१.निशांत झा २.किशन कारीगर
१
निशांत झा, माँ
श्रीमती मंदाकिनी देवी
(प्रधानाध्यापिका म. वि.) (साहित्याचार्य), पिता श्री प्रद्युम्न नाथ झा
(समाजसेवी), घर सिंगियौन, प्रखंड
राजनगर, जिला मधुबनी,
प्रादुर्भाव
माँ के
गर्भ में साँस लैत
हम खुश छी बहुते
हमर आस्तित्व आएब गेल अछि
बस प्रादुर्भाव भेनाय बाकी अछि .
हम माँ के कोखे स
इ दुनिया के देख पबैत छी.
लेकिन माँ - बाबूजी के गुप
नय बुईझ पबैत छी .
माँ हमर सहमल सन रहइत अछि और बाबुजी खामोश,
बस एक गो प्रश्न उठइत अछि दुनु के बीच
कि परीक्षण के परिणाम की होयत ?
आय बाबुजी काग़जत के एकटा पुर्रजी अनलैथ
और माँ के आँइख में चिंता के बदरी अछि .
मैं देख रही हूँ कि माँ बेसाख्ता रो
रही है
सब बेर कुनू बात पर मना क रहल छैथ .
लेकिन बाबुजी छैथ कि अपने बात पर अड़ल चैथ
माँ के कतौ जैके लेल ठाढ़ छैथ
अहू बेर परीक्षण में कन्या - भ्रूण आइब गेल छल
ते बाबुजी हमर मृत्यु पर हस्ताक्षर क
देलखिन .
हम गर्भ में बैसल बिनती क रहल छी कि -
बाबुजी हम अहिनके बीज छी
की हमरा इ दुनिया में नय आबे देब?
अपने बीज के नष्ट क क हमरा मैर जे देब ?
माँ ! हम त तोहरे प्रतिरूप छी ,
तोहरे संरचना छी , त्तोहरे सृष्टि छी
माँ ! हमरा जन्म दे , हे माँ ! हमरा जन्म दे ,
हम दुनिया में आबी चाहइत छी
कन्या छी ताहि दुआरे अपन धर्म निबाह चाहइत छी .
यदि इ धरती पर कन्या नय रहि जायत
त इ सब्त सृष्टि तहस - नहस भ
जायत .
हे स्वार्थी मानव ! कानी सोचु ,
तु हमर शक्ति के जान
हम ही इ सृष्टि के रचयिता छी
इ सत्य के त पहचान.
२
किशन कारीगर
पुरस्कार लऽ के नाचू
केकरो स चिन्हा परिचे अछि कारीगर
नहि यौ सरकार तऽ अहिं कहू की हम करू
त आउ हमरे स चिन्हा परिचे कए लियअ
आ पुरस्कार लऽ के नाचू।
अपने कुटुम बैसल छथि
अकेडमी आ चयन बोर्ड मे
लिख्खा परही करबाक कोन काज
तिकड़मबाजी कए लगबै छी पुरस्कारक भाँज।
हिनके कृपा स भेटल पुरस्कार
खुशी स लागल बोखार
कविता कहानी तऽ तेरहे बाईस मुदा
पुरस्कार लेल लगेलहुँ खूम जोगार।
अहाँ जे लिखलहुँ कारीगर
ओ लागल बड्ड नूनगर
मुदा बिनमतलबो हम जे लिखलियै
ओ लागल बड्ड चहटगर।
बिनमतलब के कथा साहित्य पर
अकेडमी सँ एक दिन आयल हकार
कुटुम बैसले रहथि ओहि ठाम
टटके भेटल पुरस्कार।
आन कतबो नीक किएक ने लिखलक
मुदा ओकरा ने कहियो आएत हकार
नहि छै ओकरा कोनो चिन्हा परिचे
पिछलगुआ टा के जल्दी भेटत पुरस्कार।
पुरस्कारक बदरबाँट भऽ रहल अछि
जाति वर्गक नाम पर लेखक के बाँटू
जूनि पछुआउ पिछलगुआ सभ आउ आगू
अहाँ पुरस्कार लऽ के खूम नाचू।
साहित्यक मठाधीश सभ
शुरू केलैन पुरस्कार
यथार्थवादी चितंक आ लिखनिहार
हुनका लेल भऽ गेलैथ बेकार।
एक्को मिनट देरी नहि अहाँ करू
हुनके गुणगान कए कथा अहाँ बाचू
नहि तऽ जिनगी भरि पाछुए रहि जाएब
पुरस्कारक जोगार मे जीजान स लागू।
अहि दुआरे पछुआले रहि गेल कारीगर
कहियो ने केलक केकरो आगू-पाछू
देखैत छियै आब हम दोसर पुरस्कार दुआरे
जोगार लगा करैत छी हुनकर आगू-पाछू।
बेस त बड्ड बढ़िया हम शुभकामना दैत छी
दोसर पुरस्कार अहाँ के जल्दीए भेट जाए
जल्दी जोगार मे अहाँ लागू
अहाँ पुरस्कार लऽ के खूम नाचू।
१.डॉ॰ शशिधर कुमर २.नवीन कुमार "आशा"
१.
बाबा विद्यापतिक कथन
रौ मैथिल ! मैथिली तोँ बाज ।
केहेन चिन्ता ? कथी केर लाज ?
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक पाग ।।
मीठ गीत, बहुते तोँ सुनलह,
आइ सुनह मोर बोल कटाह ।
रोष ने करिहऽ हमरा पर, जँ
हमर बोल, लागह अधलाह ।
हमरो समय, बहुत पोंगा सभ,
बहुतहि थू – थू कएने छल ।
मिथिलाभाषा लिखय छलहुँ तेँ,
हमरा,
सभ धकिअओने छल ।
मिथिलाभाषा जेँ लिखलहुँ, तेँ तोँ सभ आइ करय छह याद ।
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक
पाग ।।
हे मैथिल ! किछु ज्ञान सुनह,
हमर बात, किछु कान धरह ।
अनका सञो हमरा नञि द्वेष,
पर निज भाषा किए कलेश ।
पढ़ह –
लिखह, जे मोन होअह,
पर निज भाषा जुनि बिसरह ।
अनका लग भले किछु डाकह,
अपना मे मैथिली बाजह ।
धिया –
पुता केँ हीन ग्रस्त भऽ, वा मद मे जुनि
देखबह लाथ ।
हमहूँ संस्कृतक
पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक पाग ।।
बाजह सदिखन, सुनह मैथिली,
गुनह मैथिली, रटह मैथिली ।
रचह मैथिली, लीखह मैथिली,
कीनि कऽ पोथी पढ़ह मैथिली ।
सृजन मैथिली, च्यवन मैथिली,
नाचह मैथिली, गाबह मैथिली ।
बाट मैथिली, घाट मैथिली,
घर-
बाहर, सभ ठाम मैथिली ।
तजि निज भाषा, कुकुरक गति हो, नञि घर केर,
नञि धोबी घाट ।
हमहूँ संस्कृतक पण्डित, पर मैथिली हम्मर माथक पाग ।।
नवीन कुमार "आशा"
हिंगलू भाइ यौ टिंगलू भाइ
हिंगलू भाइ यौ टिंगलू भाइ
जुनि अहाँ तोड़ू तुराइ
जँ अहाँ तोड़ब तुराइ
रातिमे खायब खूब पिटाइ
जुनि रहू अहाँ खाटपर
नै तँ काल्हि रहब टाटपर
आब सुनू यौ भाइ सुनू यौ भाइ
जे अछि टाटक बत्ती
नै बनबै जाउ देहक पहचान
आइ दुपहरिया रहि रहरिया
ओतए आबै अहाँक अबाज
पहुँचलौं जखन हम अहाँक डेरा
तखन आएल माथमे फेरा
फेर बुझल हम घरक रीत
अहाँ करी सभटा काज
भौजी खाली करथि साज
तँए कही यौ टिगलू भैया
जल्दी-जल्दी खेनाइ पकाउ
जँ अहाँ पकायब नीक खेनाइ
रातिमे भौजी दैथि रस मलाइ
आ जँ अगर तानब तुराइ
फेर खायब खूब पिटाइ
नवीन ठाकुर
१
गज़ल
(प्रेम रस )
1.
