भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, July 30, 2011

'विदेह' ८६ म अंक १५ जुलाइ २०११ (वर्ष ४ मास ४३ अंक ८६)- PART IV



बेचन ठाकुर
\ श्रीसरस्वत्यै नमः
महान सामाजिक मैथिली नाटक
   ( बाप भेल पित्ती )
                                     
                                    अंक - पहिल
                                    ढृश्य - एक
    ( स्थान - लखनक घर। दलान पर लखन, लखनक कक्का मोतिलाल, भए बौहरू बड़का बेटा संतोष उपस्थित छथि। लखन चिन्तित मुद्रा मे छथि। सभ कियो चौकी पर बैस विचार-विमर्श कए रहलाह अछि। बारह वर्षीय मनोज आ दस वर्षीय संतोष दलान पर माटि-माटि खेल रहल आछ। )
मेतिलाल - लखन, चिन्ता फीकीर छोड़ू। की करबै ? भागवान के जे मर्जी होइत अछि, ओकरा के बदलि सकैत अछि ? अहाँक कनियां केँ एतबे दिनका भोग छेलै। आब अहाँक की विचार भऽ रहल अछि ?
लखन - कक्का, अपने सभ जे जेना विचार देबै।
मेतिलाल - हम सभ की विचार देब ? पहीने तऽ अहाँक अपन इच्छा।
लखन - दुटा छोट-छोट बौआ अछि। ओकर प्रतिपाल कोना हाएत ? जँ कुल कनियां नीक भेटत तऽ दोसर कऽ लइतहुँ।
मोतिलाल - भातीज, अहाँक नीक विचार अछि। ऐ उमर मे अहाँक निर्णय हमरो उचित बुझना जाइत अछि।
बौहरू - कक्का, एगो कहबी जे छै ‘‘ सतौत भगवानो के नै भेलै ‘‘ से ?
मोतिलाल - बौआ, तोहर की कहब छह ? लखनकेँ बियाह नै करबाक चाही की ?
बौहरू - हँ, हमर सएह कहब रहाए। भैया कने त्याग कऽ दुनु छोंराकेँ पढ़-लिखाकऽ बुधियार बनाबतथि। ओना भैयाकेँ कनियां केहेन भेटतनि केहेन नै।
मोतिलाल - हमरा विचार सँ लखनक परिस्थिति बियाह करवाला अवस्य अछि।
लखन - कक्का, नजरिमे दऽ देलौंह जदी सुर-पता लागए तऽ जोगार लगाएब।
मोतिलाल - बेस देखबै।

                           पटाक्षेप 
                    दृष्य - दू
     ( स्थान - मदनक घर। ओ अपन बियाहल बेटीक बियाहक चिन्तामे लीन छथि। कातमे पत्नी गीता दलान झााड़ि रहल छथि। मोतिलालक समधिक समधि हरिचन मोतीलालकेँ मदनक ऐठाम कुटमैतीक संबंधमे लऽ जाए रहल छथि। हरिचन मदनक ग्रामीण छथि । हिनका दुनुक पहुँचैत मारत गीता घोघ तानि अन्दर चलि जाइत छथि। दलान पर तीन-चारि टा कुर्सी लागल छैन। मोतिलाल आ हरिचनक प्रवेश )
हरिचन - नमस्कार मदन भाइ। ( कर जोड़ि )
मदन - नमस्कार नमस्कार।
मोतिलाल - नमस्कार कुटुम।
मदन - नमस्कार नमस्कार । बैसै जाइ जाउ।  ( दुनु जन बैसलाह। ) संजाय, संजय बेटा संजय, संजय।
संजय - ( अन्दरसँ ) जी पिताजी, इएह अएलहुँ। ( संजयक प्रवेश ) जी पीताजी।
मदन - अन्दर जाउ, दू लोटा पानि लेने आउ। ( संजय अन्दर जाक दू लोटा पानि आनैत छथि। ) हरिचन भाइ, कहु की हाल-चाल ?
हरिचन - बड्ड बढ़िया बड्ड बेस। सब उपरवालाक किरपा अछि। आओर अपना दिसुका। बाल बच्चा आनन्द ?
मदन - आओर सभ ठीके छै। खाली कहने जे रही बहुत पहिने। ओही चिंतामे डुमल रहै छी। भाइ हिनका नै चिन्हलियै।
हरिचन - ई छथि मोतिलाल बाबू, हमरे कुटुम छथि। अहींजे कहने रही; ओही संबंधमे अएलाह अछि। ई अपन भतिजकेँ अपने ऐठाम कुटमैती कर चाहैत छथि। हमही कहलियनि।
मदन - बेस, होनी हेतै, जूड़-बंधन हेतै तऽ अवस्स हेतै । लड़िकाके अपने देखने छियै ?
हरिचन - हँ हँ, किछुए दिन पहिने हमरा ओइठाम आएल रहथि।
मदन - लड़िका केहेन छथि ? अहाँके पसीन छैथ।
हरिचन - हँ हँ, लड़िका-लड़िकी जोगम-जोग अछि। खाली लड़िकाकेँ दूगो छोट-छोट बेटा छनि आपत्नी डिलेभरीए कालमे हॉस्पीटले दम तोड़ि देलखिन ।
मदन - भाइ, अहाँकेँ ई कुटमैती केहेन लागैत अछि ?
हरिचन - जदी हमरा पूछै छी तऽ हम इएह कहब जे कुटमैती बढ़िया हाएत। अहाँक लड़िकीयो तऽ विधबे छै। ओना ऐ सँ नीक कतौ नजरिमंे अछि तऽ हम के रोकनिहार ?
मदन - हम चाहैत रही कुमार लड़िका करै लाए।
मोतिलाल - हमहुँ चाहैत रही कूमारि लड़िकी करै लाए।
हरिचन - तहन ऐ दुनुके जीवन बेकार भऽ जाए; से नीक की ने ? जदी कुमार लड़िका नै भेटाए तहन ?
मदन - अपन कोशिश तऽ करबाक चाही।
हरिचन - से तऽ सत्ते। खाइर हमरा लोकनि चललहुँ।  ( मोतिलाल आहरिचन जेबाक लेल तैयार भेलाह। )
मदन - हाँ, हाँ, हाँ, हाँ, ( मुस्कुराइत ) औगतैयौ नै। कने अन्दर चलू।  ( हरिचनकेँ मदन पकड़िकऽ अन्दर लऽ जाइत छथि । )
मदन - लड़िकाके बेटा दुगो छै। अपना भैरि कोनो दिक्कत नै छै आअस्था-पाती ?
हरिचन - गोटेक बीघाक अन्दरे छै। अपना भरि कोनो दिक्कत नै छै।
मदन - की करी की नै, किछु नै फुराइ आए।
हरिचन - हमरा सभकेँ लेट होइ आए। यदि विचार हुआए तऽ हुनका लड़िकी देखाए दियौन। नै तऽ कोनो बात नै ।
मदन - बेस अपने दलान पर चलू। हम बुच्चीकेँ लेने आबैत छी।  ( हरिचन दलान पर आबि गेलाह किछुए काल बाद मदन सेहो आबि गेलाह। )
मदन - चलू, देखल जेतै। कऽ लेबै। आगू भगवानक मर्जी। हम लड़िकी के बाप छियै तें हमरा लड़िका देखबाके चाही। मुदा हम सब िदन अहाँ पर विष्वास करैम रहलहुँ। आइ कोना नै करब ?
हरिचन - हम अहाँक संड. विष्वासघात कएलहुँ ?
मदन - से तऽ कहिसो नै। ओना दूनिया विष्वासे पर चलै छै।  ( वीणाक संग मीनाक प्रवेश मीना सभकेँ पाएर छुबि गोर लागैत आछि। )
हरिचन - कुर्सी पर बैसु बुच्ची।  ( मीना कुर्सी पर बैसैत अछि। वीणा ठाढ़े अछि। ) मोतिलाल बाबू , लड़िकीकेँ किछु पूछबो करबैन , त पुछियौ।
मोतिलाल - की पूछबैन , किछु नै।
हरिचन - बुच्ची अहाँ चलि जाउ।  ( मीना सभकेँ गोर लागि अन्दर गेलीह। )
मदन - हरिचन भाइ , लड़िकी अपने सभकेँ पसीन भेलीह ?
मोतिलाल - हँ लड़िकी हमरा लोकनिकेँ पसीन अछि।
मदन - तहन अगिला कार्यक्रम की हेतै ?
हरिचन - जे जेना करीयै। ओना हम विचार दैतहुँ जे बियाह मंदिरमे कऽ लैतहुँ। चीप एण्ड बेस्ट।
मदन - कहिया तक ?
हरिचन - कहिया तक , चट मंड.नी पट बियाह। काल्हिए कऽ लिअ। बढ़िया दिन छै। कुटमैती लगाकऽ नै रखबाक चाही।
मदन - भाइ , ओरियान कहाँ किच्छो छै ?
हरिचन - जे भेलै सेहो बढ़िया , जे नै भेलै सेहो बढ़ियां। आदर्शो मे आदर्श ।
मदन - बेस काल्हुके रह दियौ।
हरिचन - जाउ , जे भऽ सकाए , ओरियान करू। हम सभ सेहो जाइ छी। जय रामजी की।
मदन - जय रामजी की।
मोतिलाल - जय रामजी की कुटुम।
मदन - जय रामजी की।   ( हरिचन आ मोतिलालक प्रस्थान। ) होनी जे हेबाक हेतै; सएह न हेतै। आप इच्छा सर्वनाशी , देव इच्छा परमबलः।

