विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
उदय प्रकाश (१९५२- ) “मोहनदास”- हिन्दी दीर्घ कथाक लेखक उदय प्रकाशक जन्म १ जनवरी १९५२ ई. केँ भारतक मध्य प्रदेश राज्यक शहडोल संभागक अनूपपुर जिलाक गाम सीतापुरमे भेलन्हि। हुनकर हिन्दी पद्य-संग्रह सभ छन्हि: सुनो कारीगर, अबूतर कबूतर, रात में हारमोनियम, एक भाषा हुआ करती है। हिनकर हिन्दी गद्य-कथा सभ छन्हि: तिरिछ, और अन्त में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, दत्तात्रेय के दुख, अरेबा परेबा, मैंगोसिल, मोहनदास। मोहनदास- दीर्घकथा लेल हिनका साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०१० (हिन्दी लेल) देल गेल अछि।
अनुवादक:
विनीत उत्पल (१९७८- ) आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आ तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र। आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक। "हम पुछैत छी" मैथिली कविता संग्रह प्रकाशित।
मोहनदास पोथीक आवरण चित्र मार्कूस फोरनेलक चित्रक उदय प्रकाश द्वारा रूपान्तरण।
(उदय प्रकाश जीकेँ "विदेह" विनीत उत्पलकेँ "मोहनदास"क मैथिली अनुवादक अनुमति देबाक लेल धन्यवाद दैत अछि- गजेन्द्र ठाकुर- सम्पादक।)
मोहनदास : उदय प्रकाश
(मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल द्वारा)
मोहनदास: दोसर खेप
मोहनदास जखन बी.ए. पास केलक तँ बाप काबा आ माय पुतलीबाइकेँ आशा रहै जे आब ओकरा तुरत्ते नोकरी भेट जएतै। मोहनदासक बियाह चौदह-पंद्रह बरखमे कटकोना गामक विरंजुक सुन्नर सन बेटी कस्तूरी बाइक संग भऽ गेल छल। कस्तूरी बड़ काज करैवाली छल। सासुर आबैक संग ओ घरक सभटा काजे टा नै सम्हारलक मुदा एम्हर-ओम्हर छोट-मोट मजूरी कऽ किछु पाइयो कमाबै लागल, जइसँ मोहनदासक पढ़बाक खर्चा निकलि जाए। सभक आँखि मोहनदासेपर लागल रहै। बी.ए. करैबला ओ जाइत-समाजक पहिल बच्चा रहए। सेहो फस्ट डिवीजन। परीक्षाक रिजल्ट जखैन बहराएल तखन ओकर कएकटा फोटो सेहो अखबारमे छपल। कोचिंग चलाबैबला कंपनी सेहो ओकर फोटो छापलक।
मोहनदास रोजगार कार्यालयमे अप्पन नाम लिखौलक आ "रोजगार समाचार' मे छपैबला विज्ञापनकेँ देख कऽ जत्तऽ–तत्तऽ दर्खास्त पठाबए लागल। लिखित परीक्षामे सभसँ ऊपर रहै छल मुदा जखन इंटरव्यू होइत रहै तँ ओकरा अनुत्तीर्ण कऽ देल जाइत छल। ओ देखैत छल जे ओकर ठाम आठम-दसम पास, थर्ड-सेकेंड डिवीजनसँ बी.ए. करैबला लड़काकेँ नोकरी भऽ जाइत अछि। ओइमे सभक लग कोनो-ने-कोनो पैरवी रहैत छलै। सभ कोनो-ने-कोनो अफसरक, नेताक आ पैघ लोकक जमाय, बेटा, भातिज, भागिन आ लल्लो-चप्पो करैबला आकि कर्मचारी रहैत छल। मोहनदास सभ बेर असफल भऽ कऽ घुरैत छल मुदा ओ अप्पन आस नै छोड़लक। ओ बुझैत छल जे हिन्दुस्तानमे भ्रष्टाचार बड्ड रास छै मुदा तखनो सैकड़ामे दस-बीसटा लोककेँ अप्पन मेरिट आ योग्यताक दमपर नोकरी भेट जाइत छै। आस्ते-आस्ते मोहनदासकेँ ईहो बुझऽमे आबि गेलै जे कतेक रास नौकरी लेल बोली लागै छै। ओकर बाप काबा दास लग जे लाख-पचास हजार रहितियै तँ दू-तीनटा एहन नौकरी हाथ जे ओकर हाथसँ छुटलै तइमे ओ घूस दऽ बहाल भऽ सकै छल।
काल बितैत गेलै। ओकर उमेर सरकारी नोकरीक आयुरेखा पार करऽ लगलै। घरक लोक सभ असोथकित हुअए लागल। तैयो कस्तूरी बोल-भरोस दैत छल। कोनो गप नै, सरकारी नौकरी नै भेटत तँ प्राइवेटमे देखि ले। नै तँ कोनो धंधा कऽ ले। आइ-काल्हि पढ़ब-लिखब बेरोजगारक लेल सरकारक कएकटा योजना अछि। कुक्कट पालन कऽ ले। अंडाक धंधामे कतेक रास फाएदा अछि। मोमबत्ती, अगरबत्ती आ आटा-दलिया बनाबैक कारखाना खोलि ले। सरकार बैंकसँ लोन दैत छै। एक बेर साक्षरताक काज आएल छल। शिक्षाकर्मीक अस्थायी काज ओकरा भेट सकै छलै। मुदा बादमे पता चललै जे जाइ अफसरक नीचाँ ई काज छल ओ अप्पन जाति आकि एक-दू राजनीतिक पार्टीक लोककेँ ओइमे भरि रहल अछि। मोहनदास नीचाँक जातिक छल आ कोनो पार्टीक सदस्यो नै छल।
मोहनदास बड़ सोझ, संकोची आ स्वाभिमानी छल। ऐ काजक लेल जतेक दौग-भाग करऽ पड़ितै, जतेक अफसर-हाकिमक हाथ-पएर जोड़ै पड़ितै , एतए-ओतए जे खुआबऽ–पियाबऽ पड़ितै ओ ओकरा सक्कमे नै रहै। ओइ संगे नौकरीक जकाँ एतए सेहो लड़ाइ-झगड़ा सेहो छलै। एहन नै छल जे मोहनदास प्रतिस्पर्धासँ डराइ छल, एहन रहितै तँ ओ बी.ए. क परीक्षाक मेरिटमे कोना अबितै? मुदा ओ जल्दीये बुझि गेल जे स्कूल-कॉलेजक बाहरक असल जिनगीक खेल एकटा एहन मैदान अछि, जतए ओ गोल बना सकैत अछि जकरा लग दोसराकेँ लंगड़ी मारबाक तागति छै। आ ई तागति पैरवी-पैगाम, जोड़-तोड़, घूस, चिन्हल-जानल, धुरफंदी एहन कतेक अवैध आ अनैतिक बौस्तुसँ बनैत अछि, जकरामे सँ एक्कोटा मोहनदासक बूताक गप नै छल।
मोहनदासे टा नै, ओकर कनियाँ कस्तूरी, बाप काबा आ माय पुतलीबाइ सभक भीतर ओकर सरकारी-अफसर-हाकिम बनैक आस मिझा गेल, आब तँ लऽ दऽ कऽ सएह लागैत छल जे एहन किछु भेट जाए, जकरासँ बेरोजगारी आ असगर रहनाइसँ मोहनदासक पिंड छुटि जाए आ घरक दालि-रोटी कोनो तरहेँ चलए लागै। अही बीच काबा दासकेँ टी.बी. भऽ गेलै। ओ खाँसै लागल आ कफक संग खून बोकरऽ लागल। ठीक एकर बाद एकटा खैराती नेत्र चिकित्सा शिविरमे पुतलीबाइक आँखिक इजोत चलि गेलै। कस्तूरीपर घरक काज-धाज आ बाहरक मजूरीक संग सास-ससुरक सेवा-सुश्रुषाक भार सेहो आबि गेलै। सेहो एहन कालमे जखन ओकरा सुस्ताइक जरूरी छलै, किएकि ओ गढ़ुआरि छल। गर्भमे देवदास आबि गेल छलै।
मोहनदासकेँ देखिये कऽ लागैत छल जे ओ कतेक दिनसँ बेमार अछि। गाममे ओ कम्मे लोकसँ भेंट करैत छल। गाम-घरक लोकक आगू आबैसँ ओ नुकायल रहैत छल। सभटा लोक लग एक्केटा प्रश्न होइ छलै- , "की कऽ रहल छी? कोनो जोगाड़ भेल?'