अछि
पियासल मोन तँ पिबैत चलि जाउ........२
गुण प्रीतम क बाट गबैत चलि जाउ !!२
मोनक
बेगरता अछि , प्यासल अछि कंठ
घुट- घुट नै जिबू एना बनू नै चंठ
........२
अछि ललसा जे मोनक कहैत चलि जाउ !!२
गुण प्रीतम क बाटे गबैत चलि जाउ !!३
मानलौं
जे पीने हएब बहुतो जहाँ क
प्यासल अछि मोन जे तैयो अहाँ क.......२
अछि प्रेमक ई धारा बहैत चलि जाउ !!२
गुण प्रीतम क बाटे गबैत चलि जाउ !!३
ससरल
ने कंठ सँ एहन कोन पिबै छी
पिबते उतरि गेल , तेहन की पिबै छी........२
लिअ चस्का ई प्रेम क डूबैत चलि जाउ !!२
गुण
प्रीतम क बाटे गबैत चलि जाउ !!
अछि पियासल मोन तँ पिबैत चलि जाउ........२
गुण प्रीतम क बाटे गबैत चलि जाउ !! ५
२
.
मैथिली
गीत --
सुनिते बोली अहाँ क इजोर भऽ गेलै...............(मुखरा )
एला पाहून हमर सौंसे शोर भऽ गेलै ..एला पाहून हमर सौंसे ......!२
कुचरैत छल कौवा आइ -बड जोर सँ..................(अंतरा )
एता जे कियो ई आस छल भोर सं......! २
देखते मुखड़ा ....
हो देखते मुखरा अंहक मोन बेभोर भऽ गेलै ....! २
एला पाहून हमर सौंसे.......................
अंगना दुआरि नीप, रखलहुँ सकाले
तरुवा - तरकारी अछि सभटा तरैले ! २
कने दही ला ...हे हे ...
कने दही ला किए अनघोल भऽ गेलै ......!२ ...एला पाहून हमर .........
कनिया - पुत्रा सभ हुल्की मारैए
टाटक दोग दऽ कऽ चुटकी मारैए ! २
किए जाईते .....
हो किए जाईते हमर मोन केँ चितचोर लऽ गेलै
एला पाहून हमर सौंसे शोर भऽ गेलै ......
सुनिते बोली अहाँ क इजोर भऽ गेलै...............(मुखरा )
एला पाहून हमर सौंसे शोर भऽ गेलै ..एला पाहून हमर सौंसे ......!
एला पाहून हमर सौंसे शोर भऽ गेलै ......! ३
३
मैथिली गीत -
केलहुं कतबो जतन तैयो धेलक नै दम ,
कनियो निर्लज्जा के नै एलई शर्म —-, !!
आब त अपनों मोन घिच - पिच करैया ..
सबटा प्रेमे के भाषा बुझाईया …………….!!
कैहता किछ कियो लैगता बड आइन
ओकरा घर फेर हम पिबतौं नै पैन
आब त गढ़ियो स आत्मा जुराईया
सबटा प्रेमे के भाषा बुझाईया……………..!!
नै जानी दुनिया नै जानी संसार
हमरा त धेलक जे अलगे बोखार
बुझी जहरों के अमृत पिबैया
सबटा प्रेमे के भाषा बुझाईया……………..!!
बुझितुं जे छीन लेत कियो चोरी में
धरित्हूँ जियरा बंद क तिजोरी में
जेना हाथो -पैर आब नै सुझैया
सबटा प्रेमे के भाषा बुझाईया……………..!!
पकरै छि मोन के जुन्ना लगाम स
ससरैया तैयो जे जियरा दालान स
देखि आत्मा हमर खहरैया
सबटा प्रेमे के भाषा बुझाईया …………….!!
केलहुं कतबो जतन तैयो धेलक नै दम ,
कनियो निर्लज्जा के नै एलई शर्म —-, !!
आब त अपनों मोन घिच - पिच करैया ..
सबटा प्रेमे के भाषा बुझाईया …………….!! ३
४
अनुकम्पा -
ईश्वर दैया सब्कुछी हमरा ,त हमरो किछु देनाय सिख्बाके !!
अपन हित त पशुओ जिबैया,अनकर हित जिनाय सिख्बाके !!
हवा ,प्रकाश, धरती, दैया,भैर दैया मेघ समूचा खेत में पानी !
जदी बदला में हम किछु नै देलिए ,त ई भेल बरका बैमानी !
एही स जे हम दुःख भोगैछी , दुःख के दूर भगेनाय सिख्बाके !
ईश्वर दैया सब्कुछी हमरा ,त
हाम्रो किछु देनाय सिख्बाके ! !
जरैत धरा
पर चलैत पथिक के, गाछो दैया सब्दीन छाया !
अपन फल
अपने नै खा क , सब जिव के जुरबैया काया !
प्रभु के पहिने भोग अर्पण क, पश्चात अपने भोजन करबाके !
ईश्वर दैया सब्कुछी हमरा , त हमरो किछु देनाय सिख्बाके !!
अनपढ़ के बिन दान पढाबू ,भूखल प्यासल के भोजन कराबू !
बुढ- पुरान, समाज के सेवा , मात,पिता, गुरु आज्ञा स्विकारू !
जे किछु भेटल अछि ईश्वर स , हमरा ओ बाँटनाय सिख्बाके !
ईश्वर दैया सब्कुछी हमरा ,त
हाम्रो किछु देनाय सिख्बाके ! !
मानव तन अति दुर्लभ अछि भेटब ,एकरा मैल रहित बनाबू !
गमक पसारू फुल सन संउसे ,ज्वलित दीप स अन्हार मेटाबू !
धन्य भाग एही मानव तन के ,आब नै मौका फेर चुकबाके !
ईश्वर दैया सब्कुछी हमरा ,त
हाम्रो किछु देनाय सिख्बाके ! !
अपन हित त पशुओ जिबैया,अनकर हित जिनाय सिख्बाके ! !
५ अस्तित्व -
हम नै हमर नै इ तन अछि ककरो अनकर देल !
जे कुछी अपना संग अछि सबटा अछि अनकर देल
देब बला देलक ओहो, देलक अपना शान स
हमर अछि ई लेब बला कही उठल अभिमान स
मोनक बात सुन वला मोन ककरो अनकर देल
हम नै हमर नै इ तन अछि ककरो अनकर देल !
जे संग अछि एखन तक ,ओ सैदख्न रैह सकैया नै
कखन बिछुइर जायत लग स ई कियो जनैया नै
जिनगी के उपजल मधुबन अछि ककरो अनकर देल
हम नै हमर नै इ तन अछि ककरो अनकर देल !
जग के सेवा खोज अपन प्रीत ओकरे स करू
जिनगी के गूढ़ अछि, बिन बुझने कस्ट नै करू
साधना के राह में साधन अछि अनकर देल
हम नै हमर नै इ तन अछि ककरो अनकर देल !
६
वियोग -
केलहुं कतेको प्रयत्न,किया सुनैया नै
राइत बीतल मुदा निन किया अबैया नै
कनैया रैत – रैत भैर मोन हमर
धैर आइंख स नोर बहैया नै !
सोचै छि सब्दीन आई सुतब चैन स
ओईढ चदैर आई एरी तक तैंन क
पैर पसारे छि जखने पूरा
फाटल चदैर पैर तक पुरैया नै !
देख अचंभित छि हम अपने आप के
दोख अनकर कहू की अपन कपार के
टूटल भरोसा जे छल आन पर
आब त अपनों पर भरोसा होइया नै !
मन्ल्हूँ छल हमरो ख़ुशी ओकरे ख़ुशी में
मुदा हमरो त हंसी छल ओकरे हंसी में
प्रेम केलहुं दिल के मज़बूरी पर
मुदा प्रेम कहियो मजबूर भेलैया नै !
