भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, November 13, 2011

'विदेह' ९३ म अंक ०१ नवम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४७ अंक ९३)- PART II


२. गद्य











            जगदीश प्रसाद मण्‍डल
एकांकी

वीरांगना

जगदीश प्रसाद मण्‍डल






पात्र परि‍चए...

पुरूष पात्र-

1.    सोनमा काका ६५ वर्ष
2.    चेथरू       ४५ वर्ष
3.    जुगेसर           ५० वर्ष
4.    अयोधी            ३० वर्ष
5.    जीवन       ३५ वर्ष
6.     

स्‍त्री पात्र-

1.    रूपनी       ६० वर्ष
2.    कुशेसरी     ५० वर्ष
3.    कोशि‍ला     २२ वर्ष



पहि‍ल दृश्‍य-

            (अपन-अपन आंगनसँ नि‍कलि‍ रस्‍ताक भकमोड़ीपर ठाढ़ भऽ...)

सोनमा काका   : सुनै छी जे रमफलबा आएल हेन?

रूपनी दादी    : सएह ते सुनलौं मुदा तेहन लोकक मुँहे सुनलौ जे सुनि‍यो कऽ अनवि‍सवासे अछि‍। तँए दोसर गोटेसँ भाँज लगबए वि‍दा भेलौं।

चेथरू        : नै-नै बात ठीके छि‍ऐ।

सोनमा काका   : से तूँ केना बुझै छहक?

चेथरू        : ओहन लेाकक मुँहे सुनलौं जेकरा मुँहसँ असत् बात नि‍कलि‍ते ने छै।

सोनमा काका   : जेकरा मुँहे ओ सुनने हएत वएह जँ असत् कहने होय, तखन?

रूपनी दादी    : से तँ भऽ सकै छै। मुदा तहूमे भाँज छै।

सोनमा काका   : से की भाँज छै?

चेथरू        : से अहाँ नै बुझै छि‍ऐ काका, जे देखलाहा बजैए ओ सत होइ छै आ जे सुनलाहा रहै छै ओइमे दुनू होइ छै।

सोनमा काका   : हँ से भऽ सकैए। केहेन लोकक मुँहे सुनने छेलह?

चेथरू        : दूधवाली मुँहे सुनने छलौं। वएह जे दूध बेचि‍ कऽ ओइ टोलसँ आएल छलै, बाजलि‍ रहए।

सोनमा काका   : उ ते दूध बेचैमे लागल हएत आकि‍ बात बुझै पाछू।

चेथरू        : ओकरा अहाँ नीक जकाँ नै चि‍न्‍है छि‍ऐ। कोनो की माछ-कौछ बेचैवाली छी जे पएरक औंठासँ पलड़ा दाबि‍ उठा देबै आ घट्टी जोखि‍ देबै।

सोनमा काका   : दूधो बेचैवाली तँ पोखरि‍क पानि‍ये मि‍ला दै छै, से।

चेथरू        : हँ, से तँ होइ छै। मुदा ओकर कारोवार रहै छै कएक दि‍न। बाढ़ि‍क पानि‍ जकाँ आएल आ पड़ाएल।

रूपनी दादी    : हँ, से तँ देखै छि‍ऐ जे जहि‍यासँ काज धेलक तहि‍यासँ ने ओकर दूध नप्‍पा फुच्‍ची फुटल आ ने नाप-जोखक बदनामी कहि‍यो लगलै।

चेथरू        : (अपन पक्ष मजबूत होइत देखि‍, मुसकि‍या..) दादी, बुढ़ि‍या देखैमे ने एक चेराक बुझि‍ पड़ैए मुदा गामेक नै, घर-घरक रत्ती-बत्ती बात बुझैए।

सोनमा काका   : की सभ कहलकह?

चेथरू        : बाजलि‍ जे दि‍ल्‍लीसँ मालि‍क अपना गाड़ीपर लादि‍ कऽ पहुूँचा गेलहेँ।

सोनमा काका   : एतबे कहलकह आकि‍ आगूओ कि‍छु बजलह?

चेथरू        : एतबे बजैमे तँ ओ अपन डाबासँ दूध नापि‍ लोटामे दऽ देलक आ उठि‍ कऽ वि‍दा भेल।

सोनमा काका   : एहेन-एहेन बात तँ सरि‍या कऽ ने बुझि‍ लेबाक चाही।

चेथरू        : जाइत काल एते बात भनभनाइत सुनलि‍ऐ जे एकटा टाँग काटि‍ कऽ पठा देलकै आ पान साउ रूपैयासँ नोइस हेतै?

सोनमा काका   : एते पैघ बात आ कनि‍यो अॅटका कऽ नै पुछि‍ लेलहक?

चेथरू        : काका, ओइ बुढ़ि‍याकेँ की बुझै छि‍ऐ, कोनो की हमरे ऐठामटा अबैए जे नि‍चेनसँ गप-सप्‍प करब।

सोनमा काका   : तखन?

चेथरू        : ओ बुढ़ि‍या फुच्‍चि‍ये-फुच्‍ची दूधेटा लोककेँ दइ छै आकि‍ मि‍सरि‍यो घोड़ै छै।

सोनमा काका   : से की?

चेथरू        : हम की ओते बुझै छी जे तेना भऽ कऽ बुढ़ि‍याक सभ बात बुझि‍ लेबै, तखन तँ जते काज रहैए ओते तँ भइये जाइए। दादी लगमे सभ दि‍न बैसैत देखै छि‍ऐ।

रूपनी दादी    : हँ, से तँ बैसबो करैए आ गामक तीत-मीठ गपो कहैए। मुदा घुरैकाल बैसैए, तँए अखन भेँट नै केलकहेँ।

सोनमा काका   : ऐ तत-मतीसँ नीक जे ओकरा घरेपर पहुँच मुँहा-मुँही गप कऽ ली।

चेथरू        : काका, तइले तीनू गोरे कि‍अए जाएब। असकरे जाइ छी, सभ बात बुझि‍ कऽ सुनाओ देब?

रूपनी दादी    : सभ दि‍न तोँ चेथरू-के-चेथरूऐ रहि‍ गेलेँ। पोता-पोती भेलौ से होश नै छौ।

चेथरू        : दादी, एक ढाकीक के कहए जे सत्तरह ढाकी पोता-पोती भऽ जाएत तैयो अहाँ लगमे चेथरूए रहब। कोनो बात-वि‍चारक जे जरूरत हएत तँ अहाँसँ नै पुछब, सोनमा काकासँ नै पुछबनि‍ तँ की बगुरक गाछ आ पसीद काँटक गाछसँ पुछबै?

