एक्कहि मञ्चपर नेपाली आ मैथिली भाषाक दूटा साहित्यिक कृति विमोचित भेल अछि । राजधानी काठमाण्डूमे पुस २३ गते आयोजित एकटा कार्यक्रममे रमेश उप्रेतीक बहुलानन्द उपन्यास आ श्यामशेखर झा कमलक मेघशतक खण्डकाव्यके विमोचन कएल गेल ।
विमोचन कार्यक्रम आन कार्यक्रमस“ बिलकुल भिन्न छल । पोथीक लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार, चर्चित नेता, मन्त्रीस“ करएबाक चलनके तोडैत देवकुमारी उप्रेती आ पार्वती देवी पोथीक लोकार्पण कएने छलीह । ई दुनूगोटे पोथीक स्रष्टाद्वयके माय छथिन्ह ।
नेपाली भाषामे लिखल बहुलानन्द उपन्यासमे नेपालक वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक मुद्दाके विषयवस्तु बनाओल गेल अछि । मैथिली भाषामे लिखल मेघशतक लघुकाव्यमे कवि मेघके माध्यमस“ अपन प्रियसीके सन्देश पठओने छथि ।
कार्यक्रमके आयोजक संस्था छल नेपाली मैथिली साहित्य संगम । आयोजक संस्था भाषिक समागमके शुरुवात कएलक अछि से कहैत वक्तासभ प्रशंसा कएने रहथि । नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक उपकुलपति गंगा उप्रेती नेपाल बहुजातीय, बहुभाषी आ बहुसांस्कृतिक देश रहल कहैत एकर बहुलताभितर एकता खोजबाक प्रयास करबापर जोड देलनि । नया नेपालमे हरेक भाषाभाषीके एक दोसराके अस्तित्व स्वीकारबाक चाही, दुनू कृतिक संयोजनस“ देखाओल गेल भाषिक पहिचानस“ राजनीतिक दलके पाठ सिखबाक ओ सल्लाह देलनि । ‘अन्य भाषाभाषीसेहो ज“ एकर देखासिखी करए त आपसी एकता मजबुत हएत’ उपकुलपति उप्रेतीक कहब छलनि ।
मेघशतकके रचनाकार श्यामशेखर झा कमल कहलनि–नेपाली मैथिली साहित्य संगम राजधानी आ राजधानी बाहर रचना होबऽबला साहित्यके जोडबाक प्रयास करत । उपन्यासकार रमेश उप्रेती नेपाली मैथिली साहित्य संगमक मञ्चस“ भाषिक रुपमे एक दोसराके अस्तित्व स्वीकारबाक काज भेल कहलनि । भाषिक विविधताके फायदा नेतासभ उठारहल कहैत ओ आपत्ति जनओलनि । ‘नेपाली आ मैथिली दुनू भाषाके अपन रक्षाके लेल एकजुट होएब आवश्यक अछि’ एमाले नेता रामचन्द्र झा कहलनि ।
कार्यक्रममे वक्तासभ विमोचित कृतिक विभिन्न पक्षपर चर्चा कएने छलथि । रमेश उप्रेती अपन बहुलानन्द उपन्यासमे एकटा अघोरीके केन्द्र बनाकऽ समाजिक, राजनीतिक दुष्प्रवृति उजागर करबाक प्रयास कएने छथि । पशुपति क्षेत्रमे रहनिहार अघोरी योगीक मु“हस“ उप्रेती कटुसत्यके उद्घाटित कएने छथि । अघोरी नेपालमे वि.स. २००७ सालके बाद भेल राजनीतिक परिवर्तनके लेखाजोखा कएने अछि । सशस्त्र द्वन्द्वमे मारल गेल १३ हजार नेपाली नागरिकके मृत्युक हिसाब मंगनिहार अघोरी प्रमुख राजनीतिक दलके कठघेरामे ठाढ कऽ दैत अछि ।
मेघशतक कालिदासक मेघदूतस“ प्रभावित अछि । कवि अपन विरह मेघके सुनौने छथि, मेघ समदिया बनल अछि । ज“ किछु शास्त्रीय आधारके छोडि देल जाए त मेघशतक उत्कृष्ट रचनामे गनल जाएत प्राज्ञ रामभरोस कापडिक कहब छलनि । छन्दोबद्ध मेघशतक छन्दके पाबन्दमे पडि सीमित भेल नेता रामचन्द्र झाक विश्लेषण रहनि । मेघशतकस“ नेपालीय मैथिली साहित्यक श्री वृद्धिमे योगदान भेल वक्तासभ कहने छलथि ।
२.
मेघशतकस“ तीनगोट कविता
हे मेघ बनब कि दूत हमर ?
श्यामशेखर झा कमल
सन्देश हमर नहि रत्ती भरि,
बिरह ज्वर भेल विषम–सरि ।
नहि शब्द फुरय संदेश दिअ,
अविरल बहय ई नोर दिअ ।
वाष्पीकृत भऽ ई नोर उडय,
भऽ जाय समागम एकरास“ ।
अवरोध हमर, अनुरोध हमर,
भऽ जाय समाहित ई अहा“स“ ।
ई भार उठा कऽ कृपा करब,
स्नेह सहित एकरा धारब ।
एकरा बुझू स्नेहक गङ्गाजल,
करबद्ध हम, अनुरोध हमर ।।
हे मेघ बनब कि दूत हमर ?
प्रियतम प्यारी लग गीत हमर,
प“हुचादेव, की फेर जाएब बिसरि ?
प“हुचादेव, की फेर जाएब बिसरि
जागू मैथिल
हे मैथिल ! मिथिला जागू
शिथिल अहा“ नहि रहू बनल ।
गौरव अतीतपर अहा“ करु,
सपना मिथिलाके करु सफल ।
मैथिल संस्कृति, मैथिली भाषा,
अपन सब किछु अपन आशा ।
अपन संस्कृति पर गर्वकरु,
अपन तऽ करु अहा“ परिभाषा ।
अपना बारेमे ज्ञान करु,
ध्यान धरु अपना उपर ।
मृत अछि, ओ नहि जीवित,
अपन स्मृतिमे नहि जकर ।
हे मेघ बनब कि दूत हमर ?
प्रियतम प्यारी लग गीत हमर,
प“हुचादेव, की फेर जाएब बिसरि ?
