३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमर २.नवीन कुमार "आशा"
कामिनी कामायनी
2011 दिसंबर मास मे महात्मा बुद्व के महासंबोधि प्राप्ति के 2600
बरख भेलोपरांत ’हम हुनक अद्र्धांगिनी के
मोन पाङैत ई काव्य कुसुम हुनक चरण कमलेषु मे समर्पित कय रहल छी । ..
गांधारी
हिय मे शूल.. .. .मुदा भाव निर्मूल
रहि रहि क’ उठैत ई आह
करैत अछि करेज के स्याह
कानू त’ कत्तेक आ’ फाटू त’ कत्तेक ।
सबटा नोर एके बेर सहस्त धार बनि
चुबि गेल छल ऑखि सॅ
जखन पितामहक ई उदघोष
कर्ण कुटीर के चीरैत
छाती मे पवेशकरैत
मचा देने छल पलय
जे पराजित नरेशक’ सर्वांग सुन्नरि
विजित क’ हाथ मे सौंप देल जाए
तखन की ऋ
आकाश मे उङैत पाखी
क्षण भरि उङनाय तजि
चिंतित आ’ व्याकुल छल
बाध बोन मे चरैत
उमकैत
बैसल
ठाढ
पसु उद्विग्न भ’ . . . माथ झुका
परती के निहारै छल।
तप्पत तप्पत बयार
जोर जोर सॅ बहैत
तबाही के सनेस पसरैत।
अंतरिक्ष मे बैसल इष्टदेव सॅ
नम निवेदन करैत
चिहुॅकि क’ बाजि उठल छल
ई कीऋ
कारी कारी मेघ
अपन लट छितरेने
उद्दाम अश्व सन दौगैत
संपूर्ण नभ मंडल प’ पसरि त’ गेल
मुदा स्वयं के आघात दैत
पीटैत चिकरैत
कंठ फाङि क’ कानब सॅ पहिनहीं
माथ प’ हाथ धेने गुमसुम गुमसुम
चुप्पेचाप .. . . .नहि जानि कोन कोन मे
गेल बिला
तखन कीऋ
ओहो अपन रत्नजङित पलंग प’
कतेक काल धरि
अपार केस रासि फोलने
पेटकुनिया देने .. . . रहितथि पङल
नहुॅ नहुॅ क’ भवनक पट्ट खोलि
द्वार प’लटकल पीजङा सॅ निहारैत सुग्गा
सॅ उदास भ’ बजै ल’ चाहल
आखर लाजै . . . .मुॅह सॅ नहि बहरायल
मुदा अवज्ञा कोना राजकुम्मरिक’
आबैत काल . . . देखल सब . . . कोना लङखङाति
डगमगैत . .
हकमैत. तोतराति
आध छिध आखर
.. . जेठक’ सूखैल घासक’ ढेर जकॉ
दग्ध हिय मे लुत्ती लगा
सनासन . .जरय लेल उकसाबए लगलै
पिंजङा मे बन्न सुगबा. . .आखरक ताप नहि सकल सहि
आ’ क्षण मात मे ओकर प्राण ।
कुम्मरि के हाथ मे रहि गेलेै
मुदा ओ कानियो नहि सकलिह
समस्त नोर
.. . एके बेर. . .सहस्त धार बनि
ऑखि सॅ चूबि चुकल छल।
करेज फाटय के स्थिति मे क़त्तए
ओ त’ बज भेल
आ’ बज कत्तौ फाटय
ओ त’ फाङब टा जानैत अछि ।
सब टा पट्ट महिषी .. .सखी सहेली सन्न
एहेन कोन पन्न
केहेन ई विध्वंसी . . . रचल चक चालि
नहि जानि विधाता .. . देलन्हि ई केहेन आघात
सहस्त्रो वजपात
एक संग . .
.क्षण भरि मे
उन्मुक्त हवा के सहचरी
सुशील कोमलांगी परी
केहेन विषाक्त
जेना बरख क’ ज्वरोपरांत उठल जुबती
मुरूझायल अङहूल सन . . . निस्तेज मुख मंडल
ऑखि मे पसरल दूर दूर धरि सन्नाटा
कपोल द्वय प’ नोर मे भींजल काजरक’
चॉटा ।
ई अथाह दारूण
.. केहेन करूणा
कत्तेक व्यथा ।
मुदा काल शीघता सॅ बुलैत
बॉचय जा रहल छल
कोनो आओर पलयंकारी कथा ।
दारूण दुख हिस्सा मे नहि तोरे टा
सब किछु त’ संग अछि ....रहत नै नोरे टा
ठठा क’ हॅसल छल कत्तो कोनो राजा
सजाबए लै महफा
बजाबए लै बाजा ।
आ’ दौङैत रथ क’ स्वर्ण जङित चक्का
मे ओझरायल अगनित कत्तेक रास खिस्सा
आईयो कहैत अछि उङि उङि क’ रज कण
कोना ओ कचनारि बेकल भ’ निहारल
हवेली आ जन जन के मन मे उतारल
ओ हरियर पीयर लाल कारी दुपट्टा
ओ लहंगा ओ चुनरि चानी के पनबट्टा
उङैत तूर सन ओ संध्या कुमारि
असरफी ओ मोती ओ हीरा जवाहरि’
बिछिया हॅसुली बाजुबंद साङी
नथिया ओ टीका मखमल ओ अटारी
निहारल भरि ऑखि रूप जीनगी के
पकृति धरा के माता बहिन के
फफा क’ कानल काल देखि अपन करनी
एकरे चुनल किएक
अही परीक्षा घङी लेल
मुदा भाग्य अप्पन
कयल पूर्ब जन्मक
तथापि
निरासक लुत्ती मिझाबैत
ओ ज्ञानी स्वयं
कारी पट्टी बनल छल
आ’ सुन्नरि सुनारि के दृग प
चढल छल
पति परमेश्वर जखन छथि नयन बिन
त’ देखब नजरि सॅ हम किएक ई दिन
ठिठुरैत .
. .निहुरैत
. . दुलारैत
. मनाबैत
चलल छल विधाता अपने हिसाबे
मुदा हाथ मे आब ओकर डोर कत्तय ऋ
ओ अपने पहिया के दॉत सॅ झीकैत
बढल जा रहल छल देखय खेल बिक्कट ।
इन्द्रासनक परी. . .ऑखि प पट्टी केहेन. . .
ई गर्विनी . .यक्षिणी. . . सुखदायी परम
नागिन सन फुफकारैत . .कारी जुट्टी. . .
बेकल अछि छुबए लेल नगर के माटि
वाक विहिन.
.सब . .झहरै छै नोर
कत्तो नै उत्साह नै कोनो सोर
क़त्तेक काल सॅ ठकुआयल ठाढ अछि भोर ..
बिसरल अछि नाचय पमरिया आ’ मोर
तखन राजपंडित महाशंख बजाओल
आगॉ बढि क’ सोहागिन महफा सॅ उतारेत
समवेत स्वर मे मंगल गान गायल
विधना लिखल हमहू पात सब छी
ई रानी हमर भावी राज्य माता
नयन बिनुसहचर के कथा छल सुनल सब
सबटा नीति के चालि बुझि
रानी लै मन मे अथाह स्नेह उमङल
ताबैत शोक सॅ उबैर क’ बहुरिया
धो मॉजि अपन व्योहार के चमकायल
सिनेहक मजगूत डोरी बांधवा मे
कलेसक’ ताप ताग के’ जरा दै
रहि रहि क’ ओ करूण वेदना
आबै हिय के डॉवा डोल करै
मुदा ओकर कोढ कहियो नहि फाटल
ओ त’ कहिया कत्त नै बज भ’ गेल छल
आ’ बज फटै नै फाङै छै सबके
एकसरि जुबति
.. .जौवन अपरूप
पणय निवेदन .. .पति के पतीक्षा
पसूति गृह सॅ . .अबैत पथम बाल क्रंदन . .
डोलाबैत हिय के . . . अतिशय कोमल गाछ ..वा . .
पानि बिनु तङफङाइत .. .छिलमिलाईत माछ . .
अथवा कनसारि
क’ बौल मे भङभङा क’ फूटैत लाबा
सिंहासन सॅ दौगैत त’
मुदा वीरांगी
.. . संयमी. . .क्षत्राणी क’ बहकल
पएर. . ठामे ठाम ठमकल
क़त्तेक स्वर गुंजायमान भेल कान मे
दासी के स्वर सॅ बनल पतिबिम्ब
गौर भुर्राक़ . .चन्दमासन .कारी औंठिया केश
पैघ पैघ ऑखि वला .. स्वस्थ . भावी नरेशक वर्णन सुनि
ओकर हाथ सॅ झपट्टा मारिक’
छीनैत नेना के. . .अपन दग्घ हिय सॅ लगौने ‘
नयन रहितौ नयन विहिन . . कतेक पैघ विपत्ति
कतेक कठोर पण. . केहेन घोर तप
मात बीत्त भरि क’ दूरी प ऑखि .
क्षण मात मे पट्टी झटैक़ . . विस्फारित दृष्टि सॅ . .भरि पोख तकैत.... . .अपन लाल के. . .
मुदा बज बनल करेज़ .
बज नहि फाटैत अछि बज फाङैत अछि।
आ’ हाथ कखनो . कर्मक रेघा नांघए के कोरसिस सेहो
नहि कयल
तखन समय काल के सेहो
होबैेत रहलै प्राण बेकल. .
एकसरि रूपवती. . .जौवन भार सॅ दबल. .
हाथ सॅ टउआ क’ निहारैत नेना शिशु सबहक
रूप
एहेन केस रासि .. ओहेन मजगुत भुजबल
राजीव लोचन
. .मक्खन.
. मोलायम चितवन
पीतांबरी के गोटा .. . धनुषक’ नक्काशी. . .चेरी
कहैत अछि. . .आ’ नैनन मे हुनक उपस्थित भ’.. .अतीत ..
फरीछा दैत छन्हि सब किछु. . .पटोरक रंग़ .पलंगक़ . चद्दरि. . . .खिङकी. .दलानक’ परदा
. .
स्त्रीगण सबहक रूप गुण . . .सुनैत गुनैत. . .
बसौने अपन मस्तिष्क मे . . एक गोट अजगुत संसार
जौं पति नयन बिन . .आखीर तखन रहल की . .
हुनक़ . भाग्य संसार. . पुर स्वामिनी . .महारानी. . .अभिमानी .. . .
एतेक विस्तृत सामाज्य . .जीबए केर. .ई केहन सुन्नर आधार. .
तखन रानी मात कान . . कान बनि गेलन्हि . रोम रोम ।
भनसा सॅ आबैत सुगंध. . पाक विद्या के पवीण हस्त
भॉति भॉति क’ सामागी .. .मात गंध सॅ
चिन्हैत. . .
परोसति थारी मे स्वामी के. . .विहृवल भ’ पूछि लैथ
‘ई पायस केहेन आर्य ..’ .
बनौने हमी छी
. च्ोटी अछि पमाण ..।’ .
विहॅसि श्रीमान .. बढाबैत ..अतिशय स्नेह सॅ पकंपित अपन बाम हाथ.
. . .
पमाणक’ कोन पयोजन ऋ.. . जखन हम दूनू नयन
विहिन .. .
हम जन्मजात . . अहॉक .स्नेह प आघात.
