झमेलिया वियाह
नाटक
जगदीश प्रसाद मण्डल (आगाँ)सातम दृश्य
(बालगोविन्दक दरबज्जा। चाह-पान, सिगरेट चलैत। बालगोविन्द आ राधेश्याम परसैत। भागेसर यशोधर एकठाम बैसल। बीचमे घटकभाय आ दोसर भाग समाजक रूपलाल, गरीबलाल, धीरजलाल बैसल।)
घटकभाय- कुटुम नारायण जकरा जे जुड़वन लिखल रहै छै से भइये कऽ रहै छै।
यशोधर- हँ, से तँ होइ- छै, मुदा.....?
रूपलाल- मुदा कि?
यशोधर- लिखिनिहार के छथि?
गरीबलाल- एना अनाड़ी जकाँ किअए बजै छी। छठिहारे राति विधाता सभ किछु लिख दइ छथिन।
यशोधर- जँ वएह लिखै छथिन तँ एना उटपटांग किअए लिखै छथिन।
धीरजलाल- कि उटपटांग?
(चाहक गिलास आ पानक तसतरी लेने राधेश्याम जा रखि पुन: आबि बैसैत अछि)
यशोधर- एक तँ लेन-देन तते बढ़ि गेल अछि जे जहिना चुमुक लोहा बीचक वस्तुकेँ नै पकड़ि लोहेटाकेँ खिंचैत अछि तहिना पाइयेबला नीक पाइ खर्च कऽ नीक घर (सुभ्यस्त) पकड़ैत अछि भलहिं लड़का-लड़कीक जोड़ा बैइसै कि नै बैइसै।
घटकभाय- (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ होइ छै। मुदा किछु लाभो तँ होइ छै।
यशोधर- कि लाभ होइ छै?
घटकभाय- जाति-पाजिक (कुल-खनदानक) दवाएल लोक अपनासँ नीक घरमे पाइक बले कुटमैती कऽ लैत अछि।
यशोधर- तइ काल विधाता किछु ने सोचलनि जे कान्ही लगा जोड़ा लगवितथिन। जइसँ जाति-पाँजिक रक्षा सेहो होइत।
घटकभाय- कुटुम नारायण जहिना मनुक्खोक मन सदतिकाल एके रंग नै रहैए तहिना ने हुनको (विधतोक) होइत हेतनि। जखन असथिर रहैत हेता तखन नीक विचार मनमे अबैत हेतनि आ जखन टेन्शनमे रहैत हेता तखन किछुसँ किछु कऽ दैत हेताह।
गरीबलाल- घटकभाय, एहेन बात नै छै। कोनो ई औझुका विचार छिऐ कि पुरना विचार छिऐ। कहलो गेल अछि- ‘अजा पुत्रं बलिं दत्वा देवो दुर्बल घातक:।’
घटकभाय- छोड़ू ऐ सभ गपकेँ। ई सभ बैसारी कविकाठीक गप छी। जइ काजे एकठाम भेल छी पहिने एकरा निपटा लिअ। हमहूँ धड़फड़ाएल छी, बजौनिहार दुआरपर आशा बाट तकैत हेताह।
भागेसर- जिनगीमे पहिल बेर बेटाक वियाह करै छी। ओना समाजमे बहुत काज देखलौंहेँ मुदा समाज कि गामक सीमा भरिक अछि। जाति-जाति, कुल-खानदान, अड़ोसी-पड़ोसी, कते कहब। फाँकक-फाँक बनल अछि जइसँ एक काज (वियाह) होइतो एक रंग बेबहार नै अछि। तइसँ सभ दिना काज रहितो अपन बिध-बेबहार नीक-नहाँति नै बुझि पबै छी।
घटकभाय- हँ, से होइते अछि। अहाँ तँ अहीं भेलौं जे सालमे दस-बीस काजक अगुआइ करै छी तैयो कतेठाम भसिया जाइ छी। खाइर, ऐ सभकेँ छोड़ू।
यशोधर- हँ, हँ। अपने काज आगू बढ़ाउ।
घटकभाय- जहिना शुभ-शुभ कऽ वियाहक चर्च उठल, आ अखन धरि चलि रहल अछि तहिना आगूओ चलैत रहए।
बालगोविन्द- लाख टकाक गप कहलिऐ घटकभाय। आगूक शुभारम्भ अहीं करियौ।
घटकभाय- देखू किछुए मास छोड़ि वियाहक दिन सभ मास होइए। मुदा सभसँ नीक मास फागुन होइए।
रूपलाल- ठीके कहलिअ, शिवरात्रिक मास सेहो छी।
घटकभाय- कोनो कि धड़फड़ा कऽ कहलौं, से बात नै अछि। किछु सोचिये कऽ कहलौं। खरमास (बैसाख-जेठ) मे आगि-छाइक डर रहै छै। जाड़मे जाड़ेक आ आन-आन मासमे सहो किछु ने किछु गड़वड़ रहिते अछि।
यशोधर- जहिना नीक मौसम रहैए तहिना खेबो-पीवोक समान पर्याप्त रहैए। टेन्ट-समेनाक बदला गाछियो-कलमसँ काज चलि जाइत अछि।
घटकभाय- कि सबहक विचार अछि किने?
(सभ- हँ-हँ)
एकटा काज सुढ़िआएल। आब बरियातीक गप उठबै छी। कि बालगोविन्द, कुटुम नारायणकेँ कते बरियाती अबैले कहै छियनि?
बालगोविन्द- पाँचो गोटेसँ वएह काज होइए जे पान सए गोटेसँ। तखन देखते छी हम्मर आँट-पेट। कौआसँ खइर लुटाएब तइसँ नीक जे ओते बेटिए-जमाएकेँ अगुआ कऽ देब जे नइ सभ दिन तँ किछुओ दिन सुख भोग करत।
यशोधर- बड़ सुन्नर बात बालगोविन्द बाबूक छन्हि। मुदा....?
गरीबलाल- कनी खोलि कऽ बजिऔ।
यशोधर- अहाँ समाजक बात नै जनै छी मुदा हमरा समाजमे एहेन अछि जे जातिमे घरही एक गोटे, परजातिमे हित-अपेक्षित आ परिवारक जे संबंधी छथि, से तँ एबे करताह।
बालगोविन्द- एते तँ उचिते भेल।
गरीबलाल- उचित तँ कहि देलिऐ भाय, मुदा पैघ घोड़ाक पैघ छानो होइ छै। अहाँ पचघरा छी मुदा जइठाम सए-दू-सए घरक होय तइठाम?
यशोधर- ई तँ ठीके कहलिऐ मुदा छोट-छीन काजक दुआरे समाज टुटि जाए, सेहो नीक नहिये।
घटकभाय- जेहने सवाल ओझराएल अछि तेहने सोझराएलो अछि।
यशोधर- से कि?
घटकभाय- ओझरी दू रंगक होइ छै। एकटा, जहिना टीक कि झोंटामे चिड़चिड़ी लगने होइत अछि आ दोसर, डोरीक भीड़ी जकाँ होइए। एकटा ओरी पकड़ि लिअ काज करैत चलू। कखनो कथीले ओझराएत। चाहे तँ काजे सम्पन्न भऽ जाएत वा डोरिये सठि जाएत।
गरीबलाल- बालगोविन्द भाय, उक्खरिमे मूड़ी देलौं तँ मुसराक डर। समाजक नीकक लेल जँ अपन प्राणो गमबए पड़ै तैयो नीके। वियाह तँ समाजक उत्सव छी।
घटकभाय- एक लाखक विचार गरीबलालक छन्हि। एकठाम बैस खेलौं, रहलौं आ नीक-अधलाक गप-सप्प केलौं, ई उत्सव नै तँ कि भेल।
यशोधर- घटकभाइक िवचार टारैबला नै छन्हि।
(विचहिमे)
धीरजलाल- जखन उत्सव छी तखन नीक तँ नीक भेल मुदा अधला गप-सप्प किअए करत?
घटकभाय- (ठहाका मारि) तू अखैन अनाड़ी छह धीरज, मुदा जे बात उठौलह ओ आगूक लेल काज औतह। तँए पहिने तोरे गप कहै छिअह।
(घटकभाइक विचार सुनि सभ साकांच भऽ घटकभाय दिस कतऽ लगैत..)
मुँह चटपटबैत धीरजलाल किछु बाजए चाहैत कि गरीबलालक नजरि पड़ल। मुँहक बाेल धीरजलाल रोकि लैत)
गरीबलाल- पहिने एकटा बात सुनि लिअ, तखन दोसर पुछहुन।
घटकभाय- बौआ, जहिना नीकक संग-संग अधलो चलैए तहिना अधलाक संग नीको चलैए। तँए दुनू गप चललासँ साधल बात लोक बुझैए।
धीरजलाल- गप झपाएल रहि गेल घटकभाय।
घटकभाय- अपना जनैत तँ कहि देलियह। भऽ सकैए तँू नै बुझने हुअ। देखहक पुरूष नारीक संयोगसँ सृष्टिक िनर्माण होइए। जेकरा विवेकी मनुष्य विवाहक बंधनमे बन्हलनि। जे सृष्टिक विकास आ कल्याणक लेल उचित अछि।
धीरजलाल- हँ, से तँ अछिये।
घटकभाय- मुदा एकरे दोसर भाग देखहक। जे, बंधनसँ बाहर अछि ओकरा अधला बुझि अंकुश लगाओल गेल। मुदा समाजेक लोक ओकरा राँइ-बाँइ कऽ कऽ तोड़ि देलक।
धीरजलाल- नै बुझलौं भाय?
घटकभाय- पुरूष प्रधान बेबस्था ओकरा संग अन्याय केलक। एक दिस पुरूष कतेको नारीकेँ पत्नी बना, संग-संग समाजोमे कुचालि आन-आन नारीक संग चलनि शुरू केलक। जइसँ नरीक डाँड़, टूटि गेल। कते नारी घरसँ िनकालल गेल। जे रने-बने बौआइत अछि।
धीरजलाल- भाय, मन तँ आरो गप सुनैक होइए। मुदा जइ काजे एकत्रिक भेल छी से काज आगू बढ़ाउ।
राधेश्याम- मानि लेलौं, जते बरियातीक खगता होन्हि तते लऽ कऽ औताह।
घटकभाय- बौआ राधेश्याम, नमहर काज करैमे नै औगताइ आ ने खिसिआइ। जखने अगुतेबह, खिसिएबह तखने काजमे खोंच-खाँच बनए लगतह। कोनो रोग असाध होइए तँ मनुखे ने ओकरो साधमे अनैए।
बालगोविन्द- बौआ, अखन तँू समाजक तरी-घटी नै बुझबहक। एक तँ नवकविरया छह दोसर गाम छोड़ि परदेश खटै छह। जखन समाजक संग छी तखन वएह ने पारो-घाट लगौताह। बेटी कि कोनो हमरे छी आकि समाजक छियनि।
घटकभाय- बालगोविन्द भाय, हमरा जे धौंजनि समाजमे होइए से ककरा होइ छै। जँ एहेन धौंजनि दोसराकेँ होइतै तँ पड़ा कऽ जंगल चलि जाइत। मुदा मोह अछि किने।
बालगोविन्द- कि मोह?
घटकभाय- जइ काजे छी पहिने से फड़िआबह। एक समाजक दोसर समाजसँ मिलन समाराेह छी। तँए सामाजिक काज भेल। तइले समाजो अपन रस्ता बनौनहि अछि। कियो भार पूरि, तँ कियो डाल पूरि, तँ कियो असिरवादी दऽ काज पूरबैए।
भागेसर- ऐ लेल चिन्ता करैक नै अछि घटकभाय। अपनो ऐठामसँ तँ डाला भार एबे करत किने। तइ लेल.....।
घटकभाय- सभ कियो सुनि लेलिऐ किने जे बरपक्ष जते बरियाती अानए चहता से मंजूर केलियनि।
(सभ हँ, हँ)
राधेश्याम- (उछलि कऽ) मुदा एकटा बातक फड़िछौट अखने भऽ जाए।
घटकभाय- कथीक?
राधेश्याम- जते खाइ-पीबैक ओरियान करबनि से खा-पी कऽ जाए पड़तनि।
गरीबलाल- से पहिने ने किअए बरियातीक हिसाब जोड़ि लेब। जइ हिसावसँ बरियाती औताह तइ हिसाबसँ ओरियान करब। ने बाइस बचत ने कुत्ता खाएत।
राधेश्याम- कक्का, दोसर बात कहलौं।
गरीबलाल- कि?
राधेश्याम- तीन कोसपर गाम छन्हि। पाँच बजेमे जे पएरो चलताह तैयौ आठ बजे आबि जेताह। सभ काज सम्हरल चलतनि।
घटकभाय- बेस बजलह। खाइ-पबैक जे समान दूइर हएत से मोटरी बान्हि कन्हापर लादि देबनि। अच्छा अखन एतै काजकेँ विराम दियौ।
यशोधर- बहुत समए लगि रहल अछि, जते जल्दी काजक रूप रेखा बनि जाएत तते नीक िकने।
घटकभाय- हँ, हँ। से तँ नीक। मुदा जहिना कोनो वस्तुक बोझसँ चानि अगिया जाइत अछि तहिना ने विचारोक बोझसँ अगिया जाइत अछि। तँए आगूक विचार बढ़बैसँ पहिने एक बेर चाह-पान भऽ जाए।
गरीबलाल- बेस कहलिऐ घटकभाय।
बालगोविन्द- बाउ राधे, चाह बनौने आबह।
(राधेश्याम चाह अानए जाइत अछि।)
गरीबलाल- (मुस्की दैत) तइ बीच किछु रमन-चमन भऽ जाए। अँए-औ घटक भाय, मझौरा बरियातीमे परूँका कि भेल रहए?
घटकभाय- बिसरलो बात मन पाड़ै छी। नीकक चर्च लोक दोहरा-तेहरा करैए। अधला बात (काज) बिसरबे नीक।
गरीबलाल- अखन औपचारिक नै अनौपचारिक किछु भऽ जाए।
घटकभाय- (मुस्की दैत) देखियौ, सालमे दस-बीस वियाहक अगुआइ करिते छी मुदा ओहन तँ नै छी जे लुत्ती लगा देव आ ससरि जाएब। जइ काजमे हाथ दइ छी ओइ काजकेँ कइये कऽ छोड़ै छी।
यशोधर- कि भेल रहए?
