ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ७६ म अंक १५ फरवरी २०११ (वर्ष ४ मास ३८ अंक ७६)
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.जगदीश प्रसाद मंडल
३.७.१. राम विलास साहु- नींदिया बैरी भेल पहुना २. आनंद कुमार झा
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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संपादकीय
बूच जीक कविताक -मार्क्सवाद, ऐतिहासिक दृष्टि, संरचनावाद, जादू-वास्तविकतावाद, उत्तर-आधुनिक , नारीवादी आ विखण्डनवाद दृष्टिसँ अध्ययन संगमे भारतीय सौन्दर्यशास्त्रक दृष्टिसँ सेहो अध्ययन
जेठी करेह:
बूच जीक कविता जेठी करेह कवितामे कवि कहै छथि जे ई भोरमे उधिआइ अछि, बर्खा हेठ भेलोपर उपलाइत अछि। ओकर खतराक बिन्दु बड्ड ऊपर छै तखन ओ किए अकुलाइत अछि। आ आखिरीमे कहै छथि जे बान्ह तोड़ि ई प्रलय मचाओत से बुझाइत अछि।ई भेल ऐ कविताक सामान्य पाठ। आब एतए एकरा संरचनावादी दृष्टिकोणसँ देखी तँ लागत जे करेह सवेरे उधिआइ अछि तँ आशा करू जे आन बेरमे ई नै उधिआइत होएत। बरखा हेठ भेने उपलाइत अछि मुदा से नै हेबाक चाही। इन्होर पानिक चमकब, मोरपर भौरी देब आ तकर परिणाम जे डीहक करेजकेँ ई अपनामे समा लैत अछि।ओकर रेतक बढ़लासँ कविक धैर्य चहकै छन्हि। आब कने संरचनावादसँ हटि कऽ एकर ऐतिहासिक विश्लेषणपर आउ। ई नव युगक लेल एकटा नव अर्थ देत। खतराक बिन्दु जे कविक समएमे ऊँचगर लगैत हएत आब बान्हक बीचमे भेल जमा धारक मवादक चलते ओतेक ऊँच नै रहि गेल। से नव पीढ़ी लेल कविक कविता कविसँ फराक एकटा नव स्वरूप लऽ लैत अछि। आब कने संरचनावादसँ हटि कऽ विखण्डनवाद दिस आउ। विखण्डनवादी कहत जे संरचनावादीक ध्रुव दार्शनिक स्वरूप लैत अछि। बर्खा हेठ भेलै, तैयो उपलायब, बान्ह बनबैबला इंजीनियरक करेहकेँ बान्हबाक प्रयासक बुरबकीक रूप लेब आ कविक करेह द्वारा बान्ह तोड़ि प्रलय मचेबाक भविष्यवाणी स्वयं कविक ध्रुवीकरणक स्थायी वा क्षणिक होएबापर प्रश्नचिन्ह लगेबाक प्रमाण अछि। आब फेर कने कविताक ऐतिहासिकतापर जाउ। जादू-वास्तविकतावादी साहित्यमे भूतकालमे गेलापर हम देखै छी जे ६०क दशकमे बान्ह बनेबाक भूत सवार रहै, बान्ह, ऊँच आ चाकर, जे धारकेँ रोकि देत आ मनुक्ख लेल की-की फाएदा ने करत। ओइ स्थितिमे जादू-वास्तविकताबला साहित्यक पात्र लग ई कविता जाएत तँ ओ ऐ कविताक तेसरे अर्थ लगाओत। कविक अस्तित्व ओतए खतम भऽ जाएत आ शब्दशास्त्र अपन खेल शुरू करत। जादू-वास्तविकताबला साहित्यक ओ पात्र जे भविष्यमे जीयत तकरा लेल सेहो ई एकटा अलगे अर्थ लेत, ओ धारक खतराक निशानक ऊँच होमयबला गप बुझबे नै करत आ कविक कविताक भावक ताकिमे रहत। मुदा विखण्डनवाद तकरा बाद अपने जालमे फँसि जाएत, बहुत रास बात नै रहत मुदा बहुत रास बात रहत। बरखा रहत, धार सेहो परिवर्तित रूपमे रहबे करत, रौदमे ओकर पानि इन्होर होइते रहत।उधियेनाइ आ उपलेनाइ रहबे करत।
स्वागत गान:
स्वागत गानक सामान्य पाठ- कवि सभक स्वागत कऽ रहल छथि मुदा मिथिलाक उपटैत धरतीक करुण क्रन्दनक बीच उल्लासक गीत कोन होएत। भ्रमर पियासल, फलक गाछ मौलायल तखन ई समारोही गोष्ठीसँ की होएत? कविताक संग लाठी आ रसक संग खोरनाठी लिअए पड़त। कविताक नीचाँमे सूचना अछि- विद्यापति स्मृति पर्व समारोह १९८४, ग्राम-बैद्यनाथपुर, प्रखंड-रोसड़ा, जिला-समस्तीपुरमे आगत अतिथिक स्वागत। ओ कालखण्ड मिथिलासँ पड़ाइनक प्रारम्भ छल। हाजीपुरमे गंगा पुल बनि गेल छल। विकासक प्रतिमान लागल जेना विफल भऽ गेल। पैघ बान्हक प्रति मोहभंग भऽ गेल छल। कृषिक आ कृषकक दुर्दशाक लेल बाढ़िक विभीषिका छल तँ स्थानीय फसिल आधारित औद्योगीकरण निपत्ता छल आ शिक्षाक अभियान कतौ देखबामे नै आबि रहल छल। आ ताइ स्थितिमे समारोही गोष्ठीक स्वागतक भार कविजी सम्हारने रहथि। ध्वनि सिद्धान्त: आनन्दवर्धन ध्वन्यालोकमे साहित्यक उद्देश्य अर्थकेँ परोक्ष रूपेँ बुझाएब वा अर्थ उत्पन्न करब कहैत छथि। ई सिद्धान्त दैत अछि परोक्ष अर्थक संरचना आ कार्य, रस माने सौन्दर्यक अनुभव आ अलंकारक सिद्धान्त।आनन्दवर्धन काव्यक आत्मा ध्वनिकेँ मानैत छथि। ध्वनि द्वारा अर्थ तँ परोक्ष रूपेँ अबैत अछि मुदा ओ अबैत अछि सुसंगठित रूपमे। आ ऐसँ अर्थ आ प्रतीक दूटा सिद्धान्त बहार होइत अछि। ऐसँ रसक प्रभाव उत्पन्न होइत अछि। ऐसँ रस उत्पन्न होइत अछि। न्याय आ मीमांसा ऐ सिद्धान्तक विरोध केलक, ई दुनू दर्शन कहैत अछि जे ध्वनिक अस्तित्व कतौ नै अछि, ई परिणाम अछि अनुमानक आ से पहिनहियेसँ लक्षणक अन्तर्गत अछि। आ से सभ शब्द द्वारा वर्णित होएब सम्भव नै अछि। स्वागत गानक ध्वनि सिद्धान्तक हिसाबसँ पाठ: विद्यापति शिव स्वरूप मृत्युंजय मऽरल छथि कहि कवि अर्थ आ प्रतीक दुनू सोझाँ अनै छथि। ध्वनि सिद्धान्तक न्याय दर्शन विरोध केलक मुदा उदयनक गाम करियनक कवि बूच जी दार्शनिक नै, कवि छथि। ओ ध्वनिक जोरगर संरचना सोझाँ अनै छथि- हमरा सबहक अभाग अजरो भऽ जऽड़ल छथि, आ मात्र ई समारोही गोष्ठी सँ की हेतै ? आगाँ ओ कहै छथि- काव्य पाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी, एक हाथ रसक श्रोत दोसर मे खोर नाठी। ऐ प्रतीक सभसँ भरल ई कविता सुगठित रूपे आगाँ बढ़ैत अछि आ अभ्यागतक स्वागत करैत अछि। मार्क्सवादी दृटिकोणसँ देखलापर लागत जे कविक काजकेँ ऐ कवितामे काव्यपाठसँ आगाँ भऽ देखल गेल अछि। ऐमे सकारबाक भावक संग ओकरा फुसियेबाक, पुरान आ नव; आ विकास आ मरण दुनूक नीक जकाँ संयोजन भेल अछि। स्वागत गान अपन परिस्थितिसँ कटि कऽ आह-बाह करऽ लगैत तँ मार्क्सवादी दृष्टिकोणसँ ई निम्न कोटिक कविता भऽ जाइत (जकर भरमार मैथिलीक स्वागत आ ऐश्वर्य गान गीत सभमे अछि), मुदा कवि एकरा एकटा गतिशील प्रक्रियाक अंग बना देलन्हि आ ई मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ स्वागत गान बनि गेल।
बेटी बनलि पहाड़:
बेटी बनलि पहाड़ कविताक सामान्य पाठ: दुलरैतिन बेटी घेंटक घैल बनल छथि। बेटी अएलीह तँ उड़नखटोला चढ़ि कऽ मुदा हरि गरुड़ त्यागि कार माँगि रहल छथिन्ह। पैंतीस ग्राम सोना पुड़ेलन्हि मुदा आब बियाह रातिक खर्चा चाही आ बरियाती दस गाही अओताह; सौँसे बल्ब जड़ि रहल अछि मुदा माझे ठाम अन्हार अछि। दशरथ एको पाइ नै मँगलन्हि, रामो किछु नै बजलाह। इतिहास तँ कृष्णक लव मैरेजक छल मुदा तैसँ की। जनक वर्तमानमे हाहाकार कऽ रहल छथि। बेटाक कंठ बाप पकड़ने अछि आ घरे-घर बूचड़खाना बनल अछि आ गामे-गाम बजार लागल अछि। बेटी बनलि पहाड़ कविताक समाजशास्त्रीय समीक्षा पद्धतिक दृष्टिसँ पाठ: ई कविता काटर प्रथाक विरोधक कविता अछि। समाजमे ओइ कालमे (अखनो) काटर प्रथाक कारण उड़नखटोलापर चढ़ि कऽ आयलि दुलरैतिन बेटी बाप अपस्यांत छथि।
करूण गीत:
करूण गीत कविताक सामान्य पाठ: कोकिलक करुण गीत सुनि श्रवित लोचनसँ कुसमित कानन देखब! सुवर्णक सौर्य शिखरपर शान्ति सागरक सुलभ जीत! जहिना किछु आलिंगन करै छी अनेको वक्रशूल भोका जाइत अछि। सुषमा दू क्षणक लेल आयलि, (आ चलि गेलि!) प्रेमक मधु तीत भऽ गेल। रजनीक रुदन विगलित प्रभात! करूण गीत कविताक रूपवादी दृष्टिकोणसँ पाठ: कुसुमित काननक श्रवित लोचन द्वारा देखब, श्रृंगार सेज पर ज्वलित मसानक रौद्र रूपक आएब आ सुवर्णक शौर्य शिखर पर - शांति सागरक सुलभ जीत केँ देखू। भाषाक अनभुआर पक्षकेँ कवि नीक जकाँ उपयोग करै छथि। आ अहीसँ हुनकर कवितामे कवित्व आबि जाइत अछि। विरोधी शब्द सभक बाहुल्य आ संयोजनक अनभुआर प्रकृति शब्दालंकारसँ युक्त भाषा ऐ कविताकेँ विशिष्ट बनबैत अछि। फूलक शूल सन ढुकब आ एहने आन संयोजन ऐ कविताकेँ रूपवादी दृष्टिकोणसँ श्रेष्ठ बनबैत अछि।
गामे मोन पड़ैए:
गामे मोन पड़ैए कबिताक सामान्य पाठ: गाममे रोटी एकोण रहए आ बथुओ साग अनोन रहए मुदा तैयो कलकत्तामे गामे मोन पड़ि रहल अछि। करेहक पानि पटा कऽ मोती उपजाएब तँ बच्चा सभ बिलटत? हुगलीक बाबू रहब नीक आकि कमला कातक जोन रहब? ईडेन गार्डनसँ नीक कमला कातक बोन अछि, पति पत्नीकेँ ईडेन गार्डनमे माला पहिरा रहल छथि मुदा कमला कातक बोनमे तिरहुतनी अपन भोला लेल धतूर अकोन ताकि रहल छथि! नारीवादी दृष्टिकोणसँ गामे मोन पड़ैए कविताक पाठ: प्रवासक कविता अछि ई। तिरहुतनी अपन भोला लेल धतूर अकोन ताकि रहल छथि, आ भोला प्रवासमे छथि। अस्तित्ववादी दृष्टिकोणसँ देखी तँ ई भोला अपन दशा लेल, असगर जीबा लेल, चिन्ता लेल अपने जिम्मेदार छथि।
सोन दाइ:
सोन दाइ कविताक सामान्य पाठ: सोन दाइक जीवनमे ने हास रहतन्हि आ ने विलास, मुदा से किएक? बाल वृन्द जा रहल छथि, नव युवको चलल छथि आ तकरा बाद बूढ़-सूढ़ गलि गेल छथि। तैयो किए विश्वास छन्हि सोन दाइकेँ? ऐ सभक उत्तर आगाँ जा कऽ भेटैत अछि, देसकोस बिसरि ओ प्रवास काटि रहल छथि। आ जौँ-जौँ उमेर बढ़तै कहिया धरि सोन दाइक घरमे वास हेतै।नारीवादी दृष्टिकोणसँ सोन दाइ कविताक पाठ: नारीक लेल वएह सिद्धान्त, किए ने ओ काव्येक सिद्धान्त होए, जे पुरुष केन्द्रित समाजमे पुरुष लोकनि द्वारा बनाओल गेल अछि, समीचीन नै अछि। सोन दाइ देसकोस बिसरि ककरा लेल प्रवास काटि रहल छथि?
