भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Wednesday, March 14, 2012

'विदेह' १०१ म अंक ०१ मार्च २०१२ (वर्ष ५ मास ५१ अंक १०१) PART II


३. पद्य














३.७.१.प्रीति‍ प्रि‍या झा .पवन कुमार साह ३.डॉ॰ शशिधर कुमर


 

१.कामिनी कामायनी२.रुबी झा
कामिनी कामायनी

फागुन राग
फागुन मे रास रचाऊ सखी फागुन मे. .।। 2. .
पीयरी पहिरने खेत मे देखियौ. . .
नाचि रहल अछि जौवन. . . .
सिनुरिया सन दहकि रहल अछि. . .
चारूकात वन उपवन .. . .
गरमाहट सॅ भरल ई सूरज .. .
आब नै मूॅह नुकाबै. . .
जोर जोर सॅ चलैत वसंती. . .
सेहो डहकन गाबै. . . .
मन उमकि रहल बेजोड़ . .
चाहै सीमा तोडि लै फागुन मे. . . . .. .।।2
असगर कोना रहब फाग मे
हिय हम्मर नहि मानै. .
गाछ बिरीछ सब मुसिक रहल अछि
कि सोचै कि जानै. . . .
आस बढा कपॉती लिख लिख़. .
पठबैत हम प्रियजन के. . .
मग मे बैसल बिहुॅसि उठैत छी. .
दीप जरा नैनन के. . . .
हम्मर आंगन स्नेहक धाम बनल फागुन मे .. . .।।2
गठजोरि खेलु फाग सखी फागुन मे. . . .
ई पूआ . . . ई मालपूआ. . . .
ई दहीबडा. . . .मूॅगबा .. .इमरती .. .
पहिने खेलू फाग पोख भरि
पेट मे तखने ससरती. . . .
बिन पीने . . मदिरा भॉग . .बौरैलौ फागुन मे. . . ..
बलजोरि खेलूॅ फाग सखी फागुन मे. . . . .।।2


रुबी झा

निर्मोही

 
निर्मोही संग जोरल प्रेम क कहानी ,
सानै छी नोरसँ प्रेमक पिहानी ,
मौधमे बोरि-बोरि कहै छलाह .
... तखन केहन ओ प्रेमक बयना ,
केने सराबोर छथि ओतबे ,,
नोरसँ हमर दुनु नयना ,
हाथमे हाथ दऽ बझबै,
कोना ओ प्रेमक परिभाषा .
हज़ार खंड केलाह आइ ओ ,
हमर मोनक सभ आशा ,
मोन मे आश छल काटब,
हुनका संगे जिनगानी,
किछु दितौं किछु लितौं ,
हम हुनका प्रेमक निशानी ,
हुनक स्वभाव रसिक भ्रमर ,
केर होइ अछि तहिना ,
रस पिबथि चंपा चमेली ,
खन गुलाब पर तहिना ,
जुनी कहिओ करब बिस्बास ,
पुरुख प्रेम पर यै सहेली ,
कहिओ नै सुलहए उलझल
रहए सदिखन ई अछि पहेली
पूरुखक , प्रेम जेना कागजक नैया ,
भिजय तँ गोबर सुखय तँ रूइया

ओढ़नी लाल  

ओढ़नी लाल चुनर के ,
लिपटि लिपटि कऽ अहाँसँ,
हम्मर प्यासल नयनकेँ,
सदिखन हँसबैत राखैत छल ,
कखनो उड़ए ओ झकोर हवा संग ,
कखनो समेटी जाइ बाँहिमे ,
कखनो कान्हा पर ब्याकुल भय ,
ससरैत खसकैत रहैत छल ,
हुनक कानमे जा कऽ कखनो किछु
छातीसँ कखनो सटि जाइत छल ,
हुनक धरकन केँ गिनि गिनि कऽ ,
ओ उठैत बजरैत रहैत छल ,
कखनो हुनकर कमरबंद बनि ,
कखनो गालकेँ छुबैत छल ,
कखनो पीठ पर जा कऽ बेशरम ,
ससरैत ढलकैत रहैत छल ,
कखनो तँ देखू ई जाजिम बनि कऽ ,
कखनो कोरामे सूति जाइत छल
  ,
कखनो
  हुनकर हाथकेँ ऐ दुलारे ,
सदिखन हमरा सतबैत
  छल ,
एकरा माथ पर नै रखु अहां ,
अहांक ओढ़नी अछि हम्मर दुश्मन ,
हमरा अहांक बीच आबि कऽ सदिखन ,
किएक ई बेशरम रहैत छल ,

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ओमप्रकाश झा

रुबाइ/ गजल/ गीत-कविता
रुबाइ
कोना कऽ रंगलक करेज केँ इ रंगरेज, रंग छूटै नै।
नैन पियासल छोडि गेल, मुदा आस मिलनक टूटै नै।
हमरा छोडि तडपैत पिया अपने जा बसला मोरंग,
बूझथि विरहक नै मोल, भाग्य इ ककरो एना फूटै नै।

गजल
किछ हमर मोन आइ बस कहऽ चाहै ए।
अहींक बनि कऽ सदिखन तँ इ रहऽ चाहै ए।

इ लाली ठोरक तँ अछि जानलेवा यै,
अछि इ धार रसगर, संग बहऽ चाहै ए।

अहाँ काजर लगा कऽ अन्हार केने छी,
बरखत सिनेह घन कखन दहऽ चाहै ए।

अहाँ फेंकू नहि इ मारूक सन मुस्की,
बिना मोल हमर करेज ढहऽ चाहै ए।

बिन अहाँ "ओम"क सुखो छै दुख बरोबरि,
सब दुख अहाँक इ करेज सहऽ चाहै ए।
(बहरे-हजज)

गजल
  
बाहरक शत्रु हारि गेल मुदा मोन एखनहुँ कारी अछि।
नांगरि नहि कटा कऽ मुडी कटबै कऽ हमर बेमारी अछि।

तेल सँ पोसने सींग रखै छी व्यर्थ कोना हम होबय देबै,
खुट्टा अपन गाडब ओतै जतऽ सभक सँझिया बाडी अछि।

पेट भरल अछि तैं खूब भेजा चलै ए, नै तऽ हम थोथ छी,
ढोलक कियो बजाबै, मस्त भेल बाजैत हमर थारी अछि।

जीतबा लेल ढेरी रण बाँचल, एखन कहाँ निचेन हम,
केहनो इ व्यूह होय, टूटबे करतै जँ पूरा तैयारी अछि।

डाह-घृणा केँ अहाँ कात करू, इ अस्त्र शस्त्र नै कमजोरी छै,
आउ सब ओहिठाम जतय रहै "ओम" प्रेम-पुजारी अछि।
सरल वार्णिक बहर वर्ण २२
 

गजल
हमर मुस्कीक तर झाँपल करेजक दर्द देखलक नहि इ जमाना।
सिनेहक चोट मारूक छल पीडा जकर बूझलक नहि इ जमाना।

हमर हालत पर कहाँ नोर खसबैक फुरसति ककरो रहल कखनो,
कहैत रहल अहाँ छी बेसम्हार, मुदा सम्हारलक नहि इ जमाना।

करैत रहल उघार प्रेमक इ दर्द भरल करेज हमरा सगरो,
हमर घावक तँ चुटकी लैत रहल, कखनहुँ झाँपलक नहि इ जमाना।

मरूभूमि दुनिया लागैत रहल, सिनेहक बिला गेल धार कतौ,
करेज तँ माँगलक दू ठोप टा प्रेमक, किछ सुनलक नहि इ जमाना।

कियो "ओम"क सिनेहक बूझतै कहियो सनेस पता कहाँ इ चलै,
करेजक हमर टुकडी छींटल, मुदा देखि जोडलक नहि इ जमाना।
(बहरे-हजज)

गजल
कहैए राति सुनि लिअ सजन, आइ अहाँ तँ जेबाक जिद जूनि करू।
इ दुनियाक डर फन्दा बनल, इ बहाना बनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ बिन सून पडल भवन बलम, रूसल किया हमरा सँ हमर मदन,
अहाँ नै यौ मुरूत बनि कऽ रहू, हमरा हरेबाक जिद जूनि करू।

इ चानक पसरल इजोत नस-नस मे ढुकल, मोनक नेह छै जागल,
सिनेह सँ सींचल हमर नयन कहल, अहाँ कनेबाक जिद जूनि करू।

अहाँ प्रेम हमर जुग-जुग सँ बनल, हम खोलि कहब अहाँ सँ कहिया धरि,
अहाँ संकेत बूझू, सदिखन इ गप केँ कहेबाक जिद जूनि करू।

कहै छै मोन "ओम"क पाँति भरल प्रेम सँ, सुनि अहाँ चुप किया छी,
इ नोत कते हम पठैब, उनटा गंगा बहेबाक जिद जूनि करू।
(बहरे-हजज)


मनुक्ख (कविता)
जिनगीक कैनभस पर,
अपन कर्मक कूची सँ,
चित्र बनेबा मे अपस्याँत मनुक्ख,
भरिसक आइयो अपन हेबाक
अर्थ खोजि रहल अछि।

हजारो-लाखो बरख सँ,
बहैत इ जिनगीक धार,
कतेक बिडरो केँ छाती मे नुकेने,
भरिसक आइयो अपन सृजनक
अर्थ खोजि रहल अछि।

राजतन्त्र सँ प्रजातन्त्र धरि,
ऊँच-नीचक गहीर खाधि,
सुरसाक मुँह जकाँ बढले अछि,
भरिसक आइयो इ तन्त्र सभक
अर्थ खोजि रहल अछि।

कखनो करेजक बरियारी,
कखनो मोनक राज सहैत,
बढले जाइ छै मनुक्खक जिनगी,
भरिसक आइयो मोन आ करेजक
अर्थ खोजि रहल अछि।


शिवरात्रिक अवसर पर एकटा प्रस्तुति-

गौरी रहि-रहि देखथि बाट, कखन एता भोलेनाथ।

आंगन मे मैना कानि रहल छथि,
मुनि नारद केँ कोसि रहल छथि।
ताकि अनलाह केहन बर बौराह,
गौराक जिनगी भेल आब तबाह।
मैना पीटै छथि अपन माथ, कखन एता....................

भूत-बेतालक लागल अछि मेला,
प्रेत पिशाचक अछि ठेलम ठेला।
पूडी पकवान कियो नै तकै छै,
सब भाँग धथूरक खोज करै छै।
कियो नंगटे, कियो ओढने टाट, कखन एता...................

कोना कऽ गौरी अपन सासुर बसतीह,
विषधर साँप सँ कोना कऽ बचतीह।
पिताक घरक छलीह जे बनल रानी,
कोना लगेतीह आब ओ बडदक सानी।
आब तऽ किछ नै रहलै हाथ, कखन एता.....................

गौरीक मोनक आस आइ पूरा हएत,
बर बनि अयलाह शम्भू त्रिभुवन नाथ।
जगज्जननी माँ गौरी शंकर छथि स्वामी,
जग उद्धारक शिव छथि अन्तर्यामी।
फेरियो हमरो माथ पर हाथ, कखन एता.......................

"ओम" बुझाबै, सुनू हे मैना महारानी,
इ छथि जगतक स्वामी औढरदानी।
भोला नाथक छथि नाथ कहाबथि,
सबहक ओ बिगडल काज बनाबथि।
शिव छथि एहि सृष्टि केर नाथ, कखन एता...................


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 १.राजदेव मण्‍डल २. अमित मिश्र- गजल -कविता ३.जगदानंद झा 'मनु' कविता सँ आगु आगु छी
राजदेव मण्‍डल
कवि‍ता-
कामना

अपन-अपन कामना सबहक पास
धरतीसँ पसरल अकास
बढ़ले जा रहल मासे मास
होइते बाधा दुखक आस
आस ि‍नरास तैयो आस- जि‍नगीक पाश
नि‍बुधि‍या पोता फानि‍ कऽ बजल-
यौ, बाबा आबि‍ गेल फागुन मास।
हँ रौ बौआ रौदा भऽ गेल
आब हएत जाड़सँ उबरास
परसाल कहाँ भेल छल जाड़
ऐबेरक जाड़ तँ देहकेँ कऽ देलक तार-तार
घुरमे जरि‍ गेल सभटा लार-पुआर
लगै छल नै बँचत जान
लीलसासँ भरल छल खान
दुनू बेटा भऽ गेल जुआन
हमरो बढ़ि‍ गेल सामाजि‍क शान
पलि‍बारक भार उठौलक कान्‍ह
आब नि‍चेन भेल हमरो जान
टहलब, बुलब कि‍छु करब दान
गाबि‍ सकब सुखसँ भक्‍ति‍ गान।
यौ बाबा नै करू लाथ
हमरा कहू एकटा बात
झगड़ा केलक बाबूसँ काका
माँगैत रहै तीन हजार टका
कहै छलै- तोहर नै ठीक‍ रहलौ ईमान
भऽ गेलह पूरा बेइमान
बाबू अछि‍ सभ झगड़ाक जड़ि‍
सनकेलकौ तोरा जि‍नगी भरि‍
ऐ जाड़मे करतौ ओ परलोक बास
बाँटि‍ लेबो सभ चास-बास
अपन-अपन चास, अपन-अपन बास
देखि‍हेँ सि‍नेमा खेलि‍हेँ तास
अपना सम्‍पति‍केँ करि‍हेँ नाश
बाबा ठीके करबै परलोकबास
बीतल जा रहल जाड़क मास।
घुमए लगलै माथक चाक
बाबा भेल अवाक्।

अमित मिश्र
     गजल 

आइ एला पिया गाम ल' कंगना दाइ गै ,
सून भेल छलै काल्हि जे अंगना दाइ गै ,

नीन नै होइ छै यादि ओ आबि गेला यदी ,
आइ एला पिया छोड़ि क' पटना दाइ गै ,

आलु कोबी कए राख भेलै भुजीया सखी ,
जानलौँ आबि गेला पुरा {जगह कए नाम} पहुना दाइ गै ,

बाजलै पायल दोगलौ ओलती मे नुका ,
लाज लागै छलै होयते सामना दाइ गै ,

नीक साड़ी चुनरी बुटीदार चोली छलै ,
भीजलै मोन होली सँ , प्रेमो घना दाइ गै . . . । ।
 