भेल भानस. . .अहॉक स्पर्श मात सॅ. रसमय. मधुमय. . .
भ’ उठैत अछि. . . .आ’ ई त’ सद्यः अपने कोमल हाथ सॅ
रान्हल. .
थामैत राजा के बढल हाथ.
शब्द मात सॅ हृदय मे उठैत
सिनेहक तीव . . .वेगवती धार के छुबैत. . .पकङि हुनक अर्इंठ हाथ.
. .कठौत मे धोबए लेल . . दासी बढौलक जलपात ..। .
निशा राति मे नीन्न .. किए नै किए बनि दियाद. . .
लङए लागैत अछि ऑखि सॅ. .
भवनक’ छत प’. .सिहकैत बयार मे .. नहुॅ नहुॅ टहलैत
. .
हाथ पकङने चेरी कहैत. . .
आय अकास मे बङका टा के चान निकसल छै. .
केहेन पीयर
. .. जेना दूध मे फेंट देने होय केसर कियो. . ।.
आ अनेको बिम्ब . . . विगत क’
चान के. .
ऑखिक सोझा थरथर कॉपैत. .
पूछि रहल .. . कोन अपराध हमर कहु सुन्नरी
किएक नै हमरा हेरी रहल छी. . . .चकोर बताह बनल हमरा लै. . .अहॉ
केना विरक्त बनल. .? .
मुदा ओ पण
.. . हिय प लागल छल जे वण. .
करेज वज भ’ गेल छल. . .आ’ बज
फटैत नहि अछि फाङैत अछि ।
मस्तिष्क मे बसल सबटा कोलाहल. .
समय काल पाबि अर्थ गहण करैत
ठाढ भेल सचित
. .सावाक .. .आ अनायास . . .जीवन जीबा मे कोनो विशेष नहि देखैत
कंटक
मुदा काज पयोजन. . .
शिशु बालकक उपनैन वा विद्याभ्यास .. .
विवाह दान .. .परिछन. .चुमौन .. .
समय ककर बंधुआ. . . ककर खवास
एहेन पण .. .आय धरि के ज्ञात इतिहास मे ।
निभा सकल के. . . ताहू मे एकगोट नारि. .
जेकरा लेल अहि समाजक नियत सदिखन विकट ..
सूर्य. चन्द. .्र .गह नक्षत ्र्र.. .ताहि सॅ उपजल . .्र्र .वत उपवास सॅ एकदम
फराक ........... .. . . .
आन आन वत . .्र मात अन्न .पानि त्यागि
भूमि शयन
.. .अग्नि गमन वा एहने सन किछु ..
ंमुदा ओ वत आ ई. . .असंभव. . दुसाध्य. . आजीवन दृष्टि बाध्य अछैत दृग़ .. .
.्र
स्ती एक गोट खेलौना. .्र्र .
राज्य जीतबाक कम मे . . . ्र
जीत लिअ ओकरो .. .ओ एकगोट वस्तु मात .. ्र. .
फहराबू अपन ध्वजा. . .अपन वर्चस्व ्र
ओकर कोन र्दद. . .अभिलाष वा ज्ञान ..
मात सेविका .. . परिचारिका .. .्र
तखन की. . .्र्र
तखन विधान इएह बनौल ई समाज .. .
जे स्ती आखीर उठौत किएक आवाज़ . .्र
घेंट प’ बङका टा के फट्टा
आ’ माथ प’ दुपट्टा
.. .्र
आ मजबूरि क अथाह समुद
कत्त ..्र डूबब ्र.. . कत्त ..्र पौङब .. ्र.
ताहू मे पराजित राज के दुहिता .. .्र
मुदा भाग्य दासी नहि रानी
सेहो बनायल. .
. . . . . . . .आय सहस्तों बरिख बाद
जुग औचक जेना जागि उठल
बङका बङका परचम फहराबैत. ्र .. .
पूछि रहल अछि हुनका सॅ. . .्र्र्र्र
आखीर किएक बान्हल ऑखि प’ पट्टी. . ्र.
ई अज्ञानता वा परम निराशा
अतीत के एक गोट दुसह दुखद दिन देखौलक
संसार क’ पथम विश्व जुद्व. . .
कुरूक्षेतक जुद्व ..्र .
कारण . ..मूल मे माते. . . .
सौ टा संतान करैत घमासान. . .्र
जिनक सहस्त पुत
कोना नै हेतै एहेन जुद्व. . . .
आ तखन ऑखि प’ पट्टी .. . ्र
जानि बूझि क’ रहय लेल .. ्र. सत्य सॅ
अनभिज्ञ. . . .्र
अहॉ के नजरि मे सुयोधन .. .सुयोधने रहि गेल. . .्र्र
मुदा कर्म. . .आ .. समाज धेल दोसरि नाम .. .सु’ हटि क’ दु’. . .आ इएह एक गोट आखर .. .्र
भ’ गेलै पाथर. . . . ्र
ंमानवता के संहारक़ . .आत्याचारी . .लोलूप. . ्र.
ंमाता के कोमल उपदेश . .
द सकैत छल इतिहास के एक गोट नीक संकेत. .्र
आ’ वन वन नहि भटैक़ . ्र.
पॉच गाम. . सॅ संतुष्ट .. ्र्र
भ’ जयतथि अनंत मे विलिन. .्र . .
मुदा युद्व त’ कदापि नहि .
तङपि क कहलैन्ह जुग सॅ
सुननेछी अहू सुरू सॅ. . . हमरा.. प’ जे कलंक लागै . मुदा अन्याय के गाछ प’ न्यायक
फङ नै लागै छै .. . सत्य ई
अहि गप के रहि गेलन्हि
हुनको मन मे खेद. . . .
किएक एहेन विभेद. . ्र.
एके कुलक लोक एक दोसरा लेल. .. एतेक पैघ अरि .... . . .
हे हरि. .
. . . .तखन बहल जतेक शोणित आ’ नोर .. .
. हिय नै रहल्ौ कठोर. . छल ओ सहस्त पुतक जननी. .के. . . .युद्व भूमि मे करैत. . हृदय .दावक विलाप. .
असहृय वेदना. . . करूण संताप
सुनौलन्हि जदुनंदन के भरि पोख सराप. .
अहि संहार के .. ओएह संचालक . .
अजस्त नोर सॅ
. .पट्टी पारदर्शी भ’ . . .दृष्टिगत कयल
सबटा नर संहार. .सुन्नर .. .विलक्षण काया . . पङल अंग भंग
भेल. . .खसल माटीक मूरत .. .नै बाजय. .्र नै भूकय लेल ..
ओ माटिक बासन सब . .एखन धरि नहि भांगल .. .अछि अजहू राखल आंगन. . .ताहि मे
पोषल पूत सब कोना .. .एतेक शीघ भेला सपन .
मात एक स्ती के माथ प’ कलंक़ . ्र आ’
अपने बुलि रहल छी निःशंक़ . . .
हे रणछोङ . . कहै छी हिय तोङि. .
चतुराई सॅ अहॉ के अपना अधीन
करि के सकैत अछि. ्र. .जे स्वयं चौसठो कला मे पवीण. . .छल सॅ .. बल सॅ . .कौसल सॅ. . .तोङितौ
सारथिसुत क अभिमान .. एकसर दुरजोधनक अज्ञान .. . ककरा बल प’ लङबा लेल ताल ठोकितै . .
अहॉसन ज्ञानी. . .त्रिलोक दर्शी कहेबाक दंभ रखैत .. ्र. एतेक नहि
भेल जे खूनक ई फाग रोकि दैतिएक़ . . . .
चारू कात धधकैत आग़ि . . ताहि मे अहॉ तकैत छलहू केहेन न्याय . . .
फुसियाही के खेल मे .. . सोचैत रहि गेलौं उपाय .. .
चालि शतरंजक चला देलियै. . .अपने पाछॉ हटि क’ .. . मति भष्ट सब के जुटा देलियै. .
धिया पुत्ता के कर्म के ..
नाम देलियै धर्म के. . .
युद्व त’ युद्व होइत छै. .परिणाम . .नर संहार. .
तखन एकरा धर्मक नाम किएक देल. .
धर्म की अछि .. . कहूॅ विस्तार सॅ .. . . .
हङपब .. . मारब . .लूटब. . .जारब ..
जाहि समस्याक समाधान . . .गप सॅ भ’ सकैत
छल. . .ताहि लेल तरूआरि . . गङासा. .तीर धनुक्ख़ .
ई कोन जुगक मनुक्ख .. .
पाषाण कालक’ वा. . .ताहू सॅ पहिने के
आदिम . .
हे अवतारी. . .अहॉ त’ तखनो पकट भेलहु .
.भरल सभा मे दा्रैपदी के जखन भ’ रहल छल चीर हरण. . .नूआ त’
बढा क’ वाह वाही लुटल . .जे पांचाली के
लाजबचि गेल
मुदा अहि कुकृत्यक विरोध मे स्वर त’ उठौबितौ. .
गुरूजन. . . दूरजोधन के ललकारिक . .मल्लजुद्व मे पछाङि क’ . .
शिक्षा त’ दैतियैक नैतिक़ . . .पांडव दिस
स्नेह सिक्त .. . ..कौरव दिस फूटल दृष्टि. . . .
आखिर कियै केशव. .्र . हित त’ पांडव के सेहो
कतए. . . सब कानि खींझी क’ विलखि विलखि क’ अपन अपन शिविर मे . . . .करि रहल अछि . दारूण विलाप .. . कतए अहॉ के जय जय कार . . .सब
युक्ति . . सब तर्क बेकार. .
अहूॅ त’ एतबे मे रहि गेलहू. . . ..प्रेम
सॅ नहि पूछल त’ साग विदूरक घर खेलहूॅ. . . .
ओ समय मान सम्मान करेबाक कतए छल. . प्रेम त’ कत्तेक
देल गोपी . . .तैयो तरसल. . देखैत रहलहू धर्मक’ रथ प’ चढल . .भाय भाय के कूक्कूर जकॉ लङल. . .
अहि मे अहॉ क’ की विराटता . .पत्यक्ष
ठाढ अपने. . .आ’ हस्तिनापुरक दू टा कुलक’ सर्वनाश भ गेलै. . . तखन अहॉ केहेन भगवान .. . .नहि जानि की छल. .
.अहॉक दृष्टि .. . .अहॉक ईमान. .
कतए उठाबए चाहैत छल
स्वजन प’ पांडव अपन गांडीव. . . .
निषिद्व भीख लेल मोन बना क’ पङारहल छल
निर्जन मे . . . .सदाचारी ओ . . गुरूजन सोझॉ कहियो माथ नै उठाओल. .
उकसा उकसा हाथ मे ओकरा हथियार पकङाओल
शंखनाद करि रक्त जरैलौ
कोखि उजाङय लेल. .
स्त्रीजाति के . .धिक्कार अछि हे कृष्ण. .
आयल छलहूॅ बहन्ना करि क’
मारए लेल वा तारय लेल
ओ लूल्ह. .
ई लांगङ. . .ओ कोढ़ि . .ई आन्हर. . ्र.
एयह छल अहॉक सैन्य बल . . . ..वा कोनो पैघ छल ..
तिल के ताङ . . राई के पहाङ .. . .ताहि प’ अपने ठाढ़ . .नेने हाथ मे सुदर्शन चक. . .बनौने
दृष्टि वक .. .
