भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, July 30, 2011

'विदेह' ८६ म अंक १५ जुलाइ २०११ (वर्ष ४ मास ४३ अंक ८६)- PART II









झमेलि‍या वि‍याह



नाटक






जगदीश प्रसाद मण्‍डल



पात्र परि‍चय-

पुरूष पात्र-

(1) भागेसर-       45 बर्ख
(2) झमेलि‍या-      12 बर्ख
(3) यशोधर-       48 बर्ख
(4) राजदेव-      55 बर्ख
(5) श्‍याम, (राजदेवक पोता)-     8 बर्ख,
(6) कृष्‍णानन्‍द, (बी.ए. पास)- 25 बर्ख
(7) बालगोवि‍न्‍द, (लड़कीक पि‍ता)- 55 बर्ख
(8) राधेश्‍याम, (लड़कीक भाय)-   35 बर्ख
(9) घटकभाय-      60 बर्ख
(10) रूपलाल, (समाज)-     40 बर्ख
(11) गरीबलाल, (समाज)-    45 बर्ख
(12) धीरजलाल, (समाज)- 45 बर्ख
(13) पान-सात बच्‍चा-       7-15 बर्ख


स्‍त्री पात्र-

(1) सुशीला, (भागेसरक पत्नी)-    40 बर्ख
(2) दायरानी, (बालगोवि‍न्‍दक पत्नी)-     52 बर्ख
(3) घटक भाइक पत्नी-      55 बर्ख
(4) सुनीता, (कॉलेजमे पढ़ैत)- 20 बर्ख





  



पहि‍ल दृश्‍य


              (भागेसर, सुशीला)
              (रोग सज्‍जापर सुशीला। दवाइ आ पानि‍ नेने भागेसरक प्रवेश।)

भागेसर-         केहेन मन लगैए?

सुशीला-         की कहब। जखन ओछाइनेपर पड़ल छी, तखन भगवानेक हाथ छन्‍हि‍। राजा-दैवक कोन ठेकान?

भागेसर-         से की?

सुशीला-         उठि‍ कऽ ठाढ़ो भऽ सकै छी, सुतलो रहि‍ सकै छी।

भागेसर-         एना कि‍अए बजै छी। कखनो मुँहसँ अवाच कथा नै नि‍काली। दुरभखो वि‍षाइ छै।

सुशीला-         (ठहाका दऽ) बताह छी, अगर दुरभाखा पड़तै तँ सुभाखा कि‍अए ने पड़ै छै? सभ मन पति‍अबैक छी।

भागेसर-         अच्‍छा पहि‍ने गोटी खा लि‍अ।

सुशीला-         एते दि‍नसँ दवाइ करै छी कहाँ एकोरत्ती मन नीक होइए?

भागेसर-         बदलि‍ कऽ डाॅक्‍टर सहाएब गोटी देलनि‍। हुनका बुझबेमे फेर भऽ गेल छलनि‍। सभ बात बुझा कऽ कहलनि‍।

              (गोटी खा पानि‍ पीब पुन: सि‍रहौनीपर माथ रखि‍।)

सुशीला-         की सभ बुझा कऽ कहलनि‍?

भागेसर-         कहलनि‍ जे एक्के लक्षण-कर्मक कते रंगक बेमारी होइए। बुझैमे दुवि‍धा भऽ गेल। तँए आइसँ दोसर बेमारीक दवाइ दइ छी।

सुशीला-         (दर्दक आगमन होइत पँजरा पकड़ि‍।) ओह, नै बाँचब। पेट बड़ दुखाइए।

भागेसर-         हाथ घुसकाउ ससारि‍ दइ छी।

              (सुशीला हाथ घुसकबैत। भागेसर पेट ससारए लगैत कनी कालक पछाति‍।)

सुशीला-         हँ, हँ। कनी कऽ दर्द असान भेल। मन हल्‍लुक लगैए।

भागेसर-         मनसँ सोग-पीड़ा हटाउ। रोगकेँ दवाइ छोड़ाओत। भरि‍सक दवाइ आ रोगक भि‍ड़ानी भेलै तँए दर्द उपकल।

सुशीला-         भऽ सकैए। कि‍अए तँ देखै छि‍ऐ जे भुखल पेटमे छुछे पानि‍ पीलासँ पेट ढकर-ढकर करए लगैए। भरि‍सक सएह होइए।

भागेसर-         भगवानक दया हेतनि‍ तँ सभ ठीक भऽ जाएत।

सुशीला-         कि‍अए भगवानो लोके जकाँ वि‍चारि‍ कऽ काज करै छथि‍न।

भागेसर-         अखैन तक एतबो नै बुझै छि‍ऐ।

सुशीला-         हमरा मनमे सदि‍खन चि‍न्‍ते कि‍अए बैसल रहैए। खुशीकेँ कतए नुका कऽ राखि‍ देने छथि‍। आ कि‍.....?

भागेसर-         कि‍, आ कि‍?

सुशीला-         नै सएह कहलौं। कि‍यो ठहाका मारि‍ हँसैए आ हमरा सबहक हँसि‍ये हराएल अछि‍।

भागेसर-         हराएल ककरो ने अछि‍। माइटि‍क तरमे तोपा गेल अछि‍।

सुशीला-         ओ नि‍कलत केना?

भागेसर-         खुनि‍ कऽ।

सुशीला-         कथीसँ खुनबै?

भागेसर-         से जे बुझि‍तौं तँ एहि‍ना थाल-पाि‍नमे जि‍नगी बीतैत।

सुशीला-         जखन अहाँ एतबो नै बुझै छि‍ऐ तँ पुरूख कोन सपेतक भेलौं। अच्‍छा ऐले मनमे दुख नै करू। नीक-अधलाक बात-वि‍चार दुनू परानी नै करब तँ आनक आशासँ काज चलत।

भागेसर-         (मूड़ी डोलबैत जना महसूस करैत, मुँह चि‍कुरि‍अबैत।) कहलौं तँ ओहन बात जे आइ धरि‍ हराएल छलै मुदा ई बुझब केना?

              (भागेसरक मुँहसँ अगि‍ला दाँत सोझ आएल, जइसँ पत्नी हँसी बुझि‍।)

सुशीला-         अहाँक खुशी देख अपनो मन खुशि‍या गेल।

भागेसर-         मन कहाँ खुशि‍आएल अछि‍।

सुशीला-         तखन?

भागेसर-         बतीसयासँ सठि‍या गेल अछि‍। वएह कलपि‍-कलपि‍, कुहरि‍-कुहरि‍ कुकुआ रहल अि‍छ।

सुशीला-         छोड़ू ऐ लट्टम-पट्टाकेँ। जेकरा पलखैत छै ओ करैत रहह। अपन दुख-सुखक गप करू।

भागेसर-         कना दुख-सुखक गप अखैन करब। मन पीड़ाएल अछि‍ हुअए ने हुअए.......?

सुशीला-         की?

भागेसर-         पीड़ाएले मन ताउसँ बौराइ छै। पहि‍ने देहक रोग भगाउ तखैन नि‍चेनसँ वि‍चार करब।

सुशीला-         बेस कहलौं। भि‍नसरेसँ झमेलि‍याकेँ नै देखलि‍ऐ हेन?

भागेसर-         बाल-बोध छै कतौ खेलाइत हेतै। भुख लगतै अपने ने दौड़ल आओत।

सुशीला-         ऐ देहक कोनो ठेकान नै अछि‍। तहूमे बेमारी ओछाइन धरौने अछि‍। जीता जि‍नगी पुतोहू देखा दि‍अए?

भागेसर-         मन तँ अपनो तीन सालसँ होइए जे बेटा-बेटी करजासँ उरीन रहब तखन जे मरि‍यो जाएब तँ करजासँ उरीन मनकेँ मुक्‍ति‍ हएत।

सुशीला-         सएह मनमे उपकल जे बेटीक वि‍याह कइये नेने छी। जँ परानो छुटि‍ जाएत तँ बि‍नु बरो-बरि‍यातीक लहछू करा अंगबला अंग लगा लेत। मुदा.....?

भागेसर-         मुदा की?

सुशीला-         यएह जे झमेलि‍योक वि‍याह कइये लइतौं।

भागेसर-         अखन तँ लगनो-पाती नहि‍ये अछि‍। समए अबै छै तँ बुझल जेतै।

              (झमेलि‍याक प्रवेश।)

झमेलि‍या-         माए, माए मन नीक भेलौं कि‍ने?

सुशीला-         बौआ, लाखो रोग मनसँ मेटा जाइए, जखने तोरा देखै ि‍छयह। भि‍नसरेसँ नै देखलि‍अ कतए गेल छेलहहेँ?

झमेलि‍या-         इसकूलक फीलपर एकटा गुनी आएल छलै। बहुत रास कीदैन-कहाँ सभ झाेरामे रखने छलै। डमरूओ बजबै छलै आ गाबि‍-गाबि‍ कहबो करै छलै।

सुशीला-         कि‍ गबै छलै?

झमेलि‍या-         लाख दुखक एक दवाइ। पाँचे रूपैया दामो छलै।

सुशीला-         एकटा कि‍अए नेने एहल?