              गजल 
 राति मे हुनकर इयादि आबैए बेसी .
राति मे बाट जोहैत आँखि जागैए बेसी ,

कतबो प्रकृतिक कोरा मे रहब मुदा ,
खण्डहर सिनेहक नीक लागैए बेसी ,

माँ कए चिन्ता जेना संतान लेल होइ छै .
खून नै रग-रग सँ चिन्ता दौगैए बेसी ,

गामक टुटल टाट दोग सँ देखैत ओ ,
पहिलुक मिलनक बात दागैए बेसी ,

कोना-कोना कोहबर सँ कलकत्ता एलौँ ,
रूकबो नै करै फिल्म जेकाँ भागैए बेसी ,

विरहक वेदना झुलसा देलक आत्मा ,
घुरो सँ "अमित" करेज सुनगैए बेसी . . . । ।


कविता
मच्छर

मच्छर बड़ करेजगर होइ छै
जानक बजी लगा सब कए क चुमै छै
हमर घर में रहै छै
हमरे खून चुसै छै
अनमन घुसखोर कर्मचारी जेकाँ
कान लग आबि भैरवी में सुन्नर गीत सुनबै छै
अनमन चुनावक समय नेता जी जेकाँ
मनुक्ख कए सचेत होइ सन पाहिले
  पड़ा जाइ छै
अनमन ठग ,चोर ,पाकेटमार जेकाँ
जहिना सगरो भ्रष्टाचार पसरल अछि
ओहिना मच्छरों भ्रष्टाचार करै छै
एक्के आदमी कए बेर-बेर चुसै छै
अनमन मिलाबटी
  सामान बेच वाला बनिया जेकाँ
मच्छरक जनसंख्याँ दिन-व-दिन बढ़त
अनमन बेरोजगारी,गरीबी,आ दहेज़ जेकाँ
किछु उपाय करू इ काटबे
  करत

अनमन आतंकवादी ,महगाई जेकाँ
एकरा सँ छुटकारा कोना भेटत , चिंता कए विषय अछि
अनमन बेटी कए वियाह जेकाँ
हे मच्छर सन नीक देवता ,अपना में कते गुण समेटने छि
आइ सँ ''अमित '' अहाँक चेला बनल
अनमन कोनो पार्टी कए चमचा जेकाँ
  ||



कविता- आधुनिक बैण्ड



काल्हि छलौँ सुतल मचान पर ,
तखने किछु बड्ड जोर सँ बाजलै ,
लड़खड़ा क' खसलौँ दलान पर ,
झट पुछलौँ बड़का बेटा सँ ,
कहलक भुटकुनमा के विआह छै .
ओही ठाम बैण्ड बाजए छै ,
बैण्ड ! आश्चर्य सँ खुजल रही गेल आँखि ,
बैण्ड एहन होई छै .
हमरा जमाना मे होइ छलै
 
एकटा ठेला .
मधुरगर शहनाई के स्वर ,
ढोलक थाप .
झाइलक झंकार ,
आ गीक गाबैत गबैया ,
मुदा आब ,
चारि{4} चकिया धुआँ उड़ाबैत ट्रक ,
ताही पर 10-20 टा ध्वनी विस्तारक यंत्र ,
तेज धुन ,
अश्लिल बोल ,
दारू पि नाचैत छौड़ा छौड़ी ,
ई पहचान अछि आधुनिक बैण्ड कए ,
फाटी जाइ ककरो कानक पर्दा ,
पैड़ जाइ दिल के दौड़ा ,
' जाइ ब्रेन हैमरेज ,
' कोनो जुलुम नइ ,
ई बैण्डक धुन सुनि क'
खुशी वा डर सँ जानवरो नाच' लागै छै ,
सच मे जमाना बदलि गेलै यै , . . । ।




जगदानन्द झा 'मनु' 

गजल-१ 
कहलन्हि ओ  मंदीर मे, नहि पिबू एतए शराब 
कोनठाम घर हुनक  नहि, पिबू जतए  शराब 

इ नहि अछि खराप, बदनाम एकरा केने अछि 
ओ की बुझत, भेटलै नहि जेकरा कतए  शराब   

मरलाबादो हम नहि पियासल जाएब स्वर्ग  मे 
जाएब जतए  सदिखन भेटए ओतए  शराब 

मारा-मारि भs रहल अछि जाति-पातिक नाम पर 
मेल देखक हुए तs देखू भेटए जतए  शराब 

सब गोटे कए निमंत्रण सस्नेह मनु दैत अछि 
आबि जाए-जाउ सबमिल पियब एतए  शराब 
------------------------------------------------------
गजल-२ 
टूटल करेज राखब नहि हम एखन सिखने छी 
किछु अपने एकडा तोरलौं किछु भागक लिखने छी

जिनका लुटेलहुँ हम अपन स्नेह भरल करेज 
हुनका सँ दूर होबाक, माहुर अपने सँ चीखने छी 

सोचने त छलहुँ एक दिन जीबन मे होयत रंग 
ओहि रंग भरल दुनियाँ सँ कतेक दूर एखने छी 

दोसर सँ करू की शिकाति जँ अपने नहि बुझलक
जिनका केलौं नेह करेज तोरैत हुनका देखने छी  
-------------------------------------------------------------
         गजल-३ 
केहन-केहन दुनियाँ, केहन-केहन रंग एकर 
कियो हँसैए कियो कनैए,कियो झुमैए संग एकर 

कियो मरैए दुधक द्वारे,कियो भाँग मे डुबल अछि 
बुझि नहि पएलहुँ आइतक कनिको ढंग एकर 

लक्ष्मीके देखलौं पथैत चिपड़ी,कुबेड चराबे पारी 
गंगा-यमुना पानि भरैत,की हमहुँ छी अंग एकर 

भोट मांगे पोहला-पोहला कs,गदहो के बाप बना कs 
जितैत देखु गिरगिट जेकाँ बदलैत रंग एकर 

'मनु' छल कारिझाम चिन्हार बनोलन्हि अनचिन्हार 
घरी-घरी मे बदलैत देखु आब तs उमंग एकर 
- - - - - - - - - - - -वर्ण-२०  - - - - - - - - - - -
-------------------------------------------------                 
                  गजल-४ 
दर्द करेजक देखाएब तs अहाँ  जानब की 
हमर बात कनी सपनो मे अहाँ  मानब की 

अहाँ कहलौं पुरुषक प्रेम गोबर आ रुई 
करेज चीरो कs देखायब तs अहाँ कानब की  

दोख एकेटा मे होई छैक सबमे कत्तौ नहि 
सबके संग हमरो अहाँ ओहि मे सानब की 

अहाँ कहैत छी सबठाम अन्हारे-अन्हारे छै 
इजोरियाके आँखि मुनि अन्हरिया मानब की 

एक बेर हमरो पर भरोसा कय कs देखु
प्रेम केकरा कहैत छैक 'मनु' सँ जानब की 

---------------------------------------------
गजल-५ 
जरि-जरि झाम बनलहुँ हम 
सोना नहि बनि पएलहुँ हम 

कतेक अभागल हमर भाग 
अपन सोभाग हरेलहुँ हम 

अपन जीबन अपने लेलहुँ 
किएक लगन लगेलहुँ हम 

सुगँधा अहाँ के विरह मे देखु 
की की जरलाहा बनलहुँ हम 

अहाँ विरह के माहुर पिबैत 
मरनासन आब भेलहुँ हम 

जतेक हमर मनोरथ छल 
संगे सारा मे ल अनलहुँ हम 

मातल प्रेमक जडित आगि मे 
खकसिआह मनु भेलहुँ हम 

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.संदीप कुमार साफी २.डा. अरूण कुमार सिंह ३.रामवि‍लास साहु ४.उमेश पासवान

संदीप कुमार साफी, जन्म ७ जून १९८४ पिता श्री सीताराम साफी, माता- श्रीमती सीता देवी, गाम- मेंहथ, भाया- झंझारपुर, जिला- मधुबनी। शिक्षा- बी.ए. (प्रतिष्ठा), मैथिली।
भकजोगनी
भुकुर-भुकुर बत्ती बड़ै
राइतक अन्हरियामे
हाथ-हाथ नै सुझैए
जेबाक अछि टोलपर

कुक्कुर भुकैए झाउ-झाउ-झाउ
साँझक बजैए छअ
हाथमे नै अछि लाठी-ठेंगा
नरहिया करैए सोर

मैइझला बाबा गबैए निर्गुण
तमाकुलपर मारै चोट
बौआ कनैए भगजोगनी लए
बड़ैए चाहूँ ओर
पकड़ रोउ, भुल्ला, होकवा
ठहा- ठहैइ अन्हरियामे लुत्ती
नेने माथपर नारक आँटी
थरथराइ छी हम पछुआरमे

बसंत पंचमी
सरस्वती पूजा सभ साल जेना
हरेक सालमे आबैए
विद्यार्थी सभ हर्ष उमंगसँ
माता लग शीस झुकाबैए

माघ मासक शुक्ल पक्षमे
ई सुन्दर पबइन आबैए
हरियर-हरियर तीसी-मौसरी
सरिसौ कऽ फूल फुलाइए

जोर-जोरसँ पछबा हबा
धऽ कऽ गर्दा उड़ाबैए
देखियौ आम आ देखियौ महुवा
सभ मिल सुगन्ध सुंगहाबैए

गछमे हरियर नवका पत्ता
रौदामे चमक देखाबैए
नहू-नहू बहए पुरबा हाबा
होलीक गीत सुनाबैए

धिया-पुता सभ बैठ आइरपर
गहुम गोइढलाक ओरहा पकाबैए
बसन्त पंचमी सभ लोककेँ
अपनामे मिलाबैए

डा. अरूण कुमार सिंह
     भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर    
 
                     भारतीय भाषाक हम बेटी मैथिली
हम बेटी तँ छी
माय, अहिंक
मुदा अष्टम अनुसूचिमे पहुँचि
विकासक बाट जौहेत
विस्तारक लेल छटपटाइत
हम बेटी तँ छी
परंच अहाँक प्रतीक्षाक
केन्द्रबिन्दु नहि
अहाँक सांस पर माय
लिखल अछि कोनो आन नाम
नहि दए सकैत छी हम अहाँकेँ
आगियो धरि
जन्मेसँ हक-वंचित
एहिना, माय
जखन नाम बनिकए
भारतीय भाषा बनि जाइत छी
तखनो एकटा प्रश्न
नक्शा पर उभड़िये अबैछ
हम के छी?
अहाँक महीमा गीतमे
अपन चर्चोसँ महरूम
हमर नामक आगू
श्री लागो वा मरहूम
हम धनी रही वा गरीब
अहाँकेँ की
नहि जीत छी अहाँक
नहि अहाँक हार छी
हम जरैत दियाक
पातर अन्हार छी
अहाँ भारतीय भाषा छी माय
हम मैथिली छी
माय, हम मैथिली छी!
         
 
रामवि‍लास साहु
कवि‍ता-

आएल वसन्‍त

आएल वसन्‍त
भागल जाड़
फूलसँ सजल धरती
दुलहि‍न समान
फूलक सुगन्‍ध चढ़ए आसमान
आम मजरल

महुआ पसरल

भौंरा करए गुणगान

सेरसौं बाजए

शहनाइ समान

वसन्‍त रंगमे

रंगाएल सभ एक समान

ढोल, मजीरा, ढाक, डफली

बजबैत गबैत फागुनक गान

रंग अबि‍रमे नहाएल समान

भेद-भाव मि‍ट गेल

सभ लगैए एक्के समान

आमक गाछपर कोइली बजैत

सभकेँ दैत प्रेमक वरदान

धरती बनल स्‍वर्ग समान

आएल वसंत भागल जाड़।


उमेश पासवान
कवि‍ता-

बान्‍ह

एक्के बेर टुटल बड़का बान्‍ह
गाम-घर बनि‍ गेल कोसी ओ बलान
तब मनमे सोचलौं हे भगवान
केना बचतै लोकक जान
मत्‍थाहाथ लैत सभ अछि‍ कानैत
कतएसँ आनब मरूआ धान
भुखसँ नि‍कलैए प्राण
नेता मोछ टेरैत खाइए पान
देखू केना लोकतंत्रकेँ
कए रहल अछि‍ अपमान।
अपने-सँ-अपने कहि‍-कहि‍ मि‍थि‍लाक वि‍भूति‍
कए रहल अछि‍ प्रति‍ष्‍ठाकेँ बन्‍दरबॉट।



ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.जगदीश प्रसाद मण्‍डल२.चंदन कुमार झा ३.नन्‍द वि‍लास राय

जगदीश प्रसाद मण्‍डल-
चारि‍टा गीत

गीत- 1

बि‍सरि‍ गेल मन तोरा
हे वहि‍ना बि‍सरि‍ गेल मन तोरा
जहि‍ना गाछक फूल झड़ै छइ
झाड़ि‍-झाड़ि‍ खसलह तोरा
हे वहि‍ना, बि‍सरि‍ गेल मन तोरा।
रहि‍-रहि‍ सुमारक अबै छइ
देखैले हृदए तड़सै छइ
मारि‍-सम्‍हारि‍ गबै छह तोरा
हे वहि‍ना, बि‍सरि‍ गेल मन तोरा।
खोद-बेद सदि‍ करैत रहै छह
तोरा-पाछू घुमैत रहै छह
लपकि‍-झपकि पाबए चाहै छह
झपटि‍ पकड़ि‍ वॉहि‍ तोरा
हे वहि‍ना, बि‍सरि‍ गेल मन तोरा
कोसी-कमला दूर भगौलक
नैहर-सासुर सेहो बि‍सरौलक।
हहरि‍-हहरि‍ हृदए सहटि‍
छाती सटबए चाहैए तोरा
हे वहि‍ना, बि‍सरि‍ गेल मन तोरा।

गीत- 2

छप्‍पर कि‍अए कुचड़ै छह हे कौआ
छप्‍पर कि‍अए बैसल छह।
लग-आबि‍ समाद सुनाबह
नैहराक सोखरि‍ सुनाबह
भैया-भौजीक हाल-चाल संग
गाम-समाजक सेहो सुनाबह।
छप्‍पर कि‍अए बैसल छह हे कौआ
छप्‍पर कि‍अए कुचड़ै छह।
दादी-दरदक हाल सुनाबह
बाबूक बात बि‍सरि‍हह नै
रेखि‍या-सुगि‍या पढ़ै छइ कि‍ नै
माइयक मन बि‍सरि‍हक नै
छप्‍पर कि‍अए कुचड़ै छह हे कौआ
छप्‍पर कि‍अए बैसल छह।

गीत- 3

गामसँ कि‍अए डरै छी
भाय यौ, गामसँ कि‍अए डरै छी।
सदि‍काल गामक चर्च करै छी
राति‍-दि‍न प्रशंसो करै छी।
तखन कि‍अए भगै छी
भाय यौ, गामसँ कि‍अए डरै छी।
बाप-पुरुखाक पुरुषार्थ गाबि‍-गाबि‍
छाती-तानि‍ हामी भरै छी
नानी-दादीक खि‍स्‍सा-पि‍हानी
सुना-सुना मोहै छी
भाय यौ, गामसँ कि‍अए डरै छी।
जइ मातृभूमि‍ ममतासँ
हृदए गंग बहबै छी
गामे-गाम पसरल छइ मि‍थि‍ला
गामेसँ कि‍अए मुरुछल छी,
भाय यौ, गामसँ कि‍अए डरै छी।

गीत- 4

आबो कने वि‍चारू
भाय यौ, आबो कने वि‍चारू।
भूखे भगलौं, सभ जनैए
दुखे भगलौं, सभ जनैए।
भरल पेट वि‍चारू, भाय यौ.....
जहि‍या जे भेल, से तहिया भेल

भूत गेल, भूतकालो गेल।

वर्त्तमानक कथा-बेथा संग

वि‍चारू, आबो भवि‍ष्‍यक लेल।

वि‍चारू आबो भवि‍ष्‍यक लेल भाय यौ....