रूपनी दादी    : देखहक चेथरू, हम अपना नजरि‍ये देखबो करब आ पुछबो करबै, तहि‍ना तोहूँ सोनाइ भेलह कि‍ने?

चेथरू        : तइ नजरि‍ये कहाँ कहलौं। तीनू गोटे जे एकेटा काजमे बड़दैतौं, तइ दुआरे कहलौं।

रूपनी दादी    : से बड़ बेस। मुदा काजक आँट-पेट नै बुझै छहक। कहैले सभ काजे छी, मुदा ओहूमे छोट-पैघ, नीक-अधला होइ छै।

चेथरू        : कनी परि‍छा कऽ कहि‍यौ?

सोनमा काका   : ठीके चेथरू, तूँ कहि‍यो पुरूख नै हेबह?

चेथरू        : काका, अहाँ सने जे कोनो पुरूखपना काज करबै तइसँ पुरूख नै हेबै।

सोनमा काका   : पुरूखक संगी हेबहक। पुरूख तखन हेबह जखन अपने ठाढ़ भऽ आगूक डेग बढ़ेबह। अखन दोसर-तेसर बात छोड़ह आ रमरूपाक भाँज नीक-नहाँति‍ लगावह।

चेथरू        : जखन अहाँ सबहक वि‍चार अछि‍ तखन तीनू गोरे चलू।

            (तहीकाल आगूसँ जुगेसर अबैत..)

सोनमा काका   : जुगे, कि‍महर-कि‍महरसँ एलह?

जुगेसर       : काका, की कहब (गुम्‍म होइत...)

चेथरू        : मुँहक बात दबलह कि‍अए? कि‍छु भेलौं तँ हम सभ समाज भेलौं। न्‍यायालय भेलौं। अगर हमरा समाजक अंगक संग कोनो अन्‍याय दोसर समाज करत तँ ओ बरदाससँ बाहर अछि‍। की सोनमा काका..?

सोनमा काका   : चेथरू, जे बात तूँ बजलह वएह गामक प्रति‍ष्‍ठा छी। मुदा, पाकल आम भेलि‍यह, सभ दारो-मदार तँ तोरे सभपर छह।

चेथरू        : जुगे भाय, अहाँ तँ आँखि‍क देखल बाजब। रामरूपक कि‍...?

जुगेसर       : देखैबला दृश्‍य नइए। अपने रामरूप ओछाइनपर ओंघराएल अछि‍ आ घरवाली ओछाइनि‍क नि‍च्‍चाँमे ओंघरनि‍या दऽ रहल अछि‍। तीन सालक बच्‍चा झाँपल कपड़ा हटा-हटा पएर तकैए।

रूपनी दादी    : बाप रे बाप! समाजक एकटा घर उजड़ि‍ गेल।

जुगेसर       : दादी, अहाँ नै जाउ। सोनमा काका अहूँ नै जाउ।

सोनमा काका   : कि‍अए?

जुगेसर       : ओहन दृश्‍य देखैक करेज आब नै रहल। हो--हो पहि‍लुके नजरि‍मे ने अपने...?

चेथरू        : दादी, कहने तँ पहि‍ने छलौं, मुदा हमरा गपक मोजरे ने देलौं। आब कहू जे कोनो अनरगल कहने रही?

सोनमा काका   : हँ, से तँ बात मि‍लि‍ऐ गेलह। मुदा एते बात बुझि‍ कऽ तँ नै बाजल छलह? अच्‍छा, एतै बैस कऽ सभ बात कहह।

जुगेसर       : ओतए तँ लोकक करमान लागल छै। तहूमे धि‍या-पूता आ झोटहा भरि‍ देने अछि‍। चुट्टी ससरैक जगह नै छै।

सोनमा काका   : गप कि‍छु कहह ने?

जुगेसर       : कोनो बात की सोझ डारि‍ये चलए दइए। एक तँ कारकौआक जेर जकाँ धि‍या-पूता काँइ-काँइ करैए तइपर सँ जनि‍जाति‍ भि‍न्ने छाती पीटैए।

चेथरू        : तैयो तँ भाँजपर कि‍छु गप चढ़ले हेतह?

जुगेसर       : हँ, एते उड़नति‍ये सुनलौं जे डरेवर जाइ काल बाजल जे कारखाना मालि‍क इलाजमे तीन लाख रूपैया खर्च केलखि‍न। पाँच सए खाइ-पीऐले, आ लत्ता-कपड़ा सेहो देलखि‍न।

रूपनी दादी    : पान सए रूपैआ कते दि‍न चलतै। तहूमे सभटा लोथे भेल। जहि‍ना रामरूप तहि‍ना बच्‍चाक संग बच्‍चाक माइयो। केना बेचारी दुनूकेँ छोड़ बोनि‍-दुख करए जाएत।

चेथरू        : से तँ ठीके। मुदा दादी झोटहा सबहक वि‍सवास कोन। बेटाकेँ जहर-माहूर खुआ देत आ घरबलाकेँ छोड़ि‍ पड़ा दोसर घर चलि‍ जाएत।

रूपनी दादी    : सेहो होइए चेथरू। तोरो बात कटैबला नहि‍ये छह मुदा एक्के दाबि‍ये केना खि‍चड़ि‍यो रान्‍हवह आ खीरो। एकटामे नून पड़त एकटामे चि‍न्नी।

चेथरू        : से तँ ठीके कहै छि‍ऐ दादी। एहि‍ना ने भालेसरोकेँ भेल। ओहो जे जौमक गाछपर सँ खसि‍ जाँघ तोड़लक आ डाक्‍टरो बुट्टी भि‍ड़ा कऽ काटि‍ देलकै। फेर ओ बेचारी (भालेसरक पत्नी) केना छह मसुआ बेटीक संग रहि‍ ता जि‍नगी घरबलाक सेवा केलक।

सोनमा काका   : सोझे सभ गप खि‍स्‍सा जकाँ सुनने नै हेतह चेथरू। ओना जुगेसर ठीके कहलकह। अखन छोड़ि‍ दहक। बेरू पहरमे चलब।

रूपनी दादी    : हँ, हँ, एहेन-एहेन जगहपर नै गेने समाजक रसे की रहत। समाज तँ तखने ने समाज जखन सबहक सुख-दुख सेगे पोखरि‍मे नहाइ।

चेथरू        : कनि‍ये-कनि‍ये जे सोचै छी दादी तँ बुझि‍ पड़ैए जे समाजपर एकटा भार पड़ि‍ गेल।

(())





दोसर दृश्‍य

            (अयोधीक दरबज्‍जा। दरबज्‍जाक ओछाइनि‍क एक कोनपर अयोधी बैसल दोसर कोनपर अयोधीक माए कुशेसरी बैसल..)

