१.शिव कुमार झा "टिल्लू"- समीक्षा अम्बरा- (राजदेव मण्डल); २. डा॰ धनाकर ठाकुर- प्रज्वलित प्रज्ञा (पूर्व राष्ट्रपति डा॰ कलामक पोथी Ignited Minds क डा॰ नित्यानन्द लाल दास द्वारा मैथिली अनुवाद) क समीक्षा
१
शिव कुमार झा "टिल्लू"
समीक्षा
अम्बरा
(राजदेव मण्डल)
बक हॅसैत अछि कुटिल हॅसी,
कलपै छथि लुब्ध मराल।
जे कॅपैत छल डरसँ थरथर,
आब ने तकरो लाज।
पड़ल छथि बंधनमे मृगराज।।
प्रस्तुत पद्यांश कवि सरोज भुवनेश्वर सिंहक कवितासँ लेल गेल अछि। ऐ कवितामे समाज विस्मयकारी अवस्थासँ कवि क्षुब्ध छथि। ऐमे देखाएल युगक विषमताक मार्मिक उद्वोधनसँ जौं अपन भाषा ओ साहित्य दु:दशाक तुलना कएल जाए तँ कोनो अतिशयोक्ति नै। किछु महान साहित्यकार विस्मृत रहि कालक गालमे समा गेलाह। लोक कहै छथि कवि कहियो नै मरैछ ओ तँ अपन रचनामे जीवंत रहै छथि मुदा जखन रचने मरि गेल तँ कवि कोना जीबथि। जे भेल से भ्ोल मुदा हमर दृष्टिकोण जे आबहु चिन्तन कएल जाए। एखनो किछु एहेन रचनाकार उदीयमान छथि वा उगवाक प्रयास कऽ रहल छथि जनिक लेखनीकेँ प्रोत्साहित नहियों तँ कमसँ कम किछु चर्च कएल जाए तँ ओहि रचनाकारक संग-संग भाषा-साहित्यकेँ अमरत्व अवश्य भेटत।
एकटा परिपक्व मुदा साहित्यक भाषामे नवतुिरया कवि मैथिलीक पल्लवकेँ वसन्तक वातसँ हिलएवाक अपना भरि प्रयास कऽ रहल छथि श्री राजदेव मण्डल। हिनक पहिल कविता संग्रह- अम्बरा, श्रुति प्रकाशनक सौजन्यसँ पाठकलोकनि लग परसल गेल अछि। राजदेवजी परिपक्व ऐ दुआरे किएक तँ ओ नव रचनाकार नै छथि मैथिलीकेँ के कहए राजभाषा हिन्दीमे हिनक तीन गोट उपन्यास- पिंजरे के पंछी, दरका हुआ दरपन आ जिन्दगी और नाव छद्म नाओं राजदेव प्रियंकर'क नामें प्रकाशित अछि। बाहर सम्मान अपन घर अपमानसँ नै वॉिच सकलाह तँए कतेक बर्ख ठकाइते रहलाह। जखन आत्मीय लोक मैथिली अकादमीक अध्यक्ष बनाओल गेलाह तँ राजदेव जीकेँ आश जगलनि, जे समाजक कात लागल वर्गक लोक अकादमीमे अएलनि, रचना प्रकाशित होएत वा किछु मदति भेटत। अकादमीक अध्यक्षक संग-संग अकादमीक पत्रिकाक संपादक मण्डलमे सेहो अपनलोक देख दोहरि आश नेने येनकेन प्रकारेण संपर्क स्थापित कएलनि। करीब तीसटासँ उपरे कविता देबो केलखिन किन्तु मृग मरीचिका मात्र देखबैत रहलखिन। परिणाम निराशावादी रहल।
विदेह' पत्रिकाक पदार्पणक पश्चात श्री उमेश मण्डल जीक माध्यमसँ संपादक श्री गजेन्द्र ठाकुर जी संग जुड़ि रचना पठाबए लगलाह। श्रुति प्रकाशनक अंतिम मुहर लगितहिं अम्बरा समान्य अर्थमे तँ छॉह मुदा नवल-धवल इजोत नेने पाठक धरि पहुँच गेल अछि।
राजदेव जीकेँ नवतुरिया ऐ दुआरे कहल जाए किएक तँ पूर्वमे लिखल गेल कविता एखन धरि पाठकक लोचनसँ दूर छल। ऐ संग्रहमे 75 गोट कविता देल गेल अछि। आह'सँ श्री गणेश आ ऑखिक प्रतीक्षासँ इतिश्री। एकर तात्पर्य जे रसहीन जीवनसँ आकुल मनुक्ख कुपित अछि मुदा अंतिम स्वप्न वा कल्प आशक संग मूर्त्त रूपमे क्षणहिंमे परिवर्तित भऽ जाइछ। बाह्य रूपमे शीतलता अर्थात शांति देख'मे अबैत अछि परंच भीतरमे धाह.....। कोन प्रकारक धाह? एकरा अश्रु उच्छ्वास, आकुलता, संत्राह वा प्राप्तिक आश नै पूर्ण होएबाक क्रममे उद्विग्नताक नाआंे देल जाए। जै व्यक्तिक जीवनक चौमुख आह वा क्षोभसँ घेरल हुअए ओ जौं आकाशकेँ छूवाक कल्पना करए तँ ओकरा विक्षिप्त नै तँ कमसँ कम अतिविश्वासी अवश्य कहल जा सकैत छैक। कुरूक्षेत्रक युद्ध समाप्तिक पश्चात् गांधारीक मनोदश जकाँ अकाश स्पर्शक कल्पनामे अकाश तँ शून्य दृष्टिगोचर होइछ मुदा पाएरक नीचाँ असंख्य लहास आ बॉचल बन्धु बांधब केर कंठ दोहन कविक मोनकेँ अशांत कऽ देलकनि।
भौतिकवादी युगक हीराक चमकिमे अपन साहसक रजत नेने नव मार्गकेँ ताकि रहल छथि-
बिनु लेने आह
कि भेटि सकत
वाह-वाह
परंच,
नहि छी लापरवाह
खोजब नवका राह।
'खोजव' शब्दक स्थानपर ताकब वा हेरब लिख रहितए तँ आर नीक लगितए। संग-संग छंद लेपनक क्रममे कतौ-कतौ अपन भावकेँ कवि व्यक्त नहि कऽ सकलाह।
ज्ञानक झंडा' कवितामे ज्ञानक परिभाषा विज्ञानक अन्वेषणक रूपेँ कएल गेल। विज्ञानक विकास-क्रममे अन्ध विश्वास शनै: शनै समाप्त भऽ रहल अछि-
आब नहि चलत
अंध विश्वासक हथकंडा
फहरा रहल विज्ञानक झंडा....।
प्रयोग धर्मितामे ई गप्प तँ सत्य मुदा वास्तविकताक अवलोकन कएलापर स्थिति भिन्न होइ छैक। ऐ युगमे सेहो पितृ कर्म आ देवकर्ममे विश्वास जागले अछि जखन कि विज्ञानक शब्दकोषमे स्वर्ग-नर्कक परिभाषा असंभव। लोक एखनो श्राद्ध करै छथि, जीवनकालमे भरि पेट अन्न नै मुदा मुइलाक पश्चात सोहल अचार। मििथलामे जमीन बेच कऽ पितृ श्राद्ध कएल जाइत अछि। साधनविहिन मानव अपन जीवित संतानक प्रति अपन दायित्वक पालन कोना करथि, समाजकेँ एकर कोनो परवाहि नै ओ तँ मात्र पितृधर्म पालनक उपदेश दै छथि। तँए 'ज्ञानक झंडा'मे कविकेँ अनुकरणीय बिम्बक चित्रण करबाक चाही छल जे नै कएलनि।
राजदेवजी शिल्पी नै छथि, किएक तँ कोनो शिल्पक कृत्रिम बिम्ब नै तैयार कएलनि, स्वाभाविक अछि जै व्यक्तिकेँ आरसी, यात्री, चन्द्रभानु, बहेड़ आ बूच जकाँ अपन गृहस्थ धर्मक पालन हेतु अभाव आ संत्रासक अनुभव नित्य-प्रति होइत हुअए ओइ व्यक्तिकेँ कल्पनाशीलताक शिल्प बिम्बित करबाक लेल समए कखन भेटए? ओ तँ जौं अपन जीवन दशासँ समाजक तुलना कर' लागए तँ सदिखन बिम्बे-बिम्ब।
झाॅपल अस्तित्व'क शीर्षक कविता हृदेकेँ स्पर्श करैत अछि-
भीतरमे ओ लगा रहल अछि फानी,
सुनि रहल छी बक्रवाणी
प्राप्त करबाक लेल उत्कर्ष
करऽ पड़त आब संघर्ष....।।
विरोध कोनो जीव ताधरि कऽ सकैत अछि जाधरि ओकरामे संघर्ष करबाक सार्मथ्य जीवित हुअए। पराजयक बेर-बेर िहलकोर लगलासँ आत्म समर्पणक संभावना प्रबल भऽ जाइछ। कखनो कखनो आसक्तिक कारणेँ लोक सेहो आत्मसमर्पण कऽ दै छथि। जेना कुरूक्षेत्रमे भीष्मपितामह अर्जुनकेँ चाहितथि तँ धाराशायी कऽ सकैत छलथि मुदा ओ तँ अर्जुनक विजय हृदेसँ चाहै छलाह।
रहब अहींक सभक संग' कविता आसक्ति, मृगतृष्णा वा मजबूरी कोन रूपक समझौता थिक एकर विवेचन संभव नै, ई तँ कविक जीवनक अनुभवक सार अछि, ओ स्पष्ट रूपेँ बॉटए चाहै छथि-
नहि करब आब नियम भंग
नहि करब अहाँ सभकेँ तंग
लिअ अपन राज,
नहि चाही हमरा ताज....।।
एकटा अर्न्तमुखी सोझ विचारक लोक जखन स्वयंसँ लड़ैत-लड़ैत थाकि जाइत अछि तखन एहने वेदना कृत्रिम हंसीक संग-संग निकसैत। फेरो अपन परिवारिक धर्म मोन पड़िते नदीक माछ बनि जाइछ। जीव जखन प्राणकेँ छोड़ि दैछ वा प्राण जीवकेँ छोड़ि दैछ तखन लहासक रूप.....ओहि प्रकारें कवि नदीक माछकेँ जलदुनियासँ बाहर निकलबाक प्रयास करै छथि। परिणाम हुनके मुखसँ सुनल जाए-
सुनने छल ओ अपनहि कान
कहने रहथिन बूढ़-पुरान
कहियो नहि जाइहेँ ओहि दुनिया
ओहिठाम भरल अछि खुनियाँ।''
सभ किछु रहितौं अर्थाभाव एखन समाजक सभसँ पैघ अभिशाप बनि गेल छथि समाजक मध्य जत' इमानदरी आन्हर जकाँ गांधारी बनि ठाढ़ छथि, तँए उद्विग्न भऽ जलदुनियासँ बाहर जएबाक प्रयास कएलनि परंच क्षणहिंमे अपन मातृभूमिक सिनेहक कड़ीमे फँसि फेर पानिमे कूदि गेलाह-
मुदा ओ अछि अभागल
जलबून्द कड़ी अछि लागल
विफल भेल छल बलमे
पुन: खसल ओहि नदीक जलमे
जखन लोक अपनाकेँ पूर्णत: एकसरि मानि लैत अछि ओहि कालक मनोदशाक अभिव्यक्तिकेँ करए?
नहि किओ दऽ रहल अछि साथ,
पहाड़ीपर पटकब आब माथ
हूबा देबैक हम खूनसँ
अपना घामक बूनसँ.....।
ऐ प्रकारक परिस्थितिजन्य पद्यक संग-संग सीमा परक झूला, कांध परक मुरदा, दीप, हित-अहित, प्रयास, ऑफिसक भूत, कठुआएल रूप, सुनगैत चिनगी, अहाँक अगवानीमे, लाल ज्योति, बीखक घैल, पत्रोतर, अन्हारक खेल, नाचक विखाह आदि-आदि विचारमूलक मर्मस्पर्शी पद्य ऐ संग्रहमे संकलित अछि। मुदा अंत धरि नव जीवनक आशमे कविक आँखि मात्र प्रतीक्षा कऽ रहल छन्हि-
मन्द-मन्द सिहकैत बसात
केना रहब अहाँसँ भऽ कात
एको बेर तँ बोलू
आबो आॅखि खोलू
निकलए नेह वा धिक्कार
हमरा दुनू अछि स्वीकार...।।
सम्पूर्ण संग्रहमे अश्रुरोदनक बिम्बित चित्रमे नूतन आयामक संग-संग जीवनक नवल आश धएने कवि 'अम्बरा'सँ मुक्तिपर रहब चाहे चलैत, सूतल, ठार वा बैसल....। अम्बरा अर्थात् छायाकेँ लोक एकाकार तँ नै कऽ सकैत अछि परंच भगाएब सेहो असंभव। तँए दुनू रूपेँ कवि अपन जीवनक अम्बराकेँ स्वीकार कऽ लिअ चाहै छथि। रचनाक िनर्बल पक्ष जे कतौ आकर्षण नै, कतौ शिल्प नै, कतौ बिम्ब नै मुदा सभ छंद आयामक अभावक बादो राजदेवजी अनचोकेमे एहेन 'कविता संग्रह' लिख देलनि जकर तुलना दोसर कविसँ करब प्रासंगिक नै किएक तँ मैथिली भाषाक लेल एकटा नव प्रकारक प्रयोग ऐमे भेटल।
२
डा॰ धनाकर ठाकुर प्रज्वलित प्रज्ञा (पूर्व राष्ट्रपति डा॰ कलामक पोथी Ignited Minds क डा॰ नित्यानन्द लाल दास द्वारा मैथिली अनुवाद) क समीक्षा
ई ओहि पोथीक अनुवाद अछि जकरा 2002 ई॰ मे पढ़ि देशक राजनेता सोचने हेताह जे कलाम जँ राष्ट्रपति हेताह तँ ओ भारतकेँ विकासक ओहि मिसाइलक ऊँचाइ तक लए जेताह जाहि लेल ओ विख्यात छथि।
ओहि पोथीक अनुवाद 2008 ई॰ मे पढ़ि कय अनुवादकक अथाह परिश्रमक संग-संग मूल पोथीक भावना पर सेहो भाव उठब स्वाभाविक अछि कारण जाहि 2020 ई॰क विकसित राष्ट्रक सपनाक कलाम एहि पोथीक कथ्य बनौलाह ओकर प्रायः आधा समय बीति चुकल अछि आ‘ जकर प्रायः आधा समय ओ स्वयं राष्ट्रपति रहलाह आ‘ जाहिमे आधा समयसँ स्वयं बाजपेयी सन प्रखर राष्ट्रीय व्यक्ति प्रधानमंत्री रहलाह आ‘ आधा समय डा॰ मनमोहन सिंह सन प्रखर अर्थ विषेशज्ञ व्यक्ति प्रधानमंत्री रहलाह।
प्रस्तुत पोथीक दूई आधार छैक राष्ट्रीय भावना आ‘ विकसित अर्थ व्यवस्थाक सपना। भारतकेँ 2020 ई॰ तक जँ चारिम वा पाँचम विकसित अर्थ व्यवस्थाक सपना छैक तऽ आइ ओ कतऽ अछि। लगैत अछि स्वयं राष्ट्रपति बनि कलाम ओ समय बेकार कए लेलथि जे ओ नेना आ‘ युवा सभकेँ पदविहीन रहि उत्साहित केने रहितथि कारण एहि देशमे ऋषिक स्थान राजभवन नहि छैक।
मुदा ताहिसँ कलामक अनुभूतिक मूल्य नहिं घटि जाइत छैन्हि आ‘ वैह प्रस्तुत पोथीक 2008 ई॰ मे अनुवादक औचित्य प्रमाणित करैत अछि।
पोथीक जन्म जाहि झारखंडक बोकारोक एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनासँ होइत अछि ओहि झारखंडक लेल देखल कलामक सपना एखनहुँ सपना अछि कारण राजनेताक चयन आ‘ प्रषिक्षण ओहि आधार पर नहिं होइत छैक जेना अन्तरिक्ष आ‘ रक्षा संधानमे कलामक अनुभव छलैन्हि।,
दुर्घटनाक बाद ओ देखलाह बोकारोमे आगिक नदीक रूपमे बनैत स्टील देखलन्हि। झारखंडमे स्टीलक उपयोगी सामान बनैत तऽ अधिक लाभ एतुक्का लोककँे भेटतैक से दिल्ली उड़ानक मध्य सोचैत रहलाह।
116 पृष्ठक लघु पोथीमे पृष्ठ 96-102 मध्य ओ झारखंडरूपमे ‘एक नब राज्यक निर्माण‘ मे एहि राज्यक मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी द्वारा हिनका संरक्षक, विज्ञान प्रौद्यौगिकी परिषदक बनौला पष्चात एतुक्का प्रचूर वनौषधिक विकासक चर्चा करैत सेगहि क्षुद्र व्यापारिक लाभ लेल दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनकेँ औद्यौगीकरणसँ नष्ट हेबाक शंका करैत छथि।
षिक्षा आ‘ स्वास्थ्य पर केन्द्रित प्रो॰ बसुक नेतृत्वमे पहाड़ी भ्रमणक चर्चा त अछिए आ‘ चिन्मय विद्यालय, बोकारोक चर्चा छात्रसबसँ बातक सविस्तर चर्चा अछि जाहि मध्य हुनक रामेष्वरमसँ आएल फोन पर बात करक बाध्यता जे ओ दुर्घटनामे सुरक्षित छथि पर, ‘जेठ भाई ताजिनगी जेठ बनल रहैत छथि‘ एक सहज टिप्पणी अछि।