झमेलि‍या-         हमरा पाइ छलए?

सुशीला-         केमहर गेलै?

झमेलि‍या-         मारन बाध दि‍सक रस्‍ता पकड़ि‍ चलि‍ गेल।

सुशीला-         बौआक वि‍याह कऽ दि‍यौ?

              (वि‍याहक नाआंे सुनि‍ झमेलि‍याक मुँहसँ खुशी नि‍कलैत।)

भागेसर-         वि‍याहैयो जोकर तँ भइये गेल अछि‍। कहुना-कहुना तँ बारहम बर्ख पार कऽ गेल हएत?

सुशीला-         बड़का भुमकमकेँ कते दि‍न भेल हएत। ओही बेर ने जनमल?

भागेसर-         सेहो कि‍ नीक जकाँ साल जोड़ल अछि‍। मुदा अपना झमेलि‍यासँ छोट-छोट सभकेँ वि‍याह भेलै तँ झमेलि‍यो भेइये गेल कि‍ने?

पटाक्षेप





दोसर दृश्‍य

              (सुरूज डूबैक समए। बाढ़नि‍ लऽ झमेलि‍या आंगन बाहरए लगैत। सुशीला आबि‍ बाढ़नि‍ छि‍नैत।)

सुशीला-         जाबे जीबै छी ताबे तोरा केना आंगन-घर बहारए दि‍औ।

झमेलि‍या-         कि‍अए, ककरो अनकर छि‍ऐ? अपन घर-आंगन बहारब कोनो पाप छी।

सुशीला-         धरम आ पाप नै बुझै छी। मुदा एते तँ जरूर बुझै छी जे भगवानेक बाँटल काज छि‍यनि‍ ने। पुरूख आ स्‍त्रीगणक काज फुट-फुट अछि‍।

झमेलि‍या-         राजा-दैवक काज ऐसँ फुट अछि‍। सभ दि‍न कहाँ बहारए अबै छलौं। अखन तू दुखि‍त छेँ, जखन नीक भऽ जेमे तखन ने तोहर काज हेतौ।

सुशीला-         सएह बुझै छि‍ही, ई नै बुझै छि‍ही जे काजे पुरूख-सत्रीगणक अन्‍तर कऽ ठाढ़ रखने अछि‍। भलहि‍ं बेटा छि‍ऐ एहेन-एहेन बेरमे तू नै देखमे तँ दोसर केकर आशा। मुदा.......?

झमेलि‍या-         मुदा की?

सुशीला-         यएह जे माए-बाप बेटा-बेटीक पहि‍ल गुरू होइ छै। हि‍नके सि‍खैलासँ बेटा-बेटी अपन जि‍नगीक रास्‍ता धड़ैए।

              (माइयक मुँह झमेलि‍या ओहि‍ना देखैत अछि‍ जहि‍ना रोगसँ ग्रसि‍त गाए अपन दूधमुँह बच्‍चा देख हुकड़ैत अछि‍। तहि‍ना हाथक बाढ़नि‍ नि‍च्‍चा मुँहे केने सुशीला आँखि‍ झमेलि‍याक चेहरापर रखि‍ जना पढ़ि‍ रहल हुअए जे‍ ऐ कुल-खनदान आ परि‍वारक संग माइयो बापक तँ यएह माइटि‍क काँच दि‍आरी छी जे अबैत दोसर दि‍आरीकेँ लेसि‍ टि‍मटि‍माइत रहत। तइकाल भागेसर आ यशोधरक प्रवेश।)

भागेसर-         (झमेलि‍यासँ) बौआ साँझ पड़ल जाइ छै, दुआर-दरवज्‍जाक काज देखहक।

झमेलि‍या-         दरबज्‍जा बहारि‍ आंगन बहारए एलौं कि‍ माए बाढ़नि‍ छीन लेलक।

              (बि‍ना कि‍छु बजनहि‍ भागेसर नीक-अधलाक वि‍चार करए लगल।)
              (कनीकाल बाद।)

भागेसर-         (पत्नीसँ) मन केहेन अछि‍?

सुशीला-         अहूँ बुझि‍ते छी आ अपनो बुझि‍ते छी जे साल भरि‍ दवाइ खाइले डॉक्‍टर सहाएब कहलनि‍ से नि‍महत। जइठीन मथ-टनकीक एकटा गोटी नै भेटै छै तइठीन साल भरि‍ पथ-पानि‍क संग दवाइ खाएब पार लागत?

              (बहि‍नक बात सुनि‍ यशोधरकेँ देह पसीज गेल। चाइनि‍क पसीना पोछैत।)

यशोधर-         बहि‍न, भगवानो आ कानूनो ऐ परि‍वारक जबाबदेह बनौने छथि‍। जाबे जीबै छी ताबे एहेन बात कि‍अए बजै छह?

सुशीला-         भैया, अहाँ कि‍अए.....? खाइर छोड़ू काजक की भेल?

यशोधर-         बहि‍न, मने-मन हँसि‍यो लगैए आ मनो कचोटैए। मुदा.......?

सुशीला-         मुदा की?

यशोधर-         (मुस्‍की दैत) पनरह दि‍नमे पएरक तरबा खि‍आ गेल मुदा काजक गोरा नै बैसल। एकटा लड़कीक भाँज नवानीमे लागल। गेलौं। दरबज्‍जापर पहुँच घरवारीकेँ अवाज दैते आंगनसँ नि‍कललाह।

              (बि‍चहि‍मे भागेसर मुस्‍की देलनि‍।)

सुशीला-         कथो-कुटुमैतीकेँ हँसि‍येमे उड़ा दइ छऐ?

यशोधर-         हँसीबला काजे भेल। तँए हँसी लगलनि‍।

सुशीला-         की हँसीबला काज भेल?

यशोधर-         दरबज्‍जापर बैस गप चलेलौं कि‍ जहि‍ना हवाक सि‍हकीमे पाकल आम भड़भड़ा जाइत तहि‍ना स्‍त्रीगण सभ आबए लगलीह।

सुशीला-         स्‍त्रीगणे अबए लगली आ पुरूख नै?

यशोधर-         स्‍त्रीगण बेसी पुरूख कम। एकटा स्‍त्रीगण बि‍चहि‍मे टभकि‍ गेलीह।

सुशीला-         की टपकली?

यशोधर-         (मुस्‍की दैत) हँसि‍यो लगैए आ छगुन्‍तो लगैए। बजली जे बर पेदार अछि‍ कि‍ जे आनठाम कन्‍यागत जाइत छथि‍ आ अहाँ......? सुनि‍ते मनमे नेसि‍ देलक। उठि‍ कऽ वि‍दा भऽ गेलौं।

सुशीला-         स्‍त्रीगणेक बात सुनि‍ अगुता गेलौं। परि‍वारमे बेटा-बेटीक वि‍याह पैघ काज छि‍ऐ पैघ काजक रास्‍तामे छोट-छोट हुच्‍ची-फुच्‍चीपर नजरि‍ नै देबाक चाहि‍ऐ।

यशोधर-         एतबे टा नै ने, गामो नीक नै बुझि‍ पड़ल। आमक गाछीसँ बेसी तरबोनी खजुर बोनी। एहेन गामक स्‍त्रीगण तँ भरि‍ दि‍न नहाइये आ झुटकेसँ पएरे-मजैमे बीता देत। तखन घर-आश्रमक काज केना हएत। सोझे उठि‍ कऽ रास्‍ता धेलौं।

सुशीला-         आगू कतए गेलौं?

यशोधर-         ननौर। गाम तँ नीक बुझाएल। मुदा राजस्‍थाने जकाँ पानि‍क दशा। खाइर कोनो कि‍ बेटीक वि‍याह करब। बेटाक करब। बैसि‍ते गप-सप्‍प चलल। घरवारी कुल-गोत्र पुछलनि‍। कहलि‍यनि‍। सोझे सुहरदे मुँहे कहलनि‍, कुटुमैती नै हएत। ‍

सुशीला-         कि‍अए, से नै पुछलि‍यनि‍?

यशोधर-         कि‍ पुछि‍ति‍यनि‍। उठि‍ कऽ वि‍दा भेलौं।

सुशीला-         भैया, दि‍न-दुनि‍याँ एहने अछि‍। कते दि‍न छी आ कि‍ नै छी। मन लगले रहि‍ जाएत।

यशोधर-         कोनो कि‍ बेटीक अकाल पड़ि‍ गेल जे भागि‍नक वि‍याह नै हएत।

सुशीला-         डाॅक्‍टर सहाएब ऐठाम कते गोटे पेटक बच्‍चा जँचबए आएल रहए।

यशोधर-         ओ सभ वि‍याहक दुआरे खुरछाँही कटैए। मुदा.....?

सुशीला-         मुदा की?

यशोधर-         माइयो-बापक सराध छोड़ि‍ देत। वि‍याहसँ कि‍ हल्‍लुक काज सराधक छै।

सुशीला-         ठनका ठनकै छै तँ कियो अपना मत्‍थापर हाथ दइ छै। ई तँ बुझै छी जे, ‘गाए मारि‍ कऽ जूत्ता दान' करैए। मुदा बुझनहि‍ कि‍ हएत। आगूओ बढ़लौं?

