१. बेचन ठाकुर- नाटक- बेटीक अपमानक गतांशसँ आगाँ २.रमाकान्त राय 'रमा'- मैथिल पत्र-पत्रिका : समस्या ओ समाधान : आचार्य दिव्यचक्षु
१
बेचन ठाकुर नाटक
बेटीक अपमानक गतांशसँ आगाँ
दृश्य छठम
(स्थान- दीपक चौधरीक घर। दीपक चौधरी दलानपर मोन मारने माथपर हाथ लऽ कऽ बैसल छथि। खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइत छथि। काफी हकमैत छथि। बगलमे कोनो बरतनमे राखल छौरपर कफ फेंकैत छथि।)
दीपक : हे भगवान, हे भगवती, हे सरस्वती महरानी आब हमरा ऐ दुनियासँ लऽ चलु।
(खोंखी करैत) बेमारी हमर चरम सीमापर पहुँचि गेल ऐछ। कियो देखनिहार नै ऐछ। जै बेटाले अपन परम पियारीक जान गमेलहुँ। ओ बेटा कोनो काज जोकर नै। सात बेटा रामके एक्कोगो नै कामकेँ। (खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइत छथि। सुरेश कामतक प्रवेश)
सुरेश : भागिन बड़ तबाह देख रहल छी।
दीपक : हँ मामा। एक तँ बेमारी चरम सीमापर ऐछ आओर दोसर बिआहक कर्जा माथपर अछि।
सुरेश : बेटा सभ िकछु नै सम्हरैत छथुन्ह?
दीपक : सभ अपना लेल हरान छथि। सभ भाग-बिलासमे लागल छथि। बेटा लेल सभटा कमाएल, धरल-उसारल अल्ट्रासाण्डमे आ पत्नीक दवाइमे बुिक देलौं। सेहो पानिमे चलि गेल।
(खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइत छथि।)
सुरेश : भागिन, अहाँक स्थिति आब बड़ खराब देख रहल छी। आब जीता-जिनगीमे छोटका बेटा केर बिआह कतौ जल्दी कऽ लिअ। करजा-बरजा सधबे करत। बेटा सभकेँ सबहक करजा कहि दियौन्ह। ओ सभ जेना-तेना, बेचो-बिकिन कऽ करजा अदाए करत।
दीपक : हमहुँ बैस कऽ सएह झखैत छी। कोनो लड़िकीक सुर-पता ऐछ अहाँकेँ? कएक गोटेकेँ कहलियन्हि। मुदा कियो कहैत छथि जे आब बेटी कत्त? सभ बेटीकेँ लोक अल्ट्रासाउण्ड कराए-कराए कऽ भगवानपुर पठाए देलखिन्ह। आब बेटाक बिआह बड़ मुश्किल ऐछ बड़ मुश्किल। हमरा सभटा दहेजक लोभ घुसरि रहल ऐछ। ऐसँ चिक्कन हमरा भगवान मौत दैतथि।
सुरेश : भागीन हरबड़ाउ नै। भगवानपर भरोसा राखू। भगवानक घर देर ऐछ अंधेर नै। लड़िकीक तँ बड़ अभाव ठीके ऐछ। एे परोपट्टामे एक्के गोट लड़िकी ऐछ।
दीपक : मामाश्री, ओ किनक बेटी छथिन्ह?
सुरेश : ओ छथिन्ह बलवीर चौधरी अहाँक समधि केर छोटकी बेटी। तैपर भरि दिनमे हजारो लड़िकाबला अबैत-जाइत छथि। बड़की पुतौहूवाला गप्प नै बुझिऔ। मझिलीयोसँ भरिगर बुझाएत अहाँकेँ। बड़ करगर फीस छन्हि बलवीर चौधरीक?
दीपक : कत्ते लगभग?
सुरेश : बलवीर चौधरीकेँ कमसँ कम पाँच लाख टाका नगद आओर सभ श्रमजान चाही लड़िकी-लड़िकाक मनोरथ वास्ते।
(सुनिते दीपककेँ चौन्ह आबि जाइ छन्हि। सुरेश गमछासँ हौंकि कऽ शांत करै छथि। सुरेश अन्दरसँ पानि आनि कऽ दीपककेँ मुँह-हाथ धोइले दैत छथिन्ह। दीपक कुर्रा कऽ मुँह-हाथ धोइ कऽ फेर मामा श्रीसँ गप्प करैत छथि।)
दीपक : मामाश्री, समधि एतेक पैघ धराह बनि गेलाह मास्टर भऽ कऽ?
सुरेश : भागिन, समए बलवान होइ छै। एक दिन गाड़ीपर नाव तँ एक दिन नावए पर गाड़ी। सदा साहिबी किनको रहलैए? कहबी ऐछ सभ दिन होत न एक समाना।
दीपक : मामाश्री, समधि हमरो किछु कम करताह की नै?
सुरेश : आखिर ओ अहाँक समधि छथि। किछु कम अवस्य करबाक चाही।
दीपक : तहन चलू मामाश्री काल्हि। जदि पटि-सटि गेल तहन छोटको बेटाकेँ कऽ लेब। हमरा मूइला बाद हमरा बेटाकेँ बिआह के करौताह? दर-दियाद केकरा के होइत छैक?
सुरेश : भागिन, काल्हि भोरे समधि ओइठाम चलू। काल्हि धरि लड़किकेँ कोनो फैनल नै भेल छल, से हमरा पूर्ण पता ऐछ।
दीपक : सबेरे जाएब तहन ने काज बनत। नै तँ समधि किनको जुबान दऽ देलखिन्ह तहन भेल आफद।
सुरेश : भागिन, काल्हि भोरसँ भोर अहाँ हमरा ऐठाम चलि आएब। ता हम चलैत छी।
(दीपक सुरेशकेँ पएर छुबि प्रणाम करैत छथि। सुरेशक प्रस्थान)
दीपक : (खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइत छथि।) लागि रहल ऐछ जे ई बिआह हम देखब की नै। आगू माँ सरस्वतीक किरपा।
पटाक्षेप
दृश्य सातम आगाँक अंकमे-
२
रमाकान्त राय 'रमा' मैथिल पत्र-पत्रिका : समस्या ओ समाधान : आचार्य दिव्यचक्षु
“देशक स्वतंत्रताक 62-63 वर्षक बादो मैथिलीक माध्यमे प्राथमिक शिक्षाक व्यवस्था नै रहबाक कारणे मैथिली भाषा-भाषी अपन मातृभाषाक पत्र-पत्रिकासँ नै जुड़ि पबैत छथि, मैथिली पत्र-पत्रिका आ पुस्तक नै पढ़ि सकैत छथि। तँए यत्र-कुत्र मैथिली पत्र-पत्रिका देखियो कऽ ने तँ ओ कीबा लेल उत्सुक होइत छथि आने पढ़बा लेल। ई मैथिली पत्र-पत्रिका प्रकाशन सभसँ प्रमुख समस्या अछि।”
ई विचार प्रो. शिवाकान्त पाठक गत 2अगस्तकेँ 'दूरदर्शन'क मुजफ्फरपुर केन्द्रसँ प्रसारित मैथिली दैनिक समाचार पत्र-पत्रिका : समस्या ओ समाधान' विषएपर आयोजित कएटा परिचर्यामे व्यक्त कएलनि।
कार्यक्रमक संचालन करैत साहित्यकार श्री रमाकान्त राय 'रमा' कहलनि जे यावत् मैथिली पत्र-पत्रिकाकेँ व्यवसायिक दृष्टिकोणसँ सम्पादन, व्यवस्थापन, वितरण आ संयोजनक फराक-फराक कऽ एेपर एक समान ध्यान नै देल जाएत तावत् मैथिली पत्र-पत्रिका दीर्घायु नै भऽ सकैछ। वर्तमान समएमे प्रकाशित पूर्वोत्तर मैथिली, मिथिला दर्शन, मिथिला दर्पण आदि पत्र-पत्रिकाक चर्च करैत कहलनि जे ऐ सभ पत्रिकाक रचना, विज्ञापन आ वितरणक नीक समन्वय रहैत अछि जे नीक संयोजन-व्यवस्थापनक कारणे भऽ पबैत अछि आ पत्रिका दीर्घजीवी ऐछ आ रहत से विश्वास कएल जा सकैत अछि।
मुजफ्फरपुर दूरदर्शन केन्द्र'क 'सृजन' कार्यक्रममे आयोजित ऐ मैथिली परिचार्यमे प्रो. शिवाकान्त पाठक, डॉ. नरेश कुमार 'विकल' आ डा. नारायण प्रतिभागी छलाह। कार्यक्रमक संचालन श्री रमाकान्त राय 'रमा' कऽ रहल छलाह।
डॉ. नरेश कुमार 'विकल' मैैथिली पत्र-पत्रिकाक त्रुटिपूर्ण वितरण व्यवस्था आ ओकर आर्थिक आधारकेँ सुदृढ़ करबापर जोर दैत कहलनि जे यावत् मिथिलाक लक्ष्मीवान नीक पंूजी लगा कऽ सम्पूर्ण मिथिलांचलमे साइकिलपर घूमि-घूमि कऽ अखबार बेचनिहार भेंडरक साइकिलपर नै टहलौताह तावत् मैथिली पत्र-पत्रिकाकेँ अल्पायुए होएबाक सम्भावना अछि।
आधा घंटाक ऐ परिचर्याक प्रस्तुति सहायक छलाह 'सृजन' कार्यक्रमक प्रभारी अधिकारी श्री मुकेश कुमार। परिचर्यामे अपन महत्वपूर्ण सहभागिता देखबैत डा. नारायण झा ई स्पष्ट कएलनि जे विज्ञापन आ वितरण ऐ दुनूमे अन्योन्याश्रय सम्बन्ध ऐछ। जँ मैथिली भाषा-भाषी अधिकाधिक समाचार पत्र कीनताह पढ़ताह तँ लोक अपन सामग्रीक प्रचार-प्रसार हेतु आखबामे विज्ञापन देबे करताह। आ जँ पत्र-पत्रिकाकेँ विज्ञापन भेटतैक तँ ओकर आधार अवश्य मजगूत होएतैक, जे ओकर दीर्घायु आधार होएतैक। नारायण बाबू एकटा आर महत्वपूर्ण गप्प कहलनि जे पाठकक रूचिक पाठ्य-सामग्री एवं रोचक-प्रेरक समाचारक संकलन िनश्चय समाचार पत्र आ पत्रिकाकेँ लोक प्रिय बनेबाक सामर्थ्य रखैत ऐछ।
एे क्रममे डॉ. विकल जोड़लनि- “समसामयिक परिवेशकेँ प्रश्रय देब एवं नव लोकक लेखन-सम्पादनसँ जोड़ब सेहो मैथिली पत्र-पत्रिकाकेँ गतिशील बनाओत। शिवाकान्त बाबू पूर्वमे प्रकाशित अपन पत्रिका 'वागमतीक' अनुभवक आधारपर कहलनि जे हम जतेक दिन मासिक 'वागमती' पत्रिका सम्पादित प्रकाशित कएलहुँ हमरा ओहिसँ आर्थिक हािन नै भेल। मुदा वितरण व्यवस्थाक त्रुटि ओहो स्वीकार कएलनि। नारायण आ पत्रिका सभक फराक-फराक वर्तनीकेँ मैथिली भाषाक लेल घातक बतौलनि। वर्तनीक एकरूपता सम्पादक एवं भाषा विशेषज्ञकेँ ध्यान देबाक आह्वान कएलनि। रमाकान्त राय 'रमा' चारि बेर तीन ठामसँ तीनटा मैथिली दैनिक पत्राचार पत्रक प्रकाशन करैत जोड़लनि जे स्वदेश, मिथिला मिहिर आ मिथिला समादमे एखन मात्र एकटा दैनिक मिथिला समाद प्रकाशन चारि कोटि लोक दैनिक ऐछ। जे मैथिली भाषाक पाठकक दारिद्रय द्योतक ऐछ।
परिचर्याक समापन करैत संचालक श्री रमाकान्त राय 'रमा' सभ प्रतिभागीकेँ हुनक पहत्वपूर्ण एवं मौखिक विचारक अभिव्यक्ति लेल धन्यवाद दैत कहलनि जे समग्रत: कहल जा सकैत अछि जे मैथिली माध्यमे प्राथमिक शिक्षा, सुदृढ़ आर्थिक आधार, समसामयिक प्रभावेत्पादक रचना, रोचक-प्रेरक समाचार, मानक मैथिली भाषाक वर्तन, विज्ञानपन जुटयबाक सर्थक प्रयास, सम्पादन, वितरण एवं व्यवस्था- पनक फराक-फराक नीक व्यवस्था इत्यादि प्रमुख बिन्दुपर जँ ध्यान देल जाय तँ मैथिली दैनिक समाचार पत्र ओ पत्रिका सभ निश्चित रूपसँ दीर्घायु होएत आ पाठक गणक संतुष्टक मिथिलाक जन-जन धरि पहुँचत।
१.प्रदीप बिहारीक दू गोट विहनि कथा-सत्संगी- थापड़ २. लक्ष्मी दास- विहनि कथा- बूड़िबकक बूड़िबक ३.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र- यायावरी- मलिक भाय केर फुटपाथी चिंतन ४.बिपिन झा- की नब साल की पुरान साल..! ५.मुन्नाजी- रिपोर्ताज- ६. नवेन्दु कुमार झा १.रेल लाइनसँ जुड़त भारत आ नेपाल २. भारतीय सामाजिक व्यवस्थामे आइयो जीवन्त अछि जाति व्यवस्था- प्रो. शर्मा ३.प्रदेशमे लागत चौदहटा नव उद्योग समूह, असोचैम कएलक एहि दिस पहल- मिथिलांचलमे सेहो लागत नव उद्योग
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प्रदीप बिहारीक दू गोट विहनि कथा-सत्संगी- थापड़
सत्संगी
तीन मासक बाद घरमे एकटा टहला अयलैक। पहिलुक टहलाकें गेेलाक बाद मोसकिल भऽ गेल रहैक। दुनू दियादिनी खटैत-खटैत अपस्याँत भऽ जाइत छलीह।
जेठकी अपन पतिक संग सत्संगमे जाइत छलीह- सप्ताहमे दू दिन। ओहि दुनू दिन छोटकी पर काजक बोझ बेसी पड़ि जाइत छलनि। ओ अपन नैहर फोन करैत छलीह। पहिलुक टहला सेहो हुनके नैहरसँ आयल छलनि। ओम्हर भेटि जाइत छैक काज कयनिहार। छोटकीक बहिन सभक ओहिठाम नैहरेसँ गेल छनि टहला।
जेठकी दुनू प्राणी किछु सामाजिक काज सभसँ सेहो जुड़ल छथि तें टहलाक नहि भेने बेसी मोसकिल भऽ जाइत छनि। संयुक्त परिवारक मनोविज्ञान सेहो बुझऽ पड़ैत छनि। एक्कहि गोटें पर बेसी भार देब उचित नहि।
बाढ़िक विभीषिका समाप्त भेल रहैक। छोटकीक नैहरसँ फोन अयलनि, ‘‘बाढ़ि सटकि गेलैए। कने रूक्ख होमऽ दहक। काज कयनिहार भेटिए जेतह कोनो।’’
फोनक किछुए दिनक बाद छोटकीक भाय एकटा टहला अनलनि। खिआयल सनक नओ-दस बर्खक छौंड़ा। बड़की बजलीह, ‘‘ई तँ कुपोषणक शिकार अछि। काज की करत?’’
‘‘पोसऽ पड़त दीदी।’’
‘‘यैह तँ विडम्बना छै। ई सभ नमहर होमऽ धरि कतहु रहत। पोसा-पला जायत आ तकर बाद भागत दिल्ली-लुधियाना।’’ जेठकी बजलीह।
‘‘ई नहि जायत। अपने जऽनक बेटा अछि।’’
ओहि राति साढ़े नओ बजे सत्संगसँ घुरल रहथि बड़की दुनू प्राणी। टेप रेकॉर्डर पर गीत बजैत रहैक, ‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, पीर परायी जाने रे....।’’ पति पुछलखिन ओहि छौंड़ासँ, ‘अएँ रे मनसुक्खा! तों कोन जाति छही?’’
‘‘दुसाध।’’
लगलैक जेना घरमे ठनका खसल होइक।
तामसे माहुर भऽ गेलाह सत्संगी। ओहि शांत वातावरणमे हुनक एकमात्र स्वर सुनल जाइत छल, ‘‘हम सभ दिन कहलहुँ। परम झुट्ठा अछि परतापुर बला सभ। कोना कहने छल जे मंडल अछि ई। आब तँ बहुत किछु बचा कऽ राखऽ पड़त मनसुक्खासँ।’’ ú
थापड़
ओ छौंड़ा पेट्रोल पम्प पर माला बेचैत अछि। पहिने पॉलिथिन बैगमे रखैत छल, मुदा आब मूजक चंगेरीमे रखैत अछि। खोराक लेबऽ आबऽ बला वाहन सभकें माला अर्पित करबा लेल उताहुल रहैत अछि।
हमहूँ अपन स्कूटरक खोराक ओही पेट्रोल पम्प पर लैत छी।
एकटा साँझखन हम पेट्रोल लेबऽ पम्प पर गेल रही। ओ छौंड़ा दौगल आएल आ हमरा स्कूटरक माथ बाटें माला पहिराबऽ लागल। हम मना कएलियैक।
छौंड़ा बाजल, ‘‘सर! आइ बोहनियो ने भेलै हन। एक्के रूपा के तऽ बात छिकै।’’
छौंड़ाक आकृति परक दयनीय भावसँ हम द्रवित भऽ गेलहुँ। जेबीमे हाथ घोसिएलहुँ। आँगुरसँ खुदरा पाइ गनलहुँ। मात्र साठिटा पाइ छल। कहलियैक, ‘‘खुदरा नहि छौक।’’
‘‘कोन नोट छिकै? दियौक ने सर! पम्प बला नमरियो के खुदरा कए दै छै।’’
एक टकाक माला। हमरा जेबीमे दसटकही। भजाएब उचित नहि लागल। के चानचुन राखत जेबीमे? मुदा छौंड़ाक आग्रह। कने काल इथ-उथ मे रहि गेलहुँ। मुदा खनहि जेबीसँ साठि पाइ बहार कऽ छौंड़ाकें दैत कहलियैक, ‘‘ई साठि पाइ ले आ माला सेहो राखि ले।’’
छौंड़ा पाइ नहि लेलक। माला अपन चंगेरीमे रखैत बाजल, ‘‘हमे हथउठाइ नइं लै छिकियै साहेब!’’
आब हमर लिलसाक बादो ओ छौंड़ा हमरा स्कूटरकें माला पहिराबऽ नहि अबैत अछि।
२
लक्ष्मी दास
विहनि कथा
बूड़िबकक बूड़िबक
जेठ मासक तीन बजे दुनू बापूत गरमा धान रोपैले खेत पटा कऽ आएल रही। गरमीसँ मन तबधल रहए। मैट्रीकक बेटा कहलक- “बाबू नहाइले जाएब से साबून नैए।”
एक तँ जेबीक पचस टकहीक गरमी दोसर तबधल मन। कहलिऐ- “जेबीमे छै लऽ लाए गऽ।”
हमरा मनमे भेल जे पँच टकही लाइफबुआ लेत। बाँकी पाइसँ खाद लऽ आनब। छौड़ा चालीस रूपैआबला पीयर्स साबून आनि निचेनसँ नहाएल। हम जखन नहाइले विदा भेलौं तँ बौआकेँ पुछलिऐ-“कतेक पाइ बचलह?”