बोकारोक सभा भवनमे ओ कहलाह केना बेरीलियम डायफ्राम नहि भेटला पर देशहिंमे गुण अभिवर्द्धन कएलन्हि।
गांधी, आइन्सटीन, अशोक, उमर खलीफा, लिंकन सन पांच सर्वोत्तम मानव के ओतहि दवाइ प्रभावे देखल सपनाक बातसँ प्रारम्भ भेल पोथी सपना, त्रिपुरासँ प्रारम्भ भेल नेना छात्रसभक संग हुनक प्रष्नक उत्तर आ‘ नेताक त्रिकोणमे झूलैत अछि जाहिमे वैज्ञानिक कलाम एक चिन्तकक रूपमे उभरलाह अछि।
कोनो नेनाक प्रष्न पाकिस्तानक शस्त्रास्त्रसँ भारतक ‘शास्त्रास्त्र‘ श्रेष्ठ वा नहिं (पृष्ठ 33) क कलामक जे उत्तर हो प्रूफ अषुद्धि रहितहुँ भारतक ‘शास्त्रास्त्र‘ श्रेष्ठ उत्तर रहैत।
आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्यक काल प्रूफ अषुद्धि भनहिं (पृष्ठ 37 ई॰र्पू॰ नहिं बाद हेबाक छल) हो ई हमर देशक ओ गौरव चित्र उपस्थित करैत अछि जाहि पर विकसित भारतक निर्माण सम्भव अछि। जगदीश चन्द्र बोस, रामण, मेघनाथ साहा, श्रीनिवास रामानुजन, के बाद नब रामानुजनक ताकक कलामक आग्रह सटीक अछि। 1910 सँ 1925क बीच 5-6 एहन अन्तरराष्ट्रीय व्यक्तित्व विविध क्षेत्रमे आबि गेलाह जाहिसँ हमर सभक प्रतिष्ठा बढ़ि गेल।
बादमे कोठारी, भाभा आ साराभाई सन वैज्ञानिक जकर आधारषिला रखलाह ओ सभ फलित भेल धवन आदि द्वारा। परियोजना हमेषा परियोजना नायकसँ पैघ रहैत अछि।(पृष्ठ 45)।
‘हमरो लोकनि ई कए सकैत छी‘ ई कलामक टीम देखौलथि।(पृष्ठ 47) आ‘ रूसक डा॰ योफ्रोमोपक संग ब्रह्मपुत्र आ‘ मास्को पर ‘ब्रह्मोस‘ प्रक्षेपास्त्रक नाम रखलन्हि (पृष्ठ 48) ओना ‘ब्रह्मोल्गा‘ यदि वोल्गा नदीसँ लेल गेल रहैत तऽ अधिक समीचीन होइत जेना बीजू पटनायक कहियो ने केवल उड़ीसासँ स्वयं विमान चला इंडोनेषिया जा राष्ट्रपति सुकार्णोकेँ बेटी हेबापर बधाइ देब गेलाह आ‘ ओहि दिन लागल मेघ कारण मेघावती नामकरणहुँ केने छलाह (पृष्ठ 69) जे बादमे राष्ट्रपतियो भेलीह आ‘ कइएक मामलामे बदनाम।
ओना बीजू पटनायकक भारतक आइसीबीएन क्षमता लेल व्यग्रता देखबैत अछि ओहि कालक नेताक ऊँचाइक।
कुरियनक ‘एन अनफिनिस्ड ड्रीम‘ मे हुनक सुनल ‘लंदनक नालीक पानि जीवाणुसभक दृष्टिएँ मुम्बईक दूधसँ उत्तम अछि‘ (पृष्ठ 48) हूनका देशमे ‘श्वेत क्रांति‘ अनएकेँ प्रेरणा देलकैन्हि। डा॰ सुब्बारावक कैन्सरसँ वचाब पर ‘हँ‘ वा ‘नहिं‘ सँ कलाम प्रेरित भेलाह।
दूरदृष्टि आ‘ मेधाक समागम कलाम जे॰आर॰डी॰ टाटा, विक्रम साराभाई, कुरियन, सतीश धवन आदि वैज्ञानिकमे देखैत छथि मुदा जखन ओ गुजरातक संत स्वामीनारायणक समक्ष षिक्षा ओ स्वास्थ्य,कृषि,सूचना ओ संचार, महत्वपूर्ण प्रौद्यौगिकीक पंचसूत्रीय मिशन भारतकेँ विकसित बनेबाक रखलन्हि तऽ स्वामीजीक छठम ईष्वरमे आस्था ओ आध्यात्मिक आधार पर मनुष्यक विकास जे षास्त्रीय नियम ओ ईष्वरीय निष्ठा पर आधारित हो कारण भारतमे अपरा(भौतिक) आ परा (आध्यात्मिक) दूनू आवष्यक मानल गेल अछि।
कलाम पुण्य आत्मा, पुण्य नेता आ‘ पुण्य अधिकारी छलाह जे ‘तिरूकुरल‘ क भाव असफलताकेँ प्रसन्न भावसँ लेबक अनुसारे राकेटक पहिल असफल प्रक्षेपनसँ निराश नहि भेल छलाह।
हुनका अजमेरमे गरीबनमाज आ‘ पुष्करक समान षांतिक संदेश आ तहिना कांची परमाचार्यक ग्रामीण विकासमे रूचि आ‘ ओतुक्का बगलक पुरान मस्जिदक सामंजस्य प्रभावित केलकैन्हि कहियो हुनक पिता रामेष्वरममे समुद्रमे एक मचानसँ खसल देवमूर्तिकेँ तुरन्त फानि निकालि प्रथम दर्शनक अधिकारी बनल छलाह। कलाम माउन्ट आबूमे ब्रह्माकुमारीसँ शान्तिक पाठ मध्य ‘भारतभूमि सभसँ सुन्दर बनत सुनि‘ मुदित भेलाह आ‘ ओ सत्य साईंक चिकित्सा संस्थान आ‘ चेन्नई लेल जलक व्यवस्थासँ आह्लादित भेलाह।
त्रिशूल, आकाश, नाग, पृथ्वी, अग्नि, ब्रह्मोस, पिनाक, लक्ष्य नामक प्रखेपास्त्र बनबएबला कलाम एक छात्रकेँ उत्तर देलखिक्ष्ह ‘शक्तिए शक्तिक सम्मान करैत अछि नहिं कि शक्तिहीनक। डा अमर्त्य सेनसँ असहमत होइत बजलाह ओ भारतकेँ पष्चिमीय नजरिसँ देखैत छथि।‘ पूर्व एडमिरल रामदासक परमाणु परीक्षणक विरूद्ध राजघाट पर धरनाक बात सुनि बजलाह ओ धरना लेल व्हाइट आउस आ‘ क्रेमलिन पर पहिने प्रदर्षन करथु जे हजारो परमाणु बमक क्षमता रखने छथि।
अनप उपलव्धि पर गर्व, एकत्व, समवेत पराक्रमक योग्यता सँ जँ भस्मीभूत जर्मनी महान भए सकैत अछि तऽ भारत किएक नहिं?
कृषि, श्रम,पूंजी क बाद ज्ञान सामाजिक परिवर्तन आ धनक उत्पादन आई॰ टी॰ , बायोटेक्नालाजी आदि द्वारा होएत।
90 वर्षीय सुब्रह्मण्यममे ओ द्वितीय हरित क्रांतिक सपनासँ आ‘ 80 वर्षीय डा॰ महालिंगम जे 2000 वर्ष पूर्वक द्वितीय संगमक तमिल लिपि पढ़ने छलाहकेँ 5000 वर्ष पूर्वक प्रथम संगमक तमिल लिपि पढ़बाक सपनासँ कलाम अभिभूत भेलाह।
ग्रामीण-नगरीय देषान्तरगमन षुन्य केना हो कलाम चिन्ता लेल आई॰ आई॰ टी॰ चेन्नई क उत्तर इन्दिरेशक ग्राम काया कल्प योजना लगलैन्हि ।
मदुराईमे ओ डा॰ नचियार लग लाइ्रनमे लागि अपन आँखि देखेनाइ पसन्द केलप्हि।
देशमे 20 टा आओर आई॰ आई॰ टी॰ एवे अनेक चिकित्सा संस्थानक ओ जरूरत बुझलाह।
विप्रोक अजीम, इन्फोसिसक नारायणरमूर्र्ति क अलावे रतन टाटाक कारक उपाख्यान संक्षेपमे ओहि सभ गोटेक सेग हुनक क्षणक चर्चा अछि एहि पोथीमे जे वर्तमानमे महत्वपूर्ण छथि।
20 वर्षमे भारत कोना विकसित देश बनत जे हम भारतक हम गीत गाबी विदेशक नहिं। चंडीगढक एक छात्रक एहि लेल प्राध्यापक बनब हुनका नीक लगलैन्हि तऽ चदुच्चेरीक एक उत्तर ‘एकाकी पुष्प पुष्पहार नहि बनबैत अछि। आ‘ तहिना गोवासँ एक उत्तर जे ओ एक इलेक्ट्रान जकाँ घुमैत रहत।
अटलांटासँ एक अनिवासी भारतीयक उत्तर कलामकेँ नीक लगलैन्हि,‘जखन भारत कोनो दोसर देशक प्रति प्रतिबन्ध लगाएत तऽ हम सोहर गायब।‘भ्
भारतक 35 वर्षसँ कमक 70 कोटि युवा कलामक विष्वासक कारण छथि। पारदर्षी भारत लेल अभियान ओहिना हो जेना स्वतंत्रता लेल भेल छल कारण पारदर्षिंता विकासक आधारषिला अछि।
विकसित देशक कारण ओकर स्थिर विकासक उच्च दर अछि जे सिंगानुर लेल प्रथत आ‘ फेर अमेरिकाष् हांगकांगष् ताइवान, कनाडा लेल अछि। ब्रिटेन आठम, फ्रांस 23म, जर्मनी 25म आ‘ भारत 59म पर अछि।
जी॰ डी॰ पी॰ मे भारत 75म पद अछि जे चारिम वा पांचम केना होए से विचारणीय।
दायित्वधारी युवा नागरिक चाही जे बुझथि एकसरे काज नहि होइत छैक मुदा सहयोगसँ होइत छैक। सिलिकॉन वैलीक चन्द्रषेखर कहलखिन्ह जे खतरा मोल लेब हुनका नीक लगैत छैन्हि।
कलाम अपन ओहि दिनकेँ याद केलथि जहिया मद्रासमे हुनक षिक्षक डा॰ श्रीनिवास कहलखिन्ह जँ तीन दिनमे काज पूरा नहि होएत तऽ हुनक छात्रवृर्ति बन्द। काज भेला पर प्रषंसा सेहो केलखिन्ह। कलामक कथन जे संकट घड़ीमे मानव प्रज्ञा प्रज्वलित भए उठैत अछि जतए सही ओतहि इहो जे एहने षिक्षक कलाम उत्पन्न करैत छथि राजनेता नहि तेँ षिक्षक कलाम सफल मुदा राजनेता कलाम असफल ।
इ सत्य जे असफल भेनहुँ अनुभव जरूर भेटैत छैक।(पृष्ठ 105)
ष्‘कार्यं साधयामि वा शरीरे पातयामि‘ क संग अभियान संगठनसँ पैघ, संगठन संचालकसँ पैघ। टाटा, पी सी राय आदि पराधीन भारतमे राह देखौलथि। बी॰ एच॰ यू॰, ए॰ एम॰ यू॰ आदि बनल।
हमरासभकेँ विकसित राष्ट्रक गौरव हो, पुनर्जन्म लए भारतक यषोगाथा गाबी लिखैत कलाम अपन धार्मिक विष्वाससँ ऊपर उठि जाइत छथि आ पोथीक समापन इन्टरनेट पर दू नेनाक ब्रह्म आ‘ आत्मा पर संवादसँ करैत कोलकाताक एक छात्र सर्वाननक प्रष्न ‘पीपर गाछक शक्ति ओकर निहित ओकर बीयामे मुदा सब कीयाकेँ अवसर कियैक नहि‘ के सुलझेबाक लेल देशक विभिन्न क्षेत्रक लाखों छात्र लग जेबाक निष्चय कए ष्‘हम ओ हमर राष्ट्र भारत‘ क युवा गीतसँ करैत छथि जे हमर देश विकसित देश हो।
‘प्रज्वलित प्रज्ञा‘ पोथी संग्रहणीय अछि। ओना कागद किछु दब मुद्रक द्वारा देल गेल अछि। सीमित प्रतिक पोथी प्राप्ति लेल मूल्य 150 टाका मनीआर्डरसेँ एहि पता पर पठौलासेँ
डा॰ नित्यानन्द लाल दास, आचार्यपुरी, फारबिसगंज 854318
संपर्क मोबाइल 9430467019
जगदीश प्रसाद मण्डल
नाटक
कम्प्रोमाइज
(आसीन मास। रौदियाह समए)
सोनिया- अपनो नार सैध गेल। काल्हि मनोहर मामागामसँ आनए गेल। दुइयो-चारि बल्हीक ओरियान अपनो नै करब तँ माल-जालकेँ की खाइले देबै?
सुकदेव- मनमे तँ अपनो अछि मुदा छुछ हाथ थोड़े मुँहमे जाइ छै।
सोनिया- कोनो कि अन्न नै खाइ छी जे नै बुझब। मगर दुआरपर जेकरा गरदनिमे डोरी बन्हने छिऐ तेकर निमरजाना केकरा करए पड़तै।
सुकदेव- (मूड़ी डोलबैत) जेकरा पाइ छै उ आनो गामसँ कीन आनत। मुदा....?
सोनिया- मुदा कहने समए मानत। कोनो ओरियान तँ करैये पड़त।
सुकदेव- (तरहथ्थीसँ आँखि मलैत) ने एक्को मुट्ठी नार अछि, ने बाधमे घास अछि आ ने बाँसक पत्ता एक्कोटा हरियर अछि। आन साल अधियोपर तोड़ै छलौं तैयो कहुना कऽ काज चला लै छलौं। ऐबेर सेहो सभटा झड़ैकिये गेल......। देखियौ कि होइ छै?
सोनिया- ताबे ओहिना ठाढ़े रहत। दुआरपर लछमी कलपने प्रतबाए ककरो हेतै?
सुकदेव- गाममे ककरो देखबो कहाँ करै छिऐ जे दू मुट्ठी मांगियो लेब। जिनका सभकेँ बेसी होइतो छन्हि ओ तँ अपने पाछु तबाह छथि। जकरा छैहे नै ओ अपनो पैत नै बचा सकैए तँ दोसरकेँ की बचाओत। तहूमे दुइये-चारि दिनक बात रहैत तखैन ने। ऐबेर नै भेने अगिलो साल तेहने हएत।
सोनिया- छुछे सोग केने चिन्ता मेटाइ छै। जखैन दिने उनटा भऽ गेल तखैन सुनटा सोचने हएत।
सुकदेव- (वेवस) की उपाए करब। जखैन समैये संग छोड़ि देलक तखैन जीबैयेक कत्ते भरोस करब।
सोनिया- ई अहींटा बुझै छिऐ कि आउरो गोरे।
सुकदेव- की उपाए करब?
सोनिया- उपाए की करब! जेहेन समए बनल तेहेन बनि जाउ। तखने किछु पारो-घाट लागत। नै तँ......।
(सुकदेव सोनिया मुँह दिस, बघजर लागल जकाँ, टकटकी लगा तकैत सुकदेवक आँखि सोनिया पढ़ि)
चलु दुनू गोरे। मरहन्नाक जे बुट्टी-बाटी भेटत सेहो काटि लेब आ कतौ-कतौ जे चिचोर सभ छै सेहो काटि कऽ लऽ आनब।
सुकदेव- बेस कहलौं। जाबे बरतन ताबे बरतन। हाँसू नेने आउ। खोलियापर चुनौटी अछि सेहो नेने अाएब।
(सोनिया जाइत। मनचनक प्रवेश)
मनचन- भैया, जान बचाएब भारी भऽ गेल।
सुकदेव- से की?
मनचन- कलक पािन बन्न भऽ गेल। पानिये ने खसै छै।
सुकदेव- से की भेलह?
मनचन- पान-सात दिनसँ मटियाह पानि अबै छेलै। ओकरा जमा कऽ कहुना काज चलबै छलौं। काल्हिसँ ओहो बन्न भऽ गेल।
सुकदेव- दोसर कलसँ काज चलाबह?
मनचन- एहँ, कोनो कि एक्केटा कल बन्न भेल। टोलक सभ बन्न भऽ गेल।
सुकदेव- तखन पीबै की छह?
मनचन- पोखरिक पीबै छी। ओहो लटपटाएले अछि।
सुकदेव- बौआ कि करबहक। आखिर ऐ धरतीपर अपना सभ (मनुष्य) नै किछु करबहक तँ माल-जाल, चिड़ै-चुनमुनी बुत्ते हेतै। देखै नै छहक जे कते रंगक चिड़ै पड़ा गेल।
मनचन- भैया, तोरे सबहक मुँह देख जीबै छी। सबहक गति एक्के देखै छी। तामसो केकरापर करब। ऐ देहक कोनो ठेकान अछि। ने देहक ठेकान अछि आ ने देखिनिहारक ठेकान। तखैन तँ जाबे हाथ-पएर घिसिआइए घिसिअबै छी।
सुकदेव- अखैन जाह। निचेनमे कखनो गप करब। दू मुट्ठी मालक ओरियान करए जाइ छी। देखहक जे आसीन मास जकाँ एक्कोरत्ती लगै छै। अखुनका ओससँ खढ़-पातक डगडगी रहैत से केहेन उखड़ाह लगै छै।
मनचन- ऐसँ नीक ने जेठमे छेलै। जेठोसँ खरहर समए लगै छै। एकटा बात मन पड़ल।
सुकदेव- की?
