भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Tuesday, March 01, 2011

'विदेह' ७६ म अंक १५ फरवरी २०११ (वर्ष ४ मास ३८ अंक ७६)- PART II




डाॅ. योगानन्‍द झा

मैथि‍ली बाललोककथा : स्‍थि‍ति‍ आ अपेक्षा
आगाँ-
एगो रहथि‍ राजा-
मैथि‍ली बाललोककथाक अकृत्रि‍म संग्रहक दृष्‍टि‍ए नि‍रक्षर कि‍सुन कामति‍ द्वारा कहल ओ प्रो. हंसराज द्वारा सम्‍पादि‍त संग्रह 'एगो रहथि‍ राजा' अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण अछि‍, कारण ऐमे खि‍स्‍सा कहनि‍हारक भाषाकेँ यथावत् रखबाक प्रयास भेल अछि‍। ऐ संग्रहमे तीन गोट कथा अन्‍तर्भुक्‍त अछि‍ क्रमश: एक लालसँ सात लाल, तूरक घोड़ा आ दलि‍दरा जोग। एक लालसँ सात लाल दीर्घ कथा थि‍क जइमे चारि‍ गोट उपकथा सेहो अन्‍तर्भुक्‍त अछि‍। संग्रहक तीनू कथा उत्‍सुकता अो कुतूहलसँ युक्‍त मनोरंजक ओ ज्ञानवर्द्धक प्रकृति‍क बाललोककथा थि‍क।

बाल- प्रसून
कि‍रणजीक बाल प्रसून कथासंग्रह यद्यपि‍ नेना सभकेँ धि‍यानमे राखि‍ ऐति‍हासि‍क महाभारतीय कथानकक पुन: व्‍याख्‍या थि‍क। शैली शास्‍त्रीय होइतो अपन उद्देश्‍यक कारणे एकरो बाललाेककथाक संग्रह मानल जा सकैछ।

कथा-कहानी
ई डाॅ. शैलेन्‍द्र माेहन झा द्वारा संग्रहीत चौदह गोट बाल-लोककथाक संग्रह थि‍क। एकर कथा सभ नाति‍दीर्घ आकारक अछि‍। अधि‍कांश कथामे पशु-पक्षीकेँ आधार बना कऽ कोनो ने कोनो नैति‍क शि‍क्षा प्रदान करब कथा सबहक उद्देश्‍य अछि‍ जे बालमनकेँ प्रभावि‍त करैबला अछि‍। लोक जगतक सुख-दु:ख, आशा-नि‍राशा, भावानुभाव, हर्ष-वि‍षाद, आचार-व्‍यवहार आदि‍क सहज ओ अकृत्रि‍म अभि‍व्‍यंजनाक कारणे मैथि‍ली बाल-लोककथाक संग्रहक दृष्‍टि‍ए ई नि‍यामक ओ मार्गदर्शी संग्रह सि‍द्ध भेल। ऐ संग्रहमे कि‍छु कथा हास्‍य-वि‍नोदपरक तँ कि‍छु लोकजीवनक अकृत्रि‍म झाँकीसँ सम्‍बद्ध अछि‍। एकर भाषा सेहो नेना-भुटकाक हेतुओ सरल, सहज ओ औत्‍सुक्‍यकेँ जगबैबला अछि‍।

मैथि‍ली लोककथा
मैथि‍ली लोककथाक सर्वाधि‍क प्रशस्‍त प्रकाशि‍त संचयनक दृष्‍टि‍ए श्री रामलोचन ठाकुरक मैथि‍ली लोककथा अद्वि‍तीय अछि‍। एकर प्रथम प्रकाशि‍त संस्‍करण 1983 ईं.मे भेल जाइमे अठारह गोट कथा मात्र संकलि‍त छलैक मुदा 2006 मे भेल द्वि‍तीय परि‍वर्द्धि‍त संस्‍करणमे ठीक दुन्ना अर्थात छत्तीस गोट कथा संग्रहीत छैक। लेखकक कहब छन्‍हि‍ जे ओ ई कथा सभ अपन नानी, माँ आ लालमामासँ सूनि‍ क' संग्रहीत केने छलाह तँए एकर सबहक अकृत्रि‍मता असंदि‍ग्‍ध छैक। लेखक कथाभाषाकेँ सेहो सहजता प्रदान केने छथि‍ तथापि‍ कतौ-कतौ शास्‍त्रीयताक प्रभाव अवश्‍ये गछारने छन्‍हि‍। एकर अधि‍कांश कथा अपन रोचकताक कारणें बाल-लोककथा मध्‍य परि‍गणि‍त कएल जा सकैछ।

अष्‍टदल
मैि‍थली लोककथाक ऐ संग्रहक संग्रहकर्त्ता छथि‍ डॉ. श्री अमरनाथ झा। ऐमे आठ गोट लोककथा क्रमश: नीक-बेजाए, पुनर्जन्‍मक कथा, चरबाहक न्‍याय, सन्‍तोषी ओ हाहुति‍, हंसराज, मोहन कमार, चक्रवर्ती राजा ओ झोड़ाक माहात्‍म्‍य संकलि‍त अछि‍। कथा सभ पैघ-पैघ अछि‍ तथा शि‍ष्‍ट साहि‍त्‍यि‍क भाषाक प्रयोगक कारणे कृत्रि‍म प्रकृति‍क भ' गेल अछि‍। तथापि‍ ऐ संग्रहक मोहन कमार ओ झोड़ाक माहात्‍म्‍य कथा बाल-लोककथा मध्‍य परि‍भाषि‍त हेबाक योग्‍य नीक नमूना थि‍क। अवश्‍ये ई दुनू बाल-लोककथाक कि‍ंचि‍त परि‍वर्त्तनक संग पूर्व वर्णित मैथि‍ली लोककथामे सेहो अछि‍।

एकटा छला गोनू झा-

धूर्त्त शि‍रोमणि‍ गोनू झा मि‍थि‍लाक हास्‍य-वि‍नोदपरक कतोक लोक कथाक नायक छथि‍। हि‍नक चरि‍त्रपर आधारि‍त कथा सबहक संग्रह अनेक संकलनकर्त्ता लोकनि‍ करैत ऐलाह अछि‍ जइमे हि‍न्‍दीमे डॉ. वीरेन्‍द्र झाक संग्रह राजकमल प्रकाशन (पटना, नई दि‍ल्‍ली) सँ प्रकाशि‍त भ' बेस प्रचलि‍त भेल। एहने चौबीस गोट कथा सभकेँ मैथि‍लीमे डाॅ. वि‍भूति‍ आनन्‍द एकटा छला गोनू झा' नामे प्रकाशि‍त करौलनि‍। बुद्धि‍ ओ वि‍वेकक प्रयोग, मनोरंजकता ओ सहजताक कारणे ई सभ मि‍थि‍लाक बाललोककथाक उत्‍कृष्‍ट दृष्‍टान्‍त तँ अछि‍ मुदा बालमनक नि‍श्‍छलता एकर शि‍क्षण-पद्धति‍सँ कालुष्‍ये दि‍स जा सकैत छैक। कृत्रि‍म भाषा-प्रयोगक कारणे एकटा छला गोनू झा लोककथाक मर्यादाक पालन नै क' सकल अछि‍, तेहन प्रतीत होइत अछि‍। मैथि‍लीमे ऐ कोटि‍क कथाक अन्‍य संग्रह थि‍क श्री गोपीकान्‍त झा 'उमापति‍' द्वारा सम्‍पादि‍त संकलन 'गोनू झाक चटनी' जे लोक जगतमे मैथि‍लीक प्रसारक दृष्‍टये महत्वपूर्ण मानल जा सकैछ।

प्रेत कथा-
ई हंसराज रचि‍त छओ गोट प्रेतकथा संग्रह थि‍क। एकर अधि‍कांश कथा शि‍ष्‍ट साहि‍त्‍यक भाषासँ सम्‍पन्न अछि‍ तथापि‍ प्रेत वि‍वाह पद्धति‍ आ यावत् पढ़बह रूद्रकेँ अवश्‍ये बाललोक कथा मध्‍य परिगणि‍त कएल जा सकैछ।

कुरूक्षेत्रम् अन्‍तर्मनक
ई पोथी श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक वि‍भि‍न्न वि‍धाक रचनाक संकलन थि‍क। एकर सातम खंडमे बालकथाक रूपमे तेइस गोट कथा संग्रहीत अछि‍। ऐ कथा सभमे अधि‍कांश मि‍थि‍लाक लोकनायक सबहक कथा ि‍थक तथापि‍ अाधा दर्जनक लगभग कथाकेँ बाल-लोककथा कहल जा सकैछ, यद्यपि‍ ओकरो सबहक भाषा पूर्णत: शास्‍त्रीय प्रकृति‍क अछि‍। बाललोक कथाक संकलनक क्षेत्रमे चलैत प्रयास सबहक नमूनाक रूपमे एकरा महत्वपूर्ण कहल जा सकैछ।

क्षमाक जीत
महि‍लालोकनि द्वारा बाललोकथाकेँ संरक्षि‍त करबाक प्रयास क्रमश: कण्‍ठसँ अक्षर दि‍स प्रवहमान भ' रहल अछि‍, से ऐ पोथीसँ भान होइत अछि‍। एकर लेखि‍का थि‍कीह श्रीमती पुष्‍पा कुमारी। ऐमे कएकटा स्रोतसँ उपलब्‍ध पाँच गोट कथा संग्रहीत अछि‍ जकरा सभकेँ बाललोककथा मध्‍य परि‍गणि‍त कएल जा सकैछ। एकरो भाषापर शास्‍त्रीय भाषाक प्रभाव अत्‍यधि‍क देखि पड़ैछ।

पि‍लपि‍लहा गाछ
हालहि‍मे डॉ. श्री मुरलीधर झाक बाल कथा संग्रह पि‍लपि‍लहा गाछ प्रकाशि‍त भेलनि‍ अछि‍ जइमे एक्कैस गोट कथा संग्रहीत कएल गेल अछि‍। ऐमे पशु-पक्षीक कृत्‍यपर आधारि‍त दुष्‍ट खि‍खि‍र, सि‍नेहक सि‍न्‍दूर तथा धूर्त्ततापर आधारि‍त ठक्क कथा बाललोककथाक दृष्‍टान्‍त स्‍वरूप अछि‍। एकरा सबहक कथाभाषा पूर्णत: परि‍मार्जित साहि‍त्‍यि‍क भाषा थि‍क।