केकरा छल बनेबाक छिन्नमस्ता . .
हमहू छी ठाढ़
.काटू हमर मत्था. . . .
हे तेजस्वी पुरूख .. . देखने होयत जे अहॉक रूप . .
आश्चर्य हेतै जुग के. .
नायक . . महानायक . .देखि क’ दृश्य. . .फटैत अछि कियेक नहि करेज़ . .
होबैत अछि किएक नहि मन मे कोनो दरेग .. . .
सुनि क’ एहेन आत्र्तनाद .. . .
.दिग्दिगंत धरि भ’ चुकल अछि .. .आका्रंत . . अहॉ एहेन निस्पृह.. .
नहि कोनो मोह . . .नहि सिनेह. . . .
भीषण ताप सॅ चट्टान सेहो भ’ जाईत अछि
विखंडित. . . . .नारि अहॉ के नेह सॅ सराबोर करि देलक . .त’ दोसरो नारिए अहॉक अभिशप्त सेहो कय रहल. . लिखू. . . दिवस .. .समय .. . स्थान .. .्र्र .
अहिना अहॉक कुलक घमासान . . . शोणितक एकएक बूॅद जरबैत .. . .करत
चित्कार. . फाटत माथ कपार. . . आ’ ओहि शोकाकुल मानस दशा
मे . . .करब
अपने धरती सॅ पस्थान. . . . .अंत अहू के निकट. . . . होयत एतबै बिकट. . . .
कनैत बजैत गांधारी ..्र . संभारैत अपन साङी . . .क्षण मात मे ततेक कमजोर . . जेना . .जन्मजात अशक्त . . .नहूॅ नहॅू . .पहुचल छली त’ महल मे. . मुदा सुनि कोलाहल .. . . कुंतीक वन गमनक’. . . पति सॅ कयल निवेदन. . . आब एत्त की .. . .कतेक सूनब सोर. . . .अहि कष्टक
.. . कोन छोर. . . .नहि छल भाग्य मे जे सुख . .तेकर कोन दुख़ . . .लिखनहार सॅ केहेन
बैर. . .स्वप्न
छल जरि गेल. . . . .सूल सॅ भरल ई महल .. .
आब कत्तय रहय बला रहल. . .
कान मे सदिखन गुॅजैत अछि . .पुत . .पौत. . .सखा मीतक स्वर . .
हिय मे उठैत अछि लहरि. . .
सागरक छाति प’ छटपटाईत बताहि. . ्र.
काटैत अछि किंस्याह अपने वंश सन आहि. .
जतेक बॉचल आब जीवन.
कटि जेतैक चलि क’ वन. . .
मस्तिष्क मे शांति आर हेतै त’ कोना ..
चलू ओहिना चली. . . चलाबैत छथि विधाता जेना. . . .
तीनू गोटे.
.संग निकसल. .
तप करय ..वा अगिन मे भस्म होबए . .नियति. त’ चुप छल . .
. ओकर हाथ मे किछु कत्तय .. . . . . ।
१.ओमप्रकाश झा- किछु गजल २.रूबी झा ३.शान्तिलक्ष्मी चौधरी ४. शिव कुमार झा
१.
ओमप्रकाश झा
गजल
कुशल आबि देख लिअ,
एतऽ सबटा आँखि नोर सँ भरल छै।
विकास कतऽ भेलै,
विकासक दिस इ बाट चोर सँ भरल छै।
चिडै सभ कतौ गेल की, मोर घूमैत अछि गाम सगरो,
इ बगुला तँ पंख अछि रंगि कऽ, सभा वैह मोर सँ भरल छै।
सब नजरि पियासल छल तकैत आकाश चानक दरस केँ,
निकलतै इ चान कहिया, आसक धरा चकोर सँ भरल छै।
उजाही उठल गाम मे,
नै कनै छै करेज ककरो यौ,
हमर गाम एखनहुँ खुश गीत गाबैत ठोर सँ भरल छै।
कहै छल कियो गौर वर्णक गौरवक एहन अन्हार इ,
सब दिस तँ अछि स्याह मोन जखन इ भूमि गोर सँ भरल छै।
फऊलुन(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)- ६ बेर प्रत्येक पाँति मे
गजल
कहि कऽ नै मोनक हम तँ बड्ड भेल तबाह छी बाबू।
कहब जे मोनक, अहीं बाजब हम बताह छी बाबू।
हुनकर गप हम रहलौं जे सुनैत तँ बनल नीक छलौं,
गप हुनकर हम नै सुनल, कहथि हम कटाह छी बाबू।
सदिखन रहलथि मूतैत अपने आगि सभ केँ दबने,
हम कनी डोलि गेलौं, ओ कहै अगिलाह छी बाबू।
बनल छल काँचक गिलास हुनके मोनक विचार सुनू,
इ अनघोल सगरो भेलै हम तँ टुनकाह छी बाबू।
सचक रहि गेल नै जुग, सच कहि कऽ हम छी बनल बुरबक,
गप कहल साँच तऽ अहीं कहब "ओम" धराह छी बाबू।
(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)--- ४ बेर
गजल
टूटि-टूटि क' हम त' जोडाइत रहै छी।
मोनक विचार सुनि पतियाइत रहै छी।
गौरवे आन्हर पडल अपने घरारी,
सदिखन मुँह उठा क'
अगधाइत रहै छी।
हाट मे प्रेमक खरीद करै सब किया,
बूझि नै, आब त' हम बिकाइत रहै छी।
फहरतै झंडा हमर सब दिस हवा मे,
एहि आसेँ खूब फहराइत रहै छी।
"ओम"क कपार पर कानि क' की करत ओ,
फूसियों हम ताकि औनाइत रहै छी।
गजल
मुस्की सँ झाँपि रखने छी जरल करेज अपन।
सब सँ नुकेने छी दुख भरल करेज अपन।
दिल्लगी करै लेल चाही एकटा जीबैत करेज,
ककरा परसियै हम मरल करेज अपन।
मोहक जुन्ना मे बान्हल हम जोताईत रहै छी,
देखैत रहै छी माया मे गडल करेज अपन।
कियो देखै नै, तैं केने छी करेज केँ ताला मे बन्न,
देखबियै ककरा आब डरल करेज अपन।
कोनो गप पर नै चिहुँकै आब करेज "ओम"क,
अपने सँ हम घोंटै छी ठरल करेज अपन।
---------------- वर्ण १८ ---------------
२
रूबी झा , ग्राम पोस्ट -समसा[मंसूर चक ], जिला -बेगुसराय [बिहार ], सम्प्रति:-गांधीनगर
[अहमदाबाद
] [गुजरात ]
'' निष्ठुर प्रियतम''
केहेन निष्ठुर जकां प्रियतम,
अपन जन के सताबय छी ,
करेय छी सिनेह अतिसय हम,
ताहि सा अहाँ क बताबय छी ,
उठे ये पीर करेजा मे किएक ,
अहाँ जनि बुझी दुखाबय छी ,
सुने छी प्रेम अहाँ अप्पन ता ,
आंजुर भरी- भरी लूटाबय छी ,
आबे ये बेर जखन हम्मर ता,
देखू किय निकुती नपाबय छी ,
नै जानि कतेक निदर्दी छी अहाँ ,
सबटा बुझितो न लजाबय छी ,
बुझै छी बात ता सबटा हम,
अहाँ हमरा की सिखाबइ छी ,
रहे ये मोन टांगल कतौ अहाँक,
आ प्रेम हमरा सां जताबइ छी ,
३.
शान्तिलक्ष्मी चौधरी
गज़ल १
अपने पुरखाक मानदानक जड़ि कोड़य मे सभ लागल छै
कियो ककरो कहै घताह कियो ककरो कहै निटट पागल छै
बाँसक बंश केँ उकनै बाँसे देखू कुढ़ैड़क पोन मे छै पैसल
फ़ाटैत मानक चद्दरि केँ सिबै सुईक पोन कियै नै तागल छै
अपने लोकक टाँग घिचैत बेंग केर बनल सभकियो खिस्सा
माय सुमैथिलीक करमे बुझाइत आइ भs गेल अभागल छै
बरदक कान्हक पालो जनु बुझाइत धीयापुता केँ बड़ भारी
छुट्टा खाइत बौआइत एनाहैत जेना अड़िया बछ्छा दागल छै
अपन लोकवेद केँ आगु करय आइ जखन दुनियाँ चेतल
हमसभ निभेर भेल तैयो सुतल, कहु के कतय जागल छै
अहंकारक धाह तापैत मैथिल जनगण छथि अगरमस्त
समाजक एहन विचित्र स्वभाव सेँ
"शांतिलक्ष्मी"यो नै बागल छै
..........वर्ण २४........
गज़ल २
पेट मे भल खड़ नै हिनका मुदा सिंघ मे तेल छै
माय कहै बौआ हमर नुनुआगर, बुरलेल छै
जीटजाट फ़ीटफ़ाट,
मारय सीटल बिछान सन
मारल कंघी लटुरिया जुल्फ़ मे गमकै फुलेल छै
जेहने चढ़ल पंथ बौआ तेहने होइन्ह संगति
तीन खेप मैटरिक फेल दोस, फेलो मे फलेल छै
लभ लिखल फ़ोनटेन लभे उकारल कुंजी-झावा
लभ घसल तरहैत तँ कामदेवक गुलेल छै
तीर तरकस सँ लैस बोआ चलला शिकार पर
कान्ह पर हाथ देनय संगबै भजारी टंडेल छै
अंगना घरक नुनुआ छथि सड़क पर उचक्का
भरल चालि ढ़ालि मे अवरपनीक अटखेल छै
"शांतिलक्ष्मी" देखय छत पर षोडषीक काकचेष्ट
बाट ठाढ़ बौआक आंखि मे बकोध्यानक झमेल छै
.........वर्ण १९........
गजल ३
छाति तानि ठाढ़ सैनिक दुश्मनक तोप बरसाबैत अंगोरा
लहास घिसियावैत कुत्ता पढ़ि कवैती शेर केँ कहै भगोरा
सात कोनटाक मरचट्टा बदलै कोन-कोन रंगक नै झन्डा
बलिदानीक सारा लागल पाथर केँ की बुझतै ओ लिकलोढा
सौ मुनसाक संग जे खेलकरी राति-दिन खेलावै रसलीला
सून बाट चलैत छौड़ी केँ कहलकै गे बज्जर खसतौ तोरा
जँ बातक नहि ठीक तँ बापोक नहि ठीक के छै सत्ते कहवी
उनटा-पुनटा गप्पक सतखेल करै ई कुर्सीक चटकोरा
नौ सौ मुस खाय केँ बिलाय साधु नाहैत चानन ठोप लगौने
सुसुम खुन चाटय सुंघसुंघ करै ई लाकर आदमखोरा
"शांतिलक्ष्मी" माथ धयनै बैसल देख रहलै हेँ
सभटा छिछा
लोकतंत्रक अस्मिता लुटय बेकल कोना देसक कुलबोरा
............वर्ण २३...........
