१.डाँ कैलाश कुमार मिश्र यायावरी २.राजदेव मंडल-उपन्यास- हमर टोल ३.धीरेन्द्र कुमार-नो एंट्री : मा प्रविश ४. डा. रमानन्द झा ‘रमण’-शब्द विभक्ति सम्वाद ५. मुन्नाजीक दूटा विहनि कथा ६.डाॅ. योगानन्द झा- वनदेवी आ नारी अस्मिताक गाथा
१
डाँ कैलाश कुमार मिश्र यायावरी
संगाईप्राऊ : नागा पूर्वजक स्मरणक धरोहर
उत्तर-पूर्व भारतक तमाम प्रदेश हमरा नीक लगैत अछि। नीक लगैत अछि ओतए केर पहाड़, पठार, जंगल, गाछ, बृक्ष, फल, फूल, खेत, खरिहान, सुरम्य झरना, जीव-जन्तु आ ओइ परिवेशमे बसल भांति-भांतिक लोक जे अपन बहुरंगी संस्कृतिक संग जीब रहल अछि। तखन जखन हमर मणीपुर केर राजधानीसँ लगभग 7 किलोमीटर केर दूरीपर समतल भूमिमे बसल कबुई नागा जनजाति बहुल गाममे जएबाक निमंत्रण शोधक कारणे भेटल तँ मोन गद-गद भऽ गेल। ई समए थीक सितम्बर 2010 केर मध्य। हमरा लग हवाई जहाजक टीकट यात्रा करक पाँच दिन पहिने आबि गेल छल। इहो निर्णय भऽ गेल छल जे शोध कार्यमे हमरा एकटा कबुई बाला - बीजू जे कि ओही गामसँ थीकीह से मदति करतीह। बीजू समाजशास्त्रमे पूणे विश्वविद्यालयसँ एम.ए. केलाक बाद आइ-काल्हि असम सेन्ट्रल विश्वविद्यालय सिलचरसँ पी.एच.डी. कऽ रहलि छथि। बीजुक आयु लगभग 26 वर्षक हेतन्हि। मोट मुदा मजगुतगर देह हष्टि। थुलथुन नहि, आकर्षक। नाक कनी पीचल, आँखि कनी धसल मुदा सोहनगर। गसल-गसल बाहि, भरल गाल, उन्नत वक्ष आ मध्यम कद-करीब 5फीट 2 ईच, गौर वर्ण, गसल-गसल दुधिया दाँत चमचम करैत। हँसैत मुँह, लज्जाभावसँ भरल, अतिथि सेवा-सत्कारमे सदतिकाल तैय्यार। अंग्रेजी बीजू मातृभाषा जकाँ बजैत छथि तँए हमरा हुनका संगे सम्प्रेषणमे कुनो तरहक दिक्कत नै भेल। ओना हमर परियोजनाक सम्बन्ध महिला विकास, इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी, आ संस्कृतिसँ रहैत अछि आ बीजू सोसल वर्कमे शोध कार्य करैत छलीह। मुदा हुनकर फोकस उत्तर-पूर्व भारत केर जनजातीय महिला समुदायमे एड्स एवं अही तरहक विमारी (अथवा महामारी)क प्रकोपपर छलन्हि। सोचल, नारी चेतना दिस तँ कार्य करिते छथि, किछु ट्रेनिंग आ उत्साह सम्बर्धन केर पश्चात हमरो संगे काज कऽ लेतीह . यएह सोचैत बीजूकेँ हम अपन परियोजनामे राखि लेलयन्हि।
जखन पहिल बेर मणिपुरक राजधानी इम्फालसँ संगाइप्राऊ गाम दिस गामक चारि युवक आ Read Global संस्थाक एगो सहयोगी नाहिद जुबेरक संग हमरा लोकनि विदा भेलहुँ तँ लागल जे युवक सभ उत्साही छथि आ हिनका लोकनिक मदति से हमरा एतऽ कार्य करैमे सुविधा हएत।
संगाइप्राऊ एक साफ आ सुन्दर गाम थीक जे कि पश्चिमी इम्फाल जिलाक अन्तर्गत लमजाओतोंगबा ग्राम पंचायतमे अबैत अछि। अगर इम्फाल शहरसँ हवाई अड्डा दिस प्रारंभ करब तँ शहरसँ लगभग 7 किलो मीटर चललाक बाद दूटा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 53 और 150 केर मध्य ई गाम बसल अछि। संगाईप्राऊ नाम मणिपुर राज्यक माइथोलाॅजीसँ लेल गेल छैक। तै मीथक अनुसारे संगाईप्राऊ संगाई जे कि राज्यक जानबर छैक केर आवास स्थान मानल जाइत छैक।
ओइ गाममे अधिकांश लोक सभ कबुई नागा समुदायसँ छथि। कबुई नागाकेँ रोंगमेई नामसँ सेहो जानल जाइत छैक। गाममे प्रवेश करिते हमरा बीजू भेँट भेलीह। हम बीजूकेँ कहलिएनि जे हम अतए केर किछु बुढ़-पुरान, किछु महिला, किछु युवक आदि सँ भेँट करए चाहैत छी आ हुनका लोकनिसँ ऐ गाम, एकर लोक इतिहास, एतुक्का परम्परा, आर्थिक-सामाजिक परिवेश इत्यादि पर अपन जानकारी बढ़बए चाहैत छी जैसँ रिपोर्ट लीखबामे सुविधा रहत। हमरा बातकेँ सुनिते बीजू हमरा गामक सभसँ बुढ़ आ जातीय प्रधान लग लऽ गेलीह। बुढ़ 86 वर्षक छलाह। सातमा पास केलाक बाद सरकारी स्कूलमे मास्टर भऽ गेलाह। बेटा-बेटी सभकेँ नीक शिक्षा देलन्हि। हुनकासँ ज्ञात भेल जे हुनकर पूर्वज किछु आरो लोक सबहक संगे पहाड़सँ उत्तरि ऐ गाममे लगभग 1780 ई.मे बसलाह। यद्यपि हुनका लग ऐ बातक ऐतिहासिकताक कुनो लिखित प्रमाण नै छलन्हि। हुनका हिसाबे प्रारम्भमे मात्र ग्यारह परिवार ऐ गाममे बसल। ऐ ग्यारह परिवारकेँ मुखियाक नाम आइयो गामक बूढ़-पुरान सबहक मँुहमे छै। ई ग्यारह व्यक्ति छलाह-
1. गोन्बी
2. थोम्बुई
3. बोंकमलाक
4. सचाऊ
5. लंगखोंग्टबा
6. गंगबी
7. ममुईबा
8. गंगथवांगम
9. मईपाक
10. तरांगबोन्नांग
11. कपजीलुपूई (महिला)
अगर दन्तकथाकेँ मानी तँ ई लोकनि बड्ड उद्यमी छलाह। स्थानीय राजा हिनकर उद्यमितासँ प्रसन्न भऽ हिनका लोकनिकेँ अगल-बगल केर पनिगर खेत सभमे धान उपजेबाक लेल कहलखिन। ई सभ बड़ा साहसी आ दबंग सेहो छलाह। तै दिनमे हिनका लोकनिकेँ गुण्डा आ अपराधी तत्वकेँ पकरबाक तथा सजा देबाक अधिकार सेहो दऽ देलखिन। ई ग्यारह पूर्वज संगाईप्राऊ बच्चा संगे बसि अवश्य गेलाह मुदा अपन-अपन मूलग्रामसँ सम्बन्ध सेहो बनौने रहलन्हि। ओतए अर्थात पहारक घर इत्यादिकेँ नै छोड़लाह। जाइत-अबैत रहलाह।
जखन द्वितीय विश्वयुद्ध चलि रहल छल, तै क्षण नेताजी सुभाषचन्द्र बोस अपन आजाद हिंद फौजक संग जापानक सहयोगसँ अही रस्ते ताहि समएक वर्मा (आ आजुक म्यंमार)सँ सम्पर्क रखने छलाह। मणिपुर म्यंमारक सीमा सं सटल अछि। फलत: अतए केर लोकके भयंकर बमबारीक समाना करए पड़लैक। पहाड़ीपर रहैबला लोकक जीवन लगातार, बमबारीसँ परेशान भऽ कखनहुँ झाड़-झंखाड़ दिस तँ कखनहुँ मैदानी भाग दिस दहशतसँ प्राणरक्षाक लेल भागए लागल। ओहुकाल पहाड़ीपर बसल गामसँ किछु कबुई नागा लोकनि संगाईप्राऊ गाममे आबि बसि गेलाह।