गामक लग कठिना नामक एकटा धार बहैत छल। मोहनदास गर्मीमे गामक दोसर लोक जकाँ धारक बालूमे खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज रोपैक काज केलक। कनियाँ कस्तूरी टा नै, ओकर बाप-माय काबा आ पुतलीबाइ सेहो ओतए जाइत छल आ पलिया बना कऽ धारक पानिसँ छोट लत्तीकेँ पानि पटा कऽ खेती करैत छल। दुपहरिया आ रातिमे बेरा-बेरी पहरा दैत छल। बरख भरिमे आठ-दस हजार टाका अही तरहे भऽ जाइत छलै। मुदा कतेक रास बिन कालक पानि पड़ैसँ धारक पानि बढ़ि जाइत छल। मोहनदास संगे एहन दू बेर भेल छलै। कनी-कनी कऽ बड़का अवसाद आ निराशा ओकरा भीतर बैसए लगलै। जइ दिन कस्तूरी देवदासकेँ जन्म देलक, ओइ राति मोहनदास अप्पन घर नै घुरल। ओ कठिना धारक बालुपर निचाट पड़ल आकाशक सून-सपाटकेँ ताकि रहल छल। संजोगेसँ ओइ राति सेहो अमावशक राति छल, जै राति देवदासक जन्म भेल। प्रसवक काल एक बेर तँ एहन भऽ गेलै जे कस्तूरी मरत की जीत। नालक गड़मे फँसि गेलासँ बच्चा अधबीचेमे रहि गेल छल आ प्रसव करबै लेल आएल बिलसपुरहिन घबरा कऽ कष्टमे बेहोश कस्तूरीकेँ मुइल घोषित कऽ देलक।
आन्हर भऽ गेल माय पुतलीबाइ आ टीबीसँ खोँखी करैत बाप काबा दास, दुनू अप्पन बेटा मोहनदासकेँ ताकैत रहल, मुदा ओ कतए भेटतियै? ओ तँ ओइ राति कठिना धारक रेतमे, अमावशक आकाशकेँ कोनो मुर्दा जना घूरि रहल छल, अप्पन भीतर जीवनक कोनो चिह्न ताकि रहल छल। हुनकर देहक नसमे ओइ राति खून नै, अमावशक कारि अन्हार बहि रहल छल। आ हुनकर सुन्न भेल मगजमे नीन नै, ओ डराएल सपना उमड़ि-घुमड़ि रहल छल, जे कोनो भ्रष्ट आ पतित भऽ गेल व्यवस्थाक कोखिसँ जन्म लैत अछि।
मोहनदास ओइ राति धारक कातमे बेहोश छल, तइसँ ओकरा अप्पन बाप काबा आ माय पुतलीबाइक टेर सुना नै पड़लै आ नै कस्तूरीक कानब; आ नहिये भिनसरे चारि बजेक आसपास अप्पन नवजात बेटा देवदासक कानब।
भोरक सुरुज ऊपर आबि गेल छल, जखैन रौदक आँच गामसँ एक किलोमीटर दूर कठिना धारक रेतमे सुतल मोहनदासक नीन आ मूर्च्छा तोड़लक।
मोहनदास कतेक काल धरि धीपल रेतपर ओहिना पड़ल रहल। ओकर देह पाटल छलै आ स्मृति मिज्झड़ छलै। ओकरा ई बुझबामे कनेक काल लगलै जे ओ अप्पन घरक ओसार आ आंगनमे नै, कठिनाक ओइ रेतपर पड़ल अछि, जतए किछु दिवस पहिने ओ मतीरा, ककड़ी, खरबूज आ कुम्हर-टमाटर रोपने छल आ कालक पानिसँ उगडुम धारक पानि सभटा गीरि गेल छलै।
मोहनदास जखन घर घुरल तँ ओतए गामक कतेक रास लोक ठाढ़ छल। स्त्रीगण सेहो छलै। लागैत छल जे सभ कियो ओकरे लऽ कऽ गप करैत छल। किएकि ओकरा देखिये कऽ सभ चुप भऽ गेल आ एकाएकी सभ कियो ओतएसँ चलि गेल।
"पूत खाली दयऊक किरपासँ बचल। गामक लोक तँ तुलसी-गंगाजल लऽ कऽ आबि गेल छल।” माय पुतलीबाइ आँचरसँ नोर पोछैत कहलखिन। "जा कऽ देखि लियौ। देउता सन झलकैए।'
मोहनदास ओइ सोइरी घर गेल, जाइमे कस्तूरी एखने किछु काल पहिने मृत्युक मुँहसँ बहार भऽ अप्पन नेनाक संग खाटपर सुतल छल। बोरसीमे गोइठाक संग नीम-अजवाइन जड़ैत छल आ कोठरीमे तकर धुआँ भड़ल छल। कस्तूरी थाकल आँखिसँ मोहनदासकेँ देखलक। ओकरा देखबेमे एतेक असहायता आ ग्लानि छलै जे मोहनदासक करेज धकसँ रहि गेलै। एकटा आर पेट आजुक दिन घरमे जन्म लऽ लेलक। आब कमसँ कम छह-आठ मास धरि सभ दिन आध सेर गायक दूधक इंतजाम करैए पड़त। कस्तूरीक लेल मास भरि देसी सोंठ, गुड़ आ घी आ हरदिक संग भात। छठ्ठी, बरहों आ पसनी (अन्नप्राशन) मे लोकक खुआबैक खर्चा सेहो। मुदा तखने मोहनदासक नजरि कस्तूरीक बगलमे सुतल बच्चापर पड़ल। मोट-सोंट, गोल-मटोल बच्चा निश्चिन्त भऽ माएसँ सटि कऽ सुतल छल। बड़ सुन्नर आ अबोध। सतमे कोनो देवताक बच्चा लागैत छल। मोहनदासक भीतर पहिलुक बेर एक बापक संवेदना जन्म लेलक। हुनकर आँखि बच्चापर सँ नै हटैत रहए। तखने बाहर ओसारेसँ काबाक चिकरैक अबाज सुनाइ पड़ल। "सीताराम डाकिया आएल छल। कोनो कारड देने छल।'
मोहनदास देखलक, एहि जिलाक सभसँ पैघ कोलियरीसँ नोकरीक लेल इंटरव्यू लेटर आएल अछि। मोहनदास लग पछिला कतेक माससँ एहन तरहक कार्ड नै अबैत छल। तँ की रातिमे कठिना धारक रेतमे जे किछु ओ सोचैत छल, ओकरे कोनो भनक आकाशक कोनो ग्रह-नक्षत्रकेँ लागि गेल छलै? कोनो देवता हुनकर दुख आ आफत जानि गेल? की कस्तूरी तँ नै जे आइ भिनसरे बेटा जन्म देलक, वएह सतमे कोनो देवदूत अछि जे अप्पन जन्मक संग अप्पन परिवारक लेल एकटा नबका जीवनक केवाड़ खोलि रहल अछि।
ओरियंटल कोल माइंसकेँ पठाओल गेल आ रोजगार कार्यालयक मार्फत ओकरा भेटल इंटरव्यू कार्डमे मोहनदासकेँ एकटा नबका भविष्यक भोर झिलमिलाइत लखा दैत छल। कतेक काल बाद ओकर हृदएमे फेरसँ आशाक एकटा हरियरका नरम दूबि उगै लागल। ओइ राति मोहनदास नीक जना नै सुति सकल। अप्पन जीवनक जै गाछकेँ ओ एकटा ठुट्ठ बुझऽ लागल छल, ओइमे कतौसँ फेर नबका पात बहरा रहल छल।
