३. पद्य
३.६.१.
डॉ. शेफालिका वर्मा २.
प्रभात राय भट्ट३.७.१.
संस्कृति वर्मा, २. 
चन्दन झाफूलसँ लहरैत खेत जगमगायल
जीवनमे रस भरि आयल
ढलैत ठंड तपैत धरती
सरसों अलसी राहरि गहूम
ऊघि-ऊघि सभ घर आनत
रोटी दुनू साँझ पकायत
काजल नैना पेट भरि खेती
फसल अछि नीक खाइ भरि कऽ
खेत न आइत जाइत कियो
आ करू मजदूरी जा हम
ओ सभक सभ घरपर रहता
नैना माइकेँ हम कहबनि
ओ रोज खेत पर आबथि
साथ लगा देबैन काजर नैनाकेँ
जे किछु बेशी धन लौती
चाहथि भगवन यदि तँ
अगहनमे पहुना औता
अबकी बेर बड़की बेटीक
हाथमे हरदि लगबायब
केथरी-कंबल साठ जे लेता
माघक रैना गुरगुर करता
एकटा प्रश्न बेर-बेर
हृदएमे तीर जकाँ चुभैए
हिंदी आ अंग्रेजीक बरसातमे
मैथिली भाषा मलिछोंह भऽ गेल
कोनबलाक कारण अपन
संस्कृति अनचोक्के हेरा गेल
की भेल एहन जे अपन
चन्दन गावर भय गेला
शब्दक असरि हेरा गेल
परिभाषा मलिछोंह सन भऽ गेल
कहा गेल ओ पत्थरक पता
चतुरताइ हवा भऽ गेल
की भेल एहन जे अपन
चन्दन गावर भऽ गेल
गंगेश गुंजनजेना देह हो कतहु, क्रिया आ स्पंदन होइत हो कतहु अन्त'
जगदीश प्रसाद मण्डल-२
राजेश मोहन झा 'गुंजन'
गंगेश गुंजन दुर दुर छीया छीया छीया
अपना घर मे पैसारी क’ गेलय एक अनठीया
आन कोनो नहि बात लाभ कामनाक कारण
ध्ुरखुर पर बाड़ल जाइए अनकर माटिक दीया
स्नेह प्रेम सौहार्द्र लगा देलौंहें सबकिछु भरना
देखब बेचि घरारी एक दिन खेत-पथारो सबटा
प्रेमक मार्ग कांट कुश उपजल खद्ध-खुद्ध्ी
लतखुर्दनि संबंध् स्वकीया अभिनन्दित परकीया
पिफरीशान छथि बेशी अपनहि स्वजन लोक सं
पूछि-पूछि हलकान कहू जे-स्नेह काहे को कीया
आब समाजक रुचि रुझान अपने दोसर दिसि
तुच्छ बात पर झगड़ा-झंझटि कतेक हो तसपफीया
तें हमरे नहि चित्त गंुजनोक आंदोलित छनि
प्रति पल मन विरुद्ध् युग मे जरैत रहै छनि हीयक
अहांक बात तं अहां जानी
अनेरे भेल हमर बदनामी
ओना तं चुप रहबाक सप्पत छल
बीत जाय किछु दःुख मे नहि कानी
से निबाहल नहि तें ई दुनिया
गढै़ये नित्य नवे नब कहानी
जे भेल-भेल तमाशा एक रतीक
रागा रागी तं ऐपर नै ठानी
तंग बड़ हाथ मोन विकल अहुंक
बजार नित्य महग भेल की आनी
तैयो अनुरोध् अहांक दोखी हम
वचन रहय ने ठोढ़ पर आनी
डॉ. शेफालिका वर्मा २.
प्रभात राय भट्ट
डॉ शेफालिका वर्मा
प्रभात राय भट्ट, ग्राम: धिरापुर - २, जिल्ला महोतरी ,अंचल जनकपुरधाम, नेपालसुनु सुनु यौ मिथिलावासी आऔर मिथिलाक बाबु भैया !!
