भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Saturday, May 14, 2011

'विदेह' ८२ म अंक १५ मई २०११ (वर्ष ४ मास ४१ अंक ८२) PART I


                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ८२ म अंक १५ मई २०११ (वर्ष ४ मास ४१ अंक ८)NEPALINDIA                
                                               
 वि  दे   विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in  विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine   नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own script Roman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
ऐ अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य











३. पद्य








३.६.नवीन कुमार आशा

३.७.गजेन्द्र ठाकुर- हाइकू/ टनका/ शेनर्यू/ हैबून



४. मिथिला कला-संगीत- १.श्वेता झा चौधरी .ज्योति सुनीत चौधरी .श्वेता झा (सिंगापुर)

 

 भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]


विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.

ब्लॉग "लेआउट" पर "एड गाडजेट" मे "फीड" सेलेक्ट कए "फीड यू.आर.एल." मे http://www.videha.co.in/index.xml टाइप केलासँ सेहो विदेह फीड प्राप्त कए सकैत छी। गूगल रीडरमे पढ़बा लेल http://reader.google.com/ पर जा कऽ Add a  Subscription बटन क्लिक करू आ खाली स्थानमे http://www.videha.co.in/index.xml पेस्ट करू आ Add  बटन दबाउ।


मैथिली देवनागरी वा मिथिलाक्षरमे नहि देखि/ लिखि पाबि रहल छी, (cannot see/write Maithili in Devanagari/ Mithilakshara follow links below or contact at ggajendra@videha.com) तँ एहि हेतु नीचाँक लिंक सभ पर जाऊ। संगहि विदेहक स्तंभ मैथिली भाषापाक/ रचना लेखनक नव-पुरान अंक पढ़ू।
http://devanaagarii.net/
http://kaulonline.com/uninagari/  (एतए बॉक्समे ऑनलाइन देवनागरी टाइप करू, बॉक्ससँ कॉपी करू आ वर्ड डॉक्युमेन्टमे पेस्ट कए वर्ड फाइलकेँ सेव करू। विशेष जानकारीक लेल ggajendra@videha.com पर सम्पर्क करू।)(Use Firefox 4.0 (from WWW.MOZILLA.COM )/ Opera/ Safari/ Internet Explorer 8.0/ Flock 2.0/ Google Chrome for best view of 'Videha' Maithili e-journal at http://www.videha.co.in/ .) 

Go to the link below for download of old issues of VIDEHA Maithili e magazine in .pdf format and Maithili Audio/ Video/ Book/ paintings/ photo files. विदेहक पुरान अंक आ ऑडियो/ वीडियो/ पोथी/ चित्रकला/ फोटो सभक फाइल सभ (उच्चारण, बड़ सुख सार आ दूर्वाक्षत मंत्र सहित) डाउनलोड करबाक हेतु नीचाँक लिंक पर जाऊ।
 VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव

example

भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।


example

गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'



मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"

विदेह जालवृत्तक डिसकसन फोरमपर जाऊ।
"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाऊ।





 

संपादकीय

बाशो जापानक बौद्ध भिक्षु आ हैकू कवि छलाह जापानक यात्राक वर्णन आ फुजी पहाड़ हुनकर कवितामे खूब अबैए।
बाशोक किछु हाइकू एतए प्रस्तुत अछि (अनुवाद प्रीति ठाकुर द्वारा):-
बाशोक हाइकू
१.केराक गाछ लग / जै बौस्तुसँ हम घृणा करै छी तकर चेन्ह/ एकटा मुसकैन्थसक कोढ़ी
२.एकटा घोड़ो / हमर आँखिकेँ आकर्षित करैए अइ /बर्फयुक्त काल्हिक भोरमे
३.बीतल एक बर्ख आर / एकटा यात्रीक छाह हमर माथपर, / पुआरक पनही हमर पएरमे
४.आब तखन चलू चली/ बर्फक आनंद लेबाक लेल जाधरि / हम पिछड़ि कऽ खसि पड़ी
५.पहिल झपसी जाड़क/ बानरो चाहैए/ छोट सन पुआरक कोट
६.फुजी पर्वतक बसात/ अपन पंखामे अनलौं/ इडो लोकक उपहार
७.बाशोक अन्तिम कविता जखन ओ मृत्युशय्यापर छलाह- दुखित पड़लौं एकटा यात्रा मध्य/ हमर स्वप्न भोथियाइए/ सुखाएल घासक चौरीक चारूकात
सूचना: विदेहक तेसर अंक (१ फरबरी २००८)मे हम सूचित केने रही- विकीपीडियापर मैथिलीपर लेख तँ छल मुदा मैथिलीमे लेख नहि छल,कारण मैथिलीक विकीपीडियाकेँ स्वीकृति नहि भेटल छल। हम बहुत दिनसँ एहिमे लागल रही आ सूचित करैत हर्षित छी जे २७.०१.२००८ केँ (मैथिली) भाषाकेँ विकी शुरू करबाक हेतु स्वीकृति भेटल छैक, मुदा एहि हेतु कमसँ कम पाँच गोटे, विभिन्न जगहसँ एकर एडिटरक रूपमे नियमित रूपेँ कार्य करथि तखने योजनाकेँ पूर्ण स्वीकृति भेटतैक।” आ आब जखन तीन सालसँ बेशी बीति गेल अछि आ मैथिली विकीपीडिया लेल प्रारम्भिक सभटा आवश्यकता पूर्ण कऽ लेल गेल अछि विकीपीडियाक लैंगुएज कमेटीआब बुझि गेल अछि जे मैथिली बिहारी नामसँ बुझल जाएबलाभाषा नै अछि आ ऐ लेल अलग विकीपीडियाक जरूरत अछि। विकीपीडियाक गेरार्ड एम. लिखै छथि  ( http://ultimategerardm.blogspot.com/2011/05/bihari-wikipedia-is-actually-written-in.html  )
-ई सूचना मैथिली आ मैथिलीक बिहारी भाषासमूहसँ सम्बन्धक विषयमे उमेश मंडल द्वारा देल गेल अछि- उमेश विकीपीडियापर मैथिलीक स्थानीयकरणक परियोजनामे काज कऽ रहल छथि, ...लैंगुएज कमेटी ई बुझबाक प्रयास कऽ रहल अछि जे की मैथिलीक स्थान बिहारी भाषा समूहक अन्तर्गत राखल जा सकैए ?..मुदा आब उमेश जीक उत्तरसँ पूर्ण स्पष्ट भऽ गेल अछि जे नै
रामविलास शर्माक लेख (मैथिली और हिन्दी, हिन्दी मासिक पाटल, सम्पादक रामदयाल पांडेय) जइमे मैथिलीकेँ हिन्दीक बोली बनेबाक प्रयास भेल छलै तकर विरोध यात्रीजी अपन हिन्दी लेख द्वारा केने छलाह , जखन हुनकर उमेर ४३ बर्ख छलन्हि (आर्यावर्त १४/ २१ फरबरी १९५४), जकर राजमोहन झा द्वारा कएल मैथिली अनुवाद आरम्भक दोसर अंकमे छपल छल। उमेश मंडलक ई सफल प्रयास ऐ अर्थेँ आर विशिष्टता प्राप्त केने अछि कारण हुनकर उमेर अखन मात्र ३० बर्ख छन्हि। जखन मैथिल सभ हैदराबाद, बंगलोर आ सिएटल धरि कम्प्यूटर साइंसक क्षेत्रमे रहि काज कऽ रहल छथि, ई विरोध वा करेक्शन हुनका लोकनि द्वारा नै वरन मिथिलाक सुदूर क्षेत्रमे रहनिहार ऐ मैथिली प्रेमी युवा द्वारा भेल से की देखबैत अछि?
उमेश मंडल मिथिलाक सभ जाति आ धर्मक लोकक कण्ठक गीतकेँ फील्डवर्क द्वारा ऑडियो आ वीडियोमे डिजिटलाइज सेहो कएने छथि जे विदेह आर्काइवमे उपलब्ध अछि।   

नीचाँक पाँचू साइट विकी मैथिली प्रोजेक्टक अछि, प्रोजेक्टकेँ आगाँ बढ़ाऊ।
http://translatewiki.net/wiki/Project:Translator

http://meta.wikimedia.org/wiki/Requests_for_new_languages/Wikipedia_Maithili

http://translatewiki.net/wiki/Special:Translate?task=untranslated&group=core-mostused&limit=2000&language=mai

http://incubator.wikimedia.org/wiki/Wp/mai

http://translatewiki.net/wiki/MediaWiki:Mainpage/mai



( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १११ देशक १,७८९ ठामसँ ६०, ३७८ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,०२,७७१ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
 

गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.com
 
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html

२. गद्य








यायावरी

डॉ. कैलाश कुमार मि‍श्र
भावमय, भोगमय, योगमय बृन्‍दावन
(पहिल खेपसँ आगाँ)
बृन्‍दावन केर हमर एक विद्यार्थी वि‍भु शर्मा कहलक जे ओर अनुज प्राण्‍जल हमरा लोकनि‍केँ तमाम स्‍थानीय सहायताक व्‍यवस्‍था करता दि‍ल्‍लीसँ स्‍नान-धि‍यान कए हमरा लोकनि‍ 5 बजे भोरे वि‍दा भेलौं। सीधे वृन्‍दावन पहुँलौं। ओतए इस्‍काँन मन्‍दि‍र लग प्रान्‍जल शार्मा हमरा लोकनि‍क पथ हेर रहल छल। प्रान्‍जल संग प्रवीण शर्मा नामक एक स्‍थानीय गाइड छलैक। प्रान्‍जल हमरा कहलक जे ई आहाँकेँ सभ कछु देखोताह।
हमर सासु केर इच्‍छा सर्व प्रथम यमुनामे स्‍नान आर गौर वि‍सर्जनक छलन्‍हि‍। प्रवीण कहलक जे बृन्‍दावनक केशी घाट सर्वोत्तम छैक। केशी भगवान श्रीकृष्‍णक घोड़ाक नाम छलन्‍हि‍। ओ बड़ा प्रतापी तथा पूण्‍यात्‍मा घोड़ा छलै। प्रवीण स्‍थानीय होमाक कारण बृन्‍दावन केर एक-एक गलीसँ परि‍चि‍त छल। रमणरेती दि‍ससँ ल' ' जाय लागल। कहलक- यएह छी रमणरेती।‍
देखैत छी चारू दि‍स गली, मकान, मन्‍दि‍र, मर्धशाला इत्‍यादि‍। एको ईंच धरती खाली नै। एको चम्‍मच रेतक माने बाउलक नामो नि‍शान नै। चहुँ दि‍स तंगी, आ गन्‍दगी। भेल यएह थीक रमणरेती? खाइर! गली-कुच्‍ची होइत अंतत: हमरालोकनि‍ केशी घाट पहुँचलौं। यमुनामे जल कुनो वि‍शेष नै। 15टा नाह कछेरपर लागल। पाँच-सात तीर्थायात्री स्‍नान करैत। मोनमे भेल- चलु चैनसँ स्‍नान करब। यमुनामे गाड़ीसँ उतरि‍ कछेरपर एलौं। कछेरपर अबि‍ते पानि‍सँ दुुर्गन्‍ध आबए लगल। कारीसीयाह पानि‍। तीनठामसँ पूरा शहरक गन्‍ध-भरल पानि‍ यमुनामे हड़ा-हड़ा क' खसैत। मोन धृणासँ भरि‍ गेल। नहेबाक इच्‍छा समाप्‍त भ' गेल। यमुनाक तमाम कल्‍पना आ वर्णन बि‍सरि‍ गेलौं। एकाएक एना बुझना गेल जेना हम दुनि‍याँक सभसँ पैघ गन्‍दा नालामे आबि‍ गेल छी। कृष्‍ण-राधा-गोपी कदम्‍बक गाछ यमुना....। सभ कि‍छु खतम!!! नावबला सभ कहलक- श्रीमान्, नाहपर चढ़ा, हम यमुनाक ओइपार लए जाइत छी। ओतए नीक जल छै।‍
हमरालोकनि‍ नाहपर चढ़ गेलौं। जलसँ दुर्गन्‍ध अबैत छल। मोन घोर छल। ओइकात जा बालुपर सभ समान रखलौं। एक आंजुर जल उठेलौं। कारी-भीस आ दुर्गन्‍धसँ भरल। दय स्‍नान करैसँ साफ मना क' देलक। मुदा हमर सासु जि‍द्द ठानि‍ देलन्‍हि‍। ओ यमुनाक ओइ जलमे ग्‍यारह डुब्‍बी मारलनि‍। सबहक हेतु आ अपनो लेल। हम कहलि‍यनि‍- एक डुब्‍बी हमरो लेल मारि‍ लेथि‍।‍
हमरा लग चन्‍दन केर पेस्‍ट छल। हम हुनक माथ एवं हाथमे रगड़लौं आ फेर बृन्‍दावन केर मन्‍दि‍र दि‍स प्रस्‍थान केलाैं। सभसँ पहि‍ने रंगनायक मन्‍दि‍र, तकरबाद एक आर मन्‍दि‍र- जइमे कृष्‍ण जीक बालवस्‍थाक मूर्ति कि‍शोरी जीक संग छलन्‍हि‍। तइमे अएलौं। पण्‍डा सभ नाना तरीकासँ वि‍धबा, कल्‍याण, अनाथ आश्रम, गौसेवा- लोक सभसँ पैसा ऐंठबामे माहि‍र। गली सभ गंदगीसँ भरल।
समए बीतल जाइत छल। हम प्रवीणकेँ कहलि‍ऐक- सीधे हमरा लोकनि‍केँ बांके बि‍हारी जीक मन्‍दि‍र ल' चलु।‍
करण हुनकर दर्शन बि‍ना हमर सासु अन्न-जल ग्रहण नै क' सकै छलीह। प्रवीण संग हमरालोकनि‍ बांके-बि‍हारी मन्‍दि‍र केर प्रांगण दि‍स बढ़लौं। पूरा गलीमे बड्ड भीड़। मनुक्‍ख चुट्टीक धारी जकाँ ससरैत। हरे-कृष्‍ण, राधे-राधेक उच्‍चारणसँ वातावरण गनगनाइत। चारू दि‍स गली सभमे गंदगी। कतौ-वि‍धबा सभ भीख मंगैत तँ कतौ भगवा वस्‍त्रमे साधु! मोन खि‍न्न-खि‍न्न! भेल। कतए आबि‍ गेलौं। प्रवीण स्‍थानीय होबाक कारणे एकटा नुकौका गलीसँ हमरा लोकनि‍केँ मन्‍दि‍रक प्रांगणमे घुसेलन्‍हि‍। मनुक्‍खपर मनुक्‍ख चढ़ैत। हमरा लोकनि‍ कोहुना-कहुना बांके-बि‍हारी जीकेँ एक झलक देख पेलौं। आब मोनमे आबए लगल जे कखन बाहर नि‍कली। जखन वापस अबैत रही तँ कातमे एक भव्‍य साधु जे करीब 65 वर्षक छल के कनैत आ भाव-वि‍भोर होइत देखलऐक। हम कहलऐक‍- क्‍यो रो रहे हो बाबा?
जबाब देलाह- आज ठाकुर जी का ब्‍याला है।‍
हम ब्‍यालाक अर्थ नै बुझलौं पुछलयनि‍- ब्‍याला क्‍या होता है?
साधु- जब कि‍सी का मन्नत पूरा हो जाता है तो ठाकुर जीका ब्‍याला करबाता है। ब्‍याला अर्थात् वि‍वाह। इसमे तीन लाख रूपये का खर्च है। फूलों से पूरे मन्‍दि‍र को सजाया जाता है। बरात का आयोजन, पालकी मे बैठाकर ठाकुर जी एवं कि‍शोरी जी को पूरे बृन्‍दावन मे घुमाया जाता है। पालकी पुन: बरसाना ले जाया जाता है और वहाँ से वापस बृन्‍दावन।
हमरा मुँहसँ नि‍कलल- ठीक है। अच्‍छा है। ये तो उत्‍सव का माहौल है। फि‍र रो क्‍यों रहे हो?
साधु- रोने का ही तो समय है। राधे-राधे इसलि‍ऐ रो रहा हूँ कि‍ राधा मेरी बहन है।‍ अब ठाकुर जी से उसका ब्‍याहला हो रहा है। इसके बाद वह हमसे बि‍छुड़ जाएगी। मैं नहीं रोऊँगा तो कौन रोएगा। ई कहि‍ ओ भोकासी पारि‍ पुन: कानए लगल। ओकर कानब वास्‍तवि‍क। कुनो माटकि‍एता नै। सहज आ नि‍श्‍छल। ओहि‍ना जेना एक सहोदर भाय अपन वहि‍नक दुरागमनक काल कनैत अछि‍। वहि‍नसँ बि‍छुड़बाक वएह टीस। वएह भावनात्‍मक लगाव। हमर मोन ओकरा प्रति‍ श्रद्धासँ भरि‍ गेल। बृन्‍दावनसँ सि‍नेह बढ़ए लागल। धृणा समाप्‍त होमए लागल।
एकाएक नजरि‍ एक लगभग 45 वर्षक युवकपर गेल। फुलपेन्‍ट-शर्ट पहि‍रने, माथामे चानन मुदा त्रि‍पुण्‍ड नै। धरगर-पतरगर। गरदनि‍मे तुलसीक माला लपेटने-बि‍ल्‍कुल गरदनि‍मे सटल आ लपटाएल। ओ बांके-बि‍हारी जीक सामने ठाढ़ भ' कि‍छु बड़बड़ाइत छल। हम अनायास ओकरा लग बढ़लौं। सुनैत छी ओ कि‍छु एना बाजि‍ रहल अछि‍- बड़ो जीजा जी। क्‍या लीला करते हो। बड़ो-बड़ो को नचाते हो। मैं मस्‍त हो गया। धन्‍य हो गई मेरी बहना। मुझे और क्‍या चाहि‍ए। अगर मेरी बहन और जीजा प्रसन्न तो मैं भी प्रसन्न। लग रहो।‍
हमरा बुझना गेल ई की बाजि‍ रहल अछि‍। हम टोकैत कहलि‍यनि‍- कि‍ससे बात कर रहे हैं आप?
युवक- बांके-बि‍हारी जी से और कि‍ससे।‍
हम- फि‍र जीजा जी कि‍से कह रहे थे?
युवक- बि‍हारी जी को।‍
हम- बि‍हारी जी को?
युवक- जी। मैंने अपने गुरूजी के आदेश से बि‍हारी जी को अपना जीजा बनाया है। इस तरह राधा जी मेरी बहन हुई। मैं अाप लोगों की तरह इनसे कुछ मांगने नहीं आता। भाइ भला अपने जीजा और बहन से क्‍या मांगेगा। वो ताे देगा ना। मैं तो देने आता हूँ। इनके लीला को देखने आता हूँ।‍
हम आश्‍चर्यित होइत‍ बजलौं- आपका क्‍या नाम है?
युवक- मेरा नाम चोलेश शर्मा है। मैं दि‍ल्‍ली से हूँ। प्रति‍ सप्‍ताह रवि‍वार को यहाँ आता हूँ।‍
हम- अब यहाँ से कहाँ जाऐंगे?
युवक- आज मथुरा नहीं जाऊँगा। यहाँ से सीधे बरसाने जाऊँगा। अपनी लाडली राधा से मि‍लकर वापस दि‍ल्‍ली चला जाऊँगा।‍
हम- क्‍या हमलोग भी आपके साथ चल सकते हैं।‍
युवक- क्‍यों नहीं। आप भी चले। हमारी गाड़ी के साथ-साथ।‍
चोलेश शर्माक भावमे सेहो हमरा सहजता आ समर्पण बुझना गेल। हमरा लोकनि‍ मथुराक यात्रा कुनो आन बेर लेल छोड़ि‍ वरसाना दि‍स वि‍दा भेलौं। बृन्‍दावन केर कि‍छु नगद राशि‍ आ धन्‍यवाद दैत चोलेश शर्माक संग हमरा लोकनि‍ आगाँ बढ़लौं। हम अपन एक आदमीकेँ चोलेश शर्मा गाड़ीमे बैस चोलेश राधा-कृष्णक कथा आर एक-एक स्‍थानक गुणगान करैत रहल। समस्‍त बृन्‍दावन एक भव्‍य लाग'-लागल। अन्‍तत: दू बजे दि‍नमे बरसाने पहुँचलौं। पहाड़पर चढ़ि‍ राधा-रानीक मन्‍दि‍रमे प्रवेश केलाैं। करीब 25मि‍नट चढ़ैमे लागल। पता चलल जे मन्‍दि‍रक पट बन्न छै। साढ़े चारि‍ बजे सांझमे खुजतैक।
चोलेशक संग मन्‍दि‍रक बाहरी हि‍स्‍साक आवरणक नि‍रक्षण करए लगलौं। बस्‍सानेकेँ मध्‍यमे ई पहाड़ी बरसानाकेँ माथपर मनटीका जकाँ लागल। एे मन्‍दि‍रकेँ लाड़लीजीक मन्‍दि‍र कहल जाइत छैक। मन्‍दि‍रक ि‍नर्माण राजस्‍थानक राजा वीर सि‍ंह 1675ईं.मे करोलन्‍हि‍। मन्‍दि‍रक स्‍थाप्‍य दक्षि‍ण आर उत्तर भारतक सोहनगर मि‍श्रण केर अनुपन उदाहरण बुझना गेल। मन्‍दि‍र 90फीटक छैक। शि‍खर उजर, नीला ग्रेनाईट पाथर तथा सोनासँ बनल छैक। मन्‍दि‍रक कलाकृति‍क ि‍नर्माण दक्षि‍ण भारतक 15कलाकार केर सहायतासँ कएल गेल छै। मन्‍दि‍रक प्रांगणक चारूकात राजस्‍थान शैलीक पेन्‍टि‍ंगसँ सजाएल। कतौ कृष्‍ण गोपीक चीर हरण करैत, कतौ मत्‍स्‍यावतारक चि‍त्रण, कतौ नटखट कन्‍हैयाकेँ यसोदाजी उखड़ि‍मे बन्‍हने, कतौ कलि‍या नागकेँ नथैत कृष्ण, कतौ कदम्‍बक गाछपर बैस बासुरी हेरैत कृष्‍ण, कतौ गोवर्धन पहाड़केँ आंगुरपर उठेने कृष्‍ण, कतौ यमुनासँ जल भरैत गोपी, कतौ ऐ मंदि‍रक रचनाक उल्‍लेख-चि‍त्रकलाक उत्तम प्रस्‍तुि‍त। चोलेश शर्मा एक स्‍थानीय साधु श्री भोलालाल दासक सहायतासँ एक-एक चीजक दर्शन हमरा लोकनि‍केँ करौलन्‍हि‍।
मुख्‍य पट खुजबामे अखनो समए छल। हमरा लोकनि‍ मन्‍दि‍रक पाछाँमे बनल एक छोट करी दि‍स बढ़लौं। एक साधु भेटलाह। चालेश ओइ साधुसँ बात करए लगलाह। बीच-बीच झुण्‍डक-झुण्‍ड स्‍थानीय महि‍ला सभ धधरा-चुनरी पहि‍रने राधा-कृष्‍णक लोकगीत गबैत अबैत रहल। मोन, प्रसन्न भेल। साढ़े चारि‍ बजे पट खुजि‍ गेलैक। राधा-कृष्‍णक बड़ा नि‍श्‍चि‍न्‍ततासँ दर्शन भेल। आब हमरा लोकनि‍ दि‍ल्‍लीक हेतु प्रस्‍थान केलौं। जतए-कतौ खाली स्‍थान रहैक ततय राधे-राधे लीखल। हमहूँ राधे-राधेमे मग्‍न भ' गेलौं।
इहो पता चलल जे बरसानाक पूर्व नाम ब्रम्‍हसरीन छैक। दंतकथा ई छैक जे एक बेर ब्रम्‍हाजी भगवान श्रीकृष्‍णसँ धरतीपर ि‍कछु दि‍न रहबाक नि‍वेदन केलथि‍न्‍ह। कृष्‍ण कहलथि‍न्‍ह ब्रम्‍हाजीसँ- ठीक छैक अहाँ एकटा पहाड़ीमे अपने-आपकेँ परि‍वर्तित करू। ब्रम्‍ह तुस्‍त पहारी भ' गेलाह। तै बरसाने केर चारि‍ पहारी ब्रम्‍हाजीक चारि‍ मस्‍ति‍क या सि‍र मानल जाइत अछि‍। तै ब्रम्‍हाकसि‍रसँ ब्रम्‍हसरीन भेल या ब्रम्‍हसरीन कालान्‍तरमे बरसाने भ' गेल।‍

शेष अगि‍ला अंकमे......।




 ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
जीवकान्‍त (1936- )
नाम- जीवकान्त झा,पिता-गुणानन्द झा, माता-महेश्वरी देवी, जन्म-२५.०७.१९३६ अभुआढ़, जिला-सुपौल। नौकरी-विज्ञान शिक्षक (.वि.खजौली १९५७-८१), हिन्दी शिक्षक (.वि.डेओढ़ एवं उ.वि.पोखराम १९८१-९८)।पहिल रचना-इजोड़िया आ टिटही (कविता, जनवरी १९६५ मिथिला मिहिर)।पहिल छपल पोथी- दू कुहेसक बाट (उपन्यास १९६८)।नूतन पोथी-खिखिरक बीअरि (२००७ बाल पद्य कथा), अठन्नी खसलइ वनमे (पद्य-कथा संग्रह) आ पंजरि प्रेम प्रकासिया (जीवन-वृत्तक अंश)।पुरस्कार-साहित्य अकादेमी 1998 तकै अछि चिड़ै, पद्य , किरण सम्मान (१९९८), वैदेही सम्मान (१९८५)।प्रकाशित पोथी-
कविता संग्रह:नाचू हे पृथ्वी (७१), धार नहि होइछ मुक्त (९१), तकैत अछि चिड़ै (९५), खाँड़ो (१९९६), पानिमे जोगने अछि बस्ती (९८), फुनगी नीलाकाशमे (२०००), गाछ झूल-झूल (२००४), छाह सोहाओन (२००६), खिखिरिक बीअरि (२००७)
कथा-संग्रह:एकसरि ठाढ़ि कदम तर रे (७२), सूर्य गलि रहल अछि (७५), वस्तु (८३), करमी झील (९८)
उपन्यास:दू कुहेसक बाट(६८), पनिपत(७७), नहि, कतहु नहि (७६), पीयर गुलाब छल (७१), अगिनबान (८१)
हिन्दी अनुवाद- निशान्त की चिड़िया (तकैत अछि चिड़ै, साहित्य अकादमी, दिल्ली २००३)
प्रबोध सम्मान 2010 सँ सम्मानित।

उत्तराधि‍कारी आ लेखक

ओइ दि‍न फोनाचारमे एक अग्रज लेखक कहलनि‍ जे हम मैथि‍लीमे कोनो उत्तराधि‍कारी नै दए सकलौं। हम देखै छी जे हुनक अपेक्षा बहुत जाइज छन्‍हि‍। बहुतो लेखककेँ वंशज लेखक भेल छथि‍ आ से योग्‍यतापूर्वक आ आवेशपूर्वक ऐ काजमे लागल छथि‍।