बाललोक कथाक संकलन-प्रकाशनक दि‍शामे मैथि‍ली साहि‍त्‍यकार लोकनिक‍ उपर्युक्‍त प्रयास सभ श्‍लाध्‍य अछि‍ मुदा एतबे धरि‍केँ संतोषप्रद नै मानल जा सकैछ। ऐ हेतु क्षेत्र-कार्य करबाक आवश्‍यकता छैक जै दि‍स अनुसंधि‍त्‍सुलोकनि‍ प्रयास क' सकैत छथि‍ आ मैथि‍लीक ऐ वि‍धाकेँ जि‍या क' राखि‍ सकैत छथि‍, ओकर मौलि‍कताक क्षरणकेँ रोकि‍ सकैत छथि‍।
अन्‍यान्‍य भाषामे उपलब्‍ध लोककथा सबहक मैथि‍ली रूपान्‍तरणक माध्‍यमे सेहो कतोक बाललोक  कथा मैथि‍लीक ऐ वि‍धाक अभि‍वृद्धि‍मे सहायक भेल अछि‍ आ एकरो आयाम पर्याप्‍त छैक। ऐ दि‍शामे कृत प्रयास सभमे पं. श्री गोवि‍न्‍द झाक 'अओ बाबा : की बौआ, डा. इन्‍द्रकान्‍त झाक ि‍वश्‍व प्रसि‍द्ध मैि‍थली लोककथा, डॉ. योगानन्‍द झाक 'बि‍हारक लोककथा', वि‍जयनाथ ठाकुरक लोककथा आदि‍ लोककथा संग्रह उल्‍लेखनीय अछि‍। मैथि‍ली पत्र-पत्रि‍का सेहो बाललोककथाक प्रकाशन यदा-कदा करैत रहला अछि‍। एम्‍हर ऋृषि‍ वशि‍ष्‍ठ कृत 'कोढ़ि‍या घर स्‍वाहा' शीर्षकसँ मात्र एक गोट बाललोककथाक प्रकाशन पुस्‍त‍काकार कराओल गेल अछि‍ जइमे वि‍द्यापति‍क अलस कथाकेँ उत्‍सक रूपमे ल' बाललोक कथा शैलीक प्रति‍ सचेष्‍टता देख पड़ैछ। ई ऐ दि‍शामे एकटा अभि‍नव प्रयास आ दूरदृष्‍टि‍पूर्ण संकेत बुझना जाइछ।
नेनालोकनि‍मे अपन भाषाक प्रति‍ अनुराग जगाएबाक दृष्‍टि‍ये सम्‍प्रति‍ बाललोककथाकेँ चि‍त्रकथाक माध्‍यमे प्रस्‍तुत करबाक दि‍स कि‍छु अग्रसोची साहि‍त्‍यकारक धि‍यान गेलनि‍ अछि‍। ऐ दि‍शामे संभवत: पुस्‍तकाकार प्रथम प्रयास भेल अछि‍ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर द्वारा, जनि‍क 'गोनू झा आ आन मैथि‍ली चि‍त्रकथा', श्रुति‍ प्रकाशन दि‍ल्‍ली द्वारा भव्‍य साज-सज्‍जाक संग प्रकाशि‍त भेल अछि‍। ऐमे गोनू झासँ सम्‍बद्ध नओ गोट हास्‍य-वि‍नोदपरक कथा तथा मि‍थि‍लाक कि‍छु लोककथा यथा रेशमा-चुहड़मल, नैका-बनि‍जारा, भगत ज्‍योति‍ पँजि‍यार, महुआ घटबाि‍रन, राजा सलहेस, छैछन महाराज ओ कालि‍दासक कथाकेँ चि‍त्रावली द्वारा प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍। मैथि‍ली बाललोक कथा प्रकाशनकेँ युगानुरूप अग्रनीत करबाक दि‍शामे श्रीमती ठाकुरक ई प्रयास अन्‍यतम कहल जा सकैछ।
आब मैथि‍ली बाललोक कथाक कि‍छु बैशि‍ष्‍ट्यपर वि‍चार कएल जाए। मैथि‍ली बाललोककथामे राजा, राजकुमार, मंत्री, साधु, ब्राह्मण, नौका, सेठ, तेली, धोबि‍, मालि‍न, रानी आदि‍ वि‍भि‍न्न वर्गक पात्र, सि‍यार, सपनौर, हाथी, धोड़ा, साप, गाए, बाध, सि‍ंह, पशु पात्र, सुग्‍गा, कौआ, मैना, फुद्दी, मुर्गा आदि‍ पक्षी पात्र, वि‍ध-ि‍वधाता, शंकर-पार्वती, डाइन-जोगि‍न, परी, भूत-प्रेत, देवी-देवता आदि‍ अलौकि‍क पात्र ओ हुनकालोकनि‍क कृत्‍य समाहि‍त रहैत अछि‍। ओ लोकनि‍ पारस्‍परि‍क ओ मनुष्‍यक संग व्‍यवहार ओहि‍ना करैत छथि‍, बोलीयो तहि‍ना बजैत छथि‍ जेना मानव-मात्र। अति‍मानवीय पात्रलोकनि‍ असंभवो कार्यकेँ संभव करैत देख पड़ै छथि‍ आ अलौकि‍क क्षमतासँ पूर्ण देखल जाइत छथि‍। हि‍नका लोकनि‍क कार्य-व्‍यापार नेनालोकनि‍केँ चमत्‍कृत ओ आश्चर्यचकित क' दैत छन्‍हि‍। ऐसँ मनोरंजनक संगहि‍ नेनालोकनि‍मे अद्भुत पराक्रम प्रदर्शित करबाक भावनाक उदय होइत छन्‍हि‍ तथा कथाक प्रति‍ हुनका लोकनि‍क उत्‍सुकता बनल रहैत छन्‍हि‍।
मैथि‍ली बाललोककथा सामान्‍यत: सुखान्‍त होइत अछि‍। ऐमे नायक बहुधा वि‍भि‍न्न वि‍घ्‍न-बाधाकेँ पार क' अपन अभीष्‍टक सि‍द्धि‍मे सफल देखाओल जाइत छथि‍ जइसँ नेना लोकनि‍क मन उत्‍फुल्‍ल भ' उठैत छन्‍हि‍ आ परि‍श्रम ओ प्रयास द्वारा कोनो प्रकारक अभीष्‍ट प्राप्‍त कएल जा सकैत अछि‍, से भावना हुनका लोकनि‍क मनमे जमैत जाइत छन्‍हि‍।
मैथि‍ली बाल लोककथा सभमे लोकमानसक उदार ओ व्‍यापक चि‍त्र-वृत्ति‍क नि‍दर्शन भेटैत अछि‍। परदु:ख कातरता ओ सहानुभूति‍, सहि‍ष्‍णुता अेा वीरत्‍व तथा जीवमात्रक प्रति‍ प्रेम भावना बाल लोककथाक अन्‍यतम वि‍शि‍ष्‍टता थि‍क जइमे नेनालोकनि‍क मनपर धनात्‍मक प्रभाव पड़ैत छन्‍हि‍।
मैथि‍ली बाल लोककथा सभमे धटनाक वर्णन अत्‍यन्‍त सहजताक संग कएल रहैत अछि‍। स्‍वभावत: कोनो घटनाकेँ बालमन स्‍वभावि‍क रूपसँ ग्रहण क' लैत अछि‍। ऐ प्रकारक लोककथा सभमे औत्‍सुक्‍य जगैबाक अद्भुत झमता रहैत छैक। जइसँ नेनालोकनि‍ एहन कथा अत्‍यन्‍त मनोयोगसँ सुनैत छथि‍ आ बेर-बेर सुनबाक हेतु लुसफुसाइत रहैत छथि‍। एतए धरि‍ जे कथा श्रवणक क्रममे हुनकालोकनि‍क नि‍न्नो अलोपि‍त भ' जाइत छन्‍हि‍। ओ सभ ऐ प्रकारक कथामे तेना भ' ' रमि‍ जाइत छथि‍ जे हुनकालोकनि‍क सुधि‍-बुधि‍ पर्यन्‍त हेरा जाइत छन्‍हि‍।
मैथि‍ली बाललोककथा वस्‍तुत: लोकमानसक अभि‍व्‍यक्‍ति‍ थि‍क। तँए ऐमे उड़नखटोला ओ उड़ैबला घोड़ाक कल्‍पना कएल गेल अछि‍, पशु-पक्षीकेँ राजकुमारीक रूपमे परि‍वर्तित होइत देखाअोल गेल अछि‍, पक्षीकेँ मारि‍ देलासँ राक्षसक मरि‍ जाएबाक कल्‍पना कएल गेल अछि‍, देवनदी गंगा ओ अन्‍यान्‍यो देवता-पि‍तरक प्रति‍ आस्‍था देखाओल गेल अछि‍, वि‍ध-वि‍धाता द्वारा ककरोपर असीम कृपा करबाक प्रवृत्ति‍क वर्णन भेल अछि‍, भूत-प्रेत अद्भुत कृत्‍यक कल्‍पना कएल गेल अछि‍। आधुनि‍कताक कसौटीपर एहन कथा सभमे अति‍रंजनाक पराकाष्‍ठामे देख पड़ैछ मुदा लोकमानस एहन कथ्‍यक प्रति‍ आस्‍थावान अछि‍ आ एहन वर्णन सभसँ कनेको असहजताक अनुभव नै करैछ।
आकारक दृष्‍टि‍ये मैथि‍ली बाललोककथाक दुइ गोट प्रकार देख पड़ैत अछि‍- दीर्घ आ लघु। दीर्घ कथा सभमे एके कथामे अनेक उपकथा सभ अन्‍तर्मुक्‍त रहैत अछि‍ मुदा लघु आकारक बाल लोककथामे एकेटा छोट घटनापर आधारि‍त वि‍वरण रहैत अछि‍।
मैथि‍ली बाललोककथा सामान्‍यत: गद्यात्‍मक होइत अछि‍ मुदा अनेक कथामे चम्‍पू शैलीक आश्रय लैत पद्योग समाहार बीच-बीचमे देख पड़ैत अछि‍ यथा-
एकटा बाललोककथामे जखन एकटा मृतक स्‍त्रीक सारापर गाछ जनमि‍ जाइत छैक आ ओकर पुष्‍पपर मुग्‍ध भ' ओकर ससुर ओ फूल तोड़ए चाहैत छैक तँ गाछतरसँ आवाज अबैत छैक-
ससुरजी, ससुरजी
डारि‍ जुनि‍ छूबू, पात जुनि‍ छूबू
भैया मारलनि‍, कूड़ खेत गाड़लनि‍
चुनरी रंगौलनि‍, बहु पहि‍रौलनि‍
हमरा देल वनवास
डारि‍-पात लागू अकास।

एहि‍ना अनेक मैथि‍ली बाललोककथाक पद्य कथ्‍य दोसरो भाषामे यथा हि‍न्‍दी, भोजपुरी, बंगला आदि‍मे सेहो देख पड़ैछ, उदाहरणार्थ-
आजा माजा कान में समा जा।‍
की खाओं की पि‍यओँ, की लए परदेस जाओँ। आदि‍।‍
एेठाम ई तथ्‍य ज्ञातव्‍य अछि‍ जे जै बाललोककथामे जतेक लहरदार भाषाक प्रयोग रहैत अछि‍, से ततबे आकर्षक होइत अछि‍।
मैथि‍ली बाललोककथाक भाषा अत्‍यन्‍त सरल, बोधगम्‍य ओ प्रवाहपूर्ण होइत अछि‍। एकर वाक्‍य संरचना अत्‍यन्‍त छोट-छोट रहैत छैक तँए जटि‍ल ओ मि‍श्रवाक्‍यसँ ऐमे परहेज रहैत छैक। एकर पात्रक भाषा जकरा आलाप भाग कहल जा सकैछ सर्वथा लोकमुखी होइत अछि‍ जइमे कर्तृवाच्‍य ओ वक्‍ताक अवक्र शब्‍दावलीक प्रयोग देख पड़ैछ। एकर कथातत्वकेँ आगू बढ़ौनि‍हार भाषाकेँ आख्‍यान भाषा कहल जा सकैछ। ई भाषा अत्‍यन्‍त परि‍वर्त्तनशील रहैत अछि‍। लोककथाक ऐ भाषापर कहनि‍हारक वएस, परि‍वेश, शि‍क्षा, लि‍ंग आदि‍क प्रभाव देख पड़ैछ। लोककथा जखन श्रुत साहि‍त्‍यसँ लि‍खि‍त साहि‍त्‍यमे परि‍णत होइछ, तखन एके कथाक रूप बहुलता, लि‍खि‍त भाषाक रूप आदि‍मे संकलन कर्त्ताक भाषाक पर्याप्‍त प्रभाव पड़ैत छैक। यएह कारण थि‍कैक जे कथा समानो रहलापर ओकर स्‍वरूप वि‍भि‍न्न लेखक-सम्‍पादक भि‍न्न रूपमे प्रस्‍तुत करैत देखल जाइत छथि‍। शास्‍त्रीयतासँ आछन्न लोककथाक क्रि‍यापदमे छैक, छलाह, गोट, जाइत आदि‍ पदक प्रयोग होइछ जखन कि‍ रूपमे छै, छला, गो, जाइ आदि‍ लघु स्‍वरूप देख पड़ैत अछि‍। ऐ वि‍धामे भाववाचक संज्ञाक अत्‍यल्प प्रयोग भेल अछि‍ आ तकर स्‍थानपर वि‍शेषणे शब्‍दक प्रयोग वांछि‍त बुझना जाइत रहलैक अछि‍।
एतावता मैथि‍ली बाललोककथा मैिथली लोकसाहि‍त्‍यक अमूल्‍य नि‍धि‍ ि‍थक जकर संकलन-प्रकाशन आे अध्‍ययनक आवश्‍यकता अछि‍ जइसँ ई सम्‍पदा अन्‍यान्‍य भाषाक समक्ष आबि सकए आ अनन्‍तकाल धरि‍ नेनालोकनि‍क मनाेरंजन कऽ सकए।


