ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ९९ म अंक ०१ फरबरी २०१२ (वर्ष ५ मास ५० अंक ९९)
ऐ अंकमे अछि:-
३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमर २.नवीन कुमार "आशा"
विदेह
ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ
धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन
कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला
लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे
देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख
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ऐ बेर मूल पुरस्कार(२०१२)
[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा” (कविता-संग्रह) 13.16%
श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक) 9.77%
श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट” (उपन्यास) 6.39%
श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति” (कथा संग्रह) 6.02%
श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक) 6.02%
श्री सुभाष चन्द्र
यादवक “बनैत बिगड़ैत” (कथा-संग्रह) 6.02%
श्रीमती वीणा कर्ण-
भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह) 6.02%
श्रीमती शेफालिका
वर्माक “किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा) 7.14%
श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ आ बलचन्दा” (दूटा नाटक) 6.77%
श्री महाप्रकाश-संग समय
के (कविता संग्रह) 6.02%
श्री तारानन्द वियोगी-
प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह) 6.02%
श्री महेन्द्र मलंगियाक
“छुतहा घैल” (नाटक) 6.77%
श्रीमती नीता झाक “देश-काल” (कथा-संग्रह) 6.39%
श्री सियाराम झा
"सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि (गजल संग्रह) 7.52%
Other:
0%
ऐ बेर बाल साहित्य पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
श्री जगदीश प्रसाद
मण्डल जीक “तरेगन”(बाल-प्रेरक कथा संग्रह) 58.54%
श्री जीवकांत - खिखिरक
बिअरि 21.95%
श्री मुरलीधर झाक “पिलपिलहा गाछ 19.51%
Other: 0%
ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?
श्रीमती ज्योति सुनीत
चौधरीक “अर्चिस” (कविता संग्रह) 25.33%
श्री विनीत उत्पलक “हम पुछैत छी” (कविता संग्रह) 8%
श्रीमती कामिनीक “समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह) 6.67%
श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह) 6.67%
श्री आशीष अनचिन्हारक
"अनचिन्हार आखर"(गजल संग्रह) 17.33%
श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा नहि” (कविता संग्रह) 6.67%
श्री दिलीप कुमार झा
"लूटन"क जगले रहबै (कविता संग्रह) 8%
श्री आदि यायावरक “भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह) 6.67%
श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी” (कविता संग्रह) 13.33%
Other: 1.33%
ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी,
दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?
श्री नरेश कुमार विकल
"ययाति" (मराठी उपन्यास श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर) 33.85%
श्री महेन्द्र नारायण
राम "कार्मेलीन" (कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो) 12.31%
श्री देवेन्द्र झा
"अनुभव"(बांग्ला उपन्यास श्री दिव्येन्दु पालित) 15.38%
श्रीमती मेनका मल्लिक
"देश आ अन्य कविता सभ" (नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा) 12.31%
श्री कृष्ण कुमार कश्यप
आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत) 12.31%
श्री रामनारायण सिंह
"मलाहिन" (श्री तकषी शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास) 13.85%
Other: 0%
फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य
अकादेमी,
दिल्ली
श्री राजनन्दन लाल दास 54.55%
श्री डॉ. अमरेन्द्र 20.45%
श्री चन्द्रभानु सिंह 25%
Other: 0%
१. संपादकीय
नाटक, गीत, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, शिल्प आ
चित्रकला क्षेत्रमे विदेह सम्मान २०१२ क घोषणा
अभिनय- मुख्य अभिनय
सुश्री शिल्पी कुमारी, उम्र- 17 पिता श्री
लक्ष्मण झा
श्री शोभा कान्त महतो, उम्र- 15 पिता-
श्री रामअवतार महतो,
हास्य-अभिनय
सुश्री प्रियंका कुमारी, उम्र- 16, पिता-
श्री वैद्यनाथ साह
श्री दुर्गानंद ठाकुर, उम्र- 23, पिता-
स्व. भरत ठाकुर
नृत्य
सुश्री सुलेखा कुमारी, उम्र- 16, पिता-
श्री हरेराम यादव
श्री अमीत रंजन, उम्र- 18, पिता- नागेश्वर
कामत
चित्रकला
श्री पनकलाल मण्डल, उमेर- ३५, पिता- स्व.
सुन्दर मण्डल, गाम छजना
श्री रमेश कुमार भारती, उम्र- 23, पिता-
श्री मोती मण्डल
संगीत (हारमोनियम)
श्री परमानन्द ठाकुर, उम्र- 30, पिता-
श्री नथुनी ठाकुर
संगीत (ढोलक)
श्री बुलन राउत, उम्र- 45, पिता- स्व.
चिल्टू राउत
संगीत (रसनचौकी)
श्री बहादुर राम, उम्र- 55, पिता- स्व.
सरजुग राम
शिल्पी-वस्तुकला
श्री जगदीश मल्लिक,५० गाम- चनौरागंज
मूर्ति-मृत्तिका कला
श्री यदुनंदन पंडित, उम्र- 45, पिता- अशर्फी
पंडित
काष्ठ-कला
श्री झमेली मुखिया,पिता स्व.
मूंगालाल मुखिया, ५५, गाम- छजना
किसानी-आत्मनिर्भर संस्कृति
श्री लछमी दास, उमेर- ५०, पिता
स्व. श्री फणी दास, गाम वेरमा
नाटक, गीत, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, शिल्प
आ चित्रकला क्षेत्रमे विदेह सम्मान २०१२ विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे प्रदान कएल
गेल। विदेह नाट्य उत्सव २०१२ क चित्र नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि।
१
मैथिली- सुरजापुरी- राजबंशी
मैथिली
बाबूकेँ अपन ऐ
राजनैतिक जमीनक अनुभव ओइ दलमे रहितो नै भेल हेतन्हि, जकरा कहियो ओ रामक संग पटेने
रहथि। दलमे एकटा प्रभावी नेता कहै जाइबला बाबूकेँ कहियो पिछड़ल वर्गक नेताक रूपमे
प्रस्तुत नै कएल गेल। मुदा राजनैतिक जमीनसँ बेशी जोड़तोड़मे माहिर बाबू दलसँ निकालि
देल जाइते प्रतिपक्षी-दलक
नजरिमे एना चढ़लाह जे हुनका प्रतिपक्षी-दल अपना दिससँ प्रदेशमे पिछड़ल वर्गक गद्दीपर विराजमान कऽ
देलक।
एकरा सुरजापुरीमे (भारत दिसुका किशनगंज
आदि क्षेत्रमे) एना
लिखल/ बाजल जाएत:-
बाबूक अपना यहार
राजनीतिक जमीनेर अहसास उस दलात रहले नी होबे। जहाक कोईखुन वहाय रामेर संगे सीचे
छीले। दलात एक कद्दावर नेता कहा जनवार बाबू कोईखुन पिछवाड़ नेतार लखा पेश नी करील।
लेकिन राजनीतिक से बेसी जोड़तोड़ोत माहिर बाबू दलार से निकलाते ही प्रतिपक्षी-दलाड़ नजरोत हिरंगदी
चढ़ील कि वहाय पाटी अपनार बीती से प्रदेशोत पिछड़ार नेतार गद्दीत विरजमान करील।
एकरा राजबंशी [नेपाल दिस
सुरजापुरीकेँ राजबंशी भाषा कहल जाइ छै, झापा, सरनामति, चकमकी, मेची, टाघनडुब्बा (ताधंडुवा) आदिमे- राजबंशी आ सुरजापुरीमे
मामूली अन्तर छै] मे
एना लिखल बाजल जाएत:-
बाबूर अपनार इर
राजनीतिक जमीनेर ऐहसास उखान दल त रहते हुए भी नी होल, जइर कोधोय उम्हा रामेर संगे छिले।
दलात एक कद्दावर नेता कहवार बाबूर कोधोय पिछड़ा नेतार लाखा पेश नी करे। माने
राजनीतिक जमीनत भेल्ला जोड़तोड़ माहिर बाबू दल से निकलाले ही प्रतिपक्षी-दलार नजर एनंतिंज चढ़िल
कि अम्हा पार्टीत अपनार तरफ से प्रदेशत छट जातिर नेतारक गद्धी पर बठाइ दिल।
सुरजापुरी- भारतमे बिहारक किशनगंज
आ पूर्णियाँ आदिमे गामे-गाम
राजबंशी (महादलित) जाति द्वारा ई भाषा
बाजल जाइत अछि। किशनगंजमे मुस्लिममे स्वामी जाइत खोट्टा आ सेवक जाति कुल्हिया कहल
जाइत छथि। कुल्हिया जाइत सेहो सुरजापुरी भाषा बजैत छथि। राजबंशी आ जे आन जाइत सभ
कुल्हियाक आसपास रहै छथि से सुरजापुरी बजैत छथि। ई भाषा मैथिली आ बांग्लाक मिश्रण
अछि। कियो कियो बंगालक कूच बिहारक बाहे बंगाली आ नेपालक राजबंशी भाषाकेँ सेहो
सुरजापुरी भाषा कहै छथि। किछु गोटेक मत छन्हि जे बांग्लादेशक लोकक भाषाक क्षेत्रीय
भाषासँ मिश्रणक परिणामस्वरूप सुरजापुरी भाषा निकलल। पूर्णियाँ आ किशनगंजमे एक्के
गाममे कुल्हिया आ राजबंशी लोकनि सुरजापुरी बजै छथि, संथाल लोकनि संथाली बजै छथि, बंजारा लोकनि बंजारा
भाषा बजै छथि जखन कि शेष सभ गोटे मैथिली बजै छथि। जँ मिथिला राज्यमे ऐ क्षेत्र
सभकेँ लेल जाए तँ हुनका सभकेँ हुनकर भाषाक विकासक गारन्टी देबऽ पड़त। की मिथिला
राज्य अभियानकर्मी सभक सोच एतऽ धरि पहुँचलनि अछि?
