१.सुमित आनन्द- शोध-पत्रिका- मैथिलीक लोकार्पण २. मुन्ना जी-अप्पन आंगनमे ठाढ़ आइ हम अपने घरकेँ ताकि रहल छी
१
सुमित आनन्द शोध-पत्रिका मैथिलीक लोकार्पण
विश्वविद्यालय मैथिली विभागक शोध-पत्रिका मैथिली-अंक-5 केर लोकार्पण दिनांक 31-01-11केँ ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक कुलपति डा. समरेन्द्र प्रताप सिंहक कर-कमलसँ विश्वविद्यालय मैथिली विभागमे भेल। ई शोध-पत्रिका दिसम्वर 2010 मे छपि चुकल छल किन्तु किछु अपरिहार्य कारणसँ लोकार्पणमे देरी भेल। एहि अवसरपर मैथिलीमे भाषण करैत कुलपति बजलाह जे प्रत्येक विभागसँ शोध-पत्रिका अवश्य प्रकाशित होअए तथा प्रत्येक शिक्षक वर्षमे कम सँ कम एकटा शोध-पत्र अवश्य छपाबथि। ओ ईहो कहलनि जे पी. जी. विभागक दायित्व मात्र अपनहि धरि सीमित नहि अछि अपितु एकर भूमिका सभ कॉलेजक अपन विषयक विभागक उत्थान आ विकासमे होयबाक चाही। एहि अवसरपर साहित्य अकादेमी,दिल्लीक पूर्व प्रतिनिधि डा. सुरेश्वर झा शिक्षकसँ नियमित वर्ग संचालन, शोध-कार्य करब आ करायब तथा पुस्तकालयमे समय देबाक हेतु कहलनि। साहित्य अकादेमी सम्मान प्राप्त डा. भीमनाथ झा शोध-पत्रिकाकेँ आओरो उत्कृष्ट बनयबाक हेतु अनेक मूल्यवान सुझाव देलनि। मैथिली अकादमी, पटनाक अध्यक्ष श्री कमला कान्त झा डा. जयकान्त मिश्रक पुस्तकालय एहि विभागकेँ उपहारस्वरूप भेटबापर प्रसन्नता व्यक्त कयलनि तथा कुलपतिसँ ओकर संरक्षणक हेतु आग्रह कयलनि। डा. वैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ कुलपतिसँ आग्रह कयलनि जे विश्वविद्यालयसँ जे कोनो आमंत्रण पत्र जारी होअए ताहिमे एक पीठपर मैथिलीमे सेहो अंकित रहय। कार्यक्रक संचालन करैत डा. रमण झा विश्वविद्यालयक नीतिमे परिवर्तन कए अन्य विषयक प्रतिष्ठाक छात्रकेँ दोसर विषयमे पी. जी. करबाक अवसर देबाक आवश्यकतापर बल देलनि। विभागाध्यक्ष एवं सभाध्यक्ष डा. वीणा ठाकुर शिक्षकक बहाली नहि होयबाक कारण पी. जी. मे छात्रक कमी कहलनि। एहि अवसरपर डा. शशिनाथ झा सेहो अपन मूल्यवान विचार रखलनि।
श्री सुमित आनन्दक गोसाउनिक गीत एवं स्वागत गीतसँ प्रारम्भ भेल समारोहमे डा. नीता झा, डा. विभूति आनन्द सहित अनेक विभागाध्यक्ष, अनेक पदाधिकारी, भारी संख्यामे षिक्षक एवं साहित्यकार लोकनि उपस्थित छलाह। समारोहक समापन डा. रमण झाक धन्यवाद ज्ञापनसँ भेल।
२1. मुन्ना जी 2. अप्पन आंगनमे ठाढ़ आइ हम अपने घरकेँ ताकि रहल छी।
3.
4. उपरोक्त पाँती युवा कवि मनोज कश्यप जीक गजलक अंश थिक। जे “मैथिली-बोजपुरी कविता उत्सव 2011”क अवसरपर 24 जनवरी 2011केँ दिल्लीक आइ.टी.ओ. स्थित आजाद भवनमे पढ़ल गेल छल।
5. ऐ अवसरपर मैथिली-बोजपुरीक आठ-आठ (कुल सोलह) गोट कवि अपन रचना पाठ कयलनि। कविगोष्ठीक शुरोआत मैथिलीक युवा कवि श्री कुमार शैलेन्द्र जीक कविता पाठसँ भेल। श्री कुमार द्वारा पठित दु गोट कवितमे ‘चिट्ठी आ गाम’ बेशी प्रभावित केलक- इ मे कवि गामक विस्मृतिकेँ सेलफोनमे समाहित होइत आ थोड़वेमे गप्प के सिमटि जेवाक बाद गामक पिछला जीवन स्मरण मात्रे जीवाक सुन्दर व्याख्या केलनि- एक बानगी देखल जाओ- “आव गामेसँ चिट्ठी नहि अवैछ, सेलफोनेपर भऽ जाइछ गप्प। पहिने चिट्ठीमे गामक वर्णन होइत छलै आव सेलफोनपर होइत छैक कुशलक्षेम मात्र”।
6. तकर पछाति गोटा गोटी सात गोट कवि अपन पद्य विधाक अनेको प्रकारक रचनाक पाठ केलनि। जाहिमे रविन्द्र लालदास पहिले सब बेर जकाँ अहू बेर ‘क्षणिका’, जकरा ओ तुरंत नामे लिखै-पढ़ै छथिकेँ सुनौलनि सबटा तुरंता मार्मिक आ प्रासंगिक छल मुदा श्रोताक सिरखारी देखि श्रोता गणक मानसिक परिपक्वता बेलरता छल। सब गप्पकेँ अर्थकेँ श्रोता देरीसँ बुझलक आ बुझबे नहि केलक। तकर पछाति ‘कुमार मनोज कश्यप’ अपन ‘गजल’ पढ़लनि जाहि माध्यमे ओ जिनगीक नव विहानकेँ तकवाक आ अपने आंगनमे पड़ौआ सन बनि जेवाक सटीक चित्रण केलनि- देखल जाओ इ पाँतीकेँ “धज्जी रातुक स्याह आँचरमे , अहलभोरकेँ ताकि रहल छी,
7. अप्पन आंगनमे ठाढ़ आइ हम अपने घरकेँ ताकि रहल छी,,
8. बेरा-बेरी प्रतिष्ठित, प्रौढ़ कवि सब अपन अपन रचना पाठ केलनि जाहिमे प्रमुख छलाह सुकांत सोम (पटना) राम लोचन ठाकुर (कोलकाता) प्रो. शेफालिका वर्मा दिल्ली। कार्यक्रम मनलग्गु कम आ त्रुटिगत वेशी देखाएल।
9. पहिल बात जे इ अकादमीक स्थापने कालसँ चलि आबि रहल अछि जे पूर्ण स्थापित, समर्थ, सजग मैथिलीके शैशव, हाशियापर आ फुहड़पनक द्योतक भोजपुरी अपन अकादमीय आ मंपीय सामर्थे एकरा (मैथिली) गरोसि लैह। कखनो-कखनो तऽ दृऍष्टिगोचर होइछ जेना भोजपुरी मैथिलीकेँ काँचे घोटि एकरापर सवार भऽ जाइछ। जे अहू कार्यक्रममे पूर्णतः देखाएल। ओना अकादमीक सचिव श्री रविन्द्र श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ जी दुनूक समन्वयनक वास्ते आंशिक आ असफल प्रयास करैत रहैत छथि। कविगणमे नवतुरक समिलताक बेगरता देखल गेल। कुल मिला कऽ सरकारी आयोजनक खानापुर्त्ति स्पष्ट परिलक्षित होइत रहल। इ कार्यक्रमक अध्यक्षता मैथिलीक प्रख्यात कवित्री शांति सुमन आ मंच संचालन भोजपुरी कवि रविन्द्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाइ केलनि। इ कार्यक्रमकेँ सरकारी तौरपर मजगुती देखल गेल दिल्ली सरकारक राजभाषा मंत्री डॉ. प्रो. किरण वालिया जीक उपस्थितिसँ। किएक तऽ हुनकर उपस्थितिक पछाति सचिव, संचालक आ किछु कविगण हुनकर स्वागतगाणक राग अलापैत एना देखल गेला जे किछु काल धरि इ आयोजन अकादमीक नहि कोनो विशेष राजनैतिक पार्टीक आयोजनक भ्रम जनमा देलक। बेगरता देखाएल ऐ सभसँ उबरबाक स्वतंत्र साहित्यिक माहौलक।
३.६.जगदीश प्रसाद मंडल
३.७.१. राम विलास साहु- नींदिया बैरी भेल पहुना २. आनंद कुमार झा
..
