् स हरिवंश बिहार पीजेन्ट लाइफ ए कम्पैरेटिभ डिक्शनरी ऑफ द बिहारी लैंगुएज भाग-1 बंगीय शब्दकोश ए कम्पैरेटिभ एण्ड ईटीमोलोजिकल डिक्शनरी ऑफ नेपाली लैंगुएज अमरकोशविवशति वर्णरत्नाकर विद्यापतिर पदावली कृषि कोश बेसिक कलोक्विअल मैथिली आदि कृति सभकेँ शब्दसूची शब्दानुक्रमणी वा पारिभाषिक पदावली कहल जा सकैत अछि जकरासँ मैथिलीक कोश सभ बनल आ अनवादक काज लेल गेल अछि।
अनुवाद भाषाक नहि भावक होयबाक चाही। अनुवादककेँ भाषाक फेरमे नहि पड़ि पूर्णतः भावग्राही होयबाक चाही। भाव प्रसंगसँ पकड़ल जाइत अछि। प्रसंग शब्दक अर्थ बड़ व्यापक अछि। एहिमे देश काल पात्रा प्रकरण घटनाक्रम विषय आदि पारिवेशिक तत्त्व समाहित रहैछ। अनुवादमे प्रसंगसँ बेसी महत्त्व अछि संगतिक। अनुवादककेँ संगति पर सतत् ध्यान रखबाक चाही।
अनुवादकक श्रेणीकरण - अनुवादककेँ शब्दग्राही वाक्यग्राही आ भावग्राही आदि तीन श्रेणीमे विभक्त कयल जा सकैत अछि। जेना साइकिल सिखनिहार खसबाक डरेँ साइकिलकेँ कसिक ऽ पकड़ने रहैत अछि। तहिना नवसिखुआ अनुवादक अशु( भ ऽ जयबाक डरेँ मूल भाषाक शब्द आ वाक्य-विन्यासकेँ ध्यने रहैत छथि। हुनका डर होइत छनि जे मूल भाषासँ कनेको विचलित होयब तँ अनुवाद अशु( भ ऽ जायत।परिणाम उनटा भ ऽ जाइत छै। कहबाक तात्पर्य जे मूल भाषाक सतर्क अनुसरणक फेरमे हुनक लक्ष्य भाषाक सहज प्रवाह बिगड़ि जाइत छनि। तेँ अनुवादककेँ भाषाक फेरमे नहि पड़ि पूर्णतः भावग्राही होयबाक चाही। एकटा टंकक उदाहरण द ऽ अनुवादक पण्डित श्री गोबिन्द झा अनुवादकक एहि श्रेणीकरण - शब्दग्राही वाक्यग्राही आ भावग्राही आदिक पुष्टि कयने छथि।2
भाषाक प्रभाव अनेक प्रक्रममे प्रतिफलित होइत अदि। भारतीय शब्दशाड्डमे एकर चारि प्रक्रम वखणत अछि - परा पश्यन्ती मध्यमा आ बैखरी । बैखरी थिक भाषाक ध्वन्यात्मक स्वरुप। इएह एक भाषाकेँ दोसर भाषासँ फराक करैत अछि। प्रक्रमक विभिन्न ध्वन्यात्मक प्रतीकसँ जे प्रतीत होइत अछि से थिक अर्थ। एकरे कहल जाइत छै मध्यमा किएक तँ ई प्रक्रम ध्वनि आ भाव दूनूक मध्यमे पड़ैत अछि। पश्यन्ती केवल ध्यान-चक्षुसँ देखल जाइत अछि। एही ध्यान-चक्षुसँ भाषाक अर्थात्मक स्वरुप देखाइत अछि। प्रक्रममे आगाँ जा ऽक ऽ पश्यन्ती लुप्त भ ऽ जाइत छैक सकल भाव मिलि एक अखण्ड महाभाव भ ऽ जाइत छैक तखन भावना परा पर पहुँचि जाइत छैक। ई परा योगशाड्ड वा दर्शनशाड्डक विषय थिक। परा छोड़ि शेष तीनू प्रक्रमक बोध् नीक अनुवादककेँ होयबाक चाही -1 पहिने मूल भाषाक बैखरीकेँ पकड़ूऋ 2 तकरा द्वारा मूल भाषाक मध्यमाकेँ पकड़ूऋ 3 पुनः तकरा द्वारा मूल भाषाक पश्यन्तीकेँ पकड़ूऋ 4 आब ओहि पश्यन्तीक आधरपर लक्ष्य भाषाक मध्यमाकेँ पकड़ू आ 5 ताहि आधरपर लक्ष्य भाषाक बैखरीकेँ पकड़ू। एकरे नाम थिक अनुवाद। ई प्रक्रिया मूल भाषाक ध्वन्यात्मक प्रतीकक decoding सँ आरम्भ होइत अछि आओर भावक प्रक्रम पर आबि encoded होइत-होइत लक्ष्य भाषाक ध्वन्यात्मक प्रतीकक रुपमे परिणत भ ऽ जाइत छैक।
सरलता - अनुवादक भाषा एहेन हुअय जे जनसामान्य आसानीसँ बूझि सकय। एहिसँ अनुवाद बेसी लोकप्रिय होयत आ अनुवादकक कार्य-प्रगति प्रभावित होयत। एहि सन्दर्भमे अंग्रेज लेखक ग्रियर्सनक अनुसन्धनात्मक पोथीक मैथिली अनुवाद बिहारक ग्राम्य-जीवन निःसंदेह अनुकरणीय एवं सराहनीय अनुवाद-कार्य मानल जा सकैत अछि। बहुभाषिक व्याकरण वा क्रिया-कोश (Multi Langual Verbal Dictionary)क निर्माण-कालमे एहि बिन्दुपर बेसी ध्यान देल जयबाक चाही जाहिसँ कि आगाँक अनुवादककेँ अनुवाद-कार्य करबामे सुविध हुअय।
अनुवादक शास्त्रीयता नीचाँसँ उपर जयबाक चाही - आम लोकक ज्ञान यथा- लोकशब्दाबलीक उपयोग कृषकक ज्ञान यथा- कृषकक जीवन-यापनमे दैनिक व्यवहारमे आबयबला शब्दाबलीक उपयोग जेना उपर उल्लिखित चेम्मीन् क मैथिली अनुवाद मलाहिन उपन्यासमे कयल गेल अछि तेहेन उपयोग आनो अनूदित पोथीमे कयल जयबाक चाही। तकनीकि शब्द यथा- मेडिकल साइन्सक अनुवादमे गामक पशुरोग व्याध्कि नामादिक उपयोग अनुवादमे होयबाक चाही। तहिना मानवजनित रोगहुमे ग्रामीण लोकक देहाती रोगक नामावलीक उपयोग मैथिली अनुवाद लेल कयल जा सकैत अछि।
संक्षिप्तता आ स्पष्टता - अनुवाद सरल संक्षिप्त आ एकदम स्पष्ट हुअय ताहि लेल आवश्यक अछि जे बेसीसँ बेसी तकनीकि (Technical Meaning) शब्दाबलीक उपयोग करैत अर्थगूढार्थकेँ Foot Notes वा Bracket मे ओतहि बुझा दी तँ से नीक रहत।
अनुवादक शास्त्रीय सामग्रीक उपलब्ध्ता (History of knowledge:Text Translation in Maithili)-आब लिखित सामग्री खास क ऽ अंग्रेजी (English)मे कम्प्यूटर (Computer) इन्टरनेट (Internet) ई-मेगजिन (e-magazines) ई-कोश (e-dictionary) ब्लॉग्स (Blogs) आदिपर उपलब्ध् होइ छै। मुदा बिडम्बना अछि जे आजुक मैथिलीक लेखक-अनुवादक अंग्रेजी आ आध्ुनिक तकनीकि ज्ञानसँ अलगे पड़ाइत रहैत छथि। मैथिलीमे अथवा मैथिलीसँ आन भाषामे नीक अनुवाद लेल अंग्रेजी भाषाक संग-संग आन भारतीय भाषाक खास क ऽ दक्षिण भारतीय भाषाक ज्ञान राखब आ तकनीकि उपकरण यथा-कम्प्यूटर (Computer) एल सी डी प्रोजेक्टर (LCD Projector) कैमरा (Camera) सी डी /डी वी डी (Compact Disk/Digital Video Disk) पेन ड्राइव (Pen Drive) आदि संचालित करबाक योग्ता एवं इन्टरनेट (Internet) ई-कोश (e-dictionary) ई-मेगजिनम (e-magazines) ब्लॉग्स (Blogs) आदिक उपयोग करबाक दक्षता रहब अत्याावश्यक भ ऽ गेल अछि।
एकर अतिरिक्त अनुुवादककेँ कतेक स्वतन्त्राता भेंटबाक चाही ? अनुवादक कतेक स्वतन्त्राता चाहैत छथि ? संस्था कतेक स्वतन्त्राता देब ऽ चाहैए ? आदि-आदि नीति आ सि(ान्त आओर व्यावहारिक सम्बन्ध्पर अनुवादक स्तरीयता पठनीयता उपयेगिता उपादेयता तथा अनुवादकक कुशलता आ प्रवीणता एवं अनुवाद-कार्यक सफलता
