ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १०१
म अंक ०१ मार्च २०१२ (वर्ष ५ मास ५१ अंक १०१)
ऐ अंकमे अछि:-
३.७.१.प्रीति प्रिया झा २.पवन कुमार साह ३.डॉ॰ शशिधर कुमर
५.
गद्य-पद्य भारती: मंगलेश डबराल- हिन्दीसँ
मैथिली अनुवाद विनीत उत्पल
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान
अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ
देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the
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कथा-कविता आदिक पहिल पोडकास्ट साइट
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ
धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन
कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला
लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र,
अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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ऐ बेर मूल पुरस्कार(२०१२)
[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
Thank you for voting!
श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा”
(कविता-संग्रह) 13.82%
श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक
अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक) 9.82%
श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट”
(उपन्यास) 6.18%
श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति”
(कथा संग्रह) 5.82%
श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक) 5.82%
श्री सुभाष चन्द्र यादवक “बनैत
बिगड़ैत” (कथा-संग्रह) 5.82%
श्रीमती वीणा कर्ण- भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह) 5.82%
श्रीमती शेफालिका वर्माक “किस्त-किस्त
जीवन (आत्मकथा) 7.64%
श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ
आ बलचन्दा” (दूटा नाटक) 6.55%
श्री महाप्रकाश-संग समय के (कविता संग्रह) 5.82%
श्री तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह) 5.82%
श्री महेन्द्र मलंगियाक “छुतहा
घैल” (नाटक) 6.91%
श्रीमती नीता झाक “देश-काल”
(कथा-संग्रह) 6.55%
श्री सियाराम झा "सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि
(गजल संग्रह) 7.27%
Other:
0.36%
ऐ बेर बाल साहित्य पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक “तरेगन”(बाल-प्रेरक कथा संग्रह) 54.17%
श्री जीवकांत - खिखिरक बिअरि 25%
श्री मुरलीधर झाक “पिलपिलहा
गाछ 18.75%
Other:
2.08%
ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क
लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?
Thank you for voting!
श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस”
(कविता संग्रह) 27.38%
श्री विनीत उत्पलक “हम
पुछैत छी” (कविता संग्रह) 7.14%
श्रीमती कामिनीक “समयसँ
सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह) 5.95%
श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती
वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह) 5.95%
श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल
संग्रह) 20.24%
श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा
नहि” (कविता संग्रह) 5.95%
श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै
(कविता संग्रह) 7.14%
श्री आदि यायावरक “भोथर
पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह) 5.95%
श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी”
(कविता संग्रह) 11.9%
Other:
2.38%
ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी,
दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?
Thank you for voting!
श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास
श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर) 35.71%
श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन"
(कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो) 12.86%
श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास
श्री दिव्येन्दु पालित) 14.29%
श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ"
(नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा) 11.43%
श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली
गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत) 11.43%
श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी
शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास) 12.86%
Other:
1.43%
फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य
अकादेमी,
दिल्ली
Thank you for voting!
श्री राजनन्दन लाल दास 56.86%
श्री डॉ. अमरेन्द्र 17.65%
श्री चन्द्रभानु सिंह 23.53%
Other:
1.96%
१. संपादकीय
(सम्पादकीय १०१ म अंक शिव कुमार झा ‘टिल्लू’, सहायक सम्पादक, विदेह)
मैथिली आर्य परिवार समूहक पहिल भाषा
थिक जेकरापर जातिवादि कलंक लागल अछि। ऐ भाषाकेँ ब्राह्मणवादी प्रवृतिसँ झाँपि
देबाक विरोध आवश्यक भऽ गेल। जखन लालूजी बी.पी.एस.सी.सँ एकरा बाहर केलनि तँ
मात्र किछु चानन-ठोपधारी धरि एकर विरोध सीमित रहि गेल छल। ई प्रश्न विचारणीय
अछि जे बिलट पासवान विहंगम, महेन्द्र नारायण राम, प्रो. रविन्द्र चौधरी
आ डॉ. मोतीलाल यादव सन किछु विद्वतकेँ छोड़ि आन जातिक लोकक मध्य मैथिलीक
प्रति दर्द किएक नै भेल छल। कोना हेबो करितए? जखन साहित्य
अकादेमी सलाहकार बोर्डक अध्यक्ष पहिने डॉ. रामदेव झा तकर बाद हुनक ससुर चन्द्रनाथ
मिश्र ‘अमर’क पश्चात रामदेव झाक
समधि विद्यानाथ झा विदित, तखन आन जातिकेँ के कहए
ब्राह्मणोमे विरोधाभास संभव छैक।
माल महराजक िमर्जा खेलए होली। साहित्य
अकादेमी देशक जनताक ऊपर लागल कर (टेक्स)सँ चलैत अछि। भातसँ सन्ना भारी, मिथिलामे ब्राह्मणक आबादी मात्र
पाच-सँ-छओ प्रतिशत आ संपूर्ण मैथिलीपर हुनके अधिकार अहूमे किछु पागधारी ऐ साहित्यिक
मंचकेँ पॅजियौने छथि। मैथिली गाममे रहिनिहार आम लोकक भाषा थिक। जखन मिथिला
राज्यक बात होइत अछि तँ बेगूसराय के कहए हम सभ बॉका धरि चलि जाइत छी मुदा जौं
अधिकारक गप तँ समस्तीपुर आ मधेपुरा आदिक ब्राह्मणो सभ भदेसक मानल जाइत छथि,
ओना भदेसक ब्राह्मणमे सँ किछु साहित्यकार जेना सुरेन्द्र झा ‘सुमन’, मार्कण्डेय प्रवासी, कीर्ति नारायण मिश्र सन किछु लोक सम्मानित कएल गेल छथि किएक तँ
ओ सभ दरभंगा आ पटनाक बीच झुलैत उत्तरबरिया संस्कारिक लोकक विदुषक रहलाह।
ऐ बेरक साहित्य अकादेमी पुरस्कार तँ
निर्लज्जताक पराकाष्ठाकेँ पार कऽ देलक। वर्तमान मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ गद्यकार
जगदीश प्रसाद मंडलक नाओं निर्णायक मंडल धरि नै पहुँचल। उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ आ
सुभाष चन्द्र यादवपर भारी पड़ि गेलाह चन्द्रनाथ मिश्र अमरक चेला उदयचन्द्र झा
विनोद, कहिया धरि एना चलैत रहत?
गलती पछातिक साहित्यकार अथवा दछिनाहा
ब्राह्मण साहित्यकारो सबहक छन्हि। अपने पाग पहिर ई बिसरि जाइ छथि जे जइ
समाजक ओ प्रतिनिधित्व करैत छथिन ओ कहियो हुनका माफ नै करतनि। पाग मात्र
ब्राह्मण आ कर्ण-कायस्थ परिवारक सकल मंगलकार्यमे पहिरल जाइत अछि। आन जातिक
मध्य एकर कोनो प्रयोजन वा परंपरा नै। तखन मिथिलाक सभटा साहित्यिक समारोहमे
पाग पहिरेबाक प्रथाकेँ की मानल जाए? चाटुकार ब्राह्मण साहित्यकार ऐ प्रथा द्वारा की प्रमाणित करबए चाहै
छथि जे मैथिली मात्र ब्राह्मणेटा केर भाषा थिक? गलती किछुए
लोक करैत अछि आ दोष सम्पूर्ण समाजपर मढ़ल जाइत अछि। ब्राह्मणोमे स्व. गोपालजी
झा गोपेश, स्व. कालीकान्त झा ‘बूच’,
स्व. चतुरानन मिश्र, श्री सत्य
नारायण झा, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. विद्यापति झा आ स्व. प्रो. रामकृपाल चौधरी ‘राकेश’ सन रचनाकारक संग न्याय नै भेल किएक
तँ ओ सभ ऐ चाटुकार मंचक सदस्य नै छलथि वा छथि। तँए समन्वयवादी ब्राह्मण साहित्यकारकेँ
ऐ गिरगिटिया लोक सभसँ मैथिलीक रक्षा करए पड़तनि। हम साहित्यमे आरक्षणक
समर्थन नै करैत छी मुदा सबहक प्रति सम्यक भाव रखबाक चाही। विगत 10 समारोहसँ सगर राति दीप जरय’मे मैथिलीक साम्यवादी
प्रांजल साहित्यकार जगदीश प्रसाद मंडल भाग लऽ रहल छथि मुदा गोधूलि बेलामे
प्रारम्भ होमएबला ऐ कथागोष्ठीमे हुनका कथा-पाठक आइ धरि रातिक 1 बजेसँ पहिने अवसर नै देल जाइत अछि।
कवि राजदेव मंडलकेँ अनुवादक कोनो
एसाइनमेंट नै भेटलनि। हम विश्वासक संग कहैत छी जे राजदेव मंडल आ दुर्गानंद मंडल
खुशीलाल झासँ श्रेष्ठ अनुवादक छथि। डॉ. रवीन्द्र चौधरी मोहन भारद्वाजसँ श्रेष्ठ
आलेख लिखैत छथि। बेचन ठाकुर आ डॉ. उदय ना. सिंह नचिकेता महेन्द्र मलंगियासँ
नीक नाटककार छथि। डॉ. शेफालिका वर्मा उषाकिरण खानसँ श्रेष्ठ महिला रचनाकार छथि।
आनंद कुमार झाकेँ जे सम्मान देल गेल
तेकर हम समर्थन करैत छी। परंच जौं ओ आनंद पासवान वा आनंद मंडल रहितथि तखन ई संभव
छल?
जौं आधुनिक पीढ़ीक लोक ऐ कु-बेबस्थाक
विरोध नै करताह तँ संभव अछि जे हमर स्वर्गीय पिता कालीकांत झा ‘बूच’क कविताक
ई पाँति सत्य प्रतीत भऽ जाए- “दिवस निकट ओ आबि रहल
अछि हेती मैथिली सभसँ कात...।”
ओना ऐ ब्राह्मणवादी सोचबला किछु संस्थाक
सम्यक कार्यक सराहना करब सेहो आवश्यक। जेना मिथिला सांस्कृतिक परिषद
जमशेदपुरक वार्षिक कलेण्डरमे विद्यापतिक संग-संग लोकदेव सलहेसक फोटो देखि नीक लागल।
ऐ लेल प्रो. अशोक अविचल आ प्रो. रवीन्द्र चौधरीक संग-संग श्री एस.एन. ठाकुर आ
सम्पूर्ण परिषद् धन्यवादक पात्र छथि। ऐ प्रकारक समन्वयवादी सोचकेँ शतश: नमन।
(सम्पादकीय १०१ म अंक शिव कुमार झा ‘टिल्लू’, सहायक सम्पादक, विदेह)
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
अमित मिश्र , गाम-करियन, जिला -समस्तीपुर
कथा -- * मोछ *
मिथिलाक लोक जहिना दही-चुड़ा माछ .मखान आ पान कए प्रेमि
होइ छथि ओहिना गप्प-सड़क्का कए सेहो बड़का प्रेमि होइ छथि । जँ दु-चारि टा संगी
एकठाम जुटला आ गप्प नै भेल ,एहन भS नै
सकै यै । देश-विदेश , घर-दुआरि , क'र-कुटमैती , वियाह-द्विरागमन , फिल्म-राजनीति बहुतो रास शिर्षक छै ,गप्प करबाक लेल
।गाम-घर मे ताशक चारि-चारि टा चौकरी एक्के ठाम भेटत आ उहो ठाम गप्पक सुगंध भेटै छै
। खुदरा मे गप्प तS हाट-बजार , ट्रेन-बस
, गाछी-बिरछी ,बाध-बन आदि जगह भेटबे
करै छै मुदा थौक मे गप्पक सरोबर बहै छै ,चाहक दोकान पर ।
हम्मर गामक चौक पर एक्केटा चाहक दोकान छै , सुरेन्द्र
कए चाहक दोकान । साँझ कS गामक सब बड़-बुजुर्ग ओही दोकान पर जुटै छथि आ
चाहक चुस्की संग फुटै छै गप्पक फटक्का । हम्मर एकटा फरीक मे कक्का छथि ,मधु कक्का , जेहन नाम तेहने काम , मुहँ सँ सदिखन मधु चुबैए छेन । मधु कक्का कए गप्प बड़ नीक होइ छै ,हिनकर गप्प सुनबाक लेल साँझ कS चाहक दोकान पर भीड़
जुटल रहै छै । चाह संग बिस्कुट ,समौसा , लिट्टी , जीलेबी . सेहो बड़ बिकाइ छै , इएह कारण छै जे सुरेन्द्र मधु कक्का कए फ्रि मे चाह , बिस्कुट आ कहियो-कहियो जीलेबी .समौसा दS छै । आ एकर बदला मे कक्का नव-नव गप्प सुनबै