चन्दन झा पिता श्री मदन मोहन झा, बाबा- डॉ. उपेन्द्र नाथ झा, गाम- लोरिका, भाया-बेनीपट्टी (मधुबनी)
की भऽ रहल अछि अपना गाममे
की भऽ रहल अछि अपना गाममे
सब बदलि रहल अछि
सब गोटा गाम
गाम छोड़ि नग्रक लेल दौगि रहल अछि
शान्तिक त्याग कऽ
हहारो दिस जा रहल अछि
गामक छाछक बदला
कोकाकोला बाजि रहल अछि
चिट्ठी चौपातीक आब आस नै रहि गेल
जहिया सँ आयल मोबाइल बात गजब भऽ गेल
जहिया सँ चलल पश्चिमी बसात
हवामे अश्लीलता भरि गेल
आठ गजक साड़ीक बदला
छः इंचक मिनी एस्कर्ट भऽ गेल
जय गंगाक किनारपर साधु साधना चलए
अब ओ गंगा किनार पापीक बसेरा भऽ गेल
गामक झोपड़ी आब रंग बदलि रहल अछि
झोपड़ी सँ पक्का मकान बनि रहल अछि
गामक माटिमे आब ओ गमक नै रहि गेल
आब चारो दिशासँ शराब महकि रहल अछि
की भऽ रहल अछि गाममे ....(राधे )
मोहन प्रसाद आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
करी संस्कारक दान
बाँटी अनुभवक दान
करी रोटीक दान
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
करी संस्कारक दान
बाँटी अनुभवक ज्ञान
करी रोटीक दान
कऽ रक्तक दान
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
बिलखि-बिलखि कानि रहल छै
कमला कोसीक प्रवाह बहि रहल छै
अन्हरियामे अन्हरा गेलै अछि
आउ करी संस्कारक दान
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
बिन बरखा थलाह भेलै अछि
बिन जाड़क थरथरा रहल अछि
बहै जखन कखनो पछबा
हृदए ओकर कपकपा रहल अछि
आउ बाँटि अनुभवक दान
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
पेट पाँजरमे सटि रहल छै
फाटल धोती लटकि रहल छै
माघमे छठि जकाँ हाफि रहल अछि
दूटा रोटी लेल जद्दोजहद कऽ रहल अछि
आउ करी रोटीक दान
आउ करी नव मिथिलाक निर्माण
तन उधिया रहल छै पवनक झकझोर
पीरा सहि-सहि पीअर झाम झिंझोर
आब खसत तब खसत भीजल माटिक जड़ि
एकटा दूटा के कही भरल बीमारीक घर
खून बनल छै मदिराक पानिसँ
आउ दियौ जीवनदान अपन रक्तक दान
मान बढ़ाउ करि कऽ सभ संभव महादान
आउ करी नव भारत निर्माण
कोनो जाति नै कोनो पाति नै
आत्मा तँ अजर अछि अमर अछि
सभ जीवन एक्के छी
सभक सम्मान करू
आउ नव मिथिलाक निर्माण करू
गिरीश चन्द्र लाल
गिरीश चन्द्र लाल , काठमांडू , नेपाल – गिरीश जी नेपालक सर्वोच्च न्यायालयमे न्यायाधीश छथि।
१
शुभ प्रभात
उदयाचल पर होइत अरुणिमाक आरोह
आशा आर विश्वासक संग
तन मन एवं जन जन मे
पूर्व संचित अभिलाषाके साकार करक लेल भेल अछि
स्वागत अछि हे शुभ प्रभात १ स्वागत अछि
आहाँ हमर धरती पर नव प्राणक संचार हेतु
अपन सभटा शुभेच्छा संग अयलहुँ
स्वागत अछि ।
मुदा ई नहि बुमmव जे
आबो अहाँक यात्रा निर्विघ्न चलबे करत
समय केर धवल एवं कृष्ण पट
किनको चल देलकैन्हि अछि निष्कन्टक ?
बिसरि गेलहुँ किछुए दिन पहिलका इतिहास
अहाँक अनन्त यात्राक क्रम मे
किछुए दिन पहिले त राम अवतरित भेल छलाह
वनबासक क्लेश पत्नीक अपमान
आ कि कि नै सह पडलैन्हि ।
तहिना कृष्ण कतवो हँसला कतवो बजला
मुरली पर गीत गौलैथ रथ पर गीता रचलैथ
मुदा जखन एकटा शिकारीक गुलेटी पर
यहि धरती सँ प्रयाण कयलैथ
तखन हुनक सुदर्शन कत रहथीन
ईशा जाहि शूली पर मसीहा बनलाह
से त मोने होएत
ओहि शूलीक रँग एखनो भटरंग नहि भेल अछि
करवलाक शहीद त अँहाक नोरेमे छैथ
तैं हे प्रभात ।
अहाँ सदिखन एहने शीतल आ निश्छल नहि रहव
से जनितहुँ बुझितहुँ
अँहाक यात्राक मंगल कामना कऽ रहलछी
अँहा त निरन्तर अपन प्रिय प्रकाशक संग
पूर्व सँ पश्चिम आ पश्चिम सँ पूर्व
सतत चलैत हमरो धरती पर अयलहुँ
स्वागत अछि हे शुभ प्रभात ! स्वागत अछि ।
२
मन मे भेल अछि भोर
मन मे भेल अछि भोर प्रभुजी ।
मन मे भेल अछि भोर ।
अर्पण अछि ई नोर प्रभुजी ।
अर्पण अछि ई नोर ।
नयन भेल छल पाथर पाथर ।
पथ हेरैत छल आखर आखर ।
शून्य हृदय मे प्रगट भेल अछि
रुनमmुन रुनमmुन शोर ।
मन मे भेल अछि भोर प्रभुजी ।
मन मे भेल अछि भोर ।
चैन चैन के आस लगौने ।
सुख के मनसा मन मे धैने ।
चलैत चलैत हम श्रान्त भेल छी
नहि अछि कोनो छोर ।
नहि अछि कोनो छोर प्रभुजी ।
नहि अछि कोनो छोर ।
अर्पण अछि ई नोर प्रभुजी ।
अर्पण अछि ई नोर ।
अयन अयन मे व्याप्त अहाँ छी ।
सभक अंगमे रंग जकाँ छी ।
पावि रहल नहि नयन हमर अछि
अहाँक कोनो ओर ।
अहाँक कोनो ओर प्रभुजी ।
अहाँक कोनो ओर ।
मन मे भेल अछि भोर प्रभुजी ।
मन मे भेल अछि भोर ।
३
एक रंग अनेक रंग
एक रंग अनेक रंग रंगक ई खेल
बुझैत बुझैत जिनगी सभक शेष भेल ।
ओर नहि छोर नहि कोरक कोनो पोर नहि
भेदक यहि खेल मे साँझ नहि भोर नहि
एक रंग सभक संग सभक संग एक रंग
एक रुप अनेक रुप एक एक भेल ।
एक रंग अनेक रंग...................
धरती अछि नभक संग नभक अंग रंग रंग
चलैत चलैत संग संग मनक तार भेल दंग
भूतल आर सागर मे खेत आर रेत पर
खोज नित नव नव प्रगट प्रगट भेल ।
एक रंग अनेक रंग ...............
पूmल पर पात पर गाछ सभक हाथ पर
बीजक परिवर्तन पर प्रकृतिक समर्थन पर
एक फूल अनेक तुल तुल तुल धूल धूल
धूल संग तुल मिलि फूल फूल भेल ।
एक रंग अनेक रंग..............