अकाल:
अकाल कविताक सामान्य पाठ: अकालक वर्णनमे कवि नाङरिमे भूखक ऊक बान्हि ओकर चारपर ताल ठोकबाक वर्णन करैत छथि।अनावृष्टिसँ अकाल आ तइसँ महगीक आगमन भेल, तइसँ जड़ैत गामक अकास लाल भऽ गेल। भारतमे लंका सन मृत्युक ताण्डव शुरू भेल अछि मुदा ऐबेर विभीषणक घर सेहो नै बाँचत कारण ओकर मुंडमाल डोरी-डोरीसँ बान्हल अछि। माए भरि-भरि पाँज कऽ धरती पकड़ि रहल छथि। दशानन अपन बीसो आँखि ओनारि माथ हिला रहल छथि। औचित्य सिद्धान्त: क्षेमेन्द्र औचित्यविचारचर्चामे औचित्यकेँ साहित्यक मुख्य तत्व मानलन्हि। आ औचित्य कतऽ हेबाक चाही? ई हेबाक चाही पद, वाक्य, प्रबन्धक अर्थ, गुण, अलंकार, रस, कारक, क्रिया, लिंग, वचन, विशेषण, उपसर्ग, निपात माने फाजिल, काल, देश कुल, व्रत, तत्व, सत्व माने आन्तरिक गुण, अभिप्राय, स्वभाव, सार-संग्रह, प्रतिभा, अवस्था, विचार, नाम आ आशीर्वादमे। कंपायमान अछि ई ब्रह्माण्ड आ ई अछि कंपन मात्र। कविता वाचनक बाद पसरैत अछि शान्ति, शान्ति सर्वत्र आ शान्ति पसरैत अछि मगजमे। अकाल कविताक औचित्य सिद्धान्तक हिसाबसँ पाठ: ई अकाल नहि, महाकाल अछि, भूखक ऊक बान्हि नाड़रि सँ, चारे पर ठोकैत ताल अछि मिथिलाक काल-देशमे अकालक ई वर्णन कविक कविताक औचित्य अछि। रावण तँ उपटबे करत, विभीषण सेहो नै बाँचत।
तोहर ठोर:
तोहर ठोर कविताक सामान्य पाठ: पानक ठोर आ सुन्नरिक ठोर। सुन्नरि द्वारा बातक चून लगाएब आ कऽथक सन लाल बुन्न कपोल सजाएब। मुदा प्रेमक पुंगी कतए? भोरक लाली सुन्नरिक ठोर सन, बिनु सुन्नरि व्याकुल साँझ जेकाँ। बधिक जे बनत सुन्नरिक वर तँ हम बनब विखण्डित राहु। स्वर्गोमे सुधा कम्मे अछि, तहिना सुन्नरिक ठोर सेहो कतऽ पाबी। सकरी मिल महान बनत जे हम विश्वकर्मासँ विज्ञान सीखब। आ ओइ मिलसँ बहार होएत माधुर्य। कुसियारक पाकल पोर सन सुन्नरिक ठोर अछि। पुनर्जन्ममे सेहो धान आ चिष्टान्न बनि सुन्नरि हम अहाँक लग आएब। मुदबा एतबा बादो शब्दसँ उद्देश्य कहाँ प्रगट भेल। अलंकार सिद्धान्तक हिसाबसँ तोहर ठोर कविताक पाठ: भामह अलंकारकेँ समासोक्ति कहै छथि जे आनन्दक कारण बनैए। दण्डी आ उद्भट सेहो अलंकारक सिद्धान्तकेँ आगाँ बढ़बै छथि। अलंकारक मूल रूपसँ दू प्रकार अछि, शब्द आ अर्थ आधारित आ आगाँ सादृश्य-विरोध, तर्कन्याय, लोकन्याय, काव्यन्याय आ गूढ़ार्थ प्रतीति आधारपर। मम्मट ६१ प्रकारक अलंकारकेँ ७ भागमे बाँटै छथि, उपमा माने उदाहरण, रूपक माने कहबी, अप्रस्तुत माने अप्रत्यक्ष प्रशंसा, दीपक माने विभाजित अलंकरण, व्यतिरेक माने असमानता प्रदर्शन, विरोध आ समुच्चय माने संगबे। बातक चून लगाएब अप्रस्तुत, कऽथक सन लाल बुन्न कपोल, पानक ठोर आ सुन्नरिक ठोर, भोरक लाली सुन्नरिक ठोर सन, कुसियारक पाकल पोर सन सुन्नरिक ठोर ई सभ उपमा कवि द्वारा प्रयुक्त भेल अछि। मुदा कतऽ छह प्रेमक पुंगी हूक? मे सादृश्य-विरोध अछि। अहाँ बिनु व्याकुल वाटक माँझ मे रूपक प्रयुक्त भेल अछि। काव्यक भारतीय विचार: मोक्षक लेल कलाक अवधारणा, जेना नटराजक मुद्रा देखू। सृजन आ नाश दुनूक लय देखा पड़त। स्थायी भावक गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनब- आ ऐ सन कतेक रसक सीता आ राम अनुभव केलन्हि (देखू वाल्मीकि रामायण)। कृष्ण भारतीय कर्मवादक शिक्षक छथि तँ संगमे रसिक सेहो। कलाक स्वाद लेल रस सिद्धांतक आवश्यकता भेल आ भरत नाट्यशास्त्र लिखलन्हि। अभिनवगुप्त आनन्दवर्धनक ध्यन्यालोकपर भाष्य लिखलन्हि। भामह ६अम शताब्दी, दण्डी सातम शताब्दी आ रुद्रट ९अम शताब्दी एकरा आगाँ बढ़ेलन्हि। रस सिद्धान्तक हिसाबसँ तोहर ठोर कविताक पाठ: रस सिद्धान्त:भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल? नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण (विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी।भट्ट लोलट:- स्थायीभाव कारण-परिणाम द्वारा गाढ़ भऽ रस बनैत अछि। अभिनेता-अभिनेत्री अनुसन्धान द्वारा आ कल्पना द्वारा रसक अनुभव करैत छथि। लोलट कविकेँ आ संगमे श्रोता-दर्शककेँ महत्व नै दै छथि। शौनक:- शौनक रसानुभूति लेल दर्शकक प्रदर्शनमे पैसि कऽ रस लेब आवश्यक बुझै छथि, घोड़ाक चित्रकेँ घोड़ा सन बूझि रस लेबा सन। भट्टनायक कहै छथि जे रसक प्रभाव दर्शकपर होइत अछि। कविक भाषाकेँ ओ भिन्न मानैत छथि। रससँ श्रोता-दर्शकक आत्मा, परमात्मासँ मेल करैए। रसक आनन्द अछि स्वरूपानन्द। आ ऐसँ होइत अछि आत्म-साक्षात्कार। रस सिद्धान्त श्रोता-दर्शक-पाठक पर आधारित अछि। ई श्रोता-दर्शक-पाठकपर जोर दैत अछि। बार्थेज संरचनावाद-उत्तर-संरचनावादक सन्दर्भमे लेखकक उद्देश्यसँ पाठकक मुक्तिक लेल लेखकक मृत्युकेँ आवश्यक मानै छथि- लेखकक मृत्यु माने लेखक रचनासँ अलग अछि आ पाठक अपना लेल अर्थ तकैत अछि। लगौलह बातक पाथर चून । आ सजौलह कऽथ कपोलक खून । विभाव अछि आ ऐ कारणसँ देखि कऽ लहरल हमर करेज अनुभाव माने परिणाम बहार होइत अछि। स्फोट सिद्धांत: भर्तृहरीक वाक्यपदीय कहैत अछि जे शब्द आकि वाक्यक अर्थ स्फोट द्वारा संवाहित अछि। वर्ण स्फोटसँ वर्ण, पद स्फोटसँ शब्द आ वाक्य स्फोटसँ वाक्यक निर्माण होइत अछि। कोनो ज्ञान बिनु शब्दक सम्बन्धक सम्भव नै अछि। ई भारतीय दर्शनक ज्ञान सिद्धान्तक एकटा भाग बनि गेल। अर्थक संप्रेषण अक्षर, शब्द आ वाक्यक उत्पत्ति बिन सम्भव अछि। स्फोट अछि शब्दब्रह्म आ से अछि सृजनक मूल कारण। अक्षर, शब्द आ वाक्य संग-संग नै रहैए। बाजल शब्दक फराक अक्षर अपनामे शब्दक अर्थ नै अछि, शब्द पूर्ण होएबा धरि एकर उत्पत्ति आ विनाश होइत रहै छै। स्फोटमे अर्थक संप्रेषण होइत अछि मुदा तखनो स्फोटमे प्राप्ति समए वा संचारक कालमे अक्षर, शब्द वा वाक्यक अस्तित्व नै भेल रहै छै। शब्दक पूर्णता धरि एक अक्षर आर नीक जकाँ क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए आ वाक्य पूर्ण हेबा धरि शब्द क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए।