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जगदीश प्रसाद मंडल 1947- गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.।कथाकार (गामक जिनगी-कथा संग्रह आ तरेगण- बाल-प्रेरक लघुकथा संग्रह), नाटककार(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यासकार(मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत- उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
मैथिली उपन्यास साहित्यमे ग्रामीण चित्रण-
साहित्यक आधार मनुष्यक जिनगी होइछ। मनुष्येक जिनगीक नींवपर भाषा साहित्य ठाढ़ आ सुदृढ़ बनैत अछि। जे मनुष्यकेँ जीवैक कला सिखबैत अछि। गद्य-साहित्यक विधामे उपन्यासो छी। जाहि नींवपर साहित्यक भवन ठाढ़ रहैत अछि ओ माटिक निच्चाँ दाबल रहैत अछि। जीवन परमात्माक सृष्टि छी तेँ अनन्त-अगम्य अछि। जहन कि साहित्य मनुष्यक सृष्टि होइत तँए सुबोध-सुगम आ मर्यादित होइत अछि। एहि जगतमे मनुष्य जे किछु सत्य आ सुन्दर पौलक आ पाबियो रहल अछि वहए साहित्य छी। ओना साहित्य समाजक दर्पण कहल जाइत अछि मुदा, मनुष्यक अएना आ प्राकृतिक अएनामे अन्तर अछि। प्राकृतिक अएना वस्तुक बाहरी रूप देखवैत जहन कि मनुष्यक अएनाकेँ दोहरी रूप होइत अछि। जाहिसँ बाहरी आ भीतरी दुनू रूप देखैत अछि। एहिठामक (मिथिलाक) चिन्तनधारामे, प्रचलित दार्शनिक चिन्तनधारासँ भिन्न किछु एहेन विशेषता सन्निहित अछि जे अपन अलग पहचान बनौने अछि। जाहि आधारपर साहित्यकेँ दीप (ज्योति) कहब अधिक उपयुक्त हएत।
उच्च कोटिक साहित्यिक सृजन लेल यथार्थ आ आदर्शक समावेश आवश्यक अछि। जकरा आदर्शोन्मुख-यथार्थवाद कहल जा सकैछ। अगर यथार्थवाद आँखि खोलैत अछि तँ आदर्शवाद उठा कऽ मनोरम स्थानपर पहुँचबैत अछि। चरित्रकेँ उत्कृष्ट आ आदर्श बनेबा लेल जरूरी नहि जे ओ निरदोसे हुअए। एहि जटिल संसारमे, जाहिमे छोटसँ छोट आ पैघसँ पैघ समस्या लधलो अछि आ दिन प्रति दिन जन्मो लैत अछि। ताहिठाम निरदोस चित्रणक निर्माण कठिन अछि। महानसँ महान पुरूषमे किछु नहि किछु कमजोरी रहितहि छन्हि, जेकरा निखारब आगूक लेल महत्वपूर्ण अछि, तँए अनुचित नहि। वएह कमजोरीक सुधार मनुष्य बनवैत अछि। जे उपन्यासक मुख्य बन्दु छी। साहित्यक मुख्य अंग आदर्श छी जाहिसँ रचना कलाक पूर्ति होइत अछि।
आदिकाले सँ आदिवासिक रूपमे पनपैत मिथिलाक समाज आइक विकसित समाजक सीढ़ी धरि पहुँचल अछि। जंगली जीवनसँ लऽ कऽ सुसभ्य जिनगी धरिक इतिहास मिथिलाक भूमिमे चंदनक गाछ सदृश्य दुनियाँक वातावरणमे अपन महमही बिलहैत रहल आ अखनो बिलहैक सामर्थ रखैत अछि। जे हमरा सबहक धरोहर छी तँए बचा कऽ राखब सभसँ पैघ दायित्व बनैत अछि। जिनगीक आवश्यकता आ उत्पादन करैक जते शक्ति छलनि ओहि अनुकूल जिनगी बना सामंजस्यसँ सभ मिलि-जुलि अखन धरि रहला अछि। आगू बढ़ाएव आइक आवश्यकता छी। जाहि समाजमे अखनो बरहवरना (बारह-वर्ण) भोज, बरहवरना बरियाती (विवाहमे) बरहवरना कठिआरीक (जिनगीक अंतिम क्रिया) चलैन अछि, कि ओहि समाजकेँ तोड़ि सासु-पुतोहू, पिता-पुत्रक संबंधकेँ माटिक बरतन जकाँ फोड़ि-फाड़ि िदअए। जाहि समाजक बीच सभ संग मिलि पावनि-तिहार, धार्मिक स्थानक निर्माण केलनि, िक ओकरा नेस्त-नाबूद कऽ दिअए?
ओना मिथिलाक दुर्भाग्य कही आकि देशक दुर्भाग्य, साठि बर्ख पूर्वसँ लऽ कऽ हजारो बर्ख पूर्व धरि परतंत्र रहल। परतंत्रताक जिनगी केहन होइ छै, कहब जरूरी नहि। ओना जाहि रूपक विदेशी प्रभाव आन-आन क्षेत्रमे पड़ल ओहिसँ भिन्न मिथिलांचल प्रभावित भेल। अदौसँ अबैत वैदिक ढाँचामे सजल समाज अखनो धरि, एते दिनक गुलामीक उपरान्तो सजल अछि। मुदा भूमण्डलीकरणक प्रभाव जते तेजीसँ प्रभावित कऽ रहल अछि ओहिसँ बँचैक लेल गंभीर सोचक जरूरत अछि। जँ से नहि हएत तँ मिथिलाक बदसुरत दृश्य सामने नचए लगत।
मिथिलाक संबंध जते पूरबी प्रान्त बंगाल (पछिम बंगाल सहित बंगलादेश) आसाम (मेघालय सहित आसाम) आ नेपालक तराइ इलाकासँ रहल ओते पछिमी आ दछिनी प्रान्तसँ नहि रहल। घनगर अबादी होइबला इलाका रहने मिथिलाक बोनिहार (श्रमिक) बोइन करए नेपाल, आसाम आ बंगाल जाइत रहल अछि। पटुआ काटब, धोअब आ धान रोपब-काटब मुख्य काज रहल। जाहिसँ संग-संग रहैक, खाइ-पीवैक, नचै-गबैक अवसर भेटल। कला-संस्कृतिमे मिश्रण भेल। जाहिसँ एक-दोसराक जिनगी मिलैत-जुलैत रहल अछि।
आजुक संस्थागत शिक्षण व्यवस्थाक सदृश्य तँ संस्था कम छल मुदा पूर्वहिसँ गुरूकूल शिक्षण व्यवस्थाक चलैन आबि रहल छल। विदेशी शासकक संग भाषा-साहित्य सेहो आएल। सामाजिक व्यवस्थाक मजबूतीक चलैत ओ ओते तेजीसँ आगू नहि बढ़ि सकल जते तेजीसँ बढ़क चाहिऐक। ओना राज-काजमे अपन स्थान बना लेलक। जनसंख्याक (मिथिलाक) अनुपातमे पढ़ै-लिखैक व्यवस्था नगण्य छल। कारण छल अखुनका जकाँ ने पढ़ै-लिखैक एते साधन छल आ ने पढ़ैक आवश्यकता बुझैत छल जीवैक लूरि सीखि लेब प्रमुख्य छल। जे परिवार (माए-बाप) सँ भेटि जाइत छलैक। किछु एहनो काज (लूरि) छलैक जे समाजोसँ भेटैत छलैक। जाहिसँ स्पष्ट रूपे दू भागमे विभाजित छल। पढ़ल-लिखल लोकक समाज आ बिनु पढ़ल-लिखल उत्पादक समाज। मुदा समाज हुनके (पढ़ल-लिखल) सबहक देखाओल रास्तासँ चलैत रहल। पढ़ल-लिखल लोकक बीच संस्कृत आ बिनु पढ़ल-लिखल लोकक बीच अपन बोली (जे वादमे भाषा बनल) चलैत छल। नव-नव शब्दक जन्म सेहो होइत छल। वैदिक संस्कृत सेहो जनभाषाक नगीचे छल मुदा धीरे-धीरे परिनिष्ठित बनैत-बनैत दूर हटैत गेल। जाहिसँ विशाल जन-समूह संस्कृतसँ दूर भऽ गेल। जेकर प्रभाव जन-मानसक जीवनक अानो-आनो अंगपर पड़ल। कला-संस्कृतपर सेहो पड़ल। जाहिसँ लोक संस्कृत सेहो पनपल। संस्कृत समाजोन्मुखी नहि भऽ परिवारोन्मुखी हुअए लगल। समाजक बीच पालि (प्राकृत) भाषाक जन्म भेल। समाज-सुधारक आ धार्मिक सम्प्रदायिक जनमानसक बीच पालि भाषाक प्रयोग केलनि। एहि रूपे संस्कृतसँ पािल, अपभ्रंश होइत आगू मुँहे ससरल। अपभ्रंशसँ मागधी आ मागधीसँ बिहारी, उड़िया, बंग्ला आ असमिया भाषाक विकास भेल।