घटकभाय- जिनगीमे पहिल बेर एहेन फेरा लागल। कछुबीक बरियाती मझौरा गेल। ठीक आठ बजे बरियाती पहुँचल। घरवारियो सतर्क रहथि। दरबज्जापर पहुँचते शर्बत चलल। शर्बत चलिते रहै कि स्त्रीगण सभ चंगेरामे दूबि-धान दीप लेने गीत गबैत पहुँचलीह।
यशोधर- से तँ होइते अछि।
घटकभाय- एतबे भेल। एक दिस बैसारमे बरियाती सभ गिलासपर गिलास शर्बत चढ़बैत तँ दोसर दिस गीतिहाइरो सभ गीतक वाण छोड़ैत। तखने एकटा परदेशिया करामात शुरू केलक।
यशोधर- कि करामात?
घटकभाय- पहिने तँ नै बुझलिऐ मुदा पछाति पता लागल जे ओ बरियातिये रहए। केलक ई जे गीतिहारिक बीचमे पाइ (एक-दू आ पाँचक सिक्का) लुटबए लगल। गीतिहारिक बीच हुड़ भेल। एक्के-ुदुइये चारि बेर पाइ फेकलक। झल-हन्हार रहबे करै।
यशोधर- से एना किअए केलक?
घटकभाय- सएह ने, कतऽ सँ सीखि कऽ आएल रहै से नै कहि। पाइ बीछैमे गीतो बन्न भऽ गेल। तइपर सँ तना ने तरा-उपरी लोको खसए लगल आ धक्का-ध्ुक्की सेहो हुअए लगल। दूवि-धान, दीपबला चंगेरा बरक उपरेमे खसल।
गरीबलाल- जे एहेन किरदानी केने रहै तेकरा पकड़ि कऽ धोलाइ नै देलक।
घटकभाय- ओहो कि अनाड़ी-धुनाड़ी रहै। लुत्ती लगा ससरि कऽ कातमे नुका रहल। घरवाली सभ जखन गीतिहारि सभकेँ पुछलकनि तँ ओ सभ हरियरका कुरताबला नाओं कहलखिन। ओ सभ भजिअबए लगल। मुदा कुत्ता कतौ आगिमे झरकै।
गरीबलाल- तइमे अहाँ कोना फँसि गेलिऐ?
घटकभाय- हमरो कुर्त्ता हरियरे रहए। मुदा आब बुझै छी जे गलती कनी अपनो रहए।
गरीबलाल- कि गलती अपन रहए?
घटकभाय- अपन गलती यएह रहै जे बरियातीक बीचक नहि कतका कुरसीपर बैसल रही। तीनि-चारि गोटे कातेसँ हियबैत रहै। हरियर कुर्ता देख लगमे पहुँच गेल।
यशोधर- अहाँ नै बुझलिऐ।
घटकभाय- से िक कोनो देखिलिऐ नै। भेल जे किछु परसऽ आएल अछि।
यशोधर- किदु पुछबो ने केलिऐ?
घटकभाय- कि पुछितिऐ, कोनो शंका रहए। ओहो सभ कि पुछलक। हाँइ-हाँइ कऽ ठुस्से चलबए लगल।
गरीबलाल- (ठहाका मारि..) बेसी ने तँ लागल।
घटकभाय- कोनो कि अनाड़ी-ध्ुनाड़ीक ठुस्सा रहए। पाँचे-सात ठुस्सामे तँ बुझि पड़ल जे दिनका तरेगन देखै छी।
यशोधर- बरियाती सभ खाइयेटाले गेल रहए।
घटकभाय- नै, परोछक बात छी, झूठ नै बाजब। बरियातियो सभ तनलाह। मुदा हमहीं रोकलियनि।
गरीबलाल- अहाँ किअए रोकलियनि?
घटकभाय- मारि-दंगा कोनो नीक छी। कोनो ठेकान छै जे कते हएत। जँ एहेन भऽ जाए जे काजे नाश भऽ जाए, तखन।
गरीबलाल- हँ, से तँ ठीके।
घटकभाय- ओना पाँचे-सात ठुस्सा ने लागल। जँ दोहराइत तँ बेसियो लगि सकै छलै। तहूमे जहिना हौहटि-कलकैल साले-साल ओही आदमीक ऐठाम अबैत जेकरा ऐठाम खाइ-पीबैक आ सुतै-बैसैक नीक जोगार देखैत। तँए सोचलौं जे कनी सहिये लेने नीक रहत।
(तस्तरीमे चाह लेने राधेश्याम आबि चाह परसैत अछि..)
गरीबलाल- तरे-तर घटकभाय मुस्की मारैत छथि।
(गरीबलालक बात सुनि सभ घटकभाय दिस तकए लगै छथि। अपना दिस तकैत देख घटकभाइक मुस्की-हँसीमे बदलि गेलनि।
बालगोविन्द- घटकभाय, किछु बजताह।
घटकभाय- एकटा आरो घटना मन पड़ि गेल। बरख पाँचे भेल हएत। तमोरियाक कुटुमैती अरड़ियामे भेल रहए। दुनूक अगुआ रही। दुनू चिन्हार।
बालगोविन्द- भेल कि से कहियौ।
घटकभाय- ओइ काजमे दोखी घरबैइये रहए। नाहकमे दोखी बनलौं।
गरीबलाल- कि भेल रहए?
घटकभाय- गरीबलाल एक रत्ती तल-वितल भेने काज विगड़ि कऽ कि-सँ-कि भऽ जाइए। एते दिन देखै छेलिऐ जे दोकानदार सभ माथपर नूनक मोटरी आनि जीबैले कारोवार करैत छल। आब देखै छी जे कारोवारिये सभ राजा भऽ गेल। जे जना मन फुड़ै छे से तेना करैए।
गरीबलाल- जे बात कहै छेलिऐ, से कहियौ।
घटकभाय- ओइठीन देखौलक कोनो लड़की आ सिनुदानक बेर दोसर लड़कीकेँ आनि सिनुरदान करबै लगल।
गरीबलाल- ओइठाम तँ बर पक्षक नै रहैत छथि तखन कोना भाँज खुजल।
घटकभाय- सभ गप देखिनिहार तँ घरपर बाजि चुकल छलाह ने। लड़कीक हुलिया भऽ गेल छलै ने। ओही अनुमानसँ लड़का पकड़ि लेलक। कोनो लाथे निकलल आ पित्तीकेँ कहि देलक।
गरीबलाल- तखन तँ बड़का सरेड़ा भेल हएत?
घटकभाय- सरेड़ा कि सरेड़ा जकाँ भेल। मारि-पीट जे भेल से तँ भेवे कएल जे तीन बरख तक दुनू गामक सीमा रोका गेल। बियाह बेटा-बेटीक खेल नै दुनूक जिनगीक छी। ओना तेहन जुग-जमाना आबि गेल अछि जे खेलोसँ खेल जिनगी बनि गेल अछि।
गरीबलाल- कनी फरिछा कऽ कहियो घटकभाय?
घटकभाय- कि फरिछा कऽ कहब। अंतिम समए विद्यापतियो लिखलनि- ‘माधव हम परिणाम िनराश।’ तहिना छातीपर हाथ रखि आनो-आन बाजथि। अच्छा अखन एतै विराम दियौ। खाइ-पीबैक बेरो भऽ गेल आ देहो-हाथ अकड़ि गेल।
राधेश्याम- तीमनो-तरकारी ठरि कऽ पानि भऽ गेल हएत।
घटकभाय- कुटुम नारायण तँ ठरलो खा कऽ पेट भरि लेताह मुदा हमरा तँ कोनो गंजन गृहणी नहिये रखतीह।
पटाक्षेप
आठम दृश्य
(बालगोविन्दक दरबज्जा। बालगोविन्द, भागेसर आ यशोधर बैस खेती-पथारीक गप करैत..)
बालगोविन्द- देखले दिनमे दुनियाँ कतऽ-सँ-कतऽ भागि गेल।
यशोधर- से कि?
बालगोविन्द- अपना ऐठामक िकसान खेती-गिरहस्तीक सभ कथूक बीआ अपने बनबै छलाह खेती करै छलाह। तीन सालसँ जे सुनै छी, से कि कहू।
यशोधर- खोलि कऽ कने कहियौ?
बालगोविन्द- तेसर साल हमरा गाममे बहुत गोरे तीन सए रूपैये किलो मकैयोक आ धानोक बीआ, पँचगुना अपजा कहि कऽ अनलनि। खेती केलनि। शुरूहेमे ढक-बखारी सभ बनबा-बनबा रखलनि। ले बलैया मकैमे बाइले ने लागल।
यशोधर- से िक भेलै?
बालगोविन्द- जहिना रिनिया-महाजन अगर-मगर करैत रहताह तहिना सभ गिरहस्त अपनेमे कहा-कही शुरू केलनि।
यशोधर- कि कहा-कही शुरू केलनि?
बालगोविन्द- कियो कहथिन जे खाद जे देलिऐ से माटि जाँच करौलिऐ? तँ कियो बाजथि जे जते पावरक दवाइ फसिलमे दइ छलिऐ तइसँ बेसी पावरक देलिऐ कि कम? तँ कियो बाजथि जे बीआ बाग करैसँ पहिने दवाइ मिलौलिऐ। कि कहब उपजाक बात विसरि सभ अपनेमे सालो भरि रक्का-टोकी करैत रहलाह।
यशोधर- तब तँ बाढ़ि रौदीक संग तेसरो आफत आबि गेल।
बालगोविन्द- तेसरे किअए कहै िछऐ। चारिमो ने कहियो।
यशाेधर- चारिम की?
बालगोविन्द- अहाँ सभ दिस नहरि नइए, तँ ने नजरिपर आएल हेन। हमरा सभ दिस केहन खेल होइए से सुनू। जखन खूब बरखा हएत तखन नहरिक मुँह (फाटक) खोलि देत आ जखन रौदी हएत तखन कहत जे नहरिमे पानिये ने छइ।
यशोधर- जना अपना ऐठम पढ़ल-लिखल लोक छथि तना जँ दसो प्रतिशत बुधिक (ज्ञानक) उपयोग अपना क्षेत्रक लेल लगबितथि तँ कि-सँ-कि देखितिऐ। मुदा जेकर कपारे फुटि जाएत तेकर कते भरोस।
(राधेश्याम चाह लेने अबैत अछि। तहिकाल गरीबलालक संग घटकभाय सेहो अबै छथि..)
भागेसर- घटकोभाय आबिये गेलाह।
घटकभाय- चाहमे हमरो अंश छल तँए दुनूक मिलानी भेल। दाना-दानामे खेनिहारक अंश लिखल अछि मुदा.....?
गरीबलाल- घटकभाय, अहाँमे यएह अवगुन अछि जे करैले जाइ छी कोनो काज आ करए लगै छी कोनो काज। जइ काजे एलौं तेकरा पहिने सोझराउ। दोसरो काज करए जाएब।
घटकभाय- अखन तँ सभ जुटबो ने केला अछि तइ बीच काजक चर्च उठाएब नीक हएत।
गरीबलाल- जँ ओ लोकनि नै आबथि तँ छोड़ि देब नीक हएत।
घटकभाय- (मूड़ी डोलबैत) कहलौं तँ बेस बात, मुदा जमात करए करामात।
गरीबलाल- ई तँ ठीके कहलिऐ मुदा जमातसँ पहिने जमात बनैक प्रक्रियापर नजरि दिअए पड़त।
घटकभाय- से कि?
गरीबलाल- जहिना बड़का आम सरही होइत-होइत बीजू बड़बड़िया भऽ जाइए। तहिना बिज्जुओ बनैत-बनैत बड़का फैजली-सजमनिया बनि जाइए। तहिना छी जमात। बनैत-बनैत बनत आ मेटाइत-मेटाइत मेटाएत। समाजिक काज छोड़ि सभ अपना नून-रोटीमे लगि समाजकेँ तहस-नहस कऽ देने अछि तइठाम जमात तकने काज चलत।
घटकभाय- बेस बजलौं गरीबभाय। एकटा बात मन पड़ल। पड़ोसिया गाममे रामरूपक माए मरल। अज-गजबला लोक भोज केलक। गामे-गाम एकघरा-दूघरा जाति। एगारह गाममे तीन सए एगारह पंच भेल।
गरीबलाल- फेर अहाँ बौआए लगलौं।
घटकभाय- बौआइ कहाँ छी। अगिला बात सुनि ने लियौ। गेलौं तमोरिया स्टेशनपर टहलए। रामरूपक बेटाकेँ आ गनोरक बेटाकेँ झगड़ा करैत देखलौं। बच्चा बुझि दुनूकेँ छोड़बैत पुछलिऐ जे किअए झगड़ा करै छह। गनोरक दादीक सराधक भोज सेहो भेल। ओकाइत तँ एकरंगाहे दुनूक। ओ दुइये गामक भोज केने रहए। दुइये गाममे तोहर सए पंच भेल। तहीले झगड़ा।
गरीबलाल- (मुस्की दैत) अनकर झगड़ा अपना कपारपर लऽ लेलौं।
घटकभाय- लेलौं कि लेला जकाँ। बकार बन्न भऽ गेल। भीतरे-भीतर मन खिसिया कऽ कहए जे अनेरे अनकर झगड़ा अपना सिर बेसाहि लेलौं। भने अलकतरा बैसाएल प्लेट-फार्म छइहे दुनू फरिछा लिअ। मुदा सेहो आब केना हएत।
गरीबलाल- फेर केलिऐ कि?
घटकभाय- कहलिऐ जे बौआ ताबे थमहह। कनी बैंकक काज अछि। हूसि जाएत। ई तँ कनी अगातियो-पछाित भऽ सकैए मुदा ओ (बैंक) तँ नै हएत।
गरीबलाल- मानि लेलक दुनू?
घटकभाय- बानरक बटवारा (पनचैती) भऽ गेल। जहिना रोटी बराबर करैमे सौंसे रोटी बानर खा गेल तहिना हुअए लगल।
गरीबलाल- से कि?