प“हुचादेव, की फेर जाएब बिसरि
ओ सब मैथिली भाषी छथि
मिथिलामे जे सब भूमिपुत्र,
ओ सब मैथिल छथि मिथिलास“ ।
समुदाय कोनो वा जाति पा“त,
नहि फरक परत किछु कहलास“ ।
मिथिलामे जे सब जन्म लेलन्हि,
अथवा मिथिलाके बासी छथि ।
ओ सब मैथिली भाषी छथि ।
अपनामे नहि कोनो भेद करु,
विभेद करु नहि वर्ग उपर ।
सबस“ पहिने हम मैथिल छी,
मैथिली, मिथिला अपन जकर ।।
हे मेघ बनब कि दूत हमर ?
प्रियतम प्यारी लग गीत हमर,
प“हुचादेव, की फेर जाएब बिसरि ?
प“हुचादेव, की फेर जाएब बिसरि
प्राज्ञ भ्रमर साझा पुरस्कारसं सम्मानित
नेपालक सभस पैघ प्रकाशन संस्था साझा प्रकाशन आइ एक भव्य समारोहमे २०६७ सालक साझा पुरस्कारसभ वितरण कएलक अछि । वरिष्ट साहित्यकार एवं प्राज्ञ रामभरोस कापडि भ्रमरके उक्त अवसरमे साझा लोक संस्कृति पुरस्कारसं सम्मानित कएल गेलनि । साझा प्रकाशनसं प्रथम बेर प्रारंभ कएल गेल ई पुरस्कार पाबबला ओं प्रथम साहित्यकार छथि । पुरस्कार पाबबला अन्य स्रष्टासभमे साझा पुरस्कार पाबबला दबसु क्षेत्री, साझा लोक साहित्य पुरस्कार पाबबला कृष्णराज सर्वहारी,साझा वाल साहित्य पुरस्कार पाबबला विजय चालिसे लगायत गरिमा सम्मान पाबबला सभ सेहो छथि । उक्त पुरस्कारसभ नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक उपकुलपति गंगा प्रसाद उप्रेतीे प्रदान कएलनि ।
प्रश्न-- अपने कलकत्ता कहिआ अएलहुँ?
उत्तर---१९६३ ई.मे।
प्रश्न:-- मिथिला मैथिलीसँ कोना जुड़लहुँ?
उत्तर-- सुखदेव ठाकुर संगे मिथिला-संघमे अएलाक पश्चात।
प्रश्न-- अपनेक मैथिली साहित्य, आंदोलन आ रंगमंचमे सभठाम सक्रिय भूमिका रहल अछि, हम चाहब जे क्रमशः कोन बिन्दुसँ प्रारंभ करैत एखन धरिक जे क्रिया-कलाप अछि ताहि पर अपन विशद जानकारी देबाक कृपा कएल जाए।
उत्तर-- रंगमंच आ आंदोलनक पश्चाते साहित्यसँ जुड़लहुँ। १९७६मे रंगमंच जखन टूटि सन गेलै तकर पश्चाते लेखनमे पूर्णतः सक्रिय भेलहुँ।
प्रश्न-- प्रथम आंदोलन कहिआ भेल रहै जाहिसँ अपनेक सहभागिता दर्ज भेल।
उत्तर---१९७१मे प्रथम आ अंतिम १९८०मे। ९ दिसम्बर १९८०केँ मैथिली मुक्ति मोर्चाक नेतृत्वमे पटनामे विराट प्रदर्शन भेल छल जकर संयोजक हम छलहुँ आ मैथिली आंदोलनक इतिहासमे पहिल बेर मैथिल संतानक शोणितसँ पटनाक राजपथ रंगाएल छल।
प्रश्न-- आंदोलनक प्रेरणा किनकासँ भेटल?
उत्तर-- प्रथम बाबू भोलालाल दास आ दोसर किरणजी।
प्रश्न-- रंगमंचक हेतु पूर्णतः रंगमंचसँ जुड़ल पत्रिका, नाटकक अनुवाद आ अभिनयमे अपनेक योगदानक आइओ चर्चा अछि, एहिमे आइ किनकर नाम लेबए चाहब।
उत्तर---मुख्यतः प्रबीर मुखर्जी जे हमरा लोकनिक निर्देशक छलाह। ओ प्रत्येक नाटकमे हीरोकेँ पार्ट हमरे दैत छलाह। हीरोक पार्ट लेल बहुतो प्रयत्नशील छलाह मुदा हुनकर कहब छलन्हि जे जकरा हम उपयुक्त बुझैत छी से मात्र अहीँटा छी। जे समकालीन लेल इर्खाक कारण सेहो छल।
प्रश्न-- मैथिली साहित्यिक हेतु लेखन, पोथी-प्रकाशन, संपादन आ संग-संपादन बेस अर्चित-चर्चित आइओ अछि, ताहि संदर्भमे अपनेक की कहब अछि।
उत्तर--- पाँचम किलाससँ लिखनाइ प्रारंभ केलहुँ मुदा विधिवत् मिथिला-संघमे अएलाक पश्चात मिथिला-दर्शनसँ जुड़लहुँ। हमर प्रथम पोथी "इतिहासहंता" छपल छल जकर विमोचन यात्रीजी कएने छलाह।
प्रश्न-- संपादनमे कहिआसँ सक्रिय भेलहुँ।
उत्तर---"अग्निपत्र" १९७३ ई.मे जाहिमे डा. विरेन्द्र मल्लिक आ सुकान्त सोम संग छलाह।
प्रश्न-- कतेक अंक छपलैक ?
उत्तर---कुल सातटा अंक।
प्रश्न-- पुनः दोसर कहिआ ?
उत्तर---१९७६ इ.मे एकसरे पुनः प्रारंभ कएलहुँ जकर पाँचटा अंक तत्पश्चात १९८० इ.मे फेर एकटा अंक बहार भेल। जकर संपादनमे बीरेन्द्र मल्लिक आ सुकान्त सोम संग छलाह। मैथिली रंगमंचक मुखपत्र "रंगमंच" तकर संपादन १९७४
इ.मे,१९७५ इ.मे "सुल्फा" नामसँ हस्तलिखित पत्रिका निकालहुँ। मइ १९८१ इ.मे "देसकोस" जकर संपादकमे नाम छल विनोद कुमार झाक मुदा संपादन हमही करैत छलहुँ।
प्रश्न-- देसकोस कतेक अंक धरि छपलैक ?