सांख्य, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आ वेदान्त ई सभ दर्शन स्फोटकेँ नै मानैत अछि। ऐ सभ दर्शनक मानब अछि जे अक्षर आ ओकर ध्वनि अर्थकेँ नीक जेकाँ पूर्ण करैत अछि। फ्रांसक जैक्स डेरीडाक विखण्डन आ पसरबाक सिद्धान्त स्फोट सिद्धान्तक लग अछि। स्फोट सिद्धांतक आधारपर तोहर ठोर कविताक पाठ: आब उदयनक करियनक धरतीपर रहबाक अछैतो न्याय सिद्धान्तक स्फोट सिद्धान्तकेँ नै मानब कविक कविताकेँ नै अरघै छन्हि। मने मे रहल मनक सब बात कहि ओ अलभ्य चित चोर सँ सुन्नरिक ठोरक तुलना कऽ दै छथि।
उदयनक गामक कवि बूच कहै छथि भऽ रहल वर्ण - वर्ण निःशेष, शब्द सँ प्रगटल नहि उद्य़ेश्य; एतए शब्दसँ नै मुदा स्फोटसँ अर्थक संप्रेषण कवि द्वारा तोहर ठोर आ ऐ संग्रहक आन कविता सभमे जाइ तरहेँ भेल अछि, से संसारक सभसँ लयात्मक आ मधुर भाषा मैथिली मे (यहूदी मेनुहिनक शब्दमे) विद्यापतिक बादक सभसँ लयात्मक कविक रूपमे बूचजी केँ प्रस्तुत करैत अछि आ मैथिली कविताकेँ ऐ रूपमे फेरसँ परिभाषित करैत अछि।
फूलकुमारी महतो मेमोरियल ट्रष्ट काठमाण्डू, नेपाल:- फूलकुमारी महतो मेमोरियल ट्रष्टद्वारा स्थापित मैथिलीक सभसँ पैघ राशिक पुरस्कार फूलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान २०६७ सँ मिथिला क्षेत्रक सुपरिचित रङ्गसंस्था मिथिला नाट्यकला परिषदकेँ सम्मानित करबाक निर्णय कएल गेल अछि। एहि सम्मानमे दू लाख एक हजार) टकाक संगहि प्रशस्तिपत्र प्रदान कएल जएतैक।
जनकपुरधामस्थित मिथिला नाट्यकला परिषद ( मिनापक वि.सं. २०३६ सालमे स्थापना भेल छल। तीन दशकसँ अधिक समयसँ मूलतः नाट्यविधाकेँ केन्द्रमे राखि ई संस्था नाट्य संगीत साहित्य तथा सामाजिक अभियानक माध्यमसँ मैथिली भाषा-संस्कृति एवं समाजक विकासमे विशिष्ट योगदान दैत राष्ट्रिय-अन्तर्राष्ट्रिय स्तरपर ख्याति कमबैत आएल अछि।
तहिना फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कारसँ सप्तरी राजविराजनिवासी श्रीमती मीना ठाकुर आ बुधनगर मोरङनिवासी दयानन्द दिग्पाल यदुवंशीकेँ सम्मानित करबाक निर्णय कएल गेल अछि। एहि पुरस्कारमे पच्चीस-पच्चीस हजार टकाक संगहि प्रशस्तिपत्र प्रदान करबाक प्रावधान अछि। एहि दुनू व्यक्तिमेसँ श्रीमती मीना ठाकुर विगत चारि दशकसँ मैथिली सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा साङ्गीतिक क्षेत्रमे निरन्तर क्रियाशील रहैत विविध गतिविधिक माध्यमसँ महिला सशक्तिकरणमे निरन्तर सक्रिय छथि। सप्तरीक बेस सक्रिय संस्था- मैथिल महिला परिषदक संस्थापक अध्यक्ष ठाकुरक सम्पादनमे सृजनधारा (कवितासङ्ग्रह प्रकाशित छनि। तहिना दयानन्द दिग्पाल यदुवंशी विगत चारि दशकसँ साहित्य तथा सत्संगक माध्यमसँ मैथिली भाषा-संस्कृतिक विकास एवं सामाजिक सद्भाव सम्बर्द्धनमा निरन्तर सक्रिय छथि। आशुकवित्वप्रतिभासम्पन्न कवि दिग्पालक कहिया फेरु अबै छी (कवितासङ्ग्रह प्रकाशित छनि।
विख्यात् उद्योगपति तथा समाजसेवी डा. उपेन्द्र महतोद्वारा स्वर्गीय माता फूलकुमारी महतोक नामपर अपन मातृभाषा तथा मातृसंस्कृतिक उत्थानार्थ स्थापित एहि पुरस्कारक लेल प्रसिद्ध साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमलक संयोजकत्वमे श्रीमती पूनम ठाकुर आ धीरेन्द्र प्रेमर्षिक सदस्यतावला तीन सदस्यीय सिफारिश समिति गठन कएल गेल छल। स्व. फूलकुमारी महतोक जन्मजयन्तीक सन्दर्भमे फागुन १५ गते तदनुरूप फरवरी २७ तारिख कऽ जनकपुरधाममे एक विशेष कार्यक्रमक आयोजन कऽ ई सम्मान तथा पुरस्कार समर्पण कएल जएबाक कार्यक्रम अछि। धीरेन्द्र प्रेमर्षि- - फूलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान समितिक सदस्य सचिव छथि।
सूचना: विदेहक ०१ मार्च २०११ अंक महिला अंक आ १५ मार्च २०११ अंक होली विशेषांक रहत। ०१ मार्च २०११ अंक लेल महिला लेखक लोकनिसँ गद्य-पद्य रचना २६ फरबरी २०११ धरि आमंत्रित अछि, रचनाक ने विषयक सीमा छै आ नै शब्दक। आनो लेखक महिला केन्द्रित गद्य-पद्य २६ फरबरी २०११ धरि पठा सकै छथि। होली विशेषांक लेल हास्य विधाक गद्य-पद्य रचना अहाँ १३ मार्च २०११ धरि पठा सकै छी। रचना मेल अटैचमेण्टक रूपमे .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठाओल जाए। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहए जे ई रचना मौलिक अछि आ पहिल प्रकाशनक लेल विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १,६८९ ठामसँ ५६, ३७० गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,९०,८८३ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र- यायावरी
भावमय, भोगमय, योगमय बृन्दावन
“बृन्दावन सन वन नहीं
नन्दग्राम सन ग्राम
बंशीवट सन बट नहीं
रामनाम सन नाम”.