घटकभाय- एक्के बात एक गोटे मानि लिअए तँ दोसर तत्-मत् करैत अगर-मगर करैत, कोना-छिन्ना निकालि सवाल उठा दिअए। मुदा हमरो बहाना तँ भरिगर रहए तँए हड़बड़ करैत किछु कहबो करिऐ किछु नहियो कहिऐ।
गरीबलाल- दुनूक नजरि केहन रहए?
घटकभाय- दुनूक नजरि जते चढ़ल बुझि पड़ै ओतबे उतड़लो। तइसँ शंका हुअए जे परोछ भेलापर कहीं फेर ने फँसि जाए। फेर हुअए जे पनचैती भेने सोलहो आना तँ नहिये फरिआएत। ओ जँ फरिआएत तँ अपने दुनूसँ।
गरीबलाल- जे नीक होइत से ने किरतौं।
घटकभाय- जाबत बरतन तावत बरतन।
गरीबलाल- से कि?
घटकभाय- जाधरि धोती वा साड़ी सीवियो कऽ काज चलैए ताधरि एकटा समस्या (धोती कीनैक) तँ हटल रहैए।
गरीबलाल- मुदा धोतीक जरूरत तँ सबदिना छी, कते दिन टारल जा सकैए।
घटकभाय- हँ, से तँ छी। मुदा कोनो काजो करैक (धोतियो किनैक) तँ अनुकूल समए होइत अछि। अच्छा छोड़ू ऐ गपकेँ। ओ सभ जँ नहियो एला तँ कि हेतइ। नै पान तँ पानक डंटियेसँ तँ काज चलिये जाइ छै। घुमा-फिरा कऽ सभ तँ छीहे।
गरीबलाल- हँ, से तँ छी मुदा दाउ-गीरकेँ कोनो गर भेटक चाही।
घटकभाय- से कि कोनो तेहन काज छी। दुइये परिवारक काज छी जँ दुनू राजी-खुशी सहमत भऽ करथि तँ तेसरकेँ कि चलत।
भागेसर- हमरो समए बहुत लगि गेल। एक घंटाक काजमे जे दिनक दिन लगा देब सेहो नीक नै। तहूमे काजक दौर छी सइयो रंगक जोगार-पाती करए पड़त। जँ एहिना समए लगैत गेल तखन बान्हल दिन (िनर्धारित समए) मे काज केना हएत?
गरीबलाल- हँ, शुरूहे लग्नमे काज हेबाक चाही चिक्कन-चुनमुन तँ पछातियो भऽ सकै छै। ओना अपनो चलैत-चलैत चिक्कन भऽ जाइए।
बालगोविन्द- घटकभाय, जखन एते गप भइये गेल तखन एक संझू बरियाती रहता कि दू संझू आकि तीन संझू।
घटकभाय- (मूड़ी डोलबैत) हमर नजरिये नै ओम्हर गेल छल मुदा इहो तँ दमगरे सवाल अछि।
राधेश्याम- जखन सगतरि सभठाम एक संझू भऽ गेल तखन दू-संझू तीन संझू अनेरे चलाएब छी।
घटकभाय- बौआ कहलह तँ बड़ सुन्नर बात मुदा तोही कहअ जे जखन बरियाती पहुँचैए तखन शर्बत ठंढ़ा-गरम, चाह-पान, सिगरेट गुटका चलैए। तइपर सँ पतोरा बान्हल जलपान, तइपर सँ पलाउओ आ भातो, पूड़िओ आ कचौड़ियो, तइपर सँ रंग-विरंगक तरकारियो आ अचारो, तइपर सँ मिठाइयो आ माछो-मासु, तइपर दहियो, सकड़ौड़िओ आ पनीरो चलैए।
राधेश्याम- किअए एते जोड़बै छी?
घटकभाय- जोड़बै कहाँ छिअह। जे चलैए से कहै छिअह। आब तोहीं कहह जे एक दिनक खेनाइ एते भेल?
राधेश्याम- नै कोना भेल? कियो कि मोटरी बान्हि घरपर लऽ जाइ छथि आकि पेटेमे दइ छथिन।
घटकभाय- दइ तँ छथिन पेटेमे मुदा जँ सभ दिन एहिना देथिन तँ कोरोओ-बत्ती घरमे रहतनि आकि ओहो पेटेमे चलि जेतनि। नै जँ एहने हाथी सन सभ भऽ जाए तँ हरबहना बड़द कतऽ सँ आनब। हाथीसँ बड़ काज लेब तँ देह-हाथ डोलबैत सवारी करब।
गरीबलाल- (मुस्कुराइत) सवारियो तँ जरूरिये अछि?
घटकभाय- (खिसिया कऽ मुदा हँसैत..) सवारियो नीक लगै छै समैये पाबि कऽ। भरि दिन जँ खलासी-डरेबर जकाँ सवारिये कसने रही तँ डरेबरे-खलासी हएब कि यात्रा केनिहार यात्री।
गरीबलाल- कते दूर यात्रा करैक अछि जे लोक यात्री बनि चलत। ‘मियाँ दौर मसजित।’
बालगोविन्द- ‘गरीबलाल अहाँकेँ कचकचबै छथि घटकभाय। अहूँ तेहने छी जे सभ गपकेँ धइये लइ छिऐ। जइ काजे सभ एकत्रित भेलौं तकरा आगू बढ़ाउ।
घटकभाय- (सह पाबि..) कतबो गरीबलाल कचकचेता तइसँ कि हम कब-कबा जाएब। गरीबलाल एक घाटक पानिक सुआद बुझै छथि। हमरा जकाँ सत्तरह घाटक सुआद थोड़े बुझथिन।
राधेश्याम- एक संझू नीक कि दू संझू आकि ओइसँ बेसी।
घटकभाय- बौआ, संझूकेँ दिना बना दहक। एक दिना कि दू दिना िक तीन दिना। जँ तीन दिना भेल तँ बहत्तरि घंटाक चक्र भेल। चौवीस घंटाक दिन होइए तँ एक चक्रमे अनेक अछि। किछु छोड़ि किछु जोड़ि आ किछु सुधारि एक चक्रमे आनल जा सकैए।
गरीबलाल- आब कि पहिलुका जकाँ लोककेँ ओते पलखति छै जे पएरे बत्तीस-बत्तीस कोस भोज खाइले जाइत। एक दिना बढ़ियाँ।
घटकभाय- गरीब लाल, साँपोसँ टेढ़-बौकली लोकक चालि छै।
गरीबलाल- से कि?
घटकभाय- एक दिनोकेँ एक रौतुक बना देलक।
गरीबलाल- चौबीस घंटाकेँ बारहमे बाँटल जा सकैए कि ने?
घटकभाय- बँटैक तराजुए ढील-ढिलाह अछि। कखनो कऽ डोरी ओझरा जाइ छै तँ बेसिये जोखा जाइ छै आकि कम्मे जोखाइ छै।
गरीबलाल- से कि?
घटकभाय- एक तँ भगवानेक काज आ बोलमे अन्तर छन्हि दोसर मनुख तँ आरो पजिया कऽ लिड़ी-बीड़ी करैए।
गरीबलाल- से कि?
घटकभाय- कनी नजरि उठा कऽ देखबै तँ बुझि पड़त जे कोनो मासक दिन नमहर भऽ जाइए आ कोनो मासक राति। तखन केना अधा-अधीमे बँटबै।
गरीबलाल- एकरा छोड़ू। दोसरपर आउ।
घटकभाय- (मुँह बिजकबैत..) मनुख तँ मनुखे छी। एतबो होश नै जे रौतुका यज्ञ संध्याक गीतसँ शुरू होइत अछि आ दिनुका परातीसँ। से होइए कि से तजबीज केलिऐहेँ?
गरीबलाल- नै?
घटकभाय- तेज सवारी भेने तीन कोसक बरियाती तीन बजे भोरमे पहुँचैए। आब अहीं कहू जे पराती बेरमे संध्या होइ। तइपर सँ दिनका यज्ञ मानबै आकि रौतुक।
गरीबलाल- एहन जंगल-पहाड़ काटि सड़क बनाओल हएत।
घटकभाय- (मुस्की दैत) नै किअए हएत। अनजान-सुनजान महाकल्याण। जे नीक बुझिमे आओत सएह ने नीक भेल। तहूमे असगर-दुसगरमे गड़बड़ाइयो सकैए मुदा पाँच गोटे बैस जँ विचार करब तँ कनी-मनी झूस-झास भऽ सकैए।
राधेश्याम- जँ शुभ लग्नमे िवयाह नै हएत तँ बरियाती सभ मािर खेता।
घटकभाय- जहिना टायरगाड़ीक बड़दकेँ आनो-आनो गामक खच्चा-खुच्ची आ बान्ह-सड़क टपैक भाँज बुझल रहै छै तहिना ने छी। खाइर शुभ-शुभ कऽ काज सम्पन्न हुअए।
गरीबलाल- घटकभाय, अपना सभ समाज छी किने? समाजिक बंधनमे बान्हि जिनगीक अंग छी। मुदा परिवारक काजक भार तँ परिवारेपर रहतनि।
घटकभाय- रहबे करतनि किने। समाज परिवारक बीच जे संबंध छै तेकरे पहरूदार छी किने? नीक करता नीक कहबनि अधला कऽ अधलो कहबनि आ सजाएओ देबनि।
बालगोविन्द- (मुस्कुराइत) जहिना अखन धरि सभ काज शुभ-शुभ कऽ चलि रहल अछि तहिना आगूओ चलैत रहए।
भागेसर- नचारिये वियाह कऽ रहल छी। तँए......?
घटकभाय- कि नचारिये?
मनोहर- कते दिनसँ पत्नी बीमार चलि रहल छथि। बाहरक काज अपने सम्हारि लइ छी, मुदा घर-अंगनाक काज राइ-छित्ती होइए।
घटकभाय- बालगोविन्द, जहिना संगीक काज नीक-अधलामे संग देब छी तहिना ने सरो-समाज आ कुटुमो-परिवार छी। जते जल्दी सम्हारि सकी ओते जल्दी सम्हारि लिअ। आठम दिन सेहो नीक लग्न अछि। जँ सम्हरि जाए तँ सम्हारि लिअ।
बालगोविन्द- बड़वढ़िया।
पटाक्षेप
नवम दृश्य
(राजदेवक दरबज्जा। नजरि निच्चा केने कुरसीपर राजदेव मने-मन किछु सोचबो करैत आ कखनो कऽ दहिना हाथ उठा आंगुरपर हिसाब जोड़ए लगैत। बजैत तँ नै मुदा ठोर पटपटबैत।)
सुनीता- बिनु दूधेक चाह छी। कहुना कऽ पीब लिअ।
राजदेव- दूध नै छेहल।
सुनीता- अमरस्साक समए छी, फाटि गेल।
राजदेव- दूध फाटि गेलह तँ नेबोए दऽ देलहक ने। अच्छा जे छह सएह नीक। एते दिन चाह पेय छल आब तँ अम्मल बनि गेल। नै पीने मने ढील भऽ जाइये। उत्तरवारि टोल दिससँ जनीजातिक जेर अबैत देखने छेलिऐ। से कतऽ सँ अबै छलइ?
सुनीता- हकार पुरि कऽ।
राजदेव- कथीक हकार। ककरा अइठीनसँ।
सुनीता- भागेसर कक्काक बेटाक वियाह भेलनि, वएह कनियाँ देख-देख अबै छलइ।
राजदेव- वियाहै जोकर बेटा कहाँ भेल छलै?
सुनीता- वियाहोक कोनो सीमा-नाङरि छै। देखबे करै छिऐ जे कोनो-कोनो जाति छेटगर बेटा-बेटी भेने वियाह करैए आ कोनो-कोनो जाति बच्चेमे कऽ लइए।
राजदेव- हँ, से तँ देखै छिऐ। तोहू तँ आब बच्चा नहिये छह, कओलेजमे पढ़ै छह। दुनूमे नीक कोन?
सुनीता- दुनू नीको अछि आ अधलो।
राजदेव- से केना?
सुनीता- जुआन बेटा-बेटीक वियाह ऐ दुआरे नीक अछि जे अपन भार उठा चलै जोकर भेल रहैए।
राजदेव- हँ, से तँ रहैए। फेर अधला केना भेल?
सुनीता- जतेक जे भार उठा कऽ चलैक चाही से नै चलैए, तँए अधला।
राजदेव- तू तँ िकताबक भाषामे बुझबै छह। कनी विलगा कऽ कहह।
सुनीता- एक ध्रुवीय (एक सीमा) देश-दुनियाँक अछि आ दोसर ध्रुवीय (दोसर सीमा) परिवार आ व्यक्तिक। आजुक जे परिवारक रूप-रेखा बनि रहल अछि ओइमे सभ छुटि रहल अछि। सिकुड़ि कऽ लोक तते छोट परिवार बनबए चाहैए जे मनुष्यक संबंधे चौराहापर ढेड़िआएल गाड़ी-सवाड़ी जकाँ भेल जा रहल अछि।
राजदेव- फेर िकताबेक भाषा बजए लगलह।
सुनीता- नै। परिवारमे मनुष्यक जन्म होइत अछि। माए-बाप जन्मदाता होइत छथिन। मुदा भऽ कि रहल अछि जे या तँ विचारे वा लड़ि-झगड़ि माए-बाप छोड़ि परिवार फुटा लइए। जहिना सोनक सूत मिला कऽ सक्कत जौड़ बनि जाइए। जइसँ भारी-भारी बोझ बान्हल जा सकैए ओइ जौड़केँ उधारि वा तोड़ि एक-एक रेशाकेँ बेड़वितहि एते कमजोर बनि जाइत अछि जे कोनो काजक नै रहैत। तहिना भऽ रहल अछि।
राजदेव- (मूड़ी डोलबैत..) कहै तँ छह ठीके, मुदा.....?