संगी सखी सभक भेलई ब्याह, हमर होतई कहिया !!
तिस वरखक भेली हम, मुदा अखनो रहिगेली कुमारी धिया !!
हमरा लेल नए छाई संसार में, एक चुटकी सिंदुरक किया !!
रोज रोज हम सपना देखैत छि, डोली कहार ल्या क ऐलैथ पिया !!
आईख खुलैय सपना टूटईय, जोर जोर स: फटईय हमर हीया !!
गामे गाम हमर बाबा घुमैय,ल्याक हाथ में माथक पगरी !!
कतहु वर नए भेटैय,की विन पुरुख के छई यी मिथिला नगरी ?!!
बेट्टावाला केर चाहि पाँच दश लाख टाका आ गाड़ी सफारी !!
तिनचाईर लाख टाका ऊपरस:जौ चाहैछी जे ओझा करे नोकरी सरकारी !!
अन्न धन्न गहना गुरिया एतेक चाही जे भईरजाई हुनक भखारी !!
बेट्टीवाला दहेज़ में सबकुछ लुटा क अपने भजाईत अछि भिखारी !!
बाबा हमर खेत खलिहान बेच देलन आ बेच रहल छैथ अपन घरारी !!
अहि कहू यौ मिथिलावासी आऔर मिथिलाक बाबु भैया !!
कतय स:देथिन बाबा हमर दहेज़ में एतेक रुपैया !!
हम नए ब्याह करब यौ बाबा वालीउमरिया मे !!
पढ़ लिख खेल कूद दिय,हमरा अपन संग्तुरिया मे !!
--निक घर वर भेटल छौ,दहेज सेहो कमे मंगैछौ !!
आगुम की हेतै से नए मालूम,ब्याह करहीटा परतौ !!
ब्याह करहीटा परतौ गे बेट्टी.........................!!
--हम चौदह वरखक कन्याकुमारी अहाक राजदुलारी !!
मुदा दूल्हा छैथ विदुर आ पाकल हुनक केस दाढ़ी !!
हम नए ब्याह करब यौ बाबा वालिउमरिया मे २ !!
--दूल्हा विदुर भेलई तईस: की धन सम्पति अपार छई !!
भेटतौ नए कतौ एहन घर वर दूल्हा सेहो रोजगार छई !!
--रुईक जाऊ रुईक जाऊ बाबा यौ हमरा पैघ होब दिय !!
पैढ़लिख क हमरो कोनो सरकारी नोकरी करदिय !!
बेट्टावाला अहाक दरवाजा पर अओता !!
कहता अहाक बेट्टी स:हम अपन बेट्टा क ब्याह करब !!
अहा कहब नै नै अखन हम बेट्टी क ब्याह नए करब !!
फुइक फुइक क चाय पीयब ,अहू किछ शान धरब !!
हम नए ब्याह करब यौ बाबा वालिउमरिया मे !!
--एक लाख टका के बात कहले तू भगेले सयान गे !!
बेट्टी क भविष्य नए सोचलौ,हमही छलौ नादान गे !!
बेट्टी क ब्याह कोना हयात सतौने छल हमरा दहेज़ क डर !!
बाल विबाह करबई छलौ,खोईज लेलौ बुढ्बा वर !!
नए ब्याह करबौ गे बेट्टी तोहर वालिउमरिया मे !!
पढ़ लिख खेलकूद तू अपन संगतुरिया मे !!
आहा जे नई भेटतौ त जिनगी रहित हमर उदास !!
सागर पास होइतो मे बुझैत नई हमर मोनक प्यास !!
अहि स पूरा भेल हमर जिनगी केर सबटा आस !!
नजैर मे रखु की करेजा मे राखु अहि छी हमर भगवान !!
उज्जरल पुज्जरल हमर जिनगी मे आहा एलौ !!
रंग विरंग क ख़ुशी केर फूल खिलेलौं !!
