भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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'विदेह' ९७ म अंक ०१ जनवरी २०१२ (वर्ष ५ मास ४९ अंक ९७) PART VII
बालानां कृते
१.कणकमणि दीक्षित- भगता बेङक कथा- नेपालीसँ मैथिली
अनुवाद: श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि द्वारा २.डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह” - दक्षिणी ध्रुव पर मनुक्खक पएरक सए
वर्ष अर्थात्- खिस्सा अण्टार्कटिका केर
१
कणकमणि दीक्षित, ५५ बर्ख, हिमाल
खबरपत्रिकाक प्रकाशक आ हिमाल साउथ एशियनक सम्पादक छथि। ओ कॉलेजक पढ़ाइ काठमाण्डूसँ, लॉ क
पढ़ाइ दिल्लीसँ आ परास्नातकक पढ़ाइ न्यूयॉर्कसँ केने छथि। नेपालीसँ मैथिली अनुवाद: श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि द्वारा
रूपा धीरू: रूपा धीरू- जन्मस्थान-मयनाकडेरी, सप्तरी, श्रीमती पूनम झा आ श्री अरूणकुमार झाक पुत्री।स्थायी पता- अञ्चल- सगरमाथा, जिल्ला- सिरहा। प्रथम प्रकाशित रचना-कोइली कानए, माटिसँ सिनेह (कविता),भगता बेङक देश-भ्रमण (कनक
दीक्षितक पुस्तकक धीरेन्द्र प्रेमर्षिसँग मैथिलीमे सहअनुवाद,सङ्गीतसम्बन्धी कृति-
राष्ट्रियगान, भोर, नेहक वएन, चेतना, प्रियतम हमर कमौआ (पहिल मैथिली सीडी), प्रेम भेल तरघुस्कीमे, सुरक्षित मातृत्व गीतमाला, सुखक सनेस। सम्पादन-पल्लव, मैथिली साहित्यिक मासिक पत्रिका, सम्पादन-सहयोग,हमर मैथिली पोथी (कक्षा १, २, ३, ४ आ ५ आ कक्षा 9-10 क ऐच्छिक मैथिली विषय
पाठ्यपुस्तकक भाषा सम्पादन)।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि, सिरहा, नेपाल 1967-
वि.सं.२०२४ साल भादब १८ गते सिरहा जिलाक गोविन्दपुर-१, बस्तीपुर गाममे जन्म लेनिहार प्रेमर्षिक पूर्ण नाम
धीरेन्द्र झा छियनि।कान्तिपुरसँ हेल्लो मिथिला कार्यक्रम प्रस्तुत कर्ता जोड़ी
रूपा-धीरेन्द्रक धीरेन्द्रक अबाज गामक बच्चा-बच्चा चिन्हैत अछि। “पल्लव” मैथिली साहित्यिक पत्रिका आ “समाज” मैथिली सामाजिक
पत्रिकाक सम्पादन।
किछु दूर ओ घनगर खपड़ैल घर सभ, मन्दिरक गुम्बज सभ आ विशाल–विशाल दरबारक बुर्ज सभ देखलक। ओकरा विश्वास भेलैक जे इचङ्गूक बेङ सभ
जाहि ‘शहर’क बात करतै छल से
निश्चित रूपेँ इएह थिक । भक्तप्रसाद सुनने छल जे शहरमे मोटर–गाड़ी, बिजली–पङ्खा आ
सैकड़ो कोठलीवला बड़का–बड़का बङ्गला सभ होइत छैक ।
एक दिन भक्तप्रसादक कनेक लटकलहा नाङरि सेहो
टूटि गेलैक । ताही दिन ओ सभसँ कहलकैक जे आइ साँझ्मे ओ घर छोड़ि देबाक निश्चय कएलक
अछि ।
“किएक छोड़बह ?”— सभगोटे एक्कहि स्वरमे पुछलकैक । घर छोड़ि ओ दूर जा सकैत अछि ताहि बात पर