ओरियंटल कोल माइंसमे ओइ दिन ओ साक्षात्कारक कालसँ एक घंटा पहिने पहुँचि गेल छल। अप्पन कुलदेवी मलइहा माय आ सतगुरु कबीरदासजीक नाम जपैत ओकर भीतर एहि बेर एकटा अलगे आत्मविश्वास छल। कोनो तरहेँ नोकरी भेटैक जोश। एक घंटाक लिखित परीक्षा छल, फेर एक घंटाक अंतरालक बाद शारीरिक परीक्षा। मोहनदास भरि मोनसँ आ जान लगा कऽ जुमि गेल। एक घंटाबला लिखित परीक्षा ओ आध घंटासँ कम्मे कालमे पूरा कऽ लेलक। प्रश्न बड़ आसान छलै आ ओकर जवाब तँ ओतए नीचामे लिखल छलै। बस सही उत्तरपर सहीक चेन्ह लगाबैक छलै। एकर बाद १५०० मीटरक दौड़, भागि कऽ चलब, मैदानक पाँच चक्कर लगाबैक, आँखिक परीक्षण, रंगकेँ चिन्हबाक आदिक शारीरिक परीक्षामे दू घंटा लगलै। मोहनदास एतए ककरोसँ उन्नैस नै छल।
साँझ चारि बजे कोलियरीक भरतीक दफ्तर दरवाजासँ डेढ़ सए प्रतियोगीमे सँ चुनल गेल पाँचटा नाम पुकारल गेल, ओइमे पहिलुक नाम मोहनदासक छल।
मोहनदासक हृदए धरधड़ कऽ रहल छलै। एकटा एहन गप भऽ रहल छल। आब कतेक जल्दी ओकर जीवनक अनिश्चितताक अंत होइबला छलै। सभ मास ओकरा दरमाहा भेटतै। घरमे सभ दिन चूल्हि जरतै। आ तरकारी बनतै। बाप आ मायक इलाज हेतै। देवदासक लालन-पालन आ पढ़ाइ नीकसँ हेतै। कस्तूरीकेँ मजूरीमे दोसरा जकाँ नै खटऽ पड़तै।
कोलियरीक बाबू मोहनदाससँ हुनकर सभटा सर्टिफिकेट आ मार्कशीट जमा करेलक मुदा बी.ए. मार्कशीट देखैत ओ कहलक, "आंय हो, एखन धरि कोना नै अहाँ नोकरीक जोगाड़ कऽ सकलिऐ? एकरामे तँ अहाँकेँ थोड़-बेस लमरा-पहुँच कैलासँ कोनो नीक सन नोकरी भेट जैतियै।”
"ज्वाइनिंग कहियासँ होएत?” जखन मोहनदास पुछलक तँ जवाबमे बाबू कहलखिन, "ज्वाइनिंगे बुझू। ऐ हफ्तामे भीतरे-भीतर कागजी काज पूरा भऽ जाएत आ अगिला हफ्ता धरि नियुक्ति पत्र अहाँक पतापर पठा देल जाएत।...बेसीसँ बेसी पंद्रह दिन लगा कऽ चलू।”
मोहनदासक घरमे एकटा नब युग आबि गेलै। पोस्ट आफिसक खातामे जे दू हजार टका छल तइसँ मोहनदास नबका मसहरी, एक सेर देशी घी, चिन्नी, सोंठ, किछु नब बरतन आ कस्तूरी आ देवदासक लेल किछु कपड़ा किनलक। अपना लेल सेहो ओ नील रंगक जींसक पैंट, टेरिकॉटक चौखाना बनल अंगा, तीस टकाक पर्स आ पाँच-पाँच टकाक दू टा रूमाल किनलक। परसूकेँ कहि कऽ ओ रोज भिनसरे आध सेर दूधक सेहो व्यवस्था कऽ देलक। गाममे ई गप हुअए लागल जे मोहनदासकेँ आखिरीमे ओरियंटल कोल माइंसमे नीक सन नोकरी भेट गेल अछि। गाममे जे सभ ओकरासँ सोझ मुँह गप नै करैत छल, सेहो ओकरासँ मेल-जोल बढ़ाएब शुरू कऽ देलक। जे सभ ओकर मेहनति आ पढ़ैक हँसी करैत छल, सेहो नीकसँ बाजब शुरू कऽ देलक, "ई तँ हेबाके छलै। एहन डिग्री आ पढ़ाइक बाद मोहनदास कहिया धरि खाली बैसितियै।” किछु लोक सभ ईहो टिप्पणी केलक, "असलमे मोहनदास जै बंसहर-पलिहा जातिक अछि, ओकरा आब रिजर्वेशनमे राखि देल गेल छै। नौकरी ओकरा कोटासँ भेटल छै किएकि ऐ जातिक कोनो दोसर लड़का बी.ए. छेबे नै करै।”
ओइ हफ्ता मोहनदासक घरमे एक बेर खीर सेहो बनल आ एक बेर आलू-मटरक मसल्हा सेहो। माय पुतलीबाइ अप्पन आँखिक अन्हारकेँ बिसरि गेली आ आंगुरसँ छूबि-हथोड़िया दऽ सूपमे पसरल दालि आ चाउरसँ कांकोड़ बिछै लागल। तोड़ीक तेल आ नून-अमचुरसँ लाल मिरचाइक चटनी सेहो बनौलक। बाप काबादास गणेश छाप मंगलूरी बीड़ीक पूरा कट्टा आ नबका जहाज छाप सलाइक डिबिया किनलक, जकर काठीकेँ रगड़पट्टीमे आस्तेसँ घिसलासँ फर्रसँ आगि जरि जाइत छल। घरक बाहर ओसारपर बैसल, सुट्टा मारैत काबा कतेक राति भोकारि पारि कऽ कबीरदासक भजन गओलक आ ओकरा नै तँ एक्को बेर खोँखी भेलै आ नहिये खूनक संग कफ बाहर निकललै।
एक दिन भोरे-भोर आन्हर पुतलीबाइ आंगनमे खुशीसँ घूमि-घूमि कऽ नाचैत जोर-जोरसँ गाबऽ लागल, "टोरबा-पुतऊ की कोठरिया माझे अलोपी मइना खोंथा डारिस हबै। भाग आइस, कलेस गइस...!!! किसमत जागिस...'
जै हो मलइहा माइ...! तोराले गोर लागी सतगुरू महराज...!!! जै हो...जै हो!'
सभ कियो देखलक जे मोहनदासक आन्हर मायक आँखि अलोपी मैनाक जे खोता कस्तूरी-देवदासक कोठरीमे देखने छल, ओ सत छल।
मोहनदास दोसर हफ्तासँ कोलियरीक चिट्ठीक बाट जोहै लागल। मुदा ओइ हफ्ता डाकिया नै आएल। एकर बादक हफ्ता सेहो बीति गेल। बीस-बाइस दिन भऽ गेल छलै। पता चललै जे कांसाकोड़ाक कंचलमल शर्माक बेटा संतोष कुमार शर्माकेँ चिट्ठी पहिने भेट गेलै आ ओ नोकरी सेहो ज्वाइन कऽ लेलक। मोहनदास बेचैन भऽ गेल। ओ राज्य परिवहनक बस पकड़लक आ कोलियरी पहुँचल। भर्ती दफ्तरमे ओ बाबू कहलक जे एखन लेटर पठाओल जा रहल अछि। पोस्ट तीन टा छल, चुनल गेल छल पाँच टा लोक। मुदा जगह नै बढ़ाओल गेल तँ दू कैंडिडेट कटत। मोहनदास डरि गेल। ओकर झाइ पड़ल चेहरा देखि कऽ बाबू भरोस देलकै, उम्मीद अछि जे दू टा पोस्ट बढ़ि जाएत आ नै बढ़त तँ मोहनदासक नाम नै कटत किएकि लिस्टमे हुनकर नाम पहिल अछि।
मोहनदास घुरि गेल। बाबू ओकरा एकाध मास इंतजार करै लेल कहलक आ पूरा भरोसा देलक। मुदा मोहनदासक भीतर किछु मिझा गेलै। ओकरा चिन्ता हुअए लगलै जे परसू मास बितैत दिनक आधा सेरक दूधक पूरा हिसाब देबऽ पड़तै। जोशमे एतए-ओतए किछु उधारी सेहो भऽ गेल छलै। आब सभटा कोना चुकाओल जाएत? कस्तूरी ओकरा ढाढ़स राखऽ लेल कहलक। माय पुतलीबाइ मलइहा माइसँ गछलक। हँ, काबा दास किछु दिनसँ चुप रहऽ लागल। रातिमे भजन गाओल ओ छोड़ि देलक आ ओकरा खोँखी आबऽ लगलै।
