ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ९५ म अंक ०१ दिसम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४८ अंक ९५)
ऐ अंकमे अछि:-
३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमर २ नवीन कुमार "आशा"
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय
१
विनीत उत्पलक सूचनाक अधिकारक अन्तर्गत मांगल सूचना १० सदस्यी साहित्य अकादेमीक मैथिली एडवाइजरी बोर्ड द्वारा मैथिलीकेँ खतम करबाक षडयंत्रक खुलासा केलक अछि। http://esamaad.blogspot.com/2011/11/vinit-utpals-rti-application-dated.html आ http://www.facebook.com/media/set/?set=oa.208811812530288&type=1 ऐ दुनू लिंकपर ई सूचना उपलब्ध अछि।श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, श्री राजदेव मण्डल, श्री बेचन ठाकुर (क्रमसँ मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ जीवित कथा-उपन्यासकार, कवि आ नाटककार), श्री उमेश पासवान, श्री उमेश मण्डल, श्री रामदेव प्रसाद मण्डल "झाड़ूदार", श्री दुर्गानन्द मण्डल आ श्री आनन्द कुमार झाकेँ कोनो असाइनमेन्ट नै? मुदा की मैथिली एडवाइजरी बोर्ड द्वारा मैथिलीकेँ खतम करबाक षडयंत्र मैथिलीकेँ मारि देत? नै, कारण? कारण जै तरहेँ श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, श्री राजदेव मण्डल, श्री बेचन ठाकुर , श्री उमेश पासवान, श्री उमेश मण्डल, श्री रामदेव प्रसाद मण्डल "झाड़ूदार", श्री दुर्गानन्द मण्डल आ श्री आनन्द कुमार झा आ आन गोटे अपन तन-मन-धनसँ मैथिलीक जड़िकेँ अपन खून-पसीनासँ पटा रहल छथि..ई षडयंत्र- मैथिलीकेँ मारबाक- नै सफल हएत। ई भाषा जिबैत रहत। अविलम्ब एडवाइजरी कमेटीक सभ सदस्य अपन अपन असाइंमेंट वापस करथि / करबाबथि (अपन माने अपन , अपन परिवार / बच्चा / चेला चपाटी), नै तं हिनका सभ पर त्यागपत्र देबाक लेल दवाब बनाओल जाए, हिनकर सबहक घरक सोझां अष्टजान कएल जाए, राष्ट्रगीतक गाओल जाए, राष्ट्रगीतक अष्टजाम कएल जाए /
मिथिला राज्य जं ऐ स्थिति मे बनत तं यएह दस परिवार मिथिला कें भूजि खा जाएत /
मिथिला राज्य संघर्ष समिति सभ ऐ छद्म अनुवाद सभकें अपन सभामे जराबथि / तखने ओ सिद्ध का' सकता जे ओ मिथिला राज्य बनेता आकि मैथिली राज्य /
सी. आइ. आइ. एल. सं सेहो (मैथिलीमे ) ग्रांट -इन ऐड आ अनुवादक सूची सूचनाक अधिकार तहत मंगबाओल जाएत /
२
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान २०१२-१३: ऐ बेर ई प्रक्रिया पछिला बेर जकाँ पुनः प्रारम्भ कएल जा रहल अछि।
रचना आ रचनाकारपर अपन प्रतिक्रिया ggajendra@videha.com वा https://www.facebook.com/groups/videha/permalink/207867575958045/ थ्रेडक कमेन्ट बॉक्समे दी से आग्रह। ई समस्त डिसकशन ३१ दिसम्बर २०११ धरि चलत। तकर बाद रचना/ रचनाकार शॉर्टलिस्ट कऽ कऽ वोटिंग १ जनवरी २०१२ सँ शुरू हएत।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१२-१३ :ऐ लेल श्री राजनन्दन लाल दास, श्री डॉ. अमरेन्द्र आ श्रे चन्द्रभानु सिंहक नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक समग्र योगदानपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे पाठक देबए चाहथि, आमंत्रित अछि।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी मूल पुरस्कार -१२ : ऐ लेल श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक), श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा” (कविता-संग्रह), श्रीमती शेफालिका वर्माक “किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा), श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट” (उपन्यास), श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक), श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ आ बलचन्दा” (दूटा नाटक), श्री सुभाष चन्द्र यादवक “बनैत बिगड़ैत” (कथा-संग्रह), श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति” (कथा संग्रह), संग समय के (कविता संग्रह)- महाप्रकाश, भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह)- वीणा कर्ण, तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह) आ श्री महेन्द्र मलंगियाक “छुतहा घैल” (नाटक)क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक पोथीपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे पाठक देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २००८, २००९ वा २०१० मे प्रकाशित हेबाक चाही।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार -१२ : ऐ लेल हम श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक “तरेगन”(बाल-प्रेरक कथा संग्रह), जीवकांत - खिखिरक बिअरि आ मुरलीधर झाक “पिलपिलहा गाछ”क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक पोथीपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे पाठक देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २००६सँ २०१० धरि प्रकाशित हेबाक चाही।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार -१२ : ऐ लेल हम श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस” (कविता संग्रह), श्री विनीत उत्पलक “हम पुछैत छी” (कविता संग्रह), कामिनीक “समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह), आदि यायावरक “भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह),, श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी” (कविता संग्रह), श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह), श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै (कविता संग्रह), श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल संग्रह) आ श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा नहि” (कविता संग्रह)क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक पोथीपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे पाठक देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २०११ धरि प्रकाशित हेबाक चाही।३१ दिसम्बर २०११ धरि प्रकाशित रचना अहाँ दऽ सकै छी, कारण ई डिसकशन ३१ दिसम्बर २०११ धरि चलत; तकर बाद रचना/ रचनाकार शॉर्टलिस्ट कऽ कऽ वोटिंग १ जनवरी २०१२ सँ शुरू हएत।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार -१३ : ऐ लेल हम श्री नरेश कुमार विकल (ययाति,मराठी उपन्यासक अनुवाद मूल लेखक श्री विष्णु सखाराम खांडेकर), श्री महेन्द्र नारायण राम (कार्मेलीन,कोंकणी उपन्यासक अनुवाद मूल लेखक श्री दामोदर मावजो), श्री देवेन्द्र झा (बांग्ला उपन्यासक अनुवाद मूल लेखक श्री दिव्येन्दु पालित) आ श्रीमती मेनका मल्लिक (देश आ अन्य कविता सभ- रेमिका थापा, नेपाली), कृष्ण कुमार कश्यप आ शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द (जयदेव - संस्कृत) क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक पोथीपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे पाठक देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २००९, २०१० वा २०११ मे प्रकाशित हेबाक चाही।३१ दिसम्बर २०११ धरि प्रकाशित रचना अहाँ दऽ सकै छी, कारण ई डिसकशन ३१ दिसम्बर २०११ धरि चलत; तकर बाद रचना/ रचनाकार शॉर्टलिस्ट कऽ कऽ वोटिंग १ जनवरी २०१२ सँ शुरू हएत।
रचना आ रचनाकारपर अपन प्रतिक्रिया ggajendra@videha.com वा https://www.facebook.com/groups/videha/permalink/207867575958045/ थ्रेडक कमेन्ट बॉक्समे दी से आग्रह। ई समस्त डिसकशन ३१ दिसम्बर २०११ धरि चलत। तकर बाद रचना/ रचनाकार शॉर्टलिस्ट कऽ कऽ वोटिंग १ जनवरी २०१२ सँ शुरू हएत।
पूर्व पीठिका:
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान दिसम्बर मासमे कोलकाता, दरभंगा, झंझारपुर आ पटनामे देल जाएत, ऐमे प्रशस्ति-पत्र आ पदक देल जाएत। विस्तृत विवरण शीघ्र देल जाएत। ऐ बेरुका पुरस्कारक सूची:-
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान
१.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११
२०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
२०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)
२.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२
२०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
२०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा संग्रह)
२०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
२०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मानदीक माझी, बांग्ला- मानिक बंद्योपाध्याय, उपन्यास बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)
ऐमेसँ श्री रमानन्द रेणु जीक मृत्यु सम्मानक घोषणाक बाद भऽ गेलन्हि, तेँ हुनकर उत्तराधिकारीकेँ ई पदक आ प्रशस्ति-पत्र देल जाएत।
[सूचना: १. कैथी आ मिथिलाक्षर दुनू लिपिकेँ यूनीवर्सल कैरेक्टर सेट (यूनीकोड) मे एनकोड करबाक अंशुमन पाण्डेय द्वारा देल आवेदन स्वीकृत भಽ गेल अछि। आब ई दुनू लिपिक यूनीकोड फॉन्ट बनेबाक क्रिया क्यूमे लागि गेल अछि आ जखन एकर सभक बेर एतै ऐ दुनू लिपिक आधारभूत फॉन्ट बनेबाक क्रिया शुरू भऽ जाएत। मिथिलाक्षरक आधारभूत फॉन्टक नाम तिरहुता रहत (जेना देवनागरीक आधारभूत फॉन्टक नाम मंगल आ बांग्लाक आधारभूत फॉन्टक नाम वृन्दा अछि)। मिथिलाक्षरक फॉन्ट लेल तेसर बेर संशोधित आवेदन देल गेल रहए, दोसर आ तेसर आवेदनमे विदेहक योगदानक विस्तृत चर्चा भेल अछि, यथा- [Figure 11: Excerpt from a Maithili e-journal published as PDF (from Videha 2011: 22; Videha: A fortnightly Maithili e-journal. Issue 80 (April 15, 2011), Gajendra Thakur [ed]. http://www.videha.co.in/ ."Gajendra Thakur of New Delhi graciously met with me and corresponded at length about Maithili, offered valuable specimens of Maithili manuscripts, printed books, and other records, and provided feedback regarding requirements for the encoding of Maithili in the UCS."-Anshuman Pandey.] ।
सूचना: २. गूगल मैथिली: गूगल लैंगुएज टूल-
http://www.google.com/transconsole/giyl/chooseProject अपन योगदान गूगल ट्रांसलेट लेल करू, आ कएल सम्पादन बदलबा काल कारण मे (अंग्रेजीमे) "बिहारी" नाम्ना कोनो भाषा नै हेबाक चर्चा करू। ऐ लिंकपर अनुवाद करू; गूगल एकाउंट सँ लॉग इन केलाक बाद ।
http://www.google.com/transconsole/giyl/chooseActivity?project=gws&langcode=bh
ऐ लिंक http://www.google.co.in/language_tools?hl=en केँ मैथिलीक उपलब्धता लेल चेक करैत रहू।
सूचना: ३.विकीपीडिया मैथिली:
मीडियाविकीक २६०० संदेश अंग्रेजीसँ मैथिलीमे विदेहक सदस्यगण द्वारा अनूदित कऽ देल गेल अछि। आब http://translatewiki.net/wiki/Special:Translate?task=untranslated&group=core-mostused&limit=2000&language=mai ऐ लिंकपर Group मे जा कऽ ड्रॉपडाउन मेनूसँ अ-अनूदित मैसेज अनूदित करू। जँ अहाँ विकीपीडियाक ट्रान्सलेटर नै छी तँ http://translatewiki.net/wiki/Project:Translator ऐ लिंकपर मैथिलीमे ट्रान्सलेट करबाक अनुमतिक लेल अनुरोध दियौ, ऐ सँ पहिने ओतै ऊपरमे दहिना कात लॉग-इन (जँ खाता नै अछि तँ क्रिएट अकाउन्ट) कऽ आ प्रेफरेन्समे भाषा मैथिली लऽ अपन प्रयोक्ता खाताक लिंककेँ क्लिक कऽ अपन प्रयोक्ता खात पन्ना बनाउ। किछु कालमे अहाँकेँ ट्रान्सलेट करबाक अनुमति भेट जाएत। तकरा बाद अनुवाद प्रारम्भ करू।
http://translatewiki.net/wiki/Project:Translator
http://meta.wikimedia.org/wiki/Requests_for_new_languages/Wikipedia_Maithili
http://translatewiki.net/wiki/Special:Translate?task=untranslated&group=core-mostused&limit=2000&language=mai
http://incubator.wikimedia.org/wiki/Wp/mai
http://translatewiki.net/wiki/MediaWiki:Mainpage/mai
विदेहक तेसर अंक (१ फरबरी २००८)मे हम सूचित केने रही- “विकीपीडियापर मैथिलीपर लेख तँ छल मुदा मैथिलीमे लेख नहि छल,कारण मैथिलीक विकीपीडियाकेँ स्वीकृति नहि भेटल छल। हम बहुत दिनसँ एहिमे लागल रही आ सूचित करैत हर्षित छी जे २७.०१.२००८ केँ (मैथिली) भाषाकेँ विकी शुरू करबाक हेतु स्वीकृति भेटल छैक, मुदा एहि हेतु कमसँ कम पाँच गोटे, विभिन्न जगहसँ एकर एडिटरक रूपमे नियमित रूपेँ कार्य करथि तखने योजनाकेँ पूर्ण स्वीकृति भेटतैक।” आ आब जखन तीन सालसँ बेशी बीति गेल अछि आ मैथिली विकीपीडिया लेल प्रारम्भिक सभटा आवश्यकता पूर्ण कऽ लेल गेल अछि विकीपीडियाक “लैंगुएज कमेटी” आब बुझि गेल अछि जे मैथिली “बिहारी नामसँ बुझल जाएबला” भाषा नै अछि आ ऐ लेल अलग विकीपीडियाक जरूरत अछि। विकीपीडियाक गेरार्ड एम. लिखै छथि ( http://ultimategerardm.blogspot.com/2011/05/bihari-wikipedia-is-actually-written-in.html )
-“ई सूचना मैथिली आ मैथिलीक बिहारी भाषासमूहसँ सम्बन्धक विषयमे उमेश मंडल द्वारा देल गेल अछि- उमेश विकीपीडियापर मैथिलीक स्थानीयकरणक परियोजनामे काज कऽ रहल छथि, ...लैंगुएज कमेटी ई बुझबाक प्रयास कऽ रहल अछि जे की मैथिलीक स्थान बिहारी भाषा समूहक अन्तर्गत राखल जा सकैए ?..मुदा आब उमेश जीक उत्तरसँ पूर्ण स्पष्ट भऽ गेल अछि जे “नै”। ”
रामविलास शर्माक लेख (मैथिली और हिन्दी, हिन्दी मासिक पाटल, सम्पादक रामदयाल पांडेय) जइमे मैथिलीकेँ हिन्दीक बोली बनेबाक प्रयास भेल छलै तकर विरोध यात्रीजी अपन हिन्दी लेख द्वारा केने छलाह , जखन हुनकर उमेर ४३ बर्ख छलन्हि (आर्यावर्त १४/ २१ फरबरी १९५४), जकर राजमोहन झा द्वारा कएल मैथिली अनुवाद आरम्भक दोसर अंकमे छपल छल। उमेश मंडलक ई सफल प्रयास ऐ अर्थेँ आर विशिष्टता प्राप्त केने अछि कारण हुनकर उमेर अखन मात्र ३० बर्ख छन्हि। जखन मैथिल सभ हैदराबाद, बंगलोर आ सिएटल धरि कम्प्यूटर साइंसक क्षेत्रमे रहि काज कऽ रहल छथि, ई विरोध वा करेक्शन हुनका लोकनि द्वारा नै वरन मिथिलाक सुदूर क्षेत्रमे रहनिहार ऐ मैथिली प्रेमी युवा द्वारा भेल से की देखबैत अछि?