छथिन। गप्प आ मधु कक्का कए महिमा अपरंपार छै जतेक बखान करब ततेक कम मुदा एहि ठाम
कोनो गप्प नहि एकटा घटना बता रहल छी ।
एक बेर हम अपन किछु दोस्त संगे ओहि देकान पर नाश्ता करबाक लेल गेलौँ
। दोकान पर पएरो राखै कए जगह नै छलै , किछ गेटा तीनू बेँच
पर बैसल छलखिन आ जिनका जगह नहि भेटलनि से ठार छलखिन , सबहक बीच मे ऊँचगर
कुर्सी पर मधु कक्का बैसल छलखिन । हम कक्का कए देखलौँ तS जा
कS गोर लागलियनि । हमरा देख कक्का बाजलाह ," बौआ , दरभंगा सँ गाम कहिया एलहो ।"
"कक्का
काल्हि साँझ मे एलौँ " हम सामने मे ठार होइत कहलयनि ।
हमरा दिश कनेक काल
देखला कए बाद कहलखिन ,"
बौआ , वियाह भS गेलS
की ?,"
हम अकचका गेलौँ जे
कक्का एहन प्रश्न किएक पुछि रहल छथि । हम मुड़ी निच्चा केने बाजलौँ ,"कक्का ,एखन तS पढ़ि रहल छी , कत्तौ
नोकरी भेटत तहन ने नीक दहेज ,नीक कनियाँ आ नीक ठाम वियाह हएत
, ओना अहाँ एहन प्रश्न किय पुछलियै ।"
" तोरा नहि मोछ छS
नहि दाढ़ी छS आ नहि टिक छS , तS हम की बुझियै , हौ , जेकरा
वियाह भेल रहै छै तकरे ने इ सब नहि रहै छै । " कक्का बड़ा शान्ती सँ बाजलाह ।
हम्मर समझ मे इ तर्क
आबि नहि रहल छल । आखिर मोछ सँ वियाहक कोन संबंध , कोन प्रयोजन । लाजे हम्मर मुड़ी माटि मे
धैस रहल छलै मुदा हमहूँ शहरी छौड़ा छलौँ चुप कोना रहब , तेँ
हिम्मत कS कहलौँ ," कक्का ,अहूँ गजबे बात करै छी आब वियाह सँ मोछक कोन संबंध आ टिक नै राखब तS
नवका फैसन छै । "
" देखहक ,
देखहक भाई सब छौड़ा कोना बाजै छै ।" कक्का भीड़ दिश देखैत जोर सँ
बाजलाह , " रौ , वियाह भेला कए
बाद मर्द ,मर्द नै रहै छै ओ मौगी भS जाइ
छै आ जमाना जानै छै जे मौगी कए मोछ , दाढ़ी आ टिक नहि होइ छै ,
तोरा तS सदियह ऐ मे से किछ नहि छौ ,
जँ एखनो तोँ अपना कए मर्द कहै छेँ तS जरूर
तोहर वियाह भS गेल छौ ।"
लोक सब हम्मर आ कक्का कए बार्तालाप सुनै छलैए आ मुस्की मारै छलैए ।
आइ कक्का कए नजैर पर हम चैढ़ गेल छलौँ । मोने मोने हम क्षण कए के गरियाबै छलौँ जखन
ऐ देकान पर आयबाक लेल सोचने छलौँ । सब चाहक चुस्की आ हम्मर बेज्जती सँ मुड-फ्रेस कS
रहल छलैए ।
हम खिसिया कS कहलियै ,"कक्का .राम भगवान कए देखू , कृष्ण भगवान कए देखू ,
किनको मोछ नहि छै तS की ओ मर्द नहि छलाह
।"
" बौआ ,
ओ भगवान छलखिन तूँ तS मनुक्ख छेँ , जेना राम जी 14 वर्ष बन मे रहलखिन आ कृष्ण जी गीता कए उपदेश देलखिन , एहन एक्को टा काज तूँ
कS सकै छें? जँ भगवानक देखसी करै छेँ तS
भगवान जेकाँ कर्म कS कए देखा , तहन फ्रि भS जेबेँ मोछ राखै सँ ।"
कक्का कए तर्कक सामने हम कमजोर भS गेल छलौँ ,हमरा किछ फुरेबे नहि करै छलैए ,मुदा हमहूँ नव जमाना
कए ,नव विचारधारा ,आ नव समाज मे जियै
बाला प्राणी छी तS फेर एतेक जल्दी हारि कोना मानि लेब ।हम
फेर कने सोचि कS कहलौँ ," आइ कए जमाना
मे मुर्ख वा विद्वान सब पाइ चाहै छै , मोछ नहि , आ जँ मोछ राखब तS कोनो नामी कंपनी नोकरी नहि देतै आ
जँ नोकरी नहि भेटत तS टाका नहि भेटत आ जँ टाका नहि रहत तS
भुखल मरब , एहि कारणे कक्का मोछ राखनाइ जरूरी नहि छै
।" फेर कनेक काल ठमकी कक्का कए मूँह पर आबैत भाल पढ़बाक कोशिश केलौँ आ फेर सँ हम
अप्पन तर्क देलौँ ," आइ फिलम मे बड़का-बड़का हिरो सब बिन
मोछ कए अभिनय करै छै और एक्के दिन मे लाखक-लाख टाका कमा लै छै , जाँ मेछ राखितै तS हमरा हिसाबे ओ सड़क पर रहितै ।
एकटा बात और मोछ बाला छोड़ा कए कोनो आधुनिक लड़की पसंद नहि करै छै ,आब केउ मुर्खे हेतै जे मोछ राखि कS अपन पएर पर कुल्हरि मारतै ।"
हम मोने-मोने सोचै
छलौँ जे ऐ बातक कोनो काट कक्का लग नहि हेएत किएक तS महगाई कए जमाना मे टाका सब कए चाही ।मुदा कक्क तS कक्के छलाह ओ कोना हारि जेताह ।ओ चट दS अपन बात कहलनि ," हम मानलियौँ जट
टाका सबहक प्रथम जरूरत छै मुदा फिलम मे काज करै बाला मर्द नहि होइ छै ,अरे ऊ तS अपना संगे बाँडीगार्ड कए फौज लS कS घुमै छै ,भीड़ मे नहि आबS चाहै छै , लाड़का
लड़की कए रूप धS मूँह झाँपि कS बहराइ छै
, ओकरा करेजे नहि छै खुलेआम धुमै कए , जे
सदिखन डर मे जियै छै , आब तूँ ही कह जे ओ मर्द छै की मौगी
।सब नवयुवक ओकर अनुकरण करै छेँ आ मोछ कटाबै छेँ ।लाज कर रौ बौआ ,लाज कर ।"
कक्का कए बात सुनि
हम फेर सँ निरूतर भS गेलौँ । हमरा लSग आब कोनो एहन ठोस तर्क नहि छल जै सँ
हम निमोछिया कए जीता सकितौँ ।हमरा चुप देख कक्का बाजलाह," बौआ ,शास्त्र-पुराण मे अनेको ऋषि-मुनी लिखने छथिन जे
माय-बाप कए मरला कए बादे मोछ कटाएबाक चाही ।मोछ तS मर्दक
पहचान छै । पहिलुक जमाना मे मोछे सँ बुझहा जाइ छलै जे के बलगर आ के कमजोर छै ।मोछक
भेराइटी होइ छलै , छोटका मोछ ,हिटलर कट
मोछ , पतरका मोछ आ सब सँ नीक मोछ होइ छलै कान धरि बाला मोछ ।
पाकल ,कारी ,लाल , कंघी मारल, गोल-गोल औँठिया मोछ ,रौद मे चमैक कs मुँहक तेज बढ़ाबै छलै ।आब तs इ सब सपना भs गेलै । आब तS सब किछ छोट भS रहल
छै ,छोट मनुष्य ,छोट गाड़ी ,
छोट बर्तन ,छोट नाम जेना माँम डैड ब्रो ,
छोट कपड़ा , छोट टिक , आ
सफाचट मोछ । जेना फैसनक कारण सब किछ छोट भS रहल छै हमरा
बुझना जाइ यै मुनुक्खक ऊँचाइ बकरी जेकाँ भS जाएत । बौआ हम सब
मिथिलाक छी ,मिथिलाक नाउ ,संस्कार ,संस्कृती ,इज्जत कए माटि मे नहि मिला ।विद्यापति ,उदयनाचार्य ,मंडन सन विद्वानक धरती सँ मोछ रूपि
धरोहर फैसनक सागर मे नहि भसा । मोछ राख ,टिक राख , जनेऊ पहिर आ शान सँ कह हम मिथिलाक छी , हम मैथिल छी
।"
हम लाजे मुड़ी निच्चा
केने कहलियै," कक्का कान पकड़ै छी , आइ सँ हम मोछ नहि काटब आ अपन संगीयो सब सँ कहब मोछ नहि काटबाक लेल ,अपन संस्कृती बचाएबाक लेल ।"
सब ताली सँ हम्मर
बातक समर्थन केलक । चाहक दोकान पर सँ भीड़ छटS लागल । ।
ओमप्रकाश झा
कथा
गहींर आँखिक व्यथा
आइ-काल्हि शहरी
मध्यवर्गक भोरका रूटीन सब ठाम एक्के रहै ए। चाहे ओ छोट शहर हुए वा महानगर। जँ घर
मे स्कूल जाइवाला बच्चा आछि तँ भोरे-भोर उठू आ बच्चा केँ तैयारी मे लागि जाउ। एक
नजरि घडी दिस रहै छै जे कहीं लेट नै भऽ जाइ। बस स्टाप पर अलगे भीड आ जे अपने सँ
स्कूल पहुँचाबै छथि, हुनकर सभक भीड स्कूल गेट पर। कम बेसी सभ शहरक हाल एहने रहै ए। भागलपुर
सेहो एहि सब सँ फराक नै छै। भोर मे सात बजे सँ लऽ कऽ साढे आठ बजे तक सौंसे ट्रैफिक
जाम आ भीड भाड रहै छै। संजोग सँ हमहुँ एहि भीड भाडक एकटा हिस्सा रहै छी। छोटकी
बेटी केँ स्कूल पहुँचेबाक हमरे ड्यूटी रहै ए। अलार्म लगा कऽ भोरे भोर छह बजे उठि
जाइ छी। जौं छह सँ आगू सुतल रहलौं, तँ श्रीमतीजीक सुभाषितानि
शुरू भऽ जाइ छै जे हे देखियौ आइ स्कूल छोडेलखिन्ह। जखन सात पर घडीक काँटा आबि जाइ
ए तखन हबड हबड बेटीक डैन पकडने स्कूल दिस भागै छी आ जँ समय पर गेटक भीतर ढुका
देलियै, तँ बुझाइत अछि जे दुनिया जीत लेलौं। इ तँ भेल नित्यक
कार्यक्रम। आब किछ विशेष। स्कूलक इलाका मे नित्य भोरे बहुत रास अभिभावकक जुटान
हेबाक कारणेँ गपक छोट छोट ढेरी टोल बनल रहै ए। सभक अपन अपन ग्रुप छै आ इ ग्रुप सभक
जुटान हेबा लेल ढेरी चाह आ पानक दोकान सभ सेहो। अस्तु, तँ
हमरो एकटा ग्रुप बनि गेल अछि, जाहि मे ब्लाक वाला ठाकुरजी,
कालेजक प्रोफेसर दासजी, पोस्ट आफिस वाला
शर्माजी, कपडा दोकान वाला मोहन सेठ, सर्वे
वाला मेहताजी आ आरो किछ गोटे शामिल छथि। हम सब नित्य बच्चा केँ स्कूल छोडलाक बाद
ओतुक्का घनश्यामक चाह दोकान पर जुटै छी आ चाहक संग भरि पोख गपक सेहो रसास्वादन करै
छी। निजी समस्या सँ लऽ कऽ देशक राजनीति, अमेरिकाक दादागीरी,
सचिनक सेनचुरी, आर्थिक समस्या, टूटल रोड, बिजलीक कमी, मँहगीक
मारि, कम दरमाहा आदि बहुते विषय सब पर नित्य अंतहीन बहस होइत
रहै ए। कहियो काल जँ बेसी लेट भऽ जाइ ए तँ घरनीक तामस सँ भरल फोन हमर सभक सभा भंग
कऽ दैत ए। कखनो कऽ मोबाईल फोन पर तामसो होइ ए जे केहन सुन्नर बहस चलै छल आ बहसक
असमय मृत्यु भऽ जाइ ए एकटा फोन काल पर। खैर इ भेल हमर भोरका नित्य कार्य। आब हम
मूल कथा दिस बढै छी।
घनश्यामक चाह दोकान
पर एकटा छोट बच्चा काज करै छल। नाम छलै बिनोद आ हमरा सब लेल ओ छल छोटू। घनश्याम
कहै छलै बिनोदबा। इ बिनोद,
बिनोदबा वा छोटू जे कहियै दस बरखक हएत। एक दिन बहसक विषय वस्तु छल
चाइल्ड लेबर। हम सब अपन चिन्ता प्रकट करै छलौं। ठाकुरजी बजलाह जे यौ ऐ दोकान मे
जतय छाह पीबै छी सेहो एकटा बाल मजदूर काज करै ए। एकाएक हमरा सभक धेआन छोटू पर चलि गेल।
एतेक दिन सँ इ गप नजरि मे किया नै आबै छल, यैह सोचऽ लगलौं। ठाकुरजी
घनश्याम केँ कहलखिन्ह जे बाउ इ गलती काज केने छी अहाँ। पुलिस पकडत आ मोकदमा सेहो
हएत। घनश्याम बाजल जे अहाँ जूनि चिन्ता करू। हमर पूरा सेटिंग अछि। लेबर आफिसक बडा
बाबू हमर ग्राहक छथि आ कोतवालीक दरोगा सेहो एतय आबै छथि। आइ तक तँ किछ नै कहलाह आ
आगू देखल जेतै। हम बजलौं- "से तँ ठीक ए, मुदा इ कहू जे एते छोट बच्चा सँ काज करेनाई अहाँ के नीक लगै ए।"
घनश्याम- "जखन एकर बापे केँ नीक लगै छै तखन हमरा की जाइ ए। तीन सय टाका
महीनवारी दय छियै।"
हम धेआन सँ बिनोद
केँ देखलौं। ओकर आँखि बड्ड गहीर छलै। कोनो सुखायल सपना जकाँ ओकर आँखि मे काँची सुखा
कऽ सटल छलै। हमर हृदय करूणा सँ भरि गेल। हमरा रहल नै गेल। हम ओकरा लग बजेलियै आ
पूछलियै- "बउआ कोन गाम घर छौ।" बिनोद बाजल- "हम्मे जगतपुरो केँ
छियै।" हम- "बाबूक की नाम ए।" बिनोद- "हमरो बाबूरो नाम जीबछ
दास छै।" हम- "पढै नै छी अहाँ? किया काज करै छी?।" बिनोद-
"हमरो बाबू कहलकौं जे काम नै करभीं, त घरो मे चूल्ही नै
जरथौं। ऐ सँ हम्मे काम पकडी लेलियै।" हम- "हम अहाँक बाबू सँ भेंट करऽ
चाहै छी।" बिनोद ताबत हमरा सँ नीक जकाँ गप करऽ लागल छल आ मुस्की दैत कहलक-
"हमरो बाबू आज अइथौं। थोडा देर रूकी जा, भेंट
होइ जेथौं।"
हम ओतै बिलमि गेलौं।
कनी काल मे कनियाँ फोन केलथि- "आइ आफिस नै जेबाक ए।" हम- "बस आधा घण्टा
मे आबै छी।" कनियाँ- "इ महफिल आ चौकडी अहाँ केँ बरबादे कऽ कऽ छोडत। जे
फुराइ ए सैह करू।" हम देखलौं जे मण्डलीक सब सदस्यक मोबाईल टुनटुनाईत छल। खैर
कनी कालक बाद एकटा दीन हीन व्यक्ति दोकान पर आयल। बिनोद कहलक- "हमरो बाबू आबी
गेल्हौं। जे गप करना छौं,
करी लए।" हम ओहि व्यक्ति सँ पूछलौं- "अहीं जीबछ दास
थिकौं।" ओ बाजल- "जी मालिक। केहनौ खोजी रहलौं छलियै हमरा।" हम-
"अहाँ अपन छोट बच्चा सँ मजदूरी कियाक करबै छियै? ओकर
पढै लिखैक उमरि छै। आओर सरकारी कानून सेहो बनि गेल अछि जे अहाँ बच्चा सँ मजदूरी नै
करा सकै छी।" जीबछ- "अरे मालिक सरकारो की करतै? फाँसी
लटकाय देतै? घरो रहतै त भूखले मरी जेतै।" हम-
"कतेक बाल बच्चा अछि अहाँक?" जीबछ- "पाँच गो
बेटा औरो दू गो बेटी छै।" हम- "ककरो पढबै छियै की नै?" जिबछ बिहुँसैत कहलक- "पहीले खाना पीना पूरा होतै तभें नी पढाई होतै।"
हम- "एते जनसंख्या कियाक बढेने छी?" जीबछ-
"आब होइ गेलै त की करभौं। हमे भी बच्चा मे मजदूरीये केलियौं मालिक। हमरा और
के भाग मे यही लिखलो छौं।" हम- "देखू जे भेल से भेल। बच्चा केँ मजदूरी
छोडाउ आ स्कूल मे भर्ती करू। सरकार दुपहरियाक खेनाई सेहो दै छै। नै तँ हम लेबर
विभाग मे खबरि कऽ देब। कनी एक बेर बिनोदक आँखिक सपना दिस देखियौ। ओकर की दोख छै?