४
शिवकुमार झा ‘टिल्लू’
कविता-
क्षणप्रभा
सभ दिस सर्द
कियो नै बेपर्द
देह सिहकल रेह ठिठुरल
पोखरि-इनार ठमकल
पूस रमकल
श्याम असर्ध शीतक बीच
ट्क-ट्क धएने आश
कखन भरत मोनक पियास
कबदबैत चम्पा मुस्कैत पलाश
सूर्यमुखीक दशा देखि
ओकरासँ किअए करैत छी सिनेह
जे कुन्तीकेँ ठकि लेलक
ओकर कौमार्य नष्ट कऽ देलक
आइ आगिक ढेपपर
के करत विश्वास?
झॉपू मर्यादा बचाउ गेह
भावक आगाँ प्राप्ति कोन मोजर
एतबेमे मघ उड़ि गेल
शीत लुप्त भेल
क्षणप्रभा बनि रविक अर्चिस
सूर्यमुखीक,
कोमल कोंपरमे समागेल
ज्योतिपुंजकेँ आदित्यक चरण मानि-
सूर्यमुखी अपन सेंथुमे
भस्मीभूत कऽ लेलीह
अखण्ड सौभाग्यवतीक आशीषक संग
किरण ससरल
कली फूल बनि पसरल
हम तँ उभय लिंगी छी
नै रहितौं तैयो करितियनि
सुरूजसँ प्रेम......
सभ किअए दैत छी हुनकापर दोख
ने डूमैत छथि ने उगैत छथि
सभ पिण्ड घूमि-
हुनकापर डूमि जएबाक
कलंक लगबैत अछि-
जखन अपनामे दृढ़ता नै
तँ दोसरपर दोष केहेन?
बिनु बजौने सभ लग अबैत छथि
आठो याम जरैत छथि
कुन्ती सभ जनैत किअए
कएली वरण-
ज्योजिपुंजकेँ बान्हब
ककरासँ भेल संभव?
आदित्य सिनेहक तापस
लगले तप्पत, लगले विद्रूप
कोना भेला छलिया?
सिनेहक अर्थ सुधि प्रभंजन
नै स्पर्श
एकर नै अवसान
नै उत्कर्ष...
क्षणप्रभा जकरापर खसल
ओ जरल ओ मरल
मुदा! सिनेहक क्षणप्रभा
वासना मात्र नै-
शाश्वत स्पंदन...
जकरामे केलक प्रवेश
ओकरा रोम-रोम शेष-अशेष
एकर भंगिमा वएह कहत
जकरामे संवेदना रहत....।
१.
जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’ २.जगदानंद झा 'मनु' -गीत-गजल
१
जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’
गजल
१
गीत गजलमे लागल छी
ओ बुझैत छथि पागल छी ।
हम रातिकें राति कहै छी
तें भरि गामसं बारल छी ।
अहां बाढिएसं तबाह छी
हम रौदी केर मारल छी ।
हम स्वयंकें नहि चिन्हलौं
देखू केहेन अभागल छी ।
अहां कहैछी कविता सूनू
हम यात्राक झमारल छी ।
ऐ खेलाके यैह नियम छै
सब जीतल आ हारल छी ।
पाइ प्रतिष्ठा पद नै चाही
प्रेमक हम पियासल छी ।
२
कुदने की, फनने की
अन्हराकें जगने की ।
सडक आ ने बिजली
कुरसी पकडने की ।
पाप बढि गेल अछि
गंगाजीकें बहने की ।
शासन बहीर अछि
कहने की,सुनने की ।
मोन अछि झमेलामे
राम राम रटने की ।
सब ठाम सुखराम
अन्नाजीकें सहने की ।
शीलक विचार करू
कुंडली टा देखने की ।
२.
जगदानंद झा 'मनु',
पिता-
श्री राज कुमार झा, जन्म स्थान आ पैत्रिक गाम : हरिपुर डिहटोल ,जिला मधुबनी, शिक्षा :प्राथमिक -ग्राम हरिपुर डिहटोल मे, माध्यमिक आ उच्च माध्यमिक -सी
बी एस ई, दिल्ली,
स्नातक -देशबंधु कालेज ,दिल्ली बिश्वविद्यालय
गजल -१
अहाँक चमकैत बिजली सन काया ओई अन्हरिया राति में
आह ! कपार हमहुँ की पयलौंह मिलल जए छाति
छाति में
सुन्नर सलोनी मुंह अहाँ कए, कारी घटा घनघोर केशक
होस गबा बैसलौंह हम अपन, पैस गेल हमर छाति में
बिसरि नहि पाबी सुतलो-जैगतो, ध्यान में हरदम अहीं के
अहाँक कमलिनी सुन्नर आँखि, देखलौं जए नशिली राति में
ओ बनेला निचैन सँ अहाँ के, पठबै सँ पहिले धरती पर
मिलन अहाँ कए अंग-अंग में जे, नहि अछि दीप आ बाति में
सुन्नर अहाँ छी सुन्नर अछि काया अंग-अंग
सुन्नर अहाँ के
नहि कैह सकैछी एहि सँ बेसी अहाँक बर्णन हम
पांति में
***जगदानंद झा 'मनु'
--------------------------------------------------------------------
गजल-२
लाल-दाई के ललना लाले लाल लगैत छथि
लाली अपन माय के चोरा कs लजाबैत छथि
छैन आँखि में हिनकर काजरक बिजुडिया
माइयो सँ सुन्नर झिलमिल झलकैत छथि
लटकल माथ पर सुन्नर लत हिनकर
देखु-देखु चंद्रमा कए इ त नुकाबैत छथि
सुनि-सुनि बहिना सब हिनकर किलकाडि
कियो खेलाबैत कियो हिनका झुलाबैत छथि
रंग-रूप चाल-चलन सबटा निहाल छैन
मुस्की सँ इ अपन मनु कए लुभाबैत छथि
***जगदानंद झा 'मनु'
***********************************************
गजल-३
टीस उठैए करेज में कोना कहु बितैए की
कोन लगन लगेलौं अहाँ सँ याद अबैए की
जतय देखु जिम्हर देखु अहाँ कए देखै छी
कोना बितत दिन-राति कोना कय बितैए की
रहि-रहि याद अहाँ के हमरा बड आबैए
कि करू कोना करू आब नै किछ फुराईए की
प्रियतम मनु के किएक इना तरपाबै छी
मोन में लहर उठल से अहुँ के लगैए की
*** जगदानंद झा 'मनु'
**********************************************
गजल-४
निर्धन जानि अहुँ बिसरलौन्ह माँ
कोन अपराध हम कएलौन्ह माँ
निर्धन छी हम हमर नै गलती
इ निक सनेस अहीं दएलौन्ह माँ
मुल्यक तराजू में नै हमरा तौलु
ममता कए प्यासल रहलौन्ह माँ
दर-दर भटकैत खाक छनै छी
आँचर अहाँक नहि पएलौन्ह माँ
मनु के नै अपन स्नेह देलौं किछु
चरणों सँ आब दूर कएलौन्ह माँ
***जगदानंद झा 'मनु'
********************************************
गजल-५
कि-कि बनब चाहै छलौं हम की बनि गेलौंह
सुगंधा अहीं कए स्नेह में हम सनि गेलौंह
आस हमर करेज के करेजे में रहि गेल
अहाँ के छोइर दुनियाँ में कतौ जुनि गेलौंह
रहल नहि होश हमरा दुनियाँ के गम के
अहाँ कए स्नेह में भय पागल कनि गेलौंह
सैदखन ख्याल में अहीं कए बसेने रहै छी
सब कुछ हम अपन अहीं के मनि गेलौंह
हमर स्नेह जे अहाँ सँ स्नेह नहि रहि गेल
हमर मोन में बसि अहाँ प्राण बनि गेलौंह
१
अंजनी कुमार वर्मा
आत्मबल
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
संघर्ष मय जिनगी सं फराक रहब निक अछि
अहि बिगड़ल समाज सं सुनसान जंगले निक अछि
मुदा कतैक दिन धैर ?
उचितक बात पर नहि क सकैछ धनुषाकार
आत्मबल कें राखि देखू आत्म्बलक इतिहास
धनुषाकारक बाद भ जाईछ जनजागरण
क्रांतिक विकराल रूप क लैछ धारण
जगविदित अछि क्रांति केर की की होईछ परिणाम
रौद्र रूप धारण कय जखन लैछ तीर- कमान
नहि अप्पन प्राण केर भय होइछ
नहि दोसराक प्राणक मोह
तखैन देह में आबी जैत अछि
अभिमन्यु केर खून
सोइच लिय हे पथभ्रष्ट जयद्रथ
होयत कोन उपाय
कतेक दिन धैर सहन करत
दुखिया केर समुदाय
लौह-भुजा आब फड़कि रहल अछि
प्राण -प्राण लेल तड़पि रहल अछि
क्रांतिक ज्वाला भड़कि रहल अछि
आब सोचु अप्पन उपाय
नहि मानत पीड़ित समुदाय
क्रन्तिये ठीक अंत उपाय..........
ओजक भोज
,,,,,,,,,,,,,,,
इ आत्मीयता थिक मृगमरीचिका
जाहि पाछु आम लोक सदृश
स्थिति कें खुआ रहल छी ओजक भोज
झाँपल हाड़ भ गेल बहार
वसन तर सं द रहल अछि देखार
इ कर्तव्यक द्वार ,केयो
नै पाबैछ पार
गलब अछि सहज मुदा
स्वर्ण बनब कठिन
इ सम्बन्ध अछि अनंत
इ आत्मीयता अभिन्न.....
समस्या
,,,,,,,,,,
आबक लोक की करत बसंतक अनुभव
की सुनत कोइलीक गीत
की घुमत पुष्प वाटिका में ,
कपार पर राखल करिया पाग कए
उघैत - उघैत बनल रहैछ बताह
नहि पाबि सकैछ थाह
नहि सुति सकैछ सुख सं
नहि बाजि सकैछ दुःख सं
गोंताह पानि में डूबल रहैछ कंठ धरि
छटपटाइत रहैछ, बऊआयत
रहैछ मन
सपनहूँ में देखैछ सदिखन दुःख धंधा
घेंट में लागल फंदा ,
नहि रौदक चिंता अछि,नहि
पानिक
मात्र चिंता अछि सबकें अप्पन पेटक
फंदा लागल घेंटक ....
वासंती गीत
'''''''''''''''''''''''''''''''''
कोइली कुहू -कुहू कुहुके हो रामा वन उपवन
में
नव किसलय सँ गाछ लागल अछि
मंजरि गम -गम गमकि रहल अछि
रंग बिरंगक फुल गाछ में
प्रकृति कयल श्रृंगार हो रामा वन उपवन में
........
टिकुला सँ अछि झुकि गेल मंजरि
नेना सब हर्षित अछि घर -घर
गाछ -गाछ पर विरहिणी कोइली
कुहू -कुहू पिया कय बजाबै हो रामा वन उपवन
में ....
श्वेतवसन कचनार पहिरी कय
भ्रमर आंखि केर काजर बनि कय
कामदेव क लजा रहल अछि
बढ़वय रूप हज़ार हो रामा वन उपवन में .....
महुआ गम -गम गमकि रहल अछि
नेना चहुँदिसि दौरि रहल अछि
डाली -झोरी मं अछि महुआ
गाबय चैत बहार हो रामा वन उपवन में ......
दुई गोट भूख
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
खसि गेलैक-ए आँखिक पानि
आब लोक चौबटिया पर बेच दैछ
अप्पन अस्तित्व ,
खोलि दैछ नीबी-बंध
कियैक तs पेटक होम
कुंड मs
देबय परैछ आहुति ...