ओकरा घरक ककरो विश्वासे नहि छलैक ।
भक्तप्रसाद जवाब देलक— “हम एहि दुनियासँ बाहरी दुनियाक
अनुभव करऽ चाहैत छी । हम देखऽ
चाहैत छी जे शहरमे लोकसभ कोना रहैत अछि । हम
तराइमे जाए चाहैत छी । हमरा बड़का नदी, आश्चर्यजनक प्राणी सभ, समतल काठमाण्डूक आकर्षण
चौरी–चाँचर आ बड़का–बड़का पहाड़ सभ
देखबाक मोन होइत अछि ।”
भक्तप्रसादक घर छोड़िकऽ जएबाक निर्णयसँ
दुःखित भऽ सभटा बेङ एकठाम जमा भेल । ओकरा सभकेँ बद्धि प्रसाद कहलककै — “एकरा जाए दहक । जखन ई बाहरी दुनिया देखि लेत तँ हमरा सभकेँ कतेको नव–नव बात सभ बताओत ।” तैयो भक्तप्रसादक माए
सानुमैयाँ किछु कहऽ चाहतै छलि कि भकप्रसाद चटपट सभकेँ प्रणाम-पाती कऽ विदाह भऽ गेल
।
“बाबा ! हम जाइ छिअह ।” भक्तप्रसाद जाइत–जाइत जोरसँ चिकरैत बाजल ।
तकरा बाद ओ लोकक चलऽवला रस्तासँ चलनाइ शुरू कएलक आ जा अपन खेतसँ अऽढ़ नहि भऽ गेल ता
ओ उनटिकऽ नहि
तकलक । किछु दूर चललाक बाद ओ मोटर–गाड़ी दौड़ऽवला पक्की सड़कपरसँ चलनाइ
शुरु कएलक ।
........
(जारी...)
२
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
दक्षिणी ध्रुव पर मनुक्खक पएरक सए
वर्ष
अर्थात्
खिस्सा अण्टार्कटिका केर
आइ धिया – पुता सभ सोचैत होयताह
कि विदेहजी फेर अहू बेर कोनो उपदेश वला कविता वा गीत लऽ कऽ अओताह आ अनेरो हमर सभक
दिमाग खएताह । तऽ से नञि, एहि बेर कोनो उपदेश नञि । एहि बेर हम अहाँ सभ केँ एकटा दूर
देशक यात्रा पर लऽ चलैत छी – देश नञि महादेश थिक ओ । चारू कात पानि सँ (समुद्र सँ)
घेड़ायल अछि – तेँ
महाद्वीप थिक ओ । अहूँ सभ सोचैत होयब कि एहि ठिठुरल जार मे के घऽर छोड़ि कऽ घूमय
लेल निकलत । पर जतऽ जयबाक विचार अछि ओहि ठाम तत्तेक ने जार पड़ैत अछि कि अपना ओहि
ठामक माघ मास आ तीला संक्राँतिक जार सेहो गर्मी सनि बुझि पड़त । अहाँ सभक मोन मे
होइत होयत जे कहीं हम कनाडा या स्विटजरलैण्ड केर बात तऽ नञि कऽ रहल छी । नञि – कथमपि नञि -स्विटजरलैण्ड वा कनाडा
तऽ देश थिक आ हम महादेशक बात कऽ रहल छी । ओ महादेश जत्तऽ प्राकृतिक रूप सँ मनुक्ख
नञि रहैत अछि । ............... सही सोचि रहल छी अहाँ सभ, ओकर नाम थिक “अण्टार्कटिका”। अप्पन धरती केर
दक्षिणी ध्रुव केर चारू कात बसल महादेश अण्टार्कटिका । अण्टार्कटिका ग्रीक शब्दक
रोमण संस्करण थिक, जकर
अर्थ होइत अछि “आर्कटिक
केर विपरीत”
(Anti - Arctic) अर्थात् “उत्तर केर उनटा” , माने कि “दक्षिण” ।
चित्र सं॰ - 1
– धरतीक ग्लोब पर अण्टार्कटिकाक स्थिति
अहाँ सभ केँ ई तऽ बुझले होयत कि धरती गोल अछि आ एकर दुनु
ध्रुव समतोला सन थोड़ेक धँसल आ सपाट अछि । उत्तरी ध्रुव केँ 90° उत्तरी अक्षांश रेखा आ