                           पटाक्षेप 
                    दृष्य - तीन
       (दृष्य - लखनक वरियातीक तैयारी। वर लखन , मोतीलाल , बौहरू , मनोज आ संतोश मदनक ओइठाम जा रहल छथि। मदन अपन घरक कातमे एकटा षिव मंदिर क प्रांगणमे बियाहक पूर्ण तैयारी कएने छथि। सात गोट कुर्सी आ एक गोट टेबूल लागल अछि। पंडीजी गणेश महादेवक पूजा कए रहल छथि। मदन,मीना,गीता,हरिचन,संजय आ वीणा मंदिरक प्रांगणमे थाहाथाही कए रहल छथि तथा वरियातीक प्रतिक्षा कए रहल छथि। मीना कनिया के रूप मे पर्ण सजल अछि। वरियाती पहुँचलाह डोलमे राखल पानि सँ सब बरायाती हाथ-पाएर धोइ कऽ कुर्सी पर बैसलाह आ लखन वरवाला कूर्सी पर बैसलाह। बापेक कातमंे एक्के कुर्सी पर मनोज आ संतोस बैसलाह। मदन प्रागणमे आबि जलखैक व्यवस्था केलनि। सभ कियो जलखै कऽ रहल छथि। )
मनोज - पापा , पापा , नाच कखैन सुरू हेतै ?
लखन - धूर बूरबक अखैन किछु नै बाज। लोक हँसतौ।
मनोज  - किआए हौ , लोक हँसतै तऽ हमहुँ हँसबै। कह न नटुआ कखैन औतै ?
लखन -चुप चुप, नटुआ नै कही । लड़िकी औतै।
मनोज - काए गो लड़िकी औतइ ? आर्केस्ट्रा कखैन सुरू हेतै ? लड़िकी संड.े हमहुँ नचबै, गेबै आ रूमाल फाड़िके उड़ेबै। पापा हौ , लड़िकीके कहबै खाली रेकॉर्डिंग डांस करै लाए अगबे भोजपूरीए पर।
लखन - चूप बड खच्चर छें रौ। आर्केस्ट्रा नै हेतै डांस नै हेतै ।
मनोज - तखन एत की हेतै  हौ पापा ?
लखन - हमर बियाह हेतै बियाह।
स्ंातोष - पापा हौ , तोहर बियाह हेतै आ हमर नै
लखन - हँ हँ , तोरो हेतै ।
स्ंातोष - कहिया हेतै।
लखन - नमहर हेबहीन तहन हेतौ।
स्ंातोष - हम नमहर नै छिऐे। एतेटा तऽ भऽ गेलिऐ। आब बियाह कहिया हेतै ?
लखन - बीस साल बाद हेतौ।
स्ंातोष - बीस साल बाद बूढ़े भऽ जेबै तऽ बियाह क के की  हेतै ? हम आइए करब।
लखन - आइ तोरा लाए लड़िकी कहां छै ?
स्ंातोष - आइं हौ पापा तोरा लाए लड़िकी छै आ हमरा लाए नै छै। केकरोसे कऽ लेबै।
लखन - केकरासे करबिहीन ?
स्ंातोष - मौगी सब औतै न तऽ ओइमे जे सबसे मोटकी मौगी हेतै ; ओकरेसे करबै। दूधो खूब पीबै , नम्हरो हेबै आ मोटेबो करबै। पापा हौ , हमरा लोकनियामे तोरे रह पड़तह।
लखन - बेस रहबौ बौआ।      ( जगमे पानि आ गिलास लऽ कऽ संजयक प्रवेश। सभ कियो पानि पीलनि आ हाथ-मूँह धोइ अपन-अपन जगह पर बैसलनि। पंडीजी पूजा पूर्णाहुतिक पश्चात वर लग बैस जलखै कएलाह। )
गणेश - अहाँ सभ विलंब किएक करै छी ? बियाहक मुहुर्त हुसि रहल अछि । हौ हौ  जल्दी चलै चलू। कोनो चीजक टेम होइ छै की ने ?
                ( लड़िकी संड. सरयातीक प्रवेश फेर सभ कियो मंदिर पर गेलाह। सतह पर बिछाएल दरी पर बैसलाह। )
गणेश - आउ लड़िका-लड़िकी, हमरा लग बैसु।  ( लखन आ मीना पंडीजी लग बैसैत छथि। पंडिजी दुनुकेँ अपन रमनामा वला चददरि ओढ़ा दैत छथिन्ह। दुन्नुके हाथमे आर्बा चाउर आओर कुश दै छथिन्ह ।)
गणेश - लड़िका - लड़िकी पढु --
         मंगलम्् भगवान विष्णु , मंगलम गरूड़ध्वज: !
         मंगलम् पुण्डरीकाक्ष , मंगलाय मनोऽहरि: !!
लखन $ मीना - मंगलम्् भगवान विष्णु , मंगलम गरूड़ध्वज: !
               मंगलम् पुण्डरीकाक्ष , मंगलाय मनोऽहरि: !!
         ( पंडीजी तीनि बेर ई मंत्र पढ़ाकऽ अपन बगल मे राखल सेनुरक पुड़िया मे से एक चुटकी सेनूर लड़िकाक हाथ मे देलनि। )
गणेश - बियाहक मुहुर्त बीत रहल छल। तें हम एक्केटा मंत्र सँ बियाह कराए दैत छी। आब सिन्दुरदान होइ य ।  लड़िका , लड़िकीक मांड. मे सेनूर दियौन ।
      ( लखन मीनाक मांड. मे सेनूर देलनि। ) आब अपने सभ दुर्वाक्षत दियौन।  ( पंडीजी पैध सबहक हाथ मे दुर्वाक्षत देलखिन । )
\ म्ंात्र - 0 आब्रह्मन ब्राह्मणो         
                  