बढ्ले जा रहल अछि दिनानुदिन
अनंत दिशा में वासना केर भूख
वासनाक भूखल किनी लेछ
रोटीक लेल छटपटाइत लोकक अस्तित्व
लोक में आब कोन वृत्ति आबि गेल अछि
दानवी , पाशविक आ की
कोनो तेसर ......
एकर वर्गीकरण करब अछि असंभव
दुवs भुखक सम्बन्ध भs
गेल अछि
अन्योन्याश्रय .....
२
बलराम साह
जन्म- 21/11/1973
पिताक नाओं श्री जीबछ साह, गाम- नौआबाखर, पत्रालय- हटनी, भाया- घोघरडीहा, जिला- मधुबनी (बिहार)
संप्रति- अधिवक्ता, जिला न्यायलय, मधुबनी
सांसद प्रतिनिधि, झंझारपुर।
कविता-
आकि नीन टूटि गेल-
काजक थाकल
विचारक मारल
आ चिन्ताक टूटल
ओछाइनपर रही पड़ल
आँखि लागि गेल
देखलौं एकटा सपना
आकि नीन टूटि गेल।
सपना छल विचित्र
देखलौं जे गामक रधिया
जे अछि दैवक मारल मसोमात
ओकरा भेटलै इन्दिरा आवास
ओहो बिना घूसकेँ
आकि तखने हमर नीन टूटि गेल।
गाममे भेलै मारि
चलल लाठी आ फरसा
भेलै लठम-लठ
जाति-जातिक एकता
बैसल एकटा पंचैती
और हाकिम-दरोगा मिलि
सबटा झगड़ा मेटा देल
आकि हमर नीन टूटि गेल।
जखन नीनमे निनवासले रही
पढ़ल-लिखल बेटा
करैत छथि बापक सेवा
पढ़ल पुतोहू करैत रहथि
सासुक उत्कृष्ट सेवा
भाय-भायमे छल मिलानी
जाबत देखतौ आगू की भेल
ताबत हमर नीन टूटि गेल।
गामक बेटी पढ़लक-लिखलक
गरीबीसँ लादि लेलक बी.ए.क डिग्री
बगलक गामक मास्टर साहेबक
बेटा सेहो बनल हाकिम
आ बिना दहेजक दुनूक
वियाह भऽ गेल
आकि ताबत हमर नीन टूटि गेल।
यौ समाज की होएत
हमर सपना साँच कहियो
किएक तँ हमर नीन टूटि गेल।
३
उमेश पासवान
गेलहे घर छी
जौं अखार महिनामे
बुढ़ बरद, पजरामे दरद
पंजाबमे मरद अछि तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
घर लग बलान
चोर संग मिलान
घनक गान अछि तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
दूध लग बिलाइ
बच्चा लग सलाइ
अप्पन काज करैमे ढिलाइ तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
डराइबर अनारी
एड्स बेमारी
दोकानमे खाइ छी उधारी तँ समझू
हे गेहले घर छी।
मैट्रीकमे फेल
जवानीमे जेल
बुढ़ाढीमे केलौं मेल तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
चाहक चुस्की
लड़कीक मुस्की
दारू आ विस्कीक फेरीमे परलूँ तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
बन्दूकक नाल
माछक चाल
सैरक गाल देखि कऽ कुदब तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
भैयारीमे झगरा
घरवाली अछि तगरा
ससूर अछि लबरा तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
बाप कंजूस
कोठीमे लागल मुस
नोकरीमे देलौं घूस तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
कपड़ापर पड़ल मोबिल
कपारमे फरल ढील
टॉगमे गरल किल तँ समझू
हे गेलहे घर छी।
४
रामविलास साहु
धरतीक सुख
ऋृतुराज वसंत
धरतीपर पहुँचल
सोलह श्रृंगार करैत
दुलहिन सन सजल धरती
पगलाएल भौंरा नाचि-नाचि
करए मधुपान अविराम
चिड़ै चहकए कोइली कुहकए
करए आगमन मदन रति
सुआगतमे वसंत अभिनंदन करए
आएल अतिथिक मधुपान करबए
स्वर्गसँ उतरि धरतीपर
परी सभ मिलि सुआगत गीत गबए
देखि देवगण गुणगान करए
सबहक दिल ललचाइ छलैक
बेर-बेर धरतीपर मेहमान बनैत
एहन सुन्दर नै छै देवलोक
धरतीक सुख स्वर्गसँ सुन्दर
जे सुख मनुककेँ मिलै छै धरतीपर
देवाेकेँ नै नसीब होइत स्वर्गमे
धन्य अछि ओ पावन धरती
बेर-बेर वसंतक बहार मिलए
फूल-मंजर झुकि-झुकि
सभकेँ अभिनंदन करए।
साओनक राित
झर-झर बरसै बदरिया हो रामा
एबकी सवनमा
बिजुरी चमकै मेघ गरजै
थर-थर कापए वदनमा हो रामा
झर-झर बरसै बदरिया हो रामा
एबकी सवनमा।
पिया िनरमोहिया बड़ निरदैया
जानए ने कोनो मरमुआ हो रामा
झर-झर बरसै बदरिया हो रामा
एबकी सवनमा।
सओनक अन्हरिया चमकै बिजुरिया
पानिक बुन्नसँ भिजै वदनमा
भीजल तन राति काटब कोना
झर-झर बरसै वदरिया हो रामा
एबकी सवनमा।
भीजल बदनमा चढ़ल यौवनमा
सिहकए पवनमा तरपाबए सजनमा
झर-झर बरसै बदरिया हो रामा
एबकी सवनमा।
चढ़ल यौवन दरिया सन
उमरल
पिया बिनु तरसै
नयनमा हो रामा
झर-झर बरसै वदरिया
हो रामा
एबकी सवनमा।
५
संजीव कुमार ‘शमा’
क्रांति दीप
आउ क्रांतिवीर बनि
मिथिलाकेँ बचेबाक लेल
जड़ाउ क्रांति दीप जतए भूमि अछि रहबाक
लेल।
िल-तिल समैकेँ पकड़ि जे हाथसँ नै ससरए
एकताक ठोसगर मापदंड अपन एतए नै फूटए
मैथिलीक प्रचार, जन-जनकेँ जगेबाक लेल..्
बड्ड भेल! आब कते काल धरि बेइज्जत होइत
रहब,
माँ मिथिलाकेँ आजाद कराएब से संकल्प
दोहराबैत रहब,
चलू चलल फिरङ्गी चालिकेँ, मिटेबाक लेल...
बजा देने छथि बैजूबाबू विजयक बिगुल, भीषण हंुकार जकाँ,
मचि गेल अछि शोर चहुँदिश, स्वतंत्रताक पुकार जकाँ
आगूमे जे ठाढ़ अछि पहाड़, चलू खसेबाक लेल
डरपोक बनि कतेक काल धरि डरल रहब
आब कहिआ भट्ठीक आगि जकाँ धधकब
धधकल छथि शमा मिथिलांचलक दीप जड़ेबाक
लेल।
६
सुधीर कुमार ‘सुमन’
पिता- श्री सत्यदेव ‘सुमन’
गाम- लकसेना
पोस्ट– महिन्दवार
भाया- तुलापतगंज
जिला- मधुबनी
(बिहार)
कविता-
समए
समैकेँ सदिखन धियानमे राखि
जिनगीकेँ धरतीसँ जोड़ि
लुच्चा–लौफरक बातमे ने आबी
अपन बीतल बात पसारैत
समाजक मर्यादाक मान बचाबी
अपन चिन्ताकेँ चिन्ता ने मानि
मैथिल-संस्कृतिक मान बचाबी
साँझ पड़ैत ठंढ़ अबैत
लोक िनहाड़ए अपन बाटकेँ
विद्वान, विदुषी मैथिली भाषी
अपन चमतकार िनखाड़ए
देखाबए ठंढ़ा पानि
आजुक दिन सपना भरल छै
हँसी-हँसीमे समए बीतल छै
समए पकड़ि आगू बढ़ू
भैया सभ अपन सपनाकेँ
साकार करै छै।
७
उपेन्द्र नारायण ‘अनुपम’
गाम- भुतहा, भाया- नरहिया
थाना- लौकही, जिला- मधुबनी
संप्रति- व्याख्याता (मनोविज्ञान विभाग), अशर्फी दास साहु समाज इण्टर महिला
महाविद्यालय- िनर्मली, सुपौल
कविता-
दुख हम्मर
कतेक आब दुख सहब
ककरा ई बात कहब
घर-घरमे अछि झगड़ा
सभकेँ सभसँ अछि रगड़ा।
झगड़ा तँ हटत नै
रगड़ा तँ मिटत नै
मिटत नै आश
बेचरा होएत निराश
आशक आब डोर टूटल
निराशासँ ठोर सुखल
छूटल अपन साम-दाम
बाबू गिड़ल धराक-धड़ाम
पहिले बड़का गाछ गिड़ैत अछि
तब कहीं छोटका पात उड़ैत अछि
उड़ि जाइत अछि सभ तृण
एक दिन दुनियाँसँ होएब भिन्न।
सुखक जननी दुखे होइत अछि
दुखक बादे सुख अबैत अछि
दुख जाएत, सुख आएत जरूर-जरूर
एक दिन कहब।
दुखसँ नै घबराबउ
दुखसँ खूब टकराउ
दुखसँ पाबू पार
गुड़ गंजन बादे मिश्री जेना तैयार
ओहने सवव, और की कहब।
अनुपम-सुशीला ई बेथा सुना कऽ
जन-जन तक अपन वणी पहुँचा कऽ
उहो लेत एक दिन दम
ई बात नै अछि कम।
घी कनी
ई कनी घी
ओही लेल केलौं ने की-की
साँझ-भीनसर-भोर
बड्ड लगेलौं जोर
मटकुरी, रेही लाबि कऽ
पीढ़ीपर बैस कऽ
मथए लगलौं जोर।
पसेना आएल, मथा गेल छालही
जमा भऽ गेल मक्खन-मट्ठा-घोड़
आनि कराही आॅच दिअए लगलौं
खशीसँ नेना भेल विभोर।
ऑच बढ़ल कराही कड़कल
मक्खन होअए लगलै थोड़
घी बना बेचि कऽ लाएब
चूड़ी-साया-साड़ी
घी बनल कराही उतड़ल
विचार आएल छल बेजोड़।
कराही उतड़ल, मन छल छनगर
कराही चटकल घी बहल
रहि गेल दारही थोड़।
फुसुर-फुसुर भेल
आबए लगल लोक
धूर केहेन छथिन अभागलनी
कोनो घी बनबैपर मन छलनि थोड़े
मन छलनि गाछपर
तन हुनक खाटपर
घीक कोनो नै कसूर
भेल घी हरा गेल
छाती पीटैत रहि गेलि
दुलहिनिया भोरे-भोर।
अनुपम-सुशीला घी खातीर
नयनसँ बहबए लगलै नोर
ई दीन-कथा घी गरीबक
पसरि गेल चाहुँ ओर।
परदेसिया प्रियतम
तँू चनचल छेँ, रौ मन
चित्त लऽ गेल हम्मर चोर
सावन केर जब अइहेँ महिना
आँखिसँ बहए नोर
तँू छलिया परदेशी बालम
टुकुर-टुकुर तकैत भेल
साँझ-सँ-भोर।
भादव केर जब अइहेँ महिना
असगर लागए डर
बिनु बालम केर नीक नै लगए
कनैत-कनैत भऽ गेल रति-सँ-भोर।
बेंग टर्र-टर्र, झिंगुर झुन-झुन
अंगनामे नाचए मोर
बिनु साजन केर खिलत कोना कलियाँ
बीतल जवानी फूलबा ने कोर।
अनुपम-सुशीला कहए
केहेन परदेशिया गै प्रीति
कहियो-ने-कहियो तँ मिल जाएत
अप्पन मक्खन चोर।
८
नारायण झा
जन्म- 05/07/1980
गाम-पोस्ट, रहुआ संग्राम
प्रखण्ड- मधेपुर
जिला- मधुबनी
बिहार- 847408
शैक्षणिक एवं प्रशैक्षणिक योग्यता-
बी.कॉम (प्रतिष्ठा)
बी.एड
एम.कॉम (अध्ययनरत)
कार्यरत- प्रखंड शिक्षकक रूपमे वर्ष 2003
ईं.सँ
रा.म. विद्यालय रहुआ-संग्राम।
रूचि- लेखन आ नव गपसँ अवगत भेनाइ।
सरकार
पर्चा-पर्चा पसरल चर्चा
ऐ सरकारक विकासक चर्चा।
अखबारक सुरखी जाइत अछि समेटल
माटिपर देखब तँ किछु नै भेटल।
शिलान्यास-पर-शिलान्यास होइत सभ दिने
देखल जाइत अछि अखबारमे हुनका दोगे-कोने।
नाम-यश समटि रिकार्ड बनबैत छथि
योजनाक राशिपर नॉच करैत छथि।
नूतन प्रयोगक विख्यात सरकार
सभ दिन नव योजनाक हुअए विचार।
ठेका प्रणालीक छथि महानायक
फुसियाँ देखबैत विकासक स्वप्न भयानक।
विजली विगड़ल, पानि पछड़ल
शिक्षा अछि समुचे दरकल।
डकैती,
महगाइ आओर भष्टाचार
दिनो-दिन बढ़ैत ई दुराचार।
विकासक सपना होइत तखन साकार।
आकाससँ उतड़ि, जमीनसँ देखि आकार।
पर्चा-पर्चा पसरल
चर्चा
ऐ सरकारक विकासक
चर्चा।
१.जगदीश प्रसाद मण्डल २.कपिलेश्वर राउत
१
जगदीश प्रसाद मण्डलक नौटा कविता-
1. धूप-छाँह
हे सूर्ज तोड़े पूछै छिअह?