दक्षिणी ध्रुव केँ 90° दक्षिणी अक्षांश रेखा कहल जाइत अछि । रेखा नाम रहितहु ई
दुनु रेखा नञि भऽ कऽ एकटा विन्दुक सदृश थिक । एकर दुनुक आस पासक क्षेत्र केँ
क्रमशः “आर्कटिक क्षेत्र” आ “अण्टार्कटिक क्षेत्र” कहल जाइत अछि । संसार
मे सात टा महादेश थिक जाहि मे सँ एक थिक “अण्टार्कटिका” । ओहि ठाम चारू कात
केवल बर्फे - बर्फ अछि, सौंसे
धरती बर्फक तऽर मे नुकायल रहैत अछि । ओ दुनियाक सभसँ बेशी निर्जन, ठण्ढा, हवा - बिहाड़ि युक्त आ
शुष्क क्षेत्र अछि । सामान्य भाषा मे शुष्क माने सुखायल । अहाँ सभक मोन मे प्रश्न
उठल होयत कि एक तरफ तऽ हम कहि रहल छी जे चारू कात केवल बर्फे - बर्फ अछि आ दोसर तरफ कहैत छी दुनिञाक सभ सँ सुखायल
क्षेत्र – से कोना ? ओहि ठामक न्यूनतम्
तापमान – 89.2°C (-128.6°F) नापल गेल अछि (रूसी अण्टार्कटिक केन्द्र “वोस्तोक” द्वारा) । तेँ पानि जमि कऽ ठोस आ
कठोर (पाथरहु सँ बेशी कठोर) बर्फ भऽ जाइत अछि – हवा सँ पानिक अंश वा आर्द्रता (moisture / humidity) पुर्ण रूपेँ निपत्ता
भऽ जाइत अछि,
परिणामस्वरूप हवा अत्यन्त शुष्क भऽ जाइत अछि । संगहि ओहि ठाम सतह पर कोनो ऊँच
पहाड़, गाछ - वृक्ष वा आन
अवरोध नञि होयबाक कारणेँ ई हवा बिना रोक – टोक केर बहैत रहैत अछि आ बिहाड़िक रूप लऽ लैत अछि । एहि ठाम
हवा केर अधिकतम् गति 320 कि॰मि॰ प्रति घण्टा नापल गेल अछि । दक्षिणी ध्रुव
केर नज़दीक बर्फक अधिकतम् मोटाई 4.776 कि॰मि॰ पाओल गेल अछि – जाहि सँ ओहि ठामक
ठण्ढीक अन्दाज आसानी सँ लगाओल जा सकैत अछि । विश्वक स्वच्छ पानि (fresh water) केर लगभग 70% अण्टार्कटिकाक हिम – आवरणक रूप मे जमल अछि
जखन कि विश्वक सम्पुर्ण बर्फक 90% भाग एकसरि अण्टार्कटिका मे अछि ।
अण्टार्कटिका
केर क्षेत्रफल लगभग 1 करोड़ 40 लाख वर्ग कि॰मि॰ (14.00 million km2) थिक आ ओ एशिया, अफ्रिका, उ॰ अमेरिका आ द॰
अमेरिकाक बाद विश्वक पाँचम सबसँ पैघ महादेश अछि । ई चारू कात सँ दक्षिणी हिम
महासागर (अण्टार्कटिक महासागर) सँ घेड़ायल अछि । एहि महासागरक ऊपरुका भाग
ठण्ढी मे जमि जाइत अछि, जाहि
सँ एहि समय मे महाद्वीपक आकार प्रायः दूना बुझि पड़ैछ । एहि ठाम लगभग 6 महीना केर दिन आ 6 महीना केर राति होइत
अछि तेँ अपना घड़ीक अनुसार 6 महीना धरि रातियो मे आकाश मे सूर्य देखाइ पड़ैत अछि – थिक ने आश्चर्यक गप्प ! पर गर्मी केर दिन मे
सेहो अधिकतम् तापमान मात्र -
26°C (- 15°F) नापल गेल अछि । अपना सभ दिशि माघ मासक शीतलहरी मे सेहो औसत तापमान 4°C सँ 10°C केर बीचे मे रहैत अछि
। आब अहीं कहू - छै ने बहुत ठण्ढा जगह
? पड़ाए गेल ने अहाँ सभक
जार ?