सुनीता- मुदा-तुदा किछु ने। सोझ रास्ता बनि रहल अछि। जे बेटा-माए-बाप, परिवार छोड़ि सकैए ओ समाज, देश-दुनियाँकेँ कोना पकड़ि सकैए। जँ से तँ मातृभक्त, पितृभक्त, समाजभक्त, देशभक्त बनि कोना सकैए।
राजदेव- (मूड़ियो डोलबैत आ कनडेरिये आँखिये सुनीताकेँ देखबो करैत..) ठीके कहै छह। अच्छा बाल-विवाहकेँ केना-नीक आ केना अधला कहै छहक।
सुनीता- बाल-विवाहक परिस्थिति भिन्न अछि। जे परिवार सम्पन्नताक (आर्थिक) दृष्टिये जते अगुआएल अछि ओ ओते बाल-विवाहसँ दूरो अछि। मुदा जे परिवार जते पछुआएल (आर्थिक दृष्टिये) अछि ओइमे ओते बेसी छै।
राजदेव- किअए?
सुनीता- अपना सबहक समाजो, परिवारो आ व्यक्तियो वैदिक रीति-नीतिसँ बनि चलैत आबि रहल अछि। जइमे ढेरो दाउ-घाउक संग हवो-विहाड़ि लगैत आएल अछि। बालो-विवाहक पाछु सएह कारण अछि।
राजदेव- कनी बिलगा कऽ कहह।
सुनीता- जिनगीक उताड़-चढ़ाव होइत छै। जना बच्चाक सेवा माए-बाप करैत अछि तखन ओ अपन जिनगी सम्हारै जोकर नै रहैए। जखन बेटा-बेटी जुआन (कमाइ-खटाइबला) होइत अछि आ माए-बापक लौटानी अबैत अछि। तखन सहाराक जरूरत होइ छै। जहिना दुनियाँमे मनुष्यकेँ एबाकाल (बच्चा) दोसराक सहाराक जरूरत होइत अछि तहिना जेबोकाल होइत अछि।
राजदेव- (मूड़ी डोलबैत..) हँ, से तँ होइते अछि। हमहीं छी जँ तू सभ नै देखबह तँ कतेक दिन जीब।
सुनीता- वएह माए-बाप अपन आचार-विचार निमाहैत बेटा-बेटीकेँ दोसराक अंग (संगी) लगा अपन भार ढील कऽ लैत अपनाकेँ बेटा-बेटीक रीनसँ उरीन हुअए चाहैत।
राजदेव- एते धड़फड़ा कऽ किअए उरीन हुअए चाहैत। जखन कि दुनू अखन आश्रिते अछि।
सुनीता- जइठाम जिनगी जीवैक ने साधन अछि आ ने खोज-खबड़ि लेनिहार तइठाम लोक अपनापर कते भरोस करत। कियो सुखे (सुख रोग भेने) उपास कऽ देवमंदिरमे पूजा करए जाइए तँ कियो दुखे (नइ रहने) साँझक-साँझ, दिनक-दिन उपास करैत भोलाबाबाकेँ नचारी सुनबैए। खाइर छोड़ू। अपन दुख-धंधा सोचू।
राजदेव- तेहू दुनू माए-धी जा कऽ देख अबिहह।
सुनीता- हकार अबैत तब ने जइतौं। बिनु हकारे.....। जँ पुछि दिअए जे.....?
(कृष्णानन्दक प्रवेश)
कृष्णानन्द- कक्का, नजरि उतड़ल (सोगाएल) बुझि पड़ैए। किछु होइए कि?
राजदेव- बौआ कृष्ण, ककरा कहबै के सुनत। अपने दुनू गोटेक परिवार अछि, सात पुस्तसँ अपेछा अछि। मन रखैबला एकोटा बात नै भेल। तोरा देख कऽ खुशी होइए। मुदा.....।
कृष्णानन्द- निराश जकाँ किअए बजै छी कक्का?
राजदेव- तीर जकाँ पोतीक बात छेदने अछि। मन कलपि रहल अछि जे आब किछु करै जोकर नै रहलौं आ जखन करैबला छलौं तखन....।
कृष्णानन्द- कि तखन?
राजदेव- कि कहबह। एक्के बेर कहि दइ छिअ जे अपन गाछी भुताहि भऽ गेल।
कृष्णानन्द- कनी खोलि कऽ कहबै तखन ने बुझबै। चिक्कारी तँ कबिकाठीक भाषा छिऐ। भलहिं उनटे किअए ने बुझिऐ।
राजदेव- भागेसर बेटाक िवयाह केलक। एते दिन कनियाँ देखैक हकार अांगनमे अबैत छलनि। जाइत छलीह आ असीरवादो दैत छेलखिन। कियो तँ अपना भाग-तकदीरे जन्म लइए। तइ सूत्रे सामाजिक संबंध तँ छल। मुदा अनका-अनका हकार देलक आ......।
कृष्णानन्द- कक्का, भागेसर भैया कोनो सुखे बेटाक वियाह केलनि।
राजदेव- (धड़फड़ा कऽ) तँ......?
कृष्णान्नद- कते माससँ भौजी ओछाइन पकड़ने छथिन। भानसो-भातमे दिकते होइ छन्हि। ई तँ ओही बेचाराकेँ धन्यवाद दियनि जे भौजीकेँ जिआ कऽ रखने छथि। हमरा अहाँ घरमे होइत तँ टाँग पकड़ि फेक गंगा लाभ कऽ अबितौं।
राजदेव- जखन समाजसँ टुटि रहल छी तखन.....।
(एकाएक चुप भऽ जाइत। आँखि उठा कखनो सुनीतापर तँ कखनो कृष्णानन्दपर दैत। तहिना कृष्णानन्दो कखनो राजदेवपर तँ कखनो सुनीतापर आ कखनो मेघ दिस ऊपर देखैत तँ कखनो निच्चा दिस। तहिना सुनीताे।)
सुनीता- बाबा, बाबा!!
(आँखि उठा राजदेव सुनीतापर दऽ पुन: निच्चा धरती दिस देखए लगैत। दुनू हाथसँ आँखि पोछैत, भड़िआएल अवाजमे..)
राजदेव- बुच्ची सुनीता आ बौआ कृष्ण, दुखे कि सुखे जते दिनक दाना-पानी लिखल अछि से तँ भोगबे करब। मुदा.....।
सुनीता- मुदा कि?
राजदेव- आन कियो किअए मन राखत मुदा तूँ दुनू गोरे तँ लगक भेलह। तँए किछु कहि दइ छिअह।
कृष्णानन्द- बितलेहे जिनगीक कथा ने इतिहास छी।
राजदेव- हमरा जकाँ बाबाकेँ एते अज-गज नै रहनि। मुदा समाजमे एहेन प्रतिष्ठा बनल रहनि जे जहिना कोनो पाखरि वा इनारक पानि सटल रहैए, तहिना रहनि। खेत-पथार, बाड़ी-झाड़ीसँ काज कऽ आबथि आ लोटा लेने मैदान दिस विदा होथि। जइठाम जेत्तै कियो भेट जान्हि तेत्तै गामक चर्च उठा बैस जािथ। जना सौंसे गाम इस्कूले होइ।
सुनीता- की चर्च उठबथिहिन।
राजदेव- से कि बुझल अछि। ताबे हमर उदइयो-पड़लए भेल रहए कि नहि।
सुनीता- तखन कना बुझलिऐ।
राजदेव- साँझू पहरकेँ दादी अंगनामे बिछान बिछा दइ छेलखिन आ बाबाक खिस्सा कहै छेलखिन। एक दिन पूछि देलियनि जे बाबी बाबासँ झगड़ो करियनि?
सुनीता- की कहलनि?
राजदेव- पहिने तँ भभा कऽ हँसली। मुदा जहिना तेल वा दूध हरा जाइ छै जेकरा आंगुर-तरहस्थीसँ हिलोरि-हिलोरि बासनमे राखल जाइए। तहिना दादियो हँसीकेँ िहलोरि-हिलोरि राखि बजलीह।
सुनीता- बजैकाल मन केहन रहनि?
राजदेव- जहिना सूर्यास्तक समए सुर्जक किरिण (रश्मि) बोरिया-विस्तर समेटि-समेटि समटाइत तहिना दादीक दुनियाँ पाछू छुटि गेलनि। बजलीह- बुरहामे आदति रहनि जे साँझू पहरकेँ जे लोटा लऽ कऽ विदा होथि तँ कखन धुरि कऽ अवितथि तेकर ठीक नै।
सुनीता- कतऽ चलि जाइ छेलखिन?
राजदेव- कतऽ जाइ छेलखिन से दादियोकेँ नै ने कहथिन।
सुनीता- तँए ने झगड़ा होन्हि?
कृष्णानन्द- नै, दुनू कारण भऽ सकैए।
सुनीता- कि?
कृष्णानन्द- जँ चारि घंटा बोनाएल रहलापर जते काज भेल ओते जँ परिवारोमे दोहराओल जाए तँ ओतेक समए आरो चाही। जँ ओते आरो समए लगाओल जाए तँ परिवारक काज आ व्यक्तिगत जीवन (खेनाइ-सुनताइ) प्रभावित हएत।
सुनीता- तखन तँ समाजोक (काज) बातसँ परिवारक सदस्य हटल रहत?
कृष्णानन्द- एक अर्थमे हटल रहबो नीक, आ दोसरमे नहियो। व्यक्ति आ समाजक बीच परिवारक सीमा अछि। जहिना लोकक समूह परिवार होइत तहिना परिवारक समूह समाज होइत।
सुनीता- हँ, से तँ होइत, मुदा एक दोसरमे सटल केना रहत। आकि नल-नीलक पाथर जकाँ भसिआइत रहत।
कृष्णानन्द- जँ भसिआइत रहत तँ अनेरे हवा-विहाड़िमे एक-दोसरसँ टकरा-टकरा, फुटि-फुटि पानिमे डूबैत रहत।
सुनीता- तखन, कि उपाय छै?
कृष्णानन्द- यएह तँ प्रकृतक अद्भुत खेल अछि। जेतइ दुखक जनम होइत अछि ओतइ सुखोक होइत। सुख-दुख जौंआ सहोदर छी।
सुनीता- नीक जकाँ नै बुझि पाबि रहल छी।
कृष्णानन्द- जहिना धरती अकासकेँ शीतल-गर्म हवा जोड़ि कऽ रखने अछि तहिना मनुष्य-परिवार आ समाजक बीच अछि।
समाप्त
रवि भूषण पाठक
निरालाःदेह विदेह
हिन्दी भाषा आ साहित्य क केन्द्रीयता स्वातंत्रयोत्तर भारतक एकटा महत्वपूर्ण सांस्कृतिक घटना ।एकर मूल कारण राजनीतिक आ वाणिज्यिक रहितहु परिणाम बहुआयामी अछि ।हिंदी साहित्यक आ विशेषतः कविता के सौंदर्यात्मक ,वैचारिक आ शैल्पिक वैविध्य सँ पूर्ण करबा मे कवि निराला क योगदान अप्रतिम ।ने केवल कविता बल्कि ईमानदारी मे सेहो निराला क व्यक्तित्व क चर्चा क सेहो कतिपय आयाम । आधुनिक साहित्यिक व्यक्तित्व मे निराला अग्रणी छथि ,जनिकर व्यक्तित्व आ कृतित्व क हरेक अंश सँ ईमानदारी,रचनात्मकता,आलोचना आ अफवाहक मार्ग प्रशस्त होइत अछि ।निराला काव्य क अनुवादक महत्व विभिन्न प्रसंग आ संदर्भ सँ अछि ।प्राचीन संस्कार आ आधुनिकता क आंदोलनमयी धारा कें आत्मसात करबाक जतेक सामर्थ्य निराला साहित्य मे अछि ,ओतेक अन्यत्र नइ ।दोसर बात ई जे निराला काव्य क माध्यम सँ हिन्दी साहित्य मैथिली आ बांग्ला सँ जुड़ैत अछि ।निराला पर विद्यापति आ रवीन्द्रनाथक प्रभाव अत्यंत स्पष्ट अछि ।हिंदी आलोचक निराला पर विद्यापतिक प्रभाव पर बहुत नइ लिखने छथि ,मुदा ई प्रभाव देखबा क हो तखन ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे‘ क तुलना विद्यापति लिखित वसंत गीत ‘नव नव विकसित फूल ‘सँ करू ।
शब्दार्थचिंतामणिकार अनुवादक दू टा अर्थ लिखैत छथिन्ह ।प्रथम ‘प्राप्तस्य पुनःकथने ’आ दोसर ‘ज्ञातार्थस्य प्रतिपादने ‘ एकर अर्थ भेल पहिले कहल गेल कथन के फेर सँ कहनए आ ज्ञात अर्थ के प्रतिपादित केनए ।प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक रोमन याकोबसन एकरा ‘एक भाषा के शाब्दिक प्रतीक के अन्य भाषा के शाब्दिक प्रतीक के द्वारा व्याख्या‘ मानैत छथिन्ह ।नाइडा आ टेबर कनेक विस्तृत करैत कहैत छथिन्ह कि ई मूल भाषा क संदेशक समतूल्य संदेश के लक्ष्य भाषा मे प्रस्तुत करबा क क्रिया अछि जाहि मे संदेशक सममूल्यता पहिले अर्थ आ फेर शैली क दृष्टिकोण सँ निकटतम आ स्वाभाविक होइत अछि ।
भाषिक प्रक्रिया होएबा क कारणें अनुवाद क सम्बन्ध भाषेटा सँ नइ बल्कि भाषाविज्ञानो सँ अछि ।ध्वनि ,शब्द,रूप,वाक्य आदि विभिन्न स्तर मिलि के अर्थक संसार रचैत अछि ,ताहि दुआरे ऐ सब स्तर क प्रति सजगता अनिवार्य अछि ।प्रत्येक भाषाक अपन विशिष्ट ध्वनि ,शब्द भंडार आ रूप व्यवस्था होइत अछि ,ताहि दुआरे ऐ स्तर मे निहित अंतर के कारणें समान लागए वला प्रसंग सेहो वास्तविक अर्थ मे अर्थान्तर क संभावना सँ युक्त होइत अछि ।
ऐ ठाम ई तथ्य उल्लेखनीय अछि कि मैथिली आ खड़ीबोली हिन्दी कोनो दू ध्रुवीय भाषा नइ अछि ।दूनू दू टा प्रादेशिक अपभ्रंशक संतान आ ताहि दुआरे संस्कृत ,पालि आ प्राकृतिक विरासत पर समान रूप सँ अधिकारिणी अछि ।ध्वनि ,शब्द आ रूप क स्तर पर अनगिन साम्य अछि ।संस्कृत क रात्रि मैथिलीए टा मे नइ अवधी,ब्रजभाषा,भोजपुरी सहित कतेको उत्तर भारतीय भाषा मे ‘राति‘ अछि आ ‘दिन‘ त‘ सर्वत्र ‘दिन‘े अछि ।तहिना भोर आ दुपहर अपन विभिन्न ध्वनिभेद क संग विद्यमान अछि ।उदाहरण केवल एक या दू शब्दक नइ अछि ,सुधी पाठक ऐ उभयनिष्ठ आधारक जटिल उपस्थिति सँ परिचित छथि ।
ई उभयनिष्ठ आधार अनुवाद मे सुविधा लऽ के आबैत अछि,मुदा ऐ ठाम आलस्य आ अनुकरण क खतरा मौलिक अनुवाद के समक्ष चुनौती दैत अछि ।सबसँ बेशी शब्द तद्भव के आ ओहि पर सब भाषा क तेहनें अधिकार तखन ई नबका शब्द कत‘ सँ आनी ,देशज शब्दक प्रयोग प्रचलन आ स्वीकृति क आधारे पर स्वीकार्य होयत ।मिथिला क व्यापक भूभाग मे पजेबा सँ बेशी स्वीकृत शब्द ईंटा अछि तखन ककर व्यवहार करी आ ककर नइ करी ?