कमा-खटा कऽ दुख मेटेलौं

भूख-पि‍यास सेहो, भगेलौं।

जरल मन भरि‍ पोख भरलौं

आबो कने वि‍चारू, भाय यौ आबो.....
आधा दर्जन कवि‍ता- 

प्रि‍य- 1

उठि‍ते वेदना उधि‍आए लगए जब
रच-वि‍चड़ी हुअए लगै छइ।
कर्ण-प्रि‍य, प्रि‍य वाणी वीणा
रूप माधुर्य सि‍रजए लगै छइ।
दूर-दूर जंगल पसरल
पसरल छइ ग्रह-नक्षत्र सागर
तरेगन छि‍ड़ि‍आ-बि‍ति‍आ
सजबए रूप पठार-पहाड़।
धरती ऊपर शून्‍य बसल छइ
नाओं धरौने अपन अकास।
चुसि‍ रस माटि‍-पानि‍क
संग चलैए रौद-वसात।
नै छइ ओर-छोड़ अकासक
एक छोड़ धरती धेने छइ।
लपेटि‍-लपेटि‍ लपेटा डोर
वि‍धाता गुड्डी उड़बै छइ।
बनि‍ वि‍धकरी वि‍धाता
सि‍रजन शक्‍ति‍ जगबै छइ।
कर्मभूमि‍, जन्‍मभूमि‍ ओ मर्मभूमि‍
कला-जीवन सि‍खबै छइ।

सुगबा-साड़ी पहीरि‍ देखि‍ कि‍यो
गुणधाम रूप बुझए लगै छइ
हंस चालि‍ पकड़ि‍-पकड़ि‍
वाहि‍नी हंस कहबए लगै छइ।
चलि‍ चालि‍ हंसवाहि‍नीक
सुरधाम नचबए लगै छइ
सजि‍ केश सुकेसि‍नी गढ़ि‍
रूपवती कहबए लगै छइ।
गुणवती रूपवती बनि‍-बनि‍
गुणधाम बि‍सरए लगै छइ।
गुण पकड़ि‍ जखन सुकेसि‍नी
धार जमुना ि‍सरजए लगै छइ।
कारी रंग पकड़ि‍-पकड़ि‍
सि‍रसि‍राइत सि‍र सजबए गलै छइ।
शुभ्र-स्‍वभाव, गुण सि‍रजि‍
गुणवती रूप बनबए लगै छइ।
गुणवती रूपवती बनि‍-बनि‍
गंगा-सरस्‍वती मि‍लए लगै छइ।
जइठाम तीनू धार सटए
त्रि‍वेणी घाट बनबए लगै छइ।
घाट-स्‍नान कऽ तीनू सहेली
अलड़ैत-मलड़ैत चलए लगै छइ।
भेद-कुभेद मेटा-मेटा
गंगा-सागर जा डुमै छइ।

सम्‍पन्न शब्‍द, शैली सम्‍पन्न
शब्‍द कोष सि‍रजए लगै छइ।
जड़ि‍-छीप पकड़ि‍ भाषाक
संसार-साहि‍त्‍य गढ़ए लगै छइ।
अपन-अपन अस्‍त्र-शस्‍त्र सजि‍
पथ-प्रदर्शन करए लगै छइ।
पथ प्रि‍य प्रेमी पाबि‍-पाबि‍
पथि‍क पथ चलए लगै छइ।
लोक अनेक, दुनि‍याँ अनेक
पथ अनेक अनेक पथबाह।
अपन खेत जहि‍ना जोतै छइ
बरदक संग अपन हरबाह।

बेथा-कथा सम्‍पन्न गढ़ि‍,
कवि‍त्त संग मि‍लि‍ चलै छइ
दोहा, चौपाइ, छप्‍पय ओ कवि‍त्त
संग मि‍लि‍ कवि‍ता कहबै छइ।
आँखि‍, कान, नाक मि‍लि जहि‍ना
रूप देह सजबै छइ।
मुँह बीच जि‍हि‍या पकड़ि‍
वाणी वीणा तार खि‍ंचै छइ।
तड़पि‍-तड़पि‍ मनक बेथा
दुबट्टी ओझर जा फँसै छइ।
शब्‍द वाण जा-जा कहै छइ
मुदा ओझर कहाँ बदलै छइ।
ओझर जखन चालि‍ पकड़ि‍
अस्‍त्र हाथ उठबै छइ
कर्मभूमि‍ पकड़ि‍ धरती
शब्‍दवाण छोड़ै छइ।

नख-सि‍ख रूप जतऽ सजै छइ
पूर्णिमाक चान कहबए लगै छइ।
पूनोक गौरव गाथा कहि‍-कहि‍
मास सलोनी पबए लगै छइ।
जहि‍ना साओनक‍ सिस्‍की सि‍हकए
तहि‍ना सि‍हकए वीणाक तार।
मनोक तार तहि‍ना सि‍हकि‍
सि‍रजि‍ अपन तहि‍ना उद्गार।

जहि‍ना धरती अकास बीच
गाछ-वि‍रीछ लहलह करैत।
तहि‍ना वि‍वेक वि‍चार संग
सदि‍ हँसि‍-गाबि‍ कहैत।
हजार नाम जहि‍ना हरि‍
हजार हाथ तहि‍ना सजल छइ।
हजार मन सेहो कहैत
हजार कोष भरल छइ।

अपनेपर- 2

अपनेपर कनै छी
अपनेपर हँसै छी।
अपने दि‍स तकै छी
अपने नै देखै छी।
घुरि‍ पाछू जखन देखै छी
जुगक अनुकूल समाज देखै छी।
ऊपरे-ऊपर नीपल-पोतल
भीतरमे कंकाल देखै छी।
ओही समाजक बीच बसल
अपनो पुरुखाक इति‍हास पबै छी।
बि‍हि‍या-बि‍हि‍या बि‍हि‍यबि‍ते‍
ढहल-ढनमनाएल देखै छी।

नि‍श्चि‍त सीमा बीच गाम
नि‍श्चि‍त जाति‍ बान्‍हल छी।
टोलबैया कहि‍ नि‍श्चि‍त जाति‍क
पति‍आनी लागि‍ सटल छी।
सटल-सटल पति‍आनीक बीच
हटल-सटल सेहो पबै छी।
सटल-हटल आ कि‍ हटल-सटल
गामक थाह कहाँ पबै छी।

चौहद्दी बीच कत्तौ समाज
कत्तौ जाति‍ समाज कहबै छी।
कत्तौ-कत्तौ पुरुखक समाज
तँ कत्तौ सम्‍प्रदाय समाज बनै छी।
उठि‍ते नजरि‍ भूत-भवि‍ष्‍य
सि‍हरनसँ सि‍हरए लगैए।
अकारथ जि‍नगी देखि‍ पाबि‍
कुहरि‍ मन तुरछि‍ मरैए।

अगम-अथाह रूप समाजक
असथि‍र भऽ सागर कहबैए।
बर्खा बुन्नी बीच-बीच
ओला-पाथर बरि‍सा दइए।
पबि‍ते पाबि‍ पृथ्‍वी पसरि‍
धरि‍या-चालि‍ धड़ए लगैए।
उट्ठी-बैसी खेल खेलैत
मोइन-धार बनबए लगैए।
टूक सुपारी समाज कटि‍-कटि‍
टुकड़ी जाति‍ बनल छइ।
टूक-टूक जाति‍क धरम
धर्म-मानव कात पड़ल छइ।
कल्‍याणक पर्याय धर्म कहबए
कल्‍याणक दुश्‍मन बनल छइ।
दृष्‍टि‍कूट सि‍रजि‍ दुर्ग-बीच
अलग चि‍त्त चौनाल खसल छइ।
देखि‍-देखि‍ कुहरै छी।
कुहरि‍-कुहरि‍ सि‍हरै छी
सि‍हरि‍-सि‍हरि‍ सि‍सकै छी
सि‍सकि‍-सि‍सकि‍ ठुनकै छी
ठुनकि‍-ठुनकि‍ कनै छी
अपनेपर कनै छी
अपनेपर हँसै छी।

तँए कि‍ कोनो हारि‍ मानै छी
भाग्‍य-तकदीर सि‍रजै छी।
ज्‍योति‍षक ज्‍योति‍ पजारि‍-पजारि‍
कर्म-लेख लि‍खैत चलै छी।
जेकर जेहेन भाग्‍य बनल छइ
तेहने तेकरा फल भेटै छइ।
फँसि‍-फँसि‍ शब्‍दजाल कर्म
गीता गीत सुनबए लगै छइ।
पढ़ि‍ गीता बौरा कि‍यो
चि‍न्‍तक बनि‍ चि‍न्‍तन करैए।
पागल कहि‍ पुक्की दए-दए
बौराहा रूप गढ़ैए।
सभ कि‍रदानी देखि‍-सुनि‍
मदनारी शि‍व कहबैए।
कि‍यो भांगि‍या-भि‍खारी‍ मानह
शि‍वदानी शि‍व कहबैए।

डायरी- 3

मनक डायरी लि‍खए बैसलौं
उपहारक डायरी नि‍काललौं।
रंग-रूप देखि‍ डायरीक
ऊपरे-ऊपरे भसए लगलौं।
भसैत-भसैत-भसैत
मनक बात बि‍सरए लगलौं।
छपल फूल गुलाब कली
बि‍हि‍या-बि‍हि‍या देखए लगलौं।
सुर-सुर करैत सुरसुरी आबि‍
नाकर छोर खि‍चए लगल।
रस-गंधक भूख जगा
भूखल मन तरसए लगल।
ताकए लगलौं रस कलीमे
सादा कागज बनल-पड़ल।
सीख-लीख नै परेखि‍ पेलौं
अखनो ओहि‍ना बैसल पड़ल।

गुन-गुन गुनगुनाए लगलौं
जगल अपन डायरी मनमे
हाँइ-हाँइ पन्ना उनटेलौं
कलम खोलि‍ वि‍चारल मनमे।
तही बीच आँखि‍ पड़ल पन्ना
चार्ट बना टांगल देखल
अपन मनक चार्ट नै देखि‍
अदहन मन उधि‍आए लगल।

आखर अंति‍म मन पड़ि‍ते
कलमक हाथ घुसकए लगल।
अनका असे कते दि‍न बीतल
मनक हि‍साब उठए लगल।
मानव गुण- 4

जा धरि‍ गुण नै अबैत मनुजमे
ता धरि‍ मनुज मनु रहैए।
अबि‍ते गुण फल-फूल जहि‍ना
नाओं अपन धड़बए लगैए।
जा धरि‍ फूल महक नै पबैत
कोढ़ी-वाती कहबैत रहैए।
तहि‍ना ने मनुखो बीच
मनुष्‍य-मनुख कहबैत रहैए।
गुण अनेक समेटि आठ
पौरुष गुण कहबैए।
पबि‍ते पाबि‍ बनैत गुणी
महापुरुष बनए लगैए।
जहि‍ना-जहि‍ना गुण बढ़ै छइ
तहि‍ना-पुरुखपनो बढ़ै छइ।
अबि‍ते पौरुष तन मनुजमे
महापुरुष कहबए लगै छइ।

तीन गुण आदि‍ये सँ आबि‍
सत्-रज-तम कहबैए।
तामस-प्रीति‍ मनुखेटा नै
पशु-पक्षी सेहो पकड़ैए।
जहि‍ना-जहि‍ना पशु-पक्षी बीच
गुण तीनू गुणगान करैए।
एक-दोसरसँ हटि‍-सटि‍
कामी-लोभीक रूप धड़ैए।
बि‍ना कि‍छु कहनौं-सुननौं
बीख बमन सदति‍ करैए।
गहुमन चालि‍ बूझि‍ देखि‍
मनुष्‍यत्‍व डरए लगैए।

मुदा टोननि‍हार मनुखो होइ छइ
उपाए तेकर सोचए लगैए।
मंत्र-जौड़ सीखि‍-सीखि‍
चि‍त्ती-कौड़ी भाॅजए लगैए।
भजि‍ते चि‍त्ती-कौड़ी धरती
गरुड़ चालि‍ पकड़ए लगैए।
चारू दि‍शा नजरि‍ दौगा
अकास बीच उड़ए लगैए।
उड़ि‍ते अकास देखए लगैत
बील-धोधड़ि‍ वृक्ष-धरती
एक अकास दोसर पताल
जागल वृक्ष सुतल धरती।

जहि‍ना बरही काठ खोदि‍
उखड़ि‍ ढोलक कठरा बनबैए।
तहि‍ना ने कठखोधि‍यो खोदि‍
हीर काटि‍ धोधड़ि‍ बनबैए।
रक्षि‍त सुरक्षि‍त भवन बीच
चैनक जि‍नगी बास करैए।
नि‍च्‍चाँ धड़तीक बोहरि‍ देखि‍-देखि‍
सुख-सेजि‍ वि‍श्राम करैए।
ने डर पानि‍ ओ पाथर
हवो ने कि‍छु कए सकैए।
धरती सहजहि‍‍ पड़ल-सुतल
भयये कि‍अए भऽ सकैए।