७ .जाढ़ ( एगो अनुभूति )
आयल सिहरैत सिस्कैत सुग्बुगैत कुन कोण स !
नै जानी आयल कहिया अन्हरिया आ इजोर स !
केलक गुदगुदी एना याद परल पिछला शाल !
कोण भोज खेने रही याह ठंडी में ओढ़ने दुशाल
!
पितमर काका के भोज पोरका भेल रहा अनमोल !
उझैल देलकैन पैन कियो पोनतर मैचगेल अनघोल !
ठिठुरैत छल पैर हाथ , मिल करैत छल सब घुर !
घुर तर बैस क , सब गनैत छल गामक बुढ
कतेक छोऊ बुढ गाममे जग्तोऊ कतेक भोज !
फलना के बरखी के आब गणले छऊ दिन सोझ !
भोरका पहर में कहियो ओछेन नै छोरल जाएत छल !
मारने रहित्हूँ गबदी चाहे कतबो बाबु डिरियात
छल !
स्कुल जेबाक लेल सब्दीन मैरतहूँ बहाना !
बाबु के डरे माँ लग पसारैत छलहूँ घाना !
जाढ़क महिना में भरल सबहक घर बखारी !
भोरे क खाऊ सब्दीन भात-अलुकोबी तरकारी !
ओना त सब दिन हमरा जार बढ होयत छल !
मुदा तिला –सकरैत दिन चुरलाई पर भर छल !
ससरैत-भोरहरबा में मुस्की मारैत निकेल गेल !
फगुवा के अबिते ने जानी कत फेर ससैर गेल !
जाहिठाम स आयल, ओहिठाम फेर चैल गेल !
अबैतछि अगला साल कैह याद अपन छोइर गेल !
विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१.ज्योति सुनीत चौधरी २.
राजनाथ मिश्र (चित्रमय
मिथिला) ३. उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/
मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक
जिनगी)
१.
ज्योति सुनीत चौधरी
जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी। ज्योति
मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट
ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल
अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
ज्योति सम्प्रति लन्दनमे रहै छथि।
२
राजनाथ मिश्र
चित्रमय मिथिला
स्लाइड शो
चित्रमय मिथिला (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )
३.
उमेश मण्डल
मिथिलाक वनस्पति
स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु
स्लाइड शो
मिथिलाक जिनगी
स्लाइड शो
मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव जन्तु/ मिथिलाक जिनगी (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/
)
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com
पर पठाउ।
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ
मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ मैथिली
अनुवाद धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.“रेहनपर रग्घू”- श्री काशीनाथ सिंह (हिन्दीसँ मैथिली अनुवाद श्री विनीत उत्पल)
५.असगर वजाहत- हम
हिन्दू छी हिन्दी कथाक मैथिली रूपान्तरण विनीत उत्पल द्वारा-
४.
“रेहनपर रग्घू”- श्री काशीनाथ सिंह (हिन्दीसँ
मैथिली अनुवाद श्री विनीत उत्पल)
श्री काशीनाथ सिंह: जन्म:०१ जनवरी १९३७, कथा संग्रह: कहनी उपखान , उपन्यास- अपना मोर्चा , काशी का अस्सी, रेहन पर रग्घू । संस्मरण: घर का जोगी जोगड़ा , याद हो कि न याद हो ,
नाटक: घोआस
विनीत उत्पल:विनीत उत्पल
(जन्म: 7 अप्रैल, 1978, ननिहाल
पूर्णिया जिलाक सुखसेना गाममे)। पैत्रिक घर: आनंदपुरा, मधेपुरा।
प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर जिला अंतर्गत रणग्राम आ तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर
विश्वविद्यालय, भागलपुर सँ गणित विषय मे बी.एस.सी.
(आनर्स), मारवाड़ी कॉलेज, भागलपुर। जामिया मिल्लिया
इस्लामिया, नई दिल्ली क हिंदी विभाग सँ जनसंचार आ रचनात्मक
लेखन मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली
सँ अंग्रेजी पत्रकारिता मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय,
हिसार सँ जनसंचार मे मास्टर डिग्री। जामिया मिल्लिया इस्लामिया,
नई दिल्ली क नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कानफ्लीक्ट रिजोल्यूलशन
क पहिल बैचक छात्र आ सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली सँ फ्रेंच भाषाक शिक्षा। छात्र जीवनमे रोट्रेक्ट क्लब,
भागलपुर (रोटरी इंटरनेशनलक युवा शाखा) सँ जुड़ल, कएकटा संबद्ध पत्र-पत्रिकाक संपादन। जामिया मिल्लिया इस्लामिया,
नई दिल्लीक हिन्दी विभागमे अध्ययनक दौरान 'हमारी पहचान" नामक पाक्षिक समाचार पत्रक संपादक मंडलक सदस्य।
दिल्लीसँ प्रकाशित कएकटा राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचार पत्रमे ग्रामीण विकासक खबरिक
विश्लेषण, हिन्दीक प्रचार-प्रसारमे केंद्रीय वित्त
मंत्रालयकेँ योगदानक अलावा गुजरात दंगामे अंग्रेजी आ गुजराती मीडियाक भूमिकापर
लघुशोध। हिन्दी, मैथिली, अंग्रेजी
भाषामे विपुल लेखन आ सुनीता नारायण, शशि थरूर, महेश रंगराजन आदिक लेख सभक अंग्रेजीसँ हिन्दीमे अनुवाद। वरिष्ठ पत्रकार
अरविंद मोहन द्वारा संपादित 'लोकतंत्र का नया लोक"
मे उपलब्ध द्वैपायन भट्टाचार्य, जी.कोटेश्वर प्रसाद आ
नलिनी रंजन मोहंतीक अंग्रेजी लेख सभक अनुवाद आ पुनर्लेखन। अनियमितकालीन कला पत्रिका
'कैनवास" मे समन्वय संपादक।मैथिली कविता संग्रह 'हम पुछैत छी" प्रकाशित।
साहित्य अकादमी सँ पुरस्कृत
हिन्दीक वरिष्ठ कथाकार उदयप्रकाशक दीर्घ-कथा/ उपन्यास 'मोहनदास"
क मैथिली अनुवाद।पत्रकार, लेखक, कवि
आ अनुवादक विनीत उत्पल, दैनिक भास्कर, दिल्ली प्रेस, हिन्दुस्तान, देशबंधुमे पत्रकारिताक बाद आइ-काल्हि राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्लीमे वरिष्ठ उपसंपादकक पदपर कार्यरत छथि।
रेहनपर रग्घू
(पछिला अंकसँ आगाँ)
एहेन मुसीबतमे रघुनाथकेँ किओ आन नै हुनकर अप्पन बेटे धऽ
देने छल।
बेटोमे संजय! संजय टा!
आ ई नम्हर खिस्सा अछि- राँचीसँ कैलिफोर्निया धरि पसरल।
संजय प्रेम केने छल सोनलसँ! ई प्रेम कोनो चौौबटियापर घुमैत लफुआ
छौड़ाक अनगढ़ प्रेम नै छलै, ऐमे गुणा-भाग सेहो रहै आ जोड़-घटा सेहो! जतेक गहींर छल ततबे व्यापक।
संजयक सोनल प्रोफेसर सक्सेनाक बेटी छल।
सदिखन प्रथम श्रेणी, व्याख्याताक योग्यता परीक्षा पास आ दर्शनशास्त्रसँ पी.एच.डी.। नौकरी तँ
पक्का छल, बनारसक विश्वविद्यालयमे, जतय ओकर माय कुलपति छल, मुदा ओइमे अखन देरी
छलै, तखनि धरि बियाहक बाट तकबाक छल!