डेढ़ मासक बाद मोहनदास फेर ओरियंटल कोल माइंस गेल। कतेक प्रतीक्षा केलाक बाद बाबू ओकरा भरती दफ्तरक भीतर आबऽ देलक। ओ ओकरा आर इंतजार करैले कहलक। मुदा ऐ बेर ओ इंतजार लेल कोनो अंतिम समए नै बतेलक। ऐ बेर ओकर आवाजमे पहिने सन अपनापा सेहो नै छलै।
मोहनदास चलैसँ पहिने जखन जोर दऽ कऽ पुछलक तँ अमनसँ ओ कहलक, "ओना पता करबाक जरूरत की अछि? चिट्ठी भेटत तँ अपने आप पता भऽ जाएत।' फेर ओे कहलक, "असलमे ओइ दिन कैंडीडेटकेँ सलेक्ट करै लेल बिहारसँ कोल इंडियाक जे अफसर आएल छल, ओ एकटा पोस्टपर अप्पन जमायकेँ फिट कऽ देलक। सभटा ऊपर बलाक खेल छी।' मोहनदासक आंखिक आगू अन्हार पसरऽ लगलै।
अगिला मास मोहनदास फेर पता करै लेल गेल। कतौसँ किछु भऽ जाए। भोर दस बजेसँ लऽ कऽ दुपहरियाक साढ़े तीन बजे धरि ओकरा दफ्तरक बाहर बैसल रहऽ पड़लै। चपरासीक चिरौती-बिनतीक बाद जखन ओकरा भीतर आबऽ देल गेलै तँ पता चललै जे पहिलुक बाबू छुट्टीपर गेल अछि आ ओकरा ठाम जे दोसर मोट-सन बाबू ओकर काज देखि रहल अछि, ओकरा ओइ फाइलक कोनो जानकारी नै छै। मोहनदासकेँ अप्पन मार्कशीट आ सभटा ओरिजनल प्रमाणपत्र केँ लऽ कऽ चिन्ता हुअए लगलै। जखन ओ एकरा दिया पुछलक तँ नबका मोटका बाबू कहलकै जे अहाँक सर्टिफिकेटक हम की करब? नौकरी नै देल जाइत तँ रजिस्ट्रीसँ आपस घुरा देब, नै तँ अगिला बेर आबि कऽ अप्पन संगे लऽ जाएब।
मोहनदास फेर घुरि गेल। ओकरा मोनक सभसँ भीतरी कोन सेहो नीकसँ बुझि गेल छल जे ओकर जिनगीक ठूठ गिरहसँ जै नबका कोंपरक कल्लै आश्चर्यसँ बहराइबला छलै, आकाशक देवता ओकर बिपतिकेँ जानि, ओकरा लेल दयाक जे बून खसेने छल, तकरा दुर्भाग्य आ भ्रष्टाचारक लू झरका देलक।
आब कोनो आस कतौसँ नै बाँचल अछि। जौँ ओकरा संग कोनो नकदी जमा-पूँजी होइत तँ कोनो दलालसँ भेट कऽ टका ऊपर धरि पहुँचा कऽ ओ ऐ नोकरी केँ लऽ लितए। मोहनदासक हालत गामक धनीक लोक सभसँ पहिने बुझि गेल आ पहिने जकाँ ओ फेर ओकर पढ़ाइ आ प्रतिभाक हँसी करऽ लागै गेल। ओइ दिन मोहनदास अपमानक कड़ू घूँट पीब कऽ रहि गेल, जाइ दिन पंडित छत्रधारी तिवारीक बेटा विजय तिवारी, जे ओकरा संगे कॉलेजमे पढ़ैत छल आ थर्ड डिवीजनसँ बड़ मुश्किलसँ बी.ए. पास भऽ सकल छल मुदा अप्पन ससुरक तिकड़म आ पैरवीसँ पुलिसमे सब-इंस्पेक्टर भऽ गेल छल, ओकरापर गरैज कऽ बाजल आ कहलक, "मोहना, परसुए हम सरकारी योजनामे दस टा महीस किनने छी। डेयरी खोलि रहल छी। जौं ठीक बुझी तँ महीससक सानी-भुस्सा, गोठुल्लाक काज कस्तूरी भऊजीक संग सम्हारि लिअ। सभ मास पहिलुक तारीखकेँ दरमाहा तँ भेटबे करत, इंदिरा आवास योजनामे हम अहाँकेँ मकान पक्का सेहो करबा देब। भऊजीक मोन लागि जाएत हम्मर गोसारेमे।'
"सोचि कऽ बताबैत छी।' मोहनदास जबाव देलक आ अप्पन भीतर उठैत अपमानक आगिकेँ मुँह घुमा कऽ नुका लेलक। विजय तिवारीक मुँहसँ कस्तूरीक नाम सुनि कऽ ओकरा भीतर कतौ अप्पन असहायता आ निर्बलताक अहसास गहींर भऽ गेलै आ एकटा डर सेहो दिमागक कोनो-कोनामे आबि गेलै। जल्दिये किछु करए पड़तै, नै तँ ओकर परिवार टूटि कऽ छिड़िया जाएत। कोनो एहन काज, जे ओकरा वशमे छै। जकरा लेल ककरो मदति आ तिकड़मक जरूरत नै छै। कस्तूरीक सुन्नर चेहरा आ विजय तिवारीक शातिर आँखि बेर-बेर ओकरा आगू घुमि जाइत छल।
ओइ काल ओ सोचि लेलखिन जे ओ अप्पन प्रमाणपत्र, अंक-सूची आ दोसर कागचक पता करबा लेल ओरियंटल कोल माइंस नै जाएत, किएकि ओइ कागचक टुकड़ाक मूल्य कतौ किछु नै रहि गेल छलै। जइ आधारपर नोकरी भेटैत छल आ सरकारी योजनाक लाभ उठाओल जाइत छल, ओ आधार ओकरा सन लोक लग नै छलै।
मोहनदास ओइ राति खेनाइ खेलाक बाद घरमे नै सुतल। कस्तूरीसँ भोरमे घुरैक गप कहि कऽ कन्हापर कोदारि राखि आ रोपा टांगि कऽ ओ कठिना धार दिस चलि गेल आ भरि राति कोनो बताह प्रेत सन मतीरा, खरबूज, कुम्हर, तरबूज, टमाटर, भट्टा, ककड़ी लगाबैक लेल पलिया बनाबैमे लागल रहल। भोर साढ़े चारि बजेक आसपास, जखन उत्तरबरिया कात ध्रुवतारा अप्पन पूर्ण आभामे दोसर ताराक एक्का-एक्की मिझैलाक बाद चमकि रहल छल, मोहनदास अप्पन माथ आ छातीक पसेनाकेँ पोछि आ कनी-कनी बुलैत कठिनाक धारमे ठाढ़ भऽ गेल।
अंजुलिमे पानि भरि ओ अप्पन माथपर छींटा मारलक आ दुनू हाथ जोड़ि कऽ बाझल गड़सँ कहलक, "बस अहाँ टा आँखि नै मोरब कठिना माय। तोहरा मलइहा मायक किरिया। हमर बेटा देवदासक किरिया। हमर पसेनाक उपजिसँ अप्पन पेटक जठर आगि नहि बुझाएब कठिना माय...! नै तँ...दयऊ कसम, बीच असाढ़ तोहर धारमे बाल-बच्चा संग कूदि कऽ तोहर पेट हम भरि देब...।'
मोहनदास जखन सतगुरु कबीरक नाम जपैत कठिना धारसँ बाहर आबि रहल छल, तखैन ओकर आँखिसँ बहैत नोर कठिना धारक पानिमे ढबकि कऽ बहि रहल छल, जतए छोट-छोट कोतरी माँछ ओकर नूनकेँ चीखै लेल एक-दोसरासँ उपरौंझ कऽ रहल छल।
जखन मोहनदास घर पहुँचल तँ ओ देखलक जे कस्तूरी पूरा आंगैनकेँ गोबरसँ नीपि कऽ राखने छल, माय पुतलीबाइ सूपपर मतीरा, कद्दू, खरबूजक बिया पसारि कऽ अप्पन आंगुरसँ लजबिज्जीकेँ बीछ रहल छै, बाप काबादास परछीक कोनमे बाँसक कमची निकालैमे लागल छै आ मांझ आंगनमे ओकर डेढ़ बरखक बेटा देवदास खुरपीसँ घासकेँ छिलैक बुतरूबला खेल खेलाइमे मगन छै।