राजेश मोहन झा 'गुंजन' माय मनाइन
अंग विभूति छन्हि जटाजूट छन्हि
रहती कोना अपन अपर्णा
खाइत धथूर भॉग छथि सदिखन
की बुझता जगतक दु:खहणा
पीटथि करेज माय मनाइन
की भेल ई विधना केर लेखा
औता नारद निश्चित पुछबनि
बॅचलथि कन्ना भाग्यक रेखा
बौराएल शिव बसहापर बैसल
गिरिजा कन्ना रहती कैलाश- घर
सखि हे हम कहियो नै देखलौं
विचित्र वरिआती आ एहन बेछप्प बर
चिन्ता जुनि करू माय मनाइन
सकल सृष्टि छन्हि ठाम आ गाम
अखिल भुवनक सध: छथि स्वामी
क्षण कैलाश क्षण भक्तक धाम
भाग्यवती छथि हमर अपर्णा
कहलनि हिमराज भूदेव
भवानी संग बसहापर बैसल
चलला सभगण संग महादेव।
नवीन कुमार "आशा" (१९८७- ) पिता श्री गंगानाथ झा, माता श्रीमति विनीता झा। गाम- धानेरामपुर, पोस्ट- लोहना रोड, जिला- दरभंगा।
नै बिसरलौं चारि साल
केना बिसरी ओ चारि साल
जे बुनने छल एकटा जाल
बदलि देलक जीवनक परिभाषा
कतो नै छल एकटा आशा
देखने छलौं एकटा सपना
पढ़ी-लिखी शहरमे
बनब एकटा अफसर
छल हमर ई अभिलाषा
जे बनि गेल छल निराशा
आइ ओ दिन नै बिसरल
ओ मनमे रचल बसल
जखन केने छलौं फेल
सभ कियो हाथो हाथ लेल
सभ ठाम होइ अपमानित
किए नै होइत सम्मानित
मुदा सुनि कऽ मन करी शान्त
फेर राखी दिलपर हाथ
ओतएसँ आएल अवाज
बौआ जँ तूँ केले फेल
नै बुझ छुटि गेल रेल
फेर देखा देलक पथ
जइसँ आस निर्गत
फेर देखा देलक किरण
आ करऽ लगलौं विचरण
केना बिसरी ओ चारि साल
जे बुनने छल एकटा जाल
केना बिसरी हम ओ दिन
जकरा कटलौं गिन-गिन-गिन-गिन
जखन जाइ कोनो गाम
लोक जिनाइ करए हराम
किए नै आइ बनल अफसर
किए नै घुमी शहर
किए नै पाबी सम्मान
पर नै बिसरलौं चारि साल
केना...
जगदीश प्रसाद मण्डल- कविता/ गीत
संगी
संगे-संगे एलौं
संगिया मरि गेल
हम भुतिआइ छी।
संगे अबैत मिल
ठेसिया गेलौं बाट
संगिया छुटि गेल।
अचेत भऽ पूव मुहेँ
पथराएल नयन निष्प्राण
बाटे लसिया गेल।
आगूसँ पाछु
नोचि खाइले प्राण
मर्ड़ाइत रहैए।
कोइ भुतिया बना बाट
तँ कोइ बहटि-बहटि
पेटे विलाइए।
कोइ खुनि निरमा
नव बाट-घाट
तँ कोइ घाटे बौआइए।
पिछड़ि-पिछड़ि खसि
लतखुरदन बनल छी
चारू कात घुरि-घुरि
टुक-टुक देखै छी
चौदहो भुवनक बाट
चलैत चौदहो दिस
कोन बाट पकड़ि
देखब चौदहो दिस।
झगड़ा
भाँग पीब भकुआ शिव
चुप भऽ बैसला आसन
धो-धा सिलौट-लोढ़ी
पार्वती लेलनि चढ़ा।
लग आबि पाँजर बैसते
बीन-बिन्नी उठलनि मन
नजरि उठा देखते
कड़कि बजलनि मन
सिहरि छाती डोलिते
थर-थर कपलनि तन
कलपैत मन खिसया
अधे-छिधे पुछल प्रश्न-
“अहाँ कहू केकर छी प्रेमी
गंगा आकि अपन।
सिर सजौने छी गंगाकेँ
पतिअबै छी हमरा।
पुरूखक कोनो ठेकान नै
बुझि पड़ैए हमरा।”
कनखिया शिवजी बजलाह-
“भावक लेल प्रश्न भावसँ
उठाउ सदिखन आगू।
चिन्मय रूप समेट हृदए
बढ़ाउ डेग सदि आगू।”
आदरणीय भाय,
श्री राजनन्दन लाल दासक अठहतरीम जन्म दिनपर....
गंगावन्दना-
जुग-जुग आस लगौने मइये
शीत-रौद चटैत एलौं
लुप्त भेल नयन-ज्योति। हे मइये...
रेगहा टा जपैत एलौं।
गंगाजलीमे नीर बोझि
सिक्त करब दसो दुआरि।
आंगन-घरक संग-संग
नीपब गोसौनिक चौपाड़ि। हे मइये...
हँसैत, गबैत, नचैत, भसैत
पहुँचब तोर दुआर
मुदा फँसि मकड़जालमे
बरिसैत सदैत नोर। हे मइये...
दसो दिशा अछि घेराएल
अकास बहैत देखै छी
मुदा ससरि गेल भूमा
कानि-कानि भजै छी। हे मइये...
विषधरक बीख
सुति उठि निकलिते आंगन
लप दे धेलक विषधर।
तड़बाक बीख मगज चढ़िते
लटुआ खसलौं पेराक पार
जखने देखलक पहिने जौहरी
छाती पीट-पीटि फुकलक शंख
अवाज सुनि कुत्ता अकानि
भूकि-भूकि जोड़लक संख।
अचेत देख जौहरी बाजल
झब दे आउ चटधारी।
मरि गेल बाटे विषधर
बगदल यात्रा (सगुन) चटधारी।
नै उतड़ल बीख चटिऔने
तैयो बँचल छै प्राण।
बपहारिक संग बेथा गाबि
कहिया हेतै प्रेमीक त्राण।
फुलबाड़ी
लुरि-बुइधिक कृत्य फुलबाड़ी
दिनो-दिन ऐलसाइ छै।
फुनगी चढ़ि कलैप कुहरि
पीतर डिरिआइ छै।
मृत्युसज्जा सजल धरती
झल-अन्हार बजैत छै।
रेहे-रेह रोग सन्हिआ
मुसरा सड़ैत छै।
धरतीक बेथा सुनि अपराजित
फानि-फािन फुफुआइ छै।
कर्म-धर्मक डाकैन दऽ दऽ
सदए मुस्किआइ छै।
तैयो दाकक सुरसुरी पाबि
पट-पट छिकाइ छै।
घाम चुबा, डोल भरि-भरि
सिक्त करैत एलौं
संगे-संग रभसि-रभसि
सुरताल मिलबैत एलौं।
जहिना हँसैत-खेलैत रहलौं
तहिना रहब सभदिन।
संगे जीब मरब संगे मिल
हृदए विराजत थीर।
भुतहा गाछ
चित्र-विचित्र वस्त्रसँ सज्जित
झोंझगर बगए बनौने
छातीक रस्सी लटका-लटका
गोरा रोपने मनमे।
अन्हार पाबि चतड़-चतैड़
छुलक धरती ओ अकास
खट-मधुर बीआ छिट-छिट
जनमल चक-चक प्रकाश।
झरहा बीआ पकड़ि चालि
अन्हार सेबलक भूत।
चिकड़ि-चिकड़ि गर्द करए
माँ-देवीक यमदूत।
मंत्रक दुहाइ दैत मनतरिया
छुबिते छुटत भूत।
सजा-सजा डाली भरू
दुबि-तुलसी-अच्छत
मनतर पाबि-पाबि भूतलग्गू
बेसूध भऽ बौड़ा गेल।
बाट हेराएल, विचार हेराएल
हेराएल जिनगीक सुख।
चारू दिस झपटि-झपटि
मनक बढ़ाओल भुख।
जाबे भुतहा गाछ नै खसतै
जोगीक जीवन बलाए।
भोगक स्वर्ग नचैत रहतै
जोगी-जोग रहत नुकाए।
सरस्वती पूजाक शुभ अवसरपर अपनेकेँ समर्पित-
बोनक आगि
गाछ-बिरीछक रग्गड़सँ
लुत्ती छिटकै छै बोनमे।
सुखल पात ठौहरी पकड़ि
पसरै छै सघन बोनमे।
धधड़ा धधकैसँ पहिने
करिया धुआँ पसरे छै
लगैत आँखि अश्रु करूआइते
जीव-जन्तु पड़ाइ छै।
आगिक डर केकरा ने होइ छै
चाहे बाघ हो आकि हाथी
मुदा,
धीरजसँ जे सहैत.....।
सएह कहै छी यौ भाय साथी।
१. राम विलास साहु- नींदिया बैरी भेल पहुना २. आनंद कुमार झा
१
राम विलास साहु कविता-
नींदिया बैरी भेल पहुना
नींदिया बैरी भेल पहुना
वाली उमर हमर भेल गौना
हमरा अहाँ किएक बिसरलौं अहिना
चिट्ठिया-पतिया बहुतों भेजलौं
एको नै धुमेलौं सनेस
कोन दोख हमर अछि पहुना
कतैक फागुन बीत गेल अहिना
सोलह बरख हमर उमरि बीतैए
सजल पलंग हमर सुनाओ परड़-अए
सभ दिन सजि-धजि अहाँक आशमे
अपन आँखिक नोर बहबै छी
मन पड़ैत अहाँले सोलह श्रंृगार करै छी
रस्ता बहािर बाट अहाँक जोहै छी
सुतल छी हम सजल पलंगपर
अहाँक बिनु नीन्न नै भेल
सोलहसँ अठरह बीत गेल
बीस बरस तक ऑचर बान्हि हम
अपन यौवन रखलौं सम्हारि
धर्म सतीत्वक पालन करैत हम
जिनगी बन्न बीतबे छी दिन-राति
कोन बैरिनियाँ नजर लगेलक अहाँकेँ
जे हमरासँ नजरि छिपौने छी
अहाँक आशमे हम पहुना
हमर जिनगी बितैए सुना-सुना
पहुना कत्तैक दिन जिनगी बिताएब अहिना
निंदिया बैरी भेल पहुना....।
२
आनंद कुमार झा
१.