यशोधर-         छोड़ि‍ केना देब। तेसर ठाम गेलौं तँ पुछलनि‍ जे लड़का गोर अछि‍ कि‍ कारी?

सुशीला-         कि‍अए एहेन बात पुछलनि‍?

यशोधर-         लोकक माथमे भुस्‍सा भरि‍ गेल छै। एतबो बुझैले तैयार नै जे मनुक्‍खक मनुखता गुणमे छि‍पल छै नै कि‍ रंगमे।

सुशीला-         (नि‍राश मने) कि‍ झमेलि‍या ओहि‍ना रहि‍ जाएत। सृष्‍टि‍ ठमकि‍ जाएत?

यशोधर-         अखन लगन जोर नै केलकै हेन, तँए। जहि‍या संयोग आबि‍ जेतै तहि‍या सभ ओहि‍ना मुँह तकैत रहत आ वि‍याह भऽ जेतै।

सुशीला-         भैया, दि‍न-राति‍ एहने अछि‍। कखन छी कखन नै छी।

यशोधर-         बहि‍न, अइले मनमे दुख करैक काज नै । जखन काजमे भीड़ गेलौं तँ कइये कऽ अंत करब। ओना एकटा लगलगाउ बुझि‍ पड़ल।

सुशीला-         की लगलगाउ?

यशोधर-         ओ कहलनि‍ जे अहूठामक परि‍वारक काज देख लि‍यौ आ ओहूठामक देख कऽ, काज सम्‍हारि‍ लेब।

भागेसर-         ई काज हेबे करत। अपनो ब्रह्म कहैए जे एक रंगाह परि‍वार (एक व्‍यवसायसँ जुड़ल)मे कुटुमैती भेने परि‍वारमे हड़हड़-खटखट कम हएत?

सुशीला-         (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ हएत। मुदा वि‍धाताकेँ चूक भेलनि‍ जे मनुक्‍खोकेँ सींघ-नाङरि‍ कि‍अए ने देलखि‍न।

पटाक्षेप





तेसर दृश्‍य

              (राजदेवक घर। पोता श्‍यामकेँ पढ़बैत।)

राजदेव-         बौआ, स्‍कूलमे कते शि‍क्षक छथि‍?

श्‍याम-           थर्टिन गोरे।

राजदेव-         ऐ बेर कोनमे जाएब?

श्‍याम-           थ्रीमे।

              (हाथमे अखवार नेने कृष्‍णानन्‍दक प्रवेश।)

कृष्‍णानन्‍द-        कक्का, एकटा दुखद समाचार अपनो गामक अछि‍?

राजदेव-         (जि‍ज्ञासासँ) से कि‍, से कि‍?

कृष्‍णानन्‍द-        (अखवार उनटबैत। आंगुरसँ देखबैत।) देखि‍यौ। चि‍न्है छि‍ऐ एकरा?

राजदेव-         (दुनू आँखि‍ तरहत्‍थीसँ पोछि‍ गौरसँ देखए लगैत।) ई तँ चि‍न्‍हरबे जकाँ बुझि‍ पड़ैए। कनी गौरसँ देखए दाए हाथमे तानल बन्‍दूक जकाँ बुझि‍ पड़ैए।

कृष्‍णानन्‍द-        हँ, हँ कक्का, पुरानो आँखि‍ अछि‍ तैयो चि‍न्हि‍ गेलि‍ऐ।

राजदेव-         कनी आरो नीक जकाँ देखए दाए। गामक तँ एक्के गोरे सीमा चौकीपर रहैए। ब्रह्मदेव।

कृष्‍णानन्‍द-        (दुनू आँखि‍क नोर पोछैत।) हँ, हँ कक्का। हुनके छातीमे गोली लगलनि‍। मुँह देखै छि‍ऐ खुजल। देश भक्‍ति‍क नारा लगा रहलाहेँ।

राजदेव-         (ति‍लमि‍लाइत।) बौआ, तोरे संगे ने पढ़ै छेलह।

कृष्‍णानन्‍द-        संगि‍ये छेलाह। अपना क्‍लासमे सभ दि‍न फस्‍ट करै छलाह। हाइये स्‍कूलसँ मनमे रोपि‍ नेने छेलाह जे देश भक्‍त बनब। से नि‍माहि‍यो लेलनि‍।

राजदेव-         बौआ, देश भक्‍तक अर्थ संकीर्ण दायरामे नै वि‍स्‍तृत दयरामे छै। ओना अपन-अपन पसन आ अपन-अपन वि‍चार सभकेँ छै।

कृष्‍णानन्‍द-        कनी फरि‍छा कऽ कहि‍यौ?

राजदेव-         देखहक, खेतमे पसीना चुबबैत खेति‍हर, सड़कपर पत्‍थर फोड़ैत बोनि‍हार, धारमे नाओ खेबैत खेबनि‍हार सभ देश सेवा करैत अछि‍, तँए देशभक्‍त भेलाह।

कृष्‍णानन्‍द-        (नमहर साँस छोड़ैत।) अखन धरि‍ से नै बुझै छलि‍ऐ।

राजदेव-         नहि‍यो बुझैक कारण अछि‍। ओना देशक सीमाक रक्षा बाहरी दुश्मनक (आन देशक) रक्षाक लेल होइत अछि‍। मुदा जँ मनुष्‍यमे एक-दोसराक संग प्रेम जगत तँ ओहुना रक्‍छा भऽ सकैए। मुदा से नै अछि‍।

कृष्‍णानन्‍द-        (मूड़ी डोलबैत।) हँ से तँ नहि‍ये अछि‍।

राजदेव-         मुदा देशक भीतरो कम दुश्‍मण नै अछि‍। एहेन-एहेन रूप बना मुँह-दुबर लोकक संग कम अत्‍याचार केनि‍हारोक कमी नै अछि‍।

कृष्‍णानन्‍द-        से केना?

राजदेव-         देखते छहक जे जइ देशमे खाइ बेतरे लोक मरैए, घर दवाइ, पढ़ै-लि‍खैक तँ बात छोड़ह। तइ देशमे ढोल पीटनि‍हार देश सेवक सभ अपन सम्‍पत्ति‍ चोरा-चोरा आन देशमे रखने अछि‍ ओकरा कि‍ बुझै छहक?

कृष्‍णानन्‍द-        हँ, से तँ ठीके कहै छी।

राजदेव-         केहेन नाटक ठाढ़ केने अछि‍ से देखै छहक। आजुक समैमे सभसँ पैघ आ सभसँ बि‍कराल समस्‍या देशक सोझा ई अछि‍ जे सभकेँ जीबै आ आगू बढ़ैक समान अवसर भेटै।

कृष्‍णानन्‍द-        हँ, से तँ जरूरि‍ये अछि‍।

राजदेव-         एक्के दि‍स एहेन बात नै ने अछि‍?

कृष्‍णानन्‍द-        तब?

राजदेव-         समाजोमे अछि‍। कनी गौर कऽ कऽ देखहक। पैछले बर्ख ने ब्रहमदेवक वि‍याह भेल छलै?

कृष्‍णानन्‍द-        हँ। बरि‍याति‍यो गेल रही। बड़ आदर-सत्‍कार भेल रहए।

राजदेव-         एक्कोटा सन्‍तान तँ नै भेलैक अछि‍।

कृष्‍णानन्‍द-        नै। हमरा बुझने तँ भरि‍सक दुनू परानीक भेँटो-घाँट तेना भऽ कऽ नै भेल हेतै। कि‍अए तँ गाम अबि‍ते खबड़ि‍ भेलै जे सीमापर उपद्रव बढ़ि‍ गेल, तँए सबहक छुट्टी केन्‍सि‍ल भऽ गेल। बेचारा वि‍याहक भोरे बोरि‍या-वि‍स्‍तर समेटि‍ दौड़ल।

राजदेव-         अखन तँ नव-धब घटना छै तँए जहाँ-तहाँ वाह-वाही हेतै। मुदा प्रश्न वाह-वाहीक नै प्रश्न जि‍नगीक अछि‍। बेटाक सोग माए-बापकेँ आ पति‍क दुख स्‍त्रीकेँ नै हेतै?

कृष्‍णानन्‍द-        हेबे करतै।

राजदेव-         एना कि‍अए कहै छह जे हेबे करतै। जहि‍ना एक दि‍स मनुष्‍य कल्‍याणक धरम हेतै तहि‍ना दोसर दि‍स माए-बाप अछैत बेटा मृत्‍युक दोष, समाज सेहो देतनि‍।

कृष्‍णानन्‍द-        (गुम होइत मूड़ी डोलबए लगैत।)

राजदेव-         चुप भेने नै हेतह। समस्‍याकेँ बुझए पड़तह। जे समाजमे केना समस्‍या ठाढ़ कएल जाइए। तोंही कहह जे ओइ दूध-मुँहाँ बच्‍चि‍याक कोन दोख भेलै।

कृष्‍णानन्‍द-        से तँ कोनो नै भेलै।

राजदेव-         समाज ओकरा कोन नजरि‍ये देखत?