 क्रमश:
सुजित कुमार झा-
मिनापक लेल एकटा आओर उपलब्धी
दू लाखक पुरस्कार


मैथिली भाषा, कला, साहित्य एवं सांस्कृतिक क्षेत्रमे काज करयबला अग्रणी संस्था मिथिला नाट्यकला परिषद जनकपुरकेँ फलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान पुरस्कार सँ सम्मानित करबाक निर्णय कएल गेल अछि ।
फुलकमारी महतो मेमोरियल ट्रष्ट द्वारा स्थापित ओ पुरस्कारक राशि दू लाख एक हजार रुपैया रहल ट्रष्टक सदस्य सचिव एंव मैथिली साहित्यकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि जानकारी देलन्हि अछि ।
ट्रष्ट मिनापक अतिरिक्त फुलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार राजविराजक मिना ठाकुर आ मोरङ्गक दयानन्द दिगपाल यदुवंशीकेँ देबयकेँ निर्णय कएलक अछि । दूनु गोटेकेँ २५२५ हजार रुपैया देल जाएत । गैर आवसिय नेपाली डा. उपेन्द्र महतो द्वारा अपन माय फुलकुमारी महतोक नाममे ट्रष्टकेँ स्थापना कएल गेल अछि । पुरस्कारक सिफारिसक लेल मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमलक संयोजकत्वमे धीरेन्द्र पे्रमर्षि आ पुनम ठाकुर सदस्य रहल समिति गठन कएल गेल छल । ओ समिति पुरस्कारक घोषणा कएलक अछि । सभ सँ बडका पुरस्कार प्राप्त भेलाक बाद मिनापक अध्यक्ष सुनिल मल्लिक कहलन्हि , हमसभ सही दिशामे काज कऽ रहल छी तकर पुष्टि भेल अछि । आब आओर लगन सँ काज करब बतौलन्हि अछि ।

मिनापक इतिहास
मिनापक स्थापना २०३६ सालमे होइतो एकर पृष्ठभूमि २०२४ साल सँ शुरु भेल मिनापक संस्थापक सभ कहैत छथि ।
विलट साह एण्डी, पारस प्रसाद बदामी, भरत अकेला आ योगेन्द्र साह नेपाली २०२४ सालमे जनकपुरमे आधुनिक नाटय कला मन्दिर स्थापना कएलन्हि ।
प्रारम्भिक अवस्थामे अहि संस्थाक माध्यम सँ जनकपुरमे हिन्दी नाटक प्रदर्शन होइत छल ।
अहि क्रममे २०२८ सालमे मैथिली भाषाक मूर्धन्य साहित्यकार डा. धीरेश्वर झा धीरेन्द्र, योगेन्द्र साह नेपाली सँ भेट कएलन्हि आ आधुनिक नाटय कला मन्दिरक मञ्च पर मैथिली गीत सेहो गायल जाय अनुरोध कएलन्हि आ तकर बाद सँ ओहि मञ्च पर मैथिली गीत चलय लागल मिनापक संस्थापक योगेन्द्र साह नेपाली मिनापक २०४९ सालमे प्रकाशित स्मारिकामे लिखने छथि ।
ओहि समयमे डा. धीरेन्द्रक तार काटु तरकुन काटुआ योगेन्द्र साह नेपाली मरुआक रोटी खेसारीक दालि’, ‘देशी मुर्गी आ बेलायती बोल’ , ‘हे गै सगतोरनीसनक गीत लिखलन्हि जे बेस चर्चा पौलक । अहि गीत सभक लोकप्रियता देखि आधुनिक नाटय कला मन्दिरक मञ्च पर मैथिली नाटक सेहो होबय लागल ।
छिक प्रहसन, चमेलीक विआह, ब्रह्मस्थान सन नाटक मञ्चन भेल ।

ई क्रम चलिते रहल आ डा. धीरेन्द्रक सभापतित्वमे एकटा बैसार भेल जाहिमे योगेन्द्र साह नेपाली, बलराम प्रसाद राय, भोला दास, राम अशिष ठाकुर आ मदन ठाकुर उपस्थित भेल रहथि ।
निर्णय भेल जे अहि नाटय संस्थाकेँ विशुद्ध मैथिली नाटय मञ्चक रुप देल जाय ।
जेकर किछ गोटे विरोध कएलन्हि मुदा चारि वर्ष नहि बितैत मिनाप नामक नाटय संस्थाक गठन भऽ गेल ।
योगेन्द्र साह नेपाली स्मारिकामे लिखने छथि, ‘हम, धीरेन्द्र आ राजेन्द्र कुसवाहा मिल कऽ समाजसेवी राजदेव मिश्रक अध्यक्षतामे एकटा बैसार कएलहुँ जाहिमे सुदर्शन लालक नेतृत्वमे एकटा कमिटी गठन कएल गेल ।

मिनापक संस्थापक के छथि ?
जखन कोनो संस्था बड्ड बेसी चर्चामे अबैत अछि तऽ क्रेडिट लेबाक लेल होड़ चलि अबैत अछि । अहुमे मिनाप सनक संस्थाक तऽ स्वभाविके अछि ।
डा. धीरेन्द्रक प्रेरणा आ योगेन्द्र साह नेपालीक अपन भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक लेल किछ करी से सोच एकर स्थापनामे किछ बहुत मद्दत कएने अछि ।
मिनापक संस्थापक कमिटीक अध्यक्षमे सुदर्शन लाल कर्ण, उपाध्यक्षमे योगेन्द्र साह नेपाली, सचिवमे भोला दास, निर्देशकमे वलराम प्रसाद राय, कोषाध्यक्षमे महेश साह आ सदस्यमे राम अशिष ठाकुर, मदन ठाकुर, राजेन्द्र अकेला, राजेन्द्र कुशवाहा, परमेश्वर साह, नवीन मिश्र, पुरुषोतम शर्मा आ देव नारायण जी
रहथि ।
ओना मिनापक स्थापना सम्बन्धि बैसार राजदेव मिश्रक अध्यक्षतामे जानकी पुस्तक भण्डारमे भेल छल ।


मिनापक उपलब्धी
मिनाप जनकपुरमे मात्र नहि नेपाल आ भारतक विभिन्न स्थानमे झण्डा गारि चुकल अछि । मैथिली सम्बन्धि कतहु नाटक वा सांस्कृतिक कार्यक्रम होइ यदि मिनाप नहि रहत तऽ अपूर्ण लगैत अछि ।
स्वयं चर्चित नाटककार महेन्द्र मलंगिया कहैत छथि –‘जतय रमेश रंजन, मदन ठाकुर, सुनिल मिश्र, विष्णुकान्त मिश्र आ राम नारायण ठाकुर सन कलाकार हुए कोनो नाटक टिमक लेल चुनौती ठाढ़ कऽ सकैत अछि ।
फेर नयाँ युवा युवती सभ सेहो ओहि रुपमे आएल अछि । अनिल चन्द्र झा, रविन्द्र झा, घनश्याम मिश्र, रंजु झा आ प्रियंका झा सनक कलाकार काइल्हो मिनापेक दिन छैक तकर संकेत दऽ रहल अछि । फेर सांस्कृतिक टिमकेँ एकटा फौजे मिनापक संग अछि । सुनिल मल्लिककेँ नेतृत्वमे प्रवेश मल्लिक, रमेश मल्लिक, नेहा प्रियदर्शिनी, संगीता देव, ललित कापर, शम्भु कर्ण, राम नारायण ठाकुर, दिगम्वर झा दिनमणि सहितक छथि ।
मिनापकेँ सर्वनाम, रामानन्द युवा क्लव, साँस्कृतिक संस्थान काठमाण्डू, सहित दर्जनो संस्था सम्मानित कएने अछि ।
तहिना सुनिल मिश्र, रमेश रञ्जन झा, मदन ठाकुर, रंजु झा, महेन्द्र मलंगिया, रेखा कर्ण सभ बहुतो बेर सम्मानित भऽ चुकल छथि ।

मिनापक एकटा आओर योजना

मिनाप अखन अपन भवन निमार्णमे लागल अछि । नाट्यशाला आ कार्यालय भवनक लेल नाटक मञ्चन कऽ रहल अछि । मिनापक प्राङ्गणमे अस्थायी नाटक घर बनाय टिकटमे प्रत्येक राति नाटक मञ्चन करैत अछि । मिनापक महासचिव अनिल चन्द्र झा कहैत छथि, भवनक लेल नाटक मञ्चनके क्रममे टिकट सँ प्राप्त भेल आम्दानी आ अन्य व्यक्तिसभ सँ सहयोग लेबयकेँ काज शुरु कएल गेल अछि । किछु महिना पूर्व मैथिलीक वरिष्ठ नाटककार महेन्द्र मलंगिया नाटक घरकेँ शिलान्यास कएने छलथि । ओना पुस्तकक प्रकाशन दिस सेहो मिनाप आगा आएल अछि । डा. धीरेन्द्रक कथा संग्रह प्रकाशन कएलक अछि । तहिना जीवनाथ झाकेँ कृति सेहो प्रकाशन करबाक निर्णय कएलक अछि । मिनाप अध्यक्ष सुनिल मल्लिक कहैत छथि, मिनाप मैथिलीक हरेक पक्षकेँ लेल काज करैत रहत । अहिमे डगमगायत नहि ।
१.जगदीश प्रसाद मंडल- एकांकी- सतमाए २.बेचन ठाकुर- बेटीक अपमान केर अंति‍म दृश्‍य

जगदीश प्रसाद मंडल
एकांकी

सतमाए

        वि‍द्यालय। समए माघक 3 बजे। स्‍कूलक अग्‍नेय (आंगन)मे बुद्धि‍धारी बाबू (प्रधानाचार्य) वि‍पत्ति‍बाबू (सहयोगी शि‍क्षक) कुरसीपर आ पुलकि‍त (चपरासी) स्‍टूलपर बगलमे बैस गप-सप्‍प करैत।

बुद्धि‍धारी बाबू-        आब वि‍द्यालयमे नै मन लगैए। होइए जे कखन रि‍टायर भऽ जाइ। कखनो कऽ तँ एहनो भऽ जाइए जे भोलेनट्री रि‍टायरमेंट लऽ ली।

पुलकि‍त-            से कि‍अए मासएब?