की हम भेलू अहाक प्रेम पुजारी ,अहा हमर भगवान यौ !!
मुर्झायल फूल छलौ हम ,अहि स खिलल हमर प्रेमक बगिया !!
बालविधवा हम अबोध छलौ ,समाज केर पैरक धुल !!
उठैलौ अहा हमरा करेजा स लगैलौ, बैनगेली हम फूल !!
पतझर छलौ भेल हम,सिच सिच क अहा लौटेलौ हरियाली !!
अनाथ अबला नारी के अपनैलौ आ बनेलौ अपन घरवाली
अहि स यी हमर जिनगी बनल सुन्दर सफल सलोना !!
गोद मे हमर सूरज खेलैय,अहा बनलौ बौआक खेलौना !!
हमर उज्जरल पुज्जरल जिनगी मे अहा येलौ !!
रंग विरंग क ख़ुशी केर फूल खिलेलौ,ख़ुशी स हमर आँचल भरलौं !!
हमर मन उपवन मे अहि बास करैत छी, अहि केर हम पूजित छी !!
ई अछि हमर परिचयरुपी कविता,
ई अछि हमर प्रेमपरागक सरिता,
धन्य धन्य अछि भाग्य हमर,
जन्म लेलौ हम मिथिलाधाम मे,
बास अछी हमर पावनभूमि धिरापुर गाम मे,
स्वर्ग स सुन्दर आनन्द बरसैय,अई मिथिलाधम मे,
धिरापुर केर धिरेस्वरमहादेव छैथ बड़ ओढरदानी,
हम बालक प्रभात अबोध अज्ञानी,
पिता गंगेस्वर छैथ ईश्वर के स्वरूप ,
माता गायत्री ममता स भरल देवीक रुप,
भातृत्व प्रेमक प्रतिक प्रकाश प्रभात प्रविन,
सब भाई मे अछी आदर सत्कार स्वाभिमान नबिन,
सुन्दर सरल सुशिल शालीन बहिन आशा,
धन्य धन्य अछि भाग्य हमर पुरा भेल अभिलाषा ,
भौजी सद्खन ममता स भरल स्नेह बर्सबैय,
भावो भावनात्मक बत्सल स्नेह बच्चा सब मे बटैय,
हमर मन उप्वनमे बास करैय चन्द्रबदन पत्नी पुनम,
सोन स सुन्दर सरल शुशिल बेट्टी अछी स्वर्णिम,
सत्यमार्गी संतान तेज्स्व्बी बेट्टा अछी सत्यम ,
धन्य धन्य अछि भाग्य हमर जन्म लेलौ मिथिलाधाममे
सुनु सुनु ययो बाबु भैया ,
नींद स तू जगबा कहिया ,
भूखे पेट पेटकुनिया देला स
नई चलत आब कम हौ
कालरात्री के भेलई अस्त ,
उठह उठह कर दुसमन के पस्त ,
आइधैर तोरा पर शासन केलक ,
आब कतय दिन रहबा गुलाम हौ,
भेलई परिवर्तन बदैल गेलई दुनियाँ,
मधेस अखनो रहिगेलई शासक केर कनियाँ,
हसैछ दुसमन दैछ ललकार ,
उठह उठह दुष्ट शासक के करः प्रतिकार ,
मग्लाह स त भूख गरीबी रोग शोक देलकह ,
आब छिनक ला ला अपन अधिकार हौ ,
अखनो नई जगबा त जिनगी हेतह बेकार हौ ,
बेसी सुत्बा त अम्लपित बैढ़ जेताह ,
बिस्फोट भक्ह प्राण निकैइल जेताह ,
उठह उठह करः अपन प्राण क रक्षा ,
सिखह तू मान-स्वाभिमान क शिक्षा ,
प्राण तोहर मधेस माई मे ,
मान-स्वाभिमान छह तोहर स्वतंत्रता मे ,
बन्धकी परल छह तोहर मधेस माई,
उठह उठह हों बाबु भाई ,
मधेस माई केर मुक्ति दिलाब ,
सुन्दर शांत विकाशील मधेस बनाब ,
कालरात्री केर भेलई अस्त ,
उठह उठह करः दुसमन केर पस्त
संग्राम संग्राम ई अछि मधेस मुक्ति केर महासंग्राम !!
