भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Friday, September 30, 2011

'विदेह' ९१ म अंक ०१ अक्टूबर २०११ (वर्ष ४ मास ४६ अंक ९१) PART I


                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ९१ म अंक ०१ अक्टूबर २०११ (वर्ष ४ मास ६ अंक ९१)NEPALINDIA             
                                               
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ऐ अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश       


२. गद्य















३. पद्य













३.६.डॉ. अजीत मिश्र

३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमरआनंद कुमार झा ३नवीन कुमार "आशा" ४.प्रभात राय भट्ट





४. मिथिला कला-संगीत-१.कैलाश कामत२.ज्योति सुनीत चौधरी ३.श्वेता झा (सिंगापुर) ४.गुंजन कर्ण ५.इरा मल्लिक

 


 

. बालानां कृते-१.पवनकान्त झा (काश्यप कमल)- बाबूक खिस्सा २.डॉ॰ शशिधर कुमर (बालगीत) ३.सद्रे आलम गौहर-नेना भुटकाक लेल एकटा सुंदर कविता

 

. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]






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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।


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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'



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१. संपादकीय


                                           
स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” (१९११-१९९८):स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” केर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखामे भेलन्हि जे हुनकर पैतृक गाम तरौनीक लगेमे अछि। यात्री जी अपन गामक संस्कृत पाठशालामे पढ़ए लगलाह, फेर वाराणसी आ कलकत्ता सेहो गेलाह आ संस्कृतमे “साहित्य आचार्य” क उपाधि प्राप्त केलन्हि। तकर बाद ओ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओ बौद्ध धर्ममे दीक्षित भऽ गेलाह आ हुनकर नाम पड़लन्हि -नागार्जुन। मुदा बादमे पुनः गाममे यज्ञोपवीत कऽ ब्राह्मण धर्ममे घुरलाह।
यात्रीजी मार्क्सवादसँ प्रभावित छलाह, १९२९ ई. क अन्तिम मासमेमे मैथिली भाषामे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि। १९३५ ई.सँ हिन्दीमे सेहो लिखए लगलाह। स्वामी सहजानन्द सरस्वती आ राहुल सांकृत्यायनक संग ओ किसान आन्दोलनमे संलग्न रहलाह आ १९३९ सँ १९४१ धरि ऐ क्रममे विभिन्न जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कऽ देल गेल। भारत-चीन युद्धमे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनकेँ देल समर्थनक बाद कम्युनिस्ट पार्टीसँ मतभेद भेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलनमे भाग लेबाक कारण आपात्कालमे हिनका जेलमे ठूसि देल गेल। यात्रीजी हिन्दीमे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आ संस्कृतमे सेहो हिनकर लेखन आएल। मैथिलीक दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई. मे यात्रीजीकेँ हुनकर कविता संग्रह “पत्रहीन नग्न गाछ”पर भेटलन्हि। १९९४ ई.मे ओ साहित्य अकादमीक फेलो -हिन्दी आ मैथिली कविक रूपमे- भेलाह।
यात्रीजी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कान्यासँ हिनकर विवाह भेल। हिनकर पिता गोकुल मिश्र अपन समाजमे अशिक्षितक गनतीमे रहथि आ चरित्रहीन छलाह। यात्रीजीक बच्चाक स्मृतिमे छन्हि जे हुनकर पिता कोना हुनकर अस्वस्थ आ ओछाओन धएल मायपर कुरहड़ि लऽ मारबाक लेल उठल छलाह, जखन ओ बेचारी हुनकासँ कुमार्ग छोड़बाक गुहारि कऽ रहल छलीह। यात्रीजी मात्र छह वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कऽ गेलीह। यात्रीजीकेँ अपन पिताक ओ चित्र सेहो रहि-रहि सतबैत रहलन्हि जइमे हुनकासँ मातृवत प्रेम करएवाली हुनकर विधवा काकीक, हुनकर पिताक अवैध सन्तानक गर्भपातमे, लगभग मृत्यु भऽ गेल छलन्हि। के एहन पाठक होएत जे यात्रीजीक हिन्दीमे लिखल “रतिनाथ की चाची” पढ़बाक काल बेर-बेर नै कानल होएत। पिता-पुत्रक ई घमासान एहन बढ़ल जे पुत्र अपन बाल-पत्नीकेँ पिता लग छोड़ि वाराणसी प्रयाण कए गेलाह।
कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप
हम टा संतति, से हुनक पाप
ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप
अनको बिसरक थिक हमर नाम
माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम! (काशी/ नवंबर १९३६)
काशीसँ श्रीलंका प्रयाण, “कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप” ई कहि यात्रीजी अपन पिताक प्रति सभ उद्गार बाहर कऽ दैत छथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी अपन पत्नी, अपराजिता,  लग आबि गेलथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी दू टा मैथिली कविता लिखलन्हि- “बूढ़ वर”  आ “विलाप” आ एकरा पाम्फलेट रूपमे छपबाए ट्रेनक यात्री लोकनिकेँ बेचलन्हि। जीविकाक ताकिमे सौँसे भारत दुनू प्राणी घुमलाह। पत्नीक जोर  देलापर बीच-बीचमे तरौनी सेहो घुमि कऽ आबथि। आ फेर अएल १९४९ ई., अपना संग लेने यात्रीजीक पहिल मैथिली कविता-संग्रह “चित्रा”। १९५२ ई. धरि पत्नी संगमे घुमैत रहलथिन्ह, फेर तरौनीमे रहए लगलीह। यात्रीजी बीच- बीचमे आबथि। अपराजितासँ यात्रीजीकेँ छह टा सन्तान भेलन्हि, आ सभक भार पत्नी अपना कान्हपर लेने रहलीह। यात्रीजी दमासँ परेशान रहैत रहथि।
हम जखन दरभंगामे पढ़ैत रही तँ यात्रीजी ख्वाजा सरायमे रहैत छलाह। हमरा मोन अछि जे मैथिलीक कोनो कार्यक्रममे यात्रीजी आएल छलाह आ कम्युनिस्ट पार्टीबला सभ एजेन्डा छीनि लेने छल। अगिले दिन यात्रीजी अपनाकेँ ओइ धोधा-धोखीमे गेल सभाक कार्यवाहीसँ हटा लेलन्हि। एमर्जेन्सीमे जेल गेलाह तँ आर.एस.एस. क कार्यकर्ता लोकनिसँ जेलमे भेँट भेलन्हि आ जे.पी.क सम्पूर्ण क्रान्तिक विरुद्ध सेहो जेलसँ बाहर अएलाक बाद लिखलन्हि यात्रीजी। यात्रीजी मैथिलीमे बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" आ हिन्दीमे “नागार्जुन” क नामसँ रचना लिखलन्हि।
“पृथ्वी ते पात्रं” १९५४ ई. मे “वैदेही”मे प्रकाशित भेल छल, हमरा सभक मैट्रिकक सिलेबसमे छल। यात्रीजी लिखैत छथि-
“आन पाबनि तिहार तँ जे से। मुदा नबान निर्भूमि परिवारकेँ देखार कए दैत छैक। से कातिक अबैत देरी अपराजिता देवीक घोघ लटकि जाइन्हि। कचोटेँ पपनियो नहि उठा होइन्ह ककरो दिश! बेसाहल अन्नसँ कतउ नबान भेलइए”?

यात्री एकटा मिथ छथि? की यात्री एकटा मिथ छथि? ओ मुख्यतः हिन्दीक लेखक रहथि, मैथिलीमे ओ हिन्दीक दशमांशो नै लिखलन्हि। जे लिखबो केलन्हि तइमे सँ बेशी स्वयं द्वारा हिन्दीसँ अनूदित। मैथिली आ मिथिला क्षेत्रक शब्दावली आ संस्कृति हिन्दीक लोककेँ अबूझ आ तेँ रुचिगर लगलै मुदा तइमे सेहो ढेर रास कमी रहै जेना एकटा उदाहरण यात्री समग्रसँ- ।
     यात्री समग्र-पृ.२२० जेठ सुदी चतुर्दशी कऽ रहनि पीसाक वर्षी। पहिले वर्षी..पृ.. २२२- ..कहाँ जे एको दिनक खातिर जाइ, कर्ता बना, अषाढ़ बढ़ि तृतियाक तिथिपर पहिल।
एहेन बेमारी आनो मैथिली-हिन्दी लेखकमे छन्हि। ई ऐतिहासिक लिखित तथ्य अछि जे गोनू झा १०५०-११५० मे भेलाह मुदा उषा किरण खान विद्यापतिसँ हुनकर शास्त्रार्थ करबै छथि (हिन्दीक ऐतिहासिक उपन्यास सिरजनहार, भारतीय ज्ञानपीठ, मे) वीरेन्द्र झा कहै छथि जे गोनू झा ५०० साल पहिने भेला आ तारानन्द वियोगी गोनू झा केँ ३०० साल पहिने भेल मानै छथि (दुनू गोटेक हिन्दीमे प्रकाशित गोनू झापर पोथी, क्रमसँ राजकमल प्रकाशन आ नेशनल बुक ट्रस्टसँ प्रकाशित) तँ विभा रानीक गोनू झापर हिन्दी पोथी (वाणी प्रकाशन) मे कुणाल गोनू झाकेँ भव सिंहक राज्यमे (१४म शताब्दी) भेल मानैत छथि। जखन पंजीमे उपलब्ध लिखित अभिलेखन गोनू झाकेँ विद्यापतिसँ दस पीढ़ी पहिने अभिलेखित करैत अछि, तखन ई हाल अछि। मिथिला क्षेत्रक शब्दावली आ संस्कृतिक- जे हिन्दीक लोककेँ अबूझ आ तेँ रुचिगर लगैे छै- तथ्यमे ई मैथिली-हिन्दी लेखक सभ अपन अज्ञानतासँ ढेर रास गलत तथ्य पड़सि रहल छथि, साम्प्रदायिक लेखक लोकनि गोनू झाक कथामे मुस्लिम तहसीलदारक अत्याचार घोंसिया रहल छथि (मुस्लिम लोकनि मिथिलामे गोनूक समए मे रहबे नै करथि)!
यात्री समग्रमे बलचनमा नै लेल गेल कारण ओ हिन्दीक कृति अछि, ओकर मैथिली अनुवाद सेहो भ्रष्ट अछि लगैए जेना अदहा अनुवाद केलाक बाद मैथिली लेल हुनका लग समयाभाव भऽ गेल होइन्ह। यात्री समग्रमे नवतुरिया लेल गेल, ओहो मूल हिन्दी अछि, किए मूल मैथिली कहि कऽ लेल गेल तकर जबाब सम्पादक देताह। मैथिलीमे प्रूफ रीडरकेँ सम्पादक कहेबाक सख छन्हि आ लोक ग्रियर्सन धरिक रचनाक रिप्रिन्ट अपन सम्पादकत्वमे करबा रहल छथि। एकटा दोसर उदाहरणमे पी.सी.रायचौधुरीक दरभंगा जिला गजेटियरक तेसर अध्यायक चारिटा उपशीर्षकक अंग्रेजी रचनाकेँ मोहन भारद्वाज अपन सम्पादकत्वमे रमानाथ झा रचनावलीमे -किनको कहलासँ सत्य मानि- रमानाथ झाक रचना मानि घोसिया देलन्हि, जखन की लिखित आ वैयाकरणिक शिल्पक आधारपर ओ रचना पी.सी.रायचौधुरीक अछि। यात्री स्वयं कहै छथि जे ओ मैथिली बलचनमा पहिने लिखलन्हि आ तकर हिन्दीमे अनुवाद केलन्हि। मुदा हिन्दी बलचनमामे ओ ई नै लिखै छथि आ ओकरा हिन्दीक पहिल आंचलिक उपन्यास कहै छथि। ई बेमारी आइयो मैथिलीक लेखककेँ गरोसने अछि आ यात्री जीक ऐ मे सायास-अनायास योगदान दुखदायी अछि।
राजकमल यात्रीकेँ अमर-सुमन सन पुरान ढर्राक कवि कहै छथि, प्रायः यात्रीक छन्दक प्रति सजगतासँ राजकमलकेँ ई भ्रम भेल छलन्हि।
चतुरानन मिश्र आ जगदीश प्रसाद मंडल कम्यूनिस्ट आन्दोलनसँ जुड़ल छथि, प्रायोगिक रूपमे, पार्टी स्तरपर, मुदा हिनकर दुनू गोटेक उपन्यास देखला उत्तर हमरा ई कहबामे कनेको कष्ट नै होइत अछि जे जइ रूपमे यात्री आ धूमकेतु मार्क्सवादक बैशाखी लऽ उपन्यासकेँ ठाढ़ करै छथि तकर बेगरता एहि दुनू उपन्यासकारकेँ नै बुझना जाइत छन्हि। मार्क्सवादक असल अर्थ हिनके दुनूक रचनामे भेटत। कतौ पार्टीक नाम वा विचारधाराक चर्च नै मुदा जे असल डायलेक्टिकल मैटेरियलिज्म छैक तकर पहिचान, जिनगीक महत्वपर विश्वास, द्वन्दात्मक पद्धतिक प्रयोग आ ई तखने सम्भव होइत अछि जखन लेखक दास कैपिटल सहित मार्क्सवादक गहन अध्ययन करत आ प्रायोगिक मार्क्सवादपर कताक दशक चलत।
आ अन्तमे यात्रीजीक संस्कृत पद्य:-
वासन्ती कनकप्रभा प्रगुणिता
पीतारुर्णेः पल्लवैः
हेमाम्भोजविलासविभ्रमरता
दूरे द्विरेफाः स्ता
यैशसण्डलकेलिकानन कथा
विस्मरिता भूतले
छायाविभ्रमतारतम्यतरलाः
तेऽमी “चिनार” द्रुमाः॥
-बसंतक स्वर्णिम आभा द्विगुणित भऽ गेल अछि पीयर-लाल कोपड़सँ। स्वर्णकालक भ्रममे भौरा सभ एकरासँ दूर-दूर रहैत अछि। नन्दनवनक विहारकेँ जे पृथ्वीपर बिसरा दैत अछि, छाह झिलमिल घटैत-बढ़ैत जकर डोलब अछि चंचल आ तरल। ओइ चिनारकेँ हम देखने छी अडिग भेल ठाढ़।
                                               

हिन्दी आ मैथिली आ साहित्यिक शब्दावली
हिन्दी जै हिसाबे अपन भूगोल बढेलक अछि ओइ हिसाबे ओकर शब्दावली नै बढ़ल छैक,से हिन्दीसँ डरबाक कोनो प्रश्ने नै। हिन्दीक साम्राज्यवाद अंग्रीजीक साम्राज्यवादक स्थान लऽ लेने अछि आ से सभ हिन्दी दिवसपर छोट भाषाकेँ गिरबाक ओकर प्रवृत्तिपर बहस नै रोकल जा सकत। लैटिन/दक्षिण अमेरिकाक सभटा मूल भाषा खतम भऽ गेल आ ओकर स्थान स्पेनिश आ पोर्तूगीज लेलक। स्पेन अजटेक सभ्यताकेँ खतम केलक, ओकर सभ चेन्हासी मेटा देलक, मुदा मेक्सिको तकर पश्चातापमे विश्वकप फुटबॉलक आयोजन लेल जे स्टेडियम बनेलक तकर नाम अजटेक स्टेडियम रखलक।
डेनमार्कक शब्दकोष बड विस्तृत छै, प्रायः २३ वोल्यूम सँ बेशीमे छै,  आप्रवासी प्रायः ओकर नागरिकता लेल लै जाएबला परीक्षामे डेनिस भाषामे अनुत्तीर्ण भऽ जाइ छथि, एकटा महिला जे डेनिससँ विवाह केने रहथि हुनकर बच्चा डेनमार्कक नागरिक भऽ गेल मुदा ओ कहलन्हि जे भाषा पेपर बड्ड कठिन छै, डेनिस सेहो ओइमे अनुत्तीर्ण भऽ जाइ छथि, जनसंख्या वा क्षेत्रफलक छोट रहब डेनिस वोकाबुलेरी लेल हानिकारक नै भेलै।

साहित्यकक मूल सरोकार अछि विषय-वस्तुसँ। मुदा शब्दक अकाल जँ साहित्यकारेक मध्य रहत तँ ओ की संप्रेषण करताह, विषय-वस्तुकेँ कोना फरिछा पेताह। जे हाल हिन्दी साहित्यक अछि सएह मैथिलीक भऽ जाएत। शब्दावलीक ग्राह्यता नेटिव स्पीकरक गाममे बाजल जाएबला शब्दावली निर्धारित करत, संस्कृतिसँ दूर प्रवासी द्वारा बाजल जाएबला शब्दावली नै। शब्दावलीक ग्राह्यता नेटिव स्पीकरक गाममे बाजल जाएबला शब्दावली निर्धारित करत, आ जँ संस्कृतिसँ कटल प्रवासी द्वारा बाजल शब्दावलीकेँ आधारभूत बनाएब तँ नीक साहित्य कोड़ि कऽ निकालल बुझाएत आ गोलैसी आधारित समीक्षकक समीक्षित साहित्य नेचुरल बुझाएत।
शास्त्रीय अनुशासन लेखक लेल अछि,  पाठक लेल नै। लेखक जँ गजल, रोला, दोहा, कुण्डलिया शास्त्रीय आधारपर लिखताह तखने पाठककेँ नीक लगतै, जँ लेखक मेहनतिसँ दूर भगताह तँ साहित्यिक पाठकीयता घटत। शास्त्रक बान्ह तोड़बाक विधि सेहो शास्त्रक मध्य छैक, सावित्री मंत्र जँ शास्त्रीय कट्टरतासँ देखी तँ ओ गायत्री छन्दमे नै छै, मुदा हम सभ ओकरा गायत्रीमे मानै छी कारण गणना पुरेबालेल स्वः केँ सुवः कएल गेलै।

दरभंगाक मजहर इमामकेँ "पिछले मौसम का फूल"पर उर्दू लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कार देल गेल। ऐ संग्रहमे गजल (बहरयुक्त) ५५ टा आ आजाद गजल (बे-बहर) ३ टा छै, मुदा पाठक हुनका गजल लेल मोन राखने छन्हि, ओकरा मतलब नै छै जे, जे गजल ओकरा नीक लगलै से बहरमे छै वा नै,  ओकरा तँ नीक लगलै। आ की ई संयोग छी जे बहरयुक्त गजले ओकरा नीक लगलै?

