अनिल मल्लिक
हम, देह
आ विदेह....!
मोन
बड़ा उद्विग्न छल, भोरे चाइरे बजे आँखि खुइल गेल ! बौआऽक
माय कहलथि “जाड़ मास, ठाड़
पकड़ि लेत, गब्दिया कऽ सुइत ने रहू !”
मुदा
आँखि मे निंद रहय, तँ ने सुती? निंद
तँ पड़ायल छल, चिन्ताक जेना बाढ़िमे भसिऐ लगलौं हम! काइल्हे
बौआ'क बियाह लगभग निश्चित केलौं ! भजियबैत
भजियबैत, गप्प मिलबैत मिलबैत… सौ
टा फुइस साँच बजैत… दू सालमे
चारि ठमन कन्या देखलाक बाद… आब जा कऽ
एतऽ हमर दाइल गलल! कन्या सेहो सुशील, मोन गदगद, कि
हमर सभ मनोरथ ऐ कुटमैतीसँ पूरा भऽ रहल अछि, सभसँ पैघ
बात तँ ई, कि कन्याक पिता झटसँ राजी भऽ गेलथि कि
लेनदेनक बात केकरो पता नै चलतै, कतौ नै
खोलता, सभ ठमन बजता… कि
आदर्श विवाह भेल! हमर गिन्ती समाजक अगुआमे होइत अछि, हमहीं
सभ तँ छी, जे एहन कुरीतीक विरोध करै छीI जौं
हमरा बारेमे लोककेँ पता चलि जाइ, की हम पाइ
लऽ कऽ कुटमैती केलौं, तँ ई समाजमे हमर प्रतिष्ठाक चेथरा उड़ा
देतI हम मोनेमोन धन्यवाद दैत एलौं मझिला
साढ़ूकेँ, जे सभ बात भीतरे भीतर मिलेलथिI हुनके
गतातीक कथा अछि ई, तै दुआरे निफिक्कीर छी !
बड़ खुशी
मोनसँ कन्यागत ओतऽ सँ लौटैत बेर भुतही हटियापर सँ ताजा बलसाही किनने एलौं I घर अबिते बौआक
मायकेँ सभ बात बतेलौं I सुनि कऽ बहुत प्रसन्न मोनसँ बाजि
उठलथि, की चलू “साँपो
मरल आ लाठीओ नै टुटल”! खा पी कऽ जल्दिए सुइत रहलौं दुनु
प्राणी !
हौ बा ! ई की
भेल ? आब एकर निदान तँ श्रीधर बाबु मात्र
बतेता तँ हुनके लंग जाइ छी I मोनेमोन
निश्चय कऽ चललौं हुनकेसँ भेंट करs ! कहुना कहुना
कऽ पाँच बजल, कुहेश बड़ जोर, दशो
हाथ दूर तक देखनाइ मुश्किल, पहुँचलौं
श्रीधर बाबूक घर, तीन चाइर गोटेक साथे घुर तपैत भेटला, दतमैन
करैत ! अकचका कऽ पुछलथि, की यौ ? की
बात ? एतेक सबेरे ? हम
कहलियन्हि जे बड़का आफतमे छी, की कहू ? कनेक
असगरेमे विचार करैक छल अहाँसँ ! सुनि कऽ श्रीधर बाबु हमरा दलान परक कोठरीमे बैसबाक
लेल कहलथि आ कुर्रा आचमन केलाक बाद दू गिलास चाह लऽ कऽ एलथि कोठरीमे, बैसते कहलथि “हँ
! तँ, आब कहs कोन
आफतक बात करै छलह तों?” ! बिना चोरा नुका कऽ सभटा बात कथा
कुटमैतीक बारेमे कहलियन्हि हम श्रीधर बाबूकेँ ! हमर गप्प निर्विकार भावसँ सुनैत
रहला !
हम
कने दम धेलौं, आ फेर कहऽ लगलौं श्रीधर बाबू ! जेना
अहाँ कहैत छी जे सपना कहियो भविष्यमे घटैबला घटनाक सूचक सेहो होइ छै आ हमहूँ ई बात
मानै छी, आइ राइत बड खुशी खुशी सुतलौं मुदा
राइत हम सपना बड बिचित्र क देखलौं !
देखलौं
की… हम दू गोटे छी, एकदम
हमरे जकाँ… हु बहू… देखबामे
एको मिसिया फरक नै जेना डबल रोल होइ? डिट्टो
ओहिना, एकटा उपर आ एकटा निच्चा! उप्पर बला
अपनाकेँ आत्मा कहैत छल, आ निच्चा बलाकेँ देह ! आत्मा बड
खिसिया कऽ धमकबैत छल देहकेँ “ हम नै सहबौ
आब तोहर बदमाशी, बाल्यकालक… जबानीक
मनमानी क्षमा करैत गेलियौ I अंग-अंग केँ, सभ
इन्द्रियकेँ डेमोक्रेशी देलियौ, बदलामे की
भेटल हमरा? निराशा, अपमान, आत्मग्लानि… आई
तँ अति केलैं तों, हाथ पकड़लक देह क आ जेना घिसीयबैत चलल
कहिते की आ तोरा देखबै छियौ तों की की केलैं अखैन धरि, आ
दण्ड किए नै दियौ तोरा? मायक गर्भसँ लऽ कऽ अखैन तक क यात्रा
हमर देहकेँ क्षण भरिमे करा देलक
जेना सिनेमा होइ तहिना, जेना ऐनामे स्पष्ट देखाइ छै तहिना एकदम
किलियर साफ साफ!
अपन
कुकृत्य देख देह हाँइफ गेल तँ आत्मा ओकर हाथ छोड़लक, देह
धप्पसँ खसल जमीनपर, डरा कऽ देखऽ लागल आत्मा दिस जेना चोर
देखै छै दरोगा दिस तहिना, चुपचापI
कनिक्को
शांत नै भेल अखैन धरि आत्मा, बाजैत रहल, बेटाक बिवाह करै छेँ, नीक
बात, मुदा ऐ प्रयासमे तों की की प्रपंच रचलेँ
से यादि छौ? सभसँ पहिले तोँ नीक बेपारी जकाँ ग्राहककेँ
अपन जालमे फसेलेँ I ग्राहक कन्यागत, प्रोडक्ट
तोहर लालच, बेचारा नवयुवक तोहर अपन बेटा जे ई कुरीति, भ्रष्टाचारक
विरुद्ध लम्बा युद्ध लड़ैक क्षमता रखै छल, तीन चारि बेर
कम्पीटिशन की लूज केलक तों ओकरा हिम्मत देबाक बदला, हौसला
देबाक बदला लगले ओकर ब्रेन वास करऽ आर ई शर्टकट रस्तापर चलैक लेल राजी कऽ लेलहीं !
मार्केटिङ टुल बनबाक लेल तैयार कऽ लेलहीं, नीक पैकेज, बोनस, इन्सेन्टिभक
मकड़जालमे फाँइस लेलहीं, जखैन ओ तैयार भऽ गेलौ तँ निकलि पड़लै ओकरा
लऽ कऽ मार्केटिङमे ! आब आ, तोरा
देखबै छियौ तोहर जघन्य अपराध ! हमरा आगाँ आबि गेल दृश्य जइमे हम बौआ लेल पहिल कन्या
देखऽ गेल रही ! ओ बाजैत रहल, ऐ कन्याकेँ, तों
पिड़श्याम छेँ, दोसरकेँ लम्बाइमे, तेसरकेँ
शाकाहारी कहि कऽ छँटलिहीं लेकिन बात दोसरे छलै, तोहर
अदॄश्य अभीष्ट जौं पूरा होइतै तँ तों कोनो नै छँटितहीं, जखैन
दालि नै गलैबला भेलौ तँ तों बहाना बनेलहीँ ई सभ! यथा सामर्थ कन्यागत तैयार छलखुन
तोरा दै कऽ लेल मुदा तों कन्सिडर आ कम्प्रोमाइज करै कऽ लेल तैयार नै भेलें आ छ छ
महिना प्रतिक्षा करेलाक बाद, दौड़ैलाक बाद
जबाब पठेलहीं की एतऽ नै हएत, आन ठमन देखूI हरेक
जगह तों कन्या परिक्षण करैक बेर चला कऽ, बजा कऽ, लिखा
कऽ कन्या देखलेँ जेना पुतौह नै मार्केटसँ एल. सी. डी. टेलिभीजन पसन्द कऽ रहल छें कनेक्को
अनुमान छौ?
कोन
मनोदशासँ ऐ सभ निरपराधकेँ गुजरय पड़ल हेतै ? गरजि उठल
आत्मा देहपर, कतेक मेहनतसँ ऐ बचिया सभमे विकसित भेल
हेतै आत्मविश्वास आ स्वाभिमान, जकर नेओं
हिला देलकै तोहर मिथ्या लांछन? निरपराध
बचियाकेँ हीन भावनाक शिकार बनबैक, अपराधबोधक
शिकार बनबैक दुश्प्रयाश केलें तों, ई अक्षम्य
अपराध छौ, एकर दण्ड भेटतौ तोरा !
हम आत्मा
छी पर-आत्माक दुख बुझै छी। परम-आत्माक
कंठहार बनैक अछि हमरा ! तोहर कुकृत्य हमरा नर्कक द्वार लऽ जायत
! आब मनमौजी नै चलतौ, कड़ा अनुशासन रहतौ आब ! तों
तँ देह छेँ, एक दिन सुन्दर काया क्षीण भऽ जेतौ। पे
बैक पीरियडक बाद तों बेपारी जेना बैंकक पूँजी आपस करै छिही तहिना हमरो आपस करय पड़तौ
! तोहर नियति छौ… कि तँ तों जड़बे कि तँ तों गड़बे, राख
बनबें या माइट ! तोहर खिस्सा तँ खतम भऽ जेतौ, लेकिन
हमरा तँ जबाब देबऽ पड़त हमर श्रृजनहारकेँ, देखाबऽ पड़त तोहर
बैलेन्सशीट ! हुनको अपन युनिटक परफोरमेन्सक
रिपोर्टिङ करय पड़ैत छन्हि, हायर
मैनेजमेन्टक! तोहर बैलेन्सशीटक सम्पैत पक्ष छौ सत्कर्म, पुण्य
आ दायित्व पक्ष छौ दुष्कर्म, पाप ! तोहर अखन
धरिक कारगुजारी सँ निश्चित छौ की तोहर दायित्व पक्ष भारी रहतौ ! हम
की औचित्य बतेबै ? हमरा तँ नियुक्त कएल गेल तोहर बैलेन्स
शीटक सम्पैत पक्षकेँ भारी करैक लेल, तोरापर
विश्वास केलियौ, स्वतंत्रता देलियौ डेमोक्रेटिक
एक्सरसाइज करेलियौ, तकर
परिणाम तों धोखा देबऽपर, घाटा देबऽपर लागल छें ! कुकर्म तों करबे आ कुकर्मक बिशेषन हमरा? सजाय
हमरा? दुरात्मा, पापात्मा, निचात्मा… हम
किए ? तोहर कएल अपराधक सजाय हम नै भोगबौ ! बेर
बेर पृथ्बीपर आउ, एतेक झमेलामे
हम आब नै पड़बौ ! आत्माक क्रोध देखि कऽ डरसँ देह काँपि गेल ! दुनु हाथसँ माथ पकड़ने
चुक्कीमाली बैसल रहल देह! निशब्द, निस्तब्ध, निसहाय
! जेना करेज फाइट जेतै तहिना दर्द उठलै छातीमे, आँखिक
आगाँ एकदम घुप्प अन्हार...जेना अचानक बिजली चलि जाइ तँ केहन अन्हार होइ छै? तहिना
! मोनमे सोच एतबे जे आब कोन दण्ड भेटत ?
कनेक
देर चुप रहलाक बाद फेर हुँकार भरलक आत्मा, तोहर सजाय ई
छौ की हम आइ, अखने तोरासँ निकलि जाइ, हमरा
की ? हमरा एतबे ने की फेर आबऽ पड़त धरतीपर? हमरा तँ फेर कोनो देह भेटत रहैक लेल, तों
आब अप्पन सोच… कहिते घुमल आत्मा, देह
धड़फड़ा कऽ उठल आ आत्माक पएर पकड़ि लेलक ! देह घिघिऐ लागल, हमरा
नै छोरु, सुबकऽ लागल, हाथ
जोड़ि कऽ कहऽ लागल, जे अपराध केलौं हम तकर आब प्रायश्चित
हम करब, हमरा रस्ता देखाउ ! जे रस्ता अहाँ
देखेबै तहीपर हम चलब, अहाँ हमरा एकटा औसर मात्र दिअ, कहिकऽ
देह बिलखऽ लागल !
देहक
कननाइ देखि कऽ आ पश्चाताप करैत देखि कऽ देहकेँ धेने जे ओकर खास संगी साथी छलै लोभ, काम, ईर्ष्या, द्वेश, मोह
पाँचो क पाँचो अपन अभीष्ट आब पूरा नै हएत बुझि कऽ छिटकि गेल ओकरा लगसँ, डगर
नापि लेलक, फेर कहीं आत्माक कोपभाजन नै बनि जाइ, ई
सोचि कऽ सभक सभ लंक लाइग कऽ भागल! देह केँ असगर छोड़ि कऽ!
देहकेँ
डर, दिनता आ पश्चाताप करैत देखि कऽ
आत्माकेँ दया आबि गेलै! किछु देर चुप रहलाक बाद आत्मा बाजल, किछु
कोमल श्वरमे, अखन जे हम तोरा छोड़ि दियौ तँ कतेक दिन
धरि सन्जोगि कऽ रखतौ तोरा तोहर परिवार? हम जे अखन
निकलि जेबौ तोरामे सँ तँ ऐ सुखक तों भोग कऽ सकबेँ? देह
मूड़ी हिलेलक नै क इशारामे ! आत्मा आब समझाबऽ लागल…. देख
अखनो किछु नै बिगड़ल छौ, हमर बात मनबे तँ पूर्ण काल तक तोरे
संग रहबौ ! डेमोक्रेशीक बड बेजाय फएदा उठओले तों, आब
एकटा निश्चित परिधिमे रहैक छौ तोरा! डेमोक्रेसी नै छिनबौ, मुदा
तोहर क्रियाकलापपर कड़ा निगरानी रखबौ आत्म लोकपाल बनि कऽ! तोहर दैहिक आवश्यकता, अधिकारक
सम्मान करबौ, अपमान तोरा सँ ककरो होए आब, से नै
होबय देबौ ! धर्म नै करबे नै कर, मुदा अधर्म
तोरासँ, आब नै होबय देबौ ! ककरो सुख नै दऽ
सकबे, कोनो बात नै, मुदा
ककरो तोरा सँ दुख पहुँचय, से नै होबय
देबौ ! नै आनय सकबे ककरो चेहरापर मुश्कान, कोनो बात नै, मुदा
तोहर कारण ककरो आँखिसँ नोर खसय, से नै होबय
देबौ ! तोरा मे "विदेह" बनैक सामर्थ
नै छौ, हम जनै छी, जौं
हमर कहबपर चलबे तों, तँ नीक "देह" तोरा जरुर
बनेबौ हम ! पक्का...गारण्टी छौ हमर, कह छौ मन्जूर? देह
बुझि गेल छल अखैन धरि की आब एकर बात मनबाक अलावा कोनो विकल्प नै अछि तँ कहलक, हँ
हम सभ बात मानब ! मोनेमोन मुश्कायल आत्मा, सोचि
कय की चलु ई तँ आयल आब लाइनपर, आब अपन
आत्मा बिरादरीक मीटिङ्ग बैसेनाइ बड जरुरी बुझा पडल आत्माकेँ, कतौ
आरो कोनो देह तँ एहन बदमाशी ने कऽ रहल होय, आब इग्नोर
केनाइ उचित नै ! अधिकसँ अधिक आत्माकेँ सचेत केनाइ
आवश्यक महशूस केलक आत्मा, फेर कहलक, तों
अप्पन बोझा केना हल्लुक करबे, की
स्ट्राटजी बनेबहीं जे तोहर नफा नोक्सान खाता केना नफा देखेतौ, से
योजना तोरा अपने बनाबय के छौ ! हमर कोनो हस्तक्षेप नै रहतौ, यदि
तोरा सलाहक जरुरी पड़तौ, तँ आँखि बन्द करिहेँ, हमरा
यादि करिहेँ, हम तुरन्त आबि जेबौ ! हम चलै छियौ, कहि कय
अन्तरध्यान भेल आत्मा !
आब
उठल देह लम्बा साँस लय कऽ तँ अचानक अनुभव भेलै जे ओ बहुत हल्लुक भऽ गेल छल, हवामे
जेना उड़ियाइत होइ तहिना, देखलक अपनाकेँ तँ आश्चर्य भेलै
अपनाकेँ देखि कय ! एक दम नया, साफ, चिक्कन
चुनमुन, पहिले तँ जेना हटिया परक चाह बलाकेँ
वएह ठमन चाह बनबैबला गंदा ससपेन जेहन देह छलै अखन तँ जेना प्रिल सँ साफ कऽ देने
होइ ससपेनकेँ तहिना चमकैत छल देह ओकर ! खुशीसँ हवामे नाचय लागल देह जेना मुन वाक
करैत होए तहिना, की ठोकर लगलै आ आँखि खुलि गेल हमर!