ओकर बुलबाक आहट सुनि कऽ पुतलीबाइ अप्पन मूड़ीकेँ ऊपर केलक आ किछु नै लखा दैबला आँखिसँ अप्पन बेटाक आँखि मिला कऽ मुस्काइत कहलक, "जानैत छीहीं मोहना, आइ अलोपी मैनाक खोतामे मादा मैना दुइ टा बच्चाकेँ जन्म देलक।'
पुतली बाइ बेसी खुश हेतियै जौं लखा दैतियै जे ओकर गप सुनि ओकर बेटा मोहनदासक चेहरापर खुशी कोन तरहेँ दिपदिपा रहल छै।
ओइ दिन-रातिमे बियारीक बाद मोहनदास कस्तूरी आ देवदासकेँ सेहो अपना संग कठिना धार लऽ गेल। कस्तूरी अप्पन डाँड़क खोंइछ-ओटनीमे कतेक रास बीया राखने छल आ कान्हपर देवदासकेँ बैसैने छल। मोहनदासक कान्हपर रांपी, कोदारि आ बगइक डोरी छल।
देवदास कनी कालमे धारक कातक ठाढ़ हवाक झोंकसँ भेटैबला सुखमे डूमि कऽ गहींर नीनमे सूति गेल छल। कस्तूरी आ मोहनदास बीया उगाबैक पलियामे गोबरक खाद दऽ कऽ अलगे-अलग फल आ तरकारीक पलहा बनाबैमे लागल रहल। दुइ घंटामे काज भऽ गेल। कस्तूरी जखन बासन-घैलासँ कठिनासँ पानि आनि कऽ बीयाकेँ पलियामे पटा रहल छल तँ आकाशमे टिमटिमाइत रहल ताराक इजोतमे मोहनदास ओकर सुंदरताकेँ देखि रहल छल। आकाशक नक्षत्रसँ झरैत सलेटी चानीक मद्धिम आभामे कस्तूरीक पिरसाम देह मलइहा मायक मढ़ियाक बाहर राखल ओइ पुरनका पाथरक मूर्ति जेहन देखा दऽ रहल छल, जे बन्हेरू पोखरिकेँ कोड़ै काल निकलल छल आ जेकरा आनि कऽ लोक सभ ओतए राखि देने छल। देह, डांड़, बांहि, छाती, जांघक ठीक ओहिने कटाव आ ओहने सुंदरता, जना कोनो कारीगर छेनी-हथौरी लऽ कऽ मन लगा कऽ बरखमे हुनका रकम-रकम गढ़ने छल।
अधासँ बेसी राति बीत गेल छल। टिटहरी आ पनकुकरीक शोर कखनो-काल सुना जाइत छल। कठिना धारक भारी हवाक भारीपनमे कस्तूरीक देहसँ उठएबला पसेनाक गंध मोहनदासकेँ चारू दिससँ घेर लेलक। ई स्त्री ओकरासँ ब्याह करै काल कोन सपना देखने हेती आ ओकरा की भेटल? भोरसँ लऽ कऽ राति धरि, सभ दिन बिना नागाक, सभ सुख-दुख, हारी-बेमारी, भूख-प्यासमे ओ ओकरा संग ठाढ़ छल। मोहनदासक मनमे कस्तूरीक लेल बड़ सहानुभूति आ आत्मीयता आएल। ओ ओकरा एकटकसँ ताकि रहल छल। कस्तूरी बासनकेँ बालुपर टिकौलक आ ठाढ़ भऽ कऽ अप्पन जूड़ा बान्हऽ लागल। मोहनदास उठि कऽ ओकरा लग आएल। कस्तूरी चुप छल। "ऐ कस्तूरी, कबड्डी खेलब?' मोहनदास मुस्काइत कहलक, "हू...तू...तू...!'
ओ कस्तूरीक बाँहिकेँ पकड़ि लेने छल आ ओकर बगली आ पेटमे गुदगुदी करऽ लागल छल। कस्तूरी ओकरासँ छूटऽ लेल छटपटा रहल छल, "ईह...ईह...! देवदास जागि गेल...! की करैत छी? छोड़ि... दिअ...हमरा छोड़ू ने!...छोड़ू...! ' कस्तूरी देखलक जे मोहनदास ओकरा छोड़ैबला नै अछि तँ ओ ओकरा धक्का दऽ देलक आ घुरि कऽ कठिना धार दिस भागि गेल। ओ कोनो उल्लसित स्वतंत्र हिरण जना तरपान मारि नक्षत्रक धुँआइत सिलेटीक फरीच्छमे नीचाँ दूर धरि पसरल धारक रेतपर दौगि रहल छल।
"आ...आ...आ...! हमरा छुबौ....तँ जानियह....! आ...आ....!' ओकर आवाज सभ पल दूर भेल जाइत छल आ ओ प्रति पल छाह बनैत अन्हारमे बिलायल जा रहल छल।
"हू...तु...तू...तू...तू...तु...तू...तू...! ' कहैत मोहनदास खूब जोरसँ ओकरा दिस दौगल।
कस्तूरी आओर दम लगौलक। मोहनदास सभ पल ओकरा लग आबि रहल छल। ओ आर जोर लगेलक आ कठिना धारक काते-कात, पानिमे छप-छप करैत पूरा जी जानसँ भागैत चलि गेल। "आ...आ...! छूबौ हमरा...तँ हम मानब!' ओकर दम फुलऽ लगलै। ओ हाँफै लागल छल। मोहनदासक "हू...तु...तू...तू...' सभ क्षण ओकर कान लग आबि रहल छलै। कस्तूरी बुझै छल जे ओ आब मोहनदासकेँ आर छका नै सकत, तकर बादो ओ आखिरी जोर लगौलक। मुदा तखैन धरि एक्के तरपानमे मोहनदास ओकरा पकड़ि लेलक। दुनू कठिनाक धारमे छपाकसँ खसि गेल। "छोड़ू...! ऐ...छोडू!' ओ झगड़ा कऽ रहल छल आ मोहनदासक ऊपर पानि उपछि रहल छल मुदा मोहनदास ओकरा छोड़बाक बदला ओकरासँ आर सटल जा रहल छल।
धारक भारी हवामे दुनूक साँस एक-दोसरामे पैसि रहल छल। ओ जेहन तरहे ओकर देहमे अप्पन आंगुरसँ गुदगुदी कऽ रहल छल, ओइसँ कस्तूरीक गरसँ निर्बन्ध किलकारी आ हँसी बहरा रहल छलै। ओकर छद्म प्रतिरोध शिथिल भऽ रहल छलै आ ओ सेहो मोहनदासकेँ दूर धकेलैबला दिखावाक संगे ओकर देहसँ सटल जा रहल छल। तहिना जना लोहाक कोनो टुकड़ा कोनो चुंबकसँ सटै छै।
मोहनदास कठिनाक पानिमे ओकरा खसा देलक आ ऊपर ससरि कऽ कहलक, "अहाँ बड़ नीक छी आ कतेक सुंदर छी कस्तूरी...! देखू हमरा...!' आ ओकर चुम्मा लेलक। वैशाख ओ गरम रातिमे दूर आकाशमे टिमटिमाइत ताराक मद्धिम सलेटी इजोतमे, कठिना धारक शीतल पानिमे दूइटा जवान गोंछ वा पाढ़िन मांछ सन ओ दुनू उद्दाम आ निर्बंध छपाछप कऽ रहल छल।
बीच-बीचमे कस्तूरीक कंठसँ उठैत हँसी आ किलकारीक संग मोहनदासक भारी साँससँ निकलैत "हू...तु...तू...तू' रातिक निस्तब्धताकेँ चिरैत जाइत छल।
थाकल कस्तूरी धारसँ घुरि कऽ भीजल नुआमे देवदासक बगलमे सुति गेल छल मुदा मोहनदास नै जानि कतेक राति धरि कठिनाक कातक उथली धारमे पड़ल रहल, आकाशक देवताकेँ तकैत गाबि रहल छल,
"पंछी-परौना बाजैत अछि,
कतऽ गेल हे संगवारी, करउंदा फरत हे...
करउंदा फरत हे...
मोर बाली हे उमरिया करउंदा बता तोला के...'
