३.६. राम विलास साहु- कविता- महगाइ
३.७.१.किशन कारीग़र- दौगल चलि जाएब गाम
गंगेश गुंजन
राधा- २९ म खेप
पछिला खेप अपने पढ़ि चुकल छी--
बहुत प्रतिष्ठा जीवन कें संसार छोड़ा दैये
बहुत प्रतिष्ठा कउखन तेहेन प्रतिष्ठित क' दैये
बहुत प्रतिष्ठा भ'लो कें अ-लोक बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा बना राखि दय भथल इनार
आब आगाँ पढ़ू-
बहुत प्रतिष्ठा लोकक जीवन मरुथल क' दैए
बहुत प्रतिष्ठा प्राणि मात्र से करैत-करैत उदास
बहुत प्रतिष्ठा आखिर तँ क' दैत अछि अमर्मक
बहुत प्रतिष्ठा सब किछु द' जा सकैत अछि से ठीक
बहुत प्रतिष्ठा सब अछैत सभ व्यर्थ बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा सिन्धु जकाँ अति गंहिर आओर विस्तार
बहुत प्रतिष्ठा लोक के लोक-असभ्य बना दैए
बहुत प्रतिष्ठा एक तरहें होइत अछि वर्ग विभाजन
बहुत प्रतिष्ठा एक समाज बाँटि बखरा क' दैये
बहुत प्रतिष्ठा एकहि घर मे बनि जाइछ देबाल
बहुत प्रतिष्ठा भाए कें भायक देयाद बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा निज श्रेष्ठ-बोध सँ कम कें हीन करैये
बहुत प्रतिष्ठा एक परिवार अनेक बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा मधु माहुर बनि व्यक्ति मे भरय विकार
बहुत प्रतिष्ठा विद्यो कें व्यापार बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा कखनो महल कउखन क वैभव
बहुत प्रतिष्ठा जीवन-मूल्य दोकान बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा निबहय तं बना दिअय जन नायक
बहुत प्रतिष्ठा ऊघि ने पाबी दैत्य बना दैये
बहुत प्रतिष्ठा अपन स्वभावक अपनहि होइछ संघात
बहुत प्रतिष्ठा अहंकार बनि पाथर बनबैये
बहुत प्रतिष्ठा लेल आखिर लोक रहैछ बेहाल
बहुत प्रतिष्ठे लोक मे लोक-दयार्द्र बना दैये
सोची, बेर-बेर सोची सब क्यो कतबा क' चाही प्रतिष्ठा
सोची आ तय करी प्रतिष्ठा केहन मनुख बनबैये !
बहुत-बहुत क' रखबाक-कहबाक तेहन भेलय रेवाज
सब तँ सब सँ श्रेष्ठ धनिक ज्ञानी आ अछि विद्वान
क्यो ककरो सँ छोट ने, बयसो मे बुद्धि मे
सब तँ सब सँ श्रेष्ठ सबि सँ एवं बड़े महान
ई संसार कोना बनलै विकसित भेलैक आ बढ़लैक
तकरा लेल जे बुधि-विवेक चाही से सब हाजिर
दुनुक बीच केर सेतु टुटल अछि धारे मे बहि गेल
खुट्टा-खुट्टी व्यर्थ बात सन ठामक ठामे रहि गेल
मुदा अपन एहू स्थिति मे गाम के सब कहि गेल
गाम गुम्म अछि,
कड़ाम मे गंथाएल बड़द सब जेकाँ
एकटा मेहक चारू कात घूमि रहल अछि,
अहल भोरे सँ जेना। साँझ धरि सब दिन
जानि ने कोन अदृश्य अन्नक क' रहल अछि दाउन
एक दिस लोकक देह पर नव-नव वस्त्रक झकाझकी चढ़ि गेलैक अछि।
चमकैत रहै छै बेशी लोकक अंग वस्त्र। दोसर दिस बड़द-गाय, जकरा बलें बितैत अछि
जीवन, आयुक दिन, मास बर्ख तकर गर्दनि क्रमशः भेल जा रहलए सुन्न ।
रिक्त, लाल-पीयर-हरियर गरदानी, पैघ-पैघ आकर्षक झमटगर फुदना पुरान मैल होइत
एक एक क' सब माल जालक गर्दनि सँ उतरैत गेल आ आब तँ कोनो सौभाग्ये सँ देखाइ पड़ैए-तिनधारी-पंचधारी चित्ती कौड़ीक गाँथल हार।
कहाँ देखाइछ नव फुदना सुन्दर गर्दनि वला बड़द कि बच्छा ! यद्यपि दुर्लभ परन्तु से सौख सौभाग्य हुक-हुक करैत जीवि रहल अछि, रच्छ अछि ।
कोनो गर मे घंटी नहि।
कोना दन लगैत सुन्न चुपचाप गर्दनिक बड़द
सब बेबस बेमोने क' रहल दाउन-भरि गाँव ।
एना किएक भेलय बेसी घरक लोक, हमर गाम !