उपर रहि तँू किअए बनौने,
एना छह दोहरी बेबहार।
अपन रश्मि आगू बढ़बैमे
धरतीकेँ किअए केने अन्हार।
केना रोकि तोरा दइ छह
वन-उपवन ओ जंगल।
आस लगौने धरतियो बैसल
करै छह किअए मंगल-अमंगल।
विहुँसि सूर्ज बाजल विह्वल!
कोनो भेद-भाव कखनो नै
मनमे कहियो उठैए।
जे जतए पकड़ि-पकड़ि
से अपन काज करबए लगैए।
जँ तोहू करबए चाहै छह
छाहरि छोड़ि निकलह
बाहर।
जखने नजरि मिला-चलबह
तखनेसँ संग पूरए लगबह।
मर्माहत भऽ पुकारि धरती-
केना कऽ घुसुकि पेबै,
चारू दिस घेड़ने-ए।
केना कऽ संग पाएब तोहर
कानि-कानि मन कहैए।
))((
2. माए
भेटि नै पबैत शब्दकोषमे
एक्को उदाहरण माइक लेल।
नजरि उठा जखन देखै छी
माताराम की सभ देल।
तीसे वर्खमे विधवा भेलौं
कहब कि अहाँसँ मइया।
मनुख बना ठाढ़ कऽ देलौं
बाकी कि रखलौं हे मइया।
कनतोड़ी भरि अपन आभूषण
बेचि-विकीन लगा देलौं
जुआनी गला जे सिनेह विलहलौं
बदलामे हम की कऽ देलौं।
राखि-सम्हारि घरसँ
बाहर
अपन ओ लागिक परिवार।
लुटा-मेटा अपन जिनगीकेँ
जिनगी जीबैक चढ़ेलौं
धार।
हँसी-खुशी जिनगी ससरैए।
सटि-सटि आनो परिवार।
एक-दोसरमे भेद कहाँ-ए।
संगे-संग मानो-सम्मान।
नव-नव चेहरा सिरजि
नव-नव काज धड़बैए।
नव-नव परिवार समेटि
नव-नव सिनेह सजबैए।
अपन सदृश्य अपने हे मैया
शब्द कहाँ अछि जे किछु
कहबह।
अपन रूप परसि-परसि
अपने सन हमरो बनेलह।
))((
3. साथी
जिनगीमे साथी मिलए जँ,
जीवन रस पीबे करत।
जीवने रस ने अमृत कहबए
अमृतमय जिनगी जीबे करत।
जाबे अमृतपान नै होइ छै
साथी हेराइक डरो रहै छै।
जहिना तेज धारा धारमे
हाथक साथी हथिआर (लाठी)
छुटै छै।
कोमल-कड़ा बीख होइत जहिना
तहिना ने अमृतो होइ छै।
कात-करोट किनछेरे-किनछरि
घोंघा-सितुआ मोती भेटै
छै।
नै अछि जरूरी कोनो
अमृत मधुर हेबे करत।
तीतोमे बास जेकर छै
नीक-नीक फल देबे करत।
आशमे अमृत बरसै छै
निराश छोड़ि आशावान
बनू।
अपन जान-परान अपनेमे
मुट्ठी बान्हि-बान्हि
आगू बढ़ू।
जहिना दुनियाँक रंग
सतरंगी
तहिना चालि जिनगियो धड़ै
छै
खसैत-उठैत, चलैत-चलैत
जिनगी रसपान करै छै।
))((
4. घर लोटिया बुड़ले अछि।
घर लोटिया बुड़ले अछि,
घर-घरारी गेले अछि।
गाम-घर उजड़ि-उपटि
नाओं-ठेकान विसरले अछि।
घरक लोटिया बुड़ले अछि।
बेटा-पुतोहू निकलि घरसँ
देखलक शहर-बजार।
ओ कि फेरि घुरि घर औत
आकि घुमत हाट-बजार।
छाती मुक्का मारि लिअ
अपन जिनगी सम्हारि लिअ।
नै तँ अपनो बुड़ले अछि
घरक लोटिया बुड़ले अछि।
जइ बच्चाकेँ भेँट नै
हेतै
सालक-साल माए-बाप।
दादा-दादीक कथे कि कहब
मोबाइलेसँ करत क्रिया-कलाप।
कुल-खनदान सभ गेलै अछि
घरक लोटिया बुड़ले अछि।
अंग्रेजी पढ़ि अंग्रेजिया
बनि-बनि
पप्पा-मम्मी आनत घर।
बाप-दादाक कि भेद ओ बुझत
अड़ि-अड़ि बाजत निडर।
आबो कहू भाय, केना नै डुमतै
घरक लोटिया केना नै
बुड़तै।
))((
5. जुग बदलल जमाना बदलल।
जुग बदलल जमाना बदलल
बदलि गेल सभ रीति-बेबहार।
चालि-ढालि सेहो बदलि
गेल
बदलि गेल सभ आचार-विचार।
मुदा, राति-दिन एको
ने बदलल
नै बदलल चान, सूर्ज, अकास।
पूरबा-पछबा सेहो ने बदलल
नै बदलल जिनगीक विसवास।
दुख देखि सभ दौग रहल-ए
पाबए चाहैए सुखक भंडार।
उड़ि-उड़ि पूरबा-पछियामे
लोभक बाट पकड़ि धूरझाड़।
घर छोड़ि घुड़मुड़िया
खेलए
दुहाइ कसि मातृभूमिक
लगबए।
अपनो जिनगी देखि-देखि
करनीक तँ फलो किछु
देखबए।
एक सुग्गा वन बास करैए
दोसर पोसा िपजरा कहबैए।
रहितो पिजरा पोसा सुग्गा
राम-राम दिन राति रटैए।
अपन जिनगी अपने बूझि
अपन बाट पकड़ए पड़त।
अपना जिनगी लेल सदति
जीवन-संघर्ष करए पड़त।
जइ युवामे आत्मबल नै
ओइ युवाक जुआनी केहन।
अपन हाथ अपने छाती रखि
मुँहसँ अवाज निकलए जेहन।
))((
6
गरीबी
गरीबीक गुरू-आश्रम बीच
भट्ठेसँ पढ़ैत एलौं।
भोरे उठि प्रणाम करै छियनि
मनक असीरवाद पबैत एलौं।
राति-दिन सुरता लगौने
सदिखन चर्च करै छियनि।
उठिते चर्च अपने आबि-आबि
जन्म–अजन्मक बात कहै
छियनि।
आँखिक आगू गुरू-गरीबीक
सुतलमे जगबै छथि।
दू-दिसिया चालि मनुखक
पकड़ि बाँहि कहै छथि।
अमीर-गरीबक चालि दू-दिसिया
कखनो अमीर, कखनो गरीब बनैत।
भाग्यक रेखा अगम-अथाह छै
हँसि-हँसि सदिखन
सुनबैत।
गरीबी सत्-मार्ग चलबैए
हँसि कु-मार्ग अमीरी
धड़बैए
भेद-कुभेद भेद बिनु
बुझने
सुमार्ग कहि कुमार्ग
चलबैए।
जेकरा ढौआ ढन-ढन करए
ओ केना पहुँचत मधुशाला।
चिकड़ि-चिकड़ि
गरीबनाथ कहए
भोजन नै छी सुआद मशाला।
अपने हाथे पकड़ि बाँहि
सीमा सरहद देखि-देखि
चलबैए।
अपन आड़ि-मेड़ अपने
पकड़ि
हँसि-हँसि अपन चालि
धड़बैए।
जेकरा अहाँ अमीर बूझै छी
नै छिऐक ओ अमीरी।
आ ने जेकरा गरीब बूझै छी
नै छिऐक ओहो गरीबी।
बुद्धदेव किअए राज-पाट
छोड़लनि
जँ अभावेकेँ गरीबी कहबै।
भिझुक बेना पकड़ि किअए
जिनगी भीखमंगाक बनबए।
गरीबीक जे राह पकड़ि-पकड़ि
राही बनि रनिबास चलैए।
ब्रह्मा, विष्णु ओ शिवदानी
पदे-पद दर्शन पबैए।
यएह गरीबी आ अमीरीक
धड़-धड़ जीवन धार बहैए
सागर-गंगा हेराएल कहाँ
तिले-तिल चलैत रहैए।
7
दबाइये राेग
कहिया कतएसँ रोगाएल छी
रोगे ओछाइन धेने एलौं।
जी तोड़ि तरद्दुतो करै
छी
रोगे संग-संग जीबैत एलौं।
रोगो कहाँ छोड़ए चाहैए
अपन ओझराएल-पोझराएल बान
रोगाएल देखि-देखि कहैए
ओ अछिये महा बुरिबान।
उक्कठ-पाकठ बरमहल करैए
कखनो नै छोड़ए अपन सान।
ताकि-ताकि मीठहा दवाइ
आनि
गमबए चाहैए अपन जान।
कहै छलै पेट पाचन बिगड़ल
पीबए लगलौं महाजाइम।
आठे दिन अबैत-अबैत
सरदी-बोखार पकड़लक तानि।
कोनो कि एना आइये होए
आकि होइत आएल जुग-जुगसँ।
जएह पोषक सएह शोषक बनि
लीड़ी-बीड़ी करैत
जुग-जुगसँ।
मनुख-मनुखक बीच अड़िया
घुमा बुइध बुद्धियार
बनौलक।
दिन-राति छाँटि-छुटि
आड़ि
साबरमंत्र पढ़ा मुग्ध
बनौलक।
मनतरो कि हरही-सुरही
पीठिया-पीठिया मन
घुमौलक।
हँसि-हँसि पकड़ि चालि
बुइधसँ यारी करौलक।
छी ठाढ़ बुद्धियार बनि-बनि
जिनगीक परिचए कहाँ
पेलौं।
अपनो जिनगी नै देखै छी
कतएसँ कतए एलौं-गेलौं।
पाँच तत्वक जीवन पाबि-पाबि
जिनगीमे किछु नै केलौं
अकारथ जिनगी बना-बना
बेर्थमे जिनगी गमेलौं।
कि कहब किछु ने फुड़ैए
पीछराह बाट पकड़ि लेलौं।
केम्हरो-सँ-केम्हरो
पीछड़ै छी
मृत्युकेँ सदति नतैत
एलौं।
भार बना जीवन लीलाकेँ
कुहरि-कुहरि जीबै छी।
आशा-आसी ताकि रहल छी
जिनगी बाट काटै छी।
8
मुँहक झालि
मुँहक झालि बजौने कि
हएत,
काजक झालि बजबए पड़त।
फोकला-खाख अन्ने की
सुभर दाना उपजबए पड़त।
जाधरि धरती पड़ती रहतै
चारागाह दिन-रातियो
बनतै।
चरनिहारोक चालि असंख्य
छै,
दिन-राति चरबे करतै।
सूर्जे जकाँ ओहो रहै छै
सूर्जेक संग चलबो करै छै।
राति-दिन बेड़ा-बेड़ा
समए देखि चड़बो करै छै।
देहधारी जीवे टा नै
विवेकियो पुरूष कहबै छी
लाज-शर्म जँ उठा-पीब
तँ अपन बिटारि अपने करै
छी।
जँ धरतीपर जन्म लेलौं
किछु देबो किछु लेबो
सीखू।
अपने केलहा संग चलै छै
गीरह बान्हि कन्हेठ
राखू।
जहिना वनमे वृक्ष बहुत
छै
जीवो-जन्तु तहिना भरल
छै।
पाँच तत्व िनर्मित जे
कहबै