                      मित्राणामुदयस्तव।
    ( मंत्रक बाद सभ कियो लड़िका-लड़िकी केँ दुर्वाक्षत देलखिन। )  लाउ , दुनु समधि दक्षिणा-पाती। सस्ते मे अहाँ सभ निमहि गेलौं।
        ( दुनु सतधि एकावन-एकावन टका दक्षिणा देलनि। ) इएह यौ एक्को किलो रौहक दाम नै । खइर जाउ।
मदन - पंडीजी लड़िका - लड़िकीकेँ आशीर्वाद दियौन । ( लड़िका - लड़िकी पंडीजीके पाएर छुबि प्रणाम करैत छथि। पंडीजी आशीर्वाद दैत छथिन्ह । )
मोतिलाल - पंडीजी मोनसँ आशीर्वाद देबै।
गणेश - हँ यौ , दक्षिणे गुणे न आशीर्वाद भेटत। ( सभ कियो जा रहल छथि। )

                           पटाक्षेप 
                    दृष्य - चार
      (स्थान - रामलालक घर । रामलालक दुनु पत्नी लक्ष्मी आ संतोषी घरमे हुनका सेवा कऽ रहल छथि। लक्ष्मी पक्षमे दूगो बेटी-एगो बेटा छैन। छओ भए-बहिन एक्के पब्लिक इस्कूलमे पढ़ै गेल छथि।)
 रामलाल - लडकी , सभ धिया-पुता नीक जकाँ घर पर पढ़ै लिखै अछि न ? हम तऽ हम तऽ भिनसर जाइ छी से रातिमे आबै छी। पेटक पूजा तऽ बड पैघ पूजा छै की ने ? हम नै पढ़लहुँ से अखैन पछताइ छी।
लक्ष्मी - छउटाक लक्षण अखैन बड नीक देखै छियै ; अग्रिम जे हुुआए। हमरा  सभकेँ पढ़ै कह नै पढ़ै अछि।
रामलाल - छोटकी , अहाँ किछु नै बाजै छी।
संतोषी - दुनु गोटे एक्के बेर देब त ऽ आहाँ की सुनबै आ की बुझाबै ?
रामलाल - कोनो तकलीफ अछि की ?
संतोषी - जेकरा आहाँ सन घरवाला रहतै ; तेकरा तकलीफो हेतै आ अहुँसँ होशगर कड़की छथि। स्वामी , एगो गप्प पूछी ?
रामलाल - एक्के गो किआए , हजारगो पूछिते रहू।
संतोशी - अहाँ , एहेन चिक्कन घरवालीके रहैत दोसर बियाह किआए केलियै ?
रामलाल - बड़कीसँ बेटा होइमे किछु विलंब देखलियै तैं दोसर केलियै।
संतोशी - नै यौ , दोसर गप्प भऽ सकै छै।
रामलाल - हमरा तऽ नै बुझल अछि ; अहीं बाजू दोसर की भ सकै छै ?
संतोशी - अहाँकेँ अहाँकेँ अहाँकेँ एगोसे मोन नै भरल ।
रामलाल - बस करू , बस करू , अहाँ तऽ लाल बुझक्करिछी। अहाँ त अंतर्यामी छी । ओना मोनकेँ जत्त दौड़ेबै ; ओत्त दौड़तै।
            मन नही देवता ; मन नही ईष्वर,
                           मन से बड़ा न कोय ।
            मन उजियारा जब जब फैले,
                           जग उजियारा होय ।।   ( इसकुल पोषाकमे सोनिक प्रवेश । )
सोनी - पापा , पापा , इसकुलक फीस दियौ।
रामलाल - माएकेँ कहियौ बुच्ची।
सोनी - माए , इसकूलक फीस दहिन ।
लक्ष्मी - कत्ते फीस लगतौ ?
सोनी - तों नै बुझै छीही छ गो विधार्थीक छ साए टका ।
लक्ष्मी - छोटकी , जाउ ; दऽ दियौ ग।
संतोशी - बेस लेने अबै छी।
                        ( संतोशी अन्दर जाक छ साए टाका आनि सोनीकेँ देलनि आ फेर पति सेवामे भीर गेलीह। )
रामलाल - छोड़ै जाइ जाउ आब । अंगना-घर देखियौ। अहुँ सभकेँ कनी काज होइ छै। 
           ( दुनु पत्नी चलि गेलीह। )
                  
                              पटाक्षेप 
                     दृष्य - पाँच
    ( स्थान - रामलालक घर । रामकान्तक संड. बलदेव वार्ड सदस्यक प्रवेश । )
बलदेव - ( दलान पर सँ ) रामलाला भाई , रामलाल भाई।
रामलाल - ( अन्दरे सँ ) इएह अएलहुँ भाई । दलान पर ताबे बैसु । जलखै काएल भए गेल
बलदेव - मुखियोजी अएलाह , कने जल्दीए एबै ।
रामलाल - तहन तुरन्त अएलहुँ।    ( हाथ - मुँह पोइछते प्रवेश । प्रणाम-पाती कऽ अन्दर सँ दूटा कुर्सी आनलनि । रामकान्त आ बलदेव कुर्सी  पर बैसलनि मुदा रामलाल ठाढ़े छथि । )
रामलाल - मुखियाजी , आइ केमहर सूरूज उगलै ? आइ रामलाल तरि गेल सरकार। कहियौ सरकार हम कोना मोन पड़लहूँ । इनरा आवासवला कोनो गप्प छै की ?
बलदेव - गप्प तऽ इएह छै । मुदा पहिने कुशल-छेम , तहन ने अगिला गप सप। कहु अपन हाल-समाचार ।
रामलाल - अपने सबहक किरपासँ हमर हाल-समाचार बड्ड बढ़ियां अछि। भइ , अपन हाल-चाल कहु।
बलदेव - भाइ एकदम दनदनाई छै।
रामलाल - आ मुखियाजी दिषिका ।
रमाकान्त - हमरो हाल-चाल बड बढ़ियां अछि। ओएह एलेकसन नजदीक छै तें पंचायतमे घुमनाई आवष्यक बुझलहुँ । संडे. संड. अहुँक काज राहाए।
रामलाल - तहन अपने किआए एलियै हमही चलि आबितहुँ ।
रमाकान्त - देखियौ , जनता जनार्दन होइ छै । पहिने जनता तहन न हम। जनता मुखियाकेँ बड आषासँ चुनै छै।
रामलाल - अपने महान छियै । अपनेक आगू हम की बजबै ?
बलदेव - मुखियाजी , कने ओकरो ऐठाम जाइके छै। हिनकर काज जल्दी कऽ दियौन ।
रमाकान्त - तहन दऽ दियौन।      ( बलदेव बेगसँ बीस हजार टाका निकालि रामलालकेँ देलखिन । )
रामलाल - ( पाँच साए टाका निकालि ) मुखियाजी , ई अपने राखि लियौ ।
रमाकान्त - नै , ई नै भऽ सकै आए। ई अपने रखियौ । हमरा पेट लाए बहुत फंड छै । कहबी छै - ओएबे खइ जइसे मोंछमे नै ठेकाए ।
रामलाल - भगवान , एहेन मुखिया सगतर होइ।
बलदेव - रामलाल भाइ , जत्त-तत्त सुनै छी अहाँक परिवार चलेनाई आइ-काल्हि असंभव अछि।
रामलाल - सब भबवानक किरपा छैन आ अपन करतब तऽ चाहबे करी।
रमाकान्त - हमरा लोकनि जाइ छी। जाउ , अहुँ अपन काम-काज देखियौ ।
                               ( रमाकान्त आ बलदेवक प्रस्थान )
रामलाल - धन्यवाद बलदेव भाइ , धन्यावाद मुखियाजी एहिना सभ जनता पर खिआल रखबै।