तँ बात करैत रही गामक सभसँ बुढ़ पुरूषक। ओ परम्परागत रूपसँ कबुई समाजक प्रधान छथि। ओ कहलनि जे आब ऐ गामक लगभग 35 प्रतिशत नागा लोकनि ईसाई भऽ गेलाह अछि। एकर बादो आपसमे कुनो वैमनस्य नै लोक सभ परम्परागत पाबनि-तिहार, नाच-गान, सभ एक्के संग अखनहुँ बड़ उत्साहसँ मनबैत छथि। अखनहुँ ई लोकनि अपन पूर्वजकेँ देवतासँ बेसिए सम्मान दैत छथि। अखनहुँ अपने-आपकेँ कुनो धर्म आ संस्कृतिसँ ऊपर उठि नागा बुझएमे गर्वक अनुभूति करैत छथि। पितृक प्रति अतेक सिनेह कतहुँ नै देखल हम अपन आइ धरिक यायावरीक प्रवृत्तिमे। पितृक प्रति अतेक समर्पण जे कबुई नागामे देखलहुँ से एकाएक हमरा अपने-आपकेँ अपन पितृक प्रति सचेत कऽ देलक। पितृक प्रति अतेक इमानदारी जे गामक एक नागा चित्रकार प्रथम ग्यारह पूर्वजक चित्र बनाए गामक िनर्माणक एक भव्य पेन्टिंग बनौलनि। पेन्टिंग भव्य आ पैघ। आकर्षक आ रंग तथा तुलिकाक समायोजन केर सर्वश्रेष्ठ उदाहरण। केनवासमे एक-एक रत्ती जगह भरक असाधारण प्रयास। बाह रे कलाकार! बाह रे कला! बह रे पित्रिक प्रति समर्पण! हम पूरा आत्मविश्वासक संग कहि सकैत छी जे अतेक सिनेह हमर पिताक अलावे आर कियोक आन पुरूष हमरा नै दऽ सकैत छल।
परम्परागत कबुई नागा धर्मकेँ मानैबला प्रकृतिक समिप छथि। ओ एकटा सर्वशक्तिमान भगवान अर्थात् तींगकाओ रगवांग' केँ मानैत छथि, एकर अतिरिक्त अनेक तरहक देवी-देवताक अराधना आ पूजा-उपचार सेहो करैत छथि। परम्परागत कबुई नागाकेँ बीच ई विश्वास अखनहुँ छन्हि जे मनुक्ख तखने विमार पड़ैत अछि जखन ओकरा कुनो भूत-प्रेत परेशान करैत छैक आ ओकरापर सवार भऽ जाइत छैक। कखनो काल डाइन-जोगिन सभ सेहो जादू-टोनासँ लोककेँ परेशान करैत छैक। भूत-प्रेत या शैतानी आत्मासँ मुक्त करबाक लेल विमार व्यक्तिक सामने गामक ओझा हरियर तरकारी, फल, फूल, मुर्गीक बच्चाक शोणित, चाउर, देशी दारू आदिसं अपन ईष्ट देव पितृ इत्यादिकेँ अर्पित करैत अछि आ निष्ठापूर्वक पूजा करैत अछि। विश्वास ई कएल जाइत अछि जे एहि प्रक्रिया आ आराधनासँ लोकक कष्टक समाधान भऽ जएतैक।
संगाईप्राऊ गामक कबुई नागा मूलत: छः गोत्रक छथि। ई 6 गोत्र गामक बुजुर्ग लोकनिक कथनानुसार निम्नलिखित अछि-
क. कामेई 27 घर
ख. पालमेई 09 घर
ग. गोलमेई 11 घर
घ. गंगमेई 08 घर
च. मारिंगमेई 08 घर
छ. न्यूमेई 01 घर
इसाइयक प्रभाव तेजीसँ बढ़ि रहल छैक। गाममे एकता मध्यम आकृति केर गिरिजाघर आ एकटा एक्टीभीटी केन्द्र इसाइ मिशनबला बना देने छैक।
गामक लोक सभ, मुख्यरूपेण महिला लोकनि बड़ा कलात्मक आ रचनात्मक प्रवृतिक छथि। Read- Global संस्थाक सहयोगसँ पच्चास प्रतिशत साझेदारीकेँ स्वीकारैत ऐ गामक स्त्री-पुरूष गामक गैरमजरूआ भूमिपर सार्वजनिक प्रयोगक हेतु एगो पुस्तकालय, कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्र, महिला वर्गक लेल आर्थिक उपार्जन हेतु व्यवसायिक प्रशिक्षण केन्द्र बना रहल छथि। ऐ प्रांगणाक नाम तजाई राखल गेल छै। पूछलापर पता चलल जे स्थानीय भाषामे तजाई केर अर्थ होइत छै पहाड़ी जंगलमे एहेन पोखरि जतए नूनगर पानि उपलब्ध होइत छै। आ सभ तरहक जानवर ओइ पानिक स्वाद स्वतंत्र भावसँ अतए लैत अछि। तहिना तजाई प्रांगण अगल-बगलक तमाम लोकक हेतु चाहे वो स्त्री-पुरूष, बच्चा-बुढ़, नव-पुरान, जनजाित-सामान्य जातिक किएक नै हो, सबहक लेल छै। सभ कियो अतऽ आबि ऐठाम उपलब्ध सुविधाक लाभ उठा सकैत अछि। आब बुझैमे कुनो भांगठ नै अछि जे आपसी सौहार्दक बीच कोना कऽ कबुई नागामे व्याप्त अछि।
ई रहस्य अखनो धरि पता नै चलल जे बीजू किएक बहुत रास अगरबत्ती जरेने छलीह। हलांकि कुनो विशेष तरहक दुरगन्धक अनुभूति अवश्य भऽ रहल छल। जखन ओइ गामसँ सम्बन्धित नाना तरहक जानकारी लऽ लेलहुँ तँ ओइ बुजुर्गकेँ कहलिएनि- “बीजू हमरा लेल जानकारी इकत्रित कऽ रहलि छथि। अहाँ लोकनि लग बेर-बेर एतीह आ विभिन्न तरहक प्रश्न करतीह। निवेदन जे ऐ गामक नागा समाजक प्रधान होमाक नाते, सभसँ बुजुर्ग होबाक नाते, अनुभवी होबाक नाते अहाँ हिनका यथासंभव मदति करबन्हि ; गामक लोक सभसँ सेहो आग्रह करबनि जे ई लोकनि बीजूकेँ सहयोग करथि।”
बुढ़ बजलाह- “कुनो बात नै। बीजू तँ गामक बेटी थीकीह। आर अहाँ लोकनि तँ हमरे सभ लेल कार्य कऽ रहल छी। फेर सहयोग तँ करबे करबनि।”
एकर बाद हुनका नमस्कार कए एक महिला लग विदा भेलहुँ। रास्तामे बीजू कहलनि- “श्रीमान्, ऐ घरक बारी मे एकटा तीन दिन पूर्व मरल बरदक मांस निकालल जाइत छलैक तथा खालकेँ अलग करैत छलीह घरक महिला लोकनि। तकरे दुर्गन्ध आबि रहल छल। दुरगन्ध कनि कम भऽ जाए तँए तीन-चारि मुट्ठी अगरबत्ती जरा देने रही।”