मिथिलाक नवयुवक कने नींदसँ जागू
माँ मैथिली कुहैर रहल छैथ जुनी आहाँ आव भागू
जनक धाम सीता के धरती फाटल दरारि लागैत अछि परती
आखिकं नोर बनल अछि शोणित किछ बढ़ी’क आब बाजू
माँ मैथिली कुहैर रहल छैथ जुनी आहाँ आव भागू
की मिथिला के खून में दोषर प्रान्त सन गर्मी नई छै
मिथिला के इतिहास रचब कोनों बेशर्मी नई छै
चलू एक बेर प्रगतिक झंडा ल क बढू ने आगू
माँ मैथिलि कुहैर रहल छैथ जुनी आहाँ आव भागू
सोचू सब जन किछ टाकाके खातिर भटिक रहल छी
कोन आईग ई धधैक रहल छै, जाही में झुलैस रहल छी
कतेक साल धीर सुतल रहब आब आलस्य के त्यागु
माँ मैथिली कुहैर रहल छैथ जुनी आहाँ आव भागू
२.
सब परा गेल गाम घर स सुन्न परल अछि दालान यो
स्वर्ग स सुन्दर जे मिथिला छल बनी गेल उजरल मचान यो
गेलें दुलरुआ बेटा तोहूँ परदेश , कोना बिसरी गेलें गाम रौ
कानईत तकई छी बेटा भरी दिन बटबा, एहिना ने छूटी जाय प्राण रौ
कोना बिसरी गेंलें गाम रौ ...........................
....................
पुछई ये बहिनी तोहर सदिखन हमरा , भैय्या नै अबई छथीन गाम रौ
कतई हरा गेल समां चकेबा, राखी भार्दुतिया बनी गेल आन रौ
कोना बिसरी गेंलें गाम रौ ...............................................................
...................
बीती गेल दुर्गा पूजा छैठो दिवाली, करय के छई आब कन्यादान रौ
तों जा बसी गेलंय परदेश जा क, हमरा बना देलें आन रौ
कोना बिसरी गेंलें गाम रौ..........................................................
..............
हमरा बिसरी गेलें तई ले ने कानी, क जो ने धरती के प्रणाम रौ
बार पावनी छाई इ मिथिला के धरती, जतय बसई छाथीन भगवन रौ
कोना बिसरी गेलें गाम रो कोना बिसरी गेलें गाम रौउ
जय मिथिला जय मैथिलि जय मैथिल
जय भारत जय हिंद
३.
भटकि रहल छी तरपि रहल छी
अपने के हम पटकी रहल छी
नै बढ़ देब मिथिला के हम
बाहर रही क चमैक रहल छी
कत बिला गेल अप्पन भाषा
अंग्रेजी फारसी संग बमैक रहल छी
छोरु मिथिला के बात नै करू
आनक भाषा के साथ नै छोरु
लेकिन एक दिन मिथिले काज देत
अतबे कहै ले चहैक रहल छी
भटकी रहल छी ................................................
१.रमाकान्त राय 'रमा'- सांझुक सांझे उपास२.संजय कुमार मण्डल- माघक जाड़ १
रमाकान्त राय 'रमा', जन्म- भादो पूर्णिमा सम्वत् 2003, प्रथम रचना- बटुक, बाल मािसक प्रयाग, कथा विशेषांक द्वितीय भागमे 1964ई., प्रकाशित कृति-(क) तीिनटा बाबाजी-(रूसीसँ मैथिलीमे मैथिलीमे टाल्स्टायक कथाक अनुवाद-1967ई.मे, (ख) फूलपात कविता संग्रह 1978, (ग) भांगक गोला (2004 ई.मे), (घ) कटैत पाँखि : हँसैत आँखि , कथा संग्रह-2005, शीघ्र प्रकाश्य- कृष्णकान्त मिश्र (िवनिबन्ध) साहित्य अकादेमी नई दिल्ली।प्राय: डेढ़ सए रचना (कथा-निबन्ध कविता) मैथिली हिन्दीक पत्र-पत्रिका, आकाशवाणी एवं दूरदर्शनसँ प्रकाशित/ प्रसारित। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित कवि सम्मेलनक आयोजनक क्रममे रेलक चपेटमे पड़ि दहिना पएर छाबा धरि गमा विकलांग।सेवा निवृत अध्यापक (उच्च विद्यालय) सम्पर्क- श्री रमानिवास, मानाराय टोल पो. नरहन (समस्तीपुर)
बिहार विधानसभा चुनव-प्रचारपर कवि दृष्टि
सांझुक सांझे उपास
हुलकल छै गाममे हुड़रबा रे जकर जंगलमे वास
तोड़लक सीमान सभ गिदरबा रे जकर लाॅखि धरती-अाकास
सिहकै खन पुरिबा तँ लपटै खन पछिया
नेरू बिनु गाए जेना काटै छै अहुड़िया
गेल भैंस पानिये पड़रू समेत मुदा
पानिये मांछ बॉटै नौ-नौटा गुड़िया
फुटकै छै जहिना टिकुलिया रे लूटि फूलक सुवास
हुलकल छै गाममे हुड़रबा रे जकर जंगलमे वास
ओहिना फड़काबै छै बॉहि दुनू सुअमे
दिन भरि भाट जकाँ भाभट पसारै छै
करै झिकमझोरि चोरि रातुक निन्नमे
शांत सोन चाेरबै सोनरबा रे फूँकि ठमकल विश्वास
हुलकल छै गाममे हुड़रबा रे जकर जंगलमे वास
हमहीं छी बाबा, परबाबा छी हमहीं
टांगेपर सरङ जेना उठबै छै टिटही
केओ कहै बौआ रौ हमहीं छी हौआ
सभ सखि झुमरि खेलै लूल्ही कहए हमहीं
सबहक धार छै बसुलबे रे कोना चतरत विश्वास
हुलकल छै गाममे हुड़रबा रे जकर जंगलमे वास
तोंही छह माए, बाप तोहीं सुगुनियाँ
सेवक छी हम तँ चमका देबऽ दुनियाँ
जागह भाय, दाइ, जागह दुलरूआ
पॉच बरिसले तँ मांगै छी निनियाँ
सुतबह तँ चरतह ढकरबा रे कोना लहरतै चास
हुलकल छै गाममे हुड़रबा रे जकर जंगलमे वास
हमरा लग मोर सन, तोरा लग तोर सन
बाजब मधुर जे छल काल्हिए अङोर सन
हम छी राजा मलिकबा रे सांझुक सांझ उपास
हुलकल छै गाममे हुड़रबा रे जकर जंगलमे वास।
२
संजय कुमार मण्डल कविता-
माघक जाड़
कट-कट दाँत बजैए
थरथर देह कँपैए
सन-सन पछिया चलैए
जेना देहकेँ छेदैए
ओसक सघनता एहेन
जेना वर्फ गिरैए
एक माससँ सूर्यदेव नै उगलाह
बुझना जाइछ ओहो जाड़सँ घर घुसलाह
सरकारी उद्घोसना भेल
कोट-कचहरी, स्कूल सभ बन्न क' देल गेल
रोड-सड़क, गली-मोहल्ला सभ सुन्न भेल
गाछक पातसँ टप-टप पानि चुबैए
मनुक्खक कोन गप कुकुरो-बिलाड़ि
नहिए बहराइए
खड़-पतार, जारन-काठी सिमसि गेलैए
लाख जतन करी धुआँ छोड़ि आगि नै पजरैए
भनसा-भात, चुल्हा-चौकी सभ बन्न भेले अए
मौसम वैज्ञानि घोषना भेलै-
कश्मीरमे भीषण बारिस भेलै
हजारो लोकक जान गेलै
सेकड़ो ट्रक-गाड़ी-घोड़ाक आवागमन
सड़कपर वर्फ जमलासँ बन्न भेलैए
जे जहिना से तहिना
ओइठाम जाम भेल
ट्रक-बस, कार दुपहिया
जेना वर्फ बनि जमि गेल
बंगालक खाढ़ीसँ समुद्री तूफान उठलैए
अस्सी मिलक रफ्तारसँ बढ़ि रहलैए
गाछ-विरिछ झार-झंखार के पुछैए
जे सोझा पड़ल ओकरे मोचरि खसबैए
दैंत छी वा भूत-प्रेत नै जानि पड़ैए
ई शीतलहरि कते जान लैत
नै बुझि पड़ैए
मंगला मचानेपर बैस सोचि रहल छै
गाएक नेरू आ बकरीक पठरूक डाँड़ धेने छै
तै बीच चारि वर्खक बेटा
बेमार पड़ल छै
कन्ना इलाज हएत कतए जाउ सोचि रहल छै
जान बचेबा लेल बकरी बेचि कम्मल किनलकै
दू सए टाका बचलै पेटक बुतात अनलकै
मंगलाक हाथ खाली पड़ल छै
के देत कर्जा ककरा लग जाउ
किछुटा नै फुरै छै