बियाहमे बाधा भऽ रहल छल, ओकर ठोढ़सँ बाहर आएल दाँत आ सटल नाक जकर क्षतिपूर्ति ओ
अप्पन सर्टिफिकेटसँ करैत छल। छूटल-बढ़ल कसरि पूरा कऽ रहल
छल सक्सेनाक पसारल ई फूस कि हुनका एकटा एहेन कलामी सॉफ्टवेअर अभियन्ताक आवश्यकता
छन्हि जे अमेरिकाक एकटा बहुराष्ट्रीय कम्पनीक तीन बर्खक कान्ट्रेक्टपर
कैलीफोर्निया जा सकए। ऐ आवश्यकताक अनुभव सम्पूर्ण इन्स्टीट्यूट बुझैत छल।
संजय अन्तिम परीक्षा दऽ देने छल, रिजल्टक घोषणा बाकी छल!
एम्हर कतेक बेर माँ-बापक संदेश आएल छल जे आबू, लड़कीकेँ
देखि लियौ। लड़कीकेँ की देखब, ओ तँ देखले छल! रघुनाथ जइ कॉलेजमे पढ़बैत छल, पूर्व विधायकक
बेटी तकर मैनेजर छल। गोर, नमछुरुक, सुन्नर आ आकर्षक। एम.ए.। नीक गृहणी। मैनेजर पुरान जमानाक जमीन्दार, अथाह
सम्पत्तिक मालिक। रघुनाथक कोनो हैसियत नै छलै ओकर आगू। नहिये नीक सन घर दुआर,
नहिये जमीन-जत्था। आठ बिगहा खेत आ हरक
जोत। नेनपन आ युवावस्था बड्ड तंगीमे बितलै। बच्चा सभकेँ पढ़ेलक तँ खेतकेँ बन्हकी
लगा कऽ आ कॉलेजसँ ऋण लऽ कऽ। स्पष्ट छल, मैनेजर “सॉफ्टवेअर अभियन्ता” केँ देखने छल, अप्पन कॉलेजक मास्टर रघुनाथकेँ नै।
ई सम्बन्ध रघुनाथक लेल सपनासँ आगूक चीज छल । फाएदे-फाएदा छल ऐसँ! जिलामे पहिचान आ प्रतिष्ठा जे भेटतिऐ, से अलग।
ओ कीसँ की भेल जा रहल छल।
तँ गाम आबैसँ पहिने सक्सेना सर सँ बिदा लै लेल गेल छल
संजय।
एकरा अहिनो कहि सकैत छी जे ओकरा सक्सेना सर डिनरपर
बजेने छल।
गर्मीक साँझ। अप्पन लॉनमे सक्सेना बेंतक कुर्सीपर
चुपचाप बैसल छल। माली गमलामे पाइन दऽ रहल छल। बंगलाक भीतरक बत्ती जड़ि रहल छल। कोनो
कोठलीसँ संगीतक धुन आबि रहल छल। अवकाश प्राप्तिक करीब, हृदयक मरीज प्रो. सक्सेना संजयक एबासँ अनजान चुपचाप बैसल छला आ आगू देखि रहल छला। बड़ी
कालक बाद ओ पुछलक, “कोन इन्स्ट्रूमेन्ट अछि”।
संजय बिना बुझने माथ हिलेलक।
“आ राग? कोन राग अछि?”
संजय निरुत्तर,
फेर माथ हिलेलक।
ओ ससरि गेल आ ऊँच अबाजमे बजेलक- “सोनू”।
जीन्सक पेंट आ टी-शर्टमे कूदैत सोनू आएल- “हँ पापा”।
संजय ठाढ़ भऽ गेल। सक्सेना मुस्की देलक, पहिने संजयकेँ देखलक, फेर सोनलकेँ। सोनल सेहो मुस्की देलक। संजय सोनलसँ भेँट तँ कते बेर केने
छल मुदा देखने पहिलुके बेर छल। ओकरा लगलै जे कोनो छौड़ीकेँ टुकड़ीमे नै “सम्पूर्णता”मे देखबाक चाही। कतेक फर्क पड़ि
जाइत छै। संगे संग छौड़ी आ कनियाँकेँ एक तरहेँ नै देखबाक चाही। रूप-रंग, ढीब-ढाब,
मान-मनौअलि छौड़ीमे देखल जाइत अछि,
कनियाँमे नै! ई सभटा पुरान धारणा अछि,
हमर पापा-मम्मीक जमानाक, हमर नै।
सक्सेना गुम्मी तोड़लक- “ई अछि सोनम, जइमे हमर प्राण
बसैत अछि। सितार, सरोद, संतूर
माने सोनल। सोनल माने संगीत। चीपनेस एकरा पसिन्न नै। फिल्मी गीतकेँ ई गीत नै मानैत
अछि। किएक तँ ई अपने कथक नृत्यांगना रहल अछि। तँ की खुआ रहल छी हमरा सभकेँ आइ?”
“ओ तँ तखने पता लागत जखन खाएब।” सोनल
लजा कऽ भागि गेल।
“बैसू संजय।” ई कहैत सक्सेना
सेहो मूड़ी झुका कऽ बैसि गेल। किछु सोचैत। टूटल स्वरमे बाजल- “कोना रहब एकर बिना, रहब कोना से नै बुझि पड़ैत
अछि। ई चौदहे बर्खक छल जखन एकर माय गुजरि गेलै।”
तकर बाद ओकर आँखिसँ नोर खसऽ लगलै- “तीन चारि बरखसँ लगातार आबैत रहल
अछि लड़का। एकसँ एक।
(जारी….)
५.
असगर वजाहत- हम हिन्दू छी
हिन्दी कथाक मैथिली रूपान्तरण विनीत उत्पल
द्वारा
हम हिन्दू छी
एहेन कन्नारोहट जे
मुर्दो कब्रमे ठाढ़ भऽ जाए। लागल जे अबाज सोझे कान लगसँ आएल अछि। ओइ स्थितिमे.. हम कूदि
कऽ बिछौनपर बैसि गेलौं, अकासमे अखनो तरेगन छल.. किंशाइत रातिक तीन बाजल हएत। अब्बोजान उठि कऽ बैसि
गेला। कन्नारोहट फेरसँ सुनाइ पड़ल। सैफ अपन अखड़ा खाटपर पड़ल चिकड़ि रहल छल। अंगनामे
एक दिससँ सभक खाट लागल छलै।
'लाहौलविलाकुव्वत.