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निर्भर करैत छैक। अनुवादपर केन्द्रित एहि राष्ट्रीय सेमिनारमे एहू मूल बिन्दू सभपर विमर्श होयब आवश्यक अछि। ध्न्यवाद। जय मिथिला। जय मैथिली।
सन्दर्भ संकेतः-
1 अनुचिन्तन: पण्डित गोबिन्द झा: नवारम्भ प्रकाशन पटना: 2010: पृ0- 113
2 अनुचिन्तन: पण्डित गोबिन्द झा: नवारम्भ प्रकाशन पटना: 2010: पृ0- 115
3 पं0 भवनाथ मिश्र प्रकाशक स्वयं ग्राम-हटाढ-रुपौली पो0- झंझारपुर जि0- मध्ुबनी प्र0 खण्ड 1951
4 पं0 दीनबन्ध्ु झा प्रकाशक स्वयं ग्राम-इसहपुर पो0- मनीगाछी जि0- दरभंगामध्ुबनी 1950
5 पं0 दीनबन्ध्ु झा प्रकाशक- मैथिली साहित्य परिषद् दरभंगा 1950
6 सम्पा0 डॉ0 जयकान्त मिश्र प्रकाशक- इन्डियन काउन्सिल ऑफ एडभान्स्ड स्टडीज शिमला 1973
7 प्रकाशक- प्रज्ञा प्रतिष्ठान काठमाण्डु नेपाल 1974
8 सम्पा0 गोबिन्द झा प्रकाशक- मैथिली अकादमी पटना 1992
9 पं0 मतिनाथ झा प्रकाशक- मिश्र बन्ध्ु प्रकाशन जमुथरि जि0- मध्ुबनी 1997
10 डोमन साहु समीर प्रकाशक- विनोद कुमार चतुर्वेदी सिकन्द्राबाद आन्ध््रप्रदेश 1997
11 सम्पा0 गोबिन्द झा प्रकाशक- महाराजाध्रिाज कामेश्वर सिंह कल्याणी पफाउन्डशन दरभंगा 1999
12 उमेश चन्द्र झा प्रकाशक- सुमित्रा प्रकाशन दरभंगा 2007
13 सम्पा0 गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा तथा विद्यानन्द झा प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन दिल्ली 2009
१.जीवकान्त- जगदीश प्रसाद मंडलक ‘जिनगीक जीत’ उपन्यासपर २. डा. रमण झा- मैथिली चित्रकथा ३. सुजित कुमार झा- जनकपुरमे पागे पाग, ४. बिपिन झा- यान्त्रिक अनुवाद आ Polysemy ५. सुमित आनन्द- संवाद ६.ज्योति सुनीत चौधरी- विहनि कथा- हिमदूत १.
जीवकान्त जगदीश प्रसाद मंडलक ‘जिनगीक जीत’ उपन्यासपर -
मैथिलीमे नवोदित उपन्यासकार जगदीश प्रसाद मंडल। हिनक दोसर उपन्यास देखल- ‘जिनगीक जीत’। हिनकर अन्य उपन्यास अछि- ‘मौलाइल गाछक फूल, जीवन-सघर्ष, जीवन-मरण, उत्थान-पतन, इत्यादि। हिनकर नामपर कथा संग्रह आ नाटक सेहो अंकित अछि।
एहि उपन्यासमे किछु नव अछि। मिथिलाक खेती-प्रधान गामक जीवन आएल अछि। मैथिलीमे एहि लेल आर नव सुखद अनुभूति अछि जे एकर लेखक खेतिहर समुदायक बहुसंख्यक समाजसँ आएल छथि। ओ अपन गामक लोकक भाषा अनने छथि। सवर्ण जातिक लेखक जखन गामक अशिक्षित आ दलित लोकक भाषा साहित्यमे टिपैत अछि, आ जे कदाचित होइत आएल अछि, से बनौआ आ कृत्रिम जकाँ लगैत अछि। लेखक जे भाषा लिखलनि अछि, से देशज मैथिली थिक। मैथिलीमे उर्वराशक्ति असीम आ कल्पनातीत अछि, से जगदीश जीक भाषा देखि-पढ़ि कए बूझल जा सकैत अछि।
नव अछि जे एकर सभ पात्र खेतीसँ जुड़ल अछि। एहिमे कतहु बनियाँ-बेकाल, सूदखोर महाजन, शोषक सवर्ण भूस्वामी, पाकेटमार, डाकू, लम्पट आ खुनियाँ नहि आएल अछि।
खेतीमे जतेक समस्या छैक, जतेक गरीबी आ अभाव भए सकैत अछि, जतेक अकर्मण्यता आ आलस भए सकैत छैक, से सभ विस्तारसँ आएल अछि।
लेखकक दृष्टिकोण नव अछि। ओ कहैत अछि जे गामक उन्नति गामक लोकेक हाथमे छैक। ओ कहैत अछि गामसँ पलायन आ विस्थापनकेँ रोकबाक चाही। गामक धनिक आ गरीब मेल-पाँच कए खेतीमे पूँजी लगाबय, पूँजी जुटयबा लेल गामेमे संभावना ताकय आ तकर दोहन करय। शिक्षा पयबा लेल एक दोसरक मदति करय, बिलटलक मदति कए ओकर समर्थ आ सम्पन्न बनाबय।
लेखक बैंकक कर्जा लए विकास करबाक बात नहि करैत अछि। ओ ब्लॉक आफिसक प्रखण्ड विकास पदाधिकारीक आ ओकर अमलाक चर्चा नहि करैत अछि। स्वयंसेवी आ स्वयं सहायता समूहक चर्चा नहि करैत अछि। देशक पंचवर्षीय योजना आ नहर योजनाक प्रादुर्भाव आ अभावक बात नहि करैत अछि।
नव अछि जे ओ मनुक्खक जिनगीकेँ अनमोल मानैत अछि। ओकरा बचएबा लेल ओ सार्थक सहयोगक कथा कहैत अछि। मनुक्खक गरिमामे ओकर विश्वास छैक। एहि गरिमाकेँ स्थापित कएल जा सकैत अछि, से बात ओ एहि कथानककेँ लिखि कए देखा देलक अछि।
एकटा महात्माक उक्ति क्यो उद्धृत कएने छथि- दू प्रकारक लोकक गरामे पाथर बान्हि कए पानिमे डुबेबाक थिक, एक तँ ओहि धनिककेँ जे धन अछैत दान नहि करैत अछि, आ दोसर ओहि गरीबकेँ जे हाथ-पाएर अछैत परिश्रम नहि करैत अछि।
“जिनगीक जीत”मे एहेन धनिक अछि जे सामाजिक काज लेल दान करैत अछि। एकर उदाहरण थिक बचेलाल आ ओकर माय सुमित्रा। गरीबक एक एहेन उदाहरण थिक अच्छेलाल। दोसर उदाहरण थिक देवन आ बुधनी।
लेखक जगदीश जीक उपन्यास मनुक्खक आदर आ गरिमाक बात करैए। सभ ठाम विभिन्न पात्र सभ एक दोसराक सम्मान करैए।
विवेकानन्दक भाषण सभ मोन पड़ैए, ओ बात-बातमे पराधीन भारतक हिन्दू सभकेँ धिक्कार करैत छलाह। जे सक्षम छल तकर कर्तव्य छलैक जे अन्नहीनकेँ अन्न देअए, विद्याहीनकेँ विद्या देअए। जे एहेन नहि करैत छल, से मनुक्ख नहि छल।
विदेशमे ओ कहि अबैत छलाह जे वेदमे अद्वैतवाद छैक, सभ मनुक्खकेँ एक समान मानैत अछि हिन्दू। देशमे आबि आर्थिक-सामाजिक विषमता देखि दुखी भए कहैत छलाह जे दीन-हीन-अज्ञानीकेँ समानता देबा लेल त्याग आ श्रम करू।
लेखक जगदीश जी स्वामी विवेकानन्दक भाषा बजैत छथि। पहिल उपन्यास ‘मौलाइल गाछक फूल’मे रमाकान्तक चरित्र-चित्रण कएलनि अछि। रमाकान्त मद्रासमे, बेटा सभक मत बुझलाक बाद अपन जमीन-जाल भूमिहीन सभमे बँटबाक निर्णए लैत छथि, ताहि ठाम वेदान्तक अद्वैतवादक चर्चा लेखक कएने छथि।
पोथीक अंतिम आवरणपर लेखकक परिचयमे कहल गेल अछि- ‘मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टगोचर होइत अछि।’
ई रचनाकर पूरा उपन्यासमे मार्क्सवादी शब्दावली नहि अनैत छथि। अनेक ठाम मार्क्सवादक मूल धारणा सभकेँ स्थान देने छथि। बहुत चतुर चालाक छथि। कतहु कहताह, धर्म आ भाग्यकेँ मानब निरर्थक थिक कतहु कोनो समाजवादीक सम्वादमे कहबा दैत छथि जे उत्पादनक सभ स्रोतपर व्यक्तिक एकाधिकार नहि रहए देबाक थिक, ओहिपर मानव-समाजक अधिकार देब न्याय-संगत थिक। सामान्यत: उत्पादनक स्रोत तीनटा थिक- जमीन (खेती), कारखाना आ खान।