मनचन- ऐसँ पैछला रौदी नमहर रहै कि छोट?
सुकदेव- तोरा की बुझि पड़ै छह?
मनचन- नमहर बुझि पड़ैए।
सुकदेव- ओ चारि सालक भेल रहए। एकरा तँ सालो नै लगलै।
मनचन- हमरा नमहर बुझि पड़ैए।
सुकदेव- दिन बीतने लोक दुखो बिसरि जाइ छै। तोरो सएह भेलह।
मनचन- नै भैया, से नै भेल। विधने मोटका कलमसँ लिख देने छथि तँए ने मन रहैए।
(मुस्की दैत)
मुदा एकटा बात कहै छिअह।
सुकदेव- की?
मनचन- हम सभ तँ जानिये कऽ गरीब छी तँए बुड़िवक छी। मुदा जेकरो महिक्का कलमसँ लिखलखिन ओहो तँ कोंकिआइते अछि।
सुकदेव- अखैन जाह। काजक बेर उनहि जाएत। एकटा बात मन राखिहह। पछुलका शताब्दीमे पच्चीसटा रौदी भेलै। एक सालक रौदी लोककेँ चारि बर्ख पाछु ठेलै छै।
(दूटा हाँसू नेने सोनियाक प्रवेश। सुकदेव चिन्तामग्न बैसल।)
सुकदेव- (स्वयं) कतऽ गेल पचास बर्खक जिनगी। पानिक दुआरे कोसी नहरि आ शक्तिक दुआरे पनिबिजली। जँ बनल रहैत तँ की औझके जकाँ मिथिलांचल वासीकेँ पड़ाइन लगितै। चिड़ै जकाँ उड़ैत-उड़ैत लोक चिड़ै बनि गेल। चिड़ै बनने मनुख-मनुख कहबैक जोग रहत। जकरा अपन बाप-दादाक बनाओल सुन्दर गाम-घर छै ओ घर-छोड़ि घुरमुरिया खेलाइए। खाइर.....।
(सोनियाकेँ देख)
तमाकुल अनलौं िक ओहो सठि गेल?
सोनिया- (मुँह चमका) सुआइत लोक कहै छै डोरी जरि गेल ऐंठन नै गेल। पेटक ओिरयान रहै कि नै रहै मुदा मुँहमे सुपारी चाहबे करी।
सुकदेव- सुपारीक मर्यादा की छै से अहीं बुझबै। सुपारी खेनाइक अंग छी जे खेलोपरान्त अतिथि-अभ्यागतकेँ विदाइ स्वरूप देल जाइ छै। सुपारीयो जोकर मान-मर्यादा जै पुरूखमे नै रहल ओहो पुरूखे भेल। हिजरोसँ बत्तर अछि।
सोनिया- बुझलौं, बुझलौं साँप फुसलबैक मनतर। (विचार बदलैत) एकटा बात पूछौं?
सुकदेव- एकटा किअए। एक हजार पूछू।
सोनिया- पेटक आशामे पेट काटि भरै छी आ घर अनैकाल टुटरूम-टुम भऽ जाइए। छोड़ि दिऔ बटाइ खेती?
(सोनियाक विचार सुनि सुकदेव ऊपरसँ निच्चाँ धरि सोनियाकेँ निहारि नजरि चेहरापर अँटका, अपन पैछला जिनगीपर दौड़बैत, अएना जकाँ देखए लगल। तड़पैत मने।)
सुकदेव- जखैन अपना धन-वित्त नै अछि तखैन....?
सोनिया- तखैन की?
सुकदेव- बटाइयो खेती केने अपन रोजगार तँ ठाढ़ केने छी। मारि-धुसि खटै छी, भरि पेट आकि आधा पेट खाइ तँ छी। जँ इहो छोड़ि देब तँ कि गोबर-गोइठा जकाँ कतौ पड़ल रहब।
सोनिया- बड़ीटा दुनियाँ छै। जतऽ पेट भरत ततऽ देह धुिन जिनगी बिताएब।
सुकदेव- ई तँ बुझै छी जे हाथ-पएर लारने कतौ पेट भरह। मुदा जे फुलबारी (गाम) बाप-दादाक लगाओल अछि, मनुक्ख जकाँ मनुक्ख बनि जीबैत एलौं, तकरा छोड़ि.....?
सोनिया- की आनठाम मनुक्ख नै रहै छै?
सुकदेव- हँ रहै छै। मुदा मनुक्ख मनुक्ख आ समाज समाजक बीच भुताहि गाछी, मरूभूमि पहाड़, समुद्र सदृश्य भाषा, काज बेवहारसँ जिनगी बदलि-बदलि गेल अछि। जइसँ एते खाधि मनुष्य-मनुष्यक बीच बनि गेल अछि। जइसँ कियो ककरो देखहि नै चाहैए। ऐहेन स्थितिमे.....।
सोनिया- कोनो कि खुटा गाड़ि सभदिन रहब जे अनेरे एत्ते माथा धुनि देहक हड्डी झकझकबैक कोन जरूरत अछि। बुझिते तँ छिऐ जे घरवाली घर लेती दाइ जेती छुछे।
सुकदेव- बाप-दादाक फुलबाड़ी ओ नै छिअनि जे मात्र समैया फुलक होय। बाप-दादाक फुलबाड़ी ओ छिअनि जइमे कुण्डली फुलक गाछक जड़िमे राखल अछि।
दोसर दृश्य-
(सुकदेव सोमन ऐठाम जाइत बाटमे...।)
सुकदेव- (उत्तेजित) पचास बर्खसँ किसान-बोनिहारक संग हमहूँ मिल कोसी नहरिक पानिसँ खेतिओ आ बिजलियोक सपना पुर्ति हएत तै आशामे रहलौं। मुदा आइ कि देखै छी? घरमे अन्न नै खेतमे पानि नै मशीनक नामो-निशान नै। यएह सोराज (स्वराज) साठि बर्खक छी। की हमसभ टकटकी लगौने मरि जय। मुदा ऐ उमेरमे कएले की हएत? भगवान बुढ़ाढ़ी दैते किअए छथिन। जँ दै छथिन तँ जीबैक जोगार किअए ने कए दै छथिन। की टकटकीसँ आँखि पथरा परान तियागि दी। उसैर रहल अछि गामक चास-बास, उसरि रहल अछि पशुधन, उसरि रहल अछि गामक खेत-खरिहान, उसरि रहल अछि गामक कला-संस्कृति।
(सोमनक घर। आंगनसँ निकलि सोमन देह खोलने कन्हापर धोती नेने नहाइले विदा भेल।)
सोमन- सबेरे-सबेरे केम्हर-केम्हर भैया?
सुकदेव- एलौं तँ तोरेसँ किछु विचार करए मुदा तोरा देखै छिअ जे कतौ जाइक सुर-सार करै छह।
सोमन- हँ भैया, कनी हाटपर जाएब। तँए धड़फड़ करै छी। मुदा जखैन आबि गेलह तँ किछु इशारोमे कहि दाए। जखैन भेँट भऽ गेलियह तखैन चुपे-चाप चलियो कन्ना जेबह?
सुकदेव- गप तँ गप छी, दोसरो घड़ी हएत। मुदा काजमे बाधा भेने तँ काज मारल जाएत। काज मरने जिनगी मरै छै। एक तँ समये तेहन दुरकाल भऽ गेल जे ओहिना सभ पटपटाइए। तहूपर जँ जोगारो बाधित हएत तखन तँ आरो तबाही बढ़त।
सोमन- गप जे कहि देने रहबह तँ रस्तो-पेरा सोचैत-विचारैत रहब। ओमहरसँ (हाट) घुरब तँ भेँट केने एबह।
सुकदेव- गप तँ नमहर अछि। मुदा तोरो बेर परक भदबा बनब नीक नै। अच्छा साँझमे भेँट हेबह किने?
सोमन- हाट जाएब अनठाइयो दैतिऐ। मुदा आइ सोमक हाट छी। कहैले तँ दूटा हाट लगै छै मुदा सोमक हाटक मोकाबला बरसपैतक हाट करतै।
सुकदेव- से की?
सोमन- सोमक हाटमे सीतामढ़ीक बेपारीसँ लऽ कऽ सुपौल फारविस गंज धरिक बेपारी अबै छै। छअ दिन ओकरा सभकेँ अबै जाइमे लगै छै। तहूमे गाए-बड़दक पएरे एनाइ-गेनाइ सेहो रहै छै।
सुकदेव- हँ, से तँ लगिते हेतै। तैओ ओही बेपारी सभकेँ धैनवाद दिऐ जे एते मेहनत करैए।
सोमन- अनठौने नै बनत भैया। बहरबैया बेपारी सभ मुइल-टुटल सभ उठा लइए।
सुकदेव- केहेन कारोवार ओकरा सबहक छै जे मुइल-टुटल सभ कीन लइए?
सोमन- छी हे औगताइल भाय-सहाएब, नै तँ सभ बात बुझा देतौं। एको मुट्ठी लार-पात नै रहने देहमे कछमछी लागल अछि। खढ़-पानिले जे हुकड़ैत देखै दिऐ तँ मन घोर-मट्ठा भऽ जाइए। ओना......?
सुकदेव- की ओना?
सोमन- बेर परक बात बजने बेसी नीक होइ छै। खाइर, कनी देरिये ने हएत। ओते लफड़ि कऽ चलि पुरा लेब। अपना गाममे हाटे ने होइए, नै तँ जीबैक एकटा बाट लोककेँ खुजि जैतै।
सुकदेव- हँ, से तँ होइतै। तोरो देरी हेतह।
सोमन- की करब भैया, चारू दिससँ घेरा गेल छी। तेहेन समए भऽ गेल अछि जे अपनो सबहक जान बचब कठिन भऽ गेलहेँ।
(दू डेग आगू बढ़ैत सुकदेव)
सुकदेव- कनी-मनी पूँजियो तोड़ि कऽ पहिने मनुक्खक जान बचाबह। बादमे बुझल जेतै।
सोमन- जाबे साँस अछि ताबे तँ आशामे हाथ-पएर लाड़बे-चाड़बे करब। अजगरो तँ अपन जिनगीक ओरियान करिते अछि।
क्रमश:
१. प्रो. वीणा ठाकुर- प्राचीन भारतीय संस्कृतिमे मिथिलाक योगदान २.ज्योति सुनीत चौधरी-उजागर भविष्य ३. हमर फोटो कहिया \ कन्या भ्रूणहत्या पर एकटा कथा। १.
प्रो. वीणा ठाकुर
प्राचीन भारतीय संस्कृतिमे मिथिलाक योगदान
1. प्राचीन भारतक इतिहासमे मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण एवं महिमाशाली रहल अछि। सत्य तँ ई अछि जे मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहासक ज्ञान बिना भारतक इति सांस्कृतिक इतिहासक यथार्थ ज्ञान संभव नहि अछि। सुदूर अतीतमे मानव मनीषा आर प्रतिभाक प्रोज्वल प्रकाश एतय विद्दमान छल, धर्म-दर्शन, ज्ञान-विज्ञानक प्रत्येक क्षेत्रमे विश्व विश्रुत ज्ञानी-गुणी जनक जन्मभूमि होएबाक सौभाग्य मिथिलाके प्राप्त छल। धर्म तथा दर्शनक क्षेत्रमे मिथिला नहि मात्र अपन महत्व स्थापित कयलक अपितु ओकर पुष्टि सेहो कयलक तथा तत्कालीन विश्वक चारू-दिशामे ओकर संदेश प्रसारित करैत मानव जातिक कल्याण साधन कयलक। जनक सदृश राजर्षि, याज्ञवल्क्य सदृश ज्ञानी, गार्गी, मैत्रेयी, भारती सदृश विदुषी नारी, जगत-जननी सीताक जन्म स्थली तथा गौतम, कपिल, मंडन मिश्र, वाचस्पति मिश्र, उअदयनाचार्य, गंगेश उपाध्याय, पक्षधर मिश्र, दार्शनिक प्रवर एवं ज्योतिरीश्वर-विद्यापति सदृश कवि तथा विद्वानक जन्म स्थली मिथिला भारतक इतिहासमे अनंत काल धरि अपन उज्वल कीर्त्ति स्थापित कऽ लेने अछि। जाहि प्रकारे प्राचीन युगमे एथेंस युनानि लेल ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता-संस्कृतिक केन्द्रस्थल छल, तहिना मिथिला सम्पूर्ण भारत वर्ष लेल।
2. प्राचीन संस्कृत वाङ्मयक अवलोकन सँ ज्ञात होइत अछि-जे भू-भाग वर्त्तमानमे बिहार कहल जाइत अछि, ओ प्राचीन कालमे तीन खण्ड राज्यमे वियक्त छल; विदेह, मगध आर अंग। गंगा नदीक दक्षिण-पश्चिममे ‘मगध’ राज्य छल, जकर प्राचीन नाम “कीकट’’ छल आर जे अनार्यक निवास स्थान बुझल जाइत छल। पश्चात् ई प्रदेश मगध नामसँ अभिहित होमय लागल एवं एतुका निवासी के हेय दृष्टिसँ देखल जाइत छल। पाश्चात्य विद्वान वेवर, पार्जिटर आदि विस्तारसँ विचार करैत कहने छथि जे- अनार्थक आगमन एहि ठाम पूर्व दिशसँ बराबर होइत छल आर एहि ठामक निवासी आर्य सभ्यताक अधिपत्य सहजहिं स्वीकार नहि कयलक, ताहि हेतु वैदिक साहित्यमे ई प्रदेश निंदनीय कहल गेल। निरंतरमे कहल गेल अछि- “की कदा नाम देशोऽनार्थ विशेषः” मुदा एहि कीकट प्रदेशमे गया तीर्थ के अत्यंत पवित्र मानल गेल अछि; कीकटेषु गया पुण्या नदी पुण्या पुनः पुनः। च्यवनस्याल्रयं पुण्यं पुण्यं राज गृह वनस”। वौद्धायन धर्मसूत्रमे अंग एवं मगध निवासी संकीर्णयोनि कहल गेल छथि। मुदा वैदिक युगमे बिहारक एकटा भाग एहन छल जे आर्य सभ्यताक केन्द्रक रूपमे प्रसिद्ध छल आर ओ छल विदेह। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार विदेह अपन पुरहितक संग सरस्वती नदीक तीरसँ सदानीरा (गंडकी)क तीरपर आयल छलाह आर नदी पार कऽ ओ पूर्व दिशामे अयलाह आर ओतए बसि गेलाह। इयह विदेह कालातंरमे मिथिला आर तीरभुक्ति नामसँ प्रसिद्ध भेल। वाल्मिकि रामायणक बाल-काण्डमे मिथिलाक चर्च करैत कहल गेल अछि; “रामोऽपिपरमा पूजा गौतमस्य महात्मनः। सकाशाद विधिवत् प्राण्य जगाम मिथिलां ततः”। ‘अनर्घ राघव’मे मिथिलाके विदेहक एकटा नगरी कहल गेल अछि; “वत्स! शृणोषि विदेहेषु मिथिलां नाम नगरीम्”। कालिदासक “रघुवंश”, श्री हर्षक “नहिषधीय चरित” तथा जयदेवक “प्रसन्न राघव” नाटकमे सेहो मिथिलाक उल्लेख भेटैत अछि। ‘भृंगदूत’मे “तीरभुक्ति”क उल्लेख मिथिला लेल बुझल गेल अछि। “गंगातीरावधिरधिगता यदभुवो भृङग युक्तिनाम्ना सैव त्रिभुवनतले विश्रुतः तीरभुक्ति:”।
3. विदेह वशंक सभसँ प्रसिद्ध राजा जनक भेलाह, जे बहुत पैघ ब्रह्मज्ञानी छलाह आर राजर्षि जनक नामसँ विख्यात भेलाह। हिनक राज सभा महाज्ञानी ब्राह्मण विद्वानसँ अलंकृत छल आर जाहिमे सर्व प्रधान ऋषि याज्ञवल्क्य छलाह। “शुक्ल यजुर्वेद’क प्रवर्त्तक याज्ञवल्क्य मानल जाइत छथि। आध्यात्म्य विद्याक संगहि वैदिक कर्मकाण्ड निष्णात ज्ञाता याज्ञवल्क्य: ख्याति सम्पूर्ण ब्रह्मावर्त्तमे व्याप्त छल। राजा जनक स्वंय ब्रह्म विधाय ज्ञाता एवं ब्राह्मणक पोषक छलाह। ब्राह्मग्रंथ आर उपनिषदमे जनक तथा याज्ञवल्क्यक आध्यात्म विधा संबन्धी शास्त्रार्थक चर्चा बहुतो प्रसंगमे कयल गेल अछि, मात्र चर्चा नहि अपितु प्रशंसा सेहो कयल गेल अछि। “बृहदारण्यकोपनिषद”क एक कथामे जनक द्वारा आहूत एक सभाक उल्लेख भेल अछि, जाहिमे कुरू-पांचाल आदि प्रदेशक बहुतो वेदक विद्वान पधारल छलाह आर जिनका सभके शास्त्रार्थमे परास्त कऽ याज्ञवल्क्य राज-सम्मान प्राप्त कयने छलाह। एहि सभामे विदुषी गार्गी सेहो उपस्थित छलीह। गार्गी आर याज्ञवल्क्य मध्य शास्त्रार्थक चर्चा “वृहदारण्यकोपनिषद”मे कयल अछि। तथा याज्ञवल्क्य द्वारा अपन पत्नी विदुषी मैत्रेयीकेँ प्रदत्त आध्यात्म्य तत्वक उपदेशक उल्लेख “बृहदारण्यकोपनिषद”मे अछि। बीतरागी, ब्रह्मज्ञानी आर त्यागी राजा जनकक सम्बन्धमे एकटा उक्ति प्रसिद्ध अछि- मिथिलायां प्रदीप्रायां नमे दहनति किञ्चन (सम्पूर्ण मिथिला जौं प्रदग्ध भऽ जाए, तथापि हमर किछु नष्ट नहि होएत)। शुकदेव सदृश सहज वीतरागी एवं परमज्ञानी पिता व्यासदेवक आज्ञासँ राजा जनकसँ त्राणोपदेश प्राप्त कएने छलाह। भगवान कृष्ण गीतामे प्रवृतिमार्गक आदर्श रूपमे जनकक उल्लेख कएने छथि।
4. महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित विख्यात स्मृति ग्रंथ थिक। एहि ग्रंथमे चौदह विद्याक परिगणन एहि प्रकारे कएल गेल अछि – चारि वेद, छह अंग, एक मीमांसा, एक न्याय, एक पुराण आर एक धर्मशास्त्र। सम्पूर्ण वाङ्मयक समावेश एहि चौदह विद्यामे भऽ जाइत अछि, तथा याज्ञवल्क्य स्मृतिक अनुसार हिन्दु सम्पतिक उत्तराधिकार निर्णीत होइत अछि।
5. न्याय दर्शन कर्त्ता महर्षि गौतम मिथिलाक निवासी छलाह, जिनका श्रापसँ हिनक पत्नी अहिल्या पाथरक भऽ गेल छलीह। आर भगवान श्री राम जनकपुर यात्राक मार्गमे चरण स्पर्शसँ हिनक उद्धार कएने छलाह। न्याय शास्त्रक अतिरिक्त गौतम एकटा स्मृतिक रचना सेहो कएने छलाह।
6. विद्वान लोकनिक मतानुसार गौतम रचित ब्रह्म विद्यापर एकटा ग्रंथ छल, जे अनुपलब्ध अछि। वर्त्तमान कालहुँमे गौतम कुंड आर अहिल्या स्थान प्रसिद्ध अछि तथा गौतमक पुत्र शतानन्द राजा जनकक पुरहित छलाह।