ओकर गरमे आइ एकटा एहन सुर उतरि गेल छल जे दूर धरि सुना दैत पुनकुकरी आओर टिटहरीक बोल सेहो ओकरा लग आबि कऽ संगत करऽ लागल।
बादमे शारदा ओइ रातिक स्मृति बनल।
ओइ बरख तँ ककड़ी-तरबूज आओर तरकारीक फसिल नीक भेल मुदा बाजारक भाव मंदा भऽ गेलासँ कमाइ कोनो खास नै भेलै। कस्तूरी गढ़ुआरि छल, तकर बादो ओकरा दोसरक मजूरी करहि पड़ैत छलै। मोहनदास सेहो जी-तोड़ मेहनति करैत छल। कठिना एक बेर तँ ओकर प्रार्थना सुनि नेने छल मुदा बादमे बेसी काल ओइमे पानि झझा जाइत छलै। काबा दासक खोँखी बढ़ऽ लागल छलै। मुदा छह किलोमीटर दूरक कस्बाक सरकारी अस्पतालमे एकटा खूब नीक डॉक्टर आबि गेल छलै, डॉक्टर वाकणकर, आ मोहनदासकेँ बुझेलै जे टी.बी.क लेल अस्पतालमे मुफ्त दबाइ भेटैत छै आ ओकर बापकेँ एकर पूरा कोर्स करबाक चाही।
ओ हुनका एकटा पॉलिथिनक थैलीमे दू मासक दवाइक खुराक भरि कऽ देलक मुदा काबादास नै तँ समएपर खुराक लैत रहथिन आ नै परहेजे राखि सकैत छल। खाइ-पीबैक कोनो ठेकान नै छलै। माय पुतलीबाइ आँखिक लेल डॉक्टर वाकणकरकेँ कहलखिन जे आपरेशनसँ चालीस पैसा इजोत घुरि जाएत मुदा एकरामे आठ-दस हजार टकासँ कम खर्चा नै होएत। ओ मोहनदासकेँ भरोस देलक जे जौं जिलामे कोनो नीक आ ईमानदार कलेक्टर आओत तँ ओ ओकर ई काज करबा देत। मुदा बरखपर बरख बीतल गेल, एहन कलेक्टर नै आएल। बीचमे एक बेर एकटा स्वयंसेवी संस्था दिससँ एकटा लड़का आ एकटा लड़की बंसहर-कबीरपंथीक बस्तीमे आबऽ लागल छल। ओ कस्तूरी आ मोहनाकेँ कतेक रास आश्वासन देलक जे जल्दिये ओ एहन कोनो व्यवस्था कऽ देत जे ओकर परिवार अप्पन गुजर-बसर आरामसँ करऽ लगताह। ओ कतेक रास अर्जी सेहो लिखलक आ ओकरापर मोहनदाससँ दस्तखत सेहो करौलक। मुदा फेर ओकर आएब-जाएब बंद भऽ गेल। पता लागल जे दुनू लड़का-लड़की ब्याह कऽ लेलक आ ओ दिल्ली चलि गेल। ओ लड़की आब कोनो टी.बी. चैनलमे काज करैत अछि आ लड़का दिल्लीमे अप्पन आइ.ए.एस. फूफाक सहायतासँ झुग्गीमे रहैबला लोक लेल काज करैए बला संस्था खोलि लेल छल आ देश-विदेशक जत्रापर रहैत अछि।
समए बितैत गेल। मोहनदास आ कस्तूरी अप्पन मेहनत-मजूरी आ मलइहा मायक कृपासँ कोनो तरहेँ दिन गुजरि रहल छल। शारदा दू बरखक भऽ गेल छल आ देवदास चारि बरखक। काबा आब बेसी-खाटेपर पड़ल रहैत छल। बगइक डोरी कखनो काल बना दैत छल वा बाँसक कमची निकालि दैत छल। मुदा ओकर खोँखी बढ़िते जा रहल छल। ओकर छातीक एक-एकटा पसली गानल जा सकैत छल। कतेक बेर ओ खांसैत छल तँ कफक संग खूने टा नहि, लागैत छल जना मौसक थक्का बाहर निकलि रहल छै। ओम्हर डॉक्टर वाकणकरक बदली नेता-अफसर कोनो दोसर जिलामे करा देलक। आब मोहनदासकेँ अस्पतालसँ टी.वी.क मुफ्त गोली दैबला कियो नै छल। जखन कखनो ओ जाइत छल, ओ अगिला हफ्ता आबैक लेल कहि देल जाइत छल। ओकर बाप काबा एतेक कमजोर भऽ गेल छल जे खोँखीकेँ थूकलाक बाद, खाटपर पटायल-पटायल चुपचाप धरतीकेँ देखैत रहैत छल।
चिट्ठा आ माँछी धरि ओकर खोँखीक आवाज चिन्है छल, पता नै कतएसँ मटा आ चिट्टा ओकर कफ दिस झुंड बना कऽ दौगि पडै़त छल। एक दिन तँ काबा हदसि गेल, जखन ओ देखलक जे ओकर खोंखी करैत देरी गिद्धा माछी भिनभिन करैत ओकर चारू दिस मँडराबऽ लागल। काबाकेँ अप्पन अंत लग आएल बुझाए लागल छल। ओ पुतलीबाइकेँ शोर करऽ चाहलक मुदा जखैन धरि ओकर आवाज निकलितियै, तकर पहिने खोँखीक तेज दौरा ओकर गरकेँ फेरसँ अप्पन कब्जामे कऽ लेलकै आ आखिरमे ओतएसँ आँजुर भरि खून आ मांसक थक्का बाहर निकलल। मोहनदास आ कस्तूरी कठिनाक पलिया संभारै लेल जा चुकल छल, घरमे आन्हर पुतलीबाइ टा छल। ओ दौगि गेल, गिरैत-पड़ैत आएल आओर अप्पन वर काबाकेँ छुबि-छुबि कऽ कानऽ लागल। पौरुकासँ ओकर ठेहुनमे गठिया धऽ लेने छल। काबा बेहाल रहै। कनी देरीमे ओकर साँस स्थिर भेल आ पुतलीबाइकेँ बिगड़ि कऽ कहलक, "कानै किए छी अंधरी? हम एखन नै मरब। देवदासक बियाह आ शारदाक दुरागमन करा कऽ मरब। ...नै कानू।'
काबा अप्पन कनियाँक माथपर हाथ फेरलक आ कहलक, "दिअ हमरा बाँस आ कुरहड़ि। हम बाँसक कमची छील दैत छी।'
(एतए ठाढ़ भऽ जाउ एक मिनट। अहाँकेँ लागि रहल हएत जे हम हिन्दीक कथा सम्राट प्रेमचंदक सवा-सएम जयंतीक अवसरपर समकालीन कथाक बहन्ने अहाँकेँ कोनो सवा सए बरख पुरनका खिस्सा सुना रहल छी। मुदा सत तँ ई अछि जे एहन पुरनका आ पिछड़ल शैली, शिल्प आ भाषामे जे ब्यौरा अहाँक सोझाँ अछि ओ ओइ कालक अछि जखन ९/११ सितम्बर भऽ गेल छै आ न्यूयार्कक दूटा गगनचुंबी व्यापारिक इमारतकेँ खसबाक प्रतिक्रियामे एशियाक दूटा सार्वभौमिक, संप्रभुता-संपन्न राष्ट्रकेँ गर्दा आ कदबामे बदलल जा चुकल छै। जखन अमेरिका आ योरोपक भगवानक अलावा बाकी सभटा भगवानक आगू प्रार्थनामे ओ लिबल फासिस्ट, आतंकवादी आ सांप्रदायिक मानि लेल गेल। तेल, गैस, पानि, बजार, नफा आ लूटैक लेल सभ दिन कंपनी, सरकार आ सेना समुच्चा धरतीपर दिन-राति निर्दोषक हत्या कऽ रहल छै।
एहन काल, जकरा नीक जना देखू तँ जे कोनो सत्तामे छै, ओइमे सभ कियो एक-दोसराक क्लोन अछि। सभ कियो एक सन ब्रांडक उपभोक्ता अछि। ओ एक्के जेहेन चीज पाबि रहल अछि, एक्के सन चीज खा रहल अछि। एक्के सन कंपनीक कारमे घुमि रहल अछि। सभक एकाउंट एक्के सन बैंकमे अछि। सभक जेबीमे एक्के सन ए.टी.एम. वा क्रेडिट कार्ड आ हाथमे एक्के सन मोबाइल अछि। एक्के सन ब्रांडक शराबक नशामे अखबारक पेज एकसँ लऽ कऽ पेज थ्री धरि वा टीवी क एकटासँ लऽ कऽ सत्तर चैनल धरि ओ एक्के जेहन धूर्त, निर्लज्ज आ नांगट अछि। नीकसँ देखू, हुनकर चमड़ीक रंग आ हुनकर भाषा एक्के अछि।)
(अनुवर्तते............)
बालानां कृते
ज्योति सुनीत चौधरी वनभोज
बीतल आब तीला संक्रान्ति
आयल छल नभ पर कान्ति
सूर्यदेव जगला आसकति त्यागि
ओढ़ल बदरीक तोसक के उघारि
मुदा अखनो छल बसात जड़ौने
रौदक आसरा सोहनगर बनौने
सौर्यऊष्मा कतेक सहज आ मृदुल
तपल गर्मीलय दिन छल दूर
ई नमल रौद कमे दिन रहि गेल
रोज आनन्द वनभोजक लेब
करब लाई मुरही क नस्ता
खायब बगिया भरि रस्ता
फेर पहुँचि क बीच बाधमे
भानस करब खुजल आकासमे
खेल कबड्रडी आ लुक्का छिप्पी
भोजन करब बनाकय पॉंती
घुरब घरदिस जहन सूर्य हेता पछबार
पहुँचब घर पहिने हुअसऽ अन्हार
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
Original Poem in Maithili by Kalikant Jha "Buch" Translated into English by Jyoti Jha Chaudhary
Kalikant Jha "Buch" 1934-2009, Birth place- village Karian, District- Samastipur (Karian is birth place of famous Indian Nyaiyyayik philosopher Udayanacharya), Father Late Pt. Rajkishor Jha was first headmaster of village middle school. Mother Late Kala Devi was housewife. After completing Intermediate education started job block office of Govt. of Bihar.published in Mithila Mihir, Mati-pani, Bhakha, and Maithili Akademi magazine.Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London. Dying For The Feast
Dear uncle, you’re great !