अयोधी        : माए, आब की करब?

कुशेसरी       : बौआ, आब छाती बदलि‍ गेल। (आँखि‍ मीड़ैत) धरमागती बात तोरा कहै छि‍अ।

अयोधी        : अखैन जे तत्-खनात बेगरता आबि‍ गेल पहि‍ने से वि‍चार दे। तखैन दोसर-तेसर सोखर सुनबि‍हेँ।

कुशेसरी       : बौआ, सएह कहै छि‍अ। लोकेक बेगरता लोककेँ होइ छै। मुदा.....?

अयोधी        : चुप कि‍अए भेलेँ?

कुशेसरी       : लोकक बोन अफ्रि‍कनो बोनसँ घनगर अछि‍। तँू ई नै बुझि‍हह जे माए हमरा भाएकेँ खून दइसँ रोकत। मुदा तइसँ पहि‍ने जँ बुझैक जरूरत छह से कहए चाहै छि‍अ।

अयोधी        : माए, जाबे पेटक बात नि‍कालि‍ नै फेकब, ताबे गौस्‍टि‍कक रोगी जकाँ छुटैए। जइसँ कोनो बात सुनैक मने ने होइए।

कुशेसरी       : बाजह, पहि‍ने तँू अपने कोठी खलि‍या कऽ झाड़ि‍ लैह तखन जे आनो अन्न ओइमे देबहक तँ तैयो एकछहे रहत।

अयोधी        : खनदान दि‍स तकै छी तँ सुमारक लगैए। जहि‍ना परबाबा आन गामसँ आबि‍ बसलाह तहि‍ना एकघराक घर अखनो छीहे।

कुशेसरी       : जहि‍यासँ ऐ गाममे पएर रखलौं तहि‍यासँ तँ गामो आ परि‍वारोकेँ देखते-सुनते एलौं। मुदा तइसँ पहि‍लुका बात तँ बुझल नइए। बाजह?

अयोधी        : परबाबा मात्रि‍कमे आबि‍ कऽ बसल रहथि‍। मात्रि‍कक डीह नीक डीह बुझलनि‍। गामक भागीन, तँए गामक बाट चि‍क्कन। कतौ खाधि‍ पीछड़ नै।

कुशेसरी       : आगूक पीढ़ी केना बढ़ल?

अयोधी        : हुनका (परबाबाकेँ) दूटा बेटा आ दूटा बेटी भेलनि‍। परि‍वार गेना फूलक गाछ जकाँ झमटगर हुअए लगल। दुनू बेटी सासुर गेलनि‍। परि‍वारो नीक तँए समरस परि‍वार भेने समरस जीवन समरस सुख पाबि‍ मुइलाह।

कुशेसरी       : दुनू भाँइक परि‍वार?

अयोधी        : दुनू भाँइयो आ माइयोक एहेन सोभाव रहनि‍ जे कहि‍यो कोनो बाते झगड़ा नै भेलनि‍। जेठका भायक वि‍याह धुमधामसँ भेलनि‍। मुदा छोटका तेहन तीनूक (भाइयो, भौजाइयो आ माइयोक) सहलोल भऽ गेलखि‍न जे वि‍आहे ने केलखि‍न।

कुशेसरी       : परि‍वारक बात दुनू गोरे नै बुझौलखि‍न?

अयोधी        : कहाँदन रहबो करथि‍न मति‍छि‍न्नु जकाँ। कहि‍यो झाेंक चढ़ि‍ जानि‍ तँ भरि‍-भरि‍ दि‍न, बि‍नु खेनौं-पि‍नौं कोदारि‍ये भजैत रहि‍ जाइ छेलखि‍न।

कुशेसरी       : (ठहाका मारि‍..) मनुखदेवा ने ते रहथि‍न?

अयोधी        : ऍंह, ओतबे, कहि‍यो झोंक चढ़नि‍ तँ खाइयो बेरमे पीढ़ि‍यापर बैस रूसि‍ रहथि‍।

कुशेसरी       : से कि‍अए?

अयोधी        : (हँसैत..) ताबे तक रूसल रहथि‍ जाबे तक माए आगूमे नै आबि‍ जानि‍। भाय-भौजाइक बातक कोनो मोजर नै।

कुशेसरी       : माइयक बात मानि‍ लथि‍न?

अयोधी        : माए आबि‍ जखन पुछथि‍न तँ कहनि‍ जे बेटा बि‍नु माइयक सेवा केने खाइए ओ पापी छी। तँए पहि‍ने एक हाथ सेवा तोरा कऽ देबौ तखन मुँहमे अन्न-पानि‍ लेब। एक-भग्‍गू लोक जकाँ?

कुशेसरी       : एक-भग्‍गू लोक जकाँ नै, एकबट्टू लोक जकाँ।

अयोधी        : हँ, हँ, तहि‍ना।

कुशेसरी       : पैछला पीढ़ीसँ तँ छीहे। बौआ छातीपर हाथ राखि‍ कहै छि‍अ। ऐ घरमे भि‍नाैज कराैल हमरे छी। जे ओइ दि‍नमे नै बुझै छलि‍ऐ।

अयोधी        : से आब केना बुझै छीही?

कुशेसरी       : हम दुनू परानी टटके जुआएल रही आ भैया दुनू परानी ठमकि‍ गेल रहथि‍। मलि‍काइन बनैक भुख ककरा नै लगै छै। हमरो लागल आ भि‍नाैज करेलौं।

अयोधी        : मन हल्लुक भेल। आब वि‍चार दे जे रामरूपकेँ देहमे खून कम छै, ओ तँ हमरे खूनटा मि‍लै छै।

कुशेसरी       : जतेक खगता छै तइसँ दोबर दहक। आ इहो बुझि‍ लएह जे एकटंगा भाइक भार अपने कपारपर अछि‍।

            (तहीकाल सोनमा काका, रूपनी दादी आ चेथरूक प्रवेश..। अयोधी सोनमा काका आ  चेथरूकेँ गोड़ लगलक। कुशेसरी रूपनी दादीकेँ गोड़ लागि‍ वि‍छानपर बैसा दुनू हाथे घुट्ठी दाबए लगलनि‍। जहि‍ना धौना खसल सोनमा काकाक तहि‍ना रूपनि‍यो दादीक आ चेथरूओक। सभ गुम-सुम भेल बैसल..)