बुद्धि‍धारी-            तहूँ तँ पनरह-बीस बर्खसँ संगे रहि‍ते छह देखते छहक जे की मान-प्रति‍ष्‍ठा स्‍कूलोक आ शि‍क्षकोक छल आ अखन की अछि‍।

पुलकि‍त-            ऐ युगमे मान-प्रति‍ष्‍ठा लऽ कऽ धो-धो चाटब। भने दि‍न-राति‍ दरमाहा बढ़बे करैए, सुखसँ जीबू।

बुद्धि‍धारी-            (कनडेरि‍ये आँखि‍ये पुलकि‍त दि‍स देख) तू जे सवाल उठेलह पुलकि‍त ओ बड़-भारी अछि‍। मुदा प्रश्‍न तोहर छि‍अह तँए जबाब देब उचि‍त भऽ गेल।

                  (जि‍ज्ञासासँ वि‍पति‍बाबू बुद्धि‍धारी बाबूक नजरि‍पर आँखि‍ गाड़ि‍ मनकेँ असथि‍र कऽ सुनैक बाट तकऽ लगलाह)

पुलकि‍त-            मासएब, जहि‍ना खेतक आड़ि‍-धुर बाढ़ि‍क बेगमे वि‍गड़ि‍ जाइत तहि‍ना भऽ गेल अछि‍।

                  (पुलकि‍तक दोहराओल प्रश्‍नसँ बुद्धि‍धारी बाबूक मन आरो अमता गेलनि‍। मुदा धैर्यसँ शक्‍ति‍ जगबैत)
बुद्धि‍धारी-            पुलकि‍त, जते सुख आ चैनसँ जीबए चाहैत छी ओते दुख आ बेचैनी बढ़ल जाइए। तोंही कहह जे बि‍ना काजक बोइन जे भेटतह ओ अन्न देहमे लगतह।

पुलकि‍त-            (धड़फड़ा कऽ) से कोना लगत। काजमे जते देह दुहाइत अछि‍ ओते भूख जगै छै जते भूख जगै छै ओते अधि‍क अन्न पचै छै। देह थकबे ने करत तँ भूख कन्ना जागत। जँ भूख नै जागत तँ खाइक क्षुधा कन्ना हएत? जेहन खाइ अन्न तेहन बने मन, जेहन बने मन, जते जगे अर्पण।

बुद्धि‍धारी-            अपने वि‍द्यालयक खि‍स्‍सा कहै छि‍अए। जै दि‍नमे एलौं ओइ दि‍नमे एगारह गोटे शि‍क्षक रही आ चारू कि‍लास मि‍ला कऽ साढ़े चारि‍ साए वि‍द्यार्थी रहए। साइंस, कौमर्स आ आर्ट तीनू फेक्‍लटी रहए।

पुलकि‍त-            चपरासी कतेक रहए?

बुद्धि‍धारी-            (मुस्‍की दैत) एक्केटा। काजो कम रहए। अच्‍छा सुनह। सभ कि‍लासमे सेक्‍शन चलैत रहए। अखन देखहक जे रजि‍ष्‍टरमे छह सौ वि‍द्यार्थी आ सत्तरह गोटे शि‍क्षक छी।

पुलकि‍त-            हँ, से तँ छी।

बुद्धि‍धारी-            मुदा की देखै छहक जे आइ मात्र चर्तुदसी छी, ने शि‍क्षक ऐलाह आ ने छात्र।

पुलकि‍त-            छुट्टी दरखास आएल की नै?

बुद्धि‍धारी-            एकोटा नै।

पुलकि‍त-            मासएब, ऐ बुढ़ाढ़ीमे कते माथा-पच्‍ची करब। भरमे-सरम अपन जि‍नगी आ परि‍वारकेँ देखि‍यौ।

बुद्धि‍धारी-            से उचि‍त हएत?

पुलकि‍त-            रूइया जकाँ जे माथ धुनि‍-धुनि‍ उड़ेबे करब तइसँ सीरक कन्ना बनत?

                  (वि‍पति‍ बाबूपर नजरि‍ दैत)

बुद्धि‍धारी-            एते दि‍न तँ नै कहलौं वि‍पति‍ बाबू कि‍एक तँ साल नै लागल छल मुदा आब तँ सालसँ ऊपर भऽ गेल। एकटा बात पुछू?

वि‍पति‍ बाबू-          एकटा कि‍अए हजारटा पुछि‍ सकै छी। जखन सभ दि‍न एकठाम रहै छी, एक पेशा अछि‍, तखन पूछैक लेल आदेशक की प्रयोजन?

बुद्धि‍धारी-            अहाँ वि‍आह कऽ लि‍अ?

वि‍पति‍ बाबू-          यएह जे दूटा बेटो-बेटी अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            मानै छी। मुदा ई कहू जे बेटा-बेटीक उम्र कते अछि‍?

वि‍पति बाबू‍-          अपने वि‍द्यालयमे बेटा एगाढ़मामे पढ़ैत अछि‍ आ बेटी नाइन्‍थमे।

बुद्धि‍धारी-            (आंगुरपर हि‍साब जोड़ि‍) चौदह-पनरह बर्खक बेटा आ बारह-तेहर बर्खक बेटी हएत?

वि‍पति‍ बाबू-          करीब-करीब।

बुद्धि‍धारी-            पान-सात बर्खमे बेटी सासुर चलि‍ जाएत। जे हवा बनि‍ रहल अछि‍ ओइमे जँ बेटाकेँ इंजीनि‍यर वा एम.बी.ए. नै कराएब सेहो नै बनत।

वि‍पति‍ बाबू-          जँ से नै कराएब तँ हँसारते हएत। तइपर सँ इहो दोख लागत जे माए मरि‍ते बेटा-बेटीकेँ वि‍पति‍ कुभेला करै छै।

बुद्धि‍धारी-            (कि‍छु सोचैत) कहलौं तँ ठीके। मुदा जँ अपना काजमे कमी नै आनब तँ लोक बाजत कि‍अए। कहुना तँ पच्‍चीस-तीस हजार महि‍ना उठैबते छी। असानीसँ सभ काज चला सकै छी।

वि‍पति‍ बाबू-          (मुड़ी डोलबैत) एक तरहक वि‍चार अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            (नमहर साँस छोड़ैत) ई भार हमरा ऊपर रहल। जहि‍ना एक-एक समस्‍या डोरीक सूत जकाँ बाँटल अछि‍ तहि‍ना ओकरा खोलि‍ कऽ उघारि‍-उघारि‍ सोझराबए पड़त।

पुलकि‍त-            (फड़कि‍ कऽ) मासएब, कँटहो बाँस तँ लोके काटि‍ कऽ घरमे लगबैए आ ई कोन ओझरी छि‍ऐ।

बुद्धि‍धारी-            एक आदमीक समस्‍या (ओझरी) कतेकोकेँ ओझरबैत अछि‍। तँए अौगता कऽ कि‍छु बाजि‍ देब वा करैले डेग उठा देब, अनुचि‍त हएत। (घड़ी देख कऽ) सवा तीन बजि‍ये गेल। काजो नहि‍ये जकाँ अछि‍। चाभी लऽ कऽ क्‍लासोक कोठरी आ आॅफि‍सो बन्न कऽ दहक।
                 
                  (पुलकि‍त चाभीले बढ़ए लगल। दुनू गोटे कुरसीपर सँ उठि‍ गेलाह। दुनू कुरसि‍यो आ स्‍टूलो आॅफि‍समे रखि‍ कोठरी बन्न कऽ पुलकि‍त अबैत अछि‍।)

बुद्धि‍धारी-            वि‍पति‍ बाबू, अहाँक जि‍नगी देख मनमे उदि‍ग्‍नता उठि‍ रहल अछि‍।

वि‍पति‍ बाबू-          कि‍अए?

बुद्धि‍धारी-            अपना सभ समाजक उच्‍च श्रेणीक रहि‍तो जि‍नगी आ मनुष्‍यक रहस्‍य नै बुझि‍ रहल छी। जे सहजे नि‍म्न श्रेणीक (बौद्धि‍क) छथि‍ ओ कोना बुझत। जँ से नै बुझत तँ अमती काँट जकाँ ओझरी (जि‍नगीक) कोना छोड़ा पाओत?

वि‍पति‍ बाबू-          (मुड़ी डोलबैत) बड़ गंभीर बात कहलौं।

बुद्धि‍धारी-            सदैत इच्‍छा रहैए जे सबहक परि‍वार नीक जकाँ फड़ै-फुलाइ मुदा से कहाँ भऽ पबैए। जहि‍ना आगू बढ़ल चि‍न्‍ता ग्रस्‍त (दुखी) तहि‍ना पछुआएल। आखि‍र एना होइ कि‍अए छै?

पुलकि‍त-            मासएब, अनेरे मन भरि‍ओने छी। हँसि‍-खेल जि‍नगी गुदस कऽ ली सभसँ नीक।

                  (पुलकि‍तक बात बुद्धि‍धारीक करेजकेँ आरो बेध देलकनि‍। मुदा कोढ़मे चोट लगने असीम दरदो होइत तँ मुँहसँ हसि‍यो फुटैत।)

बुद्धि‍धारी-            (मुस्‍की दैत) पुलकि‍त, औझका दरमाहा तँ फोकटेमे भेल कि‍ने?

पुलकि‍त-            फोकटमे कन्ना भेल। भरि‍ दि‍न बरदाएल जे रहलौं।

बुद्धि‍धारी-            अच्‍छा चलह संगे, तोरे ऐठाम चाह पीब।

पुलकि‍त-            दुआर पर तँ नहि‍ये पीआएब दोकानमे जरूर पीया देब।

बुद्धि‍धारी-            से कि‍अए?

पुलकि‍त-            घरवारी व्रत केने छथि‍। ओ तँ अनेरे पेटकान लधने हेती। तइपर चाह बनबए कहबनि‍। बाढ़नि‍ सूप छोड़ि‍ आरो कि‍छु भेटत।

बुद्धि‍धारी-            तखन तँ तोहर घरवाली बड़ धर्मात्‍मा छथुन?

पुलकि‍त-            सोलहन्नी। बि‍ना धरमत्‍मेक भरि‍ दिन खटै छी आ दरमाहा हुनका हाथ पड़ै छन्‍हि‍।

बुद्धि‍धारी-            धर्मो कते रंगक होइए?

पुलकि‍त-            मासएब, अहीं मुँहे ने सुनने छी, जते रंगक लोक तते रंगक धरम। कि‍यो कोदारि‍ पाड़ि‍ पसि‍ना चुबा धरम-करम (धर्म-कर्म) बुझैए, तँ कि‍यो बम-गोली लऽ धर्म-कर्म बुझैए। कर्म तँ दुनू करैए।


दोसर दृश्‍य-

          वि‍पति‍ बाबूक दरबज्‍जा। सुलक्षणी माए आ शि‍व कुमार (वि‍पति‍ बाबूक बेटा) दरबज्‍जापर बैसल।‍
                  (बुद्धि‍धारी, वि‍पति‍ बाबू आ पुलकि‍तक प्रवेश। सुलक्षणीकेँ गोड़ लगैत बुद्धि‍धारी। उठि‍ कऽ ठाढ़ होइत सुलक्षणी कुरसीकेँ आँचरसँ झाड़ैत।)

सुलक्षणी-            ऐपर बैसू। (बुद्धि‍धारीकेँ बैसते‍) बाल-बच्‍चा सभ आनन्‍दसँ छथि‍ कि‍ने?

बुद्धि‍धारी-            भगवानक कृपासँ सभ आनन्‍दि‍त अछि‍।

सुलक्षणी-            भगवान नीक करथि‍। एहि‍ना सभ दि‍न परि‍वार फुलाइत-फड़ैत रहए।

बुद्धि‍धारी-            एकटा वि‍चार लेल एलौं?

सुलक्षणी-            हम कोन जोकरक छी जे अहाँकेँ वि‍चार देब। तखन तँ जे बुझै छी सएह ने कहब।

बुद्धि‍धारी-            वि‍पति‍ बाबूकेँ बड़ कष्‍ट होइ छन्‍हि‍। तँए वि‍चार भेल जे ओ दोसर वि‍आह कऽ लथि‍।

सुलक्षणी-            (कने काल चुप रहि‍) जहि‍ना बेटा वि‍पति‍ अछि‍ तहि‍ना अहूँकेँ बुझै छी बौआ। तँए बजैमे धड़ी-धोखा नै होइए। हमर आशा कते दि‍न? वृद्ध भेलौं, कखन छी कखन नै, तेकर कोनो ठेकान नै अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            तँए ने वि‍चार करैक जरूरत अछि‍।

सुलक्षणी-            दुनि‍याँमे ने सभ मनुक्‍ख एक रंग अछि‍ आ ने  एक रंग चालि‍-चाढ़ि‍ छै। नीको छै अधलो छै। (कहि‍ चुप भऽ जाइत)

बुद्धि‍धारी-            अहाँक वि‍चार की अछि?

सुलक्षणी-            के अपन परि‍वारकेँ उजड़ैत-उपटैत देखए चाहत।

बुद्धि‍धारी-            अपन जे अखन परि‍वार अछि‍, ओ कोना लहलहाइत रहत अइले ने वि‍चारैक जरूरत अछि‍?