समाज बदलबा लेल ओ अनेक ठाम कहैत छथि- मनुक्खकेँ मनुक्खक आदर करबाक चाही। एहि लेल व्यक्तिकेँ सभसँ पहिने अपनाकेँ मनुक्ख बनयबाक चाही।
उपन्यासमे आदर्श अछि, गरीबक गरीबी दूर करबा लेल संगठित आ योजना बद्ध रूपेँ प्रयास होएबाक चाही। समाज बदलि सकैत अछि। से ओ किछु परिवारक उदाहरण लए कए देखा देलनि अछि।
आजुक गाममे एहेन प्रयास छिटफुट होइत रहैत अछि। मुदा, गामक यथार्थ रूप भिन्न अछि। बैमानी-शैतानी अछि। गरीबक शोषण अछि। कमजोरक दमन अछि। धोखा, फरेब अछि। लगानी-भिरानी अछि। चक्रवृद्धि व्याजक ताण्डव नृत्य भए रहल अछि। कथानकक अन्तमे लेखक देवनक संग महंथान सभ दिस जाइत अछि। सुख आ समृद्धिक टापूपर ई मठ-मठाधीश अछि। महंथ सभ भोग-विलासमे डूबल अछि। महंथानमे शान्तीसँ भेँट होइत अछि। ओ महंथानमे भाेग विलास लेल अछि। ओकर नाटकीय ढंगसँ अपहरण भेल छै। बन्द कए राखल आ पोसल जाइ छै। ओ अभिशप्त अछि, काम-क्षुधा शान्ति लेल एक तुच्छ साधन भेल अछि।
धर्मक विरूद्ध बजलाह बुद्ध। हुनको नामपर मठ-महंथ अछि। कबीर बजलाह। हुनको नामपर संगठित गुरूवार साहेबक परम्परा अछि। मार्क्स वर्गहीन, शोषणहीन समाज बनाएब लक्ष्य रखलनि। हुनको नामपर अनेक मस्तान मस्त भेल अछि। प्रजातंत्रमे हर राजनीतिक दल जनताक सुख-सुविधा लेल राजगद्दी मँगैत अछि। नेता सबहक रूपमे महंथ सभ अपन भोग-रागक व्यवस्था करैत अछि।
कदाचित उपन्यासमे वर्णित महंथान प्रत्येक विचार-धाराक जन-विरोधी भए जएबाक आ होइत जयबाक संकेत कए दैत अछि। मनुक्ख बहुत पाखण्डी आ अनुदार होइत अछि।
अन्तमे देवन आ शान्ती मुक्ति लेल, मानव-जातिक मुक्ति लेल संघर्षक बात करैत अछि, जीतक भावनासँ डेग उठबैत अछि।
उपन्यासक अन्तिम पाँति सभ एहि प्रकारक संकल्प अंकति करैत अछि-
“तेँ जरूरी अछि जे सभसँ पहिने अपने उठि कए मनुक्खक रास्तापर ठाढ़ होइ। जखन मनुक्खक रास्तापर ठाढ़ भए चलए लागब तखन जे गिरल मनुक्ख अछि ओकरा उठबैक कोशिश करैक चाही। उठबैक दुनू उपाय अछि। ककरो बाँहि पकड़ि खिंचैक अछि, ककरो पाछूसँ धक्का दए धकेलैक अछि।” यएह जिनगीक जीत थिक....।
२
डा. रमण झा मैथिली चित्रकथा
श्रीमती प्रीति ठाकुरक दू गोट सचित्र कथा संग्रह -मैथिली चित्रकथा एवं गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा देखलहुँ आ पढ़लहुँ । चित्रक माध्यमे कथाक प्रस्तुति एकटा अभिनव प्रयोग थिक जे लोकके ँ, विषेषतः बच्चा सभके ँ अपना दिस आकृष्ट करत।
खिस्सा पिहानी कहबाक आ सुनबाक परंपरा मिथिलामे अदौसँ चल आबि रहल अछि। बूढ़ पुरान स्त्रीगण लोकनि छोट-छोट बच्चा सभके ँ सुतयबाक काल नाना प्रकारक खिस्सा सभ सुनबैत छथि जे मनोरंजनक संग संग उपदेषप्रद एवं षिक्षाप्रद सेहो रहैत अछि। ओहि खिस्सा सभमे प्रसिद्ध अछि -दैत्य सभक खिस्सा, राज कुमार सभक खिस्सा, रामायण महाभारतक खिस्सा, गोनू झाक खिस्सा प्रभृति। उच्च विद्यालय एवं महाविद्यालयमे प्रवेष कयलाक बाद छात्र-छात्रा लोकनि स्वयं कथा पढ़ैत छथि, बुझैत छथि, ओकर रसास्वादन करैत छथि आ समयपर लोकके ँ सेहो सुनबैत छथि।
मैथिलीक संग विडम्वना ई अछि जे महा विद्यालय एवं विष्वविद्यालय स्तरपर लोक विषयक रूपमे मैथिली रखितो अछि, पढ़ितो अछि किन्तु विद्यालय स्तरपर सरकारी घोसनाक बादो लोक ने मैथिली विषयक रूपमे रखैत अछि आने मैथिली माध्यमे कोनो आने विषय पढ़ैत अछि। एतेक धरि जे मिथिलांचलक विद्यालय सभमे गुरुओजी लोकनि मैथिलीमे पढ़यबामे हीनताक बोध करैत छथि। नव युवक लोकनि विवाह होइतहि पत्नीक संग हिन्दी झारय लगैत छथि। कनेक पढ़ल लिखल आ पदवीवला लोक सभके ँ देखबनि जे अपनामे जँ मैथिलीयोमे गप्प करताह तँ बच्चा सभसँ निष्चय रूपसँ हिन्दीमे। हुनका सभके ँ ई नहि बुझाइत छनि जे मैथिली भाषा कठिन छैक। एकर समुचित ज्ञान जँ बच्चामे नहि होयतैक तऽ बादमे होयब कठिन छैक । कवीष्वर चन्दा झा अमैथिलीभाषी(अन्यदेषीयक)क हेतु मैथिली भाषा ओहने कठिन कहलनि अछि जेहन एकटा इचना माछक बच्चाक हेतु समुद्रक सभटा जलके ँ पीयब छैक-
भाषा यदन्यदेषीयोः मिथिलायाः भवेत्तदा।
प्ीतमिंचाकपोतेन समस्तं वारिधेर्जलम्।।
जतय धरि हिन्दीक प्रष्न अछि तऽ ओ तऽ राष्ट्रªभाषा थिक । अनिवार्य विषय थिक। ओकर ज्ञान तऽ स्वतः प्रत्येक व्यक्तिके ँ होयतैक आ रहिते छैक।
एहन स्थितिमे श्रीमती प्रीति ठाकुरक उपर्युक्त विवेच्य पोथी देखि हमर मन गदगद भए गेल। गोनू आ आन मैथिली चित्रकथामे कुल 16 गोट कथा अछि जाहिमे गोनू झासँ सम्बद्ध नओ गोट कथा, महाकवि कालिदाससँ सम्बद्ध एक गोट आ शेष छओटामे राजा सलहेस, नैका बनिजारा इत्यादि प्रमुख चर्चित कथा सभ काल्पनिक चित्रक माध्यमे चित्रित कयल गेल अछि। एहि सभ कथामे किछु बात तऽ शब्दक माध्यमे अभिव्यक्त कयल गेल अछि आ किछु गप्प चित्र स्वयं कहैत अछि। एहि कथा सभक प्रसंग जे लोकक मनमे एकटा भावचित्र छल होयतैक से एतय बुझि पड़ैत अछि जेना साकार भए उठल हो।
विदुषी कथा लेखिकाक दोसर संग्रह थिक मैथिली चित्रकथा जाहिमे कुल 10 गोट प्रमुख कथा सभ वर्णित अछि। एहि कथा सभक बीच बीचमे काल्पनिक चित्र सभक समायोजन कथाक यथार्थताके ँ प्रमाणित करैत अछि। एहि संग्रहमे संग्रहित महत्वपूर्ण कथा सभ थिक -राजा सलहेस, बोधि कायस्थ, दीना भदरी, नैका बनिजारा, विद्यापतिक आयु अवसान प्रभृति।
हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे उपर्युक्त दुनू कथा संग्रह बच्चा सभके ँ तऽ आकृष्ट करबे करत अपितु समाजक सभ वर्गक लोकके ँएक बेरि एकरा उलटयबाक लिप्सा होयबे करतैक। एहि दिशामे श्रीमती ठाकुरक स्तुत्य प्रयास अछि, साहसिक डेग अछि आ अभिनव प्रयोग अछि। हमर शुभकामना अछि जे कथा लेखिका एहने सरस, सहज आ सजल रचना सभसँ मैथिली साहित्यक भण्डारके ँ सुरभित करैत रहथि।
३
सुजित कुमार झा जनकपुरमे पागे पाग
पागक व्यवसायीकरण पर किया नहि सोची ?