मुसक खुनल बील पकड़ि‍
नाग-नागि‍न कहबए लगैए।
नागे तँ धरती टेकने छइ
अखण्‍ड राज भोगै छइ।
जेकरे बनाओल घर बसै छइ
तेकरे पकड़ि‍ भोजन करै छइ।
सुख-पतालक पाबि‍-पाबि‍
अकास-पताल लोक गढ़ैए।
भोगी जोगी बनि‍-बनि‍
मंत्र सूत्र गढ़ए लगैए।
सुर्जो-चानक गति‍-मति‍केँ
रगड़ि‍-रगड़ि‍ मेटबए लगैए।
कहि‍यो बादर पकड़ि‍
मेघाओन रूप धड़ए लगैए।
तँ कहि‍यो देव-दानव ठर्ड़ा
बेबस भऽ देखए लगैए।

छुटि‍ गेल- 5

पाछू घुरि‍ जखन देखै छी
मरूभमि भेल गाम देखै छी।
गंगोट मानि‍ सि‍र सजि‍
चानन करैत अनैत रहलौं।
बालुक बुर्जा बनल बाध
देखि‍-देखि‍ कुहरैत रहलौं।
जइ पानि‍क बीच बसल छी
तरो पानि‍ तरहथि‍यो पानि‍
वायुओ पानि‍ बसातो पानि‍
उड़ल अकास दौड़तो पानि‍
तइ पानि‍क बीच काहि‍ काटि‍
पानिये‍ बि‍नु छटपट करै छी
कत्तौ चुटकि‍यो नोन नै
कत्तौ-कत्तौ सागर बनल छइ।

दुनि‍याँक दोखाह वसात
दुरि‍ केने छइ दुनि‍याँकेँ
बिनु कल-कारखानाक मि‍थि‍ला
दूषि‍त भेल अछि‍ हावासँ।
देश-दुनि‍याँक कारखाना चला
खेती-पथारी सेहो करैए।
अपन सभ कि‍छु उपटा-बि‍लटा
मि‍थि‍लाक जय-जयकार करैए।

भाषा साहि‍त्‍यक कथे की
नमगर-चौड़गर बान्‍ह कसल-ए।
करे मुसबा पकड़ए युनुसबा
दि‍न-राति‍क लीला चलैए
जननि‍हार सभ कि‍छु जनै छथि‍
मुदा पेट पकड़ि‍ पेटकान देने
सभ-सबहक मुँह देखि‍-देखि‍
लेने-लेने कि‍ देने-देने?

फगुआ- 6

जुआनीक जे रूप देखबैए
तेकरेसँ ठट्ठा करै छी।
अपन करम-धरम बि‍सरि‍
फगुआ हँसि‍-हँसि‍ गबै छी।
दोहाकेँ कवि‍त्त बना-बना
दोगे-दोग वि‍हुँसैत चलू।
रचि‍ कवि‍ता जोगि‍रा केर
र- र- र- र- गर्द करू।
रूप सजि‍ करता-करतीक
श्‍मशान रूप बनबै छी
रस फूल माधुर्य फलक
जी-जान कहाँ चि‍खै छी।

जहि‍ना सरसो-झुन-झुन करैए
गहुमनि‍या रंग लपकति‍ रहैए।
केचुआ छोड़ैक मसीम परखि‍
लपटि‍-लपटि‍ लपटए लगैए।
ताड़ वीणाक कम्‍पन्न जहि‍ना
ओर-छोड़ झनकबए लगैए।
तहि‍ना पएरक उठल झुन-झुन
डारि‍-पात, सि‍र डोलबैए।

पाबि‍ फागु वसुन्‍धरा जहि‍ना
अलसाएल-मलसाएल झुमैए।
पाबि‍ जुआनी बि‍रह तहि‍ना
बि‍ड़हा-बि‍ड़ही बौराइए।
ढोल-डम्‍फ ताल मि‍ला-मि‍ला
दुनू नाचए-गाबए लगैए।
फड़ल-फुलाएल देखि‍ वसुधा
अकास पवन डोलए लगैए।
चान-सुर्ज बैसि‍ दुनू संग
हि‍स्‍सा-बखरा फड़ि‍यबए लगैए।
जहि‍ना पुनोक चान चमकए
मध्‍यमस्‍त सूर्ज सेहो हँसैए।

अपन-अपन दशा-दि‍शा
मि‍लि‍ दुनू गाबए लगैए।
बामा हाथ थि‍ड़कि‍-थि‍ड़कि‍‍
दहि‍ना चकमक चमकए लगैए।
जहि‍ना जाड़क पाला पकड़ि‍
शीतल हृदए मि‍लि‍ जुड़ौलक।
ठि‍ठुरल-ठि‍ठुड़ल पकड़ि‍ कली
वसन्‍त गीत सेहो सि‍रजौलक।



चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान, मधुबनी, बिहार


||हेतैक नवका भोर||

एतै जागृति हेतैक नवका भोर,

घर
-घर मे पहुँचत शिक्षा,

शिक्षित हेतै सभ लोक,

संपूर्ण धरा पर खुशिये पसरत,

ककरो आँखि मे नहि रहतै नोर,

नहि रहतै आतंक, आतंकी,

आ आतंकवादक जोर,

नहि रहतै राजनिति आ

जातिवादक गठजोड़,

नवल दिवस, नुतन प्रभात,

पुनि हेतैक नवल इजोर।.


नन्‍द वि‍लास राय जीक कवि‍ता-

मानवता

आनक गलती नि‍ङहारब ई नीक काज नै
कखनो काल अपनो मुँह एेनामे नि‍ङहारल करू
जौं दानवसँ मानव बनबाक अछि‍
मानवबला कर्त्तव्‍य ि‍नभाएल करू।
जीत केर खुशीमे सभ रहैत अछि‍ मगन
हारि‍क दुखीमे अहाँ मुस्‍कुराएल करू
दोसरक खुशी देखि‍ जड़ी छी कि‍एक
देखि‍ दोसरक तरक्की मरै छी कि‍एक
हएत केना अप्पन तरक्की वि‍चारल करू
की लऽ दुनि‍याँमे एलौं की लऽ कऽ दुनि‍याँसँ जाएब
फेर एना कि‍एक करै छी राति‍-दि‍न बाप-बाप
ढौआ कमाबए लेल केलौं कतेक पाप
जौं पापसँ मुक्ति‍ चाहै छी अहाँ
गरीब-गुरबापर अन्न-धन लुटाएल करू
दोसरक खुशी लेल जौं जीत कऽ हारि‍ सकी
आनक बचेबाक खातीर घर अपन जाड़ि‍ सकी
धरतीपर केना मानवता जीबैत रहत
अपना भरि‍ अहाँ जुक्ती लगाएल करू
अपना लेल तँ सभ जीबैत अछि‍
अनका लेल जौं अहाँ जी सकी
आनक उपकार खातीर जौं जहर पीब सकी
मरियो कऽ केना लोक भऽ जाइत अछि‍ अमर
अहू गप्‍पपर थोड़ैक माथ लगाएल करू
आनक गलती नि‍ङारब ई नीक काज नै
कखनो काल अपनो मुँह ऐना नि‍ङहारल करू।



शि‍क्षि‍त बेरोजगार

हम शि‍क्षि‍त बेरोजगार छी
परि‍वारपर बनल भार छी
गौआँ समाजक लेल बेकार छी
हम शि‍क्षि‍त बेरोजगार छी
बाबू हमरेपर भाषण झाड़ै छथि‍
गप्‍पसँ हमरा मारै छथि‍
हम मने-मन भनभनाइत छी
गप्‍प मारि‍ खाइ छी।
हमर कनि‍याेँ हमरासँ रूसल अछि‍
ओ कहै अछि‍ हम कपारे फूटल अछि‍।
की एक गद्दी सेनुरो देलौं
जहि‍यासँ गौना भऽ अहाँ घर एलौं
की तेलौ सावुन अहाँकेँ हमरा लेल जुमैत अछि‍।

की कहँू भाय लोकनि‍
हमरा तँ कि‍छु ने फुड़ैत अछि‍।
कोड़ाक मारि‍सँ बेसी चोट लगैत अछि‍
कनि‍याँक बातक हमरा
के पति‍याएत अपन दुख
हम कहि‍यौ ककरा
कनि‍याँक बापो
अपन बेटी हमरासँ बि‍याहि‍
पचताइत अछि‍
दि‍ल्‍ली पंजाब पठेबाक लेल
हमर माथ खाइत अछि‍।
अाब नै गूजर हएत हमरा गाममे
चलि‍ जाएब दि‍ल्‍ली आइये साँझमे
ओतए करब कोनो काम
ढौआ कमा, लाएब गाम।


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१.नारायण झा २.निशान्त झा
नारायण झा

मि‍थि‍ला राज्‍यक आह्वान

करू आंदोलन बनाऊ राज मि‍थि‍ला
जमि‍ कऽ बनाऊ राज मि‍थि‍ला।
मि‍थि‍ला थि‍क मि‍थि‍लावासीक करेज
राखक अछि‍ एकरा सभकेँ सहेजि‍।
हाथ जोड़ैक समए बीत गेल
अधि‍कार हथि‍येबामे देरी भऽ गेल।
जनकक संग सीताक खा कऽ सप्‍पत
सघर्ष सदि‍खन राखब तखनहि‍ भेटत।
आलस, भुख-पि‍यास छोड़ि‍ कऽ
राति‍-दि‍नक संघर्ष कऽ।
दि‍न-राति‍क परि‍श्रम कऽ बजाउ घंटा
तखने बाजत मि‍थि‍ला राज बनबाक डंडा।
अप्‍पन राज्‍यक अप्‍पन संस्‍कार
अनुकरणीय होएत संसार।
दि‍ग-दि‍गंत पताखा फहरा सकैत अछि‍
सफलताक बीआ बूना सकैत अछि‍।
सम्‍पूर्ण मि‍थि‍लावासी होएताह आत्‍मनि‍र्भर
सपनोंमे नै रहए पड़त ककरो पड़ ि‍नर्भर।
करू आंदोलन बनाऊ राज मि‍थि‍ला
जमि‍ कऽ बनाऊ राज मि‍थि‍ला।

२.
निशान्त झा
खुश रहै लेल  अहाँकेँ   हजार  बहाना अछि   ,
कलीसँ
 दोस्ती अहाँकेँ  गुलसँ अहाँक  याराना अछि ,,

हमर  ख़्वाब तूँ  आसमानसँ ऊँच भऽ जो,
हमरो आइ अपन
 हौसला कनी  अजमेबाक अछि ,,

साकी तूँ बस  पियेने  जो  वजह नै पूछ  पीबै के ,
सबहक  दर्द  अपन
 अपन  सबहक  अपन  अफसाना अछि ,,

एक  चूक भेल
 की तोहर  नजइरसँ  उतरि  गेलौं ,
ऐना छौ तोहर आँखि की  अदब  की पैमाना  अछि ,,

खामोशी
 तन्हाइ  नाकामी  रुसवाइ ,
'निशांत ' भेटलौ तोरा
  मोहबत  के  नजराना अछि 
करोड़पतिक सेट पर, आइ बवाल भऽ गेलै 
करोड़पतिक सेट पर, आइ बवाल भऽ गेलै 
कंप्यूटर स्क्रीन पर, आयल  गज़ब सवाल भऽ गेलै 
आयल  गजब सवाल जीत कय ,फास्टेस्ट फिंगर फस्ट ।
हॉट सीट पर आबि गेलथि , नेता जी एकगो  भ्रष्ट ॥
पहिला प्रश्न जितायत , रुपया  पाँच हजार ।
देशमें भष्टाचार ले, के अछि  जिम्मेदार ?
सही जवाब बताबू, विकल्प अछि ई चारि 
) जनता बी) मंत्री सी) नेता डी) सरकार ॥
हम छी  नेता, हम छी  मंत्री, हमरे अछि सरकार ।
जँ जनता केँ  लौक करब , चुनाव जायब  हार ॥
मंत्री जी पड़ि गेलथि  सोचमे, मदति करत  आब के?
बजला  - फोन लगायल जे विपक्षक पार्टी नेताकेँ  
तीसे सेकंड मे भऽ  गेल , नोट वोट केर  डील ।
कटि केलथि  नेता जी बजला  एक्चुअली व्हाट आइ फील ॥
बिना जवाबक अरबों बनैत अछि अपन वोट - सीट पर।
की  रखल अछि  "निशांत" छोड़ओ अहन हॉट-सीट पर ॥
फुसि वचन , फुसि कसम , फुसि देखा कऽ श्वप्न 
ओतय जनताक वोटिंग पेड्स पर सबटा विकल्प अपन  
कखनो  कखनो बस भाषण बाजी, करकल  तेवर तीख 
करोड़पतिक सेट पर, आइ बवाल भऽ गेलै 
करोड़पतिक सेट पर, आइ बवाल भऽ गेलै 




ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.प्रीति‍ प्रि‍या झा .पवन कुमार साह ३.डॉ॰ शशिधर कुमर
  
 १.
प्रीति‍ प्रि‍या झा
अन्‍तराष्‍ट्रीय महि‍ला दि‍वस 08 मार्चक अावाहन भऽ रहल अछि‍। ऐ अवसरक परि‍पेक्ष्‍यमे नवतुरि‍या कवयि‍त्रीक सम्‍यक प्रस्‍तुति‍। रचनाकार- प्रीति‍ प्रि‍या झा, पि‍ताक नाओं- श्री वि‍जय चन्‍द्र झा, माताक नाओं- श्रीमती सीमू झा, जनम ति‍थि‍- 01/ 03/ 1994 सम्‍प्रति‍- छात्रा कथा 12म, केन्‍द्रीय वि‍द्यालय टाटा नगर, आवासीय पता- गोलपहाड़ी मेन रोड, गायत्री मंदि‍रक नि‍कट, जमशेदपुर, पैतृक गाम- धनखोरि‍, फुलपरास मधुबनी, मातृक-  घोघरडीहा, मधुबनी
कवि‍ता-
बेटी

जन्‍मएकाल, आमक मज्‍जर
खुशीक पेटार
घरक लक्ष्‍मी बेटी
मुदा मंचेटापर
सभ कहै छइ बेटी-बेटा एक समान
तँ कि‍अए दुख मनबैत छी
कन्‍याक जन्‍मपर
कि‍अए नै जन्‍माएल जाइ छइ बेटी
एकटा पुत्रक आशामे
सात-सात बेटी
ककरो तनपर साफ वस्‍त्र नै
मुदा एकटा बेटा-
वएह- बौआ, बाबू, सुग्‍गा-नूनू
दोष ककरा देल जाए?
सबहक मति‍मे पुत्रमोह, ति‍लकक लोभ
ककरो मति‍ तँ बदलल नै जा सकैछ
बाप बेपारी आ बेटा वस्‍तु बनि‍
बजारमे पसरल अछि‍
बि‍कबाक लेल तैयार
चाम-मोट मुदा दाम चमनगर
जखन बेटीक बाप- तखन कनैत छी
मुदा! जखन बालकक पि‍ता
तँ भगवानक समान आदर चाही
बेटी सभ मारल जाइ छै
नीके हएत, बेटी खतम भऽ जाएत
रहि‍ जेता सभटा बालक कुमारे
प्रकृति‍केँ चुनौती दि‍अ?
वाह आर्यवर्त्तक पूत! ! !