चित्र सं॰ - 2
- ठीक दक्षिणी ध्रुव केर ऊपर सँ देखला पर अण्टार्कटिका केर
स्वरूपक रेखाचित्र
अण्टार्कटिका केर धरती पर मनुक्खक
पहुँचब एक समय मे ओहिना छल जेना कि बाद मे चान पर पहुँचब – ओहिना कठिन आ ओतबहि महत्त्वपुर्ण
।लोक सभ अप्पन – अप्पन प्राणक बाजी लगा
कऽ ओतए पहुँचबाक प्रयास मे लागल छलाह । किछु लोक अप्पन – अप्पन उद्देश्य वा लक्ष्य प्राप्त
करबा मे सफल भेलाह आ आपिस सेहो आबि सकलाह, जखन कि किछु लोक अप्पन प्राण गमाए बैसलाह । ओहि समय मे पाल वला
पनिया जहाज अण्टार्कटिका तक पहुँचबाक एक मात्र साधन छल । रस्ता मे “समुद्री बिहाड़ि” (Cyclone) मे घेड़एबाक वा “प्लवित / दहाइत हिमखण्ड” (Iceberg) तथा “प्रवाहित समुद्री
हिमखण्ड” (Pancake
ice, Polynya etc.) सँ टकड़एबाक वा “हिमनद” (Glacier) तथा “हिमीभूत समूद्री सतह” (Pack ice, Fast ice etc.) मे फँसि जएबाक
सम्भावना रहैत अछि । प्लवित / दहाइत हिमखण्ड कतेक विनाशक भऽ सकैत अछि तकर सभ सँ नीक
उदाहरण “टाइटेनिक” नामक पनिया जहाजक
विश्वप्रशिद्ध दुर्घटना सँ लगाओल जा सकैत अछि । ई जहाज साउथेम्पटन (ब्रिटेन) सँ
न्युयॉर्क (अमेरिका) जएबा काल, 10 अप्रील 1912 कऽ एकटा एहने “प्लवित / दहाइत हिमखण्ड” (Iceberg) सँ टकड़एबाक कारणेँ दुर्घटनाग्रस्त भेल छल । जएबा व
अएबा दुनु कालक लेल खएबा – पिउबाक चीज – बस्तु पहिने सँ संग मे ओरिआ कए राखए पड़ैत छैक । ज्यों – ज्यों वातावरणक तापमान कम होइत जाइत छैक आ हवाक शुष्कता
एवम् गति बढ़ैत छैक, त्यों
– त्यों शरीर सुन्न होमए
लगैत छैक, शरीरक कोशिका (Cells) सभ मरए लागैत छैक
जकरा चिकित्सकिय भाषा मे “हिम – दाह / हिम – दग्ध” (Frost bite) कहल जाइत अछि । एहि “हिम - दाह” सँ किछुए काल मे मनुक्खक प्राण तक
जा सकैत अछि । तेँ एहि जानमारुक ठण्ढी सँ बचबाक पूरा ओरिआओन संग मे लऽ कऽ चलए
पड़ैत छै ।
अण्टार्कटिका केर बीचो – बीच
मध्य अण्टार्कटिक पर्वतश्रेणी (Trans Antarctic Maountains)थिक जे बर्फ सँ
आच्छादित रहैत अछि । ई पर्वतश्रेणी अण्टार्कटिका केँ दू भाग मे बाँटैत अछि – पैघ “मुख्य भाग” (Main land) आ दोसर छोट “प्रायद्विपीय भाग” (Antarctic peninsula) । एकर अतिरिक्त ओहि
ठाम किछु सुप्त ज्वालामुखी पहाड़ सेहो थिक जे कखनो कखनो सक्रिय भऽ उठैत अछि । ओहि
ठाम लगभग 70
टा स्वच्छ / मीठ पानिक झील (Fresh water lakes) सेहो अछि । ओहि ठाम
मनुक्ख तऽ नञि अछि, पर
प्राणीविहीन जगह नञि थिक ओ । चिड़ै मे पेंग्वीन (Penguin) (जे उड़ि नञि सकैत
अछि पर पानि मे नीक जेकाँ डुबकी लगा कऽ हेलि सकैत अछि आ बर्फ पर अपन दू पएर सँ
मनुक्ख जेकाँ चलि सकैत अछि), स्क्युआ (Skua) आ एल्बेट्रॉस (Albatross) (एकर दुनु पंखक पसार
संसार मे आन सभ चिड़ै सँ बेशी होइत अछि) आदि ओहि ठामक मूल निवासी थिक । समुद्र मे सील
(Seal),वालरस (Walrus) , क्रील (Krill), मिंक ह्वेल (Mink Whale) आदि पाओल जाइत अछि ।
चित्र
सं॰ - 3 -अण्टार्कटिकाक
जैव धरोहरि
कैप्टन जेम्स कुक (Captain James Cook) पहिल मनुक्ख छलाह जे “अण्टार्कटिक वृत्त” केँ 17 जनवरी 1773 ई॰ कऽ पार कयलन्हि – एकर बाद ओ साले भरि मे