२
दूर्वाक्षत
यजुर्वेदक अध्याय २२
मंत्र २२ केँ विश्वक पहिल राष्ट्रभक्ति गीत होएबाक गौरव प्राप्त छै। मुदा मिथिलामे
दूभि-अक्षत छीटि कऽ ऐ
मंत्रकेँ दूर्वाक्षत मंत्र बना देल गेल। बिहार स्टेट टेक्स्ट बुक पब्लिशिंग
कॉरपोरेशन लि. दूर्वाक्षत
नामसँ नवम वर्गक किताब छपने अछि। ऐ पोथीमे मिथिला आ मैथिलीकेँ पछुएबाक षडयंत्र
पूर्ण रूपसँ दृष्टिगोचर होइत अछि। अठारह पन्नामे मिथिलाक एकटा जिलाक स्थायी
बन्दोबस्तीबला जमीन्दारक जीवनी पढ़ाओल गेल अछि!! मैथिली लिपिक संरक्षणपर डेढ़
पन्नाक पचास बर्ख पुरान लेख अछि जकर आइक तकनीकी युगमे कोनो महत्व नै छै, प्रवासी मैथिल समाज
लेख पुरातनपंथी अछि आ अखुनका बच्चाकेँ ई हास्यास्पद बुझेतै, प्रवासक अर्थ, मैथिलक अर्थ आ प्रवासक
कारण सभ किछु बदलि गेल अछि। तँ की ई बच्चा सभकेँ गुलामीक पाठ पढ़ेबाक षडयंत्र नै
अछि? लोक नवम वर्गक हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला आ आन भाषाक
पोथीसँ एकर तुलना करैए तँ स्थिति आर भयावह भऽ जाइए। शिक्षकसँ आग्रह जे जमीन्दारक
जीवनी बच्चा सभकेँ नै पढ़ाबथु, प्रश्न-पत्र सेट केनिहारसँ आग्रह जे ओ जमीन्दारक जीवनीबला अध्यायसँ
प्रश्न नै पुछथि।
३
छुतहर/ छुतहर घैल/ छुतहा घैल
छुतहा घैल महेन्द्र
मलंगियाक नवीन नाटकक नाम छन्हि। ऐ छोटसन नाटकक भूमिका ओ दस पन्नामे लिखने छथि।
पहिने ऐ भूमिकापर आउ। हुनका कष्ट छन्हि जे रमानन्द झा “रमण” हुनका सुझाव देलखिन्ह जे “छुतहर घैल”केँ मात्र “छुतहर” कहल जाइ छै। से ओ तीन
टा गप उठेलन्हि- पहिल-
“तों कहियो पोथी के
लेखी,
हम कहियो अँखियन के
देखी।”
दोसर- यात्री जीक विलाप
कविता-
“काते रहै छी जनु घैल
छुतहर
आहि रे हम अभागलि कत
बड़।”
आ कहै छथि जे ओइ
कविताक विधवा आ ऐ नाटकक कबूतरी देवीकेँ शिवक महेश्वरो सूत्र आ पाणिनीक दश लकारसँ (वैदिक संस्कृत लेल
पाणिनी १२ लकार आ लौकिक संस्कृत लेल दस लकार निर्धारित कएने छथि..खएर…) कोन मतलब छै?
तेसर ओ अपन स्थितिकेँ
कापरनिकस सन भेल कहैत छथि, जे लोकक कहलासँ की हेतै आ गाम-घरमे लोक “छुतहर घैल” बजिते छैक!!