सुजीतकुमार झा
राष्ट्रीय निजी तथा अवासिय विद्यालय एशोसिएशन (एनप्याब्सन)क राष्ट्रीय अधिवेशनमे सहभागि होवय जनकपुर आएल सदस्य सभकेँ माथ पर एखन कोनो अन्य टोपी नहि पाग मात्र रहैत अछि । जतय जाउ खाली पाग पहिरने लोक भेटत ।
राष्ट्रीय समाचार समितिक काठमाण्डू कार्यालयमे कार्यरत पत्रकार प्रकाश सिलवाल कहैत छथि — अहि बेर जनकपुर सँ पागे सनेश लऽ जा रहल छी । एन प्याब्सनक कार्यक्रममे हुनका पाग पहिराओल गेल छल । ओ समारोहमे एक हजार सँ बेसी पाग वितरण भेल छल ।
एन प्याब्सनक केन्द्रीय अध्यक्ष गीता राणा पागकेँ देशक पहिचान सँ जोडैÞत
छथि । बातचितक क्रममे ओ कहलन्हि — ‘ढाका टोपी जतबे नेपालीक लेल प्रियगर अछि ओतबे प्रियगर पाग सेहो अछि ।’ हुनका सेहो जनकपुरमे पाग पहिरने घुमैत देखल गेल । पाग पहिराबयकेँ परम्परा मिथिलाञ्चलमे बहुत लम्बा समय सँ चलैत आएल अछि । विवाह, उपनयनमे विशेष रुपसँ पाग पहिराओल जाइत अछि । ओना किछ वर्ष सँ सम्मान स्वरुप पाग पहिराओल जएबाक चलन बढल अछि । आब पागकेँ सम्मानमे मात्र नहि व्यवसायिक रुपमे विकासक बात सेहो उठय लागल अछि ।
पत्रकार एवं मैथिली साहित्यकार श्याम सुन्दर शशि कहैत छथि — ‘व्यवसायिक रुपमे आगा बढावयसँ पहिने बनावटमे समय सापेक्ष बदलाब करय परत ।’ माथमे खप्प सँ बैसत तखने लोक एकरा कस्सि कऽ स्वीकार करत ओ कहलन्हि । पागक दोकानदारसभ कहैत छथि— ‘एन प्याब्सनक कार्यक्रममे बहुत पाग बिक्री भेल अछि एक गोटे चारि–चारि टा पाग किनलन्हि ।’
पाग उद्योग पर विचार
पागकेँ बढैत मांगकेँ ध्यानमे रखैत जनकपुरमे सेहो अहि सँ जुडल लघु उद्योग खोलल जाय अहि पर जनकपुरक व्यापारीसभ छलफल करय लागल छथि । पहिले वर्षमे ४÷५ हजार पाग बिक्री होइत छल ओ पाग मधुवनी सँ आनि काम चलाओल जाइत छल । मुदा आब तीन चारि गुणा बिक्रीमे बढोतरी भेल अछि एहनमे बाहर सँ नहि आनल जा सकैत अछि व्यापारीसभ कहैत अछि । व्यापारी रामकुमार साह लगनमे मात्र नहि आन समयमे सेहो पागकेँ खोजी होइत रहैत अछि जानकारी दैत छथि ।
जनकपुर उद्योग वाणिज्य संघक कोषाध्यक्ष जितेन्द्र प्रसाद साह कहैत छथि ‘पाग उद्योग खोलवाक लेल वाणिज्य संघ सेहो प्रयत्न करत ।
१० वर्ष पूर्व जनकपुरमे पागो नहि भेटैत छल
जनकपुरमे पाग उद्योगकेँ बात उठि रहल अछि । मुदा १० वर्ष पूर्व एतयकेँ दोकानसभ पर पाग नहि भेटैत छल विवाह दानोक लेल मधुवनी आ दरभंगा सँ लोक पाग अनैत छल । पहिने विवाहदान सौराठ सँ होइत छल । ओतहि विवाह तय कएलक आ पाग लऽ आएल । जाहि कारण जनकपुरमे नहि कियौ पाग खोजी करैत छल आ नहि एतह बिक्री । जनकपुरक प्रसिद्ध स्थान जानकी मन्दिरक महन्थ रामतपेश्वर दास वैष्णव कहैत छथि—‘जानकी मन्दिरकेँ शतवार्षिकी हुऐ वा विशेष उत्सव दश वर्ष पहिने मधुवनी सँ पाग मंगबैत छलहँु ।’ अहि ठाम बिक्री भेला सँ सभकेँ सुविधा भेल अछि ओ कहलन्हि ।
मैथिलक पहिचान बनि रहल
मैथिलक पहिचान कि अछि ? अहि पर किछु वर्ष पूर्व तक पान मखान, माछ सहितक बात लोक कहैत छल । मुदा आब पाग बनि गेल अछि । पूरे मिथिलाञ्चलमे जतह कतहु कार्यक्रम होइत अछि सम्मानमे पागे रहैत अछि । नेपाल संगीत तथा नाट्य प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ रमेश रञ्जन झा कहैत छथि पाग आइ सँ मात्र नहि सभ दिन सँ अपन क्रेज बनौने अछि । मुदा जाहि रुप सँ एकर प्रसार भऽ रहल अछि ई सुखद अछि ।
पागक विकासक लेल सरकार दिस सँ एकटा योजना आनय परत इमेज च्यानल टेलिभिजन सँ आवद्ध पत्रकार रामअशिष यादव कहैत छथि । ओ आगा कहलन्हि पाग आव सम्पूर्ण मैथिलक पहिचान वनि गेल अछि अहिमे वहस कएनाइ बुद्धिमता नहि भऽ सकैत अछि ।
४
बिपिन झा
IIT Mumbai,
यान्त्रिक अनुवाद आ Polysemy
संगणक केर विकासक संग यान्त्रिक अनुवाद संवादक सीमा के विस्तृत कयलक। ओतहि polysemy यान्त्रिक अनुवाद हेतु एकटा विकट समस्या केर रूप मे प्रस्तुत भेल अछि। कारण ई अछि जे मनुक्ख तऽ मानवीय ज्ञान सीमा केर अधीन अछि मुदा मशीन तऽ मात्र ओहि कार्य के सम्पादित कय सकैत अछि ले इनपुट के रूप मे पूर्वप्रदत्त छैक।
प्रश्न ई उठैत छैक जे पोलीसेमी की थीक? ई यान्त्रिक अनुवाद आ व्यवहार के दृष्टि स कोना समस्या उत्पन्न करैत अछि? एकरा लेल की समाधान कयल गेल? ओ कतय तक सार्थक भेल? एकर आगू की भविष्य छैक?
सर्वप्रथम पोलीसेमी की थीक?
पोली शब्दक अर्थ होइत अछि बहुत आ सेमी शब्दक अर्थ होइत अछि चिह्न। एवं प्रकारे पोलीसेमी ओहेन शब्द केर द्योतक अछि जे विविध अर्थ के प्रस्तुत करैत अछि। एहि विविध अर्थक कारण सन्देक उत्पन्न होइत अछि की एकर समुचित अर्थ की होयत? मानव मस्तिष्क तऽ सन्दर्भानुकूल अर्थ जनित करबा मे सक्षम भय समस्या के प्रस्तुत हेबाक मार्ग अवरुद्ध करवाक प्रयास करैत अछि मुदा यन्त्र तऽ ठहरल यन्त्र ओ अपना के अक्षम कहि या तऽ जूआ पटकि दैत अछि अथव हास्यास्पद अर्थ प्रस्तुत कय दैत अछि।
उदाहरण हेतु-
आब साँझ भय गेल..।
एकर अर्थ मानव हेतु सेहो सन्देह प्रस्तुत करैत अछि। विद्यार्थीक लेल पढबाक समय, चोरक हेतु चोरीक समय, गोप हेतु गोशालाक समय, विपत्ति मे परल लोक हेतु अंतक समय रूपी अर्थ दैत अछि।
मानव मस्तिष्क तऽ सन्दर्भ देखि अर्थ ग्रहण करत मुदा संगणक ई नहि कय असमंजस मे परि जायत।
आब प्रश्न उठैत अछि जे एहि दिशा मे की काज भेल? आ अखनि धरि यान्त्रिक अनुवाद मे पोलीसेमी सऽ निदान हेतु की उपाय कयल गेल?
