भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Monday, January 16, 2012

'विदेह' ९७ म अंक ०१ जनवरी २०१२ (वर्ष ५ मास ४९ अंक ९७) PART V


१.परिचय दास-मूल भोजपुरीसँ मैथिली अनुवाद विनीत उत्पल २.निशांत  झा ३. आशीष अनचिन्हार- सेनूरदानक गीत- ४. अजीत मिश्र
५.पवन झा अग्निवाण




परिचय दास- मूल भोजपुरीसँ मैथिली अनुवाद विनीत उत्पल द्वारा

बेसीकाल शब्द जखन


हम विश्वविद्यालयक प्रेक्षागृह मे
बैसल रही,
आयल छल अज्ञेय जी,
ओ करूणामय बुद्धक निवेदित 
अप्पन कविता केँ
केलखिन पाठ
हम्मर बगल मे बैसल
सज्जन हमरासँ कहलक-
वात्सायनजी केँ सुनि कऽ
एहन लागैत अछि, जेना
मौन शब्द बनल गेल अछि
वात्सायन जीक
मौन नामी छल।

साहित्य अकादमी मे भेल छल व्याख्यान
विषय छल-संगीत आ विचार
संगीतक संबद्ध जेहन राग आ छंद से अछि
ओहिना अछि मौन सँ,
वात्सायनजीक मौन
ओ सेहो चर्चाक केंद्र मे
उपस्थित छल
मौन कोनो
निठल्लाक इतिश्री नहि अछि-
ओ सकारात्मक क्रियाक
सहज पूर्व भूमिका अछि।
बहुधा शब्द जखन अप्पन
गति बिसुरि जाइत अछि
तखन मौन आगू अबैत अछि।
खाली शब्द केँ हम सभ कियो
विचारक अभिव्यक्ति 
दऽ कऽ देखियौ तँ
भावमुद्र शब्दसँ बेसी
बलवती आ
वेगवती होइत अछि।

बिहारीक नायिका
'भरे भौन मे नैनन ही सौं बात'
करैत अछि।
कहैक अंदाज देखू-
कहत नयन रीझत-खिझत
भरल भौन मे करैत अछि
नैनन ही सौं गप,
सन्नाटाक
एकटा
छंद होइत अछि,
एकटा छंद
मौनक,
मौन मे
अपंगता नहि होइत अछि-
यानी 
समर्थ केँ
मौन नीक लगैत अछि
बिलकुल चुपचाप
घाघराक तट पर
सांझक बेला मे
पीब लियो
शब्दहीन
हम चहलकदमी कऽ रहल छलहुँ ओतय
की कोनो छौड़ा
(बहलगंज चाहे दोहरी घाट मे कत्तौ हएत)
विरह मे छल-
बालू आ  रेत पर
डेग कोना चलब

बालूक रेत
भगवान भास्करक
रश्मिसँ
तरेगन जेहन 
चमकि रहल छल।
मिनट-दू-मिनट बाद सूर्य
देवता
भारतसँ लऽ कऽ अमेरिका धरि क
यात्रा पर
चलि जाएत।

हम अपलक
देखि रहल छी-
एतबा सोना!
रश्मि स्वर्ण!! 
बजारमे सोनाक
दाम जेत्ते हुअए
ई सोना तँ
अमूल्य अछि!
आजुक पेशेवर विचारक
बहुमूल्य विचार दैत अछि
मुदा अमूल्य नहि!

मुदा विचारे टा 
सँ
की हएत
समकालीन दुनियाक
संकट ई अछि जे
विचार आ कर्मक
सामंजस्य नहि अछि।

शुभ आ लाभक
समन्वय नहि अछि
अहिसँ किताब
पुस्तकालयमे राखल
कुहरि रहल अछि
आ विचार कर्महीनताक
चक्रव्यूहमे।
पैघ-बुजुर्ग कहैत रहथिन
सिद्धजन बड़ नीक
नहि देलक भाषण,
ओ जे कहलखिन
नीक करबाक केलक प्रयास
अहिसँ हुनकर
शब्द ब्रह्म बनल
ब्रह्म कोनो वायवी
अवधारणा तऽ नहि अछि।

ओ तँ
अपना सभक
आत्मीय जरूरत अछि
जेहन
शब्द,
तेहन
मौन।

अहि संसार मे
जखन किछु
मंगल आ
शुभ होइत अछि
ओकर एकटा छन्द होइत अछि

माघक कुहासा
छेक लेलक बाट
हम ओकर
पार करबाक
प्रयास केलहुँ!

राति मे
बैसलहुं तँ
बुढ़िया माय साग-भात
देलक खाइ लेल।

हम ओकर चुल्ही पर
गरम करैले
कहलहुं
हम कोनटा लग
बैसि गेलहुं।
तखैन घर भरन
आयल
आबैत
किछु कहलखिन
हम जानि लेलहुँ
जे ओ गाम भरि क
गपक खबर राखैत अछि
किछु लोक हुनका नारदो
कहैत अछि।
ओ कहैत अछि-
'ऐँ यौ,
बाबू सुनि लियौ जे
परमुआँक घर मे
'हुड़ार" आयल छल,"
ओकर 'हुड़ार" शब्द पर 
जोर दैत
हम बुझि गेलहुं
जे मामला किछु
आओर अछि,
हम मौन रहलहुं, 
ओ फेर कहब शुरू
केलक-
देखू नहि, गाम मे यएह
आइ-कालि
भऽ रहल अछि, 
आब  अप्प्न सभक
कोना इच्जत बचत।

दोसर दिन कियो
हमरा कहलक
जे अपने घरभरना
परमुआंक घर मे
घुसल छल।
हम सोचलहुं:
शब्द सं
धोखेबाजी अहिने
कएल जाइत अछि।
हम जौँ नाम लऽ लैत छी
तैँ भऽ जाइत छी बदनाम,
ओ कत्ल कऽ दैत अछि
तेँ चर्चा नहि होइत अछि।
मारीच सेहो लेने छल
शब्दक सहारा
अश्वत्थामाक केस 
मे सेहो
लेल गेल छल,
जौ एहि के आश्रय
नहि लेल गेल हएत
तखन गप ई नहि कहल जाएत
'कारण कवन नाथ मोहि मारा,
मैं बैरी, सुग्रीव पियारा।"
---------------------------
ई कहि कऽ
हम मारीच चाहे बालि कऽ
वकालतनामा
नै प्रस्तुत करै जाएत.