गाम गुम्म अछि,
लोकक जेहन अप्पन मोनक हो संसार,
तहिना अनमन देखाइत अछि समाज ई संसार
मोन खुशी हो सौंसे गाम गबैत लगैत अछि
दुःख हो मन मे भरि समाज कनैत लगैत अछि
ओना प्रकृति- पहिया नहि कहियो चलब बन्द हो
यद्यपि मन ठहरल हो तं चक्र ईहो रूकल लगैत अछि
तें पहिने उल्लास उछाह खुशी अंतर केर चाही
तें पहिने आलोक-इजोत दिनक मन मे उपजयबाक चाही
असल खेत तँ चित्त मनुष्यक जेहन उर्वर हो
दुःख-सुख स्वप्न विचार आदर्शक उपजैत अछि तेहन फसील
कर्मक जे हो सामर्थ्य जत' धरि अनथक कार्यक
सैह बनैत अछि प्रेरक मोनक उर्वरता केर सब दिन
परती ओना हरेक हृदय मे रहि आएल अछि सब दिन
तहिना किंचित हरियर स्निग्ध क्षेत्र सेहो होइतहिं अछि
मनुखक ध्यान मात्र हरियरी कें सम्हारि क' परती
उस्सर भूमि विचार परोक्ष बना दैए बेशी काल
एक प्रकारें तखनहि नोत पड़ि जाइत छैक दुर्दिन कें
एक तरहें करें तखनहि सँ प्रारंभ होइछ अकाल।
लोक बूझि नहि पाबय बेसी, जे बुझितो छथि
दैनंदिन तुच्छ संतुष्टिक बाटे पर चलि पड़ैत
अपन मोनक संसार साजै छथि अपन रहैत छथि
ई समाज जेहि सरल सुलभ प्रवाहक अभ्यासी
ताही मध्य बहैत चलैत बहैत छथि
ओतबो मे संसार अवश्ये प्रिय थिक रहबा योग्य
किन्तु मात्र ई नीक आ रहबा योग्य भ' गेने
कथमपि नहि भ' जाइत अछि संसार एहन उपलभ्य
जीवन, मनुखक जीवन कें चाही एकटा आदर्श
जे यथार्थ जीवैत लोक रहैत अछि मने मगन
से यथार्थ अंततः बालबोधी सुख मात्रक रूप
जाहि प्रयोजन सँ भेलय स्त्री-पुरुषक ई सृष्टि
तकरा सुन्दर मंगल क' जीवाक व्यवस्था करबाक
मनुखेक अछि दायित्व से गंभीर विषय
हल्लुक-फुल्लुक जीवन केर दैनिक किछु क्षण संभव हो भने
मुदा सतत किछु शाश्वतक बोध पूरित काज
सएह बनैत आयल अछि एहि संसारक प्रेय श्रेयस्कर
श्रेयस्कर आर अधिक श्रेयस्कर मनुखक चिन्ता,
मनुजक चेष्टा मनुखेक कर्मक यात्रा
अति साधारण,साधारण सँ श्रेष्ठ श्रेष्ठतर
सएह जीवनक निजता मुक्त पैघ समाजोन्मुख चेतना
ताहि चेतना कें चाही तेहने मूल्यक आहार
जीवन मूल्य स्वयं चेतनाक होइछ आत्मिक सामर्थ्य
वैह यथार्थ केर भूमिक उपजल फसिलक करैत जाइत अछि
नित्य उत्कर्ष, नवीन उत्कर्ष ,उदात्त उत्कर्ष
गढ़ैत जाइत अछि टूटल- भग्न मनुष्यक जीवनक नव साँच
साँच मे नव रूपाकार जकर नव प्राणस्पन्दने गढ़ैत अछि
नव नव जीवन मूल्य, नव आदर्श
बनबैत गौण अपन व्यक्तिगत दुःख-सुखक अनुभूति
अपन एकान्ती जीवनक सीमित अनुभव यथार्थ
तकर संवेदनाक प्रवाह बनैछ, उद्यत करैत अछि मनुखक
एक वचन मनक बहु वचन समाज, समाजक
बड़ विराट संसार प्रसारित करैत, बनबैत अपन कर्म सप्रसंग !
....जारी
ज्योति सुनीत चौधरी दलमा
दलमाक जड़िपर ठाढ़ बस सऽ
निकलल सैलानी सब तैयार भऽ
हाथमे रस्सी. पहिन ऑंखिमे चश्मा.
जूता. टोपी संग करय करिश्मा
ध्येय छल पहुँचब चोटी पर
रस्ता भरल घनघोर जंगल
विदा भेल रस्ता पर करैत निशान
कनिये देर मे भेल भारी थकान
ऊपर आ कि गाछ आ कि आकाश
नीचा दूर दूर तक समतल के नहि आस
बीच ढलान पर पहुँचल छल टोली
सुनि रहल छल हिरणक बोली
रूकिकय जखन पकरलक गाछ
सिहराबय वला चीज आयल हाथ
किछु टायर सन पातर ट्यूब
ई तऽ छल एक सॉंपक केंचुल
कहुना कय रहल छल डर पर काबू
कि देखायल हाथी भेल बेकाबू
सुर्निसुनि ओकर जोरदार चिंघार
सब होशियारी भेल छल बेकार
नुकायत पड़ायत कहुना बचल
हाथी सब अपन रस्ता बढ़ल
आब फेर बेधड़क छल चढ़ब
कि भेल शुरू बानरक उपद्रव
कहुना पूरा भेल चढ़ाई
दैत एक दोसर के बँधाई
ऊपर सऽ चारूकातक अद्भुत दृश्य
सब भय भऽ गेल छल एकदम अदृश्य।
उमेश मंडल कविता
नोर
गोरसपट टकधियान लगेने
मुन्निया बैसलि अकानैए
घर-अंगन, द्वारि-दरबज्जा
भोरे सभ दिन बहारैए
बर्तन-वासन, छिपली-कटोरी
सभ दिन चमका कऽ मांजैए
झक-झक झलकैत
थारी-बाटी देख
मुन्निया माए गुनगुनाइए
गुनगुन्नीमे अह्लाद भरल छै
सुख-दुख सेहो उमरल छै
मुन्निया आब छोड़त ई दुनिया।
माइयक आँखिक नोर
मुन्नियाक हृदएमे उठबैत हिलकोर
भऽ जाइत अछि बेहोश।
होश अबिते फेर अकानैए
आँखिक नोर निङहारैए
माइयक मन टटोलैए
सुखक नोर आ दुखक नोर
दुनू एक्के संग टघरैत-झहड़ैत
माएक चेहरापर देखैए
खूर-खूर, खूर-खूर काजौ करैए
घर-आंगन सम्हारबो करैए।
मुन्निया मुदा ई बुझि नै पबैए
की खुशी आ की दुख, एक्के संग
माइयक आँखिमे ई नै पबैए
यएह बेवसी मुन्नियाकेँ सतबैए।
राजेश मोहन झा 'गुंजन' कविता
मिझाइत दीप
बिनु वातीक दीप बनल छी
मोती बिनु तिरस्कृत सीप बनल छी
कहब की बिनु टाकाक गरीवक बेटी
ने ताज ने राज महीप बनल छी
साज सौन्दर्य रहितो मुदा
बिनु लक्ष्मी शारदा की करती
मोनक व्यथा ककरासँ कही
तिलक सिन्धुक िनर्जन द्वीप बनल छी
आत्मो भावे तन अछि जहिना
बिनु सोनक श्रृंगार अछि तहिना
जनकक हृदए पझाइत भुस्सी सम
सौराठ-सभामे अपरतीप बनल छी
नोरक धारसँ आँखि सुरवाएल
विद्या गुणक पुष्प मौलाइल
ऐ धनक सवंतमे
जेठक दुपहरियाक विरह गीत बनल छी
आगाँ बढ़ू नव तरूण सभ मिल कऽ
नै मौलाइत स्वर्ण पुष्प धन बिनु
मिझाइत दीपमे भरू सिनेह-सर
