अड़बेंगल आ क्लिष्ट शब्द क काफिया नै थिक
कविता,
जिंदगी क खराब अनुभव जे
कारी चट्टान
क निच्चा
पीअर रेत सँ डिरिया रहल अछि , गर्म चिटठा जकाँ अछि
ऐ कविता क आकार
कोनो समाज क कद सँ पैघ तँ नै
मुदा ओइ समाज क न्याय सँ पैघ अछि
जे अन्हरिया राइत मे भुइक रहल कुकुर क वफादार होबक प्रमाण पत्र दैत अछि
की अछि कविता
मासिक धर्म सँ निवृत्त स्त्री क चेहराक हर्ष
ई तँ देशक दुर्भाग्य अछि
आकि ऐ देशक कविक
या तँ माशूकपर कविता लिखि रहल अछि
या बसंत पर...
सरकारी आ ईमानदार जमादार क आँइख
जे कोनपर पड़ल लाल पीक जकाँ ललचाबैत अछि
आ हमर धर्म बरगद क छाहरि पर शिक्षा दैत अछि
" ई जे कोना पर लाल अछि"
सूरज क अह्निे गुलाल अछि "
लिखनाइ एतेक खराब नै
की बुराइक स्थापना कएल जाय
आ हमर भरती ओतय निःशुल्क भऽ जाय
फेर अहाँक लेल की पथ बाँचत ..
अपन कल्पना क लहर पर धीरे - धीरे हेलऽ लागू
तखने विचार आयल मोन मे कल्पना सँ ऊपर उठू
अपने चलइते चलइते धरती पर पएर रखू
जखन धरलौं पग हम पृथ्वी पर
किछु अहसास भेल एहेन
ज़िंदगी क चाइर दिन
आ , तैयो जीवन केहेन ?
एतऽ नजरि उठेलौं तँ पेलौं
कृषक श्रम दान कऽ रहल छल
कानी हाथ रुकइ नै छल
एहन मेहनत करै छल .
आँइख धँसल छलय भीतर
भुखायल पेट पिचकि रहल छल
पसीना क कंचन बूंद सँ
तन हुनक चमैक रहल छल .
देख क हुनक ई हालति
एक आघात भेल एना मोन पर
जीवन पाललक जग केँ जे
रक्त देखैत ओकर तन पर
किछु पग आर चललौं आगाँ
एगो आलीशान भवन ठाढ़ छल
श्रमिक क शोषण कऽ कऽ कए
अपना केँ गर्वित बुझि रहल छल .
कहलक गर्व सँ ओ एना
ई सभ हमर कर्मक फल अछि
कयलक ज़िंदगी भरि श्रम ओ
लेकिन तैयो निष्फल अछि .
तखन पुछलौं हम ओकरा सँ
सुन तोहर कर्म केहेन छौ
हँसि कऽ बजल ओ एना
सबटा धन केँ आइड़़ मे छुपाएल अछि .
सोचलौं हम धन केहेन अछि
जे सभ किछु छुपा लैत अछि
पाप केँ पुण्य आ
पुण्य केँ पाप बना दैत अछि .
सोचैत सोचैत गाम क दिश बढ़ल कदम
कि लोककेँ केहेन अछि भरम
एक दिन अहिना फेर ओही दिश पग बढ़ि चलल
जतय कृषक आ भवन छल मिलल .
देखलौं ओतय हम -----
कृषक मग्न भऽ काज कऽ रहल छल
पसीना केँ पोइछ ओ हर जोइत रहल छल
दृष्टि गेल भवन पर तँ बझलौं
कि मात्र एकटा खंडहर ओतय ठाढ़ छल .
ओ देखि कऽ हमरा
ओकर बात बुझइमे आयल
कि कर्म क अनुसार
आइ तूँ ई फल पेलें
हमरा मुँह सँ ओइ समय
यएह शब्द निकलि गेल
नै ओझरायब ऐ भ्रम - जाल मे
नै तँ इंसान तँ एतऽ छलल गेल .