कृष्‍णानन्‍द-        (मूड़ी डोलबैत।) हूँ-अ-अ।

राजदेव-         हुँहकारी भरने नै हेतह। भारी बखेरा समाज ठाढ़ केने अछि‍। ओइ, बच्‍चि‍याक भवि‍ष्‍य देखनि‍हार कि‍यो नै अछि‍, मुदा......?

कृष्‍णानन्‍द-        मुदा की?

राजदेव-         यएह जे, एक दि‍स कलंकक मोटरीसँ लादि‍ देत तँ दोसर दि‍स जीनाइ कठि‍न कऽ देत।

कृष्‍णानन्‍द-        हँ, से तँ करबे करत।

राजदेव-         तोही कहह, एहेन समाजमे लोकक इज्‍जत-आवरू केना बचत?

कृष्‍णानन्‍द-        (मूड़ी डोलबैत। नमहर साँस छोड़ि‍।) समस्‍या तँ भारी अछि‍।

राजदेव-         नै, कोनो भारी नै अछि‍। सामाजि‍क ढर्ड़ाकेँ बदलए पड़त। वि‍घटनकारी सोच आ काजकेँ रोकि‍ कल्‍याणकारी सोच आ काज करए पड़त। तखने हँसैत-खेलैत जि‍नगी आ मातृभूमि‍केँ देखत।

कृष्‍णानन्‍द-        (मुस्‍की दैत।) संभव अछि‍।

राजदेव-         ई काज केकर छि‍ऐ?

कृष्‍णानन्‍द-        हँ, से तँ अपने सबहक छी।

राजदेव-         हँ। ऐ दि‍शामे एक-एक आदमीकेँ डेग बढ़बैक जरूरत अछि‍।


पटाक्षेप





चारि‍म दृश्‍य

              (भागेसर दरबज्‍जा सजबैत। बहाड़ि‍-सोहाड़ि‍ चारि‍टा कुरसी लगौलक। कुरसी सजा भागेसर चारूकात नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ गौर करैत। तहीकाल बालगोवि‍न्‍द आ राधेश्‍यामक प्रवेश।)

भागेसर-         आउ, आउ। कहू कुशल?

              (कुरसीपर तीनू गोरे बैसैत।)

बालगोवि‍न्‍द-       (राधेश्‍यामसँ।) बौआ, बेटी हमर छी, वहीन तँ तोरे छि‍अ। अखन समए अछि‍ तँए......?

भागेसर-         अपने दुनू बापूत गप-सप्‍प करू।

              (कहि‍, उठि‍ कऽ भीतर जाइत।)

राधेश्‍याम-        अहाँक परोछ भेने ने......। जाबे अहाँ छि‍ऐ, ताबे हम.....।

भागेसर-         नै, नै। परि‍वारमे सभकेँ अपन-अपन मनोरथ होइ छै। चाहे छोट भाए वा बेटाक वि‍याह होउ आकि‍ बेटी- बहि‍नक होउ।

राधेश्‍याम-        हँ, से तँ होइते अछि‍। मुदा अहाँ अछैत जते भार अहाँपर अछि‍ ओते थोड़े अछि‍। तखन तँ बहि‍न छी, परि‍वारक काज छी, कोनो तरहक गड़बड़ भेने बदनामी तँ परि‍वारेक हएत।

बालगोवि‍न्‍द-       जाधरि‍ अंजल नै केलौंहेँ ताधरि‍ दरबज्‍जा खुजल अछि‍। मुदा से भेलापर बान्ह पड़ि‍ जाइत अछि‍। तँए......?

राधेश्‍याम-        हम तँ परदेश खटै छी। शहरक बेबहार दोसर रंगक अछि‍। गामक की बेबहार अछि‍ से नीक जकाँ थोड़े बुझै छी। मुदा तैयो......?

बालगोवि‍न्‍द-       मुदा तैयो कि‍?

राधेश्‍याम-        ओना तँ बहुत मि‍लानीक प्रश्न अछि‍ मुदा कि‍छु एहेन अछि‍ जेकर हएब आवश्यक अछि‍?

बालगोवि‍न्‍द-       आब कि‍ तोहूँ बाल बोध छह, जे नै बुझबहक। मनमे जे छह से बाजह। मन जँचत कुटुमैती करब नै जँचत नै करब। यएह तँ गुण अछि‍ जे अल्‍पसंख्‍यक नै छी।

राधेश्‍याम-        कि‍ अल्‍पसंख्‍यक?

बालगोवि‍न्‍द-       जइ जाति‍क संख्‍या कम छै ओकरा संगे बहुत रंगक बि‍हंगरा ठाढ़ होइत अछि‍। मुदा जइ काजे एलौंहेँ तेकरा आगू बढ़ाबह। कि‍ कहलहक?

राधेश्‍याम-        कहलौं यएह जे कमसँ कम तीनक मि‍लानी अवस होइ। पहि‍ल गामक दोसर परि‍वारक आ तेसर लड़का-लड़कीक।

बालगोवि‍न्‍द-       जँ तीनूक नै होइ?

राधेश्‍याम-        तँ दुइयोक।

बालगोवि‍न्‍द-       जेहने अपन परि‍वारक बेबहार छह तेहने अहू परि‍वारक अछि‍। गामो एकरंगाहे बुझि‍ पड़ैए। लड़का-लड़की सोझेमे छह।

राधेश्‍याम-        तखन कि‍अए काज रोकब?

              (जगमे पानि‍ आ गि‍लास नेने भागेसर आबि‍, टेबुलपर गि‍लास रखि‍ पानि‍ आगू बढ़बैत। गि‍लास हाथमे लऽ।)

बालगोवि‍न्‍द-       नीक होइत जे पहि‍ने काजक गप अगुआ लेतौं।

भागेसर-         अखन धरि‍ अहूँ पुरने वि‍ध-बेबहारमे लटकल छी। कुटुमैती हुअए वा नै मुदा दरबज्‍जापर आबि‍ जँ पानि‍ नै पीब, ई केहन हएत?

              (पानि‍ पीबैत। तहीकाल झमेलि‍या चाह नेने अबैत। पानि‍ पि‍आ दुनू गोटेकेँ चाहक कप दैत भागेसर अपनो कुससीपर बैस चाह पीबए लगैत।)

बालगोवि‍न्‍द-       समए तेहन दुरकाल भऽ गेल जे आब कथा-कुटुमैतीमे कतौ लज्‍जति‍ नै रहैए। बेसीसँ बेसी चारि‍-आना कुटुमैती कुटुमैती जकाँ होइए। बारह आनामे झगड़े-झंझट होइए।

भागेसर-         हँ, से तँ देखते छी। मुदा हवा-बि‍हाड़ि‍मे अपन जान नै बँचाएब तँ उड़ि‍ कऽ कतएसँ कतए चलि‍ जाएब, तेकर ठेकान रहत।

बालगोवि‍न्‍द-       पैछला लगनक एकटा बात कहै छी। हमरे गामक छी। कुल-खनदान तँ दबे छन्‍हि‍‍ मुदा पढ़ि‍-लि‍ख परि‍वार एते उन्नति‍ केने अछि‍ जे इलाकामे कि‍यो कहबै छथि‍।

भागेसर-         वाह।

बालगोवि‍न्‍द-       लड़को-लड़की उपरा-उपरी। कमसँ कम पचास लाखक ि‍बयाहो भेल छलै। मुदा खाइ-पीबै बेरमे तते माि‍र-पीट भेल जे दुनूकेँ मन रहतनि‍।

भागेसर-         मारि‍ कि‍अए भेल?

बालगोवि‍न्‍द-       पुछलि‍यनि‍ ते कहलनि‍ जे वि‍याह-दानमे कोनो रसे नै रहि‍ गेल अछि‍। बरि‍याती सदि‍खन लड़कीबलाकेँ नि‍च्‍चा देखबए चाहैत तँ सरि‍याती बरि‍यातीकेँ। अही बीचमे रंग-वि‍रंगक बखेरा ठाढ़ कऽ मारि‍-पीट होइए।

भागेसर-         एहेन बरि‍यातीमे जाएबो नीक नै‍।

बालगोवि‍न्‍द-       सज्‍जन लोक सभ छोड़ि‍ देलनि‍। मुदा तैयो कि‍ बरि‍याती कम जाइए। तते ने गाड़ी-सवारी भऽ गेल जे हुहुऔने फि‍रैए।

भागेसर-         खाइर, छोड़ू दुनि‍याँ-जहानक बात। अपन गप करू।

बालगोवि‍न्‍द-       हमरेसँ पुछै छी। कन्‍यागत तँ सदति‍ चाहै छथि‍ जे एकटा ऋृण उताड़ैमे दोसर ऋृण ने चढ़ि‍ जाए। अपने लड़काबला छि‍ऐ। कोना दुनू परि‍वारक कल्‍याण हएत, से तँ......?

भागेसर-         दुनि‍याँ केम्‍हरो गुड़ैक जाउ। मुदा अपनोले तँ कि‍छु करब। आइ जँ बेटा बेच लेब तँ मुइलापर आगि‍ के देत। बेचलाहा बेटासँ पैठ हएत।

बालगोवि‍न्‍द-       कहलि‍ऐ तँ बड़बढ़ि‍या। मुदा समाजक जे कुकुड़चालि‍ छै से मानता दुनू परि‍वार मि‍ल-जुलि‍ काज ससारि‍ लेब। मुदा नढ़ि‍या जकाँ जे भूकत तेकर कि‍ करबै?