चेथरू        : अयोधी, भगवान तोरा ऊपर ठनका खसेलखुन। मुदा....?

(सोनमा काका आँखि‍ उठा कखनो अयोधीपर तँ कखनो कुशेसरीपर तँ कखनो नि‍च्‍चा कऽ तरे-तर रामरूपक कटल टाँगपर आ कखनो रामरूपक स्‍त्रीपर दौड़बैत...)

रूपनी दादी    : छोड़ह ऐ जाँतब-पीचबकेँ। पहि‍ने रामरूपकेँ देखा दएह।

            (रूपनी दादीकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ कुशेसरी आँगन लऽ गेलि‍..)

सोनमा काका   : रामरूप तँ पि‍ति‍औत भाए छि‍अह कि‍ने?

अयोधी        : हँ।

सोनमा काका   : ओकरा परि‍वारमे के सभ छै?

अयोधी        : अपने दुनू प्राणी अछि‍ आ एकटा तीन सालक बेटा छै।

सोनमा काका   : खेती-पथारी?

अयोधी        : कि‍छु ने। जँ से रहि‍तै तँ एहि‍ना परदेशसँ टाँग कटा घर अबैत।

चेथरू        : एना भेलै केना?

अयोधी        : सबटा अपन कपारक दोख होइ छै। कोनो की इहएटा ओइ करखन्नामे काज करै छलै आकि‍ आउरो गोरे।

चेथरू        : काज कोन करै छलै?

अयोधी        : कहाँ दन, लोहा करखन्नामे काजे करैत काल एकटा गोलका गुरकि‍ आबि‍ कऽ जाँघेपर खसलै।

            (तहीबीच रूपनी दादी कुशेसरीक संग अबैत..)

कुशेसरी       : (अबि‍ते..) अहँू दुनू गोरे अंगने चलि‍ कऽ कनी देखि‍ ने लि‍औ?

चेथरू        : दादी तँ देखि‍ कऽ एबे केलीहेँ, पहि‍ने हि‍नकेसँ बुझि‍ ली।

रूपनी दादी    : (छाती पीटैत..) एहेन अतहतह नै देखने छलौं। बाप रे बाप! मनुखक नक्‍शे बदलि‍ गेल अछि‍। हे भगवान, जखन वि‍पत्ति‍ये देलहक तँ आरो कि‍अए ने बेसी कऽ देलहक जे दू-चारि‍ मासमे लोक वि‍सरि‍ जाइत।

सोनमा काका   : ओना अपना चसमसँ देखब नीके होइ छै। मुदा कि‍छु एहनो होइ छै जकरा नहि‍ये देखब नीक।

रूपनी दादी    : पुरूखक जाइ जोकर आंगन नहि‍ये अछि‍। बेचारी रामरूपक पत्नीकेँ ने नुआ-वस्‍त्रक ठेकान छै आ ने....

चेथरू        : तहँूमे अपना सभ की कोनो ओझा-गुनी, डाक्‍टर छी जे लगसँ देखबे जरूरी अछि‍। अपनो सभ वएह देखब जे दादी कहती।

सोनमा काका   : घाओपर नून छीटि‍ वि‍सतार करबसँ नीक नहि‍ये देखब।

चेथरू        : काका....?

सोनमा काका   : अखन कि‍छु बाजैक समए नै अछि‍। फेर आएब तखन कि‍छु आगूक बात वि‍चारब।

चेथरू        : काका एक तँ वेचाराकेँ अपना कि‍छु ने छै तइपर अपने कोनो काजक नै रहल। जीवि‍त शरीर तँ अन्न-पानि‍ मंगबै करत। बि‍नु कि‍छु केने धेने कतेक दि‍न चलत।

सोनमा काका   : यएह सभ ने बुझै-वि‍चारैक अछि‍। तूँ दुनू गोरे अयोधी एके गाछक बखलोइया छह। जही गाछक बखलोइया रहै छै ओही गाछमे ने सटबो करै छै।

चेथरू        : अयोधी, तेहेन दोरस हवा बहि गेल अछि‍ जे चीन्हो-पहचीन्हि‍ भोति‍या गेल अछि‍। जेना गाछमे देखैत हेबहक जे जे पात सुनटा गरे गाछक शोभा बढ़बैत अछि‍ वएह हवामे उनटि‍ अपन असल रूप उनटा लइए।

अयोधी        : भाय सहाएब, अपना तँ ओते ऊहि‍ नै अछि‍ जे नीक अधला बात नीक जकाँ बुझबै मुदा एते अहाँ सबहक बीच बजै छी, जे देहक खुने नै ऐ देहसँ जते भऽ सकतै तइमे पाछू नै हटब।

सोनमा काका   : बौआ, अखन घरसँ बहार धरि‍क सभ सोगाएल छी तँए, नीक जकाँ जि‍नगीकेँ नै बुझि‍ सकब। ताबे अखन जे जे जरूरी काज सभ अबैत जाइ छह तकरा सम्‍हारैत चलह। पाँच-दस दि‍नक बाद नि‍चेनसँ वि‍चारि‍ लेब।

रूपनी दादी    : बौआ, समाजमे एक-सँ-एक अमीर आ एक-सँ-एक गरीब रहैए। मुदा समाजरूपी नाहपर केना जि‍नगीक समुद्र पार करैए।

चेथरू        : दादी, जहि‍ना समाजमे एक-दोसरक देखा-देखी आन्हरो-बहीर हँसैत-खेलैत जि‍नगी गुजारि‍ लइए तहि‍ना भगवान रामरूपोक परि‍वारकेँ पार लगौथि‍न।

(())



तेसर दृश्‍य-

            (ओसारपर कोशि‍ला (रामरूपक पत्नी) बैसल, आँखि‍सँ नोरक टघार चलैत। आगूमे तीन बर्खक बेटा ठाढ़ भऽ हाथसँ नोर पोछैत..)

कुशेसरी       : कनि‍याँ, कनैत-कनैत मरि‍यो जेबह तैयो दुख मेटेतह। जखैन काँच बरतन ठाढ़ छी, हवा-वि‍हाड़ि‍, पानि‍-पत्‍थर, सदासँ लगैत आएल आ आगूओ लगि‍‍ते रहत। मुदा नान्हि‍टा बगरा-मेना कहाँ मेटा गेल। हम सभ तँ मनुख छी।

            (आँखि‍ उठा कोशि‍ला कुशेसरीक नि‍च्‍चासँ ऊपर नि‍हारैत कि‍छु बजैक वि‍चार मनमे उठैत, मुदा स्‍पष्‍ट बोली नै फुटैत..)