श्रीधर
बाबु ! ई सपना हमरा परेशान कऽ देने अछि ! ऐ सपनाक अर्थ की भऽ सकैत अछि? कि
जेना अन्गिनैत सपना हम जीबनमे देखैत छी, जकर कोनो
अर्थ नै होइ छै, तहिना ईहो एकटा छै? कहीं
ई कोनो संकटक पूर्वानुमान तँ नै? प्रश्नक
जेना हम झरी लगा देलिऐ श्रीधर बाबूक आगाँ !
सभटा बात सुनलाक बाद कनेक मुश्केलथि श्रीधर बाबू आ कहय लगला, सुन
भाय, ई तोहर भाग्य छौ जे तोहर आत्मा तोरा
अतीतसँ वर्तमान तकक मात्र यात्रा देखेलखुन्ह अहिमे तों यतेक त्रस्त भऽ गेलैं, जौं
भबिष्यक यात्रामे कहियो लगेलखुन्ह तँ तोहर की हाल हेतौ? हम
कहलिऐ, नै बुझलहुँ हम, तँ
बजला श्रीधर बाबू, देख तोहर होबयबला समधि अखैन तँ
कहलखुन्ह जे ओ कतौ नै बजता मुदा ओ बजता जरुर ! तोहर
पुतहुकेँ पता चलतौ, किछु साल बाद बेटो तोरे दोषी कहतौ, अखैन
पैरुख छौ कोनो बात नै मुदा धिरे-धिरे अबस्था ढलैत जेतौ, तोरा
लोकक जरुरी, सम्मानक जरुरी, प्रेमक
जरुरी पड़तौ तखैन तों पयबे कि सभ सुख जेकर तोरा आवश्यकता हेतौ तों मुठ्ठीमे बन्द
करय चाहबेँ, लेकिन सुखल बालु जकाँ तोरे आँखिक आगाँ
तोहर हाथ सँ निकलि जेतौ सभ सुख! तों किछु नै कऽ सकबे, कसकबे
तँ मात्र अफशोस ! कोइ नै रहतौ
तोरा संग ! ने पुत्र, ने पुतहु, ने
पत्नी ने पौत्र कोइ नै ! ने ककरो प्रेम ने ककरो बिश्वास! असगर रहि जेबैं तों भोगैक
लेल अपन कृत्यक परिणाम ! तखैन तों बेर बेर भगबानसँ पुछबे कि तोरे संग किए एना? तखैन
तोरा यादि अयतौ तोहर सभ कृत्य, लेकिन करबेँ
की? समय तँ निकलि गेल रहतौ ! भोकासी पाड़ि
कय कनबे तों, मुदा तोहर नोर पोछयबला कोइ नै रहतौ ! हम
सुनैत रहलौं श्रीधर बाबूक सभ बात ध्यानसँ, आँखिक आगाँ
जेना चलदृश्य होइ तहिना बुझाइत छल तखैन हमरा ! कहैत रहला श्रीधर बाबू, एकटा
बात बुझल छौ, ई दोसर जन्म की होइ छै? दोसर
जन्म होइ छै बुढापा ! कहै छै ने बच्चा बूढ एक समान, तँ
बच्चाक जन्म भेलै एक जनम आ बुढापा भेलै दोसर जनम ! कहै छै ने पुण्यसँ अगिला जनम
सुधरै छै? तँ ई अगिला जनम मृत्युक बाद नै अबै
छै! ई छै बुढापा, जकरा नीक कर्म कय कऽ सुधारै छै लोक !
आब
तों निश्चय कर कि तोरा की करय के छौ ! बयस अखनो बहुत बाँकी छौ, तों
तँ एकटा सफल बेपारी छेँ, तोरा तँ पता छौ कि एकटा खाता जतेक
रकमसँ डेबिट होइ छै ओतबेसँ दोसर खाता क्रेडिट सेहो होइ छै ! तँ जीबन बेपारकेँ सेहो
डेबिट क्रेडिट एतय होइ छै !
आब
कोन पथ चलबें, कि आत्मा सँ कएल वचन पूरा कय सकबें, तोरा
निर्णय करैक छौ ! भाय ! हम तँ एतबा कहबौ, जे फर्मुला
तों बेपारमे लगा कऽ सफल भेलें तहिना निक फर्मुला निकाल आ जुटि जो जोरसोर सँ जिबन
बेपार मे नफा कमाइ क लेल ! एतबा कहि कय श्रीधर बाबू हमर पीठ थपथपेलथि तँ जेना
भक्कसँ हमर आँखि खुलि गेल, जेना कोनो
पर्दा छल अखैन तक, से अचानक हटि गेल ! चारु दिस जेना
प्रकाश, उत्साह, रंग…व्यक्त
नै कयल जा सकयबला खुशी…! जेना हमरा नया दिशा भेट गेल, हम
गोर लगलौं श्रीधर बाबु केँ आ चलि पड़लहुँ बाँकी रहल जीबन सुधारै क लेल… नव
पथपर, पूरा आत्मबिश्वासक साथ… धिरे
धिरे ! दूर असमानमे बादलमे दूटा आँखिक आकृति उभरल… जेना
लगे रहो मुन्ना भाई मे गान्धी जी क आकृति देखाइ छै ने तहिना, मानू
कि आत्मा हमरापर नजैर राखि रहल होय !
हम हँसि पड़लौं आ निर्भीक मलङ्ग जकाँ बढैत रहलौं, बढ़ि
रहल छी आ बढैत रहब...हिम्मत दैत रहत "टैगोर"
रचित गीत...जोदि तोर डाक सुने कोइ ना आसे तोबे एकला चोलो रे.....!!
१.जगदीश प्रसाद मण्डल- कामरूप आ मिथिला २— बृषेशचन्द्र लाल- बिद्यापति–स्मृति पर्व मादेँ
१
जगदीश प्रसाद मण्डल- कामरूप आ मिथिला
मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति द्वारा गुवाहाटीमे आयोजित "विद्यापति
स्मृति पर्व समारोह" स्थान: प्राग्ज्योतिष आइ.टी.ए. सेन्टर, माछखोवा, गुवाहाटी आइ २३ दिसम्बर २०११ केँ ५ बजे अपराह्णसँ
शुरू भेल/
ऐ अवसरपर विशेष अतिथि रहथि डॉ. श्रीमती प्रेमलता मिश्र "प्रेम" आ
सम्माननीय अतिथि रहथि श्री जगदीश प्रसाद मण्डल।
जगदीश प्रसाद मण्डलजी क उद्बोधन भाषण भेल जे नीचाँ देल जा रहल अछि।-सम्पादक
विद्यापति स्मृति पर्व समारोह-
कामरूप आ मिथिला
सभसँ पहिने ऐ पर्व समारोहक सहयोगी आ मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समितिकेँ
धन्यवाद दैत छियनि जे मिथिला आ कामरूपक बीच युग-युगसँ प्रवाहित होइत जीवन
धाराकेँ जीवित रखने छथि। संगहि आगूओ एहिना लहड़ाइत धाराकेँ जीवित रखताह, से आशा करैत छी।
कामरूप आ मिथिलाक बीच संबंध कहियासँ शुरू भेल, एकर निश्चित तिथि तँ नै बुझल
अछि, मुदा सहस्रो सालसँ जीवन
धारा बनि प्रवाहित होइत आबि रहल अछि, ई कहैमे कनियोँ मनमे संकोच नै अछि। जे कामरूप कहियो
प्राग्ज्योतिष कहल जाइत छल भरिसक तहियेसँ। ओना इतिहासक विद्यार्थी नै रहने
इतिहास पढ़लो नै अछि। भऽ सकैत अछि जे जहिना मिथिलाक संपूर्ण इतिहास लिखिनिहारक
अभाव रहल अछि तहिना भाषोक हुअए। मुदा दुनूक बीच प्रगाढ़ संबंध बनल चलि आबि रहल
अछि, ऐमे कतौ दू-राइ नै अछि।
जखन बच्चे रही तहियो बूढ़-बूढ़ानुसक मुँहे सुनैत रही जे फल्लां कामरूपक सिख
छथि। ततबे नै मिथिलावासीक लेल कामरूप कामाख्या, अदौसँ तीर्थ-स्थल बनल चलि आबि
रहल अछि, आगूओ चलैत रहत। जहिना
बंगालक गंगासागर, दक्षिणेश्वर, उड़ीसाक कोणार्क आ जगरनाथ मद्रासक
श्वेतबान रामेश्वर, कन्याकुमारी, गुजरातक द्वारिका, राजस्थानक पुष्कर पंजावक स्वर्ण
मंदिर, कश्मीरक वैश्णोदेवी-अमरनाथ, उत्तरांचलक बद्रीनाथ, हरिद्वार उत्तर प्रदेशक काशी, विन्घ्यांचल मथुरा-वृन्दावन
इत्यादि रहल अछि, तहिना।
जइ समए गाड़ी-सवारीक अभाव छल तहू समए छल।
शंकरदेवक पारिजातहरण आ रामविजय , दैत्यारि ठाकुरक
श्यामन्तहरण यात्रा आ लक्ष्मीदेवक कुमारहरण नाट (शतस्कन्ध रावण वध), ई सभ अंकियानाट
मैथिलीक आरम्भिक नाटक अछि आ असमक ऐ ऋणसँ हम सभ कहियो उऋण नै भऽ सकै छी।
गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानक बीच बसल मिथिलो आ कामरूपोक रहने उपजा-बाड़ीसँ लऽ कऽ
जिनगीक आनो-आनो संबंध सहज अछि। जहिना कामरूप तलहटी मैदानसँ लऽ कऽ पहाड़-पठार, वनक संग प्रवाहित होइत जलधारासँ
सम्पन्न अछि तहिना बिहारो अछि। बंगालक खाड़ीसँ उठैत माैनसुनसँ जहिना
कामरूपक भूमि सिंचित होइत तहिना मिथिलांचलोक। ओना मुँहपर पड़ने कामरूपमे अधिक
आ जेना-जेना पछिम मुँहेँ ससरैत तेना-तेना कम होइत जाइत, मुदा दुनूक बीच नजदीकी रहने बहुत
बेसी अंतर नै पड़ैत। गंगा-ब्रह्मपुत्रक एक तलहटी रहने माटियो आ माइटिक सुगंधोकेँ
एकरंगाह बनौने अछि। उत्तरी पहाड़सँ निकलैत (नदी धारा) जल धारो एक-रंगाहे रहल अछि।
जइठाम जेहन माटि-पानि तइठाम तेहन उपजा-बाड़ी। जइठाम जेहन उपजा-बाड़ी तइठाम तेहने
खानो-पान आ आचारो-विचार। जइठाम जेहन खान-पान, आचार-विचार तइठाम तहिना
कला-सांस्कृतिक संबंध। जे दुनूक बीच अदौसँ रहल अछि। ओना, खेती-बाड़ीमे एक-रूपतो अछि आ भिन्नतो।
अधिक मध्यम बर्षा भेने, पनिसहू फसिलो आ फलो-फलहरीमे अन्तर होइत, से अछियो। जइ कामरूपमे नारियल, सुपारी, चाहक बहुतायत अछि ओ मिथिलांचलमे
कम अछि। ओना मिथिलांचलमे िसर्फ आम हजारो किस्मक अछि। मुदा पटुआ आ धान जहिना
कामरूपक मुख्य फसिल अछि तहिना मिथिलोक। मुदा जहिना नीलक नव अविष्कार भेने
नीलक खेती मारल गेल तहिना पोलीथिनक आगमनसँ पटुआक खेती प्रभावित भेल अछि।
मिथिलाक उर्वर भूमि। जहिना माटि-पानि तहिना स्वच्छ हवो। जइसँ सभ कथूक
वृद्धि। चाहे ओ खेती हुअए आकि जीवन पद्धति हुअए आकि कला-संस्कृति। मिथिलांचलक
चिन्तन धारामे िसर्फ उच्चकोटिक मनुष्ये नै उच्च कोटिक समाज आ सामाजिक-पद्धतिक
सेहो दिशा-दर्शन रहल अछि। जन-गणक नगर जनकपुर। आ जनकपुरक राजा जनक। जनिक कन्या
जगत जननी जानकी। एक-सँ-एक चिन्तक, तत्ववेत्ता, दार्शनिक मिथिला भूमि पैदा केने अछि। जेकर वानगी इतिहास-पुराण
जीवित अछि।
जहिना सौंसे देश गुलामीक शिकंजामे हजारो बर्खसँ रहल तहिना देशक उत्तर-मध्य
बसल मिथिलो अछि। ओना मिथिला दू देशमे बटल अछि। साठि-पेइसठि बर्ख पहिने
भारत स्वतंत्रताक साँस लेलक जहन कि नेपालक मिथिला हालमे साँस लेलक। जहिना
अभावी परिवारमे अभावक चलैत जीवनक सभ किछु प्रभावित होइत, तहिना भेल। जीवन-पद्धतिमे खोंट
अबैत-अबैत खोंटाह होइत गेल अछि। जेकर असरि अधलाह पड़ैत गेल। मुदा तैयो मिथिलाक
वएह भूमि छी जे अदौसँ रहल।
मिथिलांचलक उर्वर भूमि रहने मनुष्योक बाढ़ि सभ दिनसँ रहल, अखनो अछि आगूओ रहत। कतबो मिथिलावासी
पड़ाइन (पलायन) केलनि, दुनियाँक
कोन-कोनमे बसलाह अछि, तैयो
मिथिलाक जनसंख्या पर्याप्त अछिये। जइसँ गरीबी रहल अछि। एक दृष्टिये
देखलासँ जहिना पर्याप्त जनसंख्या अछि तहिना प्रचुर सम्पत्तियो अछि। मुदा
दुनूक संयोगमे भिन्नता अछि। जइसँ दुनूक बीच भारी खाधि बनि गेल अछि। जिनकर
गाम तिनकर सम्पत्ति नै आ जिनकर सम्पत्ति तिनकर गाम नै। जइसँ मुट्ठी भरि
पूर्ण सम्पत्ति हथियौने छथि। जेकर ज्वलंत उदाहरण पड़ाइन (पलायन) अछि।
गरीबीक चलैत मिथिलावासी आइये नै पूर्वहिसँ नेपाल, बंगाल, अासाम धरि रोजी-रोटीक लेल जाइत
रहल छथि। पटुआ काटब, धान
रोपब, धान काटब हुनका सबहक मुख्य
कार्य छलनि। सालक छह मास ओ सभ कमाइ छलाह। मुदा ओइसँ पैघ-पैघ उपलब्धि सेहो भेटल।
अपना संग अपन भाषो, कलो-संस्कृत
लेनौं अबैत छलाह आ लैयो जाइत छलाह जइसँ दुनूक बीचक संबंधमे प्रगाढ़ता अबैत रहल।
एकठाम रहने दुनूक बीच सभ तरहक संबंध बनैत रहल आ अखनो प्रवाहमान धारा सदृश्य बहि
रहल अछि। तँए ऐ पावन अवसरपर समन्वय समिति संग विद्योपतिकेँ कोटिश: नमस्कार!
पूर्वाचल आ मिथिला, दुनूक बीच व्यापारिक संबंध सेहो अदौसँ रहल अछि। गाए-महिंसिक
व्यापार चलैत रहल अछि। संग-संग कलाकारक संग कलाक आदान-प्रदान सेहो चलैत रहल अछि।
अखनो मिथिलाक श्रमिकक बीच जते पूर्वाचलक भाषा पसरल अछि ओते मध्य आ उच्च परिवारक
बीच नै अछि।
विद्यापति पर्व समारोहक ऐ पावन असवरपर विद्यापतिकेँ िसर्फ मिथिले-मैथिल
कहब हुनका संग अन्याय करब हएत। हुनका आत्माकेँ ठेस पहुँचतनि। ओ युग-पुरूष छलाह।
भाषा-साहित्यक अपन धारा अछि। जइ धाराक मध्य ओ अखनो ठाढ़ छथि। वैदिक भाषा जखन
जन-गणक बीच अपन साहित्यिक धारा पकड़लक, तहियेसँ समाजमे एक नव समाज उठि कऽ ठाढ़ भेल। ओ
बढ़ैत-बढ़ैत कालिदास धरि अबैत-अबैत सोझा-सोझी ठाढ़ भऽ गेल। मुदा जिनगीक लेल
भाषा-अनिवार्य, तँए
जन-गणक बीच पालि भाषा उगल। तहिना आगू बढ़ैत- प्राकृत, अपभ्रंश होइत अवहट्ठमे पहुँच गेल।
अवहट्ठक सीमानपर विद्यापति अपन कीर्तिलता लऽ कऽ ठाढ़ छथि। जइमे जन-गणक आत्मा
झलकि रहल छन्हि। ओना ओ संस्कृतक प्रगाढ़ पंडित छलाह, जे हुनक रचनामे झलकि रहल अछि, ओ उगना सन संगीक संग रहैत छलाह।
जे उगना गंगाजल पहुँचबैत छलनि। एक भांग पीसैमे मस्त तँ दोसर पीब-पीब मस्त!