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम
विस्मृत जुनि करियौ मिथिला के यौ मिथिलाक संतान
घूमि देश-परदेश कमेलौं खूब टका, सम्मान
देशी सा साहब तक बनलौ, बदलि अपन परिधान
प्रतिभा के कायल अछी दुनिया खूब करे गुणगान
लेकिन सोचियौ मिटा रहल अछि मिथिला के पहचान
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम
खेती-बाड़ी छूटल गामक, फूटल घर, दलान
भाई-भाई में माथ-फोरौव्वल , लागैथ शत्रु समान
अपन बोली तीत कतेक प्रिय अछि बोली आन
ई मूरखता के के रोकत अस्त भेल दिनमान
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम
जनकसुता के नगर में देखू नारी के अपमान
जत रचाओल गेल स्वयंबर ओतय दहेजक दाम
कानी रहल अछि मिथिलाक नारी बिका रहल स्वाभिमान
कोन विधि स चुका रहल छी संस्कृति के प्रतिदान ?
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम
और कतेक दिन सुतल रहब जागू यौ श्रीमान
आबो नहीं जागब त बुझू संकट हैत महान
विकसित करियौ मिथिला के आ राखू अपन मान
तखने भावी पीढ़ी करत मिथिला के जयगान
चलियौ अप्पन गाम, जगत-जननी सीता के धाम
एहेन कठोर कनकनी से आउ मोरा हृदय लागू ना..
ललना हे! बड़ खन भेल इ दूरी से आउ मोरा हृदय लागू ना!
माघक जाड़ो बड़ा जुल्मी से आउ मोरा हृदय लागू ना...
ललना हे! सदिखन सुमिरी ओ गर्मी जे आउ मोरा हृदय लागू ना!
धैन इ अन्हरिया हे राति जे अहाँके हम जी भैर देखी ना...
ललना हे! नींद के मारिके गोली से आउ मोरा हृदय लागू ना!
बड़-बड़ सोचल परखल कहिया इ जाड़ो औतै ना...
ललना हे! एहेन प्रेम केर पलमें से आउ मोरा हृदय लागू ना!
एहेन सुहावन संगी के स्नेह केर मौसम इहो ना..
ललना हे! जी भैर देखु न हमरो से आउ मोरा हृदय लागू ना!
शिक्षा के महत्त्वके आत्मसात करी हम सभ,
संसार में सभ के अपन-अपन भूमिका छैक,
अपन कर्तब्य के आत्मसात् करी हम सभ।
कोन चान प्रिय?
जेहि चान के चिन्हय चोर टा, ओ चान के चिन्हू चित्त सँ प्रिय!
धूर छोड़ू मजाक! सीधा कहु ने!
जुनि चित्त के चंचल एना बनाउ प्रिय जे चोर भागय जान सँ!
इ चोर-चोर करिते-कहिते, मन हमर आर ने दुखाउ प्रिय!
सुनु प्रिय! इ चोर केओ आन नहि बस मन के भीतर प्रेम थीक!
ओ चोर हमरा चिन्हल अछि, एहि चोर के संग हमहुँ थीक!
बस मन मिलय - ओ चोर कि, कि हम कि, कि आर कि!
बस अहाँ छी, बस हम छी, नहि आर किछु, नहि आन कि!
प्रेमी-प्रेयसीके बीच वार्तालाप के मैथिली रूप!
सप्रेम भेंट! नव-विवाहित युगल-प्रेमी सभकेँ प्रति समर्पित!
सच वैह होइत अछि जेकरा
सभ माने,
यदि तू मानें वा नहि
मानें!!
पर सच अछि कि आ झूठे कि,
बिन हुनकर रे कि तू हम
कि?
तुँ तूही रे, हम हमहीं छी,
बिन हुनकर रे कि तू हम
कि?
इ कविता जे केवल रचब, केवल वाचब, केवल लिखब,
करय बेर में नाँगरि
सुटका कैँ-कैँ करैत पछुवैत परायब,
एहेन भूस के बखाड़ी सँ
नहि पेट भरत यौ मैथिल कवि,
रचनामें जँ दम नहि होइ
तऽ अजगर बनल अजोधक भीड़,
धूम मचल अछि....