जखन बच्चे रही तँ हमर धर्मार्थी नानी हमरा संस्कृतक किछु श्लोकिआदिक संगे उपरोक्त दोहा सुग्गा जकाँ रटा देने रहथि। सूरदास, विद्यापति, रसखान आदि कवि लोकनिकेँ रचना पढ़लाक बाद बृन्दावनक बारेमे सदतिकाल कल्पना करैत रही। यमुनाक जल हरियर कचोर आ स्वच्छ कल-कल करैत होइ छैक। ई कहब छलन्हि हमर नानीक। अपनो मोनमे अबैत छल, ताहिं तँ गोपी सभ ऐ यमुनामे कखनो स्नान तँ कखनो पनघट लए धधरा चुनरी पहिरने, पएरमे पाजेब पहिर झुमैत-गबैत अबैत छल हेतीह। केतेक नैशर्गिक दृश्य होइत हेतैक यमुनाक कछेरमे! कदम्बक गाछ, गामक ग्वाल-बाल सबहक मधुर स्वर, मुरलीक तान, गोपीक गान, साधु- संतक शंखनाद, हरे-कृष्ण राधे-राधेक नाओंसँ उच्चारित आ मुग्धमय वातावरण, पण्डित, पण्डा आ विद्वान लोकनिक भगवद् चर्चा एवं राधा-कृष्णक प्रसंगपर वाद-विवाद, मस्त वातावरण। कृष्णमय बृन्दावन। राधामय बरसाना। नन्दमय नन्दग्राम। कान्हाक मथुरा। भगवानक कगुरियापर उठल 18 किलोमीटर केर परिधिमे पसरल गोवर्धन पहार। दूध-दही, मक्खन, रबड़ीसँ रेलम-पेल भेल समस्त चौरासी कोस। सफ-स्वच्छ वेगवान हरियर कचोर जलसँ अप्लावित आ कल-कल करैत यमुना। कातमे रंग-विरंगक गाछ-कदम्ब, जामुन, आम, नीम, बैर इत्यादि। नाना तरहक हरियरी। काते-काते मस्त भावसँ चरैत गाए-बाछा-बाछी। होइत छल एहने किछु दृश्य हेतैक समस्त ब्रजक्षेत्रक।
माए ऊपरसँ हमरा हमेशा कहैत छलीह: समस्त ब्रजक धरतीमे किछु देवत्वक भाव छैक। आकर्षक छैक। आइयो ऐ धरतीक छटा किदु अलगे छैक। एकबेर जाएब तँ आबक मोने ने करत। हएत ओतै रहि जाइ। सुग्गा सभ चौंचसँ चौंच मिलबैत, गाए-बछरा सभ आनन्दक उन्मादमे चरैत। खेत खरिहानमे मोर धुमैत, एहने छटा छैक बृन्दावन केर।
माएक बातकेँ नै मनबाक प्रश्ने कहाँ छल। रसखान स्मरण अबैत छलाह :
मानस हो तो वही रसखान।
बसहु ब्रज गोकुल गॉव केर ग्वारन।
जौं पसु हो तो कहा वसु मेरो।
चरौ नित नन्दक चेन्ु मन्जारन।
आर तँ आर रसखान तँ ओहि कौआ केर भागकेँ नीक बुझै छथि जकर जन्म ब्रजभूमिमे भेल छैक। भगवान जँ पाथरो बनाबथि आ ब्रजभूमिमे रही तँ जीवन कृत-कृत। ई मान्यता छलन्हि रसखानक।
दिल्लीमे पढ़ैकाल किछु लोक सभ मथुरा बृन्दावनक चर्च करैत छलाह मुदा कहि नै किएक कहियो ओतए जएबाक योजना नै बनल। बादमे जखन 1997 ईं.मे हम इन्दिरा गान्धी राष्ट्रीय कला केन्द्रमे शोधकर्मीक रूपमे नौकरी प्रारम्भ केलौं तँ हमर विभाग जनपद-सम्पदा केर विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बैधनाथ सरस्वती हमरा मुख्यरूपेँ दू कार्यपर केन्द्रित करबाक निर्देश देलन्हि। पहिल, UNESCO, UNDP केर ग्रामीण भारत परियोजनापर कार्य करब आ दोसर, विभागक क्षेत्र सम्पदा कार्यक्रम केर अन्दर ब्रज प्रकल्प परियोजनाकेँ देखबाक छल। क्षेत्रसम्पदा केर अन्तर्गत ई विभाग कुनो विख्यात सास्कृतक क्षेत्र लय ओहि क्षेत्रक सांस्कृतिक निधिक सर्वांग अध्ययन करैत छलैक। सर्वांगसँ तात्पर्य ओइ सांस्कृतिक क्षेत्रक सम्बन्धमे उपलब्ध रचना, ओतए केर लोकक मान्यता, ओतय केर इतिहास, पुरातत्व, वास्तु निर्माण कला, मूर्तिकला, लोक गीत, संगीत, वाह्य, वाह्ययंत्र, कृषि-कार्य पद्धति केर दक्षता, वेश-भूषा, गहना, वस्त्र विन्यास, श्रृंगार आर नै जानी की की सबहक समग्रता में अध्ययन, ओकर ज्ञानक प्रकाशन केनाइ, ओइपर चर्चा, परिचर्चा, सम्बाद, संगोष्ठी, कार्यशाला आदिक आयोजनसँ छलैक। ओइ समएमे क्षेत्र परम्परा केर अन्तर्गत दू क्षेत्रपर कार्य चलैत रहैक- दक्षिण भारतमे बृहदेश्वर मन्दिर तथा उत्तर भारतमे ब्रज प्रकल्प। ब्रज प्रकल्पमे ओना तँ बहुत रास विद्वान आ अन्य विषयक विशेषज्ञ सभ छलाह परन्तु हमरा जे सर्वाधिक प्रभावित केलाह से छलाह श्रीवत्स गोस्वामी। श्री वत्स गोस्वामी बृन्दावनसँ छथि। हिनकर पूरखा पश्चिम बंगालसँ आबि बृन्दावनक खोज केलन्हि आ ततय केर मुख्य पुजारी भेलाह। अखनो बृन्दावन केर बाके बिहारी मन्दिर केर मुख्य पुजारी हिनके पितऔत छथिन्ह। ई लोकनि एक अपन संस्था बनौने छथि- बृन्दावन शोध-संस्थान। ई संस्था बृन्दावन केर इतिहास, प्रेम, परम्परा इत्यादिपर शोध करैत अछि। हिनकर छोट भाए भागवत कथा करैत छथि। श्रीवत्स गोस्वामी बिना सील वस्त्र पहिरैत छथि। केवल धोती आ शरीरपर चद्दरि। धोती आ चद्दरि दुनू पीताम्बरी। महग आ शुद्ध टवीस्टेड रेशमसँ बनल। बहुत छोट-छोट केस। बिना मोछ दाढ़ीक चिक्कन मुँह आ गाल। नमहर-नमहर पनिगर डोका जकाँ आखि आभासँ चमकैत कपार, गोर वर्ण, करीब साठिक उमेरि, पाथरक आकर्षक मूर्ति जकाँ तरासल सनक मुँह, नाक, कान, आँखि, गोखूर जकाँ टीकी, कपारपर कुमकुम चानन केर टीका, छह फूटा काया, छरहर शरीर, सुडोल पेट, धोधि केर नामो-निशान नै, सीटल-टोटल स्मार्ट। तइपर सँ संस्कृत, ब्रजबोली, हिन्दी, बंग्ला, अंग्रेजी, फ्रेन्च आ जर्मन, अतेक भाषा धारा प्रवाह बजैत-लिखैत। के नै मन्त्र-मुग्ध भ' जेता अहेन व्यक्तत्वसँ? हमहुँ भेलौं तँ कून आश्चर्य।
त भेलै ई जे एक दिन श्रीवत्स गोस्वामी एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठीमे बृन्दावन केर बांके बिहारी मन्दिरमे छप्पन भोगपर अपन एक आलेख पढ़लनि। रसगर विन्यास, सोहनगर सामग्री, मधु टपकैत भाषा आ तइपर पॉवर प्वाईन्ट प्रजेन्टेशन। हुनकर ऐ प्रजेन्टेशनकेँ सुनला आ देखलाक बाद सभागारमे उपस्थित तमाम देशी-विदेशी विद्वान लोकनि मन्त्रमुग्ध भ' गेलाह। हमहुँ भेलौं। हुनकर प्रजेन्टेशनसँ ऐ बातक जानकरी भेल जे प्रति दिन बृन्दावन केर बांके बिहारी जीक मन्दिरमे मन्दिरक मुख्य देवता (प्रस्तर प्रतिमा) राधा-कृष्णकेँ कमसँ कम छप्पन-पच्चास आओर छ-छप्पन भोज्य सामग्रीसँ भोग लगैत छन्हि। लोक सभ एवं स्थानीय पण्डा लोकनि अपन-अपन धरक चिनवारसँ अति सूचिताक संग बिना पीयाज, लहसून एवं कुनो वर्जित आ अखाद्य वस्तुकेँ देने बनल व्यंजन लबै छथि। नियम तँ ई छै जे छप्पन व्यंजन हेबाक चाही मुदा सामान्यता ई संख्या दू गुना बढ़ि जाइत छैक। श्रीवत्स गोस्वामी केर स्लाइड ततेक नीक रहैक तकर वर्णन शब्दसँ नै कएल जा सकैत अछि। व्यंजनक आकर्षन आ मनमोहक सौन्दर्य। वनेवा स ल' क' सजेबा धरि केर बिहंगम दृश्य। सौन्दर्य, संयोजन आ समर्पण केर बेजोड़ उदाहरण। एकाएक बुझाएल जेना व्यंजन बनेबा आ सचार लगेबासँ पैघ कुनो कला नै भ' सकैत अछि। गाम स्मरण आबए लागल। जखन कखनो हमर बहिनक ससुर हमरा ओतए अबैत छलाह तँ हमर माए नाना तरहक व्यंजन आ तरकाी, तरूआ, पापर, अचार, चटनी, सलाद, सम्दास, बर, बड़ी आ नै जाने की की बनबैत छलीह। घरमे पावनि-तिहारबला उत्साह भ' जाइत छल। अलग- बगल केर महिला सभ सेहो माएकेँ मदति करबाक लेल आबि जाइत छलथिन्ह। भोजन बनलाक बाद गाएक गोबरसँ ठॉव नीपल जाइत छल। बड़का कांसक थारी (बल्कि थार कहु) मे कमसँ कम एक सेर अरबा चाउरक गम-गम करैत छरहर भात सजाएल, थारी दिससँ अर्धचन्द्राकारक स्वरूपमे पैघ आ छोट विभिन्न प्रकारक बाटी सजाएल ओइ सभमे दालि, घृत, तरकारी, अचार, सन्ना, चटनी इत्यादि राखल एकटा मध्यम आकारक छिपलीमे तरूआ इत्यादि सजाएल पापर हमर माए जानि-बुझि क' भटक ढेर पर राखैत छलीह । कलपरसँ टटका पानि लाबक जिम्मेदारी हमर होइत छल। लोटाक संग एकटा फुलही गीलास सेहो होइत छलैक। जखन माए केर ई सभ तैय्यारी पूर्ण भ' जाइत छलन्हि तँ हमरा कहैत छलीह- “जाऊ दरब्ज्जापर दद्दा (हमर पिताक बेमातर जे हमर पितासँ करीब 20 वर्षक पैघ छलाह। हम हुनका पितामह तुल्य मानैत छलअनि। आ सिनेहसँ दादा कहैत छलयनि। ) के कहिऔन्ह जे भोजनक सचार लगि गेल अछि। समधिकेँ भोजन करा देथुन्ह।”
हम माएक सम्वाद ल' चट्ट दनी दरबज्जापर चलि जाइ छलौं आ दादाकेँ कातमे बजा माएक सम्वाद नहु-नहु बता दै छलयन्हि। दादा साकांक्ष होइत बहिनक ससुरकेँ बड़ा विनम्रतापूर्वक कहैत छलथिन्ह- “समधि, भोजन तैयार अछि। हाथ-पएर धोल जाओ। चलू भोजनक हेतु।”
आ पाहून महोदय बड़ा विनम्रता स दादाक आग्रहकेँ स्वीकार करैत ओछायनपर सँ उठि खराम पहीर- हाथ-पएर धो दादाक संग भोजनक हेतु विदा होइत छलाह। आगाँ-आगाँ हम आ पाछाँ-पाछाँ ओ सभ। बड्ड प्रेमसँ भोजन करैत छलाह। अन्तमे माए बड़का बट्टामे छालीसँ भरल गरम दूध आ सभसँ अन्तमे दही भेजबैत छलथिन्ह। पाहुन महोदय थारीक परोसल ब्यंजन एवं तमाम वस्तुक लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा बड़ा मनोयोग पूर्वक ग्रहण क' लैत छलाह। एक-आध-बेर भोजनक प्रशंसा सेहो मुक्त कंठसँ करैत छलाह। किछु हँसी-मजाक आ कटाक्ष: सेहो चलैत छलैक। दादा हुनका सामनेमे एक छोट पीढ़ीपर बैसल, बेंत पकरने हुनकर आव-भगतमे लागल रहैत छलाह। ओह!!!! कतए भटकि गेलौं हम छप्पन भोगक चर्चामे!!!