बिहारी भाषाक अन्तर्गत भोजपुरी, मगही आ मैथिलीक विकास भेल। बिहारक मैिथली भाषा क्षेकसँ पछिम उत्तर-प्रदेशक पूवरिया भाग धरि भोजपुरी भाषा बढ़ल। दछिन बिहार (गंगासँ दछिन) मगही आ गंगासँ उत्तर नेपालक तराइ धरि मैथिलीक विकास भेल। ओना भाषाक संबंधमे कहल गेल अिछ जे- “चारि कोसपर पानी बदले आठ कोसपर बाणी।” बिहारक तीनू भाषा क्षेत्रक अन्तर्गत क्षेत्रीय बोली सेहो पनपैत रहल अछि।
गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानक बीच बसल िबहार, बंगाल आ आसामक बीच माटि-पानि आ जलवायुक (किछु विषमता छोड़ि) समता सेहो अछि। समतल भूमि आ एकरंगाह जलवायु रहने खेती-पथारी, उपजा-बाड़ीमे सेहो समता अछि। धान सन प्रमुख अन्न तीनू राज्यक मुख्य उपज छी। एक रंगाह उपजा-बाड़ी आ खेतीक लूरिसँ खेतिहरक एकरंगाह जिनगी बनल। खान-पान, आचार-विचार चालि-ढालि, कला-संस्कृतमे एकरूपता आएल। मुदा प्राकृतिक प्रकोप आ व्यापारिक अनुकूल भेने बंगाल आ मिथिलाक दूरी बढ़ौलक। जाहिठाम मिथिला क्षेत्र पोखरिक पानि जकाँ असथिर (कहियो काल पैघ भूमकम आ अन्हर-तुफान होइत) बनल रहल ताहिठाम बंगाल प्राकृतिक प्रकोपसँ अधिक प्रभावित होइत रहल अछि। व्यापारिक अनुकूलता (समुद्री मार्गसँ) सँ वेदेशीक प्रभाव सेहो बढ़ल। कोनो भाषा-साहित्य ओहिठामक जिनगीसँ प्रभावित होइत। एहि दृष्टिसँ जेहन उर्वर भूमि बंगला साहित्यकेँ भेटल ओ मैथिलीकेँ नहि भेटल। विदेशी कला-संस्कृतक प्रभाव जते बंगालपर पड़ल ओते बिहारपर नहि पड़ल।
ओना मिथिलांचलक प्राकृतिक प्रकोप आ विदेशी शासनसँ ओते प्रभावित नहि भेल जते बंगाल भेल। मुदा अनुकूल जलवायु रहने मिथिलांचलमे मनुष्यक बाढ़ि सभ दिनसँ रहल। जाहिसँ जनसंख्याक भार सभ दिन रहल। सामंतीक कुव्यवस्था आ जनसंख्याक भारसँ मिथिलांचल गरीबीक जालमे सभ दिन फँसल रहल। जाहिसँ कला साहित्य, संस्कृति सभ किछु प्रभावित होइत रहल। समाजक स्थितिकेँ आरो भयावह बनबैमे जातीय आ साम्प्रदायिक योगदान भरपूर रहल। टुकड़ी-टुकड़ीमे समाज विभाजित भऽ गेल। जेकर प्रभाव कला-संस्कृतपर सेहो नीक-नहाँति पड़ल अछि।
अर्द्ध-मागधीसँ निकलल मैथिली तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दीमे ज्योतिरीश्वर आ किछु पछाति विद्यापतिक रचनासँ प्रारंभ भेल। लोकक कंठ-कंठमे विद्यापति समाए अखनो गाबि रहला अछि। ओना विद्यापति संस्कृत भाषाक राजपंडित छलाह मुदा समाजक जनभाषा सेहो जनैत छलाह। जाहिसँ संस्कृत-मैथिलीक संग अवहट्ठ (जनभाषा)मे ‘कीर्तिलता आ कीर्तिपताका’ सेहो लिखि कहलनि- “सक्कय वाणी बहुअन भावय” उन्नैसवीं शताब्दीसँ पूर्व धरि साहित्य सृजन कवितेमे होइत आवि रहल छल। आने-आने भाषा जकाँ मैथिली गद्यक विकास सेहो पछाति भेल। साहित्य सृजन मूलत: गद्य आ पद्यमे होइत। गद्यक चरम उपन्यास छी तहिना पद्यक महाकाव्य।
साहित्यक आने विधा जकाँ उपन्यासो छी। सामाजिक परिस्थितिक दृष्टिसँ मैथिली उपन्यासकेँ १९६०ई.सँ पूर्व आ साठिक पछातिकेँ दू भागमे विभाजित कए आगू बढ़ैत छी। साठिक विभाजन रेखाक पाछु देशक आजादी, ढहैत राजा-रजवाड़ आ भूमि-आन्दोलन प्रमुख कारण रहल अछि। साठि ईस्वीसँ पूर्व मैथिलीमे निम्न-लिखित उपन्यासक सृजन भऽ चुकल छल। ‘िनर्दयी सासु’ (१९१४), शशिकला (१९१५), पूर्ण विवाह (१९२६) दुरागमन रहस्य (१९४६), कलयुगी सन्यासी (१९२१) रामेश्वर (१९१५), सुमति (१९१८), मनुष्यक मोल (१९२४) चन्द्रग्रहन (१९३३) कन्यादान (१९३३), सोन्दयोपासनक पुरस्कार (१९३८), सुशीला (१९४३) असहाया जाया (१९४५), जैबार (१९४६) पारो (१९४६) नवतुरिया (१९५६), कुमार (१९४६), भलमानुस (१९४७), कला (१९४६), विकास (१९४६), चन्द्रकला (१९५०), प्रतिमा (१९५०), मधुश्रावनी (१९५६) वीरकन्या (१९५०), विदागरी (१९५०), अनलपथ (१९५४), विद्यापति (१९६०), कृष्णहत्या (१९५७), रत्नहार (१९५७), आन्दोलन (१९५८), दुर्वाक्षत (१९५८), आदिकथा (१९५८), चानोदय (१९५९), बिहाड़िपात-पाथर (१९६०), दुरागमन (१९४५), चामुन्डा (१९३३), मालती-माधव (१९३५)
आजुक उपन्यास कलाक दृष्टिसँ भलेहीं उपरलिखित सभ उपन्यासकेँ सफले नहि कहब मुदा एहि बातसँ इनकारो करब जे ओहि उपन्यासकार सबहक संगे जेहन सामाजिक परिस्थिति छलनि ओहि अनुकूल नहि अछि। हमरा सभकेँ एहि बातक सदति ध्यान राखए पड़त जे मैथिली भाषा मिथिला भूमिसँ जन्म नेने अछि आ अखनो जीवित अछि। पुरान भाषा मैथिली रहितहुँ आइ धरि राजभाषाक रूपमे राज-दरवार नहि पहुँचल, जे अवसर आइ भेटल, ओ प्रमाणित करैत अछि जे हम जीवित भाषा छी। दुनियाँ अनेको एहेन राजभाषा अछि जे मिथिला क्षेत्र आ मैथिली भाषासँ छोट अछि।
बीसवीं शताब्दीक पूर्वाद्धसँ आरंभ भेल उपन्यास साहित्य कखनो कुदैत तँ कखनो ठमकि-ठमकि चलि अखनो चलि रहल अछि। जे माटि-पानि बंगला, असामी आ उड़िया भाषा-साहित्यकेँ भेटिलै से मैथिलीकेँ नहि भेटि सकलै तँए जँ ओहि सभ साहित्यसँ पछुआएल तँ एहिमे आश्चर्य की? ओना साठिक दशकमे मिथिलो समाजमे मोड़ आएल मुदा साहित्य ठमकले रहि गेल। उपन्यास साहित्यक विषए-वस्तुमे बढ़ाेत्तरी अवश्य भेल मुदा जाहि रूपे होएवाक चाही से नहि भेल। जिनगीक मुख्य समस्या साहित्यक गौण रूपमे आ गौण समस्या मुख्य रूपमे बनल रहल। मुदा सौभाग्यक बात छी जे नव-नव उपन्यासकार मिथिलाक सर्वांगीण रूपकेँ दृष्टिमे राखि लिखि रहलाह अछि। ओना मिथिलाक जे वास्तविक रूप अछि ओ अत्यन्त दयनीय अछि। जाहि बीच रहि साहित्य सृजन अत्यन्त कष्टकर अछि। मुदा मिथिला तँ वएह धरती छी जाहिठाम एकसँ एक ऋृषि-मुनि साधना कए अपन दृष्टि देलनि जे दुनियाँक सभसँ ऊपर अछि।
ग्रामीण चित्रण-
ग्रामीण शब्दक दू अर्थ दू जगहपर होइत अछि। समग्र दृष्टिसँ ग्रामीण शब्दक अर्थ क्षेत्र-विशेषक सभ किछुसँ होइछ आ ग्रामीण परिधिमे (गामक सीमाक भीतर) ग्रामीण शब्द सिर्फ ग्राममे रहनिहार मनुष्यसँ होइछ। प्रश्न उठैत ग्राम संग ग्रामीण आकि अगबे ग्रामीण?
