भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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ओ मजदूर हॅंसए लागल आ बाजल – महाराज हम सभ मजदूरी कऽ कऽ गुजर करैत छी तैयो अपन संस्कारसँ हटि नै सकलहुँ... राति जे हम अपन पत्नीसँ कहलिऐ से पैंचा लगेबाक अर्थ भेलै जे – हमर दू टा छोट धिया-पूता अछि तकरा भोजन करेनाइ आ पैंचा सधेबाक माने भेलै जे बूढ माए-बापकेँ भोजन करेनाइ। हमर घरवाली जखन कहलक हॅं, तकर बाद हम कहलिऐ सहस्त्रमुखक दीप जरबै लेल । सरकार, हमरा सभकेँ लालटेम-डिबिया कतएसँ एतै? हम सभ तँ एक मुट्ठी पुआर जरा कऽ ओकरे इजोतमे खा लैत छी। हमरा सभ लेल वएह सहस्त्रमुखक दीप भेलै।
सभ दरबारी ओकर जय-जयकार केलक आ राजा ओकरा बहुते रास इनाम देलखिन्ह ।
२
गप्पक अर्थ
एक बेर एकटा राज दरबारमे नाच होइत रहैक, ताइ दिन नाच भरि रातुक होइ, ब्रह्ममुहुर्त सँ कनी पहिने नटुआकेँ औंघी लागि गेलै, ई देखि नाचमे जे मूलगैन रहैक से इशारामे कहलकै - गये रे बहुतरे काले संजनम मन रंजनम.......आ नटुआ गाबए लागल ......
जहन पुछल गेलै तँ राजकुमार कहलकै ... 'हमर बाबु (राजा) ८० बरखक बूढ भऽ गेलाह तैयो एखन तक हमरा राजा नै बनेलन्हि, आइ हम सोचने रही जे रातिमे तलवारसँ काटि दितियन्हि... किन्तु अहि नटुवाक शब्दक अर्थ हमरा लागि गेल'।
तकर बाद राजकुमारीसँ पुछल गेल तँ ओ कहलथि 'हमरा मंत्रीक बेटासँ प्रेम अछि परंतु हमर बाबू (राजा), हमर विवाहक विरुद्ध छथि आ आइ हम दुनू गोटा भागि जैतौं मुदा ई नटुआ हमरा कहलक ....... हमरा अर्थ लागि गेल'।
तें किछु लोक केँ गप्पक अर्थ आ लक्ष्मीनाथ गोसाँइक पाँतिक जे बुझाए, से ने मनुख......
३
जहियासँ काल धेलक
एक टाजोतखी जी रहथि।प्रकाण्ड विद्वान। विद्वतामे समस्त राज्यमे हुनकरधाख छलन्हि.... ।
भगता फेर हँसैत कहलकन्हि.... धुर जोतखी जी केहेन बेवकूफ छी...... जोतखी जी फेर चुप.... ......
तेसर बेर भगता फेर कहलकन्हि....
अहि बेर जोतखी जीकेँ नहि रहल गेलन्हि.........
कहलखिन्ह "हमरा सन विद्वान अहि राजमे नै छौ ....... परंचु जहनसँ ई काल धऽ लेलक-ए तहनसँ ठीके हम बेवकूफ भऽ गेलहुँ"
कहैत.... जोतखी जी विदा भऽ गेलाह .............
४
नीक करी तँ पैघ के? बेजाए करी तँ पैघ के?
एक टा पण्डितजी रहथि, ओइ रज्यक राज कुमारकेँ शिक्षा देनाइ सेहो हुनके काज रहन्हि। पण्डितजी अपन बेटाकेँ सिखबथिन्ह जे - नीक करी तँ पैघ के, बेजाए करी तँ पैघ के। छोट बुद्धि बलासँ संगत नै करी आ जनानीकेँ सभ गप्प नै कहिऐ......... जहन पण्डितजी बूढ भऽ कऽ मरि गेलाह तँ हुनकर बेटा राज पण्डित भेलाह । ओइ राजाकेँ बुढारीमे एकटा बेटा भेलन्हि। राजकुमार जहन ५-६ बरखक भेलाह तँ पण्डितजीसँ शिक्षा ग्रहण करए लगलाह...