श्री वत्स गोस्वामी हमरा मोनमे एक हिसाबें ब्रजप्रकल्पक खूब नीकसँ जनबाक जिज्ञासा उत्पन्न क' देलन्हि। बीच-बीचमे किछु सांस्कृतिक कार्यक्रममे ब्रजभूमिसँ कलाकार आ कथावाचक सभ अबैत छलाह। गीतमे आ कथा वाचनाक क्रममे ई लोकनि ब्रजभाषाक किछु खांटी शब्दक प्रयोग करैत छलाह। ओ शब्द एहेन जे एकाएक प्रेमक नशामे मनुक्ख धूत्त भ' जाए। फेर की छल हम अपन संस्थाक ब्रज-प्रकल्प परियोजनामे लागि गेलौं। मुदा एकाएक आरो परियोजना सभ आबि गेलै आ हमरा ब्रज-प्रकल्प छोड़ए पड़ल। मोन हमेशा कचोट करैत रहल मुदा की कएल जा सकैत छल।
2007 ईंमे गामसँ हमर माता-पिता दिल्ली ऐलाह। माए मथुरा वृन्दावन जेबाक इच्छा व्यक्त केलनि। हम तुरंत तैय्यार भ' गेलौं। मुदा समयाभाव छल। हमरा लग समएक कमी रहैत अछि ऐ बातसँ पिताजी नीक जकाँ अवगत छलाह। ओ कहलनि- “ठीक छै। हमरा लोकनि दिल्लीसँ तीन बजे प्रात: बृन्दावनक हेतु प्रस्थान करब। बांके बिहारी, रंगनाथ इस्कॉन मन्दिर आ किछु अन्य प्रसिद्ध मन्दिरक दर्शन करैत सीधे मथुरा चलि पड़ब। मथुरामे द्वारकाधीशक पूजा कए आ भगवान श्रीकृष्णक जन्मस्थली (गर्भ गृह) देखलाक बाद भोजन- तत्पश्चात गोबरधनक परिक्रमा (कारेसँ) आ अन्तत: बरसाना जाय राधा-रानी या लाड़लीजीकेँ दर्शन करैत देर-सवेर ओही दिन दिल्ली वापस आबि जाएब।”
पिताजीक ऐ योजनासँ हम प्रसन्न भेलौं। भेल जे सभ कार्य एके दिन (रवि दिन) मे भ' जाएत। इहो भेल जे पिताजी ब्रजक्षेत्रसँ नीक जकाँ वाकिफ छथि। माए सेहो पिताजी केर योजनाकेँ सहर्ष स्वीकारि लेलनि।
दोसर दिन प्रात: हमरा लोकनि स्नान-ध्यान कए ठीक तीन बजे बृन्दावन यात्राक हेतु दिल्ली सँ निकलि गेलौं। रस्ता साफ आ भीड़क नामो निशान नै। गाड़ीक चालक साकांक्ष। बहुत वेगसँ मुदा सधल गाड़ी हँकैत। ठीक- दू घंटामे बृन्दावन पहुँच गेलौं। सभसँ पहिने इस्कान मन्दिर, फेर रंगनाथ मन्दिर किछु- छोट-मोट आनो मन्दिर आ अन्तत: बांके बिहारीक मन्दिर जा ओतए राधा-कृष्णक दर्शन केलौं। सभ कर्म शीघ्रतामे आ अन्हारेमे। ओतएसँ सीधे मथुराक हेतु, प्रस्थान केलौं। होइत छल शीघ्र द्वारकाधीशक दर्शन भ' जाएत तँ माए-बाबूजी अन्नजल ग्रहण करताह। द्वारकाधीशक दर्शन कए कृष्ण जन्मस्थलीक दर्शन केलौं। पुन: एक होटलमे भोजन कए बिना समए गमौने हमरा लोकनि गोबर्धन पर्बत दिस बिदा भेलौं। आब सुरूज पूरा उगि गेल छलाह। जाड़ कम भ' रहल छल। गोबर्धन कोनो दृष्टिकोणे पहाड़ नै लागि रहल छल। मुदा माए कहलनि- “बाऊ, भाव देखिओ स्वरूप नै। कलयुग केर मनुक्खक दुष्कर्म आ पापसँ गाेबर्धन नीचा भ' गेल छैक। अहाँ पढ़ल-लीखल छी। कनी सोचू : भगवान कृष्ण जै गोबर्धनकेँ अपना आंगुरपर उठेने हेताह से की सामान्य पहार छल हेतैक? किन्नौ नै।”
माएक बातकेँ हम बिना कुनो तर्क केने सुनि लेलौं। एक बात ई नीक लागल जे गोबर्धन साफ-सुथड़ा छलैक। बीच-बीचमे अगल-बगल केर गामक महिला सभ गोबरक चिपड़ी आ गोईठा पथैथ। कतौ-कतौ गाए-बाछी (आ बाछा) चड़ैत। चहुओर हरियरी। रस्तामे झुण्डक-झुण्ड महिला आ पुरूष लोकनि बिना जूता-चप्पल पहिरने गोबर्धनक परिक्रमा करैत। राधे-कृष्ण, राधे-कृष्णक रट लगबैत। मुरलीधर की जाय। श्रीकृष्ण की जय। करैत। आ किछु लोक सभ गीत गबैत प्रेमक उन्मादमे विभोर भेल चलल जाइत। एक ठामक ई दृश्य देख माए भावुक भ' गेलीह। कहलनि- “बाऊ, 10-१५ मिनट लेल हमरा कारपर सँ उतारि दीअ। कमसँ कम 1008 डेग पएरे तँ चलि ली ऐ भूमिपर! ई माटि जौं पएरमे लागि जएत तँ जीवन धन्य भ' जएत।”
हम गाड़ी रोकि माए केर संग लगभग दू किलोमीटर पैदल चलैत रहलौं। माए बड़ प्रसन्न भेलीह। मुदा ई कचोट रहिये गेलन्हि जे शायद पूरा गोबर्धनक परिक्रमा पएरे-पएरे करितौं। बादमे हमरा लोकनि कारपर बैस गेलौं। गोबर्धनसँ हमरा लोकनि बरसानाक हेतु विदा भेलौं।
बरसाना पहुँच क' राधा-रानीक मन्दिर जेबाक छल। ओतए गेलाक बाद ज्ञात भेल जे मन्दिर तँ पहाड़ीपर छैक जै लेल लगभग चारि सए सीढ़ीक पैदानपर चढ़ह पड़तैक। धर्मसँ ओतप्रोत भेल माए बड़ा सहजतासँ सीढ़ी चढ़ए लगलीह। पिताजी घुटनाक दर्दसँ ग्रसित छलाह तथापि नहु-नहु ओहो सीढ़ी चढ़ैत रहलन्हि। बीच-बीचमे सुसताइत आ आगू बढ़थि। अन्तत: हमरा लोकनि मन्दिरक प्रांगणमे प्रवेश केलौं। मुदा प्रवेश केलाक बाद पता चलल जे मन्दिरक पट बन्द छैक। तइकाल दू बजैत रहैक। लोक सभ कहलक जे मन्दिरक पट साढ़े चारि बजे सांझमे खुजतैक। थाकल तँ रहबे करी। एकठाम भुईयेमे ओछाइन ओछा, जाजीम बीछा हमरालोकनि बैस गेलौं। कनीकालक बाद दूटा 8-10 बर्खक लड़का आ दू टा बालिका सभ स्थानीय, हमरा सभ लग पहुँचल। कहए लगल- “बाबू जी, राधा-रानी की गीत सुनाऊँ?” कहि नै कियाएक हम तुरत कहि देलिऐक- “ठीक है सुनाओ।”
आ ओ सभ गीत गाबए लागल:
“राधा रानी की जय। महरानी की जय......।”
सभ आखर सुन्दर बोली मनमोहक। स्वर खांटी लोकल आ सुअदगर। गीतक बाद गीत। ओ सभ गबैत रहल। ब्रजबोलीमे समस्त वातावरण राधामय। माए भाव-विभोर भ' हाथ जोड़ने राधा-रानी की जाय, माहरानी की जय, राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण बजैत रहलीह। गीत सुनैत रहलीह। तीर्थक इच्छाक पूर्ति भेलनि तै सुखसँ उह्लादित भ' गर्म-गर्म नोर खसैत रहलन्हि। जेना-जेना माए केर आँखिसँ नोर खसन्हि तेना-तेना हुनकहि आँखि आ मुँह सुन्नर भेल गेलन्हि। पिताजी सेहो प्रसन्न छलाह। ठीक साढ़े चारि बजे मन्दिरक पट खुजलैक। लोक सभ जोरसँ राधा- रानी की जय केर धोष केलक आ मन्दिरमे प्रवेश केलक। दर्शन केर बाद हमरा लोकनि किछु काल आरो ओतए रहलौं। जखन अन्हार होमए लगलैक तँ पहाड़ीपर सँ नीचाँ उतरए लगलौं।
नीचाँ उतरि चाह-नाश्ता क' एकबेर पुन: भगवान श्रीकृष्ण आ राधा रानी केर जयकार करैत दिल्लीक हेतु प्रस्थान केलहुँ। दिन भरिक थाकल आ भोरे ऑफिस जेबाक बोझ तँए सूति रहलौं। मुदा मोनमे ई भावना प्रबल भ' गेल जे एकबेर चैनसँ ब्रजक्षेत्र घूमब। यमुनाकेँ देखक इच्छा आ बरसानेक सौन्दर्यक अवलोकन सदरिकाल मोनमे औढ़ मारैत रहल।
जनवरी 2011मे हमर सासु बृन्दावन जेबाक इच्छा हमरासँ व्यक्त केलनि। ओ हमर स्वर्गीय स्वसुर पण्डित कालीनाथ झा केर प्रथम पुण्यतिथिसँ पूर्व एकबेर यमुनामे स्नान एवं अपन गौरक विसर्जन करए चाहैत छलीह। हम तुरत अपन संगी श्री विरेन्द्र कुण्डुसँ बात कए जनवरी मासक अन्तिम रवि दिन अप्पन सासुक संग विरेन्द्रक कारसँ बृन्दावन जेबाक योजना बना लेलौं.......।
क्रमश:
शिव कुमार झा "टिल्लू" शिव कुमार झा 'टिल्लू'
मैथिली कथाक विकासमे गामक जिनगीक योगदान-
अपन जन्म कालहिंसँ “मैथिली” समाजक अग्र आसनपर बैसल वाचकगण द्वारा महिमामंडित होइत रहलीह। स्वाभाविक अछि शिक्षित लोक ऐ वर्गसँ संबंध रखैत छलथि। आर्य परिवारक सभ भाषा समूहक जननी संस्कृत मानल जाइत अछि तँए मैथिली कोना तत्समसँ बचथि? सरिपहुँ मैथिलीक अधिष्ठाता ब्राह्मण आ कर्ण-कायस्थ रहल छथि, तँए काव्य, महाकाव्य, कथा वा नाटक हुअए सभ साहित्य पल्लवक उदय तत्सम मिश्रित मैथिलीसँ भेल।
आिदकवि विद्यापतिक पदावली पुरान-रहितौं एे रूपेँ अपवाद अछि मुदा हुनक पुरूष परीक्षा संस्कृतक आवरणसँ बाहर नै निकलि सकल।