ग्राम संग ग्रामीणक संबंध ओतबे नहि होइत जे हम अमुख ग्राम रहै छी। ग्राम ओहि रूपे ससरैत आगू बढ़ै जाहि रूपे दुनियाँ ससरि रहल अछि। जँ से नहि हएत तँ लोक भागि-पड़ा ओहिठाम पहुँचत जाहिठाम सुगमतासँ सुभ्यस्त जिनगी भेटितै। ग्रामक उत्पादित पूँजी माटि-पानि, गाछ-विरीछ, नदी-नाला इत्यादि मनुष्यक संग पूरैबला आर्थिक आधार छी। कोनो जुग अवौ आ जाओ, मनुष्यक जे मूल-समस्या अछि ओ अनवरत रहवे करत। भलेहीं उन्नति भेलापर सुगमता आओत, नहि भेलापर जटिलता आओत। आजुक समयक मांग अछि जे हमरा सबहक आर्थिक आधार ओहन बनए जे एक्कैसवीं शताव्दीक मनुष्य कहबैक अधिकारी बनी।
अंतमे, जहिना पैघ गहवरमे सैकड़ो जगह पूजा ढारि गोसाँइ खेलल जाइत तहिना आइक समाजक मांग साहित्यक अछि।
१.रमेश- गद्य कविता- डॉ. काञ्चीनाथ झा ‘किरण’क नामक अद्वैत मीमांसा २. जितेन्द्र झा- उपटैत गाम बसाओत बाबा ३. सुजीतकुमार झा- नेपालक राष्ट्रपतिक नेपाली प्रेम
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रमेश 1961- जन्म स्थान मेंहथ, मधुबनी, बिहार। चर्चित कथाकार ओ कवि । प्रकाशित कृति: समांग, समानांतर, दखल (कथा संग्रह), नागफेनी (गजल संग्रह), संगोर, समवेत स्वरक आगू, कोसी धारक सभ्यता, पाथर पर दूभि (काव्य संग्रह), प्रतिक्रिया (आलोचनात्मक निबंध)।
गद्य कविता
डॉ. काञ्चीनाथ झा ‘किरण’क नामक अद्वैत मीमांसा
अहाँ स्वभिमानी छी, तँ किरण जी छी।
जनमानसक पक्षमे सामाजिक छी, तँ किरणजी छी।
अहाँ किरणजी छी, तँ मह-महाइत मिथिला छी।
अहाँ मह-महाइत मिथिला छी, तँ निश्चिते कह-कह भुन्हूर सन किरणजी छी।
अहाँ मानसिकता आ मोहविरा मे ‘सोइत’ छी, तँ किरणजी नहि छी। मोहविरा मे पञ्जी-प्रबन्धक ‘बाबू साहेब’ छी, तँ किरणजी नहिए टा छी।
अहाँ वास्तव मे ‘जयवार’ छी, तँ चलू कहुना कऽ किरणजी छी।
जँ ब्राह्मण-वर्गीकरण मे कत्तहु टा नहि छी अहाँ, तँ जरूर किरणजी छी।
आ जँ दसो दिकपालमे सँ क्यो अहाँक पैरवीकार नहि छथि, तँ ध्रुव सत्य मानू, अहाँ आर क्यो नहि, किरणेजी टा छी।
अहाँक मन-बन्ध सुमनजी-अमर जी सँ हो, तँ भऽ सकैए, संज्ञा रूपें अथवा मोहविरामे अहाँ साहित्यिक आ धार्मिक ब्राह्मण भऽ जाइ। अहाँक मन-बन्ध मधुपजी सँ हो, तँ निश्छल भक्त-हृदय मैथिल जीवनक लोकगायक अहाँकेँ मानबामे कोनो असौकर्य नहि। जँ मणिपद्ध जी सँ मन-बन्ध हो, तँ, अपना केँ मिथिलाक लोक-संस्कृति-चेताक उदात्त उदाहरण बूझि सकैत छी। आ जँ अहाँक मन-बन्ध किरणेजी टा सँ हो, तँ सय प्रतिशत मनुक्खक अलावा अहाँ आर किच्छु भैय्ये नहि सकैत छी।
कविवर सीताराम झाक अन्योक्ति-वक्रोक्ति आइयो मिथिलाक जड़ता-जटिलतापर मुङरी पटकि रहल अछि।
अपन मुक्तिक प्रसंग तकैत आइयो राजकमल मिथिलाक ‘महावन’ मे अहुरिया काटि रहल छथि।
बाबा बैद्यनाथकेँ पाथर कहैत आइयो किरण-शिष्य यात्रीक अनवरत ब्रह्माण्ड-विलाप जारी अछि। धूमकेतु ‘मनुक्खक देवत्वे’पर एखनो ‘रिसर्च’ कऽ रहल छथि। मुदा साक्षात् किरणजी आइयो मनुखताक उपेक्षापर गुम्हरैत। पुरातनपंथीकेँ कान पकड़ैत/ माटिक महादेवकेँ छोड़ि मनुक्ख-पूजनक-सुस्पष्ट उद्घोषणा कऽ रहल छथि।
अहाँ खट्टर कका छी, तँ, माङुरक झोड़सँ चरणामृत लऽ सकैत छी। मुदा किरणजी जकाँ माङुरक ओही झोड़सँ सर्वहारा वर्गक अरूदा बढ़ेवाक बैदगिरी नहि कऽ सकैत छी। अहाँ कञ्चन-जंघासँ कूच-विहार धरिक यात्रा कऽ सकैत छी, मुदा डोमटोलीसँ मुसहरी धरिक नहि। अहाँ समाजिक सरोकारमे सुधारवादी भऽ सकैत छी, मुदा, किसान-आन्दोलन केँ मिथिलाक जमीनपर उतारि परिवर्त्तनकामी नहि।
अहाँ भाङ पीबि वसंतक स्वागत करब, तँ, अहाँ केँ, बताह कहबामे हुनकर संघर्ष-गीतक भास कनियो बे-उरेब हेबाक प्रश्ने कहाँ अछि? जहिना रूसोक पष्ठभूमि बिना फ्रांसीसी क्रांति संभव नहि छल, तहिना ‘मधुरमनि’क पृष्ठभूमि बिना ‘जोड़ा-मन्दिर’क अस्तित्व संभव कहाँ छल? ‘जगतारानि’ नहि तँ ‘बाँसक ओधि’ की? माटिक अभ्यर्थना नहि आ जनोन्मुखी सोचक सर्जना नहि तँ, आलोचनाक राज हंसक धोधि की?