कहलक- “दस रूपैआ।”
सुनिते मन जरि गेल। मुदा अपन हारल ककरा कहितिये। एक तँ बुड़िबक ओ जे हमर दुख नै बुझलक। दोसर अपनो तँ अहूसँ टपि गेलौं जे ओकरा कहि नै देलिऐ।
३
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र
यायावरी
मलिक भाय केर फुटपाथी चिंतन
मलिक भाय हमरा बड्ड प्रिय छथि। पिण्डश्याम वर्ण, लगभग 48-50 केर आयु, मोट नाक मुदा नीक आ सुडौल काया। सदरिकाल गंभीर बनल। कपड़ा-जूत्ता पहिरबाक नीक शैली। खानदानी मुसलमान छथि। हिनकर पिताजी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालयमे इतिहासक प्रख्यात प्रोफेसर छलथिन्ह। आब अवकाश प्राप्त जीवन जीबैत छथिन्ह। मलिक भायक नाम मुर्त्तज़ा मलिक छन्हि। हिनकर परिवार शिक्षित आ उदारवादी परिवार छन्हि। मलिक भाय डाक्यूमेन्टरी फिल्म बनबैत छथि। पहिने बहुत दिन धरि रंगमंचसँ जुड़ल छलाह। हबीब तनवीर केर संग नाटक केलन्हि। नौटंकीमे नीक अभिरूचि छन्हि। विशेष रूपसँ कानपुर, हाथरस आ मथुराक नौटंकी परम्पराक प्रति हिनकर लगाव अद्भुत छन्हि। ओहि शैलीकेँ पुर्नजीवित करबाक लेल सदरिकाल तत्पर रहैत छथि। मुसलमान समाजक बुद्धिजीवि, आइ.ए.एस., आइ.एफ.एस., आइ.पी.एस., रंगकर्मी, साहित्यकार, महिला इन्टर प्रेन्युअर इत्यादिक बीच ई अपन ठोस पकड़ बनौने छथि। मुसलमान राजनेता चाहे कुनो पार्टीक किएक ने होथि, मलीक भायकेँ सम्मान करैत छथिन्ह। जखन अब्दुल कलाम राष्ट्रपति छलाह तँ मलिक भाय सदरिकाल राष्ट्रपति भवन केर चक्कर लगबैत रहैत छलाह। मुदा बिना बजौने कहियो नहि गेलन्हि। तखने जाइत छलन्हि जखन बजाहट अबैत छलन्हि। वर्तमान उपराष्ट्रपति डॉ. अंसारी लग सेहो हिनकर बड्ड नीक पहुँच छन्हि। अंसारी महोदयकेँ बड्ड करीबी मानल जाइत छथि मलिक भाय।
एन.डी.ए. केर शासन कालमे मलिक भाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनतापार्टी एवं एन.डी.ए. केर घटक दलक नेता सभसँ बड्ड समिपक नाता रखैत छलाह।
मलिक भायसँ प्रथम परिचए हमरा एन.डी.ए. केर शासन कालमे नेशनल म्युजियम संस्थान केर एक होनहार शोधार्थी श्री आनन्दवर्धन जे आइ-काल्हि Delhi Institute of Heritage and Research Managemenet मे सिनियर लेक्चरॉर छथि, भारतीय जनतापार्टी केर मुख्यालयमे करोलन्हि। अहि बातकेँ लगभग नौ वर्ष भऽ गेल। आनन्दवर्धन हमरा कहलन्हि- “भैया, ई छथि मलिक भाय। बड्ड नीक लोक। Documentary film बनबैत छथि। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आ संस्कार भारती सं बड्ड नीक सम्बन्ध छन्हि। भारतीय परम्परासँ सिनेह छन्हि। भारतीय परम्परा केर संरक्षण आ सम्बर्धनमे सदरिकाल लागल रहैत छथि। उदारवादी प्रवृति केर मुसलमान छथि। अयोध्यामे राम मन्दिर बनए, तकर पक्षधर छथि। पाकिस्तानक घोर विरोधी छथि। हिन्दु-मुसलमान एकताक समर्थक छथि...।" इत्यादि-इत्यादि।
आनन्दवर्धन केर अहि परिचएपर मलिक भाय बिना किछु बजने आँखिमे धूपबला कीमती चश्मा लगौने बड़ा गम्भीर अहँकार-हीन भावना सं हमरा लग आबि गर्मजोशी सँ हमरासँ हाथ मिलौलन्हि। आनन्दवर्धनजी मलिक भायकेँ सेहो हमर बड़ा विस्तारपूर्वक परिचए देलथिन्ह। नहि तँ आनन्दवर्धनजी हमरा मलिक भायक पूर्ण नाम बतौलन्हि। आ नहिये हम जनबाक प्रयास केलहुँ। मुदा तकरबाद मलिक भायसँ दिन-प्रतिदिन सम्बन्धक प्रगाढ़ता बढ़ैत गेल। मलिक भायसँ जतेक नजदिकी अबैत गलहुँ ततेक हिनका प्रति हमर सिनेह आ सम्मान बढ़ैत गेल। एक दिन मोनमे आएल- आहि रे बा! मलिक भाय केर नाम तँ हमरा पते नहि अछि। कहीं कहियो कियो पूछलक जे मलिक भाय अर्थात के, तँ की उत्तर देबैक? मुदा प्रगाढ़ता अतेक बढ़ि गेल छल जे हमरा मलिक भायसँ हुनकर नाम पुछबाक हिम्मत नहि भेल। जखन आनन्दजी भेँट भेलाह तँ पुछलिएनि- “मलिक भाय केर नाम की छन्हि?” आनन्द जवाब देलन्हि- “हमरो ज्ञात नहि अछि। हमहूँ हिनका मलिक भाय केर नामसँ जनैत छयन्हि।”
एक दिन मलिक भाय हमरा इमेल भेजलन्हि। ओहि इमेल आइ.डी.मे इमेल भेजएबलाक नाम मुर्त्तज़ा मलिक रहैक। एकहि क्षणमे ई इमेल हमर समस्याक समाधान कऽ देलक।
जखन राम जन्मभूमि आ बाबरी मस्जिद केर बिबादपर इलाहावाद हाइकोर्ट (लखनऊ बेन्च)क निर्णय अएलैक तँ झट दनि मलिक भाय हमरा ई एस.एम.एस. केलन्हि- “Congrats now me can build temple”
कनिकालक बाद मलिक भाय फोन सेहो केलन्हि। कहए लगलाह- “कैलाश भाय, भारतक मुसलमान आब शान्ति चाहैत अछि। हमरा लोकनि हिन्दु-समाजक संग मिलि कऽ रहए चाहैत छी। आब अतए केर मुसलमान कुनो नेता आ मुल्लाक मायाजालमे नहि ओझराए चाहैत अछि। मुसलमान समाजक युवावर्ग आब विकासमुखी भऽ गेल अछि। आब एहि तरहक बात लऽ कऽ हमरा लोकनि खून खराबा नहि कऽ सकैत छी। बहुत भेल आब कुनो नेता किंवा कठमुल्लाक झपासामे देशक मुसलमान नहि आबएबला अछि। हमरा लोकनि तँ बल्कि ई सोचि रहल छी जे देशक मुसलमान सभकेँ विभन्न भौगोलिक क्षेत्रसँ बजा अयोध्या लऽ जाइ आ हिन्दु लोकनिक संग मिल कऽ एक भव्य आ पैघ राम-मन्दिर केर निर्माणक कार्य प्रारम्भ करी। अगर एहेन भऽ गेल तँ समस्त विश्वमे एकटा बात पहुँचत जे भारत सरिपहुँमे अनेकतामे एकता, आपसी सामंजस्य तथा वैविध्य संस्कृतिक समागम स्थल अछि। एहेन प्रमाण अन्यत्र संभव नहि।”
मलिक भाय केर एहि तरहक विचार सुनि मोनमे एक बेर फेर हुनका प्रति अपार सिनेह आ सम्मान जागि गेल। मोन भेल जे मलिक भायकेँ हृदएसँ लगा ली। तैय्यार सेहो भेलहुँ। मुदा कहि नहि किएक एकै झटकामे अपने-आपकेँ रोकि लेलहुँ। भेल मलिक भाय सोचताह- “राम-मन्दिर लेल कैलाश भाय अतेक चिन्तित छथि मुदा मुसलमानक भावना केर चिन्ता कहाँ छनि। कैलाश भाय कते मतलबी लोक छथि!”
करीब दू बरख पूर्व मलिक भाय पुनीता शर्मा नामक एक पिण्डश्याम मुदा आकर्षक नाक-नक्शावाली बालाक संग हमरा लग अएलाह। पुनीता शर्माक सम्बन्धमे मलिक भायसँ हमरा ई ज्ञात भेल जे पुनीता शर्मा कत्थक नृत्यांगना छथि। ओ अपन संस्थाक माध्यमसँ सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन करैत रहथि छथि। पुनीता शर्मा बिहारसँ थिकीह। नृत्य संग-संग नृत्य-नाटिकाक सेहो मंचन एक उभरैत कलाकारक रूपमे करैत छथि। पुनीता शर्माक संग एक आरो श्यामे वर्ण, छटगर मुदा आकर्षक आ मुँहक पानिमे पुनीता शर्मासँ कनी अठारह, एक नायिका हमरा लग आएल छलीह। एहि नायिका केर नाम छलन्हि अनु चौधरी। बार्तालापक क्रममे पता चलल जे अनु चौधरी मुलत: मिथिलासँ छथि। हिनकर पिता कुनो संस्कृत विद्यालयमे गणित केर शिक्षक छथिन्ह आ दिल्ली महानगरीक पश्चिमी कछेरमे बसल नजफगढ़मे अपन घर-द्वार बना रहि रहल छथि। अनुक जन्म, पालन-पोषण एवं शिक्षा इत्यादि सेहो दिल्लीए मे भेल छन्हि। अनु हिन्दीसँ एम.ए. केलाक बाद दिल्ली विश्वविद्यालयसँ पी.एच.डी. कऽ रहलि छलीह। आब पी.एच.डी. लगभग लगिचाए गेल छन्हि। मुदा अनु पुनीताक तुलनामे कनी गंभीर बुझना गेलीह। जखन अनुकेँ हमरा बारेमे ज्ञात भेलन्हि जे हम मैथिल छी तँ ओ हमरासँ हिल-मिल गेलीह आ खाँटी मैथिलीमे वार्तालाप करए लगलीह। “राग-विराग” संस्थासँ अनु सेहो जुड़ल छलीह। पुनीता शर्मा आ अनु चौधरी दुनूकेँ बिहारक संस्कृति आ संस्कारसँ घोर लगाव बुझना गेल हमरा। ई दुनू मिल अपन संस्था- राग-बिरागक माध्यमसँ हम्मर ताहि समएक संस्था- इन्दिरा गान्धी राष्ट्रीय कला केन्द्र केर प्रांगणमे “बिहार उत्सव” मनबए चाहैत छलीह। ओहि सांस्कृतिक कार्यक्रममे प्रदर्शनी, लोक तथा शास्त्रीय नृत्य आ संगीतक मंचन, बिहारक सांस्कृतिक विरासत तथा बिहारमे विकासक संभावनापर एक दू-दिनक संगोष्ठी इत्यादि करबाक विचार छलन्हि। यद्यपि बिहारक प्रति हुनका हृदएमे अगाध प्रेम छन्हि। जखन ई दुनू नायिका मलिक भायसँ बिहार उत्सव करबाक इच्छा व्यक्त केलखिन तँ मलिक भाय हुनका लोकनिक संग मिल एहि सपनाकेँ साकार करवाक लेल लागि गेलाह। मुदा स्पॉन्सर भेटबाक लेल एक परियोजना तथा एकटा आधार लेख जरूरी। ओही परियोजना तथा आधारक निर्माण, संगहि-संग इन्दिरा गान्धी राष्ट्रीय कला केन्द्र केर प्रांगणमे कार्यक्रम करबाक अनुमति केर लेल मलिक भाय एहि दुनू नायिकाकेँ लए हमरा लग आबि गेलाह। हम मलिक भाय केर बिहारक प्रति प्रेम एवं पुनीता तथा अनुक इच्छाकेँ सम्मान करैत परियोजना तैय्यार कऽ देलयन्हि। संगहि अपन तात्कालीन सदस्य सचिव डॉ. कल्याण कुमार चक्रवर्तीसँ निवेदन कए पूरा कला केन्द्रक प्रांगण हिनका लोकनिकेँ बिहार उत्सव केर आयोजन करबाक हेतु दिया देलयन्हि। आब मलिक भाय प्रसन्न भऽ पुनीता आ अनुक संग बिहार उत्सव केर तैय्यारीमे जमि कऽ लागि गेलाह। स्पॉन्शरशीप केर लेल सेहो जतय-जतय दौड़-धूप करए लगलाह। हमहुँ उत्साहित रही। मुदा एकाएक कोसी अपन बिकराल रूपसँ सहरसा, पुरणियामे सर्वनाश कऽ देलक। जान-मालक जबरदस्त हानि भेलैक। समस्त देश कोसीक विभिषिकासँ काँपि गेल। अहि बिकरालताकेँ देखैत हमरा लोकनि ई निर्णय सर्वसम्मतिसँ लेलहुँ जे कार्यक्रमकेँ किछु दिन लेल स्थगित कऽ देल जाए।
एहि घटनाक एक प्रभाव ई भेल जे हम मलिक भायकेँ आरो समीप आबि गेलहुँ। जतेक बेर भेटथि मलिक भाय ततेक नजदिक अबैत गेलहुँ हम हुनका संग।
हालहिमे एक दिन हम मलिक भायसँ नौटंकी परम्पराक सम्बन्धमे एक शोध परियोजनापर दिल्लीक मंडी हाउसमे श्रीराम सेन्टर केर केफेटेरियामे बैसल गप्प-सप्प करैत रही। मलिक भाय नौटंकी परम्पराकेँ पुन: प्रतिष्ठापित करबाक लेल बड्ड चिंतित बुझना गेलाह। जखन ओ नौटंकी केर बात करैत छथि तँ हुनकर भाव-भंगिमासँ एना लागत जेना कलाकारक टीस बाहर भऽ रहल हो आ एक शोधर्थी केर उत्कंठा। बहुत तरहक आ नौटंकीक विविध आयामपर मलिक भाय केर सोच देख मोन हरियर भऽ जाइत अछि। विचार-पर-विचार होइत गेल। सोचक श्रंृखला बढ़ैत गेल। मलिक भय कॉफी पीबाक एक तरहसँ एडिक्ट छथि। ओना हमरा कॉफीसँ कुनो सिनेह नहि अछि मुदा एकरसता समाप्त करबाक लेल तथा विचारधारामे नव-नव बुलबुला अनबाक लेल हमहुँ कॉफी-पर-काॅफी पीबैत रहलहुँ। मलिक भायक साथ दैत रहलिएनि। बात खिचाइत रहल सोच बढ़ैत रहल। परियोजना अपन स्वरूप पकड़ने गेल। लगभग परियोजनाक बाहरी आवरण बनि गेल छल।
एकाएक मलिक भाय कहलन्हि- “कैलाश भाय, हमरा लोकनि तीन घंटासँ नौटंकीपर चर्चा कऽ रहल छी। बिना कुनो अवरोधक। बिना कुनो विरामक। कनी काल आब हमरा लोकनिकेँ मोन फ्रेश करक चाही। चलू धूमि कऽ 15-20 मिनटमे वापस आबि पुन: नौटंकीबला कार्यकेँ समाप्त करब।” ई कहि मलिक भाय उठि गेलाह। हम्मर हाथ पकड़ि केफेटेरियासँ बाहर विदा भेलाह। हमहुँ एक आज्ञाकारी शिष्य जकाँ मलिक भाय संग बाहर धुमबाक हेतु विदा भेलहुँ। मोनमे भेल- चलू कनी मोनमे नव संचार उत्पन्न कऽ ली।
जखन बाहरमे घुमैत रही तँ एकाएक राजनीति, राजनीितमे भ्रष्टाचार आदि विषएपर गप्प होमए लागल। गप्प ए.राजा आ 2जी. स्पेक्ट्रुम केर भयंकर धोटालासँ प्रारंभ होइत नीतीश कुमार केर डेबलपमेन्ट प्लान आ जीत आ पुन: गुजरातक मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदीक विचारधारा धरि होइत रहल। हम उपनिषदक अज्ञानी चेला जकाँ अपन जिज्ञासा एक-दू वाक्यमे रखैत गेलहुँ, आ मलिक भाय उपनिषद केर धोर तपस्वी आ मर्मज्ञ जकाँ हमर जिज्ञासाक समाधान विस्तारसँ करैत गेलाह। मलिक भाय जेना हम्मर उधेर-बुनकेँ बिना पुछने बुझि लेने होथि। ओ बजैत गेलाह बेवाक। कुनो मर्मज्ञ राजनैतिक विश्लेषक जकाँ। 15मिनट समए कोना डेढ़ घंटामे बदलि गेल से पते नहि चलल।
भ्रष्टाचार आ धोटालापर मलिक भाय कहलन्हि- “कैलाश भाय, भ्रष्टाचार आ घोटाला नेता नहि बड़का बाबू अर्थात् आइ.ए.एस. ऑफिसर सबहक लॉबी करैत अछि। ओ सभ नेता आ मिनिस्टर सभकेँ अपना हाथक खेलौना बनेने रहैत अछि। कार्य ओ सभ अतेक दक्षताक संग करैत अछि जे अपने तँ कहियो नहि फॅसत मुदा बदनाम नेता किंवा मंत्री भऽ जएत। I.A.S. केर अर्थ होइत छैक-
Im Always Safe . मंत्रीके बड़का बाबू एक तरहेँ विवश कऽ दैत छैक जे ओ जाहि कागतपर कहै ताहिपर हस्ताक्षर लऽ लै।”
मलिक भाय बजैत रहलाह आ हम जिज्ञासासँ आँखि फाड़ने आ कान खोलने हुनकर बातकेँ सुनैत गेलहुँ। मलिक भाय कहलन्हि- “जनै छी कैलाश भाय, एहि पौने दू लाख हजार कड़ोरक घोटालामे चारिओ अना हिस्सा ए राजा के नहि भेटल हेतैक। दससँ बारह अना हिस्सा तँ बड़का बाबू सभ गट दनि पचा लेने हेतैक आ छौसँ चारि अनामे अपना पार्टिक मुखिया, देशक सभसँ पैघ पार्टीक मुखिया आ अन्तत: अपन लगुआ-भगुआ सभमे बाटए परल हेतैक। मुदा बड़का बाबू सभ कागजकेँ तेना ओझरेने हेतैक जे तमाम प्रक्रियासँ लऽ लऽ सी.बी.आइ. केर जाँच धरि अगर कियो फॅसत तँ मंत्री। पत्रकार सेहो बड़का बाबूपर चुप रहत आ नेता आ मंत्रीकेँ देषी बनेवामे अपन दिमाग आ खोजी पत्रकारिताक तमाम टीप्सकेँ लगौने रहत। मंत्रीक स्वरूप किछुए दिनमे नायकसँ खलनायक बनि आओत।”
हम मलिक भायकेँ पुछलएनि- “अहाँक जनैत की कारण छैक जे अहि बेरक बिहार विधानसभा केर चुनावमे काँग्रेस, लालू यादव आ रामविलास पासवान, तीनूकेँ नीतीश कुमार खड़ड़ा लऽ कऽ खड़ड़ि देलन्हि। एहेन किएक भेलैक?”
मलिक भाय कहलन्हि- “देखू, लोक आब नेहरू-गान्धी परिवारक वंशनुगत राजनीतिसँ तंग आबि गेल अछि। लालू यादवक जातिक राजनीति प्रारम्भमे छोटका जाति सभकेँ नीक लगलैक, किएक तँ पहिल बेर ओ सभ चुनावमे हिस्सा लेलक, अप्पन बातकेँ बिना कुनो डर आ आतंककेँ बाजल। लोककेँ बुझेलैक जे प्रजातंत्रो कुन चीज होइ छैक। मुसलमानकेँ कॉग्रेजसँ मोह भंग होमए लगलैक। 1991 केर बाबरी मस्जिद ध्वस्त भेलाक बाद मुसलमान सभ बुझि गेल जे काँग्रेस आ भारतीय जनता पार्टीमे कुनो विशेष अन्तर नहि अछि। बिहारमे मुसलमान सभकेँ सभसँ ज्यादे भय गुआर सं रहलै। कखनहुँ कुनो सम्प्रदायिक उन्माद होइक तँ मुसलमान सबहिक जानमालक छति सभसँ ज्यादे गुआरे सभ करैक। ताहि मुसलमान विकल्पहीन भऽ गेल। मुसलमान सभ लाचार भऽ लालू यादव केर साथ भऽ गेल। मुदा बादमे मुसलमानो सभकेँ ई बुझएमे आबि गेलैक जे लालू यादव केवल बातक धनीक छथि आ कर्मक छोट। जखन कि ठीक एकर विपरीत नीतीश कुमारजी एक मात्र विकासक अपन आधार बनौलन्हि। बिना कुनो कन्ट्रोवर्सीमे गेने विकासक कार्य करैत रहलाह। महिला सभकेँ नौकरी भेटलैक शिक्षामित्र बनल, ग्राम पंचायतसँ जिला पंचायत धरि साझेदारी बढ़लैक, बहुत महिला सभ शिक्षिका बनलि, ए.एन.एम. बनलि, बालिका सभकेँ स्कूली वर्दी, मुफ्त साइकिल, विद्यालयमे भोजन भेटलैक। फेर की छल- की छोट आ की पैघ- सभ कियो अपन लड़की सभकेँ इसकूल भेजनाइ प्रारंभ केलक। लालू जी समएक तमाक गुण्डा आ लफन्दर सभ जे कि डाका डालैत छल, लोककेँ अपहरण करैत छल, छीना-छपटी करैत छल आतंकक माहौल बना समस्त भारतमे बिहारकेँ बदनाम बनौने छल, तकरा सभकेँ पकड़ि-पकड़ि नीतिशजी जहलमे ध देलन्हि। मातहत पुलिस सभकेँ स्पष्टीिनर्देष देलखिन्हि जे एहि उपद्रवी तत्वकेँ एहेन इलाज करए जाए जे फेरो जीवनमे ई सभ एहेन कार्य करब तँ दूर सोचबो नहि करए। एकर प्रभाव बड्ड नीक रहलैक। शनै: शनै: लेाक भय-मुक्त होमय लागल।”
मलिक भाय बजैत रहलाह- “नीतिशजी इहो बुझलन्हि जे बिहारक सड़क कंडम भऽ गेल अिछ। ताहि सड़ककेँ मरम्मत तथा नव सड़कक िनर्माणक कार्यकेँ तीब्रताक संग-संग दक्षतासँ करबाक िनर्देश देलथिन्ह। हुनका पता चललन्हि जे ठेकेदार सभ कनी-मनी कार्य कय सभटा पाइ पंत्री, आॅफीसर आ अपने-अापमे बाँटि लैत अछि। फेर की छल। नीतीशजी इहो िनर्देश देलथिन्ह, कि जे कियो ठेकेदार सड़कक जीर्णोद्धार या िनर्माणक ठिका लेत सएह एक िनश्चित अवधि माने पाँच या दस वर्ष धरि ओहि सड़कक रखरखाव सेहो करत। अगर कुनो तरहक कमी भेलैक तँ ठेकेदारक जिम्मेदारी हेतैक आ आेकरा ठीक कराबए पड़तैक। एहि िनर्देशक बड्ड उत्तम प्रभाव परलैक। बिहारक जनता सड़क बनबासँ आ सड़कक उद्धार होमासँ गद-गद भऽ गेल। मुदा सामान्य जनताक बीच एखनहुँ लालू जीक गुण्डा सबहक डर छलैक जकरासँ ओ मुक्ति पाबए चाहैत छल। आ ई मुक्ति चुनावमे लालू जीक पार्टीकेँ हरा कऽ देल जा सकैत छल।”
“रामविलास पासवान अपन इमेज एकटा अवसरवादी नेताक रूपमे बना लेने छथि पहिने एन.डी.ए. मे मंत्री रहलन्हि, फेर एन.डी.ए. छोड़ि उ. प अ. में आबि झट दनि मंत्रीक कुर्सीपर बैस रहलाह। हमेशा लालू यादवक धाेर विरोध केलन्हि मुदा अवसरवादितासँ अतेक ग्रसित भऽ गेलाह जे हुनके संगे राजनैतिक गठबन्धन कऽ लेलन्हि। बिहारक अति पिछड़ा वर्ग, विशेष रूपेँ हरिजन सभपर अपन अधिकार बुझए लगलन्हि। नीतीशजी सर्वप्रथम दलितकेँ दू भाग- दलित आ महा-दलितमे बॉटि रामविलास पासवानक आधारकेँ शनै: शनै: अतेक तोड़ि देलथिन्ह जे गिनिज बूक ऑफ बर्ल्ड रिकॉर्डमे सभसँ ज्यादा मत लए जीतक रेकॉर्ड बनबएबला रामविलास पासवान स्वयं एम.पी. केर चुनाव हािर गेलाह। धन्यवाद दी लालू यादवकेँ जे हिनका राज्यसभामे आिन देलथिन्ह। अन्यथा आइ सड़कपर रहितथि। इमहर कुर्मी, कोइरी, धानूक मल्लाह, मुसहर आदि लालू यादवसँ अलग आबि अपना-अपने-आपकेँ नीतीश लग सुरक्षित बुझए लगलाह।”
मलिक भाय हमरा दिस देखलन्हि। हमर जिज्ञासा भावकेँ बिना कहने बुझि गेलाह आ अपन कथ्यकेँ आगाँ बढ़बैत बजलाह- “रहल बात मुसलमानक। तँ नीतीशजी एहि बन्दुपर अपन कौटिल्य नीति केर सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत केलन्हि। एक दिस तँ भारतीय जनता पार्टीक अपन घटक दल बनौने रहलाह मुदा दोसर दिस कॉमन मिनिमम प्रोग्रामक धोषणा केलन्हि जाहिमे मंदिर बनेबाक इशू शामील नहि रहैक। संगहि गुजरातक मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदीकेँ अपन कुनो कार्यक्रममे जानि-बुझि कऽ नहि आबए देलथिन्ह। नीतीश कुमारक एहि िनर्णएसँ भारतीय जनता पार्टीक नेता सभ बिफरि गेलाह। मुदा नीतीशजी अपन िनर्णएसँ टससँ मस नहि भेलाह । आर-तँ-आर ओ बी.जे.पी.केँ साफ कहि देलथिन्ह जे नरेन्द्र मोदी बिहार-विधान सभा २०१० केर आम चुनावमे पार्टीक प्रचारक हेतु बिहार नहि अबथि। ई िनर्णए भारतीय जनता पार्टीक लेल बड्ड पैघ धक्का छलैक। मुदा गठबंधन केर धर्मकेँ स्वीकारैत तथा नीतीश जीक बढ़ैत कदकेँ देखैत बी.जे.पी.केर श्रेष्ठ नेता सभ चुप्प रहि िनर्णए स्वीकारि लेलन्हि। बेगर Beggar cannot be chooser.”