कमे अवस्था मे केहन लागै छै। अहाँक दया नामक वस्तु नै ए की? अहींक बच्चा थीक। सरकारक ढेरी योजना छै। अहाँ लोन लऽ सकै छी। अपन कारोबार
कऽ सकै छी। नरेगा मे रोजगारक गारण्टी छै। इंदिरा आवास मे मकान लऽ सकैत छी।"
पता नै हम की सब कहैत चलि गेलौं। हमरा चुप भेलाक बाद जीबछ बाजल- "मालिक अपने
सब ठीके कहलियै। लेकिन सबे जगहो पर कमीशनो खोजै छै। हमे कहाँ से देभौं कमीशन। ढेरी
इनक्वाइरी औरो चिट्ठी पतरी होइ छौं। एतना लिखा पढी औरो दौडा दौडी हमरा से नै
सपरथौं।" हम- "ठीक छै, एखन तँ हम जाइ छी, मुदा अहाँ केँ जे कहलौं से करब आ कोनो दिक्कत हएत तँ हमरा सँ भेंट करब। हम
अहाँक चिट्ठी बना देब आ जतय कहऽ पडत कहि देब।" फेर हम घर चलि गेलौं। सभा विसर्जित
भऽ गेल छल।
दोसर दिन जखन स्कूल
गेलौं, तँ
फेर सँ घनश्यामक दोकान पर चाहक जुटान भेल। आइ बिनोद दोकान पर नै छल। हम गर्व सँ
बाजलौं- "देखलियै बिनोदक मुक्ति भऽ गेल। आब ओकर गहीर आँखिक सपना फेर सँ हरिआ
जाएत।" घनश्याम कहलक- "नै सर, बिनोदबाक बाप अहाँ
सब सँ डरि गेल आ हमरा ओतय सँ हटा लेलक। कहै छल जे कहीं साहब सब पकडबा नै दैथ,
तैं एकरा कोनो दोसर ठाम रखबा दैत छियै।" हम अवाक रहि गेलौं।
बिनोदक गहीर आँखिक सपना हमरा नजरिक सामने ठाढ भेल हमरा पर हँसि कऽ कहै छल-
"सब सपना पूरा होइ लेल थोडे होई छै। किछ सपनाक अकाल मृत्यु भऽ जाइ छै। हमरो
अकाल मृत्यु भऽ गेल अछि। अहाँ व्यर्थ हमरा जीयेबाक प्रयास कऽ रहल छी।" हम
हताश भऽ गेलौं। ओहि दिन सँ बिनोद केँ बहुत ताकलियै, मुदा
पूरा भागलपुर मे ओ कतौ नै भेंटल। बच्चा सबहक बडा दिनक छुट्टी मे एकटा भाडाक गाडी
सँ गाम जाइ छलौं। बाट मे नारायणपुर मे चाह पीबा लेल गाडी रोकलौं, तँ देखै छी जे बिनोद ओहि चाहक दोकान पर काज करैत छल। हम ओकरा दिस बढलौं की
ओ जोर सँ कानऽ लागल। दोकानक मालिक हमरा कहलक- "बच्चा केँ किया डरबै छियै?"
हम- "नै डरबै नै छियै। हम ओकरा जानै छियै।" दोकानक मालिक-
"से तँ हम देखिये रहल छी। चुपचाप चाह पीबू आ अपन गाम दिस जाउ।" ताबत
कनियाँ सेहो आबि गेली आ कहऽ लागली- "अहाँ केँ बताह हेबा मे आब कोनो कसरि नै
रहि गेल। चलू तँ चुपचाप।" हम देखलौं जे बिनोद कतौ नुका गेल छल अपन गहीर आँखिक
सपना समेटने आ हम चुप भऽ गाडी मे बैसि गेलौं।
ऐ रचनापर अपन
मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
नवीन कुमार "आशा"
बेटीक जन्म
बेटीक जन्म पर कतेक लोग हॅसैत खिलखिलैत छथि तअ कतेक लोग नोर
बहबैत छथि। कहियो इ सोचल जॅ बेटा बुढ़ापाक लाठी बनि सकैत अछि तअ बेटी कियाक नहि।
मानल जाइत अछि जे आजुक समय मे बेटा आ बेटी एक समान अछि, परंच
किछु वक्ता लेल एहि विषय पर मतभेद छनि, आखिर किया ?
बेटी लक्ष्मीक रूप मानल जाए छथि तय फेर लक्ष्मीक अनादर कियाक। 21वीं ष्षताब्दी, जतय बेटी बेटा सॅ आगु निकलल
जाएत छथि, ईहो समय में भ्रूण हत्या, विवाहक बाद दहेज लेल प्रताड़ित करनाए आखिर कियाक ? जे परिवार भ्रूण हत्या करैत छथि आ जे दहेज लेल प्रताड़ित करैत छथि से
कहियो सोचलैत की ओ जकरा प्रताड़ित करैत छथि ओ कोनो घरक बेटी अछि। आखिर ई अंतर कहिया
धरि तक मिटत। कहियो ई सोचलैत जे अगर इ समाज में बेटीक जन्मदर कम भय जायत तय इ समाज
कोना के विकसित होयत। एखन देखल जाए सकैत छैक जे हर क्षे़त्र मे बेटी अपन परचम लहरा
रहल अछि, चाहे ओ सिविल, इंजिनियरिंग
या अन्य क्षेत्र हुअए, फेर बेटी कय सदिखन अपमान किया कएल
जाएत अछि। बेटी चाहे ओ कियाक ने एकटा मॉ हो, पुतौह हो या
बेटी, ओ सदिखन अपना ऊपर होय वला अत्याचार के सहैत अछि,
आखिर इ कहिया तक ?
एकटा और अपन समाज में विषरूपी ब्याप्त समस्या अछि दहेज, जेकर कारणे कतेक बेटी प्रताड़ित कैएल जाए छथि आ कतेको तअ मारि देल जाए
छथि। आजुक समय में हरेक लड़की पढ़ल लिखल आ काज करैत होय छैक पर तहियो ओकर विवाह बिना
दहेजक नहि होइत छैक। जे वक्ता बेटी के अभिषाप या बेटाक दर्जा नै दैइत छथि, कि कहियो ओ सोचलैत जे ई दहेज प्रथा, भ्रूण हत्याक
विरोध करि। कि समाज अपन सोच नहि बदलत।
हम ई सब बातक विरोध आ घोर निंदा करैत छी, आ बेटी के हॅसैत-खेलाइत स्वागत करि तकर आवाहन करैत थिक।
उमेश मण्डल
विदेह नाट्य उत्सव- 2012 ::
मधुबनी जिलान्तर्गत चनौरागंजक जे.एम.एस.
कोचिंग परिसरमे विगत 28-29 जनवरी 2012केँ सरस्वती पूजाक अवसरपर दु-दिवसीय ‘विदेह नाट्य उत्सव’क आयोजन विदेह ई-पत्रिकाक नाट्य-रंगमंच-फिल्मक संपादक बेचन ठाकुर
जीक संयोजकत्वमे कएल गेल। श्री बेचनठाकुर लिखित ‘बिसवासघात’,
श्री गजेन्द्र ठाकुर लिखित ‘उल्कामुख’ आ
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल लिखित ‘बिरांगना’ नाटकक मंचन श्री बेचन ठाकुरक िनर्देशनमे भेल। नाट्य रंगमंच-फिल्मपर
परिचर्चा, शिशुकला प्रदर्शन, काव्य
गोष्ठी, एकर अतिरिक्त नाटक अभिनय, गीत-संगीत, हास्य–कला,
नृत्य-कला, मूर्ति-कला, शिल्प-वस्तुकला, काष्ठ-कला, किसानी-आत्मनिर्भर संस्कृति एवं चित्र-कला क्षेत्रमे 2012क ‘विदेह सम्मान’ सेहो प्रदान कएल गेल। ऐ अवसरपर
विशिष्ट अतिथि रहथि साहित्यकार जगदीश प्रसाद मण्डल, कवि जनककिशोर लाल दास, झंझारपुरक वरीय
उपसमाहर्ता सह प्रभारी एस.डी.ओ. चेतनारायण राय, डी.सी.एल.आर;
कुमार मिथिलेश प्रसाद सिंह, पूर्व जिला
पाषर्द बलराम साहु, डॉ. उषा महासेठ, कुमार रामेश्वर लालदास, रामवृक्ष सिंह,
ब्रज किशोर साह आ अवकाश प्राप्त शिक्षक हरिनारायण झा। हजारो
दर्शक-श्रोताक अालाबे दूर-दूरसँ आएल साहित्य-संगीत प्रेमी सबहक उपस्थिति सेहो
छल। मंचक संचालन रामसेवक ठाकुर, दुर्गानंद मंडल आ दयानंद
कुमार केलनि। विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी मंचक दहिना भाग लगाओल गेल रहए जे
आकर्षक रहल।
दिनांक 28/01/2012 अर्थात उत्सवक पहिल दिन
दुटा नाटक क्रमश: बिसवासघात आे उल्कामुख’क प्रदर्शन भेल। जतए पहिल नाटक हालेमे एन.एच. िनर्माणमे भेल घोटालासँ
उपजल षड्यंत्रक प्रभावकेँ उघार केलक ओतहि दोसर नाटक जादू वास्तविकतावादी उल्कामुख
जइमे ऐतिहासिक षड्यंत्रकेँ उघारल करैत खचाखच दर्शकदीर्घामे दाँते ओंगरी कटबाक स्थिति
बनौलक।
गुरु: ब्रह्मा गुरु: विष्णु... मंगलाचरणसँ
उद्घाटन सत्र प्रारम्भ भेल। विधिवत् दीप प्रज्वलित कऽ अवकाश प्राप्त शिक्षक
कुमार रामेश्वर लाल दास उद्घाटन केलनि। रंगमंचीय अध्यक्ष डाॅ. उषा महासेठ एवं
श्री ब्रज किशोर साहक अभिभावकत्वमे कार्यक्रमकेँ आगाँ बढ़ाओल गेल। एकटा सुन्दर
स्वागत गीतसँ सुश्री शिल्पी कुमारी ओ आशा कुमारी स्वागत केलनि।
नाटक मंचनसँ पूर्व काली माताक झाँकी प्रस्तुत
कएल गेल जइमे काली केर प्रदर्शन केलीह सुश्री आरती कुमारी हाथक सहयोग केने रहनि सुश्री
उजमा निहकत। ऐ अवसरपर गीत गाओल गेल छल- जय जय भैरवि....., जेकर गायक कलाकार रहथि कुष्ण
कुमार यादव ओ कमल िकशोर ‘पंकज’।
एकर अतिरिक्त जल स्वच्छता अभियानपर आधारित गीत ‘जल स्वच्छता बढ़बैत चलू....’ एवं जट-जटीन, ‘जब जब पढ़ए कहलियौ गे
जटीन.....; फगुआ ‘सरस्वती
पूजामे नव उमंग आनल वसन्त.....; रागिनी कुमारी, विभा कुमारी, ललिता कुमारी आ सुधीरा कुमारी
द्वारा प्रस्तुत कएल गेल।
बिसवासघात नाटकक प्रमुख पात्र- राम किशुन, बीरू, एस.पी,
कलक्टर, उमाशंकर, गंगाराम, लक्ष्मी, ओम
प्रकाश, बिलट, राजा आ हरिकिश्वर
जेकर अभिनय केने छलाह क्रमश: दुर्गानंद ठाकुर, श्रवण
कुमार महतो, सुनील कुमार महतो, नवीन
कुमार मण्डल, अमित रंजन, सर्व
नारायण महतो, नवीन कुमार, अभिनव
कुमार सागर, मो. टॉसिफ, रमेश
कुमार यादव, आ जीतेन्द्र कुमार पासवान।
उल्कामुख नाटकक प्रमुख पात्र- गंगेश, वल्लभा, देवतत्त,
आचार्य सिंह, भगता आ गंगाधर। अभिनय
केने रहथि क्रमश: अंजली िप्रयदर्शिनी, प्रीति कुमारी,
सुलेखा कुमारी, श्वेता कुमारी, पूजा कुमारी आ शिल्पी कुमारी।
अंतमे हास्य कलाकार श्री दुर्गानंद ठाकुर
द्वारा अद्भुत समाचारक प्रस्तुति कऽ रातिक 11 बजे कार्यक्रम शेष भेल।
एहिना दोसर दिन माने 29/ 01/ 2012क
कार्यक्रम शुभारम्भ भेल ‘विदेह सम्मान समारोह’सँ ऐ सत्रक उद्घाटन
उपसमाहर्ता सह प्रभारी एस.डी.ओ. चेत नारायण राय, डी.सी.एल.आर.
कुमार मिथिलेश प्रसाद सिंह, साहित्यकार जगदीश प्रसाद
मंडल, कवि जनक किशोर लाल दास, डॉ.