संभवत: मैथिलीक कथाक आरंभ पुरूष परीक्षाक मैथिली अनुवाद कऽ चन्दा झा कएलनि। प्रथम मैथिलीक मौलिक कथा विद्यासिन्धुक कथा, कथा संग्रह थिक। तत्पश्चात् स्वतंत्र रूपेँ मैथिलीमे कथा लिखव प्रारंभ भऽ गेल। भुवन जीसँ लऽ कऽ वर्त्तमान युगक कथा यात्रामे किछु एहेन कथाकार भेल छथि जनिक यात्रासँ ऐ भाषाकेँ स्थायी स्तंभ भेटल। ऐमे कुमार गंगानंद सिंह, नागेन्द्र कुमर, मनमोहन झा, रामदेव झा, हंसराज, व्यास, किरण, रमानंद रेणु, गौरी मिश्र, लिलि रे, रूपकान्त ठाकुर, रमेश, धीरेन्द्र धीर, अशोक, मन्त्रेश्वर झा, धूमकेतु, तारानंद वियोगी, विभूति आनंद, चित्रलेखा देवी, रामभरोष कापड़ि भ्रमर, श्यामा देवी, शेफालिका वर्मा, कमला चौधरी, कामिनी कामायनी, प्रदीप बिहारी, हीरेन्द्र, लल्लन प्रसाद ठाकुर, गौड़ीकान्त चौधरी कान्त, अरविन्द ठाकुर, अशोक मेहता, राजाराम सिंह राठौर, परमेश्वर कापड़ि, विजय हरीश, उमानाथ झा, योगानंद झा, सुधांशु शेखर चौधरी, गोविन्द झा, राधाकृष्ण बहेड़, मणिपद्म, मायानंद मिश्र, जीवकान्त, अशोक, राजमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी, नरेश कुमार विकल, सुभाष चन्द्र यादव, केदार कानन, बलराम, अमर, चन्द्रेश, रमाकान्त राय 'रमा', कुमार पवन, सियाराम झा सरस, रामभद्र, रौशन जनकपुरी, राजेन्द्र विमल, रमेश रंजन, सुजीत कुमार झा, जितेन्द्र जीत, नारायणजी, शैलेन्द्र आनन्द, अनमोल झा, उग्रनारायण मिश्र कनक, राजदेव मण्डल, कपिलेश्वर राउत, वीणा ठाकुर, कैलाश कुमार मिश्र, देवशंकर नवीन, महाप्रकाश, धीरेन्द्र नाथ मिश्र, साकेतानंद, शिवशंकर श्रीनिवास, मानेश्वर मनूज, अनलकांत, श्रीधरम, सत्यानंद पाठक, मिथिलेश कुमार झा, नवीन चौधरी, आशीष अनचिनहार, विरेन्द्र यादव, बेचन ठाकुर, मनोज कुमार मण्डल, अजीत आजाद, अकलेश कुमार मण्डल, संजय कुमार मण्डल, भारत भूषण झा, लक्ष्मी दास, नीता झा, उषा किरण खान, ज्योत्सना चंद्रम, सुस्सिमा पाठक, शुभेन्द्र शेखर, कुसुम ठाकुर, दुर्गानन्द मण्डल, नीरजा रेणु, ज्योति सुनीत चौधरी, शंकरदेव झा आ गजेन्द्र ठाकुर प्रमुख छथि।
ऐ बीछल कथाकारक समूहसँ विलग किछु एहेन कथाकार भेल छथि जनिक सृजनशीलतासँ मैथिलीकेँ नव गति भेटल। जइमे प्रो. हरिमोहन झा, ललित आ राजकमलकेँ राखल जाए। हरिमोहन बाबू हास्य आ दर्शनसँ समाजक सत्यकेँ नाङट करैत इतिश्री मर्म वा अनुशासित मजाकसँ कएलनि। ललित जीक कथामे सम्यक समाजक परिकल्पना तँ भेटैत अछि मुदा समाजक कात लागल वर्गक विवरण स्वातीक बून जकाँ कतौ-कतौ भेटैत अछि। राजकमल चौधरी प्रयोगवादी कथाकारक रूपेँ प्रसिद्ध छथि। जौं एकैसम शताब्दीक कथा िवकासक चर्च कएल जाए तँ ऐ विधामे संतान रहितौं मैथिली बॉझ जकाँ भऽ गेल छलथि। सन् २००१सँ २००८ईं. धरिक कथा विकासक चर्च करब प्रासंगिक नै अछि।
धन्यवाद दैत छी मिथिला दर्शन (कोलकाता) आ घर बाहर (पटना)क संपादककेँ जनिक प्रयाससँ मैथिली साहित्यकेँ एकटा बेछप्प कथाकार भेटल। ओ मात्र कलमें वा वाचक रूपेटा नै जीवनक सभ क्षेत्र, सम्यक चरित्र रखैबला साम्यवादी साहित्यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल।
हिनक पहिलुक कथा भैंटक लावा आ बिसाँढ़ घर बाहरमे आ चूनवाली मिथिला दर्शनमे प्रकाशित भेल। तत्पश्चात विदेहक सौजन्यसँ हिनक रचना क्रमश: मैथिलीक पाठक लोकनिकेँ भेटए लागल।
सन् २००९ईं.मे विदेहक संपादक श्री गजेन्द्र ठाकुरक प्रयाससँ श्रुतिप्रकाशन दिल्लीक अधिष्ठाता श्री नागेन्द्र कुमार झा आ हुनक साहित्य प्रेमी धर्मपत्नी श्रीमती नीतू कुमारी हिनक पहिल कथा संग्रह गामक जिनगी प्रकाशित कएलनि। संयोगसँ ऐ पोथीक प्रारंभ भैंटक लावा कथासँ कएल गेल।
एक सए पैंसठ पृष्ठक ऐ संग्रहमे १९ गोट कथा संग्रहीत अछि। आमुख देसिल वयनाक सिद्धहस्त कथाकार सुभाष चन्द्र यादव जी लिखने छथि। जेना-तेना सुभाष बाबू कथाकारक महिमामंडन तँ कएलनि, परंच ऊपर मोने आ हियासँ लिखल आमुखमे भिन्नता होइत अछि, जेकर िनर्णए प्रबुद्ध पाठकपर छोड़ि देल जाए।
बंगभाषीकेँ कोलकाता सन महानगर, मगधीकेँ पटलिपुत्रसन ऐतिहासिक शहर, भोजपुरी लोकनिकेँ गोरखपुर आ वाराणसी सन धाम भेटल। मैथिली भाषीकेँ गनि-गुथि कऽ दरिभगा आ सहरसा सन ग्राम्य नगरी। तखन भाषाक शहरीकरण आ आदान-प्रदानक सपनों देखब उचित नै। भारतवर्ष जौं गामक देश तँ मिथिला महागामक भूिम। एक वर्ष बाढ़ि तँ दोसर वर्ष सुखाड़। कोनो उद्योगक साधन नै, शिक्षा, स्वास्थ्य आ सड़क सन मौलिक समस्या मकड़जालमे ओझराएल अछि। परिणाम पलाएन अर्थात पड़ाइनक रूप लऽ रहल। भोजपुरी लोक सेहो पलाएन कएलनि परंच अपन भाषाक संग, दृष्टिकोण नीक लगैत अछि। अपन देशकेँ के कहए माॅरीशस आ फिजी धरि अपन बोली धेने छथि।
अपन जीवन-आचारकेँ हाइटेक बनेबाक क्रममे मैथिल संस्कृतिक दोहन भऽ रहल अछि। आनक कोन कथा? किछु एहेन साहित्यकार भेलाहेँ जिनका साहित्य आकादमी पुरस्कार तँ मैथिली भाषाक लेल भेटल मुदा हुनक परिवारक नेना-भुटका गलतियोसँ मैथिली नै बजै छथि। कथा जगतक प्रयोगवादी शिल्पी राजकमल जीक कथा रीति-प्रीतिक समागमसँ ओत-प्रोत छन्हि। ललका पाग, साँझक गाछ, कादम्वरी उपकथा सन बहुत रास कथामे सिनेहक मर्मस्पर्शी चित्रण कएल गेल अिछ। परंच कतौ-कतौ राजकमल जी सेहो भटकि कऽ अनैतिक प्रेमकेँ चलन्त साहित्यक रूप देलनि। जेना घड़ी शीर्षक कथा कोनो रूपेँ समाजमे नीक संदेशक वाहक नै भऽ सकैत अछि। ऐमे उल्लेख तँ समाजक एकात लागल जहूरनीक कएल गेल परंच की अनुशासित सिनेहक प्रदर्शन राजकमल जी कऽ सकलाह? जखन प्रांजल आ प्रवीण कथाकारक ई दशा तँ आनक विषएमे की लिखल जाए।
एक अर्थमे किछु जनवादी साहित्यकार अपन कथा सोतीमे मैथिली पाठककेँ आनन्दित अवश्य कएलनि ओइमे प्रभाष कुमार चौधरी, रामदेव झा आ कांचीनाथ झा किरणक संग-संग धूमकेतु, कुमार पवन, कमला चौधरी आ डॉ. शेफालिका वर्माकेँ राखल जा सकैछ।
जौं सम्पूर्णताक चर्च करी तँ जगदीश बाबूकेँ एकैसम शताब्दीक सर्वश्रेष्ठ कथाकार माननाइ यथोचित। किएक तँ ओलती आ चिनुवार बिसरैबला मैथिली प्रेमीकेँ भैंटक लावा, बिसाँढ़, पीरार, करीन आ मरूआसँ परिचए करौलनि। मैथिली भाषाकेँ नव-नव शब्द देलनि। पाग पहिर कऽ सभामे आगाँ बैसैबला लोकसँ लऽ कऽ मुसहर धरिक प्रति सम्यक सिनेह हिनक कथाक विशिष्टता अछि। जगदीश जी समाजक ओइ वर्गसँ अबै छथि जकरा अखन धरि मंचपर आसन िदअमे हमरा सभकेँ संकोच होइत अछि। परंच कतौ हिनक कथामे व्यक्तिगत द्वेष आ पूर्वाग्रहक प्रदर्शन नै। जगदीश जी समाजक आगाँक पिरहीकेँ सम्मानित करैत सम्यक ज्योति जगेबाक आश अपन कथा सभमे रखने छथि।
क्रमश
राजदेव मंडल उपन्यास
हमर टोल
पूर्वरूप :- (क)
अहाँ अही वसुंधराक कोनो कोनपर छी। ई हमर आत्मविश्वास कहि रहल अछि। अहाँक नै देखितहुँ हम देख रहल छी। अहाँक उपस्थितिक ज्योज्स्ना हमरा चारूभर आभासीन भऽ रहल अछि। आर ओइ ज्योतिसँ हमर रोम-रोम पुलकित भऽ रहल अछि। हमहूँ तँ ओइ नृत्यलीलाक अंश छी।
हम बुभुक्षित छी अहाँक सिनेह आ आशीरवादक लेल।
हमरा क्षमा नै करब तँ दण्ड दिअ। किन्तु बिसरू नै। यएह कामना अछि।
अहाँक स्मरण कऽ किछु रचबाक प्रयत्न कऽ रहल छी।
(ख)
विशाल सागरक पसरल जलपर धनुकटोली ठाढ़ अछि। की ओ हँसि रहल छै? आकि कानि रहल छै?
