भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, March 13, 2011

'विदेह' ७७ म अंक ०१ मार्च २०११ (वर्ष ४ मास ३९ अंक ७७) PART III


contd.........



‘नहिदीदी। आब हमरा किछ नहिकहूॅ। क्लास मे हमरा सांस नहिलऽ होइत छल।’
‘ठीक छै हम किछ नहिकहबौ। चल मां लग कहुन जे सांस नहिलऽ होइए।’
हमर बोलती बंद भऽ गेल मां क नाम सुनिते।
‘दीदी-सरोज आ नीलू तऽ एहन जैकेट नहिपहिरैत छै?’
-‘सुन वेशी बात नहिबना। जहिया समय एतै ओकरो सभके पहिरऽ पड़तै। अच्छा खोल हम कनि ढ़ीला कऽ के सीब दैत छिऔ।’
दीदी ई घरो मे पहिरऽ पड़त?’
-‘हं, घर-बाहर, सांझि, भोर राति-दिन हरदम।’ हमरा मोन पड़ल पर्ल-बर्क क एकटा नायिका। जकरा बचपन मे लकडीक जूता पहिराएल गेलै पैर छोट रखबा लेल। जखन औ पैद्य भेलैतऽ पैर ततेक छोट भऽ गेल छलै जे आकरा चलबा मे कष्ट होइत छलै।
ओ दासीक सहारा लऽ कऽ चलैत छल। की आब ई पहिरने हमरो विकास रूकि जाएत? पुरूष जकाँ सपाट.... नहिएहन नहिहोमऽ देबै’ लोक हमरा हिजड़ा कहत। दाई मां हमर प्रश्न के उत्तर नहिदेलैन्हि। ओ कहलनि-बुच््यी। अहाँक उम्र मे तऽ हमरा छेदी जनमल छल।
‘तऽ ओइ समय मे अहॉक साइज की छल ?’
‘अच्छा ई कहू जे एखन जेहन छाती अछि तेहने पहिने छल?’
‘नहिपहिने एहन नहिछल। ई तऽ छह-छहटा नेना के दूध् पिला सॅ एना टूटि गेल। आब हम बूढ़भेल हुँ।’
‘तऽ मां आ दीदी हमरा कियेक तोड़ऽ चाहैत छथि?’
बुच््यी मासिक भेला क बाद औरत जवान होमऽ लगैत छै। अहॉ समय से पहिने जुआन भेल जाइत छी। आ अइ सभ भेल ओइ राक्षस के कारण पफुलाय सॅ पहिने ओ तोड़ि देलक।’
ओह तऽ असमय युवती होइबाक कारण अछि हमर निर्दय बड़का भैया रोआँ-रोआँ कलपि उठल। ओहि दानव के कारएा हमर इ हाल भेल। बच््ये मे पीरियड्स पफेर इ उभार जॅ क्रम चलिते रहितै तऽ पेट मे बच््यो। ओई राति एको घड़ी चैन सॅ सूतलहुँ नहि......। असमय बोझिल कैशोर्य, कुम्हलाएल नेनपन जो राक्षस तिल-तिल के मॅरबें हमर नोर क श्राप पड़तौ। हमर सम्पूर्ण अस्तित्व हाहाकार कऽ रहल छल। दाई मां क शब्द बेर-बेर माथ पर हथौड़ी कचोट जहॉ काँ बुझना जाइत छल......‘कलि के पफूलाए सॅ पहिने मयोड़ि देलकै।’ ने हम पफूल बनलहुँ ने नागपफनीक कॉट। एक सुनगैत अंगारे! छुॅआ उगलैत ऑखिक नोर सॅ भीजल जारन। की कहल जाए । हमर तऽ व्यक्तित्वे चूर-चूर भऽ गेल। एक दिस विद्रोहक आंगि मे जड़ैत दोसर दिस भयाक्रान्त।
हम तऽ सब पुरूष मे अपन दुष्ट भाईक प्रतिबिम्ब देखऽ लगलहुँ। सहमल, भीतरे-भीतर कुहरैत लड़की। कहॉ चलि गेलाह बाबूजी। आब कहियोनहिऔता? हुनकर आश्वस्त करैत ओ सुदीर्घ कद, सुरक्षाक बोध् करबैत ममत्वपूर्ण नयन-अपन उपेक्षित बेटी कें दाई मां क कोर मे प्रसन्न देखि प्रसन्नता छलकैत चेहरा। जँ बाबूजी भैयाक कुकर्म बुझि जयताह तऽ ओ की करितथि? की भैया के घर सॅ निकालि देथिन छल? नहिकथमपि नहि। मां किन्नहुँ बेटा के घर सॅ निकालऽ नहिदेथिन छल ओ बेटाक गलती नहिमानि सकैत छषि वरू हमरा ब्याहि घर से हटा दितथि। आ इएह होइत रहलै ए युग-युग सॅ। लड़कि के पैघ होमऽ सॅ पहिने ब्याहिक सासुर पठा घर का पुरूष कें नजरि मे खटकए ताहि सॅ पूर्व घर सॅ भगा। पता नहिअलबल सोचैत हमर ऑखि कखन मुनाएल सपना मे देखलहुँ क्यो बरांडा सॅ उठा कऽ बाहर सड़क पर पफेक देलक। मुदा हमरा किछ भेल नहिचोटो नहिलागल। बस गरदा झाड़ि कऽ उठलहुँ आ मकानक पाछूवला बरांडा सॅ लटकैत सीढ़ि पर चढ़ि वापस घर आबि गेलहुँ। मां क घर होइत हुनका बिनु देखनहिं हॉल टपलहुँ। पफेर बाबूजी क रूम तकरबाद ओ बरांडा पफेर वएह दृश्य बरांडा सॅ उठा कऽ पफेकब.. दहशत सॅ चिचिआ उठलहुुँ।
-‘की भेल बुच््यी? कियेक कनै छी?’ मम्त्वपूर्ण हाथ माथ हसौं थि पूछैत अछि।
-‘दाई मां, दाई मां!’
बुच््यी! हम कहैत छी सूतऽ से पहिने हाथ पैर धे कऽ हनुमान चालीसा पढ़ि कऽ सूतू, मुदा हमर बात अहॉ किये मानब। हम तऽ गंवार अनपढ़ औरत छी? जाउ, एखन ऑखि मुनि सूति रहू। देरी सॅ उठब तऽ मां बजतीह।’
-‘हं, दाई मां! अहूँ सूति रहू ऊतऽ सपना छल।’ हमरा माथ पर हाथ रखने ओहिठाम दाई मां सूति रहलीह। हमहूँ ऑखि मुनि पड़ल छलहुँ।
निन्न टूटल। अरे! ई तऽ डूयब्रवनिक छै। सांझुक लुक-झुक बेर छलै। कतहु किछ नहि। शून्य-सापफ विस्तृत आकाश उड़ैत सांगल पाखी। निःशब्दता भंग करैत निरन्तर छप-छप लहरि समुद्रक। अइ बेर मे नहिजानि कियेक होटलो शान्त भऽ जाइत छैक। लोक सब पफुसपफुसाक बाजत। दूर सॅ कोनो-जहाजक सीटी सुनाई पड़ल। अई क्षणिक गोध्ूलि बेर मे कतबा किछ घटित भऽ जाइत छै। अनाम उदासी हवा मे भिझरायल बुझना जाइछ।
संझुका पहर प्रायः टूरिस्ट किलाक भीतर सजल दोकानक मे चक्कर लगबै’छ। अइ छोट छीन शहरक सबसॅ वेशी आकर्षणक केन्द्र छैक इएह किला। अहि मे सजल ध्जल छोट छोट बाजार, रेस्टोरेंट आखरी छोर पर एकटा ऊँच जगह छै जतऽ कहियो काल नाटक होइत छै। किला मे जाइते बाम भाग मे कन्सर्ट हॉल छै। दहिन भाग मे आबिजान के चित्राक प्रदर्शनी लागल छै।
हम मोने-मेन संकल्प कऽ लेलहुँ जे लड़की बनल रहब औरत नहि। तैं समीजक नीचा पहिरऽ बला जैकेट के खूब कासिकऽ पहिरऽलगलहुँ। आब सत्ते ऊपर सॅ एकदम सपाट करेज बुझाइत छलै। मुदा तइओ नहिजानि हमरा चेहरा मे की अभरैत छलै। जे लड़का, पुरूष सभके गि( दृष्टि हमरे चेहरा पर गड़ल रहैत छलै। ने ओइ नजरि सॅ क्यो सरोज कें देखैत छलै ने नीलू कें। सभक कामुक दृष्टि हमरे पर कियेक?
जहिया एगारह वर्षक छलहुँ तखन हमरा माथ मे कतहु कतहु केश झड़ि जाए आ उज्श्र चकत्ता भऽ जाइत छल। पहिने अठन्नी जकॉ पफेर ओहू सॅ पैध्। भाभी के देखेलिएन्ह। भाभी मां के कहि देलथिन। मां माथ ध्ुनऽ लगलीह। बजैत बजैत हुनकर मुँह टेढ़ भऽ गेलैन्हि ओ बेहोश भऽ गेलीह। भाभी झट कोरामिन आनऽ गेलीह दाई मां मँह पर यूडीकोलोन छींटलथिन, बड़की भाभी पंखा सॅ हैंकात छलीह। होश भेलैन्हि। दाई मां हुनकर तरबा रखड़ैत बजैत छलीह- ‘बहुरानी। हिम्मत राखू इलाज हेतै सब ठीक भऽ जेतै।’ मांक पुफेर विलाप शुरू भेलैन्हि-चमेलिया भाय। एकर भागे पफूटल छै कोना एकर ब्याह हेतै।? सौसें माथक केश उड़ि जेतै? हे देव-पितर। बालाजी।। आब अहिंक हाथ मे लाज अछि। हे राणी सत्ती दादी-हमर अहिंक हाथ मे लाज अछि। हे राणी सत्ती दादी हम झुझणु जा कऽ चूड़ा चुनड़ी चढ़ायब हमरा बेटीक रोग छुटि जाए। हे मां एकरा पर कृपा करिऔ’ एतबा कहि मां पफेर बुक्का पफाड़ि कानऽ लगलीह पफेर मुँह टेढ़ भऽ गेलैन्हि।
नहिजानि कियेक मां कें एना विलाप करैत देख हमरा भीतर सॅ खुशी भऽ रहल छल। पहिल बेर अनुभव भेल जे ओ हमरो मां छथि। पहिल बेर हुनका मुँह सॅ सुन लहुँ बेटी कहैत। हमरा लेल चिन्तित छथि से देखि सुख भेँटल। भाभी पफेर हुनका कोरामीन पिया कऽ विछावन पर लऽ जा कऽ सुता देलथिन। दुपहरक समय छलै दू बजैत रहै। गर्मीक छुटीð छल। भीषण गर्मी मे हम माथ झुकौने सरोज के सॉठ मे देबऽ लेल आरगंडी साड़ी मे महीन शैडोवर्क के पफूल काढ़ैत छलहुँ। आत्मा भीतर सॅ तृप्त छल-मां के हमर चिन्ता छैन्हि। हमरो मानैत छाथि। कनैत-कनैत बेहोश भऽ गेलीह। दाई मां गोरथाड़ी मे बैसल मां क पैर जॅतैत छलीह। आइ भोर सॅ दाई मां हुनके सेवा मे लागल छथि किछ खयबो नहिकयलैन्हि। मां आई जतेक हमरा लेल कनलनि ततेक ककरो लेल कहाँ कनै छथि। बुल्लियो के माथ मे चकत्ता भेल छै। मां ओकरा लऽ कऽ डाक्टर ओतऽ गेलीह। तखन सॅ डाú पंजाक देल दवाई सॅ रोज ओकरा माथ मेमालिश करबैत छथिन। मुदा ओकरा लेल कहियो कानलथिन? हम सिलाई कऽ के उठलहँु। मां के कहलिएन्ह ‘मां हम पैर जॉति दै छी। दाई मां नहा खा लेतीह। मां इशारा सॅ दाई मां के जाय कहलथिन। हम हुनकर पैर जॅतैत छलहुँ। थोड़ेकालक बाद मां बजलीह-‘जा बैआ सूतऽ। आराम करऽ।’
नहिमां। अहांक मोन खराब अछि हम एखन नहिसूतब। हम विजयोल्लास मे सरोज दिस ताकि ओकर मूँह दूसलिऐ। देख मां हमरा कतेक मानैत छथि।
डाक्टर गांगुली अयलाह। एखनो मां क मुँह टेढ़ै छलैन्हि। मां के देख डाक्टर गांगुली बजलाह।
‘शोब ठीक भऽ जायत। मिसेज गुप्ता।’ की ठीक हेतै डाक्टर बाबू। चारि मास सॅ बुल्लीक इलाज भऽी रहल छै। कतेक डाक्टर बदललै। खैर बुल्ली तऽ लड़का छै चीनी क लड्डू टेढ़ो भला। मुदा प्रिया लड़की छैं कोना हेतै ब्याहदान? ओहिना त एखन बारहोवषक नहिभेल अछि आ लगैत छै जेना सोलह वषक होई। किछ करू डक्टर साहब। कहुना एकर केश नहिउड़ै, आ उजरा चकत्ता मेटा जाइ।
-ठीक छै हम सोचिक कहब। अहाँ एखन किछ नहिसोचू। डाú गांगुली असली मनुष के ताकि कऽ आनत।’
आइ काल्हि हमरा सभक सहानुभूति भेंट रहल अछि। सबसे पहिने मां बड़का भैया कें हमर माथ देख बैत कहलथिन।
‘देखहि अठन्नीक बराबर उज्श्र चकत्ता भऽ गेलैए।’
मां, अहाँ चिन्ता जुनि करू। जँ एतऽ ठीक नहिहेतै तऽ हम एकरा बम्बई लऽ जेबै इलाज कराबऽ। ‘छोट-पैघ सब देखलक। बुल्लीकऽ अहिना माथ मे कतेक ठाम केश उड़ल छै आ उज्श्र चकत्ता भऽ गेलैए। मुदा तैं की ओ तऽ लड़का छै। हँ, हमरा कोनो रोग ग्रसित कऽ लेत तऽ हमर ब्याह कोना हेत?’ दोसर दिन मां हमरा लऽकऽ नानीक घर गेलीह। नानी हमरा माथक केश हटा कऽ उज्श्रा दाग देखलनि तऽ माथ पर हाथ घऽ बैसि गेलीह- ए कस्तुरी! एकटा नीक जकॉ इलाज कराबऽ पड़तै। लड़की छै ब्याह-दान करबा मे कठिनाइ हेतै। मामा, मामी देखलनि। मामा कहलथिन-‘बौआ, कलकत्ता मे तऽ एकरा टोप डाक्टर छै डाú बीú सीú राय। तोरो ओकरे सँ इलाज भेल छलौ।’ ताहि पर मामी बजलीह-मुदा ओतऽ आइ काल्हि पेशेंट के देखते नहिछै।’
-‘अरे, पाइ रहऽ चाही। टका मे बहुत तागत छै। टका छै तऽ सब छै टका नहितऽ किछ नहि। टका भेला सॅ कलिया मुनिम के आब लोक कालूराम जी कहै छै।’
मामा डाक्टर राय सॅ बात कयलनि। समय लऽ लेलथिन। मामा मामी आ हम डाú बीú सीú राय ओत गेलहुँ। डाú राय विटामिन क इंजेक्सन सप्ताह मे तीन-दिन लेबऽ कहलनि। पानि सन कोनो लोशन देलनि आ केश मे जवाकुसुम तेल लगाबऽ कहलनि। डाú साहेब मामा कें कहलथिन-‘किछु दिन मे बिमारी जड़ि सॅ खत्म भऽ जेतै जँ ठीक नहिहेतै तऽ डाú बीúसीú राय अपन नाम बदलि लेताह।
ध्ुरती काल मामीजी हमरा रैली सिंह के गुलाबक शरबत पिऔलनि। हमरा एतेक इम्पार्टेन्स क्यो कहियो नहिदैत छल। हम तऽ कल्पनो नहिकरैत छलहुँ जे मां हमरा डाक्टर सॅ इलाज कराबऽ लऽ जयतीह। आब बुझलिऐ मां बड्ड नीक छथि हमरो सॅ स्नेह छैन्हि।
दू दिन सॅ तेहन अन्हर बरसात भऽ रहल छै जे सूर्यक दर्शनो नहिभेल। नीचाँ उपफनैत समुद्र ऊपर बरसैत आकाश। मोटाक मोटा पानि उझलि रहल छै आकाश तइओ नहितृप्त होइत छै समुद्रक पिआस। जतबा पानि पीबै’छ समुद्र ततबे नशा मे मां तल रहै’छ। समुद्रक सतह गतिहीन छै, बरखा क चोट सॅ लहरि लगै’छ स्तब्ध्! एखन हम बाहरे सॅ टहलि कऽ अबि रहल छली। छाता लऽ कऽ गेल छलहुँ मुदा तइओ ऊपर सॅ नीचॉ ध्रि भीजल छी किछ लोक एसगर रहऽ मे घबराइत छै। तैं मन बहटारऽ लेल ककरो सॅ दोस्ती कऽ लै’छ सेह तॅे सब गप्प-सप्प मे मगन छल। हम सोचैत छलहुँ कतऽ बैसि हॉल मे की लाउन्च मे। मदा लाउन्च मे त कतहु जगह नहिछै। जर्मन दम्पति भरि दिन ताश खेल मे मस्त छल। जोसेपफ हमरा कहलक ‘मैडम! अहाँ कनिएक प्लम ब्रांडी लऽ लिअ।’ हम एक घांेट पीलहुॅ कि बुझाएल जेना कंठ सॅ पेटक अॅतरि ध्रि आगि लेस देलक। ओ बाजल-‘मैडम! ब्रांडी ताहू मे प्लम ब्रांडी एना नहिपीअल जाइछ।’
हम ओकरा कहलिए -‘जोसेपफ अहॉ कहलहुँ दवाई जकॉ पीब जाउ तऽ हम पी लेलहुँ मुँह कान सॅ लऽ कऽ कंठ करेज सब मे धह दऽ रहल अछि!’
-मैडम घाह तुरते ठीक भऽ जाएत। हं एसागर बैसल छी। चलू, दू टा अमेरिकन काल्हि ए आयल अछि ओकरा सँ दोस्ती कऽ लिअ।’
-‘नहि, जोसेपफ। अमेरिकन बड्ड बजैत छै आ हम......।’
-हँ, हँ, हम बुझि गेलहुँ अहॉंके एकान्त प्रिय अछि अहा लेखिका छी।’
हमरा हँसी लागल। सत्ते अइठाम लेखक के बड्ड सम्मान छै। ‘मैडम! अहाँ कोन भाषा मे लिखैत छी?’
-‘हिन्दी मे।’
‘अंग्रेजी मे कियेक नहिलिखैत छी?’
‘हमरा लेल ओ विदेशी भाषा अछि।’
‘मुदा हम पढ़ित हुँ.........।’
-‘ठीक छै कहियो अंग्रेजी मे अनुवाद कऽके पठा देव।’
‘ध्न्यवाद! मैडम आब मोन केहन लगैए। आब तऽ कनिको ठंडा नहिलगैत हेत?’
‘नहिसत्ते कनिको ठंडा नहिलागि रहल अछि। प्लम ब्रांडी क लेल ध्न्यवाद आब तऽ ताजगी महसूस कऽ रहल छी।’
-‘वेश तऽ मैडम आब अहाँ लंच कऽ लिअ। हम वेजिटेबल प्लेट सजा दैत छी।’
‘जोसेपफ! किछ और नहिभेंट सकैए। एहन मौसम मे ई टीन वेजिटेबल। ऊँ हूँ।। ओहूना इ खाइत-खाइत मोन ऊबि गेल अछि।’
‘जोसेपफ उदास भऽ गेल। पफेर किछु सोचैत बाजल मैडम अहाँ लेल कढ़ी बनबैत छी। राइस एंड कढ़ि।’
‘बना लेब ?’
‘हं, कियेक नहि। अहॉ पहिने पफरमाइश कयने रहितहुँ। हमरा तऽ होइत छल जे डाक्टर अहॉ कें ऊसनल तरकारी कहलक अछि। बेलग्रेड सॅ अहॉक दोस्त इएह निर्देश देने छलाह।’
-पिफलिप! ओह! तऽ ई पिफलिपक कारस्तानी छै। सॉरी। जोसेपफ, हमर दोस्त किछ वेशीए हमर ध्यान रखैत छथि। आब अहा केँ जे इच्छा होमय बना कऽ दिअ।’
जोसेपफ खुश भऽ गेल। ओ कहलक आइ राति मे अहाँ केँ स्पेशल ‘कीश’ बनाकऽ खोआब आ ओकरा संग चीज बॉल। ओह हमरा पहिने कहने एहितहुँ। सॉरी वेरी सॉरी!!’
‘गलती हमर अछि अहॉ क कोन दोष?’
जोसेपफ टमाटरक रस मे तरकारी सिझौलक नीक स्वाद छलै भातो बढ़ियाँ छलै आ ताहि संग छलै’ स्टाबेरी टर्टि। मुँह क स्वाद कतेक दिनक बाद बदलल। विछाबन पर सूतिते प्लम बांडीक असर बुझाएल। खूब गहरा निन्न मे सूतलहुँ। निन्न टूटल तऽ खिड़की लग जा कऽ ठाढ़ भेलहुँ। समुद्र मे खसैत
मूसलाधर वर्षा आ ध्ुआँ-ध्ुआँ सन उठैत समुद्री लहरक बाहरि। सप्पूर्ण शहर भींजल तितल। चटाðन पोर-पोर भीजल ओइ पर पड़ैत बौछरक नजारा अद्भूत लगैत छल। लगैत छल खिड़की लग ठाढ़ छी से हवा तऽ लगिते छल पानियो पीबऽ रहल छी। थोड़ेक काल एहिना ठाढ़ रहलहुँ। बॉलकनि मे एखन बैसब कठिन छै। तऽ की करू? लिखू बुझाएल जेना जूडी आदेश दऽ रहल अछि। मुदा एहन मौसम मे एना एसगर -एसगर ....? त की भीड़ भाड़ मे लिखल जाइछ? अपन बेवकूपफी पर अपने हॅसलहुँ।
एसगरक तहे-तह जिनगीक झंकार सुनाई पड़ल। बरसाक कारण माटिक सोंह सुगंध् नाक मे हलचल मचौने छल। चारू भर ध्ुंध् छलै तैं ककरो चेहरा-चिन्हब मुश्किल छल।
कखनौ कऽ बरसाक बौछार कम भऽ जाइत छलै तऽ बीच-बीच मे बत्तीक झिलमिलाहट झलकैत छल। बुझाइत छै आइ बरसा घुटतै नहि। भोरे उठि कऽ हम बॉलकनि मे गेलहुँ। बरसा थम्हि गेल छलै। ताजा खिलल गुलाब सन भींजल भोर का समुद्र क शान्त लहरि बड्ड नीक लगैत छल। सबटा मकान राह-बाट, गाछ-बिरीछ पफूल-पात सब मे ताजगी छलै।
मन मे अजीब बेचैनी महसूस भऽ रहल अछि, माथक नस मे तनाव। भीतर मे किछु घुमड़ि रहल अछि। अथाह समुद्र। गरजैत लहरि संग किनार पर ठाढ़ि एसगर छी। निस्पंद। कतहु सॅ आवाज आबि रहल छै मुदा हम नहिसुनि रहल छी। समुद्रक लहरि के शोरगुल मे आवाज स्पष्ट नहिभऽ रहल अछि तथापि चेष्टा करैत छी। के अछि ओइ पार? समुद्रक ओइ पार, क्षितिज के पार जतऽ जमीन क कोनो कोन मे हम सब संग छलहुँ......... जतऽ हमर घर छल, बाबूजी छलाह। गप्प कर ऽ चाहैत छी सबसॅ जे बहुत पॉछा छुटि गेल।
‘हेलो आपरेट?’
‘यस’
‘कैन यू गिव मी दिस नम्बर?’
हम ओकरा पिफलिपक नम्बर दैत छिऐ। एमस्टरडमा सॅ पचास मील दूर वाल वाइक केँ जतऽ पिफलिप आ जूडी रहैत छयि। व्यापारक रिश्ता घनिष्ठ मित्राता मे बदलि गेल अछि। निःस्वार्थ, निस्पाप पारस्परिक सद्भावना। किछु ए दिनक परिचय क बाद व्यापार के पफरक कोनों कंपनर मे राखि देल गेलै। व्यापारे तऽ करैत छी हम सब। ढ़ेरो व्यापारी एकटा भऽ जायत, किनऽ बला बेच बला मुदा मीत? बड्ड मुश्किल सॅ भेंटैत छै मन क मीत ई कहब छैन्हि जुडि केँ।
हेला! ........... हं, पिफलिप.........हँ हम एकदम स्वस्थ छी। की....आवाज मे उदासी? नहिएहन कोनो बात नहि। हं, हम चाहैत छी किछ दिन आब अहीं सबके संग रहि?.... नहिहम कतहु घूमऽ नहिजाए चाहैत छी। बस हमरा अहिंक घर....। ओह पिफलिप पफोन पर सबटा नहिकहि सकब। .... ओह अहॉ तऽ सदिकाल जेट स्पीड मे रहैत छी। जूडी कतऽ छथि? ऑपिफस मे? कहि देवैन्हि हम याद करैत छिऐन्ह। ओ के भोजन करैत काल हम पफेर सोचऽ लगलहुँ। मां आब कतेक वर्षक भेल हेती? पचासीक ऊपर त अवस्से भेल हेती। लगैं’छ दिनोदिन हुनके जकां शिथिलता आ चिड़ चिड़ापन हमरा रग-रग मे लहु संग दौड़ रहल अछि। की तैं हम कहियो अपना के नहिस्वीकारि पबै छी? अर्न्तमन मे दस वर्षक अबोध् लड़की कें जीबैते जरा देलिए। नहि, हम ओहन औरत नहिबनऽ चाहैत छी?