उषा महासेठ एवं अवकाश प्राप्त शिक्षक हरिनारायण झा सम्मिलित रूपसँ दीप प्रज्वलित
क’।
नाटक, गीत, संगीत,
नृत्य, मूर्तिकला, शिल्प-वस्तुकला, काष्ठ-कला, किसानी-आत्मनिर्भर संस्कृति एवं चित्रकला क्षेत्रमे 2012क विदेह
सम्मानसँ सम्मानित प्रतिभागी सबहक सूची ऐ तरहेँ अछि-
अभिनय-
सुश्री शिल्पी
कुमारी, उमेर- 17 पिता श्री लक्ष्मण झा
श्री शोभा कान्त
महतो, उमेर- 15 पिता- श्री रामअवतार महतो,
हास्य-अभिनय-
सुश्री प्रियंका कुमारी, उमेर- 16,
पिता- श्री वैद्यनाथ साह
श्री दुर्गानंद
ठाकुर, उमेर- 23,
पिता- स्व. भरत ठाकुर
नृत्य-
सुश्री सुलेखा कुमारी, उमेर- 16,
पिता- श्री हरेराम यादव
श्री अमीत रंजन, उमेर- 18, पिता-
नागेश्वर कामत
चित्रकला-
श्री पनकलाल मण्डल, उमेर- 35, पिता- स्व. सुन्दर मण्डल, गाम छजना
श्री रमेश कुमार
भारती, उमेर- 23,
पिता- श्री मोती मण्डल
संगीत
(हारमोनियम)-
श्री परमानन्द
ठाकुर, उमेर- 30,
पिता- श्री नथुनी ठाकुर
संगीत (ढोलक)-
श्री बुलन राउत, उमेर- 45, पिता-
स्व. चिल्टू राउत
संगीत
(रसनचौकी)-
श्री बहादुर राम, उमेर- 55, पिता-
स्व. सरजुग राम
शिल्पी-वस्तुकला-
श्री जगदीश मल्लिक, उमेर 50 गाम-
चनौरागंज
मूर्ति- कला-
श्री यदुनंदन पंडित, उमेर- 45, पिता-
अशर्फी पंडित
काष्ठ-कला-
श्री झमेली मुखिया,पिता स्व. मूंगालाल
मुखिया, उमेर 55, गाम- छजना
किसानी-आत्मनिर्भर
संस्कृति-
श्री लछमी दास, उमेर- 50, पिता
स्व. श्री फणी दास, गाम बेरमा
उपरोक्त प्रतिभागी
सभकेँ प्रस्तीपत्र, प्रतीक
चिन्ह अा मालासँ सम्मानित कएल गेलनि। उपहार स्वरूप लगभग हजार-हजार रूपैयाक
नव मैथिली पोथी सेहो प्रदान कएल गेल। ऐ तरहेँ विदेह द्वारा ई एकटा नव डेग,
जेकरा मैथिली साहित्यमे पहिल डेग सेहो कहबामे कोनो हर्ज नै,
उठाओल गेल।
दोसर सत्र कवि सम्मेलन
आ परिचर्चाक छल। ऐमे भाग लेलनि राम सेवक ठाकुर, दुर्गा नन्द मण्डल, नन्द विलास राय, कपिलेश्वर राउत, लक्ष्मी दास,
रामविलास साहु, प्रो. उपेन्द्र नारायण
अनुपम, जगदीश प्रसाद मंडल, जनक
किशोल लाल दास, राम प्रवेश सिंह, शम्भू सौरभ, अजय कुमार दास, बलराम साहु, राम सेवक ठाकुर, अखिलेश कुमार मण्डल, शिवकुमार मिश्र आ मो.
गुल हसन आदि कविमे अखिलेश कुमार मंडल आ लक्ष्मी दास छोड़ि सभ अपन-अपन स्वलिखित
नूतन कविताक पाठ केलनि।
ऐ तरहेँ दोसर सत्रक
समापनक पछाति तेसर सत्र जे रंगमंच-सत्र ओ विदेह नाट्य उत्सवक अंतिम सत्र आयोजित
भेल। अंतिम सत्रक विशिष्ट अतिथिगण रहथि- कामेश्वर कामति, नीलकांत दास, शिव कारक, मो. असनुद्दीन, नन्द किशोर गुप्ता, कपिलेश्वर राउत।
रंगमंचीय अध्यक्षता ओ मंच संचालन केलनि दुर्गानंद मंडल।
....ग्रामीण जीवनकेँ बजारोन्मुख हएब...।
सस्ता श्रम-शक्ति भेटलासँ पूँजीपति वर्ग द्वारा शोषण...। श्रमक लूटसँ ग्रामीण
लोक जानवरोसँ बत्तर जिनगी जीबए लेल मजबूर...। रूपैयाक लालचमे नीच-सँ-नीच काज
करबाक लेल लोक केना तैयार होइए इत्यादि विषय-वस्तुपर आधारित बिरांगना एकांकी’क प्रस्तुतिक पछाति विदेह नाट्य
उत्सवक समापनक घोषणा कएल गेल।
उपरोक्त समाचारक फोटो व विडियो निम्न
लिंक सभपर उपल्ब्ध अछि।
डा. रमानन्द झा ‘रमण’
अनुवाद
1
21 फरबरी - अन्तरराष्ट्रीय
मातृभाषा दिवस। एही दिन पूर्वी पाकिस्तानमे लादल गेल उर्दूक विरोधमे बंगलाभाषी
विशाल प्रदर्शन कएने छलाह। पाकिस्तानी पुलिस गोली चलौलक। दू बंगलाभाषी नवयुवकक
प्राण तत्काल चल गेलनि। तेसर नवयुवकक देहान्त 22 फरबरी,
1952 के ँ भेल। ओहि तीनू बलिदानीक स्मृतिमे तात्कालीन पूर्वी
पाकिस्तान आ’ आब बंगलादेश 21
फरबरीरके ँ प्रतिवर्ष मातृभाषा दिवस मनबए लागल। हुनका लोकनिक सारासँ तेहन ने धधरा
उठल जे इतिहास साक्षी अछि, बंागलादेश बनि गेल। देशक
राजनीतिक स्वतन्त्राताक लेल विश्वक राजनीतिक इतिहासमे अपन प्राणक आहूति देनिहार
अनगिनित स्वाधीनताकामी छथि, किन्तु अपन भाषाक नामपर
प्राणक आहूति देबाक विश्वमे ई पहिल घटना छलैक। स्वतन्त्राता सेनानीक स्मृतिमे
दिल्लीमे इंडिया गेट अछि, आ’ पटनामे
शहीद स्मारक। मुदा ढा़कामे शहीदमीनार अछि, जतय प्रतिवर्ष 21 फरबरीके ँ मातृभाषाक अस्मिताक रक्षाक लेल प्राणक आहूति देनिहार
ओहि तीनू नवयुवकके ँ लोक श्रद्धांजलि अर्पित
करैत अछि। भाषाक संरक्षणक लेल शपथ लैत छथि। बंगलादेशक सरकारक आवेदनपर, विश्वक कतेको देशक समर्थनसँ,
जाहिमे भारत प्रमुख छल, 1999 मे
यूनेस्को 21 फरबरीके ँ अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
घोषित कएलक। आब समस्त विश्व 2000 सँ 21 फरबरीके ँ अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए रहल अछि। एहन
महत्त्वपूर्ण तिथिके ँ मैथिलीक विकासक लेल कार्यक्रमक शुभारम्भ निश्चिते अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण अछि। नेशनल अनुवाद मिशन, मैसूर मिथिला भाषाक
विकास एवं संरक्षणक लेल कतेक सतर्क अछि, तकर ई उदाहरण
थिक। नेशनल अनुवाद मिशनक अधिकारीलोकनि धन्यवादक पात्र छथि।
2
हमरालोकनि अपन मातृभाषाक लेल लिखैत रहबाक
अतिरिक्त जनजागरण अभियान नहि चलौलहुँ। आन्दोलन नहि कएलहुँ। आन्दोलनक लेल जे संघनित
भाषाचेतना अपेक्षित छैक, तकर सभ दिनसँ अभाव रहल। ऐतिहासिक, राजनीतिक वा
सामाजिक कारणसँ
दूभाषिआ भए गेलहुँ, जाहि गतिसँ पड़ैनी लागल अछि, जाहि तन्मयतासँ बजार आ’ संचार माध्यमक चाक पर
नंचैत जाइत छी, आ’ जेना हरिअरी
दिस लपकि रहल छी, ओहिसँ जे गढाइत अछि वा गढ़ाएत, स्पष्ट संकेत अछि, अगिला पीढ़ी एक भाषिआ भएके ँ
रहत। भाषा वैज्ञानिकक निष्कर्ष अछि, दोसर पीढी दू भाषिआ
होइत अछि आ’ तेसर पीढ़ी एक भाषिया। परिणाम होइछ, भाषाक विलुप्ति।1
दोसर भाषा वैज्ञानिक जे.ए. फिशमैनक सेहो
शोधनिष्कर्ष एहने अछि, ‘जाहि
मातृभाषाक आनुवंशिक संक्रमण नहि होइछ, से भाषा टीकैत नहि
अछि।2
एहन सामाजिक स्थितिमे अपन मातृभाषाक रक्षाक
लेल संवैधानिक कबच-कुण्डल भेटि गेल अछि। एहिसँ मैथिली प्रयोगक प्रक्षेत्रमे विकासक
संग वैविध्य आएल अछि। पहिने कविता कथा लिखि,
पढ़ि वा वांचि गदगद होइत छलहुँ। अपना अपनीके ँमग्न रहैत छलहुँ।
ओना ई प्रवृत्ति गेल नहि अछि। मैथिलीक सभ छारभार, यश अपयश
एही वर्ग पर छलनि। मुदा, संवैधानिक मान्यताक उपरान्त
अन्यहु क्षेत्र आ’ शास्त्रक विज्ञजनके ँ गौरवक बोध भेलनि
अछि। अपन मातृभाषाके ँ सम्बृद्ध करबाक इच्छा जगलनि अछि। मौलिक आ’ अनुवाद दूनू क्षेत्रामे सक्रिय भेलाह अछि। एहिसँ आनो आनो शास्त्राक
रचना मैथिलीमे आबए लागल अछि। साहित्येतर विषयक पोथी मैथिलीमे छपय लागल अछि।
मैथिलीक विस्तार एवं संरक्षणक हेतु ई शुभ लक्षण थिक। मैथिलीमे लेखनक दृष्टिसँ
समाजमे दू कोटिक शिक्षित मैथिल छथि -
1. मैथिलीक दृष्टिसँ शिक्षित मैथिल
एवं,
2. मैथिलीक दृष्टिसँ अशिक्षित मैथिल।
1. When a language surrenders itself to foreign idiom
and when all its speakers become bilingual, the penalty is death."
-T.F.O' Rahilly- Irish dialects past and present:
With chapters on Scottish and Manx. Dublin Institute of Advanced
Studies.)
2.Without intergenarational mother tounge
transmission - no language maintenace is possible.That which is not
transmitted can not be maintained)
मैथिलीक दृष्टिसँ शिक्षित मैथिल ओ भेलाह जे
विधिवत मैथिली पढ़ने छथि, मैथिलीमे लिखैत रहबाक अभ्यास छनि एवं
पारिवारिक सम्भाषणक भाषा मैथिली छनि।
मैथिलीक दृष्टिसँ अशिक्षित मैथिलक कोटिमे ओ अबैत छथि जे मातृभाषा मैथिली रहितहु
हुनक अध्ययन वा लेखनक माध्यम हिन्दी वा अङरेजी रहैत अछि, पारिवारिक वा सामाजिक सम्भाषणक भाषा
मैथिली नहि रहि गेल छनि वा अत्यल्प रूपमे छनि। किन्तु, साहित्य
सर्जना वा अन्ये विषयक रचनासँ अपन मातृभाषाक सम्बर्द्धनक प्रबल आकांक्षा छनि। ई
आकांक्षा अवश्य स्वागत योग्य अछि। मुदा, ओ ई मानबाक लेल
तैआर नहि रहैत छथि जे मैथिली सेहो सीखबाक वस्तु थिकैक, मात्रा
बाजब अबैत रहब, साहित्य सर्जनाक लेल पर्याप्त नहि होइत
छैक। मातृभाषा थिक, ते ँ जे लिखब, जहिना लिखब, सभटा ठीके होएत, शुद्धे होएत। एहि भ्रान्त धारणाक कारण मैथिली लेखनमे अव्यवस्था बढ़ि गेल
अछि। एक टा समाचार पढ़ने छलहुँ, बिलेंतक अधिकांश अन्डर
ग्रेजुएट अङरेज, शुद्ध अङरेजी नहि लिखि पबैत र्छिथ। ई
मैथिली भाषी पर सेहो लागू होइत अछि। अन्यथा रमानाथ झा नहि लिखने रहितथि - ‘हम ई नहि मानैत छी जे जँ मैथिली हमर मातृभाष थिक, हम मैथिली अहोरात्रा बजैत छी ते ँ जे लिखब, जेना
लिखब सएह मैथिली होएत। जे कहैत छथि, जे जहिना बजैत छी
तहिना लिखब, तँ मैथिलीक स्वरूप अनन्त भए जाएत।’ एहि प्रसंग भाषावैज्ञानिक डा. रामावतार यादव मैथिली लेखनमे आएल
अस्तव्यस्तताक कारणक अन्वष्ेाण कए, भाषावैज्ञानिक तथ्यक
आधारपर ओकर परीक्षण कए एहि निष्कर्षपर छथि जे ‘हिन्दी
भाषाक माध्यमे ँ शिक्षा ग्रहण कएनिहार एवं हिन्दी भाषाक लैखिक परिपाटीसँ अत्यधिक
प्रभावित होमएबाला मैथिलीक लेखक लोकनि हिन्दी जकाँ मैथिली सेहो लिखए चाहैत छथि एवं
मैथिलीक प्रत्येक शब्द, रूपिम एवं रचनांग आदिके over
differentiate करए चाहैत छथि’। ओ मानैत
छथि जे एहि प्रभावक कारणे ँ मैथिलीक ऐतिहासिकताक रक्षा नहि होइत अछि, ओ मैथिलीक निजत्वक परिचायक नहि बनि, मैथिलीके
ँ कुरूप कए दैत अछि। एहि देखौंसक
परिणामजनित किछु उदाहरण प्रस्तुत कए रहल छी
-
1. अहाँ सँ के बहस करत?