उमेश मंडल मिथिलाक सभ जाति आ धर्मक लोकक कण्ठक गीतकेँ फील्डवर्क द्वारा ऑडियो आ वीडियोमे डिजिटलाइज सेहो कएने छथि जे विदेह आर्काइवमे उपलब्ध अछि।
TIRHUTA UNICODE
See the final UNICODE Mithilakshara Application (May 5, 2011) by Sh. Anshuman pandey http://std.dkuug.dk/JTC1/SC2/WG2/docs/n4035.pdf at Page 23 the Videha 80th issue (Tirhuta version) is attached"Figure 11: Excerpt from a Maithili e-journal published as PDF (from Videha 2011: 22" and at Page 12 Videha is included in References Videha: A fortnightly Maithili e-journal. Issue 80 (April 15, 2011), Gajendra Thakur [ed]. http://www.videha.co.in/. and role of Videha's editor is acknowledged on Page 12 "Gajendra Thakur of New Delhi graciously met with me and corresponded at length about Maithili, offered
valuable specimens of Maithili manuscripts, printed books, and other records, and provided feedback regarding requirements for the encoding of Maithili in the UCS."
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ अखन धरि ११६ देशक १,९६२ ठामसँ ७०,३९८ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,३१,७७९ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
हम पुछैत छी : विदेह ई-पत्रिकाक सहायक सम्पादक मुन्नाजीक संग रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”क बातचीतक अंश:
मुन्नाजी: रामभरोस जी नमस्कार।
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: नमस्कार।
मुन्नाजी: अपने अपन साहित्यिक यात्राक प्रारम्भिक परिदृश्यक विवेचनमे की कहए चाहब?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: मुन्नाजी, हम जाहि परिवारसँ आएल छी ओ धन-वीत्तमे समाजमे अग्रणी तँ छल, मुदा भाषा, साहित्यक ओतऽ नामोनिशान नै छलै। बाबूजी गाम विकास समितिक मुखिया, प्रधान पंच होइत रहलाह, क्षेत्रमे नीक प्रतिष्ठा, नाम छलनि। मुदा घरमे पत्र-पत्रिका, पुस्तक पढ़बाक माहौल नहि छलै। ताहुमे मैथिली!
जखन हमरा दुनू भाइकेँ बघचौरासँ जनकपुरक हाई स्कूलमे शिक्षाक हेतु पठाओल गेल, तखन स्थिति बदललैक। हमरा पत्र-पत्रिका पढ़बाक लत लागल, रुचि बढ़ल आ तखन किछु लिखी से मनमे होबऽ लागल। हमर सम्पर्क डॉ. धीरेन्द्रसँ भेल जे रा.रा.कैम्पसमे मैथिली पढ़बैत छलाह। हुनका संगतिसँ लेखन दिश सक्रियता बढ़ल। ओना हम अपन पहिल कथा “इमानदार बालक” हिन्दीमे लिखने रही आ डॉ. धीरेन्द्रकेँ देखौने रहियनि। ओ तत्काल हमरा अपन भाषा मैथिलीक प्रति आकर्षित करौलनि आ तकर अनुवाद कऽ लएबा लेल कहलनि। हम कथाक अनुवाद मैथिलीमे कऽ देलियनि, जकर शुद्धि करैत काल एक्को पंक्ति एहन नहि छल जाहिमे लाले लाल नहि लागल होइ। जखन उतारि कऽ देलियनि तँ हुनक चिट्ठीक संग मिहिरमे पठा देबाक लेल कहलनि जे कथा नेना भुटकाक चौपाड़िमे १९६४ ई. मे छपल। तहिया हमर उमेर १३ वर्षक छल। बस, तकरा बाद हमर साहित्यिक यात्रा जे चलल, आइ धरि निरन्तर जारी अछि। एखन धरि विभिन्न विधाक तीससँ ऊपर पुस्तक प्रकाशित भऽ चुकल अछि।
मुन्नाजी: साहित्यक अतिरिक्त अहाँ आर कोन गतिविधिसँ जुड़ल रलौं अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: हमर प्राथमिक झुकाउ साहित्ये दिश रहल। खूब लिखलौं- खूब आनन्दित भेलौं। दोसर हम पत्रकारितामे सेहो निरन्तर लागल छी। नेपालक पहिल मैथिली समाचारपत्र “गामघर साप्ताहिक”क विगत तीस वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन कऽ रहल छी। एहि विच “अर्चना”, “आंजुर” मासिक, द्वैमासिक, सेहो निकाललहुँ। एकर अतिरिक्त सामाजिकशोध संस्थामे सेहो सक्रिय रहलहुँ।
मुन्नाजी: मैथिली साहित्यक परिधि छोट आ सीमित अछि। मुदा ऐ भाषाक रचनाकार सभ अपने कुकुर कटाउझ करैत पाओल जाइत छथि। ई समस्या किएक उत्पन्न होइत अछि आ एकर निदान की?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: मैथिली भाषा, साहित्यक क्षेत्रमे लाभक अवसर कम छैक। जे छै तकरा अपना दिश कोना हँसोथल जाए, एहि फिराकमे मित्रगण सभ लागल रहैत छथि। एक आर्थिक लाभक लोभ, दोसर अपन वर्चस्व कायम रखबाक लौल- दुनू कुकुर कटाउझक कारण मानल जा सकैछ। निदान कहब कठिन- ई स्वभाव, प्रकृति आ आचरणसँ सम्बद्ध छैक। धैर्य राखब मात्र एकर उपाय थिक।
मुन्नाजी: देखल जाइत अछि जे सामान्यतः मैथिलीमे दू चारिटा रचना वा एक दुइ साल रचनाक पछाति एकटा पत्रिका निकालि ओ रचनाकार स्वयंकेँ सम्पादक घोषित कऽ दैत छथि। वास्तवमे सम्पादनक की मानदण्ड अछि आ ओइपर कतेक सम्पादक अटकल रहि पबैत छथि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: ई-प्रश्न मोनकेँ गदगद कऽ देलक। साँच बात इहो छैक- एखन मैथिलीमे ई समस्या बड़ जोड़ पकड़ने अछि। दू चारिटा कथा, कविता लिखने, छपने अपनाकेँ साहित्यक सिरमौर बुझबाक भ्रम सभतार होइछ। दशकूंक लगानीकेँ छाउर बूझि मुँहक फुकसँ उड़िया देबाक भयावह आत्मरति भाव मैथिली लेखनक सहज परम्पराकेँ भ्रमित कऽ रहलैक अछि। सम्पादन स्वयंमे एकटा कला छै, विज्ञान छैक। एक-आध अंक बहार कऽ अपनाकेँ सम्पादक काह मठोमाठ बनने हमरा जनैत ताही प्रतिभाक हेतु नोक्शानीक बात छैक। सुधांशु शेखर चौधरी, डॉ. हंसराज, डॉ. भीमनाथ झा, बाबू साहेब चौधरी, कृष्णकान्त मिश्र, डॉ. सुधाकान्त मिश्र, डॉ. धीरेन्द्र, सम्प्रतिमे रामलोचन ठाकुर आदि किए सम्पादक कहौलनि! अहाँ मानदण्डपर अटकलक बात करै छी, पत्रिकाक कए गोट अंकपर ओ अटकल रहि पबैत छथि?
मुन्नाजी: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ भऽ प्रतिष्ठासँ केहन अनुभव कऽ रहल छी, ऐसँ जीवन आ लेखनमे केहन परिवर्तन आएल अछि, की जीवन आ लेखनमे ई सहायक भेल अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: निश्चय प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे प्राज्ञ भऽ आएब हमर सपना रहए। कोनो साहित्यकारक हेतु ई सभसँ उच्च सम्मान छैक। हम नेपाल सरकारक एकरा लेल आभारी छी। एहिसँ हमर जीवन शैलीमे किछु परिवर्तन तँ भेबे कएल अछि। हम जनकपुरमे रहैत छलहुँ, आब काठमाण्डूमे रहऽ पड़ैत अछि। हम स्वतंत्र, खुशफैल रहऽ बला लोक, आब नियमित ऑफिस जाए पड़ैत अछि। मुदा स्वतंत्र आ आह्लादकारी काज तँ छैहे प्रतिष्ठानमे। लेखनमे कोनो फरक नै, बस बेसी जगजिआर भेल अछि। पत्रकारिता बस लेखनकेँ बाधित करैत छल। हम काठमाण्डू अएलाक तीन वर्षमे छः गोट पुस्तक प्रकाशित कऽ सकलहुँ आ दर्जनों निबन्ध, कथा, कविता, नाटक आदि।
मुन्नाजी: नेपाली साहित्य मध्य मैथिली साहित्यक केहेन जुड़ाव छैक? आ दुनू भाषा मध्य कोन साहित्य बेशी समृद्ध अछि आ किएक?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: नेपाली आ मैथिली अपन-अपन बाटपर चलैत अछि। एक राज्योपोषित रहलै, दोसर साहित्यकार पोषित। प्राचीन साहित्य मैथिलीक, लेखनमे समृद्ध नेपाली।
मुन्नाजी: मैथिलीक सीमामे फाँट कएल (नेपाल आ भारत) साहित्यिक गतिविधिक तुलनात्मक परिदृश्ये कतुक्का साहित्यक केहेन दशा-दिशा देखा पड़ैए?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: भारतीय साहित्यकार, ओतुक्का साहित्यिक प्रतिष्ठान, सरकारी वा गएर सरकारी एहि तरहक फाँट-बखरा कऽ कऽ रखने अछि। एम्हरका लोक साहित्य अकादमीक पत्रिका, पुरस्कार, लेखन, गोष्ठीमे सामेल नहि कएल जाइत छथिनेपालमे तेहन कोनो बन्देज नै छैक। प्रज्ञा प्रतिष्ठानक कार्यक्रममे हमहीं निरन्तर बजबैत छिऐन्हि, डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंहक “नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास” नेपालक अर्ध सरकारी प्रकाशन संस्था साझा प्रकाशन छपलक अछि। हँ, ओम्हरका साहित्यक लेखन परम्परा निरन्तर चलैत रहल- समृद्ध अछि। प्राचीनताक दृष्टिएँ, ऐतिहासिक उपलब्धिक दृष्टिएँ नेपाल ओम्हरसँ समृद्ध अछि। “वर्णरत्नाकर”, सिद्ध साहित्य, मल्ल काल, सभ मैथिली साहित्यक आधार थिकै- ज्कर स्रोत नेपाले अछि।
मुन्नाजी: वर्तमानमे अपन गतिविधि कोन दिशामे जारी अछि? साहित्यिक-सांस्कृतिक कोनो अग्रिम योजना अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: एखन प्रज्ञामे लागल छी। देखू, साझा प्रकाशनमे अध्यक्ष भऽ कऽ तँ ओ मात्र नेपालीक पुस्तक छपैत छल, हम मैथिलीक शुरुवात कएलहुँ। एक बालपोथी “बगियाक गाछ”, दोसर “मैथिली साहित्यक इतिहास”। प्रज्ञामे पहिल बेर साधारण सदस्य भऽ आएल रही तँ पहिल बेर मैथिलीक पत्रिका बहार कएलहुँ “आंगन”। जे एहि बेर अएलाक बाद हमरे सम्पादनमे निरन्तर प्रकाशित अछि। एखनो बेसीसँ बेसी मैथिली दिश ध्यान दितो हमर विभाग “संस्कृति विभाग” सम्पूर्ण देशक हेतु देखैत अछि। तथापि जट जटिन, सलहेस, दीनाभद्रीक लोकगाथा, नृत्य संयोजन, संकलन, ऑडियो विडियोग्राफीक सुरक्षित कऽ देने छिऐक। हम ग्रन्थक रूपमे बहार करबाक नियारमे छी। मैथिलीमे एम्हर नाट्य क्षेत्रमे किछु नव संस्था, कलाकार सभ अपन प्रतिभा देखौलनि अछि, हम हुनका सभकेँ उचित मंच भेटौक ताहि दिश प्रयत्नरत छी।
मुन्नाजी: साहित्य लेखक एवं सम्पादकक नव तूरकेँ की सनेस देबऽ चाहब?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: जे लिखथि मोनसँ लिखथि। अपनेसँ अपन मूल्यांकन नहि करथि। अपन अग्रज साहित्यकारक सम्मान करथि। सम्पादक महज लौलसँ अथवा अपनाकेँ स्थापित देखएबा लेल नहि करथि। एहिसँ अपन पूर्वूक छविकेँ धुमिल भऽ जएबाक डर होइछ।
मुन्नाजी: साहित्य मध्य साहित्यकारक राजनीतिक उठापटककेँ अहाँ कोन परिप्रेक्ष्यमे देखै छी? की साहित्यकारक लेल ऐ प्रकारक क्रियाकलाप उचित अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: हमरा लगैत अछि शुरुएक प्रश्नमे किछु बात आबि गेल अछि। साहित्यकारकेँ राजनीतिसँ दूरे रहने नीक। मुदा कतेको अवस्थामे ई सम्भव नहि बुझाइत छै। पटना आ दरभंगाक साहित्यिक मंचपर राजनीतिकर्मीक वर्चस्व एकर प्रमाण अछि।
मुन्नाजी: शुरूहेसँ मैथिली भाषा पिछड़ल जातिक धरोहरि जकाँ रहल अछि। मुदा साहित्य मध्य (रचनाकारक रूपेँ) ओइ वर्गकेँ अवडेरि कऽ (कतिया कऽ) राखल गेल। की ऐसँ भाषाक हीनता आएल अछि? वा ई भाषा मृत्यु शय्या धरि पहुँचि गेल अछि। अहाँक नजरिये की कहब ऐपर?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: ई प्रश्न हमरा जनैत मैथिली भाषा, साहित्यक क्षेत्रमे सभसँ अहम अछि।
मैथिली भाषाकेँ संस्कृत जकाँ “हम्मर भाषा” कहि विगत डेढ़-दू सय वर्षसँ अपन पोथी-पतरामे जाँति कऽ रखनिहार मुट्ठी भरि वर्ग नब्बे प्रतिशत बजनिहारकेँ एकरासँ दुरे रखबाक काज कएलनि। आब जखन ई जपाल भऽ गेल छन्हि तँ भाषाक विस्तारीकरणमे लागल छथि। एखनो मैथिलीक मंचपर नमूनाक हेतु किछु गोटे अभरताह, मुदा तकर पुछ कोन रूपेँ? साहित्यमे कतेक चर्च? गोलैसी कऽ कात करबाक, नीचाँ देखएबाक कोन प्रयत्न छुटल अछि? एहिमे कोन सन्देह जे जे वर्ग मात्र मैथिलीएटा बजैत अछि, तकर भाषा छीनि कऽ अहाँ महन्थ बनल छिऐ, आ अपने अंग्रेजी, हिन्दी, नेपाली बजैत समाजमे रोब दैत छिऐ। परिणाम तँ साफ छै,- एहि बेरका जनगणनामे नेपालमे मैथिलीक ठामपर मगही, बज्जिका लिखाओल गेलैए। किछु लाख तँ अबस्से बजनिहारक संख्या कम भेल हएतै। लिखौनिहारक साफ तर्क छलै, ई भाषा हमर अछिए नहि, ई तँ…।
हमरा सन लोक एहिमे लागल छी, स्वयं हम एकर प्रतिपादमे किछु जिल्ला घुमलहुँ। मुदा हमरा सभकेँ अपवाद बुझैत अछि। आ जे नाटक एखनो धरि कएल जा रहल छैक, ताहिसँ मोन हमरो सभक दग्ध अछि औ मुन्नाजी! किएने मैथिलीक पुस्तक बिकाइए, पत्रिका बिकाइए? जे लेखक सएह पाठक! हमरा लगैत अछि- आब सम्हरबोक समय नहि अछि! ई भाषा मृत्यु धरि पहुँचि गेल अछि से हम नहि कहब, मुदा कए खाढ़ीमे विभक्त आ छिन्न-भिन्न धरि अवश्य भऽ गेल अछि। जकरा जोड़बाक ककरो ने रुचि छैक आने पलखति! तखन?!
