योगेन्द्र प्रसाद यादव, पिएचडी
(भाषाविज्ञान)
तथा आजीवन सदस्य
प्रोफेसर तथा प्रमुख (रिटायर्ड), त्रिभुवन
विश्वविद्यालय नेपाल
प्रज्ञा-प्रतिष्ठान
कीर्तिपुर, काठमांडु, नेपाल कमलादी, काठमांडु
सँ मुन्नाजीक साक्षात्कार
प्रश्न:
१. अपनेकेँ मैथिलीक अनुराग सँ आह्लादित होइछी हमसब केहेन अनुभव करैछी तत्सम्बन्धी
काजसबक केँ ?
हमर विशेषता भाषाविज्ञानक सैद्धान्तिक, प्रकारात्मक,व्यावहारिक क्षेत्रमे अछि जाहि अनुसार हम मैथिलीपर बिशेष जोड़ दैत नेपाललगायत दक्षिण-एशियाक विभिन्न भाषासभक
अध्ययन-अनुसन्धानमे अभिरूचि रखैत आएल छी । हमरा एहि तरहक कार्यसँ प्रसन्नता अछि
किन्तु अखनो बहुतरास करनाइ बाँकी अछि । हमर मैथिलीक अनुरागसँ अपने आह्लादित भेलौंह
ताहिसँ हमरा प्रसन्नता भेल; धन्यवाद !
२. अपने प्राज्ञी छी ओहि स्तरसँ मैथिली लेल की सब केलहुँ ? कोनो अग्रिम योजना अछि एहि प्रतिष्ठान
सँ अहाँ माध्ये मैथिलीक लेल ?
भाषाविज्ञानक
दृष्टिकोणसँ हमर मैथिली भाषापर अध्ययन-अनुसन्धान १९७९ ई.सँ प्रारंभ भेल
अछि । सर्वप्रथम अंग्रेजी आर मैथिली भाषाक fricative
consonants क व्यतिरेकी
विश्लेषण सम्पन्न भेल (Fricatives in Maithili and English: a
contrastive analysis, Hyderabad: Central Institute of English and Foreign
Languages, 1979)। तत्पश्चात्
मैथिली भाषाक काल-पक्षक अध्ययन पूरा भेल (Tense-Aspect
system in Maithili and English: a comparative study, Hyderabad: Central Institute of English and Foreign Languages, 1979)। हमरा विचारसँ सबसँ महत्वपूर्ण कार्य
भेल हमर पि.एच.डी.क विषय । एहिमे
विश्वप्रसिद्ध अमेरीकी भाषावैज्ञानिक नोम चौम्सकीद्वारा १९८१ ई.मे प्रतिपादित रूपान्तर व्याकरण
सिद्धान्तक नवीनत्तम संस्करण Government-Binding
(GB) Theory क आधारपर मैथिली
वाक्य-संरचनाक विभिन्न पक्षक विश्लेषण करबाक प्रयास कएल गेल अछि जे Lincom Europa (Germany) सँ प्रकाशित भेल (Issues in Maithili
Syntax:A GB Approach, Munchen (Germany): Lincom
Europa, 1998.)। एहि कार्यमे मैथिली वाक्य-संरचनाका तथ्यक आधारपर भाषाविज्ञानक सैद्धान्तिक
नियम कतेक यथार्थ अछि से देखबाक प्रयास भेल अछि । यदि यथार्थ नहि अछि तँ कोन तरहक
सैद्दान्तिक परिमार्जनक आवश्यकता अछि तकर निरूपण सेहो कएल गेल अछि । दक्षिण एशियाक
कोनो भाषाक आधारपर एहि भाषिक सिद्धान्तक मूल्यांकण करब ई सर्वप्रथम कार्य भेल छल
आर तत्पश्चात् दक्षिण एशियाक अन्य भाषाक विश्लेषणमे सहायक सिद्ध भेल ।
एहि भाषावैज्ञानिक
सिद्धान्तक परिपेक्ष्यमे मैथिली वाक्य-विन्यासक विभिन्न पक्षक अनुसन्धान कएल गेल
तथा Contemporary issues in Nepalese
linguistics (“Sequential converb in Indo-Aryan”, Kathmandu: Linguistic Society of
Nepal), Indian Linguistics ("Question Movement in Maithili and binding
Conditions" 42.1:1-9, 1982a ; "Maithili Sentences: a Transformational
Analysis" 43.3 7-28, 1982b; " Constituent Structure and
Discourse Strategies in Maithili", 58. 1-4, 89-99, 1997), Contributions
to Nepalese Studies ("The Word Order
Phenomenon in Maithili Simple Sentences a TG Approach" , 12.1: 1-14, 1984), The Yearbook of South Asian Languages and Linguistics ("The Complexity of
Maithili Verb Agreement". In R. Singh, ed., 1999, Delhi: Sage
Publishers), Tribhuvan
University Journal ("Resumptive Pronoun Strategy and Island
Constraints". xiii.2:77-86, 1987), Annual Review of South Asian Language and Linguistics,
Nonnominative subjects ( “Nonnominative case in Maithili”. In Bhaskararao and
Subbarao, eds, Amsterdam: John Benjamins, 2005), Linguistic theory and South Asian languages ( “Anaphoric relations in
Maithili and linguistic theory", Amsterdam: John Benjamins, 2007) आदि राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय Journals एवं पुस्तकमे
प्रकाशित कएल गेल ।
विश्व भाषासभक
सन्दर्भमे मैथिली क्रिया संगति (Verb
Agreement) अत्यन्त जटिल मानल
जाइत अछि । एकर सूक्ष्म विश्लेषण Levinson आर Kuno क Face vs. Empathy क pragmatic
theory क आधारपर कए Linguistics Journal ("Face
vs. Empathy: the Social Foundation of Maithili Verb Agreement" (
co-authored with Balthasar Bickel and Walter Bisang), 1999) मे प्रकाशित कएल गेल ।
मैथिली व्याकरणमे
उपलब्ध उदेश्य, कर्म आदि व्याकरणिक प्रकार्य (Grammatical relations/functions) क निरूपण विभिन्न भारतीय-आर्य भाषासंगे तुलननात्मक
अध्ययन (comparative/typological studies) कए Lingua ("A fresh look at grammatical relations in Indo-Aryan", (with B.
Bickel), 2000) मे प्रकाशित कएल
गेल ।
हालेमे Encyclopedia of World's Languages ("The Maithili Language". Also in Paul van der Velde,
ed., New Aspects of Asian Studies, Leiden: International Institute
of
Asian Studies. ) एवं Languages of the World (Moscow) मे मैथिली भाषापर
प्रविष्टि प्रकाशित भेल अछि ।
नेपालमे सञ्चालित
वहुभाषिक शिक्षा कार्यक्रम अंतरगत मैथिली भाषाकेँ प्राथमिक शिक्षामे कार्यन्वयन
करबाक हेतु मैथिली भाषी समुदायमे सचेतना वृद्धि करबाक हेतु मैथिलीमे सामग्री
निर्माण कए गोष्ठीमे छलफलक लेल प्रस्तुति कएल गेल । तहिना, मैथिली भाषाक माध्यमसँ प्राथमिक शिक्षा प्रदान करबाक हेतु एहि भाषामे स्थानीय
परिवेश आर संस्कृतिक अनुकूल पाठ्यसामग्री निर्माण कएल गेल ।
भाषिक विविधता रहल
नव नेपालक निर्माणमे मैथिली लगायत अन्य भाषासभक समुचित स्थान प्रदान कए समावेशी
भाषा नीतिक प्रस्तावनाक लेल विभिन्न अध्ययन-अनुसन्धान कएल गेल । फलस्वरूप, नया संविधानमे मैथिली एकगोट वैकल्पिक सरकारी कामकाजक
भाषाक रूपमे स्थापित होएबाक संभावनादिस सेहो हम प्रयासरत छी ।
ओना त आब मैथिली
भाषामे प्राय: सम्पूर्णरूपेण देवनागरी लिपिक प्रयोग प्रचलनमे आबि गेल अछि, परञ्च मिथलाक्षर अथवा तिरहुता लिपिक ऐतिहासिक आ
सास्कृतिक महत्वकेँ नहि बिसरल जा सकैत अछि । ताहि हेतु आजुक सूचना प्रविधिक युगमे
कम्प्युटरमे देवनागरी संगसंगे
मिथिलाक्षर लिपि सेहो उपलब्ध होबाक चाहि । एहि आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखि हम नेपाली
(देवनागरी) युनिकोडपर आधारित मिथिलाक्षर 'जानकी' फन्टक निर्माणक व्यवस्था कएलौंह ।
नेपालक परिवर्तित
संदर्भमे United Nations
Mission to Nepal (UNMIN) द्वारा २००८-९ मे विभिन्न भाषामे सञ्चालित सचेतनामूलक रेडियो कार्यक्रमक
मैथिली भाषाक सल्लाहकार भ' कतिपय रेडियो
सामग्री निर्माण कारबामे हमर सक्रिय योगदान रहल ।
वहुभाषिक राष्ट्र
नेपालमे भाषिक विविधताक सम्बन्धमे विभिन्न अनुसन्धान कार्यसभ सम्पन्न भेल अछि ।
ताहिमे निश्चित रूपसँ नेपालमे दोसर सबसँ बेसी वक्तासभ रहल भाषा मैथिलीक विशेष
महत्व देल गेल अछि । ईसभ अध्ययन-अनुसन्धानमे हमर महत्वपूर्ण योगदान रहल अछि ।
कतिपय राष्ट्रीय
तथा अंतर्राष्ट्रीय भाषावैज्ञानिक सम्मेलनसभमे हम मैथिली वाक्य-विन्यासपर निबन्धसभ
प्रस्तुत क' Journals मे प्रकाशित कएलौंह।
नेपाल
प्रज्ञा-प्रतिष्ठानमे प्राज्ञक रूपमे हम अनेक पुस्तकसभक प्रकाशन आर सम्पादन कएलौंह
। वहुभाषिक पत्रिका सयपत्री क संस्थापक प्रधान
सम्पादकक हैसियतमे अपन कार्यकालमे एकर विशेषांक प्रकाशित कएलौंह । एहि अतिरिक्त, मैथिली भाषा, साहित्य आर संस्कृतिसम्बन्धी निबन्धक संकलन क' नेपाल प्रज्ञा-प्रतिष्ठानद्वारा हमर सम्पादकत्वमे Readings in Maithili language, literature and culture (1998) नामक पुस्तकक प्रकाशन भेल ।
मैथिली भाषाक
क्षेत्रमे समकालीन भाषावैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ बहुतरास कार्य करबाक बाँकी रहल अछि ।
ताहि हेतु एहि कमीसभक किछु पूर्ति करबाक लेल भविष्यमे ईसभ कार्य करबाक हमर योजना
रहल अछि:
१ मैथिली व्याकरण (आधुनिक भाषावैज्ञानिक सिद्धान्तपर आधारित)
२ मैथिली-नेपाली-अंग्रेजी शब्दकोष (शिक्षा आर अनुवादमे सहयोगी; ई शब्दकोषक करीब आधा तैयारी भ' चुकल अछि । )
३ प्राथमिक शिक्षाक लेल प्रत्येक विषयक पाठ्यपुस्तकक निर्माण (निर्माणाधीन)
४ मैथिली भाषामे भाषाविज्ञानक पाठ्यपुस्तकक निर्माण
३. मैथिली-नेपाली मध्य स्तरक माहे ककर केहन वर्तमान भविष्यक आकलन करs चाहब ?
नेपालक संघीय राज्यमे परिणत
भेलापश्चात मैथिली निश्चित रूपसँ सरकारी कामकाज, शिक्षा आर सञ्चारक माध्यम हएत आर फलत:
मैथिलीक भविष्यमे प्रगति हएत । दोसर दिस, नेपालीक अत्यधिक विकास भ' चुकल अछि आर केन्द्रीय सरकारक सरकारी
कामकाजक भाषा रहत । किन्तु, ई स्पष्ट अछि जे नेपालीक एकाधिपत्य नहि रहत ।
४. मैथिली भाषा आ मिथिलाक संस्कृतिक माहेँ अपने विदेशी भाषा मे लिखलौं एहि सँ
मैथिली भाषा संस्कृतिक कतेक प्रसार /उपकार भ' सकल ?
हमर अधिकांश कृति अंग्रेजी भाषाक
माध्यममे लिखल गेल अछि । एकर प्रमुख कारण अछि जे हम सैद्धान्तिक भाषाविज्ञानक
ढाँचामे मैथिली भाषाक विश्लेषण कएने छी आर विज्ञान-प्रविधिजकाँ सैद्धान्तिक
भाषाविज्ञानमे प्राविधिक शब्दावली (technical vocabulary) क प्रयोग होइत अछि जे मैथिलीमे एखनधरि उपलब्ध नहि अछि ।
मैथिलीमे लिखनाइ असमर्थता छल । अन्य लोकनिसभकेँ सेहो अंग्रेजी भाषाक सहारा लिअ
पडलन्हि । एकर अतिरिक्त, हम त्रिभुवन विश्वविद्यालयमे २००८ ई.धरि सर्वप्रथम अंग्रेजी आर तत्पश्चात् भाषाविज्ञान विभागमे प्राध्यापन करैत
रहलौंह, जाहि विभागक शिक्षण अंग्रेजी भाषाक माध्यमसँ होइत अछि ।
एहिसँ मैथिली भाषाक प्रसार प्रचुर भेल
। उदाहरणक लेल, मैथिली क्रिया मेल (Maithili verb agreement) पर लिखल हमर निबन्ध एहि विषयपर अनुसन्धान करैबला विश्वमे
प्रत्येक शोधार्थी अध्ययन करैत अछि । एकर अतिरिक्त, अंग्रेजी भाषामे प्रकाशित हमर आर अन्य
व्यक्तिलोकनिक कृतिसभ मैथिली भाषा-संस्कृतिक प्रसारमे बहुत योगदान कएने अछि ।
एहिसँ
५. मिथिलाक प्रति मैथिली मे लिखब अपना के केहेन अनुभव करै छी ?
हमर किछु रचनासभ मैथिलीमे सेहो
प्रकाशित भेल अछि किन्तु तुलनात्मक रूपसँ अंग्रेजीसँ कम ।मैथिली भाषामे लिखब
स्वाभवत: हमरा गौरव लगैत अछि । सवानिवृत (retired) भेलापर आब हम यथाशक्य मैथिलीमे लिखबाक प्रयास करैत रहब; तइयो प्राविधिक
रूपेँ किछु एहन विषयवस्तु अछि जे अंग्रेजीमे मात्रे प्रस्तुत कएल जा सकैत अछि ।
६. वर्तमान मैथिली सहित्यक विदेशी भाषाक समक्ष कत' ठाढ क' सकैत छी ? अपन अनुभव कही ।
वर्तमान मैथिली साहित्यक समृद्ध परम्परा रहल अछि दुनू देशमे । किन्तु किछु
विदेशी भाषाक समक्षमे पछाड़ि पड़ल अछि । साहित्यिक विविधताक अभाव देखल गेल अछि ; जेना मैथिलीमे
वैज्ञानिक आख्यान (science fiction) नहि पाओल जाइत अछि ।
७. मिथिला मैथिलीसम्बन्धी विचार दोसर भाषा माध्यमे प्रेषित करैत रहलौं । विदेशी
भाषा साहित्य वा संस्कृतिक मैथिलीभाषी मध्य रखबाक कोनो योजना अछि ?
विदेशी भाषा साहित्य वा संस्कृतिक
किछु कृतिसभ दुर्लभ आ महत्वपूर्ण अछि; एहेन कृतिसभक मैथिलीमे अनुवादक विचार हम कएने छी ।
८. मैथिली मे वर्तमान भाषिक (वा शाब्दिक) मानकता के कतेक शुद्ध मानै छी ? की एहि भाषा मे
भाषिक स्तर पर कोनो सुधारक संभावना देखाइत अछि ?