लगैत अछि जेना रँग-बिरँगक जलमे ओ उगि आएल अछि। चारूभर उड़ैत सुगन्धित धुइयाँ। मुँह आ देहमे लटपटाइत बादल जकाँ कारी आ उज्जर धुइयाँ। आ लगैत छै जे ऊ आकृति रसे-रस बढ़ि रहल हो। गाम-नगर-महानगर सभटा आकृतिक भीतर ढुकल जा रहल हो। नजरिक जे एकटा बिस्तार होइ छै, सेहो जेना ओकरा सोझहामे छोट भेल जा रहल छै। ओकरा निसाँससँ निकलैत हवा, बुझाइ छै जेना बिहाड़ि बहैत हो।
बहुत गोटे जेना एक्के बेर जय-जयकार केलक। मथापर जटा, अधपक्कू दाढ़ी-मोछ, लाल कुंडाबोर आँखि हाथमे बड़कीटा शंख लेने एकटा बाबाजी देखाए पड़ैत छै। ओकरा आँखिसँ लहू बहि रहल छै।
हवाकेँ कंपित करैत गम्भीर वाणी निकलैत अछि- “दैविक दैहिक भौतिक तापा....।”
आकास फाड़ैबला शंखनादसँ आगूक शब्द झपा गेल। संगे बाबा महतोकेँ जय-जयकार होअए लगल।
धनुकटोली शनै: शनै: जलमे समा रहल अछि। ओइ स्थानपर उगैत छै- एकटा छोटका टोल। जेना हमर टोल। छोट-पैघ, नीक-अधलाह घर-दुआरि। हँसैत-कानैत लोक-वेद, धीया-पुता, माल-जाल, चिरइ-चुनमुन्नी, सुखल आ हरियर- गाछ-बिरिछ, पोखरि, इनार गली, सड़क, चौबटिया। की ई सपना छी आकि सत्य.....। आकि सत्यक सपना?
1
(नाम, स्थान आदि कल्पनापर आधारित अछि)
गहवर घर हल्ला कऽ रहल अछि। सघन अन्हार कान ठाढ़ केने सुनि रहल अछि। गिरहतबाकेँ ईंटाबला घरपर बैसल इजोत हनहना कऽ हँसैत अछि। हँसी अन्हारमे छिड़िया जाइत अछि कन्तु अन्हारमे छिड़िआएलो इजोत भकजोगनी जकाँ भुकभुकाइत अछि। हड़हड़ाइत हवा आ ओकरा कान्हपर चढ़ल भगैतक स्वर दड़बड़ मारि रहल अछि- सौंसे टोल।
“कतेक दूर रहलह हौ सेवक-राजा फुलबरिया हौ.....। एके कोस रहलह हौ सेवक राजा फुलबरिया हौ.....। लागि गेल चौदहम केवाड़ हौ....।”
ताल काटैत मिरदंग आ झनकैत झाइल। भगैतया सभ गाबैसँ बेसी देह मचकाबैत अछि। जेना देह नाचैत अछि टाँग नै। साज-बाजक तालपर नाचैत देह आ मन।
गहवरक पछुआरमे अन्हार खटखटा रहल अछि। ऊ अन्हार नै भूत प्रेतक छाँह छिऐ। नेंगरा बुढबा कहैत रहै छै। रौ गहवरक देवी-देवताक डरे सबटा साहन सभ पछुआरमे नाँगटे नाचैत रहैत छै। वएह सभ कखनो काल नढ़ियाकेँ कान पकड़ि केंकिया दैत अछि- भूउउऊ.....। ओकरे सुरमे सुर मिला कऽ भूत प्रेत कानए लगैत अछि- कुउउऊ....। तखैन टोलक लोक भलहिं सुटैक जाइ किन्तु कुताकेँ देख लिओ ताल। जना नाँगरिपर कियो मटिया तेल ढारि देने होइ।
गहवरक आगू सौंसे अँगनीमे दीया जरि रहल अछि, गोल-गोल पाँतिमे। अन्हरियाकेँ गरदनियाँ दऽ भगा रहल अछि। तैयो उ थेथर जकाँ दोग-दागमे ठाढ़ रहैए चाहैत अछि। हे एकोटा दीपक टेमी निच्चाँ नै हो।
हँ... हँ एहेन बखतमे भकइजोत बड्ड खराब। डाइन आ भूत केनौ सँ लपकि छौ। अपन-अपन सतरकी घटलासँ पहिने दीपमे तेल ढारैत रह।
पता छह तेल कते डहतै। महगाइ तँ अासमानमे भूर कऽ देने छै। ओइ कारणे तँ सभकेँ झकभकाइते छै।
यएह तेल जरे ककरो फटै छै एकरो....।
झकाश इजोत देखैक छौ तँ देखही शहर जा कऽ। राइतोमे सड़कपर गिरल सुइया ताकि लेबही।
भगतकेँ कोनो कम पामर होइ छै। चाहतै तँ ऐ गाछो सभमे इजोत जरए लगतै।
अच्छा चुप। बड़का लाल बुझक्कर भऽ गेलेँ।
हम नै अहाँ बड़का विदुआन।
अहाँ चुप रहू। एम्हर देखू।
खेलाबन भगत पूजा ढारि रहल अछि। खीर, लड्डू, पान, सुपारी, तुलसी, गंगाजल सभटा डाली सभमे सजाएल छै। मनक तरजूपर तौल कऽ अछत-फूल राखि रहल अछि। सभटा पूजाकेँ कुड़ि एके रंग एके आकार। भगत जखैन लिहुरि कऽ पूजाकेँ कुड़ि रखैत छै तखैन ओकरा पेट बोमिया उठै छै।
“गै माए, भगत पेटमे बाघ रखने छै। देखै छीही हुमड़ै छै।”
“गै दाइ देवता-पितर नै बुझै छौ तोहर बेटी तँ जुगमे भूर करतौ। अखैन तँ पा-भैरिक छौ।”
हे मुँह सम्हारि कऽ बाजू। अपन बेटी जेना बड्ड सतबरती। कोन-कोन रसखेल केलक के नै बुझलक।
हे लबरी.....।
हे चुप.....। झगड़ा-झाँटी बन्न। पहिले कहलौं औरतिया सभकेँ एक कात आ पुरूष सभकेँ एककात बैठाएल जाए।
हँ-हँ सएह कएल जाए।
आइ गहवर घरमे पहिलुक डाली जागेसरकेँ लागल अछि। ओकरा स्त्रीकेँ कोखिया गोहारि हेतैक। अोकरा देहपर कखनौ भूत सवार भऽ जाइत अछि आर उ खेलाए लगैत अछि।
केना भूत सवार नै हेतै? धर्मडीहीवालीकेँ देहो तँ सवारीकेँ जोग अछि। भरल-पूरल जवानी, श्याम वर्ण, तेलसँ छट-छट करैत देह, खलिआएल आँखि, गोल बाहिंपर कसल अँगिया। कारी भौंरा केश। आँखिकेँ जेना स्वत: खैंत लैत अछि अोकर देह।
एकर ठीक उनटा जगेसराक शरीर। जेना जुआनीमे घुन लगल हो। तहिना ओकरा देहकेँ बेमारी अधखिज्जु कऽ देने अछि। कमजोरीक कारणें तामस हरदम नाकेपर चढ़ल रहैत अछि। तइपर सँ बाल-बच्चा नै होइ छै। तामस आर दुगुना। ई सभटा तामस उतारत धर्मडीहीवालीपर। कखनो फनकए लगैत अछि- “सन्तानक मुँह कतऽ देखते ई पपिआही। जीनगी भरि तँ कुकरम केने अछि।”
धर्मडीहीवालीकेँ भरि देह ई बात छूबि लैत अछि। अपन असल नाम निरमला जेकरा उ नैहरमे राखि कऽ अाएल अछि। अपना नैहराक बड़ाइ चिबा-चिबा करए लगैत अछि- “हमरा धर्मडीहीकेँ लोक असल धर्म-कर्म करैबला सभ अछि। पपिआहा सभ तँ अहीठाम भरल अछि।”
दिन, दुपहर, राति कखनो दुनू बेकैतमे बकटेटी शुरू भऽ जाइत अछि। टोलक बूढ़-सुरकेँ अनसोहाँत लागब स्वभाविके। जगेसराकेँ किछो तँ कहऽ पड़तै- “हे रौ, नै होइ छौ तँ ओझहो-धामिकेँ देखाबहि। कोनो धरानी एकोटा बाल-बच्चा भऽ जेतौ तँ बुझही जे सभ दुख पार। ई भूत-देवी आ तामस-पित सभटा एकरा देहसँ भागि जेतौ।”
“सन्तान लेल तँ कोखिया गोहारि करबै पड़तौक।”
कतेक दिनसँ जागेसर गोचर विनतीमे लगल अछि। किन्तु भगत पिघलत तब ने। भगतकेँ छुट्टी कहाँ रहै छै। आइ ऐ गाम तँ काल्हि दोसर गाम। नाते-नत।
आखिर पक्का भगत छिऐ रामखेलाबन। दू पीढ़ीसँ ओझहा-धाइमक काज कऽ रहल छै।
पहिने ओकरा गहवरमे गछौटी करियौ। साफ-साफ कहियो पूजामे कतेक खरच करबै। पाठीक बलि देबै। गछि लिओ। तब भगत तैयार हएत।
कतेक खुशामदे आइ तैय्यार भेल अछि अछि खेलाबन भगत।
क्रमश:
१.ज्योति सुनीत चौधरी-रातिक इजोतः २. किरीम लगाउ-मुहॅ चमकाउ- एकटा हास्य विहनि कथा १.