मां अहॉ जकॉ या दीदी सब जकॉ जिनगी कें हम नहिस्वकारि सकैत छी? ने बड़की भाभी जी जकां भीतरे-भीतर कुहूकैत मरऽ चाहैत छी। तइओ परम्पराक जड़ि हमर पछोड़ नहिछोड़ि रहल अछि। युग-युग करे एहन अमानवीय परम्परा के कोन रोगक नाम देल जाए जकरा कारण हमरा सन विद्रोही महिनाला समर्पित पत्नी आ मां बनऽ लेल विवश होइछ। हम तऽ जिनगीक बहुत लम्बा हिस्सा मां सन नहिबनऽ मे बितेलहुँ संघर्ष करैत। तथापि इच्छाा मां प्रसन्न रहथि,....... मुदा नहिओ तऽ बाबूजीक मुइला क बाद अपना जीवन क रेगिस्तान बना लेलैन्हि। ने कतहु जायब ने ककरो सॅ कोनो तेहन मैत्राी।
बाबूजी जाबत जीवित छलाह हमरा लोकनि प्रत्येक साल पूजाक छुटीð मे लाव-लश्कर संग यानी महराज, मुनीम, चारि टा ढ़ेनामा, देनमी, दूनू भाई सल्लो दीदी कलकत्ता सॅ बाहर जाइत छलहुँ। से हो दूर-दूर कहियो हजारीबाग तऽ कहियो जसीडीह या देवघर। बिहारक लाल-लाल माटि, सांय-सांय करैत शीतल बसात, ऊबाऊ दुपहरिया आ कखनौ नहिखत्म हुअबला राति।
जाय सॅ पूर्व डाक्टर गांगुलीक सोझा मे सब घिया-पुताक वजन लेल जाइत छलै। डायरी मे मुनीम जी नाम संग सभक वजन नोट करैत छलाह। मां कहैत छलथिन-‘बच््या सभ दुबरा गेल अछि। बंगालक अइ बरसाती मौसम मे बाहर रहत त शरीर स्वस्थ रहतै।’ डाú गांगुली ताहि पर टिपैत छलाह हं सात्ति कहै छथि एतुका गरम हवा ऑत के सड़ा दै छै एखन बच््या सभ लेल पाश्चिमक के हवा जोरूरी छै।8 मां स्वयं बिमार रहैत छलीह बाहर जायब हुनको लेल जरूरी छलै। तऽ एक मास पहिने सॅ तैयारी शुरू होइत छल। सबसे पहिने एकटा कोठी भाड़ा पर लेल जाइत छल। सल्लो दीदी लिस्ट बनबैत छलीह कोन-कोन बक्सा जेतै। बड़का बड़का लोहाक कारी बक्सा मे कोनो मे बर्तन-बासन कोनो मे भोजनक सामग्री कोनो मे दवाई, गरम कपड़ा सभक ओढ़ना बिछौना बिस्तरबंद बड़का-बड़का बंडल। स्टेशन पर बाबूजीक परेशान चेहरा। कालूरामजी के रूपैया क थैली सम्हारबाक डियुटी बड़का भैया क सख्त आदेश। तखन पहुँचैत छलहुँ हजारीबाग क सुनसान जंगल क सुन्न बंगला मे। बंगलाक चारू भर बड़का बड़का गाछ-बिरीछ। दाई मां सॅ राति मे हरिया बतिआइत छल-‘मौसी काल्हि राति ओइ गाछ तर भूतनी बैसल छलै।’
‘सच््ये।’
‘हं, हं हम सुनने रहिऐ छन-छन आवाज अबैत छलै मोन तऽ भेल लग जा कऽ देखिए मुदा ऽर भेल।’
-‘हे भगवान! एहन गलती नहिकरिहे जान चलि जेतौ।’
-‘हम पूछलिऐ-दाई मां भूतनी कें लोक कोना चिन्हतै?
-‘भूत-प्रेत क डरेँ वरके गाछ लग चबुतरा छै ओम्हर क्यो नहिजाइत छल। खाली दाई मां जाइत छल शिवजीक जल ढ़ारऽ। दाई मां कहैत छल-‘भूत प्रेत शिवजी लग रहिते छै।
-पहिल सप्ताह नीक जकॉ बीतैत छल। मां अपन दवाई बिरो बन्द कऽ लैत छलीह। भोजनक रूचि बढ़ि जाइत छलैन्हि आ खोराको। राध कहैत छलै-जॅ मैडम तीन मास एतऽ रहथि तऽ पूर्ण स्वस्थ भऽ भयतीह। मां कहैत छलथिन तीन मास तऽ नहिसवा मास ध्रि अवश्य रहब, ध्नतेरस दिन कलकत्ता। पहुँचब।
सप्ताह बीतैत-बीतैत राध आ दाई मां क बीच लड़ाई शुरू भऽ जाइत छलै। मां क आर्डर छल ध्यिा-पुता के तेल-उबटन राध लगेतै। राध कामचोर ककरो ठीक सॅ मालिश नहिकरै ताहि पर दाई मां टोकि दै।
पफेर महराज क भोजन हमरा सभकेँ नीक नहिलगैत छल। रोज सजमनि आ पालक, मूंगक पातर दालि। आलू-मटर कोबी कहियो पत्ता कोबी। सब मे एके स्वाद। जीर आ हींग सॅ छौकल हरैद, ध्नियॉ, लाल मिरचाईक क सूखल पावडर आ खटाई। हं तऽ झगड़ा होइत छलै भानस ध्से चमेलियाक मां गेलै सब ध्ुआ गेल। चमेलियाक मां जाइत छल जखन महराज इनार पर स्नान करैत छलाह। ओ ध्यिा-पुता लेल पिआज दऽ भुजिया बना दैत छलै से पिआजक गंध् लगैत छलैन्ह महराज कें। दोसर हल्ला होइत छल जे लछमनियाँ पानि छू देलकै। हरियाक ई हिम्मत जे बच््या सभकेँ टमाटरक सलाद मे पिआज दऽ देतै? महराज जी चौकला-बेलना पटकि कऽ पछुआर मे जाऽ कऽ बैसथि। घ मे सब खेतै आ ब्राह्मण कोणा भूखल रहताह तैँ दाई मां पूरा रसोई धो पोछिदैत छलथिन। तइओ ओ गरि-सराम दऽ रसोई मे जाइत छलाह। हम दाई मां के कहैत छलिए - ‘दाई मां अहां महराज के मनाबऽ किये जाइत छी ओ गारि सराप दैइ ए।’
-जाय दिऔ बुच््यी! ब्राह्मणक गारि, सराप आर्शीवाद होइ छै।
एक दिन हरिया बगीचा मे दू टा ईंट जोड़ि कऽ लकड़ी जरा कऽ लहसून-पिआज आ गरम मसाला दऽ कऽ खिच््यड़ि बनौलक आ बगीचा सॉ गाजर-मूरै आ टमाटर पिआजक सलाद संग केेरा के पात पर परसि कऽ बच््या सभके खुऔलक। सब प्रसन्न भऽ खूब खेलक। महराज जी क मक्खन वला टिकिया घयले रहि गेलै। एहन बेइज्श्ति। महराज जी बड़बड़ाइत गेलाह मुनीमजी लग-‘मनीम जी हम तऽ चललहुँ बहुरानी के कहि देबैन्ह।’ मुनीम जी कतबो खुशमद कयलनि, मुदा ओ सरपट भगलाह लछमिनियॉ स्टेशन घरि हुनका पाछु गेलै मुदा ओ टेनू मे बैसिए गेलाह। हुनकर राम छलैन्ह सुजानगढ़। हम सब खूब खुब खुश छलहुँ। महारज जी लहसून पिआज नहिदैत छलाह कथु मे। आब दाई मां आ हरियाक हाथक बनल खास खास तरकारी बनत आलूदम, आलूबड़ी, पिआज बला भुजिया आ सांझि मे पिआजक कचड़ी भेँटत।
सप्ताह बीतैत-बीतैत भानसघर अराजकता सॅ मां परेशान भऽ गेलीह। मुनीम जी अलगे बड़बड़ाइत छलाह -‘बहुरानी! नोकरी करैत छी तकरकी मतलब छुआछुत के नहिमानी? सब ध्यिा पुताक मुँ सॅ लहसून-पिआजक गंध् अबैत छै। घी मे बनल बदामक हलुआ रसखले रहि जाइछ आ सब चाट पकोड़ा खाइए। एतेक तेल मसाला ध्आि पूता खाएत तऽ लीवर खराब भऽ जेतै। ओना मां लेल बिनु तेल मसालाक तरकारी बनैत छलै तइओ रोज झमेला होइत छल। मां क माथा गरम भऽ गेलैन्हि जखन बाबूजीक संग तीन-तीन टा गाड़ी मे हुनकर मित्रा अन्तिम सप्ताह बीता बऽ आयल छलैन्हि। दिन भरि ताशक महपिफल आ पर चाह। नास्ता लेल बाबूजी कलकत्ता सॅ अनने छलाह बीकानेरके भुजिया आ कलकत्ते सॅ बनबाक मंूग दालि के भरल कचोड़ी, रंग-बिरंगक मिठाई। मां क अनुसार तीनेटा मध्ुर स्वास्थ के लेल नीक होइछ मामड़ा बदामक बपर्फी संदेश आ उजरा रसगुल्ला। सूजी आ खोआक तड्डू, गुलाब जामुन, पेड़ा इ सभ स्वास्थ लेल हानिकारक। बच््याक सेहत लेल एकदम वर्जित ताहू मे सरोज आ नीलू दूनू रोगाही। कनिएक जॅ छींकत तऽ मा क हिसाब सॅ खान-पान के गड़बड़ी क कारण तैँ मां क अति सतर्कता के वजह सॅ हेल्थपफूड एकदम स्वादहीन। आ मेनू लिखैत छलाह डाक्टर गांगुली। घी-तेल सॅ छह-छह करैत मारवाड़ी भोजन सॅ डाú गांगुली के चीढ़ छलैन्हि। एक बेर बरसात क सांझि मे बाबूजी डाú गांगुली के ताशक महपिफल मे शामिल कयने छलथिन भोजन मे बनल छल पचमेल दाल-बाटि आ चूरमा सूखल संागर क मिरचाई मसाला बला तरकारी आ लहसूनक चटनी। मुंग, उड़िद, चना राहड़ि आ छिलकाबला मूंग के पफेंटल गाढ़ दालि जकरा लौंग इलायची, दालचीनी दऽ घी सॅ छौकल गेलै। आ बाटी तऽ लिटीð जकरा गोइठा पर सेद कऽ घ्ीक डेगजी मे डूबा देल गेलै। चुरमा मे तऽ घी पुस्ट सॅ देले जाइत छै खादार ऑटा मे मोयन दऽ कड़ा सानिकऽ मुड़िया बनाकऽ घी मे तरह जाइत छै। पफेर चीनी आ इलांइची घऽ कऽ कुटि कऽ आध-आध पौआक लड्डू बनलै। डाú गांगुली सबक संग खूब स्वाद लऽ खयलनि। मुदा राति मे हुनकर मोन खराब भऽ गेलैन्हि। बारह बजे रति मे पफोन एलै अरे भाई मिú सांवर जी हमरा की खोआ देलहुत्र तेहन कड़ा लड्डू छलै जे पेट मे गुड़-गुड़ करैए।
बाबू जी ओतेक राति मे नेबोक रस मे सुखाएल हरियर पीपरवटी आ पत्थर हजम चूड़न दादी क बनाओ लऽ कऽ गेलाह। गरम पानि संग चूड़न खयने कनिकालमे पेटक गैस बहरे लैन्ह त चैन सॅ सूतलाह डाú गांगुली के किछ भऽ जेतैन्हि तऽ मां क की हेतैन्ह एहन नीक लोक कतऽ भेँटत।
ताहि दिन सॅ मारवाड़ी भोजन सॅ डाú गांगुली ए के नहिबल्कि मां क मन मे बैस गेलैन्हि जे ओ गरिष्ट होइत छै। डाú गांगुलीत चीढ़ले छलाह मारवाड़ी भोजन सॅ तैं मां के कहैत छलथिन जे ‘बच््या देर ओइ झोल भात दिन आरा कांचा कला आर पेपे शे(ो।’
बाबूजी केँ हजारीबाग अबिते आर झमेला बढ़ि गेलै। एक तऽ गोविन्द महाराज रूसिक चलि गेल छलाह। बीस लोकक नास्ता, भोजन, पिकनिक के समान दाई मां दिन भरि भानसे घर मे रहैत छलीह। मां किछ करतीह से ककरचनो नहिकयल जा सकै’छ। बड्ड करती तऽ चटनीक लेल ध्निक पात, पुदिनाक पात बिछ-चुनि कऽ राखि देतीह आ एहु लेल टोपिया मे पानि आ हाथ मे तौलिया नेने नर्स राध ठाढ़ रहैत छला। हं, मोनपड़ल भोजनक संदर्भ मे मां क बनाओल खिच््यड़ि। साओनक मास छलै। महराज गाम गेल छलाह। कलकत्ता मे खूब जोर सॅ फ्रलू पसरल छलै। हम बड़का भैया, मां आ बाबूजी के अलावा सब बिमार छलै। दाई मां क देह आगि जकॉ गरम छलैन्ह आ भोर सॅ हरियो माथ पर पटीð बान्हि सूतल छल। लक्षमीनियाँ आ राध मिलकऽ खाना बना सकैत छल मुदा मां क छुआ-छुति बला रोग छैन्हि। र्ध्म-कर्म जाति पाति के वहम मााि मे कुंडलीमारी कऽ बैसल छनि। खासकऽ मेहतर सॅ बडड घृणा छैन्हि। मेहतर के चढ़ऽ लेल पफरक सॅ सीढ़ी बनल। आलीशान आध्ुनिक मकानरहैंत मां कें कारण एटेच्ड बाथरूम नहिबनल। तैं स्नान घर पफरक छै। दू टा लैटरीन एकटा अंग्रेजीक स्टाइल बला एकटा भारतीय। पेशाब घर पफरक। माटि सॅ हाथ धेबऽ पड़ैत छल बाद मे लाल साबुन सॅ हाथ धेबऽ लगलहुँ डाú गांगुली के कहला पर। बड़की टा स्नान घर जाहि मे एक दिन बाथटब छल तऽ दोसर दिसन चबुतरा बैस कऽ स्नान करबाक लेल, इटालियन मार्बलक बसिन छलै मतलब पूरब आ पछिम स्टाबूलक खिच््याड़ि। मेहतरक सीढ़ी पर आर क्यो लात नहिघऽ सकैत छल। मेहतरक सीढ़ी पर आर क्यो लात नहिघऽ सकैत छल। मेहतर ग्यारह बजे घरि शोर पाड़ैत अबैत छल ‘पानि दिअऽ।’ ओकर नल ध्ुबऽक मनाही छलै। लछमिनियाँ नल खोलिकऽ बाल्टीए बाल्टी पानी दैत छलै मेहतर कें मेहतर आबि गेलै मे सुनिते मां नाक पर रूमाल घऽ घर मे बैसि रहैत छलीह। मेहतर के गेलाक बाद लछमिनियाँ बाथरूम आ लैट्रिन खूब पानी उझलि कऽ सापफ करैत छल। एहि क्रिया कलाप मे करीब एक डेढ़ घंटा लागि जाइत छलै अइ बीच मे जॅ ककरो पैखाना लागि जाय त आ छटपटाइत रहैत छल। लछमिनियाँ जखन सापफ कऽ बाल्टी लऽ कऽ हॉल पार कऽ ऊपर जाइत छल तऽ रामू हॉल मे पोछा लगबै’छ।
हम कहैत छलहुँ मां क रसोई के विषय मे। हरिया के अचानक बहुतर जोर सॅ बुखार लगलै आ लछमिनियॉ त मेहतर कें पानि दैत छलै पफेर बाथरूम सापफ करैत छलै तैं मां ओकरा अछूते बुझैत छलथिन। रामू कपड़ा सापफ करऽ गेल छलै। राध नर्स क्रिश्चियन छै रसोई घर मे कोना जाएत। शंभु बाबूजीक नौकर छैन्ह ओ भोरे आमक पथिया लऽ बड़की दीदीक सासुर गेल छल एखन ध्रि घूरल नहि। साढ़े ग्यारह बाजि गेलै आध घंटा मे बाबूजी जूट मील सॅ आबि जेथिन आ खाना नहिबनलै। भोर मे सबके दवाई आ बार्ली बनाकऽ हम देने छलिए।
खाना बनाबऽ हमरा अबितो नहिअछि। हारि-थाकि कऽ मां गेलीह रसाई घर मे। आलू उसनऽ लेल चुल्हि पर चढ़ौलनि। थारी मे चाउर तऽ कऽ सुनऽ बैसलीह। राध के कहलथिन सबके अनारक रस निकालिकऽ पीयाबऽ। हम कहलिएन्ह ‘मां आइ भोर सॅ दाई मां किछु नहिखयने छथि।’
मां झनकैत बजलीह-क्यो मना कयने छै? कियेक नहिखाइत छै? राध बात के नमरबैत बाजल हम त कतेक बकर खाय लेल पूछऽ गेलिए किछ खाइते नहिछै। हमरा चुप्प नहिरहि भेल-‘झुठी कहीं के। एको बेर दाई मां क रूम मे झांकऽ नहिगेल अछि। मां हम दाई मां कें दूध् दऽ अबिए?
‘हं, आ जँ साबूदाना या बार्ली खेतई तऽ दऽ दिहे बुखार उतरलै की नहिथर्मामीट लगाकऽ देख। चमेलियाक मांक बिमार पड़ने हमर हाथे-पैर टूटि गेल अछि।’
हम दूध् लऽ कऽ जाइत छलहुँ तऽ सुनलिऐ मां कें राध कहैत छलै-‘प्रिया कें दूध् लऽ कऽ कियेक जाय कहलिऐ फ्रलू के ध्ूत जल्दी पटैत छै। चमेलियाक मां के बुखार हेतै नहिओ भारे-भोर उठि कऽ नहाएत पूजा करत बड़का पूजारिन बनैए। हमहूँ सब तऽ जीसू के मानै छी।
हम घुरिकऽ मां के कहलिएन्ह मां राध के कहि दिऔ दाई मां क आदगोई बदगोई बंद करय नहितऽ ओकरो बुखार लागि जेतै।’
- मां, कहलनि-‘अच्छा जो चुपचाप।’
‘हम जल्दी जल्दी सीढ़ी पर चढ़ि दाई मां क रूम मे गेलहुॅ। माथ छू कऽ देखलिएन्ह-दाई मां आब के हम मन अछि?’ दूध् पी लिअ।
दाई मां कहलनि-‘मोन बड्ड बेचैन लगैए। हम एखन दूध् नहिपीयब।’
ओहिठाम हरिया सूतल छलै। दाई मां दूध्क गिलास हरिया के दैत बजलीह ले दूध् पी ले। हम बूढ़ पुरनियॉ छी ठीक भइए जेत।
हरिया गटागट दूध् पी गेलै हमरा नीक नहिलागल। आइ भोर मे हरिया नास्ता कंयनहि छल ओकर बाद आकरा बोखार लगलै। तैं हम दाई मां के कहलिए ‘पफेर दूध् लऽ कऽ अबै छी।’ दाई मां मना कऽ देलनि। कहलनि-नहिहमरा एक गिलास पानि दिअ आ पोटरी मे बान्हल धनक लावा छै आ गुड़ से खोलि कऽ दिअऽ।’
दाई मां लावा गुड़ खा, पानि पी नीचां उतरल। रसोई घर मे खिच््यड़ि चढ़ल छलै मां पीढ़ी पर बैसल छलीह राध पाछू मे ठाढ़ हुनका पंखा हौंकैत छल।
दाई मां के देख कऽ मां बजलीह-‘चमेलिया मां कियेक नीचॉ उतरलें हम बना लेबै खिच््यड़ि आ साना।’ तइओ दाई मां रसाई मे जा कऽ आलू के ठंडा पानि मे रखलनि आलू बड्ड गलि गेल छलै। पफेर खिच््यड़ि के देखऽ गेलीह-हे भगवान! बहूरानी ई की बनेलहुँ? एतेक ने पानि ध्ऽ देलिऐ चाउर-दालि के पते नहिछै?
‘तऽ हम की करिए हमरा मानस घर मे गर्मी सॅ माथ ध्ूमऽ लगैए। आब जे भेलै से भेलै। अइमे नेबो गारि कऽ जूस जकॉ सबके पिआ देबै। आ, साहेब के? हुनको इएह जूस देबैन्ह?’
हम किछ नहिकरबै सब इएह खाएत चल राध हमरा माथ मे यूडिकोलोन लगा दे माथ पफाटल जाइए। आ हमर प्रिय मां गेलीह अपना रूममे। जिनगी मे शायद पहिल बेर मां रसोई घर मे गेल छलीह। दाई मां बड़बड़ाइत छलीह छह बच््याक मां छथि आ एकटा खिचड़ियो बनबऽ नहिअबैत छैन्ह। हमरा कहलनि-‘बुच््यी अहॉ ई खिचड़ीक जूस सबके दऽ आउ। हम साहेब लेल’ खाना बना दै छी।’
दाई मां कनि खिच््यड़ि अहूँ खा लिअ।
‘सुनू तऽ हमर बुच््यीक बात। अरे घर क मालिक एखन खयलनि नहिताबत हमहीं खाउ?’ बुखार सॅ ध्ीपल शरीर बेर-बेर पसीना पोछत पयपन वर्ष क प्रौढ़ा आ तकर एहन स्वामिभक्ति.......एतेक ममता।
बाबूजी खाना खाय बैसलाह ताबत मां सैरिडानक दू टा गोली खा लेलनि आ बजैत छलीह-गृहस्थी औरत लेल बड़का अभिशाप छै। असल मे मां के अइबात क दुःख छलैन्ह जे सब एके बेर कियेक बिमार पड़ि गेल। सबसॅ वेशी कष्ट छलैन्ह जे हरिया आ दाई मां बिमार पड़लै। तैं बजैत छलीह जे आब महराज आयत तऽ ओकरा नौकरी सॅ हटाइए देबै हरबम गांव जइत रहैए। आई मां के मानस घर मे जाए पड़लनि खिच््यड़ि बनौलनि आ डाú गांगुली के अयलापर बच््याक रूम मे बैसऽ पड़लनि। बाबूजी तुरत आपिफस मे पफोन कऽ कालूरामजी के कहलथिन जे जल्दी ठेका पर काज करऽ बला रसोइया पठाउ। आ डाú गांगुली के पफोन प बहलथिन सांझि मे आबि कऽ पफेर रोगी सब के देख लेबैं’ हमर गाल थपथपबैत बजलाह ई हम्मर बहादुर बेटी अछि।
‘हं, ई तऽ खा-खा कऽ पहलवान भऽ गेल अछि। मां खौंझ कऽ बजलीह।
नीक बात छै स्वस्थ अछि अंग्रेजी मे कहबी छै हेल्थ इज वेल्थ। अहॉ अहॉक खुश होमऽ चाही जे ई स्वस्थ अछि तैं अहॉक मदति कऽ रहल अछि।’ हुनका सुनल नहिभेलैन्हि। झट आर्डर देलनि-‘प्रिया जो सरोज के थर्मामीटर लगा कऽ देखहि।’
पता नहिकियेक आइ एतेक बात मोन पड़ि रहल अछि। घड़ि देखलहु रातुक बारह बाजि रहल छै।
समुद्रक लहरि कें मंथर स्वर सुनाई पड़ैत छल। आइ सेतीस्टेपफा मे अन्तिम राति अछि। ऊठि कऽ बरांडा मे गेलहुँ। पूर्णिमाक राति छलै। चानी जकॉ चमकैत छै समुद्रक लहर। मंत्रा मुग्ध् बड़ी काल ध्रि निहारैत रहलहुँ पफेर कुर्सी पर बैस गेलहुँ। छिट-पफुट बहुत बात मोन पड़ल-इ सभ याद रहत-लिख सकबै? ठेकनाबऽ लगलहुँ हजारीबागक बात सब। बाबूजी आबि गेलाह। आब के तेल-मालिश करा कऽ रौद मे बैसत? पफेर सुसुम पानि मे नीमक पात घऽ नहाओत। मां क सब योजना पफेल भऽ जाइत छैन्हि। रोज सांझि मे गरम-गरम नास्ता बनै छल बदलि-बदलिकर बाबूजी के बुझल छै माहाराज कें हन नास्ता भोजन बनबैत छथि तै ँ सोहन महाराज कें ठेका पर बजालेलथिन। ओ नास्ता मे कहियो समोसा बनबैत छल तऽ कहियो गरम-गरम जिलेबी, कहियो आलू -मटर भरल कचौड़ी आ सूजीक हलुआ। सोहन महाराज के छुआ-छूति के रोग नहिछलैन्ह। तै ँ दाई मां हमर पसिन्न के आटॉ बला हलूआ बना दैत छलीह गुड़ ध्ऽ कऽ। एक दिन प्रोग्राम बनल हजारी बाग सॅ सौ मील दूर रॉचीक हुडरूपफॉल पिकनिक पर जयबाक। बाबूजीक संग तीन टा गाड़ी आयल छलै। भरतीय जी आ बाबूजी पहिने रॉची चलि गेल छलाह पिकनिक मे ओतई सॅ पहँुचता। मां ओतऽ जयबा लेल किन्नहु राजी नहिभऽ रहल छलीह। बाबूजीक बहुत आग्रह पर तैयार भेलीह मुदा हुनकर शर्त छलैन्ह-अलगे गाड़ी मे जयतीह संग मे राध नर्स रहतैन्ह आ हरिया। मां क टिपिफन भोरे चारी बजे उठि कऽ दाई मां बनौने छलथिन-घी मे छानल नरम-नरम पुरी, आलू-मटर कू सूखल भूजिया आ नीबूक अंचार, छेनाक संदेश, थर्मस मे संतराक जूस। एकटा अटैची मै चारि टा तौलिया, साड़ी ब्लााउज, पेटीकोट, माथ दर्द क दवाई, उल्टीक दवाई, पेट ददर्क दवाई आ हार्ट बाला दवाई। दून्नू भाई बाबूूजीक संग आगॉवला गाड़ी पर बैसलाइ। दादी मां घरक रखवारी करऽ डेरा पर छलीह। हुनकर कहब छलैन्ह हम की करऽ जायब कोनो कुम्भ के मेला छै। जखन गाड़ी स्टार्ट होमऽ लगलै तऽ मां आर्डर देलथिन एकटा बच्चा के हमरा संग बैसा दिउनै सब एके ठामा रहत तऽ उफध्म मचा देत। राध गेट खोलैत बाजल-‘आउ प्रिया अहाँ मां लग बैसू’।
‘नहिहम नहिउतरब।’ नहिजानि कोना आइ हमरा मुँह सॅ विद्रोह स्वर बहराएल।
नहिसुनिते मां क पारा गरम भऽ गेलैन्हि। जोर सॅ बजलीह ‘उतरैत छेँ की नहि?’ हरिया जो ओकरा लऽआ। मन मे भेल कहिऐ-मां, हमर कोन काज पड़ि गेल? मुदा हिम्मत नहिभेल। ऑखि नोरा गेल। तऽ मां राध के कहलथिन- ‘सरोज बात नहिमानैत आ बिल्लू तऽ बानरे छै भरि बाट तबाह कऽ दैत।’ नीलू मां क दुलरूआ छै तैँ ओ कोना मे खिड़की लग बैसल छल। एकटा हमहीं दब्बू छी जे मां क हुकूम पर नचैत छलहुँ। सुनसान रास्ता मे मां राध सॅ बतिआइत रहलीह। ‘राध! हम तऽ पफेर अस्वस्थ भऽ गेलहुँ। दस दिन मे जे कनि सुधर भेल छल सब चौपट भऽ गेल। साहेब जहिया सॅ अयलाह हरदम हंगामा होइते रहैत छै बच्चाक संग बच्चे बनि गेलाह। संग मे दूचारि टा सब दिन दोस्त रहिते छैन्ह। हमर एहन शरीर, अहाँ तऽ कहियो स्वस्थ रहितेनहिछी!’ अरे हंम की स्वस्थ रहब। एतेक ध्यिा-पुता के पालब पोसब आसान छै। किछुए दिन पहिले देखलहुँ ने बरसात मे सब बिमार पड़ल छल।
‘हं, गांगुली बाबू तऽ कहनहि छलाह-अहाँ के ँ एखन आराम करऽ चाही।’
घुर! हमार नसीब मे आराम लिखले नहिअछि। जहियासॅ साहेब अयलाह अछि रोज घोड़ दौडे़ भऽ रहल अछि।
‘सत्ते कहैत छी। आब दूपहरो मे बच््या सभ हल्ला गुल्ला करिते रहे छै। क्यो नहिसूतै छै।’ ‘राध। हमर सभक जिनगी मे खुशी कहाँ? जहिया सॅ विवाह भेल साले-साल बच््या पर बच््या। एकटा लड़कातऽ मुइले जन्म लेने छल। पहिल बेटी आठ वर्षक उम्र मे मुइल। चारिबेर तऽ ओगण ;एबसिनद्ध भेल। शरीर मे शक्ति रहत कोना? सुमित्रा के देखियौ चौदहम मे ब्याह भेलै आ पन्द्रहम मे बुल्ली भऽ गेलै।’
-‘ह, ई उम्र मे कतहु बच््या होइ?’