सुलक्षणी-            वि‍पति‍ हमर बेटा छी आ शि‍वकुमार पोता छी। दुनू कन्ना नीक-नहाँति‍ जि‍नगी बि‍ताओत सएह ने मनमे अछि‍। पोती तँ पाँच वर्खक बाद सासुर जाएत।

बुद्धि‍धारी-            (मूड़ी डोलबैत) हँ, कहलौं तँ नीके, मुदा.....?

सुलक्षणी-            मुदा की?

बुद्धि‍धारी-            मुदा यएह जे जहि‍ना पोखरि‍‍मे करहर-सौरखीक जनमौटी गाछक पात पकड़ि‍ ओरि‍या कऽ गाछ पकड़ि‍ जड़ि‍मे (ि‍नच्‍चामे) पहुँच उखाड़ल जाइत अछि‍ तहि‍ना केलासँ परि‍वारक कल्‍याण हएत।

सुलक्षणी-            बौआ, अहाँक बात नै बुझलौं?

बुद्धि‍धारी-            परि‍वारमे जते गोरे छी सबहक जि‍नगीक डोर पकड़ि‍-पकड़ि‍ ठढ़ धड़बऽ पड़त। तखने जा कऽ सुढ़ि‍आएत‍।

सुलक्षणी-            (मूड़ी डोलबैत) कहलौं तँ ठीके मुदा समाजो तँ तेहन अछि‍ जे नीक-अधला बात बाजि‍ मनकेँ घोर कऽ दैत अछि‍। जइसँ लोकक वि‍चारमे धक्का लगै छै। (कहि‍ चुप भऽ जाइत)

                  (बि‍चहि‍मे पुलकि‍त)

पुलकि‍त-            मासएब आ चाची, दुनू गोरेकेँ कहै छी। वि‍पति‍ भाय एकबतरि‍ये हेता।‍ हमर जे घरवाली मरल रहैत‍ तँ ककरोसँ पुछबो ने कैरति‍ऐ आ दोहरा कऽ वि‍आह कऽ नेने रहि‍तौं।

                  (पुलकि‍तक बात सुि‍न)

बुद्धि‍धारी-            (हँसैत) पुलकि‍त, परि‍वारक संग समाजोक वि‍चार करए पड़ै छै।

पुलकि‍त-            समाजकेँ अपने ठेकान नै छै। नीकोकेँ अधला कहैत अछि‍ आ अधलोकेँ नीक।

बुद्धि‍धारी-            हँ, से तँ अछि‍।

पुलकि‍त-            (अपना वि‍चारपर जोर दैत) मासएब, जे समाज ककरो घर नै बना सकैए ओकरा कोन अधि‍कार छै जे ककरो घर उजाड़ै।

बुद्धि‍धारी-            कहलह तँ ठीके मुदा धड़फड़मे कि‍छु करबो तँ सब नीके नै होइत अछि‍। अधलो भऽ सकैत अछि‍।

पुलकि‍त-            हँ, से तँ होइतो अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            तँए ने वि‍चारक जरूरत अछि‍। तू तँ वि‍पति‍ बाबूक परेशानी देख धाँय दे बजलह। तोरह वि‍चार कटैबला नै छह।

पुलकि‍त-            एक बेर आरो चाह पीबू तखन मन आरो खनहन हएत। जइसँ झब दे रस्‍ता भेटत।

                  (पुलकि‍तक बात सुनि‍)

वि‍पति‍ बाबू-          बौआ (शि‍वकुमार) चाह बनौने आबह। पुलकि‍तक कपमे कनी बेसी कऽ चीनी देने अबि‍हह।

पुलकि‍त-            हम की आन दुआरे चाह पीबै छी मीठे दुआरे पीबै छी की। जावतो जीबै छी तावतो जँ हँसी-खुशीसँ नै जीयब तँ अनेरे जीबि‍ये कऽ की करब।
(चाह अबैत अछि‍ सभसँ पहि‍ने पुलकि‍तेक कप बढ़बैत अछि‍।)

बुद्धि‍धारी-            हमरो कपक चाह कनी पुलकि‍तमे ढारि‍ दहक।

पुलकि‍त-            ऍंह, मासएब केहेन गप बजै छी। अनकर हि‍स्‍सा खाएब से पचत।

बुद्धि‍धारी-            (हँसैत) हमरा आन बुझै छह?

पुलकि‍त-            नै मासएब, मुँहसँ नि‍कलि‍ गेल। अच्‍छा कनी ढारि‍ दि‍औ।

                  (चाह पीब पान खा)

बुद्धि‍धारी-            चाची, वि‍पति‍ बाबू जँ दोसर वि‍आह करथि‍ तँ अहाँकेँ कोनो वि‍रोध नै ने?

सुलक्षणी-            नै। आब हमरा की चाही। वस एतबे ने जे पाँच कर भोजन आ पाँच हाथ वस्‍त्र भेटैत रहए।

बुद्धि‍धारी-            वाउ, शि‍वकुमार, अहाँ मनमे की बनैक (पढ़ैक) वि‍चार अछि‍?

शि‍वकुमार-           अखन तँ हाइये स्‍कूलमे छी। मुदा मनमे अछि‍ जे चाहे इंजीनि‍यरि‍ंग वा एम.बी.ए. पढ़ी।

बुद्धि‍धारी-            बहुत बढ़ि‍या। मुदा जखन इंजीनि‍यर वा एम.बी.ए. करबह तखन तँ नोकरी करए कारखाना वा शहर-बजार जेबह। परि‍वारो (पत्नी) जेथुन।

                  (शि‍वकुमार गुम भऽ जाइत अछि‍)

बुद्धि‍धारी-            चुप कि‍अए भेलह। बाजह।

शि‍वकुमार-           हँ।

बुद्धि‍धारी-            बात तोंही कहह जे दादी मरि‍ जेथुन, तों परि‍वारक संग शहर चलि‍ जेबह, बहीन सासुर चलि‍ जेतह, ऐठाम वि‍पति‍ बाबूक दशा की हेतनि‍?

शि‍वकुमार-           मासएब, अहाँ बाबूक संगि‍येटा नै छि‍अनि‍, गुरूओ छी। अपने जे कहब शि‍रोधार्य अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            वि‍पति‍ बाबू, दुनि‍याँमे मनुष्‍य खराब नै होइत अछि‍। ओकरा बनबैमे नीक-अधला होइ छै। जइसँ नीक-अधला बनैत अछि‍।

पुलकि‍त-            हँ, से तँ होइ छै।

बुद्धि‍धारी-            माएक लेल बेटा-बेटीक लेल पि‍ता आ पत्नीक (वि‍वाहक बाद) लेल पति‍ बनि‍ आगूक जि‍नगी बना जीब। यएह अंति‍म बात अछि‍। पुलकि‍त एकटा कनि‍याँ ताकह।


तेसर दृश्‍य-
                  तेतरी आ खजुरि‍या बि‍परीत दि‍शासँ अबैत बाटपर भेँट।

खजुि‍रया-            फुल कतऽ दौड़ल जाइ छी। पएरपर पएर नै पड़ैए?

तेतरी-              की कहब फुल, देखि‍यौ जे सूर्ज सि‍रपर आबि‍ गेल, अखैन तक भानस नै चढ़ैलौं। अपने (पति‍) नहाइले गेल हेता भानस चढ़ेबे ने केलौं।

खजुि‍रया-            कि‍अए ने अखैन तक भानस चढ़ेलौंहेँ?

तेतरी-              की पुछै छी फुल, (मुस्‍की दैत) रजकुमराकेँ देखि‍यौ जे पहि‍लुका (विआही) बौह छोड़ि‍ कऽ अबलट लगाकेँ चलि‍ गेल छेलै जे ऐहेन पुरूखसँ खनदान नै बढ़त। जखैन ओ (रजकुमरा) चुमौन कऽ लेलक तखैन फेर घुरि‍ कऽ अपने फुरने चलि‍ आएल।

खजुरि‍या-            चलि‍ एलै तँ राखि‍ लि‍अ। जहि‍ना अबलट लगा पड़ाएल जे ऐ पुरूखसँ खनदान नै बढ़तै तहि‍ना कमाएत-खाएत अपन रहत। जखैन रहेक मन हेतै रहत जाइक मन हेतै जाएत। तइले एते मत्‍था-पच्‍ची करैक कोन जरूरत छै?

तेतरी-              जेहने खेलाड़ि‍ मौगी छै तेहने रजकुमरा अपने अछि‍। हँसि‍-हँसि‍ बजैत रहैए तँए बुझै छि‍ऐ। नमरी अछि‍, नमरी।

खजुरि‍या-            ओइ पाछु अहाँक भानसक अबेर कि‍अए भऽ गेल। झगड़ा ककरो आ काज छुटि‍ गेल अहाँकेँ?

तेतरी-              नून आनए दोकान वि‍दा भेलौं आकि‍ हल्‍ला सुनलि‍ऐ, भेल जे ककरो कि‍छु भऽ गेलै। ससरि‍ कऽ गेलौं तँ यएह रमा-कठोला देखलि‍ऐ। ओही लटारममे लागि‍ गेलौं।

खजुरि‍या-            फेर भेलै की?

तेतरी-              की हेतै। मन दुनूक लसि‍आएल बुझि‍ पड़ल। मुदा हारल तँ दुनू अछि‍। लाजे लोक लगमे की बाजत तँए दुनू अनकर मन पति‍अबै छै। अखैन जाए दि‍अ फुल। नि‍चेनमे सब गप कहब।

खजुरि‍या-            भानस हेबे करतै मुदा अधा गप कहि‍ कऽ छोड़ि‍ देलि‍ऐ। अखैनसँ पेटमे उनटैत-पुनटैत रहत। अनका पुरूख जकाँ कि‍ हि‍नकर पुरूष छन्‍हि‍ जे मुँह अलगौतनि‍?

तेतरी-              मुँह जे अलगौत से कोनो सपेत कऽ। कमा कऽ हाथमे आनि‍ दै छथि‍ मुदा नूनसँ हरैद धरि‍ तँ हमरे जोरह पड़ैए। भरि‍ दि‍न दौड़ैत-दौड़ैत तबाह रहै छी।

खजुरि‍या-            एकटा गप सुनलि‍ऐहेँ?

तेतरी-              की? नै!

खजुरि‍या-            गाममे नै छेलखि‍न?

तेतरी-              गाममे कि‍ कोनो एक्केटा गप चलैए जे सभ एक्के गप सुनत? रंग-वि‍रंगक गप पुरवा-पछवा जकाँ सदि‍खन चैलते रहैए कि‍?

खजुरि‍या-            अखैन इहो अगुताएल छथि‍ आ हमरो काज सभ अछि‍। कखनो नि‍चेनमे दुनू फुल गप कऽ लेब।

तेतरी-              तोहुँ हद करै छह। आ जे बि‍सरि‍ जा?

खजुरि‍या-            एहनो गप वि‍सरल जाइए।

तेतरी-              हँ, तँ वि‍सरल जाइए कि? आ जे अहूसँ नि‍म्‍मन गप आबि‍ जाए तँ हल्‍लुक गप लोक वि‍सरि‍ये जाइए कि‍ने?

खजुरि‍या-            हँ, बेस कहलथि‍। मुदा खरि‍आइर कऽ नै कहबनि‍। उपरे-झापरे कहि‍ दै छि‍अनि‍।

तेतरी-              हँ, सएह कहह।

खजुरि‍या-            पढ़ि‍-लि‍खि‍ कऽ तँ आरो लोक गाम घि‍नबैए।

तेतरी-              से की?

खजुरि‍या-            ऍंह, की कहबनि‍?

तेतरी-              नै-नै, कनी फरि‍या कऽ कहू।

खजुरि‍या-            बि‍पैत मासटर दोसर वि‍आह करताह?

तेतरी-              तँ ई कोन बड़-भारी बात भेल। वेचाराक स्‍त्री मरि‍ गेलनि‍ भानस-भातमे दि‍क्कत होइत हेतनि‍।

खजुि‍रया-            ऍंह, एहि‍ना बुझै छथि‍न।

तेतरी-              से की?