कोशि‍ला       : -... .............

कुशेसरी       : तँू ने अंगनामे बैस कऽ भरि‍ दि‍न कनैत रहै छह मुदा हम तँ मौगी सबहक गप्‍पो सुनै छी कि‍ने।

कोशि‍ला       : के की बजै.?

कुशेसरी       : जकरा जे मन फुड़ै छै से बाजैए। मुदा सुनबो करि‍हह तँ उत्तर नै दि‍हक। सुनि‍ कऽ कानेमे समेटि‍-समेटि‍ रखैत जहि‍हह।

कोशि‍ला       : ई की सुनलखि‍न?

कुशेसरी       : घरक लोक छि‍अह तँए तोरा कहबे करबह। परि‍वारक कोनो गप परि‍वारक लोकसँ छि‍पाबी नै। छि‍पाबी ओतबे जे जेकरा बुझैक जरूरत नै होय।

कोशि‍ला       : (ऑंचरसँ आँखि‍-मुँह पोछैत.. आ कने सक्कत होइत...) की.....इ सुनलखि‍न? कनी नीक जकाँ कहथु?

कुशेसरी       : अगुता कऽ ने कि‍छु सोचह आ ने कि‍छु करह। भगवान समुद्र सन छाती देने छथि‍। गीधक सरापे जँ गाए मरैत तँ वएह उपटि‍ गेल रहि‍तै।

कोशि‍ला       : कि‍छाे तँ बाजथु?

कुशेसरी       : कनि‍याँ, मौगी सभ कुट्टी-चौल करैए जे एहेन जुआन मौगी टंगकट्टा घर....

कोशि‍ला       : काकी, गरीब छी एकर माने ई नै ने जे मनुखे नै छी।

कुशेसरी       : रूपनी दादीकेँ बजबै ले अयोधीकेँ पठौने छि‍ऐ। अबि‍ते हेती। तखन आउरो गप करब।

            (रूपनी दादीक संग अयोधीक प्रवेश..)
            (रूपनी दादीकेँ देखि‍ते कोशि‍ला दुनू हाथे दुनू पएर छानि‍..)

कोशि‍ला       : दादी, की ई सभ अपना नगरसँ बैलाइये देथि‍न?

रूपनी दादी    : कनि‍याँ, पएर छोड़ू। (कोशि‍ला पएर छोड़ि‍ दैत..) कनि‍याँ कान खोलि‍ सुनि‍ लि‍अ। ने ककरो भगौने कि‍यो नगरसँ भागि‍ सकैए आ ने दि‍न-राति‍ कनलासँ दुख मेटा सकैए।

कुशेसरी       : एक लाखक गप कहलखि‍न दादी।

रूपनी दादी    : गपक मोल लाख नै होइए। होइए ओइ काजक जइमे ओ गप सटल रहैए। छुछे कनलासँ जँ होइतै तँ घरसँ बहार धरि‍ कानि‍-कानि‍ लोक देवी-देवता तककेँ कहि‍ते छन्हि‍। मुदा फल की होइ छै?

            (दादीक आँखि‍पर कोशि‍ला आँखि‍ गड़ा..)

कोशि‍ला       : दादी, जे वि‍धाता लि‍खलनि‍, ओ भाेगब।

रूपनी दादी    : कनि‍याँ, अहाँकेँ तँ एकटा बेटो अछि‍, जे दस बर्खकबाद स्‍वामी तुल्‍य भऽ जाएत। तखन तँ गनल कुट्टि‍या नापल झोर भेल। दस बर्खक दुख थोड़े बड़ भारी होइ छै। अही माटि‍-पानि‍क सीता रावणक लंकामे अहूसँ बेसी दि‍न रहल रहथि‍।

कोशि‍ला       : (मुस्‍कुराइत..) दादी, हि‍नका सभक नजरि‍ चाही।

रूपनी दादी    : कनि‍याँ, हम सभ ओहन धरतीपर जनम लेने छी जे सदि‍काल शक्‍ति‍ उगलैत रहैए। तोरा तँ बेटो छह जे ओ पूबरि‍या पोखरि‍ देखै छहक?

कोशि‍ला       : कोन दऽ कहै छथि‍न दादी। पीपरक गाछ लगहक, आकि‍ परती लगहक?

रूपनी दादी    : पीपरक गाछ लगहक। ओ पोखरि‍ प्रेमा दीदीक खुनाओल छि‍यनि‍। वेचारी बाल-वि‍द्धव भऽ गेल छलीह। गामक लोक कतबो हि‍लौलकनि‍-डोलौलकनि‍ दोसर ि‍वयाह नै केलखि‍न।

कुशेसरी       : सासुर नै बसलखि‍न?

रूपनी दादी    : एको दि‍न सासुर नै गेल रहथि‍न। मुदा धैनवाद समाजकेँ दी जे वेचारीक जि‍नगीक ठौर धड़ा देलकनि‍ आ तोहूसँ बेसी ओइ वेचारीकेँ धैनवाद दि‍यनि‍ जे अपन माए-बापक पाड़ उताड़ैत, जि‍नगी अंति‍म समैमे पोखरि‍ खुना समाजक सेवामे लगा कऽ मरलीह।

कुशेसरी       : दादी, पहि‍लुका जुग-जमानाक पड़तर आब हेतै?

रूपनी दादी    : कि‍अए ने हेतै।
            (कहि‍ चुप भऽ कि‍छु सोचए लगैत...)

कोशि‍ला       : चुप कि‍अए भेलखि‍न दादी। आगूओक कि‍छु कहथुन?

रूपनी दादी    : (गंभीर होइत..) कनि‍याँ ने जुग-जमाना बदलल आ ने लोक बदलल।

कोशि‍ला       : तखन?

रूपनी        : बदलल लोकक वि‍चार आ ओकर जि‍नगी।

कोशि‍ला       : केना?

रूपनी        : सुनै छहक ने फल्‍लां गाम नीक आ फल्‍लां गाम अधलाह।

कोशि‍ला       : हँ, से तँ सुनबे नै करै छी बि‍साएलो अछि‍।

रूपनी दादी    : (मुस्‍कुराइत..) बि‍साएलो छह! केना बि‍साएल छह?