मुदा ऐ तीनू बिन्दुपर
तीनू तर्क मलंगियाजीक विरुद्ध जाइ छन्हि। “अँखियन देखी” आ लोकव्यवहार “छुतहर” मात्र कहल जाइत देखलक आ सुनलक अछि, घैलचीपर छुतहरकेँ अहाँ राखि सकै
छी? लोइटसँ बड़ैबमे पान
पटाओल जाइ छै तखन मलंगियाजीक हिसाबे ओकरा “लोइट घैल” कहबै। घैल, सुराही, कोहा, तौला, छुतहर, लोइट, खापड़ि, कुड़नी, कुरवाड़, कोसिया, सरबा, सोबरना ऐ सभ बौस्तुक अलग नामकरण छै। फूलचन्द्र मिश्र “रमण” (प्रायः फूलचन्द्रजी “छुतहा घैल” शब्दक सुझाव हँसीमे
देने हेथिन्ह, आ
जँ नै तँ ई एकटा नव भाषाक नव शब्द अछि!!)क सुझाव मानैत मलंगिया जी “छुतहर घैल” केँ “छुतहा घैल” कऽ देलन्हि, ई ऐ गपक द्योतक जे हुनका गलतीक
अनुभव भऽ गेलन्हि मुदा रमानन्द झा “रमण”क गप मानि लेने छोट भऽ जइतथि से खुट्टा अपना हिसाबे गाड़ि
देलन्हि। आ बादमे रमानन्द झा “रमण” चेतना समितिसँ ओइ पोथीकेँ छपेबाक आग्रह केलखिन्ह आ, चेतना समिति मात्र
२५टा प्रति दैतन्हि तेँ ओ अपन संस्थासँ एकरा छपबेलन्हि, ऐ सभसँ पठककेँ कोन सरोकार? आब आउ यात्रीजीक गपपर, यात्रीजीकेँ हिन्दी
पाठकक सेहो ध्यान राखऽ पड़ै छलन्हि, हुनका मोनो नै रहै छलन्हि जे कोन कविता हिन्दीमे छन्हि, कोन मैथिलीमे आ कोन
दुनूमे, से ओ छुतहर घैल लिखि
देलन्हि, एकर कारण यात्रीजीक
तुकबन्दी मिलेबाक आग्रहमे सेहो देखि सकै छी। आ फेर आउ कॉपरनिकसपर, जँ यात्री जी वा
मलंगिया जी
“घैल
छुतहर”, “छुतहर घैल” वा “छुतहा घैल” लिखिये देलन्हि तँ की
नेटिव मैथिली भाषी छुतहरकेँ “घैल छुतहर”, “छुतहर घैल” वा “छुतहा घैल” बाजब शुरू कऽ देत। से कॉपरनिकस सेहो मलंगियाजीक विरुद्ध
छथिन्ह।
कॉपरनिकसक किंवदन्तीक
सटीक प्रयोग मलंगियाजी नै कऽ सकलाह, प्रायः ओ गैलिलीयो सँ कॉपरनिकसकेँ कन्फ्यूज कऽ रहल छथि, कॉपरनिकसक सिद्धान्तक
समर्थन पोप द्वारा भेल छल आ कॉपरनिकस पोप पॉल-३ केँ अपन हेलियोसेन्ट्रिक
सिद्धान्तक चालीस पन्नाक पाण्डुलिपि समर्पित केने रहथि। खएर मलंगियाजीक विज्ञानक
प्रति अनभिज्ञता आ विज्ञानक सिद्धान्तकेँ किवदन्तीसँ जोड़बाक सोचपर अहाँकेँ आश्चर्य
नै हएत जखन अहाँ हुनकर खाँटी लोककथा सभक अज्ञानताकेँ अही भूमिकामे देखब।
“अली बाबा आ चालीस चोर”- सम्पूर्ण दुनियाँकेँ
बुझल छै जे ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि जे “अरेबियन नाइट्स (१००१ कथा)” मे संकलित अछि आ ओइमे विवाद अछि जे ई अरेबियन नाइट्समे
बादमे घोसियाएल गेल वा नै, मुदा ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि, ऐ मे कोनो विवाद नै अछि। बलबनक
अत्याचार आदिक की की गप साम्प्रदायिक मानसिकता लऽ कऽ मलंगिया जी कहि जाइ छथि से
हुनकर लोककथाक प्रति सतही लगाव मात्रकेँ देखार करैत अछि। “मिथिला तत्व विमर्श” वा “रमानाथ झा”क पंजीक सतही ज्ञान
बहुत पहिनहिये खतम कऽ देल गेल अछि, आ तेँ ई लिखित रूपसँ हमरा सभक पंजी पोथीमे वर्णित अछि। गोनू
झा विद्यापति सँ ३०० बर्ख पहिने भेलाह, मुदा मलंगियाजी ५० साल पुरान गप-सरक्काक आधारपर आगाँ बढ़ै छथि।
हुनका बुझल छन्हि जे गोनूकेँ धूर्ताचार्य कहल गेल छन्हि मुदा संगे गोनूकेँ
महामहोपाध्याय सेहो कहल गेल छन्हि से हुनका नै बुझल छन्हि!! गोनू झाक समयमे मुस्लिम मिथिलामे
रहबे नै करथि तखन “तहसीलदारक
दाढ़ी” कतऽ सँ आओत। लोकक
कण्ठमे छुतहर छै ओकरा “छुतहा
घैल” कऽ दियौ, लोकक कण्ठमे “कर ओसूली”करैबलाक दाढ़ी छै ओकरा “तहसीलदार”क दाढ़ी कहि साम्प्रदायिक आधारपर
मुस्लिमकेँ अत्याचारी करार कऽ दियौ, आ तेहेन भूमिका लिखि दियौ जे रमानन्द झा “रमण” आ आन गोटे डरे समीक्षा
नै करताह। एकटा पैदल सैनिक आ एकटा सतनामी (दलित-पिछड़ल वर्ग द्वारा शुरू कएल एकटा प्रगतिवादी सम्प्रदाय)क झगड़ासँ शुरू भेल
सतनामी विद्रोह औरंगजेबक नीतिक विरोधमे छल आ ओइमे मस्जिदकेँ सेहो जराओल गेलै, मुदा गोनू झाक कर
ओसूली अधिकारी मुस्लिम नै रहथि, लोककथामे ई गप नै छै, हँ जँ साम्प्रदायिक लोककथाकार कहल कथामे अपन वाद घोसियेलक आ
लिखै काल बेइमानी केलक तँ तइसँ मैथिली लोककथाकेँ कोन सरोकार? फील्डवर्कक आधारपर जँ लोककथाक
संकलन नै करब तँ अहिना हएत।
महेन्द्र नारायण राम
लिखै छथि जे लोककथामे जातित-पाइत नै होइ छै, मुदा मलंगियाजी से कोना मानताह। भगता सेहो हुनकर कथामे एबे
करै छन्हि। आ असल कारण जइ कारणसँ ई मलंगिया जीक नाटकक अभिन्न अंग बनि जाइत अछि से
अछि हुनकर आनुवंशिक जातीय श्रेष्ठता आधारित सोच। हुनकर नाटकमे मोटा-मोटी अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक घीच तीरि
कऽ सत्रहटा दृश्य अछि, जइमे
पन्द्रहम दृश्य धरि ओ छोटका जाइतक (मलंगियाजीक अपन इजाद कएल भाषा द्वारा) कथित भाषापर सवर्ण दर्शकक हँसबाक, आ भगताक भ्रष्ट-हिन्दीक माध्यमसँ छद्म
हास्य उत्पन्न करबाक अपन पुरान पद्धतिक अनुसरण करै छथि। कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण
बनेबाक आग्रह ओ सोलहम दृश्यसँ करै छथि मुदा बाजी तावत हुनका हाथसँ निकलि जाइ
छन्हि। आइ जखन संस्कृत नाटकोमे प्राकृत वा कोनो दोसर भाषाक प्रयोग नै होइत अछि, मलंगियाजीक भरतकेँ गलत
सन्दर्भमे सोझाँ आनब संस्कृतसँ हुनकर अनभिज्ञताकेँ देखार करैत अछि आ भरत
नाट्यशास्त्रपर हिन्दीमे जे सेकेण्डरी सोर्सक आधारपर लोक सभ पोथी लिखने छथि, तकरे कएल अध्ययन सिद्ध
करैत अछि।
मलंगियाजीक ई कहब अछि
जे नाटक जँ पढ़बामे नीक अछि तँ मंचन योग्य नै हएत, वा मंचन लेल लिखल नाटक पढ़बामे नीक
नै लागत? हुनकर संस्कृत
पाँतीकेँ उद्घृत करबासँ तँ यएह लगैत अछि। जँ नाटक पढ़बामे उद्वेलित नै करत तँ
निर्देशक ओकर मंचनक निर्णय कोना लेत? आ मंचीय गुण की होइ छै, अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक सत्रहटा दृश्य, तथाकथित निम्न वर्गकेँ
अपमानित करैबला जातिवादी भाषा, भगताक “बुझता है कि नहीं?” बला हिन्दी आ ऐ सभक सम्मिलनक ई “स्लैपस्टिक ह्यूमर”? आ जे एकर विरोध कऽ
मैथिलीक समानान्तर रंगमंचक परिकल्पना प्रस्तुत करत से भऽ गेल नाटकक पठनीय तत्त्वक