हम अहिपर मलिक भायकेँ विचारक श्रंखला तोड़ैत कहलियन्हि- “मलिक भाय, अगर मोदी अतेक खराव छथि आ मिडियासँ लए कऽ तमाम विपक्षी दल हुनकर धोर विरोध कऽ रहल अछि तँ फेर बेर-बेर गुजरात सनहक पैघ राज्यमे ओ जीतैत किएक छथि?”
मलिक भाय कहलन्हि- “देखू कैलाश भाय, मोदी हिन्दु विचारधाराक बदौलक िकंवा गोधरा आ आन ठमहक नरसंहारक कारणे नहि जीतैत छथि। मोदी जीतमे हीरा जवाहरातक कारोबार करएबला व्यापारीक हाथ छैक। पहिने एहि कार्यमे चाहे कीमती पत्थरकेँ कटाइ-छटाइ हो, पॉलीसींग हो, धसाइ हो या खानसँ उपलब्धता या पुन: आयात-िनर्यात, तमाम प्रक्रियामे मुसलमान सभ डोमिनेट करैत छल। एकाएक विश्व-बाजारमे जखन कीमती पत्थर तथा हीरा जवाहरात दिस इजराइल केर यहुदी व्यापारीक हष्टि गेलैक तँ शनै:-शनै: ओ सभ अहि धंधामे एकाधिकार स्थापित कए लेलक। फेर गुजरातक हिन्दु-व्यापारी सभकेँ सेहो अपना दिस आकर्षित कए मुसलमान सभसँ पृथक करक प्रयास करए लागल। स्थानिय आ अप्रत्याशित लाभकेँ ध्यानमे रखैत गुजरातक हिन्दु व्यापारी सभ हीरा-जवाहरात तथा तमाम वेश कीमती पत्थरपर अपन आधिपत्य बनेबाक युक्तिपर विचार करए लागल। आ एहि तरहक एकाधिपत्य बिना राजनैतिक सहयोग एवं हस्तक्षेपसँ संभव नहि अछि। अहि तरहक सहयोग जखन मोदी प्रथम बेर मुख्यमंत्री भेलाह तँ देनाइ प्रारम्भ कऽ देलथिन्ह। फेर की छल हिन्दु व्यापारी सभ हुनका समर्थन करए लगलन्हि आ हुनकर चुनावमे आर्थिक एवं अन्य तरहक मदति करए लगलन्हि। अन्तरराष्ट्रीय स्तरपर इजरायल तँ मदति कैयो रहल छन्हि। संगहि गुजरातक आदिवासी तथा कहरपंथी हिन्दु वर्ग हिन्दु अस्मिताक नामपर हिनकर संग छन्हि।”
मलिक भाय गंभीर रहलाह आ बजैत रहलाह- “गुजरातमे मुसलमान समुदाय केर साथ खून-खरापा उच्च वर्ग हिन्दु अथवा व्यापारी इत्यादि नहि केलक। एहि लेल ठेकेदार सभ आदिवासी लोकनिकेँ पटोलक . ओकरा सबहक मोनमे मुसलमान समुदायक प्रति धृणा आ वैमनस्य उत्पन्न केलक। आहाँकेँ की कहु कैलाश भाय, हालहिमे हम गुजरातक किछु आदिवासी बहुल क्षेत्रमे पत्रकारक टीम संगे यात्रा केने रही। जखन एक आदिवासी गाममे गेलहुँ आ पुछलिऐक जे बगलबला गाँव जाहिमे मुसलमान सभ रहैत अछि तकर सबहक की हालत छैक? हमर जिज्ञासापर आदिवासी सभ तमतमाइत कहलक- श्रीमान्, अहाँ मुसलमान सबहक बात नहि करू। ओ सभ गद्दार अछि। ओ सभ किछु अंट-संट जारि सेहो बाजल आ अन्तमे कहलक- जनैत छी, हमरा लोकनि गुजरातक दंगाक समएमे मुसलमान सभकेँ खुब मारलहुँ। सभटा बदला लऽ लेलऐक। पूरा देशमे जे भारतीय जनता पार्टी 2004केर चुनाव हारल तकर कारण कुतुबुहीन अन्सारीक बान्हल आ विवशतामे हाथ जोड़ैत फोटो। ओ भीड़क उन्मादमे मातल लोक सभसँ हाथ जोड़ने अपन प्राणक भीख मांगैत छल। ई फोटो मात्र समस्त भारतमे भारतीय जनता पार्टीक प्रति लोकक मोनमे घृणा अत्पन्न कऽ देलकैक आ एहि बातकेँ बी.जे.पी.केर नेता नहि बुझि सकलाह। परिणाम बहुत नीक जकाँ सरकार चलेबाक बादो भारतीय जनता पार्टी एवं घटक दल सत्तामे नहि आबि सकल। आ सम्पूर्ण परिपेक्ष्यमे नरेन्द्र मोदीकेँ एकर सूत्रधार मानल गेलैक। एका-एक पूरा देशक मुसलमान मोदी विरोधी भऽ गेल। मुसलमान डरे हरकम्प काँपए लागल। अपने-आपकेँ घोर असुरक्षित बुझए लागल। जानैत छी कैलाश भाय, हम तँ मुसलमान समाज आ िवशेष रूपसँ बुद्धिजीवी सभ लग बैसैत छी। मुसलमान समाजमे ई चर्चा भऽ रहल छैक जे घोर राष्ट्रवादक नामपर भारतमे मुसलमान सभकेँ जान-मालक अपार छथि हेतैक। किछु वर्ष अर्थात 30-40 वर्षक बाद मुसलमान सभ अपन नाम हिन्दु नाममे परिवर्तित कऽ लेत। इजरायल अपन प्रभुत्व भारतमे घोर राष्ट्रवादी संग मिल मुसलमानकेँ परेश्ाान कऽ कऽ देखाओत। भारतक अगल-बगल केर छोट-छीन देश सभ भारतमे मिल जएत। मुदा मुसलमान सभ इहो सोचैत अछि जे चीन जाहि तरहसँ अपने-आपकेँ हर दृष्टकोणसँ मजबूत कऽ रहल अछि- एक दिन लगभग डेढ़-दू साए वर्षक बाद ई स्थिति हेतैक जे चीन भारतकेँ छिन्न-भिन्न करएमे सफल भऽ जाए। हलांकि चीनक लेल चिन्ताक विषए छैक तीब्र गतिसँ ओतए केर जनताकेँ इसाइ धर्ममे परिवार्तन।”
एकरा बाद पुन: मलिक भाय बिहारक सन्दर्भमे बाजए लगलाह कहलन्हि- “बिहारक मुसलमान नीतीश जीक अहि िनर्णएसँ संतुष्ट छल जे चलू ओ नरेन्द्र मोदीकेँ बिहार नहि आबए देलाह। उच्च वर्ग सभ पहिल बेर एक भेल आ अपन मत नीतीश कुमारक पार्टी एवं भारतीय जनता पार्टीक उम्मीदवार सभकेँ आँखि मूनि कऽ देलक। अहि तरहेँ नीतीशकेँ महा-दलित आ दलित, मुसलमान, महिला, युवक, बेरोजगार आ विकास पसिन्न करएबला जनताक आधार भेटलन्हि। लालू जीक पक्षमे यादव एवं अन्य हुनकर परम्परागत लोक सभ एखनहुँ छल। मुदा सेन लगलन्हि तँ मुसलमान, उच्चवर्ग एवं दलित समुदायमे जकरा कारणे ओ भयंकर हार देखलन्हि। रामविलास मांटिमे सेंहिया गेलाह। काँग्रेस ध्वस्त भऽ गेल। राहुल गान्धी सोनीया गान्धी आ प्रधानमंत्री जीक दौरा बिहारक जनताकेँ नहि पसिन्न कऽ सकल। नीतीशजी बिजयी भेलाह। आब विकास पुरूषक मोहर लागि गेल छन्हि। आगाँ आरो आत्म विश्वाससँ कार्य करताह। बिहार आब शीघ्रहि एक आदर्श राज्यक दर्जा प्राप्त करत।”
एकर बाद घड़ी देखैत मलिक भाय हमरा कहलन्हि- “कैलाश भाय, हमरा लोकनि 15मिनटक लेल बाहर निकलल रही आब डेढ़ घन्टा भऽ गेल। चलु अपन नौटंकीक परियोजनापर चर्चा करी।”
हम एक आज्ञाकारी शिष्य जकाँ हुनका संग एक बेर पुन: श्रीराम सेन्टर केर केफेटेरियामे नौटंकीपर विमर्शमे व्यस्त भऽ गेलहुँ।
आब सोचैत छी, मलिक भाय केर फुटपाथी गप्प कहीं यथार्थक वर्णन तँ नहि अछि! सोचल एहि बातकेँ बिना कुनो भेद-भावकेँ पाठक संग यायावरीक माध्यमसँ बाँटी।
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बिपिन झा की नब साल की पुरान साल..!
{हम सभ अभिनव वर्षक स्वागत हेतु तैयार छी मुदा राष्ट्र मे व्याप्त समस्या यथावत अछि। जाहि सँऽ सामान्य नागरिक सदिखन त्रस्त अछि। एकरे उजागर करवाक आ संभव समाधान प्रस्तुत करब एहि लेख केर लक्ष्य अछि ताकि नव वर्षक स्वागत नूतनसंकल्प केर संग कय सकी। लेखक बिपिन कुमार झा IIT Mumbai मे शोधछात्र छथि। लेख मे अभिव्यक्त कोनो श्ब्दक कोइ वैयक्तिक अभिप्राय नहिं ली।}
कहल गेल अछि साहित्य समाज केर उत्थान मे सदिखन योगदान करैत अछि। प्राचीन काल सँऽ काव्य आदि केर माध्यम सँऽ सुनैत आयल छी ओतहि दृश्य काव्य अर्थात एकांकी नाटक आदि केर महत्त्व सर्वथा महनीय अछि।
समसामयिक सन्दर्भ मे ओ महनीय कार्य कतिपय सिनेमा केर माध्यम सँ कयल जाइत अछि। हँऽ एहि मे कोनो सन्देह नहिं जे बहुतो फिल्म आ धारावाहिक समाज कें गर्त मे लय जेबाक हेतु पर्याप्त अछि। एहि बीच एकटा फिल्म देखल जाहि मे भारतवर्ष मे व्याप्त Black money saving आ घूसखोरी केर चर्चा आ निदानक उपाय प्रदर्शित कयल गेल अछि।एहि सदृश फिल्म निश्चय भ्रष्टाचार निवारण करबा मे योग देत।
एहि तरहक बहुतो विषमता अछि जाहि सँऽ हम सभ अभिमुख होइत छी किन्तु ओकर प्रतिरोध करबाक सामर्थ्य नहिं। एहेन दशा मे विकीलीक्स सदृश अन्तर्जाल आ सूचनाऽधिकार सदृश व्यवस्था केर महती आवश्यकता अछि।
सामान्यतया बहुत बात एहेन अछि जे जनता अथवा अधिकारीवर्ग भय अथवा लोभवश जनता अथवा उपयुक्त अधिकारी केर सम्मुख नहिं आनय चाहैत छथि जे उक्त अन्तर्जाल सदृश माध्यम सँऽ जनसामान्य तक पहुँचा सकैत छथि।
यद्यपि सरकार सूचनाऽधिकार केर माध्यम सँऽ पारदर्शिता के आदर कयलक मुदा अखनहुं कतेक अधिकारीगण साया मे नुकेबा क काज करैत अछि जे सर्वथा हास्यास्पद। एतय ई कहब उचित नहिं जे सब अधिकारी भ्रष्टे नै होइत छथि अपितु किछु कें भ्रष्ट बनेबाक तथाकथित ट्रेनिंग देल जाइत अछि तऽ किछु कें जनताजनार्दन भ्रष्ट बनबैत छथिन्ह। बहुत कम एहेन छथि जे जन्मना भ्रष्ट हो।
भारत तृतीय आर्थिक महाशक्ति बनबाक हेतु तैयार अछि मुदा भारतवर्षक ई हाल अछि जे चोरी, भीखारी, डकैती, घूसखोरी कदाचिते कतहु नहिं भेटत। सरकार नेता आ जनताजनार्दन सभ एके सीढी पर छैथ। कोई अवसर नहिं चूंकय चाहैत छथि।
आब यदि सांस्कृतिक दृष्ट्या नब पीढी तऽ देखैत छी जे ओ अन्ध भय दौडि रहल अछि। नब खूनक आगू दोसर कें के देखैत अछि? समाज, संस्कृति, माय बाप....ई सभ तऽ अट्ठारहम शताब्दी केर गप्प भय गेल। पैसा आ अपन इच्छापूर्ति केर अतिरिक्त किछु नहिं बुझैत छथि ई। नब पीढी महिला सशक्तीकरण, जातिवाद विरोध एवं एहेन बहुतो सन्दर्भ मे वकालत करैत भेट जेता मुदा व्यवहार मे ई वकालत अपन स्वार्थ केर अनुरूप परिवर्तित होइत छथि।
ई हाल युवावर्गे टा कऽ नहि बुजुर्गो एकरे शिक्षा दैत छथिन्ह। वास्तविक तऽ ई अछि बुजुर्ग राष्ट्र के जे युवावर्ग भेटस्वरूप दैत छथि ओहि एहेन संस्कार रूपी खाद दैत छथि जे भ्रष्टाचार के क्रमिक विकसित करैत अछि आ ई युवा पुनः नव पीढी के अहू सँ भ्रष्टतम राष्ट्र बनेबा मे योगदान दैत छथि। यद्यपि ओ एकरा विकास के पथ रूपी तके दय लोक के चुप करथु मुदा वास्तविकता की अछि से अहूं बुझैत छी हमहू बुझैत छी ।
एहेन स्थिति मे की नब साल आ की पुरान साल? नव वर्ष तऽ ओहि दिन शुरू होयत जाहि दिन समाज मे व्याप्त पुरान पाप विविध कानूनक व्यावहारिकता सँ धूमिल होयत आ बुजुर्ग सभ नब पीढी के ओहेन संस्कार देथीन्ह जाहि सँ विविधता मे एकता सँ अलंकृत राष्ट्र के प्रति हम सभ गौरव कय सकब।
५
मुन्नाजी रिपोर्ताज
४ दिसम्बर २०१० (शनि दिन) मिथिला सेवा संघ, जैतपुर (बदरपुर, नई दिल्ली) द्वारा भव्यरूपेँ विद्यापति पर्व समारोहक सफल आयोजन कएल गेल।
उक्त आयोजनक अध्यक्षता केलनि मैथिली/ हिन्दीक वरिष्ठ साहित्यकार श्री गंगेश गुंजन आ विशिष्ट अतिथि रहथि युवा पत्रकार ओ बहुविध रचनाकार श्री गजेन्द्र ठाकुर।
अध्यक्षीय भाषणक नमहर कड़ीमे श्री गंगेश गुंजन आग्रह जतौलनि जे ऐ आयोजनमे कविगोष्ठीक आयोजन आ महिलाक अनुपस्थितिकेँ भरल जाए।
आतिथ्य भाषणमे श्री गजेन्द्र ठाकुर एक मात्र पाँतीमे गएरबाभनक उपस्थितिकेँ सेहो निश्चित करबाक विचार देलनि।
विजय मिश्र आ गंगेश गुंजन द्वारा दीप प्रज्वलनक पछाति मैथिलीक चर्चित-परिचित कलाकार द्वारा धमगिज्जर गीतनाद प्रस्तुत कएल गेल जे भोर धरि दर्शककेँ नै उठबाक लेल बन्हने रहल। श्रोता/ दर्शकक उपस्थिति सेहो अपेक्षासँ बेशी छल जे प्रशंसनीय अछि।
६
नवेन्दु कुमार झा १.रेल लाइनसँ जुड़त भारत आ नेपाल २. भारतीय सामाजिक व्यवस्थामे आइयो जीवन्त अछि जाति व्यवस्था- प्रो. शर्मा ३.प्रदेशमे लागत चौदहटा नव उद्योग समूह, असोचैम कएलक एहि दिस पहल- मिथिलांचलमे सेहो लागत नव उद्योग
१
रेल लाइनसँ जुड़त भारत आ नेपाल
पड़ोसी देश नेपालक संग दोस्तीकेँ आर मजगूत करबाक लेल भारतीय रेल नेपालमे रेल लाइन बनाओत। एक दोसराक संग सहयोग बढ़ेबाक उद्देश्यसँ बनएबला ई रेल लाइन भारतमे मधुबनीक जयनगरसँ नेपालक बरदीवासक मध्य बनाओल जाएत। ई नव रेल लाइन सत्तरि किलोमीटरक होएत, जकर स्वीकृति रेल मंत्रालय दऽ देलक अछि। एहि नव रेल लाइन बनबऽ मे गोटेक चारि सौ सत्तरि करोड़ टाका खर्च होएबाक अनुमान अछि। एकर काज प्रारम्भ करबाक लेल मंत्रालय दस करोड़ टाका दऽ देलक अछि आ वित्तीय वर्ष २०११-१२ मे एकर काज प्रारम्भ भऽ जाएत। ई रेल लाइन दू चरणमे पूरा होएत। पहिल चरणमे जयनगर आ जनकपुरक मध्य तीस किलोमीटर छोटी लाइनक आमान परिवर्तन होएत आ दोसर चरणमे जनकपुरसँ बरदीवास धरि नव रेल लाइन बनेबाक काज प्रारम्भ होएत। नव रेल लाइनक वास्ते जमीन अधिग्रहणक काज जल्दीए प्रारम्भ होएत।
२
भारतीय सामाजिक व्यवस्थामे आइयो जीवन्त अछि जाति व्यवस्था- प्रो. शर्मा
दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयमे महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह स्मारक व्याख्यानमाला सम्पन्न भेल। एहि व्याख्यानमालाक मुख्य वक्ता राजस्थानक प्रतिष्ठित नेशनल ओपन यूनिवर्सिटीक कुलपति आ जानल-मानल समाजशास्त्री प्रो. के.एल.शर्मा कहलनि जे भारतीय सामाजिक व्यवस्थामे जाति व्यवस्था नियंत्रण बल अछि। श्री शर्मा कहलनि जे सामाजिक व्यवस्थामे आइयो जाति व्यवस्था प्रत्यक्ष आ जीवन्त अछि आ एकटा व्यवस्थाक रूपमे बदलाब अनबाक प्रयास करैत अछि। ओ कहलनि जे देशक राजनीतिक व्यवस्था सेहो जाति व्यवस्थाकेँ जीवन्त रखबामे महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कएलक अछि। वर्ष १८९१ सँ १९३१ धरि सरकारी स्तरपर जाति व्यवस्थाक श्रेणीकरणक काज कएल गेल। स्वतंत्रता प्राप्तिक बाद १९५१ जनगणनामे जातिकेँ छोड़ि देल गेल मुदा एक बेर फेर राजनीतिक उद्देश्य आकि विवशताक अन्तर्गत जाति गणना करेबापर सहमति बनल अछि। ओ कहलनि जे सामाजिक परिवर्तनक संग-संग अहूमे बदलाव आएल अछि मुदा एकर बावजूद आइयो एकर सातत्व कायम अछि। व्याख्यानमालाक अध्यक्षता भारतीय प्रशासनिक सेवाक सेवानिवृत्त अधिकारी एस.एन.सिन्हा कएलनि।
३
प्रदेशमे लागत चौदहटा नव उद्योग समूह, असोचैम कएलक एहि दिस पहल- मिथिलांचलमे सेहो लागत नव उद्योग
बिहारमे मुख्यमंत्री नीतीश कुमारक नेतृत्वबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधनक दोबारा आपसीक संगहि देशक उद्योग जगतक नजरि बिहारपर पड़ल अछि। देशक औद्योगिक संगठन “एसोचैम”प्रदेशमे अगिला तीन वर्षमे तीनटा “बिजनेस मार्ट”क माध्यमसँ चारि लाख टाकाक निवेशक योजना बनौलक अछि। एसोचैम बिहार चेम्बर ऑफ कामर्स (बी.सी.सी.) आ बिहार इन्डस्ट्रीज एसोसिएशनक सहयोगसँ ई बिजनेस मार्ट आयोजित करत। पहिल बिजनेस मार्ट अप्रील २०११ मे होएत जाहिमे पचास हजार करोड़ टाकाक निवेशक लक्ष्य राखल गेल अछि, जखनकि २०१३ मे आयोजित होमएबला दोसर मार्टमे एक लाख पचीस हजार करोड़ टाका आ वर्ष २०१५ मे आयोजित होमएबला तेसर मार्टक माध्यमसँ पचहत्तरि करोड़ टाकाक निवेशक लक्ष्य राखल गेल अछि। ई संगठन चेम्बर ऑफ कामर्स आ इन्डस्ट्रीज एसोसिएशनक सहयोगसँ चौदह टा नव उद्योग समूह दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, बरौनी, कटिहार, भागलपुर, मुंगेर, सुपौल, हाजीपुर, पटना, नवादा, गया आ भोजपुरमे स्थापित करत, जाहिमे सभ उद्योग समूहमे अठारह सौसँ दू हजार नव औद्योगिक इकाइ रहत। एहिसँ सरकारकेँ गोटेक बारह प्रतिशत राजस्व भेटत। गोटेक चरि सौ पचास करोड़ टाकाक निवेशबला सभ प्रस्तावित उद्योग समूह गोटेक छह लाख लोककेँ परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूपसँ रोजगार उपलब्ध कराओत। एसोचैम सरकारसँ प्रदेशमे “क्लस्टर्स डेवेलपमेन्ट अथोरिटी”क स्थापनाक मांग सेहो कएलक अछि।
हम पुछैत छी -मुन्नाजी
१.जगदीश प्रसाद मंडल, २.राजदेव मंडल, ३. कुमार शैलेन्द्र आ ४.अमरनाथ सँ मुन्नाजी पुछैत छथि ढेर रास गप..... १
दुर दृष्टिसंपन्न गमैया संसाधनसँ दूर होइत गामक लोकक मन:स्थितिकेँ गहींरताक संग सोझाँ अननिहार श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी हुनक समस्त साहित्यिक क्रिया-कलापक मादे मुन्नाजी द्वारा कएल गेल गप्प-सप्पकेँ अहाँक सोझाँ प्रस्तुत कएल जा रहल अछि-
मुन्नाजी- जगदीश बावू शिक्षाक पूर्ण डिग्रीधारी भऽ अहाँकेँ एतेक देरीसँ मैथिली लेखनक प्रवृतिक की कारण?