ओना
माइकेल मधुसूदन दत्त मेघनाद केँ
पक्ष लेने रहथि.
हम तँ मात्र
शब्दक
आचार-विचारक
प्रश्न
खा कऽ रहल रही

हमरा सभक उपस्थिति
शब्दक बाहरी आवरणक लेल खाली
नै हेबाक चाही.
हमरा सभकेँ ओकर
 न्यूक्लियस
चिन्हबाक चाही. 
शब्दक छलना-वर्जनाक 
एगो सात्विक प्रतिक्रिया
देबाक चाही.
सभ सँ नीक अछि :
मोनकेँ मधु बना लेलक -
मौन मधु भऽ जाए।

गप आ अपन बीच क
तटस्थता
जरूरी अछि.
वात्स्यायन जी
अपना आ देवताक बीचमे
दूरी राखैक
गप कहने रहथि।
आइ देवता सभक प्रति 
नव दृष्टि बनि रहल अछि।
उपिनषद् मे एक ठाम
 तर्क  केँ गुरु  मानल गेल अछि।
आधुनिक युगक नव देवता 
क भूमिकामे
 चिरंतन दृष्टिए भऽ सकैए
शमशेर बहादु सिंहक शब्द लेल जाए - 
 बात बाजी, हम नै
भेद खोलत बाते।

हम शब्द आ मौनक द्वन्द्वमे
पड़ि कऽ सैकत भूमि पर नै जानि
निकलि गेलौं कतऽ !
किछु गोटे कहि सकैए
कि जतऽ नै पहुँचैए रवि
ओतऽ पहुँचैए कवि....
किन्तु
हम तँ एहेन ठाम देखने छी
जतऽ नहिये कवि पहुँचैए
नहिये रवि !
सरयूक तटपर
बनल मलाह आ पंडाक
घर देखै छी ...
सिमसिमाएल ....
नै ऐठाँ
कहियो कवि पहुँचल
नहिये रवि.

बालूक
चमकैत
कण-राशि
हुनके आमंत्रण देलौ.


निशांत  झा, माँ  श्रीमती मंदाकिनी देवी (प्रधानाध्यापिका म. वि.) (साहित्याचार्य), पिता श्री प्रद्युम्न नाथ झा (समाजसेवी), घर सिंगियौन, प्रखंड राजनगर, जिला मधुबनी,


कविता

दाँत मे फँसल
अड़बेंगल आ क्लिष्ट शब्द क काफिया नै थिक
कविता,
जिंदगी क खराब अनुभव जे
कारी चट्टान
क निच्चा
पीअर रेत सँ डिरिया रहल अछि , गर्म चिटठा जकाँ अछि
ऐ कविता क आकार
कोनो समाज क कद सँ पैघ तँ नै
मुदा ओइ समाज क न्याय सँ पैघ अछि
जे अन्हरिया राइत मे भुइक रहल कुकुर क वफादार होबक प्रमाण पत्र दैत अछि
की अछि कविता
मासिक धर्म सँ निवृत्त स्त्री क चेहराक हर्ष
ई तँ देशक दुर्भाग्य अछि
आकि ऐ देशक कविक
या तँ माशूकपर कविता लिखि रहल अछि
या बसंत पर...
सरकारी आ ईमानदार जमादार क आँइख
जे कोनपर पड़ल लाल पीक जकाँ ललचाबैत अछि
आ हमर धर्म बरगद क छाहरि पर शिक्षा दैत अछि
"
ई जे कोना पर लाल अछि"
सूरज क अह्निे गुलाल अछि "
लिखनाइ एतेक खराब नै
की बुराइक स्थापना कएल जाय
आ हमर भरती ओतय निःशुल्क भऽ जाय
फेर अहाँक लेल की पथ बाँचत ..
श्रम
सोचलौं हम एक दिन संसार मे सैर करू
अपन कल्पना क लहर पर धीरे - धीरे हेलऽ लागू
तखने विचार आयल मोन मे कल्पना सँ ऊपर उठू
अपने चलइते चलइते धरती पर पएर रखू

जखन धरलौं पग हम पृथ्वी पर
किछु अहसास भेल एहेन
ज़िंदगी क चाइर दिन
, तैयो जीवन केहेन ?

एतऽ नजरि उठेलौं तँ पेलौं
कृषक श्रम दान कऽ रहल छल
कानी हाथ रुकइ नै छल
एहन मेहनत करै छल .

आँइख धँसल छलय भीतर
भुखायल पेट पिचकि रहल छल
पसीना क कंचन बूंद सँ
तन हुनक चमैक रहल छल .

देख क हुनक ई हालति
एक आघात भेल एना मोन पर
जीवन पाललक जग केँ जे
रक्त देखैत ओकर तन पर

किछु पग आर चललौं आगाँ
एगो आलीशान भवन ठाढ़ छल
श्रमिक क शोषण कऽ कऽ कए
अपना केँ गर्वित बुझि रहल छल .

कहलक गर्व सँ ओ एना
ई सभ हमर कर्मक फल अछि
कयलक ज़िंदगी भरि श्रम ओ
लेकिन तैयो निष्फल अछि .

तखन पुछलौं हम ओकरा सँ
सुन तोहर कर्म केहेन छौ
हँसि कऽ बजल ओ एना
सबटा धन केँ आइड़़ मे छुपाएल अछि .

सोचलौं हम धन केहेन अछि
जे सभ किछु छुपा लैत अछि
पाप केँ पुण्य आ
पुण्य केँ पाप बना दैत अछि .

सोचैत सोचैत गाम क दिश बढ़ल कदम
कि लोककेँ केहेन अछि भरम
एक दिन अहिना फेर ओही दिश पग बढ़ि चलल
जतय कृषक आ भवन छल मिलल .

देखलौं ओतय हम -----
कृषक मग्न भऽ काज कऽ रहल छल
पसीना केँ पोइछ ओ हर जोइत रहल छल
दृष्टि गेल भवन पर तँ बझलौं
कि मात्र एकटा खंडहर ओतय ठाढ़ छल .