खजुि‍रया-            आइ जँ बेटा-बेटी नै रहि‍तनि‍ तखैन जँ करि‍तथि‍ तँ एकटा सोहनगर होइतै‍। जखैन बेटा-बेटी ढेरबा-जवान भेल तखैन कि‍अए करै छथि‍।

तेतरी-              (मुँह बन्न केने) हूँ।

खजुरि‍या-            हमरा काकाकेँ देखलखि‍न। बेचारेकेँ तँ एक्केटा बेटी भेलनि‍ आ काकी मरि‍ गेलनि‍। कतबो लोक हि‍ला-डोला कऽ रहि‍ गेल तैयो मानलखि‍न।

तेतरी-              हँ, से तँ बेस कहलौं।

तेतरी-              (कनी काल चुप रहि‍) हूँ...।

खजुरि‍या-            भानसो भातक दि‍क्कत कि‍ होइ छन्‍हि‍। अखैन हाथी सन माइयो छेबे करनि‍, बेटि‍यो भानस करै जोकर भइये गेलनि‍ तखैन कि‍अए करै छथि‍। पुरूखक कि‍रदानी बुझबै।

तेतरी-              अपने फुरने करै छथि‍ आकि‍ घरोक लोकक वि‍चार छन्‍हि‍?

खजुरि‍या-            ऍंए, हद करै छी। अहाँ नै देखै छि‍ऐ जे आबक बेटा-बेटी माए-बापसँ केहेन पुछै छै।

तेतरी-              से तँ ठीके कहै छी। मुदा सभ की एक्के-रंग होइए। हमरे घरबला छथि‍, मरैयौ बेर तक माइयेक कहलमे रहला। बेटो ने मनाही केलकनि‍।

खजुरि‍या-            बेटा कि‍ मनाही करतनि‍। चुमौन कऽ कऽ कनी घर आबए दि‍यौ तखैन ने हुर‍याहा देखबै। जहि‍ना बुढ़ीकेँ अतर-गुलाबसँ मालि‍श करतनि‍ तहि‍ना ने बेटो-बेटीकेँ टेमपर खाइले देतनि‍।
तेतरी-              सभ सतमाए की एक्के रंग होइए। ने सभ वियौहती नीके होइए आ ने सभ समदाही अधले होइए। पुरूखे की सभ एक्के रंग होइए?

खजुि‍रया-            हँ, से तँ बेस कहलौं। मुदा ओहि‍ना नै ने लोक बजैए।

तेतरी-              से बाजह। गामेमे सोनमाकेँ देखै छि‍ऐ। जहि‍यासँ समदाही एलै तहि‍यासँ घरमे लछमी आबि‍ गेलै। से तँ मनुक्‍ख-मनुक्‍खपर छै।

खजुरि‍या-            मुदा नीके औतनि‍ तेकर कोन बि‍सवास?

तेतरी-              से तँ ठीके।

खजुि‍रया-            मुदा..?

तेतरी-              मुदा की? यएह ने जे जेहेन परि‍वारक लोक रहत तेहने ने नवका मनुक्‍ख बनत।

खजुि‍रया-            ई की वि‍पति‍ मासटरकेँ बुझै छथि‍न?

तेतरी-              हम तँ नीके बुझै छि‍अनि‍।

खजुरि‍या-            घुइयाँ पुरूखक चालि‍ यएह बुझथि‍न। मूड़ी गोंति‍ कऽ चललासँ हेतनि‍। महकारी जकाँ पुरूख होइए। तरे-तर तना ने बि‍ठुआ काटि‍ लेतनि‍ जे बुझबे ने करथि‍न।

तेतरी-              जाए दि‍औ नीक की अधला अपना परि‍वारमे हेतनि‍ तइसँ हमरा-हि‍नका की?

खजुि‍रया-            हमरा की? एना कि‍अए बजै छी। गाम की हमर नै छी जे जेकरा जे मन फुड़तै से करत आ टुटुर-टुटुर देखैत रहब।

तेतरी-              अनकर झगड़ा मोल लेब।

खजुरि‍या-            कि‍अए ने लेब? झगड़ाक डर करब तँ एक्को दि‍न गाममे बास हएत।

तेतरी-              (आँखि‍ उठा कऽ ऊपर दि‍स देख) बड़ अबेर भऽ गेल। आइ बात-कथा सुनबे करब।

खजुरि‍या-            एकटा बात तँ कहबे ने केलि‍एनि‍?

तेतरी-              की?

खजुरि‍या-            ढोरबा फेर चुमौन केलकहेँ।

तेतरी-              ओकरा तँ मारे धि‍यो-पुतो आ घरोवाली छइहे?

खजुरि‍या-            (वि‍हुँसैत) छठम छऐ।

तेतरी-              नि‍रलज्‍जा-नि‍रलज्‍जी सभ सभ उठा कऽ पीब नेने अछि‍। जहि‍ना पुरूखक धनमंडल अछि‍ तहि‍ना मौगीक। एकरा सभले रौदी-दाही अबि‍ते अछि‍।


चारि‍म दृश्‍य-
                  (चि‍न्‍तामणि‍क दरबज्‍जा)

चि‍न्‍तामणि‍-           (स्‍वयं) हे भगवान अधमरू जि‍नगीमे कि‍अए फँसौने छी। अइसँ नीक जे मौगैत दि‍अ। आशाकेँ जते हृदएसँ लगबए चाहैत छी ओते ओ पि‍छड़ि‍-पि‍छड़ि‍ हटैत जाइए आ जि‍नगीकेँ अन्‍हार बनौने जाइए। अपनो भ्रम भेल जे आशा-नि‍राशा (अन्‍हार-इजोत) केँ शब्‍दकोषक शब्‍द मात्र बुझलि‍ऐ। मुदा आइ बुझि‍ रहल छी जे खाली शब्‍दकोषेक शब्‍द नै जि‍नगी छी। एते दि‍न माइयो बापक उत्तरी गरदनि‍मे लटकने घर-घरारी उपटैत छल मुदा आब तेसरो उत्तरी लटकए लगल। खाइर, जे जि‍नगी देलह ओ तँ भोगबे करब। मुदा मरैयो बेर तक माछी जकाँ नाकपर नै बैसऽ देब। जाधरि‍ (जाबे आँखि‍ तकै छी तकै छी बन्न हएत-हएत)

                  (पुलकि‍तक प्रवेश)

चि‍न्‍तामणि‍-           अहाँ के छी, कि‍नकासँ काज अछि‍?
पुलकि‍त-            आदर्श स्‍कूलक चपरासी छी, बुद्धि‍धारी बाबू पठौलनि‍ अछि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           (आँखि‍ ऊपर उठबैत) के....। बुद्धि‍धारी बाबू। आदर्श स्‍कूलक शि‍क्षक। ओ तँ हमरा नै जनैत छथि‍, फेर.....।

पुलकि‍त-            पता चललनि‍ जे चि‍न्‍तामणि‍ बाबूकेँ कन्‍या छन्‍हि‍। जँ ओ कन्‍याक वि‍आह वि‍पति‍ बाबूक संग करए चाहथि‍ तँ....?

चि‍न्‍तामणि‍-           वि‍पति‍ बाबू...।

पुलकि‍त-            हँ-हँ। ओहो सहयोगि‍एक रूपमे काज करै छथि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           ओ अवि‍वाहि‍ते छथि‍।

पुलकि‍त-            नै। पत्नी मरि‍ गेलखि‍न। दोहरा कऽ करताह।

चि‍न्‍तामणि‍-           (व्‍यग्र होइत) दोहरा कऽ करताह। सौतीनक तर तँ नै भेल। मुदा दोती बरसँ कुमारि‍ कन्‍याक ि‍वआह....। की अपन बेटीक भरि‍-भरि‍ दि‍नक उपासक पूजाक फल भगवान यएह देलखि‍न। मुदा उपाइये की? मृत्‍युकाल साधारण खढ़ोक आशा पाबि‍ चुट्टी धारक धारामे उगैत-डूबैत जान बचाइये लैत अछि‍। आशा भेट रहल अछि‍। बाउ, उमेर कते छन्‍हि‍?

पुलकि‍त-            हम दुनू गोरे एक बत्तरि‍ये छी। घरो एक्केठीन अछि‍।
(पुलकि‍तकेँ नि‍च्‍चासँ ऊपर माथ धरि‍ नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ चि‍न्‍तामणि‍ देखै छथि‍)

चि‍न्‍तामणि‍-           बालो-बच्‍चा छन्‍हि‍?

पुलकि‍त-            हँ। एकटा बेटा एकटा बेटी छन्‍हि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           तखन दोहरा कऽ कि‍अए वि‍आह करताह?

पुलकि‍त-            माए बूढ़े छन्‍हि‍, वि‍आहक बाद बेटी सासुरे बसए लगतनि‍। नँउऐ-कौंउएे कऽ बचलनि‍ बेटा। बेटो सभ तेहेन ढाठी धऽ लेलक जे ओइसँ नीक बेटि‍ये। जे कमसँ कम पावनि‍-ति‍हारमे नै सनेस तँ वेनो पठेबे करैए। तँए जुगक अनुकूल अपन-अपन आशा बना जि‍नगी चलबैत रही।

चि‍न्‍तामणि‍-           नीक-नहाँति‍ अहाँक बात नै बुझलौं?

पुलकि‍त-            अपने पढ़ल-लि‍खल नै छी मुदा संगत पाबि‍ कि‍छु बुझल अछि‍। आगू बढ़ैक हाेड़मे समाज बि‍खंडि‍त भऽ रहल अछि‍ जइसँ गामक दशा दि‍नानुदि‍न गि‍रले जा रहल अछि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ भाइये रहल अछि‍।

पुलकि‍त-            अहीं कहू जे कि‍सान परि‍वारमे जन्‍म लेनि‍हार कि‍सान बनैत छलाह। पूर्वजक लगौल फुलवाड़ीकेँ कोर-कमठौनक संग पानि‍ ढारैत छलाह जइसँ समाजक हरीयरी बढ़ैत रहल। मुदा कल-कारखाना दि‍स घुसकि‍ समाजक (गामक) घर खसा रहल अछि‍। एहेन स्‍थि‍ति‍मे की कएल जाए।

चि‍न्‍तामणि‍-           बाउ, अहाँ चपरासी छी?

पुलकि‍त-            हँ। मुदा वि‍पति‍ बाबूक लंगोटि‍या संगी सेहो छी। हमर माए-बाप गरीब छलाह, नै पढ़ौलनि‍। ओ (वि‍पति‍ बाबू) बी.ए. पास कऽ कऽ हाइ स्‍कूलमे शि‍क्षक बनलाह। मुदा बच्‍चेसँ जहि‍ना रहलौं तहि‍ना अखनो छी।

चि‍न्‍तामणि‍-           बेटा नै बेटी छी तँए जि‍नगीक प्रश्‍न अछि‍। ओना वि‍अाह लेल डेग उठबैमे ने कोनो बाधा अछि‍ आ ने संकोच। मुदा जते अधि‍कार हमरा अछि‍ तइसँ मि‍सि‍यो कम माएकेँ नै छन्‍हि‍। तँए डेग उठबैसँ पहि‍ने हुनको पूछि‍ लेब जरूरी अछि‍। (जोरसँ) कतऽ छी कनी सुनि‍ लि‍अ?
                 
                  (सावि‍त्रीक प्रवेश)

सावि‍त्री-             की कहलौं?

चि‍न्‍तामणि‍-           (मुस्‍कुराइत) तीन सालक चि‍न्‍ता हेट भऽ रहल अछि‍।

सावि‍त्री-             (वि‍हुँसैत) से की? से की?