विना हक हित अधिकार पौने हम नए लेब आब विश्राम !!
अईधैर हम सहित गेलौ दुस्त शासक केर अन्याय !!
मुदा आब नई हम सहब लक हम रहब अपन न्याय !!
निरंकुश शासक शासन करईय घर मे हमरा घुईस !!
मेहनत मजदूरी हम करैतछी, खून पसीना ललक हमार चुईस !!
अढाईसय वरखक बाद आई भेलई मधेस मे भोर हौ !!
गाऊ गाऊ गली गली मे आजादी क नारा लागल छै जोर हौ !!
निरंकुश शासक कहैया हम छी बड़ा बलबंत !!
मुदा आई हेतई दुष्ट निरंकुश शासक केरअंत !!
संग्राम संग्राम यी अछि मधेस मुक्ति केर महासंग्राम !!
विना हक हित अधिकार पौने आब नई हम लेब विश्राम !!
अईधैर हम सहैत गेलौ उ बुझलक हमरा कांतर !!
तन मन धन सब कब्जा कौलक हमरा बुझलक बांतर !!
आब हम मांगब नई छीन क लेब अपन अधिकार हौ !!
उतैर गेलौ हम रणभूमि मे करैला दुष्ट शासक केर प्रतिकार हौ !!
मेची स महाकाली चुरेभावर स तराई,समग्र भूमि अछि मधेस माई !!
हिन्दू मुश्लिम यादव ब्राम्हिन थारू सतार संथाल हम सब एक भाई !!
जातपात कोनो नई हमर हम सब छी एक मधेसी हौ !!
अपन भाषा भेष संस्कृति नया संविधान मे हम करब समावेशी हौ !!
हम रहैत छी परदेश मुदा प्रेम अछि अपने देश स:!!
हम छी पावनभूमि मिथिलाधाम मधेस स:!!
लिखैत छी चिठ्ठी अपन ब्याथ केर नैनक नोर स:!!
मोनक बात चिठ्ठी मे लिखैत छी मुदा बाईज नई सकैत छी ठोर स:!!
लिखैत छी अपन दुःख क पाती,रहैत छी कोना परदेश मे !!
अईब केर परदेश हम फैस गेलौ बड़का क्लेश मे !!
माए केर ममता भौजी केर स्नेह बिसरल नई जाईय !!
साथी संगी खेत खलिहान हमरा बड मोन परईय !!
माथ जौ दुखैत हमर माए लग मे अब्थिन !!
की भेल हमर सोना बेट्टा के कहिक माथ मालिश करथिन !!
बोखार जौ लागैत हमरा भौजी बौआ बौआ करैत लग अब्थिन !!
दुधक पट्टी माथ पर रख्थिन आ दबाई ला क हमरा खुअब्थिन !!
मुदा अ इ परदेश मे धर्ती गगन चंदा सूरज सब लगईय अनचिन्हार !!
बड अजगुत लगैय हमरा देख क ऐठामक दूरब्यबहार !!
मानब्ता नामक छीज नई छई इन्शान बनल अछि इंजिन !!
अठारह घंटा काम कर्बैय मालिक बुझैय हमरा मशीन !!
जान जी लगाक केलौ काम दू चैरगो रोग हमरा भेटल इनाम !!
नई सकैत छी त आब कामचोर कहिक हमरा केलक बदनाम !!
लिखैत छी कथा अपन ब्यथा केर बुझाब आहा सब बिशेष मे !!
नून रोटी खैहा भैया अपने देश मे ,जैइहा नई परदेश मे !!
स्वर्ग स: सुन्दर अछी हमार मिथिलाधम !!