वैज्ञानिक तथ्य वा गद्यात्मक सूचना क प्रस्थापन अभिधात्मक भाषा मे सुगमता मे संभव अछि ,मुदा भावप्रधान रचना मे अर्थ क अनेक स्तर आ कथनक बहुविधि व्यंजना होइछ,परिणामतः प्रत्यक्ष भाषिक प्रतिस्थापन संभव नइ, ताहि दुआरे अनुवादक के परकाय प्रवेश करऽ पड़ैत अछि ।अनुवादक मूल कृति आ रचनाकार क मनोजगत मे घुसि के भाव आ ओकर अर्थच्छाया के समझैत अछि तथा फेर ओइ भाव के यथासंभव लक्ष्यकृति मे अभिव्यक्त करैत अछि ।कलाकृति के एहन समझ आ फेर ओकर कलात्मक संप्रेषण क लेल सर्जनात्मक प्रज्ञा क विद्यमानता अनिवार्य अछि ।ई प्रज्ञा सर्वत्र एकरूप मे उपस्थित नइ अछि ,ई देखबा क अछि तखन उमर खय्याम क रूबाई क अनुवाद क्रमशः फिट्जराल्ड (अंग्रेजी) आ मैथिली शरण गुप्त, बच्चन जी ,केशव प्रसाद पाठक आ सुमित्रा नंदन पंत(सब हिंदी)क अनुवाद मे निहित भावभंगिमा आ गुणवत्ता क अंतर देखि सकैत छी ।गीतांजलि क अनुवाद मैथिली मे सुमन जी केने छथि आ हिंदी मे अज्ञेय आ अन्य कतेको विद्वान मुदा बांग्ला विद्वानजन सुमन जी द्वारा अनुदित ‘अनुगीतांजलि‘ के ह्रदय खोलि के प्रशंसा केने छथि ।
ऐ ठाम हम परकायप्रवेशक वांछित योग्यता क साथ उपस्थित नइ छी ।हम निराला काव्य मे निहित व्यंजना क महान शक्ति के स्वीकार करैत छी आ निराला काव्य मे ,ओकर शब्द आ शब्द योजना मे निहित उदात्त के मानैत छी ।ई उदात्त किछ किछ संस्कृतक तत्सम शब्द,सघन वर्णमैत्री,वर्णक ध्वन्यात्मकता मे निहित अछि ,ताहि दुआरे मैथिली पाठक के हम शब्द आ अर्थक अइ स्वर्गिक संसार सँ वंचित नइ करऽ चाहैत छी ।हम अपन अनुवादक सीमा के सहज स्वीकारैत छी
अनुवादक एकाधिक रूप मे प्रचलित अछि ।शब्दानुवाद(लिटरल) या मूलनिष्ठ अनुवाद सामान्यतः अभिधात्मक होइत अछि ,ऐ अनुवाद मे श्रोत भाषाक प्रत्येक शब्द आ अभिव्यक्ति क प्रतिस्थापन लक्ष्यकृति क शब्दावली,अभिव्यक्ति तथा संरचना मे होइछ ।
भावानुवाद मे मूल भाषा क अभिव्यक्ति क स्थान पर ओइ मे निहित आशय के स्पष्ट कएल जाइत अछि ।ई मूलकृति क ढ़ाँचा सँ स्वतंत्र होइत अछि,ताहि दुआरे लक्ष्यकृति क दृष्टि सँ ई बेशी सहज आ स्वाभाविक होइत अछि ।सुरेन्द्र झा सुमन द्वारा ‘गीतांजलि‘ क अनुवाद ‘अनुगीतांजलि‘ भावानुवादक श्रेष्ठ उदाहरण अछि ।
रूपांतरण कथा साहित्य क क्षेत्र मे लोकप्रिय अछि ।अइ मे अनुवादक मूलकृति क परिवेश ,चरित्र ,आदि के देश-कालानुसार परिवर्तित करैत अछि ।शेक्सपीयर रचित ‘द मर्चेंट ऑफ वेनिस‘ क हिंदी अनुवाद भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ‘दुर्लभ बन्धु‘ नाम सँ केलाह ।एइ मे एंटोनियो क नाम अनंत ,बसानियो क नाम वसंत आ शायलॉक क नाम शैलाक्ष अछि ।घटना वेनिस नगरक स्थान पर काशी(भारत) मे घटैत अछि ।
‘छायानुवाद‘रूपांतरणक एकटा प्रकार अछि ,अइ मे मूलकृति क आधार पर मूल कथ्य के संप्रेषित करबा क लेल स्वतंत्र कृति क निर्माण संपन्न होइत अछि ।अइ मे बिंब विधान ,प्रस्तुतिकरण आदि मूलकृति क प्रतिबिंब होइत अछि ।भगवती चरण वर्मा क उपन्यास चित्रलेखा अनातोले फ्रांस क उपन्यास ‘थाया‘ पर आधारित अछि ।विदेशी फिल्म आ साहित्य क अनधिकृत अनुवाद आ रूपांतरणक लेल अइ विधि क बहुत प्रयोग होइत अछि ।
‘सारानुवाद‘ मे मूलकृति क सार लक्ष्य भाषा मे प्रस्तुत कयल जायत अछि ।संप्रेषण केंद्रित अनुवाद क्लासिकी रचना के बच्चा आ किशोर सब के पढ़बा क लेल रूपांतरण मे सहयोगी होइत अछि ।जेना महाभारत वा रामायण पर आधारित संक्षिप्त कथा ।
‘टीकापरक अनुवाद‘ मे अनुवाद क साथ ओकर व्याख्या रहैत अछि ।गीताप्रेस क किताब मे एहन अनुवाद प्रचूर मात्रा मे उपलब्ध अछि ।किछु दिन पहिले विद्यापति पदावली क किछु पदक अनुवाद यात्री जी द्वारा कयल गेल दिल्ली विश्वविद्यालयक प्रोफेसर प्रभात रंजन जी क ब्लॉग पर उपलब्ध छल ।
अंत मे फेर काव्यानुवाद पर आबी ।कविता क अनुवाद नमहर चुनौती अइ दुआरे छैक कि कविता मात्र शब्दार्थ तक नइ सीमित छैक ।ई शब्द सँ आगू वाक्यगठन,लय,छंद,बिंब,प्रतीक,अलंकारयोजना,शैली आदि क मिल जुलल परिणामी काव्यात्मक पर्यावरण पर आधारित अछि ।ताहि दुआरे दाँते आ सर फिलीप सिडनी सन विद्वान काव्यानुवाद के असंभव मानैत छथिन्ह ।कविता क समग्र प्रभाव वा व्यंग्यार्थ ध्वनि ,लय ,बलाघात आ बिंब योजना के माध्यम सँ अभिव्यक्त होइत अछि ।ताहि दुआरे निराला क शब्द चयन ‘विजन-वन वल्लरी‘‘पुलिन पर प्रियतमा‘मैथिली मे यथावत अछि ।
कविता क दृश्य आ श्रव्य बिंब बहुधा शब्द क नादात्मकता सँ नियंत्रित होइत अछि ।एहिना शब्दालंकार आ अर्थालंकार क विकल्प लक्ष्यभाषा मे सृजित कएनए कठिन अछि ।काव्यानुवाद क सबसँ नमहर समस्या छंद आ लय अछि ।मूल रचना क लेल प्रभावी छंद आ लय के खोजनए अनुवादक लेल सबसँ पैघ समस्या अछि ।यदि कविता क अनुवाद गद्य मे आबैत अछि तखन अनुवाद मात्र शब्दार्थ तक सीमित रहत आ अइ मे कविता क पूरा अर्थ निकलि के बाहर नइ आयत ।अनुवाद सम्बन्धी अइ अवधारणा क लेल हम सर्वश्री/सुश्री रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ,कृष्ण कुमार गोस्वामी ,कुसुम बांठिया ,गजेन्द्र ठाकुर ,रवीन्द्र कुमार दास जी क आभारी छी ।मैथिलीःदेह-विदेह क अइ पहिल किश्त मे निराला जी क दू टा लोकप्रिय कविता क अनुवाद प्रस्तुत क‘ रहल छी ।सहज सँ जटिल आ जटिल सँ जटिलतर दिश
‘‘क्रम क्रम सँ भेल पार राघवक पंचदिवस
चक्र सँ चक्र चढ़ि गेेल भेल उर्ध्व निरलस ‘‘(रामक शक्ति पूजा)
जूनि बान्ह नाव ऐ ठाम बन्धु
(बाँधो न नाव इस ठाँव,बन्धु!)
जूनि बान्ह नाव ऐ ठाम बन्ध
पूछतओ पूरा गाम बन्धु
ई घाट छलए जइ पर हँसि के
ओ रहए नहाबति रे! धसि के
रहि जाइत छलए आँखि फसि के
कांपैत रहए दूनू पैर बन्धु !