आब हमरा लोकनि गामक एक 64 वर्षीए नागा महिला श्रीमती एथेनाक घर पहुँचलौं बड्ड साफ-स्वच्छ आ कलात्मक घर। चारू कात फूल आ हरियरीसँ भरल। घरक भीतरसँ एक युवक बाहर एलाह। हमरा लोकनिकेँ बैसवाक लेल कहलनि। कनी कालक बाद श्रीमती एथेना कमरमे फनेक लपेटने तथा ब्लाऊज पहिरने एलीह। सहज आ सुन्दर स्वरूप। निश्छल मोन। शांत स्वरूप। बात होमए लागल। कहलनि- “हम्मर माता-पिता कहि नै किएक इसाइ भऽ गेलाह। मुदा हमरा लोकनि नागा परम्पराकेँ धेने रहलहुँ। पिताजी हमरा एदतिकाल बेटे जकाँ सिनेह देलनि। अन्तत: 1969 ई.मे गुवाहाटी विश्वविद्यालयसँ राजनीति शास्त्रमे एम.ए. केलहुँ। हम पहिल कबुइ नागाक महिला छी जे एम.ए. केलहुँ तकरबाद हमर विवाह भऽ गेल। हमर पति इन्जिनीयर छलाह। ओ हमरा कहलनि जे अहाँ चाही तँ नौकरी कऽ सकैत छी। फेर की छल। भारतीय डाक विभागमे भेकेन्सी एलैक हम अपन आवेदन पत्र जमा केलौं आ हमरा नौकरी भेट गेल। आब अवकाश प्राप्त कए अपन गाममे रहि रहल छी। बेटा अपन मकान गौहाटीमे बनौने अछि आ बेटी िदल्लीमे। दुनू कहैत अछि गौहाटी किंवा दिल्ली आबि जाऊ। अतए तमाम सुविधा उपलब्ध छै। मुदा हम कतौ नै जाए चाहैत छी। हमर पति केन्सरसँ मरि गेलाह। हम देखैत छी जे गामक बच्चा सभ दिशाहिन भऽ रहल अछि। युवक सभ बेरोजगार आ सड़कछाप छथि। महिला लोकनि शोषित जीवन जीबाक लेल बाध्य छथि। लोकमे देशी दारू बनेबाक आ पीबाक जबरदस्ती रोग भऽ गेल छै। बच्चासभ लेल कुनो एहेन सार्वजनिक स्थल नै छै जतए ओ सभ खेल-कुदि सकए, कला आ रचनात्मक प्रवृत्तिकेँ आगाँ बढ़ा सकै, महिला एवं युवा वर्ग सभ लेल कुनो आमदनीक जरिया नै छै। सोचैत छी गामेमे रहि ऐ दिशामे कार्य करब। आब Read Global संग कार्य प्रारंभ भेल अछि। किछु-ने-किछु अवश्य भऽ जएतैक।”
एथेनाकसँ इहो पता चलल जे गामक अनेको युवक दारू पीब समएसँ पहिने काल-कवलित भऽ गेलाह। हुनका लोकनिक विधवा सभ बड़ा कष्टक जीवन जीवाक लेल बाध्य छथि। संगाईप्राऊ गामक अधिकांश महिला लोकनि स्थानीय दारू भातसँ बनबैत छथि। शहरक लोक सभ घरे-घरे आबि दारू पीबैत अछि। पच्चास टकामे एक मग दारू आ ओकरा संगे सुगरक मांस, कनिक सलाद सेहो भेटैत छै। एक ग्राहक सँ लगभग 20-25 टकाक आमदनी भऽ जाइत छै। अगर एक घरमे एक दिनमे पाँचोटा ग्राहक आबि गेलैक तँ औसतन 125 टकाक आमदनी। मुदा एकर विपरीत प्रभाव स्पष्ट छै। दारू पीऐबला सभ महिला सभकेँ कुदृष्टिसँ देखैत अछि। आर्थिक विवशता तथा पैसाक लोभें किछु नागा महिला देह व्यापारमे लागलि छथि। घरमे दारू सदरिकाल उपलब्ध रहबाक कारणे पुरूष सभ बच्चेसँ दारूक सेवन प्रारम्भ कऽ लैत अछि। महिला सभकेँ अगर अवसर भेटनि तँ ऐ धंधा छोड़ि अर्थोपार्जन केर कुनो आन ब्यौंत करतीह।
ई बड़ा आशचर्यक विषए थिक। मणीपुर राज्य दू प्रकारक लोकमे बाटल अछि। समतल भू-भागमे रहएबला मैतेई आबादी जे मूलत: वैष्णव छथि, कृषिक कार्यमे दक्ष छथि, आ राज्यक जनसंख्याक पैघ प्रतिशत छथि, आ दोसर दिस पहारी क्षेत्रमे बसनिहार 31 जनजातीय समुदाय। मैतई महिला लोकनि बड्ड उद्यमी छथि। मणिपुर केर प्रत्येक जिला तथा ब्लॉक स्तरपर आमा मार्केट अर्थात मातृ-बाजार लगैत छै। ऐ तरहक अमां-मार्केटमे केवल स्त्रीगणें सभ दोकान लऽ सकैत छथि। आश्चर्यक बात ई जे समस्त मणिपुरमे अमां-मार्केटमे एकौटा दोकान आदिवासी महिला लोकनि नै लेलनि अछि। आर-त-आर संगाईप्रऊ गाममे जे तरकारी बेचैवाली महिला सभ छलीह सेहो सभ मैतेई महिला छलीह। एकर एगो कारण इहो बुझना गेल जे मैतेई पुरूष बड़ा उद्यमी होइत छथि। महिला लोकनि कपड़ा बुनि, खेत-पथारमे कार्य कऽ किछु तरकारी इत्यादि बेच, किछु समानकेेँ बाजारमे बेच आ नेरेगाक कार्यक्रममे किछु दिन कार्य के अपन-अपन घरक हेतु किछु अतिरिक्त आमदनीक ब्यौंत कऽ लैत छथि। ऐ तरहेँ गृहस्थीमे स्त्री-पुरूषक सौहार्दपूर्ण सहभागिता देखल जा सकैत अछि।
हलांकि एथेना आ संगाइप्राऊ गामक अन्य उत्साही महिला लोकनि हमरा कहलनि जे अगर महिला लोकनिकेँ तकनीकि ज्ञानक शिक्षा, उद्यमिताक प्रशिक्षण आ इन्टरीप्रेन्युअर केर ज्ञान वैज्ञानिक ढंगसँ देल जानि तँ ई लोकनि वस्त्रक बुनकरी, सुगर-आ अन्य मांसक आचार आदि प्रोसेसिंग आ पेकेजिंग, नेबो, हरियर मिरचाइ, बांसक कोपर इत्यादि अचार बना बजारमे बेच सकैत छथि। आ एथेना ऐ दिशा मे प्रयासरत छथि।
अगर सांस्कृतिक पक्षकेँ देखल जाए तँ ऐ गामक कबुई नागा अपन संस्कार, लोक रीति-रिवाज, वस्त्र-विन्यास, श्रृंगार, परम्परासँ अखनो जुरल छथि। बुजुर्गक सम्मान सर्वोपरि अछि। युवक आइयो बिना बुजुर्गक आज्ञा लेने कुनो विशेष किंवा महत्वपूर्ण निर्णय नै लैत अछि। बहुरंगी वस्त्र आ आकर्षक युवती-युवककेँ नचैत-गबैत देखब तँ देखिते रहि जाएब। सौन्दर्य जेना हिनका लोकनिक बीच कैद भऽ गेल हो। बाह रे देह सौष्ठव। बाह रे सुन्दरता! बाह रे श्रृंगार! बाह रे युवक आ युवतीक मध्य नैसर्गिक प्यार!
कबुई नागाक प्रत्येक घरमे पूर्वजक फोटो टांगल देखलहुँ। फोटोमे नागा जनजातिक लोकक पहाड़, या प्रकृतिसँ सम्बन्ध सेहो सम्मिलित रहैक। अपन घर आ दैनिक जीवनसँ सम्बन्धित उपयोगक तमाम वस्तुकेँ कलाकृतिसँ मण्डित कए जीबाक कला सीखबाक हो, स्वच्छ केना रही से जनबाक हो, पितृ केँ सदतिकाल केना याद रखी से शिक्षा लेबाक हो, गरीबी जीवनमे रहियो अपन मांटि-आ संस्कारसँ सिनेह देखबाक हो, सदतिकाल चौअन्नी मुस्कान बला चेहरा बनेवाक हो तँ कुनो नागा समाजमे जा कऽ किछु दिन रहू। पता लागि जाएत।
२
राजदेव मंडल उपन्यास
हमर टोल
पूर्वरूप :- (क)
अहाँ अही वसुंधराक कोनो कोनपर छी। ई हमर आत्मविश्वास कहि रहल अछि। अहाँक नै देखितहुँ हम देख रहल छी। अहाँक उपस्थितिक ज्योज्स्ना हमरा चारूभर आभासीन भऽ रहल अछि। आर ओइ ज्योतिसँ हमर रोम-रोम पुलकित भऽ रहल अछि। हमहूँ तँ ओइ नृत्यलीलाक अंश छी।
हम बुभुक्षित छी अहाँक सिनेह आ आशीरवादक लेल।
हमरा क्षमा नै करब तँ दण्ड दिअ। किन्तु बिसरू नै। यएह कामना अछि।
अहाँक स्मरण कऽ किछु रचबाक प्रयत्न कऽ रहल छी।
(ख)
विशाल सागरक पसरल जलपर धनुकटोली ठाढ़ अछि। की ओ हँसि रहल छै? आकि कानि रहल छै?
