२. गद्य
डॉ. प्रभा खेतान (१ नवंबर १९४२ - २० सितंबर, २००८) प्रभा खेतान फाउन्डेशनक संस्थापक अध्यक्षा, नारी विषयक कार्यमे सक्रिय, फिगरेट नाम्ना महिला स्वास्थ्य केन्द्रक स्थापक, १९६६- १९७६ धरि चमड़ा आ रेडीमेड वस्त्रक निर्यातक कंपनी 'न्यू होराइजन लिमिटेड' क प्रबंध निदेशका, हिन्दीक प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवि आ नारीवादी चिंतक। कोलकाता विश्वविद्यालयसँ दर्शन शास्त्रमे स्नातकोत्तर उपाधि, "ज्यां पॉल सार्त्रक अस्तित्त्ववाद" पर पी.एच.डी.। हिनकर आठटा उपन्यास- आओ पेपे घर चले, तालाबंदी(१९९१), अग्निसंभवा(१९९२), एडस, छिन्नमस्ता (१९९३), अपने -अपने चहरे(१९९४), पीली आंधी(१९९६) आ स्त्री पक्ष (१९९९) आ दूटा लघु उपन्यास “शब्दों का मसीहा सार्त्र” आ “बाजार के बीच: बाजार के खिलाफ” प्रकाशित छन्हि। फ्रांसीसी लेखक सिमोन द बोउवाक पुस्तक ‘दि सेकेंड सेक्स’ क हिन्दी अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता’ आ आत्मकथा ‘अन्या से अनन्या’ सेहो प्रकाशित।
डॉ. प्रभा खेतान श्रीमति सुशीला झाकेँ अपन उपन्यास “छिन्नमस्ता”क मैथिली अनुवादक अधिकार देने छलीह जे सुशीला झा पूर्ण केलन्हि। विदेह अपन ७७ म अंक(१ मार्च २०११) जे नारी विशेषांक सेहो अछि, मे एकरा ई-प्रकाशित कऽ गौरान्वित अछि। ई उपन्यास ओड़ियामे सेहो अनूदित भेल अछि।
छिन्नमस्ता- हिन्दी उपन्यास- डॉ. प्रभा खेतान ; हिन्दीसँ मैथिली अनुवाद सुशीला झा
छिन्नमस्ता
‘प्लेन मे बैसल बैसल डॉर अकड़ि गेल, माथक दर्द सँ मन व्याकुल लगै’छ। वड्ड गलती कयलहुँ। एतेक दूरीक फ्रलाइट नहिलेबऽ चाही।’ प्रिया दूनू हाथे माथ दबैत सोचलनि। बगल मे बैसल व्यक्ति शायद पूर्वी यूरोपियन वा हंगेरियन-हेतै’ हंगेरियन गोलाश सूप’क गंध् महसूस होइछ। हूँ, किछु लोक कतहु कतेक आराम सँ सुति रहै’छ मुँह खोलि केहन ढररऽ पाड़ि रहल अछि। एहि खर्राटाक घर-घर सॅ आयल निन्नो उचटि गेल। हमहूँ कखनौकऽ भसिया जाइत छी नहितऽ अइ एयरलाइन सँ नहिअबितहुँ। आब ई विमान बेलग्रेड मे उतरतै’। पफेर घंटा डेढ़ घंटाक ट्रांजिट .......... तकरबाद सोझे कलकत्ता। सोझे- कलकत्ता पहुँचैइ ए मे मजा छै...... नहितऽ भरि दिन दिल्ली या बम्बई मे बर्बाद करू। नहिजानि कियेक हमरे देश मे अध्रतिया मे लगभग बारह बजे से दू अढ़ाई के बीच सब फ्रलाइट्स उतरै’छ। अइ अध्रतिया मे या तऽ एयरपोर्ट पर बैसू या एयरपोर्टक होटल मे चारि-पाँच घंटाक लेल पन्द्रह सौ टाका पफेकू। एक्सपोर्टक काज मे एतेक रईसी असंभव। ओहूना दिनोदिन यात्रा महंगे भेल जाइछ। ....... कोनो मित्रा केँ अध्रतिया मे जगायब प्रिया केँ नीक नहिलगैत- छैन्हि, मुदा मोन बड्ड खराब बुझाइत छैन्हि। जी हौड़ैंत छैन्हि होइत छैन्हि अब रद्द भऽ जाएत। प्रिया एयरहोस्टेसक बत्ती जरौलनि मोने मोन बजलीह- ‘एहि यात्राक कहियो अन्त’ हेतै?’’
.......... ‘यस मैडम।’ विहुँसैत एयरहोस्टेस बजलीह।
.......... ‘‘क्या आप मुझे कोका कोला दे सकती हैं?’’
‘जरूर’
हदमद मोन मे कोका कोलाक स्वादो अजीब लगलैन्हि। बुझाइछ कलकत्ता पहुँचलापर दू दिन ध्रि बिछाओन पर पड़ले रहब। दू बेर डिस्प्रिन खेलैन्हि तइओ मथबथ्थी कम नहिभैलेनिह । विमान ध्ीरे-ध्ीरे नीचाँ उतरि रहल छल। प्रियाक ऑखि खिड़की सॅ बाहर भोरका इजोत मे बेलग्रेडक विमानपत्तन पर गड़ल छलैन्हि। पश्चिमी यूरोप टपिते गरीबीक झलक भेँटऽ लगै’छ बरू बीच मे दुबई आ कुवैतक एयरपोर्ट भनहिं चमकैत देखाइछ। न्यूयार्क, लन्दन या- Úैकपफर्ट क एयरपोर्टक मुकाबला तऽ नहिएँ कऽ सकै’छ। ......... ‘ट्रांजिट के पैसेंजर- पहले उतर जाएँ, अपना-अपना समान प्लेन में ही छोड़ सकते हैं। हां, पासपोर्ट लेना न भूलें।’ एयरहोस्टेसक अवाज छलै। प्रिया अपना हाथ मे अटैची उठौलनि। ट्रांजिट मे घंटा भरि समय लगतै। भऽ सकै’छ हाथ मुँह धेला सॅ मन हल्लुक होमए। नहिजानि कियेक दिनोदिन स्वास्थ्य खसल जा रहल अछि? ट्रांजिट लाउंच मे बामा दिस जयबाक छलनि। एकबेर पैर लड़खड़ा- गेलैन्हि। पफेर हिम्मत कऽ साँस धऽ देवारक सहारा लऽ पीठ ओंगठा कऽ ढाढ़ि भलीह। दू डेग बढ़लैन्हि कि चक्कर आबि गेलैन्हि। जाबत किछु सोच विचार करितथि तइँस पहिने आँखिक आगू अन्हार पसरि गेलैन्हि ठामहि अचेत भऽ खसि पड़लीह। होश भेला पर ऑखि पफोलिचारूभर देखलनि हम कतऽ छी? तखनहिं अंग्रेजी मे युगोस्लावियन डाक्टर पूछलकैन्हि- ‘आब मोन केहन अछि?’ प्रिया उतारा देबऽ चाहैत छलथिन मुदा से असंभव बुझना गेलैन्हि अगल-बगल कर देवार ऊपर नीचाँ होइत बुझेलैन्हि। लगलैन्हि जेना पफेरू ऑखिकऽ आगू अन्हार पसरि गेल होए, बेहोश भऽ गेलीह। डाक्टर एयरपोर्ट स्टापफ सॅ कहलथिन-इमरजैंसी। एंबुलेंस एलै आधा घंटा मे अस्पताल पहुँचलीह।
अइबेर होश होइते देखलनि उजर देवार, उजर पोशाक पहिरने नर्स अस्पताल मे छी से बुझि गेलीह। हाथ अँकरल सन बुझेलैन्हि सोझ करऽ चाहलैन्हि। तखनहिं स्नेह सँ नर्स कहलकैन्हि- ‘अहाँ बेलग्रेडक सरकारी अस्पताल मे छी। हाथ के एहिना रहऽ दिऔ ग्लूकोज चढ़ाओल जाइछ।’
-‘हमरा की भेल अछि?’
‘चिन्ता जुनि करू। एखनहिं डाक्टर अबैत छथि बता देता।’
‘हम अपना घर कलकत्ता संवाद पठाबऽ चाहैत छी।’
‘मैडम, अहंाक पासपोर्ट देखि ओतऽ पफोन कयल गेल अछि।’
- ओह, ओइमेतऽ हमर सासुर क पता छला की अहाँ हमरा एहि नम्बर पर पफोन करबा सकैत छी?’ प्रिया एतबा कहि’ हालैंऽ मे रहनिहार मित्रा पिफलिपक’ नम्बर देलथिन।
- पिफलिप मात्रा सात घंटा मे बेलग्रेड पहुँचलाह। पिफलिप के देखिते प्रियाक सूखल ठोर पर खुशी क हँसी छिहुलल। लग आबि प्रियाक माथ चुमैत पिफलिप- बजलाह-‘प्रिया आब चिन्ताक कोनो बात नहि हम डाक्टर से बतिएलहुँ कहलनि आब एकदम स्वस्थ छथि। आब हम आबि गेलहुँ सब ठीक भऽ जेतै।’
‘पिफलिप! ध्न्यवाद। मुदा हम बुझि ने पबैत छी-हमरा की भेल अछि?’
- ‘अहाँ के किछु नहिभेल अछि... मात्रा काजक ठेही। अहाँ केँ आराम चाही। शियर एक्जॉशन। प्रिया अहॉ काजक पाछू अपना शरीर पर कनिको ध्याने नहिदैत छी। क्षमता से वेशी खटैत रहैत छी तै इ हाल भेल।’
- ‘पिफलिप, सापफ-सापफ कहू कहीं हार्टक प्राब्लम तऽ नहि ............?’
- ‘नहि, नहिजैट लैग मे .......;हवाई यात्रा मे बैसल बैसल पैर अॅकड़ि जायब स्वभाविकेद्ध दोसर गप्प ई जे बिना किछु खयने-पीने हवा मे उड़ैत रहने कतेक बेर तऽ ‘वैसो बैगल एटैक’ भऽ जाइत छैक। सच-सच कहू अहाँ खाना खयने छलहुँ कखन?
- ‘शिकागो मे।’
‘मतलब, दू दिन भऽ गेल भोजन कयला आ प्लेन मे अहाँ कोका कोलाक अलावा आर किछु पीने नहिहेवै’। हम अहाँ के खूब नीक जकाँ चिन्हऽ गेलहुँ अछि। पन्द्रह वर्ष सँ देख रहल छी’ काजक पाछू अहाँ पागल भऽ गेलहुँ अछि।’
- ‘पिफलिप! प्लीज।’
‘नहिप्रिया! अहि प्लीजक असर हमरा पर नहिहोएत। एखन मोन होइछ अहाँ के खूब कसिकऽ क्लास ली जेना इलोना केँ क्लास लैत छिऐन्हि कोनो गलती कयला पर।’
‘इलोना नीकेँ छथि ने? हुनकर पढ़ाई केहन चलि रहल छैन्हि? आ जूडीक कुशल क्षेम कहू।’
‘जुडी नीकेँ छथि अहाँक समाचार सुनिचिन्तित भऽ गेलीह। इलोना स्वस्थ छथि नीक जकॉ पढ़ाई चलि रहल छैन्हि।’
-पिफलिप! अहाँ नीना सँ गप्प कऽ लेब कहि देबैन्हि एतुका समाचार ठीक छैक। अन्यथा ओ हड़बड़ा कऽ एतऽ आब जेतीह।’
‘अहाँ चिन्ता जुनि करू। एहि सभक जिम्मा हम जुडी केँ दऽ आयल छी- भऽ सकै’छ ओ आइ सांझि मे अहाँ से बात करतीह। अहॉक खबरि सुनि हम सभ स्तब्ध् भऽ गेल छलहुँ ओ हमरा संगहि आबऽ चाहैत छलीह। कहुना हुनका कहि सुनि हम अयलहुँ।’ पिफलिप पफेरू सांझि मे अस्पताल औता। हम कतबो सुतऽके प्रयास करैत छी मुदा निन्न नहिहोइत अछि मोन बोझिल लगै’छ।
नर्स एकटा दबाई ढेलक आ हॉट चाकलेट। एखन माथ पर कतबो जोर दैत छी तइओ किछु सोचि नहिपबैत छी। लगै’छ जेना मानसाकाश मे छोट-छोट बादलक टुकड़ा हिलकोर मारि रहल अछि।
-सत्ते इम्हर किछु दिन सँ हम काजक पाछु तेइन अपस्यॉत रहलहुँ अछि जे ने दिन केँ दिन बुझलिऐ ने रातिकेँ राति। ई शिकागोक प्रदर्शनी लेल तऽ करीब पन्द्रह दिन सॅ राति मे तीने चारि घंटा सूतैत हएब से निश्चिन्त भऽ नहि। नीना कहैत छलीह-भौजी एतऽ कनि’ आराम कऽ लिअ ओतऽ शिकागो मे तऽ एको पल पलखति नहिभेँटत देह कोना ठाढ़ रहत!’
तखन हम कहैत छलिए- ‘नहिनीना एखन आराम करबाक बेर नहिछै एहन मौका पफेर भेँटत की नहि। स्पिलवर्ग स्वयं-स्टाल लगयबाक आपफर देलक अछि।’
-नीना तीसवर्षक भऽ गेलीह मुदा एखनहुँ विवाह नहिकऽ रहल छथि आब विवाह कऽ लेबऽ चाही। ओना हमर ओ दहिन हाथ छथि सबसॅ वेशी हुनके सहारा अछि हमरा। इएह सभ गुन-ध्ुन करैत छलीह ध्ीरे-ध्ीरे ऑखि मुना गैलेन्हि। ख्ूाब गहीर निन्न मे सूतल छलीह। भोर मे निन्न टूटलैन्हि तऽ सामने टँगल कैलेंडर पर नजरि पड़लैन्हि आइ अट्ठाईस अप्रैल भऽ गेलै। गुड मार्निंग कहैत नर्स चौकठी टपलीह।
- ‘‘की हम बहुत अबेर ध्रि सूतलि रहलहुँ?’’
- ‘‘हां, आह अहाँ खूब सुतलहुँ। एखन अहाँ पहिने नास्ता करब की
स्नान?’’
- ‘स्नान कऽ ली तऽ नीके लागत।’
- ‘वेश, चलु। अहाँ केँ कमजोरि तऽ नहिबुझा रहल अछि?’
- ‘नहि, एकदम नहि।’
‘वाह!’ नर्स प्रियाकेँ पलंग सॅ उतारलनि, सुसुम पानि सॅ नहा कऽ प्रिया के ताजगी महससू भेलैन्हि।
नास्ता मे गरम-गरम क्रोशा, मक्खन, जैम आ दूध् संतराक रस पीलनि ब्लैक कापफी पीलनि। पश्चिमक प्रत्येक होटल मे ऐहि तरहक नास्ता करबाक आदत भऽ गेलैन्हिए। नास्ता क तृप्त भऽ सोचऽ लगलीह प्रिया चमड़ाक ई व्यवसाय शुरू कयल कतेक वर्ष बीत गेल! आ कहिया सॅ एहन यायावरी जिन्दगी जीवि रहल छी!! हम एहन एक्सपोर्टक काज शुरू हे कियेक कयलहुँ? देश-विदेश हरदम यात्रा मे समय बीतैत अछि। कोन दुःख दर्द बिसरऽ लेल ई यात्रा शुरू कयलहुँ? आ सुख? सुख कहिया भेँटल?? मोन ने पड़ै’छ कोनो सुखक क्षण। मुदा आई मोन मे स्नेहभावक उदवेग ककरा लेल एहन कोनो खास व्यक्ति ने मोन पड़ैछ ने रिश्ता-नाता। हँ, छोटकी माँ आ नीनाक प्रति स्नेह स्वभाविक बुझना जाइछ। स्नेहक पात्रा अछि हमर स्टापफ जे राति-दिन हमरा संग खटैत रहै’छ। अबैत काल संग-संग आबि माल जहाज पर चढ़बैत अछि। जँ से सभ बिमारीक समाचार सुनता तऽ बहुत चिन्तित हेताह।
-किछु आर आत्मीय व्यक्ति छथि हुनको खबरि भेँटले हेतैन्हि। छोटकी मां क स्वभाव तऽ बुझले अछि परम्पराकेँ निमाहऽ वाली ओ नरेन्द्र के पफोन द्वारा अवश्य सूचित कयने हेथिन। एतके नहिओ संजु आ निध् िके पठयबाक लेल आग्रहो कयने हेथिन पफेरू मनाहि सुनि ठाकुर कड़ी मे बैसि कनने होएतीह। एतहु विदेश भूमि मे हमर किछु आत्मीय बन्ध्ु छथि जाहि मे सबसे वेशी निकटा अछि पिफलिप उठा जुडी सँ।
अस्पताल मे आइ दोसर दिन बीता रहल छी। मोन पड़ै’छ अपन आन्तरिक संवेदनाक स्मृति स्मृतिक ओ क्षण जकरा हम विस्मृतिक खोह मे धकेल देने छलिऐ आई सेह क्षण बरे-बरे स्मृतिक पटल पर झलकै’छ एतबा दिन हम बिसरने छलहुँ चाहैत छलहुँ सभ दिन बिसराएले रहए जेना अनजान शहर क भीड़ मे कतेक अजनबी चेहरा लोक देखै’छ संगहि चलै’छ पैदल वा कोनो सवारी मे मुदा पफेर ओ स्मरण कहाँ रहैत छैक। यात्रा क बाद सब अपन-अपन ठेकान दिस बढ़ै’छ ककरो मुँह कान मोनो ने पड़ैत छै। अन्हार गुज-गुज सुरंग मे ध्ड़ध्ड़ाइत टयूब रेल मे अगल-बगल बैसल यात्राी एक दोसरा से असंपृक्त रहै’छ होइत जे तहिना हमर स्मृति दिन-राति दर्दक सुरंग मे हकमैत दौड़ैत रहत मुदा ओ कहियो-सुरंग सॅ बाहर आबि हुलकियो ने मारत। कखनहुँ नहि।
-तखन आइ एना कियेक भऽ रहल अछि। एक बेर एक संग नहि बेरा-बेरी टुकड़ा-टुकड़ा मे ऑखिक आगू पसरि जाइछ। रूम मे दवाईक
गंध्, पिफलिपके आनल टयूलिपक गमक संग मिझरा कऽ एकटा अजीब गंध्...... उज्जर दप-दप देवार स्वच्छ पफर्स आ रंग-बिरंगक-ट्यूलिप। कहने छलाह पिफलिप- अइ मौसमक ई पहिल ट्यूलिप छै। यूरोप मे एखन- पूर्णरूपेण बपर्फ पिघललै अछि नहि, तैँ अप्रैलोमासक ट्यूलिप के रंग हल्लुक छैक- दूध्यिा गुलाबी, पीअर आ नव रंग-रूप लेबऽ लेवन आतुर उज्श्र........हरियर पात। हम बहुत कष्ट झेलने छी। शोषण, उत्पीड़नकेर पीड़ा आ त्रासदी मे झुलसी एक-एक क्षण व्यतीत कयलहुँ अछि। जाहि दिन एहि त्रासदीकेँ अपन जिनगीक शर्त बुझलिऐ ताहि दिन सॅ आत्मस्वीकृतिक संग बेकार बेमतलबक विरोध् से जूझब छोड़ि देलहुँ। किछु विशेष अर्थ मे एकरा हमर समर्पण बूझल गेल। समस्त शोषण उत्पीड़न क सोझा अपना के सलीब पर टँगल रहबाक अनुभूति भेल। मुदा एहि एकटा पफायदा भेल आब हम अपना के जिनगीक समस्त चुनौतिक सामना करबा लेल तैयार छलहुँ।
पूर्व स्मृति नहुँए सँ कान्ह-छुबै’छ कि सोझा मे हमर हम सम्पूर्ण रूप मे ठाढ़ होइछ एकदम शान्त निर्विकार। पहिलुका संस्मरण वापस चलि जाउछ।
-‘ओइ दिन नरेन्द्र हमरा सोझा मे टका सँ भरल ब्रीपफकेश खोलिकऽ उझलैत चिचिआयल छलाह लिअ, अहाँके कतेक टका चाही?’ लाख, दस लाख, करोड़? टका, टका, टका राति-दिन टकाक पाछू अपस्याँत रहैत छी? बाजू, बाजु ने कतेक टका चाही लऽ लिअऽ।’
आ पफेर क्रो( से तमतमाइत दस-दस हजारक गडóी उठाकऽ हमरा देह पर पफेकऽ लगलाह। हम नीचाँ मे बैसल अपना बक्सा पैक करैत छलहुँ। डायरी मे लिखल समानक मिलबैत छलहुँ- कोट, कार्डिगन, नाइटी, ब्रा, पैंटी, शर्ट्स, पैंट, सलवार-समीज, साड़ी ब्लाउज...............की दू टा साड़ी सँ निमही जाएत। दवाई लऽली एहि बीच नरेनद्र तुपफान उठौलनि। नहिरहि भेल हुनका दिस तकैत बजलहुँ- नरेन्द्र। ई व्यवसाय हम टका अर्जित करबा लेल नहिकऽ रहल छी। ई हमर आइडेंटिटी अछि। हँ, चारि साल पहिने जहिया काज शुरू कयने छलहुँ तहिया भनहिं टका क जरूरत छल। आइ टका सॅ वेशी एकर महत्व छैक जे ऐहि देश सॅ विदेशक उड़ान हमरा जिनगीक कैनवास के बहुत पैघ बनबै’छ। नित नव व्यक्ति सॅ परिचय जान-पहिचान जीवन शैलीकेँ बूझऽ सूझऽ क अवसर दै’छ।
-‘सोझ बात बाजु ने जे ऐहि व्यवसायक लाथे एसगर मौज मस्ती करबा मे नीक लगै’छ।
-‘नरेन्द्र! अहाँ की बाजि रहल छी?’
-‘हम बिल्कुल सही कहि रहल छी। अहाँ विदेश मे की करैत छी से हम-देखऽ जाइत छी? देखू, हमरा दिस देखू मोन पाडन्ऩ् जहिया ई व्यवसाय शुरू कयने छलहु तहिये हम चेता’ देने छलँहु’
- काज करू मुदा ई नहिबिसरब जे अहाँ विवाहिता छी, एकटा बच््याक मां छी, अग्रवाल हाउसक पुतौहु छी।’
-‘नरेन्द्र, बिना बात क दोष नहिदिअ ककरो पर इल्जाम बिनु बुझने नहिलगाबी। एहन शक होइछ तऽ संगे चलू देखू हम ओत की करैत छी।’
- वाह! हम अहाँक संगे चलू! अहाँके पाछू-पाछू सैंपलक बक्सा उठौने? ध्न्य छी श्रीमती जी! अपन पतिक केहन दिव्य खाका-घिंचलहुँ अछि?
हम आब चुप्पे रहनाई-नीक बुझि अपन पफाईल उनटेलहुँ। जँ कोनो कागज छुटि जाएत तऽ ओतऽ प्रर्दशनी मे आपफत भऽ जाएत। एखन धरि-श्यामल कॉस्टिंग पेपर्स नहिपठौलक। सांझुक पाँच बाजि रहल छै सैंपलो पूरा नहिआयल अछि। एयर इंडियाक बारह बजेक-फ्रलाइट अछि। ई फ्रलाइट सोझे लंदन- पहुँचतै। हम कनखि सॅ नरेन्द्र दिस तकलहुँ चेहरा घृणा सँ विकृत बुझना गेल। हे भगवान! ई पफेर ने कोनो उत्पात मचाबए एक तऽ ओहिना यात्राक समय खासकऽ व्यापारिक यात्राकाल तनाव से माथ पफटैत रहै’छ।
-बेर पर कखनौ कोनो वस्तु नहिभेँटतै अछि तऽ कखनहुँ कोनो आवश्यक कागजात। जकर डर छल सेह भेल-पफेरू चिचिएनाइ शुरू भेल- ‘दरअसल हमरे गलती अछि एतेक छूट देबहि ने चाही। उड़ऽ सॅ पहिने पॉखि कतरि देबऽ चाहैत छला केना अहाँक बात मे आबि गेलहुँ। चेहरा देखि क्यो बुझियो ने सकै’छ जे अहाँ केहन मक्कार औरत छी।’
-आहत मन सॅ बजलहुँ-‘आबहु चुप्प होउ!’
‘नहिहम चुप्प नहिरहब। पहिने तऽ अहाँ कहैत छलहुँ मोन नहिलगैत अछि घर मे गुमसुम बैसल रहने। तऽ मोन बहटारऽ लेल ई काज शुरू कयलहुँ। आ आब काजक अलावा आर कोनो बातक होशे नहिअछि? एकदिन-कानि- कानि कऽ अहीं कहने छलहुँ’
- ‘नरेन्द्र! हमरा मे आत्मविश्वासक कमी अछिं! कोनो मन लग्गू काज- करब तखने तनांव कम होएत आ स्वस्थ होएब।’
- ‘तऽ की आब हम स्वस्थ नहिछी? पहिने सॅ वेशी संतुलित, आत्मविश्वास नहिबुझाइत अछि?’
‘‘संतुलन आ अहाँ? अहाँ तऽ सदैव ‘वन टैªक माइंड’ छी। पागल जकां जे करब ताहि मे अपस्यॉत रहब। भोरे आठ बजे-घर से बहराइत छी आ राति मे आठ बजे घरि घुरिकऽ आबि तऽ भाग्य सराहि।’’
- हम कतहु चलऽ कहब तऽ हम थाकल छी माथ मे दर्द होइत अछि, मुदा क्यो अहाँक व्यापारी आबि जाय तऽ ओकरा संगे बारह- बजे राति घरि बाहर रहब। तखन ने माथ मे दर्द होएत ने थकनी, खूब चहकैत-रहब।’
‘नरेन्द्र! अहाँ जनैत छी- हम काज सॅ बाहर जाइत छी मुँह लटका कऽ बैसने हमर काज नहिभऽ सकै’छ। हम कतहु ककरा संग नेह-छोह लेल नहिजाइत छी।’
- ‘इएह तऽ हम जानऽ चाहैत छी- जे दिनो-दिन अहाँ मशीन कियेक बनल जा रहल छी? अहाँक व्यत्तिफत्व मे कनिको रस बुझाइते ने अछि केहन निरस भऽ गेलहुँ। कनि देह पर हाथ रखैत छी तऽ छिहुलिकऽ हटि जाइत छी जेना बिजलीक करेंट छूबि गेल होइ। एकदम Úिजिड........... होपलेस। अहीं कहने छलहुँ हम हरदम घरे मे बैसल रहब तऽ पागल भऽ जाएब।’
- हँ, हम कहने छलहुँ तऽ?
- तऽ इएह जे आब की भेल? कतऽ गेल अहाँक शर्त?
- नरेन्द्र! केहन शर्त! आ के चलै’छ शर्त पर? अहाँ चलैत छी शर्त पर? दुनियाँ मे सब अपन सुविधनुसार शर्त केँ तोड़ि-मरोड़ कऽ चलै’छ।’
- ‘यानि आपसी ईमानदारी, स्नेह-समर्पण........... सभटा पफुसी।’
- ‘नरेन्द्र! इ सभ शब्दक भ्रमजाल छैक! औरत केँ इसभ पाठ एहि पढ़ाओल जाइत छै जे ओ एहि शब्दक चक्र- ब्यूह से बहराई नहि। अन्यथा युग-युग से आहुति देबाक जे परम्परा छै से चालु कोना रहैत?
- ‘हमरा अहाँक पिफलॉसपफी ने सुनबाक रूचि अछि ने बहस करबाक। हँ, एकटा बात अहाँ सुनि लिअजँ आइ राति-अहाँ लन्दन जायब तऽ घुरिक अइ-घर मे नहिआबि सकैत छी । कथमपि नहि।’
- ‘ठीक छै।’
हम यथासाध्य अपना केँ संयत रखलहुँ। ऑखिक नोर ऑखिये मे सुखा गेल। एखन यात्राक बेर मे हुनका से उलझब ठीक नहि। ओहिना ततेक तनाव अछि, बीच मे इ बखेड़ा। बिना मतलब के बकझक! गलती हमरे अछि। सोचने छलहुँ शनि के चंलला से कम से कम एक दिन रवि केँ लन्दन मे आराम कऽ लेब, पफेर ओतऽ से शिकागो- चलि जायब। मुदा इ नहिसोचने छलहुँ जे बक्सा पैक देखि नरेन्द्र एतेक - उत्पात मचौता। मोने-मोन इएह सभ गुनध्ुन करैत छलहुँ कि पफेरू नरेन्द्र दहाड़ऽ लगलाह- ‘सुनू प्रिया! हम सीरियस छी... आइ मीन इट..... अहाँ आब अइ घर मे घुरि कऽ नहिआबि सकै छी।’
- ‘हम हँसैत पूछलिऐन्हि - की ई घर-मात्रा अहिंक अछि?’ सोचने छलहुँ एना बजने वातावरण किछु हल्लुक होएत। ओ वातावरण के हल्लुक कियेक होमऽ देताह। विषाह लोक वातावरण केँ विषात्तफ बनाओत ने।
क्रो( सँ बजलाह-‘हँ, हँ कानि खोलि कऽ सुनि लिअ ई घर हमर अछिआ कानूनक नजरि मे बेटाक कस्टडी बापे के भेँटैत छैक तैँ सँजु हमरे लग रहत।’
- ‘नरेन्द्र ! अहाँ के की भऽ गेल अछि? की आलतु-पफालतु बात लऽ कऽ बैस गेलहुँ क्यो बाहर सॅ सुनत तऽ की कहत?’
- ‘जकरा जे बुझबाक होइ बुझए। हम अहाँक तलाक देबऽ चाहैत छी।’
‘राक्षस!’ एकाएक मुँह से उएह शब्द- बहराएल।
‘हँ, हम तऽ राक्षस छी आ अहाँ? अहाँ की देवी छी ! शैतान क जड़ि छी, ओहिना एतेक व्यापार पसरि गेल?’