करू आलोकित बुझब आकाशदीप बनल छी.....।
नवीन कुमार "आशा"- हमरा भेटल
नवीन कुमार "आशा" (१९८७- ) पिता श्री गंगानाथ झा, माता श्रीमति विनीता झा। गाम- धानेरामपुर, पोस्ट- लोहना रोड, जिला- दरभंगा।
सुनू सुनाउ अपन खबरि
नै बनू अहाँ बेखबर
बेखबर बनै नै समए अछि मीत
अखन गाऊ संगीत
संगीतक नै करू अभेलना
ओकर सभ स्वरमे अछि तान
ओकरा नै करू अनजान
जँ आइ फेरब ओकरासँ मुँह
फेर जीनाइ भऽ जाए दुरूह
एखन अछि बेर संघर्षक
ओकरा नै दियौ विराम
जँ आइ लगाएब अहाँ विराम
नै बनि पाओत अहाँक पहिचान
कते दिन लोक पहिचानत
छथिन ओ हुनकर सन्तान
किछु तय करू प्रत्यत
करू तखन अपनाकेँ संयत
रचथु भऽ संयत
ई अछि सत्य यौ मीत
जँ अहाँ छी निर्बल
नै देत अहाँकेँ कियो बल
जँ अहाँ किछु करब अपने
तखन बनि पाओत पहिचान
हमर ऐ गामक राखब ध्यान
देबनि माता पिताकेँ सम्मान
ऐ सँ नै बनू अनजान
जँ आइ कनी होएत अपमान
नै राखू अपन मान
बस देखू एकटा लक्ष्य
ओकरा जुनि करू भक्ष
जे आइ होइ अपमानित
तँ तैँ राखू ई ध्यान
लीअए चाही ई शपथ
नै होएब ऐ मे दू मत
जखन अहाँ पाएब सम्मान
नै करब ककरो अपमान
आब आशा गपकेँ विराम लगाबथि
अपनो आब पहचान बनाबथि
सुनू सुनाऊ अपन खबरि
(मित्र पी.एस.ठाकुर “बबलू” लेल)
राम विलास साहु कविता-
महगाइ
महगाइ अहाँ कतएसँ आ किअए एलौ
आकि जवरदस्ती हमरा देशमे घुसि एलहुँ
अहाँ विदेशमे भलहिं छलाैं
के अहाँकेँ बजेलक आकि भूलसँ एलौं
अहाँ अबिते हमरा देशमे आगि लगेलौं
नोन शुन्य भऽ गेल
तेल कतऽ पता नै भेल
हरदी किनेमे हड्डी टूटी गेल
मशालासँ मन फीर गेल
पिऔज-लहसुन सोना भाव बिक गेल
पेट्रौल-डिजल आसमान चढ़ि गेल
अहाँक मारिसँ देह टुटि गेल
महगाइ कहलक-
“किएक हमरा दै छी दोख
अहाँ सभकेँ नै अछि होश
अहाँक देशमे होइए बड़-बड़ घोटाला
हमरा बजा कऽ लाबलक घोटालाबला
आब हम अहाँ देशकेँ बना देब दिवाला
खून बेचबा देत विदेशबला
नेता आ अधिकारी भऽ जाएत मालबला
सभ जनता बनब बेचारा-बेसाहारा।”
अहाँ हमरा सभकेँ किअए बनेलहुँ दिवाला
महगाइ अहाँ कतएसँ किअए गलौं....।
किशन कारीग़र
दौगल चलि जाएब गाम।
मनुक्ख दौग रहल अछि मचल अछि आपा-धापी
जतए केकरो कियो ने चिन्ह रहल अछि
एहेन नगर आ पाथर हृद्य सॅं दूर
एखने होइए जे दौगल चलि जाएब गाम।।
लोहाक छड़ आ सीमेंट कंक्रीट सॅं बनल
ओना तऽ ई एकटा आधुनिक महानगर अछि
मुदा शहरक एहि आपा-धापी मे
मनुक्खक हृद्य जेना पाथर भऽ गेल अछि।।
किएक मचल अछि आधुनिकताक ई हरविड़ो ?
कि भेटत एहि सॅं कियो ने किछू बूझि रहल अछि
जेकरे दूखू रूपैयाक ढ़ेरी लेल अपसियॉंत रहैत अछि
पाथर हृद्य मनुक्ख मानवताक मूल्य केने अछि जीरो।।
लिफट लागल उ दसमंजिला मकान
एक्के फलैट पर रहितौ लगैत छी अनजान
ओ अड़ोसी हम पड़ोसी मुदा
एक दोसर के नहि कोनो जान-पहचान।।
कहू एहेन कंक्रीटक शहर कोन काजक
आधुनिकताक काल कोठरी अछि साजल
एहि चमचमाईत कोठरी मे कियो ने केकरो चिन्ह रहल अछि
रूपैयाक खातिर आबक मनुक्ख की कि ने कऽ रहल अछि।।
अतियौत-पितियौत ममियौत-पिसियौत जेकरा देखू
अपने मे मगन चिन्हा परिचे सॅं कोन काज
आधुनिकताक काल कोठरी मे आब
अनचिन्हार भऽ गेलाह जन्मदाता बूढ़ माए-बाप।।
शहरक एहेन अमानवीय आपा-धापी देखि केॅं
पसीज गेल हमर हृद्य
एहेन अनचिन्हार नगर छोड़ि केॅं मोन होइए
एखने आब दौगल चलि जाएब गाम।।
हे यौ भलमानुस आधुनिक मनुक्ख
एहेन अनचिन्हार नगर ने नीक
एहि कंक्रीटक महल सॅ एक बेर तऽ देखू
गामक कोनो टूटली मरैया बड्ड नीक।।
मनुक्ख एक दोसर के चिन्ह रहल अछि
चिड़ै चुनमून चॅू चॅू कए रहल अछि
रस्ता-पेरा निश्छल प्रेमक धार बहि रहल अछि
हरियर-हरियर खेत-पथार आई सोर कऽ रहल अछि।।
टूटलाहा टाट खर-पतारक किछू घर
जतए नहि कियो अनचिन्हार नहि कोनो डर
चौवटिया लग फरैत अछि खूम आम
एहने नगर के औ बाबू लोग कहैत छैक गाम।।
गजेन्द्र ठाकुर कटिहारी
कनकनी छै बसातमे
हाड़मे ढुकि जाएत ई कनकनी
पोस्टमार्टम कएल शरीर जे राखल अछि
सातटा मोटका शिल्लपर, जड़त कनीकालमे
गोइठामे आगि जे अनलन्हिहेँ सुमनजी
राखि देल नीचाँ
कनकनाइत पानिमे डूम दऽ
गोइठाक आगिसँ आगि लऽ
शरीरकेँ गति- सद्गति देबा लेल
कऽ देलन्हि अग्निकेँ समर्पित
तृण, काठ आ घृत समेत
घुरि कऽ जएताह सभ
लोह, पाथर, आगि आ जल लांघि, छूबि
डेढ़ मासक बच्चाकेँ कोरामे लेने माएकेँ छोड़ि
घर सभ घुरत
एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक अन्तिम रातिक भोरमे
मुदा नै छै कोनो अन्तर
पहिरावा आ पुरुखपातकेँ छोड़ि दियौ
महिलाक अवस्था देखू
एहि कनकनाइत बसातसँ बेशी मारुख
हाड़मे ढुकल जाइत अछि
कमला कात नै यमुनाक कात
हजार माइल दूर गामसँ आबि
मिज्झर होइत अछि खररखवाली काकीक श्वेत वस्त्र
साइठ साल पूर्वक वएह खिस्सा
वएह समाज
मात्र पहिराबा बदलि गेल
मात्र नदी-धार बदलि गेल
सातटा शिल्लपर राखल ओ शरीर
अग्नि लीलि रहल सुड्डाह कऽ रहल
एकटा परिवार फेरसँ बनबए पड़त
आ तीस बर्खक बाद देखब ओकर परिणाम
ताधरि हाड़मे ढुकल रहत ई सर्द कनकनी
एहि बसातक कनकनीसँ बड्ड बेशी सर्द
...........