प्रश्न फेर ?
उत्तर-- अक्टूबर १९८१ इ.मे "देसिल बयना"क संपादकमे नाम छलन्हि जनार्दन झाक मुदा संपादन हमही करैत छलिऐक।
प्रश्न-- कतेक अंकमे कोन रूपमे यथा मासिक,त्रैमासिक?
उत्तर-- एकर १३ अंक मासिक पत्रिकाक रूपमे छपलैक। रजस्ट्रेेशनक क्रममे "देसकोस"क नामे डिक्लेरेशन भेटलाक पश्चात ६ अंक धरि देसकोसक नामें प्रकाशित भेल। "मैथिली दर्शन"क पुनः प्रकाशन जनवरी २००५सँ मार्च २००६ धरि
त्रैमासिक रूपे भेल जकर संपादन कएलहुँ।
प्रश्न-- सेवानिवृति भेलाक पश्चात साहित्य लेल पूर्ण समय भेटल तकर सदुपयोग कोना कएल अछि ?
उत्तर-- तकरे परिणाम अछि जे संप्रति मिथिला दर्शनकेँ कार्यकारी संपादकक रूपमे कार्यरत छी जकर इ दोसर पर्याय मइ २००८सँ अद्यावद्यि चलि रहल अछि।
प्रश्न-- १५ आब हम पोथी रूपे प्रकाशनक जानकारी चाहब।
उत्तर---संपादन-------
१) आजुक कविता
२) युगप्रवर्तक कवीश्वर चन्दा झा
३) कविपति विद्यापति मतिमान
पोथी--------
कविता
१) इतिहासहंता (१९७७)
२) माटि-पानिक गीत (१९८५)
३) देशक नाम छलै सोन चिड़ैया (१९८६)
४) अपूर्वा (१९९६)
५) लाख प्रश्न अनुत्तरित (२००३)
हास्य-व्यंग------
१) बेताल कथा
लोककथा----
१) मैथिली लोककथा (१९८३)
पुणर्मुद्रण—२००६
निबंध-----
१) स्मृतिक धोखरल रंग (२००४)
२) आँखि मुनने आँखि खोलने (२००६)
अनुवाद------
१) प्रतिध्वनि ( काव्य--१९८२)
२) जा सकै छी किन्तु कियै जाउ (काव्य--१९९९-- भाषा-भारती सम्मानसँ सम्मानित)
३) फाँस (नाटक---१९९७)
४) जादूगर ( नाटक--१९८२)
५) रिहर्सल (नाटक---२००४)
६) चारि पहर ( नाटक--मंचित---अप्रकाशित)
७) किशुन जी विशुन जी ( नाटक--मंचित---अप्रकाशित)
८) बाह रे बच्चा राम ( नाटक--मंचित---अप्रकाशित)
उपन्यास-----
१) पद्मा नदीक माँझी (२००९)
२) नन्दितनरके ( अंतिकामे २००९, पोथी-२०११--मैथिलीमे)
नन्दितनरके ( बया---२००९,पोथी २०१०-हिंदी मे)
प्रश्न-- एकर अतिरिक्तो अनय-अन्य नामसँ कोना लिखलहुँ ?
उत्तर---पत्रिका चलएबाक क्रममे रचनाक अभाव भेने अन्यान्य नामसँ लिखलहुँ।लेखनमे रामलोचन ठाकुरक अतिरिक्त कुमारेश काश्यप, अग्रदूत,मुजतबा अली आदि नामे विभिन्न पत्र-पत्रिकामे बहुत रास कविता, निबंध आदि छिड़िआएल अछि।
प्रश्न-- मैथिली साहित्यमे किनकासँ प्रभावित भेलहुँ ?
उत्तर---सर्व प्रथम विद्यापति तत्पश्चात किरण आ यात्री।
प्रश्न-- बहुचर्चित साहित्यिक संस्था "संपर्क" जकर अपने संयोजक छी ताहि प्रसंग अपन मंत्व्य।
उत्तर-- २३,२४ आ २५ मई १९८१केँ मुक्तिमोर्चा दरिभंगामे अधिवेशन भेलैक आ आंदोलनकेँ माटिसँ जोड़बाक प्रयासेँ १५ सदस्यीय समीति बना एकरा दरिभंगामे छोड़ि देल गेल। एम्हर देसकोस सेहो नव बाट दिस तकैत छल फलतः हम जनार्दन झा, महेश्वर झा, निरसन लाभ, आ रामाधार मिश्रक सहयोगेँ "देसिल बयना" चलाओल मुदा ओहो दीर्घजीवी नहि भए सकल।"देसकोस"मे सहयोगी छलाह विनोद कुमार झा, सत्यनारायण झा,कुणाल, आदित्यनाथ झा आदि।कलकत्ताक स्थिति क्रमशः एहन भए गेल छलैक जे उल्लेखनीय कोनो कार्यक्रम नहि तैं भेँट-घाँट सेहो दुर्लभ। एहने स्थितिमे संपर्कक स्थापना भेल जाहिसँ मासमे एकहु दिन (मासक दोसर रवि) मैथिली-प्रेमी लोकनि बैसथि आ कुशल-समाचारक आदान-प्रदानक संगहि-संग मिथिला-मैथिलीक चर्च हो।पश्चात एहिमे रचनापाठक प्रक्रिया सेहो प्रारंभ भेल जाहिमे स्वरचित नव रचना पाठक प्रावधान कएल गेल आ ओइ रचनापर विचार-विमर्श सेहो होइछ। प्रकाशनक असुविधाक कारणे नव रचनाकारकेँ प्रोत्साहित केनाइ एकर प्रधान उद्येश्य छैक। सफलता आ असफलताक बात रचनाकारे कहता, तखन ई जे एक नव प्रयोग थिक तकरा अस्वीकार नहि कएल जा सकैए। ओना हमर एहि प्रयोग चरम राँचीमे देखाइत अछि जतए ई संपर्क नामक संस्था कलकत्ताक बाद शुरु भेल मुदा रचनापाठक संगे-संग पोथीकेर प्रकाशन सेहो केलक। एकर विशेषता छैक जे एकर केओ स्थायी अध्यक्ष वा सचिव नहि छथि। प्रति बैसारक अध्यक्ष मनोनीत होइत छथि जे सभाक संचालन करैत छथि।
प्रश्न-- अपनेक संपूर्ण सफलताक श्रेय ककर ? जकर प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपें प्रभाव पड़ल।
उत्तर---हम जे किछु कएलहुँ वा कए रहल छी तकर श्रेय कलकत्ताकेँ छैक जे वास्तवमे मैथिलक हेतु तीर्थस्थान थिक। पोथी-पत्रिकाक प्रकाशन हो वा आंदोलन वा रंगमंच सभ क्षेत्रमे कलकत्ताक योगदान अविस्मरणीय। नाट्य विषयक आ काव्य विषयक पत्रिका कलकत्तहिसँ सर्वप्रथम प्रकाशित भेल अछि आ जँ सत्य कही तँ----- नाट्य मंचक शुभारंभ सेहो एतहिसँ भेल अछि। वर्णरत्नाकर, पदावली एवं चर्यापद जँ कलकत्ता नहि छपने रहैत तँ हमरा लोकनिकेँ से चेत-सामर्थय कहाँ अछि?