ओ हँसी बहुत किछु कहए छलए
तैयो अपने मे रहए छलए
सबके सुनैत सबके सहैत
दैत ओ सबके दाँव बन्धु ।
हमरा सँ किनारा केने जा रहल छथि
(किनारा वह हमसे किये जा रहे हैं ।)
हमरा सँ किनारा केने जा रहल छथि
दिखाबे टा दर्शन देेेने जा रहल छथि
जुड़ल छल सुहागिन केर मोती क दाना
ओएह सूत तोड़ने लेने जा रहल छथि
छिपल चोट के बात पूछलउं त बजलीह
निराशा क डोरी सीने जा रहल छथि
ई दुनिया के चक्कर मे केहन अन्हर
मरल जा रहल छथि जियल जा रहल छथि
खुलल भेद एहि ठां ,जे विजयी कहायल।
ओ खूं दोसरा के ,पीने जा रहल छथि ।
डॉ रमानन्द झा "रमण" मिथिला भाषाक अध्ययन आ डॉ. ग्रिअर्सन कृत मैथिली व्याकरण
मैथिलीमे साहित्य-सर्जनाक परम्परा सुदीर्घ एवं अविच्छिन्न अछि। एक भाषाक रूपमे मैथिलीक अध्ययनक इतिहास सुदीर्घ नहि अछि। सन् 1801 ई. मे एच.टी. कोलब्रृूक भाषाक रूपमे ‘मैथिली’ शब्दक पहिले पहिल प्रयोग कएलनि। संगहि, ओ इहो लिखल जे व्यापक क्षेत्रामे मैथिलीक प्रयोग नहि अछि। कोनो महान कवि नहि भेलाह अछि। एहिसँ बेसी लिखब अनावश्यक अछि। जॉन बिम्स2(1872 ई.) एवं हॉर्नल3े3 (1880 ई.) भाषाक लेल मैथिली शब्दक प्रयोग करैत, हिन्दीक एक भाषिकाक रूपमे मैथिलीक विवेचन कएलनि। सर जॉर्ज कैम्पबेल, सन् 1874 ई. मे भारतक विभिन्न भाषा कुलक नमूनाक संकलन करैत बिहारक भाषा (Dialects of Behar)समूहमे Vernacular of Patna, vernacular of Gya,vernacular of Champaran, vernacular of West Tirhoot, vernacular of East Tirhoot, vernacular of West Purnea (Hindee), तथा vernacular of East Purnea (Bengali) 4 राखल। संकलित प्रत्येक शब्द एवं मोहाबराक अङरेजी पर्याय देखि प्रतीत होइछ जे हुनक लक्ष्य भारतक भाषाक अध्ययन नहि छल। अपितु, स्थानीय भाषासँ अपरिचित अङरेज पदाधिकारी सभके ँ दैनिक जीवनमे सुविधाक हेतु विभिन्न क्षेत्राीय भाषाक शब्द आ’ मोहाबरासँ
परिचय एवं अभ्यास कराएब छलनि। अतएव, कैम्पबेलक संकलनके ँभाषाक अध्ययन मानब उचित नहि होएत। बेसीसँ बेसी नमूना संकलन कहि सकैत छी। एस.एच. केलौग5 तिरहुतक भाषाक उल्लेख पूर्वी हिन्दीक एक बोलीक रूपमे प्रसंगात कएने छथि। ओ अपन व्याकरणमे मैथिलीक क्रियापद-रूपावली विस्तारपूर्वक देखऔने छथि।
हॉर्नले ई अनुभव कएल जे पश्चिमी एवं पूर्वी हिन्दी एक नहि थिक, दूनूमे पर्याप्त अन्तर छकै । हानॅ र्ल े पर्वू ी हिन्दीक आठ टा भाषिका मानल जाहिम े सातम स्थानपर मैि थली6 अछि। हुनक स्पष्ट मत अछि जे पूर्वी हिन्दीक अपेक्षा मैथिलीमे अपन पड़ोसी बंगला एवं नेपालीसँ बेसी समानता छैक, भूतकालक निर्माणमे मैथिली विशेषतः बंगलाक अत्यन्त सन्निकट अछि।7 एहि प्रकारसँ कहि सकैत छी जे मैथिली भाषाक अध्ययन कएनिहार पहिल व्यक्ति जॉन बिम्स आ’ दोसर हॉर्नले भेलाह अछि। जॉर्ज अब्राहम ग्रिअर्सन एक स्वतन्त्रा भाषाक रूपमे मैथिलीक विस्तृत अध्ययन एवं स्थापना कएलनि। मैथिलीक व्याकरण लिखल। एहिमे हिनका जॉन बिम्सक क्रियारूपाली पर्याप्त सहायक भेल छनि।मैथिलीमे साहित्य-सर्जनाक परम्परा सुदीर्घ एवं अविच्छिन्न रहितहु तिरहुतक भाषा, मिथिला भाषा वा मैथिलीक अध्ययन नहि होएबाक की कारण छल होएत, ओहि पर दृष्टिपात करबासँ पूर्व किछु अन्य भाषाक भेल अध्ययनक स्थिति पर नजरि देब अपेक्षित अछि। ए. एच. सेसीक8 अनुसार आधुनिक भारतीय आर्यभाषाक व्याकरण 1872 ई., बंगला भाषाक व्याकरण 1862 ई, ओड़िआ भाषाक व्याकरण 1831 ई., सिन्धी भाषाक व्याकरण 1872 ई., पंजाबी भाषाक व्याकरण 1851 ई., गुजरातीक व्याकरण 1867 ई., मराठीक व्याकरण 1868 ई. तथा हिन्दुस्तानीक व्याकरण 1845 ई. मे लिखल गेल। विश्वम्भर विद्यासागर 1841 ई. मे ओड़ियामे ओड़ियाक पहिल व्याकरण प्रकाशित कएल। BANGLAPEDIA: Grammar9 9 क अनुसार बंगलाक पहिल व्याकरण पुर्तगीज मिशनरी द्वारा पुर्तगालीमे1734 एवं 1742क बीच लिखाएल तथा लिबसनसँ प्रकाशित भेल। बंगलामे पहिल व्याकरण कलकत्ता स्कूल सोसाइटीक सदस्य राधाकान्त देव लिखल जकर दोसर संस्करण 1821 ई. मे भेलैक। असमीक पहिल व्याकरण मिशनरी नाथ ब्राउन 1848 ई. मे प्रकाशित कएलनि। पछाति असमी भाषा पर हुनक विस्तृत पोथी आएल। असमी भाषी पर राजकाजक भाषाक रूपमे थोपल गेल बंगलाक स्थान पर असमीके ँ कामकाजक भाषा होएबामे मिशनरी नाथ ब्राउनक उक्त पोथी बहुत सहायक भेल छलैक। भाषाक लेल ‘नेपाली’ शब्दक प्रयोग पहिले पहिल आयटोन ; (Ayton) 1820 ई. मे कएलनि आ’ । A Grammar of the Nepali Language लिखल। एहि परिप्रेक्षमे मैथिलीक व्याकरण-लेखनक इतिहास पर दृष्टिपात कएल जाए। यद्यपि मैथिलीक सान्दर्भिक चर्चा किछु-किछु रूपसँ पहिनहिसँ होइत छल, किन्तु एक स्वतन्त्रा भाषाक रूपमे मैथिलीक पहिल व्याकरण ; (An Introduction To The Maithili Dialect Of The Bihari Language As Spoken In North Bihar) एक विदेशी विद्वान जॉर्ज अब्राहम ग्रिअर्सन 1881 ई. मे लिखलनि। हली झा द्वारा मैथिली व्याकरण लिखल जएबाक जे उल्लेख अम्बिकादत्त व्यास कएने छथि, तकर कोनहु पता नहि अछि। मैथिली व्याकरण सम्बन्धी छिट-फुट लेख ‘मिथिलामोद’क किछु आरम्भिक अंकमे भेटैत अछि। पण्डित जीवनाथ रायक लिखल ‘मैथिलीक स्वरूप ओ लेख शैली’ ‘मिथिला मिहिर’ मे प्रकाशित होइत छल10 जे पछाति अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद द्वारा पुस्तकाकार भेल। मैथिलीक पहिल व्याकरण टंकनाथ मैथिली व्याख्याता गंगापति सिंह ‘बाल व्याकरण’ लिखि 1922 ई. मे प्रकाशित कएल जकर दोसर संस्करण मैथिली साहित्य परिषद द्वारा 1937 ई. मे भेलैक। एकर बाद हीरालाल झा ‘हेम’ लिखित ‘मैथिली भाषा व्याकरण भास्कर’ लिखल जएबाक उल्लेख भेटैत अछि जकर प्रकाशन 1926 ई. मे श्रीरमेश्वर प्रेस, दरभंगासँ भेल। एहि इतिवृत्तिसँ स्पष्ट अछि जे भारोपीय आर्यभाषाक मागधी अपभ्रंशक प्राच्य समूहक एक प्रमुख भाषा मैथिलीमे साहित्य-सर्जनाक सुदीर्घ परम्पराक पर्याप्त साक्ष्य रहितहु सबसँ पछाति एकर व्याकरण लिखल गेल। तकर कारण की? भाषा प्रयोजन सिद्धिक माध्यम थिक। अतएव, भाषाक महत्त्व एहि बात पर निर्भर अछि जे ओ कतेक प्रक्षेत्रामे समाजक प्रयोजनक सिद्धिक माध्यम अछि। एकर परिमापनक दू टा आधार अछि - कार्यभार ; (Functional load) आ’ कार्य पारदर्शिता, ; (Functional Transparency) अर्थात् कार्यमे अपेक्षित स्पष्ट अभिव्यक्ति-क्षमता। भाषाक कार्यभार कम अछि वा अधिक, तकर निर्धारण एहि बातपर होइछ जे ओ कतेक प्रक्षेत्रामे कार्यशील अछि। उदाहरणार्थ अङरेजीके ँ देखि सकैत छी। ओ प्रायः सभ पैघ सार्वजनिक प्रक्षेत्रा जेना व्यापार, शिक्षा, राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संवाद, प्रौद्योगिकी, सरकार, कानून आदि मे पसरल अछि। अतएव, मिथिला भाषाक अध्ययन ध्1 मिथिला भाषाक अध्ययन- मिथिला भाषाक अध्ययन एवं डा. ग्रिअर्सनकृत मैथिली व्याकरण डा. रमानन्द झा ‘रमण’अङरेजीक कार्यभार बेसी मानल जाएत। कार्य पारदर्शिता एहि बात पर निर्भर अछि जे भाषाक खास प्रक्षेत्रामे ओकर स्वायत्तता आ’ नियन्त्राण छैक वा नहि। यदि एकभाषा दोसर भाषाक प्रयोगक आरि छंटैत अछि तँ ओहि भाषाक कार्यभार उच्च मानल जाइत छैक। दोसर शब्दमे, भाषा कार्यमे पारदर्शी बूझल जाइत अछि, यदि ओ अत्यधिक नीक जकाँ खास कार्य करैत अछि। जेना, संस्कृत भारतीय सस्ं कृि त एव ं हिन्दुत्वक व्याख्या करबाम े अत्यधिक पारदर्शी रूपे ँ कार्य करतै अछि। मुदा आधुनिकताक कार्यमे पारदर्शी नहि अछि। ओहिना मैथिलीक कतेको प्रक्षेत्रामे हिन्दी सन्हिआ गेल अछि, जाहिसँ मैथिलीक कार्यभार एवं पारदर्शिता - दूनू घटि गेलैक अछि। कमल जाइत अछि। कहि सकैत छी भाषा आ’ कार्यमे स्थिर साहचार्य छैक। पारदर्शिता घटल तँ कार्यभार कमल आ’ प्रक्षेत्राक संख्या बेसी, तँ कार्यभार उच्च। कार्यभार आ’ कार्यपारदर्शिताक दृष्टिसँ मैथिली पर विचार कएल जाए। ई अनेकहु अभिलेखसँ प्रमाणित अछि जे भारोपीय आर्यभाषाक मागधी अपभ्रंशक प्राच्य समूहक भाषामे अन्यतम स्थान प्राप्त मैथिलीमे साहित्य-सर्जनाक सुदीर्घ एवं अविच्छिन्न परम्परा छैक। सिम्रौनगढ़क कर्णाटवंशक सभ राजालोकनि मैथिली भाषाके ँप्रोत्साहन देलनि एवं ओहिठामक राजा रामसिंहदेवक समयक प्राप्त शिलालेखक आधार पर इतिहासज्ञ डा. हरिकान्त लाल दासक11 निष्कर्ष अछि जे कर्णाट शासन कालमे राजकाजक भाषा मैथिली छल। प्रो. दासक इहो निष्कर्ष अछि जे मोरंग, मकवानपुर, विजयपुर, पाल्पा आदि राजालोकनिक समयक अभिलेख, स्याहा मोहर, जमीनक हस्तान्तरण सम्बर्न्धी अिभलेखसँ सेन राजालोकनिक राजकाजक भाषा मैथिली होएब प्रमाणित हाइे छ।12 एहि एेि तहासिक तथ्यस ँ निष्पन्न हाइे छ ज े मैि थलीक पय्र ागे विभिन्न पक्ष््र ात्रे ाम े हाइे त छल।
साहित्य-सर्जना, दैनिक व्यावहारिक जीवन एवं राजकाजक भाषा रहने मैथिली उच्च कार्यभारक भाषा छल। किन्तु, नेपालमे राणाशाही स्थापित भेलाक बादसँ मैथिलीक प्रक्षेत्रा क्रमशः घटैत गेल। मिथिलामे तुर्क, अफगानक आक्रमण एवं आधिपत्यक बाद जखन मुगल बादशाहसँ खंडबला कुलके ँ मिथिलाक राज प्राप्त भेलनि तँ जैतुकमे अरबी, फारसी एवं उर्दू सेहो अएलैक। संगहि, लोकनि×ाा सभ सेहो मैथिली भाषीक्षेत्रामे बसय लागल। एहिसँ मैथिलीक प्रक्षेत्रापर संघातिक आघात भेलैक। मैथिलीक प्रयोगक प्रक्षेत्रा घोंकचए लागल। मैथिली भाषीक घनत्व तरल होइत गेल। कोलब्रूकक अभिमतसँ स्पष्टे अछि जे साहित्य-सर्जनाक क्षेत्रामे सक्रियता ठमकल छल। परिणामतः मैथिलीक प्रक्षेत्रा दैनिक जीवन आ’ मनोरंजक साहित्यक सर्जना धरि सीमित रहल।
अतएव, जखन ईस्ट इन्डिया कम्पनीक हाथमे तिरहुतक शासन-सूत्रा अएलैक, तँ कम्पनी सरकारक लेल मैथिली कोनो समस्या नहि बनल। तखन समाधानक चिन्ता ओ किएक करैत? जेना आन कतेको भारतीय भाषाक पढ़ौनीक व्यवस्था अपन कर्मचारी-अधिकारी वा सेना-सिपाही लेल ओ कएलक, से मैथिलीक लेल किएक करैत? लार्ड मेकाले (1835 ई.) प्रायः एहनहि स्थितिमे रिपोर्ट कएने छल होएताह जे जाहि भाषासँ (अरबी, फारसी एवं संस्कृतक सन्दर्भमे लिखल) ने हमर प्रशासनके ँकोनो लाभ छैक आ’ ने ओहि भाषाके ँ केओ बिना सरकारी पाइक पढ़ेबाक लेल तैआर छथि, ताहि भाषापर किएक खर्च कएल जाए?13
भारतक प्रथम स्वाधीनता संग्रामक असफलताक उपरान्त 1857 ई. मे भारतक शासन-सूत्र ईस्ट इंडिया कम्पनीक हाथसँ ब्रिटिश साम्राज्ञीक हाथमे आएल तँ ओ अपन उपनिवेशक लोक सभसँ सामीप्य स्थापित करबाक हेतु क्षेत्रा विशेषक भाषाक अध्ययन एवं विकासक प्रसंग नीतिगत निर्णय कएलनि। भारत सहित ब्रिटिशक विभिन्न उपनिवेशक भाषाक शिक्षणक व्यवस्था भेल। व्याकरण लिखाएल। शब्द एवं लोक-साहित्यक संग्रह आरम्भ भेल। अध्ययन तथा प्रकाशन होअए लागल तथा अधिकारी सभके ँ स्थानीय भाषामे प्रवीणता प्राप्त करबाक हेतु ओहिना प्रोत्साहित कएल गेलनि14, जेना भारत सरकार सम्प्रति अपन कर्मचारी-अधिकारीके ँ हिन्दीक कार्यसाधक ज्ञान अर्जित करेबाक लेल प्रोत्साहित करैत अछि। जाहि भाषाक कार्यभार बेसी छलैक, ओहि भाषामे काज पहिने आरम्भ भेल। मैथिलीक कार्यभार अल्पतम छल। ध्यान पछाति गेलैक। जॉर्ज अब्राहम ग्रिअर्सन मैथिलीके ँ भारोपीय आर्यभाषाक मागधी अपभ्रंशक प्राच्य समूहक एक भाषा मानैत छथि। हिनक प्राच्य समूहमे 1. ओड़िआ, 2. बिहारी (मैथिली, मगही एवं भोजपुरी), 3. बंगला, आ’ 4. असमिआ अछि। हॉर्नले उपयुक्त नामकरणक अभावमे संस्कृतसँ सवं द्ध भाषाक े सँ ुविधाक हते ु गाैि डअन 15 कहलनि। सम्भव थिक हानॅ र्ल के मागर्क अनुसरण करतै उपयुक्त नामकरणक अभावमे ग्रिअर्सन सेहो बिहारक भाषा मैथिली, मगही एवं भोजपुरीक लेल