आइ हेट यू ..... आइ रियली हेट यू।’
- ‘नरेन्द्र! व्यापार पसरल मेहनत आ ईमानदारी सँ ध्ूर्तै सॅ नहि! आ ने इ हमरा विरासत मे भेँटल अछि।’
- ‘ओह! तऽ विरासत कहि कऽ अहाँ हमरा पर व्यंग्य करैत छी। प्रिया ई जुनि बिसरू हम पुरूष छी-अई घरक मालिक!
- ‘अइ घर मे हमर मर्जी चलत सिपर्फ हमर।’
- ‘से तऽ हम देखिए रहल छी। अहिंक मर्जी चलै’ छ। आ हम अहाँक कोनो सुख मे बिघ्नो नहिदैत छी। चुपचाप अपन काज कऽ रहल छी।’
- इ काजतऽ बहाना अछि पाई कमएबाक भूत सवार भेल अछि। असल मे अहाँ आत्ममुग्ध् महिला छी। अपने रूप के सजबैत रहऽ चाहैत छी। अहाँक महत्वाकांक्षा दिन दुगुना राति चौगुना बढ़िते जा रहल अछि।’
- की महत्वाकांक्षी भेनाई अपराध् छैक? की अहाँ टकाक पाछु अपस्यॉत नहिरहैत छी? शेयर के भाव बुझऽ लेल दिन-राति पफोन कान सँ सटेनहि रहैत छी। एतऽ सॅ लेलहुँ ओतऽ बेचलहुँ। तऽ अहाँक हमर कमाइ सँ जलन कियेक होइछ? अहाँ तऽ साल मे करोड़ो कमाइत छी हमरा तऽ मुश्किल सँ पाँच सँ सात लाख होइछ! की अहाँ ‘पिफकड्ढी’ क प्रेसीडेंट होमऽ नहिचाहैत छी? सभा-सोसायटी मे मंच पर बैसकऽ मे हार पहिरनाई नीक नहिलगै’ छ?
- ‘ओह! तऽ अहाँके’ हमरा सँ जलन होइछ? तैँ सजि-ध्जि कऽ इंडिया टू डे मे पफोटो छपबेलहुँ? ए ग्रेट बिजनेस इंटरप्राइजर मिसेज प्रिया-अग्रवाल।’
‘नरेन्द्र! सत्ते एखन अहाँक मूड खराब अछि।’
- ‘मूड’ क बहाना छोडू़ । हम पफेर सिरियस भऽ कहैत छी, जँ आई अहाँ लंदन जायब तऽ अइ घर में घुरि कऽ नहिआबि सकैत छी।
- दुर इहो कोनो जिनगी भैले जखन देखू तखन बस बिजनेस। आइ कस्टमर आबि रहल अछि तऽ काल्हि सैम्पल बनबाबऽ मे पफैक्ट्री मे आध राति बीत जाइछ। राति मे मिनट-मिनट पर पफोनक घंटी बजैत रहै’ छ। घर ने भेल पागलखाना भऽ गेल।’
- ‘अहाँ केँ दिक्कत नहिहोमय तैँ तऽ हम अलग कमरा मे रहैत छी। पापा क देहांतक बाद तऽ .......।’
- ‘बाजू, बाजू ने चुप्प कियेक भऽ गेलहुँ? अहाँ इउह ने कहऽ चाहैत छी जे आबतऽ हम लड़की सभ केँ घरो लऽ अबैत छी?’
- ‘सब बुझिते छी। शान्त होउ। हम लंदन-अवश्य जायब।’
- ‘तऽ अहॉ जयबे करब ........ अहाँके एतेक हिम्मत?’
- हुनका ऑखिक लाली हिंसाक संकेत दऽ रहल छल करेज कॉपऽ लागल। पफेरू चिचिएलाह - ‘अंतिम बेर कहैत छी सुनि लिअ घुरि कऽ एत नहिआयब। गेटे पर से ध्क्का दऽ बाहर कऽ देब।’
बाहर हाल मे सोपफा पर माथ पकड़ने सासु बैसल छलीह- पाथरक मूरूत जकाँ। ऑखि से दहो-बहो नारे झहरैत छलैन्हि। घरक केवाड़ लग ठाढ़ भेल सँजू सभटा बात सुनैत छंल। पैर पटकैत नरेन्द्र घर सँ बहरेलाह। पलंग पर खुजल ब्रीपफकेश ओहिना ध्एल छल सभटा टका छिड़ियाल छलै। सँजु हमरा भरि पाँज पकड़ि कानऽ लागल।
- ‘मां।’
‘हँ, बौआ बाजू की ?’
- ‘मां की अहाँ केँ लंदन’ जाएब बहुत जरूरी अछि?’
- ‘हँ, बेटा काज समये पर करऽ पड़ैत छै।’
- ‘मुदा इ पापा के पसंद नहिछैन्हि। आ, मां..... अपना सभके पाइक अभाबो तऽ नहिअछि।’
- ‘बेटा हमरा तऽ टका क जरूरत अछि।’
मोने-मोन सोचलहुँ - एतेक समझौता कयलाक बाद ई हाल अछि पतिदेवक।
संजु हमरा गरदनि मे बॉहि ध्ऽ जोर सँ कानऽ लागल। हम अपना केँ कहुना जप्तकऽ कोमल स्वर मे कहलिऐ - ‘बौआ, चुप्प भऽ जाउ। जिनगरिक बाट आसान नहिछैक।’
हाथ मे ताजा ट्यूलिपक गुच्छा नेने पिफलिप के देखलिएन्हि। लग आबि-नहुँए सॅ माथ पर हाथ रखैत पूछलैन्हि -
- ‘आब केहन मोन अछि प्रिया?’
- ‘तरोताजा।’
- ‘की अई पफूल जकाँ?’
दूनू गोटे भभाक हँसलहुँ।
‘जूडी अहाँ के याद करैत छलीह । हम अहाँक रहबा लेल डूयब्रवनिक मे होटल बुक करा देलहुँ अछि। एखन कम से कम दस दिन आरामक जरूरत अछि। सेतीस्टेपफा मे पैघहस्ती छुटीð बिताबऽ अबै’ छ। देखऽ योग जगह छैक।’
‘महग हेतै?’
‘प्रिया! अहाँ एपफोर्ड कऽ सकैत छी।’
‘तथापि....?’
‘प्रिया नहिजानि कियेक भारतीय नारी अपना आप केँ प्यार कियेक नहिकऽ पबै’ छ? अहाँस्वयं एतेक कमाइत छी’ तखन एहन अवस्था मे अपना लेल सुख भोगब अन सोहाँत कियेक लगैत अतिछ?’
‘ओह! पिफलिप! हमरा शब्द नहिभॅटैत अछि की कहि ध्न्यवाद दी!’
- ‘अच्छा! पिछला पन्द्रह वर्षक दोस्ती मे एखनहुँ ध्न्यवादक औपचारिकताक लेल जगह खालि छैक । अरे, हम एक दोसराक नीक अध्लाह नंहिसोचब तऽ के सोचतै? असल मे जूडीक इच्छा छलनि जे हम अहाँ के अपने घर नेने आबि। मुदा हम जैनेत छी अहाँ एकान्त वेशी पसिन करैत छी। हँ जँ मन अबि जाए तऽ हालैंड ऊबि जायब। ऑखि नोरा गेल एतेक अपनत्व? मानल हुँ एतेक वर्ष सँ मित्राता अछि साल मे कतेक बेर भेंट होइछ? हँ एतबा अवश्य जे एको दिन लेल भेंट होइछ तऽ आध-आध राति ध्रि जूडी, पिफलिप आ हम गप्पे करैत रहि जाइत छी। कॉपफी पर कॉपफी पिबैत-अतीत सॅ लऽलऽ वर्तमान ध्रिक वृतान्त कहैत-सुनैत बीतै’ छ।
संजु पिताक वारिस बनल हुनके लग छल। हँ बीच-बीच मे हमरा सँ भेंट करऽ अबैत छल सहमल-सहमल बुझना जाइत छल। हम नहिचाहैत छलँहु जे हमरा दूनूक दोगला राजनीति मे इ लड़का पिसाइत रहए। ओना अपना भरि ओ हमरा खुश करऽ चाहैत छल। ध्ीरे-ध्ीरे संजु पूर्ण रूपेण नरेन्द्रक मुट्ठी मे बन्द होइत गेल। बापक डरेँ हमरा सँ दूर-दूर रहऽ लागल। नरेन्द्रक व्यवहार देखि हम शुरूहे सॅ क्षुब्ध् छलँहु। सच कहू तऽ हमरा नजरि मे ओ-हेल्दी एनिमल छलाइ। हम लंदन सँ घुरि कऽ कतऽ गेल छलहुँ।
आई अस्पताल मे हमर तेसर दिन छल। भोर मे बहुत देर घरि बगीचा मे टहलैत रहलहुँ। डाक्टर आइभरि एतहि रहऽ कहलक अछि। काल्हि प्रातःकाल डूयब्रवनिक चलि जायब। नीना सॅ गप्प भेल ओ बेर-बेर कहैत छलीह भाभी अहाँ चिन्ता नहिकरब, एतऽ हम सब सम्हारि लेब।
खिड़कीक उज्श्र पर्दा पर डूबैत सूर्यक-उदास छाया वातावरण के पफीका कऽ गेल। ध्ीरे-ध्ीरे उज्श्र आकाश मे रातुक स्याही पसरए लागल। हम करौट पफेरलहुँ अतीतक परछॉही आँखि मे हुलकी मारऽ लागल। सबसे पहिने देखलहुँ नेनपनक एकटा सांझि।
स्मृतिक बाट पर नहुँ-नहुँ डेग बढ़ेलहुँ। तइओ स्मृतिक जंगल झाड़ मे करवनहुँ आँचर ओझराइत छल तऽ करवनहुँ पैर मे ठेस लगैत छल पाथर सॅ, करवनहुँ कुहेस सॅ भरल आकाश ....... कतहु किछु ने सुझाए तऽ कौखन शीतल ओसक स्पर्श से पैर से देह ध्रि भुलुकि उठय। पफेरू मोन पड़ल ऑखि से झफहरैत नोर!
बहुत दूर से बीतलल अतीतक परछॉही के डोलैत देखलहुँ! मात्रा साढ़े नौ वर्षक नान्हिटा- बच््यी सांझि ए सॅ गुमसुम खिड़की पर बैसल- छैक! आई खेलऽ लेऽ नीचॉ नहिउतरल। संगी सहेली बजाबऽ एलै तऽ झनकि कऽ मना कऽ देलकै। शान्त गुम्म भऽ देवार पर अबैत-जाइत छॉही केँ देखैत रहल। सूर्य डूबि गेलै। अन्हार पसरि गेलै तइओ ओ ओतहि बैसल हल। ठंढ़ा बसात बहलै, दाई मां स्वेटर पहिरा देलथिन।
- खेनाई ले’ पूछलकै दाई मां तऽ मना कऽ देलकै। सामने मे रहै’ छै चित्रा ओकरा एतऽ खेलहु नहिगेल।
के छै इ लड़की?
के? ई तऽ हम छी हम!
अपने नेनपनक तऽ इ परछॉही देख रहल छी। नेनपनक ओ दुर्घटना कहियो बिसरा सकै’ छ। रतुका साढ़े नौ बाजक छलै-सुतबाक बेरा गुप्ता हाउस मे सब काज घड़ीक सूई संग होइत छै सभक समय निर्धरिक छैक। दाई मां हमर नाइटी पैंटी, देहपोछबा लेल तौलिया पावडर क्रीम सब चीज राखि रहल छलीह। एहनाबेर में हम वेशी काल चुप्पे बैसल रहैत छलहुु। कपड़ा राखि कऽ दाई मां दूध् उठा टोस्ट लऽ कऽ आबि गेलीह, चल बुच््यी, कनि दूध् पी’ ले सूतऽ क बेर भऽ गेलै’।
दूध् पीबि हम बाथरूम मे घुसलहुँ। ब्रश-कयलहुँ। नहिजानि कियेक मां क सोझा मे नाइटी पहिन कऽ जयबा मे लाज लगैत छल ाई मांक सोझा किध्ु पहिरक चलि जाइत छलहुँ कनिको धख नहिहोइत छल। पैंटी बदल लहुँ समीज लेल हाथ बढ़ाबिते छलहुँ की दाई मां क नजरि हमरा पैंटी पर पड़लै’। उज्श्र पैंटी मे खूनक ध्ब्बा!
‘बाप रे, ई की भेल? ई खून..... एखन तऽ दसमां बरस शुरूहे भैले ए.... हे भगवान! हमरा बच््यीकेँ इ की भऽ गेलै?’ दाई मां! अहाँ कियेक चिचिआइत छी मां के सब मास एना खून लगिते छै कपड़ा मे?
तऽ.... दाई मां एखनहुँ आतंकित छलीह।
- ‘लड़का भैया आई हमरा ..............’
‘अरे कसाई! अपन सहोदर बहिनो के नहिछोड़लें। ओना ओकर बानि तऽ बुझले अछि। बहुरानी केँ डरेँ किछु नहिबजैत छै।
‘दाई मां! भैया एना कियेक कएलन्हि? हम रोकने छलिएन्हि चिचिआय लगलहुँ तऽ जारे से थापड़ मारलैटि आ हमर मुँख बान्हि देलनि! हम मां के सबबात कहि देबई।’
‘नहिबौआ नहि। आब अहॉ केँ शीलभंग तऽ भइए गेल। बुच््यी ई बात कहियो ककरो लग नहिबाजब।’
बजैत-बजैस दाई मां कानऽ लगलीहा हमरा अपना करेज मे सटने कतेककाल ध्रि हुचुक हुचुक के कनैत रहलीह। दाई मां क ममता हमरो मोून सिहरि उठल मन मे भेल जे हमरा सँ कोनो भयंकर गलती भऽ गेल अछि। अपराध् बोध् भेल, पहिल बेर जिनगी मे बुझायल जे एकरे पाप कहल जाइछ।
‘दाई मां! ....... मां हमरा कियेक भारतीह? भैय तऽ हमरा जबरदस्ती बाथरूम मे लऽ गेल छलाह आ हमर पैंटी खोलि कऽ.......।’
‘हम कतबो कभैत रहलहुँ तइओ हमरा नहिछोड़लनि। हमर गलती तऽ नहिअछि तऽ मां हुनके बजथिन, बाबूजी क गेलाक बाद तऽ घर मे पैघ पुरूष भैये छथिन। मां कहैत छथिन भैया बड्ड बुझनुक छथि हरदम भैयाक बड़ाई करैत रहैत छथिन। मां कहैत छथि भैया नहिरहितथि तऽ हम साभ भूखे मरि जैयतहुँ। हमहुँ कभैत छलहुँ आ दाई मां तऽ कनिते छलीह। हम बरे बरे बजैत छलहु दाई मां हमर कोन दोष मां हमरा कियेक भारतीइ कहबैनिध्त? दाई मां भाभी नैहर।
- गेल छलथिन तकर प्रात हम एसगर अइ रूम मे छलहुॅ तऽ भैया पैंटक बटन खोलैत छलाए तखने चमेलिया आंबि गेलै तऽ भैया बाहरन चलि गेलाह।’ दाई मां हमराकरेज सटनहि छल। पफेरन बाजल-बुच््यी! हमर बात मानू एखने नहिजिनगी मे कहियो ककरो लगई बात नति×ा बाजब। ब्याह हेत तऽ पति परमेश्वरी से नहिबाजबा आ आई सँ हरदम हम अपना नजरि से ओझल नहिहोम देब। बुच््यी! हम अहाँ केँ छोड़ि कऽ कतहु न×ि जाएब।
सत्ते दाई मां! अहाँ अपना गाँव नहिजायब। दाई मां! अहाँ हरदम हमरा लग रहब? दाई मां घर मे अहीं तऽ हमरा दुलार करैत छी आर क्यो हमरा खूब मानैत छलाह, बाबूजी कियेक चलि गेलाह?’
‘की कहू बुच््यी भगवानक मर्जी।’
हमर छोट छीन दिमाग सोचऽ मे व्यस्त भऽ गेल। पलंग पर पड़ल-पड़ल सोचैत छलहुँ बाबूजी कोना चलि गेलाह? हमरा त कखनौ काल लगै’ छ जे खड़ाम पहिरने बाबूजी हॉल मे चलि रहल छथि। ओई दिन बाबूजी ऑपिफस गेलाह से घुरि कऽ नहिअयलाहा राति मे बारह बजे खाली गाड़ी लऽ ड्राइवर घुरल छल दरबजे पर चिचिआइत ध्ड़ाम सॅ खसल -बड़का बाबूजी नहिरहलाह। हुनका हार्ट पफेल भऽ गेलैन्हि।’ दाई मां हमरा जगाकऽ कहने छलीह-बुच््यी!
-अनर्थ भऽ गेलै, बड़का बाबूजी केँ आपिफसे मे हार्ट पफेल भऽ गेलैन्हि। देवता सन मालिक आब नहिरहलाह जुलुम भऽ गेलै। दाई मां ूदनू हाथ माथ पीटैत छल। मांक रूम सॅ कननइक स्वर आबि रहल छल हम दौड़ैत हुनका लग गेलहुँ। मां देवार सॅ कपाड़ पफोड़ि रहल छलीह सरला दीदी कनैत-कनैत बजलीह-मां, एना करबै तऽ हमरा सभके के देखत, आब अहींक सब सम्हारऽ पड़त।
बड़का भैया काज सँ रंगून गेल छलाह। काल्हि भोर मे आबऽ बला छलाह। भैयाक कईसी बाबूजी के नहिसोहाइत छलैन्हि। हुनकर पिफजुलखर्ची देखि बहुत दुखी रहैत छलाह। रोज नव-नव सूट, इत्रा सॅ गमकैत रूमाल, केश मे तेल नहिबिल क्रीम लगबैत छथि। जहिया बाहर जाइत छलाह ओहू- दिन बाबूजी कहने छलथिन - विजयक मां, अहॉके बेटाक रईसीक अन्त नहि। कतबो कमाएत बचतै नहि।’ मां के नहिनीक लगलैन्हि लोहदि कऽ बजलथिन-
‘यौ, अहाँ तऽ हरदम ओकरे पाछु पड़ल रहैत छी कम से कम यात्राकाल तऽ शुभ-शुभ बाजू।’
बाबूजी ओहुना बड्ड कम बजैत छलाह। आ जखन मां क प्रलाप प्रारम्भ होइत छलै तखन तऽ सोझे उठि कऽ अपना रूम मे चलि जाइत छलाह। हँ घर बच््या सभ लेल हुनकर रूम हरिदम खुजले रहैत छल। बाबूजीक घर मे नेवारवाला पलंग छैलैन्हि ताहि खूब मोट गद्दा आ मसनद छलै। बाबूजीक पाछाँ-पाछाँ हरदम छोटका भैया चलैत छलाह। तकरा पाँछा।
-सरोज आ हम बड़की दीदीक दूनू नेना रवि जकरा हम सभ बुल्ली कहैत छलिऐ से आ नीलू बुल्ली आ नीलू प्रायः एतहि रहैत छल। हम चारू सरोज, बुल्ली, नीलू। आ हमरा सभ मे मात्रा एक-एक साल क अन्तर। मां क दहिन हाथ छलथिन बड़का भैया आ बाम हाथ सरला दीदी। सरला दीदी के घर मे सब सल्लो कहि कऽ शारे पाड़ैत छलनि।
सल्लो दीदी कें बड्ड पैछ घर मे विवाह भेल छलनि। जीजा जी देखबा मे कुरूप कारी छलाह बाबूजी हुनका देखि कऽ विवाह लेल मना कयने छलथिन। मुदा अइ विवाहक प्रस्ताव अनने छलाह मामा। ओ मां के बुझा सुझा कऽ मना लेलथिन। खानदानी घर छै, अपन जुटमिल, कॉटन मिल, बैरकपुर मे लोहाक कारखाना, चाय बगान छै। ई तऽ बेटीक भाग्य अन्यथा कहाँ हमरा लोकनि कहॉ हुनकर परिवार। मां मानि गेलथिन! बाबूजी केँ पसंद नहिनहिछलैन्हि। मामा केँ कहने छलथिन- ‘जय कुमार जी, सटोरिया परिवारक कतेक गुणगान करब? भऽ सकैंद काल्हि सटाð मे ओकर जुटमिल आ कॉटन मिलबिका जाइ? आ ओ लोकनि कोना पाइ बटोरलनि से हम नहिजनैत छिए? अहाँ कनिको अघलाह नहिलगैं’छ एहन सोनपरी सन भगिनी कें कारी कौआ सॅ ब्याह तय करब? हमरा कहीक कभी अछि? हँ, भौतिकता मे हुनका सॅ उन्नीस छी सेह ने! मुदा हमर खानदान? खनदानक बात सुनिते मां भड़कि गेलीह। हँ, हँ बड्ड नीक खानदान अछि अहाँक?
- ने ककरो डेªस सेंस अछि ने बातचित करबाक शऊर। अहॉक मां के कहिकऽ थाकि गेलहुँ मुदा ओ सारी बिनु पेटीकोटे के पहिरतीह। कतेक खराब लगैत छॅ। ओई दिन भगवानक कथा सुनबा लेल रूँगटा हाउस गेल छलहुँ जमुना मौसी टोकिए देलनि - ए कस्तुरी ! अहाँक सासु-केहन पफुहड़ छथि एक छिन्ना सारी पहिरैत छथि आ ऊपर उघाड़ ब्लाउज नहि। आ तेहन गंवार भाई सभ अछि। बहिनक कोन गप्प ने कथुक लुरि व्यवहार ने पढ़ल लिखल।
मामा जी इस भटाा वृतांत सुनिते कुटिल मुसकि छोड़लनि। बाबूजी हारि मानि बजलाह।
- ‘ठीक दै अहाँ बेटीक मां छी आ इ अहाँक भाई छथि तऽ अहाँ दूनू गोटे के इ ‘कथा’ पसिन्न अदि तऽ त करू। मुद्र एकटा बात हम पहिने कहि दैत छी हम एक लाख टका पहिनहिंु दऽ देबैन्हि ओ जेना जे खर्च करथि बाद मे हमरा सॅ उम्मीद नहिराखथि।
-जीजा जी, अहॉ कोन चर्चा लऽ कऽ बैसि गेलहुँ। अरे हुनका कथीक कमी छैन्हि? सेठानी चौअन्नीक आकारक पाँच-पाँच ट हीरा पहिरने रहैत छथि।
पाँच-पाँच टा हीरावाला करोड़पतिक गुणगान मांक सॅ सदतिकाल सुनैत छलहुॅ। दूनू काने मे चौअन्नीक बराबर हीरा नाकक छक हीराक आ दूनू आंगुर मे हीराक अंगुठी। हॅ मायिओ के हीरा क अंगुठी छलैन्हि आ जमुना मौसीके हीरा क अंगुठी छैन्हि। पाँच टा हीरा तऽ मां के देहो पर झलकैत छैन्दि मनहिं छोट-छोट छैन्हि। अच्छा।
-ओइ समय जे बाबूजी एक लाख टका देने छलथिन आइ चालीस साल बाद ओकर कतेक कीमत हेतै? करीब-करीब करोड़ टका सॅ ऊपर दहेज मे ढ़ेल गेल छलै।
सोचबाक क्रम जारी छला एतेक दिनक बादो बाबूजीक स्मरण होइते ऑखि डबडबा जाइत अछि। ‘हँ, जहिया हमरा बरबाद कयने छलाह बड़का भैया तहिया कतेक हब्बी ढ़कार कनैत सोचैत छलहुँ जॅ बाबूजी एखन आबि जाएताह ...... मुदा मुइल लोक कतहु घुरि कऽ आबय।’
....... ‘सूति रहू बुच््यी, उऽाक कनने की ..........’
दाई मांक ममत्व हुनकर हॅसोथैत हाथ देह मन कें शक्ति देने छल ऑखि कखन मुना गेल नहिबुझलिऐ ।
हम सब छह भाई-बहिन छलहुँ । बड़की दीदीक नाम छलैन्हि सुमित्रा। हुनक चौदहे वर्ष मे विवाह भेल छलैन्हि आ तइसम वर्ष होइत-होइत चारि बच््याक मां भऽ गेलीह। बड़की दीदीक विवाह समय मां मात्रा अटाòइस वर्षक छलीह। हुनका बाद छलीह मंझली दीदी सरला हुनका बाद बड़का भैया विजय पफेरू छोटका भैया अजय आ सरोज हमरा से एक साल मैघ। दाई मां कहने छलीह हमर नाम प्रिया डाक्टर अमृता कौर रखने छलीह। सब भाई-बहिनक रंग गोर छलै हमरे टा गेहुआँ रंग छल। कॉलेज मे संगी गेहुआँ गोर आ कटबार ऑखि नाक वाली कहैत छलीह। अपन रंग-रूपक नीक कॉम्पिलमेंट कॉलेजे में सुनलहुँ! बड़की दीदी सरोज बड्ड चंचल छलीह जखन तखन भैया आ दीदी कामक चुगली बाबूजी लग करैत छलीह।
- हुनका सँ सब डरल-सहमल रहैत छल कखन ककरा बात पर हंगामा कऽ देतीह जोर-जोर कानऽ लगतीह तकर कोनो ठेकान नहि। ‘देखऽ मे बड्ड सुध्ंग मुदा एक नमरकेँ चुगलख्.ाोर जहरक पुड़िया।’ भैया आ सरला दीदी इएह कहि हुनका खौंपफ बैत छलथिन। आ सब सँ छोट रहितहुँ हम ने दुलारे छिड़िआइत छलहुँ ने करो चुगलीए करैत छलहुँ। तैं हम बड्ड नीक जकरा जे मोन होई हमरा कहैत छले ।
डूयब्रवनिक मे होटलक नाम छै ‘सेतीस्टेपफा’। कमरा नम्बर 211 केवार पफोलि भीतर गेलहुँ। खूब पैध् सापफ सुथरा बाथरूम। खिड़की सँ सटल बालकनी। कमरा मे आराम दायक दू टा पलंग। ईस्टर के छुटीð मे इ होटल टूरिस्ट सॅ भरल रहैत छैक तखन इएह रूमके डबल रूमक चार्ज लगैत छै। प्रत्येक दिनक कतेक डालर लगैतै ? अपन आइ सोच पर हँसी लागल। पिफलिप ठीके कहने छलाह ‘अहाँ केँ अपना आप सॅ प्रेम नहिअछि? भूख लागल अछि। आब की करू? ........ ककर दोष हमहीं चाहैत छलहुँ - ठीक छै आब रूम सर्विस केँ पफोन कऽ चाह आ टोस्ट के आर्डर दऽ दैत छिएक।
- ‘मैडम अहाँ लेल क्ररेार अरलजहुँ अछि एखन तुरत बेकरी सॅ एलैए।’
मने मन हँसी लागल इ होटल वला सथ अपन गेस्टक कतेक ध्यान रखैत अछि आ समयानुकूल सुझाव दऽ देत। रूम सर्वेट केँ जाइते हम पफेरू पलंग पर आंघरा गेलहुँ पंख से भरल मुलायम तकिया नीक लगै’ छ पफेय मोन पड़क कोसा तऽ दऽ गेल चाह नहिढेलक। पफेरू पफोन कयलहुँ-चाह आबि गेल। एक घुंट पीलहुँ एकदम बेस्वाद।
- लागत, क्रोसा कहुना आध खेलहुँ जी हौरंऽ लागल। अचानक नहिकी भऽ गेल?