भागेसर-         हँ से तँ ठीके, पैछलो नीक चलनि‍ आ अखुनको नीक चलनि‍ अपनाए कऽ अधला चलनि‍ छोड़ि‍ देब। कि‍अए कि‍यो भूकत। जँ भूकबो करत तँ अपन मुँह दुखाओत।

              (बरक रूपमे झमेलि‍याक प्रवेश..)

बालगोवि‍न्‍द-       बेटा-बेटीक वि‍याहमे समाजक पाँचो गोटे तँ रहैक चाहि‍ऐ ने?

भागेसर-         भने मन पाड़ि‍ देलौं। घरे-अंगना आ दुआरे-दरबज्‍जापर तते काज बढ़ि‍ गेल जे समाज दि‍स नजरि‍ये ने गेल।

बालगोवि‍न्‍द-       आबे कि‍ भेल, बजा लि‍औन। समाजकेँ तँ लड़का देखले छन्‍हि‍, हमहूँ दुनू बापूत देखि‍ये लेलौं।

भागेसर-         केहन लड़का अछि‍?

बालगोवि‍न्‍द-       एते काल बटोही छलौं तँए बटोहि‍क संबंध छल। मुदा आब संबंध जोड़ैक वि‍ध शुरू भ गेल तँए संबंधी भेल जा रहल छी।

भागेसर-         कि‍ कहू बालगोवि‍न्‍दबाबू, जि‍नगि‍ये तते रि‍या-खि‍या गेल अछि‍ जे बेलक बेली जकाँ बनि‍ गेल छी।

बालगोवि‍न्‍द-       (ठहाका मारि‍) समधि एक भग्‍गू कहलि‍ऐ। छोटोसँ पैघ बनैए आ पैघोसँ छोट बनैए। छोट-छोट कीड़ी-मकौरी समैक संग ससरैत-ससरैत नमहर बनि‍ जाइए। तहि‍ना कलकति‍या आकि‍ फैजली आम सरही होइत-होइत तेहन भ जाइए जे बि‍सवासे ने हएत जे ई फैजली बंशक बड़वड़ि‍या बीजू छी।

भागेसर-         बालगोवि‍न्‍दबाबू, गप-सप्प चलि‍ते रहत समाजोकेँ बजा लइ छि‍यनि‍।(समाज दि‍स नजरि‍ दोड़बैत भागेसर आंगुरपर हि‍साब जोड़ैत..) ओह फल्‍लां दोगला अछि‍। (पुन: आंगुरपर जोड़ि‍) ओह फल्‍लां तँ दुष्‍ट छी दुष्‍ट। फल्‍लां  पक्का दलाल छी। साला बेटी वि‍याहक बात बना रोजगार खोलने अछि‍। परि‍वारक बीच जाति‍ होइए आकि‍ समाजक बीच। जेकर वि‍चार नीक रस्‍ते चलए ओ कि‍अए ने समाज बनाबए।

बालगोवि‍न्‍द-       समधि‍, कि‍अए अटकि‍ गेलौं?

भागेसर-         बालगोवि‍न्‍दबाबू, लोक तँ समाजेमे रहि‍ समाजक संग चलत मुदा वि‍याह सन पारि‍वारि‍क यज्ञमे जँ समाजक लोक धोखा दइ तखन?

बालगोवि‍न्‍द-       समधि‍ कहलौं तँ बेस बात, मुदा जहि‍ना ई समाज अछि‍ तहि‍ना हमरो अछि‍। ठीके कहलौं जे वि‍याह सन काज जइसँ समाजक एक अलंग ठाढ़ होइत तइमे उचक्का सभक उचकपन्नी आरो सुतरैए। बर-कनि‍याँक देखा-सुनीसँ ल सि‍नुरदान धरि‍ कि‍छु ने कि‍छु बि‍गाड़ैक कोशि‍श करबे करैए।

भागेसर-         एकटा बात मन पड़ि‍ गेल। भाए-बहीनि‍क बीचक कहै छी। (भागेसरक बात सुनि‍ राधेश्‍याम चौंक गेल..)

राधेश्‍याम-        कि‍ कहलखि‍न भाए-बहि‍न‍।

भागेसर-         बाउ, अहाँक तँ बहि‍न छी। भाए-बहीनि‍क बीच बरावरीक जि‍नगी हेबाक चाही से तेहन-तेहन वंशक बतौर सभ जन्‍म लेने जाइऐ जे......?

राधेश्‍याम-        की जे?

भागेसर-         अपन पड़ोसीक कहै छी। सौ-बीघाक परि‍वारमे पाँच भाए-बहीनि‍क भैयारी। बीस बीघा माथपर भेल। बहि‍न सभसँ छोट। सौ बीघा स्‍तरक लड़कीकेँ दू बीघाबला परि‍वारमे भाए सभ वि‍याहि‍ देलक।

राधेश्‍याम-        पि‍ता नै बुझलखि‍न?

भागेसर-         सएह ने कहै छी। पि‍ता जँ पुत्रपर वि‍सवास नै करथि‍ तँ कि‍नकापर करथि‍। तते चढ़ा-उतड़ी चारू बेटा कहलकनि‍‍ जे पि‍ता अपन भारे सुमझा देलखि‍न। बेटा सभ केहन बेइमान जे बहीनि‍क कोढ़-करेज काटि‍ अपन कनतोड़ी सजबए लगल।

राधेश्‍याम-        पछाति‍यो पि‍ता नै बुझलखि‍न?

भागेसर-         बुझि‍ये क कि‍ करि‍तथि‍न। मुइने एला बैद तँ कि‍दनकेँ के जेता।

राधेश्‍याम-        बड़ अन्‍याय भेल!

भागेसर-         अन्‍याय कि‍ भेल अन्‍याय जकाँ। ओही सोगे माए जे ओछाइन धेलखि‍न से धेनेहि‍ रहि‍ गेलखि‍न। पि‍तो बौरा क वृन्‍दावन चलि‍ गेलखि‍न।

राधेश्‍याम-        बाबू, जहि‍ना माए-बापक बेटी- छि‍यनि‍ तहि‍ना बहि‍न हमरो छी। ओना खाइ-पीबै आ लत्ता-कपड़ाक दुख अखन धरि‍ नहि‍ये भेलै, मुदा आगूक तँ नै कहि‍ सकै छि‍यनि‍। दि‍न-राति‍ माइयक संग काज उदममे रहैए। माइयक समकश तँ नै भेल मुदा दू-चारि‍ सालमे भइये जाएत। सभ सीख-लि‍ख माइयेक छै।

भागेसर-         अहाँ कत रहै छि‍ऐ?

राधेश्‍याम-        ओना बाहरे रहै छी। मुदा आन बहरबैया जकाँ नै जे गाम-घर, सर-समाज छोड़ि‍ देलौं। जे कमाइ छी परि‍वारमे दइ छि‍ऐ।

बालगोवि‍न्‍द-       समैध अबेर भ जाएत। कम-सँ-कम पाँचटा बच्‍चोकेँ शोर पाड़ि‍यौ। अदौसँ अपना ऐठामक चलनि‍ अछि‍। (गुरूकूलक अध्‍ययन समाजक काजक अनुकूल होएत)
(दरबज्‍जेपर सँ भागेसर बच्‍चा सभकेँ शोर पाड़लखि‍न..)
              (पाँच-सातटा बच्‍चा अबैत अछि‍..)

एकटा बच्‍चा-      झमेलि‍या भैयाक वि‍याह हेतै कक्का?

भागेसर-         हँ।

बच्‍चा-           बरि‍याती हमहू जेबे करब।

भागेसर-         तोरो ल जाए पड़तौ।

बच्‍चा-           जाएब।

पटाक्षेप




पाँचम दृश्‍य

            (बालगोवि‍न्‍दक घर। पत्नी दायरानीक संग बालगोवि‍न्‍द बैसल..)

बालगोवि‍न्‍द-     ओना जे बात भेल तइसँ कुटुमैती हेबे करत। मुदा समए-साल तेहन भ गेल जे वि‍याहो मड़बासँ लड़का रूसि‍-फुलि‍ क चलि‍ जाइए।

दायरानी-      हँ, से तँ होइए। मुदा जहि‍ना कुत्ता-बि‍लाइकेँ धि‍या-पुता खेनाइ देखा फुसला क अनैए तहि‍ना मनुखो फुसलबैक ने.....?

बालगोवि‍न्‍द-     नै बुझलौं। कनी फड़ि‍छा दि‍यौ।

दायरानी-      कोन काज सि‍रपर अछि‍ आ कोन काज लध चाहै छी। जखने सि‍रपड़क काज छोड़ि‍‍ दोसर काजमे लागब तखने घुरछी लगए लागत। जखने घुड़छी लागत तखने काज ओझरा-पोझरा जाएत।

बालगोवि‍न्‍द-     तखन?