ऋषि मुनि तपस्वी आर माँ जानकी जन्म लेलैथ अहि ठाम !!
ज्ञानभूमि तपोभूमि आर स्वर्गभूमि अछी हमर जनकपुरधाम !!
गौतम कणाद मन्दन भारतीसुशिला यी अछी मिथिलांचल के गरिमा !!
युगो युग गुनगान होइत अछी मथिलांचल धर्ति क महिमा !!
हरबाहक श्रमदेखि धर्ति प्रतिदान केलैथ सिया जी सन् गहना !!
मिथिला क सब घर स्वर्ग लगैया,लोग ईहा के साधु सन्त !!
चाहे कोनो ऋतु होइ सद्खन बहैत ईहा बसन्त !!
मनोरम प्रकृति आर मनमोहक मिथिला क संस्कृति !!
एक दोसर स: सब लोग करैत अगाध प्रेम आर प्रिती !!
हर जीव ईहा के स्वाभिमानी करैथ नै किनको आशा !!
मधुरों स: मधुर मिथिला क मैथिल भाषा !!
मिथिले मे पुनरजन्म लि यी सब लोग मे अछी अभिलाषा !!
महाकवि विधयापति आर नागार्जुन सन् प्रखर विद्वान !!
जग ब्याप्त कैलैथ मिथिला क गरिमामय शान !!
स्वर्ग स सुन्दर धर्ति अछी हमर मिथिलाधम !!!!!!
सपना देख्लौ बड अजगुत..
की कहिय राएत सपना देखलौं बड अजगुत हो भाई ,
हमरा पाछु लागल रहे एकटा बहुरुपिया कसाई,
धमकी देलक गल्ह्थी लगौलक देखौलक चाकू छुरा ,
जान स माएर देबौ,प्राण निकाइलदेबौ,नईतकर हमर माग पूरा ,
गाल हमर लाल कौलक खीच क मारलाक चटा चट चांटा ,
निकाल बाक्स पेटी स फटा फट दू चार लाख टाका,
डर स हम थर थर कापी मोन रहे घबराईल ,
तखने एकटा पहरा करैत प्रहरी हमरा लग चईल आईल ,
मोने मोन हम सोचलौ इ करता हमरा मदत ,
मुदा उहो रहे ओई चंडाल कसाई केर भगत ,
दुनु गोटा कान मे कौलक फुस फूस ,
बाईन्ध क हमरा डोरी स घर मे गेल घुईस ,
छन मे सबटा भेल छनाक घर मे परल डाका ,
झट पट जे आईंख खोल लौ ,त की कहिय काका ,
उ सपना नई सचे के बिपना रहे ,
हमर बिपति क एकटा घटना रहे ,
गीत वियोग के...
पिया निर्मोहिया गेलैथ परदेश ,
भेजलैथ नई चिठ्ठी आ कोनो सन्देस,
जिया घबराईय ,चैन नई भेटैय,
सद्खन साजन अहि पर सुरता रहैय,
अहाविन हे यौ साजन मोन नई लगैय - २
आईबकेर परदेस हमहू छी कलेश मे ,
दुःख केर पोटरी की हम भेजू सन्देस मे ,
आईबकेर परदेस मोन पचताईय ,
अहाक रे सुरतिया सजनी बिसरल नई जाईय ,
अहा विन हे ये सजनी मोन नई लगईय - २
नई चाही हमरा गहना ,रुपैया आऔर बड़का नाम ययौ ,
ख्याब नून रोटी झोपडी मे मुदा चएल आउ गाम ययौ ,
अहाक मुन्ना मुन्नी पर नई अछि हमार काबू ,
बाट चलैत बटोही क कहीदईया झट सा बाबु ,
सम्झौला स झट पुईछबैठेय कतए गेल हमर बाबु ,
सुनीकेर बेट्टाबेट्टी के बोली ,दिल पर चैइल जाईत अछि गोली ,
चुप चाप हम भजईत छी ,मोने मोन हम लाजईत छी
कहिदु मुन्ना मुन्नी के बाबु गेल छौ पाई कमाईला विदेस ,
ल क अईतोऊ तोरासबल्या खेलौना आ मीठ मीठ सनेश ,
मोन तर्शैय हमरो सजनी अहाक प्यार आ अनुरागला ,
आ बेट्टा बेट्टी केर मिठिका दुलार ला - २ !!!