लगैत अछि जेना रँग-बिरँगक जलमे ओ उगि आएल अछि। चारूभर उड़ैत सुगन्धित धुइयाँ। मुँह आ देहमे लटपटाइत बादल जकाँ कारी आ उज्जर धुइयाँ। आ लगैत छै जे ऊ आकृति रसे-रस बढ़ि रहल हो। गाम-नगर-महानगर सभटा आकृतिक भीतर ढुकल जा रहल हो। नजरिक जे एकटा बिस्तार होइ छै, सेहो जेना ओकरा सोझहामे छोट भेल जा रहल छै। ओकरा निसाँससँ निकलैत हवा, बुझाइ छै जेना बिहाड़ि बहैत हो।
बहुत गोटे जेना एक्के बेर जय-जयकार केलक। मथापर जटा, अधपक्कू दाढ़ी-मोछ, लाल कुंडाबोर आँखि हाथमे बड़कीटा शंख लेने एकटा बाबाजी देखाए पड़ैत छै। ओकरा आँखिसँ लहू बहि रहल छै।
हवाकेँ कंपित करैत गम्भीर वाणी निकलैत अछि- “दैविक दैहिक भौतिक तापा....।”
आकास फाड़ैबला शंखनादसँ आगूक शब्द झपा गेल। संगे बाबा महतोकेँ जय-जयकार होअए लगल।
धनुकटोली शनै: शनै: जलमे समा रहल अछि। ओइ स्थानपर उगैत छै- एकटा छोटका टोल। जेना हमर टोल। छोट-पैघ, नीक-अधलाह घर-दुआरि। हँसैत-कानैत लोक-वेद, धीया-पुता, माल-जाल, चिरइ-चुनमुन्नी, सुखल आ हरियर- गाछ-बिरिछ, पोखरि, इनार गली, सड़क, चौबटिया। की ई सपना छी आकि सत्य.....। आकि सत्यक सपना?
क्रमश:
३
धीरेन्द्र कुमार
नो एंट्री : मा प्रविश
(उदय नारायण सिंह 'नचिकेता')
टिप्पणी-
नाटक अधुनातन अछि। पूर्वक नाटक नै पढ़ने मात्र हमर विचार ऐ नाटकपर केन्द्रित अछि। समएक संगे लेखन, विषए-वस्तु, पात्र काल सभमे परिवर्त्तन होइत अछि। मैथिली साहित्यकेँ अधुनातन हेबाक चाही, तै आकांक्षाकेँ ई नाटक पूर्ति करैत अछि। नाटककारकेँ एकर सम्यक बोध छन्हि तँए मैथिल होएबाक कारणे हम आभार व्यक्त करैत छी।
समाजमे जे घटित होइत अछि रचनाकार प्राय: ओकरे चित्रण करैत छथि। नाटककार स्वर्ग-नरकक अवधारणापर नाटक लिखने छथि मुदा नाटकक विषए-वस्तु प्रासंगिक धरतीक विद्रूपता अछि। ऐ विद्रूपताक माध्यम बनौने छथि। भागम-भाग, क्यू, वर्ण-व्यवस्था समाजसँ उपजल चाेरि, बेरोजगारी आ धूर्तता सन समस्या ऐ नाटकमे संयोजित अछि।
नाटकमे पात्रक संख्याक अनुकूल विषए-वस्तु जे उठैत गेल अछि ओकरा नाटककार ऐसँ कमो पात्रमे मंचपर आनि सकैत छलाह। पात्रक अधिक्य मंचपर सफल िनर्देशककेँ सुलभ हेतनि मिथिलामे एकर अभाव होएत। भऽ सकैत अछि हुनकर दृष्टिमे संपूर्ण धरती हुअए।
समस्याकेँ मंचपर आनब पूर्ण सफलता होइत अछि ओकरा तीक्ष्णता संगे राखब जैसँ दर्शकक हृदएपर प्रभाव पड़ै तैमे कमी अनुभव होइत अछि। कोनो रचना जँ हमरा बान्हि लिअए ऐमे अभाव अछि।
नाटकक संवादमे शब्दक खेल कतहुँ-कतहुँ देखएमे अबैत अछि पृष्ट सं- 20-21 द्रष्टव्य अछि। संवादकेँ बान्हल नै जा सकल अछि।
नाटककार अतीतक प्रत्यंचापर भविष्यक वाण चढ़ा शर-संधान करैत अछि। समाजक स्थितिसँ ओकर विसंगति लक्ष्य छन्हि।
“चोर सिखावय बीमा-महिमा
पाकेटमारो करै बयान!
मार उच्चका झाड़ि लेलक अछि
पाट-कपाट तऽ जय सियाराम।।”
समाजक छदम्, राजनीतिक उलटा-फेर आकर्षक ढंगसँ व्यक्त अछि। निरालाक शीध्र झरो हे जीर्ण पत्र' सदृश नाटककारकेँ नवीन आकांक्षा छन्हि-
“आऊ पुरातन, आऊ हे नूतन।
हे नवयौवन, आऊ सनातन।।
प्राण-परायण, जीर्ण जरायन।
कज्र-कठिन प्रणाम गौण गरायन।”
नाटकमे गीतक प्रयोग श्लाध्य अछि। संगीत दर्शककेँ बान्हि कऽ रखैत अछि तैमे नाटककार सफल छथि। हास्य जै ढंगे मुखर अछि। करूण तहिना मुखर नै अछि। नाटककारकेँ संस्कृतक नीक ज्ञान छन्हि- नाटकसँ उद्भाषित होइत अछि। काल-बोध आ वास्तविकतो चित्रणमे जतऽ उपयोगी अछि ततहिं आम दर्शक लेल बोधगम्यतामे अशक्त अछि।
ओना श्री गजेन्द्र ठाकुर जी प्रकाशकक दिससँ विचार व्यक्त केने छथि। पाश्चात्य आ भारतीय काव्यशास्त्रीय दृष्टिकोणसँ हुनकर विचार स्वागत योग्य अछि।
कोनो रचनामे गुण-अवगुण दुनू होइत अछि। तै दृष्टिकोणसँ हम सशक्त भऽ सकैत छी नाटक सफल अछि आ मैथिली साहित्यक एकटा उपलब्धि अछि।
४
डा. रमानन्द झा ‘रमण’
शब्द विभक्ति सम्वाद
शब्द - आउ, लग आउ, एना छिटकल किए छी ? अहाँ लगमे रहैत छी तँ दस गोटे पूछै अछि। नहि
रहब तँ हमरा के पूछत?
विभक्ति - ई हमर सौभाग्य भेल। अहाँक बिना हमर कोन ठेकान ? मुदा की कहू ? अपन मैथिल समाज
केहन कुचेष्टी आ झगड़ लगाओन अछि, से जनतहि होएब? नहि सोहाइत छैक जे लोक मिलि के ँ रहए। घर
फुटौअलिमे मजा अबैत छनि। फेर किछु भाषाशास्त्री छथि, किछु उत्साही लेखक छथि जे अहाँसँ फराके रहबाक
लेल हमरा उसकबैत रहैत छथि। कहल कोना टालबनि, भय होइत अछि, कहीं गोलैसीमे ने फँसा देथि।
शब्द - धुत्! भाषाशास्त्री! वैयाकरण! से कतय पाबी? अल्पज्ञानी लेखकक अभाव सेहो नहि ने अछि, यै?