2. पूजा करथु, आ कनियो के आबय कहथुन।- मधुकान्त झा, क्रान्तिरथी,
पृ.सं.14/66
3. आइ फेर सँ नारायण जी क े डेरा खाली
करबाक नोटिस जारी भ’ गेलनि।-ऋषि बशिष्ट, मांटि परक लोक,सुफांटि जतरा, पृ. सं.10
4. एकटा के बजाउ त’ दोसर पार। - ऋषि बशिष्ट,
पहिल वाक्यमे ‘के’ सर्वनाम
अछि एवं दोसर, तेसर एवं चारिम वाक्यमे ‘के’ कारक चिह्न थिक। मुदा, मैथिलीक लेखक महोदय सभठाम ‘के’क प्रयोग कए देलनि अछि। साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कृत मैथिलीक एक लेखकक
प्रकाशित नब पोथीपर चर्चाक क्रममे एहि विषयक हमर विचार सुनि ओ तमसा गेलाह आ’
कहलनि ‘अर्थात हमरा मैथिली नहि लिखए
अबैत अछि।’ मिथिला भाषाक अपन निजी विशेषता, सानुनासिक स्वरध्वनिक प्रसंग डा. रामावतार यादवक अभिमत अछि जे
सानुनासिक स्वर ध्वनिक लेल अर्थात् एहन स्वर ध्वनिक लेल जे कोनहु नासिक्य व्यंजनक
सामीप्यक अभावहुमे स्वतः स्वनिमिक भए सानुनासिक रूपे ँ उच्चरित होइत अछि एवं जकरा spontaneous
nasalization कहल जाइत अछि, मैथिली
वर्तनीमे अद्वयार्थक रूपे ँचन्द्रबिन्दु द्वारा, जेना सँ,
तँ, हँ, अहाँ
प्रतिबिम्बित होइत आएल अछि एवं सएह उचित अछि। अनुस्वार द्वारा यथा सं, तं, हं, अहां ओ
प्रतिनिधित्व नहि होइत अछि। मुदा, कतेको व्यक्ति
चन्द्रबिन्दुक कोन कथा, अनुस्वारहुके ँ छोड़ि स’ एवं त’ लिखैत छथि। जेना उदाहरण 4 (‘एकटा के बजाउ त’ दोसर पार’) मे अछि। मैथिलीक गम्भीर अध्येता पं. गोविन्द झा स्पष्टतः लिखने छथि जे
मैथिलीक अपन स्वन-व्यवस्थामे अनुस्वारक कतहु स्थान नहि अछि, किन्तु हिन्दीक प्रभावसँ एकर प्रयोग जोर पर अछि, जखन कि बंगलामे अद्यावधि अनुस्वार नहि चलैछ। निश्चित रूपसँ ई
बंगलाभाषीक अपन भाषाक निजताक रक्षाक प्रति सचेत एवं साकांक्ष रहबाक परिचायक थिक।
अङरेजी शब्द Marriageक संगे कतय जव आ’ कतय ूपजी लागए, से घोखैत जाइत छी, किन्तु, मैथिली अपन मातृभाषा थिक, व्याकरणक नियमक पालनक कोन चिन्ता, जे लिखब,
शुद्धे होएत। के काटत? ई मानसिकता
पराकाष्ठापर अछि। ई ध्यान देबाक थिक थिक जे पैघ लेखकक भाषा सेहो पैघ होइत छैक,
अन्यथा अभिप्रेतक अभिव्यंजना लटपटा जएतैक। राजनीतिक उपनिवेशवाद
समाप्त भए गेल। मुदा, उपनिवेशवाद नवरूप धारण कए लेलक अछि।
ओ अपन अकादारुण मुह बाबि इनफौरमेशन टेकनौलेजीक रथपर सबार भए, द्रुत गतिसँ आबि रहल अछि। ओ सभटा गीरि जएबाक लेल आतुर अछि। मैथिलीपर दू
तरफा मारि पड़ि रहल छैक। ओहि प्रहारसँ मैथिलीके ँसुरक्षित रखबाक अछि। तखनहि,
मैथिलीक अपन निजता रहतैक, नहि तँ एकटार
भए जाएत। एहि लेल आवश्यक अछि जे मैथिलीक
स्वन विशेषताके ँ, ओकर
ध्वनि परम्पराके ँ लेखनमे सुरक्षित राखल जाए। डारामावतार यादवक परामर्श अत्यन्त
उपयोगी अछि जे मैथिलीक आत्मरक्षार्थ ई परमावश्यक जे ओ हिन्दीसँ भिन्न देखि पड़ए। हम
लक्ष्मीपति सिंहक उक्तिके ँ दोहरबैत एहि प्रसंग अपन वक्तव्यके ँ विराम दैत छी। ओ
लिखल अछि -
‘जेना बजै छी, तहिना लिखी, जे सर्वसाधारण बूझि जाए, सएह लिखी वा जे किछु शुद्ध-अषुद्ध अपन मन मानि जाए, तकरे सर्वांग सुन्दर काव्य मानि लिपिबद्ध कए ली, तथा व्याकरणादि ग्रन्थ पढ़बाक डरे ँअपन-अपन पारिवारिक वा ग्रामीण
स्वर-प्रक्रियाक अनुव्रजन करैत अपनहि इच्छे साहित्यिक मैथिलीक स्तर निर्धारित कए
ली, आदि दुराग्रह आइ-काल्हि मैथिली संसारमे संक्रामक रोग
जकाँ पसरि रहल अछि। ककर कथा मानओ, के ककर पथ-प्रदर्शक
बनथि’।
3
हमर विचारक तेसर बिन्दु भए सकैत छल, अनुवाद सिद्धान्तक प्रसंग किछु
बाजब। मुदा, अनुवादक तीनू स्थिति -
1. सिद्धान्त ; (Theory),
2. अभ्यास ; (Practice), एवं.
3. मूल्यंाकन ; (Evaluation)के ँ ध्यानमे राखि बहुत नीक जकाँ कार्यक्रम निर्धारित अछि तथा अध्यापन
कार्यमे निष्णात विद्वान सब अग्रिम सत्रासभमे विभिन्न विषयपर अपन-अपन विद्वतापूर्ण
व्याख्यानक लेल आमन्त्रिात छथि। ओहि शास्त्राीय विषय पर हम किछु कहबाक साहस नहि कए
सकैत छी। तथापि, ई कहब जे अनुवाद, आब एक भाषासँ दोसर भाषामे मात्रा उल्था करब नहि रहि गेल, एकरा शास्त्राीयता प्राप्त भए गेल छैक एवं अनुवादशास्त्राक
अध्ययन-अध्यापन अनुवाद विज्ञानक ; ( Translatology) रूपमे होअए लागल अछि। पहिने अनुवाद द्विकर्णी (Binary)
मानल जाइत छल, किन्तु आब बहुआयामी ;
(Multidimensional) भए गेल अछि। पहिने एक शास्त्राीय छल आ’
किन्तु आब अनुवाद विज्ञानक बहुशास्त्राीयताक ;
(Interdisciplinarity of Translatology)परिप्रेक्ष्यमे अनुवाद
कार्य होइत अछि। पहिने स्रोत भाषा (Source Language) एवं
लक्ष्य भाषाक ; (Target Language) जनतब आवश्यक छलैक,
मुदा आब अनुवादकक लेल भाषाक संगहि संग, स्रोत
संस्कृति (Source Culture)एवं लक्ष्य संस्कृतिक ;
(Target Culture )जनतब सेहो आवश्यक मानल जाइत अछि। पहिने एक विषय,
जेना समाजशास्त्र होइत छल, किन्तु आब
अनुवादक एवं पाठक/स्रोताक बीचक सम्बन्धक लेल Sociology of Translation पर विचार होइत अछि। नॉलेज टेक्स्टक अनुवादसँ अनुवाद शास्त्रामे आओरो
विस्तार आबि गेल अछि। आब अनुवादकार्यक स्वरूप, विषय एवं
उद्देश्यक आधारपर निर्धारित होइत अछि। अनुवादकक लेल सर्वथा आवश्यक अछि जे हुनका
स्रोतसंस्कृति एवं लक्ष्यसंस्कृतिक जनतबहि नहि हो, अपितु
विषयक Comman Background Knowledge सेहो रहबाक चाहिअनि।
अनुवाद विज्ञानक क्षेत्रामे बी. फॉलकार्टक प्रतिक्रमण (Reversibility) पर आधारित नवीनतम सिद्धान्त(1989) अछि
ठंबा.ज्तंदेसंजपवद क सिद्धान्त। एहिमे स्रोतक अनुरूप चारि टा कोटि अछि -
1. गणितीय स्रोत ; (
mathematical text), एहिमे सबसँ बेसी प्रतिक्रमण सम्भव अछि,
2. तकनीकी स्रोत ; (technical
text),
3. साधित स्रोत ; (
constrained text) तथा,
4. सामान्य एवं साहित्यिक स्रोत ;
( general and literary text)।
नेशनल अनुवाद मिशनक जे लक्ष्य छैक, अनुवादकक लेल Comman
Background Knowledge आवश्यक अछि। संगहि, लक्ष्यभाषामे बाजबे टाक अभ्यास पर्याप्त नहि अछि, मैथिलीमे लिखैत रहबाक अभ्यासक संग, मैथिलीक
भाषागत विशेषताक ज्ञान सेहो चाहिअनि, तखनहि Sociology
of Translation स्थापित भए सकत आ’ अनुवाद
हास्यास्पद होएबासँ बंचि सकैछ। विषयक जनतबक अभावमे अनुवाद केहन भए जाइछ, तकर उदाहरण प्रस्तुत अछि।
रिजर्व बैक द्वारा सूचीबद्ध वस्तुक आयातक
लेल Blanket Permit देल
जाइत छलैक आ’ आयातकक लेल आवश्यक नहि छलैक जे प्रत्येक खेपक
समय ओ अनुमति प्राप्त करथि। एहि काजसँ अनभिज्ञ अनुवादक Blanket Permitक अनुवाद कंबल परमिट कए देलनि। ओहिना छपिके ँआएल विभिन्न प्रकार बॉण्डक
हिसाब जाहि रजिस्टरमे राखल जाइत अछि, तकरा नाम थिक Skelton
Register मुदा काजसँ अनभिज्ञ व्यक्ति अनुवाद कए देलनि कंकाल रजिस्टर।
ओहिना स्रोत संस्कृति (Source Culture) एवं लक्ष्य
संस्कृतिक ; (Target Culture )सँ अनजान अनुवादक की कए
सकैत छथि, तकर उदाहरण प्रस्तुत अछि -
'The young daughter kissed her father and bade
adieu.'