मैथिलीमे स्तरीय साहित्यिक कृतिसभ
पर्याप्त अछि आ ईसभक लेखन शैली शुद्ध आ मानक अछि । विदेह online magazine मे प्रकाशित मैथिलीक मानक शैली आ मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम अत्यन्त सराहनीय
अछि; हम स्वयं मैथिली
लिखैत काल एकर मदद लएत छी । हम एकरा अत्यन्त वैज्ञानिक आर प्राज्ञिक मानैत छी; किन्तु एहि
वर्णविन्यासकेँ कतेकगोटे प्रयोगमे लबैत अछि । ई विचार करनाइ युक्तिसंगत हएत जे की
ई अंग्रेजीक Received
Pronunciation (RP) जकाँ 'political anachronism त नहि ? अत:, हमरा विचारमे मैथिली
लेखनक स्तरीय शैलीक निर्धारण आर सुधार करबाक लेल सम्बन्धित व्यक्तिलोकनि आर
संस्थासभक सहभागितामे एहि प्रस्तावपर विचार-विमर्श होमय आर एकगोट समावेशी शैलीक
निर्माण कएल जाय ।
९. ठाम-ठीम मैथिली रचनाकारक अगडी-पिछडी दुनू समूह वा पाँतिक शब्द विषमता के बहस क' दुनूके मानक हेबाक
वात राखल जाइए । अहाँ एहि सँ कतेक सहमति असहमति छी ?
एहि विषयमे हमर दूगोट मत अछि: १
साहित्यिक लेखनमे दुनू समूहक अपन-अपन भिन्नता राखल जा सकैत अछि, किएक त कथा, उपन्यास, कविता आदि साहित्यिक
विधामे सामाजिक परिवेश आर पात्रक अनुसार भाषिक भिन्नता हएब स्वाभाविक अछि । २
औपचारिक लेखन (जेना कानून, सरकारी दस्तावेज, नियम, साहित्यिक समालोचना आदि)मे भाषिक एकरूपता अपरिहार्य अछि
। एहेन एकरूपता मानक शब्दकोष, व्याकरण, शिक्षामे मैथिली भाषाक प्रयोग आदिसँ प्राप्त कएल जा सकैत
अछि । विश्वक कतिपय भाषामे एहेन स्थिति देखल गेल अछि ।
१०वर्तमान मे मैथिली
मध्य पिछडी जातिक वहुसंख्यक सक्रिय रचनाकारक रूपे प्रवेश के मैथिली सहित्यक भविष्य
के कत' देखै छी ?
एकरा हम सकारात्मक रूपमे लैत छी ।
एहिसँ विभिन्न तरहक सामजिक परिवेशक अनुभव आर भावनाकेँ समेटि क' मैथिली समृद्ध आर
समावेशी साहित्यिक दिशादिस अग्रसर हएत से हमरा विश्वास अछि । दोसर वात जे एहि तरहक
प्रयाससँ मैथिली भाषाकेँ सव समूहसभ अंगीकार (own) करत । एहि ठाम हम नेपालक एकगोट घटना उद्धरण कर' चाहैत छी । सम्प्रति
नेपालक मैथिली भाषी क्षेत्रमे किछु समुदायसभद्वारा मैथिलीकेँ अस्वीकार (disown) क' अन्य भाषाकेँ अपन मातृभाषाकेँ रूपमे
स्वीकार करबाक स्थिति श्रृजित भ' रहल अछि । हरेक भाषाजकाँ मैथिली भाषामे सेहो भिन्नता रहब
स्वाभाविक अछि; ताहि हेतु सब तरहक भिन्नताकेँ स्वीकार क' एक समग्र मैथिलीक
अस्तित्वक स्थापना करी ।
जगदानन्द झा 'मनु'
चोनहा
(धारावाहिक मैथिली कथा )
चोनहा
एक गोट एहन स्वाभिमानी किशोरक
मर्म कथा,जए अपन माय-बाप कए
कनिक लापरवाही कए कारण घोर अन्हार एवं अपार दर्दक दुनियाँ मे चली गेल | मुदा अपन सहाश व् कुषार्ग
वुधि कए द्वारा ओ ओहि घोर अन्हार एवं दर्दक छाया सँ बाहर निकैल,एक सुखद एवं प्रकाशमान
जिवन मे चरण बधेलक |
पहिल भाग मे अपनेक लोकन्हि पढलौंह
- कोना मासूम किशोर संजय कए असहाय माथक पीरा सँ नित्य सामना करय परैक | सब कए सब होएतो ओ
निदान्त एसगर, कियोक
ओकर इलाज अथवा कष्ट निवारण हेतु प्रयास नहि कएलथि | गाम सँ दिल्ली आएल मुदा सब कए सब ओनाहि, दिल्लीक गर्मी सँ पीरा
मे आओर वृद्धि, अपार
कष्ट, मुदा सब किछ असगर सहैक
लेल बाध्य |
अंत मे
ओकरा स्वं एही बताक ज्ञान भेलैक जए ओकर आँखि बहुत खराप छैक परन्च ओकर सहायता करै
कए जगह ओकरा कोना 'चोनहा' नाम सँ अलंकृत कएल
गेलैक | आब आँगा ----
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भाग २
संजय कए मोन सैद्खन एहि सोच मे लागल रहै
जए आब एकर कि उपाय हुवे | एक त माथक दर्द पाहिले छह-सात वर्ष सँ हरान केने,ताहि पर सँ इ आँखिक
कमजोरी | चुकी आब ओकरा अपन
कमजोर आँखिक ज्ञान भ गेलैक ताहि कारण सैद्खन ओकर मोन ओहि चिंता मे लागल रहैक | आब ओ कि कय सकैए, गाम सँ दिल्ली आएल
तेरह-चौदह वर्षक बच्चा | नहि
किछ बुझल नहि किछ ज्ञान, नहि
कोनो अस्पताल देखल, नहि
कोनो डाक्टरक पत्ता | माय-बाबु
सँ साफ-साफ एहि बारे मे बात करे सेहो नहि, ओकर मोन मे धाख व् डर कए मिश्रित भाव एवं कनि कोनो कोन मे
स्वाभिमान कए भावना सेहो |
एहि गुण-धुन, गुण-धुन मे तिन महिना आओर बीत
गेलै, कोनो उपचार नहि | स्कुल मे त्रिमासिक
परीक्षा भेलैक | परीक्षा-परिणाम
ओकर स्तर सँ निम्न रहलै, तैयो
ओकर माय-बाबुक कोनो प्रतिक्रिया नहि, जए सब वर्ग मे पहिल-दोसर आबि बला बच्चा कए एहि परीक्षा मे अनुरूप परिणाम किएक नहि एलै | उल्टा दू-चाइर टा बात
आओर सुनय परलैक | एतेक कम नम्बर किएक एलै
तकर जैर ताकै बला कियोक नहि | आब तs ओकर हालत इ भs गेलैक जए ओ पढय हेतु बैसअ मे कोताहि करय लगलै, किएक तs आँखि एतेक कमजोर भs गेलै जए ओकरा लेल
किताब पढनाई असम्भब भेल जाई |
त्रिमासिक परीक्षाक सेहो दु महिना भs गेलै | अकस्मात कतौ सँ संजय
कए, रोटरी क्लब द्वारा
संचालित आँखिक अस्पतालक विज्ञापन कए पर्ची हाथ लगलै | ताहि मे सूचित कएल गेल
रहै जए रोटरी क्लब, तिन
ब्लोक त्रिलोक पूरी मे निः शुल्क आँखिक अस्पताल खोललक | संजय कए इ पढि बड मोन खुस भेलै | ओकर अन्हार मोन मे
इजोतक एकटा आशा भेटलै | सब
सँ बेसी नीक बात जए ओ अस्पताल ओकर स्कुल कए लगे आ निः शुल्क रहै |
अगिले दिन संजय, स्कुल कए छुट्टी भेला
बाद असगरे पुछैत-पुछैत आँखिक
अस्पताल,तिन ब्लोक त्रिलोक
पूरी पहुंच गेल | ओहिठाम
ओकरा ज्ञात भेलै जए नव मारीच बास्ते पुर्जा भोरक आठ सँ एगारह बजे तक बनैत छैक | मुदा आई तs एक बाजि गेल रहै | काइल्ह भोरे आबैक निश्चय मोने-मोन करैत घर चलि आएल |
अगिला दिन भोरे संजय नहा-सुना कs स्कुल कए लेल बिदा भेल
अबश्य मुदा स्कुल गेल नहि, किताबक बस्ता दु ब्लोक त्रिलोक पूरी मे अपन काका कए घर राखि कs आँखिक अस्पताल तिन
ब्लोक आबि गेल | किछु
महिना पाहिले तक संजयो सब दु ब्लोक त्रिलोके पूरी मे रहै छल मुदा आब गणेश नगर मे आबि गेल, जए किछु एक-डेढ़
किलोमीटर दूर छैक |
अस्पताल आबि, नव पुर्जाक लाइन मे लागि गेल, लाइन मे लागला वाद
ओकरा ज्ञात भेलै जे पुर्जा बनेबाक बास्ते दु रुपया देबय परै छै | जे कि ओकरा लग नहि रहै
| ओकर मोन मे किछ दुखो
भेलै | स्वं कए सम्भालैत, दोसर दिन ऐबक निश्चय
कय ओ ओहिठाम सँ बिदा भय गेल | काका ओहिठाम सँ स्कुल बस्ता लैत घर आबि गेल |
संजय कए स्कुल जाईकाल टिफिन
बास्ते जे कहियो कs चाईर-आठ आना पाई घर सँ भेटै,( ई बात १९८५-८६ कए छै ताहि समाय मे चाईर-आठ आना कए किछो मोल
रहै) ओ पाई कए संजय खए नहि,बचाकय राखय लागल, एक सप्ताह बाद ओकरा लग दु रुपया जमा भय गेलै | ठिक आठम दिन फेर ओ
रोट्री क्लब द्वारा संचालित आँखिक अस्पताल पहिले जकाँ भोरे-भोरे किताब-कांपी काका
कए घर राखि कs पहुंचल
| पांति मे लागि, दु रुपया देला बाद नव
पुर्जा बनेलक | पुर्जा
बनेला बाद डॉक्टरक कक्ष मे पहुँचल | डॉक्टर-साब एकटा तेरह-चौदह वर्षक बच्चा कए असगर देखते
पूछलखिन्ह-
"संगे कए अछि "
संजय चुप
डाक्टरसाब - "माय-बाबु किनको संगे
नेने आउ |"
आब संजय कए बड्ड मुस्किल भेलै, मुदा ओ अपना पर काबु
रखैत डॉक्टरसाब कए तत्काल उत्तर देलकैन्ह -
"बाबूजी ड्युटी गेल छथि आ माय गाम
मे छथि |"
हलाँकि ओ इ बात झुठ बाजल,जए माय गाम मे छथि
मुदा डॉक्टर साब ओकर उत्तर मे सत्य देखैत कहलखिन्ह -
"अपन बच्चा लेल अहाँक बाबुजी एक
दिनक छुट्टी नै कय सकै छथि |"
"नहि डॉक्टर साब, हुनक नव नोकरी छैन्ह, छुट्टी क़रथिन्ह त
नोकरी छुटि जेतैन |" - इहो बात संजय झूठे बाजल, जखन कि ओकर बाबुजी महिना मे पंद्रह दिन छुट्टीए पर रहैत
छलखिन्ह परन्च डॉक्टर साब कए एक गोट मासुमक मुंह सँ इ बात सुनि बिश्बास आ किछु
सहानभूति सेहो भय गेलैन्ह |
"कोनो बात नहि, आगु घुसैक कs बैसु |"
इ कहैत डॉक्टर साब टोर्च वा अन्य-अन्य
उपकरण सँ निक जकाँ आँखिक जाँच कएला बाद
बजलाह-
''आँखि बड्ड कमजोर अछि,तिन दिन आबए परत, दु दिन आँखि मे दबाई
परत आ तेसर दिन चश्मा कए नम्बर भेटत |"
इ कहैत डॉक्टर साब ओकर पुर्जा पर
किछ-किछ लिखैत, पुर्जा
पेपर वेट कए निचा दबा, पनः कहलखिन्ह-
"जाउ बाहर बैस रहु, सिस्टर आँखि मे दबाई
देती, दबाई लेला बाद करीब एक
घंटा एहिठाम बैसब, सिस्टर
कए कहला बाद घर जाएब हाँ! काईल्ह परसु दु दिन आओर अबश्य आएब |"
"ठिक छै "- कहैत संजय उठि
बाहर आबि बेंच पर बैस रहल |
किछु छन बाद सिस्टर संजय कए आँखि
मे ड्रॉप दैत- "आँखि मुनि बैसल रहब"
ओकरा तs आँखि मे दबाई परिते, आँखि एतेक दुखए लगलै
जेकर हिसाब नहि, मुदा
सहास केने चुपचाप आँखि मुन्ने बैसल रहल | लेकिन पंद्रह-बीस मिनट कए बाद बुझेलै जए माथ एकदम शांत स्थिर भs गेल होय | किछु समाय बाद सिस्टर
आबि एक बेर फेर सँ संजय कए आँखिक जाँच कएलाबाद ओकर दुनु आँखि मे दु-दु बूंद दबाई
दैत पहिले जकाँ आँखि मुनि कय बैसअ कए निर्देश दैत चैल गएलि | एहि बेर पाहिले सँ किछु कम आँखि
दुखेलै |
करीब आधा घंटा बाद सिस्टर आबि
संजय कए आँखिक जाँच करैत कहलखिन्ह-
"ठिक छैक, आब जाउ काईल्ह भोरे आठ बजे आएब |"
"अच्छा !"- कहैत संजय उठि
बिदा भय गेल, पुनः
अपन काका ओइठाम सँ बस्ता लेलक आ अपन घर आबि गेल |
अगिला दिन संजय फेर सँ अस्पताल
गेल, डाक्टर साब फेर सँ ओकर
आँखिक जाँच कएलखिन्ह आ पाहिले दिन जकाँ सिस्टर सँ आँखि मे दबाई दिया कs आबि गेल |
तेसर दिन अस्पताल मे डॉक्टर साब
संजय कए आँखिक भिन्न-भिन्न तरह कए लेंश सँ जाँच कएला बाद चश्माक नम्बर बना एकटा
पुर्जा पर लिख पुर्जा ओकर हाथ मे दैत कहलखिन्ह -
"इ अहाँक चश्माक नम्बर अछि, माइनस तिन जए की एहि
उर्म मे बहुत अधिक अछि आ अहाँक आँखिक खराबिक गति एखन बहुत अधिक अछि | ताहि हेतु आइये जा कय
चश्मा बनबा लेब, आ
सैदखन पहिरब | आ
हाँ, एक बात आओर जए छ महिना
बाद आबि फेर सँ आँखिक जाँच करबा लेब, जाहि सँ इ ज्ञात चलत की आँखिक खराबिक गति कम भेलैक स्थिर
भेलैक वा बढी रहल अछि |"
"अच्छा जाई छी " - अपन दुनु
हाथ जोरि संजय डॉक्टर साब सँ आज्ञा लेलक |
"ठिक छै जाउ "- डॉक्टर साब |
संजय घर चलि आएल, मुदा ओकर मोन मे एकटा
नब द्वन्द मचय लगलैक |
चश्मा !
-"चश्मा कतए बनतै? कतय चश्मा कए दुकान
छैक? कम सँ कम डेढ़ -दु सय
रुपैया मे चश्मा बनत, इ
डेढ-दु सय रुपैया कतए सँ आएत?"
आओर आन-आन प्रश्न सब ओकर मस्तिश्य
मे एक कए बाद एक -एक समुद्र कए हिलकोर जेकाँ आबै जाई |
"की करू ? कोना करू ? की बबुजी कए कहिदियैन, जए चश्मा कए नम्बर
अन्लौंहें, चश्म बनबा दिय, नहि-नहि कोना कहबनि ? की कहबनि ? नहि कहबनि त चश्मा कतए
सँ आएत ? चश्मा किनैलेल रुपैया
कतए सँ आएत ? की
करु नहि करू ?"