ई अल्पज्ञानीए ने कहत, हम जे बजैत छी सएह शुद्ध अछि, हम जे लिखैत छी, सएह ठीेक अछि। कहू तँ एहन
कोनो भाषामे भेलैक अछि?
विभक्ति - से हम की जानए गेलिऐ। हमरा अहाँक संग नीक लगैए, सएह टा हम कहि सकैत छी।
शब्द - स े तँ मानलहँ।ु मुदा बरजबाक कारण की छनि? कहे न लाभ दिआबए चाहैत छथि आ े सभ? आ कि
हम नहि सोहाइत छीअनि? ते ँ ?
विभक्ति - अहाँ नहि सेाहेबनि, से की बनतनि? तखन की मंसा छनि, से तँ ओएह लोकनि जानथि। मुदा
हमरा मोनमे किछु खुटकैत अछि, से कहि दैत छी। अहाँ भेलहुँ पुरुष आ हम भेलहुँ स्त्री। अहाँ छी अनन्त पुरुष
आ हम अहाँक भक्तिक आकांक्षी, विभक्ति। हमरा अहाँके ँ एकठाम आ सेहो एक पाँतीमे सटि बैसब कथमपि उचित
नहि अछि। किनसाइत जँ इएह हुनकालोकनिक नहि पचैत होनि?
शब्द - से, हम नहि जानी। मुदा हम जे अनुभव करैत छी आ किछु विश्वासो अछि, से कहैत छी। ओ सब
ई बिसरि जाइत छथि जे संस्कृत भाषाक साम्राज्यमे अहाँ हमर संगिनी बनल रहलहुँ। कोनो विद्वानके ँभ्रम नहि
भेलनि। असमंजस्यमे नहि पड़लाह। मुदा मैथिलीक नवका विद्वान आ नवसिखुआ लेखकके ँ भ्रम होइत छनि।
भ्रमाह लोकक परामर्श मानि अवसर अबितहि हमरा लगसँ अहाँ छिटकि जाइत छी। दूनू गोटेक कतेक दिनक
साहचर्य अछि, एहन कोनो घटना मोन अछि जखन हम कोनो प्रकारक अत्याचार अहाँ पर कएने होइ? सुनू, अहाँ
असगर रही वा दू गोटे मिलि के ँ रही, विश्वास राखू अहाँक धर्म पर कनिको आघात नहि लागत। अहाँ सन
उपकारी लोकके ँहम बारि रखने रही, कोना छजत हमरा? कोना उचित होएत? हमर आत्मा कलपत नहि?
विभक्ति - से तँ बुझलहुँ, मुदा जँ हम अहाँक लग नहि आबि अहाँक सहयोगी बनल रही तँ एहिमे कोनो
हर्ज? ओना हमरा अहाँक संग रहबामे कोनो आपत्ति नहि अछि। अहीं ने हमर धर्मपिता आ अवलम्ब छी, तखन
कोन आपत्ति! मुदा जे स्त्रीक स्वतन्त्रताक विरोधी छथि आ जे स्त्री एवं पुरुषके ँ फराक-फराक रखबामे अपन
चातुर्यक परिचय देमए चाहैत छथि, से नहि ने चाहताह जे हम आ अहाँ एक पाँतीमे बैसी। सन्निकट आबी।
ओना कौखन ई हमरा उचितो लगैत अछि।
शब्द - अहाँ अपन इच्छासँ वा अपन प्रकृतिक कारणे ँ भलहिं हमरासँ हटल रहबाक विचार करी। मुदा हम
ई कहिओ नहि चाहब जे एहि लेल अहाँके ँकेओ संकपंज कर्रिथ वा बहकाबथि। आ स्वतन्त्र भए अहाँ जतए-ततए
असगर बैसल करी। सोचिऔ, एहिसँ समाजक कोन उपकार होएतैक?
विभक्ति - हम फराको रहि अहाँक नजरिसँ किन्नहुँ कात नहि भए सकैत छी। यदि अहाँक कृपा-दृष्टि बनल
रहए।
शब्द - यदि अहाँ फराके रहबाक ठानि लेने होए तँ हमर कृपा-दृष्टि कतेक दिन बनल रहत? प्रबुद्ध
पाठकक कृपा-दृष्टि रहबाक चाहिअनि। अन्यथा हमर अहाँक जे सम्बन्ध अदौसँ अछि, से भंगे बूझू।
विभक्ति - नहि, नहि। से नहि करू। एहि लेल यदि अहाँ सम्बन्ध-विच्छेद करए चाहैत छी तँ हम वचन दैत
1
छी ककरो कहलमे हम नहि आएब। कहिओ अहाँक संग नहि छोड़ब। मुदा एक टा शर्त अछि।
शब्द - शर्त? कहू कोन शर्त अछि।
विभक्ति - अहाँ बहुरूपिया छी, कौखन संज्ञा रूपमे रहैत छी, कौखन सर्वनाम रूपमे, कौखन विशेषण रूपमे,
कौखन क्रिया रूपमे। एहिना आनो-आनो रूपसभ अहाँक अछि। ई रूप-परिवर्तन हमरा पसीन नहि अछि।
शब्द - सभटा छी तँ हमरे रूप। जखन जेहन प्रयोजन भेल, तखन तेहन रूप धारण कए लैत छी। से नहि
करब तँ सम्प्रेषण-व्यापार सार्थक नहि होएतैक।
विभक्ति - तखन तँ अहाँ मैथिलीक कतेको साहित्यकार जकाँ बहुविधावादी भेलहुँ। सगर रातिक आयोजनमे
जएबाक अछि तँ कथा लिखि लेल, मंच भेटल तँ पांती जोड़ि कवि भए गेलहुँ आ समांग संयोजक भेलाह तँ संगोष्ठी
लेल एमहर-ओमहरसँ आलेख तैआर कए लेल। एहन मंचलुब्धक पाछू-पाछू चलैत रहब, हमरासँ पार नहि लागत।
अहाँक कोन रूपक हम सहगामी होउ, अहीें निर्णय करू।
शब्द - अहाँक आरोप अयुक्तपूर्ण एवं अयथार्थ नहि अछि। अहाँ जनैत छी हम सामाजिक लोक छी।
लोक हमरा अपन अव्यक्त भावक अभिव्यक्तिक माध्यम बनबैत अछि। हम लोकक ई उपकार आवश्यकतानुसार
अपन रूप बदलि-बदलि करैत रहैत छी। व्याकरणक योगबलसँ अपन रूप बदलब हमरा लेल कोनो कठिन नहि
अछि। अहाँ बिसरल नहि होएब ‘परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडन’। से परोपकार छोड़ि परपीड़क हम कोना
बनि जाउ?
विभक्ति - से हम कहाँ कहैत छी। मुदा अहाँ भेलहुँ पुरुष आ हम भेलहुँ स्त्री। व्याकरणिक योगबलसँ अहाँ
रूप बदलैत रही आ हम अहाँक संग रासलीला रचबैत रही, से देखि लोक की कहत? लोक-लाजो तँ कोनो वस्तु
थिकैक? अहाँक सान्निध्य हम चाहैत छी, तखन कोन उपाय अछि?