Dying for the feast
Your stomach is a PORVARI of Dhaka (Bangladesh)
Teeth is like the dam of Farakka
A pile of food you do eat
Tummy is puffed with fried treats
Aunt vilifies you as a sick one
Granny hurts herself in dudgeon
The tight fitting vest does detonate
Dear uncle, you’re great !
Want to eat up all solus
Always loaded in excess
As soon as you hear of cooking
You create clutter for eating
You make me tired while eating boiled potato sweet
Dear uncle, you’re great !
While chewing dry chapatti
Your lips works like Sakari factory
Two kilos of flour is cooked for you
A big bowl of curry of aubergine too
After finishing all, by opening mouth, asking for more yet
Dear uncle, you’re great !
This ghost is to be called uncle
Found in cemetery, he is that sparkle
Keeps his mouth open showing teeth
Face looks like filled up vessel indeed
Buch falls by laughing loud as soon as he hears it
Dear uncle, you’re great !
An order was placed by the aunt
Tying kilos of food in front
Uncle started to Jajimanika as she said
The towel was the only luggage
The long lasting day of the hot weather of Jeth
Dear uncle, you’re great !
Maithili Short-story “Siddha Mahavir” by Gajendra Thakur re-written in English by the author himself.
Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@airtelmail.in
The Proved Mahavir (Siddha Mahavir)
1
Beside the road was Anmana Didi’s house.
It was a hut not a house. In every courtyard of the village there happens to be a house of a widow. But when the family expands then some of the members rotate the front of their house and some other encircles their home. And sometime latitude and longitude of that widow’s home changes; and that last option was applicable to Anmana Didi’s house.
But the house of Anmana Didi is beside the road. She is originally from the other side’s Majkothia quarter of the village, but her house has shifted near to my house. They are majority people. The daughter’s of nearby places go to Anmana Didi’s house during day time, during midday, for picking louse from the head of Anmana Didi. To whom she is nearer in lineage that would be known after she dies. During rites whoever is nearer in lineage would do last-rites and he would get the dwelling-land of Anmana Didi. But that possibility has gone now. Anmana Didi was married in Jhanjharpur. There she kept her sister’s son as her own son. But the love for her father’s village still remains in her heart.
She comes in her hut, once a month at least. She cooks herself. But at Jhanjharpur she has a big house and a big courtyard. But she did not invite her son and daughter-in-law even once to her father’s village.
The whole village calls a widow Didi, if she resides in her father’s village and ‘aunty of abc vilage’, if she resides in her husband’s village.
So the whole village calls her Anmana Didi.
Beside the hut she has constructed a temple of Mahavir Bajarangwali. From the beginning it was not a pucca one but she made it pucca by selling grains. Earlier it was a hut-temple. Whenever Anamana Didi went to Jhanjharpur, she did shut its gate. Later on she started locking it with chain and lock. But the temple of Bajarangwali remained open for people, all the time. The village daughters did cleaning work. It was converted to a pucca one, later on. The ceiling of the temple was casted even later; earlier it was a raw one. She wanted the floor to be plastered but the estimate came into the way. The home of the Lord would trinkle in rainy season? But for casting and plaster-work money would come from where?
Today I feel that we all do hard labour; that we do not have affinity with anybody; Oh, I do not get time. But Anamana Didi’s day to day work, devoted to God from morning to evening. But for her adopted son she often finds time. In between she goes to her village situated near Jhanjharpur bazaar. She maintains her house at Jhanjharpur. Then again she comes to village…her father’s village. See… your attempt to become Sthitaprajna by reading Gita. Look at Anamana Didi? The answer to my salute by Anamana Didi; be happy, she replies. No happiness or sorrow in her voice! No desire for any respect, no desire for getting any help.
She goes to the Dhanuktola, Dusadhtola quarters of the village. The people of these tolas give her respect. They do not have any desire to grab her dwelling land. I see Anama Didi’s face smile, when she visits these tolas. She never asks for any help from the people of her own tola. The people of her tola will help once and would tell their wives. And after that for years these wifes would remind Anamana Didi of the favour they had done.
-Didi, it is work for Lord Hanumanji, his temple is beside the road. We all go by the road and worship him by bowing our head. We would work without accepting any wages.
-No dear, the pilgrimage and God’s work should not be undertaken in this manner. I am not a queen and would never construct temple or would never dig a pond without paying wages to the labourers.
But the casting and plaster work?
2
Adjacant to this roadside temple one acre of land is in the name of Anamana Didi. After casting work is over she will register this land in the name of God. Whatever harvest would be cropped, it would be used in the maintenance of the temple.
From some time a nephew from the neighbourhood is after Anamana Didi.
-Didi, I am your nearest nephew. This land is adjacent to my house. Earlier the people gave land adjacent to road to people of lower caste and to widows. But now the time has changed. Now the value of the house and land beside the road has increased. You will die someday. Then this land would be bone of contention among all of the people of our quarter of the village.
You will die someday- tell this to a woman whose husband is alive! But you can tell it to a widow; although she had adopted a boy and has full-fledged family having daughter-in-law and grandchildens; okay sir.
-This land has been earmarked for God. This is the only source of my livelihood. Whatever I save after cutting my expense from my livelihood that is preserved for casting and plaster of God’s house. The land and earning of Jhanjharpur property is for son and daughter-in-law. So how could I…
-Again Didi. You did not understand the thing. Till your death keep all these property; earn your livelihood. I ask if the people of our quarter of village should quarrel after your death? You would like it? And I am your nearest nephew…
See, look at the adage. The nephew works as a salaried person in some distant town. Whoever lives in village desist fom talking with Didi fearing she might ask for some help. But whenever this nephew comes to village he comes to meet her. And this time when I was in Jhanjharpur he went there too. That I know now how it came to his mind! Now I understand. But how casting of this temple-ceiling would be done. I would get it plastered later on. The ceiling of the temple leaks so much, this year it leaked even more. The raw ceiling did not work even for two years. That would be replaced by casting by Karim Miyan and Lakshmi Mistri; then only it would work. See what happens.
The nephew comes to Didi’s house even more often.
-Alright Didi, give me half the land. In half acre your nephew’s dwelling would get settled and land for God would also be saved.
-But there would not be any outlet to road for your dwelling land. Then what would be the benefit?
-Leave it. Even now I am coming through our quarter of the village. Now-a-days only it has become a fashion to construct house near crossings and beside the road. But on crossings or beside the road only the house of God would be appropriate. Ten thousand rupees for half an acre, whenever you ask I would pay; the registry of land would be in addition to that.
-Alright. Then I will think over it and then I will inform you. Once I would have to ask my son and daughter-in-law.
What is the way out? The walls of God’s house are blackened with tampblack. Leave the wall, the statue of Lord Bajrangwali is also blackened with tampblack. Anmana Didi was thinking over all these. She was thinking and thinking and then the morning birds started singing.
I will sell the land, what other option, no?
The son and daughter-in-law said-
“Dear Mother. That land is for God and that we know since beginning. But look, he should not be doing any mischief.”
-What mischief? He is paying price on the upperside.
For God’s temple ten thousand rupees is not a small amount. I had only this much out of my lifetime savings. This half-constructed temple would remain as it is? I would talk to Lakshmi Mistri and Karim Miyan. Ten thousand rupees is sufficient not only for casting and plaster but this is sufficient for constructing a boundary-wall too! Estimate was made. The work would start from the following day of registry; and it would be completed before the rainy season of Bhadra.
3
Look, registry was completed. Dasji is expert in paperwork; it is a proved fact- my God, it must have been a complete work, perfect paper must have been prepared.
“This is the first time that I have got the opportunity of preparing papers for God!” Dasji’s spoken line made Anamana Didi ecstatic.
People tell lie that the faith of people in God has diminished. Look at this Dasji. I never met him before and not have even a distant introduction. Two registry paper’s- one half-acre land registry in the name of the nephew and the second half-acre registry in the name of God! But he has prepared the papers charging only one fee. He told in clear terms- Didi, I would not accept the fee for the registry-papers prepared in the name of God. Whoever comes for help in times of need are our real ones; the adage by old people is always held true; and they had said this looking at these similar instances.