संजय किछु निश्चय नहि कय सकल | एहि सब बिषय मे सोचैत
-सोचैत ओकर आँखि लागि गेलै ओ सुइत रहल | करीब तिन बजए बेरुपहर ओकर निन्द
खुजलै | उठल, मुंह-हाथ धो भोजन केलक
परन्च ओकर मष्टिश्य मे चश्माक द्वन्द मचले रहै | ओ कतौ किच्छो करए मुदा ओकर दिमाग
चश्मेक बारे मे सोचैत रहै | गुनधुन-गुनधुन करैत अंत मे ओ एकगोट योजना कए अंतर्गत निश्चय
केलक जए साँझुपहर बबुजी कए कहि देतनि, आ कोनो दोसर उपाई ओकरा नहि भेटलैक | आ शायद इ बहुत उचित उपाई रहै |
साँझुपहर ओकर बबुजी नोकरी सँ
एलखिन्ह | गर्मीक महिना रहै, हाथ-पएड धोला बाद, बाहर अँगना मे खाट पर
बैसला | जलपान इत्यादि कएला
बाद इम्हर-उम्हर कए गप्प-सप्प होबए लगलैक | संजय सेहो जेबी मे चश्माक नम्बर बला पुर्जा लेने हुनके लग
जा बैस रहल | संजय
कए मोन आबो गुनधुन-गुनधुन करै, कहियौन्ह की नहि | अंत मे ओ हाँ कए निर्णय केलक आ अपन सम्पूर्ण हिम्मत कए जमा
करैत, जेबी सँ पुर्जा निकालि
कs बाबुजी कए दय देलकैन्ह
|
"की छै ?" - हलाँकि ओकर बाबुजी
पढ़ल-लिखल छथिन्ह,पुर्जा
पर सबटा लिखल रहै, अस्पतालक
नाम-पत्ता ,मारीच कए नाम उम्र,डॉक्टरक नाम, चश्माक नम्बर वा जरी
करै कए तारीख,मुदा
तैयो बाबुजी पुर्जा कए पढैत पुछलखिन्ह |
"चश्मा कए नम्बर |" - संजय अपन माथ कए निचा झुकोने डराएत धीरे सँ
बाजल |
"ककर"- बाबुजी पुर्जा पढैत
बात कए अन्ठाबैत पुछलखिन्ह |
"हमर" - संजय अपन सेफ कए
गरदैन सँ निचा घोतैत आगु बाजल -"आई स्कुल मे डॉक्टर आएल रहैक ओ सब बच्चा कए
आँखिक जाँच केलकै,
हमरो जाँच केलक, हमर आँखि खराप छै कहलक
चश्मा पहिरअ परतै |"
हलाँ की संजय इ सब बात झुठ बाजल, मुदा ओ पिता छथि , पढ़ल -लिखल छथि, डोक्टरक पुर्जा हुनक
हाथ मे छनि,
ओ पढि सकै छलाह जए इ
पुर्जा रोटरी क्लब द्वारा संचालित आँखिक अस्पताल त्रिलोकपूरी तिन ब्लोक कए छै | मुदा कखन, जाहिखन अपन बच्चा वा
बच्चाक स्वास्थ्यक प्रति कोनो रूचि रहितैन | हुनका जेना संजय कए बात पर बिश्बास भय गेलैन्ह | बिश्बासो भएलैन्ह त कम
सँ कम इ तs ज्ञात भएलैन्ह जए हुनक
बच्चा कए आँखि खराप छैन | आबो कोनो नीक डॉक्टर
सँ कतौ अपने सँ देखा दियैक वा डॉक्टर देखने छै तs चश्मा बनबा दियै | कनि मोन मे किछो दोसर
रंग हेबाक चाहि | एकदम
सँ बैसल-बैसायल किनको इ ज्ञात होइन जए हुनक बच्चाक आँखि खराप छै, एकर प्रमाणिकता कए
एकटा विशेषज्ञ डॉक्टरक लिखल पुर्जा हुनक हाथ मे छनि | एहि तरहक पित्ता कए मोन मे जरुर
किछो भाव हेतैन्ह - आश्चर्य कए, विश्मय कए, दुख कए, तत्पर्यता कए, मुदा नहि, संजय कए बाबुजी कए ऊपर कोनो तरहक प्रभाब नहि , धनसन |
हँसैत संजय सँ कहै छथिन्ह -
"डॉक्टर सब एनाहीं कहैत छै, एहि उम्र मे कतौह आँखि खराप होई |"
तै पर संजयक माय कहितो छथिन्ह
-"हाँ यौ, एकर
आँखि चोनाह लगै छै |"
बाबुजी- "अच्छा देखियौ, इम्हर आ " एकर
बाद अपन एकटा आँगुर देखबैत -"इ कएटा आँगुर छै "
संजय-"एकटा "
ऐ बेर दूटा आँगुर देखा कs बाबुजी -"इ कएटा आँगुर छै "
"दूटा"- संजय धीरे सँ बाजल |
"सब ठिक छै, अच्छा कोनो बात नहि,चश्मों बनबा देबौ "- कहैत बाबुजी पुर्जा जेबी मे राखि
लेला
तकर बाद इम्हर-उम्हर कए गप्प
-सप्प होइत बात ख़त्म |
बात एलै-गेलै समय बितैत रहलै, संजय कए स्कूलक छमाही
परीक्षा सेहो ख़त्म भय गेलै, ओकर आँखिक कमजोरिक गति लगातार बढ़ैत रहलै, चश्मा कए नम्बरों अनला
महिना सँ उपर भय गेलै मुदा अखन तक ओकर चश्मा नहि बनलै | संजय कए छोटका मामा सेहो
गणेश नगर मे संजय कए घर सँ
किछुए दूर पर रहै छलखिन्ह | हुनका किछु समान कए खरीदारीक बास्ते सदर बाज़ार जाई कए रहैन | समान किछु बेसी लेबय
कए रहैन, ताहि हेतु ओ संजय कए
सेहो अपन संगे टेल्हू मे संग कय लेलखिन्ह |
मामा-भगिना दुनु गणेश नगर सँ लाल
किला बला बस पकैर, लाल
किला कए बस स्टेंड पर उतैर गेला | ओहि ठाम सँ पएरे सदर बाज़ार हेतु चांदनी चौक - खाडिबाबली कए
रस्ते बिदा भs गेला
| लाल किला कए दिस सँ
चांदनी चौक रोड पर किछुए दुकान पार कएला बाद दाहिना हाथ कs एकटा सिनेमा घर परलै आ ओकर तेसरे
दुकान, चश्मा कए दुकान रहै | संजय कए नजैर ओहि
दुकान पर पैर गेलै | ओ
ओहि दुकान कए देख लेलकै, देख
की लेलकै ओकर नक्शा अपन मानस-पटल पर उताइर लेलक | चलैत-चलैत संजय कए
मस्तिश्य मे एकटा नव विचारक मंथन होबय लगलै -
"चश्मा दुकान तs देख लेलौंह,एहिठाम हम असगरो आबि
सकै छी, आबि कs चश्मा बनबा सकै छी | रैह गेलै पाईयक बात, हम अपने पाई जमा करब, तिन महिना मे होएतै, चारि महिना मे होएतै, कहुना कs दु सय रुपैया जमा करब | तकरा बाद एहिठाम आबि कs चश्मा बनबालेब | कि जखन बाबुजी नै बनबा
देला तs अपनों तs बनाबी | कियो कान-बात नै दैछथि, काल्हि आन्हर भय जाएब तs - - - नहि-नहि हम जमा करब, दु सय रुपैया जमा करब, अबश्य जमा करब |"
चलैत-चलैत अपने भीतर हराएल संजय, कखन मामा संगे-संगे
सदर बाज़ार पहुँच गेल ओ किछु नहि बुझलक, आ नहि ओकरा कोनो रस्ता यादि रहलै, यादि रहलै त मात्र अपन
घर सँ चश्मा दुकान तक कए रस्ता |
आब की छलैक, आब तs संजय कए एक गोट नव राह
भेट गेलै | जतय कतौ कोनो बाबत,दस -बीस पाई,चारि-आठ आना, एक-दु रुपैया,जए जतय हाथ आबै,एकटा डिब्बा मे जमा
केने गेल सब सँ नुका कय छुपा कय माय-बाबु सब सँ |
भेटै कतय ? दोसरा तेसरा दिन पर घरे सँ स्कुल कए टिफिन
बास्ते चारि-आठ आना पाई | किएक तs ओकर भोरका स्कुल रहैक आ माय ओतेक भोरे किछु बना कs टिफिन बास्ते देथिन से नहि पार
लगैन ताहि हेतु दोसरा-तेसरा दिन पर नगदे चारि-आठ आना वा एक-दु रुपैया जए जहिया
भेलै ओकरा भेट जाई | मुदा
संजय ओई पाई कए खाई मे खर्च नहि करए | ओ मासूम बच्चा अपन
भबिष्य हेतु, अपन
वर्तमानक मोन कए मारि सैह कs रहि जए |
कखनो कs कोनो पित्तियो आ मामा
लोकिन सेहो किछु पाई-कौरी धिया-पुता कए कोनो बिशेष अबसर पर दय देथिन्ह, मुदा संजय ओई पाई कए
खर्च नहि कय कs चश्मा
हेतु राखि लए | पाबैन-तिहार
जेना दशहरा,
रामलीला
देखै लेल, मेला घुमै लेल, दिवालीक फत्तक्का
किनैक लेल, आन-आन पाबैन-तिहार कए
अबसर पर संजय कए जए पाई घर सँ भेटै; सबटा अपन मोन कए मारि चश्मा कए लेल राखि लए | - - - - - -
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आँगाक भाग -अगिला अंक
मे | पढनाई नहि विसरि, ओकर आँखिक कमजोरिक कि
भेलै ? की ओ अपन चश्माक पाई
जमा कय पेलक ? की
ओकर चश्मा बैन पेलैक ? एक मांसुम किशोर, एक
अनचिन्हार शहर मे कोना,सफलता
पेलक, व असफलताक गुमनामी कए
अन्हार मे हरा गेल ?
खुशबू झा
हमरा नजरिमे सुजीतक
रिपोर्टर डायरी
संस्मरणक
किताब हम कएटा पढने छलहुँ मुदा रिपोर्टर डायरी पढयके हमर पहिल अनुभव रहल ।
रिपोर्टर डायरीमे कीसभ हेतैक एकर उत्सुक्ता छल ।एकरे कारण जखन हमरा रिपोर्टर डायरी
भेटल हम दु बैसानमे पढि लेलहुँ । पत्रकार सुजीतकुमार झाक पहिल कृती चिडै हम पढने
छलहुँ सँगहि हुनक एभि न्यूज टिभी, रेडियो मिथिला आ मिथिला डटकमक रिपोर्टिङ्ग सँ सेहो परिचित
छी । मुदा जे चीज रिपोर्टर डायरीमे भेटल एहि सँ पहिने हमरा हुनकामे देखबामे नहि
आएल छल । ४७ टा डायरी अर्थात लेखमे कोन बढियाँ वा कमजोर छुटियाब कठिन अछि । सभ एक
पर एक । फेर एहिमे सभ चीज भेटैत अछि । संस्मरण, रिपोर्टाज आ अहुँ सँ बेसी सभ स्टोरीके
हम कथे कहैत छीयैक । ला जबाब पिक्चराईज अछि । रिपोर्टर डायरी पढलाक बाद लोक जनकपुर
बुझि सकैत अछि । फेर पत्रकारक नजरिमे केहन जनकपुर अछि एकर स्पष्ट झलक एहिमे भेटैत अछि
। फेर बहुत रास समस्या सभ सेहो उठल अछि । जेना रस नहि गुल्लाक रेकर्डमे बरियाती आ
बेटी बलाक अवस्थाक बहुत बढियाँ जाका चित्रण भेल अछि । तहिना साज विहीन स्वरसम्राट बेचनमे
बेचनक अवस्था आ बेचनक मित्र उदित नारायण झा बिचक विकासक्रम बढियाँ सँ कम शब्दमे
कहल गेल अछि । बिबाह कार्डमे मैथिली भाषा आ ओ तऽ मैथिली बिटक समाचारदाता छला ओहो
लाजबाब अछि । जनकपुरक बिबाह कार्डसभमे कोना मैथिली लिखायके क्रम शुरु भेल तहिना रहिकाक
चुनचुन मिश्रक मैथिली प्रतिक समर्पण सेहो गजब सँ लिखाएल अछि । चुनावक नाम पर पैसाक
बहस नाम सँ चुनावमे भ्रष्टाचार कोन रुप सँ बढल अछि अहि सँ बढियाँ चित्रण नहि भऽ
सकैत अछि । एकटा पत्रकार कोन अवस्था सँ अपन पत्रकारीताक क्रममे गुजरैत अछि तेकर गजब
एहिठाम बानगी भेटैत अछि । घडीक सुइके केउ पकरि लेने छल ताहिमे महिला पत्रकार उमा
सिहंक हत्या दिनक लेख अछि । एहिमे लेखकके रेडियोमे कार्यक्रम चलाबय जाइतकाल एकटा
टेलिफोन अबैत अछि पत्रकार उमासिहंके आक्रमण भेलैक एहनमे ओ उमा सिहंके सहयोग करय
जाइथ वा कार्यक्रम चलाबय ओहि समयक द्वन्द बेजोर आएल अछि । तहिना महासंघक चुनाव आ
सुन्धराक आनन्दमे नेपालमे पत्रकारितामे पैसाक खेल कतेक बढिगेल अछि तेकर सुन्दर उदाहरण
प्रस्तुत कएलगेल अछि । नेपालक पत्रकारितामे कतेक रास बिकृती आएल अछि तेकरा रखैत
एकटा निकास देबाक सेहो प्रयास कएलगेल अछि । सरल भाषामे लिखल सुजीतक रिपोर्टर डायरी
पढयमे आम पाठकके बहुत आसान हैत । फेर किताबक प्रिन्टीङ्ग तऽ एहन अछि जे एक बेर
देखिते रही लगैत अछि । किताबक प्रकाशक आफन्त नेपाल अहिके लेल धन्यबादक पात्र छथि ।
सुजीत जी किताबमे लिखने छथि पहिल पुस्तक जँका अर्थात चिडै कथासंग्रह जँका एकरा
स्निेह भेटतैक आशा रखने छथि । पढलाक बाद हम ई कहि सकैत छी स्नेहके आबश्यकता नहि
छैक । नीक चीज छैक लोक पसिन कऽ रहल अछि । हमरा तऽ बहुत बेजोड लागल । मैथिली संसारमे
एहन रचनासभक आबश्यकता अछि । खाली कथे कबिता नहि सभ तरहक चीज आबक चाही । नयाँ चीज
पाठकके नयाँ आनन्द दैत अछि ।
हम पुछैत छी: विहनि कथाकार आ विदेह-ई-पत्रिकाक सहायक
सम्पादक श्री मुन्नाजीक श्री रवीन्द्र कुमार दास (युवा चित्रकार आ
दिल्लीक मैथिली-भोजपुरी अकादमीमे मैथिली परामर्शदातृ समितिक सदस्य) सँ गपशप
मुन्नाजी: कलाक दुनियाँमे प्रवेश
कोना भेल। एकर आधार की छल प्रवेशक पछाति ई दुनियाँ की अनुभूति देलक।
रवीन्द्र कुमार दास: हम नेनेसँ कलामे रुचि
लैत रही, पहिने देबालपर आ तकर
बाद कागचपर भगवान आ स्वतंत्रता-सेनानीक चित्र बनबैत रही। हमर बाबा अमीन छलाह आ नक्शा बनबैत
छलाह तेँ ड्रॉइंग बोर्ड आ रंगक प्लेट हम नेनेमे देखने रही। पटना आर्ट कॉलेजक
पाछाँमे बाबूजी मन्दिरी मोहल्लामे डेरा लेने छलाह। फुटबॉल खेलेबाक लेल आर्ट कॉलेजक
सोझाँक मैदानमे जाइत रही तँ कलाकार लोकनिक काज आ प्रदर्शनी देखी। बाबूजीक बड्ड मान
मनौअल केलाक बाद आर्ट कॉलेजमे एडमिशन लेबाक अनुमति भेटल। तइ दिनसँ कलाक दुनियाँमे
प्रवेश भेल आ आइयो कलाक सेवा कऽ रहल छी। कलाकारकेँ पाइ भेटै वा नै सम्मान जरूर
भेटै छै।
मुन्नाजी: साहित्य आ चित्रकलामे
कोनो सम्बन्ध स्थापित होइछ? एकर एकरूपताकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छी?