एकर अनुवाद जँ मैथिलीमे कए देबैक ‘जुआन बेटी बापके ँचुम्मा लेलक तँ
अनर्थे ने भए जाएत।
योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय,
दरभंगा (बिहार)
ग्रामजीवनक सत्यक संवाहक :: अर्द्धांगिनी
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल बहुआयामी रचनाकारक
रूपमे मैथिली जगतमे प्रसिद्ध छथि। कथा-कविता-नाटक-उपन्यासादि विधाकेँ ई अपन
स्वर्णलेखनीसँ सजबैत रहलाह अछि। हिनक समस्त रचना हिनका मिथिला-मैथिलक
लोकजीवनक प्रत्यक्षदर्शी ओ व्याख्याताक रूपमे प्रस्तुत करैत रहलनि अछि।
लोकजीवनक यथार्थकेँ यथावत् चित्रित कए मानवीय संवेदनाकेँ उद्बुद्ध करब हिनक
रचना सबहक प्रधान विशष्टता रहलनि अछि। प्रतिभा, व्युत्पत्ति ओ अभ्यास ऐ तीनू कारकसँ सम्बलित हिनक
रचनावलीमे मिथिला-मैथिलक समस्या ओ तकर समाधानक दिशा भेटैत अछि। वर्त्तमान
जीवनमे होइत नित्य नूतन परिवर्त्तनक खण्ड चित्रकेँ यथावत् प्रस्तुत करब हिनक
कथाक विषय-वस्तु रहलनि अछि जकरा ई सहज रीतियें प्रस्तुत करैत रहल छथि।
मण्डलजीक कथा सभ मिथिलाक माटि-पानिक
कथा थिक। हिनक कथा सभमे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक आशा-निराशा, सुख-दु:ख, हर्ष-उल्लास
आ जीवन-संघर्षक व्याख्या भेटैत अछि। मिथिलाक सामाजिक-आर्थिक ओ राजनीतिक
जीवनमे होइत परिवर्त्तन सभकेँ सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा ई अपन कथा
सभकेँ प्रवाहमयता, रोचकता ओ विश्वसनीयताक संग प्रस्तुत
करबामे सिद्धहस्त कलाकारक रूपमे प्रतिष्ठित भेलाह अछि।
हिनक कथासंग्रह अर्द्धांगिनी बीस गोट कथाक
समुच्चय थिक। ऐ कथा सभमे नोकरिहाराक जीवनक संत्रास, परिश्रमी कृषकक उल्लास, सांस्कृतिक पावनि-तिहारमे पैसल अन्धविश्वासक प्रति जुगुप्सा,
ग्राम्य जीवनमे जातीय व्यवसायक महत्व, क्रमश: टूटैत सम्बन्ध-बन्ध, सामाजिक जीवनक
विभिन्न समस्या आदिक सूक्ष्म विश्लेषणपूर्वक लोकमंगलक कामना देखि पड़ैत अछि।
युगीन समस्या ओ समस्याक कारण एवं तकर समाधानक प्रति चिन्तनशीलता हिनक वस्तु-विन्यासकेँ
प्रेरक-प्रभावकारी बनौने रहलनि अछि जइमे परम्परित कथाधाराक आदर्शोन्मुख
यथार्थवादी दृष्टिकोण स्पष्ट रूपेँ प्रस्फुटित देखि पड़ैछ। मिथिलाक
लोकजीवनक उत्थानक प्रति सम्वेदनात्मक अभिव्यक्ति कौशलक कारणे मण्डलजीक
कथा सभ हिनका आधुनिक कथाकार लोकनिक अग्रिम पंक्तिमे ठाढ़ कऽ देलकनि अछि।
ऐ संग्रहक पहिल कथा थिक दोहरी मारि। ऐ
कथामे पुरुष पात्र गुलाबक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भेल अछि। अवकाश प्राप्त
प्रोफेसर गुलाब कतोक वर्षसँ डाइबीटीज ओ ब्लड-प्रेसर सदृश बेमारी सभसँ ग्रसत् छथि।
गामक घर-घराड़ी पर्यन्त बेचि शहरमे बनाओल मकानमे पति-पत्नी एकाकी रहैत छथि।
बेटा-पुतोहु परदेशमे रहैत छन्हि तँए हिनकालोकनिक सुधि लेनिहार कियो नै छन्हि।
नागर जीवनक चाकचिक्यसँ सम्मोहित भऽ ई शहरी जीवनमे बसि तँ गेल छथि, मुदा चोरी-डकैती, लूट-पाट, अपहरण, गंदगी
आदि समस्यासँ ग्रस्त शहरी ग्राम्य जीवनक सौहार्दपूर्ण वातावरणक प्रति आकर्षण
जगैत छन्हि। हद तँ तखन भऽ जाइत अछि जखन पुत्र द्वारा ई समाद भेटैत छन्हि जे
पौत्रक मूड़न घरपर नै भऽ कऽ वैष्णो देवीमे होएतनि, जइ लेल हुनकोलोकनिकेँ ओहीठाम एबाक आमंत्रण भेटैत छन्हि
आ ओ अपनाकेँ अशक्य बूझैत छथि।
ऐ कथाक माध्यमे मण्डलजी साम्प्रतिक
जीवनमे उपकल विस्थापनक समस्याक कारणे अवस्था दोषग्रस्त बुजुर्ग पीढ़ीक व्यथाकेँ अभिव्यक्ति प्रदान कएलनि
अछि। ऐ समस्याक कारणे नोकरी-चाकरी भेला उत्तर लोक शहरमे बसि ग्राम्यजीवनक
सौहार्दसँ तँ वञ्चित होइते छथि संगहि वृद्धावस्थामे जखन परिवारोक लोक हुनक
संग छोड़ि दैत छथिन तँ अपनाकेँ वंचित अनुभव करए लगैत छथि।
एही समस्याकेँ संग्रहक दोसर कथा “केना जीब”
मे सेहो उठाओल गेल अछि। एकर पुरूष पात्र सेहो अवकाशप्राप्त प्रोफेसर छथि। ई
बेटाकेँ पढ़ा-लिखा कऽ विदेश पठयबामे सफल तँ होइत छथि मुदा बेटा विदेशी सभ्यता
ओ संस्कृतिक रंगमे रमि जाइत छन्हि आ हिनकालोकनिक खोजो-पुछारि नै कऽ पबैत
छन्हि। परिणामत: दुनू परानी एकाकी जीवन बितएबाक हेतु बाध्य होइत छथि। एहन स्थितिमे
हिनकालोकनिक लग एकमात्र अवलम्ब बचि जाइत छन्हि- जिजीविषा ओ संघर्ष। यएह जिजीविषा
ओ संघर्ष करबाक मानसिकता ऐ कथाक युग जीवनक अनुकूल संदेश थिक जे एकरा पूर्व
कथासँ भिन्न आ स्तरीय बनबैत अछि। ऐ कथाक वृद्ध दम्पत्ति कखनो हताश आ निराश
नै देखि पड़ैत छथि।
संग्रहक तेसर कथा ग्राम्य जीवनक परिश्रमी
कृषकक गाथा थिक जे अपन परिश्रमक बलेँ अपन भाग्यविधाता बनल अछि। नवान शीर्षक ऐ
कथामे मिथिलाक लोक जीवनक विभिन्न खण्डचित्र उपस्थित कएल गेल अछि यथा
वृक्ष-लतादिक पहिल फड़ देवताकेँ चढ़ायब,
गाए बिआएलापर महादेवकेँ दूधसँ अभिषेक करब आदि। ग्राम्य
जीवनमे पसरैत जातीय ओ साम्प्रदायिक विद्वेष दिस सेहो ऐमे संकेत कएल गेल अछि।
मुदा ऐ कथामे मिथिलाक लोकजीवनक आर्थिक स्थितिकेँ बदहाल करएबला जइ समस्यापर
विशेष दृष्टिनिक्षेप कएल गेल अछि, से थिक बाढ़िक
समस्या। ऐ समस्याक कारणे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक आर्थिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त
भऽ जाइत अछि।
तथापि ऐ कथाक नायक आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति अपनाए नव किस्मक धान उगबय लगैत
अछि, तीमन-तरकारीक नगदी
फसिल उपजाबय लगैत अछि आ नूतन नस्लक माल-जाल पोसि अपन जीवनकेँ खुशहाल बना लैत
अछि, वस्तुत: ऐ वैज्ञानिक पद्धति द्वारा मिथिलाक
कृषक जीवनक समुन्नति भऽ सकैत अछि, से संदेश देब कथाकारक
उद्देश्य छन्हि।
संग्रहक चारिम कथा थिक “तिलासंक्रान्तिक लाइ” ऐ कथामे ग्राम्यजीवनमे पसरल अन्धविश्वासपर प्रहार कएल गेल अछि।
तिलासंक्रान्तिक एकटा एहन पर्व थिक जे सोत्साह मिथिलाक घर-घरमे मनाओल जाइत
अछि। ऐ दिनसँ सूर्य उत्तरायण भऽ जाइत छथि आ क्रमश: शीत ऋृतु वसन्त आ गृष्म
दिस बढ़य लगैत अछि। मिथिलाक प्रशस्त भोजन चूड़ा-दही ऐ दिन गरीबो-गुरबा धरि
खाइते अछि। चूड़ा ओ मुरहीक लाइ, तिलबा आदि देवताकेँ
चढ़ाय प्रासाद रूपेमे ग्रहण करब ऐ पावनिक कृत्य होइत छैक। शीत ऋृतु रहलाक बादो
मिथिलाक ग्राम्यजीवन ऐ पर्वक ओरिआओनमे मास दिन पूर्वहिसँ लागि जाइत अछि।
मुदा ऐ पर्वक प्रसाद ग्रहण करबाक हेतु प्रात: स्नान जरूरी बूझल जाइत छैक। मिथिलामे
ई अपवाद सेहो पसरल छैक जे ऐ दिन जे कियो भोरे नदी
वा पोखरिमे डूब दैत छथि हुनका नदी-देवता तत्काले लाइ धरा दैत छथिन। एही
अपवादपर विश्वास कऽ गोपाल नामक एकटा नेना बारहे बजे रातिमे नदीमे डूब देबए चल
जाइत अछि आ ठंढसँ ग्रस्त भऽ जाइत अछि। ग्राम्यजीवनक अन्धविश्वासी समाजकेँ ऐ
कथाक माध्यमसँ ई संदेश देल गेल अछि जे वस्तुत: ई पावनि प्रकृति-परिवर्त्तनपर
आधारित अछि आ ऐमे बिनु पाखंड कएने लोककेँ अपन सामर्थ्यक अनुसार समैपर स्नान
करबाक चाही, नै कि अन्धविष्वासमे
पड़ि रोगग्रस्त भऽ जएबाक चाही। हरड़ीवालीक उक्ति- “अहाँ
जकाँ रातिमे कुकुर घिसियौने छलौं जे भोरे नहा कऽ पाक हएब” अन्धविष्वासक प्रति बेस प्रहार कएलक अछि। कथामे ऐ पावनिक
तैयारीमे जुटल लोकजीवन अत्यन्त सुन्दर चित्र भेटैत अछि।
पाँचम कथा “भाइक सिनेह” भाइ-भैयारीक आपसी
कलह ओ आर्त्यानक प्रेमक कथा थिक। शिष्टदेव आ विचारनाथ दुनू भँइ एक दोसराक
प्रति अगाध श्रद्धा, भक्ति ओ बन्धुत्वक भाव रखैत छथि
मुदा देयादिनी लोकनिक बीच खट-पटसँ परिवारमे भिन्न-भिनाउज भऽ जाइत छन्हि। भिन्न-भिनाउजक
मूलमे अर्थसत्तापर कबजा रहैत अछि। मुदा जखन दुनूक मनमे परस्पर प्रेमक भाव जगैत
छन्हि तँ दुनू एकदोसराक दु:ख बँटबाक हेतु तत्पर भऽ जाइत छथि। ऐ कथामे कृषक
जीवनमे पारस्परिक सहयोग, सद्भाव ओ शक्तिक अनुकूल
श्रमपर आधारित संयुक्त परिवारक उपयोगिताक परम्परित अनुगायन देखि पड़ैछ।
संग्रहक छठम कथा “प्रेमी” वस्तुत:
प्रेमकथाक रूपमे लिखल गेल अछि मुदा ऐ कथामे रचनाकारक उद्देश्य समाजिक जीवनमे व्याप्त दहेज प्रथाक कुरीतिकेँ समाप्त
करबाक संदेश सएह अभिव्यक्त भेल अछि। पक्षधर आ ज्ञानचन्द दू गामक छथि। दुनूमे
प्रगाढ़ दोस्ती छन्हि। ज्ञानचन्दक पौत्र परीक्षा देबाक हेतु पक्षधरक गाम अबैत
छथिन जतए परीक्षावधि धरि ज्ञानचन्दक पौत्र लोचन आ पक्षधरक पौत्री सुकन्याक
बीच संवाद होइत छन्हि आ दुनू परस्परानुरक्त भऽ जाइत छथि। लोचनकेँ विदा करबाक
क्रममे सुकन्या ओकरे संग ओकरा घर धरि चलि जाइत अछि जे ओहि गाममे गुलञ्जरक वस्तु
भऽ जाइत छैक। विजातीय रहलाक बादो पक्षधर आ ज्ञानचन्द पारस्परिक मैत्रीकेँ सम्बन्धमे
बदलि एकटा आदर्शक स्थापना करैत छथि। पक्षधरक उक्ति- “जइ समाजमे मनुक्खक खरीद-बिकरी
गाए-महींस, खेत-पथार जकाँ होइए ओइ समाजकेँ पञ्च तत्तवक
बनल मनुक्ख कहल जा सकैत अछि? जँ से नै तँ हमर कियो
मालिक नै छी। कियो अगुँरी देखाओत तँ ओकर अगुँरी काटि लेबै।” मे दहेज प्रथाक समर्थक ओ प्रेम-विवाह, विजातीय
विवाहक अवरोधक तत्वपर प्रहार कएल गेलैक अछि।
संग्रहक सातम कथा “बपौती सम्पत्ति” कृषक जीवनमे जातीय व्यवसायक महत्तवक अवधारणापर आधारित अछि। सम्प्रति
कृषक-मजदूरक पलायनसँ जे गामक अर्थ-व्यवस्था चरमरा गेल अछि तकरा सुधारबाक हेतु ऐ
कथामे चिन्तनक एकटा दिशा भेटैत अछि। कथानायक गुलटेन अपन पिताक सिखाओल व्यवसायसँ
नीक जकाँ परिवारक परिपालन करबामे सक्षम अछि। तँए कथाकारक उद्देश्य ग्राम्य स्वावलम्बनकेँ
पुन: स्थापित करबाक हेतु मार्गदर्शन करब बुझना जाइत अछि।
आठम कथा “डंका” लोकजीवनक अवमूल्यनकेँ
रेखांकित करैत अछि। एकर मुख्य पात्र भैयाकाका गामक रक्षा करबाक संकल्प लऽ अपनो
गाममे अखड़ाहाक प्रचलन शुरू करैत छथि जइसँ पास-पड़ोसक गाम किंवा जमीन्दारक
पहलमान हुनकालोकनिकेँ अबल बूझि प्रताड़ित नै कऽ सकनि। ऐ तरहेँ समस्त समाजक
हितकामनाक प्रति हुनका व्यग्रता छन्हि मुदा साम्प्रतिक जीवनमे स्वार्थक