एक दिन पण्डितजीकेँ बुझेलन्हि जे बाबू सभ दिन कहैत छलाह जे - नीक करी तँ पैघ के, बेजाए करी तँ पैघ के, छोट बुद्धि बलासँ संगत नै करी आ जनानीकेँ सभ गप्प नै कहिऐ...... से एकरा भजेबाक चाही .... एक दिन ओ एकटा बड़का टा सन्दूक लेलन्हि ओइमे खेबा-पिबाक व्यवस्था कऽ देलखिन्ह आ राजा बेटाकेँ कहलखिन्ह जे अहाँ अहि सन्दूकमे बन्द भऽ जाउ आ कतबो कियो सोर पाड़ए तँ नै बाजब... जाबे हम नै कही तावत नै निकलब.......
पण्डितजी बाहर एलाह आ एकटा चक्कू लेलन्हि आ चक्कूक संग अपन हाथमे लाल रंग लगा लेलन्हि आ हड़बड़ाइत पंडिताइनकेँ कहलथिन्ह जे हमरा बुते जुलूम भऽ गेलै, चक्कूसँ करचिकलम बनबैत काल उछट्टि कऽ राजकुमारक नरेटी कटा गैलै...... ई सुनि पंडिताइन छाती पीटऽ लगली..... हरेलन्हि ने फुरेलन्हि पंडिताइन अपन पड़ोसिया चौकीदारक कनियाँ, जिनकासँ पंडिताइनकेँ बड़ अपेछितारे छलन्हि, दौड़ कऽ कहऽ गेलखिन्ह.... चौकीदारनी दौड़ कऽ खेतमे हर जोतैत चौकीदारकेँ कहलकै....... चौकीदार ने यएह सोचलक ने वएह... सोझे आबि पंडितजीक डांड़मे रस्सा लगेलक आ राजदरबारमे लऽ गेल। चौकीदारकेँ भेलै जे अहि माथे प्रोमोसन भऽ जाएत.....
राजदरबारमे सभ आश्चर्यचकित भऽ गेल.... राजा कहलखिन्ह जे गुरुकेँ रस्सामे बान्हि अनर्थ केलैं.. तुरत हिनकर रस्सा खोल......
चौकीदार – महाराज, ई बड़का पैघ गलती केलन्हि.....
राजा – कतबो पैघ गलतीक लेल गुरुकेँ रस्सासँ बान्हल नै जा सकैत छै ... जल्दी हिनका खोल ....
चौकीदार खोलि देलकन्हि, तहन राजा कहलखिन्ह - आब कहऽ जे ई की केलन्हि?
चौकीदार बाजल जे ई राजकुमारक हत्या कऽ देलन्हि..
सभ सन्न.....
सभ दरबारीमे खुसुर-फुसुर होमए लागल..... कियो कहै जे हिनका शूलीपर चढा दे तँ कियो कहै जे भकसी झोंका दियन्हु....
राजा बड़ी काल सोचलन्हि आ अंतमे फैसला लेलन्हि आ पण्डितजी केँ कहलखिन्ह – हमरा जीवनमे अहिसँ पैघ अनर्थ नै हएत.... अहाँ बड़ पैघ अपराध केलहुँ परंतु अहाँ गुरु छी..... तथापि अहाँकेँ सजा भेटत.... हम अहाँकेँ सजा दैत छी जे अहाँ सपरिवार चौबीस घंटाक भीतर हमर राज्यसँ निकलि जाउ......
पण्डित जी गामपर एलाह आ बक्सामे सँ राजकुमारकेँ निकालि आंगुर पकड़ि राजदरबार दिस बिदा भेलाह....
सभ आश्चर्यचकित भऽ गेल.........
पण्डित जी राजदरबार पहुँचलाह । सभ अचम्भित।
राजा पुछलखिन्ह – की बात छिऐ पण्डित जी ?
पण्डित जी बजलाह – सरकार हमरा जनमहिसँ बाबू कहैत छलाह जे – नीक करी तँ पैघ के, बेजाए करी तँ पैघ के, छोट बुद्धि बलासँ संगत नै करी आ जनानीकेँ सभ गप्प नै कहिऐ......... से गप्पकेँ हम भजेलहुँ अछि।
राजा बजला – तँ की प्राप्ति भेल ?
अहि राज्यमे सभसँ पैघ अहाँ आ अहाँक अहिसँ पैघ अनर्थ किछु नै भऽ सकैत अछि तथापि अहाँ हमरा मर्यादानुकूल दण्ड देलहुँ... तें ई तँ ठीके जे नीक करी तँ पैघ के आ बेजाए करी तँ पैघ के.....