क्रमशः अगिला अंक मे
५
सुमित आनन्द
संवाद
कार्यशालाक आयोजन
भारतीय भाषा संस्थान मैसूरक तत्वावधानमे ल॰ ना॰ मिथिला विष्वविद्यालयक मैथिली विभागमे द्वि दिवसीय कार्यषाला 20-12-2010 तथा 21-12-2010 के ँ सम्पन्न भेल । कार्यषालामे मैथिली जगतक अनुवादक एवं प्रकाषक गण भाग लेलनि । टेक्स्ट कोना छपय आ अनुवादकक की-की समस्या अछि आदि तथ्य सभपर विषद चर्चा कयल गेल । साहित्यकार लोकनि अनुवादकार्यमे वर्तनीक अनुषासनक पालन करबाले अनुवादकर्ता सभकेँ सुझाव देलनि । एहिसँ पहिने संस्थानक मुख्य शैक्षनिक सलाहकार डॉ अजीत मिश्र मैथिली अनुवाद साहित्यक इतिहास प्रस्तुत कयलनि । एहि कार्यक्रममे मैथिली अकादमीक अध्यक्ष श्री कमलाकांत झा , डॉ शषिनाथ झा, डॉ वीणा ठाकुर , डॉ भीमनाथ झा , डॉ रामदेव झा , हृदय रोग विषेषज्ञ डॉ गणपति मिश्र , डॉ रमण झा , डॉ विभूति आनन्द , डॉ कमल कांत झा , श्री शरदेन्दु चौधरी, डॉ जगदीष मिश्र, डॉ यषोदा नाथ झा, डॉ देवकांत मिश्र , सहित लगभग पाँच दर्जन प्रतिभागी लोकनि उपस्थित भए अपन अपन विचार व्यक्त कयलनि।
भाषणमाला
मैथिली अकादमी, पटना द्वारा द्वि दिवसीय भाशणमालाक आयोजन विष्वविद्यालय मैथिली विभाग, .मे दिनांक 5-12-2010 तथा 6-12-2010 केँ भेल। पहिल दिन अर्थात् 5-12-2010 केँ सरस कवि ईषनाथ झा भाषणमालाक उद्घाटन ल0 ना0 मिथिला विष्वविद्यालयक कुलपति डॉ एस0 पी0 सिंह कयलनि तथा मुख्य अतिथि डॉ नीता झा छलीह। एहि अवसरपर मुख्य वक्ता छलीह डॉ वीणा ठाकुर, प्राचार्य एवं अध्यक्षा, विष्वविद्यालय मैथिली विभाग, ल0 ना0 मिथिला विष्वविद्यालय, दरभंगा जनिक व्याख्यानक विषय छल - मैथिली गीत साहित्यक विकास आओर परंपरा । दिनांक 6-12-2010केँ स्व0 सुषील झा व्याख्यानमालाक उद्घाटन ल0 ना0 मिथिला विष्वविद्यालय, दरभंगाक कुल सचिव डॉ विमल कुमार कयलनि। एहि अवसरपर मुख्य अतिथि छलाह डॉ मंजर सुलैमान तथा मुख्यवक्ता छलाह डॉ अमरनाथ झा, दर्षन विभाग, ल0 ना0 मिथिला विष्वविद्यालय, दरभंगा जे मिथिलामे न्याय दर्षनक विकासपर अपन व्याख्यान प्रस्तुत कयलनि। दुनू दिनक अध्यक्षता मैथिनी अकादमीक अध्यक्ष श्री कमलाकान्त झाजी कयलनि। एहि अवसरपर , डॉ शषिनाथ झा, डॉ भीमनाथ झा , डॉ वैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’, डॉ अषोक ठाकुर, डॉ रमण झा , डॉ विभूति आनन्द , डॉ मुरलीधर झा, डॉ योगानन्द झा, डॉ फूलचन्द्र झा प्रवीण सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति सभ उपस्थित छलाह ।
६ ज्योति सुनीत चौधरी विहनि कथा
हिमदूत :
हेमन्तजी नौकरीक कारणे परिवार सऽ दूर असगर अमेरिका मे रहैत छलैथ।जाड़क प््राकोप अपन पराकाष्ठा पर छल।तोरक तोर बर्फक बरखा सब भूमिपर चॉंदीक ओढ़ना ओढ़ेने छल।ताहि पर सऽ हुन्कर पंजामे कनिके क्रैक भऽ गेल छलैन से बहुत दिनसऽ प्लास्टर छलैन।नेंगड़ा कऽ चलि चलि कहुना अपन जरूरी काज करैत छलैथ। अतेक दिन सऽ ऑफिस नहिं जा रहल छलैथ से ओतहु सऽ सूचना आबिगेल रहैन जे यथाशीघ्र दफ्तर औनाई प््राारम्भ करू।छुट्टीक कारण देर सऽ उठैत छलैथ आ जखन बाहर ताकैत छलैथ त हिमदूतक छाप देखायत छलैन जे नेन्ना भुटका सबहक टोली भरिसक बाहर बर्फपर सूतिकऽ हाथ पैर हिला हिलाक बनौने छल। ई देखि हुन्का अप्पन बाल्यकाल ध्यान आबि गेलैन जखन हिमदूतक खिस्सा सब सुनै मे हुन्को खूब मजा आबैत छलैन। अखनो मोन तऽ बड्ड छलैन जे बाहर जा कऽ बच्चा सब संगे बच्चा बनि खेल करैथ मुदा पैरक प्लास्टर आहिये कटल रहैन।डॉक्टर अखनो सतर्क रहैलेल कहने छलैन।
आब आर कार्यालय नहिं गेनाय ठीक नहिं छलैन से हेमन्तजी अपन तैयारी प््राारम्भ केला। ओ अतेक दिन बाहरक सफाई नहिं कऽ सकल छलैथ से अनुमान रहैन जे गैरेजक आगू जे बर्फक भरमार भऽ गेल हेतैन जकरा कार निकालय लेल साफ केनाई अनीवार्य भऽ गेल छलैन।से सबसऽ पहिने कहुना नेंगड़ाएत फड़सा लय बाहर गेला। बाहर के दृष्य विस्मित करय वला छल कारण पूरा रस्ता आ द्वारक भाग साफ छल।बड्र्ड आश्चर्यचकित छलैथ जे ई कोना भेल। नहिं किछु तऽ पिछला दस दिन सऽ लगातार बरफ खसि रहल छल। फेर बच्चा सब जे हिमदूतक छाप बनौने छल सेहो बिना बर्फक मोट ढ़ेरके बिना कोना सम्भव छल।कहिं ई हिमदूतक अस्तित्व सच तऽ नहिं. हेमन्त जी सोचला।
दोसर दिन हेमन्तजी काजपर जायलेल जल्दी उठला तऽ अपन द्वार लग किछु हलचल लगलैन।खिड़की सऽ तकला तऽ देखला जे बच्चा सब मिलिकऽ हुन्कर जगह साफ करैत छलैन। जखन ओकरा सबके टोकलखिन तऽ ओ सब कहलकैनजे हुन्कर अस्वस्थता सबके बूझल छलै ताहि द्वारे बच्चा सब प््रातिदिन खेलय काल हुन्कर रस्ता साफ कऽ दैत छलैन।हेमन्तजीक हृदय भावाविभोर भऽ अपन आभार व्यक्त करयमे असमर्थ भऽ गेल छलैन।आहि हेमन्तजीके असली हिमदूतक दर्शन भऽ गेल छलैन।
१मुन्नाजी- अझुको क्षणकेँ अंगीकार करैछ “क्षणिका” २. धनाकर ठाकुर- जगदीश प्रसाद मंडलक “ गामक जिनगी” ३.उमेश मंडल- मैथिली उपन्यास साहित्यमे संवेदनाक स्वर
१
मुन्नाजी
अझुको क्षणकेँ अंगीकार करैछ “क्षणिका”
विहनि कथाक नींवक पहिल ठोस खाम्ह बनि सोझाँ आएल “क्षणिका” पैंतीस बर्ख बाद पुनर्प्रकाशित अपनामे समेटने तीस गोट विहनि कथा (लघुकथा)क संगोर अछि। ऐ मे प्रकाशित अधिकांश कथा अपना गात आ विहनि कथाक शिल्पेँ आइयो प्रासंगिक आओर विवरणीय अछि।
ऐमे प्रकाशित कथाक नींव आइसँ चारि दशक पहिने श्री अमरनाथजी द्वारा तहिया राखल गेल जहिया कि मैथिलीमे विहनि कथाक स्थिति द्वितीयाक चान जेकाँ छल। आन गद्य विधाक एक प्रकारेँ फरिछा गेल विहनि कथाक तहिया शैशवावस्था छल। शैशवो केहेन तँ जेना कहियो अप्पन समाजमे बेटीकेँ सोइरीयेमे नोन चटा अस्तित्वेकेँ मेटा देबाक सोच व्याप्त छलै।