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्य आ चित्रकला
दुनू एक मायक बेटी छथि। साहित्ये टा नै कलाक जतेक विधा छै, सभटा एक दोसरासँ जुड़ल अछि। जेना
फिल्ममे संगीत, नृत्य, साहित्य, चित्रकला आ अभिनय सभ
जुड़ल अछि। तहिना चित्रकारोकेँ सभ विषयक अध्ययन-मनन करए पड़ैत छन्हि। कवि चित्र आ
मूर्ति-शिल्पकेँ देखि कऽ
कविता लिखैत छथि। जेना प्रयाग शुक्ल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, हेमन्त कुकरेती आ ऑक्टोवियो पाज
कतेक कविता लिखने छथि।
मुन्नाजी: अहाँक नजरिये
साहित्यकार आ चित्रकार, दुनूमे
के बेशी सूक्ष्मदर्शी होइछ आ कोना? की एकटा चित्रकार ओइ सभ बिन्दुकेँ छू सकैत अछि जकरा कि
साहित्यकार उठबैत रहल अछि।
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्यकार आ चित्रकार
दुनू सूक्ष्मदर्शी होइत छथि मुदा के कतेक सूक्ष्मदर्शी छथि से से हुनकर ज्ञान, तर्कशक्ति आ
काल्पनिकतापर निर्भर करैछ। आम आदमीकेँ आधुनिक कलाक भाषा दुरूह लगैत छै कारण सभ
कलाक अपन-अपन व्याकरण होइत छै।
ओकर आनन्द लेबाक लेल ओकर व्याकरण बुझनाइ जरूरी छै। साहित्य आम आदमीक भाषामे लिखल
जाइत अछि तेँ बेशी असरिकारक होइत अछि। चित्रकार कोनो विषयक चित्रणमे कलाक आर बहुत
रास तत्व जकरा शिल्प कहैत छी, सेहो शामिल करैत अछि।
मुन्नाजी: जेना साहित्यकारक कोनो
विशेष पहिचान नै बनि पबै छै (किछु अपवादकेँ छोड़ि कऽ), ओ साहित्यकेँ अर्थोपार्जनक आधार
नै बना पबै अछि, तइ
सन्दर्भमे चित्रकारक की अस्तित्व छै?
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्यकार पहिचान तँ
बनैत छनि मुदा सेलेब्रिटी जेकाँ सम्मान नै भेटैत छनि। चित्रकार आइ-काल्हि पेज-थ्री पर पसरल रहैत
छथि। ओना कोनो साहित्यकार आ कलाकार दर्शक, पाठक आ आलोचकक स्वीकृतिक बादे सम्मान पबैत छथि। अर्थोपार्जन
सेहो तहीपर आधारित छै। साहित्यकारक आमदनी प्रकाशकक रॉयल्टीपर निर्भर करैत छनि। चित्रकारक
चित्रक दाम बढ़ैत रहैत छै। एक शैलीक कोनो चित्रक नीलामीमे गेलाक बाद ओइ शैलीक सभ
चित्र बिका जाइत छै। एक चित्र पचास बेर बिका सकैत अछि। कलाकृतिक मूल्य ग्राहकक
कलाज्ञान आ कलाकृतिक ऊपर कएल गेल खर्चपर निर्भर करैत छै।
मुन्नाजी: बहुत रास कलाकार हुनर
रहितो कला माध्यमे अपन दशा-दिशा नै तय कऽ पौलक, की कहब अहाँ?
रवीन्द्र कुमार दास: जेना दू लाइनक
कविताकेँ तुकबन्दी कऽ देलासँ बहुत लोक अपनाकेँ कवि बूझऽ लगैत छथि तहिना चित्र
बनेनाइ मात्र सिखलासँ चित्रकार नै भऽ जाइत छथि। अपन रचनाक गुणवत्ताक आ समकालीनताक
सदिखन समीक्षा करऽ पड़ैत छै। तेँ जिनकर रचनामे दम होइत छनि तिनका दशा-दिशा भेटि जाइत छनि।
मुन्नाजी: फाइन आर्ट आ मिथिला
आर्ट (मधुबनी पेण्टिंग) मध्य कतेक समता आ
विषमता अछि?
फाइन
आर्टक सोझाँ मिथिला आर्ट कतऽ अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: फाइन आर्ट आ मिथिला
आर्टक स्तर तँ समान छै। फाइन आर्टकेँ आधुनिक कला आ मिथिला आर्टकेँ लोककला कहलासँ ई
आसानीसँ बूझल जा सकैत छै। दुनू कलाक अपन-अपन इतिहास आ विकास यात्रा छै। मिथिला आर्ट सिर्फ मिथिलाक
कलाकार करैत छथि मुदा आधुनिक कला सम्पूर्ण विश्वक कलाकार रचैत छथि। बिहारक
परिप्रेक्ष्यमे जँ देखल जाए तँ मिथिला कलामे बेसी उपलब्धि भेटल छै। अखन धरि १५ टा
कलाकारकेँ राष्ट्रीय पुरस्कार आ चारिटा केँ पद्मश्री भेटल छनि मुदा आधुनिक कलामे
सात-आठटा कलाकारकेँ तँ
राष्ट्रीय पुरस्कार भेटल छनि मुदा पद्मश्री एको गोटेकेँ नै भेटल छन्हि। गंगा देवी, सीता देवी, जगदम्बा देवी आ
महासुन्दरी देवीक नाम जेना अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर लेल जाइत छन्हि तहिना सुबोध
गुप्ताक अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर पहिचान छन्हि।
मुन्नाजी:अहाँ मैथिली-भोजपुरा अकादमीक सदस्य
हेबाक नाते साहित्यक तँ सेवा कऽ रहल छी, की कलाकार लेल सेहो कोनो योजना अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: हम कलाकार छी तँए कला
आ कलाकारक सेवामे लागल रहैत छी। अकादेमीक माध्यमसँ जँ कलाक विकास होइ तँ खुशीक बात
हएत। हिन्दी अकादेमी नृत्य नाटक करबैत छल तहिना इहो अकादेमी चित्र प्रदर्शनी आ कलापर
सेमीनार करौलक। बिहार सरकारक कला अकादेमी पहिल बेर राष्ट्रीय कला शिविरक आयोजन
कएलक तहूमे हमरा आमंत्रण आएल। हम भाग लेलौं, बड्ड मोन खुश भेल जे आब बिहारमे सरकार कलापर ध्यान देनाइ
शुरू केलक। संस्कृति मंत्री सुखदा पाण्डेयकेँ हम सभ कएकटा सुझाव देलियन्हि।
मुन्नाजी: किछु बर्खसँ देखा रहल
अछि जे मैथिली-भोजपुरी
अकादमीमे भोजपुरिया सदस्यक वर्चस्वे स्थापित भाषा मैथिलीकेँ आजुक चर्चित भेल
भोजपुरी भाषा गरोसने जा रहल अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: अकादेमीक उपाध्यक्ष आ
सचिव जइ भाषाक प्रयोग करता सएह भाषाक वर्चस्व भऽ गेल से कहनाइ उचित नै। साल भरिक
कार्यक्रमकेँ देखलाक बाद ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे दुनू भाषाकेँ बराबर स्थान भेटि
रहल छै।
मुन्नाजी: अहाँ सबहक प्रयासे
किएक ने मैथिलीक स्वतंत्र मैथिली अकादमी हेबा लेल कदम उठाएल जाए, जइसँ मैथिली लेल
स्वतंत्र भऽ कऽ काज कएल जा सकत?
रवीन्द्र कुमार दास: हम काजमे विश्वास करैत
छी, छुच्छे आन्दोलनमे नै।
हमरा लोकनि लड़बे बड्ड करैत छी, कतौ जाति-पाइतक नामपर तँ कतौ क्षेत्रकेँ लऽ कऽ। कतेक लोक छथि जे
गामसँ निकललाक बाद अपन बाल-बच्चाकेँ मैथिली सिखबैत छथि। क्तेक कार्यक्रम, सम्मेलन आ सेमीनार
मैथिलीमे होइत अछि राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर, अखन धरि मिथिला कलाक एक्कोटा
संग्रहालय भारतमे नै बनि सकल अछि।
मुन्नाजी: अकादमी द्वारा गद्य-पद्य दुनू विधामे
मूलतः कथा आ कवितापर काज होइछ। किएक ने दुनू विधाक आनो प्रतिरूप जेना गजल आ विहनि
कथा, जे अविकसित अछि, अग्रिम योजनामे शामिल
कएल जाए, जइसँ ऐ सबहक विकास भऽ
सकए?
रवीन्द्र कुमार दास: अहाँक विचारसँ हम सहमत
छी, कविताक अलाबे साहित्यक
अन्य विधामे कार्यक्रम हेबाक चाही। कथाक पाठ तँ कएल गेल अछि मुदा आर कार्यक्रम
हेबाक चाही।
मुन्नाजी: किछु कथित व्यक्ति
द्वारा ठाम-ठीम ई आरोप लगाएल जा
रहल अछि जे ई मैथिली-भोजपुरी
अकादमी एकटा जाति विशेषक मुट्ठीक संस्था बनि काज कऽ रहल अछि। की स्वतंत्र विचार
देब अहाँ?
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्य आ कलामे कोनो
जाइत नै होइत छै। ई महज एकटा घटिया राजनैतिक सोच अछि। जँ अपने अकादेमीकेँ एकटा
राजनैतिक मंच बुझैत होइ तँ ई पूछब उचित अछि अन्यथा महज एकटा बहन्ना। ऐमे मैथिली
भाषी सदस्य कम नै छथि, हमरा
उम्मीद अछि जे दिनोदिन विकास हएत।
मुन्नाजी: अहाँ सशक्त युवा सदस्य
रूपेँ जुड़ल छी, तँ
युवा रचनाकारक लेल कोनो अग्रिम योजना अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: हमरा लोकनि एकटा चित्र
प्रदर्शनी आयोजित करौने रही “रंगपूर्वी”, ओइमे बेसी युवा कलाकारकेँ चुनल गेल रहनि। तहिना कवि
सम्मेलनमे सेहो लगातार देखि रहल छी जे बेसी युवा लोकनि आमंत्रित रहैत छथि।
१.सुजीत कुमार झा-कथा-फुल
फुलाइए कऽ रहल २.सुमित आनन्द- अक्षरपुरूष-विश्वनाथ
३.नवीन कुमार आशा- फेर सॅ वर रहलाह
कुमार
१.
सुजीत कुमार झा
कथा
फुल फुलाइए कऽ रहल
इन्जनकँे शटिङ्ग करयकँे अवाज आबि रहल छल । बीच–बीचमे
सिट्टी सेहो बाजि उठैत छल । सवारी गाडी आ माल गाडीकँे आबए जाएकेँ अवाज जोड़ सँ
सुनाइ दऽ रहल छल । हम रोबोट जकाँ इम्हर सँ ओम्हर भगैत कखनो ग्यास पर पानि रखैत
छलहुँ तऽ कखनो सोनुकेँ दुधक गिलास हातमे दैत छलहुँ । बीच–बीचमे
हुनको आवश्यकता पुरा कऽ रहल छलहुँ । भोरक समय कोना बित जाइया पते नहि चलैत अछि । ९
बजे धरि ओहो स्टेशन चलि जाइत छथि आ सोनु सेहो स्कुलक लेल बिदा भऽ जाइत अछि । फेर
हम रहि जाइत छी । आ हमर अस्त व्यस्त परल घर, जकरा हम फेर
सँ सजाबय लगैत छी ।
सोनु अपन ब्याग पिठ पर रखलक आ स्कूल चलि देलक, इम्हर
ओहो हमरा बाँहि पर एकटा स्नेही हात थपथपा चलि देला ।
राति सँ भऽ रहल झिस्सी आ बादलक कारण ठण्ढ महशुस भऽ रहल छल । हम आलमारीमे सँ साल
निकालि कऽ ओढि लेलहुँ ।
आगामे टेबुल पर हमरा दूनु गोटेकेँ बिबाहक पहिल वर्षगाँठक खिचल फोटो राखल छल । हम
एक टक्क देखैत रहि गेलहुँ, गुलाबी रंगक
साड़ी पहिरने हम हुनकर कन्हाँ पर माथ रखने छलहुँ । फोटो हम अपना हातमे लऽ लेलहुँ ।
हमरा अपन अतित अपने चारु दिस घुमय लागल प्रतीत भेल । माँ बैठक रुम सँ अवाज लगौलक, ‘पिंकी, कनि
बेटी, चाह बना कऽ ला नऽ ।’
हम भानस घरमे मचिया पर बैसि आलू सोहि रहल छलहुँ, बगलमे
कोबीक तरकारी काटल छल, हमरा कोबीक तरकारी बहुत नीक लगैत अछि, ओकरे
देखि रहल छलहुँ । माँकँे प्रेम भरल अवाज सुनि कऽ हमर हृदय जोड़–जोड़
सँ धड़कय लागल ।
हमरा बुझल छल एहि समय चाहक लेल किए कहल गेल अछि । रातिएमे हम माँ आ बाबुजीक बात
सुनि लेने छलहुँ । ओ बातक आधार पर हमरा ई पत्ता चलि गेल छल काल्हि जखन चारि दिनक
यात्रा सँ बाबुजी घर अएला ओहि क्रममे ट्रेनमे हुनका एक नवयुवक भेटल छल जे अपने
जातिक आ रोजगारमे लागल छल । ओ जयनगर स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर छला । बाबुजी
हुनकर बात सँ बहुत प्रभावित भेला आ किछु मिनेटक यात्रामे भेल बातक परस्पर घुलि मिल
गेलाक बाद बाबुजी हुनका सँ हमरा बिषयमे बात कएने छलथि । आ ओ सहमत भेलाक बाद बाबुजी
हुनका गाम जा कऽ हमर बिबाह एक प्रकार सँ तय कऽ लेने छलथि ।
हम एम ए पास भऽगेल छी, घरमे सभ हमर नोकरीक बिरोधमे अछि ।
जहिना–जहिना हमर उमेर बढि रहल अछि, माँ
आ बाबुजीक चिन्ता सेहो तारक गाछ जकाँ बढि रहल अछि । घरमे दान दहेज देबाक लेल बुहत
बेसी किछु नहि अछि, तैयो ओ अपन बेटीक लेल उपयुक्त बरक
खोजीमे छला । कतेको लोक हमरा देखय आएल, मुदा वा त
बहुत तिलकक अभाव आ फेर हमर पिरसियाम रंगक कारण बातचित बढिए नहि रहल छल । एहि सभबीच
हमर अपन छोट सन सुन्दर घरक कल्पना टुटैत महशुस भऽ रहल छल । बाबुजीक बताओल बातक
आधार पर हमरा मनमे एहि युवककेँ छवि बनि कऽ आबि रहल छल, हृदय
जोड़ सँ धड़ैक रहल छल । धड़कैत हृदय सँ चाह बना कऽ ओढ़नी ठीक करैत बैठक रुममे चलि
गेलहुँ । बाबुजी आ माँ बहुत खुशी देखाइ दऽ रहल छल । माँ ओ युवककेँ सम्बन्धमे
जानकारी देलन्हि ।
हमरा लागय लागल जेना लम्बा पतझरकेँ बाद बहार आबि गेल अछि । चारु दिस गाछ सभ पर
हरियर कनोजरि फुटि गेल अछि ,
अपन भावनामे हम स्वयं बहैत जा रहल छलहुँ, बादमे ओ
युवककेँ फोटो सेहो हमरा देखाओल गेल । देखि कऽ दंग रहि गेलहुँ अनायासे मुहँ सँ खसि
पड़ल अबेरे सँ किए नहि मुदा मोन जोगर जीवन संगी भेट रहल अछि ।
शायद एतेक सुन्दर पढ़ल लिखल युवक सँ हमर संसार बसय बला छल । एहिद्वारे एखन धरि हमर