प्रवेशसँ ओ ई जानि विचलित भऽ जाइत छथि जे आब गाम-घरक लोकक कल्याणक गप्प तँ
दूर, लोक अपनो सर-सम्बन्धीक खोज-पुछारि करबासँ कतरयबाक
मूल्यरहित संस्कार पालय लागल अछि। हिनक उक्ति- “माए-बाप, भाए-बहिन सबहक संबंध आ शिष्टाचार ऐ रूपे नष्ट भऽ रहल अछि जे
साधनाभूमिकेँ मरूभूमि बनब अनिवार्य छै” मे समस्त कथासार अभिव्यक्त भऽ जाइत अछि।
नवम कथा “संगी” शिक्षा जगतमे भेल
अद्य:पतनक कथा थिक जइमे स्कूल-कओलेजमे शिक्षाक व्यवसायीकरणक फलस्वरूप सामान्य
जनसँ छीनल जाइत शिक्षाक समस्यापर विमर्श भेल अछि, जकर
समाधानक हेतु दूटा संगी पारस्परिक परिणयपूर्वक क्रान्तिक शंखनाद करैत देखि
पड़ैत छथि। कथाक घटनाक्रम आकस्मिकताक दोषसँ ग्रस्त बुझना जाइछ, जे प्रभावान्वतिकेँ कमजोर करैत अछि।
ठकहरबा पूर्णत: राजनीतिक कथा थिक। ऐमे स्वातंत्र्योत्तर
भारतमे पुलिस ओ नेतालोकनिक भ्रष्ट चरित्र, मतदानमे गड़बड़ी आदिक चित्रण करैत लोकजगतमे क्रमश:
पसरैत भ्रष्टाचारक अतिरेकक चित्रण भेल अछि जइसँ कोनो वस्तुक विश्वासनीयतापर
प्रश्नचिन्ह लागि गेल अछि। ई कथा लोकतंत्रमे लोक आ तंत्र दुनूक स्खलनपर सोचबाक
हेतु विवश करैत अछि।
“अतहतह”मे मिथिलाक
वैवाहिक प्रथामे बरियाती पक्ष द्वारा सरियाती पक्षकेँ देखार करबाक हेतु खाद्य
वस्तुपर जोर देबाक परिष्कारक रूपमे सरियाती पक्ष द्वारा तकर बदला लेबाक कथा
कहल गेल अछि। ऐ कथामे बरियाती पक्षकेँ पानिक संग दवाइ पिआय ओकरा सभकेँ देखार
करबाक प्रयास कएल गेल अछि जे लोकसंस्कृतिक प्रतिकूल होएबाक कारणे प्रतीयमान नै
भऽ सकल अछि। अवश्ये ऐमे वर पक्षमे शराब पीबि कऽ बरियाती जएबाक आधुनिक प्रचलनक
विरुद्ध आक्रोशक अभव्यक्ति भेल अछि। मण्डलजीक ई कथा कन्यादान-वरदानमे दुहू
पक्षक सम्मान रक्षाक पारस्परिक दायित्वक प्रति कान्तासम्मित उपदेश दैत अछि।
बारहम कथा “अर्द्धांगिनी” ऐ पोथीक
नामकरणक आधार बनल अछि। ऐ कथामे अवकाशप्राप्त शिक्षकक अत्यन्त सूक्ष्म मनोविश्लेषण भेल अछि। अपन कमाइक बलें ओ
आजीवन अपन पत्नीक दासीसँ आगू बुझबाक हेतु तैयार नै होइत छथि मुदा जखन नोकरी समाप्त
भऽ जाइत छन्हि तखन पत्नीक आवयकतापर धियान जाइत छन्हि आ अर्द्धांगिनीक महत्तव
बूझि पबैत छथि। लेखक नारीक सेविका स्वरूपकेँ मर्यादित कए ओकरा पुरुषक समानान्तर
मूल्य प्रदान करबाक पक्षपाती छथि, जकर अभिव्यक्ति ऐ कथाक लक्ष्य बुझना जाइत अछि।
तेरहम कथा थिक “ऑपरेशन” ऐ
कथामे मइटुग्गर नेनाक सामाजिक स्थितिपर विमर्श कएल गेल अछि। जखन कोनो नेनाक
माय असमए कालकवलित भऽ जाइत छैक, तँ समाज ओकरा अलच्छ कऽ
कऽ बूझय लगैत छैक आ ककरो ओकर शारीरिक ओ मानसिक वकासक चिन्ता नै रहैत छैक। मुदा
जँ ओहि बच्चाक पिता दोसर विवाह कऽ ओकर प्रतिपालनक हेतु, स्थानापन्न माताक व्यवस्था करैत छथि तँ वएह समाज बेर-बेर ई जनबाक
प्रयास करैत अछि जे सतमाय ओकर पालन नीक जकाँ कऽ रहल छैक वा नै। समाजक ई व्यवहार
ओकर क्रूर मानसिकताक परिचय दैत अछि जइसँ नेना आ ओकर पिता आहत होएबाक लेल बाध्य
होइत छथि। लेखक समाजक ऐ विरूपित मानसिकतापर व्यंग्य करब ऐ कथाक उद्देश्य
रखलनि अछि। एही माध्यमसँ अस्पतालक दुर्व्यवस्था तथा प्राइवेट प्रैक्टिसक
कारणपर सेहो विमर्श कएल गेल अछि।
चौदहम कथा “धर्मनाथ” ढहैत जमींदार परिवारक
गाथा थिक। ऐमे दहेज प्रथाक उन्मूलनक हेतु सामाजिक जागरण कथाकारक उद्देश्य
बुझना जाइत अछि। एकर नायक धर्मनाथ जमीन्दार परिवारक छथि आ पिताक अमलदारीमे धरि
हुनक परिवार देहेजक संतोषक रहल अछि आ खेत बेचि-बेचि कन्यादान करैत अपन कुलाभिमानक
रक्षा करैत रहल अछि। मुदा ई मिथ्याभिमान जमीन्दारी उन्मूलनसँ क्षत-विक्षत
भऽ गेल छैक आ धर्मनाथ ऐ स्थितिमे नै रहि पबैत छथि जे पुत्रीक विवाह जमीन्दारे
परिवारमे करबाक हेतु धन जुटा पाबथि। अन्तत: ओ प्रो. रामरतन सन दहेजविरोधी व्यक्तिक
सहायतासँ एकटा कर्मयोगी बालकसँ अपन बेटीक विवाह ठीक कऽ लैत छथि आ मिथ्या प्रतिष्ठाकेँ
चुनौती दैत छथि। परिणामत: हुनक पिता अपन कुलाभिमानपर प्रहार होइत देखि मृत्युकेँ
प्रात्र कऽ लैत छथि। धिया-पुताक थपड़ी बजा-बजा ई कहब जे- “बाबा मुइलाह- पूरी-जिलेबीक भोज खायब..” वस्तुत:
परम्परा आ अन्धविश्वासँ जकड़ल सामाजिक व्यवस्थाक विनाशक प्रति उत्सव थिक
जे दहेज प्रथाक उन्मूलनकेँ सकेतित करैत ई ईंगित करैत अछि जे जँ लोक मिथ्याभिमानक
त्याग नै करताह आ दहेज देब-लेबकेँ सामाजिक प्रतिष्ठाक मानदंड बनौने रहताह तँ
अद्य: पतन अवश्यम्भावी अछि।
“सरोजिनी”
प्रेमविवाहपर आधारित कथा थिक। नायिका सरोजिनी जमीन्दार घरक कन्या छथि। हिनक
भाय हृदयनारायण बिलैतिन कन्यासँ प्रेमविवाह कऽ लेने छथिन। इहो अपन बालसखा
रमेशक संग विवाह कऽ लैत छथि। रमेश हिनके नोकर घूरनक शिक्षित पुत्र छथि।
आर्थिक ओ सामाजिक दुनू स्तरपर असमान लोकक विजातीय विवाहक समर्थनक ई आधार जे “अपन मालिक हम स्वयं छी। अखन धरि जातिक पहाड़ जे अपना समाजमे बनल अछि, ओकरा मेटाएब। जे समाज भूखलकेँ ने पेट भरैत अछि, ने नाङटकेँ वस्त्र दैत अछि, ने बेघरकेँ
घरे। एतए धरि जे मूर्खकेँ पढ़ा नै सकैत अछि, लूटैत इज्जतकेँ
बचा नै सकैत अछि, ओहि समाजकेँ विरोध करबाक कोन अधिकार?”
उपदेशात्मक ओ असहज तथा सिने जगतक वस्तु
जकाँ असहजतासँ प्रभावित बुझना जाइत अछि। तथापि कथाकार जातीय व्यवस्थापर आधारित
वैवाहिक पद्धतिकेँ गुण ओ प्रेमपर आधारित करबाक समर्थन कऽ ऐ प्रथामे युगानुरूप
परिवर्त्तनक आकांक्षी बुझना जाइत छथि। विश्रृंखलित होइत वैवाहिक व्यवस्थाक
प्रति समाजक ध्यान आकृष्ट करब ऐ कथाक उद्देश्य बुझना जाइत अछि।
संग्रहक सोलहम कथा सुभद्रा विधवा विवाहक
समस्यापर आधारित अछि। दैवयोगसँ सुभद्राक पतिक देहान्त हवाइ दुर्घटनासँ भऽ जाइत छन्हि। ओ अभिशप्त जीवन बितएबाक
हेतु बाध्य भऽ जाइत छथि। एकर कारण ई अछि जे ओ जइ जातिसँ अबैत छथि तइमे विधबा
विवाहकेँ मान्यता नै छैक। कथाकार रूपलाल बाबा नामक एक गोट गाँधीवादी चरित्रक
अवतारणा करैत छथि जे नारी समुत्थानक प्रति समर्पित छथि। हिनक मान्यता छन्हि
जे जहिना पत्नीक मुइला उत्तर पतिकेँ दोसर विवाह करबाक अधिकार छैक तहिना पतिक
मुइला उत्तर पत्नीयोकेँ दोसर विवाहक अधिकार भेटबाक चाही। रूपलाल बाबा सुभद्राक
पिताकेँ मानाय सुशील नामक युवकसँ ओकर विवाह सम्पन्न करबैत छथि। ऐ तरहेँ समाजमे
विधवाकेँ मान्यता भेटैत छैक। आदर्शवादी संकल्पनापर आधारित ई कथा वस्तुत: ऐ
सामाजिक समस्याक प्रति कथाकारक प्रगतिवादी मूल्यकेँ उद्घाटित करैत अछि।
“सोनमा काका”
ऐ संग्रहक सतरहम कथा थिक। ई कथा मानव धर्मपर आधारित अछि। एकर प्रधान पात्र
सोनमा काका स्वयं पत्नीक बीमारीसँ त्रस्त छथि। ओकर इलाज करा जखन गाम घूमैत छथि
तँ रामकिसुन नामक एकटा बिगड़ैल व्यक्तिक मृत्युक समाचार भेटैत छन्हि। ओ व्यसनक
चक्रमे पड़ि ततेक िनर्धन भऽ गेल छल जे ओकरा कफनो धरिक उपाय नै छलैक। सोनमा काका
समाजक सहायतासँ ओकर संस्कार करबैत छथि आ ओकर अनाथ बालककेँ अपन बेटीक संग विवाह
कराय ओकर जीवनकेँ सामान्य बनेबाक प्रयत्न करैत छथि। कथाकार ऐ आदर्श पुरूषक स्थापना
कए ई सिद्ध’ करए चाहैत छथि जे जँ समाज चाहय तँ केहनो
पैघ समस्याक निदान भऽ सकैत छैक।
अठारहम कथा “दोती बियाह” परित्यक्ताक
पुनर्विवाहपर आधारित अछि। एकर प्रमुख पुरुष पात्र उमाकान्त छथि जे पचास वर्षक आयुमे पत्नीक देहावसानक
कारणे एकाकी जीवन जीबाक हेतु बाध्य छथि। जीवन संगिनीक अभावमे हिनक दिन काटब
पहाड़ भऽ गेल छन्हि। दोसर दिस यशोदिया नामक एकटा युवती छथि जनिक पति दिल्लीमे
नोकरी करैत छलथिन मुदा शहरी चाकचिक्यमे पड़ि यशोदियाकेँ परित्यक्त कऽ कतहु
पड़ा जाइत छथि। निस्सहाय यशोदिया गाम घूरि अबैत अछि आ हरिनारायण नामक एक
गोट सम्भ्रान्त व्यक्तिक आश्रममे रहि जीवन-यापन करए लगैत अछि। हरिनारायण
उमाकान्तक स्थितिकेँ परखि हुनका यशोदिया संग विवाह करा दैत छथिन जइसँ
दुनूकेँ अवलम्ब भेटैत छन्हि आ दूटा उजड़ल परिवार बसि पबैत अछि। ऐ कथाक माध्यमे
कथाकारक ई उद्देश्य स्पष्ट होइत छन्हि जे मानव जीवनकेँ सन्तुलित रखबाक हेतु
पति-पत्नीमे कियो जँ एकाकी जीवन जीबैत अछि, तँ ओ अनेक प्रकारक मानसिक व्यथामे पड़ल रहैत अछि जकर
िनदानक हेतु समतूल युगल बनयबाक हेतु प्रयत्न होएबाक चाही।
उनैसम कथा “पड़ाइन” ग्राम्य जीवने पसरल
अराजकताक कथा थिक जकरा कारणे बलगर लोक िनर्बलकेँ सता कऽ ओकरा गामसँ उपटयबापर
लागल रहैत अछि। ऐ कथाक पात्र चेथरू महाजनी अत्याचार, खेत-पथारमे
बेइमानी-शैतानी, चाेरि, बलपूर्वक
दोसरक जताति नष्ट करब आ माय-बहिनिक इज्जतक संग खेलवाड़ करब आदिसँ त्रस्त भऽ
गाम छोड़ि दैत अछि आ नेपाल जा कऽ बसि जाइत अछि। ओतय परिश्रमपूर्वक अर्जित
धनसँ सम्पत्तिशाली बनि नीक जकाँ गुजर करऽ लगैत अछि। ऐ कथामे कथाकारक उद्देश्य
ग्राम जीवनक किछु समस्या सभकेँ इंगित करब बुझना जाइत अछि मुदा आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे
ऐमे स्वाभाविकताक अभाव बुझना जाइत अछि।
“कतौ ने” कथा
संग्रहक अन्तिम कथा थिक जे वस्तुत: यात्रा-वृत्तान्त थिक। ऐमे जनकपुर
यात्राक वर्णन आएल अछि। गामक एकटा टोली जनकपुरमे विवाह पंचमीक मेला देखबाक हेतु
प्रस्थान करैत अछि मुदा विवाह पंचमी दिन ई लोकनि धनुषा दर्शन करबाक हेतु जाइत
छथि आ ओतए गाड़ी खराब भऽ जएबाक कारणे विवाह पंचमीक रातिमे पुन: जनकपुर घुमि नै
पबैत छथि जइसँ हुनकालोकनिकेँ जनकपुरक कार्यक्रम देखबाक अवसर नै भेटि पबैत छन्हि।
अन्तत: हारि-थाकि कऽ सभ सोचैत छथि जे कत्त एलौं तँ कत्तौ ने। दुर्योगवशात्
मनोरथपूर्त्तिमे बाधा होएबाक ऐ कथामे वस्तुत: जनकपुर यात्राक एक गोट मनोरम
वृत्तान्त भेटैत अछि।
ऐ तरहेँ अर्द्धांगिनी कथा संग्रह मिथिलाक
ग्राम्य जीवनक विभिन्न आयाम ओ समस्या तथा तकर समाधान सबहक आदर्शोन्मुख
यथार्थवादी व्याख्या थिक।
ऐ संग्रहक कथा सभ वर्णन-प्रधान देखि पड़ैत