7. सांख्य शास्त्रक निर्माता महर्षि कपिलक आश्रय मिथिलामे छल। हिनका द्वारा स्थापित शिवलिंग वर्त्तमानमे कपिलेश्वर नाथ महादेव नामसँ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल अछि।
8. आचार्य शंकराचार्यक संग शास्त्रार्थ कएनिहार न्याय आ मीमांसाक अद्वितीय विद्वान मंडन मिश्र सेहो मिथिलाक रत्न छलाह। महिषी गाममे हिनक निवास स्थान छल, जे वर्त्तमानमे सहर्षा जिलामे अवस्थित अछि। हिनक धर्मपत्नी सरस्वतीक साक्षात अवतार विदुषी भारती शंकराचार्य आर मंडन मिश्रक मध्य शास्त्रार्थमे मध्यस्तता कएने छलीह आर मंडनमिश्रक पराजयक पश्चात स्वंय शंकराचार्यकेँ शास्त्रार्थमे पराजित कएने छलीह। कहल जाइत अछि जे मडंन मिश्रक गृहक पता शंकराचार्यसँ पूछबाक क्रममे एकटा पनिभरनी हुनका उत्तर दैत कहने छलनि जे “जगद् ध्रुवं स्याजगद् ध्रुवं आ कीड़ाङ्गना यत्र गिरो गिरंति। द्वारस्थ पीड़ाङ्गणसन्निरन्धो जानोहि तन्मण्डन मिश्र धाय”। ई प्रमाणित करैत अछि जे ओहि कालमे मिथिलामे संस्कृत विद्याक पूर्ण प्रचार छल तथा साधारण स्त्री सेहो सुशिक्षित छलीह।
9. मिथिला निवासी वाचस्पति मिश्र षददर्शनक अतिरिक्त समस्त शास्त्रक विद्वान छलाह। ब्रह्मसूत्र शंकर भाष्यपर हिनक “भामती टीका अत्यंत प्रसिद्ध अछि। वेदांतक ई एकटा प्रमाणिक ग्रंथ मानल जाइत अछि। हिनक रचित अन्य ग्रंथ अछि। ब्रह्म तत्व समीक्षा, न्याय कणिका, सांख्य तत्व कौमुदी, न्याय वर्त्तिक तात्पर्य आ योगदर्शन, ई हिनक विद्या-वेदध्यक परिचायक अछि। एकर काल एगारहम शताब्दी (सवंत) मानल जाइत अछि।
10. मिथिलाक न्याय शास्त्रक प्रसिद्ध पण्डित उदयनाचार्य रचित बहुतो ग्रंथ यथा – कुसुमाञ्जलि, किरणावली, लक्षणावली, न्यायपरिशिष्ट, आत्मतत्व विवेक आदि। स्वाभिमानी पण्डित उदयनाचार्यक ई गर्दौति, एखनहु प्रसिद्ध अछि -
11. ”वयमिह पदविद्यां तर्कमान्वीक्षिको आ।
12. यदि पथि विपथे आ वर्त्तयामस्स पन्था॥
13. उदयति दिशि यस्यां भानुमान् सैव पूर्वा।
14. नहि तरणिरन्दीते दिक् पराधीन वृत्ति:”॥
15. मिथिलाक अन्य प्राचीन दार्शनिकमे गंगेश उपाध्याय आ पक्षधर मिश्रक नाम विशेष रूपसँ उल्लेखनीय अछि। गंगेश उपाध्याय न्याय शास्त्रक अप्रतिम विद्वान छलाह आ खाद्य खडंन मतक खडंन अत्यंत विद्वतासँ कएने छलाह आ हिनक रचित प्रसिद्ध ग्रंथ थिक “तत्व चिंतामणि”।
16. पक्षधर मिश्रक सम्बन्धमे प्रचलित श्लोक-–“शंकर वाचस्पत्योः शंकरवाचस्पती सदृशौ। पक्षधर प्रतिपक्षी लक्षीभूतो नचय्वापि”॥ हिनक विद्वताकेँ प्रमाणित करैत अछि। विद्यापतिक समकालीन पक्षधर मिश्र “तत्व चिंतामणि” ग्रंथक “आलोक” नामक टीका रचना कयलनि संगहि “प्रसन्न राघव” आर “चन्द्रालोक” ग्रंथक सेहो रचना कयलनि।बंगालसँ बहुतो छात्र न्यायशास्त्रक अध्ययन करवा हेतु हिनका सँ अबैत छलाह तथा हिनक बंगाली शिष्य रघुनन्दन नवद्वीपमे न्यायशास्त्रक पठन-पाठन आ प्रचार कयलनि आर पक्षधर मिश्र द्वारा प्रवर्त्तित नव्यन्यायक परम्पराकेँ आँगा बढ़ौलनि।
17. मिथिलावासी गोवर्द्धनाचार्य उदयनाचार्यक शिष्य आ ‘आर्यासप्तशती’क रचयिता छलाह। दर्शनशास्त्रक पण्डितक संगहि कवि सेहो छलाह, जकर प्रमाण उक्त ग्रंथ थिक।
18. भवनाथ मिश्र आ हिनक सुपुत्र शंकर मिश्र दुनू प्रकाण्ड पण्डित छलाह। भवनाथ मिश्र महान पण्डितक संगहि सर्वथा निस्पृह छलाह, कहियो ककरहुँसँ कोनो याचना नहि कयलनि, ताहि हेतु हिनक नाम अयाची मिश्र पड़ि गेल। हिनक पुत्र शंकर मिश्रक ख्याति सम्पूर्ण मिथिलामे एकटा अलौकिक योग्यता सम्पन्न बालक रूपमे ख्यात भऽ गेल। मात्र पाँच वर्षक अवस्थामे हिनक इ महाराज दरभंगाक समक्ष निम्न श्लोक पढ़ि कऽ सुनौने छलाह-
19. ”वालोऽहं जगदान्द नमे वाला सरस्वती।
20. अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्यायम”॥
21. (हम बालक छी, एखन पाँच वर्षक अवस्था सेहो पूर्ण नहि भेल अछि। मुदा हमर सरस्वती अर्थात् विद्या वला नहि छथि। तीनू लोकक हम वर्णन कऽ सकैत छी।)
22. ”अनर्थराघव” नाटकक रचयिता दार्शनिक प्रवर मुरारि मिश्र मिथिलाक निवासी छलाह आ साहित्यशास्त्रक ज्ञाता छलाह। बहुतो ग्रंथक रचयिता महान दार्शनिक वर्द्धमान उपाध्याय सेहो मिथिला निवासी महान विभूति छलाह।
23. महामहोपाध्याय महेश ठाकुर अपन विद्वताक बलपर सम्राट अकबरसँ मिथिला राज्य प्राप्त कयने छलाह। व्याकरण आ न्यायशास्त्रक श्रेष्ठ विद्वान महेश ठाकुर दरभंगा राजवंशक संस्थापक सेहो छलाह। महाराज शिवसिंहक मित्र आ राजपण्डित कवि कोकिल विद्यापति नहि मात्र मैथिली भाषाक सर्वश्रेष्ठ कवि छलाह अपितु हिनक गीत द्वारा विभिन्न भारतीय भाषा अनुप्राणित भेल आर बंगाल, आसाम, उड़ीसामे हिनक गीतक अनुकरणसँ एक नव भाषा साहित्यक उदय भेल जकरा व्रजवुलिक संज्ञा देल गेल।
24. एहि प्रकारे प्राचीन कालहिसँ मिथिला धर्म, दर्शन आ विभिन्न शास्त्रक केन्द्रस्थली रूपमे विख्यात रहल अछि। वेद, वेदांत, न्याय, मीमांसा, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, व्याकरण, साहित्य, कर्मकाण्ड कोनो एहन विद्या नहि अछि, जकर विश्व-विख्यात पण्डित एतय नहि भेलाह। मात्र प्राचीन आ मध्ययुगमे नहि अपितु वर्त्तमान कालमे अर्थात् बीसम शताब्दीमे सेहो एहि भूमिकेँ महामहोपाध्याय मीमांसक चित्रधर मिश्र, सर्वतंत्र-स्वतंत्र बच्चा झा, विद्या-वाचस्पति विश्व विख्यात वेदज्ञ मधुसुदन झा, महामहोपाध्याय वैयाकरण केसरी परमेश्वर झा, महामहोपाध्याय जयदेव मिश्र, महावैयाकरण विश्वनाथ झा, महामहोपाध्याय सर गंगानाथ झा, ज्योतिषी बबुआजी मिश्र, विख्यात विद्वान त्रिलोकनाथ मिश्र सदृश विख्यात विद्वान आ साहित्यमर्मज्ञक जन्म देबाक सौभाग्य प्राप्त अछि। एहिमे बच्चा झा अपना समयक दर्शनशास्त्रक अद्वितीय पण्डित छलाह आर दर्शन आ साहित्य विषयपर उच्च कोटिक रचना कयलनि। वैदिक साहित्यक प्रकाण्ड पण्डित मधुसूदन झाक ख्याति देश-विदेशमे विख्यात छलनि। काव्य आ काव्यशास्त्र आर श्रृंगारक क्षेत्रमे सेहो एतय “प्रसन्न राघव”, “अनर्थराघव”, “काव्यप्रदीप”, “रसमंजरी” “रसिक सर्वस्व” आर संगीत शास्त्र सबन्धी ग्रंथ “संगीत सर्वस्व” आ “सरस्वती छद्यलंकार”क रचना भेल। आधुनिक भारतीय आर्यभाषामे सर्वप्रथम गद्य ग्रंथ होयबाक गौरव मिथिला निवासी ज्योतिरिश्वर रचित “वर्णरत्नाकर”केँ प्राप्त अछि।
25. आ एवम् प्रकारे स्वतः सिद्ध अछि जे विश्वव्यापी भारतीय संस्कृतिक केन्द्र स्थल मिथिला रहल अछि, आर मिथिला चिरकालहिसँ अपन महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह धर्म, साहित्य, दर्शन आ न्यायक क्षेत्रमे करैत रहल अछि।
२.
ज्योति सुनीत चौधरी उजागर भविष्य :
कतेक उत्साह सऽ अहिभफ्फर बनाओल आ बॉंटल गेल छल भरिगाम।एक सऽ एक अमीर आ प््राभावशाली परिवारक घटक आयल छलैन मुदा मिसराइनजी अपन एकलौता बेटा के विवाह एक मध्यम वर्गीय परिवारक शिक्षित बेटी के पुतहु बनाकऽ अनली आ सब बिध बड्ड मोन सऽ पुरौली।पुतहु के स्नेह सऽ ‘सुकृती’ नामकरण सेहो केली। ओना तऽ एकटा भट्ठी आ कै टा छोट मोट व्यापार छलैन परिवार के जाहि लऽ कऽ सम्पन्न परिवार मे गिनती छलैन। मुदा मोन छलैन जे गरीब परिवारक बेटी आनब तऽ सहमिलु होयत आ बेसी नीक सऽ संयुक्त परिवारमे मिल कऽ रहत।शुरूआतमे तऽ ठीके बड्ड प््रासन्न छलीह मुदा पाइक गौरब सऽ बेसी खतरनाक ज्ञानक गरमी होयत छहि से मिसराइन सहित पूरा परिवार के बड्ड जल्दी बुझा गेलैन जखन पोर्तापोती के आगमन भेलैन।
पोता के प््राति सबहक व्यवहार बेसीतर पुतहुक अनुकूले छलैन मुदा पोती के मैट्रिक पास करेलाक बाद जैने सब घरक काज दिस झोंकय चाहलखिन त पुतहु विद्रोह कय देलखिन।ननदि सब मिडिल स्कूले तक पढ़ने छली से सब कहलखिन जे अहि सऽ बेसी पढ़क कोनो प््रायोजन नहिं। मुदा सुकृतीजी में सबसऽ विद्रोह कय असगर अपन विचार पर अडिग रहय के साहस कतय सऽ आयल छलैन ताहिपर सबके क्षोभ छलैन।पति सऽ मात्र आर्थिक सहारा चाही छलैन से अतेक दिनक नीष्ठाक बदले भेट गेलैन।
सुकृतीजी भूत जकॉं सब काज अपने कय बेटी के पाहुन जकॉं भोजन हाथ कय दय कॉलेज विदा करैत छलीह। घरक बूर्ढ़ बुजुर्गक विरूद्ध काज केनाई आसान तऽ भऽ नहिं सकैत छलैन। बेटी कुनो असाधारण प््रातिभा के धनी नहिं छलैन।ओ एक सामान्य छात्रा छलैन ईहो बात ककरो सऽ नुकायल नहिं छल।एहेनमे घरक लोक सब खूब चुटकी लय रहल छलैन। दियाद सबमे हहारो मचल छल। बेटीके रिक्सा पर कॉलेज जायत आबैत काल भरि ऑंगनक कनिया सब घोघ तानि ताना मारैत छलैर्न नहिं जानि कोन कलक्टर बनतैन बेर्टी जकर माय एहेन अनुशासनहीन आ एकढ़बा अछि तकर बेटी केहेन होयत. आदि आदि।मुदा सुकृतीजीके शिक्षाक महत्ता पर अतेक विश्वास छलैन जे ओ अहि सबलेल बहिर भऽ गेल छली आ अपन बेटी के कॉलेज जायर्त आबैत देखि हुन्का स्त्रीवर्गक एक उजागर भविष्यके दर्शन होएत छलैन।
२
किशन कारीग़र
हमर फोटो कहिया \
कन्या भ्रूणहत्या पर एकटा कथा।
कुसुम दाई भिंसरे सॅं हिंचैक-हिंचैक के कानि रहल छलीह किएक ने जानि से हमरो नहि बूझना गेल। ऑखि सॅं टप-टप नोर झहैर रहल छलैक कनैत-कनैत केखनो के हमरो दिस तकैत मुदा एक्को बेर चुप हेबाक नाम नहि। हम कॉलेज सॅ पढ़ा केॅं विद्यार्थी सभ के जल्दीए छुटटी दए के किछू काज सॅं आएल रही। जहॉ अंगना अएलहूॅं की केकरो कनबाक अवाज़ सुनलहॅू लग मे गएलहूॅ त देखलीयै जे कुसुम दाई कानि रहल छेलीह। हम लग मे जाके कुसुम के कोरा लेबाक प्रयास कएलहॅू मुदा ओ रूसि केॅं बाजल जाउ पप्पा हम अहॉ सॅ नहि बाजब। एतबाक बाजि ओ रूसि के बरंडा पर सॅ घर चलि गेल। हम दुलार कए के बजलहूॅ कुसुम अहॉ के की भेल हमर सुग्गा ने अहॉ बाजू ने। एतबाक सुनि ओ ऑखिक नोर पोछैत बाजल बाबू अहॅू बेईमान भए गेलहूॅ त आब हम केकरा सॅ अप्पन दुखःक गप कहियौअ अहि निसाफ कहू ने हमर फोटो कहियाअ \
ई गप सुनि हम कनेक अचंभित भए गेलहॅू हम फेर सॅं पुछलहूॅ कुसुम अहॉ किएक कानि रहल छलहॅू की भेल से कहू ने। त ओ बाजल बाबू अहॉ त माए के बुझहा सकैत छियैक हमर फोटो लगेबा मे कोन हर्ज हमहूॅ त मनुक्खे छी ने फेर हमरा सॅ बेइमानी किएक? अहिं कहू जे हमर फोटो कहियाअ? एतबाक मे हमर कनियॉ चाह बनौने अएलीह कि ताबैत कुसुम दाई धिया-पूता सभ संगे खेलाई धूपाई लेल चलि गेल। हम एक घोंट चाह पीबि के अपना कनियॉ सॅं पुछलहॅू कुसुम किएक कानि रहल छलैक। हमर कनियॉ मुहॅ पट-पटबैत बजलीह मारे मुहॅ धए के अहिं त ओकरा दुलारू सॅ बिगाड़ि देने छियैअ त अहिं बुझियौअ। हमरा त एखने सॅ निलेशक चिंता लागल अछि केहेन होएत केहेन नहि। हम बजलहॅू बेटाक चिंता त अछि अहॉ के मुदा ई बेटीयो त हमरे अहिंक छी एक्कर चिंता के करतै एसगर हमही की अहॅू? एतबाक सुनि हमर कनियॉ मुहॅं चमकबैत रसोइघर दिस चलि गेलिह।
भिंसर भेलैक मुदा राति भरि हम ऑखि नहि मूनलहॅू एक्को रति नीन नहि आएल। भरि राति सोचैत विचारैत रहि गेलहॅू मुदा कुसुम के प्रशनक कोनो जवाब नहि सूझल। भिंसर ठीक सात बजे कुसुम दाई स्कूल जाइ लेल स्कूल बैग लए बिदा भेल त हमरा रहल नहि गेल। हम बजलहॅू कुसुम आई अहॉ स्कूल नहीं जाउ हमहॅू आइ कॉलेज सॅ छुटटी लए लेने छी तहि ,द्वारे दूनू बाप-बेटी भरि मोन गप-शप क लैत छी।एतबाक सुनि कुसुम फुदकैत हॅसैत हमरा लग मे आबि गेल कि हम ओकरा कोरा मे लए के झुला झुलाबए लगलहॅू। कुसुम बाजल पप्पा आई अहॉ पढ़बै लेल कॉलेज किएक नहि गेलहॅू अहॉ कथिक चिंता मे परि गेलहॅू से कहू।
हम बजलहॅू चिंता एतबाक जे अहॉक फोटो कहियाअ? मुदा अहॉ हमरा फरिछा के कहब तखने हम बूझहब हमरा अहॉक प्रशनक कोनो जवाब नहि भेट रहल अछि त अहिं साफ साफ कहू। एतबाक सुनि कुसुम दाई बाजल अहिं कहू त पप्पा अहॉ पी.एच.डी माए हमर एम.बी.ए मुदा देबाल पर हमर फोटो नहि। एहि ,द्वारे त हम समाजक सभ लोक सॅ पूछि रहल छी जे हमर फोटो कहियाअ? समाजक सोच कहियाअ बदलत। एक त कोइखे मे हमरा मारि देल जाइत अछि। जॅं बॅचियोअ जाइत छी त हमरा दाए-माए सभक मुहॅ मलीन भए जाइत छन्हि। ओ पहिने सॅ पोता बेटा हेबाक स्वपन देखैत छथहिन मुदा बेटी हेबाक सपना कियो ने देखैत अछि।
देखैत छियैक गर्भवति माउगी सभ दू-चारि मास पहिने सॅ देवाल पर बेटाक फोटो लगेने रहैत छैक। अड़ोसी पड़ोसी बजैत छथहिन हे महादेव एहि कनियॉ के बेटा देबैए फलां दाए के पोता देबैए। बेटा हाइए ,द्वारे कौबला पाति सॅ लए के अल्टॉसाउण्ड तक ई पूरा समाज बेटीक दुश्मन अछि। हमर माए त एकटा बेटीए छथहिन मुदा कहियोअ सेहन्तो देवाल पर हमर फोटो नहि लगेलखिन। त हम कोन खराब गप पुछलहूॅ जे हमर फोटो कहियाअ। कोन दिन समाजक सोच बदलत कहियाअ माए बहिन सभ देवाल पर बेटीक फोटो लगेतीह? कहियाअ बेटीक जनम भेला पर ढ़ोल पिपही बजा खुशी मनाउल जाएत मधुर बॉटल जाएत? देखैत छियैक बेटाक जनम भेला पर जिलेबी बुनियॉ मुदा बेटीक जनम भेला पर गुड़-चाउर बॉटल जाइत अछि।ई हमरा सॅ बेईमानी नहि त आर की थीक? पप्पा आई हम समाजक सभ लोक सॅ पूछि रहल छी हमर निसाफ कहियाअ?