ओकर आगाँ ओ इहो कहलनि‍ जे हुनके परि‍वारमे एक गोटे मैथि‍लीमे लि‍खैत अवश्य छथि‍, मुदा ओ मैथि‍लीमे कोनो वस्‍तु पढ़ैत नै छथि‍।
हमरा भेल जे एकर चर्चा होएबाक चाही। लेखक भेनाइ आकस्‍मि‍क बात थि‍कैक। ऐ बातकेँ कोनो नि‍यममे बान्‍हल नै जा सकैत छैक। कतेक लेखक छथि‍ जनि‍क पुरखा लेखक भेल छलथि‍न। मुदा एकर वि‍परीतो बात ओतबे सत्‍य थि‍क जे बहुसंख्‍यक लेखक एहेन परि‍वारक सन्‍तान छथि‍ जइमे कहि‍यो लेखक आ कवि‍ नै भेल छल।
संसारमे अनेक वस्‍तुक पढ़ाइ छैक, जेना पढ़ाइ कए लोक डाक्‍टर भए सकैत अछि‍। लेखक बनबा लेल एहेन कोनो शि‍क्षण आ प्रशि‍क्षणक चर्या (पाठ्यक्रम) नै छैक।
एमहर पत्रकारि‍ताक पढ़ाइ शुरू भेल अछि‍। मास मीडि‍याक पढ़ाइ शुरू भेल अछि‍। नाटक वि‍द्यालय आ फि‍ल्‍म प्रशि‍क्षण संस्‍थान सभ सोहो अछि‍। लेखक बनएबाक कला आ विज्ञानक चर्चा नै सुनल अछि‍।
मैथि‍लीमे जे कि‍यो लेखक अछि‍, से सभ तपस्‍वी जकाँ तपोनि‍ष्‍ठा अछि‍। ऐमे (मैथि‍ली) पाठक नै छैक, अथवा बहुत सीमि‍त पाठक-वर्ग छैक। देासर कारण प्रकाशक नै छैक। अपन पाइ गला कए पोथीक मुँह देखब संभव होइत छैक। कोनो आमदनी नै छैक। बहुत घाटा छैक, अजीवन प्रतिमास कि‍छु धन ऐ भट्ठीमे झोंकए पड़ैत छैक।
तखन जतबे छोट होउक, एक लेखक वर्ग छैक जे लि‍ख रहल छैक। यशोलि‍प्‍सा एक कारण कहल जा सकैत अछि‍। प्रत्‍येक आदमीमे ई जन्‍मजात दुर्बलता होइत छैक जे ओ यशस्‍वी होअए।
मुदा ऐ प्रेरणाकेँ एकमात्र प्रेरणा नै बूझल जएबाक चाही। एक देखार प्रेरक अछि‍ जे ई सभ लोक भाषा-प्रेमसँ प्रेरि‍त अछि‍ आ चाहैत अछि‍ जे भाषा (आ संस्‍कृति‍)केँ जि‍आ कए राखी आ वि‍परीत परि‍स्‍थि‍ति‍योमे एकरा जि‍एबाक उद्योगमे लागल रही।
हमर एक मात्र पौत्र (पि‍ति‍औत भाइक पौत्र) इन्‍कम टैक्‍समे हाकि‍म छथि‍। 2003ईं.मे मैथि‍ली अकस्‍मात संसदसँ अनुमोदि‍त भेल आ संवि‍धानक भाषा-सूचीमे स्थान पाबि‍ गेल। ओ पौत्र ओही दि‍न फोनपर हमरा कहलनि‍ जे हमरे सबहक (मैथि‍ली लेखक) सदुद्योगसँ आइ ई भाषा ऐ गौरवक अधि‍कारी भेल अछि‍।
भाषा लेल जाधरि‍ श्रद्धा-भक्‍ति‍ नै होएतैक ताधरि‍ ऐ भाषाकेँ लेखक नै भेटतैक।
अनुभव कएल जा रहल अछि‍ जे मैथि‍ली भाषामे जतबा जे काज होइए, से सभ बूझबे सबहक हाथे भए रहल अछि‍।
नव लोक ऐ काजमे नै लगैत अछि‍। प्राय: भारतक प्रत्‍येक भाषामे ई गंजन छैक। यद्यपि‍ कि‍छु भाषा देशमे अछि‍ जइमे पोथी आ पत्रि‍काक प्रसार-संख्‍या उत्‍साहजनक छैक, तइ सभमे कि‍छु लेखक भर्ती होइत अछि‍।
अधि‍कांश भाषामे मैथि‍लि‍ए जकाँ रौदी-दाही छैक, तँ ई धंधे बि‍लताहु भेल छैक। ऐ कारणसँ केन्‍द्रीय साहि‍त्‍य अकादेमी (दि‍ल्‍ली) सभ भाषामे युवा लेखक पुरस्‍कार आरंभ देलक अछि‍।
चालीस बर्खसँ कम वएसक लेखक पहि‍ल पोथी सभमे सँ एकपर ई पुरस्‍कार देल जाएत। ई बात प्रशंसा योग्‍य अछि‍, मुदा चि‍न्‍ताजनक सेहो अछि‍। चि‍न्‍ता ऐ बात लेल जे चालीस बर्खसँ छोट वएसक लोक ऐ क्षेत्रमे आएब कदाचि‍त पसि‍न्न नै करैत अछि‍।
नारायणजी एक दि‍न दि‍ल्‍ली मेट्रो रेलसँ पर्यटन कए रहल छलाह, ओहीठामसँ फोन लगा कए कहलनि‍। मेट्रो रेल स्‍टेशनपर पोथी पत्रि‍काक कठघारा छैक। हि‍न्‍दीक एकहु पत्रि‍का आ पोथी नै। मैथि‍ली चर्चा करब व्‍यर्थ। एकर दू अर्थ भए सकैत अछि‍, एक तँ ऐ देशमे लि‍खबा-पढ़बाक भाषा अंग्रेजी अछि‍। आ अंग्रेजि‍ए टा अछि‍। दोसर जे कि‍यो पाठक हि‍न्‍दीमे (तहि‍ना मैथि‍लीमे) कि‍ताब, अखबार आ साप्‍ताहि‍क पत्र नै पढ़ए चाहैत अछि‍।
कोंकणीमे एक लेखक छथि‍ रवीन्‍द्र केलेकर। ओ भारतीय भाषा सबहक गंजनक चर्चा करैत एकठाम लि‍खै छथि‍ जे संवि‍धान हि‍न्‍दीक माथपर राजमुकुट राखि‍ देलक, तइसँ कि‍छु लाभ हि‍न्‍दीकेँ नै भेलैक। ओ लि‍खैत छथि‍ जे अंग्रेजीकेँ हाथमे राजदण्‍ड छैक। तँए देशक शहरमे आ जंगलमे अंग्रेजी माध्‍यमक स्‍कूल चलि‍ रहल छैक। (आश्चर्य जे मैथि‍ली माध्‍यमक एकहु स्‍कूल नै फूजल छैक।)
पूर्वोक्‍त अंग्रेजी लेखकक बातमे एक बात आर अछि‍ जे मैथि‍ली लेखक हुनक परि‍वारमे छन्‍हि‍, मुदा ओहो मैथि‍लीमे (पोथी) पढ़ब पसि‍न्न नै करै छथि‍। ई कोनो वि‍शेष उदाहरण नै थि‍क। अग्रज महाशय जइ क्‍लशक चर्चा करैत छथि‍, से वि‍रल घटना नै थि‍क, सार्वजनि‍क घटना थि‍क।
मैथि‍ली पोथी नै पढ़ल जा रहल अछि‍। कहल जाए जे ऐ पोथीक कोनो महत्‍व नै देल देल जाइत छैक।
हम नवंबर 2010ईं.मे अपन प्रकाशि‍त नव पोथीक दस-पन्‍द्रह प्रति‍ पटना लए गेल रही। मोनमे रहए, लेखक सभकेँ देब। कोनो पुस्‍तक व्‍यवसायीकेँ देब। पोथी पटना-सन शहरमे दस प्रति‍ कि‍एक नै खपि‍ जाएत, से धरणा सभ रहय। तीन सप्‍ताह धरि‍ हम पटना रही। दसो गोटेकेँ फोन कएल, पोथी रखने छी, कृपया आउ, लए जाउ आ एकर वि‍तरणमे मदति‍ करू। सभटा व्‍यर्थ भेल। अन्तमे अनेक आमंत्रि‍तमे सँ एक अजि‍त कुमार आजाद अएलाह आ हमर भार हल्‍लुक कए देल, दस प्रति‍ उठा कए ओ अपन मोटर साइकिलक डि‍क्कीमे धए लेल आ लए गेलाह।
एक दि‍न प्रसि‍द्ध कवि‍ उदयचन्‍द्र झा वि‍नोद फोनाचारमे कहलनि‍, पोथी की छपाउ? पोथी लेल कि‍यो (माने पाठक आलोचक, इति‍हासकार, अनुसंधि‍त्‍सु आदि‍) प्रतीक्षा कहाँ करैत अछि‍? पोथी छापि‍ देल, तँ वाह-वाह, नै छापल, तैयो वाह-वाह। ने ककरो उत्‍सुकता छैक, ने ककरो ऐ बातक प्रत्‍याशा छैक।
पटनाक एक पुस्‍तक व्‍यवसायी पुछलापर कहलनि‍- मैथि‍लीमे वएह पोथी बि‍काइत अछि‍ जे प्रति‍योगि‍ता परीक्षामे ओकर सि‍लेबसमे लागल छैक। आर कोनो पोथीक पुछारि‍ ग्राहक नै करैत अछि‍।
पूवोक्‍त अग्रज बंधुक चि‍न्‍ता ठीक छन्‍हि‍। हमरा सबहक घरमे लेखकक आ पाठकक जन्‍म नै भए रहल अछि‍।
अपने घरसँ पुन: एक उदाहरण लै छी। एकटा पौत्र छथि‍ जे लोहाक कारखानामे नोकरीमे लागल छथि‍। एक दि‍न ओ हमरा पुछलन- गामपर अंग्रेजीक उपन्‍यास (सभ) अछि‍?”
हम कहलि‍यनि‍- की बात थि‍कै?”
ओ कहलनि‍- अंगेजीक उपन्‍यास उपन्‍यास रहैत तँ गाम जइतौं आ ओइठामसँ कि‍छु छाँटि‍ कए पढ़बा लेल अनि‍तौं, आर की?”

 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
शि‍वकुमार झा टि‍ल्‍लू

मैथि‍ली कथाक वि‍कासमे गामक जि‍नगीक योगदान

अपन जन्‍म कालहि‍सँ मैथि‍ली‍ समाजक अग्र आसनपर बैसल वाचकगण द्वारा महि‍मामंडि‍त होइत रहलीह। स्‍वाभावि‍क अछि‍ शि‍क्षि‍त लोक ऐ वर्गसँ संबंध रखैत छलथि‍। आर्य परि‍वारक सभ भाषा समूहक जननी संस्‍कृत मानल जाइत अछि‍ तँए मैथि‍ली कोना तत्‍समसँ बचथि‍? सरि‍पहुँ मैथि‍लीक अधि‍ष्‍ठाता ब्राह्मण आ कर्ण-कायस्‍थ रहल छथि‍, तँए काव्‍य, महाकाव्‍य, कथा वा नाटक हुअए सभ साहि‍त्‍य पल्‍लवक उदय तत्‍सम मिश्रि‍त मैथि‍लीसँ भेल।
आि‍दकवि वि‍द्यापति‍क पदावली पुरान-रहि‍तौं एे रूपेँ अपवाद अछि‍ मुदा हुनक पुरूष परीक्षा संस्‍कृतक आवरणसँ बाहर नै नि‍कलि‍ सकल।
संभवत: मैथि‍लीक कथाक आरंभ पुरूष परीक्षाक मैथि‍ली अनुवाद कऽ चन्‍दा झा कएलनि‍। प्रथम मैथि‍लीक मौलि‍क कथा वि‍द्यासि‍न्‍धुक कथा, कथा संग्रह थि‍क। तत्‍पश्‍चात् स्‍वतंत्र रूपेँ मैथि‍लीमे कथा लि‍खब प्रारंभ भऽ गेल। भुवन जीसँ लऽ कऽ वर्त्तमान युगक कथा यात्रामे कि‍छु एहेन कथाकार भेल छथि‍ जनि‍क यात्रासँ ऐ भाषाकेँ स्‍थायी स्‍तंभ भेटल। ऐमे कुमार गंगानंद सि‍ंह, नगेन्‍द्र कुमर, मनमोहन झा, शैलेन्‍द्र मोहन झा, रामदेव झा, हंसराज, व्‍यास, कि‍रण, रमानंद रेणु, गौरी मि‍श्र, लि‍ली‍ रे, नीरजा रेणु, रूपकान्‍त ठाकुर, रमेश, धीरेन्‍द्र धीर, अशोक, मन्‍त्रेश्वर झा, धूमकेतु, वि‍भूति‍ आनंद, चि‍त्रलेखा देवी, रामभरोस कापड़ि‍ भ्रमर, श्‍यामा देवी, शेफालि‍का वर्मा, कमला चौधरी, कामि‍नी कामायनी, प्रदीप बि‍हारी, हीरेन्‍द्र, ललन प्रसाद ठाकुर, गौरीकान्‍त चौधरी कान्‍त, अरवि‍न्‍द ठाकुर, अशोक मेहता, राजाराम सि‍ंह राठौर, परमेश्वर कापड़ि‍, वि‍जय हरीश, उमानाथ झा, योगानंद झा, सुधांशु शेखर चौधरी, गोवि‍न्‍द झा, राधाकृष्‍ण बहेड़, मणि‍पद्म, मायानंद मि‍श्र, जीवकान्‍त, राजमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी, इन्‍द्रकान्‍त झा, ि‍दनेश कुमार झा, नरेश कुमार वि‍कल, सुभाष चन्‍द्र यादव, केदार कानन, बलराम, अमर, चन्‍द्रेश, रमाकान्‍त राय 'रमा', कुमार पवन, सि‍याराम झा सरस, रामभद्र, रौशन जनकपुरी, राजेन्‍द्र वि‍मल, रमेश रंजन, सुजीत कुमार झा, जि‍तेन्‍द्र जीत, नारायणजी, शैलेन्‍द्र आनन्‍द, अनमोल झा, उग्रनारायण मि‍श्र कनक, राजदेव मण्‍डल, कपि‍लेश्वर राउत, वीणा ठाकुर, कैलाश कुमार मि‍श्र, देवशंकर नवीन, महाप्रकाश, धीरेन्‍द्र नाथ मि‍श्र, साकेतानंद, सोमदेव, अशोक अवि‍चल, रवि‍न्‍द्र चौधरी, वि‍द्यानाथ झा 'वि‍दि‍त', शि‍वशंकर श्रीनि‍वास, मानेश्वर मनूज, अनलकांत, श्रीधरम, सत्‍यानंद पाठक, मि‍थि‍लेश कुमार झा, नवीन चौधरी, आशीष अनचि‍नहार, वि‍रेन्‍द्र यादव, बेचन ठाकुर, गंगेश गुंजन, मनोज कुमार मण्‍डल, अकलेश कुमार मण्‍डल, संजय कुमार मण्‍डल, भारत भूषण झा, लक्ष्‍मी दास, नीता झा, उषा कि‍रण खान, रामकृपाल चौधरी 'राकेश', वि‍द्यापति‍ झा, ज्‍योत्‍सना चंद्रम, सुस्‍सि‍मा पाठक, शुभेन्‍द्र शेखर, कुसुम ठाकुर, दुर्गानन्‍द मण्‍डल, ज्‍योति‍ सुनीत चौधरी, शंकरदेव झा आ गजेन्‍द्र ठाकुर प्रमुख छथि‍।