गोपीचानन, गंगौट, माला, उज्जर नव वस्त्र
मुँहमे तुलसीदल, सुवर्ण खण्ड गंगाजल
कुश पसारल भूमि तुलसी गाछ लग
उत्तर मुँहे
पोस्टमार्टम कएल शरीर
सुमनजी सेहो नव उज्जर वस्त्र पहिरि
जनौ, उत्तरी पहिरि, नव माटिक बर्तनक जलसँ
तेकुशासँ पूब मुँहे मंत्र पढ़ै छथि
आ ओहि जलसँ मृतककेँ शिक्त करै छथि
वामा हाथमे ऊक लऽ गोइठाक आगिसँ धधकबैत छथि
तीन बेर मृतकक प्रदीक्षणा कऽ
मुँहमे आगि अर्पित होइत अछि
कपास, काठ, घृत, धूमन, कर्पूर, चानन
कपोतवेश मृतक
पाँच-पाँचटा लकड़ी सभ दैत छथि
कपोतक दग्ध शरीरावशेष सन मांसपिण्ड भऽ गेलापर
सतकठिया लऽ सातबेर प्रदक्षिणा कऽ
कुरहरिसँ ओहि ऊकक सात छौ सँ खण्ड कऽ
सातो बनहनकेँ काटि
सातो सतकठिया आगिमे फेंकि
बाल-वृद्धकेँ आगाँ कऽ
एड़ी-दौड़ी बचबैत
नहाइ लेल जाइ छथि
तिलाञ्जलि मोड़ा-तिल-जलसँ
बिनु देह पोछने
आ फेर मृतकक आंगनमे
द्वारपर क्रमसँ लोह, पाथर, आगि आ पानि
स्पर्श कऽ घर घुरि जाइ छथि
एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक अन्तिम रातिक भोरमे
विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१.श्वेता झा चौधरी २.ज्योति सुनीत चौधरी ३.श्वेता झा (सिंगापुर)
१
श्वेता झा चौधरी गाम सरिसव-पाही, ललित कला आ गृहविज्ञानमे स्नातक। मिथिला चित्रकलामे सर्टिफिकेट कोर्स।
कला प्रदर्शिनी: एक्स.एल.आर.आइ., जमशेदपुरक सांस्कृतिक कार्यक्रम, ग्राम-श्री मेला जमशेदपुर, कला मन्दिर जमशेदपुर ( एक्जीवीशन आ वर्कशॉप)।
कला सम्बन्धी कार्य: एन.आइ.टी. जमशेदपुरमे कला प्रतियोगितामे निर्णायकक रूपमे सहभागिता, २००२-०७ धरि बसेरा, जमशेदपुरमे कला-शिक्षक (मिथिला चित्रकला), वूमेन कॉलेज पुस्तकालय आ हॉटेल बूलेवार्ड लेल वाल-पेंटिंग।
प्रतिष्ठित स्पॉन्सर: कॉरपोरेट कम्युनिकेशन्स, टिस्को; टी.एस.आर.डी.एस, टिस्को; ए.आइ.ए.डी.ए., स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, जमशेदपुर; विभिन्न व्यक्ति, हॉटेल, संगठन आ व्यक्तिगत कला संग्राहक।
हॉबी: मिथिला चित्रकला, ललित कला, संगीत आ भानस-भात।
चित्रक विषयमे: सूर्य आशाक आ संकल्पसिद्धिक प्रतीक अछि, अन्हारक बादक प्रकाशक प्रतीक अछि। ई पृथ्वीक जीवनक जड़ि अछि, दैवत्वक आशीर्वादक प्रतीक अछि। तेँ विश्वक सभ संस्कृतिमे ई पूजित अछि, खास कऽ मैथिल संस्कृतिमे (छठि आ मकर संक्रान्ति)। ई चित्र ऐ सभकेँ चित्रित करबाक प्रयास अछि।
२.
ज्योति सुनीत चौधरी जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
३.श्वेता झा (सिंगापुर)
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
उदय प्रकाश (१९५२- ) “मोहनदास”- हिन्दी दीर्घ कथाक लेखक उदय प्रकाशक जन्म १ जनवरी १९५२ ई. केँ भारतक मध्य प्रदेश राज्यक शहडोल संभागक अनूपपुर जिलाक गाम सीतापुरमे भेलन्हि। हुनकर हिन्दी पद्य-संग्रह सभ छन्हि: सुनो कारीगर, अबूतर कबूतर, रात में हारमोनियम, एक भाषा हुआ करती है। हिनकर हिन्दी गद्य-कथा सभ छन्हि: तिरिछ, और अन्त में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, दत्तात्रेय के दुख, अरेबा परेबा, मैंगोसिल, मोहनदास। मोहनदास- दीर्घकथा लेल हिनका साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०१० (हिन्दी लेल) देल गेल अछि।
अनुवादक:
विनीत उत्पल (१९७८- ) आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आ तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र। आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक। "हम पुछैत छी" मैथिली कविता संग्रह प्रकाशित।
मोहनदास पोथीक आवरण चित्र मार्कूस फोरनेलक चित्रक उदय प्रकाश द्वारा रूपान्तरण।
(उदय प्रकाश जीकेँ "विदेह" विनीत उत्पलकेँ "मोहनदास"क मैथिली अनुवादक अनुमति देबाक लेल धन्यवाद दैत अछि- गजेन्द्र ठाकुर- सम्पादक।)
मोहनदास : उदय प्रकाश
(मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल द्वारा)
मोहनदास: पहिल खेप
डरक रंग केहन होइत अछि? भटरंग, खकस्याह, खुनाहनि सन , कारी-स्याह आकि फेर छाउर सन? एहन छाउर जकरामे आगि एखन धरि मिझाएल नै गेल अछि!... आ फेर कोनो एहन रंग, जकरा पाछाँसँ एकबैग कियो सून-मसान सन ताकए लागैत अछि आ ओकर फाटल ठाममे सँ कनेके दूरीपर कोनो कानैक गधमिसान थकमकाएल सन लखा दैत अछि।
समुद्र आ धारक कोनो धारसँ अनचोक्के बालुपर तरपि कऽ पटकल माछक आँखि कहियो अहाँ देखने छिऐ? दम तोड़ैत, खुजल-फाटल आँखि...?...ओहिनो तरहक रंग...!