जगदीश प्रसाद मंडल- अपनेक प्रश्नक उत्तर दैइसँ पहिने मुन्नाजी किछु अपन बात कहि दैत छी। केजरीवाल हायर सेकेण्ड्री स्कूल झंझारपुरमे स्पेशल नाइन्थसँ लऽ कऽ स्पेशल एलेबुन धरि एक सय नम्वरक एक विषय मैथिली पढ़ने छी। मुदा कओलेजमे नहि पढ़लौं। हिन्दी पढ़लौं। साहित्यसँ सिनेह सभ दिन रहल। लिखै दिस दू हजार ईस्वीक बादे बढ़लौं। ऐठाम िसर्फ एतबे कहब जे जमीनी संघर्षक उपरान्त वैचारिक संघर्ष जोर पकड़ैत अछि तँए लिखब अनिवार्य भऽ गेल। जहिसँ जीवनमे आरो मजबूती अएल। सभकेँ माने हर मनुष्यकेँ अपने लगसँ जिनगी शुरू करक चाहिएनि। कर्मक क्षेत्र अपन गाम रहल जहिठामक भाषा मैथिली छी तँए हिन्दीक विद्यार्थी रहितहुँ मैथिलीमे लिखै छी। देरीसँ लिखैक कारण इहो भेल जे १९६७ई.मे जखन बी.ए.क विद्यार्थी रही, वामपंथी राजनीतिमे जुड़लौं। काजसँ जते समए बँचए ओ सेवामे लगबए लगलौं। बी.ए. धरि जनता कओलेज झंझारपुरमे आ आगू सी.एम. कओलेज दरभंगामे पढ़लौं। ओना लिखैक आरो कारण अछि जे उम्रक संग शरीरक शक्तियो कमए लगल।
मुन्नाजी- एतेक डिग्रीक (एम.ए.क) पछाति तँ अहाँ समएमे नोकरी भेटव बेशी असोकर्ज नै छलै। नोकरी नै कऽ खेती-बारीक िनर्णय अहाँक कोन मानसिकताक द्योतक ऐछ?
ज.प्र.मं.- आजुक दृष्टिये जरूर बुझि पड़ैत हएत जे ओहि समए नोकरी सस्ता छलैक मुदा से बात नहि। एहि परिपेक्ष्यमे किछु कहि िदअए चाहै छी। झारखंड लगा बिहार राज्य छल। अखन जते जिला, सवडिवीजन आ ब्लौक आइ खंडित बिहारमे देखै छिऐ ओते पूर्ण (सौंसे) बिहारमे नहि छल। संग-संग जते काजक विविधता अखन धछि, सेहो नहि छल। अखन छत्तीस-सैंतीसटा जिला खंडित बिहारमे अछि जखन कि ओहि समए िसर्फ सत्तरहटा जिला छल। जहि मधुबनीमे पाँचटा सवडिवीजन अछि ओ अपने सवडिवीजन छल। तहिना शिक्षो विभागमे छल। गनल-गूथल कओलेज आ हाइ-स्कूल रहए। आइक मधुबनी (प्रोपर)मे चारिटा कओलेज- झंझारपुर, सरसो, पंडौल आ बाबूबरहीमे खुजल। बाबूवरहीक कओलेज (जे.एन.) मधुबनी चलि गेल। ओहिसँ पूर्व आर.के. काओलेज आ भरिसक एकटा आरो छल। बाकी सभ बादक छी। जखन जनता कओलेज झंझारपुर खुजल, ओहि समए अधासँ अधिक शिक्षक (प्रोफेसर) आने-आन जिलाक छलाह। तँए कि एहि क्षेत्रमे पढ़ल-लिखल लोक नहि छलाह से बात नहि।
बैंकक शाखा जते आइ देखै छिऐ ओते नहि छल। भरिसक मधुबनीमे एकटा रहए बाकी नहिये जकाँ छल। तहिना ब्लौकोक छल। एक तँ संख्या कम दोसर एकटा बी.डी.ओ. रहैत छलाह। जखन कि बी.डी.ओ; सी.ओ. आ पी.ओ. तीनिटा अखन छथि।
कल-कारखाना नाओपर एकटा चीनी मिल (लोहट) ओ गोटि पङरा चाउरक मिल छल। ओना आरो बहुत बात अछि मुदा मोटा-मोटी कहलौं। आब अहीं कहु जे नोकरी कत्त छल। ओहि अनुपातमे अखन बेसी अछि।
खेती करैक कारण-
जखन हम तीनिये बर्खक रही पिता मरि गेलाह। हमरासँ तीन बर्ख पैघ भाय छलाह। ओना परिवारमे दूटा पिसिऔत भाय रहैत छलाह। हुनका रहैक कारण छल हुनकर घर फुलपरास विधानसभा क्षेत्रक घोघरडिहा ब्लौकक अमही पंचायतक हरिनाही गाम छनि। जखन कोसी पश्चिम मुँहे जोर केलक तँ गाम उपटि गेल। सभ कियो बेरमा चलि एलाह। जे घटना १९३५-४०क बीचक छी। फेर जखन कोसी पूव मुँहे ससरल तखन १९६०ई.मे पुन: ओ दुनू भाँइ चलि गेलाह। हुनका सबहक गेने गिरहस्तीक संग-संग पढ़वो करी। तहियेसँ खेतीसँ जुड़ाव भऽ गेल। जे जीविकाक साधन रहल।
मुन्नाजी- प्रारम्भमे अहाँ अपनाकेँ साम्यवादी कहि सामंतवादक विरूद्ध हो-हल्ला मारि-झगड़ामे सक्रिय रहलौं बादमे अइसँ विमोह किएक? एे सँ की फायदा वा नोकसान उठएल?
ज.प्र.मं. - जहिना छलौं तहिना छी। मुदा परिस्थितिकेँ ऑकि देखए पड़त। सामंतवादमे मनुष्यक बुनाबटि जाहि रूपक रहै छै ओ सामंतवादपर चोट पड़लासँ बदलैत छैक। खिस्सा-पिहानी आ नाटकक स्टेज सामाजिक विकास आ सामाजिक जीवन नहि होइत छैक। नाटकक स्टेज होइत छैक- तीन घंटामे रामक जन्म, जनकपुरक धनुषयज्ञ, बनमे सीताक हरण आ रावणक मृत्युक उपरान्त विसर्जन। तहिना खिस्सा पिहानीमे सेहो होइत छैक। मुदा समाजक मंच बहुत जटिल होइत छैक। जहिक लेल समयो लगै छै आ संघर्षो होइत छैक। तहूँसँ जवर्दस्त वैचारिक संघर्ष सेहो होइत छैक। संक्षेपमे- आर्थिक विकासक क्रममे खेतीक लेल जखन नवका माने उन्नति किस्मक बीआ आएल तँ सामंती सोचक लोक विरोध केलनि। हुनकर आरोप छलनि (१) वस्तुमे सुआद नहि होइत छैक, (२) पावनि-तिहारक दृष्टिये अशुद्ध होइत अछि, (३) स्वास्थ्यक दृष्टिसँ खाद देल अहितकर होइत अछि जहिसँ बीमारी बढ़त। तहिना दरभंगा अस्पताल खुललापर सेहो विरोध भेल। गाम-घरमे एलोपैथक विरोध भेल। आरोप छलैक- गाइयक खूनक इन्जेक्शन आ सुगरक मांसक बनल दवाइ। साधारण इनारक जगह पानिक कल भेने सेहो विरोध भेल। आरोप लगैत छल जे कलक वासर चमड़ाक होइ छै, तहिसँ पूजा कोना हएत आ अशुद्ध पानि लोक पीति कोना? कते कहब। एहि परिस्थितिकेँ संक्रमण काल कहल जाइ छै। सामंतवाद टुटलाक बाद पूँजीवादी आ समाजवादी दिशा अबैत छैक।
हमरा गामक नब्बे प्रतिशत जमीन बहरवैयाक छलनि। ओना तीनिटा जमीनदार छलाह वाकी दूटा मास छलाह। जनवादी लड़ाइ शुरू होइते दूटा मालिक (जमीनदार) अपन जमीन बेच लेलनि। एक गोटेक संग जवर्दस्त लड़ाइ भेल। जमीन्दारक संग सूदखाेर महाजन सेहो छलाह। हुनको संग लड़ाइ भेल। अखन ने कियो बाहर जमीन्दार छथि आ ने महाजन। गाममे किनको अधिक जमीन नहि भेलनि। ऊपर दस बीघा आ वाकी निच्चाँ छथि। एहि दौरमे करीब तीस बर्ख लड़ाइ गाममे चलल। सत्तरि-एकहत्तरिक उठल तूफान शान्त होइत-होइत ५.५.२००५ई.केँ अंतिम मुकदमाक अन्त भेल।
विकासोक प्रक्रिया छैक। आइक भारी मशीन (कमप्यूटर) देखि नव पीढ़ीक लोककेँ सहजहि विश्वास नहि हेतनि। मुदा हाथक काज हाथसँ चलैबला औजारक संग लघु मशीनमे बदलल। लघुमशीन परिमार्जित होइत भारी आ तेज मशीन बनि ठाढ़ अछि।
मुन्नाजी- कहल जाइछ जे अहाँक साम्यवादीक विद्रोह छवि तखन दवि गेल जखन की अहाँ सामंती द्वारा देल प्रलोभनकेँ स्वीकारि लेलौं की सत्य अछि?
ज.प्र.मं. - चारिम प्रश्नक उत्तर भेट गेल हएत मुन्नाजी। जँ से नहि तँ अनठेकानी गोला फेकब हएत।
मुन्नाजी- उग्रवादीसँ रचनावादी प्रवृति कोना जागल कोनो एहेन विशेष घटना जे अहाँक रचनात्मक सोचकेँ प्रेरित केने हुअए?
ज.प्र.मं. - पाँचम प्रश्नक उत्तर सेहो आबि गेल अछि। दुनियाँक नक्शामे जकरा शीतयुद्ध (cold war) कहल गेल अछि वएह वैचारिक संघर्ष छी। जकरा लेल साहित्य प्रमुख अस्त्र छी।
मुन्नाजी- मैथिली रचनाकारक प्रवृति अछि जे एक-दु रचना कऽ अपनाकेँ मैथिलीधारामे जोड़वामे जुटि जाइछ मुदा अहाँ एकर उलट चिन्तनशील आ रचनाशील रहि नुकएल सन रहलाैं?
ज.प्र.मं.- छठम प्रश्नक संबंधमे स्पष्ट समझ अछि जे जहिना उत्तरबरिया पहाड़सँ निकलल छोट-छीन धारा सभ दछिन मुँहे टघरैत नदी-नालामे मिलैत आगू बढ़ैत गंगामे पहुँच समुद्रमे समाहित भऽ जाइत अछि तहिना जँ साहित्यक (रचनाक) दशा-दिशा नीक रहत तँ साहित्यक धारा बनवे करत। ई विसवास अछि। जना आन-आन गोटे शुरूहेँसँ रचना दिस बढ़लाह से नहि भेल। कारण ऊपर आबि गेल अछि।
मुन्नाजी- वियोगीजी अहाँ कितावक आमुखमे अहाँकेँ २०गोट कथा, ५गोट उपन्यासक पाण्डुलिपि लऽ भेँट करवाक क्रममे अहाँक दृष्टि फरीछ दू साल बाद पुन: भेँटमे हेबाक बात कहलनिहेँ ऐपर अहाँक की विचार?
ज.प्र.मं.- मैथिली साहित्य जगतक वियोगीजी पहिल साहित्यकार छथि जिनकासँ पहिल भेँट छी। ओना एक-दू बेर फोनपर गप भेला बाद उमेश मंडल पटना गेल रहथि तँ भेँट केलकनि। किछु रचना सभ लऽ कऽ सेहो गेल रहथि। दू-चारि पन्ना पढ़ि कऽ सुनेवो केलकनि। मुदा डेढ़-दू घंटाक बात चीतमे जाने-पहचानक बात बेसी भेलनि।
हुनकासँ हमर पहिल भेँट मधुबनीमे छी जखन ओ मधुबनी अएलाह। ओही क्रममे रहुआ कथा-गोष्ठीक जानकारियो देलनि आ चलैइयोले कहलनि। हुनक सम्पादनमे देशज पत्रिका २००३ई.मे िनर्मलीक कितावक दोकानमे भेटल। जाहिमे यात्रीजी आ किरणजीक संग गप-सप्प सेहो निकलल। विचारक दृष्टिसँ यात्रीजी सँ विद्यार्थीये जीवनसँ प्रभािवत छलौं। पत्रिका पावि आरो प्रभावित भेलौं आ वियोगी जीक संग आकर्षण सेहो बढ़ल। तहिना किरण जीक जिनगीसँ सेहो बहुत प्रभावित कओलेजे जीवनसँ छलहुँ। लगसँ हुनका देखने रहिएनि। जखन हम सी.एम. काओलेजमे पढ़ैत रही तखन ओ प्रोफेसर छलाह। गप-सप्पक क्रममे ओ बजलाह जे जहिना बजै छी तहिना िलखब मैथिली छी। हुनकर ई विचार तहिये नहि अखनो रग-रगमे समाएल अछि।
मुन्नाजी- उपरोक्त आमुखमे ओ कहने छथि जे अहाँ हुनकर (वियोगीजीक) एहेन अंधभक्त छी जे हुनकर किताबकेँ ताकि-ताकि कऽ पढ़ैत रही एकटा किताबकेँ तकबाक क्रममे पटना धरि गेलौं मैथिली साहित्यक पाठक शुन्यता (कीनि कऽ पढ़ैबला)मे जँ ई सत्य छै तँ एकर की कारण?
ज.प्र.मं.- अहू प्रश्नक उत्तर आबि गेल अछि। ई बात हुनकामे जरूर छन्हि जे उपकरि-उपकरि कतेक किताब देलनि। भक्त आ भगवान साम्प्रदायिक भाषा छी। कियो अपन कर्मसँ बढ़ैत-घटैत अछि मुदा आगूसँ अधला सोचब आ करबकेँ अधला बुझै छी।
मुन्नाजी- किछुए समयान्तरलमे विविध विधापर अहाँक ८गोट पोथीक प्रकाशनसँ केहेन अनुभूति भऽ रहल ऐछ अगिला लक्ष्य की ऐछ?
ज.प्र.मं.- पोथी प्रकाशित भेलापर जहिना आन गोटेकेँ अनुभूति होइत छन्हि तहिना भेल। लक्ष्यक जहाँ धरि प्रश्न अछि तँ प्रसादजीक पाँति मन पड़ैत अछि-
“जीवन का उद्देश्य नहि है शान्त भवनमे टिक जाना
और पहुँचना उन राहो पर जिनके आगे राह नहि।”
मुन्नाजी- एतेक पोथी प्रकाशनक पछातियो अहाँक ठोस मूल्यांकन वा पुरस्कारक हेतु चयन नै भेलासँ अप्पन परिश्रम निरर्थक सन तँ नै लगैए।
ज.प्र.मं.- कोनो रचनाक मूल्यांकन समए करैत अछि। समयानुकूल रचना छी वा नहि ई समए आँकि कएल जा सकैत अछि। रहल पुरस्कारक बात? प्रेमचन्द सन उपन्यास सम्राट आ कलमक जादूगरकेँ कोन पुरस्कार भेटलनि। मुदा ओ अपना श्रमकेँ निरर्थक कहाँ बुझलनि। अंतिम साँस धरि सेवा करैत रहलाह।
अपन पचहत्तरिम जन्म दिनक अवसरपर नामबर भाय (डॉ. नामबर सिंह) बाजल छलाह- “जते काज अखन धरि केलहुँ ओते पाँच बर्खमे करब।” हुनकर कते सेवा छन्हि सर्वविदित अछि। जखन पचहत्तरि बर्खक बूढ़क एहेन वक्तव्य छनि तखन तँ हम अपनाकेँ जवान वुझै छी।
मुन्नाजी- मैथिलीमे प्रारम्भेसँ बनल जाति-पॉतिक फाॅटकेँ अहाँ कोन दृष्टिए देखै छी। आ स्वयं अहाँ ओइ बीच अपनाकेँ कतऽ पबै छी।
ज.प्र.मं.- शुरूहेसँ वर्ण नहि वर्गमे विश्वास अछि। जहि आधारपर काज करैत एलौं आ करितो छी। समाजमे जे जाति-धर्मक (सम्प्रदायक) खेल चलैत अछि ओ राजनीति केनिहारक चालि छी।
मुन्नाजी- पिछड़ावर्गसँ आगाँ (रचनात्मक रूपेँ) अबैत लोकक अहाँ उपर उठेवा लेल कोनो सहयोगी बनव पसिन्न करब? हुनका सबहक लेल कोनो संदेश?
ज.प्र.मं.- जाहिठाम व्यवस्था बदलैक प्रश्न अछि ओ ने एक दिनमे हएत आ ने एक गोटे बुते हएत। सबहक कल्याण हएत आ सभकेँ करए पड़त। तँए सभकेँ कहैत छिअनि जे जागू, उठि कऽ ठाढ़ होउ। आगू बढ़ू। मिथिला सबहक मातृभूमि आ मैथिली सबहक भाषा छी तँए अपन बुझि सेवामे लागि जाउ।
२
मैथिली आ हिन्दीमे सझिया आ धुरझार लेखनसँ परिपक्व। मैथिलीमे एकटा ठोस विचार आ दुर दृष्टि लऽ स्थािपत होइत कवि श्री राजदेव मंडलजी सँ हुनक लेखनीपर गहींर रूपे मैथिलीक सशक्त युवा लघुकथाकार आ समालोचक मुन्नाजीक बीच भेल गप-सप्पक अंश प्रस्तुत ऐछ-
मुन्नाजी- अहाँ खाँटी मिथिलाभुमिक पानि माटिमे रचल बसल रहि हिन्दीमे उन्मुख रहलौं। मैथिलीमे किएक नै?
राजदेव मं. - देश-दुनियाँ/ चाहे जतेक बदलि जाए/ अपन भाषा अपन माए/ कहुँ बिसरल जाए/। माएक द्वारा सिखाओल भाषा के बिसरत? रचनाक प्रारम्भ मैथिलीमे कएलहुँ। किन्तु प्रकाशनक अभाव आ प्रकाशक, सम्पादक लग कोनो पहुँच नै। अर्थसँ की नै होइत छै। हम अर्थाभावमे रही। मैथिलीक कोनो रचना प्रकाशित नै भेल। फुलाइत मन मुरझा गेल। ओइ समएमे हिन्दीसँ एम.ए.क तैयारीमे जुटल छलहुँ। हिन्दीमे लिखनाइ सुविधाजनक सन लगल। लिखब आ छपेबाक उत्कट इच्छााक कारणे हिन्दी दिस कनछी काटए पड़ल।
मुन्नाजी- मैथिली लेखनीक प्रारम्भ कहिया कोनो कएलहुँ? एखन धरि मैथिलीमे हेराएल वा वेराएल सन रहवाक की कारण?
राजदेव मं. - मैथिलीसँ एम.ए. केलाक उपरान्त १९८६ई.क कोनो राति, नीक जकाँ स्मरण नै ऐछ- ओ तारीख। ओइ राति मानसिक स्तरसँ बड्ड दुखी रही। एतेक दुखी जे सुतएकालसँ पूर्व कतेको बेर मुँहसँ निकलल रहए- हे भगवान हमरा धरसीसँ उठा लिअ। हमरा मृत्यु चाही। हम मरऽ चाहै छी।
ई वाक्य सभकेँ दोहराबैत निन्नमे डूबि गेल रही। अधरतियामे जखन निन्न टूटल तँ मन किछु हल्लुक सन बुझाएल। ओसारपर मिझाइत दीयाकेँ बड़ी काल धरि एकटक देखैत रहलहुँ। कतेक काल धरि से स्मरण नै ऐछ। किन्तु ओ मिझाइत दीया प्रथम मैथिली कविता बनि गेल। जे संग्रह अम्बरा'मे संकलित ऐछ। भऽ सकैत ऐछ ऐसँ पूर्व मैथिलीमे अपूर्ण रचना सभ हएत।
आब सवाल हेराएल आ बेराएल ऐछ। हेराएल ओ रहैत ऐछ जे अनचिन्हारक बीच रहैत ऐछ आ अनजान स्थानपर रहैत ऐछ। हम तँ अपनहि जन्म स्थानपर छी आर चिन्हार लोकक बीच छी। ओकरा की कहबै जे चिन्हार लोकक बीच अनचिन्हार बनल हेराएल ऐछ।
ओ बेराएल जाइत ऐछ जेकरा द्वारा अधलाह काज भेल हुअए। हम अपना जनैत नीक काज करैत अहाँक लगमे ठाढ़ छी। तइयो बेराएल सन। तँ एकर कारण की कहब?
मुन्नाजी- अहाँक कविता गाम समाजक लोकक प्रति अहाँक विचार मिथिलाक पारम्परिकताकेँ संजोगने बुझाइत ऐछ। जखन कि वर्त्तमानमे तकनीकी विकासे लोकक जीवन आधुनिक सोचमे डुबि रहल ऐछ। अहाँ अपनाकेँ सँ दूर कोना रखने छी?