                              पटाक्षेप 
                     दृष्य - छह
     ( स्थान - लखनक घर । मीना अपन बेटी रामपरी आ बेटा कृश्णा संड. बैडमिंटन खेल रहल अछि। )
रामपरी - मम्मी , कसिके मारहीन न । कॉर्क नै उड़ै छै ।
मीना - बेसी कसिके मारबौ तऽ कॉर्क पोखिरि मे चलि जेतौ।
रामपरी - मम्मी , मन नै लगै छै। कम-से-कम बौओ जकाँ बमकाही न ?
                                     ( मनोजक प्रवेश )
मीना - ओएह , एलौ सरधुआ भाँड़ै लाए ।
रामपरी - आब , दहीन न मम्मी । भाइजी छथिन्ह ।
मीना - भाइजी छथिन्ह । कप्पार छथिन्ह । कॉर्क फुटि जेतौ तऽ आनिके देतौ ?
रामपरी - मम्मी , भाइजी कत्तसँ आनिके देतौ तोंही कह तऽ । आकी पापा आनि देथहीन ।
मीना - पापाकेँ हम जे कहबै से करथुन्ह। तोहर कहल नै करथुन्ह ।
रामपरी - मम्मी , ई गप्प तोहर नीक नै भेलौ आ पापोकेँ नीक नै भेलनि ।
मीना - तों पंचैती करै लाए एलें की बैडमिंटन खेलै लाए एलें ? खेलबाक छौ तऽ खेल नै तऽ जो एत्तसे।
रामपरी - तोंही सब खेल , हमज ाइ छी।
                ( खीसियाक रामपरीक प्रस्थान रामपरीवला बैटसँ मनोज बैडमिंटन खेल लगै अछि। मीना बैटसँ ओकर मारै लाए छुटै अछि। मनोज बैट छोड़ि कऽ भागि जाइ अछि। फेर दुनु माय-पुत बैटमिंटन खेल लगैत अछि। )
कृश्णा - मम्मी , तोरा दीदी जेकाँ खलल नै होइ छौ। कने पापाकेँ कहबीन सीखा दै लाए से नै।
मीना - बौआ , पापा हमरा की सीखेथुन्ह हमही सीखा दै छियै।
कृश्णा - तेकर माने तों पापा से जेठ छीही ?
मीना - उमरमे भलेंही छोट हाएब मुदा अकलमे निष्चित जेठ। 
                                 ( संतोशक प्रवेश )
स्ंातोश - हमहुँ खेलबै कृश्णा । ( बैट लऽ कऽ खेल लगै अछि। झटसे मीना संतोशक हाथसँ हाथ मोचरिकऽ बैट लऽ लैत अछि। टुनकीवाला आ मुड़ीमचरूआ कहि बैटसँ मारि लाए दौड़ैम अछि। संतोश भागि जाइ अछि। ओइ पर खीसियाकऽ कृश्णा एक बैट मम्मीकेँ बैसा दैत अछि। )
कृश्णा - तों बड खच्चर छें मम्मी । खेलल-तेलल होइ छौ नहिए आ जमबै छें । अखैन संतोश भाइजी रहितै तऽ खूम बैडमिंटन खेलतौं की नै।
मीना - संतोशबा तोहर भाइजी नै छियौ। जेकर छिऐ से बुझतै । तोरा ओकरासे कोनो मतलब नै।
कृश्णा - किआए मम्मी ? उहो तऽ हमरे पापा के बेटा छिऐ न ?                         


 
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सुमित आनन्द
अनुवाद कार्यशालाक आयोजन
भारतीय भाषा संस्थान मैसूर दिससँ नेशनल ट्रांसलेशन मिशनक अन्तर्गत दिनांक 01-07-2011 सँ 08-07-2011 धरि ल. ना. मिथिला विष्वविद्यालय, दरभंगाक विश्वविद्यालय मैथिली विभागमे सप्त-दिवसीय अनुवाद कार्यशालाक आयोजन भेल।
एहि अवसरपर जी. ऑस्टीनक राजनीति शास्त्रक पोथी कन्स्टीच्यूशन ऑफ इण्डिया: फॉर्मर स्टोन ऑफ ए नेशनसँ चयनित 1100 तकनीकी शब्द तथा एम. हरियम्माक दर्शन शास्त्रक पोथी आउट लाइन्स ऑफ इण्डियन फिलॉसाफीक 700 तकनीकी शब्दक मैथिलीमे अनुवाद कयल गेल। एहि कार्य मे छओ गोट विषेषज्ञ रहथि डॉ. वीणा ठाकुर, डॉ. रमण झा, डॉ. दीप नारायण मिश्र, डॉ. योगानन्द सुधीर, डॉ. अमर नाथ झा एवं डॉ. राजनन्दन यादव। विशेषज्ञक अनुसार एहन-एहन कार्यसँ मैथिली साहित्य आओर समृद्ध होयत। विषेषज्ञ लोकनि कतोक नव शब्दावलीक निर्माण सेहो कयलनि अछि।
मैसूरसँ आयल मैथिली भाषाक मुख्य शैक्षिक सलाहकार डॉ. अजित मिश्र, पवन कुमार चौधरी एवं डॉ. शम्भू कुमार सिंह कहलनि जे विभिन्न विषयक 63 गोट पोथीक अनुवाद होयबाक छैक जाहिमे एखन नओ गोट एहि कार्यक हेतु देल गेल छैक। ओ लोकनि ईहो कहलनि जे नओ मे सँ छओ गोट पोथीक तकनीकी शब्दक अनुवाद भए चुकल अछि।




 

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 ३. पद्य









३.६.नवीन कुमार आशा

३.७.गजेन्द्र ठाकुर- गजल


सुबोध झा (१९६६- ), पिता श्री त्रिलोकनाथ झा
बतहिया

साँझ भेलैक भोर हेबै करतैक़ ।
ऑंखि छैक नोर हेबै करतैक़ ।।
पिया विरह मे छैक मोन दग्ध ।
की करतैक मनःरोग हेबै करतैक़ ।।

आब अप्पनो सभ तऽ कहैक छिऐ ओकरा विक्षिप्त ।
ओकर मोन नहि भऽ सकलैक कहियो प्रेम सँ तृप्त ।।
ऑंखि जोहैत छैक बाट सदिखन।
मोन पड़ैत छैक बीतल दिन भरि क्षण ।।

हमरा नहि अछि आशा घूरि केँ औतैक ओ ।
फेर सँ ओकर प्रेमक दीप जरौतैक ओ ।।
मुदा ककरा बूझल छैक ओहो घूमि रहल अछि भेल विक्षिप्त ।
के मिलौतैक दुनू केँ सभ अछि अपनहिं आप मे लिप्त ।।