दोसर -अहि चौकीदारनीसँ पण्डिताइनकेँ बड़ अपेक्षितारे छलन्हि आ चौकीदार सेहो हमरा बड नमस्कार पात करैत छल । समय पड़लापर ई बात नै बुझऽ लागल, सोझे पकड़ि लेलक बुझलक जे अही माथे प्रोमोशन भऽ जाएत... तेँ ठीके बाबू कहैत छलाह जे छोट बुद्धिबलासँ संगत नै करी।
तेसर – हमर पण्डिताइन किछु सोचऽ नै लगली आ सोझे चौकीदारनीकेँ कहए गेलखिन्ह.... तेँ ईहो ठीक जे जनानीकेँ सभ गप्प नै कहिऐ....
बाबूक सभ गप्प मील गेल । लिअ अपन बेटा आ हम चललहुँ.......
५
पढ़बे टा नै करी ओकरा गुनबो करी
एक टा आदमी छलाह । हुनका आध्यात्मिक किताब पढैमे बड़ मोन लगैत रहन्हि। आस्ते-आस्ते ओ बाबाजी भऽ गेलाह। हुनका नाइन्हिये टा मे किताब मे पढल रहन्हि जे कण-कण मे भगवान बसैत छथि आ सएह सत मानि कऽ ओ जीवन कटैत रहलाह।
एक बेर एक टा गाममे बड़ मरखाह साँढ आबि गेलै। भरि गाममे तेहेन ने उछन्नर देने छल जे गामक लोक ओइ साँढक डरे ओ रास्ता छोड़ि देने छल।
एक दिन ई महात्मा जी ओइ गाम गेलाह। भरि दिन घुमलाक बाद साँझमे जखन घुमल जाइत रहथि तँ वएह रस्ता धरऽ लगलाह। ओहू ठाम नेना भुटका सभ खेलाइत रहै.... बाबाजीकेँ ओइ रस्ते जाइत देखि नेना भुटका सभ मना केलकन्हि। बाबाजी कहखिन्ह जे रे बच्चा तूँ सभ की जाने गिया, कण-कण मे भगवान बास करता है – हमरा मे, तोरा मे, ओइ साँढ़मे, सभमे भगवान रहता है ... आ जखन साँढ़मे भगवान हैं तँ भगवान हमरा कोना मारेगा? हम तँ ओकर भक्त है...
नेना भुटका सभ कहलकन्हि- तहन जा तोरा भगवान बचेथुन्ह.....
बाबाजी आगू बढ़लाह ...साँढ दुरेसँ देखि नांगरि उठा दौड़ल आ बाबाजीकेँ सिंघपर उठा आरिक कात मे रगड़ऽ लागल.... बाबाजी बाप-बाप करए लगलाह..... जावत लोक सभ लाठी-भाला आदि लऽ कऽ दौगल तावत बाबाजी बेदम भऽ गेलाह.... हुनकर मृत्यु भऽ गेल छलन्हि....
मुइलाक बाद जहन भगवानसँ भेँट भेलन्हि, ओ बाबाजी भगवानसँ पुछलखिन्ह तँ भगवान जबाब देलखिन्ह – बाउ, किताबमे पढ़बे टा नै करू ओकरा गुनबो करियौ....जँ सभमे हम (भगवान) रहैत छी तँ ओ नेना भुटका सभ जे अहाँकेँ मना केलक ओकरोमे तँ हम (भगवान) छलिऐ... तेँ खाली पढ़बे टा नै करियौ, ओकरा गुनबो करियौ.....