जहाँ दू दिनक फुर्सत
भेटत लिखब कोनो रचना नीक,
अपना दही के खट्टा सुनि
के पियब मेर्चाइ के झोरे तीख,
इ नहि सोचब जे रचना सँ
रचल जैछ सुन्दर संसार,
लोकके जीवन के हर क्षण
में जेकर बनैछ सुन्दर आधार,
धूम मचल अछि.....
पथियामें जेना काँकौड़
खिंचय टाँग दोसरके सुनु यौ मीत,
अगबे गप के भंडारा सऽ
अनोन बनल मिथिलाक सब रीत,
जौं कर्ता आब वक्ता
बनता कहू जे करतै के सभ काज,
अहिना सभ दिन कविता
रचबै कहू जे चलतै कोना के राज....
धूम मचल अछि.....
आँखि खोलि कि हम आइ देखी प्रिय,
बन्द आँखि अहाँके हम देखैत छी।
सुन्नरि हे सलोनी संगिनी प्रिय,
... नीर प्रेमक अहींके हम पिबय छी।
पहिले देखल हम सपना में, ताकि-ताकि थकल मन विपना में।
चुपचाप रही बस नयन हेरी, कहियो तऽ देखब हम विपना में।
जीवन के अनेको पल बितल,
बस आइ देखि हम फूलल छी।
आँखि खोलि कि हम.....
जानी नै एहेन कोन जादू छै, आँखि देखि एना हम डूबल छी।
इ केश घना रेशम अछि प्रिय, मदमस्त छटा सँ पागल छी।
आइ सभ सुख के ओ सागर में,
भरने हम सुधा केर गागर छी।
आँखि खोलि कि हम....
प्रेमक मन्दिर अछि अहीं सँ बनल, मूर्ति देवी के निहारैत रही।
कल जोड़ि विनय बस एतबी टा, जिनगी भैर जे सिधारैत रही।
कहियो जँ मिलन केर आश टूटय,
तैयो हमरे संग नेह भरी।
आँखि खोलि कि हम....
देखू आइ कपारो ‘किशोर’क, जीवन रहितो ज्योति चलि गेल।
तैयो ‘ज्योति’ केर ज्वाला सँ, जीवन के रौशनी अछिये बनल।
ईशक लीला अछि एहेन अजीब,
जिनगी के मोल लेल कायल छी।
आँखि .......
६
ूटत केओ स्वाभिमान के,
तखन माय के आँखि सँ ज्वाला निकलय,
आह्वान करय सभ पुत्र सँ,
जागे बेटा आब जुनि रहे सुतल,
उठा हाथ में सत्यके हथियार,
बचा मान तों माय के,
हमलावर के कर पहचान,
राख स्मिता निज-भूमि के,
बहुत भेलहु रखलें बन्धक तों,
मायके लहठी ओ चूड़ी,
आबो ला एकरा तों वापस,
पटना के बेईमान से,
जुनि बिगड़े अपन इच्छा सँ,
नून-तेल में कय ले गुजर,
कोनो जरुरी नहि छौ तोरा,
पटना-मगध-भोजपुर मजबूर,
अपनहि धरती सोना उपजय,
बनो अपन सुन्दर भरपूर,
आब बिहार के माया छोड़े,
बनो मिथिला राज के पुर,
कर सभ नाका बन्द ओकर जे,
मानय नहि छौ बात,
चलो प्रशासन अपनहि अपन,
छोड़ हेहर के बाट,
बन्द करे सभ मौगापन,
बुझ पहचान के असली मोल,
पूर्वाग्रही पड़ोसी सभ छौ,
कर ने एकर आगू विश्वास,
तोरे संपदा सऽ बनल व्यापक,
तोरहि सभ पर करे ओ राज,
एहेन राज के जंजीड़ तोड़े,
बचो माय के आबो लाज,
एहि लेल बहो आब रक्तके धार,
मिथिला माय मनतौ आभार,
बेर-बेर हमर क्रन्दन सुन,
माँगय माय आब तोहर खून।
८
बच्चामें नहि इ बूझि
पेलहुँ कि नीक हेतै - कि बेजा हेतै!