ऐ बीछल कथाकारक समूहसँ वि‍लग कि‍छु एहेन कथाकार भेल छथि‍ जनि‍क सृजनशीलतासँ मैथि‍लीकेँ नव गति‍ भेटल। जइमे प्रो. हरि‍मोहन झा, ललि‍त आ राजकमलकेँ राखल जाए। हरि‍मोहनबाबू हास्‍य आ दर्शनसँ समाजक सत्‍यकेँ नाङट करैत इति‍श्री मर्म वा अनुशासि‍त मजाकसँ कएलनि‍। जइसँ हि‍नक गंभीर कथा बि‍म्‍बपर हास्‍य भारी पड़ि‍ गेल आ ओहीमे समाहि‍त दर्शन दि‍स समान्‍य पाठकक धि‍याने नै गेलनि‍। ललि‍त जीक कथामे सम्‍यक समाजक परि‍कल्‍पना तँ भेटैत अछि‍ मुदा समाजक कात लागल वर्गक वि‍वरण स्‍वातीक बून जकाँ कतौ-कतौ भेटैत अछि‍। राजकमल चौधरी प्रयोगवादी कथाकारक रूपेँ प्रसि‍द्ध छथि‍। जौं एकैसम शताब्‍दीक कथा ि‍वकासक चर्च कएल जाए तँ ऐ वि‍धामे संतान रहि‍तौं मैथि‍‍ली बॉझ जकाँ भऽ गेल छलथि‍। सन् २००१सँ २००८ईं. धरि‍क कथा वि‍कासक चर्च करब प्रासंगि‍क नै अछि‍।
सन २००८ईं.क उत्तरार्धमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ एकटा बेछप्‍प कथाकार भेटल। ओ मात्र कलमें वा वाचक रूपे नै वरण जीवनक सभ क्षेत्रमे, सम्‍यक चरि‍त्र रखैबला साम्‍यवादी साहि‍त्‍यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल। हि‍नक पहि‍ल कथा भैंटक लावा आ बि‍साँढ़ घर-बाहरमे आ चूनवाली मि‍थि‍ला दर्शन पत्रि‍कामे प्रकाशि‍त भेल। मुदा घर बाहरमे हि‍नक रचनाक भाषामे तोड़-मरोड़, उनटा-पुनटा आ काट-छाँट सेहो कएल गेल, जइसँ भाषा-प्रदूषणक गंधसँ गनहा गेल। मैथिलीक किछु तथाकथित कथाकार-कवि हिन्दीक शब्द घोसिया-घोसिया कऽ मैथिलीकेँ प्रदूषित करैत रहल छथि, प्रायः जगदीशजीक खाँटी मैथिली हुनका लोकनिकेँ नै अरघलनि। मुदा तत्‍पश्‍चात वि‍देहक सौजन्‍यसँ हि‍नक प्रति‍पाद्य कथा बि‍साँढ़ वास्‍तवि‍क रूपरेखाक संग छपल। हम सेहो पढ़लौं। अनेक पाठकक संग श्रुति‍ प्रकाशनक नजरि‍ सेहो पड़लनि‍ आ तखन अवि‍कल रूपमे ई संग्रह छपल।
सन् २००९ईं.मे वि‍देहक संपादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक प्रयाससँ श्रुति‍प्रकाशन दि‍ल्‍लीक अधि‍ष्‍ठाता श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ हुनक साहि‍त्‍य प्रेमी धर्मपत्नी श्रीमती नीतू कुमारी हि‍नक पहि‍ल कथा संग्रह गामक जि‍नगी प्रकाशि‍त कएलनि‍। संयोगसँ ऐ पोथीक प्रारंभ भैंटक लावा कथासँ कएल गेल।
एक सए पैंसठ पृष्‍ठक ऐ संग्रहमे १९ गोट कथा संग्रहीत अछि‍। आमुख देसि‍ल वयनाक सि‍द्धहस्‍त कथाकार सुभाष चन्‍द्र यादव जी लि‍खने छथि‍। जेना-तेना सुभाषबाबू कथाकारक महि‍मामंडन तँ कएलनि‍, परंच ऊपर मोने आ हि‍यासँ लि‍खल आमुखमे भि‍न्नता होइत अछि‍, जेकर ि‍नर्णए प्रबुद्ध पाठकपर छोड़ि‍ देल जाए।
बंगभाषीकेँ कोलकाता सन महानगर, मागधीकेँ पाटलि‍पुत्र ऐति‍हासि‍क शहर, भोजपुरी लोकनि‍केँ गोरखपुर आ वाराणसी सन धाम भेटल। मैथि‍ली भाषीकेँ गनि‍-गुथि‍ कऽ दरि‍भंगा आ सहरसा सन ग्राम्‍य नगरी। तखन भाषाक शहरीकरण आ आदान-प्रदानक सपनों देखब उचि‍त नै। भारतवर्ष जौं गामक देश तँ मि‍थि‍ला महागामक भूि‍म। एक वर्ष बाढ़ि‍ तँ दोसर वर्ष सुखाड़। कोनो उद्योगक साधन नै, शि‍क्षा, स्‍वास्‍थ्‍य आ सड़क सन मौलि‍क समस्‍या मकड़जालमे ओझराएल अछि‍। परि‍णाम पलाएन अर्थात पड़ाइनक रूप लऽ रहल। भोजपुरी लोक सेहो पलाएन कएलनि‍ परंच अपन भाषाक संग, दृष्‍टि‍कोण नीक लगैत अछि‍। अपन देशकेँ के कहए माॅरीशस आ फि‍जी धरि‍ अपन बोली धेने छथि‍।
अपन जीवन-आचारकेँ हाइटेक बनेबाक क्रममे मैथि‍ल संस्‍कृति‍क दोहन भऽ रहल अछि‍। आनक कोन कथा? कि‍छु एहेन साहि‍त्‍यकार भेलाहेँ जि‍नका साहि‍त्‍य आकादमी पुरस्‍कार तँ मैथि‍ली भाषाक लेल भेटल मुदा हुनक परि‍वारक नेना-भुटका गलति‍योसँ मैथि‍ली नै बजै छथि‍। कथा जगतक प्रयोगवादी शि‍ल्‍पी राजकमल जीक कथा रीति‍-प्रीति‍क समागमसँ ओत-प्रोत छन्‍हि‍। ललका पाग, साँझक गाछ, कादम्‍वरी उपकथा सन बहुत रास कथामे सि‍नेहक मर्मस्‍पर्शी चि‍त्रण कएल गेल अि‍छ। परंच कतौ-कतौ राजकमल जी सेहो भटकि‍ कऽ अनैति‍क प्रेमकेँ चलन्‍त साहि‍त्‍यक रूप देलनि‍। जेना घड़ी शीर्षक कथा कोनो रूपेँ समाजमे नीक संदेशक वाहक नै भऽ सकैत अछि‍। ऐमे उल्‍लेख तँ समाजक एकात लागल जहूरनीक कएल गेल परंच की अनुशासि‍त सि‍नेहक प्रदर्शन राजकमल जी कऽ सकलाह? जखन प्रांजल आ प्रवीण कथाकारक ई दशा तँ आनक वि‍षएमे की लि‍खल जाए।
एक अर्थमे कि‍छु जनवादी साहि‍त्‍यकार अपन कथा सोतीमे मैथि‍ली पाठककेँ आनन्‍दि‍त अवश्‍य कएलनि‍ ओइमे प्रभाष कुमार चौधरी, रामदेव झा आ कांचीनाथ झा कि‍रणक संग-संग धूमकेतु, कुमार पवन, कमला चौधरी आ डॉ. शेफालि‍का वर्माकेँ राखल जा सकैछ।
जौं सम्‍पूर्णताक चर्च करी तँ जगदीशबाबूकेँ एकैसम शताब्‍दीक सर्वश्रेष्‍ठ कथाकार माननाइ यथोचि‍त। कि‍एक तँ ओलती आ चि‍नुवार बि‍सरैबला मैथि‍ली प्रेमीकेँ भैंटक लावा, बि‍साँढ़, पीरार, करीन आ मरूआसँ परि‍चए करौलनि‍। मैथि‍ली भाषाकेँ नव-नव शब्‍द देलनि‍। पाग पहि‍र कऽ सभामे आगाँ बैसैबला लोकसँ लऽ कऽ मुसहर धरि‍क प्रति‍ सम्‍यक सि‍नेह हि‍नक कथाक वि‍शि‍ष्‍टता अछि‍। जगदीश जी समाजक ओइ वर्गसँ अबै छथि‍ जकरा अखन धरि‍ मंचपर आसन ि‍दअमे हमरा सभकेँ संकोच होइत अछि‍। परंच कतौ हि‍नक कथामे व्‍यक्‍ति‍गत द्वेष आ पूर्वाग्रहक प्रदर्शन नै। जगदीश जी समाजक आगाँक पि‍रहीकेँ सम्‍मानि‍त करैत सम्‍यक ज्‍योति‍ जगेबाक आश अपन कथा सभमे रखने छथि‍।

गामक जि‍नगी'क पहि‍ल कथा भैंटक लावा मि‍थि‍लाक बाढ़ि‍क दशाकेँ केन्‍द्रि‍त कऽ कऽ लि‍खल गेल अछि‍। भैंटक लावाक संदर्भमे हमरा सबहक गाम-गाममे एकटा कहबी चर्चित छैक- बड़-बड़ जनकेँ भैंटक लावा पदनोकेँ मि‍ठाइ।‍ ऐसँ प्रमाणि‍त होइछ जे सोती, मुरदैया, पोखरि‍, धनखेतामे जलमग्‍नक परि‍णाम स्‍वरूप जनमल भैंटक लावा-नि‍घृष्‍ठ भोज्‍य पदार्थ थि‍क। भोज्‍य पदार्थ मात्र समाजमे रहि‍तौं यायावरी जीवन व्‍यतीत करैबला लोक लेल। ऐ कथाकेँ पढ़ि‍ एकर प्रयोजन कनेक वि‍स्‍मि‍त करएबला परंच उपयोगी लागल। कथा मुसना ओकर अर्द्धांगि‍नी जीबछी आ दुनू बच्‍चाकेँ बाढ़ि‍क जीवन दशासँ जोड़ि‍ बि‍‍म्‍बि‍‍त कएल गेल अछि‍। अपना ऐठामक लोक संतान प्राप्‍ति‍क लेल जीबछ घाटमे मनौती मनैत अछि‍। जौं पुत्र लेलक तँ जीबछा आ जौं बेटी आएलि‍ तँ जीबछी। ऐ जीबछीक तँ नेनकाल नै देखाओल गेल, ओहेन मॉगल-चाॅगल छथि‍यो नै मुदा साहस देखनुक। मुसनाकेँ सर्पदंशक काल जीबछी साहस नै छोड़ली। झाड़-फूक सन भ्रांति‍केँ ऐ कथामे देखाओल गेल परंच परि‍णाम सकारात्‍मक- मुदा ढोढ़ सॉप कटने रहए तेँ बि‍ख लगबे नै‍‍ केलै।‍ ऐसँ रचनाकारक ग्राम्‍य जीवनक मनोदशाकेँ परि‍वर्तन करबाक उद्देश्‍य प्रमाणि‍त होइत अछि‍।
श्रीकान्‍त सन गामक छड़ीदारकेँ बाढ़ि‍ उद्देश्‍य पूरा नै करए देलक। जौं अन्न रहि‍तनि‍ तँ सूदि‍खोरी चैलतनि‍ मुदा अपने खएबाक लेल नै तँए आगाँ की सोचथि‍.....?
जीवछी हुनके आश्रममे कुटौनी करति‍ छलीह, श्रीकान्‍तबाबूकेँ सोगाएल देख जीबछीक कथन- एक्केटा बाढ़ि‍मे चि‍न्‍ता करै छथि‍ कक्का, कनी नीक की कनी अधलाह, दि‍न तँ बि‍तबे करतनि‍।‍ मे साहसक संग-संग यथार्थबोध होइत अछि‍। अभावक नाहमे सवार व्‍यक्‍ति‍केँ भासि‍ जएबाक कोनो चि‍न्‍ता नै, ओ तँ ई सोचि‍ कऽ जल-यात्रा करैत अछि‍ जे अथाह पानि‍मे नाह डूबबे करत। तँए हेलबाक कला पहि‍ने सीख लेल जाए। दीन-हीन आ साधन वि‍हीन मानवीय जीवनमे वि‍चलन नै होइत छैक। मुसना अर्थात मकसूदन मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भातमे जीबछीक सि‍नेह आ दुखनीक आश देख अमृत मानि‍ कऽ ग्रहण कऽ लेलक। रातुक कोनो चि‍न्‍ता नै जीबछी साक्षात आर्या बनि‍ ठाढ़ छलीह- ककरो कि‍छु होउ जकरा लूरि‍ रहतै ओ जीबे करत। बाढ़ि‍सँ सभ कि‍यो तबाह कमला‍ महरानीकेँ दीप बाड़ि‍ अपन प्रभाव कम करबाक प्रार्थना सभ ि‍कयो करैत छल। यएह थि‍क मि‍थि‍लाक गामक जीवन केर मनोवैज्ञानि‍क रहस्‍य। हम-सभ भगवतीक आगाँ बलि‍ प्रदानो कऽ सकैत छी तँ कखनो प्रकृत पूजन सेहो। जखन पानि‍ कम भेल तँ सभ कि‍यो अपन डूबल खेत-पथारक गलल डाॅटकेँ गनऽ मे लागि‍ गेलाह मुदा जीबछीक पारखी दृष्‍टि‍ भैंटक कोखि‍केँ देखबामे मग्‍न छल। श्रीकान्‍तबाबूसँ आज्ञा लऽ कऽ हुनक खेतसँ भाँटि‍केँ उजाड़ि‍ अन्न नि‍का लऽ लगलीह। लावाक सुगंधसँ जीबछीक कल्‍पनामे चारि‍ चान लागि‍ गेल बाढ़ि‍केँ जीवनक उपहार मानि‍ कमला-कोसीकेँ धन्‍यवाद दि‍अ लगलीह। ऐ प्रकारक सोचसँ कि‍यो वि‍स्‍मि‍त भऽ सकैत अछि‍- बाढ़ि‍ कखनहुँ लाभकारी कोना होएत? मुदा जीबछीकेँ डूबैक लेल तँ कि‍छु रहबे नै करए धास-पातक घर फेर बनि‍ जाएत।‍ महींस नहि‍यो तँ गाइये कीनबाक योजना बनाबऽ लगलीह।
स्‍वाभावि‍क अछि‍ कर्मठ लोककेँ दुआरि‍ ताकए नै पड़ैत अछि‍। कथाक सभसँ नीक प्रसंग लागल जे पहि‍लुक भैंटक चाउर श्रीकान्‍तबाबूकेँ देबामे जीबछीक दृष्‍टि‍कोण। गरीब कखनहुँ वि‍श्‍वासधात नै कऽ सकैत अछि‍। संग-संग कथाक आकर्षण घटना चक्रक क्रममे जखन ठेंगी मुसनाक भरि‍ पोख खून पीब लेलक तखन मुसनाक शंकाग्रस्‍त हएब जे जीबछी हुनक मरबाक कामना करैत अछि‍ कि‍एक तँ दोसर पुरूष भेंट जेतनि‍। समाजक दाबल वर्गमे नारी शोषण नै‍, कि‍एक तँ नारी पुरूषक संग-संग जीवनक वाहनकेँ गति‍ देवामे गति‍शील रहैत छथि‍। ओ दोसरो वि‍वाह करबाक लेल स्‍वतंत्र छथि‍। आगाँक जाति‍ तँ नारीकेँ आब अधि‍कार दि‍अ लागल पहि‍ने तँ अो अंगनक लक्ष्‍मी मात्र छलीह। ऐ कथाकेँ पढ़बाक क्रम सोचऽ मे अबैत अछि‍ जे अागाँ कि‍नका मानल जाए मुसना सन मुसहरकेँ वा हमरा सन......।
रचनाकारक एकटा आर दृष्‍टि‍कोण नीक मानल जाए जे समाजक दूटा अलग-अलग वर्गक कथा कहि‍तहुँ वर्ग संघर्ष नै वरन् सि‍नेहि‍ल भाव। श्रीकान्‍त लावा तँ स्‍वीकार करै छथि संगहि‍ जीबछीकेँ नव-वस्‍त्रक संग वि‍दाइ सेहो दै छथि‍ ऐमे सामाजि‍क सामंजस्‍यकेँ बढ़ेबाक प्रयास देखएमे आएल।‍