ओ प्राचीन गीतक ‘लाउड-स्पीकर’ बनि सकैत छलाह, नवीन गीतक सी.डी.क उद्गाता नहि। ओ राज-सरोवरक हंस बनि नीर-क्षीर-विवेक(?) सँ आभिजात्य मीमांसाक पथार लगा कऽ साहित्यालोचनक खुट्टा गाड़ि सकैत छलाह। मुदा नव-चेतनाक प्रगति-शील गीतक गाता आ ज्ञाता नहि। ओ किरणजीकेँ काव्योपेक्षाक दंश दऽ सकैत छलाह, मुदा हुनका काल-निर्णय आ आगत-पीढ़ीक ‘मूड’ अज्ञात छल। ओ वस्तुतः ‘शास्त्रीय’ छलाह, आ किरणजी ‘तृणमूल’क कार्यकर्त्ता। ओ ‘उरोज’ केँ सरोजक उपमान बना श्रृंगार-काव्यक प्राचीन परंपराकेँ सम्पुष्ट कऽ सकैत छलाह। मुदा धानक उरोजमे दूध भरबाक सामर्थ्य हुनका कतय? ओ हुनकर जीवनक जड़त्व आ साहित्यक सीमा छल।
आँहाँ भासा-मंचपर लोक-चेतनाक सर्जक छी-तँ किरणजी छी।
साहित्यिक-मंचपर सामाजिक-चेतनाक पोषक छी-तँ किरणजी छी।
संस्कृतिक मंचपर जन-संस्कृतिक गायक छी- तँ किरणजी छी।
राजनीतिक मंचपर दिशाहारा-वर्गक पुष्टिवर्द्धन मे ‘महराइ’ गबैत छी-तँ किरणजी छी।
विद्यापतिक-मंचपर जनवादी गीत-संस्कृतिक उद्घाटक छी-तँ किरणजी छी।
अहाँक जीवन-दर्शन सुचिंतित ऊर्ध्वगामी अछि-तँ किरणजी छी।
जीवन आ साहित्य मे समरूप दृष्टिकोण हो-तँ अहाँ किरणेजी टा भऽ सकैत छी।
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जितेन्द्र झा
उपटैत गाम बसाओत बाबा
सुखी सम्पन्न जीवन बितएबाक ललसा लऽ कऽ लोक अपन गाम छोडि परारहल अछि शहर दिस । वैश्वीकरणक अन्हर विहाडिमे ओ अपन जन्मस्थानके महत्व नहि बुझऽ चाहैत अछि या कही बुझियोकऽ आंखि मुनि लैत अछि । गामक परती ओकरा विरान लागऽ लगैत छै , ओतुक्का फुलबारीमे ओ काँट मात्रे देखैछ अछि । गमैया जीवनसं जनमल एहने वितृष्णा देखएबाक प्रयास कएल गेल अछि मैथिली टेलि श्रृंखला बाबामे । बाबाक लेखक निर्देशक रमेश रञ्जन कहैत छथि मिथिलाक गाम उपटि रहल अछि । बाबा नेपाल टेलिभिजनसँ शनिदिन भोरमे ९ः३० बजे आ रविदिन १ः३० बजे प्रसारण भऽ रहल अछि । ग्रामीण जीवनक नीक बेजाय पक्ष आ बाबा श्रृंखलासं सम्बन्धित रमेश रञ्जनसँ कएएल गेल बातचीतक संक्षेप ।
बाबाक कथानक की छै ?
मिथिलाक वर्तमान अबस्था एकर मूल विषयवस्तु छै । मिथिलाक ग्राम्यजीवनमे दूटा पीढी बीचमे दूरी देखल गेल अछि । दू रंगक सोच छै । पीढीगत अन्तर छै । एकटा पीढी छै जकरा गाम बड नीक लगैत छै, ओतुक्का जनजीवन प्रिय लगैत छै, संस्कार संस्कृति नीक लगैत लगैत छै । गाममे ओ सहज अनूभव करैत छै । एकटा पीढी एहन बनि रहल छै जकरामे गाम प्रतिक विकर्षण छै । ओत्तऽके जीवन जटिल लगैत छ, श्रम करबाक तरिका बहुत बेजाय लगैत छै । ओइठामक स्थायी सम्पत्ति बेकार लगैत छै । एकटा नान्हिटा गामक विकट जीवनके ओझराकऽ राखऽके औचित्य नइैं बुझैत छै । इएह द्वन्द्व नाटकमे केन्द्रिय अन्तरवस्तु छै ।
मिथिलाक ग्राम्यजीवन आ बाबाक विषयवस्तुमे कतेक समानता छै ?
मैथिली भाषा एकटा माध्यम मात्र छै । बाबा सिरियलके स्थान चयन, ग्राम्य सौन्दर्यता, आम आदमीक संघर्ष आदि पीडाक बात छै ओत्तऽ । आम खादमीक हास्य विनोद, ओ कखन खुशी होइत छै, कखन दुःखी होइछै । सामाजिक संरचनासं निःशृत जे बात छै से कथानकमे बुझाइत छै । पात्रके बाजब, चलब, भेषभूषा, आभूषण सभमे मिथिलाक झलक भेटैत छै । तें ई पूर्णरुपें मैथिली सिरियल छै ।
नेपालक लाखो मजदुर विदेशमे श्रम बेचबालेल बाध्य अछि, देशमे अवसर नहि छैक । की ओहने पलायनके देखएबाक प्रयास भेल अछि ?
एकर कथाक ओ अंश मात्र छै । ओ आवश्यक छै या नहि से बहसके विषय हेतै । लेकिन एकटा बात निश्चित छै जे कोनो देशके श्रमिक बाहर जाकऽ श्रम करए से नीक नहि मानल जा सकैत छै । मिथिलाक धर्ती उर्वर छै आ ओत्तऽके सपूतसभ उंट, भेडा चरबैछै । ओ मिथिलामात्रे नहि नेपालोक लेल नीक नहि भऽ सकैत छै । मुदा मुख्य बात ई जे सम्पूर्ण रुपमे ग्रामीण जीवनक वैशिष्टय अप्रिय लागऽ लागल छै एहि पीढीके । आ फरक ढंगके स्वप्नील संसारदिस आकर्षित भऽ रहल अछि । गाममे जीवीका चलाएब कठीन नहि छै । दूटा गाय पोसिकऽ, पाँचटा बकरी पोसिकऽ, हर चलाकऽ, अनकर आरिपर घास काटिकऽ आ खेत बटैया कऽ कऽ ओ जीवीका चला सकैत अछि । सामान्य आदमीक लेल बहुत रास साधन छै गाममे । मुदा शहरमे सामर्थ्यवानक लेल मात्र साधन छै । ओहि आकर्षणमे भोतियाकऽ सभ किछु बिसरि गेल अछि । गाम किया ने नीक लगैत छै तकर विश्लेषण नहि करैत छै बस भागऽकेे कोशिस करैत छै । ओ श्रमके लेल मात्रे भागि रहल छै एहन बात नहि । ओत्तऽ उत्पादनक सम्भावना केहन छै ? ओत्तऽके सम्भावना ओ नहि देखैत छै ।
ग्राम्यजीवनमे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगारी आदिक अवसर नहि छैक, एहनमे पलायनके स्वभाविक मानल जा सकैत अछि या नहि ?
समस्या बहुत रास छै, मुदा समाधान की जे गाम छोडिकऽ भागि जाइ । कत्तऽ जायब, गामसं जनकपुर, जनकपुरसं काठमाण्डू आ ओत्तऽसँ न्यूयोर्क आ वाशिंगटन ़़तैके बाद ? विकल्पके अन्त कत्तऽ छै । गाम उपटि रहल छै । मिथिलामे शहर छइहे नहि, एकर आधारे गाम छै । एहिके मतलब मिथिला उपटि रहल छै । हम तै रुपमे ओकरा देखबाक प्रयास कएने छी ।
एखनुक मैथिली सिरियल जनशक्ति आ तकनीकी दुनू दृष्टिएँ कमजोर देखल गेल अछि । बाबा सिरियल ओकरे निरन्तरता त नहि ?