एहनठाम हटलासँ, विद्यापति
पत्नियोसँ झगड़ा कऽ उगना लेल निष्काम प्रेम धारा नै बहाबथि, से केहन होएत।
अंतमे, जहिना अदौसँ एक-दोसर सटल
रहलौं तहिना आगूओ सटि चलैत रही, यएह शुभ-कामना। एहेन-एहेन पर्व आरो नम्हर भऽ भऽ मनाओल जाइत
रहए, यएह शुभेच्छा!
जय-मैथिली! जय मिथिला!!, जय कामरूप! जय भारत!! जय मानव!!!
२
— बृषेशचन्द्र लाल
बिद्यापति–स्मृति पर्व मादेँ —
बड़ सुख
सार पाओल स्मरणे ...
एखन
सम्पूर्ण मिथिला विद्यापतिमय अछि । नेपाल आ भारतक दुनू पारक मैथिलीभाषी अपन महान्
साहित्यकार,
जनउद्वेलक
लोककवि तथा समाजक मार्गनिर्देशक कविकोकिल विद्यापतिक स्मरण श्रद्धापूर्वक कऽरहल
अछि । विद्यापति अपन कालमे अपन विशिष्ट, अद्भूत आ हृदयस्पर्शी लोकलयसँ युक्त पदावलीसभक बलेँ
सम्पूर्ण मिथिलाकेँ जोड़बेटा नहि कएलनि वरन् दूर–दूर तक एकर माथ गर्वसँ ऊँच कऽ
देलनि । हिनक भक्ति पदावलीसभ वैष्णव सम्प्रदायक सभसँ लोकप्रिय तथा सन्तसभकलेल
अध्यात्मिक अनुभूतिदायक बनि गेल । कविकोकिल एखनो सम्पूर्ण मिथिलाक एकताक डोर छथि ।
प्रत्येक वर्ष विद्यापति स्मृतिपर्वक अवसरपर सम्पूर्ण मैथिलीभाषी एक भऽ जाइत छथि ।
अन्तर्राष्ट्रिय सीमा बिला जाइत अछि आ हिनक किर्तिपताकाका दुनियाँभरिमे
मैथिलभाषीसभपर गौरवक सौरभ छिटैत बहैत चलि जाइत अछि ।
विद्यापति
स्मृतिदिवस मिथिलाञ्चलमे कविकोकिलक स्मरणटामे सिमित नहि अछि, आब ई मैथिलीभाषी क्षेत्रक भाषिक
आन्दोलनप्रतिक एकवद्धता प्रदर्शनक दिवसक रुप लऽ नेने अछि । मैथिली साहित्यक
पुनरुत्थान आ एकरा राष्ट्रियभाषाक रुपमे पुनः सम्मानित आ प्रतिष्ठित कराबएहेतु
सक्रिय मिथिलाक सपूतसभकलेल ई उर्जा प्राप्तिक पर्व बनि गेल अछि ।
भारतेमे
नहि नेपालमे सेहो मैथिली–आन्दोलनक प्रारम्भ विद्यापति स्मृति दिवसक आयोजनसँ शुरु भेल
छल । काठमाण्डूमे पण्डित सुन्दर झा शास्त्रीक सक्रियतासँ नेपालमे एक भाषा—एक भेषक घोरऔपनिवेशिक
मानसिकतासँ चालित राजाशाही क्रूर शासन आ एकदलीय तानाशाहीक सांस्कृतिक बिरोधक
शुरुआत सेहो विद्यापति स्मृति पर्वक आयोजनसँ आगाँ आएल छल जकर अनुशरण बादमे
अन्यान्य भाषाभाषीसभ सेहो कएलनि । नेवाररत्न शंखधरक स्मृतिमे पद्मरत्न तुलाधर आ
हुनक संगीसभसँ न्हुदयाँ भिन्तुना दिवसक भव्य राजनीतिक आयोजन होमए लागल जे समूह एखन
नेवार समुदायमे भाषिक आन्दोलनक नेतृत्व कऽ रहल अछि । पण्डित सुन्दर झा तहिआ पर्यटन
मन्त्रालयमे कार्यरत छलाह । काठमाण्डूसँ फूलपातक प्रकाशन कऽ मैथिलीक प्रति
मैथिलीभाषीसभमे अनुराग वृद्धि आ अपन मातृभाषामे साहित्य रचना करएलेल लोककेँ प्रेरित
करक पुनित कार्यमे सत्रिmय छलाह । आईसँ २१ वर्ष पूर्व, काठमाण्डूक मारवाडी सेवा समितिमे
आयोजित विद्यापति स्मृति समारोहमे हुनकाद्वारा प्रस्तुत सयगोट व्यङ्ग दोहासभक
संग्रह सुन्दर शतसई धूम मचा देने छल । ओहि दोहासभमे तत्कालिन तानाशाही
राजशाहीतन्त्रक विभिन्न विषय मादेँ अद्भूत कटाक्ष कएल गेल छल । सुन्दर शतसई
अत्यन्त लोकप्रिय भेल आ दोहा लोकक ठोरपर बैसि गेलैक । एहि कारणेँ पण्डित सुन्दर झा
शास्त्रीकेँ सरकारक प्रताडनक भागी बनए पडलनि । वृतिविकासपर नकारात्मक असर पडलनि ।
तथापि पण्डितजीक मैथिली प्रतिक अनुराग आ प्रतिवद्धता बढ़िते गेल आ अवकाशक बाद ओ
पूर्णतः अही यज्ञमे लागि गेलाह जे जीवन पर्यन्त करिते रहलाह । जनकपुरमे पर्वक
आयोजन, पत्रिका प्रकाशन, मैथिलीक वकालत — मैथिलीकेँ प्रतिष्ठित
करएहेतु ओ अपन अन्तिम समयधरि समर्पित भऽ सक्रिय रहलाह । ओ जनकपुरक मुरलीचौकपर
विद्यापतिक मूर्ति स्थापित करकहेतु सभकेँ आन्दोलित करैत रहलाह आ अन्तमे लोकतन्त्रक
स्थापनाक बाद जखन हम नगरपालिकाक प्रमुख निर्वाचित भेलहुँ, हुनक ई सपना पूरा भेलनि । हुनकर
अध्यक्षतामे निर्माण समिति गठित भेल । जनकपुरनगरपालिकाक अनुदानसँ विद्यापति टावरक
निर्माण सम्पन्न भेल । एहि पुनित कार्यमे तत्कालिन धनुषा जिलाक सभापति रामसरोज
यादवक सेहो महत्वपूर्ण योगदान छलनि । निर्माण कार्यमे शास्त्रीजी अत्यन्त स्वच्छ आ
पारदर्शी रहए चाहैत छलाह जाहिसँ हुनकर अपने समितिक लोक हुनकर बिरोध करए लगलखिन ।
एहिसँ दुखित शास्त्रीजी निर्माण कार्यक अन्तमे निर्माण समितिक अध्यक्षता छोडि
देलनि आ दोसरकेँ जिम्मा लगा देलनि । मुदा दुख असिमित रहनि । निर्माण समिति
षडयन्त्रपूर्वक हुनका आ नगरप्रमुख रहितो हमरा सेहो उद्वघाटन कार्यक्रममे आमन्त्रित
नहि कएलक । हमरासभ कहुना कार्य सम्पन्न होउक विमर्श कए चुप रहलहुँ । उद्वघाटन दिन
शास्त्रीजी पश्चिम नेपालमे रहथि आ ओ एहि दुखकेँ वरण करैत स्वर्ग प्रस्थान कऽ देलनि
। जनकपुर मैथिली अनुरागीसभक इतिहास ई एकगोट कलंक थिक ।
पंचायतकालमे
एहन आयोजनसभ क्षेत्रीय भाषासभक अस्मिता एवं सम्मानक संघर्ष तथा एहिलेल लोकतन्त्रक
अनिवार्यताक बोध कराबएदिस सेहो लक्ष्यित रहैत छल । समारोहमे पुलिस हस्तक्षेप होइत
छलैक आ सहभागीसभकेँ हनुमानढ़ोकाक गुमसल ठाड़ थुनुवाघरमे अबेर रातितक थुनिकऽ राखल
जाइत छलनि । रिहाईक समय होइत छल दूपहर राति — हड्डी गला देबएबला जाड़, पाला, उपरसँ तुसारो आ बहैत
शीतलहरीमे सहभागीसभकेँ अपन डेरा जाए पड़ैत छलनि । शनैः पर्वक आयोजन पूर्वी नेपालक
शहरसभमे होमए लागल । मिथिलाञ्चलक सांस्कृतिक आ भाषिक आन्दोलनक ई जड़ि बनि गेल ।
नेपालमे
लोकतन्त्रक पुर्नस्थापनाक बाद पर्वक आयोजन मैथिलीप्रति मैथिलीभाषीक अनुरागक द्दोतक
आ राज्यद्वारा भऽरहल भाषिक भेदभाव विरुद्ध संघर्ष दिस केन्द्रित भऽ गेल अछि ।
मैथिली साहित्यक पुनरुत्थान, प्रगति आ प्रतिष्ठापनहेतु एहिसँ वत्र्तमान पीढ़ीमे उल्लेखनीय
चेतना आ सजगताक अभिवृद्धि भेल अछि । मिथिलाक हरेक सामुदायिक आ शिक्षण संस्थासभमे
आब एकहि दिन वा परिस्थिति अनुसार एकाधदिन आगाँपाछाँ पर्वक आयोजन सभ जाति आ वर्गक
मैथिलीभाषीमे एकवद्धताक सूत्रक रुपमे विद्यापतिक नामक महत्वक ठोस प्रमाण अछि ।
जन्म, काल आ प्रतिभाक विरासत
विद्यापति
वास्तवमे सरस्वती–पुत्र
आ विद्याक अधिपति छलाह । भाषा आ साहित्यमे योगदानक सन्दर्भमे हुनक स्थान इटलीक दा“ते आ बेलायतक चौसर जका“ छन्हि । साहित्यिक
रचनाकारक संगहिं विद्यापति सफल कूटनीतिज्ञक भूमिका करैत मिथिलाक भूमिक संरक्षणलेल
अपन दायिŒवक
निर्वाह सेहो कएलनि । मैथिलीक अद्वितीय सेवक विद्यापतिक काल एखनतक सुनिश्चित नहि
कएल जा सकल अछि, मुदा
अन्वेषकसभक मत छन्हि जे ओ इस्वी सन् १३५० सँ १४४० धरि रहथि । हुनक जन्म गढा बिस्फी
गाममे कश्यप गोत्रीय मैथिल ब्राह्मण परिवारमे भेल रहनि । १४०२ ई.मे हुनका अपन
जन्मस्थान बिस्फी ग्राम प्रदान कएल गेल रहनि जे सम्प्रति मिथिलाञ्चलक भारतक बिहार
राज्यक मधुबनी जिलामे अवस्थित अछि । १४४८मे ओ श्रीमद्भागवत्क प्रतिलिपि तैयार कएने
रहथिन्ह आ राजा शिवसिंहक मृत्यु (ई.१४०२)क ३२ बर्षबाद तक ओ जिवित रहलथि से प्रमाणित भए गेल
अछि । ओ अपन भनिता आ कृतिसभमे मिथिलाक ओइनिवार वंशीय राजा शिवसिंहसँ भैरवसिंह तकक
सम्पर्कमे रहलथि से उल्लेख कएने छथि । अपन मृत्युक तिथिक सम्बन्धमे ओ अपने कहने
छथि æविद्यापतिक
आयुअवसान कातिक धवल त्रियोदशी जान” । एकरे आधार मानि कातिक धवल त्रियोदशी तिथिमे हुनक स्मृति
पर्व मनाओल जाइत अछि ।
विद्यापतिकेँ
प्रतिभाक विरासत अपन उच्च पूर्वजसभसँ प्राप्त भेलनि । विष्ण्ु ठाकुर–श्र हरदित्य–श्र कर्मदित्य–श्र देवदित्य–श्र धिरेश्वर–श्र जयदत्त–श्र गणपति आ तखन हुनकर
पुत्र विद्यापति । मायक नाम रहनि गंंगादेवी । देवदित्यक सभसँ जेठ बालक मिथिलाक
कर्णाट राजा शत्रm सिंहक
युद्ध आ शान्तिक मन्त्री रहथिन अर्थात् विदेश विभाग सम्बन्ध प्रमुख । ओ
दशकर्मपद्धतिक रचना कएने रहथि । हुनक पुत्र चन्देश्वर धर्मशास्त्र, राजनीति आ ज्योतिषक
प्रकाण्ड विद्वान रहथिन । तहिना देवदित्यक दोसर पुत्र गणेश्वर ठाकुर सुगतिसोपान्
तथा गंगापट्टालकाक रचना कएने रहथि । हुनक जेठ बालक रामदत्त महादानपद्धति रचलनि ।
सभसँ छोट पुत्र विष्णुक भक्तिमे गोविन्दमानसोल्लास लिखने रहथिन । विद्यापतिक पूर्वजसभ
राजासभक भण्डारिका, स्थानान्तारिका
आदि पदसभपर सेहो काज कएने रहथि । मातृपक्ष सेहो राजासभक दरबारक प्रमुख पदाधिकारी
रहलखिन ।
कविकोकिल
– हिनक रचना आ प्रभाव
मैथिलीक
प्रसिद्ध कवि विद्यापतिके“ कविकोकिल कहल जाइत छन्हि । विद्यापतिक प्रति सम्मान स्वरुप
सभतरि यएह विशेषणक प्रयोग कएल जाइत अछि । विद्यापतिके“ कविकोकिल किएक कहल गेलन्हि ? कहियास“ कहल गेलन्हि ? प्रायः एहि प्रश्नक
ठीकठीक उत्तर किनको लग नहि छन्हि । विद्यापति नीक गायक छलाह । हुनक कण्ठ मधुर
छलन्हि । हुनक प्रस्तुतिक कला, हुनक राग–लय–छन्द–अलंकारक अद्भूत संयोजनस“ लोक मुग्ध आ सम्मोहित भद्र जाइत
छल । प्रायः तै“ हुनका
लोक कविकोकिल कहने हएतनि । मुदा एहि सन्दर्भमे एक गोट ज्ञातव्य जे अपन लेखनीस“ सभस“ पहिने हिन्दीक
प्रसिद्ध समालोचक डा.रामवृक्ष बेनीपुरी विद्यापतिके“ कविकोकिल कहलखिन्ह । विद्यापति
पदावलीक भूमिकामे ओ लिखने छथि — मैथिली राका रजनी के राकेश कविकोकिल विद्यापति .... । डा.
बेनीपुरीक एहि टिप्पणीक बाद कविवर विद्यापतिक सम्बन्धमे कोनो मनतव्य, आलेख आदिक सभस“ पहिल आस्पद रहैत अछि — कविकोकिल विद्यापति !