ओ देखि कऽ हमरा
ओकर बात बुझइमे आयल
कि कर्म क अनुसार
आइ तूँ ई फल पेलें
हमरा मुँह सँ ओइ समय
यएह शब्द निकलि गेल
नै ओझरायब ऐ भ्रम - जाल मे
नै तँ इंसान तँ एतऽ छलल गेल .
आशीष अनचिन्हार
सेनूरदानक गीत
कारी केश बीच कोसी-कमला सन सींथ
ताही मे देथिन्ह सेनूर अनचिन्हार रे----------

 
अपन धियाकेँ पोसने छी बड़ा रे जतनसँ
करेजा साटि रखने छी बड़ा रे जतनसँ
दुलहा आगू आब अहूँ रखबै विचार रे

 
सेनुरेबै जते नीकसँ यौ दुलहा बाबू
रहब दूनू तते नीकसँ यौ दुलहा बाबू
विष्णु बनि करिऔ हमर ललनाकेँ उद्धार रे

 
सियाराम सन जोड़ी जुगल बैसल आँगनमे
देखबा लेल सगरो टोल पैसल आँगनमे
पाहुन सेनुरेलथि भेलथि चिन्हार अनचिन्हार रे......


अजीत मिश्र
आ ह्लाद भरल हो आगत ई नववर्ष,
ग मन करी चहु दिस, सदा सहर्ष।
त न्मय भए करी पूर्ण सभ इच्छा,
          स्वा गत नववर्षमे, स्वत: मनक सभ इच्छा।
         ग गन-धरा सभ ठाम, गुँजए अहाँक जे यश,
           त गमा अगबे भरल,   रहए शत्रु सदा विवश,
 न ग पर साजए यश-प्रतिष्ठा, हो परिपोख सुयश।
व त्सर-वत्सर सदा बढ़ए, यश- मान- प्रतिष्ठा,
सा ल हजार-हजार रहए, वंश-मान अधिष्ठा।
ल क्ष्य सदा परहितकेर, तेँ अपनेँ विज्ञानी,
       क र सेवामे सदा निरत, हे अभिनन्दन सुज्ञानी।

५.
पवन झा अग्निवाण

 

चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम
विस्मृत जुनि करियौ मिथिला के यौ मिथिलाक संतान

घूमि देश-परदेश कमेलौं खूब टका, सम्मान
देशी सा साहब तक बनलौ, बदलि अपन परिधान
प्रतिभा के कायल अछी दुनिया खूब करे गुणगान
लेकिन सोचियौ मिटा रहल अछि मिथिला के पहचान
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम

खेती-बाड़ी छूटल गामक, फूटल घर, दलान
भाई-भाई में माथ-फोरौव्वल , लागैथ शत्रु समान
अपन बोली तीत कतेक प्रिय अछि बोली आन
ई मूरखता के के रोकत अस्त भेल दिनमान
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम

जनकसुता के नगर में देखू नारी के अपमान
जत रचाओल गेल स्वयंबर ओतय दहेजक दाम
कानी रहल अछि मिथिलाक नारी बिका रहल स्वाभिमान
कोन विधि स चुका रहल छी संस्कृति के प्रतिदान ?
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम

और कतेक दिन सुतल रहब जागू यौ श्रीमान
आबो नहीं जागब त बुझू संकट हैत महान
विकसित करियौ मिथिला के आ राखू अपन मान
तखने भावी पीढ़ी करत मिथिला के जयगान
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम



ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१. प्रवीण नारायण चौधरी २.डॉ॰ शशिधर कुमर ३.नवीन कुमार "आशा" ४.मनीष झा बौआभाई 
    
       प्रवीण नारायण चौधरी
       
जाड़मे प्यार!

एहेन कठोर कनकनी से आउ मोरा हृदय लागू ना..
ललना हे! बड़ खन भेल इ दूरी से आउ मोरा हृदय लागू ना!

माघक जाड़ो बड़ा जुल्मी से आउ मोरा हृदय लागू ना...
ललना हे! सदिखन सुमिरी ओ गर्मी जे आउ मोरा हृदय लागू ना!

धैन इ अन्हरिया हे राति जे अहाँके हम जी भैर देखी ना...
ललना हे! नींद के मारिके गोली से आउ मोरा हृदय लागू ना!

बड़-बड़ सोचल परखल कहिया इ जाड़ो औतै ना...
ललना हे! एहेन प्रेम केर पलमें से आउ मोरा हृदय लागू ना!

एहेन सुहावन संगी के स्नेह केर मौसम इहो ना..
ललना हे! जी भैर देखु न हमरो से आउ मोरा हृदय लागू ना!

समय के धार अनुसार चलैत छी हम सभ,
शिक्षा के महत्त्वके आत्मसात करी हम सभ,
संसार में सभ के अपन-अपन भूमिका छैक,
अपन कर्तब्य के आत्मसात्‌ करी हम सभ।

 
चोर के चित्त अछि चान पर!

कोन चान प्रिय?

जेहि चान के चिन्हय चोर टा, ओ चान के चिन्हू चित्त सँ प्रिय!

धूर छोड़ू मजाक! सीधा कहु ने!

जुनि चित्त के चंचल एना बनाउ प्रिय जे चोर भागय जान सँ!

इ चोर-चोर करिते-कहिते, मन हमर आर ने दुखाउ प्रिय!

सुनु प्रिय! इ चोर केओ आन नहि बस मन के भीतर प्रेम थीक!

ओ चोर हमरा चिन्हल अछि, एहि चोर के संग हमहुँ थीक!

बस मन मिलय - ओ चोर कि, कि हम कि, कि आर कि!

बस अहाँ छी, बस हम छी, नहि आर किछु, नहि आन कि!

प्रेमी-प्रेयसीके बीच वार्तालाप के मैथिली रूप!

सप्रेम भेंट! नव-विवाहित युगल-प्रेमी सभकेँ प्रति समर्पित!
 
 
 तुँ तूही रे, हम हमहीं छी,
तुँ तूही रे, हम हमहीं छी,
बिन हुनकर रे कि तू हम कि?

बाजब मोरा तोरा प्री लागौ, वा अप्रि लागौ,
पर बाजी हम तऽ सच बाजी!!
सच वैह होइत अछि जेकरा सभ माने,
यदि तू मानें वा नहि मानें!!
पर सच अछि कि आ झूठे कि,
बिन हुनकर रे कि तू हम कि?

तुँ तूही रे, हम हमहीं छी,
बिन हुनकर रे कि तू हम कि?
 