प्रश्न-- अपन विभूति जिनका प्रति असीम श्रद्धा हो आ नव-पीढ़ीकेँ सेहो स्मरण रखबाक वास्ते अपन संदेशमे की कहए चाहबैक ?
उत्तर--- हम मैट्रिक पास केला उपरान्त कलकत्ता आएल रही। १९६९ इ.मे सरकारी नौकरी भेटलाक पश्चात रात्रिकालीन कौलेजमे नामांकन करबौने रही आ मैथिली रखने रही। हमरा बूझल छल जे मैथिलीक विद्यार्थी नहि होइत छैक भविष्यहुँमे
होएबाक संभावना नहि तथापि मैथिली विभूति ब्रजमोहन बाबूक प्रति ई श्रद्धांजलि, आत्मतुष्टियेक लेल कएक नहि हो, छल। जँ प्रातःस्मर्णीय ब्रजमोहन ठाकुरक प्रयासेँ आ आशुतोष बाबूक सदासयतासँ कलकत्ता विश्ववद्यालयकेँ द्वारा मैथिलीकेँ मान्यता प्राप्त नहि भेल रहितैक तँ आइ मैथिली संविधान धरि जा पबैत ताहूमे संदेह।
३. पद्य
2011 दिसंबर मास मे महात्मा बुद्व के महासंबोधि प्राप्ति के 2600 बरख भेलोपरांत ’हम हुनक अद्र्धांगिनी के मोन पाङैत ई काव्य कुसुम हुनक चरण कमलेषु मे समर्पित कय रहल छी । ..
यशोधरा
मुरूछा टूटै .. लोक कहै छल
धीरज धरू पटरानी
सून ऑखि सॅ भवन निहारैत
फेर खसैथ महारानी ।
टिकुली भाल सॅ खसल भिन्न भ’
लट सबटा छिङियायल ।
अस्त व्यस्त सब असन वसन छल
गाल प नोर सुखायल ।
पङल पलंग प’ चित्त बेसुद्व
संगी चेरी सब हिचुकैत ठाढ।
ऑखि खुजैन्ह त’ हेरैत चहुॅ दिस
आखीर कोना खुजलै केवाङ।
दिप .दिप . दिप. दिप दीप जरै छल
अहिना आधी रतिया ।
ज्वार उठाबैत मोन पङैत छल
रहि रहि बीतल बतिया ।
रंग महल के लाल सोनहरा
लिखल सब दरवाजा ।
मुदा नै कत्तौ बाजि रहल छल
दुंदुभि वा बाजा ।
सोइरी गृह मे पङल किशोरी
बनल हलाल के बकरी ।
बैरीन नींद ऑखि मे पैसल
लुटा गेल सब गठरी ।
नाथ निकसि क’ द्वार फोलल त’
जोत किएक नै मिझायल ।
कत्तो कोनो खट खूट होयतै
ऑखि हमर खूजि जैतै ।
हम कलंकिनी पङल रहि गेलहु
सुख सॅ सुतल ओछावन ।
भटकै लै ओ विदा भ’ गेला
दुर्गम जंगम वन कानन ।
कोना जीयब अहि सून भवन मे
हिय हम्मर कॉपैत अछि ।
मुईला प सब के डाहै छै
जीबतै हम डहि जाय छी ।
हॅसै छलथि उद्यान मे कहियो
कखनो एको पल ल्ोल ।
तृप्त होय छल मन मंदिर
हरियर भाव जगै छल ।
मुखारविन्द प’ छिटकल हुनकर
कारी कारी कुंतल ।
हुलसि हवा सॅ गप्प करै छल
झूमि झूमि क’ चंचल ।
ई दुधमूहॉ बालक लग मे
काल बनि जनु आयल ।
क्षण मात्र मे भवन त्यागि क’
सब वैभव के बिसरायल ।
नामकरण ओ अपने कयला
बिनु पंडित बिन ज्ञानी ।
पिता के प्रेम कतय सौं पाओत
ई निरदोष परानी ।
कोना क’ झूलत बॉहि जनक के
कोरा कॉख लै’ तरसत ।
चान सन अहि नेना के देखि
मुख मंडल केकर हरषत ।
फेर कहथि अहि नेना के दोष की
भस्म भेल ओ हमर कपार ।
देखि क’ धधरा विरहिणीके
थमि जायत छै बहैत बयार ।
रचलन्हि कोन विधाता हमरा
चिकनी माटि गढि गढि ।
जानै किएक कहै छल सब कियो
लछमी हमरा बढि बढि ।
तजि गेला एकांत भवन मे
त्रुटि हमरो किछु हेतै ।
निशारात्रि मे सिंहद्वार सॅ
अकारण किए कियो जेत्तै ।
अपना मे एतेक डूबल छथि
सोचि नै सकला हम्मर ।
कोना गिन गिन हम दिवस गमायब
मुॅह हेरब हम कक्कर ।
अजगूत रूप धरि देलन्हि विधाता
ओही मानुष के तन मे।
मन मे छल वैराग्य समाओल
रहितथि कोना भवन में ।
लहठी कंगन पाजेब बिछिया
हार नवलखा हीरा ।
कर्णफूल नकबेसर .. ड़ढकस
औंठी .. नथुनी .. सीथिया. .।
तजली सब सिंगार की
काजरि बास ने ऑखि लेलक।
अटोर पटोर सतरंगी चुनरिया
अगिन के संपत्ति बनि गेल ।
पीत वस्त्र एक धारण कयलन्हि
जोगिन रूप बनाओल ।
कठोर व्रत दिन बन्हल छल
राग मोह सब भागल ।
ओ संन्यासी महल के बाहरि
हम जोगिनिया भीतर ।
एकसंझा जे अन्न उसीनल
उदरपूर्ति के लायक ।
देखि फूलकुमरि के दुर्गति
जनक भाय सब आयल ।
नहि गेली मुदा छोङि डीह
कतबो कियो समझाओल ।
ओ सुन्नरि सर्वांग एखनि धरि
रूपक छलीह बखारी।
दूर लग के राजा कतेको
पठबए लागल पुछारी ।
रानी मुदा सज्ञानी एतेक
मन सॅ कखनो नहिं हारल ।
करि बहाना जतन जतन सॅ
सब के लग सॅ टारल ।
आब हमर जीवन वसंत सब
हुनके संग रमल अछि ।
जाहि मार्ग प’ नाथ चलै छथि