    
पवन कुमार साह
जन्‍म- 2/2/1987
पि‍ताक नाओं- श्री वासुदेव साह
गाम- खाप, पोस्‍ट- अन्‍धारवन (वासुदेवपुर), थाना- लाैकहा, जि‍ला- मधुबनी, (बि‍हार)
पि‍न- 847421
शि‍क्षा- एम.ए. (अंग्रजी)
एल.एम.एन.यू; दरभंगा

कवि‍ता-

प्रेम

की पाप छल प्रेम हमर
की गुनाह छल प्रेम हमर
लगि‍ गेल कि‍एक एकरा एहेन नजरि‍
की पाप छल प्रेम.....

जौं प्रेम पाप छी तँ
ई पाप हम करबे करब
कि‍यो मि‍लए ने दि‍अए चाहैए हमरा
मुदा हम ओकरासँ मि‍लबे करब
सभ कि‍छु ओकरा लेल मेटा गेल हमर
की पाप छल प्रेम......

सुनि‍ लि‍अ यौ प्रेमक दुश्‍मन
मि‍लैसँ हमरा नै रोकू
कऽ देलौं ओकरे नओं जीवन
हमरा आब कि‍यो ने टोकू
व्‍यर्थ भेल जि‍नाइ जि‍नगी हमर
की पाप छल प्रेम.....

गीत-

उड़ि‍ गेलै ओ हमर दि‍ल
एना तोड़ि‍ कऽ
उड़ि‍ जाए पंक्षी जेना
पि‍ंजरा तोड़ि‍ कऽ
उड़ि‍ गेलै....

अपना ओ पंक्षी समझलक
हमरा दि‍लक पि‍ंजरा
छोड़लक जखन संग हमर
तड़पए लगल जि‍यरा
मारलक तीर दि‍लमे
एना जोड़ि‍ कऽ
उड़ि‍ जाए पंक्षी जेना
पि‍ंजरा तोड़ि‍ कऽ
उड़ि‍ गेलै.....

पि‍ंजराकेँ कोनो दर्द ने होइए
दि‍ल बेगरि‍ दर्दक ने रहैए
पंक्षी तँ गगनमे उड़ैए
संगी हमरा चमनमे घुमैए
ि‍जलौं ओकरा बि‍नु हम
एना मरि‍ कऽ
उड़ि‍ जाए पंक्षी जेना
पि‍ंजरा तोड़ि‍ कऽ
उड़ि‍ गेलै....।


    
डॉ॰ शशिधर कुमर, एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा, कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४
      
     
अहंकार
(कविता)


अहंकार   छी   भूत    एहेन बड़का बड़का   केँ  खएलक  ई ।
की  मनुक्ख  केर गप्प  कही,  देवहु  केँ  सबक़  सिखओलक  ई ।।

नारद  सन  ऋषि  केँ  अहं  भेलन्हि, ‍२
निज मन पर हमर नियण्त्रण अछि ।
कहलन्हि के  हमरा  डोला सकत ?
त्रिभुवन केँ - मोर  आमण्त्रण अछि ।
ब्रम्हाक   तनय,   विष्णूक    भक्त,
हर विषय  सँ हम - निर्लिप्त थिकहुँ ।
की    काम वासना क्रोध लोभ,
की  मोह द्वेषसभ  जय कयलहुँ ।
बानर सन मूँह भेलन्हि हुनकर, सच ! अहं काल केर भोजन छी ।
की  मनुक्ख  केर गप्प  कही,  देवहु  केँ  सबक़  सिखओलक  ई ।।

सर्जक    बड़का  –  हम   कथाकार,
हम    गीतकार   वा   गजलकार ।
हम   के  छी ककरहु  कही  तुच्छ,
 कही  कूथि  कऽ  लिखनिहार” ?
की  नीक बेजाए तकर  निर्णय,
करताह पाठक जन, सुधी समाज ।
हम   तऽ  लेखक लिखबाक   कर्म,
हम   के   छी  परमिट  बँटनिहार ?
जँ छी महान, तऽ लोक कहत; अपनहि निज गाल बजओने की ।
की  मनुक्ख  केर गप्प  कही,  देवहु  केँ  सबक़  सिखओलक  ई ।।



हमरा   सम्मुख  केओ  अनचिन्हार,
वा  हमर  केओ  परिचित  चिन्हार ।
जनिका   जतबा  जे  शक्य  लिखथु,
हर जन  केँ  अभिव्यक्तिक अधिकार ?
सभ   केँ   माथा   सोचबाक   लेल,
   हाथ   भेटल   लिखबाक लेल ।
नञि   जन्मजात  केओ   सिद्धहस्त,
छी  समय निपुण  बनबाक  लेल ।
इएह मूँह हाथ  आदर दैतछि, आ बहुतहु केँ लतिअओलक ई ।
की  मनुक्ख  केर गप्प  कही,  देवहु  केँ  सबक़  सिखओलक  ई ।।

जँ   छी   आलोचक  –  समालोचना,
नीक  -  बेजाए    सभटा    देखी ।
अपना    खेमा,    अनकर    खेमा,
दुहु   कात    परिक्षण    समलेखी ।
अपना    खेमा    अधलाहो    नीक,
अनका  जँ  कही  हम - सब  तीते ।
तऽ  चानि  पर खापड़ि  निश्चित अछि,
छी  कालक  गति   अनुपमठीके ।
 “समयहाथ निर्णय सभ टा, कत दुर्ग दर्प भँसिअओलक ई ।
की  मनुक्ख  केर  गप्प  कही,  देवहु  केँ  सबक़  सिखओलक  ई ।।


सन्दर्भ संकेत -
१) ॰ एहि कविता केर विषय वस्तुक प्रेरणा विदेहपर विगत २ महीना सँ चलि रहल वार्तालाप सभ सँ मनःस्फुर्त भेल अछि । तेँ फेसबुक पर विदेहकम्युनिटीक एडमिन लोकनि केँ सादर धन्यवाद ।
२) ॰ ई सन्दर्भ विष्णु पुराणमे वर्णित एक कथा सँ लेल गेल अछि ।
३) ॰ एहि ठाम प्रयुक्त अनचिन्हारशब्द अपरिचितकेर परिचायक थिक (चिन्हारक उनटा) । कोनहु व्यक्तिविशेष सँ एकर कोनहु प्रकारक सम्बन्ध नञि अछि ।

ई कविता विदेह केर आगामी अंक (अंक ‍१०१) मे प्रकाशनक हेतु  सम्पादक मण्डल केँ सेहो पठाओल गेल अछि ।

आयल  वसन्त  नेने, नव - नव  उमंग
(युगल गीत)



[+ -]     मलयक   सुवास  नेने,   बहइछ  पवन ।
            आयल  वसन्त  नेने, नव - नव  उमंग ।।


[-]        तीसी आ सरिसो केर,
            कुसुमित     शाखा ।
[+]       प्रेम  केर  मधुवन मे,
            नयन   केर   भाषा ।
[-]        अएलाह भूतल पर मन्मथ, रती केर संग ।
[+ -]     आयल  वसन्त  नेने, नव - नव  उमंग ।।


[-]        धरती केर कण कण मे,
            हरियऽरी      आयल ।
[+]       भाँति भाँति  रंग  केर,
            फूल        फुलायल ।
[-]        सुनि कोयलीक बोल,  बढ़य प्रेमक अगन ।
[+ -]    आयल  वसन्त  नेने, नव - नव  उमंग ।।


[-]       सभतरि अछि जीवन,
             सभतरि यौवन ।
[+]      प्रिया केँ  निरखि कऽ,
           अघायल ने प्रियतम ।
[-]       चलल  भौंरा  पराग  लए, लसित उपवन । 
[+ -]    आयल  वसन्त  नेने, नव - नव  उमंग ।।


[-]       चकोरक   प्रतिक्षा   केर,
           भेल      जेना     अन्त ।
[+]       चन्द्रमा सँ मिलल जनु,
           पार      कऽ      अनन्त ।
[-]       आइ क्षितिजक पार मिलल, धरती गगन ।
[+ -]    आयल  वसन्त  नेने,  नव - नव  उमंग ।।


[-] :-   स्त्री अवाज         [+] :- पुरुष अवाज          [+ -] :- स्त्री आ पुरुष दुहुक समवेत अवाज

देखू आयल बसन्त
(गीत)

बीति गेल,  बीति गेल,  देखू बीतल हेमन्त ।
निज दल-बल केर संग, देखू आयल बसन्त ।।

हवा  मदहोश  बहय,  मोन उतड़ए चढ़ए ।
जनु   सबतरि,   अछि   छायल   अनंग ।।

खग  कलरव  करय,  राह  गमगम करय ।
गूँजय  कोयलीक  स्वर,   दिग दिगन्त ।।

देखू  केसर,  पलाश,  बेली, चम्पा, गुलाब ।
भेल   सुरभित,   धरा    संग   अनन्त ।।

विरह  वेदना बढ़ल,  मिलन सपना सजल ।
रम्य  लगइत  अछि,   सुरूजक  किरण ।।

नऽव शाखी* उगल, आयल किशलय नवल ।
लागय  धरती  केर  कण कण जीवन्त ।।


* शाखी = शाखायुक्त = गाछ - बिरिछ



आयल  होलीक  दिन मतवारी
(गीत)


आयल  होलीक  दिन मतवारी ।
चहु   दिशि  अनंग  सञ्चारी ।।


हर तरफ  बहय मलयानिल,
लए शीतल सुगन्धि चन्दन ।
सौंसे भूतल हरियर सुन्नर,
हर  उपवन  जनु  नन्दन ।
मारय प्रकृति  जेना किलकारी ।
आयल  होलीक दिन मतवारी ।।


जमुना तट पर धूम मचल अछि,
कुञ्ज भवन   मे   हलचल ।
रंग अबीर सँ लाल भेल आइ,
जमुना  केर   श्यामल जल ।
मारय भरि भरि कऽ पिचकारी ।
आयल  होलीक  दिन मतवारी ।।


एक दिशि अछि  सभ ग्वाल बाल,
दोसर   दिशि   सभ   ब्रजनारी ।
बीच  मे  हर्षित मुदित  राधिका,
संग     मे    कृष्ण   मुरारी ।
भीजय  ब्रजबाला  केर  साड़ी ।
आयल  होलीक दिन मतवारी ।।



आयल होली केर तिहार
(गीत)


आयल होली केर तिहार ।
संग  बसन्त  बहार ।
नेने  आयल  अछि  संगहि,  नव  उमंग - उल्लास ।।


कतहु लोक सभ झूमि झूमि कऽ,
घोड़ि    रहल    छथि    भांग ।
कतहु  करैतछि   बालबृन्द   सभ,
रंग    घोड़बाक    ओरिआओन ।
बहय मदहोश बसात ।
संगे  सुरभित सुवास ।
नेने  आयल  अछि  संगहि,  नव  जीवनक  उसास ।।


भोरे   भोरे    नबकी    भौजी,
कएलन्हि बन्न केबाड़ आ खिड़की ।
मोन  खड़ाबक  बहाना  बना  कऽ,
बड़की  भौजी   खाट  पकड़लीह ।
लेकिन दियऽर बड़ चलाक ।
चलतन्हि  किनकहु ने  कोनो  बात ।
नेने  आयल    संगहि,  रंग  हरियर    लाल ।।


भौजी   कतबहु  होथि  लजबिज्जी,
होथि पुरनकी,  नवकी जुअनकी ।
चाहे   कोनहु   बहाना   बनओती,
लेकिन  रंग  सँ  आइ  ने बचती ।
रंगबनि हिनकर दुहु गाल ।
करबनि   ठोर   दुहु  लाल ।
नेने  आयल  छी   संगहि,   रंग अबीर गुलाल ।।


दियऽर भाउज केर बीच होइछ ई,
निर्मल      प्रेमक      धार ।
ई पुणीत अवसरि  आयल अछि,
एक    बरख    केर    बाद ।
जुनि  करू  आइ  लाज ।
नहिञे  आन  कोनहु  लाथ ।
करू  स्वागत  बसन्तक,  रंग अबीर   लए  हाथ ।।



छायल मिथिला मे आजु बसन्त
(गीत)


जेम्हरहि देखू, तेम्हर आइ अछि भाँति भाँति केर रंग ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।


भाँग पीबि कऽ आइ ई बुढ़हो,
पओलन्हि   नऽव   खुमारी।
काया लकलक,  दाँतहु टूटल,
पर  नस नस मे जुआनी ।
छायल चहु दिशि जेना उमंग ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।


तोड़ि  आजु  संकल्प प्रतिज्ञा,
तरुणी     संग    ब्रम्हचारी ।*
छाड़ि ध्यान-तप-त्याग ओ पूजा,
कामिनी     संग    सञ्चारी ।
छायल अंग अंग जेना अनंग ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।


यत्र तत्र  देखबा मे  आबए,
राधा    कृष्णक   टोली ।
लाले रंग साड़ी रंग सँ तीतल,
हरियर  रंग  राँगल  चोली ।
छायल मिथिला मे आजु बसन्त ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।


* ई पाँती सभ प्रतीकात्मक मात्र थिक । कोनहु वर्ग विशेष वा समुदाय विशेष पर आक्षेप नञि ।



हे ऐ भौजी, रूसलि किए छी ?
(गीत)


हे अए (ऐ) भौजी, रूसलि किए छी ?
गाल फुला,  चुप बैसलि  किए छी ?
घऽर मे  बैसलि, किए  आँखि  लाल  करै  छी ?
दू बुन्न पड़िए जँ गेल, तऽ किए बबाल करै छी ?