फिल्मक नीकसँ नीक हीरो सेहो अप्पन आँखिक डिम्हा, तकर चारू कातक उजरका स्थल आ मुँहपर कतबैयो कोशिश केलाक बादो ओ रंग नै आनि सकैत अछि जे असल जिनगीमे कोनो बड़ डराएल जिबैत मनुखक आँखि आ मुँहपर देखा पड़ैत अछि। एहन मनुखक, जे कत्तौ बेरिया काल धरि काज कऽ थाकि-हारि कऽ घर घुरि रहल अछि। ओकर हाथमे एकटा झोरा अछि, ओइमे नेनाक लेल कम्मे दामबला टॉफी आ खिलौना छै आ कनियाँक खोंखीक गोली सेहो , मुदा एक्के कोनक आगू ओ दंगा करऽबला सभक बीचमे कोनो सुन-मसान ठामपर अनचोक्के लसकि जाइत अछि आ दुर्भाग्यसँ ओ ओइ संप्रदाय, नस्ल आ संगोरक नै अछि जे भीड़ ओकरा घेरने छै। तखने ओइ काल अप्पन हत्याक एकाध क्षण पहिने ओइ मरैबलाक आँखि, मुँह आ समूच्चे देहमे वएह रंग देखाइ पड़ैत छै, जेकर चर्चा हम केने छी आ जकरा ओइ दिन हम मोहनदासमे देखने रही।
"शिंडलर्स लिस्ट' आ फेर ओहने कतेक सिलेमामे अहाँ ओइ जर्मन रेलगाड़ीक दृश्य देखने होएब, जकरा कतौ दूर ठाम पठाएल जा रहल छै। ओइ रेलगाड़ीक डिब्बाक खिड़कीसँ बाहर ताकैत नेना, मौगी आ बुढबाक मुँह अहाँक मोनमे होएत! आ एखन किछु दिन पहिने गुजरातक कतेक शहर-मोहल्लाक घरक छत, खिड़की आ छातमे सँ बाहर ताकैत मुँह।
डरक रंग किछु-किछु ओहने रंगक होइत अछि। मोहनदास आगू ठाढ़ अछि आ अप्पन थरथराइत, दुब्बर अबाजमे कहैत अछि,-"कका, कोनो तरहेँ हमरा बचा लिअ! हम अहाँक आगू हाथ जोडै़त छी!...नेना-बेदरा सभ अछि हमरा! बूढ़ बाप मरि रहल अछि टी.बी.सँ!... अहाँ कही तँ हम अहाँक संग चलि कऽ कोर्टमे हलफनामा दै लेल तैयार छी जे हम मोहनदास नै छी। हम ऐ नामक कोनो मनुखकेँ नै चिन्हैत छी! कियो आर होएत मोहनदास! खाली कोनो तरहेँ हमरा बचा लिअ!'
मोहनदाससँ जखन अहाँक भेंट होएत तँ पहिने तँ अहाँकेँ ओकरापर दया आएत मुदा अहाँ डरा जाएब। किएक तँ ई काल डरैएबला काल अछि आ ई आर डरैबला भेल जा रहल अछि।
मोहनदास आ हुनकर परिवारक कएकटा पीढ़ीकेँ हम जानैत छी। गाम-घरमे तँ एहने होइत अछि। हुनका देखि कऽ अहाँ सोचियो ने सकैत छी जे ओ ऐ जिलाक सरकारी एम.जी. डिग्री कॉलेजसँ ग्रेजुएट छथि। फर्स्ट डिवीजनक संग! ...आ विश्वविद्यालयक टॉपर सूचीमे, आइसँ दस बरख पहिने हुनकर नाम दोसर नंबर पर छल। हुनकर आजुक देह-दशा हुनकर ओइ कालकेँ लऽ कऽ कोनो गप नै करैत अछि। एकटा फाटल, बेदरंग भेल, ठामे-ठाम चिप्पी लागल, कोनो काल नील रंगक डेनिमक फुलपैंट, सस्ता टेरिकॉटक आधा बाँहिक, दहिना कन्हा लग उघड़ल अंगा। एकरामे कोनो काल चौखाना बनल रहैत, जेकरासँ ओ डरीड़ मेटा रहल अछि, जेकर रंग कहियो हल्लुक रहल होएत। आ एकटा रबड़क सस्ता-बरसाती पनही, जकरा माटि, धूरा, दुख, पानि, काल आ रौद एत्ते चाटि गेल अछि जे आब ओ कखनो चमड़ा तँ कखनो माटिक बनल देखा पड़ैत अछि।
मोहनदासक उमेर अखन पैंतीस-सैंतीस बर्खक होएत, मुदा देखबामे ओ हमरे बराबर आकि हमरासँ बेसी लागैत अछि। एक तरहेँ हकासल आ दौड़-भाग करैत ओकरा हम सदिखन देखलहुँ। गाममे कत्तौ बैसि कऽ गप करैत, ताश खेलाइत, हँसी-ठहक्का दैत आ टीवी देखैत नै देखलहुँ। कियो कतबो लचार आ डराएल वा जल्दीमे अछि; ई ओकरा कत्तौ ठाढ़ नै हुअए दैत अछि। मोहनदासकेँ लऽ कऽ लोक-बेद कहैत अछि जे ओ सदिखन कोनो-नै-कोनो काज पकड़िये कऽ राखैत अछि, किएक तँ ओकरा पानि पीबाक लेल सभ दिन एकटा नबका इनार कोड़ऽ पड़ैत छै आ सोहारी खेबाक लेल नित्तः नवका फसिल जनमाबऽ पड़ैत छै। ओकरा परिवारमे रोटी-पानिक लेल ओकर बाट जोहैबला एक गोटा नै पाँच गोटा छै। पाँचटा पेट आ पाँचटा मुँह।
मोहनदासक बाप काबा दास, जकरा पछिला आठ बरखसँ टी.बी. छै। ओकर माए पुतलीबाइ, जकर आँखि कोनो मंगनीक नेत्र शिविरमे मोतियाबिंद आपरेशन भेलाक बाद आन्हर भऽ गेल छै आ चारू दिस अन्हारे-अन्हार लखा दै छै। ओकर कनियाँ कस्तूरी बाइ, जे किछु नै, अप्पन वरक छाह छिऐ। कस्तूरी बाइ मोहनदासक काजमे संग दैत छथिन आ घरक चूल्हा-चौका ओरियाबैत छथिन। गामक लोक कहैत अछि जे आइ धरि कहियो दुनूकेँ लड़ैत- झगड़ा करैत नै देखने छी। लागैत अछि ओ विपैत आ आफैत होइत अछि, जे स्त्री-पुरुखक संबंधक नीवकेँ कमजोर करैत अछि।