Anamana Didi is in a fit. She had come to village on foot. In excitement she is not able to think anything else. She brings out everything from the temple building. From tomorrow work will begin. Laxmi Mistri has kept there all his implements for work. Anamana Didi has already preserved the empty vessels for this work. Pond is nearby, although full of lichen and moss; but the people of the village had made some space clear at various places of pond so that their buffalows could drink the water.
But there is chaos in the morning. Karim Mian has been stopped from doing work. Who stopped him? Inform my nephew. But after registry he proceeded directly from Jhanjharpur to his place of work. The registry papers are also with Anamana Didi. The work has been objected by tne nephew’s brother-in-law. He will not allow the boundary wall to be constructed. But yesterday at the time of registry he was also present, then? He is saying that the land beside the road is of his brother-in-law. Look, then this temple would also be in his name? He must be in some confusion. The nephew would return in the beginning of the next month, after he withdraws his salary. For a month Anamana Didi did detours of Jhanjharpur and the village. The son and daughter-in-law told her that it might have been a ploy by the nephew. No, do not tell that. Dasji seemed so good-natured. Look what happens.
4
-Didi, you are having some confusion.
-Then this temple is also yours, no?
-No Didi. This temple is of God and would remain that of God. And the lord of the other side of land is also God.
-Then this hut is also yours, no?
-No Didi. Till you live remain there. Who will stop you?
-Boy, I am obliged. And the outlet for the backside land is neither from our quarter of the village nor from the roadside.
-Didi. Go through my land, who will stop you? And in the cultivated areas everybody passes through the raised dividing line. Those farmers who do not have land beside the road go to their land or not? You are talking in a divisive tone of the new generation people.
-But all these you did not tell me early on.
-Didi. I told you all these. But it appears that you are in a confusion. If you do not remember I would call Dasji, after all he is a neutral outsider.
-Alright. He is also part of the plot.
-He charged fee for only one registry and you are saying that he is part of the plot?
The voice of the nephew became harsher, he became restless and uttering loud words departed quickly.
5
Today’s morning of Anamana Didi at his father’s village is similar to that morning of his husban’s place the day on which she got widowed. Today the daughter of the village did not come for licking louse out of the head of Anamana Didi. The night long discussion of Anamana Didi with Lord Bajrangwali has just concluded in the morning. The people hearing this in night tried to lull their children by patting. Somebody came in the morning and suggested for arbitration with the help of village panchayat. But Anamana Didi was angry with Lord Bajrangwali.
“I was planning to sell only half the land but he got registered the land beside the temple and the land that is in the name of God now has no approach from the temple. Not only talk about the connection, there is not any way to go to that land from the temple? And look to this Bajrangwali. Mahavir! What power is inside him? After half-starving for forty years I brought him from hut to pucca building. Let casting be done, let boundary wall be constructed, only that was my desire and that too for him. Ha…
6
That morning Anamana Didi was standing at the door of his nephew. The people thought that now more strife would ensue. But look, what is happening? The brother of Lakshmi has brought rickshaw. Anamana Didi is going to Jhanjharpur accompanied by her nephew! Who said this? She does not have a word with anybody. I even asked for arbitration but she almost disagreed. Alright, Lakshmi’s brother told all this. Yes, one who has gone to call the rickshaw must have told him that the rickshaw is to go to Jhanjharpur.
Dasji had to prepare one more registry paper. By looking at Anamana Didi he started trembling, O God, what she would tell to him. But Anamana Didi was in so much anger that she did not tell anything. She swallowed her anger. She registered the backside land too in the name of her nephew. And she returned after registry from Jhanjharpur station to Jhanjharpur bazaar to her son and daughter-in-law.
Lakshmi’s brother returned to village. He took two passengers to Jhanjharpur station but came back with only one passenger. He brought a message also, message from Lakshmi Mistri and Karim Miyan. From tomorrow morning the work would be started, again?
7
The boundary wall was constructed barring the temple of God and Anamana Didi’s house. I have told Anamana Didi, nobody would touch her house till she dies.
House or hut, first year it got partly damaged. In second rainy season the bamboo support fell. But Anamana Didi did not come. The message was given to her by a person from the village. The casting work of temple could not be completed. Anamana Didi went to Haridwar and returned to Jhanjharpur.
People asked her-
-What you asked from the Ganges.
-This blind faith should go out of my mind.
-And what you sacrificed to the Ganges.
-My anger, I gave it to the Ganges.
Anamana Didi said only this-
“What would you do? There is no power in Lord Bajrangwali. Let the hut fall. The hut with a bamboo support- how long would it last.
8
Many years passed. Not many years but only five years. The nephew had come to village, after withdrawing his monthly salary. In the morning after he got himself relieved near the pond he came near to the handpump to clean his hand. He sat there with his water-pot. Then a pain he felt near his chest, and he could not be saved. People began to talk, look at the curse of Anamana Didi; Didi had wept and wept that day. Before that day there was no power inside the statue of Bajrangwali. But a curse with deep-hurt feeling does work. That day the Bajrangwali awoke. Today he has shown his power.
But Anamana Didi told the messenger that there happens to be no life inside the stone. It must have been a heart attack. Near her house a day before a Marwari had a heart attack. This attack comes with anxiety. Here there are qualified doctors and this Marwari fellow’s life was saved. In village due to delay in treatment people lose their lives. So I, in this old age, am living with my son and daughter-in-law in Jhanjharpur.
9
The village is mostly inhabited by the cattle-grazer Brahmins. When I saw the game of buffalows fighting with pig during Sukharati festival I lost interest in the game of Polo. The onslaught by the bhang-intoxicated buffalows over the purchased pig from the Dom caste of village Samiya is worth watching.
The buffalo grazers sat over the buffalo in control is also unimaginable. The participation of Dom caste in festivals is apparent. From making big baskets to fans for summer season; there is participation of Dom caste in public life. And the the meat for marriage party is obtained through slaughter house of Muslim tola. The head of sacrificed animal is retained by the Durga Pooja committee.
Look where your mind is wandering.
The Muslims do slaughter in normal days, the half cut neck remains intact. He keeps the head and skin. And the people from the buffalo-grazer Brahmins perform devotional songs on weekdays or on a more auspicious twentyfour-hour round-the-clock devotional song running event, using the drum that is constructed using those skins. And that devotional song is going to be performed today before the Lord Bajrangwali.
Devotional song is to be performed today before the proved Mahavira! The big flag is flying, that is there since the Ramanavmi festival. The bell alongwith some other gadget is ringing. The flag of the Hanuman temple is flying. It is evening time, the buffalo grazers have arrived. If there is any festival, be it the Sukharati festival or Ramnavmi or any other festival, the devotional song is performed before Lord Hanuman. And that is matter of faith of the people of the village. And that is being performed today.
The smoke of fire is trying to separate the insect from the body of cattle. One person has come with another for a solemn vow. The villagers have got plastered the Hanumanji temple. The casting of ceiling has also been completed. The number of persons who do not want to repay their debt can simply deny it by touching the verandah of the temple, but there is only one brave exceptional person. He says- the solemn vow is meant for breaking the vow. Yes brother, if one is free from debt by simply touching the verandah of the temple then what is the problem. But it is the only exception. People have started calling Anamana Didi as Anamana mystic (Baba). She died some years back. She did not return to village. To reduce the effects of evil eye over the dwelling land of her nephew some priest has suggested that a cow should always be there at the door and that cow is there. The passers by see the cow grazing green grass and that takes out the effect of evil eye.
Hanumanji’s flag is flying high. It is evening time. Brother Gonar is playing the drum ceaselessly.
Now Anamana mystic’s word is accepted by many. True, before the statue of Hanumanji there are two sets of devotees. One set of people are of rationalistic thought- Anamana mystic registered the remaining half acre of the land to her nephew that instilled fear and anxiety in her nephew’s heart. He could not resist this attack from Anamana Didi. True, there cannot be any power in a stone-statue. But the second group has all faith in this Hanumanji, this Hanumanji is a proved one, this Hanumanji is a live one. Look, challenge an ant and she would bite you even though it may mean death for her. And Anamana Didi challenged Lord Mahavir and how he would leave the challenge?
Brother Gonar is playing drum ceaselessly. He would please Hanumanji, no doubt about that. The intoxicant bhang-pill is working, his eyes are intoxicated and his hands are ceaselessly playing the drum. And if seen from his eyes, the stone statue of the proved Mahavir would look like a live one as though soul has entered into it.
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