आग्रही आ जे पुरातनपंथी जातिवादी अछि से भेल नाटकक मंचीय तत्वक आग्रही!! की २१म शताब्दीमे
मलंगियाजीक जाति आधारित वाक्य संरचना संस्कृत, हिन्दी वा कोनो आधुनिक भारतीय
भाषाक नाटकमे (मैथिलीकेँ
छोड़ि) स्वीकार्य भऽ सकत? आ जँ नै तँ ऐ शब्दावली
लेल १८०० बर्ष पुरनका संस्कृत नाटकक गएर सन्दर्भित तथ्यकेँ, मूल संस्कृत भरत नाट्यशास्त्र नै
पढ़ैबला नाटककार द्वारा, बेर-बेर ढालक रूपमे किए
प्रयुक्त कएल जाइए? माथपर
छिट्टा आ काँखमे बच्चा जँ कियो लेने अछि तँ ओ निम्न वर्गक अछि? ओकर आंगनक बारहमासामे
ओ ऐ निम्न वर्गकेँ राड़ कहै छथि, कएक दशक बाद ई धरि सुधार आएल छन्हि जे ओ आब ओइ वर्गकेँ
निम्न वर्ग कहि रहल छथि, ई
सुधार स्वागत योग्य मुदा ऐ दीर्घ अवधि लेल बड्ड कम अछि। बबाजी कोना कथामे एलै आ
गाजा कोना एलै आ ओइसँ बगियाक गाछक बगियाक कोन सम्बन्ध छै? मलंगियाजी अपन जाति-आधारित वाक्य संरचना, आ भ्रष्ट-हिन्दी मिश्रित वाक्य
रचना कोना घोसिया सकितथि जँ भगता आ निम्न वर्गक छद्म संकल्पना नै अनितथि, ई तथ्य ओ बड्ड
चतुराइसँ नुकेबाक प्रयास करै छथि, आ तेँ ओ मेडियोक्रिटीसँ आगाँ नै बढ़ि पबै छथि। आ तेँ हुनकामे
ऐ नाट्य-कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण
बनेबाक आग्रह तँ छन्हि मुदा सामर्थ्य नै आबि पबै छन्हि।
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता (नेपाल
देशक भाषा-साहित्य, दर्शन, संस्कृति
आ सामाजिक विज्ञानक क्षेत्रमे सर्वोच्च
सम्मान)
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता
श्री राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' (2010)
श्री राम दयाल राकेश (1999)
श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव (1994)
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान मानद सदस्यता
स्व. सुन्दर झा शास्त्री
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान आजीवन सदस्यता
श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव
फूलकुमारी महतो मेमोरियल ट्रष्ट काठमाण्डू, नेपालक
सम्मान
फूलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान २०६७ - मिथिला नाट्यकला परिषदकेँ
फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ -
सप्तरी राजविराजनिवासी श्रीमती मीना ठाकुरकेँ
फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ -बुधनगर
मोरङनिवासी दयानन्द दिग्पाल यदुवंशीकेँ
साहित्य अकादेमी फेलो-
भारत देशक सर्वोच्च साहित्य सम्मान (मैथिली)
१९९४-नागार्जुन
(स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी
आ मैथिली कवि।
२०१०- चन्द्रनाथ
मिश्र अमर (१९२५- ) - मैथिली साहित्य
लेल।
साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ
मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल):-
२०००-
डॉ. जयकान्त मिश्र (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
२००७-
पं. डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
पं.
श्री उमारमण मिश्र
साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली
१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा
विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका
बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि
उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली
पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा
पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा)
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
२०१०-श्रीमति उषाकिरण खान (भामती, उपन्यास)
साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र
नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक
बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म
साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द
की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ
योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य
काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
२००९- भालचन्द्र झा (बीछल
बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक
सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
२०१०- डॉ. नित्यानन्द लाल दास ( "इग्नाइटेड माइण्ड्स" - मैथिलीमे
"प्रज्वलित प्रज्ञा"- डॉ.ए.पी.जे. कलाम, अंग्रेजी)
साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
२०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल" लेल
२०११- ले.क. मायानाथ झा "जकर नारी चतुर होइ" लेल
प्रबोध सम्मान
प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
प्रबोध सम्मान 2011- श्री सोमदेव (1934- )
प्रबोध सम्मान 2012- श्री चन्द्रभानु सिंह (1922- )
आ
श्री रामलोचन ठाकुर (1949- )
यात्री-चेतना पुरस्कार
२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
२०१० ई.- डॉ. तारानन्द वियोगी, महिषी, सहरसा
२०११ ई.- डॉ. राम भरोस कापड़ि भ्रमर (जनकपुर)
भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता
युवा पुरस्कार (२००९-१०) गौरीनाथ (अनलकांत) केँ मैथिली लेल।
भारतीय भाषा संस्थान (सी.आइ.आइ.एल.) , मैसूर रामलोचन ठाकुर:- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००३-०४ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) जा सकै छी, किन्तु
किए जाउ- शक्ति चट्टोपाध्यायक बांग्ला
कविता-संग्रहक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त। रमानन्द झा 'रमण':- अनुवाद
लेल भाषा-भारती सम्मान २००४-०५ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर)
छओ बिगहा आठ कट्ठा- फकीर मोहन सेनापतिक ओड़िया उपन्यासक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त।
विदेह सम्मान
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान
१.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११