एखन हम सड़क पर छी मोन एखनहुँ नीक नहिलगै’छ घुरि कऽ होटल आबि गेलहुँ सम्पूर्ण शरीर मे थकनि दर्द क अनुभव होइछ ऑखि मुनि पलंग पर सुति रहलहुँ नहिजानि करवन ऑखि मुना गेल।
भोर मे उठलहुॅ तऽ मन हल्लुक लागल। सोचलहुँ आब ऑर्गनाइज कऽ ली समय। सांझि भोर ऐहि होटल मे खायब, ओना हमरा लेल भोजन आतेक महत्व नहिरखैं’छ। घूमब प्रत्येेक दिन घंटाा दू घंटा चारि घंटा। से हो केहन घुमनाई? लक्ष्यहीन । वर्तमानक झरोखा सॅ अतीत बेर बेर हुलकी भारैत अछि। से हो क्रमब( नहि आगा पॉछा बेढंगा। लिखऽ चाहैत छी मुदा कोना लिखू? हँ एकटा अनुभूति भऽ रहल अछि जे एसगर रहने एकटा लाम-भेल अछि जे भीतर मे जमल बपर्फ पिघलऽ लागल अछि तरल पारदर्शी चेतना, अतीत मे बीतल घटना केँ हूबहू देख रहल छी आ बहुतो बात एहन छै जकर आब अपेक्षा नहिकयल जा सकै’ छ। हमर इ नितान्त अपन एकान्त कोना काजक व्यवस्तता मे ओझल रहैत हल। मुदा आब अपना के ठगब होएत एकरा अन्ठाएब। अपना के एसगर रहबाक त्रासदी केँ की कहिऐ आतंक की कर्मक पफल? ऑखिक नीर के तीव्र गति सॅ जीवनक दौड़ मे सुखबैत रहलहुँ अछि। पछिला दस वर्ष सॅ काजक पॉछा तेहन व्यस्त रहलहुँ जे कहियो अतीतक विषय मे सोचबाक लेल पलखति नहिभेँटल।
- आ जँ काजक व्यस्तता नहिरहैत तऽ की हम जी सकितहुँ? हम्हर दस दिन सँ ई प्रश्न पूर्ण अस्मिताक संग हमरा आगाँ ठाढ़ रहै’ छ- उतारा मंगै’छ हम की उत्तर दिऐ? जिनगी व्यतीत करबाक आर बहुत तरीका छैक-मुदा कोन तरीका? जूडी हरदम कहै’ छ ‘प्रिया! अहाँ अपन मनक बात डायरी मे लिखल अरू मन क मार हल्लुक हेतऽ । महिला एखनहुँ मौन रहैत दथि मुदा हुनकर नीर दुनियॉ हॅसैत छैन्हि। हिस्टिरियाक दौड़ा पड़लापर कानब, चिकड़ब सुनि पुरूष कान मुनि लै’ छ। मुदा शब्दक महत्व छैक शब्तक अपन इतिहास छैक..... आ जॅ प्रकाशित भऽ जाय तऽ ओकर अपेक्षा नहिकएल जा सकै’ छ।
- ‘मुदा जुडी एहन किछु हम नहिलिख सकैत छी।’
लिखाई शुरू करब तऽ अपना सन हजारो-लाखो महिलाक मन सँ संवाद स्थापित कऽ सकब। नहिजानि कतेक के अहाँक शब्द मरहम जकाँ घाव केँ शीतलता देतै! अनगिनत मौन महिला केँ मुखर बनाओत। गोंगा बनलि छथि से बजतीह हँ, हँ इ कथा सत्य छै एहन हमरो संग भेल अछि।’
आइ एतऽ अपन परिचित लोकवेद सॅ दूर भौगोलिक परिवेश सॅ सुन्दर छी तऽ लगै’छ जेना पियाजक छिलका जकॉ परत दर परत उघड़ि रहल अछि जे किछु हमर अपन वास्तविकता अछि जतबा बाहरी दुनियाँ के संघातक दौरन हम आत्मसात कयने छलहुँ से सभटा ऑखिक आगू नाचि रहल अछि।
- आब जरूरी छै एकटा सभकेँ नीक जाकाँ चिन्हब। भनहिं हमरा पर परिस्थितिक प्रभाब परल आ हम जीनगीक जरूरतक अनुसार नव बाट पकड़लहुँ नव परिस्थिति गढ़लहु। मुदा आब कतेक चमत्कृत करै’छ जे आब हम परिस्थितिक हाथक कठपुतरी नीन्नो जेना पहिने परिस्थितिकेँ अपन नियति बुझि लेने छलहुँ से बात आब नहिरहल।
एहि विराटक प्रक्रिया मे कोना छोट छीन प्रयास सम्मिलित होइत रहलै से भाव उभड़ै’छ तऽ आत्मविश्वास और बढ़ै’छ। की कहू, जिनगीक मादेँ खासकऽ हमर जिनगी तऽ विरोधभासक बंडल आछि। ओझराएल ताग, बीच बीच मे गीरह पड़ल लगै’छ नहि जे सोझरा सकबा मुदा आब उलझन संग जीयब सीख लेलहुँ अछि। आ इएह समझदारी जिनगीक प्रति लगाव केँ जीवित रखने अछि। एहि सँ आन्तरिक एहन अहोभावक अनुभूति होइछ जकर वर्णन करबा लेल शब्द नहिभेँटै’छ ने एहि आनन्दक बखान कऽ सकैत छी। आश्चर्यक गप्प त ई जे आइध्रि अपना विषय मे सोचैत ने अपना सॅ अतेक लग हलहुँ ने कहियो अपना सॅ एतेक दूरे। एक ही पल मे दूनू तरहक घटना घटित होएब केइन अजगुत लगै’छ जिनगीक।
माथक ऊपर सॅ दू टा कारी कौआ पफड़पफड़ाइत उड़ि गेल। ऊपर नजरि गेल देखलिए होटल तग जे गेट सॅ सटले गुपटी छै ताहि पर बैसल छै कौआ। भोर का सुनहरा सूर्यक किरण पफूल पात पर पड़ल ओसक बुन्नकेँ सोखि रहल छल। लग सॅृ।
- वृ( जर्मन पति-पत्नी हँसैत बढ़लीह। जहिया सॅ अयलहुँ अदि वृ( दम्पतिक हँसमुख चेहरा देखि मन-प्रसन्न भऽ जाइछ। ‘प्रेम’ ई उढ़ाई आखर मनुष्यताक सम्पूर्ण पुरम्परा केऽ उद्धेय करैं’छ।
................की प्रेम एखनहुँ बॉचल छैक? ऐहि जर्मन दम्पतिकेँ देखि भरोस होइछ हॅ एखनहुँ एहन भाग्यशाली लोक अछि एहि संसार मे जे अढ़ाई उठाखरक अर्थ बूझै’छ कतेक स्नेह सॅ बूद जर्मन पत्नी केँ कॉपफीक प्याली पकड़बैत छैक। बेर-बेर ससरैत शॉल के ठीक करैत रहैत छै। दूनू बेकती पूर्वी जर्मनी सॅ आयल छथि। इ लोकनि अंग्रेजी नहिजनैत छथि आ जर्मन भाषा नहिजनैत छी ब्रेक पफास्ट टेबुल पर स्टिवार्ड जोसेपफ दुभाषियाक काज कयलनि।नहिजानि कियेक जोसेपफ हमर परिचय लेखिकाक रूप मे कयलनि हम तऽ लेखिका छी नहि। ओह! अब बुझलिए ई प्रपंच पिफलिपक छैन्हि ............हमरा एकान्त चाही तैँ ओ हमरा लेखिका कहि रूम रिर्जव रौने हेता आ अई देश मे लेखक केँ विशेष आदर-सम्मान छैक। एहि वृ( दम्पति केँ देखिकऽ बुझाइछ प्रेमक कोनो सीमा नहि! एहि संसार मे सुखी वैवाहिक जीवन सॅ बढ़िकऽ किछु आर नहिभऽ सकै’छ मुदा एहन सुख कतेक लोक केँ नसीब मे होइत छैक? मुइल सम्बन्ध् केँ उद्यैत रहब बड्ड कस्टकर होइत छैक। एहन सड़ल-गलल सम्बंध् के पफेंकनहि कुशल-जिनगी बड्ड हल्लुक गमगम सुमन सौरभ सन लगैत छैक जॅ स्नेह रस सॅ सराबोर रहए।
- रूमक खिड़की सँ सटल अंजीरक गाछ छै आ ओकेरे दोग सॅ झलकै’छ नीला आकाश। आ रूम सॅ सअले अछि सन बालकनी जतऽ बैसिकऽ समुद्र के दूर-दूर ध्रि देखल जा सकै’छ अनन्तक एहि विस्तार मे क्षितिजक महज कल्पना कयल जा सकै’छ। लहरक एहि संसारक ने दै ने अन्त! हमरा संग अछि हमर अकेलापन जे जीवनक सही अर्थ समझा रहल अछि। हम कोना-कोना अपनाके बचेलहुँ अछि, अपना जीवन मूल्य के संयोगि के रखलहुँ अछि। हां, टूटलहुँ अछि कतेक बेर मुदा हिम्मत नहिहारलहुँ तय चोटक निशान नहिरहल........दुनियाँ क पैर तर थकुचाइओ केँ माटिक मुरूत नहिबनलहुँ! अड़तालिसम वर्षक अवस्था मे अदद औरत छी जे जिनगी के आब पफैले’छ नहिहँसैत समय बीता रहल अछि। अपना उपलब्ध् िपर गौरव होइछ। मित्राता लेल हाथ बढ़ा गर्मजोशी सॅ लोक केँ लग कऽ लैत छी।
आब हम एसगर नहिछी पहिने कहियो छलहुँ। आह तऽ नील आकाशक एक नव अर्थ लागल अछि-पहिने कहियो आकाशक विस्तार के अपना ऑखि सॅ नपबाक कोशिशो नहिकयने छलहुँ। एखनहुँ की दूनू ऑखि सॅ आकाशक विस्तार केँ नापि सकब? मुदा कहन अद्भूत आनन्दक अनुभूति मऽरहल अछि।
नेनपन मे एसगर बरामदा मे बैसि चिड़ै-चुनमुनी संग एकालाप बड्ड नीक लगैत छल।
- स्वयं प्रश्न करैत छलहुँ आ स्वयं उत्तर दैत छलहुँ। एक दिन की भेलै कि हम चुनमुनी संग नहिजानि की सभ गप्प करैत छलहुँ-
रेलिंग पर बैसल। हमर उमर इएह पाँच छह वर्षक रहल दोएत। खूब मगन भऽ ओकरा सॅ पूछैत छलि अले, चनमुनि चिलियॉ आइ तू कतऽ कतऽ गेले कहने। चिलियाँ काली कौआ देखकऽ तोलो उल लगैछौ? बाज ने - तू हूॅ हमला से नहिबात कलबे?........ उतबा मे खूब जोर सॅ टहाका पाड़ि हँसब सुनलहुँ पाछाँ घुरिकऽ तकलहुँतऽ छोटका भैया, सरोज, नीलू आ बुल्ली छल।
देखू, देख एहि पागल के चिड़ैँ सॅ बतिआइत छल ‘....... तू हू हमला से नहिबात कलबे ......? बड्ड बदमाश छयि छोटका भैया एक नम्बर केँ नकलची। हमरा चिढ़ाबलेल बेर-बेर सभकेँ कहैत छलथिन - अले, अले बाज ने चिड़ियाँ ........... तोतराही के दॉत चिड़ैए के चोंच जकां बहराएल छै। हम चिकड़ी-चिकड़ी कनैत छलहुँ आ हमर भाई-बहिन पेट पकड़ि हँसैत छल। कम्हरो सॅ सल्लो दीदी आबि गेलीह हरा कनैत देखि दया भेलौन्हि। लग आबि दुलार कयलनि कोरा मे उठा ले लैन्हि दुलार मलार पबिते हम तुरते चुप्प भऽ गेलहुँ। दीदी बड्ड नीक छघि। मोन पड़ल एक मासक बादे दीदीक ब्याह भऽ जेतैन्हि। हमर सबसँ नीक बहिन सल्लो दीदी सासुर चलि जयतीह। ई बात मोन पड़िते आँखि पफेर नोरा गेल। खूब ध्ुमधम सॅ विवाहक तैयारी भऽ रहल छै। ओ र्ध्मशाला हमरा एखनो याद अछि। ताहि दिन बाबूजीक पाँचो भाई।
- दादी जीवित हलथिन।
चौक आ सीढ़ि पर कोन मे ठंढ़ई लेल राखल रंगीन बपर्फक सिल्ली एखनो याद अछि। पर्फक सिल्लीक तर मे तरह-तरह के पफल जमाओल गेल छलै। कोनो सिल्लीक तर मे आम झलकैत छलैतऽ कोनो सिल्लीक तर मे पफालसा। अ तऽ बुल्ली हमरा बतौलक जे इ सभ नकली पफल छैक सजावट लेल राखल छै।
दीदीक ब्याह भेलैन्हि 1949 क गर्मीक मौसम मे। बाबूजी केँ तहिया खूब आमदनी हलैन्हि तैँ दिल खोलि खूब खरच कयलैन्हि। सासुर सँ दीदीक जेवर अयलैन्हि से देखि सभक ऑखि पफाटि गेलै’ नाक, कान, गर सभमें हीरे हीरा झलकैत छलै ं पहिल बेर गुप्ता खानदान मे सासुर सॅ हीरा आयल हलै। नानी बड्ड प्रसन्न छलीह बाबूजी अपना भाई सभ मे अलगे सँ चमकैत छलाह। हुनकर रूआब क दब दबा छलै। बालीगंजक पॉश मकान मे हम सभ रहैत छलहुँ। हमर जन्मो एहि मकान मे भेल छल। दाई मां कहैत छलीह डा. अमृता कौर हमर जन्मकाल हलीह। हमर जन्म होइते डाक्टर अमृता दाई मां के कहने छलैन्हि - तुम्हीं जाकर सेठ जी से कहो लड़की हुआ है। हम बोलेगा तो हमारा प्रेक्टिस खराब हो जायेगा। सब कहेंगें डाक्टर अमृता से जापा करबाने से लड़की ही होती है।
दाई मां केँ बाहर अबिते दादी पूछलथिन की भेलैन्हि?
‘बेटी भेलैन्हि मां जी। कार्तिक नवमी मे घर मे लक्ष्मी एलैन्हि लक्ष्मी।’
‘हे भगवान एखन तऽ दू टा कुमारिए तेसर जुमि गेलै। खरचेक घर।’
बाबूजी बजलाह ‘माँ, सब अपन-अपन भाग्य लऽ कऽ अबैत छै। भगवतीक जे इच्छा।’
हे भगवान! चारि-चारि टा बेटी आबि गेलै बेटा ले ऑखिमुनने छथिन देव-पितर!
- ‘अच्छा जे भेलै से नीके रहए-मां अहाँ आराम करू जा कऽ।’
‘हँ, बाबू! आध राति सॅ वेशी बीत गेलै हम सूतऽ जाइत छी।’
दादी मां, मांक रूम मे झॉकबो नहिकेलथिन्हा डा. अमृता कौर दाई मांक कोरा मे हमरा ध्ऽ कऽ चलि गेलीह। बड़की दीदी मां क सिरमा मे बैसल छलीह।
- ‘सुमित्रा, बाबूजी भोजन परसि दहुन भोर सॅ भूखले हथिन।’
मांक निराशा रोआँ-रोआँ मे परसल छलैन्हि। पलंग सँ नीचा पैर रोपबा मे तीन मास लागि पलंग सँ नीचा पैर रोपबा मे तीन मास लागि गेलैन्हि। हम्हर सल्लो दीदीक ब्याहक तैयारी करबाक छलै। मां पलंग पर पड़ले पड़ल आर्डर दैत हलथिन। सभ वस्तुक देख-रेख सुमित्रा दीदी करैत हलथिन। बच््ये सॅ देखैत हलिएन्हि मां, कहियो स्वस्थ नहिछलीह।
हमरा मां कहियो कोर मे लऽ दुलार कयने होयतीह से मोन नहिपड़ै’छ। नहिजानि किएक शुरूहे से मां केँ हमरा सॅ कोन चीढ़ छलैन्हि। वा हुनक घार निराशाक।
प्रतिक्रिया स्वरूप हमरा देख नहिचाहैत छलीह। हमरा पाललनि-पोषलनि दाई मां। अपन तीन सालक बेटा भोलाकेँ छोड़ि कऽ ओ विध्वा और भूख आ गरीबी सँ तंग आबि कऽ एत आयल हल। नानी जीक ओतऽ जे दाई काज करैत हलै से दाई मांक पिसिऔत सासुु हलै सम्बंध् सँ। दाई मां के एतऽ पिसिऔत सासुए रखबौने छलै। हमरा कोर मे लैते’ दाई मांक स्तन में दूध् होमऽ लगलैन्हि। हमर रंग गेंहुआ गोर अछि आ स्वास्थ नीक ताहि पर सॅ दाई मांक पालन-पोषण। हमर सर्वस्व छलीह दाई मांक। हम हुनकर आँचरक खूंद चौबिसो घड़ी छयने रहैत छलहुँ। ओ बेचारी बाथरूमो मे जाइत छलीह तऽ हम कानऽ लगैत छलिए। हमरा लेल मां माने दाई मां। ने अपना मां क कोरा मे रहबाक स्मरण अछि ने ओकर स्पर्श वा दुलार भलार। हमर नामे पड़िगेल छल दाई मांक बेटी। सुमित्रा दीदी हमरा बाछी कहैत छलीह हम चारि छाप मे हाल मे अइकात सँ ओइ कात पार भऽ जाइत छलहुँ। हँ नेना ये हमरा एकटा आर नाम भेटँल छल मिलिट्री घोड़ी। हमर शरीर स्वस्थ छल आ मांक प्रिय बेटी सरोज रोगियाहि छलै।
हँ एकटा आर घटना स्पष्ट याद अछि। एतेक वर्षक बादो माथक घोघरि मे आहिना घतेक वर्षक बादो माथक घोघरि मे आहिना घएल अछि। किछु तेहन स्मृति रहैत छै जाहि पर कालक कनिको प्रभाव नहिपड़ैत छै। नहिजानि कोनो-कोनी स्मृतिक क्षय कहियो कोना नहिहोइत छैक। हम बरंडा पर बैसल खेलाइत छलहुँ। बाबूजी हमरा कोरा मे लऽ मांक बगल मे सुता देलनि। एखनहुॅ ओहिना याद अछि।
मां क चिकड़ब। .... ‘ओह ई की हम ओहिना मरल जाइत छी-एको क्षण चैन नहिसेँटै’छ ताहि पर अहॉ एकरा आनिकऽ हमरा करेज पर लादि देलहुँ।’ मांक क्रिश्चियन नर्स बगले मे ढाढ़ि छलीह राध।
ओकरा डपटैत कहलथिन ‘राध की देख रहल छेँ उठा एकरा आ जो चमेलियाक मां’ लग घऽ
बाबूजी आहत भऽ बजलाह - ‘ए विजयमां अहॉ केँ एकरा सॅ एतेह यदि कियेक अछि? ई हो अहींक बेटी अछि।’
‘की कहू! सत्ते हमरा ई नहिसोहाइत अछि। जहिया सॅ जनमल अछि हम खाट घऽलेलहुँ।’
बाबूजी हमरा कारे मे उठबैत बजलाह ‘हमर ई लक्ष्मी बेटी अछि। जहिया सँ जनमल अछि टका बरसि रहल अछि। संयोग एहन जे अपना मकान सबसँ पहिने एकरे जन्म भेलै।’
‘तऽ हम की करू? खेलाउ लक्ष्मी बेटीकेँ। हमरा सँ नहिसम्हरत।’
मांक ओ कर्कश स्वर आइओ कान मे बजैत रहै’छ ‘लऽ जाउ एकरा, हटाउ!
पटकि दिऔ एकरा दाई मांक कोरा में .....।’ बाबूजी सॅ भेटँ करऽ एकटा कनकटा ज्योतिषी अबैत छलैन्हि। बाबूजी हुलसी हमरा लऽ गेलाह ज्योतिषी लग। ओ हमरा देखिते बाजल छलाहु - ‘सेठ जी, ई लड़की बउऽ् यशस्वी होएत, अहाँक खानदानक नाम रौशन करत ...।’ मां सुनलनि तऽ लोहछि कऽ बजलीह - खूब नाम हेतैं’। मूँह मे बकार तऽ छैहे नहि। जे पबै छै से चोटि घीचलै’ छै जकरा मोन होइ छै से थापड़-मुक्का सॅ थोपिया दैत छै।
बात सही छै। सरोज के क्यों कनि देह छुबिकऽ देखौ। कोनो भाई-बहिन कनि डॉटि-ऽपटी दौ सौंसे घर ओकरा चिचीएनाइ सॅ सहमि जाइ छै। ककर मजाल छै क्यो किछु कहि देतैं। कनैत-कनैत सबके पेरशान कऽ दैत छै आ सांझि जखन बाबूजी एथिन तखन अपराध्ी केँ जाबत सजा नहिभेँटतै ओ ककरो चैन सॅ सांस नहिलेबऽ देतै।
बुल्ली तऽ हमरे बतारी छल तैँ हमरा वेशी तंग नहिकरैत छल ओना छीआ-पूताक खेल मे मारि-पीट होइते छै। मगर हमर छोटा भैया बड्ड उत्पाती छलाह। हमरा चारू बच््या केँ कनयाब छोड़ि हुनका आर कोनो काजे नहिछलैन्हि। बाबूजीक दुलरूआ छलाह हुनका के किछु कहैतन्हि। मुदा ऊहो सरोज दीदी सँ डेराइत छलाह हल्लाकऽ सौंसे घर माथ पर उठा लेतै कनिको छू ढेला पर। नीलू बड्ड सुकुमारि मांक ऑखिक पुतरी ओकरा के मारतै’ पीटतै या खौंझेतै’। बुल्ली तऽ भैयाक शागिर्दे छलैन्हि ओकरा किछु करथिन्ह तऽपोल खुजि जेतैन्हि। तऽ सबसे निमूह बचलहुँ हम। तऽ कखनहुँ घंटी हमरा मुर्गा बना एक पैर पर ढाढ़ कऽ दैत छलाह तऽ कखनहुँ सुतला मे हमर चोटीक पफीता खिड़कीक ग्रील सॅ बान्हि दैत छलाह। निन्न टूटला पर हम चिचिआइत छलहुँ ................ दाईमां कतऽ गेलहुँ केश दुखाइत अछि ......देखू हमर पफीता खिड़की क ग्रील मे बान्हल अछि........।’ भैया आराम सँ कुर्सी पर बैसल छलाह-‘कान......आर कान दाई मां तऽ स्नान करऽ गेेल छौ.....।’
हम हुनका नेहोरा करि-भैया, गोर लगै छी भैया!
- खोलि दिअ पफीता..... केश बड्ड दुखाइत अछि। आब अहाँ जे कहब हम करब...........।’
‘वेश प्रॉमिस कर.........।’
‘हं, भैया प्रॉमिस।’
- ‘ठीक छै। चल छत पर।’ भैयाक संग-संग गेलहुँ दत पर। तमाशबीन सरोज आ बुल्ली पाछाँ-पाछाँ चलल। छत पर जाइते भैया हमरा दूनू हाथे उठा कऽ पानिवाला हॉज मे ध्ऽ देलनि। हम ऊपर आबऽ के कोशिश करि तऽ पफेर दाबि देल जाए। बुल्ली आ सरोज थप्पड़ी पारि खूब हँसैत छल। एहि नाटक कचरम सीमा पर पहुँचैत दाई मां हमरा तकैत ऊपर एलीह।
‘बापरे बाप! .......सब मिल कऽ बुच््यीक जान लऽ लेतै’। अजय बबुआ। हमरा बुच््यीक मारिए देबै। आब हम चुप्प नहिरहब आबऽ दियौन्ह मालिक केँ सब वृतांत सुना देबैन्ह। केहन अत्याचारी भऽ गेलै भाइ्र-बहिन!’
दाई मांक डॅटला सॅ सब भागल। दाई मां हॉज सॅ बाहर कऽ उनटा लेटाकऽ पेट सॅ पानि निकाललीह तखन हमरा होश भेल। कपड़ा बदलि कोरा मे लऽ हमर देह हॅसोथि रहल छलीह आ मुँह सॅ बजैत छलीह-नहिजानि कियेक सब हमरे बुच््यीकेँ नंग-चंग कयने रहै’छ। सरोज आ बुल्लीके अजय बाबू कहियो छुबि कऽ देखथुन। सबटा दोष मालकिन के छैन्हि। सब ले’ स्नेह अड़ैत रहै’ छैन्हि। बुच््यी पफुटली ऑखि नहिसोहाइत छैन्हि। बेटा नहिा भेलैन्हि तइमे बुच््यीक कोन दोष!’
‘दाई मां! हमरा खाली अहां आ बाबूजी दुलार करैत छथिआर क्यो नहि।’
‘बुच््यी। बाबूजी तऽ देवता छथि हुनकर परतर के करत।’
‘दाई मां! अहाँ तऽ हमरा खूब प्यार करैत छी। अहॉ हमरा छोड़ि कऽ कतौ नहिजाउ दाई मां! राध कहैत छल-अहाँ अगिला सोमदिन अपना गाँव जाएब। दाई मां! हमरा दूध् के पियाएत? के खाना खुआएत। के हमरा सबसॅ बचा दे? सब मिलक मारत। दाई मां अहां नहिजाऊ?’ दाई मां किछु नहिबजलहि हमरा करेज सटा कऽ माथ सोहराबऽ लगलीह।’
ओई दिन स्कूल सॅ घुरिकऽ आयल छलहुँ तऽ बुल्ली सीढ़िए पर ढाढ़ छल थपड़ी पारी हॅसैत बाजल।
‘तोहर दाई गेलौ, आब के बचेतौ?’
‘हरिया! कह हमर दाई मां चलि गेल? हम पूछलिऐ।
‘हँ, बौआ दाई मां अपना गाम गेल।
हमरा ऑखि सॅ नोट टघरऽ लागल। हरिया गिलास मे दूध् दऽ गेल हम क्रो( मे दूध् ओकरे देह पर उझलि देलिऐ। ओ चुप्पे चलि गेला पिफर
राध आयल कपड़ा बदलाबऽ हम ओकरो दनादन थापड़-मुक्का सॅ मारऽ लागलिए। सभके बड्ड आश्चर्य होइ हमर एहन रौद्र रूप क्यो नहिदेखने छल।
हम चिचिआइत छलहुॅ दाई मां किये गेलै? दाई मां के बजा। हमर एहन जिद्द क्यो देखने छल ने क्रो(ा ।
बेचारी दाई मां सात सालक बाद अपना गाम गेल छल। ओकरो छोट-छोट नेना छलै। आ एत दर्जनो दाई नौकर दलै। गोविन्द महराज रसोइया छल, बलिया जिलाक नथुनीसिंह दरबान, पहाड़ी रामसिंह ड्राइवर, मीनीम कालूरामजी आ एकटा नर्स। कुल मिला कऽ चौदह जन स्टापफ। दक्षिणी कलकत्ताक शानदार कोटी मे हमर कोठी सबसँ भव्य। कोठीक भव्यता एहन जे लोक देखऽ अबैत छलै।
- ताहिदिन हमर काका, काकी समस्त गुप्ता परिवार बजारवला पुरनका हवेली मे रहैत छलाह। नानीयोक घर छलै ओतहि बड़ा बाजार क हैरिसन रोड मे। सरोज पुरना हवेली मे जाएबाक नामे सॅ नाम भौं सिकोड़ि लै’छ-मां हम ओतऽ नहिजेबै बाथरूम बड्ड गंदा रहै छै। पुरना हवेली मे बड़की टा आंगन छलै चारू कात रूमा बाथरूम पफड़क। रसोइघर छत पर। सब काकी केँ एक-कएटा घर छलैन्हि ओहि मे सूतब बैसब चारि-चारि पांच-पांचटा घियापुता संग।
‘हं, तऽ ओई दिन सात बजे बाबूजी ऑपिफस सॅ एलाह। हम तीन बजे स्कूल सॅ आयल छलहुँ तखन सॅ एक घोंट पानियों नहिपीने छलहुँ-मां खिसियाकऽ दू थापड़ मारनहु छलीह-‘मर चमेलियाक मां लग जा कऽ राक्षती ! बुझाइते नहिछै हमरा कोखि सॅ जनमल अछि? आबऽ दहि आब चमेलियाक मां के ओकरो करबै एकदम बिगाड़ी देलकैए।’
‘बाबूजी समटा बात सुनला पर हमरा लग आबि कोरा लऽ कऽ कहलनि-चल बौआ खाना खा ले।’
हम हुनका लग अबिते उतार हुचुकि-हुचुकि कान लगलहुँ। कोरा लेलनि तऽ मरि पॉज पकड़िक कहलिऐनह ‘बाबूजी, हमर दाई मां ...... बजा दिअऽ।’
बाबूजी कहलनि-हं, बौआ हम बजा लेबै।
‘नथुनी सिंह! सुनू एखने रतुका गाड़ी सँ जाउ, उठा एकरा दाई मांकऽ नेने आयब अपने संग। हं, चमेलिया के कहबै एत नेने आब ओकर इलाज हम करा देबै।’
- मां बाजलीह-‘सुनू दरबानजी, जँ चमेलियाकेँ छुतहा रोग होइ तऽ ओकरा नहिअनबै।’
- मां! चमेलियाक छोड़िकऽ दाई मां नहिअबै तऽ?