शब्द - अहीं कहू हमर कोन रूप अहाँके ँ पसीन अछि।
ई कहि शब्द चट अपन रूप देखबए लगलाह। खन सर्वनाम रूप, खन क्रिया रूप, खन विशेषण रूप, खन
क्रियाविशेषण रूप, खन अव्यय रूप, आदि। शब्दक रूप परिवर्तन शक्तिपर अचम्भित विभक्तिक आँखि ओकर संज्ञा
रूप पर आबि अंटकि गेलैक आ ओ शब्दक संज्ञा रूपमे जाए सटि गेल (जेना, गामके ँ- द्वितीया, गामसँ - तृतीया,
गामके ँ-चतुर्थी, गामसँ - पंचमी, गामक - षष्ठी, गाममे - सप्तमी)। ई देखि शब्दक संज्ञा रूप विभक्तिसँ अपन
प्रतिरूप सर्वनामक स्थिति स्पष्ट कएलक। ओ विभक्तिके ँबुझओलक जे प्रयोग सौष्ठव लेल लोक हमर एहि रूपक
प्रयोग अनवरत करैत अछि। ई नहि मानि लेब जे ई हमर अपांक्तेय रूप थिक। सहमतिमे विभक्तिक मूरी डोलल।
विभक्तिक मोनसँ फराक रहबाक विचार निपत्ता भए गेलैक। कोनो विवाद नहि रहल। ई निर्णय भेलैक जे विभक्तिक
उच्चारण वा लेख सदा शब्दक संज्ञा रूपक मूलमे सटाए कएल जाए। विभक्ति ओ संज्ञाक बीचमे ने कोनो विच्छेद
कएल जाए आ ने कोनो आन पद ओकर बीचमे राखल जाए तथा शब्दक गणनामे सदा एक शब्द मानल जाए।
ओहि दिनसँ विभक्ति-संयोजन संज्ञा आ सर्वनाममे होअए लागल।
५
मुन्नाजीक दूटा विहनि कथा
हाथीक दाँत
१० मै १९४६ केँ यूनेस्को द्वारा अमेरिकाक मैनहट्टन शहरमे सर्वभाषिक सम्मेलनक आयोजन कएल गेल। उद्देश्य छल अंग्रेजीक स्थानपर ओकर वैकल्पिक भाषा चयनक, जे सरल, संक्षिप्त आ कर्णप्रिय हो।
भीड़ भरल सम्मेलन भवनमे घुसवासँ पहिने अप्पन-अप्पन भाषामे घुसवाक अधिकार मँगबाक लेल कहल गेल।
चूँकि पहिनेसँ वैश्विक भाषा अंग्रेजी छल, ओकरासँ तुलनात्मक अध्ययन वास्ते ओकर प्रतिभागीक पहिल प्रवेश- मे आइ कम इन सर!
यस, कम इन।
भारतीय भाषामे सँ बांग्ला, पंजाबी आ मैथिलीकेँ ऐ मे सम्मिलित कएल गेल छल।
बांग्ला प्रतिभागी- “आमि आस्ते पारी...!”
पंजाबी प्रतिभागी- “मैं अन्दर आवाँ...!”
आब बेर मैथिली प्रतिभागीक एलै, दुआरिपर जा कहलक-
“पैसी...?”
यूनेस्कोक जुरी सभ अगिला शब्दक प्रतीक्षारत मैथिली प्रतिनिधिक मूँह तकलक, ओ कहलनि- आऊ!
सर्वसम्मतिसँ मैथिलीकेँ वैश्विक भाषा बनेबाक प्रस्ताव राखल गेल।
मैथिल श्रोताजन समवेत स्वरे विरोध जतेवा लेल ठाढ़ भेला
-नै, किन्नहुँ हम सभ अपन बपौतीकेँ आन लोककेँ नै भोग देबै।
यूनेस्को अधिकारी आश्चर्यचकित होइत कहलनि-
“ई भाषा सुनबामे मधुर, बजबामे सरल आ संक्षिप्त तँ अछि मुदा एकरा भीतर एहेन विस्फोटक अछि जइसँ ई सभ कतौ आगि लगा हाथ तापि सकै छथि।”
साढ़े एक्कैसम सदी (२०५०)
हेलो...हाय!
की हाल छैक?
फाइन!
ई कोनो समय अछि एबाक, निर्धारित समयसँ डेढ़ घंटा लेट।
यौ, खिसिया किएक गेलौं? रस्तामे सौरभ भेट गेल, लेपटा गेल हमरासँ। कहू, की हम भागि जैतौं। केहेन एक्सपीरियेन्स गेन करैत ओ?
मुदा अहूँ तँ समयपर नहिये आएल हएब!
नै, रियाक संग छलौं, ओकरा हमरा संग गोल्डेन पार्कमे ततेक मोन लगै छलै जे घरा-जोड़ी कऽ लेने छल। छोड़िते नै छ्ल।
“जखन रियासँ एतेक घनिष्ठता अछि तँ हमर प्रयोजने की?”
अहाँसँ नीक तँ सौरभ जे हमरे टा प्रतीक्षा करैए।
“ओ नामरद अछि की...?”
हम जाइ छी।
कतऽ?
सौरभ लग।
कथी लेल?
इनज्वाय करबा लेल!
हेलो...,जुगनू कतऽ छी?
बुद्धा गार्डनमे।
की करै छी?
किछु नै, हर्षक संग छलौंहेँ, आब फ्री छी।
आबि जाऊ डियर पार्कमे।
अबैत छी।
तँ करू प्रतीक्षा जुगनूक। हम चललौं।
आब की कियो एकपर आश्रित रहि सकैछ।
एक जँ केलक इन्कार तँ दोसर अछि तैयार। बिहुँसि कऽ कऽ लैए अंगीकार!
आब विआह तँ कियो ककरोसँ कतौ कऽ लैए। भोगैए कियो, कतौ, ककरो दोसराकेँ।
बीसम सदी नै रहलै आब।
“पहिने प्रथा छल घर बदलबाक, मुदा आब..., आब तँ परम्परा बनि गेलैए घरबला बदलबाक।”
६
डाॅ. योगानन्द झा वनदेवी आ नारी अस्मिताक गाथा
कथा, उपन्यास, नाटक आदि विभिन्न विधामे गरिमामय लेखनक हेतु प्रख्यात, आधुनिक मैथिली महिला लेखनमे अग्रिम पाङक्तेय आ डा. श्रीमती उषा किरण खानक जाइ सँ पहिने एक गोट गद्यात्मक खण्डकाव्य थिक। ऐमे सीताक व्याथा-कथाकेँ उपजीव्य बनाए नारी-अस्मताक अन्वेषण कएल गेल अछि। स्वभावत: पौराणिक पात्रक आश्रए लऽ अत्याधुनिक सुगीन वृत्तिक प्रतीक्षा साकांक्ष दृष्टि ऐ काव्यक महत्वपूर्ण उपलब्धि थिक।
मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम आ सती शिरोमणि सीताक कथा भारतीय जीवनादर्शनक प्रतीक बनल रहल अदि। सीता अदौसँ मिथिलाक पहचान बनलि रहलि छथि। मुदा भूमिजा सीताक उत्तरचरितमे ग्रथित सीता-वनवासक कथा मैथिल मानसकेँ सदति उद्वेलित कएने रहलैक अछि। एतऽ धरि जे सीताक विवाहक दिन विवाह पंचमीकेँ एखनो धरि लोक सरि भऽ कऽ अपन बेटीक विवाहक दिवसक रूपमे स्वीकार करबामे धखाइत रहल अछि। सीताक जन्म विरोगहि गेल लोककंठमे हुनका प्रतीक्षा सहानुभूतिक रूपमे विद्यमान अछि। ऐ ठामक सन्त परम्परामे एकटा समुदाय तँ एतबो धरि मानबाक लेल तत्पर नै जे सीता द्विरागमनक बाद अपन सासुर अयोध्यो गेलीह आ तत:पर कखनो राम वनवासक कारणे तँ कखनो अपन वनवासक कारणे दु:ख भरल जीवन बितबैत रहलीह। हिनकालोकनिक तँ ई मान्यता छन्हि। जे विवाहोपरान्त दुल्लह श्रीराम सभ दिनक हेतु मिथिलेक बनल रहि गेलाह आ मिथिलाक सखी-लोकनि हुनक दुलार-मलार करैत हुनका सासुरेमे छेकने रहि गेलखिन। सीताक दु:खक जीवन-प्रसंगकेँ ओलोकनि ऐ माध्यमे बिसरबाक आयोजन कएलनि।
मैथिली दधीचि पं. सुरेन्द्र झा सुमन अपन सीतावन्दनामे अत्यन्त कटु शब्दें सीता वनवासक प्रति अपन आक्रोश प्रकट कएलनि-