हम पुछैत छी- बृषेश चन्द्र लालजी सँ मुन्नाजी पुछैत छथि ढेर रास गप
१.अपने अपन साहित्यिक यात्रा मादेँ कही जे एकर शुरुआत कतऽसँ आ कोना भेल ?
हम अपनाकेँ साहित्यकार नहि मानैत छी । कारण, हमरा ज्ञानेँ साहित्यकारक औसत पंक्तिमे ठाढ़ हुअएवास्ते भाषा आ साहित्यक औपचारिक नहि तँ किछु अनिवार्य अध्ययन अवश्य हएबाक चाही जे हमरामे नहि अछि । हँ, हमरा अपन मातृभाषामे लिखएमे मोन लगैत अछि । एकर कएटा कारण छैक —प्रथमतः, हमरा लगैत अछि जे हम मैथिलीमे सहजतासँ अपन अभिव्यक्ति कऽ सकैत छी आ एहिलेल कोनो अनुवादक अभ्यास नहि करए पड़ैत अछि । दोसर, हम जीवनभरि आत्मसम्मान, व्यक्तिक स्वतन्त्रता, सभक अपन खास परिचय सहितक सम्मानित विविधता आ बहुलवादी समाजक निर्माणहेतु लड़ैत अएलहुँ । मैथिलीमे लिखैत काल हमरा लगैछ जेना हम ओही लड़ाईकेँ आगाँ बढ़ारहल छी । तेसर, इहो जे लोक लिखैत अछि लोककेँ सुनाबए–बुझाबएलेल आ भाषा वएह प्रयोग कएल जाइत छैक जे एहि कार्यलेल सभसँ उपयुक्त होइक ।
ओना हम जहिआ आठ कक्षामे पढ़ैत रही, मैथिलीक कक्षादिस छात्र–छात्राक ठहक्का सुनि कऽ आकर्षित भेलहुँ । पं. सच्चिदानन्द झा मैथिली पढ़बथिन्ह । हुनक शिक्षणक शैली एतेक रोचक आ हँसीठट्ठाबला रहन्हि जे विद्यार्थीसभ सोझहिं आकर्षित भऽ जााइक । दोसर कक्षाक विद्यार्थीसभ सेहो आबिकए बैसि रहैक हुनकर गप्प सुनएलेल । हमरो बड्ड नीक लागल । रोचक, जानकारीमूलक, मनोरंजक आ सहजेँ बुझएमे आबएबला विषय के नहि चुनत ? हमहुँ मैथिली विषय लऽ लेलहुँ । ओ मिथिला मिहिरक चर्च बरोबरि करथिन्ह । हमर अग्रज गरिश चन्द्र लाल आ शिबेन्द्र लालजी मिथिला मिहिरक प्रेमी, तैँ हमरा ओतए मिथिला मिहिर नियमित अबैक । बस पढ़ए लगलहुँ । नेनाभुटका स्तम्भ हमरा बेस आकषर््िात कएलक आ इच्छा भेल जे हमहुँ लिखतहुँ । मुदा साहस नहि हुअए । कहुना कऽ बतहु मामापर एक गोट कथा लिखलहुँ आ डेराइत–डेराइत गुरुजीकेँ ( पं. सच्चिदानन्द झा) देलिअन्हि । ओ पढ़लखिन्ह, नीक लगलन्हि आ बड्ड खुश भेलाह । मैथिलीक कक्षामे हमर खूब प्रशंसा कएलन्हि आ ओ अपनेसँ मिथिला मिहिरमे पठा देलखिन्ह ।
एना, हमर पहिल रचना आईसँ ४३ वर्ष पहिने प्रकाशित भेल छल । लेखनक शुरुआत एतहिंसँ बुझू । तकरबाद हमर आत्मविश्वास बढ़ि गेल । हमरासभक स्कूलमे (श्री सरस्वती बहुउद्देश्यीय माध्यमिक विद्यालय, जनकपुर) प्रत्येक शुक्रदिन १ घण्टा सांस्कृतिक कार्यक्रम होइक । ओहिमे जरुर भाग लिऐक हमसभ । कहियो कविता तँ कहियो प्रहसन लऽ कऽ । हम आ परमेश्वर कापड़ि जे एखन मैथिली विभागक प्राध्यापक छथि जनकपुरमे, लेखनक काज करिऐक । हम खास कऽ हास्य–व्यङ्गक कविता प्रहसन तैयार करी । परमेश्वर बेसी रचनात्मक रहए ।
२. अहाँ एकटा राजनेता सेहो छी तँ कहू जे साहित्य आ राजनीति मध्य की समानता वा विषमता देखाइए ?
बहुत मुश्किल प्रश्न अछि । एहिमादेँ हम कहियो सोचबे नहि कएलहुँ । हमरा लगैत अछि राजनीतिसँ साहित्य अलगो नहि भऽ सकैत अछि आ दुनू एकदम अलग सेहो अछि । वास्तवमे कही तँ ई सोचपर निर्भर करैत छैक । यदि साहित्य समाजक झरोखा अछि तँ ई राजनीतिसँ कोना पृथक रहि सकत ? राजनीति समाजक एकटा अङ्ग छैक ने ! फेर अहाँ झरोखासँ जे देखैत छी सएह अभिव्यक्त करैत छी । कोनो राजनैतिक उद्देश्यसँ परिचालित वा पूर्वाग्रही नहि छी तँ तखन निश्चय ओ रचनासभ राजनीतिक उद्देश्यसँ अलग भऽ जाइत छैक । ओना कही तँ हमरा जनिते समाजमे गुणात्मक परिवत्र्तनवास्ते यदि राजनीतिक उद्देश्योसँ अभिप्रेरित भऽ रचना रचित होइत अछि तँ ओ स्वागतयोग्य अछि । आखिर साहित्यमे प्रगतिशीलता एकरे ने कहतैक ! बहुतो महानुभावसभ निरन्तर घोषित करैत रहैत छथि जे हुनक साहित्य राजनीतिसँ अलग छनि मुदा तरेतर वएह पूर्वाग्रही रहैत छथि, कोनो स्वार्थसँ परिचालित रहैत छथि । एहन अवस्थामे साहित्यक स्वतन्त्रताप्रति बलात्कार होइत छैक । एहिसँ नीक जे ओ अपन राजनीतिक उद्देश्यकेँ घोषित करथि आ फेर रचैथ । एहिसँ आम जनताकेँ आ पाठककेँ मूल्याङ्कन करएमे आ रचनाक भीतरतक जाएमे सुगम हएतैक ।
३. राजनीतिक रुपेँ अपनाकेँ कतेक सफल बुझैत छी वा राजनीतिमे अपनाकेँ कतऽ पबैत छी ?
हम फेर कहब जे सफलताक सम्बन्धमे सेहो अपन–अपन दृष्टिकोण होइत छैक । बहुतो राजनीतिमे सफलताकेँ पद प्राप्तिसँ जोड़ि कऽ देखैत छथि । ताहि हिसाबेँ हम एहि क्षेत्रमे अपनाकेँ ओतेक सफल नहि बुझैत छी । हमरासभ जहिआ राजनीतिमे अएलहुँ तहिआ पदक बारेमे कोनो सोच नहि रहैत छलैक । हमसभ राजाशाहीक अन्त्य आ लोकतन्त्रकक स्थापनाक लेल राजनीतिमे कूदल रही । हमसभ राजनीति शब्दो नहि बुझिऐक । संघर्ष, बलिदान आ त्यागक मात्र गप्प–सप्प होइक । एहि क्षेत्रमे प्रवेशक अर्थ रहैक कखन मारल जाएब वा कखन पकड़ाकए जेलमे जाएब से अनिश्चित मुदा पूर्ण सम्भावनायुक्त । पूर्ण रुपसँ अनुशासित रहए पड़ैक । हमर शिक्षा सेहो नेपालेमे भेल । स्नातक आ स्नातकोत्तर हम जेलसँ कएलहुँ तैँ भारतमेक लोकतन्त्रक सियासी जोड़तोड़सँ सेहो परिचय नहि भेल । किछु मित्रसभ एहि मामिलामे अनुभवी छलाह तैँ जोड़तोड़मे हम सभ दिन पाछाँ रहलहुँ । बेसी परिवत्र्तनकामी आ मुहँफट भेलाक कारणेँ सेहो बहुतो सहए पड़ल । मुदा, हम सन्तुष्ट छी । लोकतन्त्रलेल लड़ल आ एखन नेपालमे लोकतन्त्र छैक । ज्ञानेन्द्रक समयमे लोकतन्त्रपर ग्रहण लागि गेल छलैक । हम प्रतिगमनक विरुद्ध सेहो वएह लगनसँ लड़लहुँ । हमरासभक कतेक मित्र काठमाण्डूक रत्नपार्कमे दिन देखारे हमरासभकेँ छोड़ि कऽ ज्ञानेन्द्रक (तत्कालिन राजा) कित्तामे चलि गेलाह मुदा हम कहिओ सम्झौता नहि करएबलामे समूहमे रहलहुँ । तैँ राजनीतिमे हमरा कहिओ हीन भावना वा पश्चाताप नहि भेल । हम जे कऽ रहल छी ताहिमे हमरा नीक लगैत अछि । तैँ करैत छी । एहि दृष्टिकोणेँ हम राजनीतिमे पूर्ण सफल छी ।
४. प्रश्न ः लोकतन्त्रक हेतु संघर्षमे कतेक दिन जेल रहलहुँ । कतेक यातना भोगए पड़ल ?
हम लोकतन्त्रक लडाईमे १७ बेर गिरपm्तार भेल छी । बहुतबेर दिन वा महीनामे जेलमे रहलहुँ । ५ बेर नाम अवधि तक किछु वर्षकलेल । लगभग ८ वर्ष जेलजीवन बिताबए पड़ल अछि । १९७३–१९९० धरि बेसी काल जेलमे बीतल । फेर ज्ञानेन्द्रक समयमे ।
........ जेल जेलेसन होइत छैक । हरीसमे ठोकि दैक । चित्त सुतए पड़ल । करोट नहि फेर सकैत छी । किछु बजलिऐक कि सटकासँ मारि–मारि सोझ कऽ दैक । पेशाप लागल तँ लोटामे करु । उड़िस आ कीराक प्रकोप अलगे । भेँट नहि करए देत परिवार वा मित्रजनसँ । वर्षातमे चुअएबला घरमे कोंचि दैक । कतेक कहू । हमरा तँ जेलेसँ दू बेर हत्या करक योजना बनल । १९७५मे हमरा, बिमलेन्द्र निधि, महेन्द्र मिश्र आ रामप्रसाद गिरिकेँ काठमाण्डूक केन्द्रिय कारागारसँ मारकलेल निकालल गेल मुदा पता नहि फेर की भेलैक घुमाकए नखुजेलमे पहुँचा देल गेल । साँझमे गोकर्ण, ठगी सहित ४ गोटेक नखुक कातमे हत्या कऽ देलकैक । दोसर बेर हमरा, रामचन्द्र तिवारी, स्मृतिनारायण आ युवराज खातीकेँ जलेश्वर जेलसँ सिन्धुली लऽ जा कऽ मुदा हत्याकलेल पुलिसकेँ अनुकूलता नहि भेलैक । हत्यासँ पहिने भारतीय दैनिक आजमे समाचार छपि गेलैक आ फेर आन्दोलन लगले सफल सेहोभऽ गेलैक । सिन्धुलीसँ हमरासभकेँ रिहा कएल गेल । ........ बहुतोकेँ अहूसँ विकट–विकट यातना भोगए पड़ल छन्हि ।
५. साहित्य लेखन आ राजनीति, पहिल शुरुआत अहाँकेँ कै सँ भेल आ दोसर दिस कोना उन्मुख भेलहुँ ?