पहिनहिसँ महाजनक पाँच हजार कर्जा छै
मूलधन छोड़ि ब्याज अलगे पड़ल छै
गाए-बकरी पहिनहि बेच नेने छै
घरवालीक हौसली बन्हकी धेने छै
मंगला हिम्मत कए रहल छै
घरसँ बहड़ेबाक साहस नै होइ छै
इलाज बेगेर बेटा मरि जाएत
मंगला हिम्मत बन्हलक
हिम्मत बान्हि मंगला बच्चाकेँ उठौलक
डाँड़सँ धोती खोलि बच्चाकेँ झँपलक
सड़क पर अबिते पछिया मंगलाकेँ हौंकलक
बुझना गेले मंगलाकेँ जेना ई हाड़ गलौलक
कहुना-कहुना मंगला डाक्टर लग गेल
बच्चाकेँ डाक्टर टेबुलपर राखि
मंगला अचेत भेल
बरबराइत बाजल- मालिक एकरा बचा लिऔ
मजूरी क' पैसा चुकाएब
एकरा प्राण दान दिऔ
बजैत-बजैत मंगला एकबेर जोरसँ काँपल
प्राण शरीर छोड़ि रस्ता स्वर्ग नापल
डाक्टरकेँ मानवता जगलै
बच्चाक इलाज नि:शुल्क केलकै
सप्ताह दिनक दवाइ कीनि देलकै
कफनक कपड़ा आ पाँच सए टाका द'
मंगलाकेँ रिक्सापर झाँपि भेजबा देलकै
तैयो ई जाड़ बच्चा-जवान आिक बूढ़
केकरो किछु नै बुझलकै।
विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१.श्वेता झा चौधरी २.ज्योति सुनीत चौधरी ३.श्वेता झा (सिंगापुर)
१
श्वेता झा चौधरी गाम सरिसव-पाही, ललित कला आ गृहविज्ञानमे स्नातक। मिथिला चित्रकलामे सर्टिफिकेट कोर्स।
कला प्रदर्शिनी: एक्स.एल.आर.आइ., जमशेदपुरक सांस्कृतिक कार्यक्रम, ग्राम-श्री मेला जमशेदपुर, कला मन्दिर जमशेदपुर ( एक्जीवीशन आ वर्कशॉप)।
कला सम्बन्धी कार्य: एन.आइ.टी. जमशेदपुरमे कला प्रतियोगितामे निर्णायकक रूपमे सहभागिता, २००२-०७ धरि बसेरा, जमशेदपुरमे कला-शिक्षक (मिथिला चित्रकला), वूमेन कॉलेज पुस्तकालय आ हॉटेल बूलेवार्ड लेल वाल-पेंटिंग।
प्रतिष्ठित स्पॉन्सर: कॉरपोरेट कम्युनिकेशन्स, टिस्को; टी.एस.आर.डी.एस, टिस्को; ए.आइ.ए.डी.ए., स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, जमशेदपुर; विभिन्न व्यक्ति, हॉटेल, संगठन आ व्यक्तिगत कला संग्राहक।
हॉबी: मिथिला चित्रकला, ललित कला, संगीत आ भानस-भात।
२.
ज्योति सुनीत चौधरी जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
३.श्वेता झा (सिंगापुर)
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
उदय प्रकाश (१९५२- ) “मोहनदास”- हिन्दी दीर्घ कथाक लेखक उदय प्रकाशक जन्म १ जनवरी १९५२ ई. केँ भारतक मध्य प्रदेश राज्यक शहडोल संभागक अनूपपुर जिलाक गाम सीतापुरमे भेलन्हि। हुनकर हिन्दी पद्य-संग्रह सभ छन्हि: सुनो कारीगर, अबूतर कबूतर, रात में हारमोनियम, एक भाषा हुआ करती है। हिनकर हिन्दी गद्य-कथा सभ छन्हि: तिरिछ, और अन्त में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, दत्तात्रेय के दुख, अरेबा परेबा, मैंगोसिल, मोहनदास। मोहनदास- दीर्घकथा लेल हिनका साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०१० (हिन्दी लेल) देल गेल अछि।
अनुवादक:
विनीत उत्पल (१९७८- ) आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आ तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र। आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक। "हम पुछैत छी" मैथिली कविता संग्रह प्रकाशित।
मोहनदास पोथीक आवरण चित्र मार्कूस फोरनेलक चित्रक उदय प्रकाश द्वारा रूपान्तरण।
(उदय प्रकाश जीकेँ "विदेह" विनीत उत्पलकेँ "मोहनदास"क मैथिली अनुवादक अनुमति देबाक लेल धन्यवाद दैत अछि- गजेन्द्र ठाकुर- सम्पादक।)
मोहनदास : उदय प्रकाश
(मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल द्वारा)
मोहनदास: तेसर खेप
मोहनदासक नील रंगक जींसक पेंट आ चरिखाना बुश्शर्टक रंग उड़ि गेल छल आ ठामे-ठाम कस्तूरीक लगाएल चिप्पीसँ भरि गेल छल। काबा दास दिशा-मैदान करबे टा लेल खाटसँ उठैत छल मुदा जखन ओकर नैत-नातिन देवदास आ शारदा ओकरा लग रहतिऐ, ओकरा लागैत रहै जे ओकर देहक मरबठट्ठीमे प्राणे टा नै वरन ममता आ वात्सलताक रस लबालब भरल छै। देवदास अप्पन बब्बा काबाक खाटपर कूद-फान मचाबैत छल आ शारदा अप्पन आजी पुतलीक कोरामे छिड़ियाइत खेलाइत रहैत छल।
ओइ दिन आंगनमे मोहनदास आ कस्तूरी बांस आ छींदीक पटिया, खोंभरी आ पथिया-पकउथी बनाबैमे लागल छल। बजारक मोहनलाल मारवाड़ीक दुकान "विंध्याचल हैंडीक्राफ्ट्स' सँ एतेक बड़का आर्डर भेटल छलै जे दू-तीन मास धरि मोहनदास आ कस्तूरीकेँ दम मारबाको फुरसति नै छलै। काबा आ पुतली बच्चा सभकेँ संम्हारने रहै। पचासटा पटिया, पचास टा खोंभरी आ तीसटा पकउथी बनाबैक रहै। काबा बीच-बीचमे अप्पन खाटसँ उतरि जाइत छल आ जखन धरि खोंखी ओकरा बेहाल नै कऽ दैत छलै, बाँस-कमची छीलहिमे ओ लागल रहैत छल। पुरान ईलम आ तर्जुबा छलै। कस्तूरी पटिया ओहिना बुनैत छल जेना ओकर आंगुरकेँ कोनो मशीन चला रहल होइ। साढ़े चारि बरखक देवदास खोंभरीकेँ माथपर लगा कऽ हाथमे बाँसक लाठी लऽ कऽ अढ़ाइ बरखक शारदाकेँ बकरी सन "अर्र अर्र...' करैत जा रहल छल आ छोट सन शारदा तरहत्थी आ ठेहुन भरे गुड़कैत बकरी बनल छल, आंगनक एक कोनसँ दोसर कोन धरि, खसैत-पड़ैत गुड़कि रहल छल। तखने दरवाजापर आहटि भेल। मोहनदासक साढू गोपाल दास अप्पन साइकिलकेँ देवालसँ अड़का कऽ भीतर आएल। ओ बजारक "नर्मदा टिंबर एंड फर्नीचर' मे आरा मशीन चलबैत छल आ मालिकक कहलापर ओसूली लेल साइकिलसँ एतए-ओतए जाइत रहैत छल।
गोपालक आबैसँ कस्तूरी बड़ खुश भेल। कतेक दिन बाद ओकर नैहर लगक गामसँ कोनो पाहुन ओकर सासुर आएल छल। पानि-तमाखूक बाद गोपाल मोहनदासकेँ बतौलक जे एखन तीन दिन पहिने ओ ओरियंटल कोल माइंस कोनो काजसँ गेल छल। ओतए गेलापर ओकरा मालूम भेलै जे बिछिया टोलक बिसनाथ ओतए मोहनदासक नामसँ पछिला चारि बरखसँ डिपो सुपरवाइजरक नौकरी कऽ रहल अछि आ दस हजारसँ बेसी सभ मास दरमाहा लऽ रहल अछि। गोपालदास कहलक जे ओकरा पता लगलै जे बिसनाथक बाप नागेंद्रनाथ भर्ती दफ्तरक बाबूकेँ पटिया कऽ मोहनदासबला नोकरीक चिट्ठी अप्पन अवारा बेटा बिसनाथकेँ दऽ देलक। मोहनदास साक्षात्कारक दिन जे प्रमाणपत्र आ अंक-सूची जमा केने छल ओइमे मोहनदासक फोटो नै लागल छलै, एकर फाएदा उठा कऽ बिसनाथ अपनाकेँ मोहनदासक रूपमे प्रस्तुत कऽ देलक आ सभ ठाम अप्पन फोटो लगा कऽ अदालती हलफनामासँ लऽ कऽ गजेटेड अफसर धरि सँ ओकरा प्रमाणित करा लेलक। ऐ तरहे बिसनाथ ओरियंटल कोल माइंसमे मोहनदास बल्द काबा दास, जात कबीरपंथी विश्वकर्मा बनि कऽ निचेनसँ डिपो सुपरवाइजरक नोकरी करऽ लागल आ दस हजार मास दरमाहा लिअ लागल।