‘बिहारी’ नामकरण कए देने होथि। ओना ओहिसँ पहिने राममोहन राय बंगलामे बंगलाक पूर्ण व्याकरण ‘गौड़ीय व्याकरण’ 1833 ई.मे लिखने छलाह। ग्रिअर्सनक ई वर्गीकरण, विशेषतः बिहारक भाषा मैथिली, मगही एवं भोजपुरीक लेल ‘बिहारी’ नामकरण, पर्याप्त विवादक कारण भेल अछि। ओना साम्प्रतिक राजनीतिक परिदृश्यमे जँ एकर विवेचन करी तँ कहि सकैत छी जे ‘बिहारी अस्मिता’क पहिल उद्भावक जॉर्ज अब्राहम ग्रिअर्सन भेलाह।
मैथिलीक औपभाषिक विभाजन सेहो विवादक कारण भेल अछि। जार्ज ग्रिअर्सन र्मैिथलीक औपभाषिक विभाजन छओ भागमे कएने छथि -1. मानक मैथिली, 2. दक्षिणी मानक मैथिली, 3. पूर्बी मैथिली वा गॅंवारी, 4. छिकाछिकी बोली, 5. पश्चिमी मैथिली एवं 6. जोलहा बोली। पण्डित गोविन्द झा16 वर्गीकरणक तीन आधार मानल अछि- 1. क्षेत्रा, 2. सामाजिक वा शैक्षणिक स्तर तथा 3. जाति। क्षेत्राक अनुसार ओ 1. पूर्वी( नव क्षेत्राीय नामकरण अंगिका, ग्रिअर्सन - छिकाछिकी एवं गँवारी), 2. दक्षिणी, पश्चिर्मी (नव क्षेत्राीय नामकरण बज्जिका, ग्रिअर्सन - पश्चिमी मैथिली), 4. उत्तरी वा नेपाल तथा 5. केन्द्रीय। एहि विभाजनक आधार अछि मैथिलीक भाषायिक चौहद्दी। पूर्बमे बंगला, पश्चिममे भोजपुरी, दक्षिणमे मगही आ’ उत्तरमे नेपाली। अभिसरण ; (Convergence) सिद्धान्तक अनुसार सम्पर्कसँ भाषा प्रभावित होइत छैक। एहि हेतु केन्द्रीय मैथिलीके ँछोड़ि चारू कातक मैथिली अपन समीपस्थ भाषा सभसँ प्रभावित भेल आ’ जे अप्रभावित रहल मानक मैथिली कहल गेल अछि। भाषा वैज्ञानिक तथ्यक आधार पर एहि तथ्यके ँ फरिछबैत डा. रामावतार यादव17 बिहारमे मधुबनी तथा नेपालमे राजबिराजमे बाजल जाइत मैथिलीके ँमानक मैथिली कहल अछि।
सामाजिक स्तरक अनुसार सभ क्षेत्रामे मैथिलीक दू स्वरूप गोविन्द झा मानैत छथि - शिक्षित एवं सुसंस्कृत उच्चवर्गक आ’ दोसर समाजक अशिक्षित एवं निम्नस्तरक लोकक भाषिका। शिक्षित वर्गक अभिरुचि मैथिलीक मानक स्वरूपक दिशि होइत छनि एवं परिष्कृत भाषा बजबामे ओ गौरवक अनुभव करैत छथि। अशिक्षित वा नीचला स्तरक लोकक भाषिकामे स्थानीय एवं जातीय विशेषता विशेष सुरक्षित रहैत अछि। जातिक अनुसार मैथिलीक तीन स्वरूप पण्डित मिथिला भाषाक अध्ययन ध्3 मिथिला भाषाक अध्ययन 4गोविन्द झा मानल अछि - 1. विद्याजीवीक भाषिका, 2. कृषिजीवी जातिक भाषिका तथा 3. व्यवसाय जीवीक भाषिका। कोन परिस्थितिमे विभिन्न भाषा-भाषी एवं सांस्कृतिक समुदायक लोकक स्थायी निवास मिथिला बनैत गेल तकर चर्च ऊपर कएलहुँ अछि। मिथिलाक प्रशासनिक क्षेत्रामे ओहि वर्गक वर्चस्व, सेहो घटैत-बढ़ैत रहल। भारतक कतेको प्रान्तमे भाषाक प्रयोगजन्य जे समरूपता देखैत छी एवं प्रयोगजन्य समरूपताक कारणे ँभाषाक नामपर जे एकजुटता अनुभव होइत अछि, तकर घोर अभाव मिथिलामे उक्त कारण सभसँ छल एवं अद्यावधि अछि। एहन कोनो केन्द्रीय राजनीतिक शक्ति वा सामाजिक संगठन नहि छलैक जे मैथिलीक प्रचार-प्रसार वा मैथिलीक पठन-पाठनक मार्गमे अबैत अवरोधक तत्त्वक निराकरण कए, सर्वव्यापी प्रभावकारी निर्णय लए सकैत छल।
मैथिलीक औपभाषिक विभाजन सर्वग्राह्य तँ नहिएं भेलैक, अपितु किछु अंश धरि दूरत्वक ओ कारण सेहो भए गेल। एहि दूरत्वके ँबढ़ेबामे बिहार विभाजनक अगुआ एवं पटना विश्वविद्यालयक पूर्व उपकुलपति डा. सच्चिदानन्द सिंहा सन लोकक मैथिली भाषा-संस्कृति विरोधी मानसिकता सहायक भेलैक। पटना विश्वविद्यालयक पाठ्यक्रममे मैथिलीक स्वीकृतिक प्रस्तावक समय ओ बाबू भोलालाल दासके ँकहने छलथिन्ह -‘बंगालसँ बिहारके ँअलग कएल हम अपना सभक निमित्त, अहाँलोकनिक लेल नहि। मैथिलीके ँस्वीकृत कएने मिथिला जीबि उठत। मिथिला जीबि उठत तँ हमरालोकनिके ँयू. पी. चल जाए पड़त। ते ँजावत हम जीअब मैथिलीके ँस्वीकृत नहि होअए देब।’18 जखन मैथिलीक अध्ययन-अध्यापने नहि, तखन व्याकरण कोना लिखाइत? प्रयोजनक दृष्टिसँ व्याकरणक दू कोटि अछि19 - पारम्परिक एवं शिक्षा शास्त्राीय व्याकरण; (Traditional and Pedagogical Grammar)A। पारम्परिक व्याकरणक आधार साहित्य होइत अछि। ओ पोथी तथा अन्य उपलब्ध साहित्यक आधार पर भाषाक संरचनात्मक परिचय करबैत अछि। ओ इहो सुझबैत अछि जे कोना लिखी आ’ कोना नहि लिखी। कोना बाजी आ’ कोना नहि बाजी। तदनुसार, ई अनुशासनात्मक व्याकरण ; (Prescriptive) सेहो कहबैत अछि।
पारम्परिक व्याकरण वर्तमान एवं भविष्य - दूनूक लेल मार्ग-दर्शक होइत अछि।
एकर विपरीत, शिक्षा शास्त्राीय व्याकरण मानक भाषिका एवं लिखित समकालीन भाषाक संरचनात्मक स्वरूपक परिचय करबैत अछि। मानक भाषा लिखब आ’ बाजबमे व्याकरणक कोन नियमक कखन प्रयोजन होइत छैक आ’ तकर अनुसरण कोना कएल जाए, शिक्षा शास्त्राीय व्याकरण सीखबैत अछि। कहि सकैत छी जे भाषा विशेषक लोकक बीच उक्त समूहक भाषा कोना बाजल जाए, जाहिसँ वक्ताक अभिप्रायक सम्प्रेषण वाधित नहि रहए, वक्ता की कहैत छथि, से उक्त भाषा समूहक लोक बूझि जाथि। एकरा सम्वाद-भाषा सेहो कहि सकैत छी। पारम्परिक व्याकरणक नियम बेसी कठोर होइत अछि किन्तु शिक्षा शास्त्राीय व्याकरण वा सम्वाद-भाषाक व्याकरणमे तारता होइत छैक। ओ भाषाक विभिन्न स्वरूपक प्रयोग सफल सम्वाद-स्थापन लेल करैत अछि। ठाम-ठाम जँ व्याकरणिक नियम भंगो होइत रहैछ तँ ओहि पर ध्यान नहि दैत अछि।
भाषाक परिचयमे शिक्षा शास्त्राीय व्याकरण पाँच स्तर पर सहायक होइत अछि -
1. शब्द स्तर ; ( Vocabulary level) - एहि स्तरपर व्याकरण शिक्षार्थीके ँ शब्द एवं ओकर विभिन्न स्वरूपक परिचय करबैत अछि। ओकर प्रयोगके ँ तेना विश्लेषित करैछ जाहिसँ शिक्षार्थी पुरुष-वचन-लिंग प्रणालीसँ परिचित भए जाथि।
2. रूपात्मक स्तर ; ( Morphological level) - एहि स्तरपर व्याकरण शब्द निर्माण,एकवचनसँ बहुवचन, समास, रूपावली, विभक्ति आदिसँ परिचय करबैत अछि। कारक तथा ओकर प्रयोग कोना कएल जाए, से सिखबैत अछि।
3. रूपस्वनिमिकी स्तर; Morphophonemic level) - एहि स्तरपर व्याकरण सन्धि तथा
व्याकरणक कारणे ँ होइत स्वन-परिवर्तनसँ परिचय करबैत अछि।
4. वाक्य स्तरपर ; ( Syntactic level) - एहि स्तरपर व्याकरण वाक्य-निर्माण कोना कएल
जाए, से सिखबैत अछि। शिक्षार्थी जँ अन्य भाषा-भाषी रहैत छथि तँ हुनक भाषाक वाक्यसँ तुलना करैत विश्लेषण एहि प्रकारे ँकएल जाइछ जाहिसँ काल, वचन, संयुक्त वाक्य, वाक्य-बन्ध, वाक्य परिवर्तन, समास आदिक परिचय हुनका नीक जकाँ भए जाइन।
5. डिसकोर्स स्तरपर ;( Discourse level) - भाषामे विचार कोना उतरैत अछि तथा विभिन्न वाक्य कोना सम्वद्ध भए जाइत अछि, से एहि स्तरक व्याकरण सिखबैत अछि।
ग्रिअर्सनक प्रस्तुत मैथिली व्याकरणके ँजखन पारम्परिक एवं शिक्षा शास्त्राीय व्याकरणक दृष्टिसँ देखैत छी तँ दूनू व्याकरणक अधिकांश विशेषताक लाभ अध्येताके ँ एकहिठाम भेटल सन लगैत अछि।
अङरेज विद्वान तँ उचिते, पाश्चात्य शिक्षा-प्रणालीमे शिक्षित अधिकांश मैथिल विद्वान सेहो,जेना, डा. सुभद्र झा, डा. रामावतार यादव, डा. उदयनारायण सिंह ‘नचिकेता’, डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव, डा. सुनील कुमार झा, डा. बालकृष्ण झा प्रभृति, मैथिलीक भाषाशास्त्राीय अध्ययन अङरेजी माध्यमे ँकएलनि अछि। एहिसँ मिथिला भाषाक विशेषताक व्यापक प्रचार-प्रसार अन्तरराष्ट्रीय स्तरपर भेलैक अछि। हिनकालोकनिक विद्वता एवं परिश्रमसँ विद्वत् समाजमे मैथिलीक स्वीकार्यता बढ़ल एवं मिथिला भाषाक विशेषज्ञक रूपमे ई लोकनि प्रख्यात भेलाह अछि। ई सभक लेल गौरवक बात थिक। आह्लादकारी अछि। किन्तु भाषा विज्ञानक क्षेत्रामे नित प्रति होइत नव-नव सिद्धान्तक स्थापना तथा तदनुसार मिथिला भाषाक अध्ययन-विवेचनसँ मैथिलीक लोक वा मैथिलीक माध्यमे ँ अध्ययन-अध्यापन कएनिहार- वा करओनिहार मैथिलीक शिक्षार्थी, जे लाभक वास्तविक अधिकारी छथि एवं डेग-डेग पर प्रयोजन होइत छनि, लाभान्वित होएबासँ वंचित छथि। अतएव, मैथिली व्याकरण वा मैथिलीक भाषावैज्ञानिक अध्ययन सम्बन्धी सामग्री वा आकर ग्रन्थक मैथिलीमे अनुपलब्धिक स्थिति अवश्य आह्लादक नहि अछि। मैथिली लिखबामे सम्प्रति अनेकहु स्तर पर अस्तव्यस्तता अछि। ओ पसरि रहल अछि। एहि अस्तव्यस्तताक प्रमुख कारण पण्डित गोविन्द झा20 आजुक परम्परा भंजनी प्रवृत्तिके ँमानल अछि। ई परम्परा भंजनी प्रवृत्ति भाषाहुक क्षेत्रामे प्रवेश कए गेल अछि। दीर्घकालीन परिमार्जन, मिथिला भाषाक अध्ययन ध्5 मिथिला भाषाक अध्ययन ध्6परिष्करण ओ परिपोषणसँ जे स्तरीयता आएल छलैक तकरा ई स्वेच्छाचारी प्रवृत्ति अस्तव्यस्त करबामे मस्त अछि।
भारतक संविधानक आठम अनुसूचीमे मैथिलीके ँसम्मिलित कएल गेलाक बाद मैथिलीक प्रक्षेत्रामे व्याप्ति आएल अछि। भारत सरकार भिन्न भाषा-भाषीके ँ मैथिली पढ़बा रहल अछि। मैथिली भाषा साहित्यक प्रचार-प्रसार लेल अनेक प्रकारे ँ प्रोत्साहित कए रहल अछि तथा मैथिली केवल ‘बुच्ची दाइ’ लोकनिक भाषा नहि रहि, ज्ञान-विज्ञानक भाषा बनए, ताहि लेल प्रयासरत अछि। दोसर दिशि मैथिलीक माध्यमे ँप्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षाक अभाव तथा मैथिलीक भाषाक जे भूगोल छैक, ओहिसँ मैथिली भाषा-भाषीक पलायन एवं सम्पर्क क्रमशः कमल जएबाक कारणे ँमैथिलीक दृष्टिसँ अशिक्षित मैथिलक संख्या निरन्तर बढ़ल जाइत अछि। मैथिलीक
पारदर्शिताक क्षेत्राक आरिके ँ छपटबामे ई स्थिति सहायक अछि। एहना स्थितिमे व्याकरणक, जे भाषाक अस्तव्यस्तताके ँसरिअएबैत भाषामे अनुशासन अनैत अछि, प्रयोजन बेसी होइत छैक। भाषा-शिक्षण लेल सेहो व्याकरणक महत्त्व सर्वोपरि अछि। अङरेजीअहुमे आब दुर्लभ एवं सामान्यजनक लेल अबोधगम्य जॉर्ज अब्राहम ग्रिअर्सनकृत मैथिली व्याकरणक पण्डित गोविन्द झा द्वारा भेल मैथिली अनुवाद एवं प्रकाशनसँ बेसी लाभक सम्भावना अछि। एहिसँ मिथिला भाषाक अध्ययनक क्षेत्रामे ग्रिअर्सनक की अवदान छनि, तकरहु मूल्यांकन भाषा अनुरागी सुधीसमाज कए सकताह।
सन्दर्भ -
1. H.T.Colebrooke - On the Sansktit and Prakrit Languages- Asiatic Researches,1801, Misc. Essays, P.No.225 - Mait'híla, or Tirhútia, is the language used in Mit'hílà, that is, in the Sircár of Tirhút, and in some adjoining districts, limited however by the river Cusí(Causící,) and Gandhac( Gandhací,) and by the mountains of Népál; it has great affinity with Bengálí; and the character in which it is written differs little from that which is employed throughout Bengal. In Tirhút, too, the learned write Sanscrít in the Tirhutíya character and pronounce it after their own inelegant manner. As the dialect of Mit'hilà has no existensive use, and does not appear to have been at any time cultivated by elegant poets, it is unnecessary to notice it further in this place.