किए बनलि वनवासिनी
पति-पद-रेणु सुता हमर।
ज्वालामुखी न थीक ई
ज्वलित प्रश्न धरणी उरक।।
वस्तुत: पत्नीक रूपमे सीता पति-पद- अनुगमनक भारतीय आदर्श प्रस्तुत कएलनि तथापि राजधर्म हुनका वनवासक दण्ड दऽ प्रताड़ित कएने छल, जकरा हुनक माता पृथ्वी आइयो धरि पचा नै सकलीह अछि आ हुनक आक्राेश आइयो ज्वालामुखीक रूपमे प्रकट अछि। ई केवल कविकल्पने नै, मैथिल मानसक आक्रोशो थिक।
सीता मिथिलाक बेटी छलीह। परवर्ती कालमे ओ अयोध्याक पुतहु बनलीह आ अपन कर्त्तव्य भावना ओ पतिव्रत्य द्वारा एहेन आदर्श उपस्थित कएलनि जे भातीय लोकजीवनक आदर्शक रूपमे आइयो प्रथित अछि। ओ नैहर आ सासुर दुनू कुलक मान रक्षाक हेतुक यज्ञमे िनरन्तर आहुति प्रदान करैत रहलीह। मुदा समाज हुनक चरित्रपर आशंका करैत रहलनि। ऐ आशंकाक निवारणर्थ हुनका सर्वसामान्यक बीच अग्नि परीक्षा देबए पड़लनि। अग्नि परीक्षाक बाद जखन ओ अयोध्या आपस आएलनि, तकर बादो पुनश्च हुनक चरित्रपर आक्षेप कएल गेलनि आ मर्यादापुरूषोत्तम राम राजधर्मक अनुदेशे हुनका वनवासक दण्ड प्रदान कऽ देलखिन सेहो एहन स्थितिमे जखन ओ दुजीवा छलीह। अग्नि परीक्षाक साक्षी राम, अक्षय अनुरागसँ संबलित पति राम हुनका प्रतीक्षा कएल गेल आक्षेपक कोनो प्रतिरोध नै कऽ सकलखिन। नारीक प्रति ई उपेक्षाभाव संभवत: सीताकेँ सहन नै भऽ सकलनि जकर परिणाम पाताल-प्रवेशक रूपमे आएल जे आइयो पुरूष समाजक नारीक प्रति हीन मनोभावनाक द्योतक थिक आ द्योतक थिक नारीक नारीक आक्रोश, विरोध आ विद्रोहक, जकरा श्रीमती खान अपन ऐ गद्य खण्डकाव्यमे रूपायित कएलनि अछि।
श्रीराम अयोध्याधिपति छलाह। प्रजावत्सलता हुनक राजधर्म छलनि। ऐ राजधर्मक वशीभूत भऽ ओ धोबि द्वारा लांछित सीताकेँ, पूर्वहि अग्नि परीक्षिता सीताकेँ वनवास देबाक दण्ड सुनौलनि। रामक ई मानसिकता मर्यादापुरूषोत्तमत्वक प्रति हुनक भावनाक अतिरेकक प्रदर्शन छल। ओ प्रजासँ वाहवाही पएबाक फेरमे एकटा सती सावित्रीक आहिपर ध्यान नै दऽ सकल छलाह। हीरानन्द झा शास्त्री ऐ वाहवाहीक फेरमे पड़ल भीष्मक मानसिकताकेँ उजागर करैत अपन सोचो तो भीष्म दीर्धकवितामे कहने छथि-
सुनते भी कैसे भीष्म
तुम तो थे
वाहवाही लूटने की धुन में
बड़ा तेज होता है, यह
वाहवाही लूटने का नशा
इस नशे में तो मनुष्य
सब कुछ भूल जाता है
बहरे हो जाते हैं, उसके कान
िसर्फ एक ही शब्द सुनाई देता है
उसके कानों को
और शायद उसी शब्द को
वह सुनना भी चाहता है बार-बार
जानते हो, क्या है वह शब्द
वह शब्द है वाह वाह
अहंभाव का ही शायद
विकृत रूप है, यह
जब मनुष्य अपने हर कार्य पर
लोगों के मुँह से िसर्फ
वाह-वाह ही सुनना चाहता है।
भूमिजा, रामक ऐ अहंभावक परितुष्टिक यज्ञाग्निमे झोंकि देल गेल छलीह। मुदा हुनको दिन फिरलनि। लव-कुश सन सन्तानक माता भेलाक बाद सीताक आत्मगौरव उद्दीप्र भेलनि। श्रीमती खान सीताक ओइ स्वरूपक चित्रण करैत कहैत छथि-
मंजरायिता गाछ
गदरायल माछ
बाधवाली गाय
आ सन्तानवती माय
के छथि?
सभ सिया सुकुमारिये तँ छथि।
आ सन्तानवती वनदेवीक पुत्र द्वय राजा रामक अश्वेमेध यज्ञक घोड़ाकेँ रोकि लैत छन्हि, हुनक सैन्य समूहकेँ पराजित कऽ दैत छन्हि। सीता हस्क्षेप कऽ कऽ यज्ञक ओइ घोड़ाकेँ िवमुक्त करबैत छथि। महर्षि वाल्मीकि द्वारा सीताक पातिव्रत्य अभ्यर्थनापर राम अपन कृत्यपर लज्जित होइत छथि आ सीताकेँ वाल्मीकि आश्रमसँ अयोध्या लऽ चलबाक हेतु तैयार भऽ जाइत छथि। रामक उक्ति श्रीमती खानक शब्दमे द्रष्टव्य अछि-
बदलि देब सभटा
जे हेबाक छैक से होएत
जे नियत छैक से नहि
विधिक विधान हम
तहस नहस कए देब।
मुदा सीता अयोध्या आपस होएब स्वीकार नै करैत छथि आ भूमि पुत्रीमे भूमिमे बिला जाइत छथि। हुनक भूमिमे जयबा सँ पहिने'क उद्घोष ऐ खण्डकाव्यक परिणति थिक आ नारी अस्मिमताक उत्कर्षक द्योतक सेहो-
हम नहि छी पाषाणी अहल्या
वातभक्षा निराहारा
जनकर कयल प्रभू उद्धार
मिलाओल स्वामी गौतक सँ
हम छी सशक्त, स्वयंपूर्ण सीता
श्रीमती खान ऐ खण्डकाव्यमे सीता धरितक अनुगायनक माध्यमे सासुरवास बेटीक मनोभावकेँ अत्यन्त मनोरम ढंगे प्रस्तुत करैत भाव व्यक्त कएने छथि-
विआह होइत देरी नारीक स्तरीयतामे आकस्मिक परिवर्त्तन भऽ जाइत छैक। ओकर अस्मिताकेँ जेना बाकसमे बन्न कऽ देल जाइत छैक, ओकर स्वातंत्र्यकेँ बेढ़ि देल जाइत छैक।
हुनकहि शब्दमे-
बिसरलहुँ छल्हिगर दही, हरियर चूड़ा
सपना भेल भुन्नाक पेटी, रहूक मूड़ा
छूटल एकछिन्ना नूआ
नौगज्जीमे हेरायल तनुक धूआ
घरे-घर, गलिये गली, जतय मोन करय ततय चली
एतय कनक मन्दिरक चतुष्कोण देहरि के कहय
साधंस कतय कि कक्ष कौखन पार करी
नारीकेँ पुरूषक समकक्ष किंवा पुरूषहुसँ अधिक सबला स्वरूपमे प्रस्तुत करबाक भावाभिव्यक्तिक कोनो अवसर श्रीमती खान ऐ खण्डकाव्यमे छोड़लनि नै अछि जे नारी अस्मिताक अन्वेषणक प्रति हिनक साकांछ दृष्टिक द्योतक अछि।
ऐमे एक गोट प्रसंग अछि धनुष यज्ञक। धनुष वास्तवमे अनेकानेक बलशाली राजालोकनिक द्वारा टकसाओलो नै भेल छलनि तकरा राजा राम सहजहिं तोड़ि देलनि। मुदा तैसँ हुनक अपौरूषेय बलविक्रम बूझि पुरूष समाजकेँ गर्व करबाक कोनो कारण नै छल, कारण सीता अत्यन्त सहज रूपसँ ओकरा उठा कऽ प्रतिदिन ठाँव कऽ लेल करैत छलीह। श्रीमती खान कहने छथि-
केहन केहन मोँछबला अयलाह अएलाह
धोंछ भेल मुँह गेलाह
एकहु रत्ती कहाँ टसकलनि
धनुषा.....