गोपालदास कहलक जे ओ बिसनाथकेँ कोलियरी लग एकटा होटलमे चाह पिबैत देखने रहए, ओकर गरमे जे प्लास्टिकक आइ. कार्ड टांगल छलै ओइमे नाम तँ मोहनदासक छल मुदा फोटो बिसनाथक छल। एतबेटा नै ओकरा संग ओइ काल जतेक लोक छल ओ सभ ओकरा मोहनदासे कहि रहल छल।
ओतए इहो पता लागल जे बिसनाथ अप्पन गाम बिछिया टोलामे रहब चारि सालसँ छोड़ि देने अछि आ आब ओरियंटल कोल माइंसक वर्कर्स कॉलोनी "लेनिन नगर' मे बाल-बच्चा संग रहि रहल अछि, जतए ओकर कनिया ब्याजपर टका देबाक धंधा करैत छै आ चिटफंड चलाबैत छै। मजाबला गप ई रहै जे लेनिन नगरमे रहैबला सभ गोटे बिसनाथकेँ मोहनदास आ ओकर कनिया अमिताकेँ कस्तूरी मैडम नामसँ जनैत छै। बिसनाथ मोहनदासे जना बी.ए. तँ छै नै, दसमा फेल छै, ताइसँ कोलियरीमे काज करबाक बदला अफसरक चापलूसी, कोयलाक तस्करी आ यूनियनबाजीमे लागल रहैत छै।
अप्पन साढू गोपालदासक गप सुनि मोहनदासक माथ घुमि गेलै। एना कोना भऽ सकैत छै? कोनो लोक ओना कोना दोसर लोक बनि सकैत अछि? आ सेहो दिने-देखारे, सोझाँ-सोझी एना भऽ कऽ? एकाध दिनक लेल नै, पूरे चारि सालसँ? मुदा मोहनदास अप्पन गरीबी आ लचारीमे जेहन दिन देखले छल आ अप्पन बाप काबासँ ओ ओकर जिनगीक जे पुरान खिस्सा सुनने छल, ओइसँ ओकरा लागलै जे अफसर-हाकिम, धनीक-मनीक आ पार्टीबला लोक एतेक तागतिबला होइत अछि जे किछु नहि कऽ सकैत छी। ओ कुकुरकेँ बड़द, सुग्गरकेँ बाघ, खधाइकेँ पहाड़, चोरकेँ साहु- ककरो किछु बना सकैत अछि। मोहनदासँके अप्पन साँस रूकैत सन बुझाएल। हे सत् गुरु, केहन काल अछि जे चारि बरखमे एतए एक्को टा लोक एहन नै भेल जे कहि सकैत छल जे ओरियंटल कोल माइंसमे जे लोक मोहनदासक नामसँ सभ मास दस हजार दरमाहा लऽ रहल अछि ओ मोहनदास नै बिसनाथ अछि, जकर बापक नाम काबा नै नगेंद्रनाथ छिऐ, जकर कनियाँक नाम कस्तूरीबाइ नै अमिता भारद्वाज छिऐ आ जकर माए पुतलीबाइ नै, रेनुका देवी छिऐ?...जे पुरबनरा गामक नै बिछिया टोलक बसिन्दा अछि? जे बी.ए. पास नै दसमा फेल अछि...? ओइ दिन पटिया बुनैत-बुनैत मोहनदास बेर-बेर ठमकि जाइत छल। ओकर आँखि कतौ बिसरा जाइत छलै आ ओ किछु-किछु सोचैत गुम भऽ जाइत छल। बाँसक कमची बनबैत-बनबैत ओकर हाथ भसिया जाइत छल। एक बेर तँ कचियासँ ओकर हाथ कटैत-कटैत बचल। कस्तूरी सभ किछु देखि रहल छल आ अप्पन वरक भीतर चलि रहल उथल-पुथल आ बेचैनीकेँ नीकसँ बुझि रहल छल। ओ मोहनदासक हाथसँ कचिया लऽ लेलक आ कहलक, "आइ रौद किछु बेसिये छै। जाउ, अहाँ हाथ-मुँह धो कऽ कनी काल पटाय रहू।”
अगिला भोर सात बजेबला बस पकड़ि मोहनदास ओरियंटल कोल माइंसक लेल बिदा भेल। राति भरि ओकरा नीकसँ नीन नै एलै। ठीक साढ़े दस बजे ओ कोलियरी पहुँचि गेल।
दिक्कत ई छल जे ओ ओतए ककरासँ गप करितिऐय? केकरो तँ ओ जनैत नै छल? ऊपरसँ ओकर बगेबानी एहन छलै जे केकरो ई मानबामे दिक्कत होइतै जे असली मोहनदास वएह छी जे एम.जी. कॉलेजसँ बी.ए. फस्ट डिवीजन अछि आ आइसँ किछु बरख पहिने जकर फोटो अखबारमे छपल छल। दिक्कत ईहो छलै जे ओकरा लग ओ अखबार नै बचल छलै जइमे छपल अप्पन फोटो देखा कऽ ओ बता सकैत छल, "देखू, हमहीं छी मोहनदास, वल्द काबा दास, साकिन पुरबनरा, जिला अनूपपुर, मध्यप्रदेश जे एम.जी. शासकीय डिग्री कॉलेजसँ बी.ए.क परीक्षामे मात्र किछु बरख पहिने, फस्ट डिवीजनक संग मेरिटमे दोसर स्थान हासिल केने छल। चेहराक मिलान कऽ देखि लियौ। हमहीं छी असली मोहनदास।'
बड़ मोश्किलसँ मोहनदासकेँ फाटकक भीतर आबऽ देल गेल। ओकर नील रंगक पैंट ठेहुन धरि फाटि गेल छल। पाछाँसँ घसा कऽ ओ जाफरी बनि गेल छल जतए कस्तूरी ओही रंगक चिप्पी साटि देने छलै, जे या तँ ओकर पुरना ब्लाउजमे सँ निकालल गेल छल या पुरना चद्दरिमे सँ। रौद, गुमार, ठंढी, कड़ाचूर मेहननि आ एतेक दिनुका भूख-पियास मोहनदासक चेहरा आ चामक रंगकेँ स्याह-पकिया बना देने छलै। दुख आ बिपति ओकर चेहरापर एतेक डड़ीर खेंचि देने छलै जे लागैत नै छल जे ओकर उमेर एखन चालीसकेँ पार नै केने अछि। जतेक बेर अप्पन अभावक बोझसँ ओ कुहरैत छल आकि अपमानक आगिमे चुपचाप लहकैत रहल, ओकर भौं आ हाथ-छातीक रोइयां उज्जर भेल गेल। तीस-पैंतीसक उमेरमे ओ पचास-पचपन सन लगैत छल।
मोहनदास ओइ दफ्तरक आगू ठाढ़ छल जतए चारि बरख पहिने ओ अप्पन सभटा सर्टिफिकेट आ कागज जमा करै लेल गेल छल आ जतए काज करैबला बाबू भरोस देने रहैक जे अहाँक नाम तँ कहियो कटि नै सकैत अछि, किएकि लिखित आ शारीरिक परीक्षामे अहाँ सूचीमे सभसँ ऊपर छी।
मोहनदास देखलक जे वएह बाबू ओइ कोठलीमे बैसल अछि, जकरासँ ओ पहिने भेँट करैत छल। ओकर कुर्सी पैघ भऽ गेल छलै आ आगूक टेबुल सेहो। ओकर पीठक पाछाँ ठाढ़ हवा फेकैबला ए.सी. लागल छलै। मोहनदास दरबज्जा लग ठाढ़ भऽ कऽ देखि रहल छल जे बाबू बिस्कुट खा आ चाह पीब रहल अछि आ ओकर आगूक कुर्सीपर दू गोटे बैसि कऽ आस्ते-आस्ते रकम-रकम गप कऽ रहल अछि। एकाएक बाबू ओकरा दिस देखलक तँ मोहनदास कल जोड़ि कऽ नमस्कार केलक आ पुरनका यादकेँ जगाबैक लेल ओकरा दिस देखि कऽ मुस्कुरायल। बाबूक माथपर जोर पड़ि गेलै। किंसाइत ओ ओकरा चीन्हि नै सकल। मोहनदास ओकरा दोबारा कल जोड़ि कऽ नमस्कार केलक आ बाजल, "साहब, हम मोहनदास...!' मुदा तखन धरि बाबू अप्पन मेजक नीचाँ लागल घंटीक स्विच दबा देलक। बड़ जोर कटाह सन खरखरायल अवाज भेल आ एकटा चपरासी दौगैत भीतर गेल। बाबू ओकरापर कनी बिगड़ल जे मोहनदास नै सुनि सकल। चपरासी आबि कऽ कोठलीक पर्दा खेंचि देलक आ मोहनदासकेँ माथसँ पएर धरि निङहारि कऽ कहलक, "की काज अछि? जाउ ओम्हर बैसू, ओसाराक ओइ ब्रेंचपर...! एम्हर कोना आएल छी?'