2. Beames -A Comparative Grammar of the Modern Aryan Languages of India, 1872. - Introduction, page No. 96 - " Crossing the Kusi river, and going westwards, we come into the region of Maithila, the modern Tirhut, where the Language is Hindi in type, though in many of its phonetic details it leans towards Bengali."
3. A. F. Rudolf Hoernle- A Grammar of the Eastern Hindi Compared with the other Gaudian Languages,1880, Introduction page V.
4. Sir George Campbell - Languages of India, including those of the Aboriginal Tribes of Bengal,1874, Page No.60.
5. Rev. S.H.Kellogg, A Grammar of the Hindi Language, para 450, page No. 230,1876.- In the dialects of Bhojpur and Tirhut we have a still wider divergence; from High Hindi type conjugation and a close approximation, in the y of the perfect and, in Tirhut in the substantive verb Nh to the Bengali system.
6. A. F. Rudolf Hoernle, A Grammar of the Eastern Hindi Compared with the other Gaudian Languages,1880, page.V. - Seventhly, the Maithili or the dialect of the district of Tirhút, spoken about Muzaffarpur and Darbhanga. It is called so after the ancient city of Mithila, the capital of Videh or modern Tirhút((Tírabhukti).
7. A. F. Rudolf Hoernle, A Grammar of the Eastern Hindi Compared with the other Gaudian Languages,1880, Page No..VI.- the Maithili especially exhibits unmistakable similiarities to the neighbouring Bengali and Nepali. Indeed, I am doubtful, whether it is not more correct to class the Maithili as a Bengali dialect rather than as a E.H one. Thus in the formation of past tense, Maithili agrees very closely with Bengali, while it differ widely from E.H.
8.. A.H. Sayce, Introduction to the Science of Language, 4th Ed. 1900, page No. 39. - (I). Beames - A Comparative Grammar of the Modern Aryan ... ... Languages of India, 1872, (II). Forbes - A Grammar of the Bengali Language, 1862, (III). Sutton - An Introductory Grammar of the Oriya Language,1831, (IV.) Trumpp- Grammar of the Sindhi Language,1872, (V) Lodiana A Grammar of the Panjabi Language, 1851,( VI)), Yates- Introduction to the Hindustani Language, 1845, (VII) , Shapunji Edalji- A Grammar of the
Gujarati Lanugage, 1867, (VIII). do - The Student's Manual of Marathi Grammar, 1868.
9. BANGLAPEDIA: Grammar - first Bangla grammar, Vocabolario em idioma Bengalla, e Portuguez dividido emduas partes, written by Manoel da Assumpcam, a Portuguese missionary, in Portuguese. Assumpcam wrote this grammar between 1734 and 1742 while he was serving in Bhawal.One of the members of the calcutta school society was Radhakanta Deb who believed that without the knowledge of Sanskrit it was not possible to read, write or speak Bangla correctly. His Bangala Shiksagrantha (second edition, 1821) was essentially tied to Sanskrit grammar. Radhakanta was the first Bengali to write a Bangla grammar in Bangla.The first full-fledged Bangla grammar by a Bengali was Gaudiya Vyakaran (1833) by Rammohun Roy who wrote it in 1830 at the request of the School Society.
10ण् जीवनाथ राय, मैि थलीक स्वरूप आ े लख्े ा शलै ी, मिथिला मिहिर, 11 दिसम्बर 191र्5 इ.
11. डा. हरिकान्त लाल दास - नेपालमे मैथिली भाषा प्रति सेन राजालोकनिक दृष्टिकोण - सयपत्राी, राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमांडू, वर्ष 4, 2055 साल - मैथिली विशेषांक, पृ.सं. 69 - सिम्रौनगढ़क कर्णाटवंशक सभ राजालोकनि मैथिली भाषाके ँप्रोत्साहन देलनि। तकर प्रमाण ओतए एक खण्डहरसँ प्राप्त किछु खण्डित शिलालेख अछि। खण्डहर निरीक्षणक क्रममे एकटा शिक्षकके ँ राजा रामसिंहदेवक समयक Slab inscription भेटलनि जकर लिपि मैथिली अछि। गत वर्ष त्रिभुवन विश्वविद्यालयक इतिहास विषयक एकटा सेमिनार सिम्रौनगढ़मे भेल छल। ओतए इतिहास विषयक प्राध्यापक डा.तुलसी रामबैद्यक नेतृत्वमे अनुसन्ध्ाान टोलीके ँ एकटा खण्डित शिलालेख प्राप्त भेलनि जकर भाषा सेहो मैथिली अछि। एहि तरहे ँ अनुमान लगाएल जाइत अछि जे कर्णाट शासनकालमे मैथिली राजकाजक भाषा छल।’
12. डा. हरिकान्तलाल दास - ओएह, पृ.सं. 70 - कर्णाटकालमे मैथिली भाषाके ँ जे स्थान प्राप्त छलैक ताहिसँ कम महत्त्वपूर्ण सेन राजालोकनिक नहि छलैक। मोरङसँ मकवानपुर तक अभिलेखकक भाषा होएबाक अनेको कारण प्रमाण भेटैत अछि। एहि सम्बन्धमे पुरातत्त्वविद् जनकलाल शर्मा लिखैत छथि जे पूरबमे विजयपुर आ’ पश्चिममे पाल्पाक सेन राजालोकनिक स्याहा मोहर आ’ ताम्रपत्रा मैथिली भाषामे भेटब कोनो आश्चर्यक गप्प नहि थिक। मोरङ पदावलीसँ ज्ञात होइत अछि जे मैथिली भाषाक साहित्यकार सभके ँ मकवानपुर दरबारक अतिरिक्त विजयपुर आ’ पाल्पा दरबारमे सेहो निर्वाह होइत छलनि। विजयपुर राज्यक बोलचालक भाषा मैथिली छल। ते ँराजकाजक भाषा मैथिली बनाओल गेल होएत। दन्तकाली मन्दिरक पुजारीेके ँ विजयपुरक सेन राजा द्वारा देल गेल आदेश पत्राक भाषा प्रमाणित... ... करैत अछि जे ताहि समयमे मैथिली राजकाजक भाषा छल। पण्डित तुलारामके ँकोशी क्षेत्राक जमीन जागीरस्वरूपमे देल गेल छलनि, तकर भाषा सेहो मैथिली अछि। नेपालक एकटा इतिहासकार प्रेमबहादुर लिम्बूक कथन अछि जे सेनराजा लोहाग सेन किरात प्रदेश पर विजय कएलाक बाद ओहि क्षेत्रामे किराताक्षरक स्थानमे मिथिलाक्षरके ँ प्रचारित करौलनि। फलस्वरूप, किरात संस्कृतिमे मिथिलाक संस्कृतिक प्रभाव बहुत दिन धरि रहल। एहि सभ बातक अध्ययन कएलाक बाद कहल जा सकैछ, सेनराजा सभ द्वारा मैथिली भाषाके ँ नीक संरक्षण भेटलैक। ओलोकनि अपन काम कारबाइ तक मैथिली भाषामे कएलनि। ई बहुत महत्त्वपूर्ण बात छल।’
13. Qouted in Languages in India,p.n.71, Mysore,Vol. 2: 8 Nov., 2002
14. Minute by the Hon'ble Sir C.E.Travelyan K.C.B., on the tests to be passed in the Native Language by the Junior Civil Servants/ Military Officers in the Nothern India. Calcutta the 25th July, 1864. - Quoted - Languages in India, page No.95, Mysore,Vol. 2: 8 Nov., 2002 - 'If we wish to encourage our officers to become good practical lingiusts, we ought to make it as easy as possible to them, and to give them the same facilities as we have at home in learning French, Italian, or any other language in which there
are many dialects but only on standard.'
15. A. F. Rudolf Hoernle, A Grammar of the Eastern Hindi Compared with the others Gaudian Languages,1880, Introduction - I have adopted the term Gaudian to designate collectively all North-Indian vernaculars of Sanskrit affinity, for want of a word; not as
16. गोविन्द झा - मैथिली भाषा का विकास, 1974, पृ.सं. 50
17. Dr. Ramawatar Yadav- Maithili Lingiustic Research : State-of-the-Art -Contributions to Nepalese Studies, Vol. 27, No.1 - The standard of spoken Maithili is tacitly identified with the speech of the towns of Madhubani in Bihar and Rajbiraj in Nepal.
18. किरण समग्र, 2007, पृ. सं.266।
19. Kasturi Viswanatham - New Horizons in Language and Linguistics, page No.312, CIIL, Mysore
20. गोविन्द झा, घर बाहर, जनवरी-मार्च, 2005 - ‘आजुक परम्परा भंजनी प्रवृत्ति बड़ आयासे ँबान्हल ओहि पुरान घरके ँमानू धाराशायी करबा पर लागल अछि। की समाज, की संस्कृति, की भाषा सर्वत्रा दीर्घकालीन परिमार्जन, परिष्करण ओ परिपोषणसँ जे स्तरीयता प्राप्त भेल छल, आइ तकर भारी अवमूल्यन भए गेल अछि आ’ स्वेच्छाचार बढ़ैत गेल अछि। पण्डितक लेखनीसँ बहराएल भाषा निकृष्ट मानल जाइत अछि, निरक्षरक मुहसँ बहराएल भाषा श्रेष्ठ। एहि वैचारिक क्रान्तिक प्रभावमे पड़ि मैथिलीक बहुतो नबतुरिया लेखक ई मानि बैसलाह अछि जे सर्वसाधारणक मुहसँ जेना सुनैत छी तहिना लिखब शुद्ध थिक। एहि धारणाक कारणे ँ मैथिलीक वर्तनीमे जे किछु एकरूपता आएल छल, सेहो ध्वस्त भए रहल अछि। स्वच्छन्दतावादी लोकनिके ँई बुझबाक चाहिअनि जे उच्चारणक अनुरूप लिखब कोनो प्रचलित लिपिमे नहि छैक।’
बिपिन झा, IIT Bombay
सहनशीलता मजबूरी अथवा कमजोरी?
सतत ई सुनैत एलहुँ- सहनशीलता एकटा गुण अछि जे प्रत्येक व्यक्ति हेतु जरूरी अछि। मुदा ई गप्प वर्तमान में कते तक सत्य अछि ई परीक्षणक आवश्यकता अछि। सहनशीलता यदि कोनो व्यक्ति अथवा समाज कें अभिशप्त करय लागय तऽ ओ कतऽ तक उचित ई स्वयं चिन्तन कय सकैत छी।
आय जतहु कतहु समस्या देखैत छी चाहे ओ भ्रष्ट आचरण सन्दर्भित हो अथवा आतंकी गतिविधि या कोनो दुर्घटना विशेष। सर्वत्र हमर सभक अभिव्यक्ति रहैत अछि ’सकार एहि लेल दोषी अछि’ ,अमुक व्यक्ति केर कारण ई भय रहल अछि’। आ नेता सभक प्रतिक्रिया रहैत अछि- ’दोषी के नहिं छोडल जायत’, ’जाँच हेतु टीम बनाओल जायत’...। संगहि जनता जनार्दन सँऽ निवेदन जे सहनशीलता केर परिचय देथि, शान्ति बनौने रहथु’। जनता अर्थात् हम अहाँ एहि सभ सँऽ अलग आर्प प्रत्यारोप केर् बाण चलबैत अपना के स्वच्छ चरित्रबला हेबाक स्वयं प्रमाणपत्र लैत छी।
कहियो ई सोचलियैक जे ओ नेता हमरे सभ म स एकटा व्यक्ति छथि जे नियमक कमजोर पक्ष के अपन सबलपक्ष बना शासन करैत छथि।
अपराध छोट हो वा पैघ दूनू अपराधे होइत अछि। लगभग सर्वत्र पारदर्शिता केर अभाव भ्रष्टाचरण के प्रश्रय दैत अछि। हम सभ अपन तुच्छ स्वार्थ, भय आदि हेतु पैघ भ्रष्टाचार एवं आतंकी गतिविधि के हिस्सा बनैत छी। हमरा सभ के सुविधा चाही। रेल टिकट चाही तऽ दलाल के अतिरिक्त १४००/- देब अपराध नै बुझना जाइत अछि। DL बनेबाक हेतु २०००/- देब अपराध नै बुझना जाइत अछि। कोनो सरकारी नौकरी हेतु १० लाख देब अपराध नै बुझना जाइत अछि। कोनो गलत आचरण के बर्दाश्त करब अपराध नै बुझना जाइत अछि। सरकारी फण्ड अगर भेटैत अछि ओकर अपन सुविधा आ करियर पर खर्च करब अपराध नै बुझना जाइत अछि।
उक्त चर्चा तऽ नमूना मात्र अछि। आगू स्वयं जोडि लिय। एहेन स्थिति मे केकरा दोष देल जाय ई विचार करी। क्रमशः...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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