२०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
२०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)
२.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२
२०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा
संग्रह)
२०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा
संग्रह)
२०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
२०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मानदीक
माझी, बांग्ला- मानिक बंद्योपाध्याय, उपन्यास
बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)
नाटक, गीत, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, शिल्प आ
चित्रकला क्षेत्रमे विदेह सम्मान २०१२ क घोषणा
अभिनय- मुख्य अभिनय ,
सुश्री शिल्पी कुमारी, उम्र- 17 पिता
श्री लक्ष्मण झा
श्री शोभा कान्त महतो, उम्र- 15 पिता-
श्री रामअवतार महतो,
हास्य-अभिनय
सुश्री प्रियंका कुमारी, उम्र- 16, पिता-
श्री वैद्यनाथ साह
श्री दुर्गानंद ठाकुर, उम्र- 23, पिता-
स्व. भरत ठाकुर
नृत्य
सुश्री सुलेखा कुमारी, उम्र- 16, पिता-
श्री हरेराम यादव
श्री अमीत रंजन, उम्र- 18, पिता-
नागेश्वर कामत
चित्रकला
श्री पनकलाल मण्डल, उमेर- ३५, पिता-
स्व. सुन्दर मण्डल, गाम छजना
श्री रमेश कुमार भारती, उम्र- 23, पिता-
श्री मोती मण्डल
संगीत (हारमोनियम)
श्री परमानन्द ठाकुर, उम्र- 30, पिता-
श्री नथुनी ठाकुर
संगीत (ढोलक)
श्री बुलन राउत, उम्र- 45, पिता-
स्व. चिल्टू राउत
संगीत (रसनचौकी)
श्री बहादुर राम, उम्र- 55, पिता-
स्व. सरजुग राम
शिल्पी-वस्तुकला
श्री जगदीश मल्लिक,५० गाम-
चनौरागंज
मूर्ति-मृत्तिका कला
श्री यदुनंदन पंडित, उम्र- 45, पिता-
अशर्फी पंडित
काष्ठ-कला
श्री झमेली मुखिया,पिता स्व. मूंगालाल मुखिया, ५५, गाम-
छजना
किसानी-आत्मनिर्भर संस्कृति
श्री लछमी दास, उमेर- ५०, पिता
स्व. श्री फणी दास, गाम वेरमा
अनचिन्हार आखर ( http://anchinharakharkolkata.blogspot.com
) द्वारा प्रायोजित "गजल
कमला-कोसी-बगमती-महानंदा सम्मान" बर्ख 2011 लेल
ओस्ताद सदरे आलम गौहर जीकेँ प्रदान कएल गेलैन्ह। एहि बेरुक मुख्यचयनकर्ता ओस्ताद
सियाराम झा"सरस" छलखिन्ह।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
नवेंदु कुमार झा-बिहारक औद्योगिक विकास मे बाधा
बनि रहल जमीन आ बिजली/ राशन कार्डक होयत डिजिटलीकरण/ मिथिलांचल मे माछ उत्पादक
भरोसा देलनि मुख्यमंत्री, सौराठ मे खुजत मिथिला चित्रकला संस्थान/ जन आंदोलन सँ होयत
कोसीक समस्याक समाधान-मेधा पाटेकर
बिहारक औद्योगिक विकास
मे बाधा बनि रहल जमीन आ बिजली
बिहारक औद्योगिक
विकास मे जमीन आ बिजलीक कमी पैद्य समस्या बनि रहल अछि। देशक प्रमुख औद्योगिक संगठन
‘‘फिक्की‘‘ द्वारा हालहि मे जारी
कयल गेल रिपोर्ट मे कहल गेल अछि जे कतेको पैघ कंपनी बिहार मे निवेशक प्रति रूचि
देखौलक अछि मुदा जमीनक स्तर पर निवेश नहि आयल अछि। गोटेक दू तिहाइ उद्यमी
प्रदेशकेँ आकर्षक निवेश स्थलक रूपमे नहि देखि रहल छथि। उद्योगक वर्तमान स्तर मे
सेहो बेसी सुधार नहि होयबाक कारण एखनो पैघ संख्या मे उद्यमी सभक लेल कारोबार
प्रारंभ करब मुश्किल बुझि पड़ैत अछि। रिपोर्टक अनुसार एकर मुख्य कारण जमीन आ बिजलीक
कमी मानल जा रहल अछि। प्रदेश मे औद्योगिक जमीनक कमी अछि आ जे जमीन अछि ओ बहुत महग
अछि। संगहि एहि ठाम जमीनक रेकार्ड सेहो बहुत पुरान अछि। जाहि सँ जमीन सँ संबंधित
विवाद सेहो बेसी अछि। एहि सभ कारण सँ गोटेक 2.5 करोड़ टाकाक निवेश प्रस्ताव होयबाक
बावजूद वास्तविक निवेश कम भेल अछि। फिक्कीक अनुसार प्रदेश मे बुनियादी ढाँचाक अभाव
आ सरकारी मशीनरीक कमजोर रूख निवेशक गति कमजोर कऽ रहल अछि।
रिपोर्टक
अनुसार प्रदेश मे बिजलीक कमी निवेशमे बाधा बनि रहल अछि। प्रदेश मे एखनो आवश्यक
बिजलीक 90 प्रतिशत बिजलीक खरीद
केन्द्रीय पूल सँ भऽ रहल अछि। प्रदेश मे आवश्यक 5500 मेगावाट बिजलीक मोकाबला मात्र 1800 मेगावाट बिजली भेटि
रहल अछि। जाहि सँ विनिर्माण इकाईकेँ बिजली नहि भेटि पाबि रहल अछि। फिक्कीक अनुसार
पछिला किछु वर्षमे सड़कक मामिलामे प्रदेशमे प्रगति भेल अछि तथापि ओ कम अछि।
उत्तर-बिहार आ दक्षिण बिहारक मध्य आबाजाही एखनो मुश्किल अछि। रेलवे लग सेहो
आवश्यकताक मोताबिक रैक उपलब्ध नहि अछि। राष्ट्रीय राजमार्गकेँ चारि लेन आ राज्य
राजमार्गकेँ दू लेन करबाक संगहि पूर्णियां, भागलपुर, गया आ डेहरीमे मध्यम दर्जाक हवाइ अड्डा बनायब आवश्यक अछि।
विकासक गति मे तेजी अनबाक लेल बुनियादी ढांचाकेँ दुरूस्त करबाक आवश्यकता अछि।
प्रदेशमे
सत्तारूढ़ नीतीश सरकार अपन पहिल कार्यकालमे औद्योगिक विकासक लेल कतेको प्रयास
प्रारंभ कयलक जकर परिणाम दोसर कार्यकालमे अयबाक संभावना अछि। एहि वर्ष प्रदेशमे
बिस्कुट, कपड़ा, जूट आ वनस्पतिक इकाइ
खुजबाक संभावना अछि। फिक्कीक एहि रिपोर्टक बाद सरकार औद्योगिक विकासक गति देबाक
दिस ध्यान केन्द्रित कयलक अछि। उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदीक अनुसार सरकार
प्रदेशमे औद्योगिक विकासक गतिमे तेजी अनबाक लेल सभ संभव प्रयास कऽ रहल अछि मुदा सभ
समस्याक समाधान एकहि बेर होयब संभव नहि अछि। कतेको ट्रांसमिशन लाइनकेँ बदलल जा रहल
अछि। नव बिजली-घर बनेबाक संगहि पुरान बिजली घर सभकेँ पुनर्जीवित कयल जा रहल अछि।
राशन
कार्डक होयत डिजिटलीकरण
फर्जी
राशन कार्ड केँ समाप्त करब आ सरकार द्वारा देल जायबला अन्नक बँटवारा सही तरीकासँ
करबाक उद्देश्यसँ केन्द्र सरकार राशन कार्डक डिजिटलीकरण करबाक योजना बनौलक अछि।
उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक, अरूणाचल प्रदेश, असम, चंडीगढ़, गुजरात, छत्तीसगढ़, मेघालय, पुडुचेरी आ आन्ध्र
प्रदेश मे राशन कार्डक डिजिटलीकरणक काज प्रारंभ भऽ गेल अछि मुदा एकरा आगा बढ़ेबाक
लेल मदतिक आवश्यकता होयत। एहि मद मे केन्द्र सरकार टाकाक आवंटन अप्रील 2012 सँ करत। केन्द्र मे
सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकारक बहुप्रतिक्षीत खाद्य सुरक्षा अधिनियम
सेहो अगिला वित्त वर्ष सँ लागू होयबाक संभावना अछि। राशन कार्डक डिजिटलीकरणक
मामिला पर खाद्य मंत्रालय 8-9 फरवरी केँ प्रदेश सभक खाद्य आ कृषि मंत्रीक बैसक सेहो करत
जाहि सँ एहि पहल केँ आगाँ बढ़ाओल जा सकय। केन्द्रीय खाद्य मंत्री पी. सी. थॉमस जनतब
देलनि अछि जे एहि योजना केँ जमीन पर उतरला सँ जन वितरण प्रणालीक अंतर्गत भेटयबला
अन्न योग्य लोकक हाथमे भेटि सकत। श्री थॉमस जनतब देलनि जे सरकारक प्रयासक बाद
पछिला किछु वर्षमे जन वितरण प्रणालीक अन्न अपात्र लोकक हाथ मे जाय सँ रोकबा मे
बहुत हद धरि सफलता भेटल अछि आ ई 40 प्रतिशत सँ 20 प्रतिशत धरि आबि गेल अछि। मुदा वास्तविक लोकक हाथ धरि अन्न
पहुँचैबाक लेल एखन आर बहुत किछु करय पड़त। मंत्री सभक दू दिवसीय सम्मेलनकेँ वित्त
मंत्री प्रणव मुखर्जी आ कृषि मंत्री शरद पवार सेहो संबोधित करताह। खाद्य मंत्री
जनौलनि जे फर्जी राशन कार्ड केँ रद्द करबाक लेल चलाओल गेल अभियानक दरमियान गरीबी
रेखा सँ नींचा (बी. पी. एल.)क कार्डक संख्या 10.50 करोड़ सँ घटि कऽ 7.6 करोड़ धरि पहुँचि गेल
अछि।
मिथिलांचल मे माछ उत्पादक
भरोसा देलनि मुख्यमंत्री, सौराठ मे खुजत मिथिला चित्रकला संस्थान
मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार मिथिलांचल मे स्थित नदी पोखरिक पैघ संख्याक सदुपयोग कऽ एहि क्षेत्र मे
माछ पालन केँ बढ़ाबा देबाक भरोसा देलनि अछि। अपन सेवा यात्राक क्रम मे मधुबनी जिलाक
सेवा यात्राक दरमियान श्री कुमार मधुबनी जिलाक सौराठ मे मिथिला चित्रकलाक संस्थान
खोलबाक घोषणा करैत कहलनि जे एहि संस्थानकेँ डिम्ड विश्वविद्यालयक दर्जा देल जायत।
ओ कहलनि जे मिथिलांचल मे माछ पालनक पैघ संभावना अछि। एहि क्षेत्र मे पैघ संख्या मे
नदी आ पोखरि रहबाक कारण माछक उत्पादन पैघ संख्या मे भऽ सकैत अछि जाहि सँ बिहारक
आवश्यकता केँ पूरा करबाक संगहि आन प्रदेश मे सेहो बेचल जा सकैत अछि। ओ कहलनि जे
मिथिलांचल एकटा समृद्ध संस्कृति, मिथिला चित्रकला, महाकवि विद्यापति नगर आ पुरातात्विक महत्व वाला जगह अछि। मुख्यमंत्री
मधुबनीक सेवा यात्राक क्रम मे जिलाक पुरातात्विक जगह बलिराज गढ़क यात्रा करबाक
संगहि मिथिला चित्रकला लेल प्रसिद्ध रांटी गाम जा मिथिला चित्रकलाक विश्व प्रसिद्ध
कलाकार 90 वर्षीय महासुन्दरी
देवी आ आन कलाकार सभ सँ भेट कयलनि संगहि जिलाक बेनीपट्टीक खिरहर गाम पहुँचि जैविक
खाद्य उत्पादन करय वाला किसान संजय चौधरीक काज देखलनि आ हुनक प्रशंसा कयलनि।
जन
आंदोलन सँ होयत कोसीक समस्याक समाधान-मेधा पाटेकर
प्रसिद्ध
समाज सेवा आ नेशनल एलांयस ऑफ पीपुल्स मूवमेन्टक राष्ट्रीय संयोजक मेधा पाटेकर
कहलनि अछि जे कोसी क्षेत्र सँ जखन जन आंदोलन प्रारंभ होयत तखने कोसी क्षेत्रक
समस्याक समाधान होयत। बिहारक दौरा पर आयल सुश्री पाटेकर सुपौलक वीरपुर मे जन सभा
केँ संबोधित करैत कहलनि जे नर्मदा परियोजना जकाँ कोसीक पीड़ित सभकेँ मोआवजा भेटबाक
चाही। कोसी केँ पहिनहि सँ बिहारक शोक कहल जाइत अछि तेँ सरकार केँ एकरा व्यवस्थित
करबाक प्रयास करबाक चाही। कोसीक विस्थापित सभक पुनर्वासक दाबा कागजी साबित भऽ रहल
अछि। मुख्यमंत्री जे दाबा कऽ रहल छथि ओकर वास्तविक स्थिति किछु आर अछि।
मुख्यमंत्री जे दाबा कऽ रहल छथि ओकर वास्तविक स्थिति किछु आर अछि। ओ कोसीक जन
समस्याक निपटाराक लेल विश्व बैंक द्वारा 220 करोड़ डालरक कर्जक संदर्भ मे श्वेत पत्र जारी करबाक
मांग सेहो कयलनि।
सुश्री
पाटेकर अपन दौराक क्रममे अररिया जिलाक भजनपुराक दौरा सेहो कयलनि आ एहि ठामक
स्थितिक जनतब लेलनि। भजनपुरामे एकटा व्यवसायी द्वारा रस्ता बंद करबाक क्रम मे भेल
जन आंदोलन पर पुलिस द्वारा जनता पर बर्बर कारवाई कयल गेल छल। संगहि बिजलीक मांगक
लऽ कऽ मुजफ्फरपुरक कांटीमे भेल जन आंदोलनक दरमियान जेल गेल आंदोलनकारीसँ सुश्री
पाटेकर सेहो भेँट कयलनि आ कांटी आ भड़वनमे जन सभाकेँ संबोधित कयलाक बाद बिहार विश्वविद्यालयक
सीनेट हॉल मे बुद्धिजीवी सभक संग विचार-विमर्श सेहो कयलनि।
समानान्तर साहित्य अकादेमी २०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह लेल) केँ विदेह
साहित्य उत्सव २०१२ मे १४ जनवरी २०१२ केँ देल गेलन्हि। ओइ अवसरपर श्री उमेश मण्डलजी द्वारा हुनकासँ साक्षात्कार लेल
गेल जे नीचाँ देल जा रहल अछि।
विदेह- विदेह सम्मान लेल
अपनेकेँ बहुत-बहुत बधाई...
ज.प्र.मं.- हेराएल-भोतियाएल रचनाकारक
खोजि-खबरि लेबा लेल विदेह परिवारकेँ धन्यवाद।
विदेह- अपनेक नजरिमे साहित्यक उद्देश्य
की अछि?
ज.प्र.मं.- अधिकांश विद्वानक विचारे साहित्य
समाजक दर्पण थिक। जइ दर्पणसँ देखैत छी ओ तँ खाली (िसर्फ) कोनो वस्तुक उपरी भाग
देखबैत अछि। मुदा शरीरक भीतर जे मन, बुइध, विवेक, आत्मा अछि ओ तँ नै देखबैत अछि। मनुष्य िनर्मित साहित्य
होइत अछि तँए दुनूकेँ मिला देखबैत अछि। साहित्य जीवन दर्शन छी जे अतीत-सँ-भविष्य
धरिकेँ जोड़ैत अछि। तँए साहित्यक उद्देश्य महान अछि जे मनुष्य-मनुष्यक बीच, व्यक्ति-समाजक बीच प्रेमसँ
जीवैक दिशा-िनर्देश करैत अछि। वएह दिशा-िनर्देश साहित्यक उद्देश्य छी।
विदेह- अहाँक साहित्यमे इतिहास/संस्कृति
(खास कऽ मिथिलाक) कोना वर्णित होइत अछि?
ज.प्र.मं.- अपन मिथिलांचल सभ दिनसँ कृषि
प्रधान रहल अछि। ओना इतिहासक पन्नामे कृषि युगसँ पहिनहुँ शिकारी युग आ जंगली
अवस्थाक चर्च अछि। से िसर्फ इतिहासेमे नै सचमुच जिनगियो रहल अछि।
राजा रहितो जनक हर जोतलनि, जे कृषिक महत्वकेँ दरसबैत अछि।
शुरूहेसँ मिथिलांचलमे बाहरी संस्कृतिक आक्रमण होइत रहल अछि। जइसँ अइठामक अपन
संस्कृति टूटैत-झुकैत रहल अछि। रूप-विद्रप होइत रहल छैक। मुदा तैयो रिआइतो-खिआइतो
जीवित रहल अछि। हम ओइ किसानी संस्कृतिकेँ अपन संस्कृति मानि चलैत छी। जे
कल्याणकारीक संग-संग प्रेम, भाइ-चाराकेँ मजबूत बनबैमे सेहो सहायक अछि।
विदेह- दिनानुदिनक अनुभवक अहाँक साहित्यमे
कोन तरहेँ विवेचन होइत अछि?