एखन हम कॉचे-कुमार छी मुदा जेना एखने सॅ हमरा बुझना जा रहल अछि जे हमर कुसुम दाई दुःखित भेल हमरा सॅ हमरा समाजक सभ पुरूख-माउगी सॅ पूछि रहल अछि बाबू अहिं निसाफ कहू हमर फोटो कहियाअ \\
रवि भूषण पाठक १
भाग रौ:सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ
२
आदर्श क उत्थान आ यथार्थ क पतन: उत्थान -पतन
–
१
भाग रौ:सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ
साहित्यक प्रतिमान बदलैत रहैत अछि ,मुदा किछु तत्व क निरंतरता बनल रहैत अछि ।नाटक साहित्य मे दू तत्वक महत्व कमोबेश सब युग मे रहल अछि । प्रासंगिकता आ रंगमंचीयता एहने दू टा तत्व अछि ।पहिलक सम्बन्ध मोटामोटी विषयवस्तु आ दोसरक सम्बन्ध शिल्प सँ अछि ।विभा रानी लिखित ‘भाग रौ‘ क विश्लेषण ऐ दृष्टि सँ कएनए उचित अछि ।
विभा रानी द्वारा ऐ नाटक मे भीखमंगा बच्चाक जीवन आ समाजक क्रूर दृष्टि क चर्चा कएल गेल अछि ।लेखिका द्वारा चयनित विषय वस्तु मैथिलीए मे नइ बल्कि आनोआन भाषा मे विरल अछि ।भीखमंगा बच्चा सभ आपसी वार्ता मे समाज आ जिनगीक कतिपय क्रूर पक्ष सँ परिचय करबैत अछि ।समाज ,सरकारक साथेसाथ भगवानहुँ सँ उपेक्षित ई बच्चा भारतीय समाज आ राष्ट्रक महानता पर व्यंग्य करैत अछि ।
भीखमंगा बच्चा सभ अपन जिनगी क क्षतिपूर्ति गोविन्दा,रितिक रोशन,शाहरूख,अभिषेक आदि क चर्चा सँ करैत अछि आ अपन कथात्मक सन्दर्भ मे ई जेहन करूण साबित होइत अछि ,रंगमंचीय दृष्टि सँ ओहने कलात्मक ।यद्यपि विद्वान लोकनि कें हीरो हीरोइन क ई अतिचर्चा अनसोंहांत लागि सकैत छन्हि मुदा अपन संदर्भ क मध्य ई रूचिगर आ प्रासंगिक बुझाइत अछि ।
‘दानापुर माने दाना स‘ पूरम पूरा ‘ भाग रौ नाटकक कथा प्रसंग देशक एहने दाना दाना चुगए वला सबसँ वंचित आ कर्मठ वर्ग क कथा छैक ।
एहि वर्गक सबसँ अभीप्सित भूख,चाह आ गंध थिकए,रोटी क गंध ।पेट मे ‘मरल सनकिरबो‘क थाह नइ मिललइ ;देशक नीतिनिर्माता आ प्रभुवर्ग पर प्रचण्ड प्रहार अछि ।भूखल बच्चा ऐ समाज मे अपन स्तर आ महत्व सँ परिचित अछि,ताहि दुआरे बच्चा1 कहैत अछि ‘प्रधानमंत्री छें जे मरि जेबें त‘ देसक काजधंधा थम्हि जेतै ।
नाटकक भाषा विषयवस्तुक अनुरूप करू आ मारक अछि ।तद्भव आ देशज शब्द क बाहुल्य नाटक के रूचिगर आ रंगमंचीय बनेने रहैत अछि ।
‘सिटी स‘ साहेब भ‘ गेलै त‘ हमरा आओरक भूख-पियासक रंग बदलि गेलै की?‘ उपरोक्त वाक्यक प्रश्नवाचकता आ कथनगत असंभाव्यता एकटा तनाव के जन्म दैत अछि ।
भीखमंगा सभ आपसी गपशप मे दूटा महिला राजनीतिज्ञ क चर्चा सेहो करैत अछि आ विडंबना ई जे दूनू महिला परिवारवाद आ भारतीय राजनीति क अनुर्वरता क पोषक छथि ।बच्चा सभ कहैत अछि जे पढि के की बनब?ई या ई ,दुर्भाग्य देखु जे दूनू महिला अपन विद्वता आ नैतिक शक्ति सँ जनमन क नेतृत्व नइ कइलक ।
एहन समाज आ राजनीति एकटा खास तरहक भाषा क इस्तेमाल करैत अछि ।ई भाषा प्रथमदृष्टया अश्लील आ मूलतः असंवेदनशील होइत अछि ।
‘ई डंडा एमहर स‘ घुसतौ त‘ मुंह दने निकलतौ ‘
वर्चस्व ,आक्रमण आ यौनविद्वेष सँ भरल ई भाषा एकटा खास सामंती आ मर्दवादी समाजक मानसिकता के पोषित करैत अछि ।
ऐ समाजक बुद्धिजीवी एहन भाषाक उपयोग नै करैत अछि ,मुदा अपन अनुर्वरता मे इहो तेहने अछि । दू टा पत्रकार - युवक आ युवती अपन शिक्षा आ संस्कार मे किछु अलग अछि ,मुदा इहो वर्ग सृजनशीलता आ नवोन्मेष सँ पूर्णतः रहित अछि ।युवती मे किछु नया करबाक संभावना अछि ,मुदा अंधकारक विराट आकाश मे ई संभव नै भेल ।
ऐे वर्ग क भाषा मे एकटा खास किस्मक नफासत अछि । तत्सम बहुलता आ अंग्रेजी शब्द आ वाक्य क बाहुल्य सँ ई वर्ग अपन विशिष्ट अस्तित्व आ रूचि पर बल दैत अछि । ‘नॉट ए बैड आइडिया ‘ ही इज डफर ,बी पेशेंट सनक चालू वाक्य रंगमंचीय अछि ।
रंगमंचीय उपकरण क रूप मे किछु नव प्रयोग सेहो अछि ।नाटक मे समवेत स्वर मे गान या बलाघात सँ किछु खास कहबा क प्रयास कएल गेल अछि ।
‘हम सब किछु नय क सकैत छी‘
आ
हमसब.......मात्र पुतली भरि
ई सब अपन संदर्भ मे बहुत अर्थवान अछि ,मुदा ऐ ठाम रंगमंचीय कौशल सेहो अपेक्षित अछि ,अन्यथा अंतिम प्रभाव उड़ियएबा क संभावना अछि ।
भाग रौ नाटकक असफलता सेहो स्पष्ट अछि । दोसर अंकक पहिल दृश्य मे मंगतू एक पृष्ठक स्वगत बाजैत अछि । ऐ दृश्यक उद्देश्य स्पष्ट रहितहुँ रंगमंचीयता संदिग्ध अछि ।दोसर अंक मे लेखिका क नियंत्रण नाटक पर कम अछि । भीखमंगा वला संदर्भ जतेक जीवंत अछि ,ओतेक पत्रकार आ प्रेस वला नै ।मध्यांतर क बाद ऐ गुरूत्वाकर्षण क कमी एकदम स्पष्ट अछि ।
नाटकक अंत एकटा कविता सँ होइत अछि ।संयोगवश ऐ कविताक समानता आ समरूपता हिन्दी कवि शमशेर बहादुर सिंह क कविता ‘काल, तुझसे होड़ है मेरी ‘सँ बहुत ज्यादा अछि ।
शमशेर- काल,
तुझसे होड़ है मेरी: अपराजित तू -
विभा -ओ काल...
अहीं स‘ हँ,अहीं स‘ अछि टक्कर हमर
शमशेर-भाव,भावोपरि
सुख,आनंदोपरि
सत्य,सत्यासत्योपरि
विभा-जे अछि सत्यो स‘ बढ़ि क‘ सत्य
शिवो स‘ बढ़ि क‘ शिव
अमरो स‘ अमर
सुंदरतो स‘ सुंदर.....
ई कविता नाटक ‘भाग रौ ‘ क महत्वपूर्ण भाग नै अछि ।तें एकर शमशेर क कविता सँ समानता क कोनो खास महत्व नै अछि ।मैथिली नाटकक इतिहास मे विभारानी अपन ऐ नाटक क संग विशेष महत्व क उत्तराधिकारिणी छथि ।विषयवस्तु मे नवोन्मेष क संगेसंग ट्रीटमेंट क अभिनवता ‘भाग रौ ‘नाटक के उल्लेखनीय बनबैत अछि ।
२
आदर्श क उत्थान आ यथार्थ क पतन: उत्थान -पतन
जगदीश प्रसाद मंडल जी क एहि उपन्यास मे आदर्श क प्रति एकटा खास दृष्टि अछि ।लेखकीय विजन मे आदर्श अछि ।ओ मानवीय स्वभाव क उच्चादर्श मे विश्वास करैत छथिन्ह ।मानवीय वृत्ति क नीक पक्ष पर ओ झूमैत ंछथिन्ह आ अधलाह पक्ष पर कानैत छथिन्ह ,मुदा एहि हर्ष आ विषाद क लेल आवश्यक संघर्ष उपन्यास मे समवितरित नहि अछि ।उपन्यास क प्रारम्भ गंगानन्द क कथा सँ होइत अछि आ प्रारम्भिक किछु पृष्ठ तक कथा क विकास ,चरित्र क विकास,मिथिला क्षेत्रक रंग आ मनोवैज्ञानिकता क चित्रण मे लेखक के अतीव सफलता भेटैत अछि ।लेखक क ई नियंत्रण संपूर्ण उपन्या स मे एके रंग नहि भेटत । जाहि ठाम लेखक कथा क अनियंत्रित जंगल मे भ्रमण कर‘ लागैत छथि,ओहि ठाम पाठकीयता प्रभावित होइत अछि ।तहिना लेखक चरित्र क विकास मे हस्तक्षेप करैत छथिन्ह आ पात्र कठपुतली जँका लेखक सँ नियंत्रित होइत अछि ।
गंगानन्द,विसेसर सनक सब प्रमुख पात्र एहि आदर्शवादी ढ़ंग आ रंग सँ निर्मित अछि । वास्तव मे ई कवि जगदीश प्रसाद मंडल क जीत अछि आ लेखक जगदीश प्रसाद मंडल क हारि ।पात्र क व्यक्तित्व क विकास मिथिला क तत्कालीन सामाजिक राजनीतिक स्थिति सँ कम आ लेखक क आदर्शवाद सँ बेशी होइत अछि ।ताहि दुआरे जत‘ पाठक लाठी आ भाला चलबा क अनुमान लगबैत अछि,ओहि ठाम ह्रदय परिवर्तन सब काज क‘ दैेत छैक ।विसेसर कें खेत एकटा मामूली सिपाही सँ मिलि जाइत छैक ।वास्तविक जिन्दगी मे ई विरल घटना संभव अछि,मुदा ई समाजक प्रतिनिधि घटना नहि अछि ।विरल घटना सेहो साहित्य क अंग भ‘ सकैत अछि ,मुदा ओकर अंकन अनुभवक भट्टी सँ अनिवार्य अछि ।
ई उपन्यास स्वतंत्रता पूर्व क समय सँ सम्बन्धित अछि ।बीसम सदी क पूर्वार्द्ध क किछु घटना क उल्लेख उपन्यास मे अछि ।स्वाभाविक अछि जे उपन्यास क तुलना ‘बलचनमा‘ आ ‘मैला आँचल‘ सँ हो । उपन्यास मे ऐतिहासिकता क बलाघात क कतहु प्रयास नहि अछि । ताहि दुआरे अतीत क कालखण्ड क उपन्यास होएबा क बावजूद ई सामाजिक उपन्यास अछि । उपन्यास मे मिथिला क सामाजिक आ आर्थिक पिछड़ापन के विशेष चिह्नित कएल गेल अछि ।मिथिला क सर्वांगीन विकास लेखकक अभीष्ट अछि ।लेखकक ई लक्ष्य एतेक महत्वपूर्ण भ गेल छैक जे यथार्थ सँ आदर्श क पटरी बैसेनए अत्यंत कठिन भ गेल छैक ।
आधुनिक काल मे उपन्यास विधा एकटा खास उद्देश्य सँ साहित्य मे विकसित भेल आ क्रमशः प्रधान होइत चलि गेल ।सामंती युग आ समाज क उत्कृष्टता आ भव्यता सँ परिचय करेनए महाकाव्य विधा क काज छल । आधुनिक युगक वर्ग संरचना आ वर्गवृत्ति बदललए आ युगक उद्देश्य सेहो बदलि गेलए । एहि युग क वैशिष्ट्य के प्रकट करबा मे महाकाव्य विधा क कमजोरी प्रकट भेल,फलतः पद्य आ महाकाव्य क स्वीकार्यता कम भेल ।नवयुग के व्यक्त करबा क लेल गद्य,नाटक आ उपन्यास सनक विधा पर जोर पड़लए ।महाकाव्य क स्थान पर किछु खास मकसद सँ उपन्यास क आसन लाग‘ लागलए ।एहि विस्थापनक सबसँ मुख्य कारण छल उपन्यास विधाक सर्वसमावेशिता ।उपन्यास क प्रत्यास्थ शिल्प सबकिछु के अपना मे समाविष्ट क लेलक ।विद्वान लोकनि क बीच ऐ बात पर सर्वसम्मति भेल कि नवयुगक प्रवृत्ति के महाकाव्यात्मक गहराई सँ प्रकट करबा मे उपन्यास सक्षम अछि ।‘उत्थान-पतन‘ क लेखक उपन्यास विधाक महाकाव्यात्मक आयाम सँ परिचित छथि ।हम ई नहि कहि रहल छी जे ई महाकाव्यात्मक उपन्यास अछि ,मुदा जाहि भाषा मे महाकाव्यात्मक उपन्यास लिखल जाइत छैक,ओहि भाषा मे पहिले एहने सामाजिक उपन्यास सब मिलि के एकटा रचनात्मक वातावरण क निर्माण करैत अछि । ई हमर सौभाग्य अछि जे हमरा समय मे जगदीश प्रसाद मंडल सनक स्पष्ट सामाजिक बोध वला उपन्यासकार मैथिली मे छथि ।
।‘उत्थान-पतन‘ क संरचना यदि भारतीय उपन्यास क संदर्भ मे कएल जाए तखन ओएह प्रेमचंदीय आ शरतचंद्रीय विजन क स्पर्श अछि । गाम पर आ गाम क लोक क प्रति प्रेमचंद सँ किछु बेसिए अपनत्व क भाव । ई व्यक्ति क स्वभाव सँ ल के घर क संरचना तक स्पष्ट अछि ।
‘कँचके ईंटाक आ खढ़क छारल दरवज्जा ।नीक कारीगर क जोड़ल देबाल आ नीक छाड़निहार छाड़ने ,तें दरवज्जा सुन्दर ।दरवज्जा क ओसार मे एक भाग एकटा कोठली बनल ‘।