विद्यापतिक
लेखन, विषय र भाषाक्षेत्र
व्यापक आ विशाल छल । हुनकर रचना संस्कृत, प्राकृत, मैथिली आ अबहठ्ठमे प्राप्त भेल अछि । मैथिलीमे शक्ति–आराधना, नचारी, कृष्ण–लीला, प्रणय सहितक विषयपर
हजारसँ फजिल गीत परिचित अछि । अबहठ्ठमे दूगोट खण्डकाव्य कित्र्तिलता आ
कित्र्तिपताका तथा संस्कृत–प्राकृत–मैथिलीमेगोरक्षविजय आ संस्कृत–प्राकृतमे मणिमञ्जरी नाटकसभ
उपलब्ध अछि । संस्कृतमे हुनक लिखल ग्रन्थसभकेँ शास्त्रीय आ व्यवहारोपयोगी मानल
जाइत अछि । शिक्षाप्रद रोचक कथासभक संकलन पुरुषपरीक्षा तथा अभिलेखाङ्कन नमूनाक
शासनोपयोगी पत्राचारसभक लिखनावली विश्वविख्यात अछि । विद्यापतिका यात्रा साहित्य भूपरिक्रमण, धर्मशास्त्र र
कर्मकाण्डका पारम्परिक ग्रन्थसभ विभागसार, शैवसर्वस्वसार, दुर्गाभक्ति तरङ्गिनि, दानवाक्यावली, गङ्गावाक्यावली, गयापत्तलक, बर्षकृत्य, ब्याडी भक्तितरङ्गिनि
आदि अमर कृति अछि । एहिसभ कृतिमे तखुनका समयक ऐतिहासिक सूचना एवं समकालिन सामाजिक
चित्रण देखल जाइछ । कित्र्तिलता विद्यापतिक पहिल कृति मानल जाइत अछि । ओहि कालमे
विद्वानसभ अपन रचना संस्कृतमे करैत रहथि । मुदा, विद्यापति अपन पहिल कृति मैथिलीमे
लिखलनि आ मैथिलीमे लिखक कारण आ महत्व सेहो स्पष्ट कएलनि — देसिल बअना सब जनमिठ्ठा, ते“ तैसन जम्पओ अवहट्ठा ।
कित्र्तिपताकामे मैथिलीमे प्रेम सम्बन्धी कमनीय कवितासभ अछि । शैवसर्वस्वसारमे
भवसिंहसँ विश्वासदेवीतकक कीर्तिकथा विरुदावली शैलीमे वर्णित अछि । गंगावाक्यावली आ
दुर्गाभत्तिmतरंगिणी
गंगा एवं शत्तिmक
उपासनामे रचित रचनासभक संग्रह अछि ।
बंगाली
साहित्यमे विद्यापतिक जर्बदस्त प्रभाव छन्हि । चण्डीदासक समयमे हुनका बंगाली कविमे
रुपमे जानल जाइत रहन्हि । कतेक विद्वान तँ विद्यापतिकेँ जेसोरक ब्राह्मण भावानन्द
रायक पुत्र बसन्त राय सिद्ध करक कोशिश करैैत छथि । प्रमाणस्वरुप ओसभ पद–कल्पतरुक १३१७ पदक
उल्लेख करैत छथि जाहिमे एहि नामक प्रयोग भेल छैक । चण्डीदास वैष्णव सम्प्रदायक
रहथि । विद्वान रोमेश चन्द्र दत्तक कहब छन्हि जे विद्यापतिक रचनाकेँ चण्डीदासक
समयमे दोसरक रचनामे मिझरादेल जाइक आ बेसी काल दोसर रचनाकार अपन रचना विद्यापतिक
नामेँ करथि । दत्तक अनुसार चण्डीदास बहुत बादमे अएलाह । मुदा ई तथ्य निश्चित अछि
जे विद्यापतिक प्रभाव कृष्णकित्र्तनपर जर्बदस्त रहनि । ग्रीयरसन एहि मादेँ Maithili Chrestomathy क पृष्ठ ३४मे लिखैत
छथि — And
now a curious circumstance arose, unparalleled I believe in the history of
literature..(His songs) were twisted and contorted, lengthened and curtailed,
in the procrustean bed of the Bengali language and metre into a kind of bastard
language neither Bengali nor Maithili. But this was not all. A host of
imitators sprang up notably one Basant Roy of Jessore, who wrote, under the
name of Vidyapati in this bastard language, songs which in their form bore a
considerable resemblance to the matter of our poet, but which almost entirely
wanted the polish and felicity of expression of the old master-singer … (These
imitation songs known as “Brajbuli” songs) became gradually more popular
amongst the Bengali people than the real songs of Vidyapati.”डा. सुकुमार सेन अपन History of Brajbuli मे ब्रजबोलीक सभ
कविसभक विवरण देने छथिन । ध्यान देबए योग्य छैक जे ओहि समयक प्रभाव रविन्द्रनाथ
ठाकुरपर सेहो पड़लनि । ओ भानुसिंह ठाकुरेर पदावली मे भानुसिंहक नामसँ एहन बहुतो पद
लिखने छथि ।
तहिना
आसमिया साहित्यपर सेहो कविकोकिल विद्यापतिक प्रभाव स्पष्ट रुपसँ पड़ल अछि ।
ब्रजबोली अर्थात् मैथिलीककेँ असाममे शंकरदेव लऽ गेलाह । ओ वैष्णव सम्प्रदायक प्रचारमे
विद्यापतिक भजनसभक उपयोग कएलनि । असमिया भाषाक इतिहासमे ब्रजबोलीक महŒवपूर्ण स्थान छैक ।
असमिया भाषाक विकासक आधार ठाढ़ करएमे एकर योगदानक चर्च The Department of Historical
Antiquities, Government of Assam, Gauhati द्वारा प्रकाशित सामग्रीमे भेटैत
अछि ।
डा.
सुकुमार सेन श्री चैतन्यदेव आ रामानन्दक वर्णन कएने छथि । रामानन्द ब्रजबोलीमे
विद्यापति प्रभावित पदसभक रचना कऽ मधुर संगीतक संगेँ गबैत छलाह । एहिसँ ओडिसामे
विद्यापतिक प्रभाव स्पष्ट देखएमे अबैत अछि । सोरहम शताब्दीमे चम्पति राय, महाराव प्रताप, रुद्रदेव, माधवी दास, कान्हु दास, मुरारी आ सतरहम्
शताब्दीमे दामोदर दास, चन्दा
कवि, यदुपति दास आदिक
रचनामे विद्यापतिक प्रभावसाफे देखएमे अबैत अछि । विद्वानसभक कहब छनि जे एहि
सन्दर्भमे आओर अनुसन्धान किछु आओर महŒवपूर्ण तथ्यसभ बाहर आनत ।
नेपालीक
कवि भानुभक्तक बधूशिक्षा विद्यापतिक पुरुषपरीक्षापर आधारित अछि । एहि सन्दर्भमे
प्रसिद्ध विद्वान डा. राजेन्द्र पसाद विमलजीक कहब छनि जे नेपालीक आदिकवि भानुभत्तm गजाधर सोतीक ओहिठाम एक
राति बितोलन्हि आ तकरबाद बधूशिक्षाक रचना कएलन्हि । बधूशिक्षाक शैली विद्यापतिक
पुरुषपरीक्षा सनक अछि । डा. विमलक अनुमान छन्हि जे जखन विद्यापति बनौलीमे आएल
हएताह तकरबाद हुनक आश्रयदाता सोत्रिय कुलक किछु सोइतसभ तत्कालिन राज्यसत्ताक भयक
कारणे“ पश्चिम नेपालक तनहु“ तम्घास क्षेत्रमे जा
कए बैसि गेलखिन्ह, जे
बादमे सोती ब्राह्मणक रुपमे परिणत भए गेलाह । भानुभक्त हुनका ओतए साहित्यिक चर्चाक
क्रममे पुरुषपरीक्षास“ परिचित
भए बधूशिक्षाक रचनाक लेल प्रेरित भेल हएताह ।
नेपालमे
विद्यापतिक प्रभावक चर्च करैत काल सोचए पड़त जे तहिया नेपाल आ भारतक बीच एखन जकाँ
सीमा कहाँ रहैक ? काठमाण्डू
उपत्यकामे मैथिलीक स्थान केहन रहैक तकर अन्दाज एतबेसँ कएल जा सकैत अछि जे मल्ल
राजासभ मैथिलीमे रचैथ आ एना कऽ ओ अपन विद्वता देखाबथि । अपनाकेँ गौरवान्वित बुझथि
। बनौलीमे विद्यापतिक प्रवास आ एतए रचित पदावलीसभक अपने कथा अछि । नेपालक एखुनका
तथाकथित विद्वानसभ नेपालक बहुतो तथ्यकेँ नुकाबक दुष्प्रयत्न करैत आबिरहल छथि । ओसभ
अपन अज्ञानतावश नेपालकेँ स्वतनत्र आ अलग राष्ट्रिताक प्रमाणित करएलेल ऐतिहासिक
तथ्यसभकेँ नुकबक कोशिशमे छथि । मैथिली आ विद्यापतिसँ सम्बन्धित बहुतो वास्तविकता
अही कारणेँ अन्हार गुफासँ बाहर निकलि नहि पाबिरहल अछि । एहिलेल स्वतन्त्र आ
निष्पक्ष अनुसन्धानक जरुरत अछि ।
(प्रस्तुत लेख
काठमाण्डूसँ प्रकाशित अप्पन मिथिलाक अगहन २०६८ (२०११) वर्ष १ अंक ६ विद्यापति
विशेषांकमे विद्यापति मैथिल एकताक डोर शिर्षकसँ प्रकाशित भेल अछि ।-साभार)
सत्यनारायण झा
कथा
रिटायरमेंट
सोनभद्र नदीक तट ।
साँझक समय छैक ।सुरज डुबि रहल छैक । नदी मे जल करतल ध्वनिक वेग सं बहि रहल छै
।पश्चिम दीस आकाश सिनुरिया रंगक देखा रहल छैक । लगैक छैक जेना भगवान भास्कर
दुनियाक सभटा दुखक ताप अपना मे समेट प्रस्थान क’ रहल छथि । मलयानिल मद्धिम मद्धिम
चलि रहल छैक ।सत्येन बाबू एनीकट पर बैसल किछु सोचि रहल छथि ।एनीकट अंग्रेज शासन
द्वारा बनायल गेल छैक ।एहि इलाका कें लोक बर गरीब छलैक ।सोनभद्र नदी कें एनीकट
बाँध द्वारा बाँधि देलकै आ पूर्बी आ पश्चिमी नहर निकालि एहि इलाका मे हरित
क्रान्ति आनि देलकै ।यद्यपि एनीकट आब भग्नावशेष छैक तथापि एतय चहल पहल मे कोनों
कमी नहि अयलैक अछि । एनीकट सं १५ कि० मी० दूर इन्द्रपुरी बराज भारत सरकार द्वारा
बना देल गेलैक आ लिंक नहर सं पूर्बी आ पश्चिमी मुख्य नहर के जोरि देल गेलैक अछि
।मुदा साँझक समय एखनो लोक एनीकटे पर घुमय लेल जाइत अछि ।साँझक समय एहिठामक दृश्य
बहुत मनोहर रहैत छैक ।सत्येन बाबू त हर दिन साँझक समय एतय बैसैत छलाह ।ओही सोन प्रणाली मे बिगत
तीन बरख सं सत्येन बाबू पदस्थापित छलाह ।आ ६० बरख भ’ गेलनि तै काल्हि रिटायर भेलाह अछि
।सोनभद्राक तट पर एकटा विशाल कलोनी छैक ।ओही कलोनी मे सत्येन बाबू सपत्नीक रहैत
छथि ।एखन किछु दिन सं पत्नी दीपमाला अपन पुत्री इन्दुबाला लग बंगलोर गेल छथीन, से सत्येन बाबू एनीकट
पर बैसल जल तरंग क’ देखैत
छथीन जे कोना तरंग उठैत छैक आ कोना खतम भ’ जाइत छैक ।अपनो जीवन ओही जलतरंग जकाँ बुझा रहल छनि । काल्हि
तक कतेक उफान छलैक जीवन मे मुदा आइ सभटा शांत भ’ गेलैक ।
यैह सोनभद्राक तट छैक ,जतय प्रत्येक दिन जल तरंग कें कल कल छल
छल करैत देखि आनन्दित होइत रहैत छलाह ।अभियंता छथिए आ बेशी समय नहरक नौकरी मे
बितेलनि ,तै अभियंत्रण काज सं
बेशी लगाव छलनि ।मुदा आइ ओ बेशी गंभीर छलाह ।काल्हिये ने रिटायर भेलाह अछि ।कतेक
रूटीन लाइफ छलनि ।मुदा आब रिटायरमेंटक जीवन कोना कटतनि ?यैह सोचि रहल छलाह एखन ।मोन नहि
लगलनि ।थोड़बे कालक बाद चलि देलाहअपनडेरा।डेरा पर सेहो त’ एखन असगरे छथि ।चुप चाप लॉन मे
कुर्सी लगा बैस जाइत छथि ।आ पुनः अतीत मे चलि जाइत छथि ।याद परैत छनि अपन बचपन ।घर
मे माय –बाबूजी ,पित्ती- पितियाइन सभ
रहथिन ।सभ पितयौत आ सभ बहीन मिलाकय बहुत पैघ परिवार रहैक ।सभ कतेक खुशी रहैक
।सत्येन बाबू बचपन मे कतेक खेल सभ ने खेलाथि।चोरा नुकी ,झिझिरकोना ,चोर सिपाही कतेक खेल सभ रहैक ।एक
बेर लिलिया सं कतेक झगड़ा भ’ गेल रहनि त’ ओकर हाथे मरोरि देने रहथिन त’ कोना काकी सं मारि खुआ देलकै ।ओ
छौड़ी बर् बदमास छल मुदा हमरा सहोदरो सं बेशी मानैत छल ।कोनो चिंता नहि ,कोनो फिकिर नहि ।भरि
भरि दिन महराजी पोखरि पर गेंद खेलाइत छलाह आ पोखरि मे चुभकी मारैत छलाह मुदा धीरे
धीरे बचपन समाप्त भ’ गेलनि
।बाबूजी मरि गेलखिन ।कतेक कानल रहैथ सत्येन बाबू ।बहुत स्नेह रहनि बाबूजी सं
।क्रमहि सभ पित्ती मरि गेलखिन ।अराध्यदेवी माय सेहो स्वर्ग चलि गेलखिन ।सत्येन
बाबू सोचैत छथि ,जावे
माय जीवैत रहथिन ,कहियो
अपना क’ पिता नहि बुझैत छलाह
।संतान लग पिता जरुर छलाह मुदा माय लग पहुँचैत बेटा बनि जाइत छलाह ।आत्मा तृप्त भ’ जाइत छलनि मुदा आब ओ
जिनगी कहाँ देखैत छथीन ।सत्येन बाबू क’ कतबो तकलीफ ,दर्द होइत छलनि ,मायक एकटा स्पर्श दुःख –दर्द के तुरंत समाप्त क’ दैत छलनि ।माय सं
आत्मीय प्रेम रहनि ।जीवन मे कतेक तूफ़ान अयलैन ,कतेक समस्या रहलनि मुदा सत्येन
बाबू कहियो हतोत्साह नहि भेलाह तेकर कारण एक संजीवनी वुटी माय छलखीन ।कतेक
पारिवारिक समस्या होइत छलनि मुदा मायक विचार सं कहियो कोनो समस्या बुझेलनि ?सत्येन बाबू पारिवारिक
परिवेश मे सेहो बहुत संतुलित छलाह ।समग्र परिवार सं अपनापन छलनि ।जाहि माइट,पानि में जन्म छलनि
ताहि सं अत्यधिक प्यार छनि ।मुदा आवक जीवन कोना बिततनि से बुझा नहि रहल छनि ।
“सर बाजार से क्या लाना
है ? भिन्डी एबं कदुआ तों
सुबह ही लाया था ।”सत्येन