आइसँ चारि दशक पहिनेसँ आजुक सामाजिक परिवेशक तुलनात्मक स्थिति देखी तँ तहिया अमावश आ आइ पूर्णिमा सन देखाएत। तहियाक समग्र स्थितिक ठाम-ठीम चित्रण ऐ संगोरक कथा सभमे स्पष्ट देखाइछ। मुदा किछु सोच किछु कुरीतिक तहियाक चित्रण आइयो प्रासंगिक लगैछ जेनाकि “पपीहा” शीर्षक कथामे बुढ़ा-बुढ़ीक दुर्दशाकेँ बेटा-पुतौहक सेवासँ निराश भऽ स्वयं जीबाक लेल बाट तकैत ई बुजुर्ग दम्पत्तिक मानसिक चेतनाक शिकार अझुको बुजुर्गक दुर्दशाकेँ आलोकित करैए। ओना समाजक सभ व्यक्ति एके रंग अवचेतन नै होइछ जे तहियो छल आ आइयो अछि। आइयो ऐमे प्रकाशित कथा- “लालटेम”मे चित्रण जुआ जकाँ हारल जुआनीसँ वृद्ध भेल पिता जखन अपन आश्रय तकैत छथि तँ अपने विमोहित घरकेँ घुरि अबैत छथि। ई चेतना अझुको किछु धिया-पुतामे धारल उसारल राखल भेटत, पूर्णतः मूइल नै।
धनिक गरीबक फाँट तँ सभ दिन रहलैए आ ई अमर अछि। चाहे वैज्ञानिक तकनीकी दृष्टिये संसार कतबो बदलि जाए। ऐ संगोरक श्रेष्ठ कथामे सँ एक “माटि पानि” साहेब सभ गरीबकेँ हेट कऽ रखैत छथि। हुनक ऐय्यासी, सामाजिक परिवर्तन हुनक संवेदनाकेँ सेहो सुखबैत जा रहल अछि। मुदा एकटा गरीबे एहेन अछि जे सभ संकटक घड़ीमे साहेबकेँ जिनगीक पटरीपर लऽ आनि आगू बढ़बाक रस्ता देखबैछ। उपरोक्त कथा सभकेँ पढ़लोपरान्त अहाँकेँ ई भान अवश्य होएत जे विहनि कथा, जे आइसँ चारि दशक पूर्व मैथिलीयोमे आने भाषाक लघुकथाक समकक्ष अपन खुट्टा गरबामे समर्थ भेल छल। ऐ “क्षणिका” नामक विहनि कथा संगोरकेँ प्रकाशित करबाक दुस्साहस अमरनाथजी देखौलनि जे आजुक विहनि कथाक बाटक हेतु मीलक पाथर साबित भऽ रहल अछि।
चारि दशक पहिने अमरनाथजीक संगोर अवश्य सोझाँ आएल। मुदा ऐ विहनि कथाक ओ एसगर लेखक नै छलाह। ओही समएमे एहने निश्शन “विहनि कथा” मिथिला मिहिरक माध्यमे नियमित सोझाँ अबैत रहल, ओइ रचनाकारक नाम छल एम. मभिकान्त। मुदा ई दुनू गोटे विहनि कथाक फलकपर नै जानि कतऽ हेरा गेला। “विदेह” पाक्षिक ई पत्रिकाक ६७म अंक “जे विहनि कथा विशेषांक” छल तइमे विषयवस्तुजन्य व्यक्ति आ रचना जुटेबाक क्रममे भाइ अनमोल झाक माध्यमे संपर्के जुड़लहुँ ऐ रचनाकारसँ जे आइयो ओही उद्गारक संग अपन चारि गोट टटका रचना पठा ऐ संग्रहसँ एक डेग आओर आगाँ बढ़ि विहनि कथाकेँ मजगुत करबामे सार्थक सहयोग केलनि। एम. मणिकान्त एखनो हेराएले छथि...।
ई रचनाकार युवाकालमे जै जोशे किछु निश्शन रचना सभ देलनि, चारि दशक बादो आजुक रचनाकार सभ ओतै केन्द्रित भऽ रचना करैत देखाइत छथि, जेना देखू “शान्ति” शीर्षक कथाकेँ। लोक जीवन जीबाक लेल जीवनमे शान्ति पेबाक लेल भागादौड़ीमे लागल सम्पूर्ण जिनगीकेँ अशान्त बना लेने अछि। आ जीवन भरि कतौ शान्ति नै भेटि पबै छै, जँ शान्तिक दर्शन होइत छैक तँ जिनगी शान्त भेलाक पछातिये जे आइयो सगरो ईएह स्थिति व्याप्त अछि।
उपरोक्त ठोस रचनाक पछाति ऐ संग्रहकेँ आओर मजगुत आधार दैए सुमनजी द्वारा लिखल गेल आमुखमे सोदाहरण प्रस्तुत कएल गेल खलील जिब्रानकेँ। सत्य लघुकथाकेँ खलील द्वारा एक-एक बिन्दुपर देखार करैत जिनगीक सत्यकेँ सोझाँ अनलासँ साहित्य, सामाजिक आ राजनीतिक परिवेशमे खलबली मचि गेल रहै। जकर कोलाहल वा प्रासंगिकता आइयो बाँचल अछि आ सदा अमर रहत।
मैथिली विहनि कथाक ऐ पहिल संग्रहक दोसर प्रस्तुति आइयो समीचीन भऽ ऐ साहित्यिक विधाकेँ एक प्रकारसँ आगाँ बढ़ेबा लेल उत्प्रेरकक काज करत।
२
धनाकर ठाकुर जगदीश प्रसाद मंडलक “ गामक जिनगी”
श्री जगदीश प्रसाद मंडलक “ गामक जिनगी” कथा संग्रहमे 19 कथा छनि। कथा
सभक शीर्षक बहुत छोट राखव लेखकक विशेषता छनि मुदा एहि कारणे ई मुख्य पात्र प्रधान रहि जाइत अछि।
गामक जिनगी केना शहरसँ अलग अछि संभवत: लेखक एकरहि प्रदर्शित करक
प्रयास विविध कथामे केने छथि। औद्यौगिक क्रांतिक बाद बनल शहर
गामहिसँ उपटल लोकसँ बसल अछि गामहिसँ जीविकाक खोजमे गेल लोकसँ जे
बादमे क्रमश: गाम छोड़ि देलन्हि। गाम छोड़ि कोनो शहरमे जेवाक कारण
प्रारम्भिक अवस्थामे औद्यौगिक पूंजी हो जाहिमे गामक वर्णवैषम्यक भाव भनहि रहल हो मिथिलाक लेल कोशी-कमला समेत अनेक नदीमे अबएबला बाढ़ि कारण रहल अछि ओना बाढ़ि स्वयं सेहो बड़का औद्यौगिक देशक सामान बेचक प्रकरण-उपकरणमे बनएबला
बड़का बैराज-बांध आदिक कारणहि अछि।
लेखककेँ मनमे कचोट छनि जे लोक किएक गाम छोड़ि बाहर जाइत अछि
पंजाब तक जकर परिणाम होइत छनि बादमे नाव चलवैत, वा
गामपर रिक्शा चलबैत लगक कसबा वा स्टेशनसँ जे पात्र कहैत छनि “हमर
गामक लोक पंजाब नहि जाइत अछि।”
किछु वर्ष पूर्व घोघरडीहा वा जयनगर सन स्टेशनसँ पंजाब आदिक छपल टिकट भेटैत छलैक जे एक दिनमे एक-एक स्टेशनसँ लाख- लाख
टाकाक कटि जाइत छलैक जहिपर पंजाबमे हरिiत क्रांति अओलैक।
प्रतिनिधि कथा “डाक्टर हेमन्त”, स्वयं डाक्टर होइक चलते हम
सर्वप्रथम पढ़लहुँ। एक डाक्टरक बेटा डाक्टर हेमन्त प्राय: दरभंगामे
काज करैत “लक्ष्मीपुर” (बाढ़िक गाव निर्मली लग) जाइत अछि अधिकारीक आदेशसँ।
चूँकि ओ स्वयं एक गामसँ निकलल अछि पिताजीक उपार्जित धनक बंटवारामे
मुकदमेबाजीसँ त्रस्त अछि। डाक्टर हेमन्त तँ मिथिलेक शहरमे रहलाह।
जतए कि प्रमंडल एखन तक सहरसा या शहर सा कहबैत अछि। जतए कोनो शहर शहर
सन नहि अछि बल्कि गामहिक एक प्रतिरूप अछि। मुदा हुनक बेटा कोनो
दोसर प्रांतक शहरमे नौकरी लेल चलि गेलखिन्हि। डाक्टर नहि बनलखिन
यद्यपि कहानीमे ई लिखल नहि अछि किएक मुदा संभवत: आब डाक्टरी पढ़नाइ
कम टाका दऽ भए गेल अछि तँए।
किछु वर्ष पहिने तकक बिहारक गुंडाराजमे फिरौती अपहरणक कथा सामान्य
छल जकर धमकी स्वरूप लाख टाका वा मौतक धमकी हेमन्तकेँ सेहो
भेटलनि मुदा ओहूसँ पैघ धमकी बाढ़ि क्षेत्रमे काज करए जाउ वा जेल जे
सामान्यत: सुनल नहि गेल अछि मुदा शासनक आतंक चोर-गुंडासँ कम नहि तकर
उदाहरण अछि एहिमे। फिरौतीक माँगसँ बँचवाक लेल यदि बाढ़ि-ड्यूटीकेँ