 
सभ सँ सस्ता कविता!

देखि रहल छी हाट-बाजार - घूमि रहल छी गाम-शहर,
धूम मचल अछि, शोर मचल अछि, सभ सँ सस्ता कविता!

इ कविता जे केवल रचब, केवल वाचब, केवल लिखब,
करय बेर में नाँगरि सुटका कैँ-कैँ करैत पछुवैत परायब,
एहेन भूस के बखाड़ी सँ नहि पेट भरत यौ मैथिल कवि,
रचनामें जँ दम नहि होइ तऽ अजगर बनल अजोधक भीड़,
धूम मचल अछि....

जहाँ दू दिनक फुर्सत भेटत लिखब कोनो रचना नीक,
अपना दही के खट्टा सुनि के पियब मेर्चाइ के झोरे तीख,
इ नहि सोचब जे रचना सँ रचल जैछ सुन्दर संसार,
लोकके जीवन के हर क्षण में जेकर बनैछ सुन्दर आधार,
धूम मचल अछि.....

पथियामें जेना काँकौड़ खिंचय टाँग दोसरके सुनु यौ मीत,
अगबे गप के भंडारा सऽ अनोन बनल मिथिलाक सब रीत,
जौं कर्ता आब वक्ता बनता कहू जे करतै के सभ काज,
अहिना सभ दिन कविता रचबै कहू जे चलतै कोना के राज....
धूम मचल अछि.....

 

 

नीक लगै तोहर मुस्कान

आँखि खोलि कि हम आइ देखी प्रिय,
बन्द आँखि अहाँके हम देखैत छी।
सुन्नरि हे सलोनी संगिनी प्रिय,
...
नीर प्रेमक अहींके हम पिबय छी।

पहिले देखल हम सपना में, ताकि-ताकि थकल मन विपना में।
चुपचाप रही बस नयन हेरी, कहियो तऽ देखब हम विपना में।
जीवन के अनेको पल बितल,
बस आइ देखि हम फूलल छी।
आँखि खोलि कि हम.....

जानी नै एहेन कोन जादू छै, आँखि देखि एना हम डूबल छी।
इ केश घना रेशम अछि प्रिय, मदमस्त छटा सँ पागल छी।
आइ सभ सुख के ओ सागर में,
भरने हम सुधा केर गागर छी।
आँखि खोलि कि हम....

प्रेमक मन्दिर अछि अहीं सँ बनल, मूर्ति देवी के निहारैत रही।
कल जोड़ि विनय बस एतबी टा, जिनगी भैर जे सिधारैत रही।
कहियो जँ मिलन केर आश टूटय,
तैयो हमरे संग नेह भरी।
आँखि खोलि कि हम....

देखू आइ कपारो किशोर, जीवन रहितो ज्योति चलि गेल।
तैयो ज्योतिकेर ज्वाला सँ, जीवन के रौशनी अछिये बनल।
ईशक लीला अछि एहेन अजीब,
जिनगी के मोल लेल कायल छी।
आँखि .......
 


माय माँगैथ खून

जखन खून हेतैक विश्वास के,
जखन अपमान होयत मायकेर अस्मिताके,
जखन लूटत केओ स्वाभिमान के,
तखन माय के आँखि सँ ज्वाला निकलय,
आह्वान करय सभ पुत्र सँ,
जागे बेटा आब जुनि रहे सुतल,
उठा हाथ में सत्यके हथियार,
बचा मान तों माय के,
हमलावर के कर पहचान,
राख स्मिता निज-भूमि के,
बहुत भेलहु रखलें बन्धक तों,
मायके लहठी ओ चूड़ी,
आबो ला एकरा तों वापस,
पटना के बेईमान से,
जुनि बिगड़े अपन इच्छा सँ,
नून-तेल में कय ले गुजर,
कोनो जरुरी नहि छौ तोरा,
पटना-मगध-भोजपुर मजबूर,
अपनहि धरती सोना उपजय,
बनो अपन सुन्दर भरपूर,
आब बिहार के माया छोड़े,
बनो मिथिला राज के पुर,
कर सभ नाका बन्द ओकर जे,
मानय नहि छौ बात,
चलो प्रशासन अपनहि अपन,
छोड़ हेहर के बाट,
बन्द करे सभ मौगापन,
बुझ पहचान के असली मोल,
पूर्वाग्रही पड़ोसी सभ छौ,
कर ने एकर आगू विश्वास,
तोरे संपदा सऽ बनल व्यापक,
तोरहि सभ पर करे ओ राज,
एहेन राज के जंजीड़ तोड़े,
बचो माय के आबो लाज,
एहि लेल बहो आब रक्तके धार,
मिथिला माय मनतौ आभार,
बेर-बेर हमर क्रन्दन सुन,
माँगय माय आब तोहर खून।

 
 अटल
अटल अहाँके अटलता सऽ बनल भारत के नव ओ रूप,
काश! एक बेर फेर बनितौं एहि पैघ प्रजातंत्रके अहीं भूप!

पहिले बेर जखन १३ दिनक राज आयल छल अपनेक हाथ,
मुश्किल में राखल गेल घेर अपनेकेँ नहि भेटल सभके साथ!

लेकिन ओहि अपमान के स्मृतिमें रखलक देशक जनता,
बहुमत सँ अपनेकँ जिता के देलक प्रधानमंत्रीके मान्यता!

अबिते देरी जखन पोखरण परीक्षण कयलहुँ अपने शानसँ,
विस्मित फाटल अचरज सँ तकलक सभ बड़का ध्यानसँ!

रुकलहुँ कहाँ अपने, राखि समेट सभकेँ चलेलहुँ नीक राज,
घरके हो वा बाहर के हो देलहुँ नव गठबन्धन के नीक राह!

आइयो राष्ट्र चलि रहल अछि अहींक पथ-प्रदर्शन पर श्रीमान्‌,
सदिखन सुन्दर बनल रहय आ दहिन रहैथ ओ ईश महान्‌!

लगले रहल एक शख हमर जे देखितहुँ अपनेकेँ हिया-जी भैर,
जानि कतय छी अपने कि अछि हाल इ जाने तरसी बेर-बेर!

बस एक बेर - बस एक बेर, दर्शन दियऽ यौ नेता महान्‌,
बुझब जे दर्शन भेट गेल - श्री कृष्ण आ श्री राम भगवान्‌!