‘चुप्प रह! दाई मां, दाई मां रटð लगौने छेँ जो पर दाई मां लग।’
हम मां क कर्कश स्व्र सुतिन सहमल बाबूजीक कुरता हाथ सॅ पकड़ने टुकुड़-टुकुड़ हुनकर मुँह तकैत छलहुँ। बाबूजी हमरा भरोस दैत बजलाह-‘दाई मां जरूर आयत।’ खैर चारिमदिन नथुनी सिंह के संग दाई मां चमेलियाक लऽ कऽ पहुऽचल। चमेलिया केँ निमोनियॉ बोखार छलै, टीúबीú नहि। पफैमिली डाक्टर गांगुली कहलथिन-‘चिन्ताक बात नहिं इंजेक्शन सॅ जल्दी ठीक भऽ जेतै।’ चमेलियाक उम्र बड़की दीदी सॅ वेशी छलै। दाई मां के एकगोट इएब बेटी आर तीनटा बेटा छै-छेदी, मंगला आ भोला।
दाईमां अबिते हमर कोरा लऽ करेज सॅ सटा लेलक हमर देह आगि जकॉ छीपल छलु ज्वर सॅ। डाक्टर गांगुली बबूजी केँ कहलथिन-‘गुप्ता साहेब! दाई मां तो एई मेये मां, ओ के आर जेूते देबेन ना। सेठानी जीर तो शरीर भालों थाकेें ना । एई निरीह मेय के आर के देखबे। ए तो दाई मां छोड़ेू किछु कोरचे ना.......।’
मां सत्ते अस्वस्थ रहैत छलहि। हमरा जहिया सॅ होश भेल ताहिया सॅ पलंगे पर सूतल देखैत छिऐन्ह कखनौ कऽ कुर्सी पर बैसैत छथि। कहियो ठाढ़ होइतो नहिदेखलिऐन्ह।
लोकसभ बजैत छै जे हमरा जन्मक बाद तीन मास घरि ब्लीडिंग होइते रहलनि। ताहि दिन शायद युट्रेस निकालनाई कठिन ऑपरेशन बूझल जाइत छलै। मां के दिक्कत नहिहोइन्ह तयॅ प्रत्येक बच््या लेल एक-एक टा नौकर या दाई राखल गेल छलै। हरियाक काज छलै सब बच््याक नास्ता भोजन करेनाई। राध मांक देख-रेख करैत छलीह आ सरोज आ नीलूक जवाबदेही छलै। बच््या सभ शारे-गुल सॅ मां बेहोश भऽ जाइत छलीह। दोसर अइ बात क दुख छलैन्हि जे एकटा आर बेटे होइ तैन्हि, तैँ हमरा देखऽ नहिचाहैत छलीह। मां बड्ड पैघ ध्रक बेटी छलीह। नाना खानदानी रईस लोक कोलकिंग कहैत छलैन्हि। मां क शरीर आ तेवर दूनू राजसी छलैन्हि। मां क श्रीरआ तेवर दूनू राजसी छलैन्हि। बाबूजी मां के जी जान सॅ चाहैत हलथिन डाक्टर गांगुली केँ कहैत छलथिन-‘डाक्टर साहेब-विजय के मां के किछु भऽ जेतैन्हि तऽ हम बच््या सभकेँ कोना सम्हारबै? कहुना हुनका बचालिअ, कोनो उपाय करू।’ बड़का सॅ बड़का डाक्टर अबैत छलाह मास मास दिन ध्रि अंग्रेज डाक्टर वाटकिन आ नलिनी रंजन दत्ता क इलाज चलैत छलै मुदा कोनो पफायदा नहि। महीना मे बीस-बीस दिन ध्रि ब्लीडिंग होइत रहैत छलैन्हि। आखिर एक दिन अयलाह डाक्टर विधन चन्द्र राय जो बंगालक मुख्मंत्राी छलाह। विधन बाबू अयला पर घर मे आर्डर भेलै ‘साइलेन्स प्लीज।’
विधन बाबू पंाच मिन ध्रि मांक नब्ज पकड़ने सोचैत रहलाह।
-पफेर बजलाह-‘रेडियम थेरेपी दी जाए।’ दादी बात बुझलथिन नहिमुदा बुझेूलैन्हि बहुत खरचाबला इलाज छै। ओ बाबूजी के अपना लग बजा कऽ कहलथिन-‘बाउ! सभ टकातऽ बहुए मे खरच भऽ रहल छऽ। सात-सात गो बच््या जन्मांकऽ ध्ऽ देलथुन ओकरो सभ्ज्ञक वास्ते सोचऽ। ई नखरावाली पलंग पर सूतल-सूतल तोरा नचा रहल छऽ .............।’
मां क ब्लीडिंग बंद भेलैन्हि मुदा टानसिल बढ़ि गेलैन्हि। अहि बीच बड़का भैयाक ब्याह तैय भऽ गेलैन्हि। बाबूजीक जिगरी दोस्त बालूरामजी केडियाक भाईक बेटी सॅ। एक दिन भोर-भोर बालूरामजी हमरा घर पर अयलाह। जाड़क समय छलै। बाहर वला रूम मे बदामक हलुआ खाइत बजलाह -‘भैया साँवर! अहॉ हमर प्रिय मित्रा छी हम एहि मित्राता केँ आपसी सम्बन्ध् कऽ स्थायी बनाबऽ चाहैत छी।’ बाबूजी कहलथिन ‘से कोना हम बुझलहुँ नहि।’ ‘देखू अहॉक बेटा अछि आ रघुक बेटी हमर भतीजी अछि। टकाहम दू लाख गनि देब बस अहॉ हॅ कहि दिअऽ।’
- ‘बालू! मात्रा टकाक बात नहिछै हमरा सोचबाक समय दिअ। लड़की कतेक पढ़ल लिखल अछि?’
‘अहॉके नौकरी करयबाक अछि। अरे घर गृहस्ती सम्हारबाक लुड़ि छै’। एतबा कहि ओ अपन पगड़ी उतारि बाबूजीक पैर पर घऽ देलथिन। बाबूजी गुम्म भऽ गेलथिन। दोसर दिन हम सभ होमऽ वाली भाभी के देखऽ विक्टोरिया मेमोरल पाछूवला गेट पर गेलहुँ। मां गेलथिन डाक्टर गांगुलियो केँ। मां के सबसे वेशी हमदर्द, सबसे बड़का साइकोथेरापिस्ट, समसत घरेलू समस्याक सलाहकार छथिन डाक्टर गांगुली डाक्टर साहेब के बड़का भाई अपल गांगुली छथि बाबूजीक सालिसिटर। गांगुली बाबू बड्ड पैध् घरानाक लोक। मांक कहब छैन्हि कु समय तीनेटा संग दैत छै पुलिस, वकील आ डाक्टर गांगुली परिवारक बड़का बेटा पुलिस विभाग मे उच्च पद पर छथिन मांझिल अनिल बाबू वकील हुनका सॅ छोट भाई उदयन जे किच्छु कोरेना शुघु गान कोरे ओ कोबिता लेखे।’
हॅ तऽ भाभी के देखि मां बजलीह-‘बांगुली बाबू! लड़की बड्ड दुबर कमजोर बुझाइछने?’
नहि, नहि। सेठानीजी ब्याहक बाद तऽ सब लड़की मोटा जाइत छै।’
मुदा गांगुली बाबू रंग श्याम छै से?’
से तऽ श्यामा मां क रंग कारी छैन्हि। हमरा बंगाली समाज तऽ चोख, नाक देखै’छ मैदा सन उज्जर के कोन महत्व।
बड़का भैया शौकिन मिजाजक लोक देखब मे खूब सुन्दर। ओइ समय मे ग्रेजुएट। तैॅ बाबूजीके लड़की देखलाक बाद मन में भेलैन्हि बेटाक लायक पुतौही नहिहेती। मुदा दोस्तीक कारण किछु नहिबजलाह।
मामाजी पूछलथिन-‘बहिन ! लड़का राजी अछि?’
मां कहलथिन- ‘हॅ।’
-तखन हम की कहू - ‘अहॉ आ जीजा जी कहियो व्यवहारिक नहिहोएब।
एखन सरलाक ब्याह मे एतेक खर्च भेल। बेटीक बाप पाइबला लोक छै। एत आयत तऽ एकटा अंग्रेज गवर्नेस राखि देबै-पूरा ट्रेनिंग भऽ जेतै।
-ई तर्क बाबूजी के नीक लगलैन्हि। कहलथिन-जयकुमार ठीके कहैत छथि। पढ़ा-लिखाकऽ स्मार्ट बनाओल जा सकैं’ छ। सरला दीदीके सास तऽ मैट्रिकक परीक्षा नहिदेबऽ देलथिन। बाबूजी विवश छलाह। तै मां के कहैत छलथिन ‘अजयक मां! देखबै हम तोता, मैना केँ खूब पढ़ेबै’-हमरा आ सरोज केँ तोतो, मैना कहैत छलथिन बाबूजी। बाबूजी अपने मात्रा चौथा पास छलाह मुदा स्वाध्याय सॅ तेहन पफर्राटेदार अंग्रेजी बजैत छलाह जे क्यो ग्रेजुएट की बाजत। सरिपहुँ बाबूजी जीनियस ब्यक्ति छलाह। मुदा मों अपना कें बाबूजी सॅ वेशी बु(िमान बुझेैत छलीह वेशी महीनी आ सोपिफयानाक दाबी छलैन्हि। कोलकिंगक बेटी छलीह। नानीक आंगनको बैसऽ लेल चॉदीक सिल्ली छलैन्हि। मामा एकलौता बेटा। चर्चारा चारिटा मामा छलाह। पाँचो भौजाई के पाँच-पाँचटा हीरा छलैन्हि। आ हमरा गुप्ता परिवार मे पहिलबेर पॉचटा हीरा क जेवर मां के छलैन्हि तकरबाद सल्लो दीदीक सासुर सॅ हीरा कनेकलेस, अंगुठी, टाप्स नाकक छल सभटा छलैन्हि। बड़का भैयाक ब्याह खूब ध्ूमधम सॅ भेलैन्हि। पन्द्रह दिन घरि उत्सव चलल। बाबूजी हिया खोलि खरच कयलैन्हि। सब नोकर चाकर के इनाम भेॅटलै उतबे नहिओकरा सभक गांव मे जे कर्ज छलै से हो चुकता कएल गेलै। खूब दान र्ध्म मे खर्च भेलै।
बाबूजी हमरा सॅ पूछलैन्हि - ‘तोेरा दाई मां के की दिऔ?’
हम कहलिएन्हि - ‘सोनाक चेन आ कंगन।’ राधनर्स इ सुनि जरि गेल। नहिबर्दास्त भेलैं तऽ बाजल-इंह, चमेलोक मां सोन पहिरत..........? मुँह ने कान बीच मे दोकान।’
दाई मां के बाबूजी दू भरिक चेन आतीन भरिक कंगन देलथिन । हमर खुशीक ठेकान नहि। दाई मां के कहलिएन्ह-‘दाई मां बरियात मे अहूँ चलब राध सन लाल साड़ी पहर कऽ।’
-दाई मां बजलीह - राम - राम बुच््यी एहन बात नहिकहू हम विध्वा छी। आइ हमर घरवला रहैत तऽ.......’
दाई मं के उदास भऽ एना बजैत सुनि हमरा भेल कोनो अध्लाह बात हम कहि देलिए।
भाभी आबि गेलीह। विवाहक बाद भैया बिमार रहऽ लगलाह। आब हमरा बुझाइत अछि जे मन लायक पत्नी नहिभेलैन्हि तयॅ हुनकर नर्वस ब्रेक डाउन भेल छलैन्हि। मुदा मां के भ्रम छलैन्हि जे क्यो टोना-मोना कऽ देलकैए। बाबूजी बहुत दुखी रहैत छलाह इ की भऽ गेल बेटा क संग। भाभी एको आखर अंग्रेजी नहिजनैत छलीह ने पढ़बा-लिखबाक सेहंता छलैन्हि। छमास ध्रि सांझि भेर मिसेज विल्किन माथा हुनका संग माथापच््यी करैत रहल मुदा कोनो पफायदा नहिभाभीजी केॅ पढ़बा मे मोने नहिलगैत छलैन्हि। हारि थाकि कऽ मिसेज विल्किन बजलीह-मिस्टर गुप्ता-शी इजए रौंग मैच पफार योर सन .............दे आर पोल्स अपार्ट।’ ढ़रैत पिअर सांझिक ज्योति समुद्री लहरि संग मिझराकऽ हरियर भेल जाइछ। एखने कनिकाल मे इ समस्त दृश्य कारी भऽ जेतै’। दूर पुरनका किलाक बुर्ज पर नारंगी रंगक रोशनी जरऽ लागत। पता नहिपफोकस लाइट कतऽ पिफट कयने छै। एतऽ बरांडा पर सॅ देखने लगै’छ जेना गुच्छा क गुच्छा रोशनी समुद्रक लहरि सॅ बहरा कऽ किलाक देवार आ बुर्ज पर छिड़िया रहल छै। नहिजानि कियेक एतेक दूरो सॅ ई जादुई-माहौल मे डूयब्रवनिक केर कारी समुद्री राति हमरा बड्ड नीक लगै’छ। तरेगण केहन चटख लगैत छै। तेहने अपूर्व लगै’छ नारंगी रौशनी मे डूबैत समुद्रक लहरि। होटल केर डेक सॅ बान्हल पॉच छहटा मोटर वोट लहरक कोर मे मचलै’छ हम दूनू ऑखि ई दृश्य पीवि रहल छी। हमरा लेल मनोरम दृश्यक अवलोकन आवश्यको अछि अहि नशा मे हम अतीतक छिलका सोहि सकब। कखनौकऽ दूर घुमावदार सड़क पर कोनो गाड़ी तीव्र गति सॅ भगै’छ तथापि बहुत शान्ति छै वातावरण मे। छपाक सॅ एकटा माछ लहरिक ऊपर कूदलै दूर बहुत दूर चलि गेलै। हमर तन्द्रा टूटल। अख्यिासऽ लगलहुँ की सोचैत छलहुँ कथी यादें?
हम सोचि रहल छी। सोचैत जा रहल छी। हमरा चारू कात रातुक कुहेस खूब सघन भऽ गेल अछि। दर्दक अनुभव होइछ। जनैत छी ई दर्द हड्डीक भीतर घुसल अछि एकर कोनो इलाज नहि।
स्मरण करबाक प्रयास करैत छी लगै’छ जेना बेर बेर कोनो अदृश्य दैत्यक पंजा मुँह के जोर सॅ दाबि रहल अछि असहड्ढ पीड़ा सॅ कछमछा रहल छी। नहि, आब नहिचुप रहब हम। हम कह चाहैत छी अहॉ सॅ हुनका सॅ सब सॅ। अपना मां क लेल दुखी होएब वा हुनकर स्मरण क ई अर्थ नहि जे हमरा हुनका प्रति स्नेह अछि। ओ तऽ कहियो अपना कोर मे लऽ हमरा दुलरो नहिकयलनि। घंटो हुनका रूमक चौकठी लग ठाढ़ देखि अपना लग बजौतीह......... शायद अपना लग रजाई मे सुतौतीह। मुदा नहिकहियो कनिको काल ले अपना लग नहिआब ऽ देलनि। मां बैटीक बीच एकटा शाश्वत दूरी बनल रहल। मां हमरा कहियो अपन बेटी नहिबुझलनि। ममत्वक प्रसंग मे मोन पड़ै’छ दाई मां एखनो बुझाइछ कखनौक’ दाई मां दुलार सॅ हसोथि रहल छथि। पाढ़िवला उज्जर साड़ी, ढ़ील ढ़ाला बड़कीटा ब्लाउज सीध पल्ला आंचरक खंूट मे बान्हल खैनी। भोर सात बजिते दाई मां हमरा रूम मे पहुँच जाइत छलीह आ तखने सॅ हमर जिनगी शुरू भऽ जाइत छल। अविते हमरा चुम्मा लऽ कहै छलीह - बुच््यी ऊठू, जल्दी करू सात बाजि गेलै........ तुरत स्कूल जयबाक बेर भऽ जाएत। मुॅह-हाथ धेआ दैत छलीह पफेर हुनका हाथ सॅ दूध्क गिलास लऽ गटगट पीबि जाइ। शुरू भऽ जाइत छल दौड़ ध्ूप किताब कॉपी। प्रफाक क बटन दाई मां जल्दी करू.......पफीता कतऽ छै? दाई मां हमर बेल्ट, दाई मोजा नहिभेंटैए ई नहिनवका जूता-मोजा। देखिऔ दाई मां सरोज हमर नवका जूता मोजा पहिर लेलक अछि। सरोज खोल हमर जूता.....।’
‘नहि, नहिदेबौ जे करबे से कर।’
दाई मां सरोज जूता नहिदेलक कानऽ लगलहुँ तऽ दाई मां चुप्प करा कहलनि-‘बुच््यी स्कूल जाय मे देरी भऽ जायत। आऊ पुरनके जूता पहिर लिअ सरोज मांक दुलएआ बेटी छै। सरोज के स्कूल जाइतकाल मांक नर्स
राध तैयार करैत छलै। बढ़ियॉ सॅ चोटी गूथै रीबनक पफूल बना दैतत छलै। दाई मां नीक सॅ ने गूथै छल ने रीबन बन्हैत छल। केश मे तेल ततेक छऽ दैत छल जे माथ पर चुअैत रहै छल ऑखि मे मोट काजर। मुदा की कयल जाय दीदी सभ लग जा कऽ केश बन्हाबी से साहस नहि। स्कूलो मे संगी सभ हॅसैत छल। राध सरोज कें तैयार कऽ नीलू कें तैयार करैत छल बिल्लू के हरिया। खाना मे सब दिन एके चीज भात, दालि आलूक भूजिया से हो जल्दी-जल्दी बस छुटबाक डर। सरोज आ नीलू पहिने तैयार भऽ जाइत छल मुदा हमरा सब दिन किछु ने किछु ताकऽ मे देरी भऽ जाय। क्यो कोनो वस्तु एकठाम नहिरहऽ दैत छल। कहियो जाइत काल देखि जूता मे पॉलिश नहिभेल अछि दाई पॉलिश करऽ बैसए तऽ लेट भऽ गेल। दौड़ैत गेलहुँ ताबत बस हार्न बजबैत भागल। मुँह-लटका कऽ घर घुरलहुँ। मां आठ बजे सॅ पहिने उठैत नहिछलीह। बाबूजी भोरे 6 बजे जूटमील जाइत छलाह। हमर देखिते मां गर्ज लगलीह। ‘बस छुटि गेलौ ने आब बैस घर मे के जेतौ स्कूल पहुँचाबऽ।’
दाई मां कहलथिन-बहुरानी! कनि दरबानजीके कहियौ ने - ‘टैक्सी पर बैसरा देथिन।’
‘पाई नहिलगै छै टैक्सी मे।’
पफेर दाई मां कते निहोरा कयलनि तखन स्कूल गेलहुँ।
एखन किछु सोचि नहिपबै छी। बाहर रोशनी जगमगा रहल छै, नीचां डाइनिंग हॉल मे बीथोबन केर सिम्पफनी बाजि रहल छै। आ एत बरांडा मे हमरा चारू भर रतुका सन्नाटा पसरल अछि। ई सन्नाटा हमर संग कखन छोड़लक? भरल लोकक भीड़ मे एसगरे तऽ रहैत छी! बड़का घरक बेटीआ बड़का घर क पुतौहु दून्नू ठाम सम्पन्न मुदा हुम केहन विपन्न छी कतेक अभाव झेलैत रहलहुँ अछि! दर्द क संग सुतैत रहलहुँ दर्द क संग उठलहुँ कहाँ? साबुत बॉचल छी।
विवाहक एक साल के बद भाभी जी केँ बेटी भेलैन्हि। बाबुजी नाम राखलथिन - गुडीó। गुडीó वास्तव मे गुड़िया सन छल। रंग छलै दादी सन दुध्यिा गोर मां सन कटगर आँखि नाक आ पापा सन तेजस्वी दिमाग। दू वर्ष पुरैत - पुरैत ओ रंग - बिरंगक खेल करय तोतरा तोतराक गीत गबैत छल ओकरा संग खूब मोन लगै छै सबसे मन मोहि लैत छल। एक दिन भाभी आकरा कोरा मे लऽ बरांडा पर ठाढ़ि छलीह गुडीó आ चिलियाँ आ चिलियाँ कहैत रेलिंग सॅ नीचा झुकलै आ मां क हाथ सॅ ससरि गेलै। तीन तल्ला पर सॅ नीचाँ खसलै कोन काल बिसा गेलै से नहिजानि। गुडीóक वियोग सॅ बाबूजी भीतर सॅ टूटि गेलाह। कखनौ गुडीóक बिसरी नहिपबैत छलाह। हरदम ओकर बाललला मोन पड़ैत छलैन्हि। दस मास बीतैत-बीतैत-भाभी जी केँ बेटा भेलैन्हि। मां बड्ड प्रसन्न छलीह। चांदीक थारी बजौलनि। खूब इनाम बक्खसीस बॅटललनि। मुदा बाबूजी कनैत ग्हलाह गुडीóक विरोग मे। शायद ताहि दिन बाबूजी को व्यापार मे बहुत घाटा भेल छलैन्हि। बाबूजी जीवन मे पहिलबेर एहन घाटा उठौलनि छल। समय कच्क बाबूजी कें सेठिया ओतऽ वर्किग पार्टनर शिप स्वीकारऽ पड़लनि। काका सभ व्यंग्य मे कहैत छलथिन ‘भैया! अहाँ सेठजी सॅ बाबू बनलहुँ आ आबतऽ नौकरी करऽ लगलहुँ!’ खैर सेठियाक ओत कहबा लेल वर्किग पार्टनरशिप छलै मुदा बनबारी लाल सेठिया बाबूजीक कोनो निर्णय पर दखल नहिदैत छलनि। स्वतंत्रा रूपें निर्णय लैत छलाह। हिनका अनुभव सॅ सेठिया कें खूब आमदनी बढ़लै। मुदा आमदनी बढ़िते ओकर नीयत ब्रोली गेलै हिस्सेदारी मे बड्ड बेईमानी कएलक। मन-मुटाव बढ़ि गेलै। जूट बाजार मे इ खबरि पसरि गेलै। मामाजी के स्वयं जूटमील छलैन्हि हुनका भनक लगलैन्हि। ओ मां के कहलथिन-‘जीजा जी पानि मे रहि कऽ मगरमच्छ सॅ असरि ठनलनि अछि। हमरा जनते एकर परिणाम-नीक नहिहेतै’।’ मामक आशंका निर्मूल नहिछलैन्हि। बाबूजी कें जिगरी दोस्त समध् िबालूरामजी आ बनबारी लाल सेठिया जहर दऽ मारि देल कैन्हि।
‘दोसर दिन अखबार मे ईसनसनीक खबर छपलै ‘ प्रसि( उद्योगपति श्री सॉवर मलजी गुप्ताक मृतशरीर ..... रहस्यमय मौत। लाश सोना गाछीक बाथ हाउस मे पाओल गेल।’ मॉ कुहरि उठलीस जालिम! एक तऽ बेकसूर पतिक हत्या कयलक ोसर देवतासन पुरूष पर एहन घिनाउन इल्जाम! बाबूजी मौत के बाद नहिमां के कहॉ सॅ अतेक शक्ति आबि गेलैन्हि जे कहियो पार्वान त्यौहर आ शुभ काजक अलावा कहियो पलंग सॅ नीचाँ पैर नहिरखैत छलीह कनिको शोर गुल भेला पर माथक दर्द सॅ बेहाल भऽ सैरिडन खाइत छलीह। से शेरनी जकॉ दहाड़ि कऽ बजैत छलीह-हमर पति मुइलाह नहिहुनका राक्षस सभ मारि देलकनि। हमर घर उजड़ि गेल। हत्यारा सभ के कहियो चैन नहिभेँटतै हमरे जकॉ बहु-बेटी कनतै।’
शायद ऊपर बला मांक आर्तनाद सुनलनि बालूराम जी आन्हर भऽ कऽ मुइलाइ आ बनबारी लाल सेठिया बीस बरस ध्रि जाबत जीवित रहल घर सॅ बाहर नहिबहरायल अपंग भऽ गेल। पफेपफड़ा मे से हो कोनो खतरनाक बिमारी भऽ गेलै प्रायः आक्सिजन पर दिन खेपलक।
ओ राति कहियो ने बिसरत बड्ड बोझिल वातावरण छलै। मां एक-एक कऽ अपन पाँचो हीरा खोललनि आर दोसरो जेवर खोलि लेलनि लग मे मात्रा सल्लो दीदी छलथिन। मां सल्लो दीदी कें कहलथिन दादी या काकी सीा पता नहिचलै जे हम जेवर खोलिकऽ कतऽ राखलहुँ ओरिया कऽ राखि दे।’ हम स्तब्ध् छलहुँ किछु ने पफुराइत छल। मां लग ठाढ़ि सरोज सॅ पूछलिऐ दीदी, हार्ट पफेल ककरा कहेै छै? की होइ छै? दीदी जवाब मे कहलनि - ‘एंखन चुप्प रह।’
भोरे बड़का भैया आबि गेलाह। अखबाक समाचार पढ़ि मारवाड़ी समाज आश्चर्यचकित छल तकरा संग एहन सलूक! काका सभ पोस्टमार्टम के बाद दूपहर मे लाश अनलनि। ‘ज़हर खुआक हमरा भाई के मारलक हम बदला लऽ कऽ रहबै।’ मुदा के बदला लेलकै? हमरा ओ दृश्य नहिबिसराइत अछि जखन बाबूजी के चारूभाई कन्हा पर अर्थी पर लऽ गेलथिन। बाबूजी चारू कन्हा पर छलाह पाछू-पाछू दूनू भाई आ जीजा जी ताहि संगे सैकड़ों लोक। अनगिनत गाड़ी। हम खिड़कीक छड़। हमरा सभ मे कुमारि लड़की श्मशानघाट नहिजाइत छैक। मने मन होइत छल ई हमर बाबूजी नहिछलाह जकरा सभ नेने जाइत छै। मूँहो तऽ झाँपल छलै। नहिरहि भेल तऽ दाई मां सँ पूछलिऐ-दाई मां, दाई मां, हमर बाबूजी औता नै। ई जरूर ककरो आन लोकक लाश हेतै। झूठे खबरि छै जे हमर बाबूजी कें जहर खोआ कऽ मारि देलकैन्हि।’
दाई मां तऽ अपने कनैत-कनैत बेहाल छलीह-हे भगवान केहन दिन -
देखयलह......।’
कनिते-कनिते दाई मां हमरा आ सरोज कें नहौलक। हम कनैत-कनैत सुति रहलहुँ पफेर कानब सुनि निन्न टूटल। देखलिए-घाट पर सॅ सब घुरिकऽ आयल छलाह। डाक्टर गांगुली मां क नब्ज पकड़ि कऽ बैसल छलाह। मां जोर-जोर सॅ बजैत छलीह-डाक्टर साहेब हुनकर हत्या कयल गेलैन्हि। हत्यारा हमर सोहाग उजाड़ि देलक।
‘भाभी अहाँ शान्त रहूँ! हम सभ बदला जरूर लेबै।’
‘कोना बदला लैबै? आब हम बाल बच्चाक पोसब की घर-द्वारि बेचकऽ ममला-मुकदमा लड़ब?’
बहुत दिनक बाद सल्लो दीदी कहने छलीह जहिया बाबूजी दुनियॉ से गेलाह तहिया मां लग मात्रा पाँच सौ टका छलैन्हि। बाबूजीक अचानक मौत भेलैन्हि। सब टका पाई तऽ बालूजीक गददी मे जमा छलै। आर कतऽ कतऽ पाई छलैन्हि से ककरो बूझलो नहिछलै। बालूजी तऽ सभटा टका पचाइए लेलथिन।
‘काल्हि की हेतै’ बच्चा सभ के कोना पोसब पालब? मां एहि छगुंता मे सदति काल रहैत छलीह। एक दिन बड़का कका कहलथिन-भाभी आब रईसी नहिचलत बड़ा बजारक मकान मे चलू आई दाई नौकरक पफौज हटाऊ।’
मां मुँह झपनहिं कहलथिन-हम कतौ नहिजायब जेना होइत एलैए तहिना सब हेतै हुनकर मान-मर्यादा मे बटाð नहिलागऽ देबै।’
‘खर्चा चलल कहाँ से?’
भगवान देथिन। स्वर्ग में बैसल बाप अपना बाल बच्चाक एतबो ख्याल नहिराखथिन?’
एहन पफुहड़ि औरत कें के समझाओत? खिसियाक बड़का कका चलि गेलाह।
‘मामला-मुकदमा लेल टका चाही? दोसर कका बजलाह। तऽ मां कहलथिन- हम पैघ खाना दानक बेटी छी अनपढ़ गंवार नहि! हमरा अपना बाल-बच्चा भविष्य देखबाक अछि। मुकदमा कोट-कचहरी सॅ हमरा सभ के सबूत अछि। सार सेठिया के पफॉसी दिया सकैछी। भाई साहब खानकदानक नाक छलाह।’
से जे होइ मुदा हम मामला-मोकदमा क चक्कर मे नहिपड़ब! के जानए काल्हि ओ विजय संग किछु कऽ बैसए!’
‘की विजय एसगर छै बाप नहिछथिन तऽ कको सभ मरि गेलै? खैर अहाँ के जे इच्छा होए करू हम सभ नहिबाजब।’ मंझिलो कका चलि गेलाह।
मामा - मां के कहलथिन-बगल मे जे खालि जमीन छै ताहि मे मकान बना कऽ किराया पर लगा दिऔ। मासे-मास टका भेंटैत रहत घरक खर्च लेल।
मां कहलथिन ‘मकान बनाबऽ लेल बहुत टका चाही हम कतऽ अनबै ओतेक टका?’
‘हम बात तऽ कहलहुँ लाख टका क। तखन रुपैया पैसा एखन हमरो हाथ पर नहिअछि। अहाँ जनिते छी सोध्पुरक कारखाना बन्द भऽ गेल अछि।’
‘भैया हम अहाँ सँ टका कहाँ मंगैत छी?’