प्रेमचंद क उपन्यास मे अहाँ के खोजला पर गाम क प्रति प्रशंसाक भाव नहि मिलत । हँ गाम क प्रति दया क भाव प्रेमचंद मे जरूर अछि ।गाम क दलित-शोषित जन क प्रति प्रेमचंद मे विशेष पक्षधरता क दृष्टि मिलत,मुदा गाम क प्रति एकटा नास्टेल्जिक भाव जे आंचलिक आंदोलनक विशेषता अछि से अनुपलब्ध अछि । ‘उत्थान-पतन‘क लेखकीय दृष्टि मे किछु किछु रेणु क गा्रम्य प्रेम अछि ।मुदा एहि ठाम रेणु वला विराट व्यंग्य अनुपलब्ध अछि ।
लेखकक दृष्टि क रूप मे एकटा खास प्रगतिशीलता उपन्यास मे व्याप्त अछि ।ई दृष्टि अछि पिछड़ल मनुष्य के आगू बढ़एबा क उपक्रम । एकठाम विसेसर कहैत छथिन्ह-
’हमरा तोरा सन जे पछुआइल परिवार आ लोक अछि,ओकरा मे किछु एहेन दुरगुन अछि जकरा सुधारने बिना अगुआइब कठिन अछि ‘
उत्थान-पतन क भाषा पर विचार कएल जाए एकर भाषा मे कतहु बिहाड़ि नहि भेंटत एकदम आत्मीय वार्तालाप क भाषा-
‘बीघा भरि मकइ ।पँच-पँच हाथक हरियर हरियर फुलायल गाछ।तीनि-तीनि,चारिटा बाइल गाछ मे झूमैत।जेना जुआन कनियाँ अपन जुआनी क गुण सँ झूमैत तहिना मकइ क गाछ झूमि झूमि एक दोसर सँ लट्टा पट्टी सेहो करैत ‘।
यदि ‘उत्थान-पतन‘ क त्रुटि क बात करी,त किछु मुख्य दोष अछि-
1 संवाद मे स्फीति ।जखन विसेसर अपन सासुर मे अमृतलाल सँ घर बनएबा क आग्रह सुनैत छथिन्ह तखन विसेसर एकटा लम्बा अनुच्छेद मे कालदेवता क महात्म्य बताबैत छथिन्ह ।श्यामानंद बोरिंग खुनएबा क बाद विसेसर के सामने एकटा नमहर भाषण मे क्रियाशील पूंजी आ गतिहीन पूूंजी क चर्चा करैत छथिन्ह ।
2उपदेश क भाव कतहु कतहु नाटकीयता आ रोचकता क भंग करैत अछि । एहि ठाम लेखक अपन विचार घुसएबा क लेल आदर्श क चाशनी सँ कतहु आवश्यक आ कतहु अनावश्यक विस्तार करैत छथि । पृष्ठ 41-42 मे ज्ञानचंद एकटा नमहर अनुच्छेद मे सामाजिकता पर बजैत छथि ।
3उपन्यास मे एक साथ एकाधिक कथा विद्यमान अछि ।विसेसर क कथा, गंगानन्द तीनू भाए क कथा,डाक्टर नीलमणि क कथा ।मुदा एहि कथा क बीच मे कोनो गंभीर संपर्कसूत्र अनुपस्थित अछि ।कखनो कखनो लागैत अछि जे एक उपन्यास मे कतेको टा कहानी एक साथ चलि रहल अछि ।
पाश्चात्य विद्वान लोंजाइनस कहैत छथिन्ह जे महान रचना निर्दोष नहि होइत छैक ,निर्दोष रचना क फेरा मे क्षुद्रता बढ़बा क संभावना बढ़ि जाइत अछि ।‘उत्थान-पतन‘ क कतिपय दोष एहने दोष अछि जे विराट सामाजिकता क आवाहन क क्रम मे बाई-प्रोडक्ट जँका प्राप्त होइत अछि ।मैथिली क ऐ महान लेखक सँ हमरा आरो आर महान कृति क अपेक्षा आ आर्शीवाद चाही जे हमरा मे पढ़बा-गुनबाक सामर्थ्य विकसित हो ।
१.शेफालिका वर्मा- रेत आ रेत २. सुजित कुमार झा-कथा- बंश १
शेफालिका वर्मा रेत आ रेत
‘भौजीकेँ की भ’ गेलि छैक पायल?’
बादलक स्वर सुनि चौंकि भाइ दिस तकलक पायलμ‘सदिखन एकटा स्वप्न-लोकमे डूबल आँखि, व्यथा-वेदनाक जीवंत
रूप, भौजी जखन बात करैत छथि तँ चारू दिस जलतरगक अपूर्व ध्वनि पसरि जाइछ! जेना कोनो दीयाक ‘लौ’ हुनक पानी पर, गालपर
दहकि रहल हो पायल, काल्हि राति ओ जखन पफोनपर गप्प करैत छलीह तँ लगैत छल जेना पफोन छोड़बाक हुनका मोन नहि होनि,
कतेक तन्मयता, कतेक आत्मीयता...’
एकटा साँस लैत बाजल-‘अपना सभकेँ हुनक मदति करबाक चाही...’
μ‘मदति.....?’ पायल चौंकि गेल।
μह! पायल, भौजी हमरा माए जकाँ पोसने छथि। हम माएक अभाब कहियो नहि अनुभव कयलहुँ। ओएहा मातृतुल्य भौजी
हमर कतेक उदास, कतेक परेशान.....आखिर किएक.....?
‘μएहि वयसमे हिनका एहि तरहक-हमरा जेना कोना दन लगैत अछि। दुइ बच्चाक माए भौजी तखनμ! स्वयंकेँ मारि देतीह,
अपन इच्छाक गराँ घोंटि देतीह, मुदा हारि मान’ वाली नहि छथि’
μ‘नहिए, पायल हमरा तँ होइए, भौजी स्वयं नहि जनैत छथि जे ओ ककरो अथाह प्रेममे डूबलि छथि। एहि तरहक आदमी
स्वयंकेँ पुफसियबैत अछि। अपनोकेँ स्वयंसँ नुकबैत अछि। हृदयक अन्तरतम गहींरंइसँ पुफटैत कामनाकेँ थकुचि दैत अछि।’
μहमरा बुझबामे किछु अबैत अछि भैया, अहाँ की बाजि रहल छी?
μ‘हमरा होइछ, भौजी ककरो चाहैत छथि। मुदा एहि वयसमे पहुँचि कोनो स्त्राीक सतीत्बकेँ ई स्वीकार नहि होइत अछि।
अपनापर अधिकार क’ अपन इच्छाक अरथी निकालि दैत छथि। जनैत छीμ
झाड़ि बहारि पथ नित राखब
कृष्ण भेला परम कठोर...
एतेक उदासीμएतेक व्यथा-वेदना-आघगनसँ भौजीक गीतक स्वर जेना बादल आ पायलकेँ मूक क’ गेल। भौजीकँ गीत
गयबाक बड़ स’ख छलनि। ओ सदिखन किछु ने किछु गुनगुनाइत रहैत छलीहμसभटा उदासीक गीत। कनेक कालक लेल गीतक स्वर
रुकि गेल। प्रायः भौजी अपन नोर पोछि रहल छलीहμ
अपन सनेस छोड़ि जायब सखिया
इहो दूनू नयन चकोर
एक-एक आखन जेना कराहि रहल छल, एक-एक स्वर आहत भ’ छटपटा रहल छल......!!
बादल अपन सोचमे ओझरायल रहल। भौजी किएक एना बदलि गेलीह? नहि जानि, ककर खियालमे भौजी कटल गुîóी सन
बेबस जकाँ पहुँचि जाइत छथि? बैसलि-बैसलि गुम-गुम! गप्प करैत-करैत जेना हेरा जाइत छथि। हमरा होइत अछि, भौजी स्वयं नहि
बुझैत छथि। ओ ककरो चाहैत छथि एहि वयसमे खास क’ धर्मभीरु, दुई जुआन बच्चाक माए ककरो चाहबाक कल्पनो नहि क’ सकैत
अछि। कहियो अपन दुर्बलता स्वीकार नहि क’ सकैत अछि। तैयो भावनाक बिहाड़ि कखनो-कखनो हुनका अद्वेलित क’ दैत छनि।
हुनक अधरपर खेलाइत एकटा जादुइ मुस्की, हुनक व्यवहारमे कखनो चंचलता आबि जाइछ। भौजीक हृदयमे कोनो दबल-दबल
पुफलझड़ी अछि। हुनक तीतल पलक कँपैत अवर आ बाझर स्वर जेना हुनक बेबसीक चेन्ह थिक। ओह! बादलक माथक नस सभ
चरचरमराय लगलैक
यदि ई बात सत्य होयत तँ भौजी कहियो अपन लोकसँ, अपन परम्परागत रास्तासँ हटि नहि सकैत छथि? नहि जानि एहि
तरहँ कतेक जीवन अमावस्याक चिर अंधकारमे डूबि जाइछμनोन जकाँ पानिमे चुपचाप घुलैत.....
ओहि दिन कोनो बातपर तमसा क’ भैया आपिफस चल गेलाह। भौजी किछु नहि बजलीह। भैयाक भयंकर गर्जन-तर्जनमे डूबल
भौजी मौन-मूक ठाढ़ि रहि गेलाह-भैयामे इएह एकटा खराबी छनि जे तामसमे हुनका समय-असमय, निर्दोष-दोषी-कथूक ख्याल नहि
रहैत छनि। भैयाक आपिफस गेलाक बाद भौजी चुपचाप बादल आ पायलकेँ जलखै करब’ लगलीह! बादल कतेक आग्रह कयलक
भौजीसँ खयवा लेल-पायल भौजीसँ प्रार्थना करैत रहलीह, मुदा भौजी!... नहि जानि हुनका की भ’ गेलनि? उदास-उदास,
कानल-कानल, चिन्तामे डूबल। जेना कनबाक कोनो बहाना ताकि रहलि छथि। जेना हुनक किछु हेरा गेल हो, खाली-खाली आँखियेँ
शून्य मे ताकि रहल छलीह। नहि ककरो माए, नहि ककरो पत्नी, नहि ककरो भौजीμकिछुत’ नहि छलीह ओμओहि काल। भौजीक
ओहि रूपकेँ देखि पायल कानय लगलीहμअहा!केँ की भ’ गेल भौजी? की भ’ गेल? बादलक समस्त तन, रोम रोम जेना भौजीसँ प्रश्न
क’ रहल छल। मुदा, सभटा प्रश्नकेँ अनुत्तरित घुरबैत भौजी चलि गेलीह, बाथ रुममे। नहा धो क’ निकललीह आ पेफर ओएह भौजी!
बादल पायलक अवरपर मुस्कीक किरण चमकि गेलैक। सभ केओ जलखै करवालेल बैसलाह। बादल कोनो अवसादमे डूबल चुपचाप
भौजीक मुँह देख रहल छलाह। खिड़की पारसँ रहल छल! बादल जेना अभिभूत भ’ उठल। सिन्दूरी रंगमे डूबल भौजीक तेजोमय सौन्दर्य
देखि.....ओकर आँखि एहि महान देवीक समक्ष नमित भ’ रत्तिफम किरणमे अछि, ओतबे अहाँक आत्मामे। तखन अहाँ एतेक उदास
किएक छी? एतेक दुखी किएकμ? मुदा बादलक प्रत्येक प्रश्नकेँ भौजी अपन तिलस्मी हँसीसँ बिच्चे पगडंडीमे भटका दैत छलीह।
बादल चुपचाप सोचक एकटा नमहर रास्तापर निकलि जाइत छल। ओ एहन बाट छल जाहिमे कतेको भटकाव, कतेको घुरची छल।
एहि घुरचीकेँ सोझरयबामे अनेक क्षण मिलि मिनटक स्वरूप लेलेक आ अनेक मिनट मिलि घंटा। अचक्के ओकर सोचक ई क्रम टूटि
कानमे दूरसँ अबैत कोनो आबाज सुनाय पड़लैकμ‘की बात छैक बाउ, एना ठाढ़ भ’ की सोचि रहल छी?’
बादल हड़बड़ा गेलμ‘किछु त’ नहि भौजीμकिछु नहि।’
भौजी ओकर बाँहि पकड़ि लेलक ‘किछु बात अछि बाउ, अहाँकेँ कथीक सोच अछि?
भौजीक प्रश्न सुनि ओ आँखि उठा क’ हुनका दिसि तकलक। ओह! भौजीक ओ नजरि बादलक अंतरकेँ जेना प्रकप्मित क’
गेल। ओ चुप नहि रहि सकल- ‘अहाँकेँ कखनो कखनो की भ’ जाइत अछि भौजी? सभ सुख प्राप्त रहितो भौजी कखनो लगैछ भौतिक
सुख उपलब्धिक एतेक जयघोषक मध्य जेना अहाँ विराट् शून्यमे हेरा जायत छी। किएक भौजी किएक?’
जेना बादलक प्रश्न भौजीक समस्त अस्तित्वकेँ झकझोरि देलक। किछु अकचका क’ ओ एकटा निसाँस छोड़लनि। एक तोड़
पानि-बिहारिक बाद वातावरणमे एकटा विचित्रा शांति रोम जाइछ, तहिना कतेक काल धरि भौजीक चेहरा सपाट रहल आ पुनः दोसर
तोड़ पानि बिहाड़ि उठल। कनेक काल पहिने धरि जे चेहरा सपाट छल, से कतेक मनोभावनासँ भीजि-तीति गेल।
μभौजी, बाजू ने भौजी! कोन करणेँ अहाँ एतेक आत्मपीड़न भोगि रहल छी? कखनो लगैछ अहाँ एकटा कली छी गुमसुम,
चुपचुप! जखन अहाँ हँसैत छी तँ कली पूफल भ’ जाइछ। अहाँक संपर्कमे आयल सभ केओ एहि सौरभसँ सुरभित भ’ उठैछ। अपन
दुःख अपन पीड़ा बिसरि जाइछ। भैयो तँ बजैत छथि जे अहाँक भौजी एकटा ‘टॉनिक’ छथि, हँसीक ‘टॉनिक’, सौरभक ‘टॉनिक’।
आ’ पेफर लगैछ हवाक कोनो तीव्र झोँक आयल आ पूफलक सभटा पंखुरी धूरामे छिड़िया गेल! पूफल-पूफल नहि रहैछ, अहाँ-अहाँ नहि
रहैत छी? भौजी, ई कोन बयार थिकμकोन पीड़ा थिक?μ बादल आवेशसँ हाँपफ’ लागल।
भौजी ता घरि अपनाकेँ सहज क’ लेने छलीह? किछु बाजबा लेल हुनक अधर खुजल की पफोनक घंटी टनटनाय लागल।
ओ दौड़लि ‘ड्राइंग-रुम’ चल गेलीह! बादलक कानमे भौजीक म(िम स्वर पड़लμ‘हेलो की हाल छैक? हम? जीबैत छीμ हँ,
जीबैत-जीबैत थााकि गेल छीμहम जीब’ नहि चाहैत छीμ जीब’ नहि चाहैत छीμबड़ कठोर यात्रा अछि एहि जीवनक.....’
बादलक कानमे भौजीक दर्द भरल स्वर घुमरैत रहल। पफोनपरकेँ छल? भौजीकेँ कोन दुःख छनि? के अछि जकरा दुःख नहि
छैक? ककर जीवन सर्वथा क्लेश, व्यथासँ रिक्त अछि! मुदा ओहि दुःख, क्लेश, व्यथाकेँ अभिव्यक्त करबाक लेल सभ केओ
कोनो-ने-कोनो रूपमे माध्यम ताकि लैत अछि। प्रकृति धरि एहिसँ छटल नहि अछि। आकाशक हृदयक व्याकुलताकेँ अभिव्यक्त नहि
करैत अछि? आ’ सोचक ई सीमा असीम भ’ उठैत अछि,μ जखन आकाशक छटपटी एकटा बिजुरी .....?????? कौंधि जाइत अछि!