ककरा छैक एकरा दुनूक लेल खाली समय ।
सभ लागल अछि खाली करबा मे धन संचय ।।
जीअब तऽ देखबैक कतेको सामाजिक अन्याय ।
माय बाप भाई बहिन केओ नहि हेतैक सहाय ।।

हे समाजक कर्ता धर्ता छोडू ई ताण्डव नृत्य ओ कुकर्म ।
जीबऽ दियौक सभ केँ अपना ढंग सँ आ करू सुकर्म ।।
सभ कहैत अछि भऽ गेलैक आब प्रजातन्त्र ।
हमरा जनें ई थीक पाइ वलाक षडयन्त्र ।।
पाइ वलाक षडयन्त्र पाइ वलाक षडयन्त्र ।।।।
 
शायरी

1
हमरा नहि देखल छल हुनक गाल परहक तिल आ ठोढ परहक लाली ।
कहियो नहि देखलियैन्हि हुनक कान मे लटकैत सोनक बाली ।।
घोघ उठल ऑंखि मिलल लागल जे ओ तिल छल हुनक सुन्दरताक प्रहरी ।
ठोढ छल मदिरा आ बाली केँ देखितें खसि परलहुँ लागल दिल्लीक शीतलहरी ।।
दिल्लीक शीतलहरी दिल्लीक शीतलहरी………………………………………।।

2 नारी कण्ठ सुनतहिं अनायसे बढि जाइत अछि डेग ओमहर ।
चूडीक खनकब सुनतहिं ताकए लगैत छी जेमहर तेमहर ।।
आब तऽ कान मे स्वतः बजैत अछि पायलक खनकब ।
रहि रहि कें मोन परैत अछि प्रथम स्पर्श मे चूडीक चनकब ।।

3 निहारैत रहलहुँ जनम भरि हुनक मुखमण्डल ।
तैओ नहि भऽ सकल जिनग्ी हमर सफल ।।
हम तऽ भऽ गेल हुनकर मुदा ओ नहिं छथि हमर ।
की दोष छल हमरा मे से नहिं जानि आब जीअब भेल दूभर ।।
 

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१.राजदेव मण्‍डल २.रामदेव प्रसाद मण्‍डल ‘झारूदार’

राजदेव मण्‍डल
कवि‍ता-
जुलूसक पछुआ

हजारक-हजार टाँग-हाथ
कि‍न्‍तु एकेटा अछि‍ माथ
ठमकैत आ बमकैत बढ़ि‍ रहल अछि‍ आब
गरजैत सड़कपर इनकि‍लाब
नै अछि‍ कान-आँखि‍
तैयो लगल अछि‍ जेना पाँखि‍
एकगोटे केलक बकटेटी
अखैन केना सुनत अपन हेठी
केना सुनतै एखन गारि‍ बात
जखैन छै हजार साथ
पकड़ि‍ ओकर तोड़ि‍ देलक गात
तोड़य लगल तान
कंठ मोंकि‍ लऽ लेलक प्राण
बढ़ि‍ गेल सभ आगाँ
जेना लगल हो धागा
नै छै पता आगू की भेल बात
पाछूसँ सभ देने संग साथ
लहाशकेँ फेंकि‍ देलक बाटक कात
हम तँ खरीदुआ अंग
मात्र चलैक छै संग-संग
बनल छी पछि‍ला हि‍स्‍सा
चलि‍ रहल छै आपसी खि‍स्‍सा
ओकरा कुकृत्‍यकेँ हम जानि‍ रहल छी
नचार भऽ मने-मन कानि‍ रहल छी
बि‍ना जरि‍माना केना भेटत माफी
भीड़क अंग छी तँए हमहूँ पापी।
कनेक सुनू

1
खेतक ऊपर उधि‍याएत लगनी गीत
मोन पड़ल जि‍नगीक गीत
गमकि‍ उठल मनक दुआरि‍
ठाढ़ छी सम्‍हारि‍ ओइ आरि‍।

2
बैसल रहि‍ गेलौं पछताइत
जि‍नगी भऽ गेल
अन्‍हरि‍या राति‍।
3
प्रेम नै केलौं
केलौं चोइर
हमरा जि‍नगीमे
देलौं जहर घोइर

4
जि‍नगी नै अछि‍ कि‍छु
तैयो अछि‍ सभ कि‍छु
कतबो काँट गड़े
तैयो फूल बि‍छु।
 
असल मरद

अंगना गारि‍ पढ़ैत अछि‍ कानि‍-कानि‍
जेना बि‍लमि‍-बि‍लमि‍ गाबैत हो गैन
आगू की हएत से नै जानि‍
सुनि‍ कुबैन देहकेँ तानि‍
अपन गलती केना लेबै मानि‍
सींगमे लगौने खून
गरैज रहल छी अपने धुन
जेना करैत अछि‍ खुनि‍याँ बड़द
तामसे करैत गरद
आइसँ बनलौं असल मरद।
पोसा परबा

परबा मानि‍ लेलक आब पोस
पूरा परि‍वार बनि‍ गेल दाेस
सभसँ भऽ गेल जान-पहि‍चान
दाना दऽ कऽ राखऽ मान
खाइत अछि‍ आब बासमती चाउर
ठामहि‍-ठाम मारैत अछि‍ भाउर
लग आबैत छल धीया-पुताक बातपर
बैस जाइत छल हाथ-आ-माथपर
कालक गति‍शील आँखि‍, दौड़ैत-फड़फड़ाइत परबाक पाँखि‍
मांसक माँगपर बजए पड़ल
परबाक छै भाग्‍ये जरल
एहेन अति‍थि‍ जँ पहुँचल दुआरी
पोसा परबाकेँ दि‍यौ आइ मारि‍
एहेन लोक कहि‍या आएत से नै जानि‍
फेर हेतै परबा बात लि‍अ मानि‍।
पानि‍मे डूबाकेँ जखैन लेलक जान

परबाकेँ भेल मनुक्‍खक पहचान।
 
रामदेव प्रसाद मण्‍डल ‘झारूदार’

पाँच गोट गीत-
1.
लोभी लालची राज करै छै
फुहर गाल बजाबै छै
लुटि‍-लुटि‍ भोली जनताकेँ
अप्‍पन घर सजाबै छै। 2
पग-पग पसरल हेरा फेरी
काम छै काला मुँह छै गोरी
काला धनपर उजड़ा पॉलि‍स।
थुथुन जोड़ि‍ सौ लगाबै छै। लुटि‍.....
ककरा कहबै नीक छै बाबू
बोरा लटकल छै सबहक आगू
के करतै जनता केर सेवा
दुर-दुर तक नै देखाइ छै। लुटि‍.....
राजकर्मी छै लोभ लहरमे
जनता मरै छै लुटि‍ कहरमे
राजा पहि‍रने चदरा चश्मा
कि‍छो नै एकरा देखाइ छै। लुटि‍....
2.
मि‍थि‍ला रहि‍ गेल बनि‍ ई सि‍थला
दुक्‍खक भरल गोदाम यौ
रोऐ छै मि‍थि‍ला केर धरती
लऽ लऽ जनक जीक नाम यौ-2
आइ हर घरमे सीता रोऐ छै
राइत-राइत भरि‍ नै जनक सुतै छै
कतए सँ एतै दहेजक पैसा
हेतै केना कन्‍यादान यौ। रोऐ.....
दया धरम के गाछ सुखाइ छै
नि‍ष्‍ठा नीति‍ हाट बि‍काइ छै
इमानक कोनो मोल नै रहलै
सेवा भेलै लोभक गुलाम यौ
रोऐ.........
जनता हि‍त लऽ कोइ लड़ै छै
अपने पेट लऽ सभ कोइ मरै छै
कहि‍यो देखतै गरीब आजादी
हेतै कोना नवका वि‍हान यौ
रोऐ..........।