अपनेक स्नेही आ प्रशंसक - प्रवीण चौधरी किशोर

परमादरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रति समर्पित!
 

जागल छी कहिया सँ
आदरणीय अहाँके आदर के बड रास भेटल छल कारण यौ!
गुण बुझि अहींकेर जीवन के कयलहुँ बहुत किछु धारण यौ!!

पग-पग जीवनके बाँचि रहल हमहुँ जागल छी कहिया सँ!
माय-बाप, श्रेष्ठ सभ अपने सन देखि रहल छी जहिया सँ!!

बच्चामें नहि इ बूझि पेलहुँ कि नीक हेतै - कि बेजा हेतै!
बढिते रहलहुँ बुझितो रहलहुँ कि रजा हेतै - कि सजा हेतै!!

स्वाध्यायक समुद्रमें जखनहि लागल पहिलुक गुरकुनियाँ!
कि जलमें थलमें नभ में अछि से भेटय लागल खुरचनियाँ!!

गीता के गीत बड़ मूल्यवान्‌, सीखबय छै के छथि ईश महान्‌!
नियत थीक कि, कि अछि नियति दर्शन भेटैछ एक भगवान्‌!!

जौं कर्म हमर कोनो घटल होय तँ बस क्षमा करब तुच्छ बुझिके!
बड़ चूक होइछ जँ हमरो सँ बस बिसैर जेबै हमर छूच्छ देखिके!!

अपनेक अनुज ओ पुत्रवत्‌ - प्रवीण ठाड़्ह अछि कल जोड़ि के!
बस माथ हाथ अपनेकेँ होइ - पूर्वाग्रह के सभ बान्ह तोड़ि के!!

 
 

अपन गीत

रहैत छी अपनहि मे डूबल, अक्सरहाँ बेसी काल,
कनिको फुर्सत होइते देरी, ताकय लगै छी माल।

ओ माल केहेन, जे केओ हमरा, पूछय हमर हाल,
गीत हमरहि गाबय, छोड़िके सभ अपनहु जंजाल।

रहैत छी अपनहि...

ई दुनिया बनियां अछि बनल, बिसरी ई हर बार,
होशियारी हमरो सऽ बेसी, सभ के लगल अछि द्वार।

रहैत छी अपनहि.....

एक रती के बात होइ तऽ, खींची खिंचबाबी हम फोटो,
अपन बखानी अपनहि गाबी, बिसरी बाकी सब संसार।

रहैत छी अपनहि....

केओ पूछय वा नहि पूछय, अपनहि बाजै छी हर बात,
पसिन्न पड़ल तऽ खूब नीक लागल, वरना मारी लात।

रहैत छी अपनहि.....

इ हम नहि हमर अहं छी भैया, बनैत अछि हंस्सा रार,
खुब मजा लूटय अछि हरदम तेकरे बुझय ई संसार।

रहैत छी अपनहि.....

समय सीमित बुझू मूढ प्रवीण - जुनि बहू अहिना बेकार,
करू जतेक संभव अछि एहिठाम, बिसरि अहं दूमुँहा धार।

रहैत छी अपनहि.....

 

 १०
विडंबना

इ अन्हरिया एहेन किऐक जे आँखि निपोरि सुतय लेल मजबूर करैछ?

रात्रि अबैत शरीर थकैत बिछाओन में जा नींद गाबय लेल मजबूर होइछ?

भिनसर होइते सुरुज उगैते पुनः इ निंद्रा जानि कतय अछि भगैत सभके,

जागृति होइत पुनः दिन भैर घूर-दौड़ होइछ सभ नित्यकर्म आ धर्म होइछ।

कि चाँद अपन चन्द्ररस सँ बजबैछ निनिया आ सूर्य आनैत सौर्य अछि?

कि निष्क्रियता झुझुवान करैछ आ सक्रियता सभ कीर्ति महान्‌ करैछ?

हे मैथिल! जुनि बनू कुंभकर्ण, बरु जोगी बनि करू नित्य घूर जाइग राइत भैर;

जराउ झूठ शान ओ दंभ जे हरदम चान मलिन बनि हरण जागृति के करैछ।

 

 ११

मैथिल! अहाँ जुनि पड़ू पाछू।

स्मृति करू ओ कीर्ति महान्‌,
जाहिसँ अयलाह मिथिला राम,
जतय विदेह सम्‌ नृप छथि भेल,
से मैथिल कोना पाछू भेल?

सरस्वती जतय बसि हर कंठ,
मैथिली बोली सरस ओ मीठ,
समृद्ध पुरखा सबहक शान,
से मैथिल कोना सहय अपमान?

सुसंगठित समाजिक संरचना,
आपसी प्रेम ओ मधुर सम्बन्ध,
पछड़ैत जन के सम्हारैत बढनै,
से मैथिल कोना सिखलैन टूटनै?

घर फूटै तऽ लूटै गंवार,
भाइ-भाइ सभ अपन संसार,
मिथिला बनि गेल सुन्न मशान,
से मैथिल कोना राखब जान?

जागू यौ जागू! मैथिल बनू होशियार,
जुनि बेचू अपन मायके दुष्टक हाथ,
सभ दिन दुर्जन मिथिला के विरुद्ध,
तेहेन संग कोना गढी संगत शुद्ध?

आइ बँटल दू देशक बीच,
तैयो अस्मिता बनले रहतै,
केवल बनू अहाँ होशियार,
तखनहि उतरब पार मझधार।

मैथिल! जुनि पड़ू पाछू।

 
 १२
मिथिला माय करैथ पुकार

बेटा! जागु आबो बनु होशियार!
दुश्मन के करू खबरदार!

दोसर भावे जड़ैछ अहाँ सँ,
हुनका संग करू मृदु व्यवहार।

स्वयंमें जे अछि कायर घनघोर,
माइर भगाबू कर्महि धार।

दूर भगाबू दहेज के कूरीति,
मानू बेटी सभ के सुन्दर नाज।

मातृ ऋण सँ उऋण बनू,
करू जगत्‌ में सुन्दर काज।

मिथिला सदिखन उपमा बनल,
आइयो चलय सब उच्च संस्कार।

राखू लाज माय के आबो,
एकत्रित बनि राखू ताज।

मिथिला माय करैथ पुकार!