ओना सालक गणना करी ता लेखनक शुरुआत पहिने भेल । मुदा राजनीतिमे संलग्नता अपनेआप होइत गेलैक । वस्तुतः हाइस्कूलेसँ हम राजनीतिमे लागि गेलहुँ मुदा प्रत्यक्ष आ पूर्ण संलग्नता ३९ वर्ष पहिने भेल । हम काठमाण्डूक अमृत साइन्स कलेजमे छात्र यूनियनक चुनाव लड़ल रही । हम तहिआ नेपाली काँग्रेसक नेता बोधप्रसाद उपाध्याय, सरोजप्रसाद कोइराला आ महन्थ ठाकुरक निर्देशनमे काज करी । बादमे वीपी कोईराला, कृष्णप्रसाद भट्टराई, गिरिजाप्रसाद कोईराला, महेन्द्रनारायण निधि, महेश्वर प्रसाद सिंह आदिक प्रत्यक्ष सम्पर्क आ संगे काज कएलहुँ ।
लेखन निरन्तर चलैत रहल । हमर बहुतो रचना संग्रहित नहि अछि । वास्तवमे कही तँ हम एहिदिस ओतेक गम्भीर नहि रही । लिखी सुना दिएैक, हँसि ली मुदा प्रयोगक बाद ओकर संरक्षण नहि होइक । ई हमर जीवनक बहुत बड़का कमजोरी रहल । बहुत संगी एखन स्मरण करबैत छथि — स्कूलिया जीवनक रचनासभ, जेलक गीत, प्रहसन, व्यङ्ग आदि ।
हम वास्तवमे एकटा छोड़ि दोसरदिस उन्मुख नहि भेलौं । हमरा कनेको समय भेटैत अछि वा असगर रहैत छी तँ लिखए लगैत छी । बड्ड आनन्द अबैत अछि । हम पूर्णतः अपन आनन्दलेल लिखि लैत छी । हमर रचनासभक कहिओ कोनो उल्लेख्य समीक्षा नहि भेल । हम एहिलेल कहिओ प्रयत्नशील सेहो नहि रहलहुँ । हमरा बस आनन्द अबैत अछि । मुदा एकटा गप्प कहब, मैथिलीमे साहित्यकारलोकनि एको अहं के रोगसँ ग्रसित छथि । एकरा एकटा समूहक जातिक धरोहर बुझैत छथिन । अपनेसभमे समीक्षा करब, अपनेसभक चर्च करब, अपनेसभ पुरस्कार लऽ लेब — एकटा प्रवृति छैक । हम अपन आदतिसँ मजबूर छी मित्रगण क्रोधित भऽ जएताह । तैया,े हम एखनतक नहि बुझए सकलिएैक जे एहिसँ लाभमे के रहैत छथि ? साहित्यकेँ तँ पूरा हानि होइत छैक ने ! ई मानसिकता जे हटि जएतैक तँ मैथिलीक विकास अत्यन्त दु्रत गतिसँ होइतैक । नव पीढ़ीमे एहि मादेँ किछु परिवत्र्तन देखएमे आएल अछि । ..... कतेक बेर तँ इहो देखएमे अबैत अछि जे नव साहित्यकार किछु दिनतक एहन मानसिकतासँ मुक्त रहैत छथि मुदा जेनाजेना स्थापित होइत जाइत छथि वएह भायरससँ संक्रमित भऽ जाइत छथि ।
६. अहाँँक पार्टीक मुख्य ध्येय की अछि ? ई पार्टी जनहितमे कतेक निकटतम देखाइए ?
एखन हम तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीमे छी । हम एकर प्रथम ९ संस्थापक सदस्यमेसँ एक छी । हमर राजनीति नेपाली काँग्रेससँ प्रारम्भ भेल । लोकतन्त्रलेल लडैत अएलहुँ । दिर्घ संघर्षक बाद लोकतन्त्रक स्थापना सेहो भेलैक आ अभ्यास सेहो । मुदा हमसभ महशूस कएलिऐक जे लोकतन्त्र यदि समावेशी नहि अछि , विविधताक सम्मानमे विश्वास नहि करैत अछि तँ ओहन लोकतन्त्र किछु लोकक लोकतन्त्र भऽ जाइत छेक । एहिसँ पिछड़ल, विभेदमे पड़ल लोक आ समुदायक कल्याण सम्भव नहि छैक । नेपालमे मधेशीक प्रति राज्य प्रायोजित विभेद होइत आएल छैक । तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टी एकर समाधान चाहैत अछि । संघीयताक अभ्यास सँ सभ प्रकारक विभेदक अन्त्य चाहैत अछि । हमर पार्टी संघीयतामे अपन क्षेत्रमे स्वशासन आ फेर केन्द्रमे सहशासनलेल प्रतिवद्ध अछि । हमरा लगैत अछि मधेशमे विभेद अन्त्य करक यएह एक गोट उपयुक्त उपाय छैक ।
७. की अपन विचारक विस्तार वास्ते साहित्यक उपयोग करैत छी ?
से हमरा नहि बुझल अछि भऽ सकैछ जे हमर लेखनमे एकर प्रभाव होइक मुदा हमर ध्येय से नहि रहैत अछि । हमरा जे लगैत अछि हम लिखए चाहैत छी । हम पहिनहिं कहलहुँ जे हम एकदम अपना सुखलेल लिखैत छी आ हमरा अपना जे महशूस भेल रहैत अछि लिखएमे आनन्द अबैत अछि । हमर कथा संग्रह माल्होमे बेसी कथा राजनीतिक आसपड़ोसक छैक । एकर कारण कएटा — १. हम राजनैतिक व्यक्तिसभक समुदायसभक पीड़ा उगलए चाहलहुँ, २. हमरा अही क्षेत्रक बेसी अनुभव अछि जे हम व्यक्त करए चाहलहुँ ३ं राजनीति सेहो समाजेक अङ्ग छैक एकरा अछूत किआ मानी । ...... हमर किछु कवितासभ गुणात्मक परिवत्र्तनवास्ते, समाजकेँ सचेत करकलेल राजनीतिक उद्देश्यसँ प्रेरित सेहो अछि । ई कोनो अपराध नहि थिकैक ।
मैथिलीमे सभ किछु रहौक सेहो चाहना रहैत अछि । तैँ कहिओ मैथिलीक डिस्को तैयार करैत छी तँ कहिओ अन्य किछु । कहिओ बालगीत आदि आदि । ई हमर अपन शौख अछि । हमरा नीक लगैत अछि ।
८. नेपालमे मैथिली साहित्य आ अन्यान्य रानेताबीच अपनाकेँ कतऽ ठाढ पबैत छी ?
हम पहिनहिं कहलहुँ जे हम अपनाकेँ साहित्यकार नहि बुझैत छी । साहित्यकार हुअएलेल किछु जानकारी आवशयक छैक । साहित्यकलेल प्रतिवद्ध रहब सेहो जरुरी मानैत छी हम । साहित्य जिविकोपार्जनक सहयोगी हएब आपत्तिजनक नहि मुदा साहित्यककेँ वा अपनासभक सन्दर्भमे कहू तँ मैथिलीप्रतिक अनुरागकेँ अपन नफाक हेतु दोकानदारीमे प्रयोग करब हम नीक नहि मानैत छी । बहुतोकेँ देखैत छिअनि जे ओ एना करैत छथि । साहित्यमे माफियाक निर्माण करएमे रुचि रखैत छथि । दोसर केओ उभरि ने जाओ ताहिसँ डेराएत छथि । लगैत छन्हि जे केओ दोसरो दोकान थापि लेत तँ हमर बिक्री कमि जाएत । ....... ठीक एहिना राजनीतिमे सेहो होइत छैक तैँ हम दुनू ठाम अपनाकेँ एकहि ठाम पबैत छी । हमरा अपन स्थानसँ पूरा संतुष्टि अछि ।
लेखन हम आत्मतुष्टिलेल करैत छी , कोनो दोसर आकांक्षा नहि अछि तैँ संतुष्ट छी । राजनीति अपन विचारलेल करैत छी जाहिसँ कहियो सम्झौता नहि कएलहुँ , तैँ संतुष्ट छी ।
९. अपनेक एहि कथ्यसँ जे राजनीति आ साहित्य दुनू एकटा समूह विशेषमे बन्हल अछि , हमहुँ सहमत छी । अहाँ दुनूमे अपनाकेँ कतेक नफा÷नोक्सान होइत पबैत छी ?
व्यक्तिगत नफा नोक्सानक सवाल नहि छैक । एहिसँ समाज आ साहित्य नोक्सानमे अछि । क्रान्तिकारिता अथवा प्रगतिशीलता जे कहिऔक, अपने मुहेँ मियाँ मिट्ठूसँ सम्भव नहि हएत । एहिलेल गुणात्मक परिवत्र्तनक निरन्तरता जरुरी छैक । क्रान्तिकारी वा प्रगतिशील वएह जे गुणात्मक परिवत्र्तनलेल प्रतिवद्ध होथि । राजनीति वा साहित्यकेँ समूह विशेषमे बान्हएमे जे जिममेवार होथि ओ समाज आ साहित्यक विकाशक बाटमे अवरोधक आ प्रतिगामी छथि । नव प्रतिभासभकेँ छेकक कार्य करैत छथि ।
१०. अहाँक पार्टी सत्तामे आबि जाएत तँ मैथिली साहित्यकेँ कतेक फायदा पहुँचा सकत ?
तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टी व्यक्ति–समुदायक परिचय, स्वाभिमान आ आत्मसम्मानक प्रतिष्ठापन चाहैत अछि । विविधताक सम्मान अर्थात् असली बहुलवादक समर्थक अछि ई पार्टी । कहिओ मैथिली नेपालमे राजभाषाक रुपमे सम्मानित छल । काठमाण्डू उपत्यकाक राजामहाराजा मैथिलीमे साहित्यिक रचना कऽ अपनाकेँ धन्य बुझैत छलाह । तेहन स्थिति छल । जौँ हमरासभक पार्टी प्रभावकारी ढंगसँ सत्तामे आओत तँ निश्चिते मैथिली भाषा आ साहित्यकेँ सम्मान भेटतैक । एखनो संविधानसभामे बहुतो मैथिलीमे शपथ ग्रहण कएलनि । अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलनक आयोजनमे हमर पार्टीक लोकसभक प्रत्यक्ष आ खुला सहभागिता छल । ..... राज्यक यदि सहयोग रहैक तँ भाषा आ साहित्यक प्रभाव बढैत छेक । छोट उदाहरण अछि — १९ वर्ष पहिने जखन हम जनकपुर नगरपालिकाक प्रमुख पदपर विजयी भेल रही तँ मैथिलीक सम्मान आ प्रतिष्ठा बढाबएलेल बहुत किछु कएल गेल रहैक । नगरपालिका अपन सभ प्रमुख अपील मैथिलीमे सेहो छापय । तिरहुत रनिंग शिल्ड प्रतियोगिताक आयोजन प्रारमभ भेल रहैक । प्रत्येक वर्ष मैथिलीमे गीत रचना, गायन, संगीत आदि विधापर नगरपालिका पुरस्कार दैक । रश्मि, सुनील मल्लिक, अशोक दत्त आदि एहिसँ नीक परिचय प्राप्त कएलनि । होरीसँ १५ दिन पहिनेसँ आयोजन आ प्रस्तुतिक क्रम जारी रहैत छलैक । ... तँ असर तँ पड़िते छैक ने ।
११. एखन अपने बालकविता÷गीतपर बेसी ध्यान देने छिऐक ?
हँ, एखन हमरा बालगीत आकर्षित कएने अछि । हमर मित्र परमेश्वर हमरा एम्हर घुमाबक बरोबरि प्रयत्न कएलाह अछि आ तकरे प्रभाव थीक । बालगीतक रचनामे वृद्धि हएबाक चाही । नेनभुटकाक गीतसभकेँ संगीतवद्ध सेहो करबाक चाही जाहिसँ बच्चासभकेँ ई नहि लगैक जे ओकर अपन मातृभाषामे एकर आभाव छैक । ..... हम एहि दिशामे प्रयत्नशील छी । हमरासभद्वारा सञ्चालित जानकी एफ.एम.क स्टूडियो नीक छैक । शिघ्र एकगोट बालगीतक एल्बम निकालक योजनापर काज भऽ रहल छैक ।
१२. एखनतक अपनेक कएगोट पोथी प्रकाशित भेल अछि ?
ह्मर एकगोट छोटछिन कविता संग्रह आन्दोलन, वीपी कोइरालाक प्रसिद्ध उपन्यासिका मोदिआइन जे महाभारतपर मिथिलाञ्चलक परिवेशमे लिखल अछि तकर मैथिली रुपान्तरण, माल्हो कथा संग्रह, संघीयताक सम्बन्धमे स्वीस विद्वान डा.निकोल टपरविनक लेखसभक मैथिली अनुवाद — एतेक मैथिलीमे । ट्रेड यूनियनः एक परिचय, संघीय स्वशासनतिर नेपालीमे । सभ मिलाकए छ टा ।
धन्यवाद ! अपन बहुमूल्य समय दऽ उतारा देबएलेल ।
मुन्नाजीसँ रमेश रंजनक अन्तर्वार्ता १. अहाँक रचनात्मक प्रवृति कोना जागल ? पहिल बेर की लिखल, कि छपल ?
हम लेखकसँ पहिने रंगकर्मी छलहुँ । मिनाप जनकपुरसँ संलग्नता छल । नाटक, ताहूमे
अभिनयमे रमल रहै छलहँु । मिनापक वातावरण साहित्यिक सेहो छलै । डा. धीरेन्द्र, डा.
विमल,महेन्द्र मलंगिया सन गुरुक सानिध्य भेंटल । मिनापक तात्कालीन अध्यक्ष योगेन्द्र साह
नेपालीक अभिभावकत्व । ओहि कालखण्डमे श्यामसुन्दर शशि, धर्मेन्द्र झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि,सुनील
मल्लिक सन समकालीन मीत्र रचना करऽ लागल छलाह । हुनका लोकनिक दवाबसँ हमहूँ
किछु–किछु लीखऽ लगलहुँ । हमर पहिल रचना छल, कविता जकर शिर्षक छलै– कचोट, आ
हमर पहिल कविते प्रकाशितो भेल छल जकर शिर्षक छलै–साकार । अइ कविताक नेपाली
अनुवाद तात्कालीन नेपाल राजकीय प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक पत्रिका समकालीन सहित्यमे प्रकाशित
भेल छल ।
२. शुरुआतेसँ कथा लेखन केलहँु ? आओर कि सभ लिखलहँु अछि ?