मोहनदास ओकरा कहऽ चाहलक जे ओकर नाम मोहनदास छिऐ आ आइसँ चारि बरख पहिने ओ कोलियरीमे नोकरी लेल सलेक्ट भेल छल आ अप्पन सभटा कागज ओइ आफिसमे जमा केने छल मुदा ओकर ठाम कियो आर लोक ओकर नामसँ नोकरीपर लागि गेलै....। ओकर अवाज ततेक कमजोर छलै, ऊपरसँ चपरासी ओकरा जेना धकलैत ओसाराक कोनामे राखल बेंच दिस लऽ जा रहल छल, ओइसँ धरफड़ीमे बाजल गेल ओकर गपक लाइनमे कोनो तारतम्य नै रहि गेल छलै। गरमे किछु फँसि रहल छलै आ ओ तोतरा रहल छल। मोहनदासकेँ बकौर लागि गेलै मुदा ओ चपरासीसँ अप्पन बाँहि छोड़ाबैत बाजए लागल, "भाइ, एक बेर ओइ बाबूसँ भेँट करा दिअ। हमरा अप्पन प्रमाणपत्र आ मार्कशीट वापस लेबाक अछि।'
चपरासी हुनका धकियाबैत देवालसँ सटल लकड़ीक बेंचपर बैसा देलक आ जाए लागल। मोहनदास बुझि गेल जे आब ओकरा दोबारा एतए धरि आएब मुश्किल हेतै। ई आखिरी बेर छै। ओ जोरसँ चपरासीपर गरजल जे भर्ती कार्यालयक दरवाजासँ भीतर पैसि कऽ नपत्ता होए बला छल।
" हे...हे..! जा कऽ ओइ बाबूसँ कहियौ जे मोहनदास बी.ए. आएल अछि आ 18 अगस्त, 1997 केँ जमा कराएल अप्पन सभटा कागज आपस मांगैत अछि...। तमाशा बना कऽ राखि देने छै। कोठली आ कुर्सीमे बैसि गेल छै तँ कि अंधेर मचेतै? ...दिअ, पर्ची दिअ, हम अप्पन नाम लिख दैत छी...! बाबूकेँ दऽ देबै!'
चपरासी एक बेर तँ सन्न रहि गेल। कोनो बूढ़ भिखमंगा सन चेथरीमे घोंसिलाएल एहि लोकक गरसँ बड़ नीक फरिछायल भाषा निकलि रहल छै। एहन भाषा आ लहजा जे पढ़ल-लिखल बाबू आ अफसरक होइत अछि। चपरासी दरवाजापर किछु काल ठमकल आ मोहनदासकेँ निङहारैत रहल। फाटल बेरंग भेल, ठामे-ठाम चिप्पी लागल पेंट, फाटल घिनायल चौखुटा बुश्शर्ट। चनेल भेल माथपर सुखल बिखरल खिच्चड़ि सन अधपक्कू केस। झुर्री आ भङतराह सन, टेढ़-टूढ़ झुर्रीसँ भरल पकिया रंगक अस्कताइत चेहरा। गहींर, धँसल, कनी-कनी मिझाइत सन अपनाकेँ देखैत, हताश कमजोर आँखि। नीचा पएरक आंगुरमे कोनो तरहे ओझराएल रबड़क कतेक पुरान, सस्त चप्पल, जकरा बेरोजगारी, अभाव, दुख आ हताश रबड़क रहैये नै देलक, माटि, काठ आ कागचक बना देल छल।
"बुरबलेल...! सार बताह...! बहानचो... कोन पार्टी आ अफसर अहि ससुर भुक्खलक संग देत?' यएह ई फदरैत रहै जइसँ चपरासीक ठोढ़ तामसे हिलि रहल छलै। मोहनदासकेँ लागलै जे चपरासीकेँ ओकर गपपर विश्वास नै भऽ रहल छै मुदा भगवान जानै छल जे ओ सत बाजि रहल छल, ताइसँ ओ बेंचसँ उठि कऽ आत्मविश्वाससँ भरि सधल चालिसँ ओकरा दिस बढ़ल। ओकरा मनमे छल जे ओ जा कऽ ओकरा बुझाबैक प्रयत्न करत जे विसनाथ ओकरे संग टा नै वरन ओरियंटल कोल माइंसक संग जालसाजी आ धोखाधड़ी कऽ रहल अछि।
मोहनदास जेहन व्यग्रता आ जल्दीसँ चपरासी दिस बढ़ि रहल रहै आ ओकर चेहरापर दिमागमे चलि रहल उठा-पटकक कारण टेढ़-टूढ़ डड़ीर बनि रहल छल, गहींर धसल आँखिमे जे एकटा खास कछमछीक चमक आबि गेल छलै आ अप्पन सभटा गप एक्के संग कहि दै लेल उग्र व्याकुलतामे ओकर सुखायल पपड़ी पड़ल ठोढ़ जेना थरथरा रहल छलै, ओइसँ चपरासी सत्ते डरा गेल छल। ओ मोहनदास दिस देखैत जोरसँ चिकरल:
"हे...हे...! एक्को डेग आगू नै बढ़ाउ, बुझलिऐ! ठाढ़ भऽ जाउ ओइ ठाम बरगाही भाइ...! हम कहै छी, ठाढ़ भऽ जाउ...ओही ठाम...!'
"हे...हे... भाय! ...हमर गप तँ सुनू...!' मोहनदास बिगड़ि गेल। गपकेँ सम्हारबा लेल किछु जोरसँ बाजल। मुदा ओकर गपमे विनम्रता कम आ किंसाइत बेचैनी बेसी छलै, जाइसँ गप आर बिगड़ि गेल। चपरासी तति कऽ ठाढ़ भऽ गेल आ जोरसँ चिकरल; "बहीर छी की? थम्हि जाउ ओइ ठाम, नै तँ खुइन कऽ गारि देब बरगाही भाइ! एक्को डेग आगू बढ़ेलियै तँ!'
दरवाजा पर हो हल्ला सुनि कऽ दफ्तरक भीतरसँ चारि-पाँच गोटे बाहर बहरा कऽ आएल। ओ अफसर नीक कपड़ामे छल आ घुरि कऽ मोहनदासकेँ माथसँ पएर धरि देखि रहल छल।
"के छी?...एतए भीतर धरि कोना आबि गेल?'