 १३

माँ, धन्य तू जे हम छी!
धन्य हमर भाग जे तू हमर जननी छें।
धन्य तोहर तप गै माय जे जीवन बनल सफल अछि।
बिना तोहर कर्ज हम तऽ दुनिया के नहि देखितौं माय।
तोहरे दूध के अमृत सऽ अमरता भेटल लगैछ आय।
दुःख में रहि तू कोना के पोसलें इ हम कि बखान करी।
एक बात हम बुझैत छी, तू सदिखन रहलें एक समान।
त्याग करैत बलिदान करैत अपन मन के रखलें तू सम्हारि।
यैह तपस्या तोहर गै माय आय बनेलक हमरो शान।
माँ, धन्य तू जे हम छी।

बाप हमर रहलथि बड़ अयाची, नहि रखलन्हि कोनो मान-अपमान।
समत्व योग के गुण सँ भीजल, जपलन्हि सदा मन सऽ ईश-महान।

माँ, धन्य तू जे हम छी।

 १४

माय माँगैथ खून

जखन खून हेतैक विश्वास के,
जखन अपमान होयत मायकेर अस्मिताके,
जखन लूटत केओ स्वाभिमान के,
तखन माय के आँखि सँ ज्वाला निकलय,
आह्वान करय सभ पुत्र सँ,
जागे बेटा आब जुनि रहे सुतल,
उठा हाथ में सत्यके हथियार,
बचा मान तों माय के,
हमलावर के कर पहचान,
राख स्मिता निज-भूमि के,
बहुत भेलहु रखलें बन्धक तों,
मायके लहठी ओ चूड़ी,
आबो ला एकरा तों वापस,
पटना के बेईमान से,
जुनि बिगड़े अपन इच्छा सँ,
नून-तेल में कय ले गुजर,
कोनो जरुरी नहि छौ तोरा,
पटना-मगध-भोजपुर मजबूर,
अपनहि धरती सोना उपजय,
बनो अपन सुन्दर भरपूर,
आब बिहार के माया छोड़े,
बनो मिथिला राज के पुर,
कर सभ नाका बन्द ओकर जे,
मानय नहि छौ बात,
चलो प्रशासन अपनहि अपन,
छोड़ हेहर के बाट,
बन्द करे सभ मौगापन,
बुझ पहचान के असली मोल,
पूर्वाग्रही पड़ोसी सभ छौ,
कर ने एकर आगू विश्वास,
तोरे संपदा सऽ बनल व्यापक,
तोरहि सभ पर करे ओ राज,
एहेन राज के जंजीड़ तोड़े,
बचो माय के आबो लाज,
एहि लेल बहो आब रक्तके धार,
मिथिला माय मनतौ आभार,
बेर-बेर हमर क्रन्दन सुन,
माँगय माय आब तोहर खून।


 १५
 एखन हम कतय रही, एखन हम कतय एलहुँ
एखन हम कतय रही, एखन हम कतय एलहुँ,
आकाश सऽ सीधा धरती, धरती सऽ पुनः पाताल,
इ मन हमर कत चञ्चल अछि, जानि कतेक भागय ई,
मातृभूमिक सेवा - संस्कृति लेल कर्म - धरोहर के संरक्षण,
क्षण में बदलि गेल सभ विचार, देखि एक नग्न तस्वीर,
कि हम एतेक धृष्ट छी? कि हम एतेक भ्रष्ट छी?
जीवन के किछु होइछ अर्थ बुझू, मिथ्याचारके बंद करू।

 १६
अहं करैछ दुइर।

एक रत्ती नाम भेल, बिसैर न एलौं घूइर,
याद राखू फल्लाँ बाबु, अहं करैछ दुइर!!

दुनिया के छल, आश इ लागल, बनला गौंआ बड़का लोक,
पलटि नहि सुनलौं, रखले रहल, हुनक प्रेम के रंग अनमोल।

एक बेर - दु बेर किछु बेर अपन संग दैत जे कर्ज देलहुँ,
अवसरपर सभ बिसैर के कर्तब, कैलो पर पैन फेरि देलहुँ।

हरदम अपन नाम के मदमें चूर रहब तऽ खसब एक दिन,
तहिया कतबू बजेबै लोक के देखत सभ नजैर सिर्फ घिन।

बड़का लेखक कलाकार या विद्वानो के एहसास इ अछि,
जीवन के क्षण अलग रूप में बदलैत अन्त अवश्ये अछि।

सोचू! किछु नहि जाय संग में, केवल रहय कीर्ति अजीब,
धनिकाहा के सभ केओ मित्र, श्याम मित सुदामा गरीब!!

 १७
 जयकारा
चारू कात मातारानी के जयकारा के शोर छै।
शक्तिदात्री माँ जगत्‌ के जननी, हिनकहि सगरो जोर छै॥

अहु जगह ऊपर सभ केओ, पूजा करैत मगन छथिन।
एक-दोसरके शुभकामना दैत, सुमिरन सभ करैत छथिन॥

चारु कात ....

नारी शक्ति के देवी शक्ति, मानय जाउ यौ भाइ सभ।
स्वच्छ समाज के निर्मात्री के, पूजै जाउ यौ भाइ सभ॥

चारु कात....

दहेज के मारि सँ नारीके, अपमान करैत अहाँ लाज करू।
जनिक संग सँ अगिला पीढी, त्राण करैत अहाँ लाज करू॥

चारु कात....

मातृभूमि मिथिला वा कोनो, तेकरो अहाँ निज माय बुझू।
जहिना माय के पूजा करी, जन्मभूमि लेल किछुओ करू॥

चारु कात.....

अपन जननी सत्‌ शक्ति स्वरूपा, दूधके कर्ज केँ मान बुझू।
हिनक वृद्धापन या होथि ऊपर, सेवा मिलि सपरिवार करू॥

चारु कात....

अन्तमें हमर इ विनती यौ बाबु, बेटा बेटी एक बुझू।
भेद केने ओ दबल बनल अछि, दुर्गा जी के भक्ति करू॥

१८ 
 अफसोस
अफसोस जे केओ सच मंशा नहि बुझैत किछु बाजि देलक।
जे गैर देलक ताहु लेल नहि बल्कि धमकी सऽ झाड़ि देलक॥
अफसोस जे केओ सच ....