मन हमरो संग चलल अछि ।
वृद्व शूद्वोधन देखि दृश्य सब
नोचथि अप्पन माथा ।
आर कतेक दुख देखय लेल
रखने जीवित विधाता ।
तजला प्राण हवेली के’
बाहरि जाकए एकरा ।
ओ तजली सब वैभव अन्नधन
भ’ घर मे एकसरहा ।
रोज सुरूज के जल चढा’ क’
मीनती मने मन करलन्हि ।
वन वन में जे फिरि रहल छथि
हुनकर पीर सब हरबैन्ह ।
तेज घाम मे बूलैत टहलैत
हेता भुक्खल पियासल ।
गरा सॅ नीचा पानि नै उतरैन्ह
लागै सब किछु डाहल ।
सूुन भवन चमगादङि बाजै
दीप मिझल दीपदानी ।
दिवस कतेको पट नहि खोलथि
विरह मे रमल दीवानी ।
आब सखी ई कारी बादरि
ंमोन मे आगि पजारै ।
उमङि घुमङि चहुॅठाम सॅ बुलि क’
हमरे छत चित्कारै ।
बरसि बरसि सब दिस डूबा देल
दादूर झिंगुर बाजै ।
राति राति भर जागल चिल्का
सेहो पीर बढाबै ।
पानि बूनी मे भींज भींज क’
हेता कोना सौभाग्य हमर ।
कोमल काया पान फूल सन
छल न्ौ रौद बसात जोगर।
सुून भयौन जंगल मे हुनका
भानस के करि देतैन्ह।
जौं संग हमरा नेने रहितथि
ई दुख हम हरिलैतियैन्ह ।
कहै लोक सब छह बरख धरि
पता नहि कोनो ठेकाना।
कत्त कत्त नै दूत पठाबैथ
हारल सन महाराना ।
जतय कखनो चर्च हो हुनकर
सखी सब दोैग पङै फुरती सॅ ।
कान सुनै किछु हुनक खिस्सा
दृग बहै मस्त ी सॅ ।
अहि जनम की नाथ फेर सॅ
दर्शन पायत ई दासी ।
सोचि सोचि ओही परम पुरूष के
नीत दिन रहैन्ह उदासी ।
हाथ के रेखा रहि रहि देखैथ
बजबैथ पंडित ध्यानी ।
कि गुनल अछि करम मे हमरा
कहियौ पोथी बखानी ।
पतरा पोथा ल’ सब चुप छल
ई होनी त’ होनी छल ।
कोना क’ रोकि देता महाराज
कतबो करितथि छल वा’ बल ।
बाट घाट सॅ आनि पकङि
सेवक जन साधु लाबै ।
जंतर मंतर जादू टोना
सबहक नियम बताबै ।
ओझा गुनी दिन गुनै छल
दिसा दिस उच्चारै ।
कतेक दिवस धरि खेल चलल ई
किछु नै घाट उतारै ।
माईट आनै श्मशान सॅ
प्राण प्रिय सब चेरी ।
छिटै कियो बाट गंगा जल
शंख बजाबै ढेरी ।
ंमुदा लिखल के मेटा सकल कियो
ओ पकिया रंग सियाही ।
निष्क्रिय शासक बैस रहल छल
देखैत अपन तबाही ।
कपिलवस्तु के धुरि कनै छल
फफकि फफकि क’ हरदम ।
तीरथ बनै भलै भविष्य मे
एखनि त’ शोक सॅ सकदम ।
मूॅह सॅ वाक निकसबा खातिर
तरसैत रहि जाए गरै मे ।
हॅसी राज्य सॅ दूर पङा गेल
छोङि व्यथा नगरे में।
एला जखन प्रिय ज्ञानी भ’ क’
छह बरखक’ अन्तर प’।
महल अटरिया उमकए लगलै
नैन टिकल सुन्नर जोगी पर ।
शुक़ . पिक़ . . शुभ बोली बाजल
उङल चलल लग आयल ।
ंमाल जालसब दौगि दौगि क’
अप्पन नेह देखायल ।
सखी समेत विमाता आयल
छोङि क’ अपन धूनि ।
बांधव जन के घेर मे बैसल
मुस्कैत छल नव मुनि ।
मात्र क्षण मे बिजुरि चमैक गेल
बंद ऑखि के आगॉ।
महाभाग प्रिय कांत आयल छथि
मन बाजल भ’ बाजा ।
बलजोरि मन रोकि उठल छली
बेलगाम सब घोङा ।
एना किए उताहुल भेलौं
अपने औता ओ सोझॉ ।
सपन देखल भोर पहर
ओ देसदेस बूलै छथि ।
आगॉ पाछॉ टाढ जनि सब
उपदेश गुरू के सुनै छथि ।
ऑखि सॅ देखता संन्यासिन के
झूलसल झरकल काया ।
उठै किंस्यात मन मे कनिको
अहि अधम लेल माया ।
एला नाथ त’ ध्यान मे बैसल
मुस्कैत छली महाजोगिन ।
परम दृष्टि सॅ शाक्य हेरलखिन्ह
इहो रूप केहेन कय लन्हि ।
नजरि खूजल त’ चित्त शांत छल
नै कोनो अवसाद छूपल ।
नहि छल कोनो राग द्वेष
नहिं ऑखि मे कोनो भाव बेकल ।
कत्तेक ओज ओहि मुख मंडल पर
सहस्त्रों सूरज जेना एके ठाम ।
स्थिर ऑखि .. चुप .. .मौन बैसल
जीवन मात्र विराम विराम ।
क्षण मात्र मे प्रजा उठि क’
ओहि मार्ग प’ चलै लै बेकल।
भाय भतीजा . . मातु .. भार्या
सब नतमस्तक भ’ दीक्षा लेलक’।
भिक्खुनी बनल चलल यशोधरा
मुनि के पाछॉ पाछॉ ।
मन त’ पहिने त्यागि चुकल सब
तन के आब की बाधा ।
जीवन के चरम उद्देश्य बूझि
बंधन मे किए रहै प्राणी ।
छाया बनि क’ मनुक्ख रहै छै
आगॉ चलै पिहानी।
ठाम ठाममे बुलि बुलि क’
देखल दूखक जीवन ।
कोना नोर सॅ नोर बहै छै
सुनि मुख कष्टक वर्णन ।
बौद्व विहार शरण स्थली भेल
ध्यान .. चिंतन. . . उपवास मनन के ।
तजि पोथी वेद उपनिषद .. . .