होली मे होइतहि  अछि एहिना,
रंग अबीर मे, डूबल ई दुनिञा ।
मानव  केर  तऽ बात कहू की,
नाचय धरती बनि नवकनिञा ।
किए  कोप - भवन मे,  अहाँ  कपार  धुनै छी ?
दू बुन्न पड़िए जँ गेल, तऽ किए बबाल करै छी ?


खेलथि ब्रज मे गोपी केर संग,
कृष्णजी     रंग     अबीर ।
मिथिला मे फगुआ अछि नामी,
दियऽर  भाउजि   केर  बीच ।
किए   आइ   अहाँ,   हड़ताल   कएने   छी ?
दू बुन्न पड़िए जँ गेल, तऽ किए बबाल करै छी ?


रूसू जुनि, हम करै छी भौजी,
हाथ     जोड़ि     नेहोरा ।
एक बरख केर बादहि आओत,
पाबनि    फेर     दोबारा ।
किए  स्नेहक  हाथ  अपन,  कात  कएने  छी ?
दू बुन्न पड़िए जँ गेल, तऽ किए बबाल करै छी ?


सभ हीलि मीलि  कऽ गाउ
(गीत)


सभ हीलि मीलि  कऽ गाउ ।
खुशी  सरगम  सजाउ ।
आयल  होलीक  तिहार,  रंग अबीर लगाउ ।।


आयल बसन्त, बहए मलयक बसात ।
प्रकृति कामिनी कयल सोलहो शिंगार ।
नृप आसन  लगाउ ।
घर आङ्गन सजाउ ।
आयल  होलीक  तिहार,  रंग अबीर लगाउ ।।


वृद्ध हो,  बालक हो,  युवा हो या युवती ।
सभमे जुआनी अछि, सभमे अछि मस्ती ।
ढोल डम्फा  बजाउ ।
जुनि  कनिञो लजाउ ।
आयल  होलीक  तिहार,  रंग अबीर लगाउ ।।


अवधपुरी  मे  खेलथि  लक्ष्मण,  सीता  केर  संग  होरी ।
मिथिलो मे अछि नामी सभतरि, दियऽर भाउजि केर जोड़ी ।
भौजी !  एम्हर  आउ ।
जुनि  घऽर मे नुकाउ ।
आयल  होलीक  तिहार,  रंग अबीर लगाउ ।।

 
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१.रमेश मण्‍डलसोनू कुमार झा रश्मि३.किशन कारीगर ४.कपि‍लेश्वर राउत
रमेश मण्‍डल
गाम- ि‍नर्मली
पोस्‍ट- ि‍नर्मली
वार्ड नं. 08
थाना- ि‍नर्मली, जि‍ला- सुपौल

संप्रति‍- व्‍याख्‍याता (अंग्रेजी वि‍भाग), अशर्फी दास, साहु-समाज इण्‍टर महि‍ला महावि‍द्यालय- ि‍नर्मली, सुपौल, मि‍थि‍ला-बि‍हार।

ई छथि‍ स्‍कूल प्राईवेट ट्यूटर

नन्‍हि‍टा स्‍कूलक दुनि‍याँमे
रहैत अछि‍ ई प्राईवेट ट्यूटर
हँसैत पान चि‍बबैत
दैत अछि‍ ओ लेक्‍चर
ओ समझैए ऐसँ पैघ नै ई दुनि‍याँ
परंच सच ई अछि‍
हि‍नकासँ बेसी कमाइए एकटा धुनि‍या
कि‍छु तँ घरक खर्ची काटि‍ कऽ
रहैत अछि‍ मेन्‍टीनेन्‍समे
प्रणाम सर सुनि‍ कऽ
बहकैत अछि‍ सेन्‍टीमेंटमे
ओ कहैत अछि‍
हमरासँ नीक अछि‍ कि‍यो ऐ गाममे
परंच सच्‍चाइ ई
चट्टि‍यो नै अछि हि‍नकर पएरमे
अतेक कठि‍नाइ केर बादो
ई स्‍कूल नै छोड़ता
हि‍टलर जकाँ प्राचार्यक आगाँ
हाथ ई जोड़ि‍ बजताह-
ट्यूशन मि‍लैक ई स्‍कूल अछि‍ संगम
बेतन अगर डेढ़ सए रूपैया अछि‍
तैयो एक्को रत्ती ने गम
कम बेतन पाबि‍ हम सन्‍तुष्‍ट हो लेब
सि‍र्फ दूटा ट्यूशन पकड़ा दि‍औ
केनाहि‍तो जीब लेब
हि‍टलर जकाँ प्राचार्य हि‍नका
मनमानीसँ जोतैत
कखनो ओ कार्यालयमे रखैत
तँ कखनो ओ सब्‍जी अनबाक लेल पठबैत
मि‍लब अहाँसँ फुसलाएब अहाँकेँ
कि‍ बच्‍चा दि‍अ हमरा वि‍द्यालयमे अवश्‍य
एकर संख्‍या बढ़त
तँ खरि‍दब एक स्‍कूल बस
एतै रहि‍ प्राचार्यक जी-हजूरी करब
अगर वि‍चार नै मि‍लत
तँ नबका स्‍कूल खोलब
हि‍नक नारा अछि‍-
अहाँ बच्‍चाकेँ स्‍वस्‍थ नागरीक बना देब
मुदा हि‍नक पढ़ाओल बच्‍चा
चाह-पान बेचैत नजर आऔत
अंतमे रमेश सर अपन नसीहत
भूल भऽ प्राइवेट ट्यूटर नै बनब
नारि‍यल बेचि‍ लेब
मजासँ रहब
प्राइवेट ट्यूटरक ई दर्दनाक कहानी
आ कतेक सच्‍ची कतेक सुहानी
२.
सोनू कुमार झा रश्मि’, द्वारा श्री विमल कुमार झा, ग्राम- हरिनगर ,पो.रघुनीदेहट, जिला मधुबनी . बिहार

कविता
संतुलन
धरती पर पयर धरवा सं पहिने
मुक्त हवामे साँस लेवासं पहिने
अपन आँखिए किछु देखवासं पहिने
मारल जाइत छी जन्म लेवा सं पहिने
   
शो़कक लहरि पसरि जाइत अछि
जाहि घर जन्म लैत छी
कयल जाइत अछि जन्मे सं कुभेला
सभक नजरिसं अबडेरल जाइत छी

सभ दिन रहलहुं हम आगू
भेटल जखन मौका हमरा
तखन कियेक करइ छी हमरा संग अन्याय
रोकै छी कियेक अयबा सं हमरा

अछि प्रश्न ओहि मायसं हमरा
कहबैत छथि जे एक्कैसम सदीक नारी
उडितहु कोना आकाशमे
माय जं गर्भमे दितथि मारि
  
अछि हमर एकटा अर्जी
नहि रोकू धरती पर अयवासं
टूटि जायत सृष्टिक संतुलन
केवल हमरेटा मरला सं
३.

किशन कारीगर
 
करीक्का रूपैया।
          (हास्य कविता)
नेहोरा करैत करैत मरि गेल कारीगर
नहि लियअ आ ने दियअ करीक्का रूपैया
मुदा ई की कोनो काज करेबाक अछि
त कहल जायत जल्दी लाउ करीक्का रूपैया।

मौका भेटला पर सरकारी बाबू नहि छोड़त
रूपैया बिन एक्को टा काज ने होएत
अहाँ फायल ल व्यर्थ घूमैत छी यौ भैया
काज करेबाक अछि त जल्दी लाउ करीक्का रूपैया।।

कहलहुँ त स्वीस बैंक मे खाता खोलाएब
चुपेचाप पार्टी ऑफिस मे चंदा जमा कराएब
जीबैत जिनगी हम अप्पन मुर्ती बनाएब
मोन होएत त विदेश यात्रा पर जाएब।।

कतबो हल्ला करब तै स की
स्वीस बैंक मे जमा रहत करबै की
लुटा रहल अछि सरकारी खजाना
अहुँ लुटु हमहुँ लुटैत छी जमा करू करीक्का रूपैया।।

भ्रष्टाचाराक ढे़रीऔलहा संपति हमरे छी
एहि दुआरे पक्ष-विपक्ष मे झगरा भेल औ भैया
एक दोसराक मुँह पर करीक्का स्याही फेकलक
राजनैतिक घमासान मचा देलक करीक्का रूपैया।।

रामलीला मैदान मे जनआंदोलन भेल
लोकपाल पर कोनो ठोस कारवाई ने भेल
सरकार फोंफ काटि रहल अछि बुझलहुँ की
साफ सुथरा लोकपाल कहियो आउत ने।।

भ्रष्टाचार मे खूम नाम कमेलहुँ मुदा
तइयो संतोष नहि भेल औ भैया
भ्रष्टाचाराक रोटी खा देह फुलाउ
संपैत ढ़ेरियाउ अहाँ जमा करू करीक्का रूपैया।।

दुनियाक सभ सँ नमहर लोकतंत्र मे
कुर्सी हथिएबाक होड़ मचल अछि
अहाँ जुनि पछुआउ गठजोड़ करू यौ भैया
चुपेचाप अहाँ जमा करू करीक्का रूपैया।।


हल्ला-गुल्ला करने किछ काज ने होएत
बिना किछ लेने-देने फायल ने घुसकत
ईमानदारी स किछो नहि तकैत की छी
जल्दी जेबी गरम करू लाउ अहाँ करीक्का रूपैया।।

कपि‍लेश्वर राउत
कवि‍ता-

माइक ओद्रमे जे भाषा सि‍खलक
परदेश जा सभ वि‍सरलक।
गाम आबि‍ काहे-कुहे बजैए
समाज कहैत आब बड्ड बुझैए।
पढ़ल लि‍खल आर वि‍गारलक
बाल बच्‍चाकेँ कनभेन्‍ट धरेलक।
चालि‍-ढालि‍ अंग्रेजि‍या पकड़ि‍
मातृभाषाकेँ खि‍ल्‍ली उड़ौलक।
अप्‍पन भाषा बि‍सरि‍
बहरबैया भाषा अपनौलक।
अहाँ मैथि‍लीकेँ केना आगू केलौं
अपने तँ गेबे केलौं बच्‍चोकेँ भसि‍एलौं।
जेतबो इज्‍जत गौआँ दइए
परदेशी ओकरा थकुचैए।
गौआँ-घरूआ मैथि‍ली जि‍याबए
परदेशि‍या बाहर भगाबए।
कनि‍ये अंग्रेजि‍या जोर लगबि‍औ
मैथि‍लीकेँ आगाँ देखबि‍औ।
जनक आ सीताक भाषा अपनाउ
कर्म छोड़ू नै अपनाकेँ बनाउ।

वि‍द्यापति‍ आ यात्री कहि‍ गेला
मण्‍डन आ अयाची कर्म वीर भेला।
अप्‍पन भाषा सभ जन मि‍ठ्ठा
एकरा नै बुझू हँसी ठठ्ठा।




 
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विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत

राजनाथ मिश्र
चित्रमय मिथिला स्लाइड शो
चित्रमय मिथिला (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )

.
उमेश मण्डल

मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो
मिथिलाक जिनगी स्लाइड शो
मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव जन्तु/ मिथिलाक जिनगी  (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )


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विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
 ३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ मैथिली अनुवाद धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.
मंगलेश डबराल- हिन्दीसँ मैथिली अनुवाद विनीत उत्पल
घर शांत अछि


रौद भीत
केँ रकमे-रकम तपा रहल अछि
लगे मे एकटा
मद्धिम आँच अछि
बिछौना पर एकटा गेंद पड़ल अछि
पोथी चुपचाप अछि
मुदा ओकरामे कतेक रास
बिपैत बंद अछि

हम अधजागल छी आर अधसुतल छी
अधसुतल छी आर अधजागल छी
बाहरसँ
आबै बला शोरमे
केकरो कानैक शोर
नै अछि
केकरो धमकाबैक वा डरैक शोर
नै अछि
नै
कियो प्रार्थना कऽ रहल अछि
नै
कियो भीख मांगि रहल अछि

आ हमर भीतर कनियो टा मैल नै
अछि
मुदा एकटा परछायल ठाम अछि
जतय कियो रहि सकैत अछि
आ हम लाचार
नै छी काल
मुदा भरल छी एकटा जरूरी वेदनासँ
आ हमरा
मोन पड़ि रहल अछि नेना कालक घर
जकर
अंगनामे चितंग भऽ हम
पीठ पर धूप
तापैत रही

हम दुनियासँ
किछु नै मांगि रहल छी
हम जी सकैत छी
लुक्खी, गेंद वा घास
सन कोनो जिनगी
हमरा चिंता
नै
कहिया कियो झठहासँ
हिलाकऽ ढाहि देतै
शांत घरकेँ।

(रचनाकाल :
1990)

बालानां कृते
डॉ॰ शशिधर कुमर विदेह” –
कीनि दे हमरो खेलौना
(बालगीत)

            माए गे माए !  कीनि दे हमरा खेलौना ।
कनिञा पुतरा केर दिन गेलै,  लेब ने  हम झुनझूऽऽना ।।


हम्मर  इसकुल  केर संगी सभ,
जानि  ने   की की   लाबैए ।
मैथिल बुड़िबककहि कऽ हमरा,
    सभ   रोज   सिहाबैए ।
हमरो  कीनि  दे  बार्बी  गुड़िया,  डिज्नी  बला  खेलौना ।
               माए गे माए ! कीनि दे हमरा खेलौना ।।


केओ उड़ाबए  हवाई जहाज,
केओ  मोटर  केँ   दौड़ाबैए ।
केओ हाथ  बन्दूक  लऽ घूमए,
विडियो गेम     देखाबैए ।
सभहक  हाथ  रिमोट  खेलौना,  हमरा  लग  टुनमूऽऽना ।
               माए गे माए ! कीनि दे हमरा खेलौना ।।


धिया   भारती सिया  हमर,
  बौआ  गौतम मण्डन ।
धिया  हमर  बुधियारि  बहुत,
  बौआ  तेहने   सज्जन ।
जुनि कानू, मोन छोट करू नञि, कीनि देब बहुते खेलौना ।
               माए गे माए ! कीनि दे हमरा खेलौना ।।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com  पर पठाउ।


 बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी  धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आसर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आघोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आयुवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आनेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आऔषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आमित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽबिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।