बाबू कें तन्द्रा टुटलनि ।नौकर बनबारी आगू मे ठाढ़ रहनि ।।कहलखिन्ह –जब सब्जी है ही तो
छोड़ो बाजार जाना ।पहले नींबू का चाय बनाकर लाओ ।देखो ,तुलसी पत्ता डालना नहीं भूलना
।बनबारी चाह बनाबय चलि गेलनि ।सत्येन बाबू लॉन मे टहलय लगलाह ।गेंदा ,चमेली ,सिंगरहार ,गुलाब तथा रातरानी फूल
सं पूरा लॉन भरल छैक ।काते कात कतेक गाछ जेना आम ,कटहर ,धात्री ,अशोक आदि सभ छैक ।अनवर
माली हरदम किछु ने किछु करिते रहैत छैक ।गुलाबक फूल कइएक रंगक छैक ।कोनों मे कली
देने छैक त’
कोनो अर्द्धविकसित
छैक त’ कोनो पूरा फुलायल छैक
।एहि लॉनक बीच मे एकटा चबूतरा बनायल छैक ।ई चबूतरा अंग्रेज शासन द्वारा निर्मित
छैक ।नव मे कतेक रमणीय लगैत हेतैक ?सत्येन बाबू जखन कोनो आत्म चिंतन मे रहैत छथि तखन एही फूलक
बीच मे चलि अबैत छथि ।चारुकात सं नीक नीक सुगंध लगैत
छनि ।सुगन्धित वातावरण मे चिंतन सेहो सकारात्मक भ’ जाइत छनि ।चारुकात फूल सं
आच्छादित चबूतरा पर बैस जाइत छथि ।ताबे बनबारी चाह बनाकय आबि जाइत छनि ।बनबारी
सत्येन बाबू संग बहुत दिन सं छनि ।ओ गाड़ी सेहो चलबैत छनि आ किचेनक काज सेहो करैत
छनि ।ओकर माय जखन ओ दु साल क’ छल तखने मरि गेलैक ।बनबारी टुगर भ’ गेलैक ।पैघ भेलैक त’ सत्येन बाबू क’ ओकरा पर दया आबि गेलनि
।राखि लेलखिन्ह अपना लग । से ओ बनबारी सत्येन बाबू क’ बहुत सेवा करैत छनि ।सत्येन बाबू
एखन बेचलरे रहैत छथि ।तै सत्येन बाबू बनबारी पर पूरा निर्भर रहैत छथि ।चाह पिबय लगैत
छथि ।तुलसी पात देला सं चाहक स्वादे बदलि जाइत छैक ।सत्येन बाबूक तुलसीक चाह विभाग
मे प्रसिद्ध भ’ गेल
छनि ।चाह पिबैत पिबैत पुनः अतीत मे बिचरय लगैत छथि ।1971 मे सत्येन बाबूक ब्याह एकटा छोट
मुदा संभ्रांत परिवार मे दीपमाला संग भेल रहनि ।सत्येन बाबू पर घरक प्रत्येक
आदमीक दृष्टि रहनि । ओहि समय मे कतौ कतौ इंजीनियर होइत छलैक ।सत्येन बाबू कें
इंजीनियर होयते परिवारक पृष्ठिभूमि बदलि गेल रहनि ।सत्येन बाबू पर पारिवारिक
जिम्मेदारी रहनि ।सत्येन बाबू सं कियो रुष्ट नहि रहथीन ।आई ,सत्येन बाबू सोचैत छथि जाहि
व्यक्ति क’ पत्नी संग नहि छैक,ओ व्यक्ति समाज, परिवार क’ दृष्टि मे हीन भ’ जाइत छैक ।कहावत छैक
हर सफल व्यक्ति क’ पाछू
एकटा स्त्री होइत छैक ।ओ पत्नी ,माय ,बहीन या कियो आनो भ’ सकैत छैक ।मुदा सोसल स्टेटस पत्नीक व्यवहार पर निर्भर छैक
।पत्नीक महत्व जिनगी मे बहुत छैक ।ओ स्वर्गो देखा सकैत छैक आ नर्को ।आई सत्येन
बाबू सफल बेटा छथि ,सफल
पति छथि ,सफल पिता छथि एबं सफल
सामाजिक प्राणी छथि ओहि मे हुनकर पत्नी दीपमाला क’ पैघ हाथ छनि ।मुदा आबक समय सत्येन
बाबू क’ कठीन बुझा रहल छनि ।60 बरख भ’ गेलनि । बूढ़ारी दस्तक
दय रहल छनि ।नौकरी सं रिटायर क’ गेल छथि ।आव संतानक जरुरत बुझा रहल छनि । सत्येन बाबू कें
तीनटा संतान छनि ।दुटा बेटा आ एकटा बेटी ।सुकांत बाबू चौदह साल सं नौकरी करैत छथीन
।बहुत प्रतिभावान ।ओ अपना जीवन क’ अपन लक्ष्य प्राप्त करबा मे लगा देने छथिन ।लक्ष्य प्राप्त
करवाक लेल कतौ दोसर दीस देखवाक पलखैत नहि छनि ।ब्याह भ’ गेल छनि ।एकटा पुत्र रत्न छनि
।पारिवारिक दृष्टि सं सुव्यवस्थित छथि ।दोसर बेटा निशिकांत मेधावीक संग अपन काज मे
ब्यस्त छथि ।नीक नौकरी करैत छथि ।हुनको ब्याह भ’ गेल छनि ।पत्नीक संग प्रसन्न छथि
।दुनू भाईक पढ़ाई मे सत्येन बाबू कमी नहि केलखिन ।धीया –पुताक पढ़ाई एबं पारिवारिक तथा
अन्य सामाजिक काज करय क’ कारण
सत्येन बाबू सतत अभावक जिनगी जिलनि ।तै सत्येन बाबू आधुनिक सुख सं वंचित रहलाह
।जिम्मेदारीक बोझ सं दबल रहलाह ,तथापि आत्मीय सुख क’ कमी नहि रहलनि । जतबे रहनि ओतबे मे संतोष रहनि ।अपन दुनिया
ततेक ने बढ़ा लेलनि जे अपना लेल किछु नहि रखलनि ।सभ सं चिंता इन्दुबालाक ब्याह
रहनि।मुदा भगवानक इच्छा ,इन्दुबालाक ब्याह सेहो नीक भ’ गलनि ।इन्दुबाला आ अंशुमान बाबूक
जोड़ी बहुत नीक ।अंशुमान बाबू बहुत उदार प्रकृति कें छथि ।जेहने प्रतिभा तेहने
विलक्षण स्वभाव ।ज्ञानी त’ नीर क्षीर हंस जकाँ आ विवेकी महान ।सत्येन बाबू बहुत खुशी
भेलाह ।सत्येन बाबूक भाग्य देखि कतेक क’ इर्ष्या होइत छैक ।सत्येन बाबू क’ सभ संतान सं समान प्यार छनि ।मुदा
इन्दुबालाक संग २५-२६ बरख तक रहला सं सत्येन बाबू बेटी पर बेशी निर्भर भ’ गेल छलाह ।बेटी सासुर चलि
गेलनि तहिया सं सत्येन बाबू कमजोर भ’ गेलाह ।यद्यपि जहिया सं बेटा –बेटी बाहर चलि गेलनि तहिया सं
सत्येन बाबूक देख रेख हुनक पत्नी दीपमाला करैत छथीन मुदा इन्दुबालाक विछोह सत्येन
बाबू आई तक नहि बिसरि सकलाह अछि ।इन्दुबालाक संगीत सत्येन बाबूक रोम रोम मे बसल छनि
।इन्दुबालाक संगीत सत्येन बाबूक प्राणदायनी छनि ।इन्दुबाला कहियो नहि बुझि सकलीह मुदा सत्य
छैक जे इन्दुबालाक अवाज पर सत्येन बाबू किछुकाल लेल मृत्व क’ भगा देथीन ।संतान त’ सभ एके रंग होइत छैक
।मुदा संतान क’ अपन
अपन दुनिया छैक, तै
कोनो कोनो संतान भौतिक सुख मे
माय बाप क’ बिसरि जाइत छैक ।युग
अनुसार धर्म बदलि जाइत छैक ।ओना माय बाप क’ सेहो बेटा दीस टकटकी नहि लगेने रहबाक चाही ।ओहि सं संतानक
उन्नति प्रभावित होइत छैक ।संतान क’ स्वतंत्र छोरि देबाक चाही ।जतेक मोह होइत छैक ओतेक कष्ट
होयछ ।एहि जीबनक कोन मोल तै सुख दुःखक अनुभूति बेकार ।बस जे होयत छैक से होयते
रहतैक ।”सत्येन बाबू मस्तिष्क
क’ एकटा झटका देलखिन्ह ।” की सभ सोचय लगलौ
।सत्येन बाबू क’ एकटा
घटना याद अबिते हँसी लागि गेलनि ।इन्दुबाला छोटे सं बहुत नटखट छलैक ।ओकरा अपना
बाबूजी सं असीम प्यार छलैक ।सत्येन बाबू क’ सहरसा जिलान्तर्गत कोसी परियोजना मे पोस्टिंग रहनि ।ओहिठाम
सत्येन बाबू केनाल एस०डी०ओ० रहथि ।केनालक गप्प डेरा पर ततेक ने होय जे घरक बच्चा
सभ सेहो मुख्य ,शाखा
,लघु आ जलवाहा नहर बुझय
लगलैक ।डेराक आगा मे निशि ,इन्दुबाला ,आ कालोनीक आओर छोट छोट बच्चा सभ मुख्य ,शाखा ,आ लघु नहरक निर्माण
खुरपी सं जमीन कोरि कोरि क’ करैत छलैक ।नहरक निर्माणक बाद लोटा –गिलास –मग सं पानि भरि क’ नहर मे जलश्राव करैक आ
नहर मे पानि जखन एक नहर सं दोसर मे बहय लगैक त’ सभ बच्चा थोपरी पारि नाचय लगैक ।एहि बीच
इन्दुबाला एकटा लघु नहर क’ तोरि थोपरी पारय लगैक जे नहर टुइट गेलैक ।फेर ओही बच्चा सभ
मे कियो चीफ इन्जिनियर ,कियो
एस०ई० ,कियो एस० डी० ओ० बनि
कए कमीटीक गठन करैक आ मामलाक जाँच होइक
।कमीटी द्वारा इन्दुबाला क’ दोषी ठहरायल जाइक ।दोषी क’ आँखि पर पटटी बान्हि चोर घोषित
कएल जाइक ।इन्दुबाला चोर बनय लेल तैयार नहि होइत छलैक तखन सभ मिलि क’ ओकरा मारि खुएबाक लेल
सत्येन बाबू लग अनबाक प्रयास करैक ।मुदा इन्दुबाला सभ क’ धमकी दैत सभ क’ कहैक तोरा सभ क’ नहि बुझल छौक जे
बाबूजी हमरा किछु नहि कहैत छथि ,आ दौड्कय भागि क’ उल्टे सभ बच्चाक शिकायत सत्येन बाबू लग करैक ।बच्चे सं कतेक
कंफिडेंस अपना बाबूजी पर रहैक इंदु क’ ।इन्दुबाला आब अपना घर गृहस्ती मे लागल छैक तथापि सत्येन
बाबू क’ लगैत छनि जेना ओ एखनो
हुनका गरदनि मे लटकल छैक ।संतान त’ वैह छैक जेकरा अपना माय बापक सेंटीमेंट्स अनायास बुझा जाइत
छैक ।इन्दुबाला सत्येन बाबुक आत्मा मे बैसल छैक ।जीवनक ढलान पर सत्येन बाबू पहुँच
गेल छथि ।सूर्यक प्रखर तेज आब सत्येन बाबू मे नहि छनि ।आब त’ केखनो रात्रिक अन्हार सूर्यक
लालिमा क’ झाँपि देतैक ।सत्येन
बाबू केखनो क’ उदास
भ’ जाइत छथि ।सत्येन बाबू अतीतक
याद सं वर्तमान मे अबैत छथि ।एहि समय की करक चाही ।रिटायरमेंटक सदमा त’ हर नौकरी पेशा लोक क’ होइत छैक ।तखन सत्येन
बाबू कियैक चिंतित छथि ।हुनका त’ चारु तरफ अपन बच्चा सभ ठाढ़ छनि ।हुनका कियैक असुरक्षाक
भावना मोन मे आयलनि ?तकदीर मे जे लिखल
हेतैक सैह हेतैक ।अपना बच्चा सभ क’ संस्कार त’ ओ स्वम देने छथिन ।तखन एतेक डरायल कियैक छथि ।डेरायल छथि ओ
समय सं ।डेरायल छथि ओ आजुक सभ्यता सं ।समय मे बहुत परिवर्तन भ’ गेलैक अछि ।भौतिकवादी
युग मे सभ अर्थ पर विशेष जोर देने छैक ।केकरो फुर्सत नहि छैक जे कतौ दोसर दीस
देखतैक ।चारुकात त्राहि त्राहि छैक ।मुदा मोन क’ आत्म संयमित करक छैक ।हर माय –बाप क’ सोचय चाही जे हमर समय
बित गेल ।जेकर समय छैक ओकरा सोचय क’ छैक ।सत्येन बाबू विचार मग्न रहथि ।एतबे मे पुनः बनबारी आबि
गेलनि आ कहलकनि “सर” खाना तैयार हो गया
।सत्येन बाबू देखलनि ९ बाजि गेलैक ।डेराक भीतर गेलाह ।खाना टेबुल पर लगायल छैक
।सत्येन बाबू भोजन केलनि आ विछावन पर परि रहलाह ।नींद शीघ्रे भ’ गेलनि ।निन्द्रा मे
देखैत छथि जे हुनके हमशक्ल एकटा दोसर सत्येन ठाढ़ भ’ हुनका देखि हँसि रहल छनि ।सत्येन
बाबू क’ देखि आश्चर्य भेलनि
।पुछला पर कहलकनि ओ सत्येन बाबूक आत्मा छैक ।ओ कहलकनि जे देख हमर दोस्त ,जिनगी तोहर नहि छियौक
।जिनगी त’ तोरा देल गेल छौक
।जहिया तोहर काज समाप्त भ’ जेतौक तोरा देह सं हम निकलि जेबौ आ तोहर देह निर्जीव भ’ जेतौक ।तै तू बेकार
किछु सोचैत छे ।तोरा अपना द’ किछु नहि बुझल छौ ।तोहर शरीरक कोनो महत्व नहि छौक ।महत्व
छैक हमर अर्थात आत्माक ।ई कहि छाया सत्येन चलि गेलैक ।सत्येन बाबू अबाक रहि गेलाह
।तावे बनबारी उठेलकनि । ‘सर’ उठिये ,सुबह हो गया ।चाय भी बना दिया है ।तुलसी पत्ता भी डाल दिया
है ।सत्येन बाबू आँखि मिरैत उठैत छथि आ दीवाल पर लागल दर्पण मे अपन मुँह देखैत छथि
आ धीरे सं मुसकि जाइत छथि ।
१. रवि भूषण पाठक- आचार्य भामहक चिंतन / दण्डी आ काव्यलक्षण / टिल्लू जी (शिव कुमार झा) २. अतुलेश्वर- धीरेन्द्र, मैथिली आ शिष्य
१.
रवि भूषण पाठक
१
आचार्य भामहक चिंतन
भामह क
चिंतन
भामह
अलंकारवादी रहथि आ संस्कृत आलोचना क ऐ विवाद सॅं परिचित छलाह जे काव्यसौंदर्यक
मूलाधार शब्दालंकार मे होइछ वा अर्थालंकार मे ।पहिल मानैत छलाह जे काव्य मे चमत्कार
क सृष्टि शब्द सौंदर्ये सँ संभव अछि ।दोसर समुदाय मानैत छल जे उपमा ,रूपक आदि अर्थालंकारे
सँ काव्य शोभा होइछ ।भामह अपना हिसाबें दूनू मे समन्वय करबा के प्रयास केलखिन्ह
।
' शब्दार्थौ
सहितौ काव्यम्' क
द्वारा भामह शब्द आ अर्थ दूनू क महत्व पर बल दैत छथिन्ह ,अर्थात शब्द आ अर्थक सहभाव मे
काव्यक सृष्टि होइत छैक ।यद्यपि भामहक चिंतन सँ ई विवाद आर गहिरायल कि काव्य कत' होइत छैक 1 शब्द मे2 अर्थ मे 3 या सहभाव मे ।ई विवाद
एते प्रबल रहल कि शाहजहॉ कालीन विद्वान जगन्नाथ कहलखिन्ह 'रमणीय अर्थक प्रतिपादक शब्दे
काव्य थिक ।आ वर्तमान मैथिली कविता के देखल जाइ तखन लागैत अछि जे फेर सॅ शब्द
अपन जाल फैला रहल अछि ।
ओना
आधुनिक मैथिली मे फतवा क कमी नइ छैक आ जइ कविता के प्राचीन सॅ प्राचीन आचार्य तक
नवोन्मेष के कारणें स्वीकार क' सकैत छलखिन ओ कविता मैथिली मे एक झटका मे श्रीविहीन साबित क' देल जाइत अछि ,आ तहिना श्रीविहीन