लेखकक आइडियोलोजी पानिमे नून सन हेबाक चाही, पानिमे तेल सन नै आ ऐपर हम पहिनहियो लिखने छी। यात्री आ धूमकेतुकेँ कम्यूनिस्ट पार्टीक सोंगरक आवश्यकता पड़लन्हि कारण वामपंथ नीक सेन्टडिजाइनर वीयरक भाँति हिनका सभ लेल फैशन छल, से बलचनमा कांग्रेस आ समाजवादी पार्टीसँ हटलाक बाद कम्यूनिस्ट आ लालझंडामे सभ समस्याक समाधान तकैए, ओकरा यात्रीजी सभ समाधान ओइमे दै छथिन्ह।  धूमकेतुक पात्र लेल सेहो लाल झंडा लक्षमण बूटी अछि। मुदा ई लोकनि कम्यूनिस्ट मूवमेन्टसँ -फैशनक अतिरिक्त- जुड़ल नै छथि तेँ हिनकर साहित्यमे आइडियोलोजी तेल सन सहसह करैए। आब आउ चतुरानन्द मिश्र आ जगदीश प्रसाद मण्डलक मैथिली साहित्यपर। चतुरानन्द मिश्रक उपन्यासमे वा जगदीश प्रसाद मण्डलक मैथिली साहित्यमे कतौ लालझंडा वा कम्यूनिस्ट पार्टीक चर्च अहाँ देखने छी? एतए जे भेटत से अछि असल वामपंथी द्वन्दात्मक पद्धति, जीवनपर विश्वास, माने आइडियोलोजी नूनसन मिलल। आ की ई मात्र संयोग अछि जे चतुरानन्द मिश्र जीवनक प्रारम्भमे साहित्य लिखै छथि आ जगदीश प्रसाद मण्डल जीवनक उत्तरार्धमे, अन्तिम केस खतम भेलाक बाद? जगदीश प्रसाद मण्डलक गाम बेरमाक जमीन्दार ठाकुर जी हमर पितयौत भाइकेँ कहलखिन्ह जे जगदीश प्रसाद मण्डल सत्य हरिश्चन्द्र छथि, हमर गामक गौरव छथि। आ से तखन, जखन जगदीश प्रसाद मण्डल कम्यूनिस्ट मूवमेन्टक नेतृत्व केलन्हि दसो बेर जेल गेलाह,  केस हुनके सभसँ लड़लन्हि आ तकर परिणाम भेल जे बेरमामे आइ दस बीघासँ पैघ जोत ककरो नै छै। आइयो ओ फूसक घरमे रहै छथि आ तीन बजे उठि कऽ डिबिया लेस कऽ मैथिली साहित्य लिखै छथि आ हुनकर बेटा हुनका आइ धरि लिखैत नै देखने छथिन्ह, जे कखन ओ लिखै छथि, भोगेन्द्र झाक नेतृत्वमे ओ प्रण लेने रहथि जे जखन बाजब, सभ मैथिलीमे बाजब। से हुनकर बेटा हुनका मैथिलीक अतिरिक्त दोसर भाषा बजैत नै सुनने छथिन्ह। आ सएह कारण अछि जे हुनकर विषय-वस्तु नवीन होइत अछि, हुनकर शब्दावली नेटिव स्पीकरक शब्दावली अछि, जे ओइ विषय-वस्तुकेँ फरिछेबामे सफल होइत अछिआवश्यक अछि। हुनकर लोक, हुनकर गाछ-बृच्छ, हुनकर फूलपात, हुनकर खेत खलिहान असल अछि, जमीनी अछि, पतालसँ कोड़ि कऽ निकालल नै। आ हुनकासँ प्रेरणा लऽ प्रवासमे रहनिहार नव साहित्यकार मैथिली लिखबासँ पहिने मिथिलाक इतिहास-भूगोल आ संस्कृतिक ज्ञान प्राप्त करथु, तखने हुनकर साहित्य फराक भऽ सकतन्हि। ऐ लिंकसँ राधाकृष्ण चौधरीक मिथिलाक इतिहास आ जगदीश प्रसाद मण्डलक गामक जिनगी पढ़ू https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/  आ मैथिली शब्दावली लेल  ई लिंक देखू http://videha.co.in/new_page_13.htm

बेरमाक ठाकुरजी सन लोकक विचार हमरा लेल बेशी महत्व राखैए,बनिस्पत गोलैसी केनिहार साहित्यकारक/ समीक्षकक जिनकर आयातित शब्दावलीबला साहित्य कोना मैथिली पाठक घटेलकै; आ खाँटी शब्दावली कोना मैथिली साहित्यक स्तर ऊँच केलकै, आ पाठक बढ़ेलकै, ई आब ककरोसँ नुकाएल नै अछि।

उपन्यास लेल दू-दू बेर बूकर पुरस्कार आ साहित्यक लेल नोबल पुरस्कारसँ सम्मानित जॉन मैक्सवेल कुट्सी भाषाक सन्दर्भमे कहने रहथि जे अफ्रीकान्स आ अंग्रेजी भाषाक द्विभाषिया माहौलमे हुनकर अंग्रेजी लेखन हुनका लेल बहुत रास संप्रेषण सम्बन्धी समस्या सोझाँ अनैत छल। ओ अफ्रीकान्ससँ अंग्रेजीमे तकर प्रतिकार स्वरूप ढेर रास अनुवाद केलन्हि। मुदा मैथिलीक साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता (आ किछु ऐ पुरस्कार लेल ललाइत आकांक्षी लोकनि), जे तथाकथित साहित्यकार लोकनि छथि, से जइ प्रकारेँ मैथिली आ हिन्दी दुनूक डोरी पकड़ि माहौल खराप करबामे लागल छथि, से जॉन मैक्सवेल कुट्सीसँ किछु शिक्षा ग्रहण करताह, से मात्र आशा कऽ सकै छी।
अमेरिकामे ३५० शब्दक अंग्रेजीक "हाइ प्रेक्वेन्सी" आ ३५०० "बेसिक वर्ड लिस्ट" हाइ स्कूलक छात्र लेल छै जे क्रमशः कॉलेज आ ग्रेजुएट स्कूल (ओतए पोस्ट ग्रेजुएटकेँ ग्रेजुएट स्कूल कहल जाइ छै) धरि पहुँचलापर दुगुना (गएर भाषा फेकल्टीक छात्र लेल) भऽ जाइ छै। साहित्यक विद्यार्थी/ साहित्यकार लेल ऐ सँ दस गुणा अपेक्षित होइत अछि। हिन्दीमे -अपवाद स्वरूप आंचलिक पोथी छोड़ि- हिन्दीक कवि आ उपन्यासकार अठमा वर्गक २००० शब्दक शब्दावलीसँ साहित्य (पद्य, उपन्यास) रचै छथि आ मैथिलीक किछु साहित्यकार ऐ बेसिक २००० शब्दक वर्ड लिस्टकेँ मैथिलीमे आयात करए चाहै छथि, आ ओतबे धरि सीमित रहए चाहै छथि, जखन जापानी अल्फाबेटक चेन्ह ५०० धरि पहुँचि जाइ छै।



( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ खन धरि ११ देशक १,९३५ ठामसँ ६,४५९ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,२२,३७७ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
 

 

गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.com
 

http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html

 

२. गद्य












 जगदीश प्रसाद मण्‍डल  जन्‍म- ५.७.१९४७- पिताक नामः स्व. दल्‍लू मण्‍डल, माताक नामः स्व. मकोबती देवी, मातृकमनसारा, घनश्‍यामपुर, जिला- दरभंगा। गाम-बेरमा, भाया- तमुरिया, जिला-मधुबनी, (बि‍हार) ८४७४१०
Email- jpmandal.berma@gmail.com मो. ०९९३१६५४७४२
प्रकाशि‍त कृति‍- १ गामक जिनगी (कथा संग्रह), २ मिथिलाक बेटी (नाटक), ३ तरेगन (बाल प्रेरक लघुकथा संग्रह), ४ मौलाइल गाछक फूल (उपन्‍यास), ५ जिनगीक जीत (उपन्यास), ६ उत्थान-पतन (उपन्यास), ७ जीवनमरण (उपन्यास), ८ जीवन संघर्ष (उपन्यास)।

ई-प्रकाशि‍त कृति‍- १ त्रि‍फला (एकांकी संग्रह), २ इन्‍द्रधनुषी अकास (कवि‍ता संग्रह), ३ मइटुग्‍गर (दीर्धकथा संग्रह), ४ कम्‍प्रोमाइज (नाटक), ५ झमेलि‍या वि‍याह (नाटक), ६ ‘अर्द्धांगि‍नी....सरोजनी....सुभद्रा....भाइक सि‍नेह इत्‍यादि‍’’ कथा संग्रह।

सभ पोथी फ्री डॉनलोड हेतु उपलब्‍ध- https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/

एकटा दीर्घकथा आ एकटा एकांकी
 
दीर्घकथा

शंभूदास

जि‍नगीक ओइ सीमापर शंभूदास पहुँच गेल छथि‍ जतए पैछला जि‍नगीक बहुतो वि‍चार आ काज स्‍वत: छुटि‍ गेलनि‍। कि‍छु नव जे मनमे उपकि‍ रहल छन्‍हि‍ ओ करैले जइ शक्‍ति‍ आ सामर्थक जते जरूरत छन्‍हि‍ ओ तकनहुँ नै भेट रहल छन्‍हि‍। जना आगि‍क चि‍नगोरा रसे-रसे पझा-पझा या तँ मैल जकाँ उपर छाड़ने जा रहल छन्‍हि‍ या झड़ि‍-झड़ि‍ खसि‍ रहल छन्हि‍। डंटीसँ टूटल पोखरि‍क कमल सदृश्‍य हवाक सि‍हकी वा पानि‍क कम्‍पन्नसँ दहलि‍ रहल छन्‍हि‍। जे कहि‍यो कामधेनु, फूल-फड़सँ लदल वृक्ष सदृश्‍य छलनि‍ वएह आइ ठाँठ वा पत्रहीन ठूठ बुझि‍ पड़ि‍ रहल छन्‍हि‍। जे कहि‍यो राजभोगक बीच दिन बि‍तबैत छलाह आइ अन्न-वस्‍त्र वि‍हीन भीखक घाटपर बैस अपन जि‍नगीक हि‍साब-वारी जोड़ि‍ रहल छथि‍। मन कहैत छन्‍हि‍ जे सभ दि‍न तँ गुनगुनाइत रहलौं- जे बच्‍चा कनैत ऐ धरतीपर अबैत अछि‍ आ हँसैत जाइक चाहि‍ऐ, मुदा से कहाँ......? जे आत्‍मा बि‍नु वि‍वेकक जि‍नगी टपि‍ वि‍वेकवान लग पहुँचल ओ आगू नै बढ़ि‍ पाछू दि‍स कि‍अए ढड़कि‍ रहल अछि‍। सोन-सन उज्‍जर धप-धप दाढ़ी-मोछक संग माथसँ पएरक अंगुरि‍क धरि‍क केश, आमील सन सुखाएल गालक संग अगि‍ला भाग, सामर्थ हीन हाथ-पएरक मुदा आँखि‍क ज्‍योति‍ भोरक ध्रुवतारा जकाँ ललौन मन उफनि‍ उठलनि‍ जे देवस्‍थान जकाँ ति‍रपेखनि‍ ऐ दुनि‍याँक करब।

जहि‍ना बाध-वोनक ओहन परती जइपर कहि‍यो हर-कोदारि‍ नै चलल सुखि‍-सुखि‍ गाि‍छ-वि‍रि‍छ खसि‍ उसर भऽ जाइत, ओइ परतीपर या तँ चि‍ड़ै-चुनमुनीक माध्‍यमसँ वा हवा-पानि‍क माध्‍यमसँ अनेरूआ फूल-फड़क गाछ जनमि‍ रौद-वसात, पानि‍-पाथर, अन्‍हर-वि‍हाड़ि‍ सहि‍ अपन जुआनी पाबि‍ छाती खोलि‍ बाट-बटोहीकेँ अपन मीठ सुआदसँ तृप्‍ति‍ करैत तहि‍ना जमुना नदीक तटपर शंभूदासक जन्‍म बटाइ-कि‍सान परि‍वारमे भेलनि‍। रवि‍ दि‍न रहने समाजक दाय-माय शुभ दि‍न मानि‍ शंभू नाओं रखलकनि‍। परदेशि‍या जकाँ तँ नै जे जन्‍मसँ पहि‍नहि‍ माए-बाप नामकरण कऽ लैत। छठम दि‍नसँ पूर्वक सभ कष्‍ट वि‍सरि‍ शंभूदासक माए सुखनी अपन सुखैक नि‍आसा छोड़ि‍ अपन देवस्‍थानक देवता पूजनमे हराएल। अपन मर्यादा गसि‍ कऽ पकड़ि‍ शंभूक सेवामे जुटि‍ गेलीह। परि‍वारक बोझक तर पि‍ता, तँए बि‍लगा कऽ कि‍छु नै सोचथि‍।

पाँच वर्ख पूर्व धरि‍ संतोखीदास अपने बोनि‍हार सभ जकाँ दुनू परानी संतोखी आ सुखनी, खेति‍हर बोनि‍हार छलाह। खेति‍यो तँ मौसमेक हाथक खेलौना। बेठेकान। मुदा तैयो तँ सभ बुझैत जे जाड़, गरमी आ बरसात, सालक तीन अवस्‍था छी। भलहि‍ं गोटे साल शीतलहरी पाबि‍ जाड़ अपन वि‍काराल रूप देखबैत तँ रौदी पाबि‍ गरमी। बरखा पाबि‍ बसात बाढ़ि‍क संग नंगटे नचैत तँ झाँट पाबि‍ ताण्‍डव करैत।

बजारवादक हवा सि‍हकल। ओना तँ वि‍हाड़ि‍क रूप हवा उठल मुदा पहाड़, बोनक टाट अँटकौलक। गति‍केँ कम केलक मुदा तैयो बहि‍ते रहल। जाड़-रौदीक मारल कि‍सानो अा बोनि‍हारो गाम (खेती-पथारी) छोड़ि‍ बजार दि‍स वि‍दा भेल। जहि‍ना घर बनबैमे पातरसँ मोट खूँटाक जरूरत होइत तहि‍ना करखाना चलबैक लेल मजदूरसँ लऽ कऽ संचालक धरि‍क आवश्यकता भेल। उजड़ल-उपटल गामक रूखि‍मे बदलाव अबए लगल। खेतमे काज केनि‍हार बोनि‍हारकेँ करखन्नाक नव मजदूरी भेटए लगल। जइसँ जि‍नगीमे हरि‍यरी अबए लगलै। मुदा हवाक गति‍ धीरे-धीरे तेज हुअए लगल। सस्‍त मजदूर पाबि‍ रंग-वि‍रंगक कारोवार शहरमे जन्‍म लि‍अए लगल। जइसँ श्रमि‍कक मांग बढ़ल। टूटैत गामक जि‍नगीसँ तंग भऽ वेवस श्रमि‍क जेर बना-बना बजारक बाट पकड़लक। श्रमक वि‍करीक कारोवार जोर पकड़लक। खुल्‍लम-खुल्‍ला वि‍करी बट्टा हुअए लगल।
गामक श्रमि‍कक पड़ाइनसँ गामो हलचलाएल। खेतबलाकेँ करखन्ना पहुँचने खेतीमे ठहराव आएल। श्रमि‍कक अभावमे खेती ठमकल। समाजक वि‍चारधारामे बदलाव आएल। एक वि‍चारधारा -जे अखनो धरि‍ सम्‍पति‍केँ प्रति‍ष्‍ठा बुझैत- जे पहि‍लुकके खेतीकेँ थोड़-थाड़ अन्न-पानि‍ खुआ-पि‍आ जीवि‍त रखलनि‍ तँ दोसर वि‍चारधारा (शहरी कारोवार देख) खेत-पथार माने ग्रामीण सम्‍पत्ति‍केँ पूँजी बुझि‍ आमद-खर्चक ि‍हसाब जोड़ि‍ वि‍चारमे बदलाव अनलनि‍। संग-संग बटाइ खेतीक बीच नव-समस्‍या सेहो उठल। जइठाम एखन धरि‍ गामक जमीनदार खेतक उपजे बेर-टामे खेतक दर्शन करैत, ओ गामसँ बाहर भेने सालक-साल खेतक दर्शनसँ वि‍मुख भेला। संग-संग गाममे श्रम-शक्‍ति‍क अभाव भेल। बटेदारक वर्गक वृद्धि‍ भेल। खेतक बटाइ प्रथामे बदलाव आएल। जइसँ आमक कन (फड़क ि‍हसावसँ) उपजाक मनखप आ पोसि‍या माल-जालमे बदलाव आएल। कोनो धरानी संतोखीदास एकटा बड़द बनौलक। दू परानीक हाथ-पएर आ एकटा बड़द पाबि‍ संतोखीदास बटेदार कि‍सानक रूपमे ठाढ़ भेल। पेट भरने परि‍वारमे खुशीक बाढ़ि‍ तँ नै मुदा पटवी पानि‍क खुशी जरूर आबि‍ गेल। बीघा भरि‍क खेति‍हर संतोखीदास बनि‍ गेल। नव आर्थिक वि‍कास भेने परि‍वारक बच्‍चो सभमे मौलाहट कमल। जइसँ बच्‍चाक मृत्‍युक संख्‍यामे कमी आएल। ओना एखनो धरि‍ श्रमि‍क‍ परि‍वारमे बेट-बेटीमे अन्‍तर नै बुझल जाइत कि‍एक तँ भगवानक अगम लीलाक बीच हस्‍तक्षेप नै करए चाहैत मुदा बजारक बि‍खाएल वयार तँ बहि‍ये रहल अछि‍।
शंभूक तीन बर्ख पुरि‍ते, जहि‍ना शीतलहरीमे पौ फटि‍ते सुरूजक रोशनीक आशा जगैत, बदरीहन समए बादलकेँ छि‍ड़ि‍आइते घरसँ बहराइक आशा जगैत तहि‍ना संतोखि‍यो दास आ सुखनि‍योकेँ भेल। जि‍नगी भरि‍क लेल मनखप खेत भेटने कि‍अए नै दुनू परानीक मनमे आशा आओत। तहूमे बाढ़ि‍-रौदीक सालक कोनो देनदरि‍ये नै, रहल सुभ्‍यस्‍त समैक देनदारी। ओहो देनदारी कि‍ अन्‍तैसँ कमा कऽ आनए पड़त। धरती माता कामधेनु। जते करब तते पाएब। जखन मन हएत, तखन खाएब। दि‍न-राति‍ ओंघराइत रहब।

