भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
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मतलब ई जे भोजक कोन व्यवस्था ?
गौंआरी वा छगमिया
केवल भात कि चूडा
या दूनू दिन
इस्त्रगने पुरखे
वा सबजाना
एकजाना क बाते जुनि करू
भोज क सब रिकार्ड टूटि जेतइ
जकरा घर मे पाँच टा सरकारी मास्टर
आधा दरजन इंजीनियर
से कि ओहिना मानि जेतइ
ओ तऽ गाँववला के पानियो पियेतइ
आ पानि पियाए के मानतइ
मुदा बात एतबे नइ
भात के खायत
या नइ
एकर निर्णय त अलग अलग खूट लेत
ताहि दुआरे हे पंचोभय बुधवारय
पगुलवारय आ आनोआन खूटक
म्ुाखिया आ ठीकेदार
आबू आ निर्णय लिय ।
2 जेना जगदीश बाबू कहलथिन्ह
“एना त कहियो ने भेलइ
घरवारी किछु कहलक आ
नौत किछु आर भऽ गेलइ
कतेको बेर बात घचपचा गेलइ
ताहि दुआरे स्पष्ट कहू
ककरा कही आ ककरा छोड़ू
सबजाना कि इस्त्रगने पुरखे
आ नौत क संगे बिजौ
बस हम उतरबाइ टोल क भागी”
नौत देला के बाद घामल जगदीश
बैसि के धात्री गाछक नीचा
कहऽ लागलाह अपन बात “ओ जखने कहलक
की कथी क व्यवस्था
हम कहलिएन्ह अओ बाबू
ओइ घर मे छऽ छऽ टा इंजीनियर
चारि टा तरकारी
पाँच टा मधुर
आ बीस बेशी सौ मन दूधक दही
चारि साल पुरनका चाउर
राहड़िक दालि
बरी सकरौरी घी पापड़
कत्ते खायब
उपरो सँ
नीचो सँ खुएताह
खाउ ने कत्ते खायब ”
जगदीश झुठे छाँटैत रहलाह
सब बूझैत अछि
ओ एत्ते नइ बाजति छथि
फेर बिजौ क बात पर कहऽ लागलाह “हम कहि देलिएन्ह
आब कून बिजैा आ कोन विनय
जेहने खुएनहार
तहिना खेनिहार”
3 हे सूर्य
हे भास्कर
आइ माथ पर नइ आयब
बादले मे रहब
जोन मजूर खबास
भनसीया पनिभरनी
सब तपि जेतीह
तऽ काज के करत
हे पवनदेव
आइ मंद मंद बहब
खाउ हनूमान सप्पत
आइ पूरबे रहब
एमहर आयब तऽ
तीमन तरकारी भात दालि
सब मे माटि बाउल खपटी
सना गोजा जायत ।
हे इंद्रदेव
अहाँ क जरूरी
आइ खेत मे छैक
गाँव मे नहि
अहाँ आइ शचीए लग रहू
अहाँ आयब !
तखन कोना अओताह
गौंआ घरूआ
टोल समाज
ब््रााहमण महाब्राह्मण ।
हे देवगण
आइ अंतरिक्षे मे व्यस्त रहू
आइ लियऽ दियऽ प्रकृति क स्वाद
आइ रमऽ दियऽ समाज मे
आइ बैसऽ दियऽ जमीन पर
आइ माँगऽ दियऽ पानि केरा क पात
आइ सूँघऽ दियऽ महकौआ चाउरक भात ।
4 जेना मन्नू बाबू कहलखिन्ह
तीने बजे पड़ि जाए आलू उसनए लेल
चारिए बजे बनऽ लागए चटनी
भोरे बनए बरी सकरौरी
सात बजे तक जमा भऽ जाए
बालटीन डोल गमला
करछुल चंगेरा ।
आठ बजे हुअऽ लागइ
तरकारी क सूर सारि
दस बजे बीड़ी बनि जाइ
बारह बजे तक नौत निमंत्रण
एक बजे पत्ता कटा
जमा भऽ जाइ दलान पर ।
दू बजे चढ़ि जाइ
भातक पहिल खेप
तीने बजे सँ रतरत करए
गाँव टोल क नबका बारीक ।
अइ होटल आ केटरर क जमाना मे
अहाँ कोन सामाजिकता क बात करइ छियइ
आठ बजे एलियइ
आ दूनू बापुत बैसि गेलियइ
कोना के निबाहबए
गाँव टोल क मरजाद ।
5.अशोकक गाछ
कामकाज मे पाछू मुदा
ललकारए मे आगू
ओ नमगर छीटधारी युवक
आलोक बाबूक सार छथि ।
चलबा बाजबा क तरीका सँ
स्पष्ट रहए ओ कोनो डीएसपीए के बेटा हेथिन्ह
चलाकी पकड़ेला पर ईमानदार भऽ गेलाह “हमरा लोकनि भेलहुँ
अशोकक गाछ
ने फूल देब
ने छाया
ने फल बीज
ने आरोग्यक चीज।
मुदा हम दलान पर बनल रहब
हम छी शोभा
काटबा हटेबा क वस्तु नइ
प्रतिष्ठोऽपकरण ।”
१.श्वेता झा चौधरी२.ज्योति सुनीत चौधरी ३.श्वेता झा (सिंगापुर)
१.
श्वेता झा चौधरी
गाम सरिसव-पाही, ललित कला आ गृहविज्ञानमे स्नातक। मिथिला चित्रकलामे सर्टिफिकेट कोर्स। कला प्रदर्शिनी: एक्स.एल.आर.आइ., जमशेदपुरक सांस्कृतिक कार्यक्रम, ग्राम-श्री मेला जमशेदपुर, कला मन्दिर जमशेदपुर ( एक्जीवीशन आ वर्कशॉप)। कला सम्बन्धी कार्य: एन.आइ.टी. जमशेदपुरमे कला प्रतियोगितामे निर्णायकक रूपमे सहभागिता, २००२-०७ धरि बसेरा, जमशेदपुरमे कला-शिक्षक (मिथिला चित्रकला), वूमेन कॉलेज पुस्तकालय आ हॉटेल बूलेवार्ड लेल वाल-पेंटिंग। प्रतिष्ठित स्पॉन्सर: कॉरपोरेट कम्युनिकेशन्स, टिस्को; टी.एस.आर.डी.एस, टिस्को; ए.आइ.ए.डी.ए., स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, जमशेदपुर; विभिन्न व्यक्ति, हॉटेल, संगठन आ व्यक्तिगत कला संग्राहक। हॉबी: मिथिला चित्रकला, ललित कला, संगीत आ भानस-भात।
२.
ज्योति सुनीत चौधरी जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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