पाँचे तत्व विलीनो होइ
छै।
बिनु भक्तिक मुक्ति
कहाँ
बिनु मुक्तिक जिनगी
कहाँ छै।
भक्ति-मुक्तिक बीच
बटोही
जिनगीक रसपान करै छै।
मुँहक झालि लहरी नै
कर्मक स्वरलहरी सीखू
अपन इतिहास अपने हाथसँ
स्वार्णाक्षरमे लिखनाइ
सीखू।
9
किछु सीखू किछु करू
जिनगीमे किछु करब सीखू
जिनगीमे किछु लड़ब
सीखू।
सभ जनै छी, सभ देखै छी
अज्ञान-अबोध बनि-बनि
अबै छी।
सज्ञान-सुबोध तखने बनब
संघर्षक बाट जिनगी धड़ब।
एक-दोसरमे तखन बदलै छै
बीच परिवर्तनक खेल चलै
छै।
जहिना रीतु परिवर्तन
होइ छै
तहिना कुरीत-सुरीत सेहो
बनै छै।
जहिना जाड़मे गरमी बदलै
छै
तहिना ने गरमियो जाड़
बदलै छै।
पबिते पानि धरती धमकि
नवरंगी रूप बना सजै छै।
जिनगियोक तँ खेल एहिना
अहीमे सभ किछु बनै छै।
कियो भक्त भगवान पबैत
तँ कियो पबैत भगवत् भजन।
कियो योद्धा बनि अस्त्र
उठबए
तँ कियो कुकर्म-सुकर्म
गढ़ैत।
आँखि उठा घर-बाहर देखू
अपन कालखंड अपने परखू।
पबिते परेखि जीवन-मौसम
केर
साओनक सोहनगर सुगंध बिखड़ू।
२
कपिलेश्वर राउत
कविता-
माइक ओद्रमे जे भाषा सिखलक
परदेश जा सभ विसरलक।
गाम आबि काहे-कुहे बजैए
समाज कहैत आब बड्ड बुझैए।
पढ़ल लिखल आर विगारलक
बाल बच्चाकेँ कनभेन्ट
धरेलक।
चालि-ढालि अंग्रेजिया
पकड़ि
मातृभाषाकेँ खिल्ली
उड़ौलक।
अप्पन भाषा बिसरि
बहरबैया भाषा अपनौलक।
अहाँ मैथिलीकेँ केना आगू
केलौं
अपने तँ गेबे केलौं बच्चोकेँ
भसिएलौं।
जेतबो इज्जत गौआँ दइए
परदेशी ओकरा थकुचैए।
गौआँ-घरूआ मैथिली जियाबए
परदेशिया बाहर भगाबए।
कनिये अंग्रेजिया जोर
लगबिऔ
मैथिलीकेँ आगाँ देखबिऔ।
जनक आ सीताक भाषा अपनाउ
कर्म छोड़ू नै अपनाकेँ
बनाउ।
विद्यापति आ यात्री कहि
गेला
मण्डन आ अयाची कर्म वीर
भेला।
अप्पन भाषा सभ जन मिठ्ठा
एकरा नै बुझू हँसी ठठ्ठा।
१.डाॅ. शिव कुमार प्रसाद २.सत्यनारायण झा ३.जवाहर लाल कश्यप ४.किशन कारीगर
१
डाॅ. शिव कुमार प्रसाद
वरीय व्याख्याता
हिन्दी विभाग
िनर्मली काॅलेज, िनर्मली
जन्म- 12/ 11/ 1956
गाम+पोस्ट- सिमरा
भाया- झंझारपुर
जिला- मधुबनी
(बिहार)
िनर्मलीक िनर्मलतामे
िनर्मलीक िनर्मलतामे
मनक मलाल सभ मेटा रहल अछि।
शिक्षाक ऐ महापंकमे
गामक जिनगी लेटा रहल अछि।
कैंचा-पैसा जोरि-जोरि कऽ
माए-बाप सभ पठा रहल अछि।
कोचिंग, विद्यालय, काओलेजमे
एक-एक जन आइ लुटा रहल अछि।
गामक जिनगी..............।
के पठाओत ककरा लग जा कऽ
नेना भुटका पढ़ि रहल अछि।
नै दू सुधि बुइध केकरो छैक
अपने झंझट ओझराएल अछि।
गामक जिनगी....।
दौगैत-दौगैत चटिया सभटा
पढ़बैत-पढ़बैत बड़का सर सभ
अपन-अपन भाॅजमे सभकोइ
डॉरहि छुबए लेल अपसियाँत अछि।
गामक जिनगी लेटा रहल अछि।
मनक मलाल सभ मेटा रहल अछि।
2 तैं किछु ने किछु लिखैत जाउ
लिखैत-लिखैत लिखिये देबै
मैथिलीक उपकारी हेबै
तैं किछु-ने-किछु नित लिखैत जउ।
छपैत-छपैत छैपिये जेबै
एकदिन लेखक बनिए जेबै
मंच आर इनामो भेटत
तैं किछु-ने-किछु लिखते जाउ।
मौलिकता ककरा कहैत छी
किनकामे मौलिकता देखल
सभ कियो एक्के बात लिखैत छथि
सबहक नीयत साफ देखैत अछि
तैं किछु-ने-किछु लिखते जाउ।
नीर-क्षीर विवेक किनका छन्हि
लिखिनिहारमे हंस के छथि
पूर्जा-पूर्जी जोड़ि-तोड़ि कऽ
किछु-ने-किछु अहाँ
घसैत जाउ
तैं किछु-ने-किछु
लिखैत जाउ।
२.
सत्यनारायण झा
गंगाकात मे---
ओ भेट भेल छली हमरा, गंगाकात मे |
रामनामी ओढ़नी ओढ़ने,फुलडाली हाथ मे नेने,
तुलसी माला गर मे धेने ,धवल शुभ्रा वस्त्र पहिरने ,
ओ जाइत छली ,गंगाजल लाबय,गंगाकात मे ,
ओ भेट भेल छली हमरा ,गंगाकात मे |
मांग उजरल सिउथ उज्जर ,लहठी टुटल ,अबला
सन ,
सन्यासिनीक रूप ,दुखक मूर्ति बनल ,
ओ जाइत छली गंगाजल लाबय ,गंगा कात मे,
ओ भेट भेल छली हमरा, गंगा कात मे ||
मृग नयनी छली ,पिक बयनी छली ,
गज गामिनी छली ,चित चोरनी छली ,
कतेक मनोहारणी छली ,कतेक मनोभावनी छली
रूपक रानी छली ,मोहनीये नहि ,अद्भुत छली ,
से भेट भेल छली हमरा गंगाकात मे ,
ओ जाइत छली गंगाजल लाबय ,गंगाकात मे |||
हुनक आभा देखि सूर्य उगैत छल ,
हुनक गंध सं लोक गमकैत छल ,
हुनक मादकता देखि लोक हँसइत छल ,
से आइ बनल छनि एहन दशा ,
देखि मोन मे उठल ब्यथा ,
एहन दशा मे भेट भेल छली ,ओ हमरा ,
गंगाजल लाबय गेल छली ओ गंगा कात मे ,
भेट भेल छली ओ गंगा कात मे||||
हुनक दुःख देखि हृदय सुन्न भेल ,
हुनक कांति देखि मोन खिन भेल ,
पाथर सन कठोर ई संसार ,
तेहने कठोर ओ रचनाकार ,
तैं ओ अपन अरमान बहाबय ,
नहू नहू जाइत छली ,ओ गंगाकात मे
ओ भेट भेल छली हमरा , गंगाकात मे |||||
३
जवाहर लाल कश्यप
अन्ना जी भ गेलथि चुप
अन्ना जी भ गेलथि चुप
आशा के जे एक किरण छल
ओहो कतहु भ गेल गुम
राजनीति के दाव पेंच देख
निकालय खुब अनका मे मीन मेख
अप्पन दामन कियौ नहि देखय
जाहि मे अछि हजरो छेद
निकलैत सुरज डुबि गेल
भ गेल आब अन्हार कुप्प
अन्ना जी भ गेलथि चुप
४किशन कारीगर
चाह पीबू।
(हास्य कविता)
हरबड़ी मे जुनि ठोर पकाउ यौ नेता जी
दिल्लीक कुर्सी भेटल सूखचेन स अहाँ बैसू
आउ हम बेना डोला दैत छी
फूकी फूकी अहाँ गरम-गरम चाह पीबू।।
भूखे मरि रहल अछि जनता मरअ दियौअ ओकरा
नहि कोनो चिन्ता अहाँ के कोन अछि बेगरता
संसद के कुर्सी पर बैसल अराम अहाँ करू
करिक्का रूपैया स बैंक बैलेंस अहाँ भरू।।
मूर्ती बनबै स रथ यात्रा करै लेल पाई अछि
मुदा रोटी रोजगार हेतू एक्को टा पाई नहि अछि
फुसयाँहीक चुनावी घोषणा पर घोषणा टा करू
कुर्सी भेटल त घोटाला पर महाघोटाला टा करू।।
बाजि गेल चुनावी पीपही
राजनैतिक गठजोड़ जल्दी अहाँ करू
जुनि पछुआउ सियासी कुर्सी अहाँ ताकू
फेर पाँच साल जनता के बेकूफ बनाएल करू।।
दुनियाक सभ स नमहर लोकतंत्र
बनि गेल वोट बैंकक भेड़तंत्र
सम्प्रदायिकता के आगि मे जनता के झरकाउ
कुर्सी हथियाबै लेल रचू कोनो नबका
षड्यंत्र।।
पहिने कुर्सी फेर मंत्रालय कोना भेटत
सभटा छल प्रपंच अखने अहाँ करू
हे यौ लोकप्रिय भलमानुष जनप्रतिनिधी
संसदो मे अहाँ खूम मुक्कम मुक्की करू।।
कुर्सीक खातिर देशक संसाधन बेचलहुँ
बाँचल खूचल सेहो एक दिन अहाँ बेचू
जनता भूखे मरि गेल ओ बिलैटि गेल
मुदा साले साल राजनैतिक रोटी अहाँ सेकू।।
मँहगाइ भूखमरी कोनो समाधान ने कराउ
कृषि मंत्रालय मे राखल अन्न अहाँ सड़ाउ
संसद के कैंटीन में सरकारी सब्सिडी लगाउ
चिकन कोरमा शाही पनीर भरिपेट अहाँ खाउ।।
घोटाला पर महाघोटाल सभ केलहुँ
तइयो ने पेट अहाँ के भरल
मिठ बोली बाजि जनता के ठकलहुँ
एक्को दिन भूखले पेट होएत अहाँ के रहल
कतेको लोक भूखले मरि गेल बेकार भेल अछि किएक
संसद भवन स एक दिन बाहर निकलि अहाँ त देखू
की भा परैत छैक एक्के दिन मे बुझिए जेबैए
बिना किछ खेन्ने एक दिन भूखले रहि के अहाँ
देखू।।
मुदा कोनो चिन्ता नहि आब कुर्सी भेटिए गेल
संसद भवन मे सूखचेन स अहाँ बैसू
कारीगर बेना डोला दैत अछि
फूकी फूकी अहाँ गरम-गरम चाह पीबू।।
१.डॉ॰ शशिधर कुमर २.नवीन कुमार "आशा"
१.