एखन धरि‍ सुखनी शंभूक पाछू आंगनसँ नै नि‍कलि‍ पबैत छलीह मुदा आब तँ शंभू तीन सालक भऽ गेल। अगहन मासमे खेतक आड़ि‍पर धानक खाेंचड़ि‍क घर बना देब ओइमे खेलेबो करत आंेघी लगतै तँ सुतबो करत। गरमी मासमे गाछक छाहरि‍मे रहत। लऽ दऽ कऽ बरसात रहल। तँ बरखो कि‍ लोककेँ बि‍ना चेतौने अबैए। अबैसँ पहि‍ने राजा-रजवाड़ जकाँ समाद पठा दैत अछि‍। तहूमे बरखा केहन रूपमे आओत सेहो तँ कहि‍ये दैत अछि‍। जेठुआ बरखामे जे दुइयो बेर देह धुआ जेतै तँ सालो भरि‍ धुआएले रहतै। बच्‍चा कि‍ कोनो सि‍यान सैतान होइए जे भरि‍ दि‍न डौं-डौं करत। ओकरा तँ अन्न-पानि‍ भेट जाए, भरि‍ दि‍न बौआइत रहत। जहि‍ना नव दाँत जनमने मसुहरि‍ कि‍छु करैले सबसबाइत अछि‍ तहि‍ना बच्‍चो मन।

जेठक दसहारा। बृहस्‍पति‍ दि‍न। गि‍रहस्‍तीक पतराएल काज। अटूट फड़ल आम-जामुनक गाछ। गामक-गाम लोकक मन गदगद। कि‍अए ने रहत। दू मास जे अमृत फल भेटत। बाधक चौबगली गाम अष्‍टयाम कीर्तनक मंत्रसँ अकास गनगनाइत। कि‍म्‍हरो सीताराम, सीताराम सीताराम जय सीताराम तँ कि‍म्‍हरो काली, दुर्गे राधे श्‍याम, गौरी शंकर सीताराम। कि‍म्‍हरो हरे राम, हरे राम...। तँ कि‍म्‍हरो हरे कृष्‍ण हरे कृष्‍ण।
दसहारा रहने ब्रह्मस्‍थानमे घोड़ा चढ़ौल सजाओल जाएत। ऐबेर तँ जहि‍ना ब्रह्मबाबा खुशी छथि‍न तहि‍ना लोकोक मन। आन साल जकाँ कि‍ ऐबेर हल्‍लुक दामा टंगसुखा घोड़ा लोक चढ़ौत पहि‍ने सए-पचास बेना दऽ दऽ सरैसो घोड़ासँ नि‍म्‍मन-नि‍म्‍मन चढ़ौत। दूध-पीठ खाइत-खाइत ब्रह्मोबाबाक मन अकछा गेल छन्‍हि‍ तँए ऐबेर सेरही, पनसेरही, दससेरही, अधमनीक संग मनही मुंगबा सेहो परदेसि‍या सभ चढ़ौत।

दि‍नक एगारह बजैत। माटि‍-पानि‍ तबने हबो तबि‍ गेल। खेतक जे खढ़ अछि‍ ओ रोहणि‍ मि‍रगि‍सरामे नै सूखत तँ सालो भरि‍ ओकर ओधि‍ थोड़े सुखत। तँए संतोखीदास मरूआ खेत जोतए आ सुखनी खढ़ बि‍छए गेल। मुदा छोट बच्‍चा शंभूकेँ असकरे आँगनमे केना छोड़ि‍ दि‍तथि‍। शंभू लेल बाटीमे भात आ भरि‍ डोल पानि‍ नेने खेत गेली। अपनो सभकेँ पि‍यास लगत तँ पीबैक खि‍यालसँ। खेतसँ कट्ठा दुऐक हटि‍ आड़ि‍पर एकटा बज्‍जर केराइक अनेरूआ गाछ। जकरा नि‍च्‍चामे सघन छाहरि‍ तँ नै मुदा छाहरि‍। जतए शंभूकेँ खेलाइले छोड़ि‍ अपने दुनू परानी संतोखीदास खेतमे काज करैत। काज लगि‍चाएल देख, खाली हड़मड़ी चौकी देब बाकी, हर खोलि‍ चौकी ठेक संतोखीदास पत्नीकेँ कहलखि‍न- रौदमे मन तबैध गेल हएत, कनीखान छाहरि‍मे जीरा लइले चलू।
सुखनी- सएह कहए चाहै छलौं मुदा काज लगि‍चाएल देख नै कहै छलौं। जे काज ससरि‍ जाइ छै ओते तँ जाने हल्लुक होइ छै कि‍ने।
हँ से तँ होइ छै। मुदा काजो कि‍......?”
से की?”
गैंचि‍याह नजरि‍ पत्नीपर दैत संतोखीदास मुस्‍की दैत कहए लगलखि‍न- जहि‍ना भाँग-गांजा अपन सेवककेँ बौरा दैत, बेशि‍या इश्कबाजकेँ, तहि‍ना ने काजो अपन कर्ताकेँ बाबला बना जान लइपर तुलल रहैत।
नै बुझलौं?”
देखै नै छि‍ऐ, दोकान सभमे लि‍ख कऽ टांगल रहैए जे, काज करैत चलू फलक आशा नै करू।' जखन मनुख छी रोड-सड़ककेँ नाि‍प मीलक पाथर गारल रहैए तखन कतऽ कोन रास्‍ता चलक चाही से तँ सोचए पड़ैत कि‍ने। आकि‍ रस्‍ते भुति‍या जाय। जे बाट नै देखल रहै छै ओही बाटमे ने लोक भुति‍आइए। खाइर, छोड़ू ऐ सभकेँ चलू कनी ठंढ़ाइयो लेब दू घोंट पानि‍यो पीब लेब आ तमाकुलो खा लेब।
दुनू परानी बज्‍जर केराइ गाछसँ फड़ि‍क्के देखलनि‍ जे शंभू पूवारि‍ पारक अष्‍टयामक मंत्र- हरे कृष्‍णा, हरे कृष्‍णा, कृष्‍णा-कृष्‍णा हरे-हरे एक ताले छठि‍क ढोल जकाँ थोपड़ी बजबैत गबैत रहए। बेटापर नजरि‍ पड़ि‍ते सुखनी अध खि‍लू फूल जकाँ वि‍हुँसैत पति‍केँ कहलनि‍- देखि‍यौ ऐ छौंड़ाकेँ। आन धि‍या-पूता रहैत तँ माए-माए करैत। केहेन मगन भेल अछि‍।
पति‍- रौदमे तबैध तँ ने गेल अछि‍?”
तबधल बच्‍चा थोपड़ी बजा गाओत आकि‍ अँहोछि‍या काटत।
हँ से तँ ठीके।
जहि‍ना तत्‍व चि‍न्‍तक आत्‍माक तार जोड़ि‍ ब्रह्म तत्‍वक अन्‍वेषण करैत तहि‍ना शंभू कृष्‍ण मंत्रसँ अपन मनक तार जोड़ि‍ अष्‍टयामक धुनमे बेसुधि‍ भेल मीरा जकाँ गाबि‍ रहल अछि‍।
जहि‍ना एक्के फुलबाड़ी वा गाछीमे भि‍न्न-भि‍न्न रंगक फूल वा फल ताधरि‍ अपन परि‍चयसँ हराएल रहैत जाधरि‍ बच्‍चा सदृश्‍य पालल-पोसल जाइत, मुदा जखन अपन गुण वा रूप देखबै जोकर भऽ जाइत तखन एकठाम रहि‍तो बेड़ाए लगैत तहि‍ना छह बर्ख अबैत-अबैत शंभूओ बेड़ाए लगल। परि‍वारमे अनेको रंगक वस्‍तु-जात रहि‍तो ओतबे सि‍नेह रखैत जते काजक वस्‍तु बुझैत। जइ वस्‍तुक प्रयोजन आन-आन रूपकेँ आन-आन काजमे होइत तइसँ भि‍न्न ओइ वस्‍तुक उपयोग अपन काज देख करए लगल।
अपना खेत-पथार नै रहि‍तो संतोखीदासक परि‍वार गामक कि‍सान परि‍वारक खाड़ीमे आबि‍ चुकल छल। जहि‍ना कि‍सान परि‍वारमे वाइस-बेरहट कऽ कऽ खाइत अछि‍ तहि‍ना संतोखि‍यो दासक परि‍वारमे चलए लगलनि‍। ओना ई गति‍ लगातार नै चलि‍ पबैत, कि‍एक तँ कि‍सान परि‍वार, डेंगी नाह जकाँ सदति‍ उपर-नि‍च्‍चा होइत रहैत। जइ साल खरचट्टा वा दहार समए भेल तइ साल सभ धुआ-पोछा गेल। मुदा जइ साल सुभि‍तगर समए भेल तइ साल पुन: नव-पुरानक चालि‍ पकड़ि‍ लैत। नवे-पुरानक चालि‍ ने रसगरो आ सुअदगरो होइए, अगि‍ला-पछि‍ला बाट देख चलबे ने दि‍शा दैत। जेना एक्के आमक चटनी टटका नीक होइत तँ अचार बसि‍या। जते-पुरान तते रसगर। मुदा चटनी तँ लगले अरूआ जाइत। तहि‍ना नवका कुरथीक दालि‍ आ पुरान राहड़ि‍क दालि‍।
एखन धरि‍ शंभू, परि‍वारकेँ खाली खाइ-पीबै, माता-पि‍ताक संग रहैक टा बुझैत। कि‍एक तँ बाल-बोध बुझि‍, ने माता-पि‍ता कि‍छु करैले अढ़बैत आ ने शंभू परि‍वारक काजकेँ अपन काज बुझैत। सदति‍ धैनसन। सोलहन्नी बेरागी जकाँ। मुदा तँए कि‍ शंभू भरि‍ दि‍न ओछाइनेपर ओंघराएल रहैत सेहो बात नै। जँ कि‍छु नै करैत तँ दि‍न-राति‍ केना कटैत छैक।
अखनो धरि‍ गामक िकसान धरतीसँ अकास धरि‍क स्‍मरण साँझ-भोर जरूर करैत अछि‍। भोरमे धरतीक स्‍मरण तँ साँझमे अकास वि‍चरण जरूर करैत अछि‍। आने परि‍वार जकाँ संतोखि‍यो दासक परि‍वार। परि‍वारमे शंभूक कोनो मोजरे नै। मात्र खाइ-पीबै आ सुतै बेर माता-पि‍ता सि‍र चढ़बैत। बाकी समए साँढ़-पारा जकाँ अनेर बौआइत ढहनाइत। तँए कि‍ सींग-नाङरि‍बला पशु जकाँ कि‍ शंभूकेँ थइर-पगहाक जरूरत होइत। 'अनेर गाएकेँ धरम रखवार' होइत।
भोरमे जखन संतोखीदास खेत-तमैक वि‍चार करए लगथि‍ तँ नचैत हृदेक घूघड़ूक कम्‍पन्न ठोठक स्‍वर होइत खापड़ि‍क मकइ-जनेरक लावा जकाँ कूदि‍-कूदि‍ नि‍च्‍चा खसैत तहि‍ना संतोखि‍यो दासक मुँहसँ रंग-वि‍रंगक मौसमक संग मौसमी सि‍नेह छि‍ड़ि‍याए लगैत। जकरा बीछ-बीछ शंभू खेलेबो करैत आ तहि‍या-तहि‍या सीनाक डायरीमे लि‍ख-लि‍ख रखबो करैत। हृदयंगम करैत। मुदा बच्‍चाक कचि‍या डायरी रहने कि‍छु लि‍खेबो करैत आ कि‍छु नहि‍यो लि‍खाइत। मुदा प्रति‍ भोर आ साँझक स्‍वर 'सीताराम-सीताराम, राधेश्‍याम-राधेश्‍याम' डायरीक उपरेक पन्नामे लि‍खा गेल। जकरा भरि‍ दि‍न शंभू गो-मुखी रूद्राक्षक माला बना जपैत रहैत। कामधेनु गाए जकाँ सदति‍ दूधक ढारसँ नव-नव राग-रागि‍नी स्‍वत: अबए लगल। कंठक स्‍वर-लहरी हाथकेँ थि‍रकबै लगल। जइसँ कखनो दुनू हाथ मि‍ल ताल मि‍लबैत तँ कखनो पल्‍था मारि‍ बैस  ठेहुनपर ताल मि‍लबए लगल।

घर-अंगना एक रहने पि‍ताक संग माइयोक पाछू-पाछू आंगन बाहरैत समए, चुल्हि‍-चि‍नमार नीपैक समए, जाँत-ढेकी चलबैक समए शंभू नचए-गबए लगल। बेटाक बौराइत मन देख माइयो आत्‍म-वि‍भोर भऽ झुमि‍-झुमि‍ शंभूक आँखि‍मे आँखि‍ गारि‍ फड़ैत-फुलाइत फुलबाड़ीमे हरा जाइत।
माता-पि‍ताक उसकैत हाथ देख शंभूओक हाथ खाइबला बाटीपर उसकए लगल। खजुरी जकाँ ओकरा बजाएब शुरू केलक। कोना नै करत? कामेसँ राम आ रामेसँ काम ने चलैत अछि‍। मुदा भारी द्रव्‍यक बाटी रहने हाड़-मासुक हाथक ओंगरी कतेखान ठठत। जे बात शंभू तँ नै बुझि‍ सकल मुदा संतोखीदास बुझि‍ गेलखि‍न। सोचलनि‍ जे जँ खजुरी बना दि‍अए तँ चौबीसो घंटा शंभू आनन्‍दमे मगन रहत। बेटाक प्रति‍ पि‍ताक दायि‍त्‍वे कि‍? यएह ने जे हँसी-खुखीसँ दि‍न-राति‍ चलैत रहए। मन मानि‍ गेलनि‍ जे बेटाकेँ खजुरी बना देबै। एकलव्‍य जकाँ साजमे खजुरि‍यो ने अछि‍। ने ओकरा दोसर संगीक जरूरत होइत आ ने कखनो अपनाकेँ असगर बुझैत। जहि‍ना हवामे उड़ैत रोग लोककेँ पकड़ि‍ लैत, लगन अबि‍ते बर-कन्‍याकेँ पकड़ए लगैत, तीर्थ-व्रतक डोरी लगैत तहि‍ना शंभूओकेँ गीत-नादक माने संगीतक रांग पकड़ि‍ लेलक। जइसँ पि‍ताकेँ हर जोतैत, कोदारि‍ पाड़ैत, धान-रोपैत कालक गुनगुनीक संग आंगन बाहरैत, धान कुटैत, जत्ता चलबैत कालक गुनगुनी पकड़ि‍ लेलक। जकरा संग शंभू भरि‍ दि‍न मगन भऽ गारा-जोड़ी केने बुलए-भंगए लगल। मुदा तँए कि‍ शंभू एतबेमे ओझराएल रहल? नै! ने ओकरा गामक आन घर अनभुआर आ ने लोक अनठि‍या बुझि‍ पड़ै। तहूमे एकठाम रहने, जखन माए-बापक संग बाध-बोन दि‍स जाए तँ वएह घर वएह लोक देखए। समाज तँ ओहन सरोबर छी जइमे घोंघा-सि‍तुआसँ लऽ कऽ कमल धरि‍ फुलाइत अछि‍। देवस्‍थानमे साँझ-भोर घड़ी-घंट, शंख बजैत खरि‍हाँनमे धान फटकैत सूपक अवाज अकासमे उड़ैत। काठपर ओंघराइत टेंगारी-कुड़हरि‍ गर्द करैत तँ चुल्हि‍पर चढ़ल बरतनक अदहन झ-झ-काली करैत रहैत।
छह बर्खक बेटा शंभू लेल संतोखीदास खजुरीक ओरि‍यान करैक वि‍चार केलनि‍। ओना हाट-बजारमे खजुरी तँ नै बि‍काइत अछि‍ मुदा हरि‍हरक्षेत्र, सि‍हेश्वर, जनकपुर आ देवघरमे तँ बि‍काइते अछि‍। मुदा ओतएसँ आओत कोना? एखन तँ अोम्‍हर मुँहे जाइक नि‍यार नै अछि‍। ओना गामोमे बरही लकड़ीक कठरा बनबैए। सरि‍सोबा सनगोहि‍ मारि‍ मघैया खेबो करैए आ ओकर छाल बेचबो करैए। अगर जँ कठरा बनबा, सनगोहि‍क छाल कीन लेब तँ तेबखाक बेसनसँ अपनो छाड़ि‍ लेब। हम सभ कि‍ कोनो शहर-बजारक लोक छी जे बेटा-बेटीकेँ पेस्‍तौल बम-बारूद-छुड़छुडी-फटाका- खेलाइले देबै। जँ खेत-खरि‍हाँन दि‍सक मन देखि‍ति‍ऐ तँ खि‍एलहा हँसुआ-खुरपी खेलाइले दैति‍ऐ जँ से नै देखै छि‍ऐ तँ एकरा खजुरि‍येक ओरि‍यान कऽ देबै। सएह केलनि‍।
जहि‍ना हाथमे औजार ऐने श्रमि‍क बड़का-बड़का इंजीन बना चलबैत तहि‍ना हाथमे खजुरी ऐने शंभूओ परि‍वारक संग समाजक कीर्तन, भजन, यज्ञ इत्‍यादि‍मे शामि‍ल हुअए लगल।
छह बर्ख बीतैत-बीतैत शंभूक हाथ खजुरीपर बैस गेल। जइसँ असकरे आंगनक ओसारपर बैस जाधरि‍ हाथक आंगुर नै दुखाए लगै ताधरि‍ एकताले सीता-राम सीता-राम, राधेश्‍याम, राधेश्‍याम खजुरि‍क अवाजक संग अपन कंठक अवाज मि‍ला उन्‍मत्त भऽ गबैत-रहैत।
भगवानोक लीला अजीव छन्‍हि‍। एक्के मनुख वा पशु-पक्षीक गोटे बच्‍चाकेँ उम्रसँ बेसि‍ऐ बना दैत छथि‍न आ कोनोकेँ कम बना दैत छथि‍न। कि‍यो पाँचे बर्खमे पनरह बर्खक बुद्धि‍-ज्ञान अरजि‍ लैत अछि‍ तँ कि‍यो पनरहो बर्खमे पाँचो बर्खसँ नि‍च्‍चे रहैत अछि‍। जना शंभुओकेँ भेल। छबे बर्खमे पनरह बर्खक बच्‍चाक कान काटए लगल। तहूँमे तेहन समाजक स्‍कूल अछि‍ जे जते मि‍हनत करए चाहब ओते फलो भेटबे करत।
सदि‍काल कतौ ने कतौ कोनो ने कोनो उत्‍सव समाजमे होइते रहैत अछि‍। देवस्‍थानसँ परि‍वार धरि‍, कतौ अष्‍टयाम-कीर्तन, तँ कतौ बच्‍चाक मूड़न, कतौ सत्‍यनारायण भगवानक पूजा तँ कतौ ि‍वयाह-दुरागमन। शुभ काज तँए शुभ वातावरण बनबैक लेल शुभ-शुभ क्रि‍या-कलाप। शुभ क्रि‍या-कलापक लेल कतौ ढोलक-झालि‍ हारमोनि‍यमक संग रामधुन चलैत तँ कतौ ढोल-पीपहीक संग गीत-नाद। ततबे नै संग-संग परि‍वारक उत्‍सवमे समबेत स्‍वर माए-वहीनि‍क गीत-नाद सेहो चलबे करैत अछि‍। जहि‍ना पाँच बर्खक बच्‍चा  स्‍कूलमे नाअों लि‍खा दोसर-तेसर बच्‍चा संग पढ़ैत तहि‍ना शंभूओ समाजमे कतौ ढोलक-झालि‍ वा ढोल-पीपहीक अवाज सुनि‍ते ठोकले ओइ जगहपर पहुँच, बेद पाठी जकाँ आँखि‍-कान समेट ताधरि‍ देखैत-सुनैत रहैत जाधरि‍ वि‍श्राम करैले बन्न नै होइत। शंभूक क्रि‍या-कलापसँ दुनू परानी संतोखीदास सेहो नि‍चेन भऽ अपन काज करैत रहैत। काजमे मस्‍त रहैत। कि‍एक तँ दुनू परानी बुझि‍ गेलाह जे जतए ढोल-पीपही बजैत हएत शंभू ओतए जरूर हएत। तँए जखन खेत-पथारसँ काज कए घुमैत तँ ठोकले ओइ स्‍थानपर पहुँच शंभूकेँ ताकि‍ अनैत।
समाजो तँ ओहन बाट बना चलैत जइसँ हँसैत-खि‍लैत जि‍नगी बि‍नु थकनहि‍ सदैत चलैत रहैत। कोना नै चलत? धार ककर आशा-बाटक प्रति‍क्षा करैत। जहि‍ना अपना गति‍ये दि‍न-राति‍ चलैत रहैत तहि‍ना ने समाजो अपना गति‍ये सदैत चलैत रहैत।