बचल दूटा प्राणीमे एकटा अछि देवदास आ दोसर अछि शारदा। मोहनदास आ कस्तूरीक दुइटा संतान। उमेर आठ आ छह बरख। देवदास गामक प्राथमिक पाठशालामे पढैत अछि आ स्कूलक बाद गामसँ जाइबला सड़कपर खुजल "दुर्गा ऑटो वर्क्स' मे गाड़ीमे हवा भरैए, पंचर साटैए आ स्कूटर-मोटर साइकिलक छोट-मोट भङठी करबामे हेल्परक काज करैए। ऐ काजक लेल ओकरा मासमे सए टका भेटैत छै। तइमे सँ कहि सकैत छी जे मोहनदासक बेटा अप्पन पढ़बाक संग अप्पन दालि-भातक इंतजाम अप्पन मेहनतिसँ कऽ रहल अछि। तइपर सँ ओ अप्पन पएरपर ठाढ़ अछि। पाठशालाक मास्टर साहेबक कहब अछि जे चारिम क्लासमे देवदास पढबामे सभसँ नीक रहए। मुदा जखन ई गप ओकर पिता मोहनदासकेँ बतौलन्हि तँ ओकर आँखि कत्तौ टंगि गेलै। ओकरा जेना अकाशी लागि गेलै। ओकरा मुँह परक डरीड़ थरथराइत छै। आँखिक तेजी मिझाए लागैत छै। जेना कोनो गह्वरसँ ओकर कंठक अवाज बहराइत अछि, "हमहूँ तँ बी.ए. फर्स्ट क्लास छी। दिन-राति घोटैंत रही...! की भेल?"
एकर बाद मोहनदासक आँखि चमकि जाइत अछि आ ओ पपड़ी पड़ल ठोरसँ हँसैत कहैत अछि, "आइ काल्हि हम कमप्यूटर सिखैत छी। बस स्टैंडपर जे "स्टार कमप्यूटर सेंटर' अछि, ओतए हम जाइत छी। इमारती समान आ हार्डवेयरक दोकान चलबैबला मोहम्मद इमरानक बेटा शकील ऐ कमप्यूटर सेंटरक मालिक अछि आ ओ कहैत अछि, "कका, टाइपिंग, कंपोजिंग आ प्रिंट निकालैबला काज बुझि गेलहुँ तँ छह सए टकासँ बेसी देब।' मोहनदास कहैत अछि जे, "टाइपिंगमे ऐ मास हम तीसक स्पीड निकालि लेलहुँ। छोट-मोट काज भेट जाइत अछि मुदा एखन बहुत रास गलतियो भऽ जाइत अछि आ बहुत रास काल ओइ गलतीकेँ ठीक करैमे लागि जाइत अछि।'
मुदा ई सभटा गप बहुत काल पहिलुके अछि। मोहनदासकेँ भारी विपैत पड़ल छै आ ओ बेर-बेर कहैत अछि-
"हमर नाम मोहनदास नै अछि।... हम अदालतमे हलफनामा दै लेल तैयार छी। जेकरा बनैक छै ओ बनि जाए मोहनदास। कोनो तरहेँ अहाँ सभ हमरा बचा लिअ!... हम अहाँ सभक कऽल जोड़ैत छी!'
मोहनदासक दिक की अछि? ई बताबैक पहिने ओकर परिवारक पाँचम प्राणी माने मोहनदासक घरक छह बरखक शारदाक गप कऽ लेल जाए। छह बरखक शारदा गामक सरकारी प्राथमिक पाठशालामे दोसर कक्षामे पढ़ैत अछि आ स्कूलक बाद ओ अढाइ किलोमीटर दूर, दू पोखरि पार बसल गाम बिछिया टोला चलि जाइत अछि, जतएसँ ओ माँझ रातिकेँ करीब नौ-दस बजे घर घुसैत अछि। बिछिया टोलामे ओ बिसनाथ प्रसादक एक बरखक बेटाकेँ सम्हारैत अछि आ ओकर घरक काज-धाज हाथे-पाथे करैत अछि।
बिछिया गामक पैघ किसान आ जीवन बीमा निगममे बाबूगिरी करैबला नगेंद्रनाथक कलेक्टरीसँ लऽ कऽ मंत्री धरि पहुँच आ धाख छै। दूइ बेर ग्राम पंचायतक सरपंच आ एक बेर जिला जनपदक उपाध्यक्ष रहल अछि। बिसनाथ प्रसाद, जिनकर एक बरखक बेटाकेँ शारदा सम्हारैत छन्हि, ऐ नगेन्द्रनाथक पाँच मे सँ एक बेटा छथिन्ह। हुनकर असली नाम विश्वनाथ प्रसाद अछि मुदा गामक लोक हुनका बिसनाथ कहि कऽ बजाबैत अछि आ पीठ पाछाँ कहैत अछि, "असूल करैत अछि बिसनाथ। गजबक बिखधारी। ककरो फूकि मारि दिअए तँ बूझू जे टें...। बाप नागनाथ तँ बेटा सांपनाथ...। ओ अहाँकेँ देखि कऽ मुस्किया रहल अछि आ गुड़क रसमे लपेटि कऽ कहि रहल अछि तँ अहाँ साकांक्ष भऽ जाऊ। डसबाक पूरा तैयारी अछि।' बिसनाथक लग एकटा चीज नै अछि, ओ अछि ईमान। कखनो शराब पी लेलाक बाद ओ अपने मुँहसँ कहैत अछि, "एकक टोपी दोसराक मुँहमे टांगैबला हेराफेरीमे जे आनंद छै भइया, तकर सोझाँ अनकर कनियाँकेँ जांघक नीचाँ दाबैबला मजा बड्ड छोट चीज छै...! हा...हा...हा...!' ओकर उठब-बैसब सेहो गामक आ एम्हर-ओम्हरक तेहन लोक सभक संग अछि, जेकरा लऽ कऽ कहियो कोनो नीक गप नै सुनल गेल।
बिसनाथ ऊँच जातिक अछि मुदा मोहनदास नीच जातिक कबीरपंथी अछि। ओकर बिरादरीक कतेक लोक सभ आइयो सूप-चटाइ, दरी-कंबल बुनैत अछि। मोहनदास हमरे गाम नै, आसपासक कतेको गाममे अप्पन बिरादरीक पहिलुक लड़का हएत जे बी.ए. पास केने छल। आ ओहो फर्स्ट डिवीजनसँ आ मेरिटमे दोसर नंबरक संग।
(एतए थम्हि जाऊ। सत्त बताऊ जे कतौ अहाँकेँ ई तँ नै लागैए जे हम अहाँकेँ कोनो प्रतीकवादी कूटकथा सुनाबै लेल बैसि गेलहुँ? एहि कथाक मुख्यपात्रक नाम मोहनदास, ओकर कनियाँक नाम कस्तूरीबाइ, माएक नाम पुतलीबाइ आ बेटाक नाम देवदास...?