. .' अब्बाजान लाहौल पढ़लन्हि 'खुदा नै
जानि ई किए सुतलेमे चित्कार करऽ लगैए।' अम्मा बजली।
“अम्मा एकरा राति भरि छौड़ा सभ डरबैत रहै छै. . .” हम कहलिऐ।
“ओइ सरधुआ
सभकेँ सेहो चेन नै पड़ै छै. . .लोक सभक जान आफदमे छै आ ओकरा सभकेँ बदमाशी सुझाइ छै”-
अम्मा बजली।
सफिया चद्दरिसँ मुँह
बहार कऽ बाजलि- “एकरा कहू छतपर सुतल करए।” सैफ अखन धरि नै जागल छल।
हम ओकर पलंग लग गेलौं आ झुकि कऽ देखलौं जे ओकर मुँहपर घाम छलै। साँस खूब चलि रहल छलै
आ देह थरथरा रहल छलै। केस घामसँ भीजल छलै आ किछु केस माथपर सटि गेल छलै। हम सैफकेँ
देखैत रहलौं आ ओइ छौड़ा सभक प्रति मोनमे तामस घुरमैत रहल जे ओकरा डराबै छलै।
तखन दंगा एहेन नै
होइत छल जेहेन आइ काल्हि होइए। दंगाक पाछाँ नुकाएल दर्शन, ईलम, काजक पद्धति आ गतिमे ढेर रास बदलेन आएल अछि। आइसँ पच्चीस-तीस साल पहिने नहिये लोककेँ जिबिते
भकसी झोका कऽ मारल जाइ छलै आ नहिये सौंसे टोल-मोहल्लाकेँ सुनसान कएल जाइत छलै। ओइ
जमानामे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आ मुख्यमंत्रीक आशीर्वाद सेहो दंगा करैबलाकेँ नै भेटै छलै। ई
काज छोट-मोट स्थानीय नेता अपन स्थानीय आ क्षुद्र स्वार्थ पूरा करै लेल करै छला।
व्यापारिक प्रतिद्वंद्व, जमीनपर कब्जा करैले, चुंगीक चुनावमे हिंदू वा मुस्लिम वोट समटैले इत्यादि उद्देश्य भेल करै छल।
आब तँ दिल्ली दरबारपर कब्जा करबाक ई साधन बनि गेल अछि।
सांप्रदायिक दंगा। संसारक सभसँ पैघ लोकतंत्रक मुँहमे जाबी वएह पहिरा सकैए जे सांप्रदायिक
हिंसा आ घृणापर शोनितक धार बहा सकए।
सैफकेँ जगाएल गेल। ओ
बकरीक असहाय बच्चा सन चारू दिस ऐ तरहे देखि रहल छल जेना माँकेँ ताकि रहल हुअए। अब्बाजानक
बेमात्रे भाइक सभसँ छोट सन्तान सैफुद्दीन प्रसिद्ध सैफ जखन अपन घरक सभ लोककेँ चारू
दिस घेरने देखलक तँ ओ अकबका कऽ ठाढ़ भऽ गेल। सैफक अब्बा कौसर चचाक मरबाक खबरि लेने कोनमे
कटल ओ पोस्टकार्ड हमरा अखनो नीक जकाँ मोन अछि। गामक लोक सभ चिट्ठीमे कौसर चचाक
मरबाके टाक खबरि नै देने छला संगमे ईहो लिखने छला जे हुनकर सभसँ छोट सन्तान सैफ आब
ऐ दुनियामे असगर रहि गेल अछि। सैफक पैघ भाइ ओकरा अपना संग बम्बै नै लऽ गेल। ओ साफे
कहि देलन्हि जे सैफ लेल ओ किछु नै कऽ सकै छथि। आब अब्बाजानक अलाबे ओकर ऐ दुनियामे
कियो नै छै। कोन कटल पोस्ट कार्ड पकड़ि अब्बाजान बहुत काल धरि चुपचाप बैसल रहथि।
अम्मांसँ कएक बेर झगड़ा केलाक बाद अब्बाजान पैतृक गाम धनवाखेड़ा गेलथि आ बचल जमीन
बेचि, सैफकेँ
संग लऽ घुरलथि। सैफकेँ देखि हमरा सभकें हँसी आएल रहए। कोनो देहाती बच्चाकेँ देखि अलीगढ़
मुस्लिम युनिवर्सिटीक स्कूलमे पढ़ैवाली सफियाक आर की प्रतिक्रिया भऽ सकैए, पहिले दिन ई बुझा गेल जे सैफ खाली देहातिये नै वरन् अर्द्ध-बताहसन सोझ वा
मूर्ख छल। हम सभ ओकरा कबदाबैत आ फुचियाबैत रहै छलिऐ। एकर एकटा फाएदा सैफकेँ एना
भेलै जे अब्बाजान आ अम्मांक हृदय ओ जीति लेलक। सैफ खूब मेहनति करए। काजसँ ओ देह नै
नुकाबए। अम्मांकेँ ओकर ई व्यवहार खूब पसिन्न पड़ै। जँ दूटा रोटी बेसी खाइए तँ की?
काज तँ सेहो देह झारि कऽ करैए। सालक साल बितैत गेलै आ सैफ हमर सभक
जिनगीक अंग बनि गेल। हम सभ ओकरा संग सामान्य होइत गेलौं। आब मोहल्लाक कोनो बच्चा
जँ ओकरा बताह कहि दै तँ हम ओकर मुँह नोंचि लै छलिऐ। हमर भाइ अछि ई, एकरा तूँ बताह कोना कहै छेँ? मुदा घरक भीतर सैफक की स्थिति
रहै से हमरे सभ टाकेँ बुझल छल।
नग्रमे दंगा ओहिने
शुरू भेल छल जेना भेल करै छल,
माने मस्जिदसँ ककरो एकटा पोटरी भेटलै, जइमे
कोनो प्रकारक माउस छलै आ माउसकेँ बिन देखने ई मानि लेल गेल छलै जे किएक तँ ई माउस
मस्जिदमे फेकल गेल छल तेँ ई सुग्गरक माउस हेबे टा करत। तकर बदलामे मुगल टोलमे गाय
काटि देल गेल आ दंगा शुरू भऽ गेल। किछु दोकान जड़ि गेल मुदा बेसीकेँ लुटल
गेल।छूरी-चक्कूक ढेर रास घटनामे मोटा-मोटी सात-आठ गोटे मुइलाह आ प्रशासन एतेक
संवेदनशील छल जे कर्फ्यू लगा देल गेल। आइ-काल्हिबला बात नै छल जखन हजारक हजार लोकक
मुइलाक बादो मुख्यमंत्री मोंछपर ताव दैत घुमैत छथि आ कहैत छथि जे, जे किछु भेल ठीक भेल।
दंगा किएक तँ लगपासक
गामोमे पसरि गेल छल तै दुआरे कर्फ्यू बढ़ा देल गेल छल। मुगलपुरा मुसलमानक सभसँ पैघ मोहल्ला
छल से ओतऽ कर्फ्यूक प्रभाव छल आ जिहाद सन वातावरण सेहो बनि गेल छल। मोहल्लामे तँ
गली-कूची होइते छै मुदा कएकटा दंगाक बाद ई अनुभव कएल गेल जे घरक भीतरसँ सेहो रस्ता
हेबाक चाही। माने आप्तकालक व्यवस्था। से घरक भीतरसँ, छतक ऊपरसँ देबार फांगैत किछु एहेनो रस्ता
बनि गेल छलै जे कियो जँ ओइ रस्ताकेँ चिन्हैत होइक तँ मोहल्लाक एक कोनसँ दोसर कोन
धरि निधोके जा सकैत छल। मोहल्लाक तैयारी युद्धक लेल कएल तैयारीक बरोबरि छल। सभ
सोचने रहथि जे कर्फ्यू जँ मासो भरि धरि जाइए तैयो जरूरतिक सभटा समान मोहल्लेमे भेटि जाए।
दंगा मोहल्लाक छौड़ा
सभक लेल एकटा विचित्र सन उत्साह देखेबाक मौसम भेल करै छल। थम्हू ने, हम सभ तँ हिन्दू
सभकेँ धूरा चटा देबै.. की बुझै जाइए ई धोतीक फाँड़ बान्हैबला सभ.. छोड़ू डरपोक होइ
जाइए ई सभ। .. एक मुसलमान दस हिन्दूपर भारी पड़त…हँसि कऽ लेने
छी पाकिस्तान, लड़ि कऽ लेब हिन्दुस्तान..एहने सन वातावरण बनि
जाइ छल। मुदा मोहल्लासँ निकलैमे सभक जान जाइ छलै। पी.ए.सी.क चौकी दुनू दिस छलै। पी.ए.सी.क
बूट आ ओकर राइफलक बटक मारि कतेको गोटेकेँ मोने छलै, तँए
बकथोथी धरि तँ ठीक मुदा ओइसँ आगाँ….