मातृभूमि निज मिथिला अछि, छी वासी हिन्दुस्तान के
(मातृ भू वन्दन गीत)
(विगत् गणतन्त्र दिवस पर विशेष)
मातृभूमि निज मिथिला अछि,
छी वासी हिन्दुस्तान के (केर)।*
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपो - भू,
धरती स्वर्ग समान जे ।।
युग - युग सँ अछि ठाढ़ जतऽ,
गर्वोन्नत दिव्य हिमालय ।
गूँजय वेद - पुराण जतऽ,
अछि सदाचार केर आलय ।
बहय जतऽ गोदावरी, गंगा,
कोशी, कमला आ कृष्णा ।
विभिन्न धर्म, भाषा भाषी जतऽ,
रहय निडर भऽ, क्लेश विना ।
शत कोटि करय छी नमण आइ हम,
धरती कनक समान जे ।
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपोभू,
धरती स्वर्ग समान जे ।।
भारत केर सन्तान छी हम,
आ भारत माँ केर प्रहरी ।
धर्म हमर अछि देशक रक्षा,
देशक उन्नति – प्रगती (ति) ।**
देत कुदृष्टि जे एहि धरती पर,
करब तकर सन्धान ।
मारि भगायब हर एक केँ,
जे होयत खल शैतान ।
इएह धरती थिक मण्डन गौतम,
औलिया, नानक राम के (केर) ।*
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपो - भू,
धरती स्वर्ग समान जे ।।
फहराय हमेशा मुक्त व्योम मे,
विजयी - विश्व - तिरंगा ।
रहय विश्व मे सभसँ आगाँ,
हमर देश केर झण्डा ।
अमर रहय
ई
देश, जतऽ
अछि धीर – वीर सन्तान ।
मातृभूमि केर रक्षा लेऽ जे,
करय निछाउर प्राण ।
नञि बिसरि सकब गान्धी - सुभाष,
आ अगनित कत’ बलिदान केँ ।
पुण्यभूमि, रणभूमि, तपो - भू,
धरती स्वर्ग समान जे ।।
* मैथिली काव्य रूप मे बहुधा “केर” आ “केँ” केर उच्चारण द्विमात्रिक “के” सन होइत अछि । यद्यपि गद्य मैथिली मे एहि प्रकारेँ लिखब गलत अछि पर
पद्य मैथिली मे पद्यक लय – ताल केर अनुसारेँ आवश्यकता
पड़ला पर लिखल जा सकैत अछि ।
· केर = ह्रस्व उच्चारण
= ।। = २ मात्रा
· केँ = दिर्घ उच्चारण =
ऽ = २ मात्रा
· के = दिर्घ उच्चारण =
ऽ = २ मात्रा
** पद्य मैथिलीक एकटा आओर विशेषता । पद्य मैथिली मे पद्यक लय – ताल केर अनुसारेँ आवश्यकता पड़ला पर
मूल “ह्रस्व उच्चारण” केँ “दिर्घ” आ “दिर्घ
उच्चारण” केँ “ह्रस्व” रूप मे उच्चारित कयल जा सकैत अछि ।
हे अए (ऐ) हमर शशिकामिनी
(गीत)
(आगामी वेलेण्टाइन डे पर विशेष)
हे अए (ऐ) हमर शशिकामिनी ।*
हे अए (ऐ) हमर शशिकामिनी ।।
गज - गामिनी, मनोहारिनी ।
मम् हृदय - कुञ्ज विहारिणी ।।
मृदु - भाषिणी, मित - भाषिणी ।
छलकय अधर
सञो वारुणी ।।
मधु - हासिनी , सौदामिनी ।
रति - छवि नयन सुखदायिनी ।।
प्रिय - दर्शिनी, मधु - वर्षिणी ।
शोभा अलंकृत - कारिणी ।।
मन्मथ - जयी, सद्यः रती ।
कर काम जय - ध्वज धारिणी ।।
अहँ उर्वशी, मम् –
उर – बसी ।
अहँ प्रीति – पय - मन्दाकिनी ।।
हे अए (ऐ) हमर शशिकामिनी ।
हे अए (ऐ) हमर शशिकामिनी ।।
* शशिकामिनी = चाँदनी = चानी
नवीन कुमार "आशा"
हिंगलू भाइ यौ टिंगलू भाइ
हिंगलू भाइ यौ टिंगलू भाइ
जुनि अहाँ तोड़ू तुराइ
जँ अहाँ तोड़ब तुराइ
रातिमे खायब खूब पिटाइ
जुनि रहू अहाँ खाटपर
नै तँ काल्हि रहब टाटपर
आब सुनू यौ भाइ सुनू यौ भाइ
जे अछि टाटक बत्ती
नै बनबै जाउ देहक पहचान
आइ दुपहरिया रहि रहरिया
ओतए आबै अहाँक अबाज
पहुँचलौं जखन हम अहाँक डेरा
तखन आएल माथमे फेरा
फेर बुझल हम घरक रीत
अहाँ करी सभटा काज
भौजी खाली करथि साज
तँए कही यौ टिगलू भैया
जल्दी-जल्दी खेनाइ पकाउ
जँ अहाँ पकायब नीक खेनाइ
रातिमे भौजी दैथि रस मलाइ
आ जँ अगर तानब तुराइ
फेर खायब खूब पिटाइ
१.प्रो. राजकुमार नीलकंठ २.राजदेव मण्डल
१
प्रो. राजकुमार नीलकंठ
अवकाश प्राप्त प्रोफेसर
हिन्दी विभाग
िनर्मली महाविद्यालय, िनर्मली।
गाम- बेलही
जिला- सुपौल।
कविता-
स्रष्टा
अहाँ
जतऽ कतहु जनमलहु
अपनहि शवकेँ
गुरू-चरण तर दबाए
ऊर्जित-उत्तनित यष्टि
अानत मुख, नमित दृष्टि
ठाढ़ रहलहु एक िनर्मम प्रश्नवाचक।
आ, फेरसँ
शून्यमे पसरि गेल
दिगस्तत्व–सहस्र-दल
नव रङे रंजित
नव नामे संज्ञित,
अहाँक सर्प-यज्ञमे
देशसँ,
देशान्तरसँ
ससरि-ससरि, छिहुलि-छिहुलि
आयब अनिवार्य भेल
होयब अनिवार्य भेल अनर्थकेँ अहाँसँ
उत्तरित अहाँसँ
अन्तत: अहाँसँ अमुक्त।
ठाढ़ रहलहु अहाँ
तोड़लहु तँ किछु नहि
टूटि गेल सभ अपनहि-आप
अपनहि अनुत्तरक नागफणि वनमे
लोटि-अरूछा कऽ,
जोड़लहु तँ किछु नहि
सभ जुटि गेल अपनहि-आप
अपनहि ववर्तसँ
अपनहि नाङरिक पाछाँ-पाछाँ धावित।
अहाँक होयब मात्रसँ
नग्रता भेल पूर्ण।
अहींक दृष्टि-आवरणसँ पुन:
छँपि गेल सम्पूर्ण।
एक तीक्ष्ण अटकनपर
चितकाबर केचुआ उतारि
ससरि गेल शंकित ओ-
अनिर्वचनीय वृद्ध अजगर
स्यात् कोनो अन्य घाटीक खोजमे
शापित करए सुख-मग्र तृरीतिया।
साभार- मिथिला मिहिर, जून, 1969ईं.
२
राजदेव मण्डलक कविता-
कुहेस
कतौ ने किछु बचल अछि शेष
चारूभर पसरल कुहेस
कठुआ गेल देह भीजल अछि केश
अधभिज्जू सन भेल सभटा भेष
घुरिया रहल छी
ठामहि-ठाम
कियो ने दैत अछि
समैपर काम
टूटल जा रहल सभ आस
ऊपरसँ लगि गेल दिशाँस
कुहेस आर भऽ गेल सघन
इजोत लगैत अछि टीका
सन
खेत-खरिहान, घर जंगल-झाड़
सभटाकेँ घोंटि गेल
अन्हार
उनटि गेल जेना माथ
छूटि गेल सभ
संग-साथ
नै भेटैत अछि बाट
नै अपन घाट
लगे-लग औनाइत
मन भेल उच्चाट
सभ गोटे धऽ लेने छी
खाट
देखा दिअ जाएब कोन
बाट
कहिया फटत ई कुहेस
भेटत अपन घर परिवेश
हे सुरूज किरणकेँ
जगाऊ
आबो तँ ऐ कुहेसकेँ
भगाऊ।
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