ओहि राति भैया बाबूजी के सपना मे देखलथिन बाबूजी कहलथिन-‘अहाँ सभ जुनि घबराऽ बड़का तिजोरीक दहिनाकातक ड्राअर खोलिक कहियो मां के देख।’ भैया हड़बड़ाक उठलाह मां के जगा कऽ सभटा बात कहलथिन-। मां तिजोरी खोललनि। दहिना ड्रॉअर मे बैंक के पासबुक छलै जाहि मे दस लाख टका जमा कयल छलै। पासबुक मे मां आ भैया दूनू गोटेक नाम छलैन्हि भोरे-भोरे भैया बैंक गेलाह टका निकालननि काजग वास्ते आर टका दोसर बैंक मे जमा कऽ देलथिन। मां अपन हीरक चारू चुड़ी बेच देलथिन। श्रा( कर्म मे कोनो कभी नहिकयल गेलै।
अइबेर दिवाली मे ककरो उत्साहे नहिछलै कहुना विध् पुरल गेलै। दिवालीक बाद बगलबला खालि जमीन पर मकानक नेउ देल गेलै’
ध्ीरे-ध्ीरे मकान बनि गेलै।
काल्हि राति मे अजीब सपना देखलहुँ। राति मे बारह बजेके बाद ऑखि मुनने होएब। सोचैत-सोचैत अचेतन अवस्था मे घॅसैत चलि गेलहुँ। सपना मे देखलिऐ हम एकटा पैद्य रूम मे बन्द छी। क्यो हमरा दिस झपटैत अछि। आ हम छलांग मारि रूम सँ बाहर लाबी मे भगैत जा रहल छी। अचानक एक्जिट देखाइत अछि। हम घड़घड़ाइत घुमावदार सीढ़ी पर उतरैत जा रहल छी बुझु जे दस मंजिला सॅ एक मिनट मे उतरि गेलहुँ। बड्ड हॉकि रहल छी। देह थाकि कऽ चूर-चूर भ्ज्ञऽ गेल अछि। बुझाइत अछि जे क्यो रस्सी सॅ करेज बान्हि रहल अछि।......पफेर एकटा स्वीमिंग पूल........नहिई तऽ गंगा नदी छै बड्ड तीव्र वेग ठहरल पानि नहि। तखने एकटा छोट लड़की के देखैत छी चारि पाँच बरसक ओकरा हेलऽ नहिअबैत छै। ऊब डूब भऽ रहल अछि। अरे ई तऽ डूबि रहल छै हम झटकि कऽ ओकरा लग गेलहुँ। अपना दूनू तरहथ्थी पर ओकरा उनटा पारिकऽ हेलनाई सीखा रहल छी। धरक तेज प्रवाह मे हम तलमलाइत छी। मन मे होइत ई हरिद्वारक गंगा पफेर होइछ नहिई बंगला देशक प(ा छै। प(ाक धरक एहन तीव्र वेग! खैर ओ बच्ची हेलनाई सीख गेल। आब ओ भभाकऽ हँसि रहल अछि।
‘देखू, आब हमरा हेलऽ आबि गेल।’ हमरा हमरा ई सुनि अद्भूत आनन्द भेंटल। प्रसन्नता सॅ कहलिऐ- हं, बेटा एहिना हेलब सीखैछ सब।’
भोरे निन्न टूटल। खिड़की सॅ देखलहुँ दूर-दूर ध्रि अनन्त अथाह समुद्र मोन पड़ल खुका सपना। अर्न्तमनक द्वन्द्व सॅ कहिया छुटकारा भेंटल! की करु!! कलकत्ता जायब तऽ पफेर काजक चक्करघिन्नी मे घुमैत रहब। ब्रेकपफास्ट के बाद वापस आबि बरांडा पर राखल डेक चेयर पर ऑखि मुनि बैसि रहलहुँ। पिफलिप जबरदस्ती हमरा समुद्रक कात मे पठौलनि। हमरमोन समुद्रक निरन्तरगर्जन सॅ घबरा जाइत अछि। हमरा पहाड़ नीक लगैत अछि। काल्हि रातिबला सपना पफेर मोन पड़ल। ओइ सपनाक मतलब नहिबुझाइल कहियो जूडी सॅ भेंट होएत तऽ पूछबै जरूर। ओकरा साइक्रियाटीक अनुसार और सपनाक विश्लेषण की हेतै।’
पिफलिप आ जूडी भारत सॅ एतेक दूर रहितहुँ कतेक निकट लगै’छ। शायद कलकत्ता मे एतेक अपनत्व ककरो सॅ नहिअछि शायद आब क्यो दोस्तो नहिए अछि। काल्हि रातिमे अपन नेनपनक बाते सभ सोचैत सुतल छलहुॅ ताहु मे वेशी मोन पड़ल छल बाबूजीक मृत्युक बात सभ।
बाबूजीक मृत्युक समय हम लगभग साढ़े नौ बरसक रहल होएब। बाबूजीक मृत्युक बाद घरक आर्थिक हाल दिनोदिन बिगड़ैते गेलै। ओना बाहरी आडम्बर झाड़ पफनूस, तोरण सजाकऽ यथास्थिति रखबाक कोशिश मे मां जी जान सॅ लागल रहैत छलीह। भीतर सॅ रिक्त-तिक्त भऽ गेल छलीह किछु आर कठोर मुदा ध्यिा-पुता लेल बहुत स्नेह आवेश बुझना जाइत छल। नर्स छलैन्हि राध तकरा हटा देलथिन। आब डाक्टर गांगुलि यो वेशी काल नहिअबैत छलथिन। हं, आब दाई मां हुनकर आव-भगत मे लागल रहैत छल। दाई मां सलाहकार, सेविका, हमदर्द जे बुझि सभ छलैन्हि। मां क पलंग-बड़कीटा छलैन्हि से बाबूजीक बिना सुन्न लगैत छलै खाली-खाली सन। दाई मां ओहि घर मे नीचॉ मे गदाक्क ओछा कऽ हमरा सुता दैत छलीह। सरोज, बुल्ली आ छोटका भैया बाबूजीक रूम मे सूतैत छलाह। नीलू कहियो काल नानीक ओत रहैत छल कहियो दीदी लग। हम बाबूजी घर मे जाइत घंटो बरांडक कोना मे बैसल रहैत छलहुँ। आकाश दिस तकैत छलहुॅ तऽ ध्ॅुआ-ध्ॅुआ सन लगैत छल। वेशी काल हम गोरैया चिड़ैं सॅ बतिआइत रहैत छलहुॅ मुदा आब मोने-मोन बतिआइत छलहुँ डर होइत छल पफेर जॅ भैया सझ सुनता तऽ की करता की नहि। गोरैया जखन रेलिंग पर आबि कऽ बैसैत छल तऽ हम पूछैत छलिऐ-
‘ए चिड़ियॉ कह ने हमर बाबूजी कहिया औता?’ कहियोकऽ स्कूल सॅ आबि तऽ सीढ़ी पर चढ़ैत काल मन मे होइत छल-बाबूजी अपना रूम मे कान सॅ टेलिपफोन सटौने बतिआइत हेताह। मुदा से दिन कहियो ने भेलै। करीब छ मास बीतैत-बीतैत हमरा विश्वास भऽ गेल आब बाबूजी कें नहिदेखबैन्हि ओ सत्ते हमरा सभ कें छोड़िकऽ चलि गेलाह। तकरा बाद हमरा संग दुर्घटना भेल भैया बला। पैंटी मे जहिया दाई मां खून देखलनि तहिये सॅ मां क रूम मे हमरा सुताबड़ लगलीह। दाई मां बहुत देर घरि मां कें मालीश करैत छलथिन मां औधा जाइत छलीह तखन मालीश करब छोड़ैत छलीह। मांक संग मालीशकाल खूब बतिआइत छल खाली बाबूजी विषय मे। हम चाहैत छलहुँ जे सभटा बात सुनि मुदा ऑखि मुना जाइत छल। एक राति अध्रतिया मे निन्न टूटि गेल तऽ सुनलहुॅ मां हुचुकि हुचुकि कनैत छल तइओ पैर दाबि ध्ीरे-ध्ीरे मां लग पहुँचलहुॅ। आ दाई मां के दाई मां उठलीह हुनका ऑखि पनिया गेलैन्हि हमरा कहलनि-बुच्ची! मां कनतीह नहितऽ की करतीह दुःखक पहाड़ खासि पड़लैन्हि माथ पर।
दाई मां पफेर हमरा लग एलीह तखन नहुॅए सॅ पूछलिऐन्हि- दाई मां दिन मे मां के कनैत नहिदेखैत छिऐनह!
बुच्ची अहॉक बहुत जीवटवालीं छथि। जहिया सॅ मालिक विदा भेला कहियो राति मे चैन सॅ नहिसूतलनि। मुदा दिन मे करेज पर पत्थर राखि, सभटा भार सम्हारैत छथि। कहै’ छथिन-‘चमेलिया माथ हम कनबै तऽ बच्चा सभ दिहरू भऽ जायत। कतेक जतन सॅ ध्यिा-पुता के पालैत पोषैत छलथिन। एकरा सभके कष्ट हेतै तऽ हुनकर आत्मा दुखी हेतैन्हि। प्रात भऽ कऽ ई बात हम सरोज दीदी के कहलिउे जे राति मे मां दाई मां संग बाबूजीक बात करैत छै आ कनै छथि। सरोज एक नमर के चुगलखोर ओ ई बात बड़का भैया आ भाभी कें कहि देलकैन्हि। भाभी जी दूनू दीदी कें पफोन पर कहि देलथिन। दूनू बहिन एहि बात पर मां के पफोन कऽ बजलथिन ‘मां अहां एना कनबै तऽ हमरा सभके के देखत।’ सुमित्रा दीदी कहलथिन पफेर सरला दीदीक पफोन एलै-मां अहा कहि तऽ किछु दिन लेल हम आबि जाय अहाँ एना कियेक कनैत छी बाबूजी तऽ चलिए गेलाह अहां सब दिन अस्वस्थ रहैत छी एना मे अहूॅ नहिरहब तऽ हम सब तऽ टूअर भऽ जायब।’
मां कहलथिन-‘नहिहम कहॉ कनैत छी के कहलक अहॉ के? हमर तऽ चारूधम सब तीरथ अहीं सब छी। हमर घर तऽ मंदिर अछि। आ अहांक बाबूजी कतहु नहिगेलाह अछि हमरे सभ्क बीच एखनहु छथि। हं, हमरा लोकनि हुनका देख नहिपबैत छिऐनह।
एहि पफोनक बाद मां हुक्म भेल जे आब प्रिया बच्चा बला रूम मे सूतत। आब सरोज आ हम एक रूम मे सूतैत छलहुँ आ दोसर रूम मे छोटका भैया आ बुल्ली। दोसर रूम मे सूतैत छलहुँ मुदा दाईमंा हरदम हमरा पर नजरि रखैत छलहि। हमरा याद अछि बाबूजीक देहान्तक शायद छ मासक बाद सल्लो दीदी सासुर सॅ आयल छलीह विवाहक दस वर्षक बाद बेटा भेल छलैन्हि। मां चान्दी थारी बजौलनि। रसगुल्ला बॉटल गेलै। मुदा भीतरे-भीतर हुनका चिन्ता सॅ मन बेचैन छलैन्हि खिचड़िक नेग मे बहुत खर्च होइत छै कोना हेतै’? आइ ओ रहथिन तऽ कम से कम पच्चीस हजारक खिचड़ि देल जाइत। बिल्लू भेल छलैतऽ शानदर नेग बाबूजी पठौने छलथिन। आइ सॅ पैंतिस वर्ष पहिने पच्चीस हजार टकाक महत्व छलै। हलांकि बगल मे मकान बनि गेलै। दस हजार टका प्रत्येक मास किराया मे अबैत छै। आब घर खर्च लेल मां निश्चिनत भऽ गेलीह। मुदा ई ऊपरि खर्च कोना निमाहल जायत। बाबूजी क गेलाक बाद शायद अहि चिन्ता पिफकिर सॅ मां क स्वभाव मे चिड़चिड़ापन आबि गेलैन्हि। बात-बात को खिसिया जाइत छथि।
मुदा आर अहठाम हम कियेक मांक अतीतक पोथा लऽ कऽ उनटा रहल छी? कियेक कखनौक एकटा असहम वेदना यॅ कुहइि उठैछ मन-प्राण?
केहन अन्सोहाँत लगैत छै अपन मांक आलोचना करब। मुदा बात छै तेहने मां हमरा कहियो स्नेह नहिदेलनि मांक ममता केहन होइ छै हम कहियो नहि बुझलिऐ! तकर कारण इएह जे हम चारिम बेटी छलिऐ। अइमे हमर कोनो दोष? मां चाहैत छलीऐ तीनटा बेटी कछिए आब बेटा होमए। तऽ की गुप्ता हाउस मे बेटी क रूप मे जन्म लेब वा बेटाक रूप मे हमरा वश मे छल? ओनो कखनौ काल मां पर दया होइछ- हुनका जिनगी मे भेटँलनि की? संघर्ष मात्रा संघर्ष। मुदाइ हो सत्य छै जे ओ स्वयं सुखक चिडै़ंक पॉखि नोचि-नोचि कऽ पफेकैत रहलनि। मां एकटा अहंकारी जिद्दी बच्चा जकां छलीह जे परसल थारी पटकी भखलो बैसल रहै छैै। नहिजानि कियेक हुनका व्यथा आ त्रासदी मे कोन सुख भेंटैत छलैन्हि। मंच पर एक सपफल निर्देशक जकाँ हमरा सभकेँ अपन त्रासदीक भागीदार बनाइए कऽ सांस लैत छलीह कखनौ अपने व्यथित रहैत छलीह तऽ कखनौ पर पीड़न सॅ सुख भेंटैत छलैन्हि। हुनकर बोली-वाणीक आक्रमकता आ शब्दक चाबुक तड़ाक-तड़ाक पीठ पर पडै़त छलै नील निशान रहि जाइत छलै आ लोक दर्द सॅ कुहड़ि उठैत छल।
हम आ छोटका भैया मां क कोप भाजन वेशी काल बनैत छलहुँ। हमरा बुझना जाइछ मां क दृष्टिकोण सॅ महिला क जन्म पाप छला महिला माने एहन हीन स्थिति जेहन क्यो गुलाम होइ जे मालिक बिना जीवित नहिरहि सकै’छ। जँ मालिक असमय चलि गेलाह-सिंहासन खालि भऽ गेलै तऽ युवराज ओइ आसन पर बैसथु। आ सेह भेलै। बड़का भैया युवराजक रूप मे खालि भेल सिंहासन विराजमान भेलाह। मां के हमर किछु नीक नहिलगैत छलैन्हि। ने मुँह-कान ने पैध्-केश ने नमछर देह। सबसॅ वेशी अखरैत छलैन्हि हमर स्वस्थ कद काठी दसम वर्ष होइत-होइत पीरियड्स शुरू भेनाई किशोरी जकां उभार। हरदम टोकैत छलीह- ध्म-ध्म करैत चलै छेँ नहुँ-नहुँ चल ढंग सॅ बैस। कतेक जोर सॅ हँसैत छेँ। केना खों खों कऽ खॉसैत छँ खोंखी दाबि ली तऽ माल-जाल जकॅा गरगराइ छेँ कियेक। कोनो तरेहँ चैन नहि।
हमरा एखनो आहिना याह अछि मां के पानि पीबऽ बला बहुत सुन्दर शीशाक केटली छलैन्हि जे हमरा हाथ सॅ छुटिकऽ पफुटि गेलै। चिचियाक क पुछलैन्हि- की पफुटलै। हम-हुनकर आवाज सुनिते भुगलहुँ पछिला बरांडाक रेलिंग पर। एक पैर अइ कात दोसर ओइ कात ध्ऽ नीचॉ खसबैतऽ हमहुॅ मारि जायब।नीके हेत मरि जाइतऽ। हमरा मरला पर कयो कानबो नहिकरत। हं, एकटा दाई मां हमरा ले’ कनतीह। मां तऽ नहि ए कनतीह हुनका तऽ हम मरि जाइ तऽ खुशी हेतैन्हि। हं सरोज आ बुल्ली कनतै। मुदा मरलाक बाद हम बुझबै कोना जे के कनै’छ के नहि? दाई- मां कहै छथिन जे अल्पआयु मे मरैत छै से प्रेत भऽ जाइ छै..... इएह सभ सोचैत छलहुँ ताबत चिचिआइत दाई मां दौड़ल एलीह - बाप रे बाप। ई को करै छी बुच्ची।’ आ हमरा ध्यि कऽ रेलिंग पर सॅ उतारंलनि। सोचत छी तऽ लगैए जे केहन असहाय, अनाथ सन छल हमर बचपन! शायद बैध्ब्य महिलामे हीनभाव आ असुरक्षाक बोध् सॅ कठोर स्वभाव भऽ जाइत छै।
मां एसगर भऽ गेल छलीह तैँ हरदम ककरो ने ककरो सॅ बतिआइते रहैत छलीह। पहिने लोक सँ एतेक कहाँ बतिआइत छलथिन। आब तऽ कखनौ दीदी सब सॅ कखनौ बड़की भाभी सॅ तऽ कखनो यमुना मौसी या कमला मौसी सॅ। कखनौ काकीक बेटी राध सॅ। एके बात एकहि घटना मौका बे-मौका सभ सॅ बतिआइत छलीह। ओहुना कोनो बात के बतंगर बनाकऽ दू-दू घंटा। बतिआइत छलीह विषय किछु भऽ सकै’छ। हरिया गँाव-गेल दू दिन लेल आइध्रि ध्ुरिकऽ नहिआयल। गोविंद महाराज आब देरी करताह तऽ नौकरी सॅ हाटाइए देबैन्हि। .....बाजार मे सभ वस्तुक दाम बढ़ले जा रहल छै पफल कतेक महग भऽ गेलै। आब सब बच्चा केँ मौसमीक जूस देब संभव नहि। आर नहिकिध्ु तऽ बेट क बढ़ई। श्रवण कुमार अछि हमर बेटा! एहन बुझनुक बेटा नहिरहैत तऽ हम सभ एखन-सड़क पर रहितहुँ......। हमर अपन दियादनी सभ की सभ नहिकयलनि जादू टोना समेत मुदा भगवतीक कृपा हमर बेटा सरिपहुँ मातृभक्त अछि। एक मात्रा बड़की काकी के माहेँ मां नहिकिछु बजैत छलीह ओ चुकी निर्दलीय छलीह जे क्यो किछु अदगोई- बदगोइ कहैत छलैन्हि से अपने मन मे रखैत छलीह। दियाछनीक बाद ननदि सभक सिधंस शुरू करैत छलीह..... सभ खालि लेबऽ लेल मुँह बौने रहैत छथि...।
दरअसल मां के भेटँलनि की? कोन विषय पर चर्चा करतीह। हर साल एकटाक बच्चा जन्मौलनि! आ बच्चाक कारण महिलाक शरीर खोखला भऽ जाइत छै ताहू अतेक संतति। पहिने अपनाध्यिा- पुताके कयलहूँनी पफेर सन्तानक बच्चाकोँ। इहए सब खरेहा लोक केँ सुनबैत छलीह। .......की कहँू कहियो चैन नहि सालोभरि पावनि त्यौार ताहि मे बेटी सभक सासुर मे सनेश पटेनाई! खर्चक कोनो अन्त नहि। अहिना गप्प पर गप्प पफोनो पर आ लोकोलग। ओना कोनो काजक गेर कखनौ हरिया के तऽ कखनौ लक्षमिनियॉ वा सीताराम केँ मुदा गप्प करबाकाल बड्ड पफुर्ति रहैत छैन्हि। अर घर मे पछिला पचास वर्ष सॅ नौकर बदलाइत रहल अछि मुदा कोनो नब नाम नहिसुनलहुॅ। जे आयल तकरा पुरनके नौकर वला नाम सम् शारे पाड़ल जाइत रहल अछि। खैर नाम मे की राखल छै हँ, तऽ बेचारा सीताराम तीन वर्ष ध्रि बर्तन-बस्सन मंजैत रहल ओकरा गेलाक बाद जे आयल तकरो नाम रहलै सीताराम। एहिना हरी छोटे मे आयल छल पहने हरि पफेर हरिया कहल जाइत छलै जखन बूढ़ भऽ रिटायर भऽ गाम गेल तऽ आयल बेचन ओकरो नाम रीलै हरिया। दाई मां क अलावा दू टा नौकरानी छलैन्हि मां केँ। राध नर्स चलि गेलै मुदा एखन जे नौकरानी छै तकरो नाम छै राध। जखन मां क्रो( मे रहैत छथि तखन रध्यिा कहि कऽ शोर पाडै़त छथिन। पछिला तीस वर्ष सॅ छाई मां के गेलाक बाद मां के देख-रेख करैत छैन्हि रध्यिा आ कृष्णा।
तकर अलावा साक्षात राजलक्ष्मी बड़की पुतौहु आगाँ-पाछाँ करैत रहैत छथिन। मां क कहव छैन्हि भगवानक नाम रखने अनायास लोक अनेक बरे भगवानक नाम लऽ लै’छ। तखन हमर नाम प्रिया के राखलक? डा॰ अमृता कौर नहि, नाम रखलक राध नर्स! कृतज्ञ छी हम नर्स राध्क। सुमित्रा, सरला सरोज आ तकर बाद जँ हमर नाम सावित्राी राखल-जाइत तऽ? ओ तऽ
राध नर्स राध नर्स कहलकै आब ‘स’ अक्षर सॅ नाम नहिरखियौ नहितऽ पांचम बेटीए होएत।
एकटा बात बुझलहुँ मां के जँ दूइओ मिनट एसगर रहऽ पडै़त छैन्हि तऽ ओ घंटी पर घंटी बजा कऽ आडन घर केँ आन्दोलित कयने रहैत छथि। पलंग के सिरमा लग भैया कॉलिंग वेल लगबा देलथिन। मां बटन दबबैत रहैत छथि लोक दौड़ल- जाइत छैन्हि पूछऽ। वेशीकाल बड़की भाभीजी आ छोटकी भाभी जी जा कऽ पूछैत छथिन - ‘मां जी! की भेल? किछु चाही??
-नहि, रानी! ई रध्यिा कखनौ एकठाम टिकते नहिअछि। आ अहाँ सभके अपन ध्आि पुता ओझरौने रहै’छ। हमरा माथ मे दर्द होइत अछि तैँ घंटी बजौने छलहुँ जे रध्यिा बाहर सॅ आओत।
- ‘मां जी कहू न कोन दवाई दी?’
- ‘सरिडान आ एकटा हार्टवला दवाई लिब्रियमा दवाई दऽ कऽ भभी जी घुरऽ लगैत छलथिन तऽ मां कहैत छलथिन अरे क्यो तऽ रहू- हमरा लग। हमरा लग। हमर मन घबरा रहल अछि।’
आ बड़का भैया केँ जँ ऑपिफस सँ घुरिकऽ।
घर आबऽ मे आधे घंटाक देरी भेला पर हाय तौबा मचा दैत छलीह.......’ हे भगवान! आकाश मे बिजुरी चमकै’छै चारू भर मेघ लागल छै..... हमरा बड्ड चिन्ता भऽ रहल अछि। करेज थरथरा रहल अछि.... कहीं एकसीडेंट नहितऽ भऽ गेलै?’
- ‘मां जी! किछ नहिभेल हेतै’ अबिते होयताह कियेक चिन्ता करै छी।’
जँ रातुक बेर रहैत छलै तऽ कहैत छलथिन- ‘सब दिन कहैत छिऐ वशी राति कऽ नहिअबि। जमाना खराब छै, बाट-घाट मे चोर-डकैत अवसरक ताक मे रहै’छै।’ जहिया सही समय पर भैया घुरि कऽ अबैत छलथिन तऽ सबसे पहिने मां क रूप मे जाइत छलाह मां बैसल रहैत छलथिन ओ हुनके- लग सूतल-सूतल अपन दिनचर्चा सूनबैत छलथिन। ओ समय समिट कांप्रफेन्सक रहैत- छलै तखन आर क्यो गप्प-सप्प भेला क बाद मां बेटा भोजन लेल बैसैत छलाह तऽ बड़की भौजी बैसि कऽ भोजन करबैत छलथिन। बाबूजीक स्थान लेलैन्हि बड़का भैया। ध्रक आर सदस्य सहमल-सहमल अपना-अपना रूपमे रहैत छल। सभकेँ अंदेशा रहैत छलै नहिजानि आइ ककर पेशी हेतै’? ककरा डॉट-पफटकार लगतै?’
एकटा सांझि ओहिन याद अछि। ओना त अपन नेनपनक कतेक सांझि ओहने बीतल छल। छुटीð मे सब दुपहरिया मां क नाम समर्पित करऽ पडै़त छल। हुनका नजरिक सामने बेसल रहू हुनका कंखन कोन वस्तुक जरूरत पड़तैन्हि। पहरा दैत बीतैत छल दुपहरिया। हं, तऽ सांझि भेल जाइत छलै’। पछिला बरांडा मे मां कुर्सी पर बैसल छलीह। बगल मे मोढ़ा पर बैसल सल्लो दीदी स्वेटर बुनैत छलीह। नीचॉ सॅ सरोज, नीलू आ बुल्लीक आवाज सुनाइत छल। किछु पड़ोसियोक ध्यिा-पुता खेलाइत छलै खूब जोर-जोर सँ सब बजैत छल- ‘आलकी पालकी जय कन्हैया लालकी......... मां हमहूँ जाउ खेलऽ।’
की एक दिन नहिखेल जयबें तऽ मरि जयबें? देखैत छहीं सल्लो चुपचाप बेसल छै, यानी पीरियड्स मे। किछु बुझऽ सूझऽक अवगति नहि। जरलाहो मासे-मास ई आपफत! ;पीरियड्सद्ध आ बड़की ;बड़की भैजीद्ध राजलक्ष्मी नैहर गेल छथि मां बजौने छलथिन। मास दू बेर-तीन बैर नैहरकचक्कर लगबैत छथि। मां-दस दिन बीतैत-बीतैत पफोन करऽ लगैत छथिन ‘समध्नि! पारो केँ पठा दिअ।’ मन तऽ होइत कहिऐन्ह सब दिन राखि लिअ अपने ओतऽ। एक दिन आजीज भ कऽ कहबो कयलन्हि - ‘एक आबऽक काजे कोन ओतहि रहतीह!’
-पुतौहु बजलीह- मां अहाँ एना कियेक बजलिऐ?’ कोन अनर्राल बजलहुँ। अपने तऽ जाइते छी संगे मुन्नो के लऽ जाइत छी। घर केहन सुन्न भऽ जाइछ। मोन नहिलगैए। दोसर बात ई जे ओतऽ अल-बल खा लै छै आ बिमार पड़ि जाइत छै। तखन डाक्टरक पफीस कियेक नहिनानी दैत-छथिन। कहू तऽ चोर बगान रहऽ योग जगह छै? चारू भर रांदगी नाक नहिदेल जाइ छै।’ पफेर हमरा दिस तकैत बजलीह- ‘प्रिया जो हमर केश झाड़ऽ बला ब्रश नेने आ।’ जाए लगलहुँ ब्रश आनऽ नऽ सल्लो दीदी के कहलथिन ‘सल्लो, देखहि ई तऽ दिन दुगुना राति चौगुना बढ़िते जाइत छै ऊँट जकां। आ बु(ि-ज्ञान रत्ति भरि नहि।’ मां क ब्रश देलऐन्हि केश झाड़ वला तऽ बजलीह बिना अयनाक केश थकड़ब? सल्लो! कनि एकए टूेनिंग दऽ लुड़ि-व्यवहार सीखा। केना सासुर जायत एहन अलबटाहिके कोन लड़का पसिन्न करतै? हम अयना लऽ कऽ झटकल एलहुँ तऽ कहलनि जाइत छलेँ तऽ पूछिते ने आर की चाही? मूँहपोछऽ वला तौलिया आनि दे।’ तौलिया आन जाय- लागलहुँ तऽ पफेर चिकरलनि-‘कत जाइत छेँ?’ ‘तौलिया आनऽ।’
तौलिया गेल भाड़ मे। पहिने ‘चूडि कोलोन’क शीशी आनि दे। बाप रे माथ मे दर्द होमऽ लागल।
-‘यूडिोलोन’क शीशी लऽ कऽ एलहुँ पफरमान जारी भेल-माथ मे लगा। माथ मे यूडकोलोन लगबैते छलिऐन्हि की पफेर बजलीह-माथ दाबि दे दर्द- होइए।’ माथ दबैत छलिऐन्ह तऽ हुकुम भेल- ‘ध्ुरऽ केना जातै छेँ हाथ मे दम नहिछौ? खाइ छथि भरि थारी......।’
हमर ऑखि नोरा गेल सल्लो दीदी दिस तकलहुँ मुदा हुनका हिम्मत छलैन्हि जे किछु बजितथि! कनि कालक बाद पफेर चिकड़लनि ‘बाप रे बाप कत्ते जोर सॅ दाबि रहल छेँ हाथ छै की लोहा....? जो हट हमरा टेलिपफोन आनि कऽ दे।
-टेलिपफोन आनि कऽ देलऐन्ह तऽ कहलनि ‘यमुना मासी से बात करा।’ नमबर लगा कऽ चोंगा कान मे सटेलहुँ -‘मां ऑपरेटर कहैत अछि एखन लाइन एंगेज छै।’
-गदही, मुँह मे बकरा नहिछै-‘कहलही कियेक नहि जे अर्जेंट बात करबाक छैक, जलदी-लाइन दे।’
पफेर हमरा कपड़ा पर नजरि पड़लनि। समीज एतेक गंदा केना भऽ गेलौ? हरदि कोना लगलौ? खा कऽ समीज मे हाथ पोंछि लेलेँ। केहन ढ़हलेल भऽ गेलै’ ई कहियो नहिसुध्रत!’
मां, हमरा समीज मे बुल्ली हाथ पोछि लेलक। हम तौलिया सॅ हाथ पोछैत छी।’
‘पोछऽ कियेक देलही? जो बदल कपड़ा चमैन सन लगैत छौ!’
ढ़हलेल, अपराजक, अलबटाहि कतेको उपाध् िसॅ विभूषित भऽ हम कपड़ा बदलऽ गेलहुँ। बुझायल पीरियड्स शुरू भऽ गेल। ओह! आब जँ एखन मां कहबनि तऽ पफेर चालू भऽ जयतीह ध्ंटो की कहॉ बजैत रहतीह। ठीक छै आइ पहिल दिन छै परसू माथ धे कऽ नहा लेब।
पैड लेब लेल डेराइत-डेराइत मां के कहलिऐन्ह -‘मां पीरियड्स......’