चि‍न्‍तामणि‍-           गीताक वि‍आहक सूहकार आएल अछि‍। कने बुझने-सुझने अबै छी। जँ कि‍छु धएल-धड़ल वि‍चार हुअए तँ अखने कहि‍ ि‍दअ।

सावि‍त्री-             राखल जोगाएल वि‍चार की रहत। पेटीमे राखल पुरान साड़ी जकाँ तरेतर सभ गुमसरि‍ गेल। पहि‍रै जोकर नै रहल। मुदा तैयो तँ कहबे करब जे नोर बहबैत बेटी सरापे नै।

चि‍न्‍तामणि‍-           अहाँ अर्द्धांगि‍नी छी जेकर आड़ि‍पर बेटा-बेटीक गाछ होइ छै। कोनो बात (वि‍चार) जोर दऽ कऽ हँ नै कहाएब। अखन समए अछि‍ तँए मनसँ वि‍चार देब तखने डेग उठाएब।

सावि‍त्री-             बरक वि‍षएमे कि‍छु कहि‍ दि‍अ?

पुलकि‍त-            शरीरसँ पूर्ण स्‍वस्‍थ, हाइ स्‍कूलमे शि‍क्षक छथि‍। धतपत तीस-पेंइतीसक अवस्‍था हेतनि‍। पहि‍ल कनि‍याँ पैछला साल मरि‍ गेलनि‍। तँए परि‍वारक लेल दोहरा कऽ वि‍आह करब जरूरी छन्‍हि‍।

सावि‍त्री-             नौकरी करै छथि‍, तहूमे शि‍क्षक छथि‍। ई तँ दीब बात भेल। जाधरि‍ नोकरी करै छथि‍ ताधरि‍ तलब भेटतनि‍ आ छुटलाक (रि‍टायर) उत्तर पेन्‍शन। (मुस्‍की दैत) पाँच कर अन्न आ पाँच हाथ वस्‍त्रक दुख गीताकेँ नै हएत। गामक नाओं कहू?

पुलकि‍त-            धरमपुर।

सावि‍त्री-             गामो तँ दुसैबला नहि‍ये अछि‍। लगो अछि‍। जाबे जीब ताबे आवा-जाही रहबे करत। (पति‍सँ) एक-दूटा बात वि‍चारणीय अछि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           (व्‍यग्र) से की, से की?

सावि‍त्री-             जहाँ धरि‍ उमेरक बात अछि‍ ओहो परमपराक अनुकूले अछि‍। राजा दशरथ तीनटा वि‍आह केने रहथि‍। कि‍अए केने छलाह? अही दुआरे ने जे पहि‍ल कन्‍याँसँ सन्‍तान नै भेलनि‍। प्रश्‍न अछि‍ जे सन्‍तानक प्रतीक्षामे दस वर्ष समए लगले हेतनि‍?

चि‍न्‍तामणि‍-           कने सोझरा कऽ कहि‍यौ?

सावि‍त्री-             सन्‍तान नै हेबाक घोषणा (ि‍नर्णए) दस वर्ष पछाति‍ये ने होइत छै। तै बीच तँ ओकर प्रति‍कार होइ छै। जोग-टोनसँ लऽ कऽ दवाइ-वि‍ड़ोमे दस वर्ष लगि‍ये जाइत अछि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           हँ, से तँ होइते अछि‍।

सावि‍त्री-             पहि‍लसँ तेसर पत्नीक बीच पनरह-बीस बर्ख लगि‍ये जाइत अछि‍। ऐ हि‍सावसँ लड़का (बर) उपयुक्‍त छथि‍। दोसर प्रश्‍न अछि‍ दोसर पत्नीक।

चि‍न्‍तामणि‍-           हँ, से तँ अछि‍ये।

सावि‍त्री-             दोसर पत्नी तँ ओतऽ अधला होइत अछि‍ जतऽ सौतीन बनि‍ जि‍नगी चलैत। से तँ नहि‍ये अछि‍। रहल बच्‍चाक सतमाए होएब? सासुक लेल तँ पुतोहूए हएत।

चि‍न्‍तामणि‍-           (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ अछि‍ये?

सावि‍त्री-             ई तँ नीके भेल।

चि‍न्‍तामणि‍-           कोना?

सावि‍त्री-             (हँसैत) जहि‍ना गुरूसँ श्रेष्‍ठ सतगुरू होइत छथि‍ तहि‍ना।

चि‍न्‍तामणि‍-           नै बुझलौं?

सावि‍त्री-             माएसँ श्रेष्‍ठ सतमाए ऐ लेल श्रेष्‍ठ होइत जे माए अपन (कोखि‍क) सन्‍तानक सेवा करैत (पालैत-पोसैत) जहन कि‍ सतमाए दोसराकेँ। जँ आन बच्‍चाक सेवा अपन बच्‍चा सदृश्‍य कि‍यो करैत तँ वएह ने सतमाए भेली।

चि‍न्‍तामणि‍-           मुदा.....?

सावि‍त्री-             हँ। अपना समाजमे सतमाएकेँ सौति‍नि‍या डाहक प्रतीक बुझल जाइत अछि‍। ठाम-ठीम अछि‍यो। मुदा (सत-माए) सतमाए तँ ओ भेली जे अपने बच्‍चा जकाँ दोसरोक बच्‍चाकेँ बुझि‍ सेवा करए।

चि‍न्‍तामणि‍-           (ठहाका मारि‍) आगू बढ़ै छी।


अंति‍म दृश्‍य-

                  (चि‍न्‍तामणि‍केँ पुलकि‍त स्‍कूलक अग्‍नेयमे ठाढ़ कऽ वि‍पति‍ बाबू आ बुद्धिधारी बाबूकेँ बजा अनैत)
                  चारू गोटे बैसल।

बुद्धि‍धारी-            अपनेक नाओं?

चि‍न्‍तामणि‍-           लोक चि‍न्‍तामणि‍ कहैए।

बुद्धि‍धारी-            अपनेकेँ कन्‍या छथि‍?

चि‍न्‍तामणि‍-           हँ।

बुद्धि‍धारी-            (वि‍पति‍ बाबूकेँ देखबैत) यएह बर (लड़का) छथि‍। सहयोगी छथि‍। हि‍नक पत्नी पैछला साल मरि‍ गेलखि‍न। बृद्ध माए आ दूटा बच्‍चा छन्‍हि‍। आब अपन वि‍चार देल जाउ?

चि‍न्‍तामणि‍-           वि‍द्यालयक आंगनमे बैसल छी तँए कहै छी। ओना हम बड़ गरीब छी। उनैस-बीस बर्खक बेटी अछि‍। तीन सालसँ वि‍आहक बात मनमे नाचि‍ रहल अछि‍ मुदा कतौ नाकपर माछी नै बैस रहल अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            अपनेकेँ एको-पाइ खर्च नै हएत। वि‍पति‍ बाबू कमाइ छथि‍। सब खर्च करताह।

चि‍न्‍तामणि‍-           केहेन बात बजै छी। ई कहू जे लाम-झामसँ बरि‍आती नै जाएत। मुदा अपना दरबज्‍जापर सँ बेटी जमाएकेँ पाँच हाथ नव वस्‍त्र पहि‍रा अरि‍आति‍ कऽ वि‍दा नै करब से केहेन हएत?

बुद्धि‍धारी-            जहन संबंध स्‍थापि‍त कए रहल छी तहन भेद कि‍अए?

चि‍न्‍तामणि‍-           जहि‍ना आमक गाछकेँ दोसर गाछक डारि‍मे बान्हि‍ कलम बनाओल जाइत अछि‍ तहि‍ना ने दू परि‍वार मि‍ल बनैत अछि‍। मुदा दुनूक अपन-अपन गुण तँ रहि‍ते अछि‍।

बुद्धि‍धारी-            नै बुझलौं?

चि‍न्‍तामणि‍-           हमर कन्‍या मि‍थि‍लाक ललना छी। एक बेर जै पुरूषसँ हाथ पकड़बैत अछि‍ जि‍नगी भरि‍ स्‍वामी, पति‍ आ गुरूभक्‍त बनि सेवा करैत अछि‍। कहि‍यो अपन सीमाक उल्‍लंघन नै करैत अछि‍। भलहि‍ं राम सन बेटाकेँ पि‍ता बनवास दऽ देलखि‍न मुदा कौशल्‍या बात कहाँ कटलकनि‍।

बुद्धि‍धारी-            से की?

चि‍न्‍तामणि‍-           यएह जे रामपर जते अधि‍कार पि‍ता दशरथक छलनि‍ तइसँ कम तँ माए कौशल्‍याक नै छलनि‍। मुदा कहाँ अपन अधि‍कारक प्रयोग केलनि‍। आँखि‍ मुनि‍ सुहकारि‍ लेलकनि‍।

बुद्धि‍धारी-            (नमहर साँस छोड़ैत) वि‍पति‍ बाबूक परि‍वार अलग छन्‍हि‍। जेहने अपने छथि‍ तेहने माए छथि‍न। दुनू बच्‍चा तँ गाइयोक बच्‍चासँ कोमन आ सुशील अछि‍।

चि‍न्‍तामणि‍-           भाग्‍य हमरा बेटीक जे लगौल फुलवाड़ीक माली बनि‍ सेवा करत।

अंति‍म दृश्‍य, मि‍थि‍लाक वि‍आहक।
समाप्‍त।


बेचन ठाकुर
बेटीक अपमान केर अंति‍म दृश्‍य-

दृश्‍य- आठम

           (स्‍थान- दीपक चौधरीक आवास। गोपालक वि‍आहक तैय्यारी पूर्ण भए गेल अछि‍। जयामालाक मंच सजल-धजल अछि‍। दीपक आओर प्रदीप जयमाला-मंचक लगमे राखल कुर्सीपर बैस कऽ गप-सप्‍प करैत छथि‍।)


प्रदीप :       दीपक बाबू, सुनलौं अनरीतक रीत। ठीके गप छी की?

दीपक :      बि‍ल्‍कूल ठीक अछि‍। हम की कए सकै छलौं? मनुष्‍य परिस्‍थि‍ति‍क दास थि‍कै।

प्रदीप :       हँ, ई बात तँ सदा सत्‍य अछि‍ जे समए कि‍नको नै छोड़लनि‍ आ नै छोड़त। खाइर होनीकेँ कि‍यो नै रोकि‍ सकैछ। दीपक बाबू, एखन धरि‍ बलवीर बाबू बरयाती लऽ कऽ नै एलाह।

दीपक :      अबि‍ते हेताह। बेसी बि‍लंब करताह तहन बसिऔरा खेताह।

            (बैंड पार्टीक आवाज सुनि‍)
            प्रदीप बाबू, बरआती आबि रहल अि‍छ। ऐ बीच हम नश्‍ता-पानि‍ सरि‍या लै छी।

प्रदीप :       बेस जाउ। जल्‍दी करू।

            (दीपक प्रस्‍थान करैत छथि‍। बलवीरक प्रवेश बरि‍आतीक संग। बरआतीमे संजू लड़ि‍की छथि‍न्‍ह। आअोर गंगाराम, चन्‍देश्वर ओ हरेराम छथि‍न्‍ह। सभ बरि‍आती कुर्सीपर बैसैत छथि‍। मोहन ओ सोहन बरि‍आती बरि‍आतीकेँ नश्‍ता-चाह-पान करबैत छै। लड़ि‍का गोपालक जयमाला कराबए अबैत छथि‍। लड़ि‍कीकेँ चुमा कऽ जयमालाक जोगार करै छथि‍।)

बलवीर :      दीपक बाबू, बस करू। ऐसँ आगू जुनि‍ बढ़ू (बि‍गैर कऽ) (सभ रूकि‍ जाइ छथि‍।)

प्रदीप :       कि‍अए नै बि‍गरब? नगद गि‍नलथि‍ दीपक बाबू। सवा लाख टाका अखन गि‍नथु तहन जयमाला करताह।

प्रदीप :       दीपक बाबू, पहि‍ने बलवीर बाबूकेँ नगद गि‍नु तहन जयमाला करब।

            (जयमाला छोड़ि‍ दीपक अन्‍दरसँ सवालाख टाका आनि‍ बलवीर बाबूकेँ गि‍नि‍ कऽ दै छथि‍न्‍ह। बलवीर रूपैआ लऽ कऽ प्रसन्न छथि‍।)