नइ, कथा तँ हम बहूत बादमे लीखऽ लगलहुँ । सगर राति दीप जरए साहित्कि क्षेत्रमे जागरण
लाबि देने रहै । जर्वदस्त चर्चा भऽ रहल रहै । मुदा मैथिलीक केन्द्र जनकपुरमे आयोजन नइ भऽ
सकल रहै । जनकपुरमे आयोजन लएबाक हेतु हमरा कथा लीखऽ पड़ल रहए । पन्द्रहम् समारोह
पैटघाटमे हम कथा लीख कऽ सहभागी भेंलहुँ आ सोलहम समारोह जनकपुरमे हमरा
संयोजकत्वमे सम्पन्न भेल । आओर विधामे लिखबाक बात छै तँ हम सभ ओहिठामक लोक
छी जाहिठाम संख्यात्मक रुपें लिखनिहारक अभाव रहलै । तें आवश्यकता अनुसार लिखबाक
विवशता सेहो रहल । ओना कविता, कथा, नाटक, उपन्यास, आलोचना, वृतचित्र, फिल्म आ
टेलीसिरियलक लेखन सेहो कऽ रहल छी ।
३. अहाँक कथा कथानक कि रहैछ, आ ओकर मूल ध्येय की रहैछ ?
हमरा कथाक विषयवस्तुक लेल बौआए नइ पड़ैए । अपन परिवेश आ आहि भितरक द्वन्दके
चिन्हित करै छी । ओकर सुख, दुःख, आन्नद, पीड़ा, संधर्षके भोक्ताक रुपमे अनुभूति करै छी ।
एकटा चेतना हमरा निर्देशित करैत अछि – ओ छै माक्र्सवादी सौन्दर्य चेतना । हमरा बुझने
हमर साहित्यक ध्येय के आओर स्पष्टीकरण्क अवश्यकता नइ छै ।
४. अहाँ अपन कथा लेखनक प्रारम्भिक दौरसँ अखन धरिक यात्रामे की परिवर्तन पबैत छी ?
विचारक स्तरपर खास नइ । प्ररम्भमे आवेश छल– अनियन्त्रित आवेश, आब थोड़े नियन्त्रणमे
अछि । कहन शैली पहिनेसँ थोड़े परिपक्व बूझारहल अछि । अर्थात शिल्प आ भाषाक स्तरपर
थोड़े प््रभावशाली लेखन कऽ रहल छी, सन बुझाइए ।
५. नेपाली आ मैथिली कथा साहित्य मध्य मैथिली कथा कतऽ अछि ? दुनूमे समानता आ
भिन्नता की छै ।
जे भारतीय मैथिलीमे हिन्दीक आगू मैथिलीक अवस्था छै । नेपाली राज्य संरक्षित भाषा छै ।
राज्य अपार संभावना बनौलकै ओहि भाषामे तें संख्यात्मक आ गुणात्मक दुनू रुपें पर्याप्त लेखन
भऽ रहल छै । मैथिलीमे सेहो समकालीन कथा साहित्यिक प्रतिनिधि कथा लेखन होइ छै, मुदा
संख्या अत्यन्त न्यून छै । समानता आ भिन्नताक बात जहाँ तक छै तँ देश भितरक
औपनिवेशिकताके भोगिरहल अछि मिथिलाक लोक । ओ समानता चाहैए, नागरिक अधिकार
चाहैए, मुक्तिक छटपटी छै मैथिली साहित्यमे, नेपाली शासक वर्गक भाषा छै । मुदा नेपाली
कथामे नेपालक प्रतिनिधि कथाक अभाव छै, जातीय कथाक संकीर्ण घेरासँ बाहर नइ निकलि
सकल अछि ।
६. अहाँ रंगकर्मसँ सेहो शुरुएसँ जुड़ल रहलहुँ अछि । कि कोनो नाटको लिखलहँु अछि ? अहाँक
विचारमे लेखन आ रंगकर्ममे शुलभ आ सम्प्रेषनीय ककरा मानैत छी ?
हँ, से तँ हम अपनो स्पष्ट कऽ चूकल छी । नाटक लिखलहुँ अछि । आधा दर्जनसँ बेसी मंचीय
नाटक, ओतबे नुक्कड़ नाटक आ रेडियो नाटक सेहो खूबे लिखलहुँ अछि । हमर विचार कि ?
सर्वमान्य विचार छै जे नाटक शुलभ आ सम्प्रेषानीय होइ छै । श्रव्य आ दृश्य गुणक कारण ।
७.अहाँ अपन रंगकर्म मध्य अपनाके कतऽ मानै छी ? अहिमे मिनापक योगदान कत्ते मानै छी ?
अपना विषयमे मूल्याङकन करब कठीन होइ छै । नाटक अहूना समूह कार्य छै । तें समूहक
सफलता–विफलतामे व्यक्तिक सफलता–विफलता जुड़ल रहैत छैक । जँ मिनाप सफल छै तँ
हमहूँ सफल छी । हमरा रंगकर्मक प्रारम्भमे हमर गाम परवाहा आ हमर रंग–यात्राके एतऽ धरि
पहुँचाबऽमे सम्पूर्ण योगदान मिनापे के छै ।
८. नेपाली रंगकर्मसँ मैथिली रंगकर्म स्तरीयताक मादे कत्तेक लग आ दूर अछि ?
विश्व रंगमंचक प्रयोग आ प्रविधिसँ नेपाल परिचित भऽ रहल अछि । नेपालसँ हमर अर्थ अछि
कोनो खास भाषा नइ सम्पूर्ण नेपाल । जकरामे जहिना व्यावसायिक दृष्टिकोण छै, तकरामे
रंगमंचीय ज्ञानक विस्तार ताही रुपें भऽ रहल छै । समकालीन नेपालक रंगमंच मध्य मैथिली
अत्यन्त सम्मानित अवस्थामे अछि । मुदा नेपालीक तुलनामे मैथिलीक रंग समूह कम छै ।
नेपालीमे सेहो स्थायी स्वरुपक समूह बहूत थोड़ छै । मुदा एम्यचोर थिएटर कएनिहारक संख्या
बहूत छै । तखन मिनाप मात्रक प्रतिनिधित्वसँ गर्व कएल जा सकैए ।
९. कहल जाइ छै महेन्द्र मलंगिया मिनापके गोड़सि लेने छलाहा । सभ रंगकर्मी हुनक पछलग्गू
मात्र भऽ कऽ रहि गेल छल । हुनका गेलाक बाद अपने सभके विकसित होएबाक मौका भेटल
अछि कि नइ ?( रामभरोस कापड़िक मिथिला दर्शनक लेख )
अपनेक प्रश्नपर हमरा ठहक्का लगएबाक मोन होइए । मुदा ई विचार अपने कत्तौसँ ग्रहण केलहुँ
अछि तें बातके स्पष्ट करब उचित । ३२ वर्षक अइ संस्थाके एक गोट व्यक्ति कोना कव्जा कऽ
सकैत अछि ? ई मिथ्या आ काल्पनिक सोच छै । कोनो एक गोटेक सृजनात्मक क्षमताक बलपर
मात्र मिनाप ने तँ ई उपलब्धी प्राप्त केलकैए ने ऊँचाइ । महेन्द्र मलंगिया मिनापक सिर्जनात्मक
नेतत्वकर्ता छलाह, छथि । समूहक मान्यता आ समूह संचालन विधिसँ संस्था निर्देशित होइ छै
आ नेतृत्व सेहो । मलंगिया सर ओहिसँ फरक नइ छलाह । सामूहिक निणर््ाय आ व्यक्तिगत
जिमेबारीक मान्यतासँ मिनाप संचालित होइत रहल अछि । स्वयं द्वारा निर्धारित अनुशासनके
कियो तानाशाहक क्रुरता बुझै छै तँ बूझक लेल छोड़ि देल जाए ।
हुनका गेलाक बाद विकसित होएबाक बात छै तँ ओ एखनो गेल नइ छथि ओ भौतिक रुपमे
थोड़े कम उपस्थित भऽ रहल छथि । मिनापक एक–एक गोटेक व्यक्तिगत सफलता उदाहरणीय
छै । आ प्रत्येक व्यक्तिक सफलतामे मलंगियाजीक प्रेरक व्यक्तित्वक पैघ योगदान छै ।
१०.मिनापसँ एखन सरिपहुँ अहाँक अटूट जुड़ाब देखल जा रहल अछि, एखन धरि अहाँ मिनापके
कि देलियै आ मिनाप अहाँके की देलक ?
जरुर ! मिनाप हमरा सभकिछु देलक । व्यक्तिगत प्रगति आ सार्वजनिक जीवनमे सम्मानक
अन्तर कारण मिनाप अछि । देशक नाट्य सङ्गीत क्षेत्रक सर्वोच्च संस्था नेपल सङ्गीत तथा नाट्य
प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक प्राज्ञ परिषद सदस्य आ नाट्य विभाग प्रमुखक नियूक्तीमे मिनापक सेहो मुख्य
भूमिका छै । हम की देलियै तकर मूल्याँकन अन्य मीत्र लोकनि करथि । हँ, एतेक जरुर कहव जे
अपना जीवनक सर्वाधिक उर्जाशील समय मिनापके देलियैक अछि ।
११. अहाँ अपना अगिला पिढ़ी (बेटी प्रियंका ) के अहिसँ जोड़बाक कि ध्येय अछि ? कि
मिनापक कलाकार मिनापसँ (यथा फिल्म अभिनय ) आगू जा सकल अछि ? ( अपनाके बाड़ि
कऽ कहू )
ओकरो हमरे जकाँ रंगकर्म करबाक इच्छा भेलै, हम रोकलियै नइ बड़ु प्रोत्साहित कएलियै ।
समान्यतः ई कहल जाए जे हम रंगकर्मके नइ तँ अछूत कार्य मानलियै ने निकृष्ट तें नइ
रोकलियै । मिनापक कलाकार मिनापसँ आगू ? ई कोना हतै ? मिनापक कोनो कलाकारक
मिनापसँ आगूक ध्येय नइ छै । कलाक सम्पूर्ण साधना आ क्षमतमके मिनापक हेतु समर्पित करऽ
चाहैए मिनापक कलाकार । मिनापसँ आगू अपने फिल्म दिश संकेत केलहुँ अछि, तँ ई मान्यता
हम स्वयं नइ रखै छी । नाट्य अभिनयसँ पैघ फिल्म अभिनय नइ भऽ सकैए । चर्चा आ
व्यावसायिक सफलता आगू जएबाक मापदण्ड नइ छियै । ओना फिल्मसँ परहेज नइ छै
मिनापक कलाकारके । ओहो अभिनये छै । मिनापक अधिकांश कलाकार फिल्म क्षेत्रमे सेहो
स्थापित अछि । मुदा मिनापक अधिकांश कलाकार फिल्मसँ बेसी नाटकके प्रथमिकता दैए ।
१२.मैथिली रंगकर्ममे तकनिकी सुलभताक कारण चूनौती आओर बढ़ि गेलैए ? रंगकर्मक भविष्य
कि छै ?
जतऽ चूनौती छै ओत्तै संभावना छै । तकनिकक सुलभता तँ छै, मुदा मैथिली रंगमञ्च ओहिसँ
परिचित भऽ रहल अछि कि नइ ? समान्यतः मैथिली रंगकर्म मध्कालीन अवस्थामे अछि ।
भौतिक पूर्वधारक अभाव छैके । मिथिलाक मूल भूमिमे रंग गतिविधि शून्य छै । अप्रवासी रंगकर्म
कृतिम स्वाँस आपूर्ति मात्र छै । तें पाठ आ मंच दुनूक तकनिकी वैशिष्ठ्यक निरन्तर अन्तरघुलन
मैथिली रंगमञ्चक भविष्य निर्धारण करतै ।
१३. नेपालमे मैथिली सहित्यक भविष्य केहन देख रहल छियै, कत्ते दिन टिक पाओत ?
भविष्य बेजाए नइ छै । भाषिक चेतनाक स्तर उठलैए । खतरो ओतबे बढ़लैए । मुदा समग्रतामे
बहूत चिन्ताजनक अवस्था नइ छै । कत्ते दिन टिक पाओत ? एखन भविष्यवाण्ी नइ करी । ई
मृत्यूक समय निर्धारण जकाँ भऽ जाइ छै । भाषाके मूर्त बनबै छै साहित्य कला तें ई मरब तँ
स्वयंके मृत्यू छै एकर कल्पना नइ करी ।
१४. मैथिली साहित्यपर शुरुसँ जाति विशेषक बर्चस्व रहलै । आब झूण्डक–झूण्ड सक्रिय
पिछड़ल समूदायक लोकक प्रवेशसँ एकर भविष्य केहन मानिरहल छी ?
ई यर्थाथ छै । मिथिलाक सामाजिक संरचना सामन्ती रहलै । कर्मकाण्डीय लोकक बर्चस्व ।
संस्कृतक विरुद्ध आम लोकक भाषाके सिर्जनात्मक अभिव्यक्ति देबाक लेल मैथिलीक जन्म भेल
छलै । मुदा संस्कृत पूनः अजगर जकाँ गछेर लेलकै । आम लोक अहि भाषासँ दूर होइत गेल ।
खाँटी मैथिली पिछड़ल वर्ग संगे छै । अधिकांश गाममे रहनिहार अहि वर्गक संग अभिव्यक्तिक
हेतु दोसर भाषा नइ छै । संस्कारमे मैथिली छै । पूजा, पाठ, अनुष्ठान, गाथा सभमे मैथिली छै ।
कथित देव भाषाक प्रभावसँ बँचल अछि ओ समूदाय । तें सूच्चा मैथिल जँ मैथिलीके नेतृत्वमे
आँगा अबैत अछि तँ अहिसँ आह्लादकारी आओर की हेतै ।
१५.कि मिनाप जाति–पाँतिक फाँट मध्य टीकल अछि ? कि ओहो कोनो द्वन्दक शिकार अछि ?