हेमन्त अंतमे धन्यवाद दैत तँ कथाक पूर्णतामे एक डेग होइत आ तहिना
बाढ़िमे कतहुँसँ आएल कोनो परिवारमे पालि ता सुकन्या सुलोचनाक प्रति
डाक्टरक मनोभावक विकास कथामे नहि भऽ पाएल। सुन्दरी सुलोचनाक आयु
किछु बढ़ा नवयौवना बना ओहिपर कामुक मनोदशाक चित्र खेंचल जा सकैत छल वा
एक छोट कन्याक रूपमे बालिका सुलोचनाक प्रति वात्सल्यताक जे मैथिल
परम्परा अनुसार होइत- “चलू दरभंगा ओतहि पढ़व अहाँ।” किएक तँ विदेशी
मनोदृष्टिजन्य कामव्याधिसँ छोट बालिकामे कामुकता तकनाइ हमरा सबहक
अग्राह्य रहैत। वा, सुलोचना किछु मास बाद दरभंगा कोनो बीमारी जेना सांपक
विष (जकर चर्चा प्रारम्भमे अछि, लए डाक्टर हेमन्तक क्लिनिकपर
आबि बचि जइतथि वा एन्टी-स्नेक भेनमक अभावमे तँ कहुना पहुँचियौ कऽ
दम तोड़ि दितथि वा बँचलाक बाद ओहि समए डाक्टर हेमन्तक नौकरीया बेटा
गामपर आएल रहैत आ ओकरा बियाहि बंगलोर लए जइतथि। मतलब जे कथामे बात
उठए से पूर्ण हेबाक चाही। गामक पलायन रूकि जाए, दरिद्रा कम भऽ जाए आदि
आ तहिना भाषागत शुद्धता हिन्दीसँ लेल शब्द लेल सेहो समान “सामान” जकाँ ग्रहण करब उचित लेखककेँ।
किताबक छपाइ नीक मुदा फोन्ट एक एक पैघ हेबाक छल आ दाम किछु कम
उपेक्षित छल जे प्रकाशकीय धर्मक अनुरूप होइत।
३.उमेश मंडल-
मैथिली उपन्यास साहित्यमे संवेदनाक स्वर
वाक् कलाक बाद संवेदनाक उद्बोधन दोसर गुण थिक जे मनुष्यकेँ आन जीवसँ अलग करैत अछि। ओना तँ संवेदना दुनियाँ-जहानमे उपस्थित सकल-सजीवक वृत्ति चित्र मानल जाइत अछि मुदा दोसर जीवमे प्रत्यक्ष संवादक अभावक कारणे एकर प्रासंगिकताक व्याख्या असहज भऽ जाइत अछि।
साहित्यिक अवधारणामे संवेदनाक स्वर मूलत: कवितामे भेटैत अछि मुदा आशु कविताक गणना सभ भाषामे अति-अल्प तँए भावक प्रवाह एहिठाम (कवितामे) समुचित नहि कएल जा सकैत अछि। उपन्यासक हृदयांन्तिक मर्मक छाया चित्र थिक तँए एहिमे रचनाकारकेँ विम्ब विश्लेषणमे कोनो बाधा नहि होइत अछि। उपन्यासमे ताल-मात्राक कोनो बंधन नहि। विषए-वस्तुक कोनो सीमा नहि, मात्र बिम्बक सूक्ष्मताक उद्बोधन आवश्यक तँए उपन्यासमे संवेदनाक स्वरक प्रदर्शन सभसँ बेसी भऽ सकैत अछि। उपन्यासकेँ कोनो साहित्यक आत्मा मानल गेल। जँ आत्मामे मर्म नहि हुअए तँ संसारमे संबंधक मर्यादा अप्रासंगिक भऽ जाएत तँए संवेदनाक स्वर समाजकेँ नव गति वा नव यति दैत अछि। मैथिली भाषाक अवस्था जे हुअए मुदा एकर साहित्य काेनो आन भारतीय भाषासँ कमजोर नहि। अपन दैनिक जीवनक आयामक अनुकूल मिथिला मैथिलीमे वेदना मर्मक हिमगंगे बड़ व्यापक छथि। पंडित जनार्दन झा जनसीदनक उपन्यास ‘निर्दयी सासु’सँ प्रथमत: संवेदनाक स्वर फूटि श्री जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास ‘जीवन-संघर्ष’ धरि पहुँचि गेल अछि आ अनंत दिशामे गतिमान भऽ रहल अछि।
आब प्रश्न उठैत अछि संवेदनामे दृष्टिकोणक बिन्दु, जे समाजमे दर्शन दऽ सकैछ, पाठक धरि ओहि स्वरकेँ पहुँचेबाक चाही। मिथिलामे समाजिक क्षेत्र आ आर्थिक विषमता अन्य भाषा परिधि क्षेत्रसँ बेसी रहल तँए हम ओहि स्वर मात्रक वर्णन करब आवश्यक बुझैत छी। जाहिमे सम्पूर्ण मिथिलाक चित्रण भेटैत अछि।
मैथिली दर्शनमे मर्मक अंकुर हरिमोहन झाक लिखल उपन्यास द्वय- कन्यादान आ द्वरागमनमे सभसँ पहिले भेटल। हास्य-रसक वसुंधरापर दर्शन रूपी साङहकेँ गाड़ि कऽ संवेदनाक पलान चढ़ा कऽ सामाजिक रूढ़ितापर हरिमोन बाबू प्रहार केलनि मुदा की एहि प्रकारक संवेदना सम्पूर्ण मैथिलीक प्रतिनिधित्व करैत अछि?
हरिमोहन बाबू सन प्रांजल उपन्यासकार पछातिक लोक धरि नहि पहुँचि सकलाह एहिमे हुनकासँ बेसी समाजक आडंबर धर्मी व्यवस्था दोषी मानल जा सकैत अछि, दीन-साधक, ऊँच-नीच, सवर्ण-अवर्णक बीचक खाधि मिथिलाक सनातन लोकपर चमौकनि जकाँ सिहरि कऽ मैथिली संस्कृतिकेँ लाजवन्तिक पात जकाँ जड़िमे सटा देलक। मैथिलीक तथा-कथित िकछु समीक्षकगण सेहो समन्वयवादी दृष्टिकोण मात्र मंचेटा पर रखैत छथि, नेपथ्य वा लेखनीमे एहि बिन्दुक हुनका सबहक लेल कोनो प्रयोजन नहि देखबामे अबैत अछि।
संवेदनाक स्वर जँ अर्थनीतिक मूलसँ निकसि आबद्ध हुअए तँ एकर बिम्ब समाजमे क्रांतिक हिलकोरि उत्पन्न कऽ सकैत अछि। एक दिस आगाँक पाँतिमे बैसल रचनाकार साधन विहीन उपेक्षितक भावनापर एक्को आखर 1925ई. धरि उपन्यासक रूपमे नहि लिखलनि तँ दोसर दिस मैथिली साहित्यक क्रांति पुरूष बैद्यनाथ मिश्र यात्री अपन आंचलिक उपन्यास गाथा सभमे मात्र उपेक्षित व्यक्ति सभकेँ केन्द्रित केलनि। अो वास्तवमे साम्यवादी छलाह। हुनक रचना संसारक वैशिष्टता अछि जतए ऊँच-नीचक व्याख्या बड्ड व्यापक अछि।
मार्क्सवादक मूल सिद्धान्त शोषित व्यक्तिक भावनाकेँ केन्द्र-बिन्दु बना कऽ यात्री जी मिथिलामे साम्यवादी साहित्यकारक रूपमे समाजमे क्रांतिक ज्योति जरौलनि।
हिनक बलचनमा उपन्यासमे आत्मकथाक शैलीमे लिखल एकटा यादव बच्चाक खिस्सा आएल अछि। फूल बाबूक संग ओकर गामसँ प्रस्थान आ विभिन्न पार्टीसँ मोहभंग भेलाक बाद कम्युनिस्ट पार्टीपर विश्वास स्थापित कएल गेल। खिस्साक अंतमे बलचनमाकेँ मारि कऽ पारि देल जाइत छैक।
पारो उपन्यासमे- बाल विवाहपर दारूण प्रहार कएल गेल अछि। जाहिमे मर्मक संग संवेदनापूर्ण चित्र अाएल अछि। बाल विवाहपर आक्रामक प्रहार नवतुरियामे आएल अछि।
डॉ. योगानन्द झाक लिखल भलमानुष उपन्यासमे बिकौआ प्रथाक फलस्वरूप वधूक नर्क होइत जीवनक विवेचन कएल गेल अछि, एहिमे मर्म ओ संवेदनाक स्वरक हिलकोर शुरूसँ अंत धरि देखबामे अबैत अछि।
तहिना सुधांशु शेखर चौधरीक उपन्यास- ’तऽर पट्टा ऊपर पट्टा’मे बहिन गंगाक प्रेरणासँ भाइ परमा द्वारा गामक राजनीतिमे प्रवेश होइत अछि जाहिसँ किछु विरोध आ अपमानक बाद विजय प्रदर्शित भेल अछि। हिनक उपन्यास -दरिद्र छिम्मरिमे- अमलाक माने दरिद्र छिम्मरिक आत्मा कथा संवेदनपूर्ण अछि। ‘ई बतहा संसार’ मे प्रेमक एकटा गाथा कहल गेल अछि जाहिमे संवेदनाक स्वर तँ सहजे अपन विशेष रूप लऽ आएल अछि।