अटाòईस वर्ष क उम्र मे चारि-चारिटा बच््या। तैं बुल्ली आ नीलू के हम अपने लग रखैत छिए। ऊ त चमेलियाक मां छै जे सबके सम्हारै छै।
‘घुर, चमेलियाक मां कोन जोकरक छै। एकदम गंवार छै कनिको अक्किल नहि। प्रिया पर कोन जादू कयने छै जे अहां सॅ वेशी मोजर प्रिया ओकरे दैत छथि।’
दू घंटा सॅ गप्प पर गप्प होइत रहल अछि। राध दाई मां के देखऽ नहिचाहै’छ तैं मौका तकैत रहै’छ हुनका विरोध् मे बजबाक। हम खिड़की सॅ बाहर माथ झुकौने नागपुरक पहाड़, जंगल आ आकाश् मे घुमड़ैत बादल देख रहल छलहुँ। गप्प बंद भेलै तऽ मां क ध्यान इम्हर भेलैन्हि। हमरा कहलनि-‘खिड़की बन्द कर ठंढ़ा लगतौ।’ पफेर हुकुम भेल-‘सोझ भऽ कऽ बैस मुदा बजबाक साहस नहिभेल। सुसू करबाक छल से हो हिम्मत नहिकोना बाजू? ऑखि नोरा गेल। अइ घर मे दाई मां क सिवाय आर क्यो हमर जरूरत नहिबूझै’छ। हम अपना के एकदम एसगर बुझैत रहलहुँ अछि। अनचाही सन्तान से हो बेटी! पेट मे दर्द होमऽ लागल बुझाइत छल आब उल्टी भऽ जाएत। एकाएक उल्टी भइए गेल। से हो मां क देह पर!
जुलूम भऽ गेलै। मां जोर से बजलीह-‘गाड़ी रोकू, ड्राइवर जी।’
राध पफरके चिचिआइत छल। हमरा सम्पूर्णशरीर ऐंठ रहल छल आ भयभीतभऽ मां दिस तकैत छलहुँ। ई हम की कयलहुँ? मां क चेहरा सॅ घृणा आ जुगुप्साक भाव झलकैत छल। मां के तऽ मेहतरक नामे सुनि कऽ जी ओकिआए लगैत छैन्ह। गाड़ी रूकल। ड्राइवर-दौड़ल पानि आनऽ। मुदा पानि कतऽ भेँटतै? पछिला गाड़ी मे पानि बला थर्मस छलै। मां काठक मुरूत जकां ठाढ़ छलीह सड़क पर। राध तौलिया भीजाक उल्टी सापफ कयलक। मां कुरूर कयलनि। राध हुनका कपड़ा बदलि देलकैन्हि। मां बजैत छलीह-हमरा जी ओकिआ रहल अछि। राध जल्दी-जल्दी गाड़ी सापफ कऽ यूडी कोलोन छीटलक। मां गाड़ी मे बैसलीह। सरोज आ नीलू झाड़िक अढ़ मे सुसूकरऽ गेल। बुल्ली सड़के पर ठाढ़े ठाढ़ पेशाब कयलक। मुदा हमरा एखनो बकौर लागल छल कुरूर करबा लेल एक गिलास पानियो मांगबाक हिम्मत नहिभेल। मुँहक स्वाद खटाइन लगैत छल। आब मां क ध्यान हमरा दिस भेलैन्ह। राध के कहलथिन हाथ-मूँह छोआ कऽ कपड़ा बदलऽ। ताबत नीलू के हरिया मांक गाड़ी मे बैसौलक। हम दोसर गाड़ी मे खिड़की लग बैसलहुँ। बुल्ली कहलक हम अपन सीट सॅ नहिहटबै। सरोज बाजल-ले हमहीं बीच सॅ उठि जाइत छी। कोन ठेकान पफेर उल्टी हेतै तऽ? बुल्ली आ सरोज दूनू हमरा सॅ हटि कऽ बैसल।
आगाँ गाड़ी गेलै तऽ देखलहुँ-बाबूजी गाड़ी रोकि कऽ ठाढ़ छथि। की भेलै? गाड़ी कतहु रूकलै छल? मां झुझलाकऽ सबटा बात कहलथिन। बाबूजी चिन्तित भऽ हमरा लग आबिकऽ पूछलनि बौआ, आब केहन मोन छौ? एखनो जी हौडै छी? अजय, एकरा जमाइन दहिं।’ मन विहवल भऽ गेल अपना के संयत कयलहुँ।
हंडरू पफाल पर सब नीचां उतरि स्नान करऽ गेल। मां हमरा मना कऽ देलैन्ह। पफेर मोन खराब भऽ जेतै प्रतिवाद करबाक हिम्मते नहिभेल। राध दिस ताकि कऽ मां बजलीह-उल्टीक दुर्गंध् सॅ माथ मे दर्द भऽ रहल अछि ऊपर सॅ ई रौद! मां चटाðनक सीढ़ी पर उतरियो ने सकैत छलीह। तैं मां आ हम रहि गेलहुँ। राध मां क पैर जॅतैत छलीह। हम चुपचाप सीढ़ी दिस तकैत छलहुँ। दूर सँ अबैत झर-झर झरनाक स्वर कान मे जा पूछैत छल-उल्टी भेल ताहि मे हमर कोन दोष? खूब ऊपर पहाड़, पहाड़ सॅ झहरैत पानिके झर-झा स्वर! मोने मन होइत छल मां, एहन अपूर्व सुख के कियेक नकारैत रहैत छथि आ अपना-संग-संग हमरो छोट-छोट सुख सॅ वंचित रखैत छथि?
आध घंटाक भीतर राम सिंह ड्राइभर दौडै़त आयल।
-‘बड़ा बाबूक पैर मे चोट लागि गेलैन्हि दू गोटे सहारा दऽ ऊपर आनि रहल छैन्हि।’
‘की भेलै? की वेशी चोट लगलैए? घबराहट मे बड़बड़ाइत छलीह-पहाड़ पर चलबाक अभ्यास नहिछै। किछ भऽ जेतै तऽ? एक ने एक आपफत अबिते रहै छ। हमर मोन ठीक हेएत कोना? कहियो शान्ति सॅ समय बीतैत अछि?’
ताबत बाबूजी के सहारा दऽ हरिया अबैत छला। चोट गंभीर छले। दिहिना पैर क घुठòीक हड्डी निकलि गेल छलैन्ह। पन्ना महराज जल्दी सॅ चूना लऽ कऽ अयलाह। मां ध्यिा-पुता दऽ पूछलथिन- ‘विजय आ अजय कत छै। आ तीनू छोटका?’ बाबूजी कहलथिन -‘नहा कऽ अबिते हेतै। एलैए मौज-मस्ती करऽ।’ ‘भेलै खूब मौज-मस्ती भऽ गेलै। भाई जी। आब हम हिनका लऽ कऽ कलकत्ता जायब। कहीं पैर मे अबाह भऽ जेतैन्ह।’ मां क जिद्द क आगॉ ककरो वश नहिचललै। हजारी बाग जयबाक बदला दू गाड़ी मे मां, बाबूजी, बड़का भैया, बालू जी, हरिया आ राध पुरूलियाक बाट दिस बढ़़ल। एकटा गाड़ी मे छोटका भैयाक संग हम सब हजारीबाग घुरलहुँ। दू दिनक बाद पूरा लाव-लश्कर कलकत्ता चलल। सत्ते बाबूजी के चोट गंभ्ज्ञीर छलैन्ह। छह मास घरि ओ लंगारा क चलैत छलाह। आ मां सब दिन हुडरूपफालक पिकनिक मादे बजैत छलीह।
एहिना हमरा लोकनि प्रत्येक साल मां क संग पश्चिमक हवा मे सॉस लेबऽ कहियो देवघर कहियो जसीडीह कहियो रॉची-तऽ कहियो हजारीबाग जाइत छलहुँ। हं, एक बेर ‘पुरी’ गेल छलहुँ कुल मिला कऽ सोलह वषक उम्रध्रि मां क संग हमर वार्षिक छुटीð बीतल छल। जाहि मे सब खेप हम एक-एक दिन गनैत बीतबैत छलहुँ जे कहिया ई छुटीð खत्म हेत आ स्वास्थ लाभक कर्म कांड सॅ पिंड छूटत। जहिया ट्रेन सॅ घुरैत छलहँुतऽ बंगालक हरियरि देखते थप्पड़ी पीटैत छलहुँ-‘सरोज देख, देख ने बाहर कतेक नीक लगैत छै धनक खेत। आ देखहि ने आम-कटहर बला गाछी। कतहुँ घरक चार पर सजमनि आ छिंगुनीक लती छलै तऽ कतहु खेत। आ देखहि ने आ छिंगुनीक लती छलै छलै तऽ कतहु कदीमाक लती। एक पतिआनि सॅ नारियरक गाछ बड़ड नीक लगैत छलै देख मे। बंगालक भूमि जत ने गर्दा-ध्ूल ने खालि परती पॉतर! सौन्हगर माटिक महक सॅ मनात प्रपफुल्लित भऽ जाइत छल नयन हरियरि देख जुड़ाइत छल। हमसब महालयाक दोसर दिन जाइत छलहुँ। पाँच-सात दिन छुरछुरि पटाखाक छोड़ में बीतैत छल। मां सॅ चोराऽ कऽ छोटका भैया दू सौ अनार बनबाकऽ अनैत छलाह एहि मे लछमिनियाँक पूरा सहयोग हुनका भेँटैत छलैन्हि।
दिवालीक चारि-पाँच दिनक बाद पफेर घर क सोझा मे स्कूलक बस ठाढ़ होइत छलै। किताब-कॉपी लऽ जल्दी जल्दी भगैत छलहुँ बुझू जे जेल सॅ कैदी भगैत होई। सत्ते हमरा घर जेलखाना बुझाइत छल। कनि पैघ भेलहुँ तऽ बोर्डिग हाउस मे रहऽ लगलहुँ। हमरा स्कूलक दुनियॉ बड्ड प्रिय छल। संगी सभक स्नेह भेंटैत छल। शिक्षिका प्रशंसा करैत छलीह।
बहन जी मां क स्थान लऽ लेलैन्ह। हुनक घवल वस्त्रा में श्वेत केश मे आ शु( आचरण तक कतहु बनाबटीपन नहिनजरि अबैत छल। हमर समस्त समस्याक व्यवहारिक समाधन करैत छलीह बड़ी बहन जी। ककरो बुझौ ने दैत छलथिन। कहियो मां के जाऽ कऽ बुझबैत छलथिन कहियो पफोन पर कहैत छलथिन-‘प्रिया के एनú सीú सीú कैम्प मे जाए दिऔ।’
आब दाई मां लग बैसऽ मे मोन नहिलगैत छल। आब हमरा लग छल मन लग्गु किताब आ संगी सहेली, आब दाई मां साल मे दू बेर कऽ गामो जाइत छलीह। हं एखनो राति मे माथ मे तेल घऽ चोटी बनेनाई आ तरबा मे बिनु तेल लगौने हुनकर मोन नहिमानैत छलैन्हि। बीú एú मे जाइते हमरा संग पढ़वाली संगी सभक एकां एकी ब्याह होमऽ लगलै। सब से पहिने पुष्पा इंदौर चलि गेलीह। सुनीता बम्बई चलि गेलै। विभा पढ़ऽ दिल्ली चलि गेल आ सुध के ब्याह भऽ गेलै। एकटा हमहीं मारवाड़ी प्रेसिडंेसी कॉलेज मे पढ़ि रहल छलहुँ। नव संगी, नया महौल को-एजूकेशन बला कॉलेज। विद्वान प्रोपफेसर सब। आब बुझाना जाइछ जे आर्य कन्या महाविद्यालयक बहिन जी के कतेक कम ज्ञान छलैन्ह। मुदा ओ हमर घर छल। बाहरी दुनियाँ मे आब पैर रखलहुँ अछि।
किलाक पूब बला पहाड़ि पर सांझुक झल-पफल दृष्टिगोचर भेल। नहुँ-नहुँ बसात पफूल पात के छुबि रहल छै। अचानक नजरि गेल शान्त समुद्रक लहरि केँ डूबैत सूर्य देख खितिज दिस लहराइत। आकाश मे अन्हार पसरल जाइत छै आ सब दिस परछॉही कें पकड़ि पबैत छी? सबटा कोना मिझराएल जाइछ। सुखःदुख, ध्ूप-छाँह रोशनी मे सभक भुतिएनाई। कतऽ कतऽ ताकू? मोनक कोन-कोन कोना मे झाँकू? जिनगी केहन रहस्यमय भऽ जाइत छै जखन अहाँ ओकरा आखर मे अभिव्यक्त नहिकऽ पबैत छी। जखन कि अहाँ प्रयत्नशील रहैत छी पारदर्शिता देखयबा लेल। मुदा कि जिनगी कें सिसोहि कऽ व्यक्त कयल जा सकै’छ?
ऊँच आर ऊँच हिलोर लैत लहरि। सूर्य निपत्ता भऽ गेलाह समुद्रक पफेन में। ओना लाली खत्म नहिभेलैए। हम मुग्ध् भऽ देख रहल छी समुद्र में नील आ लाल रंग क छिड़काव। शान्त, निस्तब्ध् गोध्ूलि बेर, हल्लुक सन स्पर्श सॅ जेना एक क्षण लेल सब किछु ठहरि गेल होइ पुनः सांझ बसातक ऑचर पकड़ि क्षितिज दिस भगैत अछि। आ हमरा भीतर एक टा सुप्त वेदना सिसकि उठै’छ।
थाकल सांसक संग हमर ऑखि दूर-दूर ध्रि-अन्हार मे किछ टटोलि रहल अछि। स्मृतिक अयना मे एक पर एक झलकै’छ। पहिने की सोचू आ ककरा पाछू धकेल दिअ। कल्हुका गोछूली वेला मोन पड़ल। भरि दिन बरसैत पानि प्लम ब्रॉडी.......... पफेर अतीतक घटना क विषय मे सोचैत-सोचैत सूति रहब।भोर मे कॉपफी क कप।
मोन पड़ै’छ तहिया हम बीú एú अन्तिम वर्ष मे छलहुँ। मूसलाधर वर्षा भेल छलै। सड़क पर बुझाइत रहेै जे नदि बहि रहल छै। घर जेनाई असंभव छल। किछ लड़का-लड़की जकर घर लग छलै से हाथ पकड़ि-पकड़ि पानि ठेलैत आगॉ जाइत छल। संझुका साढ़े चारिए बाजल छलै। दूर जकर घर छै से कोना जाएत? हमर एकटा सहपाठी असीम लैंस डाउन रोड लग रहैत छल। सीध सादा लड़का। देखबा मे खूब सुन्दर। प्रायः लाइब्रेरी सॅ घुरैत कावल ओकरे संग बतिआइत घर घुरैत छलहुँ। ओकरे कहलिए-‘चलब पैदल।’
-‘एतेक डॉर भरि पानि मे?’
‘केहन डरपोक छी?’
‘वेश चलू।’
रमेश बाबू हमर दर्शन विभागक प्रोपफेसर, ओहि ठाम ठाढ़ छलाह।
-‘ई प्रिया जे अछि.....
हम झटकि कऽ बदलहुँ जेना किछ नहिसुनने होई। दू घंटा मे हम सब लैंस डाउन रोड के मोड़ घरि पहुचलहुँ। पानि डॉर सॅ कनी ऊपरे छल से पैर जेना एक-एक मन के भारि भऽ गेल छल।
डेग उठाबी तऽ लगैत रहए जे आब खसलहुँ। शायद इएह हाल छलै असीम के मुदा ओ एकदम चुप्प छल डरपोक क विश् ोषण सुनि। दूनू एक-दोसर के सहारा दऽ बढ़ैत छलहुँ। म(िम इजोत मे चारू भर पानिए पानि देखाइत छल ताहि मे डूबल गाड़ी, बस। चलैत अभरल एक टू टा रिक्सा या मिलिट्री या पुलिसक जीप। आब एलगीन रोड क मोड़ पर छी।
-‘असीम, आब कतेक चलऽ पड़त?’
‘झोसीक रानी! थाकि गेलहुँ?’
‘नहिचलू।’
पफेर हिम्मत कऽ आगाँ बढ़लहुँ। बेचारा असीम अपने अध्मरू भऽ गेल छल मुदा की बाजत? हम ओकर हाथ छोड़ि देलिए।
-‘प्रिया आगॉ ख(ा छै आ मैन होल खुजल छै सम्हरि कऽ चलू।’
-‘अहॉ अपन ध्यान राखू।’ तखने कात दऽ एकटा रिक्सा जाइत छलै। पूछलक ‘जरूरी अछि’?
हमरा बाजऽ सॅ पहिने असीम बाजल ‘हं भाई रूकऽ। सर्दन एवेन्यू जयबाक अछि।’
‘पच््यीस टका लेब से हो एडवांस।’
हम सब अपन-अपन पाई देखलहुँ। तय भेलै जे पाँचटका घर पहुँचला पर देबै। घड़ी मे साढ़े सात बाजि रहल छले। दूनू गोटे रिक्स पर बैसलहुँ। ध्ीरे-ध्ीरे वर्षा भऽ रहल छलै। रिक्सावला पर्दा लगा देलकै। थाकल देह मन के राहल भेँटल असीम हाथ सॅ हमरा कान्ह पर कसियारिक पकड़ने छल जोर बढ़ले जाइत छलै। ओ पागल जकॉ हमरा चूमि रहल छल। उन्नमाद.....? एहन उन्माद? नहिइ देहक र्ध्म छै एकरा नकारल नहिजा सकै’छ। सुखद अनुभूतिक तात्कालिकता मे के नहिबहकि जाए। हमरो ठोर ओकरा ठोर सॅ सटल पफेर लजाक मुँह घुमा लेलहुॅ। मुदा ओ आर कसिकऽ पकड़ि लोलक दूनूक सांस भिझरा गेल कि तखने रिक्सा रूकलै। पर्दा उठा रिक्सावला बाजल-हम कनि सुस्ता लैत छी। हम दूनू गोटे विहुँसलहुँ। बड्ड मासूम, निर्दोष छल ओ मुस्कान। नीक परिवारक सज्श्न लड़का जकरा प्रोपफेसर कहैत छलै भालो छेले।’
‘भालो छेले’ कहएबा लेल प्रेसीडेंसी कॉलेज मे किछ विशेष विशिष्टा जरूरी छलै। ओ कोनो पैघ डाक्टर, बैरिस्टर वा आईúएúएसú के बेटा होई। बीड़ी-सिगरेटक आदत नहिहोइ। लड़कीक चक्कर नहिलगबैत होमए। मृदु भाषी शिष्ट व्यवहार, मेघावी आ सुदर्शन होमए। विश्वविद्यालय मे प्रथम या द्वितीए स्थाना होइ। असीम सॅ पालिटिकल सांइसक लेक्चरर आ विभाग अध्यक्ष के इएह अपेक्षा छलैन्ह।
दर्शन विभागक हेड आपफ डिपटिमेंट डाú सुखमय चटर्जी एक दिन हमरा बजा कऽ पूछलैन्ह-‘अहॉक भविष्यक योजना की अछि?
-‘कहियो सोचलहु नहि, मुदा आक्सपफोर्ड या कैंब्रिज मे पढ़बाक मन अछि।’
‘की प्रोपफेसर बनऽ चाहैत छी?’
‘नहिबैरिस्टर।’
-‘ठीक छै। तखन प्रथम आ द्वितीय स्थान मंजुला आ सुबोध् लेल रहऽ दिऔ।’
कॉलेज में लड़का संग पढैतौ हमरा कोनो लड़का सॅ विशेष सम्पर्क नहिछल ने क्यो तेहन प्रिय। असलमे हमरा औरतपना सॅ चीढ़ छल। एकर परिभाषा छलै क्ला समे ताक-झांक, रोमांटिक बातचित, रूमानी कल्पना पफेर विवाहक सपना। सबटा बकवास।
मुदा सरिपहुँ नीक लागल छल युवा शरीर क स्पर्श, आलिंगन, उत्तेजित गर्म साँस, चुम्बन आ ओ सिहरन! घर पहुँचैत-पहुँचैत रातुक नो बाजि गेल। बहुत बात सुनऽ पड़ल कियेक तऽ बड़का भैया पुलिसक जीप लऽ कॉलेज पहुँचलछलाह हमरा आनऽ। ओतऽ पता लगलैन्ह हम दोस्त संग पैदल विदा भेलहुँ। मुदा हमरा ककरो बात क असर कहॉ पड़ल। मां की सभ बजलीह बुझबो नहिके लिए। हम तऽ अजीब नशा मे मद्मस्त छलहुँ। रग-रग कसमसा रहल छल। सपने देखैत राति बीतल।
भोर होइत-होइत बहुत तेज बोखार भऽ गेल। तीन-चारि दिन घरि बोखाकर नहिउतरल तखन खून टेस्ट कराओल गेल। डॉक्टर गांगुली कहलथिन-‘टायपफॉयड छै।’ मतलब कम से कम पन्द्रह दिन घरि कॉलेज जेनाई बंद। हमरा इ सुनि नीके लागल। पता नहिकियेक हम दोबरा असीम सॅ भेंट नहिकरऽ चाहैत छलहुँ। अपन देह के एना अपका भेनाई नीक नहिलागल छल। आ प्रेम? हमरा न ककरो सॅ प्रेम करबाक अछि ने ककरो सॅ विवाह। विवाह पफेर बच््या। ऊँ हूँ!! मां केँ कहियो सुखी नहिदेखलिऐन्ह। ओना उपन्यास मे पढ़ने छलहुँ जे बच््या भेला पर औरत सम्पूर्ण होइछ। मुदा मां तऽ अपन बच््या पर हरदम कुपित रहैत छथि। सदति काल खौझाएल।
देखैत छिए जे बड़की दीदी के चारिटा बच््या छैन्ह तखनहुँ सम्पूर्ण कहाँ छथि हरदम माथे दर्द होइत रहैत छैन्ह हरदम झखैत रहैत छथि। आ सल्लो दीदी के माइग्रेन सॅ छटपटाइत देखैत छिऐन्ह। बड़की भाभी के सतत् घुटन महसूस होइत छैन्ह। ककरो खुश नहिदेखैत छी। हमरा जनैत जे समाजक बनल Úेम मे अपना कें कोनो तरहें पिुट नहिकऽ पबैछ ओ अपना नजरि मे खसिते नहिअछि बल्कि अपना पर संदेशों करऽ लगैत अछि। इम्हर किछ दिन सॅ अड़ोसी-पड़ोसी आ सर-सम्बन्ध्ी सरोज आ हमरा ब्याह लेल बड्ड उत्सुक छल-‘बेटीक ब्याह नहिकरबै थी? अजग भऽ गेल कतेक दिन घर मे बैसाने रहबै?....