नेपालमे अखन ई विषय प्रवेशे कएलकै अछि । समान्यतः ई वहशक विषय छै । वहश करब
समस्याके निरुपण करब छियै । कानो गम्भिर द्वन्द नइ छै मिनापमे ।
१६.अन्तमे अपन पछिला आ नवका रचनाकार , रंगकर्मी कि कहऽ चाहब अहाँ ?
कोनो खास नइ । बहूत किछु कहि चूकल छी, आब कहब आवश्यक नइ छै । अनेरो उपदेश नइ
छाँटल जाए ।
नेपाली साहित्यक विज्ञ व्याख्याता (सेवा निवृत्त आ मैथिलीक प्रबुद्ध रचनाकार श्री राजेन्द्र बिमलसँ हुनक रचना यात्रा मादेँ गप केलनि विहनि कथा रचनाकार श्री मुन्नाजी। हम पुछैत छी: मुन्नाजीसँ राजेन्द्र बिमलक अन्तर्वार्ता
मुन्नाजी: नमस्कार राजेन्द्र बिमलजी।
राजेन्द्र बिमल: मान्यवर मुन्ना जी, जय मैथिली।
मुन्नाजी:बिमलजी, अपनेक मातृभाषा मैथिली रहलाक पछातियो अपने नेपाली भाषा साहित्यमे उच्च अध्ययन आ अध्यापनमे अग्रसर रहलौं, एकर कोनो विशेष कारण?
राजेन्द्र बिमल: मैथिली मातृभाषा रहलो संता “नेपाली भाषा – साहित्यक अध्ययन – अध्यापनमे जीवन समर्पित करबाक अन्तःप्रेरणा उद्भूत भेल दू गोट प्रमुख उद्दीपनसँ” – (क) प्राथमिक कक्षासँ “स्नातकोत्तर कक्षाधरि नेपाली (राष्ट्रभाषा) अध्येताक संख्या नेपालमे सर्वाधिक होएबाक कारणे “राष्ट्रीय स्तरधरी अपन परिचिति स्थापित करबाक अवसर अपेक्षाकृत सहज अनुभव करब। उल्लेखनीय थिक जे राष्ट्रभाषा नेपालीक अध्ययन नेपालमे प्रवेशिका कक्षाधरि अनिवार्य थिकै । मैथिलीक अध्ययन – अध्यापन नेपालक मात्र दू गोट महाविद्यालय धरि सीमित अछि आ ताहूमे विद्यार्थीक संख्या नगण्य भेल करैछ । नेपालमे मैथिली अध्ययन – अध्यापनक अवस्था भारतमे उर्दू अध्ययन अध्यापनक अवस्थासँ “सेहो ऋणात्मक अछि ।
(ख) मैथिली अध्ययन – अध्यापनमे अपन आधारभूत आर्थिक भविष्य नितान्त असुरक्षित अनुभव करब ।
मुन्नाजी:मैथिली साहित्य रचनाक शुरुआत कोना केलौं आ पहिल बेर की लिखि कतऽ छपलौं:
राजेन्द्र बिमल: किछु साहित्यप्रेमी गुरुलोकनिक प्रेरणासँ “दसे वर्षक आयुसँ” किछु ने किछु जोरती जोरैत रहबाक लेल प्रेरित होइत रहलहुँ। मुदा, हमर यत्किञ्चित प्रतिभावल्लरीक जाहि स्तम्भकेँ पाबि पल्लवन पुष्पन भेल तिनक नाम थिक डा. धीरेन्द्र । अध्ययनकालसँ अध्यापनकालधरि प्रायः नित्य हुनकासँ भेंट होइत छल आ प्रत्येक भेंटमे ओ किछु नव लिखबाक लेल प्रेरित करैत छलाह। हमर पहिल मैथिली कथा “मुइल बच्चा” १९६२ (१) ई.क “मिथिला मिहिर”मे प्रकाशित भेल छल ।
मुन्नाजी: अहाँ नेपाली साहित्यक व्याख्याता रहलैं अछि। की अहाँ नेपालीमे सेहो रचना केलौं? ओकर नेपाली साहित्यकार वा पाठक मध्य कतेक महत्व भेटल?
राजेन्द्र बिमल:प्रकाशन – सुविधाक दृष्टिए मैथिली साहित्य – संसार एक गोट विराट मरुस्थल थिक जाहिमे एकाध छोटछोट मरु – उद्यान प्रकट होइत अछि, विलुप्त भए जाइत अछि। जएह हरियर गाछ देखैत छी से निसर्गक चमत्कार बूझू । राजकीय संरक्षणसँ सिंचित नेपाली भाषा साहित्यक संसार हरियर कचोर अछि, उर्वर आ नित्य सम्बर्धनशील । तेँ नेपालीमे हमर दर्जनधरि पोथी प्रकाशित भए सकल । पाठकके संख्या बेसी थिकै । तँ छोटो छिन कथा प्रकाशित भेल नहि कि पत्रक पथार लागि जाइत अछि । मैथिलीक पाठक संख्या से हो कम (लगभग जतबे लेखक, ततबे पाठक) आ हुनकामे “रिस्पोन्स” करबाक प्रवृत्ति से हो तेहन जीवन्त नहि । नेपाली भाषा साहित्यमे योगदान हेतु देल जाएबला पुरस्कारमे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार “जगदम्बा श्री” सँ सम्मानित होएब हमर सौभाग्य थिक । लगभग तीन दर्जन संस्थासँ सम्मानित/ पुरस्कृत भेल छी ।
मुन्नाजी:नेपाली आ मैथिली साहित्यक स्तरक आधारपर दुनूमे कतेक समता वा विषमता छै:
राजेन्द्र बिमल: संख्यात्मक आ गुणात्मक दुनू दृष्टिए नेपाली साहित्यक अवस्था घनात्मक अछि । प्रभाववादी, प्रतीकवादी, विम्ववादी, घनत्ववादी, आस्तित्ववादी, उत्तरआधुनिकतावादी, विनिर्माणवादी, नारीवादी, उत्तरऔैपनिवेशिकतावादी प्रभृत अत्याधुनिक लेखनशैली आ विषयवस्तुसँ समृद्ध नेपाली साहित्य सरिपहुँ विश्व साहित्यसँ प्रतिस्पर्धा करबाक तैयारीमे अछि । १९६० क दशकसँ एखनधरि मैथिली साहित्यक विकासमे शिल्प वा कथ्यक दृष्टिए बहुत गतिशील विकासक्रम परिलक्षित नहि होइत अछि । विश्व साहित्यमे उठि रहल अनेक प्रवृत्ति लहरिक आरोह-अवरोह, आलोड़न – विलोड़नसँ अधिकांश लेखक आ पाठक अपरिचित जेकाँ लगैत छथि । मृत्तिका मोह वा “नास्टाल्जिया” कने बेसिए गछेरने अछि।
मुन्नाजी:अपनेक मैथिलीमे टटका गजल संग्रह “सूर्यास्तसँ पहिने” प्रकाशित भेल अछि। एकर अतिरिक्त आर की सभ प्रकाशन लेल तैयार अछि।
राजेन्द्र बिमल: मैथिलीमे लीखल अनेक पाण्डुलिपि प्रकाशनक बाट ताकि रहल अछि
(क) लगभग पाँच गोट कथा संग्रह
(ख) एक गोट उपन्यास (चान अहाँ उदास छी – १९६३ ई.)
(ग) एक गोट गीत संग्रह
(घ) एक गोट कविता संग्रह
(ङ) एक गोट निबन्ध संग्रह
(च) दू गोट आलोचना संग्रह
(छ) एक गोट भाषा विज्ञानक पोथी
(ज) एक गोट नाटक – संग्रह आदि
(A comparative study of the Morphology of Maithili Nepali and Hindi Language) आदि ।
मुन्नाजी:मैथिली साहित्य मध्य वर्तमान समयमे गजलक की दशा अछि, एकर भविष्यक की दिशा देखाइछ?
राजेन्द्र बिमल: गजल अत्यन्त लोकप्रिय विधा थिक । मैथिलीमे से हो खूब लीखल जा रहल अछि आ पढलो जा रहल अछि । बहुत गजलकार एकर व्याकरणसँ कम परिचित छथि । मुदा भविष्य उज्जवल छैक । मैथिली गजलमे अपन निजात्मकताक विकास शुभ संकेत थिक ।
मुन्नाजी:मैथिलीक प्रकाशित गजलक संगोर (कतेको गजल संग्रह) आ मायानन्द मिश्रक गजलकेँ गीतल कहि प्रकाश्यक मादेँ गजेन्द्र ठाकुर एकरा अस्तित्वहीन कहि अपन सम्पादकीय आलेख माध्यमे अवधारणा स्पष्ट केलनि।अहाँक ऐपर अपन स्वतंत्र विचार की अछि?
राजेन्द्र बिमल: संगोर सभ नहि देखल अछि । आदरणीय मायाबाबूक गीतल (गीत-गजल) एक गोट प्रयोग थिक । हम कोनो सृजनकेँ निरर्थक नहि बूझैत छी आ लेखन स्वतंत्रतामे विश्वास रखैत छी ।
मुन्नाजी:नेपाल आ भारतक मैथिली रचनाकारक मध्य कखनो कऽ फाँट देखाओल जाइछ। ऐ फाँटकेँ भरबाक लेल अहाँक की विचार?
राजेन्द्र बिमल: भाषा, साहित्य, संस्कृतिक कोनो राजनैतिक भूगोल नहि होइत छेक – जेना आकाशमे इन्द्रधनुष वा धरतीपर जलप्रवाहक कोनो सीमा स्तम्भसँ छेकल नहि जा सकैत अछि । हमर आकांक्षा रहल अछि जे सरकारी/ गैरसरकारी स्तरपर एहन साझा मञ्चक निर्माण हो जे मैथिली भाषा, साहित्यक सम्बर्धन हेतु मीलिजूलि कए नीति आ कार्यक्रमक निर्माण करए, तकरा कार्यान्वित करए । मैथिली आन्दोलनक हेतु सेहो एहन मंचक अपरिहार्यताक अनुभव करैत छी । भैयारी विभेद आ बँटबारा जातीय अस्मिताकेँ छाउर करबाक लेल शत्रुशक्तिक हेतु लंकादहनक मार्ग प्रशस्त कए दैत छैक । जमीन बँटि जाइत छैक, भाय – भायक हृदय नहि बटबाक चाही, ई बोध जगाएब इतिहासक वर्तमान कालखण्डक मैथिली सर्जक आ चेतनासम्पन्न मैथिलक हेतु नैतिक दायित्व थिक ।
मुन्नाजी: अपने रचनामे सक्रिय रहलहुँ अछि तखन प्रकाशित पोथी एते विलम्बे किएक आएल? सेवा निवृत्तिक पछाति पहिल संग्रहमे गजले संग्रहकेँ किए प्राथमिकता देलौं, एकर कोनो विशेष कारण?
राजेन्द्र बिमल: जनकपुरमे रहि स्थानीय स्तरपर पोथी प्रकाशन करब असहज । टङ्कणक असुविधा, प्रेसक असुविधा (कतबो प्रूफ पढब, अशुद्धि जहिनाक तहिना) स्वयं से हो शारीरिक रुपैं एहि दिशामे बहुत सक्रिय रहबाक अवस्थामे नहि छलहुँ आ एखनहु नहि छी । तेँ ............... । “गजले” छपलहुँ, तकर कारण हमर प्रिय सहयोगी प्रो.परमेश्वर कापडिक जोर ।
मुन्नाजी: मैथिली साहित्यक रचना मादेँ अगिला पीढ़ीकेँ की सनेस देबऽ चाहब?
राजेन्द्र बिमल: “कीर्तिलता” मे मैथिल कुलपुरुष, मंत्रदष्टा महाकवि विद्यापतिक एक गोट ऋचा थिकैन्हि, जकर अर्थ थिक जे कालक अखण्ड प्रवाहमे ओही जातिक कीर्तिक लता पसरैत अछि जे अक्षरक खम्भा दए अक्षरेक मचान बन्हैछ । एकर मर्म बूझि मिथिलाक भविष्णु सपूत–सुपुत्री लोकनि अथक अक्षर–साधनाद्वारा बारल अपन गौरवदीपक अमर आलोकसँ विभ्रान्त विश्वक हेतु मंगल–पथ सदैव उद्भासित करथि, से शुभ कामना ।
गजेन्द्र ठाकुर
उल्कामुख (मैथिली नाटक)
तेसर कल्लोल
(आचार्य व्याघ्र एकटा शतरंजक घनक चारू कात घूमि रहल छथि। आचार्य सिंह दोसर शतरंजक घनक चारू कात घूमि रहल छथि।)
आचार्य व्याघ्र: तत्वचिन्तामणिमे हमरा सभक चर्चा गंगेश केलन्हि मुदा आब लोक हमर सभक असल नाम सेहो बिसरि गेल। हमर सभक पोथी सेहो सुड्डाह भऽ गेल।
आचार्य सिंह: मुदा अपना सभक तँ कोनो सरोकार अछिये नै, तखन?