बाबा सिरियल नेपाल टेलिभिजनक लेल बनाओल गेल अछि । एहिमे नेपाल टेलिभिजनक प्राविधिक सहयोग लेल गेल अछि । मैथिली क्षेत्रक चर्चित कलाकारसभ एहि सिरियलमे सहभागी छथि । मिथिला नाट्य कला परिषद्क कलाकार रंगकर्ममे बेस चर्चित अछि । तें एहि सिरियलमे ओतुका कलाकारके समावेश कएल गेल अछि । सुनिल मिश्र, राम नारायण ठाकुर, मदन ठाकुर, घनश्याम मिश्र, रविन्द्र झा, रञ्जु झा, परमेश झा, राम कैलास ठाकुर सहितके कलाकार एहिमे अभिनय कएने छथि । कथा, पटकथा, संवाद आ निर्देशन हम स्वयं कएने छी ।
३
सुजीतकुमार झा नेपालक राष्ट्रपतिक नेपाली प्रेम
लोककें किया नहि पचि रहल !
काठमाण्डूमे सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनमे नेपालक राष्ट्रपति डा. रामवरण यादवकेँ भाषण फेरसँ विवादमे आएल अछि । राष्ट्रपति डा. रामवरण यादवकेँ अपन सम्बोधन नेपालीमे देलाक बाद मैथिल सभबीच कड़ा आलोचना भऽ रहल अछि ।
साहित्यकार डा. रेवतीरमण लाल कहैत छथि–मैथिलीमे बजला सँ डा. रामवरण यादवजीकेँ राष्ट्रपति पद नहि छिन्ना जइतैन्हि जे डर भऽ गेलन्हि । अखनो नेपालमे बड़का लोक सभ लग नेपाली बाहेककेँ महत्व नहि अछि एकर छोट उदाहरण राष्ट्रपतिक भाषण सँ लेल जा सकैत अछि ओ कहलन्हि ।
फेसबुक पर चारि दर्जन सँ बेसी व्यक्ति राष्ट्रपति यादवकेँ नेपाली भाषा प्रेमकेँ कडा आलोचना कएलन्हि अछि । सुरज यादव नामक एक व्यक्ति अपन फेसबुकमे लिखैत छथि — नेपालमे एखनो राजा जिवैत छथि तेकर गन्ध राष्ट्रपतिक भाषणमे भेटल । ओ आगा लिखैत छथि–नेपालक गणतान्त्रिक राष्ट्रपति सँ लोककेँ अपेक्षा छैक जे सम्पूर्ण देशक लोक बनय, सभ जाति, धर्म, भेष भुसा सँ प्रेम करय मुदा डा. रामवरण यादवकेँ कार्यकालमे शायद पुरा नहि हैत लगैत अछि ।
राष्ट्रपति डा. यादव धोती कुर्तामे सजि कऽ कार्यक्रम अवितथि हुनका कोनो कानून नहि रोकैत । फेर मैथिलीमे भाषण करितथि तऽ तइयो नहि कोनो कानून रोकैत कानूनक जानकारसभ कहैत छथि ।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनमे सहभागी रहल प्राध्यापक विजय दत्त कहैत छथि–नेपालक संस्कृति मन्त्री मिनेन्द्र रिजाल अपन भाषण शुरु करय सँ पहिने बाजल छलथि –हमरा मैथिली नहि बाजय अवैत अछि तएँ नेपालीमे बजैत छी अहुना राष्ट्रपति कएने रहितैथ तऽ संतोष होइत मुदा सच्चा मैथिल भेलाक बादो ओ नेपालीमे भाषण कएलन्हि लोककेँ पचि नहि रहल अछि ।
राष्ट्रपति होवय सँ पहिने ओ प्रायः कुर्ता पाइजामा आ गमछा लगौने रहैत छलथि मुदा राष्ट्रपति भेलाक बाद दौरा सुरुवाल आ ढाका टोपी हुनकर पहिरन बनि गेल अछि । कहियो काल पाग आ अन्य टोपी पहिरहो परैत छन्हि तऽ टोपीए परसँ लगा लैत छथि जे टोपी हटि गेल तऽ हुनक राष्ट्रपति पद कहि नहि हटि जएतन्हि ।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओवामा किछुए दिन पूर्व भारत आएल छलथि । भारत भ्रमणक क्रममे हुनका जतय भाषण देवय परलन्हि कनिको नहि कनिको हिन्दी वजवे करैत छलथि । भारतमे हिन्दीमे वजला सँ हुनक पगरी तऽ नहिए छिन्यलन्हि संगहि पूरे भारत वासीके हृदय जीत लेलन्हि ।
कनी अमेरिकी राष्ट्रपति सँ इम्हरके नेतासभ सिखथि ? अहि ठाम तऽ लोक अपने भाषा विसरि जाइत अछि ।
महाराज महेश ठाकुर कँालेज दरभंगाक प्राध्यापक एवं साहित्यकार चन्द्र मोहन झा ‘पडवा’ कहैत छथि— नेपालक राष्ट्रपतिक मैथिली सम्मेलनमे नेपाली भाषामे भाषण करवाक की वाध्यता छलन्हि हमरा नहि वुझल अछि यदि नेपालक कानूनमे राष्ट्रपति सभ भाषामे वाजि सकैत अछि इ वुझलहु तऽ वहुत निराशा भेल । राष्ट्रपति होवय सँ पूर्व कतेको वेर डा. रामवरण यादवकेँ भाषण मैथिलीमे सुन्ने छी ओ जानकारी देलन्हि ।
राष्ट्रपति यादवकेँ एहनो रुप
राष्ट्रपति डा. यादव एक दिस मैथिली कार्यक्रममे धोती कुर्ताक स्थानपर नेपाली पोशाक दौरा सुरुवाल पहिर कऽ पहुचलथि आ नेपाली भाषामे भाषण कएलन्हि तऽ एक दिस मैथिलीसभमे व्यापक आलोचना भऽ रहल अछि । राष्ट्रपति यादवकेँ राष्ट्रपति होवय सँ पूर्व मैथिली आन्दोलनीक भूमिका सेहो रहल अछि । नेपालमे मैथिलीकेँ कात कऽ हिन्दी भाषाके वढावा देने वातकेँ ओ कडा विरोधी छलथि । अहिकेँ लेल जगह जगह ओ वजैत छलथि । राष्ट्रपति भेलाकवादो अपन गृह नगर जनकपुरमे एलाकवाद कोनो कार्यक्रममे सहभागि होइत छलथि तऽ मैथिलीएमे भाषण कएने छथि ।
काठमाण्डू स्थित हुनक निवासमे जलपानक व्यवस्था चुरा दही चिनी आचार कएलगेल अछि । एकरो पाछु हुनकाद्वारा अपनाके मैथिल वुझव रहल जानकारसभ कहैत छथि । मैथिल सभक प्रियगर जलपान रहल चुरादही राष्ट्रपति निवासमे पहुँचयवला हरेक व्यक्तिके देल जाइत अछि ।
नेपालक सभासद एवं सार्वजनिक लेखा समितिक सभापति रामकृष्ण यादव कहैत छथि— राष्ट्रपतिक आदेश पर ३ सय ६५ ओ दिन राष्ट्रपति निवासमे चुरा दहीक व्यवस्था कएलगेल अछि । राष्ट्रपति यादवके पसन्दीदा जलपान चुरादही छन्हि आ ओ वहुत मन सँ लोककेँ जलपान सेहो करवैत छथि ।
१. विनीत उत्पल- दीर्घकथा- घोड़ीपर चढ़ि लेब हम डिग्री -आगाँ २. शंभु नाथ झा ‘वत्स’ १
विनीत उत्पल- दीर्घकथा- घोड़ीपर चढ़ि लेब हम डिग्री - तेसर भाग
ई जरूर फस्र्ट जनवरीक गप छल। मुदा, जहिना-जहिना आलोक बाबूक नाम होयत जाहि छल, ताहिना-ताहिना कतेको लड़की के फोन आबहि लगलाह। घर के सभ गोटे तंग रहैत छल जे आलोक बाबू दिन भर की करैत अछि। समय-काल बीतैत जाइत छल। लॉ के सेकेंड ईयरक परीक्षा भऽ गेल आआैर कॉलेज मे सबसे नीक नम्बर आलोक बाबू के आयल। थर्ड पार्टक क्लास शुरू भऽ गेल छल। मुदा आबै बला समयक देखैत क्षमता तऽ हुनका मे नहियै छल।