बढिते रहलहुँ बुझितो
रहलहुँ कि रजा हेतै - कि सजा हेतै!!
स्वाध्यायक समुद्रमें
जखनहि लागल पहिलुक गुरकुनियाँ!
कि जलमें थलमें नभ में
अछि से भेटय लागल खुरचनियाँ!!
गीता के गीत बड़
मूल्यवान्, सीखबय छै के छथि ईश महान्!
नियत थीक कि, कि अछि नियति दर्शन भेटैछ एक भगवान्!!
जौं कर्म हमर कोनो घटल
होय तँ बस क्षमा करब तुच्छ बुझिके!
बड़ चूक होइछ जँ हमरो सँ
बस बिसैर जेबै हमर छूच्छ देखिके!!
अपनेक अनुज ओ पुत्रवत्
- प्रवीण ठाड़्ह अछि कल जोड़ि के!
बस माथ हाथ अपनेकेँ होइ
- पूर्वाग्रह के सभ बान्ह तोड़ि के!!
ओ माल केहेन, जे केओ हमरा, पूछय हमर हाल,
गीत हमरहि गाबय, छोड़िके सभ अपनहु जंजाल।
रहैत छी अपनहि...
ई दुनिया बनियां अछि
बनल, बिसरी ई हर बार,
होशियारी हमरो सऽ बेसी, सभ के लगल अछि द्वार।
रहैत छी अपनहि.....
एक रती के बात होइ तऽ, खींची खिंचबाबी हम फोटो,
अपन बखानी अपनहि गाबी, बिसरी बाकी सब संसार।
रहैत छी अपनहि....
केओ पूछय वा नहि पूछय, अपनहि बाजै छी हर बात,
पसिन्न पड़ल तऽ खूब नीक
लागल, वरना मारी लात।
रहैत छी अपनहि.....
इ हम नहि हमर अहं छी
भैया, बनैत अछि हंस्सा रार,
खुब मजा लूटय अछि हरदम
तेकरे बुझय ई संसार।
रहैत छी अपनहि.....
समय सीमित बुझू मूढ
प्रवीण - जुनि बहू अहिना बेकार,
करू जतेक संभव अछि
एहिठाम, बिसरि अहं दूमुँहा धार।
रहैत छी अपनहि.....
भिनसर होइते सुरुज
उगैते पुनः इ निंद्रा जानि कतय अछि भगैत सभके,
जागृति होइत पुनः दिन
भैर घूर-दौड़ होइछ सभ नित्यकर्म आ धर्म होइछ।
कि चाँद अपन चन्द्ररस
सँ बजबैछ निनिया आ सूर्य आनैत सौर्य अछि?
कि निष्क्रियता झुझुवान
करैछ आ सक्रियता सभ कीर्ति महान् करैछ?
हे मैथिल! जुनि बनू
कुंभकर्ण, बरु जोगी बनि करू नित्य घूर जाइग राइत भैर;
जराउ झूठ शान ओ दंभ जे
हरदम चान मलिन बनि हरण जागृति के करैछ।
से मैथिल कोना पाछू भेल?
सरस्वती जतय बसि हर कंठ,
मैथिली बोली सरस ओ मीठ,
समृद्ध पुरखा सबहक शान,
से मैथिल कोना सहय
अपमान?
सुसंगठित समाजिक संरचना,
आपसी प्रेम ओ मधुर
सम्बन्ध,
पछड़ैत जन के सम्हारैत
बढनै,
से मैथिल कोना सिखलैन
टूटनै?
घर फूटै तऽ लूटै गंवार,
भाइ-भाइ सभ अपन संसार,
मिथिला बनि गेल सुन्न
मशान,
से मैथिल कोना राखब जान?
जागू यौ जागू! मैथिल
बनू होशियार,
जुनि बेचू अपन मायके
दुष्टक हाथ,
सभ दिन दुर्जन मिथिला
के विरुद्ध,
तेहेन संग कोना गढी
संगत शुद्ध?