हिसाब किताब नहि बैसल छल । फोटो हातमे लऽ हम इहे सभ सोचि रहल छलहुँ ।
‘चट्ट मगनी पट्ट बिबाह’ बला
बात भेल । एतेक बढियाँ लड़का कही हात सँ नहि निकलि जाए एहिद्वारे बाबुजी एक महिना
भितरे बिबाह दुरागमन सँ निबैट गेला ।
लड़काक बाबु नहि छल माँ गामेमे रहैत छली । अगहन महिना जाढ़ शुरुए भऽ रहल छल जाहि पर
मन पसिनक सँग हमर कल्पनाक रंग आकाशमे चारु दिस छिरिआए लागल । चारि दिन सासुरमे
रहलाक बाद जयनगर स्टेशनक लेल बिदा भऽ गेलहुँ । ओ स्थानक लेल हम तऽ ओहिना बहुत
उत्सुक छलहुँ । पतिक व्यवहार सेहो बहुत बढियाँ छल । हुनक हँसमुखक अनुहारकँे अएना
जकाँ देखैत छलहुँ । एक दोसर सँ बातचित करैत कखन जयनगर स्टेशन आबि गेल पते नहि चलल
।
‘पिंकी, स्टेशन आबि
गेल ।’ हुनकर अबाज सुनाइ देलक, हम
एकदम चौक कऽ जल्दी सँ उठि अपन माथ झाँपय लगलहुँ । कनिक लाजो भऽ गेल पतिक नोकरी बला
स्थानपर पहिल बेर अएलहुँ अछि । फेर जल्दी–जल्दी हुनकर
पाछु लागि गेलहुँ । ओ ब्याग हातमे लऽ आगा–आगा जा रहल
छला । हम सोचि रहल छलहुँ स्टेशन पर हुनकर चिन्हा परिचयकँे दू तीन गोटे मित्र हमरा
अवश्य लेबए अएता, कारण ओ बता रहल छलथि एतेक जल्दीमे
बिबाह भेल की ककरो आबएकेँ सम्भव नहि छल । मुदा आश्चर्य लागल जखन किओ देखाइ नहि
देलक । हम असगरे समान सभ लऽ हुनकर पाछु चलि रहल छलहुँ । जयनगर स्टेशन सँ किछुए दुर
पर किछु क्वाटर सभ बनल छल । एक केँ बाद एक क्वाटर छुटि रहल छल हमरा बुझएमे किछु
नहि आबि रहल छल । अन्ततः एकटा छोटका क्वाटरक आगा पहुँच कऽ ओ गेटक ताला खोललन्हि ।
छोट रुम ओहि सँ सटले एकटा भानस घर आ पाछूमे बाथरुम छल । भानस घरमे आठ दशटा बरतन आ
कनिमनि डिब्बा राखल छल । एकटा पुरान पेटी सेहो छल ।
ई की ? हम अबाक भऽ हुनका दिस ताकय लगलहुँ । ई
सभ हमरा अपना आपमे अप्रत्याशीत आ अजिब जँका लागल ।
‘एना की देखि रहल छी ? एखन क्वाटर
नहि भेटल अछि । एहिद्वारे एहिमे रहि रहल छी । जहिना क्वाटर भेटत बदलि लेब,’ फेर
ओ बातकेँ आगा बढबैत कहलन्हि, ‘ओना एखन धरि
असगरे छलहुँ किए बड़का घर लितहुँ । आब अहाँ आबि गेल छी तऽ बड़का घरक कोशिश करब ।’ ओ
लग आबि कऽ हमरा बाहि पर हात थपथपा खुशी कऽ देलन्हि ।
एक दू दिनक बाद ओ अपन काज पर सेहो जाए लगलथि आ हम असगरे रहय लगलहुँ । धीरे–धीरे
लग पासक महिला सभ हमरा लग आबय लगली । एक दिन चालीस पैतालीस बर्षक एक महिला हमरा घर
बाटे जाइत छली । हमरा देखि कऽ टोकि देली । भेष भुषा आ बातचित सँ पत्ता चलल ओ
एतयकेँ स्टेशन मास्टरक कनियाँ छथि । एखन धरि जतेक महिला अबैत छली, पारस्परिक
बिचारधारा आ स्तरमे समान्य लगलाक कारण किछु जमि नहि रहल छल । ई सोचि कऽ जखन स्टेशन
मास्टरक कनियाँ अछि तऽ बातचितमे आनन्द आओत, हम हुनका
आदर सँ घरमे अनलहुँ आ खुलि कऽ बातचित करय लगलहुँ ।
‘लगैत अछि, अहाँ बहुत
पढल लिखल छी ?’ एका एक ओ पुछलन्हि ।
‘हँ हम एमए पास छी’ हम गर्व सँ
कहलहुँ ।
‘अहाँकँे बुझल अछि, अहाँक पति एतय
की करैत छथि?’ ओ गम्भिरता सँ पुछली ।
‘हँ, एतय ओ सहायक
स्टेशन मास्टर छथि ।’ हम ओही गर्व सँ उत्तर देलहुँ ।
‘ई अहाँ सँ केँ कहलक अछि ?’ ओ
फेर सँ प्रश्न कएली ।
‘ओहे हमरा आ हमर नैहरक लोककँे कहने छलथि ।’ हम
आब सतर्क भऽगेल छलहुँ आ संगहि आश्चर्य सेहो भऽरहल छल की कतहुँ गरबर तऽ नहि छैक ।
‘तऽ आब सुनु, अहाँक संग
धोखा भेल अछि । ई जगदिश एहि स्टेशनक पैट म्यान अछि ।’ ओ
एक एक शब्द पर जोड दैत कहलन्हि ।
हमर माथ घुमय जकाँ लागल एखन धरि हमरा सन्दर्भमे जतेक घटना घटि रहल छल, ओ
हमरा अप्रत्याशित लागि रहल छल, ई नयाँ बात
सुनि हम स्तब्ध भऽ गेल छलहुँ । ई तऽ हम कल्पनामे सेहो नहि सोचि सकैत छलहुँ । हम ओ
महिलाके मुहँ दिस देखि रहल छलहुँ । हमर मोन एखनो अपन प्रियतमक लेल ई बात मानयकँे
लेल तैयार नहि छल ।
शायद ओ हमर मोनक बात बुझिगेल छली । दू मिनेटक चुप्पिक बाद हमरा कनहा पर हात रखैत
कहलन्हि, ‘एना लगैत अछि अहाँकँे हमरा बातक
बिश्वास नहि भऽ रहल अछि । हम अहाँकेँ धोखामे राखय नहि चाहैत छी । एहिद्वारे काल्हि
भोर दस बजे अहाँ हमर घर चलि आउ ओ तरकारी लऽ कऽ आओत । हमरा घरक तरकारी ओहे अनैत अछि
।
तखन अहाँकँे सभ सत्य पत्ता चलि जाएत ।
ई कहि कऽ ओ तऽ चलि गेली, मुदा हमर मस्तिष्कमे एकटा बबंडर उठल
छल ।
हम ओहि ठाम बैसल आँखि सँ दूर किछु देखय लगलहुँ । हमरा एहि सभ पर बिश्वासे नहि
भऽरहल छल । मुदा बेर–बेर एकटा बात घुमि रहल छल ओ अपरिचित
महिलाकेँ हमरा सँ एहन झुठ बाजयकँे किए आबश्यकता पड़ि गेल ।
मोन कहलक, ‘पहिने सही बात पता लगाली, फेर
हुनका सँ किछु कही’ ई सोँचि कऽ ओहि दिन हम समान्य जकाँ
बनल रहलहुँ ।
दोसर दिन भोर दस बजे हुनका गेलाक बाद स्वयं तैयार भऽ कऽ ठीक दस बजे छोटका क्वाटर
छोड़ि बड़का क्वाटर दिस बढि गेलहुँ ।
‘आउ, बैसु ।’ स्टेशन
मास्टरक कनियाँ बहुत स्नेह सँ हमरा अपना लग बैसा लेलन्हि । हम दूनु गोटे आपसमे
बातचित कऽ रहल छलहुँ की ओ तखने आबि गेला । बास्तबमे तरकारीक बड़का झोड़ा लेने घाम सँ
तर उपर छलथि ।
जहिना हम दूनु एक दोसरकँे देखलहुँ, ओहो स्तब्ध
रहि गेला, किछु देरक लेल ओ ठगल जँका ओतहि ठाढ़
रहि गेला । फेर मनकेँ शान्त करैत ओ जल्दी सँ बाँकी पैसा स्टेशन मास्टरक कनियाँकेँ
पकरा तिर जँका भागि गेला ।
आब सभ स्थिति हमरा आगा स्पष्ट भऽ गेल छल । हम लजाइत जल्दी सँ घर आबि द्वार बन्द कऽ
चौकी पर उल्टा सुति हिचैक– हिचैक कऽ
कानय लगलहुँ । की ई धोखा खाएकँे एतेक बड़का संसारमे हमही रहि गेल छलहुँ । चौबिस
बर्षक बाद एकटा छोटका बगैचा चाहलहुँ ओहो काँट सँ भरल निकलल ।
हमरा हुनका पर बहुत तामस आबि रहल छल । ओ बढ़िया कपड़ा पहिर, अपनाके
स्मार्ट देखा कऽ हमरा बाबुजीकेँ धोखा देलन्हि की ओ सहायक स्टेशन मास्टर छथि, जखन
की छथि एकटा पैट म्यान ।
जीबनक उल्लास शुरु भेलो नहि छल की समाप्त होबय जकाँ प्रतित होबय लागल । हम सोचि
रहल छलहुँ, ‘नैहरमे, कुटमैतामे, सँगीमे
कोना मुहँ देखाएब । सभ हमरा पर हँसत की पैट म्यान सँ बिबाह कएने अछि । माँ बाबुजी
सेहो भग्यकँे लऽ कऽ कन्ता ।’
हमरा दिमागमे रंग–विरंगक बिचार आबि रहल छल । हम दिन भरि
किछु नहि खेलहुँ आ नहि कोनो काज कएलहुँ । जखन ओ ६ बजे अएलाह तखने हम चौकी पर सँ
उठि हुनका खुब बात कहलहुँ ।
‘अहाँ हमरा धोखा किए देलहुँ ? हमर
जीवन किए बरबाद कएलहुँ ? एकटा एमए पास लडकीकँे कनियाँ बना कऽ
किए अनलहुँ’ हम हुनका पर एकदम बरसि रहल छलहुँ ।
ओ एक दम शान्त भऽ हमरा दिस देखैत बजला, ‘नहि पिंकी, एहन
बात नहि अछि । हमरा मोनमे कोनो धोखा देबाक बात नहि छल, हम
अहाँ सँ पे्रम करैत छी आ करैत रहब .....’
बात काटि कऽ हम तेजी सँ हुनकर नजदिक आबि कऽ चिचिएलहुँ, ‘पे्रमक
एतय की प्रश्न अछि ? अहाँ अपन औकात तऽ देखु एकटा पैट म्यान
भऽ कऽ अहाँ हमरा सन लडकी सँ बिबाह कएलहुँ आ आब कहैत छी धोखा नहि देलहुँ अछि । हम
अहाँ सँग नहि रहि सकैत छी ।’
‘सुनु पिंकी हम अहाँकेँ कोनो बातक लेल जोड़ नहि देब मुदा हम
साँच कहैत छी, हम एसएलसी धरि पढल छी आ आगा पढयकँे
हमर बहुत इच्छा छल मुदा बाबुजीक आकास्मिक मृत्यु आ धनाभावक कारण हमर पढाइ रुकि गेल
। एसएलसी कएलाक बाद कतहुँ नोकरी नहि भेटल । अन्तमे एहिठाम काज करय लगलहुँ ।’ ओ
गारा बाझल अबाजमे कहि रहल छलथि ।
‘हमरा ई सभ नहि सुनयकेँ अछि आ नहि अहाँकँे मजबुरीमे हमर कोनो
दिलचस्पी अछि । हम आब एतय एक क्षण नहि रुकि सकैत छी । काल्हि भोरे गाडी सँ चलि
जाएब ।’
‘हम अहाँकेँ रोकब नहि आ नहि अहाँकेँ रोकयकेँ अधिकार अछि । हम
अपन गल्ती स्वीकार करैत छी, मुदा एकटा
बात धैर्यताक संग सुनु पिंकी, हम ई सोचि
कऽ बिबाह कएने छलहुँ जे अहाँके हिम्मत पाबि कऽ आगाकँे पढाइ पुरा करब । हम जे सपना
देखने छी, ओ एहि जीवनमे पुरा करब । मुदा अहाँ
नहि चाहैत छी तऽ अहाँकँे इच्छा ।’ ओ हमरा
नजदिक अबैत बजलथि आ हमरा कनहापर हाथ राखयकँे प्रयास कएलन्हि । मुदा ओहि समय हम एक
घाइल शेरनी जकाँ तमसायल छलहुँ । हम हुनकर हात जोड़ सँ झटैक देलहुँ आ बिना हुनका
देखने रुमकेँ भितर सँ बन्द कऽ पड़ि रहलहुँ ।
ओ राति निन्द हमरा सँ कोशो दूर छल । बाहरक पद चाप सँ हमरा आभास भऽ रहल छल ओ
बरण्डेमे एम्हर–ओम्हर टहैल रहल छला । बहुत देर धरि हम
आबेशमे किछु नहि किछु सोचैत रहलहुँ ।
बहुत देरक बाद जखन मोनक बिहारि कनिक कम भेल तखन बिचार करय लगलहुँ, ‘काल्हि
हमरा जेबाक अछि । मुदा जाएब कतय ? बाबु जीक लग
? मुदा ओ घर तऽ हम छोड़ि आएल छी । आब की ओहने आदर हमरा फेर
भेटत ? सभ खिस्सा बता देलाक बाद बाबुजी उल्टे
तमसेता । हुनकर तबीयत आओर खराब भऽ जाएत । माँकेँ तऽ ओहिना ब्लड प्रेसर अछि, ओ
कहुँ बेहोस भऽ गेल त ? निश्चय हमरा सहानुभूति भेटत, मुदा
कहिया धरि ? धीरे–धीरे
सभ समान्य भऽ जाएत । मुदा हमराकँे अपनाओत ? हमरा भविष्य
पर परित्यक्ताक छाप लागिए जाएत ।
‘पड़ोसी, सँगी, सरकुटुम्ब
जे सुनत, हमरा मुहँ पर सान्तवना देत,
मुदा पीठ पाछू हमर मजाक उडाओत । एतय सँ गेलाक बाद जे भविष्य हम बनाबय चाहैत छी की
ओ सम्भव हैत ? भवाबेशमे कोनो नयाँ कदम उठाबय सँ
पहिने हमरा ई बढियाँ जकाँ सोचि लेबाक चाही की नयाँ चाल टुटल जीवनकेँ जोड़ि सकत वा
नहि ?
‘हुनका बदनामी कएला सँ की हमरा बदनामी नहि हैत ? जिनका
सँग सुख दःुख निर्बाह करबाक बचन लेने छलहुँ, यदि ओ
गल्तीए कएने छथि तऽ की हम एहि दुखित हालतमे हुनका छोड़ि चलि जाइ ? तऽ
हम कि करु ?’ हमर पढाई बिबेक काज कएलक । हमरा धीरे–धीरे
एना लागय लागल, ‘हमरा ई घर नहि छोड़बाक चाही । आब तऽ
हमरा अपन एहि काँट भरल बाटिकाकँे कोशिश कऽ कऽ फुल सँ भरल बनाबयकेँ चाही । चिड़ै जखन
खोता बनबैत अछि तऽ खरपतारसभ निच्चा खसैत रहैत अछि मुदा ओ कहियो हिम्मत नहि हारैत
अछि । अपन खोता पुरे करैत अछि । फेर हम तऽ पढल लिखल महिला छी । ओ कहि रहल छथि तऽ
शायद ओहो ठीक होथि । सम्भव अछि अपन साधना अधुरा रहलाक कारण आब हमर माध्यम सँ पुरा
करय चाहैत होथि आ फेर हम तऽ हुनकर अर्धागिनी छी । महिला तऽ शक्ति होति अछि, पुरुषकँे
पौरुष स्त्रीसँग पुरा होइत अछि ।
‘हमरा एखन हिम्मत नहि हारबाक चाही । जखन एहि घरमे आबिए गेल
छी तऽ एहि घरकँे रोशन करबाक प्रयत्न करब ।’
पुरे राति इहे सोच साँचमे निकलि गेल । जखन सुति कऽ उठलहुँ तऽ उज्जर किरण जँका हमर
मन सेहो साफ भऽ गेल छल ।
ओ धुनक धनी छला ।ओ अपन पढाइ फेर सँ शुरु कएलन्हि । हमहुँ बोर्डिङ्ग स्कुल पकड़ि
लेलहुँ । दूनुकँे त्याग, तपस्या आ साहस बास्तबमे रंग देखौलक ओ
सात सालमे एमए कऽ लेलन्हि । ओ बास्तवमे सहायक स्टेशन मास्टर बनि गेला । हमर
बँगैचामे छोटका फुल सोनु सेहो चलि आएल । आब हम नोकरी छोड़ि देने छी ।
कतहँु दुर सँ आबि रहल सीट्टीक आबाज सँ हमर ध्यान भंग भेल । हम फोटो टेबुल पर राखि
देलहुँ आ खिड़की सँ बाहर दिस तकलहुँ ....कतहुँ दूर रेलक पटरीकँे दूनु कोर एक दोसर
सँ मिलैत नजरि आबि रहल छल ।
२.