मुँहक बात बहराइते भयानक विस्पफोट भेलै। -‘चंडाल! आइए इ हो होयबाक छलौ। काल्हि तोहर बाबूजीक बरखी छैन्हि। पीसी, काकी सब जुटतै। एकर काकी क तऽ गी(क दृष्टि छै ओ तऽ देऽते कहथिन- सल्लो! ई तऽ दस साढ़े- दस बरख उमरे मे चौदह बरसक देऽबा मे लगै’छ। मां बड्ड असहज भऽ दीदी दिस तकलनि। दूनू गोटा किछु पफुसुर-पफुसुर बतिऔलनि हम नहिसुनि सकलहुँ। हँ भीतरे-भीतरे उपफान उटल छल पीरियड्स होइछ ताहि मे हमर कोन दोष? बिना अपराधे के हरदम बात सुनैत छी। आ केहन निर्मम सजा भेँटैत अछि काल्हि भरि दिन पाछँा बला बराांडा मे बन्न रहऽ पड़त। बीच मे नास्ता, भोजन दाई मां दऽ जाइत छलीह -ऽा ले बुुच्ची।’
-‘दाई मां हम बाथरूम जायब।’
-बुच्ची, भरल आंगन लोकसभ छै हम कोना एऽन लऽ कऽ जाउ? बहुरानी त हमरा कांचे जीबा जेती। कनि ध्ैर्य राऽू चुच्ची। आहंक पीसी आ काकी सभ आंगन सॅ हटतीह तऽ हम लऽ जायब।
भादवक उमस बला दुपहरिया आ एसगर गुमसुम बैसल रहब। हमर अस्तित्व डॅामाडोल भऽ रहल अछि। मां हमर कोन दोष? हमरा की नीक लगै’छ दूनू जांघक बीच ऽुन बहब? आ नाहि लेल एहन चातना। हमरा केहन आत्मग्लानि होइछ से मां के बूझल छैन्हि? की ओ हमर अपराध् बोध् अनुभव करैत छथि? एऽन ध्रि ई कस्ट सरोज के नहिभोगऽ पड़लै ओ तऽ हमरा सॅ पैघ अछि! सुनैत छिऐ जे सल्लो दीदी के चौदहम वर्ष मे पीरियड्स शुरू भेल छलैन्हि। तऽन हमरा अहि उम्र मे कियेक भेल? पॉच बजे मे दाई मां बरांडाककिवाड़ ऽोललैन्हि। मां ध्ीरे सॅ कहलनि कपड़ा तेना पफेकीहे जे ककरो नजरि नहिपड़ै।’ सरोज, बुल्ली, नीलू आ छोटका भैया बाहर ऽेलाइत छल। बुल्ली हमरा देऽिते चिढ़ाबकऽ लागल -‘ए अछूत कन्या! अछूत....।’ लाजे ऑऽि झुकि गेल। तऽ सब केँ बूझल छै?
‘दाई मां! हमरा देह सॅ प्रत्येक मास कियेक ऽून निकलै’छ!’
दाई मां कहलनि -‘होइत छै सबके मुदा अहॉ केँ -जल्दी भऽ गेल।’
‘हमरा जल्दी कियेक भेल?’
-आब हम की कहू-दाई माँ उसाँस लैत बजलहि।
-ओइ दिनक दुर्घटनामे पैंटी मे ऽून लागल छल। आ ओकर दू मासक बादे सॅ मासे-मास ऽून ऽसैत अछि। एकर माने हमर कस्टक कारण छथि बड़का भैया। सौंसे शरीर मे जेना आगि लागि गेल। बड़ी काल ध्रि कनैत रहलहुँ।
-‘दाई मां! हरा सँ मां चिढ़ल कियेक रहैत छथि?’
बुच्ची! अहाँ सब तऽ शहर मे छी। गाँव मे तऽ जँ कोनो लड़कीकेँ ब्याह सॅ पहिने मासिकर्ध्म होइत छै तऽ लोक कहै छै जे माय-बाप केँ पाप बढ़ैत छै?’
-दाई मां अहीं कहैत छी पीरियड्स केँ मासिकर्ध्म! तऽ र्ध्म मे पाप केना बढ़ै?’
दाई मां कहलनि हम पढ़ल-लिऽल नहिछी लोेकक मूँहेँ जे सुनलिऐ से कहलहुँ।’
हमरा किछु बुझबा मे नहिआयल। बस एतबे बुझलिऐ जे हमरा संग बहुत गलत भेल। शायद एकरे पाप कहैत छै। आ तैँ मां हमरा सॅ एतेक घृणा करैत छथि। हमर कोनो बात नीक नहिलगैत छैन्हि-हॅसब, बाजब, चलब एतवे नहिदेह बाढ़ि सॅ देह मे लुत्ति लागि जाइत छैन्हि! हम एतेक लम्बा कियेक भऽ रहल छी? हमर रंग ऽूब उज्जर दूध्यिा गोराई नहिअछि। मां बाबूजी दूनू गोटे ध्प-ध्प गोर। दूनू भाई आ बहिन सभके रंग ऽूब सापफ हँ बड़की दीदी के गेहुऑ गोराई छैन्हि हमरे जकॉ। नहिजानि कियेक बाहरी लोक केँ चाह देबऽ काल हमर हाथ कॉपऽ लगै’छ। तहिना कतबो सतर्क रहैत छी तइओ चलैत छी तऽ ध्म-ध्म आवाज होइत छै। हम हरदम ओइ परिक कल्पना करैत रहैत छी जे अपना छड़ी सॅ छूबि कऽ लोककेँ सिंडूेला बना दैत छै एक बेर हमरो ओहि छड़ि सॅ छुबि दैत तऽ हमहूँ सिंडेला बनि जाइ। आब हमरा एकदम मन नहिलगै’छ कछु मे। मोन नहिपडै़ए जे कऽनौ कनैत काल मां दुलार कऽ कोरा मे उठौने हेजी। चाहेँ हम भूऽ सॅ कनैत होइ या पेटक दर्द सॅ। कतौ ऽसलौह कतहुँ छिला गेल या कथु सॅ आंगुर कटि जाय। मां चिचियाकऽ दाई मां के शोर पाड़तीह ‘ए चमेलिया माय देखियौ की भेल बेटी केँ। आब एऽन सॅ करैत रहू दवाईबिराँ। हमरसभटा परिचर्या करब दाईमांक काज छलैन्हि। हमरा बोखार लगैत छल तऽ राति-राति भरि दाई मां सिरमा मे बैासल रहैत छलीह। आ जँ बोखार दू-तीन दिन मे कम नहिहोइत छल तऽ दाई मां- मां लग जा कऽ रिरिआइत छलीह - ‘बहुरानी! तनि गांगुली बाबू के बजा दियौ ने। तीन दिन सॅ बुच्चीक बोखार सॅ देह ध्ीपल रहैत छै अहॉके कनिको दया-मया नहिअछि? एऽन सरोज बौआ या नीलू केँ कनि सर्दी हेतै’ तऽ तुरते डाकटर साहेब के बजालेब।’
-‘हमरा की कहै छेँ तोहर बेटी तऽ धेड़ा सन मजबूत छौ ठीक भऽ जेतै। डाक्टर गांगुली मंगनी मे नहिअबैत छथिन पफीस देबऽ पड़ैत छै।’ दाई मां ऑचर सॅ नोर पोछैत हमर रूम मे आबि सिरमा मे बैस जाइत छलीह वा तरबा सोहरबैत छलीह। आ हुनकर आत्मलाप शुरू भऽ जाइत छल।
-‘लगिते नहिछै जे बहुरानीक ई अपन बेटी छैन्हि, कनिको दया-मायाक लेस नहिसतौतो माय के एहन पत्थर करेज नहिदेऽलहुँ! जहिया सँ मालिक गेलाह हिनकर स्वभाव आर कठोर भऽ गेलैन्हि।’
हम चुपचाप सोचैत रहैत छलहुँ मां केँ कोना ऽुश करि। तैँ ऽेलऽ कूदऽ के वयस मे हम सियान नर्स जकाँ हुनकर सेवा करैत छलिऐन्ह। मुदा ध्ीरे-
ध्ीरे हमरा बुझा गेल सभटा व्यर्थ प्रयास अछि। ठुनका हमरा प्रति रत्ती भरि स्नेह ने छैन्हि ने कहियो हेतैन्हि। एक दिन हम अपना ने संगि सॅ पफोन पर बतिआइत छलहुँ। मां आबि गेलिह। हाथ सॅ टेलिपफोनक चोंगा ल कऽ नीचाँ मे पटकि देलथिन आ तड़ाक-तड़ाक थापड़ मारलनि -दिन भरि पफोन कान मे सटौने रहत।’ मां क आवाज सुनि बड़की भाभी दौड़ल एलीह। ठोर पर आंगुर राऽि हमरा चुप्प रहबाक इशारा कयलनि। बहुत देर के बाद पता चलल बगलबला मकान सँ एकटा किरायादार जा रहल छै। तैँ मां क पारा गरम छलैन्हि जाबत नव किरायादार नहिएतै ताबत दूसौ रूपयाक घाटा हेतै। जे होउ हमर कोन गलती क्रोध् होइत छैन्हि तऽ हमरे बात कहि मोन शान्त करैत छथि घर मे आर बाल-बाच्चा नहिछैन्हि? की सरोज-पफोन पर नहिबतिआइत छै- ओकरा कऽनो टोकबो करैत छथिन। हमरे एतेक गंजन कियेक करैत छथि की हम हुनकर बेटी नहिछिऐन्ह?
मोन बड्ड अशान्त छल। दाईमां के पूछलिऐन्ह -दाई मां सच-सच कहू आहँके हमर सप्पत हम अहॉक बेटी छी? ओ हमर मां नहिछथि?’ हे भगवान! ई कोन बात भेलै। अई मे सप्पत देब बला कोन गध्! अरे बुच्ची अहूँ हुनकेकोऽि सॅ जनमलहुँ। डाक्टर अमृता साक्षी छथि। हमर भेला ताहि दिन तीन बरऽक छल। हमरा बड्ड दूध् होइत छल। भोला के गाम में छोड़ि कऽ आयल छलहुँ तऽ अपन दूध् अहिँ के पीबैत छलहुँ। तऽ हमर संगी कुमकुम कियेक कहलक जे ‘ई तोहर अपन मां नहिछौ सौतेली मां छौ?’
‘सुनू बुच्ची! ओकर सभक बात पर ध्यान नहिदिअ। असल मे ओ देऽैत छै जे आर सभ बाल-बच्चा केँ दुलार-मलार करैत छथिन अहाँके कऽनौ नीक बातो नहिकहै छथि। तैँ हने हेत। मुदा ई बात जँ अहांक मां के कान मे जेतैन्हि तऽ ओ अहिंक कपाड़ पफोड़ि देती। कुमकुम केँ की बिगड़तै।’
-‘एऽन हम कतऽ छी? ई कोन स्थान छै?’ .......ओइ हम तऽ डूयब्रवनिक छी।
आँऽि निन्न सॅ एऽनो बोझिल लगै’छ। सूर्यक- घाही एऽनो छै। हम डेक चेयर पर बैसल बैसले सूति रहल छलहुँ। पैर लग कॉपफीक कप ओध्रायल छल। एक दिस किताब आ डायरी छल। आई शुक्र छै। एत आयल चारी दिन भऽ गेल। उठि कऽ ठाढ़ भैलहुँ। हमरा ई बालकनि बड्ड नीक लगै’छ। दूर-दूर धरी लहराइत समुद्र। किलाक बुर्ज पर किछु सैलानी ठाढ़ छै जे एतेक दूर सॅ मात्रा छोट सॅ आकृति बुझाइछ। हवा कझोंका पहाड़ दिस सॅ आबि कऽ गाल छूबैत अछि शीतलता सॅ मन प्रसन्न भऽ जाइछ।
हमरा ऽिड़की सॅ बगीचाक देबालक पीठ झलकै’छ आ किछु लतर देऽाइत अछि ओइ लतर पर भोर का सूर्य क किरण चमकै छै। लगे मे अंजीरक ऽूब पैध् गाछ छै एकटा अल्हड़ लड़कीक ऽिलऽिलाक हॅसऽ जकाँ हवा पात-पात पर झुमैत बुझाइछ। ई हवा हमर आशान्त मन के प्रपफुलित कऽ नव ताजगी दऽ रहल अछि। हमरा ऽिड़कीक पर्दा पर ध्ूप-छॉह का ऽेलौड़ भऽ रहल छै।
आइ पूर्ण विश्राम लेब। ओना तन ध्ुर-ध्ुरिकऽ अतीत के ऽुरचैत रहै’छ। मुदा ओइ-ऽुरचन मे हमरा भेटँत की ...... की हम अपना आपके वापस कऽ सबक? मन क जख्मी चिथड़ा के टुकड़ाकेँ जोड़ि सबक? हं प्रयास कऽ सकैत छी। आ सेह कऽ रहल छी। नहिजानि कियेक बचपन मे हमरा मां बौकी ढ़हलेल, बकलेल नामे ध्यने छलीह। बाबूजी कहियो एना नहिबजैत छलाह ओत सदति काल बजैत छलाह-हमर ई बेटी बहुत तेज अीछ ऽून पढ़त विदुषी होएत। आ मां हमरा एकदम पफूहड़ बुझैत छलीह। हुनकर देल विशेषण एऽन ध्रि अचेतनमन मे सई जकां गंथल अछि। आ तैँ अहू उम्र मे जँ क्यो हमर प्रशंसा करैत अछि तऽ विश्वास नहिहोइत आछि। कोनो कॉम्पटनीमेंट केँ हम ग्रेसपफुली नहिलऽ पबैत छी। हँसैत काल दांत देऽाइत छल त सब भाई-बहिन हमरा दंतुली नाम ध्यने छल। सबसॅ रंग कम छल तऽ मां क आया राधक कहब छलै कतबो साबुन लगौती प्रिया तइओ सरोज सन उज्जर नहिए होयतीह। अपना वर्ग मे सबसे वेशी लम्बस छलहुँ तयॅ हमरा सब दिन पछिला बेंच पर बैसऽ पड़ैत छल। कहियो कोनो प्रश्नक जवाब नहिदऽ पबैत छलहुँ। घर मे हमरा लेल नव जूता अबैत छल तऽ पहिने सरोजे पहिरैत छल नव डूेस आबयतऽ पहिने सरोज पहिरए। साज-श्रृंगार मे हमरा कहियो रूचि नहिरहल। स्कूलक बाद जऽन कालेज मे प्रवेश कयलहुँ तऽ संगी साथी सब कहलक चेहरा केहन सुरेबगर छै! तऽ हमरा विश्वासे नहिभेल। लड़का सब सँ हम सहमल रहैत छलहुँ। दोसर बात ई जे सब हमरा नजरिमे बच्चे छल। पता नहिहमर केहन दिमाग छल जे चौबीस-पच्चीस वर्षक हमरा बच्चा सन बुझाइत छल। समय सॅ पहिने हम सियान भऽ गेल छलहुँ!
-रिजेक्ट! रिजेक्ट देम टोटली-हमर मन कहैत छल। हमर सपना बदलि गेल छल आ हम ऽुब चैन सॅ ओइ सपना के देऽैत छलहुँ। ऽासकऽ सपना ओहने देऽैत छलहुँ जकर वास्तव मे अभाव ऽटकैत- छल। असल मे हमरा अर्न्तमन मे एक असुराक्षित लड़की छल जकरा एऽनो अपन बाबूजी रक्षक छलह। हुनकर जीवन शैली सभटा हमरा लेल गौरव क बात छल। हम पुरूषक निर्मम पक्ष नहिदेऽने छलहुँ कियेक तऽ हमर पिता शाऽा-प्रशाऽा पसारने एकटा वट-वृक्ष छलह। तैँप्रत्येक पुरूष मे हम हुनके छवि तकैत छलहुँ। सुरक्षा हं, सुरक्षाक गप्प तऽ छलैहे जे हमरा बड़का भैया सॅ बचाबए। हमरा ओ राति नहिबिसराइत अछि जहिया भाभी जी बड्ड बिमार छलीह आ सरोज सूतैत छलहुँ। ओ राति मे ससारिक हमरा पीठ लग सटि कऽ पफुसपफुसाकऽ बजैत छलाह प्रिया ए प्रिया आ तकर बाद हम सांस रोकि भगवान के नाम लऽ मने मन विनती करि हमरा बच्चा लिअ भगवान। बहुत देर ध्रि पीठ पर कोनो कड़ा वस्तुक रगड़बाक अनुभव होमए करेज ध्क-ध्क करैत छल। पफेर लगैत छल लसलस जकां समीज मे चादर मे। दाई मां भारे मे विछावन झाडै़त काल चादरि मे दाग देऽि हमरा दिस तकैत छलीह तऽ हमरा हुनका दिस ऑऽि उठा कऽ ताकि नहिहोइत छल। एकटा पाथर पर जीवित आदमी अपना केँ ध्सैत छल। सब दिन एहन नहिहोइत छलै मुदा तीन चारि मास मे कतेको बेर एहन भेलै।
हम राति-राति भरि डरेँ सूति नहिपबैत छलहुँ! बी.ए. पफाइनल के परीक्षा छल आ मोन एकाग्र नहिभऽ रहल छल। कॉलेज सॅ घर घुर बाक इच्छा नहिहोइत छल। सूरज डूबिते एकटा दहशत घेर लैत छल। पता नहिआइ भैयाकतऽ सूतता जॅ पफेर हमरे रूम मे.....।’
एक राति सूतल छलहुँ डरेँ निन्न तऽ नहिए भेल छल कि भैया जोर सॅ बिठुआ कटलनि- हम उठिकऽ भगलहुँ बरांडा दिस दाई मांक विछावन नीक लागल अपन पलंग केर डनलप सॅ। भोर मे उठलहुँ तऽ दाई मां कहलनि- बुच्ची आब हम चुप्प नहिरहब। आब बहुरानी के अवएसे कहबैन्हि।’
-नहिदाई मां! अहॉ केँ हमर शपथ। दाई मां। अहाँ ककरो किछ नहिकहबै। ई हमर कर्मक दोष अछि। आब हम कुमारी छी कहाँ? दुःऽ आ क्षोभ सॅ दाई मां करेज पीटऽ लगलीह। अइ- बड़का घरक दाई मां बड़का घरक बेटीक दुऽ सॅ दुऽी भऽ बस एतबे बजलीह- केहन कुकर्मी छै अपना माय बहिन के नहिछोड़लक से कतौ मनुष होइ ई तऽ साक्षात राक्षस छै एहन देह मे आगि उठलै तऽ कोठा पर जाइत।’
मुदा आब हम बजबै। बाजऽ पड़त। मुदा कहबै ककरा? आर ककरा कहबै ऊ राक्षस आय एतै तऽ कहबै। की कहबै? हमरा नहिध्ू। निर्लज मानि जायत। हमरे उनटे गरदनि दवा देत। अहि घर मे सरोज छै ओकरा कहाँ
ध्ुबऐ छै? हम एमरे शोषण कियेक करैत अहि? मां ठीके कहैत छथि- हम बौकी छी। बेवकूपफ छी, अप रोजक छी .....।’
राति मे साढ़े नौ बजे भैया बरांडा पर ठाढ़ भेल ािगरेट पीबैत छलाह आर क्यो नहिछलै। हम शान्ति पूर्वक ओइठाम जा कऽ ठाढ़ भेलहुँ।
-‘भैया।’
हमरा दिंस तकैत बजलाह ‘ओह, अहाँ।’
‘हं, हम छी। हम एऽने ऊपर सॅ कुदिक आत्महत्या करऽ जाइत छी....’ एतबा बाजि हम एकटा पैर रेलिंग पर रऽलहुँ।
-‘शट अप! यू स्टूपिड गर्ल.....।’ आ ओ हमर हाथ पकड़ि लेलैन्हि।
हम लोहछि कऽ बजलहुँ- हमर हाथ छोडू।’
-‘पहिने प्रामिस करू अहां कोनो एहन काज नहिकरब।’
‘तऽ पहिने अहीं प्रॉमिस करू जे....।’
हां, प्रॉमिस बाबूजीक शपथ छल।’
महा झंझावात के बाद क शान्ति छल।
आब ओ दोबरा कहियो नहिछुलैन्हि। मुदा हमरा अपने सॅ घृणा भऽ गेल। हं, ओ हमर उपेक्षा करऽ लगलाइ पफीस लेल पाइ नहिदैत छलाह कोनो छोट-छीन जरूरतो लेल तरसैत छलहुँ। ऽैर आब घर सुरक्षित-बुझाइत छल।
हमरा मोन नहिपडै़ए हमर दादी केहन छलीह ने कऽनौ नानीक मुँहकान याद अछि। हं, नानीक घरक स्मरण अछि बड़ा बाजार मे हैरिसन रोड मे। हमसब साल मे मात्रा चारि बेर नानी ओतऽ जाइत छलहुँ। साओनक तीज मे। होलीक गनगौर मे राऽी मे दिवालीक दोसर दिन। गनगौरक सिंधरा मे नानी ग्यारह रूपया दैत छलीह। भोजन मे तिवारी दुकानक समोसा, उजरा रसगुल्ला कचौड़ी, आलूक रसदार, भरूआ परोर आ छोहराक - चटनी। दिवाली मे दिलरवुश बरपफी, दही बड़ा, आलू मटर के तरकारी, कोबीक भुजिया।
मां कोबिक पफूल कहलाकपर ऽौंझाइत छलीह आ नानी तऽ किछु बजने चट मां के शिकायत करैत छलीह ‘कस्तुरी! तोहर बेटी बड्ड तर्कदैत छौ? हम बिनु अपरोध् नहुँ-नहुँ छोटकी नानीक घर मे जा कऽ नुका जाइत छलहुँ। हमरा छोटकी नानी ऽूब मानैत छलीह। मुदा मां आ यमुना मौसी छोटकी नानी केँ देऽऽ नहिचाहैत छलीह। नहिजानि नाना दूटा ब्याह कयने छलाह की कोनो ओ रहैत छलीह। हं, मामा दून्नू नानी केँ एक रंग आदर करैत छलथिन। कोनो भेदभाव नहि। मामा अपनो दूटा ब्याह कयने छलाह। छोटकी मामी मामा सॅ तीस वर्षक छोट छलीह। छोटकी मामी के कीनकऽ आनल गेल छलैन्हि। दुबर-पातरि ऽूब सुन्दर पफैशनवाली। मुदा बड़की मामी सन सम्मान नहिछलैन्हि परिवार मे। बहुत दिनक बाद एक दिन मामी हमरा मां केँ कहैत छलथिन -अहांक भाई हमरा कियेक ब्याहिकऽ अनलनि जऽन परिवार मे क्यो हमरा मनुष बुझिते नहिअछि! ऽालि बच्चा जनमाबऽ लेल ब्याह भेल हमर! बच्चो कहां हमरा अपन मां बुझैत अछि। कैलाश त बच्चे सॅ बड़कीए मां लग रहै’छ, हुनके हाथे ऽायत हुनके लग सूतत। पैध् भेल तऽहमरा संग कतहु जयबा मे लाज लगैत छै। कहैए अहाँ तऽ हमर भाभी सन लगैत छी।
कुल मिला कऽ नेनपन मे हमरा ककरो प्यार-नहिभेँटल। एकहि खूटा छलै गड़ल एकेठाम चाहे दिन होउ या राति, जाड़क मौसम गर्मीक मौसम होउ या बरसातक, बिना कोना लोभ-लाभ के दाई मां दुलार करैत छलीह हमर जरूरत क ध्यान रखैत-छलीह। मोन नहिपड़ैत अछि जे कहियो क्यो हमरा लेल खेलौना किनकऽ अनने होमय। हे दाई मां सब मंगल केँ काली मंदीर जाइत छलीह ओ हमरा लेल पेड़ा, आ कोनो ने कोनो वस्तु अनैत दलीह। हम दाई मां के अबिते हुनका पकड़िकऽ पूछऽ लगैत छलिऐन्ह- दाई मां देखाउ ने हमरा लेल की अनलहुँ अछि। दाई मां पेड़ा रखने छी आ हमरा लेल चूड़ी अनलहुँ की नहि? पफीता कहने छलहु आनि देन। हं, दाई मां प्रसाद ककरो नहिदेबइ एकोटा पेड़ा नहिदेब सरोज केँ।
-‘नहि, बुच्ची, हम ककरो नहिदेबइ।’
ई बात-चित्त होइते रहैत छल ताबत सरोज आबि जाइत छल। आ बुल्ली बिना पूछने मतने मिठाईक दोना पर झपटा मारैत छल। आ सरोज पेड़ा खाइओ लैत छल आ मां लग जा कऽ चुगलिओ करैत छल। बस मां झनकैत बाजऽ लगैत छलीह- ‘ए चमेलिया माय अहाँ बजारक सड़ल-गलल मिठाई खोबैत-छिऐ बच्चा सभ के। आ मोन खराब हेतै तऽ?’ हं, हं, काली मायक प्रसाद सॅ बच्चा बिमार पड़ि जेतई?
हम सरोज दिस तकैत कहै छलिऐ- ‘खचड़ी कही के।’ दाई मां डॅटैत बजैत छलीह- ‘एक बुच्ची एहन गारि कतऽ सिखलहु? बहुत खराब बात छै नहिबाजि एहन बात।’
-‘तऽ कहू अहॉ देलिऐ किये सरोज केँ प्रसाद।’
-‘अच्छा आब नहिदेबै। उफ हो त बेटिए छै।’
नहि, दाई मां अहॉक बेटी हम छी आर केयो नहि।
दाई मां क गरदनि पकड़िक कोरा मे बैसिकऽ कहैत छलिऐ- -दाई हमरा तऽ सब कहैए’ झल्लो माई, कल्लोमाई, आयी आयी, दाई मां की बेटी आयी।’ हमरा घर मे तुकबन्दी करबा मे छोटका भैया उस्ताद छलाह। भैया, दीदी सब हमरा खिसियबैत छल।
इ तऽ दाई भऽ गेलै दाई मां क संग खाइत अछि। ठीके हम कतबो खा-पी लैत छलहुँ तइओ जाबत दाई मांक संग नहिखाइत छलहुँ ताबत मोन नहिभरैत छल। नौकर-चाकर लेल पफटक सरसोक तेल मे लहसून-पिआज बला तरकारी आ मसूरिक दालि बनैत छलै। दाई मां जखन खाइत छल पहिने हमरा भात-दालि सानि कऽ खुआ दैत छल तकर बाद अपने खाइत छल। भरि घरक लोक खा लैत छलै तखन दाई नौकर बरांडा पर बैसकऽ खाइत छलै। कहियो-कऽ दाई मांक थारी मे तरकारी नहिरहैत छलै भात-दालि आ हरियर मिरचाई पिआज संग खाइत छल। हम पूछिऐ- ‘दाई मां तरकारी नहिछै?’
तऽ कहैत छल- ‘हरिया सब हँसोथि लेलकै।’
-अहॉ रोकालिऐ कियेक नहि?’
-‘की हेतै’ आइ हम बिना तरकारिए के खा लेब।’
-‘अच्छा, आइ आबऽ दियौन्ह बाबूजी केँ, हम कहि देबैन्हि।’
-‘नहिबुच्ची! एकदम नहि। ई छोट छीन बात पुरुष केँ कान मे नहिदी।’
ई दाई मांक ट्रेनिंगक कमाल छलै जे हमरा जीवन मे क्षुद्र लोभ, लाभ दिस ध्यान नहिगेल। के हमरा की देलक आ हमरा सॅ बदला मे की लेलक तकर हिसाब नहिकयलहुँ। दाई मां-कहियो लेन-देन के हिसाब कहाँ कयलनि। दाई-मां जहिया गाम सॅ अबैत छलहि तऽ हुनका पोठरी मे रंग-बिरंगक खेलौना, जरीक चोटी, जौ के सतुआ आर कतेक वस्तु हमरा लेल अनैत छलीह। माँ जखन देखैत छलीह कपड़ाक बनल गुड़िया माटिक सुग्गा मैना तऽ हमरा पर हँसैत छलीह। उफँट सन भऽ गेलीह आ खेलतीह गुड़िया सॅ। हँ, दस वर्षक उम्र में हम औरत बनि गेलहुँ। तथापि कोनो कोन मे एखनहु नेनपन छल हम गुड़िया लऽ कऽ खेलाइत छलहुँ दाई मांक आनल जरीवला चोटि लगाकऽ खूब प्रसन्न होइत छलहुँ। आ दाई मां जे सतुआ। अनैत छलीह से तऽ ककरो पता लगिते नहिछलै। दाई मां चुपचाप नुकाकऽ खुआ दैत छलीह।
-हम कहैत छलिए -‘दाई आर सत्तु दिअ ने।’ तऽ कहैत छलीह- ‘नहिबुच्ची एके दिन वेशी खा लेब तऽ खराबी करत, काल्हि पफेर देब।’ दाई मां क बेटी चमेलिया हमरे ओत आबि गेल छल मुदा ओ अलग रूम मे रहैत छल हमरा-सब संग नहि। ओकर बोखार उतरि गेल छलै। मुदा हमरा मां के शक होइत छलैन्हि कोनो-छुतहा रोग छै तैँ हमरा सबके ओकरा लग नहिजाय दैत छलीह। मुदा हम कहां मानऽ वाली छलहुँ। दाई मां हमरे कारण घर नहिजाइत छलीह तऽ चमेलिया केँ अहिठाम लऽ अयलीह। तैँ हम दाई मांक संग चमेलियाक कोठरी मे- जाइत छलहुँ। मां-बेटीक बात सुनैत छलहुँ। वेशी काल चमेलिया मां के देखि कनैते रहैत छल। हमरा ओकर कानब नहिनीक लागय। हं, चमेलिया कपड़ाक खूब सुन्दर गुड़िया बनबैत छल। पुरान उज्जर कपड़ा लऽक मूँह-बनबैत छल पफेर ओइ मे एइया भरैत छल।
-कारी सूत सॅ ऑखि बनाबए लाल सूत सॅ डोर आ बिन्दी बनबैत छल। मुँह के धड़ बनाबय रूई ठुसि ठुसि कऽ छाती बनाबय पैर बनबय तऽ दाई मां के देखाकऽ पूछैत छलै- ‘देख तऽ माय ठीक बनल की नहि?’