3.
नेता अफसर मौज करै छै
शाशक आँखि‍मे छि‍ट कऽ छाउर
जनता नै एकता बनबै छै
तँए चाटै छै मामक घौड़
एकताकेँ जँ नै अपनेबै
जीवन भरि‍ सुख लऽ सपनेबै
लुच्‍चा लम्‍पट खुि‍न कऽ खाइ छै
नीचाँ ऊपर सभ खमहौर। जन....
अपने पेट लऽ सभ बेहाल छै
तँए तँ देशक एहन हाल छै
मात्र औपचारि‍क राज चलै छै
मि‍डि‍या खाली लै छै घमहाउर। जन.....
एकता बनैले सहऽ पड़ै छै
घटो लगा कऽ बहऽ पड़ै छै
अपना गलत पर लहऽ पड़ै छै
जलै छै खुन पसि‍ना और। जन.....

4.
देखि‍यौ यौ सभ बाबू भैया
हमरा ई की देखाइ छै
गट्टा पकड़ने लोभ लोककेँ
नरकमे लेने जाइ छै
लोभी करबै छै सभ पाप
चाहे जते छै त्रि‍वि‍ध ताप
ई धऽ लेलकै जकड़ा बाबू
से दुखमे बौआइ छै
गट्टा.........
लोभ सभकेँ करै छै अंधा
चाहे छै कतनो कवि‍ल बन्‍दा
नीत धरम नि‍ष्‍ठा मर्यादा
कि‍छाे नै सुझाइ छै
गट्टा.......
जकड़ा चढ़लै लोभक पाप
से नै बुझै छै माए-बाप
दुनि‍याँ दारी के बताबए
भाइयो नै सोहाइ छै।
गट्टा..........।

5.
पढ़ै लि‍ख कऽ सभ टेढ़ भेल छै
ज्ञान कि‍छो नै बुझै छै
जइसँ पॉकेट बम-बम रहतै
तनै माथे सुझै छै
पैसे लऽ वि‍द्या पढ़ै छै
पैसे लऽ मंदि‍र गढ़ै छै
पैसे लऽ सभ जप-तप हइ छै
पैसे लऽ देवतो पुजै छै।
जइसँ............।
पैसेसँ राजबर्दी चलै छै
पैसेसँ आशि‍ष मि‍लै छै
वेदो मंत्र पैसेसँ तौले छै
सभ अज्ञानमे जुझै छै।
जइ..........।

भुलि‍ गेलै सेवा के रीती
पैसेमे सभकेँ छै प्रीति‍
नीत धरम इमान ज्ञानकेँ
नै कि‍छो कोइ बुझै छै।
जइ...........।


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१.जगदीश प्रसाद मण्‍डल २. राजेश मोहन झा ‘गुंजन’ ३.उमेश मण्‍डल
जगदीश प्रसाद मण्‍डल
कवि‍ता-


दूटा कवि‍ता-
 
मधुरस

जंगल जे बास करए
बनफुल-फल से खाए
इच्‍छति‍ मन लोढ़ि‍-बीछि‍
मधुरस सतति‍ बनाए।

एक बन पसरि‍ वि‍श्व
काटि‍-छाँटि‍ देश बनाबए
अपना-अपनी बाट गढ़ि‍
सभ चाहे मधुरस पाबए।

कटुरस मधुरस बीच भेद कि‍
मात्र सीमा पार करब
टपि‍ते-टपान दुर्गकेँ
खटरस बनि‍-बनि‍ रूप धड़ब।

नजरि‍ तानि‍ वि‍श्वरूपा केर
बि‍ष-रस बाट बॅटैए
अपना-अपनी हथि‍आबए चाहै
बाटे-बाट झगड़ैए।

पौरूष पाबि‍ पुरूषार्थ जगे
नहि‍ तँ कुंभकरणी सुतै
सि‍रजि‍ वंश सरबा रावणक
सखा-सखा सटि‍ वृक्ष बनए।

पाबि‍ पुरूषार्थ पौरूष केर
रोके नहि‍ ककरो बाट
जि‍न्‍ह भाव सदि‍ पाबि‍-पाबि‍
सृजै नि‍त नूतन घाट।

देश अनेक लोक अनेक
भाव अनेक भावना अनेक
बीच रचि‍ चालि‍ मायाकेँ
भाव दुरभावना बनबैत।

सृजै मधुरस अमृतरस केर
नहि‍ तँ दुरभावना जगए
अंध भऽ अन्‍हरा अन्‍हारमे
अमृत रस कोना पाबए।
 
बीआ

बीआ खसए जेहन धरती
तेहने तँ गाछो उगैत
रौद-बसातक सह पाबि‍
संगे-संग चलबो करैत।

लइते जन्‍म धरतीमे
डेग उठा चढ़ए अकास
काले-क्रमे घुसुकि‍-घुसुकि‍
दुनू बीच करए-चाहए बास।

सि‍रजि‍त भऽ स्‍वयं सृजक बनि‍
हँसि‍-खि‍ल बि‍लहए सनेस
भक्‍तक आह सुनि‍ जना
पकड़ि‍ भगवन सि‍नेही भेष।

चक्रक चक्का पकड़ि‍ चुहुटि‍
लगबे आस जि‍नगी केर
धरती-अकासक ओर दू
नहि‍ अछि‍ सोझ बाट भूमा केर।

धार अनेक धारी अनेक
वि‍शाल वक्ष धरती केर
खोलि‍ हृदए सेवा ि‍नमि‍त
अलि‍सा टगैत प्रेमीपर।

दुर्ग अनेक ढाल अनेक
दुर्गम बाट धरती केर
शक्‍ति‍सँ शक्‍ति‍ सटि‍
सृजै शक्‍ति‍ शक्‍ती केर।

अकास बीच देख सदति‍
सूर्यज संग-संग चान
अनेक तरेगन बीच एक
गबए सदा गीत तानि‍।

खेल अजीव एहि‍ सृष्‍टि‍क
सनेही सि‍नेह गुड़काबए गेन
हारि‍-जीति‍ कऽ मान न माने
बना रखै सदति‍ प्रेम।

जोग भोग सि‍रजै सदा
एक-दोसराक वि‍परीत चलै
दू पाटनक मध्‍य-बीच
सि‍रजि‍ सृष्‍टि‍ आगू बढ़ए।
राजेश मोहन झा ‘गुंजन’
कवि‍ता