मानव के सहज सरल जीवन के ।
कष्ट भरल अहि संसार सॅ
पार उबारय के बेङा ।
साधन सामथ्र्यहीन स्त्री के
नेत्री भेलीह यशोधरा ।
सबहक लहकैत दग्ध हृदय पर
शाश्वत सत्य के लेप लगा ।
शांत कयल जखन महाभिक्खुनि
ऑखि फाङि क’ लोक हेरल ।
अलख जगौने जखन चलै छल
महादेवी संग जन्नी जाति ।
दृश्य निहारि क’ भरि जायत छल
जङ चेतन के छाति ऑखि ।
माटि के कण कण सटि क’
महासुन्नरि के तरबा सॅ
कहै सखी हमरा नहि तजबै
हम गहने छी कहिया सॅ ।
हमरो ई अभिलाष छल की
बुद्व के रूपमति रानी।
चलै राह पर जनम सुफल करि
जन .जन के कल्याण करैथ।
आस पङोस के राज मे पहुॅचल
विद्युत तरंग सन यशुके गान
राजकुवॅरि किछु पछोङ धेलन्हि
राजागण लेल बुद्व के नाम ।
सही अर्थ मे ई सहचरि छल
बुद्व एहेन परतापी के
जौं ओ छल हेता ब्रह्य त’
ई साक्षात ब्रह्यानी छल
प्हिल बेर इतिहास मे नारि
राज तजि संन्यास चुनल ।
दीन दुखी शोषित प्रताङित
लेल अपन दृष्टि फोलल ।
भाग सं बढ़ि कऽ हमर अछि दुर्भाग्य ,
हमर बाप छथि अतिशय निर्धन ,
नै छनि खेत पथार नै सोना आ धन ,
निर्धन बापक सुन्नर कन्या ,
कोना करता दान बेटीक, बेटबेचबा अछि दुनिया ,
ई कियो नै सोचथि जखन एती दहेजुआ बेटी ,
करती बिग्रह जीबन मरण कऽ देती ,
अपन बापक किनल बसहा बड़द पर करती अधिकार ,
आँखिसँ नोरक तखन बहतनि धार,
निर्धन घर जुनि धीया जनम देब भगवान ,
नै अछि ऐ जगमे बेटी केर कोनो मान,
नै अछि तँ हएत अहूँ घर मे एक दिन बेटी ,
सुनु यौ मैथिल आबहु तँ चेती ...!!
जहिया सँ गेलाह प्रियतम परदेश ,
किओ नै दै अछि हुनक उदेश ,
बाट जोहैत जीबन हमर भेल शेष ,
नोर सुखाइल करेज भेल पाथर,
कतेक लिखब हम फुरै नै आखर ,
सिनुर टिकुली सेहो भेल झाम,
आंखि केर काजर बहि गेल कोन ठाम ,
नै अछि सोह कोनो केहन भेलहुँ बताह,
हमर दुखःक नै अछि कोनो थाह ,
मनक मनोरथ मोनहि रहि गेल ,
सपनेहुँ नै प्रियतम केर दरसन भेल ,
तूँ नै करबें तँ करतै के हमरा पर दया हमर गै माँ ,
हम तँ तोरे छी छांह , राखऽ दे ऐ जगमे पाँव ,
अछि मनमे लालसा बहुत देखी दुनिया केर रंग ,
रहब तोरे हम संग ,करबइन किनको नै तंग ,
निर्मोही छथि दाइ, बाबा आ बाप ,
कतेक केलो बिना कतेक केलौं बिलाप ,
नै अछि कोनो ऐ जगमे हमर सहारा हे गै माँ ,
तू नै करबें तँ करतै के हमरा पर दया हे गै माँ ,
जहिया पढ़ब, लिखब पोथी भाइए केँ पढ़ि लेब ,
छोड़ल भैयाक ऐँठ खाय हम जीबन जीबि लेब ,
खुजऽ दे तँ हमर आँखि एक बेर हे गै माँ ,
करब उजागर नाम हम पुरखाक, हएत नै देर हे गै माँ ,
कनी सोचही चिंतित भऽ हेतै जौँ केवल बेटा ,
लेती नै जनम बेटी तँ ई बेटा कतए सँ एता ,
कखनो नै खाली होइ अछि ई गागर ,
फूसियो जँ कखनो हम रुसि जाइत छी,
आबि--आबिदेखू कोना हमरा मनाबथि
बाटकेँ सदिखन दूर करती अँधियारा ,
माँ लेल बच्चा होइ अछि बड़ प्यारा ,
सत्य क मार्ग ओ तँ सदिखन देखाबथि,
राइत मे जखन हमरा नीन नै आबए ,
लोरी बैस कऽ सगरो राइत ओ सुनाबथि ,
जखन- जखन भयस हम घबराबी,
हाथ मे आँचल हुनके तँ हम पाबी ,
माँ तँ होइत अछि सभ गुण केर आगर,
माँ केर ममता होइ अछि जेना सागर ,
कतेक कहू,कहिआ हेतै खतम ई दहेज कहर,
किनको आइग लगेनाइ किनको देनाइ जहर,
बृदध् होइते सासु जी किए ई बिसरि जाइ छथि एहसास,
काल्हि ओहो छलथि कनियाँ आइ बनल छथि सास,
ननइद नै ई सोचलन्हि जेहने ओ छथि अपन माँ केर प्यारी ,
हुनक घर जे एली भाउज सेहो छथि अपन माँ के दुलारी ,
ऐ बातकेँ कहिया बुझथिन ऐ बातक तँ कननाइ अछि ,
आइ जे भाऊज पर होइ छनि काल्हि हुनको पर होनाइ अछि ,
सात फेरा लेलैन जे हमरा संग प्रेमक नगरी बसओलनि ,
देवता बुझि कऽ जिनका लग एलहुँ सेहो कसाइ भऽ गेलनि,
आब देखू ऐ देशमे ,
लाल कम लाला बेसी अछि ,
काम कम घोटाला बेसी अछि ,
आब देखू ऐ देश मे ........!