कविता के गौरवान्वित करए के सेहो ऐ ठाम सुदीर्घ परंपरा अछि ।
२
दण्डी आ काव्यलक्षण
दण्डी नीरस शास्त्रकार नइ छथिन्ह
,प्रतापी कवि सेहो
छथिन्ह ।
''अलंकृतमसंक्षिप्तं
रसभाव निरंतरम '' ।हुनकर
स्पष्ट विचार अछि कि कविता ओइ पदसमूह क नाम छैक ,जे वांछित सरसता सँ युक्त हो ।ऐ
ठाम कविप्रतिभा सुंदर पदावली सँ संयुक्त हेबाक चाही ।
''शरीरंतावदिष्ठार्थ
व्यवच्छिन्ना पदावली ''(काव्यादर्श)
। इष्टार्थयुक्त पदावलीक एकटा अर्थ ई जे पद मे 'योग्यता' ,'आकांक्षा' आदि होयबाक चाही ।दंडी महाराजक मंतव्य ऐ ठाम ई अछि कि इष्ठार्थत्व
क सौजन्ये सँ काव्यत्व क जन्म होइत छैक ।यद्यपि हुनक रसचेतना भावात्मक कम आ
अलंकार केंद्रित बेशी अछि आ हुनका लेल समस्त अलंकारक उद्देश्य रससृष्टि मात्र
छैक ।
हिनकर चिंतन मे 'इष्टार्थ'क स्पष्ट व्याख्या
नइ छैक ,तैयो ई मानल जाइत अछि
जे ऐ पदक संदर्भ भामहकालीन काव्यचिंतन सँ छैक ।भामहक लेल शब्दालंकार आ
अर्थालंकार दूनू इष्ट छलइ ,मुदा दण्डी क लेल शब्द,अर्थ,रस सौंदर्य सँ युक्ते पदावली
काव्य थिक ।दण्डी क सीमा ई अछि जे ओ ' 'इष्टार्थ'क चर्चा मात्र अर्थालंकारक लेल करैत छथिन्ह ।
दण्डी क सीमा स्पष्ट
अछि ओ शब्दार्थ के काव्यक शरीर मानैत छथिन्ह आ अलंकार के आत्मा ।हुनकर विचार
मे अलंकारविहीन पदावली साहित्य नइ भ' सकैत अछि ।
३
टिल्लू जी (शिव कुमार झा)
जन्मदिनक मधुर
मंगलकामना टिल्लू जी ।बहुत दिन सँ अहॉं से बात नइ भ' रहल अछि आ हम प्रयासो केलहुं त' अहॉ व्यस्त रही ,कखनो टाटा ,कखनो भुवनेश्वर ।आइ
अहॉक जन्मदिन अछि आ अहॉक सभ स्वप्न सभ प्रतिज्ञा सामने होयत ।भगवान सँ हमर सभक
प्रार्थना कि अहॉंक सब कामना फलीभूत हो ।मैथिली भाषा क एकटा पाठक होयबाक नाते हमर
ई कामना कि अहॉ सब तरहें मैथिली साहित्य के समृद्ध करी ।एकटा कविक पुत्र होयबा क
नाते जे दायित्व अहॉ क छल से अहॉ लगभग पूरा क देलहुं ,मुदा एकटा लेखक होयबा क नाते
अहॉके बहुत किछु करबा क अछि ,ने केवल मात्रा मे बल्कि गुणात्मकता मे सेहो ।
अहॉक
कविता मे बूच भैया क कविता क छाया देखाइत अछि ,ई जत्ते स्वाभाविक छैक ,ओतबे अहॉ लेल
अपरिहार्य अछि कि अहॉ अपन रस्ता बनाबी ।जे ओइ पीढ़ीक दुख छैक ,ई ओकरे छैक आ ओ पीढ़ी
जे शिल्पक चयन केलकइ ,सेहो
ओकरे रहतइ ,नवका पीढ़ी के बेशी
नवोन्मेषी बनए पड़तए ,तखने
ई ज्योतिरीश्वर आ विद्यापतिक भाषा अपन प्रासंगिकता बनेने रहतइ ।यद्यपि सभ भाषाक
अपन अपन संस्कार होइत छैक आ ओकर रचनात्मकता सेहो इतिहासक कोखि सँ निकलि रहल छैक ,तैयो लोकल किछु नइ
रहलइ ।
अहॉक
आलोचना भाषा तथ्यात्मक आ निर्णयात्मक रहैत अछि ।तथ्यात्मकता यद्यपि
प्रामाणिकताक अंग बनिके आबैत अछि ,तथापि कखनो कखनो ओ पाठ के बोझिल सेहो बनबैत अछि आ तथ्य क
बोझ तखन आर बेशी भ' जाइत
अछि ,जखन ओ केवल जानकारी क
प्रदर्शनक लेल आबैत अछि ।जेना 'गामक जिनगी' पर लिखैत काल अहॉ खूब रास कहानीकारक नाम लिखैत छी । बात
केवल अहींके नइ अछि ,प्राय: मैथिली मे नामक गोला
चलैत छैक ,आ लेखकक भाषाक स्वभाव
,ओकर बनावट पर कम विचार
होइत अछि ।तहिना तुलनात्मक आलोचनाक मतलब लेखक लोकनि दूटा किताब ,लेखक या उद्धरणांश सँ
बूझैत छथिन्ह ,तुलनात्मक
आलोचना के सही बाट देखयबाक जिम्मेवारी अहीं सन लेखक के अछि ।ऐतिहासिक आलोचना एखनो
महत्वपूर्ण अछि ,किएक
त' मैथिली साहित्यक
इतिहास आ विभिन्न युग ,लेखक
,क्षेत्र आ प्रवृत्तिक
कार्यभागक सही सही मानचित्र अखनो हमरा सभक समक्ष नइ अछि ।समाजशास्त्रीय आ उत्तर
आधुनिक आलोचना क बाते छोड़ू ,एकर त' नामोनिशान अखन मैथिली मे नइ अछि ,मुदा अहॉ सन उद्योगी व्यक्ति
हमरा समक्ष छथि ,तें
आशान्वित छी ,आइ
ने काल्हि सब चीज अनुकूल स्थान पर मानक रूप मे रहत ।
आइ
बस एतबे ,जन्मदिनक फेर सॅ
मंगलकामना ।अहॉ चिरायु हो ।
२
अतुलेश्वर-
धीरेन्द्र, मैथिली आ शिष्य
मैथिली साहित्यमे राजकमल, ललित, मायानन्द, धीरेन्द्र, रमानन्द रेणु आ
सोमदेव क पदार्पण एकहि काल-अवधिमे भेल। राजकमल, ललित, धीरेन्द्र आ रेणु आब नहि छथि।
मायानन्द आ सोमदेव मात्र अपन पीढ़ीक प्रतिनिधित्व करैत छथि, सेहो नाम मात्रकेर, कारण पीढ़ीक प्रति
वर्तमानमे हुनका सभक कोनो ठोस काज नहि तँ देखल जा रहल अछि आ नहि तँ अपन पीढ़ीक संग
भेल अन्याय प्रति कोनो ठोस प्रतिक्रिया देखबामे आएल अछि। ओना एहि पीढ़ीक एकटा
विशेषता ई छल सभ केओ सर्वविधावादी छलाह, मूलतः कथाकार आ उपन्यासकार रहितो। समयक ज्ञान छलन्हि हिनका
सभ गोटेंमे। ई निश्चित जे ओ लोकनि साहित्यकार तँ उच्चकोटिक छलाहें ओहिसँ बेशी
मैथिली आन्दोलनकारी आ चिंतक छलाह। ओहि सम्बन्धमे किछुओ उद्धृत करबाक आवश्यकता नहि, कारण मैथिली साहित्यक
विषयमे थोड़बो जानकारी रखनिहारकेँ हुनका लोकनिक विषयमे जरूर बुझल हेतनि। हम एतय
चर्च मात्र डा.धीरेश्वर झा धीरेन्द्रक करए चाहैत छी, कारण अछि धीरेन्द्रक अवसान जनवरी
मासक नओ तारीखकें भेल छलन्हि। दोसर धीरेन्द्रक कर्मभूमि नेपाल रहल आ ओतुक्का बहुतो
साहित्यकार,
बुद्धिजीवी
आ आम लोकक अनुसारेँ आधुनिक नेपालक मैथिली साहित्यक जनक डा.धीरेन्द्र छथि। हमर कहब
अछि जे यदि डा.धीरेन्द्र नेपालक आधुनिक साहित्यक निर्माता छथि तँ कोन कारणेँ
धीरेन्द्रकेर उपेक्षा कएल जाए रहल अछि? हुनक दीर्घ शिष्य-मण्डली रहितो, जाहिमे सर्वश्री रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’,जे साझा प्रकाशन सँ ल
क प्रज्ञा प्रतिष्ठान धरि प्रतिनिधित्व कयलन्हि अछि, धीरेन्द्रक कोनो अप्रकाशित पोथीक
प्रकाशन नहि होएब,
हुनका पर केन्द्रित कोनो संगोष्ठीक आयोजन नहि होएब, हुनक योगदानकेर विषयमे
कोनो पोथी प्रकाशित नहि होयब आदि तँ हुनक उपेक्षे ने थिक। एकर जवाब हुनक शिष्य
मण्डलिए दए सकैत छथि। हँ, एहि परिप्रेक्ष्यमे जँ केओ अपन उदारता आ धीरेन्द्रक प्रति
सम्मान देखौलक तँ ओ थिक मिनाप, जनकपुर, जे विगत वर्ष हुनक कथा संग्रह प्रकाशित कएलक। धीरेन्द्रक
शोणितसँ पोषित नेपालीय मैथिली फलि फूलि रहल अछि, मुदा पता नहि जे कोन कारणेँ
नेपालीय मैथिली साहित्यक महलकें ठाढ़ कयनिहार एहि साहित्य-मनीषीकेँ विगतक
कर्ता-धर्ता लोकनि बिसरि गेलाह अछि। धीरेन्द्रक विषयमे सम्पूर्ण नेपालक लोक इएह
कहैत छथि जे ओ मैथिलीक लेल आ अपन जनकपुरक शिष्यक लेल जीबैत छलाह तैँ श्यामसुन्दर
शशि हुनक विषय मे लिखने छथि जे आब जनकपुरमे गुरुकुलक परम्परा समाप्त भ गेल, मुदा ओहो फरिछा नहि
सकलाह जे एहि गुरुकुलक परम्परा समाप्त होयबाक कारण कि छल। हमरा जनैत एकर कारण छल
वा अछि लोककेँ चिन्हबाजन्य तीक्ष्ण दृष्टिक अभाव ओ ओहन त्यागी-तपस्वी-मनस्वी
साहित्यकारसन योग्य गुरुक अनुपलब्धता। ओना एकटा प्रसन्नताक विषय अछि जे एहि गुरुकुल परम्पराक
चिन्तनमे लेख लिखनिहार आ धीरेन्द्रक गुरुकुल परम्पराक शिष्य श्याम सुन्दर शशि
नेपालीय मैथिली साहित्यक विकासक लेल स्थापित कयल गेल विद्यापति कोषक सचिव संग
नेपालमे मैथिलीक अध्यापक भेलाह अछि आब देखबाक चाही जे ओ अपन गुरुकें मोन पाड़ैत
छथि वा नहि,
सङ्गहि
इहो समयस सङ्ग अपेक्षित रहत जे ओहि गुरु-शिष्य परम्पराक रक्षा करताह वा नहि। ई तँ
सर्वविदित अछि जे धीरेन्द्रक गुरुकुलक परम्परासँ मात्र नेपालक लोककें लाभ भेलन्हि, हुनक परिवार आ स्वयं धीरेन्द्रकेँ ओहि परम्पराकें
निर्वाह करबामे दुख आ अपमान छोड़ि किछु नहि भेटलन्हि। धीरेन्द्रक विषयमे एकटा
नेपाली भाषी शिष्य जगदीश धिमिरे अपन नेपाली भाषाक उपन्यास ‘अन्तर्मनको यात्रा’ मध्य लिखने छथि – भारतीय मिथिलाका
डा.धीरेन्द्र , क्याम्पसमा
मैथिलीका गुरु तथा हिन्दी र अङ्ग्रेजीका पनि विद्वान थिए। उनी साहित्यमनीषी थिए र
थिए जनकपुरका आधुनिक मैथिली र नेपाली सिर्जनशील साहित्यका प्रेरणा। अरूका नभए पनि
उनी मेरा प्रेरणा थिए। उनी साहित्य नै सास फेर्थे। उनको सपना-बिपना सबै साहित्य नै
थियो। साहित्यचर्चामा डुबेर उनी अघाउँदैनथे, जसका सितन हुन्थे चिया र पान। पछि जर्दा थपियो। कृशकाय सी
मैथिल पण्डित दिनभरि बोलेर र रातभरि लेखेर थाक्तैनथे। म सोच्थेँ – यी कहिले सुत्छन् होला? कहिले खान्छन् होला? आ आगू ओ लिखैत छथि जे
डा.धीरेन्द्र मेरो साहित्यका मेन्टर हुन्, दृष्टिगुरु। साहित्य र जीवनदर्शनका मेरा जिज्ञासाका गाँठा
फुकाउन उनी सधैं तत्पर हुन्थे। उनी उमेर पुगेरै बिते भन्दा हुन्छ। मैथिली
साहित्यमा उनको निकै ठूलो स्थान छ। जस्तो कि साहित्यकारहरूको नियति हुन्छ, उनको वृद्धावस्था
दुःखद थियो। आर्थिक र मानसिक रूपमा तनावग्रस्त थिए।”
हमर एतय ई उक्तिक
रखबाक दू टा कारण अछि, पहिल
जे लेखक नेपाली भाषी छथि ओ दोसर ई जे ओ कोन कारणेँ ई लिखबाक लेल विवश भेलाह जे ‘आर गोटेंक प्रेरणा
होथि वा नहि हमर प्रेरणा छलाह, दोसर कोन कारणें धीरेन्द्रक मानसिक रूपमे तनावग्रस्त छलाह’। एहि उक्तिक व्याख्या
करब हमर नियति नहि अछि एतय मात्र हमर प्रश्न अछि एहन नियति डा.धीरेन्द्रक संग
कियाक भेल जखनि कि ओ एतेक पैघ जमातिक गुरु छलाह। धीरेन्द्र प्रेमर्षि अपन आलेख मैथिलीक आकाशक
भोरूकबाः डा.धीरेन्द्र मध्य लिखने छथि जे – “ यथार्थ कहल जाए तँ आइयो जँ नेपालक मैथिली साहित्यसँ डॉ.
धीरेन्द्रक सक्रियताटाके कतिया देल जाए तँ ई छुछुन्न भऽ जाएत। कहबाक लेल कहल जाइत
छैक जे नेपालमे मैथिलीक एना भेल-ओना, मुदा जे-जेना भेल मात्र डॉ. धीरेन्द्रकें लऽ कऽ भेल। जँ
धीरेन्द्र आ हुनक कृतित्व नहि तँ नेपालक मैथिली साहित्य किछु नहि। ई यथार्थ अछि।” तखनि डॉ.
धीरेन्द्रकें हुनक अवसानक एतेक वर्ष बितलाक पश्चातों अपन कृतित्वकें अपन हाल पर
छोड़ि देबाक पाछु कोन मंशा तँ होयत नकारात्मक वा सकारात्मक ?
किछु दिन पूर्व एकटा
सेमिनारमे गौहाटी गेल छलहुँ, ओहि ठाम जखनि नेपाली भाषाक विकासक चर्चा हुअए लागल आ
साहित्यक विकासमे नेपालक साहित्यकारक योगदानक चर्चा भेल तँ दार्जिलिंगक एकटा
युवा शोघार्थी कहलनि जे नेपाली भारतीय साहित्यक विकासमे नेपालक साहित्यकारक नाम
कियाक लेल जाइछ,
ताहि पर एकगोटें प्रतिक्रिया व्यक्त करैत कहलनि जे यदि साहित्य रचनाक सेहो भोगौलिक
सीमा हुअए लागल तँ ई साहित्य लिखबाक कोनो प्रयोजन नहि , कारण साहित्यकारक कोनो भोगौलिक
सीमा नहि होइछ आ ओहिना भारतीय नेपाली साहित्यमे नेपालक साहित्यकारक योगदान चर्च
करब ओहि सिद्घान्तक अन्तर्गत अछि यदि नेपालक साहित्यकार भारतमे रहि अपन साहित्य
सेवा क रहल छलाह तखनि ओ नेपालक भेल कि भारतक। आ हमरा जनैत धीरेन्द्रकेँ अपन
जन्मभूमि प्रति अगाध स्नेह छलन्हि तैँ ओ नेपालक नागरिकता नहि लेलन्हि मुदा अपन
कर्मभूमि प्रति अगाध स्नेह छलन्हि तैँ ओ अपन सन्तानसँ बेशी नेपालीय मैथिलीकेँ स्नेह
देलन्हि। मुदा कि!