आइ बँटल दू देशक बीच,
तैयो अस्मिता बनले रहतै,
केवल बनू अहाँ होशियार,
तखनहि उतरब पार मझधार।
मैथिल! जुनि पड़ू पाछू।
दोसर भावे जड़ैछ अहाँ सँ,
हुनका संग करू मृदु
व्यवहार।
स्वयंमें जे अछि कायर
घनघोर,
माइर भगाबू कर्महि धार।
दूर भगाबू दहेज के
कूरीति,
मानू बेटी सभ के सुन्दर
नाज।
मातृ ऋण सँ उऋण बनू,
करू जगत् में सुन्दर
काज।
मिथिला सदिखन उपमा बनल,
आइयो चलय सब उच्च
संस्कार।
राखू लाज माय के आबो,
एकत्रित बनि राखू ताज।
मिथिला माय करैथ पुकार!
दुःख में रहि तू कोना
के पोसलें इ हम कि बखान करी।
एक बात हम बुझैत छी, तू सदिखन रहलें एक समान।
त्याग करैत बलिदान करैत
अपन मन के रखलें तू सम्हारि।
यैह तपस्या तोहर गै माय
आय बनेलक हमरो शान।
माँ, धन्य तू जे हम छी।
बाप हमर रहलथि बड़ अयाची, नहि रखलन्हि कोनो मान-अपमान।
समत्व योग के गुण सँ
भीजल, जपलन्हि सदा मन सऽ ईश-महान।
माँ, धन्य तू जे हम छी।
तखन माय के आँखि सँ
ज्वाला निकलय,
आह्वान करय सभ पुत्र सँ,
जागे बेटा आब जुनि रहे
सुतल,
उठा हाथ में सत्यके
हथियार,
बचा मान तों माय के,
हमलावर के कर पहचान,
राख स्मिता निज-भूमि के,
बहुत भेलहु रखलें बन्धक
तों,
मायके लहठी ओ चूड़ी,
आबो ला एकरा तों वापस,
पटना के बेईमान से,
जुनि बिगड़े अपन इच्छा
सँ,
नून-तेल में कय ले गुजर,
कोनो जरुरी नहि छौ तोरा,
पटना-मगध-भोजपुर मजबूर,
अपनहि धरती सोना उपजय,
बनो अपन सुन्दर भरपूर,
आब बिहार के माया छोड़े,
बनो मिथिला राज के पुर,
कर सभ नाका बन्द ओकर जे,
मानय नहि छौ बात,
चलो प्रशासन अपनहि अपन,
छोड़ हेहर के बाट,
बन्द करे सभ मौगापन,
बुझ पहचान के असली मोल,
पूर्वाग्रही पड़ोसी सभ
छौ,
कर ने एकर आगू विश्वास,
तोरे संपदा सऽ बनल व्यापक,
तोरहि सभ पर करे ओ राज,
एहेन राज के जंजीड़ तोड़े,
बचो माय के आबो लाज,
एहि लेल बहो आब रक्तके
धार,
मिथिला माय मनतौ आभार,
बेर-बेर हमर क्रन्दन
सुन,
माँगय माय आब तोहर खून।
कि हम एतेक धृष्ट छी? कि हम एतेक भ्रष्ट छी?
जीवन के किछु होइछ अर्थ
बुझू, मिथ्याचारके बंद करू।
दुनिया के छल, आश इ लागल, बनला गौंआ बड़का लोक,
पलटि नहि सुनलौं, रखले रहल, हुनक प्रेम के रंग अनमोल।
एक बेर - दु बेर किछु
बेर अपन संग दैत जे कर्ज देलहुँ,
अवसरपर सभ बिसैर के
कर्तब, कैलो पर पैन फेरि देलहुँ।
हरदम अपन नाम के मदमें
चूर रहब तऽ खसब एक दिन,
तहिया कतबू बजेबै लोक
के देखत सभ नजैर सिर्फ घिन।
बड़का लेखक कलाकार या
विद्वानो के एहसास इ अछि,
जीवन के क्षण अलग रूप
में बदलैत अन्त अवश्ये अछि।
सोचू! किछु नहि जाय संग
में, केवल रहय कीर्ति अजीब,
धनिकाहा के सभ केओ
मित्र, श्याम मित सुदामा गरीब!!