६
अकिलक मोल
एकटा राज्यमे वृद्ध राजा छलाह। हुनकर मंत्रीमण्डलमे सभसँ बेसी दरमाहा एक टा बुरहा मंत्रीजीकेँ छलन्हि। दरबारक किछु अपेक्षाकृत युवा मंत्रीगणकेँ एकटा बात अखरैत छलन्हि जे - सभटा काज हम सभ करैत छी तैयो हमरा सभक कम दरमाहा आ ई बुरहा मंत्री कोनो काज नै करैत छथि, खाली राजा साहेब लग गप्प दैत रहैत छथिन्ह, तैयो ओ सभसँ बेसी दरमाहा पबैत छथि संगहि राजा साहैब हुनकर गप्प बेसी मानबो करैत छथिन्ह। अहि बातपर सभ दरबारी सभमे घोल-फचक्का होमए लागल । एक दिन सभ मिलि कऽ भरल राजदरबारमे अहि प्रश्नकेँ उठौलक..... राजा साहेब बड़ गम्भीर भऽ कहलथिन्ह जे काल्हि अहि हम एकर प्रमाण देब । दरबार खतम भऽ गेल।
भोर भेने दरबार लागल । राजा प्रतिवादी युवा मंत्रीकेँ आ बुरहा मंत्रीकेँ अलग अलग कमरामे बैसा देलथिन्ह । सभसँ पहिने प्रतिवादी युवा मंत्रीकेँ बजेलाह आ कहलखिन जे जाउ आ राजमहलक पछुआरमे नारक टाल छै ओइमे एकटा पिलिनियाकेँ बच्चा भेल छै, कने देखने अबियौ ।
युवा मंत्री गेलाह आ कने कालमे घुमि कऽ आपस एलाह।
राजा पुछलखिन्ह-‘देखलिऐ?’
युवा मंत्री – जी महाराज, ठीके कुक्कूरकेँ बच्चा भेल छै महाराज।
राजा – कएक टा छै?
युवा मंत्री –जा से तँ गनबे नै केलिऐ।
युवा मंत्री फेर दौड़ कऽ गेलाह आ आबि कऽ कहलखिन – महराज, तीन टा चितकबरा, दू टा गोला आ एक टा उज्जर छै।
राजा – ओइमे कएक टा पिलिनिया आ कएक टा पिल्ला छै ?
युवा मंत्री – जा से फरिछा कऽ देखबे नै केलिऐ।
युवा मंत्री फेर दौड़ कऽ गेलाह आ आबि कऽ कहलखिन – महाराज, पाँच टा पिलिनियाँ आ एक टा पिल्ला छै।
राजा – बिख लगै बला कएक टा छै आ बिना बिख बला कएक टा छै ?
युवा मंत्री फेर दौड़ कऽ गेलाह आ आबि कऽ कहलखिन – महाराज, तीन टाकेँ बिख लगतै आ तीन टाकेँ बिख नै लगतै ।
राजा – कएक टा पिल्लाकेँ बिख लगतै आ कएक टा पिलिनियाकेँ बिख लगतै ?
युवा मंत्री फेर दौड़ कऽ जेबाक लेल बढ़ए लगला तँ राजा रोकि देलखिन आ कहलखिन- बैस जाउ। युवा मंत्री बैस गेलाह।
तकर बाद राजा बुरहा मंत्रीकेँ दरबारमे बजेलन्हि आ कहलखिन जे मंत्रीजी राजमहलक पछुवारमे जे नारक टाल छै ओइमे एकटा पिलिनियाँकेँ बच्चा भेल छै, कने देखने अबियौ।
बुरहा मंत्री गेलाह आ कने कालमे घुमि कऽ आपस एलाह। राजा पुछलखिन्ह – मंत्री जी देखलिऐ?
बुरहा मंत्री – जी महाराज, देखलिऐ। गोला पिलिनियाकेँ करीब पांच-छ: दिन पहिने बच्चा भेल हेतैक । तीन टा चितकबरा, दू टा गोला आ एक टा उज्जर रंगक छै । पांच टा पिलिनियाँ आ एक टा पिल्ला छै। तीन टाकेँ बिख लगतै जइमे दू टा पिल्ला आ एक टा पिलिनिया आ बाँकी तीन टाकेँ बिख नै लगतै। लगैत अछि जे कोनो विदेशी कुक्कूरसँ अहि पिलिनियाँकेँ .........
राजा बीचमे रोकि देलखिन आ दरबारी सभसँ पुछलखिन जे अहाँ आब बुझलिऐ जे बुरहा मंत्रीजी केँ सभसँ बेसी दरमाहा किएक छै? आबो ककरो कोनो कोनो प्रश्न?
सभ दरबारी महाराजक जयकार कऽ उठल आ युवा मंत्रीक मुँह लटकि गेलन्हि....
२
डॉ॰ शशिधर कुमर
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी – प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४
झट स्कूल जो हाथ मे ल'ले पोथी स्लेट आ भट्ठा,
बौआ घी लेबे की मट्ठा।
पढ़बेँ लिखबैँ साहेब बनबेँ
बढ़िया बढ़िया सूट बूट अनबेँ
नहित' सभ दिन पहिर' पड़तौ
मोट झोट आ लठ्ठा बैआ...