नवम् वर्ख चढ़ैत-चढ़ैत शंभूआ शंभू बनि‍ गेल। कारण भेल जे आन-आन बच्‍चासँ भि‍न्न काजक प्रति‍ झुकाव हुअए लगलै। जहि‍ना जीवनी (जीवनक पारखी) बोन-झाड़ वा गाछी-वि‍रछीमे, बरसातक उपरान्‍त आसीन-काति‍कमे नव-नव गाछकेँ माटि‍सँ उपर होइते डारि‍-पातसँ परेख लैत जे ई फल्‍लां  वस्‍तुक गाछ छी मुदा अनाड़ी नै परेख पबैत तहि‍ना समाजोक पारखी शंभूकेँ परखए लगल। छोट बच्‍चा जहि‍ना लत्ती-फत्तीमे फड़ल हरि‍यर चारि‍ पएरबलाकेँ, जेकर मुँह घोड़ा सदृश्‍य नमगर होइत ओकरा घोड़ा मानि‍ पकड़ि‍ अपन खेलक एक भाग, सर्कश जकाँ, बना खेलैत तहि‍ना कीर्तन मंडलीक बीच शंभूओ एक अंग बनि‍ गेल। ओना अदौसँ लोक ि‍कछु समटल कि‍छु बि‍नु समटल, जे लोकक बोन-झाड़मे हराएल रहल, केँ चि‍न्‍हैत आबि‍ रहल अछि‍। जँ से नै रहैत तँ कि‍छु बनैया कि‍अए शि‍कारक पात्र बनैत। मनुष्‍यक लगाओल खेती-बाड़ी वा माल-जालकेँ जँ बोनैया नष्‍ट करए चाहत तँ कि‍अए लगौनि‍हार अपना सोझमे अपन श्रमकेँ नष्‍ट होइत देखत। एहनो-एहनो पारखी लगमे रहनि‍हार अपन (मनुष्‍यक) बच्‍चाकेँ नै परेख पबैत। कोना परखत? मनुष्‍य तँ गाछ-वि‍रीछ नै जे डारि‍क रंग-रूप आ पातक सि‍रखारसँ परेख लेत, मुदा मनुष्‍य तँ जीवक श्रेणी (जि‍नगीक पाँति‍) मे रहि‍तो आनसँ अधि‍क नमगर-चौड़गर, फूल-फलसँ लदल दुनि‍याँबला छी। जे बाहर नै भीतर छि‍पा कऽ रखने रहैत अछि‍। रखने अछि‍ कि‍ राखल छैक ओ भि‍न्न बात।

जे शंभू अखन धरि‍ मनुक्‍खक मेलाक बच्‍चाक जेरमे नुकाएल छल ओ नमैर धान-गहूमक गाछ जकाँ बेदरंग हुअए लगल। मुदा रंग-रूप अधि‍क गाढ़ नै भेने ने अपने देखए आ ने आनेक नजरि‍क सोझ पड़ए। भलहि‍ं उम्‍मस भरल भादोमे पूरवा-पछि‍याक लपकी नै बुझि‍ पड़ै मुदा ओहन लपकी तँ माघमे जरूर अपन रूपक दर्शन करवि‍तहि‍ अछि‍। तहि‍ना शंभूओक भेल। एक आँखि‍सँ दोसर आँखि‍, एक कानसँ दोसर कान बीआ-बान हुअए लगल। मुदा बीआ तँ बीआ छी, कोनो फले बीआ, तँ कोनो ऑठि‍ये। कोनो पाते बीआ तँ कोनो डारि‍ये। तहि‍ना जते मन तते खेत। जते खेत तते रंगक गाछ। जते गाछ तते रंगक फल-फूलक आश। मुदा मनुक्‍खक बीआ तँ सभसँ बेढ़ंग (अजीब) अछि‍। जेहन-जते खेत तेहन तते रंगक बीआ खसि‍ तते रंगक गाछ संगे जनमैत। गाछ देख‍ कि‍यो बजैत, शंभूक सि‍नेह संगीतसँ तते भेल जाइए जे कहीं घर-परि‍वार छोड़ि‍ ओकरे संगे ने चलि‍ जाए। तँ कि‍यो बजैत, भगवान अपने बेटा जकाँ लुरि‍-वुद्धि‍ देने जाइ छथि‍न एक-ने-एक दि‍न लगमे बजाइए लेथि‍न।
ज्ञान स्‍वरूप देवत्‍व प्राप्‍त करैक लेल प्रेमास्‍पदक बाट धड़ए पड़ैत। जे बि‍नु बुझनहि‍ शंभूमे अबए लगल। जहि‍ना एक माटि‍ एक पानि‍ जगह पाबि‍ अपन भि‍न्न-भि‍न्न रूप बना भि‍न्न-भि‍न्न गुण पसारैत तहि‍ना तँ समाजो अछि‍। माटि‍क आँड़ि‍ बनि‍-बनि‍ बाध बँटल अछि‍, घेरा पाबि‍-पाबि‍ पानि‍ बँटल अछि‍ तहि‍ना ने समाजो अछि‍। समाजोक तँ भि‍न्न-भि‍न्न रूप आ भि‍न्न-भि‍न्न अर्थ अछि‍। कतौ गामक सीमान मानि‍ समाज मानल जाइत अछि‍ तँ कतौ जाति‍। कतौ कर्मक हि‍साबसँ समाज बनैत अछि‍ तँ कतौ व्‍यवसायि‍क। कीर्तन मंडलीक समाज ओहन अछि‍ जइमे घर-परि‍वार सम्‍हारि‍ लोक (मंडलीक) भगवानोक दरवार पहुँच अपन नीक-अधला (उचि‍ति‍-वि‍नती) बात सेहो कहैत अछि‍। तइले ने संगी-साथीक जरूरत आ साज-बाजक। थोपड़ी बजा वा चुटकी बजा वा बि‍नु बजेनहुँ मुँह खोलि‍ वा बिनु मुँहो खोलने जतबे समए पबैत ओतबेमे राधा जकाँ कृष्‍णक संग रमि‍ जाइत।

नवम् वर्ख खटि‍आइत-खटि‍आइत शंभू गामक कीर्तन मंडलीक सदस्‍य बनि‍ गेल। तइले ने नाओं लि‍खबैक जरूरत भेल आ ने कोनो रजि‍ष्‍टरक। मनक डायरीमे वि‍चारक कलम चलि‍ गेल। मुदा दुनूकेँ (शंभूओ आ मंडलि‍योक) आगू चलैक बाटो आ संगि‍यो भेटल। संगी पाबि‍ जहि‍ना शंभूकेँ, घरक छप्‍परसँ खसैत धरि‍आएल पानि‍ आगू बढ़ि‍ धारमे पहुँच जाइत तहि‍ना भेल। मंडलि‍योक फूलवारीमे एकटा नव फूलक गाछ पोनगल। जहि‍ना नमहर थैरमे नव गाए-महीसि‍केँ जाइति‍क समाज भेटलासँ अपन खुशहाल जि‍नगीक खुशी होइत तहिना शंभूओक संबंध रंग-वि‍रंगक कला-प्रेमीसँ भेल। जहि‍ना टाला-कोदारि‍ लऽ बोनि‍हार, रि‍ंच-हथौरी लऽ मि‍स्‍त्री अपन सेवा दइले जाइत तहि‍ना खजुरीक संग शंभूओ मंडलीक बीच सेवा दि‍अए लगल। अठवारे मंगलकेँ महावीरजी स्‍थान आ अठवारे रवि‍ कऽ महादेव स्‍थानमे साँझू पहर कऽ कीर्तन होइत। जइमे कीर्तन मंडलीक समाजक संग भक्‍त प्रेमी सभ सेहो एकत्रि‍त भऽ खाइ-पीबै राति‍ धरि‍ मगन भऽ भजनो-कीर्तन करैत आ सुनि‍नि‍हारो संगीक संग समुद्रमे दहलाइत-उधि‍आइत। मुदा बाल-बोध शंभू ने दि‍नक ठेकान बुझैत आ ने मासक। मंगल कोना घुमि‍-घुमि‍ अबै छै ने से बुझैत आ ने रवि‍। तँए अन्‍हारमे बौआइत शंभू। मुदा जहि‍ना अगि‍ला बाट भेटने शंकाक समाधान भऽ जाइत तहि‍ना शंभूओ मंगल आ रवि‍केँ भजि‍अबए लगल। खोजनि‍हार जहि‍ना घनगर बोनझारमे सँ कोनो जड़ी वा जरूरतक गाछ ताकि‍ कऽ लऽ अबैत तहि‍ना शंभूओ मंगल आ रविकेँ भजि‍औलक। सातो दि‍न आ बारहो मासक गुण-अवगुण भजि‍आ मनमे रोपि‍ लेलक। जइसँ तीसो दि‍न मासक बीचक तीर्थ आ सातो दि‍नक आठो पहरक बोध भऽ गेलइ। राति‍-दि‍नक बीच घरक काज कखन कएल जाए आ बाहरक कखन, ऐ लेल तँ पहरे पहरा करैत अछि‍। वसन्‍ती-बयार तँ गोटि‍-पङराक लेल नै सबहक लेल समान सोहनगर अछि‍ भलहि‍ं कि‍यो कुम्‍मकर्णी नीनक मस्‍ती लि‍अए आकि‍ ब्रहमलोक पहुँच कुम्‍हारक चाक चलबए। जा धरि‍ चाक नै चलत ता धरि‍ नव बर्तन केना गढ़ल हएत? ओहन खेत वा पोखरि‍ जकाँ शंभूक मन दि‍न-राति‍ छि‍छलए लगल जेहन पोखरि‍क कि‍नछरि‍मे ठाढ़ भऽ चौरगर खपटा वा झुटका पानि‍क उपर फेकलासँ उपरे-उपर छि‍छलैत दूर तक जाइत, जहि‍ना अनगर लबल धानक सीसपर होइत मन छि‍छलैत एक आड़ि‍सँ दोसर धरि‍ छि‍छलि‍-छि‍छलि‍ देख-देख खुशी होइत, तहि‍ना। भोरमे नीन टुटि‍ते शंभू ओछाइनेपर दि‍न भरि‍क जि‍नगीक बाट जोहए लगैत। साँझ परैत परैत जहि‍ना कृष्‍ण संगी-साथीक संग आबि‍ माए जशोदाकेँ अपन लकुटि‍ कमरि‍या सुमझा संध्‍या बंधन करए वि‍दा होथि‍ तहि‍ना शंभूओ उगैत सूर्यक संग दुि‍नयाँ देखैक उपक्रम सोचए लगैत। भगवानक नजरि‍ तँ पहि‍ने ओइ पुजेगरीपर ने पड़ैत जे नव-नव फूल-अछतसँ सजल सीकीक नव फुलडालीमे नव गाछक फूल लऽ रहैत। बाकीकेँ तँ गि‍नती कऽ कऽ रखि‍ लेल जाइत। गाछमे सबुरक फलक सि‍रखार, कटहर जकाँ, देख पड़ैत। दि‍न भरि‍ समए बँचल अछि‍ जखने बाध-बोन दि‍स जाएब तँ कोनो ने कोनो भेटबे करत। जँ भेट गेल तँ बड़बढ़ि‍या नै तँ उचि‍ति‍-वि‍नती कऽ अार्त्त भऽ थारीमे रूइक बत्ती लेसि‍ कानि‍-कलपि‍ कहबनि‍। अनकर जँ सुनैत हेथि‍न तँ हमरो सुनताह नै तँ ककरो नै सुनथि‍न। अपना-अपना करमे-भागे लोक जीब लेत।
चौदहो भुवन (चौदहो लोक) सदृश्‍य समाजमे चि‍त्र-कुटक घाट जकाँ अनेको घाट। कम वा बेसी सभक मनमे भगवानक प्रति‍ आस्‍था भलहि‍ं आत्‍मा, जीव आ मायाक तात्‍वि‍क रूप नै बुझैत हुअए। से सि‍र्फ पुरखेटा मे नै महि‍लोमे। समर्पित भऽ नि‍यम-नि‍ष्‍ठासँ आठ घंटासँ लऽ कऽ बहत्तरि‍ घंटाक तकक उपवास हँसैत-मुस्‍कुराइत कऽ लैत। एहन पत्नि‍ये कि‍ जे अपन पति‍केँ देवालय जाइसँ रोकती। समाजक भीतर समबेत स्‍वरे अष्‍टयाम, नवाहक संग आनो-आन आ नाचोमे सामाजि‍क सेहो होइत जे मंचपर बैस सामूहि‍क रूपे गबैत। तहि‍ना माइयो-बहीनि‍क बीच छन्‍हि‍। मुड़न हुअए वा उपनयन, कुमार गीत हुअए वा बि‍याह, छठि‍ हुअए वा फगुआ, सामूहि‍क रूपे सभ एकठाम भऽ गबैत छथि‍। नव-नव गायि‍काक सृजनो होइत आ अवसरो भेटैत। कि‍एक तँ दादी बाबीक उदारतासँ कहैत छथि‍न जे आब बूढ़ भेलौं, कफ घेरने रहैए, तँए नवतुि‍रयेकेँ गाबए दहक। सामाजि‍क वातावरणमे श्रद्धा, प्रेमक संग भाइचाराक वेवहारि‍क पक्ष अखनो अछि‍। एकर अर्थ इहो नै जे आपराधि‍क वृत्ति‍ दबल अछि‍। अगुआएल छल, बहुत अगुआएल अछि‍। आँखि‍क सोझमे बहीि‍न-बेटीक संग दुरबेबहार बाड़ी-झाड़ीक वस्‍तु बलजोरी तोड़ि‍ लेब, खेतक फसल क्षति‍ कऽ देव इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍। एक नै अनेक आपरधि‍क वृत्त अपन शक्‍ति‍सँ समाजकेँ दबने अछि‍। मुदा तँए कि‍ जि‍नगीक आश नै छैक, छैक धरमक संग प्रेमसँ छैक। जँ नै छलैक तँ बाड़ी-झाड़ी वा खेत-पथारमे काज-करैत कि‍सान कोना गौओं-घड़ुआ आ बाट चलैत बटोहीकेँ दूटा आम खाइले कि‍अए कहैत छथि‍। एकटा सजमनि‍ अगुआ कऽ दइ छथि‍ जे धि‍या-पूताकेँ तरकारी बना देबै। कहाँ मनमे छन्हि‍ जे दस रूपैया बुड़ि‍ रहल अछि‍। रोपैइये काल दू-दूटा फलक गाछ लगबै छथि‍ जे एकटा परि‍वार लेल, दोसर समाज लेल। जँ परि‍वार-परि‍वारमे एहेन वृत्ति‍ अपनाओल गेल रहैत तँ कि‍ सामाजि‍क संबंधमे औझुके टुटान अबैत।
रवि‍-मंगलकेँ देवस्‍थानमे कीर्तन अनि‍वार्य रूपे चलि‍ते छल, जहि‍ना वि‍द्यालयक कार्य-दि‍वस। अनदि‍ना सेहो दरबज्‍जे-दरबज्‍जे होइते रहैत छल। जना सभक जि‍नगी बन्‍हाएल चलैत होइ। भरि‍ दि‍न खेत-पथारसँ माल-जालक पाछू लागल रहैत छला आ साँझ पड़ि‍ते कीर्तन-मंडलीक बीच पहुँच जाइत छला जे खेबा-पीबा राति‍ धरि‍ चलैत छल। खेला-पीला बाद सुतै छला। कहाँ कखनो समाजक प्रति‍कूल बात सोचैक समए भेटैत छलनि‍। जे लोकनि‍ मंडलीकेँ हकार दऽ अपना ऐठाम कीर्तन कराबैत ओ अपन वि‍भवक अनुकूल, भोजनो आ साजो-समानक ओरि‍यान कऽ दैत छलाह।

पहि‍ल दि‍न शंभूओकेँ सवा हाथ वस्‍त्र आ सवा-आना पाइ भेटल। खा कऽ जखन शंभू वि‍दा हुअए लगल तँ गरे ने अँटै। दू हाथमे तीन समान (पाइ, वस्‍त्र, खजुरी) अन्‍हार राति‍मे केना लऽ कऽ जाएब। पाइकेँ जँ वस्‍त्रमे बान्‍हि‍ एक हाथमे लऽ लेब आ दोसर हाथमे खजुरी लऽ लेब, से भऽ सकैए। मुदा दुनू हाथ अजबाड़ि‍ राति‍मे चलब केना? ढि‍मका-ढि‍मकीक रस्‍तामे कतऽ ठेंस लागत कतऽ नै। जँ घरबारि‍येकेँ संग चलैले कहबनि‍ सेहो उचि‍त नै। हमरा सन-सन कते गोरे छथि‍। कि‍नका-कि‍नका संग पुरथि‍न। जँ कन्‍हापर आकि‍ डाँड़मे वस्‍त्र लगा लेब तँ पहि‍रौठ भऽ जाएत। केना बाबूकेँ पहि‍रोठ वस्‍त्र देवनि‍। गुन-धुनमे पड़ल शंभू एक गोटेकेँ अपना घर दि‍स जाइत देखि‍ पि‍ताकेँ समाद पठौलनि‍- बाबूकेँ कहि‍ देबनि‍ जे डलना तेहेन चोटगर बनल छलै जे इच्‍छासँ बेसि‍ये खुआ गेल। तइपर तीन-तीनटा वस्‍तु लऽ कऽ अन्‍हारमे केना आएल हएत तँए आबि‍ कऽ लऽ जाथि‍।