8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1 to 8.3 MAITHILI LITERATURE IN ENGLISH



विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन  

Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
English to Maithili
Maithili to English

इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष  प्रोजेक्टकेँ आगू बढ़ाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.
१.भारत आ नेपालक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली २.मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम

१.नेपाल भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली

१.१. नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक
  उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, , , न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण र् हजकाँ होइत अछि। अतः जतऽ र् हक उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आन ठाम खाली ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्द सभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहि सभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु क उच्चारण जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएबला शब्द सभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, यावत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ क प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमे सँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़गेलाह, लेल, उठपड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग) स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ) वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ) क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च) क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटि कऽ दोसर ठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु (माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्द सभमे ई निअम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्द सभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषा सम्बन्धी निअम अनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरण सम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्ष सभकेँ समेटि कऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनीकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽबला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषी पर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़ि रहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषता सभ कुण्ठित नहि होइक, ताहू दिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

१.२. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

१. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि
, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर
, तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन
, अखनि, एखेन, अखनी
ठिमा
, ठिना, ठमा
जेकर
, तेकर
तिनकर। (वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ
, अहि, ए।

२. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैकल्पिकतया अपनाओल जाय: भऽ गेल
, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। करगेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

३. प्राचीन मैथिलीक
न्हध्वनिक स्थानमे लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

४.
तथा ततय लिखल जाय जतस्पष्टतः अइतथा अउसदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

५. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह
, सैह, इएह, ओऐह, लैह तथा दैह।

६. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे
के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

७. स्वतंत्र ह्रस्व
वा प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ वा लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

८. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे
ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

९. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव
लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

१०. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ
, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। मेमे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। क वैकल्पिक रूप केरराखल जा सकैत अछि।

११. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद
कयवा कएअव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

१२. माँग
, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

१३. अर्द्ध
ओ अर्द्ध क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ’ , ‘’, तथा क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

१४. हलंत चिह्न निअमतः लगाओल जाय
, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

१५. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क
लिखल जाय, हटा कनहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

१६. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रापर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

१७. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

१८. समस्त पद सटा क
लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ ,  हटा कनहि।

१९. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

२०. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

२१.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा
' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

  २. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
२.१. उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-   
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग
गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ (उच्चारण)
छथि- छ इ थ  – छैथ (उच्चारण)
पहुँचि- प हुँ इ च (उच्चारण)
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ऐ सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा ऐमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री  रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- ऐ लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव  http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ / कऽ हटा कऽ। ऐमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना
छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नै। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए-
रहै मुदा सकैए (उच्चारण सकै-ए)।
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा। पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए
छलै, छलए मे सेहो ऐ तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- (उच्चारण संजोगने)
केँ/  कऽ
केर- (
केर क प्रयोग गद्यमे नै करू , पद्यमे कऽ सकै छी। )
क (जेना रामक)
–रामक आ संगे (उच्चारण राम के /  राम कऽ सेहो)
सँ- सऽ (उच्चारण)
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नै। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- (उच्चारण राम सऽ)  रामकेँ- (उच्चारण राम कऽ/ राम के सेहो)।

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ , तऽ , , केर (गद्यमे) एे चारू शब्द सबहक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना, के कहलक? विभक्ति क बदला एकर प्रयोग अवांछित।
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ, नइं ऐ सभक उच्चारण आ लेखन - नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नै) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नै- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नै)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नै)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नै)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/ पोछै लेल/ पोछए लेल
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन) पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नै)
ओइ/ ओहि
ओहिले/
ओहि लेल/ ओही लऽ
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक/ (देखिऔक नै- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ / जेकाँ
तँइ/ तैँ/
होएत / हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ/ नै
सौँसे/ सौंसे
बड़ /
बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि), मुदा गाइक दूध (गाएक दूध नै।)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलौं/ समझलौं/ बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नै)
होइन/ होनि
जाइन (जानि नै, जेना देल जाइन) मुदा जानि-बूझि (अर्थ परिव्र्तन)
पइठ/ जाइठ
आउ/ जाउ/ आऊ/ जाऊ
मे, केँ, सँ, पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेसी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ। जेना ऐमे सँ ।
एकटा , दूटा (मुदा कए टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नै। आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नै (जेना दिअ
,/ दिय’ , ’, आ नै )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एतए सेहो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नै दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे/ ऐमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ, नै)
सँ ( सऽ स नै)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)
 तै/तइ जेना- तै दुआरे/ तइमे/ तइले
जै/जइ जेना- जै कारण/ जइसँ/ जइले
ऐ/अइ जेना- ऐ कारण/ ऐसँ/ अइले/ मुदा एकर एकटा खास प्रयोग- लालति‍ कतेक दि‍नसँ कहैत रहैत अइ
लै/लइ जेना लैसँ/ लइले/ लै दुआरे
लहँ/ लौं

गेलौं/ लेलौं/ लेलँह/ गेलहुँ/ लेलहुँ/ लेलँ
जइ/ जाहि‍/ जै
जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम
एहि‍/ अहि‍/
अइ (वाक्यक अंतमे ग्राह्य) /
अइछ/ अछि‍/ ऐछ
तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍
ओहि‍/ ओइ
सीखि‍/ सीख
जीवि‍/ जीवी/ जीब 
भलेहीं/ भलहि‍ं 
तैं/ तँइ/ तँए
जाएब/ जएब
लइ/ लै
छइ/ छै
नहि‍/ नै/ नइ
गइ/ गै 
छनि‍/ छन्‍हि ...
समए शब्‍दक संग जखन कोनो वि‍भक्‍ति‍ जुटै छै तखन समै जना समैपर इत्‍यादि‍। असगरमे हृदए आ वि‍भक्‍ति‍ जुटने हृदे जना हृदेसँ, हृदेमे इत्‍यादि‍।  
जइ/ जाहि‍/
जै
जहि‍ठाम/ जाहि‍ठाम/ जइठाम/ जैठाम
एहि‍/ अहि‍/ अइ/
अइछ/ अछि‍/ ऐछ
तइ/ तहि‍/ तै/ ताहि‍
ओहि‍/ ओइ
सीखि‍/ सीख
जीवि‍/ जीवी/
जीब 
भले/ भलेहीं/
भलहि‍ं 
तैं/ तँइ/ तँए
जाएब/ जएब
लइ/ लै
छइ/ छै
नहि‍/ नै/ नइ
गइ/
गै 
छनि‍/ छन्‍हि‍
चुकल अछि/ गेल गछि
२.२. मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
नीचाँक सूचीमे देल विकल्पमेसँ लैंगुएज एडीटर द्वारा कोन रूप चुनल जेबाक चाही:
बोल्ड कएल रूप ग्राह्य:  
१.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
२. आ’/आऽ
३. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
४. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए
गेल
५. कर’ गेलाह/करऽ
गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
६.
लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
७. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करैबला/क’र’ बला /
करैवाली
८. बला वला (पुरूष), वाली (स्‍त्री) ९
.
आङ्ल आंग्ल
१०. प्रायः प्रायह
११. दुःख दुख १
२. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
१३. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
१४.
देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
१५. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
१६. चलैत/दैत चलति/दैति
१७. एखनो
अखनो
१८.
बढ़नि‍ बढ़इन बढ़न्हि
१९. ओ’/ओऽ(सर्वनाम)
२०
. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
२१. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
२२.
जे जे’/जेऽ २३. ना-नुकुर ना-नुकर
२४. केलन्हि/केलनि‍/कयलन्हि
२५. तखनतँ/ तखन तँ
२६. जा
रहल/जाय रहल/जाए रहल
२७. निकलय/निकलए
लागल/ लगल बहराय/ बहराए लागल/ लगल निकल’/बहरै लागल
२८. ओतय/ जतय जत’/ ओत’/ जतए/ ओतए
२९.
की फूरल जे कि फूरल जे
३०. जे जे’/जेऽ
३१. कूदि / यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/
यादि (मोन)
३२. इहो/ ओहो
३३.
हँसए/ हँसय हँसऽ
३४. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/ नौ वा दस
३५. सासु-ससुर सास-ससुर
३६. छह/ सात छ/छः/सात
३७.
की  की’/ कीऽ (दीर्घीकारान्तमे ऽ वर्जित)
३८. जबाब जवाब
३९. करएताह/ करेताह करयताह
४०. दलान दिशि दलान दिश/दलान दिस
४१
. गेलाह गएलाह/गयलाह
४२. किछु आर/ किछु और/ किछ आर
४३. जाइ छल/ जाइत छल जाति छल/जैत छल
४४. पहुँचि/ भेट जाइत छल/ भेट जाइ छलए पहुँच/ भेटि‍ जाइत छल
४५.
जबान (युवा)/ जवान(फौजी)
४६. लय/ लए ’/ कऽ/ लए कए / लऽ कऽ/ लऽ कए
४७. ल’/लऽ कय/
कए
४८. एखन / एखने / अखन / अखने
४९.
अहींकेँ अहीँकेँ
५०. गहींर गहीँर
५१.
धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
५२. जेकाँ जेँकाँ/
जकाँ
५३. तहिना तेहिना
५४. एकर अकर
५५. बहिनउ बहनोइ
५६. बहिन बहिनि
५७. बहिन-बहिनोइ
बहिन-बहनउ
५८. नहि/ नै
५९. करबा / करबाय/ करबाए
६०. तँ/ त ऽ तय/तए
६१. भैयारी मे छोट-भाए/भै/, जेठ-भाय/भाइ,
६२. गि‍नतीमे दू भाइ/भाए/भाँइ  
६३. ई पोथी दू भाइक/ भाँइ/ भाए/ लेल। यावत जावत
६४. माय मै / माए मुदा माइक ममता
६५. देन्हि/ दइन दनि‍/ दएन्हि/ दयन्हि दन्हि/ दैन्हि
६६. द’/ दऽ/ दए
६७. (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
६८. तका कए तकाय तकाए
६९. पैरे (on foot) पएरे  कएक/ कैक
७०.
ताहुमे/ ताहूमे
 ७१.
पुत्रीक
७२.
बजा कय/ कए / कऽ
७३. बननाय/बननाइ
७४. कोला
७५.
दिनुका दिनका
७६.
ततहिसँ
७७. गरबओलन्हि/ गरबौलनि‍/
 रबेलन्हि/ गरबेलनि‍
७८. बालु बालू
७९.
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
८०. जे जे’
८१
. से/ के से’/के’
८२. एखुनका अखनुका
८३. भुमिहार भूमिहार
८४. सुग्गर
/ सुगरक/ सूगर
८५. झठहाक झटहाक ८६.
छूबि
८७. करइयो/ओ करैयो ने देलक /करियौ-करइयौ
८८. पुबारि
पुबाइ
८९. झगड़ा-झाँटी
झगड़ा-झाँटि
९०. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
९१. खेलएबाक
९२. खेलेबाक
९३. लगा
९४. होए- होहोअए
९५. बुझल बूझल
९६.
बूझल (संबोधन अर्थमे)
९७. यैह यएह / इएह/ सैह/ सएह
९८. तातिल
९९. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ/ एनाइ
१००. निन्न- निन्द
१०१.
बिनु बिन
१०२. जाए जाइ
१०३.
जाइ (in different sense)-last word of sentence
१०४. छत पर आबि जाइ
१०५.
ने
१०६. खेलाए (play) –खेलाइ
१०७. शिकाइत- शिकायत
१०८.
ढप- ढ़प
१०९
. पढ़- पढ
११०. कनिए/ कनिये कनिञे
१११. राकस- राकश
११२. होए/ होय होइ
११३. अउरदा-
औरदा
११४. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
११५. बुझएलन्हि/बुझेलनि‍/ बुझयलन्हि (understood himself)
११६. चलि- चल/ चलि‍ गेल
११७. खधाइ- खधाय
११८.
मोन पाड़लखिन्ह/ मोन पाड़लखि‍न/ मोन पारलखिन्ह
११९. कैक- कएक- कइएक
१२०.
लग ल’ग 
१२१. जरेनाइ
१२२. जरौनाइ जरओनाइ- जरएनाइ/
जरेनाइ
१२३. होइत
१२४.
गरबेलन्हि/ गरबेलनि‍ गरबौलन्हि/ गरबौलनि‍
१२५.
चिखैत- (to test)चिखइत
१२६. करइयो (willing to do) करैयो
१२७. जेकरा- जकरा
१२८. तकरा- तेकरा
१२९.
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
१३०. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/ करबेलहुँ करबेलौं
१३१.
हारिक (उच्चारण हाइरक)
१३२. ओजन वजन आफसोच/ अफसोस कागत/ कागच/ कागज
१३३. आधे भाग/ आध-भागे
१३४. पिचा / पिचाय/पिचाए
१३५. नञ/ ने
१३६. बच्चा नञ
(ने) पिचा जाय
१३७. तखन ने (नञ) कहैत अछि। कहै/ सुनै/ देखै छल मुदा कहैत-कहैत/ सुनैत-सुनैत/ देखैत-देखैत
१३८.
कतेक गोटे/ कताक गोटे
१३९. कमाइ-धमाइ/ कमाई- धमाई
१४०
. लग ल’ग
१४१. खेलाइ (for playing)
१४२.
छथिन्ह/ छथिन
१४३.
होइत होइ
१४४. क्यो कियो / केओ
१४५.
केश (hair)
१४६.
केस (court-case)
१४७
. बननाइ/ बननाय/ बननाए
१४८. जरेनाइ
१४९. कुरसी कुर्सी
१५०. चरचा चर्चा
१५१. कर्म करम
१५२. डुबाबए/ डुबाबै/ डुमाबै डुमाबय/ डुमाबए
१५३. एखुनका/
अखुनका
१५४. लए/ लिअए (वाक्यक अंतिम शब्द)- लऽ
१५५. कएलक/
केलक
५६. गरमी गर्मी
१५७
. वरदी वर्दी
१५८. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
१५९. एनाइ-गेनाइ
१६०.
तेना ने घेरलन्हि/ तेना ने घेरलनि‍
१६१. नञि / नै
१६२.
डरो ड’रो
१६३. कतहु/ कतौ कहीं
१६४. उमरिगर-उमेरगर उमरगर
१६५. भरिगर
१६६. धोल/धोअल धोएल
१६७. गप/गप्प
१६८.
के के’
१६९. दरबज्जा/ दरबजा
१७०. ठाम
१७१.
धरि तक
१७२.
घूरि लौटि
१७३. थोरबेक
१७४. बड्ड
१७५. तोँ/ तू
१७६. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
१७७. तोँही / तोँहि
१७८.
करबाइए करबाइये
१७९. एकेटा
१८०. करितथि /करतथि
 १८१.
पहुँचि/ पहुँच
१८२. राखलन्हि रखलन्हि/ रखलनि‍
१८३.
लगलन्हि/ लगलनि‍ लागलन्हि
१८४.
सुनि (उच्चारण सुइन)
१८५. अछि (उच्चारण अइछ)
१८६. एलथि गेलथि
१८७. बितओने/ बि‍तौने/
बितेने
१८८. करबओलन्हि/ करबौलनि‍/
करेलखिन्ह/ करेलखि‍न
१८९. करएलन्हि/ करेलनि‍
१९०.
आकि/ कि
१९१. पहुँचि/
पहुँच
१९२. बत्ती जराय/ जराए जरा (आगि लगा)
१९३.
से से’
१९४.
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
१९५. फेल फैल
१९६. फइल(spacious) फैल
१९७. होयतन्हि/ होएतन्हि/ होएतनि‍/हेतनि‍/ हेतन्हि
१९८. हाथ मटिआएब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटियाएब
१९९. फेका फेंका
२००. देखाए देखा
२०१. देखाबए
२०२. सत्तरि सत्तर
२०३.
साहेब साहब
२०४.गेलैन्ह/ गेलन्हि/ गेलनि‍
२०५. हेबाक/ होएबाक
२०६.केलो/ कएलहुँ/केलौं/ केलुँ
२०७. किछु न किछु/
किछु ने किछु
२०८.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ/ घुमेलौं
२०९. एलाक/ अएलाक
२१०. अः/ अह
२११.लय/
लए (अर्थ-परिवर्त्तन) २१२.कनीक/ कनेक
२१३.सबहक/ सभक
२१४.मिलाऽ/ मिला
२१५.कऽ/
२१६.जाऽ/
जा
२१७.आऽ/
२१८.भऽ /भ’ ( फॉन्टक कमीक द्योतक)
२१९.निअम/ नियम
२२०
.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२२१.पहिल अक्षर ढ/ बादक/ बीचक ढ़
२२२.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
२२३.कहिं/ कहीं
२२४.तँइ/
तैं / तइँ
२२५.नँइ/ नइँ/  नञि/ नहि/नै
२२६.है/ हए / एलीहेँ/
२२७.छञि/ छै/ छैक /छइ
२२८.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२२९. (come)/ आऽ(conjunction)
२३०.
आ (conjunction)/ आऽ(come)
२३१.कुनो/ कोनो, कोना/केना
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि-गेलनि‍
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ-कएलहुँ/केलौं
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)- (conjunction-and)/आ। आब'-आब' /आबह-आबह
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ- घुमेलाें
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/ होन्हि/
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५
.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौं
/ ज्योँ/ जँ/
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो/ कोनहुँ/
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कोना/ केना/ कन्‍ना/कना
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलनि‍/
गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि/ केलनि‍/
२५८.लय/ लए/ लएह (अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक/कनी-मनी
२६०.पठेलन्हि‍ पठेलनि‍/ पठेलइन/ पपठओलन्हि/ पठबौलनि‍/
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नै/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह (बिकारी) क प्रयोग उचित
२६५.केर (पद्यमे ग्राह्य) / -/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत/
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१
.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक/पि‍येबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह/ औताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जइ/ जै/
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जअए/ जए (लालति‍ जाए लगलीह।)
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै/ तइ
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलौं/ कहै छलौं- अहिना चलैत/ पढ़ैत
(पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित) - आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझै छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/ सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/ बिन। रातिक/ रातुक बुझै आ बुझैत केर अपन-अपन जगहपर प्रयोग समीचीन अछि‍। बुझैत-बुझैत आब बुझलि‍ऐ। हमहूँ बुझै छी।
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट/ भेँट
२९१.
खन/ खीन/  खुना (भोर खन/ भोर खीन)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/ गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नै अछि। वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८
.वाली/ (बदलैवाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
३००. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (
भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६. (come)/ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, यथासंभव बीचमे नै।
३०९.कहैत/ कहै
३१०.
रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच/ कागत
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय
भारोपीयभाषासन्दर्भे ध्वनिविमर्शः