सामान अछि बड़ कम,
महंगाइ बेसी अछि ,
आब देखू ऐ देशमे ........!
नोकरी अछि बड़ कम ,
बेरोजगारी कतेक बेसी अछि ,
आब देखू ऐ देशमे ........!
ईमान कतेक कम अछि ,
खरीदारी कतेक बेसी अछि ,
आब देखू ऐ देशमे ........!
सेवा अछि बड़ कम ,
स्वार्थ कतेक बेसी अछि ,
आब देखू ऐ देशमे ........!
शब्द अछि बड़ कम ,
शब्दार्थ कतेक बेसी अछि ,
आब देखू ऐ देशमे ........!
केलियनि हे ऊधो ........!
जौँ हम रहितौं बनक मयुरनी ,
कृष्ण करथि शृंगार मुकुट बिच ,
शोभितहुँ हे ऊधो ........!
जौँ हम रहितौं बैजंत्रीक माला ,
कृष्ण पहिरथि हार ह्रदय बिच रहितहुँ ,
हे ऊधो .........!
जौँ हम रहितौं बाँसक बाँसुरी ,
कृष्ण करथि स्वर गान मधुर स्वर ,
बजतौँ हे ऊधो .......!
जौँ हम रहितौँ जलक मछली ,
कृष्ण करथि स्नान चरण हम,
छूबितौँ हे ऊधो ....!
कोन अगुन अपराध हरी जी के ,
केलियनि हे ऊधो .......!!
हे यै सुंदरी आँचर छोड़ब कोना , अहाँ जाएब आँगन हम रहब कोना ,
अछि लाजक बात बताएब कोना ,हम माइक सन्मुख जाएब कोना ,
हे यौ प्रियतम आँचर छोइड़ दिअ भेल प्रात आँगन हम जाएब कोना .
सुगंध
सुमनक जेना गमकि उठैत अछि ,
प्रेम हुनक ओहिना मन मे कसकि उठैत अछि ,
बात कहबाक जे छल से कहलो ने जाइ,
प्रीतम अहाँ बिनु हमरा रहलो ने जाइ ,
अखिआश अहाँक बैसल भोर सँ ,
देखियौ तँ कोना साँझ भए गेल ,
चिक्कश सनैत छलौं सेहो घोर भए गेल ,
पहिलुक ओ रंग रभस बिसरल नै जाइत अछि ,
जखन ई सोची तँ नयन बर्बसे झुकि जाइत अछि ,
कखनो बुझाइत अछि आगम अहाँक ,
भागी-भागी देखि मुँह दर्पण मे जा कऽ ,
सजी धजी कऽ जखन चौकैठ लग गेल छी,
धुर जाउ की भेल ऐ बातसँ हँसी कऽ गेल अछि ,
हंसनाइ ओ खेल ओ मुस्कान ,
रहैत छलहुँ ऐ जगसँ दूर,
सभटा गमसँ अनजान,
नै तँ कोनो दुःख छल नै छल कोनो सपना ,
भावुक नै होइत छलौं के अछि आन के अपना ,
खेलामे होइत छलै कखनो हारि,
कखनो तँ होइत छलय जीत ,
कखनो होइत छलै झगरा झांटी,
कखनो गबैत छलौं हम गीत ,
थोड़बा छल लड़ाइ थोड़बा छल रंग ,
कतेक सुहावन छलै सखी सहेली केर संग ,
ओ गुड्डा गुड्रियाक कतेक नीक छल खेल ,
ओइ आम गाछीक अपन संगी सभसँ मेल ,
तखन कतेक करैत छलौं माँ बाबु जी केँ हरान,
कतेक नीक छल हंसनाइ आ ओ मुस्कान ,
सदिखन रहैत छलौं सभ गम सँ अनजान .
कोलाहल अछि सागर एहेन ,
लहर एहेन अछि भरल द्वन्द्व,
पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहेन अछि आनंद ,
जिनगी क ई रस देखू तँ ,
कतेक लगैत नुनगर अछि ,
जीत जाइ अछि दुःख दर्द सभ,
एसकर सुखे टा हारल अछि ,
फूल सरीखा मांछक ऊपर ,
बिछायल अछि काँटक फंद,
पर्वत एहेन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहेन अछि आनंद ,
जतबे ताकी हम शीतलता ,
ओतबे लहरल आगि भेटाए,
प्यास तँ चुप चाप भेल अछि ,
मौनक मदिरा हम पीलहुँ,
संपन्न भऽ गेल सभटा गीत ,
शेष बाँचल अछि व्यथा केर छंद ,
पर्वत एहन दुःख भरल अछि ,
आ ढेपा एहेन अछि आनंद ,
हमर मोनक आशा पुराएब कहिया ,
नीक लागए नै आब माँ बाबुक दुलार ,
अहाँ अपन प्रेमक ज्योति जरायब कहिया ,
हे यौ प्रियतम सरस ........................!
बड़ देखलौं बम्बई आ दिल्ली शहर ,
मधुबनी दैरभंगा घुमाएब कहिया ,
हे प्रियतम सरस .............................!
नीक लागए नै दालि भात आ माँछ मांगुर ,
अहाँ गरम जिलेबी खूआयब कहिया ,
हे यौ प्रियतम सरस ........................!
बनी बैसल छी ओतै कुमदनीक फूल ,
मोनक उपवन मे बेली फुलायब कहिया ,
हे यौ प्रियतम सरस .........................!