एक रात दू बजैत रहै। घरक सभ कियो सुतल छल। आलोक बाबू एक बजे राति धरि पढ़ि के बिछौन पर गेने छल आओर किछु सोचैत-बिचारैत नींद के बजबैत छलाह। तखने दरवाजा के कियो खटकटायल। दू बजे राति मे ओहिनो कियो धक्का दियै तऽ लोक-बेद ते यैह नहि बुझता जे चोर-उचक्का किछु कऽ रहल अछि। मुदा, ओतय मिली ठार छल। किवाड़ी आलोक बाबू खोल लक। मिली कहलक हमर घर मे पार्टी छल आओर अहां से कतेक दिन से भेंट नहि भेल छल, ताहि से हम सोचलहुं जे अहां से भेंट कऽ आबि। अहां के देखि लेलहुं, आब हम जाइत छी। ई गप कहि के मिली तऽ चलि गेल मुदा घर मे तूफान आनि देलक।
मिली चारि घर बाद रहि बला चंद्रभूषण बाबूक बेटी छल। ओ लॉ मे पढ़ैत छल। आलोक बाबू से जूनियर रहैत कॉलेज मे। मिथिला मे ते जानते छियै। ककरो बेटी ओहिनो कोनो लड़का से गप कऽ लैत अछि, ते की ओयत अछि। तखन ई राति मे कियो मिलहि लेल आबि तऽ की होयत, सोचहि सकैत अछि। पूरा मोहल्ला जानि गेल जे आलोक बाबू से मिली राति मे भेंट करहि लेल आयल छल। जानतै छियै कहल जाइत अछि दीवारो कऽ कान होयत अछि। आस-पड़ोसक लोग-बेद पुछैत छल आओर कानफुसकी करैत छल, जे मिली के आबैक प्रयोजन की छल।
घरक लोक तऽ ई गप जानतै छल। हुनको कान मे गेल जे आसपड़ोसक लोक बाजैत छलाह। आलोक बाबूक मां के अहां चिह्नतै छियै। हुनकर तरबा के लहर मगज पर रोज चढहि लागल। रोज दूटा अनटेटल गप आलोक बाबू के सुना दैत छल। ओहि काम हुनकर मां सुनलक जे लॉ करने से आलोक बाबू वकील तऽ बनि जायत मुदा, जखन कोनो केस आयत तखैन नहि ओ वकालत करताह। अहि काज से तऽ नीक पत्रकार होयत। जहिना कियो किछु अनटेटल करैत, ओ अखबार मे छापि दैत। तखन लोक के मालूम होयत जे इज्जत बनाबै मे केकरो जिंदगी बीति जाइत अछि, ओकरा माटि मे मिलाबै मे कोनो टाइम नहि लागैत अछि।
आब घर मे दोसर गप होय लागल। आलोक बाबू के पत्रकार बनहि लेल पत्रकारिता के कोर्स करैक गप होय लागल। कियो कहैत छल जे रायपुरक कोनो संस्थान मे हुनकर नाम लिखा दियो। कियो कहैत छल जे भोपालक माखनलाख चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय नीक अछि। कियो राय दैत छल जे दिल्ली पत्रकारिता के गढ़ अछि, आलोक बाबू के ओतय पठा दियो। मां ते मां अछि। हुनका लागल जे हमर सभटा लऽर जऽर बाहरे पढ़ैत अछि आओर हुनकर मां-बाप खूब गप्प दैत अछि। ताहि सं हम आलोक कऽ दिल्ली भेज दैत छी आओर ओतय ई पढ़ताह।
आखिरकार एक दिन एहन आयल, जे आलोक बाबू बड़ मनसुआ लऽ कऽ बिलासपुर एक्प्रेस से दिल्ली उतरलाह। कियो चिन्हार तऽ नहि छल दिल्ली मे, से रेलवे स्टेशन से उतरि के पहाड़गंजक साइड के होटल मे टहरलाह। रायपुर से दिल्ली के किछु पत्रकारिता संस्थानक पता आओर फोन नंबर संगे लेलहि आयल छल। दोसरे दिन से सब ठाम घुरहि लगलाह। कनाट प्लेसक कस्तूरबा गांधी रोड पर अछि भारतीय विद्या भवन। ओतहि गेला पर मालूम भेल जे ओतय एडमिशन लैके तारीख अछि जे दू दिन बात खत्म भऽ रहल अछि। ओ आव नहि देखलक ताव, चार सौ टका मे फार्म कीन कै भरि देलैक। पंद्रह दिन बाद ओकर इंट्रेस परीक्षा अछि। ओहो अंग्रेजी मे। दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस सेहो गेलाह। ओतोको फॉर्म भरि देलक। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सेहो एकटा सेंटर नोएडा में छल, ओतौको फार्म भरहि लेल आलोक बाबू नहि बिसरल। ता धरि जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता लेल फार्म नहि भेटैत छल।
अहि बीच ओ अप्पन डेरा ताकि लेलक। होटल मे कतेक दिन रहतियैथ। दक्षिण दिल्ली मे एकटा गाम अछि, बेरसराय। पुरैनका जेएनयू कैंपसक आगू आओर आईआईटी के बीच ई गाम अछि। ओतय डेरा लेलखिन। किराया छल 16 सौ टका महीना। आलोक बाबू की करतियैथ। डेरा की छल। एकटा कमरा बस। तीन मंजिल के बिल्डिंग छल। ओहि मे कम से कम नहि तऽ 40 टा कमरा रहैक। सभमे बिहार, बंगाल, झारखंड, उत्तरप्रदेश से दिल्ली आयल लड़का सभ रहैत छल। सभक सपना छल जे दिल्ली से जायब तऽ किछु बनि के जायब। ओहि बिल्डिंग के एक-एक फ्लोर पर दू टा शौचालय आैर स्नानघर बनल छल। सभ कियो बारी-बारी से ओहि मे जाइ के नित्यक्रिया से निवृत होयत छल।
सभठाम के फार्म भरि के आलोक बाबू तैयारी करै मे जुटल। खूब जीके याद करैत छल। अंग्रेजी में कॉमिल बुल्के से सभटा मीनिंग याद कऽ लेलक। नहि हुनका राति पता चलैत छल आओर नहि दिन। बस एक्के टा धुन छल जे पत्रकार बनैक अछि ते हम बनबे करब। कोनो-कोनो विषय पर लिखहि के खूब प्रैक्टिस सेहो करैत छल। कनि-कनि अंग्रेजी बाजैक कोशिश सेहो आलोक बाबू करैत छलाह।
आखिर भारतीय विद्या भवन में परीक्षा देलहि लेल गेल। लागल सभटा सवाल ते जानैत छियै। मुदा, हुनका मे से अंग्रेजीक लऽ कऽ एकटा झिझक रहैक, ताहि से ओ सोचैत छल जे इंट्रेस परीक्षा मे पास करै के कोनो सवाले नहि अछि। मुदा, बगल बला रूम मे रहै बला राजीव कहलक,
'ओ आलोक बाबू, मानि लियौ जे अहां इंट्रेस टेस्ट पास नहि करने छी, मुदा एक बेर नोटिस बोर्ड पर अपन नाम आ रोल नंबर देखहि मे की जाइत अछि।"
'ना, हम ओते अंग्रेजी नहि जानैत छी, जे अंग्रेजी दिल्ली के लोक बाजैत अछि।"
'हौ, अहां बूर छी, आंय यो दिल्ली बला के कोन अंग्रेजी आबैत अछि। अहांके के कहि देलक।"
'नहि हौ, परीक्षा देने गेल रहौं ते ओतय ते सभ कियो हिन्दी मे बाजैत छल।"