संकटसँ एकता अबै छै, एकता, अनुशासन आ व्यावहारिकता। सभ घरसँ एकटा छौड़ा पहरापर रहत। हमर घरमे हमरा
अलाबे, ओइ जमानामे हमरा छौड़ा नै मानल जा सकै छल कारण हम
पच्चीस बर्खसँ ऊपर भऽ गेल रही, छौड़ा तँ सैफे छल, तेँ ओकरा रतुका पहरापर रहऽ पड़ै छलै। रातुक पहरा छातपर भेल करै छलै। किएक
तँ मुगलपुरा नग्रक सभसँ उपरका भागमे छल तेँ छातपरसँ सम्पूर्ण नग्र देखाइ दैत छल।
मोहल्लाक छौड़ा सभक संग सैफ पहरापर जाइ छल। ई हमरा, अब्बाजान,
अम्मां आ साफिया- सभक लेल नीक छल। जँ हमर घरमे सैफ नै रहितए तँ हमरे
रातिमे बौआए पड़ितै। सैफकेँ पहरापर जेबाक कारणसँ किछु सुविधा देल गेल छलै, जेना आठ बजे धरि ओकरा सूतऽ देल जाइ छलै। ओकरासँ बाढ़नि नै दिआएल जाइ छल,
आब घर बहारबाक काज सफियाकेँ दऽ देल गेल छलै, जे
ऐ काजकेँ एक्को रत्ती पसिन्न नै करैत छलि।
कहियो काल हमहूँ
रातिमेमे छतपर चलि जाइत रही,
लाठी-डण्टा, ठुहरी आ ईँटाक ढेर एम्हर-ओम्हर
लगाओल गेल छल। दू-चारिटा छौड़ा लग देशी कट्टा, आ बेसी गोटे लग
चक्कू छल।
(जारी....)
बालानां कृते
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह” - दक्षिणी ध्रुव पर मनुक्खक पएरक सए
वर्ष अर्थात्- खिस्सा अण्टार्कटिका केर
किछु दिन पहिने गाम गेल रही । साँझ खन धिया
पुता सभ घेर लेलक । सभहक एक्कहिटा जिद्द जे खिस्सा सुनाउ ।
हम कहल – हमरा किस्सा तिस्सा नञि आबैत अछि । जो दादी सँ सुन गऽ ।
प्रिया – नञि यौ अहाँ झूठ बजैत छी । हम अहाँक खिस्सा सभ पढ़ने रही विदेह मे ।
ई सुनितहि बाकी धिया – पुता सेहो जोर सँ चिचिआए उठल –
हमहूँ पढ़ने रही । बड्ड नीक लागल छल ।
हम – ओ तऽ इण्टरनेट पर आबै छै, तोँ सभ कोना पढ़लह ।
नन्दू बाजल – हमरा सभ केँ इस्कूल मे कम्प्यूटर देलकैए । मास्टर साहेब देखओलन्हि
अहाँक लिखल खिस्सा आ पढ़ि कऽ सेहो सुनओलन्हि ।
विकास – हाँ यौ, हऽम एक
जनवरी कऽ पटना मे मामा लग रही । हुनिका लऽग मे लैपटॉप छन्हि, ओत्तहि अहाँक लीखल खिस्सा पढ़लहुँ , बहुत नीक
लागल ।
सोनी – हाँ चित्र सभ सेहो बहुते नीक रहए ।
एतबहि मे बब्बन सेहो तपाक सँ बाजि
उठल – हाँ हमरा ओहने
खिस्सा सुनइ के हए । हमनी के परी आर केर खिस्सा नञि सुनै के हए ।
हम – तऽ अहीं सभ बताउ - आइ की कएल जाए ? कतऽ चलल जाए ? कोन खिस्सा सुनाओल जाए ?
बब्बन – हमनी के जे अहाँ सुनेबै से सुनबै ।
प्रिया – हाँ, अहाँ अपने मोन सँ किछु सुनाउ ने । जएह
अहाँ केँ नीक लागए सएह सुनाउ ।
हम – तऽ चलू आइ किछु एहेन चिड़ै सभक बारे मे
सुनबैत छी जे चिड़ै रहितो चिड़ै नञि आ चिड़ै सनि नहिञो लगैत चिड़ैअहि थिक ।
नन्दू – माने ?
सोनी – बुझौअलि नञि बुझाऊ, साफ – साफ कहू ने !
प्रिया – हाँ, खिस्सा सुनबाक अछि बुझौअलि नञि ।
हम – अरे, धैर्य राखू ! कहै छी सभटा । आइ हम सभ ओहि चिड़ै सभक खिस्सा सुनए जा रहल छी जे उड़ि
नञि सकैत अछि – तेँ पहिल नजरि मे ओ सभ चिड़ै नञि बुझि
पड़ैत अछि ।
सोनी – मतलब की चिड़ै रहितहु ओ चिड़ै नहि ।
हम – एकदम सही । पर ओकर सभक पुरखा लोकनि उड़ैत
छलाह । वातावरणक प्रभाव आ आवश्यकता केर अनुसार धीरे – धीरे
ओ सभ उड़नाइ छोड़ि देलन्हि आ तेँ आब ओ सभ नञि उड़ि सकैत छथि ।
नन्दू – मतलब कि, चिड़ै सनि नहिञो लगैत,
चिड़ैअहि छथि ।
बब्बन – (कने दिमाग पर जोर दैत बाजल) – ........वा....ता...व...रणक.........प्रभाव ? नञि बुझली हम ।
हम – ठीक छै, एना बुझह । हम सभ गोटे मिथिला मे रहैत
छी, तेँ मैथिल छी । हमर सभ गोटाक मातृभाषा मैथिली थिक ।
छै ने ?
बब्बन – हाँ से तऽ छै ।
हम – हम सभ गोटे मैथिली बजैत छी पर तइयो बजबा मे थोड़ेक – थोड़ेक अन्तर थिक । जे पच्छिमी मिथिला मे रहैत छथि तनिका मैथिली मे
भोजपूरीक किछु बेशिअहि शब्द मिलल रहैत अछि , तनिकर बजबाक
अन्दाज सेहो कने कड़गर रहैत अछि । तहिना जे दक्षिण मिथिला मे रहैत छथि तनिका मे
बाङ्गला, उड़िया आ सन्थाली आदि भाषाक कतिपय शब्द सभ मिलल
रहैत अछि । जे केन्द्रिय मिथिला (बीच केर मिथिला) मे रहैत छथि तनिकर चारू कात
मैथिलीए भाषा – भाषी छथि तेँ हुनिकर मैथिली मे आन भाषाक
मिलावट अपेक्षाकृत बहुत कम रहैत अछि ।
नन्दू - मतलब कि, जे मैथिली भाषा – भाषी मिथिलाक सीमा भाग मे
रहैत छथि हुनिकर भाषा मे आन भाषा सभक कारणेँ किछु आनो शब्द वा गुण आबि जाइत अछि जे
मूलतः ओहि भाषा केर शब्द वा गुण नहि थिक ।
हम – एकदम सही । ई भेल सीमापरक मैथिली भाषा पर ओतुक्का वातावरणक प्रभाव ।
बब्बन – हूँ ऽऽऽ । नम्हर साँस लैत गम्भीरता सँ बाजल ।
हम – पर एहि तरहक वातावरणक प्रभाव सँ की भाषा बदलि जाइत छै ? नञि ने ? तहिना किछु चिड़ै सभ उड़नाइ बिसरि
गेल अछि - पर ओकर पंख एखनो छै । किछु चिड़ै सभक पंख उड़बाक जगह वातावरणक माँग केर
अनुरूप पानि मे हेलबाक काज अबैत अछि – पर मूलतः ओ पंखहि
थिक । तेँ ओकरा सभ केँ चिड़ै नञि मानब मूर्खता अछि ।
बब्बन – हँ हमरो बगल मे कुछ लोक सभ कहय छलथिन जे
रौआ के भाषा बज्जिका हए ? पर बाबूजी कहै छथिन कि हमनी के भाषा मैथिलीए हए । बस बजै मे दड़िभंगा
सँ कनेक अन्तर हए ।
हम – हँ सही कहय छथि अहाँक बाबूजी । मिथिला,
विदेह, वज्जी, बज्जी, तिरहुत आ तिरभुक्ति एक्कहि भू – भाग केर
पर्यायी नाँव अछि । तेँ मैथिली, बज्जिका आ तिरहुतिया सेहो
एक्कहि भाषा केर नाँव भेल, अलग – अलग भाषा केर नञि । प्राचीन काल मे एकरा “मिथिला
भाषा” कहल जाइत छल ।
बब्बन – हँ अब बुझली ।
सोनी – मतलब कि मैथिलिअहि केर दोसर नाँव बज्जिका आ तिरहुतिया अछि । कने - मोने
जे अन्तर अछि से ओतुक्का वातावरणक असरि थिक । एहि छोट – मोट
अन्तर केर आधार पर एकरा सभ केँ अलग अलग भाषा माननाइ ओहने मूर्खता भेल जेना कि एहि
विशिष्ट चिड़ै सभ केँ चिड़ै नञि माननाइ ।
हम – हँ , एकदम सौ प्रतिशत सही बुझलहुँ अहाँ । खैर
हम सभ मुख्य खिस्सा पर चली ।
प्रिया – हँ ।
हम – शुतुर्मुर्गक नाँव सुनने छह की ?