ज्‍योति‍षी जीक तांडव

ज्‍योति‍षी जी तांडव करैत चलला लऽ लोटा हाथ
गामक सीमान पार करि‍ते राति‍ बीतल भेल प्रभात
करि‍यन आ बलहाक मध्‍य लघु टोल भररि‍या
तामसे मुँह लाल छलनि‍ नचैत जेना पमरि‍या
बैशाखक बि‍हाड़ि‍ जकाँ बहैत वाचल्‍य कोण
कोसीक भदैया धार जेना हहाइत पहुँचल खगड़ि‍या
भेटला जुगेबाबू मकइक खरि‍हानमे
कतऽ चलल छी ज्‍योति‍षीजी ब्रह्म बेरूक वि‍हानमे?”
लाेहछैत बजलनि‍ नै पुछू की भेल औ
हमर ढोढ़बाकेँ गंगेश बलजोरी लऽ गेल औ
पहुँचला खगन दुआरि‍ हाथ नेने दंड-भंग
पुछारि‍ केलनि‍ गेल कतऽ टि‍ल्‍लू गंगेश संग
औ बूच तों ई की कऽ देलह ऐ उमेरमे
बेचलह बि‍नु मोले हमर सोन कुंवरकेँ
कहलनि‍ औ भैया क्रोधकेँ ति‍यागि‍ दियौ
कन्‍यादान तँ भऽ गेलै आब अपने घोघट दि‍यौ
क्रोधांध आँखि‍सँ तकला पंडि‍त दि‍स
तों छह अपन लोक कि‍ए कटलह बनि‍ उड़ीस?
पड़ाएल सभ बरि‍याती भागलि‍ धोबि‍नि‍याँ
काँपय लगला खगन, देख ई अजीब दृश्‍य
हसनपुरक हँसेरी पहुँचल दलानपर
टि‍ल्‍लूकेँ देखि‍ते हँसेरी बाजल-
औ पंडीजी अपने पुरोहि‍त छी ई हमर कुलगुरू
चाह पीब सभ गेल वि‍वाहक पूर्णाहुति‍ भेल
क्रोध ठेकान नै छलनि‍ पंडि‍त कक्काकेँ
गामेमे फरि‍आएब नै छोड़ब उचक्काकेँ
कहलनि‍ वि‍भो ‘खगना मामा पकड़ू हि‍नक चरण
कर जोड़ि‍ माफ करू एलौं अहँक शरण
कम करू क्रोधकेँ पीब लि‍अ चाह औ
’ऑफर’ कौशल झाक सुनि‍ भेला बताह औ
अन्‍हर बनि‍ उठला, खगन पीपरक पात बनल
क्रोधक भुजि‍या बनल दुखक कराह औ
गरमीक दुपहरि‍या खराम भीजल घाममे
चमकैत ताड़ि‍क संग बरसलनि‍ ओ गाममे
भेल पंचैती मानि‍ गेलथि‍ बीस हजार गहनामे
यवनि‍का पतन भेल प्रबुद्ध जनक कहलामे
बरख बीस बीत गेल ऐ कथाकेँ बि‍सरब नै
घटना सभ सत्ते थि‍क फूसि‍ कि‍छु बूझब नै
श्रद्धा सुमन अर्पित करैत ज्‍योति‍षी कक्काकेँ
अंति‍म दृश्‍य इति‍ भेल जेठक रौद कड़क्कामे।   

उमेश मण्‍डल
कि‍छु हाइकू/टनका

1
परहेजसँ
रहलासँ भेटैछ
पैघ जि‍नगी।

2
झुठ बाजब
पाप होइत अछि‍
स्‍वयं छोड़ि‍ नै।

3
एकटा चान
सातटा देखाइत
मोति‍याबि‍न।

4
कनैलक बीआ
घुच्‍ची बना खेलैत
कि‍ष्‍कारमे।

5
कि‍ष्‍कार मास
लताम लुबधल
इसरगद।

6
माछक चटनी
मरूआ रोटी जोड़ी
चहटगर।

7
अगम पानि‍
जीवक जि‍जीवि‍षा
उहापोहसँ
बनल स्‍थि‍ति‍ अछि‍
अप्‍पन आन भेल।

8
दुर्गा पूजाक
मतलब होइछ
शक्‍ति‍पूजा।

9
अन्‍हार गुप्‍प
हाथो-हाथ ने सुझै
हवा बहैत।

10
राजनेतासँ
नीक मानल ऐछ
काजनेता।

11
गेंदा पातक
घा हाथ-पएरक
सरसँ छुटै।

12
खेती-वाड़ीकेँ
कि‍सान लचारीकेँ
कोन महत्‍व।

13
सबल साँच
दुर्बल भेल झुठ
दुनूमे फाँट।

14
खेरही दालि‍
नेबो रस मि‍लल
हृदै खि‍लल।

15
चौमास-वाड़ी
दालि‍ खेसारी
गाए-बरदले।

16
पीपड़ पात
बि‍हरन आप्‍त छै
तौयो डोलैत।

17
शान्‍त हवासँ
अन्‍हर तुफानक
आगम होइ।

18
हरि‍यरसँ
तेज भऽ जाइत छै
आँखि‍क ज्‍योति‍।

19

वनमे बास

वनफूलक आस

अमलतास।

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राम वि‍लास साहु

टनका

(1)
बेटा-बेटीमे
नहि‍ कोनो अंतर
परेशानी कि‍
नहि‍ लेब जंतर
कि‍ये हएत अंतर
(2)
दूजक चाँद
घीरे चढ़े अकास
ओहि‍ना सि‍खू
पुर्णिमाक चाँदसँ
बेसी करू वि‍कास।
(3)
खेतक काज
राखै जगक मान
नै अपमान
खूब कमाउ नाम
धान-पान-सम्मान।

(4)
गायक दूध
दही-गोत-गोबर
घी छै अमृत
मि‍लते पंचामृत
जे पि‍बै बनै देव।

(5)
चैतक रौद
तपाबै माटि‍-पानि‍
पछि‍या हवा
पकाबै चना-गहुम
बहारै धूर-कण।

(6)
फूलक डाढ़ि‍
भौरा चढ़ै दू-चारि‍
गमकै बाग
वसन्ती हवा बहै
कोइली गाबै गीत।

(7)
कारी काजर
आँखि‍ देत सुखाय
कारी बादल
बरखासँ डुबाय

मुखरा देत बि‍गाड़ि‍।

(8)
सत्‍य वचन
अपन हुऐ हानि
मि‍ले सम्‍मान
नहि‍ छोड़ब बानि‍
दोसरक कल्‍याण।

(9)
झाड़ू बहारै
कूड़ा-कचड़ा धूर
सत्‍य भगाबै
मन बसल मैल
पाप नै धुले पानि‍।

(10)
धर्मक शोर
पताल पसरल
वीरक यश
तीनू लोक पहुँचै
अधर्मसँ अहि‍त।‍

 
कवि‍ता-

लफंगा-

फाटल धोती फाटल अंगा
पएरक जूता टुटल फाटल
आँखि‍क चश्‍मा दूरंगा
चौंकैत चलैत अछि‍ बेढ़ंगा
बात करैत जना लफंगा
लफड़ैत चलि‍ दरि‍भंगा
बात-बातमे फॅसाबए दंगा
सवाल-जबाब करैत अरंगा
जखैन भऽ जाइत दंगा
मौका पाबि‍ फनैत नंगा
बात-बातमे कहैत लफंगा
मन चंगा तँ कठौतीमे गंगा
साँच झूठक दोहरी अंगा
एकरंगा पहि‍र बनाबै फंदा
झूठक खेतीमे उपजाबए बूटी
फाटल जेबीमे रखलक मोती
राम-नाम रटलासँ नै मि‍लत रौटी
नीक काज कऽ बनाएब कसौटी
जखन कि‍नब माेट-मोट पोथी
ज्ञानक प्रकाश मि‍लत अनोखी
वि‍कासक गंगा बहत चौमुखी।



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डॉ. शेफालिका वर्मा
प्रकृति- पुरुष 
         