सुमित आनन्द
अक्षरपुरूष-विश्वनाथ
समाजशास्त्रक लब्धप्रतिष्ठ विद्वान प्रोफेसर डॉ0 विश्वनाथ अपन अमर कृतिसँ मैथिली
साहित्यमे जे स्थान प्राप्त कए चुकल अछि से वस्तुतः मैथिलीयोक विद्वान, प्राध्यापक
सुभचिन्तक लोकनिक हेतु दुर्लभ अछि। ई अपन छात्रावस्थहिसँ प्रायः महाविद्यालयमे
प्रवेष करितहि पठन-पाठनक विशय किछु रहनि मुदा मैथिलीक सेवामे संलग्न भए गेलाह। ओहि
समयमे समाप्ताहिक मिथिला मिहिर सबसँ लोकप्रिय आ दीर्घजीबी पत्रिका छल जाहिमे हिनक
रचना मासमे एक वा दूटा अवश्य छपैत छल।
मैथिली साहित्यमे डॉ0 विश्वनाथ एकदिस जँ व्यंग्य कथाकारक रूपमे प्रतिष्ठित भेलाह
तऽ दोसर दिस ई एकटा नव विद्या पर कलम उठओलनि जे थिक साक्षात्कार विद्या। एहि
विद्यापर ओहि समयमे बहुत कमे लोक लिखने छलाह।
डॉ0 विश्वनाथक तीन गोट प्रकाशित पोथी अछि अक्षर-अक्षर अमृत, युगान्तर
एवं जुलुस रूकल अछि। एहिमेसँ पूर्वक दुनू साक्षात्कार विद्या पर अछि आ तेसर कथा पर
आधारित।
हिनक अक्षर-अक्षर अमृत जे जहिना वृत्यनुप्रास अछि तहिना ओहिमे संगृहीत सात गोट
महापुरूषक अन्तर्वीक्षा वस्तुतः साहित्यक अलङकारे थिक। एहिमे जाहि वरेण्य साहित्यकारक
साक्षात्कार प्रस्तुत कयल गेल अछि ओ थिकाह-मधुप, किरण, हरिमोहन
झा, तन्त्रनाथ झा, सुमन
यात्री एवं आरसी प्रसाद सिंह। डॉ0 साहेबक सर्वप्रथम अन्तर्वीक्षा 1976 मे छपल जे
कवि चूड़ामणि ‘मधुप’ संग
छल आ तकर बाद तऽ ओ गति पकड़ि लेलक। एहिमे जाहि सातगोट शीर्षस्थ साहित्यकार लोकनिक
साक्षात्कार प्रस्तुत कयल गेल अछि तनिक जन्म 1906 सँ 1911 केर कालखण्डमे भेल छल।
समाजशास्त्री डॉ0 विश्वनाथक दोसर साक्षात्कारक पोथी थिक युगान्तर जाहिमे 1912 सँ
1933 धरिक कालखण्डसँ नओ गोट मूर्धन्य साहित्यकारक अन्तर्वीक्षा प्रस्तुत कयल गेल।
एहि पुस्तकमे जनिक अन्तरंग वार्ता संगृहित अछि ओ थिकाह - व्यास जयकान्त मिश्र,
उमानाथ झा, जटाशंकर दास, गोविन्द
झा अणिमा सिंह, आनन्द मिश्र एवं लिली रे। ई नवो
व्यक्तित्व प्रातः स्मरणीय छथि। मैथिली साहित्यक रीढ़ छथि।
डॉ0 विश्वनाथ जेहने आलोचक तेहने कथाकार जेहने कवि तेहने व्यंग्यकार जेहने
भाषणकर्ता तेहने मंचसंचालक। हिनक कथा संग्रह ‘जुलुस
रूकल अछि’ अत्यन्त रोचक ओत्सुक्सवर्धक आ
शिक्षाप्रद अछि। मैथिली साहित्यमे हिनक कथा संग्रह-प्रर्याप्त लोकप्रियताकेँ
प्राप्त कयलक। हमर विश्वास अछि जे डॉक्टर साहेब अपन एहने रचना सभसँ मैथिली साहित्यक
उद्यानकेँ सुरभित करैत रहताह।
सुमित आनन्द
मैनेजिंग एडीटर
सोसाइटी टुडे,
अम्बेदकर स्टडीज सेन्टर
सी. एम. कॉलेज, दरभंगा
३.
नवीन कुमार आशा
फेर
सॅ वर रहलाह कुमार
आजुक परिस्थिति मे अगर कोनो वरक कथा-वार्ता आबै छनि तँ ओ हुनका पर उपकार होइत अछि, आ
अगर वर लोकनि कथाक चर्चा सुनै छथि तँ ओ भलेहि उपर सॅ तमसाइथ मुदा अंदर सॅ खुश रहै
छथि, आखिर आबि गेल वैवाहिक जीवनक समय।
एहिना
किछु घटलनि हमर पिताजी संग।
आ
सोचू अगर कोनो वरक कथाक गप्प ओकरा सॅ कएल जाए तँ ओ कते प्रसन्न होएत, एहिना
हमर पिताजी संग भेल।
संजीवजी
हालहि मे गाम आएल छलाह, हमर पिसियौत बहिनक विवाहमे। ओइ ठाम
हुनकर विवाहक गप्प चलल तँ ओ काफी खिसिया गेलाह मुदा ओ भितरकी मुस्की मारैत छलाह।
विवाहक दोसर दिन संजीवजी वापिस दिल्लीक रेल पकड़ि चलि गेलाह। आब विवाहक हिसाव सॅ एक
बेर कनियाक द्वितीय यात्रा होइत अछि, आई भोर मे
बहिनकेँ अयबाक छलनि से आनइ लेल हम आ हमर भाइजी गेलौंह,
ओतय काफी मजा आएल, आ ठाकुरजी सेहो अयलाह, आजुक
कार्यक्रम छनि किछु विध-बाध हेतनि। ठाकुरजी (वरक) पहिल यात्रा
अपन सासुरक काफी तनाव पूर्ण होइत अछि, काफी शुभ-शाभ्र
बैसल छलाह लेकिन कते काल ओहो बरदा्स्त करताह किएक तँ सार-साइर हुनका लग गप्प दैत
छलखिन। आब सॉझुक पहर अछि, सभ बइसल
छथि ओइ बीचमे बिना पहिचानल नम्बर सॅ फोन केनाइ आरंभ भेल, ओइ
क्रममे एकटा फोन संजीवजी लग आएल। संजीवजी कार्यालयमे छलाह।
ओम्हर
सॅ आवाज आएल ‘‘बौआ बाबूजी छथि’’....
संजीवजी...... नहि.....
ओम्हर सॅ ........ श्री कांती जी राय, दुर्गागंज
सॅ बाजि रहल छी, अहॉक बाबुजी सॅ काज छल कृपा कऽ कय
हुनकर पता देब , किछु आवश्यक काज छल।
संजीवजी.........जी अवश्य (फेर हमर पिताजी सोचलथि, आखिर
की बात) फेर बाजला.....जी देखि कऽ दैत छी।
....
श्री
कांतिजी राय.............बौआ....बौआ.......अहॉ की करै छी..(अत्यधिक कम स्वरमे) ऐ
आवाज पर सभ हॅसय लागल तँ राय जी फोन काटि देलखिन।
कनिक
काल बाद फेर फोन भेल।
राय जी........बौआ अहॉ की कतय कार्य करै छी...
अहि पर संजीवजी .......जी हम अपनेकेँ कनि कालमे फोन करै छी?
संजीवजी कने प्रसन्न छथि की आखिर हमर नम्बर आएल।
आ एम्हर सभ कियो हल्ला केलक ‘‘ बनि गेलाह
बुरबक।
फेर
ओही राति मे फोन नै भेल आ एम्हुरका लोग बुझथि जे हमरा लोकनि तँ नहि बनि गेलौंह
बुरबक।
फेर भोर भेल। आइ बहिनकेँ लऽ कय हुनक सासुर जेबाक छल, हम
सभ भोरे उठलौं, फेर ठाकुरजी लग गेलौं तँ ओ पुछलथि जे
ओ एला क?
तँ
जवाब देलयनि की नहि-नहि।
फेर हम सभ श्री कांतीजी रायक प्रतिमूर्ति संग लऽ गाड़ी मे बैसलौं, कनि
काल सन्नाटा छायल किए तँ बहिन कानै छलीह। किछु कालक बाद हम सभ चौक क्रास कयलौं तँ
ठाकुरजी कहलथि- ‘‘रायजी केँ फोन घुमाओल जाय,
फेर एक दू बेर ओ नहि उठेलाह, तँ हम सभ
कियो सोचलौं जे बनला रायजी बुरबक।
फेर
कनिक काल मे एकटा मिस कॉल आयल तँ फेर रायजी केँ फोन घुमायल गेल, एहि
बेर सभ अत्यन्त चुप छल, फेर शुरू भेल वरक(संजीव) वार्तालाप।
रायजी
..... बौआ हम राय जी़
संजीव....... जी
रायजी.........बौआ अहॉ पता नहि प्रेषित कयलौं, कनि
अहॉक बाबुजी सॅ काज छल।
संजीव..........जी हम राति मे व्यस्त छलौं।
( गाड़ी मे सभ हॅसय लागल फेर इशारा भेल चुप रहबाक)
रायजी.........बौआ, एकरा खराब नहि मानब,
एकटा गप्प पूछी?
संजीव.........जी अवश्य।
रायजी.........बौआ की करय छीयै अहॉ,
संजीव..........(काफी कम स्वर मे) जी
हम नोएडा मे कार्यरत छी, एकटा मल्टीनेशनल कंपनी मे।
रायजी.........(काफी कठोर स्वर मे) वाह...वाह
बौआ
एकटा गप्प बुझबाक छल, पुछु.......
संजीव...........जी अवश्य
रायजी...........हमर जेठ बालक ग्रेटर कैलाश मे रहैत छथि, अगर
अहॉ खराब नहि मानी तँ ओ अहॉ सॅ भेट करऽ चाहैत छथि की अहॉ हुनका सॅ भेट कऽ सकै
छियैन्हि।
(संजीव
कनी काल सोचलाह फेर बुझलनि की कथा वार्ताक गप्प अछि)
संजीव..........जी
हमर रात्री कालीन कार्य अछि अगर अपनेकेँ ऐतराज नहि हुअए तँ भोर मे भेट कऽ सकै छथि।
रायजी...........बौआ पता तँ अहॉ पठा दिअ किएक तँ हम विदा भऽ गेल छी, अपनेक
बाबुजी सॅ आवश्यक कार्य अछि, अगर एक बेर
रास्ताक जानकारी दऽ दैतौंह तँ ठीक रहितय।
(फेर की छल उत्साहित संजीवजी पता बता देलखिन्ह आ राय जी सेहो बौआ........बौआ कऽ
रहल छलखिन्ह। राय जीकेँ सख्त हिदायत भेटल रहन्हि की अंग्रजी शब्दक प्रयोग नहि
करथि।)
संजीव.......... जी हम कनि देर मे पता भेज दैत छी।
रायजी......... अच्छा.....अच्छा.....(कनि मुस्कुराइत) फोन काटि दैत छथि।
आब आगूक ब्यूह रचना तैयार भेल, ठाकुरजी
बजलाह.... आब की करब, ममिया ससुर कें तँ मन मे लडडू फूटैत
हेतैन्हि।
ओना
संजीव प्रफुल्लित छलाह, आब विवाहक समय ऐलन्हि जे।
भोरे-भोर हम सभ कियो बहिनक सासुर पहुचलौं, ओतय कनी काल
धरि ऐ प्रकरण पर गप्प चलल आ सभ इंतजार करय लगलौं, पर
ओइ दिन केओे नहि आयल। आब हम सभ एकटा समयक इंतजार कऽ रहल छलौं, राय
जी सेहो प्रसन्न छलाह।
आइ निकिताक द्वितीय-यात्राक बाद पहिल दिन हुनकर सासुर हम आ प्रत्युष (भाईजी) दुनु
गोटा जा रहल छी, किएक तँ ठाकुरजीक किछु समान हमरा लग
छलन्हि। हम सभ ओतऽ पहुंचलौं, ओ सभ काफी
सुशील आ विनम्र छथि। हमरा सभकेँ जिज्ञासा छल की आखिर संजीव किछु कयलथि की नहि। ओतय
पहुंचलाक बाद पता चलल की केओ नहि भेजल गेल।
ठाकुरजी
कहलथि की एतय सभकेँ रायजीक गप्प कहलियैन्ह तँ सभ कियो खुब हँसलथि। फेर राय जी
सोचलाह की फोन कएल जाय की नहि, तँ निष्कर्ष
निकलल की नहि एखन प्रतिक्रिया आबय दियौ।
हम
सभ सायं काल वापस आबि गेलौं। घर पर पहुंचलाक बाद संजीवक बाबुजीक फोन हमर मोबाइल पर
आयल, तँ हम खूब नीक जकॉ गप्प कयलौं। फेर
हमरा सॅ गप्प करैक क्रम मे कहलथि की कनी फोन अपन बाबूकेँ दियौन्ह। हम पछबरिया घरक
बरामदा पर बइसल अपन बाबूकेँ फोन देलियन्हि आ कहलियैन्ह जे दादाजीक फोन अछि, आ
ओतय गप्पी जकॉ बैसि गेलौं, किएक तँ मोन
मे होइत छल की हो ने हो कथा वार्ताक गप्प कहबे करथिन्ह।
गप्प
आरंभ भेल .... दादाजी हाल चाल बूझैक बाद कहलथिन्ह की संजीवक विवाहक गप्प भऽ रहल
छनि काते कात गप्प छनि।
बाबु............. कतय सॅ , कोन गाम
दादाजी...... दुर्गागंज, बुझाइ अछि मजिस्ट्रेट परिवार सॅ
बाबु............. कोन परिवारक छथिन्ह
दादाजी........चौधरी परिवार सॅ शायद
बाबु............ की चौधरी परिवार या राय परिवार
दादाजी.........ओएह किछु, वर सॅ गप्प
भेलन्हि पर वर नहि बुझय देलखिन्ह जे ओ वर छथि।
बाबु............. अच्छा...अच्छा (हॅसिते-हॅसिते)
(कात मे बैसल राय जी सेहो मंद मंद हॅसैत छथि ओहि बातक जानकारी ककरो नहि छनि सिवाय
एक दू गोटा छोड़ि कऽ)
दादाजी..........हॅ आबथि तखन सोचि छी पर वर नहि तैयार छथि
बाबु.................नहि नहि हम बुझा देबन्हि , नीक
घर छै, करता करता..
दादाजी...........हॅ मंगैत छलखिन्ह नम्बर आ पता
बाबु ............ हॅ आर सभ ठीक, संजीव सभ
ठीक ने
दादाजी............हॅ हॅ , ठीक छथि।
फेर
फोन काटि दैत छथिन्ह आ आब राय जी बाबु सभ टा गप्प बतबै छथि,
फेर सभ हॅसै छथि। आ फेर बाबु बिगड़ै सेहो छथि, एना
नहि करैक चाही, फेर हॅसै छथि, बाते
तेहन छैक। आब ऐ बातक जानकारी ठाकुरजीकेँ देलियनि तँ ओहो प्रसन्न भेलाह आ कहलथि
आखिर फँसि गेलाह हमर ममिया ससुर विवाहक चक्कर मे। फेर सब एहि विषय पर सोचैत सोचैत
कय काफी हॅसला। फेर रायजी काफी उत्साहित छलाह आखिर कथा प्रगति पर छनि।
आब फेर सभ विचार कैलथि की फोन कएल जाय वा नहि तँ ठाकुरजी विचार देलखिन्ह की नहि एक
बेर आर प्रतिक्रिया आबै दियौ तखन ई प्रक्रम आगु बढ़ाएब। आखिर संजीव विवाह लेल
फुर-फुर कय रहल छथि, आइ ई गप्प बुझी कऽ सभ (खास कय कऽ
रायजी) अत्यन्त प्रसन्न छथि।
ओना संजीवजी सेहो ऐ कथा वार्ताक गप्पकेँ तिल मे तार कऽ सभकेँ बतबैत छलखिन, एहि
बातक जानकारी भेटल रवि दिन, ओहि दिन
बाबूक छुट्टी रहैत छनि। हम, बाबु आ हमर
माइ तीनु गोटा घूर तपैत रही किएक तँ दिसम्बरक महिना आ जाड़क सितलहड़ी रहैक, ओहि
क्षण हमर बाबुक मोबाइल पर एकटा फोन आयल, बाबु अपन
चश्मा पूवरिया घर मे बिसरि गेल छलाह ताहि द्वारे हमरा कहलथि, ककर
फोन अछि? हम देखल तँ ओ संजीवजीक बड़की बहिन
रितुक फोन छल दिल्ली सॅ। बाबु फोन उठेलाह आ रितुक संग गप्प मे लागि गेलाह।
कुशल-पातीकह बाद ओ हमर माइक संग गप्प करय लगलीह। विवाह दानक गप्प भेल आ फेर ओ माइ
सॅ पुछलखिन्ह की.... संजीव किछु कहलथि की.....। (कात मे रायजी सेहो छलाह गप्प
सुनैत)
माइ........ नहि नहि कहॉ गप्प सुनल हँय, विवाह मे जे
आएल छलाह ओकर बाद नहि गप्प भेल, किए?