ऐ कथा संग्रहक दोसर कथा बि‍साँढ़ भैंटक लावाक वि‍परीत सुखारक स्‍थि‍ति‍क मध्‍य घुमैत अछि‍। प्रकृति‍ प्रदत्त वि‍पदामे सभसँ बशी प्रभावि‍त समाजक पेटकान लाधल वर्ग रहै छथि‍। कथाक नायक डोमन चारि‍ बर्खक रौदीसँ तप्‍त छथि‍। हि‍नका खेत-पथार नै। अपन कनि‍याँ सुगि‍याक संग मेहनति‍ मजूरी कऽ कऽ कहुना जीवन वसर करैत छलाह मुदा जखन गि‍रहस्‍ती समाप्‍त भऽ गेल तँ नीक-नहाँति‍ गुजर करबाक कल्‍पनो असंभव। परंच सुगि‍या तँ छथि‍ मैथि‍ल नारी, ओइ समाजक नारी जतए पुरूषसँ बेसी परि‍वारक भार नारि‍येपर रहैछ। हाि‍र कोना मानतीह। डोमनकेँ दुखि‍त देख नूतन ओि‍रयान करबाक लेल अद्यत भऽ गेली। बड़का-बड़का मजाहन जेना नेङरा काका अपन महाजनी बन्न कऽ लेलनि‍। ओ अपन झाँपल अन्न-पानि‍केँ अगि‍ला साल उच्‍च भाउपर बेचबाक तैयारी कऽ रहल छथि‍। गाए-बरदकेँ मरनासन्न देख कि‍सान तँ अरण्‍यरोदन करैत अछि‍ मुदा गि‍द्ध प्रसन्नचि‍त्त मुक्‍त गगनमे मॅडराइत रहैछ, यएह हाल छन्‍हि‍ बौकी काकीकेँ, अपन महाजनीक लेल राखल चाउरकेँ मातृनवमीमे नि‍कालतीह। हाय रे हमरा सबहक संस्‍कृति‍ नेना भूखसँ कल्हाइत छथि‍ मुदा मातृनवमीमे मरल पूर्वजक स्‍मृति‍मे अरबा चाउर पंडि‍त केर पातपर देल जाएत। सरि‍पहुँ यथास्‍थि‍ति‍ जे हुअए परंच दुर्गापूजा, कोजगरा, दीवाली, गोवर्धनपूजा, भरदुति‍या छठि‍‍ आदि‍केँ मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍ पर्व मानि‍ रचनाकार सम्‍यक दृष्‍टि‍कोणक परि‍चय देलनि‍। जगदीशजीक जन्‍म एहेन परि‍वार वा वंशमे भेल जइठाम कोजगरा मनाएब असंभव मुदा ब्रह्मण आ कर्ण कायस्‍थ सन अपेक्षाकृत कम गणनाक जाति‍केँ सेहो आत्‍मसात् कऽ लेलनि‍। ऐसँ पूर्व कोनो ब्राह्मण साहि‍त्‍यकार गोवर्धनपूजा वा सलहेसपूजाकेँ मि‍थि‍लाक पावनि‍ मात्र मंचेटा पर मानने हेताह।
कथाक इति‍श्री सुखारक मध्‍य एहेन फलक शोधक रूपमे कएल गेल जकर वि‍षयमे बहुत कम लोक सोचने हेताह। सुक्‍खल पोखरि‍केँ डाँड़ भरि‍ कोरि‍ उज्‍जर-उज्‍जर अल्हुआ सन फर देख सुगि‍याक भुक्‍खल आत्‍मा जुरा गेल ओतऽ पुरान व्‍यथाक मध्‍य वर्त्तमान सुखद अनुभूति‍क तुलना करए लगलीह वि‍कल जीक गजल- शेषांशपर रोदन करू गीत उदि‍त भानपर....। उपर बि‍साँढ़ आ नीचाँ सि‍ंगही माछ जौं वनस्‍पति‍ शास्‍त्री रहती छल तँ पुरस्‍कार नि‍श्चि‍त, मुदा गरीबक शोध तँ पेट खाति‍र होइत अछि‍, एकरा अपन समाजमे मोजर नै, आनठाम के देत।
धनि‍या आ पि‍चकुनक प्रेम आ वैवाहि‍क जीवनमे भैंटक लावा वा बि‍साँढ़ सन एकटा तेसर उपेक्षि‍त फल- पीरारक फड़ सि‍नेह वृष्‍टि‍ करैत अछि‍।

जगदीश जीक कथा सभमे बि‍म्‍ब वि‍स्‍मयकारी, शि‍ल्‍प समाजक जीवन शैलीक वि‍षम परि‍पेक्ष्‍यक वि‍वेचन करैत छन्‍हि‍, मुदा एकटा कमी जे देखल गेल ओ अछि‍ अलंकार आ हास्‍यक अभाव। वास्‍तवमे ऐ कथाक प्रति‍ आकर्षण ओकरामे भऽ सकैत अछि‍ जेकर जीवन अछोप हुअए। जौं पातपर भात नै तँ चटनीक कोन प्रयोजन। हि‍नक कथा ओइठामक समाजकेँ हि‍लकोरि‍ देलक जतए धरि‍ पंडि‍त हरि‍मोहन झा सन मॉजल साहि‍त्‍यकार कहि‍यो नै पहुँच सकलथि‍, आनक कोन गप्‍प?

अनेरूआ बेटा कथामे एकटा संतानहीन दंपति‍केँ दोसरक फेंकल पूतक पोषण मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे क्रांति‍वादकेँ आगाँ बढ़एबाक प्रयास मानल जाए। गंगाराम आ भुलि‍याक वरदपूत मंगल कथानायक छथि‍। ओ मात्र साक्षर भेला उत्तर चाहक दोकानदार बनि‍ गेलाह। मंगल, धर्ममाता आ पालक पि‍ताक मृत्‍युक पश्चात अपन पेटसँ लड़ैत-लड़ैत कोना साहि‍त्‍यकार भऽ गेलथि‍ संभवत: जगदीशजी लेखनी उठबैसँ पहि‍ने नै सोचने हेताह।

एकटा प्रसंग कनेक अनसोहाँत लागल जे गंगारामक स्‍त्री अबोध मंगलकेँ दुग्‍धपान करएबाक लेल अपन पि‍ति‍औत दि‍यादि‍नी कबूतरी लग पहुँचै छथि‍। कबूतरी वि‍स्‍मि‍त नै भऽ कऽ भुलि‍यासँ कहलनि‍ जे हि‍नक बुढ़ाढ़ीक नेना कतेक पोरगर। मातृत्‍वक अवधि‍ नौ मासक होइत अछि‍ जखन पहि‍ने भुलि‍यामे कोनो एहेन लक्षण नै तँ कबूतरीक ऐ प्रकारक संवाद रचनामे कल्‍पनाशीलता भरबाक असफल प्रयास मात्र मानल जाए। भऽ सकैछ कथाकार कबूतरीकेँ हँसी-ठठाबला प्रवृत्ति‍क कलाकार बनबैत लि‍खने होथि‍।
मंगलकेँ साहि‍त्‍यकार बनेबामे रूपचन सन खि‍सक्करक बड़ पैघ हाथ छल। कहि‍यो राजा-रानी तँ कहि‍यो रानी-सरंगा तँ कहि‍यो रजनी-सजनीसँ लऽ कऽ गोनू झा, डाकक कथा, अल्‍हा रूदल, दीना-भदरी, लोरि‍क आ सलहेसक कथाक संग-संग गामक लोकक मुँहसँ सेहो सुनि‍-सुनि‍ कऽ चाह वि‍क्रेता मंगल कथाकार बनि‍ गेलथि‍‍। ऐ प्रकारक कथा नाट्य रूपमे भफाइत चाहक जि‍नगीमे शेखरजी लि‍खने छथि‍। समग्र समाजक प्रति‍ सम्‍यक दृष्‍टि‍कोण रखैत अर्थनीति‍केँ रचनाक मूल वि‍षय वस्‍तु बनएबामे जगदीश जीक कोनो जोड़ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे नै भेटत। कलान्‍तरमे वकील साहेबक पुत्री सुनएना मंगलसँ प्रभावि‍त भऽ हि‍नका अपन जीवन संगी बनएबाक लेल आतुर भऽ गेली। ऐ ि‍नर्णएमे वकील साहेब सुनयनाक संग छथि‍। कथाक अंत धरि‍ ि‍नष्‍कर्ष नै नि‍कलि‍ सकल मुदा एकटा प्रश्न हमरा सबहक माथपर रचनाकर लादि‍ देने छथि‍- ओ अछि‍ जाति‍, धर्मसँ ऊपर उठि‍ कऽ आत्‍मि‍क मि‍लनक आधारपर वि‍वाह करबाक ि‍नर्णए। भऽ सकैत अछि‍ जे कथाकार अपन व्‍यक्‍ति‍गत जीवनमे एहेन क्रांति‍कारी कदमक वि‍रोधी होथि‍, मुदा हम अपन छठम ज्ञानेन्‍द्रि‍य अनुभूति‍क आधारपर कहि‍ सकै छी अगि‍ला पचास वर्षक अंदर हि‍नक रचना आर्यावर्त्तमे क्रांति‍क सूत्रपात करैत बदलैत दृष्‍टि‍कोणक प्रत्‍यक्षदर्शी रहत।

समग्र ग्राम्‍य जीवन शैलीकेँ छुबैत एकसँ बढ़ि‍ कऽ एक कथाक संग्रह गामक जि‍नगी मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल बेछप्‍प संकलन थि‍क।
डीहक बटवारामे शहरी जीवनकेँ जीबि‍‍ अंति‍म अवस्‍थामे पि‍तृभूमि‍केँ अपन शेखी ओ शानक भूमि‍ बनएबाक अवि‍रल प्रस्‍तुति‍ कएल गेल अछि‍। गामकेँ खराब शहरी लोक कऽ दैत छथि‍। बाबीकथामे बाबी मुरूख रहि‍तहुँ गामक पथ प्रदर्शक महि‍ला छथि‍। छठि‍मे एकटा छोट नेना पूजासँ पूर्व पाकल केरा खा गेल सभ ओकरा मारए लागल मुदा बाबी सि‍नेह देखबैत भगवानकेँ श्रद्धासँ प्रसन्न करबाक प्रयास करए लगलीह। आडंवरपर मूर्ख महि‍लाक वि‍जयी उद्घोष ऐसँ नीक शि‍ल्‍प कतए-कतए देखाओल गेल। रहमतक माए बाबीसँ खरनाक बासि‍ प्रसाद लऽ संध्‍या अर्घक लेल फल-फूल देलनि‍ आ बाबी हृदेसँ स्‍वीकार कऽ लेलथि‍न। वास्‍तवमे मि‍थि‍ला यएह छल, मुदा कि‍छु छद्म स्‍वार्थी तत्‍व एकरा जाति‍ धर्मक खाधि‍मे ठाम-ठाम खसा देलक। संध्‍या अर्ध्‍यमे रहमतक माए कि‍छु देरीसँ औतीह कि‍एक तँ हटि‍या जएबाक छन्‍हि‍। कर्म प्रधान विश्व करि‍ राखा, बाबी हि‍नक ि‍नर्णएसँ सि‍नेहि‍ल छथि‍ कि‍एक तँ भगवान प्रेमक भुक्‍खल, श्रद्धा कि‍यो अखनहुँ प्रकट कऽ सकैत छथि‍।
कामि‍नी कथाक प्रारंभ अर्थक वि‍जय मुदा अंतमे टकासँ कीनल वर द्वारा अर्धांगि‍नीक प्रताड़नासँ भेल। अंतमे प्रश्ने रहि‍ गेल कामि‍नी कतए गेली?”
राजकमल जीक कथा जकाँ जगदीशजी सेहो प्रश्न छोड़ि‍ इति‍श्री कएलनि‍। प्रयोगवादि‍ताकेँ मैथि‍लीक धरातलपर दोसर बेर प्रयोग, मुदा राजकमलजी सँ नीक रूपेँ कएलनि‍। गामक जि‍नगीक कथाकार सभसँ पैघ जे वस्‍तु मैथि‍लीकेँ देलनि‍ ओ थि‍क नव-नव शब्‍द। ऐ प्रकारक शब्‍द कोनो अकाशसँ नै खसल, शोषि‍त समाज आ अगि‍ला पाति‍क गरीब समाजमे एखनो बाजल जाइत अछि‍, मुदा मैथि‍ली साहि‍त्‍यकारक रचना सभमे लुप्‍त।
मात्र कि‍रणजी, हरि‍मोहन झा, सोमदेव आ शेखरजी सन कि‍छु कथाकारक कि‍छुए रचनामे एहेन प्रकार शब्‍द भेटैत अछि‍। मुदा ओ सभ शब्‍द ओतेक रूपक नै जतेक जगदीशबाबूक रचनामे ठाम-ठाम प्रयोगमे अबैत अछि‍।
आब प्रश्न उठैत अछि‍ जे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक सर्वश्रेष्‍ठ कथा संग्रह गामक जि‍नगीकेँ कि‍एक नै मानल जाए। नि‍:संदेह हरि‍मोहन झा, कि‍रण, राजकमल, धूमकेतु, ललि‍त आदि‍ मैथि‍लीक सि‍द्धहस्‍त कथाकार छथि‍। हरि‍मोहनबाबू हास्‍य, दर्शन ओ मर्मक त्रि‍वेणीसँ कथा सभकेँ बोरैत सभसँ जनप्रि‍य कथाकार मानल गेलाह, मुदा हि‍नक कथामे हास्‍य समागमक क्रममे गंभीर लेखन सुशुप्‍त भऽ गेलनि‍। चर्चरीमे जौं गंभीरता अछि‍ तँ ओ मात्र समाजक अगि‍ला लोकक प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करैत छन्‍हि‍, अगि‍ला लोक साहि‍त्‍यक अधि‍कारी तँ छथि‍, मुदा भाषासँ दूर भऽ रहल छथि‍। समाजक अंति‍म पाँति‍ धरि‍ हरि‍मोहनजी अधि‍कांश कथामे नै पहुँचलाह। कि‍रण जीक कि‍छु कथा जेना मधुरमनि‍ ऐ रूपक छन्‍हि‍, मुदा जगदीश जीक कथाक दर्शनसँ हुनको तुलना केनाइ उचि‍त नै। फनीश्वरनाथ रेणु जौं मैथि‍लीमे लि‍खतथि‍ तँ स्‍थि‍ति‍ थोड़े फराक भऽ सकैत छल। रेणुजी उपन्‍यासकारक रूपेँ हि‍न्‍दीक प्रेमचन्‍द्रक पश्चात सर्वश्रेष्‍ठ गद्यकार मानल जा सकैत छथि‍ मुदा कथाकारक रूपेँ हमरा सबहक जगदीश जीसँ आगाँ नै। पाठक जौं आत्‍मीय भऽ कऽ गामक जि‍नगी पढ़थि‍ तँ निश्चि‍त रूपेँ हम कहि‍ सकैत छी जे ई पोथी मैथि‍ली साहि‍त्‍यक एखन धरि‍क सर्वश्रेष्‍ठ कथा संग्रह थि‍क।   

ऐ रचनापर अपन मतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
जगदीश प्रसाद मण्‍डल

नाटक
कम्‍प्रोमाइज
(पछिला खेपसँ आगाँ)
बारहम दृश्‍य

              (गामक वि‍द्यालयक आंगन। बच्‍चा सभ फील्‍डपर खेलैत। रस्‍ता धऽ कऽ राही सभ चलैत। गोल-मोल बैसार। एकठाम कृष्‍णदेव, मनमोहन आ रघुनाथ बैसल। बगलमे घनश्‍याम, नसीवलाल, सुकदेव आ गामक लोक बैसल।)

नसीवलाल-       (ठाढ़ भऽ) आजुक बैसार लेल सभकेँ धन्‍यवाद दइ छि‍यनि‍ जे अपन व्‍यस्‍त समैमे आबि‍ गामक बैसारकेँ शोभा बढ़ौलनि‍। तइ संग होनहार कर्मदेवकेँ आरो बेसी बधाइ दइ छि‍यनि‍ जे जी-तोड़ि‍ मेहनत कऽ बैसार करौलनि‍।

मनचन-          भैया, अहाँ कर्मदेवक प्रशंसा बेसी केलि‍यनि‍।

नसीवलाल-       कम्मे केलि‍यनि‍। नवयुवक आ बाल-बच्‍चाक (बेटा-बेटीक) बेसी प्रशंसा कतौ-कतौ अधलो होइ छै।

कृष्‍णदेव-         (चौंकैत) से केना?