बड़की दीदी घोषित कयलनि हम बेटीक ब्याह कऽ रहल छी’। नीलू हमरा सॅ छमास छोट अछि। मां सरोेज लेल जे सांढक वस्तु ओरिऔने छलीह सबटा नीलू के दऽ देलथिन। भात मे मामाक घर सॅ जतबा टका जाय चाही तकर दुगुना समान गेलै। क्यो ई नहिबूझय जे टकाक अभाव मे विवाह नहिभऽ रहल छै। ताहि दिन आर्थिक स्थिति नीक छलै आ सरोज के लेल चूँकी ओ डाक्टरी पढ़ि रहल छलै कतेको वर के प्रोपोजल अबैत छलै मुदा ओ मना कऽ दैत छलै। हं, हमरा लेल कहियो कोनो ठाम सॅ प्रस्ताव नहिआयल छल। हम अपनो नजरि मे कुरूप छलहुँ। कॉलेज मे जॅ कोनो लड़का हाथ बढ़ावऽ चाहैत छल तऽ ओकरा तेना डपटि दैत छलिऐ जे ओकरा सिटीð-पिटीð गुम्म भऽ जाइत छलै। टाइपफॉयड सॅ मुक्त भऽ जखन कॉलेज गेलहुँ तऽ हमरा देखि कऽ असीम प्रसन्न भऽ बाजल-‘कॉपफी पीअ चलब?’
हम एकदम रूखऽ उतारा देलिऐ-‘नहि।’ बस मे हम सब चढ़लहुँ संगहि मुदा संग उतरलहुँ नहि। हम कहलिए-‘हमरा गरियाहाट बड़की दीदीक ओतऽ जयबाक अछि।’ ओकर खुलम खुल्ला उपेक्षा करऽ लगलहुँ। ओ जतबे हमरा मे सटऽ चाहैत छल हम ओतबे दूर हटैत छलहुँ। औ घंटो बस स्टॉप पर हमर प्रतीक्षा करैत छल। आ हम या तऽ तखन कॉमन रूम सॅ बहराइते नहिछलहुँ या आन बस पर संगी सबक संग चढ़ैत छलहुँ। एक दिन ओ एसगर मे भेंटल। हमरा सॅ नाराज छी?’
‘नहितऽ’
‘तखन एना दूर-दूर कियेक रहैत छी?’
‘सापफ बात छै। अहॉ जे चाहैत छी से हम नहिदऽ सकैत छी।’
‘हम प्रतीक्षा करब। सत्य कहैत छी प्रिया! हम आजीवन प्रतीक्षा करब।’
‘हमरा देवदास वला लचपच भावुकता सॅ सख्त चीढ़ होइछ।’ अइ तरहक अपमान सॅ ओकर चेहरा स्याह भऽ गेलै। ओ बाजल-‘प्रिया अहाँ एहन कठोर कोना भऽ गेलहुँ। हम देवदास बनबाक दावा कखनौ नहिकयलहुँ।’
‘तऽ आजीवन प्रतीक्षाक बात कोना बजलहुँ?’
‘प्रतीक्षा करबा मे आ तिल तिल कऽ मारऽ मे पफर्क होइत छै।’
‘हम बुझलहुँ नहि।’
बुझि जेबई एक दिन। हम चाहैत छी अहाँ कें। मनींह एकहि क्षण हमरा भेंटल, यदि क्यो दोसर देत तऽ ओकरा अपन बना लेब मुदा अहाँ कें कहियो बिसरब नहि। प्रिया! अहाँके क्षण भरि जकरा स्पर्श भेंटतै ओ कहियो नहिबिसरत।
‘छोडूजखन ककरो संग चलिए जायब तखन कोन बातक दावाक बात करैत छी? जाऊ, प्रतीक्षा करबाक कोन प्रयोजन?’
‘ओह! आब बुझलहुँ। अहाँ अपना जिनगी मे एकटा आरक्षित स्थान राखऽ चाहैत छी?’
‘मतलब ?’
‘मतलब इएह जे हम प्रेम करैत छी आ ई एकटा एहन मध्ुर स्वप्न अछि जे हम चाहब आजीवन ई जीवंत रहए ....... मुदा आरक्षित स्थानक पूरक भऽ रहब.......? ऊ हूँ! प्रिया हम एहन सस्ता नहिछी।’
तखन ओकर बात क सही अर्थ नहिबुझने छलिऐ आ ने बुझबाक प्रयास कयने छलहुँ। ताहि दिन हमरा एकटा ध्ुन सवार छल अपन प्रत्येक कोमलभावना के थकुचबाक आ एना मे आनन्द भेंटैत छल। एकदम पुरखाह स्वभाव भेल जाइत छल।
हं, कतेको वर्षक बाद एक दिन ओकरा सॅ भेँट भेल छल। हम जर्मनीक बिजनेस ट्रीप सॅ घुरल छलहुँ। एयर इंडियाक फ्रलाइट मे भेंटल। ओ अपना पत्नीक संग भारत आबि रहल छल। बाबाक मृत्युक बाद असीम लन्दन मे अपना मौसीक संग रहऽ लागल। बार एट लॉ ओहिठाम कयलक। विवाहो भेलै लंदने मे। मांक देहान्त भऽ गेल छलै बच््या छल तखने। मौसी अमीर छलै आ सगरे छलै। कोनो अंग्रेज सॅ ब्याह कयने छलै ताहि अपराध् मे लंदनक कारावास मे बन्द छलै। पीटर कहिया ने छोड़ि देने छलै आब कोन मुँह लऽ बंगाल घुरैत!
-‘एखन कोनो काज सॅ भारत जा रहल छी?’
‘हं, पुरनका स्मरण के ताजा करऽ।’
ओकर ऑखि मे पुरना स्वप्नक इन्द्रध्नुषी रंग अभरल।
असीम कहलक-‘व्यापार मे लागल छी?’
‘से कोना बुझलहुँ?’
‘इंडिया टुडे’ मे अहॉक विषय मे पढ़ने छलहुँ। अहाँ सब दिन विद्रोही ए रहलहुँ।’
-‘असीम! आब तऽ विद्रोहक भाषा बिसरि गेलहुँ। हम चाहैत छी जिनगी मे क्रान्ति! हम अपन जिनगीक खालि पन्ना पर अपने तारीख लिखलहुँ अछि।’
‘की एतेक एसगर चलब जरूरी छै? एहन त भऽ ने सकै’छ जे अहाँ पर ककरो नजरि नहिपड़ल होइ?’
‘हम तऽ एक बच््याक मां छी।’
‘मुदा इंडिया टुडे मे एकर कोनो चर्चा नहिछै?’
‘हम रहैत छी एसगरे।’
‘ओह।’
‘असीमक ऑखि मे एखनहुँ एकटा अजीब सन पिआस झलकल। की एकर पत्नी पिआस केँ तृप्त नहिकऽ सकलै? के ककरा तृप्त कऽ पबैत छै? हम जकरा लेल अपन जिनगीक होम कयलहुँ से संतुष्ट अछि?’
‘ए प्रिया! की सोचऽ लगलहुँ एहन व्यथा वेदनाक भाव!’
‘नहि, किध् नहि! जाउ अहॉ अपन पत्नीक संग बैसू।’
‘की हम अहॉक मित्रा नहिछी? अपन कार्ड नहिदेब?’
हमर कार्ड खत्म भऽ गेल अछि। अहों अपन कार्ड दिअ हम करब सम्पर्क।’
‘जरूर देब। जहिया लंदन जाउ सम्पर्क करब। हमर ऑपिफस पार्क एवेन्यु मे अछि ताकऽ मे कोनो दिक्कत नहिहेत।’
ओकर पैघ-पैघ ऑखि हमरे पर गड़ल छलै। पफेर हमरा ओकरा ऑखि मे पुरनका पिआस बझलकल आ एतेक वर्षक बादो हम पफेर महिलाक अई पक्ष कें नकारि देलिए जकरा कारण बेर-बेर ठगाइत छी।
कहि नहिभेल जे असीम अहूँ विवाहित छी हमरा की दऽ सकब? आ हमरे आब की बॉचल अछि? बहुत कानि लेलहुँ। प्रेम कऽ ओई पुरूषक लेल अपन आधा जिनगी कनैत बीतेलहुँ। नहिअसीम! नहि!! आब ऑखि मे नोर सूखा गेल आब हिम्मत नहिबांचल अछि कानबाक! आ सबसॅ पैघ बात ई छै जे हम भ्रम मे जी नहिसकैछी। आ ‘प्रेम’ ओ उठैत-खसैत लहरि छै मात्रा मृग मरीचिका। हम प्रेम क कोनो वैश्विक परिभाषा नहिकऽ रहल छी। ई हमर निजी अनुभवक निचोड़ अछि। आ अपन तित-मीठ अनुभव कें के नकारि पबै’छ? लोक ओकरे दोहर बैत छै जकर अभ्यास रहैत छै। प्रेम नहिकरबाक अभ्यस्त भऽ गेल छी। हं, सत्ते कहैत छी ‘असीम’ आब कानि यो ने सकब? मुदा असीम के हम किछ नहिकहलिऐ। चुपचाप हाथक किताब मे ऑखि गड़ौने बैसल छलहुँ। विमान दिल्लीक हवाई अडाó पर उतरि रहल छल। ओ उठिकऽ पत्नी लग जा कऽ बैसल पत्नीक बगल मे गुलथुल चारि सालक बच््या बैसल छलै। पत्नी खूब सुन्दरि शालीन छलै। सुखी जिनगी बुझना जाइछ तखन ओकरा ऑखि मे ओ पुरनका पिआस कोना झलकलै? हमरा लोकनि हजारों वर्ष सॅ किछ रोमांटिक शब्द सॅ मन-मानस कें अनुकूलित नहिकयने छी? मुदा एक सपना कें पिआस के जिनगी भरि जोगौने राखब कनिटा बात नहि। से हो अइ युग जमाना मे। अई सॅ आसान छै अपना के मारब। हं, हम कायर छी। प्रेम करऽ सँ चोट सॅ डेराइत छी। सच छै हम डेराइत छी नोर सॅ प्रतिकूल व्यवहार सॅ। कॉलेजक समय सॅ जेना-जेना हम पैद्य भऽ रहल छलहुँ। दुनियाँक देखबाक दृष्टिकोण बदलि रहल छल। हं एकटा बात गहाई सॅ मन मे जमि गेल छल जे हम मां सन जीवन नहिजीयब। ने बड़की भाभी जकॉ घुटन जिनगी मे बर्दास्त करब। हम अपन जीवन नोर मे नहिबहाबऽ चाहैत छी। की एक बुन्न नोरे मे महिलाक समस्त ब्रह्माण्ड घुसिया जाए? कियेक? कनैत नोर बहबैत नोर क नदी, समुद्र मे हेलैत रहू? मां, दीदी, बड़की भाभी, पीसी, काकी एतेक ध्रि जे हमर शिक्षिको जिनका दिस हम बड्ड उम्मीद सॅ तकैत छलहुँ जे हमरा नजरि मे क्रान्ति चेता छलीह से हो अपन-अपन नोर सॅ समुद्र के भरैत छलीह। लड़कियो सब कियेक नहिउन्मुक्त भऽ भभाकऽ हँसै’छ जेना मदमस्त लड़काहँसैत छै? कॉपफी हाउस मे जाइत अछि लड़िकियो सब मुदा सभक ध्येय रहैत छै आत्मप्रदर्शन। जहॉ चारिटा लड़की एक टेबुल पर जमा भेल कि बस बात शुरू हेतै इश्क, मोहब्बत आ पफलां लड़का सुन्दर छै तऽ पफलां स्मार्ट। हम चाहैत छलहुँ किछ सार्थक बहस होमए। ताहि दिन विश्वविद्यालयक प्रांगण मे छात्रा परिषद् केर समर्थक जोर अजमाइस करैत छल। बात बात मे बम पफेकल जाइत छल। घंटा भरि मे आठ टा ट्राम आ कतेको बस जरा देल गेल। रमेश बाबू बजैत छलाह ई प्रतिक्रिया छैक क्रान्ति नहि। तऽ क्रान्ति ककरा कहैत छै? जे इतिहासक तारीख बदलए। की हम कहियो इतिहासक तारीख बदलि सकब? कम से कम अपन जीवनक इतिहास के तारीख बदलि ली सेह बहुत।
एक दिन डाú चटर्जी स्टापफ रूम मे बजौलनि। ‘की बात छै? देख रहल छी आइ काल्हि अहाँक मोन क्लास मे नहिलागि रहल अछि।’
‘सर, हमरा मन मे दर्शनक जे रूप रेखा छल से नहिपढ़ाओल जाइछ। सर..।’
‘हं, हं, बाजू डरू जुनि।’
सर, देकार्त, कांट, हीगेल, ब्रैडले सब पढ़ि लेलहुँ । एतेक अभूर्त बात, आध बात तऽ बूझऽ मे अबिते नहिछै ........... आ सर भारतीय दर्शन तऽ आर विकट बुझाइछ अद्वैंत, वेदांत...... ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या ई वाक्य बस हम रटैत छी। रटि कऽ लिखला सॅ कोन लाभ?
-‘अहॉ दर्शन शास्त्राक चुनाव कयलहुँ कियेक? नम्बर बढ़ियॉ आयल छल- पोलिटिकल साइंस या अर्थ-शास्त्रा लितहुँ।,
‘सर नहिजानि कियेक बिना सोचने-विचारने हम चुनाव कयलहुँ। मुदा जाबत हम अपना कें अपन स्थिति के नहिजानब-बूझब ताबत पढ़ने कोन पफायदा? हमरा मात्रा समाज शास्त्राक विषय नीक लगैत अछि। जान स्टुअडि, मिल विदकेनस्टाइन आ सर सबसे नीक लगै’छ मार्क्स पफेर दर्शन।’ हूँ। डाú चटर्जी गंभीर भऽ माथ डोलौलनि। ओ एंटी एसú एपफú छलाह। गांध्ीक परम भक्त। त की मार्क्स के नाम लेने नम्बर कटि जायत? कटौ हमरा कोन पफर्स्ट क्लास चाही।
‘काल्हि एहि समय मे आऊ। हम किताबक लिस्ट तैयार राखब। हं, किछ अर्मूत धरणा के समझनाईयो जरूरी छ।’
‘मतलब?’
‘अरस्तु आ प्लेटो, हीरोल आ शंकराचार्य अइचारू मे मात्रा शंकरा चार्यक अद्वैत वेदांत ध्यान सँ पढ़ि ली तऽ मानस-भूमि पोख्ता भऽ जायत।’
‘हम कोशिश करब।’
नहिकोशिशे नहिभारतीय दर्शन अवश्य पढ़ू, बेर बेर पढू। अर्थक खोंइचा उद्यड़ैत-रहत। हं अहांक भीतर तीन बातक जरूरी हेत-अभीप्सा, जिज्ञासा आ संकल्प। आ सबसे वेशी जरूरी छै बेर-बेर दोहरयबाक अभ्यास’।
दोसर दिन डाú चटर्जी किताबक लम्बा लिस्ट देलनि। पफेर पूछलनि-‘कीन सकब? किछ किताब एहन छै जे अवश्य किनबाक चाही। ओहुना-किताब किनबाक अभ्यास जरूरी छै।
हम लिस्ट देखलहुॅ-हीगेल, नीत्शे, कीर्केगार्द, हर्सेलक पोइट्री, डाइडेगरक बीइंग, सार्त्राक साइकोलॉजी ऑपफ इमैजिनेशन, ईगोक सि(ात, लार्नाशेक उपन्यास, प्लेग, मिला आपफ सिसिपिफस, मार्लो पोंतीक नोट्स।
सर कहलनि ‘अध्ययन शुरू करू जतऽ बूझबा मे भांगठ होमए हमरा सॅ पूछि लेब। स्टापफ रूम वा हमरा घर अयबा मे संकोच नहिकरब। अहाँक मानसक जे बनाबट अछि आ अहां जे तकैत छी ओ सभटा किताब मे भेंटत। हं, एकटा बात आर जे दर्शनक पैद्य व्याध् िछै जे ओ विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के विकसित करैत छै। आ हमरा विचारें जीवनक एकटा समग्र दृष्टिकोण अपनाबऽ चाही। गीता के धर्मिक पोथी जकां नहिपढ़ू, महाकाव्य जकाँ पढ़ैत-पढ़ैत अर्थ बोध् गम्य हेत। ओना होना हिन्दी अनुवाद भैल छै। हं एकटा बात पर ध्यान राखब-कॉपफी हाउसक राजनीति मे कहियो भाग नहिलेब।’
‘मुदा अराजनैतिक दृष्टिकोण?’
‘पहिने महिलाक गुलामीक विषय मे सोचू विचारू।’
-हम स्टापफ रूम सॅ सोझे लाइब्रेरी मे गेलहुँ। डाú चटर्जीक स्पेशल नोट मे छल मोट-मोट पोथी। पहिने हम ओइ पोथी सबके संघैत रहलहुँ पफेर चिक्कन कागज के हाथ सॅ छू लहुँ। तकरबाद पढ़ब शुरू कयलहुज मैं कौन हूँ .... मैं सॅ शुरू होम वला समस्या, चुनावक समस्या........।’ आब हम दू दिन तीन दिन पर लगातार डाú चटर्जी लग जाइत छलहुँ। ओ अपन व्यस्त समय सॅ एक घंटा, आध घंटा जे निकालि पबैत छलाह से हमरा पढ़ाबऽ मे बीतबैत छलाह। एक दिन घटना मोन पड़ै’छ। सर नीत्शे के समझा रहल छलाह जे नीत्शेपर प्रभाव पड़ल छलै Úेंच दार्शनिक वर्गसांक। हम भाव-विभोर भऽ सुनि रहल छलहुँ। स्टापफ रूमक एक कोन मे रमेश बाबू साप्ताहिक परीक्षाक पेपर करेक्ट कऽ रहल छलाह ‘कांट की कैटगरी’ हमर पेपर लऽ डाú चटर्जीक मेज पर अयलाह।
‘देखियौ की लिखलनि अछि ‘कांट’ पर.. डाú चटर्जी हंसैत कहलथिन-रमेश, हिनका ‘कांट’ पर नोट्स द दिऔ। आ ई जे पढ़ऽ चाहैत छथि से पढ़ऽ दिऔ।यौ, कतेक विद्यार्थी पफर्स्ट-क्लासक मोह छोड़ि ज्ञानक पिपासा रखै’छ?
‘अच्छा’ प्रिया ! कहू गुरूदक्षिणा मे की देब?’
‘सर हम की दऽ सकै छी।’
-‘बहुत किछ। नारी भेनाई कोनो अपराध् नहिहँ, नारीत्वक नोर कें नियति मानब बहुत पैद्य अपराध् छै। अपना नियति कें बदलि सकब तऽ ओ एकलव्य केर गुरू दक्षिणा हेत।’ हम तऽ अवाक भऽ हुनका देखते रहि गेलहुँ। ओ गौरवपूर्ण उन्नत ललाट, घंुघरल कारी केश स्वच्छ पारदर्शी दृष्टि, ..........
पुरूषक एहनो रूप होइत छै? हम उठि कऽ हुनक चरण-स्पर्श कयलहुँ-सर आइ सॅ अहॉ हमर गुरू भेलहुँ।
‘नहिकोनो बाहरी व्यक्ति कें गुरू नहिमानि। जे क्यो किछु सिखाबय से कृतज्ञता सहित ध्न्यवाद दऽ आगॉ बढ़ऽ चाहि। आत्मे आत्माक गुरू भऽ सकै छै।’
विधताक विधन एहन जे एक दिन स्टापफेरूम मे चक्कर आबि गेलैन्ह ओ खसि पड़लाह। हुनका तुरत पीú जीú अस्पताल मे लऽ गेलैन्ह। खूनक उल्टी भेलैन्ह। ब्रेन ट्यूमर छलैन्ह। हुनकर देल किताबक लिस्ट, ओ स्वच्छ हँसी आ ओहन आदेश।
औरत होएबाक नोर के नियति कहियो नहिस्वीकारब हम हुनक बात क स्मरण करैत छलहुँआ डाú चटर्जी दुनियाँ सॅ विदा भऽ गेलाह।
सूरत आखरी साँस लऽ रहल छल। मन मे भेल एखन क्यो एतऽ रहैत भनहि ओ अजनबी रहैत। सोझा मे बैसल चाह पीबैत। बातचित नइओ होइत। एक दोसर के उपस्थित रहबाक एहसास तऽ होइत।
समयक ऑचर सॅ हम अइ क्षण के एक टुकड़ा काटि कऽ राखि लेब चाहैत छी। जिनगी कतेक छोट छै आ से हम बेवकूपिफ मे दोसर कें खुश राखऽ मे बीता देलहुँ? ओना कनि-मनि तऽ सक्रिय छलहँु हम मुदा कोन पफर्क पड़ैत जॅ नहिकिछ करित हुँ?
एतऽ समुद्र पर अचानक राति पसरि जाइत छै। आ कखनौ-कखनौ बुझाइत छै जे समुद्रक गर्भ सॅ आदिम अन्हरिया बहराइत होई आ सम्पूर्ण ध्रती के अपना बॉहि मे समेटऽ लेल छटपटाइत होइ। आकाश मे एखन तुरत निकलल शुक्र ताराक चमक मे हम मुग्ध् भऽ रतुका अन्हरियाक तरलता मे ऊब-डूब होइत रहलहुँ।
आइ अइठामक आखरी इजोरिया राति अछि। बाल्कनि मे बैसल रजत रागिनी क स्वर मे सब किछु बिसरल छी। चान बढ़ैत-बढ़ैत अपन पूर्ण आकार मे विहुँसै’छ। समुद्रक लहरि पर मंद बसात नक्षत्राक जगर-मगर प्रकाश आ प्रकृतिक शोभा श्री केहन विलक्षण दृश्य छैक। आ एहन मनोहारी वातावरण मे हमरा मन के अनाम व्यथा मथऽ लागल। आब हम अपना कें अपना प्रति सहज समर्पित के नाई सीख लेलहुँ अछि। ई आत्मकेन्द्रित भाव नहि। Úायड के बाद नारसिसिस्म या आत्मपूजा सन विशेषण बड्ड पफैशनेबुल भऽ गेल छै। मुदा आत्मस्थ भेनाई तऽ वास्तव मे अपनाके जेना छी तेना स्वीकारब होइत छै। अपना प्रति आश्वस्त भेनाई ए ...... ई स्वीकृति वास्तव मे नव शक्ति दैत छै। ब्रेकपफास्टक टेबुल पर बैसल हम पफेर चिन्तन करऽ लगैत छी। काल्हि राति पफेर व एह पुरनका सपना देखलहुँ। अई सपनाक दहशत सँ कहिया मुक्ति भेंटत? जहिया ई सपना देखैत छी भरि दिन उदासी मे बीतैत अछि। कियेक देखैत छी एहन सपना? हम बिसरि जाय चाहैत छी-मुदा बिसरब आसान छैक?
सदिकाल पुरूष सॅ एतेक डर? कखनौ क्यो एसगर मे? डाú चटर्जी सन व्यक्तियोक लेल मन मे एहने भय छल। ककरा कहबै मन क भय। एकटा दाई मां छलीह जे हमर अतीत जनैत छलीह। मात्रा ओ साक्षी छलीह।
भेदभाव सॅ भरल नेनपन। खैर हमरा आब कोनो पफर्क नहि। हमरा किछ नहिचाही एहि बड़का घराना सॅ। नहिबसऽ चाहैत छी बड़का गाड़ी मे। नहिचाही कीमती वस्त्रा। भैया आ मां क विशेष स्नेह भाजन छल सरोज। ओ डाक्टर बनतै खूब पाइआ यश कमाओत। आ प्रिया!..... सामने वाली पड़ोसनीक कुतिया पर रिसर्च करत! कहैत छल सब हँसी मजाक मे मुदा की हमरा दुःख नहिहोइत छल। हमरे संग एहन क्रूर मजाक कियेक? ई भाई बहिनक चुनाव की हम कयने छलहुँ? एक दिस तऽ बूझाइत अछि जे हम एकरा सब सॅ पफरक छी हमर चेतनाक ध्रातल बदलि रहल अछि, दोसर दिस भय कातरता, दहशत सॅ चिचिआइत लड़की, टूटल बिखरल, मरनासन्न! कखनौक अयना मे अपन नग्न शरीर निहारैत छलहुँ कतहु किछ टूटल तऽ नहि? चिक्कन-चुनमुन मांसल शरीर पर कोनो खंरोचक निशान तऽ नहि? तइओ खंरोचक एहसास! हम भीतरे-भीतर कुहूकैत रहैत छी। छिः! घीन होइत अछि पुरूष जाति सॅ। घोर घृणा होइत अछि जे अबोध् बच््िययो कें नहिछोड़ैत छै। आब ई बुझबा मे अबैत अछि जे सब समाज मे इनसेस्ट प्रेम पर एतेक भयानक टैबू कियेक छै। कियेक सहज प्रकृतिक मृत्यु-र्ध्म इससेस्ट प्रेम पर लागू होइत छै। नहितऽ जन्मे सँ औरत’...... असहाय औरत। ने पिता छोड़ैत छै ने भाई। अपन नारी देह मे, स्वयं क्षत विक्षत भऽ जाइछ। ओ कहियो पर पुरूष कें प्यार नहिकऽ पबै’छ ने सृजनक सबसे सुन्दर रूप ककरो बीजक रक्षा अपना गर्भ मे कऽ पबै’छ। मानव जातिलेल एकर प्रसार जरूरी छै। मुदा की समाज नारीक रक्षा कऽ पबैए? की कामुक पुरूषक हवस के शिकार होमऽ सॅ अबोध् बच््यी बचैत छै? कत, कखन नहिहमरा पर आक्रमण भेल? केहन नेनपन छल। अपन भाई ए नहिबल्कि एक दिन तऽ एकटा नौकरो अपना कोर मे बैसाने छल। तखन हम बहुत छोट छलहँ मात्रा पाँच वर्षक! तहिया तऽ बाबूजी जीविते छलाह आ दाईमां देख लेने छलै। बाध्नि जकॉ दाई मां झपटि कऽ हमरा अपना कोरा मे लेने छल आ खूब गारि पढ़ने छलीह। हम किछ नंहिबूझने छलिए। हं Úाक मे लसलस किछ लागल छल जे दाई मां रगड़ि-रगड़ि के छोड़ने छलीह।....... तू हमर बेटा मंगल के उमरक छेँ...... बेटा जकां नहितऽ आइ हम तोहर गरदनि छोपि दितिऔ..भाग सरघुआ......, पफेर दाई मां क आदेश ‘ए बुच््यी इ बात कहियो ककरो लग नहिबाजब। भगवान औरत के जिनगी मे एतेक दुःख कियेक लिखैत छथिन। के जानय हुनकर माया।’
मौन! हरदम मौन!! आखिर कहिया ध्रि? कहियो कोनों पुरूषक हाथ कान्ह पर। सिनेमा हॉलक छुप्प अन्हरिया मे शरीर मे सैकड़ो कीड़ा क देह पर ससरबाक अनुभूति! क्रिसमस दिन हम छोटका भैया आ सरोज न्यू मार्केट मे गेल छलहुँ क्रिसमस के खेलौना आ टापफी किनऽ। तहिया हम बारह वर्षक छलहुँ। ठसाठस भीड़। देह पर देह। चलनाइ कठिन। कहुना डेग उठाबी कियेक तऽ पीरियड्स क समय छल आ हमरा पाछाँ-पाँछा अबैत ओ पुरूष जे पैंटक बटन खोलने छल। पौरूषक नग्न प्रदर्शन.....। आ हमरा हिम्मत नहिहोइत छल जे भैयावा सरोज के कहिए। किये? किये हम एहन दब्बु छलहु?