सच के शक्ति नहि बुझय केओ, बस मन के बुद्धि महान्‌ बुझैथ।
पर सद्‌कृपा सत्‌ सदिखन होय, शरणागत के भगवान्‌ सुनैथ॥
अफसोस जे केओ सच....

मन कानि उठल के मैथिल आइ, मन हमर बहुत हद तोड़ि देलाह।
हम कि सोचलहुँ, ओ कि सोचलाह, विश्वास के पूरा घोरि देलाह॥
अफसोस जे केओ सच....

मन गढंत बात के दाम नहि होइछ, कतबू चिचियाय बजैथ केओ।
असली के शान कथमपि नहि घटैछ, कतबू घिसियौर कटैथ केओ॥
अफसोस जे केओ सच....

ईश्वर के कृपा सच कवच बनय, शिव त्रिशूल सदा त्रिताप हरय।
आगू सदिखन हरि-हर जी हमर, पाछू सऽ सहारा आप बनय॥
अफसोस जे केओ सच....

हम हृदय सऽ गोहारी ईश्वर के, सुनि लैथ हमर ओ करुण पुकार।
करि सत्य जीत, बचे भक्ति मीत, सुधि लैथ सदा दुर्जन दुश्तार॥
अफसोस जे केओ सच....


१९ 

गप्पी मैथिल

छोड़ि दिअ यदि गप मारय लऽ, तऽ सभ सऽ बड़का हमहीं छी।
बिन पाँइख उड़ैते-उड़ैते हम, नभ विचरि-विचरिके थाकल छी॥

जेहो छल सत्‌ बल तंत्र-मंत्र, सभटा के तक्खा पर छोड़ने छी।
हम ढीठ बनल आ बनल हेहर, लत बत रगड़ा थरकौने छी॥
छोड़ि दिअ यदि....

केओ नीक कहय से ललसा में, अपनहि सँ मुँह चमकौने छी।
बिन बोलाहटे के पंच बनि, मुँह-पुरुख बनल झमकौने छी॥
छोड़ि दिअ यदि....

केओ काज कहय कोनो करय ले, लाख बहाना जानैत छी।
कोढिया भीतर बैसल यऽ हमर, पर फुर्सत नहि हम कानय छी॥
छोड़ि दिअ यदि.....

हम ई करी या ओ करी - हा करी या ना करी, बात बड़ा भरियौने छी।
असलीमें हमर कोनो शक्ति नहि यऽ, दिन-समय केनाहू काटैत छी॥
छोड़ि दिअ यदि....

 २०
  संग
यदि काज के बेर में अहाँ संग नहि तऽ कहू अहाँ के कि कहू?
यदि लाज बचाबय लेल ढंग नहि तऽ कहू अहाँके कि कहू?

भले एसगर होइ, बस आगू बढी,
कतबू किछु होइ पथ विचार चली,
यदि सोच हमर कोनो नीक नै लागे तऽ कहू अहाँके कि कहू?
यदि संग चलै के मोंन नै होय तऽ कहू अहाँके कि कहू?

प्रकृति अपन अछि रुचि अपन,
लगन अपन अछि साधन अपन,
यदि संग दरिद्री कम नहि होय तऽ कहू अहाँके कि कहू?
यदि बुझितो सभटा बेहोश रही तऽ कहू अहाँके कि कहू?

जतबी संभव ओतबी करू,
मुदा लाज बचु यदि काज करू,
यदि निर्लज्ज बनै के बैन बनल तऽ कहू अहाँके कि कहू?
यदि कर्म अपन सभ छोड़ि बसय तऽ कहू अहाँके कि कहू??

 २१
 अपन
सोच अपन, विचार अपन,
काज अपन, जहान अपन,
जीवन अपन, मरण अपन,
शान अपन, मान अपन॥

संसार अपन, सभ अपन,
ईश अपन, दोष अपन,
रोष अपन, होश अपन,
जोश अपन, नेह अपन॥

अपन यदि छी स्वयं अपन,
सभ केओ अपन रहतै अपन!



 २२
छी ना!!
 कतेक बेर एकहिगो गप बजबाबै छी... यौ घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना!!

कहलहुँ मैथिलीमें एतय बाजू...
कहलहुँ मैथिलीमें एतय लिखू...

तैयो जानि-बूझिके बातो के ओझराबैत छी, घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना॥

कहबी छै सभ सच्चे छैक..
अपन त्यागि पहिरी अनेक...

कौआ कतबू पहिरय पाँखि मयुरक नाटक छी, घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना॥

सुधरू पहिले अपन चालि...
देखब बाद में रजनीति डाइर...

भ्रष्टाचार या आरक्षण के झमारल छी, घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना॥

 २३
झुंगनी कोना गेलौ सैड़?

रे ठकबा कुजरा -
झुंगनी कोना गेलौ सैड़।
यौ मालिक, कीड़ा गेलै फैड़॥

हम नहि बूझी कि होइछ कीड़ा,
खाली जानी खायब खीड़ा,
यदि लगलौ खेतो में कीड़ा,
सह तू एकसरि सभटा पीड़ा...
झुंगनी कोना गेलौ सैड़....
रे ठकबा कुजरा....
यौ मालिक.....

ईशके हाथ में फल के जिम्मो,
हमर काज छल कैल ने कमो,
धूप-बरखा के माटिपर धमो,
झुंगनी गेलै जे सैड़,
यौ मालिक...
रे ठकबा कुजरा....

 

 २४


गाम कनै यऽ
गाम कनै यऽ ग्रामीण हंसै यऽ, सोचियौ कनि ओरे सँ।
मिथिला माटि के शान घटै यऽ, देखियौ कनि ओरे सँ॥
गाम कनै यऽ ....
एहि भूमि के मान बढेली, जगजननी सिया जन्म लेली।
पुरुषोत्तमके चरण रखैत एतय, अभगदशा सभ दूर भेली॥
कहु यौ भैया, कहु हे बहिना - २, मन के भीतर छोरे सँ।
गाम कनै यऽ....
अंगना निपैत अहिपन पारैत, केराके पातो पर देव आबैथ।
ऋषि-मुनि के भूमि रहल ई, रिद्धि-सिद्धि अपनहि आबैथ॥
आइ दरिद्रा घून लागल अछि - २, घटल छटा अछि नोरे सँ।
गाम कनै यऽ....
कतबू रहियौ देश-परदेश, गाम पठबियौ अपन सनेश।
कंजूसी के छोड़ियौ आबो, आ आन्दोलन करू श्रीगणेश॥
मिथिला राज्य वा दहेज उन्मूलन - २, बचबू धरोहर जोरे सँ।
गाम कनै यऽ....
छिटफूट सभ केओ कतबू कुदबै, एहि सऽ नहि चलतै कोनो काज।
गाम-गाम के संगठित करबै, तखन बनेबै सुच्चा मिथिला राज॥
आब बहाना नहिये चलत - २, लगियौ दिल के पोरे सँ।
गाम कनै यऽ.....