सब धिया – पुता एक्कहि संग बाजि उठल – हँ
। अफ्रिका मे होइत छै ।
बब्बन – हँ , सहाराक मरूस्थल मे होइ हए ।
हम – बेस । पर सहारा मरूभूमिक अतिरिक्त अफ्रिका महादेशक आनहु भाग – जेना कि सवाना घासभूमि आ दक्षिण अफ्रिकाक कालाहारी मरूभूमि
– आदि स्थान सभ मे ओ भैटैत अछि । शुतुर्मुर्ग केँ अंग्रेजी मे ऑस्ट्रिच
(Ostrich) कहल जाइत छै । धरती पर एखन पाओल जाएवला
चिड़ै सभ मे ई सभ सँ पैघ आ भाड़ी होइत अछि । एक पुर्ण वयस्क पुरुख शुतुर्मुर्गक
लम्बाई प्रायः 1.7 सँ 2 मीटर ( 5 फीट
7 इंच सँ 6 फीट 7 इंच) धरि, जखन कि पुर्ण वयस्क
स्त्री शुतुर्मुर्गक लम्बाई 1.8 सँ 2.75 मीटर ( 6 सँ 9 फिट) धरि भऽ सकैत अछि । साधारणतः एकर ओजन 60 कि॰
ग्रा॰ सँ 130 कि॰ ग्रा॰ धरि होइत अछि पर कखनो – कखनो 157 कि॰ ग्रा॰ धरि सेहो देखल गेल अछि । एकर टाँग आ गर्दनि नाम – नाम, धऽर भाग पैघ आ भारी पर मूरी बहुत छोट
होइत अछि । जमीन सँ मूरी धरिक एकर उँचाई करीब 2 मीटर (6.6 फीट) तक होइत अछि । मूरीक आकार छोट रहितहु आँखि बहुत पैघ – पैघ होइत अछि । एकर आँखिक आकार
समस्त रीढ़युक्त प्राणी (Vertebrates; जाहि प्राणी
सभ मे रीढ़क हड्डी या ओकर समान कोनो संरचना होइत अछि) सभ मे सभसँ पैघ होइत अछि –
एकर आँखिक व्यास (diameter) लगभग 50 मिली मीटर
आर्थात् 2
इंच धरि होइत अछि । बहुतहि तीक्ष्ण देखबाक आ सुँघबाक शक्तिक कारण ओ दूरहि सँ अपन
दुश्मन प्राणी सभक आहटि बूझि सकैत अछि आ सचेत भऽ सकैत अछि ।
पवन – अपना सभ मैथिल जेकाँ नञि, कि लऽग मे बैसलो
दुश्मन केँ नञि चीन्हि सकी । अपन घऽर धू – धू कऽ जड़ैत
रहय आ दोसराक संग बैसि कऽ थोपड़ी बजबैत रही ।
हम - हूँऽऽ । बड्ड फुराए छऽ तोरो । खैर,
जीव विज्ञान वा प्राणीशास्त्रक (Life Science / Biology /
Zoology) भाषा मे
एकर नाँव स्ट्रुथिओ कैमेलस् (Struthio camelus) थिक ।
नन्दू – कैमेल माने
ऊँट ।
हम – हाँ, कैमेल माने ऊँट । ऊँटहि सन शुतुर्मुर्गक पीठ पर सेहो कुब्बर होइत अछि आ
रहितो अछि ऊँटहि जेना मरूस्थलहि मे - तेँ कैमेलस् । एकर पएरक हड्डी आ मांसपेशी
बहुत मजबूत होइत अछि आ तेँ विपत्तिक समय मे ओ 70 कि॰ मि॰
प्रति घण्टाक गति सँ प्रायः आधा घण्टा धरि दौड़ि सकैत अछि । ओ सभ झुण्ड मे रहैत
अछि जकर नेतृत्व कोनो ने कोनो पुरुख शुतुर्मुर्ग करैत अछि । एक झुण्डक सभ स्त्री
सदस्य लोकनि माटिक तऽर मे बनल एक्कहि घोसला मे अण्डा दैत छथि । आ ई अण्डा सभ देखै
मे भलेहि हमरा सब केँ एकरँगाह लागय पर सभ स्त्री
शुतुर्मुर्ग अपन अपन अण्डा केँ चीन्हि सकैत छथि - छै ने आश्चर्यक गप्प ! आ एतबहि नञि स्त्री शुतुर्मुर्गक एक अण्डाक व्यास (diameter) 30 सँ 60 सेण्टी मीटर ( 12 सँ 24 इंच) धरि भऽ सकैत अछि ।
बब्बन – अरे ! ई तऽ फूटबॉल सऽ सेहो पैघ होइ हए ।
हम – हाँ । शुतुर्मुर्गक अण्डा संसार मे सभसँ पैघ होइत अछि । शुतुर्मुर्ग ओना तऽ शाकाहारी होइत अछि पर भोजनक अभाव मे
छोट – मोट कीड़ा मकोड़ा
खा कऽ सेहो गुजर करैत अछि । माँसु, चमड़ा आ पंखक लेल
पिछला 200 वर्ष मे एकर अत्यधिक शिकार होयबाक कारणेँ आइ ई
विलुप्त होयबाक स्थिति मे आबि गेल अछि आ सम्प्रति संरक्षित वन्य प्राणी अछि ।
प्रिया – ई तऽ बहुत दुखक गप्प थिक ।
हम – हाँ से तऽ छै । शुतुर्मुर्गक बाद उँचाई मे दुनिञाक सभसँ पैघ चिड़ै अछि –
एमू (Emu) । एकर अधिकतम् ऊँचाई 1.5 सँ 1.9 मीटर (5 फीट सँ 6 फीट 3 इंच धरि) होइत अछि । ओ ऑस्ट्रेलिया
केर मूल निवासी अछि आ ओतहि पाओल जाइत अछि । ओकर जैववैज्ञानिक नाँव थिक ड्रोमैअस
नॉवीहॉल्लैण्डी (Dromaius
novaehollandiae)
। एमू प्रायः समस्त ऑस्ट्रेलिया मे विचरण करैछ । आ ताहि कारणेँ ......................