मेघक ई स्वर.....आकाश जखन अपन वेदनाकेँ सहाजकरबामे असमर्थ भ’ जाइछμत! वेदनाक ईं चीत्कार समस्त संसारकेँ कँपा दैत अछि।
आकाश तँ सरिपों एतेक कमजोर, एतेक असमर्थ भ’ जाइछ जे आँखिसँ अविरल अश्रुकरण खस’ लगैछ। मुदा भौजीकेँ कनितो तँ नहि
देखैत छियनि! सभटा नोर ओ पीबि लेने छथि......तावत भौजीक खनखनाइत हँसी ड्राइंग-रुमसँ पेफर सुनाइ पड़ल। परदा हँटाक’ चुपचाप
बादल देखलक। मोहल्लाक चारि-पाँचटा छौड़ा भीजीकेँ घेरने-‘चाची, सरस्वती पूजाक चंदा चाहीμचाची, बिना अहाँक मदतिक कोनो
भ’ सकैछμ‘आँटी आप हमलोगों को सलाह देती रहेंμ‘सभक स्वरक जयमाल पहिरने भौजी मुस्कियाइत रहलीहμ‘बेस, अहाँ सभ
निश्चिन्त रहू, एहि बेर एहि मोहल्लामे एहेन सरस्वती पूजा होयत जेहन कहियो नहि भेल अछि।
μ‘चाची जिन्दाबादμअ!टी जिन्दाबाद’ नाराक संग छौड़ा सभ चल गेल। समयक सागरमे ज्वार-भाटा अबैत रहल आ एक दिन
डाकिया चिट्टòी ल’ क’ आयल। साइकिल घंटी बजबाक संगे भौजी पागल जकाँ दौड़लीह। डाकिया एकटा लिपफापफ द’ चल गेल।
भौजी छटपटाक’ चिट्टðी पढ’ लगलीह। हुनक चेहरापर अबैत-जाइत रंगकेँ खिड़कीसँ बादल चुपचाप देखैत रहल! तखन बादलक मोनमे
हल्लुक सन संदेहक साँप पफन काढ़लक।μ ककर चिट्टðी भौजी एतेक प्रेमसँ पढ़ि अपन कोठलीमे ओछाओनतरमे राखि देलनि? बादलक
निः शब्द आँखि भौजीक पाछाँ क’ रहल छल। ओकर हृदयमे एकटा आवेग उठलμएकटा भनसा घरमे छलीह। अपन कोठली बंद क’
आशंकित मोन आ अव्यक्त भयक संगे ओ चिट्टðी पढ’ लागलμ
‘प्रिय नेहा! .....’ आ नेहाμभौजीक नामक संबोधन ओकरा कोनादन लगलैक। एहिठाम केओ भौजीक नाम नहि कहैत छलनि।
खाली भौजी, चाची, काकी, माँ इएह सभ रूप हुनक छलनि! खैर, बादल आगाँ बढ़लμ‘पत्रा, ‘अहाँक भावमय पत्रा भेटल। हम ओकरा
एकबेर दुइ बेर, अनेक बेर पढ़लहुँ। ओह! कतेक भावमयी अहाँ छी! लगैछ ईश्वर अहाँकेँ, अहाँक मोन-प्राणकेँ कोनो रेशमक मुलायम,
सुकुमार, ‘मासूम’ तारक ताना-बानासँ बुनने अछि, जाहिमे सलोनी पूखणमाक स्निग्ध, चन्द्रिकाक रस निचोड़ि राखल.....’ओ पत्रा पढ़ैत
जाइत छल आ बादलक माथपर आबि रहल छलμभौजीक रहस्य जेना खुजि रहल छलμ‘एहि मोन-प्राणमे मानसरोवरक हँसक शुभ्रता
आ मयूरपंखक चित्रामयता अछि। कतेक रंग, कतेक सम्मोहन भरि देल गेल अछि अहाँक अन्तरक नीलाभ आकाशमे? साओनक घटाक
करुण कोमल व्याप्ति आ बिजलीक तड़ित लयसँ अपन सपनाक सिंगार कयने छी अहाँ।’ बादल अपन हृदयक धड़कन स्वयं सुनि
रहल छल। भौजीक प्रत्येक हाव-भाव, एक-एक रहस्य ओकरा रोमांचित क’ रहल छल...‘एहि विशाल विश्वमे जाहि ठाम हमरा लेल
कोनो विशेष आकर्षण आ सम्मोहन नहि अछि, जाहि ठाम हमरा जीवामे कि मरि जयबामे कोनो अन्तर नहि अछि ओहिठाम अहाँक
पत्रा एकटा पुलक, एकटा भोरक किरण, एकटा शरदकालीन ओसक चमक आ बसन्ती बयार बनि अबैछ, हम अपन ऊपर रसवंती
केतकी वा चमेली वा किछु आरक अनुभूति करैत छी.....’ बादलकेँ लगलैक, भाभी कतेक ‘Úॉड’ अछि? कतेक ‘भोला-भाला’ कतेक
नीरक्षीर सन पावन मुदा असलमेμ? ओकरा मोन भेलैक, तुरत भौयाकेँ जाक’ पत्रा देखा दी। तुरत भौजीसँ पुछी। पेफर सोचलक, कने
आर आगाँ पढ़ि लीμ अहाँक मोनमे किछु घुमरैत रहैत अछि। हम बुझैत छी, अपन भाइपर विश्वास नहि अछि?’ भाइ-बहिन?
बहिन-भाई? बादलक दिमाग जेना चक्कर काट’ लगलैक... ओकर बनाओल रेतक सभटा रेखा बिहाड़िमे लुप्त भ’ गेलैक। ओकर ऊपर
साँस जेना नीचाँ आयल? भौजी-ओह! कतेक बात ओ सोचि गेल? जेना भयंकर सपना देखिक’ ओ उठल होअयμजेना कोनो अनर्थ
होइत-होइत बाँचि गेलैकμ‘अहाँ हमरा राखी बन्हने छी। तखन अहाँकेँ हमरापर विश्वास नहि अछि? राखीक अर्थें थिक बहिनक रक्षाक
भार!’ μबादलक मानस-जेना पानि बरसि आकाश निरभ्र भ’ जाइत छैकμ एकटा पैघ ‘एक्सीडेंट, होइत-होइतμएकटा भयंकर ‘ट्रैजेडी’
होइत-होइत बचि गेल। मुदा की ‘ट्रेजेडी’ होइत-होइत बचल? की भयंकर ‘एक्सीडेंट’ नहि भ’ गेल? ओहि भाग्यहीन दिवसक रेत
बादलक आँखिमे गड़’ लागलμएहि तरहक ओझराहटि आ भौजीक पाछाँ बेहाल बादलक प्रकृति एकदम रूक्ष भ’ गेल छल। अपन
पढ़ाई-लिखाइ सभ बिसरि गेल छल! मेडिकलमे एडमिशन टाकाक तंगीक कारण नहि भ’ रहल छलैक! ओ चुप भ’ नियतिक खेल
देख रहल छल। एम्हर भौजीक प्रवंचनाμह!, प्रवंचने तँ छलीह-दोसर लोक लग कतेक उत्पुफल्ल, कतेक उन्मुक्त, कतेक सहज, मुदा
अपने घरमे कतेक निराश, कतेक बंदिनी, कतेक दुरुह। समस्त शहरमे भौजीक बड़ाइ, छोट-पैघ, बूढ़-बेदरा स्त्राी-पुरुष सभ केओ मुक्त
कंठेँ करैत छल! ओएह भौजी भरल घर, लोक रहितो, कतेक असम्पृक्त भ’ जाइत छलीह।
जखन भैयाकेँ कोनो गरजे नहि छनि तँ हम कथी लेल भौजीक पाछाँ तबाह भेल छी। आ’ कॉलेज जयबा लेल बादल तैयार
होब’ लागल। ड्राइंग रूममे पेफर पफोन घंटी टनटना उठल? आ पुनः भौजीक स्वर स्थिरसँ तीब्र। पुनः एकटा खनखनाइत हँसी.....आ’
बादलक कानमे जेना काँच पिघलैत रहलμ दस मिनट बीतल, बीस मिनट बीतलμभौजीक गप्पक कतहु अन्त नहि छलμबादलक
दिमाग साँय-साँय क’ रहल छल।
ई कोन गप भेलै पफोनपर! गप करैत छी, हँसैत जा रहल छीμई की भेलैक? हम जलखै करबा लेल ठाढ़ छी, कालेज जाक’
पता लगौनाइा अछि आ भौजीμएकटा नम्हर गपमेडुबल, बात-बातमे ठहाका...गप किछु सुनाइ नहि पड़ैत छल, मुदा स्वरसँ बादलक
समस्त तनमे लहरि पूफकि देने छल! ओ तामसे कालेजदिस विदा भेल......गेट लग पहुँचल कि भौजी पाछाँसँ दौड़लि ओकर बाँहि पकड़ि
लेलकैμ‘‘जलखै क’ लिय’ बाउ!’μ‘‘नहि बड़ अबेर भ’ गेल, हमरा कॉलेजमे किछु काज अछि।’ तिक स्वरेँ बाजल बादल। ओकर
स्वर पर भौजी चौंकि उठलीह!
‘बाउ, अहाँक दुआरे हमहूँ नहि करब’ किछु अप्रतिभ होइत भौजी बजलीह।
‘हमरासँ कोन मतलब अछि अहाँकेँ? अपन जाक’ खा लिय’μ उपेक्षासँ बादल बाजल।
‘हम नहि जाय देब, जा धरि अहाँ जलखै नहि करब।’ बासी मुँहेँ हम नजि जाय देबμभौजी ओकर बाँहि घिचने भनसा घर
दिस ल’ जाय लगलीह।
‘हम एक बेर कहि देलहुँ, नहि खायब’।
अपन जगहपर अडिग छल ओ। भौजीक लेल बादलक ई रूप अकल्पनीय छल, अकथनीय छल। ओ अवाक् छलीह! वेदनाक
एकटा ज्वार हुनका आँखिमे उठल, मुदा तुरते अपन कौशलसँ ओहि ज्वारकेँ उपेक्षित क’ देलनि। एकटा दर्द भरल मुस्कीक संग
बजलीहμ‘हे यौ, केओ किछु कहि देने अछि? अहाँ एना किएक क’ रहल छी? हमरा सँ कोनो गलती भेल अछि? की बात अछि?
चलू हमरा भूख लागि गेल अछि रविक प्रात थिक।’
‘रविक प्रात...जा क’ अहाँ खा लिय’? हमरा की कहैत छीμएतेक कालसँ जे अहाँ निहोरा करबा रहल छी एतेकमे त’ अहाँ
कैक बेर खा लितहुँ।’ बादलक सभ उपेक्षाकेँ अनदेखन सन क’ भौजी कहैत रहलीहμ‘हम अहाँ बिना खाइत छी?’ अनुनय करैत
बजलीह। बादलकेँ विवेक जेना कतहु हेरा गेल छलμ‘एतेक बहाना नहि करु भौजी! अहाँकेँ हम खूब चीन्हैत छी।’
‘बा...द...ल....’ बादलक विद्रूप हँसीसँ भौजी जेना विवश भ’ गेलीह।
‘अहाँ अपनाकेँ की बुझैत छी? छोड़ू हमर हाथ!’
‘बादल...! भौजीक हाथ ओकर गट्टðा पर आर मजगूत भ’ गेल।’
‘बी बात छैक बादल जी? अहाँकेँ...’
बादलकेँ जेना अपन होश हवास पर कोनो कब्जा नहि रहलैकμनहि छोड़ब? त’ लिय’...।’ भौजीक हाथ बामा हाथसँ कसि
क’ मोचड़ि देलकμअपन हाथ उन्मुत्तफ क’ लेलक। भौजीक मुँहसँ एकटा पीड़ा निकलल ‘ओह!’ आ हुनक सौँसे चेहरा रक्तिम भ’
गेल। बादलकेँ की भ’ गेल छैक?
‘ई कुहरब काहरब नकल हमरा ल’ग किछु नहि चलत।’ बादल क्रोधावशमे माहुर भ’ गेल छलμओकर कंठ स्वर सौंसे
आंगनकेँ प्रकम्पित क’ रहल छलμओ बिसरि गेल छल, हमर ई भौजी थिकीह, कोमल मसृण ओस सन मातृ तुल्य-ओ भैया छथि
जे वर्दाश्त करैत छथि। हमरा सभ-आ आवेशसँ ओकर स्वर रु( भ’ गेलैक।
‘अहाँ की करितहुँ?’ भौजी पुछैत रहलीह।
‘हमμ? पूछू, की नहि करतहुँ? आन आन लोक संग टेलीपफोन पर एतेक हँसी, एतेक ठट्ठाμभैया नहि जनैत छथि तेँ ने?
अहाँ भैयाक आँखि मे धूरा नहि झोँकेत छी की?μ अहाँ अपना केँ......
तावत बादलक गालपर पाछासँ दू-चारि चाट लागलμ‘बदतमीज बेहाया, अपन मातृतुल्य भौजीसँ उकटा पैंची क’ रहल छें?
कोम्हर दनसँ भैया आबि गेल छलाह। थापड़ लगिते बादलक आँखि मे तरेगन नाचि गेलैक। बीचमे भैयाक हाथ पकड़ि भौजी बाजि
उठलीहμ‘ई की करैत छी? बेटा सन छोट भाइ पर हाथ उठबैत छी’?
‘जे बेटा अपन माए पर कलंक लगबैक ओहि बेटासँ बेटा नहि रहनाइ नीक थिक।’
मुदा बादल, ओकर दिमाग जेना पगला गेल छलμ‘भैया, अहाँ भौजीसँ पूछू। एखन किछु काल पहिने ओ पफोन पर ककरासँ
हँसि-हँसि गप्प करैत छलीह’?
‘अरे निर्लज्ज, मोन होइछ जाहि जुबानसँ ई प्रश्न निकलल, ओहि जुबानकेँ पकड़ि क’ खींचि ली.....।
अहाँ के हमर सप्पत थिक। आब अहाँ शान्त भ’ जाउ। हमरा बेटा नहि अछि। हम बादलकेँ बेटासँ बढ़ि क’ मानैत छी। बेटा
माएके किछु कहैत छैक त’ ओ कलंक नहि होइत छैक।’ आ भौजी पफपफकि-पफपफकि कान’ लगलीह। मुदा, भैया तमसायले स्वरमे
बाज’ लगलाहμ ‘किछु काल पहिने तोहर भौजी हमरेसँ गप्प करैत छलीह। बुझलही, खाली तोहर विषयमे’!
बादल अवाक् छल। ‘कहैत छलहु तोहर भौजी जे मेडिकल कॉलेजमे जेना होयत बौआक नाम अवश्य लिखायब। कम्पिटीशनमे
नहि अयला त’ की होयतैक? जेना होयत, हम सभ टाका-पैसाक इंतिजाम क’ हुनका डॉक्टर बनायब।’
भैया दाँत पींसैत एक-एक शब्द पर जोर दैत बजैत रहलाह। ‘हम कहलियनि एतेक टाकाक इंतिजाम मुश्किल अछि! तोहर
भौजी की जबाब देलकौ से बुझलही?μ अहाँक बैंक में पाँच हजार जमा अछिए। हमर गहना जेबर बन्हकी राखि दस हजारसँ उपर
भ’ जायत। हम कतेक विरोध कयलहुँ जे बन्हकी नहि लगायब। अहाँक गहना पर हमर कोन अधिकार अछि? मुदा हमर सभ बातकेँ
ओ हँसैत-हँसैत काटि देलनि-नाम लिखयबामे मात्रा दुइए दिन बाँचल छै! हम सभ गप्प क’ रहल छी बंधकी लगयबा लेल! एखन
तुरंत अहाँ चल आऊ-।’ भैयाक गर बोझिल भ’ गेलनि।...‘आ एहिठाम तोँμबड़ नीक प्रतिदान प्रेमक दैत छलाह? तो ठीके पैघ आदमी
बनबह।
आ बादलकेँ काटू त खून नहि। रेतक ढेर...ढेर बिरहो ओकर आँखि कान, नाकमे भरि गेल आ बादलक दम औना रहल हो,
घुटि रहल हो...
‘बाउ, चलू जलखै करबा लेल’
μओएह स्नेहिल स्पर्श....
२
सुजित कुमार झा-
कथा
बंश
हमर दृष्टि तीव्र गती सँ पत्रिकामे प्रकाशित परिणाममे अपन रोल नम्बर ताकि रहल छल ।
अपन रोल नम्बर पर नजरि पड़िते हमर मोनमे ओहने खुशी भेल जेना कोनो सातदिनक भुखाएलकेँ आगामे छप्पन प्रकारक व्यंजन पड़ोसि कऽ कियो धऽ देने होइ । समिपमे बाबुओ जी आ माँ ठाढ़ रहथि ।
हुनको आँखिमे खुशीकँे सागर हिलोर मारैत कियो देख सकैत छल । मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास कऽ गेल छलहुँ, एहि क्षणकँे प्रतिक्षो एक—एक पल एक—एक वर्ष जकाँ बितौने छलहुँ हम ।
सम्भवतः हमरोसँ बेसी एहि क्षणकेँ प्रतिक्षा माँ कँे छल । तएँ अनायासे ओकरोे मुँहसँ निकलि पडल ‘हमर बेटी कोनो बेटासँ कम अछि ? हाकिम बनि हमर खनदानकेँ नाम रोशन करत ।’
आखिर ई हमर सपना सकार कइए कऽ देखौलक !