नसीवलाल-       मनुष्‍यकेँ घरसँ बाहर धरि‍ प्रशंसा-नि‍न्‍दासँ परहेज करक चाही।

कृष्‍णदेव-         तखन?

नसीवलाल-       उचि‍त सीमाक उल्‍लंघन होइते बनै-वि‍गड़ैक संभावना बढ़ि‍ जाइत अछि‍।

घनश्‍याम-         (मूड़ी डोलबैत) संभव अछि‍।

नसीवलाल-       संभव रहि‍तो कठि‍न (भारी) अछि‍। मुदा जाधरि‍ संभव नै हएत ताधरि‍ समाजक गाड़ि‍यो लीख दऽ ससरब कठि‍न अछि‍।

घनश्‍याम-         नीक-अधलाक वि‍चार तँ करैके चाही।

नसीवलाल-       नि‍श्चि‍त करैक चाही। मुदा हटि‍ कऽ नै सटि‍ कऽ।

घनश्‍याम-         की मतलब?

नसीवलाल-       मतलब यएह जे जहि‍ना समुद्रक कि‍नछरि‍क पानि‍ कम गहींरमे रहि‍तो अगम पानि‍सँ मि‍लल रहैत, तहि‍ना।

              (कनडेरि‍ये आँखि‍ये रघुनाथ, मनमोहन नसीवलाल दि‍स देखैत तँ मनचन, सुकदेव कृष्‍णदेव दि‍स। अपन-अपन मनोनुकूल मुँहक रूप सेहो बनबैत)

घनश्‍याम-         (ठहाका मारि‍) एखन धरि‍ गामक बैसार कोन रूपे चलैत अछि‍ नसीवलाल भाय?

नसीवलाल-       घनश्‍याम बाबू, जहि‍ना बन्‍दूकक अनेको गोली खेनि‍हारकेँ देहक कोनो अंग चि‍न्‍हार नै रहैत तहि‍ना गामो-समाजकेँ भऽ गेल।

घनश्‍याम-         कनी फरि‍छा कऽ कहि‍यौ?

नसीवलाल-       ओना एखन जइ काजे सभ एकठाम बैसलौं पहि‍ने से काज हेबाक चाही। मुदा ऐ तरहक बैसार पहि‍ल-पहि‍ल अछि‍ तँए कि‍छु आनो बात चलबे करत।

मनचन-          भैया, हनुमानजी जकाँ कि‍यो छाती फाड़ि‍ देखबैए आकि‍ पेटक बात आ हाथक काजेसँ देखबैए।

              (मनचनक बात सुनि‍ कृष्‍णदेव हंसक हि‍लुसैत आँखि‍ जकाँ देख)

कृष्‍णदेव-         एखन धरि‍ मनचनकेँ बटेदार बुझै छलौं मुदा से नै ओ समाजक पटेदार (हि‍स्‍सेदार) छी।

              (कृष्‍णदेवक वि‍चार सुनि‍)

नसीवलाल-       जहि‍ना हाथमे पाँचो-आंगुर पाँच लम्‍बाइ-चौड़ाइक होइ छैक मुदा हाथक शोभा तँ बराबरे बढ़बैत छै कि‍ने?

कृष्‍णदेव-         हँ से तँ बढ़ैबते छै।

नसीवलाल-       तहि‍ना ने सड़क बनौनि‍हारमे पत्‍थर बैसौनि‍हारसँ लऽ कऽ नक्‍शा बनौनि‍हार धरि‍क होइ छै।

कृष्‍णदेव-         मुदा?

नसीवलाल-       हँ। जहि‍ना सि‍र क्षीणका भगवतीक महत्‍व होइत तहि‍ना ने मुस्‍कुराइत खर्गधारी भगवति‍योक होइत।

              (बि‍चहि‍मे)

घनश्‍याम-         हँ हेबाक चाही। मुदा पहि‍ने दुनूक परि‍चए हएब जरूरी।

नसीवलाल-       नि‍श्चि‍त। जहि‍ना भूतपर भवि‍ष्‍य ठाढ़ होइत तहि‍ना ने मनुष्‍योक पैछला जि‍नगी अगि‍ला जि‍नगीकेँ ठाढ़ करैमे मदति‍गार होइत।

मनचन-          जँ से नै हुअए, तखन?

नसीवलाल-       ओहि‍ना हएत जहि‍ना सत्‍यवादी हरि‍श्चन्‍द्रक पार्ट (स्‍टेजपर) कि‍यो शराबी झुमि‍-झुमि‍ कठही चौकीपर अलापैत।

              (ठहाका)

घनश्‍याम-         हँसी-मजाक छोड़ि‍ बैसारक गरि‍मा बनाउ?

नसीवलाल-       (अधहँसी हँसि‍) बहुत नीक वि‍चार घनश्‍यामबाबू, देलनि‍। आइ धरि‍ हृदए तड़पैत रहल जे गामोक नक्‍शा इति‍हासक पन्नामे जोड़ाए। से......?

मनचन-          भैया, जइ समाजमे प्रोफेसर, इन्‍जि‍नि‍यर, डॉक्‍टर, बैंक स्‍टाफसँ लऽ कऽ गोबर बीछि‍नि‍हारि‍ धरि‍ छथि‍ तइ समाजक इति‍हारस नै बनै ओ लाजि‍मी छी।

नसीवलाल-       कहलह तँ ठीके मुदा.....।

मनचन-          मुदा की?

नसीवलाल-       यएह जे, ओना आइ धरि‍क समाजक पन्ना-पन्ना पढ़ए पड़त। ओकरा तकैमे कि‍छु मेहनत उठबए पड़त। मुदा जँ ओकरा वि‍चारणीय प्रश्न बना राखि‍ आजुक समाजक अध्‍ययन कऽ ि‍नर्माणक संकल्‍प लेल जाए, तहूसँ काज चलि‍ सकैए।

मनचन-          से कोना हएत?

घनश्‍याम-         जँ करैक इच्‍छाशक्ति‍ जगा संकल्‍पवद्ध भऽ डेग उठाबी तँ भऽ सकैए।

कर्मदेव-          घनश्‍याम काका, अहाँ तँ नारदजी जकाँ छोटका बैंकक मीटि‍ंगसँ लऽ कऽ बड़का बैंकक मीटि‍ंग धरि‍क अनुभव रखने छी तँए नीक हएत जे अपने समाजक एकटा रूप-रेखा बना बजि‍यौ?

घनश्‍याम-         बाउ कर्मदेव, कहलह तँ ठीके बाहरी दुि‍नयाँसँ भि‍न्न ग्रामीण दुनि‍याँ अछि‍। तँए जे तरी-घटी गामक नसीवलाल भाय जनैत-बुझैत- छथि‍ से नै बुझै छी।

सुकदेव-         ई कोनो बड़ पैघ समस्‍या नै छी। नीक हएत जे दुनू गोरे वि‍चारि‍ कऽ आगूक डेग उठाबी।

              (सुकदेवक वि‍चारकेँ मनमोहन आ रघुनाथ समर्थन केलनि‍। मुदा कृष्‍णदेव मुँहक बात रोकि‍ लेलनि‍)

मनचन-          (मुस्‍की दैत) घनश्‍याम भाइक तेहेन क्‍वीन्‍टलि‍या पेट छन्‍हि‍ जे नसीवलाल भैयाकेँ पीचि‍ये देथि‍न।

घनश्‍याम-         (हँसैत) नै मनचन, मोटेलहा पेट रहैत तखन ने फुललाहा छी। कोढ़ि‍लोसँ हल्‍लुक।

मनचन-          गणेशजी बला। जे एक-रत्तीक मुसरी मुनहर सन पेटकेँ उठा दौड़ैत रहैए।

घनश्‍याम-         हँ। हँ। सएह बुझहक।

कृष्‍णदेव-         (रूष्‍ट भऽ) समैक उपयोग करू।

घनश्‍याम-         भाय, वि‍चार अछि‍ जे सभ कि‍यो दि‍लसँ अपन-अपन जि‍नगीक अनुभव व्‍यक्‍त करी। जइसँ एक नव समाज बनैक सुदृढ़ नीब पड़त।

कृष्‍णदेव-         बहुत बढ़ि‍याँ, बहुत बढ़ि‍याँ। जाधरि‍ गामक दशाक सम्‍यक चर्च नै हएत ताधरि‍ दि‍शा ि‍नर्धारि‍त करैमे कि‍छु कमी रहबे करत।

नसीवलाल-       बहुत बढ़ि‍याँ वि‍चार कृष्‍णदेवबाबूक छन्‍हि‍। जाधरि‍ पेटक नीकसँ आ अधलासँ अधला वि‍चार समाजक बीच नै राखब ताधरि‍ समाजक अंतरी मि‍लान कोना हएत?

मनचन-          भैया, अंतरी मि‍लान केकरा कहै छै?

घनश्‍याम-         (मुस्‍की दैत) छाती मि‍लानकेँ।

मनचन-          छाती मि‍लान......। छाती मि‍लान तँ दुइये ठाम......। समैधि‍क संग आ दुनू परानी.......। दू परानी.......?

घनश्‍याम-         कोन मंत्र पढ़ए लगलह मनचन?

मनचन-          व्‍यासजी आ गनेसजीमे यएह ने शर्त्त रहनि‍ जे बि‍नु बुझने कलम नै बढ़ावी।

घनश्‍याम-         अहाँ तँ शास्‍त्रो बुझै छी मनचन।

मनचन-          पढ़ि‍ कऽ नै, भागवत सुनि‍ कऽ। तेसरा तक अपनो गामक ब्रह्मस्‍थानमे साले-साल भागवत होइ छलै कि‍ने।

नसीवलाल-       एखन धरि‍ बैसारक मूल वि‍षयपर नै एलौंहेँ। अढ़ाइ-तीन घंटा बीत गेल। ओना, भलहि‍ं हम सभ वि‍षयानतरे गप-सप्‍प कि‍अए ने केलौं मुदा बेबुनि‍याद बात तँ नै भेल।

घनश्‍याम-         आन काजसँ भि‍न्न बौद्धि‍क काज होइए। हाथ-पएरक काज जकाँ लगातार केने काज छुटैक संभावना बढ़ि‍ जाइत अछि‍। तँए......?

मनचन-          घनश्‍याम भाइक वि‍चारकेँ समर्थन करै छी।

नसीवलाल-       बीचमे टि‍फीनक आवश्यकता तँ जरूर होइत अछि‍।

सुकदेव-         पशुपति‍ नाथक दर्शन आ कि‍छु बनि‍ज हएब, जहि‍ना दोबर लाभ दैत अछि‍ तहि‍ना बाल-भोग भेलासँ हएत।

मनचन-          बेस कहलि‍ये भैया। एखन धरि‍ जे हम सभ समाजमे टौहकी संग पहटोमे फँसल छी, तेकरो.......?

घनश्‍याम-         मनचनक दृष्‍टि‍कूट नै बुझलौं?

नसीवलाल-       दोसराक व्‍याख्‍यासँ नीक मनचनेक व्‍याख्‍या हएत।

मनचन-          से कि‍अए भैया?

नसीवलाल-       हौ मनचन, जमीन-जाल, शब्‍द-जाल आ वाक्-जालमे सभ ओझराएल छी। तोहर आत्‍मा कि‍ बाजि‍ रहल छह से तोंहीटा बुझै छहक। वाणी होइत जे नि‍कलतह वएह बात तोहर भेलह।

मनचन-          भैया, आत्‍मो बोली तँ दुबटि‍या (बुइधि‍क मोड़) पर हरा जाइत अछि‍। एक्के वि‍चारकेँ आमक गाछ जकाँ डारि‍ टि‍टकि‍ जाइ छै।

सुकदेव-         मनचन, गप्‍पक छि‍लनि‍ छोड़ह?

मनचन-          भैया, जाबे गप्‍पक छि‍लनि‍ नै करब ताबे शीशो जकाँ सुरेब केना हएत। खाएर, जहि‍ना औझका बैसार ऐति‍हाि‍सक भऽ रहल अछि‍ तहि‍ना जे पनपि‍आइ करब तइमे सभ मि‍लि‍ बना, परोसि‍ सभ मि‍लि‍ खाए।

घनश्‍याम-         मनचन, जे कहलहक ओ आब नै छै। सभठाम चलै छै।

मनचन-          आँखि‍क सोझमे जाइति‍क आ दू सम्‍प्रदायक बीच खानो-पान आ प्रेमसँ वि‍याहो होइत देखै छी। मुदा सर्वसम्‍मति‍सँ कि‍अए ने घोषणा कऽ दइ छै। जखन कि‍ धरतीसँ अकास धरि‍ उड़ि‍आइत अछि‍।

पटाक्षेप।



तेरहम दृश्‍य

              (दोसर बैसार)

घनश्‍याम-         मनचन, बरी बड़ सुन्‍दर बनल छेलह। नून देनि‍हारकेँ चाबसी दइ छि‍यनि‍।

मनचन-          हमरा रि‍झबै छी। दू सालसँ सभ नोनगर भोज वि‍न्‍यासमे हमहीं नोन दइ छी।

घनश्‍याम-         कि‍अए?

मनचन-          गाममे बारह आना लोक रोगि‍ये-टट्टी अछि‍। कि‍यो नून बाड़ने अछि‍ तँ कि‍यो अधे खाइए। भोज तँ सामुहि‍क छी। एकठाम बैस खाएब।

घनश्‍याम-         दोसरो चाबसी दइ छी मनचन।

मनचन-          से कि‍अए?

घनश्‍याम-         एखन धरि‍ हमहूँ नै गौर केने छलौं जे अहाँ केने छी।

मनचन-          भाय, अहाँक सोझमे बजैत संकोच होइए। मुदा अपना घरमे लोक नीकसँ नीक आ अधलाहसँ अधलाह बजैत अछि‍ तँए........?

घनश्‍याम-         चुप कि‍अए भेलौं? आइ धरि‍ जे आनन्‍द जि‍नगीमे नै भेटल छल ओ भेट रहल अछि‍।

मनचन-          केना?

घनश्‍याम-         अपनासँ अगि‍ला लग जी हुजुरी करए पड़ैए आ पैछलाकेँ जी-हुजुरी करबै छि‍ऐ। जि‍नगीक कोनो आड़ि‍ये-धुर नै अछि‍।

सुकदेव-         मनचन, मुँह बन्न करह। बैसारक महत्‍व होइत अछि‍। दोसरो गोटेकेँ अवसर दहुन?

आभा-           एक तँ उमेरे कते भेल हेन। मुदा जतबे अछि‍ तइमे आइ जते समाजक बीच आएल ओते.......।

नसीवलाल-       कोनो गलत कि‍ सही परम्‍परा ओतबे दि‍न चलैत अछि‍ जते दि‍न लोक चलबैत अछि‍। ऐ दि‍स वि‍वेकीकेँ जरूर नजरि‍ देबाक चाहि‍यनि‍।

आभा-           कि‍ नजरि‍?