रितु........ हुनका फोन पर कोई कथा वला फोन केने छलखिन्ह, पप्पाक
पता आ नम्बर मॅगैत छलखिन्ह, संजीव कहलथि
की गप्प करै लेल 10.30 बजे राति मे फोन केने छलखिन्ह आ
कहलखिन्ह बौआ अहॉक बाबू सॅ गप्प छल किछु आवश्यक गप्प अछि। संजीव कहलथि की दू तीन
बेर नम्बर देलियनि।
माई...... फेर की कहलन्हि (हॅसिते हॅसिते)
रितु........बुझै नै छियै, ओकरा ओनाहियो
विवाहक गप्प सॅ कते चिढ़ छै।
माइ...... लेकिन आब विवाह करैक चाहियैन, हम तँ
दरभंगा मे कच कचा दैत छलियन्हि तँ कहै छलाह छोड़ू, नै
करब तँ कतौ कऽ लेब, फेर की भेलन्हि यै।
रितु.........ओ तँ सोचलथि जे पापा क कोनो दोस्त हेथिन्ह, तँय
पूरा नीक जकॉ गप्प केलखिन्ह। भौजी यै कहलक की हम तँ हुनका काकाजी बुझै छलियनि पर ओ
तँ ससुरजी बनय चाहैत छथि। यै भौजी कहै छै संजीव जे दू साल विवाह नहि करब, की
करतै पता नहि।
माइ....... लेकिन यै आब गप्प हेतनि तखन ने दू साल मे विवाह हेतनि, आब
कऽ लेताह तँ काकीकेँ सेहो नीक हेतन्हि, कतय सॅ एलनि
हॅ...
(ओनो राय जी ऐ गप्पकेँ वर्चस्व लऽ कऽ सुनि रहल छलाह आ सोचि रहल छलाह की संजीव कते
आगि मे घी डालि कय गप्पकेँ प्रस्तुत केलाह अछि। )
फेर रायजी घुर लग सॅ उठि कऽ ऐ बातक जानकारी ठाकुरजी आ निकिता केँ देलखिन्ह, निकिता
एखनि सासुर मे छथि, ओ कहलक की रायजी हम गप्प करी की ? रायजी
कहलथि की नहि, आब फोन पर कथा उपस्थित करै छी आ अपन
माई सॅ विकल वावुकेँ (संजीवक पिताजी) गप्प करा दैत छियनि। फेर रायजी ठाकुरजी सॅ
सेहो गप्प कयलथि। ठाकुरजी बजलाह की गप्पकेँ तिलक तार कऽ प्रस्तुत कैल जा रहल अछि, आब
की करब रायजी ?
रायजी........
नहि नहि बढ़ै दियौ एखन किछु बाकी छै, संजीवकेँ
आनंद लियै दियौन्हि एखन।
किछु दिनुका बाद रायजी निकिताक सासुर गेलाह फेर ओहि ठाम सॅ विकल बाबुकेँ फोन
केलखिन्ह आ कथा उपस्थित कऽ देलखिन्ह।
ओना हम ई सभ बुझि कय अपन काका (संजीव) केँ फोन केलियैन्ह आ हुनका बधाइ देलियैन्ह, आ
हुनका सॅ पुछलियैन्ह की विवाह करबै ने काका, तँ ओ कहलथि
की नहि यौ अखन दु साल नहि करब। हम कहलियैन्ह दु साल तँ विवाह होइत होइत लागि जएबे
करत। ताहि पर काका एकदम खिसिया गेलाह आ फोन काटि देलथि।
सभ
हुनका मनबै मे विफल रहल फेर हमर बाबु संजीव केँ फोन कैलथि आ हुनका सॅ गप्प कैलथि
तँ ओ किछु विंदु पर गप्प सुनि कय विवाह करै लेल तैयार भऽ गेलाह।
संजीवजीक संग हुनकर परिवारक सब सदस्य काफी प्रसन्न छथि,
किएक नहि हेबाक चाहियैन्हि विवाह जे प्रस्तावित छनि।
फेर अचानक जहि दिन रायजी केँ विकल बाबु ओतय जेवाक छलन्हि ओहि दिन संजीवक मोबाइल पर
एकटा फोन अबैत अछि....
संजीव........ हैलो...हैलो...
अपरिचित..... संजीवजी, हाय हम स्मिता झा बाजि रहल छी
संजीव....... जी कहू, की बात?
स्मिता.........जी हमरा अहॉ सॅ किछु गप्प करबाक छल,की
अपने धर सॅ बाहर छियै, नहि तँ जखन बाहर होयब तखन मिस कॉल करि
देब?
संजीव.........जी, अखन कहि सकैत छी, हम
बाहर छी
स्मिता..........जी, हमर पिताजी अहॉ ओतय कथा लऽ कऽ गेलाह
अछि, हम अहॉकेँ विवाहक बाद परेशान आ दुखी
नहि देखय चाहैत छी ताहि लेल किछु गप्प कहय चाहैत छी। हम अहॉकेँ देखने छी, अहॉ
सुंदर आ सुशील छी पर हम अहॉ सॅ विवाह नहि कय सकैत छी आ ई गप्प हम ककरो नहि कहि
सकैत छियैक तँय अहॉ अपने ई कथा तोड़ि दियौ अहॉ सॅ विशेष आग्रह अछि।
संजीव.......... अहॉ चिंता जुनि करू, अहॉ ई गप्प
दोस्त बुझि बतेलौंह अछि ताहि लेल हम अहॉक सहायता अवश्य करब अहॉ निश्चिन्त रहू।
फेर संजीव दुखी भऽ जाइत छथि, किएक नहि
कियो वर विवाहक सपना देखत, ओहो
परिवारक दवाब मे तँ ओकरा पर की बितत? किए तँ-‘‘वर
फेर रहि गेलाह कुमार’’।
--------------------
(गुंजन झाकेँ समर्पित)
१.अमरकान्त अमर-संघीयतामे मैथिली
भाषा २.अतुलेश्वर- तीन तिरहुतिया तेरह पाक ३.पूनम मण्डल- स्थानीय कवि परिषद (सलहेसबाबा परिसर- औरहा) वार्षिकोत्सव- 2012
१
अमरकान्त अमर
संघीयतामे मैथिली भाषा
नेपालक नयाँ संविधानमे जोड़ तोड़ सँ संघीयताक बात उठि रहल अछि । देशमे संघीय संरचना
भेलाक बाद मात्र सभक अधिकार सुनिश्चित होएबापर मिथिला आ मैथिली भाषाभाषीसभ आश्वस्त
अछि । तएँ संघीयताक विकल्प आब नहि रहल एतुका जनता सेहो अवाज उठा रहल अछि । तखन
संघीय संरचनामे राज्यकेँ कोना कऽ प्रदेशमे छुटिआओल जाए अखनोधरि विभिन्न दलसभबीच
मतान्तर देखल गेल अछि । किओ १४ टा राज्य होएबाक मुद्दा उठबैत छथि तऽ किओ ५ टा, किओ
३ टा आदी इत्यादी । मुदा अखन विचारमे मात्र सिमित रहि गेल अछि राज्य पुनरसंरचना ।
चाहे जे से देर सही दुरुस्त राज्य पुनरसंरचना आ नयाँ संविधानक कल्पना नेपाली जनता
कऽ रहल अछि ।
राष्ट्र भाषा नेपाली बाहेक नेपालमे दोसर राष्ट्रीय भाषाक रुपमे मैथिली भाषा अपन
सर्वोच्चता कायम कएने अछि । एहिमे ककरो दू मत सेहो नहि अछि । संघीयतामे गेला सँ
मैथिली भाषाकेँ विकास तीव्रगती सँ हएत । राज्य पुनरसंरचनामे जाहि रुप सँ मिथिला
प्रदेशक बात उठि रहल अछि, निश्चित मैथिली भाषाक विकास किओ
नहि रोकि सकत । तखन मैथिली भाषापर सभ दिन सँ कुठाराघात होइत आएल अछि । एहि सँ
बचबाक लेल मैथिली भाषाभाषीसभकेँ सदिखन सचेत रहय पड़त । परापूर्व कालहि सँ मैथिली
भाषा समृद्ध रहलाक बादो आन भाषा एनाकऽ लादल गेल जे मैथिली भााषाकेँ उपर उठयमे
बहुतरास समस्याक सामना करय पड़ल । ओना मिथिला क्षेत्रक मिथिलानीसभ अपन भाषा आ
संस्कृतिकेँ अखनोधरि बचाबएमे सफल छथि । तखन संघीयतामे मैथिली भाषाक स्थान कोन रुप
सँ बढि सकत आ एकर प्रभाव केहन हएत ताहिकेँ सम्बन्धमे सामाजिक समावेशीकरण अनुसन्धान
कोषक सहयोगमे भाषा विज्ञान सम्बन्धमे अनुसंधान कएनिहार भाषा विद् डा. प्रा
योगेन्द्र प्रसाद यादवक कहब छन्हि जे भाषाक आधारपर प्रदेशकेँ निर्माण कएल गेल तऽ
मैथिली भाषा वर्तमान अवस्था सँ बहुत सुदृढ आ व्यावसायीकरण दिस उन्मुख हएत । भाषाक
आधारपर राज्य पुनरसंरचना कएल गेल तऽ हरेक निकायमे सभगोटे सहज हएत कहैत ओ कहलन्हि
जे प्रदेशमे सामनजस्यता, मिलमिलाक संगहि भाषाक संगहि अन्य
निकायसभमे सेहो विकासक दू्रतगति लेत । भाषाक आधारपर वा समग्र मेधश एक प्रदेशक
आधारपर प्रदेश निर्माण भेल तऽ मैथिली भाषा तुलनात्मक रुपमे सभ सँ अग्रणी स्थानमे
रहत भाषा विद् यादवक दावी छन्हि । सम्रग मधेश प्रदेशक निर्माण भेल तऽ हिन्दी भाषाक
वर्चश्व मिथिला क्षेत्रमे कायम हएत कएल गेल प्रश्नक जवावमे डा. प्रा. योगेन्द्र
प्रसाद यादव कहलन्हि सम्रग मधेश प्रदेशक निर्माण भेल तऽ हिन्दी मात्र सम्पर्कक भाष
रहि सकत । हिन्दी सँ मैथिली भाषाकेँ ‘इगनोर’ नहि कएल जाएत कहैत ओ कहैत छथि ,‘संघीय संरचनामे
मैथिली भाषाक बाहेक अन्य स्थानीय भाषा सेहो विकास करत ।’ वर्तमान
समयमे देखल गेल अछि जे प्राथमिक विद्यालयसभमे मातृ भाषामे अध्ययन अध्यापन नहि भऽ
रहलाक कारण विद्यार्थीसभमे मनोवैज्ञानिक त्रास उत्पन्न भेल हुनक कहब छलन्हि ।
मनोवैज्ञानिक त्रासक कारण वच्चासभ विद्यालय जाए सँ हिचकिचा रहल अछि अनुसंधानक
क्रममे देखल गेल ओ जानकारी देलन्हि अछि । तहिना अपन भाषामे पढाई नहि भऽ रहला सँ
शिक्षामे गुणात्मक वृद्धि नहि भऽ रहल आ विद्यार्थीसभ सेहो नीक सँ नहि बुझि रहल
हुनक धारना छल ।
मातृ भाषामे शिक्षा ग्रहण कराओल गेल तऽ वच्चासभक मानसिक विकासक वृद्धि होएबाक
संगहि भाषिक विकास सेहो होइत अछि कहैत भाषा विद् योगेन्द्र प्रसाद यादव कहलन्हि
भातृ भाषाकेँ बीचमे रोकि अन्य भाषामे बुझेला सँ मानसिक असर सेहो पहुँचैत अछि
बतौलन्हि । अन्य देशसभमे कएल गेल अनुसंधानमे देखल गेल जे मातृ भाषामे शिक्षा
दिक्षा देला पर वच्चासभक दिमाग अन्य भाषाक तुलनामे बेसी तेज होइत अछि तएँ मातृ
भाषाक प्रयोग करयपर ओ जोड़
देलन्हि ।
मिथिला क्षेत्रमे मैथिली भाषाक लोप होइत देखल जा रहल प्रति ओ कहैत छथि जाहि
भाषाकेँ लोक सेवामे समोवश नहि कएल गेल, सरकारी काम काजक
भाषामे प्रयोग नहि भेल आ अन्य अवसरसभ प्राप्त नहि भेल तऽ ओ भाषाकेँ लोप होएबाक
सम्भावना रहैत अछि ।
भारत, स्वीटजरलेण्ड आ केन्या सहितक देशसभमे संघीय संरचना
भाषाक आधारपर कएल गेल कहैत ओ कहलन्हि भाषाक आधारपर कएल गेल राज्य पुनरसंरचना
स्थायित्व प्रदेशक निर्माण होएबाक ओ दावी कएलन्हि अछि ।
तहिना संघीयतामे देश गेलापर मैथिली भाषाक विकास कोन रुप सँ आगा बढत ताहि सम्बन्धमे
मिथिला राज्य संघर्ष समितिक संयोजक प्राध्यापक परमेश्वर कापड़िक कहब छन्हि जे संघीयतामे
मैथिली भाषा, सांस्कृतिक असल पहिचान आ स्वायत्तताक वोध होएबे
करत तएँ तकर दोसर विकल्प खोजब भूत खेलाएब अछि ।
मैथिली भाषा अभिव्यक्तिक माध्यम मात्र नहि भऽ मैथिली भाषामे लौकिकता, सांस्कृतिकता, कला, साहित्यसभकेँ
स्पष्ट आ अनिवार्य छाही देखल जाइछ प्राध्यापक कापड़िक कहब छन्हि । ओ कहैत छथि
मैथिला भाषामे सांस्कृतिक निजत्व छैक जकर संप्रेशन आन भाषामे नहिए भऽ सकैत अछि ।
जकर उदाहरण मैथिली भाषाक होरी, छठि, सामा,
जटजटिन, लगनी, सोहर,
समदाउन, लोकगाथा, लोक
गीत रहल ओ उल्लेख कएलन्हि । ओ कहलन्हि एहिसभकेँ मैथिली बाहेक आन भाषामे अुवाद नहि
भऽ सकैत अछि ।
प्रजातन्त्र गणतन्त्र सँ बेसी एखन देशमे संघीयता चाही कहैत ओ कहलन्हि संघीयता सँ
अस्मिताकेँ पहिचान आ स्वात्तताक वोध होइत
अछि । संघीयतामे भाषिकता, जातियता, क्षेत्रीयता,
ऐतिहासिकता आ पौराणिकताकेँ प्राकृत रुप सँ देखाइ दैत अछि । भाषाक
मामलामे मैथिलीकेँ सर्वसत्तावादिता नहि एतुका सभ भाषा आ संस्कृतिककेँ संगहि एकर
समायोजित स्वायत्तता मिच्छुन्नताक पक्षधर रहल
अछि । मैथिली भाषा भाषी नेपालमे एखन मोरङ्ग सँ लऽ कऽ रौतहट धरि रहल अछि । ओना
मैथिली भाषाक बात करी तऽ धनुषा, महोत्तरी, सिरहा, सप्तरी, मोरङ्ग,
सुनसरी, रौतहट, सलार्ही
सहितक जिल्लामे बेसी प्रभाव देखल गेल अछि । तहिना मिथिला क्षेत्रक बात करी तऽ
पूर्वमे मोरंग सँ लऽ पश्चिममे बाराक सिम्ररौनगढधरि मान जाइत अछि । मैथिली भाषा
किछु वर्ष इम्हर सँ गती लेवएमे पाछा पड़ल देख गेल मुदा पहिचानक बात उठि रहल समयमे आ
संचारक्षेत्रक विकास भेलाकबाद मैथिली भाषाक विकास पुनः गती लेलक अछि । मैथिली
भाषापर अन्य भाषासभ लादल नहि गेल तऽ स्वतः मैथिली आ मिथलाक विकास हएत । समय समयमे
मैथिली भाषाकेँ कमजोर करय लेल मैथिलीएकेँ मगही कहि कऽ प्रचार कएल जाएत अछि । ओना
भाषा विद योगेन्द्र प्रसाद यादव मगही संक्रिर्णताक उपजकेँ संज्ञा देने छथि तऽ
प्राध्यापक परमेश्वर कापड़ि मगहि भाषा राजनीतिक विषपाद रहल बतौने छथि । चाहे जे से
मगहि कए नहि प्रचार कएल जाएत ओ मैथिलीए भाषा रहल सभ स्वीकार करैत छथि । तहिना
भोजपुरी भाषा मैथिलीपर सेहो भाड़ी भेल जा रहल अछि । मैथिलीक अगिंकाक रुपमे रहल कहल
जाएबला भोजपुरी भाषामे अश्लिलताक प्रभाव सँ मैथिलीपर भाड़ी पड़ि रहलाक बादो मैथिलीक
अस्तित्व अखनो बाचय सफल भेल अछि । मैथिली भाषाकेँ शासन प्रशासन, लोकसेवा आ अदालतक संगहि संचारी भाषाक रुपमे प्रयोग भेलाक बाद मैथिली
भाषाक प्रभाव क्षेत्र बहुत व्यापक होएबाक सम्भावना अछि । आ एना भेलापर मैथिली
भाषाकेँ विकास करय नहि पड़त स्वत भऽ जाएत । मैथिली भाषाकेँ राज्य स्तर सँ दू
भावनामे नहि राखल जाए तऽ एकर प्रभाव काठमाण्डू सहित अन्य भाषाभाषाीमे सेहो
लोकप्रिय
अछि । मैथिली भाषाकेँ अपन लिपी होएबाक संगहि एकर अपन निजत्व अछि ।
२.