कमल नाल सन कोमल कान्त किशोर
सहजहि उठाओल
जनु फूल सिंगरहारक हो
हल्लुक
गे दाइ! ताहू सँ कोमल हमर सिया सुकुमारि
उठबथि नित दिन ठाँव करैक काल
जेना सिमरक फाहा होइक
एही प्रकारक दोसर प्रसंग अछि सहस्रबाहु वधक जैमे अद्भुत रामायणक अनुरूप ई कथा आएल अछि जे सहस्रबाहु राजा रामकेँ अपन बलसँ परास्त करबामे सक्षम छल, युद्धभूमिमे राजा राम अचेत भऽ गेल छलाह। तखन सीता कालीक रूप धऽ सहस्रबाहुकेँ पराजित करबामे अपन सामर्थ्य देखैने छलीह। श्रीमती खान द्वारा अहू कथाक समावेशसँ हुनक काव्यमे अभिव्यक्त नारी-भावनाक परिचए भेटैत अिछ।
श्रीमती खानक ऐ खण्डकाव्यमे वाल्मीकीय रामायणमे उद्धतृ ओहू अंशक सविशेष उल्लेख अछि जैमे राम द्वारा लंका विजयक उपरान्त सीताकेँ परित्याग कऽ देबाक कथा अनुस्यूत अछि आ जकर मार्जन अग्नि परीक्षासँ होइत अछि। ऐ सन्दर्भमे वाल्मीकिक किछु श्लोकक भावराशिकेँ श्रीमती खान यथावत् पिरगृहीत कऽ लेलनि अछि जे हुनक बहुश्रुतिक प्रतीक थिक यथा-
िवदितश्चस्तु भद्रं ते योऽ यं रण परिश्चम:।
सुतीर्ण: सुहृदां वीर्यान्न त्वदर्थ मया कृत:।।
रक्षता तु मया वृत्तपवादं च सर्वत:।
प्रख्यातस्यात्म वंशस् न्याङ्गं च परिमार्जिता:।।
लक्ष्मणे वाथ भरते कुरू बुद्धि यथासुखम्।।
शत्रुध्ने वाथ सुग्रीवे राक्षसे वा विभीषणे।
निवेशय मन: सीते यथा वा सुखमात्मना।।6/115/।
श्रीमती खानक शब्दमे ऐ भावकेँ ऐ रूपेँ उपस्थापित कएल गेल अिछ-
सीत हम अहाँक लेल नहि कयलहुँ
युद्ध
रावण केँ करक परास्त
देवसत्ता केँ स्थापित करक
पत्नी जनिकर हरण भेल
ताहि राजाक कलंक मेटब
छल अभिष्ट
से भेल सिद्ध
तेँ कयल युद्ध
हे सीते, आइ अहाँकेँ कएलहुँ मुक्त पत्नी धर्मसँ
रहू लंका मे
किंवा जाउ भारतवर्ष
भरत किंवा शत्रुध्न आिक लक्ष्मण
जकरा संग रहबाक हो रहू-
रामक ई प्रसंग अत्यन्त कारूणिक अछि। अहूठाम िनर्दोष सीतापर रामक वचन वाणक प्रहार भेल अछि जकरा नारी अस्मितापर प्रहार कहल जा सकैछ। महात्मा तुलसीदासकेँ श्रीरामक ई कटूक्तिपूर्ण वचनसँ ततेक अप्रिय बुझना गेलनि जे ओ अपन रामकथामे वस्तुक आग्रहेँ ऐ घटनाक अल्पतम शब्दावलीमे उल्लेख कऽ कऽ आगू बढ़ि गेलाह-
सीता प्रथम अनल मुह राखी।
प्रकट कीन्ह चह अंतर साखी।।
तेहि कारण करूणानिधि कहे कछुक दुर्बाद।
युपत जातु धानी सब लागी करै विषाद।।
मुदा ऐ प्रसंगमे वाल्मीकिक सीतामे जै अपार ऊर्जाक दर्शन होइत अछि, तकर श्रीमती खानक खण्डकाव्यमे अभाव देख पड़ैत अछि, जकरा आश्चर्यजनक कहल जा सकैछ। वाल्मीकिकि सीता अग्नि परीक्षासँ पूर्व प्रगल्यतार्वक अपनापर कएल गेल शंकाक प्रतिवाद करैत छथि जे नारी अस्मिताक
प्रति हुनक दृढ़ भावनाक प्रतिक थिक यथा-
किं माम सदृशं वाक्यमीदृशं शोकदारूणम्।
रूक्षं प्रावयसे वीर प्रकृत: प्राकृतामिव।।
पृथक्स्त्रीणां प्रचारेण जातित्वं परिशङ्कसे।
परित्यजैनां शंङ्कं तु यदि तेऽहं परीक्षिता।।
यदहं गात्रसंस्पर्शं गतास्मि विवशा प्रभो।
कामकारो न मे तत्र दैवं दत्राापराध्यति।।
सह संवृद्धभावेन संसर्गेण च मानद।
यदि तेऽहं न विज्ञाता हता तेनास्मि शाश्वतम्।।
त्वया तु नृपशार्द्ल शेषमेवानुवर्तता।
लघुनेव मनुष्येण स्त्रीत्वमे पुरस्कृतम्।।
न प्रमाणीकृत: पणिर्बाल्ये मम निपीडित:।
मम भक्तिश्च शीलंच सर्वं ते पृष्टत: कृतम्।। इत्याति।
तथापि श्रीमती खानक ऐ खण्डकाव्यक ई विशिष्टता थिक जे ऐमे मिथिलामे रामजानकी विषयक रूढ़ि सभकेँ सेहो महत्वपूर्ण स्थान देल गेल अछि। मिथिलामे प्रत्येक कन्याकेँ सीताक प्रतीक मानल जाइत छन्हि आ मिथिलाक लोकगीतमे सीता प्रत्येक जनकक पुत्रीक रूपमे गृहीत छथि। मैथिली लोकगीतमे सीताक वैवाहिक प्रसंगक बहुलय अछि आ लोक सीताक व्यथा-कथाकेँ जेना बिसरि गेल छथि। ऐ तथ्यकेँ श्रीमती खान ऐ शब्दें अभिव्यक्त कएने छथि-
सीकी खोंटैत
लिखिया करैत
सुआसिम लोकनि गओतीह गीत
ढौरतीह कोबर
बिसरि जयतीह सायास
सिया धियाक अनसोहाँत पीर।
श्रीमती खान नारी ओ पुरूषक समकक्षता ओ सहभवहि केँ प्रेय रूपमे ऐ साहित्यिक कृतिमे प्रस्तुत कएलनि अछि जे ऐतिहासिक-पौराणिक कथावस्तुकेँ अधुनातन युगजीवनक परिप्रेक्ष्यमे देखबाक अन्वेषक दृष्टिक काणे हिनका साहित्यकार वरेण्य श्रेणीमे पाङ्केय सावित करै छन्हि। द्रष्टव्य अछि रामक प्रतीक्षा सीताक ई उक्ति-
हमरा लेल अहाँ प्राणहरि छी राम
ने छी साध्य, ने साधन
अहाँ साक्षत विजय थिकहुँ
हम मुदा
पराजय नहि थिकहुँ
नहि होइत छैक
प्रत्येक प्रतिस्पर्द्धामे
जय आ पराजय
सहजता, सरलता ओ प्रसाद गुण सम्पन्नतासँ मण्डित तत्सम् ओ तद्भवबहुल श्रीमती खानक ऐ खण्डकाव्यमे उपमा, उत्प्रेक्षादि अलंकार सहजहिं आकृष्ट करैत अछि आ भवभूतिक एको रस: करूण एवं प्रतिध्वनित होइत देख पड़ैछ। ऐ पठनीय, मननीय ओ संग्रहणीय कृतिक हेतु श्रीमती खान साधुवादक पात्र छथि। मैथिली जगतक तँ सहजहिं, रामकथाक प्रत्येक अध्येताकेँ हिनक ई खण्डकाव्य आकर्षित करतनि, से अपेक्षा कएल जएबाक चाही। किछु परिमार्जनक संग ई कृति कालजयीक श्रेणीमे गण्य होएबाक योग्यता रखैछ। मैथिली रामकथाक आयामकेँ संवद्धित करैबला ऐ कृतिकेँ विभिन्न दृष्टिये समीक्षा-समालोचनाक विमर्श परक आयाम भेटक चाही।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।