नसीवलाल-       यएह जे पाछुसँ अबैत व्‍यवहार आजुक समैमे अनुकूल अछि‍ वा नै। वि‍वेकी मनुष्‍य होइक नाते सबहक दायि‍त्‍व बनै छन्‍हि‍ जे सनातनी व्‍यवहार अछि‍ ओ जीवि‍त रहए।

आभा-           सनातनी बेबहार की?

नसीवलाल-       परि‍वर्तनशील बेबहार।

शान्‍ती-          काका, गलत बेबहार समाजमे पैसल केना?

नसीवलाल-       ने एकबेर पैसल आ ने एकदि‍न पैसल। घुसकुनि‍या-आेंघरनि‍या दैत पैस अंकुरि‍त भऽ वि‍शाल वृक्षक रूपमे बदलि‍ गेल। जइसँ लोक, परलोकक संग वि‍श्वक नक्‍शे बदलि‍ गेल।

शान्‍ती-          डाॅक्‍टरकाका, अपने कि‍छु......?

रघुनाथ-         देखि‍यौ, जहि‍ना रामायणमे तुलसी कहने छथि‍- हरि‍ अनन्‍त हरि‍ कथा अनंता' तहि‍ना अछि‍। ओना, दुनि‍याँक सभ मनुष्‍यकेँ कि‍छु आवश्यकता आ गुन एक तरहक अछि‍, मुदा.....?

शान्‍ती-          मुदा की?

रघुनाथ-         यएह जे कि‍छु एहनो अछि‍ जे सभकेँ फुटो-फुट-अलगो-अलग- होइत। ओना हमहूँ भगुए भऽ गेल छी। समाज अध्‍ययन तँ वि‍शाल अध्‍ययन छी, तँए......। कृष्‍णदेवबाबू आ मनमोहनबाबू बुझा सकै छथि‍।

मनमोहन-         भाय, जहि‍ना अहाँ रोग आ रोगीक बीच रहलौं तहि‍ना छी। मुदा मनक बात छि‍पाइयो कऽ राखब उचि‍न नै बुझै छी।

सुकदेव-         हृदेक बात इंजि‍नि‍यर सहाएब बजलाह।

मनमोहन-         जेना-जेना समए बीत रहल अछि‍ तेना-तना लोकोक जि‍नगी बदलि‍ रहल अछि‍। पहि‍लुका लोक सोलहो आना शरीरसँ श्रम कऽ शरीरक रक्षा करैत छलाह।

सोमन-          जेना आइ देखै छि‍ऐ तेना नै छलै?

मनमोहन-         नै।

सोमन-          (कि‍छु शंका करैत) इंजीनि‍यर सहाएब, कते दि‍न भेल से तँ नीक जकाँ मन नै अछि‍। मुदा एहि‍ना एक बेर रौदी भेल से मन अछि‍। जहाँ-तहाँ लोक कमाइ-खटाइले लोक भागल। हमहूँ भोलबाकक्का सेने कलकत्ता गेलौं।

आभा-           कलकत्ता गेल छी?

सोमन-          गेले नै छी दू साल ठेलो चलौने छी। जइसँ सभ गली-कुच्‍ची देखल अछि‍।

आभा-           केना ठेला चलबै छेलि‍ऐ?

सोमन-          छातीमे ठेलाक अगि‍ला भाग अड़ा दुनू हाथसँ दुनू भागक डंटा पकड़ि‍ ठेलै छलौं।

आभा-           इंजीनि‍ गाड़ी सभ नै छलै?

सोमन-          छलै। जीपे-कारक कोन बात जे बड़का-बड़का कोठा, करखन्ना, दोकान सभ छलै। जेहेन ओइठीनक दोग-सान्‍हि‍क सड़क अछि‍ तेहन तँ अपना सभ दि‍स अछि‍यो नै।

घनश्‍याम-         बात दोसर दि‍स बढ़ल जाइए।

मनमोहन-         बड़बढ़ि‍या घनश्‍याम भाय कहलनि‍। एक तँ दैवी प्रकोप-बाढ़ि‍, रौदी-सँ अपन इलाका पछुआएल दोसर मनुक्‍खोक दोख कम नै छै। जे इलाका जते पहि‍ने जागल ओ ओते अगुआएल।

आभा-           कनी सोझरा दि‍यौ कक्का?

मनमोहन-         (मुस्‍की दैत) पहि‍ने जंगली अवस्‍थामे अपना सबहक पूर्वज रहै छलाह। हाथे-पएरसँ सभ कि‍छु करै छलाह। जेना-जेना बुद्धि‍-अकील बढ़ैत गेल तेना-तेना आगू मुँहेँ ससरैत गेलाह। हथकरघासँ पाँच सीढ़ी आगू बढ़ि‍ कम्‍प्‍यूटर युगमे पहुँच गेल छी।

आभा-           ऐसँ आगूओ बढ़त?

मनमोहन-         निश्चि‍त बढ़त। नि‍चेनमे कहि‍यो आरो कहब। एखन जइ काजे एकत्रि‍त भेल छी तेकरा आगू बढ़ाउ।

सोमन-          भाय, हम सभ ने कहि‍यो काल मासुल दऽ कऽ बस, जीपपर चढ़ै छी। अहाँकेँ तँ अपने अछि‍।

मनमोहन-         से तँ अछि‍ये।

घनश्‍याम-         ओना बाढ़ि‍ रौदी दुनू जनमारा छी। मुदा आइ रौदीक वि‍चार करू।

शान्‍ती-          मैनेजर काका, अहाँ सभ तरहे उपर छी। ओना समाजक कि‍छु भार उपरमे अछि‍। तँए चाहब जे झगड़ा-झंझटसँ नै वि‍चारक रास्‍तासँ समाज आगू बढ़ए।

घनश्‍याम-         वि‍चार तँ अपनो सएह अछि‍। मुदा नहि‍यो चाहलासँ पर कते-गोटेकेँ बैंकक लोनमे जहल पठबए पड़ैए आ चौकठि‍-केवाड़ उखाड़ए पड़ैए।

शान्‍ती-          से कि‍अए?

घनश्‍याम-         (ि‍वस्‍मि‍त होइत) कि‍ कहब बोरि‍ंग-दमकल, गाए पोसैक लोन उठा साद्ध-वि‍याहक भोज कऽ पूँजी नष्‍ट कऽ लैत अछि‍। समैपर आपस नै करैत।

शान्‍ती-          तखन?

घनश्‍याम-         औझुका बैसार तँए ऐति‍हासि‍क अछि‍ जे समाज अपन कल्‍याणक दि‍शा नि‍श्चि‍त करथि‍।

नसीवलाल-       जुग-जुगान्‍तरसँ जे मनोवृत्ति‍ बनि‍ गेल अछि‍ ओकरा एकाएक नै बदलल जा सकैए। मुदा बि‍ना बदलने काजो नै चलत। तँए जरूरी अछि‍ जे उत्‍पादन आ उपभोगकेँ नीक जकाँ सभ बुझी।

घनश्‍याम-         जुगक अनुकूल वि‍चार अछि‍।

सुकदेव-         घनश्‍यामबाबू, गामक बारहआना जमीन हुनका सबहक छि‍यनि‍ जे गाम छोड़ि‍ अनतए जा नोकरी करै छथि‍। जखन कि‍ खेती केनि‍हारकेँ अपन खेत नै छि‍यनि‍।

घनश्‍याम-         (मूड़ी डोलबैत) हँ से तँ अछि‍ये।

सुकदेव-         तइ बीच कोनो सामंजस्‍य हएत?

घनश्‍याम-         ओना अपना सभ बुझै छी जे अंग्रेजकेँ भगा हम सभ स्‍वराज भेलौं मुदा से नै छी। जखन शासन आ सम्‍पत्ति‍ (देशक) सबहक सझि‍या भए जि‍नगीक समुचि‍त वि‍कास दि‍स बढ़त तखन हएत।

रघुनाथ-         (हृदए खोलि‍) मन हल्‍लुक करै दुआरे अपन बात कहै छी। जहि‍ना जुआनीक उमकीमे गाम छोड़ि‍ शहर गेलौं तहि‍ना आइ बुझि‍ पड़ैए जे......?

मनमाेहन-         रूकलौं कि‍अए?

रघुनाथ-         संकोच होइए। जइठाम छी तइठाम नि‍हत्‍था भऽ गेलौं। जि‍नगीक सभ कि‍छु छीना रहल अछि‍। मुदा गाममे सभ कि‍छु देख रहल छी।

मनमोहन-         संकोच कि‍अए होइए।

रघुनाथ-         पूँजी नष्‍ट होइत देख रहल छी। जइले जि‍नगी गमेलौं सएह.......?

मनमोहन-         डाॅक्‍टर सहाएबसँ कनि‍यो नीक नै छी। ओना डाॅक्‍टर सहाएबकेँ सभकि‍छु भेट जेतनि‍ मुदा......?

रघुनाथ-         (मुस्‍की दैत) मुदा की?

मनमाेहन-         एग्रीकल्‍चर शि‍क्षा पाबि‍ बेटा गाममे रहत आ अपने शहरमे। बुढ़ाढ़ीमे एकलोटा पोनि‍यो के देत।

सोमन-          अहाँक गाम छी। खेत-पथार छी। अहाँक सुआगत अछि‍ जे गाम आबि‍ अपन जि‍नगीक अनुभव अनाड़ी-धुनाड़ीकेँ दि‍ऐक।

कृष्‍णदेव-         एखन हम तनावमे चलि‍ रहल छी। मुदा तैयो कहै छी अहाँ सबहक वि‍चारानुसार जीवैक कोशि‍श करब।

शान्‍ती-          घनश्‍यामकाका, आगूक भार अहाँ उपर?

घनश्‍याम-         गामक भाग जगि‍ गेल। पूँजीक जते जरूरत हएत ओ बैंकसँ दि‍आ देब। भने एग्रीकल्‍चर ग्रेजुएट गाममे रहताह, हुनका माध्‍यमसँ गामक योजना बना उन्नति‍ खेती आ खेतीसँ जुड़ल कल-कारखानाक लेल प्रयासरत रहब।

शान्‍ती-          (हँसैत) जि‍नगीक सार्थकता पाबि‍ रहल छी।

घनश्‍याम-         कि‍छु करैक संकल्‍प सभ लि‍अ। जखने सामुहि‍क डेग उठट तखने रस्‍ता धड़ैमे देरी नै लागत।

नसीवलाल-       सबहक दुख-सुख- सहबहक छी।
सबहक इज्‍जत- सबहक छी।

पटाक्षेप

समाप्‍त।




क्रमश:
  
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
बिपिन झा, IIT Bombay

ग्रन्थ समीक्षा-प्रकृति परिक्रमा
काव्यप्रकाशकार आचार्य मम्मट भारती कवेर्जयतिक माध्यम सँ रचनाकारक प्रतिभा दिस जे अपन मन्तव्य इंगित कयने छथि ओ आचार्य पुण्यनाथ मिश्रक अनुपम कृति प्रकृति-परिक्रमा केर सन्दर्भ मे अक्षरशः चरितार्थ होइत अछि।
ई ग्रन्थ मिश्रबन्धु प्रकाशन, मधुबनीसँ  २००८ मे प्रकाशित भेल अछि एकर लेखक आचार्य पुण्यनाथ मिश्र आ सम्पादक डा० मोहनाथ मिश्र छथि।
वर्तमान समय मे संचारक सुगमता अथवा अन्यान्य कारण सँ पुस्तकक प्रकाशन असंख्य परिमाण मे परिगणित कयल जा सकैत अछि; मुदा किछुए ग्रन्थ एहेन प्राप्त होइत अछि  जे चिरंजीवित्वक प्राप्ति करैत अछि जेकर निकष ओहि ग्रन्थक गहन एवं परिपाक विषयवस्तुक समावेश आओर सहज प्रस्तुती करण प्रभृति स्वीकार कयल जाइत अछि।
प्रकृत ग्रन्थ प्रकृतिक यथार्थरूप हमरालोकनिक समक्ष उपस्थापित करैत अछि। ग्रन्थक प्रथम तरंग मन तथा आत्मा केर सन्दर्भ ओ पारस्परिक सम्बन्धक निरूपण, द्वितीय तरंग प्रकृतिक आठसंख्यात्मक विविध अंगक मीमांसा, चतुर्थ तरंग गर्भ मे विद्यमान सन्तानक गुणादि अभिवृद्धि सन्दर्भ मे माता-पिताक कर्तव्यक चर्चा, पंचम तरंग नवजात, दोहदकर्मक मीमांसा, षष्ठम तरंग प्रकृतिक व्यापक रूप अर्थात ब्रह्माण्ड सन्दर्भ लैत सत्यम शिवम ओ सुन्दरमक विवेचना प्रस्तुत करैत अछि।
एहि ग्रन्थक अवलोकन सँ पूर्व पारदशास्त्रक अध्ययन करबाक अवसर प्राप्त भेल छल संगहि  श्रीलंकावासी मित्रक शोधग्रन्थ पढवाक जिज्ञासा आयुर्वेदक गूढ रहस्यक सन्दर्भ मे प्रवृत्त कयलक। ई संयोग कहल जा सकैत अछि जे प्रकृत ग्रन्थ हस्तगत भय सकल।
(समीक्षाकार बिपिन झा IIT Mumbai मे Ph. D कय रहल छथि। कोनो टिप्पणी सादर आमन्त्रित अछि- kumarvipin.jha@gmail.com)
क्रमशः