ज.प्र.मं.- दुनियाँक प्रत्येक व्यक्ति
अपन बीतैत जिनगीक संग-संग परिवारो, समाजो आ देशो-दुनियाँक अनुभव करैत आबि रहल अछि। जहिना
दुनियाँ गतिशील अछि तहिना जिनगियो अछि। मुदा सबहक समान आयु नै रहने किछु
देखियो पड़ैत अछि आ किछु नहियो। दुनियाँकेँ देखैक आ अनुभव करैक सेहो िभन्न-भिन्न
नजरि अछि। जेहन देखिनिहार तेहन दृश्य देखैत अछि।
समाजक सभ अपन दिनानुदिनक क्रिया-कलापसँ
जिनगीक सच्चाइ धरि पहुँचए चाहैत अछि, जइसँ सुख-समृद्धिक तृप्ति भऽ सकै। आइ सच्चाइकेँ जते
इमानदारीसँ चित्र उताड़ि सकलाह ओ सृजनकर्ता ओते कालजयी होइत छथि। यएह प्रयास सभ
करै छथि, हमहूँ कऽ रहल छी।
विदेह- साहित्यक शक्तिक विषएमे
अपनेक की कहब अछि?
ज.प्र.मं.- कहलो जाइ छै संगठने शक्ति छी।
जहिना व्यक्तिक संगठन परिवार होइत, तहिना परिवारक संगठन समाज छी। समाजेक दर्पण सािहत्य छी।
जे जेहन समाज ओकर ओहन शक्तिशाली साहित्य।
विदेह- अहाँक साहित्यमे पाप-पुण्यक विश्लेषन
कोना होइत अछि?
ज.प्र.मं.- पाप-पुण्य धर्मसँ जुड़ल अछि।
मुदा आइ धरिक जे सामाजिक इतिहास रहल अछि ओ विकृत होइत-होइत एते विकृत भऽ गेल
जे एकर स्वरूप चौपट्ट भऽ गेल। मूलत: जेना व्यासजी कहने छथि जे परोपकार धर्म आ
परपीड़ा पाप छी। एकरा िसर्फ वैचारिक नै जिनगी मानि चलै छी।
विदेह- कल्पना आ यथार्थक समन्वय अहाँ
अपन साहित्यमे कोना करैत छी?
ज.प्र.मं.- ओना साहित्यमे अनेको धारा चलि
रहल अछि मुदा मूलत: एकरा तीन धारामे राखि आगू बढ़ै छी। पहिल यथार्थ, दोसर कल्पना आ तेसर दुनूक बीच
समन्वयवादी। वैदिक युगक विचारधारा सामंती युगमे आबि तहस-नहस भऽ गेल। साहित्य
समाजसँ कटि राज-दरवारक बीच चकभौर लगबए लगल। जइसँ साहित्य जन-गणसँ हटि भोग-विलासक
वस्तु मात्र रहि गेल।
पहिनहुँ रहल आ अखनो अछि जे साहित्य
दुनूक (जन-गण आ राज दरवार) बीचक धारा बनि समन्वयवादी विचारधारामे बहए। एे
धरतीपर सभकेँ जीबाक अधिकार छै, तइसँ दूर साहित्य हटि गेल अछि।
अपन सदति प्रयास रहल अछि जे शोषित-पीड़ित, बंचितकेँ बाँहि पकड़ि ठाढ़
करी।
विदेह- अहाँक साहित्यमे पात्र जीवन्त
भऽ उठैत अछि, तेकर
की रहस्य?
ज.प्र.मं.- कोनो समस्या अाकि घटनाक प्रति
ई सदति कोशिश रहैत अछि जे िनष्पक्ष भऽ देखबो करी आ िनराकरणो करी। भऽ सकैत
अछि जे ऐसँ पात्रमे जीवन्तता आबि गेल होय।
विदेह- साहित्य लेखन, विशेष कऽ मैथिली साहित्य लेखन
अहाँ लेल कोन तरहेँ विशिष्ट आ एकर प्राथमिकताकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छी?
ज.प्र.मं.- साहित्य समाजक ओहन दर्पण छी
जइमे भूत वर्तमान आ भविष्यक दर्शन होइत अछि। दुर्भाग्य रहल जे मैथिली साहित्य
समटा कऽ एकभग्गू भऽ गेल अछि। किछु समाजक चर्च आवश्यकतासँ अधिक भेल अछि। जइसँ
साहित्य हास-परिहासक बीच ओझरा गेल अछि। जखन कि समाजक अधिकांश हिस्सा कटि कात
भऽ गेल अछि।
अपन रचनामे सदति कोशिश रहैत अछि
जे ओइ छुटल समाजकेँ पकड़ि सृजन करी।
विदेह- की अहाँ कोनो तथ्यक झपेलहा भाग
उभाड़ैत अगर हँ तँ कोना आ नै तँ किअए?
ज.प्र.मं.- जहाँ धरि झपाएल तथ्यक प्रश्न
अछि। झपाएल कते रंगक होइत अछि। जना शब्द-सँ-विचार झापब कोनो वस्त्र वा आनसँ
झापब, खाधि खुनि माटिसँ झापब
इत्यादि।
मिथिलांचलक समाज (तथ्य) ओहन
झपाएल अछि जेकरा दिस कियो देखिनिहारे नै भेलाह। कोनो चीज देखैसँ पहिने मनमे
उठैत अछि। मन आँखिक माध्यमसँ देखैत अछि। मुदा ऐठाम तँ मने हरा गेल अछि!
ओहन तथ्य दिस जखन देखैत छी तँ
वएह झपेलहा बूझि पड़ैत अछि।
विदेह- अहाँ कहियासँ लेखन प्रारम्भ
केलौं, ककरा लेल लिखलौं, आइ-काल्हि केकरा लेल लिख रहल
छी?
ज.प्र.मं.- मोटा-मोटी दू हजार ईंसवी चढ़लाक
बादे लिखब शुरू केलौं। ओना हिन्दी साहित्यक विद्यार्थी छी तँ हमरा लेल हिन्दीमे
लिखब नीक होइत। मुदा मैथिलीक संबंध परिवार-सँ-समाज धरि तहियो छल अखनो अछि।
संगहि एकटा बात आरो अछि जे जे विचार मैथिलीमे गहराइसँ वयक्त कऽ सकै छी ओ हिन्दीमे
नै भऽ पबैत अछि।
जहाँ धरि ककराक प्रश्न अछि? ओ स्पष्ट रूपे कहि रहल छी जे
समाजक ओ दबल-कुचलल वंचित हमर मुख्य आधार अछि, जेकरा लेल लिखबो केलौं आ आगूओ
जे किछु लिखब ओकरे लेल लिखब।
विदेह- की अहाँकेँ ई लगैत रहल अछि जे
मुख्य धारासँ अहाँ कतियाएल गेल छी? अहाँक रचनामे समाजकेँ बाहरसँ देखबाक प्रवृतिक की कारण?
ज.प्र.मं.- मुख्य धारासँ कतिआएलक प्रश्न
उठौने छी, तँ स्पष्ट रूपे कहि दिअए
चाहैत छी जे जहिना कोनो धारमे बरखाक पानि आबि-आबि धारामे मिलैत जाइत अछि, जइसँ धारोमे उफान अबैत अछि आ
धरो तेज होइत अछि। मुदा हम अपनाकेँ ओहिसँ अलग बुझैत छी। कम शक्ति रहने धारा
भलहिं कमजोर हुअए मुदा दृढ़ विश्वास अछि जे दू-तीन-चारि बढ़ैत-बढ़ैत मुख्य
धारा बनि जाएत। तँए अपनाकेँ कतिआएल नै नव धाराक गति देनिहार बुझैत छी। ई विचारधाराक
प्रश्न अछि कतिऐबाक नै।
विदेह- अपन साहित्य आ रचनामे की स्वयंकेँ
पूर्णरूपसँ इमानदार राखब आवश्यक छै?