'अहां ध्यान से सुनने रहि", राजीव पूछलाह।
'नहि, मुदा ओ सभ अंग्रेजी में बाजैत रहि"
'ते सुनू, दिल्ली बला के फोकस छाड़हि लेल खूब आबैत अछि। ई सभटा जे अंग्रेजी बाजैत अछि, ओ कोनो अंग्रेजी बाजैत अछि। टिपिर-टिपिर करैत अछि, मुदा सभटा गलते बाजैत अछि। केकरो ग्रामर अहां से नीक होयत ते अहां हमर नाम पर कुकुड़ पोसि लेब।"
राजीवक गप सुनहि के आलोक बाबू के लागल जे हुनकर गप मे दम अछि।
'जानैत छियै आलोक बाबू, हिन्दी के पैघ पत्रकार आआर साहित्यकार अछि कमलेश्वर, ओ कहैत अछि जे दिल्ली बला के अंग्रेजी डेढ़ मिनट के होयत अछि। डेढ़ मिनट के बाद हुनकर भाषा हिन्दी भऽ जाइत अछि। ताहि से दिल्ली के अंग्रेजी से नहि घबराऊ", राजीव ई कहि के एकटा सवाल आगू कऽ देलक।
'अहां कतेक सवाल लिखने रहि।"
'सभटा, मुदा दू टा आब्जेक्टिव सवाल गलत भऽ गेल छल।"
'तब अहां कियै घबराइत अछि", राजीव बजलाह।
'अहां जरूर पास करल होयब।"
ता धरि आओर रूमक स्टूडेंट बाहर आबि गेल आओर आलोक बाबू के कहि लागल जे अहां रिजल्ट देखहि लेल जाऊ। अहांक जरूर सलेक्शन भेल होयत।
आलोक बाबू के एकरा बादो साहस नहि भेल जे ओ अकेले भारतीय विद्या भवन जाइके अप्पन रिजल्ट देखतियै। हुनकर चेष्टा देखहि के राजीव संग भऽ गेल जे दूनू गोटे रिजल्ट देखहि लेल जायब। बेरसराय से 615 नंबरक बस पकड़ि के कनाट प्लेस अइलाह आओर फेर ओतय स भारतीय विद्या भवन। फिल्म 'थ्री इडियट्स" मे जैसे राजू रस्तोगी आैर फरहान अख्तर अपना नाम रिजल्ट के आखिर मे देखैत अछि, ताहिना आलोक बाबू देखहि लगलाह।
चारि पन्ना मे रिजल्ट चस्पा छल। आखिर के तीन पन्ना मे रिजल्ट देखहि के राजीव से आलोक बाबू कहला,
'यौ हम कहैत रहि ने जे हम पास न कऽ सकब। देखियो अहि लिस्ट मे नहि तऽ हमर नाम अछि आओर नहि कतो हमर रोल नंबर अछि।"
'अहां पूरा लिस्ट देखलियै", राजीव पूछलाह।
'जी"
'अहां लिस्टक तीन पन्ना मे रोल नंबर तऽ देखलियै, मुदा शुरू बला पन्ना नहि देखलियै। अहांक नाम तऽ पहिलुक पन्ना मे अछि आओर अहांक पोजिशन पांचवां अछि।"
ई सुनि के आलोक बाबू ठामे ठार रहि गेल। ओ सोचहि लगलाह जे की ओ एतेक काबिल अछि जे सैकड़ो स्टूडेंट के पछाड़ कऽ पांचवां स्थान पर रहब, ओहि मे जे परीक्षा अंग्रेजी मे भेल छल।
जारी...
२
शंभु नाथ झा ‘वत्स’ अतीतक घटना/ सपना/ कोशीक प्रलंकारी बाढ़िमे भाँसल एकटा लड़कीक सत्य कथा
मनोरमा आइ उठैमे देर कऽ देलक। आइ आँखि खुजिए नै रहल छलैक। देबारक घड़ीपर नजरि गेलै। साढ़े छ बजि गेल। हड़बड़ाइत मनोरमा नल लग जाए आँख़िमे पानिक छिटा मारलक। झटसँ पेस्ट आ ब्रश लऽ कए मुँह धोअए लागल। तावत रजनीशक अवाज सुनाए पड़लैक- मनोरमा, चाह...।
आँए। रजनीश पहिनहिए उठि गेल छल। फेर रजनीशक आवाज होइ छैक।
-हे एहिठाम टेबुलपर चाह धरि देलहुँ हेँ।
मनोरमा मुँह-हाथ धोए कुरूड़ कऽ कमरामे प्रवेश करै छथि आकि रजनीश तैयार भऽ कऽ बाहर निकलि कऽ कहलक- हम जा रहल छी। हमर बस छूटि जाएत। अहाँ उठैमे देर कए देलौं- रजनीश बाजल।
-नाश्ता कऽ लिअ, बना दैत छी।मनोरमा बजलीह।
- हम नास्ता बना कऽ खा लेलौं। अहूँ लेल धऽ देने छी।
रजनीश बाजिते-बाजिते बाहर भऽ गेल।
मनोरमा सकपका गेलीह। आइ हमरा की भऽ गेल छल। आँखिए नहि खुजि रहल छल। रजनीश कखन उठि कऽ सभ काजसँ निवृत भऽ गेल। आ अपनहि सँ चाह सेहो बना लेलक आ नाश्ता सेहो? हमरा नहि उठौलक। कत्तौ मोनमे दुःख तँ नहि भऽ गेलैए। नहि दुःख तँ आइ धरि नहि केलक। हमहुँ रजनीशकेँ खुश करबा लेल कोनो कसर नहि राखलौं। मुदा आइ की भऽ गेल छल जे उठैमे देरी भऽ गेल। हँ रातिमे सपना देखलहुँ। सपना भोरे-भोर धरि देखलहुँ। तँ उठबामे देर भऽ गेल। रजनीशक स्कूल दूर पड़ैत छैक। तँ रोज साढ़े पाँच बजे उठि जाइ छैक। हमरो निन्न साढ़े पाँचसँ पहिने टूटि जाइत छल। मुदा आइ हमरा की भऽ गेल छल जे आँखिए नहि खुजल। रजनीश हमरा उठएबो नहि केलक।
मनोरमा रातुक सपनाक स्मरण कऽ अतीतमे चलि गेलीह। महाकाल रात्रि छल। कुशहा बान्ह टूटि गेलैक। कोशी माए रोद्र रूप धारण कऽ भयानक गर्जन करैत गामक-गाम अपना उदरमे समाबए लगलीह। कतौक नारी-पुरूषक सुतलेमे प्राण पखेरू उड़ि गेलैक। बच्चा-माल-मवेशी मरल भाँसि-भाँसि कऽ बहै लागल, सुपौल, मधेपुरा, सहरसाक किछु भाग आ पूर्णियाँ आ अररिया जिलाक पश्चिम भाग सेहो डूबि गेल। दू मंजिला मकान सभ तँ कतोके उलटि गेल। फूस घरक कथे कोन। त्रिवेणीगंज बाजार, मुरलीगंज बाजार तँ बर्बाद भऽ गेलैक। महाप्रलयकालीन धारा भऽ जखन कोशीक धारा दक्खिन दिस बढ़ल तँ गाम-घर, बाग-बगान सभटा नष्ट भ्रष्ट भऽ गेलै। विशाल-विशाल गाछ-बिरीछ सभ धराशायी भऽ गेलै। चारू दिस पानि-पानि नजरि आबए। कतौ-कतौ बाँस भरि पानि। पक्काक मकानपर बचल-खुचल आदमी सभ आश्रय लेलक।
मनुक्खो मे जे राक्षसी प्रवृतिक मनुक्ख छल, सहायताक ढ़ोंग रचि-रचि धन लोभ सँ ग्रस्त भऽ महा-अनर्थ कार्य केलक। जाहि गाममे पानि पहुँचैमे देर भेलैक तै गामक लोक सभ एहि आशामे जे आब पानि घटि जेतै, ऐ लोभ सँ गाम नहि छोड़लक। मुदा आओर पानि बढ़िए गेलैक।
जिनका सभकेँ पक्काक मकान छलैक से सभ अपन-अपन टाका गहना जेवर लऽ कऽ मकानक छतपर पहुँचि गेल। तीन-चारि दिन बीति गेलै। भोजनक समस्या। बच्चा सभक प्राण निकलए लागल। सभटा अनाज, चूल्हा-चौका, जारनि आदि तँ नीचेमे छलैक। सभटा जलमग्न छलैक, जिनका हाथमे मोबाइल फोन छलैक ओ अपन सर-कुटुमकेँ सूचना दऽ देलक। मुदा सरो-कुटुमकेँ किछु नहि फुरन्हि। बल-कल तेज धारमे किनको हेलए केर साहस नहि होइन्हि।