सोमदेवक ‘चानो दाइ’ मे नारी सशक्तिकरणपर आधारित विषए-वस्तु व्यापक रूपेँ आएल अछि।
मायानंद मिश्रक ‘बिहाड़ि, पात आ पाथर’ बेटी बेचबाक प्रथापर लिखल गेल समकालीन समस्याक संवेदनयुक्त बिम्बकेँ उजागर करैत अछि।
व्यास जीक ‘दू पत्र’मे कथा भारतीय आ यूरोपीय संदर्भमे नारीक यथास्थितिकेँ उजागर करैत आगाँ बढ़ल अछि। जाहि ऊपर नि:संकोच नारी संवेदनाक प्रदर्शन स्वभाविक ढंगे आएल अछि।
प्रभास कुमार चौधरीक ‘नवारम्भ’ हवेली मोहनपुर, लंकामोहनपुर आ नवारम्भ नामसँ तीन खण्डमे क्रमश: उत्थान, पतन आ पुनर्जागरणक कथा कहैत अछि। तेसर खण्डमे दलितक मर्म आ संवेदना स्वत: उभरि कऽ आएल अछि। हुनक ‘राजा पोखरिमे कतेक मछरी’ उपन्यास शोषण आ प्रतिरोधक कथा कहैत अछि जे मार्मिक तँ अछिए संगे संवेदनपूर्ण आ स्वभाविक सेहो अछि।
गंगेश गुंजनक- ‘पहिल लोक’मे विवश राजूक कथा संवेदनाक संग कहल गेल अछि।
लिली रे क ‘पटाक्षेप’ उपन्यासमे शिवनारायण नक्सली आन्दोलनकारीक आ आन्दोलनक दमनक कथा मार्मिक रूप लऽ आगाँ बढ़ल अछि।
जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्यास- ‘मौलाइल गाछक फूल’मे समाजक अंतिम व्यक्ति वौएलाल लगसँ खिस्सा प्रारम्भ भऽ साम्यवादी विचार धारासँ ओतप्रोत रामाकान्तक आदर्श सोचक चित्र खिचैत गामक मौलाइल गाछ सदृश्य रूप-रेखाक वर्णन भेटैत अछि, संगहि मौलाइल गाछकेँ गंगाजल सन पवित्र पानिसँ समाजकेँ पुर्नप्रतिष्ठित करबाक संवेदना मार्मिक ढंगे उपस्थित भेल अछि।
तहिना हिनक दोसर उपन्यास- ‘जिनगीक जीत’मे िन:सहाय देवन जे अपना जिनगीसँ ऊपर उठि समाजक जिनगीमे जा मिलैत अछि आ से ठीक ओहिना जेना धार अपन उद्धार करबा लेल समुद्रमे मिलैत अछि। एही ताना-बानाकेँ प्रस्तुत करैत एहि उपन्यासमे संवेदनाक हिलकोरि उझमि आएल अछि।
तेसर उपन्यास ‘उत्थान-पतन’मे सामंती व्यवस्थाक वातावरणक उल्लेख करैत विच्छिन्न होइत गाम-घर आ टूटैत बेकती सबहक समस्याक संवेदनपूृर्ण मार्मिक चित्र आएल अछि। समाजक यथार्थक दर्शन स्वत: आबि अपन गुण-अवगुणक छाप छोड़ि दैत अछि, जाहिमे संवेदना स्वभाविक रूपेँ अपन डीहपर नृत्य करैत नजरि अबैत अछि जेना एहि कथोपकथनपर दृष्टिपात कएल जा सकैत अछि- “हँ, उपाय अछि। हम अहाँकेँ रास्ता बता दइ छी। अहाँ बंगाली छी जहिसँ जाति आ धर्म- दुनू छपाएल अछि। एहिठाम मोटा-मोटी हिन्दूमे तीन वर्ग अछि। पहिल अगुआएल जाति, जेना सोति, ब्राह्मण, राजपूत, भुमिहार इत्यादि। दोसर पनिचल्ला जाति- जेना यादव, धानुक, कियोट, अमात, बरैइ, कोइर इत्यादि आ तेसर अछि हरिजन। जकरा समाजमे अछोप जाति कहल जाइ छैक। एहि जातिक पानि उच्च जातिक लोक नहि पीबैत छथि। ने पानि पीबैत छथि आ ने छुअल अन्न खाइ छथि।”
“अरे, बाप रे, तब तँ समाज टुकड़ी-टुकड़ीमे बँटल अछि?”
“यएह अहिठामक -मिथिलाक- विशेषता छैक जे सभ जाति आ धर्मसँ बँटल अछि मुदा सामाजिक संबंध सेहो मजबूत अछि। जखन कखनो कोनो आफद-असमानी होइत तखन सभ एकजुट भऽ सहयोग करैत। ततबे नहि, जखन कोनो धरमिक काज होइत तखन सभ एकजुट भऽ सहयोग करैत।”
चारिम उपन्यास- ‘जीवन-मरण’मे मनुक्खक जिनगीक दू भागक वर्णन भेटैत अछि- एक जे जीवन कालक होइत अा दोसर जे मुइला पछाति। जीवन कालक कृत मनुष्यक अगिला जीवन माने मुइला पछाति सेहो प्राभावकारी होइत अछि। यएह चित्रण एहि उपन्यासमे प्रस्तुत भेल अछि।
हिनक पाँचम उपन्यास- ‘जीवन-संघर्ष’मे चित्रित जीवनेक दोसर नाओ संघर्ष थिकैक। जेहन जिनगी ओहेन संघर्ष। एही ताना-बानाकेँ देखाओल जिनगीमे सामाजिक, आर्थिक आ भौगोलिक समस्याक चित्रण अनायास भेटैत अछि। जाहिमे अमर-संवेदन अपन अस्तित्व बचाबए लेल समन्वयवादिताक सहारा लऽ फूटि बहराएल अछि, जेना एहि विषय-बस्तुपर नजरि देला उत्तर सहज लगैत अछि-
- “(१) गामेक कारीगर माने मुर्ति बनौनिहार मुरती बनावे। ओना एकपर एक कारीगर दुनियाँमे अछि मुदा, पूजाक मुरतीमे कला नहि देवी-देवताक स्वरूप देखल जाइत अछि। दोसर जँ हम अपन बनौल मूर्तिकेँ अपने अधलाह कहब तँ गामक कलाकार आगू कोना ससरत। तेँ जे गामक कला अछि ओकरा सभ िमलि प्रोत्साहित करी।
(२) काली मंडप गामेक घरहटिया बनावथि। जिनका घर बनवैक लूरि छन्हि ओ मंडप िकएक नहि बना सकैत छथि। संगे इहो हएत जे गामक अधिकसँ अधिक लोकक सहयोग सेहो होएत।
(३) मनोरंजनक लेल गामोक कलाकारकेँ अवसर भेटनि। संगे बाहरोक ओहन-ओहन तमाशा आनल जाए जेहन एिह परोपट्टामे नहि आएल हुअए।
(४) पूजाक लेल, परम्परासँ अबैत ओहनो पुजेगरीकेँ अवसर भेटनि जे पूजाक प्रेमी छथि।
(५) गामक जते गोटे काज करथि ओहिमे नीक केनिहारकेँ पुरस्कृत आ अधला केनिहारकेँ आगू मौका नहि देल जाइन।”
श्रीमती वीणा ठाकुर लिखित ‘भारती’ उपन्यासकेँ नियोजित उपन्यास ग्रथ तँ नहि कहल जा सकैत अछि मुदा एहि ऐतिहासिक विषए-बिम्बक चित्रणमे मैथिली संस्कृतिक समस्त भारतीय दर्शनपर विजयश्री मे मर्म स्पर्शक टीस अनायास देखल जा सकैत अछि।
गजेन्द्र ठाकुर जीक लिखल ‘सहस्त्रवाढ़नि’ उपन्यासक आखर-आखरमे संवेदनाक स्वर झलकैत अछि। संवेदनाक बिम्ब उद्दाध आ सम्यक अर्थनीतिसँ भरल मार्मिक चित्रण- जाहिमे एकटा कर्तव्यनिष्ट आ इमानदार व्यक्ति नन्दकेँ गृहस्त धर्मक संग-संग सामाजिक दायित्वक पालन करवाक क्रममे उद्वेलित व्यथा प्रस्तुत कएल गेल अछि।
ओना तँ एहि साहित्कि परिधिसँ बाहर बहुत ठाम संवेदना-स्वरक दर्शन भेल हएत मुदा हमर अध्ययन संसार रास पघि नहि तँए एकरा उपेक्षा वा तिरस्कार नहि मानल जाए। ई अलग बात जे शब्दक सीमा रेखा सेहो अछि।
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