अतुलेश्वर
तीन तिरहुतिया तेरह पाक
मिथिला आ मैथिली भाषाक बाबा विश्वनाथक नगर काशीसँ पौराणिक संबंध रहल अछि।
मिथिलाक लोक मोक्ष प्राप्तिक कामनाक लेल काशी वासक बड्ड बेशी महत्व दैत छलाह तँ
दोसर दिशि एहिठामक लोकक उच्च शिक्षाक आकर्षणक केन्द्र छल काशी। एहि तरहेँ सोचल जाए
सकैत अछि जे मैथिली भाषाक आधुनिक कालकेर विकास एहीठाम प्रारम्भ भए मैथिली भाषाक
आधुनिकीकरणक निओँ पड़ल होएत। ई तँ सर्वविदित अछि जे मैथिलीक लेल आन्दोलनक प्रारम्भ
आ आन्दोलनकें मिथिलाक लोकसँ जोड़बाक रणनीति काशीअहिसँ प्रारम्भ भेल । मुदा, हेमनिमे
देखबामे आबि रहल अछि जे काशी मिथिलाक लोक-भावनासँ तँ निश्चित रुपेँ जुड़ल अछि, परञ्च
लोकसँ नहि । मिथिलाक लोक आइ उच्च शिक्षाक हेतु जतए आन-आन ठाम जाइत छथि तँ तीर्थ
करबाक लेल सेहो काशी सँ बेशी दक्षिण वा उत्तर दिशि। कहल जाइत छैक जे
सामाजिक-धार्मिक वा अन्य भावना लोककें कोनो स्थान सँ जोड़ैत अछि। आइ काशीक प्रति
मिथिलाक लोकक भावनामे ह्रास आयल अछि। काशी, जे कहिओ सभ
मिथिलाबासीक हृदयमे बास करैत छल, आइ बहुतो दूर चलि गेल अछि।
हेमनिमे हम काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमे एकटा कार्यशालामे गेल रही, लगभग
पन्द्रह दिन ओतय रहलहुँ, मुदा हमरा ओ काशी नहि भेटल, जतए
कहियो मिथिलाक लेल जागरण कयल गेल छल। बहुतो प्रयास कएलाक बादो नहि तँ केओ जागरणक
चर्चा कयनिहार आ नहि केओ जागरण कयनिहारक। लागल जेना हुनकासभकेँ एहि प्रकारक कोनो
जागरणक ज्ञानो नहि छनि। कारण कार्यशालामध्य जखन हम चर्च कएल जे कहियो मैथिली भाषाक
पढ़ाइ एहि विश्वविद्यालय मे होइत छल, तँ से सुनि ओतय उपस्थित मैथिल आ
अमैथिल अकचका गेलाह। अत्यन्त दु:ख भेल ई सोचि जे हमसभ कतबा सुस्त भए
गेलहुँ अछि अपन मातृभाषाक प्रतिऐँ। एक दिशि आन भाषाभाषी गर्भमे नुकाएल अपन इतिहास
बहार करबामे व्यस्त छथि आ हमसभ अपन इतिहासकेँ बिसरबामे। मोन पड़ल जे कहियो हमर सभक
बुद्धिजीवी वर्ग अपन भाषा आ माटिकें सम्मान देबाक लेल लड़ैत छलाह, मुदा
आजुक बुद्धिजीवी वर्ग बसुलिऐ धारकेर प्रकृत्तिसँ आबद्ध भए अपन माटि आ भाषाक चिन्तन
छोड़ि चुकल छथि। कहबाक अभिप्राय जे कतेको संघर्ष सँ हमर-अहाँक पूर्वजलोकनि
मैथिलीकें अखिल भारतीय साहित्यिक मंच सँ जोड़लनि। हुनकासभक सोच छल जे मैथिलीकेँ विस्तृत परिवेश प्राप्त होएतैक, जाहिसँ
साहित्यिक समृद्धि होएत। मुदा, अत्यन्त कष्टक अनुभूति होइछ, जखन
आजुक कर्णधारलोकनिकेँ ‘स्व’केर
फेरमे पड़ल देखैत छी। किछु एहने सोचनीय स्थितिमे अपन उद्वेग जखन एकटा मित्र लग
राखल तँ हुनक कहब छल जे ई तँ अदौसँ होइत आबि रहल अछि। हमसभ अपनेँ जाँघ पर कुरहरि
चलएबामे बड़ आगू छी, भने किछु कालक हेतु किछु सुविधा प्राप्त
भए जाए। हुनक कहब छल जे अहाँक चिन्ता साहित्य अकादमी पुरस्कारक स्थिति देखि भए रहल
अछि, मुदा ई तँ बहुतो दिनसँ होइत आबि रहल अछि। पुरस्कार प्राप्त
करबाक हेतु गुटबाजी करए पड़त, नहि तँ चकोर बनि ओसक बुन्नकेर आशामे
जीवन व्यतीत भए जाएत। मैथिली मे आई धरि जतेक अकादमी पुरस्कार भेटल अछि, ओकर जँ उचित मूल्यांकन कयल जाय तँ देखब जे बेशीतर मात्र गुटक प्रसंशक वा हुनक दया पात्रहि पुरस्कारसँ सिंचित
भेलाह अछि, एहि हेतु चाहे केहनो साहित्यकार वा
साहित्य होथु, हुनक बलिदान देल गेल। ओहि मित्रक एकटा आर
बात बहुत दुखदायी छल जे मैथिलीक जाहि पुस्तककें साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल अछि, ओहि मे
किछु लेखकक पुस्तककेँ छोड़ि बाँकी पुस्तकक अनुवाद जखन दोसर
भाषामे कयल जायत तँ दोसर भाषा-भाषी इएह सोचताह जे मैथिली मे अखनि लेखन आरम्भ भेल
अछि, किएक तँ ओ पुस्तक रचनाकारक प्रारम्भिके चरणक होइत छनि। हुनक
ई समालोचना सुनि हमरा भेल जे यदि ई भावना सत्य तँ कि मैथिली अपन परिवेशकेँ बढ़ा
नहि सकत? सङहि सोचनीय विषय इहो जे एहि भाषाक
प्रतिभा गुटबाजीक फेरासँ उबरबाक हेतु दोसर भाषाक दिस आकृष्ट नहि भए जाथि। हमरा
जनैत एकर एकमात्र उपाय अछि जे माँ मैथिली एहि तथाकठित मठाधीशलोकनिकेँ सद्बुद्धि
देथुन जे ओ सभ अपन व्यावहारिक पक्षमे पारदर्शिता आनथि, पहिनेँ
माँ मैथिलीक हित देखथु, तखन अपन। ओना मैथिलक हेतु तँ कहले गेल अछि
जे ‘तीन तिरहुतिया तेरह पाक’, जकरा साहित्य
अकादमी पुरस्कारक चयन समितिक सदस्यलोकनिक मध्य चरितार्थ होइत देखि एतबा सोचबाक
हेतु बाध्य कएलक।
काशी मे घुमबाक समय जे मैथिल भेटैत
छलाह आ जखनि हुनका लोकनिसँ मैथिली मे गप्प करैत छलहुँ तँ एकटा अलग आनन्द भेटैत
छल(ओ मैथिल मात्र बुद्धिजीविए नहि अपितु साधारण मजदूर वर्गक सेहो होइत छलाह ), ओतेक
आनन्द जे गंगा आ विश्वनाथ दर्शन सँ नहि भेटैत छल। एहीक्रममे मकर संक्रान्ति दिन
अस्सी घाट पर रिक्शा चालक पासवान जीक गप्प मोन पड़ैत अछि, जनिक
उक्ति छल जे हमर भाषा मैथिली बड़्ड मीठ छैक, मजबूरी आ पेटक
कारणेँ मैथिली छोड़ि दोसर भाषा बजैत छी।
हुनक एहन उक्ति सुनि हम पुन: सोचबाक हेतु बाध्य भेलहुँ जे जँ
एहिना पढ़ल-लिखल व्यक्तिओ सोचथि, तँ माँ मैथिलीक केहन दिन होएतनि? अन्त
मे आदरणीय साकेतानन्दजीक आकस्मिक देहावसान बड़ कष्टप्रद, काशीमे
हुनका अवसानक मादे चर्चा करैत डा. अजय मिश्र कहलन्हि जे एकटा सहज लोक चलि गेलाह
मैथिली संसारसँ। ठीके, राजशी ठाठ-बाट छोड़ि आमजनक जीवन व्यतीत
करैत साकेतानन्दजीक सौम्य मुखमंडल आगाँ नाचि उठल। मुदा, ई तँ
ईश्वरेच्छा। हुनकहि हाथ सद्गति, सद्बुद्धि आ सद्भावना, प्रार्थना
जे मैथिलीक तथाकथित भाग्यनिर्मातालोकनिकेँ मुक्त हाथेँ बाँटथु सद्बुद्धि।
३.
पूनम मण्डल
स्थानीय कवि परिषद
(सलहेसबाबा परिसर- औरहा) वार्षिकोत्सव- 2012.
दिनांक- 27 जनवरी 2012 (शुक्र दिन) स्थानीय
कवि परिषदक चारिम वार्षिकोत्सव-2012क अवसरपर सम्मान समारोह आ कवि सम्मेलन श्री उमेश पासवानक
संजोजकत्वमे सुसम्पन्न भेल। स्थान- सलहेसबाबा परिसर- औरहा, प्रखण्ड- लौकही, जिला- मधुबनी, समए- 11: 00 बजे (पूर्वाहन)सँ
संध्या 5 बजे धरि कार्यक्रम
चलैत रहल। कार्यक्रमकेँ दीप प्रज्वलित क' विधिवत् उद्घाटन केलनि वनगामा (उत्तरी) पंचायतक मुखिया
श्री दयानंद साह आ सरपंच श्री नूनू साहजी। मैथिली साहित्यक श्रेष्ठ कथाकार, नाटकरकार, उपन्यासकार आ कवि
श्री जगदीश प्रसाद मंडल, एकैसम्
शताब्दीक पहिल दशकक सर्वश्रेष्ठ कवि श्री राजदेव मंडल आ कवि श्री अच्छेलाल
शास्त्री जीकेँ नव वस्त्रक संग प्रो राधाकृष्ण चौधरी लिखित ‘मिथिलाक इतिहास’ आ मैथिली साहित्यक
सर्वश्रेष्ठ बाल-साहित्य ‘मिथिलाक लोकदेवता’ (श्रीमती प्रीति ठाकुर) पोथीसँ सम्मानित कएल गेलनि। सम्मान
समारोहक अध्यक्षता केलनि श्री मिथिलेश सिंह (शिक्षक, मध्य विद्यालय- महदेवा, मधुबनी) आ मंच संचालन
श्री दुर्गानंद मण्डल आ संजीव कुमार शमा।
कार्यक्रमकेँ आगाँ
बढ़ाओल गेल श्री राधाकान्त मण्डलक स्वलिखित स्वागत गीत- हे मिथिलावासी कविवर, स्वागत हमर स्वीकार
करू....सँ। ‘आशासँ
फूलक माला लेने हम ठाढ़......’ सुन्दर गीतसँ प्रो. उपेन्द्र नारायण अनुपमजी सेहो स्वागत
केलनि। तकरबाद स्वागत भाषण प्रस्तुत केलनि प्रो. कपिलेश्वर साहु जी आ स्वागत
कविताक अतिविशिष्ठ पाठ केलनि- श्री रामविलास साहुजी। पहिल सत्रक समापनक
बाद दोसर सत्र प्रारम्भ भेल जइमे लगभग 2 दर्जनसँ बेसी कवि लोकनि अपन-अपन नूतन कविताक पाठ केलनि
जे ऐ तरहेँ भेल-
अवकाश प्राप्त शिक्षक-
श्री दुखन प्रसाद यादव- गरीबी, गणतंत्र, हमर भारत छै, श्री नंदविलास राय- मानवता, शिक्षित बेरोजगार, लक्ष्मी दास- लौटिया, अखिलेश कुमार मण्डल-
जिनगी, रामविलास साहु-
प्रेमक भूखल, माघक
जाड़, हमर गाम घर, उमेश मण्डल- आगाँ अबै
जाउ, आत्म विश्वास, अढ़ाइ हाथ, प्रो. उपेन्द्र
नारायाण साह- छी कनी, प्रो.
कपिलेश्वर साह- गामक घटक, श्री विरेन्द्र कुमार यादव- मारल बुइध, श्री हेमनारायण साह-
व्यथा, श्री कुसुम लाल मंडल-
ठाढ़ी, श्री राजदेव मंडल-
कामना, श्री अच्छेलाल शास्त्री-
हवा बहैत अछि सन-सन-सन, श्री
जगदीश प्रसाद मण्डल- किछु सिखू किछु करू, उमेश पासवान- रगड़ा, संजीव कुमार शमा- भेल
छने अन्हार, गप
मजगर कह, प्रो. रमेश कुमार
मंडल- आत्म-हत्या, अहिना
श्री आशीष कुमार सिंह, श्री
अमरनाथ यादव, संजय
कुमार सिंह, सोनेलाल
यादव, रामप्रवेश मंडल, राधाकान्त मंडल आदि।
ऐ अवसरपर लौकही थानाध्यक्ष
श्री राज किशोर बैठा, श्री
गुप्ता प्रसाद सिंह, एस.
आइ. लौकही, मधुबनी, छिन्नमस्तिका एफ.एम, राजविराज, नेपालसँ आएल प्रमोद
प्रियदर्शी, भूतपूर्व
सरपंच श्री रामनारायण यादव, शिक्षक श्री सत्य नारायण मण्डल, डंगराहा पंचायतक भूतपूर्व मुखिया
श्री रामप्रीत मंडल जीक संग-संग लगभग पाँच सएसँ ऊपर लोक समारोहमे भाग लेलनि।
‘विदेह’ मैथिली पोथी
प्रदर्शनीसँ ग्रामीण सभमे काफी हर्ष देखबामे आएल।
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