दायरानी-      जतेटा आ जेहन काज रहए ओइ हि‍साबसँ काज सम्‍हारि‍ ली। अखन वि‍याहक काज अछि‍ तँए घटक भायकेँ बजा सभ गप कहि‍ दि‍यनु।

बालगोवि‍न्‍द-     अपनो वि‍चार छल भने अहूँ कहलौं।

दायरानी-      युग-जमाना अकानि‍ क चलैक चाही। जँ से नै करब तँ पाओल जाएब।

बालगोवि‍न्‍द-     कहलौं तँ बेस बात मुदा एहनो तँ होइ छै जे गाममे जखन चोर चोरी करए अबैए तखन ठेकयौने रहैए कताै आ अपनेसँ हल्‍ला दोसर दि‍स करैए। लोक ओमहर गेल आ खाली पाबि‍ चोर ठेकि‍येलहा घरमे चोरी क लइए।

दायरानी-      हँ, से तँ होइए। मुदा बेसी पि‍ंगि‍ल पढ़ने तँ काजो पछुआइये जाइए। तँए ओते अगर-मगर नै करू। एतबो नै आँखि‍ अछि‍ जे देखबै।

बालगोवि‍न्‍द-     कि‍ देखबै?

दायरानी-      बि‍ना घटक्के केकर वि‍याह होइ छै। समाजमे जखन सभ करैए तखन अपनो नै करब तँ ओहो एकटा खोटि‍करमे हएत कि‍ने।

बालगोवि‍न्‍द-     कि‍ खोटि‍करमा?

दायरानी-      अनेरे लोक की-कहाँ बाजत। तहूमे जेकर जीवि‍का िछऐ ओ अपन मुँह कि‍अए चुप राखत। छोड़ू ऐ-सभ गपकेँ। जाउ अखने घटक भायकेँ हाथ जोड़ि‍ कहबनि‍ जे बेटी तँ समाजक होइ छै, कोनो तरहेँ समाजक काज पार लगाउ।

बालगोवि‍न्‍द-     (बुदबुदाइत) कत नै दलाली अछि‍। एक्के शब्‍दकेँ जगह-जगह बदलि‍-बदलि‍ सभ अपन-अपन हाथ सुतारैए। तखन तँ गरा ढोल पड़ल अछि‍, बजबै पड़त।

दायरानी-      बजैत दुख होइए। अगर जँ लोक अपनो दि‍न-दुनि‍याँक बात बुझि‍ जाए तैयौ बहुत हेतइ। खाइर, देरी नै करू, बेरू पहर ओ सभ औता, अखुनका कहल नीक रहत। तँए अखने कहि‍ अबि‍यौन।
            (घटक भाइक दलानपर बैस जोर-जोरसँ पत्नीकेँ कहै छथि‍। आंगनसँ पत्नी सुनति‍ छथि‍..।)

घटक भाय-    समए कत-सँ-कत भागि‍ गेल आ डारि‍क बि‍ढ़नी छत्ता जकाँ समाज ओतै-क-औते लटकल अछि‍। आब ओ जुग-जमाना अछि‍ जे बही-खाता ल बैसल रहू आ आमदनी कत तँ सवा रूपैया। बाप रे, समैमे आगि‍ लागि‍ गेल।

पत्नी-         (अंगनेसँ) ओहि‍ना डि‍रि‍आएब। रखने ने रहू बेटाकेँ चूड़ा-दही खाइले। जेकर बेटा कमासुत छै ओकरा देखै छि‍ऐ जे कत-सँ-कत आगू चलि‍ गेल। सपनोँ सपनाएल रही जे बड़दक संगे भरि‍ दि‍न बहैबलाक बेटा ट्रेक्‍टरक ड्राइवरी करतै। दू-सेरक जगह दू हजारक परि‍वार बना लेतै।
(बालगोवि‍न्‍दकेँ देख घटक भाय दमसि‍ क खखास करैत। घटक भाइक खखास सुनि‍ पत्नी बुझि‍ गेलखि‍न। अपन बातकेँ ओतै रोकि‍ देलनि‍।)

बालगोवि‍न्‍द-     गोड़ लगै छी भाय।

घटक भाय-    जीबू-जीबू। भगवान खेत-खरि‍हान, घर-दुआर भरने रहथि‍। एहनो समैकेँ अहाँ नहि‍ये गुदानलि‍यनि‍। अहाँ सन-सन लोक जे समाजमे भ जाथि‍ तँ कत-सँ-कत समाज पहुँच जाएत।

बालगोवि‍न्‍द-     भाय, सि‍रपर काज आबि‍ गेल। तँए बेसी नै अटकब।

घटक भाय-    केहन काज?

बालगोवि‍न्‍द-     बेटीक वि‍याह करब। उहए लड़की देखए बरपक्ष आबि‍ रहल छथि‍। तहीले....!

घटक भाय-    अहाँकेँ नै बुझल अछि‍ जे अही समाज लेल खुन सुखा रहल छी। कि‍ पागल छी। जेकरा लूरि‍ ने भास छै से शहर-बजार जा-जा महंथ बनल अछि‍ आ हम समाज धेने छी।

बालगोवि‍न्‍द-     हँ, से तँ देखते छी। तँए ने......।

घटक भाय-    अच्‍छा बड़बढ़ि‍या। ओना हम अपनो कानपर राखब मुदा बुझि‍ते छी जे दस-दुआरी छी। जँ कहीं दोसर दि‍स लटपटेलौं तँ वि‍सरि‍यो जा सकै छी। तँए अबैसँ पहि‍ने ककरो पठा देबै।

बालगोवि‍न्‍द-     बड़बढ़ि‍या। जाइ छी।

घटक भाय-    ऐह, एहि‍ना कना चलि‍ जाएब। एते दि‍न ने लोक तमाकुले बीड़ीपपर दरबज्‍जाक इज्‍जत बनौने छलै मुदा आब ओइसँ काज थोड़बे चलत। िबना चाह-पीने कोना चलि‍ जाएब?

बालगोवि‍न्‍द-     अहाँकेँ कि‍ अइले उपराग देब। बहुत काज अछि‍। तँए माफी मंगै छी अखन छुट्टि‍ये दि‍अ।

            (बालगोवि‍न्‍द वि‍दा भ जाइत..)

घटक भाय-    (स्‍वयं) भगवान बड़ीटा छथि‍न। जँ से नै रहि‍तथि‍ तँ पहाड़क खोहमे रहैबला कोना जीवैए। अजगरकेँ अहार कत सँ अबै छै। घास-पातमे फूल-फड़ केना लगै छै....।

            (बालगोवि‍न्‍दक दरब्‍ज्‍जा। चौकीपर ओछाइन ओ‍छाएल।

बालगोवि‍न्‍द-     सभ कि‍छु तँ सुढ़ि‍या गेल। कने नजरि‍ उठा क देखहक जे कि‍छु छुटल ने तँ...।

राधेश्‍याम-      (चारू कात नजरि‍ खि‍ड़बैत..) नजरि‍पर तँ कि‍छु ने अबैए। (कने बि‍लमि‍) हँ, हँ, एकटा छुटल अछि‍। पएर धोइक बेबस्‍था नै भेल।

बालगोवि‍न्‍द-     बेस मन पाड़ि‍ देलह। तँए ने नमहर काज (परि‍वारक अगि‍ला काज) मे बेसी लोकसँ वि‍चार करक चाही। दसेमे ने भगवान वसै छथि‍। जखने दसटा आँखि‍ दस दि‍स घुमै छै तखने ने दसो दि‍शा देख पड़ै छै।

            (भागेसर आ यशोधरक आगमन..)

बालगोवि‍न्‍द-     जहि‍ना समय देलौं तहि‍ना पहुँचि‍ओ गेलौं। पहि‍ने पएर-हाथ धो लि‍अ तखन नि‍चेनसँ बैसब।

भागेसर-       तीन-कोस पएरे चलैमे मनो कि‍छु ठेहि‍या जाइ छै।

            (दुनू गोटेकेँ पएर-हाथ‍ धोइतेकाल घटक भाइक प्रवेश..)

घटक भाय-    पाहुन सभ कहाँ रहै छथि‍?