-की दाई मांक कारण भय बला संस्कार ग्रसित कयल? की मांक उमेक्षा सॅ वा भऽ सकै’छ हमरा समाज मे हजारो लाखो महिला आ बच््यी सभक संग एहिना होइत होइ। आ सब मौन धरण करैत होइ। मां सॅ आदेश भेंटैत होइ चुप्प रहबाक। बड़की बहिन सिखबैत होइ कतौ नहिबाजऽ लेल। की इएह कारण छै जे बेटीक जन्म लेला पर मां दुखी होइत छै? औरत भेनाईए अभिशाप छैक। हम कहियो ककरो सॅ प्रेम नहिकरब। ब्याह नहिकरब। सेक्स सॅ घृणा होइछ। पुरूषा सॅ बदला लेबाक इएह उपाय हमरा सूझैत छल।
हम तऽ सोचने छलहुँ पुरूषक सम्पर्क सॅ दूर रहब, मुदा बचल रहलहुँ? एमú एú क परीक्षा माथ पर छल आ लॉ के इंटरमीडिएट..... तखने ओ पुरूष हमरा जिनगी मे आयल। ओ बडड पैद्य घरक संभ्रात परिवारक एकलौता बेटा। जखन ओ कलास मे लेक्चर देबऽ लेल ठाढ़ होइत छलाह तऽ प्रत्येक विद्यार्थी मंत्रा-मुग्ध् भऽ सुनैत छल। हम अगिला बेंच पर बैसैत छलहुँ। बातक शुरूआत भेल ऑखि सॅ। दू ऑखि चारि भेल। कल्पनाक सोलह पॉखिक रथ पर सवार भऽ मनोरथ दुनियॉ क सैर करऽ लगलहुँ। रंग-बिरंगक सपना देखऽ लगलहुँ। एक दिन ओ हमरा स्टापफ रूम मे बजौलनि। हुनका लग मे ठाढ़ होइते करेजक ध्ड़कन बढ़ल जा रहल छल। ओ पूछलनि ‘हमरा घर चलब?’
वशीभूत भेल जकॉ हम कहलिऐन्ह-हं।’ ओ आगाँ-आगाँ हम पॉछाँ। बस स्टाप सॅ 2--बीú पर चढ़लहँुं। गरियाहाटक मोड़ से पहिने उतरलहुँ। ओ हमरा सॅ आठ दस डेगक दूरी बना कऽ चलैत छलाह सांझुक लुकझुक बेर छलै। जाड़क समय। बीच-बीच में पाछॉ घूमिकऽ हमरा दिस ताकि विहुँसैत छलाह। दू तल्ला मकानक आगाँ रूकलाह। पफेर भीतर गेलाह। हमझिझकैत आगाँ बढ़ि रहल छलहुँ।
हुनकर पैरक आहट ऊपर सीढ़ि सॅ अबैत छल। पफेर ताला खुजबाक आवाज सुनलहुँ। सीढ़ि पर चढ़ैत पीठ देखलिए। एक क्षण ठिठकि कऽ ठाढ़ रहलहु। हम ई की कऽ रहल छी? किछ नहिपफुराएल आ भीतर गेलहुँ। ओ केवाड़ बन्न कऽ हमरा दिस घुरलाह। हमर ऑखि झुकल छल। सांसक गति तीव्र। ओ हमरा डॉर में हाथ घऽ अपना दिस घिचलनि हम लत्ती जकॉ झुकैब गेलहुँ जे होएबाक छलै भऽ गेलै। देह अपन र्ध्म निमाहलक। कान मे मध्ु मिश्री सन स्वर गेल ‘हम अहॉ से प्रेम करैत छी। बस अहीं सॅ।’
ओइ दिन हमरा कनिको ग्लानि महसूस भेल ने जुगुप्सा। पुरूषक स्पर्श एतेक मादक होइत छै, एहन सुखद! एतेक मनलग्गू आकर्षक से आइ पहिल दिन महसूस भेल। हम बाइस वर्षक होइत-होइत पूरा औरत बनि गेल छलहुँ ओ बत्तीस वर्षक अनुीज्ञवी पुरूष छलाह। सप्ताह मे दू-तीन दिन ई खेल छमास घरि चलैत रहल। परीक्षा माथ पर छल। एक दिन ओ कहलनि-‘परीक्षा लग आबि गेल आब अहॉ पढ़बा मे ध्यान दिअ।’
-चाहैत छी एकाग्रमन सॅ पढ़ि मुदा अहाँ बिना मोने नहिलगैए। पफेर ओहने उन्माद ओहने आवेग। इम्हर किछ दिन सॅ ओ कॉलेज नहिआबि रहल छलाह। हमर मन एकदम बेचैन छल। की भेलै? बिमार नहितऽ छथि? एक दिन हम स्टापफ रूम मे जा कऽ प्रोपफेसर दास गुप्ता सॅ पूछलिऐन्ह-‘सर! प्रोú मुकर्जी नहिआबि रहल छथि?’
-‘ओ पन्द्रह दिनक छुटीð लेने छथि,’ ई सुनि हमरा रूकल नहिगेल। की भेलै? ओ पफोन कऽ सकैत छलाह। संकोच भेल हेतैन्ह। ठीक छै हमहीं जाकऽ देखैत छिऐन्ह। ओ घर मे एसगरे रहैत छथि। हमर पैर हुनका घर दिस बढ़ल। घर मे ताला नहिलागल छलै।
ओ! तऽ घरे मे छथि। अवस्से बिमार हेताह। हम मने मन क्षुब्ध् छलहुँ ओ हमरा आबहु आने बुझैत छथि। के हुनकर सेवा टहल कैत हैतेन्ह? घंटी बजेलहँु। केबाड़ पफूजल। करेज ध्क-ध्क कऽ रहल छल। आब ओ सोझा मे हेता देखते भरि पाँज ध्ऽ चूमऽ लगताह। केवाड़ खूजल। उम्र मे हमरा सॅ किछ पैद्य खूब सुन्दर महिला ठाढ़ छलीह। मांग मे सिन्दुर, लाल तांतक साड़ी, भरि हाथ सोना क चूड़ि, शाखा, नोवा। गला मे सोनाक सीताहार, कान मे हीरा जड़ल सतपफूल।
हमरा पूछलनि-‘अहाँ के?’
हम प्रोपफेसर मुकर्जी सॅ भेंट करऽ आयल छी। ओ छथि।’
आऊ भीतर आऊ। रूम क सजावट बदलल छलै। नव सोपफा सेट, खिड़की पर नव पर्दा, ओ महिला हमरा बैसाक भीतर गेलनि। प्रोú अयलाह-आग्नेय दृृष्टि सॅ हमरा दिस तकलनि। आश्चर्य भेल। घबराइत बजलहुँ।
‘हम नहिअबितहुँ मुदा नहिरहि भेल चिन्तित छलहुँ अहॉ बिमारने होई।’
ओ किछ सुनबा लेल तैयार नहिछलाह। ध्ीरे सॅ गुर्राक बजलाहऽ मूर्ख लड़की। हम कहिया कहलहुँ अहां सॅ विवाह करब? दूनू मौज कयलहुँ खिस्सा खत्म। पफेर कहियो आइठाम नहिआयब। हम विवाहित छी।’
ओह! एतेक अपमान। हमरा चक्कर आबि गेल। हुनक पत्नी चाय-नास्ताक ट्रे लऽ ठाढ़ छलीह। ‘अरे, अहाँ हिनकर छा×ाा छी-मूँह मीठ क के जाउ।’
‘नहि, एखन हम बहुत जल्दी मे छी पफेर कहियों।’ हम तीर जकां बहरेलहुँ। सांझुक पाँच बजि रहल छलै। पफरवरी मास। कतऽ जाउ? सामने सॅ डबल डेकर बस आबि रहल छलै। मोन भेल एकरे चक्का तर कूदि जाइ। पफेर कहलक-नहिमरब कियेक? नहि, हमरा की भेल? पढ़ल-लिखल सभ्य पुरूष धेखा देलक। हमरा संग ओ एना कियेक कचल? भारतीय वेदांत पढ़ाबऽ बला व्यक्ति एहन नीच! एतेक निर्मम!!
हम झोंक मे चलल जा रहल छलहुँ। होश नहिछल कम्हर जा रहल छी। बस एकहिटा बात दिमाग मे घुरिया रहल छल-हमरा किछ तऽ कहैत। हम तऽ किछ मांगने नहिछलिऐ शर्तहीन समपर्ण। तखन ओ ठगलक कियेक। आर क्लास मे छात्रा छलै। लड़की क कोनो कमी छलै। आखिर हमरे संग एहन धेखा कियेक?
लेक के कात मे ठेहुन पर माथ झुकौने कनि रहल छलहँ। बुझाएल क्यो छै माथ उठेलहुँ। देखलिए तीन चारि टा छोड़ा ठाढ़ छल। हड़बड़ाक उठलहुँ। सुनलिऐ एकटा छोड़ा बजैत छल-
‘प्रेम कोरेछे, ताइ जोन्नो कान्ना।’ ;प्रेम कयने होएत तैँ कानि रहल अछि।द्ध
दोसर टिपलकै-‘अहा ! मोरी-मोरी।’ ;मुइलहुँ, मुइलहुँ।द्ध तेसर बजलै-‘की दीदी! आमादेर पछोन्दो होबे की? ;की हम पसिन्न छी?द्ध
हम ओतऽ सॅ भगलहँु। पॉछॉ सॅ आवाज आयल-‘एई रे पालिये छे बेचारी।’ ;अरे बचारी भगलै।द्ध
हम बुझू दौड़ैत जा रहल छलहुँ.............कापफी दूर ध्रि। अचानक रूकलहॅु। बाट चलैत लोक सब आश्चर्यचकित भऽ हमरा देख रहल छल। हम विवेकानन्द पार्क लग सॅ घर क बाट छएलहुँ। एक मासक बाद एमú एú क परीक्षा अछि। आ हम एको लाइन पढ़ि ने पबैत छी। हमरा संग एतेक पैद्य धेखा? कियेक? हम की बिगाड़ने छलिए। पढ़ल लिखल दानव। हम कखनौ बाथरूम मे, कखनहुँ बरांडा मे हुचुक-हुचुक कनैत छलहुँ हमरा अपने नजरि मे अपन तस्वीर कॉचल टुकड़ा जकां छहों छित भऽ गेल। दरार कें जोड़ल जा सकै’छ, खु(ा के भरल जा सकै’छ मुदा कांचक टुकड़ि के ने जोड़ल जा सकैछ ने पूर्ण प्रतिरूप देखल जा सकै’छ।
हं, हम प्यार कयने छलहुँ, पूरा ईमानदारी सॅ अपना कें समप्रित कयने छलहुँ, बिना कोनो शर्त कें ककरो सॅ बिना किछ पूछने। बहुत दिनक बाद बुझलिए जे बिना सोचने-विचारने बिना कोनो शर्तक सम्बंध् भनहिं मानवीयताक द्योतक होइ मुदा ओ अहॉक व्यवहारिक दिवालियापन के परिचायको बुझल जाइछ। जेना-तेना परीक्षा देलहुँ तकर बाद यूनिवर्सिटी को कहियो पैर नहिदेलहुँ। ने कलकत्ताक भीड़-भाड़ वला जन-समुदाय मे कहियो ओ नजरि आयल। ओ जीवित अछि की मुइल से हो नहिजनैत छिऐ मुदा ओकर दोगलापन कहियो नहिबिसरा सकै’छ। ओ हत्दयक अन्हार कोन मे एखनहुँ खटकैत अछि। ओ घटना हमरा आत्मबल के छहोंछित कऽ देलक विश्वास क्षत-विक्षत भऽ गेल। आब हमरा पुरूषक जरूरत महसूस भऽ रहल छल। हमरा सुरक्षा चाही। ई दुनियॉ दानव सॅ भरल छै। जे हम ऑखि सॅ देखैत छिऐ सेह नहिछै वास्तव मे। ब्रैडले सत्ते कहने छै-‘एपिरियन्स इज नॉट रियल्टी।’ उपाध् िरहित व्यक्ति की रहि जाइछ? निगुर्ण ब्रह्म। एकर पहिचान की छै? नेति-नेति। हं, हमरा जीवन मे प्रेमक भूमिका नेति-नेति रहल। किछ नहि............अन्त मे किछ नहि। केवल शून्य।। सबटा पूफसि ............ धेखा......। प्रेम, समर्पण, पारंपरिकता की अई सब शब्द कें दोहरबैत दोहरबैत हम आत्मसम्मोहित नहिभऽ गेलहुँ ? औरत प्रेमक जाल मे कियेक पफँसैत अछि। राति-राति भरि हम इएह सब सोचैत रहि जाइत छलहुँ। पीड़ा, भयानक यंत्राणा आ प्रचंड क्रो(। मुदा आश्चर्य होइछ अपने पर हम ओकरा दोष नहिदैत छलिऐ अपने कें अपराध्बिुझैत छलहुँ। हमहीं दोषी छी अपने पर क्रो( होइत छल। आ तैं अपने सॅ बदला लेबऽ चाहैत छलहुँ। अपन प्रस्पफुटित होइत जीवन कें अन्हार कोन में सौ-सौ तेज धरवला अस्त्रा शस्त्रा नुकौने छलहुँ। आब हम ततेक जोर सॅ ठहाका लगबैत छलहुँ जे माँ, भैया कें टोकऽ पड़ैत छलैन्ह। हम अपन समस्त अपमान कें ठगयबाक यातना कें हँसी कहिलोर मे डूबा देबऽ चाहैत छलहुँ। सरोज विदेश जयबाक तैयारी कऽ रहल छल आ हमरा आगां भबिष्यक अन्हरिया छल।
प्रेम, सेक्स, विवाह ई समस्त शब्द हमरा युग-युग केर घसल पुरान सिक्का बुझाइत छल। शब्द नहिमासुक टुकड़ा, टपकैत लिघुर। अइ शब्दक पाछाँ पागलपन आ आदिकाल सॅ अबैत परम्पराक चेहरा औरतक नोर सॅ तरबतर छै। हम आब हरदम हँसैत रहबाक चेष्टा करैत छलहुॅ। खुश छी तकर एलान करैत छलहुँ।
ओ हमर उदासीक दौर छल। भीतर सॅ कुहूकैत बाहर सॅ हँसैत समय बीता रहल छलहुँ। हम औरत बनऽ नहिचाहैत छलहुँ मुदा बनि गेल छलहुँ अदद औरत! एतबा बुझि गेल छलहुँ जे कानला सॅ किछ नहिहोमऽ बला छै। डिप्रेशन से डिप्रेशन आर बढ़ैत छै। बड़की भाभीक मृत्यु भऽ गेलैन्ह। हुनक मृत्युक छ मासक बाद नव भाभी आबि गेलीह। ई भाभी भैयाक अनुकूल व्यवहार करैत छलथिन। भैया आब पूर्ण सुखी स्वस्थ-प्रसन्न छलाह। घरक सम्पत्ति पर पूरा अध्किार छलैन्ह। आब ककरो किछ नहिभेंटऽ बला छै। सरोज के कम से कम विदेश जयबाक खर्च तऽ भेंटलै। मुदा हम तऽ जहिया मां के देखलिऐन्ह सियल साड़ी, तहिये मने मन संकल्प कयने छलहुँ जे आब घर सॅ अपना खर्च लेल एको पाइ नहिलेब।
एमú एú क पफीसो अपन संगी विभा सॅ लऽ कऽ भरने छलहुँ। तीन सौ टका आर उधर लेलहुँ। कछ किताब किनबाक छल। पढ़बाक प्रयास करैत छलहुँ मुदा मन एकाग्र नहिहोइत छल। क्षत-विक्षत मन बेर-बेर पूछैत छल कियेक एना भेल? हमर कोन अपराध्? ओ पढ़ल-लिखल सभ्य पुरूष एना धेखा कियेक देल। बात-बात में गीता आ उपनिषद्के श्लोक बॉचऽ बलाक एहन नीचताई हमरा मोन पड़ल ईशोपनिषद्क श्लोक-‘हे प्राणी! तू अपने कर्म का स्मरण कर........ स्मरण कर।’ ओह! की ई सभ पढ़ावहि लेल पढ़ैलैन्ह प्रोपफेसर! जेना-तेना कऽ एमú एú क परीक्षा खत्म भेल। हमरा पफर्स्टक्लास नहिभेँटल-विभागाध्यक्ष नाराज भेलाह! हं, तर्कशास्त्रा मे गोल्डमेडल भेंटल।
तर्क आ विश्लेषण। हम अपन जीवनक परिस्थितिक रेशा-रेशाक विश्लेषण करैत छलहुँ। विश्लेषण चीड़-पफाड़। अजीब द्वन्द्व अपना होमऽ आ नहिहोमक बीच। ठोस हाड़-मासु वला जीवित शरीरक भीतर ई कोन अभावक कीड़ा कैंसर जकां तरे-तर शरीर के खोखला कयने जा रहल अछि। अई सॅ पूर्व कोनो पुरूष दिस नजरि उठैत नहिछल आ आब हिरणी जकॉ ऑखि नचैत रहै’छ। जेना शराब बिना शराबीक हाल होइत छै तहिना हमरो हाल छल। हमहीं उचित-अनुचित के द्वन्द्व में कियेक झुलैत रहू? ई दुनियाँ हमरा संग न्याय कयलक? जे हमरा संग भेल तकर औचित्य सि( कयल जा सकै’छ? आ सदतिकाल अपना प्रति हताश भाव! एहना मे भविष्यक कोन रूप रेखा बनओल जा सकै’छ? आ हमरा लेल सबसे पहने आपना पैर पर ठाढ़ भेनाई अत्यन्त आवश्यक अछि। घर मे दूनू समय भोजन तऽ भेंट जाएत मुदा एकर अलावा आर किछ नहि। ओना अई बड़का घर मे दस बारह टा एखनो नौकर रहैत छै दाई, महराज, दरबान, ड्राइवर, मुशी, किछु विशिष्ट सदस्य लेल खीरा, ककड़ी, मौसंबी। ओना पफल खयबा लेल आतुरता नहिछल मुदा मने-मन विद्रोह होइत छल। मां क एहन भेदभाव देख भूखो मरि जाइत छल। संतराक जूस मां बड़का भैया, सरोज आ छोट ध्यिा-पुता के दैत छलथिन। जँ मौसम क पहिल दिन महँगा मटर अबैत छलै तऽ ओ बड़का भैया आ सरोजक थारी ए मे परसल जाइत छल। एक दिन तऽ हद भऽ गेलै। दाई मां हमरा थारी मे एकटा संदेश ध्ऽ देलैन्ह। संदेश राखल छलै विशिष्ट लोक लेल। बस मां ई देखिते आगि बबूला भऽ गेलीह।
‘चमेलिया मां! राति-दिन तोरा अपने बेटीक चिन्ता रहैत छऽ आर छै बाल-बच््या। बूझल छौ जे आइ-काल्हि दूध् कम लेल जाइत छै। संदेश विजय बाबू लेल राखल छलै।’
‘हम विजय बाबू के पूछने छलिएन्ह ओ नहिलेलथिन।’
‘तऽ सरोज के थारी मे ध्ऽ दितिऐ। बेचारी दस दिन सॅ खाँसी से परेशान छै ताहि पर सॅ डाक्टरीक पढ़ाई।’
बहूरानी! आब हमरा सॅ नौकरी कयल नहिहेत। खाइत काल एना दुश्मन जकॉ जे मन मे अबैए बजने जाइत छी। कनि प्रियाक मूँह देखिऔ केहन कननमूॅह भऽ खाइत अछि।’
हं, हं बुझलिए आब पहिलुका बला बात नहिछै जे शाही खर्च हेतै।’ ठीक छै। पहिलुका दिन नहिरहल तऽ आब हमरा सॅ नोकरियो नहिपाड़ लागत।’
हम डबडबाएल ऑखि सॅ छेनाक संदेश कहुना पानि संग घोंटलहुँ। ओकर बाद रोटी-दालि तरकारी भात के अलावा कोना विशिष्ट व्यंजन वा मध्ुर दही ठोर मे नहिसटेलहुँ। बड़का घरक बेटी ओइ घर मे कहियो ने बदामक बपर्फी ध्ूलक ने संदेश! हं, कहबा लेल हमहुँ बड़का घर क बेटी छलहुँ।
ओई घटनाक सप्ताह दिन बाद दाई मां क चिटीò पाबि बेटा मंगला एलै दाई मां के लऽ जाए। ओइ दिन संदेश बला बात पर दाई मां बरामदा पर बैसल मां के दू रंगा व्यवहार लेल खिध्ंासे करैत रहलनि। आब अइ बुढ़ारी मे दाई बहुत बदलि गेलीह अछि। पहिने बात बात पर कनैत छलीह आब कनैत नहिछथि ने ककरो सॅ डरैत छथि बल्कि आब कोनो बात पर अड़ि जाइत छथि आब बहुत कठोर भऽ गेलीह अछि, बुझाइत अछि अन्याय देखैत-देखैत दाइ मांक एहन स्वभाव भऽ गेलैन्ह। दाई मां आब नीक जकाँ बूझि गेलीह जे हमर विवाह नहिहेतै। दहेज लेल टका चाही आ मां क हाथ छैन्ह खालि। झूठ शान शौकत लेल मां क जेवर बिका रहल छैन्ह। तैं दाई मां बूझि गेलीह जे ओ जे सपना देखैत छलीह जे हमर ब्याह ध्ूमधम सॅ पैद्य खानदान मे होएत नाति के कोर मे खेलाकऽ मुइब से सौख पूरा नहिहोमऽ बला छै। तैं ओ गाम चलि गेलीह।
हम बहुत काल ध्रि बरामदा मे ठाढ़ भेल कारी पिअर टैक्सी के जाइत देखैत रहलहुँ। गरमीक उमस बला सांझि छलै। एकटा थाकल गोरैया आबि बरामदाक रेलिंग पर बैसल। हम उदास ऑखि सॅ ओकरा दिस तकलहुँ। आइ हम दूनू चुप्प छलहुँ। गोरैया ऑखि झपकबैत छल आ हम बेर-बेर ऑखि पोछैत छलहुँ। हम नहिचाहैत छलहुँ जे क्यो हमर नोर देखए। आइए दुपहर मे हम मां आ भाभी के बतिआइत सुनने छलिऐन्ह-‘भने’ चमेलियाक मां गाम जा रहल अछि। दिन भरि हंगामा मचौने रहैत छल।’
‘मां जी की कहिऐन्ह-ततेक खाना बना कऽ नीचॉ लऽ जाइत छल जे पाँच लोक खइतै। टोकला पर कहैत छल हमर घर क लोक आयल अछि खाय-पीऽ लेल नहिदेबै?’
हं, अइ मंहगायी मे कहॉ से एतेक लोकक खर्च जुटतै। पींड छुटल।’
दाई माँ के जाइत काल हम अपना गला सॅ खोलि कऽ चेन जबरदस्ती हाथ मे दऽ देने छलिऐ। नहिलैत छल तऽ कहलिऐ।
दाई मां बेटीक एकटा यादगार नहिराखब?’
- ‘नहिबुच््यी, ई सिकड़ी अहीं राखू। बेर वक्त पर काज देत। मां बेटीके दैत छै बेटीक चीज लै छै नहिहमरा पाप लागत।’
ओ महामहिला सोनाक चेन नहिलेलक। किछ नहिलेलक विदा भऽ गेल। ओ ठीके कहने छल एक दिन हम ओ सोनाक चेन दू हजार टका मे बेच देलिऐ। हमरा विभाक कर्ज चुकएबाक छल आ आगाँक खर्च लेल टकाक काज छल। दाई मां सँ भेंट करऽ हम सब गेल छलहुँ भैयाक विवाहक समय। दोसर भाभी छलीह इलाहाबादक। पफल-मिठाई लऽ कऽ मिर्जापुरक अहीर टोला मे गेल छलहुँ। आंगन मे खाट पर बैसल छलीह-मोतियाबिंद के कारण सूझैत नहिछलैन्ह।
-‘दाई मां! अहाँ नीकें छी?’