चारु कात ....
नारी शक्ति के देवी
शक्ति, मानय जाउ यौ भाइ सभ।
स्वच्छ समाज के
निर्मात्री के, पूजै जाउ यौ भाइ सभ॥
चारु कात....
दहेज के मारि सँ नारीके, अपमान करैत अहाँ लाज करू।
जनिक संग सँ अगिला पीढी, त्राण करैत अहाँ लाज करू॥
चारु कात....
मातृभूमि मिथिला वा
कोनो, तेकरो अहाँ निज माय बुझू।
जहिना माय के पूजा करी, जन्मभूमि लेल किछुओ करू॥
चारु कात.....
अपन जननी सत् शक्ति
स्वरूपा, दूधके कर्ज केँ मान बुझू।
हिनक वृद्धापन या होथि
ऊपर, सेवा मिलि सपरिवार करू॥
चारु कात....
अन्तमें हमर इ विनती यौ
बाबु, बेटा बेटी एक बुझू।
भेद केने ओ दबल बनल अछि, दुर्गा जी के भक्ति करू॥
सच के शक्ति नहि बुझय
केओ, बस मन के बुद्धि महान् बुझैथ।
पर सद्कृपा सत् सदिखन
होय, शरणागत के भगवान् सुनैथ॥
अफसोस जे केओ सच....
मन कानि उठल के मैथिल
आइ, मन हमर बहुत हद तोड़ि देलाह।
हम कि सोचलहुँ, ओ कि सोचलाह, विश्वास के पूरा घोरि देलाह॥
अफसोस जे केओ सच....
मन गढंत बात के दाम नहि
होइछ, कतबू चिचियाय बजैथ केओ।
असली के शान कथमपि नहि
घटैछ, कतबू घिसियौर कटैथ केओ॥
अफसोस जे केओ सच....
ईश्वर के कृपा सच कवच
बनय, शिव त्रिशूल सदा त्रिताप हरय।
आगू सदिखन हरि-हर जी
हमर, पाछू सऽ सहारा आप बनय॥
अफसोस जे केओ सच....
हम हृदय सऽ गोहारी
ईश्वर के, सुनि लैथ हमर ओ करुण पुकार।
करि सत्य जीत, बचे भक्ति मीत, सुधि लैथ सदा दुर्जन दुश्तार॥
अफसोस जे केओ सच....
जेहो छल सत् बल
तंत्र-मंत्र, सभटा के तक्खा पर छोड़ने छी।
हम ढीठ बनल आ बनल हेहर, लत बत रगड़ा थरकौने छी॥
छोड़ि दिअ यदि....
केओ नीक कहय से ललसा
में, अपनहि सँ मुँह चमकौने छी।
बिन बोलाहटे के पंच बनि, मुँह-पुरुख बनल झमकौने छी॥
छोड़ि दिअ यदि....
केओ काज कहय कोनो करय
ले, लाख बहाना जानैत छी।
कोढिया भीतर बैसल यऽ
हमर, पर फुर्सत नहि हम कानय छी॥
छोड़ि दिअ यदि.....
हम ई करी या ओ करी - हा
करी या ना करी, बात बड़ा भरियौने छी।
असलीमें हमर कोनो शक्ति
नहि यऽ, दिन-समय केनाहू काटैत छी॥
छोड़ि दिअ यदि....
यदि सोच हमर कोनो नीक
नै लागे तऽ कहू अहाँके कि कहू?
यदि संग चलै के मोंन नै
होय तऽ कहू अहाँके कि कहू?
प्रकृति अपन अछि रुचि
अपन,
लगन अपन अछि साधन अपन,
यदि संग दरिद्री कम नहि
होय तऽ कहू अहाँके कि कहू?
यदि बुझितो सभटा बेहोश
रही तऽ कहू अहाँके कि कहू?
जतबी संभव ओतबी करू,
मुदा लाज बचु यदि काज
करू,
यदि निर्लज्ज बनै के
बैन बनल तऽ कहू अहाँके कि कहू?