एम्हर लूटे खसोटे केर मोन बला सभ नाह लऽ कऽ बचाबए केर स्वांग रचि नाह पर चढ़ा कऽ माँझ धारमे आबि सभटा माल-पत्तर गहना जेवर छीनि कए पानिमे धकेल दैत छलए।
केन्द्र सरकार आ राज्य सरकारकेँ त्राहिमाम् संदेश जखन भेटलए तखन जा कऽ फौज केर नाह आएल। ऊपर सँ हेलीकॉप्टर सँ बिस्कुट आ भोजन सामग्री पहुँचायल गेल। सहायता शिविर स्थापित भेल।
ई काल रात्रि 18 अगस्त 2008 केँ आएल छल। मनोरमा सेहो अपन परिवारक संग अपन मकान केर छतपर छल। कतेक दिन बीति गेल छल। चारो तरफ पानिए पानि। कत्तो भागए केर रास्ता नहि। ऊपर सऽ झमाझम बरखा सेहो बरसए छल। भूख प्यास सँ बाँचब कठिन भऽ गेल छलैक। तावत एकटा नाह लऽ कऽ तीन-चारि आदमी आबि नाहपर चढ़ा लेलक। किंतु माँझ धारमे जाए सभटा गहना जेवर टाका छीनि कऽ सभकेँ लाठीसँ मारि पानिमे धकिया देलक।
मनोरमा सेहो धक्का खाए पानिमे खसि ऊब-डूब करए लगलीह। ओ बेहोश भऽ भाँसैत-भाँसैत एक किनार लागि गेलीह।
मनोरमाक आँखि खुजलै- होश मे अएलीह तँ अपनाकेँ राहत शिविरमे पओलीह। राहत शिविरमे अन्यान्यो सभक डॉक्टरक उपचार भऽ रहल छलैक। मनोरमा जखन दूइ चारि दिनक बाद स्वस्थ भेलीह तँ डॉक्टर आ राहत शिविरक व्यवस्थापक मनोरमाक निर्देशसँ ममहर भेजवा देलकै।
मनोरमाक पिता अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक छलाह। मनोरमाक जेठ भाए युगेश कृष्णाष्टमी पूजामे गाम आएल छलैक। युगेश कलकत्तामे मेडिकल पढ़ि रहल छलैक। मनोरमाक वियाहक कथा लागि गेल छलैक युगेशेक साथी धर्मानन्दसँ। अगला माघ-फागुन मासमे बियाह होमए बला छलैक। मनोरमा सेहो बी.ए. छलीह। दरवज्जेपर कृष्णाष्टमी पूजा धूम-धामसँ हरेक साल मनाएल जाएत छलैक। सभ भगवानक मूर्त्ति सभ बनि कऽ तैयार छलैक। पूजाक व्यवस्था जोर-शोर सँ भऽ रहल छलैक तावते ई महाप्रलयक घटना घटित भऽ गेल। माम एक छोट छिन शहर मे शिक्षकक नोकरी करए छलन्हि। मनोरमाक सातम आठम दिन ममहरमे रहब भेल छलैक। मामीक व्यवहार मनोरमाकेँ नीक नहि बुझा रहल छलैक। मामी एकांतमे मामसँ कहथिन- एकरा माथपर किए बैसा लेलिऐ। आगाँ किछू सोचबो करै छिऐ। एकर बियाहो करबै पड़त। एक दिन मनोरमा मामीक मुँहसँ माम सँ कहैत सुनि लेलक। मनोरमा चिंतित भऽ गेलीह। बेर-बेर मामीक तानासँ अकच्छ भऽ गेल छलीह। मनोरमा शहरक मोहल्लामे घुमि कऽ सम्पर्क कऽ कऽ छोट-छोट नेना सभक ट्यूशन करए लगलीह। मामो ओतए पूर्वसँ आवागमन रहबे करै तेँ मुहल्लाक लोग सभ मनोरमाकेँ चिन्हते रहए। तँ ट्यूशन भेटैमे भाङ्गठ नञि भेलैक।
एक दिन रघुवीर जे सम्बन्ध मे ममियौत छलैक मनोरमासँ कहलखिन्ह- बहिन कोनो कान्वेन्ट धऽ लैतिऐ तँ बड्ड नीक होइतौ।
मनोरमा बजलीह- भाए। हमर सार्टिफिकेट तँ घरेमे पानिमे नष्ट भऽ गेल। अहाँ भाए मददि कऽ दिअ। सहरसा कॉलेजसँ प्रींसिपल साहेबसँ आवेदन अग्रसारित कराए मधेपुरा यूनिवर्सीटीसँ द्वितीयक लब्धांक पत्र सभ मंगा दिअ। हे भाए हमर सन अभागल केर किछु मददि कऽ दिअ। हमरा किछु नहि सूझि रहल अछि। हम अनाथ छी।- कहि कऽ मनोरमा फफकि-फफकि कानए लगलीह। रघुवीर सान्त्वना दऽ चुप करौलक। रजनीशकेँ हाल-फिलहालमे सेंट्रल स्कूलमे नोकरी भेटल छलैक। ओ छुट्टीमे अपन शहर आएल छल। रघुवीरक संग एक दिन रजनीश बाजार करएले जा रहल छल। मनोरमा सेहो किछु सहेली संग बाजार घूमि रहल छलीह। रजनीश केर नजरि जखन मनोरमापर पड़ल तँ रूप-लावण्य देखि भाव विह्वल भऽ गेल।
ओ रघुवीर सँ प्रश्न कएलक- रघुवीर ई नवयुवती के थिक?
नजरि हटिए नहि रहल छलैक।
-हमरे पिसियौत बहिन थिकीह। बाढ़ि मे सभ किछु बर्बाद भऽ गेलए। भाए, माए, पिताजी केर कोनो पता नहि छैक।- रघुवीर सकल वृतांत कहि सुनौलक। रजनीश एहि दुर्घटनाकेँ सुनि व्यथित भऽ गेल। ओ मोने-मोन विचारै लागल जे एकर बियाह नीक घरमे होयबाक चाही। एहन शिक्षित सुन्दरि जे घर जयतीह, ओ घर स्वर्ग भऽ जयतै। प्राकृतिक विपदा सँ एहन उत्तम कुल शील वाली कन्या अनाथ भऽ गेल अछि। रजनीश विचार मग्न रघुवीरक संग आगाँ बढल जा रहल छल।
तावत पाँछा सँ मधुर शब्द सुनाए पड़लैक -रघुवीर भाए। ई देखू विद्या विहार कान्वेन्ट मे एकटा महिला शिक्षक केर विज्ञापन छैक। मनोरमा एकटा न्यूज पेपर देखाइत बजलीह।
-बड्ड नीक। आवेदन कऽ दियौक।- रघुवीर बाजल
-कतेक योग्यता अछि।- रजनीश हठाते पूछि देलक।
-बी.ए. संस्कृत आनर्स फर्स्ट क्लास।- मनोरमा सकपकाइत बजलीह।
-अहा हा! तखन तँ अहाँ कऽ निश्चिते भऽ जाएत।-रजनीश बाजल।
एहि तरहे गप्प सप्प करैत घर घुरि सभ आबि गेल। रजनीश केर मोन मे मनोरमा बसि गेल। रजनीश एक दिन प्रसंग मे माए सँ कहि देलक। माए हम कमाबैत छी, एहि लेल हम आदर्श बियाह करब आ एहेन लड़की सँ जे कुलीन होए आ परिवार जनक सेवा कऽ सकैत छल। सभ परिवार जनकेँ मनोरमा पसिन्न भऽ गेलीह। खास कऽ रजनीशक मोन राखए लेल।
विवाह कए रजनीश मनोरमाकेँ लऽ कऽ शहर आबि गेल। गर्मीक समए अप्रैल-मइ मास। रजनीशकेँ सबेरे तैयार भऽ नाश्ता कऽ स्कूल जाए पड़ैत छलैक। बियाह कऽ शहर आएब पन्द्रह-बीसे दिन लगधग भेल छलैक। दुनोक बीच अगाध प्रेम छलैक। मनोरमा नितभिनसरे साढ़े चारिये बजे उठि कऽ चाह बनाबैत- दूनू गोटे संगहि पीबै छल। आ नास्ता बनाए रजनीश केर खुआ प्रेमसँ बिदा करए छलीह। मुदा आइ अतीतक घटनाक सपना देखैत भोर मे आँखिए नहि खुजलैक। ताहि लेल रजनीश अपनहि सँ सभ काम कऽ लेलक आ फेर अपन स्कूल चलि गेल।
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