कस्तूरी बाइ नामसँ कस्तूरबाक मोन पड़ैत अछि, मोहनदास तँ साफे अछि। मुदा अहाँ महात्मा गांधीक "आत्मकथा' माने "दि स्टोरी ऑफ माइ एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ' पढबै तँ पता लागत जे हुनकर पिता करमचंदक दोसर नाम काबा सेहो रहन्हि। आ माएक नाम सेहो पुतली बाइ... फेर हुनकर बेटा देवदासक खिस्सा केकरा नै बुझल छै? जे अहाँ मोहनदासक बगे-बानी आ देह-दशा देखबै तँ अहाँकेँ फेर ओ इतिहास घेर लेत। अंतर बस एतबे जे ओ एहन मोहनदास सन अछि जेकरा पोरबंदर, काठियावाड़, राजकोट, विलायत, दक्खिन अफ्रीका आ बजाज-बिड़ला भवनमे नै छत्तीसगढ़ आ विंध्यप्रदेशक बोन-झाँकुड़, खोह-तरहरि, खेत-पथारमे रौद-भूख, रोग-घाम आ अन्याय-अपमानक आँचमे पालल-पोसल गेल छै।... आरो सभ सभटा ओहने...
...मुदा ऐठाम हम, कथाक बीचेमे ठाढ़ भऽ ई कहि दैत छी, जे बगे-बानीक मिलान एकटा संजोगे अछि। जखन हम अहाँक लेल ई कथा लिखैले बैसलहुँ, ओइ काल हमरा अपने नै बुझल छल जे हमर गामक मोहनदास आ ओकर परिवारक लोकक लिस्टमे इतिहासक कोनो एहन अनुगूंज सेहो नुकाएल छै।
विश्वास करू, एहन किछु नै अछि। ई कोनो प्रतीक कथा, रूपक आकि कूटाख्यान नै अछि। ई तँ एकटा साफे सरल खिस्सा छी। मुदा सत कही तँ ई कोनो खिस्सा नै अछि। किएक तँ हम सदिखन काल जना खिस्साक आड़िमे, अहाँकेँ फेरसँ अप्पन काल आ समाजक एकटा असल जिनगीक ब्यौरा दै लेल बैसल छी। मोहनदास वास्तवमे एकटा जीवैत असल मनुख अछि आ ओकर जिनगी एखन बड़ संकटमे छै। हँ, ई गप अवश्य अछि जे हम सत गपमे सदिखन जना ऐबेर फेरसँ कम-बेस हेरफेर केने छी। मुदा ई हेरफेर तेहने अछि, जेना कियो हाथीकेँ नुकेबा लेल ओकर बड़का देहक ऊपर डेढ़ हाथक गमछा ओछा दैत अछि।
अहाँकेँ मानऽ पड़त जे सत गप एकटा हाथी होइत अछि आ जखन कोनो कवि आ कहानीकार ओकर ऊपर गमछा ओछा कऽ ओकरा नुका कऽ रोमि कऽ सभक आगू ठाढ़ करैत अछि, तँ तखन ओकर अपनक जिनगीक सभटा पुल टूटि जाइत छै आ ओकर सभटा नाह जरि कऽ छाउर भऽ जाइत छै।
...तँ... मोहनदास एकटा असल लोक अछि। एकर पुष्टि अहाँ चाही तँ हमर गामेक लोकसँ नै ऐ देशक कोनो गामक कोनो लोकसँ पूछि कऽ कऽ सकैत छी।)
(अनुवर्तते............)
बालानां कृते
१. गजेन्द्र ठाकुर- २. राजदेव मंडल- दूटा बाल कविता ३.नवीन कुमार “आशा”- मच्छर मच्छर १
गजेन्द्र ठाकुर १.बेसी छुट्टी कम इसकूल
बेसी छुट्टी कम इसकूल
खेली-धूपी आरि-धूरपर
रौद-बसाते घूमी खूब
मम्मी-पापा बाबी-बाबा
ताकि--थाकि कऽ आबथि घूरि
बाड़ी-झाड़ी कल्लम गाछी
मेला ठेला गामे-गाम
भरि दिन भागा-भागी पाछू
बौका बुधनी संग रसूल
बेशी छुट्टी कम इसकूल।
कनियाँ-पुतरा बना सजाबी
खर-पात सँ घर बनाबी
बेंतक छड़ी बनाबी घोड़ा
चढ़ी ताइपर आ दौगाबी
झुट्ठे लोक कहैछ उकाठी
देखए धीया-पुता कऽ भूल
बेसी छुट्टी कम इसकूल।
इसकूलोमे गलती केने
मास्टर साहेब बड्ड डेराबथि
बेंट पकड़ने छड़ी घुमाबथि
टेबुलपर ओ पटकि बजाबथि
सुतलोमे सपनाइत छी हम
कहीं हुअए नै कोनो भूल
बेसी छुट्टी कम इसकूल।
कनियाँ-पुतरा चलू घुमाबी
बेंतक छड़ी हम किए बनाबी?