यदि कर्म अपन सभ छोड़ि
बसय तऽ कहू अहाँके कि कहू??
संसार अपन, सभ अपन,
ईश अपन, दोष अपन,
रोष अपन, होश अपन,
जोश अपन, नेह अपन॥
अपन यदि छी स्वयं अपन,
सभ केओ अपन रहतै अपन!
तैयो जानि-बूझिके बातो के ओझराबैत छी, घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना॥
कहबी छै सभ सच्चे छैक..
अपन त्यागि पहिरी अनेक...
कौआ कतबू पहिरय पाँखि मयुरक नाटक छी, घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना॥
सुधरू पहिले अपन चालि...
देखब बाद में रजनीति डाइर...
भ्रष्टाचार या आरक्षण के झमारल छी, घूरि-घूरि घूरियाबैत छी ना॥
हम नहि बूझी कि होइछ
कीड़ा,
खाली जानी खायब खीड़ा,
यदि लगलौ खेतो में कीड़ा,
सह तू एकसरि सभटा
पीड़ा...
झुंगनी कोना गेलौ
सैड़....
रे ठकबा कुजरा....
यौ मालिक.....
ईशके हाथ में फल के
जिम्मो,
हमर काज छल कैल ने कमो,
धूप-बरखा के माटिपर धमो,
झुंगनी गेलै जे सैड़,
यौ मालिक...
रे ठकबा कुजरा....
गाम कनै यऽ ग्रामीण हंसै यऽ, सोचियौ कनि ओरे सँ।
मिथिला माटि के शान घटै यऽ, देखियौ कनि ओरे सँ॥
गाम कनै यऽ ....
एहि भूमि के मान बढेली, जगजननी सिया जन्म लेली।
पुरुषोत्तमके चरण रखैत एतय, अभगदशा सभ दूर भेली॥
कहु यौ भैया, कहु हे बहिना - २, मन के भीतर छोरे सँ।
गाम कनै यऽ....
अंगना निपैत अहिपन पारैत, केराके पातो पर देव आबैथ।
ऋषि-मुनि के भूमि रहल ई, रिद्धि-सिद्धि अपनहि आबैथ॥
आइ दरिद्रा घून लागल अछि - २, घटल छटा अछि नोरे सँ।
गाम कनै यऽ....
कतबू रहियौ देश-परदेश, गाम पठबियौ अपन सनेश।
कंजूसी के छोड़ियौ आबो, आ आन्दोलन करू श्रीगणेश॥
मिथिला राज्य वा दहेज उन्मूलन - २, बचबू धरोहर जोरे सँ।
गाम कनै यऽ....
छिटफूट सभ केओ कतबू कुदबै, एहि सऽ नहि चलतै कोनो काज।
गाम-गाम के संगठित करबै, तखन बनेबै सुच्चा मिथिला राज॥
आब बहाना नहिये चलत - २, लगियौ दिल के पोरे सँ।
गाम कनै यऽ.....
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!
करमें अपनो नहि कोनो काज, अगबे शान के झारमें राज,
मन में एतहु से सभ बाज, चोट्टा तोरा नै कोनो लाज॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
१०० में ८० भेलौ बेईमान, तैयो कहतौ देश महान्,
एहेन फुसियांही के आन, कह कोना चलतौ फेरो शान॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
कहबौ खूलि के सभटा बात, तहियो देमें नहि तू साथ,
बघारमें बुद्धि के तू साज, चुप करमें कर्मठ के आवाज॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
छोड़लें गामो के तू बाट, रहै छें परदेशे में ठाठ,
नहि कोनो मतलब माइयो-बाप, भेलौ करनी तोर सपाट॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
यदि इ भेलौ कोनो गैर, तखन तू खोले बन्द नजैर,
‘प्रवीण’ आबो जो सुधैर, नहि तऽ मिथिला देतौ मैर॥
कोयलिया कुहू-कुहू, निकम्मा इहू-इहू!!