राजदेव मं. - हम कोनहुँ पारम्परिकताकेँ संजोगने नै छी आ नै आधुनिक जीवन सोचसँ अपनाकेँ दूर रखने छी। हँ किछु सरस शब्दकेँ जोड़बाक प्रयास कएलहुँ जाहिसँ रमणीय अर्थ निकलि सकए। की छुटल आ की जुड़ल ऐछ। नीक वा अधलाह भेल तेकर िनर्णए तँ अहीं सभ करब।
मुन्नाजी- एखन धरि अहाँक मैथिली लेखनीमे कविते टा जगजियार भेल ऐछ की, अहाँ कोनाे आनो विधामे लिखैत छी?
राजदेव मं. - किछु कथा लिखने छी। एकटा उपन्यास लिख रहल छी।
मुन्नाजी- अहाँ हिन्दी भाषामे कतेको पोथीक सर्जक छी, जे छपि कऽ सोझाँ आबि चूकल ऐछ। मैथिलीमे एतेक पाछाँ किएक छी किएक छी एकर कोनो विशेष कारण तँ नै ऐछ?
राजदेव मं. - हिन्दीमे तीनटा उपन्यास प्रकाशित भऽ चूकल ऐछ। जिन्दगी और नाव, पिंजरे के पंछी, दरका हुआ दरपन। मैथिलीमे लिखैत छलहुँ किन्तु प्रकाशित नै भेलाक कारणे पाछाँ छलहुँ। उमेश मंडल आ गजेन्द्र ठाकुर जीसँ सम्पर्क भेलाक उपरान्त मैथिली ई पत्रिका विदेहमे प्रकाशित हुअए लगल। श्रुति प्रकाशन द्वारा विदेह मैथिली पद्य २००९-१०मे सेहो प्रकाशित भेल।
वास्तवमे ओ सभ धन्यवादक पात्र छथि। एकर उपरान्त अंतिका आ मिथिला दर्शनमे सेहो किछु कविता सभ अाएल।
मुन्नाजी- मैथिली भाषाकेँ अप्पन किछु मैथिल सभ बाभन मात्रक भाषा कहि गैर बाभन लोक सर्जक विचार वा भाव रखितो अपनाकेँ कतिया लैत छथि। अहाँ एकरा कै परिपेक्ष्यमे देखै छी?
राजदेव मं. - भाषाकेँ कोनो बन्धनमे बान्हि कऽ नै राखल जा सकैत ऐछ। जातिक बन्धन तँ आओर खराब। भाषा तँ सबहक होइत ऐछ। तँए सभ जाति आ वर्गक लोककेँ अपना भाषा उत्थानक लेल प्रयास करबाक चाही। सहयोगक भावना सेहो हेबाक चाही। प्रारम्भमे किछु बाधा होइते ऐछ। तै कारणे कतिया जाएब से नीक नै।
मुन्नाजी- बाभनसँ इतर अहाँक समकक्ष सर्जक श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी जे अपन लेखनीए कतेको स्थापित रचनाकारकेँ पाछाँ छोड़ि अल्प समएमे शीर्षपर अबैत देखाइत छथि। ऐ माध्यमे छोटका-बड़का जातिक फाॅटकेँ अहाँ कोना परिभाषित करब?
राजदेव मं. - ऐमे छोटका आ बड़का जातिक फाँट की कएल जाए। किछु रचनाकार द्रुतगतिसँ लिखैत छथि। जेना श्री जगदीश प्रसाद मंडल। स्वभाविक ऐछ जे ओ अल्पकालहिमे बेसी लिखताह। कियो मन्थर गतिसँ रचना करै छथि। लिखबाक अपन-अपन शैली आ गति होइत ऐछ। ओहिना शीर्ष दिस बढ़बाक गति होइत ऐछ।
मुन्नाजी- अपन मैथिली लेखनयात्राक क्रममे कहियाे अपनाकेँ गैर बाभन हेवाक कारणेँ अनसोहाँत वा उपेक्षितक अनुभव तँ नै पौलहुँ?
राजदेव मं. - सवेंदनशीलकेँ तँ उपेक्षाक अनुभव होएबे करतैक। समाज आ परिवारकेँ प्रत्यक्ष रूपेँ किछु नै दैत छिए। ओ सभ उपेक्षाक भाव राखबे करता। अपनासँ आगू कोनो जातिकेँ देख इर्ष्या होएबे करत। ई तँ मनुक्खक गुण ऐछ। भऽ सकैत ऐछ जे हमरोसँ पाछाँबलाकेँ किछु एहने अनुभव होइत हेतै। ऐ गप्पपर अपने लिखल पॉति यादि अबैत ऐछ- “उपेक्षाक दंश/ हमरहि अंश/ नै ऐछ चिन्ता/ नै छी त्रस्त/ भेल छी अभ्यस्त.../”
मुन्नाजी- मैथिली समीक्षक लोकनि रचनाकारक कोन मन:स्थितिकेँ समीक्षाक रूपेँ परिभाषित करैत छथि? की ओइमे जातिवादिताक नजरिया सेहो परिलक्षित होइत ऐछ?
राजदेव मं. - समीक्षाक बहुत अधिक पुस्तक हम नै पढ़ने छी। ऐ तरहक गप्प सोक्षा नै अाएल ऐछ। ओना समीक्षाक कार्य बहुत दायित्वपूर्ण होइते ऐछ। रचनाकार आ पाठकक मध्य मिलनबिन्दूपर समीक्षक रहैत छथि। ओ कोनो रचनाकेँ दोष-गुणक अन्वेषण करैत छथि। जँ हुनक नजरिया जातिवादी हेतैक। तँ ऐसँ भाषाक क्षति हेतैक।
मुन्नाजी- अहाँ समीक्षा सेहो करै छी अपन समीक्षाक माध्यमे अहाँ रचनाकारक व्यक्तित्वकेँ परिलक्षित करैत छी, वा रचनाकारक कृतित्वकेँ सोझाँ अनवाक प्रयास करै छी की जातिक फाँटकेँ भरि रचनाकारक देखार करब उचित बुझै छी?
राजदेव मं. - समीक्षा तँ होइत ऐछ रचनाकेँ। तँए व्यक्तित्व आ कृतित्वकेँ अलग-अलग राखल जएबाक चाही। समीक्षाक कार्यमे तँ तटस्थ भऽ रचनाक दोष गुणक चर्चा न्याय-संगत ढंगसँ हेबाक चाही। हँ, किछु साहित्यकारक सर्वोत्कृष्ट कार्य देख धन्यवाद देबाक लेल बेवश होमए पड़ैत ऐछ। ऐ कार्यमे जातिक फाँट केनाइ नितान्त अनुचित गप्प थिक।
मुन्नाजी- अन्तमे अहाँ गैर बाभनक मैथिलीमे अनुपस्थितिकेँ कोन तरहेँ अनुभव करै छी। ऐमे गैर बाभन वर्गक सर्जककेँ वेशीसँ बेशी उपस्थितिक लेल कोन संदेश वा विचार देब।
राजदेव मं- पूर्णरूपेण भाषाक विकासक लेल सभ जाति आ वर्गक रचनासँ भाषाकेँ परिपूर्ण होएबाक चाही। तँए जे पाछाँ छथि हुनका सभकेँ अध्ययन, मनन आ अभ्यास करबाक चाही। बेसीसँ बेसी रचना करबाक चाही। सहयोगक भावना रहक चाही। अधिकार प्राप्त करबाक लेल तँ आगू बढ़ै पड़त।
३
बहुआयामी व्यक्तित्वक व्यक्ति एवं सौभाग्य मिथिला चैनलक कार्यक्रम प्रभारी कुमार शैलेन्द्रसँ प्रतिनिधि युवा लघुकथाकार एवं समालोचक मुन्नाजीसँ भेल गपशपक अंश अहाँक सोझाँ राखल जा रहल अछि।–
मुन्नाजी: पहिल बेर मैथिलीमे कोन विधासँ वा कोना प्रवेश भेल आ ओकर की कारण छल?
कुमार शैलेन्द्र: सन १९६४ ई. मे राजेन्द्र नगर पटनामे हमर जन्म भेल। हमर पिता शिवकान्त झा ओइ समए हिन्दी दैनिक आर्यावर्तमे समाचार सम्पादक रहथि। घरमे कएकटा अखबार, मैथिली पत्रिका शुरूहेसँ पढ़बा लेल भेटल। ओइ समएमे पटनामे ठाम ठीम विद्यापति पर्व समारोह हुअए, मैथिलीक रुचि हमरा ओतएसँ जागल। तकर बाद जखन हम कॉलेजमे पहुँचलहुँ तँ हरिमोहन झाक साहित्य पढ़ि हमरा आभास भेल जे मैथिली साहित्य बड्ड समृद्ध अछि। तकर परिणाम भेल जे हम इण्टरमीडिएटमे अनिवार्य भाषा (१०० अंकक) हिन्दीक बदलबा कऽ मैथिली राखि लेलौं। तकर पछाति हम मैथिलीयेमे ऑनर्स आ एम.ए. केलहुँ। हम कॉलेजमे रही तखने उत्सुकता रंगमंच दिस भेल। हमरा मोन पड़ैछ रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जिनका द्वारा पटनामे मैथिलीक पहिल रंगमंचक गठन भेल, “रंगलोक” जे ओहि समएमे एकटा नाटक मंचन केलक जकर समीक्षा लिखि हम आयावर्तमे देलिऐ। ओहि समय गोकुलनाथ झा आ भीमनाथ झा कहलनि, समीक्षा हमर रिपोर्टर लिखत, अहाँक समीक्षा नै हएत। फेर गोकुल बाबू कहलनि, समीक्षा नीक अछि, लिखैत रहू। ओ हमर पहिल समीक्षा छल, नै छपल मुदा तकर बाद समीक्षा लिखैत रहलौं आ छपैत रहलौं।
हमरा पता चलल जे कौशल किशोर दास पटनामे एहेन युवक सभकेँ ताकि रहल छथि जिनका रंगमंचमे रुचि होइन। कौशलजी आइसँ पहिने कलकत्तामे रंगमंचसँ जुड़ि सफल रहल छलाह आ आब पटना आबि गेल रहथि। हम हुनकासँ भेंट केलौं आ तकर पछाति सबहक विचारे १८ फरबरी १९८२ ई. केँ एकटा मीटिंग राखल गेलै जाहिमे हम, कौशल किशोर दास, प्रमोद भाइजी, अरुण कुमार झा आ गोकुलनाथ दास कुल पाँच गोटे, ओइ मीटिंगमे उपस्थित भेल रही। हमरा प्रस्तावे “अरिपन” नामक संस्थापर सहमति बनल २८ फरबरी १९८२ केँ। मैथिलीक प्रतीक “अरिपन” क रूपमे एकर प्रस्ताव रखलौं। कौशलजी एकर समर्थन केलनि। तकर बाद विचार भेलै नाटक मंचनक। बहुत रास मैथिली नाटकक किताब जमा भेल जैपर कौशलदास सहमत नै भेला। हमरा कहलनि- पु.ल. देशपाण्डे लिखित मराठी नाटक- बेचारा भगवान चर्चित आ पुरस्कृत एवं लोकप्रिय अछि। अहाँ मैथिली जनै छी ओकरा हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद करू। ईएह मैथिली अनुवाद ओही नामे “अरिपन”मे पहिल बेर मंचित भेल।
तकर पछाति हमर भातिज अरुण कुमार झा कहलनि जे अशोकनाथ “अश्क” मैथिलीमे नाटक लिखने छथि। ओ ओहि समएमे छात्र रहथि आ हुनक लिखल नाटक “विद्रोह” हमरा सभकेँ पसिन्न पड़ल, ई “अरिपन”क दोसर पुष्प छल। हम सभ “अरिपन”क अध्यक्षक लेल बहुत वरिष्ठ गोटे लग गेलौं, कियो अध्यक्षता लेल तैयार तँ नहिये भेला जे कहलनि- अहाँ सभ बेकार फिरिसान होइ छी, मैथिली रंगमंच कहियो अस्तित्वमे नै आबि पाओत। ओही क्रममे हम सभ जटाशंकर दासजी सँ भेंट कएल, ओ एकमात्र व्यक्ति हमरा सभकेँ सभ तरहेँ संग देलनि, अध्यक्षता केला। शेष बुजुर्ग सभ बादमे अरिपनक छोट-छोट पदाधिकारी धरि भेला, हम आब नाम नै लेबऽ चाहब, हुनका सभकेँ अपमान बुझेतनि। दू वर्षक क्रियाकलापकेँ सभ कियो सराहऽ लगलाह आ शेष सभ गोटेकेँ मैथिली रंगमंचक भविष्य देखाए लगलनि। तेसर वर्ष ओही संस्थाक अध्यक्ष भेलाह श्री मंत्रेश्वर झाजी आ क्रमे हमरा सभकेँ विलगा देल गेल।
मुन्नाजी: अहाँ प्रारम्भमे मैथिलीमे नाटकक योगदाने आगाँ एलौं मुदा फेर पत्रकारिता दिस उन्मुख भऽ गेलौं, नाटकसँ कोनो असोकर्ज तँ नै बुझना गेल?
कुमार शैलेन्द्र: पत्रकारितामे- अहाँकेँ कहलौं जे पिताजी पहिनेसँ ऐ काजमे लागल छलाह। तँ हमरो रुचि छले। उदयचन्द्र झा “विनोद” आ विभूति आनन्द दुनू गोटे माटि-पानि नामक पत्रिका बहार करैत छलाह। विनोदजी तँ जॉबमे छलाहे समयाभाव छलनि, विभूतिजीकेँ सेहो मिथिला मिहिरमे नोकरी लागि गेलनि। तखन माटिपानिक ८० प्रतिशत काज -यथा मुरलीधर प्रेसमे जा टाइप सेटिंग कराबी, प्रूफरीडिंग कॉपी एडिट आदि-आदि काज करी- फाइनल टच विभूतिजी आबि कऽ दैथि। हमर नाम नै रहै छल, हँ अन्तिम दू अंकमे सहयोगी शैलेन्द्र कुमार झा जोड़ल गेल। तकर पछाति ओ बन्न भऽ गेलै, जेना आन मैथिली पत्रिकाक दशा होइत छैक। पत्रकारिता तँ हमर पारिवारिक कारोबार वा रोजगार बनि गेल छल। हमर पिताजी सेवानिवृत्त भऽ गेल रहथि। हमरा आर्यावर्तमे प्रशिक्षु संवाददाताक रूपमे नोकरी भेल। हम सभ कोनो डिप्लोमा डिग्री लेनाइ तँ दूर सुननेहो नै रही, विशेष कऽ पटनामे जे पत्रकारितामे कोनो डिप्लोमा डिग्री होइत छैक। हँ, जँ हमरा पहिने बुझल रहैत जे नाटकक लेल एन.एस.डी. (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) प्रशिक्षण दैत अछि तँ हम जरूर प्रयास करितौं, मुदा पटनामे ऐ तरहक कोनो माहौल नै छलै। हमर पिताजी आर्यावर्त ज्वाइन करबासँ पहिने पुणेमे पेशेवर रंगकर्मीक रूपेँ जुड़ल रहथि। १९५५ मे आकाशवाणी पटनासँ जुड़लाह आ तहियेसँ मैथिली नाटकमे अपन स्वर दैत रहलाह। ई क्रम १९८५ धरि चलल। हमरा जनैत ओ पहिल व्यक्ति छथि जे अनवरत एतेक दिन धरि मैथिली नाटकसँ जुड़ल रहलाह। १९७०-७२ क बाद प्रेमलता मिश्र “प्रेम”, बटुक भाइ सभ जुड़लाह, नीक योगदान देलनि, मुदा हमर पिता शिवकान्त झाजी, आनन्द मिश्र, मायानन्द मिश्रक समकक्ष रहलाह। नाटकमे हमरा रुचि ओतैसँ जागल। ओइ इलाकामे (हनुमाननगर, मधुबनी)मे हुनकर मंचीय काजकेँ एकटा किंवदन्तीक रूपमे जानल जाइए।
मुन्नाजी: अहाँक अन्तिम नाटक उगना हॉल्टक मंचन मिथिलांगन (दिल्ली) द्वारा २००९ मे भेल, जे पूर्णतः आजुक परिप्रेक्ष्यमे प्रासंगिक आ मनोरंजक छल। एहिसँ पूर्व अहाँक कोन-कोन आ कोन तरहक नाटक सोझाँ आबि गेल अछि? लेखन आ मंचन दुनू दृष्टिएँ?
कुमार शैलेन्द्र: पहिल बेर हम मंचपर एलौं मराठीक अनूदित नाटक- बेचारा भगवान लऽ कऽ। तकर बाद बहुत रास नीक नाटकक अनुवाद केलौं। हमर पहिल मैथिली नाटक अछि- मोर मन मोर मन नै पतिआइ-ए। दोसर ३१-१२-१९९६ केँ उत्तरायण हास्य व्यंग्यपरक नाटक अछि, एकर बाद लोरिकायन, अग्निपथक सामा (चेतना समितिसँ प्रकाशित), ई मैथिलीक पहिल नाटक छल जकरा बिहारक सभसँ पैघ श्री कृष्ण मेमोरियल हॉलमे मंचित कएल गेल ०४.०८.२००१ केँ। गीतात्मक देसिल बयना २००७ मे, मिथिलांगन (दिल्ली)क आग्रहपर नैकाबनिजाराक गीतात्मक नाट्यरूपान्तरण केलौं जाहिमे १०टा गीत छै, जकर मंचन २००७ ई. मे व्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” जयन्तीपर मिथिलांगन द्वारा संजय चौधरीक निर्देशनमे मंचित कएल गेल। २००८ ई. मे मिथिलांगन द्वारा आजुक प्रसंगमे लिखल हास्य व्यंग्य नाटक “उगना हॉल्ट”क मंचन भेल।
मुन्नाजी: अहाँक नाट्य मंचन मूलतः गमैया नाटकसँ प्रारम्भ भेल छल, आजुक परिप्रेक्ष्यमे गमैया नाटक कतऽ अछि। गमैया आ थियेटरमे मंचित नाटकक तुलनात्मक स्थिति की अछि?
कुमार शैलेन्द्र: गमैया नाटक जतऽसँ शुरू भेल छल आइयो ओतै अछि आ ऐसँ ऊपर उठबाक आशा सेहो नै देखा पड़ैत अछि। थियेटर नाटक आधुनिक साज-सज्जा ओ प्रकाश व्यवस्थासँ संतुलित रहैत अछि। मुदा गमैया नाटक जेना अछि ओहिसँ सुधरि नै सकैत अछि जकर मूल कमी अछि बिजली वितरणक अभाव। गाममे एखनो नाटक पेट्रोमेक्सक इजोतमे होइत अछि, जतऽ जेनेरेटरक व्यवस्था होइत छै, ओहो समुचित नै कहल जा सकैछ, किएक तँ ओतौ डिमरक प्रयोग नै भऽ सकैत अछि। थियेटरमे आयोजित नाटक प्रारम्भसँ अंत धरि नाटकक क्रमिक दृश्य देखाइछ। मुदा गमैया मंचपर एखनो दृश्य परिवर्तनक बीच कॉमिक वा नाच देख सकैत छी। गाममे ताधरि स्थिति खराब रहत जाधरि दृश्य परिवर्तन उठौआ परदासँ हेतै। गामक मेकपमे एखनो मुर्दा शंखक उपयोग होइत छै। गामक नाटक कहियो ऊपर नै उठि सकैत अछि। कहियो थियेटरक नाटकक बरोबरि नै भऽ सकैए, किन्नो नै भऽ सकैए।
मुन्नाजी: हमरा जनतबे आइयो नाटकक लेल दर्शकक अभाव नै छै, हँ समयाभाव जरूर भऽ गेलैए, ताहि हेतु एकांकी सभकेँ मंचित करब शुरू भेल अछि। अहाँक नजरिये एकांकीक रुखि केहेन अछि, एकर भविष्य केहेन बुझना जाइत अछि।
कुमार शैलेन्द्र: आधुनिक रंगमंचपर भलहिं एकांकीक प्रचलन बढ़लैए मुदा एकांकीक आधार वा सम्भावना नै छैक से मैथिलीये नै अन्यान्य भाषाक एकांकी संग सेहो छैक। अखन जे नाटक लेखन भऽ रहल अछि ओइमे साहित्यिक नाटक कम अछि। नाटक ऐ रूपक प्रारम्भ सुधांशु शेखर चौधरीक नाटक सभसँ भेल। नाटक अपन परम्परामे आबि अलग अलग शिल्पक प्रयोगे लिखल जा रहल अछि। प्राचीन जे प्रदर्शन कला छलै तकरासँ जोड़ि कऽ आधुनिक प्रदर्शन कलाक प्रस्तुति कएल जा रहल अछि। मुन्नाजी, एकांकीक अस्तित्व मैथिली सहित सभ भाषामे खसि गेलैक अछि। भविष्य कोनो नीक नै बुझना जाइछ।
मुन्नाजी: वर्तमानमे किछु बीछल कथाकेँ एकांकी रूपेँ प्रस्तुत कएल जाए लागल अछि, की कथाक मूल एकांकीमे समाहित भऽ पबैए वा नै? आ कथाक एकांकी रूपान्तरण कतेक उचित वा अनुचित अछि?
कुमार शैलेन्द्र: कथाक नाट्य रूपान्तरणक प्रारम्भ केलनि हिन्दीमे देवेन्द्रराज अंकुर। कथा मंचनक सभ भाषामे अयोजन कएल जा रहल अछि। कथाकेँ नाट्य रूप दिऐ तखने ओ सार्थक भऽ सकैछ, मुदा से अछि कठिन। हम धूमकेतुक कथा “अगुरवान”क नाट्यरूपान्तरण कएने रही तँ ओइमे कथाक मूल स्वरूपकेँ यथावत रखने रही। ओना तँ ताहि हेतु कठिन परिश्रम करऽ पड़ल छल। आगू म. मनुज ओइ अगुरवानक रूपान्तरण काफी लिफ्ट लैत केलनि तँ ओकर मूल आत्मे मरि सन गेलै। किएक तँ ओइ नाटकमे बहुत रास दृश्य एहेन जोड़ल गेल छैक जे कथामे छहिये नै। कथा मंचन हेबाक चाही, ओकर प्रतिरूप नै जेना हमर नैका बनिजारा छल। ओतेकटा पोथीकेँ डेढ़ घंटाक कलेवरमे समेटि देनाइ बड कठिन छल। मुदा हम ओइमे सफल भेलौं। कथाक मंचन तँ सही छैक मुदा जखन नव आयाम जोड़ल जाइ छै तखन कथाक आत्मा आहत होइत छैक। देवेन्द्रराज अंकुर जेना कथाक नाट्यरूपान्तरणमे कथाक मूल रूपकेँ प्रस्तुत कऽ पबै छथि तहिना मैथिलीयोमे कएल जाए तँ नीक बात अन्यथा लौल करब व्यर्थ अछि।
मुन्नाजी: अहाँ लेखनक अतिरिक्त अभिनयसँ सेहो जुड़ल रहलौं। हम सभ फिल्म सिन्दुरदानमे अहाँक सुन्दर अभिनय देखने छी। ऐसँ पूर्व अहाँ कोन-कोन फिल्म वा धारावाहिकमे अभिनय केने छी आ एकर केहेन अनुभव केलहुँ?