 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
आशीष अनचिन्हार
बेचन ठाकुरजीक नाटक छीनरदेवी
ऐ नाटकक मादें किछु कहबासँ पहिने ओ गप्प कही जे प्रायः-प्रायः अंतमे कहल जाइत छैक। श्रुति प्रकाशन एकटा बड़का काज ठानि लेने अछि- हीरा-मोती-माणिककेँ चुनबाक। आ ऐ मे ई कतेक सफल भेल तकर निर्धारण भविष्य करत, वर्तमान नै कारण वर्तमान समयक नीति-निर्धारकक इमान शून्य स्तरपर पहुँचि गेल अछि। मुदा एहन-एहन समस्याक अछैतो हमर शुभकामना ऐ प्रकाशनक संग अछि आ विश्वास अछि जे जेना ई धारक दूरी पार केलक अछि तेनाहिते आब ई समुद्रक दूरी पार करत। आ संगहि-संग ऐ नाटककेँ उपर अनबामे जनिकर कनेकबो योगदान छन्हि से अशेष धन्यवादक पात्र छथि।
जहिआ सनातन धर्ममे पुराण-उपनिषद् के आगमन भेल रहैक, तहिआ देवी-देवताक संख्या ३३ करोड़ रहैक। आजुक समयमे जखन कि पौराणिक समय बितला बहुत दिन भए गेल तखन देवी देवताक संख्या कतेक हएत ? हमरा बुझने ३३ करोड़सँ बेसिए। तथापि सुविधाक लेल एकरा यथावत् मानू। आ एतेक देवी-देवताक अछैतो छीनरदेवीक आविर्भाव किएक?
उत्तर हम नै देब कारण ई गप्प सभ जनैत छथि मुदा लोक ऐ उत्तरकेँ नुका कऽ रखैत अछि। आ संभवतः छीनरदेवीक ऐ रूपकेँ छिनरधत्त कहल जाइत छैक। ओना एकरा बादमे हम निरुपित करब। ओइसँ पहिने एकटा आरो महत्वपूर्ण प्रश्नपर चली। जँ अहाँ श्री बेचन ठाकुर कृत ऐ नाटककेँ नीकसँ पढ़ब तँ ई बुझबामे कोनो भाँगठ नै रहत जे ऐ नाटकक मूल स्वर अंधविश्वासपर चोट करब छैक। आ जखने अहाँ ऐ निषकर्षपर पहुँचब, अहाँकेँ तुरंते प्रो. हरिमोहन झा मोन पड़ि जेताह से उम्मेद अछि। आ जखने अहाँकेँ प्रो. झा मोन पड़ताह तखने हमरा मोनमे ई प्रश्न उठत जे प्रो. झा जइ प्रबलतासँ अंधविश्वासपर कलम चलेने छलाह तकरा बाबजूदो ६०-७० साल बाद बेचन जीकेँ ऐ पर कलम चलेबाक जरूरति किएक पड़लनि ? एकर दूटा कारण भऽ सकैत अछि पहिल जे प्रो. झाक प्रहारक बाबजूदो अंधविश्वास मेटाएल नै ( हम ई नै कहि रहल छी जे ई प्रो. झाक हारि थिक कारण हरेक लेखकक एकटा सीमा होइत छैक) आ दोसर कारण भऽ सकैत अछि जे बेचन जीकेँ कोनो बिषए नै भेटल होइन्ह आ मजबूरीमे ओ ऐ पर कलम उठेने होथि। मुदा आइ बर्ख २०-११ मे जखन गामे-गाम घूमै छी आ ओकर आंतरिक स्थितिकेँ परखैत छी तँ दोसर कारण अपने-आप खत्म भऽ जाइत अछि। आइयो गाम आ अर्धशहरी इलाकामे एलोपैथीक संगे-संग भस्म-विभूति आ ब्रम्हथानक माटि उपचारमे लाएल जाइत अछि। आ एकरा संगे ईहो स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे प्रो. झाक बादो ई अंधविश्वास मरल नै। आ एहने समयमे हमरा लग ई प्रश्न बिकराल रूप धऽ आबि जाइत अछि जे प्रो. झाक बाद जे नाटककार भेलाह ( चूँकि बेचन ठाकुर जीक विधा नाटक छन्हि तँए हम नाटकेक दृष्टिसँ गप्प करब) से एतेक दिन धरि की करैत छलाह ?
आब हम ऐ प्रश्न सबहक उत्तर ऐ ठाम नै लिखब। एकर कारण अछि जे हमरा सदासँ विश्वास रहल अछि जे साहित्यिक संदर्भमे वर्तमान समयक उत्तर जँ भविष्यमे प्राप्त हुअए तँ ओ बेसी सटीक आ सार्थक होइत छैक।अस्तु श्री बेचन ठाकुर जीसँ मैथिली मंचकेँ बड्ड आस छैक आ तइ आसकेँ पूरा करबाक तागति भगवान हुनका देथिन्ह तइ आसाक संग चली हम प्रेक्षक समूहमे।
कोनो नाटक पहिने लिखल जाइए आ तकर बाद ओ टाइप होइए वा सोझे टाइप कएल जाइए आ तकर बाद कखन छपैए, मंचनक बाद वा मंचनक पहिने; ऐ सभमे आब कोनो अन्तर नै रहलै। जॉर्ज बर्नार्ड सॉ शॉर्टहैण्डमे लिखै छलाह आ हुनकर स्टेनो ओकरा लौंगहैण्डमे टाइप करै छलीह। बिनु छपने मैथिली धूर्तसमागम मैथिलीक पहिल पोस्ट मॉडर्न अबसर्ड नाटक अछि। ई तर्क जे छपलाक पहिने मंचन भेलासँ बहुत रास कमी दूर भऽ जाइए, ऐ सन्दर्भमे मलयालम कथाकार बशीरक उदाहरण अछि जे सभ नव छपल संस्करणमे अपन कथामे नीक तत्व अनबाक दृष्टिसँ संशोधन करै छलाह, ई कथामे सम्भव तँ नाटकमे तँ आर सम्भव। तँ सिद्ध भेल जे लिखल जेबाक वा छपि गेलाक बादे नाटकक मंचन हएत आ मंचनक बाद लिखल वा छपल दुनूमे सुधार सम्भव। बेचन ठाकुरजी रंगमंच निर्देशक सेहो छथि आ विगत २५ बर्खसँ अपन गाममे मैथिली रंगमंचकेँ जियेने छथि बिना कोनो संस्थागत (सरकारी वा गएर सरकारी) सहयोगक। हिनकर रंगमंचपर हिनकर दर्जनसँ बेसी नाटकक अतिरिक्त गजेन्द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्डलक नाटक, एकांकी आ बाल नाटकक मंचन सेहो भेल अछि।

(जारी....)
 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
वि‍रेन्‍द्र यादव
कथा

बाबा गाछी

आमक फलसँ लदल गाछ। बि‍नु ओगरबाहक बाबा गाछी, तुलसीया चाँपक कछेरमे। तुलसि‍या गाममे अभि‍जातवर्गक लोक सबहक संगहि‍ एक घर अछोप छल।
राजू डोम पढ़ल-लि‍खल छल। सरकार आरक्षणक पक्षमे ओइ ग्राम-पंचायतकेँ आरक्षि‍त कए देलक।
गामक प्रमुख लोक सभ मि‍ल वि‍चार कए राजूकेँ मुखि‍या आ मोहि‍नीकेँ प्रति‍नि‍धि‍ चुनलक। मोहि‍नी ओइ गामक पैघ शशि‍बाबूक पुत्रवधु छलीह। मोहि‍नीक पति‍ दि‍न-राति‍ गाजा-भाँग पीब, बि‍नु धीया-पुता जनमोनहि‍ स्‍वर्ग चलि‍ गेल।
प्रति‍नि‍धि‍ सबहक सम्‍मेलनि‍ भेल। जइमे पहि‍ल बेर मोहि‍नी आ राजूक भेँट भेल। ई भेँट दुनू गोटेक छातीमे मीलक पाथर जकाँ गड़ि‍ गेल। दुनूक मोनमे एक दोसरकेँ अपनेबाक आगि‍ सुनगए लगल। पि‍परीतक आतुरतामे मोहि‍नी चेतक वेसाखक रौदमे पि‍यासल हि‍रणी जकाँ बाबा गाछीक रास्‍ता पकड़ि‍ लेलक।
बापक हुरकुचनि‍पर राजू बाबा-गाछीक बगल चाँपमे सुगर टहलाबए गेल छलए। मोहि‍नीक नजरि‍ राजूपर पड़ि‍तहि‍ पीरीतक लहरि‍ उमड़ि‍ पड़ल। ओ राजूकेँ कहलक- एम्‍हर गाछक छाँहमे आउ, ओतय रौदमे कि‍अए खून सुखबै छी?” एतेक बात सुनि‍तहि‍ राजू गाछक लग आबि‍ गेल। मोहि‍नी अपन पीरीतक पि‍यास बुझाबए लेल झपटि‍ कऽ राजूकेँ पकड़ि‍ लेलक मुदा राजू अपनाकेँ अछूत बुझि‍ मोहनीसँ हाथ छोड़ौलक।
मोहनी पकरा पढ़ैत बाजल- ओ राजू...।
पि‍यासल मानय धोबी घाट आ प्रीत नै बुझए ओछी जात। राजूक देहपर मोहनीक हाथक स्‍पर्शसँ हृदए शीतल भऽ गेल आ मोनमे भेल जे ई चमत्‍कारि‍क बात छी जे एतेक पैघ घरक पुत्रवधुक लगमे हम बैसल छी। मोहनी बाजल- ऐ राजू अहाँ हमरा हृदेमे छी, हम अहाँकेँ इश्वरसँ आगा मानै छी। हमर जि‍नगीक संगी बनबाक लेल......।
एतेक बात सुनि‍तहि‍ राजू बाजल- ई केना हएत? अहाँ पैघ लोक छी आ हम अछूत। ओना तँ अहाँपर नजरि‍ पड़ि‍ते हमहुँ ई सुधि‍ बि‍सरि‍ गेलौं जे हम अछूत छी।
मोहनी बाजल- इंसान अछूत नै होइछ। कर्मसँ लोक ऊँच-नीच होइत अछि‍। मनुक्‍खक जि‍नगीमे शि‍क्षा आ व्‍यवहारक महत्‍व छैक। डाॅ. भीमराव अम्‍बेदकर जाति‍सँ अछोप छल मुदा अपन शि‍क्षा आ कर्मसँ ऐ समाजकेँ देखौलनि‍ जे समाजक आगूक श्रेणीमे हुनक स्‍थान छन्‍हि‍।
मोहनी आ राजूक प्रेम पंसंगक बीचेमे कलुआ, जे शशि‍बाबूक मुँहलगुआ आ चालि‍सँ चुगला छल, कि‍छु दूरसँ ई खेला देखैत पोखरि‍ दि‍स जाइ छल। कलुआपर नजरि‍ पड़ि‍तहि‍ राजू डेराय गेल आ नुकएबाक चेष्‍टा कएलक। मोहनी राजूकेँ हि‍म्‍मत बन्‍हैत अलग भऽ गेलि‍ आ फेर दोसर बेर भेटबाक नि‍श्चय कएलक।

ऐ प्रेम प्रसंगक बीया सौंसे गाम छीटैत कलुआ शशि‍बाबूक दलानपर आबि‍ गेल आ सकपकाइत शि‍शि‍बाबूकेँ कहि‍ बैसल। गामक पैघ लोक सभ शशि‍बाबूक दलानपर आबए लगल। हि‍म्‍मत बान्‍हि‍ कलुआ मोहनी आ राजूक प्रेम प्रसंगक चर्चा शशि‍बाबूकेँ पुन: सुनौलक। गामक लोक सभ चढ़ाव-उतारक बात बाजए लागल। मुदा अधहा जीभे, कि‍एक तँ शशि‍बाबू ओइ जमानाक ग्रेजुएट छथि‍ जइ समैमे बड़ थोड़ लोकसभ पढ़ैत-लि‍खैत छल। शशि‍बाबूक समझदारी आ जमींदारीक दाओ-चाप ओइ इलाकामे छल।
शशि‍बाबू बाजलाह- राजूक बाप रामा डोमकेँ बोलाओल जाए।
धीरू पहलवान रामा ओइठाम पहुँच रामाकेँ सभटा बात बताबैत, रामाकेँ संगे मालि‍कक दलानपर आएल। रामा डोम दारू पीब मस्‍त छल। दुनू हाथ जोड़ि‍ बाजल- मालि‍क जे हुकुम।
कलुआ बाजल- रे रामा, दुइ दि‍नमे ऐ गामसँ चलि‍ जो। फेर धुमि‍ कऽ ऐ गाममे नै अबि‍हेँ।
रामा मालि‍कक आदेश सुनि‍ बाजल- अहाँक हुकुमक पालन करब। कहि‍ ओइठामसँ वि‍दा भऽ गेल। घर पहुँच रामा, राजूकेँ थप्‍पड़ मारैत कहलक- तोरा होश-हबास नै। एतेक भारी जुलुम कि‍एक केलँह।
राजू बाजल- बाउ, हमर कोनो दोख नै छौ। रामाक गोसा शांत भेल।

भोरहरबाक चारि‍ बजि‍ते, बगगलक गामसँ अजानक आबाज सुनि‍ते मोहनी घरसँ बहार भऽ बाबा गाछी आएलि‍, ओतए राजू सेहो छल। दुनू गोटे गाम छोड़ि‍ पड़ाए गेल।
भि‍नसर होइते ई खबरि‍ आगि‍ जकाँ सौंसे गाम पसरि‍ गेल। शशि‍बाबू गामक लोकसँ वि‍चार करैत थानामे अपहरणक रपट दर्ज करबौलक जइमे राजूआ रामाक नाम देलक।
ओम्‍हर राजू, मोहनीक संगे कोर्ट मैरि‍ज कएलक आ कि‍छु दि‍न अनतय रहबाक नि‍श्चय कएलक। तइ बीच गामक लोक सभ रामा डोमकेँ पुलि‍स पकड़ि‍, मारबो-पि‍टबो केलक आ जहल पठा देलक।
राजू ई खबरि‍ सुनि‍ते मोहनीक संगे कोर्ट गेल। बाप रामासँ भेँट कएलाक उपरान्‍त कोर्टमे हाजि‍र भेल। रामाक जमानत करौलक आ तीनू गोटे गाम दि‍स वि‍दा भेल। राति‍मे रामा, राजू आ मोहनी गाम आएल। भोर होइते सौंसे गामक लोक शशि‍बाबूक दलानपर आबए लगल। कि‍यो बाजए- ई डोमरा छातीपर मुँह दररि‍ देलक।
कि‍यो कहए- एहन जुलुम कहि‍यो नै भेल छल।
ऐ तरहेँ चुपचाप शशि‍बाबू सबहक बात सुनैत रहल। कि‍छु कालक बाद बाजल- हे यौ समाज परि‍वर्तन दुनि‍याँक नि‍यम थि‍क। काल्हि‍क ऊँच आइ गहींर, काल्हि‍क पैघ आ बरोबरि‍। बदलैत कालचक्रसँ कि‍छु सि‍खबाक चाही। आब अपना सभकेँ ऐ तथ्‍यकेँ स्‍वीकार करबाक अलाबा कोनो चारा नै अि‍छ। मोहनी वि‍धवा पुत्रवधु छी, जन प्रति‍नि‍धि‍ सेहो बना देलयनि‍। समाजकेँ सही आ नव दि‍शा देबाक लेल प्रति‍नि‍धि‍ होइछ। अपना सभ रूढ़ि‍वादी वि‍चारक ति‍याग करू। वि‍धवा वि‍वाह होएबाक चाही। संगहि‍ ऊँच-नीचक भेद भाव छोड़ू। सभलोक इश्वरक संतान छी। कि‍यो ऊँच-नीक भेद-भाव छोड़ू। सभ लोक इश्वरक संतान छी। अंतरजातीय वि‍याहकेँ सरकार प्रश्रय दैत अछि‍। ऐ अवसरपर अहाँ सभकेँ हम आमंत्रि‍त करै छी जे सांझमे सामाजि‍क रि‍ति‍-रि‍बाजक अनुसार मोहनी आ राजूक वि‍याह होएत। एतेक बजैत शशि‍बाबू उठि‍ गेलाह आ कलुआक संगे रामा डोमक घर दि‍स वि‍दा भेलाह।
साँझमे राजू दुल्हा बनि‍ बरि‍यातीक संगे गाजा-बाजाक संग शशि‍बाबूक दलानपर पहुँचल। मोहनी आ राजूक ि‍वयाह भेल। ि‍वयाहक अवसरपर शशि‍बाबू घोषणा केलथि‍ जे- दोसर टोल गरही कामत परक घर-दुआरि‍ आ चालीस एकड़ जमीन माेहनी आ राजूक भेल।
ऐ तरहेँ आधुनि‍क समाजवादी समाजक लोक जकाँ राजू आ मोहनी जीवन-बसर करैत ग्राम पंचायत प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करए लगलाह।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।