घर बनाबी बत्ती-कड़चीसँ
करची कलमसँ लिखी खूब
चित्र लिखि टांगी स्कूलमे,
आ सपना देखी खुब्बे-खूब
बेसी छुट्टी कम इसकूल।
बोने-बोन बिसरी रस्ता तँ
वनसप्तो घर घुराबै छथि
इसकूलमे गलती केने मुदा जे
मास्टर साहेब मारै छथि
बेंट पकड़ने छड़ी घुमाबथि
मास्टर साहेब बड्ड डराबथि
मोन बेकल अछि भय भागल नै
छड़ी-बेंत सपनाइत छी हम
छड़ी-बेंत सभ फेकथि दूर
आ साँझ घूरि घर सूती हम खूब
बेशी छुट्टी कम इसकूल।
२.कोनो सजाए नै
बदमस्ती हम खूब करी
आ हल्ला घरमे सेहो
बस्तुजात फेकी एम्हर
लोटी गर्दामे फेरो
कादो-कदवा बीच लोटाइ
आ छप-छप पानिमे भागी
मुदा सजाए कोनो नै भेटए
निअम एहेन बनाबी
रंग लगाबी कपड़ा-लत्तामे
हाथ-पएरमे सेहो
मम्मी-पापा भागि-भागि
पकड़ए चाहथि नै पकड़ाइ
आस-पड़ोसी करथि शिकाइत
पापा-मम्मी मानथि नै
खूब सुनाबी खूब बनाबी
मुदा सजाए भेटए नै
पंक्ति तोड़ि नवका पाँतीमे
सभ बच्चा जे जाएत
पुरना पाँतिक छोटका बड़का
अंतर तखन मेटाएत
आ ई देखत आ देत सजाए
मुदा तखन हे मैय्या
टूटत पाँति नव बनत कोना
जे भेटत सभकेँ सजाए
द्वेष मुदा नै राखी ककरोसँ
मुदा करी खूब बदमस्ती
धार जेना बहैए आगू दिस
हमहूँ बढ़िते जाइ छी
भेक जेना भदबरियामे
टर्र-टर्र कऽ गीत गबैए
हम गाबी भरि साल
मुदा सजाए कोनो भेटए नै
२
राजदेव मंडल दूटा बाल कविता
१
मुनियाँक चिन्ता
(बाल कविता)
“बच्चा जनमि गेल
बेटा भेल”
सुनतहि घर खुशीसँ भरि गेल
सौंसे टोल खबरि पसरि गेल
बढ़ए लगल उछाह
कहलक लोग-वाह-वाह
मुनियाँ अछि लछमिनियाँ
तब ने एकरापर सँ जनमल छौंड़ा
हे गै तू किएक धेने छेँ दादीक कोरा
मुनियाँ टक-टक ताकि रहल अछि
आ मने-मन आँकि रहल अछि
दादी बजल-की लेबेँ बाज
करए दे हमरा काज
खसौने घाड़
कनैत छह जार-बेजार
यएह करतह रक्षिया
जिनगीक उठौतह भार
धेने छह हमर गात
ई तँ छै खुशीक बात
जनमल तोरा भाए
कतेक खुशी छह तोहर माए
दादी, सबटा जानै छी
हम ओइ लए नहि कानै छी
चिन्ता अछि हमरा आब के कोराकेँ लेत
दूधो माए पिबऽ नहि देत
आँइ,
सभ हँसल आ मुनियाँ फँसल।
२
कथीक गाछ
(बाल कविता)
चारिटा छाैंड़ा छल गाछ तर फनैत
जिद लगौने डरिकेँ गनैत
पहुँचल पाँचम- हे रौ की गनै छेँ
ई कथीक गाछ िछएे से जनै छेँ?
सभ भेल अवाक
अपन जमौलक धाक
सुनने रहि ई गाछ िछऐ अनचिन्हार
जेकरा चिन्हलहुँ से चिन्हार
नहि चिन्हलहुँ तँ भेल अनचिन्हार
कहैत माथ उठौलक तानि
एकटा छौंड़ा बजल फानि
तहूँ तँ नहि रहल छेँ जानि
अपनहुँ ठकाइत छेँ
आ दोसरोकेँ ठकै छिही
टेढ़ी देखा संतोख करै छी
झूठक कऽ रहल छी परचार
दुर-छी दुर-छी करतौ संसार
अनजानकेँ करैक चाही जनैक प्रयास
नहि छोड़ैक चाही आस
पहिले बढ़ाले अपन गियान
तब बाजबेँ तँ बढ़तउ मान।
३
नवीन कुमार “आशा” (१९८७- )
पिता श्री गंगानाथ झा, माता श्रीमति विनीता झा। गाम- धानेरामपुर, पोस्ट- लोहना रोड, जिला- दरभंगा।
मच्छर मच्छर
अछि बड़ खच्चर
जँ ई काटै
मोन पड़ावै
दादी नानी गामक
जँ नै जरै कोनो बत्ती
ताधरि नै प्राण यौ
सभ घरक शान बढ़ावै
सभ घरक याद दियाबै
देखैमे छी छोट
मुदा होइ बड़ खच्चर
मच्छर मच्छर...
धुँआ धुकुरक छै जमाना
मुदा ओकर एकटा फसाना
खून जाधरि नै चूसै
तावत नै रुकै ओ
सभ कियो करै सम्मान
बूढ़ होए चाहे बच्चा
सभ कए दैए खरमैच्चा
मच्छर मच्छर...
साँझ होए चिन्ता धरै
रातिमे खूब सताबै
मच्छरदानी जँ नै लगेलौं
बादमे प्राण सुखाबै
मच्छर मच्छर
(मित्र पी.एस.ठाकुर “बबलू” लेल)
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
Original Poem in Maithili by Kalikant Jha "Buch" Translated into English by Jyoti Jha Chaudhary
Kalikant Jha "Buch" 1934-2009, Birth place- village Karian, District- Samastipur (Karian is birth place of famous Indian Nyaiyyayik philosopher Udayanacharya), Father Late Pt. Rajkishor Jha was first headmaster of village middle school. Mother Late Kala Devi was housewife. After completing Intermediate education started job block office of Govt. of Bihar.published in Mithila Mihir, Mati-pani, Bhakha, and Maithili Akademi magazine.Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London. Original Poem in Maithili by Kalikant Jha "Buch" Translated into English by Jyoti Jha Chaudhary
Kalikant Jha "Buch" 1934-2009, Birth place- village Karian, District- Samastipur (Karian is birth place of famous Indian Nyaiyyayik philosopher Udayanacharya), Father Late Pt. Rajkishor Jha was first headmaster of village middle school. Mother Late Kala Devi was housewife. After completing Intermediate education started job block office of Govt. of Bihar.published in Mithila Mihir, Mati-pani, Bhakha, and Maithili Akademi magazine.Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London. Munna Kakka Is Going To In-laws
Attiring the dhoti, very carefully he got dressed
Unlcle Munna is going to in-laws being prepared
First he steeped into the pond on the way
Then slipped while trying to climb the quay
His forehead was covered with black clay
Finally he came out sweeping out his dress
Cleaning himself in a small ditch
Uncle Munna is going to in-laws being prepared
Munna! Why are you so perturbed?
Are you the only one having in-laws
Has the priest announced
By researching all around
When the day would be passed at two past ten
Uncle Munna is going to in-laws being prepared
He is forwarding step by step unmitigatedly
Like dry storm of heated summer
Vision is uninterrupted by the things on the way
The growing darkness of evening seems a curse
Moving the steps forward with all his effort
Uncle Munna is going to in-laws being prepared
Covering her face, mother-in-law said
Jha really favours me a lot always
“He brings hot rasogulla
For me, every now and then”
“This is all gulgulla today” , Jha said with a smile.
Uncle Munna is going to in-laws being prepared
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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