बालगोवि‍न्‍द-     भाय, नवका कुटुम छथि‍। ओना अखन रीता (बेटी) वि‍याह करै जोकर नहि‍ये भेल छै, मुदा ऐ देहक कोनो ठेकान अछि‍। बेटा-बेटीक वि‍याह तँ माए-बापक कर्ज छी। अपना जीवैत कतौ अंग लगा देने भगवानो घरमे दोखी नै ने हएब।

घटक भाय-    कुटुम, अपना एेठामक जे वुद्धि‍-वि‍चार अछि‍ ओ दुनि‍याँमे कत अछि‍। एक-एक काज ओहन अछि‍ जेहन पत्‍थर-कोइलाक ताउमे धि‍पा लोहाक कोनो समान बनैत अछि‍।

भागेसर-       हँ, से तँ अछि‍ये।

घटक भाय-    अपने ऐठाम खरही आ ठेंगासँ लड़का-लड़की (वर-कन्‍या)केँ नापि‍ वि‍याह होइत अछि‍।

यशोधर-       आब ओ बेबहार उठि‍ गेल।

घटक भाय-    हँ, हँ, सएह कहै छी। बेबहार तँ उठि‍ गेल मुदा ओइ पाछु जे वि‍चार छल से नै ने मरि‍ गेल। वि‍चारवानक बखारीक अन्न तँ वएह ने छि‍यनि‍।

राधेश्‍याम-      काका, कने फरि‍छा दि‍यौ। एक तँ नव कवरि‍या छी तहूमे परदेशी भेलौं।

घटक भाय-    बौआ, तोहूँ बेटे-भतीजे भेलह। बहुत पढ़ल-लि‍खल नहि‍ये छी। लगमे बैसा-बैसा जे बाबा सि‍खौलनि‍ से कहै छि‍अ। तहूँमे बहुत वि‍सरि‍ये गेलौं।

राधेश्‍याम-      जे बुझल अछि‍ सएह कहि‍यौ।

घटक भाय-    समाजमे दुइओ आना एहन परि‍वार नै अछि‍ जि‍नका परि‍वारमे बच्‍चाक टि‍प्‍पणि‍ बनै छन्‍हि‍। बाकी तँ बाकि‍ये छथि‍। अदौसँ लड़का अपेक्षा लड़की उम्र कम मानल गेल। जकरा तारीख-मड़कूमामे नै नापमे मानल गेल।

राधेश्‍याम-      जँ दुनूमे सँ कोनो बढ़नगर आ कोनो भुटारि‍ हुअए, तखन?

घटक भाय-    बेस कहलह। तँए ने अव्‍यवहारि‍क भ गेल। सदि‍खन समाजकेँ आँखि‍ उठा अहि‍तपर नजरि‍ राखक चाहि‍ये।

भागेसर-       हँ, से तँ चाहबे करी। मुदा वि‍चारलो बात तँ नहि‍ये होइ छै।

घटक भाय-    बेस बजलौं। ऐमे दुनू दोख अछि‍। वि‍चारनि‍हारोकेँ वि‍चारैमे गड़बड़ होइ छन्‍हि‍ आ राजादैवक (प्रकृति‍ नि‍यम) दोख सेहो होइत अछि‍। अखने दे‍खि‍यौ गोर-कारी रंगक दुआरे कते संबंध नै बनि‍ पबैत अछि‍। एतबो बुझैले लोक तैयार नै जे मनुष्‍य रंगसँ नै गुणसँ बनैत अछि‍।

यशोधर-       हँ, से तँ होइते अछि‍। हमरो गाममे हाथमे सि‍नुर लेल बरकेँ बरक बाप गट्टा पकड़ि‍ घि‍चने-घि‍चने गामे चलि‍ गेल।

घटक भाय-    की कहू कुटुम नारायण देखैत-देखैत आँखि‍ पथरा रहल अछि‍। मुदा अछैते औरूदे उरीसक दवाइ पीब उरीसे जकाँ मरि‍ये जाएब से नीक हएत। तहि‍ना देखब जे कुल-गोत्रक चलैत कुटुमैती भठि‍ जाइए।

यशोधर-       हँ, से तँ होइए।

घटक भाय-    देखि‍यौ, अपना बहुसंख्‍यक समाजमे अखनो धरि‍ मुँहजवानि‍येक कारोबार चलि‍ आबि‍ रहल अछि‍। जे नीक-अधला बेरबैक वि‍चार गड़बड़ा गेल। जते मुँह तते बात। जइठाम जे मुँहगर तइठाम तेकरे बात चलत। चाहे ओ नीक होय कि‍ अधला।

यशोधर-       कनी नीक जकाँ बुझा क कहि‍यौ?

घटक भाय-    (बालगोवि‍न्‍द दि‍स देख..) बालगोवि‍न्‍द, आइ तँ कुटुम-नारायण सभ रहता कि‍ने?

बालगोवि‍न्‍द-     एक तँ अबेर क एलाहेन। तहूमे अखन धरि‍ तँ आने-आने गप-सप्‍प चलल। काज पछुआएले रहि‍ गेल अछि‍।

घटक भाय-    आइ तँ कनि‍येँ देखा-सुनी हएत कि‍ने?

बालगोवि‍न्‍द-     हँ। मुदा वि‍याहसँ तँ बि‍ध भारी होइए कि‍ने!

घटक भाय-    हँ। से तँ होइते छै। अखन जाइ छी। काल्हि‍ सवेरे आएब। तखन जना-जे हेतइ से हेतइ।

भागेसर-       काज जँ ससरि‍ जाइत तँ चलि‍ जैतौं।

घटक भाय-    एहनो जाएब होइ छै। जखन कुटुमैती जोड़ि‍ रहल छी तखन एना धड़फड़ेने हएत।


पटाक्षेप


 
                 



छठम दृश्‍य

             (राजदेवक दरबज्‍जा। चद्दरि‍ ओढ़ि‍ राजदेव पड़ल)

सुनीता-       बाबा, बाबा-यौ। आँखि‍ लागल अछि‍। (एक हाथमे लोटा दोसरमे गोटी)

राजदेव-       नै। जगले छी। दवाइ अनलह।

सुनीता-       हँ। लि‍अ।

राजदेव-       (चौकि‍येपर बैस गोटी खा पानि‍ पीब क) नाहकमे परान गमबै छी। कहू जे जानि‍ क बेसाहब तँ मरब नै। मुदा करबे कि‍ करू। जानि‍ क कि‍यो थोड़े कुत्ता बधि‍या करए जाइए। जखन कुकुड़चालि‍ नाकपर ठेक जाए छै तखने ने कि‍यो जान अबधारि‍ जाइए।

सुनीता-       पाकल आम भेलौं। आबो जँ अपन पथ-परहेज नै राखब तँ कते दि‍न जीब?

राजदेव-       बुच्‍च्‍ी, तोहूँ आब बच्‍चा नै छह जे बात टारि‍ देबह। मुदा कि‍ करब? जखन समाजमे रहै छी तखन जँ वि‍याहमे बरि‍याती नै जाएब, मरलापर कठि‍आरी नै जाएब, तँ समाज आगू मुँहेँ ससरत केना।

सुनीता-       से तँ बुझलौं, मुदा.....?

राजदेव-       मुदा यएह ने जे जे जुआन-जहान अछि ओ जाए। से अपना घरमे अछि‍। तोँ बेटि‍ये जाति‍ भेलह, श्‍याम बच्‍चे अछि‍ बाबू परदेशेमे छथुन तखन तोँही कहह जे कि‍ करब?

सुनीता-       (कनी गुम्‍म भ) हँ, से तँ अछि‍। मुदा समाजो तँ नमहर अछि‍। बूढ़-पुरान जँ नहि‍यो जेताह तैयो कि‍नको काज थोड़े रूकतनि‍।

राजदेव-       कहै तँ छह ठीके मुदा तेहेन-तेहेन ढोढ़ाइ-मंगनू सभ समाजमे फड़ि‍ गेल अछि‍ जे अपेक्षा (संबंध) जोड़त कि‍ तोड़ैये पाछू पील पड़ल अछि‍।

सुनीता-       से कि‍?

राजदेव-       बि‍नु-ि‍वधक वि‍ध सभ आबि‍ रहल अछि‍ आ नीक वि‍ध मेटा रहल अछि‍। देखै छी तँ तामसे शपथ खा लइ छी जे आब बरि‍याती नै जाएब। मुदा फेर सोचै छी जे नै जेवइ तँ अपना बेर के जाएत।

सुनीता-       बरि‍याती जाएब कोनो अनि‍वार्ये छै?

राजदेव-       छइहो आ नहि‍यो छै। समाजमे दुनू चलै छै। हमरे वि‍याहमे ममे टा बरि‍याती गेल रहथि‍। सेहो बरि‍याती नै घरवारी बनि‍ क

सुनीता-       तखन फेर एते बरि‍याती कि‍अए जाइ छै?

राजदेव-       सेहो कहाँ गलती भेलै। जही लग्‍नमे हमर वि‍याह भेल ओहीमे श्‍यामो दोसकेँ भेलनि‍। पचाससँ उपरे बरि‍याती गेल रहनि‍।

सुनीता-       गोटी खेलौंहेँ। कनी काल कल मारि‍ लि‍अ। खाइयोक मन होइए?

राजदेव-       अखन तँ नै होइए। मुदा गोटी खेलौं हेन तँए कि‍ कहबह?

सुनीता-       जे मन फुरए सएह करब।

            (कृष्‍णानन्‍दक आगमन)

कृष्‍णानन्‍द-     बड़ अनखनाएल जकाँ देखै छी कक्का? चद्दरि‍ कि‍अए ओढ़ने छी?

राजदेव-       कोनो कि‍ सुखे ओढ़ने छी। मन गड़बड़ अछि‍।

कृष्‍णानन्‍द-     की भेल हन?