ज्योति सुनीत चौधरी रातिक इजोतः
भगजोगनीक चमक के बिना गामक राति सामान्य राति नहिं बुझायत छल।आइयो गामक सामन्य राति छल मुदा मास्टर साहेब के घरमे किछु विशेष चहर्लपहल छल।हुन्कर पुत्रीके विवाह ठीक भेल छलैन से खान पीन पर बेटावला सब आयल छलैन।बड्ड सम्पन्न परिवारमे विवाह ठीक केने छला मास्टर साहेब। बेटीके पढ़ेबो मे कुनो कमी नहिं रखने छलैथ।जतेक सुविधा गाम मे उपलब्ध छल ताहि लऽ कऽ बेटीके बी एड करेने छलैथ। एक मध्यम वर्गीय पुरूषप््राधान परिवारमे बेटीके शिक्षण बिना घरक स्त्रीक प््राबल आ निरन्तर सहयोगक सम्भव नहिं होयत अछि मुदा अपने सब तऽ स्त्रीके संस्कार आ गृहस्थीक गुणक परिचालक मानैत छी से मास्टर जीके बेटी घरक काज मे सेहो निपुण छलैथ।मुदा हुन्कर बेटी किछु क्रान्तिकारी विचारक भऽ गेल छलीह।ओना तऽ हुन्का वरपक्षक मारिते परिवार सब देखक पसन्द केने रहैन आ हुन्को लग लड़का के फोटो सब रहैन मुदा हुन्कर कहब छलैन जे बिना लड़का सऽ बात केने आ मेल जोल बढ़ेने ओ विवाह नहिं करती।अपन पत्नी पर अनुशासनक ढ़िलाईक आरोप लगेलो पर माय बेटी टस स मस नहिं भेली तखन मास्टरजी तय केला जे ई प््रास्ताव ओ वरपक्ष लग खान पीन दिन रखता।ताहि लऽ कऽ आजुक राति बड्ड महत्वपर्ण छल।
बड़ पक्षक लोक सब बड्ड सम्पन्न आ आधुनिक विचारक छलैथ। परिवारक स्त्री पुरूष सब आयल छलैथ खान पान पर।पूरा दू सूमो भरिकऽ लोक सब औलथि।जाहिमे बड़की ननदि आ हुन्कर बिनब्याहल बेटी सेहो रहैन।खूब नीक स्वागत कएल गेलैन हुन्कर सबहक। नास्ता पानी के बाद भोजनक बात चलल।सब एके ठाम बैसला खाय लेल।तखन मास्टर जी धीरे सऽ अपन बेटीक विचार रखलखिन।सुनला पर सबके कनि भौं सिकुड़लैन मुदा जे सबसऽ बेसी खौंझेलैथ से छलैथ बड़क बहिन जिनका अपने ब्याह तुरिया बेटी छलैन।तखन मास्टर साहब कहलखिन जे अहॉं अपन बेटी सऽ पुछियौ जे ओकरो एहने ईच्छा छहि कि नहिं।मास्टर साहब के ई प््राश्न सबके निरूत्तर कऽ देलकैन परञ्च ननदि अखनो तमसायल छलैथ ।भरिसक हुन्का अपन भाउजमे अपन छवि देखक शौख छलनि अपन बेटीक नहिं।जाबे स्त्री अपन निजी प््रातिशोध छोड़िक आनके नीक करैमे आनन्दित नहिं हेती ताबे मैथिल समाजक धुरि मैथिल स्त्रीवर्गक विकास कोना होयत ऋ
कनिक देरक विचार विमर्शके बाद वरक पिता आ बहिनोई अपन सहमति दऽ देलखिन आ कहलखिन जे हमसब अपन खुशीमे ई बिसरि गेल छलहुँ जे जिनका सबके संगे जीवन काटक छैन तिनका सबमे सामञ्जस्य भेनाई ओतबय अथवा ई कहि जे अहुस बेसी आवश्यक छै जतेक दुनु परिवारक बीच सामञ्जस्य भेनाई जरूरी छहि।मास्टर साहेब आ हुन्कर परिवार पाहुनक अहि विचार सऽ बहुत आह्लादित भेलैथ।बेटीक जिद्द सऽ आहि राति हुन्कर घरमे नव ईजोत आयल छलैन।
२
किरीम लगाउ-मुहॅ चमकाउ
।एकटा हास्य विहिन कथा।
बाबूबरही बज़ार सॅ घूमी क अबैत रही जहॉ सतघारा टपलहूॅ की मुक्तेश्वर स्थान लग बाबा भेंट भए गेलाह। हुनका देखैते मातर हम प्रणाम कहलियैन की बाबा बजलाह आबह बच्चा तोरे बाट ताकि रहल छलहूॅ जे कहिया भेंट हेबअ कतेक दिन बाद एमहर माथे एलह कहअ केमहर सॅ ख़बर नेने आबि रहल छह। हम बजलहूॅ बाबा हम त बरही हाट सॅ तीमन तरकारी किनने आबि रहल छी।
बाबा हरबड़ाईत बजलाह हौ बच्चा हमरो एगो मुहॅ चमकौआ किरीम देए ने ।हम पुछलियैन बाबा ई कहू जे मुहॅ चमकौआ किरीम केहेन होइत छैक। बाबा खिसियाअैत बजलाह कह त तोंही मीडियावला सभ प्राइम टाइम मे हल्ला कए लोक के कहैत छहक जे मरद भए के माउगीवला किरीम यदि हमरा जॅका गोर बनना है त ईमामी हैण्डसम मरदवला किरीम सिरीफ साते दिन मे दोगुना गोरापन। अहि दुआरे भेल जे हमहॅू कनि गोर-नार भए जाइत छी। हम बजलहूॅ बाबा अहॉ कथि लेल एहि किरीम सबहक फेरा मे परैत छी अहॉ त केहेन बढ़ियॉ सौंसे देह बिभूत लेप के अपने मगन मे रहैत छी। हमहूॅ तए अहिं जॅका साधुए छी हमरा लग मुहॅचमकौआ किरीम नहि अछि। ई सुनि बाबा तामसे अघोर भेल बजलाह तहॅू फूसि बजैत छह देखेत छहक मीडियावला लक तए रंग बिरंगक किरीम रहैत छैक तहूॅ मंगनी मे मदैद नहि करबह त हयिए ले 5रूपया आ लाबह मुहॅचमकौआ किरीम।
हम असमंजस मे परि गेलहॅू जे बाबा सन औधरदानी लोक के किरीमक कोन काज से कनेक फरिछा के पूछि लैति छियैन जे की भेल। हम पुछलियैन त बाबा बजलाह हौ बच्चा तोरा सभटा गप की कहियअ। बड्ड सख सॅ चारि बरिख बाद बसहा पर बैसि हम अपन सासुर हरीपुर गेल रही। गौरी दाए त बियाहे दिन सॅ हमर ठोर मुहॅं देखि रूसल छलीह। हम सोचलहॅू जे आई हुनकर सखी सहेली माने हम अपन सारि सभ सॅ हॅसी मज़ाक कए मोन मे संतोख कए लैति छी। हम अपना सारि सॅ पूछलहू कहू कुशल समाचार कि हमर सारि उपकैरि के बजलीह बुरहबा बर बड्ड अनचिनहार बुरहारी मे लगलैन किरीमक बोखार आ सभ गोटे भभा भभा के खूम हॅसैए लगलीह। हम पूछलियैन जे साफ साफ कहू ने की कहि रहल छी कि हमर दोसर सारि आर जोर सॅ हॉ हॉ के हॅसैत बजलीह अईं यौ पाहुन बुरहारी मे सासुर अएलहॅू त अकील रस्ते मे हेरा गेल की\ हम बजलहू से की त एतबाक मे हमर छोटकी सारि मुहॅ चमकबैत बजलीह देखैत छियैक हाट बज़ार मे रंग बिरंगक किरीम पाउण्डस बोरो प्लस डोभ एसनो पाउडर फेरेन लबली बिकायत छै से सब लगा के मुहॅ उजर धब धब बना लेब से नहि। एहेन कारि झोरी मुहॅ पर त घसबैहनियो ने पूछत आ हम तए एम.बी.ए केने छी। जाउ थुथून चमकौने आउ तब हॅसी मज़ाक करब।
आब तोंही कहअ जे बिना किरीम लगौनेह जान बॉचत। देखैत छहक नएका नएका छौंड़ा सभ सासुर जाइअ सॅ पहिने ब्यूटी पार्लर जा थूथून चमकबैत अछि। हौ बच्चा कि कहियअ एखुनका छौंड़ीयो सभ कम ने अछि देखैत छहक किरीम लगबैत लगबैत मुहॅ मे फाउंसरी भए जाइत छैक मुदा थुथून चमकबै दुआरे इहो मंजूर। पछिला पूर्णिमा मेला देखबाक लेल छहरे-छहरे पिपराघाट मेला गेल रही त ओतए गौरी दाए के दू चारि टा बहिना सभ भेंट भए गेलीह हम पूछलियैन जे कहू मुहॅ मे एतेक फाउंसरी केना? कि ताबैत हमर साउस केमहरो सॅ बजलीह पाहुन हिनका सभटा गप कि कहियैन ई सभ किरीम लगेबाक फल। ई छाउंड़ी सभ फिलमी हिरोईन सॅ एक्को पाई कम नहि अछि बिना ब्यूटि पार्लर जेने एकरा सभ के अनो पानि नहि नीक लगैत छैक। ई सुनि हमरो भेल जे ब्यूटी पार्लर जा कनेक थुथून चमका लैति छी। मुदा हम जे ब्यूटि पार्लर जाएब से जेबी मे एक्कोटा पाइओ नहि अछि। भागेसर पंडा के कतेको दिन कहलियैअ जे हमरो ब्यूटि पार्लर नेने चलअ से ओकरो भरि भरि दिन फूंसियाहिक पूजा-पाठ सॅ छुट्टी ने।
हम बजलहॅू त बाबा दिल्ली चलू ने ओतए त बड्ड नीक एक पर एक ब्यूटि पार्लर छै। बाबा बजलाह हौ बच्चा हम डिल्ली नहिं जाएब हौ कियो नमरो पता नहि बता दैत छैक एक सॅ एक ठग लोक सभ रस्ते पेरे भेटतह हमरा त डर होइए। त बाबा चलू ने फिलिम सिटी नोएडा ओहि ठाम फेसियल करा लेब। बाबा बजलाह नहि हौ बच्चा बुरहारी मे एहेन करम नहि करब जे कोनो न्यूज़ चैनल जाएब। तोरो मीडियावला के सेहो कोनो ठीक नहि छह बेमतलबो गप के ब्रेकींग न्यूज़ बना दैति छहक। हम एमहर ब्यूटि पार्लर आ कोन ठिक तों खटाक दिस चैनल पर चला देबहक ब्रेकींग न्यूज़ किरीम लगाउ-मुहॅ चमकाउ।
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