दू बेर आओरो प्रयास कयलन्हि पर वातावरणीय विषमताक कारण अण्टार्कटिका धरि नञि
पहुँचि सकलाह । 27 जनवरी
1820 ई॰ कऽ रूसी अण्वेषक बेल्लिंगहुसेन
(Fabian
Gottlieb von Bellingshausen) अण्टार्कटिकाक हिमाच्छादित धरती केँ पहिल बेर दूरहि
सँ देखि सकलाह – पर
हुनिकहु ओहि ठाम पएर रखबाक सौभाग्य नञि भेटलन्हि । तकरा बाद बहुतो लोक प्रयास
कयलन्हि पर ओहि ठाम पएर रखबा मे असफल रहलाह ।
उपलब्ध साक्ष्यक अनुसार अण्टार्कटिकाक हिमाच्छादित धरती पर पहिल बेर पएर रखनिहार
व्यक्ति छलाह जॉन डेविस (John Davis)– यद्यपि एहि सँ पहिने किछु आओरो
लोक सभ एहि तरहक दावा कएने छलाह पर हनिकर सन्दर्भ मे पुष्टि कएनिहार कोनो साक्ष्य
उपलब्ध नञि थिक । ओ सील नामक समुद्री प्राणिक शिकारक उद्देश्य सँ 7 फरवरी 1821 ई॰ कऽ पच्छिमी
अण्टार्कटिका मे उतरलाह । परञ्च ओ ओहि ठाम किछुए काल ठहरि कऽ आपिस आबि गेलाह, किएक तऽ ओ शिकारी छलाह
, वैज्ञानिक नञि । किछु
लोक एकरहु विवादिते मानैत छथि ।
चित्र सं॰
- 4 -दक्षिणी
ध्रुव पर पहिल बेर पएर रखनिहार मनुक्ख, नॉर्वे
निवासी “रॉएल्ड अमुण्डसेन”
अण्टार्कटिका आ ओकर बाद दक्षिणी
ध्रुव धरि पहुँचबाक प्रतियोगिता निरन्तर चलैत रहल । एहि बेर बाजी मारलन्हि नॉर्वे
वासी रॉएल्ड अमुण्डसेन (Roald Amundsen) । ओ 14 दिसम्बर 1911 ई॰ कऽ भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव (Geographical south pole
i.e. 90°S latitude) पर पहुँचबा मे सफल
रहलाह । ओ अपन दलक सदस्य सभक संग ओहिठाम नॉर्वे केर झण्डा फहरओलन्हि आ अपन
पहुँचबाक साक्ष्य ओतय सुरक्षित राखि आपिस चलि अयलाह । पहुँचबा सँ पहिने ओ अपन
यात्रा केर जानकारी दुनिञा सँ नुकाए कऽ रखलन्हि – तेँ हुनक प्रतियोगी सभ केँ एहि
बातक मिसियो खबड़ि नञि रहन्हि । अमुण्डसेन केर जन्म 16 जुलाई 1872 ई॰ मे नॉर्वे (यूरोप महादेशक एक
टा देश) केर शहर ओस्लो (Oslo)केर नजदीक
क्रिस्चिनिया (Christinia) मे भेल छलन्हि । एहि अभियान मे हुनक जहाजक नाँव छल फ्रॅम (Fram) । हुनक नजदीकी
प्रतियोगी इंग्लैण्ड केर कैप्टन राबर्ट फॉल्कन सकॉट(Captain Robert Falcon
Scott) अमुण्डसेनक 33 दिनक
बाद 17 जनवरी 1912 ई॰ कऽ भौगोलिक दक्षिणी
ध्रुव पर पहुँचि सकलाह आ पहुँचलाक बाद पहिने सँ नॉर्वे केर झण्डा देखि हुनिका बहुत
दुख आ तामस सेहो भेलन्हि । आपिस लौटैत काल दुर्घटना मे स्कॉट अप्पन पूरा दल केर
संग मारल गेलाह । 14 दिसम्बर
2011 ई॰ कऽ अमुण्डसेनक
दक्षिणी ध्रुव पर विजयक 100 वर्ष पूरा भेल । 2011 ई॰ केँ नार्वे “अमुण्डसेन वर्ष” आ यूनेस्को (UNESCO) “दक्षिण ध्रुव पर पहिल मनुक्खक शताब्दी वर्ष” केर रूप मे मनओलक अछि
।
चित्र सं॰ - 5 -अण्टार्कटिका
केर भूगोल आ ओहिठाम भारतीय अनुसंधान केन्द्र दर्शक मानचित्र
डॉ॰ सय्यद जहूर कासिम(Dr
Sayed Zahoor Qasim) केर नेतृत्व मे 9 जनवरी 1982 ई॰ कऽ 21 सदस्यीय पहिल भारतीय अण्टार्कटिक
अभियान दल अण्टार्कटिका केर हिमाच्छादित धरती पर पएर रखलक आ भारतक लेल इतिहास
लिखलक । ई दल 1981 कऽ गोआ सँ अपन गण्तव्यक लेल चलल छल । डॉ॰ हर्ष गुप्ता(Dr. Harsha Gupta) केर नेतृत्व मे तेसर