एगारहम बर्ख पुरैत-पुरैत शंभूक गि‍नती गामक भजनि‍याक संग भगवानक भक्तोमे हुअए लगल। तहूमे ओहन भक्‍त जे बि‍नु वि‍आहल हुअए। ब्रह्मचारी। ओना शंभूक स्‍वभावमे सेहो सामान्‍य बच्‍चाक अपेछा वि‍शेष गुण छलैक जे सभ देखैत छलाह। जहि‍ना कि‍यो पनरह बर्खक उमेर बि‍तेलाक बादो पाँचो बर्खसँ कम उमेरक बच्‍चासँ पछुआएल (लुरि‍-बुधि‍मे) रहैत आ कोनो-कोनो बच्‍चा दसे बर्खमे सि‍यान जकाँ भऽ जाइत। मुदा समाज तँ अथाह समुद्र छी। जेहेन पारखी तेहेन परख। डोका-काँकोड़सँ लऽ कऽ हीरा-मोती धरि‍ समेटि‍नि‍हार समुद्र सदृश्‍य समाज। एहनो पारखी जे एक तरहक जानवर (गाए-महीस इत्‍यादि‍) पोसि‍ दोसरो-दोसरो तरहक जानवरक जि‍नगीकेँ दूर धरि‍ देखैत आ एहनो जे सभ दि‍न सोझमे रहि‍तो कि‍छु ने (जि‍बैक रास्‍ता) देखैत। तहि‍ना पारखी शंभूओकेँ परखलनि‍। कीर्तन मंडलीक उपर श्रेणीक कीर्तनि‍यामे शंभूक गि‍नती हुअए लगल। गुरू तँ सदति‍ शि‍ष्‍य तकैत। शि‍ष्‍य-गुरूकेँ एकठाम भेनहि‍ ने जि‍नगी आगू ससरैत अछि‍। जाधरि‍ से नै होइत ताधरि‍ मि‍श्री कुसि‍यारक पानि‍मे डूबल रहैत आ शि‍ष्‍य सरपतक श्रेणीक गाछ बुझल जाइत। शंभूकेँ एक संग दू गुरू भेटल। एक अगुआ (वजन्‍त्रीसँ गौनि‍हार) मुरते आ दोसर साज-बाज। जहि‍ना रंग-वि‍रंगक कोठीमे रंग-वि‍रंगक अन्न-पानि‍ देख गृहस्‍वामि‍नीक मन सदति‍ हरि‍आएल रहैत तहि‍ना शंभूओ हरि‍आएल।

अखन धरि‍ शंभूक गि‍नती परि‍वारमे (माए-बापक बीच) ओहन बच्‍चा सदृश्‍य छल जेहनकेँ काजक भार तँ नै मुदा जि‍नगीकेँ जि‍या राखब माए-बापक कर्तव्‍य-कर्मक श्रेणीमे रहैत। जइसँ बि‍नु पगहाक पशु जकाँ शंभूओ। तहूमे आब शंभू छेटगर भऽ गेल। जखने भूख लगतै तखने दौड़ल आओत नै तँ भरि‍ दि‍न भुखलो रहि‍ सकैए। तँए कि‍ शंभूक खाइ-पीबैक आ रहैक ठौरो वि‍ला गेल। नै ओ सभ रहबे कएल। हँ एते जरूर भेल जे कखैन आबए आकि‍ जाए से पुछि‍नि‍हार नै रहल। सुखनि‍ये संतोखीदासकेँ कहि‍ देने रहनि‍ जे बाल-बोधकेँ पाछूसँ नै आगूसँ टोकल जाइत अछि‍। जहि‍ना राहड़ि‍क गाछक बुट्टीकेँ चारू भागसँ सि‍र पकड़ने रहैत तहि‍ना तँ मनुक्‍खोक अछि‍। मुदा जीवनी तँ गर लगा कोदारि‍क छह मारैत जे अपन पएरो बँचै आ बुटो उखड़ै। तँए उत्तम कोटि‍क काज वएह ने जे साँपो मरै लाठि‍यो ने टूटए।

घरक कोनो काजक भार शंभूकेँ नै रहैक कारण छल जे दुनू बेकतीक हृदए घेराएल जे माए-बाप अछैत जँ बेटा-बेटीकेँ कोनो भार पड़त तँ खि‍च्‍चा गाछ जकाँ वा केराक गाछ जकाँ पिचा कऽ थकुचा भऽ जाएत। जइसँ शरीर खि‍लैच जेतै। जखने शरीर लि‍खचतै तखने जि‍नगी खि‍लैच जेतै। जइसँ रोगाएल गाछ जकाँ सभ दि‍न खि‍द-खि‍द करैत रहत। जँ एहेन जि‍नगी बेटा-बेटीक भेल तँ ओ परि‍वार कते दि‍न आगू मुँहे ससरत। तँए जाधरि‍ बाल-बच्‍चाकेँ नि‍रोग बना नै राखब ताधरि‍ वंशकेँ आगू मुँहे ससारब कोरी-कल्‍पना हएत। जइसँ ने माए-बाप -सुखनी-संतोखीदास- शंभूकेँ कोनो काज अढ़बैत आ ने शंभू कि‍छु करैत। सभ कि‍छु अपन रहि‍तो शंभू अपन कि‍छु नै बुझैत। तँए धन्‍य-सन। परि‍वारक काजक तहमे पहुँचलापर ने कि‍यो बुझैत जे ऐ काजकेँ नै भेने परि‍वारमे कि‍ नोकसान हएत। ई जि‍नगीये तँ बरखा-पानि‍क बुल-बुला जकाँ अछि‍। लगले बनत, चमकत आ फुटि‍ जाएत। एहेन जँ क्षणभंगुरोसँ क्षणभंगुर जि‍नगी अछि‍, जेकर कोनो वि‍सवास नै अछि‍ तेकरा पाछू पड़अबे नादानी हएत। भने ने जनकजी ऐ बातकेँ बुझि‍ भोगो-वि‍लासकेँ अधला नै बुझैत छलाह। भलहि‍ं शंभूक मनमे जे होय मुदा माए-बापक मनमे जरूर रहनि‍ जे जाबे थेहगर छी ताबे जँ काजसँ देह चोराएब तँ परि‍वारक प्रति‍ अन्‍याय करब हएत। बुढ़ाढ़ीमे झुनाएल धान जकाँ सीसक टूर टूटि‍-टूटि‍ जहि‍ना खसैए तहि‍ना ने शरीरक अंगो (आँखि‍, कान इत्‍यादि‍) खसबे करत। जखन देह भंग हुअए लगत तखन तँ बेटे-बेटी ने श्रवण कुमार जकाँ भारपर टाँगि‍ तीर्थ-स्‍थान घुमाओत। एहेन काज तँ ओकरा ऊपर लधले छै तखन मुर्दा जकाँ नअ मन बोझ लधनाइ उचि‍त नै। कि‍ करत वएह बेचारा, एक दि‍स माए-बापक बोझ पड़तै अपनो जि‍नगी रहतै तइपर सँ बाल-बच्‍चाक कोनो ठेकान छै जे भगवान कते देथि‍न कते नै। हुनका थोड़े बुझल छन्‍हि‍ जे अन्न-पानि‍ कते महग भऽ गेल अछि‍। जतऽ मड़ूआ बराबरि‍ कऽ माछ बि‍कैत छल ओतऽ मड़ूआ धि‍ना कऽ देश छोड़ि‍ देलक मुदा माछ सि‍मटीक चि‍नमारपर गि‍रथानि‍ बनि‍ अजबारि‍ कऽ बैसल अछि‍।
ढेरबा बच्‍चा रहि‍तो शंभू समैसँ दोस्‍ती केलक। दोस्‍ती नि‍माहैले मंडलीक संग पूरि‍ जखन सभ सुतए ओछाइनपर जाइत तखन शंभू साइकि‍ल सि‍खैत बच्‍चा जकाँ पहि‍ने हारमोनि‍यम, ढोलक इत्‍यादि‍केँ नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ देखए। जहि‍ना युवक-युवती पहि‍ल नजरि‍मे पहि‍ल रूप देखैत तहि‍ना शंभूओ देखलक। देखलक जे एक नै अनेको जुगल जोड़ीक संयोगसँ समाज ठाढ़ अछि‍। जइमे अपन-अपन गुणकेँ मि‍ज्‍झर भऽ कऽ मि‍ल-जुलि‍ चलि‍ उकड़ूसँ उकड़ू बाट टपि‍ श्रंृगी ऋृषि‍क फुलवारी देखैत। एक पेरि‍या झालि‍ केना टूक-टूक जोड़क बनल हारमोनि‍यम संग ठि‍ठि‍या-ठि‍ठि‍या चलैत अछि‍। शंभूक सि‍नेह समूहसँ भेल।

पाँचि‍म दशकसँ पूर्व, अष्‍टयाम कीर्तनक मूलमंत्र सीताराम, सीताराम छल। कारणो स्‍पष्‍ट अछि‍। जगत जननी जानकीक मि‍थि‍ला, जि‍नक संकल्‍प पूर केनि‍हार राम। सीताराम मंत्रमे शंभूकेँ ऋृतानुसार सभसँ भेटए लगल। जहि‍ना जखन जेहेन मन तखन तेहन वि‍चार, तहि‍ना। भोरमे प्रभाती बेर ‘सीताराम’मे शंभूकेँ वसन्‍ती वा ब्रह्मणी रस भेटै जखनि‍ कि‍ दि‍न-राति‍क गति‍ये रसोक रस बदलए लगै। मुदा मंत्रमे कोनो बदलाव नै होइ। बाल-बोध रहि‍तो शंभू जीवनी जकाँ सि‍र सजमनि‍क भाँज बुझैत। हनुमानजी जकाँ नै। जे छोटो काज लेल नमहर अस्‍त्रक प्रयोग करब। आ ने अनाड़ी-धुनाड़ी जकाँ पराती बेर साँझ आ साँझक बेर पराती गबैत। जँ गेबो करैत तँ जहि‍ना हलुआइ चीनीक चासनीमे रंग-वि‍रंगक वस्‍तु बना ओइमे बोड़ि‍ मधुर बनबैत। एहने सन शंभूओक मनमे उपजै। ओना जते रंगक मंत्रक जरूरत होइत तते एबो ने करै। नै अबै तहूमे ओकर दोख नै। दोखो कि‍अए हेतै एक तँ बेचारा पशु जकाँ असगरे खूँटा धेने, तइपर बाल-बोध। मुदा तैयो बकरी बच्‍चा जकाँ नै जे दूध पीवि‍ते छड़पए-कुदए लगैत।

हड़लै ने फुड़लै शंभू घरसँ पड़ा गेल। दुनू बेकती संतोखीदास खेतमे काज करए गेल रहथि‍। तँए भरि‍ दि‍न कोनो भाँजे नै लगलनि‍। कारणो रहए। दुपहर तक तँ आनो दि‍न हटले-हटले रहैत छलाह। साँझमे खोज करैत छेलखि‍न। दि‍न तँ घुमै-फि‍रैक होइ छै मुदा राति‍ तँ ठौर पकड़ैक होइ छै, तँए।
घरसँ नि‍कलि‍ते‍ शंभू घरक सभ कि‍छु बि‍‍सरि‍ गेल। खजुरि‍यो बि‍‍सरि‍ गेल। बि‍‍सरि‍ नै गेल मनसँ हटि‍ गेलै। नवका चानक (तीर्थानुसार) नव ज्‍योति‍ भेटलै। जहि‍ना ताड़ी देनि‍हार खजुर, लपकि‍ कऽ ताड़ पकड़ि‍ लैत तहि‍ना शंभूक खजुरी, तबला पकड़ि‍ लेलक। तबला पकड़ि‍तहि‍ खजुरि‍येक हाथसँ बजबए लगल। बजबैत कते दूर गेल तेकर बोध नै रहलै। दुनि‍याँक बीच हरा गेल। जि‍महर देखे दि‍न छोड़ि‍ कि‍छु ने देखै। बाध-बोन, गाछ-बि‍रीछ, पोखरि‍-झाँखड़ि‍, हल्‍लुक-सुखाएल धार-धुर तँ सभ गाममे रहि‍ते छै। आड़ि-धुर बनौनि‍हार आकि‍ नक्‍शा-खति‍यान देखि‍नि‍हार ने खेत-पथार, गाम-घरक बात बुझैत, जे नै बुझैत ओ दि‍न-राति‍ छोड़ि‍ आरो कि‍ बुझत, तहि‍ना शंभूओ। बीच बाटपर शंभूक मनकेँ हुदकबए लगलै। गामक कीर्तन मंडलीक अगुआकेँ मुँहक बात मन पड़ल जे पचगछि‍यामे बड़का-बड़का बाजो छै आ बजोनि‍हारो। खाइयो पीबैले देल जाइ छै आ रहैयोक बेबस्‍था छै। जहि‍ना कोनो बीज भूमि‍ छेदि‍ अकुर ऊपर आबि‍ अपनाकेँ वृक्षक पूर्व रूप बुझि‍ इतराइत तहि‍ना ने बच्‍चोक वुद्धि‍क अंकुर जगैत तहि‍ना शंभूओकेँ भेल। उत्‍साहि‍त भऽ घरसँ नि‍कलि‍ वि‍दा भऽ गेल मुदा खास जगहपर पहुँचए लेल जानकारीक जरूरत होइत। ओना जँ खास जगह नै, आम जगह देखए चाहब तँ कोनो परि‍चयक जरूरत नै होइत। जएह देखब, जतबे देखब, जतए  देखब सहए दुनि‍याँ। जेहन आँखि‍क ज्‍योति‍ तेहने रंगक दुनि‍याँ। मुदा पंचगछि‍या जेबा लेल तँ जानकारी बनाएब जरूरी अछि‍। मनमे उठलै पूछि‍-पाछि‍ लोक कतएसँ कतए चलि‍ जाइए। तखन कि‍अए ने जा सकै छी। जहि‍ना आन बाट-घाट टपि‍ अपन स्‍थानपर पहुँचैए तहि‍ना कि‍अए ने पहुँचब। पेटक भूखक संग मनोक भूख कमलै। भूख कमि‍तहि‍ संकल्‍प शक्‍ति‍क उदय भेलै।

पचगछि‍याक रायबहादुर लक्ष्‍मीनारायणजी जेहन संगीत कलाक मर्मज्ञ तेहने साधको। संगीत कलाक सि‍नेही रहने ‘संगीत कला केन्‍द्र’ स्‍थापि‍त केने छथि‍। जइसँ मि‍थि‍लांचलक अनेको गायक, वादक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति‍ पौने छथि‍।

एगारह-बारह बर्खक शंभूकेँ केन्‍द्र लग पहुँचलोपर भीतर जाइक हि‍औए ने डटै। कातमे ओइ भूखल-पि‍यासल मरूभूमि‍क चि‍ड़ै जकाँ दूर-दूर धरि‍ अन्न-पानि‍क छुति‍ नै देखैत। समुद्रक ओइ सीप सदृश्‍य शंभू मुँह बाबि‍ ठाढ़ भेल जे स्‍वाती नक्षत्रक बुन्नक आसमे रहैत। तहीकाल मांगन मण्‍डल नि‍कललाह। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तरक संगीत ममज्ञ। शंभूपर नजरि‍ पड़ि‍ते आँखि‍ आकर्षित केलकनि‍। मुदा चेहरा अपन भूख देखौलकनि‍। बि‍ना कि‍छु पुछने-आछने शंभूक वामा बाँहि‍ पकड़ि‍ केन्‍द्रक भीतर आनि‍ खुओलनि‍। खेनाइ खेलापर शंभूक मन असथि‍र भेलै।
मांगन पुछलखि‍न- वाउ, की नाओं छी?”
शंभू।
परि‍वारमे के सभ छथि‍?”
बाबू, माए।
भाइयो-बहीन छथि‍?”
हँ।
आइ रहि‍ जाउ काल्हि‍ नि‍चेनसँ गप करब।
बड़बढ़ि‍या।

दि‍न बीतल साँझ आएल। बाहर दि‍ससँ अन्‍हार अबए लगल। जेना-जेना अबैत तेना-तेना करि‍आएल जाइत। करि‍आइत-करि‍आइत ओते करि‍या गेल जे अपन आँखि‍ हाथो ने देखैत। जे जतए से ततए गबदी मारैक ओरि‍यानमे लगि‍ गेल। मात्र दूटा पि‍पनी लगल कपाट कखनो खुजै कखनो बन्न भऽ जाए। डर सन्हि‍आए लगलै। जेना-जेना डर अपन पैठ बनबैत जाए तेना-तेना शंभूकेँ डरौन लगए लगलै। कनए लगल। कनि‍ते मनमे उठलै माए-बाप, संगी-साथी, गाम-घर। केना नइ मन पड़ैत? माइटि‍क बनल रस्‍तो अन्‍हारमे बजैत- भाय ऐठाम कटारि‍ अछि‍, आगू हुच्‍ची। भलहि‍ं रस्‍ता  हि‍साबसँ ओकाइत कम अछि‍ मुदा खुरलुच्‍ची सबहक खुनल छी तँए रस्‍ता  बगलि‍ कऽ टपब। पुन: उठलै माइक कएल भानस। खेबा-पीबा राति‍ भऽ  गेल। भानस कऽ कऽ माए तकैले बौआइत हएत। मने-मन कहैत हएत साँझ भऽ गेल अखन धरि‍ कोन जंगल-झारमे बौआइत हएत। चारि‍ बेर सोर पाड़ि‍ बाबूओ अकछि‍ कऽ अपनो खेनाइ छोड़ि‍ ओछाइनपर ओंघरा गेल हेता।