ज.प्र.मं.- जहाँ धरि रचनामे इमानदारीक
प्रश्न अछि। ओ िसर्फ रचने नै जिनगीक सभ क्षेत्रमे एकर महत्व छैक आ रहतैक। न्यायमूर्ति
सदृश्य रचनाकारकेँ हेबाक चाहियनि।
ओना प्रश्न भयंकर अछि। मुँहसँ सभ
अपनाकेँ इमानदारे कहैत छथि मुदा कर्मक्षेत्र आ वौद्धिक क्षेत्रमे कते इमानदार
छथि, से बेबहारेमे स्पष्ट
झलकैत छन्हि। तँए बेसी कहब उचित नै।
विदेह- मैथिली साहित्य आइक दिनमे की
ई सभ (साहित्यकार)क सामुहिक दोष स्वीकृतिक रूप नै बुझना जाइत अछि?
ज.प्र.मं.- अपना ऐठाम (मिथिलांचलमे) नैतिकता
िसर्फ भाषण रहि गेल अछि। बेबहारिक रूपमे कतौ किछु ने छैक। तेकर कारण अछि जे
नैतिकताक मन गढ़न्त व्याख्या, आइये नै बहुत पहिनेसँ होइत आबि रहल अछि। तँए सामुहिक
दोष की कहल जाए। जाधरि मनुष्य अपन िनर्माण अपने नै करताह ताधरि सुगा रटन्तसँ
की हएत। ओना दोषोमे एकरूपता नै अछि। रंग-विरंगक दोष पसरल अछि। एके गोटे एकठाम
इमानदार छथि दोसरठाम बइमान।
एे प्रश्नक समाधान साधारण नै अछि। ओना जँ
खुल्लम-खुल्ला वाद-विवाद हुअए तँ किछु हद तक कमि सकैत अछि।
विदेह- की अहाँकेँ लगैत अछि जे अहाँक
पोथीकेँ हिन्दी, बंग्ला, नेपाली, अंग्रजी आदि भाषामे अनुवाद कएल
जाएत? तइ स्थितिमे ओतए एकर
कोन रूपेँ स्वागत हेतैक? की अहाँक साहित्य ओइ भाषा आ संस्कृति सभ लेल ओतबे महत्वपूर्ण
रहतै जते ओ मैथिली भाषा आ संस्कृति लेल छै? अहाँक लेखन भाषा-संस्कृति निर्पेक्ष
किअए नै भऽ सकल?
ज.प्र.मं.- आन भाषाक अनुवादक प्रश्न अछि।
कोनो भाषाक साहित्य सीमित जगहक लेल नै विश्वक लेल होइत अछि। जहाँ धरि भाषाक
प्रश्न अछि ओ क्षेत्रीय होइत अछि। दुनियाँमे सत्ताइस सएसँ बेसी बोली भाषा मिला
कऽ अछि। कोनो क्षेत्र वा कोनो भाषाक साहित्यकार खास क्षेत्रमे जन्म लैत छथि।
ओइठामक माटि-पानिक सुगंध जइ रूपे ओ अनुभव करैत छथि तइ रूपे दूर दराजक नै बूझि
पाबि सकैत छथि। तँए एक भाषा-सँ-दोसर भाषामे अनुवाद होइत अछि।
कोनो साहित्य तखने समृद्ध होइत अछि जखन अपन
क्षेत्रसँ आगू बढ़ि दुनियाँक साहित्यकेँ अपनामे समाहित करैत अछि। एक भाषाक
साहित्यक अनुवाद दोसरमे मात्र अनुवादे नै ओइठामक सामाजिक, आर्थिक, वौद्धिक विश्लेषण सेहो प्रदान करैत
अछि। तँए कोनो भाषाक साहित्य िसर्फ ओइ क्षेत्रक नै दुनियाँक सम्पत्ति बनैत
अछि।
विदेह- अहाँक भाषा तँ मैथिली अछि मुदा
अहाँक लेखनपर बाहरी भाषा, संस्कृति, विचारधाराक प्रभाव पड़ल अछि कतौ-कतौ ई स्पष्ट अछि
मुदा बेसी ठाम नै, एकर
की कारण?
ज.प्र.मं.- आेहुना देखै छिऐ जे बच्चेसँ मिथिलांचलोमे
स्कूल-कओलेजमे जे पढ़ाइ होइत छैक ओइमे हिन्दी-अंग्रेजी भाषा सेहो छैक। हिन्दी
तँ अपन राष्ट्रे-भाषा छी, तँए स्वाभाविक अछि। मुदा अंग्रेजी की छी। जखन अंग्रेजी
साहित्य पढ़ै दी तखन अंग्रेजिये साहित्यकारक ने कथा, उपन्यास कविता नाटक सेहो पढ़ै
छी। जइसँ बच्चेसँ मन-मस्तिष्कमे अंग्रेजी भाषा, संस्कृति घर बनबए लगैत अछि।
आगू चलि जखन किछु लिखए चाहैत छी तँ सिनेमाक रील जकाँ ओ मस्तिष्कमे नाचए
लगैत अछि। साहित्य सृजनक अवस्था किछु भिन्न अछि। जइ समए सृजनकर्ताक मस्तिष्क
ओइ भावभूमिमे विचरण करए लगैत अछि तइठाम भाषा गौण पड़ि जाइत अछि। लाखो परहेज
केलोपरान्त उमड़ि-घुमड़ि कोनो ने कोनो दोग-सान्हि होइत सन्हिआइये जाइत अछि।
जहाँ धरि विचारधाराक
प्रश्न अछि। उन्नैसमी शताब्दीमे मार्क्सवादी विचारधारा दुनियाँक कोन-कोनमे
पसरि गेल। कतौ-कतौ शासनो-सत्ता बदलल। मुदा अपन जे भारतीय चिन्तनधारा रहल अछि
ओहो मानव चिन्तनधारा छी। मार्क्सवादी चिन्तनधारा आ भारतीय चिन्तनधाराक
पद्धतिमे किछु-किछु भिन्नता रहितो लक्ष्यमे नजदीकी संबंध अछि। दुनू
मानव-कल्याणक दिशा-िनर्देश करैत अछि। जइसँ एक-दोसरमे ताल-मेल स्वाभाविक अछि।
विदेह- अहाँक रचनाक प्रचार ऐ पुरस्कारक
बाद भयंकर रूपसँ भेल अछि, अहाँकेँ ऐसँ केहेन अनुभव भऽ रहल अछि?
ज.प्र.मं.- प्रचार कम हुअए आकि बेसी, मूल प्रश्न अछि जे हमर रचनासँ
कते गोटेकेँ जीवन-दिशा भेटलनि। जे कियो अपना जिनगीमे उताड़ि लाभ उठबै छथि
वएह उपलब्धि भेल।
जते अधिकमे हेतनि तते
अपना सृजनकेँ सार्थक बूझि संतुष्ट जरूर हएब।
विदेह- अहाँक कोन रचना (कोनो खास कथा) हम
पहिने पढ़ी माने अहाँक अपन कोन रचना सभसँ बेसी प्रिय अछि?
ज.प्र.मं.- ऐ प्रश्नक जबाब दू ढंगसँ दऽ रहल
छी- पहिल जेना-जेना रचना कएल अछि ओ अहाँक सोझा अछि। हम कहब जे ओहीक्रमे ओकरा
देखियौ। दोसर- ओहन गार्जियन जकाँ रचनाकार छी जेकर एकटा बेटा आइ.ए.एस. होय आ दोसर
नाङर-लुल्ह, ओ जहिना
दुनूकेँ समान नजरिसँ देखैत छथि तहिना हमहूँ अपना रचनाकेँ देखैत छी तँए कोन नीक
आ कोन अधला से कहब कठीन अछि।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com
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