राजदेव-       एक तँ पेट गड़बड़ भेने मन गड़बड़ लगैए। तोहूमे तेहन-तेहन कि‍रदानी सभ लोक करैए जे होइए अनेरे कि‍अए जीवै छी।

कृष्‍णानन्‍द-     हँ, भने मन पड़ि‍ गेल। कामेसर भायकेँ पानि‍ चढ़ै छन्‍हि‍।

राजदेव-       कि‍अए। केहन बढ़ि‍याँ तँ राति‍मे संगे बरि‍याती पुरलौं। तइ बीच कि‍ भगेलइ।

कृष्‍णानन्‍द-     अपने तँ नइ पुछलि‍यनि‍ मुदा कात-करोटसँ भाँज लागल जे बरि‍याती जाइसँ पहि‍ने खूब चढ़ा लेने रहथि‍। ओही नि‍साँमे अढ़ाइ-तीन सय रसगुल्‍ला आ कि‍लो चारि‍एक माछ देलखि‍न।

सुनीता-       (खि‍सि‍या क) जि‍नगीमे कहि‍यो देखने छेलखि‍न कि‍ बरि‍याति‍ये भरोसे ओरि‍आएल छलाह।

कृष्‍णानन्‍द-     घरवारि‍यो सबहक दोख छै?

सुनीता-       से कोना?

कृष्‍णानन्‍द-     ओते ओरि‍यान कि‍अए करैए। जँ रहि‍ जे जेतइ तँ बरि‍याती क सवारी कसत जे दुइर भ जाएत। तइसँ नीक ने जे दुइर नै हुअए दइ छै।

सुनीता-       तखन तँ दवाइयो आ डाक्‍टरोक ओरि‍यान करए पड़तै कि‍ ने?

राजदेव-       कोन बातमे ओझरा गेलह। अच्‍छा अखन कि‍ हालत छै?

कृष्‍णानन्‍द-     आब तँ बहुत असान भेलनि‍। पहि‍ने तँ दमे नै धरए दैत छलनि‍। डाॅक्‍टर कहलखि‍न जे आँत फाटि‍ जइतनि‍। मुदा समहरलाह। गुण भेलनि‍ जे तीन-चारि‍ बेर छाँट भ गेलनि‍। ओहि‍ना सौंसे-सौंसे रसगुल्‍ला खसलनि‍।

सुनीता-       ओहने-ओहने लोक समाजकेँ दुइर करैए।

कृष्‍णानन्‍द-     से केना?

सुनीता-       जे आदमी ओहन पेट बनौत ओ ओते पुराओत कत सँ। जँ पुराइयो लेत तँ ओते पचवइयो लए ने ओते समए चाही। जँ खाइये-पचबैमे समए गमा लेत तँ काज कखन करत।

राजदेव-       (कने गरमाइत..) अच्‍छा बुच्‍ची, कृष्‍णानन्‍द कक्काकेँ चाह पीआवहुन?

सुनीता-       अहूँ पीबै?

राजदेव-       कोना नै पीबै।

सुनीता-       अहँूक पेट तँ गड़बड़े अछि‍। जँ कहीं आरो बेसी भ जाए?

राजदेव-       से तँ ठीके कहै छह। मुदा ई केहन हएत जे दरबज्‍जापर असकरे कृष्‍णानन्‍द चाह पीता आ अपने संग नै दबनि‍।

सुनीता-       भाँज पुरबैले कम्‍मे क लेने आएब। सेहो सरा क पीब।

            (सुनीता चाह आनए जाइत..)

कृष्‍णानन्‍द-     कक्का, जेहो काज लोक नीक बुझि‍ करैए, ओकरो तेना ने करए लगैए जे जते नीक बुझि‍ करैए ओइसँ बेसी अधले भ जाइ छै। तइपर सँ अचार जकाँ रंग-वि‍रंगक चहटगर नवका-नवका काज।

राजदेव-       नै बुझि‍ सकलौं।

कृष्‍णानन्‍द-     पहि‍ने दू संझू बरि‍याती होइत छलै। जँ कहीं पहि‍ल दि‍न अबेरो भ गेल आ कोनो तरहक गड़बड़ि‍यो होइत छलै तँ दोसर दि‍न सम्‍हारि‍ क सभ समेटि‍ सरि‍या लैत छल।

राजेदव-       जँ दू दि‍ना काज एक दि‍नमे भ जाए तँ नीके ने भेल।

कृष्‍णानन्‍द-     यएह सोचि‍ ने एक संझू भेल। मुदा पाछूसँ तेहन हवा मारलक जे कोसो भरि‍ जाइबला बरि‍याती गाड़ी-सवारी दुआरे लग्‍नक समए टपा-टपा पहुँचैए।

राजदेव-       हँ, से तँ होइए।

कृष्‍णानन्‍द-     (सह पाबि‍ सहटि‍) एतबो बुझैले लोक तैयार नै जे कोस भरि‍ जाइमे अधा-पौन घंटा पएरे लगत। तइ टपैमे चरि‍-चरि घंटा‍ देरी भेल, कहू जे केहन भेल?

राजदेव-       हौ, कि कहबह। ‘इसकी मुइला माघमे।’‍ तेहन-तेहन नवकवि‍रया मनुख सभ भ गेलहेँ, जे माघोमे गाम-गमाइत बि‍ना चद्दरि‍ये जाएत। आब कहह जे अपना ऐठामक वि‍चारधारा रहल जे कोनो वस्‍तुक उपयोग जरूरत भरि‍ करी। तइठाम जँ घरवैया अपन चद्दरि‍ दइ छन्‍हि‍ तँ अपने कठुएता, जँ नै दइ छन्‍हि‍ तँ आनकेँ दरबज्‍जापर कठुअाएब उचि‍त हएत।

कृष्‍णानन्‍द-     हँ, से तँ देखै छि‍ऐ।

राजदेव-       आब बरि‍याति‍येमे देखहक। पहि‍ने दू दि‍ना बरि‍यातीक चलनि‍ छल। जे एक संझू भ गेल। मूल प्रश्न अछि‍ जे दुनू पक्षक (बर आ कन्‍या पक्ष) कि‍ सभ क्रि‍या-कलाप (बि‍ध-बेबहार) छै। ककरा सुधारैक, ककरा तोड़ैक आ ककरा बचा क रखैक जरूरत अछि‍ से नै बुझि‍, कवि‍काठी सभ समए नै बँचब वा समैक दुरूपयोग कहि‍ एक दि‍ना चलनि‍ चलौलक। मुदा.....।

कृष्‍णानन्‍द-     मुदा की?

राजदेव-       तोहू तँ आब बच्‍चा नहि‍ये छह। कते कठि‍आरी गेले हेबह।

कृष्‍णानन्‍द-     कक्का, मुरदा जरबए कठि‍आरी जरूर गेलौंहेँ, मुदा मुरदा.....?

राजदेव-       हँ, हँ, कठि‍आरी गेलह। मुरदा जरबए नै?

कृष्‍णानन्‍द-     एते तँ जरूर करै छी जे शुरूमे खुहरी चढ़ेलौं आ पछाति‍ पँचकठि‍या फेक घरमुँहाँ भेलौं।

राजदेव-       तइ बीच?

कृष्‍णानन्‍द-     कने बगलि‍ क बैस ताशो खेलाइ छी आ चाहो-पान करै छी।

राजदेव-       मुदा, जे मुइलाह हुनकर जीता-जि‍नगीक चर्चक गवाह एकोटा नै रहै छी।

कृष्‍णानन्‍द-     नै बुझलौं कक्का?

राजदेव-       समाजमे ककरो मुइने लोककेँ सोग होइ छै। सोगक समए मन नीक-अधला बीचक सीमानपर रहैए। जहि‍ना ग्रह-नक्षत्रक बीचक सीमानपर कोनो नव चीज देख पड़ैत तहि‍ना होइए। एकठाम बैस जँ दस गोटेक बीच जीवन-मरणक चर्च भ गेल तँ ओ इति‍हास बनि‍ गेल। जइ अनुकूल आगू चर्च हएत।

कृष्‍णानन्‍द-     मन थोड़े रहत।

राजदेव-       मन रखए चाहबै तखन ने रहत। ओहुना तँ वि‍सरनहि‍ छी। अपना ऐठाम मौखि‍के ज्ञान बेसी अछि‍। जे नीको अछि‍ आ अधलो। अच्‍छा छोड़ह, बहकि‍ गेलह।

कृष्‍णानन्‍द-     हँ, तँ मुरदा जरबैबला कहै छेलि‍अ?

राजदेव-       मुरदा जरबैकाल देखबहक जे चेरा जारन‍ एक भागसँ चुल्हि‍ जकाँ नै लगाओल जाइत अछि‍, एक्के बेर सौंसे शरीरक तर-ऊपर लगाओल जाइए। मुदा मुर्दा सि‍कुड़ि‍-सि‍कुड़ि‍ छोट होइत अंतमे गेन जकाँ भ जाइए। जकरा कि‍छु जरौनि‍हार गेन जकाँ गुरका क छोड़ि‍ दैत अछि‍ आ कि‍छु गोटे ओकरो जरा दैत अछि‍।

कृष्‍णानन्‍द-     अखन काजे जाइ छलौं तँ सोचलौं जे कक्काकेँ समाचार सुनौने जाइ छि‍यनि‍। मुदा अहूँ तँ चहकल थारी जकाँ झनझनाइते छी।

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