मन कतौ तन कतौ शंभूक जहलक कैदी जकाँ। हि‍चुकी बढ़ि‍तो गेलै आ जोरो केलक। आगूमे ठाढ़ भेल मांगन असमंजसमे पड़ल। केना नै पड़ि‍तथि‍? जि‍नगीक पहि‍ल दि‍न पहि‍ल दृश्‍य। तँए नाटकक बि‍नु देखल दृश्‍यक सदृश्‍य। सोलहन्नी नव! जहि‍ना परीक्षा फीस नै रहने वि‍द्यार्थीकेँ फार्म भरैक अंति‍म चारि‍ बजे, नम्‍हर बीमारी एने परि‍वारक, जेठुआ दुपहरि‍यामे पीआकक मन बौरा जाइत तहि‍ना मांगनकेँ सेहो भेलनि‍। एक दि‍स हुअएबला जि‍नगीक प्रश्न अछि‍ तँ दोसर दि‍स असकरे ओइ जगहपर पहुँच गेल अछि‍ जतए सभ अपरि‍चि‍ते छैक। मन नाचि‍ भगवान रामपर गेलनि‍। अयोध्‍याक राजक बदला बन भेटलनि‍। मुदा अयोध्‍यासँ ि‍नकलि‍ गंगा पाड़ होइतहि‍ कोनो नै कोनो ऋृषि‍-मुनि‍क आश्रम भेटि‍ते गेलनि‍, तखन वन की भेलनि‍? मुदा लगले मन उनटि‍ गामक बुढ़ि‍ माएपर गेलनि‍। बेचारीकेँ जही दि‍न नातिनक जन्‍म भेल बेटी मरि‍ गेलनि‍। नानीसँ माए बनि‍ बेचारी मरनी बेटी दुलारूक नाओं नाति‍नक रखलनि‍। उत्‍साह जगलनि‍। मन बाजि‍ उठलनि‍- ऐ बच्‍चाकेँ नै बौआए देबै। भलहि‍ं राति‍ कि‍अए ने जागि‍ कऽ बि‍तबए पड़ए। मुदा शंको तँ जीवि‍ते अछि‍। लगले मनमे उठलनि‍ जे हो-न-हो अनचोकेमे नीन चलि‍ आबए आ तहीकाल पड़ा जाए। झाड़ी बोन जकाँ मांगनकेँ रस्‍ता  भेटबे ने करनि‍। जँ भेटबो करनि‍ तँ कोशि‍कन्हाक खट्ठा-पटेरक रस्‍ता।  लगले ओरा जाएत। ओरेबो केना नै करि‍तनि‍? भूख-पिआस, नीन ककरो पूछि‍ कऽ अबैए। भलहि‍ं ओकरा सुति‍ कऽ आकि‍ खा-पी कऽ भगाओल जा सकैए। आगूक बाट भेटि‍ते मांगन कोठरीक केबाड़ कुन्जी सि‍रमामे रखि‍ लेलनि‍। मुदा तैयो शंका दबि‍ते रहनि‍ जे जखन नीनभेर भऽ सुतब आ शंभू पड़ाए चाहत तँ कि‍ सि‍रमाक चाभी नै नि‍कालि‍ सकैए।
धीरे-धीरे शंभूक कनैक अवाजमे मि‍ठापन अबए लगल। भरि‍सक नीनक आगमन भऽ रहल अछि‍। मि‍ठासे कानब ने सुखोक एकटा कारण छि‍ऐ। मुदा तैयो मांगनक मन उचैट‍ते जाइत। घर-बाहरक वा तीर्थ यात्रा आ तीर्थस्‍थानक सीमापर जहि‍ना संकल्‍पक उदय होइत तहि‍ना मांगनकेँ सेहो भेलनि‍। तकैत आँखि‍ये काल्‍हुक सुर्ज देखब। मुदा असगर तँ राति‍यो काटब असान नहि‍ये। समुद्रक अगम पानि‍मे डूबए लगलाह। मुदा लगले नाचक ओइ हरही बुढ़ि‍यापर नजरि‍ पड़लनि‍। नजरि‍ पड़ि‍ते उठलनि‍ ओहो बुढ़ि‍या गामक युग पाखरि‍ये छी। आन-आनकेँ देखै छी जे लोकक लाटमे राति‍ बि‍तबए चाहैए ओ आेकरा कि‍यो लाटमे रहए नै दि‍अए चाहैए। मुदा बुढ़ि‍या तँ बुढ़ि‍ये छी, कि‍यो ओकर बात सुनै वा नै‍ सुनै भरि‍ राति‍ बड़बड़ाइते रहैत अछि‍। भलहि‍ं साँझकेँ भोर कहै आकि‍ भोरकेँ साँझ। जखैन जे मन फुड़ैत तखैन से पहरि‍या नोकर जकाँ भरि‍ राति‍ ठाढ़ करैत। अस-वि‍स करैत बरि‍आतीकेँ जहि‍ना खि‍स्‍सकरक रंग-रंगक चसगर चासनीमे डूबबैत तहि‍ना मांगनि‍क मन बड़बड़ा लगलनि‍। बि‍सरए लगला शंभूकेँ अपन कर्तव्‍य-कर्ममे डूबए लगलाह। हाथ-पएर मारि‍ अन्‍हारे-अन्‍हार नीन आबि‍ शंभूकेँ गोति‍ देलक। जहि‍ना अथाह पानि‍क तरमे मुँहक बोल पानि‍येमे वि‍लीन भऽ जाइत तहि‍ना शंभूक कानब भेल। नाकक साँसक अवाजसँ मांगनकेँ वि‍सवास भऽ गेलनि‍ जे शंभूकेँ नीन आबि‍ गेल। असथि‍र भेला। मुदा फेर लगले उठलनि‍ जे चहाएल मन कखनो चहा कऽ उठि‍ सकैए। जँ कहीं शंभूक नीन देख अपनो नीन पड़ि‍ गेलौं तखन तँ सभ चौपट भऽ जाएत। ओना दुनि‍याँ देखैबलाक छी। देखैबला दुनि‍याँक बीच हराएत कि‍अए। जखन सभ मि‍ला दुनि‍याँ अछि‍ तखन हराइक प्रश्न कतऽ अछि‍? मुदा लोककेँ दि‍सासो तँ लगै छै। दि‍सासे लगलापर ने कि‍यो पूबकेँ पछि‍म आ उत्तरकेँ दछि‍न बुझै छै मुदा अकासकेँ पताल आ पतालकेँ अकास कहाँ बुझै छै? लगले ओइ सीमापर पहुँच गेल। जतए बाल-बोधक रक्‍छा  होएत। बाल-बोधक रक्‍छा तखने भऽ सकैए जखन ओकरापर नजरि‍ राखल जाए। तइ बीच मनमे उठलनि‍ अपन आ अपन संगीक संग संस्‍थाक महत्‍व। मन बुदबुदाए लगलनि‍।

मनुष्‍यक जीवन तँ तखने ने जीवन जखन जीवनक बोन लगा दि‍अए। ओना एक बारगी एहन शक्‍ति‍क उदय संभव नै, मुदा डारि‍ पात, सि‍र, फड़, फूल इत्‍यादि‍क एक-एक अंगक तात्वि‍क बोध होय। कतेको व्‍यक्‍ति‍ ऐठाम -संगीत केन्‍द्र- सँ गायक, वादक बनि‍-बनि‍ अपन शक्‍ति‍क प्रदर्शन करैत आबि‍ रहल छथि‍। ओइ आम-जामुनकेँ कि‍अए ने सबुर हेतै जे अपन बाल-बच्‍चाक -गाछी- संग शरीर त्‍यागत। जहि‍ना आइ धरि,‍ घर-परि‍वार बसबै पाछू लगल रहलौं तहि‍ना जाबे घटमे घटवार अछि‍ नाओ खेबैत रहब। भि‍नसरमे जखन शंभूक संग गाम पहुँचाबए जाएब तखन सोझे घुरि‍ कऽ चलि‍ नै आएब। बहुत दि‍न भेँट भेना सरि‍या दासीनसँ भऽ गेल। स्‍वर्गक गायि‍का मुदा से नै पाहि‍ लगा एकठामसँ शुरू करब आ सबहक भेँट करबनि‍। हँ, जरूर करबनि‍। मुदा गुरूओजी मानथि‍ तखन ने। जहाँ एकसँ दोसर दि‍न हएत कि‍ हकबाहि‍ करए लगताह। समाद-पर समाद पठबए लगताह। ओहो तँ जरूरि‍ये अछि‍। नै रहने अपन सुन्‍दर फुलवाड़ीक ताम-कोर के करत? खाएर जे होय बाल गोवि‍न्‍द जीक ऐठाम जरूर जाएब। बड़ागामक लहलहाइत बगीचाक ओगरवाही तँ वएह ने कए रहला अछि‍। ओना अपने सीख-लि‍खक समांग महेन्‍द्र सेहो छथि‍। महेन्‍द्र बालानन्‍द, शंकर, संजीव, रामनारायण, वि‍नय, बेचन ऐठामसँ राम प्रसाद महतो ऐठाम होइते आगू बढ़ब। नै जाएब सेहो उचि‍त नहि‍ये हएत। मनुष्‍य तँ कौछ नै छी जे अंडा दैत पड़ाएल जाएब। मुदा काँकोड़ो तँ नहि‍ये छी जे जकरा पेटमे रखलौं ओ पेटे खोखरि‍ खा लि‍अए। शीतनारायण सुरेन्‍द्र आ अजयसँ सेहो भेँट कइये लेब। ओना भेँट हएत कि‍ नै सेहो ठेकान नहि‍ये अछि‍, कि‍अए तँ उ़नबाज सभ ने बनि‍ गेला अछि‍। हदसँ अधिक पीतमरू राम प्रसाद। प्रेमकेँ जहि‍ना प्रेमास्‍पदक बाट भेटि‍ते वि‍श्वास भऽ जाइत जे प्रेमी संगे-संग चलि‍ रहल छथि‍ तहि‍ना राम प्रसादो ने। मुदा बेसी लटारम्‍हमे कतौ नै पड़ब। लटारम्‍हमे पड़ब तखने ने बेसी दि‍न लागत। जँ से नै करब तँ कि‍अए बेसी समए लगत। हँ तखन एकटा करब जे जखन कि‍यो भेँट हेता ते हुनको गुरूजीसँ मोबाइलपर भेँट करा देबनि‍। जखने भेँट हेतनि‍ तखने ने बुझथि‍न जे परि‍वार आ संयास कि‍ छि‍ऐ। जखन ओमहर जाएब तखन हि‍ताइ दास, बेचन मण्‍डल, राम गुलाम दास, रामायणी देवी, छठू दास, दरवारी दास, बतहू मण्‍डल, लखन दास, राधेश्‍यामजी, रामजी दास, बौआ झा, राम भजनसँ भेँट नै करि‍यनि‍ तँ जि‍नगी भरि‍ उपरागक मोटरी कपारपर चढ़ल रहत। जँ कहि‍यो भेँट हेता तखनो आ समदि‍यो दि‍या समाद पठा कहता जे एम्‍हर एलौं हमरा छोड़ि‍ देलौं। मनमे उठलनि‍ माटि‍ये पानि‍क संयोगसँ ने जीवधारीक सृजन होइए। गंगा-ब्रह्मपुरक बीचक धरती मि‍थि‍ला। एकलब्‍य सदृश्‍य एक-सँ-एक याेद्धा कर्म-रत छथि‍। एक लपकन अमतो चलि‍ए जाएब। राधाकृष्‍ण आ कारतारामक लगाओल फुलवाड़ी। ध्रुपदक वि‍शेष चमत्‍कारी शैलीक फुलवाड़ी। पद्मश्री राम चतुरजी, वि‍दुर, अभय, रामकुमार, रमेश आ पाठक जीक भेँट सेहो कइये लेबनि‍। मन बि‍लमलनि‍। राइति‍क बारह बजि‍ गेल। कोठरीसँ नि‍कलि‍ अकास दि‍स देखलनि‍ तँ बुझि‍ पड़लनि‍ जे अन्‍हार ओससँ भऽ शीतल बना रहल अछि‍। साँझसँ दवाएल इजोत अन्‍हारक सोझ आबि‍ ठाढ़ भऽ गेल अछि‍। अधो राति‍ तँ आब जगैक अछि‍। एक दि‍न बीतने तँ माघ सन जाड़केँ पि‍हकारी दऽ भगाओल जा सकैए तँ अधा राति‍केँ एकटा धुनो ठेल सकैए। पुन: कोठरी आबि‍ शंभूकेँ देख ओछाइनपर ओंङठि‍ गेला।
ओङठि‍ते मन पड़लनि‍ पानि‍चोभ। जखन अमता जेबे करब तखन एक लपकन पनि‍चोभो चलि‍ये जाएब। ओना जखने पनि‍चोभ जाएब तँ ओ दि‍न गुनैत-गुनैत सात दि‍नसँ पहि‍ने नहि‍ये छोड़ताह मुदा ओते नै अँटकब। एम्‍हर अँटकब तँ अपन बोहि‍यो जाएब। अबध जीक लगाओल गाछी कोन तरहेँ रामचन्‍द्र, दि‍नेश्वर, राजकुमार मंगनू, फुलानन्‍द, भूपेन्‍द्र ओगरबाहि‍ कऽ रहल छथि‍ सेहो बि‍ना गेने केना देखब। ओम्‍हरसँ बनारसक गुरू-शि‍ष्‍य परम्‍पराक जीवि‍त रखनि‍हार खरबान जीक ऐठाम सेहो जेबे करब। मनसा मि‍श्र आ डीही मि‍श्रक लगाओल कृष्‍ण लीला आ रामकथाक वृक्ष कोन तरहेँ सीतू, हीरा, भगत, रामजी, परमेश्वरी, अनन्‍त दम्‍मन, सत्‍यनारायण आ रामवृक्ष सि‍ंह पालि‍-पोसि‍ रहला अछि‍ सेहो देख लेब। ओना बीच बाटपर दरवारी दास सेहो पड़ताह मुदा ओ घुमन्‍तु लोक, भेँट हेता कि‍ नै खाएर गाम तँ कम-सँ-कम देख लेब। आगू कहि‍यो दोखी तँ नै हएब।

भोर होइते चारू दि‍सक गाछी-कलम बँसवारि‍सँ चि‍ड़ै सबहक अवाज उठए लगल।  कि‍यो अपन संगीकेँ कहैत जे भोरूका नीन बेसी सोहनगर होइ छै तँए एक नीन ओरो लगा लि‍अ। तँ कि‍यो कहैत सूर्य उगलापर तँ दुनि‍याँक एक-कोनसँ दोसर कोन धरि‍ उड़ैत समए रहैए तँए ओइसँ पहि‍ने जते उड़ि‍ लेब ओते अगुआएल रहब। चि‍ड़ैक अवाज सुनि‍ मांगनक मनमे सवुर भेलनि‍ जे भरि‍सक भोर होइपर अछि‍। राति‍ बीत गेल एकोबरे नीन कहाँ आएल। आब जँ शंभू उठबो करत तँ रौतुका डर थोड़े खेहारतै। मुदा प्रश्न उठलनि‍- भरि‍ राति‍ जगैक प्रयोजन की‍‍?
जहि‍ना गाछपर रहैबला चि‍ड़ै-चुनमुनी होय आकि‍ पोखरि‍मे रहैबला, माटि‍मे रहैबला जीव-जन्‍तु होय आकि‍ पाथरमे वास करैबला हुअए, सबहक माए-बाप ताधरि‍ ओगरबाहि‍ करैत जाधरि‍ ओ स्‍वतंत्र भऽ जि‍नगी नै प्राप्‍त कऽ लैत।

शंभूकेँ गाम पहुँचा मांगन आगू बढ़ि‍ गेलाह।
राति‍ भरि‍क संतोखीदास आ सुखनीक चि‍न्‍ता शंभूपर नजरि‍ पड़ि‍तहि‍ उड़ि‍ गेल। पुछैक प्रयोजने ने बुझि‍ पड़लनि‍ जे पुछि‍ऐ राति‍ कतए रहए। ओना दुनू परानीकेँ पहि‍नेसँ बुझल जे कीर्तन मंडलीक संग रहैए, भगवानक भजन कीर्तन करैए। मुदा तैयो शंभूपर नजरि‍ पड़ि‍ते मन खुशी भेलनि‍। मनमे उठलनि‍ जे माल-जाल जकाँ थोड़े बान्‍हल जा सकैए। जेना-जेना सड़कैत जाएत तेना-तेना अपने ने जि‍नगीक बान्‍ह लगैत जेतै। आह्लादि‍त भऽ संतोखीदास पुछलखि‍न- बौआ, काल्हि‍येसँ नै देखने छलि‍यह। कतौ अनतए गेल छेलह?”
पि‍ताक सि‍नेह शंभूक सि‍नेहकेँ सेहो जगा देलक। बाजल- बाबू, भोरेसँ काल्हि‍ मन औनाए लगल। कतबो असथि‍र हुअ चाही से हेबे ने करी। घुरि‍-फि‍र पचगछि‍ये मन पड़ि‍ जाए।
संतोखीदास- पचगछि‍या केना बुझलहक?”
शंभू- कीर्तन मण्‍डलीमे बेसी काल चरचा होइ छै। जना सभ कि‍छु ि‍बसरि‍ गेलौं। हरल ने फुड़ल वि‍दा भऽ गेलौं। ओतए चलि‍ गेल छलौं। बड़का-बड़का गवैया, वजन्‍त्री सभ ओइठीन छै।
संतोखीदास- अइले एते दूर जाइक कोन खगता अछि‍। सुनै छी अपने गाममे महीना दि‍न रमलीला चलत। कते देखबहक?”
शंभू- कते दि‍नमे आओत?”
संतोखीदास- अगि‍ला मास आओत। अखन आसीन-काति‍क छि‍ऐ ने राजो-महराजक बखारी खलि‍या जाइ छै। तइपर दुनू मास तेहेन अछि‍ जे सभ दि‍न पावनि‍ये-पावनि‍ अछि‍। अगि‍ला मास धानोक लड़ती-चड़ती शुरू भऽ जाएत आ पानि‍यो-बुन्नी ठमकि‍ जाएत।
शंभू- सि‍नेमा जकाँ एक्के सभ दि‍न हएत?”
संतोखीदास- नइ, जहि‍ना बच्‍चाक जन्‍म होइ छै, आ लागल-लागल ठेहुनि‍या दइ छै, खसैत-पड़ैत उठैए। उठि‍ कऽ चलैए। पढ़ै-लि‍खैए वि‍याह-दुरागमन होइ छै, घर-परि‍वार होइ छै। ताबे माइयो-बाप बूढ़ भऽ जाइ छै। ओकरो सेवा-बरदास करैए। तहि‍ना रमलीलोमे होइ छै। सभ दि‍न सभ रंगक होइ छै। जइसँ बेसी खरचो होइ छै आ समैओ लगै छै। तँए भरि‍ मन देखबो करैए। जइ काजमे जते समए मेहनत आ खर्च लगत ओ काज ओते नम्‍हरो आ नीको होइ छै।
शंभू- अपना गाममे कहि‍यो भेलो छै?”
संतोखीदास- नइ। रमलीला कोनो अद्दी-गुद्दी छी जे सभ गौआँ कऽ लेत। दुर्गापूजा जकाँ छी। जहि‍ना पावनि‍-ति‍हार, पूजा-पाठ तँ घरे-घर होइए मुदा दुर्गोपूजा करैमे गौआँकेँ डोराडोरि‍ सक्कत कऽ कऽ बान्‍हए पड़ै छै।