कुमार शैलेन्द्र: जँ अहाँ कही छोटकी परदा हम ओकरा कहै छी- नन्हकी परदा आ सिनेमाकेँ कहै छी बड़की परदा। बड़की परदाक बात करी तँ “सिन्दुरदान” हमर दोसर फिल्म अछि। पहिल फिल्म अछि रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा निर्मित आ निर्देशित हिन्दी फिल्म “आयुर्वेद की अमर कहानी”- ऐमे हम अभिनय केने रही, ललितेश ऐमे हीरो रहथि आ संगमे रहथि दिलीप झा। राँटी, मधुबनीमे एकर सूटिंग भेल रहै। हमरे सन चारि-पाँच गोटे आरो प्रतिभावान कलाकार रहथि। सिन्दुरदानमे १६-१७ बर्खक पछाति चरित्र अभिनेताक रूपमे आएल रही, आब तँ हमर चेहरो बदलि गेलहेँ। ऐमे हमर भूमिका नायिकाक पिताक रूपमे छल। एकर बाद सौभाग्य मिथिला मैथिली चैनलक लेल बनाओल मुख्य धारावाहिक “दियर-भाउज”क डेढ़ सए कड़ीसँ बेसीमे षडयंत्री ककाक भूमिकामे काज कएलौं। तकर अतिरिक्त रविन्द्रनाथ ठाकुर नन्हकी परदापर एकटा काउन्टडाउन शो केने रहथि, जैमे कविक भूमिकामे एकटा प्रस्तोताक रूपमे हम अभिनय केने रही। ईएह हमर नन्हकी-बड़की परदाक अभिनय यात्रा अछि जे एकटा प्रसन्न करैबला अनुभव रहल।
मुन्नाजी: अहाँ बहुत दिन धरि मैथिली पत्रकारिता विशेषकऽ आकाशवाणीसँ जुड़ल रहलौं, की भविष्य छै एकर? एकरा छोड़ि अहाँ दूरदर्शनसँ किएक जुड़लहुँ?
कुमार शैलेन्द्र: हमर रोजगार यात्रा पत्रकारितेसँ शुरू भेल, विशेष कऽ प्रिन्ट मीडिअमसँ। ओइ संग आकाशवाणीसँ सेहो जुड़ल रहलौं। आकाशवाणी पटनासँ प्रसारित किछु नाटकमे काज केलौं। आ एतऽसँ प्रसारित चौपालमे “बम-बम”भाइक भूमिकाक निबहता करैत रहलौं। तकरा संग-संग नौ साल धरि आकाशवाणी पटनासँ शैलेन्द्र कुमार झाक नामे समाचार वाचन करैत रहलौं। एकर अतिरिक्त नै जानि कतेको रेडियो नाटिकामे अपन स्वर देलौं। एकटा महत्वपूर्ण काज छल ओतऽसँ प्रसारित “सिंहासन बत्तीसी” धारावाहिकक- चौंतीसम कड़ी धरि राजा भोजक भूमिकामे रही जे महत्वपूर्ण काज छल। तकर बाद ई.टी.वी. हैदराबादमे छः घण्टाक लिखित आ दू घंटाक मौखिक परीक्षाक पछाति हमर चयन भेल। हम ओतऽ एक सप्ताह मात्र काज केलौं। ओहीमे हमर वरिष्ठ रहथि गुंजन सिन्हाजी जे एखन मौर्या टी.वी. पटनामे वरिष्ठ पदाधिकारी छथि। हमरा ओतऽ मोन नै लागल वा मोन नै मानलक। हाम आपस चल एलौं। तकर बहुत पछाति “सौभाग्य मिथिला” मैथिली चैनलसँ जुड़लौं, जैमे समस्त कार्यक्रमक निर्माण देखैत रहलौं। छोड़बासँ पहिने समाचार संपादक रूपमे कार्यरत रही। सौभाग्यसँ जहिया जुड़लौं तँ हम पहिल मैथिल व्यक्ति रही ओ सौभाग्य नामक एकटा डिवोशनल चैनल छल आ ओइमे सभ हिन्दीभाषी कार्यरत छलाह।
मुन्नाजी: अहाँक नाटक पत्रकारिताक अतिरिक्त एकटा सकल मंच संचालकक रूप सेहो सोझाँ आएल। अहाँ ओहूमे खूब जमलौं।की मैथिलीमे स्वतंत्र संचालकक अस्तित्व आ भविष्य देखा पड़ि रहल अछि?
कुमार शैलेन्द्र: मंच संचालन हमर महत्वपूर्ण लोकप्रिय विधा रहल अछि। पटनाक चेतना समितिक मंचसँ विद्यापति समारोहमे बहुत दिन धरि मंच संचालन करैत रहलौं। सत्य पूछी तँ ओइमे आनन्द अबैत छल, किएक तँ ओ जे भीड़ होइ छलै एक लाख डेढ़ लाख लोकक आ शालीनतापूर्वक सभ सुनैत रहै छल। तकर पछाति कतेको मंचपर बजाएल जाए लगलौं। मैथिलीमे मंच संचालकक वा उद्घोषकक कोनो पेशेवर रूप टिकाऊ नै भऽ सकैछ। एखन एकर कोनो सम्भावना नै छैक। हँ हमर जे समिति सबहक उद्घोषक भेलाह हुनक रूप बदलि गेल छनि, माने ओ आब एकटा कन्ट्रैक्टर वा एरेन्जरक रूपमे छथि। समस्त कलाकारक व्यवस्था ओ करथि आ ओही व्यवस्थापर कार्यक्रम आयोजित होइत अछि। ओना एहेन जे उद्घोषक सेहो सिजनल भऽ सकैत छथि। हम जखन उद्घोषक रही तँ ई बात पहिने सोझाँ आबए जे जँ विद्यापति पर्व समारोह अछि तँ ओइमे विद्यापति आ मिथिलाक सांस्कृतिक आधारकेँ केन्द्रित कऽ कार्य कएल जाए। आब गीत-संगीतमे फूहड़ता एलैए तँ कैक ठाम संचालकक स्तर खसि रहल छैक।
मुन्नाजी: मैथिलीक पहिल चैनल “सौभाग्य मिथिला”सँ पूर्ण रूपेँ जुड़ि अपन सर्वस्व ऊर्जा ऐमे खर्च कऽ रहल छलौं। मुदा एखनो बहुत रास कमी अछि जेना डी.टी.एच.पर ऐ चैनलक प्रसारण नै हएब? ठोस वा मनोरंजक कार्यक्रमक अभाव किएक?
कुमार शैलेन्द्र: निश्चित रूपे मुन्नाजी अहाँक जे सवाल अछि तैसँ हम सहमत छी। हम जहिया जुड़लौं ऐसँ तँ असगर मैथिल छलौं। एकर सभ कार्यक्रम चैनल आइ.डी.सँ लऽ समस्त कार्यक्रमक आधारभूत संरचना तैयार केलौं। हमर बाद जे किछु लोक जुड़ल से सभ चैनल माध्यमे चिन्हल गेल मुदा हम पहिनेसँ मिथिलाक सभ क्रियाकलाप कला संस्कुति आदि सँ सर्वथा जुड़ल रहलौं। हमरा प्रारम्भमे कहल गेल जे ऐमे दू घंटाक मैथिली कार्यक्रम हएत मुदा कालक्रमे २४*७ क प्रसारण -यानी चौबीसो घंटा आ सातो दिन- होमऽ लागल। हम एकरा कहल बुद्धिवाद, जे ई जोगाड़ डॉट कॉम पर टिकल रहल, किएक तँ एकरा फाइनेन्सरक पूर्णतः अभाव रहलै।
मुन्नाजी: ऐ चैनलक बहुत रास कमी एहेन अन्यान्य भाषाक चैनलक समक्ष एकरा ठाढ़ नै होमऽ दऽ रहल छै। एनामे एकर अस्तित्व समाप्त तँ नै भऽ जाएत।
कुमार शैलेन्द्र: एकरा लग प्रतिभा, लोक, अभिनेता, गीत-संगीत गौनिहारक कमी नै छै। साहित्य-संस्कृतिक कमी नै छै। योग्यताक अभाव नै छै। कमी छै तँ धनक, चैनलक मार्केटिंग केनिहार लोकक। अभाव छै तँ जे सभ मालिक वा पार्टनर छथि हुनकामे, जे कोना बजारसँ धन उगाहिकेँ आनल जाए। से सभ जहिया भऽ जाएत तहिया ऐ चैनलसँ स्तरीय कार्यक्रम सभ प्रस्तुत होमऽ लागत आ ई सभ तरहेँ आन भाषाक चैनलक समक्ष ठाढ़ भऽ जाएत। चैनलसँ आब जे जुड़ल छथि, जहिया हमहूँ सभ जुड़ल रही प्रोग्रामसँ, जे जुड़ल लोक अछि तकरा प्रोग्रामक भार रहै आ मालिक लोकनि एकर व्यापार प्रभागक संचालन करथि। ई भेद कऽ के काज हेतै तखन ई जरूर सफल हएत। नै मालिके सभटा काज करता तखन स्थिति दुःस्थितिये बनल अहत।
मुन्नाजी: ऐ सभक अतिरिक्त मैथिली गजलक उपयोग अहाँ सेहो करैत रहलौं अछि। मैथिलीमे गजलक की स्थिति छैक आ एकर केहेन सम्भावना देखा पड़ैत छैक?
कुमार शैलेन्द्र: मैथिली गजल अपन लोकप्रियता बहुत पहिने हासिल कऽ लेने अछि, कलानन्द भट्ट, बुद्धिनाथ मिश्र, रविन्द्रनाथ ठाकुर आदि श्रेष्ठ गजलकार छथि। मायानन्द मिश्र सेहो अही श्रेणीमे गानल जाइत छथि। हुनकर “रूप एक रंग अनेक” नामक संग्रह चर्चित रहल छनि। ओ ऐ सभ गजलकेँ गीतल कहै छथि। एम्हर आबि कऽ पत्रिका सभमे गजलक अभाव पाओल जाइत अछि। देखियौ मुन्नाजी, एकटा खास बात छै जे गजल एहेन विधा छै जे कोनो भाषामे लिखल जाए अपन जमीन तैयार कऽ लैत अछि। मैथिलीयोमे राम चैतन्य धीरज, तारानन्द वियोगी, रमेश आदि आ सरसजी गीत आ गजलमे नव-प्रयोग केलनि। कविताक जे प्रकार छै तैमे मैथिली गजलक सेहो अस्तित्व छैक आ भविष्य सेहो। गजल जतऽ जै भाषामे जाइ छै ओहीमे समाहित भऽ जाइ छै। गजलमे गेय तत्व छै जे ओकरा लोकप्रिय बना देने छै।
मुन्नाजी: शैलेन्द्रजी, एकटा सवाल व्यक्तिगत जिनगीसँ जुड़ल। अहाँ अपन एकल जिनगी जीबाक प्रयास कऽ रहलौं अछि- माने अविवाहित रहि- एकर कारण रोजगारपरक व्यावसायिक अवरुद्धता अछि वा कोनो व्यक्तिगत विशेष कारण। अहाँकेँ नै लगैछ जे एहन जीवन अधूरा वा व्यर्थ भऽ जाइत अछि?
कुमार शैलेन्द्र: देखियौ, ई अहाँक हमरासँ जुड़ल वैयक्तिक, पूर्ण व्यक्तिगत प्रश्न अछि। मुदा हम एकर उतारा देबासँ परहेज नै करब। वरन एगदम सहज आ स्वाभाविक उतारा देब। हम जखन यंग रही तखन पिताजी चाहैत रहथि जे हम बियाह कऽ ली, मुदा हम आर्थिक रूपेँ सक्षम नै बुझी अपनाकेँ। किएक तँ आर्यावर्तमे काज करैत रही, ओ ओही समएमे बन्न भऽ गेलै। हम बेरोजगार भऽ गेलौं आ बियाह नै करबाक मूल कारण छल हमर अर्थ विपन्नता। हम परिवार चलेबा लेल जतेक अर्थक प्रयोजन बुझलौं ततेक हम कहियो नै कऽ सकलौं। लोकक अपन-अपन रहबीपर निर्भर छै। ककरो लगै छै जे हम पाँच हजारमे गुजारा कऽ ली। हमरा लगैछ जे बीस हजार खर्च भऽ सकैछ। हम आइयो ओहिना छी जे अपना अर्थे विपन्न बुझै छी। हमरा मैक्सिम गोर्कीसँ जीवन्त प्रेरणा भेटैत रहल अछि। ओना हम मानै छी जे गोर्कीकेँ जीवनमे जतेक कष्ट सहऽ पड़लनि ऐसँ बहुत कम कष्ट हम उठेलहुँ अछि। हम जखन संकटमे अबै छी तँ हमरा गोर्की मोन पड़ै छथि आ हुनके प्रेरणासँ हम अपनाकेँ सम्हारि लैत छी। हँ, हम ईमानदारीपूर्वक कहब जे एतेक साहस कहियो नै आएल वा हमरा कियो भेटबो नै कएल। जे अपना ओइठाम जे पारम्परिक विवाह छै तैमे हमरा विश्वास नै रहल अछि। जँ हम ओना बियाह कऽ ली आ तेहेन कोनो जोड़ीदार आबि जाए जे अहाँक जीवनकेँ नर्क बना दिअए तँ हमरा कोनो शिकाइत नै अछि जे हम एकसर छी। हम विवाह नै केलौं तैं हेतु कतौ कोनो लोक, एम्प्लॉयरसँ कहियो कोनो कम्प्रोमाइज नै करऽ पड़ल। हमरा जतऽ जहिया जेना मोन भेल काज करैत रहलौं। हमर जे संगी नोकरिहारा, तकरा लेल लड़ैत रहलौं। आ तैँ हमर एम्प्लायर डरैत रहल अछि। ओ मानैए जे हम यूनियनबाजी करै छी, जखनकि सत्य अछि आइ धरि कोनो यूनियनसँ कोनो सम्बद्धता नै रहल अछि। असगरूआ रहब हमर सम्बल रहल अछि। काल्हि की हेतै एकरो गारंटी हम नै दऽ रहलौंहेँ। कतेको गोटे कहैए, आब अहाँ बूढ़ भऽ गेलौं, आब बियाह कऽ की हएत? मुदा हमरा अखनो वा आगूओ जँ अपन सोचक कियो भेटि जेती तँ हम बियाह कऽ सकैत छी।
मुन्नाजी: भाइ, एतबा बहुमूल्य समए दऽ अपन विचार देबा लेल धन्यवाद।
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कथा साहित्यक स्थापित रचनाकार एवं साहित्य अकादमीक (मैथिली परामर्शदातृ समिति) सदस्य माननीय अमरनाथ जीसँ मैथिलीक प्रतिनिधि लघुकथाकार एवं समालोचक मुन्नाजी द्वारा भेल गप्पसप्पक अंश प्रस्तुत अछि:-
मुन्नाजी: अहाँक मोनमे मैथिलीक रचनात्मक विचार कोना प्रस्फुटित भेल, पहिल रचना (लिखल) आ पहिल प्रकाशित रचना कोन अछि, आ कतऽ कहिया छपल?
अमरनाथ: हमर जन्म एक एहन परिवारमे भेल, जतय अनेक तरहक विविधता छलैक। किछु घोर कर्मकाण्डी रहथि, तँ किछु शास्त्र-पुराणक विपरीत आचरण करथि खाद्य-अखाद्यमे विचार नहि करथि। भारत-चीनक युद्ध आ युद्धक चर्चा सँ आहत बाल मन आ १९६२ मे ज्यौतिषी द्वारा खण्ड प्रलय भूकम्प अथवा विनाशक भविष्यवाणीक कारणे घरक बाहर छोट-छोट शेडमे रहबाक विवशता मनकेँ उत्सुक बनौने रहए। तत्कालीन समाजमे अधिकांश तथाकथित समाज लोककेँ सोंगरपर ठाढ़ देखियनि। अर्थात् एकटा नौकर आ टहलू चाहियनि। आश्चर्य ई लागय जे जखन सभ मनुक्खे, तखन सम्बोधनमे यौ, हौ, रौ, हरौ अछि किएक? जे घाम चुबबैत अछि से न्यून किएक? एहन विडम्बनापूर्ण परिस्थितिमे हमर रचनात्मक विचार प्रस्फुटित भेल रहए।मिथिला शोध संस्थान, दरभंगा सँ मैथिलीक लेखिका राजलक्ष्मीपर आधारित पुस्तक प्रकाशित भेल छल जाहिमे हुनक लिखल पोथीपर मुख्यतया अभिमत संकलित छल। ओहि पोथीमे आचार्य रमानाथ झा आदिक विचार छपल अछि। हमर अभिमत कवितामे छपल अछि, हमर वैह पहिल छपल रचना थिक।
मुन्नाजी: अहाँ सभक रचनाक प्रारम्भिक कालमे मैथिली साहित्यक स्थिति की छल? अहाँक रचनात्मक प्रभाव केहेन रहल?
अमरनाथ: १९७४ ई. मे पटनासँ प्रकाशित ‘मिथिला मिहिर’क फगुआ अंकमे हमर पहिल हास्य व्यंग्य कथा ‘स्वर्ण युग’ छपल रहए। १९७५ ई. मे ‘क्षणिका’ लघुकथा संग्रह छपल, आचार्य सुरेन्द्र झा ’सुमन’ ओहि पोथीक भूमिका लिखने छथि जाहिमे लघुकथाक औचित्यपर प्रकाश देने छथि। किरण जी, अमर जी, श्रीश जीक विचार छपल छनि। पछाति जयकांत मिश्र लिखलनि जे एहि संग्रहक प्रकाशन सँ मैथिली साहित्यक विकास भेल अछि। ‘मिथिला मिहिर’, ‘द इण्डियन नेशन’, ‘आर्यावर्त्त’, ‘मैथिली प्रकाश’ (कोलकाता) मे ‘क्षणिका’क समीक्षा छपल रहए। ताहिसँ ई अनुभूति भेल रहए जे कथाकारक रूपमे हमरा स्वीकार कऽ लेल गेल अछि। १९७४ ई. मे ‘चाही एकटा द्रोपदी’ (कथा संग्रह) तथा १९७५ ई. मे ई ‘क्षणिका’ (लघु कथा संग्रह) छपल रहए। हमरा अधिकांश श्रेष्ठ लेखक यथा रमानाथ झा, हरिमोहन बाबू, यात्री जी, किरण जी, सुमन जी आदिक सानिध्य आ स्नेह प्राप्त भेल रहए। मुदा हम बेशी हरिमोहन बाबूक लग रही आ तकर कारण रहए जे हम दर्शन शास्त्रक अध्ययन करैत रही आ मैथिलीमे लेखन दिस उन्मुख भेल रही। हरिमोहन बाबू संग बीतल क्षण हमर साहित्यिक जीवनकेँ गति प्रदान करबामे अत्यंत सहायक भेल छल।
मुन्नाजी: छठ्ठम/सातम दशकमे किछु रचनाकार मैथिलीमे साम्यवादी विचारक हो-हल्ला केलनि। अहाँक नजरिमे सत्यतः मैथिलीमे एहेन कोनो विचारधारा बनलै? अहाँपर एकर केहेन प्रभाव पड़ल?
अमरनाथ: एकटा समय आयल रहैक जाहिमे संसारक जन समुदाय साम्यवादी विचार धारा दिस आकर्षित भेल रहए। सम्पूर्ण विश्वमे पक्ष-विपक्षमे बहस प्रारम्भ भेल रहैक। कतहु-कतहु क्रांतियो भेलैक, क्रांति सफलो भेलैक। मुदा मैथिली साहित्यिक परिप्रेक्ष्यमे अहाँ ठीके कहलहुँ जे ‘हो-हल्ला’ भेलैक। हमहुँ मानैत छी जे मैथिली साहित्यमे साम्यवादी विचारधाराक जड़ि नहि जमि सकलैक। मैथिलीमे जे केओ अपनाकेँ साम्यवादी कहि कऽ प्रचारित करैत छथि से पाखंडी छथि। ई बात कने कटु अछि मुदा सत्य अछि कारण हुनक जीवनक सूक्ष्म निरीक्षणसँ परिलक्षित होएत जे ओ जातीय अहंकारसँ मुक्त नहि भेल छथि आ परम्परागत संस्कारमे लिप्त छथि। जनिकामे साम्यवादी चिंतन धारामे अग्रसर होएबाक अर्हते नहि छनि से भला वर्ग-संघर्ष, सर्वहारा, मैनिफेस्टो आ दास कैपिटल धरि कोना पहुँचताह। हँ, मैथिली साहित्यमे साम्यवादकेँ संगठित प्रचारक लेल आ आत्म-विज्ञापनक लेल हथकंडाक रूपमे इस्तेमाल कयल गेल अछि।
मैथिली साहित्यमे हमरा जनैत कोनो ठोस विचार धारा नहि पनपि सकलैक आ तकरा कारण ई भेलैक जे बीसम शताब्दीक महत्वपूर्ण लेखक लोकनिपर, संस्कृत अथवा बांग्ला साहित्यक प्रभाव पड़ल रहनि। किछु लेखकपर अंग्रेजी साहित्यक प्रभाव सेहो पड़ल रहनि। स्वतंत्रताक पश्चात् मैथिली साहित्य बहुलांशमे हिन्दी साहित्यक छत्र छायामे चलि आएल। मैथिलीक साहित्यकार नामवर सिंह आ मैनेजर पांडेय दिस देखय लगलाह। ई दु:खद स्थिति अछि, मुदा सत्य यैह अछि। मात्र तीन गोट साहित्यकार हरिमोहन झा, यात्री आ राजकमल विचार धाराक दृष्टियेँ टिकल रहलाह। यात्री समतामूलक समाजक स्थापना लेल अग्रसर भेलाह आ ‘परम सत्य’ धरि पहुँचि अस्तित्ववादी भऽ गेलाह। मानववाद हुनक कवितामे अंतर्निहित छनि। यात्री लिखैत छथि-
सत्य थिक संसार
सत्य थिक मानव समाजक क्रमिक उन्नति
क्रमिक वृद्धि-विकास
सत्य थिक संघर्षरत जनताक ई इतिहास
सत्य धरती, सत्य थिक आकाश
परम सत्य मनुक्ख अपनहि थिक
तहिना राजकमल साहित्य वर्जनाकेँ तोड़ैत तथाकथित ‘धर्मात्मा’ आ ‘पाखंडी’ सभक प्रताड़नासँ कुहरैत, नोरसँ भीजल मिथिलाक नारीक जीवंत चित्रण केलनि। एही सन्दर्भमे हरिमोहन झाक नाम उल्लेखनीय अछि। ‘खट्टर कका’क तरंग बुद्धिवादी चिंतन धाराक लेल ‘गीता’ सदृश अछि। सभसँ महत्वपूर्ण बात ई अछि जे हरिमोहन झा, यात्री जी आ राजकमलक मोसि कमला-गंडकी-वाग्मती-कोसीक पानिसँ बनल छलनि तेँ हुनकर साहित्यमे मिथिलाक सोहनगर माटिक सुगंधिक अनुभव होइत अछि। बीसम शताब्दीक वृहत्रयीमे यैह तीन साहित्यकार हरिमोहन झा, यात्री जी आ राजकमल छथि जे कालजयी छथि।
हमरापर कोन विचार धाराक प्रभाव पड़ल तकर विवेचन आ मूल्यांकनक दायित्व अहाँ सन युवा रचनाकारपर छोड़ि दैत छी।
मुन्नाजी: अहाँ अपन रचनाकालक प्रारम्भसँ एखन धरि लेखनक निरंतरता बनौने छी, मुदा आइ धरि ककरो द्वारा कोनो ठोस मूल्यांकन आ पुरस्कृत नञि भेलासँ केहेन अनुभव करैत छी?