कोशि‍ला       : तीन बहि‍नमे छोट हम छी। जेठकी बहीनि‍क वि‍याह छतनाराहीमे ठीक भेल। कहाँदन बड़ सुन्नर घर-बर रहै मुदा वि‍याह नै भेलनि‍?

रूपनी दादी    : से कि‍अए?

कोशि‍ला       : घर-बर देख बाबू-काका दुनू भाँइ वि‍याहक सभ बात-वि‍चार पक्का कऽ लेलनि‍। पक्का भेलापर मामासँ वि‍चार करए मात्रि‍क गेला।

रूपनी दादी    : बात-वि‍चार करैसँ पहि‍ने ने राय-वि‍चार कऽ लइतथि‍।

कोशि‍ला       : धड़फड़ी भऽ गेलनि‍।

रूपनी दादी    : की धड़फड़ी?

कोशि‍ला       : दुनू भाँइ भोज खा कऽ घुमल रहथि‍, बरी-तरकारी कि‍छु बेसी खेने रहथि‍। चालि‍ पाबि‍ पि‍यास लगलनि‍। रस्‍ताकातमे इनार देख ठाढ़ भेला। मुदा डोल नै रहने पाि‍न कोना पीबतथि‍।

रूपनी दादी    : (मुस्‍की दैत..) तखन की केलनि‍?

कोशि‍ला       : इनार लगसँ आगू बढ़ि‍ एकटा दुआरपर जा जोरसँ हल्‍ला करैत डोल मंगलखि‍न। आंगनसँ एकटा अधवेसू डोल लेने बहराइत पुछलखि‍न।

रूपनी दादी    : की पुछलखि‍न?

कोशि‍ला       : नाओं गाओं आ जाति‍।

रूपनी दादी    : जाति‍ मि‍लते ओ अधवेसू हँसैत बजलाह जखन जाति‍-कुटुम छी तखन ऐना अछोप जकाँ पानि‍ पीआएब उचि‍त हएत। पानि‍ पीब वि‍याहक गप-सप्‍प पक्का भऽ गेल।

रूपनी दादी    : हँ, तखन तँ ठीके धड़फड़ी भेल। माि‍त्रकक लोक की वि‍चार देलकनि‍?

कोशि‍ला       : बेसी बात तँ नै बुझल अछि‍ मुदा अधला गाम कहि‍ मनाही केलकनि‍।

रूपनी दादी    : कनि‍याँ एक्के गाम एक जाति‍क नीक होइए आ दोसराक अधला।

कोशि‍ला       : गाम तँ गामे होइए। फेर एना कि‍अए होइए।

रूपनी दादी    : (मुस्‍कुराइत गंभीर होइत..) कनि‍याँ, की कहबह आ कते कहबह। भगवान अखन अपने फेरा लगा देलखुन। अपन दि‍न-दुनि‍याँक बात सोचह।

कुशेसरी       : बेस कहलखि‍न दादी। ठनका ठनकै छै तँ लोक अपना मत्‍थापर हाथ दइए। मुदा तँए कि‍ ठनका मानि‍ जेतै आकि‍ माथ परक हाथसँ रोका जेतै। लेकि‍न एकटा तँ होइए जे लोक अपन रक्‍छा अपना हाथे करए चाहैए।

रूपनी दादी    : बेस कहलि‍ऐ। एकटा बात तँ तरे पड़ि‍ गेल।

कोशि‍ला       : से की?

रूपनी दादी    : जुग-जमाना बदलैक बात उठल छलै। ने दि‍न-राति‍ बदललहेँ आ ने माटि‍-पानि‍, पहाड़। बदललहेँ लोकक आचर-वि‍चार। एकटा बात तँ अपनो ठहकैए जे जेना पहि‍ने समाजक धारणा छल तइमे बहुत बदलाव आएलहेँ।

कुशेसरी       : दादी, आब हमहूँ कम दि‍नक नै भेलौं। जहि‍या सासुर आएल रही तहि‍या जे लाज करैबला पुरूख छला, हुनकापर नजरि‍ पड़ि‍ते जना मुँह झपए लगै छलौं तहि‍ना हुनको सभक नजरि‍ पड़ि‍ते या तँ नि‍च्‍चा मुँहे मूड़ी-गोंति‍ लइ छला वा दोसर दि‍स तकए लगै छलाह।

रूपनी दादी    : बेस कहलहक। हमहूँ बूढ़ भेलों, आँखि‍क इजोतो घटि‍ गेल, तैयो देखै छी तँ लाज होइए। अनेरे भगवान कोन सनतापे देखैले जि‍या कऽ रखने छथि‍।

कुशेसरी       : से की दादी एकेटाकेँ कहबै। मर्द-औरत दुनूक चालि‍ एकेरंग भऽ गेल अछि‍।

रूपनी दादी    : खाइर, जे अछि‍ जेतए अछि‍ से ततए रहह। (कोशि‍ला दि‍स देख) कनि‍याँ, समाज बड़ पैघ दुनि‍याँ छी। जाबे मनुखकेँ प्राण रहत ताबे कतौ दुनि‍येमे रहत। एहेन वि‍पत्ति‍ भगवान तोरेटा नै देलखुनहेँ, तोरा सन-सन बहुतो अछि‍।

कुशेसरी       : दादी, सएह तँ दुनू माए-बेटा कहै छि‍ऐ जे दुनू गोटेक जड़ि‍ एके अछि‍। देखै छि‍ऐ जे सत-सत पीढ़ीक परि‍वार सभ अछि‍। हमरा तँ दुइये पीढ़ीक भेलहेँ। तँए की दुनू दू भऽ गेल।

(())





चारि‍म दृश्‍य-

            (अयोधी, कुशेसरी आ कोशि‍ला ओसारपर बैसल।)

अयोधी        : माए, जाि‍नये कऽ तँ हम सभ गरीब छी तँ दुख केकरा हेतै। तोहूमे जँ हि‍म्‍मत हारि‍ये देब तँ एको क्षण जीवि‍ पाएब।

कुशेसरी       : र्इ कोनो नव गप छी। कर्ता पुरूखक ई दुनि‍याँ छी। कर्ता पुरूख जेहन रहत ओ अपना सन दुनि‍याँ बना, बास करत।

अयोधी        : (कोशि‍लासँ) देखू कनि‍याँ, जहि‍ना अपना मनक मालि‍क कि‍यो होइए। तहि‍ना अहूँ छी। तँए अपन अगि‍ला जि‍नगीक रस्‍ता अपने धडए पड़त।

कुशेसरी       : बेस कहलहक बौआ। जेना लोक सभकेँ देखै छि‍एे जे चरि‍-चरि‍टा धि‍या-पूता छोड़ि‍ दोसर घर चलि‍ जाइए। तहि‍ना जँ तहूँ भागए चाहबह तँ कि‍यो पकड़ि‍ कऽ कते दि‍न रखि‍ सकतह। मुदा?