हुनक ई भावनाक रक्षा कयल गेलनि - उत्तर भेटत नहि। महाभारतमे गुरु द्रोणकेँ मात्र
अपन आदर्श गुरु मानबाक कारणें एकलव्य अपन औंठा दान देने छलाह, मुदा धीरेन्द्रकें मात्र
गुरु आ नेपालक मैथिली सेवा करबाक कारणें हुनका शिष्य लोकनि हुनक गर्दनि धरि काटि
लेबाक षडयंत्र करैत छथि। समय-समय पर धीरेन्द्रक शिष्य लोकनि धीरेन्द्र भारतीय छथि
एकर हौआ ठाढ़ कय धीरेन्द्रकें नेपालसँ कतिएबाक प्रयास कयलन्हि आ सफल सेहो भेलाह।
मैथिली आकाशक भोरुकबाःडॉ. धीरेन्द्र मध्य धीरेन्द्र प्रेमर्षि हुनक शिष्य लोकनिक विषयमे
लिखने छथि जे- “तहिया
जहिया नेपाल राजकीय प्रज्ञा-प्रतिष्ठानक सदस्य हएब विशेष गौरवक विषय मानल जाइत छल, हिनका
प्रज्ञा-प्रतिष्ठाने मनोनयन कएल गेल छलनि। मुदा हिनक अपने किछु तथा कथित शिष्यसभ, जिनका आङुर पकड़िकऽ
लेखनक एकपेड़िया पर ई चलऽ सिखौने रहथिन, काठमाण्डू ठेकि गेल जे ई तँ भारतीय छथि, तें हिनका एहिमे नहि
होएबाक चाहियनि।” आब
एतय प्रश्न उठैत अछि जे जहिना धीरेन्द्रक प्रति हुनक किछु प्रिय शिष्य द्वारा ई
विरोधक स्वर उठाओल गेल जे ओ भारतीय छथि तखनि तँ कहियो ईहो मिथिला आ मैथिली विरोधी
(नेपालमे) उठा सकैत छथि जे विद्यापति सेहो भारतीय छथि ( कारण विद्यापतिक जन्म
भारतक मधुबनी जिला मे भेल छनि) ओ कोना राष्ट्रीय विभूति होयताह? तखनि ओकर उत्तर की देबैक,कोनो उत्तर अछि? (कारण कहियो भारतक
दार्जिलिंग मे एहि प्रकारक स्वर भानु भक्त प्रति आयल छल), कारण स्वार्थक कारण धीरेन्द्र वा
महेन्द्र मलंगियाकेँ भारतीय कहि कात क दैत छियनि ( युवा वर्गकें छोड़ि) तखनि एहि प्रश्नक
उत्तर देब सत्यमे असम्भव होयत। कारण काल्हि धरि अपन स्वार्थक लेल जे खाधि खुनने छी
ओहि खाधिमे एक न एक दिन अपनो खसय पड़त। कारण साहित्यकार , विचारक आ ज्ञानीक नहि तँ सीमा
रेखा सँ बान्हल जा सकैछ आ नहि अपन संकुचित विचारसँ, ओ तँ पानीक ओहन धार
होइत छथि, जे जतए चाहथि बहैत अपन
ज्ञानक सरितासँ समाज आ लोककें अभिभूत करैत अपन ज्ञान सँ समाजकेँ आलोकित करैत जाइत
छथि। एहि तरहें कहि सकैत छी जे आधुनिक कालक पं.जीवनाथ झा, डा. धीरेन्द्र , प्रो.मौन, महेन्द्र मलंगिया , मध्यकालक मल्ल राजाक
दरबारक नाटककार ,कवि
आ प्राचीनकालक कोनो सिद्ध साहित्यकार होथु, हुनका भौगोलिक सीमासँ बांधि राखब अपन ज्ञानकेँ सीमामे
बान्हब सदृश होएत। अन्तमे डा.धीरेन्द्रक प्रति आस्था व्यक्त करैत हुनक प्रकाशनाधीन
मैथिली मुक्तक संग्रह ‘छिड़ियाएल
फूल’ सँ एकटा मुक्तक
उद्धित करैत अपन कथ्यकेँ दृढ़ता प्रदान करबाक प्रयास करैत छी-
“जिनगी ने कनैए, ने नोर बहबैए;
ओ तँ बीतैत क्षणक खेतमे बीया छीटैए।”
१.ओमप्रकाश झा -लोकतन्त्रक माने (कथा)
२. मुन्नाजी- एकटा विहनि कथा
१
ओमप्रकाश झा
लोकतन्त्रक माने (कथा)
शैलेश बाबू अपन मिनी लाइब्रेरी मे बैसल किछ पोथी सबहक पन्ना उन्टेने जाइ छलाह।
हुनकर कनियाँ सुनन्दा आबि केँ कहलखिन्ह- "कोन खोज मे लागल
छी अहाँ। तीन घण्टा सँ अपस्याँत भेल छी।" शैलेश बाबू बजलाह- "लोकतन्त्रक
माने ताकि रहल छी।" सुनन्दा हँसैत बजलीह- "हुँह, कथी केँ
प्रोफेसर छी अहाँ यौ। लोकतन्त्रक माने होइ छै, बाई द
पीपुल, औफ द पीपुल, फौर द पीपुल। इ गप त' बच्चा-बच्चा
बूझै छै।" शैलेश बाबू बजलाह- "इ माने त' हमरो
बूझल छल। हम लोकतन्त्रक आधार बनल किछ गोटेक हरकत केँ व्याख्या करबाक फेर मे एकर
विशिष्ट अर्थ ताकि रहल छी। जतय जाइ छी किछ ने किछ विचित्र हरकत करैवला लोक सब सँ
भेँट भ' जाइ ए। हुनकर सबहक लीला लोकतन्त्रक
परिभाषा मे आबै छै वा नै, यैह खोज मे तबाह छी।" सुनन्दा
कहलखिन्ह- "छोडू एखन इ सब आ चलू किछ पनपियाई क' लिय'।"
शैलेश बाबू पनपियाई करैत छलाह तखने हुनकर मित्र मनोज चौधरीक फोन एलन्हि-
"कहिया पूर्णिया आबै छी प्रोफेसर साहेब? एहि बेरक
दुर्गा पूजा मे हमर गामक प्रोग्राम फाईनल अछि ने?" शैलेश
बाबू बजलाह- "हम काल्हि चलै छी।" दोसर दिन शैलेश बाबू पूर्णिया गेलाह आ
ओतय सँ मनोज जीक संग हुनकर गाम गेलाह। ओतय हुनकर गाम पर जलखै क' केँ
साँझ मे दुनू दोस्त मेला घूमै लेल निकललाह। मेला मे एहि बेर नौटंकीक वेवस्था सेहो
छलै। सभ ठाम सँ घूमि दुनू गोटे नौटंकी देखबा लेल पंडाल मे पहुँचि अपन स्थान ग्रहण
केलैथि। नौटंकीक बीच मे बाईजीक नाचक सेहो प्रबन्ध छलै। एकटा बाईजी स्टेज पर आबि
अपन लटका झटका देखबैत कोनो फिल्मी गाना पर नाच कर' लगलै।
शैलेश बाबू मनोज जी केँ कहलखिन्ह जे चलू, इ नाच हम नै
देखब। ताबे एकटा घटना भेल, जे देखि ओ ठमकि गेलाह। नाचक बीचे मे
दर्शक मे आगू मे बैसल एक गोटे उठलाह आ नाच कर' लागलाह।
ओ साँवर रंग केँ उज्जर कुरता पायजामा पहीरने एकटा दाढीदार लोक छलाह आ हाथ मे एकटा
नलकटुआ रखने फायरिंग सेहो करै छलाह। मनोज जी बाजलाह- "इ हमर सबहक विधायक छैथ
आ सबटा आयोजन हुनके सौजन्ये छैन्हि।" तावत ओ विधायक मन्च पर चढि गेल आ बाईजी
संगे फूहड भाव-भंगिमा मे नाच कर' लागल। शैलेश बाबू खिसियाइत बजलाह-
"चलू तुरन्त। हम नै रूकब आब। इ किरदानी विधायक केँ, राम-राम।"
ओतय सँ दुनू गोटे गाम पर एलाह आ शैलेश बाबू रातिये पटना केँ बस पकडि विदा भ' गेलाह। दोसर
दिन भोरे पटना पहुँचलाह। डेरा पर बैसि चाह पीबै छलाह, तखने
सुनन्दा बजलीह- "केहेन जमाना आबि गेलै। विधायक नर्तकी संगे
स्टेज पर नाच करै छलै। पूरा समाचार मे यैह सब देखा रहल छै।" शैलेश बाबू तुरंत
टी.वी. दिस भगलाह आ एकटा न्यूज चैनल लगेलाह। ओहिठाम यैह समाचार बेर बेर देखबै छलै।
ओहि चैनलक स्टूडियो मे ऐ विषय पर बहस चलै छलै। किछ राजनीतिक लोक सब आ किछ
बुद्धिजीवी लोक सब चर्चा मे लीन छलाह। विधायक जीक पार्टीक नेता केँ छोडि बाकी लोक
एहि कृत्यक घोर निन्दा करै छलाह। बीच बीच मे प्रचार आ चैनेल दिस सँ इ उद्घोषणा कि
सब सँ पहिने वैह इ समाचार देखौलक। इ विषय गरीबी आ भूखमरीक समस्या केँ कतौ बिला
देलकै। एना लागय लागल जे देश मे आब एकमात्र यैह समस्या रहि गेलै। शैलेश बाबू चैनल
बदललाह। सभ ठाम वैह देखबै छलै। ओ बडबडाय लागलाह- "कते महत्वपूर्ण समाचार भ' गेलै
इ।" ताबत एकटा चैनल पर विधायक जीक बयान आबि गेलै- "इ सब विरोधी पार्टीक
दुष्प्रचार थीक। हम ओहि नर्तकी केँ पुरस्कार देबा लेल स्टेज पर गेल छलहुँ। वीडियो
मे छेडछाड कैल गेल अछि। इ हमरा बदनाम करै लेल विरोधी सबहक चालि थीक। हम जाँच लेल
तैयार छी। एकटा कमीशन बैसायल जाओ।" शैलेश बाबू सुनन्दा केँ कहलखिन्ह- "इ झूठ
बाजै ए। हम अपनहि आँखि सँ इ कृत्य देखलौं।" सुनन्दा बजलीह- "चुप रहू आ इ
गप आन ठाम नै बाजब। छोडू ने, सिनेमाक चैनल लगाउ।"
साँझ मे एकटा चैनल पर "विधायक जी स्टेज पर" एहि विषय पर जनताक बीच
विधायक जी केर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम छल। शैलेश बाबू इ देख' लागलाह।
विधायक जी साफ-साफ कहलखिन्ह जे ओ स्टेज पर नर्तकी केँ ईनाम दै लेल गेल छलाह। हुनकर
कहनाई रहैन्हि जे वीडियो मे छेडछाड कैल गेल। जनताक बीच सँ ढेरो सवाल पूछल गेल आ
विधायक जी बिना तमसायल मुस्की दैत शांत जवाब दैत रहलाह। शैलेश बाबू कुनमुनाब' लागलाह।
बाजय लागलाह जे केहेन झूठ बाजै छै। मुदा हुनकर के सुनै छैन्हि। सुनन्दा केँ इ गप
बूझल छलैन्हि जे शैलेश बाबू जोश मे ओतय जा सकै छैथ, तैं ओ
हुनकर पहरेदारी मे मुस्तैद छलीह। एकाएक जनता केँ बीच सँ एकटा युवक उठलै आ हाथ मे
एकटा चप्पल लेने मन्च दिस दौडि गेलै। ओ चप्पल सोझे मन्च दिस फेंकलक जकरा विधायक
जीक अंगरक्षक सभ लोकि लेलकै। ओहि युवक केँ पुलिस पकडि लेलक आ धुनाई करय लागल।
विधायक जी बाजय लगलाह जे देखू विरोधी सबहक कुकृत्य। हमरा नै फँसा सकल त' आब अपन
पार्टीक लुच्चा सभ केँ पठा केँ हमरा बेइज्जत करबाक प्रयास करै जाइ ए। शैलेश बाबू
धेआन सँ ओहि युवक केँ देखलाह त' हुनकर मुँह सँ निकललैन्हि-
"अरे इ त' धनन्जय छै। अपन फूलधर बाबूक जेठका बेटा। इ
कोनो पार्टीक लोक नै अछि। इ त' डिग्री ल' केँ
घूमैत एकटा बेरोजगार युवक अछि।"
शैलेश बाबू टी.वी. बन्न क' केँ माथ पर हाथ धेने बैस गेलाह आ
सुनन्दा सँ कहलखिन्ह- "कनी एक गिलास पानि पियैबतहुँ। हम फेर लाइब्रेरी जा रहल
छी, लोकतन्त्रक माने ताकबा लेल।"
२
मुन्नाजी
एकटा विहनि कथा
तराजू
सर्वधर्म प्रार्थना
आयोजन कएल गेल छल। सभ उमेरक आ सभ जाति धर्मक लोक उपस्थित छल। प्रार्थनाक उद्देश्य
छलै देश भरिमे अमन-चैनक
कामनाक!
ई आरोप पूरा-पूरी गलत छैक, हिन्दू कहियो आतंक नै
मचबैए। ई काज तँ कियो मुसलमाने समाजक लोक केने हएत। सिक्ख सभ सेहो अमन चैन तकैए।
है, ईसाई सभपर ठाम-ठीम धर्मान्तरणक आरोप
लगैत रहल अछि।
ई गम्भीर आरोप तँ
हिन्दुओपर लगैत रहल अछि। यौ, घोंघाउज कऽ के की भेटत? हम अहाँ तँ सूनल- सुनाएल गप्प मात्रक
हवामे उधियाइत रहैत छी। सत्य तँ न्यायालयसँ निकलि कऽ सोझाँ आओत।
प्रार्थना लेल जुटल लोकक
ध्यान एल.सी.डी.मॉनीटरपर जा टिकलै।
शान्ति अचानक भंग होइत देखाएल। सभ एक दोसराकेँ पुछऽ लगलै- सजा केकरा भेलैक, हिन्दूकेँ की
मुसलमानकेँ?
आर्य समाजक मठाधीश
घोषणा केलन्हि- आइ
कुकृत्यक सजा कोनो जाति, धर्मक
लोककेँ नै भेटलैक अछि।
सभ सम्वेत स्वरमे
जिज्ञासा केलक- तँ
सजा ककरा भेटलै?
महन्थ- “ऐ बेर सजा मात्र
अपराधीकेँ भेटलैक”।
प्रार्थना सभागारमे
सन्नाटा पसरि गेल। किएक तँ ओ अपराधी हिन्दू छल।
१.मुन्नाजी- हम पुछैत छी-
श्री गोविन्द झा जीसँ मुन्नाजीक भेल मुखोतरि/ मैथिलोत्सव २०११ २. शम्मी वत्स/ रूपेश- हैदराबादमे विद्यापति पर्व समारोह आइ २५
दिसम्बर २०११ केँ भेल(हैदराबादसँ शम्मी वत्स/ रूपेशक रिपोर्ट)
३.शेफालिका वर्मा- -"आधुनिक मैथिली साहित्यक प्रभाव
क्षेत्रमे नारी तत्व" संगमे "मैथिली आ तमिल कवियित्री सम्मेलन" ४.रोशन झा क रिपोर्ट- "बुधियार छौड़ा आ
राक्षस" बाल नाटकक मंचन ५.रमेश रंजनजीक रिपोर्ट- "बुधियार छौड़ा आ राक्षस" ६.प्रवीण नारायण चौधरी- बिराटनगरमे विद्यापति पर्व समारोह
सम्पन्न 9-10 दिसम्बर 2011
१
११ दिसम्बर २०११ केँ
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान पं. गोविन्द झा जीकेँ पटनामे श्री मुन्नाजी देलन्हि। बहुआयामी
व्यक्तित्वक शिखर पुरुष श्री गोविन्द झा जीसँ मुन्नाजीक भेल मुखोतरिक अंशसँ अहाँ
सभक जनतब कराएल जा रहल अछि।
मुन्नाजी: विदेह सम्मान [विदेह समानान्तर
साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)] लेल बधाइ। मैथिली भाषा साहित्यक
वर्तमान परिदृश्य की अछि। एकरा मरबासँ बचेबामे अखनुक विदेह साहित्य आन्दोलन कतेक
कारगर सिद्ध भऽ रहल अछि।
पं. गोविन्द झा: स्थिति पहिने एकभगाह
सन छल। आब सभ तुरक आ सभ जातिक रचनात्मक प्रवेशे ई भाषा चिरायु वा ई कही जे
अमरत्वकेँ प्राप्त करबाक सामर्थ्यवान भेल देखाइए।
मुन्नाजी:मैथिली कथा साहित्य
भारतीय अन्यान्य कथा साहित्य मध्य कतऽ टिकल अछि। एकर सम्भावना केहेन देखाइए?
पं. गोविन्द झा: ई संतुष्टि दैबला बात
अछि जे मैथिलीमे अखन सभ प्रकारक कथा आबि रहल छै। ओना मैथिलीमे हमरा जनतबे नारा
साहित्यक प्रचलन रहल। मोन कहियो साम्यवादी तँ कहियो नारी केन्द्रित कथा एवं आलेख
बेशी देखना जाइए। मुदा एकोटा नारी कल्याणक लेल सशक्त नै अछि। अही सभ कारणे मैथिली
कथा भारतीय स्तरकेँ नै प्राप्त कऽ सकल। आगू ऐमे विकेन्द्रीकरणक सम्भावना देखा
पड़ैए।
मुन्नाजी: वर्तमान मैथिली नाटकक
की स्तर अछि। कोन नाटककार ऐ स्तरकेँ प्राप्त केने बुझाइत छथि?
पं. गोविन्द झा:मैथिलीकेँ आम जनतासँ
जोड़बाक साधन अछि प्रदर्शन। आ जकर मुख्य माध्यम अछि नाटक। वर्तमानमे नाटकक स्तर
कमतर अछि। आब लोक पैघ नाटक देखबासँ अगुताइ-ए।ऑडियेन्स सटिस्फाइड नै भऽ पबैए किएक तँ नाटकमे कोनो मोड़
नै अबै अछि। रचना सभ नारी सशक्तिकरणक उल्लेख करैए मुदा नारीक सही चित्रण नै दैए।
बसात नारी केन्द्रित पहिल मैथिली नाटक छल। जकरा देखियौ आइयो प्रासंगिक अछि।
थियेटरक नाटक तकनीकी दृष्टिए ऊपर गेल अछि। मुदा गाममे नाटक देखबा लेल आइयो लोकक
संख्या हजारक करीब भऽ जाइए। “अन्तिम प्रणाम” नाटकक प्रदर्शनमे गाममे ५००० लोक जुटल छल।
आब आवश्यकता छै उच्च
कोटिक कथा सभक नाट्यरूपान्तरणक, जइमे मैथिली बहुत पछुआएल अछि। जखन की आन सभ भाषामे ई काज
खूब भऽ रहल अछि। वर्तमानमे जे नाटककार अपन भाषाक श्रेष्ठता साबित कऽ रहल छथि ओ छथि, महेन्द्र मलंगिया आ
अरविन्द अक्कू।
मुन्नाजी: भाषिक रूपमे मैथिलीक
वर्तमान स्थिति की अछि? की
ऐमे ह्रास वा क्षीणता एलैए?
पं. गोविन्द झा: भाषाक स्तरपर बहुत
फर्क एलैए, आबक लोक पढ़ैए कम, लिखऽ चाहैए बेशी।
रचनाकारक शब्द सामर्थ्य घटि रहल छै। नवका धियापुता अंगरेजिया भऽ रहल छै। तखन तँ
मैथिलीक दुर्दशा स्वाभाविके छै।
मुन्नाजी: मैथिलीमे आब विहनि कथा
धुरझार लिखा रहल अछि। एकर वर्तमान अस्तित्व आ सम्भावना की देखाइछ?
पं. गोविन्द झा: विहनि कथा पूर्ण
रूपेँ कविताक समकक्ष अछि। आ वर्तमानमे ठोस कविता आंगुरपर गनबा जोकरक अछि। तखन
लघुकथो बुझनिहार कमे छथि। हँ नव लिखनिहार बढ़ल-ए। तेँ एकर भविष्य नीक भऽ सकैए।
मुन्नाजी: नवतुरिया रचनाकारक लेल
कोनो सनेस?