बलवीर :      हँ, आब अपने सभ जयमाला करू।

            (सभ कि‍यो जयमाला करबै छथि‍। पहि‍ने लड़ि‍का लड़ि‍कीकेँ जयमाला पहि‍रौलन्‍हि‍। जोरदार तालीक गदगड़ाहटि‍ भेल। लड़ि‍कीबला बि‍स्‍कुट चकलेट लुटेलन्‍हि‍। लड़ि‍का-लड़ि‍की मंचपर बैसल छथि‍। वातावरण बि‍ल्‍कुल शांत अछि‍।)

            समधि‍, घरपर पार्टीक व्‍यवस्‍था पूर्ण भए गेल अछि‍। यथाशीध्र हमरा लोकनि‍क वि‍दाइ कऽ दि‍अ। हमरा लोकनि‍क ि‍नयम अछि‍ जे लड़ि‍की-लड़ि‍कीक घर जएताह। फेर एक सप्‍ताह बाद लड़ि‍का-लड़ि‍की अहाँक घर आबि‍ स्‍थायी रूपसँ रहतथि‍।

हरेराम :      दीपक बाबू, जल्‍दी समधी-मि‍लान कए लि‍अ।

दीपक :      सरकार, जे जेना वि‍चार।

हरेराम :      बलवीर बाबू, जल्‍दी समधी-मि‍लन करू।

            (बलवीर आ दीपक गरदनि‍ मि‍लि‍ कऽ समधी मि‍लन कएलन्‍हि‍। समधी मि‍लनमे बलवीर दीपककेँ पच्‍चीस हजार टाका दै छथि‍न। बरि‍आतीक संग लड़ि‍का-लड़ि‍कीक प्रस्‍थान। आपसमे नमस्‍का-पाती होइत छन्‍हि‍।)

पटाक्षेप
दृश्‍य- नवम

           (स्‍थान- दीपक चौधरीक आवास। दीपक चौधरी, मोहन चौधरी, मंजू, सोहन चौधरी व शालि‍नी मंचपर उपस्‍थि‍त छथि‍। दीपकक हालत बड्ड गड़बड़ अछि‍। खोंखी करैत-करैत मरनासन भए जाइत छथि‍। अन्‍त कालमे दुनू बेटा-पुतौह हि‍नक सेवा-सत्‍कारमे लागल छथि‍।)

दीपक :      आइ बुझाए रहल अछि‍ जे हम स्‍वर्गमे छी। मुदा एहेन पहि‍ने रहि‍तए तँ हमरा चि‍न्‍ता नै खैताए। चि‍न्‍ते हमर बेमारीकेँ ओते बढ़ाओलक। कहबी ठीके अछि‍- जे तुकपर नै से कथीदनपर।
            (खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइत छथि‍।)

मंजू :        (मोहनसँ) स्‍वामी, बाबू जीक हालत बड़ खराब छन्‍हि‍। जल्‍दी डाकदरकेँ बजाउ।

मोहन :       हम अपन बापक हमहीटा बेटा थि‍कहुँ की? साेहन बाबूकेँ कहि‍औन, गोपाल बाबूकेँ कहि‍औन।

शालि‍नी :      (सोहनसँ) स्‍वामी, अहीं डाकदरकेँ देखि‍औन।

सोहन :       अहीं देखि‍औन ने, बड़ दयालु थि‍कहुँ तँ। हि‍स्‍सा लेताह सभ बराबर-बराबर आ डाकदरकेँ देखि‍औ हमहींटा।

दीपक :      बुझलौं-बुझलौं। अहाँ दुनू भए केहन पि‍तृभक्‍त थि‍कहुँ? लोककेँ देखबैबला सेवा कए रहल छी जे हि‍स्‍सा कम नै भेटए। अहाँ दुनू भाँइसँ चि‍क्कन स्‍वभाव दुनू पुतौह जनीकेँ देख रहल छि‍अन्‍हि‍। मोहन आ सोहन, आब हम नै बाँचब। कने छोटका बेटा आ पुतौहकेँ मुँह देखाए दि‍अ।

मोहन :       सोहन, कने गोपाल दुनू परानीकेँ बजाए आनहुन।

सोहन :       भाइजी, हमरा देखल नै अछि‍। जदि‍ अपने चलि‍ जइतौं तहन बढ़ि‍या रहि‍तैक।

मोहन :       बौआ, हमरो नै देखल अछि‍ गोपालक ससुरारि‍। ओना एक-दू दि‍नमे गोपाल दुनू परानीक अबैया अछि‍ए। घबरेबाक कोनो काज नै।

            (दीपक खाेंखी करैत-करैत काफी हकमि‍ रहल छथि‍)

दीपक :      आह! ओह!! आब नै बाँचब। छोटका बेटा पुतौहुक मुँह शायद नै देख पाएब। आह! ओह!! आह!!

मोहन :       बाबू, बाबू, अहाँकेँ की हएत की नै। कतौ कि‍छु धएने-उसारने छी, से हमरा लोकनि‍केँ बताए दि‍अ।

दीपक :      बौआ सभ, धएल-उसारल तँ कि‍छु नै छौ। मुदा तोरा सबहक बि‍आहक करजा हमरासँ अदऍं कएल नै भेल। अहीं सभ अदाए कए देब। करजा हम महावीर मालि‍कसँ लेने छी। मुरि‍ डेढ़ लाख अछि‍ आ सूि‍दक दर प्रति‍शत मासि‍क अछि‍। वएह करजा हमरा जान लाए रहल अछि‍। अहाँ सभ करजा सधेनाइ नै बि‍सरब। हमर सेवा अहाँ सभ करी वा नै।

मोहन :       अहाँ पागल कुकुर छी। अहाँक सेवा केनाइ धोर पाप अछि‍। हमरा सबहक कप्‍पारपर बड़का बोझ लादि‍ कऽ मरि‍ रहल छी।

मंजु :        स्‍वामी, एना बेहोश नै होउ।

मोहन:        ऐ छोंकरी, होशमे तों रह। गूड़क मारि‍ धोकरा जानत की तों जानमें।

सोहन :       भैया ठीक कहै छथि‍ एहेन बापकेँ।

शालि‍नी :      स्‍वामी, अहुँ सएह नि‍कललौं बुधि‍यार।

सोहन :       ऐ बुधयार बापक बेटी, अखन मारैत-मारैत बुढ़बे संग वि‍दा कए देबौ।

शालि‍नी :      हँ हँ, कि‍एक नै। अहाँ सनक बुधयारपर कोन भरोस? जे बाबाजी बापकेँ नै देखलनि‍।

दीपक :      (खोंखी कऽ) अहाँ सभ एना कि‍अए करै जाइ छी। कि‍नको मानवता नहि‍ अछि‍। हमरा अहाँ सभ पागल कुकुर कहै छी। अहुँ सभकेँ एक दि‍न एहेन आओत जइमे अहुँ सभ सुगर भए सकैत छी। बेटा सबहक खाति‍र हम की की नै केलौं। आ से बेटा आइ हमरा पागल कुकुर कहैत छथि‍। बेटा सबहक खाति‍र हम कतेको बेटीकेँ नाश कए देलौं जे बेटा सबहक संपति‍मे कोनो घटबी नै होइ।

मोहन :       अहाँ ठीके कुकुर छी। कुकर्मक फल भोगहि‍ पड़त। बबाजी बनलासँ कि‍छु नै हएत। अहाँ लोभी कुक्‍कुर छी।

दीपक :      हँ हँ, जरि‍-मरि‍ कऽ तोरा सभकेँ एत्तेकटा कए देलि‍औ, तेकरे फल हमरा भेटैत अछि‍।
            (खोंखी करैत-करैत बेदम छथि‍। दुनू पुतौह लगमे बैसल छथि‍ आ दुनू बेटा दूरमे बैसल छथि‍।)

            आह! आब नै बाँचब। ओह! हे भगवान, आब लऽ चलू। आह! ओहो! आह! आह!
            (प्रदीपक प्रवेश)

प्रदीप :       दीपक बाबू, की भए रहल अछि?

दीपक :      आब नै पुछु सर। आब ऐ दुनि‍यासँ जाए दि‍अ।

प्रदीप :       कि‍एक, बेटा सभ इलाज नै करौलनि‍ की?

दीपक :      ओ सभ हमर इलाज की करौताह? इलाजक बदला हमरा पागल कुक्कुर, लोभी कहैत छथि‍। कहलि‍यन्‍हि‍ छोटका बेटा-पुतौहुक मुँह देखए दे, सेहो नै। प्रदीप बाबू, अहाँकेँ मोवाइलमे बलवीर बाबूक नम्‍बर अछि‍ की?

प्रदीप :       हँ अछि‍। हँ कहि‍ दै छि‍अनि‍ जे जदि‍ अहाँकेँ समधि‍क मुँह देखबाक अछि‍ तँ जल्‍दी आउ। आ बेटी-दमादकेँ सेहो लेने आउ।

            (प्रदीप आ बलवीर मोवाइलसँ गप करै छथि‍। कि‍छु देर बाद बलवीर गोपाल आ संजूक प्रवेश।)

बलवीर :      की भए गेल समधि‍?

दीपक :      आह! ओह! आब हम जए रहल छी। हमरासँ जे कि‍छु गलती भेल हुअए तकरा माफ करब।

गोपाल :      बाबूजी, हम कने डाकदरकेँ बजौने अबै छी।

दीपक :      आब नै बेटा, बेकारमे पाय पाि‍नमे चलि‍ जाएत।

संजु :        बाबूजी, जए दि‍औन। जे होनी हेतै से हएत। अपन कर्त्तव्‍य करबाक चाही।

दीपक :      बेस जाउ गोपाल। मुदा फेदा नै हएत।

            (गोपाल डाक्‍टर प्रेमनाथ मेहताकेँ अनैत छथि‍। डाक्‍टर आला लगा कऽ चेक करैत छथि‍। आँखि‍मे टॉर्च बारि‍ कऽ देखैत छथि‍।)

प्रेमनाथ :      अहाँक पेसेन्‍ट सम्‍हरैबला नै अछि‍। हि‍नका अहाँ सभ आगू लऽ जाउ।

गोपाल :      से हम आगूक व्‍यवस्‍था कए रहल छी। तत्‍काल अपनेसँ जे कि‍छु बनि‍ पड़ै से करियौक।

प्रेमनाथ :      बेस, हम कोशि‍श करै छी।

            (प्रेमनाथ पानि‍क बोतल टाङैत छथि‍ बोतलमे सूइया-दवाइ दऽ कऽ पानि‍ चढ़बै छथि‍।)

दीपक :      (कछमछाइत) आह! ओह! आह! बौआ सभ।

प्रदीप :       गोपाल, बाबूजी कि‍छु कहै छथि‍।

गोपाल :      जी बाबू जी,

दीपक :      बौआ, तोहर माएक बेमारीबला आ तोरे सबहक वि‍आहक करजा डेढ़ लाख मूइर महावीर मालि‍ककेँ छन्‍हि‍, से अवस्‍स तीनू भाँइ सधाए देबनि‍ आओर दहेज हेतु बेटाक लोभमे नै पड़ब। बेटी-बेटासँ कम नै होइत अछि‍। बेटा आ बेटी ऐ दुनि‍याँमे नै रहत तँ दुनि‍याँक संतुलन बि‍गरि‍ जाएत। गर्भपातसँ पैघ कोनो पाप नै अछि‍। (बेटीक अपमान नै हेबाक चाही)- 3

            (तीन बेर कहि‍ दि‍पक दम तोड़ि‍ दैत छथि‍न्‍ह।)

प्रेमनाथ :      आइ.एम.सॉरी। बेचारा चलि‍ गेलाह दुनि‍यासँ।
           
            (सभ कि‍यो कानि‍ रहल छथि‍। प्रेमनाथ ओ प्रदीपक प्रस्‍थान। पर्दा गि‍रैत अछि‍ अन्‍दरसँ राम नाम सत्‍यक आवाज जोरसँ भए रहल अछि‍।)

इति‍ शुभम्

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।