भारतीय अण्टार्कटिक अभियान दल द्वारा 1983 – 84 ई॰ मे एकटा स्थायी संशोधन केन्द्रक स्थापना कयल गेल – जकर नाँव राखल गेल “दक्षिण गंगोत्री” । एहि मे एकटा भू
- चुम्बकीय प्रयोगशाला (Geomagnetic laboratory) बनाओल गेल । ई एकटा “हिम छज्जी” (Ice shelf) पर स्थापित छल, जे बाद मे बर्फ मे
धँसि गेल आ नऽव अनुसन्धान केन्द्र स्थापित करबाक आवस्यकता पड़ल ।
भारत अण्टार्कटिका मे अपन दोसर
स्थायी संशोधन केन्द्रक स्थापना 1989 ई॰ मे कयलक आ 1990 ई॰ सँ “दक्षिण गंगोत्री” केँ पुर्णतया बन्न कऽ देल गेल । नऽव अनुसन्धान केन्द्रक नाम
राखल गेल “मैत्री” जे कि बर्फ रहित स्थान पर अवस्थित अछि । अण्टार्कटिकाक 98 प्रतिशत भाग हिमाच्छादित अछि जखन
कि मात्र 2 प्रतिशत भाग बर्फ
रहित अछि । मैत्रीक स्थान द॰ गंगोत्री सँ लगभग 90 कि॰ मि॰ दूर अछि । भारतक तेसर
स्थायी संशोधन केन्द्र निर्माणाधीन थिक जकर नाम होयत “भारती” । भारती केर स्थापना मैत्री सँ
लगभग 3000 कि॰ मि॰ दूर अण्टार्कटिका
केर आन भाग मे भऽ रहल अछि जाहि सँ एहि विस्तृत महादेशक विस्तृत अध्ययन कयल जा सकय
। ई केन्द्र मार्च – अप्रील 2012 ई॰ धरि प्रारम्भ भऽ जायत । 25 मई 1998 ई॰ कऽ राष्ट्रिय
अण्टार्कटिक एवं समुद्री अनुसन्धान केन्द्र(National Centre for Antarctic
and Ocean Research; NCAOR) केर स्थापना गोआ मे भेल । 14 अक्टूबर 2010 धरि भारत 30 गोट वैज्ञानिक अनुसन्धान दल
अण्टार्कटिका पठाए चुकल अछि ।
चित्र सं॰ - 6 -अण्टार्कटिका मे भारतक पहिल (दक्षिण
गंगोत्री) आ दोसर (मैत्री) अनुसंधान केन्द्र आ तेसर (भारती) अनुसन्धान केन्द्रक
प्रस्तावित प्रारूप (मॉडेल)
अण्टार्कटिका दुनिञाक सभसँ पैघ
प्राकृतिक प्रयोगशाला (Largest Natural Laboratory) अछि । ओहि ठाम भू – चुम्बकत्व, भूगर्भ विज्ञान, पृथ्वी आ सौरमण्डलक
उत्पत्ति व विकाश, समुद्री
जीव – जन्तु, वायुमण्डल (विशेषतः ओजोन
स्तर) पर प्रदूषणक प्रभाव, चिकित्सा, मनोविज्ञान आदिक अध्ययन आ ओहि सँ सम्बद्ध अनुसन्धान काज आदि
कयल जाइत अछि ।
तऽ केहेन लागल नऽव वर्षक अवसरि पर नऽव ठामक यात्रा ? फेर कहियो जखन समय भेटत तऽ आन ठाम
घुमबा – फिरबा लेल चलब । आइ बस
एतबहि । आब अप्पन – अप्पन
घऽर आपिस चलल जाए ।
1.Maithili Poem by Smt. shefalika Varma translated into English
by by Mrs Jaya Verma२.The constant shedding of Tears (Maithili poem bySh. Rajdeo Mandal - translated into English
by Gajendra Thakur)
१
1.Maithili Poem by Smt. shefalika Varma translated into English
by by Mrs Jaya Verma
Shefalika Verma has written two outstanding books in Maithili; one a
book of poems titled “BHAVANJALI”, and the other, a book of short stories
titled “YAYAVARI”. Her Maithili Books have been translated into many languages
including Hindi, English, Oriya, Gujarati, Dogri and others. She is frequently
invited to the India Poetry Recital Festivals as her fans and friends are
important people.