पं. गोविन्द झा:नव लेखक सभ पहिने
अध्ययन तखन अभ्यास, तखन
लेखनी करताह तँ अवश्य सफल हेताह।
२
मैथिलोत्सव २०११
२० दिसम्बर २०११ केँ भारतक राजधानी
दिल्लीमे प्रतिष्ठित संस्था ’मैलोरंग” द्वारा
मिथिलोत्सव-११ क सफल संचालन
श्रीराम सेन्टर, मण्डी हाउस
दिल्लीमे कएल गेल।
ऐ अवसरपर स्व. राजकमल चौधरीक प्रसिद्ध
कथा “ललका पाग”क नाट्य रूपान्तरण
प्रस्तुत कएल गेल, जइमे
नाटकक सभ तरहक तकनीकक संयोजन आ प्रदर्शन देखाएल।
मुदा आधुनिक प्रयोगक
नामपर अतिप्रयोगसँ सामान्य दर्शककेँ कतेको बेर अगुताइत देखल गेल। संगहि मंचकेँ
आवश्यकतासँ बेशी देर धरि छोड़ि देल जाइत छल जे संयोजनक कमीकेँ देखार करैत रहल।
दोसर सत्रमे प्रसिद्ध
रंगकर्मी श्री दयानाथ झाकेँ ज्योतिरीश्वर सम्मान, श्री मुकेश झाकेँ श्रीकान्त मण्डल
सम्मान आ श्रीमती सुधा झाकेँ प्रमिला सम्मान देल गेल। सत्य! सम्मानसँ रंगकर्मीकेँ ऐ क्षेत्रमे
आगाँ बढ़बामे बल भेटत।
तेसर सत्र गीत संगीतकेँ
समर्पित रहल। ऐ सत्रमे लिटिल चैम्प नेना सुश्री मैथिली ठाकुरक “जय जय भैरवि..” सभ दोसर क्रियाकलापपर
भारी रहल आ कर्णप्रिय रहल। गम्भीर अस्वस्थताक पछाति स्वस्थ भऽ पहिल बेर अंशुमाला
जीक प्रस्तुति “पिया
मोर बालक” लोककेँ मोहलक। मुदा
हुनकर अस्वस्थ अवस्था अखनो हुनकर चेहरापर नजरि आएल जे मोनकेँ कचोटलक।
२
शम्मी वत्स/ रूपेश
हैदराबादमे विद्यापति पर्व समारोह आइ २५ दिसम्बर २०११ केँ भेल(हैदराबादसँ
शम्मी वत्स/ रूपेशक रिपोर्ट)
मिथिला सांस्कृतिक परिषदक तत्वावधानमे एपीएसआरटीसी कला भवन आरटीसी एक्स रोड मे
आइ 25 -12 -2011, दिन रविकेँ साँझ 3 बजेसँ मैथिल
"कवि कोकिल विद्यापति" क स्मृतिमे पर्व समारोह आयोजित भेल। समारोहक
मुख्य अतिथि "स्वतंत्र वार्ता" हिंदी दैनिक समाचार
पत्र , हैदराबादक संपादक डाक्टर राधेश्याम शुक्ल रहथि। ऐ अवसर पर
मिथिलांचलक प्रसिद्ध कलाकारक दल सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत केलनि।
-हैदराबादमे सम्पन्न भेल विद्यापति पर्व २५ दिसम्बर २०११ केँ
-हैदराबाद के एसआरटीसी कला भवनमे भेल कार्यक्रम
-मुख्य अतिथि "स्वतंत्र वार्ता" हिंदी दैनिक समाचार पत्र , हैदराबादक
संपादक डाक्टर राधेश्याम शुक्ल
-विशिष्ट अतिथि आइ.पी.एस. अधिकारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के आइ.जी. अशोक नाथ
झा केलन्हि विद्यापति फोटोपर माल्यार्पण आ दीप प्रज्वलन
-गायिका सविता नायक आ रोहित रक्षक केलन्हि गायन
-सुश्री रूपल कर्ण क नृत्य
-बालिका कुमारी अनिन्द्याक शास्त्रीय गीत सभकेँ मोहि लेलक
३
शेफालिका वर्मा- -"आधुनिक मैथिली
साहित्यक प्रभाव क्षेत्रमे नारी तत्व" संगमे "मैथिली आ तमिल कवियित्री
सम्मेलन"
-"आधुनिक मैथिली साहित्यक प्रभाव क्षेत्रमे नारी तत्व"
संगमे "मैथिली आ तमिल कवियित्री सम्मेलन" भारतक साहित्य अकादेमीक
तत्वावधानमे १७-१८ दिसम्बर २०११ केँ पुडुचेरीमे सम्पन्न भेल।
-साहित्य अकादेमीक ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी श्री जे. पुन्नोदुर्रै स्वागत भाषण
देलनि।
-आरम्भिक भाषण श्री विद्यानाथ झा "विदित"(संयोजक मैथिली
परामर्शदात्री समिति, साहित्य अकादेमी)क आ श्री एरा मोहन
(साहित्य अकादेमीक जेनेरल काउन्सिलक सदस्य)क रहल।
-अध्यक्षीय भाषण श्रीमती शेफालिका वर्मा देलनि।
-उद्घाटन भाषण श्री मनोज दास (ओड़िया आ अंग्रेजी लेखक) देलनि, ओ
अरविन्द आश्रम, पुडुचेरीमे रहै छथि।
-मैथिली लेखिका श्रीमती रेवती मिश्र मुख्य भाषण देलनि।
-सिरपी बालसुब्रह्मण्यम (संयोजक तमिल परामर्शदात्री समिति, साहित्य
अकादेमी)सम्माननीय अतिथि रहथि।
-१८ दिसम्बर २०११केँ ऑरोविल, पुडुचेरीमे ४ बजे अपराह्णसँ
"मैथिली आ तमिल कवियित्री सम्मेलन" भेल।
-मैथिलीक मुख्य प्रतिभागी महिला लोकनि रहथि, डा.
कमला चौधरी, कुमकुम झा, वीणा
कर्ण, रश्मि तनु, आरती कुमारी शेफालिका वर्मा, रमा झा, आशा
मिश्र, स्वाति शाकम्भरी, नीलिमा मिश्र, रेवती
मिश्र, अरुणा चौधरी, सुशीला झा, वीणा
ठाकुर, उषा वत्स,ममता चौधरी, प्रमिला
झा , लालपरी देवी, चंदना दत्त आ नीलम कुमारी।
-साहित्य अकादेमी ,दिल्ली दिससँ ' आधुनिक
साहित्यक प्रभावक्षेत्र मे नारी तत्व ' पर एकटा मुख्यतः
महिला लोकनि क सेमिनार पांडिचेरी मे १७-१८ दिसम्बर केँ संपन्न भेल.
-एहि सेमिनारक विशेषता छल जे कम सँ कम आयु,एवं
नवीन लेखिका सभकेँ मंच पर आनबाक प्रयास कयल गेल छल...
-एहि मे तमिलक विद्वान सभ सेहो भरल रहथि..
-ई सेमिनार पांडिचेरीक सभसँ पैघ होटल अनंदा इनमे छल आ रहबाक व्यवस्था सेहो
ओहीमे ...
-आरम्भ १७ दिसम्बरकेँ करीब १० बजे दिनमे साहित्य अकादमिक ओ.एस.डी. पोंनुदुरै क
अभिभाषण सँ भेल
-एकर बाद मि. राजा तमिल मे सभक परिचय करौलनी अंग्रेजी अनुवाद क साथ
-श्री बैद्यनाथ झा विदित अंग्रेजी आ मैथिली मे सेमिनार केँ संबोधित केलनि संगे
एरा मोहन, मेम्बर ,जेनरल
कौंसिल ,साहित्य अकादेमी, पोंडिचेरी
सेहो सम्बोधित केलनि.
- एकर उपरांत डॉ. शेफालिका वर्मा अध्यक्षीय अभिभाषण पहिने
अंग्रेजी पुनः मैथिलीमे देलनि जे "आइ उत्तर केर गंगा जमुनाक साहित्य भाव
दक्षिण केर साहित्य सागर सँ मिलन पर्व मना रहल अछि.... ,
-मि. मनोज दास , साहित्य अकादेमी फेलो केर विद्वता पूर्ण
भाषण तमिल आ अंग्रेजी मे भेल. श्रीमती रेवती मिश्रा सेमीनारक विषय पर अपन बीज भाषण
आ विद्वतापूर्ण विशद आलेख पढ़लनि
-गेस्ट ऑफ़ ओनर मि. सिर्पी बलासुब्रह्मण्यम, कन्वेनर
, तमिल एडवाइजरी बोर्ड , साहित्य
अकादेमी अपन भाषण देलनि .
-धन्यवाद ज्ञापन क उपरांत पहिल सेशन भेल जाहि मे अध्यक्षता कमला चौधरी केलनि , मंजर
आलम ,अरुणा चौधरी, ,कुमकुम झा, सुशीला
झा क आलेख छल.
-दोसर सेशन क अध्यक्षता वीणा ठाकुर केलनि, ओइमे
धीरेन्द्र नाथ मिश्र, रविन्द्र कु. चौधरी , आशा
मिश्र, उषा वत्स केर आलेख छल
-तेसर सेशन मे अध्यक्षता प्रमिला झा केलनि। ऐ मे ताराकांत झा, ममता
चौधरी आदि क आलेख छल . .
-१८ दिसम्बर २०११ केँ चारि सेशन भेल, लालपरी देवीक
अध्यक्षतामे अमरनाथ झा , पंचानन मिश्र ,रमा झा , चंदना
दत्त क आलेख छल
-पाँचम सेशनक अध्यक्षता वीणा कर्ण, आलेख पाठ नीलम
कुमारी, रश्मि तनु, आरती
कुमारी आ सभसँ कम आयुक स्वाति शाकम्भरी केलनि।
-अंतिम सेशनक अध्यक्षता पन्ना झा केलनि, गेस्ट ऑफ ओनर
रहथि पी. राजा (साहित्य अकादेमीक जेनेरल काउन्सिलक सदस्य), भाषण
उषाकिरण खान, क बाद मात्री मंदिर अरुवेली मे तमिल
मैथिली कवि सम्मलेन भेल.
-सभ गोटे पहिने अंग्रेजी मे तखन मैथिली मे बजलीह .
-कतेक लेखिका खाली अंग्रेजी मे पाठ केलनि.
-महिला लेखिकाक बाहुल्य, उत्साह देखि लागल 0ldest
to latest क अन्वेषण छल.
-मात्री मंदिर मे कवि सम्मलेनक उपरान्त सभ गोटेकेँ एकटा उज्जर झोरामे एक-एक टा
चद्दर , एकटा सुंदर दीया , फूल
पत्ती छोट छोट कलात्मक चीज सभ देल गेल.
-तमिलक सुप्रसिद्ध कवियित्री मीनाक्षी सुन्दरम अपन मोहक मुस्कानसँ सभकेँ मोहि
लेलनि .....
- कोनो आलेख सतही नै छल, सभटा
विद्वता पूर्ण, पढ़बाक उत्साह वाणीमे झलकैत छल लेखिका गण
केर.
-नारी शक्ति सँ मिथिला ओत प्रोत अछि कोनो शक नै....
४.
रोशन झा क रिपोर्ट- "बुधियार छौड़ा आ राक्षस" बाल
नाटकक मंचन
- "बुधियार छौड़ा आ राक्षस" आइ २६ दिसम्बर २०११ केँ नेपालक
पूर्वी तराइक इटहारीमे मंचित भेल।
-रमेश रंजनक लेखन, अनिलचन्द्र झाक निर्देशन
-नाटकक कलाकार परमेश झा, रवीन्द्र झा, प्रियंका
झा, आ रीना रीमाल
-ई ऐ विधिये खेलाएल जा रहल छै जइमे भाषाक सीमा हटि जाइ छै।
-बच्चा सभमे भऽ रहल अछि बेस लोकप्रिय।
पूर्वपीठिका:
मिथिला नाट्यकला परिषद (मिनाप), जनकपुर एकटा विशेष नाटक
"बुधियार छौड़ा आ राछस" बौवाबुच्चीक लेल लऽ कऽ आबि रहल अछि। सम्वादसँ
बेशी क्रियाप्रधान ऐ नाटकक अन्तिम तैयारीक हेतु मिनाप एक सप्ताहक कार्यशाला समाप्त
केलक अछि। क्रियाप्रधान हेबाक कारण ई विश्वक कोनो मंचपर प्रस्तुत कएल जा सकैत अछि
कारण जे मैथिली नहियो बुझै छथि ओ ई नाटक बुझि सकै छथि। नाटक एक घण्टाक अछि। एकर
आलेख अछि रमेश रंजनक आ निर्देशन अछि अनिलचन्द्र झाक। ऐ मे अभिनय कऽ रहल छथि परमेश, रवीन्द्र, प्रियंका
आ रीना।
मिथिला नाट्यकला परिषद् , मिथिलांचलक मात्र नै नेपालक अग्रणी
नाट्य संस्था अछि | अपन ३२ बर्षक यात्रा पूरा क' चुकल
मिनाप ,एम्बैसी ऑफ़ डेनमार्कक सहयोग मे रंगमंचक
प्रसार लेल नेपालक १७ ठाम अहि नाटकक प्रदर्शन करत | नाटकक
अंतिम रूप देबयमे डेनमार्कक नाटक निर्देशन एक्सपर्ट जच्क्कुए मेदिस्सें आ सेट
डिजाइनर क्रिस्टन क्रिम्स्सें २ बेर एक-एक हप्ताक प्रशिक्षण देलैन| नाटकक
प्रेमिएर २२ तारीखकें काठमांडूमे हैत|
नाटकक कथा : दंत्य कथापर आधारित अहि नाटकमे एकटा किशोर गैर जिम्मेबार
व्यवहारसं कोना परिवर्तन करैत अछि व एकटा राक्षसकें मारैत अछि आ ओकर भगिनी संग
विवाह करैत अछि से देखाओल गेल अछि| नाटक सन्देशमूलकसं बेसी
मनोरंजनात्मक अछि| अहि नाटकमे एकटा राक्षस एकटा बुढ़िया कए
जीविकोपार्जनक एकमात्र स्रोत ओकर गायक अपहरण क' क' ल' जैत अछि| माय अपन
बेटा कए गायकें बचाबय नहि सकलापर धुत्कारैत अछि| तखन
बेटा राक्षसकें माइर क' गाय फिरता अनबाक प्रण करैत जंगलमे जैत अछि| जंगलमे
राक्षसक भगिनी भेटैत छै| दुनुमे प्रेम भ' जैत अछि| अंततः
छौरा राक्षसकें अपन बुधिसं माइर दैत अछि| आ ओकर भगिनी आ
अपन गाय ल' क' चलि अबैत अछि |सरल
कथात्मकता आ सरल प्रबाह अहि नाटक कए विशेषता अछि|मिनाप
अहिसं पहिले एहन प्रयोगक नाटक नहि केने छल|
५.
रमेश रंजनजीक रिपोर्ट- "बुधियार छौड़ा आ
राक्षस"
-मण्डला थिएटर द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय युवा नाट्य महोत्सवमे मिथिला
नाट्यकला परिषद जनकपुर , "बुधियार छौड़ा आ राक्षस" रसियन कल्चर
सेन्टर, कमल पोखरी , काठमाण्डूमे
२५ नवम्बर २०११ साँझमे भेल।
-रमेश रंजनक लेखन, अनिलचन्द्र झाक निर्देशन
-नाटकक कलाकार परमेश झा, रवीन्द्र झा, प्रियंका
झा, आ रीना रीमाल
-"बुधियार छौरा आ राक्षस"क ट्राइल शो २५ नवम्बर २०११ केँ
काठमाण्डूक स्कूली विद्यार्थी सभकेँ देखाओल गेलै।
(प्रवीण नारायण
चौधरीजीक रिपोर्ट)
-"बुधियार छौड़ा आ
राक्षस"क १३म प्रस्तुति
-मिनाप द्वारा सड़क नाटक
मंचन आइ २७ दिसम्बर २०११ केँ नेपालक बिराटनगरमे भेल
-१४म प्रस्तुति झापा
जिलाक भद्रपुरमे
-३१ दिसम्बर २०११केँ
एकर अन्तिम बेर प्रस्तुति जनकपुरमे हएत (फैमिली थियेटर प्रोजेक्टक अन्तर्गत)
-विराटनगरमे नाटक
क्षेत्रमे जुड़ैत अपन सजीव योगदान हेतु रामभजन कामत, डोमी कामत, राजकुमार राय एवं नवीन कर्णकेँ
मिनाप तरफसँ सामरिक सहयोग हेतु मैथिली सेवा समिति महासचिव प्रवीण नारायण चौधरी
आह्वान कयलन्हि
- मैथिली सेवा समिति
संस्थाक अध्यक्ष डा. एस. एन. झा, उपाध्यक्ष ई. फूल कुमार देव, संस्थापक अध्यक्ष डा. सुरेन्द्र
ना. मिश्र ऐ आह्वानक समर्थनमे अपन प्रतिबद्धता व्यक्त केलन्हि।
-सहभागी दर्शक लोकनि
विराटनगरमे ऐ तरहक नाटक संस्था अवश्य हुअए तइ बातक स्वागत केलन्हि।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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