अमरनाथ: मुन्ना जी, मैथिलीमे मूल्यांकन होइ नहि छै, करबऽ पड़ैत छै। ओहि लेल मैनेजमैंट चाही। ई मैनेजमैंट ने करय अबैत अछि आ ने हम सीखय चाहै छी। रहल गप्प पुरस्कारक। एकर अपन गणित छै। मैट्रिक धरि गणित आ विज्ञान रहए। प्रथम श्रेणी भेटल रहए। मुदा दर्शनशास्त्र प्रिय लागल। गणित छोड़ि देलिऐ। फेरसँ सीखल होएत? तखन अहीँ कहूँ, पुरस्कार कोना भेटत? मुन्ना जी, हम कहि सकैत छी जे देशक विभिन्न भागसँ हमरा पाठकक स्नेह भेटल अछि। ई की पुरस्कार नहि भेलै? हमर पोथीक तीन-तीन संस्करण भेल अछि। चारिम संस्करण प्रेसमे अछि। मैथिली लेखकक लेल ई की कम भेलै?
मुन्नाजी: कथा साहित्यमे अहाँ द्वारा लघुकथापर जमि कऽ लेखन भेल। मैथिलीक पहिल लघुकथा संग्रह ‘क्षणिका’ देलाक बाबजूद अहाँ लघुकथाकारक रूपमे हेराएल आ बेराएल रहलौं, एकरा पाछू समूहवाजी आ आर किछु कारण अछि?
अमरनाथ: एहिमे हमर अपन दोष अछि। १९७५ ई. मे ‘क्षणिका’ छपल रहए। हाथो हाथ बिका गेल। एहि घटनाक पैंतीस वर्ष भेलैक। हमरा दोसर संस्करण करएबाक चाहै छल। से नहि भेलैक। मैथिली पुस्तकक हेतु कोनो नीक पुस्तकालय नहि छैक। जखन पोथी नहि उपलब्ध होएतैक, तखन कोन आधारपर चर्चा लोक करतैक? तथापि जे नीक समालोचक होइत छथि से अंवेषण करैत छथि, पोथी उपलब्ध करैत छथि आ तखन मूल्याकंन करैत छथि। से कयलनि मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रामदेव झा, पटना विश्वविद्यालय द्वारा यू.जी.सी.क सौजन्यसँ आयोजित सेमिनारमे। अपन आलेखमे ‘क्षणिका’क सम्बन्धमे स्पष्ट विचार रखलनि। मुदा मैथिलीमे कतेक रामदेव झा छथि।
मुन्नाजी: अहाँक प्रारम्भिक रचनाकालमे मूलतः कथा कविता लेखन पर ध्यान देल जाइत छल। अहाँक ओइसँ इतर लघुकथा लेखनक प्रति उत्सुकता आ रचनाशीलता कोना आएल।
अमरनाथ: हम १९७३ ई.क गर्मीमे एक मास औद्योगिक नगरी बोकारो रहि बितौने रही। ओतए हम पहिल बेर लगसँ मशीनक घरघड़ाहटिकेँ सुनने रहियैक, लोककेँ दोगैत देखने रहियैक। हमरा लागल रहए जे आब जे समय आबि रहल अछि, ताहिमे मनुष्यकेँ समयक प्रबन्धन करए पड़तैक। कहि सकैत छी जे ‘समय’ लोकक वैह अत्यंत महत्वपूर्ण भऽ जयतैक। एहन स्थितिमे महाकाव्य अथवा दीर्घ कथा/ उपन्यास पढ़ऽ लेल समय नहि रहतैक। मुदा तथापि लोक साहित्य पढ़ऽ चाहत। आ तैँ पैघसँ पैघ बात कहबा लेल हम छोट-छोट कथा लिखय लगलहुँ। पछाति सकल ‘क्षणिका’ ‘लघु कथा’ संग्रहक रूपमे प्रकाशित भेल।
मुन्नाजी: अहाँ चारि दशक पहिने लघुकथाक प्रति एतेक क्रियाशील रहिऐ, आइयो ई निरंतरता बनौने छी। तहन अहाँक अकादमीमे स्थान पौलाक पछाति लघुकथापर कोनो काज किएक नञि भेल, अकादमीक स्तर पर उदासीनता किए? आगामी समयमे लघुकथाक लेल अकादमी द्वारा कोनो स्वतंत्र क्रियाकलापक (यथा-लघुकथा संग्रहक प्रकाशन/कोनो कार्यशालाक आयोजन) योजना अछि आ समायोजन करबाक विचार अछि?
अमरनाथ: एकरा उदासीनता नहि, प्राथमिकता कहबाक चाही। अकादमी द्वारा कतेक कार्य भेल अछि, भऽ रहल अछि। अगिला परामर्शदातृ समितिक बैसकमे लघुकथापर विशेष ध्यान देल जाएत। लघुकथाक सन्दर्भमे विमर्श, पुस्तक आदिक प्रकाशनपर विचार होएत, आ से एहि द्वारे नहि जे हम स्वयं लघुकथा लिखैत छी। ई आवश्यक एहि हेतु अछि जे एहिपर एखन धरि विचार नहि भेल अछि।
मुन्नाजी: मैथिलीक क्षेत्र छोट छै। तैयो रचनाकारक समूहबाजी एकरा गरोसने जा रहल अछि। ई एखनो सार्वभौमिक नञि अछि। आ से चीज पुरस्कारक हेतु चयन आ वितरणमे सेहो देखार होइत अछि। अहाँ एहिसँ कतेक धरि सहमत वा असहमत छी?
अमरनाथ: मुन्ना जी, हमहुँ अहीँ जकाँ लेखक छी। जे केओ समूहमे नहि छी, स्वतंत्र लेखक छी, स्वाभिमानक संगे लिखि रहल छी, एहि यंत्रणाक दंशकेँ सहि रहल छी। मुदा मैथिलीक संसार आब छोट नहि। श्री ‘गजेन्द्र ठाकुर’जी मैथिलीकेँ “विदेह” पत्रिका द्वारा सम्पूर्ण संसारमे पहुँचा देलनि। ‘मिथिला दर्शन’ मैथिलीक भविष्य बाँचि रहल अछि, आ अहाँ सन संघर्षशील युवा रचनाकारक हाथमे मशाल अछि। आब अहीँ कहूँ, ‘कूप-मंडुक’क आवाज कते दूर धरि जाएत?
मुन्नाजी: साहित्य अकादमी द्वारा बड्ड रास पुरस्कार (विभिन्न विधा पर) देबाक घोषणा कएल गेल अछि, मुदा ओहि सभ विधा आ स्तरपर उत्कृष्ट रचना आ रचनाकारक अभाव सन अछि तथापि पुरस्कार दऽ देल जाइत अछि। तकर पछाति एहि निर्णयपर पक्षपातक आरोप लगैत रहल अछि किएक?
अमरनाथ: अहाँक पीड़ा हम बुझैत छी। वैह पीड़ा हमरो मनमे अछि। एहन-एहन पुरस्कृत पोथी जँ आन-आन भाषामे अनूदित होएत तँ लोक हँसत हमरा सभपर, मैथिली साहित्यपर। तेँ हमर स्पष्ट मंतव्य अछि जे उत्कृष्ट पोथी नहि रहैक तँ उचित थिक जे ओहि वर्ष मैथिलीकेँ पुरस्कार नहि भेटैक।
मुन्नाजी: साहित्य अकादमी पुरस्कारक चयनक आधार की अछि, व्यक्तित्व आ कृतित्व आकि भाय-भैय्यारीमे लिप्त भऽ एकरा परोसि/ बाँटि देल जाइत अछि।
अमरनाथ: बहुलांशमे जे होइत रहलैक अछि, सैह अहाँ कहलहुँ अछि। परंतु से ने उचित अछि आ ने मैथिलीक हितमे अछि। निश्चित रूपसँ लेखकक कृतिपर पुरस्कार भेटबाक चाही। ई ध्यान राखब आवश्यक अछि जे अकादमीक पुरस्कार पुस्तकपर भेटैत छैक। अकादमी ने तँ ‘लाइफ टाइम एचीवमेंट’ पुरस्कार दैत छै आ ने सांत्वना पुरस्कार। एहि सम्बन्धमे साहित्य अकादमीमे मैथिलीक प्रतिनिधि डॉ. विद्यानाथ झा ‘विदित’केँ विशेष साकांक्ष रहबाक चाहियनि।
मुन्नाजी: आ अमरनाथ बाबू अंतमे अपने सँ साहित्य आ अकादमी दुनू अनुभवक आधार पर नवरचनाकारक वास्ते कोनो संदेश चाहब जाहिसँ आगू निश्शन रचना आ रचनाकारे मैथिलीमे उपलब्ध हुअए।
अमरनाथ: अकादमीक अनुभव कोनो नीक नहि अछि। मैथिलीक विकासक सुनियोजित योजनाक प्रारूप नहि बनि सकलैक। तखन संघर्ष करैत छी, ठठै छी, मान-अपमानपर ध्यान नहि दैत छी। तकर परिणाम अछि जे मैथिलीक व्यापक हितमे किछु काज भेल अछि आ किछु काज भविष्यमे होएत। मैथिलीक प्रतिनिधि डॉ. विद्यानाथ झा ‘विदित’क नेतृत्वमे एतबा भेल अछि जे ई आब मुट्ठी भरि लोकक परिक्रमा नहि कऽ विशाल जनसमुदाय आ लेखक बीच ई पहुँचल अछि।
साहित्यिक जीवनक अनुभवसँ हम उत्साहित होइत रहलहुँ अछि। तकर कारण अछि जे पाठकक स्नेह हमर मनकेँ लिखबा लेल प्रेरित करैत रहल अछि। तखन सन्देश! युवा लेखकक प्रति हम आस्थावान छी। आलोचककेँ ध्यानमे राखि कऽ साहित्य नहि लिखबाक चाही आ ने आन भाषा-साहित्यक अनुकरण होएबाक चाही।
युवा लेखककेँ विभिन्न भाषाक महत्वपूर्ण ग्रंथ पढ़बाक चाहियनि, विश्वमे आबि रहल साहित्यक विभिन्न धारासँ परिचित होइत रहबाक चाहियनि आ बीच-बीचमे पर्यटन-परिभ्रमण करैत रहबाक चाहियनि। मुन्ना जी, जे किछु लिखैत छी तकरा आत्मसात कऽ लिखबाक चाही। कथा, कविता, उपन्यास, नाटक अथवा कोनो आन विधाक रचना कल्पित नहि होइत छैक आ ने गढ़ले जाइत छैक। लेखन सेहो ईमानदारी मंगैत छै। क्षमा करब मुन्ना जी, हम उपदेशक नहि बनय चाहै छी, मुदा अहाँक प्रश्ने तेहन छल!
१. भारत भूषण झा- कथा- आत्मबल कथाक शेषांश २.शिव कुमार झा "टिल्लू" विहनि कथा-लेबर पेन ३.मनोज कुमार मंडल- कथा- बेमेल विआह ४.ज्योति- विहनि कथा- मैथिल बियाह ५.मिथिलेश मंडल- कथा- विदेशी बाबू
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भारत भूषण झा कथा-
आत्मबल कथाक शेषांश
रेणुक बात सुिन ललितक हालत और गंभीर भऽ गेलै। जे आइ हमरा लग एकटा पाइ नहि अछि आ ई भिनक बात कऽ रहल छथि। दोसर दिस बाबू जीक बात खूनकेँ खौलौने ललित कहलकै- “ठीक छै जे मर्जी आब अहींक बात करब।”
हौसली बेच बौआकेँ फार्म भरल गेल। ललित घरसँ भिन भऽ गेल। बाबू जीक रूप ओहने तेबर- “रे हमरा तूँ धौस देखबै छेँ हम अपना जीबैत एक धूर जमीन हिस्सा नै देबौ। जो कमा गऽ खो गऽ।”
घरमे दू साए मोन चाउर। मुदा ललित किनि कऽ खाए। दोकानदारो उधारी दै लेल तैयार नै। कारण ई देत कतएसँ। बौआ जे अगहनमे खेतसँ ऑटी आनने रहए वएह धानक चाउर ललित कुटेलक। 25 किलो मुदा ओ चाउर कत्ते दिन। जना तना दिन कटैत गेल एक दिन एकटा रजिस्ट्री रेणु पति ललित नामक, डाकिया लऽ कऽ डाकघरसँ आएल। मुदा ककरो विश्वास नै जे ई ललितबाक छिऐ लेकिन नाम तँ ओकरे रहै पढ़ुआ काका ललितकेँ पुछलकै- “जे देकही तँ ई रजिस्ट्री तोरे छिऔ।” रेणु तँ हमरो पुतौहूकेँ नाम छै मुदा पतिमे तोरे नाम छै। ललितकेँ आश्चर्य भेलै। जे हमर कनियाँकेँ रजिस्ट्री कतएसँ आएल हेतै। कहलियन्हि- “जँ हमर नाम छै तहन ते हमरे हेतै। देखए दिअ।” मुदा हमरा दैसँ पहिने पढ़ुआ काका पढ़लनि आ कहलनि- “ई तँ सेन्ट्रल गोभर्नमेन्टक ज्वाइनिंग लेटर छिऔ।”
ई सुनि ललितकेँ लागल जे कक्को हमरासँ मजाके करै छथि। मुदा पढ़ुआ काका मजाक नै कऽ सकैत छथि। हम हँसैत, विहुसैत रजिस्ट्री लऽ कऽ अंगना पहुँचलहुँ। रेणुसँ पुछलयन्हि- “देखिओ अहाँकेँ तँ नौकरीबला चिट्ठी आबि गेल। ई कोना भेलै।”
सुनिते रेणुक आँखिमे नोर भरि गेलै। आ रूदन स्वरमे बाजए लागलि- “ओ तँ फुदन बौआ, जिनका हम पेपड़मे पढ़लाक वाद कहलयन्हि जे बौआ एकटा हमर काज कऽ देब। ओ कहला कोन काज हम कहलयन्हि जे एकटा पेपड़मे फार्म निकलल छै से हमरा आनि दैतहुँ। ओ आनि देलाह आ ओकरा रजिस्ट्री करबा देलथि।”
चिट्ठी लऽ रेणु ज्वाइन करए गेलि। ओतहुओ हुनका घुसक तगेदा। बेचारा ललित मायुस भऽ डी.एम.केँ अपन सभ दुखरा सुना देलकै। डी.एम. भावुक भऽ ओकर ज्वाइनिंगकेँ स्पेशल ऑडर निकालि ओकर योगदान करबा देलक। आब रेणु ललितकेँ संपतिक अम्बार बौआकेँ विआहक चर्च होमए लागल। एकटा गामक घटक आएल ललित कहलकै- “जे हमरा एक्को करोड़ देब तँ हम अहाँकेँ गाममे कुटमैती नहि करब।”
ललित कोनो काजसँ बाहर गेल रहथि। ओहि बिच लड़कीक पिता ललितक बाबाकेँ मना लेलक आ हुनका बौआक विआहक लेल किछु पाइ सेहो थम्हा देलक। जखन ललित आएल तँ हुनक बाबूजी कहलकनि- “ललित हौ, हम बौआक विआह ठीक कऽ देलिअहेँ। आ हमरा ओ वयना सेहो दऽ देलकऽ हेन।”
ई सुनिते ललितकेँ पाड़ा गरम भऽ गेलै। बाजल- “बाबूजी आबो तँ हमरा अहाँ छोड़ि दिअ। ने हम अहाँक सतरह बिगहामे सँ एक धूर जमीन लेलहुँ आ ने एक्को रूपैआ। जेना तेना अपन जिनगी जीब आ स्थिर भऽ रहल छी। तँ अहाँ हमरा बेचैनीमे डालि रहल छी” जे नै से सभ कहि देलकन्हि। बाबूजी लजाएले ललितकेँ कहलकनि- “हमरासँ गलती भेल हम ओकर टाका आपस कऽ देबै।”
ललित बाजल- “निश्चिते नै तँ तूँ जानह।” कहैत अपन घरमे प्रवेश केलक। ई सभ गप्प रेणु सुनैत रहथि। एक गिलास पानि ललितकेँ दैत बाजलि- “जे पहिने पानि पीबू ठंढ़ाऊ। तहन सभ किछु हेतै। बाबूजी जहन वचन हारि गेल छथिन्ह। तहन अहाँ एतेक आमिल किएक पिने छी। ओहो अहाँक पिते छथि। जेना अहाँ बौआक। हुनकर वेइज्जतीमे अहाँक वेइज्जती नै ऐछ। तँए हमर मानू आ बाबू जीसँ माफी मांगू जा कऽ।”
ललितकेँ रेणुक बात सुनि कऽ आओर टेंसन भेल जाए। बाजल- “ठीक छै तहन पीठ सक्कत कऽ लेब। ओइ गामक बेटी सभ जै गाम जाइ छै ओतए अपन नाम साउसकेँ पिटैएमे करैए। हमर मानू बाबूजी फेर कोनो चालि चलि रहल छथि। अपना सभकेँ उन्नतिकेँ देख।”
रेणु बाजलि- “अरे! जहन बाबूजीकेँ एहने सोच हेतन्हि तँ हम अहाँ की करबै। हमरा सभकेँ अपन बाबू जीक इज्जतक खातीर सभ मंजूर ऐछ।”
ललित बात मानि गेल। बौआक विआह ओहि गाममे भेल आ ललित रेणुक पुतोहू तँ साक्षात लक्ष्मी। गामक आदर्श। रेणु ललितकेँ कहलकनि- “देखिओ, बाबू जीक आशीर्वादसँ अपना सभकेँ सभ किछु पाप्ति भऽ गेल। एकटा पुतोहूवो भगवान देलथि सेहो लक्ष्मीये।”
२
शिव कुमार झा "टिल्लू" 1973- शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,पिताक नामः स्व. काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नामः स्व. चन्द्रकला देवी,जन्म तिथिः 11-12-1973,शिक्षाः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थानः मातृक- मालीपुर मोड़तर, जि. - बेगूसराय, मूलग्रामः ग्राम-पत्रालय - करियन, जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101,संप्रतिः प्रबंधक, संग्रहण,जे. एम. ए. स्टोर्स लि.,मेन रोड, बिस्टुपुर जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधिः वर्ष 1996 सँ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार-प्रसार हेतु डॉ. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न।
विहनि कथा-
लेबर पेन
सालक पहिल दिन। कविजी भाेरेसँ नव वर्ष मनएबाक प्रकियामे लागल छलाह। चौपाड़िपर सँ सिया झाक प्रसिद्ध पेड़ा एक पसेरी आनल गेल। सुधीर कामति नन्दन बाबाक जिरातमे फुलकोबी लगौने छलाह। ओहि खेतक टटका फुलकोबी तीन सेर कीन लेलनि। गामक किछु इष्ट-मित्र सबहक चाह पार्टीक आयोजन करबाक छलनि। कवि जीक नव रूपसँ अर्द्धांगिनी परेशान भऽ कऽ पुछलनि- “पहिने तँ नव वर्षक विरोध करैत छलहुँ, हमरा सबहक लेल नवका साल शक् संवत आ होरी थिक आब की भऽ गेल?”
“चन्द्रकला, एना नै अकचकाऊ, समएक संग हमरो चलऽ पड़त। जखन सभ लोक पहिल जनवरीकेँ स्वीकार कऽ लेलक तँ हम पाछाँ कोना रहब। समएसँ आगाँ नहि जलबाक चाही मुदा बेसी पाछाँ रहब सेहो ठीक नै।”
कवि जीक तर्कक आगाँ श्रीमती गुम्म। दलानपर लोकक जुटान होमय लागल। पेड़ा, पकौड़ीक संग-संग मकयवाड़ी लीफक चाह। रमाश्रय जी, लक्ष्मी चौधरी, बैजू भाय, राधाबाबू, नागो बाबा, भोला साहुजी सन कवि जीक इष्ट-मित्रक संग-संग नवतुरिया पिरही आ किछु समाजक पछातिक लोक सभ सेहो टी पार्टीक आनंद लऽ रहल छलाह। गामक डाॅक्टर यशोदा पाठक दलानक आगाँसँ झटकल जाइत छलाह। कविजी हाक देलनि- “यशोदा भाय, कनेक्शन जलपान कऽ लिअ।” डॉक्टर साहेब कहलनि- “भैया, हम घुुरि कऽ अबैत छी। हरिजन टोलमे सुकेशर मोचीक पुतोहूकेँ लेबर पेन भऽ रहल छन्हि, कनेक्शन जल्दीमे छी।”
लेबर पेनक नाओं सुनिते राधाबाबू विस्मित होइत बजलाह- “कविजी, ई लेबर पेन तँ बुझैत छी जे प्रसव पीड़ाकेँ कहल जाइछ मुदा लेबरक अर्थ होइत ऐछ मजदूर तखन मातृसुखक अनुभूति-पीड़ाकेँ लेबर पेन किअए कहल जाइत ऐछ?”