छठि‍क परातेसँ झट्टा-पि‍ट्टा शुरू भेल। बाधक रंग बदलए लगल। एक तँ रंग-रंगक धानक चास, तइपरसँ धानक बदलैत रंग। बेरूपहर जँ कि‍सान भरल चास देखैत ओ भि‍नसर सेहो देखैक उदेससँ खुशी होइत घरपर अबैत आ जे भि‍नसरू पहर ओसमे नहाएल देखैत ओ बेरू पहर फेर देखैक आससँ अबैत। जहि‍ना भरल-पूरल परि‍वारमे देहक सभ अंग भरल-पूरल चलैत तहि‍ना सुभ्‍यस्‍त समए भेने शुरूहेसँ धानोक भेल। जहि‍ना खेतमे काज करैकाल कि‍सान हरा जाइत तहि‍ना अगहनमे बोनि‍हार। के ने दुइयो-चारि‍ कट्ठा खेती केने रहैए।

काति‍कक पूर्णिमाक प्रातसँ रामलीला शुरू हएत। तँए अबैसँ आठ-नअ दि‍न पहि‍ने रहुआक कमल नारायण, गरीब झा, जलेसर आ दयाकान्‍त बेर टगैत (करीब तीन बजे) गाम पहुँचलाह। ओना गामक लोक पनरह-बीस दि‍न पहि‍नेसँ बुझैत जे रामलीला हएत। मुदा वि‍याह-दुरागमनक लगने जकाँ लोकक मनमे। असल लग्‍न तँ तखन ने शुरू होएत जखन बर-कन्‍याक देखा-सुनी हुअए लगैत। गाम पहुँचते जना हवाक संगे अबैक समाचारो पसड़ल। सीमाकातक आमक गाछक नि‍च्चामे ठाढ़े-ठाढे चारू गोटे वि‍चार करए लगलाह जे गौआँ सभसँ गप-सप केना हएत? बि‍ना गप-सप भेने आगू काज नै ससड़त। मुदा गौआँसँ मुखातीब केना हएत? इहो तँ नान्हि‍टा काज नै अखनो समाजमे ओहन लोकक कमी नै जे बि‍ना आग्रह केने बरो-बीमारी आकि‍ मुरदो डाहए नै जेताह। तइठाम अनगौआँक संग कि‍ करताह ई तँ कठि‍न प्रश्न अछि‍। मुदा एकटा तँ अखनो अछि‍ जे नव लोक वा नव चीज गाममे एने लोक बि‍नु कहनौं देखए जाइत। भलहि‍ं बाधे दि‍स जाइक बहाना कि‍अए ने करैत। कमल नारायण गरीब झाकेँ पुछलखि‍न- गाम तँ आबि‍ गेलौं, आगू कि‍ सभ हएत?”
कमल नारायणक बात सुनि‍ गरीब झा गाम दि‍स आँखि‍ उठौलनि‍ तँ देखलनि‍ जे एक्के-दुइये आगू-पाछू लोक सभ धरि‍आएल आबि‍ रहल छथि‍। लोककेँ देखबैत गरीब झा बजलाह- जहि‍ना अपना सभ गौआँकेँ रामलीला देखबए चाहै छि‍यनि‍ तहि‍ना ने गौआँ सभ देखैक ओरि‍यान करताह। एहेन-एहेन काज अगुतेने होइ छै।

अखन धरि‍ गाममे रामलीला नै हाेइक कारण रहल जे गाममे ने एक्कोटा जमीन्‍दार आ ने जेठ-रैयत। कम आॅट-पेटक कि‍सान। जि‍नका अपने जि‍नगी पहाड़। बाढ़ि‍-रौदीक इलाका। एक सालक बाढ़ि‍ वा रौदी कि‍सानकेँ पाँच बर्ख पाछू धकेल दैत अछि‍। तइठाम दुर्गापूजा आकि‍ रामलीला लोकक मनमे उठत केना। मुदा एकटा गौरब गामक अछि‍ दू सए बर्ख पहि‍ने जते लोक आ परि‍वार छल ओइमे दस गुणाक वृद्धि‍ भेल अछि‍। ओना ई बात नै जे ओइ गामक लोक बम्‍बै, कलक्ता, दि‍ल्‍लीक आमदनी नै बुझैत, बुझैत मुदा गामक सि‍नेह आ वि‍श्वामि‍त्र सदृश्‍य जि‍बटगर। कि‍अए ने जि‍बटगर रहत? कोनो कि‍ आइये रौदी, बाढ़ि‍ आकि‍ अन्‍हर-बि‍हाड़ि‍, भुमकम भेल अछि‍ सभ दि‍नसँ होइत आएल अछि‍ होइत रहत। तरहस्‍थीक मैल जकाँ दू बेर रगड़ि‍ देबै छुछि‍ जाएत। ततबे नहि‍ गामक इहो गौरव अछि‍ जे बरहबरना (बारह-वरन) गाम रहि‍तो ने कहि‍यो अपनामे लाठी-फराठी नि‍कलल आ ने कोट-कचहरीक दैछना भरए पड़ल अछि‍।

रामलीलो पार्टी आ गौआेंक बीच गप-सपक क्रममे तेँए भेल जे ब्रह्मस्‍थान सार्वजनि‍क जगह छी, ओ तँ बैस अगि‍ला गप-सप हुअए। सएह भेल।

लोकक बीच कमल जीक हृदए उमड़ि‍ गेलनि‍। कला-सि‍नेही। वि‍ह्वल भऽ बजलाह- आइ धरि‍ ऐहन गाम नै देखने छलौं जइठाम एहन हृदैक मि‍लान भेल। अखन धरि‍ जेहन-जेहन गाम देखलौं तइसँ भि‍न्न गाम बुझि‍ पड़ैए। एे रूपे कहाँ कोनो गाममे रामलीलाक प्रति‍ आकर्षण छै।
मुदा लगले मन आगू बढ़ि‍ गेलनि‍। भवानक रामक प्रति‍ लोकक वि‍श्वासक कारण अछि‍ आकि‍ मनोरंजनक? मनोरंजनो तँ जीवनक संगे चलैबला सहचरि‍ये छी आकि‍ जि‍नगीसँ अलग चलैबला? कर्म-आनन्‍द मि‍ल लीला करैत अछि‍। सभ सबहक मुँह देखैत जे के कि‍ बजै छथि‍। कारणो अछि‍। सभ अपनकेँ नव बुझि‍ नव फूलक सुगंध लि‍अए चाहैत। सभकेँ चूप देख पुन: कमलजी बजलाह- अहीबेर टा नै जहि‍या कहि‍यो लीला देखबैक अवसर देब तहि‍या जरूर आगूओ देखबैत रहब। बजैले आगू रहबे करनि आकि‍ बि‍चेमे गरीब झा टपकि‍ उठलाह। जहि‍ना राज-दरवारमे कि‍छु गोटेकेँ बजैले परमीशन नै लि‍अए पड़ैत तहि‍ना रामलीला मेड़ि‍याक बीच गरीब जीकेँ। जहि‍ना गरीब नाओं तहि‍ना एक चेराक चेहरा। भीतर-बाहर एक्के रंग। ने गमहारि‍क चेरा जकाँ अमेरि‍कन आ ने कटहरक चेरा जकाँ यूरोपीयन। बस-बस सोलहो आना आमक चेरा जकाँ इन्‍डि‍यन। चौबीसो घंटा शरीरसँ कला छि‍टकैत। मुस्‍की दैत बजलाह-भाय, सर-समाज जहि‍ना कमल भाइक संग पाबि‍ गरीबो झा जलेसरो आ दयाकान्‍तो कलाकारक पात्र बनि‍ सेवाक लेल एलौं तहि‍ना अहूँ सभ गारा-जेाड़ी कए संगी बनब। -हँसैत- जेना हि‍जरा-हि‍जरनि‍या सभकेँ देखै छि‍ऐ जे कोनो-गाम कोनो समाज ओकरा बान्‍हि‍ कऽ नै रखैत तहि‍ना हमरो-सभसँ छि‍पाएब नै।
कहि‍ पुन: बजलाह- होउ भाय, आब अपन अगि‍ला वि‍चार कहि‍यनु।

गरीब झाक वि‍चारकेँ कमलजी मनमे औंटै-पौड़ैत रहथि‍। मनमे हौंड़ैत रहनि‍ जे भरि‍सक अपना इलाकामे जते रामलीला पार्टी छथि‍ ओ सभ भरि‍सक एक सीमाक भीतरे चक्कर कटैत रहलाह। जइसँ सभकेँ उठैक समान वातावरण नै भेट सकल। भरि‍सक गनल-गूथल गाम आ गनल-गूथल समाजक भीतरे रहि‍ गेलाह। मुदा इहो तँ झूठ नहि‍ये जे जते रामलीला देखै-देखबैक जरूरत अछि‍ ओते मेड़ि‍या अछि‍यो नै। तँए कि‍ लोक नै देखैत अछि‍ सेहो बात नै। जहि‍ना पचमहलो कोठामे मनुखे रहैए आ बाधमे बनल रखवारक खोपड़ीमे सेहो मनुखे रहैए। रामलीलाक अति‍रि‍क्‍तो नाटक, नौटंकी थि‍येटर रास, आॅरकेस्‍ट्रा, लोक नाच, वि‍षय-कीर्तन, कौव्‍वाली, इत्‍यादि‍ तँ चलि‍ते अछि‍। रामलीलामे जहि‍ना रामकथा चलैत अछि‍ तहि‍ना लोको नाचमे तँ चलि‍ते अछि‍। मुस्‍कुराइत कमल बजलाह- आइ अहाँ सभक अति‍थि‍-अभ्‍यागती भेल। हम सभ गाछी-वि‍रछीमे रहैबला छी तँए भारो कम्‍मे देब। राति‍मे नि‍चेनसँ सभ एकठाम बैस हब-गब करब। अखन एतबे कहू जे हृदैसँ चाहै छी वा नै।

एक तँ गाममे पहि‍ले-पहि‍ल रामलीला हएत तेकर खुशी तइपर उपजल गामक गदगदी। एक स्‍वरे सभ हूँहकारी भरि‍ देलकै।
दि‍शा-मैदान दिस टहलि‍ दोसरि‍ साँझमे सभ कि‍यो एकठाम बैसलाह। लोकक खुशीकेँ अपना दि‍स खींचैत गरीब झा ठाढ़ भऽ बजए लगलाह- अहाँ सभकेँ बुझले हएत जे रामलीलाक स्‍टेज बनत। स्‍टेजक पाछू कलाकारक बेबस्‍था रहत आ आगूमे देखि‍नि‍हारक। स्‍टेज आ स्‍टेजक पाछुक बेबस्‍था ले तँ बासो-बेलन आ परदो अछि‍ये। रहल स्‍टेजक आगूक बेबसथाक। से तँ समाजे करब।

गरीब झाक बात सुनि‍ संतोखीदास दोहरबैत कहलखि‍न- कनी फड़ि‍छा कऽ कहि‍यौ गरीबबाबू। नीक-नहाँति‍ नै बुझि‍ सकलौं?”

गरीब झा- कते गाममे रामलीला खेलेलौं हन। सभ गाममे कि‍छु-ने-कि‍छु तफड़का रहि‍ते अछि‍। जना कते गाममे पुरूष दर्शकक लेल अलग आ महि‍लाक लेल अलग ढाठ गाड़ि‍ बेबस्‍था कएल जाइए। तँ कोनो-कोनो गाममे से नै होइए।
संतोखीदास मुस्‍कुराइत- गरीब भाय, देखि‍नि‍हारसँ पहि‍ने खेलेनि‍हारक चर्च करू जे खेलेनि‍हारक बीच ने ते.....?”

संतोखीदासक प्रश्न सुनि‍ गरीब झा सकपकेलाह। ओना पेटक बात ओंढ़ मारि‍ गुंगि‍या-गुंगि‍या नि‍कलए चाहनि‍। मुदा अपनाकेँ एक कलाकार मानि‍ सहमि‍ जाइत। दुनू गोटेक बीचक सवाल-जबाब सुनि‍ कमल जीकेँ नै रहल गेलनि‍। मुदा नजरि‍ गाम (समाज) दि‍स नै अपन मेड़ि‍यापर पड़लनि‍। सभ एकठाम बैस खाइ पीबै, सुतै-बैइसै छी। घर-गि‍रहस्‍तीक संग घरवाली बाल-बच्‍चाक संग कला-साहि‍त्‍यपर वि‍चार करैत गति‍-मुक्‍तीक वि‍चार-विमर्श करै छी, तखन एहेन प्रश्न कि‍एक उठल। पचपन-साठि‍ बर्खक, अगि‍ला दाँत टूटल, केशपाकल, छड़गड़ कमलबाबूक मनमे झटका लगलनि‍। मनमे उठलनि‍ जहि‍ना गाए लेल गोशाला तीर्थस्‍थान होइत, वि‍द्यार्थीक लेल वि‍द्यालय, रोगीक लेल अस्‍पताल तहि‍ना ने कला प्रेमीक लेल रंगमंच। यएह गरीब झा छथि‍ जे प्राथमि‍क वि‍द्यालयमे शि‍क्षक छलाह। दरमाहा पाइ कहि‍यो परि‍वारमे नै दै छेलखि‍न। सभ दि‍न सि‍नेमे, नाटकक चक्करमे घुमैत रहलाह। जखन अपन पार्टी ठाढ़ भेल तखन वि‍द्यालय छोड़ि‍ एला। तहि‍ना दयाकान्‍तो छथि‍। बनारसमे रहि‍ शास्‍त्रीय, उपशास्त्रीय संगीत सि‍खने छथि‍। तहि‍ना जलेसर सेहो मन चोभि‍या नाचसँ आएल छथि‍। अपनो पचगछि‍या कुटुमक संसर्गमे रहल छी। अजुनो छकड़वाजीसँ आएल अछि‍। पुन: मनमे उठलनि‍ सच्‍चामे कच्‍चा की। उफनि‍ बजलाह- सभ काजक सीमा होइ छै। अहाँ सबहक जे सीमा अछि‍ तेकर भार अहाँ सभपर आ हमर सबहक जे सीमा अछि‍ तेकर भार हमरा सभपर। द्वारपाल बनि‍ अपन-अपन सेवा जँ इमानदारीसँ देब तँ कोनो तरहक गंदगी नै आओत।

कमल नारायण जीक वि‍चार सुनि‍ संतोखीदास बाजल- आइ धरि‍ ऐ गाममे रामलीला भेबे नै कएल अछि‍ तखन अनुमानसँ कि‍छु सोचब आ बुझबमे कतौ-ने-कतौ कमी रहि‍ये जाएत। मुदा इहो नै कहब जे ओ अनि‍वार्ये अछि‍ नहि‍यो भऽ सकैए। ई ि‍नर्भर करैत अछि‍ गामक बेबस्‍थापर। जइ गामक जेहन बेबस्‍था रहत तइ गाममे तेहन काज हएत। ओना गामक भीतर काँकोड़ वा मकड़ा जकाँ गामक जाल पसरल अछि‍। एहनो नाच वा पूजा अछि‍ जे खास जाति‍क प्रवेश आ खास जाति‍क ि‍नषेध अछि‍। जखन कि‍ मूल प्रश्न अछि‍ कला आ धर्मक। तहि‍ना मनुक्‍खक संग देवतो आ कलो बटाएल अछि‍। जइसँ जबरदस टाट लगि‍ गेल अछि‍।

संतोखीदासक बात सुनि‍ गरीब झा ठहाका मारि‍ पुछलखि‍न- तखन?”
गरीब झाक जि‍ज्ञासा देख संतोखीदास मुस्‍की दैत कहलखि‍न- जेकरा कोनो गाछक जड़ि‍क बोध हएत वएह ओइ गाछक गुण बुझि‍ सकैए। मुदा ऐठाम तँ अखन गाछ जनमैक सुरे-सार भऽ रहल अछि‍ तखन तँ प्रश्न उठैक समयो नै बनल अछि‍।
गरीब झा- तखन?”

संतोखीदास- हँ, अखन घरसँ बहार धरि‍क छी तँए अखने आगूक लेल रास्‍ताक ि‍नर्माण कऽ लेब, नीक हएत। ओना कोनो नि‍यम अस्‍थाइ नै भऽ सकैए। कारण जे समयक संग समाज चलैए तेँ नि‍यमोक संग चलए पड़त। जइसँ कि‍छु नै कि‍छु सुधार होइते चलत। जे समैक अनुकूल हेतै। हमर समाज ओहन अछि‍ जइमे टोल-टोलक आठ-नअ बर्खक बच्‍चासँ लऽ कऽ चेतन, बूढ़-पुरान धरि‍ संगे बाध-बोनमे एकठाम भऽ घास छि‍लैत तीन-तीन चारि‍-चारि घंटा संगे बि‍तबैए। खेतमे संगे रोपैन-कमठाैन करैए। ढेरबासँ जुआन धरि‍ संगे साइकिलसँ दस-दस कि‍लोमीटर स्‍कूल-कओलेज जाइए। तइठाम रामलीला सन जगहमे खाड़ी बनए, ई केहन.....?

संतोखीदासक प्रश्न सुनि‍ कमल गरीब दि‍स कनडेरि‍ये आँखि‍ये झॅकलनि‍। गरीब जलेसर दि‍स। जलेसर कमल दि‍स। तीनूक तीनू वि‍परीत दि‍शामे बौआए लगलाह। एक-दोसरक बीच नजरि‍क मि‍लान हेबे ने करैत। जहि‍ना छोट बच्‍चा केशौरक उपरका भाग देख हाथेसँ खोधि‍या उखाड़ए चाहैत तहि‍ना तीनूक बीच मनमे हुअए लगलनि‍। मुदा से गरे ने लगनि‍। दयाकान्‍त लेल धैन-सन। मने-मन पावसक ि‍वसर्जन करैत समदौन ताल-मात्रा मि‍लबैत। तइकाल कमल नारायण पूछि‍ देलखि‍न- कि‍ दया?”