जखन कखनौ चमेलिया जोर सॅ हँसैत छलै तऽ दाई मां डँटैत छलथिन- ‘एना जोर-जोर सॅ-कियेक हँसैत छेँ। आराम करऽ नहित पफेर बिमार पड़बे तऽ हम कतौके नहिरहब!’ हम अपन गुड़िया लऽ कऽ नीचाँ खेलऽ गेलहुँ। हमरा देखलक गुड़िया नेने तऽ सराज अपन वॉकी-टॉकी विलायती गुड़िया लऽ कऽ आयल। नीलू अपन बेबी डॉल अनलक जकरा हाथ मे एकटा शीशी छलै। नीलूक गुड़िया जखन शीशी सॅ पानि पीबैत छलै तऽ पेशाब करै आ सब हँसैत छलै। ई दूनू गुड़िया बाबूजीक मित्रा इतालवी अनने छलै। ओ देखने छल हमरा आ सरोज केँ मुदा जहिया ओ-गुड़िया लऽ कऽ आयल तहिया नीलू नानी घर सॅ आबि गेल छल। तऽ मां बेबी डॉल नीलू केँ देलथिन आ वॉकी-टॉकी सरोजझपटि लेलकै। मां कहियो देलथिन दूनू बहिन मिल कऽ खेला तखन हम दाई मां के कोरा मे बैसकऽ बड्ड कनलहुँ। खैर, आब हमरा नव-नव गुड़िया बना कऽ देबऽ कहलक- ‘हम कालीमाय के किरिया खा कऽ कहैत छी- ‘अहाँ के छोड़ि हम ककरो गुड़िया बना कऽ नहिदेबै।’
एक दिन चमेलियाक बनायल गुड़िया लऽ कऽ हम दाई मांक संग हुनकर संगी खेदरबाक माय के घर गेलहुँ। हमर गुड़िया देख कऽ खेदरबा बड्ड खुश भेल। ओ हमरा कहलक हम दूनू गोटे गुड़ियाक ब्याह करब। आब कहबै चमेलिया के कनि नम्हर गुड़िया बनाबए आ ओकरा घाघरा पहिरा देतै।
-हमरा मोन पड़ल सल्लो दीदी ब्याह से घाघरा पहिरने छलीह। आ मां क भारी भरकम घाघरा त चर्चे नहि। ओइ मे असली मोती टांकल छलै। मां के बड़का-बड़का बक्सा मे कतेको रंग-बिरंगक पोशाक छलैन्हि। भारी-भरकम जरदोजीक काज कयल घाघरा, ओढ़नी असली जरीक काज कयल बनारसी साड़ी। मुदा मां केँ भारी साड़ी नहिसोहाइत छलैन्हि। कहियोकाल अपन अतीतक चिट्ठा लऽ कऽ सल्लो दीदी संग बतिआइत छलीह आरे ओ जमाना छलै भारी-भरकम घाघरा पहिरू, बोग्ला बान्हू बड़की टाक ओढ़नी ओढ़न्न्। हाथ मे चूड़ा, पैर मे पायल। हमर दादरी तेहन वेष बना दैत छलीह जे की कहियौ। आ भोरे चारिए बजे उठि कऽ दादी आ तोहर काकी जॉत पर बैस जाइत छलथुन ऑटा पीसऽ। जॉत पिसकाल जॅतसार गीतो गाबथि।
नानी कहियो घाघरा नहिपहिरैत छलीह। मां क नैहर मे सब रंगरेजक रांगल ढाकाक महीन मलमल क सारी कढ़ाई कयल पहिरैत छलैन्हि। लम्बा कुरता जकॉ ब्लाउज। तैँ मां के घाघरा पफूहड़ ड्रेस बुझाइत छलैन्हि। हं, कड़की मे मां अपना एक-एक घाघरा सॅ दस-दस किलो चॉदी-निकालि कऽ ओकर थारी, बाटी गिलास बनबाकऽ बड़की दीदीक बेटीक ब्याह मे पठौने छलथिन।
हं, तऽ हम चमेलिया के कहलिऐ- एकटा खूब सुन्दर आ नमहर गुड़िया बना दे ओकरा घाघरा पहिरा दिहे। ठारह भऽ सकय से ध्यान रखिह नहितऽ ‘वर’ गला मे वरमाला कोना पहिरेतै।’
चमेलिया के ई सुनि कऽ छगुन्ता भऽ गेलै। ढारह होमऽ वला गुड़िया कोना बनाओत। ओना सरोज आ नीलूक गुड़िया तऽ चलितो छै मुदा ओ विलायती गुड़िया छै।
-तऽ की देसी गुड़िया ब्याह मे वरमाल काल ठाढ़ नहिभऽ सकै’छ? दुनियाँ भरिके उत्कंठा हमरा आवाज मे छल। पफेर हम चमेलिया केँ कहलिऐ- ‘सुनै छेँ हम अपन गुड़ियाक ब्याह खेदरबाक गुड्डा सॅ पक्का कयलहुँ अछि एहि शिवराति केँ ब्याह हेतै।’
चमेलिया मूँह मे ऑचर धऽ हँसैत बाजल- उफ खेदरबा बहु केँ ब्याह मे चढ़ायत की? ओकरा त एकटा चौअन्नी टा नहिछै।’
-‘हं चमेलिया, इ त हम सोचबे नहिकयलहुँ! आब कोन उपाय करू? एक बेर हं, कहिकऽ आब नहिकोना कहबै?’
‘अच्छा छोड़ऽ जेहन गुड़ियाक भाग।’ -‘तऽ गुड़िया बनि जयतै ने?’
‘हँ, अइ शर्त पर जे अहां बेर-बेर उफपर नहिआउ हमरा समय भेंटत त नीक गुड़िया बनत।’
-‘किये चमेलिया हम कोनो तोरा तंग करैत छिऔ?’
-‘नहिसे बात नहिछै। असल मे हमरा धूत वला बिमारी अछि जॅ अहाँ पटि जायत तऽ अहूँ बिमार पड़ि जायब।’
-‘धूतहा रोग छौ तोरा?’
पफेर मोन पड़ल सत्ते कहैत अछि। राधा मां के कहैत छलैन्हि चमेलियाक बर्त्तन अलग रखबाउ। ई सुनि हमार दाई मां बड़ी काल धरि कनैत रहलीह।
चमेलिया सत्ते गुड़िया बना देलक। जरीक घाघरा चोली पहिरने घोघ तनने गुड़िया ठाढ़ छल। बड्ड सुन्दर लगैत छल देखऽ मे गुड़िया। पातर डॉर- ताहि मे मोतीक डरकस। अपूर्व! हम चमेलियाक पकड़ि हुलसैत कहलिऐ- ‘सत्ते चमेलिया तू- बड्ड गुणमंती छेँ।’
-‘चमेलिया तोरा कतेक बेर कहलियौ बात किये ने बुझैत छेँ? पफेर दाई मां हमरा दिस तकैत बजलीह- बुच्ची चमेलियाक संग एना सटल रह छी आ बहुरानीक कान मे ई बात पड़तैन्हि तऽ हमरा कतेक गंज्जन करतीह?
-दाई मां हम जाइत छी- खेदरबा के कहऽ ओ अपन गुड्डा के लऽ एतै।’
हम, चमेलिया आ दाई मां छतवला कोठरी मे बैसल बतिआइत छलहुँ दोपहर छलै तीन बजैत हेतै।
‘दाई मां हम खेदरबा के खाय लेल की देबै?’ ‘बुच्ची, सतुआ छै ने।’
हम दाई मांक हाथ धयने सीढ़ी सँ उतरलहुँ। सड़क पार क खेदरबाक माय लग पहुँचलहुँ। दाई मां ओकरा संग बतिआय लागल। खेदरबा गुल्ली-डंडा खेलाइत छलै’ हम शोर पाड़लिऐ।
खेदरबा दौड़ल आयल। हम पूछलिऐ ‘तू अपना-गुड्डाक ब्याह हमरा गुड़िया से करबें?’ खेदरबा केँ एकटा विलायती प्लास्टिक गुड्डा छलै कता कूड़ा मे भेँटल छलै। खेदरबा खुश भऽ बाजल, हं हम अपना गुड्डाक ब्याहकरब। कहकहिया?’
‘एखने।’ दाई मां चलू।
-‘ए बुच्ची कनि सांस लेबऽ दिअ।’
दाई मां पफेर बतियान मे लीन भऽ गेलीह। खेदरबाक मां हुनका हाथ मे हुक्का धरा देलकैन्हि। हम खेदरबा के कहलिऐ- ‘चल हमरा गुड़िया के देखऽ।’
खेदरबा हमरा संग आयल। पैर दाबि नहुँ-नहुँ सीढ़ी-पर चढ़लहुँ। गुड़िया ओहिना सजल-धजल ठाढ़ छल खेदरबा मुग्ध भऽ ओकरा देखते रहि गेल।
‘बहुत सुन्दर दै गुड़िया एकरा हम बढ़ियॉ सॅ रखबै’ खेदरबा बाजल। ताबत आबि गेल बुल्ली। बुल्ली के देखते हम गुड़िया के अपना कोरा मे नुका लेलहुँ।
-ओ जिद्द करऽ लागल देखा की छै हमरा देखा दे...बुल्ली के छीनाझपटी करैत देख चमेलिया कहलक प्रिया, देखा दिऔ ने बराती लेल तऽ लोक चाहीने। ताबत सरोज आ नीलू दूने पहुँचल।
-‘केहन सुन्दर गुड़िया छै अरे ई त ठाढ़ भऽ जाइ छै वाह!’ कहैत गुड़ियाक घाघरा उठा कऽ देखऽ लागल।
हम चिचिएलहुँ छोड़ हमरा गुड़िया के तू सभ केहन बेशरम छे?’
मुदा हमर बात के सुनैत। नीलू चहकल-देखही-सरोज ई गुड़ियाक बांसक खपच्चीक पैर बनल छै। तीनू मिल कऽ गुड़िया लऽ हँसैत नारा लगाबऽ लागल प्रियाक गुड़िया क जय, जय।
हम कनैत नीचॉ मे ओंघराए लगलहुँ। खेदरबा भागि गेल छल। सरोज, नीलू आ बुल्लीक संग-संग अइ जुलूस मे सांझिकऽ खेलऽ वला आर धिया-पुता सामिल भऽ गेलै। सब मिलकऽ गुड़ियाक तहस-नहस करऽ लागल बांसक खपची निकालि देलकै आ जोर जोर सॅ नारा लगौलक प्रियाक बच्ची, बॉसक खपच्ची...तकरबाद घरक पैघ लोक ताना मारनाइ शुरू कयल। दीदी मां के कहलथिन: मां प्रियाक ब्याह खेदरबा सॅ कऽ दही भरि दिन गोइठा ठोकैत रहतै।’
शायद ई गप्प बाबूजी सुनि गेलथिन। हरिया के पूछलथिन त ओ सभटा वृतांत जतबा ओ जनैत छल कहल कैन्हि। बाबूजीक पफरमान जारी भेल- ‘हरिया चमेलियाक मां के कहि दही प्रिया के अपना संग जतऽ ततऽ नहिलऽ जाई। ओइ राति ढाई मां आ हम दूनू बड्ड कनलहुँ। हम हुनकर नोर पोछैत छलहुँ आ ओ हमर। हुचुकैत दाई मां बजलहि- ‘बुच्ची गरीबी सब से बड़का अभिशाप छै।’ हं, दाई मां, आब हम कहिओ गुड़ियाक ब्याहक चर्चा नहिकरब। बहुत दिन धरि छोटका भैया आ दीदी सब हमरा खेदरबाक नामलऽ खौंझबैत छल। खेदरबा गोइठा ठोकऽ बाली गरीब महिलाक बेटा छलै आ हम महल मे रहऽ बाली बड़का घरक बेटी! मुदा बड़का घर क बेट रहितहुँ हमरा लग कहाँ विलायती वॉकी-टॉकी गुड़िया छल। ककरा हमरा सुधि छलै जे हमरा लेल खेलौना किनैत! हमरा तऽ दाई मां क- गेठरी मे भेँटैत छल खेलौना। चमेलिया बनाकऽ दैत छल गुड़िया। ओकर बाद तऽ हम गुड़िया खेलनाईए बिसरी गेलहुँ। हम जखन सरोज अ नीलूक गुड़िया देखैत छलहुँ तखन मोन कानि जाए। दाई मां पफेर कहियो हमरा खेदरबाक घर नहिलऽ गेलीह। दाई मां हमर दुःख बुझैत छलीह मुदा ओ की कऽ सकैत छलीह। किधु दिनक बाद सॅ बाबूजी विदा भऽ गेलाह।
एकटा एहन समय आयल जहिया हमरा दाई मां आ अपन स्तरक बीचक दूरीक पता चलल। इ हो-बुझबा मे आयल जे दाई मां आ हमरा मां क संस्कार आ तौर तरीका मे जमीन आसमानक पफर्क छै। हमर मनक बहुत प्रश्न अनुत्तरित छल ककरो लग जकर उत्तर नहिछलै। आब हम पैघ भऽ गेल छलहुँ बी.ए. पास भऽ गेलहुँ। दाई मां के ऑखि मे मोतिया बिंद पाकि गेलैन्हि, डॉर झुकि गेलैन्हि। आब कोनो काज कयल-नहिहोइत छलैन्हि। कोनो ने कोनो दाई नौकर हुनका खिसियबैत रहैत छैन्हि आ ओ गारि पढ़ैत रहै छथिन। हुनका बैसऽ उठऽ मे कष्ट छलेन्हि केहियो ठेहुना में दर्द होइत छलैन्हि कहियो डॉर मे दर्द। एक-एक कऽ सभटा दॉत टूटि गेल छलैन्हि। आब दाई मे दालि मे रोटी गुरिकऽ खाइत छलीह। मां बिना किछु कहने-सुनने अपना काजक वास्ते कृष्णाकेँ राखि लेने छलीह। कृष्णा एखन जवान छल चारि लोकक काज एसगर करऽ वाली खूब रिष्ट पुष्ट।
कोनो ने कोनो बात पर मां केँ दाई मां सँ रोज झगड़ा होइत छौन्हि। दाई मां हमरा कॉलेज सॅ घुरैत काल-नीचॉ गेट पर बैसल रहैत छथि। हुनका अगल-बगल दरबान, ड्राइबर, बगल मे काज करऽ बाली दाई सभक जमघट लागतल रहैत छै। दाई माँ बिड़ी पीबैत बड़बड़ाइत रहैत छथि-अरे जाबत मालिक छलाह ताबत गरीब-गुरबाक ख्याल रखैत छलाह ओ मनुष्य नहि देवात छलाह। हुनकर परतर के करत। आब ने ओ राजा ने ओ कराह।
हमरा देखिलेते हुलसिकऽ कहैत छलीह। अरे, आबि गेल हमर बेटी। हिनके मुँह देखिकऽ एतऽ छी नहितऽ एत कियेेक रहितहुँ। हम अनायासअपना के अपराध्ी बुझैत छलहुँ। दाई मांक भविष्य एकदम अन्ध्कारमय लगैत छल। शायद आई पफेर मां दाईमां मे कहासुनी भेल हेतैन्हि। आब हम नेना नहिछी मां क दर्द बुक्षऽ लागलहुँ आछि। जेहन छथि जे छथि हमर जननी। जँ मां हिम्मतवाली नहिरहितथि तऽ काका सभत तऽ कहिया ने घर के बर्बाद कयने रहताह। एक दिन संवेदना छल निःस्वार्थ स्नेह दोसर हिस परिवारक प्रतिष्ठा उवा अन-बान शानक रक्षा लेल मां संघर्षशील छलीह। मां के कोन सुख भेटँलैन्हि? एक-एक पाइ जोडिृकऽ परिवार चलौलनि चारि-चारिटा बेटीक ब्याह कयलनि। की हुनका नहिबुझल छलैन्हि भैयाक चालि-चलन, हुनकर रईसी? ओ सब जनैत छलथिन मुदा विवश छलीह-किछु कऽ नहिसकैत छलीह। सदतिकाल बजैत छलीह आमदनि थोड़ खरचा अनन्त। एकबेर हम कहने छलिऐन्ह- मां, एतेक नौकर चाकर के रखबाक कोन जरूरी छै-समटा पाई तऽ एकरे सभ पर बुका जाइत छै ........
तऽ कहने छलीह-सबसे पहिने तू अपना दाई मां के गाँवा पठा। अपने जे खाय- पीबए तहि लेल कोनो मनाहीनहिछै मुदा भोज-भंडारा करत से नहिचलऽ बाला छै। रोज एकरा गाम से क्यों ने क्यों अबिते रहैत छै। एखने एक डेकची में भरिकऽ नीबूक शर्बत बना कऽ नेनेजाइत छल टोकलिऐ जे एतेक शर्बत की हैतै तऽ डेगची पटकि कऽ भागि गेल। की सभ ने बाजल ........... हमर मेहमान आयत तऽ ओकर खाय-पीअऽ लेल नहिदेबई ?
भाभीजी कहलनि-‘बौआ, आई दुपहरे सें नीचे में बैसल अछि जखन से मां टोकलथिन। पूरा मोहल्लाक दाई-नौकर घेरने रहै छै ओ समक लीडर अछि। ओकरा अहीं बजा कऽ आनु’
सब जनै छै-हमरे बजौने ओ उफपर आयत। आई दाई मांक मन बउ्ड व्यथित छलै। बड़ी कालध्रि कनैत रहलीह। आब हमरा हुनकर कानब -रवीजव बर्दास्त नहिहोइत अछि। घर में अेहिना हरदम तनाव बनल रहैत छै। बड़की भाभी बहुत दिन से बीमार छथिन। मां पानि जकॉ पाई बहा रहल छथि काल्हि क्यों कहैनहिजे ठीक से इलाज नहिभेलै। भाभी सात बरसक बेटाक निहारैत डाक्टर से पूछलथिन ‘हम स्वस्थ भऽ सकै छी डाक्टर साहेब? मां हुनकर बात सुनि अपना रूम मे जा कऽ कानऽ लगलीह।
बाबूजी गेलाक बाद अब कनि रास्ता पर ससरल छल परिवारक गाड़ी। सोचैत छलीह मां अब कहुना सरोजक ब्याह कऽ लेब। आ अब ई आपफत बेटाक घर उजड़ि रहल छैन्हि। हम ओई राति दाई मां से बात कयलहुँ। ‘ए बुच्ची हम तऽ आहींक मुँह देखिकऽ छी-अइ घर मे। हम तऽ कहिया ने चलि गेल रहितहुँ अपना गाम। अइबेर तऽ हमरा छेदी कहलक तोहर बेटा आब कमाइत छौ। मुदा बुच्ची अहाँ तऽ हमर जिम्मेदारी छी। अहांक बयाह भऽ जाए तऽ हम बूक्षब गंगा नहा लेलहुँ।
दाई मां उफहाँ कान खोलिकऽ सुनि लिअ-‘हम एखन ब्याह नाहिकरब। आ अहाँके आब काज कयल नहिहोइछ। आब क्यों अहां संग नीक बात व्यवहार नहिकरैछ।’
‘मुदा हम उफहाँके छेड़िकऽ कोना जाउ? राक्षस ..........?’
‘दाई मां अहाँ चिन्ता नहिकरू। अब भैया हमरा संग किछ नहिकऽ सकैछ।’
‘से कोना बुक्षैत छिऐ........?’
‘हम कड़ा चेतावानी दऽ देलिऐ।’
‘अरे आब ध्मकी देला सँ की। औरत के जिनगी जँ एकबेर बरबाह भेल तऽ सब खतम।’
‘दाई मां अहाँ कोन युग के बात कऽ रहल छी?’
‘तऽ अइ युग मेें की होइ छै अहांक अंग्रजीक किताब मे की लिखल अछि।’
‘दाई मां हम अहाँ के कोना बुक्षाउ। अच ई कइने जे अहाँ नोकरी नहिकरितहुँ तऽ बाल- बचाक कोन हाल होइत सबसे पहिने औरत के अपना पैर पर ठाढ़ होमऽ चाही ’ स्वावलखन ब्याह से बेशी जरूरी छै।’
अरे हम कोनो खुशी से नौकरी कयलहुँ। आई अहाँँक बाबूजी रहितथि तऽ कहिया ने अहांक ब्याह मेल रहैत। एखन ध्रि तऽ हम नातिक मुँह देखने रहितहुँ!’
दाई मां के समक्षेनाई असम्भव छल। बहस से कोना पफायदा नाहितखन हम एकटा काज कयजहुँ अपना पाकेट मनी से किछु टका हुनका दऽ हैत छलिऐन्हि ई कहि जे अहाँक मेहमान आबय या ध्रक लोक तऽ बाजार सँ मंगाकऽ नास्ता भोजन करा देबई। ककरोसे बकझक नाहिकरब। परीक्षाक बाद भेल गर्मी छुटीð। हमरा छुटीðक समय हरदम बोझिल लगैत छल। एक दिनक छुटीð रवियों के तनाव बढ़ि जाइत अछि। छुटीðक दिन मांक सखती बढ़ि जाइत छैन्हि।
दीदी के हुकूम सुना दैत छथिन-टूनू धैड़ी के काज ध्ंध सिखा।’
ई गप्प स्कूले दिन से सुनि रहल छी। काज-ध्ंधक मतलब चाइर दालि बीछनाई राई जमाइन, जोर मरीच ध्नि सभके सापफ कऽ सुखाउ। मां आरामकुर्सी पर बैसैत छलीह आ हुनका सोझा में हम, सरोज, दूनू भाभी आ दीदी काज करैत छलहुँ।
मां कोन माटिक बनल छलीह से नहिजानि। पता नहिकोन शाप-पाप के ढ़ो रहल छलीह। आइ एतेक समय बीतलो पर सचाई सँ ऑखि मुनब कठिन लगै’छ। असल मे हम मां क स्वरचित नरक केँ ह कहियो स्वीकारि नहिपयलहुँ। एकबेर जाड़ मे बहुत सर्दी पड़ल छलै मां एक सौ कम्बल मंगा कऽ गरीब के बॅटलनि आ हुकूम भेल‘ हम सभ बाजि-कस्तुरी देवीक जय।’ ‘बाज जोर सँ बाज। ए लछमनियॉ, हरिया, सीताराम एकरा सभकेँ कहियै हम जगदम्बाक अवतार छी। हमर बाल-बच््या हमर पूजा करैत अछि।’
मन मे भेल कहबाक जे मां अहां ई नाटक छोड़ू प्लीज देवि जुनि बनू। साधारण लोक जकॉ व्यवहार करू। कहियो काल कतहु जाउ घूमू पिफरू।’ मुदा से कहाँ बाजि भेल। एक-एक कऽ मानवीय प्यार-व्यवहारक समस्त द्वार ओ बंद कऽ लेलैन्हि। ओ कखनौ नीचाँ मे नहिबैसैत छलीह। हुनक कहब छलैन्हि डाक्टर नीक सॅ हार्नियॉक आपरेशन नहिकयलक पैर क एकटा नस कटि गेल अछि। हलांकि डाú एú केú सेन अइ बात केँ नहिस्वीकारैत छलाह। ओ कतहु जाइतो छलीह तऽ गाड़ीक डिक्की मे हुनकर कुर्सी जाइत छलैन्हि। दू टा नौकर हुनका बड़का पीढ़ि पर बैसाकऽ उतारैत छलैन्ह। एकटा आया आ दूनू भाभी मे क्यो एकटा संग जाइत छलथिन। ओना तऽ ओ कहियो कतहु जाइते नहिछलीह कोनोकाज परोजन मे नैहर या दीदीक सासुर काका-काकीक घर तऽ एनाइ जेनाइ बंदे भऽ गेलै छल। हं ज कोनो घर मे पेरशानी होइ या क्यो बीमार पड़ैत छलैतऽ हुनका बड़ड पफुर्ती भऽ जाइत छलैन्हि।
अपना देहोक होश नहिरहैत छैन्हि। मुदा सब भऽ गेलाक बाद अपना ढगयबाक हताश भाव मन मस्तिष्क केँ जकड़ि लैत छैन्हि। स्वार्थी लोकक चलाकी सॅ मर्माहत भऽ जाइत छथि। हुनकर इ मनोभाव दिनोदिन मुखर भेल जाइत छैन्हि दीदी यो सब बुझि गेलथिन। मां दुःखी छलीह अपन सन्तानक स्वार्थी स्वभाव सॅ, आपसी होड़, जलन आ ईर्ष्या सँ दुखी छलीह घरक सम्पत्ति पर बड़का भैयाक कब्जा सॅ।
एक दिन कॉलेज सॅ घुुरलहुॅ तऽ देखलिए छोटकी भाभी मांके उजरा सारीक रफ्रपफू करैत छलीह। हमरा मुॅह सॅ बहरायल ‘भाभी अहाँ कियेक एतेक मेहनत करैत छी। दाई मां अपने सीब लेतै।’
भाभी गुम्मे छलीह मां हमर बात सुनिते लोहदिकऽ बजलीह ‘सौ-सौ रूपयाक ढ़ाकाक महीन साड़ी तोरा दाई मां के दऽ दिछि। पाइ कतौ गाछ मे पफड़ैत छै? पफाटल छैतऽ की हेतै हम रातिकऽ पहिरब।’
हमर आत्मा कुहड़ि उठल-हमर मां जे कहियो पुरान नहिपहिरैत छलीह से आब पफाटल साड़ी सीब कऽ पहिरतीह! काल्हिए बड़का भैया आ भाभी प्लैन सॅ दिल्ली गेलाह! मास दिन पहिने सल्लो दीदी केँ सासुर जाइतकाल बक्सा भारि कऽ कपड़ा देलथिन। तखन कतऽ सॅ टका आयल छलै? मां के अपना लेल हरदम अभावे रहैत छैन्हि! आब घरक लेल कतेक आहुति देतीह? मुदा हमरा हिम्मत नहिभेल जे हुनका किछु कहबैनिह। हं मने-मन संकल्प कयलहँु आब अइ घर सॅ एको पाई नहिले। पेफर हमहूँ तऽ मां ए जकां तिलतिल अपन छोट-छोट सुख क गला घोंटैत रहलहुँ। पुरूष के प्रति देवत्व भाव, एक निष्ठ श्र(ा स्वीकार करैत रहलहुँ अछि। की बेटीक मन मे अचेतन मे मां क प्रतिछाया प्रतिष्ठित रहैत छैक? उम्र क संग-संग कतेक बेर जीवन मे छल प्रपंचक शिकार भेलहुँ स्वयं केँ दोषी पयलहुँ। व्यथा आ अन्तर्द्वन्द्वक क्षण मे अपना आचरण मे मां क व्यवहारक छवि देखलहुँ। हं, विशु( ममत्व छल दाई मां क निःस्वार्थ स्नेह। दाई मां सन महिला आब कतहु भेटँत? मां के तऽ अपन ठोस अहम के प्रति, अपन संतति के प्रति ममता आ त्याग छलैन्हि। मुदा दाई मां तऽ आनक बेटी के लेल व्याकुल रहैत छलीह सत्ते व्यवहार एहन उदार हृदय मन ककरा हेतै?
दाई मां क ममता मे सत्ताक संग्राम नहिछलै। हुनकर निश्छल वात्सल्य मे कोनो अपेक्षा नहिछलै। मुदा तै की हमर इ कर्त्तव्य अछि जे हम स्वयं अपन मांक कपफन के कपड़ा सीबी की इएह सोहाद्र छै? जॅ से करब तऽ की अपन व्यत्तिफत्वक कमि नहिसूझत? ओ तऽ चौकठी पार कऽ तीनो डग कहियो नहिचललैन्हि आ हम तऽ तीन डेग मे दुनियॉ धॅगि लेबऽ क कल्पना करैत छी।
हं, तऽ हम गर्मी क छुटीðक बात करैत छलहुॅ। छुटीðक दिन मे एकटा नव रूटीन बनैत छल भोर दस बजे सॅ सांझुक पांच बजे ध्रि केँ। की मजाल जे क्यो टस सॅ मस करतै। जाड़ मे स्वेटर बुनब, गर्मी के रेशम कर कढ़ाई सिलावय ऊपर से मां के आर्डर दस दिन मे बेडकवर बनि जयबाक चाही। एक दिन रूमाल तकियाक खोल। जँ रेशम ओझरा जाय वा आंगुर मे सुई गड़ि गेल त मां बड्ड पफझूति करैत छलीह-नहिजानि पढ़ाई मे कोना पफर्स्ट भऽ जाइछ। मन मे होमय जे इ रेशमे कर पफूल पात बनौनाइ आ पढ़ाई मे कोन सम्बंध्? कोनो तुक नहिबुझाइत छल मुदा प्रतिवाद करबाक साहस कहां?