कोशि‍ला       : मुदा की?

कुशेसरी       : यैह जे अपना सबहक बाप-दादाक कएल कीर्ति मेटा रहल अछि‍।

कोशि‍ला       : कनी बुझा कऽ कहथु?

कुशेसरी       : सभकेँ नीक-अधला काज करैक छुट अछि‍। जेकरा जे मन फुड़ै छै से करैए। मुदा मनुख जानवर नै वि‍वेकी जीव छी। तँए नीक-अधलाक वि‍चार तँ करए पड़तै।

कोशि‍ला       : की नीक अधला?

कुशेसरी       : जहि‍ना अपन कर्तव्‍य पूरा केलापर मरद पुरूख बनैए तहि‍ना स्‍त्रीगणो ने नारी। दुनूकेँ अपन-अपन काजक रस्‍ता छै। रस्‍ताक संग कि‍छु संकल्‍प छै, जे जि‍नगीकेँ जि‍नगी बनबैत छै।

कोशि‍ला       : नै बुझलि‍यनि‍ हि‍नकर बात?

कुशेसरी       : देखहक, तोरा कि‍यो खूँटामे बान्हि‍ कऽ नै रखि‍ सकै छह मुदा अपन जि‍नगीक बान्‍हसँ बन्‍हि‍ जरूर रहि‍ सकै छह। ई तँ तोरे ने बुझए पड़तह जे हमरे दुआरे घरबला अपन टाँग गमा अधमरू भेल अछि‍। दूघमुँहा बच्‍चा सेहो अछि‍, तइठीन कोन धरानी चलए पड़त।

            (तही बीच जीवनक प्रवेश..)

अयोधी        : (जीवनसँ) कतए रहै छी, कि‍नकासँ काज अछि‍।

जीवन        : ओना हमरो घर एही इलाका अछि‍ मुदा रहै छी दि‍ल्‍लीमे। हमरा कम्‍पनीमे रामरूप काज करै छला हुनके परि‍वारसँ कि‍छु खास वि‍चार करए आएल छी।

अयोधी        : हुनकर भाए हमही छि‍यनि‍। ओ तँ अपने ओछाइनपर पड़ल छथि‍, उठि‍-बैस नहि‍ये होइ छन्‍हि। तखन बाजू, केहन वि‍चार करैक अछि‍।

जीवन        : कारखानाक मालि‍क राय-वि‍चारक लेल पठौलनि‍ अछि‍।

अयोधी        : कम्‍पनीक पठाओल आदमी छी?

जीवन        : हँ।

अयोधी        : जखन देहमे शक्‍ति‍ छलैक, हाथ-पएर दुरूस छलैक तखैन ते ओभर टाइमक लोभ देखा-देखा दि‍न-राति‍ काज करा बेकम्‍मा बना घर पठा देलक। आ....?

जीवन        : कम्‍पनीक जे नि‍अम छै ओहि‍ हि‍साबे ने काज हएत?

अयोधी        : नि‍अम बनबैकाल काजो केनि‍हार (श्रमि‍क) सँ राय-वि‍चार केने छलि‍एक?

जीवन        : देखू, जहि‍ना रामरूप कम्‍पनीक स्‍टाफ छला तहि‍ना हमहूँ छी, तँए ऐ प्रश्नक उत्तर नै दऽ पएब।

अयोधी        : तखन?

जीवन        : जे सभ सुवि‍धा भेटै छै से सभ सुवि‍धा हि‍नको (रामरूप) भेटतनि‍।

अयोधी        : की सभ भेटतनि‍?

जीवन        : इलाज करा देलनि‍। तत्‍काल पान सौ रूपैयाक संग घर पहुँचा देलकनि‍।

अयोधी        : बस?

जीवन        : नै। एतबे नै। जँ पत्नी काज करए चाहती तँ नौकरि‍यो देतनि‍ आ रामरूपक नाओंसँ एक लाखक बीमा सेहो कऽ देतनि‍ जे मुइलाक बाद परि‍वारकेँ भेटतनि‍।

अयोधी        : जीबैतमे की सभ भेटतनि‍?

जीवन        : परि‍वारकेँ ओही दरमाहाक नोकरी आ रहैक डेरा।

अयोधी        : हम सभ गामक समाजमे रहै छी, तँए आगू कि‍छु करैसँ पहि‍ने समाजसँ वि‍चार लेब जरूरी अछि‍।

जीवन        : बहुत बढ़ि‍या।

अयोधी        : (माएसँ...) जाबे हम समाजक पाँच गोटेकेँ बजा अनै छी ताबे हि‍नका चाह जलखै करा दि‍हनु।

कुशेसरी       : बड़बढ़ि‍या।

            (अयोधी जाइत अछि‍। अयोधीकेँ परोछ होइते कोशि‍ला अधझप्‍पू मुँह सोलहन्‍नी उघारि‍...)

कोशि‍ला       : जहि‍ना सोलह-सोहल, अट्ठारह-अट्ठारह घंटा पति‍सँ काज लइ छलौं तहि‍ना ने हमरोसँ कराएब?

जीवन        : (कने गुम्‍म होइत..) की मतलब?

कोशि‍ला       : मतलब यएह जे जखन सेालह-अट्ठारह घंटा‍ करखन्नामे काज करब, तखन अपने कखन भानस-भात करब आ खा-पी अराम करब।

जीवन        : एकरो जबाब नै देब।

कोशि‍ला       : (झपटैत..) एतबे नै, जखन अपनो जोकर समए अपने नै भेटत, तखन तीन बर्खक दूधमुँहाँ बच्‍चा आ अपंग पति‍क सेवा कखन करब।

जीवन        : (प्रलोभन दैत..) अहाँकेँ थोड़े करखन्नामे काज करए पड़त?

कोशि‍ला       : तब?

जीवन        : अहाँकेँ कोठि‍येक काज भेटत। जेहने काज हल्‍लुक तेहने समैयोक। कोठि‍येमे रहैयोक बेबस्‍था रहत आ अपूछ खेनाइयो-पीनाइ हएत।

कोशि‍ला       : (कि‍छु सहमैत..) जँ हमरा इज्‍जतक संग खेलबाड़ हएत तखन के बचाओत?