अछि। कथाकारक शैली एहन छन्हि जे ओ कोनो घटनाकेँ प्रस्तुत करबासँ पूर्व ओकर
पूर्ववीठिकाकेँ ततेक सघन कऽ दैत छथि जे पाठक तइमे तल्लीन भऽ जाइत छथि। ऐ
प्रकारक वर्णन-विन्यास हिनक औपन्यासिक वृत्तिकेँ स्पष्ट करैत अछि जइमे
वर्णनक हेतु पयाप्त अवसर रहैत छैक।
मनोविश्लेषण मण्डलजीक कथा सबहक अन्यतम विशिष्टता
थिकनि। ई जइ कोनो पात्रकेँ प्रस्तुत करैत छथि तकर अन्तस्तलमे प्रेवेश कए ओकर
भावराशिकेँ अभिव्यक्त कऽ दैत छथि जइसँ पात्रक चरित्र स्वत: स्फुट होमय
लगैत अछि। उदाहरणार्थ “बपौती
सम्पत्ति” कथामे गुलटेनक मानसिक स्थितिकेँ अभिव्यक्त
करैत ई पाँती द्रष्टव्य अछि- “मनमे उठलै पुरने कपड़ा
जकाँ परिवारो होइए। जहिना पुरना कपड़ाकेँ एकठाम फाटल सीने दोसरठाम मसकि जाइत
अछि, तहिना परिवारोक काजक अछि। एकटा पुराउ दोसर आबि
जाएत। मुदा चिन्ता आगू मुँहेँ नै ससरि रुकि गेलै। चिन्ताक अॅटकिते मनमे
खुशी भेलै। अपनापर ग्लानि भेलै जे जइ धरतीपर बसल परिवारमे जन्म लेबाक सेहन्ता
देवी-देवताकेँ होइत छन्हि ओकरा हम मायाजाल किअए बुझैत छी। ई दुनियाँ ककरा लेल
छै? ककरो कहने दुनियाँ असत्य भऽ जाएत। ई दुनियाँ उपयोग
करैक छैक नै कि उपभोग करैक।”
मण्डलजी कथाक भाषामे मैथिलीक गमैया
बोली-वाणीक सहज स्वरूप अभिव्यक्त भेल अछि। ई पात्रानुरूप भाषाक प्रयोग कएलनि
अछि जइसँ प्रत्येक पात्रक बौद्धिक ओ सामाजिक स्थिति स्पष्ट होइत चल जाइत
अछि। हिनक कथा सभमे कथाकारक भाषा सेहो मैथिलीक लोकजगतक भाषाहिक अनुगमन करैत
अछि जइमे सहजता अछि। कनेको कृत्रिम प्रयोगसँ ई बचैत रहल छथि। हिनक भाषामे
तद्भव ओ देशज शब्दक प्रचुर प्रयोग भेल अछि। युग्म शब्दक प्रयोग हिनक भाषाकेँ
लालित्य प्रदान करबामे आ ओकर प्रवाहमयतामे सहायक रहलनि अछि। उदाहरणक हेतु
माल-जाल, लेब-देब,
दोकान-दौरी, चट्टी-बट्टी, ताड़ी-दारू, छहर-महर, चोरी-डकैती, बाल-बोध, बेटा-पुतोहु, भोज-काज, अन्हर-बिहाड़ि, दार-मदार, सुक-पाक, भुखल-दुखल,
चीज-बौस, घुसका-फुसका आदिकेँ देखल जा सकैछ।
मण्डलजी कथा भाषाक ई अन्यतम विशिष्टता
थिक जे ई कोनो स्थितिकेँ पाठकक समक्ष अभिव्यक्त करबाक हेतु चमत्कारिक
उपमानक प्रयोग करैत छथि जइसँ वस्तुस्थितिक स्पष्ट चित्र पाठकक सोझाँ आबि
जाइत अछि यथा- “जहिना खढ़ाएल खेतमे हरबाहकेँ हर जोतब भरिगर बूझि पड़ैत छैक तहिना
सुशीलक मन समस्याक बोनाएल रूप देखलक। जहिना पहाड़सँ निकलि अनवरत गतिसँ चलि
नदी समुद्रमे जाय मिलैत अछि तहिना ने टटघरक ज्ञान उड़ि कऽ सर्वोच्च ज्ञानक
समुद्रमे मिलत।” आदि।
एतावता कहल जा सकैछ जे मण्डलजीक कथा वर्णनक
दृष्टिञे मिथिलाक ग्रामजीवनक यथार्थवादी चित्र, घटनाक दृष्टिञे आदर्शक प्रति अभिभूत, सूक्ष्म मनोविश्लेषणक प्रति प्रतिबद्ध तथा उद्देश्यक दृष्टिञे
लोक मंगलकारी अछि। मैथिलीक आधुनिक कथा लेखन हिनक रचना सभसँ सम्बलित भेल अछि
आ एकर समाजोपयोगी तत्व सभ अनन्त काल धरि मिथिलाक लोकजीवनकेँ प्रेरित-प्रभावित
करैत रहत।
शिवकुमार झा ‘टिल्लू’
मैथिली कथा साहित्यक विकासमे राजकमलक योगदान ::
सन् 1954 मे “अपराजिता” कथाक संग राजकमल जीक
मैथिली कथा साहित्य जगतमे प्रवेश भेल। हिनक मूल नाओं मनीन्द्र नारायण चौधरी
छन्हि। 1929मे जनमल ऐ साहित्यकारक लेखनीसँ मैथिली साहित्यकेँ लगभग 36 गोट
कथा भेटल। मात्र 38 बरखक अपन जीवनकालमे राजकमल मैैथिली गद्य साहित्यकेँ किछु
एहेन कृति दऽ देलनि जइसँ प्रयोगकेँ बादक धरातलपर प्रतिष्ठित करबाक श्रेय साहित्यक
समालोचक लोकनि ऐ साहित्यकारकेँ िनर्विवाद रूपेँ दऽ रहल छथि।
हिनक तीन गोट कथा संग्रह ललका पाग, एक आन्हर एक रोगाह आ “िनमोही बालम हम्मर” पुस्तकाकार प्रकाशित
छन्हि। एकर अतिरिक्त हिनक एक गोट पोथी “कृति
राजकमलक” मैथिली अकादेमीसँ प्रकाशित भेल अछि जइमे 13
गोट कथा आ एकटा उपन्यास आन्दोलन संकलित अछि। ओना कृतिराजकमलक छओ गोट कथा “ललका पाग”मे सेहो छपल अछि।
रमानाथ झाक मतेँ राजकमलक कथा मूल उद्देश्य
मनोविश्लेषणत्मक प्रणालीसँ आरोपित मर्यादा ओ आदर्शक पाछाँ नुकाएल आन्हरकेँ
नाङट करब अछि। डॉ. डी.एन. झा सेहो ऐ मतसँ सहमत छथि।
“ललका पाग”
कथा हिनक लिखल कथा सभमे अपन विशिष्ट स्थान रखैत छन्हि। ऐ कथाकेँ मैथिली
साहित्यक किछु श्रेष्ठ कथामे स्थान देब सर्वथा न्यायोचित अछि। कथाक आरंभमे
मैथिली स्त्रीक चिन्हबाक विश्लेषणमे कोनो अचरज नै। त्रिपुराक तुलना जइ
वर्गक मैथिली नारिसँ कएल गेल कथाक भूमिकामे ओइ वर्गक स्पष्ट उल्लेख तँ नै
कएल गेल मुदा ओ ब्राह्मण परिवारक कन्या छथि। अल्पायुमे पण्डित पिताक मृत्युक
पश्चात् तिरू अपन माइक संग गाममे रहैत छलीह। अग्रज झिंगुरनाथ बाहर धन उपार्जन
लेल चलि गेलाह। किछुए वर्षमे तिरू युवती वयसमे प्रवेश कऽ गेलीह। दस-एगारह वर्षक
बाद जखन झिंगुरनाथ अपन गाम घुरि अएलनि तँ मातृसिनेहक संग-संग तिरूक हाथ पीअर
करबाक जिम्मेदारीक आभास भेलनि। वास्तविकतो छैक जे जखन ई कथा 1955मे विदेह विशेषांकमे
देल गेल ओइ कालकेँ के कहए वर्तमान समैमे सेहो अपना सबहक समाजमे कन्याक जन्म
कालहिसँ बियाहक चिन्ता अभिभावककेँ सतबए लगैत छन्हि। तिरू तँ माघमे 14मे
वर्षमे प्रवेश कऽ जेतीह। उद्देश्य जौं सार्थक हुअए तँ सफलता निश्चित भेटबे करैत
अछि। चण्डीपुरक राम सागर चौधरीक सुपुत्र राधाकान्तसँ स्व. पण्डित हेकनाथ झाक
पुत्री त्रिपुराक बियाह सम्पन्न भेल। सासुर आबि तिरू कनेको स्तब्ध नै छथि
किएक तँ जीवन शैलीक कोनो ज्ञाने नै छन्हि। अज्ञानतामे बाड़ीक पछुआरमे पोखरि
देखि अपन बेमात्र सासुसँ हेलबाक कलाक जिज्ञासा कएलनि। यएह जिज्ञासा हुनक जीवनक
लेल काल भऽ गेलनि। चननपुरवाली सासु भोरे-भोर समस्त गाममे अफवाह पसारि देलखिन
जे रातिमे नवकी कनियाँ पोखरिमे चुभकि रहल छलीह। राधाकान्त ऐ घटनासँ मर्माहित
भऽ गेलाह। आब प्रश्न उठैत अछि जे चननपुरवाली एना किअए कएलीह? ओ अपन पितिऔत भाय डाॅ. शंभूनाथ मिसरक सुपत्रीसँ राधाकान्तक बियाह
करबए चाहैत छलीह। ऐठाम कथाकार कनेक चुकि गेल छथि। ऐ उद्देश्यकेँ कतौ स्पष्ट
नै कएल गेल। माए जौं अपन बेटाक बियाह कोनोठाम करबए चाहैत छलीह तँ त्रिपुरासँ
कोना भऽ गेलनि। जखन की चननपुरवाली परिवारक अभिभाविका छलखिन। हुनक पतिक
हुनकापर कोनो विशेष अनुशासन सेहो नै छलनि आ ने राधाकान्त त्रिपुरासँ प्रेम बियाह
केलखिन तँ कथानकमे एहेन परिवर्त्तनकेँ सोझे-सोझ आत्मसात् करब कनेक कठिन लागि
रहल अछि। गाममे तँ कूटनीति चलिते अछि किएक तँ छद्म रोजी रोजगारपर बेरोजगारी
भारी। तँए भोलामास्टर आ बंगट चौधरी सन परिवार विध्वंसक केँ राधाकान्त सन
संवेदनशील लोककेँ दोसर बियाह करबाक प्रेरणा देबएमे यथार्थ बोध होइत अछि। ई सभ
घटना चक्रसँ कथा रोचक होइत अछि। मुदा कथाकेँ आकर्षक बनेबाक क्रममे राजकमल बिसरि
गेलाह जे त्रिपुरा मात्र 13-14 वर्षक बालिका छथि। जखन पोखरिमे चुभकबाक जिज्ञासा
सासुरोमे छन्हि तखन सौतिन अएबाक संभावनाक मध्य अपन सकल गृहस्थ कार्यमे कोना
लागल रहलीह? एक दिस चंचल रूपक उद्बोधन आ दोसरा रूपमे परिपक्व
नारी, एकरा प्रयोगवाद तँ कहल जा सकैत अछि मुदा प्रयोगात्मक
रूपसँ वास्तविकतासँ बहुत दूर। राधाकान्त सेहो शिक्षित छथि, मात्र अपन स्त्रीकेँ पोखरिमे स्नान करबाक सजाक रूपेँ दोसर बियाह।
ओना मिथिलामे पहिने गप्पे-गप्पमे बियाह करबाक इतिहास रहल अछि परंच ऐ
प्रकारक बियाहक कारण समीचीन नै लागल। अंतमे अपन बियाह कालक राखल ललका पाग जखन
त्रिपुरा राधाकान्तकेँ दोसर बियाहक लेल प्रस्थानकालमे दैत छथिन तँ राधाकान्तक
हृदए परिवर्तन भऽ जाइत अछि आ पहिलुक ललका पागक मर्यादा रखबाक लेल ओ चुप्प भऽ
आंगनमे आबि कुर्सीपर बैस जाइत छथि। एहू घटनकाक्रममे कथा वास्तविकतासँ बेसी कल्पवृक्षक
पुष्प प्रतीत होइत अछि। जे राधाकान्त मात्र पोखरि स्नानक दंडमे त्रिपुरासँ
नारीक अधिकार छीनि लेबाक िनर्णए केलनि ओ अंगुलिमाल जकाँ क्षणहिमे कोना बदलि
गेलाह। ई ध्रुव सत्य अछि जे मैथिल ब्राह्मण परिवारमे ललका पागक स्थान विशेष
छैक आ ओइ पागकेँ सहेजि कऽ त्रिपुरा धएने छलीह। भगवत परीक्षा जकाँ सौतिन अनबाक
लेल पतिक हाथमे पाग देबाक िनर्णएमे अंगुलिमाल रूपी राधाकान्तकेँ बुद्धसँ दर्शन
भेलनि। जौं एकरा संभवो मानल जाए तैयो कनेक कमी ई जे राधाकान्त त्रिपुराक
तुलनामे कामाख्या दाइक संस्कारकेँ सोचि-विचारि विशिष्ट मानि दोसर बियाह
करबाक िनर्णए कएलनि। कोनो क्षणहिमे नै। ऐ बियाहक सूत्रधार हुनक बेमात्र माए
छलथिन। चननपुरवालीकेँ अछैत राधाकान्त माथपर बिनु पाग धएने कोना विदा भऽ रहल
छलाह, ई तँ सद्य: कथाक बहुत कमजोर पक्ष अछि।
भाषा विज्ञानक आधारपर जौं मूल्यांकन कएल
जाए तँ कथाकार परम्परावादी मैथिल साहित्यकार जकाँ गद्यकेँ अधोषित श्रृंगारक
रूप देबाक प्रयास कएलनि।
तिरूक तुलना वाण भट्टक श्यामांगी नायिकासँ
करए काल ई उद्देश्य स्पष्ट भऽ जाइत अछि। मुदा जखन लिखैत छथि जे “मिथिलाक छौड़ी सभ अहिना करैत अछि।” तँ स्पष्ट भऽ जाइत छन्हि आत्मिक रूपसँ किछु आर कहए चाहैत छथि।
ऐठाम छौड़ीक स्थानपर ‘कन्या‘ शब्दक
प्रयोग सेहो कएल जा सकैत छल जे बेसी नीक लगितए। कामाख्या दाइक विषयमे राधाकान्तक
मौन सिनेहमे मिआ आ आ जाऽ....... लिखबाक उद्देश्य स्पष्ट नै भऽ सकल।
ई सत्य अछि जे राजकमल मैथिलीक संग-संग हिन्दीमे
सेहो लिखैत छलाह, मुदा
हिन्दीक प्रति झॉपल सिनेह मैथिली कथामे परिलक्षित भऽ गेल। ई मैथिली साहित्यक
लेल दुर्भाग्यक गप्प जे ऐ भाषाकेँ दुभाषी रचनाकार मात्र अपन नाओं-गाओंक लेल हथियार
बनेलनि मातृभाषा सिनेहसँ साहित्यिक रचनाक कोनो संबंध नै। ओना ऐ प्रकारक कथ्य
यात्री आ आरसीक रचनामे नै भेटैत अछि। कथोपकथनमे विरोधाभास देखलाक बादो एकरा नीक
रचना मानल जा सकैछ किएक तँ कथा बड्ड आकर्षक छन्हि। जौं बिम्बक विश्लेषणकेँ
शिल्पक रूपमे देखल जाए तँ राजकमलजी स्थापित शिल्पी छथि ई ललका पाग प्रकट भऽ
गेल।
क्रमश:
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