- सरोज महाध्ूर्त ! मन होइतऽ कढ़ाई करए नहितऽ पढ़ाईक बहाना बना उठि जाए। कखनहुँ जानि कए खॉसऽ लागए। मां के हरदम ओकरस्वास्थक चिन्ता रहैत छलैन्हि। जाड़ मास मे सर्दी खांसी घऽ लैत छलैतऽ परीक्षाक समय मे उल्टी होमऽ लगैत छलै। सब दिन ओकर स्वास्थ खराबे रहैत छलै। ठीक से भोजन करतै नहिछल। कहुना दू टा रोटी खाइत छल आ नीलू बस एकटा आ हम तीनटा रोटीक बाद कनि भातो खाइत छलहुँ। तैँ हमर देह-दशा ओकरा सभ सॅ नीक छल मुदा हमरा मां केँ हमर डिलडौल कहियो ने सोहाइत छलैन्हि। आ बड़की काकी तऽ खोध्-िखोधि।
- कऽ पूछैत छलथिन- ‘बहिन प्रिया कतेक पैघ भऽ गेल हमरा विमलाक बतारि अछि मुदा क्यो कहैतै जे दूनू क जन्म एकहि मास मे भेल छलेै।’ आ एहि सभ सँ तंग भऽ हम जहिया दसमा मे पढ़ैत छलहुँ तहिए मां हमर ब्याह क बात मीराक भाई सॅ चलौने छलीह ओना ब्याहक चर्चा शुरू कयने छलथिन मीराक मां। हुनका हम पसिन्न छलिऐन्हि तैँ अपन मांझिल बेटा जे ताहि दिन ओकालत पढ़ैत छलैन्हि तकरा वास्ते हमर चयन कयने छलीह पफेर की भेलै की नहि बात आगां नहिबढ़ैलै।
तकर बाद मां क हमरा प्रति व्यवहार आर कठोर भऽ गेल छलैन्हि भाई - बहिन के नजरि मे तऽ हम कुरूपे छलहुँ। मंा बजैत छलीह- ‘सरोज के तऽ क्यो रीजेक्ट नहिकरैत- मुदा प्रियाक ब्याह कोना हेतै’? हमरा मन में विद्रोहक भाव बढ़ऽ लागल नहिहेत ब्याह नहिहोऽ हमरा ब्याह करबाक इच्छो नहिअछि। दाई मां के छोड़ि सभक प्रति उपेक्षा अवज्ञा बढ़ैत रहल। घरक लोक सॅ वेशी अपनत्व बाहरी लोक सॅ भेँटैत छल। मां क स्थान स्कूलक प्रधनअध्यापिका लेलैन्हि। हमर किशोर मन आब जीवनक अभाव केर पूर्ति कल्पना सँ करैत छल। स्नेही मांक कल्पना करैत छलहुँ। कल्पना मे कोनो भाई बहिन लेल जागह नहिछलै हम एसगरे छलहुँआ संग छलीह हमर दाई मां।
- मुदा बहुत जल्दी हमरा एहि काल्पनिक संसारक सीमाक बोध् भऽ गेल। हम बुझ लगलहुँ जे जिनगी कल्पनाक सहारा सॅ नहिचलि सकै’छ। बहुत तरहक झंझटि छल जाहि मे हम ओझरायल छलहुँ। लाइब्रेरी सॅ सप्ताह मे एकहिटा किताब लऽ सकैत छलहुँ, हमर भूख बढ़िते जाइत छल। क्लास मे पाँच छह टा संगीक ग्रूप छल जे अपने पढ़ए वा नहिहमर चूनल किताब ओ सभ अपना नाम पर इसू करबा लैत छल। बस हम अपन किताबक दुनियाँ मे मगन रहैत छलहुँ ने मां क झिड़की ने भैयाक खौपफ। शरतचन्द्रक पारोक घुटन एन कोन काजक पागलपन। ओ प्रेमचंदक जालपा? जे गहना लेल पति केँ चोरि करबा लेल विवश कयल? मुदा र्ध्मवीर भारतीक गुनाहों का देवता’ पढ़ि हम बहुत दिन ध्रि कनैत रहलहुँ। हमरा मन मे स्वस्थ सहज प्रेमक कल्पना कहियो नहिभेल। हमर दिवास्वप्न नायक सतत् व्यथित दुखी शोषित वा जीवन सॅ उदासीन आ हम छलहुँ ओकर अभावक पूर्ति करऽ बाली। की पढ़बाक चाही आ की नहिसे कहियो नहिसोचलहुँ। श्लील-अश्लील जे भेँटए पढ़ैत छलहुँ। घर मे पढ़वला कुर्सी मेज पर बैसिकऽ कोर्सक किताब के बीच मे उपन्यास राखि कऽ पढ़ैत छलहुँतऽ क्यो बुझितो नहिछल। दोसर बात इ जे हमर चिन्ता ककरा छलै। जखन प्रेसीडेंसी कालेज मे गेलहुँ तऽ चारू भर किताबे-किताब छल।
हमरा घर मे दू टा वर्ग छलै-एकटा शोषण करऽ वला सदस्यक वर्ग जकरा हाथ मे तिजोरीक चाबी छलै। ओकरा सभकेँ जौ कनि सर्दियो होइतऽ डाक्टर गंगुलिए नहिसौ टका पफीस लेब बला डाक्टर नलिनीरंजन दताक केँ बजाओल जाइत छलै।
हुनका सभके घरऽक सब वस्तु पर अध्किार छलैन्हि। अइ दल मे छलीह-मां बड़का भैया, बड़की भाभी आ नान्हिटा चारि-पाँच वर्षक हुनकर बेटा, सल्लो दीदी, डाक्टरी पढ़ऽबाली सरोज। दलित वर्ग मे छलहुँ हम, छोटका भैया जे कोनो समझौता करबा लेल कखनहुँ तैयार नहिछलाह आ हमर छोटकी भाभी जे सदतिकाल मांक सेवा मे जुटल रहैत छलीह। बड्ड मध्ुर वाणी सबसॅ स्नेह सित्तफ व्यवहार जेठजीक हर बात के माथ झुका-स्वीकार कर वाली। जे व्यापारक आमदनी होइत छै आ किरायाक पाइ अबैत छै सब बड़के भैयाक हाथ मे जाइत छैन्हि। हाथ उठा कऽ ओ जकरा देथिन। पिताक सम्पत्तिक दूनू भाई बराबर के वारिस मुदा छोटका भैयाक हाथ मे एकटा पाइ नहि। मां कहैत छलथिन बड़का भैया केँ-‘अरे, आब घर-गृहस्थी वला भेलै एकरा अपना संग आपिफस ल जाहीं तोरा संग-संग रहतै तऽ काज ध्ंध सिखतै’ मां के कहला पर भैया छोटका भैयाकेँ घर सॅ ल जाइत छलथिन मुदा किछ दूर गेला पर मेट्रो सिनेमा हाल लग सिनेमाक टिकट हाथ मे दऽ कहैत छलथिन-‘जो सिनेमा देख।’ भैया व्यथिन भऽ घर घुरि अबैत छलाह। सांझि मे बड़का भैया घर अबिते मां केँ कहैत छलथिन।
- ‘की करू मां किछ ने पफुराइत अछि।’ अहांक कहला पर हम लऽ गेलिऐ ऑपिफस। ओतऽ सँ कहलिऐ पफाइल लऽ कऽ इन्कमटैक्स ऑपिफस जयबा लेल तऽ चलि गेल सिनेमा देखऽ। एतबा सुनिते मां आगि बबुला भऽ जाइत छलीह।
‘कहाँ छै अजैया, आ इम्हर। खेऽ लेल अढ़ाई सेर चाही दू बेटाक बाप भऽ गेलेँ आ एक पाई कमाबऽ के लूरि नहि। लक्ष्मी सन पत्नीक जीवन बरबादकऽ देलकै।’
छोटका भैया बरांडा मे बैसल चुपचाप सब सुनैत छलाह कोनो प्रतिवाद नहि। बजैत-बजैत मां चुप्प भऽ जाइत छलीह तखन जरला पर नून छीटऽ लेल पहुँचैत छलीह बड़की भौजी। मां जो, अहॉ कियेक चिन्ता करैत छी समय अयला पर छोटका बौआ अपने सुध्रि जेथिन। एतेक क्रो( करब तऽ अहॉक बल्डप्रेशर बढ़ि जायत। बस मांक आहि अलम शुरू भऽ जाइत छल । छोटकी भौजी के ऑखि सॅ दहो-बहो नीर घुबैत छलैन्हि भैया मांक बात सुनि कऽ झट नीर पोछि पहुँच जाइत छलाह मांक सेवा मे। ‘मां कोन दवाई दिअ।’
‘कोरामिन दऽ दिअ रानी! हार्ट ....।’ सत्तो बात बजबाक साहस नहिछलैन्हि छोटकी भाभी केॅ। बेचारी निरीह जकां सभक बात सहैत छलीह नैहरो तेहन नहिछलैन्हि जे तकर गुमान होइतैन्हि ओना कहबा लेलतऽ राज परिवारक बेटी छलीह कहियो राजसी ठाठ छलैन्हि मुदा आब तऽ भोजनो पर आपफत छलै। छह बहिनक ब्याह करोड़पतिक घर मे भेल छलैन्हि ताहि दिन एहन विपन्न नहिछलाह। हिनकर सम्बंध् हमर मसिऔत भाई करौने छलथिन। कहने छलथिन ‘पीसी, लड़की हजारो मे एक छै। दिल्लीक लेडी डरविन कॉलेज सॅ आईú एú पास छै। संगीत मे ग्रेजुएट, संस्कृत मे विशारद् घरकलुरि-व्यवहार मे कुशल। नाम छै सविता।’ तखन मां, बड़का भैया केँ लड़की देखऽ पठौने छलथिन। हुनका पसिन्न पड़लैन्हि तुरत चारि टा गिन्नी हाथ पर घऽ शगुन दऽ देलथिन। क्यो छोटका भैया सॅ किछ पूछबाक जरूरत नहिबुझलकैं। सल्लो दीदी कहबो कयलथिन्ह जे एकबेर अजय के लड़की देख लेब चाही’-की देखतै पफोटो तऽ आयले छै आ विजय देखिए लेलकै।
एक दिन रूम मे बैसल भैया कपसि-कपसिकऽ कनैत छलाह। मूक गाय जकाँ भाभी अहुरिया कटैत छलीह। एकाएक भैया उठलाह पैर में चप्पल पहिर बाहर चलि गेलाह। मां हॉले मे कुर्सी पर बैसल छलीह पूछलथिन-‘अजय कतऽ जाइ छेँ’?
‘काज करऽ।’
‘हॅ, खूब काज करबें!’
मांक ओल सन बोल सुनि ओ विदा भेलाह। जखन चारि बजे सांझि ध्रि नहिघुरलाह तऽ सभ के चिन्ता भेलै। खोज शुरू भेल। छोटकी भाभी के कनैत्-कनैत ऑखि लाल भऽ गेल छलैन्हि हम कहलिएन्ह मां के-‘मां आइ भोर में भौयाके कनैत देखने छलिऐन्ह। बड़का भैया घर अयलाह तऽ मां क कानब खीझब चालू भऽ गेलैन्हि।
‘ए बौआ, ऊ कसाई हमरे दुःख देबऽ लेल जनमल अछि। बाबूजी गेलथुन से दुःख की कम छल जे ई हमरा आर व्यथा दऽरहल अछि। डर होइछ किछ भऽ जेतै तऽ एहन लक्ष्मी सन पुतौहु के कोना मुँह देखब?’
भैया पफोन कऽ पारिवारिक सालि सिटर सॅ राय-विचार लेलैन्हि। तखन मां के कहलथिन - ‘हम पुलिस स्टेशन जा कऽ पता लगबैत छी।’ भैया सीढ़ि पर उतैरते छलाह कि देखलथिन बड़का जीजाजी क संग छोटका भैया आबि रहल छलाह। मां एतबा काल मे अनगिन मनौती मानलैन्हि हनुमान-जी के सवामन केँ दाल-चूरमाक प्रसाद, राणीसती जी केँ चूड़ा-चूनरी क चढ़ावा आर नहिजानि कोन-कोन देवता-देवीक मनौती मान लैन्हि। आ छोटका भैया केँ देखते चिचिआ उठलीह - ‘चंडाल! कतऽ छलैंह एखन ध्रि। एक भोरे के गेल आब घर क सुध् िभैलौ।’
- छोटका भैया बिना किछु बजने अपना रूम मे चलि गेलाह। जीजा जी मां आ बड़का भैया केँ कहलथिन।
- ‘अहाँ दूनू गोटे भीतर चलू-बात करबाक अछि।’ दू घंटा ध्रि मां, बड़का भैया आ जीजा जी नहि, जानि की-पफुसुर पफुसुर बतिआइत रहलाह’ पफेर खौंझायल जकॉ ध्ुरिकऽ चलि गेलाह एक कप चाहो नहिपी लैम्ह। हुनका जाइते घर मे भूकम्प मचि गेलै। मां बजलीह-‘अजैया! तोहर एहन हिम्मत जे तू बॉट-बखड़ाक बात करैत छेँ? जीजाजी केँ पंच बनाबऽ गेल छलैंह ।’
अपना हिस्साक बात करैत छेँ? मां अपना पैर सॅ चप्पल खोलि दोड़लीह छोटका भैया दिस।’ छोटकी भभी झट दऽ हुनकर पैर पर खसि पड़लीह-‘नहिमां जी एना जुनि करू।’
बड़का भैया अबिकऽ मांक हाथ पकड़ि बैसा देलथिन। छोटका भैया दिस गुम्हरैत बजलाह-इ एना नहिमानतै’ आब एकर इलाज हमरे करऽ पड़त।’
बाजू ने कोन इलाज करब? अहाँ की कमाईत छी से हमरा नहिबूझल अछि। हमर बाल बच््या एक टका क वस्तु लेल तरसैत रहैंछ। छोटका भैया के करेज पफाटि-गेलैन्ह! मां किछ कहऽ चाहैत हलथिन ताबत बड़का भैया बजलाह-‘तू बुझैत छठीं जे बॅटबाड़ा कयने बाबूजीक प्रतिष्ठा बढ़ि जयतैन्ह? इएह जीजाजी हमरा सॅ पफरक कऽ तोहर टका तोरा लग रहऽ देथुन?’
जीजाजी के दोष नहिदिऔ। हम नेना छीजे ओ हमरा सॅ टका लऽ लेता?
दूनू भाइ आमने-सामने बजैत छलाह कि मां तड़ाक सॅ छौटका भैया गाल पर थापड़ मारलथिन-‘नालायक! हमरा कोखि केँ कलंकित कयलक।’
‘मां जी.... मां जी! एना जुनि करूँ? अपना के सम्हारू!’ छोटकी भाभी अनुनय-विनय करैत छलथिन। मां ध्म्म सॅ कुर्सी पर बैसलीह-अचेत भऽ गेलीह। की भेलै मां के की भेलै? कहैत, भैया दौड़लाह। ‘जल्दी पफोन लगा डाú गांगुली केँ। ‘सविता, जल्दी सॅ कोरामीन लाउ। छोटकी भाभी तरबा रगड़ैत छलथिन। बड़की भाभी कोरामीन दऽ पंखा हौंकऽ लगलीह। बड़का भैया गरजलाह-‘आई जँ मां के किछ भेलै तऽ अजय केँ जान मारि देबै।’ छोटका भैया कनैत मां केँ पैर पकड़ि कहऽ लागलथिन।
-‘मां मां हमरा मापफ कऽ दिअ। हमरा नहिचाही ध्न सम्पत्ति। नहिलेब अपन हिस्सा बखड़ा।’ नहिजानि कियेक अवाक् छलहुँ। कान मे बिना कोनो प्रतिक्रियाक एकहिटा बात गंुजि रहल छल-‘तू बूझैत छहीं बॅटबाड़ा सॅ स्वर्गीय बाबूजीक प्रतिष्ठा बढ़ैतन्हि? घर्र-घर्र-घर्र स्वर.......अरे इ तऽ सीलिंग पफैनक आवाज छैक। आ हमरा होइछ जे एतेक सालक बादो भैयाक कर्कश स्वर अइ हॉलक कोनो कोन सॅ आबि रहल छै। हं, तऽ मां क बेहोशी टूटलैन्हि। दूनू भाभी सहारा दऽ कऽ रूम मे पलंग पर सुता देलथिन। ताबत डाक्टर गांगुली आबि गेलाह।
‘डाक्टर बाबू, आइ तऽ बुझू हमर हार्ट पफेले भऽ जाइत। हमरा कोखि सॅ कंस जनम लेलक अछि। बड़का बेटा तऽ श्रवण कुमार अछि राति-राति भरि हमर सेवा करै’छ।
-‘शोब ठी भऽ जायत। विजय बाबू के अजय के अपना संग काज करऽ लऽ जाय। अहॉ सभतऽ लड़काक काज-ध्ंध से पहिने शादी कऽ दैत छिऐ।’
की कहू डाक्टर साहेब हमर दियादनी सभ माथा खराब कयने छल। सदति काल एकहि गप्प अजय क ब्याह कहिया करबै? बूढ़ारी मे ब्याह देत?
-‘अच्छा! आब बायॉ बायॉ करौट पफेरू।
हं, कनि पेटिकोट ढ़ीला करू। एकटा सूई दैत छी आराम हेत। अहां कें नरबस ब्रेकडाउन भऽ गेल अछि।’
‘हम तऽ एकदम बुझू डाउन भऽ गेलहुश् अछि जहिया सॅ साहेब गेलाह।’
‘साहेब तऽ देवता छलाह। मां कालीक मोर्जी। सूई लगाबऽ से पहिनहिं मां-आह -ऊह करऽ लगलीह हुनकर ई पुरान आदत छैन्हि। डाक्टर गांगुली हॅसैत बजलाह-‘ओ मां हम तऽ एखन सूई लगेबहु ने कयलहुँ आ अहॉ आह-आह करैछी? मां चुप्प भऽ गेलही।
मां के निन्न भऽ गेलेन्हि। छोटका भैया बिना खयने पीने चुपचाप हुनका अगल मे बैसल छलाह। छोटकी भाभी सेवा मे जुटल छलीह। मां के आदेशानुसार खास-खास व्यक्ति के पफोन कऽ देलथिन बड़की भाभी। सबसे पहिने अयलाह मामाजी। मां क प्रिय आदर्श पुरूष। खूब खुसुर-पफुसुर भेलैन्हि दूनू गोटे मे। पाछू पता चलल जे मामा मां के कहलथिन जावत बेटी सभक ब्याह नहिहोइछ ताबत घर के बान्हि के राखू। किन्नहु बॉट बखड़ा नहिहोमए। लोक के तऽ मजा अबैछै घर पफुटने मुदा ई सोलहो आना सच छै जे घर करोड़ोक से पफुटने चौअन्नीक भऽ जाइछ।
मामा जी गेलाह। मां के ई बात बुझबामे कोनो भांगठ नाहिभेलैन्हि जे बड़का जमाय अजय केँ पक्षध्र छथि हुनके ई आगि लगाएल अछि। बस ओ किराया बला मकान बड़का भैया क नाम लिख देलथिन। बड़का भैया मां के सामने घर क पूजा घर मे जा भगवतीक सोझा आ स्वर्गीय पिताक पफोटो केँ साक्षी मानि शपथ खयलनि-जहिया मां कहतीह मकानक आध हिस्स अजय के दऽ देबै। मां मने-मन निश्चय कयलनि करिया नाम क दांत तोड़ब। ओ तऽ हम बेहोश भऽ गेलहुँ तयँ बात नहिबढ़लै अन्यथा अजय बहनोई सई पर कोर्टक दरवाजा खटखटबैत। तैँ मां बड़की दीदी केँ बजाकऽ बेटी जमाय दूनू कें बड्ड बात कहलथिन । तकरबाद कबुला कयने छलीह से हनुमान जीक सवा मन क दालि-चूरमा क प्रसाद चढ़ा सबकेँ बजाकऽ खूब महोत्सव मनौलनि। पफेर भादोक अमावस्या दिन खूब ध्ूमधम सॅ अढ़ाई हजारक चूड़ा-चूनड़ सती राणी के चढ़ाओल गेल। मारवाड़ी समाजमे सतीराणीक चढ़ाओल चूड़ा-चूनड़ सोहागिन ननदि आ बेटी के देल जाइत छै। तऽ बड़की दीदी सॅ मां नाराज छलीह तऽ चूनड़ सल्लो दीदी कें भंेटलनि। सल्लो दीदी पन्द्रह वर्ष क बाद जखन बेटी ब्याह मे ओ चूनड़ देलथिन तखन ओकर कीमत छलै पच््यीस हजार।
अइ सभक परिणाम इ भेल जे सब ध्न बड़का भैयाक हाथ मे छलै आ सभटा गहना बड़की भाभी के जिम्मा। मां बहला पफुसियाक छोटकी भाभी क डायमंड केर कानवला आ डाइमंडक अंगुठी लऽ कऽ तिजोरी मे रखबा देलथिन। तिजोरीक चाभी रहैत छलैन्हि भाभीक हाथ। मतलब बड़का भैया आ भाभी घरक मालिक।
किछ दिनक बाद सल्लो दीदी आ मंा बतिआइत छलीह आ हम ओहिठाम बैसल सरोज के सांठ मे देबऽ लेल बैडकवर पर पफूल काढ़ैत छलहुँ। मारवाड़ी परिवार मे जहिया सॅ बेटी जन्मै छै बेटी क मां सांठ मे देबऽ लेल टीशूक थान, जरदोजीक साड़ी, घाघड़ा, ओढ़नी, चांदीक बर्त्तन जोगाबऽ लगैत छै।
-आ सारोज तऽ आब मेडिकलक पार्टवन के पफाइनल दऽ रहल छै। तैँ बेडकवार, तकियाक खोल आ रूमाल पर नव-नव डिजाइनक कढ़ाई कयल जाइत छै। मां धीरे-धीरे सल्लो दीदी कें कहैत छलथिन।
‘हम बगल बला मकान विजय क नाम लिख देलिऐ। अजयक कोन भरोस कखन रखन कोन तमासा ठाढ़ करत।’ हमरा हुनकर बात नहिनीक लागल तैं बजलहुँ मां अहां देखबै बड़का भैया ओई मकान मे छोटका भैया के हिस्सा नहिदेथिन। तड़ाक सॅ गाल पर थापड़ मारलैन्हि पॉचो आंगुर क निशान पड़ि गेल पूरा कान झनझना उठल। ऊपर सॅ कर्कश स्वर मे बजलीह -‘पफेर कहियो एहन बात बजबें तऽ जीह उखाड़ि लेबौ।’ हमरा ओतऽ नहिरहि भेल उठि कऽ बरांडा पर चलि गेलहुँ। बड़ी काल घरि कनैत रहलहुँ। ओना आई-काल्हि हम कनैत नहिछलहुँं। अपना मन के बुझा लेने छलहुँ।
‘प्रिया जाबत अइ घर मे छे गांध्ीजी क तीनू बानरक अनुशरण कर। ने किछ बाज ने सुनमे किछ देख। जतबा संभव होइ चुप्प रह। एहि घर मे सरोज जखन जे पफरमाइश करैत छै तुरत पूरा कयल जाइत छै आ तू दस टका क किताब किनबा लेल तरसैत छें।’
दिन बीतैत रहल। हमर बीúएú क परीक्षा समाप्त भेल। सरोज मेडिकल पफाइनल मे छल। बड़का भैया हमरा दूनू बहिन, बुल्ली दूनू भतीजा कें कश्मीर घुमाबऽ लऽ गेलाह। जिनगी मे पहिलबेर पहाड़ देखलहुँ। पहिलबेर एú सीú कम्पार्टमंेट मे एतेक दूरक यात्रा कयलहुँ। खूब ऐश मौज कयलहुँ। मुदा एत बेर-बेर छोटका भैया आ भाभी क उदास चेहरा मोन पड़ैत छल। मां क देख-रेख के करतै से कहि छोटका भैया-भाभी के नहिआलथिन।
कोन ठेकान अगिलो गर्मी मे छोटका भैया-भाभी घूम एती की नहि? कहॉ सॅ एताह बच््याक दूध्क पाइके हिसाब देबऽ पड़ैत छैन्हि। हुनका हाथ मे छैन्हि की?
कश्मीर सॅ घुरला पर बड़की भाभी बीमार रह लगलीह। ओतुका हवा-पानि सूट नहिभेलैन्ह। भैयाा रोज राति मे एक दू पैग व्हिस्की पीबैत छलाह भाभी के नहिबर्दास्त होइत छलैन्हि। हुनका ई शराब पीयब चारित्राहीनताक लक्षण लगैत छलैन्हि ओ पुरान संस्कार क महिला छलीह। भैयाक इच्छा छलनि ओ सूट पहिरकऽ बाहर घूमथि। लिपिस्टिक लगाबथि भाभी कहैत छलथिन हम कुलबध्ु छी कोठा पर बाली नहि। भाभी जॅ मां लग भैयाक शिकायत करैत छलीह तऽ मां हुनके पफझति करैत छलथिन-‘भरि दिन खटिकऽ अबैत छै तऽ राति मे एक गिलास औरंजक जूस पीबैत छै से अहॉ के बर्दास्त नहिहोइत अछि?
-‘मां जी! ओ शराब पीबैत छथि जूस नहि।’
-‘हे, पफालतू बात जुनि करू। हमर ओ श्रवण-पुत अछि। अहॉ के होइत अछि जे ओ मां के सेवा कियेक करैछ? अहाँक इशारा पर कियेक ने नचैत अछि?’ भाभी गुम्म भऽ जाइत छलीह। बड़की दीदी सॅ पफरियाद कयलनि। तऽ दीदी सापफ-सापफ कहलथिन‘भैयाक खिलापफ बाजि कऽ के मां सॅ उलझत? अहाँ अपन परिवारक बात अपने सोझराउ।’
भैया क चरित्रा क गुनध्ुन मे भाभी क चिन्ता बढ़ैत रहलनि। भैया जाति-पाति नहिमानैत छलाह आ भाभी छूआ-छूतमानैत छलीह। कश्मीर यात्रा मे ध्रक बनल पेठा-पकवान आ पफले खाइत छलीह। हाउसबोट मे मुसलमान खाना बनबैत छलै मुदा ओ अपन र्ध्म नहिछोड़लनि।
भाभी मनोव्यथा बढ़ैत रहलनि। कश्मीर सॅ घुरलीह तहिया सॅ दुखिते छलीह। पेट मे बच््या छलैन्हि। दिन भरि उल्टी करैत छलीह। एक दिन बेहोश भऽ खसि पड़लीह। डाú गांगुली एलाह। ब्लड प्रेशर चेक भेलै। डाú अमृता कौर कहलथिन ‘तुरत एर्बार्शन कराओल जाय नहितऽ मांक जान नहिबचा सकबै। भाभी छमासक भू्रण हत्या क पाप अपना माथ पर नहिलेब चाहैत छलीह। मुदा भैयाक आगु हुनकर बात के मोजर की छलैह। मुदा भैयाक आबुगु हुनकर बात के मोजर के दितै। एर्बार्शन भेलै मुदा भाभी पफेर उठि कऽ ठाढ़ नहिभेलीह खाट घऽ लेलैन्ह। डाú गांगुली आ डाú अमृताक दवाई काज नहिकऽ रहल छलै। डाक्टर नलिनी सेन गुप्ता के बजाओल गेल। डाú शरत सेन अयलाह सम्पूर्ण शरीरक जॉच भेलै तऽ पता चललै हार्ट उनलार्ज्ड भऽ गेलैन्हि, थायरडो काज नहिकरैत छलैन्हि। दवाई आ इलाज सॅ किछ सुधर भेलैन्ह मुदा भाभीजीक मनरोग नहिछुटलैन्ह। जहिया कऽ भैया हुनका ग्रैंड होटल मे संग लऽ जाइत छलथिन भोजन कराबऽ तहिया ओ अबिते बाथरूम मे उल्टी करऽ लगैत छलीह। हुनका नजरि मे भैया अबारा चरित्राहीन शराबी छलाह। भैया ताहि दिन खूब पाइ पीटैत छलाह तइओ खर्चा आमदनी सॅ दुगुना छलै तैं पाइ जमा नहिभऽ पबैत छलै। सरोजक ब्याह के चिन्ता मे मां उदास रहैत छलीह। मां कें खुश करबा लेल भैया मांक हाथ पर किछ टका दऽ दैत छलथिन मुदा नीक घर, वर लेल 1962 ई क समय मे लाख टका सॅ कम दहेज नहिलगैत छलै।
इं हमरा आइ कतेक तरहक बात याद आबि रहल अछि। मां क स्वभाव मे कनि नरमि अयलैन्हि। आब हमरे नहिसरोजी के मासिक शुरू भऽ गेलै।
हम दूनू गोटे बड़की दीदी के कहि सुनि कऽ मां के मना लेलहुँ जे ‘आब हम सभ तीन दिन घरि छुआ छुत नहिमानब। हं प्रिफज नहिछुअब, रसोई घर मे नहिजायब ने अहॉक घर मे मुदा आब एसगर एक कोन मे बैसल नहिरहब तीन दिन घरि।’ खैर इ तऽ समझौता भऽ गेल मुदा बात अटकि गेल बस हमरा वास्ते। हमर वाह्य शरीरक रूपांतरित भऽ रहल छल। बारह वर्षक किशोरी देखबा मे युवती लगैत छलहुँ। आ हमर ई उभारसॅ मां परेशान छलीह। सत्ते हम उम्र सॅ वेशी पैध् लगैत छलिए। हमर स्वास्थ्य नीक छल दिन-प्रतिदिन देह भराएल जाइत छल। एक दिन सल्लो दीदी एकटा नव समीज देलैन्हि जकर डॉर सॅ ऊपरका भाग छलै जैकेट जकाँ। कहलनि ‘इ पहिर।’ पहिरलहुँ बहुत टाइट छलै। दीदी के कहलिऐन्ह ।
‘दीदी इ हमरा साइज सॅ दू इंच छोट छै।’ दीदी कहलैन्ह-‘ तैं पहिर ऽ देलिऔ। सबटा बटन लगा। अइ सॅ छाती सपाट लगतौ।’
ओहातऽ हिनका सबके हमर छातीक उभार अखरैत छैन्हि। हम तऽ बाथरूमक अयना मे प्रस्पफुटित होइत रूप के देखि प्रसन्न होइत छी। साहस कऽ पफेर बजलहुँ ‘दीदी ई बहुत टाइट दै अकशक लगैए।’
‘अकशक लगने मरि नहिजएबें। आदत पड़ला पर सब ठीक भऽ जेतौ। समीज क तर मे सब दिन पहिर।’
-‘से कियेक?’
से अइद्वार जे नेना छे लोक युवती नहिबुझै। ‘अहॉ कियेक ने पहिरैत छी?
-‘कुमारि छलहुँ तऽ हमहूँ पहिरैत छलहुँ। मुदा थोडबे दिन पहिरलहुँ। हमर ब्याह बारहे वर्ष मे भऽ गेल छल। आ तोरा जकॉ दसे वर्ष मे हमरा पीरियड्स श्ुारू नहिभेल छल।’
स्कूल गेलहुँ तऽ बुझाइत छल जेना दमपफुलैए, पानि पीबऽ के छुटीð लऽ बाथरूम गेलहुँ। ऊपरका समीज खोलि ओइ जैकेट केर सिलाई खोलिकऽ पहिरलहुँ। आब मोन अकशक नहिकरैत छल। घर घुरलहुँ- दुपटाð ओढ़ने छलहुँ तइओ मां क नजरि सॅ किछ नुकाएल नहिरहल। ओ हमरा नहिकिछ कहलनि मुदा दीदी के कहने हेथिन। हम अपना रूम मे जा कऽ किताब रखिते छलहुँ कि दीदी पहुँचलीह। केवाड़ बंद कऽ आर्डर देलैन्हि। प्रिया समीज खोल।’
contd...
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