‘अरे हमर बुच््यीक आयल अछि। ए मंगला मंगल, दुलहिन सब गोटे आ देख हमर बेटी आयल अछि..........।’ आ तकर बाद सूखल झुलैत हाथ सॅ हमर सौंसे दह हँसोथि करेज मे सटबैत बाजल छल ‘ए बुच््यी देह तऽ एकदम सूखि गेल-कोन जरूरी छै एतेक दिन-राति पढ़ाई करऽ के। विजय बाबू हमर बुच््यीक आब जल्दी ब्याह कऽ दिऔ।’
थोड़े कालक बाद हम-सब घुरलहुँ। दाई मां अबैत काल अपना पोटरी सॅ पाँच टका निकालिकऽ हमरा हाथ मे देलनि। मंगलाक बहू कहलक माई राति-दिन अहिंक चर्चा करैत रहैत छथि। अहां जे टका-पाई पठबैत छिऐ से सब जोगाकऽ रखने छथि जे बुच््यीक ब्याह हेतै’ तऽ हम बनारसी बिहौति जोड़ा लऽ कऽ जायब।’ सत्ते प्रेम मे लोक प्रतिदान नहिचाहैत छै। वास्तविक प्रेम कयनिहार मात्रा समिध बनि हवन कुंड मे स्वाहा होइछ। साल भरि के बाद मिर्चापुर सॅ मंगल के लिखल चिठीò एलै-‘माई का स्वर्गवास हो गयां’ हमरा घर मे एकर कोनो प्रतिक्रिया नहिभेल। मां क मुँह सॅ बहरे लैनह-‘बेचारी बड्ड नीक छल निः स्वार्थ भाव सॅ प्रियाक पालन पोषण कयलक।’ बस आर ककरो किछ कहबाक ने समय छलै ने इच्छा। हम घर मे बिना ककरो किछ कहने चलि गेलहुँ बालूघाट गंगा स्नान करऽ आब हम सत्ते अनाथ भऽ गेलहुँ।
हम एकटा नर्सरी स्कूल मे काज करऽ लागलहुँ। साढ़े तीन सौ रूú मास भेँटैत छल ताहि सँ हमर व्यक्तिगत खर्च निमहि जाइत छल। पढ़ेनाई हमरा वश क बात नहिछल पढ़ेनाई नीक नहिलगैत छल। खैर अहि बीच हम यादव पुर विश्व विद्यालय मे थीसिस लेल आवेदन दऽ देने छलिऐ। आर्थिक सहयोग तऽ नहिभेंटल मुदा परमीशन भेंट गेल।
हम सांझि मे एकटा टयूशन शुरू कयलहुँ। एकटा मारवाड़ी महिला कें अंग्रेजी पढ़बाक सौख भेलै। दू सौ टका मासिक पर। सांझि मे छ बजे से आठ बजे ध्रि सप्ताह मे पाँच दिन। एक मास बीतैत बीतैत असली बात बुझलिऐ जे ओकर पतिदेव राति मे अबेर कऽ घर अबैत छलथिन। बेचारी एसगर बोर होइत छल तैँ एकटा लोक व्यथा-कथा सुनऽ बला चाही तऽ हम छलहुँ कान। एक दिन संझि कऽ गेलहुँ तऽ ओ नहिछलीह हुनका पतिदेव के देख लिऐन्ह हम चोटे घुरि एलहुँ। तकरबाद पफेर हम कहियो नहिगेलिऐ। अहिना जिनगी खेपने जाइत छलहुँ।
सरोज चलि गेल छल लंदन पढ़ऽ। ओतऽ नोकरियो कऽ रहल छल। ओ पत्रा लिख कऽ पूछने छल टकाक वास्ते। हम मना कऽ देलिऐ। घर मे मांक बक-झक भैया-भाभीक उपेक्षा। जखन कखनौ दीदी सब अबैत छथि तऽ एकहीटा रटनी-एकर नैया कोना पार लगतै-‘तुसब नहिमदति करबें तऽ केकरतै?’ ‘लॉ’ क पफाइनल उपर छल मुदा पढ़बा मे मोन नहिलगैत छल। परीक्षा नहिदेलिऐ। बड़का भैया आर कुपित भेलाह।
हमरा मे एहन कोनो गुण नहिछल जाहि पर गर्व कयल जा सकए। क्यो हमरा सॅ कियेक विवाह करबा लेल तैयार होइत? एतेक पढ़ाई के बाद लड़का भेंटनाई कठिन छलै। खैर एक दिन बिलाड़िक भागें सींक टूटल। रामकुमार हजाम विवाहक दलाल छल से एकटा कथा लऽ कऽ आयल छल। इएह हजाम भैयाक दोसर ब्याह करौने छलनि। ओ अबिते भैया के कहलकैन्ह -‘बड्ड नामी परिवार छै अग्रवाल छथि हिनका परिवार के परिचय पूछऽ के काज नहि। अहां ऑखि मुनि कऽ सम्बन्ध् कऽ सकैत छी। एकलौता बेटा छैन्ह। करोड़पति छथि। लड़का देखबा मे स्मार्ट, अमेरिका सॅ बिजनेस मैनेजमेंट पढ़ि कऽ आयल अछि। आब अहॉ सब अपना मे विचारि लिअ।’
‘कतेक खर्च करऽ पड़त ?’
- पहिनेतऽ हुनका सब के लड़की पसंद होइ तखन ने आगां क बात करब। हुनका घर मे तऽ लक्ष्मीक वास छैन्ह ओ चाहैत छथि पढ़ल-लिखल बेटा योग पुतोहु।
मां आ बड़का भैया दूनू गोटे एके बेर बजलाह।
-‘रामकुमार अहाँ इ सम्बन्ध् करा दिअ तऽ हम जनम भरि अहॉक गुण गबैत रहब।’
-‘कनि एकबेर हमरा लड़की देखा दिअ।’
भाभी झट तैयार कऽ मां क रूम मे हमरा लऽ कऽ अएलीह । हजाम क दृष्टि हमरा पर पड़लै-बाजल ठीक छै-‘हम कथा पटा देब मुदा हमर दलाली नहिमारब।’
ओ लाकनि हमरा देख अयलाह। नरेन्द्र हमरा सॅ दू-चारिटा बात अंग्रेजी मे कयलनि आ है कहि देलथिन। क्यो हमर इच्छा, अनुमतिक जरूरत नहिबुझलकै। ओना सत्ते नरेन्द्र स्मार्ट युवक छलाह। नरेन्द्र के मां आ पापा हमरा हाथ पर पाँचटा गिन्नी ध्ऽ सगुन कऽ चलि गेलाह। बड़का भैया तुरत न्यूमार्केट गेलाह। पफल के एकाबन टा टोकरि पठौलनि-सब तरहक पफल।
सबटा बात ततेक जल्दी सॅ भेलै जे किछ सोचऽ-विचारऽ क मौका भेटबे नहिकयलै। भोरे प्रस्ताव आयल छलै आ मात्रा चारि घंटा मे भैया सब पता लगा लेलथिन। बड्ड प्रसन्न छलाह भैया, कराड़पति छथिन लड़काक पिता आ इएह एकमात्रा वारिस! अमेरिका सॅ पढ़ि कऽ आयल छथि। प्रिया क उम्र तेइस वर्ष आ लड़का क छब्बीजम। राति ध्रि घर पूरा भरि गेलै दीदी सब आबि गेल छलीह। हँसी-मजाक सॅ आँगन-घर क वातावरण मे उल्लास स्पष्ट झलकैत छलै। हमहँ हँसैत छलहुँ। अपना सौभाग्य पर विश्वासे नहिभऽ रहल छल। हं, माथक धोध्री मे एकटा लालबत्ती बेर-बेर जरैत छल। कहीं ओ अतीतक विषय मे ने पूछथि। हम तऽ कुमारि छी नहि, सोहागराति मे जँ पता चलि जाइ? की सब बात सापफ-सापफ कहि दिऐ। मुदा से सब सुनला पर जँ सम्बन्ध् करबा सॅ मना कऽ देताह तऽ? नहिएहन गलती नहिकरब। विवाह भेलाक बाद आन क्यो शोषण नहिकरत। तैं बहुत सोचि-विचारि कऽ चलऽ चाही। एखन स्वीकृति आ सुरक्षा दूनू भेंट रहल अछि। आब हम नेना नहिछी। बिना व्यवस्थाक स्वीकृतिकें हम किछ नहिकऽ सकैत छी। बिना कोनो प्रयास कें एखन परसल थारी मे छप्पन भोग उपलब्ध् भऽ रहल अछि। कहाँ सड़कपर चप्पल घुसीटैत छलहुँ नौकरी लेल कहां एकेबेर करोड़पति क पत्नी.........।’
खूब ध्ूमधम सॅ विवाह भेल। हमर ससुर के एकहि टा मांग छलैन्ह बरियातक स्वागत खूब नीक जकां होमए। भैया बरियातक स्वागत मे कोनो कमी नहिराखलथिन। तिलक के समय हमर ससुरजी एक लाख टका क थैली पहिने पठा देलथिन-हुनके टका हुनका देल गेलैन्ह। एहिना विदाई काल एकटा चॉदीके कटोरा मे सवालाख टका भैया के चुपचाप दऽ देलथिन भैया हुनकर पैर पकड़ि लेलथिन.............।
‘‘शाहजी, अपनेक एहि एहसान क तर मे दबि गेलहुँ एकरा हम कोना चुका सकब?’
ई अहाँ की बजै छी विजय बाबू? अहाँक इज्श्त आब हमरो इज्श्त अछि।
विदाईकाल हमरा कनिको करेज नहिपफाटल। मन मे भेल अइ नरक सॅ पिंड छूटल। मां के एतेक खुश कहियो नहिदेखने छलिएन्ह। हमरा सासुर सॅ आयल गहना-कपड़ा चीज वस्तु देख गदगद छलीह। बेटी मर्सिडीज गाड़ी मे विदा भऽ रहल छलैन्ह। ओ बजलीह-‘सल्लो। ज्योतिषी सत्ते कहने छलै एकर भाग्य बहुत नीक छै राज करत।’ हमरा दाई मां मोन पड़लीह। आइ दाई मां जीवित रहैत तऽ केहन खुश होइत। विवाहक जोड़ा...........।
ब्रेक पफास्ट टेबुल पर हम बहुत देर ध्रि बैसले रहि गेलहुँ। प्रायः सभटा टेबुल खालि भऽ गेल। तेसर बेर जब वेट्रेस पूछलक-‘मैडम, सम मोर कॉपफी?’
‘ओ नो थैक्स।’
वेट्रेस वर्त्तन बासन समटऽ लगलीह। ओकर गाल लालटेस छलै आ केश कारी घुघरल ऑखि खूब पैध्। बड्ड हॅ समुख खूब सुन्दर मुँह मुदा मोट-मोट हाथक आंगुर परूषाह कड़ा काज करैत-करैत एहन भऽ गेल हेतै। आब हमरा अइठाम सॅ उठि जयबाक चाहि ओ हाथ मे स्पंज नेने ढाढ़ि छल पोछा लागबऽ लेल। हम उठ लगलहुँ तऽ कहलक-‘हैपी डे मैडम........।’
टिप लेल किछ सिक्का ध्ऽ बढ़लहुँ। काउंटर पर बैसल औरत चिन्हल सन मुसकी सॅ स्वागत कयलक। बिल पर साइन कऽ हाथ मे छाता लऽ सड़क दिस बढ़लहुँ। बिना कोनो उद्देश्य कें टहलब बड्ड नीक लगै’छ खास कऽ जँ मन मे कोनो कहानीक ताना-बाना बुनैत होइ।
हं विदा होइत काल गाड़ी मे बैसल-बैसल हम सोचैत छलहुँ आब हम बड़का घरक पुतौहु छी। सासु आदर पूर्वक गाड़ी सॅ उतारलनि। हमरा देह पर छल पचास हजारक घाघरा आ दस लाखक हीराक सेट। इ ह सेट ससुर जी चुप चाप पठौने छलाह। आब भविष्य मे जे होमए एखन त हम या परिवारक लोक जेहन कल्पनो नहिकयने छल। तेहन सम्बंध् भेल। एहि गुनध्ुन मे हम माथ झुकौने पीढ़ा पर बैसल छलहुँ ओतऽ मुदा मन कतहु आन ठाम छल। हँसी वा गाीत-नाद किछ मन के छुबैत नहिछल। कपड़ा बदलि कऽ नरेन्द्र अयलाह तऽ हमरा ओहिना बैसल देख झुझलाक बजलाह-‘मम्मी की हिनका एहिना मूरूत जकां बैसौने रहबैन्ह?
बड़की पीसी बजलथिन-‘अरे मुन्ना ई आइ तोरा लग नहिजेथुन काल्हि सोहागराति हेतै।’
से कियेक? हुनका स्वर मे झुझलाहट....आवेग उत्कंठाक अलावा दर्प के बोध् भेल।
‘बेटा, ब्याहक राति पफरक रहैत छै कनियाँ वर काल्हि देवी, देवता क आराध्नाक बाद सोहागक थारी मे भोजन कऽ वर कनियॉ कोबर घर मे जाइत छै’ मां बड्ड मोलायम स्वर मे बजलथिन।
‘हम ई पूजा-पाठ के नहिमानेत छी सब पोंगापथी गप्प छै।’
हाल मे ससुर जीक संग आर दू चारि गोटे छलाह। नरेन्द्र दृढ़ता सॅ ठाढ़ छलाह। मने-मन सोचलहुँ ई केहन लोक दथि कुल देवताक पूजा सॅ पहिने.... बड़की पीसी किछ कहिथिन ताहि सॅ पहिने मां हुनका रूम मे लऽ गेलथिन। लग मे बैसल चचेरी ननदि हँसी मे बजलीह-‘यौ नरेन्द्र भैया, एको राति प्रतीक्षा नहिकऽ सकैत छी?’
ससुर जी लोक सभक संग नीचाँ चलि गेल छलाह। आ हम लाजे माथ झुकौने छलहुँ। ई केहन तमाशा शुरू कऽ देलनि ई हमरो बुझल अछि पहिल राति वर-कनियाँ संग नहिसूतैत छै। करेज ध्ुक-ध्ुक करैत छल कोनो अपशकुन ने भऽ जाए। नरेन्द्र ओहिना ठाढ़ छलाह तऽ सासुमां बड़की पीसी के हाथ। पकड़ि बाहर लऽ गेलथिन। बेटा के कहैत गेलथिन ‘बौआ ठीक छै जे अहॉक उचित बुझाए सेइ सही।’
‘पहिने हिनका कपड़ा बदलाव दिऔन्ह अइ कपड़ा मे कोना आराम करतीह।’
सासु ध्ीरे सॅ हमरा कान मे कहलनि ‘चलू कपड़ा बदलि लिअ।’ निन्न आ थकनि सॅ सब औंघाएल छल बड़की पीसी सोपफा पर बैसल छलीह तामस सॅ मुँह लाल लगैत छलैन्ह। हमरा सासु के देखकऽ बजलथिन
‘भाभी अइ घर क रीत नीत सब बदलि गेलै?’
हमरा कीकहैत छी ‘आब बौआ नेना नहिछथि।’
-तखनहु.........।
हमर सासु रूकलैन्ह नहिएक तरहें हमरा घीचने बढ़ि गेलीह।
सुहागराति मे हम बपर्फ बनल छलहुँ-छब्बीस वर्षक युवक नरेन्द्र देह के नोंचैत-खंसोटैत रहलाह मुदा हमरा कोनो उछाह नहि। देहक एकटा स्वाद होइत छैक.............जेना झाग बला बीयर! हमरा उत्साह होइत कोना? हम तऽ डरें सूखल पात जकाँ थर-थर कँपैत छलहुँ। प्रत्येक पुरूष हमरा दंशित कयने छल। हम बेर बेर नरेन्द्र कें कहऽ चाहैत छलिए-‘हम कुमारि नहिछी... हमर तन-मन टूटल अछि ... अहॉ हमर सहचर छी.... हम सब बात सापफ-सापफ कहि देबऽ चाहैत छी-सभटा ईमानदारी पूर्वक। नरेन्द्र अहाँ पढ़ल-लिखल छी अमेरिका सॅ एमú बीú एú कऽ के घुरलहुँ अछि, मुदा नहिओ एतेक अवसर कियेक दितथि बीस मिनट मे अपन भूख शान्त कऽ करोट पफेर सूति रहलाह। हम थाकल, क्षुब्ध् पड़ल छलहुँ। औंघएल स्वर मे बजलाह-‘बत्ती बन्द कऽ दियौ रौशनी मे ऑखि.....। हम चुपचाप उठि कऽ बत्ती बंद कयलहुँ। बाथरूम मे जा कऽ बाथटब मे बैसलहुँ। मेंहदी लागल हाथ सॅ ऑखिक नोर पोछ लहुँ। पफेर शावर खोलि देलिऐ बहुत काल ध्रि देह मलि-मालिकऽ नहाइत रहलहुँ। शीतल जल सॅ तन-मन कें राहत भेंटल। ई हमर जिनगीक प्रथम-मिलन छल जीवन संगीक संग। दू दिनक बाद हम सब हनीमून मनाब गेलहुँ। दहेज मे आयल समान खोलि कऽ देखलनि। बजलनि। किछ न×ि। अध्कितर समान बक्से मे रहलै। बक्सा बंद कऽ बॉक्स रूम मे राखि देलथिन। मां सॅ वेशी गहना कपड़ासासुर क देल छल। कीमती साड़ी, पश्मीनाक कश्मीरि शाल। हनिमूनक बाक्सा सासुए पैक कयलनि। रंग-बिरंगक ब्रा आ पैंटी। एक सॅ एक सुन्दर मॅहगा नाइटी, दू टा सूट आ दू टा साड़ी। संभवतः बेटाक स्वभाव बुझल छैन्ह मां कें। नरेन्द्र दस दिन क हनीमून के समय मे मात्रा दू-दिन बाहर घूमऽ गेलाह। नरेन्द्र कहियो हमर अतीत के विषय मे नहिजानऽ चाहलनि ने हमर पसन्द बूझऽ चाहलनि। भोजनक आंडरो दैत छलाह अपने इच्छा अनुसार। भोजन करैत काल पेट भरि गेला। पर पानि पीबि उठि जाइत छलाहटा इ हो नहिदेखैत छलाह जे हम एखन एको टो रोटी नहिखयलहुँ अछि।
नरेन्द्रक वहशी भूख सॅ हम आंतकित छलहुँ दिनोदिन हुनकर सेक्सुअल भूख बढ़िते गेलैन्ह। रातिए मे नहिसंाझि दिन-दुपहर आ भोर बेर-कुबेर कखनहुँ। कतेक बेर पार्टी मे जयबा लेल तैयार होइत छलहुॅ कि घर घीच कऽ लऽ जाइत छलाह। ‘प्रिया.........एखन अहॉ बहुत सुन्दर लागि रहल छी पार्टी मे जे देखत तकरा लेर चुबऽ लगतै तऽ अपन वस्तुक पहिने अपने कियेक ने स्वादि ली।’
- ‘छिः नरेन्द्र एखन ई बेर छै?’
‘ अहॉक मने तऽ कखनहु बेर नहिहोइ छै? आइ घरि कहिओ अहॉ के सेक्स के जरूरत भेल अछि?’
‘नरेन्द्र हमरा एकर भूख नहिस्नेहक भूख अछि।’
‘तऽ की बिना स्नेहकें हम अहांक पाछू पागल भेल छी?’
‘मुदा स्नेह आ सेक्स मे पफर्क होइत छै।’
‘अहाँ अपन पिफलॉसपफी अपने लग राखू।’
‘नरेन्द्र एक बेर हमर बात तऽ सुनू ............... मुदा के सुनत पफेर चारू हाथ-पैर कसल बहशी उन्माद........! नरेन्द्र मे गजब छलनि। इएह पैशन गदहा-जकॉ राति-दिन खटबैत छलनि। टका, आर टका, जाहि दिन कोना सपफल डील होइत छलनि तहिया भोजन काल कोनो विशेष वस्तुक पफरमाइश करैत छलाह वा ऑपिफसे सँ पफोन कऽ दैत छलाह-‘भोजन बढ़िया बना कऽ राखब।’ आब बढ़ियाँ भोजनक अर्थ बूझि गेल छलहुँ तैं सोझे रसोई घर मे जा कऽ महराज जी कें कहि दैत छलिऐन्ह बा मां के कहैत छलिऐन्ह-मां सुनि कऽ हर्ष सॅ विभोर भऽ जाइत छलीह।
मां-बेटा मे एकटा अजीब समानता छैन्ह। एके रंग संग्रही वृति आ भावनात्मक लगाव मे कमी। मम्मीक देखैत छलिऐन्ह दिन-राति शॉपिंग चूड़ी, मैचिंग चप्पल हुनका ड्रेसिंग रूम मे एक लाइन सॅ आलमारी छलैन्ह ओह मे कम से कम एक हजार साड़ी ब्लाउज, पेटीकोट आ रंग-बिरंगक चूड़ी, चप्पल के कतार लागल ततबे मेकअप के समान। ओना ओ वेशी काल हल्का लिपिस्टिक लगबैत छलीह मुदा राखल छलै सब रंगक लिपिस्टिक, बिन्दी। हमरा एहन संग्रही वृति सॅ विरोध् छल हम चीज वस्तु किनैत छलहुँ व्यवहारिक दृष्टिकोण सॅ। पहिने सासु टोकितो छलीह ‘प्रिया नीक साड़ी पहिरू ई की गर सुन्न, हाथ सुन्न... श्रृंगार तऽ सोहागिन क....।
-मम्मी! हमरा जेवर पहिरनाई असुविध जनक लगै’छ आ भरि दिन कपड़ा बदलैत रहब समय के दुरूपयोग नहितऽ आर भी? हुनका हमर उतर नीक नहिलगलैन्हि-चेहराक भाव सँ बुझलहुँ।
मां-बेटाक विपरीत स्वभाव छलैन्हि पापाक लम्बा छरहरा शरीर, गौर वर्ण, खादीक कुरता आ धेती मे सौभ्य व्यक्तित्व। अति मिलनसार, मृदु भाषी कहियो जोर सँ बजैत नहिसुनने छलहुँ। तखन बेटा एहन प्रचंड।
नरेन्द्र के स्वर मे अनुरोध् क बदला आदेशक गर्जना रहैत छलनि। हुनका सोझा सब जी हजुर क मुद्रा ठाढ़ रहैत छलनि। दूध्क गिलास नेने नरेन्द्र के पाछू नेहोरा करैत छलीह - ‘बौआ दूध् पी लिअ।’ भऽ सकै’छ ओ एखनहुँ एहिना नेहोरा करैत होयतीह। बचपन सँ आइ ध्रि हुनकर जूताक पफीता बन्हैत छैन्ह नौकर। ऑपिफस सँ घुर ला पर ओ सोझे अपना रूम मे जाइत छथि। जूता पहिरने बिछाबन पर ओंघरा जाइत छथि कोट एक दिस पफेकल रहैत छै नौकर जूता खोलि, मोजा खोलैत छै पफेर तौलिया पानि मे भिजाकऽ तरबा रगड़ि पावडर लगा दैत छैन्ह।
नरेन्द्र एखनहुँ बदलल नहिहोएताह। ओ कहियो अपना हाथ मे ब्रीपफकेश लऽ आपिफस लेल विदा नहिहोइत छलाह। रामू ब्रीपफकेश नेने जाइत छलै गाड़ी मे ध्ऽ दैत छलै। मां के घर मे हम ककरो नौकर सॅ जूता पहिरैत देखने छलिऐ ने खोलैत। हमरा तैं अजीब लगैत छल। नरेन्द्र केश कटाबऽ लेल सेलून मे नहिजाइत छलाह । सेलून बला अबैत छलनि पेडिक्योर आ मेनिक्युर करऽ। पता नहिदिन मे कतेक बेर सेंट लगबैत छलाह। कपड़ा क आर्डर होइत छल तऽ एक बेर मे कम से कम एक दर्जन। हुनकर सबटा हिसाब-किताब रहैत छलनि पिफक्सड आ रिजिड। नाक क सोझ मे चल बला नरेन्द्र कें कखनौ बाम-दहिन देखबाक पलखति नहि। आब तऽ हम इ हो बुझि गेलिए जे ओ कखन कोना हाथ बढ़बैत अछि कतेक लग मे घिचै’छ आ कतेक काल हँपफैत रहै’छ। ध्न कमयबाक तरीको ओकर अपने ढंगक छलै मेहनत नहिकरैत छल। स्पेक्यूलेीशन....... गजब छलै सत्ते कुशाग्र बु(ि छै। माल स्टाक करब तखन वेशी सॅ वेशीकीमत मे बेचब। कहियो पेट्रोलियमक कोनो वस्तु कहियो केमिकल, कहियो स्टील तऽ कहियो दालि। कोनो तरहक वस्तुक स्टाक कऽ सकैत छल जँ दलाल ओकरा सॅ वेशी पाइ न असुलै।
ओ हारनाइ जनिते नइ छल। जाहि दिन शेयर बाजार मे मंदी होइत छलै बस माइग्रेन के दौर शुरू भऽ जाइत छलै। घंटों माथ दबैंत रहैत छलिऐ तइओ आराम नहि। मम्मी जी दस बेर भोजन लेल आग्रह करथिन तऽ ‘ओह! मम्मी हमरा तंग नहिकरू एखन भोजन नहिकऽ सकब।’
‘खा लिअ, बौआ! हमर बात राखऽ लेल एकोटा पफुलका खा लिअ नहितऽ हम राति भरि बेचैन रहब।’
शायद हमरा एसगर खाइत मम्मी के नीक नहिलगैत छलैन्ह मुदा ओ अपनो एसगरे खाइत छलीह। अजीब घर छै नास्ताक टेबुल के अलावा चारू सदस्य कहियो संग बैसकऽ भोजन नहिकरैत छथि। पापा सांझि मे चाह पी कऽ बहराइत छथि तऽ राति कऽ घर अबैत छथि। पहिने हम बुझैत छलिऐ जे पापा क्लब जाइत छथि ताश खेलऽ। तैं एकदिन मम्मी के कहने छलिऐन्ह-मम्मी पापा रोज ताश खेलऽ बाहर जाइत छथिन त कियेक नहिएकदिन घरे पर ताश पार्टीक आयोजन कयल जाए? एतबा सुनिते मांक सांस तीव्र गति सँचलऽ लगलैन्हि ओईठाम सँ उठैत बजलीह-‘अहीं पापा सॅ पूछि लेबैन्ह!’
सत्ते हम किछ नहिबूझने छलिऐ। मम्मीक अचानक एहन व्यवहार सॅ चिन्तित छलहुँ तऽ मोन पड़ल-सल्लोदीदी आ मां पफुसुर-पफुसुर बतिआइत छलीह-मां हुनका घर क वातावरण नीक नहिछै नरेन्द्र के पापा क एकटा बंगालिन सॅ सम्बंध् छैन्ह।’
‘ताहि सॅ की कोनो घर मे रखने छथिन।’
‘मां, ओइ बंगालिन के एकटा बेटियो छै।’
‘सल्लो दू बच््याक मां भऽ गेलहुँ आ एखनहु ज्ञान नहिछौ। जैं किछ कमी छै तैं ने करोड़पति हमरा ओतऽ ब्याह करबा लेल तैयार भेल। आ लड़का मे कोनो कमी नहिछै एहन घर वर किन्नहु पार लगैत।’
हम सोचैत छलहुँ पाप जतऽ जाइत छथि आ आतेक राति क घुरैत छथि से की मम्मी के बूझल छनि? मुदा मां क चेहरा देखला सँ तऽ कनिको किछ नहिबुझना जाइछ एकदम सपाट कोनो व्यथाक लकीर नहिचेहरा पर। हँ, कहियोकाल नास्ताक टेबुल पर ऑखि लालटेस पफूलल पल देखैत छिऐन्ह जेना राति मे कानल होथि। तखन पापा क स्वर आर मोलायम खुशामद करैत सुनैत छी आ मम्मी मात्रा हं, नहिमे उतारा दैत छथिन। कहियोक हमहीं पूछैत छिऐन्ह-मम्मी, मोन खराब अछि?