WOMAN
I am a woman, is not my
misdemeanor
Yes, I am a woman.
Your writing has
catapulted me to the cultural height
Not just as a human being
living on this earth
But as the Goddess at
the pedestal.
At the same time, you
have made me
Screech lacimiating the
heart of Tartarus.
Up surging Kosi’s uproar
on nature’s face
Falling on lips
Sometimes autumn morning
Sometimes wintery cold
nights
Whenever I see my face
in mirror
Sita’s distressed shadow
Trembles on my eyelid
My aanchal
Is not filled with moon
and stars
But with Rahu-Ketu.
But, not now
No more the blowing wind
will pollute woman
Now I realize
Nothing exists in this
body of flesh and blood
We are made of the same
matter
Nature has made woman
tender and delicate
Then why only I am
guilty??
I am not a creeper
Who wilts just seeing
index finger
Now the time has changed
Country’s freedom has
entered
Into women’s inner-self
Spreading bright
sunshine
Illuminating inner and
outer domain
Dreaming to touch the
sky
Demolishing tradition-
counter tradition
Creating new sun rays in
the reconstructed sky
Women are marching ahead
…
But still look at my
devotion
Bearing everything
I conceive and create
I give you birth
But it is you who
becomes the God
Now it is the time
To
Forgo man-centric
discourse
And begin women-centric
discourse.
2.
The constant shedding of
Tears (Maithili poem by Sh. Rajdeo Mandal - from his anthology of
Maithili poems "Ambara"- translated into English by Gajendra Thakur)
-----------------
Out of the eyes of my beloved
tears like a river
always remain flowing
and in that water of tears
people plunge
some feel cold
and some feel hot
some say wow!
and some feel bad.
but my blind-deaf accomplice
does not care,
her tears always remain flowing
but for some time her tears have stopped coming out
now perhaps she has emptied herself of tears
or
is she storing it!
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/
रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/
Roman.)
English
to Maithili
Maithili to English
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोषप्रोजेक्टकेँआगू
बढ़ाऊ,
अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
महत्त्वपूर्ण
सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास
(सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे
संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे।कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७Combined ISBN No.978-81-907729-7-6विवरण एहि पृष्ठपर
नीचाँमे आ प्रकाशकक साइट http://www.shruti-publication.com/पर।
महत्त्वपूर्ण सूचना (२):सूचना: विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल
बेर सर्च-डिक्शनरी)एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server
Maithili-English and English-Maithili Dictionary.विदेहक भाषापाक- रचनालेखन स्तंभमे।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह
(सहस्राब्दीक चौपड़पर),
कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य
(त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमेसंपूर्णई-प्रकाशनक
बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist
edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)-
essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups
literature in single binding:
Language:Maithili ६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside
india)
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outside Delhi)
For Libraries and overseas buyers $40 US (including postage)
[विदेह ई-पत्रिका,विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक
सात खण्डक-निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि),पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर),कथा-गल्प (गल्प गुच्छ),नाटक (संकर्षण),महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ
बाल-मंडली-किशोर जगत-संग्रहकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा-
विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ।
सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल।
हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
३.श्री विद्यानाथ झा
"विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन
महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक
अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह
"नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक
इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट
मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल
अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि
विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन,
मैथिलीक
प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट
फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष
शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया
बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहनभव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर
हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
७. श्री ब्रजेन्द्र
त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका
"विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार
सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक
समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि
दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि
अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक
क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि।
पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा-
कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग
करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान
यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर-
मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु
हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र
यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित
हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र
प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग
रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा-
"विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ
एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि
अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि
"भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ
अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन
अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन
लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब
तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ
होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ,
मुदा उमर आब
बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति
अछि सात खण्डमे। मुदाअहाँक सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ
द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।
(स्पष्टीकरण-श्रीमान्,अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री
आर्काइवमे https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/परबिना मूल्यक डाउनलोड लेल
उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ
प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि ताहिपर हमर कोनो नियंत्रण
नहि अछि।- गजेन्द्र ठाकुर)...अहाँक प्रति अशेष
शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह-
अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत
मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ
मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक
प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर
आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर
छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे
मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ
समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी।
"विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽसकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा
सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त
मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि-
बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२३. श्री भालचन्द्र झा-
अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर
विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे
उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा-
अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ।ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य
शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक
उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक मेहमर उपन्यास स्त्रीधनकजेविरोध कएल
गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।...कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल
जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी-
सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ
गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार
चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ-
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य
मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र-
विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन-
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद,
शुभकामना आ
बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास
अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा
समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर-
अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत
तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक
पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब
नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ
सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार
सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा
सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत।
ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम्
तँ अशेष अछि।
४९.श्री बीरेन्द्र
मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता
भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण-
अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल।
हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह
पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ
गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द-
विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि
नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता-
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक अनेक धन्यवाद;
कतेक बरखसँ हम नेयारैत छलहुँ जे सभ पैघ शहरमे मैथिली लाइब्रेरीक
स्थापना होअए, अहाँ ओकरा वेबपर कऽ रहल छी, अनेक धन्यवाद।
५९.श्री धीरेन्द्र
प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित
सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन-
विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज-
अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा
शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान
हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी
छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा
"सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी
अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद
मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ
पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक,
एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि।समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन्
सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष
मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल
शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद
मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि
अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे
एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र-
प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण
पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि
प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि -
श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ
ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ।
मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक
चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि
आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक
लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि
देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्रीमंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल
आ संगहि अहाँक मैगनम ओपसकुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकसेहो,अति उत्तम।मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय
अछि।
७२. श्री हरेकृष्णझा-कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचनाकौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ
अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम-कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनकमेसमाजक इतिहास आ वर्तमानसँ
अहाँकजुड़ाव बड्डनीक लागल, अहाँ एहिक्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनकसन किताब मैथिलीमे पहिले
अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी-
मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन
होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल।
पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो
अहाँसँ आशा अछि।
७६.श्री उदय चन्द्र झा
"विनोद":गजेन्द्रजी, अहाँ जतेक काज कएलहुँ अछि से मैथिलीमे आइ धरि कियो नहि कएने
छल।शुभकामना।अहाँकेँ एखन बहुत काज आर करबाक अछि।
७७.श्री कृष्ण कुमार
कश्यप: गजेन्द्रठाकुरजी, अहाँसँ भेँट एकटा स्मरणीय क्षण बनि गेल। अहाँ जतेक काज एहि
बएसमे कऽ गेलछीताहिसँ हजार गुणा आर बेशीक आशा अछि।
७९. श्री हीरेन्द्र कुमार झा- विदेह ई-पत्रिकाक सभ अंक
ई-पत्रसँ भेटैत रहैत अछि। मैथिलीक ई-पत्रिका छैक एहि बातक गर्व होइत अछि। अहाँ आ
अहाँक सभ सहयोगीकेँ हार्दिक शुभकामना।
विदेह
मैथिली साहित्य आन्दोलन
(c)२००४-१२. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतए लेखकक नाम नहि अछि ततए संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक
ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक
सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र
कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: वनीता कुमारी आ रश्मि रेखा सिन्हा।
सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक-
नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल आ
प्रियंका झा। सम्पादक- अनुवाद विभाग- विनीत उत्पल।
रचनाकार अपन मौलिक आ
अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.comकेँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt
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बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। ’विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका अछि आ एहिमे
मैथिली, संस्कृत आ अंग्रेजीमे मिथिला आ मैथिलीसँ संबंधित
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०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
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सिद्धिरस्तु
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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