 २५

तुकबंदी
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!
करमें अपनो नहि कोनो काज, अगबे शान के झारमें राज,
मन में एतहु से सभ बाज, चोट्टा तोरा नै कोनो लाज॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
१०० में ८० भेलौ बेईमान, तैयो कहतौ देश महान्‌,
एहेन फुसियांही के आन, कह कोना चलतौ फेरो शान॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
कहबौ खूलि के सभटा बात, तहियो देमें नहि तू साथ,
बघारमें बुद्धि के तू साज, चुप करमें कर्मठ के आवाज॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
छोड़लें गामो के तू बाट, रहै छें परदेशे में ठाठ,
नहि कोनो मतलब माइयो-बाप, भेलौ करनी तोर सपाट॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
यदि इ भेलौ कोनो गैर, तखन तू खोले बन्द नजैर,
प्रवीणआबो जो सुधैर, नहि तऽ मिथिला देतौ मैर॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!


२६ 
इन्सान-महान

जनैत छी अपने लोकनि जनता, जनैत छथि भगवान्‌।
अपने मुँह सऽ कि हम कही, किऐक माँगी सम्मान॥

सत्य अगर अछि धर्म हमर आ कर्म करब सब महान।
त्याग करब यदि सदिखन हमहुँ कीर्ति बनत जगजान॥

अभ्यासे सऽ विद्या बढैछ, परोपकार सँ बढैछ मान।
सम-दृष्टि जँ सदिखन राखब पायब आत्मसम्मान॥

याचक बनि आयल एहि धरापर, पाबय लेल जे ज्ञान।
मार्ग मुक्ति के जँ चाही तऽ, भक्ति के मार्ग सँ त्राण॥

संसारक सांसारिकतामें जुनि उलझू अन्जान।
प्रेमके लेना - प्रेमके देना केवल बनू इन्सान॥

 २७
 किछु बात करी
मोंन कहैछ किछु बात करी, अपने सँ - अपन हाल पूछी।
कोना चलत जीवनइ राज बुझी, द्वंद्वरहित समत्व सही॥
मोंन कहैछ किछु बात करी..........

जन्म-मरण के धारा, ईशके नाम आधारा।
समय बीतैत बेचारा, के बनैछ सत्य सहारा।
हर तीर सही, न अधीर बनी, निज आत्मरूप के बोध करी।
मोंन कहैछ किछु बात करी......

देखि समग्र इ शासन, लौकिक राज्ञ प्रशासन।
रोग-शोग के राशन, मिथ्या केवल भाषण।
नहि नोर भरी, नहि शोर करी, देखी ओ सनातन हर और हरी!
मोंन कहैछ किछु बात करी......

ओ चलिये गेल, देखैत सभ खेल आ संगक ओ मेल।
तहियो हमर पड़ि गेल नकेल, पटरी सँ उतरल जीवन के रेल।
आब कि तकैछ कि रहि अछि गेल, जीवनके लेल सभ भेल अलेल।
मोंन कहैछ किछु बात करी.......


 २८ 

भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!

भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!
कतबू देखय झूठ नौटंकी, मेघक घटा घनघोर,
मुदा बुझे जे सत्य इ छैक जे डरा रहल छौ चोर!!
भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!

आरोपक अंबार लगौलक, उल्टहि चोर कोतवाल के डटलक,
मुदा नहि लागल ओर!
भाइ रे! डरा रहल अछि चोर!!

चन्दाके धन्धा कहि दमसल, भीखमंगा के संज्ञा देलक,
पर न डिगल मुँह मोर,
भाइ रे! डरा रहल अछि चोर!!

बाबु ओकर खुबे पढेलकै, एहि आशमें जे पाइ बड भेटत,
मुदा नहि छोड़बै पछोड़,
भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!

सोचैत अछि जे भभकी सँ, धमकी सँ आ गुम्हरी सँ,
बन्द होयत ई घोष,
भाइ रे!! डरा रहल अछी चोर!!

जे किछु करब से शरण हुनक रहि, सभटा अगुवा हुनकहि पर छोड़ि,
लागी हुनकहि गोर,
भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!

 २९
 स्वार्थी दुनिया
स्वार्थी दुनिया सऽ रहू सदिखन सावधान
ओ मोलके नहि करैछ कथमपि सम्मान,
डेरायल रहैछ केवल भ्रान्ति सऽ हरदम,
भरत दंभ जेना मालिक रहय ओ संसारके,
लेकिन ओ अपनहि भीतर रहैछ कमजोर,
प्रश्नके बौछाड़ ओकरा रखैत अछि परेशान।

 ३०

हेरै! सिखमें कि नहि!! मैथिली बजमें कि नहि!!

भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ परेशान!!
जानि कतय छथि ईश्वर महान्‌!!

देखू नऽ, कहैत-कहैत हम गेलहुँ थाकि,
तैयो नहि बुझैछ इ नवका तुरिया,
लिखैत - बाजैत अछि अंग्रेजी-हिन्दी,
पकड़ि-पकड़ि स्पीकर माइक!!
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ ...... :)

ऐँ यौ! कहीं पेटहिमें तऽ नहि इ सिखलक,
माइयो एकर अंग्रेजी बजलक,
तखन कहीं इहो अछि बदलल,
कोना करब एकरा हम सोझ,
ओझरी लागल बुझैछ बोझ...
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ ..... :)

शपथ खाइ छी, एकरा पढैब!
बाजब सिखैब, लिखब सिखैब!!
जतेक सकब अपनहि हम करब,
बाकी करता भाइ-बहिन,
काका-काकी, मामा-मामी,
पिसी-पीसा, ईश्वर दहिन!!
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ ....

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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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