कविजी फॅसि गेलाह, गुम्म! लक्ष्मी चौधरी बीच-बचाव करैत बजलाह- “घबराउ नै राधकक्का, कोनो एहेन प्रश्न बनबे नै कएल जकर उत्तर कवि जी नहि दऽ सकैत छथि।”
चाहक चुस्की लैत कविजी बजलाह- “अर्थयुगक आधारपर समाजक पाँच गोट वर्ग होइत ऐछ- कुलीन वा सामन्त जैमे समाजक अगिला पॉति रहैत छथि जेना राजनेता, पैघ-पैघ व्यापारी, अधिकारी आदि। दोसर वर्ग श्रमपोषी छैक जैमे कर्मचारी, सीमान्त खेतिहर आदि राखल जा सकैछ। तेसर वर्ग भेल श्रमजीबी- जनिक योजना मात्र एक दिवसीय होइत ऐछ। आजुक दिन कमाएब आ आइ खाएब ओ नै तँ भूत देखैत छथि आ ने भविष्य। चारिम वर्ग होइत ऐछ चाटुकार आ कोढ़ियाक। ऐ वर्गमे पहिल लोकक चमचाक संग-संग शरीरसँ दुरूस्त भिखमंगाकेँ सेहो राखल जाए। पाचम वर्ग हेाइत ऐछ मजबूर वर्ग। ऐ वर्गमे साधन-विहिन अस्वस्थ अपंग आ शिक्षासँ दूर यायावर लोकनि छथि। एे संसारमे व्यथित जीवन मात्र दू वर्गक होइत छन्हि। श्रमजीवी आ मजबूर वर्गक। मजबूर वर्ग तँ कोनो रूपेँ अपन जीवनसँ संतुष्ट रहैत छथि, किएक तँ कोनो विशेष चाह नै छन्हि मुदा श्रमजीवीक जीवन अत्यन्त दु:खमय। जँ कोनो दिन बीमार पड़ि जेताह तँ अगिला दिन परिवारमे उपवास। अपने दुनू परानी एकादशी मानि मात्र जल ग्रहन कऽ कहुनो रैन काटि सकैत छथि मुदा नेनाक लेल.... कोनो साधन नै।”
“अंग्रेज बड़ बुद्धिजीवी जाति होइत ऐछ। भारत वर्ष सन गरीब राष्ट्रमे राज केलक। एक समए छल जे ब्रीटिश गन्ध लागब स्वाभाविक। श्रमजीवीक व्यथा देख क्रूर अंग्रेजी आत्मा निश्चित पधिल गेल हेतैक। तँए संसारक सभसँ पैघ दर्द प्रसव पीड़ाकेँ श्रमजीवीक पीड़ासँ जोड़ी अंग्रेज 'लेबर पेन'क आविष्कार केलक। प्रसव वेदना संभवत: सभसँ बेसी क्लिष्ट वेदना थिक। संभवत: ऐ दुआरे किएक तँ हमहू पुरूष छी। ठीक ओहिना श्रमजीवीक पीड़ा मार्मिक होइत ऐछ। जीवन भरि अगिला दिनक आशमे रैन बिता लैत छथि- श्रमजीवी। ऐ दुनू व्यथामे अनुभूति समाने होइत ऐछ। अन्तर ऐछ। तँ समए कालक। मातृत्व वेदना मात्र क्षणिक मुदा श्रमजीवीक वेदना जीवन पर्यन्त।”
सभ लोक गुम्म मुदा कविजी बजैत-बजैत भाव विभोर भऽ गेलाह।
हमहूँ ब्रिटिश नीतिक विरोधी छी, हमरा सबहक देशकेँ ओ बर्वाद कऽ देलक मुदा किछु एहेन उपहार सेहो देने गेल जे देश कालक लेल अनिवार्य होइत छैक ओहिमे सँ एक अछि- जीवन यापनक कला।, तँए ने हमरा सन स्वदेशी लोक सोहो सालक पहिल दिनकेँ आइ आत्मसात कऽ लेलहुँ। राधा बाबू अहाँ एहि जन्ममे लेवर पेनक आनंद नहि लऽ सकैत छी, किएक तँ अहाँ नहि श्रमजीवी छी आ ने नारी। तँए आग्रह जे अंग्रेजे जकाँ लेवर पेन अर्थात श्रमजीवीक व्यथाक पर ध्यान राखल जाए नहि तँ मिथिलाक गाम-गामसँ रोटीक आशामे श्रमक पूर्ण पलायन अवश्यंभावी अछि। कदाचित जौं एना भऽ गेल तँ प्रसव वेदनाकेँ अपन गाओं समाजमे कोनो आन नाओं ताकए पड़त। एकटा कविता तँ अपने हमरा मुखसँ पहिनहुँ सुनने हएब-
श्रमक कोन मानि जतऽ बुद्धिक विलास छै,
पेड़ा दलाल गाल श्रमक पेट घास छै।।
नागो बाबा जोरसँ ठहक्का मारैत बाजि उठलाह- “कवि जी पेड़ा खुआ कऽ सूदि सहित असूलि लेलनि।”
सभ आगंतुक लोकनि एक स्वरसँ कवि जीक तर्ककेँ मानि चाहक दोसर खेपक आनंद उठबए लगलाह।
३
मनोज कुमार मंडल कथा-
बेमेल विआह
जाड़क मास छल। चारि-पाँच दिनसँ सूरज निपत्ता भऽ गेल रहए। आइ मेघ कने फरिच्छ भेल। पह फटने सूरज अप्पन उपस्थिति दर्ज करौलन्हि। बुझनुक काका एकटा चटकुनी बिछा दरबज्जाक आगू बैसल छलाह आ अखबार पढ़ैत छलाह। कएक बेर नै कएक बेर अखबारकेँ उल्टा-पुल्टा कऽ पढ़लाह। अखबार पढ़ैत-पढ़ैत मन जेना उचटि गेल रहनि। चश्मा खोलि खोलीमे रखलन्हि। आब बुझनुक काका विचारक दुनियाँमे डुबि गेलाह। मनक बेग तँ बहुत तेज होइत अछि। कनिये कालमे नाना प्रकारक विचार हुनका मनमे सिनेमाक रिल जकाँ अबैत आ विलुप्त भऽ जनि। संजोगसँ मुनल आँखि खूजलन्हि। हुनक नजरि जमुनापर पड़लनि।
जमुना फूल तोड़ए अप्पन हाथ बढ़ौलन्हि। पहिने ओ गुलाब तोड़लनि तखन चम्पा, चमेली बेली, कनैल तीरा सभ फूल तोड़ि अप्पन पितरिया फूलडाली भरि बेलक गाछ दिस चललि।
बुझनुक काकाक नजरि जमुनाक कोमल उज्जर धप-धप हाथ आ गुलाब फूलपर टिकलन्हि। एक बेर जमुनाक उज्जर माँग आ उज्जर साड़ीमे शिष्ट नारी शरीरक लिप्टल काया देखलन्हि। जमुना आगू बढ़ि गेलीह। कितु बुझनुक काका एकटकी लगा हुनका दिस तकैते रहि गेलाह। किछु कालक बाद हुनक धियान टूटल। ओ सोचए लगलाह।
आइ बुझनुक काकाक अप्पन अतीत मुन पड़ल लगलन्हि। बुझनुक काका उपहार स्वरूप जमुनाकेँ गुलाब देने रहथिन। जमुना मुस्कुरा गुलाब तँ लऽ लगलन्हि किंतु उत्तरमे किछु नै कहने रहिएनि। बुझनुक काका जमुनाक ऐ व्यवहारसँ खिन्न रहए लागल छलाह। एक दिन जमुनाकेँ संस्कृतक पाठशालासँ घूमैतकाल भालसरीक गाछ तर बुझनुक काका भेँट भेल रहनि। ओ बुझनुक काकाक आगू ठाढ़ भऽ भावुक भऽ कहलि- “नारी तँ निमुधन छी। माए-बाप जै खुट्टासँ बान्हि दैत ओ भरि जीवन बान्हल रहत। हम्मर आग्रह जे कायाक सुन्दरताकेँ छोड़ि अप्पन बैचारिक सुन्दरताक आशाकेँ जगाबी।”
बुझनुक काका तैकते रहि गेल छलाह किंतु जमुना आगू बढ़ि गेल छलीह।
क्रमश:
४
ज्योति जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
विहनि कथा
मैथिल बियाह :
रित्सिका जीक परिवारके अमेरिका मे एक समृद्ध मैथिल परिवारमे गिनती छलैन ।मुख्य शहर सऽ कनिये दूर पर सबअबर्स्स ईलाका मे अपन बड़का टा मकान लेने छली। घरमे पति आ दू टा बच्चा छलैन। पड़ोसमे विश्वक सबदिसका लोक छलैन जाहिमे सबसऽ बेसी सम्पर्क बगलके अमेरिकी परिवार सऽ छलैन। रित्सिका जीके घर परिवारक देखरेख के बाद जे समय भेटै छलैन ताहिमे इवेण्ट मैनेजमेंटक के काज करैत छलैथ।ओ मुख्य रूपे मैथिर्ल उपनयन. विवाह. कोजगरा आदि के प््राबन्ध कराबैत छलैथ मुदा कखनो कऽअमेरिकन बियाह सेहो सम्हारैत छलैथ। अच्छा. त हुन्कर गोरकी अमेरिकन पड़ोसी कार्ला।कार्ला कुनो तरहे रित्सिकाके पिछड़ल साबित करैमे लागल रहैत छलैथ।मुदा रित्सिका तेहेन मुँहफट छलखिन जे मुँह चुप करा दैत छलखिन। कार्लाके पति के किछु मैथिल संगी सेहो रहनि। एकदिन कार्ला एकटा मैथिल ब्याहक भोज मे गेली।ओतय हुन्का रित्सिका भेटेलखिन।ओ परिहास करैत बजलीह. “की कहू. ब्याह के नामपर अतय तऽ मानू कोनो पूजा पाठ होय।आ भोज मे कनिया बर सऽ बेसी तऽ आन सब आह्लादित छथि। आने आन नाचिगाबि रहल अछि ।कनिया बर की मजा लेता?”
रित्सिका बजली. “किये. अहॉं सबमे ब्याह मौन रूपमे मनाओल जायत अछि? अहूँ सब विवाह मे धार्मिक स्थल चर्चमे अथवा पादरी के उपस्थिति मे करैत छी।अहँू सबमे विवाह मे पार्टी होयत अछि. परिवारक जुटान होयत अछि।बल्कि अहॉं सबमे तऽ बेसीतर पार्टीयो के तैयारी कनिया बर अपन मोने करैत छथि। एनामे ओ सब कोन अपन ब्याहमे बेसी मजा लैत हेता।पूरा ब्याहमे यैह चिन्ता रहैत हेतैन जे विवाहक समारोह ठीक सऽ सम्पन्न भऽ जाय।अपन सार्जसज्जा के ध्यान आ आत्मविश्वास जतेक मैथिल आ दक्षिणी एशियन महिला मे अछि तेहेन तऽ आन सबमे दूर्र दूर तक नहिं अछि।हमरा सबमे बियाहमे पूरा परिवार सऽ सम्बन्ध जोरल जायत अछि।ई एक पारिवारिक समारोह होयत अछि।कन्यादान एक पुण्य कार्य मानल जायत छहि। बियाहक साल भरि पाबैन होयत अछि जाहिमे पूरा परिवार सम्मिलित होयत अछि आ कनिया बर के सेहो मनोरंजन होयत छैन।”
कार्र्ला “आर कनिया बर के अपन हेलमेल बढ़ाबयके कुनो अवसर नहिं भेटै छैन।”
रित्सिर्का “बियाह दुरागमन मिलाक सब पाबैन मे मुश्किल सऽ एक महीना जायत अछि। अहि के अतिरिक्त पूरा समय अपना लेल रहैत अछि।”
कार्र्ला “अञ्चिन्हार लोक सब कोना बियाह कऽ लैत छथि”
रित्सिर्का “अंचिन्हार सऽ कहियो ब्याह नहिं होयत छहि।हँ. पहचान परिवारक माध्यम सऽ होयत छहि।परिवार आ समाज के मान दैत अपन निजी खुशी देखनाइये मैथिल ब्याह अछि।”
कार्ला ठीके देखने छलीजे कोना बुजुर्ग सऽ पूर्छि पूछि बियाहक विधि पूरा कैयल गेल छल।भोजमे सेहो की पुरूष आ की महिला. सब सुसज्जित छलथि।आन सिंगार संगे पारम्परिक परिधान. बिन्दी. चूड़ि . गहना आदि के सज्जा मे महिला सब चमकि रहल छलैथ। फेर हााथक मेंहदी आ केशक सज्जा आर अद्भुत छल। ओहि तुलनामे हुन्कर महग डिज़ायनर ड्रेस बड फीका लागैत छलैन।
खसैत आत्मविश्वास के सम्हारैत कार्ला अपन जिद्दी स्वभाव के कारण बजली. “हम कनिया के अपमान नहिं करय चाहैत छलहुँ तैं हुन्कासऽ बेसी सुन्दर नहिं लागय चाहै छलहुँ।”
रित्सिर्का “तऽ अहॉं मैथिल सुन्दरता के ललकारि रहल छी जतय सीता देवीेक ब्याह लेल बड़का स्वयंवर रचल गेल रहैन। अहुना भारतीय मॉडेल सब विश्वसुन्दरी के खिताब जीति रहल छथि।”
कार्ला अपन मोबाएल कॉल रिसिव करयके बहन्ने कात आबि गेली।
५
मिथिलेश मंडल
कथा-
विदेशी बाबू
अमेरिकासँ चलला विदेशी बाबू। बाटमे सोचैत रहथि- मिथिला केहेन ऐछ घुमि कऽ देख ली। सत्तर-पचहत्तर सालक भऽ गेलौं पाकल आम जकाँ छी कखन छी कखन नै छी तेकर कोनो ठीन नै। मधुबनी पहुँचला ताबतमे कनियाँ फोन केलकनि- “यौ हमर छोटकी वहीन मधुबनीयेमे रहैए।”
पता करैत हुनका घरपर पहुँचला। हुनकर सारि घरपर छलि मुदा सारहु नै। परिचए दैत बैसला तखन सारहू दऽ सािरकेँ पुछलखिन- “सारहू कतए गेलाहेँ।”
चाह हाथमे दैत सारि बजलि- “ताबे अहाँ चाह पीबू हम बजौने अबै छिएनि।”
तखने पैखाना तरफसँ सारहू अबिते छलाह पत्नीकेँ देख पुछलखिन- “की बात?”
“बड़का पाहुन ऐलाहेँ चलू।”
“घरेपर तँ जाइ छी। ताबे अहाँ बहरू अबै छी।”
घरपर ऐला सारहूमे सारहू कुशल-छेम भेल। हाथमहक लोटा देख बड़का सारहू कहलकनि- “पहिने लोटा मटिया लिअ।”
ई गप्प सुनिते कलपर जा लोटा मटियेला। हाथ-पएर धोय लगमे आबि बैसला। फेरसँ चाहक आग्रह केलनि आ विशेष कुशल समाचार हेतू पुछलखिन- “केमहर सुरूज उगले यौ सारहू जे अपने हमरा ऐठाम.....।”
बड़का सारहू बजला- “यौ सारहू हमरा मोन भेल जे मिथिला घुमि कऽ ली। सत्तर-पचहत्तर बरख भऽ गेल। कखैन छी कखैन नै। कन्नी अहाँ संग दिअ घुमैमे।”
छोटका सारहू अपन परेसानीपर सोचैत बजला- “यौ सारहू अहाँकेँ मिथिला घुमाएब तँ हमर फर्ज भऽ जाइत ऐछ। मुदा अहाँ तँ करोड़पति छी आ हम रोज बोनि करै छी आ रोज खाइ छी। मुदा चलू जहाँ धरि होइए चलै छी। मिथिला तँ बहु दिन लगत घुमैमे।”
छोटका सारहूक गप्पक भावकेँ जेना बुझितो धियान नै देलखिन सटाक दन कहि देलखिन- “चलू, चलू।”
एकसँ दू गाम घुमला तखन करीब दू बजैत रहए। बड़का सारहू सोचला जे चारि घंटाक वाद तँ साँझ पड़ि जाएत। कत्त रहब। मने-मन सोचतो रहथि आ चलितो रहथि। एते धरि सोचि लेलथि जे कतौ नीक ठीम रहब। ताबे धनुक टोली पार करैत रहथि। मुदा एक्कोटा मकान नै देख सोचैत रहािथ जे अगिला टोलमे रहब कोनो मकानबला घरमे। ताबे दक्षिणवारि टोल पहुँच गेला जै टोलमे खाली मकाने-मकान रहए। मकान देख तँ खुश होथि मुदा सभ मकानमे कदीमा लटकल रहए। जे देख हिनक मन नै भाबनि। अगिला घर माने गामक अंतीम भागमे एकटा फुसक घर रहै जै चारपर सीमक लत्ती पसरल आ घौदे-घौदे सीम फरल। छोटका सारहू कहलकनि- “आब साँझ पड़ि गेल अगिला गाम चलब आकि कतौ रहि जाएब?”
बड़का सारहू बजला- “सहए तकतान करै छी हमहूँ जे कतए रहब। हमर मोन कहैए जे अही घरवारी ऐठाम रहू।”
“ई घर छिऐ छितन मल्लीकक, ऐठाम कन्ना रहब। कहितौं तँ पाछूए रहि जेतौं। एत्त हम किन्नहुँ नै रहब।”
१.डा० अभयधारी सिंह- अभिनव वर्ष २.जगदीश प्रसाद मंडल- मैथिली उपन्यास साहित्यमे ग्रामीण चित्रण १
डा० अभयधारी सिंह सम्पादक- जाह्नवी संस्कृत ई जर्नल
पता- इतिहास विभाग, निर्मल्ली कालेज,
निर्मल्ली, बिहार
अभिनव वर्ष
अभिनव वर्ष केर स्वागत करबाक हेतु जोर-शोर सँऽ तैयारी चलि रहल अछि। कोई अपन छुट्टी लय अपन परिवारक संग मनपसन्द पर्यटनस्थल कऽ लेल रुख कय रहल अछि तऽ कोई मित्रमण्डली क संग कार्यक्रम तय कय रहल अछि तऽ ओतहि कोई घरे मे भोजन आ मनोरंजन केर साधन जुटा रहल अछि।
एतय एकटा जिज्ञासा होइत अछि जे एहि नूतन वर्ष केर इतिहास की अछि? 1 जनवरिए कें ई कियाक मनाओल जाइत अछि? की ई भारतीय वैशिष्ट्य के परिलक्षित करैत अछि? एहने बहुतो जिज्ञासा केर प्रशमन हेतु ई लेख प्रस्तुत अछि।
भारतवर्ष मे इस्वी संवत केर प्रचलन अंग्रेज शासक द्वारा वर्ष १७५२ मे शुरू कयल गेल। एकर संबन्ध ईसा मसीह सँऽ अछि जे रोम केर सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म केर तीन वर्ष बादक कालावधि सँ जोडि प्रचलन मे आनल गेल।
भारतवर्ष मे स्वतन्त्रता केर उपरान्त १९५२ मे वैज्ञानिक आ औद्योगिक परिषद द्वारा पंचांग सुधार समिती कऽ गठन भेल जे अपन रिपोर्ट १९५५ मे दैत विक्रमी संवत के स्वीकार करबाक सिफारिश कयलक। मुदा तत्कालीन प्रधानमन्त्री नेहरू केर आग्रह पर ग्रेगेरियन कलेण्डरे सरकारी कार्य निमित्त स्वीकृत भय सकल। ई २२ मार्च १९५७ सँ ई राष्ट्रीय कैलेण्डर केर रूप लेलक।
की एकर राष्ट्रीय कैलेण्डर केर रूप लेब समुचित अछि?
प्राचीनता-
एकर उत्तर देबा सँ पूर्व अन्य कैलेण्डर केर प्राचीनता देख ली-
ग्रेगेरियन- लगभग २००० वर्ष पुरान
यूनानक काल गणना - लगभग ३५७९ वर्ष पुरान
रोमक काल गणना - लगभग २७५६ वर्ष पुरान
यहूदीक काल गणना - लगभग ५७६७ वर्ष पुरान
मिस्त्रक काल गणना - लगभग २८६७० वर्ष पुरान
पारसी काल गणना - लगभग १९८८७४ वर्ष पुरान
चीनक काल गणना - लगभग ९६००२३०४ वर्ष पुरान
भारतक काल गणना - लगभग १ अरब ९७ करोड ४९ लाख १०९ वर्ष पुरान (पृथ्वी केर आयु) जेकर नामकरण चक्रवर्ती राजा विक्रम केर नाम पर
धर्मकेर दृष्टि सँ-
ईस्वी संवत- ईसाइ
हिजरी संवत- मुसलमान
विक्रमी संवत- कोनो धर्मविशेष से नहीं अपितु प्रकृति एवं खगोल सिद्धन्त से सम्बद्ध
उक्त परिप्रेक्ष्य मे ई कहल जा सकैत अछि जे ईस्वी संवत भारतवर्ष हेतु उपयुक्त कैलेण्डर नहिं। एकरे पृष्ठभूमि मे ई तर्क देल जा सकैत अछि-
सांविधानिक दृष्ट्या भारत पंथनिरपेक्ष राष्ट्र अछि एतय कोनो धर्मविशेष सँऽ सम्बद्ध कैलेण्डर केर स्थान पर पंथनिरपेक्ष कैलेण्डर होयब विधिसम्मत।
प्राचीनता केर दृष्टि सँऽ सेहो भारतीय गणना उपयुक्त
अनेक भारतीय परम्परा सँऽ जुडल तथ्य भारतीय काल गणना सँऽ जुडल अछि।
प्राकृतिक दृष्टि सँ भारतीय गणना उपयुक्त अछि कियाक तऽ एहि मे वर्षक प्रारंभ चैत्र (वसन्त) होइत अछि।
बहुत रास तथ्य एहि सँऽ जुडल अछि जे राष्ट्रक प्रति गौरव केर अनुभूति करवैत अछि। अस्तु नूतनवर्ष के रूप मे भारतीय सांस्कृतिक विरासत विक्रम संवत के अनुगम सर्वथा उपयुक्त।
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