कोसी स: गनडकी तक !!
यी सम्पूर्ण भूमि अछि मिथिलांचल !!
जतेय बहथी निर्मलगंगाजल !!
हम थिक मिथिलाभूमि केर संतान !!
मिथिलांचल अछि हमार आन वान शान !!
मिथिलाक संस्कृति अछि हमर स्वाभिमान !!
स्वर्ग स: सुन्दर अछि हमर मिथिलाधाम !!
वसुधा केर हृदय थिक यी जनकपुरधाम !!
जतेय जन्म लेलैथ माँ जानकी आऔर साधू संत कवीर !!
एतही परम्पद पैलैथ ऋषि मुनि संत महंथ आऔर फकीर !!
राजर्षि जनक छलैथ विदेह राज्यक महर्षि राजा !!
कवी कौशकी गंडक बाल्मिकी मंडन !!
भारती सुशीला कुमारिल भट्ट नागार्जुन !!
महाकवि बिध्यापतिसं: बिद्वान रहथि प्रजा !!
मिथिला रहथि न्यायिक आऔर मसंसा ज्ञानक प्रदाता !!
येताही ब्याह केलैथ चारो भाई मर्यादापुरुषोतम राम बिधाता !!
मिथिला अछि भारतवर्ष केर प्राकृतिकाल स: ज्ञानबिज्ञान क स्रोत !!
यी सब हम जनैत भेलंहू ख़ुशी स: ओत प्रोत !!
एहन निश्छल आ बत्सल प्रेम भेटत नए चाहुओरा mइ
प्रकृति केर सुन्दर उपहार ,संस्कृति केर बिराट संसार !!
मानबता केर सर्बोतम ब्याबहार मिथिलाक मुलभुतआधार !!
राम रहीम मंदिर मस्जिद दसहरा होई या ईद क रित !!
मिथिलावासी हिदू होई या मुस्लिम एक दोसर स:करैछैथ प्रीत !!
मिथिलाक पसु पंछी सेहो जनैत अछि प्रेमक परिभाषा !!
मधुरों स:मधुर अछि मिथिलाक मैथिलि भाषा !!
ज्ञान सरोबर एतिहासिक धरोहर अछि मिथिलाक संस्कृति !!
मन मग्न भजईत अछि देख क सुन्दर आ मनोरम प्रकृति !!
मिथिले में जन्म लेलैथ सीता केर रूप में माए भगवती !!
महाकवि विद्यापति केर चाकर बनला महादेव उमापति !!
वैदेही केर सुन्दरता पर मोहित भेलैथ भगवान राम !!
बसुधा केर हृदय बनल अछि हमर महान मिथिलाधाम !!
कहैछैथ शास्त्र पुराण विद्वान पंडित आऔर प्रोहित !!
मिथिलावासी क दर्शन स:मात्र भजाईत अछि !!
मनुख क सम्पूर्ण पाप तिरोहित !!
भगवान क असिम कृपा स अहा भेलौ धनवान !!
मुदा भुखा निर्बस्त्र आर निर्धन सहो छैथ इन्सान !!
भुख स छटपटा रहल छै,निर्धन ख्याला एक टा रोटि !!
मुदा धनक लोभ स खुली नै रहल अछी अहा क पोटि !!
भुखा प्यासा निर्बत्र मे करु अपन अन्न धन्न दान !!
तखने ह्याब अहा सबकेर नजैर मे महान् !!
दुख:भुख आ विपति सहके बईनगेल छै गरिब क मजबुरी !!