जनैत छी अपने लोकनि जनता, जनैत छथि भगवान्।
अपने मुँह सऽ कि हम कही, किऐक माँगी सम्मान॥
सत्य अगर अछि धर्म हमर आ कर्म करब सब महान।
त्याग करब यदि सदिखन हमहुँ कीर्ति बनत जगजान॥
अभ्यासे सऽ विद्या बढैछ, परोपकार सँ बढैछ मान।
सम-दृष्टि जँ सदिखन राखब पायब आत्मसम्मान॥
याचक बनि आयल एहि धरापर, पाबय लेल जे ज्ञान।
मार्ग मुक्ति के जँ चाही तऽ, भक्ति के मार्ग सँ त्राण॥
संसारक सांसारिकतामें जुनि उलझू अन्जान।
प्रेमके लेना - प्रेमके देना केवल बनू इन्सान॥
‘कोना चलत जीवन’ इ राज बुझी, द्वंद्वरहित समत्व सही॥
मोंन कहैछ किछु बात करी..........
जन्म-मरण के धारा, ईशके नाम आधारा।
समय बीतैत बेचारा, के बनैछ सत्य सहारा।
हर तीर सही, न अधीर बनी, निज आत्मरूप के बोध करी।
मोंन कहैछ किछु बात करी......
देखि समग्र इ शासन, लौकिक राज्ञ प्रशासन।
रोग-शोग के राशन, मिथ्या केवल भाषण।
नहि नोर भरी, नहि शोर करी, देखी ओ सनातन हर और हरी!
मोंन कहैछ किछु बात करी......
ओ चलिये गेल, देखैत सभ खेल आ संगक ओ मेल।
तहियो हमर पड़ि गेल नकेल, पटरी सँ उतरल जीवन के रेल।
आब कि तकैछ कि रहि अछि गेल, जीवनके लेल सभ भेल अलेल।
मोंन कहैछ किछु बात करी.......
कतबू देखय झूठ नौटंकी, मेघक घटा घनघोर,
मुदा बुझे जे सत्य इ छैक जे डरा रहल छौ चोर!!
भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!
आरोपक अंबार लगौलक, उल्टहि चोर कोतवाल के डटलक,
मुदा नहि लागल ओर!
भाइ रे! डरा रहल अछि चोर!!
चन्दाके धन्धा कहि दमसल, भीखमंगा के संज्ञा देलक,
पर न डिगल मुँह मोर,
भाइ रे! डरा रहल अछि चोर!!
बाबु ओकर खुबे पढेलकै, एहि आशमें जे पाइ बड भेटत,
मुदा नहि छोड़बै पछोड़,
भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!
सोचैत अछि जे भभकी सँ, धमकी सँ आ गुम्हरी सँ,
बन्द होयत ई घोष,
भाइ रे!! डरा रहल अछी चोर!!
जे किछु करब से शरण हुनक रहि, सभटा अगुवा हुनकहि पर छोड़ि,
लागी हुनकहि गोर,
भाइ रे!! डरा रहल अछि चोर!!
प्रश्नके बौछाड़ ओकरा
रखैत अछि परेशान।
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ परेशान!!
जानि कतय छथि ईश्वर महान्!!
देखू नऽ, कहैत-कहैत हम गेलहुँ थाकि,
तैयो नहि बुझैछ इ नवका तुरिया,
लिखैत - बाजैत अछि अंग्रेजी-हिन्दी,
पकड़ि-पकड़ि स्पीकर माइक!!
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ ...... :)
ऐँ यौ! कहीं पेटहिमें तऽ नहि इ सिखलक,
माइयो एकर अंग्रेजी बजलक,
तखन कहीं इहो अछि बदलल,
कोना करब एकरा हम सोझ,
ओझरी लागल बुझैछ बोझ...
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ ..... :)
शपथ खाइ छी, एकरा पढैब!
बाजब सिखैब, लिखब सिखैब!!
जतेक सकब अपनहि हम करब,
बाकी करता भाइ-बहिन,
काका-काकी, मामा-मामी,
पिसी-पीसा, ईश्वर दहिन!!
भाइ रे! बाबु यौ!!
हम भऽ गेलहुँ ....
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