आचार्य व्याघ्र: हँ, आ मुइलाक बाद भूत राकशसँ नीक व्याघ्र आ सिंह कहेनाइ भेल ने।
आचार्य सिंह: मुदा अपना सभक तँ कोनो सरोकार छलैहे नै, दर्शनक सिद्धान्तमे गंगेश द्वारा कएल चर्चा…
आचार्य व्याघ्र: तहीसँ हमरा सभ अछोप भऽ गेलौं किने।
आचार्य सिंह: मुदा ओ तँ आनो लोकक चर्च तत्वचिन्तामणिमे केने छथि। ओ सभ किए अछोप नै भेलाह…
आचार्य व्याघ्र: कारण हुनका सभक नाम गंगेश लिखने रहथि। मुदा अपना सभक लेल ओ आचार्य सिंह आ आचार्य व्याघ्र मात्र लिखने छथि। से गंगेशक कविता बनि गेल उल्कामुख आ हम सभ बनि गेलौं व्याघ्र आ सिंह। गंगेशक बेटा वर्द्धमान गंगेशक विषयमे लिखलन्हि “सुकवि कैरव काननेन्दुः”। मुदा कियो खोजो केलकै चौपाड़िपर जे जँ गंगेश कवि रहथि तँ हुनकर कविता की भेल। आचार्य व्याघ्र आ आचार्य सिंहकेँ जँ गंगेश आदर देलन्हि तँ से पोथी सभ सेहो सुड्डाह भऽ गेल।
आचार्य सिंह: कोन रहस्य छै ऐ मे।
आचार्य व्याघ्र: असुरक्षा आचार्य सिंह। गंगेश केलक रक्षा हमर सभक तर्कक श्रीहर्षक आक्रमणसँ, आ बनेलक नव्य-न्याय। नबका शास्त्र, नबका न्यायशास्त्र। ओहो अजीबे भेल, पिताक मृत्युक पाँच साल बाद भेलै ओकर जन्म आ चर्मकारिणीसँ केलक विवाह। आ ओइ विवाहसँ जे पुत्र भेलै वर्धमान से फेर मिलेलक न्याय आ नव्य-न्यायकेँ। मुदा वर्द्धमान अपन पिताक कविताकेँ नै बिसरल। असुरक्षा आचार्य सिंह, चौपाड़ि मध्य बाहरक विद्यार्थीकेँ तत्वचिन्तामणिक प्रतिलिपि पक्षधर नै करऽ दै छलखिन्ह, ने सार-संक्षेप लिखऽ दै छलखिन्ह। चौपाड़िमे वर्द्धमानक बाद सभ कियो आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह आ उल्कामुख सभकेँ काल्पनिक बना देलक।
आचार्य सिंह: मुदा ऐसँ सर्जन कोना हएत आचार्य व्याघ्र। बिन सर्जनक चौपाड़िपर विद्यार्थी आत्म अभिव्यक्ति कोना करताह। योग्यता कोना बढ़त। पुरान इतिहास व्याघ्र, सिंह आ उल्कामुख बनि नै रहि जाएत? प्रतिबन्ध, प्रतिबन्ध..फेर ज्ञानक विस्तार कोना हएत।समाजक एक वर्ग दोसरसँ कटि जाएत… प्रतिबन्ध, प्रतिबन्ध..ऐ सँ स्नेह बढ़त वा निरपेक्षता बढ़त? जे अहाँकेँ करबाक हुअए करू, जे हमरा करबाक हएत हम करब..की समाजक यएह गति हएत?
आचार्य व्याघ्र: आचार्य सिंह। की ऐ विस्मरणकेँ रोकबाक प्रयास नै हेबाक चाही?
आचार्य सिंह: हेबाक चाही आचार्य व्याघ्र। कोनो चीजक विस्मरण तावत धरि सम्भव नै जाधरि ओकरा हम सभ बुझनाइ नै छोड़ि दिऐ।
आचार्य व्याघ्र: बुझि कऽ मोन राखनाइ, ठीक कहलौं आचार्य सिंह। तँ चौपाड़िपर ई व्यवस्था भऽ रहल हएत जे बिनु बुझने पाठ विद्यार्थीकेँ यादि कराएल जाए जइसँ सभ बिसरि जाथि गंगेश आ वल्लभाकेँ।
आचार्य सिंह: मुदा हम सभ संकेतक प्रयोग कऽ सकै छी। संकेतसँ स्मरण विस्मरण नै बनत। अपूर्ण रहत चौपाड़िक पाठ, आ अपूर्ण पाठक विस्मरण नै भऽ सकैए, विस्मरण होइए मात्र पूर्ण पाठ।
आचार्य व्याघ्र: मुदा कोन संकेत आचार्य सिंह..
आचार्य सिंह: उल्कामुख…
(आकाशवाणी होइए…. उल्कामुख..उल्कामुख…उल्कामुख…उल्कामुख…आचार्य व्याघ्र आ आचार्य सिंह वाम रंगशीर्ष दिश जाइ छथि। तावत आचार्य शरभ दूटा शिष्य- शिष्य खिखिर आ शिष्य शाही-क संग प्रवेश करै छथि आ रंगपीठ होइत दहिना मत्तवर्णीपर आबि जाइ छथि। दुनू शिष्य एकटा शतरंजक घन उठा कऽ अबै छथि। प्रकाश दहिना मत्तवर्णीपर केन्द्रित भऽ जाइत अछि।)
आचार्य सरभ: ई गंगेश आ वल्लभाक विवाह… शतरंजक खाना सभ दैत्याकार बनि जाएत, सात सए सालमे जाति खतम भऽ जाएत..किछु करू…रोकू..विस्मरण…विस्मरण….शिष्य खिखिर, शिष्य शाही।
शिष्य खिखिर: आचार्य सरभ, अपूर्ण पाठक विस्मरण नै भऽ सकैए, विस्मरण होइए मात्र पूर्ण पाठ।
शिष्य शाही: आचार्य सिंह आ आचार्य व्याघ्रक शिक्षासँ निकलल अछि संकेत लिपि, संकेतसँ स्मरण विस्मरण नै बनत आचार्य सरभ। ओ पाठ अछि उल्कामुख..
आचार्य सरभ: की अछि ई उल्कामुख? शिष्य खिखिर, शिष्य शाही..की अछि ई उल्कामुख? बड्ड नाम सुनै छिऐ एकर। मुदा चौपाड़िपर कियो बताएत जे की छिऐ ई उल्कामुख..
शिष्य शाही: आचार्य सरभ, कोना देखब ई उल्कामुख। ई आचार्य सिंह आ आचार्य व्याघ्रक शिक्षाक प्रयोग अछि जे गंगेश आ वल्लभा केने छथि। जे अछि संकेत मात्र, संकेत जे अछि चारू कात, आ जे अछि कतौ नै।
आचार्य सरभ: मुदा ओ संकेत, ओ उल्कामुख ऐ बँसबिट्टीकेँ पार केलक कोना शिष्य शाही।
(शिष्य शाही शिष्य खिखिर दिश बकर-बकर तकैत अछि।)
शिष्य खिखिर: आचार्य सरभ… खतम तँ कैये देलिऐ हम सभ.. आचार्य व्याघ्र आ आचार्य सिंहकेँ जँ गंगेश आदर देलन्हि तँ से पोथी सभ सेहो सुड्डाह भऽ गेल। गंगेशक कवित्वक चर्चा सुड्डाह भऽ गेल..तँ हुनकर कविता बनि गेल उल्कामुख..वल्लभा बना देलन्हि ओकरा उल्कामुख..आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह आ गंगेश..ऐ तीनू नामक भय.. पुरान इतिहास व्याघ्र, सिंह आ उल्कामुख बनि गेल तँ हमहू सभ तँ सरभ, खिखिर आ शाही बनि गेलौं। सरभ तँ कल्पित भऽ गेल, शाही आ खिखिर सेहो खतम भेल जाइए.. प्रतिबन्ध, प्रतिबन्ध..फेर ज्ञानक विस्तार कोना हएत?
आचार्य सरभ: हम कल्पना छी शिष्य खिखिर?
शिष्य शाही: आचार्य, अहाँ कल्पना छी आ हम सभ कल्पना बनैबला छी।चौपाड़ि मध्य बाहरक विद्यार्थीकेँ तत्वचिन्तामणिक प्रतिलिपि पक्षधर नै करऽ दै छलखिन्ह, आब देखियौ चौपाड़िक दशा..बाहरक विद्यार्था तँ छोड़ू एतुक्को विधार्थीक एतए अभाव भऽ गेल अछि।
आचार्य सरभ: हम कल्पना? आचार्य सरभ भूतकालक कल्पना आकि आचार्य सरभ भविष्यकालक अछि कल्पना..विस्मरण..दोसराकेँ विस्मरण सिखबैत स्वयं विस्मरित भऽ गेल अछि आचार्य सरभ। विस्मरण मंत्र..ई उल्कामुख बनि गेल अछि भय.. दोसराकेँ विस्मरण सिखबैत स्वयं विस्मरित भऽ जाइए लोक।
(आकाशवाणी होइए…. उल्कामुख..उल्कामुख…उल्कामुख…उल्कामुख…आचार्य व्याघ्र आ आचार्य सिंह वाम रंगशीर्षपर प्रकाश एलापर साकांक्ष भऽ छथि। आचार्य शरभ, शिष्य खिखिर आ शिष्य शाही दहिना मत्तवर्णीपर अन्हार भेलासँ मात्र छाह बनि जाइ छथि। तीनू छाह शतरंजक घन उठा कऽ आगाँ बढ़ैत छथि।)
आचार्य व्याघ्र: हम कल्पना? भूतकालक कल्पना आकि भविष्यकालक..
आचार्य सिंह: भूतकालक आचार्य व्याघ्र, भूतकालक। भविष्य तँ वल्लभक मृत्युक सात सए साल बाद आएत..अखन तँ अदहे बीतल अछि… भविष्यकालक तँ प्रतीक्षा अछि..मुदा तावत की की कल्पना बनि जाएत…की की बचल रहि जाएत।
(सौंसे अन्धार पसरि जाइत अछि, अन्हारेमेसँ आचार्य सिंह आ आचार्य व्याघ्रक अबाज बहराइए।)
आचार्य व्याघ्र: तखन कल्पने सही आचार्य सिंह। चलू वर्द्धमान, दीना, भदरी आ उदयन लग। वएह सभ कोनो गप बतेता।
आचार्य सिंह: ई कोनो बेजाए गप नै हएत आचार्य व्याघ्र। षडयंत्रकेँ तँ तोड़ैए पड़त.. मुदा तावत की की बचल रहि जाएत सएह..।
आचार्य व्याघ्र: से तँ देखिये रहल छी आचार्य सिंह। आचार्य सरभ आ हुनकर शिष्य शाही आ खिखिर, ओहो सभ चुप नै छथि, किछु ने किछु कइये रहल छथि। एकटा रटैबला मशीन बनि गेल अछि मिथिलाक विद्यार्थी। नव्य-न्याय बंगाल चलि गेल, तकर ककरो कोनो चिन्ता नै छन्हि..किए चलि गेल.. वल्लभा आ गंगेशकेँ खतम करैत करैत ओ सभ सेहो खतम भऽ रहल छथि।
आचार्य सिंह: आचार्य व्याघ्र से तँ आरो खराप भेल..हे आबि गेलाथि वर्द्धमान, दीन, भदरी आ उदयन।
(प्रकाश भऽ जाइत अछि आ मुख्य रंगमंच स्थलपर आचार्य सिंह, आचार्य व्याघ्र, उदयन, दीन, भदरी आ वर्द्धमान देखना जाइ छथि।)
आचार्य सिंह: हम सभ एतए एकत्र भेल छी
वर्द्धमान: कोनो अकाल..
उदयन: कोनो बाढ़ि..
आचार्य व्याघ्र: नै उदयन, बाढ़ि नै, नै वर्द्धमान अकाल नै..
आचार्य सिंह: वर्द्धमान सोचक अकाल छै, उदयन..क्षुद्रताक बाढ़ि आएल छै।
दीना: कोनो बाहरी शत्रु..
भदरी: मनुक्ख आकि बनैया पशु..
आचार्य व्याघ्र: नै दीना, कोनो बाहरी शत्रु नै, भदरी कोनो बाहरी नै, ने कोनो मनुक्ख आ नहिये कोनो बनैया पशु..
आचार्य सिंह: सभ अपने लोक दीना-भदरी। कोनो बाहरी शत्रु नै..कोनो बनैया नै, सभ खुट्टे पड़हक..
उदयन:: जगन्नाथ मन्दिरमे उदयनक उद्घोष, जे जैँ हम तेँ तूँ पूजित होइ छह। बन्द केवार खुजि गेल।
दीना-भदरी (सम्वेत स्वरमे): जड़िमे दुनू गोटे अड़ा देलिऐ शरीर आ दरकि गेलै देवार। आ बन्न केवार खुजि गेल।
दीना: मुइल गाइक हड्डीमे फोटरा गिदर बनि नुका कऽ सलहेस दीना-भदरी आ बाघक कुश्ती देखथि। बाघक रान पकड़ि दू कात चीर कऽ फेकी हम दुनू भाँइ आ मुइल गाइक हड्डीसँ बहार भऽ फोटरा गीदर बनल सलहेस ओकरा जोड़ि देथि आ फेर ।
आचार्य सिंह: सभ सएह उपाय करू, कोना ओ गीदर फेकत आगि..
भदरी: मिथिलाक राजा मग्गहक हंशराज-वंशराजसँ नरुआरक पोखरि खुनबओलन्हि मुदा ओ जाइठ नै उठा सकल। हम दुनू भाँइ दछिनबरिया भीड़सँ जाइठ फेकलौं तँ ओ सोझे जाठिक लेल बनाएल खाधि- बॉली मे जा कऽ खसल। ई जाइठ अखनो दक्षिण दिस टेढ़ अछि।
आचार्य सिंह: सभ सएह उपाय करू, कोना ओ गीदर फेकत आगिक गोला..
उदयन:: मन्त्रार्थमे महर्षि पतञ्जलिक वैज्ञानिक मन्तव्य “यच्छब्द आह तदस्माकं प्रमाणम्” माने जे शब्द आकि मंत्रक पद कहैत अछि सएह हमरा लेल प्रमाण अछि- एकर अर्थ बादमे वेदे प्रमाण अछि- सेहो हमरा नामसँ भविष्य पुराणमे नै जानि किए गलत रूपेँ दऽ देल गेल। अनकर देखल बौस्तुक स्मरण अनका कोना हेतै?
आचार्य व्याघ्र: वएह स्मरण खतम कएल जा रहल छै.. स्मरण विस्मरण बनाएल जा रहल छै।
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): धामी कहलक हमरा सभकेँ काज करैले अपना खेतमे। मारि कऽ जुमा कऽ फेकलौं हम सभ ओकरा धामिन लग। धामिन गेल खिसिया आ बजेलक अपन दोस फोटरा गीदरकेँ। फोटरा गीदर मारलक हमरा सभकेँ। मुदा जिऽत जिनगी पाबि कऽ ई उल्कामुख..
उदयन:: बुझलौं आचार्य व्याघ्र, बुझलौं। लोकगाथा बनबए पड़त, नाराशंसी जगबए पड़त। हमर आ गंगेशक ग्रन्थकेँ बिनु बुझने रटबाक मतलब भेल विस्मरण।
वर्द्धमान: सुकविकैरवकाननेन्दुः गंगेश बनि जेताह उल्कामुख।
आचार्य व्याघ्र: जेना हम सभ बनि गेल छी, व्याघ्र आ सिंह आचार्य सिंह।
आचार्य सिंह: आ बना देने छी चौपाड़िक शिक्षककेँ आचार्य सरभ आ ओतुक्का विद्यार्थीकेँ खिखिर आ शाही। सभटा भऽ जाएत खतम? सर्वविनाश..