विद्यावाचस्पति डा. सदानन्द झा
व्याकरणविभागाध्यक्षः
लगमा दरभंगा, बिहारः

भारोपीयभाषाचिन्तनं साम्प्रतिकेयुगे नितरामपेक्षते। संगणकीयभाषाविज्ञानस्य कृते ध्वनिविवेचनं अतीवदुष्करम् इति सुविदितम्मेव। तत्र मूल भारोपीयध्वनिनां स्वरूप निर्धारणं कठिनं कार्यमस्ति। डा०सुनितिकुमारचटर्जी-डासुकुमारसेनमहाभागौ आङ्ग्ल-फ्रेंच-जर्मनप्रभृतिग्रन्थाधारेण ध्वनीनां संक्षिप्त स्वरूपं स्वस्वग्रन्थेषु प्रतिपादितवन्तौ। यद्यपि तन्न पूर्णतो निर्दुष्टं तथापि प्रशस्यतरम्। डा. भोलानाथ तिवारिमहाभागाः मूलभारोपीयध्वनीनां स्वरूपमेवमेवादिषुः-
१.   स्वरः
a.  मूलस्वराः
                               i.   अतिह्रस्वः
                             ii.   ह्रस्वः
                            iii.   दीर्घः
संयुक्तस्वराः
२.   अन्तस्थाः
३.   व्यंजनानि
a.  स्पर्शाः
                               i.   कवर्गः
                             ii.   तवर्गः
                            iii.   पवर्गः
b.  ऊष्माः
उपरुक्तेषुभेदेष्वपि तत्र भेदप्रभेदाः परिगणितास्सन्ति। एषु मूलभारोपीयध्वनिषु अतिह्रस्व अँ इत्युदासीनोऽर्धमात्रिकस्वरोवर्तते। अस्योच्चारणमस्पष्टमेव भवति। अत एवायं ह्रस्वार्धस्वरोऽपि कथ्यते। यूरोपीय भाषास्वयं ’Schwa’ इति निगद्यते इति लिख्यते च।
          अन्तःस्थास्वरव्यञ्जनयोर्मध्ये तिष्ठन्ति। अत एषां नामान्वर्थम्। इमे  कदाचित् स्वरवत् कदाचित् व्यञ्जनवच्च प्रयुज्यन्ते। केचिदिमान् स्वरव्यंजनरूपत्वेन द्वादशधाऽऽमनन्ति। परन्तु नेदं रुचिरम्। तेषां मूलतो षोढात्वात्। प्रयोगे भवतु नाम द्वादशधात्वम्। एतेऽन्तस्थाऽर्धव्यंजन शब्देनाऽपि गद्यन्ते। एषां स्वरूपाणि स्वनन्तार्धस्वरप्रभृतिशब्दैर्व्यपदिश्यन्ते। व्यञ्जनेषु कवर्गस्य त्रयः प्रकाराः आसन्। तत्र क् ख ग घ इति प्रथमं प्रकारं सामान्यकवर्गं मन्यन्ते केचित्। केचन च तालुसाहाय्येनोच्चारितं क्य ख्य ग्य घ्य इति प्रथमं कवर्गं स्वीकुर्वन्ति
मूलभारोपीयध्वनिषु ह्ध्वनेः सत्तायां विवदन्ते विद्वांसः। केचिन्न स्वीकुर्वन्ति। परे मन्यन्ते। अपरे घोषाघोषाभ्यां तस्य द्वैविध्यमामनन्ति। अन्ये च ध्वनिमेवोष्माणां वदन्ति न तु हकारमपि। कतिपये पण्डिताः मूलभारोपीयध्वनिषु ख् ग् घ् त् थ् द् ध् झ् इत्यादीनां संघर्षिणा ध्वनीनामपि सत्तामंगी कुर्वन्ति।
          अँ, इँ इत्याद्यनुनासिक ध्वनीनाभावः एकाधिकमूलस्वराणां सहप्रयोगस्य विरहः सन्धिः संयुक्तव्यंजनसद्भावश्चेत्यादीनि मूलभारोपीयभाषायाः ध्वनिगतं वैशिष्ट्यं प्रमुख्यापयन्ति। अत्र विस्तारभयात् सर्वेषां विवरणं नोपस्थाप्य विरम्यते।

॥ शम् ॥

Festivals of Mithila
DATE-LIST (year- 2011-12)
(१४१९ साल)
Marriage Days:
Nov.2011- 20,21,23,25,27,30
Dec.2011- 1,5,9
January 2012- 18,19,20,23,25,27,29
Feb.2012- 2,3,8,9,10,16,17,19,23,24,29
March 2012- 1,8,9,12
April 2012- 15,16,18,25,26
June 2012- 8,13,24,25,28,29
Upanayana Days:
February 2012- 2,3,24,26
March 2012- 4
April 2012- 1,2,26
June 2012- 22
Dviragaman Din:
November 2011- 27,30
December 2011- 1,2,5,7,9,12
February 2012- 22,23,24,26,27,29
March 2012- 1,2,4,5,9,11,12
April 2012- 23,25,26,29
May 2012- 2,3,4,6,7
Mundan Din:
December 2011- 1,5
January 201225,26,30
March 2012- 12
April 2012- 26
May 2012- 23,25,31
June 2012- 8,21,22,29

FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-20 July
Madhushravani- 2 August
Nag Panchami- 4 August
Raksha Bandhan- 13 Aug
Krishnastami- 21 August
Kushi Amavasya / Somvari Vrat- 29 August
Hartalika Teej- 31 August
ChauthChandra-1 September
Karma Dharma Ekadashi-8 September
Indra Pooja Aarambh- 9 September
Anant Caturdashi- 11 Sep
Agastyarghadaan- 12 Sep
Pitri Paksha begins- 13 Sep
Mahalaya Aarambh- 13 September
Vishwakarma Pooja- 17 September
Jimootavahan Vrata/ Jitia-20 September
Matri Navami- 21September
Kalashsthapan- 28 September
Belnauti- 2 October
Patrika Pravesh- 3 October
Mahastami- 4 October
Maha Navami - 5 October
Vijaya Dashami- 6 October
Kojagara- 11 Oct
Dhanteras- 24 October
Diyabati, shyama pooja-26 October
Annakoota/ Govardhana Pooja-27  October
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-28 October
Chhathi-kharna -31 October
Chhathi- sayankalik arghya - 1 November
Devotthan Ekadashi- 17 November
Sama poojarambh- 2 November
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 10 Nov
ravivratarambh- 27 November
Navanna parvan- 29 November
Vivaha Panchmi- 29 November
Makara/ Teela Sankranti-15 Jan
Naraknivaran chaturdashi- 21 January
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 28 January
Achla Saptmi- 30 January
Mahashivaratri-20 February
Holikadahan-Fagua-7 March
Holi-9 Mar
Varuni Yoga-20 March
Chaiti  navaratrarambh- 23 March
Chaiti Chhathi vrata-29 March
Ram Navami- 1 April
Mesha Sankranti-Satuani-13 April
Jurishital-14 April
Akshaya Tritiya-24 April
Ravi Brat Ant- 29 April
Janaki Navami- 30 April
Vat Savitri-barasait- 20 May
Ganga Dashhara-30 May
Somavati Amavasya Vrata- 18 June
Jagannath Rath Yatra- 21 June
Hari Sayan Ekadashi- 30 June
Aashadhi Guru Poornima-3 Jul


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२. संदेश-

[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]

१.श्री गोविन्द झा- विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ। सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल। हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु- मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा "विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल अभिनन्दन।  
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन  भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर- मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। विदेहनिरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा- "विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रिं‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति अछि सात खण्डमे।  मुदा अहाँक सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक। (स्पष्टीकरण-  श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री आर्काइवमे https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि ताहिपर हमर कोनो नियंत्रण नहि अछि।- गजेन्द्र ठाकुर)...   अहाँक प्रति अशेष शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी। "विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि- बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा- अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई। 
२४.श्रीमती डॉ नीता झा- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे हमर उपन्यास स्त्रीधन जे विरोध कएल गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी- सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक- विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी। विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर- कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी- विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल। बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प- मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा- सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र- विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर- अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम् तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक प्रयासक कतबो प्रश‍ंसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनकविदेह:सदेह पढ़ि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण- अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल। हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द- विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक अनेक धन्यवाद; कतेक बरखसँ हम नेयारैत छलहुँ जे सभ पैघ शहरमे मैथिली लाइब्रेरीक स्थापना होअए, अहाँ ओकरा वेबपर कऽ रहल छी, अनेक धन्यवाद। 
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखल, बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन- विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज- अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा "सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक, एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन् सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र- प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित विदेहकुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनकविलक्षण पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल , हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि - श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ। मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक मे  समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ अहाँक जुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी- मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम्‌ अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल। पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो अहाँसँ आशा अछि।
७६.श्री उदय चन्द्र झा "विनोद": गजेन्द्रजी, अहाँ जतेक काज कएलहुँ अछि से मैथिलीमे आइ धरि कियो नहि कएने छल। शुभकामना। अहाँकेँ एखन बहुत काज आर करबाक अछि।
७७.श्री कृष्ण कुमार कश्यप: गजेन्द्र ठाकुरजी, अहाँसँ भेँट एकटा स्मरणीय क्षण बनि गेल। अहाँ जतेक काज एहि बएसमे कऽ गेल छी ताहिसँ हजार गुणा आर बेशीक आशा अछि।
७८.श्री मणिकान्त दास: अहाँक मैथिलीक कार्यक प्रशंसा लेल शब्द नहि भेटैत अछि। अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक सम्पूर्ण रूपेँ पढ़ि गेलहुँ। त्वञ्चाहञ्च बड्ड नीक लागल।
 ७९. श्री हीरेन्द्र कुमार झा- विदेह ई-पत्रिकाक सभ अंक ई-पत्रसँ भेटैत रहैत अछि। मैथिलीक ई-पत्रिका छैक एहि बातक गर्व होइत अछि। अहाँ आ अहाँक सभ सहयोगीकेँ हार्दिक शुभकामना।

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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