सरस्वती सँ लक्ष्मी भेटतौ
घर भरि मे संपन्नता औतौ
दड़िभंगा मे कीन देबौ, तोरो जमीन दू कठ्ठा बौआ...
देखही जे ने पढ़लक लिखलक अ आ इ ई सहो ने सिखलक ओकरा आइ धरि जाय पड़ै छै,
कान्ह पर हर लऽ हठ्ठा बौआ...
ललुआ चुनुआ रबिया गुड़िया स्कूल जाई छौ संगी तुरिया पढ़कऽ अबिहैँ त संगी
संग, करिहैँ हँसी ठठ्ठा बौआ...
Episodes Of The Life - ("Kist-Kist Jeevan" by Smt. shefalika Varma translated into English by Smt. Jyoti Jha Chaudhary ) 2.Original Poem in Maithili by Kalikant Jha "Buch" Translated into English by Jyoti Jha Chaudhary
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
English to Maithili
Maithili to English
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोषप्रोजेक्टकेँआगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७Combined ISBN No.978-81-907729-7-6विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइट http://www.shruti-publication.com/पर।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी)एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमेसंपूर्णई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)- essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups literature in single binding:
Language:Maithili ६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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[विदेह ई-पत्रिका,विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक-निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि),पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर),कथा-गल्प (गल्प गुच्छ),नाटक (संकर्षण),महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत-संग्रहकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमादेँ। ]
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५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहनभव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
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१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे। मुदाअहाँक सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक। (स्पष्टीकरण-श्रीमान्,अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/परबिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि ताहिपर हमर कोनो नियंत्रण नहि अछि।- गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽसकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ।ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मेहमर उपन्यास स्त्रीधनकजेविरोध कएल गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।...कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक अनेक धन्यवाद; कतेक बरखसँ हम नेयारैत छलहुँ जे सभ पैघ शहरमे मैथिली लाइब्रेरीक स्थापना होअए, अहाँ ओकरा वेबपर कऽ रहल छी, अनेक धन्यवाद।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि।समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्रीमंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपसकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकसेहो,अति उत्तम।मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्णझा-कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचनाकौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम-कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमेसमाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँकजुड़ाव बड्डनीक लागल, अहाँ एहिक्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकसन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी- मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल। पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो अहाँसँ आशा अछि।
७६.श्री उदय चन्द्र झा "विनोद":गजेन्द्रजी, अहाँ जतेक काज कएलहुँ अछि से मैथिलीमे आइ धरि कियो नहि कएने छल।शुभकामना।अहाँकेँ एखन बहुत काज आर करबाक अछि।
७७.श्री कृष्ण कुमार कश्यप: गजेन्द्रठाकुरजी, अहाँसँ भेँट एकटा स्मरणीय क्षण बनि गेल। अहाँ जतेक काज एहि बएसमे कऽ गेलछीताहिसँ हजार गुणा आर बेशीक आशा अछि।
७९. श्री हीरेन्द्र कुमार झा- विदेह ई-पत्रिकाक सभ अंक ई-पत्रसँ भेटैत रहैत अछि। मैथिलीक ई-पत्रिका छैक एहि बातक गर्व होइत अछि। अहाँ आ अहाँक सभ सहयोगीकेँ हार्दिक शुभकामना।
विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
(c)२००४-११. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHAसम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल।सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: ज्योति सुनीत चौधरीआ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक-सूचना-सम्पर्क-समाद पूनम मंडल आ प्रियंका झा।
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.comकेँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। ’विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका अछि आ एहिमे मैथिली, संस्कृत आ अंग्रेजीमे मिथिला आ मैथिलीसँ संबंधित रचना प्रकाशित कएल जाइत अछि। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
(c) 2004-11 सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटारचनाआ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। रचनाकअनुवाद आ पुनः प्रकाशन किंवा आर्काइवक उपयोगक अधिकार किनबाक हेतुggajendra@videha.co.inपर संपर्क करू। एहि साइटकेँ प्रीति झा ठाकुर, मधूलिका चौधरीआ रश्मि प्रिया द्वारा डिजाइन कएल गेल।
सिद्धिरस्तु
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