दीना: मुदा दौरीवाली हिरिया तमोलिन केलक तपस्या पतिक रूपमे प्राप्ति लेल..
भदरी: आ दौरीवाली जिरिया लोहारिन केलक तपस्या पतिक रूपमे प्राप्ति लेल..
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): मरलाक बादो। गंगामे पैसि बनेलौं पत्नी दुनूकेँ। मरलाक बादो।
उदयन:: गंगेश केलक रक्षा हमर तर्कक श्रीहर्षक आक्रमणसँ, नव्य-न्याय। नबका शास्त्र, नबका न्यायशास्त्र। ओहो अजीबे भेल, पिताक मृत्युक पाँच साल बाद भेलै ओकर जन्म आ चर्मकारिणीसँ केलक विवाह। आ ओइ विवाहसँ जे पुत्र भेलै वर्धमान से फेर मिलेलक न्याय आ नव्य-न्यायकेँ।
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): सत्यकामक सेहो तँ सएह हाल रहै। पिता के छलै ओकरा बुझले नै छलै, जबालाक पुत्रसत्यकाम, मुदा गौतम, मिथिलाक गौतम, हुनका सन गुरु भेटलै, वेदक अध्ययन केलन्हि। मरलाक बादो उदयन, नव आ पुरानक मेल आ विरोध होइए। वंशीधर बाभन आ बालारामक मेल भेल, लोक देवी गहील आ पौराणिक दुर्गा देवीक मेल भेल।
उदयन:: मरलाक बादो दीना-भदरी।
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): हँ उदयन। फोटरा गीदर बनल दोस…संग भेलाह सलहेस। मरलाक बादो…
(अन्हार पसरि जाइत अछि, मुदा गपशप सुनबामे अबैत अछि, आचार्य सरभ आ शिष्य शाही आ खिखिरक गपशप।)
आचार्य सरभ: शिष्य नढ़िया, शिष्य बिज्जी, मारू , मारू खिखिर आ शाहीकेँ मारू। विद्यामे क्षति कऽ रहल अछि ई दुनू।
(मारि-पीटक शब्द आ खिखिर आ शाहीक आर्तनाद।)
आचार्य सरभ: लगैए खिखिर आ शाही मरि गेल। शिष्य नढ़िया, शिष्य बिज्जी। आब पढ़ाइ शुरू करू। कोनो दिक्कत नै हएत आब।
शिष्य नढ़िया: सभटा रटि लेलौं आचार्य सरभ।
शिष्य बिज्जी: हमहूँ सभटा रटि लेलौं।
आचार्य सरभ: ठीक छै, अहाँ सभ जाइ जाउ।
(मंचपर प्रकाश आबि जाइत अछि, आ मात्र आचार्य सरभ मंचपर देखा पड़ै छथि।)
आचार्य सरभ: ठीक छै, आब सभ ठीक छै, धधरा हम फेकैत छी, हम आचार्य सरभ। बनबऽ दियौ ओकरा सभकेँ उल्कामुख, धधरा तँ हमहू फेकैत छी । आब हमरा बाद बनत आचार्य, हमर दुनू शिष्य बनत आचार्य, आचार्य नढ़िया आ आचार्य बिज्जी। आइ धरि तँ आचार्यमे कियो ने कियो एकटा बचिये जाइ छल जे विस्मरणमे नै रहै छल, मुदा आब हएत पूर्ण विस्मरण।
(तखने माइकसँ गीत आबऽ लगैए, आचार्च सरभ चारू कात ताकऽ लगै छथि…)
एक मूड़ी तुलसी जल साजि के रखिहेँ गै मलहीनियाँ
हमरा पानि सेब देवता अरैध के लबिहेँ गै
एक मूड़ी तुलसी जल साजि के रखिहेँ गै मलहीनियाँऽ?
हमरा गौरध्या सन अरैध के लबिहेँ गै
एक मूड़ी तुलसी जल साजि के रखिहेँ गै मलहीनियाँ
हमरा गहील सन देवता अरैध के लबिहेँ गै.....।
…..
दुर-दुर छीया ए छीया,
सरभक मुँहसँ धधरा निकलै
जरै किछु नै किए?
दुर-दुर छीया ए छीया,
…..
(रुदन स्वरमे गीत अबैए, सरभ चौंकै छथि। स्वर कानऽ लगैए, आ आचार्य सरभ हँसऽ लगै छथि, हँसिते रहै छथि। सगरे अन्हार पसरि जाइए।आ जखन इजोत होइए तँ उदयन, दीना, भदरी आ वर्द्धमान मुख्य रंगमंचपर देखा पड़ै छथि।)
उदयन:: आब पुरान नाम फेरसँ रखबाक परम्परा आएल छै। से हम उदयन। ई छथि दीना, ओ भदरी,ओ वर्द्धमान..…सुनै छिऐ नामक सेहो प्रभाव पड़ै छै। जे से…
वर्द्धमान: धारक कातमे आ साँपबला घरमे निवास केनिहारकेँ चैन कतऽ उदयन?
उदयन:: भातढाला पोखरि आ सागढाला पोखरि जाए पड़त तत्काल।
दीना: जतए भीम भात आ साग रखैत रहथि?
उदयन: हँ, आ सिमलवन सेहो।
भदरी: सेमापुर जतए अर्जुन अपन अस्त्र-शस्त्र अज्ञातवास कालमे नुकेने रहथि?
उदयन: हँ, एकटा आर युद्ध शुरू भऽ गेल अछि।
वर्द्धमान:
घृणाक तरहरिमे
प्रेम, मुस्कीसँ जीतब घृणा आ ईर्ष्याकेँ
घृणाक तरहरि खूनऽ दियौ
ओहि तरहरिमे घृणाकेँ गारि देबै
अपन प्रेमक शक्तिसँ
उदयन:: हँसैत- मुस्कियाइत करबै आग्रह
जे परिश्रम घृणाक तरहरि बनबऽमे लगौलक
कहबै प्रेमक पोखरि काटऽ
जाहिमे प्रेमक पानि बरखा मासमे भरि जाएत
आ भरले रहत ततेक गहींर कऽ काटल रहत माटि
ओइमे हेलत प्रेम
हेलैत रहत
आ बहि जाएत, डूमि जाएत घृणा आ ईर्ष्या
डूमि जाएत आ बझा कऽ लऽ जएतै पनिडुब्बी ओकरा
दीना:
जावत हम रहब
नै छूबि सकत क्यो प्रेमक सत्यक पुत्रकेँ
कारण शक्तिसँ, ऊर्जासँ भरल अछि सत्यक पुत्र
ओकर चारूकात स्थूल-प्रेमक गिलेबासँ ठाढ़ कएल घेराबा रहत
नै करू चिन्ता।
भदरी:
आ जहिया हम नै रहब
सीखि जाएब अहाँ सभ किछु
हमर वियोग बना देत सक्कत, तीव्र आ कठोर
सत्यक विरोधीक लेल
ओहि घेराबाकेँ तोड़बाक प्रयास
अहाँक स्थूल-प्रेमी मित्र सभ नै हेमऽ देथिन्ह सफल
से हम रही वा नै रही
प्रयाण थम्हत नै
बतहपना बढ़त नै
मारि देब तँ मारि दिअ
मुदा मोन राखू
हमरा संगे मरत आर बहुत रास वस्तु
मुदा रहबे करत स्थूल-प्रेमी साधक सभ
आ करत पहिल नृत्य हस्त संचालनसँ
चतुरहस्त
आनन्दसँ भरल मोन
सत्य, झूठ आ तकर निर्णयक लेल
सनगोहिक चामसँ छारल डफ-खजुरी लए
डोरीक कम्पनसँ ध्वनि निकालत
गुमकी, ओहि खजुरीक ध्वनि
आ गुमकी, गुम..गुम..गुमकी...
आ तखन दोसर नृत्य होएत प्रारम्भ
शिखरहस्त
पर्वतशिखरसन
युद्धक आवाहन-प्रदर्शनक लेल
घृणाक तरहरि खूनऽ दियौ
मारि देत तँ मारऽ दिऔ
मोन राखू मुदा
हमरा संगे मरत आर बहुत रास वस्तु
मुदा हमर वियोग बना देत सक्कत, तीव्र आ कठोर
रक्तबीजी सत्यपुत्र सभकेँ
दीना-भदरी (सम्वेत स्वरमे):
बुढ़िया डाही संग अछि
कमलक मृणाल, पुरैनि, कमलगट्टा, बिसाँढ़सँ भरल खेत
ओ नहि छथि बुढ़िया डाही
खेत जे छलै सनगर यौ
से बनल प्रेमक कमलदह
घृणाक विरुद्ध अछि हमर ई बुढ़िया डाही
(वल्लभाक अबाज अबैए, सभ चौंकि कऽ देखऽ लगै छथि।)
वल्लभाक अबाज:
फेर वएह गप
आत्मरक्षार्थ
सत्यक विरोधमे
चोरबा बाजल फेर
सर्जनक सुख भेटत चोरिमे?
दोसराक कृति अपना नाम केलासँ
आकि दोसराक मेहनतिकेँ अपन नाम देलासँ
दोसराक प्रतिभाकेँ दबा कऽ
कुटीचालि कऽ आर
भाँग पीबि घूर तर कऽ गोलैसी
कोनाकेँ आँगुर काटब जे लिखब बन्न करत
तोड़ि दियौ डाँर, काटि दियौ पएर
आँखि निकालि लिअ धऽ दियौ रॉलरक नीचाँमे
पिसीमाल उठा दियौ
बड़का एलाहेँ सर्जनक सुख पएबाले
(गंगेशक अबाज अबैए, सभ चौंकि कऽ देखऽ लगै छथि।)
गंगेशक अबाज:
तँ की हारि जाइ
तँ की छोड़ि दिऐ
इच्छा जीतत आकि जीतत ईर्ष्या
संकल्प हमर जे ऐ धारकेँ मोड़ि देब
मुदा किछु ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ईर्ष्या जे हम धारकेँ नै मोड़ि पाबी
बहैत रहए ओ ओहिना
ओहिना किए ओहूसँ भयंकर बनि
वल्लभाक अबाज:
संकल्प जे हम केने छी
इच्छा जे अछि हमर/ से हारि जाए
आ जीति जाए द्वेष/ जीति जाए ईर्ष्या
हा हारबो करी तेना भऽ कऽ जे लोक देखए!/ जमाना देखए!!
तेना कऽ हारए संकल्प हमर/ इच्छा हमर
गंगेशक अबाज:
धारकेँ रोकि देबाक/ ठाढ़ भऽ जएबाक सोझाँ ओकर
आ मोड़ि देबाक संकल्प ओहि भयंकर उदण्ड धारकेँ
मुदा किछु आर ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ओ द्वेष चाहैए जे हमर प्रयास/ धारकेँ मोड़बाक प्रयास
वल्लभाक अबाज:
मोड़लाक प्रयासक बाद भऽ जाए धार आर भयंकर
पुरान लीखपर चलैत रहए भऽ आर अत्याचारी
आ हम जाए हारि
आ हारी तेना भऽ कऽ जे लोक राखए मोन
मोन राखए जे कियो दुस्साहसी ठाढ़ भऽ गेल छल धारक सोझाँ
तकर भेल ई भयंकर परिणाम
जे लोक डरा कऽ नहि करए फेर दुस्साहस
दुस्साहस ठाढ़ हेबाक उदण्ड-अत्याचारी धारक सोझाँमे
लऽ ली हम पतनुकान/ आ से सुनि थरथरी पैसि जाए लोकक हृदयमे
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ हम बुढ़िया डाही।
(अबाज शान्त भऽ जाइत अछि, फेरसँ सभ साकाक्ष भऽ जाइ छथि।)
उदयन:
मुदा हम हँसै छी
हारि तँ जाएब हम मुदा हमर साधनासँ जे रक्तबीज खसत
से एक-एकटा ठोपक बीआ बनि जाएत सहस्रबाढ़निक झोँटाबला
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ अछि हमर ई बुढ़िया डाही।
दीना:
कमलक मृणाल, पुरैनि, कमलगट्टा, बिसाँढ़सँ भरल खेत बनत
खेत जे छलै सनगर यौ, जाहिमे घृणाक तरहरि खुनेलौं यौ
घृणाक तरहरि खूनल ओइ खेतमे
कमलक मृणाल, पुरैनि, कमलगट्टा, बिसाँढ़ अछि भरि गेल
भदरी:
मुदा प्रेमक कमल अछि फुला गेल।
सहस्रबाढ़नि झोँटाबला बुढ़िया डाही केलक ई।
वर्द्धमान:
आ तखन
फैसला हेतै आब
जखन
उनटि जाइए लोक
उनटि जाइ छै बोल
छने-छन बदलि जाइए
बिचकाबैए ठोर
बोलक मधुर वाणी
बोली-वाणी
बदलि जाइ छै
बनि जाइए बिखाह
गोबरझार दऽ चमकाबै छी स्मृतिकेँ
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ छलि तहियो हमर ई बुढ़िया डाही।
उदयन:
धारकेँ रोकबाक हिस्सक जकरा लागि गेल छै
आ ओ सभ तकर विरुद्ध ठोकि कऽ ताल
भऽ जाएत ठाढ़
आ डरा जाएत द्वेष स्मरण कऽ
जे फेर रक्तबीजसँ निकलल एहि सहस्रबाढ़नि सभक रक्तबीज
एकर सभक बीआक सन्तान फेर आर बढ़ि जाएत आक्रमणसँ
कारण संकल्प अछि, इच्छा अछि ई सभ
धारकेँ रोकबाक हिस्सक जकरा लागि गेल छै
सभ सम्वेत स्वरमे:
घृणाक विरुद्ध अछि जे जकरा बुढ़िया डाही अहाँ कहै छिऐ।
घृणाक विरुद्ध अछि जे जकरा बुढ़िया डाही अहाँ कहै छिऐ।
घृणाक विरुद्ध अछि जे जकरा बुढ़िया डाही अहाँ कहै छिऐ।
घृणाक विरुद्ध अछि जे जकरा बुढ़िया डाही अहाँ कहै छिऐ।
(आस्ते आस्ते अन्हार पसरि जाइए।)
चारिम कल्लोल
…(जारी)
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