जहि‍ना अनचोकमे कोनो प्रश्नक उत्तर कि‍छु दऽ दैत तहि‍ना दयाकान्‍त मूड़ीक ताल मि‍लबैत धाँइ दऽ बाजि‍ उठलाह- हँ, हँ, सभ नीके।
मुदा लगले जखन भक्क टुटलनि‍ तँ मनमे उठए लगलनि‍ जे कि‍ उत्तर भायकेँ दऽ देलि‍यनि‍। ओ राय पूछलनि‍ आ हम ओइ बच्‍चा जकाँ कहि‍ देलि‍यनि‍ जे कोनो भोति‍आइत यात्रीकेँ वि‍सवासक संग बि‍नु देखल रस्‍ता बता दैत। तहि‍ना भेल। अखन समदौन मात्रा मि‍लबैक समए नै छल जे मृत्‍युक पछाति‍क वएह मात्रा जन्‍मकालक केना हएत। कि‍अए ने हएत। जन्‍म–मृत्‍युमे अन्‍तरे कि‍ छै। खेतक आड़ि‍ जकाँ थोड़े अछि‍ जे खेतसँ ऊपर होइमे, आड़ि‍पर चढ़ैमे डाँड़पर हाथ लि‍अए पड़त। ई तँ खरन्जा ईंटाक बाट छी जे फुटल छोड़ि‍-छोड़ि‍ सौंसकापर पएर दैत चली।

दयाकान्‍तक उत्तर सुनि‍ कमल आरो भोति‍आए लगलाह। जे सभ नीक तँ अधला कि‍। जँ अधला नै तँ राक्षसक जन्‍म कि‍अए। जँ राक्षस नै तँ मनुखक देहमे मासु-खुन कि‍अए नै? मुदा तइकाल गरीबो झा आ जलेसरो अपन भाँज पुरबैले कमल दि‍स तकलनि‍। बजैले दुनूक मुँह लुसफुसाइत। मुदा पहि‍ने केना बाजब। जलेसरक मनमे गरीब भायकेँ गुरूवार बुझै छि‍यनि‍। अखनो बहुत सि‍खबै छथि‍। जखन कि‍ गरीब झाक मनमे उठैत जे कलाकारक रूपमे भलहि‍ं दुनू गोटेक एक जि‍नगी अछि‍ मुदा गाम-समाजक बंधनमे तँ दू छी। तँए पहि‍ने जलेसरक वि‍चार जरूरी। जँ से नै, अगर पच्‍चीस बीमारीक रोगीक इलाज पहि‍ने नै भऽ एक बीमारीबलाक इलाज हएत तँ नि‍श्चि‍त रूपेँ अधि‍क बीमारीबला रोगी मरबे करत। मुदा से नै, जँ पच्‍चीस बीमारीक इलाज उपलब्‍ध हएत तँ एक बीमारीक इलाज एकटा कोरामि‍नोसँ भऽ जाएत। आँखि‍क इशारासँ जलेसर गरीबकेँ आग्रह केलखि‍न। शि‍क्षक गरीब झा, जे रामलीलाक वि‍दूषककेँ मनमे बि‍जलोका जकाँ तड़कलनि‍ जे रोगीक रोगक इलाज कि‍महरसँ कएल जाए? जालेसर आ गरीब झा, दुनूक तत्-मती देख कमल नारायण जीक मनमे उठलनि‍ जे कतौ जरूर नमहर खाधि‍ अछि‍। वि‍चार बदलैत हँसैत बजलाह- जि‍नगीक पहि‍ल दि‍न एहन आनन्‍दक अवसर भेटल। कहि‍ चुप भऽ गेलाह। मनमे उठलनि‍ जहि‍ना घरमे लगल आगि‍ देख कोनो आन्‍हर भगए चाहैत मुदा आँखि‍ नै रहने ढि‍मका-ढि‍मकीमे ठेसि‍-ठेसि‍ खसैत, कोनो टंगटुट्टाक आभास पाबि‍ जान बँचबए कहत तँ ओ टंगटुट्टा यएह ने कहत जे भाय केकरा के देखै छै जे तोरा हम देखबह आकि‍ तूँ हमरा। तोरा आँखि‍ नै छह जे देखि‍ कऽ चलबह आ हमरा टांग नै अछि‍ जे एको डेग चलब।

कमल सदृश्‍य खि‍लैत कमल जीकेँ संतोखीदास कहलकनि‍- भाय, जतेकाल अहाँ स्‍टेजपर रहब ओतेकाल अहाँ राम, हनुमान आकि‍ रावणक रूप बना रहब मुदा तकर बाद जते समए बचत ओ तँ समाजेक भाए-भैयारीमे बनि‍ रहब कि‍ने? बारह-तेरह बर्खक एकटा बेटा हमरो अछि‍। ऐठाम अछि‍यो। जाबे धरि‍ ऐठाम रहब ताबे धरि‍ ओ सेवामे लगल रहत।
हँसैत कमल बजलाह- सेवाक फल मेवा होइ छै।
जे रोगीकेँ मन भाबए से वैद फरमाबए। अपन नाओं सुनि‍ते शंभू फुड़फुड़ा कऽ उठि‍ कमल जीकेँ गोड़ लगलकनि‍। मुदा जाबे कमलजी असि‍रवाद दि‍तथि‍न तइसँ पहि‍ने गरीबो, जलेसरो आ दयाकान्‍तोकेँ गोड़ लागि‍ समाज दि‍स घुमि‍ पहि‍ने पि‍ता संतोखीदासकेँ गोड़ लागि‍ पाहि‍ लगा सभकेँ गोड़ लगए लगल। मनमे बेहद खुशी! ओहन खुशी जेहन दुरगमनि‍या बहीन, पहि‍लुक समाजसँ आगू बढ़ैत नव समाज दि‍स डेग उठबैत। अखन धरि‍ शंभूकेँ असि‍रवाद दैक वि‍चार कमलजी करि‍ते रहथि‍। कारणो भेल, जखन शंभू गोड़ लगलकनि‍ तखन कमल योगासनमे बैसले रहथि‍। जइसँ दहि‍ना पएर पोन तर दाबल आ वामा बाहर रहनि‍। तँए असीरवाद दइमे पहि‍ल देरी भेलनि‍, दोसर देरी भेलनि‍ जाबे असीरवाद दि‍तथि‍न ताबे शंभू तीनू गोटेकेँ गोड़ि‍ लागि‍ लेलकनि‍। जइसँ कमल असमंजसमे पड़ि‍ गेला। स्‍कूल-कओजेजमे वि‍द्यार्थीक प्रवेश दि‍न जँ शि‍क्षकक बीच हुअए आ ओइ दि‍न शि‍क्षक वि‍द्यार्थीक बीच प्रवेश पर्व हुअए जइ दि‍न सभ वि‍द्यार्थी-शि‍क्षक रंगमंचक कलाकार जकाँ नव-नव चेहरा सजा, नव-नव कला देखबैत। जइसँ एक-कलाकारकेँ जहि‍ना एक संगी भेटलापर नन्‍द रूप आनन्‍दक रूपमे बढ़ैत, तहि‍ना ने ओहू पर्वमे हएत। सभकेँ तत्-मत् करैत देख गरीब टभकि‍ उठलाह- आइ शंभू ओइ सीमापर आबि‍ अँटकि‍ गेल जइठामसँ दि‍शा बदलैत। बहुत पैघ आश समाजमे भेटल। मुदा सबुर कहाँ भेल। सबुर हएत तखन जखन भरि‍ पोख काज अहाँ सभ लेब। शंभूए कि‍अए, एहेन-एहेन शंभू समाजक फुलवाड़ीमे छि‍ड़ि‍आएल अछि‍।
गरीब झाक वि‍चार सुनि‍ संतोखीदास बजलाह- गरीब भाय, आन जे होथि‍, नै बूझल अछि‍, मुदा अहाँ प्राइमरी शि‍क्षकसँ कलाकार भेल छी। तँए जहि‍ना देव पूजनक लेल फुलवाड़ीक फूल बर्जित नै अछि‍, पुस्‍तकालयक पुस्‍तक बर्जित नै अछि‍ तहि‍ना नि‍रवि‍कार भऽ अहूँ समाजक फुलवाड़ीमे घुमि‍-फि‍रि अपन पूजाक फूल चुनि‍ पूजा-पाठ -तामि‍-कोड़ि‍- सेवामे लगा सकै छी।‍

छठि‍क तेसरा दि‍न, अकासक चान अपन प्रवेश देख मधुरि‍या मुस्‍की दैत। ठंढ़-गर्मक सीमान जेहने मोहक होइत तेहने मोहक दुनू समाजक मनमे। एकक मनमे जे दस गोटे एकठाम बैस रामलीलाक आनन्‍द लेब तँ दोसराक मनमे नव समाजक बीच जँ नव-कलाक प्रदर्शन नै हएत तँ समाजकेँ जे भेटोन्ह मुदा कलाकार तँ शंखे डोलबैत रहि‍ जेताह। अपन सत्ताइसो मेड़ि‍याक संग दू बजे, बेरू पहर टायरगाड़ीपर, साज-बाज, पर्दा-पोस, बाँस-बेलन नेने पहुँचलाह। स्‍कूलक बगलक गाछीक जगह बूझले रहनि‍। एक्के-दुइये गौआँ सेहो पहुँचए लगलाह। जाबे टायरक सामान उताड़ि‍ परतीपर रखैत ताबे लोको गोलि‍या गेल। देखले गरीब झा आ देखले संतोखीदास। नजरि‍ पड़ि‍ते संतोखीदास पुछलकनि‍- भाय, शंभूकेँ डटि‍ कऽ पहुँनाइ करौलि‍ऐ?”
संतोखीदासक बात सुनि‍ गरीब झा बजलाह- एते दि‍न शंभूक संग रहि‍तो नै परेखि‍ सकलौं जे शंभू कि‍ चाहैए।
संतोखी- मतलब?”
गरीब- यएह जे ककरो शुरूहेसँ बाजा दि‍स नजरि‍ रहल तँ ककरो नाच दि‍स तँ ककरो गान दि‍स। ई शंभू तँ अद्भुत अछि‍ जे बाजो ि‍दस ओहने झुकाउ देखै छि‍ऐ आ अवाजोक चर्चे कि‍?”
संतोखी- आब तँ गप-सप होइते रहत। जखन आबि‍ गेलौं तखन-अंङस-मंङस नहि‍ये हएब नीक। कि‍ वि‍चार अछि‍?”
गरीब- अखन धरि‍क यएह रहल जे आइ खुँटा-खुट्टी गारि‍ लेब। काल्हि‍ परदा-पोस लगा लीला शुरू कऽ देब।
हद करै छी गरीब भाय। अहाँ सभ खाली देखबैत रहि‍यौ गौआँ सभ एक्के घंटामे सभ तैयार कऽ देत। मुदा जखन गाम आबि‍ गेलौं तखन एको दि‍न नागा करब समैक संग धुड़तै हएत?”

तइ बीच समाजमे एकटा हवा उठि‍ गेल। हवा ई जे कि‍यो बाजि‍ देलकै जे जइ गौआँकेँ पच्‍चीस-पच्‍चीस अनगौआँ भोज करबैक इज्‍जत छै ओ दसटा ब्राह्मणकेँ भोजन नै करा सकैए। मुदा गामे छी। खड़ौआ जौरक बान्‍हसँ बनल घर-सभ। एहेन खुऔनि‍हार चारि‍ गोटे। चारू तैयार जे असकरे देब। नवका वि‍वाद चारू गोटेक बीच। गरमा-गरमीक हाव वहए लगल। कि‍यो भोजक संग बुद्धि‍यारी जोड़ि‍ बजैत तँ कि‍यो बाप-दादाक खुनेलहा पोखरि‍ जोड़ि‍ बजैत। कि‍यो जाइति‍क भगैत गबैत तँ कि‍यो हाकि‍म बेटाक। चारू बात सुनि‍-सुनि‍ गौआँक मन घोर-मट्ठा। जे ई चारू केहन बेर पड़क भदवा बनि‍ गेल। केहने सुन्‍दर सभ कि‍यो एकठाम बैस रामलीला देखतौं तँ चारू कोट-कचहरीक बाट पकड़ैपर उताहुल। जे गाम कहयो ने देखने छल से देखैले तनफन करैत।
मुदा चारू, गौआँ-अनगौआँ मि‍ल, पनचैती मानि‍ लेलक। सबहक बीचमे चारू गोटे पहुँचलाह। गौआँ सभ दोहरी लाभ देख –अनगौआँक आदर आ गौआंमे देखारसँ बाँचब- गरीब झाकेँ मानि‍ लेलनि‍। मने मन गरीब झा सोचलनि‍ जे कोन बड़का पहाड़ अछि‍ जे सभ पाछू ससरि‍ रहल छथि‍। कि‍यो पहाड़ देख डरैत तँ कि‍यो बच्‍चा माए-बापक संग खुरपीसँ खाधि‍ खुनि‍ खेलाएत। मुदा लगले मन घुमलनि‍ जे जँ चारू गोटेकेँ कहि‍ दि‍अनि‍ एक-रंग कऽ सभ चीज दऽ दियौ तखन तँ खीराक फाँक बनि‍ जाएत। उपरसँ चि‍क्कन आ भीतर फाँक। नीक हएत जे हुनके सभकेँ पूछि‍-पूछि‍ बाँटि‍ दि‍यनि‍। मुस्‍की  दैत बजलाह- भाय, अनगौआँ छी, तँए ई नै कहब जे छठूसँ छठूपाना केलक। जि‍नका जे चीज छन्हि‍ ओ ओ चीज देथुन।
गरीब झा- अपना खेतमे जि‍नका सतरि‍या-बासमती धान भेल होन्हि‍ ओ चाउर देथुन। जि‍नका बाड़ीमे तरकारी उपजैत होन्हि‍ ओ तरकारी देथुन। जनका खूँटापर गाए-महीसि‍ होन्हि‍ ओ दूध-दही देथुन।   

सभ कि‍छुक जोगाड़ घंटे भरि‍मे भऽ गेल। आइसँ रामलीला हएत ई समाचार जेना सभक छाती धड़कबए लगल। जि‍नगी वि‍षयक कथाक रंगमंच मास दि‍न धरि‍ गौआँ देखताह। कि‍एक ने खुशीक हि‍लकोर उठतनि‍। आरती चढ़ौआक बरखा सोहे बरस‍बे करत।

मास दि‍नक शंभू संगे-संग खटल। आइ समाप्‍त भऽ रहल अछि‍। काल्हि‍ सभ कि‍यो दोसर गाम चलि‍ जेताह। आड़ि‍पर शंभूक ठाढ़ भेल सोचि‍ रहल अछि‍। समाज बदलि‍ कहाँ रहत अछि‍। समाज बदलि‍ कहाँ रहल अछि‍। बढ़ि‍ रहल अछि‍ संतोखी-दासक मनमे उठैत जे छोटसँ पैघ दुनि‍याेमे प्रवेश केनि‍हार -जाइबला- केँ कि‍छु कहब कठि‍न अछि‍। तहूमे आब तँ सहजहि‍  नेनासँ चफलगर भेल।
जेबाकाल कमल जीक नोर टघरि‍ गेल रहल छन्हि‍। वएह नोर जे ससुरारि‍‍ जाइवाली रहै छै।

साल भरि‍ बि‍तैत-बि‍तैत शंभू रामलीलाक प्रमुख कलाकारक श्रेणीमे आबि‍ गेल। ओना प्रमुखताक कारण उत्‍कृष्‍टता होइत मुदा शंभूक प्रमुखताक कारण भेल बहुआयामी। जहि‍ना आद्राक पहि‍ल बर्खामे ओहन कि‍सानक मन अधि‍क छटपटाइत जेकरा एक संग अनेको खेती करैक रहै छै। फसल लगबैक लेल मन छटपटाए लगै छै जे अगहनी धानोक बीआ आ चौड़ि‍यो खेत अछि‍, गरमा धानक सहो रंग-रंगक बीआ अछि‍, जे मौसमक हि‍सावसँ नै समैक हि‍साबसँ होइत अछि‍। जौं ओ बि‍आ समैपर नै उखाड़ि‍ लगौल जाएत तँ उपजा प्रभावि‍त हएत। मुदा बर्खा चटकने तँ चौड़ीक खेति‍ये बुड़ि‍ जाएत। मुदा शंभूकेँ से नै भेल। ढोलक, हारमोनि‍यम बजबैसँ लऽ कऽ नचनाइ पार्ट खेलनाइ तकमे शामि‍ल भेल। जइसँ पार्टीक भीतर शंभूक महत्‍व बढ़ि‍ गेल। कोनो आदमीक -कलाकारसँ लऽ कऽ वादक धरि‍क- अनुपस्‍थि‍ति‍क पूर्ति शंभू करए लगल।

कमल जीक रामलीला पाटीमे शंभू सात बर्ख रहल। ओना अधि‍क उमेर भेने कमल नरायण पार्टी खसा लेलनि‍। गामोक स्‍थि‍ति‍मे ठनका खसलनि‍। सन्‍मुख कोसीक मुँह पछि‍म मुँहेँ जाेर केलक। जइसँ गामक छि‍ड़ि‍आएल बास समटा कऽ घोदि‍या गेल। खेतबलाक स्‍थि‍ति‍ बि‍गड़ि‍ गेलनि‍। कतेको परि‍वार गाम छोड़ि‍ परदेश  रहए लगलाह।
बीस बर्खक शंभू अपन ओकाइत -लम्‍बाई-चौड़ाइ- बुझए लगल। मनमे रंग-रंगक वि‍चार उठए लगलनि‍। मुदा सभ गुण होइतो शंभूक मन उपशास्‍त्रीय संगीत दि‍स अधि‍क झुकल। जेहने स्‍वर तेहने कला। सामंत सबहक टूटैत स्‍थि‍ति‍ शास्‍त्रीय संगीतकेँ प्रभावि‍त केलक। ओना प्रभावि‍त उपशास्‍त्रीय सेहो भेल मुदा कम। दरवारीदासक लाट पकड़ि‍ शंभू राजक गवैया बनि‍ वि‍भूषि‍त भऽ गेल।

हजारो लोकक भीड़मे जहि‍ना कि‍यो अपन प्रेमी देख सभ कि‍छु वि‍सरि‍ जाइत तहि‍ना संगीत प्रेमी शंभूदास घर-परि‍वार वि‍सरि‍ वि‍याह नै केलनि‍। ढहैत बेबस्‍थाक तरमे शंभूओदास पड़ि‍ गेलाह।
बेबस्‍थाक बेबस्‍था चलैत मि‍थि‍लाक धरति‍ये जकाँ मि‍थि‍लाक कला सेहो राँइ-बाँइ भऽ छि‍ड़ि‍या-बीति‍या टूटि‍-फाटि‍ गेल।               
            








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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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