ओकर एहि कथनमे खुशी छलैक रहल छल आ की खुशीसँ बेसी पीडा । हमर माँ कँे मनोभावकेँ बुझि बावुजी प्रेम सँ ओकर बाहि थपथपा देलन्हि ।
हमरा मेडिकलमे चयनकेँ खुशीमे बाबुजी सभकेँ मँुह मिठ करएबाक लेल मिठाइ लाबय बजार चलि गेलाह । माँ भानस घरमे चलि गेल । शायद ओ कोनो निक जलपान बना हमरासभकँे खुआ अपन खुशी व्यक्त करय चाहैत छल । हम अतितक पुस्तककेँ पन्ना उलटाबय लगलहुँ ।
जहिएसँ हम होशगर अर्थात बुझय बला भेलहुँ । अपन मायकँे दाइद्वारा प्रताडित होइत देखने छलहुँ । पहिने तऽ हमरा बुझबामे नहि आबय । आखिर हमर माँ हुनकर की बिगाड़ने छल , कोन कमी वा अपराधक कारण सदिखन दाइ आ पिसीकेँ व्यंग्य वाणक मारि झेलैत अछि माँ ?
धीरे—धीरे हम बड़का होइत गेलहुँ आ पारिवारिक तथा समाजिक परिस्थितिकेँ बुझय लगलहुँ । दाइक आक्रोशक कारण हमरा बुझयमे आबय लागल ।
हम तीन बहिन छी । हमरा कोनो भाइ नहि अछि । दाइकँे दृष्टिमे माँकेँ कोनो बेटा नहि होएब सबसँ बड़का अपराध छैक । तेसर बेटी यानी हमर जन्म भेलाक बाद तऽ घरमे हंगामे ठाड़ भऽ गेल छल । दाइकेँ पुरा उम्मीद छलन्हि की अहिबेर लड़कँे हेतै, मुदा से भेल नहि । फेर लड़कीए होएबाक खबर सुनि ओ हमर मुँह देखब तऽ दूर, माँ कँे छठिहार दिनक बिध तक नहि करओलन्हि । बाबुजी अस्पतालसँ किछु दिनक बाद हमरा आ माँकँे घर अनने रहथि । माँ कँे दुःख जखन कखनो बाबुजी बाँटय चाहथि, हिम्मत नइ हारबाक बात कहथि हँसय हँसाबय कँे बात करथि, ओ दाइ कँे पसिन नहि पड़ैक आ मुँह बिचुका कऽ दाइ बाजल करथि, ‘ई जोरुकँे गुलाम अछि ।’
माँ एखन तनमनक पीडा सँ उवरलो नहि रहथि की दाइ अपन बेटा यानी हमर बाबुजी पर दोसर विवाहक दबाबक बात शुरु कऽ देलन्हि । दाइयक कहब छल, ‘आखिर बेटा बिना वंश कोना चलतै ?’
जखन बाबुजी दाइकेँ बातकँे अनसुना कऽ दैथ तऽ ओ हमर माँ पर तामस उतारथि ‘३÷३ बेटीकेँ जन्म देलक, एकटा बेटा जन्माओल नहि भेलन्हि ।’ तऽ कहियो कहथि ‘ई नहि होइ छन्हि की हमर बेटाकँे पिण्ड छोड़ि दैथ जहिसँ हम दोसर पुतहुँ लऽ आउ, पता नहि केहन सँ पाला पड़ल अछि ।
दोसर पुतौहँु बेटा जन्माबयकँे सर्टिफिकेट अपन संग लऽ कऽ औती ? अहि सभ गप्प सँ माँ भितरे—भितर टुटय लागल, मुदा बाबुजीकेँ दृढताक कारणे दाइकेँ एक्को नहि चललन्हि , एहि मादे ।
माँ बाबुजी कँे कतेकोबेर बतिआइत आ दुःखी होइत सुनने आ देखन छी ।
एखन तक हम बहुत सम्झदार भऽ गेल छलहुँ , पढाइमे हमर रुचिकेँ देख बाबूजी हमरा विज्ञान विषयसँ इन्टर करेलाक बाद मेडिकलकँे प्रवेश परीक्षामे बैसौलथि, जखन की हमर दूनु बहिनकेँ दाइक हस्तक्षेपक कारण माध्यमिक कँे बाद घरेमे बैसय पड़ल छल ।
दाइकँे माँ सँ कोनो सहानुभूति नहि छलैक, विवाह कएलाक बाद सासुर अयलापर माँ कँे नाम दाइ बौअसिन रखने छल । मुदा हमरा जन्म भेलाक बाद तऽ हुनकर नजरिमे अलक्ष्नी बाहेक किछु नहि रहि गेल छल । ओ अपन आक्रोश कोनो ने कोनो बहन्ना लगा कऽ उताडैÞत रहैत छली ।
आ माँ अपन व्यथा छातीमे दबा नोर पीबैत रहैत छल ।
माँ पर होइत अत्याचारकँे देख हम मनेमन एक संकल्प लेलहुँ आ ओकरा पुरा करबाक लेल जि जान सँ पढाइमे जुटि गेलहुँ । हमर मेहनत आ लगन सफल भेल आ आइ हमरा मेडिकलमे चयन भऽ गेल ।
हमरा चयनमे माँ केँ बड़का हाथ छलैक, जेकरा हम शब्दमे व्यक्त नहि कऽ सकैत छी ।
बाबुजी हाथमे कए प्रकारक मिठाइ लऽ कऽ एला आ खुशीसँ झुमैत कहलन्हि, ‘आइ हम अपन संगी साथी करकुटुम्बसभकँे मिठाई खुएबै । मीनाकँे जन्मपर तऽ घरमे मिठाइकेँ एकटा टुकड़ियो तक नहि आएल ।’
डाक्टरीमे हमरा चयन भऽ गेल ई सुनि दाइ सेहो अचंभित छली । हुनकर दृष्टिमे तऽ लड़कीकँे अधिक पढय सँ की लाभ ? आखिर लड़कीकेँ तऽ चुल्हे फुकयकेँ छैक । जे होइक , हम धरान मेडिकल कलेजमे पढय चलि गेलहुँ ।
छुट्टीमे जखन हम आवी तऽ दाइसँ विशेष रुपसँ भेटैत छलहुँ । धीरे—धीरे हम अनुभव केलहुँ जे लड़कीकँे प्रति दाइकँे धारणामे परिवर्तन आवि रहल छलैक ।
हमरा एकर किछु—किछु अनुमान तऽ छल, मुदा तइयो हम एकर कारण माँ सँ जानय चाहैत छलहुँ । ओ कहलक कि हमर पिसीकेँ लड़काकँे लालसामे एककेँ बाद एक करैत ५ टा लड़की भेलन्हि । छठममे लड़का भेलन्हि । एतेक ने लाड प्यार ओकरा देल गेल जे ओ बिगरि गेल । बड़का भेलापर ओ अपराधी प्रवृतिको निकलल । ओकर आदत आ व्यवहार सँ मायबाबुकँे ओकरा बेटा कहयमे लाज होबय लागल छैक ।
पाँच बरखकँे बाद जखन हम एमविविएस कँे डिग्री लऽ कऽ घर एलहुँ तऽ मायबाबुकँे सँग—सँग दाइकँे आँखिमे सेहो खुशी देख हम पुलकित भऽ उठलहुँ ।
एखन हमर संघर्ष जारीए अछि । आगा आओर पढिलिख कऽ सर्जन बनय चाहैत छी । दूनु दिदीकँे विवाह भऽ गेल अछि । आब बाबुजी हमर विवाह कऽ अपन उत्तरदायित्वसँ मुक्त होबय चाहैत छथि, मुदा हमरा सर्जन बनबाक इच्छाकेँ देखैत हमर माँ मात्र नहि दाइ सेहो हमरा आगा पढावयकेँ लेल बाबुजीकँे मनौने छल ।
आइ कठिन परिश्रमक बाद हम एक कुशल सर्जन बनि गेल छी । दाइकँे अल्सरक अपरेशन हम स्वयं अपने हाथसँ कएलहुँ अछि ।
आब हमर दाइ बेटाकँे वकालत नहि करैत अछि । आब तऽ ओ कहल करैया बेटा हो वा बेटी कूलकँे मर्यादा हेतु शिक्षा आ संस्कार आवश्यक अछि । एकर अर्थ हम बढिया जकाँ बुझैत छी, मुदा जखन दाइ बजैत अछि तऽ खुशीकेँ ठेकान नहि रहैत अछि ।
हम पुछैत छी: मुन्नाजी पुरनके जमानासँ लिखैत, नव कालमे देखार भेल दिग्गज कथाकार श्री धीरेन्द्र कुमार जीसँ मुन्नाजी पुछलनि हुनक संपूर्ण कथा यात्राक तीत-मीठ अनुभव जे प्रस्तुत अछि अपने सबहक सोझा-
(1) मुन्नाजी- धीरेन्द्रजी प्रणाम! अहाँ आइसँ कतेक दशक पहिने “मिथिला मिहिर”क माध्यमे कथा-यात्रा प्रारम्भ केलौं। पहिल कथा कोन आ कहिया छपल?
धीरेन्द्र कुमार- नमस्कार मुन्नाजी, हम सतरि दशकसँ लिखब शुरू केने रही। रमानंद रेणुक सानिध्य भेटल छल। मिथिला मिहिरक सम्पादक भीमनाथ झा पहिल पहिल कथा प्रकाशित केने छलाह। पहिल कथा कोन अछि से मोन नै अछि।
(2) मुन्नाजी- एतेक पहिने प्रारम्भ भेल कथायात्रा आगू चलि किएक ठमकि गेल ओकर कोनो विशेष कारण तँ नै?
धीरेन्द्र कुमार- 92क बाद हमरा लागल छल हम जे लिखै छी ओकर पढ़ुआ कम लोक छथि आ कथामे जे कथ्य होइ छै ओ समाजक प्रत्यक्ष स्तर कम अबैत अछि। ओकर बाद भारतीय कम्युनिष्ट पार्टीसँ प्रभावित भेलौं आ ए.आइ.टी.सी.सँ सम्बद्ध भ' जमीनपर काज करए लगलौं। 1995-96मे आकाशवाणीसँ कथा-वाचनक आमंत्रण भेटल छलए, जत' अधिकारीसँ वाद-विवाद भ' गेल। ओ अधिकारी के छलाह मोन नहि अछि। हँ, सीताराम शर्माजी ऐ गप्पक संकेत पहिने द' देने छलाह। हमरा प्रतीत भेल छल जे अन्याय आ भ्रष्टाचारक विरूद्ध जँ किछु क' सकी सएह सार्थक।
(3) मुन्नाजी- अहाँ जहिया कथा लिखब शुरू केलौं तहिया आओर आजुक कथा रचनाक तुलनात्मक परिवेश केहेन देखना जाइछ?
धीरेन्द्र कुमार- भाषा जीवंत होइ छै। तै समैमे अधुनातन प्रयोगक आभाव छल मुदा आइ साहित्य समाजक संगे ताल मिला क' चलि रहल अछि। तै लेल आजुक रचना सभ दृष्टव्य अछि।
(4) मुन्नाजी- अहाँ एखन धरि कतेक कथा लिखलौं आ कतए-कतए छपल, पुन: रचनात्मक मुख्यधारामे जुड़बाक सुत्र की छल?
धीरेन्द्र कुमार- करीब पचास कथा प्रकाशित अछि। मिथिला मिहिर, मिथिला दर्शन वैदेही आदिमे। विभूति आनंदक तगेदा आ उमेश मण्डलजीक सम्पर्क हमरा कलम पकड़ा देलक।
(5) मुन्नाजी- अहाँक कथाक रचनात्मक प्रक्रिया केहेन कथानकपर केन्द्रित रहैछ आ तकर की कारण?
धीरेन्द्र कुमार- उदात-प्रेम आ समाजक छोट-छोट दुख जे प्रत्यक्षत: देखबामे कम अबैत अछि। हम समाजक निम्नवर्गमे तथाकथित समाजसँ गिनल जाइ छी ओहो गरीब परिवारमे जन्म। गरीब संगे उठनाइ-बैसनाइ। ऐमे ग्लानि नै आनि कमजोर बुझै छी।
(6) मुन्नाजी- अहाँ मैथिली रचना आन्दोलनमे जातिवादी वा समूहवाजी फाँटकेँ कोन नजरिये देखै छी, की ऐसँ प्रभावित भऽ अहाँक रचनात्मक धारासँ पुन: हेरा जेबाक वा बिला जेबाक संभावना तँ नै देखाइछ?
धीरेन्द्र कुमार- मैथिली रचनामे आ प्रोत्साहनमे गुटबंदी, राजनीति अवस्य अछि। हिंदी साहित्योकेँ इतिहास देखल जा सकैत अछि। मुदा हम ऐ गुटबंदीसँ प्रभावित कहियो नै भेलाैं। हमरा संगे, अग्नि पुष्प, नरेन्द्र झा, उदय मिश्र, विभूति आनंद, शैलेन्द्र, रतिनाथ, साकेतानंद, प्रभास कुमार चौधरी, मोहन भारद्वाज, ज्योतिवर्द्धन, शैवाल सभ संगे रहलौं। रचनात्मक स्तर आ व्यक्तिगत स्तरपर हम कहियो उपेक्षित नै भेलाैं।
दमदार रचना आत्मतोष अवस्स पहुँचबैत अछि। ओकरा कोनो गुटबंद सदाक लेल झांपि नै सकैत अछि। हँ तखन किछु समए तँ जरूर अपना प्रभावमे दाबि वा कतिया सकैत अछि जे बेबस्थाक दोष भेल। ओना हमरा एकर कोनो भय नै अछि। रचना हमरा लेल स्वांत:सुखाय अछि।
(7) मुन्नाजी- गएर बाभनक रचनाकारक समूहक सक्रिय उपस्थितिसँ अहाँ अपनाकेँ कतेक प्रभावित मानै छी, ओकरा माध्यमे अपन गातक मजगुती देखाइछ वा प्रतिद्वन्दिता?
धीरेन्द्र कुमार- एे प्रश्नक जबाब ऊपर आबि गेल अछि।
(8) मुन्नाजी- कथाक अतिरिक्त आओर की सभ लिखै छी, तकर की कारण?
धीरेन्द्र कुमार- रचनाकार कोनो विधा किए लिखै छथि ई िनर्भर अछि अभ्यास, कुशलता आ सहजतापर। जँ कौशल अछि तँ किछु लिख सकैत। एम्हर नाट्य विद्यालय दिल्लीसँ सम्पर्क भेलापर नाटक दिस रूझान भेल। नाटकमे परिस्थितिजन्य गीत होइत छैक- तँए कविता।
(9) मुन्नाजी- नवतुरक रचनाकारक प्रति केहेन अभिव्यक्ति रखैत छी ऐसँ केहेन आशा देखाइछ?
धीरेन्द्र कुमार- नवतुरिया रचनाकारसँ आशा अछि। पहिने ज्ञानवर्द्धन, शास्त्रक ज्ञान, समाजक अनुभव, जटिल मनोवृत्तिक अध्ययन आ अन्य भाषाक साहित्यक ज्ञान प्राप्त करताह। जिज्ञासु हृदेसँ दुनियाकेँ देखताह, नवीन प्रयोगसँ कथ्यक प्रस्तुितकरण करताह। तै दिस नवतुरक रचनाकारमे किछु प्रयत्नशील छथि।
1. मुन्ना जी मुन्नाजीक दूटा विहनि कथा
नियंत्रण
माइकल घरमे वापिस अबिते छितराएल चीज सभ देखि चित्कारि उठल-
“ ओह गॉड!
द्रौपदी, जकर सबहक किरदानीक फल छौ ई तीनटा बच्चा ओकरे सभ लग ऐ तीनूकेँ छोड़ि कऽ आएल कर काज करबाक वास्ते। नाइ जानि कतेक दुरखा लागि जनमओने हएत एतेक बच्चा!”
“ चुप्प रहू मालिक, बहुत बजलौं। हमर सबहक घरबला एखनो धरि मुट्ठीयेमे रखै छै हमरा सभकेँ। मालकिन जकाँ छुट्टा हम सभ नै छिऐ।“
“गै, देखै छीही अपन मलकीनीकेँ एकेटा बेटीमे प्रसन्न! इएह तँ फाँट देखबैए बड़कबा आ छोट घरक बेटी-पुतौहमे।”
“नै मालिक, दुनू घरक पुतौह, पुतौह जकाँ नै र्है छै। अन्तर छै दुनूमे- छोटकाक पुतौह जन्मा लै छै आ बड़काक पुतौह खसा लै छै।”
टकटकी
बेरा-बेरी लोकक जमा भेल भीड़क सोझाँ ठोहि पारि कऽ कानए लागल छल ओ छौड़ी। कियो किछु पुछै तँ उतारा नै दऽ सबहक दिस टुकुर-टुकुर तकैत रहैत छल।
भीड़ बढ़ैत जा रहल छल...मुदा सभ मूक दर्शक बनल।
निःशब्द भीड़मेसँ आब शब्द बहरेलै- “गै, ई कह जे तोहर नाम ठेकान की छौ?”
-यौ, छोड़ू, की करब नाम ठेकान बुझि।
-तोरा घर तक पहुँचा देबौ।
-यौ, हमर नै आब कियो सहारा बचल आ ने कोनो ठेकाना। हम तँ दंगा पीड़ित शिविरमे सँ भागि एलौं अछि।
-किए भगलीही, अपन जान बचेबा लेल?
-नै यौ। अपन सम्पत्ति बचेबा लेल।
-आँए, तहन तोँ अपन गाम-घर जो ने अपन संपत्तिक रक्षार्थ।
-गाममे किछु कहाँ बाँचल अछि, जे किछु संपत्ति शेष अछि ओ तँ हमरे लग अछि आ तकरे बचेबा लेल तँ गामसँ भगलौं।
-कत्तौ कियो रक्षक नै देखाएल!
-के पुरुख राखत तोरा, जे राखत ओहो बदनाम भऽ जाएत।
ठठा कऽ हँसैत-
-यौ, जँ पुरुख सभकेँ बदनामीक कनिको डर होइतै तँ गामसँ परदेश धरि हमर संपत्तिक नोचा-नोची नै ने करतै?
भीड़ उछहि गेल।
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