"सिक्योरिटी ऑफिसर पांडेकेँ बजाबियौ?...ई गार्ड खैनी रगड़ि कऽ कुर्सीपर सुतल रहैए।'
"आइ मेन गेटपर ड्यूटी केकर-केकर रहै? ड्यूटी रजिस्टर आनू?'
"हे, भगाउ एकरा।'
"ई तँ अकड़हर कऽ देलक...! कियो ऐ तरहे अंदर पैसि जाइत अछि, ककरो ठांय-ठांय गोली मारि देत...! हे, किछु नै तँ बमे फोड़ि दितियै...!'
"पुलिसमे दऽ दियौ। शर्माजी, मिलाबू अप्पन मोबाइल...वएह सए नम्बर!'
मोहनदासक गप कियो नै सुनि रहल छल। ओकरा धकियायल जा रहल छल। माथ, पीठ, कनहा आ मुँहपर थापर, मुक्का, आ कोहनी बरसि रहल छल। मोहनदास दुनू हाथसँ अप्पन चेहरा झांपि कऽ अप्पन आँखि बचा रहल छल। "हम्मर गप तँ सुनि लियौ!...हे...मारू नै! हे...हे...!'
एतबैयेमे तीन-चारिटा गार्ड दौगैत आएल। ओइमे एकटा कऽ हाथमे बारह बोरक दुनाली छलै, जेहन बैंकक चौकीदार लग रहैत छै। आ सभक हाथमे डंटा छलै। मोहनदासक पीठ खलोदार भऽ गेलै। ओकर आँखिक आगू कठिना धारमे अमावशक रातिमे देखल सभटा नक्षत्र हहारो करैत, कुहरैत, उकापतंग सन टूटि-टूटि कऽ खसऽ लगलै। कोनो एहन वज्र चोट कतौ पड़लै जे ओकर गरसँ ठीक ओहने कुहरबाक अबाज निकललै, जेहन ओइ सुगरक गरसँ निकलैत छै, जकर टांगकेँ बान्हि कऽ ओकरा गरकेँ रेतल जाइत छै। ओ एहन जोरसँ कुहरल जे कोइला खदानक सभटा कामगार बाहर निकैल गेल आ घेरा बना कऽ ओइ तमाशाकेँ देखऽ लागल।
(ध्याद दियौ, ई घटना ओइ कालक छी जखन हिंदूक जगदगुरु अप्पन मठमे बैसि एकटा स्त्रीक संग वएह सभ किछु कऽ रहल छल जे हजार किलोमीटर दूर, कतेक समुद्र पार, व्हाइट हाउसक कुर्सीपर बैसल अमेरिकाक राष्ट्रपति कऽ रहल छल। जखन दजला आ फरात धारक लग कोनो खधाइमे अप्पन जान बचाबैक लेल नुकायल गिलगमेशकेँ एकटा पुरान समुद्री डाकूक वंशज बाहर खींच कऽ ओकर दाँत गानि रहल छल। एहन काल जाइमे जकरा लग जतेक मात्रामे सत्ता छल ओ विलोमानुपात नियमसँ ओतेक बेसी निरंकुश, हेहर, खुनीमा, अनैतिक आ शैतान भऽ गेल छल।...आ ई गप राष्ट्र, राजनीतिक दल, जाति, धार्मिक समुदाय आ लोक धरि एक्के सन लागू होइत छै।)
(अनुवर्तते............)
बालानां कृते
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
Original Poem in Maithili by Kalikant Jha "Buch" Translated into English by Jyoti Jha Chaudhary
Kalikant Jha "Buch" 1934-2009, Birth place- village Karian, District- Samastipur (Karian is birth place of famous Indian Nyaiyyayik philosopher Udayanacharya), Father Late Pt. Rajkishor Jha was first headmaster of village middle school. Mother Late Kala Devi was housewife. After completing Intermediate education started job block office of Govt. of Bihar.published in Mithila Mihir, Mati-pani, Bhakha, and Maithili Akademi magazine.Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London. Our Mithila
Knowledge, thoughts and devotion filled in profuse in our Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
She had got such a son
Who became father of Tribhuvan
Angamedini, Apara, Maya
Embraced being daughter here
Those wonderful miracles took place in Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
The Shukradeva also accepted her glory
Called Janak his ultimate master
The passionate is not having charm of flesh
The hermit is crying for self-indulgence
What about the earth, the sky is in reach of Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
The one who dominates life everywhere
Known as Maya, the origin of power
She became Tirhutani at her will
Turned to be a good spirit by covering in soil
And she had been embellished in details in Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
In this land the great masters are born
Like Gautam, Kapil, Kanadi, Ayaachi and Udayan
Enriched with the power of deeds
The scholars are defeated indeed
The biggest flow of justice and philosophy is our Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
The Hindu Scriptures are what we narrate
The poem is what we descant
Such a lovely place where Maithils rest
The sweet offerings of mithila are the best
The garland of Kavikokila Vidyapati is our Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
Even though we are poor now
We had eaten the makhan anyhow
The granddad soaked the amot sweet
And I ate the basmati chuda mixed with it
The gift of big bamboo palate of chuda and dahi is our Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
The Gangodidi makes the tea
The daughter Kamla prepares the beetel
The sister Koshi beats the rice paddy
The Baghmati makes the grains ready
The Laxmi of the house touches the entrance of our Mithila
An ascetic life within the wordly enjoyment in our exquisite Mithila
Maithili Novel Sahasrashirsha by Gajendra Thakur re-written in English by the author himself.
Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@videha.com
The Thousand-headed
I
Garh Narikel, a village. It is predominantly inhabited by cattle-grazer Brahmins.
Ponds and trees are all around this village. In this village one…two…three and one more, four ponds exist.
Exactly it is not so. There are three more ponds in this village. One is in the northern direction of the north pond, popularly known as the gigantic pond. People say that some monster dig thios pond in just one night. But while digging it the whole night was spent and the monster coul not install the centrak sacred wooden pole in the middle of the pond. As the monster was in a hurry so he left shoe of one leg there beside the mond and left the place. For many years that huge shoe remained there but again one year during flood that too got lost. So the only evidence that was there vanished. This pond is far away from the village, so no relation of this village could be established with the Chhatha festival. Yes, but this pond finds mention during the ceremony of sacred thread. Various types of fishes reside in this pond. There is never dearth of fishes here. No need has ever been felt for putting seeds (small fishes) of fishes into this pond. There happens an annual fish catching festival and barring the southern quarter of village, the whole village gets its daily share of fishes for at least one month.
To the southern direction of the south pond, there is a village called Buchiya (in the name of a person) pond. It is also far from the village, but there is sacred wooden pole installed in the centre of this village. When this central sacred wooden pole was being installed a big ceremony was thrown by the great great grandfather of the Zamindar, the Piyar Bachcha (meaning yellow boy). He had organized a grand great feast. This pond is far far away from the village and in all directions of this pond there are fields only. People rarely come here for taking a bath. Here too there happens an annual fish-catching ceremony, but that is only for this southern quarter of the village. There are many things attached with this pond. During Durga Pooja goddess Durga proceeds to her husband’s place, actually on the last day of the festivities. On that day the idol of goddess Durga is immersed into this pond. Not the men, but yes, the women weep bitterly at the time of immersion of Durga. The idol of Durgaji is not made in this village, no question of its being constructed in the southern quarter of the village. But it is immersed in this pond. This idol of Durga is made and worshipped in the neighboring Garh Tola (small village). The Garh Narikel people are mischievous ones. Till the sixth day of Durga festival, the idol of Durgaji remains covered. Only the artist can see her because if he does not then how the idol be constructed. Any other people, however, would become blind if they see the Durga before being unveiled. Yes, but after the ceremony of Belnoti- when eye of Durga is placed out of an invited wood-apple fruit, the idol of Durga is unveiled and then only the people can see it. And from that day the actual festival begins. If idol of Durga is made in this village many people would become blind before the sixth day of the festival. The neighboring village is not less mischievous one, its only the degree. In the name of festival all of them become disciplined. In the name of their village the suffix is added, tola (quarter of a village) suffix. But that does not make it a quarter of a village; it is actually a full-fledged village. Garh Tola village is also inhabited by the cattle grazing Brahmins. In mischievousness there is always a competition between these two villages. If you pass through the Garh Tola village, the lads sitting in front verandas of their houses beside the road would often pass comments on you. But the naughty boys of Garh Narikel will consciously go through that village. But the disciplined ones pass through the road beside this Buchiya pond. Although the route is circuitous; but it is safe.
(contd.)
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।