................... आ ताहि कारणेँ ओ ऑस्ट्रेलिया केर राष्ट्रिय चिड़ै थिक – विकास बीच्चहि मे बाजि उठल ।
हम – अरे वाह अहाँ केँ तऽ बूझल अछि ।
विकास – हाँ G.K. केर किताब मे पढ़ने छलियै ।
हम - एमू ओना तऽ शाकाहरी होइत अछि पर विपत्तिक समय मे
सर्वाहारी (Omnivorous) भऽ जाइत अछि आ अपन भूख मेटाबय लेल चमगादर आ
छोट – छोट कीड़ा मकोड़ा
केँ सेहो खा जाइत अछि । एकर पएर बहुत मजबूत आ तीनू औंठाक नऽह तिक्ष्ण नोक वाला
भाला सन चांगुर (पञ्जा) मे परिवर्तित भऽ गेल अछि । ई चांगुर एतेक मजबूत होइत अछि कि
लोहाक ताड़क सामान्य छहड़देवाली केँ तोड़ि सकैत अछि आ शिकारी शत्रु सभ सँ अपन
रक्षा करबाक हेतु प्रयुक्त होइछ ।
सोनी – ई तऽ शुतुर्मुर्गे जेकाँ अछि ।
हम – हाँ किछु – किछु पर ओहि सँ अलग विशेषता सेहो
रखैत अछि । जेना कि जरूरत पड़ला पर ओ पानि मे हेल सकैत अछि । एमू राति मे लगातार
नञि सूति सकैत अछि । ओ ओना तऽ करीब 7 घण्टा सुतैत
अछि पर हरेक 90-120 मिनट पर किछु खएबाक लेल वा मल विसर्जनक लेल उठैत अछि । एहि प्रकारेँ
एक राति मे ओ निन्न सँ चारि सँ छौ बेर उठैत अछि । शुतुर्मुर्ग बेशी समय झुण्ड मे
रहैत अछि आ यथासम्भव मनुक्ख सँ दूर रहए चाहैत अछि जखन कि एमू बेशी समय एकसरि रहैत
अछि पर ओकरा मनुक्खक उपस्थिति सँ परहेज नञि छै । उनटहि ओ
उत्सुकतावश मनुक्खक घऽरक नजदीक सेहो अबैत अछि आ मनुक्ख तथा आन जीवक चेष्टा वा नकल
सेहो करैत अछि ।
प्रिया – तखन तऽ ओहो एहि मामिला मे नकलची बानर आ सुग्गा सनि भेल
।
हम – एकदम्महि की । स्त्री एमू बहुत बेर दोसर एमू केर घोसला मे अपन अण्डा
दैत अछि । एहि तरहक घटना केँ जीवविज्ञान मे पोषक परजीविता (Brood parasitism) कहल जाइत अछि ।
पवन – यौ एहने काज कोयली सेहो करैत अछि । ओ कौआ केर घोसला मे चुपचाप अण्डा
दैत अछि आ अपने भागि जाइत अछि । कौअहि कोयलियोक अण्डाक केँ अप्पन अण्डा बुझि देख -
रेख करैत रहैत अछि ।
हम – ठीक बुझल अछि पवन बाबू । बस थोड़ेक अन्तर छै, कौआ
आ कोयली दूनू अलग अलग तरहक चिड़ै अछि पर एहि ठाम एक एमू दोसर एमूक घोसला मे अण्डा
दैत अछि । एमू केर सम्पुर्ण आयु 10 सँ 20 वर्षक होइत छैक । 1788 ई॰ मे जखन यूरोपवासी पहिल बेर ऑस्ट्रेलिया मे बसय गेलाह
तऽ ओ खएबाक लेल एमू केर मांसु आ डिबिया जड़यबाक लेल एमू केर चर्बी प्रयोग करैत
छलाह । एखनहु बहुत जगह मुर्गी आ बत्तख जेकाँ मांसु, चमड़ा आ चर्बी केर लेल एकरा पोषल जाइत अछि ।
विकास – ई तऽ पटना केर चिड़ियाखाना मे सेहो छै । ओतऽ एहने सनि एकटा आओरो चिड़ै
छै जकर माथ पर कलगी रहैत छै गर्दनि नीला रंगक रहैत छै आ गर्दनि केर आगाँ भाग मे लाल
रंगक भालरि लटकैत रहैत छै ।
प्रिया – से कोन ?
विकास – ओकर नाम छै ........... क् ........ क् ...... केशो......
अरे याद नञि आबि रहल अछि ठीक सऽ । पर ओहो ऑस्ट्रेलिया केर मूल निवासी अछि ।
हम – विकास सही कहि रहल अछि । चलू नाँव हऽम बताए दैत छी । ओकर नाँव अछि कैसोवरी
(Cassowary) । ई
उत्तरपुर्वी ऑस्ट्रेलिया, न्यु गिनी (New Guinea) आ आस पड़ोसक द्वीप सभक आर्द्र वर्षावन (Humid Rainforest) केर मूल निवासी अछि । सम्प्रति एकर तीनि टा जाति जिबैत अछि – दक्षिणी कैसोवरी / कैजुएरिअस् कैजुएरिअस् (Casuarius
casuarius), उत्तरी कैसोवरी /
कैजुएरिअस् अनअपेण्डिकुलेटस् (Casuarius
unappendiculatus) आ वामन या छोटका कैसोवरी / कैजुएरिअस् बेन्नेट्टाई (Casuarius bennetti) । एहि मे सँ दक्षिणी कैसोवरी विश्वक सभसँ भारी चिड़ै
(शुतुर्मुर्गक बाद) आ ऊँचाई मे तेसर सभसँ पैघ चिड़ै (शुतुर्मुर्ग आ एमूक बाद) अछि
। एकर कलगी
केँ कैस्क्यू (Casque) कहल जाइत छै, जे कि सम्भवतः अवाज ग्रहण (sound
reception & acoustic communication) करबाक काज करैत अछि । ओना तऽ ई सर्वभक्षी (Omnivorous) अछि पर विशेष रूप सञो फलभक्षी (Frugivorous) अछि । जखन गाछ सँ फऽल
पाकि कऽ खसए लागैत अछि तऽ हरेक कैसोवरी एक - एक टा गाछ चुनि कऽ ओकरा नीचा मे बैसि
जाइत अछि आ खसल फऽल सभ खा कऽ गुजर करैत अछि । सेब आ केरा सन पैघ फऽल सभ केँ सेहो
बीया सहिते सौंसे भकसि जाइत अछि । फऽल खसब समाप्त भेला पर ओतय सञो आन गाछक नीचा या
अनतऽ चलि जाइत अछि । नवजात कैसोवरी मैलछौंह रंगक आ भूरा रंगक धारीयुक्त (brown-striped) होइत अछि । एकर आयु प्रायः 40 सँ 50 वर्षक मानल जाइत अछि । एकर माँसु सीझबा मे आ पचबा
मे बहुत कठिन होइछ, तेँ
प्रायः उपयोग नञि कयल जाइत अछि ।
बब्बन – यौ, ईहो पानि मे हेलि सकय हए की ?
हम – बेस पूछल बब्बनजी अपने । ई पानि मे हेलए मे माहिर अछि – हेलि कऽ पैघ – पैघ नदी केँ पार कऽ सकैत अछि आ
समुद्रहु मे आराम सँ हेलि सकैत अछि । एतबहि नञि घनगर जंगल – झाड़ मे सेहो करीब 50 कि॰ मी॰ प्रति घण्टा केर
गति सँ दौड़ि सकैत अछि आ 1.5 मीटर ( करीब 5 फीट) धरि कूदि सकैत अछि वा छड़पि (jump) सकैत
अछि ।
बब्बन – बेज्जोर ।
सोनी – एकर बाद आब कक्कर बारी छै ?
पवन – तोहर । ...................ई सुनितहि सभ धिया –
पुता भभा कऽ हँसि पड़ल ।
हम – सुनह आब राति बहुत भऽ गेल छैक तेँ अजुका खिस्सा आइ बीचहि मे रोकैत छी ।
काल्हि खन साँझ मे आगा कहबह ।
सोनी – नञि आइए पूरा करए पड़त ।
हम – हमरा कोनो दिक्कति नञि पर अहाँ सभक माए – बाबू
अहाँ सभ केँ डँटताह । ओना सूतब सेहो जरूरी थिक शरीरक लेल । जँ भरि राति खिस्से
सुनैत रहब तऽ सूतब कखन ? आ से नञि तऽ काल्हि भोरे फेर
इस्कूल कोना जायब ?
प्रिया – ठीके कहय छी अहाँ । हम सभ जाइत छी ।
सोनी – पर हम सभ अहाँ केँ छोड़ब नञि, काल्हि पूरा
करइए टा पड़त खिस्सा ।
हम – जरूर ।
(खिस्सा केर शेष भाग अगिला अंक मे)
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’
ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे
वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले
स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या
काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले
स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल
भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर
स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक
काल-
रामं
स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ
दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च
यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे
सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं
यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं
तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या
द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं
ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ
दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा
बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते
भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन
तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः
साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे
पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता
देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा
रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒
युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो
न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ
विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ
नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ
दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक
सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि।
अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व
होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’
मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए
बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक
रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय
बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर
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