.सागरक  शांत लहरि देखी 
 किछ किछ होयत अछ मोन में
की सरिपों  नुकायल अछ सुनामी
एकर अंतर में ??
कखनो  कोसी क हुँकार
कखनो  गंगाक  आर्तनाद .......
हिमालयक  चंचला बेटी सब
सागरक छाती  सँ लागि जायत अछ
मुदा,
कोन वेदना  सागरक  सुनामी बनि 
जायत  अछ ..
मोन होयत  अछ
चीरी दी एहि रहस्य के
देखि ली  सागरक  छाती में बैसल
उपास्य के
किएक बेकल अछ पल पल
प्रतिपल
नै मेटैत  अछ तरास जकर
की अकास स मिलवाक आस एकर..
आतुर  अधीर
की व्यर्थहि  रहल  एकर पीर
नहि ते केकरो  पिआस मेटा पवैत अछ
नहि ते स्वयम अपन तरास
बुझि   पवैत अछ
युग युग सँ  तटक निर्मम रेत कें
भिजावैत  अछ
मुदा, किनार ओहिना  निर्विकार
निर्लेप  रही जायत  अछ
की ई  नियति प्रकृतिक  थीक
पुरुष  अपना के किनार बना  लैत छैक
भिजैत  अछ, तितैत  अछ
किछ बाजि  नहि पवैत  अछ
जीवनक   अर्थ   खोजिते रहि  जायत छैक.............................


 

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नवीन कुमार आशा


                      माँ छिन्नमस्तिका
मैया मैया मैया मैया
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
धन्य ओ उजानक नगरी
जेतऽ अहाँ विराजी माँ
लोककेँ जखन रहए कोनो दुविधा
माता अहा सँ करए फरियाद
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
पुत्र नवीनक सुनू फरियाद
पुत्र फँसल अछि बीच भँवरमे
ओकरो पार लगाबू माँ
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
पुत्र करै अछि दंड प्रणाम
जँ माता नहि दिखायब पथ
जँ माता नहि विनति सुनब
पुत्र एतै दऽ देत प्राण
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
पुत्र करै अछि प्रणाम
माता जँ अहाँ रुसि जायब
तँ केकरा अपन विनति सुनायब
जँ भेल अछि हमरा सँ गलती
सजा हमरा सुनाबू माँ
पुत्र फँसल अछि बीच भँवरमे
ओकरो पार लगाबू माँ
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
पुत्र करै अछि दंड प्रणाम
जखनो हम आबय छी गाम
माता रहैए अहाँकं ध्यान
माता कोना हेती हमर
हुनका नहि केलौं प्रणाम
जा धरि नहि करी दर्शन
माता लागए जेना छूटल प्राण
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
पुत्र करै अछि प्रणाम
माँ छिन्नमस्ते माँ छिन्नमस्ते
राखि सभपर धियान
मैया मैया हे माँ छिन्नमस्ते
नवीन करै अछि दंड प्रणाम   

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गजेन्द्र ठाकुर
       गजल
        

छोड़ि कऽ हमरा ई जे ओ जा रहल अछि
हृदैकेँ चीरैत जे सुनगा रहल अछि

नीक लगै छल ओकर बोलक संगोर
जाइए आइ हृदए कना रहल अछि

नै बुझलिऐ ई एते बढ़ल अछि बात
देखल आइ जे ओ भँसिया रहल अछि

हमरासँ कते की माँगै छल रहरहाँ
जे जुमल ओ बिनु लेने जा रहल अछि

ओकर हाक्रोस हमर चुप्पी सुनै छल
बाजब से बिनु सुनने जा रहल अछि

बात तँ छलै जड़िआएल तहिआयल
बीझ काटि बिनु पढ़ने जा रहल अछि

ककरा कहबै ई जे पतिआएत आइ
उपरागो बिनु सुनेने जा रहल अछि

घुरत नै देखैल अपनैती अपन ओ
आँखि शून्य हृदए हहारो देखाबै अछि

के टोकत एको बेर रुकि जाउ कहत
मुँह सीयल सभक शून्य बढ़ल अछि


की कहबै, कोना कहबै, जे बुझतै ओ लुझतै
आँखिक नोर खसतै,    खन रूसतै-बिहुसतै

दाबी देखेतै आ हम देखबै नुका कऽ अँचरासँ
बहरा जाइ छी घबरा कऽ, नै ताकै ओ ने बाजै ओ

देखितिऐ अँचरासँ, आ बहरा जैतौं दुअरासँ
मोनसँ बेसी उड़ै चिड़ै, चिड़ैक मोन बनतै

बनि माँछ अकुलाइ छी बाझब जालमे कक्ख
जँ फँसि त्राण पाएब आँखि बओने से देखतै

चम्मन फूल भमरा, गुम्म, जब्बर, छै सोझाँ ठाढ़
जलबाह सोझाँ  माँछ, ऐरावत बनल, देखै ओ

 

ओङठल आँखि ताकैए कहू की करी
नै बुझलौं तमसाइए कहू की करी


ज्ञानी बनै लेल जाइदेश छोड़ने
ई मोन जे पथराइए कहू की करी

धानी रंगक आगि पियासल किए छै
धाना निश्छल हिलोरैए कहू की करी

धान छै खखरी बनल अहिठाम आ
धानी आगि जे लहकैए कहू की करी

आगिसंगी पानि अजगुत देखल
धौरबी बनल सोचैए कहू की करी

ऐरावत धोधराह धुधुनमुहाँ नै
रि फाहा बनि जैए कहू की करी


मिरदङियाक तरंग भँसियाइए अङेजब कोना 
सुनि मोन घुरमाइए अकुलाइए अङेजब कोना 

आँखिक नोर झरलै बनलै अजस्र धार झझाइए
पियासल छी ठाढ़, जी हदबदाइए अङेजब कोना 

सगुन बान्हसँ बान्हल मोनक उछाही बिच
ठाढ़ सगुनियाँ बनल उसरगाइए अङेजब कोना 

हरसट्ठे अपने अपन चेन्हासी मेटा लेलक आइ
मुरुत हरपटाहि बनेने जाइए अङेजब कोना 

छरछर बहल छै धार मोनक, देखू चल अछि
धेने बनल बाट उधोरनि बनैए अङेजब कोना 

उड़ैचिड़ै आ बहैए अनेरे नील अकाश बिच
ऐरावत-मन जखन धियाइए अङेजब कोना 
                            

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जवाहर लाल कश्यप (१९८१- ), पिता श्री- हेमनारायण मिश्र , गाम फुलकाही- दरभंगा।
परदेसक ओर
लाल साडी के कारी कोर
पोछने रही
काजर लागल ऑखिक नोर
देखने रही
ऑखि डबडबायल नोर स भरल
जेना पुछि रहल
पिया कहिया आयब
बीतत कोना जारक राति-दिन
खेलब कोना होली अहॉ बिन
बसन्त अहॉ बिन नीक नहि लागत
सावनक झडी देह मे आगि लगायत
दिन बितनाइ पहाड भेल पिया
साल अहॉ बिन कोन बितायब
कनियॉ के नोर देखि
ह्रिदय फाटि गेल
पैर थम्हि गेल
मुदा
सत्यक धरातल छल किछु कठोर
पैर बढैत गेल परदेसक ओर
परदेसक ओर ................
  

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विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत

१.ज्योति सुनीत चौधरी २.श्वेता झा (सिंगापुर) ३.गुंजन कर्ण
१.
ज्योति सुनीत चौधरी
जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।





२.श्वेता झा (सिंगापुर)


३.गुंजन कर्ण राँटी मधुबनी, सम्प्रति यू.के.मे रहै छथि। www.madhubaniarts.co.uk पर हुनकर कलाकृति देखि सकै छी।



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विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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