जीवन        : मालि‍कक नजरि‍ सभपर रहै छन्हि‍। कि‍ मजाल छी जे एकटा माछि‍यो-मच्‍छर, बि‍ना हुनका पुछने कोठीक भीतर जा-आबि‍ सकैए।

कोशि‍ला       : (आँखि‍ टेढ़ करैत..) ई तँ बेस कहलौं जे बहारसँ माछि‍यो-मच्‍छर नै जा सकैए मुदा जँ कोठीक भीतरेक लोक...?

जीवन        : ओना अहाँक शंका, कि‍छु अंशमे ठीके अछि‍ मुदा घनेरो औरत, जुआनसँ अधबेसू धरि‍, कोठीक भीतर काज करैए।

कुशेसरी       : बजलौं तँ बेस बात। मुदा जहि‍ना, ने सभ पुरूखक चालि‍-ढालि‍ बेबहार एक रंग होइ छै तहि‍ना तँ स्‍त्रीगणोक अछि‍। एके काजकेँ कि‍यो खेल बुझैए कि‍यो इज्‍जत।

            (सोनमाकाका, चेथरूक संग अयोधीक प्रवेश..)

कोशि‍ला       : भने कक्को आ भइयो आबि‍ये गेलाह।

अयोधी        : काका, दि‍ल्‍लीसँ जीवन आएल छथि‍।

सोनमा काका   : कनि‍याँ, की सभ जीवन कहै छथि‍?

कोशि‍ला       : कहै छथि‍ जे अहाँकेँ नोकरी भेटत।

सोनमा काका   : अपन की वि‍चार होइए। अपन जे वि‍चार हएत सहए ने करब।

कोशि‍ला       : काका, हि‍नका सभकेँ कि‍अए बजौलि‍यनि‍। जँ अपना विचारे करैक रहैत तँ कऽ नेने रहि‍तौं कि‍ने।

चेथरू        : कनि‍याँ, अपन की वि‍चार अछि‍, से तँ अपने ने बाजब।

कोशि‍ला       : भैया, ई सभ जे वि‍चार देता सएह ने करब।

चेथरू        : (जीवनसँ) जँ कनि‍याँ (कोशि‍ला) नोकरी नै करै चाहथि‍ तखन की सभ देबनि‍?

जीवन        : अपना रहने जे सभ सुवि‍धा भेटतनि‍ ओ नै रहने थोड़े भेट पौतनि।

चेथरू        : से की?

जीवन        : तते पैघ कारोवार अछि‍ जे के केकरा देखत। सभकेँ अपने काज तते छै जे ककरो दि‍स ककरो तकैक पलखैत छै।

चेथरू        : गाममे रहनि‍हारि‍ मुँह दुब्बरि‍ औरतकेँ करखन्नाबला सभ मनुखो बुझैए।

सोनमा काका   : चेथरू बातकेँ अनेरे कते चेथाड़ै छह। छोड़ह ऐ सभकेँ। बाजू कनि‍याँ अहाँक की वि‍चार अछि?

कोशि‍ला       : काका, सुनलाहा नै घरेबलाकेँ देखै छयनि‍ जे पैरभुत्ता छलनि‍ ताबे गाए-महीस जकाँ लाठी देखा-देखा दुहैत रहलनि‍ आ जखन पैरभुत्ता घटलनि‍ तखन असमसानक मुरदा जकाँ उठा कऽ ऐठाम दऽ गेलनि‍। तहि‍ना जँ...?

सोनमा काका   : नीक जकाँ सोि‍च-वि‍चारि‍ लि‍अ। गामक समाज मनुखकेँ छाती चढ़ा बसबैत अछि‍, जे शहर-बजारमे थोड़े अछि‍।

कोशि‍ला       : हँ, ई तँ बेस कहलथि‍ काका।

सोनमा काका   : एतबे नै कनि‍याँ, आँखि‍ उठा कऽ देखि‍यौ, नि‍सभरि‍ राति‍मे जँ कतौ चोर-चहार अबै छै आकि‍ राजा-दैव होइ छैक तँ जे जतए सुनैए ओ ओतैसँ हल्‍ला करैत दौड़ैए। मुदा....

कोशि‍ला       : मुदा की?

सोनमा काका   : की कहबनि‍ आ कते कहबनि‍। मुदा बि‍ना कहनौं तँ नहि‍ये बुझथि‍न। शहर-बजारमे देखबै जे उपरमे ठनका खसल अछि‍ आ दोसर मुँह घुमा कऽ जा रहल अछि‍।

चेथरू        : (बि‍चहि‍मे..) काका, एना कि‍अए कहै छि‍ऐ, एना ने कहि‍यौ जे बच्‍चामे एक्के गाछ एकटा वि‍शाल वृक्ष बनि‍ जाइए आ दोसर लत्ती बनि‍ ओहन भऽ जाइए जे अपने एको-हाथ ठाढ़ होइक तागति‍ नै रहै छै, मुदा माटि‍क सि‍नेह ओहन होइ छै जे वएह वृक्ष बाँहि‍ पसारि‍ ओइ लत्तीकेँ अपना ऊपर फुनगी धरि‍ बढ़ैक रास्‍ता दैत अछि‍।

सोनमा काका   : बेस कहलहक चेथरू। एक बेर तहूँ अयोधी बाजह। कनि‍याँ एखन पीड़ि‍ताएल छथि‍ तँ...

अयोधी        : काका, जहि‍ना सभ दि‍न गामक खुट्टा मानैत एलौं तहि‍ना अखनो मानै छी। हम सभ तँ गरीब छी समाजेक आशपर जीबै छी। ई कखनो नै मनमे अबैए जे बेर-वि‍पत्ति‍ पड़त तँ समाज छोड़ि‍ देत। तँए जे वि‍चार देब तइमे एको पाइ डेग पाछू नै खि‍ंचब।

कोशि‍ला       : (उफनैत..) भैया, काका, बाबा समाजक सभ कि‍यो। जाबे धरि‍ कोशि‍लाक देहमे पैरभुत्ता रहतै ताबे धरि‍ कहि‍यो पएर पाछु नै करत। जइ दि‍न पैरभुत्ता टुटतै तइ दि‍न समाजेमे भीख मांगब। भल‍े हि‍ कि‍यो भि‍क्षु कि‍अए ने कहए।

((समाप्‍त))
             

           
                                      
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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