दु टुक्रा रोटि ख्यालेल खुन आ पसिना बहाके करैया मजदुरी !!
मजदुरक श्रम स उब्जैया फलफुल तरकारी आ बिभिन्न अन्न !!
मालिक भजाईय धनवान मुदा श्रमिक रही जाईय निर्धन !!
आदमी नै छै अहाक नजैर मे नोकर चाकर आर मजदुर !!
निर्धन गरिब पर हुक्मत करैछी कहाँ भेलौ अहा निस्ठुर !!
नै देखाऊ अईठाम ककरो झुठा रुवाब आर साख !!
एकदिन जईरके भ ज्याब अहु अई माटीमे राख !!
कंकर पाथर थाली मे भेटत् भुख स जौं अहा छ्टपटयाब !!
मुठी बांधके जग मे एलि हाथ पसाइरके ज्याब !!
राम विलास साहु
संजय कुमार झा
संजय कुमार मण्डल
संजय कुमार झा, पिता-श्री लक्ष्मी नारायण झा, माता- श्रीमती मुंद्रिका देवी, पता- ग्राम-बेलौन, पोस्ट-नवादा, भाया- बहेरा, जिला- दरभंगा, बिहारजे नहि जाई या गाम यौ
आम खा रहल आने-आने
सूखि रहल लताम यौ
खेत परल परात बरिस सों
सुन्न परल दालान यौ
के पटाबय बारिक मेथी
टूटि रहल मचान यौ
उजरल-उपटल गाम लगय या
फुलवारी मसोमांत यौ
ओ करौछ आ घैला, पटिया
लोटकी, सोहारी, जांत यौ
छोटकी काकिक नैहरक भरिया
कहाँ भेटत ओ चतुर सुजान
कहाँ सुनब दुखियाक ओ राग
कोर्थू वाली भ गेल आन
भग्वात्ती घरक ओ कीर्तन
कहिया सुनबई आब नवाह
कहिया फेर खेलेबई नाटक
शोले, गोरख और गवाह
बाबा संगे बैगनी गेन्नै
सपने रहि जेत्तई यौ दोस
झिल्ली-कचरी कतय सा किनबई
कहाँ भेटै ओ भोरक ओस
भौजिक मूंह देखब भेल साल
गाल छुबय ले तरसय मोन
होलिक ओ हुरदंग ने भेटय
कानि रहल छी कोने-कोन
कतेक सुनाबी मोनक आह
कोंढ़ फटे या, सुखाई नोर
चलू चलय छी गाम दोस यौ
जिनगी रहि गेल थोरबे-थोर
श्वेता झा चौधरी २.
ज्योति सुनीत चौधरी ३.
श्वेता झा चौधरीकला प्रदर्शिनी: एक्स.एल.आर.आइ., जमशेदपुरक सांस्कृतिक कार्यक्रम, ग्राम-श्री मेला जमशेदपुर, कला मन्दिर जमशेदपुर ( एक्जीवीशन आ वर्कशॉप)।
कला सम्बन्धी कार्य: एन.आइ.टी. जमशेदपुरमे कला प्रतियोगितामे निर्णायकक रूपमे सहभागिता, २००२-०७ धरि बसेरा, जमशेदपुरमे कला-शिक्षक (मिथिला चित्रकला), वूमेन कॉलेज पुस्तकालय आ हॉटेल बूलेवार्ड लेल वाल-पेंटिंग।
प्रतिष्ठित स्पॉन्सर: कॉरपोरेट कम्युनिकेशन्स, टिस्को; टी.एस.आर.डी.एस, टिस्को; ए.आइ.ए.डी.ए., स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, जमशेदपुर; विभिन्न व्यक्ति, हॉटेल, संगठन आ व्यक्तिगत कला संग्राहक।
हॉबी: मिथिला चित्रकला, ललित कला, संगीत आ भानस-भात।

ज्योति सुनीत चौधरी 



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7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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