‘नहि, बेटी, हम एकदम नीके छी।’
‘अहॉक ऑखि सूजल अछि?’
ओ हड़बड़ाक कहैत छथि सर्दी मे हमरा एना भऽ जाइत अछि।’
‘पापा माथ झुकौने चाहक कप मे चम्मच सॅ चीनी मिलबैत रहैत छथि आ नेरेन्द्र क हिंसक ऑखि पापाक चेहरा पर चिपकल रहै’छ।
लगै’छ टहलैत-टहलैत हम बहुत दूर आबि गेलहुँ अछि। एकदम खुजल आकाश आ चमकैत पहाड़। एक दिस उगैत सूर्य आ दूर क्षितिज पर दोसर दिस मेघ खंड। गर्मी महसूस होइछ कोट खोलिक हाथ मे राखि लेलहुँ। दुपटाð सॅ मुँह-कान पोछलहुँ। आब कतेक चलब? घुरऽ चाही।
होटल पहँुचैत-पहुँचैत साढ़े बारह बाजि गेलै। भूख लागल छल कियेक ने भोजन कऽ ऊपर जाइ। मुदा एखन स्नानो नहिकयने छी। खैर, कोनो बात नहिबाद मे स्नान कऽ लेब।
भोजन करैत काल जर्मन दम्पति पर नजरि पड़ल। जोसेपफ कखन पॉछा मे आबि कऽ ठाढ़ भेल बुझबे नहिके लिऐ।
-‘मैडम।’
हम चौंकलहुँ।
-‘अहाँ जर्मन जनैत छी?’
‘नहि।’
‘आ, ओ लोकनि अंग्रेजी नहिजनैत छथि नहितऽ अहा सॅ अवश्य गप्प करितथि।’
हमरा खुशी होइत। नीक लोक बुझाइत छथि।
-‘हँ, बड्ड नीक लोक छथि। प्रत्येक वर्ष पन्द्रह-बीस दिन एतऽ रहैत छथि।’
‘कहिया सॅ आबि रहल छथि।’
‘पछिला दस वर्ष्ज्ञ सॅ। मैडम अहाँ स्ट्राबेरी सूपफले लेब? एकदम पफूल-सन हल्लुक बनलैए, मुँह मे रखिते गलि जाएत।’
‘जोेसेपफ बुझाइत अछि अहाँकें मीठ बहुत पसंद अछि।’
- ‘मुदा हमरा बुढ़िया खाय ने दैत अछि।’
- ‘से कियेक?’
‘हमरा बाप केँ डाइबिटीज छै ओकरा छै हमरो भजेतै।
‘अहाँक बहुत मानैत छथि। अहाँ कें बाल-बच््याक अछि की नहि?’
‘इएह तऽ दुःख अछि। बच््या नहिअछि हम सोपफीक बिग बेबी छी।’
हम दूनू खूब हँसलहुँ। जर्मन दम्पत्ति हमरा विश कयलनि हम अंग्रेजी मे उतारा देलिएन्ह। आब हमरा दूनूक बीच जोसेपफ दुभाषिया बनि गेल छल। हुनका हमर कुरताक कढ़ाई बड्ड नीक लगलैन्ह। पफेर पुछलनि हम की लिख रहल छी कोन भाषा मे लिख रहल छी। सुपफला आनऽ जोसेपफ गेल त हमरा सभके हँसी लागल कियेक तऽ गप्पक पुल बनल छल।
अपना रूम मे जा कऽ परि रहलहुँ तुरत भोजन कऽ स्नान कोना करब। कखन ऑखि मुना गेल नहिबुझलिऐ। ऑखि खुजल तऽ चारि बाजि रहल छलै। उठिकऽ बालकनी मे अयलहुँ। दूर-दूर ध्रि समुद्रक अथाह पानि आ कछेड़ मे पाथर.......
कुर्सी घिच कऽ ओहिठाम बैसि गेलहुँ। एहिना हम बच््या मे बालकनी मे बैसैत छलहुँ। ओत ऽत गोरैया रहैत छल कोन चिड़ैंक चूनल जाए ? आ चुनाव सॅ हमर चिड़ै भेंट जाएत? भऽ सकै’छ भेंट जाए’ मुदा हम अपन भविष्यक चुनाव कऽ सकैत छी? ............ व्यवस्था जतऽ सुरक्षा दैत छै ओतऽ दमघोंटु वातावरण। तथापि शुरू मे हम सहज रूपें सभटा स्वीकारने छलहुँ।
नरेन्द्र के पाछू लागल रहैत छलथिन मम्मी जी। अपन सुपुत्राक प्रत्येक श्वास गनैत रहैत छलीह आ चाहैत छलीह हमहूँ हुनके जकॉ नरेन्द्रक आगॉ-पाछॉ डोलैत रहि-बहुत दिन ध्रि हम ओहिना करैत छलहुँ। तऽ हमरा महसूस भेल जे नरेन्द्र हमरा अपन पत्नी सॅ वेशी सेक्रेटरी आ नौकरानी बुझैत छथि। नरेन्द्र कखनहुँ कहैत छलाह ‘प्रिया अइ नम्बर सभ पर पफोन मिलाउ तऽ कखनहु आर्डर दैत छलाह-‘ई पार्टीक लिस्ट छै हिनका सभके समय पर कार्ड भेंट जाए चाही। आ सुनू काल्हि हमरा पार्टीक मेनूक लिस्ट बनाक ऽदऽ देब।’
हम घंटो मेनू लेल माथापच््यी करैत छलहुँ पफेर कहियो कोनो कैटरर सॅ तऽ कहियो कोनो कैटरर सॅ बात करैत छलहुँ। सभटा एवन होइबाक चाही। हं लगातार पाँच वर्ष ध्रि हम एकदम जुटल रहैत छलहुँ तऽ पार्टी एवन होइतो छलै। मरि-मरि कऽ सभटा ओरियान करैत छलहुँ पफूल सजेनाई हरदम मेज पर नव क्रॉकरी। एपल पाई सूपफले कतऽ के नीक टार्ट बनबैत अछि से तकैत अपस्यॉत रहैत छलहुँ। सब खेप नव-नव डिश लेल तबाह रहैत छलहुँ। दिन पक्का सोलह घंटा मेहनत। प्रात भऽ सब बर्तन के सापफ करबेनाई, लॉन सापफ करेनाई खर्च क हिसाब किताब। हमरा सॅ वेशी मम्मीजी के पार्टी क उत्साह रहैत छलनि हँ, हुनकर बड्ड सहारा भेंटैत छल। मुदा पापा लेखे ध्न्न सन्न ओ चुपचाप कोनो कात मे ठाढ़ रहैत छलाह एकदम निरपेक्ष जेना ओइठाम रहितो ओतऽ नहिहोथि। वेशी काल तऽ गेस्टके अबिते नहुँ-नहु ओतऽ सॅ विदा भऽ जाइत छलाह। दोसर दिन पफेर देखैत छलिऐन्ह मम्मी जीक मुरझाएल मुंह पफूलल लाल ऑखि। सपफाई दैत छलीह पार्टीक थकनि सॅ एना लगै’छ।
पार्टी क दिन मात्रा घर क सजावट आ लॉन मे मेज सजौनाईए नहिअपनो सजऽ पड़ैत छल। आर्डर दैत छलाह-‘प्रिया पिफरोजी प्रेंफच शिपफॉन पहिरब जे अइबेर हम पेरिस सॅ अनने छलहुँ ओकर संग पिफरोजी सेट पहिरब। लोक देखै हमर श्रीमतीक शान-शौकतं’ नीचाँ उतरैत-उतरैत पफेर सवाल-‘इ की अहॉ कार्टियरबला घड़ी नहिपहिरलहुज? अंचार बनाएब रंग-बिरंगक घड़ी रहैत एहन पहिर लेलहुँ! कतेक बेर कहलहु कनि नीक जकां मेकअप करू कनि स्टाइल सॅ रहू बस पोनीटेल कऽ लैत छी?
‘हम मने-मन क्षुब्ध् होइत छलहुँ।’
आ पार्टी मे बहुत गर्व सॅ नरेन्द्र बैंकक चेयर मैन सँ हमर परिचय मे कहैत छलाह-दर्शन मे पीú एचú डीú छथि। प्रिया इम्हर आउ ई छथि जस्टिस बनर्जी, मिस्टर कौल, ई छथि हमर पत्नी आ अहॉ कलक्टर कस्टम्स। प्रिया-ई छथि शंकर भाई पापाक खास दोस्त। आ हमर अखरल छल-शंकर भैयाक भेदैत नजरि बुझू जे साड़ी क भीतरी शरीर धरि पहुँचल होमय। एहिना ई पफलां छथि ओ पफलां छथि.......
ई सब शुरूह मे भेलै। सब दिन पार्टी हंगाम राति मे देह चूर-चूर लगैत छल। मन मे होइत छल की एहिना हमर जिनगी बीतत? मारवाड़ीक दू अढ़ाई सौ करोड़पति खान दान सब पार्टी मे वएह चेहरा हुनके बीच घूमनाई। कला-मंदिर जाइ तखनो वएह लोक। क्लब जाइ तऽ एकहिटा रटल रटाओल शब्द-अहॉ कोना छी?.... नीकें छी, कुशल-क्षेम......बहुत बढ़ियाँ........ पफेर क्यो भेंटल त वएह शब्द दोहराउ। सब परिचित मुदा क्यो मित्रा नहिबनल। नरेन्द्र के परिचितक परिध् िछल गुलरके पफल जाहि मे असंख्य बीज रहैत छै।
आब हम अइ सब सॅ ऊबऽ लागल छलहुँ। बात-बात मे चिड़चिड़ापन। दाई नौकर पर बजैत छलहुँ। ऊबि गेल छलहुँ बैंकाक सॅ मंगाएल पपीता, लीचू, कीवीआ आ अमरूद सॅ। बम्बई सॅ आयल अलपफांसो आम आ स्टाªेरीक सूपफले सॅ। स्काईरूम सॅ अबैत छल एपल स्टूडल, चितरंजन मिष्ठान भंडार सॅ रसगुल्ला आ मोहन भोग, नूतन बाजार सॅ संदेश कौलेज स्ट्रीट सॅ कांचा गोला, शमकि केशरिया राबड़ी.... ऊँ हूॅ आब नहि। जिनगी भरि खाउ आ खुआउए टेबुल सजाए घर सॅ लान ध्रि सजाउ, बर्त्तन बाहर कराउ पफेर रखबाउ एकहिटा रूटिन बड्ड नीरस लगैत छल। ..... ई गृहस्थीक झमेला कहियो एकऽ वला नहि। कीएकरे संसार-सागर कहल जाइत छै? ई रिपीटेशन ........ सबटा ओहने कहियो कोनो बदलाव नहि। विवाहक डेढ़ साल बाद संजुक जन्म भेलै। हमरा मांक स्थिति दिनो-दिन खराबे भेल गेलैन्ह। सास-ससुरक उदारता पफेर देखलिए। अपने एक लाखक समान बंटलनि। ससुर जी लग पफेर गाड़ी मे भैया मिमिआइत बजलाह-‘शाह जी हम तऽ अपनेक एहसान कहियो नहिचुका सकब।’ ससुरजी पफेर दोहरा देलथिन ‘विजय बाबू आब अहांक इज्श्त हमरो इज्श्त अछि।’
राति मे मम्मी जी चारिटा थारी मे पफल आ मिठाई सजौलनि एकटा कीमती साड़ी आ ग्यारह सौ टाका एकटा लिपफापफ मे ध्ऽ पुरनका ड्राइवर राम सिंह के पफुसपफुसाक किछ कहलथिन। हम एतबे सुनलिए जे ‘राम सिंह देखब नरेन्द्र बाबू नहिबुझथि।’
आइ पहिल बेर हम मम्मी जी सॅ पूछलिऐन्ह-‘मम्मी जॅ ओ बुझिए जेथिन तऽ की हेतै? आ हुनका सॅ नुका कऽ कियेक पठबैत छिऐ?’
‘हम की करू। बाप बेटाक लड़ाई मे हमहीं पिसाइत छी। नहिपठेबै तऽ ओ मुँह पफुला लेता आ नरेन्द्र के कान मे ई खबरि जेतै तऽ घर मे महाभारत मचि जेतै।’
हम मम्मी जी क बु(िमत्ताक लोहा मानि लेलहुँ। अपना स्वत्व लेल हमर सासु कुटनीति सॅ काज लैत छथि। जे बात अपने नहिकहऽ चाहैत छथिन से बात नरेन्द्र सॅ कहबा दैत छथिन। तैं बेटो वश मे छैन्ह आ पति दूनू।
हम डेढ़ मास क बाद पहिलबेर संजुके लऽ कऽ नैहर गेल छलहुँ तऽ घुरती काल राम सिंह के कहने छलिऐ-राम सिंह! कनि कारनानी स्टेट्स चलब।’ ओ कहलक..... मुदा छोटा साहब?
‘ओ नहिबुझताह।’
हं, तऽ पापाक दोसर पत्नी के हम पहिल बेर देखलिएन्ह। मुन्ना के करेज सॅ सटा लेलैन्ह हुनकर ऑखि डबडबा गेलैन्ह। पचास वर्षक अई प्रौढ़ाक पैर छुवि प्रणाम कयलिऐन्ह मुदा पफुराइत नहिछल की कहि हुनका सम्बोध्ति करिऐन्ह? पफेर अनायास हमरा मुँह सँ ‘छोटकी मां’ बहराएल। ओ भरि पॉज घऽ अपना हाथक सोनाक मोटका कंगन निकालि कऽ पहिरा देलैन्ह’
‘छोटकी मां! ई जरूरी छै?’
‘हं, बहुत जरूरी छै पहिल बेर अहांक मूंह देखलहुँ अछि। ब्याह मे नहिजा सकलहुँ। नीना बड्ड कनैत छलीह मुदा समाज मे ककर-ककर मूँह बन्द कयल जा सकै’छ?’
‘एखन कत छथि नीना?’
‘अबिते हेतै। अहां के देख कऽ बड्ड खुश हेतै।’
‘कतेक टा छथिन ?’
‘उन्नीसम वर्ष छैक।’
मन भेल जे पूछिऐन्ह-‘अहाँ अइ जीवन सॅ असंतुष्ट होउब! नीनाक भविष्य लऽ चिन्तित रहैत हेवई?’ यद्यपि ओ पापाक नामक सिन्दुर लगबैत छथि। गला मे मंगलसूत्रा पहिरने छथि। मुदा ओ मम्मी जी क स्थान नहिपाबि सकैत छथि। मोन पड़ल विवाहक समय मांक रोषपूर्ण स्वर- ‘बौआ विजय, शाहजी के एकटा बात पफरीछाक कहि दहुन जे बरियात मे अपन दोसर पत्नी के नहिआनथि। लोक दुर छी दुर छी करत ककर-ककर मूँह बन्न करबै दस लोक दस मुँह बाजत जे समध् िरखैल रखने छथिं’ डेराइत-डेेराइत सल्लो दीदी पूछने छलथिन जे रखैल ककरा कहैत छै तऽ बड़की दीदी कहलथिन जकरा सॅ विवाह बिना कयने सम्बन्ध् रहैत छै आ भरण-पोषण करैत छै तकरे उप पत्नी वा रक्षिता रखैल कहैत छै।’ तऽ हम एहि सासुक शान्त-स्निग्ध चेहरा देख रहल छलहुँ। अहू उमर मे भव्य लगैत छथि सोना सन दमकैत रंग-रूप। के कहतै एहन पवित्रा व्यक्तित्व क स्वामिनी के कलंकनि?
छोटी मां के मुँहे सुनलहुँ जे हुनकर पिता कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसि( बैरिस्टर छलथिन। हमर ससुर तहिया बैरिस्टर शुभेन्दु सेन ओतऽ मवक्किल के रूप मे जाइत-अवैत छलाह। तखने दोस्ती भेलैन्ह। पापाक उम्र तखन लगभग चालिस वर्ष छलैन्ह। आ छोटी मां एक्कैस वर्षक नव युवती। लॉरेटो कॉलेज सँ अंग्रेजी मे बीú एú आर्नस। पापा बैरिस्टर सेन के परिवारक सदस्य जकॉ निर्धेख जाइत अबैत छलाह। बैरिस्टर साहेब कें एकटा बैटा छलनि जे बार एटलॉ करबा लेल लंदन गेल छलैनह से ओतहि बैसि गेलैन्ह। पापा संग मम्मी जी जाइत छलथिन। छोटी मां शुरूहे सँ हुनका दीदी कहैत छलथिन। पापा, मम्मी आ छोटी मां जकर नाम छलैन्ह तिलोत्तमा संग प्रेम प्रसंग बढ़बैत रहलाह। मम्मी जाबत बुझलथिन ताबत बात बहुत आगाँ बढ़ि चुकल छलै। छोटी मां क पापा क्रो( मे हुनका घर से भगा देलथिन। पापा कालीघाट जा कऽ छोटी मां सॅ विवाह कऽ लेलैन्ह। कानून मानै या नहिमानै मुदा साक्षी छलैन्ह र्ध्म मां काली। बिना कोनो शर्तक पापा लेल मौन स्वीकृति छलैन्ह एकोन्मुखी अग्नि जकाँ अहर्निस जरैत रहब। हं, नैहर सॅ नाता टूटि गेल छलैन्ह सब दिन लेल नैहर सॅ क्यो अबैत छलैन्ह ने छोटी मां कहियो नैहर गेलीह। नीना अपन नानाक मुँहो नहिदेखलैन्ह। बाबा हमरा मापफ नहिकयलनि हम हुनका लेल कलंक छलहुँ। अइ घटनाक बाद पापा बैरिस्टर समाज मे कहियो माथ उठा क नहिचललाह......... छोटी मां अपन अतीतक कथा सुना रहल छलीह। औरत क जिनगी विचित्रा होइत छैक कनि खरोंचि दिऔ कि दुःख-दर्द, व्यथा-पीड़ा आ त्रासदीक क बहैत समुद्र देखब। नीना कें देखिते नैन जुड़ा गेल मन प्रसन्न भेल। उन्नीस वर्षक नवयुवती एकहरा देह नाम, कारी-कारी लम्बा केश, पैद्य-पैद्य ऑखि ठोर लाल पापा सन पातर, घूरी सन नाक।
‘नीना.....।’ हम शोर पाड़लिऐन्ह।
‘भाभी!’ कहि ओ गर ध्ऽ लपटि गेलीह। ‘भाभी ब्याहक बाद अहाँ आर सुन्दर भऽ गेलहुँ।’
‘ब्याह सॅ पहिने अहॉ हमरा देखने छलहुँ?’
‘हँ, ब्याहे दिन। हम सब सॅ नुका कऽ गेल छलहुँ। ककरो पता नहिलगलै ने पापा के ने मम्मी के, ने आर क्यो बुझि पाओल। हमरा आन्तरिक इच्छा छल भैया-भाभी केहन लगैत छथि से देखी।’ हमर ऑखि नोरा गेल। केहन निष्ठुर छै इ। दुनियाँ एहन मौसुम बच््यीक संग एतेक निष्ठुरता।
हम एकटक नीनाक मुँह देख रहल छलहुँ। एकटा अपूर्व चमक छलै नीनाक चेहरा मे। पैघ-पैघ आकर्षक ऑखि, पातर-सुगबा नाक बंगालक नजाकत आ राजस्थानक कद-काठी। लॉरेटो मे बचपन सॅ एखनध्रि अध्ययनरत अइ लड़की मे रचल-बसल छलै खुलापन। कनिको कुठा नहि। सहज-सरल ढंग सॅ बात करऽ बाली। आगां की करऽ चाही, की नहिसे नीक जकाँ बुझैत छथि।
‘भाभी, पापा चाहैत छथि हमर ब्याह आब भऽ जाए चाही। मुदा हम से नहिहोमऽ देबै। हम पहिने अपना पैर पर ठाढ़ होएब।’
‘पहिने अहाँ एमúएú करऽ आवश्यक नहिछै। हम काल्हिए ग्रैंड होटल मे इंटरव्यू दऽ कऽ अएलहुँ अछि। बुझाइत अछि नौकरी भेंट जाएत।
‘इ नौकरी पापा पसंद करता?’
‘भाभी सब बात मे हुनकर इच्छा-अनिच्छाक ध्यान देब आवश्यक छैक? भाभी हम नीक जकां जनैत छी-जे हम पापाक नजायज संतान छी। मां भनहिं पापाक नामक लाल सिन्दुर लगाबथु मुदा ओइ लाल रंग मे करिखा लेभरल छै।’
‘नीना मन मे एतेक कड़बाहट रखने अपने नुकसान हेत’ ने।’
‘नहिहम से नहिमानैत छी। जीवित रहबा लेल आ अपन स्वत्त्वक लड़ाई लड़बा लेल आवश्यक छै जे अपन अपमान आ वंचना के सदति काल याद राखी। हमरा नीक नहिलगै’छ जँ क्यो सिखबैत अछि जे चुप रहू।’
‘ठीक छै। मुदा अइ सॅ अहा दुखी नहिरहैत छी?’
‘हं दुखी छी तैँ चाहैत छी सुख अर्जित करऽ। स्वाब लम्बी महिला केँ क्यो निरादर नहिकऽ पबैत छै। सच कहैत छी भाभी पापा जे मासे मास टका पठबैत छथि ताहि सॅ हमरा घृणा होइत अछि। पापा सन डेरबुक व्यक्ति सॅ हमरा घोर घृणा अछि।’
ताबत चाभीक गुच्छाक स्वर सुनलहुँ। छोटी मां ट्रे मे चाह-नास्ता लऽ कऽ आबि गेल छलीह। हुनकर पति-भक्ति, उदार-हृदय, सहज-समर्पण आ बहिर गाय जका स्थिति सॅ मूक समझौता हमरा मन मे कतेको प्रश्न चिन्ह..।
सीढ़ी पर उतरैत काल ओ नहु-नहु बेटी प्रिया अहाँ अयलहुँ से क्यो बूझए नहिखासकऽ अहांक मां आ दीदी। मुदा हम चाहैत छी जे पफेर मौका पाबि अहॉ अइठाम आउ।’
पता नहिछोटीमांक स्नेह-सिक्त व्यवहार मे कोन एहन जादू छलनि जे हम हुनका करेज मे मुँह सटा कानऽ लगलहुँ। हुनका करेज मे सटिते हमरा दाई मां मोन पड़ल। आ तकरबाद मोन बड्ड हल्लुक भऽ गेल।
पापा, आब हमरा प्रति कृतज्ञ रहै छथि। आ हमरो मन के शान्ति भेंटैत अछि छोटकी मांक घर गेला सॅ। आ नीना तऽ हमर अन्तरंग सखी, बहिन सब किछु छथि। हम सदतिकाल सोचैत रहैत छी नीनाक विषय मे। एहन होनहार लड़की छथि केहन हेतैन्ह हिनकर भविष्य? मां-बापक कलंक? बीच-बीच मे हम सँजुकें पठा दैत छलिऐ छोटकी मां लग। एक दिन की भेलै जे भोजनक मेज पर बैसल ओ बक बक कऽ रहल छलै-‘हम नीना पीसी कें कहलिऐन्ह जे जाबत अहाँ हमरा संग लूडो नहिखेलब हम कहियो.....।’
हमर सासु गरजैत पूछलथिन-कोन नीना पीसी?
सँजु तऽ नेना अछि हम जाबत किछ कहितियै ताहि सॅ पहिने सॅजु बाजि देलकै।
‘ओ जे हमर सभक दोसर घर अछि.. जत छोटकी दादी मां छथिन..हमरा खूब मानैत छथि....।’
हमर सासुक चेहरा क्रो( आ अपमान सॅ लाल भऽ गेलैन्ह। आ नरेन्द्र त बुझू जे जेना पफूस मे चिनगी सॅ ध्ध्कि उठैत छै तहिना छऽ छऽ कऽ लगलाह।
‘संजु कें लऽ कऽ के छलै ओतऽ ? पापा अहाँ ??’
‘व्यथा आ अपमान सॅ पापाक चेहरा स्याह भऽ गेलैन्ह। हमरा नहिरहि भेल तऽ कहलिऐ-‘हम पठौने छलिए।’
‘कियेक आ ककरा आर्डर सॅ?’ नरेन्द्रके क्रो(क ज्वाला बढ़ले जा रहल छलै।
अपना घर मे अपने दादी आ पीसी लग जयबाक लेल संजु के आर्डर लेबऽ पड़तै?’
‘की बकबक कऽ रहल छी। बिना सोचने-विचारने जे मन होइ ए से करैत छी आ बजैत छी।’
‘हम गलत कतऽ छी? की चुटकी भरि सिन्दुर सॅ क्यो पत्नीक हक पाबि लैत छै? आ बीस वर्ष ध्रि बिना सात पफेरा लेने जे सम्बन्ध् कें जीबैत छै से नकारल जेतै?’
‘ओ रखैल छै......मिस्ट्रेस......हमर मां नहि।’ घृणा सॅ हमरा तन-मन मे आगि लागि गेल। आइ पहिल बेर देखलिऐन्ह सासुके निष्क्रिय चेहरा पर परमतृप्तिक भाव। पापा उठिकऽ चलि गेल छलाह।
सुनू प्रिया। ‘आब कहियो संजू ओतऽ नहिजेतै’
ई नरेन्द्रक रोषपूर्ण पफरमान छल।
‘तऽ अहूँ सुनि लिअ, हम ओतऽ जेबै आ हमरा संग संजुओ जेतै ओ मात्रा अहीं के बेटा नहिअछि ओकरा पर हमरो हक अछि। छीः अहाँ सभ के तऽ ने दया अछि ने ममता। इंसानियत ककरा कहैत छै से संवेदनहीन व्यक्ति कोना बुझतै? पापा ककरा भरोसे चलि पिफर रहल छथि?’