बनि बैसल छी कहिया सँ नवकी दुलिहीन,
अहाँ नैहरसँ हमरा लऽ जाएब कहिया ,
हे यो प्रियतम सरस ..........................!
१३
स्वप्न देखी अहाँ छी जेना दुतिया केर चान,
अहाँ पूनम के चान बनि आएब कहिया,
हे यौ प्रियतम ..................................!
बिसरल नै होइत अछि अहांक मुस्कुराइत छवि ,
अहाँ अपना संगे हमरो हंसायेब कहिया ,
हे यौ प्रियतम ...................................!
नीक लागए नै अहाँ बिनु कोनो शृंगार,
हाथ अपने अहाँ सिन्नुर लगाएब कहिया ,
हे यौ प्रियतम ...................................!
अनेरो खनकै अछि चुड़ी कंगन ,
हमर हाथ केर कंगन खनकाएब कहिया ,
हे यौ प्रियतम ....................................!
देखू प्यासे तँ गेल हमर अधरों सुखाइ,
अपन अधरसँ अमृत पिआएब कहिया ,
हे यौ प्रियतम सरस ...........................!
पत्र लिखैत-लिखैत हमर हाथो पिरायल,
हमर दर्दक दाम अहाँ चुकाएब कहिया ,
हे यौ प्रियतम सरस अहाँ आएब कहिया !!
१
जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’
गजल
१
जिनगी कें अखबार बनौने बैसल छी
हम घरकें बाजार बनौने बैसल छी ।
श्रद्धा, ममता, स्नेह, प्रेम, आनंद पूज्य थिक
हम सबकें ऐंठार बनौने बैसल छी ।
सोझां केर संसारकें माया मानी हम
हम मायाकें संसार बनौने बैसल छी ।
गांधी दुनिया जितलनि सत्य, अहिंसासं
प्रेम कें हम व्यापार बनौने बैसल छी ।
ब्याह थीक दू अंतरात्मा केर मिलन
हम जातिक ओहार लगौने बैसल छी ।
शिक्षा मैया हरती सब दुख जीवन केर
हम मूर्तिक अंबार लगौने बैसल छी ।
नियम बहुत अछि भष्टाचारसं लडबा लए
हम सबकें लाचार बनौने बैसल छी ।
२
भूख अशिक्षा आओर अन्हार अछि मिथिलामे
गर्म बहुत ब्याहक बजार अछि मिथिलामे ।
गाम कते अछि बिला गेल कोसीक धारमे
अनगिनती सूखल इनार अछि मिथिलामे ।
जाति,पांजि, कुल, शील, मूल आ गोत्र,गाम
तिलक-दहेजहु के विचार अछि मिथिलामे ।
पेट भरैले’ लोक हजारो भागल दिल्ली
सय बीमार आ एक अनार अछि मिथिलामे ।
पोल गडायल गाम-गाममे कानि रहल अछि
बिनु बिजली गरमी,गुमार अछि मिथिलामे ।
खेबा ले’ एखनहुं अल्हुआ,मडुआ,बिसांढ
सुतबाले’ एखनहुं पुआर अछि मिथिलामे ।
कोन कृष्ण कहिया अओता से के जानय
दुख केर गोवर्द्धन पहाड अछि मिथिलामे ।
२.
३.
निक्की प्रियदर्शिनी- दूटा कविता
व्यापार आ शिकार असगर करी,
आदर आ उपकार सभक करी,
प्रेम आ कल्पना मनसं करी,
कपट आ छल कखनो नहि करी,
कष्ट आ दुःख मे संयम सं रही,
खेत आ खरिहान मे काते-कात चली,
विचार आ खण्डन अवश्य प्रकट करी।
समाजक प्रश्न ?
समाजक प्रश्न स्त्रीक कतेक सीमा ?
आब त’ भेल आब कतेक आगां ?
की आब बना देबैक अमेरिका आ इग्लैण्ड ?
मुदा कहां बदलल अछि मानसिकता ?
स्त्री कें देखक, व्यवहार करएक,
अहां स्त्री छी ई एहसास सदिखन,
कहां बदलल अछि।
देखला सं की होइत अछि ?
आ देखला सं की भ’ जाइत अछि ?
एकर अतिरिक्त,
उचित व्यवहार, उचित स्थान,
कहां देल गेल अछि ?
जरूरत बुझि पड़ैत अछि ?
समान अधिकार, समान महत्व आ समान प्रेमक,
कतए ?
समाज मे कागज पर नहि।
छोडि आहाँ गेलंहूँ हमरा
एसगरी अहि वन में
मनक बात कहब केकरा
कें पतियाएत व्यथा हमर...
चहुँ दिश रंग- बिरंगक आ सुगंधक
अछि फुल खिलाएल
मुदा एहि बिच में
हम छी मुर्झाएल...
वन बबुरक गाछ सँ अछि भरल
हर एक डेग पर अछि काँट चुभैत
किछु चंदनक गाछ सेहो अछि
जेँ अपन महक सँ मन-मुग्ध करैत अछि
मुदा क्षणिक !!!
हमर मनक घोडा त'
बबुरक काँट पर दौडैत
आँहाक स्मृति में हेराए जाइत अछि....
जखन सागरक लहर सँ उठल सर्द पवन
हमरा तन के छुबैत अछि
त' बुझि पडैत अछि
जेना आँहाक कोमल हाथ स्पर्श करैत हुअए
मुदा, की सपनो सच होइत अछि ..???
कियाक छोडि गेलंहूँ हमरा एसगरी
आहाँ के त' बुझल छल
कतेक आहाँ सँ स्नेह अछि हमरा
आहाँ बिनु एक पल जिनाई कठीन
ई त दिवस भ' गेल गेला'
की आहांक स्मृति में हम नहि छी ..???
की आहांक ह्रदय हमरा बिनु
नहि कपैत अछि ...???
शायद !
आहाँ निसहाय होएब
नित्य फुला मुर्झाईत होएब
हमरे जेना अहुँ शोनितक घूँट पिबैत होएब
"बिनु पानी माछ" जेना तरपैत होएब
विरहाक आगि में भुस्सा जेना
नहु-नहु जरैत होएब.....
आब बड भेल
बड सह्लों विरहाक दर्द
आउ आब नव वर्ष में
मिल क करी प्रेम सुधाक रसपान.......
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।