‘प्रिया! हम कहैत छी चुप्प रहू।’
‘नहि, आब हम चुप्प नहिरहब। नीना हमर ननदि छथि, संजुक पीसी, अइ घरक बेटी।’
‘तड़ाक! सँ एक थापड़ दहिना गाल पर पड़ल। हम हतप्रभ भेल चालीस वर्षक नबालिग पुरूष के देखते रहि गेलहुँ। एहिना, एक दिन एकटा पुरूष कहने छल, ‘बेवकूपफ लड़की के कहने छल हम अहाँ से ब्याह करब?’
हां, हं, एहिना...... की एहिना हमरा संग होइत रहत? हम नोराएल ऑखिए सासु दिस तकलहुँ ओ गुम्म भेल माटिक मूरूत जकाँ बैसल छलीह। शून्य, प्रतिक्रिया विहीन गोर चिक्कन चुनमुन..... नाक मे हीरा क लौंग चमकैत छलैन्ह। माथ पर लाल बिन्दी मांग मे सिन्दुर। सुहागिन.....पत्नी......जायज संतान! छीः औरत लेल ई समाज केहन निर्मम छै? आ एहि समाजक निर्माण करऽ बला पुरूष केहन कायर?
सत्ते नरेन्द्र संवेदन शून्य पुरूष अछि। ओ मात्रा टका, नीक भोजन आ सेक्स जनै’छ। हमरा अपना चारूभर सभटा ओझराएल सन लगैत छल।...... गाल पर थापड़, सासुके चुप चाप तकैत रहब, पापाक उठि कऽ बाहर जायब आ सबसॅ वेशी अखरैत छल अपन कर्पूर जकां विद्रोह मे ध्ध्कब आ तुरत नोर बहाकऽ शान्त भऽ जायब। अपन अइ प्रवृति कें हम कखनहुँ दया, कखनहुँ उपेक्षा आ कखनहुँ किछ आर विशेषण दैत छलहुँ । अपन अइ खंडित व्यक्तित्वक परिसीमा सॅ परिचित छलहुँ। नरेन्द्र के छोड़ि नहिसकैत छी। कारण-सुरक्षाक भाव? व्यवस्थाक स्वीकृति? अपने सॅ प्रश्न पूछैत छलहुँ-‘सच,सच कहू प्रिया! अई घुप्प अन्हार गुपफा सॅ कहिया बाहर निकलब? एकटा मन कहैत छल सब चुपचाप रहैत रहू। मुदा कतेक दिन की सब सहैत रहब-गारि-बात, मारिपीट आ अन्तहीन शोषण क समर्थन करैत घरक लोक के उपदेीश सुनैत रहू?’
किछ नहिपफुराएल तऽ आलमारी खोलि अपन दू-चारि टा साड़ी लेलहुँ आ पर्स मे एक हजार टका पैर मे चप्पल पहिर सीढ़ी सॅ उतरलहुँ। हमर मन हमरे पर हँसैत छल-वाह! मिसेज प्रिया अग्रवाल, इ कोन पिफल्मक दृश्य छैं?’ ‘हाथ दहिना गाल पर अनायास गेल अहिठाम थापड़ मारने छल नरेन्द्र।
तारा सिंह के कहलिए गाड़ी गेट पर आनऽ।
‘मां के घर जयबाक अछि।’
नैहर पहुँचलहुँ। मां लग जा कऽ चुपचाप गद्दा, पर बैसलहुँ। मां कुशल-क्षेम पूछलैन्ह । भाभी पूछलैन्ह ‘की लेब चाह की शर्बत?’
‘हम, हम..... एतऽ रहऽ आयल छी।’ बजैत-बजैत स्वर खड़खड़ा गेल। हं तऽ रह ने। नैहर मे लोक रहैत नहिछै। हम तऽ कतेक बेर कहलिऔं किछ दिन एतऽ रहऽ।’
नहि, मां! हम आब ओत नहिजयबैऽ। हम नरेन्द्र सॅ तलाक लेबऽ चाहैत छी।’
‘की बक-बक कऽ रहल छेँ?’
मां जी, बुझाइत अछि प्रिया जी कें नरेन्द्र बाबू सॅ झगड़ा भेलैन्ह अछि। आपस मे ककरा झगड़ा नहिहोइत छै। सब ठीक भऽ जेतै। अहाँ चिन्ता नहिकरू।’ भाभी बजने छलीह।
‘भाभी, हम सत्ते सीरियस छी। अहाँ मां के समझा दिऔ ............. हमरा ओइ नरक मे कियेक पठौलैन्ह?
‘हमरा ओ की बुझौतीह आ तू की कहबें? तोहर केहन स्वभाव छौ से हम नहिजनैत छिऔ। ब्याहक बाद तऽ आर बिगड़िए गेलौ बोली-वाणी।’
अच्छा, प्रिया जी एखन अहाँ चलू हमरा रूम मे आराम करू पफेर गप्प-सप्प् हेतै। हं एकटा बात कहैत छ जे आब अहाँ कें मुन्नाक ध्यान मे राखिकऽ किछ बात-व्यवहार करऽ चाही। दस वर्षक भऽ गेल, दस वर्षक बाद पुतौहु घर आयत।’
प्रिया! तू जनम लेने तहिए सॅ हमरा दुःख दैत रहलें। हमरा आर बेटा-पुतौहु अछि मुदा ककरो एहन कड़ा स्वभाव नहिछै। सरोज डाक्टरद छै। मुदा कहियो कमल बाबू कें शिकायतक मौका नहिदैत छैन्ह। सुन-हम अइ घर सॅ विदा कऽ देलिऔ आब तोहर घर छौ ओतऽ। एखन हिं तोहर सासुक पफोन आयल छलौ। बेचारी कनैत-कनैत कहलनि।
‘समध्नि! आब हमर इज्श्त अहींक हाथ मे अछि। अहाँ जनैते छिऐ-‘नरेन्द्रक स्वभाव क्रोध्ी छै मुदा प्रियो चुप्प नहिरहैत छथि।’
‘ओह! तऽ एतबे काल मे ओ अहाँ कं पफोनोकऽ देलैन्ह?’
‘तऽ बेचारी कोन अघलाह कयलनि बेचारी गाय छथि आनठाम कतहु ब्याह होइतौ तऽ पता चलितौ।’
‘प्रिया छोड़ू इसभ बात। मियाँ-बीबी मे झगड़ा होइते रहैत छै। अहाँक भैया क बोली कड़ा नहिछैन्ह?’
हम उठिकऽ भाभी क संग हुनका रूम मे गेलहुँ। जाइत-जाइत सुनलहुँ मां बजैत छलीह-‘प्रियाके समझा-बुझा कऽ पठा दिऔ काल्हि अहाँ सभक बेटीक ब्याह कोना हेत? कहै छै तलाक लऽ लेब एहनो बात क्यो बजैंछ कुल मयार्दा किछ नहिबुझैत छै।
हम भाभीक बिछावन पर बैसते छलहुँकी नरेन्द्र के पफोन आयल-‘हम आबि रहल छी।’ दूनू भाभी मंद-मंद मुसुका रहल छलीह। छोटकी भाभी झट रसोई घर गेलीह। नरेन्द्र अयलाह। हमरा देखते ‘अपन कान पकड़ैत छी....उठठू चलू। हम मंत्रा-मुग्ध् भेल नरेन्द्र संग विदा भेलहुँ।’
घर अयलहुँ। सासु सोपफा पर बैसल छलीह संजु कोरा मे बैसल-छ लैन्ह। संजु के देख कऽ हमरा करेज पफाटि गेल बुक्का पफाड़ि कनलहुँ। हम एखन पफेर अपनाके डरल सहमल, व्यवस्थाक क सुरक्षा तकैत नीरीह लड़की जकां देखलहुँ।
आब हमरा अपन निर्णय बचपना बुझाइत छल। पलंग पर पड़ल छलहुँ ऑखि सॅ नोर टघरैत छल। नरेन्द्र आबि कऽ भरि पॉज छऽ नोर पोछैत बजलाह-‘प्रिया हम तऽ क्रो(ी छिहे अहूँ के बजैत काल होश नहिरहैत अछि जे मन मे होइए बाजि दैत छी।’ अपना दिस घुमबैत बजलाह हे, हमरा ऑखि मे देखिऔ हम अहाँके कतेक मानैत छी। अहाँ केँ हमर शपथ पफेर कहियो एहन डेग नहिउठायब। हमर नोर देख ओ करेज सॅ सटा लेलैन्ह एना बताहि जकाँ कियेक कनैत छी। मारू अहूॅ हमरा थापड़ मारू। पफेर हमरा चूमऽ लगलाह-हम नहिजानि कोना सम्पूर्ण समर्पण-घबरा कऽ केवाड़ दिस तकलहुँ त हँसैत बजलाह-घबराउ जुनि केवाड़ बन्द छै।’
ओइ दिन पापा कहने छलाह-‘बेटी! प्रिया अहाँ पढ़ल-लिखल छी।’
‘नरेन्द्रो तऽ पढ़ल-लिखल छथि पापा।’ डिग्री सॅ की होइत छै जकर जेहन मानस भूमि तकर तेहन सोच। अहाँ संवेदनशील छी। तैं हम अहाँ कें कहि रहल छी। हमरा लेल अहॉ अपन जीवन के नरक नहिबनाउ। अहॉक दुगर्ति हमरा नहिबर्दाश्त हेत। अपन अपराध्क सजा हम अपने भोगब। हम जनैत छी नरेन्द्र हमरा कहियो मापफ नहिकरत! कनि रूकि कऽ पफेर बजलाह इ हमर त्रिकोण अछि, अइ मे अहॉ नहिओझराउ। आ संजुके ओतऽ नहिजाए दिऔ।’
हमरा मोन मे कतेको प्रश्न घुड़िआइत छल-बहुत किछ पापा के कहबाक छल बहुत प्रश्न क उत्तर सुनाबक छल।
बेर-बेर मन मे होइत छल पापा सॅ पूछिऐन्ह की छोटी मांक प्रति हुनकर कोनो दायित्व नहिछैन्ह? हिनका बाद छोटी मांक देखरेख के करतैन्ह? नीना हिनकर बेटी नहिछैन्ह.......ओ कतेक दिन ध्रि नजायज संतानक संताप सहैत रहतीह........?’ मुदा हम किछ नहिपूछलिऐन्ह । पापा उठि कऽ चलि गेलाह। हुनकर झुकल कान्ह जेना आओर झुकि गेलैन्ह।
ध्ीरे-ध्ीरे दिन ढ़रल। गाछ बिरीछ केर नमरल छॉही अपन बेचैनी हवा मे मिझरा रहल छल। वातावरण मे नीरस शुष्क पारदर्शित ऊबाऊ लगैत छल। हम स्वयं सँ दूर अपन अस्तित्वक निषेध्क तत्त्वक आगाँ नमस्तक छलहुँ।
निन्न टूटल। देखल प्रात प्रभा स्नात, चिडैँ़ चुनमुनिक चुं-चु, डाइनिंग हाल मे बजैत सिम्पफनीक मध्ुर स्वर संग नील आकाशक राग-रागिनी सुनलहुँ।
चाहक चुसकि लैत सोचैत छलहुँ की करू? मोन नहिपड़ल आइ कोन तारीख छैक। एतऽ अयला मात्रा सात दिन भेल अछि मुदा बुझाइत अछि जेना महीनों सॅ एतऽ रहि रहल छी। समुद्रक लहरि आ दूर सॅ अबैत लाल मोटर बोट केर एकटा अद्भूत आनन्द कें महसूस करैत छी। हवा मे सुगंध् छै जे श्वास-श्वास कें सुवासित कऽ रहल अछि। हमर अपन जिनगी? जिनगी मे गर्म चटाðनक ऊष्मा अछि जे समुद्रक नमकीन लहरि के चुमि-चुमि ताजगी दऽ रहल अछि। अपना कें सम्बोध्ति कऽ मन बजै’छ-प्रिया वर्तमान के भोगब सीखू समय अयला पर इएह स्वतः सृजनक कृति क रूम पे उभरत। वर्तमानक एहि वैभव के छोड़ब बु(िमानी नहि।
हमर एकटा अतीत अछि जे वर्तमानक संग घिसियाइत रहैत अछि। संजु वला घटनाक साल भरि बाद पापा क देहान्त भेलैन्ह। हमरा होइत क्यो जा कऽ छोटी मां के लऽ अबितैन्ह। पापाक अत्तिमबेर दर्शन भऽ जेतैन्ह छल। मुदा नहिप्रतिष्ठित अग्रवाल हाउस मे ओ कदापि नहिआबि सकैत छथि-नरेन्द्र बाजल छलाह। निष्ठुर, संवेदनहीन आर नहिजानि की सभ मोने-मोन हम बाजल छलहुँ। पफेर साहस कऽ नहु-नहु सासु के कहलिएन्ह-ओ आर जोर सॅ कानऽ लगलीह। पीसी सान्त्वना देत छलथिन ‘भाभी, अपना कें सम्हारू। हिम्मत सॅ काज लिअ..... अहॉ तऽ सब दिन बर्दाश्त करैत रहलहुँ अछि।’ हमरा ऑखिक सोझा छोटी मां चेहरा बेर-बेर अबैत छल हुनकाऽ तऽ क्यो दू टा बोल भरोस देबहु बला नहिछैन्ह के ककरा बर्दाश्त कएल से के कहि सकै’छ।
हं, बाबूघाट पर बहुत दूर एकटा औरत के नहाइत देखलिए। अरे ..... इ तऽ छोटी मां.... एसगरे.....चूड़ी पफोड़ैत...... सिन्दुर मेटाएल एकदम एसगर......पफेर हुनका जाइत देखलिऐन्ह! मोन पड़ैत अछि ओ दृश्य तऽ एखनहु ऑखि नोरा जाइत अछि! हमरा सासु के द-दस टा औरत आगाज-पाछाँ छलैन्ह। मुदा हम ककरा दोष देबै? व्यक्ति के? समाज के? की परम्परा के? की छोटी मां स्वयं अइ सभक जिम्मेदार नहिछलीह हरदम निष्क्रिय मौन छलीह। हुनके खून छैन्ह नीना जे एलान करै’छ सुख नहिअछि तऽ अर्जित करब।’
पापाक गेलाक बाद घर मे चुप्पी पसरल रहैत छल आ नरेन्द्र आर पावर पफुल भऽ गेलाह। पहिने कनिको लाज-धख तऽ छलैन्ह पापाक। आब तऽ ओ स्वयं सम्पूर्ण परिवारक कर्ता-र्ध्ता छथि। विवाहक मात्रा पांच वर्ष बीतल छल आ हमर सभक आपसी सम्बंध् क्षत-विक्षत होमऽ लागल छल। कनि-मनि खरोंच तऽ बहुत पहिने लागल छल....सुहाबराति...... वा हनीमून के समय ऊँ हूँ संभवतः संजुक भेलाक बाद। नीक जकां मोन नहिपड़ि रहल सब दिन तऽ बक झक होइते रहैत छल दिनो-दिन दू हृदय मध्य दूरी बढ़िते रहल। शायद दूनूक भिन्नविचार के कारण। दूनू गोटेक स्वभाव एकदम भिन्न छल। एक दोसर के सहन करब कठिन छल। नरेन्द्र के संग हम पहिलबेर अमेरिका गेल छलहुँ त पन्द्रह दिन संग रहब कठिन भऽ गेल छल। न्यूयार्क मे हमर इच्छा छल आर्ट गैलरी देखबाक, राति मे ब्राडवे मे कोनो नाटक..... मिú नरेन्द्र अग्रवाल..........? भोर सॅ शापिंग के चक्कर मे हम परेशान भऽ जाइत छलहुँ कहितो छलिऐ। नरेन्द्र एतेक वस्तुक कोन प्रयोजन ?......’ ‘अहॉके कोनो वस्तु नहिचाही ठीक छै। अहाँ जोगिन बनल रहू। मुदा हमरा किछ किनऽ काल टोकू जुनि।’ शापिंग, शापिंग, शापिंग। भोर सँ सांझि घरि। शर्ट, पैंट्स, स्वेटर्स, जैकेट, टाई, परफ्रयूम, साबुन, पेस्ट की कहॉ एक दू नहिसब दर्जनक हिसाब सॅ। आ राति मे भोजन लेल भारतीय वा चाइनीज रेस्टोरेंटक खोज। भोजनक बाद ब्लू पिफल्म देखनाई! सेक्स के पफूहड़ प्रदार्शन!! हम अकछि कऽ बजैत छलहुँ नरेन्द्र एक बेर देखलहुँ दू बेर देखलहुँ की रोज-रोज.......।’
अरे, की बजैत छी एहन थ्रील देखबालेल पफेर कहिया भेंटत? आ ओतऽ सॅ घुरला पर होटल मे वएह वहशी उत्तेजना हमर एक-एक अंग निस्पंद भऽ जाइत छल। महिलाक शरीरक पफूहड़ प्रदर्शन सॅ कोनो महिला कोना उत्तेजित भऽ सकै’छ? शायद ककरो होइत होइ मुदा हमरा तऽ ओ देखि घृणा भेल। सत्ते पश्चिमी भोगवादी समाज मे औरत मात्रा वस्तु बनि गेल छैक। ओ लाइव शो देखि कऽ हमरा मोन पड़ल छल सर्कस। ओना आबतऽ सबठां खुलापन बढ़ले जाइत छैक अपन-अपन रूचि। खैर हम जखन वाश्ंिाटन जाए लागलहुँ तऽ हमर शर्त छल जे हम ऐतिहासिक स्थानके देखब।
‘नरेन्द्र! अहॉ हमरा ईष्ट विलेजो नहिदेखऽ देलहुँ।’
ध्ुर, की देखितहुँ। आ इ अमेरिकन सबठां लाइन लगाकऽ ठाढ़ होइछ। हमरा सॅ लाइन मे ठाढ़ भेनाई नहिपार लागत।
तऽ सबसे पहिने हम सब वाशिंगटन के म्यूजियम मे गेलहुँ। स्पेश क्ररफ्रटक विभाग मे एकटा विशाल पर्दा पर पूरा सौर मंडल जगमगाइत छलै आ एकटा छोट सन चमकैत बिन्दु छलै जत लिखल छलै-‘पृथ्वी।’ हमरा एकटा विचित्रा सन वैश्विक अनुभूति भेल। हम बाजि उठलहुँ एहि असंख्य ग्रह-नक्षत्रा मे एकटा छोट छीन पृथ्वी, ताहि पृथ्वी पर असंख्य मनुष मे एकटा हम तखन एतेक अहंकार! कनि सोचिऔ नरेन्द्र! बिना मतलब के कतेक अहंकार डेबने रहैत छी। हमर ‘हम’ की अछि? किछ नहिमहा सागर मे जेना एक बुदा पानि मुदा नरेन्द्र छलाह कहां ओत? हम बेचैन भऽ चारू भर तकलहुँ कतऽ गेलाह। तऽ देखलिऐन्ह कापफी क काउंटर पर ठाढ़ भऽ पोटाटो चिप्स खाइत छलाह। मन झूर झमान भऽ गेल। हम दूनू गोटे दू भिन्न दिशा मे सोचऽ वला मनुष छी। कखनहुँ संवाद संभव नहि। एकर बाद अइ यात्रा क्रम मे हम कतहु जयबाक जिद्दनहिकएलहुँ। अपना मन के बुझालेलहुँजे भऽ सकैंछ हम पहिलबेर आयल छी तँय सभटा एतेक आकर्षित कऽ रहल अछि। नरेन्द्र तऽ कतेक बेर आयल छथि दोसर बात जे ओ बिजनेस मैनेजमेंटक कोर्स व्हार्टन स्कूल आपफ मैनेजमेंटस सेॅ कयने छथि। आ अपन-अपन रूचिक बात छै। मुदा पढ़ल-लिखल व्यक्तिक रूचिकारिष्कृत परिमार्जित नहिभऽ सकै’छ? भऽ सकै’छ मुदा मिस्टर अग्रवाल के नहिभऽ सकै’छ। कखनौ मन कहैत छल-की हम हुनक रूचि नहिबदलि सकैत छी प्रयास करऽ चाही। कखनौ मन कहैत छल-सब प्रयास हमहीं करबै की हुनकर जिम्मेवारी नहिछैन्ह किछ?
जिम्मेवारी दूनू गोटेक अछि। गलत बात व्यवहार लेल दूनू गोटे सहअपराधी होएब। हं, ई हमर दोष अछि जे हम गुलामी स्वीकारि ..... गुलाम बनल रहबाक अपन नियति मानि ली।
कोनो एकटा घटना होमए तऽ ओकर विश्लेषण कयल जाए। वैवाहिक जीवनक कोनो एकटा पक्ष कमजोर रहैत तऽ ओकरा पर ध्यान नहिदितिऐ मुदा जखन बात सम्पूर्ण अस्तित्वक होइ तऽ क्यो कोना अनठा देत?
महिलाक आदर करब तऽ नरेन्द्र सीखबे नहिकयलनि। घर मे पीसी अबैत छलथिन या सर कुटुम्बक भाभी बहिन ककरो टेउरैत नहिछलाह प्रणाम-पाति वा कुशल क्षेम किछ नहिबस अबैत जाइत काल ‘हाय-हेलो।’ आ जाबत पीसी किछ कहिथीन ताबत ओ आगाँ बढ़ि जाइत छलाह। एतेक धरि जे अपना मां के आदर पूर्वक कखनौ गप्प-सप्प करैत कहां देखैत छिऐन्ह ..... मां अहॉ किछ नहिबूझैत छिऐ पफूहड़ जकां बजैत छी.... अहाँ के कोनो तौर तरीका नहिबूझऽ अबैत अछि।... ओह अहॉ के किछ नहिबनबऽ अबैत अछि वएह वदामक हलुआ की मालपुआ धुर.....जेमन मे अबैत छैन्ह बकऽ लगैत छथि। मां भोरे सॅ लागल छलथिन छेना पफाड़ि कऽ मालपुआ बनौने छलीह बेटाक बात सुनि अपरतीप सन भेल हमरा कहलनि पहिने इएह मालपुआ क पफरमाइश करैत छल आब नीके नहिलगैत छै अहीं मन पसंद वस्तु बना दिऔ।’
मम्मी ‘अहॉक बनाएल एतेक स्वादिष्ट नास्ता नहिनीक लगैत छैन्ह तऽ हम की बना कऽ देबैन्ह जएता कल्ब मे, ओतहि खयता। हमरा सॅ नहिहेतै।’
नहिहेत? बस श्रृंगार-पटार करू रंडी जकॉ आ ऑपिफस जाउ। कहैत कॉचक मेज पर जोर सॅ चम्मच पटकि उठिकऽ ठाढ़ भऽ गेल छलाह।
‘रे’ इ कोन बाजऽ के तरीका छै’? मां कहने छलथिन। हम बेमन सॅ पुआ टुंगैत रहलहुँ। दस वर्षक संजु एक बेर हमरा एकबेर पापा के टुकुर-टुकुर देखैत छल। पापा के गेलाक बाद बाजल-‘दादी, बहुत नीक बनल अछि मालपुआ खूब टेस्टी। पापाक मूड खराब छलैन्ह तैं नीक नहिलगलैन्ह।’
बेचारा सँजु-मां-पापा क झगड़ा मे अनेरो पिसाइत छल। सम्बन्ध्क इतिहास होइत छैक मुदा घटना जे घटित होइत छैक तकर कोनो तारीख दर्ज नहिहोइत छै। कहिया, कखन कोन घटना हमरा दूनू गोटे के पफरक-पफरक दिशा मे धकेलऽ लागल मोन नहिपड़ैत अछि। बस एतवे मोन पड़ैत अछि हथौड़ी सॅ क्यो ध्माक-ध्माक हमरा अस्तित्व के थुड़ि रहल छल। घुटन दिनो-दिन बढ़िते रहल। तखन हम किताब मे मन लगयबाक कोशिश करऽ लगलहुँ। अहू लेल नरेन्द्र कहने छलाह...... ‘इन्टेलेक्चुअल शो ऑपफ।’ जम्हर देखू किताबे-किताब। बेकार पाइ बर्बाद करैत छी नेशनल लाइब्रेरी सॅ आनि के पढू़
‘किताब नहिपढ़ूतऽ की करूॅ? कोना समय बिताऊ?’ ‘आर महिला कोना समय बीतबै छै?’
कहबाक मोन भेल मुदा चुप्पे रहलहुँ। हिनकर मित्रा आ ओकर पत्नी ताशपार्टी छै। रंग-बिरंगक नास्ताक प्लेट, शिवासक बोतल, पफूहड़ मजाक बचकानी चुटकुला मात्रा सेक्स पर चर्चा। ओइ बैसक मे हम सामिल नहिभऽ पबैत छलहुँ।
नरेन्द्र अहू पर व्यंग्य करैत छलाह-‘की ओकर सभक पत्नी पढ़ल-लिखल नहिछै ओ सभ तऽ बैसल रहैत छै। अहींक मानसिक स्तर उच््य अछि?’
‘नरेन्द्र हम से कहाँ कहैत छी? छुटीðक दिन दोसरो ढंग सँ बीता सकैत छी कतहु घूम जाइ वा घरे मे बैस कऽ संगीत सुनि......। ’
‘प्रिया, हम जे पिफल्म अनैत छी से हो अहाँ के नीक नहिलगैत अछि।’
नरेन्द्र अहाँ कतेक दिन धरि ब्लू पिफल्म देखैत रहब ? आब त संजुओ पैद्य भऽ रहल अछि।’
संजुक अलग रूम छै ओइ रूम मे अलग विडीओ छै।’ हम जिनगी भरि देखैत रहब ब्लू पिफल्म।’ संजु ओ पिफल्म अइठाम सॅ उठा कऽ लऽ जेतै तऽ?’
‘अहॉ करैत रहू रखवारी।’
सत्ते हम उबिया गेल छलहुँ ओइ वातावरण मे ? बस दिन भरि किताब नेने बैसल रहैत छलहुँ पढ़ऽ सॅ बेशी सोचैते रहैत छलहुँ। सासु कहैतो छलीह-‘प्रिया, केहन मुँह-कान बनौने रहैत छी। एखन नहिसजब-ध्जब तऽ की बुढ़ारी मे सजब?

contd.....

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